उस दृश्य को देखकर दिव्या और देवांश ऐसे हकबकाये कि काफी देर तक मुंह से आवाज न निकल सकी राजदान ने ही पूछा उनसे-“पियोगे?”


“अ-आप|” देवांश के मुंह से निकला-"भैया आप व्हिस्की पी रहे हैं?" 


“बुराई है कुछ?" उसने हल्के सुरूर में झूमते हुए कहा था।


"ह-हम पहली बार देख रहे हैं।" दिव्या ने खुद को संयत रखने की भरपूर चेष्टा की थी। 


राजदान ने कहा-“आखिरी बार भी।”


"क्या मतलब?"


"बेकार के शब्द मत बोलो। मतलब अच्छी तरह समझ में आ रहा है। 'मरने' की बात कर रहा हूं मैं पहली और आखिरी बार पी रहा हूं। यह लाजवाब चीज यह सोचकर कि जब ऊपर पहुंचू और इन्द्र देव पूछे-"मेरी प्रिय चीज कभी पी या नहीं? तो शर्म से आंखे न झुक सकें मेरी "


“बड़ी अजीब-अजीब बातें कर रहे हैं आप?”


"हां कर तो रहा हूं। महसूस भी हो रहा है कुछ अजीब बातें कर रहा हूं। अब इसी को लो न-जब कोई कमरे में आता है तो मेजबान उससे बैठने के लिए कहता है। मगर मैंने नहीं कहा। सीधे-सीधे यही पूछ लिया - पियोगे?" वाकई अजीब बात हुई।" कहने के बाद विचित्र ढंग से ठहाका लगाकर हंसने लगा वह। ठहाके के साथ कुछ ऐसी आवाज निकल रही थी मुंह से कि दिव्या और देवांश ने अपने जिस्मों में थरथराहट सी महसूस की। कोशिश के बावजूद वो कुछ बोली नहीं सके। हंसने के बाद राजदान ने कहा -“खैर! जवाब नहीं दिया तुमने, पियोगे?"


देवांश ने थोड़े नाराजगी भरे स्वर में कहा-“आप मुझे नशे में लगते है।"


“यानी कामयाब हो गया पीना? आदमी इसे पिये और नशे में न लगे। ये भी कोई बात हुई?" 


“मगर क्यों?” देवांश गुराया-"क्यों आप?"


“पीनी पड़ी छोटे। क्या करता? जो कुछ करने वाला हूं, कई रातों से करने की कोशिश कर रहा था मगर हौसला नहीं जुटा सका। किसी ने सुना था-हौंसला जुटाने की यह सबस उत्तम दवा है। और सच पाया है-देख मैं पूरा हौंसला महसूस कर रहा हूं खुद मैं विश्वास है मेरे अंदर, वो कर सकूंगा जो करना चाहता हूं।"


“क्या करना चाहते हैं आप?”


“ध्यान से देख मुझे अभी-अभी नहाया हूँ, शेव बनाई है। कपड़े पहने हैं जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। क्या मुझे देखकर तुझे उस बकरे की याद नहीं आ रही जिसे ईद के दिन हलाल किया जाता है? इसी तरह नहलाया- धुलाया जाता है उसे। और बकरे को ही क्यों? हमारे धर्म में तो अंतिम संस्कार से पहले आदमी को भी नहलाया जाता है। इसीलिए नहाया हूं। ताकि तुम्हें बाद में जहमत न उठानी पड़े। उस रात भी इसीलिए नहा रहा था। लेकिन तुम टपक पड़े। आज मैंने खुद बुलाया है। जानते हो क्यों? क्योंकि मैं जानता हूं-कोशिश बावजूद आज तुम मुझे बचा नहीं सकते। आज तो मरकर ही रहूंगा मैं खुद करूंगा अपना कत्ल"


“क्या आपने हमें यही बकवास सुनाने के लिए बुलाया था?”


“बकवास!” एक-एक शब्द चबाया राजदान ने-"वाह छोटे वाह! बगैर पिये बड़ा हौसला पैदा हो गया यार तुझमें तो मेरी बात को अपने बड़े भाई की बात को बकवास कहने लगा।"


“जब तू कह रहा है तो ठीक ही कह रहा होगा। गलत तो तू कभी कह ही नहीं सकता। मान लेता हूं यकीन। बकवास ही कर रहा होऊंगा मैं।"


‘प-प्लीज! समझने की कोशिश कीजिए ।" दिव्या ने बात को संभालने की गर्ज से कहा-“इस वक्त आप जो कुछ बोल रहे हैं, आप नहीं शराब बोल रही है।"


“करेक्ट बिल्कुट करेक्ट और इसीलिए वह बकवास है । क्यों छोटे?"


