मिसेज़ मैकगिलीकडी प्लेटफॉर्म पर हाँफती हुई चल रही थी, उस कुली के पीछे-पीछे जो उनके सूटकेस को उठाए चल रहा था। मिसेज़ मैकगिलीकडी कद में छोटी थी, थोड़ी गोलमटोल, जबकि कुली लम्‍बा था, तेज़ी से चलने वाला। इसके अलावा, मिसेज़ मैकगिलीकडी के हाथों में बहुत सारे पैकेट थे; दिन भर क्रिसमस के लिए ख़रीदारी करने के कारण। इसीलिये, वह दौड़ बराबरी वाली नहीं लग रही थी, वह कुली प्लेटफॉर्म के आखिर में कोने से मुड़ चुका था जबकि मिसेज़ मैकगिलीकडी अभी भी सीधी चली आ रही थी।

प्लेटफॉर्म नम्‍बर 1 पर उस समय कुछ ख़ास भीड़-भाड़ नहीं थी, क्योंकि ट्रेन कुछ देर पहले ही वहाँ से गयी थी। लेकिन उससे आगे जो जगह थी वहाँ कई दिशाओं से लोग आ जा रहे थे, भूमिगत मेट्रो से, सामानघरों से, चायघरों से, पूछताछ के दफ़्तरों से, सूचना केन्द्रों से, आगमन-प्रस्थान केन्द्रों से बाहर की दुनिया की तरफ़ जा रहे थे।

मिसेज़ मैकगिलीकडी और उनके हाथ के पैकेट आने जाने वालों से टकराते जा रहे थे, लेकिन आख़िरकार वह प्लेटफॉर्म नम्‍बर 3 के प्रवेश के पास पहुँच ही गयी, और उन्होंने अपने एक हाथ का पैकेट नीचे पैर के पास रखा और अपने बैग में टिकट खोजने लगी जिसे देखकर गेट पर खड़ा वह वर्दी वाला गार्ड उनको अन्‍दर जाने की इजाज़त देता।

उसी समय, एक कर्कश लेकिन शिष्ट आवाज़ उनके सिर के ऊपर कहीं से सुनाई दी।

‘जो ट्रेन प्लेटफॉर्म नम्‍बर 3 पर खड़ी है,’ उस आवाज़ ने कहा, ‘वह 4:50 पर ब्रैखेम्‍पटन, मिलचेस्टर, वावेर्टन, कारविल जंक्शन, रोचेस्‍टर और चाडमाउथ स्टेशनों को जाने वाली है। ब्रैखेम्‍पटन और मिलचेस्टर जाने वाले यात्री ट्रेन में पीछे सफ़र करते हैं। वेनेक्वे जाने वाले यात्री रोचेस्‍टर में गाड़ी बदलते हैं।’ आवाज़ एक क्लिक के साथ बन्द हो गयी, और उसने फिर दूसरी घोषणा की कि बर्मिंघम और वोल्वरहैंप्टन से आने वाली 4:35 वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म नम्बर 9 पर आने वाली है।

मिसेज़ मैकगिलीकडी को अपना टिकट मिल गया और उन्होंने उसे चेकर को दिखा दिया। वह आदमी उसे थोड़ा-सा फाड़ते हुए फुसफुसाया: ‘दायीं तरफ़—पीछे की ओर।’

मिसेज़ मैकगिलीकडी प्लेटफॉर्म की तरफ़ बढ़ी और उन्होंने पाया कि उनका कुली तीसरे दर्जे के डिब्बे के बाहर खड़ा कुछ बोरियत महसूस कर रहा था।

‘यहाँ है, मैडम।’

‘मैं पहले दर्जे में सफ़र कर रही हूँ,’ मिसेज़ मैकगिलीकडी ने कहा।

‘आपने कहा नहीं था’ कुली बुदबुदाया। उसकी आँखों ने उनके ट्वीड कोट की तरफ़ कुछ उपेक्षा से देखा।

मिसेज़ मैकगिलीकडी ने कहा तो था लेकिन उन्होंने इस बात को लेकर बहस नहीं की। उनकी सांसें बुरी तरफ़ से फूल रही थीं।

