13 मई : बुधवार

दोपहर तक इंस्पेक्टर महाडिक के – जैसा कि वो धमका कर गया था – कूपर कम्पाउन्ड में पाँव न पड़े।
उस दौरान हनीफ गोगा वहाँ पहुँचा तो इरफ़ान ने उसे पत्थरमारों के सदर के बारे में एक सजती हुई पट्टी पढ़ा कर वहाँ से रुखसत कर दिया।
उसकी आमद का एक फायदा हुआ कि इरफ़ान के पूछे उसने बताया कि इत्तफ़ाक से उसे कुबेर पुजारी के बरली के आवासीय पते की ख़बर थी। वो पता था:
फ्लैट नम्बर 402बी, ओमप्रिया अपार्टमेंट्स, वरली सी फेस, वरली। विमल ने भी वो पता अपने पास नोट कर लिया।
“अब क्या आएगा इंस्पेक्टर महाडिक!” – आख़िर विमल बोला।
“हाँ।” – इरफ़ान बोला – “परसों तो सुबह नौ बजे ही आ धमका था!”
“यानी कमिश्नर जुआरी को मेरी अपील कारगर साबित हुई!”
“यही जान पड़ता है।”
“फिर तो मैं यहीं टिका रह सकता हूँ!”
“नहीं, बाप, अभी नहीं। वो अपने थाने में थाने के कामकाज में मसरुफ हो गया हो तो अभी भी आ सकता है। शाम तक भी आ सकता है।”
“आ गया तो क्या जवाब देंगे?”
“जवाब देंगे ही नहीं।”
“मतलब?”
“उसने सरकारी काम से तो आना नहीं होगा! अकेला आएगा – जैसे कि परसों आया था – भाई लोगों का सिखाया-पढ़ाया भड़वा था, उसका अकेले आना ही बनता था। मेरे को पक्की कि अभी भी आएगा तो अकेला ही आएगा। आए साला! पोटला बनाएगा न मैं! थाने वाले ढूँढ़ते ही रह जाएँगे किधर गया उन का बतोलेबाज़ इंस्पेक्टर।”
“खून करेगा?”
“जैसे पहली बार करूँगा!”
“भाई लोगों से दुश्मनी मज़बूत हो जाएगी!”
“देखेंगे। भुगतेंगे।” – उसने विमल की तरफ देखा – “या कुछ और है तेरे मगज में?”
“और क्या?”
“डर के भाग जाएँ? शहर छोड़ कर फरार हो जाएं?”
“हरगिज़ नहीं। आखिरी दम तक, आखिरी साँस तक मुकाबला करेंगे।”
“शुकर! मेरे को तो तेरी फिकर हो गई थी।”
“कैसी फिक्र?”
“कि कहीं जन्नतनशीन बेगम के ग़म में पिलपिला तो नहीं गया था!”
“वो अन्देशा तभी तक का था, जब तक कि तुम लोगों से फिर मुलाकात नहीं हुई थी। ऐसे कामों में जिसको अन्देशे सताते हैं, आधी हार तो उसकी पहले ही हो चुकी होती है। वो दरख़्त कभी परवान नहीं चढ़ सकता जिसे हर वक्त अपने पर बिजली गिरने की दहशत सताती हो।”
“बरोबर।”
“हनीफ़ गोगा को क्या पट्टी पढ़ाई?”
इरफ़ान ने सविस्तार बताया।
“बढ़िया स्टोरी सैट की। पत्थरमारों के वजूद को और मज़बूती मिलेगी। लेकिन अगर तसदीक की नौबत आ गई तो?”
“तो तसदीक होगी बरोबर। सब को पहले समझाया क्या बोलना था फिर हनीफ़ गोगा को आगे परोसने के लिए कहानी सिखाई।”
“तेरे कहने से होगी तसदीक? तूने जाके समझाया, सब समझ गए?”
“अरे, मैं क्या मेरी औकात क्या! क्या पिद्दी क्या पिद्दी का शोरबा! जो हुआ – वक्त आने पर होगा – तेरे हवाले से हुआ, बाप। चैम्बूर के दाता के हवाले से हुआ जो गरीब-गुरबा के लिए जीसस है, अल्लाह है, भगवान है, वाहेगुरु है। दाता
की बात को कोई टालता है!”
“हम्म! मेरे खयाल से इंस्पेक्टर अब नहीं आने वाला।”
“यानी कमिश्नर ने राजा गजेन्द्र सिंह के बड़े नाम की लाज रखी?”
“हाँ।”
“उसके पिराइवेट कर के पीएस के पीए की लाज रखी?”
“हाँ।”
“जो कि तू है?”
“हाँ”
“बढ़िया! इश्तिहारी मुजरिम पुलिस कमिश्नर का यार!”
“बस कर।”
“बरोबर, बाप।”
हनीफ़ गोगा शिवाजी चौक पहुँचा।
उसने अपनी बाबत खबर अन्दर भिजवाई तो उसे दो बजे तक इन्तज़ार करने को बोला गया।
जब कि तब अभी बारह ही बजे थे। परेशानहाल, पहलू बदलता वो इन्तज़ार करता रहा।
आख़िर दो बजे, फरियादियों की हाज़िरी का दौर ख़त्म हुआ तो चपरासी मानक ने उसे भीतर जाने का इशारा किया।
झिझकता हुआ वो भीतर दाखिल हुआ, उसके पीछे दरवाज़ा बन्द हुआ तो उस ने अपने सामने मौजूद अनिल विनायक और उमर सुलतान का अभिवादन किया।
“हनीफ़!” – आदत के खिलाफ सुलतान मीठे स्वर में बोला – “आ, बैठ।”
झिझकता हुआ हनीफ़ एक विज़िटर्स चेयर पर बैठा। “तेरे को इन्तज़ार करना पड़ा पण तू आया ऐसीच टेम कि...”
“वान्दा नहीं, बाप।”
“अच्छा, वान्दा नहीं! फिर तो शुक्रिया, भई, तेरा। अभी कैसे आया? लगता है तेरी चमकी हुई शक्ल से कि कूपर कम्पाउन्ड की जासूसी में कोई कामयाबी हासिल हुई तेरे को!”
“है तो ऐसीच, बाप!”
“बढ़िया। क्या जाना?”
“बाप, पत्थरबाज़ों के लीडर की बाबत जाना ...”
