शाम पांच बजे जगमोहन ड्यूटी पर ब्लू स्टार कसीनो पहुंच गया। उसका चेहरा सोचों में डूबा हुआ था । वो यहां आया तो दूसरे काम में था परंतु अब उसे कसीनो में डकैती करनी पड़ रही थी । ये जरूरी था, वरना बंधु जैसा पागल इंसान अब तो अपनी बहन माला की भी जान लेगा। उसके पीछे हटने की देर है कि माला पर बंधु के कहर का पहाड़ टूट पड़ेगा । जब कि वो माला से बहुत प्यार करने लगा था और उसका बाल भी बांका हो, जगमोहन इस बारे में सोच भी नहीं सकता था। माला उसका प्यार बन गई थी । वो पूरी जिंदगी माला के संग बिताना चाहता था । माला को हमेशा अपने करीब रखना चाहता था ।
बाज बहादुर अभी कसीनो में नहीं पहुंचा था ।
जगमोहन कसीनो में इधर-उधर टहलने लगा। आज वो दूसरी निगाहों से कसीनो को देख रहा था। क्योंकि अब उसे इसी कसीनो में डकैती करनी थी । वो ताश वाले हॉल में पहुंचा, जहां से स्ट्रांग रूम को रास्ता जाता था । इस वक्त मात्र दो टेबलों पर ही लोग ताश खेल रहे थे। जगमोहन ने स्ट्रांग रूम जाने वाले रास्ते की तरफ देखा। वहां का काले शीशे वाला एलमुनियम डोर बंद था और बाहर दो गनमैन खड़े थे । अब जगमोहन का मन करने लगा कि स्ट्रांग रूम को जाकर देखे कि वहां पर क्या-क्या पहरेदारी है, सुरक्षा के कैसे इंतजाम है, परंतु उधर जाना भी आसान नहीं था। कसीनो के चंद खास लोग ही स्ट्रांग रूम वाले रास्ते पर जा सकते थे। परंतु जगमोहन को पूरा विश्वास था कि जब बाज बहादुर के बेटे का अपहरण कर लिया जाएगा तो उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। धीरे-धीरे आगे बढ़ने के रास्ते खुलने लगेंगे। यूं बहादुर को वो पसंद करता था । उसके बेटे का अपहरण नहीं करना चाहता था, परंतु हालात ऐसे बन गए थे कि उसे ऐसा करने को मजबूर होना पड़ रहा था ।
जब वो उस हॉल से बाहर निकला तो ओम नाटियार टकरा गया।
"तुम ?" जगमोहन को देखते ही नाटियार बोला--- "कल तुम कहां थे ?" तुम्हारे गाल को क्या हुआ, सूजा हुआ है ।"
"कल आते समय पैर फिसल गया था । कुछ चोट लग गई तो नहीं आ सका ।" जगमोहन ने अपने गाल को छुआ।
"ओह, दवा वगैरह ली क्या ?"
"अब ठीक है । कल तक शायद पूरी पूरा ठीक हो जाए ।"
"मैनेजर साहब तुम्हारी चिंता कर रहे थे कि तुम नहीं आए । तुम्हारा तो फोन नम्बर भी किसी के पास नहीं था। अपना नम्बर रिसैप्शन के रजिस्टर में नोट करा दो। दोबारा कभी जरूरत पड़े तो, तुमसे बात हो सके ।"
"अभी नोट करा आता हूं ।"
"कल एक आदमी कसीनो से तीस लाख रुपया जीत गया, ताश की गेम में ।"
"अच्छा ।"
"हां । कई लोग खाली हो गए ।" नाटियार मुस्कुराया--- "क्रिसमस और न्यू ईयर में बड़ी-बड़ी रकमें चलती है जुए में ।"
"इसका मतलब अभी तो बड़े खेल होने बाकी हैं ।"
"अभी खिलाड़ी आए कहां हैं। 24 दिसम्बर तक काफी आ जाते हैं । क्रिसमस से भारी जुआ होता है और नए साल तक चलता है । तब तो हम लोगों की ड्यूटी खत्म होते-होते सुबह के पांच बज जाते हैं । ऐसे मौके पर कसीनो में गड़बड़ करने वाले लोग भी आ जाते हैं तब हमें बहुत चौकस रहकर, भीड़ में से ऐसे लोगों को ढूंढ निकालना होता है ।"
"हम चौकस रहेंगे ।"
कोई आदमी नाटियार को बुलाकर ले गया ।
जगमोहन रिसैप्शन पर पहुंचा और स्टाफ रजिस्टर में अपना फोन नम्बर नोट करा दिया ।
उसके बाद ड्यूटी देते जगमोहन टहलने लगा कसीनो में । परंतु उसका ध्यान बार-बार माला की तरफ जा रहा था कि बंधु ने उसे तकलीफ न दी हो । आखिरकार उसने बंधु को फोन किया।
"मैं अपना पूरा ध्यान पूरी तरह कसीनो में नहीं लगा पा रहा हूं ।" जगमोहन ने कहा ।
"क्यों ?" बंधु की आवाज कानों में पड़ी ।
"माला की चिंता है कि तुम उसे मारो-पीटो नहीं ।"
"तुम अपना काम इमानदारी से कर रहे हो न ? मेरे लिए डकैती कर रहे हो न ?"
"हां ।"
"तो माला की फिक्र मत करो। मैं उसे कुछ नहीं कह रहा । वो कमरे में बंद है और आराम से है। जब तुम मेरे से चालाकी करोगे तो तभी मैं उसके पास जाऊंगा। समझ गए तुम ।" कहने के साथ ही उधर से बंधु हंसा--- "कल आओगे न ?"
"हां ।"
"अपना ध्यान काम पर लगाओ, नहीं तो तुम्हें माला नहीं मिलने वाली ।" कहकर उधर से बंधु ने फोन बंद कर दिया था ।
जगमोहन ने फोन जेब में रखा। चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
शाम साढ़े छः बजे उसकी मुलाकात बाज बहादुर से हुई ।
"नमस्कार साहब जी " जगमोहन ने हाथ जोड़कर, मुस्कुराते हुए कहा ।
"तुम्हारे चेहरे पर सूजन कैसी?" बाज बहादुर उसे देखते ही बोला ।
"कल ड्यूटी पर आते वक्त पांव फिसल गया तो थोड़ी चोट लग गई ।
"मैं तो बहुत चिंता में था कि बिना किसी सूचना के तुम गैरहाजिर क्यों रहे । अब तो तबीयत ठीक है न ?"
'जी हां। चेहरा तो कल तक ठीक हो जाएगा ।"
"अपना फोन नम्बर रिसैप्शन पर नोट...।"
"करा दिया साहब । नाटियार जी ने ऐसा करने को कहा था ।"
"गुड । अगले दस दिन सतर्क रह कर काम करो। अब कसीनो में भीड़ बढ़नी शुरू हो जाएगी। चार दिन बाद क्रिसमस और फिर न्यू ईयर है । तुम ठीक तरह अपनी ड्यूटी को अंजाम देना।"
"मैं बहुत बढ़िया ड्यूटी करूंगा साहब जी ।"
बाज बहादुर उसका कंधा थपथपाकर आगे बढ़ गया ।
जगमोहन उसे जाते देखता सोच रहा था कि कल जब उसका बेटा गायब हो जाएगा तो उसकी क्या हालत होगी। क्या तब भी ये इसी तरह कसीनो के कामों को ठीक से संभाल पाएगा ?
जगमोहन कसीनो में आए लोगों पर नजर दौड़ाने लगा। आज कई नए लोग नजर आ रहे थे। और आने वाले दिनों में भी कई लोग नए लोग दिखेंगे। तब तक बाल्को खंडूरी यहां पहुंच जाएगा। बाल्को खंडूरी का ध्यान आते ही देवराज चौहान की तरफ ध्यान गया कि वो काठमांडू में कभी भी पहुंच सकता है । देवराज चौहान बाल्को खंडूरी का मामला संभाल लेगा और वो इधर कसीनो में डकैती का काम निपटा लेगा ।
तभी जगमोहन ठिठक गया । इस वक्त मशीनों वाले जुआघर के हॉल में था। और उसकी निगाह 26-27 वर्ष के एक नेपाली युवक पर टिकी थी। वो सूर्य थापा था जो कि देवराज चौहान की पहचान का था और उसी ने ही ब्लू स्टार कसीनो में वेटर की नौकरी लगवाई। उसी ने ही उसके कहने पर बाज बहादुर को अपरहण करवा, उसके साथ उस गोदाम में डाला था कि वो और बाज बहादुर करीब आ सकें और वो किसी तरह कसीनो में प्रवेश पा सके।
जगमोहन सीधा सूर्य थापा के पास जा पहुंचा ।
सूर्य थापा जेब में हाथ डाले, वहां नजरें दौड़ा रहा था ।
"तुम यहां कैसे ?" जगमोहन ने धीमे स्वर में पूछा ।
सूर्य थापा पलटा और जगमोहन को देखते ही कह उठा ।
"तुम ?" मैं सोच ही रहा था कि यहां तुमसे मुलाकात हो सकती है ।"
"तुम यहां क्यों आए हो ?"
"चिंता मत करो । मैं यहां आता ही रहता हूं ।" सूर्यथापा बोला--- "विदेशियों को यहां लाता हूं और वो मुझे खुश होकर कुछ दे देते हैं तो मेरा खर्चा-पानी भी चल जाता है । आज बर्मा से आए दो लोगों को यहां लाया हूं। वो उधर मशीनों पर खेल रहे हैं । उन्होंने मुझे रुकने को कहा ।"
"बाकी सब तो ठीक है न ?
"बाकी सब ?"
"उस दिन जिन लोगों ने बाज बहादुर का अपहरण किया, वो कहीं मेरी पोल तो नहीं खोल देंगे यहां ?"
"क्या बच्चों जैसी बात करते हो ।" सूर्य थापा ने मुंह बनाकर कहा--- "वो मेरी पहचान वाले थे और मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं। वो बात खत्म हो चुकी है। तुम तो यहां ठीक हो न ?"
"हां ।"
"तुमने बताया नहीं कि इस प्रकार कसीनो में नौकरी पाकर क्या करने जा रहे...।"
"ये तुम्हारे दिलचस्पी वाला मामला नहीं है ।"
"डकैती तो नहीं, कर रहे ?"