कुली ने सूटकेस उठाया और उसे लेकर साथ वाले डिब्बे की तरफ़ बढ़ गया जहाँ मिसेज़ मैकगिलीकडी एकान्त में बैठ चुकी थीं। 4:50 वाली ट्रेन से ज़्यादा लोग जाते नहीं थे। पहले दर्जे में चलने वाले या तो सुबह की एक्सप्रेस गाड़ियों में सफ़र करते थे या फिर 6:40 से जिसमें भोजन का डिब्बा भी लगा हुआ था। मिसेज़ मैकगिलीकडी ने कुली को बख्शीश दी जिसे उसने बड़ी मायूसी के साथ लिया, उसे यह तीसरे दर्जे में सफ़र करने के लिहाज से ठीक लगा लेकिन पहले दर्जे में सफ़र करने के लिहाज से नहीं। मिसेज़ मैकगिलीकडी उत्तर से रात के सफ़र में आने के बाद और दिन भर जमकर ख़रीदारी करने के बाद आरामदेह सफ़र करने के लिए तो तैयार थीं लेकिन उनके पास जमकर बख्शीश देने का समय नहीं था।

उन्होंने अपनी पीठ पीछे लगे महँगे गद्दे पर टिकाते हुए उबासी ली और अपनी पत्रिका खोल ली। पाँच मिनट के बाद सीटी की आवाज़ के साथ ट्रेन चल पड़ी। मिसेज़ मैकगिलीकडी के हाथों से पत्रिका गिर गयी, उनका सिर एक तरफ़ झुक गया, तीन मिनट के बाद वह गहरी नींद में थी। क़रीब 35 मिनट सोने के बाद वह तरोताजा होकर उठीं। उन्होंने अपनी हैट ठीक की और बैठकर खिड़की से बाहर उस भागती हुई गाड़ी से गाँवों का जो भी हिस्‍सा दिखाई दे रहा था देखने लगी। तब तक काफ़ी अँधेरा हो चुका था, दिसम्बर का एक उदास कुहरीला दिन—पाँच दिनों के बाद क्रिसमस आने वाला था। लन्दन में घना कोहरा था और अँधेरा भी, गाँवों में उससे कम नहीं था, हालाँकि वहाँ बीच-बीच में खुशी की चमक आ जाती थी जब शहरों और स्टेशनों से गुज़रते हुए ट्रेन से रोशनी पड़ती थी।

‘इस वक़्त हम आखिरी चाय पेश कर रहे हैं,’ एक अटेण्डेण्ट ने दरवाज़े को किसी जिन्न की तरह धीरे से खोलते हुए कहा। मिसेज़ मैकगिलीकडी ने कुछ देर पहले ही बड़े से डिपार्टमेन्टल स्टोर से चाय ली थी। उस समय तो उनका मन पूरी तरह भरा हुआ था। अटेंडेंट गलियारे में बार-बार यही कहते हुए गया। मिसेज़ मैकगिलीकडी ने खुश होते हुए देखा जहाँ उनके सामान के पैकेट रखे हुए थे। चेहरा पोछने वाले तौलिये बेहतर बनावट के थे और एकदम वैसे जैसे कि मारग्रेट को चाहिए थे, रॉबी के लिए स्पेस गन और ज्यां के लिए जो खरगोश लिए थे वे अच्छे थे, और उस शाम उन्होंने अपने लिए जो कोट लिया था वह एकदम वैसा था जैसा कि उन्‍हें चाहिए था, गरम लेकिन पहनने लायक। हेक्टर के लिए भी पुलोवर—जमकर जो ख़रीदारी की थी उन्होंने उसको अपने मन में सही ठहराया।

वह सन्तुष्ट होकर फिर खिड़की से बाहर देखने लगीं—दूसरी तरफ़ से एक ट्रेन चीखती हुई निकल गयी, जिससे खिड़की झनझना उठी। उनकी ट्रेन एक स्टेशन से गुज़री।

फिर उसकी गति धीमी होने लगी, शायद किसी सिग्नल के हुक्म को देखकर। कुछ मिनट तो वह रेंगती रही, फिर रुक गयी, अब वह फिर से चलने लगी। दूसरी तरफ़ से आने वाली एक और ट्रेन गुज़री, लेकिन पहले वाली ट्रेन से कम तेज़ी से। ट्रेन ने फिर से रफ़्तार पकड़ ली। उस समय एक और ट्रेन जो उसी तरफ़ जा रही थी, उसकी तरफ़ आती दिखी, एक पल के लिए तो ख़तरनाक लगा। एक समय में एक दिशा में जाती दो ट्रेनें, कभी एक तेज़ी से चलने लगती, कभी दूसरी। मिसेज़ मैकगिलीकडी ने अपने डिब्बे की खिड़की से साथ चल रही ट्रेन के कूपों के अन्‍दर झाँका। ज़्यादातर खिड़कियों के पर्दे गिरे हुए थे, लेकिन बीच-बीच में कूपों में सवार लोग दिखाई दे जाते थे। दूसरी ट्रेन पूरी तरह भरी हुई नहीं थी और उसके बहुत सारे कूपे खाली थे।