“वो कहानी तो तू रहने ही दे। अगर पत्थरबाज़ों की बाबत फेंकने आया तो रहने ही दे। पत्थरबाज़ों के एकजुट होकर गैंग खड़ा कर लेने की कहानी तू इतवार को कर चुका था। मैं पहले ही बोला पत्थरबाज़ों का कोई वजूद नहीं। मैं साला ख़ुद कनफर्म किया।”
“बाप, अभी जो मैं बोलने का, उससे कनफर्म होगा कि पत्थरबाज़ों के गिरोह का वजूद बरोबर है।”
“बंडल! सब साले श्याने एकीच बात पर ज़ोर ...”
“इसे सुन तो लो!” – अनिल बोला – “जो कहना चाहता है, कह तो लेने दो! दो घन्टे से इन्तज़ार में बैठा था, इसी बात का लिहाज़ मान लो इसका।”
“तू तो इसकी हिमायत करेगा ही! क्योंकि तू ही तो है शुरू से पत्थरबाज़ों का तरफदार! तू काहे को खुद ही अपनी थ्योरी को गलत ठहराएगा!”
“गो टु हैल!” – अनिल गुस्से से बोला।
“अच्छा, अच्छा! भाव नहीं खाने का, चिकने। मैं सुनता है। बोल, हनीफ़, क्या बोलना माँगता है?”
“बाप, पत्थरबाजों के गिरोह के लीडर की खबर लगी है...”
“साला जब गिरोह ही नहीं है तो लीडर किधर से आ गया?”
“सुलतान भाई” – अनिल बोला – “अभी तुमने वादा किया था कि उसकी बात सुनोगे। बात ऐसे सुनते हैं?”
“क्या! अच्छा, अच्छा! बोले तो भाव खा गया न मैं! अभी सीरियस है। अभी सुनता है मैं। बोल! तो पत्थरबाजों के गिरोह के लीडर की ख़बर लगी तेरे को! इससे आगे बोल!”
“बाप, कूपर कम्पाउन्ड में कान खुले रखे तो लीडर की ख़बर लगी। उसका नाम दशरथ अहिरे है और रिहायशी पता जो मालूम पड़ा है, वो सायन का है।”
“पते पर ज़ोर जान पड़ता है। पूरा पता मालूम?”
“मालूम, बाप।”
“बोल!”
“खोली नम्बर 107, पहला माला, साईं चाल, सिन्धी कालोनी, सायन।”
“हूँ। ख़ास क्या है उसमें? दशरथ अहिरे में?”
“बाप, मालूम पड़ा है कि उसने अपने ही गिरोह के लोगों को धोखा दिया जो कि उस पर पूरा-पूरा ऐतबार करते थे।”
“क्या धोखा दिया?”
“सारा रोकड़ा बटोर कर फरार हो गया।”
“क्या!”
“सत्तर लाख!” – अनिल बोला – “दो बार में सत्तर लाख रुपया लूटा था उन लोगों ने। वो एक भीड़, जो खुद को लीडर बताता था, ले के भाग गया?”
“हाँ।”
“कौन बोला ऐसा?”
“जो मेरी मौजूदगी में वहाँ पहुँचे किसी भीड़ से सीक्रेट कर के बात करता था और मैं सीक्रेट कर के सुनता था।”
“क्या? ये कि दशरथ अहिरे कर के भीड़, जो पत्थरबाज़ों का लीडर बताया जाता था, धोखेबाज़ निकला और सत्तर पेटी के साथ – बोले तो लूटे हुए पूरे रोकड़े के साथ – फरार हो गया?”
“हाँ, बाप।”
“कोई ये बात इरफ़ान को बताने कूपर कम्पाउन्ड क्यों पहुँच गया?”
“बाप, मैं पहले ही बोला, इरफ़ान पत्थरबाज़ों का सलाहकार।”
“लीडर खड़े पैर फरार हुआ तो पीछे खोली खाली कर के तो गया न होगा?”
“बाप, तैयारी से फरार हुआ, इस वास्ते खोली खाली कर के गया। उस महीने का किराया और खोली की चाबी भी पड़ोसी को दे के गया।”
“कमाल है!”
“लीडर की” – सुलतान बोला – “उधर पड़ताल की जाए तो कामयाब होगी?”
“होनी तो चाहिए!” – हनीफ़ बोला।
“देखते हैं। मालूम करते हैं। नाम दशरथ अहिरे बोला?”
“हाँ, बाप।”
“वैसे क्या काम करता था?”
“मालूम नहीं।”
“फैमिली?”
“मालूम पड़ा है कि उधर वो अकेला रहता था। फैमिली थी तो साथ नहीं रहती थी।”
“सायन का उसका जो पता अभी बोला, वो एक कागज पर लिख।”
उसने आदेश का पालन किया।
“निकल ले।”
हिचकिचाता हुआ हनीफ़ उठ कर खड़ा हुआ।
“मेरे लिए और हुक्म?” — फिर बोला।
“बोलेंगे। जो नाम पता तूने बोला, उसकी तसदीक हुई तो बोलेंगे। अभी कूपर कम्पाउन्ड में जासूसी जारी रखने का।”
“बस?”
“मेरे को मालूम तेरे को क्या माँगता है। तेरी लाई खबर सच निकली, उसकी तसदीक हुई तो तेरे को शाबाशी। बड़ी शाबाशी। कुबेर भाई से भी। उसमें लोचा तो... अभी तू खुद समझदार है। है न!”
उसका सिर सहमति में न हिला।
“निकल ले।”
उसने दोनों का अभिवादन किया और वहाँ से रुखसत हुआ। पीछे सुलतान अनिल की ओर घूमा।
“क्या कहता है?” — फिर बोला – “पण तेरे से क्या पूछना! पूछे बिना ही मालूम तू क्या कहता है ... क्या कहेगा! तू तो पहले दिन से पत्थरबाज़ों के वजूद का तरफदार है। अब इस नई खबर से तो पत्थरबाज़ों के वजूद पर तेरा विश्वास और मज़बूत हो गया होगा। क्या?'
अनिल ने मशीनी अन्दाज़ से सहमति में सिर हिलाया।
ख़याल की बाबत ख़ातिर जमा रख। लीडर की तसदीक होने दे, फिर दोबारा बात करेंगे।”
“कौन करेगा तसदीक?”
