अब दस बजने में केवल दो मिनट ही शेष थे । शहर पर पूरी तरह कर्फ्यू लग चुका था । सेना का सुदृढ़ जाल फैला हुआ था। सभी जिज्ञासा के साथ आग के बेटों के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे । विजय स्वयं रैना के पास बैठा था। वह पूर्णतया सतर्क था । बाहर ठाकुर साहब पूर्णतया सतर्क थे । सागर में नेवी का पनडुब्बी जाल, राजनगर में सेना का चक्रयूह | सभी को प्रतीक्षा थी- आग के बेटों की। -


ठीक दस बजे !


एक विचित्र हरकत की विकास ने ।


एक ऐसी विचित्र हरकत, जिससे विजय भी भौचक्का रह गया । वह विकास के उस भोले-भाले और मासूम चेहरे को ताकता ही रह गया । विजय का मुख इस समय आश्चर्य के साथ खुला हुआ था। उसके लिए विकास एक बार फिर पहेली बन गया ।


हुआ यह कि दस बजते ही विकास ने विजय के कान में रहस्यमय ढंग से कहा ।


-" अंकल ! मैं आग के बेटों को गिरफ्तार करा सकता हूं।"


विकास के मुख से उपरोक्त शब्द सुनकर विजय को अपनी खोपड़ी घूमती-सी प्रतीत हुई । उसकी समझ में नहीं आया कि यह लड़का क्या कह रहा है और इसके कहने का तात्पर्य क्या है? वह तो विकास के मासूम से मुखड़े को ताकता ही रह गया । उसके गुलाबी अधरों पर गजब की रहस्यमय मुस्कान नृत्य कर रही थी । इतनी रहस्यपूर्ण कि विजय को ऐसा लगा कि विकास इंसान न होकर कोई फरिश्ता तो नहीं !


अवाक-सा खड़ा कुछ देर तक वह विकास को ताकता रहा, फिर स्वयं पर संयम पाकर बोला-"क्या मालूम है क्या बक रहे हो ?"


"मेरे साथ आओ अंकल ।" विकास ने उसी प्रकर रहस्यमय ढंग से कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।


विजय, विकास को इस प्रकार देख रहा था, मानो वह संसार के समस्त आश्चयों से बड़ा आश्चर्य देख रहा हो । वह यह भी निर्णय नहीं कर सका कि विकास यह सब किसी शरारत के अंतर्गत कह रहा है अथवा वास्तव में वह आग के बेटों का कोई रहस्य जानता है । वह कुछ निर्णय लेने में असफल रहा, किंतु फिर वह उठ खड़ा हुआ और विकास के पीछे चल दिया । पीछे से रैना ने टोका-"क्या बात है भैया- इस शरारती ने कान में क्या कहा ?"


-"कुछ नहीं... भाभी ।" विजय बोला- "लगता है इस साले दिलजले को समझने के लिए हमें भी दूसरा जन्म लेना पड़ेगा । कहता हुआ विजय बाहर आ गया ।


- विजय द्वारा कहा वाक्य विकास के कानों में पड़ा, जिसे सुनकर उसके होंठ शरारत से मुस्करा उठे- वह मुद्रा नहीं, बल्कि लीन में होता हुआ कोठी के पिछवाड़े की ओर चला । विजय के दिमाग में न जाने क्या-क्या विचार आ रहे थे, किंतु वह चुपचाप उसका पीछा करता रहा । विकास दिन पर दिन उसके लिए एक पहेली बनता जा रहा था । विकास बाथरूम में घुस गया और संकेत से विजय को भी अंदर आने को कहा । विजय के लिए विकास की प्रत्येक हरकत रहस्यपूर्ण बनती जा रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि विकास चाहता क्या है? बिना कुछ बोले वह भी बाथरूम में प्रविष्ट हो गया ।


बाथरूम में पहुंचते ही विजय बोला-"क्या बात है दिलजले- ये तुम क्या कर रहे हो ?"


