इमरान शाही बाग़ के इलाके में पहुँच कर एक जगह रुक गया वह यहाँ तक अपनी टू-सीटर पर आया था....गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके वह आगे बढ़ गया। मज़दूरों की वह बस्ती यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं थी जहाँ उसे पहुँचना था। उसके हाथ में एक बैग था और हुलिये से कोई डॉक्टर मालूम होता था। वह कमरों की एक लाइन के सिरे पर रुक गया। जिस आदमी के बारे में उसे जानकारी लेनी थी, वह उसी लाइन के एक कमरे में रहता था।

इमरान ने खुले हुए कमरों के दरवाज़ों पर दस्तक देनी शुरू की, लेकिन क़रीब-क़रीब हर जगह से उसे यही जवाब मिला कि टीके लग चुके हैं। उसने दो-एक आदमियों के बाज़ू भी खुलवा कर देखे। फिर आख़िरकार वह उस कमरे के सामने पहुँचा जिसमें वह आदमी रहता था। दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। इमरान ने दस्तक दी, लेकिन जवाब नहीं मिला....वह बराबर दस्तक देता रहा....

‘‘चले जाओ.... ख़ुदा के लिए!’’ थोड़ी देर बाद अन्दर से आवाज़ आयी। ‘‘क्यों परेशान करते हो मुझे। किसी से नहीं मिलना चाहता।’’

‘‘मैं डॉक्टर हूँ।’’ इमरान ने कहा। ‘‘क्या आप टीका नहीं लगवायेंगे? यह बहुत ज़रूरी है हर एक के लिए।’’

‘‘मैं इसकी ज़रूरत नहीं समझता....आप जा सकते हैं।’’

‘‘अगर आपको इस शहर में रहना है तो आप टीके के बग़ैर नहीं रह सकते। क्या आप नहीं जानते कि इस मौसम में हमेशा महामारी फैलने का ख़तरा रहता है।’’

अन्दर से फिर कोई जवाब नहीं मिला।

बाहर कई आदमी इकट्ठे हो गए थे। उनमें से एक बोला। ‘‘वह बाहर नहीं आयेगा साहब।’’

‘‘क्यों?’’ इमरान ने हैरानी ज़ाहिर की।

‘‘वह किसी से नहीं मिलता....बड़े-बड़े लोग कारों पर बैठ कर आया करते हैं, लेकिन वह उन्हें टका-सा जवाब दे देता है।’’

‘‘यह बात है....अच्छा....मुझे उसके बारे में बताइए। मैं देखूँगा कि वह कैसे टीका नहीं लगवाता।’’

इमरान उस कमरे के सामने से हट आया। वे लोग जो अपने पड़ोसी के बारे में डॉक्टर को कुछ बताना चाहते थे, बदस्तूर उसके साथ लगे रहे। एक जगह इमरान रुक कर बोला। ‘‘उसका नाम क्या है?’’

‘‘नाम तो शायद किसी को भी मालूम न हो।’’

‘‘वह करता क्या है?’’

‘‘यह भी नहीं बताया जा सकता....एक महीने पहले यह कमरा किराये के लिए ख़ाली था। वह आया और यहाँ ठहर गया। दो-तीन दिन तक तो उसकी शक्ल दिखाई दी, उसके बाद से वह कमरे में बन्द रहने लगा.... कोई नहीं जानता कि उसका पेशा क्या है।’’

‘‘आप में से किसी ने कभी उसे देखा भी है?’’

‘‘क़रीब-क़रीब सभी ने देखा होगा, मगर उन्हीं दिनों में जब उसे यहाँ आये हुए ज़्यादा वक़्त नहीं गुज़रा था। शुरू में वह पड़ोसियों से भी मिला करता था। लेकिन फिर अचानक उसने ख़ुद को इस कमरे में क़ैद कर लिया।

‘‘देखने से कैसा मालूम होता है?’’ इमरान ने पूछा।

‘‘देखने से,’’ बताने वाला कुछ सोचने लगा। फिर उसने कहा। ‘‘देखने से वह बहुत ही शरीफ़ मालूम होता है।’’

‘‘हैसियत?’’

‘‘हैसियत वही, जो इस बस्ती के दूसरे आदमियों की है।’’

‘‘लेकिन अभी कोई कह रहा था कि उससे मिलने के लिए बहुत बड़े-बड़े लोग आते हैं।’’

‘‘इसी पर तो हैरानी है! उसकी हैसियत ऐसी नहीं है कि वह कार रखने वालों से इस हद तक लगाव रख सके....लेकिन....’’