देवांश ने नाराजगी के उसी आलम में कहा-“मैं केवल यह जानना चाहता हूं, आपने हमें बुलाया क्यों है?"


“बहुत याद आ रही थी तेरी। बल्कि तुम दोनों की " भावुक स्वर में कहने के बाद उसने गिलास उठाया और पक्के शराबी की तरह एक ही झटके में पीने के बाद वापस मेज पर पटक दिया। सिगार में जोरदार कश लगाया। उस वक्त उसके मुंह से निकला गाढ़ा धुआं छोटे मोट बादल की तरह नशे के कारण तमतमा रहे चेहरे का ढके हुए था। जब उसने कहना शुरू किया- "तुम्हे याद है दिव्या, कितना प्यार किया है मैंने तुम्हें? अनाथ आश्रम में पली-बढ़ी थी तुम उन अभागे बच्चों में से एक थीं। जिनके मां-बाप का पता नहीं होता। उस वक्त 'राजदान एसोसिऐट्स' अपने शबाब पर थी। एक से एक बड़ा सेठ अपनी लड़की का रिश्ता करने को तैयार था मुझसे परन्तु मैंने सोचा मेरे लिए वह लड़की ठीक रहेगी जिसने बचपन से अभाव देखे हो। अपनो का प्यार न पा सकी हो। बहरहाल, मैं खुद भी तो ऐसा ही था। सो, इस बहाने एक और जिन्दगी को संवारने का ख्वाब देखा था मैंने। फिर उसे पूरा भी किया । अनाथ आश्रम की एक लड़की को इस महल की रानी बना दिया। गहनों से लाद दिया। जिन्दगी का कोई सुख-चैन ऐसा नहीं था जो पैसे से खरीदा जा सकता था और तुम्हें हासिल नहीं था, परन्तु इस वक्त मैं उस सुख की नहीं बल्कि उन सबसे बड़े, उस सुख की बात कर रहा हूं जो मैंने तुम्हें अपने दिल की पटरानी बनाकर दिया था। बोलो यह सुख मैंने तुम्हें दिया या नहीं?"


"मेरी समझ में नहीं आ रहा, आप कहना क्या चाहते हैं?"


“जवाब तो दो, मैंने तुम्हें अपने दिल की पटरानी बनाकर रखा या नहीं।" 


"इससे कब इंकार किया मैंने?”


“क्या इससे ज्यादा भी एक लड़की को कुछ चाहिए?"


“नहीं।" 


“कितना प्यार किया मैंने तुम्हे?"


“दिव्या चुप रही।"


“जवाब दो मेरी देवी।"


“बेइंतहा।"


"इतना ज्यादों इतना ज्यादा कि कनाडा से लौटते ही मैंने तुम्हें अपने एड्स के बारे में बता दिया। केवल इसलिए क्योंकि ये जानलेवा बीमारी में तुममे प्रविष्ट करना नहीं चाहता था। चाहता तो तुम्हें भी उसी नर्क में घसीट सकता था। जिसमें खुद गिर चुका था मगर नहीं- मैंने ऐसा नहीं किया। यह थी मेरे प्यार की पराकाष्ठा। मैं तुम्हें दुनिया के हर पति से ज्यादा प्यार करने का दावा तो नहीं करता मगर यह दावा जरूर कर सकता हूं कि तुम्हें मैंने अपने जिस्म की आत्मा बना लिया था। वह, जो अगर जिस्म से जुदा हो जाये तो जिस्म निर्जीव हो जाया है, सड़ने लगता है। किसी काम का नहीं रहता।"


“समझ में नहीं आ रहा भैया, ये बातें क्यों छेड़ रहे हैं आप?


“नहीं आयेगा छोटे। फिलहाल तेरी समझ में इन बातों का मतलब इसलिए नहीं आयेगा क्योंकि तू मौत की दहलीज पर नहीं खड़ा है। मरते हुए आदमी को वह सब याद आता है जो उसने किसी के लिए किया हो या किसी ने उसके लिए किया हो।" लम्बी सांस लेने के बाद वह कहता चला गया-“अब खुद ही को ले। मां-बाप नहीं रहे तो मैं तेरी मां भी बना, बाप भी बना। मैंने जो भी किया, वो सब मेरा एहसान नहीं है। तुझ पर वो सब तो तेरे प्रति अपने प्यार की खातिर किया मैंने। और एक पराकाष्ठा इस प्यार की भी थी। गवाह दिव्या खुद है। तेरी खातिर कभी बाप नहीं बना मैं। मां नहीं बनने दिया दिव्या को। अपने प्यार का इससे बड़ा सुबूत एक बड़ा भाई छोटे भाई को और क्या दे सकता है?”


