उस शाम की ब्रान्डो की डिनर पार्टी हर लिहाज से फीकी गयी । दो नये मेहमानों की शिरकत के बावजूद पार्टी में कोई जुनून, कोई उमंग कोई जोश-खरोश न पैदा हो सका । रह-रहकर हर किसी के जेहन में हाउसकीपर वसुन्धरा की सूरत उभरने लगती थी जिसकी लाश अभी भी एस्टेट पर मौजूद थी । नतीजतन अभी दस ही बजे थे कि मेहमान पार्टी से बेजार दिखाई देने लगे और जमहाइयां लेने लगे । फिर हर आठ दस मिनट बाद एक दो ‘एक्सक्यूज मी’ की घोषणा होने लगी और फिर ग्यारह बजे तक तो पार्टी का पक्का ही समापन हो गया । साढे ग्यारह तक एक भी बैडरूम नहीं था जिसमें कि रोशनी दिखाई देती ।
तब मुकेश अपने बिस्तर से निकला और दबे पांव दरवाजे पर पहुंचा । दरवाजे को धीरे-से खोलकर उसने बाहर गलियारे में झांका तो उसने उसे अपेक्षानुसार अन्धेरा और सुनसान पाया । वो वापिस अपने पलंग के करीब पहुंचा । उसने पलंग पर दो तकियों को लम्बा लिटाया और उन्हें एक कम्बल से ढक दिया । फिर वो कमरे से बाहर निकला और दबे पांव लाउन्ज की विपरीत दिशा में बढा । उसे दिन में ही, जबकि वो केयरटेकर के छोकरे रोमियो से टकराया था, इस बात की खबर हो गयी थी कि सीढियां उधर भी थीं जो कि पिछवाड़े में किचन के पहलू की ड्योढी में जाकर खत्म होती थीं ।
निर्विघ्न वो नीचे पहुंच गया ।
पिछवाड़े के रास्ते से उसने आगे बीच पर कदम रखा ।
तभी प्रेत की तरह चलती हुई टीना उसके पहलू में पहुंच गयी ।
मुकेश ने सहमति में सिर हिलाया । दोनों आगे बढे । कुएं की जगह उनका लक्ष्य उससे काफी परे एक छोटा-सा टीला था जिस पर ऊंची झाड़ियां उगी थीं ।
निर्विघ्न वे उन झाड़ियों तक पहुंच गये और उनकी ओट लेकर रेत पर बैठ गये ।
वहां से कुआं कोई पचास गज दूर था और उनकी निगाहों और कुएं के रास्ते में कोई व्यवधान नहीं था ।
दूर इमारत अन्धकार के गर्त में डूबी हुई थी और उसका बस आकार ही बमुश्किल भांपा जा सकता था ।
“वो आयेगा ?” ­ टीना सस्पेंसभरे स्वर में बोली ।
“देखते हैं ।” ­ मुकेश बोला ।
“कब तक देखते हैं ? सुबह होने तक ?”
“नहीं । जब तक उम्मीद न खत्म हो जाये या तुम बोर न हो जाओ । जो भी काम पहले हो जाये ।”
“जो हम कर रहे हैं, उसे करने की हमें जरूरत क्या थी ?”
“बड़ी देर में सूझा ये सवाल । तो अब लौट चलें ?”
“नहीं । अब आ ही गये है तो... और... जानते हो ?”
“क्या ?”
“मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है । आई एम फीलिंग वैरी रोमांटिक, वैरी एडवेन्चर्स ।”
“फिर क्या बात है ?”
“वो जरूर आयेगा ।”
“कैसे जाना ?”
“मेरे दरवाजे पर पहुंचा था । मुझे आवाज देकर पूछ रहा था ‘सो गयीं टीना डार्लिंग’ । डार्लिंग जवाब देती तो कबाड़ा हो जाता ।”
“मेरे दरवाजे पर भी कोई आया था लेकिन उसने मुझे आवाज नहीं दी थी...”
“वही होगा ।”
“...बस हौले-से दरवाजा खोलकर भीतर झांक कर चला गया था ।”
“मुझे ठण्ड लग रही है ।”
“आजकल के मौसम में ऐसा ही होता है । दिन में मौसम सुहावना होता है लेकिन रात को काफी ठण्ड हो जाती है ।”
“ईडियट !”
“क... क्या ?”
“मैंने तुम्हें वैदर रिपोर्ट जारी करने के लिये कहा था ?”
“क्या ? ...ओह ! ओह !”
मुकेश ने तनिक झिझकते हुए उसे अपनी एक बांह से घेरे लेकर अंक में समेट लिया ।
“अभी ठीक है ।” ­ वो मादक स्वर में बोली ।
“लेकिन अब मुझे गर्मी लग रही है ।”
वो हंसी ।
“मुझे तो नींद आ रही है ।” ­ कुछ क्षण बाद वो बोली ।
“सच पूछो तो मुझे भी ।” ­ मुकेश बोला ।
“सो जायें ?”
“पागल हुई हो ! यहां हम सोने के लिये आये हैं !”
“ये भी ठीक है लेकिन अगर...”
“देखो !”
टीना हड़बड़ाकर सीधी हुई और उसने उस दिशा में देखा जिधर मुकेश ने उंगली उठाई थी ।
इमारत की ओट से निकलकर एक साया बड़ी सावधानी से उधर बढ रहा था ।
मुकेश ने अपनी कलाई पर बंधी रेडियम डायल वाली घड़ी पर निगाह डाली : साढे बारह बजे थे ।
“ब्रान्डो !” ­ वो बोला ।
“नहीं ।” ­ टीना फुसफुसाई ­ “कद-काठ वैसा है लेकिन वो नहीं है ।”
“वो कोई लबादा सा लपेटे मालूम होता है । दिखाई तो कुछ दे नहीं रहा ।”
“मैंने चाल पहचानी है जोकि ब्रान्डो की नहीं है । वो छोटे-छोटे कदम उठाता है और फुदकता-सा चलता है । ये तो... ये तो, कोई बुलबुल है ।”
“कैसे जाना ?”
“चाल से ही जाना । ये फैशन माडल की ट्रेंड चाल है । फैशन शोज में कैट वाक की चाल की आदत हो जाये तो आदत छूटती नहीं । ये शर्तिया कोई बुलबुल है । चाल के अलावा कद भी इस बात की चुगली कर रहा है ।”
“यानी कि ब्रान्डो ने अपना काम किसी बुलबुल को सौंप दिया ?”
“हो सकता है । ब्रान्डो की बुलबुलें उसके लिये जान दे सकती हैं, उसका कोई काम करके तो वो निहाल ही हो जायेंगी । दौड़ के करेंगी ।”
“भले ही काम गैर-कानूनी हो ?”
“भले ही काम किसी को गोली मार देने का हो ।”
“खुशकिस्मत है पट्ठा ।”
“बस, पट्ठा ही नहीं है । बाकी बातें अलबत्ता ठीक हैं । पट्ठा होता तो आठ रानियों का राजा होता ।”
“साया कुएं की तरफ ही बढ रहा है ।”
“देख रही हूं ।”
“कौन होगा ? मैं सस्पेंस से मरा जा रहा हूं ।”
“दौड़ के जाकर थाम लो, लबादा नोच फेंको, सूरत सामने आ जायेगी ।”
“ओह, नो ।”
“क्यों ?”
“साया हथियारबन्द हो सकता है । मुझे गोली मार सकता है ।”
“मरने से डरते हो ?”
“हां ।”
“सयाने आदमी हो । तरक्की करोगे ।”
“वो कुएं के करीब पहुंच गया ।”
“लबादे में से कुछ निकाल रहा है ।”
“क्या ?”
“पता नहीं । लेकिन आकार में कोई खासी बड़ी चीज मालूम होती है ।”
“फेंक दी । कुएं में फेंक दी ।”
साया वापिस घूमा और जिस रास्ते आया था, उसी रास्ते लौट चला ।
“कौन है ?” ­ मुकेश बोला ­ “क्या फेंका कुएं में ? बाई गॉड, मेरे से सस्पेंश बर्दाश्त नहीं हो रहा ।”
“मेरे से भी ।”
“इसके निगाह से ओझल होते ही मैं जाकर कुएं में उतरूंगा और...”
“पागल हुए हो ! आधी रात को उस अन्धे कुएं में उतरोगे । वहां सांप हो सकते हैं ।”
“सांप !” ­ मुकेश के शरीर ने प्रत्यक्ष जोर की झुरझुरी ली ।
“और क्या पाताल लोक की परियां ?”
“यानी कि दिन में...”
“नहीं, दिन में भी नहीं । सांपों का खतरा तो तब भी बरकरार होगा, ऊपर से किसी ने देख लिया तो क्या जवाब दोगे ? क्यों उतर रहे ते तो उस कुएं में ?”
“तो ? तो ?”
“ये हमारे करने का काम नहीं ।”
“तो किसके करने का काम है ?”
“पुलिस के । हमें फौरन पुलिस को खबर करनी चाहिये ।”
“फौरन ?”
“या नहीं करनी चाहिये । हमने ये बात पुलिस को बाद में बताई, बात उन्हें इम्पोर्टेन्ट लगी तो पहला सवाल यही होगा कि हम फौरन पुलिस के पास क्यों न पहुंचे !”
“ओह !”
“मेरी राय मानो तो समझदारी खामोश रहने में ही है । हम एक बात स्थापित करना चाहते थे जो कि स्थापित हो गयी है । ब्रान्डो दिन में कुआं-कुआं इसीलिये भज रहा था क्योंकि कुएं का वो अपने लिये कोई इस्तेमाल सोचे हुए था । और उस इस्तेमाल को उसने अंजाम दे लिया है ।”
“वो...वो साया ब्रान्डो तो नहीं था ।”
“ब्रान्डो का कोई एजेन्ट था । उसकी कोई बुलबुल थी ।”
“मेरा दिल गवाही नहीं देता कि किसी नाजायज काम में ब्रान्डो ने अपनी किसी बुलबुल को अपना राजदार बनाया होगा ।”
“और क्या किसी नौकर चाकर पर एतबार करता ? खुद तो वो आया नहीं ।”
“क्या पता आया हो ! क्या पता वो साया ब्रान्डो ही हो ।”
“नामुमकिन । मैं अपनी किसी फैलो बुलबुल की चाल न पहचानूं, ये नहीं हो सकता ।”
“यानी कि तुम्हारी गारंन्टी है कि वो साया सुनेत्रा, शशिबाला, फौजिया, आलोका और आयशा में से कोई था ?”
“हां ।”
“उसने चोरों की तरह यहां आकर ब्रान्डो का दिया कोई सामान सामने उस कुएं में फेंका ?”
“हां ।”
“ऐसा क्या सामान हो सकता हो है जिसकी अपने मैंशन से बरामदी ब्रान्डो अफोर्ड नहीं कर सकता ?”
“मालूम पड़ जायेगा । वो सामान कुएं में से कहीं गायब नहीं हो सकता । हम अभी पुलिस के पास चलते हैं । वो सामान बरामद कर लेंगे तो पता चल जायेगा कि...”
“हम नहीं ।”
“हम नहीं, क्या मतलब ?”
“पुलिस के पास तुम्हारे जाने की जरूरत नहीं ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस । पुलिस वाले तुम्हें भी सस्पैक्ट मानते हैं । खामखाह उनकी निगाहों में आने का क्या फायदा ! खामखाह पंगा लेने का क्या फायदा !”
“ओह !” ­ वो एक क्षण ठिठकी और बोली ­ “तुम उन्हें ये भी बताओगे कि ब्रान्डो की कुएं की बाबत कहीं बातें शक पैदा करने वाली लगी थीं इसीलिये रात को तुम उसी के इन्तजार में यहां छुपे बैठे थे ?”
“हरगिज भी नहीं । मैं तो ये कहूंगा कि मैंने इत्तफाक से अपने बैडरूम की खिड़की से बाहर झांका था तो काला लबादा ओढे एक साये को कुएं की ओर बढते देखा था जिसने कि मेरी आंखों के सामने कुएं में कुछ फेंका था ।”
“हां, ये ठीक रहेगा ।”
“आओ, चलें अब ।”
दोनों एक-दूसरे के बगलगीर हुए वापिस मैंशन की ओर बढे ।
वो मैंशन के करीब पहुंचे ।
“अब तुम” ­ मुकेश बोला ­ “चुपचाप अपने कमरे में जाओ और मैं...”
“टयोटा !” ­ टीना के मुंह से निकला ।
“सफेद टयोटा ! विकास निगम की कार ! जिस पर कि वो यहां पहुंचा था !”
“क्या हुआ उसे ?”
“जब हम यहां से निकले थे तो वहां सामने खड़ी थी । अब नहीं है ।”
“तो क्या हुआ ? गैरेज में होगी ।”
“ओह !”
“तुम चलो अब । मैं चौकी हो के आता हूं ।”
टीना सहमति में सिर हिलाती इमारत में दाखिल हो गयी ।
मुकेश गैरेज में पहुंचा ।
सफेद टयोटा वहां नहीं थी ।
***
दोनों पुलिस अधिकारियों ने बड़े गौर से मुकेश की बात सुनी ।
“आप इतनी रात गये तक जाग रहे थे ?” - फिर सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा बोला ।
“जाहिर है ।”
“आपने ये जानने की कोशिश न की कि वो शख्स कौन था ?”
“जनाब, मैंने बोला न कि वो काला लबादा ओढे था ।”
“लेकिन लौटकर तो इमारत में ही आया होगा ।”
“वो इमारत के करीब तक आया था, उसके बाद वो किधर गया था, मुझे नहीं मालूम । मेरा मतलब है कि मेरी खिड़की की ऐसी पोजीशन नहीं थी कि मैं उसे इमारत में दाखिल होता देख पाता ।”
“आपको मालूम करने की कोशिश करनी चाहिये थी कि मेजबान या मेहमानों में से कौन उस घड़ी इमारत से गैर-हाजिर था ।”
मुकेश खामोश रहा । वो उन लोगों को नहीं बता सकता था कि वो ऐसी स्थिति में नहीं था कि वो इमारत में पहले पहुंचकर लबादे वाले के वहां आगमन को चैक कर पाता ।
“जनाब” - प्रत्यक्षतः वो बोला - “जहां अभी पिछली ही रात एक खून होकर हटा हो, वहां आधी रात को ऐसे किसी शख्स से पंगा लेना अपनी मौत को दावत देना होता ।”
“ही इज राइट ।” - इंस्पेक्टर सोलंकी बोला ।
“मैने इस घटना को महत्वपूर्ण जानकर आप लोगों को फौरन इसकी खबर दी है । अब मुझे लग रहा है कि मैंने गलती की इतनी रात गये यहां दौड़े आकर ।”
“नहीं, नहीं । ऐसी कोई बात नहीं । यू डिड दि राइटैस्ट थिंग । वुई आर थैंकफुल टु यू ।”
“वैसे उस साये कि बाबत मेरा एक अन्दाजा है जो आप किसी खातिर में लाएं तो मैं जाहिर करूं ?”
“बोलिये ।” 
“वो साया कोई लड़की थी । लड़की क्या, ब्रान्डो की कोई बुलबुल थी ।”
“आपको कैसे...”
“मेरे से इस बाबत और सवाल करना बेकार है । मैने पहले ही कहा है कि ये मेरा अन्दाजा है जो कि गलत भी हो सकता है ।”
“हूं ।”
“अब आप क्या करेंगे ?”
सोलंकी ने फिगुएरा की तरफ देखा ।
“अभी क्या करेंगे ?” - फिगुएरा बोला - “जो करेंगे, सुबह, करेंगे ।”
“सुबह करेंगे ?”
“हमारे पास स्टाफ की कमी है । और फिर उस अन्धे कुएं में कौन रात को उतरने को तैयार होगा ।”
“कुएं की निगरानी ही...”
“क्या जरूरत है ! कुआं कहीं भागा जा रहा है ?”
“लेकिन भीतर का वो सामान...”
“कहीं नहीं जाता । कुएं में सामान फेंकना आसान है, उसे वहां से वापिस निकालना मुश्किल तो है ही, किसी एक जने के बस का भी नहीं है ।”
“आपका जो हवलदार ग्रीन हाउस पर तैनात है, आप कम-से-कम उसे तो कह सकते हैं कि वो गाहे-बगाहे उधर भी निगाह मारता रहे ।”
“इत्तफाक से वो भी इस घड़ी वहां नहीं है ।”
“वो भी वह नहीं है ?”
“वो सफेद टयोटा के पीछे लगा हुआ है । आधी रात के करीब उसने किसी को सफेद टयोटा को वहां से निकालकर चोरों की तरह वहां से खिसकते देखा था । वो फौरन अपने स्कूटर पर उसके पीछे लग गया था लेकिन अफसोस कि रफ्तार पकड़ने में टयोटा कार का मुकाबला न कर सका ! अभी दस मिनट पहले ईस्टएण्ड से उसका फोन आया था कि टयोटा वाला उसे चकमा देकर उसके हाथ से निकल गया था । वो अभी भी इसी उमीद में इधर-उधर भटक रहा है कि शायद टयोटा उसे कहीं दोबारा दिखाई दे जाये ।”
“था कौन टयोटा में ?”
“उसका मालिका ही होगा, और कौन होगा !”
“कार में एक ही आदमी था ?”
“हां । जो कि कार ड्राइव कर रहा था । लेकिन वो जायेगा कहां ! आखिर तो लौटकर...”
तभी फोन की घण्टी बजी ।
“उसी हवलदार का फोन होगा” - फिगुएरा फोन की ओर हाथ बढाता हुआ बोला - “हल्लो, पुलिस पोस्ट ।”
दूसरी ओर से कोई इतनी ऊंची आवाज में बोला कि वो रिसीवर से निकलकर कमरे में भी सुनाई दी । वो एक बेहद आतंकित स्त्री स्वर था जो कभी चीख में तब्दील हो जाता था तो अभी डूबने लगता था । नतीजतन उसका कोई शब्द कमरे में सुनाई देता था, कोई नहीं सुनाई देता था ।
“आप जरा आराम से बोलिये” - फिगुएरा झुंझलाया-सा माउथपीस में बोला - “मुझे समझ तो आने दीजिये कि आप क्या कह रही हैं ! आप जरा...”
“...मोहिनी जिन्दा नहीं है... मोहिनी पाटिल मर चुकी है... मार डाला... मार डाला उसे... कत्ल कर दिया...”
“आप कौन हैं ? कहां से बोल रही हैं ?”
“मैंने उसको देखा है... मैंने उसे...”
तभी एक जोर की चीख की आवाज फोन में से निकली ।
फिर सन्नाटा ।
“हल्लो ! हल्लो !” - फिगुएरा जोर-जोर से फोन का प्लंजर ठकठकाता बोलने लगा - “हल्लो ! आर यू देअर ! हल्लो ! ...आपरेटर ! आपरेटर... आपरेटर, अभी मैं किसी से बात कर रहा था... लाइन चालू है... लेकिन... कहां से काल थी ? ...पोस्ट आफिस के पी.सी.ओ. से ? ...ओके । थैंक्यू ।”
उसने रिसीवर क्रेडल पर पटका और उछलकर खड़ा हुआ ।
“आइये, सर ।” - वो सोलंकी से बोला ।
दोनों वहां से निकले, बाहर खड़ी मोटरसाइकल पर सवार हुए और यह जा वह जा ।
कई क्षण बाद जाकर कहीं हकबकाये से मुकेश के जिस्म में हरकत आयी और वो भी उठकर बाहर को भागा । आनन-फानन वो जीप पर सवार हुआ और उसने उसे दूर सड़क पर भागी जाती पुलिस की मोटरसाइकल के पीछे दौड़ा दिया । वो जानता था कि पोस्ट आफिस ब्रान्डो कि एस्टेट को जाती सड़क पर कहां था ।
मोटरसाइकल और जीप आगे-पीछे पोस्ट आफिस के सामने पहुंची ।
पब्लिक काल का बूथ इमारत के बाहरी फाटक के करीब था । फिगुएरा ने अपनी मोटरसाइकल उसके करीब ले जाकर यूं खड़ी की कि उसकी हैडलाइट का रुख सीधे बूथ की तरफ हो गया ।
मुकेश जीप से उतरा और झिझकता-सा बूथ की तरफ बढा । सामने निगाह पड़ते ही उसके मुंह से सिसकारी निकल गयी और नेत्र फैल गये ।
बूथ के फर्श पर क स्त्री शरीर यूं लुढका पड़ा था कि उसका धड़ बूथ के भीतर था और टांगें बाहर सड़क पर फैली हुई थीं । उसका एक कन्धा बूथ की दीवार के साथ सटा हुआ था और उसकी छाती में एक खंजर धंसा दिखाई दे रहा था जिसकी हाथीदांत की मूठ ही जिस्स से बाहर दिखाई दे रही थी और जिसके इर्द-गिर्द से तब भी खून रिस रहा था ।
फिर मुकेश ने हिम्मत करके उसके चेहरे पर निगाह डाली ।
“अरे !” - वो हौलनाक लहजे से बोला - “ये तो आयशा है !”
