देवराज चौहान कार से निकला और सामने नजर आ रहे फ्लैटों की तरफ बढ़ गया। सुबह के चार बज रहे थे। सड़क के किनारे पर स्ट्रीट लाइट रोशन थी। हर तरफ सूनसानी, खामोशी थी। कहीं-कहीं कोई कार जाती दिख जाती थी।

“तुम लोग इकबाल खान सूरी के ठिकाने पर कैसे...” कमल चावला ने पूछना चाहा।

“अभी चुप रहो।” जगमोहन बोला।

“मेरे से चुप नहीं रहा जा रहा, चार दिन बहुत कठिनता से बिताए हैं।

अगर तुम लोग मुझे वहां से निकाल न लाते तो...।”

देवराज चौहान को अब तक आ जाना चाहिए था।

“मैं अभी आया।” जगमोहन कार का दरवाजा खोलता बोला- “तुम कार से बाहर मत...।”

“देवराज चौहान की तरफ जा रहे हो।”

“हां, उसके पास रिवॉल्वर भी नहीं...वो आ रहा है-ठीक है।”

जगमोहन ने कार का दरवाजा बंद कर दिया।

देवराज चौहान आकर कार में बैठा और स्टार्ट करके, आगे बढ़ाता कह उठा।

“उस फ्लैट में कोई भी नहीं है। वहां पर ताला लगा है।”

“मतलब कि वे खिसक गए। ये ही असली कमल चावला है।”

“जरूरी तो नहीं। ये भी कामनी की कोई चाल हो सकती...।”

“मैं किसी की कोई चाल नहीं हूं। कमल चावला हूं।” पीछे मौजूद कमल चावला ने कहा।

“तो ये हमें कैसे पता चलेगा कि ये असली है या नहीं?” जगमोहन ने पूछा।

“मार्शल से बात करके। इसकी बात मार्शल से कराएंगे।” देवराज चौहान बोला।

जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।

“कमल चावला।” देवराज चौहान बोला—“तुम जिन ठिकानों को इस्तेमाल कर रहे थे वो सारी जगहें कामनी की नजरों में है और कल वहीं पर हमले हुए थे। क्या अब कोई ऐसी जगह है, जहां हम जा सकें।”

“हां। ऐसी कई जगहें हैं। कुछ के बारे में तो सिर्फ मैं ही जानता हूं।”

“तो ऐसी किसी जगह पर चलो।” उठकर बैठो और हमें रास्ता बताओ।”

कमल चावला उठकर बैठ गया।

कार चलाते देवराज चौहान पुनः बोला।

“मैं तुम्हारी बात मार्शल से कराना चाहता हूं ताकि तसल्ली कर सकूँ कि तुम ही कमल चावला हो।”

“मैं ही कमल चावला...।”

“तुम्हें मार्शल से बात करने में कोई एतराज है?”

“कोई एतराज नहीं।”

देवराज चौहान ने मोबाइल निकालकर जगमोहन को देते कहा।

“मार्शल का नम्बर मिलाओ।”

जगमोहन ने फोन ले लिया तो कमल चावला बोला।

“तुम लोग इकबाल खान सूरी के ठिकाने पर कैसे पहुंच गए?”

“अभी कोई बात मत करो। कोई सवाल मत पूछो।” देवराज चौहान ने कहा।

जगमोहन ने नम्बर मिलाकर फोन कान से लगा लिया था। उधर बेल जा रही थी।

“हैलो।” एकाएक मार्शल की आवाज कानों में पड़ी।

“मैं जगमोहन...।”

“तुम लोग कहां हो?” मार्शल ने तेज स्वर में उधर से पूछा।

“दुबई।”

“मुझे बहुत बुरी खबरें मिल रही हैं सुनने को। क्या हो रहा है वहां?”

“यहां सब कुछ बुरा हो रहा है। तुम्हारे लिए तो वो बुरा ही है। मैं किसी से तुम्हारी बात कराने जा रहा हूं। पहचान कर बताओ कि वो कौन है। ये आदमी अपने को कमल चावला कहता है।”

कमल चावला ने मार्शल से बात की।

“हैलो मार्शल।” कमल चावला कह उठा—“इकबाल खान सूरी की तरफ से हम पर जबर्दस्त हमला हुआ है। वो नहीं चाहता कि हम उसका पीछा करें। चार दिन बाद मुझे अभी, देवराज चौहान और जगमोहन ने इकबाल खान के ठिकाने से आजाद कराया है। हमारे बहुत-से आदमी मारे जा चुके हैं। अभी मुझे भी ठीक से पता नहीं कि क्या हो रहा है और...।”

अगले ही पल उसने फोन जगमोहन की तरफ बढ़ाते हुए कहा।

“मार्शल तुमसे बात करना चाहता है।”

जगमोहन ने बात की।

“मैंने जिससे अभी बात की, वो कमल चावला है। मेरा दुबई का सबसे बड़ा एजेंट। मामला क्या है?”

“मामला देवराज चौहान से पूछना।”

“देवराज चौहान कहां है?”

“वो अभी तुमसे बात नहीं कर पाएगा। जल्दी ही तुम्हें फोन करेगा।”

“मैं पूछता हूं दुबई में हो क्या रहा...”

“देवराज चौहान बताएगा। हमारा नम्बर तुम्हारे फोन पर आ गया होगा।

तुम इस नम्बर पर कॉल कर सकते हो, लेकिन अभी मत कर देना। पांच-सात घंटों बाद करना। हम रात-भर के जगे हुए हैं और यहां पर काफी मुसीबतें खड़ी हो गई हैं।” कहने के साथ ही जगमोहन ने फोन बंद कर दिया।

बोला- “मार्शल काफी परेशान लग रहा था।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। कमल चावला के बताए रास्ते पर कार दौड़ती रही।

☐☐☐

ये दो कमरों का छोटा-सा फ्लैट था और दुबई के बीचोबीच मौजूद एक कालोनी में था। उस वक्त पलैट की चाबी कमल चावला के पास नहीं थी। देवराज चौहान ने गहरी अंधेरी रात में पंद्रह मिनट लगाकर किसी तरह दरवाजा खोला और तीनों ने भीतर प्रवेश किया। कमल चावला की हालत ज्यादा बेहतर नहीं थी। वो कमजोर और थका हुआ था। भीतर आते ही वो बेड पर जा लेटा और जल्दी ही नींद में डूब गया।

एक कमरे में डबल बेड था। दूसरे कमरे में बैठने के लिए तीन कुर्सियां और छोटा-सा सेंटर टेबल मौजूद था। स्पष्ट था कि कमल चावला इस फ्लैट को ज्यादा इस्तेमाल नहीं करता था। देवराज चौहान ने किचन में जाकर चाय-कॉफी का सामान तलाशा। दूध को छोड़कर चाय का बाकी सामान मिल गया। देवराज चौहान ने बिना दूध की चाय बनाई और दो प्यालों में डाले बाहर कमरे में आया। उसके चेहरे पर गम्भीरता और सोच के भाव नजर आ रहे थे। चेहरे से जाहिर था कि वो बहुत कुछ सोच रहा था।

कुर्सी पर बैठे जगमोहन को काली चाय का प्याला थमाते पूछा।

“कमल चावला सो गया?”

“हां। परंतु मैं बीते वक्त के हालातों को देखकर बड़ी उलझन में हूं कि हम क्या कर रहे हैं। इकबाल खान सूरी के उस ठिकाने पर क्या करने गए थे और कामनी ने हमें इतनी आसानी से वापस क्यों आने...।”

“ये सब कामनी की ही चाल थी।” देवराज चौहान कुर्सी पर बैठता कह उठा।

“कैसी चाल?”

देवराज चौहान ने चाय का चूंट भरकर कहा।

“कामनी अपना खेल, खेल रही थी। उसकी चालों में हम फंस गए, जबकि हम ये सोचते रहे कि हम सब कुछ अपनी मर्जी से कर रहे हैं, जबकि हम कामनी की चालों में फंसे इकबाल खान सूरी के ठिकाने पर जा पहुंचे थे।”

खुलकर कहो, मैं समझा नहीं।”

उस रात अलजीरा होटल से हमने कमल चावला को फोन किया, जबकि कमल चावला कामनी के कब्जे में था और उसका मोबाइल भी कामनी के पास था। फोन रिसीव करके उधर से किसी ने कहा कि वो कमल चावला बोल रहा है। तब उसने बताया कि जान बचाकर, वो कार को एक जगह पार्क करके उसके भीतर बैठा हुआ है। बहरहाल उसने रात को किसी वक्त होटल अलजीरा पहुंचकर, मिलने को कहा।”

“ये तो स्पष्ट हो गया कि वो असली कमल चावला नहीं था।” जगमोहन ने कहा।

“हां। वो कामनी का आदमी था। कामनी के इशारे पर ही सब कुछ कर रहा था। मुझे पूरा विश्वास है कि तब तक उन्होंने असली कमल चावला से ये जान लिया होगा कि हम, कमल चावला को नहीं पहचानते।”

“लेकिन मार्शल तो हमें कमल चावला की तस्वीर दिखा सकता था।

“न उसने दिखाई न हमने कहा। उसने हमें दुबई के एजेंटों के फोन नम्बर ही दिए थे।” देवराज चौहान बोला- “अगर मार्शल ने हमें दुबई के एजेंटों की तस्वीरें दिखा दी होती तो कामनी की चाल कामयाब नहीं होती। खैर,कमल चावला हमारे पास अलजीरा होटल में आया। बातें हुईं, उससे बात करके हमें जरा भी ये शक न हुआ कि वो कमल चावला नहीं है। असली कमल चावला से वो पर्याप्त जानकारी हासिल करके आया था। वो हमें अलजीरा से उस फ्लैट पर ले गया। वहां पर बातों के दौरान उसने हमें झांसे में लिया कि इकबाल खान सूरी के ठिकाने के पीछे की तरफ रात को पहरे में लापरवाही बरती जाती है। यानी कि ये सब कामनी के इशारे पर कहा जा रहा था। वो चाहती थी हम उसके उस ठिकाने पर आएं।”

“क्यों?”

“कुछ समझ में नहीं आता। हम वहां गए तो हमें रास्ता साफ मिला । किसी से भी भिडंत नहीं हुई। हम आसानी से ठिकाने के भीतर तक पहुंच गए। ये बात मुझे वहां भी खटकी थी कि हमें रास्ता साफ क्यों मिल रहा है। इकबाल खान सूरी के ठिकाने पर तो बेहद मजबूत पहरा होना चाहिए, परंतु वहां ऐसा कुछ नहीं था। फिर कामनी दो गनमैनों के साथ नजर आई और हमें घेर लिया। हमारे हथियार ले लिए। वो आसानी से हमें मार सकती थी, परंतु ऐसा नहीं किया। उसने मेरे साथ मौत की लड़ाई लड़ी। दो बार मैं उसके काबू में आ गया, परंतु उसने कोई घातक वार नहीं किया फिर उसने मुझे बताया कि इकबाल खान सूरी वहां नहीं है। पी पाकिस्तान के इस्लामाबाद में है।”

“कामनी ने बताया?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।

“हां। कामनी ने बताया । परंतु उसके बताने का अंदाज निराला था। कहा कि मां का दूध पिया है तो इस्लामाबाद पहुंच कर इकबाल खान को छूकर दिखाऊं। मार कर दिखाऊं। ऐसी उकसाने वाली उसने कई बातें कहीं। साथ में धमकी भी देती रही कि वो मुझे बहुत बुरी मौत मारेगी, अगर मैं इस्लामाबाद पहुंचा। उसने ये भी बताया कि कल वो इस्लामाबाद जा रही है।”

“आखिर कामनी चाहती क्या है?”

“ये मैं स्पष्ट तौर पर नहीं समझ पाया। अगर उसे ये सब ही कहना था तो फोन पर भी कह सकती थी। दूसरी बात ये है कि उसने मुझे क्यों बताया कि इकबाल खान सूरी पाकिस्तान के इस्लामाबाद में है। मुझे क्यों बताया कि कल वो भी इस्लामाबाद जा रही है। उसे तो चाहिए था कि मुझे इस बात की हवा भी नहीं लगने देती कि कहां पर है इकबाल खान । उसने मुझे आगे बढ़ने का रास्ता भी बताया और उकसाने वाली बातें भी की कि मैं इस्लामाबाद जरूर पहुंचूं।”

“तो क्या कामनी चाहती है तुम इकबाल खान सूरी को मार दो।”

जगमोहन कह उठा।

“मैं नहीं समझ पाया कि वो क्या चाहती है। उसने मुझे वापस मुम्बई जाने को भी कहा।” देवराज चौहान काली चाय का घूंट लेता कह उठा लेकिन ये सब उसी की चाल थी कि हम इकबाल खान सूरी के उस ठिकाने पर पहुंचे। जबकि ऐसी बात वो फोन पर कह सकती थी। जो फोन मेरे पास है वो अलजीरा होटल में उसी ने ही पहुंचाया था।”

“लेकिन ये सब करके कामनी को क्या मिला?”

“मुझे नहीं पता। सोचने पर ये ही लगता है कि वो चाहती है मैं इस्लामाबाद पहुंचूं। परंतु जिस अंदाज में उसने कहा उससे मैं उसके मन की बात नहीं जान पाया और कमल चावला को भी मेरे हवाले कर दिया।”

“क्या इससे कामनी ने नहीं सोचा कि कमल चावला के हाथ लगते ही हम उसकी चाल भांप जाएंगे।” जगमोहन बोला।

“ये सब बहुत उलझन वाली बातें हैं कि आखिर कामनी के मन में क्या है।”

“एक बात तो पक्की है कि वो तुम्हारे साथ नर्मी से पेश आ रही है, परंतु इसका एहसास नहीं होने दे रही। जब हम दुबई पहुंचे, मैं उसके आदमियों के हाथों में पड़ गया। वो तुमसे कैफे में मिली। जब उसने देखा कि ये तुम हो तो मुझे तुम्हारे हवाले कर दिया था। उसके बाद हम अलजीरा पहुंचे। उसकी नजर में रहे। उसने मार्शल के सब एजेंटों पर जानलेवा हमला करा दिया और कई मारे गए, परंतु हम पर उसने कोई हमला नहीं कराया। उसने हमें ऐसी बातों से बचाकर रखा।

देवराज चौहान ने जगमोहन की आंखों में झांका।

“मेरे खयाल में।” जगमोहन पुनः बोला—“ये तुम्हारी और उसकी सूरत में हुई मुलाकात का असर है कि अपनी ताकत वो हम पर नहीं दिखा रही।

परंतु ऐसी बात उसने दर्शायी कभी नहीं। यूं वो सख्ती से ही पेश आती रही।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

“तुम्हें कामनी के बारे में और सोचना चाहिए कि उसके इरादे तुम्हारे सामने स्पष्ट हो सकें।

“मैं हर पल उसी के बारे में, उसकी बातों के बारे में ही सोच रहा हूं।”

देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “मेरे खयाल में वो चाहती है कि इकबाल खान सूरी के लिए मैं इस्लामाबाद पहुंचूं।”

“खयाल में?”

“हां।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया- “क्योंकि मैं अभी तक पूरी तरह कामनी को समझ नहीं पाया।”

जगमोहन गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देखते कह उठा।

“तो क्या तुम्हारा इरादा अब पाकिस्तान जाने का है?”

“जाना पड़ेगा। इकबाल खान सूरी के ठिकाने पाकिस्तान में भी हैं। मार्शल ने तो पहले ही हमारे पाकिस्तान जाने की बात कह दी थी। क्योंकि उसे एहसास था कि ज्यादा खतरा देखकर वो पाकिस्तान भी जा सकता है। अब कामनी ने उसके इस्लामाबाद में होने की बात कही है। हमें पाकिस्तान जाना ही होगा।”

देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

☐☐☐

दिन के बारह बजे देवराज चौहान की आंख खुली।

कमल चावला करीब ही बेड पर टेक लगाए बैठा था। उसकी हालत रात से बेहतर थी परंतु ज्यादा बेहतर नहीं थी। चेहरे पर फीकापन छाया हुआ था। शेव बढ़ी हुई थी। यातना दिए जाने के निशान जिस्म पर से कई जगहों से झलक रहे थे। वो देवराज चौहान को देखकर फीके अंदाज में मुस्कराया फिर कह उठा।

“मुझे बचा लाने का एक बार फिर शुक्रिया।” थका-सा था स्वर उसका।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और कश लेकर बोला।

“अब कैसा महसूस कर रहे हो?”

