“क्या सोच रहे हैं सर?”

“आओ मिस मंजु—अच्छा हुआ, तुम आ गईं।”
“क...क्यों?” मिस मंजु के स्वर में हल्का आश्चर्य था।
“अकेला व्यक्ति जब किसी बात पर सोचता है तो वह लौट-लौटकर पुन: वहीं आ जाता है, जहां से शुरू होता है—उसे आगे सोचने के लिए किसी के साथ डिस्कस करने की जरूरत पड़ती है।”
मिस मंजु को अपने लिए यह बड़े सौभाग्य की बात लगी कि इंस्पेक्टर देशमुख जैसा उसका सीनियर और योग्य अफसर उसके साथ डिस्कम करना चाहता है।
वह उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।
“क्या पूनम द्वारा सुनाई गई नई कहानी दिमाग में फिट हो रही है मिस मंजु?”
"बहुत अजीब-सी लग रही है सर!"
“क्या पूनम की इस बात पर यकीन करने को तुम्हारा दिमाग तैयार है कि सिद्धार्थ बाली की तरफ से उसके लिए राई जैसा भी आमंत्रण नहीं और वह अपनी जिन्दगी का इतना बड़ा निर्णय सिर्फ फिल्मी स्टाइल और संयोगों के आधार पर ले लेती है—अपने खुशहाल घर को छोड़कर, किसी संभावित बड़ी महत्वाकांक्षा के लिए कुछ भी न सोचे?” इंस्पेक्टर देशमुख बोला—“सबने पहले तो उसकी यह अजीब महत्वाकांक्षा ही मुझे सबसे बड़ा मजाक लग रही है।”
“सर, आपको क्या लग रहा है?” लेडी सब-इंस्पेक्टर मिस मंजु ने पूछा।
इंस्पेक्टर देशमुख कुछ देर चुप रहा। ऐसी मुद्रा बना ली थी उसने जैसे बिखरे हुए पॉइंट्स को पिरोकर जंजीर बनाने का प्रयत्न कर रहा हो। एकाएक उसने बोलना शुरू किया—“इस सारे झमेले की शुरुआत ही बड़ी अजीब है—ललित का सिद्धार्थ की ,कोठी पर पहुंचना, वहां पूनम को देखते ही उसे अपनी पत्नी कहना और फिर…।” एकाएक वह रुक गया।
कुछ देर तक मिस मंजु उसके बोलने का इंतजार करती रही। जब काफी इंतजार के खाद भी वह कुछ न बोला तो मिस मंजु ने स्वयं ही पूछा—“ क्या हुआ सर, आपने अपनी बात अधूरी क्यों छोड़ दी?”
"हमें दूसरे ढंग से डिस्कशन करनी चाहिए।”
“वह कैसे?”
“मान लो कि तुम पूनम हो—ललित को तुम जानतीं तक नहीं…।”
"सबसे पहले तो हम यहीं धोखा खा रहे हैं सर कि पूनम ने झूठ बोला था कि यह ललित को जानती तक नहीं—पूनम सिद्धार्थ की पत्नी बनने से पहले विज्ञान संस्थान की रिसेप्शनिस्ट थी और विज्ञान पत्रिका का रिपोर्टर होने के नाते ललित का वहां आना-जाना था। फिर भला यह कैसे हो सकता है कि वह ललित को जानती ही न हो—हां, यह संभव है कि उनके बीच ऐसा कोई रिश्ता न हो, जैसा कि वह अब कहती है।”
“वैरी गुडा! अच्छा पॉइंट है—डायरी में नोट कर लो।”
इधर मिस मंजु ने पॉइंट डायरी में नोट किया, उधर इंस्पेक्टर देशमुख आगे बोला—“अब हम पुन: वहीं आ जाते हैं कि तुम पूनम हो और ललित को जानतीं तक नहीं। इस हालत में यह तुम्हें अपनी पत्नी कहता है। उसकी तुम पर क्या प्रतिक्रिया होगी?”
"वही जो पूनम के कल के व्यवहार में थी।”
“अब हम ललित की मानसिकता के बारे में सोचते हैं—क्या कोई व्यक्ति किसी अजनबी लड़की या औरत को देखते ही झूठमूठ यह कहने की हिम्मत कर सकता है कि वह उसकी पत्नी है?”
"ललित ने केवल कहने की ही हिम्मत नहीं की, बल्कि पुलिस से डरा भी नहीं। अनेक सबूत पेश करके उसने साबित भी कर दिया कि पूनम उसकी ही पत्नी है—और मेरे ख्याल से एक झूठा व्यक्ति इतना साहस नहीं दिखा सकता।”
“नतीजा यह कि पूनम सिद्धार्थ की पत्नी बनने से पहले सचमुच उसकी ही पत्नी थी?”
“इन सब बातों पर गौर करके तो ऐसा ही लगता है सर!”
"यहां मैं तुमसे सहमत नहीं हूं।”
“क्यों?”
"एक बहुत चालाक आदमी, जो पहले ही अपने कथन को प्रमाणित कर देने लायक सबूत बिछा चुका हो, ऐसा दुस्साहस कर सकता है।”
“यानी आप यह मान रहे हैं कि पूनम ललित की पत्नी नहीं है?”
“करेक्ट।”
“फिर पूनम उसे स्वीकार क्यों कर रही है? ”
“कल स्वीकार नहीं कर रही थी, मगर आज स्वीकार कर रही है। कल और आज के बीच एक रात है मिस मंजु—ऐसी रात, जिसमें ललित का उसके बेडरूम में आना प्रमाणित होता है—निश्चय ही उनके बीच कुछ बातें हुई होंगी और उन्हीं बातों के परिणामस्वरूप पूनम ने अपने कल के बयान को पूरी तरह उलट दिया—अब सवाल यह उठता है कि रात के वक्त उनके बीच ऐसी क्या बातें हुई थीं?"
“पूनम ने बताई तो हैं—क्या आपको वे झूठ लगती हैं?”
“क्या तुम्हें सच लगती हैं?”
“हालांकि मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकती मगर जो चीजें सामने हैं, उनसे लगता यही है कि पूनम कल झूठ बोल रही थी। आज जो कुछ वह कह रही है, पैसे और नाम की हवस ने उसे भटका दिया था, मगर जब उसे लगा कि झूठ चल नहीं पाएगा तो सच को स्वीकार लेना ही उसे श्रेयस्कर लगा।”
"मैं ठीक इसके विपरीत सोच रहा हूं।”
"वह क्या?”
“पूनम द्वारा ललित के घर से भागकर सिद्धार्थ की पत्नी बनने तक की सुनाई गई कहानी पूरी तरह अस्वाभाविक है! मेरे ख्याल से कोई भी शादीशुदा स्त्री तब तक अपने पहले पति के घर से नहीं भाग सकती, जब तक कि वहां से उसे ‘हरी झंडी’ न मिले, जहां उसे भागकर जाना है—वह स्वयं स्वीकार करती है कि सिद्धार्थ बाली उस पर ध्यान तक नहीं देता था। इसी अस्वाभाविकता के कारण मुझे लगता है कि रात के वक्त ललित ने उसे डरा-धमकाकर ऐसा बयान देने पर विवश किया है।”
“ललित को ऐसा करने से फायदा?”
"यह तुमने हमारे अब तक के डिस्कशन का सबसे अहम और रचनात्मक सवाल पूछा है—और इसका जवाब यह है मिस मंजु कि इस सारे झमेले के पीछे मुझे किसी बहुत बड़े और गहरे षड्यंत्र की बू आ रही है।”
"कैसा षड्यंत्र?”
“यह मामला, जो एक नजर में देखने पर सिर्फ पति-पत्नी के बीच मतभेद का मामला नजर आ रहा है, वास्तव में उतना हल्का है नहीं—बहुत तेज दिमाग वाले किसी व्यक्ति ने ये सारा ड्रामा रचा है।”
"मगर उसका उद्देश्य क्या हो सकता है?”
“फिलहाल विश्वासपूर्वक तो मैं भी कुछ नहीं कह सकता, परंतु सिद्धार्थ बाली के पेशे को देखते हुए मुझे लगता है कि कोई ताकत है, जो सिद्धार्थ बाली के कैरियर को तबाह करना चाहती है।”
“मैं समझी नहीं?”
“सिद्धार्थ बाली युवा वैज्ञानिक के रूप में देश की एक बहुत बड़ी संपत्ति है न?”
“जी।”
“अमेरिकी अंतरिक्ष शटल में जाने के लिए भी उसका नाम प्रस्तावित है।”
“करैक्ट।”
“मुमकिन है कि कोई ताकत यह न चाहती हो कि सिद्धार्थ बाली विज्ञान के क्षेत्र का ध्रुव तारा बने या अंतरिक्ष शटल में जा पाए।”
“इन दोनों मामलों का ललित वाले मामले से क्या संबंध है सर?”
“सिद्धार्थ पूनम से बहुत प्यार करता है न?”
"जाहिर है।”
"जब सिद्धार्थ बाली को यह पता लगेगा कि पूनम चरित्रहीन ही नहीं, बल्कि उससे पहले ललित जाखड़ की पत्नी है तो सिद्धार्थ पर क्या बीतेगी?”
“ओह!” मिस मंजु के मुंह से अनायास निकला। उसके मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा था। बोली—“ऐसी हालत में सिद्धार्थ बाली के दिमाग के बहुत तगड़ा शॉक लगेगा—वह पागल तक हो सकता है।”
"शायद अज्ञात शक्ति यही चाहती है।”
मिस मंजु की बुद्धि चकराकर रह गई। इतनी दूर तक तो वह स्वप्न में भी नहीं सोच पाई थी। इंस्पेक्टर देशमुख को प्रशंसात्मक नजरों से देखते हुए उसने पूछा—“क्या इस षड्यंत्र में स्वयं पूनम भी शामिल हो सकती है, सर?”
"हो भी सकती है और नहीं भी।”
“क्या मतलब?”