-"अंकल... मेरे विचार से आज यहां आग के बेटे अवश्य आएंगे ।" विकास उसी प्रकार रहस्य - भरे शब्दों में बोला।


- "देखो मियां दिलजले !" विजय, विकास को घूरता हुआ बोला-''यह समय शरारत का नहीं है। जल्दी से बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो? सभी जानते हैं कि आज यहां आग के बेटे अपने चैलेंज को पूरा करने के लिए जरूर आएंगे। इसमें नई बात क्या है?''


- "कैसा चैलेंज अंकल---कहीं आप मम्मी के विषय में तो बातें नहीं कर रहे हैं? " अजीब गंभीरता के साथ विकास अत्यंत रहस्यमय ढंग से बोला ।


विकास के इस वाक्य पर विजय के दिमाग से तीव्र झटका लगा । वह जान गया कि विकास सब-कुछ जानता है । स्वयं को संभालने की कोशिश करता हुआ वह बोला- "तो तुम सब कुछ जानते हो?


- "अंकल ध्यान है - आज क्या है?" विकास अपने लहजे में उसी प्रकार रहस्य उत्पन्न किए बोला ।


- "सोमवार है, लेकिन इससे क्या मतलब है तुम्हारा ? " विकास की प्रत्येक बात विजय के लिए एक रहस्य थी ।


-"आज तारीख क्या है? ।”


- "पहली, लेकिन आखिर तुम्हारा मतलब क्या है ? " विजय इस बार झुंझला गया ।


" -"महीना...! " विकास के होंठों पर अजीब-सी एक रहस्य-भरी मुस्कान थी ।


-"अप्रैल... अरे...!" विजय बुरी तरह चौंककर बोला- "पहली अप्रैल...! उसके मस्तिष्क में धमाका-सा हुआ । 


उसने विकास की शरारत-भरी मुस्कान देखी । उसकी खोपड़ी जैसे चक्कर काटने लगी ।


- "कैसा बनाया 'फर्स्ट अप्रैल'! " विकास शरारत के साथ बोला ।


-"क्या मतलब? कैसा अप्रैल फूल ? " विजय की आंखें आश्चर्य से फैल गई।


- "यस अंकल । मम्मी के अपहरण का पत्र आग के बेटों ने नहीं - मैंने पापा की मेज पर रखा था ताकि उनको अप्रैल फूल बना सकूं लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इतने सारे लोग इस चक्कर में आ गए और कोई भी कुछ न समझ सका । आप भी नहीं अंकल-आप तो अपने आप में इतने बड़े जासूस बनते हो । कहो कैसा रहा मेरा मजाक ? " विकास ने चहककर रहस्योद्घाटन किया । -


रहस्योद्घाटन ऐसा था कि विजय की आंखें हैरत से फैली रह गई । वह भोले और मासूम मुखड़े वाले इस मासूम विकास को देखता रह गया, जिसने कितना गंभीर मजाक किया था । उसकी समझ में नहीं आया कि ईश्वर ने इसे इतनी बुद्धि आखिर दे कहां से दी? कितना भयानक और गंभीर मजाक किया था विकास ने । एक ही क्षण में विकास के इस मजाक के परिणाम घूम गए रघुनाथ और रैना की परेशानी । समस्त सरकारी महकमे का ही नहीं, बल्कि नेवी और सेना का हरकत में आना, राजनगर में भयानक आतंक और कर्फ्यू, सीक्रेट सर्विस का हिल जाना-सभी का कारण था यह मजाक । क्या अप्रैल फूल बनाने का विकास को यही तरीका मिला? उसका तो सिर ही चकरा गया था । मजाक...! किंतु इतना गंभीर...? नहीं उसने ऐसा मजाक कभी नहीं किया। विजय को लगा कि इस मजाक का परिणाम भी अत्यंत भयानक होगा । लोग इसे सिर्फ मजाक में उड़ा देंगे...? नहीं, इस घटना से जनता भड़क उठेगी। फिर सरकार से मजाक करने का किसी भी नागरिक को कोई अधिकर नहीं है और मजाक भी इतना भयानक-- जिससे संपूर्ण भारत सरकार कांपकर रह गई है। हो सकता है लोग विकास के प्रति भड़क उठे । विजय के दिमाग में क्षणमात्र में अनेकों विचार घूम गए । उसने सामने खड़े विकास को देखा, जो अभी भी मुस्करा रहा था । विजय को तरस आया बालक विकास की बुद्धि पर । वह जानता था कि विकास ने वह हरकत कर दी जो उसके दिमाग में उपजी । उसका भयानक परिणाम वह नहीं जानता । वह नहीं जानता कि उसने कितना भयानक खतरनाक कार्य कर दिया है ।