***
“मिस्टर मुकेश माथुर !”
मुकेश ने ऊंघते-ऊंघते ही ‘बोल रहा हूं’ कहा फिर घड़ी पर निगाह डाली । नौ बज चुके थे ।
“होल्ड कीजिये । आपके लिये बाम्बे से ट्रंककाल है ।”
“यस, होल्डिंग ।” - वो सम्भलकर बैठ गया ।
कुछ क्षण बाद उसके कान में जो नया स्त्री स्वर सुनाई दिया, उसे जो पहचानता था । वो ‘साहब’ की सैक्रेट्री की आवाज थी ।
“मिस्टर माथुर” - वो बोली - “लाइन पर रहिये । बड़े आनन्द साहब बात करेंगे ।”
“ओके ।”
फोन की घण्टी ने ही उसे जगाया था, वो न बजती तो वो जरूर दोपहर बाद तक सोया पड़ा रहा होता ।
“माथुर !” - एकाएक उसके कान में नकुल बिहारी आनन्द का कर्कश स्वर पड़ा ।
“यस, सर ।” - मुकेश तत्पर स्वर में बोला - “गुड मार्निंग, सर ।”
“गुड मार्निंग । लगता है मैंने तुम्हें सोते से जगा दिया है ।”
“कोई बात नहीं, सर ।”
“यानी कि सच में ही सोते से जगा दिया है । क्या दोपहर तक सोते हो ?”
“नहीं, सर । वो क्या है कि मैं कल तकरीबन सारी रात ही जागता रहा था । सवेरा होने को था जब कि सोना नसीब हुआ था इसलिये...”
“तुम वहां रात-रात-भर गौज-मेले में शामिल रहते हो ? मैंने तुम्हे एक जरूरी काम के लिये वहां भेजा है या मौज मारने के लिये ! तफरीह करने के लिये...”
अबे, सुन तो सही मेरे बाप ।
“सर, मैं तफरीहन नहीं जागता रहा था । वो क्या है कि...”
“माथुर, मेरे पास तुम्हारी तफरीहबाजी का तहरीरी सुबूत है ?”
“जी !”
“एक्सप्रेस’ में तुम्हारी फोटो छपी है । एक अधनंगी लड़की के साथ । बल्कि थ्री क्वार्टर नंगी लड़की के साथ । एक जिप्सी में सैर करते । ये तफरीह नहीं तो और क्या है ?”
“लेकिन, सर, वो तो...”
“तस्वीर में घुटनों से आठ इंच ऊंची स्कर्ट पहने थी वो लड़की । ब्लाउज जैसी उसकी शर्ट के तीन - आई थिंक चार - बटन खुले थे । मैंने तो सुना था कि आजकल के मौसम में गोवा में सर्दी होती है ।”
“रात को हो जाती है, सर । दिन में फेयर वैदर रहता है ।”
“पेपर में हमारी फर्म के नाम का जिक्र है । तुम्हारी हरकतों की वजह से...”
“आई एम सॉरी, सर, लेकिन...”
“और फर्म का नाम गलत छपा है । आनन्द एण्ड एसोसियेट्स छपा है जबकि आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स छपना चाहिये था ! वन आनन्द हैज बिन ड्राप्ड । दैट्स ए ग्रेव मैटर ।”
“हम अखबार बालों को भूल सुधार के लिए लिखेगे, सर ।”
“यू आर टैलिंग मी ! हम डेफिनिटली लिखेंगे और मांग करेंगे कि...”
“सर, हम ट्रककाल पर बात कर रहे हैं ।”
“हूं । माथुर, मैं अपनी क्लायन्ट की बाबत तुम्हारी रिपोर्ट का इन्तजार कर रहा था ।”
“सर, मै ट्रंककाल लगाने ही वाला था कि आपकी तरफ से काल आ गयी ।”
“लगाने ही क्यों वाले थे ? पहले क्यों न लगाई ?”
“सर, आफिस टाइम में ही तो लगाता । नौ तो अभी बजे ही हैं । दफ्तर तो अभी खुला ही होगा ।”
“फिक्स्ड टाइम काल बुक कराके रखना था ।”
“सर, उसमें पैसा ज्यादा लगता है ।”
“पैसा ज्यादा लगता है ! हूं । तुम्हें याद भी है या नहीं कि सोमवार सुबह साढे दस बजे तुमने हमारी क्लायन्ट मिसेज श्याम नाडकर्णी उर्फ मोहिनी पाटिल के साथ दफ्तर में पहुंचना है ।”
“सर, वो अब मुमकिन नहीं ।”
“क्यों मुमकिन नहीं ? अभी तक तुम उसे तलाश नहीं कर पाये ?”
“नहीं कर पाया, सर, लेकिन वो क्या है कि...”
“मैं कोई बहाना नहीं सुनना चाहता । तुम अपने काम को एफीशेंसी से अन्जाम नहीं दे सके । हमारी क्यायन्ट को ढूंढने के मामूली काम को तुम अन्जाम नहीं दे सके । मुझे अफसोस होता है ये सोचकर कि तुम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स जैसी नामी फर्म के साथ जुड़े हुए हो । तुम्हारी मां सुनेगी तो...”
बिच्छू लड़ जाये कमीने को ! - मुकेश दांत पीसता मन-ही-मन आज ही बुढऊ की अर्थी को कन्धा देना नसीब हो ।
“माथुर ! तुम सुन रहे हो मैं क्या कह रहा हूं ?”
“सुन रहा हूं, सर । सर, आप मेरी भी तो सुनिये । सर, हमारी क्लायन्ट, मोहिनी मर चुकी है । उसका कत्ल हो गया है ।” 
“कत्ल हो गया है ? किसका कत्ल हो गया है ?”
“हमारी क्लायन्ट का । मिसेज नाडकर्णी का । मोहिनी पाटिल का ।”
“लेकिन अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम उसे तलाश नहीं कर पाये थे । अगर तलाश नहीं कर पाये तो ये कैसे मालूम है कि उसका कत्ल हो गया है ?”
“सर, वो क्या है कि उसकी लाश बरामद नहीं हुई है ।”
“लाश बरामद नहीं हुई है । फिर भी निर्विवाद रूप से तुमने ये मान लिया है कि उसका कत्ल हो चुका है । कैसे वकील हो तुम ? क्या तरक्की करोगे तुम जिन्दगी में ? मुझे तो लगता है कि तुम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के ऊंचे नाम को...”
“जहन्नुम रसीद हों सारे आनन्द । कोई न बचे ।”
“क्या कहा ? जरा ऊंचा बोलो । मैं तुम्हें सुन नहीं पा रहा हूं ।”
“सर, मैं कह रहा था कि कल रात को एक बजे मिस्टर ब्रान्डो की एक गैस्ट मिसेज आयशा चावरिया ने एक पब्लिक टेलीफोन काल से पुलिस चौकी पर फोन करके कहा था कि उसने मोहिनी को देखा था । उसने साफ कहा था कि मोहिनी मर चुकी थी, उसे मार डाला गया था...”
“आई सी । फिर वो तुम्हें या पुलिस को या तुम सबको लाश दिखाने लेकर गयी तो लाश गायब पायी गयी ! यही कहना चाहते हो न !”
“नो, सर, वो क्या है कि...”
“तो फिर ये क्यों कहते हो कि लाश बरामद नहीं हुई ?... ओह ! तुम ये कहना चाहते हो कि उस लड़की ने या औरत ने जो कुछ भी वो है, उस आयशा चावरिया ने तुम लोगों को जो लाश दिखाई, वो हमारी क्लायन्ट की नहीं थी ?”
“सर, आयशा ने हमें ये कोई लाश नहीं दिखाई थी...”
“फिर भी कहते हो कि हमारी क्लायन्ट का कत्ल हो गया है ?”
अबे, खरदिमाग बुढऊ, मुझे भी तो कुछ कहने दे ।
“सर, वो लड़की, आयशा, हमें लाश के पास लिवा ले चलने का मौका नहीं पा सकी थी । ऐसी कोई नौबत आने से पहले ही उसका भी कत्ल हो गया था ।”
“क्या !”
“जिस टेलीफोन बूथ से वो पुलिस को काल कर रही थी, वो उसी में मरी पायी गयी थी । किसी ने उसकी छाती में खंजर भौंक दिया था ।”
“किसने ?”
“थ्री मिनट्स आर अप, सर ।” - बीच में आपरेटर की आवाज आयी ।
“वॉट ! आलरेडी ! युअर वाच इज इनकरैक्ट । मैंने तो अभी बात करना शुरु ही किया है...”
“सर, काल एक्सटेंड करना मांगता है ?
“यस । प्लीज एक्सटेंड ।... माथुर ! आर यू देयर ?”
“यस, सर ।”
“मैं कहां था ?”
“आप पूछ रहे थे कि किसने आयशा चावरिया की छाती में खंजर भौंक दिया था ।”
“हां । किसने किया था ऐसा ?”
“पता नहीं ।”
“मालूम किया होता ।”
“सर, मैं जरूर करता लेकिन मैं क्या करूं कल ही मेरे चिराग का जिन्न कैजुअल लीव लेकर चला गया था ।”
“क्या ! क्या कह रहे हो ? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं ।”
“सर, लगता है क्रॉस टॉक फिर शुरु ही गयी है । मैंने तो कुछ भी नहीं कहा ।”
“हूं । उस लड़की का, आयशा का, कत्ल क्यों हो गया ?”
“जाहिर है उसकी जुबान बन्द करने के लिये । जाहिर है इसलिये क्योंकि उसने मोहिनी की लाश देखी थी ।”
“सिर्फ लाश देख ली होने की वजह से...”
“सर, हो सकता है उसने कत्ल होता भी देखा हो । मेरे ख्याल से वो पुलिस चौकी पर फोन करके कातिल की बाबत ही कुछ बताने जा रही थी जबकि कातिल ने उसकी जुबान हमेशा के लिये बन्द करने के लिये उसका कत्ल कर दिया था ।”
“माथुर, मुझे बात को ठीक से समझने दो । अब कितने कत्ल हो गये हैं ? दो या तीन ? तुम कहते हो तीन । एक उस हाउसकीपर का जो कि मोहिनी पाटिल के धोखे में मारी गयी, दूसरा उस... उस आयशा सरवरिया का...”
“चावरिया, सर ।”
“....जो कि कातिल की बाबत पुलिस की खबर देने की कोशिश में मारी गयी । और तुम्हारा रौशन ख्याल ये है कि मोहिनी पाटिल का भी कत्ल हो चुका है ।”
“सर, आयशा चावरिया ने फोन पर साफ ऐसा कहा था ।”
“लेकिन उसकी लाश पता नहीं कहां है ? राइट ?”
“राइट, सर । सर, वो बेचारी, वो आयशा, लाश की बाबत कुछ बता पाती इससे पहले ही तो उसका कत्ल हो गया ।”
“पुलिस क्या कर रही है ? वो क्या लाश की तलाश की बाबत कुछ नहीं कर रहीं !”
“कर रही है, सर । लेकिन यहां स्टाफ की बहुत कमी है । चौकी इंचार्ज सब-इंस्पेक्टर को छोड़कर सिर्फ चार ही आदमी हैं यहां इसलिये...” 
“आई अन्डरस्टैण्ड । आई वैल अन्डरस्टैण्ड । हर किसी को काम न करने का बहाना चाहिये इस मुल्क में । मोहिनी की लाश तलाश कर लेगी ?”
“आखिरकार तो कर ही लेगी, सर । लाश कोई छुपने वाली चीज तो नहीं ।”
“कब कर लेगी ? इसी कैलेंडर इयर में कर लेगी ?”
“सर, वो क्या है कि...”
“लाश बरामद होना जरूरी है । नहीं होगी तो जानते हो क्या होगा ?”
“जानता हूं, सर ।”
“नहीं जानते हो फिर जैसे पहले सात साल मोहिनी को श्याम नाडकर्णी का कानूनी वारिस बनने में लगे, अब ऐसा ही सात साल लम्बा इन्तजार मोहिनी को कानूनी तौर पर मृत घोषित करने के लिये करना होगा ।”
“सर, क्या मोहिनी की कोई वसीयत उपलब्ध है ?”
“है तो हमें उसकी खबर नहीं ।”
“उसका वारिस कौन होगा ?”
“हमें नहीं मालूम । हमें न उसकी वसीयत के जरिये उसके किसी वारिस की खबर है और न उसकी किसी रिश्तेदारी के जरीये । मोहिनी की फैमिली की हमें कोई वाकफियत नहीं । ऐसी कोई वाकफियत हमने कभी जरूरी भी नहीं समझी । अब खामखाह केस में पेचीदगी पैदा हो गयी । कितने अफसोस का बात है कि हमारी सूचना के अनुसार मोहिनी वहां पहुंची भी, फिर भी तुम उससे सम्मर्क न साध सके । तुमने उसे कत्ल हो जाने दिया ।”
“सर, मैं भला कैसे...”
“माई डियर ब्याय, आई एम नाट हैपी युअर वर्क । तुम एक सिम्पल काम को अन्जाम न दे सके । तुम्हारी जगह मैं फर्म के एक मामूली क्लर्क को भेज देता तो अच्छा होता...”
“खुद चला आता तो वाह-वाह हो जाती । बाकी दो आनन्दों को भी ले आता तो आनन्द ही आनन्द होता ।”
“क्या ! माथुर मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा ।”
“मेरी में भी नहीं आ रहा, सर । क्रॉस टॉक पर हमारी बातें सुनकर जो कमीना बीच में बोल रहा है, वो साफ नहीं बोल रहा ।”
“मुझे तो कुछ और ही शक हो रहा है ?”
“और क्या, सर ?”
“थ्री मिनट्स अप सर ।” - बीच में आपरेटर की आवाज आयी ।
“यस, थैंक्यू । माथुर, जो मैं कह रहा हूं, जल्दी से सुनो और नोट करो । हमारी क्लायन्ट की लाश का पता लगाओ और रिपोर्ट करो । आइन्दा पेपर में अधनंगी या थ्री क्वार्टर नंगी लड़कियों के साथ तुम्हारी तस्वीर न छपे । फर्म की बाबत पेपर में कुछ छपे तो फर्म का नाम ठीक छपे । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड...”
लाइन कट गयी ।
मुकेश लाउन्ज में पहुंचा । वहां मेजबान और उसके मेहमानों के अलावा सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और पणजी से आया इंस्पेक्टर सोलंकी भी मौजूद था ।
मुकेश ने सबका अभिवादन किया जिसका कि किसी ने भी जवाब न दिया । उस घड़ी सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा विकास निगम से मुखातिब था और सबकी तवज्जो उन्हीं दोनों की तरफ थी ।
“मिस्टर निगम” - फिगुएरा कह रहा था - “कल रात यहां जो हवलदार ग्रीन हाउस की निगरानी के लिये तैनात था, उसने आपको देखा था । उसका कहना है कि आप दबे पांव चोरों की तरह यहां से बाहर निकले थे ।”
“उसको वहम हुआ है ।” - निगम बोला - “मुझे ऐसा कुछ करने की क्या जरूरत थी ?”
“आप बताइये ।”
“कोई जरूरत नहीं थी ।”
“आप खामोशी से यहां से बाहर नहीं निकले थे ?”
“इंस्पेक्टर साहब, रात के वक्त जबकि सब लोग सोने की तैयारी में हों या सो चुके हों तो खामोशी से ही बाहर निकला जाता है, न कि भांगड़ा नाचते हुए और गाना गाते हुए ।”
“मजाक न कीजिये । आपके यूं खिसकने की वजह से हमारे आदमी को यहां की ड्यूटी छोड़कर आपके पीछे लगना पड़ा ।”
“उस बात का तो मुझे सख्त अफसोस है । अगर वो शख्स यहीं टिका रहा होता तो उसने यकीनन आयशा को यहां से निकलते देखा होता । मेरी जगह वो उसके पीछे लगा होता तो इस घड़ी आयशा हमारे बीच जिन्दा मौजूद होती । कहिये कि मैं गलत कह रहा हूं ।”
फिगुएरा सकपकाया, उसने सोलंकी की तरफ देखा ।
“आपको मालूम था” - सोलंकी बोला - “कि कल रात आपके पीछे कोई था और वो कोई पुलिस का आदमी था फिर भी आपने उसके साथ लुका-छिपी का खेल खेला और उसे डाज देकर कहीं खिसक गये ।”
“क्यों था वो मेरे पीछे ? मैं क्या कोई मुजरिम हूं । किसी की भैंस चुराई है मैंने ? पुलिस वाला हो या काला चोर, मैं पसन्द नहीं करता कि कोई मेरे पीछे लगे, कोई मेरी निगाहबीनी करे ।”
“इसलिये आप रात अन्धेरी सड़कों पर सौ से ऊपर की रफ्तार से गाड़ी चला रहे थे ।”
“अगर ये सारी चखचख मेरा स्पीडिंग का चालान काटने की खातिर है तो मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं और जुर्माना भरने को तैयार हूं ।”
“आपने अपनी विदेशी कार की ताकत का नाजायज फायदा उठाया वर्ना आप हमारे आदमी से पीछा न छुड़ा पाये होते ।”
निगम हंसा ।
“मर्दों वाली कार है ।” - वो बोला - “कोई मर्द होगा तो समझेगा न कि...”
“मिस्टर निगम !”
“विकी !” - सुनेत्रा बोली - “भगवान के लिये संजीदा हो जाओ । ये पुलिस इंक्वायरी है, कोई मजाक नहीं । इनके सिर कातिल को गिरफ्तार करने की गम्भीर जिम्मेदारी है ।”
“तो करें गिरफ्तार कातिल को । निभायें अपनी जिम्मेदारी । मेरे पीछे क्यों पड़े हैं । अपनी नयी कार के शौक में रात को मैं जरा ड्राइव पर निकल गया तो आफत आ गयी ! इसके अलावा और क्या किया है मैंने ?”
“आप बताइये, आपने और क्या किया है ?” - सोलंकी बोला ।
“मैंने और कुछ नहीं किया ।”
“अपनी कार में आप अकेले थे ?”
“हां ।”
“वापिस भी अकेले ही लौटे थे ?”
“हां ।”
“दोनों वक्फों के बीच रास्ते में कोई मिला हो ?”
“न ।”
“हमारे पास पक्की खबर है कि कार में कोई था आपके साथ । पिछली रात पायर के पास आपकी कार में आपके साथ किसी को देखा गया था ।”
“मेरे साथ कोई नहीं था ।”
“आपकी बीवी भी नहीं जो शायद यहीं से आपके साथ गयी हो ? आपकी नई इम्पोर्टेड कार पर ड्राइव के लिये ?”
“नहीं ?”
“आपका भी” - सोलंकी सुनेत्रा की तरफ घूमकर बोली - “ये ही जवाब है ?”