“अगर वह वास्तव में ललित जाखड़ की बीवी नहीं है तो आज की रात किसी आधार पर उसे इतना डराया-धमकाया गया है कि सुबह होते ही वह ललित जाखड़ को अपना पति कहने लगी।”
“सच्चाई दोनों में से चाहे जो हो सर, परंतु अंजाम एक ही होगा—सिद्धार्थ बाली के मस्तिष्क को शॉक। और यह स्थिति बड़ी विकट होगी। इतनी गहराई तक तो मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी, सर कि इस झमेले के पीछे मुजरिम की देश का इतना बड़ा नुकसान करने की साजिश हो सकती है।”
“अगर यह साजिश है।” एकाएक इंस्पेक्टर देशमुख दांतों पर दांत जमाकर बोला, चेहरा सुर्ख को गया था, मुट्ठियां भिंच गईं और पूरी दृढ़ता के साथ कहता चला गया वह—“तो इसे मैं किसी भी कीमत पर कामयाब नहीं होने दूंगा। साजिश रचने वाले की धज्जियां उड़ाकर रख दूंगा मैं—मेरे रहते इस देश से सिद्धार्थ बाली जैसा महान वैज्ञानिक कोई नहीं छीन सकता।”
इंस्पेक्टर देशमुख की मुद्रा देखकर मिस मंजु सकपका-सी गई। उसने इंस्पेक्टर देशमुख को इतना भावुक होते किसी भी केस के दरम्यान नहीं देखा था।
¶¶
‘राजधानी एक्सप्रेस' निर्धारित समय पर नई दिल्ली स्टेशन पहुंची। गाड़ी से उतरकर सिद्धार्थ की निगाहें भीड़ में किसी को खोजने का बड़ी बेताबी से प्रयास कर रही थीं।
उसे पूरा यकीन था कि पूनम  ‘रिसीव’ करने स्टेशन जरूर आएगी—इसलिए प्लेटफॉर्म पर वह बेचैनी भरे अंदाज में चारों तरफ देख रहा था।
करीब पांच मिनट बाद उसकी स्थिति यह हो गई कि हर सामने नजर आने वाली महिला उसे पूनम नजर आने लगी।
परंतु नजदीक पहुंचकर वह ठिठक जाता—आंखों में निराशा के बादल उमड़ने लगते।
सुर्खी लिए हुए गोरा रंग—पिता की ही तरह नीली आंखें, लंबा भरा-भरा चेहरा—घुंघराले बाल—आंखों पर से हटाकर सिर पर किया हुआ सुनहरे फ्रेम का धूप वाला चश्मा—गले में गोल्डन चेन—हाथों को उंगलियों में डायमंड, गोल्ड और सिल्वर की कई अंगूठियां—कलाई पर बेहद कीमती विदेशी घड़ी—लंबे छरहरे शरीर पर शानदार सफारी सूट—कुल मिलाकर सिद्धार्थ का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक था।
और सबसे आकर्षक थीं उसकी गहरी नीली आंखें, जो सहज ही किसी को उनमें डूब जाने के लिए आमंत्रित करती थीं।
लेकिन इस समय उन खूबसूरत नीली आंखों में जमाने भर का दर्द सिमटा हुआ था—बेहद खोई-खोई और उदास।
गाड़ी के आने के बाद प्लेटफॉर्म पर नजर आने वाली भीड़ काफी हद तक छंट चुकी थी।
उसके आने की सूचना पूनम के अतिरिक्त और किसी को नहीं थी—इसलिए किसी और के रिसीव करने आने का कोई मतलब ही नहीं था।
सामान के नाम पर उसके पास केवल एक सूटकेस था—वह बेहद निराशा भरे अंदाज में उसे उठाकर स्टेशन के बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ  बढ़ गया।
वह बाहर आया और एक ऑटोरिक्शा की सीट पर बेहद लापरवाही के साथ सूटकेस फेंककर बैठ गया और पुश्त पर कमर टिकाकर उसने अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं।
“बाबूजी, कहां जाना है?” ऑटोरिक्शा वाले ने ऑटोरिक्शा स्टार्ट करते हुए पूछा!
“ऐ ह...हां, हां।” वह एकदम हड़बड़ाकर बोला, जैसे उसे किसी ने नींद से जगा दिया हो—“बसंत विहार—एम्बेसी रोड।”
¶¶
अपनी कोठी के बाहर पुलिस जीप, जिस पर प्लेट लगी थी—‘इंचार्ज, बसंत विहार पुलिस स्टेशन और झुंडों की शक्ल में खड़े लोगों को देखकर सिद्धार्थ का दिल किसी अज्ञात आशंका से धड़कने लगा। सबको आश्चर्य से देखता हुआ वह अपनी कोठी में जाने लगा। सब लोग उसे अजीब-सी नजरों से देख रहे थे।
वह ड्राइंग हॉल में पहुंच गया, जहां इंस्पेक्टर देशमुख, मिस मंजु मेहता, ललित जाखड़, पूनम, वर्मा, मल्होत्रा और अन्य कुछ पड़ोसी थे।
वह सबको बारी-बारी से आश्चर्य के साथ देख रहा था—आंखों में सवालिया भाव लिए, जैसे पूछ रहा हो कि यह सब क्या है—क्यों खड़े
हैं सब लोग इस तरह?
लेकिन कोई कुछ नहीं बोला—अजीब-सी खामोशी छाई रही वातावरण में। जब कोई कुछ न बोला तो स्वयं उसी ने पूछा—“पूनम, इतने सारे लोग यहां क्यों खड़े हैं?”
प्रत्युत्तर में पूनम अपना चेहरा झुकाए खामोश खड़ी रही—जब से सिद्धार्थ आया था, अभी तक उसने एक बार भी नजरें ऊपर नहीं उठाई थीं।
चाहकर भी वह बताने का साहस नहीं कर सकी।
“त...तुम बोलती क्यों नहीं पूनम?” सिद्धार्थ ने उसे झंझोड़ते हुए पूछा— “क्या हो गया है तुम्हें?”
परंतु वही खामोशी—वही नीची नजरें।
“मैं तुमसे पूछ रहा हूं—तुम जवाब क्यों नहीं देतीं पूनम?” एकाएक बुरी तरह झुंझला उठा सिद्धार्थ।
लगता था, जैसे पूनम की जुबान तालू से चिपक गई हो—किसी कील के सहारे खड़ी लाश की तरह उसकी गर्दन नीचे लटकी हुई थी।
"प...पूनम क्या हो गया है तुम्हें?” सिद्धार्थ विचलित-सा होकर बोला—“प....प्लीज पूनम, बताओ न, कुछ तो बोलो।”
"मिसेज पूनम, आपको कुछ नहीं बता पाएंगी मिस्टर सिद्धार्थ!” अचानक इंस्पेक्टर देशमुख उसकी तरफ बढ़ता हुआ बोला।
सिद्धार्थ एकदम इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ पलटा—चौंककर पूछा—“क्या मतलब?”
"मतलब बहुत गहरा है मिस्टर सिद्धार्थ!”
“पहेलियां मत बुझाइए इंस्पेक्टर!” सिद्धार्थ ने बेचैनी-भरे स्वर में पूछा—“प्लीज, फौरन बताइए, क्या बात है?”
"मिस्टर बाली, ज़रा आप मेरे साथ आइए।”
“किसलिए?”
“मुझे आपसे अकेले में कुछ बातें करनी हैं।”
“इंस्पेक्टर साहब, मैं आपसे अकेले में बात बाद में करूंगा, पहले आपके यहां आने और इस भीड़ का कारण जानना चाहता हूं—क्या हो गया है यहां? मेरी मिसेज कुछ बात क्यों नहीं कर रही?” सिद्धार्थ ने एक ही सांस में कई सवाल कर दिए।
इंस्पेक्टर देशमुख मुस्कराया। ललित की तरफ इशारा करते हुए सिद्धार्थ से पूछा—“आप मिस्टर ललित को जानते हैं?”
सिद्धार्थ ने हौले से चौंककर ललित की तरफ देखा। कहा— हां, यह विशेष विज्ञान समाचार पत्रिका के रिपोर्टर हैं।
"इनसे आपका अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी में कोई संबंध है?”
“मेरा इनसे सिर्फ इतना परिचय है कि यह अपनी पत्रिका के मैटर के लिए अक्सर विज्ञान संस्थान आते रहते हैं—इनकी पत्रिका में समय-समय पर मेरे वक्तव्य, लेख और इंटरव्यू वगैरह छपते रहते हैं—इसके अलावा मेरा मिस्टर ललित से कोई संबंध नहीं है।”
“ओह!” इंस्पेक्टर देशमुख ने सोचपूर्ण मुद्रा में कहा।
“क्या बात हो गई इनसे?”
“यह जनाब आपसे मिलने कल यहां आए थे।” इंस्पेक्टर देशमुख चहलकदमी करता हुआ बोला— और यहां मिसेज पूनम को देखकर उन्हें अपनी पत्नी होने का दावा करने लगे...।"
उसकी बात पूरी होने से पहले ही सिद्धार्थ बाली ललित जाखड़ को खा जाने वाली निगाहों से घूरता हुआ बोला—“इस कमीने की यह मजाल—मैं इसे जान से मार डालूंगा।” कहते हुए सिद्धार्थ बाली की खूबसूरत नीली आंखों में खून तैरने लगा—चेहरा कनपटियों तक भभककर सुर्ख हो गया—मुट्ठियां कसकर भिंच गईं।
उत्तेजित अवस्था में वह उसकी तरफ बढ़ा।
“रुक जाइए बाली साहब!" इंस्पेक्टर देशमुख उसके सामने आता हुआ बोला— पहले पूरी बात तो सुन लीजिए।”
“अब आपकी पूरी बात मैं बाद में सुनूंगा, इंस्पेक्टर—पहले जरा इसे बदतमीजी का सबक सिखा दूं।” सिद्धार्थ बाली इंस्पेक्टर देशमुख को सामने से हटाता हुआ बोला।
"इसीलिए को मैंने पहले आपसे अकेले में बात करने के लिए कहा था, सिद्धार्थ साहब।” इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा—“मिस्टर ललित से कुछ कहने से पहले आपको मिसेज पूनम से भी बात करनी होगी।”
"हम समझे नहीं इंस्पेक्टर?”
"तभी तो मैं कह रहा हूं कि पहले पूरी बात सुन लीजिए।” इंस्पेक्टर देशमुख आग्रह करता हुआ बोला—“उसके बाद सब कुछ आपकी समझ में आ जाएगा।”
एक क्षण के लिए सिद्धार्थ ने कुछ सोचा—फिर जाने क्या सोचकर बोला—“ठीक है इंस्पेक्टर—आप पूरी बात बताइए।”
“अच्छा यही होगा सिद्धार्थ साहब कि हम लोग अकेले कमरे में बैठकर बातें करें—क्योंकि मुझे इस केस के लिए ही आपसे कुछ व्यक्तिगत सवाल भी करने हैं।               
सिद्धार्थ के चेहरे पर उलझन भरे भाव आ गए। वह खूंखार अंदाज में ललित की तरफ देखता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख से बोता—“आइए इंस्पेक्टर।”
ललित को लगातार घूरता हुआ वह हॉल से निकलकर अपने स्टडीरूम की तरफ बढ़ गया।
इंस्पेक्टर देशमुख उसके पीछे चल रहा था।
¶¶
इंस्पेक्टर देशमुख के अंदर आते ही सिद्धार्थ ने तुरंत स्टडीरूम का दरवाजा बंद किया और तेजी से पलटकर बोला—“कहिए इंस्पेक्टर, आपको क्या बात करनी है?”
उसकी इस फुर्ती को देखकर इंस्पेक्टर देशमुख एक क्षण को तो ठगा-सा रह गया—लेकिन फिर स्टडीरूम में रखी एक कुर्सी पर बैठ
गया।
सिद्धार्थ उसे अत्यधिक बेचैन नज़र आ रहा था—इसलिए बिना किसी भूमिका के कहना शुरू किया—“सिद्धार्थ साहब, मिसेज पूनम से आपकी शादी किस तरह हुई?”
“मेरी शादी से इस बात का क्या ताल्लुक?”
"आपको ही मालूम है।”
"आपने ही तो अभी बताया है कि ललित यहां आकर पूनम को अपनी मिसेज होने का दावा करने लगा?”
"सिद्धार्थ साहब यह तो इस अजीबोगरीब केस की स्टार्टिंग थी—पूरा केस तो अभी आपको मालूम ही नहीं है।
कहता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख रहस्यमय अंदाज में मुस्कराया।
“तो फिर आप बताते क्यों नहीं?” सिद्धार्थ का बेचैन स्वर।
"आप बताने का मौका ही कहां दे रहे हैं?” इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा— बीच में ही अपने सवाल करने लगते हैं।”
"अच्छा, बताइए आप।”
“सिद्धार्थ साहब, पहले आप मुझे मेरे सवालों का जवाब दें—उसके बाद ही मैं आपको पूरा केस बताऊंगा—क्योंकि इस केस के लिए आपका बयान बहुत महत्त्वपूर्ण है—और केस को पहले सुनने के बाद आपका बयान उससे प्रभावित हो सकता है।
"पूछिए, आपको क्या पूछना है?”