“बुरा। मेरी हालत ठीक नहीं है। मुझे डॉक्टर की जरूरत है। परंतु यहां मुझे इकबाल खान सूरी का खतरा है। मेरे अधिकतर एजेंट मारे जा चुके हैं। फिलहाल तो हिन्दुस्तान चले जाना ही बेहतर...।”

“इकबाल खान सूरी के डर से दुबई छोड़ रहे हो तो उससे मत डरो। इस वक्त वो इस्लामाबाद में है और कामनी भी आज दुबई से इस्लामाबाद जा रही है। यहीं रहकर अपना इलाज करवाओ।”

“तुम्हें कैसे पता कि कामनी आज इस्लामाबाद जा रही है।”

“ज्यादा सवाल मत पूछो । तुम्हें खबर चाहिए थी, वो मैंने दे दी । तुम्हें कोई खतरा नहीं आएगा।”

“पक्का?”

“पक्का। अब क्या करोगे?”

“अपने एजेंटों से सम्पर्क बनाऊंगा। पता लगाना पड़ेगा कि कौन-कौन जिंदा बचे हैं। जो भी हुआ, बुरा हुआ। मैं अपने इतने एजेंटों के एक साथ मारे जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। उनका मुझे बहुत दुख है।”

“इस काम में ये तो होता ही है कि कभी हम नहीं तो कभी सामने वाला नहीं।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला- “मेरे खयाल में तुम्हें आगे की सोचना चाहिए। तुम बच गए, ये ही बड़ी बात रही।”

कमल चावला गहरी सांस लेकर रह गया।

तभी जगमोहन ने कमरे में प्रवेश किया। वो नहाकर आया था।

“उठ गए। मैं कॉफी बनाता हूं। अभी बाजार जाकर कॉफी का सामान ले आया था।” कहने के साथ ही जगमोहन बाहर निकल गया।

“तुम मेरा कोई काम कर सकते हो या तुम्हारा सारा नेटवर्क खत्म हो गया। देवराज चौहान ने कमल चावला से कहा।

“कैसा काम?”

“मुझे और जगमोहन को पाकिस्तान के इस्लामाबाद जाना है। कैसे जा सकेंगे दुबई से हम?”

“ये इंतजाम मैं कर दूंगा। मुझे पासपोर्ट दो। शाम तक पाकिस्तान का वीजा लग जाएगा और जब भी कहोगे टिकट भी हो जाएगी। मेरे एजेंट नहीं रहे। लेकिन मेरा नेटवर्क अभी भी कायम है। तुम क्या इकबाल खान सूरी के लिए इस्लामाबाद...।”

“हां। उसके पीछे जा रहा हूं। वो महीने भर से इस्लामाबाद में ही है, जब से तुम्हारे वो दो आदमी उनके हाथों में पकड़े गए थे। तभी ही वो खतरा भांपकर इस्लामाबाद चला गया था और कामनी यहीं रही।”

“जबकि हम कामनी को यहां देखकर सोचते रहे कि इकबाल खान सूरी भी दुबई में है। वो दोनों एजेंट कामनी के दबाव में हमें गलत खबरें देते रहे और हम तगड़े भ्रम में रहे। यहीं से हमारा बुरा वक्त शुरू हो गया था।”

देवराज चौहान चुप रहा।

“तुम इकबाल खान सूरी का क्या करोगे देवराज चौहान?”

“पता नहीं। मैं नहीं जानता इस्लामाबाद के क्या हालात हैं। वहीं जाकर ही...।”

“तुमने तो इकबाल खान का पता लगाकर, हमारे एजेंटों को खबर देनी है। आसान काम है। पाकिस्तान में हमारे एजेंटों का जाल फैला है। लेकिन मैं नहीं जानता कि वहां के काम किस एजेंट के हाथ में हैं।”

देवराज चौहान चुप रहा। सोचें थीं चेहरे पर।

तभी जगमोहन कॉफी का प्याला लेके भीतर आया और देवराज चौहान को थमाते कहा।

“कामनी के बारे में और कुछ सोचा?”

“इतना ही कि वो चाहती है मैं इस्लामाबाद पहुंचूं। परंतु ये बात उसने ढके-छिपे शब्दों में कही। उसके मन में कुछ है परंतु मैं नहीं जानता कि क्या है । इस बात के पीछे जरूर उसका कोई गेम है।”

“पाकिस्तान जाना है अब?”

“हां।”

“कैसे जाएंगे?”

“कमल चावला शाम तक हमारे पासपोर्ट पर वीजा लगवा देगा शाम तक...।”

“तुम कर लोगे ये काम?” जगमोहन ने उसे देखा।

कमल चावला ने सहमति से सिर हिला दिया। बोला।

“इसके लिए मुझे यहां से बाहर जाना होगा। मैं किसी को यहां बुलाकर ये जगह नहीं दिखाना चाहता। तुममें से किसी एक को मेरे साथ चलना होगा। मेरी हालत देख ही रहे हो कि...।”

“मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।” जगमोहन बोला।

“मैं हाथ-मुंह धो लूं। फिर निकलते हैं।”

उसके बाद कमल चावला बेड से उठकर धीमे-धीमे अपने कामों में व्यस्त हो गया।

देवराज चौहान ने कॉफी समाप्त की और मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा।

“किसे?” जगमोहन बोला।

“मार्शल को।” देवराज चौहान ने मोबाइल कान से लगा लिया।

जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता आ गई।

“हमें इकबाल खान का सिर्फ पता लगाना है या उसे खत्म भी करना है?” जगमोहन ने पूछा।

“अभी मैं आने वाले हालातों को नहीं जानता कि पाकिस्तान में क्या...।”

“हैलो।” तभी देवराज चौहान के कानों में मार्शल का स्वर पड़ा।

“मार्शल।” देवराज चौहान बोला।

“दुबई में क्या हो रहा है। सुनने में आ रहा है कि मेरे सारे एजेंट मारे गए।” मार्शल का स्वर परेशानी-भरा था।

“तुम्हारे सत्रह एजेंटों के मारे जाने की खबर मेरे पास है। बाकी कितने बचे ये तुम जानो।

“बहुत बुरा हुआ। मेरे इतने लोग एक साथ मारे गए, ओह, ये हुआ कैसे? इकबाल खान सूरी को मेरे एजेंटों के बारे में कैसे पता चल सकता है। वो सब तो बहुत खामोशी के साथ काम कर रहे थे।”

“महीना भर पहले तुम्हारे दो एजेंट जो इकबाल खान के आदमियों में शामिल थे और उसके करीब जा पहुंचे थे। वे इकबाल खान को खत्म करने जा रहे थे, याद है उनके बारे में?”

“हां। पर अचानक ही मामला गड़बड़ हो गया। इकबाल खान गायब हो...।”

“वो कहीं गायब नहीं हुआ। इस्लामाबाद चला गया। परंतु उसके बाद तुम लोगों को अपने उन्हीं दो एजेंटों के माध्यम से जो खबरें मिलती रहीं वो गलत थीं। वो पकड़े जा चुके थे। वहां उनका भेद खुल गया था। और वे तुम लोगों को वो ही खबरें देते जो उन्हें कहा जा रहा था। साथ ही तुम लोगों से खबरें लेते रहे। उन दोनों के मुंह खोलने पर ही इकबाल खान ने जाना कि तुम्हारा कौन-सा एजेंट कहां-कहां पर है और उसके आदमी तुम्हारे एजेंटों पर नजर रखने लगे। फिर जब उन्होंने ठीक समझा, उन पर हमला करके उन्हें मार दिया गया। ये सब कुछ उन्हीं दो एजेंटों के मुंह खोलने की वजह से हुआ। तभी इकबाल खान सूरी को तुम्हारे बारे में पता चला कि भारत सरकार ने तुम्हें उसके पीछे डाल दिया है। ऐसे में वो इस्लामाबाद चला गया।”

“बुरा हुआ। मेरा एक-एक एजेंट बहुत कीमती...।”

“मुम्बई में एक बार फिर आतंकवादी हमला होने वाला है। उसी की तैयारी के सिलसिले में कामनी मुम्बई और सूरत आई थी। ये हमला दो महीने तक हो सकता है। अभी इकबाल खान पाकिस्तान सरकार के साथ मिलकर तैयारी में लगा है।”

“तुम मुझे सब कुछ बताओगे जो दुबई में हुआ, तुम्हारे साथ हुआ।” मार्शल की आवाज कानों में पड़ी।

देवराज चौहान ने सब कुछ बताया।

हर वो बात बताई, जो वो जानता था।

देवराज चौहान के खामोश होने के कुछ पलों तक मार्शल की आवाज नहीं आई।

“देवराज चौहान।“फिर मार्शल की गम्भीर आवाज कानों में पड़ी- “मेरे खयालों में कामनी तुम्हें इस्लामाबाद बुलाना चाहती है।”

“लेकिन साथ में बुरी तरह धमकी भी दे रही है।” देवराज चौहान ने कहा।

“ठीक कहा । पर ये मत भूलो कि उसे बेहतरीन मौका मिला तुम्हें और जगमोहन को खत्म करने का । परंतु उसने तुम दोनों को छोड़ दिया। उसने तुम दोनों पर कोई हमला भी नहीं कराया, जबकि उसका आदमी नकली कमल चावला बनकर तुम्हारे साथ था। हर बार उसने तुम्हें छोड़ा है। इस बात का मतलब जानते हो?”

“क्या?”

“ये तुम्हारी और उसकी सूरत की पहचान का असर है।” उधर से मार्शल ने कहा।

“मुझे ऐसा नहीं लगता।” देवराज चौहान गम्भीर था- “मुझे नहीं लगता

कि उस पर सूरत की मुलाकात का असर हुआ है। मेरा खयाल है कि उसके मन में कुछ है। वो अपनी ही चालें खेल रही है।”

“ये भी हो सकता है।” उधर से मार्शल के गहरी सांस लेने की आवाज आई तभी जगमोहन पास आकर बोला।

“मैं उसके साथ बाहर जा रहा हूं। अपना पासपोर्ट दो।”

“होल्ड करो मार्शल।” देवराज चौहान ने कहा और पैंट की जेब से पासपोर्ट निकालकर जगमोहन को दिया—“यहां से निकलने के बाद सतर्क रहना। वैसे मुझे आशा नहीं कि कामनी तुम पर हमला करवाए।”

“तुम अपना ध्यान रखना।”

“मेरे पास तो रिवॉल्वर भी नहीं है, जरूरत पड़ी तो मैं...।”

कमल चावला पास आता बोला।

“एक रिवॉल्वर यहां है। मैं तुम्हें वो देता हूं।” कहकर वो किचन की तरफ चल गया।

वापस आया तो हाथ में रिवॉल्वर थी।

“ये लोडेड है। रखो।”

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में रख ली।

जगमोहन और कमल चावला के जाने के बाद देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया और फोन पर बात की।

“कहो मार्शल?”

“मैं सोच रहा हूं कि हो सकता है कामनी तुम्हारी सहायता करे इस काम में।”

“वहम में मत रहो। मुझे ऐसा नहीं लगता। ऐसा कुछ होता तो अब तक वो अपनी बात मुझसे कह चुकी होती।”

“इस बात को ध्यान में रखना कि वो तुमसे कोई गेम खेल रही है।”

“मालूम है।”

“वक्त आने पर ही ये बात सामने आएगी कि वो क्या चाहती है।”

“प्रभाकर पाकिस्तान में कहां है?”

“कराची में।”

“उसे इस्लामाबाद पहुंचने को कहो । बता दो कि इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है।”

“बेहतर होगा ये बात तुम ही उससे करो। उसका फोन नम्बर तुम्हारे पास है ही। आगे के वक्त में तुम दोनों ने साथ काम करना है। मेरे से कुछ सुनेगा तो सवाल जरूर करेगा। जिसका जवाब तुम्हारे पास होगा।”

“ठीक है। प्रभाकर से मैं बात करता हूं। इस्लामाबाद में तुम्हारे कितने एजेंट हैं?”

“तीस से ऊपर।

“पूरे भरोसे के हैं?”

“पूरी तरह। अगर कोई गद्दारी पर उतर जाए तो मैं गारंटी नहीं लेता।”

“वो आपस में एक-दूसरे को जानते हैं?”

“अधिकतर नहीं। एक-दो आपस में मेल रखते हों तो जुदा बात है। कोई काम होता है तो बशीर उन्हें इकट्ठा कर लेता है।”

“बशीर कौन?”

“ये उन सब एजेंटों पर कंट्रोल रखता है। उनका बड़ा है बशीर।”

“प्रभाकर को बशीर के बारे में पता है?”

“प्रभाकर पाकिस्तान के हर लिंक से वाकिफ है।” मार्शल की गम्भीर आवाज कानों में पड़ी।

“ठीक है। अब फोन बंद करो। मुझे प्रभाकर से बात करनी है।”

“कामनी इस्लामाबाद में कहां होगी, इस बारे में कामनी ने कोई इशारा दिया?”

“नहीं। ऐसा कुछ नहीं हुआ।

“ऐसा कुछ हुआ होता तो तुम्हारे हक में बढ़िया रहता। सम्भव है कामनी फिर तुमसे बात करे।

“कह नहीं सकता।” देवराज चौहान ने बात खत्म करने वाले अंदाज में कहा।

बातचीत खत्म हो गई।

देवराज चौहान ने प्रभाकर का पाकिस्तान का नम्बर मिलाया।

एक ही बार में बेल गई और बात हो गई।

“हैलो।” प्रभाकर की आवाज कानों में पड़ी।

“कैसे हो प्रभाकर?” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“ओह, देवराज चौहान, तुम...”

“पाकिस्तान में कहां पर हो?”

“कराची में और तुम?”

“दुबई।”

“जगमोहन साथ है?”

“हां।

“वहां पर क्या हो रहा है?”

देवराज चौहान ने मोटे तौर पर दुबई के हालात बता कर कहा।

“इकबाल खान सूरी इस वक्त इस्लामाबाद में है।”

“पक्का?”

“मेरे खयाल में तो पक्का ही है।”

“पर मुझे खबर मिली है कि वो कराची में है।”

“किसने दी खबर?”

“दो दिन पहले ही एक स्थानीय एजेंट में खबर दी। जबकि तुम उसके इस्लामाबाद होने की बात कर रहे हो।”

“तुम अपनी खबर को पक्का करो। मैं कल तक जगमोहन के साथ इस्लामाबाद पहुंच जाऊंगा। इस्लामाबाद का कोई कांटेक्ट नम्बर मुझे बताओ कि जरूरत पड़ने पर उससे सम्पर्क कर सकूँ।”

“मैं तुम्हें बशीर का नम्बर देता हूं। मार्शल के इस्लामाबाद के मामले वो ही देखता है।”

प्रभाकर ने एक मोबाइल नम्बर देवराज चौहान को बताया।

“अब तुम क्या करोगे?” देवराज चौहान ने पूछा।

“मैं यहां ये बात अच्छी तरह पता लगाने की कोशिश करूंगा कि इकबाल खान सूरी कराची में है भी या नहीं? तुम जब बशीर को फोन करो तो कोडवर्ड ‘दुबई का आका’ बताना।”

“दुबई का आका?”

“हां। इससे वो फौरन समझ जाएगा कि तुम मार्शल के आदमी हो और इकबाल खान सूरी के मामले में काम कर रहे हो। इस मिशन का कोडवर्ड ‘दुबई का आका’ ही रखा है मार्शल ने।”

“समझ गया।”

“इकबाल खान सूरी का पता चलते ही फौरन मुझे खबर करना। पक्के तौर पर वो किस ठिकाने पर है। उसके बाद तुम्हारा काम खत्म हो जाएगा। ये मिशन मेरे हवाले है। उसे खत्म किए बिना पाकिस्तान से वापस नहीं जाने वाला। पिचासी पुलिस वालों का हत्यारा है वो और अब पाकिस्तान के साथ मिलकर, हमारे देश के खिलाफ काम कर रहा है।”

“दो महीने तक वो मुम्बई में फिर हमला कराने वाला है।”

“कैसे पता?”

देवराज चौहान ने सारी बात बताई।

“कामनी को बहुत खतरनाक माना जाता है। पाकिस्तान में वो नजरीन शेख के नाम से जानी जाती है। मुझे हैरानी है कि कामनी जैसी औरत सूरत में तुम्हारे साथ आराम से कैसे रह ली?”