विजय ने उसकी मुस्कान देखी और बोला-' 'तो इसका मतलब यह है कि यहां 'आग के बेटे' नहीं आएगे । "


- "क्यों नहीं आएंगे- अवश्य आएंगे ।" विकास दृढ़ता से बोला ।


-"क्या बकवास कर रहे हो? " विकास के उत्तर पर विजय न सिर्फ झुंझला गया, बल्कि क्रोधित भी हो गया । वह

विकास को लगभग फटकारते हुआ बोला- "जब वह कागज तुमने मेज पर रखा था तो आग के बेटे क्यों आएंगे?"

विकास एक बार फिर शरारत के साथ मुस्कराया और बोला-''अंकल, मेरा पत्र लिखकर रखना सिर्फ अप्रैल फूल बनाना ही न था, बल्कि एक चाल चलना भी था । यह समझो, वो कहावत है न, एक पंथ दो काज । "

"क्या मतलब?" विजय एक बार फिर उछलकर रह गया।

-"मतलब ये अंकल कि वह पत्र रखकर मैंने अप्रैल फूल तो बनाया ही साथ ही आग के बेटी को यहां आने के लिए बाध्य कर दिया ।" उसी प्रकार मुस्कराता हुआ विकास कहता चला गया । -

- "तुम ये आखिर क्या बक रहे हो?"

-"अंकल- आपके दिमाग में इतनी-सी बात नहीं आ रही ? आप ही सोचिए, जब ये खबर आग के बेटी तक पहुंचेगी कि किसी ने चैलेंज दिया है तो वे चौंककर ये जानने का प्रयास नहीं करेंगे कि जब ये चैलेंज हमने नहीं दिया, तो किसने दिया है? " और वे ये जानने यहां अवश्य आएंगे । विकास की बात सुनकर विजय के दिमाग में फिर घंटियां-सी गुनगुनाने लगी । वह फिर विकास को घूरता ही रह गया । उसकी समझ में नहीं आया कि आखिर विकास को भगवान ने इतनी बुद्धि कहां से दे डाली? वास्तव में उसे लगा कि विकास जो कुछ कह रहा है वह सत्य है । आग के बेटे ये जानने के लिए यहां अवश्य आएंगे कि ये धमकी किसने दी, लेकिन फिर विजय अटककर रह गया । उसने विकास से पूछा ।

"लेकिन तुम्हारा उन्हें बुलाने का अभिप्राय क्या है?

- "वाह अंकल-- जिन्होंने रिजर्व बैंक का खजाना खाली कर दिया । जिनकी खोज में पुलिस परेशान है उन्हें यहां बुलाना क्या आसान काम है?"

"लेकिन तुम पहचानोगें कैसे कि आग के बेटे हैं कौन?'' विजय ने प्रश्न किया ।

- "मेरे ख्याल से कर्फ्यू में आम आदमी हमारी कोठी के आसपास नहीं आएंगे।" विकास ने कहा और विजय एक बार फिर विकास के मुखड़े को ताकता रह गया । उसे लगा, जैसे वास्तव में विकास ठीक कह रहा था । उसे कदम-कदम पर विकास के दिमाग का लोहा मानना पड़ रहा था । उसने समय की गंभीरता को समझा । वह जानता था कि अगर यह समय उसने विकास की बुद्धि पर आश्चर्य करने में निकाल दिया तो स्थिति गंभीर हो सकती है। दूसरी ओर यदि आग के बेटे आए भी होंगे तो वे भी निकल जाएंगे। उसने सोचा, जब ये भयानक खतरा विकास ने पैदा कर ही दिया है तो क्यों न वह इस समय का लाभ उठाए? अत: वह विकास से बोला ।