“आपकी और मिसेज पूनम की शादी किस तरह और किन हालातों में हुई—यह पूरी घटना मैं डिटेल में जानना चाहता हूं।" उसकी तरफ देखता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख बोला—“और उसमें आप कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं करेंगे।”
सिद्धार्थ ने बताना शुरू किया।
इंस्पेक्टर देशमुख के सामने लगभग वही कहानी दोहराई जाने लगी, जो कल ललित के सबूत पेश करने से पहले पूनम ने उसे यहां पहुंचने के तुरंत बाद अकेले कमरे में सुनाई थी।
“क्या सोचने लगे इंस्पेक्टर?” अपनी बात खत्म होने के बाद इंस्पेक्टर देशमुख को सोचपूर्ण मुद्रा में देखकर सिद्धार्थ ने पूछा।
“सोच रहा हूं कि आपकी इस कहानी और कल सुनी उस कहानी में कोई फर्क नहीं है।”
"पूनम से सुनी होगी?”
“जी।”
“इंस्पेक्टर,  फिर अलग होने का क्या सवाल हो सकता है?” सिद्धार्थ ने उसे इस प्रकार देखा, जैसे उसने कोई मूर्खतापूर्ण बात कर दी हो। बोला—“किसी पति-पत्नी की एक ही शादी की घटनाएं अलग-अलग कैसे हो सकती हैं?”
"सिद्धार्थ साहब, क्या ऐसा भी हो सकता है कि आपके साथ शादी होने से पहले मिसेज पूनम की एक और शादी हो चुकी हो?”
“यह तुम क्या बकवास कर रहे हो इंस्पेक्टर?” सिद्धार्थ गुर्राया।
“यह बकवास मैं नहीं, आपकी मिसेज पूनम कर रही हैं कि आपके साथ शादी करने से पहले उनकी मिस्टर ललित जाखड़ से शादी हो चुकी थी।
“न...नहीं।” अविश्वसनीय स्वर में सिद्धार्थ चीखा—“य...यह नहीं हो सकता—पूनम ऐसा नहीं कर सकती, इंस्पेक्टर!”
“ऐसा नहीं हो सकता—आपकी इस बात से तो मैं एक बार को इत्तफाक रख सकता हूं—लेकिन यह बिल्कुल सच है कि मिसेज पूनम ने ऐसा ही कहा है—और उनकी सुनाई गईं इन दोनों कहानियों के बीच में सिर्फ एक संदिग्ध रात है।”
"स...संदिग्ध रात?”
“जी हां, मैं उसे संदिग्ध रात ही कहूंगा।” इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा—“कल मिसेज पूनम ने आपके साथ शादी की मुझे बिल्कुल यही कहानी सुनाई थी, जो आपने इस वक्त सुनाई है, ललित जाखड़ द्वारा पेश किए गए दावे का उन्होंने चीख-चीखकर विरोध किया था—उसके सबूतों को नितांत झूठे और बेबुनियाद बताया था—लेकिन आज सुबह उठकर वह उसके सबूतों को सही बताने लगीं—अब वह ललित को ही अपना पति कह रही हैं—और इसके साथ ही ललित के घर से भागकर एक योजनाबद्ध तरीके से आपके साथ शादी करने की नई कहानी सुना रही हैं—बिल्कुल अजीबोगरीब फिल्मी कहानी—इन दोनों घटनाओं में सिर्फ एक कल की रात बीच में है—और इसी रात ललित आपकी कोठी के पिछवाड़े से मिसेज पूनम के पास आया था—क्योंकि मेन गेट पर एक कांस्टेबल पहरा दे रहा था—बस, सिद्धार्थ साहब, यही वह रात है, जो मेरी नजरों में खटक रही है—इस रात ललित और मिसेज पूनम के  बीच क्या हुआ—उनके बीच क्या बात हुई—इसकी असलियत अभी अज्ञात है।”
"मैं बताता हूं, इंस्पेक्टर, इसकी असलियत क्या है?” सिद्धार्थ उत्तेजित होकर जोश में बोला—“उस कमीने ने बेचारी पूनम को कोई खतरनाक धमकी दी होगी— जिससे डरकर वह उसके इशारों पर चलने के लिए मजबूर हो गई।”
“जब तक कोई सबूत न हो, तब तक इस संबंध में किया ही क्या जा सकता है?”
“इंस्पेक्टर साहब, मैं कल से आज तक की तमाम घटनाएं सुनना चाहता हूं—प्लीज, अब आप मुझसे बिना कोई सवाल किए फौरन से घटनाएं सुनाइए।” सिद्धार्थ परेशान-सा होकर बोला—“जाने मेरे पीछे इन दो दिनों में क्या-क्या हो गया है यहां?”
और अब!
इंस्पेक्टर देशमुख कल ललित के आने से लेकर आज सिद्धार्थ के आने से पहले तक की तमाम घटनाएं अक्षरश: बताता चला गया।
सुनकर सिद्धार्थ के चेहरे पर तड़प और पीड़ा के मिले-जुले भाव उभर आए। उसके बाद वह एकदम पागल-सा होकर बोला—“न...नहीं—यह नहीं हो सकता—य...यह कभी नहीं हो सकता—मेरी पूनम ऐसी नहीं हो सकती—यह सब गलत है, झूठ है—मेरे खिलाफ कोई भयानक षड्यंत्र रचा गया है। कोई मुझसे मेरी पूनम को छीनने की साजिश कर रहा है, इंस्पेक्टर!” कहने के बाद देश का महान युवा वैज्ञानिक किसी अबोध बच्चे की तरह फूट-कूटकर रो पड़ा।
¶¶
"इन सब लोगों से कह दो पूनम कि तुमने आज सुबह जो कहा, वह झूठ है, गलत है—तुमने इस कमीने की धमकी की वजह से ही ऐसा कहा है।” पूनम को बुरी तरह झंझोड़ता हुआ सिद्धार्थ कह रहा था— डरो मत पूनम, अब मैं आ गया हूं—सब ठीक हो जाएगा—ल...लेकिन तुम सिर्फ एक बार इन सब लोगों के सामने कह दो कि यह झूठ है—मैं इस हरामजादे को जिंदा नहीं छोड़ूंगा।”
“य...यह बिल्कुल सच है, मिस्टर सिद्धार्थ!” उसके आने के बाद पूनम ने पहली बार सिद्धार्थ से नजरें मिलाते हुए कहा— मैंने आपके साथ धोखा किया है।”
"मेरे साथ इतना गंदा मजाक मत करो—त...तुम मुझे धोखा नहीं दे सकतीं पूनम।"
"अब मैं इसे झूठ कहकर आपको और अधिक धोखे में नहीं रखना चाहती—मैंने पहले ही आपके साथ बहुत धोखा किया है।” पूनम सिद्धार्थ की आंखों में आंखें डालती हुई बोली—“वैसे तो आपको इंस्पेक्टर साहब ने सबकुछ बता दिया होगा—लेकिन फिर भी बता दूं कि मैं आपके लिए उसी दिन से पागल थी—जिस दिन मैंने विज्ञान संस्थान में आपको पहला बार देखा—तब ही आपको पाने का, आपकी पत्नी बनने का ख्वाब देखने लगी थी—परंतु आपकी तरफ से मुझे कोई लिफ्ट नहीं मिली—इसीलिए बीच में मेरी जिंदगी में मिस्टर ललित जाखड़ आ गए और मैंने इनसे शादी कर ली—लेकिन मैं आपके रव्वाब देखना न छोड़ सकी और आपको पाने का मेरा पुराना सोया हुआ ख्वाब उस समय एक बार फिर जागृत हुआ—जब मैंने टी.वी. पर यह समाचार सुना कि आपको अमेरिकी अंतरिक्ष शटल के अंतरिक्ष यात्री के रूप में चुना जा सकता है—बस, मैं अंतरिक्ष यात्री की पत्नी बनने के लिए पागल हो उठी—इतनी अधिक पागल कि अपने देवता जैसे पति और स्वर्ग जैसे सुंदर घर को छोड़कर आपकी पत्नी बनने के लिए निकल पड़ी—उसी रात परेशान और घबराई-सी आपके पास विज्ञान संस्थान पहुंची—वहां पर मैंने आपको अपने भाई मोहन और उसके साथ आए शराब के ठेकेदार की एक काल्पनिक कहानी सुनाई—और उसके बाद जो कुछ हुआ, वह आपको मालूम ही है—लेकिन कल मिस्टर ललित के आने पर एक बार फिर मेरी जिंदगी में तूफान-सा आ गया— पहले तो मैं इन्हें अपनी खुदगर्जी की वजह से पहचानने से भी इन्कार करती रही—सब लोगों के सामने इन्हें गालियां तक देती रही—इनके सारे सबूतों को झुठलाती रही—लेकिन रात इनकी बातों ने मेरी खुदगर्जी की नींद में बंद आंखें खोल दीं।” पूनम उसकी तरफ हाथ जोड़ती हुई बोली—“हो सके तो मुझे माफ कर दीजिए और इस गंदी, धोखेबाज और पापिन को भूल जाइए।"
“पूनम, यह तुम नहीं—इस कमीने गंदे आदमी की कोई साजिश बोल रही है।” सिद्धार्थ चीखा।
“देखिए मिस्टर सिद्धार्थ, आपकी गुनहगार मैं हूं—आप मुझे चाहे जो कह लीजिए—मैं आपकी मुजरिम हूं—आप मुझे जो भी सजा देंगे, खुशी से स्वीकार कर लूंगी—लेकिन आप इनके लिए कोई भी अपशब्द न कहें।” ललित की तरफ इशारा करते हुए पूनम ने विनती-भरे स्वर में कहा।
“य...यह तुम्हें क्या हो गया है?” सिद्धार्थ एकदम लगभग रो देने वाले अंदाज में बोला—“त...तुम मेरे सामने इस व्यक्ति की....।”
“यह मेरे पति हैं मिस्टर सिद्धार्थ!”
“और मैं?”
“एक शादीशुदा नायिका की किसी फिल्म की कहानी में उसके नायक से शादी हो जाए तो वास्तविक जिन्दगी में वह उसका पति नहीं हो जाता।” पूनम बोली—“बस, आप भी यही समझ लीजिए कि आप मेरी उसी कहानी के पति थे।”
“त....तुम नहीं जानतीं पूनम कि तुम्हारी इन बातों से मुझ पर क्या गुजर रही है—तुम सबको बता क्यों नहीं देतीं कि तुम मुझसे ऐसी बात करने के लिए क्यों मज़बूर हो?”
"इसलिए कि आज मेरी आंखें खुल गई हैं—खुदगर्जी की जमीन पर अपनी ही बसाई स्वार्थ और पाप की दुनिया से मैं ऊब गई हूं—आज उस दुनिया से बाहर आने के लिए मुझमें सच बोलने और कोई भी सजा सहने का साहस पैदा हो गया है।”
सिद्धार्थ की आंखों में जमाने भर का दर्द सिमट आया—आंसुओं के कारण उसकी आंखें नीली झील-सी नजर आने लगीं।
दांतों से भींच-भींचकर अपने होंठों को लहूलुहान कर डाला उसने।
“म...मैं तुमसे अकेले कमरे में बात करना चाहता हूं।” वह पूनम का हाथ पकड़कर बोला—“मेरे साथ आओ।”
पूनम ने झटके के साथ अपना हाथ छुड़ा लिया, साथ ही रूखे स्वर में बोली—“आपको जो बात करनी है, यहीं कर लीजिए—अकेले में भी उससे अलग कोई बात नहीं होगी, जो मैं यहां कह रही हूं।”
“म...पूनम!” सिद्धार्थ हिस्टीरियाई अंदाज में चीखा—“मेरे प्यार का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश मत करो—यह मत भूलो कि इस वक्त तुम मेरी पत्नी हो—और मेरे पास रखा आर्यसमाज मंदिर का विवाह-प्रमाणपत्र इस बात का गवाह है कि मैं तुम्हें जबरदस्ती या रखैल बनाकर नहीं लाया—मेरी इजाजत के बिना किसी और के साथ जाना तो बहुत दूर की बात है—तुम जहां  खड़ी हो, वहां से हिल भी नहीं सकतीं—और मेरे इस अधिकार को दुनिया का कोई कानून, किसी समाज का कोई नियम चुनौती नहीं दे सकता—समझीं तुम?”