“इसकी दो वजहें थी। उसे तब तक वक्त बिताना था, जब उसकी वापसी की फ्लाइट थी और वो ये जान चुकी थी कि मुझ में इतना दम है कि उसके पीछे लगे, हत्यारों को, उससे दूर रख सकूँ। तब वो मेरे सामने मासूम गुड़िया बनकर रही। वो नहीं चाहती थी कि मैं उसके बारे में जान लूं कि वो खतरनाक औरत है।”

“तुम जान भी जाते तो क्या फर्क पड़ता इससे?”

“बहुत फर्क पड़ता। जब मैं ये जान लेता कि वो अपनी रक्षा करने में सक्षम है तो उसे छोड़कर चला आता। जबकि उस वक्त वो मेरे साथ रहकर अपने को सुरक्षित समझ रही थी और प्लेन पकड़ने का इंतजार कर रही थी। वो जिस काम के लिए इंडिया आई थी, वो काम कर चुकी थी। जब वो मेरे साथ थी, तब एक पल के लिए भी मुझे उसके खतरनाक होने का एहसास नहीं हुआ। वो जबर्दस्त नाटकबाज रही। खुद को टी.वी. विज्ञापनों की मॉडल बता रही...।”

“विज्ञापन उसने किए हैं। इकबाल खान सूरी ने उसे विज्ञापनों में देखकर ही उसे दुबई बुला लिया था और फिर कामनी अपराध की दुनिया की गहराइयों में प्रवेश करती चली गई। आज वो इकबाल खान सूरी की प्रेमिका के साथ उसकी सुरक्षा कामों की चीफ भी है। इकबाल खान उसका लोहा मानता है।”

“वो सर्च में जबर्दस्त है और लड़ने की कला में बहुत माहिर है। उसका निशाना भी बहुत अच्छा है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं इन मामलों में उसे करीब से देख चुका हूं।”

“कामनी इस मामले में तुम्हारा साथ देने को तैयार नहीं?” उधर से प्रभाकर ने पूछा।

“अभी तक तो ऐसा कुछ नहीं है। तुम इकबाल खान के बारे में पता करो कि वो कराची में है या नहीं। अगर यकीन हो जाए कि वो वहां नहीं है तो इस्लामाबाद चले आना। अगर वहीं हो तो मुझे खबर कर देना।”

बातचीत खत्म हुई।

देवराज चौहान इस्लामाबाद स्थित बशीर का नम्बर मिलाया। दो-तीन बार मिलाने पर नम्बर मिला । बेल गई फिर मर्दाना आवाज कानों में पड़ी।

“हैलो।”

“दुबई का आका।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

पलों की खामोशी के बाद वो ही आवाज आई।

“नाम?”

“तुम मुझे ऐसा कुछ कहो कि मुझे विश्वास आ जाए कि मैं सही आदमी से बात कर रहा हूं।” देवराज चौहान बोला।

“मार्शल।” उधर से कहा गया।

“ठीक है। मेरा नाम देवराज चौहान है।”

“मैं बशीर हूं।” उधर से कहा गया।

“मेरी जानकारी के मुताबिक इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है।”

देवराज चौहान बोला।

“मेरे पास तो ऐसी कोई खबर नहीं।”

“वो महीने भर से इस्लामाबाद में है।” देवराज चौहान ने कहा।

“ओह।”

“तुम्हें कोई खबर नहीं है।”

“नहीं।”

“आगे ये खबर है कि सम्भव है आज दुबई से कामनी, इस्लामाबाद पहुंचे।”

“कामनी? तुम्हारा मतलब कि नसरीन शेख ।”

“वो ही। वो आज नहीं तो कल पहुंच जाएगी। परंतु मेरे पास खबर है कि वो आज ही पहुंचेगी। तुम अपने आदमी एयरपोर्ट पर लगा दो, जो कामनी उर्फ नसरीन शेख को पहचानते हों। मैं चाहता हूं एयरपोर्ट से ही वो नजरों में आ जाए और उसका पीछा किया जाए कि वो कहां जाती है। मेरे खयाल में वो इकबाल खान सूरी के पास ही जाएगी।”

“मैं अभी अपने कुछ आदमी एयरपोर्ट भेज देता हूं।”

“जो कामनी को जानते हों।”

“मेरे पास नसरीन शेख की तस्वीरें हैं। मैं उन्हें तस्वीरें दिखा दूंगा।

“ये तो और भी अच्छा है।”

“पाकिस्तान में वो कामनी नहीं नसरीन शेख के नाम से जानी जाती है।”

“मैं इस बात का ध्यान रखूगा।” देवराज चौहान ने कहा-“कुछ आदमी इकबाल खान सूरी का पता लगाने के लिए लगा दो । क्या तुम इस्लामाबाद में इकबाल खान सूरी के ठिकानों के बारे में जानते हो?”

“तीन ठिकानों के बारे में जानता हूं। वो उन्हीं में से किसी ठिकाने पर आकर रहता है।”

“अपने आदमियों से कहना कि इस प्रकार पता लगाएं कि किसी को कानों कान खबर न हो कि हम क्या कर रहे हैं। इकबाल खान सूरी तक ये बात न पहुंचे कि कोई उसके बारे में पूछता फिर रहा है।” देवराज चौहान ने सोच-भरे स्वर में कहा।

“समझ गया।”

“इस्लामाबाद में उसके कुछ खास आदमी भी होंगे।”

“नासिर और काले खान उसके ठिकानों की देखभाल करते हैं और जब भी इकबाल इस्लामाबाद में होता है तो उसके साथ रहते हैं। दोनों ही खतरनाक हैं। तीसरा मसूद है, जो कि हर वक्त इकबाल के साथ रहता है, बेशक वो किसी भी देश में जाए।”

“मसूद क्या चीज है?”

“ये इकबाल खान का पूरी तरह वफादार है। उसकी देखभाल करता है और उसे हर मुसीबत से बचाता है। अपने इस काम के अलावा मसूद को किसी बात से मतलब नहीं है कि इकबाल खान क्या करता है। क्रूर इंसान है मसूद। कभी ये इकबाल खान के गनमैनों में से एक हुआ करता था, परंतु नसरीन शेख ने उसकी क्रूरता भरी काबलियत को पहचाना और उसे इकबाल खान के साथ लगा दिया। दो सालों से मसूद, हमेशा इकबाल खान के साथ रहता है, बेशक वो महत्त्वपूर्ण मीटिंग में ही क्यों न हो। मैंने पहले भी कहा है कि मसूद सिर्फ अपने काम से मतलब रखता है। इकबाल खान क्या करता है, उसे मतलब नहीं।”

“मसूद का परिवार?”

“इससे ज्यादा मसूद के बारे में कोई जानकारी नहीं। मुझे कभी ऐसी खबर नहीं मिली कि इकबाल खान सूरी को छोड़कर मसूद कभी दो-चार दिन की छुट्टी पर गया हो। वो हमेशा इकबाल खान के पास रहता है, यहां तक कि कभी बीमार भी नहीं हुआ।”

“मसूद ने कभी इकबाल खान को बचाया?”

“दो बार। एक बार इकबाल का एक आदमी गुस्से में आकर उसे मारने लगा था कि मसूद ने उसे शूट कर दिया। उस आदमी को इकबाल खान से शिकायत थी कि उसकी ड्यूटी रात की ही क्यों लगाई जाती है। दूसरी बार लाहौर में एक आतंकी संगठन के लोगों के साथ मीटिंग हो रही थी, इकबाल खान सूरी उनकी कोई बात नहीं मान रहा था। इस बात पर गुस्से में आकर एक आदमी उठा और इकबाल खान पर गोली चला दी। पास खड़ा मसूद सतर्क था, उसने इकबाल खान को कुर्सी सहित धक्का देकर नीचे गिरा दिया कि उसे गोली न लगे और गोली चलाने वाले को उसी पल शूट कर दिया।

तब मसूद ने ये भी परवाह नहीं की कि ये उन लोगों का ही ठिकाना है। यहां उनके बहुत-से लोग मौजूद हैं । वे उन्हें मार सकते हैं। परंतु सब ठीक रहा। उन लोगों ने अपनी गलती मानी कि, उनके आदमी को ऐसा नहीं करना चाहिए था।”

देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।

“नासिर और कालेखान पर नजर रखो। इन दोनों का परिवार है?

“कालेखान का है। दो बीवियां हैं। सात-आठ बच्चे हैं और सब एक साथ एक बंगले में रहते हैं।”

“सुरक्षा के कोई इंतजाम हैं इस परिवार पर?”

“चार गनमैन बंगले पर पहरा देते हैं। दो गेट पर। एक बरामदे में बैठा रहता है। चौथा घूमता रहता है वहां।”

“तुमने पहले से ही जान रखा है ये सब?”

“जानकारी तो रखनी पड़ती है कि, जाने कब किस बात की जरूरत पड़

जाए।” उधर से बशीर ने कहा।

“नासिर कैसे रहता है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“वो इकबाल खान के ही एक ठिकाने पर रहता है।” बशीर की आवाज कानों में पड़ रही थी।

“जैसे कि अब नसरीन शेख इस्लामाबाद आ रही है तो तुम्हारे खयाल से वो कहां रहेगी?”

“इकबाल खान सूरी के साथ ही रहती है वो। इससे इकबाल खान की सुरक्षा भी हो जाती है और प्यार भी हो जाता है। इकबाल खान नसरीन शेख को बहुत पसंद करता है।”

“अगर नसरीन शेख पर हाथ डाल दिया जाए तो इकबाल खान क्या करेगा?”

“तुम शेर को चूहेदान में बंद करने की सोच रहे हो देवराज चौहान।”

बशीर की आवाज में तीखापन आ गया।

“वो कैसे?”

“शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि नसरीन शेख कितनी खतरनाक है। वो इकबाल खान सूरी जैसे इंसान को सुरक्षा देती है तो सोचो वो कैसी होगी। उसे तो छू पाना भी आसान नहीं । मैंने सुना है वो गजब की निशानेबाज है और लड़ाई में माहिर है।”

“तुमने सही सुना है। उसका निशाना और लड़ाई मैं देख चुका हूं।”

“कब?”

इंडिया में उसने किसी पर निशाना लगाया था तब मैं उसके साथ और लड़ाई कल ही मेरी उसके साथ हुई है।”

बशीर की तरफ से फौरन कुछ नहीं कहा गया।

“चुप क्यों हो गए?”

“तुम-तुम नसरीन शेख से वास्ता रखते हो? क्या उसकी करीबी हासिल है तुम्हें?”

“नहीं।”

“अभी तुमने कहा कि इंडिया में उसने किसी पर निशाना लगाया और तुम उसके साथ थे।”

“हां। ये बात मार्शल को पता है। जब ऐसा हुआ तो वो मुझे नहीं जानती थी और मैं उसे नहीं जानता था।”

“और कल तुम्हारी लड़ाई कहां हुई?”

“दुबई में।”

“क्या तुम दुबई में हो इस वक्त?”

“हां। मार्शल ने मुझे इकबाल खान सूरी के लिए भेजा है। मैं कल उसके ठिकाने पर घुस गया और कामनी से झगड़ा हुआ।”

“ये तुम कैसी बातें कर रहे हो। ऐसा हुआ तो उसने तुम्हें जिंदा आने दिया। वो कितनी खतरनाक...।”

“बशीर।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “ये पता करने की कोशिश करो कि इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में कहां पर टिका है। नासिर और काले खान को भी नजरों में लो।अपने कुछ आदमी एयरपोर्ट पर भेज दो, जो कामनी को पहचानते हों। मेरे खयाल में वो आज आ सकती है इस्लामाबाद । ऐसा हुआ तो देखना है कि वो कहां जाती है। वो जहां जाएगी,वहां इकबाल खान सूरी जरूर मौजूद होगा। मैं तुमसे कल या परसों मिलूंगा।”

“तुम भी इस्लामाबाद आ रहे हो?”

“हां” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।

☐☐☐

मसूद।

29 वर्ष का, छः फुट को छूता, अच्छी सेहत वाला इंसान था। गोरा रंग।लाल गाल, थोड़ा-सा तीखा नाक । सिर के बाल छोटे, भूरी आंखें, आकर्षक व्यक्तित्त्व वाला इंसान था। उसकी भूरी आंखों में हमेशा मौत के सर्द भाव सिमटे रहते । पतले होंठ बंद ही नजर आते थे। वो बहुत कम बोलता था। सत्रह वर्ष का था तो पाकिस्तान के एक आतंकी संगठन में शामिल हो गया था। वहां उसने गोली चलाना, लड़ाई करना, हथियारों और हथगोलों को इस्तेमाल करना सीखा । इस तरह साधारण-सा मसूद खतरनाक मसूद बन गया था। जब से परिवार छोड़ा फिर पलटकर परिवार को नहीं देखा। मन में धुन थी कुछ कर जाने की और ढेर सारा पैसा कमाने की परंतु जल्दी ही उसे समझ आ गया कि ये आतंकी संगठन उसके तो क्या, किसी के भी सगे नहीं हैं। उसके देखते-ही-देखते उसके कई साथी पुलिस के साथ लड़ाई में मारे गए थे। उन्हें बम फोड़ने या भीड़ भरे बाजार में फायरिंग करने भेजा जाता और संगठन के बड़े, इस तरह दहशत फैलाकर, लोगों से पैसा वसूल करते। ये खेल उसकी समझ में आ गया था जो कि उसे पसंद नहीं था। पढ़ा-लिखा वो कम था परंतु दिमाग का तेज था। जुबान कम चलती थी लेकिन उसका दिमाग बोलता था। उसके हर सवाल का जवाब फौरन उसका दिमाग दे देता था।

फिर एक दिन वो उस कैम्प से भाग गया।

ऐसा भागा कि आजाद हो गया। उस संगठन ने उसे ढूंढ़ा जरूर होगा परंतु वो मजे से अपनी जिंदगी जीने लगा। लाहौर सिक्योरिटी एजेंसी के द्वारा एक बैंक के ए.टी.एम. पर गार्ड की नौकरी करने लगा।

चार साल उसने ए.टी.एम. पर गार्ड की नौकरी की। इस दौरान एक बार कुछ लड़कों ने ए.टी.एम. की मशीन को लूटना चाहा, परंतु उसने दो को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। ऐसे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो खुद ही ए.टी.एम. लूट लेगा। करीब चार साल नौकरी करने के दौरान उसने ए.टी.एम. मशीन की बारीकियां नोट कर ली। जाने कितनी बार मशीन को ठीक करने वाले कर्मचारी आते। वो देखता रहता कि ए.टी.एम. कैसे खुलता है और एक रात ए.टी.एम. मशीन को खोलकर, नोटों को सूटकेस में भरकर, ड्यूटी वाली गन वहीं रखकर चलता बना और पूरे पाकिस्तान, अफगानिस्तान खूब घूमा। फिर तीन सालों बाद नोट कम होने लगे तो अफगानिस्तान में ही टिक गया। वहां ड्रग्स मिट्टी के भाव मिलती थी और वहां से जितनी दूर ड्रग्स जाती, उतनी ही महंगी होती चली जाती ये धंधा बढ़िया लगा उसे और सस्ते दामों पर ड्रग्स खरीदकर रूस के बॉर्डर पर जाकर बड़ी रकम में बेच आता। ये धंधा उसने पांच साल किया और इस दौरान उसके सम्बंध ऐसे लोगों से बन गए थे जो कि अपराध की दुनिया के कीड़े थे।

जान-पहचान बढ़ी तो दो लोगों के साथ मिलकर सोने का बिजनेस करने लगा। इसके लिए सोना लेने वो अक्सर दुबई जाता रहता। अब उसकी दुबई से बढ़िया पहचान हो गई। पैसा उसने खूब कमाया और उजाड़ा भी खूब। जिंदगी को उसने सफर बना लिया था। कहीं भी वो ज्याद देर नहीं रुकता था। सोने का बिजनेस छोड़कर वो दुबई में टिक गया। पास में पैसा था। मजे से जिंदगी बिताता नया काम खोज रहा था कि पहचान वाले एक व्यक्ति ने उसे इकबाल खान सूरी का गनमैन बनने की ऑफर दी। इकबाल खान सूरी का नाम उसने अच्छी तरह सुन रखा था और जानता था कि वो अपराध की दुनिया का बड़ा मगरमच्छ है। उसके करीब रहकर वो फायदा उठा सकता है। जिंदगी में आगे बढ़ सकता है। वो तुरंत इकबाल खान सूरी का गनमैन बनने को तैयार हो गया। इसे कामनी के पास ले जाया गया। कामनी ने उसका टेस्ट लिया उसे गनमैन के तौर पर रख लिया।