“नज़ीर टोपी और परेश काले दोनों करेंगे। अब वो दोनों पूरी तरह से तन्दुरुस्त हैं। बरोबर?”
अनिल ने फिर सहमति में सिर हिलाया।
सूरज डूबे, आठ बजे के करीब नज़ीर टोपी और परेश काले शिवाजी चौक लौटे।
उमर सुलतान और अनिल विनायक तब भी वहाँ मौजूद थे। रिसैप्शनिस्ट जा
चुकी थी पर चपरासी मानक कलपता-सा अभी भी वहाँ मौजूद था।
दोनों प्यादे सुलतान और अनिल के रूबरू हुए।
“क्या खबर लाया, टोपी?” – सुलतान बोला।
“बाप” – टोपी बोला – “तुमने जो ठिकाने बताए थे, वक्त थोड़ा होने की वजह से सब पर तो पहुँचना मुमकिन नहीं था, फिर भी जैसे-तैसे आधे से ज़्यादा कवर किए।”
“बढ़िया। क्या जाना?”
“बाप, उन सबका मुँह खुलवाना तो मुमकिन न हो सका, फिर भी कुछ भीडू भड़के होने की वजह से ख़ुद ही ज़ुबान चलाने लगे।”
“भड़के हुए क्यों थे?”
“क्योंकि उनका लीडर दशरथ अहिरे तमाम रोकड़ा ले के फरार हो गया था।”
“लिहाज़ा”- सुलतान ने अनिल की ओर निगाह दौड़ाई – “उन्होंने भी लीडर के वजूद की तसदीक की?”
“भड़के हुए थे इसलिए मुँह फाड़ बैठे, वर्ना मानने को ही तैयार नहीं थे कि पत्थरबाज़ वो थे। जब मिजाज काबू में आ जाएगा तो अगली बार देखना, बाप, साफ मुकर जाएंगे।”
“लेकिन कुछ ने दशरथ अहिरे से वाकिफ़ होना कुबूल किया?”
“बस, कुछ ने ही। वो भी इसलिए कि, जैसा कि मैं पहले बोला, भड़के हुए थे। अक्ल ठिकाने होती तो इतनी नाजुक बात की बाबत कुछ न बोलते।”
“अभी भी बोलेंगे” – काले बोला – “कि नादानी में कुछ गलत-शलत मुँह से निकल गया।”
“कल फिर जाने का।”- सुलतान ने आदेश जारी किया – “और ऐसे दो तीन को पकड़ के इधर ले के आने का।”
“बरोबर, बाप।”
“कोई आने में हुज्जत करें तो ठोकने, ऑफ करने से नहीं हिचकने का। ऐसीच बाकियों को सबक मिलेगा।”
“बरोबर, बाप।”
रात नौ बजे विमल काला घोड़ा के इलाके में मौजूद साउथएण्ड बार पहुंचा।
हालाँकि अब बेमकसद था फिर भी उस घड़ी वो जेम्स दयाल’ वाले रंगरूप में था। उसके साथ सजा-धजा इरफ़ान था जो बार में दाखिल होते ही विमल से अलग हो गया था। बाहर आकरे, मतकरी, परचुरे, साटम और बुझेकर मौजूद थे जो एक पूर्वनिर्धारित इशारे पर गोली की तरह वहाँ पहुँच सकते थे और विमल की बार में हिफाज़त के लिए बने हालात में शरीक हो सकते थे।
कल सुबह कूपर कम्पाउन्ड पहुँची मैडम जो मोबाइल नम्बर इरफ़ान को देकर गई थी, विमल ने उस पर फोन बजा कर वो मीटिंग फिक्स की थी जिसके नतीजे के तौर पर अब विमल, मैडम और उसके सिर के साथ एक कोने की टेबल पर उनके सामने बैठा हुआ था। कोई प्यादे कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे लेकिन विमल को पूरा यकीन था कि अपने डॉन की हिफाज़त के लिए वो बार में आसपास ही कहीं थे।
“मेरे से मिलना चाहते थे” – विमल बोला – “खुद मुलाकात का इन्तज़ाम किया, कॉन्टैक्ट नम्बर मेरे तक पहुँचाया इसलिए मालूम ही होगा मैं कौन हूँ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया।
“अब जबकि ये पक्का है” – फिर बोला – “कि जेम्स दयाल फर्जी नाम है तो बोलो, किस नाम से पुकारा जाना पसन्द करोगे? सोहल या विमल?”
“विमल!”
“रंगरूप, पोशाक सब जो है, फर्जी है जोकि जेम्स दयाल के रोल में आने के लिए अडॉप्ट किया था?”
“हाँ।”
“अब क्या ज़रूरत थी?”
“कोई ज़रूरत नहीं थी। सोचा, शनिवार के बंगला नम्बर सात के मेहमान के तौर पर मुझे पहचानने में आसानी होगी। ऐतराज़ है तो मैं जाता हूँ और जेम्स दयाल वाला मेकअप उतार के आता हूँ। पोशाक बदल के आता हूँ|”
“कब लौटोगे?”
“दो घन्टे में। या ...कल किसी वक्त!”
“नहीं। ऐसे ही ठीक है। जब मैं जानता हूँ मेरे सामने कौन बैठा है तो रंगरूप – लिबास से क्या फर्क पड़ता है!”
“मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूँ? मिस्टर जाधव या ... मिस्टर क्वीन?”
“जो भी तुम्हारे मिजाज में आए। नाम में क्या रखा है!”
“वो तो है! ख़ासतौर से जब कि मुझे मालूम है कि दोनों ही नाम फज़ी हैं। असली नाम कोई और ही है। नहीं?”
वो मुस्कराया।
“बोले तो?”
उसने जवाब देने की कोशिश न की।
“जब दो मर्द बात कर रहे हों तो उन के करीब औरत की मौजूदगी बेमानी होती है।”
वो हड़बड़ाया, उसने यूँ शक्ल बनाई जैसे विमल की बात को समझ न पा रहा हो।
“तुम्हारा नाम भी” – विमल महिला की ओर घूमा – “मिसेज जाधव ही चलेगा या माँ बाप का रखा नाम उचरोगी?”
“गुलाब!” – वो जबरन मुस्कुराती बोली। “रोज बाई ऐनी अदर नेम। नो?”