उसका यह रूप देखकर पूनम सिहर-सी गई।
परंतु एकाएक ललित जाखड़ आगे बढ़ता हुआ बोला—“बहुत हो चुका मिस्टर सिद्धार्थ, अगर आप कानून की भाषा में बात करेंगे तो शिकस्त आपकी ही होगी, क्योंकि औरत उसकी ही पत्नी होती है, जिससे उसकी पहले शादी हुई हो—शादीशुदा स्त्री अगर किसी अन्य मर्द से शादी कर ले तो कानून उसे मान्यता नहीं देता।”
“त...तू हरामजादे!” आपे से बाहर होकर सिद्धार्थ बाली ललित जाखड़ पर झपट पड़ा—उधर ललित भी उसके आक्रमण का समुचित जवाब देने के लिए तैयार नजर आ रहा था, परंतु इंस्पेक्टर देशमुख ने ऐसी नौबत नहीं आने दी—सिद्धार्थ को बीच में ही रोकता हुआ वह बीला—“होश में आइए मिस्टर सिद्धार्थ—मार-पिटाई किसी समस्या का हल नहीं है।”
“मैं इस कमीने के…।”
“धीरज रखिए।” सिद्धार्थ का वाक्य पूरा होने से पहले ही इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा—“आप पूनम से अकेले में बात करना चाहते हैं, वह मौका मैं आपको दूंगा।”
सिद्धार्थ बाली का जिस्म कुछ ढीला पड़ा।
अब, ललित जाखड़ की तरफ पलटकर इंस्पेक्टर देशमुख ने अजीब-से स्वर में पूछा—“अब आप कहिए मिस्टर ललित, अगर सिद्धार्थ बाली और मिसेज पूनम कुछ देर अकेले में बात करें तो क्या आपको कोई आपत्ति होगी?”
“अगर खुद पूनम को कोई आपत्ति नहीं है तो मुझे भी क्या आपत्ति होगी !”
¶¶
 देखो पूनम, इस समय यहां हम दोनों के अलावा और कोई नहीं है—तुम मुझे सबकुछ साफ-साफ बता दो।” सिद्धार्थ ने बेहद प्यार-भरे स्वर में कहा—“हो सकता है, कभी तुमसे अनजाने में कोई गुनाह हो गया हो—भूल से कोई पाप कर बैठी हो तुम या तुम्हारी कोई कमजोरी रही हो, जिसकी वजह से ललित या कोई और तुम्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा हो—ऐसी कोई बात है तो डरो नहीं पूनम, मैं हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं—तुम्हारा कोई भी गुनाह, कोई भी पाप मैं अपने दिल में जज्ब कर लूंगा—कभी तुमसे उसका जिक्र तक नहीं करूंगा—तुम्हें पहले की ही तरह प्यार करता रहूँगा।”
“एक शादीशुदा औरत होकर किसी गैर मर्द के लिए अपने घर की चौखट लांघने का जो गुनाह मुझसे हुआ है—और फिर भगवान के मंदिर में दूसरी शादी रचाने का जो पाप मैं कर बैठी हूं—वह मैं सब लोगों को और आपको भी बता चुकी हूं।” पूनम ने कहा—“अब अपना कोई भी गुनाह या पाप मैं छुपाना नहीं चाहती— उनका प्रायश्चित करना चाहती हूं।”
“नहीं पूनम, यह झूठ है—मेरा दिल मुझसे चीख-चीखकर कह रहा है कि तुम मुझसे कुछ छिपा रही हो।” सिद्धार्थ बाली तड़प-सा उठा—“प्लीज पूनम, बता दो न—म...मैं तुम्हें नहीं खो सकता—और खोकर जी नहीं सकता—मुझ पर तरस खाओ—द...देखो, म...मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं—प्लीज मेरी जिंदगी से मत जाओ।”
पूनम ने देखा—सिद्धार्थ ने उसके सामने सचमुच हाथ जोड़ दिए थे—दो नीली आंखों में आंसुओं का तूफान-सा आया हुआ था।
सिद्धार्थ की हालत देखकर पूनम को ऐसा लगा, जैसे किसी ने उसका दिल कसकर मुट्ठी में भींच लिया हो।
आंसुओं को रोकने की कोशिश में उसका चेहरा बिगड़ने लगा।
बोली— मैं भी अच्छी तरह जानती हूं कि आप मुझसे कितना प्यार करते हैं—आपकी तड़प और असीम दर्द से मुझे पूरी सहानुभूति है—आपके दुख को देखकर मन पर अपने जुर्म के एहसास का बोझ और बढ़ गया है—लेकिन इन सब बातों से कोई सच, झूठ तो नहीं बन सकता न?”
वह तेजी से उठकर पूनम के ठीक सामने पहुंच गया—घुटनों के बल बैठकर—सोफे पर बैठी पूनम का चेहरा अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया और उसकी आंखों में झांकता हुआ बोला—“मुझे सिर्फ इतना बता दो पूनम कि मेरे प्यार में कौन-सी कमी रह गई—मुझसे कौन-सा गुनाह हो गया—जिसकी तुम मुझे यह सजा दे रही हो?”
“आपसे कोई गुनाह नहीं हुआ—आपके प्यार में कहीं कोई कमी नहीं रही।” पूनम ने अपने चेहरे से उसके हाथ हटाने का प्रयत्न करते हुए कहा—“लेकिन कभी-कभी एक व्यक्ति के किए गए गुनाह की सजा बहुत-से लोगों को  भुगतनी पड़ती है…मेरी दौलत की भूख और बहुत बड़े व्यक्ति की पत्नी बनने की महत्वाकांक्षा ने मुझसे जो गुनाह करवाया है—उसकी सजा का एक हिस्सेदार मैंने आपको भी बना दिया है—आज उस घड़ी को कोस  रही हूं, जिस घड़ी मैंने आपको पाने की मनहूस योजना बनाई थी—मेरी वजह से ही दो घर बरबादी के कगार पर पहुंच गए—कितना दुख पहुंचा है आपको मेरी वजह से—आपकी मुजरिम हूं मैं—आप मुझे कोई ऐसी सजा दीजिए मिस्टर सिद्धार्थ, जो मुझे जिंदगी-भर यह एहसास दिलाती रहे कि मैं गुनहगार हूं।”
अचानक सिद्धार्थ का चेहरा एकदम खूंखार हो उठा—आंखों में आंसुओं के स्थान पर खून तैरने लगा।
एक क्षण पहले तक भावुक-सा नज़र आने वाला सिद्धार्थ इस समय वहशी दरिंदा नजर आने लगा—इसके साथ ही उसके मुंह से भेड़िये जैसी गुर्राहट निकली—“जिंदगी-भर एहसास तो तब रहेगा न—जब तुम जिंदा रहोगी।”
सिद्धार्थ का यह खूंखार रूप देखकर पूनम कांप गई—उसके सारे शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ती चली गई।
तभी वहशियाना अंदाज में सिद्धार्थ के हाथ उसके चेहरे से खिसककर उसकी गर्दन पर जाकर कस गए।
पूनम के होंठों से आवाज भी न निकल सकी।
¶¶
युवती की उम्र ज्यादा नहीं थी—यही कोई बीस के आसपास। रंग-सांवला—चेहरा भी सुंदर नहीं—शरीर पर साधारण-सी धोती और ब्लाउज,               धोती अपना कार्यकाल काफी समय पहले ही पूरा कर चुकी थी—लेकिन अभी उसे रिटायर नहीं किया गया था—इसलिए उसमें जगह-जगह झरोखे-से नजर आ रहे थे और कुछ जगहों से उसका वास्तविक रंग गायब होकर हल्की-सी सफेदी का रूप ले चुका था—पैरों में जगह-जगह से सिलाई लगी बेहद पुरानी दो पट्टी की चप्पलें, जिसे पहनने के बाद एड़ी का जमीन से स्पर्श हर हालत में आवश्यक था—क्योंकि वे इतनी घिस चुकी थीं कि उनका एड़ीवाला पिछला हिस्सा ही गायब हो गया था।
यह था कोठी में आई आगंतुक युवती का हुलिया।
हाल में किसी पुलिस ऑफिसर और कोठी के कुछ परिचित पड़ोसियों को देखकर वह कुछ सकपका-सी गई।
उसके मन में कुछ दुविधा तो अवश्य आई—लेकिन साहस नहीं था कि किसी से कुछ पूछ पाती।
इसलिए बगैर किसी से कुछ बोले उसने सबके बीच में से निकलकर हॉल पार करके अंदर जाना चाहा।
परंतु इंस्पेक्टर देशमुख ने उसे ऐसा न करने दिया।
“कौन हो तुम?” इंस्पेक्टर देशमुख का रोबीला स्वर।
युवती बौखला गई—इस कदर कि वह इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ देखकर कांपने लगी—जवाब कुछ नहीं दिया उसने।
“बोलती क्यों नहीं तुम कौन हो?”
"ज...जी—म...मैं यहां नौकरानी हूं।” वह मिमियाई।
“कम्मो है न तुम्हारा नाम?”
“ज...जी—स...सा...ब!” कठिनता से वह इतना ही कह पाई।
"तुम्हारी ही तलाश थी मुझे।" बुदबुदाते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने कठोर स्वर में कहा—“इधर आओ।”
कम्मो की सांस नीचे-की-नीचे—ऊपर-की-ऊपर। चेहरा फक्का ! उसे देखकर ऐसा लगता था, जैसे किसी ने शेर के कठघरे में अंदर जाने का हुक्म दे दिया हो।
सहमे हुए अंदाज में चलकर वह इंस्पेक्टर देशमुख के पास पहुंच गई।
“कल तुम काम पर क्यों नहीं आईं?” इंस्पेक्टर देशमुख ने उसे घूरते हुए सवाल किया।
“ज...जी—ब...बापू की तबीयत खराब थी—उन्हें डॉक्टर को दिखाने सरकारी अस्पताल ले गई थी, सा..ब!”
“तुमने मिसेज पूनम के मंगलसूत्र के लॉकेट से फोटो कब बदला?”
कम्मो बुरी तरह चौंकी—“क…क्या सा....ब...?”
“अनजान मत बनो।” इंस्पेक्टर देशमुख गुर्राया—“वरना इतना मारूंगा कि तेरे बापू भी तुझे पहचान नहीं पाएंगे।”
“म...मैं सच कह रही हूं साहब—अ...आप किस लॉकेट...।”
“मिसेज पूनम के गले में जो मंगलसूत्र पड़ा है—मैं उसमें फोटो बदलने की बात पूछ रहा हूं।”
“म...मुझे क....कुछ नहीं मालूम साहब!”
“जब हम तुझे थाने ले जाकर हवालात में बंद करेंगे—तब सब मालूम हो जाएगा तुझे।”
थाने और हवालात का नाम आते ही कम्मो की रूह कांप गई—रोने के लिए वह एकदम तैयार नजर आने लगी—कांपते हुए स्वर में बोली—“ल...लेकिन स...सा 'ब—म...मैंने क्या किया है?”
"लाल रंग वाले ब्रीफकेस में इनका दिया हुआ कार्ड तुमने ही रखा था?” इंस्पेक्टर देशमुख ने ललित जाखड़ की तरफ इशारा करते हुए उससे पूछा।
कम्मो ने चौंककर ललित की तरफ देखा—उसे देखकर कम्मो के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे, जैसे वह उसका परिचय मांग रही हो।
ललित के होंठों पर एक अजीब-सी रहस्यमय मुस्कराहट थी।
“लगता है, इन्हें भूल गईं तुम?”