“मैं” - सुनेत्रा बोली - “ड्राइव पर इनके साथ नहीं गयी थी ।”
“रात को ये यहां से बाहर निकले थे, इसकी खबर आपको है ?”
“हां । सवा बारह बजे के करीब जब मैं सोने की तैयारी कर रही थी तो इन्होंने कहा था कि ये जरा टहलने के लिये बीच पर जा रहे थे । ये वापिस कब लौटे, मुझे नहीं पता । आज आपके यहां पहुंचने पर ही मुझे मालूम हुआ कि ये टहलने नहीं” - उसने शिकायतभरी निगाहों से अपने पति की ओर देखा - “ड्राइव पर गये थे । अपनी नयी कार लेकर यहां से निकले थे ।”
“आई सी । मिस्टर निगम; आपकी अभी भी यही जिद है कि न किसी को आप यहां से साथ लेकर गये थे और न किसी को आपने रास्ते में लिफ्ट दी थी ?”
“ये हकीकत है ।” - निगम बोला - “आई स्वियर ।”
“कितना अरसा आप यहां से बाहर रहे थे ?”
“ठीक से अन्दाजा नहीं । शायद एक-डेढ घण्टा ।”
“मोहिनी पाटिल से वाकिफ हैं आप ?”
“क्यों पूछ रहे हैं ?”
“जवाब दीजिये ।”
“मेरे से ही क्यों पूछ रहे है...”
“विकी !” - सुनेत्रा ने फरियाद की - “प्लीज !”
“...और भी तो लोग हैं यहां । उनसे तो कोई सवाल नहीं कर रहे आप ? मैं रात को अपनी गाड़ी लेकर ड्राइव पर क्या निकल गया कि मैं विकास निगम न हुआ अमरीश पुरी हो गया, शक्ति कपूर हो गया, प्रेम चोपड़ा हो गया...”
“आप हवालात में बन्द होना चाहते हैं ?” - सोलंकी कहर-भरे स्वर में बोला ।
“क... क्या !”
“क्या आप लेडीज के सामने बड़े समार्ट बनकर दिखा रहे हैं । लाकअप में बन्द होंगे तो आपकी स्मार्टनैस देखने वाला वहां कोई नहीं होगा । अब जल्दी फैसला कीजिये कि आप एक कत्ल की पुलिस इंक्वायरी से यहीं दो-चार होंगे या मैं आपको चौकी तक घसीटता हुआ ले के चलूं ?”
“विकी !” - सुनेत्रा चेतावनीभरे स्वर में बोली - “फार गॉड सेक, बिहेव ।”
“ओके !” - निगम बोला - “ओके । आई एम विद यू, बॉस ।”
“दैट्स बैटर ।” - सोलंकी बोला - “नाओ पे अटेंशन टु वाट आई से ।”
“यस, सर ।”
“यहां रीयूनियन पार्टी में शामिल लोगों का कहना है कि इनमें से किसी ने भी पिछले सात साल से मोहिनी पाटिल को नहीं देखा था - सिवाय आपकी बीवी के जो कि कल बहुत सुबह-सवेरे तब मोहिनी से मिली थी जबकि वो चोरों की तरह चुपचाप यहां से खिसक रही थी । मेरा आपसे सवाल ये है कि क्या आप पिछले सात सालों में कभी मोहिनी से मिले थे ?”
नहीं ।”
“वाकिफ तो आप थे न उससे ?”
“हां, वाकिफ तो था । जिन दिनों ब्रान्डो की बुलबुलों ने फारेन गारमैंट्स के फैशन शोज के जरिये सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी, उन दिनों सुनेत्रा ने ही मुझे उससे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
“वो इन्ट्रोडक्शन दोस्ती में या गहरी दोस्ती में तब्दील हो पायी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“कोतवाल साहब” - उसने अपनी बीवी की ओर संकेत किया - “की वजह से ।”
“यानी कि ये वजह न होतीं तो आप तो काफी आगे बढ गये होते ।”
“ये भी कोई कहने की बात है ! तब मैं मोहिनी के साथ ही क्यों, बाकी बुलबुलों के साथ भी काफी आगे बढ गया होता । सुनेत्रा ने आखिर मुझे सबसे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
सुनेत्रा के माथे पर बल पड़े, फिर वो जबरन मुस्कराती हुई बोली - “मजाक कर रहे हैं ।”
“सात साल पहले की उस पार्टी में, जिसमें कि दुर्घटनावश नाडकर्णी अपनी जान खो बैठा था, अपनी बीवी के साथ आप भी शामिल थे ?”
“हां । लेकिन तब अभी सुनेत्रा मेरी बीवी नहीं बनी थी । हमारी शादी उस पार्टी के बाद सर्दियों में हुई थी ।”
“उस पार्टी में आप मोहिनी से मिले थे ?”
“हां । जाहिर है ।”
“और वो मोहिनी से आपकी आखिरी मुलाकात थी ? तब से आज तक आपने मोहिनी की सूरत नहीं देखी ? राइट ?”
“राइट ।” - निगम बोला, फिर एकाएक वो एक अबोध बालक की तरह मुस्कराया । एक उस मुस्कराहट से ही उसकी सारी शख्सियत में ऐसी इंकलाबी तब्दीली आयी कि मुकेश भी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सका । शायद अपनी ऐसी ही खूबियों से पिछले सात साल से वो अपनी बीवी को मन्त्रमुग्ध किये था - “अब आप अगर इजाजत दें तो मैं बाहर जाकर टयोटा-टयोटा खेल आऊं ?”
जवाब में सोलंकी ने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया और रोशन बालपाण्डे की तरफ आकर्षित हुआ ।
“मिस्टर बालपाण्डे, आप बताइये, आप वाकिफ थे मोहिनी से ?”
“हां ।” - वो सावधान स्वर में बोला ।
“बाकी लड़कियों से भी ?”
“हां । बाकी लड़कियों से भी ।”
“कहां मिले थे ?”
“खण्डाला में । वहां हमारी फैमिली लॉज है जो उन दिनों खाली पड़ी थी । लड़कियां पूना में शो के लिये इकट्ठी हुई थीं । मैंने सबको ओवरनाइट पार्टी के लिये खण्डाला अपनी लॉज पर इनवाइट किया था ।”
“आपने इनवाइट किया था ! मालदार आदमी हैं आप ?”
“हमारा कपड़े का सौ साल पुराना बिजनेस है ।” - वो गर्व से बोला - “पूना, अहमदाबाद और सूरत में मिलें हैं ।”
“तभी तो आप अपनी कम-उम्री में भी हिल स्टेशन पर ग्रैंड पार्टियां देना अफोर्ड कर सकते थे ।”
“मिस्टर ब्रान्डो जितनी ग्रैंड नहीं ।” - उसने तारीफी निगाहों से खामोश बैठे ब्रान्डो की तरफ देखा - “ही इज पास्टमास्टर ऑन सच थिंग्स । इनसे बढिया पार्टी तो कोई तेल के कुओं का मालिक अरबी सुलतान ही दे सकता है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।” - ब्रान्डो बड़े शिष्ट भाव से मुस्कराता हुआ बोला ।
“बात तो ऐसी ही है लेकिन ये आपका बड़प्पन है कि आप कह रहे हैं कि ऐसी कोई बात नहीं ।”
“क्या पार्टी थी वो भी !” - शशिबाला स्वप्निल स्वर में बोली ।
“तब हम” - सुनेत्रा बोली - “सब ताजी-ताजी बालिग हुई थीं और ग्लैमर की चकाचौंध से हमारा वास्ता बस पड़ा ही था, इसलिये भी वो पार्टी यादगार थी ।”
“नौजवानी भी” - फौजिया आह-सी भरकर बोली - “क्या दिलफरेब चीज होती है ! एक बार चली जाये तो लौटकर नहीं आती ।”
“काश !” - टीना बोली - “हम सब फिर षोडषी बालायें बन सकें ।”
“सत्तरह तक भी चलेगा ।” - आलोका बोली ।
“लैट्स कम टु दि प्वायन्ट ।” - सोलंकी वार्तालाप का सूत्र फिर अपने हाथ में लेता हुआ बोला - “मिस्टर बालपाण्डे, क्योंकि ब्रान्डो की बुलबुलें कहलाने वाली लड़कियों में से ही एक से आपने शादी की थी इसलिये बाद में भी आपका बाकी लड़कियों से सम्पर्क बना रहा होगा ?”
“हां ।”
“मोहिनी से भी ?”
“हां । वो क्या है कि तब तक अभी मेरा आलोका में कोई स्पेशल इन्टरेस्ट नहीं बना था ।”
“क्योंकि” - आलोका व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “मैंने तुम्हें जरा देर से देखा था, मोहिनी ने तुम्हें पहले देख लिया था ।”
“वो बात नहीं । बहरहाल ये हकीकत है कि पूना वाले शो के बाद जब शो बम्बई मूव कर गया था तो वहां मेरी मोहिनी से चन्द मुलाकातें हुई थीं लेकिन उसने मेरे में कोई खास दिलचस्पी नहीं ली थी । फिर तभी बड़ा खलीफा श्याम नाडकर्णी बीच में आ टपका था और फिर मेरे जैसे कॉलेज के नातजुर्बेकार छोकरे के लिये उसकी जिन्दगी में कोई जगह नहीं रही थी ।”
“आप मिस्टर ब्रान्डो की उस पार्टी में शामिल थे, जिसमें कि नाडकर्णी की मौत हुई थी ?”
“नहीं ।”
“तो फिर आलोका आपको दोबारा कब मिली थी ?”
“शुरुआती मुलाकात के तीन साल बाद । बम्बई में । वहीं मैंने इससे शादी की थी और फिर पूना जाकर अपने बिजनेस में सैटल हो गया था ।”
“जैसे इत्तफाक से तीन साल बाद आपकी आलोका से दोबारा मुलाकात हो गयी, वैसी कभी मोहिनी से न हुई ?”
“हुई । एक बार हुई ।”
“कब ? कहां ?”
“कोई तीन साल पहले । आलोका से मेरी शादी के कुछ ही महीने बाद । सूरत में मिली थी वो मुझे जहां कि मैं अपने बिजनेस के सिलसिले में गया था ।”
उस रहस्योद्घाटन से तमाम श्रोताओं में उत्तेजना की लहर दौड़ गई ।
“तो” - ब्रान्डो मन्त्रमुग्ध-सा बोला - “आखिरकार किसी को मोहिनी मिली थी ।”
“हां ।” - बालपाण्डे ने दोहराया - “मुझे मिली थी । बोला न ।”
“जरूर ये बात तुमने अपनी बीवी से छुपाकर रखी होगी ?”
“नहीं तो । मैंने तो पूना से लौटते ही इसे बताया था कि सूरत में मुझे मोहिनी मिली थी ।”
“माई हनी चाइल्ड ।” - ब्रान्डो सख्त शिकायत-भरे लहजे में आलोका से सम्बोधित हुआ - “तुमने इतनी अहम बात हमसे छुपाकर रखी । हम हर रीयूनियन पार्टी में मोहिनी के बारे में सोचते रहे, बातें करते रहे, फिक्रमन्द होते रहे, इस फानी दुनिया में उसकी सलामती की दुआयें मांगते रहे फिर भी तुमने कभी ये नहीं बताया कि तुम्हारा हसबैंड मोहिनी से मिला था ?”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?” - आलोका बोली - “मैंने जरूर बताया होगा ।”
“नहीं बताया, हनी । बताया होता तो ये क्या कोई भूलने वाली बात थी ।” - फिर वो बालपाण्डे की तरफ घूमा और बड़े व्यग्र भाव से बोला - “तो वो तुम्हें सूरत में मिली थी ?”
“हां । वहां वैशाली सिनेमा की लॉबी में इत्तफाक से वो मुझे दिखाई दे गयी थी ।”
“वो वहां क्या कर रही थी ?”
“जाहिर है कि” - टीना बोली - “सिनेमा देखने जा रही थी ।”
“टीना !” - सुनेत्रा बोली - “चुप रह । रोशन को अपनी बात कहने दे ।”
“मैं बस जरा-सी देर के लिये उससे मिला था ।” - रोशन बालपाण्डे बोला - “कोई खास बात तो हो नहीं पायी थी । बस, पूरा वक्फा वो तुम लोगों की बाबत ही सवाल करती रही थी ।”
“तुमने उससे कोई सवाल नहीं किया था” - ब्रान्डो बोला - “कि इतने सालों से वो कहां गायब थी ?”
“वो जल्दी में थी और...”
“फिल्म देखने की जल्दी में थी ?” - टीना बोली ।
“और क्या ?” - सुनेत्रा उत्सुक भाव से बोली ।
“सच बात ये है कि वो मेरे से मिलकर कोई खास राजी नहीं हुई थी । मुझे तो ये तक महसूस हुआ था कि मुझे देखकर उसने लॉबी की भीड़ में गुम हो जाने की कोशिश की थी । वो तो मैं ही जोश में लपककर उसके सामने जा खड़ा हुआ था । मेरे किसी भी सवाल का जवाब उसने अगले रोज लंच पर मिलने का वादा करके टाल दिया था । हमने ‘ओयसिस’ में लंच अप्वायन्टमेंट फिक्स की थी लेकिन अगले रोज वो वहां पहुंची ही नहीं थी ।”
“धोखा दे गयी ?”
“यही समझ लो । तब मुझे लगा था कि असल में उसकी मेरे से दोबारा मिलने की कोई मर्जी थी ही नहीं । उसने महज मेरे से पीछा छुड़ाने के लिये उस अप्वायन्टमैंट के लिये हामी भर दी थी ।”
“ओह !”
“मेरे जेहन में बहुत सवाल थे जो मैं उससे पूछना चाहता था लेकिन नौबत ही न आयी तरीके से कुछ पूछने की । वहां ‘वैशाली’ की लॉबी में मैं उसकी बाबत उससे एक सवाल पूछता था तो उसका जवाब देने की जगह वो बदले में मेरे से तीन सवाल मेरी और आलोका की बाबत कर देती थी, आप लोगों की बाबत कर देती थी ।”
“फिर क्या फायदा हुआ उस मुलाकात का ?” - ब्राण्डो बड़बड़ाया ।
“कोई फायदा न हुआ ।” - बालपाण्डे ने कबूल किया - “उसने तो मुझे ये तक न बताया कि वो वहां सूरत में कर क्या रही थी ? फिर भी जिद करके पूछा तो वही कह दिया जो अभी टीना ने कहा था ।”
“सिनेमा देखने जा रही थी’ ?” - टीना बोली ।
“हां ।”
“कमाल है ।”
“अच्छा, ये तो बताओ” - शशिबाला बोली - “कि तब देखने में कैसी लगती थी वो ?”
“अब क्या बताऊं ?” - बालपाण्डे हिचकिचाता-सा बोला ।
“क्यों ? क्या हुआ ?”
“एक फिकरे में कहूं तो उजड़ी हुई लग रही थी । इसीलिये एकबारगी तो मैंने उसे पहचाना भी नहीं था ।”
“क्या कह रहे हो !” - शशिबाला अविश्वासपूर्ण स्वर में बोली ।
“मैं ठीक कह रहा हूं ।”
“लेकिन अभी कल सुबह जब सुनेत्रा ने उसे देखा था तो... सुनेत्रा तू ही बता न ?”
“मैं पहले ही बता चुकी हूं ।” - सुनेत्रा बोली - “मुझे तो कल सुबह वो ऐन वैसी ही लगी थी जैसी वो सात साल पहले थी । बल्कि पहले से ज्यादा हसीन, ज्यादा दिलकश लगी थी । फर के सफेद कोट में तो वो कोई महारानी लग रही थी ।”
“हसीन वो तब भी लग रही थी” - बालपाण्डे बोला - “दिलकश भी लग रही थी लेकिन वैसे ही जैसे किसी राजमहल का खंडहर लगता है ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? तुम जरूर बात को बढा-चढाकर कह रहे हो ।”
“या तुम मोहिनी से मिले ही नही थे ।” - फौजिया बोली - “तुम किसी और ही से मिले थे जिसे कि तुम मोहिनी समझ बैठे थे ।”
“वॉट नानसेंस ! कोई और मुझे कैसे जानती हो सकती थी ? मिस्टर ब्रान्डो को कैसे जानती हो सकती थी ? तुम सबको कैसे जानती हो सकती थी ? तुम में से एक-एक का नाम कैसे जानती हो सकती थी ?”
फौजिया से जवाब देते न बना । वो तत्काल परे देखने लगी ।
“कहीं वो बीमार तो नहीं थी ?” - टीना बोली ।
“बीमार ?”
“कैंसर । लाइक जया भादुड़ी इन मिली । ऑर राजेश खन्ना इन आनन्द ! नो ?”
“नो ।” - जवाब पुरजोर लहजे में सुनेत्रा ने दिया - “जो लड़की कल सुबह ताजे खिले गुलाब जैसी तरोताजा यहां मौजूद थी, उसे कैंसर नहीं हो सकता । होता तो वो अब तक कब की ऊपर पहुंच चुकी होती ।”
“तो क्या बात थी ?”
“वो बीमार नहीं लग रही थी ।” - बालपाण्डे बोला - “वो तो... वो तो बस थकी-हारी, हलकान, हैरान-परेशान, बुझी-बुझी-सी लग रही थी । कितनी सज-धज के साथ रहने की आदी थी वो लड़की ! उम्दा पोशाक ! बढिया जेवर ! लेटेस्ट हेयर स्टाइल ! पर्फेक्ट मेकअप । कितना ज्यादा ख्याल रखा करती थी वो अपनी अपीयरेंस का ! लेकिन तब ? तब वो ऐसी लग रही थी जैसे अभी सो के उठी हो और सीधे बिस्तर से निकल कर चली आयी हो ! कोई परवाह ही नहीं मालूम होती थी उसे अपनी शक्ल-सूरत की या पोशाक की ।”
“अपने आपसे इतनी लापरवाह क्योंकर हो हयी वो ?” - शशिबाला बोली ।
“हम लोग एक बात भूल रहे हैं ।” - ब्रान्डो बोला ।
सबकी निगाहें ब्रान्डो की तरफ उठ गयीं ।
“वो विधवा थी ।”
“तो क्या हुआ ! ये कोई मानने वाली बात है कि इतने सालों बाद तक भी वो अपने स्वर्गवासी पति का मातम ही मना रही थी ?”
“ऐसी बातों से बाज लड़कियों का दिल बुझ जाता है ।”
“वो बाज लड़की नहीं थी । वो खास लड़की थी । वो हममें से एक थी । वो हम जैसी थी । जैसे हम अपने आपको जानती हैं, वैसे हम मोहिनी को जानती थीं ।”
“हां ।” - फौजिया बोली - “तीन साल से भी ऊपर हो चुकने तक वो अपने जन्नतनशीन खाविन्द के लिये सोगवार हो, ये मोहिनी की फितरत से मेल नहीं खाता ।”
“और सौ बातों की एक बात ।” - सुनेत्रा बोली - “कल जब मैंने उसे देखा था, तब वो ऐसी नहीं थी । सात साल पहले की अपनी ट्रेजेडी को वो जरूर नहीं भूली थी, उस बाबत जज्बाती भी वो बहुत हुई थी लेकिन डैडियो, उसके लिये तुम्हारे सोचे विधवा वाले रोल में वो कहीं फिट नहीं हो रही थी । उसकी उस घड़ी की चमक-दमक तो ऐसी थी कि अच्छी-भली औरत उसके पहलू में खड़ी होती तो वो विधवा लगने लगती । उसने हम लोगों के जज्बात का ख्याल किया जो यहां आ कर भी चुपचाप चली गयी, वो अपनी जिन्दगी में अपने-आपको आदर्श भारतीय नारी के अन्दाज से परम्परागत विधवा कबूल कर चुकी होती तो इधर का रुख ही न करती । आखिर पिछली छः बार से भी तो वो तुम्हारे रीयूनियन पार्टी के न्योते को नजरअन्दाज कर रही है ।”
“तुम एक बात भूल रही हो ।” - शशिबाला बोली - “वो सिर्फ रीयूनियन पार्टी में शामिल होने के लिये ही यहां नहीं आयी थी, बकौल ब्रान्डो, उसे यहां और भी काम था, कोई और ऐसा जरूरी काम था जिसे करने में उसके बारह-तेरह घण्टे खर्च हुए थे ।”
“हां ।” - ब्रान्डो बोला - “क्या काम होगा उसे ? क्यों साहबान ?” - वो दोनों पुलिस अधिकारियों से सम्बोधित हुआ - “ईस्ट एण्ड से कुछ जाना आपने ? आप वहां मोहिनी की बाबत तफ्तीश करने वाले थे ?”
