सुबह के दस बजे थे जब कि माइकल हुआन धारावी और आगे चूनाभट्टी पहुंचा जहां लोकल के स्‍टेशन के सामने शिव कृपा अपार्टमेंट्स करके एक हाउसिंग सोसायटी थी जिसका एक फ्लैट उसका निशाना था ।

जहां मारकस लोबो और पैड्रो वाज़ नामक दो गोवानी रहते थे जो कि ‘आतिशबाजी’ की रात को स्‍वैन नैक प्‍वायन्‍ट आइलैंड पर बतौर एस्‍कार्ट उसके साथ थे ।
दोनों घर पर मौजूद थे ।
हुआन को सामने खड़ा पा कर वो हक्‍के बक्‍के रह गये । कितनी ही देर उनके मुंह से बोल न फूटा ।
‘‘बास !’’ — फिर मारकस ने मुंह से निकला — ‘‘जिन्दा है ?’’
‘‘तेरे को क्या दिखाई देता है ?’’ — उसे घूरता माइकल हुआन बोला ।
‘‘क-कैसे हुआ ?’’ — पैड्रो बोला ।
‘‘हुआ किसी तरह से । अभी मैं इधर एक्‍सप्‍लेनेशन देने आया ? तुम लोगों की जानकारी में इजाफा करने आया ?’’
‘‘न-हीं । नहीं, बॉस । बैठो ।’’
‘‘प्‍लीज ।’’ — मारकस बोला ।
हुआन एक कुर्सी पर ढेर हुआ ।
‘‘हमको खुशी, बॉस, कि तुम सलामत है ।’’
‘‘सेंट फ्रांसि‍स’’ — पैड्रो बोला — ‘‘बोले तो मिरेकल किया । बट... बाई दि ग्रेस ऑफ गॉड आलमाइटी... बचा तो कैसे बचा, बॉस ?’’
‘‘वैसे ही जैसे बोला’’ — हुआन बोला — ‘‘आसमानी बाप सेव किया ।’’
‘‘दैट्स ग्रेट ।’’ — मारकस बोला — ‘‘ग्रेट इनडीड ! पण परसों से किधर था, बॉस ?’’
‘‘सवाल नहीं करने का’’ — हुआन का लहजा सख्‍त हुआ — ‘‘जवाब देने का ।’’
‘‘यस, बॉस ।’’
‘‘युअर वर्ड इज अवर कमांड, बॉस ।’’ — पैड्रो बोला ।
‘‘उधर खुद पुलिस कमिश्‍नर पहुंचा हुआ था, मालूम ?’’
‘‘सिक्‍योरिटी वालों में ऐसा कुछ खुसर पुसर था तो सही, बॉस ।’’
‘‘जरूर यही बात थी ।’’ — मारकस बोला — ‘‘तभी उधर से बॉस लोगों के अलावा बाकी सबको सेफ एग्जिट मिला ।’’
‘‘राइट ।’’ — हुआन बोला — ‘‘पुलिस कमिश्‍नर को इधर की हर ईवेंट की, हर हैपनिंग की खबर थी । अब जब खबर थी तो मेरा सवाल है, इधर कोई हलचल न हुई ?’’
‘‘हुई न !’’ — मारकस के स्‍वर में सस्‍पेंस का पुट आया ।
‘‘क्या ?’’
‘‘उधर गोरई में... रोजवुड एस्‍टेट में... बोले तो तुम्‍हारे बंगले के पीछू के प्‍लाट में कल बुलजोडर फिर गये । ब्‍लडी होल डे डि‍गिंग चला...’’
‘‘बिग आपरेशन !’’ — पैड्रो भी मारकस से मिलते जुलते स्‍वर में बोला — ‘‘वैल आर्गेनाइज्‍ड । नीचू का तमाम खुफिया बेसमेंट्स एक्‍सपोज हो गया ।’’
‘‘नॉरकॉटिक्‍स का बड़ा लॉट पकड़ा गया ।’’ — मारकस बोला — ‘‘हथियारों का बड़ा जखीरा पकड़ा गया ।’’
‘‘बंगला ! उसकी तलाशी न हुई ?’’
‘‘मेरे खयाल से हुई होगी । जब पीछू के प्‍लाट की खुदाई से तहखाने एक्‍सपोज हो गये तो बंगले के नीचे के तहखाने का रूट तो अपने आप ही बन गया । हो सकता है उन लोगों ने उधर से बंगले का भी चक्‍कर लगाया हो !’’
‘‘मेन डोर न खोला ?’’
‘‘वो तो नहीं खोला गया था, बॉस ।’’
‘‘तुम्‍हें कैसे मालूम ?’’
‘‘बॉस जब इतने बड़े आपरेशन की खबर लगी थी तो उधर राउन्‍ड तो मारने का था न !’’
‘‘मालूम तो होना चाहिये था’’ — पैड्रो बोला — ‘‘कि क्या हो रहा था !’’
‘‘किसलिये ?’’ — हुआन बोला — ‘‘जो जानते उसकी रिपोर्ट किसको करते ?’’
‘‘वो बात तो है बरोबर । पण हम फिर भी गये ।’’
‘‘और अच्‍छा हुआ कि गये ।’’ — मारकस बोला — ‘‘अभी रिपोर्ट कर रहे हैं न !’’
‘‘सेंट फ्रांसिस हम को गाइड किया ।’’ — पैड्रो बोला — ‘‘बोले तो साइलेंट हिंट ड्रॉप किया कि, बॉस, तुम उधर से सेफ निकल के आने वाला था ।’’
‘‘अब पुलिस को मालूम है’’ — हुआन ने पूछा — ‘‘कि वो बंगला किसी माइकल हुआन के कब्‍जे में था !’’
‘‘डेफिनिटली मालूम’’ — मारकस बोला — ‘‘कैसे छुपने का था ?’’
‘‘मेरी बीवी ?’’
‘‘मैडम तो पहले ही उधर नहीं था !’’
‘‘आई मीन, इन बिटव‍िन लौट तो न आयी ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘पक्‍का ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘पण’’ — पैड्रो बोला — ‘‘किधर है, मैडम ?’’
‘‘परसों सुबह पूना गयी थी किसी से मिलने । मैंने बोला तो था जब तक मैं फोन न करूं, लौट कर न आये ।’’
‘‘फिर क्या बात है !’’
‘‘उसका मोबाइल नम्बर मुझे जुबानी याद नहीं । मेरा मोबाइल आइलैंड पर हुए हंगामे में कहीं गिर गया । अभी मैं उसको कान्‍टैक्‍ट नहीं कर सकता । वो मेरे को फोन करेगी तो मैं रिसीव नहीं कर सकता क्‍योंकि फोन मेरे पास नहीं है ।’’
‘‘यू हैव ए प्राब्‍लम देयर, बॉस ।’’
‘‘नवां फोन काबू में करने का ।’’ — मारकस बोला — ‘‘सेम नम्बर रिवाइव कराने का । नो ?’’
‘‘यस ।’’
‘‘पण डाटा ?’’ — पैड्रो बोला ।
‘‘सेफ है । सेव करके रखा ।’’
‘‘फिर क्या प्राब्‍लम है !’’
‘‘बॉस’’ — मारकस बोला — ‘‘अभी तुम क्या करेगा रोजवुड एस्‍टेट का बाबत ! वो बंगला तुम्‍हारा प्रापर्टी । तुम सलामत है बाई दि ग्रेस ऑफ गॉड । बोले तो क्या करेगा ! अपना प्रापर्टी पर अपना क्‍लेम लगायेगा ?’’
‘‘मैं बोले तो’’ — पैड्रो बोला — ‘‘रोजवुड एस्‍टेट के पास भी भटकना डेंजर काम ।’’
‘‘वो काम तो मैं कर भी चुका ।’’
‘‘क्या बोला, बॉस ?’’
‘‘आज अर्ली मार्निंग मैं गोरई गया था । तब बंगले पर कोई खास निगरानी नहीं थी । खाली बैक में एक सिपाही एक बैंच पर लेटा ऊंघता था, सोता था । तुम सोचते हो पुलिस उधर से बंगले में दाखिल हुई थी तो इसका मतलब है उधर का दरवाजा तोड़कर खोला गया था जो कि जाहिर है कि आनन फानन में साबुत नहीं किया जा सकता था । टूटे दरवाजे की वजह से ही शायद वो सिपाही उधर ड्यूटी भरता था ।’’
‘‘ऐसीच होगा ।’’
‘‘फ्रंट पर कोई निगरानी मैंने नहीं पायी थी । मैंने खामोशी में ताला खोला था और अन्दर गया था । वहां से मैंने अपना जरूरी सामान निकाला, कैश निकाला, पासपोर्ट निकाला और जा कर जुहू के एक होटल में चैक इन किया ।’’
‘‘सिपाही को तुम्‍हेरे उधर पहुंचने का कुछ मालूम न पड़ा ?’’
‘‘न !’’
‘‘कमाल है ।’’
‘‘होटल कौन सा, बॉस ?’’ — मारकस ने पूछा ।
‘‘सी-साइड । 307 में है मैं उधर ।’’
‘‘इधर मगज में सेव किया, बॉस ।’’
‘‘बॉस’’ — पैड्रो मन्‍त्रमुग्‍ध भाव से बोला — ‘‘प्रापर्टी पर अपना क्‍लेम लगा सकता है ? बोल सकता है तुम आइलैंड पर थाइच नहीं ? तुम्‍हारा उधर की ईवेंट्स से कोई लेना देना नहीं ?’’
‘‘बोले तो’’ — मारकस बोला — ‘‘तुम्‍हारा जिन्दा होना अपने आप में इस बात का सबूत बन सकता है !’’
‘‘मारकस ठीक बोला, बॉस’’ — पैड्रो बोला — ‘‘आइलैंड पर होता तो तमाम बॉस लोगों के साथ होता !’’
‘‘बरोबर ।’’ — मारकस बोला — ‘‘पण बॉस, पिछले प्‍लाट की खुदाई में बरामद हुए ड्रग्‍स के स्‍टॉक और फायरआर्म्स की बाबत क्या बोलेगा ?’’
‘‘बॉस’’ — पैड्रो बोला — ‘‘क्या क्‍लेम कर सकता है कि तुम्‍हें उस बावत कोई खबर नहीं थी, उन तहखानों का रास्ता बाहर से था और कोई दूसरा पार्टी उधर वो नॉरकॉटिक्‍स वो हथियार स्‍टाक करता था ?’’
‘‘नहीं चलेगा ।’’ — हुआन बोला — ‘‘ऐसा कुछ कहने सुनने के लिए मेरे को सामने आना पड़ेगा, अपने आपको एक्‍सपोज करना पड़ेगा, जाहिर करना पड़ेगा कि आइलैंड पर करिश्‍मा हुआ था कि मैं निश्चित मौत से बच गया था, या मैं उधर था ही नहीं, मैं ये नहीं मांगता ।’’
‘‘बोले तो ?’’
‘‘अभी मैं गुमनाम रहना मांगता है । इसी में मेरी भलाई है ।’’
‘‘बॉस, अभी भी बोले तो ?’’
‘‘तुम लोग उस एक शख्‍स को भूल रहे हो, जिसकी वजह से आइलैंड पर वो मौत का नाच हुआ । सोहल अभी भी इसी शहर में है । मैं अपने आप को एक्‍स्‍पोज करूंगा तो क्या ये बात उसकी जानकारी में आये बिना रह पायेगी ! फिर क्या वो नये सिरे से मेरे पीछे नहीं पड़ जायेगा ?’’
‘‘ओह !’’
‘‘अभी मैं अकेला पड़ गया है इसलिये अभी मैं एक्‍सपोजर अफोर्ड नहीं कर सकता । अभी मेरे को साइलेंटली ताकत बनाने का और इससे पहले कि सोहल स्‍ट्राइक करे, मेरे को स्‍ट्राइक करने का ।’’
‘‘ऐसा, बॉस ?’’
‘‘हां । मेरे को सेफ फंक्‍शन करने का तो उसका फिनिश होना जरूरी ।’’
‘‘कर सकेगा, बॉस ?’’
‘‘जब कि’’ — मारकस बोला — ‘‘अभी बोल के हटा कि अकेला पड़ गया है !’’
‘‘साथ में ये भी तो बोला कि साइलेंटली ताकत बनाने का ।’’
‘‘बरोबर बोला, पण... बना सकेगा, बॉस ?’’
‘‘ताकत नॉरकॉटिक्‍स के ट्रेड में है, उसके कन्‍ट्रोल में है । बिग बॉस फिगुएरा चला गया, उसका एक्‍सीलेंट कन्‍ट्रोल चला गया तो क्या हुआ, धंधा तो वो अपने साथ नहीं ले गया !’’
‘‘तुम...तुम धन्‍धे को थामेगा ?’’ — पैड्रो मन्‍त्रमुग्‍ध भाव से बोला ।
‘‘ऐग्‍जैक्‍टली ।’’
‘‘कैसे होगा, बॉस !’’ — मारकस बोला — ‘‘अफीम उगाने वाले मारे गये । उसको हेरोईन में कनवर्ट करने वाले मारे गये । कैसे होगा ?’’
‘‘सब आर्गेनाइज हो जायेगा । जैसे फिगुएरा की जगह लेने वाला मैं बैठा है, उन लोगों की जगह लेने वाले भी कोई न कोई जरूर होंगे ! नो ?’’
‘‘यस ।’’ — दोनों सम्‍वेत स्‍वर में बोले ।
‘‘सब आर्गेनाइज हो जायेगा । सब काबू में आ जायेगा । खाली मेरे को सिंगापुर जाना पड़ेगा जहां कि सारी पतंगों की डोर बंधी है, जहां कि सारे ट्रेड का न्‍यूक्‍लियस है ।’’
‘‘ग्रेट, बॉस, जस्‍ट ग्रेट !’’
‘‘फिर सिंगापुर में नॉरकॉटिक्‍स का कोई रेडी स्‍टाक भी जरूर होगा जिसे यहां रोजवुड एस्‍टेट या बाम्बे बेकरी या देसाई लैम्‍प शेड्स के गोदाम के अलावा कहीं और ट्रांसफर किया जा सकता है । और आने वाले दिनों में हैडक्‍वार्टर सिंगापुर से नेपाल ट्रांसफर किया जा सकता है ।’’
‘‘बरोबर, बॉस’’ — पैड्रो बोला — ‘‘तुम ये सब आर्गेनाइजेशन कर सकता है पण कस्‍टमर किधर से आयेगा ?’’
‘‘ऐग्‍जैक्‍टली !’’ — मारकस बोला — ‘‘उधर आइलैंड पर सोहल तमाम बड़े डीलरों को फिनिश किया । क्‍यों किया, ये सबको मालूम है...’’
‘‘सब को मालूम है ?’’
‘‘बरोबर ! आइलैंड पर जो कुछ हुआ, वो क्या इधर किसी से छुपा है !’’
‘‘नहीं छुपा ? कैसे मालूम पड़ा ?’’
‘‘क्या बात करता है, बॉस ! कोबरा सिक्‍योरि‍टीज का इतना भीड़ू लोग उधर था जो सेफ निकल कर आया । वो लोग क्या चुप बैठेंगे ? ऐसी बात एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे मुंह से होती जंगल की आग की तरह फैलती है ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘सब को मालूम उधर आइलैण्‍ड पर क्या हुआ, क्‍यों हुआ और किसके किये हुआ ! अभी देख लेना, अभी एक लम्बा अरसा इधर कोई नॉरकोटिक्‍स ट्रेड का नाम लेने वाला नहीं मिलेगा ।’’
‘‘मिलता तो कौन मि‍लता ?’’
‘‘बोले तो ?’’
‘‘ऐसे लोगों का, जो बड़े डीलरों के सब-डीलर थे, पता लगाओ, सब का नहीं तो कुछ का पता हर हाल में लगाओ ।’’
‘‘उससे क्या होगा ?’’
‘‘मैं बात करेगा न, फिर देखेगा क्या होगा !’’
‘‘ओह !’’
‘‘कर सकोगे ये काम ?’’
‘‘कोशिश करते हैं ।’’
‘‘कोशिश नहीं, हर हाल में ये काम करना है । तुम लोकल हो, ये काम तुम्‍हीं कर सकते हो । नो ?’’
‘‘करेंगे ।’’ — दोनों जोश से बोले ।
‘‘मैं अभी मार्केट खुलते ही नया मोबाइल खरीद लूंगा, शाम तक सेम नम्बर एक्‍टीवेट हो जायेगा, यानी कम्‍यूनीकेशन में कोई प्राब्‍लम नहीं होगी । ओके ?’’
‘‘यस, बॉस ।’’
‘‘सो लांग टिल दैन ।’’
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दो दिन चैन से गुजरे ।
नीलम विखरोली चली गयी थी और दोनों दिन विमल ने भी वहां चक्‍कर लगाया था ।
खुद विमल का रैन बसेरा अभी भी मलाड स्थित विधवा आश्रम था जिसके वर्तमान संचालक महाविद्वान पण्डित भोजराज शास्त्री थे ।
दोपहर के करीब की उस घड़ी विमल चैम्बूर में तुका के मकान के सामने वाले मकान में मौजूद था और उसके साथ इरफान, शोहाब और विक्‍टर मौजूद थे ।
‘‘बाई ।’’ — एकाएक विक्‍टर के, जो कि बाहर की खिड़की के करीब था, मुंह से निकला ।
‘‘फिरयादी ।’’ — इरफान बोला ।
‘‘फरियादी ही जान पड़ती है ।’’ — पढ़ा लिखा शोहाब बोला ।
‘‘वही है ।’’ — विक्‍टर बोला — ‘‘रोज आती है । जब सामने ‘कार्यालय बन्द है’ का बोर्ड टंगा था, तब भी आती थी ।’’
‘‘अब खुल गया है तो क्या प्राब्‍लम है ?’’ — विमल बोला ।
‘‘है तो सही पिराब्‍लम !’’