"भूलने का सवाल तो तब उठता है साहब—जब मैं पहले कभी इनसे मिली होऊं।” कम्मो ने पहली बार बेबाक उत्तर दिया।
“अपने दो छोटे-छोटे काम करवाने के लिए इन्होंने तुम्हारे बापू के इलाज के पैसे नहीं दिए?”
“य...यह आप क्या कह रहे हैं साहब?” कम्मो ने उलझन भरे स्वर में कहा—“इनके कौन से दो छोटे-छोटे काम, जिन्हें करके मैंने इन्हें बापू के इलाज का ठेका दे दिया? और उससे भी पहली बात है कि य...यह हैं कौन? यह सब आप क्या कह रहे हैं—मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा साहब।”
“अच्छा, समझ में नहीं आ रहा है तो छोड़ो।” इंस्पेक्टर देशमुख उसके चेहरे को पढ़ता हुआ बोला—“शायद वह कोई और होगी।”
“स...सा...ब।” उसने कुछ कहना चाहा।
लेकिन इंस्पेक्टर देशमुख ने उसकी बात बीच में काटकर पूछा—“यहां किसलिए आई थीं तुम?”
“बापू का एक्सरे कराने के लिए बीबीजी  से पैसे लेने आई थी।” कम्मो ने कहा—“बीबीजी कहां हैं?”
“जाओ, मिल लो, अंदर हैं।”
अंदर जाने के लिए इंस्पेक्टर देशमुख की आज्ञा पाने के बाद कम्मो ने कोई सवाल नहीं किया।
उसके अंदर जाने के लगभग दो मिनट बाद उसकी बहुत तेज चीख सुनाई दी—“ब...बचाओ।”
¶¶
हॉल में जितने व्यक्ति थे, लगभग सभी कम्मो की आवाज की दिशा में भागे।
विशेष रूप से इंस्पेक्टर देशमुख चीते जैसी फुर्ती के साथ छलांग लगाता हुआ अगले ही क्षण कम्मो के पास था।
कम्मो का चेहरा पसीने से तर-बतर—आंखें भय से फटी हुईं, जैसे उसने कोई भयानक स्वप्न देखा हो—बदहवास-सी वह चीखती हुई हॉल की तरफ भागी।
लेकिन अपने स्थान से वह पांच-छ: कदम भागने के बाद ही इंस्पेक्टर देशमुख से टकरा गई।
“क...क्या हुआ कम्मो?” इंस्पेक्टर देशमुख ने उसकी दोनों बाजुओं को पकड़कर पूछा।
अपनी उखड़ी हुई सांसों को किसी तरह नियंत्रित करके उसने कहा—“स...साहब.....बीबीजी को मालिक से बचाइए।”
इससे आगे इंस्पेक्टर देशमुख ने कुछ नहीं सुना।
किया अवश्य था।
इंस्पेक्टर देशमुख किसी छलावे की तरह उस कमरे की तरफ लपका, जहां से कम्मो चीखती हुई बाहर आई थी।
उफ!
कमरे का दृश्य देखकर इंस्पेक्टर देशमुख कांप उठा।
सिद्धार्थ बाली ने पूनम की गर्दन पर अपने हाथों का शिकंजा कसा हुआ था—जिसे वह निरंतर जोर लगाकर और कसता जा रहा था।
उसकी आंखों में खून तैर रहा था—जबड़े सख्ती के साथ भिंचे हुए थे।
पूनम का चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ था, मानो सारे शरीर का खून चेहरे पर आकर जमा हो गया हो—फटी हुईं आंखें उबलकर एकदम बाहर आ रही थीं—अपनी गर्दन को छुड़ाने के लिए जब उसने शुरू में प्रयास किया होगा—तभी से विरोध भरे अंदाज में उसके हाथ सिद्धार्थ के शिकंजे पर थे—बल्कि यूं कहना ज्यादा उचित होगा कि वे हाथ विरोध न कर पाने की स्थिति में केवल सिद्धार्थ के हाथों पर पड़े थे।
“सिद्धार्थ साहब, यह आप क्या कर रहे हैं?” पूनम की गर्दन पर से सिद्धार्थ के हाथों को हटाने की कोशिश करता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख चीखा—“छोड़िए इनको।”
“हट जाओ, इंस्पेक्टर—मैं आज इसे नहीं छोड़ूंगा—जान से मार डालूंगा।” सिद्धार्थ की भेड़िए-सी गुर्राहट।
इंस्पेक्टर देशमुख को लगा कि अब अगर एक-दो क्षण और पूनम की गर्दन सिद्धार्थ के हाथों से न छुड़ाई गई तो उसके सामने ही एक हत्या हो जाएगी।
यह सोचते ही उसने अपने दोनों हाथ कैंची जैसे अंदाज में सिद्धार्थ के हाथों के बीच अजीब तरह से फंसाए और अपनी पूरी ताकत लगाकर उसने अपने दोनों हाथों को बाहर की तरफ विपरीत दिशा में एक बहुत तेज झटका दिया।
इसके साथ ही पूनम की गर्दन पर कसे हुए सिद्धार्थ के हाथ अलग हो गए।
सिद्धार्थ के हाथों से छूटकर पूनम की न केवल गर्दन, बल्कि पूरा शरीर ही सोफे पर लुढ़क गया।
ललित तेजी से उसकी तरफ झपटा—उसकी नब्ज टटोलता हुआ वह चीखा—“पानी लाओ!”
“अभी लाई।” कहने के साथ ही कम्मो किचन की तरफ भागी।
एक मिनट से भी कम समय में वह पानी ले आई।
ललित अपने हाथ से पूनम का मुंह खोलकर उसमें चम्मच से पानी डालने लगा—पांच चम्मच पानी पिलाने के बाद उसने पानी के कुछ छींटे उसके चेहरे पर भी मारे।
परिणामस्वरूप पूनम हल्के-से कुलबुलाई।
तब ललित ने राहत की सांस ली।
साथ ही इंस्पेक्टर देशमुख ने भी।
लेकिन इन बातों से बिल्कुल अलग इंस्पेक्टर देशमुख के बंधनों में फंसा सिद्धार्थ लगातार चीख रहा था।
बेहद उत्तेजित था वह—साथ ही खूंखार भी।
वह इंस्पेक्टर देशमुख है छूटकर पूनम की तरफ बढ़ने की पूरी कोशिश कर रहा था।
¶¶
“होश में आइए, सिद्धार्थ साहब—आप कोई साधारण इंसान नहीं, पढ़े-लिखे, देश के इतने बड़े वैज्ञानिक हैं।” इंस्पेक्टर देशमुख सिद्धार्थ बाली को बड़ी मुशिकल से संभालता हुआ बोला।
“बड़ा वैज्ञानिक होने का मतलब ये तो नहीं है इंस्पेक्टर कि मेरे सीने में दिल ही न हो—जो अपने साथ किए गए धोखे को धोखा और जुल्म को जुल्म न समझ सके—अपनी किसी पीड़ा और दर्द का एहसास न कर सके।” सिद्धार्थ उसके बंधनों में मचलता हुआ भड़ककर बोला।
“मैं आपके जज्बात बहुत अच्छी तरह समझ रहा हूं, सिद्धार्थ साहब—लेकिन जरा शांति के साथ एक मिनट सोचिए कि आपके साथ जो नाइंसाफी हुई है—क्या इस बात का इलाज यही है, जो आप कर रहे हैं—क्या यह एक पढ़े-लिखे और परिपक्व व्यक्ति का निर्णय लगता है?”
“इंस्पेक्टर, आप मुझे चाहे जो कहें—गंवार, जाहिल या फिर साधारण आदमी—लेकिन मैं इसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा—मुझे फांसी या जेल में सजा काटने की कोई चिंता नहीं—क्योंकि जिंदा रहते हुए यह मेरी होना नहीं चाहती—और इससे दूर होकर मैं जिंदा नहीं रह सकता—बस, इसके बीच का एक यही रास्ता है कि मैं इसे भी खत्म कर दूं और खुद भी खत्म हो जाऊं।” दीवानगी भरे आलम में सिंद्धार्थ ने कहा।
इसके साथ ही इंस्पेक्टर देशमुख के बंधनों से निकलने की भरपूर कोशिश कर रहा था वह।
परंतु इंस्पेक्टर देशमुख के सामने उसकी एक न चली।
 सिद्धार्थ साहब, मुझे पुलिस कार्रवाई करने के लिए मजबूर मत कीजिए—मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूं।” इंस्पेक्टर देशमुख ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा—“सिर्फ मैं ही नहीं, इस देश के तमाम लोगों के दिलों में आपके लिए बहुत सम्मान और प्यार है—ऐसी कोई अप्रिय घटना घटित करके करोड़ों लोगों के सम्मान और प्यार को ठेस मत पहुंचाइए।”
सिद्धार्थ पर तो जैसे इस समय खून सवार था—कोई बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी।
“मुझे किसी की कोई परवाह नहीं, इंस्पेक्टर—मुझे अब न तो किसी का सम्मान चाहिए—और न ही मैं किसी के प्यार का भूखा हूं।”
“स...सिद्धार्थ साहब!”
“अरे, जिससे प्यार की चाहत थी—जिसके लिए मैंने अपना घर, अपना परिवार और अपना कैरियर सबकुछ छोड़ दिया—सारी दुनिया को भुलाकर उसकी छोटी-सी जिंदगी में खो गया—जब उससे ही मुझे प्यार और सम्मान नहीं मिला तो किसी और के प्यार की मैं क्यों परवाह करूं?” सिद्धार्थ के स्वर में असीम तड़प थी—“इंस्पेक्टर, अब मैं किसी का प्यार और सम्मान लेना क्यों चाहूंगा—सच तो यह है कि मैं अब एक सांस भी लेना नहीं चाहता।”
"आप भूल रहे हैं सिद्धार्थ साहब—आप पर सिर्फ आपका ही अधिकार नहीं है, इस देश का भी अधिकार है—और यह देश आप जैसी वैज्ञानिक प्रतिभा को किसी भी कीमत पर नहीं खो सकता—अभी तो आपको अमेरिकी अंतरिक्ष शटल का भारतीय अंतरिक्ष यात्री बनकर इस गरीब मुल्क का गौरव...।”
इंस्पेक्टर देशमुख का वाक्य पूरा होने से पहले ही वह भड़क उठा—“कौन बनेगा अंतरिक्ष यात्री? मैं अब कुछ भी नहीं बनना चाहता इंस्पेक्टर ! जो व्यक्ति अपनी बीवी के दिल तक न पहुंच सका हो—वह अंतरिक्ष में जाकर क्या करेगा? अब दिल में कुछ भी बनने की कोई तमन्ना नहीं है—यदि कोई तमन्ना है तो सिर्फ इतनी कि इस धोखेबाज औरत को खत्म कर डालूं।” कहने के साथ ही सिद्धार्थ ने पूरी ताकत लगाकर अपने को छुड़ाने के लिए बहुत जोर से झटका दिया।
बात करते समय इंस्पेक्टर देशमुख उसकी तरफ से थोड़ा असावधान-सा हो गया था—जिसका नतीजा उसे यह भुगतना पड़ा कि सिद्धार्थ आजाद होकर पूनम की तरफ झपटा।
लेकिन इस बार पूनम तक पहुंचने से पहले ही ललित उसके बीच में आ गया। बोला—“सिद्धार्थ साहब, अब अगर आपने पूनम की तरफ हाथ बढ़ाया तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे।”
“ओह, अब तू भी खुलकर आमने आ गया?” सिद्धार्थ गुर्राया।
“सिद्धार्थ साहब, वह पति क्या जो अपनी पत्नी की हिफाजत न कर सके !”