“ये अभी तक यहीं हैं ?” - टीना बोली ।
“हां ।” - सुनेत्रा बोली - “और हम सब इनके सामने अन्धाधुन्ध मुंह फाड़ रहे हैं । पता नहीं क्या कुछ कह दिया हम लोगों ने जो ये गांठ बांध चुके होंगे ।”
“हमारा पुलिस से कोई छुपाव नहीं है ।” - ब्रान्डो बोला - “हम इनकी तरफ हैं । कातिल को पकड़वाने के मामले में हम इनकी हर मुमकिन मदद करने को तैयार हैं ।”
“वुई एप्रीशियेट द स्पिरिट, सर ।” - सोलंकी बोला ।
“लेकिन मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला । कल आप कह रहे थे कि आप सब मालूम कर लेंगे कि मोहिनी को ईस्टएण्ड पर कहां काम था, किससे काम था, कितनी देर तक काम था वगैरह...”
“हमें उस लाइन पर तफ्तीश करने का अभी मौका नहीं मिला ।” - सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा बोला - “हमारे पास स्टाफ की कमी है ।”
“तो और स्टाफ मंगाओ, भई । आखिर पणजी से ये इंस्पेक्टर साहब भी तो आये हैं ।”
“हम करेंगे कुछ इस बाबत ।” - सोलंकी बोला ।
“अभी तो आपको मोहिनी की लाश तलाश करने के लिये भी आदमी चाहियें । फिर...”
तभी एक हवलदार वहां पहुंचा । ब्राण्डो की तरफ से तवज्जो हटाकर दोनों पुलिस अधिकारियों ने उसकी तरफ देखा ।
“साहब !” - हवलदार बोला - “कुएं से सामान निकाल लिया गया है ।”
“कुएं से ?” - ब्राण्डो हकबकाया-सा बोला - “कुएं की तलाशी आप कल ले तो चुके थे ।”
“आज फिर उसमें आदमी उतारा गया था ।” - फिगुएरा सहज भाव से बोला ।
“आज फिर क्यों ?”
फिगुएरा ने उत्तर न दिया ।
“आज क्या मिला वहां से ?” - ब्राण्डो ने पूछा ।
“पता नहीं । देखने पर पता चलेगा ।”
“तफ्तीश का सिलसिला” - सोलंकी बोला - “थोड़ी देर के लिये मुल्तवी किया जा रहा है । आप लोग बरायमेहरबानी एस्टेट में ही रहें, कहीं बाहर न जायें, कहीं दूर न निकल जायें ।”
“हम यहां गिरफ्तार हैं ?” - फौजिया बोली ।
“गिरफ्तार नहीं हैं, मैडम, लेकिन यहां से एकाएक कूच कर जाने की मंशा रखने वाले को गिरफ्तार किया जा सकता है । सो देअर ।”
फिर तत्काल दोनों पुलिस आधिकारी वहां से रुख्सत हो गये ।
***
ग्यारह बजे ब्रेकफास्ट हुआ जिसके बाद टीना और मुकेश टहलते हुए मैंशन के पिछवाड़े में ब्राण्डो के प्राइवेट बीच की ओर निकल गये ।
उस घड़ी कुएं के करीब कोई नहीं था ।
ⳕ”क्या बरामद हुआ होगा ?” - टीना सस्पेंसभरे स्वर में बोली ।
“पता नहीं ।” - मुकेश बोला - “लेकिन पता चल जायेगा ।”
“कोई खास ही चीज बरामद हुई होगी जो वो पुलसिये अभी तक खामोश हैं ।”
“या बहुत खास या निहायत मामूली । जिक्र न करने के काबिल ।”
“ये कैसे हो सकता है ? कोई आधी रात के बाद चोरों की तरह कुएं तक पहुंचा तो उसमें कोई मामूली, जिक्र न करने के काबिल, चीज फेंक कर गया ?”
“वो चीज फेंकने वाले के लिये अहम होगी, बरामद करने वाले के लिये अहम नहीं होगी । बहरहाल इस बाबत जो होगा, सामने आ जायेगा ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया और फिर बोली - “तुम्हारे ख्याल से मोहिनी की लाश बरामद हो जायेगी ?”
“हो ही जानी चाहिये !”
“उसके हसबैंड की तो आज तक बरामद न हुई ।”
“उसकी लाश को तो तुम लोग बताते हो कि समुद्र लील गया था । लेकिन मोहिनी के साथ तो ऐसा नहीं हुआ । आयशा ने उसकी लाश देखी थी, तभी तो उसने चौकी पर फोन किया था ।”
“उसे खबर कैसे लगी होगी मोहिनी की लाश की ? पता कैसे लगा होगा, या सूझा कैसे होगा उसे कि फलां जगह मोहिनी की लाश पड़ी थी ?”
“शायद मोहिनी ने ही किसी तरीके से आयशा से सम्पर्क साधा हो और उससे कोई मदद मांगी हो और फिर उसे मुलाकात के लिये कहीं बुलाया हो । आयशा वहां लेट पहुंची होगी । वहां मोहिनी का कत्ल पहले ही हो चुका होगा ।”
“ओह !”
“ये आयशा तुम लोगों के मुकाबले में मोहिनी की ज्यादा सहेली थी ?”
“ऐसी तो कोई बात नहीं थी अलबत्ता आयशा में ही कोई ऐसी खूबी जरूर थी कि हममें से किसी को किसी मदद या सलाह की जरूरत होती थी तो हम उसी से बात करती थीं । इसीलिये मोहिनी ने ऐसा किया होगा ।”
“मोहिनी से तुम्हारी कैसी बनती थी ?”
“वैसी ही जैसी बाकी बुलबुलों की बनती थी ?”
“मुलाकात ब्राण्डो के सौजन्य से ही हुई थी या तुम पहले से एक-दूसरे से वाकिफ थीं ?”
“पहले से वाकिफ थीं । अलबत्ता जान-पहचान निहायत मामूली थी । वो क्या है कि उन दिनों हम दोनों ही कुछ बन जाने जाने की फिराक में फिल्म प्रोड्यूसरों के दफ्तरों के, स्टूडियोज के, विज्ञापन एजेन्सियों के दफ्तरों वगैरह के चक्कर लगाया करती थीं । लिहाजा कहीं-न-कहीं टकराव हो ही जाता था ।”
“ऐसे चक्कर कहां लगते थे ?”
“बम्बई में ?”
“तुम बम्बई की रहने वाली हो ?”
“हां ।”
“मोहिनी भी ?”
“नहीं । वो बड़ोदा से थी ।”
“उसकी फैमिली के बारे में कुछ जानती हो तुम ?”
“न । कतई कुछ नहीं जानती मैं ।”
“वो कभी जिक्र नहीं करती थी अपनी फैमिली का ? मां-बाप का ? किसी भाई का ? बहन का ? किसी और करीबी रिश्तेदार का जो कि उसका वारिस होने का दावेदार बन सके ?”
“नहीं करती थी । मुझे तो लगता है कि वो कोई अनाथ लड़की थी ।”
“दख्ल दौलत का हो तो अनाथों के नाथ निकल आते हैं । जरा इस बात को आम हो लेने दो कि मोहिनी ढाई-करोड़ की रकम की स्वामिनी बनकर मरी थी, फिर देखना ऐसे-ऐसे सगे वाले निकल आयेंगे उसके जिनका कि अपनी जिन्दगी में उसने कभी नाम भी नहीं सुना होगा ।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि ये खबर पहले ही आम हो चुकी थी और किसी ने मोहिनी का वारिस बनकर इस रकम पर काबिज होने के लिये उसका खून कर दिया था ।”
“यानी कि बुलबुलों में से ही कोई उसकी करीबी या दूर-दराज की रिश्तेदार है ?”
“वो कैसे ?”
“भई कत्ल का शक तो यहां मौजूद लोगों में से ही किसी पर किया जा रहा है ।”
“ओह ! नहीं, नहीं । हमारी उससे कोई रिश्तेदारी नहीं ।”
“तुम अपने बारे में ऐसा कह सकती हो । औरों की गारण्टी कैसे कर सकती हो ?”
“ऐसा कहीं होता है ? पूरे तीन साल हमने साथ गुजारे फिर भी हमें पता न लगा हो कि हममें से कोई मोहिनी की किसी तरीके से रिश्तेदार भी थी, ऐसा कहीं हो सकता है ? ऐसी बात कहीं छुपती है ? ऐसी बात का जिक्र तो आके रहता है किसी न किसी तरीके से ।”
“श्याम नाडकर्णी से कैसे शादी कर ली थी उसने ?”
“बस, कर ली थी ।”
“कितनी उम्र का आदमी था वो शादी के वक्त ?”
“यही कोई तीस बत्तीस का ।”
“फिर तो नौजवान ही हुआ ।”
“हां ।”
“और मोहिनी की क्या उम्र थी तब ?”
“वो तब अभी मुश्किल से बीस की हुई थी ।”
“शक्ल-सूरत, तन्दुरुस्ती वगैरह में, पर्सनैलिटी वगैरह में कैसा था ये श्याम नाडकर्णी ?”
“मामूली ! सब मामूली ।”
“तो फिर गैर-मामूली क्या था जिसका मोहिनी ने रोब खाया ?”
“उसका ताजा-ताजा बाप मरा था जिसकी ढेरों दौलत का वो इकलौता वारिस था ।”
“बस, यही सोल क्वालीफिकेशन थी नाडकर्णी की शादी के मामले में ?”
“हां । और वो भी यूं पैदा हुई थी जैसे लाटरी लगती है । बाप हट्टा-कट्टा तन्दुरुस्त आदमी था जिसे कभी जिन्दगी में जुकाम नहीं हुआ था, नब्बे साल तक हिलने वाला नहीं लगता था लेकिन फिर भी एकाएक मर गया । अपनी जिन्दगी में वो इतना सख्त मिजाज था कि लड़के को पूरे डिसिप्लिन में रखता था जिसकी वजह से बेटे के बागी हो जाने का अन्देशा था लेकिन वो परवाह नहीं करता था ।”
“यानी कि बाप जिन्दा होता तो रुपये-पैसे के मामले में श्याम नाडकर्णी की पेश न चलती !”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । इस लिहाज से तो वो पूरी तरह से अपने बाप पर आश्रित था ।”
“ऊपर से सुन्दरियों की सोहबत का रसिया था ?”
“हां ।”
“फिर कैसे बीतती ।”
“बाप जिन्दा होता तो न बीतती । तभी तो बोला उसकी लाटरी लगी थी ।”
“मोहिनी से उसकी आशनाई ये लाटरी लगने से पहले से थी या बाद में हुई थी ।”
“बाद में हुई थी ।”
“यानी कि काफी चालू लड़की थी ये मोहिनी ?”
“हां । काफी अच्छे-भले सीधे चलते बटोही को रास्ता भटका देती थी ।”
“श्याम नाडकर्णी सीधा चलता बटोही था ?”
“हां ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“बस, यूं ही ।”
“वो श्याम नाडकर्णी की पहली शादी थी ?”
मोहिनी ने तुरन्त जवाब न दिया ।
“हां ।” - आखिरकार वो बोली ।
“और मोहिनी की ?”
“अरे, उस नन्ही-सी लड़की की और क्या दसवीं शादी होती !”
“नन्ही-सी लड़की ने दोबारा शादी क्यों न की ?”
“तुम्हें वजह मालूम होनी चाहिये । कैसे वकील हो तुम ? अपने पति के कानूनी तौर पर मृत घोषित किये जाने से पहले वो दोबारा शादी करती तो क्या वो शादी गैर-कानूनी न मानी जाती ?”
“इस बिना पर कि उसके पति ने उसे त्याग दिया था और वो जानबूझकर गायब था, वो दोबारा शादी कर सकती थी ।”
“तब वो उस पति की सम्पति की, जिसने कि उसे त्याग दिया था, वारिस तो नहीं बन सकती थी ?”
“हां, दोनों काम तो नहीं हो सकते थे । नया पति और पुराने पति की दौलत दोनों तो उसे नहीं मिल सकते थे । ...उसे अपने पति की मौत का अफसोस था ?”
“जैसे उदगार कल वो सुनेत्रा के सामने जाहिर करके गयी है, उससे तो लगता है कि था ।”
“अभी भी । पति की मौत के सात साल बाद भी ?”
“जाहिर है ।”
“तुम्हारी कभी उससे मुलाकात हुई ?”
“नहीं ।”
“कभी खोज-खबर भी न लगी ?”
“खोज-खबर तो लगी थी एक बार । उन दिनों मेरा इन्दौर की एक नाइट क्लब के साथ सिंगिंग असाइनमैंट चल रहा था जबकि वो मेरे से मिलने के लिये वहां पहुंची थी लेकिन इत्तफाक से ऐन उसी रोज मैं वहां नहीं गयी थी । वो मेरे लिये सन्देशा छोड़ गयी थी कि लौटकर आयेगी लेकिन कभी लौटी नहीं थी ।”
“क्यों ?”
“वो नाम को ही नाइट क्लब थी । असल में तो वो एक दारू का अड्डा ही था । मोहिनी को वहां का माहौल नहीं भाया होगा, वापिस लौट के आने लायक नहीं लगा होगा । ऊंची नाक थी न उसकी ।”
“तुम अपने आपको बहुत कम करके आंकती हो, हमेशा बड़ी कमतरी के साथ अपना जिक्र करती हो । बावजूद इसके कि तुम्हारे में हर वो खूबी है जिसके लिये कि कोई नौजवान लड़की तरसती है ।”
“ऐसा ?”
“हां । लगता है जिन्दगी में कभी तुम्हें कोई राइट ब्रेक नहीं मिला, तुम जिन्दगी में वैसी तरक्की न कर पायीं जिसकी कि तुम ख्वाहिशमन्द हो, हकदार हो । इस वजह से तुम्हारे में हीन भावना घर कर गयी मालूम होती है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं !”
“यानी कि तुम्हें वो कारोबार पसन्द है जिसमें कि तुम आजकल हो ? तुम शराबखानों में, नाइट क्लबों में गाना पसन्द करती हो ?”
“जरा भी नहीं ।”
“तो फिर क्यों करती हो वो काम ?”
“पापी पेट का” - उसने जोर से अपने पेट पर हाथ मारा - “सवाल है, बाबू ।”
“तुम मजाक कर रही हो ।”
“गम्भीर जवाब ये है कि मेरे से कम्प्रोमाइज नहीं होता । ऊंचा उठने के लिये मैं नीचे नहीं गिर सकती । दौलत की खातिर जिस-तिस की गोद में उछाला जाना कबूल नहीं कर सकती । कल भी बोला था । भूल गये ?”
“नहीं, भूला तो नहीं लेकिन...”
एकाएक उसने कसकर मुकेश की बांह पकड़ी ।
“क्या हुआ ?” - मुकेश सकपकाया ।
“उधर ।” - वो फुसफुसाती-सी बोली - “रेत के उस टीले के पीछे कोई है ।”
“कौन है ?” - मुकेश गरदन निकालकर टीले की दिशा में झांकता हुआ बोला ।
“विकी ।” - टीना बोली - “सुनेत्रा का हसबैंड ।”
“ये यहां क्या कर रहा है चोरों की तरह छुपकर ?”
“क्या कर रहा है ?”
मुकेश के देखते-देखते विकास निगम ने अपनी कमीज के सामने के बटन खोले और उसे कन्धों पर पीछे को सरकाकर उसकी आस्तीन में से अपनी बायीं बांह निकाली । फिर उसने अपनी जीन की पिछली जेब में से एक चपटी बोतल निकाली ।
“घूंट लगाने की फिराक में है ।” - टीना बोली - “रम मालूम होती है ।”
“नहीं । कोई और ही चक्कर है ।”
“क्या ?”
“चुप रहो । देखो ।”
निगम ने शीशी का ढक्कन खोलकर एक काला-सा लोशन अपनी दायीं हथेली पर पलटा और फिर उसे धीरे-धीरे अपनी बायीं बांह पर कन्धे से कलाई तक मलने लगा ।
“इसकी ये बांह” - एकाएक टीना बोली - “लाल सुर्ख क्यों लग रही है ।”
“झुलसी हुई है ।”
“झुलसी हुई है ! आग से ?”
“नहीं । धूप से । सनबर्न है ।”
“सनबर्न ?”
“बहुत तकलीफ देने वाली आइटम है । जरा याद करो जब ये यहां पहुंचा था और ब्रान्डो ने इसके स्वागत में इसके बगलगीर होकर इसकी बायीं बांह थामी थी तो ये कैसा तड़पा था ! और एकाएक कैसे हिंसक भाव से ब्रान्डो से पेश आया था ?”
“हां, याद है । ब्रान्डो तो बेचारा हक्का-बक्का रह गया था उसके व्यवहार से ।”
“अनजाने में उसने इसकी धूप से झुलसी बांह थाम ली थी ।”
“तो वो कह देता ऐसा । ये पाखण्ड करने की क्या जरूरत थी कि उससे हाथापायी बर्दाशत नहीं होती थी !”
“जरूर वो सनबर्न की वजह छुपाना चाहता होगा ।”
“वजह ! वजह क्या होगी ?”
“खास ही होगी । छुपाने लायक ।”
“क्या ?”
मुकेश सोचने लगा ।
“उसकी कार !” - एकाएक वो हौले-से चुटकी बजाता हुआ बोला - “उसकी सफेद टयोटा कार जिसे बस वो खरीद कर लाया ही था और बकौल उसके जिसका एयरकन्डीशनर यूनिट खराब था ।”
“कार को क्या हुआ ?”
“कार को कुछ नहीं हुआ, उसे हुआ । फारेन की लैफ्ड हैण्ड ड्राइव कार को आगरा, ग्वालियर, शिवपुरी वगैरह के रास्ते चलाते हुआ । उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आजकल दिन के वक्त काफी गर्मी पड़ती है । एयरकंडीशनर खराब होने की वजह से उसे खिड़की खोलकर कार चलानी पड़ी होगी । इसी वजह से बायें दरवाजे की खुली खिड़की पर टिकी-टिकी बांह धूप में झुलस गयी ।”
“इतनी मामूली घटना में छुपाने वाली क्या बात थी ?”
“वही तो ।”
“और उसकी कार... वो लैफ्ट हैण्ड ड्राइव है ?”
“लैफ्ट हैण्ड ड्राइव ही होगी । फारेन की कारें अक्सर होती हैं ।”
“जरूरी तो नहीं ।”
“हां, जरूरी तो नहीं ।”
“ये यहां है, इसकी कार भी यहीं होगी । क्यों न चलकर देखें ?”
“ख्याल बुरा नहीं । आओ चलें ।”
सफेद टयोटा पोर्टिको में नहीं खड़ी थी ।
“गैरेज में होगी ।” ­ मुकेश बोला ।
दोनों ने गैरेज की तरफ कदम बढाया ही था कि एक सिपाही वहां पहुंचा ।
“आप लोग कहां थे ?” ­ वो बोला ।
“क्यों ?” ­ मुकेश बोला ­ “क्या हुआ ?”
“साहब लोग पूछ रहे थे । आप भीतर लाउन्ज में चलिये ।”
“क्यों भई ? ये सरकारी आर्डर है ?”