‘‘क्या ?’’
‘‘चैम्बूर का दाता से ही बात करेगी ।’’
‘‘ये दस्तूर गलत है । मेरे चले जाने के बाद तुम लोगों को परेशान कर सकता है ।’’
‘‘बरोबर बोला, बाप ।’’
‘‘उसे समझाओ अब ये कारोबार तुम लोग देखते हो ।’’
‘‘देखेंगे ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘अभी देखेंगे । तुम अभी तो यहीं हो, सुन लो बेचारी की ।’’
‘‘ठीक है, लेकिन अभी नहीं । आज नहीं ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘अभी जा के उसका नाम पता नोट करो, और उसकी बैकग्राउन्‍ड चैक करो । जेनुइन केस जान पड़े तो मैं उससे मिलूंगा । ओके ?’’
‘‘ओके ।’’
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वो बान्द्रा वैस्‍ट में टर्नर रोड पर रैड ड्रैगन नाम का एक चायनीज रेस्‍टोरेंट था जिस में केबिंस उपलब्‍ध थे । उन केबिनों में से एक में उस वक्‍त माइकल हुआन मौजूद था । उसके साथ उसके दायें बायें मारकस लोबो और पैड्रो वाज़ बैठे हुए थे और जो सामने तीन व्‍यक्ति मौजूद थे उनसे मारकस और पैड्रो ने ही हुआन की मीटिंग अरेंज की थी । वो तीन व्‍यक्ति थे :
दिलीप अभयंकर, साहिल सुखनानी और सलमान लोधी
दिलीप अभयंकर, देसाई लैम्‍प शेड्स, लेमिंगटन रोड के मालिक मुकुल देसाई की जिन्दगी में, जो कि वास्तव में नॉरकॉटिक्‍स डीलर था, उस का सब-एजेन्‍ट था और मोटे तौर पर कहा जाता तो देसाई के अंडर में चलने वाला था । वैसे दो अन्‍य, अब दिवंगत डीलर्स के, सब-एजेण्‍ट साहिल सुखनानी और सलमान लोधी थे और वो भी उस्तादों की तरह कवर के किये दूसरे धन्‍धे चलाते थे । सलमान लोधी की तारदेव में क्‍यूरियो शाप थी और साहि‍ल सुखनानी दादर में पीजा पार्टर चलाता था । दिलीप अभयंकर प्रापर्टी कन्‍सल्‍टेंट था और फोर्ट के इलाके में उसका छोटा सा लेकिन आलीशान आफिस था ।
थोड़े किये वो तीनों कुबूल नहीं करने वाले थे कि वो ढंके छुपे ढंग से ड्रग्‍स के धन्‍धे में थे । स्‍वैन नैक प्‍वायन्‍ट की हौलनाक वारदात से भी वो नावाकिफ नहीं थे और वहां बड़े ड्रग डीलर्स का जो सामूहिक अंजाम हुआ था उससे वो तीनों ही बुरी तरह थर्राये हुए थे और ड्रग्‍स के धन्‍धे से हाथ खींच लेने का निश्‍चय किये बैठे थे ।
मारकस और पैड्रो को वो मीटिंग अरेंज करने में बहुत दिक्‍कत हुई थी, क्‍यों कि वो लोग तो ड्रग्‍स के नाम से ही बिदकने लगे थे, लेकिन आखिर वो उन्‍हें हुआन के हुजूर में पेश करने में कामयाब हो गये थे ।
‘‘तो’’ — हुआन गम्‍भीरता से बोला — ‘‘अब मैं मेन सब्‍जेक्‍ट पर आये ?’’
‘‘अभी नहीं ।’’ — सलमान लोधी बोला ।
हुआन सकपकाया ।
‘‘वक्‍त बहुत नाजुक है । सोहल की धमकी की तलवार हमारे सिरों पर लटक रही है, इस बात से हम न बेखबर हैं, न बेखतर है । इसलिये वक्‍त की जरूरत है कि हर कदम फूंक फूंक कर उठाया जाये । क्‍यों, बिरादरान ?’’
दिलीप अभयंकर और साहिल सुखनानी दोनों ने पूरी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘क्या कहना चाहते हो ?’’ — हुआन तनिक अप्रसन्‍न भाव से बोला ।
‘‘हम माइकल हुआन को शक्‍ल से नहीं पहचानते । हमने खाली माइकल हुआन का नाम सुना है, बिग बॉस रीकियो फिगुएरा के लोकल रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर खाली उसका जिक्र सुना है । बिरादर, हमें कैसे मालूम हो हम माइकल हुआन के सामने बैठे हैं !’’
हुआन हड़बड़ाया ।
‘‘हमारी जानकारी ये कहती है’’ — साहिल सुखनानी बोला — ‘‘कि बिग बॉस फिगुएरा और उसके तमाम संगी साथी, फालोअर स्‍वैन नैक प्‍वायन्‍ट पर मर खप गये । फिर ये करतब कैसे हुआ कि माइकल हुआन हमारे सामने बैठा है ?’’
‘‘कोई और कैसे बैठा हो सकता है ?’’ — हुआन भुनभुनाया ।
‘‘हो सकता है ।’’ — दिलीप अभयंकर बोला — ‘‘सोहल का दमन चक्र अभी जारी हो सकता है । वो क्या जानता न होगा कि आइलैंड पर चन्द ड्रग लार्ड्स के खल्‍लास हो जाने से टोटल धन्‍धा खल्‍लास नहीं हो सकता ! उसे हमारे जैसों की तलाश हो सकती है ।’’
‘‘और’’ — सलमान लोधी बोला — ‘‘इस तलाश में वो खुद कदम उठा सकता है या सरकारी एजेन्सियों को टिप दे सकता है कि किसी हुआन जैसे शख्‍स का नाम इस्तेमाल करके हमारे जैसे सैकण्‍ड लाइन के ड्रग डीलर्स को आइडेन्टिफाई किया जा सकता था ।’’
‘‘दिस इज शियर नानसेंस ।’’ — हुआन भड़का ।
‘‘हम सोहल के आदमी !’’ — मारकस बोला — ‘‘बंडल !’’
‘‘हम सरकारी आदमी !’’ — पैड्रो बोला — ‘‘बकवास !’’
‘‘क्या पता चलता है !’’ — सलमान लोधी दार्शनिक भाव से बोला ।
‘‘अगर तुम लोग वो नहीं हो’’ — हुआन बोला — ‘‘जो समझ कर मैंने तुम्‍हें यहां बुलाया है तो क्‍यों आये हो यहां ?’’
‘‘गलती हुई साईं ।’’ — सुखनानी बोला ।
‘‘हम अभी दुरुस्त करते हैं ।’’ — अभयंकर बोला, उसने उठने का उपक्रम किया ।
उसकी देखादेखी बाकी दोनों ने भी वैसा ही किया ।
‘‘अरे, बैठो-बैठो !’’ — हुआन जल्‍दी से बोला — ‘‘बैठो ! प्‍लीज !’’
तीनों ने अपने शरीर अपनी कुर्सियों पर ढीले छोड़े ।
‘‘जन्‍टलमैन’’ — हुआन बोला — ‘‘स्‍वैन नैक प्‍वायन्‍ट पर जो हुआ, वो साउथ एशिया के नॉरकॉटिक्‍स ट्रेड को बहुत बड़ा झटका है । उस ब्‍लडी बास्‍टर्ड सोहल के एक ही वार ने हमारे टॉप बासिज को खत्‍म कर दिया है, ट्रेड की कमर तोड़ के रख दी है । पता नहीं इतने बड़े नुकसान की भरपाई आने वाले दिनों में हो पायेगी या नहीं ! मिस्‍टर फिगुएरा इधर नॉरकॉटिक्‍स ट्रेड को और समगलिंग के ट्रेड को क्‍लब करना चाहते थे जो पता नहीं अब हो पायेगा या नहीं । लेकिन नॉरकॉटिक्‍स ट्रेड का इधर फिर अपने पैरों पर खड़ा होना निहायत जरूरी है और ये काम अब एक ही शख्‍स कह सकता है और वो है’’ — हुआन ने दायें हाथ के अंगूठे से अपनी छाती ठोकी — ‘‘माइकल हुआन ।’’
‘‘साबित करो ।’’ — लोधी बोला ।
‘‘प्रूव इट बियांड डाउट ।’’ — सुखनानी बोला ।
‘‘पक्‍की करो ।’’ — अभयंकर बोला — ‘‘फिर हम तुम्‍हारे साथ ।’’
‘‘मैं आइलैण्‍ड पर मौजूद था’’ — हुआन बोला — ‘‘आइलैण्‍ड पर जो बीती, इसको मैं वर्ड बाई वर्ड बयान कर सकता हूं ।’’
‘‘साईं, हम में से कोई वहां मौजूद नहीं था ।’’ — सुखनानी बोला — ‘‘कैसे तसदीक होगी तुम्‍हारे बयान की ?’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘बॉस, पासपोर्ट !’’ — एकाएक मारकस बोला ।
‘‘क्या !’’
‘‘तुम बोला न जब बंगले पर गया तो उधर से निकाल कर लाया ?’’
‘‘अमंग अदर थिंग्‍स ।’’ — पैड्रो ने तरह दी ।
‘‘ओह ! पासपोर्ट ।’’ — हुआन यूं बोला जैसे कोई भूली बिसरी बात याद आ गयी हो — ‘‘ओ, यस, पासपोर्ट आफकोर्स ! जन्‍टलमैन, मैं अपना पासपोर्ट दिखा सकता हूं । उस पर मेरा नाम है, तसवीर है, रोजवुड एस्‍टेट गोरई का पता है । उस पर मेरे सिंगापुर के दर्जन भर ट्र‍िप दर्ज हैं । आप पासोर्ट से मेरी शिनाख्‍त मुकम्‍मल मानेंगे या उस में भी हुज्‍जत करेंगे ?’’
‘‘मानेंगे ।’’
हुआन ने पासपोर्ट पेश किया ।
तीनों ने बारी बारी उस का बारीक मुआयना किया ।
आखिर उन्‍होंने पासपोर्ट हुआन को लौटाया और नये सम्‍मान से उस की ओर देखा ।
‘‘अब ठीक है ?’’ — हुआन बोला — ‘‘अब मेरे बारे में कोई शक नहीं ?’’
तीनों के सिर इंकार में हिले ।
‘‘साईं’’ — सुखनानी बोला — ‘‘नयी जिन्दगी हासिल हुई इसके लिये मुबारकबाद कुबूल कर ।’’
‘‘मेरी भी ।’’ — अभयंकर बोला ।
‘‘मेरी भी, बिरादर ।’’ — लोधी बोला ।
‘‘झूलेलाल साईं की किरपा की छतरी हमेशा तेरे सिर पर बनी रहे ।’’ — सुखनानी बोला ।
‘‘थैंक्‍यू । अब प्‍लीज आप लोग मेरे को असल सब्‍जेक्‍ट पर आने दीजिये ।’’
‘‘जरूर ।’’
‘‘जैसा कि मैं ने अभी कहा कि नॉरकॉटिक्‍स ट्रेड का वापिस अपने पैरों पर खड़ा होना जरूरी है और हालात ऐसे बन गये हैं कि ये काम मेरे सिवाय कोई नहीं कर सकता ।’’
‘‘माल कहां से आयेगा ?’’ — सुखनानी बोला ।
‘‘कैसे आयेगा ?’’ — अभयंकर बोला ।
‘‘वहीं से आयेगा, जहां से आता था । वैसे ही आयेगा जैसे आता था । जन्‍टलमैन, हमारे सिंगापुर के बिग बासिज चले गये लेकिन हेरोइन का जखीरा साथ नहीं चला गया । अफगानिस्तान, श्रीलंका और मियांमर से अफीम की खेती कराने वाले चले गये तो वो जमीन खत्‍म नहीं हो गयी जिस पर अफीम की खेती होती थी । पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल के हेराइन बनाने वाले कारखाने बन्द नहीं हो गये । सब साधन, संसाधन अभी भी उपलब्‍ध हैं, जरूरत है तो पटड़ी से उतर गयी गाड़ी को पटड़ी पर लाने की है । वो काम मैं करूंगा । मैं सिंगापुर जा कर बिग बॉस रीकियो फिगुएरा की जगह लूंगा और सब कुछ कन्‍ट्रोल करूंगा । जन्‍टलमैन, हेराइन, बाकी ड्रग्‍स पहले की तरह अवेलेबल होंगे, अब कोई जरूरत है तो डिस्‍ट्रीब्यूशन का नया नेटवर्क खड़ा करने की है जिसके लिये आप लोगों की मदद दरकार है, आप जैसे लोगों की मदद दरकार है ।’’
तीनों श्रोताओं के सिर पहले ही इंकार में हिलने लगे ।
‘‘क्या हुआ ?’’ — हुआन सकपकाया सा बोला ।
‘‘मौजूदा हालात में हम इस बाबत कुछ नहीं कर सकते ।’’ — सलमान लोधी बोला ।
बाकी दो ने मजबूती से सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘क्‍यों ?’’ — हुआन बोला — ‘‘क्‍यों नहीं कर सकते ?’’
‘‘क्‍यों कि सोहल की धमकी की तलवार हमारे सिर पर लटक रही है । जिसने तुम्‍हारे बिग बासिज को खत्‍म कर दिया, साउथ एशिया के तमाम ड्रग लार्ड्स को खत्‍म कर दिया, इधर के तमाम बड़े ड्रग डीलर्स को खत्‍म कर दिया, वो क्या हमें छोड़ेगा ?’’
‘‘चींटी की तरह मसल देगा । — अभयंकर बोला ।
‘‘हमें खबर भी नहीं होगी’’ — सुखनानी बोला — ‘‘कि प्रेत की तरह हमारे सिर पर आन खड़ा होगा ।’’
‘‘वो है ही प्रेत ।’’
‘‘लोग बाग ऐसे ही हो तो उसे चलता फिरता प्रेत नहीं कहते ।’’
‘‘मौजूदा हालात में इस धन्‍धे से किनारा करने में ही गति है । साईं, मैं अपने पीजा पार्लर से राजी ।’’
‘‘मेरे को अपनी क्‍यूरियो शाप से राजी होना पड़ेगा वर्ना जहन्‍नुमरसीद होना महज वक्‍त की बात होगी ।’’
‘‘मैं प्रापर्टी कन्‍सल्‍टेंट ही भला ।’’
‘‘वाट नानसेंस !’’ — हुआन झल्‍लाया — ‘‘तुम लोग यूं इतने मलाईदार धन्‍धे से किनारा नहीं कर सकते ।’’
‘‘हुआन साईं, हम करना भी नहीं चाहते ।’’ — सुखनानी बोला — ‘‘लेकिन हमारी मजबूरी है ।’’
‘‘जान है तो जहान है ।’’ — लोधी बोला ।
‘‘सर होगा तो पगड़ी भी होगी ।’’ — अभयंकर बोला — ‘‘सर ही नहीं तो पगड़ी किस काम की !’’
‘‘जन्‍टलमैन’’ — हुआन असहाय भाव से बोला — ‘‘आप लोगों के सहयोग के बिना ये धन्‍धा नहीं चल सकता ।’’
सब खामोश रहे ।
‘‘आप लोगों के खयालात में तब्‍दीली आये इस बात की कोई गुंजाइश नहीं ? कोई तरीका नहीं जिससे आप नॉरकॉटिक्‍स के ट्रेड में बने रहें ?’’
कुछ क्षण खामोशी बरकरार रही ।
‘‘एक तरीका है ।’’ — फिर सुखनानी बोला ।
‘‘क्या ?’’ — हुआन आशापूर्ण स्‍वर में बोला ।
‘‘साई, ये गुड न्‍यूज ला के दे कि सोहल खत्‍म है, फिर हम तेरे साथ ।’’
‘‘दिलोजान से ।’’ — लोधी जोश से बोला ।
‘‘हां ।’’ — अभयंकर बोला — ‘‘सोहल की मौत की खबर ही हमें नॉरकॉटिक्‍स ट्रेड में बनाये रख सकती है वर्ना हम रिटायर हैं ।’’
‘‘बिल्‍कुल !’’ — सुखनानी बोला ।
‘‘बरोबर बोला ।’’ — लोधी बोला ।
‘‘ये काम आप लोग भी तो कर सकते हैं !’’ — हुआन बोला ।
‘‘नहीं कर सकते ।’’ — अभयंकर बोला — ‘‘कर सकते होते तो कब का कर चुके होते ।’’
‘‘करा सकते हैं ।’’
‘‘एक ही बात है ।’’
‘‘तो फिर बात क्या बनी ?’’
‘‘बनी तो यही बनी कि सोहल खल्‍लास है, आने वाले दिनों में ये शुभ समाचार हमें सुनाई दे वर्ना नहीं बनी ।’’
‘‘ठीक है । मैं देखता हूं इस बारे में क्या किया जा सकता है !’’
मीटिंग बर्खास्त हो गयी ।
कौल और गरेवाल अमृता बार में फिर अनूप झेण्‍डे से मिले ।
‘‘क्या खबर है ?’’ — कौल बोला ।
‘‘ऐन कड़क खबर तो कोई नहीं अभी’’ — झेण्‍डे बोला — ‘‘फिर भी कुछ तो हुआ है । कुछ तो सिलसिला आगे सरका है ।’’
‘‘अच्‍छा !’’