"नहीं ।" जगमोहन ने गहरी सांस ली और सोचने लगा कि सूर्य थापा को बंधु के बारे में बताएं या नहीं ? परंतु फौरन ही ये विचार मन से निकल दिया । वो ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था कि जिससे जिससे माला की मुसीबत बढ़े । वो इस मामले को चुपचाप निबटा लेना चाहता था । बाद में इसे डकैती के बारे में पता चलेगा तो देवराज चौहान समझा देगा इसे ।
"देवराज चौहान आ पहुंचा क्या ?" सूर्य थापा ने पूछा ।
"वो कभी भी आ सकता है ।"
"ठीक है । मैं जरा अपनी आसामी की तरफ जाऊं । उसके पास रहूंगा तो वो खुश होकर ज्यादा नोट देंगे । सूर्य थापा वहां से चला गया ।
जगमोहन चेहरे पर गम्भीरता समेटे, हाथों को जेबों में डाले अपनी ड्यूटी पर लग गया ।
■■■
जगमोहन अगले दिन सुबह दस बजे, अलार्म बजने पर उठ बैठा। सुबह पांच बजे ही नींद आई थी वरना वो तो हालातों के घटनाक्रम पर नजर दौड़ाता रहा था। माला की याद आई तो फौरन उठ बैठा कि उसे माला के पास पहुंचना है और आज तो बंधु ने बाज बहादुर के बेटे का अपहरण करना है। क्या पता सुबह उसके स्कूल जाते ही कर लिया हो। जगमोहन फौरन नहा-धोकर तैयार हुआ। जैकेट पहनी और शीशे में अपना चेहरा देखा कल से काफी ठीक था। वो बाहर निकला, कमरे का दरवाजा बंद करके ताला लगाया और गली से निकल कर सड़क की तरफ बढ़ गया । आज भी धुंध छाई हुई थी । कड़ाके की सर्दी थी और ऊपर से तेज हवा चल रही थी। हाथ और कान ठंडे हुए जा रहे थे। नाक का भी बुरा हाल था। परंतु जगमोहन का सारा दिमाग कसीनो की डकैती पर लगा था कि अगर बाज बहादुर काबू में आ जाता है तो स्ट्रांग रूम में दौलत निकालना बहुत आसान हो जाएगा। नहीं तो उस दौलत को पाने के लिए बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा। ये सब कुछ इस बात पर निर्भर करता था कि बाज बहादुर अपने बेटे को ज्यादा अहमियत देता है या फर्ज को? उसके ख्याल में वो बेटे को किसी भी हालत में खोना नहीं चाहेगा। पता नहीं क्या होने वाला है। उसे सिर्फ माला की चिंता थी। लेकिन मन-ही-मन सोच चुका था कि वक्त आने पर जरूरत पड़ी तो बंधु के साथ सख्ती भी कर सकता है। डकैती हो या न हो परंतु माला को कुछ नहीं होने देगा । उसकी पहली कोशिश ये ही थी कि डकैती हो जाए और बंधु की रजामंदी से वो माला के साथ शादी कर ले।
जो भी हो, अभी उसके सामने स्पष्ट नहीं था कि क्या होगा । वो इस बात पर ज्यादा विचार कर रहा था कि अगर बाज बहादुर स्ट्रांग रूम से पैसा निकालने को तैयार नहीं होता तो, स्ट्रांग रूम पर धावा बोलना पड़ेगा । इसके लिए स्ट्रांग रूम की सही स्थिति का मालूम होना बहुत जरूरी था। जगमोहन ने मन ही मन फैसला किया कि आज शाम को किसी तरह स्ट्रांग रूम की तरफ जाने की कोशिश करेगा कि उधर के हालात मालूम हो सके। बंधु के बारे में उसका ख्याल था कि वो तब तक सीधा रहेगा, जब तक डकैती के काम ठीक से होते रहेंगे। जगमोहन की पूरी कोशिश थी कि सब कुछ ठीक चले। वो नहीं चाहता था कि गुस्से में बंधु, माला को किसी प्रकार की तकलीफ दे। इधर देवराज चौहान भी कभी भी काठमांडू पहुंच सकता था । ये सब जाकर, पता नहीं उस पर क्या असर होगा ।
जगमोहन माला के घर पर, उस पहाड़ी पर जा पहुंचा ।
काली कार वहां नहीं खड़ी थी तो जगमोहन समझ गया बंधु वहां पर मौजूद नहीं है। परंतु माला दरवाजे पर ही खड़ी उसका इंतजार कर रही थी। उसे देखते ही वो दौड़ी आई और उसके गले से लग गई । जगमोहन ने उसे बांहों में भींच लिया । माला सुबक उठी। तभी दरवाजे पर जगमोहन को विजय दिखाई दिया ।
"सब ठीक तो है न माला । बंधु ने तुम्हें कुछ कहा तो नहीं ?" जगमोहन व्याकुल स्वर में बोला ।
"नहीं, मैं तो कल से ही कमरे में बंद थी। आज सुबह ही दरवाजा खोला गया।" माला उससे अलग होते भीगे स्वर में कह उठी--- "तब बंधु ने कहा कि उनके लिए नाश्ता बना दूं ।"
"ये कितने बजे की बात है ?"
"सुबह नौ बजे की ।"
तो जगमोहन ने सोचा इसका मतलब बंधु, बाज बहादुर के बेटे का अपहरण कब करेगा, जब वो स्कूल से वापस आ रहा होगा। अगर सफल रहा तो बाज बहादुर के बेटे को लेकर वो तीन बजे के आसपास यहां पहुंचेगा ।"
"घर में इस वक्त कौन-कौन है ?"
"विजय है ।" माला ने आंखों से निकले आंसू साफ करते हुए कहा--- "मेरा यहां दम घुटता है जगमोहन । रात को नींद भी नहीं आती ।"
"तुम्हें यहां से हमेशा के लिए ले जाने के लिए ही भाग दौड़ कर रहा हूं । चलो, भीतर चलें ।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला ।
विजय दरवाजे पर खड़ा इन्हें ही देख रहा था ।
दोनों उसके पास जा पहुंचे । जगमोहन ने माला का हाथ पकड़ रखा था । विजय एक तरफ हटता कह उठा ।
"आ गए तुम। गोरखा तो कहता था अब तुम नहीं लौटोगे । काठमांडू छोड़कर भाग जाओगे ।"
जगमोहन बिना कुछ कहे, माला के साथ भीतर प्रवेश कर गया।
"लेकिन मुझे भरोसा था कि तुम आओगे ।" पीछे से विजय ने कहा--- "तुम सच में माला से प्यार करते हो । मुझे विश्वास हो गया अब ।"
"तुमने कुछ खाया-नाश्ता किया ?" माला ने प्यार से पूछा ।
"कुछ नहीं खाया । सीधा सोया उठकर यहीं आ रहा...।"
"मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बनाती हूं ।"
"आज तुमने बहुत बेकार नाश्ता दिया हमें ।" विजय कड़वे स्वर में बोला--- "इसे तो बढ़िया दोगी न ?"
"तुम्हें खाने को मिल गया, ये ही बहुत है ।" माला ने गुस्से से कहा और किचन की तरफ बढ़ गई ।"
"साली, तीखी कितनी है ।" विजय बड़बड़ा उठा ।
"माला के बारे में कुछ मत कहो ।" जगमोहन कठोर स्वर में बोला ।
"मैंने तो सोचा था कि आज तुम कसीनो की सारी दौलत ले आने वाले हो ।" विजय व्यंग से कह उठा ।
"जरूर लाता, अगर तुम्हारे बाप ने उस दौलत को सूटकेसों में भरकर, सूटकेस मेरी कार में रख दिए होते ।" जगमोहन शांत स्वर में बोला ।
विजय हंस पड़ा । जगमोहन को देखता रहा ।
"बाज बहादुर के बेटे को उठा लाने का क्या प्रोग्राम है ?"
"बंधु, गोरखा और पदम सिंह इसी काम के लिए गए हैं ।" विजय ने कहा ।
"कब तक लौटेंगे ?"
"तीन बजे के आसपास। तुम कोई नई बात नहीं बताओगे, डकैती के बारे में ?"
"अभी कुछ नहीं है "
"सोचा कुछ कि काम कैसे होगा ?"
"सोच रहा हूं ।" जगमोहन ने विजय को देखा--- "परंतु काम हो जाएगा ।"
"मुझे अपने पांच करोड़ की चिंता है । मैंने उन्हें लेकर कई प्लान सोच लिए है ।" विजय बोला ।
"अच्छा है ।"
"मैं अपने गांव जाकर, वहां ब्याज पर पैसा दिया करूंगा । ये काम मेरे लिए ठीक रहेगा ।"
"मेरा दिमाग मत खाओ ।" जगमोहन ने उसे घूरा--- "मुझे मत बताओ कि तुम क्या करने वाले हो ।"
"तुम और देवराज चौहान क्या करते हो पैसे का ?"
"जमीन में दबा देते हैं ।" जगमोहन ने सड़े स्वर में कहा ।
"फिर तो उन्हें दीमक लग जाती होगी । यहां तो बहुत ही दीमक है । मैं तो जमीन में दबाने वाला नहीं ।"
जगमोहन उठकर किचन की तरफ बढ़ गया ।
"साले को जरा भी चैन नहीं ।" विजय बड़बड़ाया--- "उसके पीछे लगा रहेगा ।"
जगमोहन किचन में गया तो माला को व्यस्त पाया ।
माला उसे देखकर मुस्कुराई । जगमोहन भी मुस्कुरा पड़ा ।
"क्या बना रही हो ?"
"तुम्हारे लिए मेथी के पराठे, दही के साथ तैयार कर रही हूं ।" माला ने प्यार से कहा ।
"तुम्हारे हाथ का खाना मुझे बहुत अच्छा लगता है ।" जगमोहन बोला ।
"मैं बनाती भी तो दिल से हूं ।" माला का चेहरा शर्म से गुलाबी हो गया ।
जगमोहन प्यार-भरी निगाहों से उसे देखता रहा ।
"ऐसे क्या देखते हो। मुझे काम करने दो। नहीं तो परांठा बिगड़ जाएगा ।"
"तुम इसी तरह मेरे सामने रहो तो, मैं बिना खाए, रह सकता हूं।" जगमोहन ने मुस्कुरा कर कहा ।
"पेट में चूहे कूदेंगे तो होश ठिकाने आ जाएंगे ।" माला हंसी ।
"तुम इसी तरह खुश रहो। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।" जगमोहन प्यार में डूबे कह उठा--- "मेरा ध्यान हर वक्त तुम्हारी तरफ रहता है । ये चिंता रहती है कि बंधु तुम्हें चोट न पहुंचा दे।"
"ये ही तो प्यार होता है ।" माला की आंखें भर आई--- "मैं भी हर वक्त तुम्हारे बारे में सोचती रहती हूं। अब तो मुझे और भी डर लगने लगा है कि तुम, उस कमीने के लिए डकैती करने जा रहे हो ।"
तभी दरवाजे पर विजय दिखाई दिया ।
"बंधु का फोन है। वो पूछ रहा है कि तुम आए या नहीं ?" विजय बोला ।
"तो ?" जगमोहन ने पलटकर विजय को देखा ।
"बात कर लो ।" विजय ने फोन उसकी तरफ बढ़ाया ।
जगमोहन ने फोन लेकर बात की ।
"कहो ।"
"मैनेजर के बेटे को तब उठाने का प्रोग्राम है, जब वो स्कूल से वापस लौट रहा होगा ।" बंधु की आवाज कानों में पड़ी ।
जगमोहन किचन से बाहर आ गया ।
"वो स्कूल गया है आज ?" जगमोहन ने पूछा ।
"ये तो पता नहीं ।"
"ये बात तुम्हें पता रखनी चाहिए थी। तुममें से कोई एक सुबह उसके घर के बाहर पहुंचकर, नजर रखता ।"
"ये बात तो तुमने कही नहीं ।"
"छोटी-छोटी बातें भी तुम्हें बतानी पड़ेगी क्या ?" जगमोहन गम्भीर था ।
"हमने ऐसे काम पहले नहीं किए। ड्रग्स, हथियार और नकली नोटों का काम किया है । ये सब हमारे लिए नया है ।"
"इंतजार करो और देखो, वो स्कूल से वापस लौटता है या नहीं ? उसे उठाते वक्त टोपी से अपने चेहरे ढांपना मत भूलना, वरना मुसीबत खड़ी हो जाएगी तुम सब के लिए। पुलिस तुम लोगों तक पहुंच जाएगी ।"
"समझ गया ।"
"किसी की जान लेने की कोशिश मत करना। कोई राह चलता बीच में आ जाए तो उसे वैसे ही संभालना। जान लेने से मामला संगीन हो जाएगा और आने वाले वक्त में ये बात भी तुम लोगों को नुकसान दे सकती है। उसे उठाने के बाद सीधा इस तरफ मत आना, कुछ देर सड़कों पर घूमते रहना। जब भरोसा हो जाए कि किसी की नजर तुम पर नहीं है तो इधर का रुख करना।"
"ठीक है, और कुछ ?" उधर से बंधु ने कहा
"कार की नम्बर प्लेट उतारी कि नहीं ?" जगमोहन ने पूछा ।
"नहीं उतारी--- लगी हुई है ।"
"कर लिया तुम लोगों ने काम । अपने फंसने का समान गले में लटकाए घूम रहे हो ।" जगमोहन तीखे स्वर में बोला ।
"अभी वक्त है । उतार लेते हैं ।"
"बेहतर होगा कि आगे-पीछे नम्बर प्लेटों का पर मिट्टी थोप लो। इससे नम्बर नजर नहीं आएगा ।
"हां, ये ठीक रहेगा ।"
"कपड़े कौन-से पहने हैं तुम लोगों ने ?"