“यस।”
“शनिवार को मैंने तुम्हें ड्रिंक करते देखा था इसलिए बार पर जाओ वहीं विराजो और अपने लिए ड्रिंक ऑर्डर करो। आइल एडवाइज़ वोदका मार्टिनी, शेकन नॉट स्टई। लाइक जेम्स बांड़। बिल मेरे ज़िम्मे।”
“बिल इज़ नो प्रॉब्लम। बार के मालिक मिस्टर क्वीन हैं।”
“हाउ नाइस! हाउ कनवीनियेन्ट!”
“लगता है तुम यहाँ मेरी मौजूदगी नहीं चाहते!”
“हाउस्मार्ट!”
“मेरी यहाँ मौजूदगी या गैरमौजूदगी तुम्हारे अख्तियार में नहीं है।”
मर्द ने फरमायशी तौर पर सहमति में सिर हिलाया।
“ऐसे अख्तियार पर मेरा दावा भी नहीं।” – विमल बोला – “लेकिन मैं चाहता हूँ कि मीटिंग वन टु वन हो। ये अगर मीटिंग के दौरान तुम्हारा मौजूदगी चाहते हैं तो औरत की मौजूदगी वाला अपना ऐतराज़ मैं वापिस लेता हूँ|”
“गुड!”
'गुलाब’ बोली। “लेकिन उस सूरत में मैं भी चाहूँगा कि मेरा एक साथी यहाँ मौजूद हो। मैं जब चाहँगा, वो यहाँ होगा। फैसला करो” – वो मर्द की ओर घूमा – “गुलाब बार पर जाए या कांटा यहाँ आए?”
मर्द ने उस बात पर विचार किया, फिर उसने महिला को कोहनी मारी और निगाह से भी इशारा किया।
वो उठ खड़ी हुई और साफ-साफ भाव खाती, मिजाज दिखाती बार की ओर बढ़ी।
“डू रिमेम्बर वोदका मार्टिनी”– विमल ने पीछे से चेताया- “शेकन, नॉट स्टड!”
वो वापिस न घूमी। विमल तब तक उसे अपलक देखता रहा जब तक वो बार पर स्थापित न हो गई।
वो वापिस मर्द से मुखातिब हुआ— “तुम इस फैंसी बार के मालिक हो, ये मेरे लिए सैट बैक है। मालूम होता तो मीटिंग कहीं और फिक्स करता।”
“इस जगह में कोई खराबी नहीं।”
“हाँ, अब तो ये करना ही पड़ेगा। खैर! अभी बोलो, जैसे मैडम अपना नाम गुलाब बोल के गई -जो कि बच्चा भी समझ सकता था कि हाथ के हाथ सोचा फर्जी नाम था – वैसे तुम भी ऐसा ही कोई नाम सोच लो, पुकारने में सहूलियत होगी।”
“मिस्टर क्वीन?”
“ओके, मिस्टर क्वीन। क्या चाहते हैं मिस्टर क्वीन?”
एकाएक पूछे गए उस सवाल से वो हड़बड़ाया, फिर बोला – “अब जबकि मैं जानता हूँ तुम कौन हो, मैं तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहता हूँ।”
“दुश्मनी कब हुई?”
“बात में पेच न डालो, यार।”
“मकसद! मकसद क्या है?”
“बोला न, दोस्ती...”
“वो तो बुनियाद है। ओपनर है। गेम्बिट है। गेम्बिट समझते हो न! शतरंज की पहली चाल!”
“वही सही।”
“तुम्हारे से पहले तुम्हारे जैसे बहुत लोगों ने ऐसी कोशिश की है, कोई कामयाब न हो सका।”
“वक्ती तौर पर भी नहीं?”
विमल ख़ामोश हो गया।
“तुम्हारी ख़ामोशी बताती है कि ऐसा नहीं था। फिर ज़रूरी भी तो नहीं कि जो काम पहले कभी न हुआ हो, वो अब भी न हो!”
“हाँ, ज़रूरी तो नहीं! ठीक है, मैं सोचूँगा इस बाबत।”
“जवाब कब दोगे?”
“जल्दी ।”
“कितनी जल्दी?”
“जल्दी ।”
“टाल रहे हो! बात को संजीदगी से नहीं ले रहे हो!”
विमल ख़ामोश रहा।
“खैर! पेशकश सिंसियर थी। लगता है तुम्हारी नाक नीचे न आई।”
“किसी का दुश्मन बनने का मंसूबा न हो तो व्यवहारिक तौर पर वो दोस्त ही होता है।”
“फिर भी...”
“फिर भी मिस्टर क्वीन पर लौटो। बोले तो ये नाम इसलिए क्योंकि तुम गैंग में नम्बर टू हो!”
“क्या बोला?”
“क्योंकि तुम बिग बॉस हो, टॉप बॉस नहीं हो।”
“कौन बोला?”
“कोई नहीं बोला। मैं बोला, मेरी अक्ल बोली, मेरा बैटर जजमेंट बोला। टॉप के गैंगस्टर्स ने नाम ही ऐसे मुकर्रर किए कि बच्चा भी समझ जाए कि कौन नम्बर वन है, कौन नम्बर टू है। शतरंज खेलते हो?”
“तुम अपनी बात कहो।”
“शतरंज में टॉप की हैसियत वाला मोहरा किंग होता है जिसे शाह या बादशाह कहते हैं और हैसियत में नम्बर टू क्वीन होती जिसे वज़ीर या फरजी भी कहते हैं। इसलिए टॉप बॉस शाह है मिस्टर किंग है और तुम उसके वजीर हो – मिस्टर क्वीन हो। वो शाह है, गैंग में नम्बर वन है; तुम वज़ीर हो, गैंग में नम्बर टू हो। बस, इतनी-सी बात है। नम्बर टू होने से तुम्हारी टोपी उतरती है तो ये तुम्हारा ज़ाती मसला है। नहीं?”
वो ख़ामोश रहा।
“जीसस क्राइस्ट भी गाँड का नम्बर टू था लेकिन उस पर अकीदा रखने वालों को कभी क्राइस्ट की हैसियत से कोई शिकायत नहीं हुई थी। उसको जीसस, सन ऑफ गॉड बोला जाता था, इसमें किसी ने कभी कोई ख़राबी नहीं मानी थी।”
“क्या कहना चाहते हो?” – वो भाव खाता बोला।
“कुछ नहीं। मैं तो जो कहना था, कह चुका। अब तो तुम्हीं ने कहना है जो कहना है।”
“मूड ख़राब कर दिया।”
“मैंने तो न किया! लेकिन तुम ऐसा समझते हो तो ... सॉरी!”