ये दो साल पहले की बात थी।

अब तक वो इकबाल खान सूरी के साथ टिका हुआ था और सब जानता था कि इकबाल खान सूरी अपने काम कैसे करता है। उसका मुंह हमेशा बंद रहता और दिमाग चलता रहता । बात सिर्फ यहीं तक होती तो ठीक था। परंतु असल मामला कुछ और ही चल रहा था दो सालों से, जबसे वो इकबाल खान सूरी का सबसे खास गनमैन कामनी की रजामंदी से बना था।

इस वक्त मसूद इस्लामाबाद के एयरपोर्ट पर मौजूद था। वो अकेला था और इकबाल खान सूरी ने उसे खासतौर से भेजा था कि वो ही कामनी को लेकर आए। इकबाल खान को मसूद पर पूरा भरोसा था। जबकि इकबाल खान ने उसे अपने साथ और लोग ले जाने को भी कहा था, परंतु मसूद ने स्पष्ट कहा कि किसी और की जरूरत नहीं, वो अकेला ही काफी है। रास्ते में कोई समस्या आती है तो वो निबट लेगा।

इस तरह मसूद कामनी को लेने एयरपोर्ट पर अकेला ही आया था अनाउंसमेंट सुन चुका था कि दुबई से आने वाला प्लेन बीस मिनट पहले ही एयरपोर्ट पर लैंड कर चुका है। उसने थोड़ी देर और इंतजार किया फिर कामनी को आते देखा जो ट्रॉली में एक सूटकेस रखे, ट्रॉली धकेलती आ रही थी। गजब की खूबसूरत लग रही थी। सुनहरी जैसे बाल। लाल रंग का चमकदार टॉप और नीचे क्रीम कलर की जींस और हील वाली बैली।

मसूद ने कामनी को देखकर गहरी सांस ली।

कामनी मसूद को देख चुकी थी। वो मुस्कराई। मसूद ने मुस्कराकर हाथ हिलाया। वो पास आई तो मसूद ने ट्राली थाम ली।

“तुम कैसे आ गए मुझे लेने?” कामनी ने धीमे स्वर में कहा।

“इकबाल ने खासतौर से मुझे भेजा है कि तुम्हें हिफाजत से लाऊं।” मसूद बोला।

दोनों ट्रॉली सहित आगे बढ़े जा रहे थे। नजरें हर तरफ घूम रही थीं।

“साथ में कितने लोग हैं?”

“एक भी नहीं।”

कामनी ने मसूद को देखा।

“तुम्हारा मतलब कि इकबाल ने मुझे लाने, तुम्हें अकेला भेजा है। मैं नहीं मान सकती।”

“अपनी जानकारी में तो मैं अकेला ही हूं। अगर इकबाल ने कुछ को सुरक्षा के नाते हम पर नजर रखने को भेज दिया है तो इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।” आगे बढ़ते हुए मसूद का स्वर धीमा था—“इकबाल तुम्हारे आने से खुश है। उसने अपनी खास कार दी कि उस कार में तुम्हें लाऊं।अपनी कार में तो वो माइक्रोफोन नहीं लगाएगा।”

“तुम्हें नहीं आना चाहिए था। कोई बहाना लगा देते।” कहते हुए कामनी इधर-उधर देख रही थी।

“मैं क्यों न आता। तुम्हें देखे महीना बीत गया। मेरा भी तो मन था तुम्हें

देखने का।”

“तुम मरवाओगे कभी।”

“मसूद के होते तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”

“गलतफहमी में रहना छोड़ दो इकबाल को जितना मैं जानती हूं उतना कोई नहीं जानता। वो एक नम्बर का धूर्त और चालाक इंसान है। उसे समझ पाना तुम्हारे बस का नहीं कि उसके मन में क्या है।” कामनी के चेहरे पर सामान्य भाव थे।

“मैं सिर्फ तुम्हारे मन की बात समझता हूं। दो साल पहले तुम ही पहले मेरी तरफ आकर्षित हुई और...।”

“तुम मेरे पर नहीं मर मिटे थे।”

“मैं तुम्हारी बात कर रहा हूं।”

“और मैं तुम्हारी कर रही हूं।”

“खैर, छोड़ो इस बात को। इसमें दो राय नहीं कि तुम्हारी मेहरबानी से ही मैं इकबाल खान सूरी का सबसे खास आदमी बन पाया। लाखों रुपया मोटी तनख्वाह मिलती है। काम खास कुछ नहीं है। मजे से जिंदगी कट रही है, परंतु परेशानी ये रहती है कि तुम मेरे से हमेशा दूर रहती हो। जबकि तुमने कहा था कि इस बारे में कुछ करोगी।”

“जब मौका लगता है हम रात को मिल तो लेते हैं।”

“उस मिलने में मजा नहीं है।” ट्राली धकेलता मसूद धीमे स्वर में कह रहा था— “अंधेरे में, छिपकर पंद्रह-बीस मिनट के लिए डर भरी मुलाकात कि कोई हमें देख न ले।”

“मसूद ।” सिर झुकाए आगे बढ़ती कामनी कह उठी- “मैं तुम्हें सच्चा प्यार करती हूं।”

“मैं भी तुम्हें सच्चा प्यार करता हूं तभी तो शिकायत कर रहा हूं। ऐसा कब तक चलेगा। इकबाल खान नाम का पहाड़ हमारे सामने मौजूद है। जबकि तूने कहा था कि इस समस्या का जल्दी ही कोई हल निकालूंगी। दो साल हो गए और...।”

“इकबाल खान को खत्म करना कोई मजाक का काम नहीं है।” कामनी का स्वर बेहद सामान्य था।

“तुम एक इशारा करो मैं आज ही...।”

“पागलों वाली बातें मत करो मसूद। अगर ऐसा मुमकिन होता तो कबका हो चुका होता।” चलते हुए कामनी दबे स्वर में कह रही थी- “ऐसा करते ही इकबाल खान के आदमी तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। मैं तुम्हें खो दूंगी। इकबाल खान सूरी की पहाड़ जैसी दौलत मैंने पानी है, ऐसा तभी हो सकता है, जब वो ऐसी मौत मरे कि जिसमें हमारा कोई हाथ न हो। इस तरह सब कुछ मेरे द्वारा संभाला जाएगा और सब मेरा ही आदेश मानेंगे। इन हालातों में हमें दूसरों के सामने दूरी बनाए रखनी है कि हमारा वास्ता ही नहीं है जैसे।”

“कभी-कभी ये दूरी मुझे अच्छी नहीं लगती।”

“बचपना मत करो।” कामनी के चेहरे के भाव सामान्य थे—“और चुप रहो। हमें इतनी देर बातें नहीं करनी चाहिए। अगर इकबाल खान के भेजे लोग हम पर नजर रख रहे हैं तो, हमारा देर तक बात करना, संदिग्ध हो जाएगा।

मसूद चुप हो गया।

“वैसे तुम्हारे खूबसूरत चेहरे और भूरी आंखों की मैं दीवानी हूं।”

“मैं भी अक्सर तुम्हारे बारे में सोचता हूं। तुम्हारा चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता है।”

“मैंने इकबाल का कुछ इंतजाम करने की कोशिश की है। अभी पता नहीं मैं कितनी कामयाब हुई हूं।” कामनी ने कहा।

तभी वे कार के पास आ पहुंचे। मसूद ने चाबी से कार की डिग्गी खोली और ट्रॉली से सूटकेस उठाकर डिग्गी में रखा फिर डिग्गी बंद करके बेहद अदब से कार का पिछला दरवाजा खोलकर खड़ा हो गया। कामनी भीतर जा बैठी। मसूद ने दरवाजा बंद किया और ड्राइविंग डोर खोलकर भीतर जा बैठा। दरवाजा बंद करके कार आगे बढ़ा दी।

“तुम किस इंतजाम के बारे में...”

“खामोश रहो।” कामनी एकाएक सख्त स्वर में बोली- “कार में माइक्रोफोन लगे हो सकते हैं।”

“मैंने पहले ही बता दिया था कि कार में माइक्रोफोन नहीं हो सकता। क्योंकि इसे सिर्फ इकबाल ही इस्तेमाल करता है। वो अपनी कार में माइक्रोफोन क्यों लगाएगा।” मसूद ने विश्वास भरे स्वर में कहा- “इस कार में बैठकर वो कई लोगों के साथ बेहद महत्त्वपूर्ण बातें करता है और मैं कार चलाता रहता हूं।”

कामनी ने होंठ भींच लिए।

“मसूद को तुम बेवकूफ मत समझो कामनी। इस कार में माइक्रोफोन होता तो मुझे पता होता।”

कामनी खामोश रही।

“बोलो, तुमने इकबाल का क्या इंतजाम करने की कोशिश की है?” मसूद ने कहा।

“इसके लिए तुम्हें देवराज चौहान के बारे में जानना पड़ेगा।” कामनी कह उठी।

“वो कौन है?”

“हिन्दुस्तान का डकैती मास्टर। खतरनाक इंसान है। मैंने उसे अच्छी तरह चैक किया है। उसमें हौसला है इकबाल खान सूरी को खत्म करने का। मैंने उससे झगड़ा भी किया और उसने बखूबी मेरा मुकाबला किया।”

“तुम्हारा मुकाबला कोई कर सका, ये हैरानी की बात है।”

“वो मेरा मुकाबला नहीं कर सका। मैं चाहती तो उसे मार सकती थी। परंतु मैं तो उसे चैक कर रही थी कि वो कितना हौसला रखता है। चाल चलकर मैंने उसे इकबाल खान सूरी के दुबई वाले ठिकाने पर बुलाया।अगर वो भीतर से डरपोक होता तो कभी भी वो वहां नहीं आता। परंतु वो आया। जबकि वो जानता था कि वहां उसे शूट भी किया जा सकता है। मेरी हर परीक्षा पर वो खरा उतरा। उसमें दम है कि वो इकबाल को खत्म कर सके।”

“पर वो क्यों खत्म करेगा? क्या तुमने उसे पैसे का लालच...”

“ये बात नहीं है मसूद । मार्शल के बारे में तो तुम जान ही चुके हो जिसके दो आदमी हमारी नौकरी पाकर गनमैनों में शामिल हो गए और वे इकबाल को खत्म करने का इरादा कर रहे थे कि पकड़े गए।”

“हां। उसके बाद ही तो इकबाल दुबई से इस्लामाबाद निकल आया था।”

“वो ही मार्शल। भारत की खुफिया जासूसी संस्था का चीफ। उसने देवराज चौहान जैसे खतरनाक इंसान को इकबाल को मारने के लिए, किराए पर लिया है और दुबई भेज दिया। मार्शल ने अपने इस काम के लिए गलत आदमी का चुनाव नहीं किया होगा, परंतु मैंने देवराज चौहान को आजमाया और वो खरा उतरा। वो इकबाल खान सूरी की तलाश में दुबई भटक रहा है और मैं उसे बता आई हूं कि इकबाल इस्लामाबाद जा चुका है।”

“ओह । तुम्हारा मतलब कि वो इकबाल खान को मारने इस्लामाबाद आएगा?” मसूद के होंठों से निकला।

“आशा तो है।”

“अगर देवराज चौहान ने इकबाल को बता दिया कि तुमने उसके इस्लामाबाद में होने की बात बताई है तो...।”

“मुझे बच्ची समझता है मसूद”

“क्या मतलब?”

“मैंने ये बात उसे ऐसे हालातों में बताई है कि बेशक वो इकबाल को बता दे, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। मैंने उसे कहा कि अगर मां का दूध पिया है तो इस्लामाबाद आकर इकबाल खान को मार के दिखा। जब तक मैं जिंदा हूं तू उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इस तरह की और भी कई बातें कहीं। देवराज चौहान भी भ्रम में पड़ गया होगा कि मैं क्या कह रही हूं। मैंने उस पर ऐसे शब्द इसलिए इस्तेमाल किए कि भड़ककर वो इस्लामाबाद आ जाए और इकबाल खान को ढूंढ़ने लगे।”

“समझ गया। सब समझ गया। मान लो वो इस्लामाबाद आ जाता है तो...।”

“मान लो नहीं, वो पक्का आएगा। अपने इरादों का पक्का लगा वो मुझे। उससे मेरी पहली मुलाकात हिन्दुस्तान के सूरत शहर में हुई थी। तब उसने मुझे बाबा रतनगढ़िया के आदमियों से बचाया, वरना वो मेरी हत्या कर देते। वो सच में काबिल इंसान है। धीरे-धीरे मैंने उसे पहचाना है कि वो क्या चीज है। मार्शल ने सही आदमी चुना है सच बात तो ये है कि वो मार्शल के लिए काम कर रहा है, पर मेरे अंजान इशारों पर वो नाच रहा है। वो मेरा काम करेगा। इस्लामाबाद जरूर आएगा वो।”

“वो आ गया तो क्या तब भी तुम कुछ करोगी?”

“मैं समझी नहीं?”

“मेरा मतलब इकबाल तक पहुंचने में उसकी सहायता करोगी?”

“उसे इसकी जरूरत नहीं। वो अपना काम करना जानता है। जरूरत महसूस हुई तो किसी तरह उसे थोड़ी राह दिखा दूंगी। इस तरह कि वो नहीं समझ पाएगा कि, मेरे इशारों पर ही उसके कदम बढ़ रहे हैं।” कामनी के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच उठी।

“कामनी।” एकाएक मसूद बोला—“हमारा पीछा हो रहा है।”

कामनी चौंकी। माथे पर बल पड़े।

“एक कार देर से हमारे पीछे है।” मसूद ने पुनः कहा।

“ये बात हमें पता चलनी चाहिए कि कौन हमारे पीछे है। ये इकबाल के भेजे आदमी भी हो सकते हैं। तुम अकेले ही मुझे लेने आ गए तो इकबाल ने एहतियात के तौर कुछ को पीछे भेज दिया होगा। तुम इकबाल को फोन करके पूछो । वरना पीछे लगे लोग हमारे दुश्मन भी तो हो सकते हैं। हम कहीं गफलत में न मारे जाएं।”

“ये बुलटप्रूफ कार है।”

“तुम फोन करके इकबाल से पूछो। मेरे पास तो दुबई वाला फोन है। यहां काम नहीं करेगा।”

मसूद ने जेब से मोबाइल निकाला और कार चलाते नम्बर मिलाया।

“जनाब।” मसूद बोला- “मैडम कार में हैं। हम आ रहे हैं। परंतु पीछे एक कार लगी है। क्या आपने आदमी भेजे हैं?”

“...?”

“ठीक है जनाब।

“...?”

“आप बेफिक्र रहें जनाब। मसूद के होते मैडम को कुछ नहीं हो सकता।”

कहकर मसूद ने फोन बंद किया और बोला—“पीछे लगे लोग इकबाल के नहीं हैं। ये कोई और ही लोग हैं।” मसूद के चेहरे पर कठोरता आ गई थी।

कामनी के चेहरे पर दरिंदगी उभर आई।

“कौन हो सकते हैं ये।” मसूद बोला- “तुम्हारे आने के बारे में किसे पता था?”

कामनी की आंखों के सामने देवराज चौहान का चेहरा उभरा।

परंतु साथ में ये भी विचार आया कि इतनी जल्दी देवराज चौहान इस्लामाबाद नहीं पहुंच सकता। आधी रात के बाद तो उसके ठिकाने से गया है। वीजा लगवाने में भी उसे वक्त लगेगा। बहुत जल्दी भी करे तो आज का दिन वीजा लगवाने में तो लगेगा ही। स्पष्ट था कि पीछे देवराज चौहान नहीं था।

“हमें पीछे आने वालों से उलझना नहीं है।” कामनी शब्दों को चबाकर बोली- “हम...।”

“मैं सबको खत्म कर...।”

“बेवकूफी मत करो। उनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है। मेरे पास कोई हथियार नहीं है। एक कार में वो लोग हैं हो सकता है कि पास में उनके साथियों की दूसरी कार भी हो। क्या पता उनके इरादे क्या हैं। तुम एक रिवॉल्वर से उनका मुकाबला नहीं कर सकते। यहां से निकल जाने में ही इस वक्त हमारी भलाई है।”

“क्या मतलब?”