"हम तीनों ने आज ही खरीदी, नई कमीज पहनी है ।"
और स्वेटर-जैकिट ?"
"वो तो सब पुरानी है ।"
"कुछ देर के लिए स्वेटर जैकिट उतार दो। इससे बाद में पहचान हो सकती है। टांगों में क्या पहना है, किसी की नजर में नहीं आता। परंतु हुलिया चेहरे से पेट तक का ही बयान किया जाता है। जैकेट-स्वेटर उतार दो अगर कामयाब डकैती चाहते हो ।" कहने के साथ ही जगमोहन ने फोन विजय की तरफ बढ़ा दिया।
विजय ने फोन लेकर कान से लगाया, परंतु उधर से फोन बंद हो गया था ।
"तुम तो काफी पहुंची चीज हो ।" विजय बोला--- "मैं तो तुम्हें ऐसे ही समझ रहा था ।"
"मेहरबानी ।" जगमोहन ने तीखी नजरों से उसे देखा ।
"किस बात की ?"
"तुम्हारी तारीफी शब्दों की । अब तमगा भी लटका दे मेरी छाती पर कि मैं गर्व महसूस कर सकूं ।"
"तुम मेरे से मजाक कर रहे हो ।" विजय ने हंसने की कोशिश की--- "है न ?"
जगमोहन आगे बढ़ा और कुर्सी पर जा बैठा ।
"देवराज चौहान जैसे डकैती मास्टर के साथ रहते हो तो कई बड़े कांड किए होंगे। परंतु ये बात गले से नीचे नहीं उतरती कि तुम लोग नोटों को गड्ढा खोदकर जमीन में दबा देते हो ।" विजय कह उठा
"तूने बात को गले से नीचे उतार कर क्या करना है ।" जगमोहन उखड़ा--- "कुछ करना है क्या ?"
"मैंने भी तो अपने पांच करोड़ संभालने हैं। प्लान बनाना ही पड़ता है ।" विजय मुस्कुराया ।
"पांच करोड़ संभालना कठिन लग रहा है तुम्हें। इसी से मैं समझ सकता हूं कि तुम लोग कैसे तैराक हो। डकैती का पैसा जब तुम लोगों के हाथ आ जाएगा, तो सारी उम्र मेरा नाम जपोगे । मेरी तस्वीर के आगे धूप-बत्ती किया करोगे ।"
"जगत पिता के नाम से गांव में तुम्हारा मंदिर बनवा दूंगा ।" विजय हंसकर बोला ।
तभी माला नाश्ता ले आई ।
■■■
3:40 बजे बंधु, गोरखा और पदम सिंह काली कार पर वापस लौटे। कार की नम्बर प्लेटों पर गीली मिट्टी थोप रखी थी कि नम्बर नजर न आ सके। कार पर कीचड़ के छींटे के निशान पड़े थे। सत्रह वर्ष का एक लड़का स्कूल यूनिफार्म में उसके साथ था। उसकी आंखों पर रुमाल बांधकर रखा था कि वो कुछ देख ना सके। लड़का बाज बहादुर की तरह ही लम्बा था । अब उन तीनों के चेहरे बंदर वाली टोपियों से ढंके हुए नही हुए थे । गोरखा ने लड़के की बांह पकड़ी और उसे भीतर लेता चला आया । बंधु और पदम सिंह भी भीतर पहुंचे।
"बहुत आसानी से इसे उठा लिया ।" पदम सिंह कह उठा ।
जगमोहन ने इशारे से गोरखा से कहा कि लड़के को भीतर ले जाए ।
गोरखा, लड़के को भीतर किसी कमरे में ले गया ।
बंधु ने सिगरेट सुलगा कर कहा ।
"कोई दिक्कत नहीं आई । ये दो अन्य लड़कों के साथ स्कूल से लौट रहा था और हमने उठाकर कार में डाल लिया ।"
"लोगों ने देखा ?" जगमोहन बोला--- "नजर कुछ दूर खड़ी माला पर डाली ।
"हमने चेहरे ढांप रखे थे ।"
"वो बात नहीं। मेरा मतलब है कि अब तक बाज बहादुर तक लड़के के अपहरण की खबर पहुंच चुकी होगी ।"
"हां ।"
"किसी ने पीछा तो नहीं किया ?"
"बिल्कुल नही। बंधु ने कश लिया और कुर्सी पर बैठते विजय से बोला--- "कार को अच्छी तरह साफ कर दे। नम्बर प्लेटों पर लगी मिट्टी भी अच्छी तरह साफ कर देना। ये काम अभी कर।"
विजय बाहर निकल गया ।
जगमोहन ने चेहरे पर गम्भीरता थी ।
"लड़के का नाम क्या है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"अभी उससे बात नहीं की ।" बंधु बोला ।
"मैं और माला लड़के के पास नहीं जाएंगे ।" जगमोहन ने कहा।
"क्यों ?"
"अगर मैं चेहरा ढांप के भी जाता हूं उधर, तो लड़का बाद में मेरी आवाज पहचान सकता है। मैं सीधे-सीधे इस मामले में नहीं आना चाहता । क्योंकि ये डकैती मैं तुम लोगों के लिए कर रहा हूं। वैसे भी लड़के के पास जाने की मुझे जरूरत नहीं है । मैंने बाज बहादुर के पास रहना है । माला को भी मैं मामले के फ्रेम में नहीं लगाना चाहता ।"
"ठीक है ।" बंधु ने कंधे उचकाए--- "तुम लड़के के पास जाओ, ये जरूरी नहीं है । हम देख लेंगे उसे ।"
"लड़के को मारना-पीटना नहीं। उसे डराना नहीं। बच्चा है। उसे मेहमान के तौर पर रखो। हाथ-पांव जरूर बांध देना कि कहीं भागने की कोशिश न करे। खाना-पीना उसे वक्त कर देते रहना।" जगमोहन बोला ।
"तुम्हें इससे क्या अगर वो भूखा भी रहता है ।" बंधु कहर-भरे स्वर में कह उठा ।
"मैं इस मामले में हूं और तुम मेरे हिसाब से काम करोगे ।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा ।
"ये तो रोब मारता है । "पदम सिंह बोला ।
बंधु ने पदम सिंह को देखा फिर जगमोहन को देखकर बोला ।
"हम लड़के का पूरा ध्यान रखेंगे ।"
"माला उसे खाना देने नहीं जाएगी । माला को उससे दूर रखना है ।"
"और कुछ ?" बंधु मुस्कुराया ।
"पूरे दो दिन तुम लोग बिल्कुल खामोश बैठोगे । बाजार से जरूरत का जो सामान लाना है, वो अभी ले...।"
"लड़का हमारे पास है, हमें बाज बहादुर से बात करनी चाहिए।"
"अभी नही ।" जगमोहन ने इंकार में सिर हिलाया--- "सीधे-सीधे बाज बहादुर कोई बात नहीं मानने वाला। उसे पहले थक लेने दो। भागदौड़ करने दो अपने बेटे की तलाश में। पुलिस के चक्कर लगाकर थक लेने दो। उसे हताश होने दो। उसे ऐसा लगने दो कि पता नहीं बेटा वापस मिलता है या नहीं। मैं कसीनो में, बाज बहादुर के पास रहूंगा और खबरें लेता रहूंगा। जब लोहा पूरी तरह गर्म हो जाएगा तो उस पर चोट करनी है कि उसे अपने ढंग से ढाल सकें ।"
"आज 22 तारीख है । किस दिन कसीनो में सबसे ज्यादा पैसा होता है ?" बंधु ने पूछा ।
"मैंने अभी पता नहीं किया ।"
"तो पता करो। कब पता करोगे।" बंधु तीखे स्वर में कह उठा ।
"चिंता मत करो । ये देखना मेरा काम है । तुम बस वो सब काम पूरा करो जो मैं कहता हूं ।"
"अब आगे क्या करना है मुझे ?"