“जी हां ।” ­ वो सख्ती से बोला ।
“ठीक है फिर । हम सरकार से पंगा थोड़े ही ले सकते हैं !”
वो लाउन्ज में पहुंचे ।
वहां दोनों पुलिस अधिकारियों के अलावा सब मौजूद थे ।
“कहीं विकी को देखा ?” ­ उनके वहां कदम रखते ही सुनेत्रा बोली ।
“हां ।” ­ टीना बोली ­ “बीच पर है ।”
“वहां क्या कर रहा है ?”
“सोलर कुकिंग सीख रहा है । रैसेपी ट्राई कर रहा है । अपनी बांह भून रहा है ।”
“क्या !”
“सारी । भून नहीं रहा, भुनी हुई को करारी कर रहा है ।”
“अरे, क्या कह रही हो ?”
“कुछ नहीं ।”
“पुलसिये कहां गये ?” ­ मुकेश बोला ।
“ऊपर हैं ।” ­ ब्रान्डो ने चिन्तित भाव से जवाब दिया ­ “एक-एक कमरे की तलाशी ले रहे हैं । कम्बख्त नहीं जानते कि वो मेरे मेहमानों के साथ कितनी ज्यादती कर रहे हैं ।”
“कुएं से क्या बरामद हुआ ?”
“पता नहीं । ये लोग कुछ बतायेंगे तो पता चलेगा न ! दोपहर हो गयी है और ये लोग...”
“ऊपर मेरे कमरे की भी तलाशी हो रही होगी ?” ­ टीना एकाएक बोली ।
“यस, माई डियर । जब सब के कमरों की तलाशी हो रही है तो...”
“मैं ऊपर जा रही हूं ।”
“मत जाओ । वो लोग खफा होंगे ।”
“खफा होंगे तो क्या करेंगे ? गोली मार देंगे ? मार देंगे तो मार दें । मैं खा लूंगी गोली ! मैंने सुना है कि पुलिस वालों ने किसी को रोकना होता है तो वो टांग में गोली से मारते हैं । आई डोंट माइंड । मैं सिंगर हूं, डांसर थोड़े ही हूं ! मैं गले से गाती हूं, टांग से नहीं गाती ।”
“टीना ! बी सीरियस ! एण्ड स्टे पुट ।”
टीना खामोश हो गई लेकिन उसके चेहरे से बेचैनी के भाव न गये ।
“तेरे कमरे से कुछ बरामद होगा ?” ­ सुनेत्रा शशिबाला से बोली ।
“नहीं ।” ­ शशिबाला मुस्कराती हुई बोली ­ “बहुत होशियार हूं मैं । मैं ‘वो चीज’ तेरे कमरे में छुपा आयी हुई हूं । अब जो कुछ बरामद होगा, तेरे कमरे से बरामद होगा ।”
“जो कुछ क्या ?”
“सोच !”
“डार्लिंग, कितने शर्म की बात है कि ऊपर तेरे कमरे में एक मर्द है और तू वहां नहीं है । ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ होगा, स्वीटहार्ट ।”
शशिबाला ने आग्रेय नेत्रों से सुनेत्रा की तरफ देखा ।
“टू वन ।” ­ टीना बोली ­ “सर्विस चेंज ।”
“गर्ल्स ! गर्ल्स !” ­ ब्रान्डो ने गुहार लगायी ­ “प्लीज बिहेव ।”
“मैं तो जा रही हूं ऊपर ।” ­ फौजिया एकाएक उछलकर अपने पैरों पर खड़ी हुई ­ “ये कोई तरीका है तलाशी लेने का ! तलाशी लेनी है तो मेरे सामने लें । ऐसे तो वो खुद कुछ रख के कह सकते हैं कि बरामद हुआ है ।”
वो दृढ कदमों से सीढियों की तरफ बढी ।
तभी बाल्कनी पर इंस्पेक्टर सोलंकी प्रकट हुआ !
फौजिया ठिठकी, उसने व्याकुल भाव से बाल्कनी की तरफ देखा और फिर कुछ सोचकर वापिस अपनी जगह पर बैठ गयी ।
सीढियां उतरकर सोलंकी उन लोगों के बीच पहुंचा । उसके पीछे कार्ड-बोर्ड की एक पेटी उठाये एक सिपाही था । फिगुएरा के इशारे पर उसने पेटी को सैन्टर टेबल पर रख दिया और खुद परे हटकर खड़ा हो गया ।
“मैंडम” ­ सोलंकी फौजिया के करीब पहुंचकर उससे सम्बोधित हुआ ­ “फौजिया खान नाम है न आपका ?”
“हां ।” ­ फौजिया बोली ।
“ऊपर आपका कमरा दायीं ओर से दूसरा है ?”
“हां ।”
“रात आप अपने कमरे में सोई थीं ।”
“और कहां सोती ?”
“जवाब दीजिये ।”
“जवाब ही दिया है ।” 
“हां या न में जवाब दीजिये ।”
“हां ।”
“आज कमरा बदल लिया है आपने ? कहीं और मूव कर गयी हैं आप ?”
“नहीं तो ।”
“आप अभी भी अपने पहले वाले कमरे में ही हैं ? जो कि ऊपर दायीं ओर से दूसरा है ?”
“हां ।”
“वो कमरा खाली है ?”
“खाली है क्या मतलब ?”
“खाली है का मतलब नहीं समझतीं ? खाली है का मतलब खाली है । किसी भी तरह के व्यक्तिगत सामान से एकदम कोरा । कोई पोशाक नहीं, कोई नाइट ड्रैस नहीं, कोई चप्पल, सैंडल, कोई मेकअप का सामान तक नहीं । कहां गया आपका सामान ?”
“मेरे पास कोई सामान नहीं था । मैं ऐसे ही आयी थी ।”
“ऐसे कहीं होता है ?”
“मेरी जरूरत की चीजें मेरे इस हैण्ड बैग में मौजूद हैं ।”
“आप झूठ बोल रही हैं । हकीकत ये है कि आपने अपना सामान कहीं छुपा दिया है । आपने अपना सामान कहीं ऐसी जगह छुपा दिया है जहां से आप उसे उठाकर चुपचाप चलती बनेंगीं तो किसी को खबर तक नहीं होगी । मैडम, आप यहां से चुपचाप खिसक जाने की फिराक में हैं ।”
सबकी हैरानी-भरी निगाहें फौजिया की तरफ उठीं । फौजिया के एकाएक बद्हवास हो उठे चेहरे पर निगाह पड़ते ही किसी को भी शक न रहा कि इंस्पेक्टर जो कह रहा था, सच कह रहा था ।
“मैं यहां नहीं रुक सकती ।” ­ फौजिया तीखी आवाज में बोली ­ “यहां कत्ल-दर-कत्ल हो रहे हैं । मैं यहां एक मिनट भी नहीं रुकना चाहती । यहां मेरी अपनी जान महफूज नहीं ।”
“कहां जाने की फिराक में थीं आप ?”
“कहीं भी । इस नामुराद जजीरे से दूर कहीं भी ।”
“मैडम, आप फिलहाल आइलैंड से बाहर कदम नहीं रख सकतीं । चोरी से भी नहीं । जब तक पुलिस की इजाजत न हो, आप यहीं रहेंगी ।”
“ये धांधली है ।”
“आप यहीं रहेंगी । अब बोलिये, कहां छुपाया है आपने अपना सामान ?”
फौजिया ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“पिन्टो !”
“यस, सर ।” - परे खड़ा सिपाही बोला ।
“मैडम के साथ जाओ । जहां कहीं भी ये ले के जायें, जाओ और इनका सामान बरामद करके लाओ ।”
“यस, सर ।”
“जाइये ।”
फौजिया अपने स्थान से उठी और भारी कदमों से चलती हुई सिपाही के साथ हो ली ।
“आप” - सोलंकी मुकेश से सम्बोधित हुआ - “अपने आफिस से मोहनी के बारे में कुछ दरयाफ्त करने वाले थे ?”
“क्या ?” - मुकेश हड़बड़ाया-सा बोला ।
“मोहनी की किसी वसीयत की बाबत । उसके किसी सगे-सम्बन्धी की बाबत । भूल भी गये ?”
“नहीं भूला । मेरी अभी सुबह ही ट्रंककाल पर बाम्बे अपने आफिस में बात हुई थी । हमारी फर्म उसकी किसी वसीयत या उसके किसी सगे-सम्बन्धी से वाकिफ नहीं । हमें उसके किसी दूर-दराज के रिश्तेदार की भी वाकफियत नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“जनाब ये फर्म के सीनियरमोस्ट पार्टनर नकुल बिहारी आनन्द की स्टेटमैंट है ।”
“हूं ।”
सोलंकी ने सैन्टर टेबल पर पड़ी कार्ड बोर्ड की पेटी में हाथ डाला और उसमें से यूं एक सोने का ब्रेसलेट बरामद किया जैसे कोई जादूगर हैट में हाथ डालकर खरगोश निकालता है । उसने ब्रेसलेट को बारी-बारी सबकी निगाहों के सामने किया ।
“इस पर कुछ गुदा मालूम होता है ।” - ब्रान्डो बोला - “गोद कर कुछ लिखा मालूम होता है ।”
“हां । लिखा है । लिखा है - प्रिय मोहिनी को । सप्रेम । श्याम ।”
“आपका मतलब है” - शशिबाला बोली - “ये ब्रसलेट मोहिनी का है ?”
“और किसका होगा ? इस पर मोहिनी का नाम लिखा है । उसके पति का नाम लिखा है । जाहिर है कि ये ब्रेसलेट मोहिनी को कभी उपहार के तौर पर अपने पति श्याम नाडकर्णी से प्राप्त हुआ था ।”
“ओह !”
“आपने कभी मोहिनी को इसे पहने देखा था ?”
“नहीं ।”
“किसी और ने देखा हो ?”
“मैंने तो नहीं देखा ।” - सुनेत्रा बोली ।
“वो एक मालदार मर्द की लाडली बीवी थी ।” - आलोका बोली - “उसके पास तो बेशुमार जेवरात थे । उनमें से एक ब्रेसलेट कहां याद रहता है !”
“आप क्या कहती हैं ?” - सोलंकी टीना से बोला ।
टीना का सिर इनकार में हिला ।
“जरा जुबानी बोलकर जवाब दीजिये ।”
“मैंने नही देखा पहले कभी ये ब्रेसलेट ।” - टीना उखड़ी-सी बोली ।
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“ये आपके कमरे से बरामद हुआ है ।”
“क्या !”
“जी हां । आपके कमरे से । फिर भी आप कहती हैं कि आपने इसे पहले कभी नहीं देखा ?”
“ये मेरे कमरे से बरामद हुआ नहीं हो सकता ।”
“जो हो चुका है, उसको नहीं हो सकता कहने का क्या फायदा ? अब बोलिये कहां से आया आपके पास मोहिनी का ये ब्रेसलेट ! क्या मोहिनी ने दिया । दिया तो कब दिया ? आपका तो दावा है कि पिछले सात साल में आपने मेहिनी की सूरत नहीं देखी ?”
“हां । मेरा अभी भी यही दावा है । मैं अभी भी यही कहती हूं ।”
“तो फिर कब दिया मोहिनी ने आपको ये ब्रेसलेट ? सात साल पहले ?”
“नहीं ।”
“डाक से भेजा ? किसी के हाथ भेजा ? कूरियर से भेजा ?”
“नहीं ।”
“तो फिर जाहिर है कि आपने इसे मोहिनी से तब हासिल किया जबकि वो यहां थी ?”
“नहीं । मैंने तो यहां उसका सूरत भी नहीं देखी थी ।”
“तो फिर कैसे... कैसे ये आपके कमरे में पहुंचा ?”
“किसी ने प्लांट किया होगा ।”
“ये ब्रेसलेट आपके जेवरात के डिब्बे में था जिसको कि ताला लगा हुआ था, डिब्बा आपके सूटकेस में बन्द था और उसको भी ताला लगा हुआ था ।”
“यानी कि आपने दो ताले खोल लिये !”
“जी हां । मजबूरी थी । तलाशी ऐसे ही होती है ।”
“जो ताले आपने खोल लिये, वो कोई दूसरा भी तो खोल सकता था ।”
“खोल तो सकता था ।”
“तो फिर ?”
“कोई चुपचाप आपके कमरे में घुसा, उसने सूटकेस का ताला खोलकर उसमें से जेवरात का डिब्बा निकाला और जेवरात के डिब्बे का ताला खोलकर उसमें ये ब्रेसलेट प्लांट किया और फिर दोनों ताले बदस्तूर बन्द कर दिये !”
“जाहिर है ।”
“किसी ने ऐसा कयों किया ?”
“जाहिर है कि मुझे फंसाने के लिये ।”
“यानी कि ब्रेसलेट बरामदी के लिये ही प्लांट किया गया था ?”
“जाहिर है ।”
“इतना तो जाहिर नहीं है । मैडम, ये ब्रेसलेट आपके जेवरात के डिब्बे की मखमल की लाइनिंग के भीतर से मिला था । लाइनिंग के भीतर ये इस चतुराई से छुपाया गया था कि करिश्मा ही था कि मुझे इसकी वहां मौजूदगी की आभास मिल गया था । जिस चीज की बरामदी की मंशा हो, उसे क्या यूं छुपाया जाता है कि वो किसी को ढूंढे न मिले ?”
टीना के मुंह से बोल न फूटा ।
“जवाब दीजिये ।”
“म... मैं... मैं क्या जवाब दूं ?”
“कैसे हासिल किया आपने मेहिनी से ये ब्रेसलेट ? कब हासिल किया ?”
“मैंने नहीं किया । यकीन जानिये, मैंने नहीं किया ।”
“परसों रात जब वो यहां मौजूद थी तो आप उससे मिली थीं ?”
“नहीं ।”
“बाद में ?”
“बाद में कब ?”
“कल रात ! जबकि उसका कत्ल हुआ था ?”
तत्काल टीना के चेहरे पर गहरी दहशत के भाव आये ।
“ये एक खास तोहफा है जोकि उसे अपने पति से हासिल हुआ, था । ऐसे पति से हासिल हुआ था, चन्द महीने ही जिससे उसका साथ रहा था । ये ब्रेसलेट उसके मरहूम पति की निशानी था । इसे वो सहज ही किसी को नहीं सौंप सकती थी । लोगबाग जान दे देते हैं लेकिन ऐसी किसी निशानी को अपने से जुदा नहीं होने देते ।”
“तो ?”
“तो क्या ? अब क्या खाका खींच के समझाऊं ?”
“ओह ! तो आप ये कहना चाहते हैं कि मैं कफनखसोट हूं ? मैंने ये ब्रेसलेट मोहिनी की लाश पर से उतारा ?”
“ऐसा नहीं हुआ तो बताइये ये कैसे आपके कब्जे में आया । ये आपके जेवरों के डिब्बे में था । ये वहां ऐसी जगह था जहां कि इसे आप ही रख सकती थीं । अब आप ये बताइये कि...”
वो बोलता-बोलता रुक गया । उसने पोर्टिको की तरफ देखा जहां से सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा एक पिद्दी से आदमी की बांह दबोचे उसे जबरन अपने साथ चलाता लाउन्ज में दाखिल हो रहा था । उसके लम्बे बाल उसके सारे चेहरे पर बिखरे पड़ रहे थे और उसका बड़े-बड़े शीशों वाला काला चश्मा उसकी नाक की फुंगी पर सरका हुआ था ।
वो धर्मेन्द्र अधिकारी था ।
“ओह, नो ।” - शशिबाला के मुंह से निकला ।
“आइलैंड से खिसकने की कोशिश कर रहा था ।” - फिगुएरा बोला - “पायर पर तैनात हवलदार ने पकड़ा । वही पकड़कर यहां लाया ।”
“है कौन ये ?” - सोलंकी बोला ।
“धर्मेन्द्र अधिकारी नाम है । मुंह के कबूल करने में हुज्जत कर रहा है लेकिन इसकी जेब में मौजूद ड्राइविंग लाइसेंस पर इसका वही नाम लिखा है ।”
“ओह, माई गॉड !” - शशिबाला के मुंह से फिर निकला - “नहीं बाज आया ।”
“मैडम !” - सोलंकी बोला - “आप इस आदमी को जानती हैं ?”
“कौन आदमी ?” - शशिबाला बोला ।
“जो अभी यहां लाया गया है ! आप...”
“हम सब जानते हैं इसे ।” - सुनेत्रा बोली ।
तब तत्काल अधिकारी के चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट आयी ।
“बांह छोड़ो, भाई ।” - वो फिगुएरा से बोला - “अब क्या उखाड़ के मानोगे ?” - फिगुएरा ने बांह छोड़ी तो उसने बड़ी अदा से आस्तीन झटककर उसमें से बल निकाले, फिर वो लड़कियों से सम्बोधित हुआ - “हल्लो, माई स्वीट स्वीट एंजल्स । हल्लो एवरीबाडी ! शशि बेबी, क्या माजरा है ?”
“सब्र नहीं हुआ ।” - शशिबाला दांत पीसती हुई बोली - “सोमवार तक सब्र नहीं हुआ । पीछे दौड़ चला ।”
“आप इसे जानाती हैं ?” - सोलंकी बोला ।
जवाब देने की जगह शशिबाला ने आग्रेय नेत्रों से अधिकारी की तरफ देखा ।
“ये” - फिगुएरा बोला - “आपका सैक्रेट्री है ?”
“था ।” - शशिबाला बोली - “अभी दो मिनट पहले तक ।”
“आपको खबर थी कि ये आइलैंड पर था ?”
“नहीं । मेरा मतलब है कल शाम से पहले नहीं जबकि टीना ने मुझे बताया था कि ये ईस्टएण्ड पर उससे मिला था ।”
“कब पधारे आप यहां ?” - सोलंकी बोला ।
“परसों ।” - अधिकारी लापरवाही से बोला - “शाम को ।”
“शाम को कब ?” 
“यही कोई चार बजे के करीब ।”
“आने का सबब ?”
“सबब क्या होना है, बॉस ! ब्यूटीफुल आइलैंड । क्यूट किटीज । बस मस्ती मारने आया । तफरीह करने आया । सैर करने आया ।”
“आने का सबब ?” - सोलंकी सख्ती से बोला ।
“अपनी हीरोइन के पीछे आया ।”
“क्यों ?”
“मेरा भी दिल कर आया था पुराने वाकिफकारों की पार्टी जायन करने का ।”
“साथ ही क्यों न चले आये ?”
“तब दिल अभी नहीं किया था । मैं मैडम को प्लेन पर चढाकर लौट रहा था तो दिल किया था । तब फिर नैक्स्ट फ्लाइट से मैं भी चला आया ।”
“तुमने यहां आइलैंड पर आकर रोमानो की कार किराये पर ली थी ?”
“साला हरामी छोकरा ! जितना किराया लिया, उतनी तो कार की कीमत नहीं होगी ।”
“देखो, तुम इस वक्त एक कत्ल की तफ्तीश में शामिल हो । ये कोई पिकनिक नहीं है । हंसी-खेल नहीं है । तुम सीधे होते हो या हम सीधा करें तुम्हें ?”
“ओह, नो, बॉस । आई एम क्वाइट सीधा ।”
“तुम हाउसकीपर से वाकिफ थे ?”
“हाउसकीपर ?”
“यहां की । मिस्टर ब्रान्डो की । वसुन्धरा पटवर्धन । जिसका सबसे पहले कत्ल हुआ था । वाकिफ थे तुम उससे ?”
“बिल्कुल भी नहीं । मैंने कभी शक्ल तक नहीं देखी थी उसकी । नाम तक नहीं सुना था ।”
“वो एक भारी-भरकम औरत थी । आंखों पर काले रंग के मोटे फ्रेम, मोटी कमानियों वाला निगाह का चश्मा लगाती थी । बाल डाई करती थी । कुछ याद आया ?”