“इनसे पीछा छुड़ा लो।” कामनी ने दांत भींचकर कहा।

“लेकिन...।” मसूद ने कहना चाहा।

“इस वक्त तुम वो ही करो जो मैं कह रही हूं। बहस मत करो। इनसे पीछा छुड़ाओ।” कामनी ने गुस्से से कहा।

“ठीक है।” मसूद सख्त स्वर में बोला— “ये मेरे लिए मामूली काम है,तुम आराम से बैठो। ये सोचो कि पीछे लगे लोग कौन हैं?”

“मैं इनके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पा रही हूं। तुम पीछा छुड़ाने की तरफ ध्यान दो।”

अगले ही पल कार की रफ्तार अचानक ही बेहद तेज हो गई। जबकि सड़कों पर खास ट्रैफिक था।

☐☐☐

बशीर अल्लाही।

पाकिस्तान के इस्लामाबाद स्थित मार्शल का एजेंट।

पचास वर्ष की उम्र। स्वस्थ शरीर। चेहरे पर हमेशा काली सफेद दाढ़ी रहती। बीस सालों से वो इस्लामाबाद में मार्शल के लिए काम कर रहा था। इस्लामाबाद के एजेंटों का चीफ था। उनसे काम लेता था। परंतु कोई भी उसे चेहरे से नहीं जानता था। सब काम फोन पर होते। बातें फोन पर होती और काम भी फोन पर समझाया जाता। सिर्फ उसकी आवाज ही बाकी के एजेंट पहचानते थे। कभी किसी खास काम के तहत मिलना भी पड़ा एजेंटों से तो उस स्थिति में वो भी एक एजेंट बनकर मिलता था और तब उसकी आवाज भी बदली होती।

मार्शल से बशीर अल्लाही और एजेंटों को हर महीने मोटी रकम मिलती थीं। इसलिए हर काम ये लोग पूरा करने की कोशिश करते। ऐसे में कई एजेंट खतरनाक कामों में उलझकर मारे भी जाते तो मार्शल की तरफ से मरने वाले के परिवार को एक मुश्त मोटी रकम पहुंचा दी जाती। जासूसी का ये सिलसिला था जो कि खामोशी से, सालों से चल रहा था और किसी को कानों कान खबर भी नहीं थी। अगर किसी को पता भी था तो उसे एजेंटों की पहचान नहीं थी।

बशीर अल्लाही।

दिखावे के लिए इस्लामाबाद के अली बाजार में ड्राइक्लीन की दुकान चलाता था। जबकि वो चाहता था कि दुकान पर ज्यादा काम न आए, परंतु उसकी दुकान खूब चलती थी। हर समय व्यस्तता रहती । तीन लोग दुकान पर काम करते थे। एक प्रेस वाला, दूसरा बुकिंग करने वाला और तीसरा आने वाले ग्राहकों को कपड़ों की डिलीवरी देने के लिए।

इस वक्त भी बशीर दुकान पर ही मौजूद था।

कुछ ग्राहक भी थे जो काम करने वालों के साथ कपड़ों के लेन-देन में व्यस्त थे।

बशीर दुकान पर बैठता जरूर था परंतु काम नहीं करता था। काम पर नजर रखता था। इस वक्त शाम के साढ़े आठ बज रहे थे। नौ बजे तक वो दुकान बंद कर देता था और अब दुकान के लगभग बंद करने की तैयारी हो रही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने स्क्रीन पर आया नम्बर देखा और उठकर दुकान से बाहर आकर बात की।

“हैलो।”

“जनाब मैं महबूब।”

“एयरपोर्ट से कामनी कहां पर गई।” बशीर ने शांत स्वर में पूछा।

“जनाब गड़बड़ हो गई है। उन्हें पता चल गया कि उनका पीछा किया जा रहा...।”

“हुआ क्या? बशीर का स्वर सख्त हो गया।

“वो लोग नजरों से निकल गए। गाड़ियों की भीड़ की वजह से हम पीछे न जा सके।”

“बेवकूफ, जानते हो ये कितना जरूरी था।” बशीर ने धीमे स्वर में, गुस्से में कहा।

“माफी चाहता हूं जनाब । पहली बार ही ऐसा हुआ है कि...।”

“मुझे भी ऊपर जवाब देना पड़ता है। क्या कहूंगा उनसे कि मेरे आदमी निकम्मे निकले।”

महबूब खान की आवाज नहीं आई।

“सलमान मोहम्मद कहां है?” बशीर ने गुस्से से पूछा।

“मेरे पास ही...”

“बात कराओ।”

अगले ही पल दूसरी आवाज उसके कानों में पड़ी।

“जनाब, पता नहीं ये सब कैसे हो...”

“क्या तुम्हारा जवाब सही है सलमान?”

“नहीं हमसे बड़ी चूक हो गई।

“मैं ऊपर क्या कहूं कि तुम लोग चूक गए। वो नजरों से निकल गए।”

“फिर से ऐसा नहीं होगा।”

“हमें काम पूरा करने के पैसे दिए जाते हैं न कि असफल रहने के। ये बात तुम जानते भी हो कि हमारे ऊपर वाले हर हाल में काम पूरा हुआ देखना चाहते हैं। कितनी परेशान करने वाली बात है कि तुम लोग एक कार का पीछा न कर सके।” क्रोध में बशीर ने कहा और फोन बंद कर दिया। फौरन ही खुद को सामान्य करने की चेष्टा में लग गया। दुकान बंद की जा रही थी।

दुकान बंद होने के बाद बशीर ने चाबी लेकर जेब में डाली और पार्किंग की तरफ बढ़ गया, जहां वो रोज कार खड़ी करता था। कुछ ही देर में वो कार पर घर जा रहा था कि उसका फोन बजने लगा।

“हैलो।” बशीर ने कार चलाते बात की।

“मैं दुबई से देवराज चौहान।” इधर से देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।

“मैं तुम्हें याद ही कर रहा था, परंतु तुम्हारा कोई ठीक नम्बर मेरे पास नहीं था। तुम्हारे लिए बुरी खबर है।”

“क्या?”

“तुमने जिस नसरीन शेख के बारे में कहा था, वो इस्लामाबाद एयरपोर्ट पर उतरी, मेरे आदमियों ने उस पर नजर रखी। उसके पीछे गए परंतु वो भांप गए कि पीछा हो रहा है और मेरे आदमियों को धोखा देकर भाग निकले।”

“ओह। ऐसा हो जाने से मेरे काम का रास्ता लम्बा हो गया।” देवराज चौहान की आवाज, बशीर के कानों में पड़ी।

“मुझे सख्त अफसोस है कि...”

“तुम नसरीन शेख और इकबाल खान सूरी के बारे में पता लगाने की कोशिश करो कि वो कहां मिलेंगे।”

“मैं अपने एजेंट अभी इस काम पर लगा देता हूं।”

“नसरीन शेख या इकबाल को भनक नहीं मिले कि उन्हें कोई खोज रहा...।”

“मैं इस बात का ध्यान रखूगा । क्या इकबाल खान सूरी पक्का इस्लामाबाद में है?”

“आशा तो पूरी है इस बात की।”

“ठीक है।”

“मेरे पासपोर्ट पर पाकिस्तान का वीजा लग गया है। साथ में जगमोहन भी है। हम दोनों परसों दोपहर को इस्लामाबाद पहुंच रहे हैं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फ्लाइट नम्बर और समय बताया- “सम्भव है नसरीन शेख मुझ पर नजर रखवाए। वो मेरे प्लेन के बारे में तो नहीं जानती, परंतु इतना एहसास है उसे कि हम दुबई से कभी भी इस्लामाबाद पहुंच सकते हैं। ऐसे में तुम जो ठीक समझो, वो कर सकते हो एयरपोर्ट पर।”

“ठीक है। मैं देखूगा मुझे क्या करना है। लेकिन तुम्हारी और जगमोहन की कोई तस्वीर नहीं है मेरे पास।”

“इस बारे में मार्शल से बात करो। वो तुम्हें मेरी और जगमोहन की तस्वीर तुम्हारी ई-मेल आई-डी पर भेज देगा।”

बातचीत खत्म हुई।

बशीर ने सड़क के किनारे कार रोकी और मार्शल का नम्बर मिलाया।

बात हो गई।

“मार्शल।” बशीर ने कहा- “देवराज चौहान और जगमोहन परसों इस्लामाबाद पहुंच रहे हैं। मुझे उनकी तस्वीरें भेज दो।”

“पंद्रह मिनट में तुम्हारी ई-मेल आई-डी पर ये काम हो चुका होगा।”

मार्शल की आवाज कानों में पड़ी- “वो अपने काम की किस राह पर है उनकी कही कोई खास बात?”

“देवराज चौहान का कहना है कि इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है।”

“क्या तुम्हें ये बात पता है?”

“नहीं। मुझे कोई खबर नहीं है।”

“देवराज चौहान जैसा कहता है वैसा ही करना। उसका पूरा साथ देना है। वो मेरा बेहतरीन आदमी है।”

“फिक्र मत करो मार्शल । मैं पूरी तरह उनके साथ हूं।”

बशीर ने फोन बंद किया और कार आगे बढ़ा दी।

बशीर अपने घर तक पहुंचा ही था कि पुनः उसका फोन बज उठा।

“हैलो।”

“बशीर।” तभी प्रभाकर की आवाज कानों में पड़ी- “मैं प्रभाकर।

देवराज चौहान का फोन आया?”

“हां।

“क्या कहा उसने?”

“इकबाल खान सूरी इस्लामाबाद में है। उसे ढूंढ़ने को कहा । परसों वो जगमोहन के साथ खुद भी आ रहा है।”

“इकबाल खान सूरी वास्तव में इस्लामाबाद में है? मेरे पास तो खबर है कि वो कराची में है। मैं उसे कराची में ढूंढ़ रहा हूं।”

“ये देवराज चौहान की बताई खबर है। मेरे पास पक्की जानकारी नहीं है कि वो कहां है।”

“तुम्हें मालूम करना चाहिए।”

“अब इसी काम पर लग रहा हूं। इकबाल खान के तीन ठिकाने मेरी नजर में हैं। उन्हें चैक करूंगा। परंतु इकबाल खान के बारे में कोई खबर पाना आसान काम नहीं है। वो कभी भी, कहीं भी नजर नहीं आता। अकसर वो रंग-रूप बदलकर ठिकाने से बाहर निकलता है और लोगों की भीड़ में खो जाता है। कोई उसे पहचान नहीं पाता।”

“तुम उसे ढूंढो बशीर। खुद को साबित करने का बढ़िया मौका तुम्हारे पास आया है।”

“मैं पूरी कोशिश करता हूं।”

“इकबाल खान सूरी के बारे में कोई खबर मिले तो फौरन मुझे खबर करना।

“हां। इस बारे में मार्शल की तरफ से कबका मेरे पास आदेश आ चुका है।” बशीर ने कहा- “नसरीन शेख आज इस्लामाबाद पहुंची है दुबई से। देवराज चौहान ने ये खबर पहले ही मुझे दे दी थी और उसका पीछा करने को कहा। देवराज चौहान जानना चाहता था कि वो कहां पर जाती है, परंतु मेरे आदमी उसका पीछा करने में असफल रहे।”

“नसरीन शेख इस्लामाबाद में हैं तो संभावना बढ़ जाती है कि इकबाल खान भी इस्लामाबाद में हो।”

“इस बारे में मुझे पता चलते ही, फौरन तुम्हें फोन कर दूंगा।

☐☐☐

देवराज चौहान और जगमोहन इस्लामाबाद के एयरपोर्ट से बाहर निकले तो दोपहर बाद के 3.45 हो रहे थे। तीखी धूप फैली हुई थी। व्यस्त एयरपोर्ट था इस्लामाबाद का। हैवी ट्रेफिक और लोग नजर आ रहे थे। वहां बने बूथ पर जाकर उन्होंने टैक्सी बुलाने को कहा। बशीर से बात करके ही देवराज चौहान और जगमोहन ने दुबई छोड़ी थी। बशीर ने उन्हें बता दिया था कि कहां पहुंचना है उन्हें । वहां का पूरा पता दोनों को ठीक से याद था।

तभी एक टैक्सी आई। दूसरी आई, परंतु उसमें दूसरे लोग सवार होकर चल गए।

“हमारी टैक्सी नहीं आई?” जगमोहन ने बूथ वाले कर्मी से पूछा।

“अभी दो टैक्सियां आई तो थीं।”

“उस पर दूसरे लोग सवार हो गए।” जगमोहन ने मुंह बनाया।

“उन्हें पकड़कर पीछे खींचकर, तुम दोनों भीतर बैठ जाते।” उसने दोनों को गहरी निगाहों से देखा—“हिन्दुस्तानी हो?”

“हां” देवराज चौहान ने कहा।

“ये हिन्दुस्तानी भी अजीब लोग होते हैं।” उसने गहरी सांस ली।

“किसने कहा?”

“हमारे पाकिस्तान में ऐसा ही कुछ कहते हैं, पाकिस्तान में क्या करने आए हो?”

“काम है।”

“काम? तुम लोग तो मुसलमानों को हिन्दुस्तान से बाहर निकालने आमादा हो।”

“ऐसा तो कुछ नहीं है।”

“ऐसा ही है। तुम्हारे देश के एक-दो नेता कुछ ऐसा ही बोलते रहते हैं।मैंने अखबार में पढ़ा है।”

“एक-दो नेता?”

“हां”

“वो कोई सिरफिरे नेता होंगे। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। तुम लोग पाकिस्तान को मुसलमानों का देश कहते हो, जबकि हिन्दुस्तान सिर्फ हिन्दुस्तान है। वहां हिन्दू-मुसलमान नहीं रहते, हिन्दुस्तानी रहते हैं। जितने मुसलमान पाकिस्तान में हैं, उससे ज्यादा हिन्दुस्तान में बसते हैं,परंतु वो हिन्दुस्तानी कहलाते हैं। हिन्दू-मुसलमान में कोई फर्क नहीं हिन्दुस्तान में।”

“सही कहते हो?” उसने देवराज चौहान को देखा।

“कभी हिन्दुस्तान गए हो?”

“नहीं।”

“एक बार जाकर तो देखो।”

“उससे क्या होगा?”

“तुम्हें हिन्दुस्तान का माहौल पता चल जाएगा। सुनी हुई बातें और देखी बातों में फर्क होता है।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“लगता तो नहीं कि तुम सच कह रहे हो।”

“तुम्हारे कान अच्छी तरह से भर दिए गए हैं। इसलिए मेरी बातों पर शक कर रहे हो।”

“किसने कान भरे?”

“पाकिस्तान के नेताओं ने । जो अपनी कुर्सी बचाने की खातिर गलत बयान देते हैं। हिन्दुस्तान के बारे में।ये नेता ही हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाकिस्तान की औलादों में हिन्दुस्तान के खिलाफ जहर भर रहे हैं और नफरत की आग जलती रहती है। हिन्दुस्तान के मुसलमानों से पूछो तो वो ये ही कहेंगे कि हम हिन्दुस्तान में खुश हैं। ये ही हमारा देश है।”

“भरोसा नहीं होता तुम्हारी बात का।”

“एक बार हिन्दुस्तान का चक्कर लगा लो। भरोसा खुद-ब-खुद ही हो जाएगा।

“कश्मीर के हालात पता हैं न, वहां...।'

“अपने नेताओं को कहो कि कश्मीर पर से ध्यान हटा लें। वहां अपने आदमी और पैसा भेजना बंद कर दें तो कश्मीर के हालात खुद-ब-खुद ही सुधर जाएंगे।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“तुम मेरे देश के नेताओं पर बुरा इलजाम लगा रहे हो कि...।”

“इलजाम नहीं लगा रहा, सच्चाई बता रहा...।”

तभी जगमोहन कह उठा।

“टैक्सी आ गई। चलो।”

दोनों कंधों पर बैग लादे टैक्सी की तरफ बढ़ गए।

“सुनो तो।” पीछे से बूथ वाले ने पुकारा।

परंतु वे टैक्सी के भीतर जा बैठे थे। टैक्सी आगे बढ़ गई।

पीछे वाली सीट पर बैठे थे वे। जगमोहन जब ड्राइवर का पता बताने लगा तो ड्राइवर कह उठा।

“मुझे पता है आपने कहां जाना है।”

“कहां जाना है?” जगमोहन के होंठों से निकला। ड्राइवर ने सही पता बता दिया, जहां को पता वो बताने वाला था।

जगमोहन ने हड़बड़ाकर देवराज चौहान को देखते हुए कहा।

“इस्लामाबाद में तो टैक्सी ड्राइवर बिना बताए ही जानते हैं कि सवारी ने कहां जाना है।”

“कौन हो तुम?” देवराज चौहान बोला।

तब तक ड्राइवर हाथ आगे बढ़ाकर डैशबोर्ड खोल चुका था।

भीतर दो रिवॉल्वरों पर उनकी निगाह पड़ी।

उसने दोनों रिवॉल्वरें निकालकर, पीछे उनकी तरफ बढ़ाई।

“ये बशीर ने आपके लिए भेजी है।”

देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया। जगमोहन ने दोनों रिवॉल्वरें थामी और चैक करने लगा कि वो लोडिड हैं भी या नहीं।”

ड्राइवर ने पुनः डैशबोर्ड में हाथ डालकर मोबाइल निकाला और उनकी तरफ बढ़ाया।

“ये भी दिया है।”

देवराज चौहान ने फोन थाम लिया।

“दोनों रिवाल्वरें फुल हैं।” जगमोहन बोला।

“मेरा नाम महबूब खान है और मैं इस्लामाबाद में मार्शल का एजेंट हूं।”

ड्राइवर ने कहा।

“हम तुम्हारी टैक्सी में कैसे आ गए?”