‘‘लेकिन क्या?’’ इमरान ने उससे पूछा।

‘‘कुछ नहीं! यही कि वह उन लोगों से भी मिलना नहीं पसन्द करता। ओह ज़रा देखिए! वह कार इधर ही आ रही है....आप देखिएगा तमाशा! वे लोग कितनी इज़्ज़त के साथ उससे बाहर निकलने को कहते हैं।’’

सामने से एक कार आ रही थी। हालाँकि यह गली ऐसी नहीं थी कि यहाँ कोई अपनी कार लाने की हिम्मत करता, मगर वह कार किसी-न-किसी तरह गली में घुस ही पड़ी थी।

स्टीयरिंग के पीछे एक आदमी बैठा दिख रहा था। कार ठीक उस कमरे के सामने रुक गयी। वह आदमी कार से उतर कर दरवाज़े पर दस्तक देने लगा। दूरी ज़्यादा होने के कारण इमरान कमरे के अन्दर से आने वाली आवाज़ न सुन सका, लेकिन वह दस्तक देने वाले को आसानी से देख सकता था। उसकी आवाज़ भी सुन सकता था।

इमरान ख़ामोशी से उसे देखता रहा, फिर उसने उसे दरवाज़े के पास से हटते देखा। वह अपनी कार की तरफ़ वापस जा रहा था।

‘‘मैं उसके भी टीका लगाऊँगा।’’ इमरान बड़बड़ाया और पास खड़े हुए लोग मुँह बन्द करके हँसने लगे।

इमरान उन्हें वहीं छोड़ कर आगे बढ़ गया। वह गलियों में घुसता हुआ फिर सड़क पर आ गया....और ठीक उस गली के सिरे पर जा खड़ा हुआ, जिससे उस आदमी की कार आने की उम्मीद थी।

जैसे ही कार गली से निकली, इमरान रास्ता रोक कर खड़ा हो गया।

‘‘क्या बात है?’’ कार वाले ने हैरानी से पूछा।

‘‘क्या आप महामारी का टीका ले चुके हैं?’’

‘‘नहीं! क्यों?’’

‘‘तब तो मैं टीके लगाये बग़ैर आपको यहाँ से न जाने दूँगा। इस बस्ती में दो-एक केस हो चुके हैं।’’

‘‘आप कौन हैं?’’ कार वाला उसे घूरता हुआ बोला।

‘‘मेडिकल ऑफ़िसर ऑन आउटडोर डयूटीज़,’’ इमरान ने संजीदगी से कहा। ‘‘हमें सबको यह टीका लगाने का हुक्म मिला है। इनकार करने वाले पुलिस के हवाले भी किये जा सकते हैं।’’

कार वाला हँसने लगा।

‘‘जाने दीजिए!’’ उसने स्टीयरिंग घुमाते हुए कहा।

‘‘मैं ज़बर्दस्ती लगाऊँगा। अगर आप इनकार करेंगे तो मैं आपकी कार मैं ही में बैठ कर कोतवाली तक चलूँगा।’’

‘‘चलो,’’ उसने लापरवाही से कहा फिर अपनी जेब में हाथ डालता हुआ बोला। ‘‘तुम कार्ड ले कर भी कोतवाली जा सकते हो। मैं वहाँ सीधे बुला लिया जाऊँगा।’’

इमरान ने उसका कार्ड ले कर पढ़ा। जिस पर ‘‘सर तनवीर’’ लिखा हुआ था।

‘‘सर तनवीर,’’ इमरान धीरे से बड़बड़ाया।

‘‘जनाब....आप मेरे ख़िलाफ़ एक शिकायतनामा लिख कर इस कार्ड के साथ जिसे चाहें भेज सकते हैं। अब इजाज़त दीजिए।’’

कार फ़र्राटे भरती हुई आगे निकल गयी। इमरान बायें हाथ से अपना माथा रगड़ रहा था।

तो यह सर तनवीर है....इसकी बीवी ने उस आदमी के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए दस हज़ार रुपए नक़द दिये थे....चालीस हज़ार और देने का वादा था....मामला उलझ गया। इमरान काफ़ी देर तक वहीं खड़ा ख़यालों में खोया रहा।