अधिकारी ने इनकार में सिर हिलाया ।
“परसों रात तुम यहां थे । तुम रोमानो की कार पर एस्टेट से बाहर की सड़क पर मौजूद थे । हाउसकीपर ने तुम्हें एस्टेट में तांक-झांक करता देखा हो सकता है ।”
“नो सच थिंग । और ताक-झांक कौन कर रहा था ? मैं तो ताक-झांक नहीं कर रहा था ।”
“तो और क्या कर रहे थे यहां ?”
“किसी का कत्ल नहीं कर रहा था । कब हुआ था हाउसकीपर का कत्ल ?”
“परसों रात को । साढे तीन बजे के बाद किसी वक्त ।”
“उस वक्त से तो कहीं पहले मैं वापिस ईस्टएण्ड लौट चुका था ।”
“तुम जाके फिर आ गये होगे ।”
“नो, बॉस । नैवर ।”
“या फिर गये ही नहीं होंगे । आधी रात तक तो तुम यकीनन यहीं थे जबकि मिस्टर माथुर से तुम्हारी मुलाकात हुई थी । क्यों, मिस्टर माथुर !”
“हल्लो, मिस्टर माथुर ।” - अधिकारी मुकेश की तरफ हाथ हिलाता हुआ बोला - “सो वुई मीट अगेन ।”
“तुम” - सोलंकी सख्ती से बोला - “इधर मेरी तरफ तवज्जो दो ।”
“यस, बॉस ।”
“तुमने मिस्टर माथुर को ये कयों कहा था कि तुम कुक के इन्तजार में बाहर सड़क पर मौजूद थे ?”
“ये सवाल पूछ रहे थे । कोई तो जवाब मैंने देना ही था । कोई ऐसा जवाब देना था जिससे इनकी उत्सुकता शान्त होती । मैंने कह दिया मैं कुक का इन्तजार कर रहा था । वो जवाब इन्हें फौरन हज्म हो गया था । मैं इन्हें कहता कि मैं बाम्बे फिल्म इन्डस्ट्रीज में कई स्टार्स का सैक्रेट्री था, एजेन्ट था, टेलेन्ट स्काउट था तो क्या इन्हें मेरी बात पर यकीन आता ?”
“झाड़ियों में छुपे क्यों बैठे थे । तुम मिस शशिबाला के सैक्रेट्री थे, यहां मौजूद तमाम लड़कियों के पुराने वाकिफ थे तो भीतर जाकर उनसे क्यों न मिले ?”
अधिकारी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“तुमने” - फिगुएरा ने जोड़ा - “आइलैंड से चुपचाप खिसकने की कोशिश की । तुम्हारी ये भी कोशिश थी कि किसी को खबर ही न लगे कि तुम यहां मौजूद थे । तुम्हारी हर हरकत शक के काबिल है ।”
“जरूर” - सोलंकी बोला - “तुम ही कातिल हो ।”
“ओह नो ।” - वो भुनभुनाता-सा बोला ।
“तो सच बोलो, क्या किस्सा है ?”
“मैं अपनी स्टार के सामने नहीं बोल सकता ।”
“अब मैं तुम्हारी स्टार नहीं हूं ।” - शशिबाला बोली - “अब तुम मेरे सैक्रेट्री नहीं हो । हमारा रिश्ता टूटे पूरे पांच मिनट हो चुके हैं ।”
“बेबी” - अधिकारी आहत भाव से बोला - “यू कैंट बी सीरियस !”
“बट आई एम ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस ।”
“अब हमारे बीच में कुछ नहीं ?”
“कतई कुछ नहीं ।”
“ठीक है, फिर बोलता हूं । बॉस” - वो सोंलकी की तरफ घूमा - “मैं सिर्फ मोहिनी की फिराक में यहां आया था । मैं नहीं चाहता था किसी को, खासतौर से मेरी क्लायन्ट को - शशिबाला को - मेरी यहां मौजूदगी की खबर लगती ।”
“क्यों ? बात को साफ करके कहो ?”
“उसके लिये मुझे सात-आठ साल पीछे जाना होगा जबकि मिस्टर ब्रान्डो की बुलबुलों के फैशन शोज ने सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी । बाम्बे की सारी फिल्म इन्डस्ट्री की इन लड़कियों पर निगाह थी और इनमें से भी एक मोहिनी पाटिल का बुरी तरह से रोब गालिब था । मशहूर फाइनांसर प्रोड्यूसर डायरेक्टर दिलीप देसाई तो कहता था कि मधुबाला के बाद अगर उसने सही मायनों में कोई खूबसूरत औरत देखी थी तो वो मोहिनी थी । वो ही मेरे पीछे पड़ा हुआ था कि मैं किसी भी तरह मोहिनी से उसका कान्ट्रेक्ट कराऊं और उसे उसकी फिल्म में हिरोइन का रोल करने के लिए पटाऊं । लेकिन मोहिनी थी कि फिल्मों में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रही थी । सच पूछो तो बाकी लड़कियों का भी यही रवैया था । उन दिनों बतौर फैशन माडल उनको इतना यश मिला था इतना मीडिया का एक्पोजर मिला था, इतना पैसा मिला था कि मूवी कान्ट्रैक्ट को ये किसी खातिर में नही नहीं लाती थीं । तब एक शशिबाला ही थी जो किसी तरह से फिल्मों में आने को राजी हो गयी थी ।”
“तुम मोहिनी की बात करो ।”
“उसी की बात कर रहा हूं । ये भी मोहिनी की ही बात का एक हिस्सा है । मैं यह कह रहा था कि मोहिनी को तब मूवी कान्ट्रैक्ट मंजूर नहीं हुआ था । एक्ट्रेस बनने के मुकाबले में मिसेज श्याम नाडकर्णी बनना उसे कहीं ज्यादा चोखा सौदा लगा था । लेकिन दिलीप देसाई था कि उसपर तो जैसे मोहिनी पाटिल का भूत सवार था । वो तो किसी भी सूरत में मोहिनी को अपनी हीरोइन बनाना चाहता था । बॉस, मुझे पांच लाख रुपये के बोनस की आफर थी अगरचे कि मैं मोहिनी को देसाई फिल्म्स कम्बाइन के लिए साइन करने में कामयाब हो जाता । अब आप ही सोचिये कि इस काम के लिये मैं क्यों न मोहिनी के पीछे दिन-रात मारा-मारा फिरता ?”
“लेकिन तुम कामयाब न हुए ?”
“नहीं हुआ, बॉस । अलबत्ता शशिबाला को मैंने मना किया था जोकि मोहिनी से किसी कदर खूबसूरत नहीं थी लेकिन देसाई का ‘मोहिनी-मोहिनी’ भजना फिर भी बन्द नहीं हुआ था । उसकी निगाह में हुस्न और जवानी के मुकाबले में मोहिनी के आगे दुनिया खत्म थी । उसने शशिबाला को इस स्टाइल से साइन किया था जैसे प्लेन फ्लाइट मिस हो जाने पर कोई ट्रेन से सफर करना कबूल कर लेता है ।”
शशिबाला के चेहरे पर क्रोध के तीखे भाव आये ।
“बेबी” - अधिकारी खेदपूर्ण स्वर में बोला - “तभी तो मैंने इन पुलिस वालों को कहा था कि मैं अपनी स्टार के सामने नहीं बोल सकता था ।”
“मैं ट्रेन हूं ?” - वो आंखे निकालती हुई बोली ।
“तुम तो जैट प्लेन हो । राकेट हो । स्पेस क्राफ्ट हो । लेकिन अब देसाई को कोई कैसे समझाये जो पिछले सात साल में भी अपनी ‘मोहिनी को लाओ । मोहिनी को साइन करो’ की रट नहीं छोड़ पाया है ।”
“वो आज भी मोहिनी को साइन करना चाहता है ?”
“हां । उसकी मुंह मांगी कीमत पर । और मेरे लिये वो पांच लाख का बोनस भी आज भ स्टैण्ड करता है ।”
“जबकि उसने पिछले सात साल से मोहिनी की सूरत नहीं देखी, तुमने भी पिछले सात साल से मोहिनी की सूरत नहीं देखी । तुम लोगों को इस बात की क्या गारन्टी है कि मोहिनी आज भी उतनी ही हसीन होगी जितनी की वो सात साल पहले थी ।”
“मैंने देखा था उसे ।” - सुनेत्रा बोली - “वो वैसी ही थी जैसी कि सात साल पहले थी ।”
“होगी । लेकिन कोई गारन्टी तो नहीं थी इस बात की !”
“बॉस” - अधिकारी बोला - “मेरा काम अपने प्रोड्यूसर को जिद पूरी करना था । और पांच लाख का बोनस कमाना था । आज की तारीख में देसाई को मोहिनी से कोई नाउम्मीद होती थी तो मुझे उससे क्या लेना-देना था ? पांच लाख के बोनस की जो हड्डी देसाई ने मेरे सामने डाली हुई थी, उसके साथ ऐसी कोई शर्त नत्थी नहीं थी कि मोहिनी के अक्षत यौवन की इंश्योरेंस भी मेरे ही जिम्मे थी ।”
“बालपाण्डे कहता है” - शशिबाला जलकर बोली - “कि तीन साल पहले वो खंडहर लगती थी ।”
“ऐसा ?” - अधिकारी सकपकाया-सा बोला ।
“लेकिन सुनेत्रा ऐसा नहीं कहती ।” - बालपाण्डे जल्दी से बोला - “मेरे ख्याल से वो बीच में कभी कुछ बीमार-वीमार रही होगी लेकिन बाद में ठीक हो गयी होगी ।”
“ऐसी लड़की से” - ब्रान्डो धीरे-से बोला - “ईर्ष्या करने का क्या फायदा जो अब इस दुनिया में नहीं ।”
शशिबाला सकपकाई, फिर अपने आप ही उसका सिर झुक गया ।
“अगर” - सोलंकी बोला - “तुम यहां किसी तरह चुपचाप मोहिनी तक पहुंच पाने में कामयाब हो पाते और फर्ज करो कि वो इस बार देसाई फिल्म कम्बाइन के साथ कान्ट्रैक्ट साइन करने की तुम्हारी पेशकश कबूल भी कर लेती तो इस बात से तुम्हारी इस मौजूदा हीरोइन शशिबाला को क्या फर्क पड़ता ? जवाब दो ।”
“ये मारेगी ।”
“अरे, बोला न जवाब दो ।”
“तो ये” - अधिकारी झिझकता हुआ शशिबाला को देखता दबे स्वर में बोला - “देसाई फिल्म्स कम्बाइन से बाहर होती । देसाई को मोहिनी मिल जाती तो ये उसकी उस मल्टी-करोड़ फिल्म ‘हार-जीत’ से भी बाहर होती जो कि तीन-चौथाई बन चुकी है, भले ही इस चक्कर में देसाई का करोड़ों रुपया डूब जाता ।”
“यू !” - शशिबाला दांत किटकिटाती बोली - “यू रास्कल !”
“बट दैट्स गॉड्स ट्रुथ, बेबी ।”
“इतना दीवाना था तुम्हारा देसाई मोहिनी का ?” - सोलंकी बोला ।
“हां ।”
“यानी कि मोहिनी की फिल्मों में ऐन्ट्री शशिबाला को काफी भारी पड़ती ।”
“बर्बाद कर देती ।” - अधिकारी धीरे से बोला - “शी इज ग्रेट एक्ट्रेस, अवर शशिबाला । लेकिन आजकल इसके पास एक ही मेजर फिल्म है - देसाई की ‘हार-जीत’ । इसकी आइन्दा फिल्मी जिन्दगी का मुकम्मल दारोमदार उस फिल्म की कामयाबी पर है । आज की तारीख में इसका उस फिल्म से बाहर होना फिल्म इन्डस्ट्रीज से बाहर होने जैसा है ।”
शशिबाला के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे जार-जार रोने लगेगी ।
“बनती फिल्म में से” - अधिकारी बोला - “हीरोइन को निकाल दिया जाना बहुत खराब पब्लिसिटी देता है । देसाई की फिल्म से निकाला जाना तो सरासर मौत है ।”
“यह ठीक कह रहे हैं ?” - सोलंकी ने शशिबाला से पूछा - “ये मोहिनी को तलाश करके उसको कान्ट्रेक्ट के लिये राजी कर लेते तो आपका तो किस्सा ही खत्म हो जाता, ये ठीक बात है ?”
“उसकी फिल्म कैरियर में कोई दिलचस्पी नहीं थी ।” - वो हिम्मत करके बोली - “सात साल पहले ये सात हजार बार उसको पटाने की कोशिश कर चुका था लेकिन वो नहीं मानी थी । वो फिल्मों में जाने को पहले तैयार नहीं थी तो अब क्या तैयार होती जबकि उसे विरसे में ढाई करोड़ रुपये मिलने वाले थे ?”
“मैंने कहा है अगर... अगर मोहिनी पट जाती तो क्या ये आपके बर्बादी बायस होता ?”
“मैं अगर-मगर नहीं समझती । जो हुआ नहीं, उस पर मैं कमैन्ट करना जरूरी नहीं समझती ।”
“वैरी वैल सैड, बेबी ।” - अधिकारी बोला - “वैरी वैल सैड ।”
“शटअप ।”
अधिकारी ने सन्दूक के ढक्कन की तरह होंठ बन्द किये ।
“मुझे उससे कोई खतरा नहीं था ।” - शशिबाला इंस्पेक्टर से बोली - “था भी तो उसका हल कत्ल नहीं था । मैंने न कत्ल किया है और न कभी कत्ल का ख्याल मेरे जेहन में आया था । न ही मुझे ये मालूम था कि आधिकारी मेरे पीछे यहां पहुंचा हुआ था जो कि मैं इसके यहां आने का मतलब समझती और मोहिनी से खौफ खाती । यहां पहुंचने तक मुझे नहीं पता था कि मोहिनी यहां आने वाली थी । सात साल से नहीं आयी थी वो यहां । मिस्टर ब्रान्डो ने जब बताया था कि मोहिनी ने फोन पर खबर की थी कि वो आइलैंड पर पहुंच चुकी थी तो तभी मुझे इस बात की खबर हुई थी ।”
“सभी को” - टीना बोली - “तभी इस बात की खबर हुई थी ।”
“तुम क्या कहते हो इस बारे में ?” - सोलंकी अधिकारी की तरफ घूमा - “तुम्हें मालूम था कि मोहिनी यहां आने वाली थी ?”
“यहां पहुंचने तक नहीं मालूम था ।” - अधिकारी बोला - “परसों रात जब मैं मोहिनी की ताक में एस्टेट के इर्द-गिर्द मंडरा रहा था तो एक बार हिम्मत करके मैं भीतर घुसा था । तब मैंने मिस्टर ब्रान्डो को अपनी बुलबुलों में ये घोषणा करते सुना था कि मोहिनी आ रही थी । वो आइलैंड पर पहुंच चुकी थी लेकिन उसे पहले ईस्ट एण्ड पर कोई जरूरी काम था जिससे कि वो बहुत रात गये तक फारिग नहीं होने वाली थी । मैंने मिस्टर ब्रान्डो को ये भी कहते सुना था कि हाउसकीपर वसुन्धरा उसे पायर पर से लेने जाने वाली थी जहां कि रात के दो बजे बुकिंग आफिस के सामने उसने वसुन्धरा को मिलना था । इंस्पेक्टर साहब मैं दो बजे से पहले पायर पर पहुंच गया था और बुकिंग आफिस पर निगाहें गड़ाकर वहां बैठ गया था लेकिन मोहिनी वहां नहीं पहुंची थी । मोहिनी क्या, हाउसकीपर भी नहीं पहुंची थी ।”
“हाउसकीपर” - मुकेश बोला - “रास्ते में गाड़ी पंक्चर हो जाने की वजह से लेट हो गयी थी और वो कहती है कि मोहिनी उसके भी बाद में पायर पर पहुंची थी । यानी कि दोनों ही ढाई बजे के बाद वहां पहुंच पायी थी ।”
“तभी वो मुझे न मिली । बहरहाल मैं आधा घंण्टा इंतजार करने के बाद वहां से लौट आया था ।”
“तुम ईस्टएण्ड के होटलों में भी उसकी बाबत पूछते फिर रहे थे ?”
“हां । जब मैंने मिस्टर ब्रान्डो को ये कहते सुना था कि वो दोपहर को आइलैंड पर थी और पहले ईस्टएण्ड गयी थी तो मैं फौरन ईस्टएण्ड पहुंचा था । मैंने वहां की खूब खाक छानी थी लेकिन मोहिनी का कोई अता-पता मुझे वहां से नहीं मिला था । लिहाजा मैं वापिस यहां लौट गया था ।”
“वापिस क्यों ?”
“यूं ही ताक-झांक करने । पहले की माफिक फिर कोई बात सुन पाने की ताक में ।”
“कुछ सुन पाये ?”
“न । उलटे मिस्टर माथुर से आमना-सामना हो गया जोकि मुझे माफिक नहीं आया था ।”
“कब तक ठहरे थे यहां ?”
“एक बजे तक ! जब तक कि पार्टी बिल्कुल ठण्डी पड़ गयी थी और मैंशन की बत्तियां बुझने लगी थीं । तब मैंने यही फैसला किया था कि यहां और रुकना बेवकूफी थी और लौट गया था ।”
“हूं ।”
“अब मैं सुन रहा हूं कि मोहिनी का कत्ल हो गया है । अब मेरा पांच लाख रुपया मारा गया न ? अब वो साला मोहिनी का कातिल ही मेरे हाथ में आ जाये तो कम-से-कम उसी पर अपने मन की भड़ास निकाल लूं । कमीने को ऐसी मार लगाऊं कि मजाल है कि महीना भी भर उठके पैरों पर खड़ा हो सके ।”
तभी एक युवक ने वहां कदम रखा ।
“ये तो” - टीना फुसफुसाई - “ईस्टएण्ड के डायमंड होटल का रिसैप्शन क्लर्क जार्जियो है ।”
मुकेश ने सहमति में सिर हिलाया ।
“ये यहां क्या कर रहा है ?”
“अभी मालूम पड़ जायेगा ।”
“आओ, जार्जियो ।” - फिगुएरा उससे बोला ।
“सर” - जर्जियो बड़े अदब से बोला - “आपका मैसेज मिलते ही मैंने जल्दी-से-जल्दी आने की कोशिश की है ।”
“थैंक्यू । तो परसों रात तुम अपने होटल में नाइट ड्यूटी पर थे ?”
“यस, सर ।”
“यहां मौजूद लोगों पर निगाह दौड़ाओ और बाताओ कि इनमें से किसी को तुमने पहले कभी देखा है ।”
“इन्हें” - वो शशिबाला की तरफ इशारा करता हुआ बोला - “फिल्मों में देखा है । और इन्हें” - उसने फौजिया की तरफ इशारा किया - “मैंने पिछले साल पणजी की एक नाइट क्लब में कैब्रे करते देखा था ।”
“जार्जियो, मेरा सवाल यहां आइलैंड की बाबत था । तुम्हारे होटल की बाबत था । परसों के रोज की बाबत था ।”
“ओह !” - फिर उसने अधिकारी की तरफ उंगली उठाई - “परसों रात नौ बजे के करीब ये साहब हमारे होटल में किसी मोहिनी पाटिल को पूछते आए थे ।”
“वाह !” - अधिकारी उपहासपूर्ण स्वर में बोला - “क्या याददाश्त पायी है ! क्या सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया है ! क्या...”
“मिस्टर अधिकारी !” - सोलंकी सख्ती से बोला ।
अधिकारी तत्काल खामोश हो गया और एक सिग्रेट सुलगाने में मशगूल हो गया ।
“इनके अलावा” - फिगुएरा बोला - “कोई और भी आदमी था जो मोहिनी को पूछता तुम्हारे होटल में पहुंचा था ।” 
“जी हां ।” - जार्जियो बोला - “मैंने पहले ही बताया था । वो दूसरा आदमी रात ग्यारह बजे के करीब आया था ।”
“वो.. वो दूसरा आदमी इस वक्त यहां है ?”
