मोना चौधरी ने इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह से मोबाइल फोन पर बात की और एक जगह बुलाकर मिली।

"मैं महेशपाल से मिली थी। उससे बात हुई, वो...!"

"क्या?" लोकनाथ चौंका--- "महेशपाल कहां है। कहां मिली तुम?"

"जो मैं कह रही हूं, उस पर ध्यान दो।" मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी--- "वो कहता है कि बलात्कार और हत्या से उसका कोई वास्ता नहीं। ये काम लोकनाथ ने किया है।"

लोकनाथ के दांत भिंच गए।

"झूठ बोलता है साला।" लोकनाथ गुर्रा उठा--- "सब कुछ उसी ने किया और मेरे सिर पर डाल दिया।"

"मुझे तो लगता है, ये काम तुमने ही किया है।" मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका।

"तुम...तुम मेरी तरफ उंगली उठा रही हो।" लोकनाथ गुस्से में उबल पड़ा--- "ऐसा तो नहीं कि महेशपाल ने तुम्हें मोटी रकम दे दी हो। इसलिए तुम उसके गुणगान कर रही... !"

"महेशपाल से मिलोगे ?"

"हां!" दांत भिंच गए लोकनाथ के--- "देखूं तो हरामी का चेहरा कि अब वो कैसा लग रहा है हरामजदगी करके । दिल तो करता है कि उसे अपने हाथों से...!"

"लोकनाथ!" मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी--- "अगर तुमने गड़बड़ की है तो तुम मरोगे।"

"ये बात हममें पहले भी हो चुकी है। बार-बार मत कहो। चलो महेशपाल के पास।"

मोना चौधरी, लोकनाथ के गुस्से से भरे चेहरे को देखती कह उठी।

"महेशपाल भी तुम्हारा नाम सुनकर इसी तरह गुस्से में आया।"

"तुम मुझे उसके सामने ले चलो। वो...वो कहां है---कैसे मिला तुम्हें ?"

"चलो। तुम्हें उसके पास ले चलती हूं लेकिन उससे दूर रहना। उसे हाथ लगाने की कोशिश मत करना। जो भी बात करनी हो मुंह से करना। मुझे सिर्फ ये जानना है कि तुममें से कौन सच्चा-कौन झूठा है ?"

"मैंने जो कहा है, वो सच है ?"

"वो भी सच्चा लग रहा था।" मोना चौधरी गंभीर थी।

"तुम्हारा मतलब कि मैं झूठ बोल रहा...!"

"मैंने ये नहीं कहा। मैंने कहा है, वो मुझे सच्चा लग रहा था।"

"इसका तो ये ही मतलब हुआ कि मैं झूठा हूं मोना चौधरी।" लोकनाथ के दांत भिंच गए।

मोना चौधरी ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

■■■

मोना चौधरी ने सोहनलाल के फ़्लैट की कॉलबेल बजाई।

दूसरी बार बजाई, तीसरी बार बजाई।

परंतु कोई जवाब नहीं, कोई आहट नहीं। दरवाजा नहीं खुला।

मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ गईं।

"दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा ?" बेचैनी में भरे लोकनाथ ने कहा।

"मेरे खयाल में भीतर कोई नहीं है। वे लोग महेशपाल को यहां से ले गए। उन्हें लगा होगा कि मैं फिर यहां आऊंगी और...!"

"मैंने पहले ही कहा था। तुमने मेरी बात नहीं मानी कि महेशपाल ने ही बलात्कार और हत्या की है। तभी वो भाग....।"

"चुप रहो।" मोना चौधरी जेब से मोबाइल फोन निकालते सख्त स्वर में कह उठी--- "महेशपाल कहीं नहीं भागा। उसे वे लोग ले गए हैं, जिनके पास वो रह रहा था।"

"व... वो कौन लोग हैं ?"

मोना चौधरी ने थापर का नंबर मिलाया। बात हुई।

"हैलो।" थापर की आवाज कानों में पड़ी।

“ये तुमने अच्छा नहीं किया थापर।" मोना चौधरी भिंचे स्वर में कह उठी--- "तीन घंटे पहले सोहनलाल, महेशपाल के साथ अपने फ्लैट पर था। अब वो यहां नहीं है। सोहनलाल, महेशपाल को लेकर अपने आप तो कहीं जाने से रहा। तुम्हारी रजामंदी के इशारे के बिना कहीं नहीं जा सकता।"

"थापर !" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह के होंठों से निकला--- "ये वो ही थापर तो नहीं, जिसकी कार का नंबर...!"

"चुप रहो।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर उसे घूरा।

लोकनाथ ने फौरन होंठ बंद कर लिए।

"थापर तुम....!"

"कौन है पास में?"

"लोकनाथ।"

"मतलब कि तुम उसे लेकर सोहनलाल के फ्लैट पर हो।"

"मैंने कहा था कि मैं उसे महेशपाल के सामने....!"

"मैंने मना कर दिया था तुम्हें।"

“मेरे सामने वक्त ऐसा है कि दोनों को सामने करना जरूरी...।"

"ये मेरा मामला नहीं है।" थापर की आवाज कानों में पड़ी--- "सोहनलाल और महेशपाल तुम्हें नहीं मिलेंगे। उनसे मिलना हो तो बांके से बात कर लेना। मुझे फोन करने की जरूरत नहीं।"

मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो उठा।

"तुम जानबूझकर महेशपाल को मेरे से दूर कर रहे...!"

“मोना चौधरी, मैं तुम्हारी खातिर कुछ देर के लिए इस मामले में आ गया था। ये मेरा मामला नहीं। जिन्होंने महेशपाल को सोहनलाल के यहां छोड़ा है, बेहतर है तुम उससे ही बात...।"

"बांकेलाल राठौर से मेरी बात कैसे होगी ?"