"तू अपनी पत्नी की क्या हिफाजत करेगा?” सिद्धार्थ उसकी तरफ बढ़ता हुआ खूंखार स्वर में बोला—“मैं तुझे ही जान से मार डालूंगा।”
“मैं कहता हूं सिद्धार्थ साहब, आप आगे बढ़ने की कोशिश न करें।” ललित चीखा।
लेकिन सिद्धार्थ कहां सुनने वाला था।
वह अभी आगे बढ़ना ही चाहता था कि पीछे से इंस्पेक्टर देशमुख ने उसे फिर दबोच लिया।
 हम आपसे रिक्वेस्ट करते हैं सिद्धार्थ साहब—प्लीज, शांत हो जाइए। किसी भी समस्या को आराम से बैठकर सुलझाया जा सकता है।” इंस्पेक्टर देशमुख उसे समझाने की कोशिश करता हुआ बोला—“आप समाज के बुद्धिजीवी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं—आपको ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं—आपका यह स्तर नहीं है कि आप लोगों के साथ मारपीट करें—आपका तो केवल एक आदेश ही काफी है—आप जो चाहते हैं, वह हो जाएगा—अगर आप इतनी बातों के बावजूद मिसेज पूनम को अपनी पत्नी बनाकर यहीं रखना चाहते हैं तो मैं आपसे वादा करता हूं कि मिसेज पूनम यहीं रहेगीं, आपकी पत्नी बनकर ही।” इंसपेक्टर देशमुख कहता चला गया—“आपकी इस इच्छा के लिए मैं कानून और समाज तक की भी परवाह नहीं करूंगा—मिस्टर ललित के सबूतों के परखच्चे उड़ा दूंगा—मिसेज पूनम की आत्मा की आवाज और इनकी इच्छाओं को उठाकर ताक पर रख दूंगा—अगर आप चाहेंगे तो इन्हें यहीं रहना होगा।”
एकदम स्तब्ध-से रह गए सब लोग—समझ नहीं पाए कि अचानक इंस्पेक्टर देशमुख को क्या हो गया है।
स्वयं सिद्धार्थ भी।
उसका इंस्पेक्टर देशमुख के बंधनों में से निकलने का विरोध ढीला पड़ गया।
“इं...इंस्पेक्टर!” आश्चर्य के सागर में गोते लगाते हुए उसने कुछ कहना चाहा।
लेकिन उससे पहले ही इंस्पेक्टर देशमुख फिर बोला—“सिद्धार्थ साहब, इन सब बातों के बाद भी अगर आप मिसेज पूनम या मिस्टर ललित को जान से मार डालना चाहते हैं तो आप क्यों करते हैं इतना छोटा-सा काम?” इंस्पेक्टर देशमुख उसकी बाजुओं को पकड़े हुए ही उसके सामने पहुंच गया। बोला—“अपनी इस वर्दी को एक तरफ उतारकर मैं व्यक्तिगत रूप से आपका यह काम कर दूंगा—फिर कानून मुझे जो सजा देगा, उसे भी हंसते-हंसते स्वीकार कर लूंगा—लेकिन सिद्धार्थ साहब, अपने इस छोटे-से काम के लिए इतने बड़े वैज्ञानिक को इस देश से मत छीनिए।”
“सिद्धार्थ साहब, इंस्पेक्टर देशमुख बहुत बड़ी बात कह रहे हैं—अब तो आप शांत हो जाइए।” उसके पड़ोसी मल्होत्रा ने आगे बढ़कर कहा।
साथ ही वर्मा भी आगे आया—“हम सब लोग अच्छी तरह जानते हैं, सिद्धार्थ साहब कि आप मिसेज पूनम से कितना प्यार करते हैं—वैसे तो हम सब लोगों ने मिलकर निर्णय लिया था कि अब यहां मिसेज पूनम किसी भी कीमत पर नहीं रहेंगी—लेकिन इतनी सब बातें होने के बाद भी अगर आप इन्हें यहीं रखना चाहेंगे तो आपके लिए हम भी विरोध नहीं करेंगे।”
इससे पहले कि कोई कुछ कहता—अचानक वहां एक बूढ़े शेर की-सी दहाड़ सुनाई दी—“क्या हो रहा है यहां?”
सबके दिल दहल उठे।
लगभग एकसाथ सबने चौंककर आवाज की दिशा में देखा।
सामने डॉक्टर रामन्ना बाली खड़े थे।
भभक रहा चेहरा—आंखें लाल सुर्ख—जबड़े सख्ती से भिंचे हुए—हाथों की मुट्ठियां बेंत पर कसी हुईं।
“डैडी!” सिद्धार्थ के मुंह से दर्दयुक्त आवाज निकली।
एक-एक को घूरते हुए रामन्ना बाली ने कहा—“हमारे बेटे को छोड़ दो इंस्पेक्टर!”
जाने क्या जादू था उनकी आवाज में कि इंस्पेक्टर देशमुख ने सिद्धार्थ को छोड़ दिया और मुक्त होते ही वह कुछ ऐसे टूटे अंदाज में रामन्ना बाली की तरफ लपका, जैसे लंबे समय से गुम कोई बच्चा अपने मां-बाप की तरफ लपकता है।
डॉक्टर बाली ने उसे बांहों में भर लिया।
सहानुभूति पाते ही सिद्धार्थ किसी अबोध बच्चे की तरह फूट-फूटकर रो पड़ा, साथ ही कहता जा रहा था—“म...मैं बरबाद हो गया
डैडी—पूनम ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा—मैं सारी दुनिया में आग लगा दूंगा—एक-एक को....।”
परंतु इससे आगे उसके मुंह से एक लफ्ज भी न निकल सका।
लगभग सभी ने रामन्ना बाली को सिद्धार्थ की कनपटी की एक विशिष्ट नस को विशिष्ट अंदाज में दबाते हुए देखा—परिणामस्वरूप सिद्धार्थ का समूचा जिस्म एकदम ढीला पड़ गया।
“यह बेहोश हो गया है।” रामन्ना बाली के इन शब्दों ने वहां मौजूद एक-एक व्यक्ति को बुरी तरह चौंका दिया।
¶¶
कमरे में सन्नाटा था।
ऐसा कि सुई के गिरने की आवाज भी बम के धमाके-सी लगे।
सिद्धार्थ के बेहोश जिस्म को कुछ इस तरह संभाले डॉक्टर रामन्ना सोफे की तरफ बढ़ रहे थे, जैसे वह कोई बहुत कीमती वस्तु हो।
किसी के मुंह से कोई आवाज न निकली।
हालांकि सिद्धार्थ को बेहोश करने वाली डॉक्टर रामन्ना की विचित्र हरकत का मतलब किसी की समझ में नहीं आ रहा था।
अजीब असमंजस में पड़े हुए थे सब।
सिद्धार्थ के बेहोश जिस्म को आहिस्ता से सोफे पर लिटाने के बाद सीधे खड़े होकर अभी उन्होंने सिगार सुलगाया ही था कि साहस करके इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा—“क्या हम यह जान सकते हैं डॉक्टर बाली कि आपने मिस्टर सिद्धार्थ को बेहोश क्यों किया?”
“उसके मस्तिष्क को टेंशन से बचाने के लिए।”
"हम समझे नहीं?”
“जितनी बातें हमने इस कमरे में दाखिल होते-होते सुनी हैं, उनसे यह लगा कि इस बेहया लड़की की कोई ऐसी बात सिद्धार्थ को पता लगी है, जिससे इसे बेहद दुख पहुंचा है—जिस तरह सिद्धार्थ हमसे लिपटा, उससे लगा कि उसके दिमाग में टेंशन है, मस्तिष्क को कोई शॉक लगा है और सिद्धार्थ का दिमाग विज्ञान की दुनिया और देश के लिए बेहद कीमती है इंस्पेक्टर—उसके मस्तिष्क को किसी किस्म की क्षति पहुंचाने का मतलब है, मुल्क का एक बहुत बड़ी उपलब्धि से महरूम रह जाना—इसके मस्तिष्क को रिलीफ देने के लिए ही हमने इसे बेहोश किया।”
"ओह!”
“अब आप हमें पूरी बात बताएं कि यहां क्या हो रहा था?”
“बताने से पहले मैं आपसे ही कुछ पूछना चाहूंगा।”
“क्या?”
“मिस्टर सिद्धार्थ ने अपनी शादी आपकी इच्छा के विरुद्ध की थी न?”
“हां।”
“क्या मैं जान सकता हूं कि आपने इनकी शादी का विरोध क्यों किया था?”
“हमारी अनुभवी आंखों को यह लड़की जंची नहीं थी और फिर हम नहीं चाहते थे कि सिद्धार्थ अपना लक्ष्य पाने से पहले ही शादी करे।”
“क्यों?”
“क्योंकि नब्बे प्रतिशत युवक शादी के बाद अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं—हमारी इच्छाओं के विपरीत सिद्धार्थ के साथ भी यही हुआ—इस लड़की का इतना दीवाना हो गया यह नालायक कि....।”
“आपने मि. सिद्धार्थ से अपने संबध तोड़ लिए थे न?”
“हां।”
“इन लोगों से मिलने यहां पहले कभी नहीं आए आप?”
"यह भी सच है।"
“फिर आज...?” इंस्पेक्टर देशमुख ने जानबूझकर अपना सवाल अधूरा छोड़ दिया—परंतु उसका पूरा अर्थ समझते हुए डॉक्टर बाली ने जवाब दिया—“औलाद चाहे कितनी ही नालायक हो, मगर मां-बाप, मां-बाप ही होते हैं—मरते दम तक वह यही कोशिश करते रहते हैं कि भटकी हुई औलाद रास्ते पर आ जाए—किसी तरह  उस रास्ते की तरफ बढ़े, जिधर तरक्की है।”
“माफ कीजिए, मैं समझा नहीं?”
“आज जब अखबार में पढ़ा कि सिद्धार्थ लंदन कॉन्फ्रेंस में नहीं पहुंचा है तो मारे दुख और गुस्से के हमारा बुरा हाल हो गया—जी चाहा कि या तो सिद्धार्थ को मार डालें या आत्महत्या कर लें—बेहद गुस्से में थे हम—तभी सिद्धार्थ की मां ने धीरज बंधाया। कहने लगी कि हमें गुस्सा करने के स्थान पर नरमी और प्यार से सिद्धार्थ को समझाना चाहिए—इस तरह शायद यह भटके हुए रास्ते से लौट सके—बात हमें भी जंची सो यहां कभी न आने की कसम छोड़कर सिद्धार्थ और साथ ही इस लड़की को यह बोध कराने आए थे कि हमारे बेटे के पैदा होने का मकसद क्या है, परंतु....।”
“परंतु?”
"यहां आने पर तमाशा ही कुछ और देखा।”
“क्या आप यहां चल रहे तमाशे के बारे में कुछ जानना चाहेंगे?”
“जरूर।”
और...इंस्पेक्टर देशमुख ने कल से अब तक की सारी घटनाएं उन्हें विस्तारपूर्वक बता दीं—सुनते समय डॉक्टर रामन्ना बाली के चेहरे पर जाने कितने भाव आए-गए—बीच-बीच में बड़ी खूंखार नजरों से उन्होंने पूनम और ललित जाखड़ को घूरा था। इंस्पेक्टर देशमुख की बात पूरी होते-होते डॉक्टर रामन्ना बाली के चेहरे पर गुस्से के साथ-साथ असीम वेदना के भाव भी उभर आए और अचानक वे दोनों हाथ जोड़कर बढ़े—भावुक अंदाज में पूनम की तरफ बड़े—उसके बेहद नजदीक पहुंचकर वे करुण स्वर में बोले—“हमने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा, जो हमारे बेटे के पीछे पड़ी हो?”