“जी हां ।” - जार्जियो बोला, फिर उसने बड़े नाटकीय अन्दाज में रोशन बालपाण्डे की तरफ उंगली उठाई - “ये है वो आदमी ।”
“नहीं, नहीं ।” - आलोका तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली - “ये कैसे हो सकता है ! इस आदमी से भूल हुई है । ये तो कल शाम को यहां पहुंचे थे । परसों तो ये यहां थे ही नहीं ।”
“मैंने इन्हीं को परसों रात को अपने होटल में देखा था । ये भी इन साहब की तरह” - उसने अधिकारी की तरफ उंगली उठाई - “मोहिनी को पूछते आये थे और माकूल जवाब न मिलने पर निराश होकर चले गये थे ।”
“गलत ! बिल्कुल गलत ! तुमसे भूल हुई है इन्हें पहचानने में ?”
“मैडम” - फिगुएरा बोला - “आप एक मिनट खामोश हो जाइये !” - फिर वो जिर्जियो की तरफ घूमा - “थैंक्यू वैरी मच, जार्जियो, तुम अब जा सकते हो ।”
जार्जियो पुलसियों का अभिवादन करके और फौजिया और शशिबाला को निगाहों से ही हज्म करने की कोशिश करता वहां से विदा हो गया ।
“आप इधर मेरी तरफ देखिये ।” - फिगुएरा बालपाण्डे से बोला ।
बालपाण्डे ने हिचकिचाते हुए उसकी तरफ सिर उठाया ।
“आप परसों रात भी आइलैंड पर थे ? इनकार करने से कोई फायदा नहीं होगा । होटल क्लर्क जार्जियो अभी निर्विवाद रूप से आपकी शिनाख्त करके गया है ।”
“हां ।” - बालपाण्डे बोला ।
“परसों से ही यहां थे या जा के फिर आये थे ?”
“जा के फिर आया था । मैंने आइलैंड के दो फेरे लगाये थे । परसों रात को मैं यहां से चला गया लेकिन कल शाम को फिर वापिस लौटा था ।”
आलोका ने आहत भाव से अपने पति की तरफ देखा ।
बालपाण्डे ने मुस्कराते हुए, बड़े आश्वासनपूर्ण भाव से उसका हाथ दबाया ।
“यानी कि यहां हुए, दोनों कत्लों के दौरान आप आयलैंड पर मौजूद थे ?”
“हां ।”
“आपकी बीवी को इस बात की खबर थी ?”
“जनाब, अभी आपने सुना तो है उसकी जुबानी कि उसकी जानकारी में मैं कल शाम को ही यहां पहुंच था ।”
“मुझे याद है मैंने क्या, सुना था ।” - फिगुएरा शुष्क स्वर में बोला - “और मैं इस हकीकत से भी नावाकिफ नहीं कि भारतीय नारियां अपने मर्द की खातिर झूठ बोलने के लिये आम तैयार हो जाती हैं । अपना फर्ज मानती हैं वो उसकी खातिर झूठ बोलना ।”
“आप कहते हैं कि मेरी बीवी झूठ बोल रही है ?”
“हां ।”
“लेकिन वो मेरे यहां के पहले फेरे के बारे मे जानती नहीं हो सकती ।”
“मैडम, अपने पति की इस शंका का निवारण आप खुद करेंगी या मैं करूं ?”
आलोका ने असहाय भाव से अपने पति की तरफ देखा और फिर गरदन झुका ली ।
“ठीक है । मैं ही करता हूं ये काम । मिस्टर बालपाण्डे, आपने परसों शाम पूना से यहां अपनी बीवी को फोन किया था । ठीक ?”
“जी हां ।” - बालपाण्डे बोला - “वो अकेली यहां आयी थी । उसका हालचाल जानते रहना मेरा फर्ज था ।”
“कबूल । लेकिन फोन पर आपकी अपनी बीवी से बात नहीं हुई थी । वो फोन पर तत्काल उपलब्ध नहीं थी इसलिये आपको ये सन्देशा छोड़कर, कि आपने फोन किया था, लाइन काट देनी पड़ी थी । फिर आपकी फोनकाल के जवाब में उस रात को आपकी बीवी ने आपको पूना फोन लगाया था तो आपके नौकर ने जवाब दिया था कि साहब घर पर नहीं थे, वो एकाएक किसी जरूरी बिजनेस ट्रिप पर निकल गये थे ।”
बालपाण्डे ने हौरानी से उसकी तरफ देखा ।
“फोन को इस्तेमाल करना हमें भी आता है, मिस्टर बालपाण्डे ।”
“क्यों नहीं ?” - बालपाण्डे अनमने भाव से बोला - “क्यों नहीं ?”
“बहरहाल आपकी बीवी तभी समझ गयी थी कि बिजनेस ट्रिप के नाम पर असल में आप कहां गये होंगे । आप यहां आये थे, मिस्टर बालपाण्डे । यहां, मोहिनी से मिलने ।”
“ये कैसे हो सकता है ?” - आलोका बोली - “इन्हें क्या पता था कि मोहिनी यहां थी । मैंने तो बताया नहीं था । फिर...”
“जाहिर है कि आपने नहीं बताया था । आप कैसे बतातीं ? आपसे तो इनकी फोन पर बात हो ही नहीं पायी थी । मैडम, ये बात इन्हें उस शख्स से मालूम हुई थी जिसने कि आपकी गैर-हाजिरी में इनकी काल रिसीव की थी और इनका आपके लिये सन्देश लिया था ?”
“कि... किसने ?”
“आयशा ने । आयशा ने ही इन्हें मोहिनी की आइलैंड पर मौजूदगी की बाबत बताया था । मिस्टर ब्रान्डो की कुक रोजमेरी ने बाई चांस वो बातचीत सुनी थी । फिर आयशा से जब आपको सन्देशा मिला था तो जरूर उसने आपको ये भी बताया था कि उसने आपके पति से मोहिनी की आइलैंड पर मौजूदगी का जिक्र किया था । इस बात ने आपको फिक्रमन्द किया था और इसीलये रात को आपने अपने पति को पूना फोन किया था । उसके पूना में मौजूद ने होने का, किसी बिजनेस ट्रिप पर निकल गया होने का आपने ये मतलब लगाया था कि आपका पति यहां आइलैंड पर पहुंच गया था और अब वो मोहिनी के साथ ईस्टएण्ड पर कहीं था । इस बात ने आपको इतना हलकान किया था कि रात को आपने मिस्टर ब्रान्डो की कोन्टेसा निकाली थी और अपने पति और मोहिनी की तलाश की नीयत से ईस्टएण्ड रवाना हो गयी थीं । उस घड़ी आपकी जेहनी हालत ठीक नहीं थी इसलिये झुंझलाहट, बौखलाहट में आपने गाड़ी को कहां दे मारा था जिसकी वजह से उसका अगला बम्फर दाईं तरफ से पिचक गया था । इसीलिये गाड़ी में गिर गये अपने रुमाल की आपको खबर न हुई थी । इस बात ने आपको खौफजदा कर दिया था कि आपकी लापरवाही से पराई कार डैमेज हो गयी थी । लिहाजा आप वापिस लौट आयी थीं । ठीक ?”
आलोका ने जवाब न दिया । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“तब इरादा क्या था आपका ?” - सोलंकी ने पूछा - “आप ईस्ट एण्ड पर अपने पति को तलाश करने में कामयाब हो गयी होतीं और आपने मोहिनी को उसके साथ पाया होता तो क्या करतीं आप ?”
बालपाण्डे ने बड़े प्रदर्शनकारी ढंग से आलोका को अपनी एक बांह में घेरे में समेट लिया और सख्ती से बोला - “आप बरायमेहरबानी मेरी बीवी को हलकान न करें । इससे बेजा सवाल न करें ।”
“कोई बेजा सवाल नहीं किया जा रहा इनसे । अगर ऐसा है तो ये बताये कौन-सा सवाल बेजा है । मिसेज बालपाण्डे, जवाब दीजिये ।”
“कोई नहीं ।” - आलोका रूआंसी-सी बोला - “आपने जो कहा है, ठीक कहा है । डार्लिंग” - वो अपने पति से सम्बोधित हुई - “आई एम सारी कि मैंने तुम पर शक किया लेकिन तब इस ख्याल से ही मेरे तन-बदन में आग लग गयी थी कि... कि तुम मोहिनी के साथ हो सकते थे । फिर मुझ पर मिस्टर ब्रान्डो की काकटेल्स भी हावी थीं । डार्लिंग, मैंने उस रात जो किया जुनून में किया, वर्ना आधी रात को नशे की हालत में, गुस्से की हालत में गाड़ी लेकर सुनसान सड़कों पर निकल पड़ना क्या कोई समझदारी का काम था !”
“आई अन्डरस्टैण्ड, हनी । लेकिन तुम ऐसा क्यों समझती हो कि मैं अभी भी मोहिनी की फिराक में हूं ?”
“तुम हो । हमेशा रहोगे ।”
“ये खामख्याली है तुम्हारी ।”
“तुम यहां क्यों आये ? उससे मिलने की नीयत से ही तो ! फिर छुप के आये । मुझे खबर न की ।”
“तुम्हें खबर करता तो तुम आगबबूला हो उठतीं ।”
“लेकिन आये तो सही मोहिनी के पीछे ?”
“वो मेरी पुरानी फ्रेंड थी । मैं सिर्फ ये जानना चाहता था कि वो ठीक-ठाक थी ।”
“ठीक-ठाक को उसका क्या होना था ? ढाई करोड़ रुपये की मालकिन बनने वाली थी वो । अब उसने ठीक-ठाक ही होना था । अब उसकी क्या प्राब्लम होतीं !”
“मुझे उसके दौलत से ताल्लुक रखते नये रुतबे से कुछ लेना-देना नहीं था । मैं सिर्फ इस बात की तसदीक करना चाहता था कि वो अदरवाइज राजी-खुशी थी, वो वैसी नहीं थी जैसी कि मुझे सूरत में मिली थी या कहीं उससे भी ज्यादा फटेहाल हो गयी थी ।”
“होती फटेहाल वो तो तुम क्या करते ? उसे अडाप्ट कर लेते ? उसकी हालत सुधारने का बीड़ा अपने सिर उठा लेते ? क्या करते ?”
“मैं उसे सिर्फ ये राय देता कि अपने उस खस्ताहाल में वो तुम लोगों से न मिले, वो मिस्टर ब्रान्डो की ग्लैमरस रीयूनियन पार्टी में शरीक होने का ख्याल छोड़ दे ।”
“वो मिली आपको ?” - सोलंकी ने पूछा ।
“नहीं मिली । बहुत खाक छानी ईस्टएण्ड की लेकिन नहीं मिली ।”
“आपने बस उसी रात उसे तलाश करने की कोशिश की । अगले रोज भी ऐसी कोई कोशिश जारी न रखी ?”
“नो, सर । अगले रोज उसे तलाश करने की कोशिश करना बेमानी थी । अगले रोज तक तो उसे यहां पहुंच गया होना था, जिस काम से मैं उसे रोकना चहता था, तब तक वो उसने पहले ही कर चुकी होना था ।”
“फिर आप पूना वापिस लौट गये ?”
“नो, सर । इतनी रात गये पूना लौटना तो सम्भव नहीं था । अलबत्ता मैं पणजी लौट गया जहां से कि मैंने पूना के लिये अर्ली मार्निंग फ्लाइट पकड़ ली थी ।”
“मोहिनी के पीछे इतनी दूर भाग चले आये ।” - आलोका ने शिकवा किया ।
“सिर्फ दोस्ती की खातिर । उसके वैलफेयर की खातिर ।”
“मुझ से छुपाकर रखा ।”
“तुम्हारी खातिर मैं तुम्हारे दिल को ठेस नहीं लगाना चाहता था ।”
“वो तो लग चुकी ।”
“तुम पागल हो । नादान हो । मेरी जिन्दगी में जो रोल तुम्हारा है वो किसी दूसरी औरत का नहीं हो सकता । मोहिनी का भी नहीं । मेरे दिल में कभी मोहिनी के लिये कुछ था तो उसे तुम कब का रुख्सत कर चुकी हो । बस ! यही हकीकत है ।”
“सब लिफाफेबाजी है । जिसमें कि हर मर्द प्रवीण होता है ।”
“अब तो मुझे तुम्हारी सूरत वाली कहानी पर भी विश्वास नहीं । तुम जरूर वहां उसके साथ गुलछर्रे उड़ाते रहे थे । असलियत कुछ और ही है और कह दिया कि सिनेमा पर थोड़ी देर को मिली थी और अगले रोज लंच अप्वायन्टमैंट पर नहीं आयी थी ।”
“तौबा !”
“मैं पूछती हूं तुम सिनेमा पर क्या कर रहे थे ?”
“बड़ी देर से पूछना सूझा ! कल तो ऐसा कोई सवाल तुम्हारी जुबान पर नहीं आया था ।”
“अकेले सिनेमा देखने जाने का शौक कब से हो गया तुम्हें ?”
“मैं सिनेमा देखने नहीं गया था । मैं तो सिनेमा के आगे से गुजर रहा था जबकि इत्तफाक से ही वो मुझे लॉबी में दिखाई दे गयी थी ।”
“झूठ ! बिल्कुल झूठ !”
“अगर मेरे मन में कोई मैल होता तो मैं पूना लौटकर तुम्हें बताता ही क्यों कि सूरत में मुझे मोहिनी मिली थी ?”
“उसकी भी होगी कोई वजह ।” - आलोका ढिठाई के साथ बोली ।
“लानत ! हजार बार लानत ! तुम औरतों को तो...”
“मिस्टर बालपाण्डे” - सोलंकी बेसब्रेपन से बोला - “आप जरा इधर मेरी तरफ तवज्जो दीजिये ।”
“यस, सर ।”
“आपने कहा था कि सूरत में वो आपको बहुत उजड़ी हुई-सी, किसी बुलन्द इमारत के खण्डर जैसी लगी थी । आपको फिक्र ये थी कि ऐसी ही हालत में वो यहां मिस्टर ब्रान्डो की पार्टी में न पहुंच गयी होती ?”
“हां । इतनी शानदार लड़की के लिये उसकी वो खस्ता हालत भारी जिल्लत और रुसवाई का बायस बन सकती थी ।”
“आपको इस बात से इतमीनान होना चाहिये, तसल्ली महसूस होनी चाहिये कि आखिरकार वो अपनी पुरानी ग्लोरी, पुरानी शानो-शौकत पर लौट आयी थी । परसों सुबह मिसेज सुनेत्रा निगम ने उसे वैसी ही जगमग-जगमग देखा था जैसी कि वो सात साल पहले थी ।”
सुनेत्रा का सिर स्वयंमेव ही सहमति में हिला ।
“तब उसकी शानो-शौकत में, ग्लैमर में कोई कमी नहीं थी ।” - वो बोली - “कोई कमी थी तो उसके उस वक्त के मूड में । मैं पहले ही बता चुकी हूं कि बहुत परेशान, बहुत फिक्रमन्द लग रही थी ।”
“वो एक जुदा मसला है । मूड कभी भी किसी का भी तब्दील हो सकता है । लेकिन वो एक वक्ती बात होती है । बहरहाल हकीकत ये है कि मोहिनी की बाबत मिस्टर बालपाण्डे की फिक्र बेमानी थी, बेबुनियाद थी और इतनी शिद्दत और जहमत के काबिल नहीं थी जितनी कि इन्होंने पूना टु गोवा में अप डाउन करके उठाई । अब आप बरायमेहरबानी मुझे ये बताइये कि असल बात क्या थी ?”
“असल बात ?” - वो सकपकाया ।
“जी हां । असल बात । वो बात जिसका कल जिक्र करना आपने मुनासिब न समझा । और ये कहने से काम नहीं चलेगा कि ऐसी कोई बात नहीं ।”
“माई डियर, सर । जिस बात का जिक्र कल मुनासिब नहीं था, वो आज कैसे मुनासिब हो जायेगा ?”
“क्या मतलब ?”
“उस बात से आपको कुछ होने वाला नहीं है । ऊपर से उसका यहां इतने लोगों के सामने” - उसकी निगाह पैन होती हुई तमाम सूरतों पर घूमी - “जिक्र करना मोहिनी के साथ ज्यादती होगी ।”
सोलंकी कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने आगे बढकर बालपाण्डे की बांह थामी और उसे अपने साथ चलाता हुआ स्विमिंग पूल के सिरे पर ले गया । सबके चेहरे पर गहन उत्सुकता के भाव प्रकट हुए, सब कान खड़े करके कुछ सुनने की कोशिश करने लगे । सिवाय टीना के ।
उसकी इस बात में कतई कोई दिलचस्पी नहीं मालूम होती थी कि बालपाण्डे मोहिनी के बारे में क्या नया रहस्योद्घाटन करने जा रहा था ।
जोकि मुकेश के लिये हैरानी की बात थी ।
***
सफेद टयोटा उन्हें गैरेज में खड़ी मिली ।
“ये तो राइट हैण्ड ड्राइव है ।” - मुकेश बोला - “स्टियरिंग दाईं तरफ है । हमारे यहां की कारों की तरह ही ।”
टीना ने सहमति में सिर हिलाया और बोली - “अब इसका क्या मतलब हुआ ?”
“इसका मतलब यह हुआ कि इस कार को चलाते हुए इसके मालिक विकास निगम की बाई बांह धूप में नहीं झुलस सकती । इसका आगे मतलब ये हुआ कि कार को निगम नहीं चला रहा था, वो ड्राइवर के साथ बायें, पैसंजर सीट पर था । इसी वजह से तीखी धूप ने उसकी बायीं बांह पर असर किया था, उसकी बायीं बांह सनबर्न का शिकार हुई थी ।”
“यानी कि अपनी कार पर निगम यहां आइलैंड पर अकेला नहीं पहुंचा था ।”
“ये तो पक्की बात है कि सफर में कोई उसके साथ था । लेकिन जरूरी नहीं कि वो पूरे सफर में ही उसके साथ रहा हो । मुमकिन है आगरा से रवाना होने के बाद उसने किसी को पिक किया हो और पणजी या उससे पहले कहीं उसे उतार दिया हो ।”
“किसी को लिफ्ट दी होगी उसने ?”
“हो सकता है ।”
“कैसे हो सकता है ? कोई किसी को लिफ्ट देता है तो क्या गाड़ी उसे चलाने को कहता है ?”
“ये भी ठीक है ।”
“ऊपर से तुम एक बात भूल रहे हो । निगम जब अपनी कार पर यहां पहुंचा था तो उसने इस बात पर विशेष जोर दिया था कि आगरे से लेकर यहां तक का उन्नीस घण्टे का लम्बा और बोर सफर उसे अकेले - आई रिपीट, अकेले - काटना पड़ा था । अब जरा सोचो कि अगर उसने रास्ते में किसी को लिफ्ट दी होती तो क्या वो ऐसा कहता ?”
“नहीं, तब तो वो कहता कि उसने किसी को लिफ्ट दी ही इसी वजह से थी कि उसे अकेले बोर न होना पड़ता ।”
“सो, देअर यू आर ।”
“लेकिन कोई उसके साथ था जरूर । उसकी झुलसी हुई बायीं बांह इस बात की साफ चुगली कर रही है कि उसके साथ कोई था जो उसकी जगह गाड़ी चला रहा था, जो लिफ्ट नहीं था, जिसकी अपने साथ मौजूदगी को वो छुपाकर रखना चाहता था और जो, कोई बड़ी बात नहीं कि, आइलैंड तक उसके साथ आया था ।”
“यहां तक ?”
“हां । पुलिस ने भी इस बात पर शक जाहिर किया था । तभी तो वो इंस्पेक्टर सोलंकी बार-बार उससे पूछ रहा था कि क्या पिछली रात उसके साथ कार में कोई था ।”
“ये कोई कौन होगा ?”