दोनों ही ट्रेन समान होने का भ्रम दे रहे थे कि तभी एक कूपे का पर्दा झटके के साथ खुला। मिसेज़ मैकगिलीकडी ने पहले दर्जे के उस कूपे की तरफ़ देखा जो महज़ कुछ फ़ीट की दूरी पर ही था।

फिर उन्होंने अपने पैरों पर खड़े होते हुए हल्की-सी चीख के साथ अपनी साँसें थाम लीं।

खिड़की की तरफ़ पीठ किये एक आदमी खड़ा था। उसके हाथ एक औरत की गर्दन पर थे, वह धीरे-धीरे, निर्दयी तरीके से उसका गला घोंट रहा था। औरत की आँखें कोटरों से बाहर निकलने-निकलने को थीं, उसका चेहरा पीला फक पड़ता जा रहा था। मिसेज़ मैकगिलीकडी अपलक देखे जा रही थी कि अन्त आ गया और औरत का शरीर बेजान होकर उस आदमी के हाथों में झूलने लगा।

उसी समय, मिसेज़ मैकगिलीकडी की ट्रेन मंद पड़ने लगी और दूसरी ट्रेन रफ़्तार पकड़ने लगी। वह आगे बढ़ गयी और चन्द पलों में ही वह आँखों से ओझल हो गयी।

तभी अपने आप मिसेज़ मैकगिलीकडी के हाथ ऊपर उठे और ऊपर लगे इंटरकॉम की तरफ़ बढ़े, लेकिन फिर कुछ दुविधा में पड़कर रुक गये। आखिर, उस ट्रेन में घण्टी बजाकर क्या होगा जिसमें वह सफ़र कर रही थी? उन्होंने इतने क़रीब से इतना हैरतनाक नज़ारा देखा था कि लगा जैसे उनको लकवा मार गया हो। तत्काल कुछ किये जाने की ज़रूरत थी—लेकिन क्या?

उनके डिब्बे का दरवाज़ा खुला और एक टिकट कलक्टर ने आकर उनसे टिकट माँगा।

मिसेज़ मैकगिलीकडी झटके से आपे में आ गयी।

‘एक औरत का गला दबा दिया गया है,’ उन्होंने कहा। ‘उस ट्रेन में जो अभी-अभी बगल से गुज़री है। मैंने देखा।’

टिकट कलक्टर ने कुछ सन्देह से उनकी तरफ़ देखा।

‘फिर से कहिये, मैडम?’

‘एक आदमी ने उस ट्रेन में एक औरत का गला दबा दिया। मैंने वहाँ से देखा,’ उन्होंने खिड़की की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

टिकट कलक्टर को अभी भी सन्देह हो रहा था।

‘गला घोंट दिया?’

‘हाँ, गला घोंट दिया! मैंने देखा, मैंने कहा न। आपको तुरन्त कुछ करना चाहिए!’

टिकट कलक्टर अफ़सोस जताते हुए खाँसने लगा।

‘आपको ऐसा नहीं लगता मैडम कि आपको थोड़ी झपकी आ गयी हो—और—’ उसने बड़ी सफाई से पूछा।

‘मुझे झपकी आयी तो थी, लेकिन अगर आपको यह लगता है कि मुझे कोई सपना आया था तो मैं आपको बता दूँ कि आप बिलकुल ग़लत हैं। मैंने देखा, बताया न आपको।’

टिकट कलक्टर की आँखें उस खुली हुई मैगज़ीन के पन्नों पर गयीं जो सीट पर पड़ी हुई थी। उस खुले हुए पन्ने पर एक लड़की का गला दबाया जा रहा था जबकि हाथ में रिवॉल्वर लिए एक आदमी उन दोनों को दरवाज़े से धमका रहा था।