‘‘हां । एक तो स्‍वैन नैक प्‍वायन्‍ट वाली अफवाह ही कनफर्म हुई है ।’’
‘‘उससे सानूं की फायदा ?’’ — गरेवाल भुनभुनाया ।
‘‘फायदा ये कि इससे ये बात कनफर्म होती है कि सोहल सच में ही मुम्बई छोड़ के कहीं चला जाने की फिराक में है । अन्‍डरवर्ल्ड में मुहावरे की तरह ये बात मशहूर है कि सोहल दो धन्‍धों के सख्‍त खिलाफ है । एक आर्गेनाइज्ड क्राइम और दूसरा ड्रग्‍स । जब से राजबहादुर बखिया उर्फ काला पहाड़ की बादशाहत इधर से खत्‍म हुई है, तब से आर्गेनाइज्‍ड क्राइम तो बन्द ही है । और ड्रग्‍स का धन्‍धा समझो अब स्‍वैन नैक प्‍वायंट वाले वाकये के बाद खत्‍म हो गया है । लिहाजा सोहल का इधर अब कोई काम नहीं है ।’’
‘‘फिर भी अभी इधर ही है ?’’
‘‘होगी कोई वजह ?’’
‘‘उसके बीवी बच्चे की खोजखबर लगी ?’’
‘‘अभी नहीं लेकिन लगेगी । मैंने बहुत इन्‍तजाम किये हुए हैं ।’’
‘‘उसके खुद के इधर के ठिकाने का पता ?’’
‘‘अभी नहीं लग पाया ।’’
‘‘फिर क्या बात बनी ?’’ — गरेवाल असंतोषपूर्ण भाव से बड़बड़ाया ।
‘‘कुछ और पता लगा है, ये बात बनी ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘मैंने चैम्बूर के तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट की बाबत बोला था जहां फरियादी आते हैं, फरियाद सुनाते हैं और सुना है राजी होकर जाते हैं । मैंने बोला था कि कोई फरियादी जिद पकड़ ले तो सोहल उसकी फरियाद खुद सुनता है । मेरे को मालूम पड़ा है आज कल अनुजा पवार नाम की एक नौजवान लड़की ये जिद पकड़े है ।’’
‘‘तो !’’
‘‘उस लड़की की निगाहबीनी हमारे काम आ सकती है ।’’
‘‘कैसे ?’’
‘‘जिस रोज उसकी उधर सुनवाई होगी, उस रोज सोहल की वहां मौजूदगी की गारन्‍टी होगी ।’’
‘‘भई, तो ?’’
‘‘तब ऐन मौके पर पुलिस की रेड हो तो सोहल गिरफ्तार हो सकता है ।’’
‘‘चैम्बूर का दाता ! जिसे बोलते हो मुम्बई का तमाम गरीब गुरबा पूजता है, सिर माथे बिठाता है, गिरफ्तार हो सकता है !’’
‘‘हां । क्‍यों कि वो चैम्बूर का दाता ही नहीं है, मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल भी है जिसके खिलाफ सात स्‍टेट्स में वारन्‍ट गिरफ्तारी जारी है और जिसके सिर पर तीन लाख रुपये का नकद ईनाम है । वही राजा गजेन्द्र सिंह एनआरआई फ्रॉम नैरोबी है जिसके बारे में अफवाह है कि जो होटल सी-व्‍यू की ट्रेजेडी के बाद, जिसकी वजह से कि दो सौ मरने वालों के परिवार उसके खून के प्‍यासे हैं, नैरोबी भाग गया है...’’
‘‘लेकिन अगर वही सोहल है तो...’’
‘‘बरोबर ! बरोबर ! सोहल गिरफ्तार होगा तो ये राज भी खुलेगा कि वही राजा गजेन्द्र सिंह है ।’’
‘‘गिरफ्तार होगा !’’
‘‘पुलिस करेगी न ! ऐन मौके पर उधर रेड करेगी न !’’
‘‘तुम्‍हें क्या मालूम ?’’
‘‘बस, मालूम । रोकड़ा हो तो सब इन्‍तजाम हो जाता है, जो कि तुम्‍हेरे पास है ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘अभी सब एडवांस में खर्चा करके रखने का । इस वास्ते पांच-छ: लाख का इन्‍तजाम इमीजियेट कर के मांगता है ।’’
‘‘इतना ?’’
‘‘ज्‍यास्ती होयेंगा तो वापिस करेंगा न !’’
‘‘ओह !’’
‘‘पण कम पड़ेगा तो और देना हाेयेंगा ।’’
कौल ने गरेवाल की तरफ देखा ।
‘‘सानूं मंजूर है ।’’ — गरेवाल बोला — ‘‘लेकिन कोई नतीजा सामने जरूर आना चाहिये, झण्‍डे भाई ।’’
‘‘आयेगा । और यार, इतनी बार बोला, मेरा नाम झेण्‍डे है ।’’
‘‘ओये, आहो । ओहो ई ।’’
माइकल हुआन अपनी कार खुद ड्राईव करता गोरई से जुहू अपने होटल लौट रहा था ।
गोरई में ये देख कर उसे बड़ी नाउम्‍मीदी हुई थी कि अब रोजवुड एस्‍टेट पर बाकायदा पुलिस का पहरा था और बंगले को सील कर दिया गया हुआ था । यानी कि ये उसके साथ बड़ा सुखद संयोग हुआ था कि एक बार भीतर दाखिला पाने का मौका उसे मिल गया था । पुलिस ने जो कार्यवाही वहां अब की थी, वो शुरू में ही क्‍यों नहीं हुई थी, ये उसके लिये हैरानी की बात थी ।
बहरहाल अब बंगला वापिस उसके कब्‍जे में आने की सम्‍भावना न के बराबर थी ।
अपनी बीवी से उसका सम्‍पर्क नया फोन हाथ आते ही बन गया था और उस ने उसको समझा दिया था कि जब तक उसकी कोई नयी हिदायत न हो, वो पूना में ही रहे । बाद में वो किसी वकील से मशवरा कर सकती थी और बतौर माईकल हुआन की विधवा बंगले पर अपना हक जता सकती थी ।
बशर्ते कि ये राज बना रहता कि माइकल हुआन जिन्दा था ।
एक चौराहे पर वो बत्ती हरी होने के इन्‍तजार में ट्रैफिक में सबसे आगे खड़ा था जब कि एकाएक बत्ती हरी हुई और उसने कार आगे दौड़ाई । चौराहा पार कर के उसने एक्‍सीलेटर पर दबाव बढ़ाया ही था कि फुटपाथ पर से एक आदमी ने छलांग लगाई और ऐन उसकी कार के सामने आ कर पड़ा ।
हुआन ब्रेक पर जैसे खड़ा हो गया ।
ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूंज गया ।
लेकिन वो आदमी कार से फिर भी टकरा ही गया । कार के नीचे आने से तो वो बच गया लेकिन कार की ठोकर से गेंद की तरह उछल कर परे सड़क पर जा कर पड़ा ।
हुआन ने तत्‍काल कार रोकी और बाहर निकला ।
‘‘स्‍टूपिड सन ऑफ ए बिच !’’ — उसे कोसता वो उसकी तरफ बढ़ा — ‘‘क्लम्‍सी ओफ ! एब्‍सोल्‍यूट डफर !’’
वो सड़क पर कराहते पड़े व्‍यक्ति के करीब पहुंचा ।
‘‘किधर लगी ?’’ — उसने पूछा ।
‘‘हाय !’’
‘‘उठ सकते हो ?’’
‘‘हाय !’’
‘‘हाथ पकड़ो मेरा ।’’
हुआन ने उसका एक हाथ थामा, दूसरे से उसकी कोहनी थामी और उसे उठा कर पैरों पर खड़ा किया । वो उसे जबरन चलाता हुआ अपनी कार तक लाया और उसे आगे पैसेंजर सीट पर बिठाया ।
‘‘लो, पानी पियो ।’’
उस आदमी ने बड़े कृतज्ञ भाव से हुआन की मिनरल वाटर की बोतल में से पानी पिया और फिर बदस्तूर हांफने लगा ।
हुआन ने देखा वो कोई पचास साल का दीन हीन लेकिन सम्‍भ्रांत व्‍यक्ति जान पड़ता था ।
‘‘अब ठीक हो ?’’ — उसने पूछा ।
‘‘हं-हां ।’’ — जवाब मिला ।
‘‘हस्‍पताल जाना चाहते हो ?’’
‘‘न-हीं ।’’
‘‘कोई बड़ी चोट तो नहीं ? कोई बोन तो नहीं ब्रेक हुआ ?’’
‘‘न-हीं ।’’
‘‘नाम क्या है ?’’
‘‘ह-हनुमन्‍त... हनुमन्‍तराव वलसे ।’’
‘‘कहां रहते हो ?’’
‘‘बो-बोरोवली । मूलजी चाल ।’’
‘‘जान देने को आमादा थे ?’’
‘‘हां ।’’
हुआन हड़बड़ाया । जवाब अप्रत्‍याशित था ।
‘‘क्या बोला ?’’
‘‘मेरे को मर जाने का । फिनिश करने का मेरे को ।’’
‘‘इसी वास्ते मेरी कार के आगे कूदे ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘बच गये । लोकल के आगे कूदना था !’’
वो खामोश रहा ।
‘‘क्‍यों जान देना चाहते थे ?’’
उसने जवाब न दिया ।
‘‘अरे, जवाब दो । क्‍यों जान देना चाहते थे ?’’
‘‘बहुत प्राब्‍लम हैं । मैं हार गया । अब और मुकाबला नहीं कर सकता ।’’
‘‘क्या प्राब्‍लम हैं । मेरे को बोलो ।’’
‘‘आप को किस वास्ते ?’’
‘‘शायद मेरे पास तुम्‍हारी प्राब्‍लम्‍स का कोई हल हो !’’
‘‘आप गैर हो, साहेब । मेरी प्राब्‍लम्स का मेरे अपनों के पास हल नहीं, गैर के पास कैसे होगा !’’
‘‘शायद हो । बोलने में क्या है !’’
‘‘मेरा एक ही बेटा है । ड्रग एडिक्‍ट है । कुछ करता नहीं । कुछ करने के काबिल नहीं । नशे के लिये पैसा मांगता है, न दो, न दे सको तो कांटी निकाल लेता है ।’’
‘‘कांटी !’’
‘‘चाकू ।’’
‘‘जीसस ! किस को दिखाता है ?’’
‘‘मेरे को ।’’
‘‘बाप को चाकू दिखाता है ?’’
‘‘हां । शुक्र है तब नशे में नहीं होता वर्ना घोंप देने में भी गुरेज न करे ।’’
‘‘तुम पैसा देते हो !’’
‘‘होता है तो देता हूं । पण अक्‍सर नहीं होता ।’’
‘‘फिर क्या करता है ?’’
‘‘बटमारी करता है । कांटी दिखा कर अकेले राहगीरों से रोकड़ा छीनता है । दो बार गिरफ्तार हो चुका है । बड़ी मुश्किल से चौकी से छुड़ा कर लाया । एक बार तो घर का कुछ सामान बेचना पड़ा ।’’
‘‘ओह ! और ?’’
‘‘गरीबी से तंग आकर जवान लड़की धन्‍धा करने लगी है । तीन-तीन, चार-चार दिन घर नहीं आती ।’’
‘‘गॉड !’’
‘‘बीवी को कैंसर है । इलाज को पैसा नहीं । तड़पती है । मैं देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकता ।’’
‘‘तुम खुद कुछ नहीं करते ?’’
‘‘पीडब्‍ल्‍यूडी का दिहाड़ी मजदूर हूं । दिहाड़ी इतनी है कि घर में बस चूल्‍हा ही जल सकता है । कभी कभी दिहाड़ी का काम नहीं भी मिलता ।’’
‘‘अब हार मान बैठे हो ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘खुदकुशी करने पर आमादा हो ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘मर जाओगे तो पीछे सब ठीक हो जायेगा ?’’
‘‘नहीं । पण वो बोलते हैं न, आप मरे जग प्रलय ।’’
‘‘वलसे, मेरी सुनोगे ?’’
‘‘सुनूंगा । आप इतने दयावान हैं, क्‍यों नहीं सुनूंगा !’’
‘‘मरना ही है तो तरीके से मरो । यूं मरो कि मर कर भी फैमिली के काम आओ ।’’
‘‘मैं समझा नही, साहेब ।’’
‘‘अभी मैंने समझाया किधर है ?’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘जो मैं कहूं, वो करो, नतीजा ये होगा कि तुम्‍हारी जवान बेटी को धन्‍धा नहीं करना पड़ेगा, तुम्‍हारा ऐबी बेटा डिएडिक्शन सेंटर में होगा और नशे की लत से निजात पायेगा । तुम्‍हारी बीवी का इलाज होगा । वो ठीक हो जायेगी, आजकल तकरीबन कैंसर ठीक हो जाते हैं ।’’
‘‘ये सब होगा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘साहेब, आप मुझे सपना दिखा रहे हैं ?’’
‘‘देखो सपना । कोई हर्ज नहीं । लेकिन ये वो सपना है जिसके हकीकत में तब्‍दील होने की गारन्‍टी है ।’’
‘‘ऐसा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘लेकिन कैसे ? कैसे ?’’
‘‘मैं तुम्‍हें दस लाख रुपये दूंगा ।’’
‘‘क्‍...क्या...क्या बोला, साहेब ।’’
‘‘नकद ।’’
‘‘द.. दस...दस लाख !’’
‘‘हां ।’’
‘‘पण...पण...’’
‘‘चलो बीस ।’’
‘‘ब-बीस लाख !’’
‘‘हां ।’’
‘‘क-कब ?’’
‘‘तुम चाहोगे तो अभी ।’’
‘‘अभी ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘बदले में मुझे... मुझे क्या करना होगा ?’’
‘‘वही, जो तुम करने जा रहे थे ?’’
‘‘म-मरना होगा ?’’
‘‘हां । लेकिन वैसे नहीं, जैसे अभी कोशिश की ।’’
‘‘वैसे नहीं !’’
‘‘किसी कार के नीचे दब कर नहीं । लोकल से कुचल कर नहीं ।’’
‘‘त-तो...तो...क-कैसे ?’’
‘‘बोलूंगा । पहले हां बोलो ।’’
‘‘मेरे हां बोलते ही आप मुझे बीस लाख रुपया दे दोगे ?’’
‘‘दस अभी । बाकी मेरा काम हो जाने के बाद ।’’
‘‘आप का काम !’’
‘‘जो तुम करोगे । मेरे कहे के मुताबिक ।’’
‘‘मुझे... मुझे आप के कहे के मुताबिक जान देनी होगी !’’
‘‘हां । मुफ्त में मरने का क्या फायदा !’’
‘‘साहेब, आप मुकर तो नहीं जायेंगे ?’’
‘‘जब दस लाख एडवांस दूंगा तो कैसे मुकर जाऊंगा ! वलसे, ये अन्देशा तो मेरे को होना चाहिये ।’’
‘‘जी !’’
‘‘कि एडवांस ले कर कहीं तुम तो नहीं मुकर जाओगे ?’’
‘‘मैं नहीं मुकरूंगा । मेरे बीवी बच्‍चों का भला होगा तो... नहीं, मैं नहीं मुकरूंगा ।’’
‘‘गुड !’’
‘‘साहेब, मेरे को सौदा मंजूर है ।’’
‘‘वैरी गुड । अब कार में ही बैठो, दस लाख ले के जाना । और जो करना है, वो सब समझ के जाना ।’’
‘‘ठीक ।’’
���
आखिर अनुजा पवार की मुराद पूरी होने की घड़ी आयी ।
तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट के रिसैप्‍शनिस्‍ट फड़के ने उसे बाहर आ कर बोला कि चैम्बूर का दाता खुद उससे मिलने को तैयार था ।
अनुजा ने चैन की लम्बी सांस ली ।
वो उम्र में तीस साल की हो चुकी थी, उसकी रंगत गोरी थी, कद लम्बा था और नयननक्‍श काफी हद तक सुथरे थे ।
उसने भीतर कदम रखा ।
रिसैप्‍शन से आगे एक और दरवाजा था जिसे फड़के ने उसके लिये खोला, वो भीतर दाखिल हो गयी तो फड़के ने जिसे उसके पीछे बन्द कर दिया ।
अनुजा ने दरवाजे के करीब ठिठक कर झिझकते हुए सामने निगाह दौड़ाई ।
सामने एक विशाल आफिस टेबल थी जिसके पीछे एक की जगह तीन एग्‍जीक्‍यूटिव चेयर मौजूद थीं और तीनों पर तीन व्‍यक्ति बैठे हुए थे जिनकी बाबत वो नहीं जानती थी कि इरफान, शोहाब और विमल थे ।
‘‘बैठो ।’’ — शोहाब बोला ।
मेज के सामने एक ही विजिटर्स चेयर थी, झिझकती हुई जिस पर वो यूं बैठी कि सीट के सिरे पर ही टिकी हुई थी ।
‘‘रिलैक्‍स !’’ — शोहाब मीठे, आश्‍वासनपूर्ण स्‍वर में बोला — ‘‘आराम से बैठो ।’’
अनुजा ने सहमति से सिर हिलाया, सीट पर ठीक से बैठी, उसका धनुष की तरह तना जिस्‍म कदरन ढ़ीला पड़ा ।
‘‘नाम बोलने का ।’’ — इरफान बोला ।
‘‘अनुजा ।’’ — वो दबे स्‍वर में बोली ।
‘‘सुनाई नहीं दिया । ऊंचा बोलने का । मिमियाने का नहीं ।’’
‘‘अनुजा । अनुजा पवार ।’’
‘‘पिराब्‍लम है ?’’
‘‘भारी ।’’
‘‘इस वास्ते इधर ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘चैम्बूर का दाता को ही बोलने का ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘मालूम कौन ?’’
‘‘जी !’’
‘‘अरे, बाई, पहचानती है उसको ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तेरे सामने बैठेला है । पण नहीं मालूम हम तीनों में से कौन है ! क्या !’’
‘‘नहीं मालूम ।’’
‘‘माई डियर’’ — विमल बोला — ‘‘चैम्बूर का दाता किसी एक शख्सियत का नहीं, एक मिशन का, एक मूवमेंट का नाम है । लोग आते जाते रहते हैं, मिशन बरकरार रहते हैं । नो ?’’