"देखो मियां दिलजले... अब मेरी बात ध्यान से सुनो।" विजय ने उसे समझाया- "तुमने जो कुछ किया है उसका परिणाम कितना भयानक है, यह तुम नहीं जानते । अब तुम एक काम करो, वह यह कि वैसा ही कागज टाइप करो और उस पर लिखो - कैसा रहा फर्स्ट अप्रैल... और बस । इससे अधिक एक शब्द भी न लिखनावरना मियां दिलजले, छठी का दूध याद आ जाएगा। ध्यान रहे, तुम्हें नीचे अपना नाम नहीं लिखना है और न ही किसी अन्य को बताना है कि ये हरकत तुम्हारी थी । ध्यान रहे किसी किसी भी कीमत पर कोई यह न जान सके कि यह तुम्हारी हरकतें हैं ।

-"क्यों अंकल?''

- " बेटे दिलजले, जो कह रहा हूं अब चुपचाप उसे करो । वरना अपने प्यारे तुलाराशि भी ढूंढते फिरेंगे कि उनके सुपुत्र महोदय किधर गए ।" उसके बाद विजय ने बड़ी बारीकी से विकास को सब कुछ समझाया और बाथरूम से बाहर भेज दिया ।

अब उसका इरादा इस अवसर से कुछ लाभ उठाने का था- बात उसके दिमाग मैं भी बैठ गई थी कि आग के बेटे, इस कोठी के आसपास ही होंगे निश्चित रूप से । अत: उसने बाथरूम के द्वार को देखा जो कोठी के पीछे एक अत्यंत पतली, गंदी और अंधकारयुक्त गली में खुलता था। जहां यह दरवाजा खुलता था उसको अगर गली न कहकर 'आवचक' कहा जाए तो अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि गली हमे शा मैलयुक्त रहती थी और एक तरफ से बंद भी थी । अत: वहां कभी कोई व्यक्ति नहीं जाता था । उसने सोचा, क्यों न वह गुप्त रूप से इसी मार्ग से निकले और फिर ध्यान से देखे कि कोठी के आसपास कोई संदिग्ध व्यक्ति तो नहीं है । यह विचार कर अपने विचार को कार्यान्वित करने हेतु दरवाजा खोलने के लिए चिटकनी की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि चौक पड़ा । उसके कानों में फुसफुसाहट भरा स्वर टकराया । -

- "दस बजकर दस मिनट हो गए हैं, अभी तक कोई आया नहीं है ।" यह आवाज दरवाजे के पार गंदी गली से आ रही थी । विजय ने दरवाजे से कान लगा दिए और ध्यान से सुनने लगा- एक अन्य स्वर ने पहली आवाज स जवाब दिया । जवाब फुसफुसाहट के साथ कुछ इस प्रकार दिया गया ।

"पता नहीं क्या चक्कर है?"

- "मेरी समझ में नहीं आ रहा कि जब यह धमकी हम लोगों ने नहीं दी तो फिर किसने दी?"

रघुनाथ के पिछवाड़े वाली गली में दिन के सवा दस बजे भी अंधकार व्याप्त था। और जो प्रकाश था भी - - से कोठियों के धुएं ने धुंला बना दिया था - इस पतली-सी गली में कोठियों के रोशनदान थे, जिनमें से पुआ निकलकर वातावरण को और भी धुंधला बना रहा था । यह धुंआ घरों में सुलगती अंगीठियों के कारण था । अत: वातावरण लगभग अंधकारमय था । किसी को महज ही देखना संभव न था ।

वह एक बूढ़ा आदमी था । यूं उसे बूढ़ा भी नहीं कहा जा सकता, उसे अधेड़ कहना अधिक उपयुक्त होगा, उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे - एक स्थान पर ऐसा चिह्न था जैसे किसी दुर्घटना में उसको काफी चोटें आई थी । हल्की कटारीदार मूंछें उसके रोबीले चेहरे पर खूब फब रही थी । हल्की दाढ़ीयुक्त उसका चेहरा धुंध-सी में विलुप्त था । उसके जिस्म पर एक सफेद धोती और खद्दर का एक घुटनों तक लटकने वाला कुर्ता था । पैरों में जूतियां पहने वह अंधकारयुक्त गली में न जाने किस उद्देश्य से खड़ा था।