उसने उसे देखकर कहा—‘आपको ऐसा नहीं लगता मैडम कि आप एक मज़ेदार कहानी पढ़ रही थीं, और आपको नींद आ गयी, जब उठीं तो कुछ उलझन-सी हो गयी—’

मिसेज़ मैकगिलीकडी ने उसे रोक दिया।

‘मैंने उसे देखा था,’ उन्होंने कहा। ‘मैं उतनी ही जागी हुई थी जितने कि आप हैं। और मैंने बाहर झाँककर साथ चलती ट्रेन की तरफ़ देखा, और एक आदमी एक औरत का गला दबा रहा था। अब मैं यह जानना चाहती हूँ कि आप इस बारे में क्या करने वाले हैं?’

‘अच्छा—मैडम’

‘मैं उम्मीद करती हूँ कि आप इस बारे में कुछ ज़रूर करेंगे?’

टिकट कलक्टर ने कुछ झिझकते हुए उसाँस ली और अपनी घड़ी की तरफ़ देखा।

‘ठीक सात मिनट में हम ब्रैकम्पटन में होंगे। आपने मुझे जो बताया मैं उसके बारे में रिपोर्ट दर्ज कर दूँगा। आपने क्या बताया कि ट्रेन किस दिशा में जा रही थी?’

‘ज़ाहिर है इसी ट्रेन की दिशा में। आपको क्या लगता है कि ट्रेन अगर उल्टी दिशा में जा रही होती तो मैं इतनी देर में इतना कुछ देख सकती थी?’

टिकट कलक्टर ने ऐसे देखा जैसे मिसेज़ मैकगिलीकडी कहीं भी कुछ भी देख पाने में समर्थ हों। लेकिन वह विनम्र बना रहा।

‘आप मेरे ऊपर भरोसा कर सकती हैं, मैडम,’ उसने कहा। ‘मैं आपका बयान दर्ज करवा दूँगा। शायद मुझे आपके नाम और पते की ज़रूरत पड़े—अगर ज़रूरत पड़ी तो—’

मिसेज़ मैकगिलीकडी ने उसको वहाँ का पता दे दिया जहाँ वह अगले कुछ दिनों तक रहने वाली थीं और अपने स्कॉटलैंड के घर का पता भी, और कलक्‍टर ने उस पते को लिख लिया। फिर वह एक ऐसे आदमी की तरह वहाँ से चला गया जिसने अपना काम पूरा कर लिया हो और एक परेशान करने वाले मुसाफ़िर से निपट चुका हो।

मिसेज़ मैकगिलीकडी सन्‍तुष्‍ट नहीं हुई थी। क्या वह टिकट कलक्टर उनका बयान दर्ज करवायेगा? या वह उनको यूँ ही शान्त करने की कोशिश कर रहा था? हो सकता है ट्रेन में कई उम्र दराज़ औरतें सफ़र करती रहती हों, जिनको पक्के तौर पर ऐसा लगने लगता हो कि उन्होंने कम्युनिस्टो की चाल को बेनकाब कर दिया, या उनकी हत्या का अन्देशा है, या उन्होंने कोई उड़न तश्तरी देख ली हो, या उन्होंने ऐसी हत्याओं के बारे में बताया हो जो कभी हुई ही न हों। अगर उस टिकट कलक्‍टर को वह उन जैसी लगी हो तो—

ट्रेन की रफ़्तार अब कम होने लगी थी, वह अब एक बड़े शहर की चमकती रोशनियों की तरफ़ दौड़ रही थी। मिसेज़ मैकगिलीकडी ने अपना हैंडबैग खोला, उसके अन्‍दर उनको एक बिल की रसीद मिली, उसके पीछे उन्होंने अपने बॉल पेन से नोट लिखा, उसे अलग से एक लिफ़ाफ़े में रख लिया, जो संयोग से उनके पास पड़ा हुआ था। लिफ़ाफ़े को नीचे रखा और उसके ऊपर लिखने लगीं।

ट्रेन धीरे-धीरे एक भीड़ भरे प्लेटफॉर्म पर रुकी। वहाँ भी वही आवाज़ गूँज रही थी : ‘जो ट्रेन अभी प्लेटफॉर्म 1 पर आयी है वह 5:38 थी जो मिलचेस्टर, वावेर्टन, रोचेस्‍टर और चैडमाउथ स्टेशनों के लिए जाने वाली है। बासींग के बाज़ार को जाने वाले यात्री जो प्लेटफॉर्म नम्‍बर 3 पर इन्‍तज़ार कर रहे हैं वे उस ट्रेन में चढ़ जायें। जो कार्बरी के लिए नम्‍बर 1 रास्ता है।’