‘‘यस... सर ।’’
‘‘मैं वो शख्‍स हूं जिससे तुम मिलना चाहती थीं । अब कहो जो कहना है ।’’
‘‘मैं... मैं मुसीबत में हूं ।’’
‘‘जाहिर है । वर्ना इधर न होतीं ।’’
‘‘कम टू दि प्‍वायन्‍ट ।’’ — शोहाब बोला ।
‘‘बिग बॉस बिजी भीड़ू ।’’ — इरफान बोला — ‘‘टेम खोटी नहीं करने का । क्या !’’
अनुजा ने हड़बड़ा कर सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘वो... क्या है कि’’ — फिर बोली — ‘‘इस वक्‍त मैं मैरीड हूं । मेरे हसबैंड का नाम बलबीर सहगल है जो कि एनआरआई है, डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में रहता है, मेरे से बारह साल बड़ा है — बयालीस साल का है — इशुलैस डाइवोर्सी है, उसका होम टाउन मुम्बई है । पिछले साल वो इधर आया हुआ था जब कि इत्तफाक से एक पार्टी में मेरी उससे मुलाकात हुई थी । वो मुलाकात जल्‍दी ही इंटीमेसी में बदल गयी थी, आठ महीने पहले मैं उससे शादी कर ली थी और शादी के फौरन बाद उसके साथ कोपनहेगन चली गयी थी ।’’
‘‘आगे ?’’ — विमल बोला ।
‘‘शादी से पहले इधर मुम्बई में मेरा परमेश करनानी नाम के एक सिन्‍धी शख्‍स से अफेयर था जो कि बाल बच्चेदार, शादीशुदा शख्‍स था ।’’
‘‘ऐसे शख्‍स से अफेयर था ?’’
‘‘वक्‍त की बात थी, उस वक्‍त की अक्‍ल की बात थी, तब मैं उम्र में छोटी थी, दूसरों की बातों में जल्‍दी आ जाती थी, बस... हो गया ।’’
‘‘कब ?’’
‘‘शादी से चार साल पहले ।’’
‘‘आगे !’’
‘‘रोज की मुलाकात थी । हर तरह की तफरीहबाजी चलती थी । तफरीहन बाहर — खंडाला, पूना, रत्‍नागिरी — भी चले जाते थे ।’’
‘‘ऐसे अफेयर का हासिल क्या था ?’’
‘‘तब मैंने इस बाबत कभी नहीं सोचा था । आप मुझे ... गलत लड़की करार दे सकते हैं लेकिन तब मुझे ये बात ज्‍यादा अहम नहीं लगती थी कि मेरा एक शादीशुदा मर्द से अफेयर था । तब मौज मस्ती अहम थी और ये खयाल अहम था कि मेरी शादी हो जायेगी तो वो अफेयर अपने आप ही खत्म हो जायेगा ।’’
‘‘मौज मस्ती — जब आउटस्‍टेशन भी हो — खर्चीला काम होता है । कौन करता था खर्चा ?’’
‘‘वो ही करता था ।’’
‘‘पैसे वाला था ?’’
‘‘ज्‍वेलरी का कारोबार था । हेनस रोड पर शाप थी । साहूकार तो नहीं था लेकिन ठीक ठाक था । खर्चा कर सकता था ।’’
‘‘तुम क्या करती थी ?’’
‘‘मैं सिवरी के एक गार्मेंट एक्‍सपोर्ट हाउस में चैकर की नौकरी करती थी ।’’
‘‘बोले तो फच्‍चर क्या पड़ा ?’’ — इरफान कदरन उतावले स्‍वर में बोला ।
‘‘मेरी शादी की बात से पड़ा । जब भी मेरा रिश्‍ता होने लगता था, उसका मिजाज बदल जाता था, वो डिफेंसिव हो जाता था, मेरे प्रोपोज्‍ड सूटर में बेतहाशा नुक्‍स निकालने लगता था । शुरू में उसको अपना वैलविशर जान कर ऐसे दो तीन रिश्‍तों को मैंने मना भी किया लेकिन फिर मुझे अहसास होने लगा कि वो तो मेरी शादी होने ही नहीं देना चाहता था ।’’
‘‘ताकि’’ — विमल बोला — ‘‘तुम्‍हारे पर उसका कब्‍जा बना रहता ! उसकी मुफ्त की मौजमस्ती चलती रहती !’’
‘‘हां, यही बात थी । अपनी प्रापर्टी समझने लगा था मुझे । मालिकाना हक जताने लगा था ।’’
‘‘नक्‍की करना था !’’ — इरफान बोला ।
‘‘मैंने कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो सकी थी । वो क्या है कि शाम को नौकरी से मेरी छुट्टी का टाइम होता था तो वो कार ले कर सिवरी पहुंचा होता था । मैं फिर मुलाहजे में आ जाती थी । वो फरियाद करने लगता था कि जब तक मेरी शादी न हो जाये, मैं वो रिश्‍ता न तोड़ूं ।’’
‘‘लेकिन तुमने बोला न’’ — शोहाब बोला — ‘‘कि शादी तो वो होने ही नहीं देना चाहता था !’’
‘‘बिल्‍कुल यही बात थी ।’’
‘‘उसको बोलना था कि शादी होने दे या खुद शादी कर ले ।’’
‘‘मैं ने बोला था । कई बार बोला था । जवाब में मजबूरी जाहिर करता था कि बच्‍चों की वजह से बीवी को तलाक नहीं दे सकता था ।’’
‘‘बेइमान था ! खुदगर्ज था !’’
‘‘लफंगा !’’ — इरफान पुरजोर लहजे से बोला — ‘‘लफंगा था !’’
‘‘आखिर मेरे को उसके किरदार की समझ आने लगी थी । पहले भी मेरी कहीं शादी की बात होती थी तो उसको अपना वैलविशर समझ कर मैं उसको खबर करती थी, रिश्‍ते की बाबत उसकी राय मांगती थी लेकिन जब मेरे को ऐन पाजिटिव हो गया कि शादी तो वो मेरी होने ही नहीं देना चाहता था तो मैंने इस बाबत उससे कोई बात करना बिल्‍कुल बन्द कर दिया ।’’
‘‘अच्‍छा किया ।’’ — विमल बोला ।
‘‘फिर वो संयोग बना कि आनन फानन मैंने बलबीर सहगल से शादी कर ली ।’’
‘‘करनानी को बताये बिना ?’’
‘‘भनक भी लगने दिये बिना वर्ना वो फिर कोई गुल खिलाता और शादी हरगिज न हो पाती ।’’
‘‘उसको बताया ही नहीं !’’
‘‘शादी के बाद बताया । ताकि अपने वादे के मुताबि‍क तब वो मेरा पीछा छोड़ता ।’’
‘‘छोड़ा ?’’
‘‘कहां छोड़ा ! फिर भी मिलने की कोशिश करता रहता था, मोबाइल बजाता रहता था लेकिन मैं उससे नहीं मिल सकती थी, नहीं मिली । फिर ये सिलसिला अपने आप ही तब खत्‍म हो गया जब मैं अपने हसबैंड के साथ कोपनहेगन चली गयी । वहां तो मेरे पीछे वो नहीं आ सकता था न !’’
‘‘ठीक !’’
‘‘लेकिन अपनी जात दिखाने से फिर भी बाज न आया ।’’
‘‘क्या किया ?’’
‘‘मेरे हसबैंड को चिट्ठी लिख दी ।’’
‘‘चिट्ठी लिख दी ? उसे उसका कोपनहेगन का अड्रैस मालूम था ?’’
‘‘फोन पर एक कमजोर घड़ी में मैंने ही बता दिया था ।’’
‘‘क्‍यों ?’’
‘‘बोला, अपने बिजनेस के सिलसिले में वो योरोप आता जाता रहता था लिहाजा उसका कभी कोपनहेगन का भी फेरा लग सकता था । मैंने सोचा था कभी नौबत आने पर यूं मिलने में कोई हर्ज नहीं था इसलिये पता बता दिया था ।’’
‘‘चिट्ठी में क्या लिखा ?’’
‘‘लिखा क्या, जहर उगला । मुझे खराब करने के लिये, बर्बाद करने के लिये, हसबैंड की निगाहों से गिराने के लिए वो जितनी बकवास कर सकता था, उसने चिट्ठी में की । चार फूलस्‍केप शीट की सिंगल स्‍पेस से टाइप की हुई थी वो चिट्ठी जिस में उसके साथ हुए मेरे हर अभिसार का जिक्र था । खंडाला गये तो कौन से होटल के कौन से कमरे में ठहरे, कैसे उसने मेरे साथ हनीमून मनाया, कैसे वो सब पूना में किया, रत्‍नागिरी में किया — मुम्बई में तो रोज किया — सब ऐसी ग्राफिक डिटेल में जाकर चिट्ठी में दर्ज किया जैसे किसी ब्‍लू फिल्‍म की स्‍क्रिप्‍ट लिख रहा हो ।’’
‘‘तौबा !’’
‘‘उसने चिट्ठी में ये तक लिखा कि मेरी दायीं जांघ पर — कहते शर्म आती है — बहुत ऊपर भीतर की ओर काला तिल था । ये तक लिख दिया कि सैक्‍स करते वक्‍त मुझे क्या क्या करना खास तौर से भाता था, क्या क्या करना खास तौर से पसन्द था ।’’
‘‘तुम्‍हें चिट्ठी की खबर कैसे लगी ?’’
‘‘हसबैंड से लगी । उसने चिट्ठी पढ़ी और फिर मेरे सामने रख दी ।’’
‘‘कमाल है !’’
‘‘हसबैंड के इसरार पर मैंने उसके सामने वो चिट्ठी पढ़ी तो मेरे प्राण कांप गये ।’’
‘‘उसके अलावा क्या हुआ ?’’ — विमल उतावले स्‍वर में बोला ।
‘‘जिस बात का मुझे अन्देशा था, वो न हुआ । उस चिट्ठी के जरिये वो कमीना परमेश करनानी मेरी शादी का जो अंजाम देखना चाहता था, वो सामने न आया । मेरे पति ने साफ मेरे को बोला कि शादी से पहले की मेरी जिन्दगी में क्या कुछ बीता था, उससे उस का कोई मतलब नहीं था । इसलिये वो चिट्ठी उसके लिये बेमानी थी ।’’
‘‘कमाल है ! ऐसा देवतास्‍वरूप पति प्राप्‍त हुआ तुम्‍हें !’’
‘‘बिल्‍कुल ठीक कहा आपने । ऐसा ही निकला मेरा हसबैंड । पांव धो धो के पीने लायक ।’’
‘‘यानी विलेन का’’ — शोहाब बोला — ‘‘तुम्‍हारे सुख चैन के दुश्‍मन का वो वार खाली गया !’’
‘‘पूरी तरह से खाली गया ।’’
‘‘बाई, इस्टोरी अक्खी सैंसेशन है ।’’ — इरफान उतावले स्‍वर में बोला — ‘‘पण पिराब्‍लम किधर है जो साला तुम्‍हेरे को इधर ले के आया ?’’
‘‘मैं वही कहने जा रही थी ।’’
‘‘सुन रयेला है न !’’
‘‘वो क्या है कि लोकल लड़की की फारेन में सैटल्‍ड लड़के से शादी हो तो सरकारी रूल है कि शादी के बाद छ: महीने के भीतर वापिस इधर का एक फेरा लगाना पड़ता है ।’’
‘‘काहे वास्ते ?’’
‘‘ताकि तसदीक हो सके कि परदेस में लड़की को तंग नहीं किया जा रहा था, उसके साथ कुछ दुर्व्यव्‍हार नहीं किया जा रहा था, वो किसी प्रकार की फिजीकल या सैक्‍सुअल अब्‍यूज की शिकार नहीं थी । उसको वहां उसकी मर्जी के खिलाफ जबरन नहीं रोके रखा जा रहा था । लड़की को छ: महीने के वक्‍फे में इधर लौट कर खुद अपनी जुबानी कनफर्म करना पड़ता है कि उसके साथ ऐसा कुछ नहीं हो रहा था ।’’
‘‘ओह !’’ — विमल बोला ।
‘‘इस फारमलिटी को भुगताने के लिये दो महीने पहले मैं इधर आयी तो परमेश करनानी मुझे एयरपोर्ट पर ही मिल गया और मेरे साथ गाली गलौज, और जबरदस्ती करने लगा । कहने लगा मैंने उसे धोखा दिया था, उसे इमोशनल शॉक दिया था...’’
‘‘उसे पता कैसे लगा कि तुम किस रोज, किस वक्‍त, कौन सी एयरलाइन्‍स की कौन सी फ्लाइट से मुम्बई पहुंच रही थीं ?’’
‘‘उसे इस रूल की वाकफियत थी कि छ: महीने बाद मेरा लौट के आना लाजमी था इसलिये वो इस ताक में था और कोपनहेगन से मुम्बई की फ्लाइट्स शिड्यूल को मेरे नाम के लिये चैक करता रहता था । बहरहाल मेरी आमद की बाबत उसे मालूम था, तभी तो एयरपोर्ट पर पहले ही पहुंचा हुआ ।’’
‘‘वो किस्‍सा खत्‍म कैसे हुआ ?’’
‘‘मैंने शोर मचा दिया । पुलिस की पुकार लगाई तो भाग गया ।’’
‘‘फिर ?’’
‘‘मेरे घर का चक्‍कर लगाने लगा । मिलने की जिद करने लगा । मेरे मां बाप ने उसे रोका टोका, नहीं बाज आया । जबरदस्ती घर में घुसने लगा । मैंने पुलिस को बुलाने की धमकी दी तो टला । फिर फोन पर फोन आने लगे । जब मेरा मोबाइल बजता था, मैं पाती थी लाइन पर वो था । मैंने मोबाइल पर काल रिसीव करना बन्द कर दिया । वो लैंड लाइन बजाने लग गया और मांग करने लग गया कि उसकी अनुजा से बात कराई जाये । मेरे घर वाले उसकी आवाज सुन कर फोन बन्द कर देने लगे तो किसी दूसरे से फोन कराने लगा । मैंने एकाध बार उसकी काल ले भी ली तो उसे साफ बोला कि वो मेरा पीछा छोड़े लेकिन वो तो पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं था । शैतान की तरह पीछे पड़ा था । सारा दिन, सारी रात फोन बजता था । मैं अपने फर्स्ट फ्लोर के बैडरूम की खिड़की से बाहर झांकती थी तो वो मुझे सड़क पर खड़ा दिखाई देता था ।
‘‘माथा फिरेला था ।’’ — इरफान बोला ।
‘‘कोई पेश चली ?’’ — विमल ने पूछा ।
‘‘नहीं ।’’
‘‘तो क्या किया ?’’
‘‘मेरे पर मुकद्दमा कर दिया ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘कोर्ट में मेरे पर केस ठोक दिया ।’’
‘‘किस बिना पर ?’’
‘‘मैंने अमानत में खयानत की थी ।’’
‘‘कैसी अमानत ?’’
‘‘शादी से पहले दिखाने के लिये आठ लाख रुपये का एक जड़ाऊ हार ले करके मेरे घर आया था, मैंने हार आन अप्रूवल रख लिया था, फिर न पेमेंट की थी, न हार लौटाया था ।’’
‘‘ऐसा हुआ था ?’’
‘‘सवाल ही नहीं पैदा होता । मेरी शादी में जेवरात की खरीद जैसी तैयारी का कोई दखल ही नहीं था । आर्य समाज मंदिर में सिम्‍पल मैरिज हुई थी ।’’
‘‘ज्‍वेलर्स यूं जेवरात घर पर ला कर दिखाते हैं ?’’
‘‘दिखाते हैं । आम बात है ये ।’’
‘‘कोर्ट में अपना दावा साबित करना होता है । कैसे किया ?’’
‘‘एक गवाह पेश किया जो कि बोला कि उस ट्रांजेक्‍शन के वक्‍त वो उसके साथ था, जिसने अदालत के कठघरे में खड़े हो कर बयान दिया कि उसकी मौजूदगी में, उसके सामने ज्‍वेलर ने — परमेश करनानी ने — वो हार मुझे सौंपा था । हार को बाकायदा डिस्‍क्राइब किया कि वो कैसा था ।’’
‘‘गवाह झूठा था ! सिखाया पढ़ाया था !’’
‘‘सौ फीसदी । तोते की तरह रटा हुआ बयान उसने कोर्ट में दोहराया था ।’’
‘‘और क्या किया ?’’
‘‘एक रसीद पेश की ।’’
‘‘कैसी रसीद ?’’
‘‘उस जड़ाऊ हार की रसीद जिस पर हार की स्‍पैसिफिकेशन, वजन, कीमत वगैरह दर्ज थी और जिस पर मेरे साइन थे ।’’
‘‘तुमने किये थे ?’’
‘‘सवाल ही नहीं पैदा होता । जिस आइटम का ही कोई वजूद नहीं था, उस की रसीद भला क्‍योंकर वजूद में आती ।’’
‘‘तुमने कोर्ट में बोला होता कि वो साइन जाली थे !’’
‘‘मैंने बोला था । उसने हैण्‍डराइटिंग एक्‍सपर्ट का एक डिटेल्‍ड सर्टिफिकेट पेश कर दिया था जो कहता था कि रसीद के साइन मेरे साइन्‍स के एक्‍चुअल नमूने से हूबहू मिलते थे ।’’
‘‘असल में वो सर्टिफिकेट झूठा था !’’
‘‘सरासर झूठा था ।’’
‘‘एक्‍चुअल साइन का नमूना कहां से आया ?’’