"बताया तो--- दो दिन आराम से बैठो । मैं बाज बहादुर की हालत पर नजर रखूंगा। उसके बाद आगे करने की बात बताऊंगा ।"
"तुमने सोचा कि काम कैसे करना है ?" बंधु ने पूछा ।
"कसीनो के स्ट्रांग रूम को दो तरह से लूटा जा सकता है । एक तो ये कि हमें बाज बहादुर की सहायता मिल जाए। ऐसा हुआ तो सारा काम आसानी से हो जाएगा। ज्यादा समस्या नहीं आएगी। अगर बाज बहादुर हमारे काबू में नहीं आया तो दूसरा रास्ता इस्तेमाल किया जाएगा। इसके लिए मुझे योजना बनानी पड़ेगी। आज मैं कोशिश करूंगा कि कसीनो का स्ट्रांग रूम देख सकूं। जब तक स्ट्रांग रूम की स्थिति और वहां के सिक्योरिटी इंतजाम को नहीं देख लेता, तब तक प्लान तैयार नहीं किया जा सकता ।"
"तुम्हें लगता है कि बाज बहादुर हमारी बात नही मानेगा, जबकि उसका लड़का हमारे पास...।"
"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "जबकि बाज बहादुर अपने काम को लेकर सख्त किस्म का इंसान है । अभी कुछ पता नहीं । देखते हैं क्या होता है ।"
"उस हरामजादे को हमारी बात माननी पड़ेगी । वरना उसके बेटे की...।"
"इस तरह काम नहीं होगा बंधु ।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "शांत रखो खुद को और सिर्फ वो करो जो मैं कहता हूं। तुम्हें इन कामों का अनुभव नहीं है, ऐसे में कोई गलती मत कर बैठना कि सारा काम बिगड़ जाए। ऐसा हुआ तो काम बिगड़ने का सेहरा तुम्हारे सिर पर होगा । तब मुझे दोष मत देना ।"
बंधु कमीनेपन से मुस्कुराया। माला को देखा ।
माला कुछ सहम-सी गई ।
जगमोहन के होंठ भिंच गए ।
"तुम ।" बंधु ने जगमोहन से कहा--- "अगर माला से शादी करना चाहते हो तो, मेरे सिर पर सेहरा बांधने की कोशिश मत करो । काम की कामयाबी के बारे में सोचो । मुझे कसीनो की दौलत चाहिए। हर हाल में चाहिए ।"
"मेरे कहने पर चलोगे तो तभी कामयाबी मिलेगी ।" जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा और माला को देखकर बोला--- "तुम अभी भी वहीं-के-वहीं खड़े हो। जब तक माला को बीच में लाते रहोगे, तब तक काम हो जाने की कोई गारंटी नहीं है । माला को इन कामों से दूर रखो। वो मेरी है। हम शादी करने वाले हैं । उसे भूल जाओ । इंसान बनकर काम करो ।"
बंधु हंसा ।
"सुना पदम । कहता है माला मेरी है ।" बोला बंधु ।
"हमें कसीनो की दौलत लूटकर दे दे, फिर बेशक माला से शादी कर ले ।" पदम सिंह ने कहा ।
"ये बात तो मैं कब से कह रहा हूं ।" बंधु ने जगमोहन को देखा ।
"मैंने कहा है, इन कामों के बीच माला का जिक्र भी मत करो ।" जगमोहन कठोर स्वर में बोला--- "ये काम करने का ढंग नही है तुम्हारा ।"
"समझ गया । समझ गया ।" बंधु ने कश लेकर कहा--- "ठीक है, माला को हम इन बातों से दूर रखते...।"
"मैं अब चलता हूं ।" जगमोहन ने कहा ।
"इतनी जल्दी। मेरे साथ कॉफी नहीं पियोगे ।" बंधु मुस्कुराया ।
"सवा चार बज रहे हैं। पांच बजे मुझे ड्यूटी पर कसीनो पहुंचना है। अभी कपड़े बदलने हैं ।"
"पदम तुम्हें कार पर छोड़ आता...।"
"दो-तीन दिन कार को इस्तेमाल करने का ख्याल छोड़ दो । पुलिस काठमांडू की काली कारों पर नजर रखेगी। मेरे ख्याल में तो तुम्हें इस काम के लिए किसी दूसरी कार का इस्तेमाल करना चाहिए था ।"
"तुमने कहा नहीं, वरना हम ऐसा ही करते। कार की कोई समस्या नहीं है। मैं दूसरी ले आऊंगा। ये खड़ी रहेगी ।"
"ये तो और भी अच्छी बात होगी ।"
"पदम ।" बंधु बोला--- "कैलाश से एक कार ले आना । कुछ दिन हम दूसरी कार का इस्तेमाल करेंगे ।"
पदम सिंह ने सिर हिला दिया ।
"अपनी कमीज उतारो और जला दो ।" जगमोहन बोला ।
बंधु और पदम सिंह वहां से चले गए ।
माला आगे बढ़ी और जगमोहन के पास आ पहुंची ।
"राक्षस ने तुम्हें किस मुसीबत में फंसा दिया है ।" माला ने दुखी स्वर में कहा ।
जगमोहन ने माला का खूबसूरत चेहरा देखा और मुस्कुरा कर बोला ।
"सब ठीक है । तुम किसी बात की चिंता मत करो ।"
"मुझे बंधुओं से डर लगता है। मेरा दम घुटा रहता है जब वो यहां होता है ।" माला ने बेचैनी से कहा ।
"उसकी फिक्र मत करो । वो तुम्हें कुछ नहीं कहेगा ।"
"मैं यहां नहीं रहना चाहती जगमोहन ।" माला का स्वर भर्रा उठा--- "हर समय तुम्हारे बारे में ही सोचती रहती हूं ।"
"हिम्मत से काम लो माला। आने वाले वक्त में...।"
"कल आओगे ?"
"हां। मैं रोज आया करूंगा। तुम्हारे लिए। तुम्हें देखने के लिए ।"
माला की आंखें डबडबा उठी ।
तभी बंधु वहां आता कह उठा ।
"स्ट्रांग रूम को देखना आज। ताकि दूसरी योजना बना सको ।"
"पूरी कोशिश करूंगा कि किसी तरह स्ट्रांग रूम में झांक सकूं । जबकि वहां पहुंचना आसान नहीं। तुम लोग बाज बहादुर के बेटे के पास जाओ तो मंकी टोपी से चेहरे को ढंककर जाना । इस तरह बाद में फंसने के चांसेस कम होंगे तुम लोगों के ।"
"वो हमारी आवाजें तो पहचान लेगा ।" बंधु बोला ।
"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । मैं कल आऊंगा ।" जगमोहन ने कहा, माला का हाथ थामकर थपथपाया और बाहर की तरफ बढ़ गया ।
■■■
शाम को जगमोहन कसीनो के पास पहुंचा ही था कि उसका फोन बजने लगा ।
"हैलो ।" जगमोहन ने बात की ।
"मैं रात दस बजे तक काठमांडू पहुंच जाऊंगा ।" उधर से देवराज चौहान की आवाज आई ।
"ठीक है । जो कमरा मैंने किराए पर लिया है, उसका पता तुम्हें दे चुका हूं, वहीं पर आना ।" जगमोहन बोला--- "मैं कसीनो की ड्यूटी पर होऊंगा और सुबह चार बजे तक वहां पहुंच जाऊंगा।"
बात खत्म हो गई । जगमोहन ने फोन जेब मे रखा और कसीनो प्रवेश कर गया । वो देवराज चौहान के बारे में सोच रहा था कि उसे कसीनो में डकैती करने के बारे में पता चलेगा तो उस पर क्या असर होगा। वो जानता था कि देवराज चौहान उसका पूरा साथ देगा। परंतु वो जिस काम के लिए आ रहा था, उसे भी नहीं छोड़ा जा सकता था। जगमोहन देर तक इन्हीं सोचों में उलझा रहा और कसीनो में पहुंचकर खड़ा हो गया था। बाहर सर्दी थी । दो दिन से काठमांडू में धूप नहीं निकल रही थी । इस वजह से सर्दी का अहसास बढ़ गया था। परंतु कसीनो के भीतर मौसम गर्म था। जगमोहन का ध्यान बाज बहादुर की तरफ चला गया। वो जरूर अपने बेटे के चक्कर में दौड़ा फिर रहा होगा। अभी उसके आने में वक्त था। वो छः बजे कसीनो पहुंचता था। जगमोहन कसीनो में टहलने लगा। आज काफी ऐसे लोग वहां मौजूद थे जिन्हें पहले नही देखा गया था । कसीनो में जुआ खेलने वाले अब पहुंचने लगे थे। तीन दिन बाकी थे क्रिसमस आने में। उसके बाद छः दिन बाद न्यू ईयर आने में । तब काफी भीड़ हो जानी थी। आज नजर आने वाले लोगों में काफी लोग विदेशी थे। यूं तो कसीनो ग्यारह बजे खुल जाता था, परंतु दिन में जुआ खेलने के लिए आने वाले बहुत कम लोग होते थे। रौनक शाम को छः-सात के बाद बढ़ती थी । तब ज्यादा लोग आते थे ।
जगमोहन तब मशीनों वाले हॉल में था कि नाटियार से सामना हुआ ।
"कैसे हो ?" जगमोहन ने मुस्कुराकर पूछा ।
"कल की तरह ही। आज तुम्हारा चेहरा ठीक लग रहा है । कल तक तो पूरा ठीक हो जाएगा "
"हां ।" जगमोहन का हाथ अपने चेहरे पर पंहुचा--- "अब ठीक है।"
"अब कसीनो में लोग आने शुरू हो रहे है । कसीनो की असली कमाई को दूर देशों से आने वालों से होती है। आज काफी विदेशी नजर आ रहे हैं और क्रिसमस तक तो भारी भीड़ हो जाएगी । इन दिनों की कमाई से कसीनो का साल-भर का खर्चा निकल आता है । शायद उससे भी काफी ज्यादा कमाई होती है।" नाटियार ने कहा ।
"तुम तो काफी हिसाब रखते हो कमाई का ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"मुझे काफी कुछ पता है। सालो से यहां काम कर रहा हूं ।" नाटियार बोला।
"स्ट्रांग रूम में गए हो कभी ?"
"कई बार ।"
"मुझे भी एक बार वहां ले चलो ।"
"क्यों ?" नाटियार ने जगमोहन को देखा ।
"देखना चाहता हूं कि स्ट्रांग रूम कैसा होता है ।" जगमोहन ने सामान्य स्वर में कहा ।
"मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैनेजर साहब नाराज होंगे । तुम मैनेजर साहब से क्यों नहीं कहते कि स्ट्रांग रूम देखना है ।"
"वो मान जाएंगे ?"