कुछ चुप्पी के बाद थापर की आवाज कानों में पड़ी।

"कल सुबह ग्यारह बजे, बांके तुम्हें सोहनलाल के फ्लैट पर ही मिलेगा। वक्त पर पहुंचना।"

"थापर, तुम बात को बढ़ा रहे हो। जबकि बात कुछ भी नहीं है।" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा।

"तुम महेशपाल को खत्म भी कर सकती हो।"

"ये तभी होगा, जब उसने बलात्कार और हत्या की होगी।" मोना चौधरी के स्वर में बेहद सख्ती आ गई।

"मुझे कुछ मत कहो। कल बांके से बात कर लेना।" इसके साथ ही थापर ने फोन काट दिया था।

मोना चौधरी ने फोन बंद किया। दांत भिंच गए थे उसके।

"क्या हुआ ?” लोकनाथ के होंठों से निकला।

"अभी तो कुछ नहीं हुआ।" मोना चौधरी सर्द स्वर में बोली--- "जो होगा, कल होगा।"

■■■

देवराज चौहान ने अगले दिन विष्णु सहाय को फोन किया।

"हैलो!"

"पहचाना मुझे।"

दो पलों की चुप्पी के बाद विष्णु सहाय की आवाज कानों में पड़ी।

"नहीं पहचाना, कौन हो तुम ?"

"कल हम मिले थे और...!"

"ओह! तुम... तुम वही हो, जिसका एक्सीडेंट हुआ था। मैंने तुम्हें धक्का देकर बचाया।"

"हां, वही हूं मैं।"

"तुम्हारा नाम---देवराज चौहान है ना, तुमने यही बताया था।"

"हां।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा-- “तुम्हारी याददाश्त बहुत अच्छी है।"

"कुछ सोचा तुमने कि उस जमीन की खुदाई...!"

"मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हारा ये काम कर दूं। पहले वहां जाकर देखना पड़ेगा।"

"क्यों नहीं? जब कहो मैं काशीपुर चलने को तैयार हूं।" विष्णु सहाय का स्वर कानों में पड़ा--- "मुझे पूरा विश्वास है कि गांव के लोगों ने ही वहां गड़बड़ कर रखी है कि जो भी जमीन पर काम शुरू करता है, वो उसे मार देते...!"

"इस तरह कोई नहीं मार सकता किसी को।"

"क्या मतलब?"

"मेरा मतलब है कि गांव के लोगों में इतनी हिम्मत नहीं कि जमीन के लिए यूं किसी जान लेते रहें। कोई बात है कि जो किसी को समझ नहीं आ रही।" देवराज चौहान ने कहा।

"कैसी बात ?"

"ये ही तो जाकर देखना है।"

"कब चलते हो ?"

"मैं तुम्हें फोन करता हूं। तुम चलने को तैयार रहो।"

"मैं तैयार ही हूं। तुम्हारा फोन नंबर क्या है ?"

"फोन नंबर की जरूरत नहीं। मैं दो-तीन घंटों में तुम्हें फोन कर रहा हूं।"

"सुनो।" विष्णु सहाय की आवाज कानों में पड़ी।

"हां।"

"कहीं वहां वो ई तो चक्कर नहीं।"

"कैसा चक्कर ?"

"व... वो भूत-प्रेत वाला मामला।"

"ऐसा कुछ नहीं है। तुम फिक्र मत करो! मैं तुम्हारे साथ हूँ ।"

"भूत-प्रेत का टोटका जानते हो क्या ?"

"विष्णु सहाय! अगर तुम ऐसी बातें करोगे तो कोई तुम्हारे काम के लिए आगे नहीं आएगा।"

"ठीक कहते हो।" विष्णु सहाय के गहरी सांस लेने की आवाज आई--- "दो-तीन घंटों में फोन करोगे ?"

"हां।"

"तुम्हारी कार तो कल पिचक गई थी। मेरे पास बड़ी वाली विदेशी वैन है। बीस-पच्चीस लोग उसमें आ जाते हैं। ड्राइवर को वैन तैयार करने को कह देता हूं। कितने लोगों को साथ ले जा रहे हो ?"

"पता चल जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा और रिसीवर रख दिया।

सामने बैठे जगमोहन ने कहा।

"अभी चलना है। मेरा मतलब है कि आज ?"

"हां, यहां भी हमें फुरसत है।" देवराज चौहान ने कहा और सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।

"वहां करेंगे क्या ?" "

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा और सोच भरे स्वर में कह उठा।

"वहां देखना पड़ेगा कि मामला क्या है। वहां काम करने वाले ठेकेदार यूं ही नहीं मर सकते। कोई बात तो बीच में होगी हो, जो किसी को समझ नहीं आ रही। सबसे पहले उसी बात को समझना है। हो सकता है विष्णु सहाय से जलने वाला कोई व्यक्ति वहां काम करने वालों की जान ले लेता हो कि वो वहां कुछ नहीं बनाएं। यहां हम यूं ही बातें कर रहे हैं। असल बात तो वहां जाकर ही पता चलेगी कि...!"

तभी फोन की बेल बजी।

देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठाया।

"हैलो।"

"कैसे हो?" थापर की आवाज कानों में पड़ी।

"थापर!" देवराज चौहान के होंठों से निकला--- "ओह, हम कई महीने बाद बात कर रहे हैं।"

"हां, छः महीने से ज्यादा का समय हो गया।"

"सब काम ठीक से कर रहे हैं---कोई परेशानी ?" देवराज चौहान ने कश लिया।

"सब ठीक है। मोना चौधरी के बारे में बात करने के लिए फोन किया है।" थापर की आवाज कानों में पड़ी।

दो पल के लिए देवराज चौहान के होंठों से कुछ न निकला।

"मोना चौधरी !" एकाएक देवराज चौहान के माथे पर बल उभरे।

सामने बैठा जगमोहन भी संभलकर बैठ गया।

"हां, दो घंटे पहले मैं उसके साथ ही था।"

देवराज चौहान के होंठों में सिकुड़न आ गई थी।

"बात क्या है ?"

दूसरी तरफ से थापर बताने लगा कि मामला क्या है।

देवराज चौहान ने सुना।

सामने बैठा जगमोहन भी समझ रहा था कि उधर से थापर कुछ खास कह रहा है।

"मुझे नहीं लगता कि मोना चौधरी, महेशपाल को लिए बिना मानेगी।" पूरी बात बताने के बाद थापर गंभीर स्वर में कह उठा--- "वैसे सोहनलाल और महेशपाल को मैंने सुरक्षित जगह भेज दिया है।"

"मोना चौधरी अब कहां है ?"