“ड...डैडी।" पूनम की आवाज कांप गई।
“हमारे बेटे को मंझधार में छोड़कर मत जाओ। हम विनती करते हैं तुमसे—तुम्हारे पैर पकड़ते हैं। अगर तुम चली गईं तो सिद्धार्थ बरबाद हो जाएगा। अपने बाकी जीवन में कुछ भी नहीं कर सकेगा वह। उससे अपने ख्वाब पूरे कराने के लिए हमें तुम्हारी बहुत जरूरत है।"
पूनम चकित अंदाज में उनकी तरफ देखती रह गई।
कोशिश के बावजूद उसके मुंह से लफ्ज़ भी न फूटा और पूनम ही नहीं, सभी लोग चकित थे—इतने ज्यादा कि इंस्पेक्टर देशमुख से भी रहा न गया। बोला— आप यह क्या कह रहे हैं डॉक्टर बाली?”
उसकी तरफ पलटकर बड़े ही दीन स्वर में बोले वह—“अब इस लड़की के सामने गिड़गिड़ाने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है इंस्पेक्टर। यकीन मानो—इसे इस तरह खोकर सिद्धार्थ पूरी तरह बरबाद हो जाएगा।”
“मगर आप तो पूनम से नफरत करते थे न? हमेशा से चाहते थे कि यह आपके बेटे की जिन्दगी से निकल जाए—आपको विश्वास था कि इसके रूपजाल से निकलकर सिद्धार्थ अपने लक्ष्य की तरफ लौट आएगा।”
“हां, यहां आने से पहले हम ऐसा ही सोचते थे।”
"फिर आप यह उल्टी बात...।”
“बेहोश होने से पहले की सिद्धार्थ की हालत यह कहती है कि अगर अब यह उससे जुदा हुई तो वह किसी काम का नहीं रहेगा—हमारे पहले अविचार अपनी जगह ठीक थे और इस वक्त जो कह रहे हैं, वे विचार भी अपनी जगह ठीक हैं।”
“मैं कुछ समझा नहीं मिस्टर बाली।”
“किसी भी चीज का नशा करना एक बुरी आदत है इंस्पेक्टर, मगर जब नशा करने वाला लाख समझाने-बुझाने पर भी नशा करता ही जाता है तो एक स्थिति ऐसी आती है कि नशे का आदी हुआ व्यक्ति उस स्थिति में पहुंच जाता है कि वह नशीली चीज उसके लिए आवश्यक हो जाती है। इतनी ज्यादा आवश्यक कि अगर नशा करने वाले व्यक्ति को वह नशीली चीज न मिले तो वह पागल तक हो सकता है—ऐसी स्थिति आने पर कहते हैं कि जहर भी दवा बन जाता है—यह लड़की एक ऐसा ही जहर या नशीली चीज है इंस्पेक्टर जो सिद्धार्थ के लिए आवश्यक है—अब अगर इसे सिद्धार्थ से छीना गया तो वह आत्महत्या तक कर सकता है—इस स्थिति में केवल एक ही रास्ता बचा है, सिर्फ यह कि, यह लड़की सिद्धार्थ के साथ ही रहे और खुद उसे उसका लक्ष्य पाने के लिए प्रेरित करे—आज सिद्धार्थ से इसका जुदा होना उससे कहीं ज्यादा घातक है, जिस दिन ये एक हुए थे।”
“म...मगर।” ललित बोला।
इंस्पेक्टर देशमुख ने गुर्राकर पूछा—“क्या मगर?”
"मैं पूनम को अब एक मिनट के लिए भी यहां नहीं छोड़ूंगा।”
"क्यों?”
“क्यों से क्या मतलब?” ललित गुर्राया—“मैं किसी की ऐसी क्यों का जवाब देने का पाबंद नहीं हूं—पूनम मेरी बीवी है और मेरी मर्जी है कि मैं इसे कहां रखूं—कहां नहीं।”
"आप यह जानने के बावजूद ऐसा कह रहे हैं मिस्टर ललित कि पूनम से जुदा होकर सिद्धार्थ बाली आत्महत्या तक कर सकते हैं, और इनके प्राण अकेले इनके ही प्राण नहीं, बल्कि इस मुल्क के, इस देश के प्राण हैं।
“मुझे किसी के प्राणों से क्या लेना-देना?”
“समझने की कोशिश करो, मिस्टर ललित!”
“आप ये बेकार की बातें मुझे समझाने की चेष्टा न करें इंस्पेक्टर!” ललित का स्वर पूरी तरह सपाट और रूखा था—“क्या आप अपनी बीवी को किसी गैर मर्द के पास एक रात भी छोड़ सकते हैं?”
“म…मिस्टर ललित!” गुस्से की ज्यादती के कारण इंस्पेक्टर देशमुख दहाड़ उठा—“होश में बात करो।”
“क्यों, अपनी पत्नी की एक रात से तिलमिला उठे न इंस्पेक्टर?”
“तुम्हारी पत्नी एक लंबे समय से सिद्धार्थ के साथ है और बाकायदा पत्नी बनकर साथ रही है, फिर कुछ दिनों में ही ऐसा कौन-सा पहाड़ टूट पड़ेगा?”
“इतने सबके बावजूद मैं पूनम को अपनाने के लिए तैयार हूँ। तुम्हारी हालत तो बता रही है कि तुम्हारी बीवी अगर एक रात भी किसी के साथ गुजार ले तो तुम उसे जान से मार दोगे?”
“त...तुम समझते क्यों नहीं?
ललित ने निर्णायक स्वर में कहा—“कान खोलकर सुन लो, अब मैं किसी भी कीमत पर एक पल के लिए भी पूनम को यहां छोड़ने के लिए तैयार नहीं हूं।”
गुस्से की ज्यादती के कारण इंस्पेक्टर देशमुख के होंठों से झाग निकलने लगे। जाने क्या कर डालना चाहता था वह, मगर कुछ न कर सका और फिर जाने क्या सोचकर पूनम की तरफ पलटते हुए पूछा—“तुम क्या कहती हो मैडम?”
पूनम ने चेहरा ऊपर उठाया।
ललित बोला—“इससे क्या पूछते....।”
“शटअप!” इंस्पेक्टर देशमुख दहाड़ उठा—“मैं पूनम से बात कर रहा हूं। अगर अपनी गंदी जुबान से बीच में दखल दिया तो जुबान खींचकर रख दूंगा।”
ललित सकपका-सा गया।
फिर, इंस्पेक्टर देशमुख ने अपने स्वर में अपेक्षाकृत नम्रता लाते हुए पूनम से पूछा—“क्या मिस्टर सिद्धार्थ की बेहतरी के लिए आप उनके साथ कुछ और दिन गुजारना चाहेंगी?”
पूनम चुप रही।
इंस्पेक्टर  देशमुख ने उस पर दबाव डालने की गरज से कहा—“तुमने मि. सिद्धार्थ को टूट-टूटकर चाहा है पूनम पत्नी भले ही तुम ललित की हो, मगर दिल से आज भी मि. सिद्धार्थ की दीवानी हो—डॉक्टर रामन्ना भले ही तुम्हें गलत समझते रहे हो, परंतु तुमने कभी सिद्धार्थ या उनके परिवार का बुरा नहीं चाहा—तुम हर क्षण यही चाहती थीं कि तुमसे ज्यादा अपने काम के प्रति दीवाना रहे वह—मुझे अब भी याद है, कल जब मुम्बई से सिद्धार्थ बाली का फोन आया था तो यह जानकर आप किस कदर नाराज हुई थीं कि उसने लन्दन कॉन्फ्रेंस मिस कर दी है। बोलो—मैं सच कह रहा हूं न?”
पूनम ने धीमे से ‘हां’ में गर्दन हिलाई।
उत्साहित इंस्पेक्टर देशमुख ने आगे कहा—“तुम अच्छी तरह समझ रही हो कि तुमसे जुदा होकर सिद्धार्थ बरबाद हो जाएगा—पागल
तक हो सकता है, आत्महत्या तक कर सकता है। बोलो—तुम जानती हो न?”
"हां।" उसने धीमे से कहा।
“क्या तुम चाहोगी कि ऐसा हो?”
"न...नहीं।”
“त...तो तुम कुछ और दिन सिद्धार्थ बाली के साथ रहने के लिए तैयार हो न?”
इस बार पूनम चुप रही।
“सिद्धार्थ के होश में आने पर उसे यह बताया जाएगा कि मिस्टर ललित जालसाज हैं और इन्होंने तुम्हें जान से मारने की धमकी दी थी—उसी डर से तुम इन्हें अपना पति बता रही थीं—वास्तव में तुम्हारा इनसे कोई रिश्ता नहीं है। इस तरह, सिद्धार्थ के दिल में तुम्हारे लिए जो मैल आया है, वह खुद-ब-खुद साफ हो जाएगा—और तुम मुल्क को एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक दोगी।”
वह अब भी चुप रही।
“बोलो पूनम, जवाबे दो—तुम इस सबके लिए तैयार हो न?”
“स...सॉरी।” धीमे से कहा गया पूनम का यह शब्द लगभग सभी के सीने पर गन से निकली गोली की तरह लगा था। इंस्पेक्टर देशमुख बुरी तरह तिलमिलाकर चीख पड़ा—“प...पूनम!”
“मैं अपने पति की इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकती।”
सन्नाटा छा गया कमरे में!
केवल ललित के होंठों पर सफलता की मुस्कान नृत्य कर रही थी—हालांकि मारे गुस्से के इंस्पेक्टर देशमुख का बुरा हाल था, किंतु
फिर भी स्वर को संयत रखे पूनम की आत्मा को जगाने का-सा प्रयत्न करता हुआ बोला—“क्या तुम भूल गईं पूनम कि सिद्धार्थ बाली तुम्हारी—सिर्फ तुम्हारी वजह से इस हाल तक पहुंचा है। उसकी बरबादी की वजह तुम हो। क्या अच्छी तरह यह जानने के बावजूद तुम उसे मंझधार में छोड़ दोगी—अगर तुम ऐसा करती हो तो यह समझा जाएगा कि वास्तव में तुमने कभी सिद्धार्थ की भलाई नहीं चाही, बल्कि हमेशा से उसकी बरबादी की तलबगार रही हो।”
"य...यह झूठ है!"
"तो फिर ‘हां’ करो पूनम  'हां' करो।”
“मैं मजबूर हूं।” ऐसा कहकर उसने गर्दन झुका ली।
“उफ!” झुंझलाकर इंस्पेक्टर देशमुख ने अपने दाएं हाथ की मुट्ठी बाएं हाथ पर मारी। जी चाह रहा था कि अपने बाल नोच ले—खून पी जाए किसी का और अभी वह पुन: पूनम से कुछ कहना ही चाहता था कि....।
“जवाब तुम्हें मिल चुका है इंस्पेक्टर!” ललित ने कहा—उम्मीद है कि मेरी पत्नी को अब तुम ज्यादा परेशान नहीं करोगे।”
ललित के बोलते ही इंस्पेक्टर देशमुख के सारे शरीर में चिंगारियां-सी सुलग उठीं। ललित को घूरते हुए अचानक उसने पैंतरा बदला—“इसका मतलब, सीधी उंगली से घी नहीं निकलेगा।”
“क्या मतलब?” ललित ने पूछा।
“सिद्धार्थ बाली जैसे महत्त्वपूर्ण युवा वैज्ञानिक के प्राणों को खतरे में देखकर मैंने बिना किसी खास तर्क-वितर्क के मान लिया था कि पूनम तुम्हारी बीवी है। सोच रहा था कि सिद्धार्थ की जिंदगी के सामने यह सवाल नगण्य है कि पूनम की कल वाली कहानी सच थी या आज वाली, मगर तुम दोनों में से कोई भी सहयोग के लिए तैयार नहीं है, जबकि हमें सहयोग लेना है।”
"कैसे भला?”