"क्या पता मान जाएं। तुम्हारे बारे में तो मैनेजर साहब अच्छे विचार रखते हैं ।"
"ठीक है। आज कहूंगा मैनेजर साहब से ।"
नाटियार हर तरफ नजरें दौड़ाता बोला।
"ऐसी भीड़ वाले मौकों पर गलत लोग भी घुस आते हैं यहां । हमें यहां लोगों को देखते रहना है और गलत लोगों को पकड़ कर बाहर करना है । काम पर लग जाओ । समझो अगले आठ-दस दिन फुर्सत नहीं मिलने वाली ।" नाटियार चला गया।
जगमोहन वहां मौजूद लोगों को देखने लगा। परंतु उसका दिमाग माला, बंधु, बाज बहादुर और कसीनो की डकैती पर था। वो सोच रहा था कि स्ट्रांग रूम के भीतर की सुरक्षा एक बार देख ले तो डकैती का प्लान तैयार कर ले । बाज बहादुर ने अगर साथ देने को मना कर दिया तो फिर अपने ही प्लान पर काम करना होगा। तभी जगमोहन को सूर्य थापा दिखा जो किसी हिन्दुस्तानी सेठ के साथ था। दोनों की नजरें मिली तो थापा ने हाथ हिला दिया। जगमोहन ने भी हाथ हिलाया। शाम के सात बजने जा रहे थे। जगमोहन बाज बहादुर के ऑफिस की तरफ चल दिया। बाज बहादुर किस हाल में है, वो देख लेना चाहता था । परंतु उसका ऑफिस खाली था। तो क्या वो आया नहीं ? जगमोहन ने रिसैप्शन पर मैनेजर साहब के बारे में पूछा तो पता चला कि वो अभी कसीनो नहीं पहुंचा ।
जगमोहन कसीनो में टहलता रहा ।
तभी ताश वाले हॉल में शोर-सा उठ गया । जगमोहन वहां पहुंचा तो पता चला कि एक जुआरी को पत्ते लगाकर खेलते पकड़ा गया है। इसी बात पर हंगामा और मार-पीट हो गई थी । कसीनो की सिक्योरिटी वालों ने मामला संभाला और पत्त्ते लगाकर खेलने वाले जुआरी को कसीनो से बाहर कर दिया गया । इस मामले में चालीस मिनट लग गए । उसके बाद हॉल का माहौल सामान्य हो गया। ताश का खेल फिर से चालू हो गया । जगमोहन ने उस रास्ते पर नजर मारी, जो स्ट्रांग रूम की तरफ जाता था । उधर दो गनमैन सतर्क मुद्रा में खड़े दिखे । ऐसे भरे-पूरे हॉल की नजरों में जबरदस्ती स्ट्रांग रूम में नही जा सकता था। ऐसी कोशिश की गई तो उसी क्षण हंगामा मच जाएगा। कसीनो की सिक्योरिटी पलों में वहां आ पहुंचेंगी। बहुत-सोच-समझकर कसीनो के स्ट्रांग रूम का रास्ता सबके सामने रखा गया था कि कोई गुप-चुप भीतर न जा सके । ऐसे में जगमोहन को सबसे बड़ी समझ दिखी कि बाज बहादुर न तैयार हुआ तो, काम करने में काफी कठिनाई आएगी ।
8:30 बज गए ।
जगमोहन पुनः बाज बहादुर के ऑफिस पर पहुँचा और दरवाजा खोलकर भीतर झांका
अगले ही पल ठिठक गया।
बाज बहादुर की कुर्सी पर अजीत गुरंग बैठा था ।
दोनों की नजरें मिली । गुरंग ने इशारे से भीतर आने को कहा ।
जगमोहन भीतर आया और हाथ जोड़कर बोला ।
"नमस्कार साहब जी । मैं मैनेजर साहब को देखने आया था । आज वो दिखे नहीं ।"
अजीत गुरंग के चेहरे पर गम्भीरता थी ।
"तुम्हें वो बदमाश दिखे जिन्होंने तुम्हें और बाज बहादुर को उठा लिया था ?" गुरंग ने पूछा ।
"नहीं साहब जी । फिर तो उन्हें नहीं देखा ।" जगमोहन ने सिर हिलाया ।
गुरंग चुप रहा ।
"मैनेजर साहब आज नहीं आएंगे साहब जी । रोज तो वक्त पर आ जाते हैं ।"
गुरंग ने व्याकुल भाव से उसे देखते हुए कहा।
"जो बात मैं तुम्हें कहने जा रहा हूं, वो किसी से कहना मत ।"
"नहीं साहब जी ।" जगमोहन कह उठा--- "मुझे बताइए ।"
"कुछ लोगों ने बाज बहादुर के बेटे का अपहरण कर लिया है ।"
"ओह ।"
"मुझे लगता है ये वो ही बदमाश है, जिन्होंने पहले बाज बहादुर का अपरहण किया था और कसीनो लूटना चाहते थे ।"
"ये तो बहुत बुरा हुआ साहब जी। साहब जी का बेटा अभी मिला नहीं ?"
"नहीं। पुलिस अपनी पूरी कोशिश कर रही है ।" गुरंग ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"आप ठीक कहते हैं । ये वो वाले ही बदमाश होंगे ।" जगमोहन बोला--- "लोगों ने देखा तो होगा उन्हें ।"
"तब उन्होंने अपने चेहरे ढांप रखे थे। वो काली कार पर आए थे।"
"वो पकड़े जाएंगे साहब जी। पुलिस उन्हें ढूंढ लेगी। ये तो बोत बुरी खबर है । मैनेजर साहब के दिल पर क्या बीत रही होगी ।"
"तुम्हें अगर वो बदमाश कहीं पर दिखे तो मुझे फौरन बताना ।
"जी साहब जी ।"
"ये बात अपने तक ही रखना कि मैनेजर साहब के बेटे का अपहरण हो गया है ।"
"जी साहब जी । फिर तो मैनेजर साहब कसीनो में नहीं आएंगे।" जगमोहन ने कहा ।
"वो कुछ ही देर में आने वाले हैं । इन दिनों यहां का काम भी छोड़ा नहीं जा सकता । फिर पुलिस तो ढूंढ ही रही है उसके बेटे को ।"
जगमोहन ऑफिस से बाहर आ गया ।
तो बाज बहादुर अपने बेटे की तलाश में भागा फिर रहा है । वो कसीनो पहुंचने वाला है। चेहरे पर गम्भीरता समेटे जगमोहन कसीनो में टहलता रहा। फिर बाथरूम की तरफ गया, जहां कम लोग थे। उसने फोन निकाला और बंधु के नम्बर मिलाकर कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी । फिर बंधु की आवाज कानों में पड़ी ।
"हैलो ।"
"माला कैसी है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"अभी तक तो ठीक है ।" उधर से बंधु के कहर से हंसने की आवाज आई ।
"तुमने उसको हाथ तो नहीं उठाया ?"
"वो चुप है । बकवास नहीं कर रही तो मैं हाथ क्यों उठाऊंगा । बहुत चिंता हो रही है तुझे उस कमीनी की ।"
"तुम काली कार का इस्तेमाल मत करना। पुलिस कार की तलाश में है ।"
"चिंता मत करो। पदम सिंह, कैलाश से दूसरी कार ले आया है । तुमने स्ट्रांग रूम देखा ?"
"उसके भीतर तक जाना आसान नहीं और अभी मौका नहीं मिला । लड़का कैसा है ?"
"हाथ-पांव बांध रखे हैं । सहमा हुआ है ।"
"कुछ खिला देना उसे। माला को उसके पास मत भेजना । अपने दोस्तों से ये काम लेना ।" कहकर जगमोहन ने बंद किया और वापस हॉल में आ गया । उसकी गम्भीर निगाह हर तरफ जा रही थी ।
आधे घंटे बाद उसकी निगाह गुरंग पर पड़ी, जो भीतरी रास्ते से होटल ब्लू स्टार की तरफ जा रहा था । जगमोहन फौरन बाज बहादुर के ऑफिस की तरफ बढ़ गया कि शायद वो आ पहुंचा हो ।
दरवाजा खोलते ही बाज बहादुर को भीतर टहलते पाया।
जगमोहन भीतर प्रवेश कर गया और दरवाजा बंद कर लिया ।
बाज बहादुर बहुत परेशान दिख रहा था। उसने सूट जरूर पहना हुआ था परंतु आज शेव नहीं कर रखी थी । उसे आया पाकर वो ठिठककर, होंठ भींचे उसे देखने लगा ।
"बहुत बुरा हुआ साहब जी ।" जगमोहन हाथ जोड़कर बोला ।
"क्या ?" बाज बहादुर ने चौंककर उसे देखा ।
"आपके बेटे को किसी ने उठा लिया ।"
"तुम्हें कैसे पता ?" बाज बहादुर की आंखें सिकुड़ी ।
"बड़े साहब ने बताया था कुछ देर पहले ।"
"गुरंग साहब ने ?"
"हां जी ।"
बाज बहादुर ने गहरी सांस ली ।
"बड़े साहब कह रहे थे कि आपके बेटे को उन्हीं लोगों ने उठाया होगा, जिन्होंने आपको उठाया होगा ।
"ये मैंने ही कहा था। मेरा ऐसा ही ख्याल है ।" बाज बहादुर होंठ भींचकर बोला ।
"ये सब कैसे हुआ साहब जी ?"
"मेरा बेटा स्कूल से वापस आ रहा था कि चेहरे ढांपे दो आदमी उसके पास पहुंचे और उसे उठाकर पास ही खड़ी काली कार में डाल लिया। एक आदमी चेहरा ढांपे कार स्टार्ट किए बैठा था और वो भाग गए। उसके साथ जो लड़के आ रहे थे, उन्होंने जल्दी-से हमें घर पर खबर दी ।" बाज बहादुर बेचैन स्वर में बोला--- "मुझे गोपाल की चिंता हो रही है ।"
"आपके बेटे का नाम गोपाल है ?"
"हां । सत्रह साल का तो है । जाने वो बदमाश उसके साथ क्या जुल्म कर रहे होंगे ।"
"पुलिस उन्हें ढूंढ लेगी ।"
"हां । पुलिस का ही सहारा है । गुरंग साहब ने कमिश्नर से बात की है । पुलिस बदमाशों की तलाश में है ।"
"मुझे बताइए, मैं आपके किस काम आ सकता हूं दुख की इस घड़ी में ।"
बाज बहादुर ने उसे देखा और सिर हिला कर बोला ।
"अब तो पुलिस का ही सहारा है । सारा दिन मैं पुलिस के साथ रहा ।"
"उन बदमाशों के चेहरे किसी ने नहीं देखे ?"
"नही ।"
"आपका क्या ख्याल है, आपके बेटे को क्यों उठा लिया उन लोगों ने ?"