‘‘मैंने उसके वाकिफ एक एजेन्‍ट की मार्फत एक बार नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट खरीदने की कोशिश की थी, तब डाकखाने से इस बात के लिये मिलने वाला फार्म भरा था लेकिन फिर मेरा खयाल बदल गया था, मैंने सर्टिफिकेट नहीं खरीदे थे, तब वो फार्म उसी के पास रह गया था ।’’
‘‘अब केस की क्या पोजीशन है ?’’
‘‘केस मेरे खिलाफ खड़ा है, मैं मुजरिम हूं, मुझे काेर्ट से हुक्‍म है कि जब तक केस का कोई निपटारा न हो जाये, मैं मुल्‍क से बाहर कदम न रखूं । पुलिस वाले उससे मिले हुए हैं, हैण्‍डराइटिंग एक्‍सपर्ट उससे मिला हुआ है, मजिस्‍ट्रेट तक उसकी जेब में है । केस पता नहीं कब तक चलेगा जब कि मेरे को यहां एक एक दिन भारी पड़ रहा है । तीन बार मैं अपना कोपनहेगन का प्‍लेन टिकट एक्‍सटेंड करा चुकी हूं । मैं वापिस न लौटी तो मेरे हसबैंड को गलत सिग्‍नल पहुंचेगा । मुझे हैरेस करने के लिये, बल्कि मुझे ब्लैकमेल करने के लिये मेरे खिलाफ एक बोगस केस खड़ा किया गया है जिसका फैसला जब भी होगा मेरे खिलाफ होगा । हार — जिसका कोई वजूद नहीं — न लौटा पाने की सूरत में मुझे जेल तक जाना पड़ सकता है । मेरे पास आठ लाख रुपये नहीं हैं, होते तो मैं इस सांसत से निजात पाने के लिये उन्‍हें उसके मुंह पर मारती ।’’
‘‘उससे बात की होती !’’
‘‘की थी । मुसीबत की मार पड़ रही थी इसलिये मजबूरन की थी । बोला केस वापिस ले लेगा । बशर्ते कि ...’’
वो रोने लगी ।
‘‘बशर्ते कि क्या ?’’
‘‘मैं शादी को भूल जाऊं’’ — वो फफकती हुई बोली — ‘‘कोपनहेगन लौटने का खयाल छोड़ हूं । और उसके साथ वैसे ही ताल्‍लुकात बना कर रहूं जैसे कि शादी से पहले थे ।’’
‘‘ये तो रखैल बन के रहने को बोलना हुआ !’’
वो हिचकियां ले कर रोने लगी ।
विमल ने उसे रोने दिया ।
फिर उसके इशारे पर इरफान ने उसे पानी पिलाया ।
‘‘जालिम के जुल्‍म का शिकार हो’’ — विमल गम्‍भीरता से बोला — ‘‘समस्‍या विकट है तुम्‍हारी ।’’
‘‘मैं बर्बाद हो जाऊंगी ।’’
‘‘अब ऐसा नहीं होगा । जहां पहुंच गयी हो, वहां पहुंचने के बाद अब ऐसा नहीं होगा ।’’
‘‘मेरी जान कैसे इस जंजाल से निकलेगी ?’’
‘‘निकलेगी । हर जोड़ का तोड़ होता है । इसका भी होगा ही !’’
‘‘होगा ?’’
‘‘क्‍यों नहीं होगा ? कोशिश करने से क्या नहीं हो जाता ?’’
वो खामोश रही ।
‘‘इस सांसत से निकलने का एक तरीका तो मैं अभी सुझा सकता हूं ।’’
अनुजा ने आशापूर्ण निगाह से विमल की तरफ देखा ।
‘‘किसी केस के सिलसिले में जब मुलजिम को हुक्‍म होता है कि मुकद्दमे का फैसला होने तक वो मुल्‍क छोड़ कर न जाये तो ये हुक्‍म भी होता है कि वो अपना पासपोर्ट कोर्ट में या पुलिस के पास जमा कराये । तुम्‍हारे केस में ऐसा कोई हुक्‍म नहीं हुआ है ।’’
‘‘शायद बाद में हो !’’
‘‘फिलहाल नहीं हुआ है । फिलहाल तुम्‍हारा पासपोर्ट तुम्‍हारे कब्‍जे में है ।’’
‘‘वो तो है । उससे... मुझे कोई फायदा है ?’’
‘‘है न ! पासपोर्ट मुल्‍क छोड़ने का जरिया होता है ।’’
‘‘लेकिन मैं एयरपोर्ट के करीब भी नहीं फटक सकती । परमेश करनानी ने यकीनन ऐसा कोई इन्‍तजाम किया होगा कि...’’
‘‘ठीक । ठीक । लेकिन‍ वो इन्‍तजाम सहर एयरपोर्ट पर होगा ? या इन्डिया के सारे इन्‍टरनेशनल एयरपोर्ट्स पर होगा ?’’
‘‘ऐसा कैसे हो सकता है ! इतना व्‍यापक इन्‍तजाम तो पुलिस के लिये भी मुश्किल होगा !’’
‘‘एग्‍जैक्‍टली । अब सुनो तुम क्या कर सकती हो !’’
‘‘जी, फरमाइये ।’’
‘‘तुम बाई रोड या बाई रेल पूना जा सकती हो, गोवा जा सकती हो और वहां से काठमाण्‍डू की फ्लाइट पकड़ सकती हो ।’’
‘‘काठमाण्‍डू की !’’
‘‘जो कि नेपाल की राजधानी है । इन्डियन को नेपाल जाने के लिये पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती इसलिये जाहिर है कि तुम्‍हें कहीं अपना पासपोर्ट नहीं दिखाना पड़ेगा ।’’
‘‘फिर ?’’
‘‘तुम्‍हारे पास जो रिटर्न टिकट है, उसे तुम काठमाण्‍डू से वैलिड करा सकती हो और वहां से कोपनहेगन की फ्लाइट पकड़ सकती हो ।’’
‘‘सर, ये तो... ये तो फरार होना हुआ !’’
‘‘हुआ तो सही, लेकिन इससे तुम्हें सिर्फ ये दिक्‍कत होगी कि केस खारिज न हुआ तो इन्डिया वापिस नहीं लौट पाओगी ।’’
‘‘कोर्ट के हुक्‍म पर मुझे पकड़ मंगवाया नहीं जा सकेगा ?’’
‘‘नहीं । क्‍यों कि इन्डिया की डेनमार्क के साथ एक्‍स्‍ट्राडिशन ट्रीटी नहीं है ।’’
वो खामोश रही, उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
‘‘तुम्‍हारा केस मामूली है । यकीन जानो कोर्ट या पुलिस या भारत सरकार उसके सिलसिले में कोई लम्बी कार्यवाही नहीं करने वाली, कोई जटिल डिप्‍लोमैटिक प्रोसीजर नहीं अडाप्‍ट करने वाली । तुम कोई टैरेरिस्‍ट नहीं हो, तुमने कोई कत्‍ल नहीं किया है, तुम अबू सलेम नहीं हो ।’’
वो खामोश रही ।
‘‘लगता है’’ — इरफान बोला — ‘‘तरीका बाई के मिजाज में नहीं आया ।’’
‘‘वो...वो’’ — वह संकोचपूर्ण भाव से बोली — ‘‘क्या है कि ...मैं...मैं...’’
‘‘नैवर माइन्‍ड ।’’ — विमल आश्‍वासनपूर्ण स्‍वर में बोला — ‘‘कुछ और सोचेंगे । जोड़ का तोड़ नहीं तो तोड़ का मोड़ सोचेंगे । नो ?’’
‘‘यस... सर । यस, सर ।’’
‘‘एक’’ — इरफान बोला — ‘‘सस्ता, किफायती और टिकाऊ तरीका अभी मेरे मगज में आया ।’’
‘‘क्या ?’’ — विमल तनिक सकपकाया सा बोला ।
‘‘बाई आठ लाख रुपया इधर से ले के जाये और उस खंडूस के मुंह पर मारे । साला केस खत्‍म । किस्‍सा खत्‍म ।’’
विमल ने इंकार में सिर हिलाया ।
‘‘बोले तो ?’’
‘‘कटखना कुत्ता काटने से बाज नहीं आता । यूं चुप हो जायेगा तो नयी घात लगायेगा और फिर काटने को दौड़ेगा । क्या पता मिलीभगत से ऐसा कोई करतब करे कि पैसा लौटाने की आफर पर भी केस खत्‍म न हो !’’
‘‘ऐसा !’’
‘‘हां । मैं बोले तो उस आदमी को कोई सबक मिलना चाहिए । उसकी चाल की कोई ऐसी काउन्‍टर चाल होनी चाहिये जो कि उसी जुबान में उसको मुंहतोड़ जवाब दे जिसे कि वो समझता है ।’’
‘‘है ऐसा कुछ मगज में, बाप ?’’
‘‘है ।’’ — विमल वापिस अनुजा से सम्बोधित हुआ — ‘‘ये कागज कलम पकड़ो, इस पर अपना नाम, पता, कान्‍टैक्‍ट नम्बर और उस परमेश करनानी का नाम, पता, कान्‍टैक्‍ट नम्बर लिखो । उसकी हेनस रोड पर प्‍लेस ऑफ बिजनेस का पता लिखो । गवाह का नाम पता मालूम ?’’
‘‘मालूम ।’’ — अनुजा बोली ।
‘‘वो भी लिखो । हैण्‍डराइटिंग एक्‍सपर्ट का ?’’
‘‘मेरे पास उसके कोर्ट में दाखिल किये सर्टिफिकेट की कापी है । उस पर उसकी मोहर लगी हुई है जिस पर नाम पता, फोन नम्बर सब दर्ज है ।’’
‘‘वो कापी इधर छोड़ के जाओ ।’’
उसने वो सब किया ।
‘‘अब चैन से घर जाओ और गुड न्‍यूज मिलने का इन्‍तजार करो ।’’
‘‘न... मिली तो ?’’
‘‘तो समझना चैम्बूर का दाता अपने दाता के रोल में फेल हो गया । वो दीन के हित में न लड़ सका ।’’
वो और सहमी हुई लगने लगी ।
‘‘उम्‍मीद नहीं छोड़ने का, बाई ।’’ — इरफान अपनी आदत के खिलाफ मीठे स्‍वर में बोला — ‘‘उम्‍मीद पर दुनिया कायम है । मालूम !’’
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘अभी नक्‍की करने का । बिग बॉस को और भी काम ।’’
उसने उठ कर खामोशी से हाथ जोड़े और दुपट्टे से आंखें पोंछती वहां से विदा हो गयी ।
‘‘और काम !’’ — पीछे विमल बोला ।
‘‘एक भीड़ू और है’’ — इरफान बोला — ‘‘जिस का बाई का माफिक जिद कि तेरे से ही मिलेगा । अभी सबब में इधर है तो उस को भी दे टेम ।’’
‘‘कौन है ?’’
‘‘है कोई जो साला शक्‍ल से ही अक्खे जहान की मुसीबतों का मारा लगता है । नाम हनुमन्‍तराव वलसे । बोरीवली से आया ।’’
‘‘हूं । ठीक है, बुला ।’’
इरफान उठकर चला गया ।
‘‘इस परमेश करनानी की’’ — पीछे विमल बोला — ‘‘फुल जानकारी हमें होनी चाहिये ।’’
‘‘निकालेंगे ।’’ — शोहाब इत्‍मीनान से बोला ।
‘‘इसके अलावा कि हेनस रोड पर शॉप है ।’’
‘‘जाहिर है । फिक्र न करो, सब जानकारी निकालेंगे — ये भी कि नाक दायें हाथ से पोंछता है कि बायें हाथ से ।’’
‘‘गुड !’’
इरफान वापिस लौटा ।
‘‘आता है ।’’ — यथापूर्व बैठता हुआ वो बोला ।
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
हनुमन्‍तराव वलसे पेश हुआ ।
आकर टेबल के सामने मौजूद इकलौती कुर्सी पर बैठा ।
‘‘नाम बोलने का ।’’ — इरफान बोला ।
‘‘हनुमन्‍तराव वलसे ।’’ — वलसे विनीत भाव से बोला ।
‘‘किधर से आया ?’’
‘‘बोरीवली । मूलजी चाल ।’’
‘‘काम क्या करता है ?’’
‘‘दिहाड़ी मजदूर हूं ।’’
‘‘पिराब्‍लम बोलने का ।’’
‘‘वो...वो...’’
‘‘क्या वो वो ?’’
‘‘चैम्बूर का दाता ।’’
‘‘क्या चैम्बूर का दाता ?’’
‘‘दाता को बोलने का ।’’
‘‘पहचानता है ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तो कैसे मालूम दाता को नहीं बोल रयेला है ?’’
‘‘वो...वो... क्या है कि...’’
‘‘श्‍यानपन्‍ती नहीं करने का इधर साला...’’
‘‘छोड़ ।’’ — विमल बोला ।
इरफान चुप हो गया ।
‘‘इधर मेरी तरफ देखो ।’’ — विमल बलसे से बोला ।
वलसे ने सादर आज्ञा का पालन किया ।
‘‘मैं हूं वो शख्‍स जिस से तू मिलना चाहता है ।’’
‘‘चैम्बूर का दाता !’’
‘‘लोग ऐसा बोलते हैं ।’’
वलसे ने फिर हाथ जोड़े ।
‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो !’’
आराम से । इतमीनान से । एकदम से कुछ नहीं करने का । पहले सैटल होने का । स्‍टोरी करने का । फिर । फिर...
‘‘अभी पिराब्‍लम बोलने का, भीड़ू !’’ — इरफान डांटता सा बोला — ‘‘टेम खोटी नहीं करने का ।’’
‘‘बिल्‍कुल नही, बाप ।’’ — वलसे हड़बड़ा कर बोला — ‘‘बाप, मेरा भतीजा रोड एक्‍सीडेंट में गया । बस ने रौंद दिया । उधर ही खल्‍लास !’’
‘‘ओह !’’ — विमल के मुंह से निकला ।
‘‘ऐसे केस में पोस्‍टमार्टम जरूरी । डाक्‍टर करता नहीं था । रोज टालता था । बोलता था अभी बिजी । अभी टेम नहीं । असल में रोकड़ा मांगता था ।’’
‘‘रोकड़ा मांगता था !’’ — विमल हैरानी से बोला — ‘‘किस वास्ते ?’’
‘‘केस को इस्‍ट्रेट करके हैंडल करने के वास्ते ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘बोलता था केस में फच्‍चर डाल देगा । अपनी रपट में लिखेगा, मार के बस के आगे फेंका । मर्डर के केस को एक्‍सीडेंट का केस बनाया ।’’
‘‘ऐसा बोला वो डॉक्‍टर !’’
‘‘बरोबर, बाप ।’’
‘‘किसने किया ऐसा ?’’
‘‘किसी ने भी किया, पण किया । बोला वो ऐसी रपट बनायेगा तो पुलिस केस । तो सब गिरफ्तार । मैं भी । बाकी के रिश्‍तेदार भी । बोले तो फुल फजीहत ।’’
‘‘ऐसा न हो, इस वास्ते रिश्‍वत ?’’
‘‘हां बाप ।’’
‘‘तुमने क्या किया ?’’ — शोहाब बोला — ‘‘फरियाद ले कर इधर आ गया बोलने कि पोस्‍टमार्टम वाला डाक्‍टर जुल्‍म करता था ?’’
‘‘नहीं बाप । डाक्‍टर के साथ तो मैं सैटल किया ।’’
‘‘अच्‍छा !’’
‘‘घर का सामान बेच कर बीस हजार रुपये इकट्ठा किया जो कि वो मांगता था और उसको दिया । डाक्‍टर ने तब पोस्‍टमार्टम किया और इस्‍ट्रेट रिपोर्ट बनाया ।’’
‘‘फिर प्राब्‍लम क्या है ?’’ — विमल बोला ।
‘‘बाप, सोहल है न ?’’
‘‘क्या बोला ?’’
‘‘सब भीड़ू लोग बोलता है सोहल ही चैम्बूर का दाता । इस वास्ते हिम्‍मत कर के पूछा ।’’
‘‘जब जानता है तो क्‍यों पूछा ?’’
‘‘बाप, मैं...’’
‘‘स्‍टोरी मुकम्‍मल कर ।’’
‘‘करता है, बाप । बोले तो डाक्‍टर ने पोस्‍टमार्टम करके लाश को दस्तूर के मुताबिक पुलिस के हवाले कर दिया । अभी लाश उधर के एक परांजपे कर के सब-इंस्‍पेक्‍टर के सुपुर्द है । अभी वो सब-इन्‍स्पेक्‍टर रोकड़ा मांगता है ।’’
‘‘वो किसलिये ?’’
‘‘बोलता है रोकड़ा नहीं मिलेगा तो आगे सुपुर्दगी की कार्यवाही नहीं करेगा । लाश को लावारिस बता कर फूंके जाने को भेज देगा ।’’
‘‘वो कितना मांगता है ?’’
‘‘बीस हजार । जब कि अब मेरे पल्‍ले कुछ भी नहीं है । मैं बिन बाप के लड़के का सगा चाचू, मेरे होते भतीजा लावारिस...’’
तभी भड़ाक से दरवाजा खुला और फड़के दौड़ता हुआ भीतर दाखिल हुआ ।
‘‘पुलिस !’’ — वो बोला ।
‘‘पुलिस !’’ — वलसे के मुंह से निकला, एकाएक वो बेचैन दिखाई देने लगा ।
‘‘कहां ?’’ — शोहाब ने तीखे स्‍वर में पूछा ।
‘‘बाहर । दो जीपें पहुंची हैं । पन्द्रह बीस बावर्दी पुलिसिये उतर रहे हैं ।’’
‘‘बाप’’ — इरफान उछल कर खड़ा हुआ — ‘‘तू निकल ले ।’’
‘‘क्या !’’ — विमल हड़बड़ाया ।
‘‘पीछू से जा । बहस नहीं, बस जा । फड़के इधर तेरी जगह लेता है ।’’
‘‘ये नहीं हो सकता । मैं तुम लोगों को छोड़कर...’’
