एंजेल प्रिया
शाम को वीर अजय से मिलने के लिए गया। अजय और माधवी वहाँ पहले से ही मौजूद थे।
“भाई, कल गुड़गांव चलना है।” अजय ने वीर के पहुँचते ही कहा।
“क्यों क्या हुआ? गुड़गांव क्या काम है ?” वीर ने पूछा।
“अरे यार, अब अजय ने कोई गुड़गांव की लड़की से फ्रैंड़शिप करी है तो यह उससे मिलने के लिए कह रहा था तो लड़की ने कल मिलने का कह दिया है। इसलिए यह इतना उत्साहित हो रखा है।” माधवी ने कहा।
“अबे तुझे कहाँ से मिल गई गुड़गांव की बन्दी? भैंचो, कहां-कहां हाथ मारता रहता है। किसी शहर को तो छोड़ दे।” वीर ने अजय से कहा।
“भाई, हुआ क्या कि एक दिन फेसबुक चला रहा था तो friend suggestions में angel priya नाम का suggestion दिखा। तो मैंने उसे फ्रैंड़ रिक्वेस्ट भेज दी। पहले तो मैंन सोचा कि किसी का नाम angel priya कैसे हो सकता है? कोई फेक आईडी ही होगी। फिर धीरे-धीरे बातें शुरू हुईं तो पता चला कि आईडी फेक नहीं है और अब देखो, कल उससे मिलने वाला हूँ।” अजय ने कहा।
“अरे यार, कहाँ फँसवाएगा? मैं क्या करूँगा वहाँ जाकर? तू ही मिल आ।” वीर ने कहा।
“चल ना, भाई। माधवी भी चल रही है। थोड़ा घूमना भी हो जाएगा और बीयर-शीयर भी ले लेंगे।” अजय ने कहा।
“माधवी, तू वहाँ क्या करेगी? तेरा वहाँ क्या काम?” वीर ने माधवी की तरफ़ देखकर कहा।
“मुझे कुछ शॉपिंग करनी थी तो सोचा कि अब तुम लोग जा ही रहे हो तो मैं भी चलती हूँ और वैसे भी यहाँ लोकल मार्केट से कपड़े ख़रीदकर बोर हो गई हूँ। वहाँ से कोई लेटेस्ट कलेक्शन ही ले आऊँगी।” माधवी ने अपनी बात रखी।
“हद है यार तुम लोगों की भी। अब प्रोग्राम पहले से ही सेट कर रखा है तो चलो फिर चलते हैं।” वीर ने अपनी सहमति जताई।
अगले दिन सुबह सात बजे वीर और अजय, दोनों माधवी के घर की गली के नुक्कड़ पर खड़े होकर उसका इन्तज़ार कर रहे थे। माधवी को फ़ोन करके अजय ने बता दिया था कि सुबह सात बजे गली के मोड़ पर मिल जाना, लेकिन दोनों को उसका इन्तज़ार करना पड़ रहा था। अजय अपने पापा की गाड़ी ले आया था। अजय ने घर पर बता दिया था कि कालेज में पार्टी है तो गाड़ी ले के जा रहा हूँ। वीर ने भी घर पर कालेज से लेट आने का बहाना बना दिया था। बीस मिनट के बाद माधवी आई और फिर तीनों गुड़गांव के लिए निकल गए।
लगभग तीन घंटे के बाद तीनों गुड़गांव पहुँच चुके थे। प्रिया को अजय ने पहले ही बता दिया था कि एम.जी. रोड़ पर सहारा मॉल के बाहर ग्यारह बजे मिलना है। अजय ने गाड़ी मॉल की पार्किंग में लगा दी। तीनों गाड़ी में ही ग्यारह बजने का इन्तज़ार कर रहे थे। तभी अजय के मोबाइल पर प्रिया का मैसेज आया कि वो मॉल के मेन गेट पर पहुँच चुकी है।
“तो तू मिल ले उससे। फ्री होकर कॉल कर देना। तब तक मैं और वीर भी कुछ शॉपिंग कर लेते है।” माधवी ने अजय से कहा।
“और कोई दिक्कत हो तो हम तो हैं ही यहीं पर। देख लेना, कहीं angel priya की जगह कोई devil priyansh ना हो।” वीर ने माधवी से हाई-फाईव करते हुए अजय से कहा।
“अबे, क्या यार तुम लोग भी? भाई, फेसबुक पर हर angel priya फेक नहीं है। कुछ Priya angel की तरह हैं भी। जैसे ये प्रिया जो गेट पर तुम्हारे भाई का इन्तज़ार कर रही है। वैसे भी कुछ प्रिया ने रियल प्रिया को भी बदनाम किया हुआ है। हर कोई ऐसा नहीं होता, समझे? चलो, अब मैं चलता हूँ। वैसे भी मुझे पसन्द ही नहीं कि कोई सुन्दर कन्या मेरा इन्तज़ार करे।” अजय ने वीर की तरफ़ आँख मारकर कहा।
अजय मॉल के गेट की तरफ़ चला गया था। वीर और माधवी पार्किंग की लिफ़्ट से मॉल के अन्दर चले गए थे।
दो घंटे के बाद वीर के मोबाइल पर अजय का कॉल आया कि पार्किंग में मिलो, अभी निकलना है। वीर और माधवी, दोनों पार्किंग में पहुंचे तो अजय पहले से ही गाड़ी में इन्तज़ार कर रहा था। दोनों के पहुँचते ही अजय ने गाड़ी स्टार्ट की और तीनों वहाँ से निकल गए।