“मैंने बूथ वाले को तुम दोनों की तस्वीरें दिखाकर, हजार रुपया दिया था कि तुम्हें मेरी टैक्सी में ही बिठाए। परंतु मुझे आने में कुछ देर हो गई। मैंने तुम लोगों को वहां खड़े देख लिया था।”

“तभी उसने हमें बातों में लगा लिया था।” जगमोहन बोला।

“मैंने उसे कह दिया था कि अगर मेरा काम न हुआ तो हजार रुपया वापस ले लूंगा।” महबूब खान बोला।

“तो तुम मार्शल के एजेंट और बशीर के साथी हो।”

“जी हां। वैसे बशीर हमारा चीफ है इस्लामाबाद में। वो ही हमें काम देता है।

“अब क्या कहा बशीर ने?” देवराज चौहान ने पूछा।

“तुम लोगों को सुरक्षित एयरपोर्ट से लाना है और उस पते पर पहुंचाना है। इस दौरान अगर कोई पीछा करे तो उस बात की खबर बशीर को देनी है। पीछे हमारे आदमी की एक कार और भी है, उसका नाम सलमान मोहम्मद है। वो भी इस बात का ध्यान रख रहा होगा कि कोई पीछे न हो।”

“बशीर ने पूरा इंतजाम कर रखा है।” जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा।

“तुमने जो फोन दिया है, उससे मैं कहां तक बात कर सकता हूं।”

“जहां भी आप चाहें। फोन बंद नहीं होगा। ‘बिल’ बशीर देगा। बशीर ने बताया कि तुम लोग मार्शल के ही एजेंट हो।”

“ऐसा ही समझो।”

“बशीर ने ये भी बताया कि तुम लोगों को शंका है कि एयरपोर्ट से तुम लोगों का पीछा किया जा सकता है।”

“ऐसा हो सकता...'

तभी महबूब खान का फोन बज उठा।

फोन निकालकर महबूब खान ने फौरन बात की।

“महबूब।” बशीर की आवाज कानों में पड़ी—“सलमान ने अभी मुझे बताया कि तुम्हारे पीछे एक कार है।”

“तो पीछा हो रहा है।” महबूब शीशे में पीछे का दृश्य देखता कह उठा-“पीछे कई कारें हैं।

“क्रीम कलर की कार बताई है सलमान ने।”

“हां। मेरी कार से पीछे-के-पीछे क्रीम कलर की कार है।” महबूब शीशे में देखता कह उठा।

“उसके पीछे वाली कार में सलमान है तुम उस कार से पीछा छुड़ाओ।”

“समझ गए?”

“समझ गया। पंद्रह मिनट में मैं उस कार से पीछा छुड़ा लूंगा।” कहकर महबूब ने फोन बंद किया और ड्राइविंग पर ध्यान लगा दिया। वो बार-बार शीशे में पीछे आती कारों पर नजर मार रहा था।

“तुम क्या करने वाले हो?” देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर कहा।

“बशीर ने कहा है कि पीछे वाली कार से पीछा छुड़ाऊं।” महबूब बोला।

“ये मामला मैं अपने हाथ में ले रहा हूं। तुम वो ही करोगे जो मैं कह रहा...।”

“बशीर मेरा चीफ है। उसकी बात मानना मेरे लिए ज्यादा जरूरी है।”

“बशीर से मैं बात कर लेता हूं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान हाथ में दबे मोबाइल से नम्बर मिलाने लगा।

जगमोहन ने पीछे देखते हुए कहा।

“कामनी के लोग हैं ये?”

“यकीनन।” नम्बर मिलाकर देवराज चौहान ने फोन कान से लगाया।

“अब क्या करना चाहते हो?”

“देखते जाओ।” दूसरी तरफ बेल जाने लगी थी—“कामनी ये जानना चाहती है कि कहां रुकता हूं और...।”

तभी बशीर की आवाज कानों में पड़ी।

“तुम हो देवराज चौहान?”

“हां।”

“मैंने फोन नम्बर से पहचान लिया । तुम्हारे लिए ही फोन भेजा था।

इस्लामाबाद में स्वागत है तुम्हारा।”

“शुक्रिया दोस्त। मैं इस वक्त महबूब की टैक्सी में...।”

“सब पता है मुझे...”

“मैं ये मामला खुद संभालना चाहता हूं। जो पीछा कर रहे हैं, उनकी बात कर रहा हूं।”

“ठीक है। लेकिन तुम क्या करना चाहते...।”

“तुम एक कार और यहां भेजो। मेरा प्लान ये है कि अभी पीछा करने वालों को सड़कों पर घुमाते रहेंगे, जब तक तुम्हारी एक और कार नहीं आ जाती। उसके बाद हम पीछा छुड़ाएंगे और पीछे लगी कार का पीछा किया जाएगा। हमें जानना है कि वो लोग कौन है। उनसे हमें हमारे काम की जानकारी मिल सकती है।”

“समझ गया, परंतु सलमान उस कार के पीछे है, ये काम तो वे भी....।

“एक बंदा धोखा खा सकता है। दो होंगे तो एक की नजरों में वो कार रहेगी ही।”

“समझ गया। मैं अभी एक और को कार पर भेजता...।”

“तुम मुझसे सम्बंध बनाए रखो, मैं तुम्हें बताता रहूंगा कि हम कहां पर से निकल रहे हैं।”

“उसकी जरूरत नहीं। जिसे भेजूंगा वो सलमान से बात करके लोकेशन पता कर लेगा। मेरे खयाल में आधे-पौन घंटे में बंदा तुम लोगों तक पहुंच जाना चाहिए।” उधर से बशीर कह रहा था।

“जब तक बंदा पहुंचने का फोन नहीं आएगा, तब तक हम यूं ही सड़कों पर चलते रहो। जरा होल्ड करो।” फिर देवराज चौहान महबूब से बोला— “तुम बशीर से बात करना चाहोगे?”

“जरूर।”

देवराज चौहान ने महबूब को मोबाइल थमा दिया।

“जनाब, ये मुझे अपनी बात मानने को कह रहे हैं...।”

बीस सेकंड हां-हूं करने के बाद मोबाइल देवराज चौहान को वापस दे दिया।

“अब तुम जो कहोगे, मैं वो ही करूंगा।” महबूब ने कहा।

“टैक्सी को इस तरह सड़कों पर लेते रहो कि पीछे लगे लोगों को ये न लगे कि हम उन्हें खामखाह सैर करा रहे हैं। इसके लिए रास्तों का चुनाव तुम्हें ही करना होगा।” देवराज चौहान बोला।

“मुकरबा चौक की तरफ चलता हूं वो जगह यहां से डेढ़ घंटे के फासले पर पड़ती है।”

“तुम्हारे एक और साथी ने कार लेकर हम तक आना है।” जगमोहन बोला- “उसका भी ध्यान रखना।”

“कोई फर्क नहीं पड़ता। बशीर के एजेंट इस्लामाबाद में हर जगह मौजूद हैं। वो कहीं से भी हमसे आ मिलेंगे। तुम जरा बशीर को ये खबर कर दो कि हम मुकरबा चौक की तरफ जा रहे हैं।”

देवराज चौहान ने फोन पर ये बात बशीर से कह दी।

☐☐☐

घंटे भर बाद सलमान का फोन महबूब को आया।

“मुफ्ती कार पर आ पहुंचा है। मेरी फोन पर उससे बात हो गई है। वो मेरे पीछे है।

“देवराज चौहान से बात करो।” कहकर महबूब ने फोन देवराज चौहान को पीछे किया—“हमारा आदमी आ पहुंचा है।”

देवराज चौहान ने सलमान से बात की।

“उसे क्रीम कलर की कार की पहचान करा दो जिसके पीछे अब तुम दोनों को लेकर जाना है।” देवराज चौहान ने कहा।

“मुफ्ती को ये बात मैंने पहले ही समझा दी है। वो उस कार को पहचानता है।”

“बढ़िया, अब हम पीछे लगी क्रीम कलर की कार से पीछा छुड़ाने वाले हैं। मुफ्ती को ये बात बता दो।”

“ठीक है जनाब।”

देवराज चौहान ने फोन बंद करके, महबूब को देते हुए कहा।

“पीछे लगी कार से पीछा छुड़ाओ।”

“अभी लो।” महबूब ने होंठ भींचकर कहा।

☐☐☐

बीस मिनट लगे महबूब को, क्रीम कलर की कार से पीछा छुड़ाने में।

क्रीम कलर की कार पीछा करने में भटक चुकी थी। वो पीछे नहीं थी।

“अब वहां चलो, जहां हमने पहुंचना था।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा—“इस बात का पूरा ध्यान रखना कि पीछे कोई दूसरी कार न लगी हो।हमारा दुश्मन बहुत चालाक है।”

“पीछे अब भी कोई कार हुई तो मुझे पता चल जाएगा।” महबूब बोला।

परंतु अब उनके पीछे लगी, कोई कार नहीं थी।

चालीस मिनट के बाद महबूब ने टैक्सी को रिहायशी इलाके की एक गली में ले जा रोका, जहां हर तरफ फ्लैट बने हुए थे। महबूब ने जेब से एक चाबी निकालकर उन्हें देते हुए कहा।

“वो सामने सीढ़ियां हैं, चढ़ जाइए। पैंतालीस नम्बर फ्लैट है जहां आप दोनों को जाना है। खाने-पीने का सामान फ्रिज और किचन में भरा पड़ा है खाने-पीने के लिए बस, थोड़े-से हाथ-पांव चलाने होंगे।”

“तुम भी साथ आओ।” देवराज चौहान ने चाबी नहीं ली।

मेरी क्या जरूरत है, मैं कुछ और काम कर लेता...।

‘तुम्हारी बहुत जरूरत है हमें । बैग संभाले देवराज चौहान ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा- “हम इस्लामाबाद के रास्तों से अंजान हैं और कुछ ही देर में हमें फिर निकलना है। फ्लैट पर पहुंचकर सलमान और मुफ्ती ये फोन करके पूछो कि जिसका पीछा किया गया है, वो कहां पर गया है?”  देवराज चौहान कार से बाहर निकल गया।

इसके इरादे तो मुझे ठीक नहीं लगते।” महबूब ने गहरी सांस लेकर जगमोहन से कहा।

“तू इस्लामाबाद बहुत घूमा होगा।” जगमोहन बैग संभालते हुए कार से निकलते बोला- “बाकी की सैर अब तू हमारे साथ करेगा।

कुछ मिनटों में ही वो फ्लैट में थे।

तीन कमरों का फ्लैट था। दो बेडरूम थे, एक ड्राइविंग रूम। बेडरूमों में बेड लगे थे। ड्राइंग रूम में सोफा । और डायनिंग टेबल लॉबी में लगा था।सब कुछ साफ और एकदम चमक रहा था।

उन्होंने बैग रखे। देवराज चौहान बाथरूम में चला गया।

जगमोहन सोफे पर पसर गया। बाहर शाम हो चुकी थी। साढ़े छः बज रहे थे। महबूब ने मोबाइल निकाला और सलमान को फोन किया।

“मैं तुम्हें फोन करने ही वाला था।” बात होते ही उधर से सलमान बोला  “मुफ्ती पीछा नहीं कर सका। वो भटक गया।”

“और तू?” महबूब की आवाज तेज हो गई।

“मैं उनके पीछे ही रहा।”

“अब कहां है वो?”

“हामीदा के एक मकान में...।”

“हामीदा में?” महबूब के होंठ सिकुड़े।

“मैं वहां पर नजर रख रहा हूं। पर मुझे लगता है कि वो ही उनका ठिकाना है। भीतर और लोग भी हैं। मैं क्या करूं?”

देवराज चौहान से बात करके तुझे फोन करता हूं।”

“जल्दी बताना। ये खतरनाक इलाका है।”

महबूब ने फोन बंद करके जगमोहन को देखा।

“क्या हुआ?” जगमोहन ने पूछा।

“सलमान उस कार के पीछे लगा रहा। वो लोग हामीदा के एक मकान में जा पहुंचे हैं। सलमान को लगता है कि वो ही उनका ठिकाना है। हामीदा एक जगह का नाम है और बदनाम जगह है वो। वहां बदमाशों और खतरनाक दादाओं ने अपने ठिकाने बना रखे हैं। आए दिन वहां खून-खराबा होता है। ये आपस में भी झगड़ जाते हैं। तंग गलियों की वो बुरी जगह है। शरीफ आदमी वहां पर नहीं जाते। पुलिस के एक-दो आदमी वहां जाने का हौसला नहीं करते। बहुत जरूरत पड़ने पर भी पुलिस जाती है तो चालीस-पचास पुलिस वाले इकट्ठे होकर जाते हैं।”

“मतलब कि उस जगह पर जाने में हर कोई डरता है।” जगमोहन बोला।

“हां। वो जगह ही ऐसी है। कभी भी गोली चल जाती है। सलमान वहां है, उसे क्या कहूं?”

“वहीं रहने को कहो। बाकी बात देवराज चौहान से पूछना।”

“तुम नहीं बता सकते कि...”

“ये मामला वो ही देख रहा है तो वो ही तुम्हें बताएगा कि आगे क्या करना...।”

तभी देवराज चौहान वहां आ पहुंचा। नहा आया था वो। अंडरवियर में था और बैग से कपड़े निकालकर पहनने लगा। तब तक महबूब ने सलमान की स्थिति बताई।

“उसे कहो हम वहां आ रहे हैं।” देवराज चौहान बोला।

“क्या?” महबूब ने अजीब-से स्वर में कहा- “हम हामीदा जा रहे हैं?”

“हां।”

“तुमने शायद ठीक से सुना नहीं कि वो कैसी जगह है। वहां पर...।”

“मैंने सब सुन लिया है। परंतु हमारा वहां जाना जरूरी है।” देवराज चौहान ने कहा।

“क्यों?”