"मालूम नहीं। कल वो ग्यारह बजे सोहनलाल के फ्लैट पर बांके से मिलने अवश्य आएगी।"

देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।

जगमोहन सतर्क सा देवराज चौहान को देखे जा रहा था।

"वो इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह कहां रहता है ?" देवराज चौहान ने चुप्पी तोड़ी।

"मालूम नहीं, लेकिन उसके बारे में महेशपाल से पूछकर बताया जा सकता है।"

"पूछकर बताओ। मैं फोन के पास ही हूँ।" देवराज चौहान ने कहा और रिसीवर रख दिया।

जगमोहन ने बेचैनी से पहलू बदलकर पूछा।

"क्या हुआ ?"

देवराज चौहान ने सारी बात बताई।

“मेरे खयाल में...।” जगमोहन हालातों को समझता फौरन कह उठा--- "हमारे इस मामले में आने की क्या जरूरत है ?"

"सोहनलाल को, मोना चौधरी की वजह से अपनी जगह छोड़नी पड़ी है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "अगले एक-दो दिन में मोना चौधरी सोहनलाल पर हमला भी कर सकती है कि उसे महेशपाल नहीं दिया जा रहा।"

जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर पुनः पहलू बदला।

"हमें जब मोना चौधरी, सोहनलाल के पास देखेगी तो समझ जाएगी कि ये मामला इतना आसान नहीं...।"

"मेरे खयाल में...।" जगमोहन बात खत्म करने वाले अंदाज में कह उठा--- "हमें इस मामले से दूर रहना चाहिए। सोहनलाल खुद ही सब संभाल लेगा। उसके साथ थापर, बांके और रुस्तम राव हैं।"

"हमारे पास वक्त है। काशीपुर हम दो दिन बाद भी जा सकते हैं।" देवराज चौहान ने लापरवाही से कहा--- "मैं नहीं चाहता कि मोना चौधरी, सोहनलाल को परेशान करे।"

जगमोहन नहीं चाहता था कि देवराज चौहान मोना चौधरी के सामने पड़े। झगड़ा बढ़ जाने का खतरा था।

तभी फोन की बेल बजी।

"कहो।" देवराज चौहान ने रिसीवर उठाया।

दूसरी तरफ थापर था। उसने बताया कि इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह कहां-कहां मिल सकेगा।

"ठीक है।" सुनने के बाद देवराज ने कहा--- "मैं सोहनलाल के फ्लैट पर कल ग्यारह बजे पहुंचूंगा। ग्यारह बजे ही मोना चौधरी ने वहां पहुंचना है ना ?"

"हां!"

"सोहनलाल से कहना कि ग्यारह बजे तक अपने फ्लैट पर पहुंच जाए, मैं वहीं मिलूंगा।"

"सोहनलाल को वहां पहुंचने को कहूं ?" थापर का व्याकुल स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।

"हां।"

"मेरे खयाल में तुम्हारे इस तरह वहां पहुंचने से मोना चौधरी के साथ झगड़ा हो...!"

"कल ग्यारह बजे मैं सोहनलाल के फ्लैट पर आऊंगा।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा और रिसीवर रख दिया।

"तुम्हारे वहां जाने की क्या जरूरत है ?"

"वो सोहनलाल को परेशान कर रही है।" देवराज चौहान उठते हुए बोला--- " इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह से मिलकर आता हूं।"

"लेकिन...!"

देवराज चौहान बाहर की तरफ बढ़ गया।

"मैं भी साथ चलता...!"

देवराज चौहान नहीं रुका और बाहर निकल गया।

जगमोहन ने होंठ भींच लिए। वो समझ गया कि कल देवराज चौहान और मोना चौधरी में झगड़ा हो सकता है। लाख कोशिश करके भी वो देवराज चौहान को सोहनलाल के फ्लैट पर जाने से नहीं रोक सकेगा।

■■■

इंस्पेक्टर लोकनाथ इस वक्त तसल्ली में था कि मोना चौधरी सब संभाल लेगी। मोना चौधरी का इस तरह आनन-फानन सब-इंस्पेक्टर महेशपाल तक पहुंच जाना। थापर से उसकी पहले से ही पहचान होना--यानी कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। मोना चौधरी, जल्दी ही महेशपाल को खत्म कर देगी।

मोना चौधरी ने कहा था कि वो कल सुबह फोन करेगी और चली गई थी। इंस्पेक्टर लोकनाथ वहां से थाने गया था और ढाई घंटे में अपना काम निपटाकर घर पर आ गया था। दो-तीन घंटों की नींद लेना चाहता था वो। घर में कोई नहीं था। पत्नी विमला, जब से बलात्कार वाला मामला शुरू हुआ था, नाराज होकर तीनों बच्चों के साथ मायके चली गई थी।

लोकनाथ की बात पर विमला ने विश्वास नहीं किया था कि वो निर्दोष है।

नहा-धोकर लोकनाथ ने कुरता-पायजामा पहना और बेड पर जा लेटा कि तभी बेल बजी। वो उसी पल उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ा। थाने से कोई पुलिस वाला आया होगा ?

दरवाजा खोलते ही लोकनाथ ने सामने देवराज चौहान को खड़े पाया। आज से पहले उसने देवराज चौहान को नहीं देखा था। वो अजनबी था उसके लिए। कभी अखबार में तस्वीर देखी हो तो उस तस्वीर को वो भूल चुका था।

"कहिए---किससे मिलना है ?" लोकनाथ ने पूछा।

“लोकनाथ से-इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह से। तुम ही हो क्या ?"

"हां! मैंने तुम्हें पहचाना नहीं ?"

"तुमसे बात करनी है। अंदर...!"

"कैसी बात ?" लोकनाथ की आंखों में सवाल आ ठहरा।

"सोहनलाल के बारे में।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में देखा।

सोहनलाल का नाम सुनते ही लोकनाथ चौंका और पीछे हट गया।

देवराज चौहान भीतर आया। एक कुर्सी खींचकर बैठा और सिग्रेट सुलगाई।

दरवाजा छोड़कर लोकनाथ उसके पास आ पहुंचा था।

"कौन हो तुम-क्या कहना चाहते हो ?"

“मोना चौधरी के साथ तू ही साहनलाल के यहां गया था।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

"हां!"