“सबूत की जरूरत उसे होती है भैया जो मान न रहा हो। मैंने तो हमेशा दिल से माना है दुनिया का कोई बड़ा भाई छोटे भाई को उतना प्यार नहीं दे सकता जितना आपने मुझे दिया है।"


दांत भींचे राजदान ने झटके से एक सोडा खोला।

उसकी इस हालत को देखकर देवांश को लगा- ठीक ही कह रही है दिव्या हार्ट अटैक से मरने के बहुत करीब है वह। अतः अंतिम प्रहार करने की गर्ज से बोला“आंखे क्यों बंद कर लीं राजदान ? देखना ही चाहता है तो देख। हम तेरे साथ व्हिस्की ही नहीं पियेंगे, सहवास भी करेंगे तेरे सामने।" कहने के साथ उसने दिव्या के जिस्म पर मौजूद झीनी नाइटी एक झटके से उतारकर एक तरफ फेंक दी।

नाइटी असहनीय पीड़ा से तड़प रहे राजदान के चेहरे से जाकर टकराई थी।

उसे उसने अपने कांपते हाथों से हटाया।

कब तक आंखें बंद रख सकता था वह ? खोलीं- तो दिव्या और देवांश को एक-दूसरे की बाहों में पाया होठों पर जहरीली मुस्कान लिए दोनों उसकी तरफ उन नजरों से देख रहे थे जो कलेजे को चीरकर चाक-चाक कर देती हैं। जब तक दिव्या ने उसे मरते नहीं देखा तो नजरें उसी पर टिकाये देवांश से बोली- "देर मत करो देव! ब्रा उतार लो मेरी। आग लग रही है जिस्म में।"

“न-नहीं! नहीं छोटे!” हलक फाड़कर रो पड़ा राजदान ।

जवाब में दिव्या खिलखिलाकर हंसी ।

सैक्स से भरपूर थी वह खिलखिलाहट। ऐसी कि जहरीले नश्तर बनकर राजदान के दिलो-दिमाग में घुसती चली गई देवांश ने उसकी तरफ इस तरह देखा था जैसे गंदे नाली में रेंग रहा घृणित कीड़ा हो । होठों पर उसके लिए तिरस्कार ही तिरस्कार लिये हाथ दिव्या की पीठ पर ले गया। पलक झपकते ही ब्रा का हुक खोल दिया उसने । वहशियाना अंदाजा में हंसते हुए एक झटके से ब्रा दिव्या के जिस्म से अलग कर दी।

दिव्या के गोल और पुष्ट उरोज उसकी छाती पर नाच से उठे । दिव्या ने अपनी छाती देवांश की तरफ तान दी। देवांश ने उन पर अपना चेहरा झुकाया । कनखियों से राजदान की तरफ देखा मुंह खोला। बायें उरोज के निप्पल की तरफ बढ़ाया। ।

“स्टॉप इट! स्टॉप इट!” पूरी ताकत से दहाड़ने के साथ राजदान ने जेब से रिवाल्वर निकालकर उन पर तान दिया। जहां से तहां रूक गये दोनों।

जाहिर था-रुकने का कारण उसका चीखना नहीं। अपनी तरफ तना रिवाल्वर था । अगर वह सिर्फ चीखा होता तो अब तक तो बहुत आगे बढ़ चुका होता देवांश।

सुर्ख था राजदान का चेहरा | बुरी तरह भभक रहा था। गुस्से की ज्यादती के कारण सारा जिस्म सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था। मगर आश्चर्य-उस हाथ में कोई कंपन नहीं था जिसमें रिवाल्वर था। रिवाल्वर के भाड़ से मुंह को अपनी तरफ तनता देखकर दिव्या और देवांश की न केवल सारी मस्ती झड़ गई बल्कि चेहरे पीले पड़ गये थे ।

उसे हार्ट अटैक से मारने की धुन में रिवाल्वर को तो भूल ही गये थे वे रिवाल्वर भी वह जिसमें पूरी छः गोलियां थी। यह तो कल्पना भी नहीं की थी उन्होंने कि रिवाल्वर का इस्तेमाल आत्महत्या की जगह वह उनकी हत्या करने के लिए भी कर सकता है। अपनी बेवकूफी के कारण इस वक्त वे उसके सामने खड़े थरथर कांप रहे थे ।

