एक सपना
1955 की बात है। मैं तीन साल इंग्लैंड में रहने के बाद देहरादून लौट चुका था, अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ था—भारत मेरा देश होगा और मैं एक लेखक बनूँगा। यह एक कठिन समय था। आंद्रे डॉईच प्रकाशन संस्थान द्वारा मेरी पहली किताब दी रूम ऑन दी रूफ़ के लिए दी गयी पचास पाउंड की पेशगी खत्म हो रही थी और किताब अब भी प्रकाशित नहीं हुई थी। मेरी माँ और सौतेले पिता बाकी परिवार के सदस्यों के साथ दिल्ली चले गये थे। मैं उनके साथ नहीं गया था क्योंकि मैं अपने हिसाब से जीवन जीने की आज़ादी चाहता था। हालाँकि मेरे पास वह आज़ादी थी और मैं बहुत छोटा था—अब तक इक्कीस का भी नहीं हुआ था—लेकिन भविष्य अनिश्चित था। कभी-कभी मैं अकेलापन महसूस करता था और दुविधा में पड़ जाता था कि मैंने सही निर्णय लिये हैं या नहीं।
मैं मुख्य बाज़ार में स्थित एक छोटी किराने की दुकान के ऊपर बने कमरे में किराए पर रहता था, जिसमें एक छोटी बालकनी थी लेकिन बिजली नहीं थी और नल का पानी नहीं आता था। मकान मालकिन के जीवन में अपनी समस्याएँ थीं जिनमें वह उलझी रहती थी और मुझे लगभग अकेला छोड़ दिया था, लेकिन धोबी के बेटे सीताराम ने मेरे पीछे आना अपना एकमात्र लक्ष्य बना रखा था। मैं जहाँ भी जाता वह मेरे पीछे हो लेता और मेरी शान्ति भंग करता रहता।
एक सुबह मैंने तय किया कि साइकिल से शहर के बाहर के इलाके में दूर तक घूमने जाऊँगा। मैंने यहाँ सुबह के उगते सूरज के बारे में बहुत कुछ पढ़ा था, लेकिन कभी भी इतनी जल्दी उठ नहीं सका कि इसे देख पाऊँ। मैंने सीताराम से कहा कि वह मुझ पर एक उपकार करे और मुझे सुबह छह बजे उठा दे। उसने मुझे पाँच बजे उठा दिया। तब रोशनी हो ही रही थी। जब तक मैंने कपड़े पहने, आकाश का रंग नीले से साफ़ हल्के बैंगनी रंग में बदल गया था और फिर सूरज अपनी पूरी आभा के साथ आकाश में चमक उठा।
मैंने मकान मालकिन से एक साइकिल उधार ली—यह कभी-कभार उसके नौकर द्वारा कुछ विशिष्ट ग्राहकों को सामान पहुँचाने के काम आती थी और रायपुर रोड से नीचे टेढ़े-मेढ़े, डावाँडोल तरीके से साइकिल चलाता हुआ नीचे उतरने लगा क्योंकि लगभग पाँच सालों से मैंने साइकिल नहीं चलायी थी। आजकल देहरादून में बहुत ट्रैफिक होता है लेकिन तब ऐसा नहीं था और छह बजे सुबह सड़क सुनसान थी। जल्दी ही मैं शहर के बाहर चाय बागान पहुँच गया। रास्ते के किनारे एक छोटी-सी चाय की दुकान पर नाश्ते के लिए रुका और जैसे ही कड़े बन को अपनी चाय में डुबोने वाला था, एक जानी पहचानी परछाईं मेरी मेज़ पर पड़ी और सिर उठाने पर मैंने देखा कि सीताराम मुझे देखकर खीसें निपोर रहा है। मैं भूल गया था कि उसके पास भी साइकिल है।
प्रिय दोस्त और जाना पहचाना! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि खुश होऊँ या क्रोधित।
“मेरी साइकिल आपकी साइकिल से तेज़ है,” उसने कहा।
“ठीक, फिर ऋषिकेश की ओर बढ़ना जारी रखो। मैं कोशिश करूँगा तुम्हारे साथ बने रहने की।”
वह हँसा, “आप इस तरह मुझसे बच नहीं सकते, लेखक-साहेब।”
“आप कहाँ जा रहे हैं?” जब मैं साइकिल पर चढ़ने की तैयारी कर रहा था तब उसने पूछा।
“कहीं भी,” मैंने कहा, “जितनी दूर तक मेरा जाने का मन करे।”
“आइये, मैं आपको वे रास्ते दिखाता हूँ जो आपने पहले कभी नहीं देखे होंगे।”
क्या ये मसीहाई शब्द थे? क्या मैं धोबी के बेटे के माध्यम से नये रास्ते और नये अर्थ तलाशने वाला था?