एक बार उसने अपनी सीधी कलाई में बंधी घड़ी देखी और मुंह बिचका दिया । कुछ देर तक वह यूं ही शांत खड़ा न जाने क्या विचारता रहा । अचानक वह अपने स्थान से हिला और गंदी गली के अंदर को बढ़ने लगा। वह शायद जानता था कि आगे गली बंद है- तभी तो वह चहलकदमी-सी कर रहा था । उसे अपने सामने का भाग अधिक स्पष्ट दिखाई दे रहा था क्योंकि बीच में धुंआ तैर रहा था । अभी वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि शिकारी कुत्ते की भांति उसके कान खड़े हो गए ।

उसके कानों के पर्दों में गली के अंदर से कुछ व्यक्तियों के फुसफुसाने की ध्वनि स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी । वह सिर्फ फुसफुसाहट ही सुन पा रहा था स्पष्ट कुछ भी सुनने में वह असफल था । अलबत्ता वह इस धीमी फुसफुसाहट को सुनकर सतर्क हो गया और एक गंदी दीवार से पीठ टिकाकर धुएं के पार घूरने का प्रयास करने लगा । स्पष्ट कुछ भी देख नहीं सका वह, किंतु इतना उसने अवश्य अस्पष्ट-सा देखा कि कुछ छायाएं दीवार से पीठ टिकाए आपस में कुछ बातें कर रही हैं ।

उसकी समझ में नहीं आया कि ये छायाएं कौन है? अत: हृदय में उनका परिचय जानने हेतु जिज्ञासा ने जन्म लिया । कुछ देर तक वह सांस रोके विचारता रहा और फिर पूर्ण सतर्कता के साथ वह निःशब्द आगे बढ़ा । कुछ दूर वह कोई भी ध्वनि उत्पन्न किए बिना दीवार के सहारे-सहारे छायाओं की ओर बढ़ गया । ये दूसरी बात है कि इस प्रयास में उसका खद्दर का कुर्ता दीवारों के सहारे लगे पतनालों के कारण कीचड़ से लथपथ हो गया हो किंतु उसने इस ओर लेशमात्र भी ध्यान नहीं दिया । उसकी आंखें उन फुसफुसाती छायाओं पर ही जमी हुई थी । अब वह उन छायाओं को किसी हद तक स्पष्ट देख सकता था।

ये तीन व्यक्ति थे- जो आपस में किन्हीं बातों में व्यस्त थे । वे क्या बातें कर रहे हैं । यह जानने के लिए वह चुपचाप अपने स्थान पर खड़ा रहा और अभी तक उनकी बातें सुनने का प्रयास कर ही रहा था कि सहसा वह चौक पड़ा । न सिर्फ चौंका, बल्कि उसे लेने के देने पड़ गए । ऐसा तो उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि इन लोगों के अतिरिक्त भी इस गली में कोई अन्य उपस्थित हो सकता है, किंतु उसने यही नहीं सोचा और यही चोट खा गया ।

अभी वह उनका कोई शब्द ध्यान से सुन भी नहीं पाया था कि अचानक उसके पीछे से किसी ने एक जोरदार ठोकर मारी और परिणामस्वरूप वह धड़ाम से कीचड़ भरी गली में मुंह के बल गिरा और और दो-तीन इंच कीचड़ पर रपटता चला गया । उन तीन छायाओं के लिए भी शायद यह घटना अचानक ही हुई थी । अत: वे भी बुरी तरह चौंक पड़े, किंतु उस समय उनकी आंखो में हल्की-सी चमक उभर आई, जब उन्होंने कीचड़ में मुंह के बल पड़े अधेड़ के पीछे अपने तीन साथियों पर दृष्टि डाली। पीछे वाले तीनों में से एक आगे बढ़कर बोला ।

-"जर्फीला सेशन- ये बूढ़ा गली में खड़ा आप लोगों की बातें सुनने का प्रयास कर रहा था ।"

अचानक...!