उसने अनमने भाव से सिर हिलाकर सॉरी कुबूल की।
“मैं ड्रिंक मँगाता हूँ।” – फिर बोला।
“मेरे लिए ग्लैनफिडिक वॉटर और आइस के साथ।”
ड्रिंक सर्व होने तक, चियर्स बोलने तक दोनों ख़ामोश रहे। विमल ने व्हिस्की का एक घुट भरा, फिर बोला – “मैं सुन रहा हूँ।”
“अच्छा कर रहे हो। सुनो। तुम चाहो तो हम दोनों जो हैं, एक दूसरे के काम आ सकते हैं।”
“अच्छा इन्तज़ाम है। मेरी पसन्द का इन्तज़ाम है। बताओ कैसे?”
“एक काम मैं तुम्हारा करूँगा, एक काम तुम मेरा करोगे।”
“फेयर एनफ़। मैं क्या करूँगा?”
“किसी को ऑफ करोगे।”
“हम्म!”
“मैं तुम्हारी हर जरूरी मदद करूँगा।”
“लेकिन काम ख़ुद नहीं करोगे?”
“वजह?”
“नहीं बताई जा सकती।”
“क्यों?”
“बोला न, नहीं बताई जा सकती।”
“क्योंकि वजह कोई है ही नहीं। ये तुम्हारी मुझे फंसाने की चाल है। तुम्हारी फर्जी स्टोरी से मतमईन होकर मैं किसी की विकेट लेने निकलँगा और वहीं फँस के रह जाऊँगा। ये सोहल को ख़त्म करने की महज़ एक शातिर तरकीब है।”
“ऐसा नहीं है। यकीन करो मेरा।”
“बाकी सब करते हैं?”
“बोले तो?”
“सब को अपना यकीन करा कर ही नम्बर टू के मुकाम पर पहुँचे हो?”
उसने जवाब न दिया, अपनी नाक अपने जाम में दाखिल कर ली।
“भाईगिरी के धन्धे में जो नम्बर टू होता है, वो हमेशा ही नम्बर वन को ऑफ कर के उसकी जगह लेने की फिराक में होता है और अक्सर कामयाब होता भी देखा जाता है। नम्बर ट्र नम्बर वन के भरोसे का भीड़ होता है इसलिए नम्बर टू का उसे धोखा देना आसान होता है। जब नम्बर टू अक्सर नम्बर वन की बुरी गत बनाते पाए जाते हैं तो तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते हो? तुम्हें क्यों किसी बाहरी मदद की ज़रूरत है?”
“मैं नहीं समझा सकता तुम्हें।”
“क्योंकि कोई वजह है ही नहीं। यूँ तुम मुझे बलि का बकरा बनाने की फिराक में हो, बस।”
“ऐसा नहीं है। मेरी ऐसी कोई मंशा होती तो यहाँ मैं जो है, ऐसा पुख्ता इन्तज़ाम कर के रखता कि तुम वापिस न लौट पाए होते, यहीं कहीं ढेर हुए पड़े होते।”
“अच्छा! कोई कभी बोला तो नहीं मेरे को कि सोहल को ढेर करना इतना आसान था!”
“कल किसने देखा है?”
“किसी ने नहीं देखा। सिवाय तुम्हारे। क्या?”
वो फिर ख़ामोश हो गया।
“तुम्हारे बॉस पर, नम्बर वन पर, शाह पर पहुँच बनाना इतना ही आसान है कि कोई भी टहलता हुआ उस तक पहुँचेगा और उसे ऑफ कर के टहलता हुआ वापिस चला आएगा?”
“नहीं।”
“मेरा भी यही ख़याल था। तो कैसे होगा ये काम?”
“एक स्कीम है मेरे पास जो तुम डील की हामी भरोगे तो तुम्हें एक्सप्लेन कर दी जाएगी।”
“लेकिन अपनी स्कीम पर खुद अमल नहीं करोगे!”
“अब कितनी बार ये बात दोहरानी होगी?”
“तुम्हारे पास पहले से तैयारशुदा स्कीम है, मेरे से उस पर अमल चाहते हो तो नम्बर वन परदेस में तो न रहता होगा!”
“यहीं, मुम्बई में रहता है।”
“हा” – विमल ने व्हिस्की का एक घुट भरा और फिर बोला – “मैं तुम्हारी स्कीम पर अमल करना कुबूल करूँ तो बदले में मुझे क्या मिलेगा?”
“तुका का हाइजैक्ड ट्रस्ट वापिस हो जाएगा। यानी शिवाजी चौक वाला ट्रस्ट बन्द हो जाएगा। साथ ही जो है, हमारी तरफ से तुम्हारी कोई मुखालफत बन्द हो जाएगी। यानी जो काम तुम हमारे गैंग के टॉप बॉसिज़ को ख़त्म कर के करना चाहते हो, वो वैसे ही हो जाएगा।”
“क्या गारन्टी है?”
“होता दिखाई देगा।”
“चाहोगे तो मैं भी यहाँ ऑफ होता दिखाई दूँगा।”
“यहाँ नहीं। बाहर कहीं। यहाँ ऐसा कुछ करना जो है, इतने हाई-फाई इलाके के इतने हाई-फाई बार की क्लायन्टेल ख़राब करना होगा।”
“क्या कहने!”
वो फिर ख़ामोश हो गया।
“पहले बान्द्रा में शंघाई मून', अब फोर्ट में साउथएण्ड'! मुम्बई में तुम्हारे ऐसे और भी ठीये होना कोई बड़ी बात तो न होगी!”– विमल ने ठिठक कर क्षण भर को अपने मेज़बान को देखा, फिर पूछा – “हैं?”
“हो सकते हैं।” – वो सहज भाव से बोला।
“मालिक नम्बर वन! भले ही तुमने खुद को मालिक बताया!”
“तुम डील के लिए हामी भरोगे तो मालिक मैं। मैं, जो कि तब नम्बर वन होऊँगा।”
“शाह होगा?”