"ये तो मैं जान ही गया था तुम जलील हो।" राजदान ने दांत भींचकर कहा“मगर ये तब भी नहीं जान सका था कि नीच भी हों। इतने नीच! जी चाहता है अपने हाथों से तुम दोनों की खोपड़ियों खोल दूं । इस काम को करने से इस वक्त दुनिया की कोई ताकत मुझे रोक भी नहीं सकती। मगर नहीं इतनी आसान सजा नहीं दे सकता मैं तुम्हें । तुम्हारे गंदे खून से अपने हाथ रंगने का मैं जरा भी ख्वाहिशमंद नहीं हूं। जो गुनाह तुमने किया है उसकी सजा इतनी आसान नहीं हो सकती कि दो धमाके हों और तुम्हें हर मुसीबत से निजात मिल जाये। यह अंत नहीं छोटे, यह तो शुरूआत है। तुम्हारे अंत की शुरूआत। और दिव्या बाई चौंको मत 'बाई' सुनकर शांतिबाई और विचित्रा से कहीं ज्यादा घृणित वेश्या हो तुम । वे कम से कम कोठे पर तो बैठी थीं । तुम तो मेरे दिल में बैठकर अपनी गोद में किसी और को बैठाये रहीं। तुम जैसी तवायफ के लिए यह सजा कोई सजा नहीं कि मैं गोली मारूं और तुम्हारा गंदा शरीर मेरे कदमों में आ गिरे। तुम्हारी सजा तो वो हैं वो जो मैंने मुकर्रर की है। जो कदम-कदम पर तुम्हें मारेगी । याद रखना मेरी बात - मरने के बाद अगर मैंने तुम्हें तड़प-तड़पकर मरने पर मजबूर नहीं कर दिया तो मेरा नाम राजदान नहीं।”

होश फाख्ता थे दोनों के। आंखों में वीरानियां। चेहरों पर खाक उड़ रही थी। राजदान ने जो भी कुछ कहा, उसका मतलब समझ में नहीं आकर दे रहा था उनकी । बस एक ही बात समझ में आ रही थी। यह कि इस वक्त वह अपनी अंगुली के हल्के से इशारे से उनकी लाशें बिछा सकता है मगर कह रहा है ऐसा नहीं करेगा।

फिर क्या करेगा वह ?

क्या करना चाहता है? जानने की जबरदस्त जिज्ञासा थी उनमें मगर सवाल करने की हिम्मत नहीं थी। राजदान की तरफ यूं देख रहे थे जैसे वे साक्षात् यमराज की तरफ देख रहे हो।

उसकी इस हालत को देखकर देवांश को लगा- ठीक ही कह रही है दिव्या हार्ट अटैक से मरने के बहुत करीब है वह। अतः अंतिम प्रहार करने की गर्ज से बोला“आंखे क्यों बंद कर लीं राजदान ? देखना ही चाहता है तो देख। हम तेरे साथ व्हिस्की ही नहीं पियेंगे, सहवास भी करेंगे तेरे सामने।" कहने के साथ उसने दिव्या के जिस्म पर मौजूद झीनी नाइटी एक झटके से उतारकर एक तरफ फेंक दी।

नाइटी असहनीय पीड़ा से तड़प रहे राजदान के चेहरे से जाकर टकराई थी।

उसे उसने अपने कांपते हाथों से हटाया।

कब तक आंखें बंद रख सकता था वह ? खोलीं- तो दिव्या और देवांश को एक-दूसरे की बाहों में पाया होठों पर जहरीली मुस्कान लिए दोनों उसकी तरफ उन नजरों से देख रहे थे जो कलेजे को चीरकर चाक-चाक कर देती हैं। जब तक दिव्या ने उसे मरते नहीं देखा तो नजरें उसी पर टिकाये देवांश से बोली- "देर मत करो देव! ब्रा उतार लो मेरी। आग लग रही है जिस्म में।"

“न-नहीं! नहीं छोटे!” हलक फाड़कर रो पड़ा राजदान ।

जवाब में दिव्या खिलखिलाकर हंसी ।

सैक्स से भरपूर थी वह खिलखिलाहट। ऐसी कि जहरीले नश्तर बनकर राजदान के दिलो-दिमाग में घुसती चली गई देवांश ने उसकी तरफ इस तरह देखा था जैसे गंदे नाली में रेंग रहा घृणित कीड़ा हो । होठों पर उसके लिए तिरस्कार ही तिरस्कार लिये हाथ दिव्या की पीठ पर ले गया। पलक झपकते ही ब्रा का हुक खोल दिया उसने । वहशियाना अंदाजा में हंसते हुए एक झटके से ब्रा दिव्या के जिस्म से अलग कर दी।