"क्या लगती है मोना चौधरी तेरी ?"

"कुछ नहीं, यूं ही मुलाकात हो गई!"

लोकनाथ को देखते हुए कश लिया देवराज चौहान ने ।

“मोना चौधरी यूं ही किसी का काम नहीं करती और तुम्हारी हैसियत उसके काम की कीमत देने की नहीं है।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर तीखे स्वर में कहा।

"कौन हो तुम?"

"पहले मेरी बात का जवाब दो।"

“मोना चौधरी, मेरे हाथ में आ गई थी। मैं उसे गिरफ्तार कर सकता था, गोली मार सकता था-परंतु इस तरह की कोई भी कोशिश मैंने नहीं की तो वो मेरे इस काम को करने को तैयार गई।" लोकनाथ ने गंभीर स्वर में कहा--- “अब तुम बताओ कि ये सब क्यों पूछ रहे हो। कौन हो तुम ?"

"देवराज चौहान हूं मैं।"

"देवराज चौहान!" लोकनाथ ने नाम दोहराया--- "मैंने तुम्हें नहीं पहचाना!"

"मोना चौधरी से पूछना।" देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा--- "बता देगी वो तुम्हें मेरे बारे में। वैसे पुलिस वाले मेरे नाम से मुझे फौरन पहचान जाते हैं, जबकि तुम...!"

"ओह! डकैती मास्टर देवराज चौहान।" लोकनाथ के होंठों से एकाएक निकला।

"हां।"

लोकनाथ ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । आंखों में डर उभरा।

"चुप क्यों हो गए ?" कश लिया देवराज चौहान ने ।

लोकनाथ ने कुछ कहना चाहा कि सिर्फ होंठ हिलाकर रह गया।

"मैं तुम्हें ये समझाने के लिए आया हूं कि सोहनलाल से दूर हो जाओ। मोना चौधरी को भी कह देना। वो जानती है कि मेरा और सोहनलाल का रिश्ता क्या है ?" देवराज चौहान ने सर्द स्वर में कहा--- "सोहनलाल की तरफ बढ़ने वाले कदम मोना चौधरी ने न रोके तो वो रास्ते में मुझे खड़ा पाएगी।"

"ठ... ठीक है !" सिर हिलाया जल्दी से लोकनाथ ने--- "कह दूंगा।"

"कहने के साथ इस बात का ध्यान भी रखना कि वो तुम्हारी बात समझे-नहीं तो तुम भी रगड़े जाओगे।"

लोकनाथ ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

"मैंने मोना चौधरी से कहा भी था कि सोहनलाल से महेशपाल को लेने के लिए थापर से प्यार से बात कर लेते हैं लेकिन वो कहने लगी कि सोहनलाल से तो वो चुटकी में महेशपाल को ले लेगी।" लोकनाथ सिंह का शैतानी दिमाग एकाएक दौड़ने लगा था--- "लेकिन अब मैं उसे समझा दूंगा।

"अच्छी तरह समझा दूंगा।"

देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।

"तुम कहां चले ?"

"जो समझाने आया था, वो समझा दिया!"

"बैठो, चाय पीकर...।"

"जो कहा है, वो मोना चौधरी को जरूर समझा देना। वरना...!" देवराज चौहान ने सख्त शब्दों में कहना चाहा।

"वो समझा दूंगा।" लोकनाथ ने जल्दी से कहा--- "तुम्हें एक बात कहना चाहता था।"

देवराज चौहान ने उसे देखा।

उसकी आंखों में मौजूद तीखे भावों को देखकर लोकनाथ पल भर के लिए सकपकाया।

"वो... वो सब-इंस्पेक्टर महेशपाल की बात करना चाहता था कि उसे मुझे दे दो। वो...!"

"इस बारे में जो बात करनी हो, बांकेलाल राठौर से करना, वह...!"

"मैं इस नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानता और वो तुम्हारी बात ज्यादा मानेगा। मेरी बात को तो भाव भी नहीं देगा।"

देवराज चौहान ने उसे घूरा।

लोकनाथ ने हड़बड़ाकर दूसरी तरफ देखा ।

"बलात्कार और थाने में हत्या किसने की ?" देवराज चौहान ने चुभते स्वर में पूछा।

"उसने महेशपाल ने... !"

"वो कहता है कि ये काम तुमने किया है।"

"झूठ बोलता है वो। मैं थाना इंचार्ज, अपने थाने में ये सब करने या होने की सोच भी नहीं सकता।" लोकनाथ की आवाज में गुस्सा भर आया।

"महेशपाल कहता है कि ये काम तुमने किया है। बांकेलाल राठौर के मुताबिक वो झूठ बोलता नहीं लग रहा।"

"तो क्या मैं तुम्हें झूठ बोलता लग रहा हूं।" लोकनाथ की आवाज में गुस्सा था।

"मैं नहीं जानता, ये मेरा मामला नहीं है। इस बारे में बांकेलाल राठौर से बात करो। मैं जो कहने आया था, वो समझ लिया होगा तुमने। मोना चौधरी को भी समझा देना कि कल वो सोहनलाल के फ्लैट पर न पहुंचे।" देवराज चौहान के आखिरी शब्दों में कठोरता आ गई थी--- "वरना, जो होगा, बहुत खतरनाक होगा, बुरा होगा।" कहने के साथ ही देवराज चौहान बाहर निकल गया।

लोकनाथ होंठ भींचे खुले दरवाजे को देखता रहा। उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। वो काम पूरा करवाना चाहता था। देवराज चौहान उसे सहयोग नहीं दे रहा था, जबकि मोना चौधरी उसके साथ थी। उसने फैसला किया कि मोना चौधरी को ही अपने काम के लिए पूरी तरह तैयार करेगा। वो आसानी से देवराज चौहान से निपट लेगी। महेशपाल को खत्म करना जरूरी था। वरना वो उसे बरबाद कर देगा।

■■■

देवराज चौहान वापस पहुंचा तो जगमोहन उसे देखते ही बोला ।

"मेरे खयाल में तुम्हें इस मामले में आने की जरूरत नहीं है। बांके और रुस्तम राव सब कुछ संभाल लेंगे।"

देवराज चौहान मुस्कराकर रह गया।

जगमोहन के माथे पर बल पड़े।

"तुम इस बात की फिक्र कर रहे हो कि मोना चौधरी से मेरा झगड़ा न हो जाए।" देवराज चौहान ने कहा।

"हां, तुमने कहा था कि पेशीराम ने भी तुम्हें सतर्क किया था कि मोना चौधरी से तुम्हारा झगड़ा...!"

"ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं ध्यान रखूंगा।"

"कैसे नहीं होगा।" जगमोहन कह उठा--- "तुम अभी कहां से होकर आए हो ?"

"इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह से मिलकर आ...!"

"क्यों ?"

"उसे कहने गया था कि मोना चौधरी से कह दे कि उसकी वजह से सोहनलाल तंग न हो।"

"तुम क्या समझते हो कि तुम्हारी बात सुनकर मोना चौधरी सोहनलाल का पीछा छोड़ देगी। जबकि सब-इंस्पेक्टर महेशपाल उसके ही पास है और मोना चौधरी को महेशपाल चाहिए। मेरी मानो तो आराम से बैठ जाओ। रात तक बांकेलाल राठौर भोपाल से लौट आएगा। कल वो मोना चौधरी से बात कर लेगा।"

"तुम्हारा क्या खयाल है कि बांके मोना चौधरी को संभाल लेगा।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।

जगमोहन ने देवराज चौहान की आंखों में देखा। कहा कुछ नहीं।

"मोना चौधरी को बांकेलाल राठौर नहीं संभाल सकता। कुछ देर के लिए बहला अवश्य सकता है।"

"लेकिन तुम्हारे मोना चौधरी के सामने जाने में जाने का खतरा...!"

"ये खतरा मोना चौधरी भी तो महसूस करेगी।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "जिस तरह हम नहीं चाहते कि मोना चौधरी से झगड़ा हो, उसी तरह वो भी नहीं चाहेगी कि हमसे झगड़ा हो।"

"तो?"

"हम दोनों को ही आपस में सावधानी से बात करनी होगी। मेरे खयाल में झगड़ा नहीं होगा और वो सोहनलाल का पीछा छोड़ देगी।"

जगमोहन मन ही मन बेचैन था कि दोनों के सामने होने पर झगड़ा कभी भी उठ सकता था। इससे तो बेहतर था कि वो काशीपुर गांव निकल गए होते--तब देवराज चौहान का सामना मोना चौधरी से तो न होता।

"मेरे खयाल में हमें काशीपुर गांव निकल चलना चाहिए।" जगमोहन ने आखिरी कोशिश की।

"आज नहीं जा सकेंगे। शायद कल भी न जा सकें।"

"विष्णु सहाय तैयारी के साथ हमारा इंतजार कर रहा होगा ।"

"उसे फोन कर देता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान फोन की तरफ बढ़ गया।

जगमोहन ने होंठ भींचे, मन ही मन गहरी सांस ली। उसकी कोशिश बेकार हो रही थी। देवराज चौहान ऐसे रास्ते पर बढ़ा जा रहा था, जहां आगे मोना चौधरी खड़ी थी और पेशीराम (फकीर बाबा) उसे पहले ही सावधान कर चुका था। मोना चौधरी के साथ उसका मौत से भरा टकराव हो सकता है। देवराज चौहान ने फोन पर विष्णु सहाय से बात की।

उसकी आवाज सुनते ही विष्णु सहाय कह उठा था ।

"गाड़ी तैयार, ड्राइवर तैयार, मैं भी तैयार, तुम कहाँ मिलोगे? मैं वैन लेकर पहुंचता हूं---बोलो।"

"आज नहीं चल रहे ।"

"क्या...मैं तो...!"

"मुझे कोई काम पड़ गया है। आज और कल का दिन व्यस्त रहूंगा। परसों हम काशीपुर गांव के लिए चलेंगे।"

"लेकिन मैं तो तैयार...!"

"तुम चाहो तो, पहले वहां पहुंचो। मैं परसों पहुंच..!"

"क्या ? वहां पहुंच जाऊं--काशीपुर गांव में! क्या तुम मुझे मरा हुआ देखना चाहते हो? मेरा भी दिल फेल हो गया तो...।"

"परसों तक का इंतजार करो।" देवराज चौहान बोला--- "फोन करूंगा तुम्हें।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया। फिर सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।

जगमोहन गंभीर निगाहों से उसे देख रहा था।

दोनों की नजरें मिलीं।

"मैं चाहता हूं कि तुम काशीपुर गांव चल पड़ो। इस मामले में न आओ।" जगमोहन गंभीर स्वर में बोला ।

"अगर हमारे पीछे से मोना चौधरी ने सोहनलाल को कोई नुकसान पहुंचा दिया तो ?" देवराज चौहान ने जगमोहन की आंखों में झांका।

"ऐसा नहीं होगा।"

"क्यों नहीं होगा---मोना चौधरी का तुम भरोसा कर सकते हो कि अपना काम निकालने के लिए वो शराफत से चलेगी। मेरे खयाल में तुम्हें भी इस बात का एहसास है कि मोना चौधरी कुछ भी कर सकती है।" कश लेते हुए देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- "वैसे भी अब मेरा पीछे हटना संभव नहीं। क्योंकि इंस्पेक्टर सिंह से मैं बात कर आया हूँ ।"

जगमोहन को स्पष्ट लग रहा था कि अब कुछ होकर ही रहेगा।

■■■

शाम को मोना चौधरी ने इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह को फोन किया।

"मुझे रिवॉल्वर चाहिए। इसकी मुझे कभी भी जरूरत पड़ सकती है।" मोना चौधरी ने कहा।

"मिल जाएगी।" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह जल्दी से बोला--- "अच्छा हुआ तुमने फोन कर दिया। मेरी तो जान ही निकली जा रही थी। मैं सोच रहा था कि तुमसे कैसे बात करूँ ?"

"क्या हुआ ?"

"देवराज चौहान-डकैती मास्टर देवराज चौहान मेरे पास आया था, दोपहर में !"