“राजा होगा। मैं बड़े सपने नहीं देखता। जो सपने देखता हूँ, अपनी औकात में रहकर देखता हूँ। तुम मिस्टर क्वीन, मिस्टर जाधव के अलावा मेरा कोई नाम जानना चाहते थे न! अब जान लो। राजू नाम है मेरा। और राजू का है एक ख़्वाब। पूछो क्या?”
“क्या?”
“राजू, राजा, राजा सा'ब। यही ख्वाब है मेरा और तुम जो है, साथ दो न दो, मैं अपनी मंजिल हासिल कर के रहूँगा।”
“नम्बर वन को ऑफ कर के रहोगे?”
“करवा के”
“खुद ये काम हरगिज़ नहीं करोगे?”
“अब कितनी बार ये सवाल पूछोगे? नहीं करूँगा। और न करने की वजह भी नहीं बताऊँगा।”
“तुमने कहा था तुकाराम का हाइजैक्ड ट्रस्ट वापिस हो जाएगा, तुम्हारी तरफ से मेरी मुखालफत बन्द हो जाएगी लेकिन ऐसा कोई कौल-करार तुम अभी नहीं कर सकते हो, तभी कर सकते हो जब कि नम्बर वन ऑफ हो चुका हो और तुम उसकी जगह ले चुके हो। नहीं?”
“हाँ। और अब ख़बरदार जो फिर कहा कि ये काम मैं ख़ुद क्यों नहीं करता!”
“कहते हो तो नहीं कहूँगा लेकिन ज्यों-ज्यों तुम्हारा इंकार सुनता हूँ, हकीकत जानने की ख़्वाहिश और भड़कती है।”
“हर ख्वाहिश पूरी नहीं होती।”
“किताबी बात है लेकिन मुझे मंजूर है।”
“शुक्रिया।”
“इस वक्त तुम मेरे सामने मौजूद हो और ख़ुद को गैंग में नम्बर टू बताते हो। मैं अभी तुम्हें ख़त्म कर तो ये भी तो मेरी मंजिल की तरफ मेरा एक बड़ा कदम होगा!”
“तुम ऐसा नहीं कर सकते।”
“कौन रोकेगा?”
“कोई नहीं। तुम ख़ुद ही रुक जाओगे।”
“क्यों भला?”
“क्योंकि सारा अन्डरवर्ल्ड जानता है सोहल निहत्थे पर वार नहीं करता।”
“निहत्थे और बेगुनाह पर। जो निहत्था होते हुए भी मेरे लिए ख़तरा बनने पर आमादा हो, उसपर ये शर्त लागू नहीं।”
“कैसे भी।”
“अच्छी कमज़ोर रग पकड़ी मेरी!”
“तो फिर क्या जवाब है तुम्हारा?”
“मैं नाहक किसी का खून नहीं करता।”
“नाहक क्यों करोगे? अपनी मंजिल की तरफ आख़िरी कदम जान कर करोगे।”
“दूसरे, मैं प्रोफेशनल असैसिन नहीं हूँ, सुपारी किलर नहीं हूँ। ... सुपारी किलर पर याद आया। नम्बर वन को तुम ऑफ नहीं कर सकते तो उसकी सुपारी लगाने में क्या प्रॉब्लम है?”
“बड़ी प्रॉब्लम है, गम्भीर मसला है।”
“क्या?”
“ज्यों ही सुपारी किलर को ख़बर लगेगी उसने किस की सुपारी उठाई है, वो मेरा मुलाहज़ा भूलकर, सुपारी का मुलाहज़ा भूल कर, जाके शाह का सगा बन जाएगा।”
“नॉनसेंस! ऐसा कहीं होता है!”
“निशाना शाह हो तो होता है ... हो बराबर सकता है।”
“पेशे की ईमानदारी ....”
“केस टु केस जुदा होती है। शाह के केस को आम केस के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। इस सिलसिले में मैं जो है, किसी सुपारी किलर पर ऐतबार करूँगा तो ख़ुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारूँगा।”
“गैंग में कोई तुम्हारा ख़ास?”
“ऐसा कोई ये काम करेगा तो ख़ुद ही नम्बर वन बनने की जुगत करने लगेगा। ऐसा रुतबा हासिल कर पाया तो मेरे को कैसे ज़िन्दा छोड़ देगा?”
“तुम्हारी इस बात से तो लगता है कि गैंग में तुम्हारे आसपास की हैसियत वाले कई हैं!”
“कई तो नहीं हैं। अलबत्ता तीन तो हैं ही!”
“जिन्हें नम्बर वन का खौफ़ नहीं! नम्बर टू का भी – तुम्हारा भी – खौफ़ नहीं!”
“जुबानी कुबूल कोई नहीं करने वाला लेकिन समझ लो, ऐसा ही है।”
“तुम्हारी बात तो समझ में आती है – क्योंकि अपने आसपास की गैंग में हैसियत वाले तीन बताते हो लेकिन किसी को नम्बर वन का खौफ़ न हो, ये बात मेरी समझ से बाहर है। ऐसा कमज़ोर, पिलपिलाया हुआ शख़्स नम्बर वन नहीं हो सकता, हो सकता है तो बना नहीं रह सकता।”
“तुम टॉप बॉस को, शाह को जो है, बहुत कम करके आंक रहे हो। ऐसे ही नहीं उसने अमर नायक के, बहरामजी कान्ट्रैक्टर के मुकाबले का गैंग खड़ा कर लिया!”
“बहरामजी कान्ट्रैक्टर के भी?”
“हाँ। उसकी एस्टेट में जो बम विस्फोट हुआ था, जिसमें वो मरने से बाल बाल बचा था, उसने बहरामजी को जो है, बहुत कमज़ोर कर दिया था, बहुत काबिलेरहम हालत में पहँचा दिया था। विस्फोट से उबर चका है फिर भी अपने लोगों पर अब उसका कब्जे का वैसा फौलादी पंजा नहीं है जैसा बिस्फोट से पहले होता था। ऊपर से नेतागिरी वाला हाल भी जो है, भाईगिरी जैसा ही होता जा रहा है।”
“वो कैसे?”