“रास्ता दिखाओ, मेरे जीवन के प्रकाश,” मैंने कहा, और वह खुशी से मुस्कुराया और इतनी तेज़ी से साइकिल लेकर निकला कि मुझे उसके साथ गति मिलाने में मुश्किल हुई।
उसने मुख्य रास्ता छोड़ दिया और बाँसों के झुरमुट के बीच से निकलता एक ऊबड़-खाबड़ और धूल भरे रास्ते पर उतर गया। यह एक अच्छा-खासा चौड़ा रास्ता था और हम दोनों एक साथ इस पर साइकिल चला पा रहे थे। बाँसों के झुरमुट से निकलकर यह रास्ता एक विशाल चाय बागान में पहुँचा और फिर आगे मुड़कर एक छोटी-सी नहर के पास जाकर खत्म हुआ।
हमने अपनी साइकिलें एक आम के तने से टिकायीं। आम पकने शुरू हो गये थे लेकिन बहुत सारे फल पूरी तरह पकने से पहले ही पक्षियों द्वारा नष्ट कर दिये गये थे।
तोतों के एक झुंड ने हमारे ऊपर चक्कर काटा। एक रामचिरैया ने नहर के पानी में डुबकी मारी और एक चमकती हुई मछली के साथ बाहर आयी।
सीताराम नहर किनारे घूमने चला गया और मैं वहीं आम के पेड़ से पीठ टिकाये आराम करने लगा।
अचानक एक गहन शान्ति की अनुभूति ने मुझे घेर लिया। मैं अपने आस-पास के माहौल से पूरी तरह एकाकार महसूस करने लगा था—नहर के पानी की कलकल, पेड़, चिड़िया, धूप की गर्मी, मंद हवा, मेरे पैर के पास घास पर चलता कैटरपिलर, खुद वह घास, उसकी हर पत्ती…
मैं अमेरिकन गायक नेल्सन एडी का गाया एक पुराना गीत गाने लगा—
जब तुम हताश हो और उदास
अपना सिर उठाओ और चिल्लाओ -
यह एक बढ़िया दिन होने वाला है!
जब मैं गा रहा था, मैंने नहर के पास कुछ हरकत देखी। सफ़ेद बबूल के पेड़ों के बीच से एक धुँधली-सी आकृति मेरी ओर बढ़ रही थी। यह सीताराम नहीं था, यह कोई अजनबी नहीं था, कोई ऐसा जिसे मैं जानता था। हालाँकि आकृति धुँधली ही रही, मैंने जल्दी ही अपने पिता का चेहरा और कदकाठी पहचान ली।
वह वहाँ मुस्कुराते हुए खड़े थे और मेरा गीत मेरे होंठों में ही गुम हो गया। मैं एक गहन रूहानी शान्ति से घिर गया था।
जैसे ही मैं उठा और उन्हें अभिवादन करने के लिए अपना हाथ उठाया, वह आकृति गायब हो गयी।
शायद यह गीत था जो मेरे पिता को कुछ क्षणों के लिए वापस ले आया था। उन्हें गायक नेल्सन एडी हमेशा से पसन्द थे और उनके सभी रिकॉर्ड जमा कर रखे थे। अब कहाँ हैं वे रिकॉर्ड? कहाँ है वह पुराना संगीत?