"देवराज चौहान ?" मोना चौधरी चौंकी।

"हां, धमकी देकर गया है तुम्हें कि तुमसे कह दूं कि कल तुम सोहनलाल के फ्लैट पर मत जाना-वरना तुम्हें मार देगा। मुझे भी कहा है कि सोहनलाल से दूर रहो।" लोकनाथ सिंह एक ही सांस में कहे जा रहा था— ''उसने मुझे बीस बार कहा है कि मोना चौधरी से ये बात कह दूं। मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि ये क्या हो रहा है। भला हमने देवराज चौहान को क्या कहा हैं, जो धमकी दे गया। हमारा उसका क्या मतलब। हमने तो सोहनलाल से भी कुछ नहीं कहा। तुम तो कितनी शराफत से उन लोगों से बात कर रही हो। उसकी हालत से तो लग रहा था कि अगर तुम वहां होती तो तुम्हें फाड़कर खा जाता।"

मोना चौधरी के चेहरे पर खतरनाक भाव आकर इकट्ठे होने लगे।

"कहता था सोहनलाल उसका कितना खास है, मोना चौधरी जानती है। उसकी तरफ कोई टेढ़ी आंख भी न देखे। मैंने कहा कि महेशपाल को हमारे हवाले कर दे। उसने थाने में बलात्कार-हत्या की है और मुझे फंसा रहा है तो कहने लगा कि महेशपाल कहता है कि तुमने ये सब किया है। वो निर्दोष है, मैंने बहुत कहा कि ये गलत काम उसने किया है। लेकिन मेरी बात मानने को तो तैयार नहीं हुआ। बार-बार धमकी देता रहा कि मोना चौधरी को समझा दूं। अब तुम ही बताओ कि मैं तुम्हें क्या समझाऊं ? मुझे तो लग रहा था कि देवराज चौहान को समझाने की जरूरत है लेकिन वो तो मेरी सुनने को तैयार ही नहीं था। गुस्से में भरा हुआ था। मुझे तो तब डर लगा कि कहीं मेरे को गोली न मार दे।"

मोना चौधरी के चेहरे पर दरिन्दगी आ ठहरी थी।

कई पलों तक लाइन में खामोशी रही।

"मोना चौधरी।" लोकनाथ की आवाज कानों में पड़ी।

"हूं।" मध्यम-सी गुर्राहट निकली उसके होंठों से।

"अब क्या करना...!"

"कल देख लूंगी मैं। तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं। देवराज चौहान तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगा।" मोना चौधरी के होंठों से भिचे-भिंचे कठोर शब्द निकले।

"मेरे सिर से तो बोझ उतर गया तुमसे बात करके। कल तुम्हें रिवॉल्वर दे दूंगा। बहुत बढ़िया रिवॉल्वर है मेरे पास। अमेरिकन मेक है। एक बार कहीं छापे के दौरान मेरे हाथ लग गई थी तो मैंने रख ली।"

"कल मिलेंगे।" मोना चौधरी ने कहा और रिसीवर रख दिया। देवराज चौहान को अपने रास्ते में आता देख वो सिर से पांव तक गुस्से से भर उठी थी और तो और देवराज चौहान उसके लिए इंस्पेक्टर लोकनाथ को धमकी दे गया था।

मोना चौधरी के चेहरे पर वहशी भाव इकट्ठे होने लगे थे।

■■■

उसी दिन रात के नौ बजे देवराज चौहान ने इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह को फोन किया।

"हैलो!" लोकनाथ की आवाज कानों में पड़ी।

"मैं देवराज चौहान !"

"ओह...तुम ! तुम मेरा नंबर तो ले गए, अपना दिया नहीं।" लोकनाथ की आवाज कानों में पड़ी--- "मैंने तुम्हें फोन करना हो तो कहां करूं। दिन भर यही सोचता रहा।"

"क्या हुआ ?"

"मैंने तुम्हारी बात मोना चौधरी से कह दी थी। शाम को उसका फोन आया था। तुमने फोन क्यों किया ?"

"ये ही पूछने के लिए कि मोना चौधरी को समझा दिया ?"

"समझा दिया। वो समझे तब ना।" लोकनाथ का खीझ भरा स्वर उसके कानों में पड़ा।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं ।

"वो नहीं समझती।" लोकनाथ की आवाज के साथ गहरी सांस लेने का स्वर कानों में पड़ा।

"कहते रहो। मैं सुन रहा हूँ।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।

"कहने को है ही क्या? मुझे तो लगता है वो, तुम्हारे लिए मन में बैर रखती है। ऐसा कुछ है क्या ?"

"मैं सुन रहा हूं!"

"मैंने उससे कहा कि देवराज चौहान कहता है कि अगर सब-इंस्पेक्टर महेशपाल दोषी है तो तसल्ली होने के बाद उसे हमारे हवाले कर देगा और तब तक के लिए देवराज चौहान ने मना किया है कि तुम सोहनलाल का रुख मत करो उसे पसंद नहीं कि तुम सोहनलाल की तरफ जाओ। मैंने ये भी कहा कि देवराज चौहान कहता है, अगर सोहनलाल के पास गई तो झगड़ा बढ़ सकता है तो वो बोली देवराज चौहान का आखिरी वक्त आ गया है। मैंने उससे कहा कि तुम कल सोहनलाल के पास गई तो वहां देवराज चौहान मिलेगा। झगड़ा होगा तो गुस्से में भरी मोना चौधरी ने कहा कि देवराज चौहान कल उसकी गोली से खुद को नहीं बचा सकेगा।"

देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया।

"मतलब कि कल वो सोहनलाल के यहां जाएगी।"

"हां! उसने तो मुझे भी तैयार रहने को कहा है। कहती है, मैं उसके साथ चलूं और तमाशा देखूं।"

"जरूर आना। सच में तुम्हें तमाशा देखने को मिलेगा।" देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान आ ठहरी।

"क्या फायदा झगड़ा करने का तुम...।"

"मोना चौधरी को समझाओ अगर कल का तमाशा देखना चाहते हो तो...।"

"वो मेरे बस में नहीं है।" लोकनाथ सिंह की तोबा करने वाले अंदाज में आवाज कानों में पड़ी।

देवराज चौहान ने रिसीवर रखा और बेहद शांत भाव में सिगरेट सुलगाई।

"क्या हुआ ?"

