विराटनगर में ।
थंडर का रिपोर्टर अजय कुमार अपने फ्लैट में सोफा चेयर में पसरा हुआ था । उसकी उंगलियों में प्लेयरज गोल्डलीफ का ताजा सुलगाया, सिगरेट दबा था । सामने मेज पर पानी मिश्रित व्हिस्की का करीब आधा भरा गिलास रखा था ।
वह सोच रहा था अस्थाई रूप से विशालगढ़ में मौजूद उसकी कुलीग और फ्रेंड नीलम कपूर ने इस अप्वाइंटमेंट के लिए उसपर इतना जोर क्यों दिया था । फोन पर नीलम ने इस बारे में सिर्फ इतना कहा था आज शाम सात बजे फिल्म एक्ट्रेस नलिनी प्रभाकर उससे मिलने आएगी । इसलिए वह अपने फ्लैट से कहीं जाये नहीं । अजय को किसी फिल्म एक्ट्रेस से मिलने में कोई रुचि नहीं थी । इसलिए जब उसने टालने की कोशिश की तो नीलम ने बड़े जोर–शोर से प्रतिवाद करते हुए कहा कि नलिनी से न मिलने का मतलब होगा–अपने अखबार के लिए एक धांसू कहानी से हाथ धो बैठना । अजय ने इस पर भी कोई खास उत्साह नहीं दिखाया तो नीलम ने उसे अपनी कसम देकर संबंध विच्छेद कर दिया था ।
फलस्वरूप, अजय बेमन से बैठा इंतजार कर रहा था । वह तय नहीं कर पा रहा था नीलम को वाकई किसी धांसू कहानी के आसार नजर आए थे या वह उस पर यह रोब डालना चाहती थी कि अपनी क्लासमेट रह चुकी मशहूर सिने तारिका नलिनी प्रभाकर से आज भी उसके बढ़िया ताल्लुकात हैं ।
सहसा, प्रवेश द्वार पर हौले से दस्तक दी गई ।
अजय ने उठकर दरवाजा खोला ।
बाहर काला बुर्का पहने खड़ी एक औरत को देखकर वह असमंजस में पड़ गया ।
–'कहिए ?' वह बोला ।
आगंतुका ने बुर्के का नकाब ऊपर उठा दिया । उसके सुंदर चेहरे पर आकर्षक मुस्कुराहट थी ।
अजय ने फौरन उसे पहचाना और मुस्कुराता हुआ एक तरफ हट गया ।
–'आइए ।'
आगंतुका अंदर आ गई ।
वह नलिनी प्रभाकर थी ।
जब तक अजय पुनः दरवाजा बंद करके पलटा वह अपना बुर्का उतार कर सोफे पर डाल चुकी थी ।वह फाल्साई रंग की साड़ी, मैचिंग ब्लाउज और कीमती फरकोट पहने थी । जाहिर था कि पहचाने जाने पर लोगों की भीड़ द्वारा घेर लिए जाने से बचने के लिए उसने बुर्के का सहारा लिया था ।
करीब चौबीस वर्षीया नलिनी प्रभाकर इंतिहाई खूबसूरत थी । अभिनय प्रतिभा की कमी भी उसमें नहीं थी । लेकिन उसे फिल्मों में प्रवेश दिलाया था उसके इकहरे सुडौल जिस्म ने । जिसकी वजह से वह पहले मिस इंडिया चुनी गई और फिर फिल्मों में चांस पा गई । चार साल में पांच कामयाब फिल्में देकर खासी दौलत और शौहरत कमाने के साथ–साथ कोई डेढ़ दर्जन नई फिल्में भी उसने साइन कर ली थी । लेकिन वह । स्वभाव से बेहद एम्बीशस थी । और किसी भी प्रकार 'नंबर वन' की कुर्सी हथियाकर लम्बे अर्से तक उस पर जमी रहना चाहती थी ।
–'तशरीफ़ रखिए ।' अजय बोला ।
नलिनी एक सोफा चेयर पर बैठ गई ।
–'नीलम ने बताया था मैं क्यों आपसे मिलना चाहती हूँ ?'
–'नहीं ।' कहकर अजय ने पूछा–'ड्रिंक लेंगी आप ?'