“अबे हुआ क्या, बताएगा भी? इतनी जल्दी में निकल रहा है।” वीर ने अधीर होकर अजय से पूछा।
“कुछ नहीं हुआ। मिल लिया बस, और क्या?” अजय ने जवाब दिया।
“कहीं सच में devil priyansh तो नहीं था?” माधवी ने कहा।
“नहीं, थी तो प्रिया ही और वो भी किसी angel की तरह ख़ूबसूरत।” अजय ने कहा।
“तो अभी तो टाइम था हमारे पास। इतनी जल्दी क्यों आया? अभी तो उसके साथ और टाइम बिताता। मैं तो ठीक से शॉपिंग भी नहीं कर पाई।” माधवी ने अपने शॉपिंग बैग की तरफ़ देखकर कहा।
“अब बताएगा भी.... कि क्या हुआ ?” वीर ने फिर से पूछा।
“हुआ यूं कि जब मैं गेट पर गया तो प्रिया वहीं मेन गेट के पास ही मेरा इन्तज़ार कर रही थी। वो बिल्कुल एकदम परी की तरह थी। रंग इतना गोरा, इतना साफ जैसे कि अभी धुल कर आई हो, बिल्कुल नाजुक। वहाँ से हम दोनों रेस्टोरेंट में गए। खाना खाया और कुछ देर वही बैठकर बात की। फिर मैंने उससे कहा कि चलो, पार्किंग में चलते हैं। वहीं गाड़ी में बैठकर बातें करेंगे, लेकिन उसने कहा कि पहले मुझे थोड़ी शॉपिंग करनी है। अगर उसके बाद टाइम बचा तो फिर चलेंगे पार्किंग में। तो हम दोनों शॉपिंग करने के लिए चले गए। तो बन्दी ने आठ ड्रेस और दो जोड़ी जूते ले लिए। बिल काउंटर पर गए तो बोली कि मैं अपना कार्ड घर भूल आई। प्लीज़, आप पे कर दो। मैं आपको जब कभी दोबारा मिलूँगी तो लौटा दूँगी। यार, मैं तो बारह हजार का बिल देखकर ही अचंभित हो गया। पर्स में तो मात्र तीन हजार ही थे, तो उसे कहाँ से बारह हजार की शॉपिंग करवाता। फिर मैंने उससे कहा कि मेरा ए.टी.एम. कार्ड गाड़ी में है, मैं उसे लेकर आता हूँ। तब तक तुम कुछ और भी पसन्द कर लो। भाई, दुकान से बाहर निकलते ही तेरे पास फ़ोन कर दिया कि पार्किंग में मिलो। क़सम से जिसने भी यह कहा है न कि स्त्रियाँ कुछ देकर पाती हैं और पुरुष कुछ पाकर देते हैं, एकदम लल्लू टाइप रहा होगा। वो शायद कभी ऐसी स्थिति में नहीं फँसा होगा वरना वो भी यही कहता कि स्त्रियाँ भी कुछ पाकर ही देती हैं।” अजय ने भूमिका बांधी।
वीर और माधवी, दोनों जोर-जोर से हँस रहे थे।
“अरे, हँस क्या रहे हो तुम लोग? अब यह बताओ कि कोई पहली मुलाक़ात में ऐसा करता है भला?” अजय ने दोनों से पूछा।
“हां, करता तो नहीं है, लेकिन कोई ऐसा भी नहीं करता कि किसी लड़की को कोई इतनी शॉपिंग के साथ बिल काउंटर पर छोड़कर भाग आए। अब उस बेचारी तुम्हारी angel का क्या होगा?” माधवी ने हँसते हुए कहा।
“बेटा, तुम दोनों हँस लो। जिस दिन मेरी तरह ऐसी आफ़त में फँसोगे ना, तब तुम लोगों को पता चलेगा कि मैंने आज क्या खोया है? साला गाड़ी लाने का भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ, लेकिन इस घटना से एक बात का पता चला कि गोरे तब भी लूटते थे और आज भी लूटना चाहते हैं।” अजय ने तंज़ कसा।
वीर और माधवी अब भी अजय की बातें सुनकर हँस रहे थे।
तीनों ने रास्ते में बीयर खरीद ली थी और अब गाडी में ही चीयर्स कर रहे थे। वीर ने मोबाइल देखा तो माया की तीन कॉल आ चुकी थीं, लेकिन वीर ने अभी माया से बात करना ठीक नहीं समझा। तीनों दो-दो बोतलें ख़ाली कर चुके थे। माधवी ने अब पीने से मना कर दिया था तो वीर और अजय ने अपनी एक-एक बीयर और खोल ली थी।
“माधवी, तुझे पता है, वीर भी अब रिलेशनशिप में है। इसने एक लड़की को प्रपोज़ किया और उसने भी ‘हाँ’ कर दी है। अब तो इसका भी सीन चालू है।” अजय ने कहा।
“अच्छा....क्या बात है, वीर? मुझे अजय से पता चल रहा हैं। तूने तो मुझे बताया भी नहीं?” माधवी ने तंज कसा।
“नही, ऐसी कोई बात नहीं है। यह बस अभी हुआ है और तब से तुझसे बात नहीं हुईं वरना बता देता।” वीर ने जवाब दिया।
“चल, कोई बात नहीं। यह तो बता कि लड़की कौन है? कैसी है? कही angel priya टाइप की तो नहीं?”