मेरे प्रिय, प्रिय पिता। मैं उन्हें कितना प्रेम करता था। और मैं सिर्फ़ दस साल का था जब वह मुझसे छिन गये। लेकिन अभी उन्होंने मुझे यह संकेत दिया कि वह अब भी मेरे साथ हैं… मैं अकेला नहीं। मेरे अन्दर आशा का प्रवाह हुआ।
तभी पास से पानी में तेज़ छपाक की आवाज़ आयी और मैंने देखा कि सीताराम पानी में था। मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि उसने कब अपने कपड़े उतारे और नहर में छलाँग लगायी।
वह मुझे भी साथ आने के लिए संकेत दे रहा था और एक पल की हिचकिचाहट के बाद मैंने भी उसका साथ देने का निर्णय लेते हुए बहुत हल्का महसूस किया।
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कुछ दिन बीते, हर बीतता दिन पहले बीते हुए दिन सा ही महत्त्वहीन रहा। फिर एक शाम अपने कमरे की सीढ़ियों से ऊपर आते हुए मुझे रात की रानी की खुशबू ने घेर लिया। मैं इस खुशबू से चौंक गया क्योंकि रात की रानी का पौधा न मेरी बालकनी में था न ही आस-पास कहीं था। बिल्डिंग के सामने एक नीम का पेड़ था और एक आम का पेड़, उस आम के बागान का बचा हुआ एकलौता वारिस जिसे शॉपिंग ब्लॉक बनाने के लिए काट कर हटा दिया गया था। आस-पास और कोई वनस्पति नहीं थी—होती भी तो वह ट्रैफिक और लोगों की भीड़ झेल नहीं पाती। सिर्फ़ कुछ गमलों में लगे पौधे दुकानों के आगे और बरामदे पर मौज़ूद थे। लेकिन फिर भी रात की रानी की खुशबू साफ़ आ रही थी और तेज़ होती जा रही थी।
आधी सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद, मैंने ऊपर देखा और पड़ोस की खिड़की से आती हल्की रोशनी में अपने पिता को सबसे ऊपर की सीढ़ी पर खड़ा पाया। वह मुझे देख रहे थे बिलकुल उसी तरह जैसे उस दिन नहर के पास देखा था—स्नेह के साथ और उनके होंठों पर मुस्कान थी—थोड़ी देर मैं स्थिर खड़ा रहा, खुशी से स्तब्ध। फिर प्रेम की तरंगों और पुराने दिनों के साथ की यादों से सराबोर हो मैं सीढ़ियाँ चढ़ने लगा—लेकिन जब मैं ऊपर पहुँचा, वह दृश्य गायब हो गया था और मैं अकेला वहाँ खड़ा था, रात की रानी की मीठी सुगन्ध अब भी मेरे साथ थी, लेकिन कोई और नहीं, कोई और आवाज़ नहीं थी, दूर से आती ट्रेन के इंजन को दूसरी पटरी पर ले जाने की आवाज़ के अलावा।
यह दूसरी बार था जब मैंने अपने पिता को देखा था या कि उनकी आत्मा को देखा था। मैं नहीं जानता यह कोई पूर्वाभास था कि वह बस मुझे दोबारा देखना चाहते थे, और दो अलग दुनिया की खाई को पाटना चाहते थे।
बालकनी में अकेला खड़ा, मैं अतीत की यादों से घिरा अपने बचपन के दिनों को याद कर रहा था जब मेरे पिता मेरे एकमात्र साथी थे—दिल्ली के बाहर रॉयल एयरफ़ोर्स के तम्बू में, जब मई और जून की गर्म हवा दिन में चक्कर काटती रहती थी और रात की रानी की भीनी खुशबू रात में तैर रही होती; छोटे शिमला में शाम को घूमने जाते हुए, बिशप कॉटन स्कूल के रास्ते पर—और उससे पहले जामनगर सागर तट पर टहलते सीपियाँ खोजते हुए।
मेरे पास अब भी उनमें से एक बचा था—एक नरम गोल सीप जो ज़रूर पेरिविंकल नामक एक खास घोंघे की प्रजाति का रहा होगा। मैंने उसे कान में लगाया और सागर की गुनगुनाहट सुनी, समुद्र का मायावी संगीत। उस आवाज़ ने मुझे एक विचित्र बेचैनी से भर दिया, एक अलग जीवन की चाह। मैंने मानसून की बारिश की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा में लगे गर्म और नम शहर को कुछ दिनों के लिए विदा कहने का निर्णय लिया।