वह सब हुआ, जिसकी इन छहों में से किसी को आशा न थी । उनके विचार से तो यह आ कुछ इस बुरी तरह से कीचड़ में गिरा था कि उसके लिए उठना शीघ्र ही संभव नहीं था, किंतु उनकी आशा के एकदम विपरीत वह अधेड़ बिजली की सी फुर्ती से न सिर्फ उछला, बल्कि उसने बहुत कुछ कर दिया ।

- एक बिजली-सी कौंधी । कीचड़ में पड़ा अधेड़ छलावे की भांति उछला और पलक झपकते ही उसके हाथ में दबी एक गुप्ती जर्फीला सेशन के पेट में धंस गई । इसके पूर्व कि कोई कुछ समझ सके खून का फव्वारा निकला-जर्फीला सेशन के कंठ से घुटी-घुटी-सी चीख निकल गई । समस्त गुप्ती उसके पेट में धंस गई थी । तभी अन्य पांचों उस पर झपटे, किंतु वह बूढ़ा भी कम शैतान नहीं था, जैसे ही वे उस पर झपटे, उसने गुप्ती जर्फीला सेशन के पेट में ही छोड़ दी और अपने स्थान
से अलग हट गया ।

पांचों की स्थिति भिन्न और विचित्र थी । कोई लड़खड़ाकर कीचड़ में गिरा तो किसी ने दीवार में टक्कर मारकर खून निकाल लिया ।

उसके बाद...! अगले कुछ ही क्षणों में गली में भयानक उत्पात जारी हो गया । वह बूढ़ा पांचों से अकेला ही भिड़ गया । किंतु वास्तविकता यह थी कि पांच उस पर भारी पड़ रहे थे। तभी रघुनाथ के बाथरूम का दरवाजा खुला, जो इस गंदी गली में खुलता था और वहां से विजय निकला । तभी इस नई परेशानी को देखकर वे छहों कुछ चकराए- किंतु बूढ़े ने सर्वप्रथम स्वयं पर काबू पाया और फिर उन पर पिल गया । विजय को भी न जाने क्या सूझा कि वह लड़ाई में उस बूढ़े का साथ देने लगा । अब उन पांचों पर ये दोनों भारी पड़ रहे थे, क्योंकि ये दोनों कुछ विचित्र ढंग से लड़ रहे थे। अभी इस उत्पात को कठिनता से एक ही मिनट व्यतीत हुआ था कि विजय और वह आश्चर्यचकित रह गए । उनके मुख आश्चर्य से खुले रह गए, उनकी समझ में नहीं आया कि वे क्या देख रहे हैं?

उनके देखते-ही-देखते पहले उन पांचों में से एक के कंठ से भयानक चीख निकली-ऐसी चीख मानो किसी ने उसे गोली मार दी हो । जबकि उसे किसी ने मारा नहीं था । अभी वह आश्चर्य के सागर से निकल भी नहीं पाए थे कि उस समय तो उनके आश्चर्य में चार चांद लग गए, जब दूसरा भी उसी प्रकार भयानक चीख के साथ ढेर हो गया, इसके बाद तो जैसे सभी को ये बीमारी चढ़ गई। नंबरवार सभी चीखे और कीचड़ में गिरकर ठंडे हो गए। वहां सिर्फ वे दो ही जीवित थे । उन्होंने एक-दूसरे की तरफ देखा-जैसे पूछ रहे हों कि क्या तुम बता सकते हो कि ये सब कैसे मर गए ?

अभी वे एक-दूसरे को देख ही रहे थे कि गली से बाहर उन्होंने मिलिट्री के जवानों में कुछ हलचल-सी अनुभव की । इस हलचल के उत्पन्न होते ही उस समय विजय की खोपड़ी घूम गई जब अधेड़ का एक शक्तिशाली घूंसा उसके जबड़े पर पड़ा । वह क्योंकि इस घूंसे के लिए तैयार न था-अत: धड़ाम से कीचड़ में जा गिरा। तभी उस अधेड़ ने उसकी पीठ पर एक जोरदार ठोकर रसीद की। विजय के कंठ से एक चीख निकल गई । वह कराहकर एक ओर को पलट गया ।

तभी गली में भारी कदमों की आवाजें गूंजी-जो निरंतर निकट आती जा रही थीं ।

अचानक अधेड़ ने भयानक फुर्ती का परिचय देते हुए रघुनाथ के बाथरूम में जम्प लगा दी। विजय भी फुर्ती के साथ उस ओर लपका, किंतु उसी क्षण दरवाजा एक झटके से बंद हो गया । तभी भागते हुए मिलिट्री के तीन जवान वहां पहुंचे-छ: लाशों को देखकर चौंके - और अगले ही पल उनकी टॉमगने विजय की ओर तन गई, किंतु विजय शीघ्रता से बोला ।