–'श्योर ।'
अजय किचन में गया और एक ड्रिंक बनाकर ले आया । नलिनी को गिलास थमाकर वह अपनी कुर्सी पर बैठ गया ।
नलिनी ने तगड़ा घूँट लेकर गिलास मेज पर रख दिया । उसके चेहरे पर कुछ ऐसे भाव थे मानों मन ही मन तय करने की कोशिश कर रही थी कि कहाँ से शुरु करे ।
–'मनमोहन सहगल के बारे में पढ़ा था आपने ?' अंत में उसने पूछा–'वह आज के 'नंबर वन' फिल्म स्टार का मैनेजर–कम–सेक्रेटरी था । और पिछले हफ्ते विशालगढ़ में अपने अपार्टमेंट से गिरकर मर गया था ।
–'हाँ ।' अजय याद करता हुआ बोला–'उसने एकाउंट्स में कोई तगड़ा घपला किया था और फिर अपनी चोरी पकड़ी जाने के डर से खुदकुशी कर ली ।'
नलिनी तनिक आगे झुक गई ।
–'मनमोहन ने खुदकुशी नहीं की थी । वह अपेक्षाकृत धीमे स्वर में बोली–'उसका मर्डर किया गया था ।'
अजय ने चौंक कर गौर से उसे देखा ।
–'आप जानती हैं क्या कह रही हैं ?'
–'हाँ ।'
–'लेकिन जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, पुलिस इसे सुसाइड मान चुकी है । अगर आपके पास ऐसा कोई सबूत है, जिससे साबित होता है कि...।'
–'मैं पुलिस के पास गई थी ।' नलिनी उसकी बात काट कर बोली–'लेकिन उन लोगों ने मेरी बात नहीं सुनी । उन्हें पूरा यकीन है मनमोहन ने आत्महत्या की थी । वे इस केस को क्लोज कर चुके हैं । उनकी तरफ से ना उम्मीद होने के बाद ही मैं यहाँ आई हूँ ।'
–'लेकिन मैं इसमें क्या कर सकता हूँ ?'
–'मैं चाहती हूँ, आप इसे मर्डर साबित कर दें ।'
अजय ने नोट किया, नलिनी पूर्णतया गंभीर थी ।
–'अगर यह मान भी लिया जाए मनमोहन की हत्या की गई थी ।' उसने कुछ सोचते हुए पूछा–'तो तुम्हारे विचार से उसका हत्यारा कौन है ?'
–'अमरकुमार ।'
अजय बुरी तरह चौंका ।
–'अमरकुमार ?'
–'हाँ । नंबर वन फिल्म स्टार अमरकुमार । मेरी हाल ही में रिलीज हुई फिल्म का हीरो–अमरकुमार ।'
–'लेकिन अमर को उसकी हत्या करने की क्या जरूरत थी ?' अजय ने असमंजसतापूर्वक पूछा–'मेरी जानकारी के मुताबिक अमर एक मामूली सिंगर हुआ करता था । आज वह जिस मुकाम पर है, वहाँ तक उसे पहुंचाने वाला मनमोहन सहगल ही था । उसी की वजह से बड़े–बड़े निर्माता–निर्देशकों ने अमर को अपनी फिल्मों में लिया था ।'
–'ये सारी बातें बिल्कुल सही हैं ।'
–'तो फिर हत्या करने की वजह क्या थी ?'
–'मनमोहन ने मरने से एक रात पहले अमर की बड़ी बेरहमी से ठुकाई की थी ।'
–'यह तुम्हें किसने बताया ?'
–'बताना किसने था । मैं खुद उस वक्त वहां मौजूद थी ।' नलिनी ने कहा–'और अमर ऐसी बातों को भुला देने वाला आदमी नहीं है ।'
–'तुम्हारा मतलब है, अमर ने बदला लेने के लिए मनमोहन की हत्या कर दी ?'
–'हाँ, पिटाई के बाद अगले रोज वह विराटनगर चला आया था...।'
–'कौन ?, अजय ने उसे टोककर पूछा ।'
–'अमरकुमार ।'
–'मनमोहन की मृत्यु के वक्त अमरकुमार अगर विशालगढ़ में था ही नहीं तो उसने हत्या कैसे कर दी ?'
–'मैंने यह तो नहीं कहा मनमोहन की मृत्यु के वक्त अमर विशालगढ़ में नहीं था ।'
–'तुम कहना चाहती हो अमर ने यहाँ से जाकर मनमोहन की हत्या की और फिर वापस लौट आया ?'
–'क्या ऐसा नहीं हुआ हो सकता ?'
–'हो तो सकता है । लेकिन समझ में आने वाली बात यह नहीं है ।'
–'क्यों ?'