“मुझे उन लोगों से मिलना है जो हमारा पीछा कर रहे थे। वो नसरीन शेख के बारे में बता...।”

“वहां पर और लोग भी हैं।”

“कोई फर्क नहीं पड़ता।”

“वहां गोलियां चलें तो कोई पुलिस को खबर नहीं करता। वहां पुलिस नहीं जाती। वो इस्लामाबाद का खतरनाक इलाका माना जाता है। रात तो क्या लोग दिन में भी उधर नहीं जाते। इस्लामाबाद में कैसा भी क्राइम करो और हामीदा चले जाओ तो अपराधी सुरक्षित हो जाता है। ऐसी जगह पर जाकर तुम अपनी मनमानी करने को कह रहे हो।”

“इस वक्त मेरे लिए ये काम करना जरूरी है।”

“इसमें मैं तुम्हारा साथ नहीं दूंगा।”

महबूब ने स्पष्ट कहा।

“तुम मार्शल के एजेंट हो। काम से पीछे नहीं हट सकते।” देवराज चौहान बोला ।

“तुम मुझे आग के कुएं में कूदने को कहो तो मैं क्यों कूदूंगा।” महबूब नाराजगी से बोला।

“तुम मुझे हामीदा में, उस जगह तक तो पहुंचा सकते हो, जहां वो लोग गए हैं।”

“नहीं। मैं हामीदा जाना पसंद नहीं करूंगा।”

तो मुझे बशीर से बात करनी पड़ेगी।”

महबूब के होंठ भिंच गए। वो कुछ नहीं बोला।

देवराज चौहान कपड़े पहन चुका था और मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा।

जगमोहन उठकर बाथरूम में चला गया।

महबूब देवराज चौहान को घूर रहा था।

बात होने पर देवराज चौहान ने बशीर को सारी बात बताई।

“हामीदा जाना कोई पसंद नहीं करता।” उधर से बशीर ने कहा- “वो इलाका ही ऐसा है।”

“ये जरूरी है।”

“मैं समझता हूं। महबूब को फोन दो।”

देवराज चौहान ने महबूब को फोन दिया।

महबूब और बशीर की पांच मिनट तक बात होती रही। इस दौरान देवराज चौहान किचन में चला गया और कॉफी बनाने में व्यस्त हो गया। तभी महबूब वहां आया और बोला।

“बशीर से बात करो। कॉफी मैं बना देता हूं।”

देवराज चौहान फोन लेकर कमरे में आ पहुंचा।

“कहो बशीर।” बैठता हुआ देवराज चौहान बोला।

“महबूब तुम्हारे साथ रहेगा। मैंने उसे समझा दिया है जबकि हामीदा जाने को जरा भी तैयार नहीं है।” बशीर का स्वर गम्भीर था—“तुम वहां जाकर जो करना चाह रहे हो, वो बहुत खतरनाक काम है। वहां पर कोई कानून लागू नहीं होता। वहां बिना वजह गोलियां चल जाती हैं और कोई पूछता भी नहीं है कि गोलियां क्यों चली? वहां पर तुम सामने वाले की गोली का इंतजार नहीं करोगे। ऐसा किया तो जिंदा नहीं बच सकोगे। पहले तुम्हें गोली चलानी होगी।”

“समझ गया।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“वहां पर जाना अकलमंदी नहीं है, तुम जाना चाहते हो तो बेशक जाओ।

अगर ये सोचते हो कि नसरीन शेख या इकबाल खान सूरी हामीदा में होंगे तो ये तुम्हारी भूल है। वो उस जगह को कभी नहीं चुनेंगे।”

“मैं जानता हूं कि वो वहां पर नहीं हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

जगमोहन नहा आया और बातें सुनते कपड़े पहनने लगा।

“हामीदा में मेरी पहचान का कोई है। शायद वो तुम्हारी सायता कर सके।

“मैं वहां जंग लड़ने नहीं जा रहा जो मुझे सहायता की जरूरत...।”

“वहां जाना जंग के बराबर है।”

“तुम मुझे डराने की कोशिश में हो बशीर।”

“हकीकत को तुम डराने का नाम दे रहे हो तो मैं क्या कहूं।”

“महबूब और सलमान कहां तक मेरा साथ देंगे?” देवराज चौहान ने पूछा।

“ये उनकी मर्जी पर है। इस बारे में मैंने उन पर कोई दबाव नहीं डाला।वो तुम्हारे साथ हामीदा में जा रहे हैं, ये ही बड़ी बात है। सलमान की हिम्मत है कि वो हामीदा में मौजूद रहकर, वहां नजर रख रहा है।”

तभी महबूब प्यालों में कॉफी बना लाया।

“हम कॉफी के बाद यहां से निकलने जा रहे हैं। देवराज चौहान बोला।

“और हथियार की जरूरत हो तो महबूब से कह देना।” उधर से बशीर ने व्याकुल स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने फोन बंद करके रखा और कॉफी का प्याला उठाकर घूंट भरा।

“हम हामीदा जा रहे हैं?” जगमोहन बोला।

“हां।” कहने के साथ देवराज चौहान ने महबूब को देखा—“तुम हामीदा जाने की सोचकर डर रहे हो?”

“ये शब्द कहकर क्यों मेरी नाक काट रहे हो।” महबूब गम्भीर स्वर में बोला—“वैसे ये सही है कि मैं वहां नहीं जाना चाहता। क्योंकि मैं जानता हूं कि वहां क्या होता है।”

“मार्शल के एजेंट तो हर जगह जाने को तैयार रहते हैं।” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

“तुम मुझ पर व्यंग कस रहे हो। मुझे डरपोक बता रहे हो। लेकिन ये सच है कि आग के कुएं में कोई भी आंखें खोलकर छलांग नहीं लगाता। वहां जा हो रहे हो तो देख लेना।”

“हमें एक-एक रिवॉल्वर और चाहिए, जिसमें 18 गोलियों की मैग्जीन हो। नाल पर चढ़ाने वाला साइलैंसर चाहिए।”

‘साइलैंसर क्या करोगे। हामीदा में गोलियों की आवाजों की कोई परवाह नहीं करता।”

“जो कहा है, उसका इंतजाम कर दो।”

मैं कुछ सलाह दूं?”

“दो।”

“अगर वहां जाना ही चाहते हो तो दिन में जाना। रात में तो ये भी पता नहीं चलेगा कि गोली कहां से आई।”

हम अभी वहां के लिए चल रहे हैं।” देवराज चौहान ने कहा।

जैसा कहो।'

“हामीदा में हमें वो घर या ठिकाना दिखाने के बाद तुम पर या सलमान पर कोई पाबंदी नहीं है कि हमारे साथ रहो। जब भी चाहो पलटकर वापस आसकते हो।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “मन की इच्छा नहीं तो वो काम कभी भी नहीं करना चाहिए। ऐसा काम ठीक से पूरा होगा

“बड़ी मेहरबानी वाली बात कह रहे हो।” महबूब मुंह बनाकर बोला।

जगमोहन कॉफी का खाली प्याला रखते कह उठा- “हमें चल देना चाहिए।”

देवराज चौहान ने उठते हुए महबूब से कहा।

“रिवॉल्वरें और साइलैंसर कहां से दोगे?”

“रास्ते में से। सब सामान रखा है।” महबूब भी उठ खड़ा हुआ। उसने सलमान का नम्बर मिलाकर बात की—“तुम वहां पर नजर रखे हुए हो,जहां पर पीछा करने वाले मौजूद हैं।”

“हां। उस जगह से पचास कदम दूर एक खटारा कार खड़ी है। मैं उसके भीतर छिपा हूं। अंधेरा हो चुका है और किसी की नजर मुझ पर नहीं पड़ सकती। लेकिन यहां पर खतरा है। ये हामीदा है तुम...।”

“हम वहां पहुंच रहे हैं।”

“हम-कौन?”

“मैं, देवराज चौहान, जगमोहन...।”

“तो कुछ करने का इरादा है। हामीदा में । तुमने उन्हें समझाया नहीं

कि...।”

“वो पागल लोग हैं।” महबूब ने देवराज चौहान और जगमोहन पर नजर मारते शांत स्वर में कहा- “मेरी बातें उनकी समझ में नहीं आ रहीं। लेकिन वो जगह दिखाकर, हम जब चाहे वापस लौट सकते हैं।”

“ये तो अच्छी बात है हमारे लिए।”

इस्लामाबाद के पश्चिमी छोर पर ‘हामीदा’ नाम की वो जगह स्थित थी, अगर ये कहा जाए कि इस्लामाबाद की सीमा पर वो जगह है तो गलत नहीं होगा। अलग-थलग बसी ‘हामीदा’ नाम की जगह।

महबूब ही कार चला रहा था। जगमोहन बगल में, देवराज चौहान पीछे बैठा था। बातचीत कम ही हो रही थी उनमें। महबूब तो बहुत ही कम बात कर रहा था। ज्यादातर वो चुप था।

☐☐☐

इस्लामाबाद के शहरी इलाके से निकलकर कार अब वीरान सड़क पर दौड़ रही थी। सड़क के दोनों तरफ जंगल जैसा हाल था। गहरा अंधेरा था हर तरफ। सड़क पर कहीं भी रोशनी नहीं थी। ये सड़क हामीदा को पार करते हुए, दूसरे शहर को जोड़ती थी। कार की हैडलाइट ही रास्ता दिखा रही थी।

“ये कैसी जगह है। यहां अंधेरा क्यों है?” जगमोहन ने पूछा।

“हामीदा के आस-पास, तीन-चार किलोमीटर तक कोई आबादी नहीं है।” महबूब ने मुंह खोला।

“तुम्हारा मतलब कि हामीदा आने वाला है?”

“कुछ भी कहो, हामीदा अभी दूर है।”

उन्हें सफर करते एक घंटा हो चुका था।

“ये सड़क कहां जाती है?”

“दूसरे शहर तक। हामीदा जाने के लिए हमें एक खास जगह से मुड़ना होगा। वहां सड़क नहीं है। कच्चा रास्ता है। जंगल जैसा। दो किलोमीटर उस रास्ते पर जाकर ‘हामीदा’ है।”

“वहां रोशनी है?”

“पूरी। पानी भी है। वहां की लाइट-पानी बंद किया जाता है तो वो लोग इस्लामाबाद में बम विस्फोट करने लगते हैं। इस लिए वहां की लाइट-पानी का सरकार पूरा ध्यान रखती है।”

“सरकार भी अजीब है।”

“नेताओं के इशारे पर काम करने वाले भी तो हामीदा में रहते हैं।” महबूब बोला।

“तो नेताओं का हाथ है उनकी पीठ पर।”

काफी आगे जाकर महबूब ने सड़क छोड़ी और कच्चे रास्ते पर उतर

आया।

“अब हम हामीदा जाने वाले रास्ते पर हैं। मुझे कार की हैडलाइट बंद करनी होगी। वरना हामीदा वालों को पता चल जाएगा कि कोई आ रहा है वैसे तो कोई फर्क नहीं पड़ता। रात में यहां गाड़ियां आती-जाती रहती हैं लेकिन हम किसी से न ही उलझें तो बेहतर है।” कहकर उसने कार की हैडलाइट बंद कर दी कार धीमी रफ्तार से खड्ढों में हिलती आगे बढ़ रही थी।

पीछे बैठा देवराज चौहान रिवॉल्वर की नाल पर घुमा-घुमाकर साइलैंसर चढ़ाने लगा।

पंद्रह मिनट के ऐसे सफर के बाद उन्हें दूर रोशनी दिखाई देने लगी।

“वो हामीदा की रोशनियां हैं?” जगमोहन ने पूछा।

“हां।” महबूब ने गम्भीर स्वर में कहा।

“रिवॉल्वर पर साइलैंसर चढ़ा लो।” देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।

“चढ़ा चुका हूं।”

“महबूब तुम भी।”

“मेरा यहां रुकने का इरादा नहीं है। जब सलमान तुम लोगों को वो जगह दिखा देगा तो हम दोनों वापस आ जाएंगे।”

“जैसा तुम ठीक समझो।”

फिर हामीदा आ गया। वहां ऊंचे, बड़े-छोटे, हर तरह के मकान बने देख रहे थे। लाइट जल रही थी। परंतु तंग गलियों में कहीं कोई रोशनी नहीं वी। भीतर जलती लाइटें, कहीं-कहीं बाहर आ रही थीं।

महबूब एक जगह पर कार रोक चुका था। इंजन बंद करके फोन पर सलमान से बात की।

“हम आ पहुंचे हैं। तुम कहां हो?” महबूब गम्भीर स्वर में बोला।

उधर से सलमान ने कुछ बताया।

महबूब फोन बंद करता बोला।

“आओ।”

तीनों आगे बढ़ गए। सामने एक गली थी, उसमें प्रवेश कर गए। दोनों तरफ मकान बने हुए थे। मिट्टी की कच्ची गली थी। कहीं समतल तो कहीं ऊबड़-खाबड़। कहीं-कहीं घरों के भीतर से लाइट बाहर तक आ रही थी तो कहीं से म्यूजिक की तेज आवाजें तो कहीं से शराब पिए ठहाकों की आवाजें।

“यहां औरतें नहीं रहतीं?” जगमोहन ने पूछा।

“रहती हैं। जैसे लोग हैं, वैसी ही औरतें हैं।” महबूब आगे बढ़ता कह उठा।सौ कदमों के अंत पर गली खत्म होने वाली थी कि एक मकान के बाहर चार आदमी बातें करते खड़े दिखे। उन्हें आते पाकर सबका ध्यान उनकी तरफ हो गया। उनमें से एक ने बनियान और लुंगी पहन रखी थी। चेहरे पर दाढ़ी थी और पेट बढ़ा हुआ था। बाकी तीनों उससे कम उम्र के थे। ज्योंही इन तीनों ने पास से निकल जाना चाहा कि लुंगी-बनियान वाले ने टोका।

“सुनो।” स्वर में नशा भरा पड़ा था।

तीनों ठिठके। उन्हें देखा।

यहां अंधेरा तो था, परंतु घर के भीतर से मध्यम-सी रोशनी बाहर तक आ रही थी।

“तुम लोगों को पहले कभी नहीं देखा ।” वो पुनः बोला—“नए लगते हो?”

तब तक बाकी तीनों के हाथ कपड़ों के भीतर सरक गए थे।

“मेहमान हैं किसी के।” महबूब शांत स्वर में बोला। उसका हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर तक जा पहुंचा था।

“मेहमान?” वो कड़वे स्वर में बोला-“तो हामीदा में मेहमान भी आने लगे। मैंने तो इजाजत नहीं दी।”

देवराज चौहान और जगमोहन भी सतर्क हो चुके थे।

“मेहमाननवाज कौन है, जरा नाम तो सुनें उस बेवकूफ का।” वो पुनः बोला।

“सरफराज।”

“ये कैसा मेहमान है, जिसका नाम मैं नहीं जानता। चलो, जेबें खाली करो।

तीनों ठिठके-से खड़े रहे।

तभी लुंगी-बनियान वाले के एक साथी ने रिवॉल्वर बाहर निकाल ली।

उसी पल महबूब ने रिवॉल्वर निकालते हुए फायर कर दिया।

गोली की तेज आवाज गूंजी।

रिवॉल्वर निकालने वाले की छाती में गोली जा लगी।

ऐसा होते ही, बाकी दोनों लोगों ने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाल लेनी चाही।

जबकि लुंगी-बनियान पहने वो अभी तक वैसे ही खड़ा था। परंतु वो दोनों गोलियां न चला सके।

देवराज चौहान और जगमोहन के रिवॉल्वरों से निकली बे-आवाज गोलियों ने उनका काम कर दिया।

लुंगी-बनियान वाला ठगा-सा रह गया।

“अब समझे कि हम मेहमान हैं या तुम।” जगमोहन खतरनाक स्वर में बोला।

“चलो यहां से।” देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालते हुए कहा। तभी महबूब ने रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया और ट्रेगर दबा दिया।

‘धांय’ गोली निकली और लुंगी-बनियान वाले के सिर में जा लगी।

“इसे शूट करने की क्या जरूरत थी?” देवराज चौहान कह उठा।

“बहुत जरूरत थी।” महबूब कड़वे स्वर में बोला- “ये हमारे लिए आफत खड़ी कर देता। हम ज्यादा आगे न जा पाते कि ये हमारे पीछे ढेर सारे लोगों को भेज देता। अब निकलो यहां से।”

लुंगी-बनियान वाले का शरीर नीचे गिर चुका था।

परंतु तब तक मकान के भीतर से पांच-छः लोग बाहर निकलने को हुए।

महबूब ने उन पर गोली चला दी। एक चीख गूंजी।

देवराज चौहान और जगमोहन भी रिवॉल्वर निकालकर फायर कर दिए।

इस फायरिंग का ये फायदा हुआ कि वे बाहर निकलने की कोशिश छोड़कर वापस भीतर की तरफ भाग गए।

देवराज चौहान, जगमोहन और महबूब तेजी से आगे बढ़ गए। रिवॉल्वरें हाथ में थीं।

“अजीब जगह है ये।” जगमोहन कह उठा।

मोड़ पर से, वे तीनों बाईं तरफ मुड़ गए।

“तुम्हें मालूम है, कहां जाना है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“कुछ-कुछ अंदाजा है।” महबूब ने होंठ भींचे कहा।

तभी कहीं और फायर हुआ फिर एकाएक काफी सारी गोलियां चलने लगी।

“दो गुटों में फायरिंग हो गई है कहीं।” महबूब कह उठा।

तीनों तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे।

उस वक्त अंधेरी गली में दो आदमी आते दिखे। वो सामने से आ रहे थे। दोनों पिए हुए थे और झूम रहे थे। एकाएक वे उनके सामने खड़े हो गए। उन्हें रुकना पड़ा।