‘‘टेम खोटी नहीं कर, बाप । जज्‍बाती भी नहीं होने का ।’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘इरफान ठीक कहता है ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘प्‍लीज, प्‍लीज गो ।’’
विमल हिचकिचाया ।
‘‘मेरा क्या होगा ?’’ — वलसे व्‍याकुल भाव से बोला ।
‘‘चुप रह, खजूर’’ — इरफान डपट कर बोला — ‘‘तेरा क्या होना है !’’
वलसे ने बेचैनी से पहलू बदला ।
‘‘बाप, तू निकल । टेम खोटी न कर ।’’
विमल पिछवाड़े के रास्ते वहां से निकल गया ।
‘‘पुलिस मेरे को थामने आई ।’’ — वलसे बोला ।
‘‘तू साला क्या है जो...’’
तभी कई पुलिस वाले एक साथ भीतर घुस आये । उन की जो पुलिसिया अगुआई कर रहा था, वो तीन सितारों वाला इन्‍स्पेक्‍टर था ।
‘‘मेरे पास न आना ।’’ — वलसे चिल्‍लाया ।
इन्‍स्‍पेक्‍टर के चेहरे पर उलझन के भाव आये ।
‘‘मैं मानव बम है । मेरे को थामा तो फोड़ देंगा ।’’
इरफान और शोहाब सन्‍नाटे में आ गये ।
पुलिस पता नहीं क्‍यों आयी थी लेकिन वो मूर्ख समझ बैठा था कि उसकी वजह से आयी थी ।
‘‘क्या बोला ?’’ — इन्‍स्‍पेक्‍टर उसे घूरता हुआ बोला ।
‘‘मैं मानव बम है । देखो ।’’
उसने अपना कुर्ता उठा कर कमर से लिपटे बम उजागर किये ।
‘‘मेरे को जाने दो वर्ना मैं कन्‍ट्रोल का बटन दबाता है ।’’
‘‘तू मर जायेगा । चीथेड़े उड़ जायेंगे ।’’
‘‘बाकी भी कोई नहीं बचेगा । तुम लोगों ने ऐन टेम पर आकर मेरा काम बिगाड़ा ।’’
‘‘कौन सा काम बिगाड़ा, साले हारामी ?’’ — इरफान चिल्‍लाया ।
‘‘मेरे को जाने दो वर्ना...’’
‘‘जा ।’’ — इंस्‍पेक्‍टर बोला ।
‘‘क्या बोला ?’’
‘‘जा । कोई नहीं रोकेगा तुझे ।’’
‘‘अगर रोका तो मैं बटन...’’
‘‘दबाना । दबाना । अभी जा ।’’
झिझकता सा वो आगे बढ़ा ।
इन्‍स्‍पेक्‍टर के इशारे पर पुलिस वालों ने उसके लिये रास्ता छोड़ दिया ।
हैरान होता वलसे वहां से निकल गया ।
कोई देखने पीछे न गया कि किधर निकल गया ।
‘‘अल्‍लाह !’’ — शोहाब के मुंह से निकलता — ‘‘अभी यहां फटता तो हमारा क्या बचता !’’
‘‘इस फिराक में आया था’’ — इरफान बोला — ‘‘तो इन्‍तजार किस बात का करता था ?’’
‘‘अभी आपसी खुसर फुसर बन्द करो ।’’ — इन्‍स्‍पेक्‍टर कड़क कर बोला — ‘‘ये पुलिस की रेड है, कोई तमाशा नहीं ।’’
‘‘क्‍यों है ?’’ — शोहाब बोला ।
‘‘हमें टिप मिली है इधर हवाला का धन्‍धा होता है । तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट की ओट में नकद रोकड़ा इधर से उधर, उधर से इधर किया जाता है । यहां की तलाशी होगी ।’’
‘‘लो ।’’
‘‘तुम सबको गिरफ्तार किया जायेगा ।’’
‘‘पहले कौन सा काम करोगे ? गिरफ्तार करोगे कि तलाशी लोगे ?’’
इन्स्पेक्‍टर गड़बड़ाया ।
‘‘पहले हिरासत में लेंगे ।’’ — फिर बोला — ‘‘अभी बोलो, इधर फरियाद कौन सुनता था ? तुम में से चैम्बूर का दाता कौन है ?’’
‘‘क्‍यों पूछते हो ?’’
‘‘जवाब दो ।’’
‘‘कौन से थाने से आये हो ?’’
‘‘तुम बोलो क्‍यों पूछते हो ?’’
‘‘बाप, इधर सुनो ।’’ — तभी एकाएक इन्‍स्‍पेक्‍टर के बाजू में खड़ा हवलदार बोला ।
‘‘क्या है ?’’ — इन्‍स्‍पेक्‍टर रुखाई से बोला ।
‘‘बाप, ये इरफान है । ये दूसरा शोहाब है । इस लिहाज से ये तीसरा भीड़ू ही है जो हमेरे को मांगता है ।’’
‘‘और तू साला दोगला गोट्या खोपड़े है !’’ — इरफान गर्ज कर बोला — ‘‘साला अभी कल तक दफेदार का प्यादा होता था अभी पुलिस में कैसे भर्ती हो गया ? हवलदार कैसे बन गया ?’’
हवलदार गड़बड़ाया । अनजाने में ही वो एक कदम पीछे हट गया ।
‘‘बकवास बन्द !’’ — इन्‍सपेक्‍टर चिल्‍लाया, उसने बैल्‍ट होल्‍स्‍टर से गन खींच कर हाथ में ले ली — ‘‘ये तीसरा भीड़ू गिरफ्तार है । अड़ी करेगा तो मैं इधरीच शूट कर देगा ।’’
‘‘हम पुलिस को बुलाते हैं ।’’ — शोहाब बोला ।
‘‘ढ़क्‍कन ! अबे, हम पुलिस वाले खड़ेले हैं, तेरे सामने, दिखाई नहीं देता ।’’
‘‘हम असली पुलिस को बुलाते हैं ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘कोई अपनी जगह से न हिले ।’’ — एक नयी आवाज वहां गूंजी — ‘‘तुम सब घिरे हुए हो ।’’
इन्‍स्‍पेक्‍टर ने घूम कर पीछे देखा ।
वो पन्द्रह आदमी थे, पीछे तीस खड़े थे ।
सबसे आगे विक्‍टर और जार्ज थे ।
‘‘इन्‍स्‍पेक्‍टर साहब’’ — विक्‍टर बोला — ‘‘गन टेबल पर और हाथ गर्दन पर वर्ना गोली !’’
सन्‍नाटा छा गया ।
‘‘और किसी भीड़ू के पास हथियार हो तो वो भी ऐसीच करे ।’’
कुछ हथियार टेबल पर आ कर पड़े तो कुछ वहां से सरक कर नीचे फर्श पर जा कर गिरे ।
अब सब पुलिस वालों के चेहरों पर हवाईंया उड़ रही थीं ।
‘‘पुलिस वाले नहीं हो ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘भाड़े के टट्टू हो !’’
इन्‍स्‍पेक्‍टर ने जोर से थूक निगली और अपने होंठों पर जुबान फेरी ।
‘‘इसी वास्ते उस मानव बम को निकल जाने दिया !’’
इंस्पेक्टर ने जवाब नहीं दिया ।
‘‘इरफान ने गोट्या खोपड़े को न पहचान लिया होता तो शायद तुम्‍हारी चल जाती । अभी बोलो, क्या करने आये थे ?’’
इन्‍सपेक्‍टर परे देखने लगा ।
इरफान ने एक झन्‍नाटेदार थप्‍पड़ उसके चेहरे पर रसीद किया ।
‘‘बाप, कुछ पूछा तेरे से ।’’ — वो हिंसक भाव से बोला ।
‘‘स-सोहल...सोहल को...सोहल को...’’
उससे आगे न बोला गया ।
‘‘खल्‍लास करने आये थे ?’’
उसने डरते झिझकते सहमति से सिर हिलाया ।
‘‘मालूम था ये टेम सोहल इधर था ?’’
‘‘हं-हां ।’’
‘‘पण पहचानते नहीं थे ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘तो कैसे खल्‍लास करते ?’’
‘‘जो फिरयादी की फिरयाद सुनता था वो सोहल । अभी खोपड़े को मालूम तुम इरफान । मालूम तुम शोहाब । तो ये तीसरा भीड़ू सोहल ।’’
‘‘ये हमें न पहचानता तो ?’’
‘‘त-तो..तीनों को...तीनों को...’’
‘‘तीनों को खल्‍लास करने का हुक्‍म था ?’’
‘‘हं-हां ।’’
‘‘किसका ?’’
‘‘हम उसको नहीं जानते । खाली एक सूरत पहचानते हैं । वो मेरे को और खोपड़े को इस काम का रोकड़ा दिया और हमेरे को ही बाकी भीड़ूओं का इन्‍तजाम करने को बोला ।’’
‘‘किधर मिला ?’’
‘‘कमाठीपुरा । उधर एक ईरानी का रेस्‍टोरेंट है, उधर मिला ।’’
‘‘हुलिया बोलने का ।’’
‘‘रात का टेम था । नीमअंधेरा था । ठीक से कुछ न देखा ।’’
‘‘खाली रोकड़ा ठीक से गिना ! चौकस करके अंटी में दबाया !’’
वो खामोश रहा ।
‘‘फिर भी कुछ बोल ।’’ — शोहाब ने घुड़का ।
‘‘क-क्या ?’’
‘‘अरे, हुलिया । जो तू बोला ठीक से न देखा । जो खराब से देखा, वो बोल ।’’
‘‘वो...वो...लम्बा था... सांवला था... चालीस से ऊपर का था... दाढ़ी मूंछ सफा था ।’’
‘‘और ?’’
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
‘‘चश्‍मा ! लगाता था ?’’
‘‘नहीं । पण गागल्‍स...गागल्‍स लगाये था ।’’
‘‘रात के टेम !’’
‘‘हां ।’’
शोहाब ने इरफान की तरफ देखा ।
‘‘नाम बोल ।’’ — इरफान बोला ।
‘‘नहीं मालूम । वो अपना नाम...’’
‘‘अबे, अपना नाम बोल, खजूर !’’
‘‘क-कयूम नलवाला ।’’
‘‘तू समझता था तू सोहल को खत्‍म कर सकता था ?’’
‘‘चैम्बूर का दाता को ।’’
‘‘ये नहीं मालूम था कि सोहल ही चैम्बूर का दाता था ?’’
‘‘नहीं, नहीं मालूम था ।’’
‘‘मालूम होता तो ?’’
‘‘इधर का रुख करने का खयाल भी न करते ।’’
‘‘ये झूठ बोल रहा है ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘ये अन्डरवर्ल्ड का भीड़ू । अक्‍खी मुम्बई को इस ढीये की हकीकत मालूम ।’’
इरफान ने सहमति में सिर हिलाया ।
‘‘अभी मैं क्या करे तेरा ?’’ — इरफान बोला — ‘‘तेरे जोड़ीदारों का ?’’
‘‘छोड़ दो बाप !’’ — वो गिड़गिड़ाया — ‘‘जो किया, रिजक के लिये किया ।’’
‘‘सालो ! नाहंजारो ! कम्बख्‍तमारो ! यहीच काम बचा था रिजक के लिये करने का वास्ते !’’
‘‘मिस्‍टेक हुआ, बाप ।’’
‘‘सोहल पर हाथ डालने की मजाल हुई !’’
‘‘मिस्‍टेक हुआ, बाप ।’’
‘‘फिर ये भी नहीं बताता कि जो भीड़ू इस काम का वास्ते एंगेज किया, वो कौन ?’’
‘‘कसम उठवा लो, उसकी बाबत कुछ नहीं मालूम ।’’
‘‘रोकड़ा मिल गया ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘पूरा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘पूरा कौन देता है !’’
‘‘वो दिया ।’’
‘‘बंडल ! कुछ मिला, कुछ मिलना होयेंगा !’’
‘‘नहीं । टोटल मिला बरोबर ।’’
‘‘काहे ?’’
‘‘वो बोला वो हमेरी दोबारा सूरत नहीं देखना मांगता था । ये जानने के लिये भी नहीं कि हम अपने काम में कामयाब हुए थे या नहीं !’’
‘‘ऐसा कहीं होता है !’’
‘‘बाप, हम कामयाब होते तो छापे में छपता न !’’
‘‘न छपता तो फेल ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘इस वास्ते दोबारा मिलना जरूरी नहीं ।’’
‘‘हं-हां ।’’
‘‘उस भीड़ू को ढूंढ़ सकता है ?’’
‘‘कैसे होयेंगा, बाप ! जिस का थोबड़ा भी ठीक से न देखा, नाम तक नहीं मालूम...कैसे होयेंगा ?
‘‘फिर तो पिराब्‍लम । तेरे वास्ते ।’’
‘‘बाप, मिस्‍टेक हुआ । ये टेम छोड़ दो । जो रोकड़ा मिला हम तुम्‍हेरे हवाले करने को तैयार हैं ।’’
‘‘कितना मिला ?’’
‘‘पांच लाख ।’’
‘‘जीपें ?’’
‘‘किराये की ।’’
‘‘वर्दियाँ ?’’
‘‘किराये की ।’’
‘‘तो तुम लोगों ने सोहल की जान की कीमत पांच लाख रुपये लगाई !’’
‘‘सोहल की नहीं । सोहल की नहीं । बाप, हमें नहीं मालूम था...’’
‘‘ठीक ! ठीक ! अभी क्या मांगता है ?’’
‘‘छोड़ दो, बाप ।’’
‘‘अभी । अभी । विक्‍टर !’’
‘‘यस!’’ — विक्‍टर तत्‍पर स्‍वर में बोला ।
‘‘जो दो भीड़ू, डिरेवर हैं, उन को बकशने का, बाकी सब को रुई का माफिक धुनने का ।’’
‘‘बाप !’’ — कईयों ने आर्तनाद किया — ‘‘बाप !’’
‘‘थोबड़ा बन्द !’’ — इरफान गला फाड़ कर चिल्‍लाया ।
सब सहम कर चुप हो गये ।
‘‘साला सब को धुन दिया तो इतना कचरा इधर से कौन समेटेगा ! इस वास्ते दो भीड़ू सेफ छोड़ने का । बरोबर !’’
‘‘बरोबर ।’’ — ‍विक्‍टर उत्‍साह से बोला ।
फिर बड़े व्यवस्थित ढ़ग से तीस लोगों ने तेरह लोगों की धुनाई शुरू की ।
पन्द्रह मि‍नट वो सिलसिला चला ।
और दस मिनट तेरह मृतप्राय लोगों को जीप में डालने में लगे ।
फिर दोनों जीपें यूं वहां से हवा हुईं जैसे वहां कभी थीं ही नहीं ।
‘‘विक्‍टर’’ — शोहाब बोला — ‘‘इतने आदमी !’’
‘‘सब अपने टैक्‍सी डिरेवर भाई ।’’ — विक्‍टर बोला — ‘‘सोहल की परजा । एक इशारे पर इधर पहुंचे । और मांगता होता तो और आते ।’’
‘‘अब इनको रुख्‍सत कर ।’’
‘‘अभी ।’’
सब खामोशी से वहां से विदा हो गये ।
‘‘बहुत बड़ा हादसा टल गया ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘वो मानव बम...’’
‘‘वो भी काबू में है ।’’ — विक्‍टर बोला ।
‘‘क्या !’’
‘‘थामा न जब इधर से निकल के जा रहा था !’’
‘‘कमाल कि‍या, विक्‍टर ! वो कन्‍ट्रोल का बटन दबा देता तो ?’’
‘‘जब दबा देता तो दबा देता । अभी अकेला खुद को खल्‍लास करने को काहे वास्ते दबाता !’’
‘‘सोहल को खल्‍लास करने आया था !’’
‘‘मैं पहले भी बोला’’ — इरफान बोला — ‘‘इस फिराक में आया था तो इन्‍तजार किस बात का करता था ?’’
‘‘अभी काबू में है तो वजह खुद बोलेगा ।’’ — शोहाब विक्‍टर की तरफ घूमा — ‘‘कहां है ?’’
‘‘सामने वाली इमारत में । जार्ज और साटम के कब्‍जे में ।’’
‘‘इधर लाओ ।’’
‘‘अभी ।’’
विक्‍टर चला गया ।
‘‘कम्माल है !’’ — पीछे इरफान बोला — ‘‘एकीच टेम में दो हमले ! कोई एकीच भीड़ू दोनों इन्‍तजाम किया ?’’
‘‘कैसे होगा ? एक टाइम में दो इन्‍तजाम भला कोई क्‍यों करेगा !’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘मालूम होना चाहिये अब कौन सोहल के पीछे पड़ा है !’’
‘‘पड़ने वाला दिखाई तो कोई नहीं देता !’’
‘‘फिर भी है तो बराबर ! किसी ने तो उस वलसे करके भीड़ू को यूं खुदकुशी के लिये तैयार किया कि सोहल विस्‍फोट की चपेट में आ जाता । कि‍सी ने तो नकली पुलिस वाले तैयार करके भेजे ! हमने जल्‍दबाजी से काम लिया, इरफान । उस कयूम नलवाला करके मीड़ू को अभी और हड़काना था ।’’
‘‘मेरे को वो सच बोलता लगा था । जो काम उन्‍हें सौंपा गया था उसकी उजरत पांच लाख रुपिया बहुत कम थी । कयूम नलवाला खुद मामूली मवाली, उसने आगे मामूली आदमी ही पकड़े जो कि‍ भीड़ करने के ही काम आते । कामयाब होता तो जो किया होता वो नलवाला ने ही कि‍या होता । खाली एक भीड़ू को ही तो गिरफ्तार करना था और कहीं ले जा कर शूट करना था...’’