“तुम बताओ ।”
“मैं क्या बताऊं ?”
“शर्तिया कोई लड़की थी ।”
वो एक नयी आवाज थी जिसने दोनों को चौंकाया । दोनों ने एक साथ घूमकर पीछे देखा तो गैरेज के फाटक की ओट से उन्हें शशिबाला निकलती दिखाई दी ।
“हल्लो !” - वो करीब आकर बोली ।
“छुप-छुपके किसी की बातें सुनना” - टीना भुनभुनाई - “तहजीब के खिलाफ होता है ।”
“ये तहजीब वालों के सोचने की बातें हैं, मेरी जान, हमने ऐसी बातों से क्या लेना-देना है !”
टीना ने बुरा-सा मुंह बनाया ।
“और फिर ऊचा-ऊंचा तो तुम लोग बोल रहे थे ।”
“ऊंचा तो नहीं बोल रहे थे हम ।” - मुकेश बोला ।
“जरूर इस गैरेज में आवाज गूंजती होगी ।”
“ये गैरेज है” - टीना बोली - “मकबरा नहीं है ।” 
शशिबाला हंसी ।
“तो” - मुकेश बोला - “आपका ख्याल है कि विकास निगम के साथ कोई लड़की थी ?”
“हां ।” - शशिबाला बोली ।
“कैसे कह सकती हैं, आप ?”
“भई तुम विकी को नहीं जानते, मैं जानती हूं । उन्नीस घण्टे बोर होते गुजारने वाली किस्म का आदमी नहीं है वो ।”
“लेकिन लड़की...”
“ही इज ए लेडीज मैन । मर्दों में दिल नहीं लगता उसका ।”
“हनी” - एकाएक टीना बोली - “अगर तुम चाहती हो कि मुकेश तुम्हारी बात ठीक से सुन समझ सके तो बाइस्कोप बन्द कर लो ।”
“बाईस्कोप !” - शशिबाला सकपकाई ।
“हां ।”
तब उसकी तवज्जो अपने साड़ी के ढलके हुए पल्लू की तरफ गयी । उसने पल्लू को अपने उन्नत वक्ष पर व्यवस्थित किया और मुस्कराती हुई मुकेश से बोली - “अब ठीक सुनाई दे रहा है ?”
“हां ।” - मुकेश बोला - “बात विकी की हो रही थी ।”
“हां । टीना, तुम तो विकी को मेरे से बेहतर जानती हो, तुम्हीं ने इसे अपने विकी की खूबियां बतायी होतीं । इसे समझाया होता कि कोई हसीना ही हो सकती थी गाड़ी में विकी के साथ । सुनेत्रा उसे विलायती कार ले के देती है जो कि विकी का खिलौना है, जिसके साथ कि वो ‘टयोटा टयोटा’ खेलता है । अपने खिलौने को वो अपने जैसे किसी के हवाले भला कैसे कर सकता है ? लेकिन किसी नन्ही मुन्नी गुड़िया को वो अपने खिलौने से खेलने दे सकता है । किसी नौजवान, हसीन, दिलफरेब, तौबाशिकन लड़की को अपनी कार चलाने दे सकता है वो ।”
“मैं तुम्हारे जितना नहीं जानती विकी को लेकिन तुम्हारी बात ठीक है । कोई लड़की ही होगी उसके साथ । लेकिन होगी कौन वो ?”
“होगी कोई हमनशीं, हमसफर, दिलनवाज ।”
“मोहिनी ।” - मुकेश धीरे से बोला ।
“क्या !”
“क्या पता मोहिनी उसके साथ आइलैंड पर आई हो !”
“ये कैसे हो सकता है ?” - टीना बोली - “ब्रान्डो कहता है कि मोहिनी तो परसों दोपहर से आइलैंड पर थी जबकि विकी तो कल आया था ।”
“कहां कल आया था ? ब्रान्डो की एस्टेट पर । वो आइलैंड पर कब से था, इसका हमें क्या पता ?”
“सुनो, सुनो ।” - शशिबाला बोली - “ब्रान्डो कहता था कि मोहिनी ने दोपहर के करीब उसे पायर से फोन किया था और उसे बताया कि देर रात गये तक उसे ईस्टएण्ड पर काम था । हममें से हर किसी के लिये ये बात एक पहेली है कि आखिर मोहिनी को क्या काम था ईस्टएण्ड पर जिससे कि वो रात दो बजे तक फारिग नहीं होने वाली थी ! जो बातें विकी को लेकर हम लोगों के बीच हो रही हैं, उनकी रू में अब वो काम समझ में आता है । वो काम था कामदेव का अवतार लगने वाले मिस्टर सुनेत्रा निगम उर्फ विकास निगम उर्फ विकी बाबा के साथ ऐश लूटना । ऐसा ही जादूगर है अपना विकी बाबा । चन्द घड़ियां कोई लड़की उसके साथ गुजार ले तो वो नशे की तरह उस पर हवी हो जाता है । सुध-बुध भुला देता है । टयोटा में सफर के दौरान जरूर मोहिनी भी उस जादू की गिरफ्त में आ गयी होगी ।”
“ओह !”
“मोहिनी ने ब्रान्डो को ये भी कहा था कि अगले रोज दोपहर तक उसने वापिस चले जाना था । जरूर उसका वापिसी का सफर भी विकी के साथ उसको टयोटा पर ही होने वाला था । यहां एस्टेट पर हाउसकीपर के कत्ल के साथ हंगामा न खड़ा हो गया होता और मोहिनी को अपनी जान बचाने के लिये एकाएक मुंह-अन्धेरे यहां से भागना न पड़ गया होता तो किसी को भनक भी नह लगती विकी की आइलैंड पर मौजूदगी की या उसकी मोहनी से किसी जुगलबन्दी की ।”
तभी सुनेत्रा वहां पहुंची जिसे देखते ही शशिबाला खामोश हो गयी ।
“मेरे हसबैंड की क्या बात हो रही थी ?” - वो सशंक भाव से बोली ।
“कुछ नहीं ।” - शशिबाला विचलित भाव से बोली ।
“कुछ कैसे नहीं ! मोहिनी से कैसे रिश्ता जोड़ रही थीं तुम उसका ?”
“सुनेत्रा, क्या बात है, तू तो हर वक्त लड़ने को तैयार रहती है ?”
“विकी पर इलजाम लगाकर तू अपनी जान सांसत से नहीं छुड़ा सकती । समझ गयी ।”
“मेरी जान ! सांसत !”
“अब जबकि स्थापित हो चुका है कि मोहिनी की वापिसी तेरे पूरे वजूद के लिये खतरा बन सकती थी तो तू चाहती है कि शक की सूई किसी और पर जाकर टिक जाए और तू...”
“तू... तू पागल है ।”
“मैं पागल हूं !” - सुनेत्रा आंखें निकालकर बोली - “तू ये कहने का हौसला कर सकती है कि मोहिनी की वापिसी से तुझे कोई खतरा नहीं है ?”
“इसमें हौसला कर सकने वाली कोई बात नहीं । ये हकीकत है ।”
“क्या हकीकत है ?”
“वही जो मैं पहले भी कह चुकी हूं । ढाई करोड़ रुपये की मोटी रकम की मालकिन बनने को तैयार मोहिनी अब आनन-फानन फिल्म कान्ट्रैक्ट की तरफ नहीं भागने वाली थी । न ही वो अधिकारी को ओब्लाइज करने के लिये, उसे पांच लाख रुपये का बोनस कमाने का मौका देने के लिये, कॉन्ट्रैक्ट साइन करने वाली थी । और ये न भूल, देसाई उसका दीवना था, वो देसाई की दीवानी नहीं थी । होती तो उसकी पेशकश कब की कबूल कर चुकी होती । मेरी बन्नो, ये तेरी खुशफहमी है, उन पुलिस वालों की भी खुशफहमी है, कि मैंने मोहिनी का कत्ल इसलिये किया हो सकता है क्योंकि उसकी वापसी से मेरे फिल्मी कैरियर को खतरा था । तीन-चौथाई बन चुकी बिग बजट फिल्म में से हिरोइन को एकाएक निकाल बाहर करना कोई हंसी-खेल नहीं होता । इतना नुकसान कोई नहीं झेल सकता, भेल ही वो ग्रेट दिलीप देसाई हो । और फिर ये न भूल कि ऐसे मामलों के लिये कोर्ट के दरवाजे भी खुले हैं । मेरा इस स्टेज पर ‘हार-जीत’ से बाहर होने का मतलब ये होगा कि सात जन्म वो फिल्म पूरी नहीं होने वाली ।”
“हल्लो, ऐवरीबाडी ।” - एकाएक धर्मेन्द्र अधिकारी वहां प्रकट हुआ - “भई, ‘हार-जीत’ की क्या बात चल रही हैं यहां ? और हमारी हीरोइन तमतमाई हुई क्यों दिखाई दे रही है ? कोई बखेड़े वाली बात है तो अब फिक्र न करना, शशि बेबी । मैं आ गया हूं ।”
फिर उस पिद्दी से आदमी ने यूं शान से छाती फुलाई जैसे वो सुपरमैन हो ।
“ले, आ गया तेरा सैक्रेट्री ।” - सुनेत्रा बोली - “अब इसे बोल कि एक अच्छे बच्चे की तरह कत्ल का इलजाम ये अपने सर ले ले ताकि तेरी जान छूटे ।”
“भई, क्या हो रहा है यहां ?” - अधिकारी बोला ।
“रेवड़ी बंट रही है कत्ल के इलजाम की ।” - टीना बोली - “तुम्हें भी चाहियें !”
“मैंने तो नहीं लगाया किसी पर कत्ल का इल्जाम ।” - शशिबाला बोली - “मेरा मतलब है अभी तक ।”
“अब आगे क्या मर्जी है ?” - सुनेत्रा बोली ।
“सुनना चाहती है, मेरी बन्नो ?”
“जैसे मेरे इनकार करने से तू बाज आ जायेगी ।”
“नहीं, अब तो बाज नहीं आने वाली मैं । अब तो मेरे खामोश होने से तू और पसर जायेगी ।”
“क्या कहना चाहती है ?”
“वही जो तेरा दिल जानता है । और अब दुनिया भी जानेगी । तू मोहिनी का जिन्दा रहना अफोर्ड नहीं कर सकती थी ?”
“क्यों ? अफोर्ड नहीं कर सकती थी ?”
“क्योंकि मोहिनी तेरा पति, तेरा खास खिलौना, तेरा स्टेटस सिम्बल तेरा विकी बाबा तेरे से छीन सकती थी । नौजवानी और खूबसूरती में तो वो तेरे सक इक्कीस थी ही, ऊपर से वो ढाई करोड़ रुपये की मोटी रकम की मालकिन बनने वाली थी । और ऊपर से विकी शुरु से, मोहिनी का दीवाना था । हर घड़ी कुत्ते की तरह उसके लिये लार टपकाता रहता था । पणजी की वो पार्टी तू भूली नहीं होगी जिसमें नशे में विकी ने मोहिनी को अपनी बांहों में ले लिया था । तब लोगों के बीच-बचाव से ही विकी की जानबख्शी हो पायी थी वर्ना श्याम नाडकर्णी ने तो उसकी उस करतूत की वजह से उसके हाथ-पांव तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।”
“मुझे याद है वो घटना ।” - अधिकारी बोला - “लेकिन कोई मेरे से पूछे तो मेरा जवाब आज भी ये ही होगा कि उस घटना से सारा कसूर मोहिनी का था ।”
“मोहिनी का था ?” - मुकेश हैरानी से बोला ।
“सरासर मोहिनी का था । ऐसी बला की हसीन लग रही थी उस रोज कि पीर-पैगम्बरों का ईमान डोल सकता था उस पर । अपना विकी तो बेचारा न पीर था, न पैगम्बर । मैं तो कहता हूं कि किसी औरत को इतना हसीन-तरीन दिखने का अख्तियार होना ही नहीं चाहिये कि...”
“ओह, शटअप ।” - टीना मुंह बिगाड़कर बोली ।
“शटअप तो मैं हो जाता हूं लेकिन हकीकत यही है कि उस रात उस पार्टी में विकी ने वही किया था जो कि वहां मौजूद हर मर्द करना चाहता था । मैं भी ।”
“तुम मर्द हो ?”
“आजमा के देखा तो पता चले ।”
“आजमाने लायक कुछ दिखाई दे तो आजमा के देखूं न ! जितने तुम टोटल हो, उतना तो मैं ब्रेकफास्ट करती हूं । तुम तो मैं” - उसने गाल फुलाकर जोर से फूंक मारने का एक्शन किया - “फूंक मारूंगी तो उड़ जाओगे ।”
“वहम है तुम्हारा । टीना डार्लिंग, तुम जानती नहीं हो कि वो ‘देखन में छोटो लगत घाव करत गंभीर’ इस खाकसार की बाबत ही कहा गया है ।”
“ओह, शटअप आलरेडी । विकी ने उस पार्टी में मोहिनी के साथ वो हरकत महज सुनेत्रा को जलाने के लिये की थी । क्या भूल गये कि उन दिनों हम सुनेत्रा को कितना छेड़ा करते थे कि वो तो मीराबाई की तरह विकी की प्रेमदीवानी बनी हुई थी ।”
“विकी बेरोजगार था ।” - शशिबाला बोली - “लेकिन बदकिस्मती से नहीं, बदनीयती से । वो कामचोर बेरोजगार था जिसका काम करने का कभी कोई इरादा ही नहीं था । इसीलिये उसने कमाने वाली बीवी पटाई । लोग कहते थे कि ये महज इत्तफाक था कि विकी ने सुनेत्रा से तब शादी की थी जब कि इसके हाथ अपने एक बेऔलाद मामा का दिल्ली में जमा-जमाया बिजनेस लग गया था - ये ‘एशियन एयरवेज’ की मालिक बन गई थी लेकिन हकीकत ये है कि विकी ने इससे शादी की ही तब थी जबकि अपने मामा का वो जमा-जमाया बिजनेस इसके हाथ लगा था ।”
“गलत । बिल्कुल गलत । विकी को पैसे की परवाह नहीं थी । वो पैसे के पीछे नहीं भगता था ।”
“वो क्यों भागता ? जबकि पैसा उसके पीछे भागता था । तू दौड़ाती थी पैसे को उसके पीछे । आज भी दौड़ाती है । वैसी खिदमत करती है तू विकी की जैसी मर्द लोग अपनी किसी रखैल की करते हैं । उसकी हर ख्वाहिश पूरी करती है तू । उसे कीमती खिलौने ले के देती है । मेरी बन्नो, एक बार विकी की अपनी इस खिदमत से हाथ खींच और फिर देख कि तू कहां और विकी कहां !”
“तू पागल है । वो ऐसा नहीं है ।”
“किसे बहका रही है । कोई नहीं बहकने वाला । सिवाय तेरे । मेरी जान, बकौल तेरे अगर मोहिनी पहले से भी ज्यादा हसीन लग रही थी तो वो तेरे लिये पहले से भी ज्यादा खतरा थी क्योंकि खुद तेरे बारे में तो नहीं कहा जा सकता कि तू पहले से ज्यादा हसीन है आज की तारीख में । ऊपर से तुझे तो मोहिनी की तरह ढाई करोड़ की रकम से कोई नहीं नवाजने वाला । अब इन तमाम बातों पर गौर करके ईमानदारी से जवाब दे कि अगर मोहिनी तेरा विकी नाम का खिलौना तेरे से छीन लेना चाहती तो वो कामयाब होती या नहीं ?”
“यूं” - अधिकारी ने चुटकी बजायी - “कामयाब होती ।”
“और तू क्या अपना खिलौना, अपना नाजों से पाला स्टडबुल, छिन जाने देती ? नहीं छिन जाने देती तो तू क्या करती ?”
“ये” - अधिकारी नेत्र फैलाता हुआ बोला - “मोहिनी का खून कर देती । वो कहते नहीं है कि न रहे बांस न बजे बांसुरी । यानी की न रहे सौत न निकसें बलमा ।”
“अब, मेरी रसभरी, तू ये साबित करके दिखा कि जो कुछ मैंने कहा है, वो गलत है ।”
सुनेत्रा के मुंह से बोल न फूटा ।
“देखा !” - अधिकारी हर्षित भाव से बोला - “देखा मेरी पट्ठी का कमाल !”
“देखा” - सुनेत्रा रूआंसी-सी बोली - “उल्लू की पट्ठी का कमाल ।”
“अरे !” - अधिकारी बड़बड़ाया - “मुझे उल्लू कहती है ।”
“जिसने जितना भौंकना है, भौंक ले लेकिन मैं जानती हूं कि विकी सिर्फ मुझसे प्यार करता है । वो मेरे सिवाय किसी का नहीं हो सकता ।”
“हा हा हा ।” - शशिबाला ने बड़े नाटकीय अन्दाज से अट्टाहास किया ।
सुनेत्रा एकाएक घूमी और पांव पटकती हुई वहां से रुख्सत हुई ।
फिर शशिबाला भी बड़ी शाइस्तगी से वापिस चली तो फुदकता-सा अधिकारी भी उसके पीछे हो लिया ।
“आओ, हम भी चलें ।” - मुकेश बोला । 
“जरा रुको ।”
“क्यों ? क्या हुआ ?”
“मुझे एक बात सूझी है ।”
“क्या ?”
“हम बार-बार विकास निगम की झुलसी बांह का जिक्र करते हैं लेकिन हमने एक बार भी इस बात का ख्याल नहीं किया कि जैसे पैसेन्जर सीट पर बैठे-बैठे उसकी बाईं बांह सनबर्न से झुलसी थी, वैसे कार चलाते ड्राइवर की दाई बांह भी तो झुलसी होगी । नहीं ?”
“हां ।”
“अभी-अभी शशिबाला ये दावा करके गई है कि विकास के साथ होगी तो कोई लड़की ही होगी ।”
“मैंने बोला तो था कि वो लड़की मोहिनी हो सकती है ।”
“मुझे कोई और कैण्डीडेट सूझ रहा है ।”
“कौन ?”
“फौजिया ।”
“फौजिया ?”
“जरा उसकी पोशाकों को याद करने की कोशिश करो । अपनी यहां मौजूदगी के दौरान उसे जब भी, जो भी पोशाक पहनी, है भले ही वो जीन हो, स्कर्ट हो, साड़ी हो, शलवार-कमीज हो, उसकी स्कीवी या ब्लाउज या कमीज की आस्तीन कलाई तक आने वाली थी । अभी भी स्कर्ट के साथ जो कालर वाली कमीज वो पहने थी, वो सामने से तो नाभि तक खुली मालूम होती थी लेकिन उसकी आस्तीनें बटनों द्वारा कलाई के करीब बन्द थीं ।”
“तो ?”
“तो क्या ? समझो ।”
“वो सनबर्न छुपाने के लिये लम्बी आस्तीन वाली शर्ट वगैरह पहन रही है ?”
“क्या नहीं हो सकता ?”
“हो तो सकता है लेकिन इस बात की तसदीक कैसे हो ?”
“कैसे हो ?”
“तुम लड़की हो । उसकी सखी हो । फैलो बुलबुल हो । तुम्हीं कोई ताक-झांक करने की कोशिश करो ।”
“एक आसान तरीका भी है ।”
“क्या ?”
“मैं किसी बहाने से उसकी दाई बांह थाम लेती हूं । मेरे ऐसा करने पर अगर वो भी वैसे तड़पती है जैसे ब्रान्डो के बांह पकडने पर विकास तड़पा था तो इसका साफ मतलब ये होगा कि ब्रान्डो की बाई बांह की तरह उसकी दाई बांह धूप में झुलसी हुई है और ये कि वो ही उसकी लम्बें सफर की संगिनी थी ।”
“ठीक है । तुम करना कुछ ऐसा ।”
टीना ने सहमती में सिर हिलाया । फिर वे वापिस लौटे ।