“अब्दुल्ला को देखा है?” एक ने नशे से भरे स्वर में कहा।

“नहीं” कहने के साथ ही जगमोहन ने बगल में से आगे बढ़ जाना चाहा।

परंतु उसने जगमोहन की बांह पकड़ ली।

जगमोहन ठिठका।

देवराज चौहान और महबूब की निगाह उन पर ही थी। हाथ जेबों में सरक गए थे।

“नया रंगरूट लगता है।” जगमोहन की बांह पकड़े, नशे से भरी हंसी

हंसा- “पहली बार देखा तुझे तो।”

“तुम क्या यहां रहने वाले सबको जानते हो?” जगमोहन ने शांत स्वर में कहा।

“सबको बेशक न जाने, पर तुम लोग तो नए लगते हो।” दूसरे की निगाह देवराज चोहान और महबूब पर गई। वहां अंधेरा था पर चेहरों के अक्स तो देखे ही जा सकते थे—इसके साथ ही उसने रिवॉल्वर निकाल ली—“माल निकालो।

पल भर के लिए वे ठिठके से रह गए।

“माल निकालो, वरना तुम लोगों की लाशें गिराने के बाद, जेबों से निकालना पड़ेगा।”

देवराज चौहान ने बे-आवाज दो बार गोलियां चला दी।

एक गोली तो निशाने पर लगी। दूसरी सामने वाले की बांह पर लगी उसने तुरंत जवाबी फायर कर दिया। गोली देवराज चौहान की कमर को गर्म हवा देती निकली कि उसी पल ‘धांय’ महबूब ने फायर कर दिया जो कि सामने वाले के पेट में जा लगा। वो उछलकर नीचे जा गिरा।

तीनों पुनः तेजी से आगे बढ़ गए।

“देखा।” महबूब होंठ भींचे कह उठा—“ये जगह कितनी खतरनाक है।”

“सच में।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“यहां लोग बे-वजह दूसरे को मारते हैं। गलियों के किनारों पर सुबह पांच-सात लाशें जरूर पड़ी दिखती हैं। जिन्हें दूसरे लोग यहां कुछ दूर खाली जगह पर गड्ढा खोदकर दबा देते हैं। हामीदा में ये है इंसान की जिंदगी।”

दूर चलती गोलियों में अब कमी आ गई।

“सरकार को इन लोगों पर काबू पाना चाहिए।” देवराज चौहान बोला।

“काबू पाने वाले ही इनसे काम लेते हैं और पैसे देते हैं तो काबू कौन करे। किसी को गैरकानूनी कोई भी काम हो तो पैसे लेकर हामीदा आ जाए उसका काम हो जाता है। इस्लामाबाद में तो लोग सिर्फ हामीदा इलाके के नाम की धमकी देकर अपना काम निकाल लेते हैं। इतना खतरनाक माना जाता है हामीदा।” महबूब ने कहा।

“सलमान कहां है?”

“अभी बरगद का पेड़ आएगा। उस पेड़ के पास है वो गली। सलमान भी वहीं होगा।”

कुछ ही देर में वे बरगद के पेड़ के पास पहुंच गए थे।

चारों तरफ सुनसानी छाई हुई थी। आकाश में तारे और चंद्रमा चमक रहे थे। चंद्रमा की रोशनी में जमीन पर आधा-अधूरा नजर आ रहा था। महबूब की निगाह हर तरफ घूमी और फिर उसकी निगाह एक तरफ खड़ी टूटी-फूटी कार पर जा टिकी । महबूब तेजी से उस कार की तरफ बढ़ गया। रिवॉल्वर उसके हाथ में दबी थी।

“सलमान भीतर हो?” कार के पास पहुंचकर, महबूब बोला।

“तेरे को बताया तो था कि टूटी-फूटी कार के भीतर छिपा हूं।” भीतर से सलमान की आवाज आई- “यहां तो दस मिनट भी खुले में नहीं खड़ा रहा जा सकता। पता नहीं कब गोली चल जाए।”

कार का दरवाजा खोलकर सलमान बाहर निकला।

देवराज चौहान और जगमोहन पास आ पहुंचे थे।

“कार में रहकर तुम उन लोगों पर कैसे नजर रख रहे...” महबूब ने पूछना चाहा।

“वो रहा सामने मकान, गली में दूसरा।” सलमान ने गम्भीर स्वर में कहा- “ये मैं जानता हूं कि तीन घंटों से मैं कैसे यहां टिका हुआ हूं। पीछा करने वाले दो व्यक्ति थे और दोनों उसी मकान में गए हैं।”

महबूब ने चंद्रमा की रोशनी में देवराज चौहान और जगमोहन को देख।

“सुन लिया तुम लोगों ने न?” महबूब बोला।

“हां।” देवराज चौहान की नजरें आसपास फिर रही थीं।

“हमारा काम खत्म हुआ।क्यों सलमान, हमें निकल चलना चाहिए यहां से?”

“बिना देर किए।” सलमान वहां से निकल जाने में सहमत था।

“बेशक तुम लोग जा सकते हो।” देवराज चौहान ने नजरें दौड़ाते गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम दोनों संभलकर रहना। चल सलमान।”

इसके साथ ही महबूब और सलमान वहां से चले गए।

“जगमोहन।” देवराज चौहान होंठ भींचे कह उठा—“बशीर ने एक बात मुझे कही थी, जो कि सही थी। अगर जिंदा रहना है तो सामने वाले को गोली चलाने का मौका नहीं देना है। ये बात हम महसूस भी कर चुके हैं।

“हूं।” जगमोहन के चेहरे पर सख्त भाव आ सिमटे थे।

“आओ।” आगे बढ़ता देवराज चौहान कह उठा— “हमें उस मकान में, उन लोगों से मिलना है, जो हमारे पीछे थे। उनसे पूछताछ करनी है कि किसने उन्हें हमारे पीछे लगाया।”

“वो कामनी के भेजे ही आदमी होंगे।”

“तो उनसे पता करना है कि कामनी या इकबाल खान सूरी कहां पर मिल सकते हैं।”

दोनों गली में प्रवेश कर गए।

गली का दूसरा मकान ही उसके टारगेट की जगह थी।

उसमें गेट नहीं लगा था। काफी खुली जगह में वो मकान था।

दोनों की नजरें मिलीं और वो भीतर प्रवेश कर गए। गेट वाली जगह के बाद थोड़ी-सी खाली जगह थी फिर खुला हुआ दरवाजा था। वे भीतर प्रवेश कर गए। आगे देवराज चौहान, पीछे जगमोहन। फर्श के नाम पर मिट्टी बिछी थी। दीवारों पर कहीं भी पलस्तर नहीं था। सामने ही दो आदमी बोतल खोले बैठे, पी रहे थे और ताश खेल रहे थे। उनकी रिवॉल्वरें पास ही पड़ी थीं। उन्हें भीतर आया पाकर नजरें उठाई तो अजनबियों को देखकर वे चौंके । तुरंत रिवॉल्वर की तरफ हाथ लपके कि देवराज चौहान और जगमोहन के रिवॉल्वरों वाले हाथ उनकी तरफ उठ गए।

“खबरदार।” देवराज चौहान गुर्राया—“रिवॉल्वर वहीं रहने दो।”

दोनों की नजरें मिलीं। दूसरे कमरों से हंसने-बोलने की आवाजें आ रही थीं।

रिवॉल्वर पर से उन्होंने हाथ हटा लिया। चेहरों पर हैरानी थी

“कौन हो तुम लोग?”

“हमें वो दो लोग चाहिए। जिन्होंने एयरपोर्ट से दो आदमियों का पीछा किया था फिर यहां आ गए।” देवराज चौहान बोला।

“हम-वो नहीं हैं।”

“तो जहां भी हों वे दोनों, उन्हें बुलाओ।”

“क्या करना चाहते हो उनका?”

“पूछताछ करनी है।” देवराज चौहान का स्वर बेहद सख्त था।

रिवॉल्वर ताने जगमोहन की निगाहों में चीते जैसी चमक थी।

चंद पल वहां चुप्पी रही।

“तुम लोगों ने हामीदा में आकर और इस ठिकाने पर आकर गलती कर दी है।” एक कह उठा।

“खामोश रहो और उन दोनों को बुलाओ जो एयरपोर्ट पर पीछा करने...।”

तभी एक का हाथ तेजी से करीब पड़ी रिवॉल्वर पर झपटा।

इसी पल जगमोहन ने ट्रेगर दबा दिया।

बे-आवाज-सी गोली निकली और उसकी छाती में जा लगी। वो नीचे जा गिरा और तड़पने लगा। दूसरा वाला हक्का-बक्का-सा बैठा उन्हें देखता रह गया फिर अपने साथी को देखता तो कभी एक हाथ दूर पड़ी रिवॉल्वर को।    

बीतते पल मौत की पटरी पर चल रहे थे।

लेकिन साइलैंसर लगे रिवॉल्वर पर से गोली इतनी भी बे-आवाज नहीं थी कि दूसरे कमरे में मौजूद लोगों को एहसास न हो सके। यही वजह थी कि चंद पल बीतते ही वहां एक आदमी पहुंचा।

फिर दूसरा आया, तीसरा, चौथा और पांचवा भी आ गया।

पहले वाला अभी तक कुर्सी पर बैठा था।

नीचे गोली लगे पड़ा, अब शांत पड़ गया था।

तभी उन पांचों में से एक आंखें सिकोड़े चौंककर बोला।

“ये दोनों तो वही हैं जिनका एयरपोर्ट से हमने पीछा किया था।”

देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह बोलने वाले पर टिक गयी वे हर किसी के प्रति सावधान थे।

“तेरे साथ कौन था?” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में पूछा।

“मैं था—क्यों?” दूसरे ने खतरनाक स्वर में कहा।

“शक्ल देखनी थी।” देवराज चौहान का स्वर पहले जैसा ही था।

“तुम लोग यहां क्या करने आए हो?” पहले वाले ने पूछा।

“हमारे ठिकाने का पता कैसे चला?”

उसी पल देवराज चौहान की रिवॉल्वर से एक के बाद एक तीन फायर हुए। उन दोनों को छोड़कर बाकी तीनों को गोलियां लगीं। एक के चेहरे पर। दूसरे के माथे में और तीसरे के गले पर। वे चीखते हुए नीचे गिरते चले गए। अब सामने वो दोनों ही खड़े थे।

वो स्तब्ध रह गए थे ये देखकर।

हक्के-बक्के खड़े थे।

तभी कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने पास पड़ी अपनी रिवॉल्वर पर झपट्टा मारा।

जगमोहन का रिवॉल्वर वाला हाथ तेजी से घूमा और ट्रेगर दबा दिया

गोली उसके कंधे में जा लगी। वो चीखा रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गई। जगमोहन ने दूसरा फायर किया तो वो शांत हो गया।

उन दोनों के चेहरे सफेद पड़ चुके थे।

देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।

जगमोहन के दांत भिंचे हुए थे।

तुम दोनों से मैं जो सवाल पूछने जा रहा हूं उसका जवाब फौरन देते जाना।” देवराज चौहान खतरनाक स्वर में बोला- “वरना इन लोगों की तरह तुम भी अपनी जान से हाथ धो बैठोगे।”

दोनों डरे-से खड़े रहे।

“हमारा पीछा क्यों किया एयरपोर्ट से?”

“हमें पैसे मिले थे इस काम के।”

“पीछा करके क्या करना चाहते थे?”

“तुम दोनों कहां जाते हो, ये पता लगाने को कहा गया था।”

“किसने दिए पैसे?”

“गुलफाम ने।”

“गुलफाम कौन?”

“आसिफ अली रोड पर दारूखाना चलता है। वो अक्सर हमसे काम लेता रहता है।”

“आसिफ अली रोड पर?”

“हां।”

“अब भी वो वहीं मिलेगा?”

“उसका दारूखाना रात भर चलता है। वो वहीं होगा।”

“नसरीन शेख को जानते हो?”

“नहीं।”

“कभी नाम नहीं सुना?”

“नहीं।”

“और इकबाल खान...।” पूछते-पूछते देवराज चौहान के शब्द मुंह ही रह गए।

गर्दन पर रिवॉल्वर की नाल आ टिकी थी।

जगमोहन का पूरा ध्यान उन दोनों पर था कि पीछे दरवाजे से आने वाले को न देख सका था।

“तुम्हें किसी ने सलाह नहीं दी कि हामीदा मत जाओ।” पीछे वाले ने कड़वे स्वर में कहा।

जगमोहन की निगाह फौरन उस तरफ घूमी।

वो पचास वर्ष का, चेहरे पर पुराने जख्म वाला खतरनाक इंसान था।

“तुम मौके पर आए।” उन दो में से एक आंखें चमक उठी—“इसने हमारे बहुत लोगों को मारा है।”

“वजीरा हमेशा सही वक्त पर आता है। गोलियों की आवाजें इधर से ही आई थीं। सोचा देखू तो सही कि मामला क्या...ऐ तुम, मैं तुमसे कह रहा हूँ।” एकाएक वजीरा जगमोहन से कठोर स्वर में कह उठा-“तुम मौके की तलाश में हो। मैं सब समझ रहा हूं। अपनी रिवॉल्वर फेंक दो, वरना मैं तुम्हारे साथी को उड़ा दूंगा।”

जगमोहन के दांत भिंच गए। उसने रिवॉल्वर नीचे गिरा दी।

सामने खड़े दोनों ने अपनी रिवॉल्वरें निकाल लीं।

“तुम भी रिवॉल्वर फेंको।” वजीरा ने देवराज चौहान से कहा।

चेहरे पर खतरनाक भाव समेटे देवराज चौहान ने भी रिवॉल्वर गिरा दी। बुरा वक्त सामने था अगर अगले कुछ पलों में, कुछ किया न गया तो मौत निश्चित थी। उसी पल एक के बाद एक चार-पांच गोलियों की आवाजें वहां गूंज उठीं।

सब कुछ अचानक हुआ था।

देवराज चौहान और जगमोहन ठगे-से खड़े रह गए थे।

सामने खड़े दोनों आदमियों को गोलियां लगी थीं। वो नीचे गिरते चले गए। देवराज चौहान ने उसी पल गर्दन से नाल हटती महसूस की फिर पीछे किसी के गिरने की आवाज आई।

देवराज चौहान फौरन पलटा।

उसकी गर्दन पर रिवॉल्वर लगाने वाला नीचे गिरा पड़ा था। आंखें फटी हुई थीं। स्पष्ट था कि उसे भी गोली लगी थी। देवराज चौहान की नजरें उठी तो दरवाजे पर महबूब और सलमान को खड़े पाया।

जगमोहन ने फौरन नीचे से अपनी रिवॉल्वर उठा ली।

देवराज चौहान ने भी रिवॉल्वर उठाई। वहां पर लाशें और खून बिखरा पड़ा था।

“चलो।” महबूब बोला—“रुकना ठीक नहीं।”

वो चारों बाहर निकल आए। गली के बाहर की तरफ बढ़े।

“तुम लोग वापस कैसे आए?” जगमोहन ने पूछा।

“आ गए।” महबूब ने गम्भीर स्वर में कहा-“जाने का मन नहीं हुआ इस तरह।”

“तुम लोगों का काम बना कि नहीं?” सलमान ने पूछा

“बन गया है।”

वे गली के बाहर से बाहर आ निकले।

तभी सामने से तीन लोग आते दिखे।

वे सतर्क हो गए।

ऐ हमारे उस्ताद को तुम लोगों ने मारा है?” एक ने पास आते ही गुस्से से पूंछा।

“कौन है तुम्हारा उस्ताद?” जगमोहन बोला।

“उधर गली में, लुंगी-बनियान पहने...।”

“उन्हें तो उन लोगों ने मारा है।” जगमोहन एक तरफ इशारा करता बोला—“उधर गए हैं वो।”

“तेरे को कैसे पता कि उन्होंने हमारे उस्ताद को मारा है?”

“वो किसी लुंगी-बनियान वाले को मारने की बात कर रहे थे।”

“आओ।” उसने कहा और वो तीनों तेजी से दूसरी दिशा में बढ़ते चले गए।

“निकल चलो यहां से।” महबूब गम्भीर स्वर में कह उठा।

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