दिव्या के गोल और पुष्ट उरोज उसकी छाती पर नाच से उठे । दिव्या ने अपनी छाती देवांश की तरफ तान दी। देवांश ने उन पर अपना चेहरा झुकाया । कनखियों से राजदान की तरफ देखा मुंह खोला। बायें उरोज के निप्पल की तरफ बढ़ाया। ।

“स्टॉप इट! स्टॉप इट!” पूरी ताकत से दहाड़ने के साथ राजदान ने जेब से रिवाल्वर निकालकर उन पर तान दिया। जहां से तहां रूक गये दोनों।

जाहिर था-रुकने का कारण उसका चीखना नहीं। अपनी तरफ तना रिवाल्वर था । अगर वह सिर्फ चीखा होता तो अब तक तो बहुत आगे बढ़ चुका होता देवांश।

सुर्ख था राजदान का चेहरा | बुरी तरह भभक रहा था। गुस्से की ज्यादती के कारण सारा जिस्म सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था। मगर आश्चर्य-उस हाथ में कोई कंपन नहीं था जिसमें रिवाल्वर था। रिवाल्वर के भाड़ से मुंह को अपनी तरफ तनता देखकर दिव्या और देवांश की न केवल सारी मस्ती झड़ गई बल्कि चेहरे पीले पड़ गये थे ।

उसे हार्ट अटैक से मारने की धुन में रिवाल्वर को तो भूल ही गये थे वे रिवाल्वर भी वह जिसमें पूरी छः गोलियां थी। यह तो कल्पना भी नहीं की थी उन्होंने कि रिवाल्वर का इस्तेमाल आत्महत्या की जगह वह उनकी हत्या करने के लिए भी कर सकता है। अपनी बेवकूफी के कारण इस वक्त वे उसके सामने खड़े थरथर कांप रहे थे ।

"ये तो मैं जान ही गया था तुम जलील हो।" राजदान ने दांत भींचकर कहा“मगर ये तब भी नहीं जान सका था कि नीच भी हों। इतने नीच! जी चाहता है अपने हाथों से तुम दोनों की खोपड़ियों खोल दूं । इस काम को करने से इस वक्त दुनिया की कोई ताकत मुझे रोक भी नहीं सकती। मगर नहीं इतनी आसान सजा नहीं दे सकता मैं तुम्हें । तुम्हारे गंदे खून से अपने हाथ रंगने का मैं जरा भी ख्वाहिशमंद नहीं हूं। जो गुनाह तुमने किया है उसकी सजा इतनी आसान नहीं हो सकती कि दो धमाके हों और तुम्हें हर मुसीबत से निजात मिल जाये। यह अंत नहीं छोटे, यह तो शुरूआत है। तुम्हारे अंत की शुरूआत। और दिव्या बाई चौंको मत 'बाई' सुनकर शांतिबाई और विचित्रा से कहीं ज्यादा घृणित वेश्या हो तुम । वे कम से कम कोठे पर तो बैठी थीं । तुम तो मेरे दिल में बैठकर अपनी गोद में किसी और को बैठाये रहीं। तुम जैसी तवायफ के लिए यह सजा कोई सजा नहीं कि मैं गोली मारूं और तुम्हारा गंदा शरीर मेरे कदमों में आ गिरे। तुम्हारी सजा तो वो हैं वो जो मैंने मुकर्रर की है। जो कदम-कदम पर तुम्हें मारेगी । याद रखना मेरी बात - मरने के बाद अगर मैंने तुम्हें तड़प-तड़पकर मरने पर मजबूर नहीं कर दिया तो मेरा नाम राजदान नहीं।”

होश फाख्ता थे दोनों के। आंखों में वीरानियां। चेहरों पर खाक उड़ रही थी। राजदान ने जो भी कुछ कहा, उसका मतलब समझ में नहीं आकर दे रहा था उनकी । बस एक ही बात समझ में आ रही थी। यह कि इस वक्त वह अपनी अंगुली के हल्के से इशारे से उनकी लाशें बिछा सकता है मगर कह रहा है ऐसा नहीं करेगा।

फिर क्या करेगा वह ?

क्या करना चाहता है? जानने की जबरदस्त जिज्ञासा थी उनमें मगर सवाल करने की हिम्मत नहीं थी। राजदान की तरफ यूं देख रहे थे जैसे वे साक्षात् यमराज की तरफ देख रहे हो।