–'इसलिए कि अगर अमर में हत्या करने लायक हौसला होता तो उसने मनमोहन के हाथों मार नहीं खानी थी–कम से कम तुम्हारी या किसी और की मौजूदगी में तो हरगिज़ नहीं ।'
–'हो सकता है, अमर ने खुद न करके किसी और से हत्या करा दी थी । इस काम के लिए क्या वह किराए के बदमाशों की सेवा प्राप्त नहीं कर सकता था ?"
–'बेशक कर सकता था । लेकिन ऐसा करने का सीधा मतलब होता है–खुद को ब्लैकमेल किए जाने की स्थिति में फंसा लेना । और मैं नहीं समझता कि अमरकुमार जैसे आदमी ने ऐसी बेवकूफी की होगी ।'
–'सवाल बेवकूफी करने का नहीं है ।' नलिनी अपना गिलास खाली करने के बाद बोली–'तुम नहीं जानते अमर कितना कमीना आदमी है । बदला चुकाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है ।'
–'लगता है, तुम उसे पसंद नहीं करती ।'
–'ही इज बास्टर्ड! आई हेट हिम !' नलिनी उत्तेजित स्वर में बोली–'मैं ही नहीं बल्कि उसे करीब से जानने वाला और उसके साथ काम करने वाला हर व्यक्ति उससे नफरत करता है । क्या तुमने कभी सुना है कि जानबूझकर कोई, प्रोड्युसर अपनी ही फिल्म के प्रीमियर में हिस्सा न ले !'
–'नहीं ।'
–'लेकिन हमारी लेटेस्ट फिल्म के प्रीमियर पर ऐसा ही हुआ । और इसकी वजह था–अमर ।'
–'उसने ऐसा क्या कर दिया था ?'
नलिनी ने गहरी साँस ली ।
–'जो मैं बतानेवाली हैं उससे तुम भी समझ जाओगे अमर कितना घटिया और कमीना है । और इंडस्ट्री में अपनी मौजूदा पोजीशन का किस कदर नाजायज फायदा उठाता है ।' वह हिकारत भरे लहजे में बोली–''उसने उन तमाम एक्ट्रेसेज की लिस्ट बना रखी है जिनके साथ वह हमबिस्तर होना चाहता है । क्योंकि वह 'नंबर वन' की पोजीशन पर है । इसलिए उसके जरिए ब्रेक पाने की उम्मीद करने की बेवकूफी कर बैठने वाली लड़कियों की भी कमी नहीं है । अमर इसका भरपूर फायदा उठाता है । उसकी बातों में आकर लड़कियां उसके साथ रात गुजारने पर तैयार हो जाती हैं । वह अगले ही रोज उस लड़की के नाम के आगे क्रॉस का निशान बना देता है । इससे भी घटिया बात यह है शूटिंग के दौरान उस लिस्ट को वह अपने ड्रेसिंग रूम के दरवाजे पर लगा देता है ताकि हर किसी की निगाहें उस पर पड़ सकें । मेरा नाम भी उस लिस्ट में है ।'
अजय ने तुरंत प्रश्नात्मक निगाहों से उसे देखा ।
नलिनी ने उसका आशय समझकर सर हिला दिया ।
–'मेरे नाम के आगे क्रॉस नहीं लगा है । अमर ने मुझे फंसाने की अपनी ओर से बड़ी पूरी कोशिश की लेकिन मैंने पहले शराफत से समझाया । फिर चेतावनी दी और डांट तक लगाई । इस पर भी वह बाज नहीं आया तो सबके सामने उसे बुरी तरह लताड़ दिया । अपनी इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए वह प्रोड्यूसर को परेशान करने लगा । जब उसके जी में आता बहाना बनाकर सैट से चला जाता । बेचारे प्रोड्यूसर को मजबूरन शूटिंग पैक अप करानी पड़ती । नतीजा यह हुआ एक ओर तो फिल्म लेट होने लगी और दूसरी ओर निर्माता को रोज हजारों का नुकसान होने लगा ।' कहकर वह तनिक रुकी, फिर बोली–'अंत में, एक दिन मनमोहन सहगल मेरे पास आया । तजुर्बेकार