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देहरादून से अपने स्वैच्छिक निर्वासन की तीसरी सुबह मैं नदी के ऊपर एक जीर्ण-शीर्ण रास्ते पर बढ़ा जो बड़े पहाड़ों पर स्थित समाधियों की ओर जाता था। मैं मोक्ष या कोई आत्मा का प्रकाश नहीं तलाश रहा था—मैं बस खुद से और अपनी स्थिति से सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रहा था। क्या मुझे देहरादून में रहना चाहिए या फिर ज़्यादा सम्भावनाओं वाली जगह पर जाना चाहिए—दिल्ली या बम्बई, शायद? या कि मुझे लंदन और अपने थॉमस कुक के ऑफ़िस की मेज़ पर लौट जाना चाहिए? ओह, एक क्लर्क का जीवन जीने के लिए! या मुझे लगता है मैं अंग्रेज़ी की ट्यूशन दे सकता हूँ। हालाँकि ऐसा लगता है कि हर कोई अंग्रेज़ी जानता है।
पहाड़ी पगडंडी पर अकेले थके कदमों से चलते हुए मुझे मेरा भविष्य बहुत सम्भावनाहीन लग रहा था। तब अगर वास्तव में मेरे लिए कुछ ज़रूरी था तो वह एक सच्चा साथ था—कोई राज़दार, जिससे मैं जीवन की छोटी-छोटी समस्याएँ बाँट सकूँ। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग शादी करते हैं! लेकिन एक दरिद्र लेखक से कौन शादी करता जिसके बैंक में बीस रुपये पड़े हुए थे और उस जगह पर भी कोई सम्भावना नहीं बची थी जहाँ से अंग्रेज़ी खत्म होने वाली थी (मुझे नहीं पता था कि तीस साल बाद अंग्रेज़ी फिर से वापस होगी।) दिमाग में यह निराशावादी सोच लिये मैंने खुद को लकड़ी के एक छोटे पुल के बीच खड़ा पाया जो उस पहाड़ी धारा पर बना था जो आगे चलकर बड़ी नदी में मिल जाता था। मैं खुद को नीचे पत्थर पर गिरा देने के बारे में नहीं सोच रहा था; इस सोच ने ही मुझे डरा दिया होता। इसके अलावा मैं उस तरह का इन्सान था जो जीवन से चिपके रहते हैं, भले ही उसे छोड़ देने का लालच कितना भी बड़ा हो। लेकिन बेखयाली में मैं पुल की लकड़ी की बनी रेलिंग पर झुक गया। लकड़ी सड़ी हुई थी और तुरन्त टूट गयी।
मैं लगभग तीस फीट नीचे गिरा, सौभाग्यवश मैं धारा के बीच में गिरा था जहाँ पानी काफ़ी गहरा था। मैं किसी पत्थर से नहीं टकराया, लेकिन धारा तेज़ थी और वह मुझे अपने साथ बहा ले गयी। मैं थोड़ा बहुत तैरना जानता था इसलिए तैरा और धारा के साथ बहने लगा, हालाँकि मेरे कपड़े बाधक बन रहे थे। लेकिन आगे मैंने बहुत हलचल देखी और मैं जान गया कि आगे धारा और तेज़ है या शायद एक जलप्रपात। इसका अर्थ होता एक सम्भावनाशील युवा लेखक का असमय अन्त, इसलिए मैंने अपनी दायीं ओर के नदी के किनारे पर पहुँचने की अथक कोशिश करनी शुरू की। मैंने अपना हाथ एक नरम पत्थर पर रख दिया लेकिन लहरों ने मुझे खींच लिया। फिर मैंने एक सूखे पेड़ के तने को पकड़ा जो धारा में गिर गया होगा। मैंने उसे मज़बूती से पकड़ा था लेकिन मेरे अन्दर खुद को पानी से बाहर खींचने की ताकत नहीं बची थी।
डर की एक लहर मेरे अन्दर दौड़ गयी और मुझे धारा से और संघर्ष व्यर्थ लगने लगा। इससे पहले कि मैं खुद को लहरों के हवाले करने के लिए आँखें मूँदता, किसी चीज़ ने मुझे सिर घुमा कर देखने के लिए बाध्य किया और मैंने अपनी दायीं ओर के घास से भरे किनारे की ओर देखा। मैंने अपने पिता को वहाँ खड़ा देखा। वह मुझे देखकर फिर से मुस्कुरा रहे थे, एक सौम्य मुस्कान, प्रेम से भरी। मुझे उन तक पहुँचना था। मैंने पेड़ की शाखा को मज़बूती से पकड़ा और खूब ज़ोर लगाया—हाँ, मैं एक दिलेर लड़का था—मैंने खुद को पानी के बाहर खींचा और पेड़ के तने से चिपटा हुआ फर्न और कोमल घास के ढेर में जा घुसा।
मैंने अपने चारों ओर देखा, लेकिन वह दृश्य जा चुका था, हवा जंगली गुलाब और मैगनोलिया के फूलों की खुशबू से भरी थी।
आज उन वर्षों को दोबारा याद करते हुए, मैं जानता हूँ कि जो चुनाव मैंने किये थे वे मेरे लिए सही चुनाव थे और मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत देने एक पुराना, प्रिय साथी वापस आया था।
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