‘‘कोई मजाक है !’’
‘‘उस ढ़क्‍कन ने तो मजाक ही समझा ! तभी तो खता खा गया । तभी तो मेरे को लगा वो सच में ही उस भीड़ू की बाबत कुछ नहीं जानता था जिसने उसे एंगेज किया था । जमा, सालों की फीस बहुत कम थी इसलिये उसकी एकमुश्‍त अदायगी मेरे को मुमकिन लगी ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘बहरहाल जो उनके साथ यहां बीती, उससे अन्‍डरवर्ल्ड के और लोगों को इबरत हासिल होगी ।’’
‘‘लेकिन ये बात अभी पक्‍की है कि दो जुदा पार्टियां सोहल की जान के पीछे पड़ी हैं । एक ने यहाँ मानव बम भेजा, दूसरी ने नकली पुलिस भेजी । हमारे लिये ये निहायत मुफीद इत्तफाक हुआ कि मानव बम की मौजूदगी में पुलिस यहां पहुंची, उस भीड़ू हनुमन्तराव वलसे ने समझा कि पुलिस उसकी वजह से यहां पहुंची थी और उसके पैदा किये कनफ्यूजन ने हमें फायदा पहुंचाया । सोहल के सिर से बला टली ।’’
‘‘बरोबर ।’’
‘‘और ये तो बहुत अच्‍छा हुआ कि विक्‍टर ने वलसे को थाम लिया । वो कोई मवाली नहीं है । मेरे को आम गृहस्थ भीड़ू जान पड़ा था जो अपनी किसी मजबूरी के जेरेसाया इतने बड़े काम को अंजाम देने को तैयार हो गया था । मेरे खयाल से उसकी जुबान खुलवाना आसान होगा ।’’
तभी जार्ज और साटम के साथ वलसे वहां पहुंचा ।
साथ में विमल भी ।
बद्हवास वलसे की पेशी हुई ।
पहले की ही तरह रिसैप्‍शन के पीछे के कमरे में ।
फर्क ये था कि अब वहां विक्‍टर, जार्ज और साटम भी मौजूद थे जो कि मेज से परे एक दीवार के साथ पीठ लगाये खड़े थे ।
‘‘क्या इस्‍टोरी है तेरी ?’’ — इरफान गुस्‍से से बोला ।
‘‘म-मैं...ग-गरीब आदमी हूं ।’’ — वलसे कातर भाव से बोला ।
‘‘गरीब आदमी के ये लच्‍छन होते हैं ! साला बम फोड़ने आया इधर !’’
‘‘म-मैं...म-मजबूर आदमी हूं ।’’
‘‘अभी डैड आदमी होयेंगा ।’’
‘‘बाप, रहम !’’
‘‘साले हरामी ! मुंह बनता है तेरा रहम की दुहाई देने का ?’’
‘‘मैं मजबूर...’’
‘‘साला एक ही ट्यून पकड़े हैं...’’
‘‘बोलने दे इसे ।’’ — विमल बोला ।
इरफान खामोश हो गया ।
‘‘क्या मजबूरी थी ।’’ — शोहाब कदरन नर्म लहजे से बोला । वलसे ने डरते झिझकते अपनी व्‍यथाकथा बयान की । आखिर वो खामोश हुआ तो तीनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।
‘‘हूं ।’’ — फिर विमल बोला — ‘‘किसी के तैयार किये इधर आया !’’
‘‘हं-हां ।’’ — वलसे कठिन स्‍वर में बोला ।
‘‘चैम्बूर का दाता के खिलाफ जाती कुछ नहीं ?’’
‘‘बि-बिल्‍कुल नहीं ।’’
‘‘यहां हम तीन जने मारे जाते...’’
‘‘बाहर रिसैप्‍शन पर बैठा फड़के भी ।’’ — शोहाब बोला ।
‘‘...तुम्‍हे कोई प्राब्‍लम नहीं ?’’
‘‘मैं-मैं भी तो मरता !’’
‘‘मर कर भी अपना मतलब हल करते । और किसी के बारे में न सोचा ।’’
‘‘इधर’’ — शोहाब बोला — ‘‘कि‍तने बेशुमार लोगों की उम्‍मीदों की डोर चैम्बूर का दाता के साथ बन्‍धी है, जिसे तुम एक झटके में तोड़ने जा रहे थे । तुम्‍हारी खुदगर्जी रंग लाती तो कितने भूखों के मुंह में नि‍वाला न होता, कि‍तने नंगों के जिस्‍म पर कपड़ा न ! कितने अनाथों के नाथ की हस्ती मिटाने चले थे तुम !’’
‘‘मैं मजबूर...’’
‘‘एक ही रोना रोना बेकार है । इस जहान में क्या तुम अकेले मजबूर हो ! तकदीर की जो मार तुम कहते हो तुम पर पड़ी वो क्या तुम्‍हारे अलावा कभी किसी पर नहीं पड़ी ! गुरबत के सताये तमाम लोग वही कदम उठायें जो तुमने उठाया तो मुल्‍क की आधी आबादी खत्‍म हो जाये । तुम्‍हारा कुनबा न उजड़े इसलिये तुम्‍हें हक है कि तुम सब को उजाड़ दो !’’
‘‘मैं...शर्मिन्दा हूं ।’’
‘‘गुनाहगार हो ।’’ — इरफान बोला — ‘‘गुनाह की सजा मिलती है ।’’
‘‘मैं सजा भुगतने को तैयार हूं ।’’
‘‘नहीं तैयार हो । तैयार होते तो हालात कुछ भी बनते, जो करने आये हो, कर गुजरते ।’’
वो खामोश रहा ।
‘‘आखिर अपनी जान के मोह ने सताया । इसी वजह से बाहर पकड़े जाते वक्‍त भी बम फोड़ने की हिम्‍मत न हुई ।’’
वो निगाह चुराने लगा ।
‘‘किस बात से डर गये थे ? किसके अंजाम से डर गये थे ? खुद अपने अंजाम से ! इसी वास्ते बाहर जान देते न बना !’’
‘‘अब मैं क्या बोलूं ?’’
‘‘जो काम करने आये थे’’ — शोहाब बोला — ‘‘वो आते ही क्‍यों न किया ?’’
‘‘मुझे ऐसा ही हुक्‍म हुआ था ।’’
‘‘कैसा...कैसा हुक्‍म हुआ था ?’’
‘‘हड़बड़ी में कुछ नहीं करने का था । पहले तब सैटल होने देने का था । पहले सब को मेरी सैड स्‍टोरी में उलझाने का था जो मैं सुनाने के वास्ते तैयार करके रखा ।’’
‘‘भतीजे के एक्‍सीडेंट की कहानी फर्जी सुनाई !’’
‘‘हां ।’’
‘‘कोई भतीजा न मरा ! किसी डाक्‍टर ने तंग न किया ! किसी इन्‍स्‍पेक्‍टर ने रिश्‍वत न मांगी !’’
‘‘हां ।’’
‘‘टॉप का श्‍याना है, साला मजबूर हरामी !’’ — इरफान के स्‍वर में व्‍यंग्‍य का पुट आया ।
वलसे ने जोर से थूक निगली ।
‘‘दस लाख सच में मिल गया ?’’ — शोहाब बोला ।
‘‘हां ।’’ — वलसे बोला ।
‘‘सब सलामत है ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तो !’’
‘‘कुछ खर्च किया ।’’
‘‘कितना ?’’
‘‘अस्‍सी हजार ।’’
‘‘कर भी लिया !’’
‘‘देखो तो साले को !’’ — इरफान बोला — ‘‘रोकड़ा हाथ आते ही पर लग गये !’’
‘‘मैं मजबूर...’’
‘‘अभी एक टेम और मजबूर बोला तो साला मुंह में जूता होयेंगा ।’’
वलसे ने बेचैनी से पहलू बदला ।
‘‘अब उस आदमी की बोलो’’ — विमल बोला — ‘‘जिसके हाथों बिके और इतना बड़ा काम करने का बीड़ा उठाया !’’
‘‘मैं उसके बारे में कुछ नही जानता ।’’
‘‘कुछ भी नहीं ?’’
‘‘वो अपने बारे में कुछ बोला ही नहीं ।’’
‘‘नाम भी नहीं ?’’
‘‘न ।’’
‘‘रिपोर्ट करने के लिये अपना कोई फोन नम्बर बताया हो !’’
‘‘कैसी रिपोर्ट ! जब मैं ही नहीं तो...’’
‘‘तेरे न होने से पहले भी तो’’ — शोहाब बोला — ‘‘कभी कम्‍यूनीकेशन की जरूरत पड़ सकती थी !’’
‘‘उसका आदमी था न !’’
‘‘कौन आदमी ?’’
‘‘जो मेरे को अपना नाम लोबो बताया । जो बोरोवली में मेरी चाल में मेरे को दस लाख रुपया पहुंचा के गया ।’’
‘‘जरूरत होगी तो वो ही तेरे पास पहुंचेगा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘अभी जरूरत है बरोबर ।’’ — इरफान बोला — ‘‘साला काम तो हुआ नहीं । रोकड़ा वापस कलैक्‍ट करना होयेंगा न ! क्या !’’
‘‘ये’’ — वलसे के मुंह से निकला — ‘‘ये तो मेरे को सूझा ही नहीं था !’’
‘‘वो लोबो करके भीड़ू तेरे पास जरूर आयेगा ।’’
‘‘या’’ — विमल बोला — ‘‘वैसा कोई दूसरा आयेगा । ऐसे पैसा कोई कहीं छोड़ता, इसलिये कोई न कोई आयेगा जरूर । शोहाब, समझा कुछ ?’’
‘‘मैं समझ गया । मुनासिब इन्‍तजाम करेंगे ।’’
‘‘अब इसे बोलो उस शख्‍स का हुलिया बयान करे जिससे इसका डील हुआ था, जिसकी कार के नीचे ये आते आते बचा था ।’’
‘‘सुना, बड़ा बाप क्या बोला ?’’ — इरफान घुड़कता सा बोला ।
कम से कम वो काम वलसे ने उन लोगों की उम्‍मीद से बेहतर किया । उसने सब से ज्‍यादा काम की बात ये बताई कि वो साहब कोई फिरंगी था ।
‘‘अब इसका क्या किया जाये !’’ — विमल बोला ।
‘‘हालात का तकाजा है’’ — शोहाब बोला — ‘‘कि छोड़ दिया जाये ।’’
‘‘मेरा भी यही खयाल है ।’’
‘‘निकल ले, भीड़ू ।’’ — इरफान बोला ।
वो उठ कर खड़ा न हुआ ।
‘‘अभी इधरीच ही है, साला हरामी ! उड़ के नहीं गया !’’
‘‘वो...वो...’’
‘‘क्या वो वो ?’’
‘‘मेरे को रकम लौटाने को बोला जायेगा ।’’
‘‘बोला जायेगा न ! साला जब काम न किया तो बोला जायेगा न !’’
‘‘अस्‍सी हजार कम हैं ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘मिल जाते तो...’’
‘‘क्या !’’
‘‘इधर गरीबों की मदद...’’
इरफान ने इतनी जोर का थप्‍पड़ उसके मुंह पर रसीद किया कि वो कुर्सी पर से उलटते-उलटते बचा ।
‘‘साला हरामी कुत्ता !’’ — इरफान नफरतभरे स्‍वर में बोला — ‘‘जिस पेड़ को काटने आया था, उसी का फल खाना मांगता है !’’
वो गाल सहलाता खामोश बैठा रहा ।
‘‘बड़ा बाप का हुक्‍म छोड़ देने का न हुआ होता तो मुंडी काट के हाथ में देता ।’’
उसके शरीर ने जोर की झुरझुरी की ।
‘‘अभी भी बैठेला है...’’
वो उछल कर खड़ा हुआ और फिर यूं वहां से रुखसत हुआ जैसे किसी भी क्षण वापिस घसीट लिये जाने की उम्‍मीद कर रहा हो ।
‘‘इसकी निगरानी का’’ — पीछे विमल बोला — ‘‘चौकस इन्‍तजाम जरूरी है ।’’
‘‘मैं समझा न !’’ — शोहाब बोला — ‘‘विक्टर सब अरेंज करेगा !’’
‘‘बरोबर, बाप ।’’ — विक्‍टर सचेत होता बोला ।
‘‘अभी ।’’
‘‘अभी । विदाउट फेल अभी ।’’
वो अपने साथियों के साथ वहाँ से बाहर निकल गया ।
‘‘फिरंगी साहब का जो हुलिया वो शख्‍स बयान करके गया’’ — विमल बोला — ‘‘वो मेरे जेहन में घन्‍टी बजाता है लेकिन जो सूझता है वो हो नहीं सकता ।’’
‘‘क्या सूझता है ?’’ — शोहाब उत्‍सुक भाव से बोला ।
‘‘माइकल हुआन ! माइकल हुआन सूझता है । लेकिन ये हो नहीं सकता । स्‍वैन नैक प्‍वायन्‍ट पर तुम लोगों के आर्गेनाइज किये आपरेशन में बाकी लोगों के साथ वो भी तो मारा गया था !’’
‘‘जिन्दा तो कोई नहीं बचा था !’’ — इरफान बोला ।
‘‘हाँ ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘कोई गोलियों से बच गया होता तो बाद में हुए ब्लास्ट से नहीं बच सकता था ।’’
‘‘शायद कोई करिश्‍मा हुआ हो !’’
‘‘मालूम पड़ जायेगा । ये लोबो करके जो भीड़ू यकीनन वलसे के पास पहुंचेगा, रोकड़ा कलेक्‍ट करके आगे भी तो पहुंचायेगा ! तब मालूम पड़ जायेगा ।’’
‘‘बशर्ते कि निगरानी वाली हमारी टीम में कोई शख्‍स ऐसा हो जो कि माइकल हुआन को पहचानता हो ।’’
‘‘मैं पहचानता हूं । इरफान पहचानता है ।’’
‘‘ठीक है ।’’ — इरफान बोला — ‘‘इस काम के लिये मैं वि‍क्‍टर के साथ ।’’
‘‘बढिया ।’’
‘‘अगर’’ — विमल बोला — ‘‘वलसे का बयान किया फिरंगी साहब माइकल हुआन ही निकला तो आज मुझे खत्‍म करने की यहां जो दो कोशिशें हुईं, उन में एक का राज तो हम उजागर हो गया समझेंगे ।’’
‘‘दूसरी को भी समझने की भरपूर कोशिश करेंगे ।’’ — शोहाब बोला — ‘‘कयूम नलवाला और इसके आदमी अभी यहां से जो दुरगत करा के गये हैं, मुझे पूरी उम्‍मीद है, उसकी वजह से कहीं कोई हिलडुल जरूर होगी । हम उस हिलडुल पर निगाह रखेंगे ।’’
‘‘और आगे से यहां आने वाले फरियादियों की स्‍क्रीनिंग का कोई इन्‍तजाम इधर खड़ा करना होगा वर्ना जो वाकया आज होने से बाल बाल बचा, वो फिर होगा ।’’
‘‘हम इन्‍तजाम करेंगे ।’’
‘‘गुड !’’
‘‘बाप’’ — इरफान बोला — ‘‘उस बाई की पिराब्लम के बारे में कुछ सोचा ?’’
‘‘कुछ सोचा है, कुछ और सोचूंगा ।’’
‘‘नतीजा ?’’
‘‘सुखद निकलेगा । बाई के हक में नि‍कलेगा ।’’
‘‘बढ़ि‍या ।’’
मारकस लोबो और पैड्रो वाज़ अपने बॉस के हुजूर में पेश हुए ।
‘‘चैम्बूर से सीधे इधर आये, बॉस ।’’ — मारकस बोला ।
‘‘क्या हुआ ?’’ — माइकल हुआन उत्‍सुक भाव से बोला ।
‘‘बॉस, वो न हुआ जो होने का था ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘अपना भीड़ू सलामत है ।’’
‘‘कौन ? हनुमन्‍तराव वलसे !’’
‘‘वही ।’’
‘‘चैम्बूर न पहुंचा ?’’
‘‘बरोबर पहुंचा । वैसीच पहुंचा जैसे पहुंचने का था ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘ब्‍लास्‍ट न हुआ । बहुत गलाटा हुआ, बहुत कोहराम मचा पण अपना भीड़ू उधर से सेफ निकल कर आया ।’’
‘‘बम न फटे ?’’
‘‘न ।’’
‘‘कोई टैक्‍नीकल प्राब्‍लम ?’’
‘‘मालूम नक्‍को । बॉस उधर आफिस के भीतर क्या हुआ, हम लोग नहीं मालूम कर सकता था पण बाहर क्या हुआ, सब बरोबर देखा ।’’
‘‘क्या ? क्या हुआ ? क्या देखा ?’’
‘‘जब अपना भीड़ू वलसे भीतर था तो एकाएक पुलिस वहां पहुंच गयी ।’’
‘‘पुलिस ?’’
‘‘कि‍तने ही पुलिसिये । दो जीपों में भर के आये । आते ही तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट के आफिस वाली इमारत को घेरना शुरू कर दिया, फिर भीतर हल्‍ला बोल दिया ।’’
‘‘पुलिस की रेड हुई उधर !’’
‘‘फर्स्ट इंस्‍टेंस में ऐसा ही जान पड़ा पण उसमें लोचा ।’’
‘‘क्या !’’
‘‘रेड फर्जी । पुलिस नकली ।’’
‘‘अरे !’’
‘‘पुलिस बन के कोई दूसरी पार्टी उधर पहंुची ।’’
‘‘किस वास्ते ?’’
‘‘हमारा अन्दाजा यही है कि सोहल के वास्ते ।’’
‘‘यू मीन जैसे हमने उधर मानव बम के जरिये सोहल को निशाना बनाने की कोशिश की, वैसे अपने तरीके से किसी और ने भी ये काम किया !’’