बुजुर्ग की भांति मुझे समझाते हुए उसने कहा कि फिल्म पूरी होने तक मैं किसी भी तरह अमर को बर्दाश्त कर लूँ । फिर वह खुद अमर को ऐसा सबक सिखाएगा कि दोबारा कभी किसी लड़की के साथ बेहूदा हरकत करने की जुर्रत भी वह कमीना नहीं कर सकेगा । मैंने उसकी बात मान ली और एक हद तक अमर को लिफ्ट देना शुरू कर दिया । जब भी वह हद से आगे बढ़ने की कोशिश करता मैं कभी प्यार से और कभी नाराजगी जाहिर करके उसे रोक देती थी । शूटिंग, डबिंग वगैरह पूरी होने तक जिस तरह उस हरामजादे को मैंने बर्दाश्त किया । वो मैं ही जानती हूं । मैं कसम खा चुकी हूँ कि आइंदा उसके साथ कोई फिल्म नहीं करूगी ।' वह पुनः तनिक रुकने के बाद बोली –'फिल्म पूरी होने के बाद भी अमर मेरे पीछे लगा रहा । और मैं खुद को बचाती रही । फिर, इत्तिफाक से एक पार्टी में अमर से मेरा आमना सामना हो गया । मनमोहन भी उसके साथ था । अमर काफी पिए हुए लगता था । न जाने कैसे उसे पता चल गया मेरी कार खराब हो गई थी और मैं टैक्सी में वहां पहुंची थी । वह मुझे घर पहुंचा आने की जिद करने लगा । पार्टी में मौजूद दूसरे लोगों के सामने मैं न तो तमाशा बनाना चाहती थी और न ही खुद को डरपोक जाहिर करना । इसलिए उसके साथ जाने पर रजामंद हो गई । अमर, मनमोहन और मैं मेरे घर पहुंचे । वहां अमर मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा तो मनमोहन ने पहले तो उसे वहां से ले जाने की कोशिश की । जब वह नहीं माना तो मनमोहन ने उसकी तगड़ी ठुकाई कर दी ।'
अजय को याद आया, एक बार किसी ने उसे बताया था अमरकुमार वास्तव में शमशेर सिंह का मोहरा है ।
–'तुम शमशेर सिंह को जानती हो ?' उसने पूछा ।
–'वही जो फिल्मों में तगड़ी फाइनेंस करता या कराता है ?'
–'हां, उसके अनेक धंधों में यह भी शामिल है ।'
–'मैंने सिर्फ उसका नाम सुना है । उससे मिली कभी नहीं । क्यों ?'
–'क्या यह सच है अमर उसी का एक मोहरा है ?'
–'पता नहीं । लेकिन मनमोहन शायद शमशेर सिंह के लिए काम करता था ।'
–'तुम्हें कैसे पता चला ?'
–'मनमोहन जब–तब अमर को शमशेर सिंह का नाम लेकर धमकियां देता रहता था ।'
–'मनमोहन की मौत के बाद अब कौन अमर का कारोबार संभाल रहा है ?'
–'कोई नहीं अमर ने मुझे फोन पर बताया था अब वह अपनी मर्जी से फिल्में साइन करेगा और खुद ही निर्माताओं को डेट्स दिया करेगा । उसने यह भी कहा था अगर मैं उसकी अगली फिल्म में काम करना चाहती हूँ तो वह निर्माता से मेरी सिफारिश कर सकता है ।
–'बड़ा ही ढीठ और बेशर्म आदमी है ।'
नलिनी ने यूं उसे देखा मानो उसके विचारों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी ।
–'मैंने सब कुछ तुम्हें बता दिया है । क्या तुम पता लगा सकते हो मनमोहन की हत्या किसने और क्यों की थी ?'
अजय मुस्कराया ।
–'सच सुनना चाहती हो ?'
–'हाँ ।'
–'अगर मुझे यकीन हो गया वाकई उसकी हत्या की गई थीं तो हत्या की वजह और हत्यारे का पता लगाने की कोशिश जरूर करूंगा ।' अजय ने कहा–'बाई दी वे, तुम इसमें इतनी दिलचस्पो क्यों ले रही हो ?'