“कुछ देर पहले तुम कह रहे थे कि किसी भी कीमत पर तुम पूनम को यहां नहीं छोड़ सकते, जबकि अब मैं यह कह रहा हूं कि तुम किसी भी कीमत पर पूनम को यहां से नहीं ले जा सकते।”
“आप कैसे रोक सकते हैं मुझे?” ललित ने पूछा—“एक पति-पत्नी चाहे जहां जाएं, चाहे जहां घूमें—पुलिस का इसमें क्या दखल हो सकता है?”
“बशर्ते कि वे पति-पत्नी हों, प्रमाणित पति-पत्नी।”
“क्या हम पति-पत्नी नहीं हैं?”
“मैं नहीं मानता।”
“क्यों? क्या मैंने प्रमाण पेश नहीं किए हैं?”
“मैं उन्हें किसी साजिश के तहत गढ़े गए प्रमाण मानता हूं।”
“क्या आप बता सकते हैं कि किस आधार पर?”
“मेरी मरजी। नहीं मानता मैं।”
अजीब मुस्कराहट के साथ बोला ललित—“आप किस चीज को मानते हैं, किसको नहीं, बेशक यह आपकी मरजी है, मगर आपकी मरजी से सबूतों का वजन खत्म नहीं हो जाएगा इंस्पेक्टर। कोर्ट आपसे ऊपर है—वहां पलभर में साबित हो जाएगा कि हम पति-पत्नी हैं। आपकी ये मरजी वाली धींगामुश्ती नहीं चलेगी वहां।
“ओह, कोर्ट की धमकी दे रहे हो मुझे?”
“एक पुलिस इंस्पेक्टर खुद ही को कानून समझने लगे तो उसे याद दिलाना पड़ता है कि उससे ऊपर अदालत है।”
“अगर तुम्हारी यह कहानी सच्ची है कि तुम्हारे यहां से बारह अप्रैल को पूनम मि. सिद्धार्थ के पास आई थी और इसके गायब होने पर तुमने हर संभावित जगह इसे ढूंढा था तो विज्ञान संस्थान क्यों नहीं पहुंचे—तुम जानते थे कि पूनम वहीं सर्विस करती है, फिर भी तुमने वहां पूछताछ करने की जरूरत क्यों नहीं समझी?”
“अब मैं इस किस्म के हर सवाल का जवाब कोर्ट में ही देना चाहुंगा।” ललित ने तीखे और सपाट स्वर में कहा—“अगर आपको संदेह है कि हम पति-पत्नी नहीं हैं, झूठ बोल रहे हैं या कोई साजिश रच रहे हैं तो गिरफ्तार कर लीजिए हमें।”
इंस्पेक्टर देशमुख उसे खा जाने वाली नजरों से देखता रह गया।
जबकि वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला—“मगर गिरफ्तार करने से पहले याद रखना इंस्पेक्टर—हमें एक रात भी हवालात में नहीं रोक सकोगे तुम—मेरे पास न सिर्फ इस बात के पूरे सबूत हैं कि पूनम मेरी पत्नी है, बल्कि स्वयं पूनम भी यह स्वीकार कर रही है और इन हालातों में मेरे वकील को कोर्ट में हमारी जमानत कराने में बहुत ज्यादा जहमत नहीं उठानी पड़ेगी—अगर तुमने जबरदस्ती पूनम को यहीं रोकने की कोशिश की तो उल्टा मैं दावा कर दूंगा कि डॉक्टर रामन्ना बाली  ने जबरदस्ती मेरी बीवी को रोक रखा है और पुलिस भी इनसे मिली हुई है।”
“अब धीरे-धीरे तुम अपनी असलियत पर आ रहे हो मिस्टर ललित।” इंस्पेक्टर देशमुख एक-एक शब्द को चबाता हुआ बोला—“मुझे तुम कोई बहुत ही घुटे हुए बदमाश लगते हो।”
"इस नतीजे पर आप कैसे पहुंचे?”
“कानून के बारे में तुम्हें जरूरत से ज्यादा जानकारी है।”
“तो क्या कानून की जानकारी रखने वाले लोग घुटे हुए बदमाश होते हैं?”
ललित के इस कटाक्ष पर इंस्पेक्टर देशमुख कटकर रह गया। बोला—“मैं तुम लोगों को इस आरोप में गिरफ्तार करने नहीं जा रहा हूं कि तुम पति-पत्नी नहीं हो।”
“फिर?”
“गिरफ्तार अकेली पूनम होगी।”
“किस जुर्म में?”
"विज्ञान संस्थान के नियमानुसार, वहां सिर्फ कुंआरी लड़की ही रिसेप्शनिस्ट रह सकती है, जबकी इसने शादीशुदा होकर भी वहां नौकरी की—यह फ्राड है। शादीशुदा होने के बावजूद सिद्धार्थ को इस धोखे में रखकर कि वह कुंआरी है, पूनम ने उससे दूसरी शादी की—यह दूसरा फ्रॉड है—कोर्ट में बड़ी आसानी से साबित हो जाएगा कि आपकी बीवी ने सिद्धार्थ बाली की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया।”
“ओoकेo।” ललित ने दोनों कंधे उचकाकर लापरवाही के साथ कहा—“कर लीजिए गिरफ्तार। शाम तक मैं पूनम की जमानत करा लूंगा—मगर तुम्हारे इस सपने को पूरा नहीं होने दूंगा कि पूनम सिद्धार्थ के साथ रहे।”
इंस्पेक्टर देशमुख के कुछ कहने से पहले काफी देर से खामोश खड़े डॉक्टर बाली बोले—“नहीं इंस्पेक्टर, इस नीच लड़की के साथ-साथ इस जलील कुत्ते को भी गिरफ्तार करना होगा तुम्हें। इनके इस नए और अनोखे पैंतरे को देखकर अब हमारी समझ में इनकी साजिश आ रही है।”
“साजिश?” इंस्पेक्टर देशमुख उनकी तरफ घूमा।
“हां, साजिश।” डॉक्टर रामन्ना अपने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए बोले—“जिसे आज से पहले हम प्यार-मुहब्बत की आम घटना समझ रहे थे, आज समझ में आ रहा है कि वह एक साजिश थी, भयानक साजिश।”
“मैं अब भी नहीं समझा।”
“सिद्धार्थ जिस तेजी के साथ विज्ञान की दुनिया के शीर्ष की ओर बढ़ता जा रहा था, इसे तरक्की और नाम मिल रहा था—अंतरिक्ष शटल में एक भारतीय युवा वैज्ञानिक को भेजने की बात आई तो दो युवा वैज्ञानिकों का चयन किया गया। जिनमें एक नाम हमारे बेटे सिद्धार्थ का भी था—इस सबसे, सिद्धार्थ की इस तरक्की से बहुत-से लोगों के सीनों पर सांप लोटना स्वाभाविक था—उन्हीं में से किसी ने यह साजिश रची है।”
"कौन-सी साजिश?”
“पहले इस खूबसूरत नागिन को हमारे बेटे की जिंदगी में प्रविष्ट कराकर उसे डिस्टर्ब करने, उसे लक्ष्य से भटकाने की साजिश—हां, अब हमारी समझ में सबकुछ आ रहा है इंस्पेक्टर, यह लड़की शोहरत या अपनी कथित महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए सिद्धार्थ की जिन्दगी में नहीं आई। यह तो एक अनावरण है—वास्तव में सिद्धार्थ की जिंदगी में जानबूझकर इसे दाखिल कराया गया, सिद्धार्थ का कंसन्ट्रेशन भंग करने के लिए और अब, जबकि पंद्रह दिन बाद से अंतरिक्ष शटल में जाने से संबंधित सिद्धार्थ की ट्रेनिंग शुरू होने वाली है तो हमारे बेटे को योजनाबद्ध तरीके से यह शॉक दिया जा रहा है—सिर्फ पंद्रह दिन पहले। अब हमें लग रहा है इंस्पेक्टर कि सबकुछ योजनाबद्ध है—पिछले चार महीनों में सिद्धार्थ को पूनम नाम की इस लड़की के नशे का गुलाम बनाया गया और अब, ट्रेनिंग से सिर्फ पंद्रह दिन पहले सिद्धार्थ से यह नशा छीना जा रहा है—सिद्धार्थ के मस्तिष्क को शॉक दिया जा रहा है—दुश्मन का उद्देश्य साफ है—सिद्धार्थ को अमेरिकी अंतरिक्ष शटल में नहीं जाने देना चाहता वह।”
डॉक्टर रामन्ना के ये शब्द सुनकर मिस मंजु मेहता ने चमकदार आंखों से इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ देखा। उसकी आंखों में इंस्पेक्टर देशमुख के लिए प्रशंसा वाले भाव थे—जैसे कह रही हो कि इस छोटे-से मामले की तह से धीरे-धीरे वही निकलकर सामने आ रहा है, जिसकी कल्पना तुमने बहुत पहले कर ली थी, परंतु डॉक्टर बाली के शब्दों के जवाब में इंस्पेक्टर देशमुख ने जो कहा, उसे सुनकर मिस मंजु चौंक पड़ी। वह कह रहा था —“क्षमा करे डॉक्टर बाली, पुलिस कार्यवाही या कानूनी प्रक्रिया कल्पनाओं के आधार पर आगे नहीं बढ़ सकती।”
"क्या मतलब?"
"जो आपने कहा, क्या उसके पक्ष में आपके पास कोई सबूत है?”
“स...सबूत?”
“हां, पुलिस आपके समझने या कह देने भर से किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती—ऐसा कोई सबूत होना चाहिए, जिससे स्पष्ट हो कि सिद्धार्थ के खिलाफ साजिश रची गई।”
“सबूत तो तब होता, जब हम इस साजिश को पहले समझे होते। हमारी तो समझ में ही यह साजिश अभी, इन दोनों का नया पैंतरा देखकर आई है।”
"पुलिस किसी को कल्पनाओं के आधार पर गिरफ्तार नहीं कर सकती।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। ऐसा चुभनयुक्त सन्नाटा कि काफी देर तक कोई कुछ बोल ही न सका और अंत में इस सन्नाटे पर ललित ने ही प्रहार किया। बोला—“तो हमारे बारे में क्या फैसला किया इंस्पेक्टर—गिरफ्तार करना चाहते हो या तुम्हारे इस झमेले से निकलकर हम जा सकते हैं?”
ललित का एक-एक शब्द इंस्पेक्टर देशमुख के तन-बदन में आग लगाए दे रहा था। जोशवश मुट्ठियां कस गईं उसकी। दांतों पर दांत जमाकर बोला—“याद रखना, तुम्हें छोड़ूंगां नहीं मैं—समझाकर ही दम लूंगा कि कानून क्या होता है।”              
प्रत्युत्तर में ललित मुस्कराया। बड़ी ही मीठी और सफलतायुक्त मुस्कराहट। बोला—“मतलब यह कि फिलहाल हम यहां से जाने के लिए स्वतंत्र हैं?”
इंस्पेक्टर देशमुख कुछ बोला नहीं, सिर्फ घूरता रहा उन्हें।
"आओ पूनम, चलें—फिलहाल इंस्पेक्टर की इजाजत मिल गई है।” कहने के साथ ही ललित पूनम को साथ लिए दरवाजे की तरफ बढ़ गया और इंस्पेक्टर देशमुख ने उसे रोका नहीं। इस बात पर सबसे ज्यादा आश्चर्य मिस मंजु को हुआ था।
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