'अबे... अबे ठहरो प्यारे जवानों! कहीं हमें ही खुदा को प्यारा न कर देना.. .इन छहों का हत्यारा तो सुपरिंटेंडेंट की कोठी में है मेरे साथ आओ ।" -

तभी ठाकुर साहब वहां आ गए । विजय को देखते ही बुरी तरह से चौंककर बोले- "तुम... तुम यहां...?"

- "य... यस डैडी !" विजय स्वयं को संभालकर बोला"इनका हत्यारा रघुनाथ की कोठी में गया है- जल्दी से कोठी को घेरकर उसे गिरफ्तार कीजिए । "

तत्पश्चात!

क्षणमात्र में ही पूरी कोठी में उस रहस्यमय अधेड़ व्यक्ति की तलाश होने लगी-अधिक देर नहीं लगी - शीघ्र ही वह अधेड़ चमक गया, किंतु उफ् ! भयानक खतरा...!

अधेड़ व्यक्ति ने बाथरूम में प्रविष्ट होते ही फूर्ती के साथ दरवाजा अंदर से वोल्ट कर दिया । एक क्षण भी उसने व्यर्थ नहीं किया तुरंत ही उसने कोठी के अंदर का बाथरूम का दरवाजा खोला- किंतु दरवाजा खोलते ही विकास उसके सामने आ गया । एक क्षण के लिए तो वह चौंका और अगले ही पल उसने विकास को दबोच लिया। विकास ने कई हुनर दिखाए, किंतु उस व्यक्ति के सामने सब असफल सिद्ध हुए । अचानक अधेड़ ने रिवॉल्वर निकालकर विकास के माथे से सटा दी और धीमे, किंतु खतरनाक स्वर में गुर्राया- "अगर एक लफ्ज भी मुंह से निकाला तो गोली मार दूंगा।"

विकास एकदम ढीला पड गया । उसका तना हुआ जिस्म एकदम साधारण स्थिति में आ गया । वह व्यक्ति बड़ी फुर्ती से अपना कार्य कर रहा था । उसने तुरंत ही विकास को कुछ इस प्रकार से उठा लिया कि विकास कोई हरकत न करे और रिवॉल्वर उसके सिर से सटाए वह छूती के साथ कमरे से बाहर की ओर भागा ।

अभी वह कमरे से बाहर ही निकला था कि ठिठक गया । उसके सामने मिलिट्री के जवान थे । उसे देखकर ठिठक वे भी गए, किंतु जब तब उनके हथियार तनते, उससे पूर्व ही अधेड़ फिर गुर्राया- "कोई गन न चलाए, वरना इस बच्चे की जान ले लूंगा ।"

मिलिट्री के जवान ठिठक गए। उसके आदेश पर उन्हें

हथियार डालने के लिए बाध्य होना पड़ा। इस बीच विकास ने भी निकलने का प्रयास किया था, किंतु अधेड़ व्यक्ति आवश्यकता से कुछ अधिक ही चालाक था जिसके सामने उनकी एक न चली । इस समय उस अधेड़ की आंखों से चिंगारियों निकल रही थी ।

तभी वहां विजय, रघुनाथ और ठाकुर साहब इत्यादि आ गए । उन्होंने अभी कुछ कहना चाहा था कि अधेड़ की उंगलियों की पकड़ रिवॉल्वर पर कुछ सख्त हो गई और भयानक स्वर में वह गुर्राया ।

- "खबरदार...! कोई न हिले... वरना इस बच्चे की मौत...! "

सभी ठिठककर रह गए । किसी का साहस न था कि विकास को इस तरह मौत के मुंह में देखकर भी कोई गलत हरकत करने जैसी मूर्खता करे । अब सब ठिठक गए ।

-''सब अपने-अपने हथियार गिरा दें।" उसने गुर्राकर कड़े शब्दों में चेतावनी दी। सभी उसकी आज्ञा पालन के लिए बाध्य थे । अत: विजय, रघुनाथ और ठाकुर साहब सहित सबने हथियार डाल दिए । अधेड़ के मोटे व काले होंठों पर विजयात्मक मुस्कान दौड़ गई ।

-'मिस्टर...!" वह विजय की ओर उन्मुख होकर बोला"कहीं तुम विजय तो नहीं?"