“नहीं, वो बिल्कुल भी वैसी नहीं है। बहुत ख़ूबसूरत है। मोटी आँखें, सुराहीदार गर्दन, कमर तक बाल, होंठों के नीचे तिल और सांवला रंग तो क़यामत ही ढा देता है।” वीर ने कहा।
“सांवला रंग....... क्या बात है?” माधवी ने हाथ से वाह की आकृति बनाकर कहा।
“हाँ, सांवला रंग। क्यों, क्या हुआ? इसको ही हाईलाइट क्यूं कियाहै? अबे यार, अब आज की जनरेशन भी रंगभेद की बात करेगी क्या? मेरी नज़र से देखो तो सांवला रंग इस दुनिया में सबसे प्यारा और आकर्षक रंग है और मैं तो सांवले रंग को गोल्डन रंग कहूँगा क्योंकि मेरे लिए अब सबसे ख़ूबसूरत रंग वही है और वैसे भी किसी ने क्या ख़ूब कहा है:
“हुस्न का क्या काम सच्ची मोहब्बत में,
यार सांवला भी हो तो क़ातिल लगता है।।”
“क्या बात है.... कती ग़ालिब बनता जा रहा है छोरा। अच्छा, एक बात तूने भी सुनी है क्या जो मैंने सुनी है कि सांवले रंग की लड़कियों में सेक्स कुछ ज़्यादा ही होता है।” अजय ने चुटकी ली।
“अबे ठरकी...तुझे यही सूझता है क्या दिन भर? तूने तो आज अपना कटवा लिया और पता नहीं पहले भी कितना बार कटवाया होगा? तू तो यह सब बोल ही मत क्योंकि यह तुझे सूट ही नहीं करता।” माधवी ने कहा।
“ऐसा कुछ नही है। मैं तो मज़ाक़ कर रहा था। और वैसे भी अगर दस में से किसी तीन ने धोखा भी दे दिया तो तू नकारात्मक पक्ष क्यों देखती है? सकारात्मक पक्ष सात देख ना।” अजय ने माधवी की तरफ़ देखकर कहा।
माधवी और अजय, दोनों वीर के अच्छे दोस्त थे। आदि और नीलेश की तरह ही। आदि और नीलेश से तो कालेज में ही मुलाकात हो पाती थी, लेकिन अजय वीर का लंगोटिया यार था। अजय और वीर की दोस्ती जय-वीरू टाइप की तो नहीं थी, लेकिन उससे कम भी नहीं थी। माधवी स्कूल में वीर के साथ पढ़ती थी और उसके घर के नज़दीक ही रहती थी तो माधवी के साथ भी वीर का अच्छा कॉम्बीनेशन था। और वैसे भी जो दोस्त एक बार कहने पर इतनी दूर बिना कारण साथ चल दे, साथ पीकर मस्ती करे, आपके हर ग़लत और सही में बिना नतीज़ा जाने साथ दे तो ऐसी दोस्ती कम ही लोगों को नसीब होती हैं। इन तीनों की दोस्ती भी कुछ ऐसी ही थी।
ख़ैर, तीनों अब अपने शहर में दाख़िल हो चुके थे। अजय ने माधवी को नुक्कड़ पर उतार दिया था। वीर और अजय अभी कुछ देर और घूमना चाहते थे। उन्होंने रास्ते में सिगरेट ली और गाड़ी शहर से बाहर की तरफ़ घुमा दी।
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