मिसेज़ मैकगिलीकडी उत्सुकता से प्लेटफॉर्म की तरफ़ देखने लगीं। इतने सारे यात्री और इतने कम कुली। आह, वह दिखा! उन्होंने उसे आदेश देते हुए बुलाया।

‘कुली! कृपया इसे अभी स्टेशन मास्टर के पास लेकर जाओ।'

उन्होंने उसके हाथ में लिफ़ाफ़ा और उसके साथ एक शिलिंग देते हुए कहा।

फिर राहत की साँस लेते हुए वह अपने सीट पर पसर गयीं। ख़ैर उन्होंने जो करना तथा उन्होंने कर दिया। उनके दिमाग़ में तत्काल इस बात का अफ़सोस हो रहा था कि उन्होंने बेकार ही एक शिलिंग दे दिया—छह पेन्स ही काफ़ी होते—

उनके दिमाग़ में फिर से वही दृश्य कौंधने लगा जो उन्होंने देखा था।

भयानक था, बहुत भयानक—वैसे तो वह मज़बूत कलेजे की महिला थी, लेकिन वह काँपने लगी। अगर उस कूपे का पर्दा नहीं उठा होता—ज़ाहिर है वह विधाता की मर्ज़ी थी।

ईश्वर की मर्ज़ी यही थी कि मिसेज़ मैकगिलीकडी उस अपराध की गवाह बने। उनके होंठ मज़बूती से जम गये।

आवाज़ हुई, सीटी बजी, दरवाज़े बन्द होने लगे। 5:38 ब्रैखेम्प्टन स्टेशन से धीरे-धीरे चलने लगी। एक घण्टे और पाँच मिनट के बाद वह ट्रेन मिलचेस्टर स्टेशन पर रुकी।

मिसेज़ मैकगिलीकडी ने अपने पैकेट सँभाले, सूटकेस उठाया और ट्रेन से उतर गयीं। उन्होंने प्लेटफॉर्म पर ऊपर नीचे देखा। उनके दिमाग़ में फिर वही ख़्याल आया : अधिक कुली नहीं थे। लगता था जैसे कि सारे कुली वे चिट्ठियों के पैकेट और सामान समेटने में लगे थे। ऐसा लगता था कि आजकल मुसाफ़िरों से यह उम्मीद की जाती थी कि वे अपना समान खुद ही उठायें। ठीक है, लेकिन वह अपना सूटकेस, छाता और इतना सारा समान नहीं उठा सकती थीं। उनको इन्‍तज़ार करना पड़ा, और आख़िरकार उनको एक कुली मिल ही गया।

‘टैक्सी?’

‘मुझे लगता है कोई मुझे लेने आया होगा।’

मिलचेस्टर स्टेशन के बाहर एक टैक्सी ड्राइवर खड़ा था जो आगे आ गया। उसने बड़ी विनम्रता से स्थानीय भाषा में कहा, क्या आप मिसेज़ मैकगिलीकडी हैं? सेंट मेरी मीड के लिए?’

मिसेज़ मैकगिलीकडी ने हामी भर दी। कुली को अच्छी बख्शीश दी गयी, अधिक नहीं तो पर्याप्त। वह कार मिसेज़ मैकगिलीकडी और उनके सामानों के साथ रात में चल पड़ी। आगे की तरफ़ झुककर बैठने के कारण उनको आराम का मौका नहीं मिला। आख़िरकार गाड़ी गाँव के जाने पहचाने रास्तों से गुज़रती हुई उनके मुकाम तक पहुँची। जब एक बूढ़ी काम वाली ने दरवाज़ा खोला तो ड्राइवर ने सामान अन्दर दिया। मिसेज़ मैकगिलीकडी सीधा मेन हॉल पहुँचीं जहाँ उनकी मेज़बान उनका इन्‍तज़ार कर रही थीं, जो खुद भी उम्रदराज़ थीं।

‘एलिज़ाबेथ!’

‘जेन!’

उन्होंने एक-दूसरे को चूमा और बिना किसी भूमिका के बातचीत करने लगीं।

‘ओह जेन! पता है मैंने एक ख़ून होते हुए देखा!’