"कसीनो लूटना चाहते होंगे वो। पहले मुझे भी इसी कारण उठाया गया था। परंतु तब वो तुम्हारी वजह से सफल नहीं हो सके। अब फिर उन्होंने कोशिश की है। लेकिन वो पहले ही पकड़े जाएंगे। पुलिस पकड़ लेगी उन्हें ।" बाज बहादुर ने दांत भींच कर कहा--- "हमने पहले चुप रह कर गलती की । अगर पुलिस में रिपोर्ट की होती तो अब तक वो बदमाश पकड़े गए होते ।"
"वो अब भी पकड़े जाएंगे साहब जी ।"
बाज बहादुर होंठ भींच कर रह गया ।
"मैं आपके लिए जान भी दे सकता हूं साहब जी ।"
परेशान-सा बाज बहादुर चुप रहा ।
"साहब जी बदमाशों का कोई फोन नहीं आया? शायद आपके बेटे को छोड़ने के बदले पैसे मांगें ।"
"अभी तक तो ऐसा फोन नहीं आया। वैसे पुलिस ने मेरा मोबाइल फोन टेप कर रखा है। ऐसा कोई फोन आया तो पुलिस को फौरन पता चल जाएगा ।"
ये काम की खबर थी जगमोहन के लिए ।
"आपका मोबाइल फोन टेप कर रखा है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"हां । फोन कम्पनी की सहायता से पुलिस ने ये काम किया है। पुलिस अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है ।"
"वो बदमाश जरूर पकड़े जाएंगे साहब जी । उन्हें फोन करने दीजिए ।"
"मेरा दिल भी ये ही कहता है कि वो पकड़े जाएंगे ।" बाज बहादुर विश्वास-भरे स्वर में बोला ।
"आज तो आप के साथ बुरी घटना हो गई । अब मैं क्या कहूं । नहीं तो मैंने आज आपसे ये कहना था कि मैंने कभी स्ट्रांग रूम नहीं देखा कि वो कैसा होता है। कोई बात नहीं साहब जी, पहले ये मामला सुलझ जाए फिर स्ट्रांग रूम देख लूंगा । चलता हूं साहब जी आज कसीनो में ज्यादा लोग आए हुए हैं । नजर रखनी है उन पर ।"
"जगमोहन ।" बाज बहादुर ने कहा--- "मेरे बेटे के अपहरण के बारे में किसी से बात मत करना। गुरंग साहब और पुलिस चाहती है कि लोग इस बात को न जान सकें और गोपाल को जल्दी-से ढूंढ लिया जाए। खबर फैलने से मेरे बेटे की जान को खतरा हो सकता है। अपहरण करने वाले लोग, मेरे बेटे की जान भी ले सकते हैं ।"
"मैं इस बारे में किसी से बात नहीं करूंगा साहब जी ।"
जगमोहन, बाज बहादुर के ऑफिस के बाहर आ गया । दिखावे के तौर पर अपनी ड्यूटी करने लगा। परंतु उसका दिमाग तो इस सारे मामले की तरफ जा रहा था। बाज बहादुर का मोबाइल फोन नेपाल पुलिस की टेपिंग पर लगा दिया था । यानी कि उन्हें शक है कि अपहरण करने वाले, बाज बहादुर को फोन जरूर करेंगे। अगर ये बात पता न चलती तो सारी प्लानिंग चौपट हो जानी थी। उन्होंने बाज बहादुर के मोबाइल पर ही फोन करना था ।
खैर अभी तक तो सब ठीक चल रहा था ।
तभी ताश वाले हॉल में खेलते समय दो झगड़ा हो गया । जगमोहन तब पास ही में था। उसने दोनों को अलग-अलग किया। चार और सिक्योरिटी वाले आ गए। पन्द्रह मिनट लग गए मामला शांत होने में । उन दोनों को स्पष्ट चेतावनी दी गई कि अगर अब झगड़ा हुआ तो उन्हें कसीनो से बाहर निकाल दिया जाएगा। इस सारे मामले से निबट कर जगमोहन ताश वाले हॉल में ही टहलता रहा। कई बार वो स्ट्रांग रूम में जाने वाले रास्ते को देख चुका था। जहां एलुमिनियम की चौखटों वाला दरवाजा लगा था और उस पर काले शीशे चढ़े थे। दो गनमैन उधर चौकस खड़े थे ।
रात बारह बजे उसने खाना खाया ।
बाज बहादुर आज कसीनो में घूमता नहीं दिखा था। एक बजे के करीब उसने अजीत गुरंग को बाज बहादुर के ऑफिस में जाते देखा था ।
रात के तीन बजते-बजते कसीनो से खेलने वालों की भीड़ छंट गई थी। अब कुछ ही लोग बचे थे जिनके लिए कसीनो का छोटा-सा सायरन दस सेकंड के लिए बजा दिया गया था कि कसीनो बंद होने का वक्त हो गया है तो वो लोग भी अपना खेल समाप्त करके वहां से जाने लगे। इस वक्त अधिकतर वो ही लोग यहां थे जो होटल ब्लू स्टार में ठहरे हुए थे और भीतर का रास्ता इस्तेमाल करते वे, होटल में प्रवेश कर सकते थे ।
जगमोहन जब कसीनो से बाहर निकला तो सुबह के तीन-तीस बज रहे थे । कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। कोहरा इतना था कि कुछ दूर तक देख पाना संभव नहीं हो रहा था। वो जेबों में हाथ डाले तेजी से आगे बढ़ गया। अब उसका ध्यान देवराज चौहान की तरफ चला गया था कि वो काठमांडू आ गया होगा और कमरे में पहुंचा उसका इंतजार कर रहा होगा। उसे सारा मामला बताना था । माला के बारे में बताना था। इन्हीं सोचों में डूबा वो तीन-चार मिनट ही चला होगा कि अपने पीछे उसे कार की हैडलाइट दिखाई दी । वो ठिठकर पलटा ।
तभी कार पास आकर रुकी ।
"भीतर आ जाओ ।" विजय की आवाज कानों में पड़ी ।
जगमोहन चौंका और फौरन कार के पास पहुंचा ।
"क्या है ?"
"अंदर बैठो ।" विजय कार का पिछला दरवाजा खोलता बोला--- "माला ने बंधु से तगड़ा-झगड़ा कर दिया है ।"
"क्या ?" जगमोहन के शरीर में झुरझुरी चली गई--- "बंधु ने मारा उसे ।" स्वर तेज हो गया जगमोहन का ।"
"तुम चलो तो ।"
जगमोहन जल्दी-से कार के भीतर बैठा। कार आगे बढ़ गई। पदम सिंह कार चला रहा था ।
"माला को मारा बंधु ने ?"
"उसे संभालने के लिए थोड़ा-सा मारना पड़ा। माला बिफरी पड़ी है। खुद को कमरे में बंद कर रखा है । बहुत कहा परंतु दरवाजा नहीं खोल रही और तुम्हें बुला लाने की जिद कर रही है ।"
जगमोहन के होंठ भींच गए। वो समझ गया कि मामला और भी ज्यादा गम्भीर है ।
"तुम लोग कुत्ते हो कुत्ते जो उस मासूम पर जुल्म कर रहे हो ।" जगमोहन गुर्रा उठा ।
"मैंने कुछ नहीं किया ।" विजय ने गहरी सांस ली--- "जो किया है, बंधु ने किया है ।"
"मुझे सही-सही बताओ कि माला के साथ क्या किया बंधु ने ?" जगमोहन ने गुस्से से कहा ।
"चल रहे हैं, देख लेना ।" पदम सिंह कह उठा--- "भाई बहन का मामला है ये । हमें क्या...।"
■■■
कार जब बड़े-से गेट को पार कर के भीतर पहुंची तो, दरवाजे के माथे पर, कोहरे में बुझा-बुझा सा बल्ब जल रहा था। वहां काली कार पहले से ही खड़ी थी। तब जगमोहन को पहली बार एहसास हुआ कि जिस कार पर उसे लाया गया है, वो कोई दूसरी कार है । कार की हैडलाइट दरवाजे पर पड़ रही थी, जो कि बंद था। जगमोहन जल्दी से कार से निकला और दरवाजे की तरफ गया । पीछे से विजय की व्यंग भरी आवाज कानों में पड़ी ।
"देख तो मजनू को, कैसे भागा जा रहा है ।"
जगमोहन ने दरवाजा खोला तो खुलता चला गया । वो भीतर प्रवेश कर गया ।
फौरन ही ठिठका ।
सामने ही सोफे पर बंधु पसरा बैठा था। टेबल पर व्हिस्की की खाली बोतल पड़ी थी और बंधु के हाथ में व्हिस्की का गिलास था । गोरखा भी पास में बैठा था । वो भी पी रहा था ।
जगमोहन के दांत भिंच गए बंधु को देखते ही ।
बंधु उसे देखकर कड़वे भाव से हंसा ।
"माला कहां है ?" पास पहुंचता जगमोहन गुर्रा उठा ।
बंधु ने नशे से भरी आंखों से उसे देखा ।
"माला किधर है ?" जगमोहन की निगाह गोरखा की तरफ उठी।
"साली ने सारी रात खराब कर दी ।" बंधु नशे से भरे तीखे स्वर में कह उठा ।
तभी पीछे से विजय पास आता कह उठा ।
"चल । मैं बताता हूं माला किस कमरे में है ।"
विजय और जगमोहन आगे बढ़ गए ।
विजय भीतर के एक कमरे के बंद दरवाजे के पास पहुंचकर बोला ।
"इसमें है माला ।" फिर उसने दरवाजा थपथपाकर आवाज़ लगाई--- "माला तुम...।"
"चले जाओ कमीने-कुत्तों ।" भीतर से माला की चीखती आवाज आई और उसकी फेंकी चीज दरवाजे पर लगी--- "तुम सब राक्षस हो । भगवान तुम को कभी माफ नहीं करेगा। दफा हो जाओ यहां से ।"
जगमोहन के होंठ भिंच गए ।
विजय ने जगमोहन को देखा फिर वहां से चला गया ।
"माला ।" जगमोहन ने पुकारा ।
"जवाब में कोई आवाज नहीं आई ।
"दरवाजा खोलो माला। मैं हूं जगमोहन।" जगमोहन ने ऊंचे स्वर में कहा ।
फिर कदमों की आवाज दरवाजे के करीब आती सुनी उसने ।
"कौन है ?" माला का गहरी सांस लेता स्वर आया ।
"मैं--- जगमोहन ।"
उसी पल फौरन दरवाजा खुला ।
माला के चेहरे पर निगाह पड़ते ही जगमोहन हक्का-बक्का रह गया ।
माला का होंठ फटा हुआ था । चेहरा एक तरफ से सूजा हुआ था।
"जगमोहन ।" उसे देखते ही माला फफक पड़ी ।
"माला ।" जगमोहन तेजी से आगे बढ़ा और माला को बांहों में ले लिया--- "ये क्या हुआ माला, ये-ये...।"
"मैंने तुमसे कहा था कि मुझे राक्षसों के बीच मत छोड़ो । ये सब कमीने हैं।" रोते हुए माला बोली--- "मुझे यहां से ले चलो जगमोहन। वो कमीना इसी तरह मार-मार कर मेरी जान ले लेगा। वो मेरा भाई नहीं राक्षस है ।"
जगमोहन ने माला को भींच लिया ।
माला ने भी कसकर जगमोहन को पकड़ा हुआ था ।
माला उसके सीने पर सिर रखे रोती रही ।
"संभालो अपने को माला। अब मैं आ गया हूं। घबराओ मत। मैं आ गया हूं ।"
"मुझे यहां से ले चलो जगमोहन। नही तो मैं खाई में कूदकर....।"
"चुप । ऐसा नहीं कहते । मेरे होते हुए अब तेरा बाल भी बांका नहीं होगा। मुझे बता, क्या हुआ था ?"