–'मुझे पूरा यकीन है मनमोहन की हत्या की गई थी । और इसके लिए अमर ही जिम्मेदार है । क्योंकि मनमोहन ने मेरी खातिर अमर से दुश्मनी मोल ली थी । इसलिए उसके हत्यारे का पता लगवा कर उसे कानून के हवाले करना मैं अपना इंसानी फर्ज समझती हूँ ।'
नलिनी की यह दलील उसके अपने विचारानुसार चाहे जितनी वजनदार थी लेकिन अजय को कोई खास वजन उसमें नजर नहीं आया । इसके बावजूद उसने विशालगढ़ जाने का फैसला कर लिया । इसकी बड़ी वजह थी–अमरकुमार । नलिनी ने उसके बारे में जो बताया था उसे सुनने के बाद कोई भी भला आदमी उससे नफरत कर सकता था । वह वाकई निहायत घटिया और कमीना आदमी था । लेकिन अजय की उसमें दिलचस्पी लेने की वजह सरासर दूसरी थी । उसकी जानकारी के मुताबिक अमर को प्रेस से नफरत थी । वह तीन प्रेस रिपोर्टर्स के कैमरे छीन कर तोड़ चुका था, दो के साथ हाथापाई कर चुका था और एक फिल्मी मैगजीन के रिपोर्टर सहित मालिक पर इज्जत हतक का दावा उसने ठोक रखा था । उस बदमिजाज और घमंडी आदमी का दिमाग दुरुस्त करने का यह सही मौका था । अगर मनमोहन की वाकई हत्या की गई थी और उससे अमर का जरा सा भी कोई ताल्लुक था तो अजय आसानी से उस फिल्म स्टार के बच्चे को उसकी औकात बता सकता था ।
–'ओ के ।' वह बोला–'मैं कल तक विशालगढ़ पहुंच जाऊँगा ।'
नलिनी पहली बार खुलकर मुस्करायी ।
–'बहुत–बहुत शुक्रिया । मैं जानती थी, मुझे निराश नहीं करोगे ।'
–'ख़ूबसूरत लड़कियों को मैं कभी निराश नहीं करता ।' अजय ने यूं कहा मानों अपनी किसी बड़ी भारी खूबी का बयान कर रहा था ।
नलिनी हँसी ।
–'जानती हूं । नीलम ने तुम्हारी जो खूबियां बतायीं थीं । उनमें यह भी शामिल है ।'
–'अब तुम वापस विशालगढ़ जाओगी ।'
–'अभी नहीं ।'
–'फिर कब ?'
–'परसों यहाँ मेरी एक कजन की शादी है । उसे अटेंड करने के बाद ही वापस लौटूंगी ।'
–'इसका मतलब आज फ्री हो ?'
–'हाँ ।'
अजय ने अर्थपूर्ण निगाहों से उसे देखा ।
–'आज की शाम मेरे साथ गुजार सकती हो ?' उसने सीधा सवाल किया ।
–'जरूर । लेकिन किसी पब्लिक प्लेस में नहीं जाऊंगी ।'
–'ऐसी किसी जगह तुम्हें ले जाना मैं भी नहीं चाहता ।'
–'फिर क्या इरादा है ?'
–'डरो मत । कोई ऐसा–वैसा इरादा मेरा नहीं है ।'
–'मैं डरपोक नजर आती हूँ ?'
–'बिल्कुल नहीं । तुम जो हो वही नजर आती हो ।'
–'यानी ?' नलिनी ने शरारती लहजे में पूछा ।'
–'जवान और खूबसूरत सिने तारिका ।'
–'और तुम खूबसूरत लड़कियों को कभी निराश नहीं करते ?'
अजय समझ गया, नलिनी उसे घिसना चाहती थी ।
–'नहीं ।' उसने जबाव दिया ।
–'अगर मैं कहूँ कि मेरा अपना ऐसा–वैसा इरादा है । तब तुम क्या करोगे ?'
–'निराश ।'
–'क्यों ?'
–'इसलिए कि मुझे सिर्फ वे ही लड़कियां पसंद है जो खूबसूरत होने के साथ–साथ नेक इरादों वाली भी होती हैं ।'
–'अगर ऐसी बात है तो मेरा कोई ऐसा–वैसा इरादा नहीं है । अब तो मुझे पसंद करोगे ?'
–'नहीं । जल्दी–जल्दी इरादा बदलने वाली किसी लड़की पर भरोसा मैं नहीं कर सकता ।'
नलिनी को जवाब नहीं सूझा । वह कई पल उसे घूरती रही । फिर अपना बुर्का उठाकर खड़ी हो गई ।
–'जा रही हो ?' अजय ने पूछा ।
नलिनी चुपचाप दरवाजे की ओर बढ़ गई ।
अजय जल्दी से उठकर उसके पास पहुंचा ।
–'अरे, तुम नाराज हो गई । मैं तो यूँ ही मजाक कर रहा था ।
–'तुम मजाक कर रहे थे ?' नलिनी ने रोषपूर्वक पूछा–'सच कह रहे हो ?'
–'हां । आनेस्ट टु गॉड ।'
–'मैं भी मजाक ही कर रही थी ।' नलिनी के बुर्का वापस सोफे पर फेंका और खिलखिलाकर हँस दी ।
उसके गालों में पड़ रहे छोटे–छोटे गड्ढ़ों ने सुन्दर चेहरे का आकर्षण इतना ज्यादा बढ़ा दिया था कि, अजय सम्मोहितसा देखता रह गया ।'
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