देवराज चौहान ने गरदन घुमाई तो जगमोहन को इधर ही घूरते पाया।

"लोकनाथ सिंह ने मेरी बातें मोना चौधरी को कही हैं। लेकिन वो समझदारी से काम लेने की अपेक्षा, झगड़ा खड़ा करने के मूड में नजर आ रही है। वो कल सोहनलाल के फ्लैट पर बांके से मिलने आयेगी।"

"मुझे समझ नहीं आता कि तुमने कैसे सोच लिया कि, तुम्हारे कहने पर मोना चौधरी पीछे हट जाएगी।" जगमोहन झल्लाया।

देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

"ऐसा तो मैंने कभी भी नहीं सोचा जगमोहन।"

"तो ?"

"एक बार मोना चौधरी को सावधान करना जरूरी था कि सोहनलाल की तरफ बढ़ने में उसके सामने क्या-क्या मुसीबत आ सकती हैं। मैंने अपना काम पूरा किया और आने वाले वक्त के लिए मैं इस मामले में आजाद हूं।"

"क्या मतलब ?"

"मतलब कि कल अगर सोहनलाल के फ्लैट पर कुछ होता है तो मैं जिम्मेवार नहीं। वहां न आने को उसे पहले ही कह दिया है।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर हो गया--- "मैं झगड़ा नहीं चाहता। लेकिन मोना चौधरी सोहनलाल की तरफ बढ़ते कदमों को रोक नहीं रही।"

"सोहनलाल के पास सब-इंस्पेक्टर महेशपाल है। मोना चौधरी को महेशपाल चाहिए।"

"महेशपाल का मामला बांके और रुस्तम राव का है। मोना चौधरी को उन दोनों से बात करनी चाहिए।"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम इस मामले में क्यों आ रहे...।"

"मैं आ नहीं रहा, बल्कि इस मामले के हालात मुझे अपनी तरफ खींचे जा रहे हैं। मोना चौधरी की वजह से सोहनलाल को अपना फ्लैट छोड़कर, महेशपाल के साथ, थापर की किसी जगह पर रहना पड़ा।" देवराज चौहान के दांत भिंच गए--- "और मुझे ये पसंद नहीं कि सोहनलाल को मोना चौधरी परेशान करे। बांके का नंबर मिलाओ।"

"बांकेलाल राठौर से।" जगमोहन ने सवालिया नजरों से उसे देखा।

"हां! देखो वो कहां है?"

जगमोहन बेचैनी भरे ढंग से उठा और फोन में व्यस्त हो गया।

छः-सात मिनट बाद बांकेलाल राठौर से बात हो सकी।

"सोहनलाल के साथ तूने क्या किया ?"

"मर गयो वो का?"

"अभी तो नहीं मरा।"

"फिर म्हारे पे का इल्जाम ठोको हो कि मन्ने सोहनलाल के साथ गड़बड़ी कर दयो।"

"सब-इंस्पेक्टर महेशपाल को तू कहीं और भी रख सकता था।"

"म्हारे को मालूम तो न होवे कि मोना चौधरी इस मामले कूद पड़ियो। अम अभ्भी भोपाल से लौटो हो। कल सुबहो मोना चौधरी से सोहनलाल के फ्लैटों पर मिल्लो हो। सब ठीको हो जावे।" बांकेलाल राठौर की आवाज कानों में पड़ी।

"कैसे ठीक हो जाए। उसे सब-इंस्पेक्टर महेशपाल चाहिए। वो, उसके हवाले करेगा।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

"काये को--महेश पाल म्हारे को शरीफ़ो दिखो हो।"

"ये बात मोना चौधरी को समझाएगा।"

"हां।"

"वो समझेगी ?"

बांकेलाल राठौर की आवाज नहीं आई।

"चुप क्यों हो गया ?"

“तम ठीको बोलो हो।” बांकेलाल राठौर का सुनाई देने वाला स्वर गम्भीर था--- "वो उलटो खोपड़ो की होवो।"

तभी देवराज चौहान ने पास पहुंचकर जगमोहन से रिसीवर लिया।

"बांके ?"

"देवराज चौहान... तम बोलो हो।"

"हां। कल सुबह सोहनलाल और सब-इंस्पेक्टर महेश पाल को साथ लेकर, सोहनलाल के फ्लैट पर आना।" देवराज चौहान दृढ़ स्वर में बोला।

"तम...तम भी वां पौंचो हो ?" बांकेलाल राठौर का हड़बड़ाया स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।

"हां।"

"थारी का जरूरतो हौवे ? अम मोना चौधरी से बात कर लयो। थारे को सामने देखकर वो उसी सांडो की तरहो भड़को हो, जो लाल कपड़ो देख लयो हो। तम वां ही रयो। अम...।"

"जो मैंने कहा है, वो ही करो।"

"थारे को यो मामलो कैसो पतो चल्लो हो ?"

"थापर ने बताया है।"

"यो तो बोत गलती कर दयो थापर साहब ने । म्हारे से न पूछो हो और थारे को बता दयो।"

देवराज चौहान ने फोन रख दिया।

जगमोहन तब तक सोफे पर बैठकर सिर सोफे की पुश्त से टिकाकर आंखें बंद कर चुका था।

■■■

देवराज चौहान से बात करने के पांच मिनट बाद ही फोन की घंटी बजी तो इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने रिसीवर उठाया।

"हैलो।"

"सर, मैं हवलदार वीरेन्द्र बोल रहा हूं। आपके लिए खुशखबरी है।"

"क्या ?" लोकनाथ सिंह के माथे पर बल उभरे।

"वो पकड़ा गया, जिसने थाने में बलात्कार और हत्या की थी !"

"क्या ?" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह चिहुंक पड़ा--- "पकड़ा गया।"

“हां सर ! एक घंटा पहले ही।"

"सब-इंस्पेक्टर महेशपाल कैसे हाथ लगा ?" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने बात काटकर कहा।

"महेशपाल साहब की बात नहीं कर रहा। कांस्टेबल सुशील सेठी की बात कर रहा हूं। ये काम उसने किया ।"

"पागल तो नहीं हो गए ?"