माला उससे अलग हुई। उसका सूजा चेहरा आंसुओं से भरा हुआ था ।
उसके खूबसूरत चेहरे का हाल देखकर जगमोहन का खून खौल उठा ।
"क्या हुआ था ?" जगमोहन गुर्रा उठा ।
"वो राक्षस उस लड़के को मार रहा था। तो मैंने उसे मारने से रोका कि तुमने ऐसा करने को मना किया था। इतनी-सी बात थी कि बंधु मुझे मारने लगा ।" माला रो पड़ी--- "उसने मुझे बहुत मारा जगमोहन । लातों से, घूंसों से, मैं चीखती रही। पर वो राक्षस नहीं रुका। अगर मैं खुद को कमरे में बंद ना कर लेती तो वो...।"
जगमोहन ने माला का हाथ पकड़ा और उसे लेके दरवाजे से बाहर निकला ।
"ये क्या कर रहे...।"
"तुम आओ मेरे साथ और अब अपने भाई का हाल देखो ।" जगमोहन दांत किटकिटाता उससे खींचता बोला ।
"वो-वो तुम्हें मार देगा, वो बहुत बुरा इंसान है। रुक जाओ, मुझे डर लग रहा...।"
जगमोहन माला को साथ लेकर ड्राइंग रूम में जा पहुंचा, जहां बंधु, गोरखा, पदम सिंह और विजय मौजूद थे। वो सब व्हिस्की पी रहे थे, परंतु अब उनकी निगाह जगमोहन पर जा टिकी थी ।
"लैला की हालत देखकर, मजनू को पीड़ा हो रही है " विजय कह उठा ।
बंधु उन्हें देखता नशे से भरे स्वर में हंस पड़ा ।
जगमोहन, दांत भींचे बंधु के पास जा पहुंचा ।
"मैंने तुझसे कहा था की माला को मत मारना ।" गुर्रा उठा जगमोहन ।
पदम सिंह ने उसी पल गिलास रखा रिवॉल्वर निकाल ली ।
"वो मेरी बहन...।"
तभी जगमोहन का घूंसा वेग के साथ बंधु के चेहरे पर पड़ा तो बंधु सोफे पर लुढ़क गया। हाथ से व्हिस्की का गिलास छूट गया। जगमोहन ने उसके सिर के बाल पकड़कर उसे सीधा किया और एक साथ दो घूंसे उसके चेहरे पर जड़ दिए। बंधु के होंठों से वहशी गुर्राहट निकली और उसने जगमोहन को धक्का दिया ।
जगमोहन लड़खड़ा कर दो कदम पीछे हुआ ।
बंधु गुर्राता हुआ उठ खड़ा हुआ । उसका नशे से भरा चेहरा बहुत भयानक लग रहा था । उसके होंठ के कोने में खून दिखाई देने लगा था । घूंसे ने उसके गाल को भीतर से फाड़ दिया था ।
तभी पदम सिंह ने आगे बढ़कर जगमोहन की कमर से रिवॉल्वर लगा दी ।
"हिला तो गोली चला दूंगा ।"
दूर खड़ी माला कांपती-सी चीख उठी ।
"तूने मुझ पर हाथ उठाया। बंधु पर...।" बंधु का स्वर नशे से भर्रा रहा था । वो गुस्से से आगे बढ़ा ।
तभी जगमोहन ने जूते की ठोकर बंधु के पेट में दे मारी ।
बंधु सोफे से टकराता, नीचे फर्श के कालीन पर लुढ़कता चला गया ।
"गोली मार दूंगा।" पदम सिंह एकाएक रिवॉल्वर लगाए खतरनाक स्वर में कह उठा ।
जगमोहन पलटा और दांत भींचे जोरदार घूंसा पदम सिंह के चेहरे पर मारा। हल्की-सी चीख के साथ पदम सिंह लड़खड़ाकर पीछे हटता गया। जगमोहन ने उसी पल उसके रिवॉल्वर वाले हाथ पर झपटा मारा और छीनकर एक तरफ फेंक दी और तेजी से नीचे पड़े बंधु के पास पहुंचा जो कि शराब के नशे में बेसुध उठने की चेष्टा कर रहा था । जगमोहन ने जोरदार ठोकर उसकी कमर में मारी ।
बंधु चीख उठा ।
इससे पहले कि दूसरी ठोकर मारता विजय उसके पास पहुंचा और उसकी बांह पकड़कर धक्का दिया ।
जगमोहन तीन कदम लड़खड़ा कर संभला ।
"बस बहुत हो गया ।" विजय ने खतरनाक स्वर में कहा--- "बंधु तगड़े नशे में है । तू उसे इस तरह नहीं मार सकता ।"
"मुझे रोकेगा तू ।" जगमोहन पागलों की तरह गुर्रा उठा ।
"हां। भला इसी में है मजनू कि अपना जोश शांत कर ले ।" विजय ने कहा--- "वरना तेरी हालत वो करुंगा कि...।"
तभी जगमोहन भूत की भांति उस पर झपट पड़ा ।
विजय समझ भी नहीं सका कि जगमोहन कब उसके पास आया और उसका घुटना उसके पेट में लगा । वो पेट थामे नीचे गिरता चला गया । जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली । वो पुनः बंधु की तरफ उछला जो कि अब तक ऊपर उठ कर बैठ गया था और नशे से भरी हंसी हंस रहा था ।
उसी पल गोरखा पीछे से जगमोहन पर झपटा और बांहों का घेरा डालकर उसे जकड़ लिया ।
"बस कर ।" गोरखा ने शांत स्वर में कहा--- "हमें बीच में आने को मजबूर मत कर ।"
तब तक विजय भी खड़ा हो चुका था और जगमोहन पर झपट पड़ा ।
"पदम ।" गोरखा चीखा--- "विजय को संभाल, नहीं तो बात बढ़ जाएगी ।
पदम सिंह बाज की तरह झपटा और विजय को पकड़कर पीछे खींच लिया ।
जगमोहन ने बारी-बारी खा जाने वाली निगाहों से सबको देखा।
नीचे बैठा बंधु नशे से भरे ढंग से मुस्कुराता जगमोहन को देख रहा था ।
"पदम।" बंधु लड़खड़ाते स्वर में बोला--- "मैंने ज्यादा पी ली क्या ?"
"बहुत ज्यादा ।"
"ये साली बोतल ने मुझे घुमा दिया आज । ये जगमोहन है न, क्या कर रहा है ये ?" बंधु पुनः नशे में बोला ।
गोरखा ने जगमोहन को अपनी बांहों के घेरे से आजाद किया और कह उठा ।
"वो आपने होश में नहीं है। जो भी बात करनी हो, तब करना, जब वो अपने होश में हो ।"
जगमोहन सबको देखते गुर्राकर कह उठा ।
"तुम सब सीधे हो जाओ कमीनो। जगमोहन नाम है मेरा। मिनटों में तुम सबका किस्सा खत्म कर सकता हूं । सिर्फ माला की वजह से ही अब तक तुम लोग बचे हुए हो। अब मेरी बात कान खोल कर सुन लो और इस कुत्ते को भी बता देना, जब ये होश में आए कि अब किसी ने माला को कुछ कहा तो मैं तुम सबको शूट कर दूंगा । मेरा मुकाबला करने की सोचना भी मत। सेकंडो में तुम सबको खत्म कर दूंगा ।"
नीचे बैठा बंधु नशे से भरे अंदाज में हंसा ।
जगमोहन आगे बढ़ा और माला का हाथ पकड़कर कमरे की तरफ बढ़ता चला गया ।
कमरे में पहुंचकर जगमोहन कुर्सी पर जा बैठा। उसका चेहरा क्रोध से दहक रहा था। दांत भिंचे हुए थे अभी तक। उसने माला के सूजन भरे चेहरे को देखा और धीमे से गुर्रा उठा ।
माला की आंखों में आंसू भर आए । वो कुर्सी के पास, घुटने के बल आ बैठी ।
"जगमोहन ।" एकाएक माला ने अपना हाथ उसके घुटने पर रखा--- "तुमने-तुमने मेरे लिए उन्हें मारा ?"
"तुम्हारे लिए मारा नहीं ।" जगमोहन सुलगते स्वर में कह उठा--- "तुम्हारे कारण वो बच गया ।"
"तुमने बंधु को मारा, मुझे बहुत अच्छा लगा ।" माला भर्राये स्वर में बोली ।
जगमोहन का हाथ माला के सूजे चेहरे पर पहुंच गया ।
"तुम्हें बहुत दर्द हुआ होगा, जब बंधु ने तुम्हें मारा ।"
"माला की आंखों से आंसू बह कर गालों पर लुढ़क आए ।
"रोना बंद करो ।" जगमोहन का गुस्सा उतरने का नाम नहीं ले रहा था--- "अब तुमसे मैं वादा करता हूं कि बंधु तुम्हें कभी नही मारेगा । वो तुम पर हाथ उठाने की हिम्मत नही कर सकेगा ।"
"मुझे यहां से ले चलो जगमोहन ।" माला सुबक उठी--- "मेरी जान निकल जाएगी यहां...।"
"तुम्हें शायद मेरे वादे पर भरोसा नहीं कि अब बंधु तुम पर हाथ नहीं उठा पाएगा ।"
"तुम क्या समझते हो कि बंधु तुमसे डर गया है ।" माला गम्भीर स्वर में कह उठी--- "वो किसी से नहीं डरता । इस वक्त वो इतने ज्यादा नशे में था कि कुछ कर नहीं सका। सुबह वो तुम्हें छोड़ेगा नहीं । तुम अभी यहां से चले जाओ ।"
"बस, इतने से ही डर गई ।" जगमोहन जबरन मुस्कुराया ।
माला आंसूओं भरी आंखों से उसे देखती रही ।
"सुबह बंधु मुझसे नहीं, मैं बंधु से बात करूंगा । ये जरूरी नहीं कि मैं उसके लिए कसीनो में डकैती करने के बाद ही तुमसे शादी कर सकता हूं। मैं पहले भी तुमसे शादी कर सकता हूं। मेरी शराफत को बंधु मेरी कमजोरी समझा, ये उसकी भूल रही। मैं किसी से भी डरने वाले लोगों में से नहीं हूं । ये बात अब बंधु समझ जाएगा ।" जगमोहन का लहजा कठोर था ।
"वो पदम तुम्हें गोली मारने वाला था ।" माला घबराकर कह उठी ।
"वो मुझे गोली मारने की सोच भी नहीं सकता। क्योंकि मैं उसके लिए डकैती कर रहा हूं । मैं ही हूं जो उन्हें पचास-साठ करोड़ दिला सकता हूं । इस बात को वो अच्छी तरह समझते हैं। सुबह मैं उन्हें समझा भी दूंगा । अगर नहीं समझे तो डकैती गई कुएं में और मैं तुम्हें लेकर चला जाऊंगा ।" जगमोहन के स्वर में दृढ़ता झलक रही थी ।
"बंधु मुझे तुम्हारे साथ नहीं जाने देगा ।" माला का चेहरा बुझ-सा गया ।
"वो मुझे नहीं रोक सकता ।" जगमोहन की आंखों में खतरनाक भाव चमके--- "अब तक मैं अपनी मर्जी से ही रुका हुआ था। परंतु वो तुम्हारा भाई है इसलिए एक आखिरी मौका उसे दूंगा सुधरने का। अब जो भी बात होगी कल होगी उससे ।"
"मुझे घबराहट हो रही है जगमोहन ।" माला कांपते स्वर में कह उठी ।
जगमोहन, प्यार से माला के सिर पर हाथ फेरने लगा ।
तभी पदम सिंह खुले दरवाजे पर खड़ा नजर आया ।
"क्या है ?" जगमोहन उसे देखते ही दांत भींचे गुर्रा उठा ।
"तुम दोनों को देखने आया था ।" पदम सिंह ने कहा--- "आज तो तुम बहुत गुस्से में आ गए ।
"दफा हो जाओ यहां से ।" जगमोहन ने खा जाने वाले स्वर में कहा--- "सुबह बात करूंगा तुमसे ।"
पदम सिंह पीछे हटा और दरवाजा बंद कर दिया। बाहर से कुंडी लगाने की आवाज स्पष्ट कानों में पड़ी ।
■■■
अगले दिन सुबह 10:30 बजे जगमोहन की आंख खुली । उसने देखा कमरे का दरवाजा खुला हुआ है । माला कुछ दूरी पर कुर्सी पर बैठी सोचों में डूबी दिखी। उसके चेहरे की सूजन रात से कम हो गई थी ।
"उठ गए तुम ?" उसे देखते ही माला फौरन उठी और उसके पास आ गई ।
जगमोहन ने गहरी सांस लेकर माला को देखा । रात का गुस्सा अभी भी उसमें बाकी था ।
"अब तुम्हारी तबीयत कैसी है ?"