“बहरामजी की मराठा मंच पार्टी के हाउस में चालीस एमएलए हैं जिनके दम पर कभी कोलीशन सरकार बनती तो बहरामजी उसमें अपने एमएलएज़ के दम पर जो है, मन्त्री बनने के सपने देखता था और कहता था कि कोलीशन कभी उसके हक में करवट बदलती तो वो चीफ़ मिनिस्टरशिप का भी सपना देखता था। लेकिन अब उसकी नेतागिरी कमज़ोर हो जाने की वजह से उसके एमएलए हालात से राजी नहीं और चुपचाप, नुफ़िया तरीके से दल बदलने के प्लान बना रहे हैं। हाल में ऐसा कुछ सच में हो गया तो बहरामजी की मराठा मंच पार्टी जो है, नाममात्र को ही रह जाएगी।”
“और तुम्हारा बाँस बहरामजी से ज़्यादा ताकतवर हो जाएगा! सियासत में नहीं, भाईगिरी में।”
ऐसा होने में अभी टाइम है लेकिन कभी हो जाए तो हैरानी की बात न होगी।”
“गैंग का टोटल कन्ट्रोल टॉप बॉस के – शाह के – हाथों में?”
“ऐसा कहीं होता है! वो अपने टॉप ब्रास को बहुत चतुराई से पावर्स डेलीगेट करता है और उन को मॉनिटर करता है।”
“सच में करता है, या दिखावा करता है?”
वो ख़ामोश रहा।
“जवाब दो, भई!”
“वो क्या है कि आजकल वो अपनी कुछ पर्सनल प्रॉब्लम्स में मसरुफ़ है इसलिए इन कामों में वैसी तवज्जो नहीं दे पाता जैसी हमेशा देता था।”
“बिल्ली का डर नहीं इसलिए चूहे मनमानी करते हैं!”
“खास कुछ नहीं।”
“अभी तो खाली ख़याल आया, आगे मुलाकात होगी तो ठीक से बोलूँगा। समझ के बोलूँगा। बहरहाल, बात का लुब्बोलुबाब ये है कि न तुम्हें सुपारी किलर कुबूल है और न गैंग के किसी ख़ास पर ऐतबार आने वाला है – क्योंकि वो ख़ास मौकापरस्त होगा तो ख़ुद ही नम्बर वन बनने की जुगत करने लगेगा। किसी करिश्माई तरीके से कामयाब हो गया तो ऐसा रुतबा हासिल होते ही सबसे पहले फरजी की, नम्बर टू की, विकेट लेगा। ठीक?”
“हाँ।”
“कैसे यकीन है कि मेरे से धोखा नहीं होगा?”
“क्योंकि तुम सोहल हो। अन्डरवर्ल्ड में सोहल की जुबान जो है, टकसाली सिक्के जैसी खरी मानी जाती है। एक तुम ही हो जो– सारा अन्डरवर्ल्ड जानता है – जुबान देकर अपनी ज़ुबान से नहीं फिर सकते हो।”
“हम्म। बहरहाल प्रॉब्लम गम्भीर है तुम्हारी।”
“जवाब! जबाब क्या है?”
“सैमी बड़े खलीफ़ा! राजू-राजा-राजा सा'ब, मुझे अपने उसूलों से डिगना पसन्द नहीं, फिर भी दो शर्तों पर मैं तुम्हारा काम कर सकता हूँ।”
वो सम्भल कर बैठा, उसकी सवालिया निगाह विमल पर टिकी।
“एक तो वजह बताओ – बतानी होगी हर हाल में – कि क्यों वो काम तुम ख़ुद नहीं कर सकते जो मेरे से करवाना चाहते हो। तुम शाह के करीबी हो, वजीर हो, मिस्टर क्वीन हो, नम्बर टू हो, तो क्यों ये काम तुम ख़ुद नहीं कर सकते? फरजी खिलाफ हो तो शाह को शह और मात लाज़मी होती है।”
“दूसरी शर्त बोलो!” – उसका स्वर उतावला हुआ।
“सुनो। जब तक मैं तुम्हारे काम को अंजाम नहीं दे लूँगा, तुम मेरे मेहमान रहोगे।”
वो हड़बड़ाया, फिर बोला – “तुम वही कह रहे हो न, जो मैं समझ रहा हूँ?”
“तुम क्या समझ रहे हो?”
“मुझे तुम्हारी कैद में रहना होगा? कैदी बन कर? बन्धक बन कर?”
“मुअज्जिज़ मेहमान बन कर।”
“एक ही बात है। ऐसी बात को लपेट के कहने से जो है, उसका मतलब, मकसद, नहीं बदल जाता। मतलब गिरफ्तारी है और मेरे को तभी छोड़ा जाएगा जब तुम कामयाब – या नाकाम – वापिस लौटोगे।”
“ये ज़रूरी है। यही तरीका है ये कनफर्म करने का कि मेरे साथ कोई धोखा नहीं होगा। ये मेरे को ही ऑफ करने की कोई चाल नहीं निकलेगी।”
“ऐसा नहीं होगा।”
“क्या पता लगता है! अन्डरवर्ल्ड में सोहल की जुबान काबिलेऐतबार समझी जाती है, मिस्टर क्वीन की जुबान पर अन्डरवर्ल्ड का ऐसा ऐतबार बनना अभी बाकी है।”
“अब जबाब दो अपना! बोलो, क्या कहते हो?”
“मेरे को दोनों ही शर्ते कुबूल नहीं।”
“फिर तो यहाँ और मौजूदगी बेमानी है।” — विमल निर्णायक भाव से बोला – “दोनों ने ही टाइम बर्बाद किया। इस राउन्ड का बिल मैंने भरना है या ये ऑन दि हाउस है?”
“ऑन दि हाउस है।”
“थैक्यू!” – विमल उठ खड़ा हुआ – “रास्ते में गुनगुनाता जाऊँगा – राजू का है एक ख़्वाब, राजू-राजा-राजा सा'ब'
“अभी रुको।”
विमल की भवें उठीं।
“रात की इस घड़ी एक ड्रिंक से क्या बनता है?”
“मेरा बनता है। मैं साथ देने के लिए पीता हूँ, नशा करने के लिए नहीं।”
“फिर भी एक ड्रिंक और लो।”
“भई, तुम कहते हो तो...”
“मैं कहता हूँ... प्लीज़।”
विमल वापिस बैठ गया। मेज़बान ने चुटकी बजाई।
वेटर और स्टीवॉर्ड दोनों दौड़े आए। मेज़बान ने रिपीट का ऑर्डर दिया तो वो फौरन सर्व हुआ।
वेटर के पीठ फेरते ही विमल ने अपना जाम मेज़बान के जाम से बदल लिया।
“किसी पर ऐतबार करना नहीं सीखे?” – मेज़बान आहत भाव से बोला।
“और भी बहुत काम हैं ज़िन्दगी में” – विमल लापरवाही से बोला – “जो कि मैं नहीं सीखा।”
“पहली बार ये एहतियात न सूझी?”