‘‘ऐग्‍जैक्‍टली ।’’
‘‘आगे ?’’
‘‘आगे जब फर्जी पुलिस का फर्जी आपरेशन उधर चलता था, हमेरा भीड़ू सेफ बाहर निकल के आया ।’’
‘‘सेफ ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘न सोहल के साथियों ने उस को थामा, न पुलिस ने हैंडल किया ?’’
‘‘ऐसीच था ।’’
‘‘उससे पूछना था, ऐसा क्‍योंकर हुआ !’’
‘‘बॉस, अभी सुनने का ।’’
‘‘ठीक है, बोलो ।’’
‘‘पुलिस का सुनो । पुलिस के बाद उधर कोई दूसरा ग्रुप पहुंचा जो कि गिनती में पुलिस वालों से डबल था । उन्‍होंने आकर आफिस को घेरने वालों को घेर लिया और सबको जबरन भीतर ले गये ।’’
‘‘पुलिस को !’’
‘‘जरूर वे सोहल के आदमी थे और उनको सिग्‍नल मिल चुका था । कि पुलिस साला सब डुप्‍लीकेट था ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘फिर सबसे डेंजर काम हुआ ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘बाद में आयी पार्टी ने फर्जी पुलिस वालों को जम के धुना और अधमरा करके उधर से भेजा ।’’
‘‘जीसस ! ऐसे हंगामे में से हमारा आदमी सेफ निकल आया !’’
‘‘निकल ही आया । नि‍कला रह न सका ।’’
‘‘वाट डु यू मीन ?’’
‘‘थाम लिया गया । आफिस से बाहर निकल कर, उधर के अहाते से नक्‍की कर के अभी मेन रोड पर ही पहुंचा था कि चार भीड़ू आया और उसको थाम लिया ।’’
‘‘उसने तब भी डिटोनेटर का स्विच न दबाया ?’’
‘‘मालूम नहीं दबाया नहीं या दबा नहीं सका । जो हमारे सामने हुआ वो ये था कि चार भीड़ू उसे थाम के आफिस के सामने वाली इमारत में ले गये ।’’
‘‘ले जा के क्या किया ?’’
‘‘मालूम नक्‍को । पण टैन मिनट्स में बाहर निकला ।’’
‘‘सेफ !’’
‘‘हां । पण मेरे को साफ मालूम पड़ा कि तब बाडी पर बम नहीं थे ।’’
‘‘स्ट्रिप कर के जाने दिया !’’
‘‘इमीजियेट नहीं ।’’
‘‘वाट डु यू मीन ?’’
‘‘दो भीड़ू उसे ट्रस्‍ट के आफिस में ले के गये । उधर वो पांच मिनट ठहरा, फिर बाहर निकला और अपनी राह लगा ।’’
‘‘उससे पूछा होता क्या माजरा था !’’
‘‘बॉस, उधर पूछने का हाल नहीं था । उधर जैसा माहौल बन गया था, उस में हम अपने को एक्‍सपोज करते तो हमारे वास्ते प्राब्‍लम होता ।’’
‘‘कुछ तो किया होगा ?’’
‘‘किया न ! पैड्रो को वलसे के पीछे लगाया ।’’
‘‘ओह !’’
‘‘आगे तू बोल ।’’
पैड्रो ने सहमति में सिर हिलाया, फिर बोला — ‘‘अपना भीड़ू वलसे चैम्बूर से बोरीबाली की बस में सवार हुआ । मैंने भी बस लिया, फिर आधे रास्ते में उसको थामा । बस में उसके बाजू की सीट खाली हुई तो मैं उस पर बैठ गया और सीक्रेटली उससे डायलाग किया । मैं बोला मैं माइकल हुआन बॉस का आदमी । बड़ी मुश्किल से उसको यकीन आया और वो मेरे से बात करने को तैयार हुआ । तब उसने बताया कि पीछे चैम्बूर वाले आफिस में उसे स्विच दबाने का मौका ही नहीं मिला था । वो ऐसा करने की तैयारी ही कर रहा था कि उसको अरैस्‍ट करने वहां पुलिस पहुंच गयी थी ।’’
‘‘उसको अरैस्‍ट करने ?’’
‘‘वो ऐसीच बोला ।’’
‘‘फिर छूट कैसे गया ?’’
‘‘बोलता है बम फोड़ देने की धमकी दी, धमकी काम कर गयी, उसको सेफ निकल जाने दिया गया ।’’
‘‘धमकी किस वास्ते ? ब्‍ल्‍डी ईडियट फोड़ा क्‍यों नहीं ?’’
‘‘बोलता था एक भीड़ू उधर से उठ के चला गया था और उसको लगा था कि वो ही सोहल था । बोलता है जब सोहल ही उधर नहीं था तो बम फोड़ने का क्या फायदा था !’’
‘‘इसलिये मानव बम बना होने को अपने काम में आने के लिये हथियार बनाया ! उधर से सेफ एग्‍जिट का जरिया बनाया !’’
‘‘ऐसीच हुआ ।’’
‘‘फिर भी पकड़ा गया लेकिन फिर छूट गया !’’
‘‘बरोबर ।’’
‘‘कोई उसके पीछे था ?’’
‘‘बोले तो ?’’
‘‘अरे, कोई उस को फालो करता था ?’’
‘‘ये बात का तो मैं नोटिस न लिया !’’
‘‘लेना चाहिये था । जब थामा तो ऐसे ही कोई छोड़ता है ! जरूर उस की निगरानी का कोई इन्‍तजाम होगा जो तुम्‍हारी नजर में न आया ।’’
‘‘सारी बोलता है, बॉस । बोले तो इस लाइन पर सोचना मेरे को सूझा ही नहीं ।’’
हुआन खामोश रहा ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
‘‘ये टेम तो काम हुआ नहीं, बॉस ।’’ — मारकस दबे स्‍वर में बोला — ‘‘अभी क्या उस वलसे करके भीड़ू को सैकंड टाइम चांस देने का ?’’
‘‘देयर विल भी नो सैकंड टाइम ।’’ — हुआन भुनभुनाया — ‘‘दैट चैप्‍टर इज क्‍लोज नाओ । वो लोग अब खबरदार हैं । मानव बम वाली ट्रिक अब दोबारा उधर नहीं चल सकती । अब वलसे हमारे कि‍‍सी काम का नहीं ।’’
‘‘और वो दस लाख रूपिया जो मैं उसको उसकी खोली में थमा कर आया !’’
‘‘उसे फिलहाल राइट आफ करना पड़ेगा, क्‍योंकि अभी तो वलसे के पास भी फटकना नादानी होगी ।’’
‘‘ऐसा, बॉस !’’
‘‘हां । फिलहाल एक्‍सपोजर से बचा रहना मेरे लिये हर हाल में जरूरी है । रोजवुड एस्‍टेट में जो पुलिस कार्यवाही हुई उसकी रू में मेरी भलाई मुझे मरा समझा जाने में ही है । पुलिस को मेरी खबर लग गयी तो मेरा गिरफ्तारी से बचना नामुम‍किन होगा ।’’
‘‘ठीक !’’
‘‘वलसे की तो लाटरी निकली ।’’ — पैड्रो बोला — ‘‘जान भी न गयी और रोकड़ा भी कब्‍जा लिया !’’
‘‘अभी हालात हमारे काबू में नहीं है । बाद में...बाद में देखेंगे उसे ।’’
‘‘बॉस’’ — मारकस बोला — ‘‘वो भी तो इस बात से नावाकिफ नहीं होगा !’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘गायब हो जायेगा । फैमिली समेत ।’’
‘‘हो जाये । मैं दस लाख रुपया लूज करना अफोर्ड कर सकता हूं, एक्‍सपोजर अफोर्ड नहीं कर सकता ।’’
‘‘बरोबर बोला, बॉस ।’’
‘‘मेरे को हैरानी है कि एक ही टाइम में दो पार्टी सोहल को फिनिश करने को आमादा थीं ।’’
‘‘कामयाब दोनों ही न हुईं ।’’
‘‘इसी वजह से न हुई कि दोनों ने एक ही टाइम पर स्‍ट्राइक किया । यूं एक ने दूसरे का काम बिगाड़ा । एकाएक पुलिस न आ गयी होती तो वलसे बम फोड़ चुका होता । वलसे न होता तो शायद पुलिस कामयाब हो जाती ।’’
‘‘यू आर राइट, बॉस ।’’
‘‘हमें दूसरी पार्टी की खबर लगनी चाहिये ।’’
‘‘काहे वास्ते ?’’
‘‘एक ही शख्‍स के दो दुश्मन दोस्त होते हैं । जब हमारा मिशन एक है...’’
‘‘सोहल को खत्‍म करना ।’’
‘‘...तो हम मिलकर काम कर सकते हैं । यूं ताकत बनती है । वो बोलते नहीं हैं कि एक से दो भले ।’’
‘‘स्‍ट्रैंग्‍थ इन यूनिटी ।’’
‘‘ऐग्‍जैस्‍टली । तुम्हें उन पुलिस वालों के पीछे लगना चाहिये था ।’’
‘‘मैं लगा न, बॉस !’’
‘‘अच्‍छा, लगे ?’’
‘‘अपना पैड्रो वलसे के पीछे लगा तो मैं नकली पु‍लिस वालों के पीछे लगा न !’’
‘‘क्या जाना ?’’
‘‘उस पार्टी के सरगना की बाबत जाना कि वो एक लो लैवल का मवाली है । नाम कयूम नलवाला है । लोन आपरेटर नहीं है । हमेशा टीम में काम करता है, चाहे लीडर हो चाहे फालोअर हो ।आज उधर चैम्बूर में लीडर था पण फच्‍चर पड़ा, ठीक से लीड न कर सका । अभी घर में बैठा अपनी ढुकाई सेंकता है क्‍योंकि हस्‍पताल नहीं जाना मांगता ।’’
‘‘किधर रहता है !’’
‘‘भायखला । मुस्तफा चाल । मोतीशाह मार्ग के पास है ।’’
‘‘और ?’’
‘‘और गोट्या खोपड़े करके एक भीड़ू उसका जोड़ीदार है । मुस्तफा चाल में ही रहता है । दोनों अमूमन मिलकर काम करते हैं ।’’
‘‘बाकी ?’’
‘‘बाकी किसी गिनती में नहीं । सब किराये के भीड़ू थे, भीड़ करने को इकट्ठे किये थे ।’’
‘‘इम्‍पार्टेंट कर के भीड़ू अगर है तो कयूम नलवाला है !’’
‘‘हां ।’’
‘‘जो हमें बता सकता है किसके लिये काम करता था !’’
‘‘अभी तो नहीं बता सकता, बॉस । अभी तो बुरे हाल में है । मैं अपनी आंखों से देखा ।’’
‘‘तो कब ?’’
‘‘मैं कल या परसों उससे मिलूंगा और मालूम करूँगा चैम्बूर वाले काम के लिये कौन उस को एंगेज किया ।’’
‘‘करना । जरूरी जान के करना । मेरे को उस दूसरी पार्टी की फुल इंफो मांगता है जो कि सोहल के पीछे है । उस पार्टी से गंठजोड़ मेरे हाथ मजबूत करेगा ।’’
‘‘ओके, बॉस ।’’
कौल और गरेवाल फिर अनूप झेण्‍डे के रूबरू थे ।
‘‘क्या हुआ ?’’ — कौल ने पूछा ।
मातमी लहजे में झेण्‍डे ने बताया ।
‘‘ओये, रहे रब दा नां’’ — गरेवाल भड़का — ‘‘पन्द्रह आदमी कुछ न कर सके !’’
‘‘न सिर्फ कर न सके’’ — झेण्‍डे बोला — ‘‘अपनी दुर्गत करा के लौटे ।’’
‘‘क्‍यों हुआ ऐसा ?’’
‘‘लाइन क्रॉस कर गयी ।’’
‘‘की मतलब ?’’
‘‘वहां पहले ही कोई भीड़ू अपना खेल खेलने पहुंचा हुआ था । मानव बम बन के ।’’
‘‘कौन सा बम बन के ?’’
‘‘मानव बम... मानव बम बन के ।’’
‘‘वो क्या होता है ?’’
‘‘कोई अपने कपड़ों के नीचे अपने गिर्द बम लपेट लेता है और उन के डिटोनेटर का स्विच हाथ में थाम लेता है । फिर जब बटन दबाता है तो बमों की ताकत के मुताबिक विस्‍फोट होता है और आसपास जो कोई मौजूद होता है, उसके परखचे उड़ जाते हैं ।’’
‘‘उसका अपना क्या होता है ?’’
‘‘ये भी कोई पूछने की बाबत है !’’
‘‘वो भी उड़ जाता है ?’’
‘‘बरोबर !’’
‘‘ये तो खुदकुशी हुई !’’
‘‘होते हैं ऐसे सिरफिरे जो यूं जान देकर जान लेते हैं । सुइसाइड बाम्बर्स आजकल आम आतंकी वारदातें करते हैं दुनिया में कहीं भी ।’’
‘‘उधर किसी ने यूं किस की जान ली ?’’
‘‘सोहल की । लेनी चाही पण ले न सका । उसके कुछ कर पाने से पहले ही पुलिस वाले बने हमारे आदमी पहुंच गये और फिर ऐसा कनफ्यूजन मचा कि न वो भीड़ू, कामयाब हुए, न हमारे आदमी कामयाब हुए ।’’
‘‘तेरे को कैसे मालूम, झण्‍डे भाई !’’
‘‘मैं कयूम नलवाला से मिला न, जिसने कि इस काम की सुपारी उठाई थी ! भायखला में उसके घर जाकर मिला । बेचारा बुरी हालत में था पण मेरे से किया बात । वही सब कुछ बोला ।’’
‘‘क्या बोला ? पन्द्रह आदमी मार खाकर आ गये ?’’
‘‘हुआ तो यही !’’
‘‘जिन्‍होंने मार लगाई, वो सब बाजरिया नलवाला तुम्‍हारे पीछे पड़ेंगे ! हमारे पीछे पड़ेंगे !’’
‘‘नहीं । ये एक अक्‍ल का काम नलवाला ने किया । उसने मेरी बाबत कुछ न बका । मेरा हुलिया तक न बयान किया । बोल दिया जिधर मीटिंग हुआ, उधर रौशनी काफी न थी, मैं गागल्‍स लगाये था इसलिये ठीक से न देख सका ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘आगे यकीन आ गया ?’’ — कौल ने पूछा ।
‘‘आ ही गया लगता है ।’’
‘‘यानी कि हम सेफ हैं !’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘हमारे पांच लाख रुपये ! गये ?’’
‘‘ऐसीच है ।’’
‘‘आगे ?’’
‘‘आगे तुम बोलो ।’’
कौल ने गरेवाल की तरफ देखा ।
‘‘हमारा मंसूबा खत्‍म नहीं हो गया, झण्‍डे भाई ।’’ — गरेबाल पुरजोर लहजे से बोला ।
‘‘लेकिन अब चैम्बूर में कुछ नहीं रखा । वो लोग खबरदार हो गये हैं । अब दोबारा वहां कोई गुल खिला पाना मुमकिन न होगा ।’’
‘‘तो कोई और तरकीब सोच, वीर मेरे ।’’
‘‘एक है तो सही मेरे मगज में ।’’
‘‘बोल उसकी बाबत !’’
‘‘मेरे को मालूम पड़ा है कि तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट को कोई मोटी रकम डोनेट करना चाहता हो और उसकी इच्‍छा रकम चैम्बूर का दाता के हवाले करने की हो तो सोहल खुद जाता है रकम कलैक्‍ट करने ।’’
‘‘अकेला ?’’
‘‘क्या हर्ज है ?’’
‘‘है तो सही हर्ज !’’
‘‘है तो मैं किसी यूं डोनेशन देने वाले को तलाश करूँगा और मालूम करूँगा कि वो अकेला आया था या कोई साथ था !’’
‘‘इससे हमें क्या फायदा ?’’
‘‘हम कोई ऐसा डोनर तलाश कर के उसे अपने काबू में कर सकते हैं । हम उस को बोल सकते हैं वो डोनेशन कलैक्‍ट करने के लिये सोहल को बुलाये । सोहल आयेगा तो हम उस पर घात लगा सकते हैं ।’’
‘‘अकेला न आया तो ?’’ — कौल बोला ।
‘‘तो कोई फौज ले कर तो नहीं आयेगा न ! एस्‍कॉर्ट के तौर पर कोई एकाध भीड़ू साथ होगा तो वो भी जान से जायेगा । क्या वान्दा है ?’’
‘‘ऐसे आदमी को’’ — गरेवाल बोला — ‘‘हम अपने काबू में कैसे करेंगे !’’
‘‘करेंगे कोई जुगत । अभी पकड़ में तो आये ऐसा कोई भीड़ू !’’
‘‘आयेगा ?’’
‘‘क्‍यों नही आयेगा । सारे दाता ‘नेकी कर दरिया में डाल’ वाली किस्‍म के तो नहीं होते !’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘आम लोग ऐसा कोई काम करें तो बढ़-बढ़ के बोलते हैं । तुम देखना, ऐसा कोई बड़बोला हमारी जानकारी में आ कर रहेगा ।’’
‘‘बढ़िया ।’’
‘‘उसके बीबी बच्चे की कोई खबर ?’’ — कौल बोला ।
‘‘अभी नहीं, लेकिन खबर निकालने की कोशिश जारी है ।’’
‘‘घर का पता ? रातगुजारी की उसकी जगह ?’’
‘‘इस बाबत भी अभी कुछ नहीं मालूम हो सका लेकिन होगा । होगा ।’’
‘‘ठीक है ।’’ — गहरी सांस लेता कौल बोला ।
‘‘ठीक है, झण्‍डे भाई’’ — वैसे ही गरेवाल बोला ।
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