- "ठीक पहचाना प्यारे । हम ही विजय हैं, लेकिन इस बेहूदा हरकत और इन सवाल-जवाब का क्या मतलब और प्यारे खूसट मियां, अंतिम बात ये कि तुम कौन हो?" विजय अजीब ढंग से मुस्काकर बोला ।

- "तुमसे हिसाब बाद में होगा - इस समय तो यहां से निकलना है ।" अधेड़ विजय को घूरता हुआ बोला ।

-"क्यों प्यारेलाल-कैसा हिसाब ? " विजय अभी आगे कुछ कहने ही जा रहा था कि वह फिर गुर्राया ।

-"बको मत! मुझे यहां से बाहर का रास्ता दिखाओ ।"

स्थिति कुछ ऐसी थी कि विजय कुछ भी करने में असमर्थ था । अत: उसे बाहर का रास्ता दिखाने लगा । ठाकुर साहब, विजय, रघुनाथ और विकास इत्यादि के अतिरिक्त अन्य सभी अवसर की तलाश में रहे किंतु वह अधेड़ आवश्यकता से अधिक चतुर और सतर्क था । तभी तो उसने किसी को कोई भी अवसर नहीं दिया और अंत में इतने सख्त पहरे के बावजूद भी वह एक पुलिस जीप के निकट पहुंच गया । जीप के निकट वह कुछ देर ठहरा और फिर चेतावनी-भरे लहजे में जोर से चीखा ।

- " अगर जीप के चलने पर किसी ने भी जीप पर फायर इत्यादि किया अथवा किसी अन्य ढंग से मुझे रोकने का प्रयास किया तो मैं इस बच्चे को लाश में बदलने में जरा भी नहीं हिचकूंगा ।"

वास्तव में अधेड़ व्यक्ति ने धमकी ही ऐसी दी थी कि कोई भी कुछ न कर सका । उसने स्वयं जीप स्टार्ट की और विद्युत गति से जीप रिक्त सड़क पर दौड़ा दी। सभी बेबस-सी निगाहों से जीप के पिछले भाग को देखते रहे । जीप में एक रहस्यमय अपराधी विकास को लेकर खतरनाक पहरा होते हुए भी फरार हो रहा था... । विजय यह भी न जान सका कि यह अधेड़ था कौन?

उसके बाद !

तब जबकि जीप आंखों से ओझल हो गई। पुलिस और मिलिट्री के ट्रांसमीटर और टेलीफेन घनघनाने लगे । समस्त शहर में यह खबर आग की तरह फैल गई, किंतु कोई लाभ नहीं । जीप की खोज जोर-शोर से जारी हो गई । लगभग आधे घंटे बाद एक निर्जन स्थान पर वह जीप मिल गई और मिल गया विकास! जो बेहोश जीप की पिछली सीट पर पड़ा हुआ था, किंतु अधेड़ गधे के सिर से सींग की भांति गायब था । रहस्यमय अधेड़ वास्तव में सबके लिए एक रहस्य ही बनकर रह गया था ।

जब विकास को होश आया तो उसने कोई विशेष बात न बताई--सिर्फ इतना बताया कि उस अधेड़ ने उसके गले की नस दबाकर बेहोश कर दिया। उसके बाद वह न जाने कहां चला गया । इस घटना ने समस्त राजनगर को चौंकाकर रख दिया क्योंकि रैना के अपहरण के स्थान पर विकास का अपहरण हुआ था, लेकिन वह भी अधूरा...! पुलिस इस पहेली को न सुलझा सकी। पुलिस यह भी नहीं जानती थी कि उनको विकास के द्वारा अप्रैल द्व बना दिया गया था, क्योंकि उन्हें ऐसा कोई पत्र प्राप्त न हुआ था जैसा विजय ने विकास को लिखने को कहा था। यह एक अन्य रहस्य- भरी बात थी ।