“भई, नहीं ही सूझी! तब मेरे को ठीक से स्ट्राइक नहीं किया था कि बार के मालिक तुम थे।”
“वर्ना ड्रिंक्स की बाबत जो शक अभी ज़ाहिर किया, वो पहले राउन्ड पर भी करते?”
“हाँ।”
“ये बात मेरे को भी सूझ सकती थी।”
“कौन-सी बात?”
“कि तुम ड्रिंक तब्दील करोगे!”
“तो?”
“ड्रिंक्स अभी यूँ सर्व हुए होते कि मेरे ड्रिंक में जो है, खतरनाक कर के कुछ मिला हुआ होता पर तुम्हारे ड्रिंक में कोई ख़ामी न होती। यूँ होशियारी दिखाते तुम ड्रिंक तब्दील करते तो फिक्स्ड’ ड्रिंक जो है, तुम्हारे पास पहुँच जाता और जिसमें कोई खामी न होती, वो मेरे पास होता।”
विमल भौंचक्का-सा उसका मुँह देखने लगा। मेज़बान निर्दोष भाव से मुस्कुराया।
“अभी मैं ड्रिंक न तब्दील करता” – बिमल बोला – “तुम्हारे पास ही खामी ड्रिंक होता तो?”
“तो मैं वेटर को बुलाता और उसको बोलता मेरे ड्रिंक में मक्खी थी, नया लाए।”
“काफी होशियार हो!”
“अपने-अपने दायरे में हर कोई होता है। तुम क्या कम हो?”
“मेरे को किसी ख़ास बजह से रोका है तो बोलो वर्ना....”
“खास वजह से रोका है।”
“क्या ख़ास वजह?”
“आइन्दा कभी मेरा इरादा बदल जाए, मेरे को जो है, तुम्हारी शर्ते कुबूल हों तो कहाँ, कैसे कॉन्टैक्ट करूँ? कोई ज़रिया बताओगे या तब भी मेरे को गुलाब को ही कूपर कम्पाउन्ड भेजना पड़ेगा?”
“भेजना क्यों पड़ेगा? अपना मोबाइल नम्बर पीछे छोड़ कर गई न, जो मैंने तुमसे अप्वायन्टमेंट फिक्स करने को बजाया! मैं फिर बजा लूँगा।”
उसने इंकार में सिर हिलाया।
“क्या हुआ? ऐनी प्रॉब्लम?”
“किसी वजह से वो नम्बर अब अवेलेबल नहीं है – अब ये न पूछना क्यों अवेलेबल नहीं है – दोबारा बजाओगे तो नहीं मिलेगा।”
“ओह! आई सी! आई सी!”
“उस इन्तज़ाम के लिए गुलाब को जो है, कूपर कम्पाउन्ड का फेरा फिर लगाना होगा।”
मैं वहाँ नहीं होता। तुम्हारी सखी जिससे वहाँ मिली थी, सखी की आमद के बाद उस भीड़ का पैगाम मेरे को मिला था। तुम्हारा कोई पैगाम आइन्दा होगा तो वो भी उसी की मार्फत मेरे को मिलेगा।”
“उसका नम्बर दो।”
विमल ने एक पेपर नैपकिन पर तुका के घर का लैंडलाइन का नम्बर लिख कर नैपकिन उसके हवाले किया।
“ये तो लैंडलाइन का नम्बर है!” – वो बोला।
“हाँ।”
“बजेगा तो कोई सुनेगा सही इसे?”
“सुनेगा। नहीं सुनेगा तो इस लैंडलाइन में कॉलर आइडेन्टिटी की सुविधा है, कॉलबैक करेगा।”
“हूँ।”
“या अपना नम्बर दो।”
वो परे देखने लगा। “दोस्ती के तमन्नाई हो तो क्या हर्ज है अगरचे कि कभी मैं भी फोन कर लँ!”
“तुम काहे को करोगे?”
“अगरचे कि बोला न!”
“उसके लिए इन्तज़ाम है।”
“क्या?”
उसने एक पेपर नैपकिन पर एक नाम और मोबाइल नम्बर घसीटा और विमल को थमाया।
“ये बारमैन का नाम और नम्बर है ....”
“बारमैन!” – विमल ने परे बार की तरफ निगाह दौड़ाई – “वो जो इस वक्त बार पर दिखाई दे रहा है! सफेद कोट और काली बो टाई वाला?”
“हाँ। उसको मेरी बाबत फोन लगाना और थोड़ा वेट करना। या तो मैं जो है, कॉलबैककरूँगाया लियो तुम्हें नम्बर देगा जिस पर मेरे कोअप्रोच कियाजासकेगा।”
“लियो! एडविन लियो!”
“हाँ। नैपकिन पर लिखा है।”
“वहीं से पढ़ा। हर घड़ी बार पर होता है?”
“नहीं। शिफ्ट की ड्यूटी है। पहली ग्यारह से सात, दूसरी सात से दो ... या तीन या चार ... जब तक क्लायंटेल हो।”
“मैं आके बोले बॉस से बात करने का, वो पूछेगा बरोबर, कौन बॉस?”
उसने उस बात पर विचार किया।
“राजा साब।” — फिर बोला।
“ओके" फिर विमल ने यूँ ड्रिंक की ओर देखा जैसे उस विषय का समापन कर रहा हो।
“बेखौफ़ पियो।” — वो विमल को उत्साहित करता बोला – “मैं छुप के वार नहीं करता।”
“जब कि”–विमल बोला – “भाई लोगों का कारोबार ही छुप के वार करना है।”
विमल उठ कर खड़ा हुआ, उसने तब तक तिरिस्कृत-सा पड़ा अपना जाम उठाया और एक ही बार में गिलास खाली कर दिया।
मेज़बान के चेहरे के भाव बदले, अब वहाँ हैरानी परिलक्षित थी।
“हारों तो हरिनाम है” – विमल के सन्तुलित स्वर में ओज का पुट आया – “जो जीतूं तो दाव, पारब्रह्म सों खेलतो, जो सिर जाव तो जाव। गुडनाइट।”