"रात से ठीक है । थोड़ा-थोड़ा दर्द है मुंह में ।" माला ने बताया।
"बंधु कहां है ?" जगमोहन के चेहरे पर सख्ती उभरी ।
"वो सोया हुआ है ।"
"और वो लड़का ?" जगमोहन ने पूछा ।
"गोरखा उसके पेहरे पर है। मैंने उसे दो परांठे के बनाकर खिला दिए थे । उसका नाम गोपाल है ।" माला बोली ।
"तुम्हें उस लड़के के सामने नहीं जाना चाहिए था ।"
"क्या करती मैं, रात बंधु उसे मारे जा रहा था। लड़का रोते हुए चीख रहा था। उसे बचाने गई थी ।"
"बंधु ।" जगमोहन के दांत भिंच गए ।
"कॉफ़ी बनाऊं ?"
"हां ।" जगमोहन अपने गुस्से पर काबू पाने की चेष्टा करता कह उठा ।
माला उठी और बाहर निकल गई ।
जगमोहन रजाई ओढ़े बैठा, सोच में डूबा रहा। रात माला इसी कमरे, बेड पर उसके साथ सोई थी परंतु उनमें बराबर दूरी थी। जिक्र के काबिल रात की कोई बात नहीं थी ।
जल्दी ही माला कॉफी बना लाई । एक प्याला अपने लिए भी लाई थी । जगमोहन को देने के बाद खुद भी उसके पास ही बैठकर कॉफी पीने लगी । आज जगमोहन की निगाह माला के खूबसूरत चेहरे पर नहीं थी । वो तो गुस्से में भरा बंधु से बात करना चाहता था कि उसका इरादा क्या है ।
"तुम्हारे भाई साहब नहीं आए अभी तक ?" माला ने पूछा ।
"रात को आना था । आ गए होंगे । मैं तीन बजे तक तो कसीनो में ड्यूटी पर था । उसके बाद यहां आना पड़ गया ।"
"वो तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे ।" माला बोली--- "तुम्हें जाना चाहिए उनके पास ।"
"बंधु से दो टूक बात करके जाऊंगा । भाई साहब को फोन कर लेता हूं ।" कहकर जगमोहन ने जेब टटोली । परंतु फोन नहीं था। बेड पर देखा तो वहां भी नहीं था । तभी माला कह उठी ।
"ड्राइंग रूम में देखती हूं । कहीं रात फोन वहां न नहीं गिर गया हो, झगड़े के समय ।" कॉफी का प्याला रखकर माला बाहर निकल गई । जगमोहन सोच रहा था कि आज देवराज चौहान को इन सब बातों के बारे में बताएगा ।
पांच मिनट बाद माला वापस आई । उसके हाथ में फोन था ।
"वहीं सोफे के पास गिरा मिला ।"
जगमोहन ने फोन लिया। उसे देखा तो बंद था। उसे चालू करने की चेष्टा की तो वो चालू नहीं हुआ। नीचे गिरने से उसमें कोई खराबी आ गई थी। जगमोहन ने फोन एक तरफ रखा और कॉफी समाप्त करके नहाने चला गया। नहा-धोकर कपड़े बदले तो तब तक माला नाश्ता बना लाई थी । जगमोहन ने नाश्ता किया । सोचों में डूबा रहा । माला पास ही बैठी थी ।
"तुमने नाश्ता नहीं किया ?" जगमोहन ने पूछा ।
"तुम्हारे बाद करूंगी ।" माला मुस्कुराई ।
जगमोहन ने उसके सूजन भरे चेहरे पर निगाह मारी ।
"अब ठीक है ।" उसकी नजरों को पहचान कर माला ने अपने गाल पर हाथ लगाया ।
माला उसके बर्तन ले गई फिर फौरन ही वापस लौट कर बताया।
"बंधु उठ गया है ।"
"कहां है ।"
"ड्राइंग रूम में बैठा है ।" माला ने कहा ।
"जगमोहन उठा और बाहर निकल गया । चेहरे पर गुस्सा आ गया था । माला उसके पीछे चल पड़ी ।
"मुझे डर लग रहा है जगमोहन ।" माला कह उठी--- "अब वो मुझसे झगड़ा करेगा ।"
"तुम किसी बात की फिक्र मत करो ।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा ।
वे ड्राइंग रूम में पहुंचे ।
बंधु और पदम सिंह वहां थे। बंधु सोया उठा देख रहा था। उसने सिगरेट सुलगा रखी थी ।
बंधु ने दोनों को देखा फिर उसकी निगाह माला के चेहरे पर जा टिकी ।
"ओह, मेरी प्यारी बहन का चेहरा बिगड़ गया ।" बंधु गहरी सांस लेकर बोला--- "बुरा हुआ। तुम्हें बीच में नहीं पड़ना चाहिए था । तब तुम ठीक रहती । अपने काम से मतलब रखना चाहिए था तुम्हें ।" फिर उसने जगमोहन से कहा--- "रात मैंने ही पदम और विजय से कहा था कि तीन बजे कसीनो में तुम्हारी ड्यूटी खत्म होती है, तुम्हें बुला लाएं, माला ठीक हो जाएगी । इसने तो अपने को कमरे में बंद कर लिया था । और गुस्से से चीजें तोड़-फोड़ रही थी ।"
जगमोहन उसके सामने सोफे पर बैठता कह उठा ।
"तुम चाहते क्या हो ?" स्वर में कठोरता थी ।
"मैं ?" बंधु हंसा--- "कसीनो में डकैती चाहता हूं । वो सारे नोट चाहता हूं जो...।"
"इस तरह तो डकैती होगी नही ।"
बंधु ने जगमोहन को देखा फिर सिर हिलाकर बोला ।
"तुम्हें माला से शादी करनी है डकैती होगी ही । करोगे तुम...।"
"माला से मैं डकैती के बिना भी शादी कर सकता हूं ।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा ।
"मैं माला का भाई हूं और शादी नहीं होने दूंगा । तब तुम...।"
"तुममें इतना दम नहीं कि मुझे रोक सको ।" जगमोहन ने चुभते स्वर में कहा--- "मेरे सामने तुम कुछ भी नहीं हो । ये बात शायद तुम भी समझते हो। मैं आसानी से माला से शादी कर सकता हूं और तुम कुछ नहीं कर सकते । अब तक मैं तुम्हारी बातें मान रहा था तो सिर्फ माला की वजह से । परंतु तुम हद से आगे बढ़ गए रात को...।"
"माला को बीच में नहीं आना चाहिए था।" बंधु कह उठा ।
"वो अगर बीच में आई तो क्या तुम उसका मुंह तोड़ दोगे ?"
बंधु हंसा ।
"कल ज्यादा पी ली थी । तभी...।"
"मैंने तुम्हें कहा था कि बाज बहादुर के लड़के से खाना देने तक का ही मतलब रखना है। उसे मारना नहीं है। परंतु तुमने मारा ।"
"साला उछल-कूद मचा रहा था । गोरखा को धक्का देकर, यहां से भाग जाना चाहता...।"
"तुमने उसे कैद कर रखा है तो वो क्यों नहीं भाग जाना चाहेगा। परंतु तुमने उसे मारा क्यों । पहरा सख्त कर देते ।" जगमोहन दांत भींचे बोला--- "मैंने तुम्हें दस बार कहा था कि माला को नहीं मारना, परंतु तुमने इसे बुरी तरह मारा ।"
बंधु ने मुस्कुराकर माला को देखा और कह उठा ।
"शायद ज्यादा चोट लग गई ।"
"मेरे ख्याल में तुम डकैती नहीं कराना चाहते ।"
"ऐसा मत कहो। मैं डकैती कराना चाहता हूं ।" बंधु ने जगमोहन को देखा ।
"परंतु तुम्हारी हरकतें कुछ और ही कह रही हैं ।" जगमोहन ने उसकी आंखों में झांका ।
"अब मैं इन बातों का ध्यान रखूंगा ।" बंधु ने कहा।
"मैं तुम्हें आखिरी मौका दे रहा हूं ।" जगमोहन ने शब्दों को चबाकर कहा--- "माला को भूल जाओ कि तुम्हारी हां के बाद ही हमारी शादी होगी। तेरे जैसों को संभालना मुझे आता है । फिर भी मैं तुझे आखरी मौका दे रहा हूं। जहां पर भी तू मेरी बातों के खिलाफ चला डकैती का काम ही रुक जाएगा । फिर डकैती नहीं होगी। परंतु मेरी और माला की शादी जरूर होगी । जो मैं कहूं तेरे को वो ही करना है। अच्छी तरह सोच ले, अब तेरी हां के बाद ही मैं आगे बढूंगा नहीं तो माला को लेकर मैं यहां से जा रहा हूं ।"
बंधु ने कश लिया, जगमोहन को देखा ।
जगमोहन दांत भींचे उसे देख रहा था ।
"ठीक है । मैं तुम्हारी बात मानूंगा ।" बंधु ने कहा ।
"अब अगर तुम मेरी बातों से बाहर गए तो डकैती का काम रुक जाएगा । तुम्हें वो ही करना होगा जो मैं कहूंगा ।"
"माना ।"
"बाज बहादुर के लड़के को कुछ नहीं कहोगे। माला से दूर रहोगे। ये आखिरी मौका है तुम्हारे लिए ।"
बंधु ने शराफत से सिर हिला दिया ।
माला गम्भीर-सी से खड़ी कभी बंधु को देखती तो कभी जगमोहन को ।
"मैनेजर का लड़का हमारे पास है। हमें उससे बात कर लेनी चाहिए ।" बंधु बोला ।
"अभी नहीं । अभी उसे वक्त दो कि अपने बेटे के लिए तड़पे । पुलिस जबरदस्त ढंग से उसके बेटे को तलाश कर रही है । दो- दिन तक वो पुलिस की तरफ से निराश हो जाएगा । उसके मोबाइल पर तो भूल कर भी फोन मत करना । उसका मोबाइल फोन कम्पनी की सहायता से, टेपिंग पर लगा रखा है । पुलिस को भरोसा है कि अपरहण करने वालों का फोन आएगा ।
"ओह, बंधु के होंठों से निकला ।
"अभी आराम से रहो और किसी बात की जल्दी मत करो । मेरे हिसाब से चलोगे तो आराम से काम हो जाएगा । लोग इसलिए फंसते हैं कि गलतियां कर जाते हैं । परंतु हमें कोई गलती नहीं करनी है । जब मैं कहूं तभी हरकत में आना है ।
"ठीक है ।" बंधु बोला--- "जो कहोगे, वो ही करूंगा । मुझे तो मिलने वाले नोटों से मतलब है ।"
"तुम्हें आखरी मौका दे रहा हूं ।" जगमोहन उठते हुए बोला--- "अब कोई गलती मत करना ।" फिर जगमोहन ने माला को देखते हुए कहा--- "मैं अब चलूंगा। मुझे कुछ काम है ।"
"मैं दोपहर का खाना बनाती हूं तुम खाकर जाना ।" माला कह उठी ।
"मुझे जाना होगा । काम है । अब बंधु तुम्हें कुछ नहीं कहेगा । कहेगा तो मैं तुम्हें यहां से ले जाऊंगा और डकैती भी नहीं होगी।"
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