"नहीं सर, मैं सच कह रहा हूं। कांस्टेबल सुशील की आज छुट्टी थी। वो छुट्टी का वक्त थाने के पीछे वाले कमरे में ही आराम करके बिताता है। गांव तो उसका बहुत दूर है, आप तो जानते ही हैं।" हवलदार वीरेन्द्र की आवाज इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह के कानों में पड़ रही थी--- "शाम से ही वो बोतल लेकर बैठ गया था। नौ बजे तक टुन्न हो गया। तब वहां दो-तीन पुलिस वाले और भी थे। किसी बात पर उनसे झगड़ा कर बैठा। सब-इंस्पेक्टर साहब का गला पकड़कर दबा दिया और गुस्से से उन्हें बोला--- "साले तेरा गला भी नेता की बहन की तरह दबा दूंगा। बस, साहब, इतना सुनना था कि वहा मौजूद बाकी पुलिस वालों ने उसे पीछे किया। इंस्पेक्टर साहब को छुड़ाया। फिर उसकी धुनाई करके नशा उतारा। उसके बाद सब-इंस्पेक्टर साहब ने ऐसा डण्डा घुमाया कि सब कुछ कबूलता चला गया।"

"ये बात ऊपर बताई ?" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था।

"नहीं साहब, काम खत्म करके सुशील सेठी को स्टोर में बंद किया और सब-इंस्पेक्टर साहब के कहने पर आपको फोन किया। अब आप जो कहेंगे। वो ही होगा।" हवलदार वीरेन्द्र की आवाज कानों में पड़ी--- "हुक्म सर।"

"मैं आ रहा हूं।" लोकनाथ ने कहते हुए रिसीवर रख दिया।

सच बात तो ये थी कि ये खबर सुनकर उसका दिमाग घूम रहा था। । वो तो सोच रहा था कि महेशपाल ने ही ये सब किया है लेकिन वो बेगुनाह निकला। अब क्या होगा? उसके मामले पर दो खतरनाक हस्तियां झगड़े के लिए आमने-सामने हो रही थी और उन दोनों के बीच लगी आग को उसने और भड़का दिया था।

लोकनाथ सिंह का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था।

इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह वर्दी में थाने पहुंचा।

हवलदार वीरेन्द्र उसे इंतजार करता मिला।

"सर, गजब हो गया। कांस्टेबल सेठी तो छुपा रुस्तम निकला। वो...!"

"चुप रहो। कहां है वो ?"

"स्टोर में बंद कर रखा है।"

वो वहीं पहुंचे। रास्ते में मिलने वाले पुलिस वाले सलाम मार रहे थे लेकिन लोकनाथ सिंह को होश ही कहां थी। स्टोर के सामने पहुंचते ही वो ठिठका।

स्टोर के फर्श पर कांस्टेबल सेठी बुरे हाल में पड़ा था। उसका कमीज-पायजामा फटा हुआ था। शरीर पर कई जगह चोटों के निशान थे। चेहरा भी सूजा हुआ था। उसकी हालत से जाहिर था कि तगड़ी ठुकाई हुई है। उसके चेहरे और आंखों से स्पष्ट लग रहा था कि उसके सिर पर चढ़ा शराब का नशा धीरे-धीरे उतर रहा है।

कांस्टेबल सेठी ने उसे देखा तो कांपते दोनों हाथ जोड़ दिए।

"नेता की बहन के साथ बलात्कार और फिर उसकी हत्या तुमने की थी छः महीने पहले।" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने दांत भींचकर पूछा।

"मुझे माफ कर...!"

"जो पूछा, उसका जवाब दो। हां या ना ?"

"ह...हां। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई।" हाथ जोड़े कांस्टेबल सेठी रो पड़ा--- "मुझे माफ कर...!"

"इसे ऑफिस में मेरे पास लेकर आओ।" लोकनाथ सिंह ने दांत भींचे कहा और पलटकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसका दिमाग उलझा हुआ था कि असली मुजरिम तो मिल गया। सब-इंस्पेक्टर महेशपाल का क्या करेगा। अगर उसने मोना चौधरी को बताया कि अपराधी पकड़ा गया है, महेशपाल निर्दोष है तो कहीं वो गुस्से में उसे गोली न मार दे।

तभी सब-इंस्पेक्टर सूरज त्यागी सामने से आता मिला।

"सर!" सूरज त्यागी मुस्कराकर बोला--- "मैंने आपकी और सब-इंस्पेक्टर महेशपाल की परेशानी दूर कर दी। नेता की बहन का बलात्कारी और हत्यारा कांस्टेबल सुशील सेठी है। वो...!"

"मालूम हो गया है मुझे। मेरे साथ आओ। सेठी को लेकर वीरेन्द्र भी आ रहा है।"

सब-इंस्पेक्टर सूरज त्यागी साथ चल पड़ा।

"मैंने पूरी पूछताछ कर ली है। उसके बयान भी ले लिए हैं। फाइल आपकी टेबल पर पड़ी है।"

इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने कुछ नहीं कहा। होंठ भींचे, परेशानी में पड़े वो अपने कमरे में जा पहुंचा था।

जब तक उसके सामने कांस्टेबल सुशील सेठी को लाया गया, तब तक लोकनाथ फैसला ले चुका था।

अगर मोना चौधरी को बताता है कि महेशपाल निर्दोष है तो वो यकीनन उसे गोली मार देगी, क्योंकि इस वजह से उसका झगड़ा देवराज चौहान से हो चुका है। अगर वो महेशपाल को खामोशी से बचा लेता है तो भविष्य में ये बात मोना चौधरी को पता चलेगी तो मोना चौधरी उसे छोड़ेगी नहीं।

यानी कि महेशपाल के फंसे रहने में ही उसकी भलाई है।

उसका मकसद तो इस मामले से खुद को बचाना था और वो रास्ता उसे मिल गया था। लेकिन अभी बहुत कुछ करना होगा, तभी वो खुद को सुरक्षित रख पाएगा।

सब-इंस्पेक्टर सूरज त्यागी उसके सामने कुर्सी पर बैठा था। वीरेन्द्र सेठी के साथ चंद कदमों की दूरी पर खड़ा था। घुटने और पैरों की ठुकाई की वजह से वो ज्यादा देर खड़ा न हो पाया और नीचे बैठ गया। उसका चेहरा उजड़ा हुआ था । बुरे हाल में वो सहमा हुआ था। शायद आज उसे एहसास हो रहा था कि उसने क्या कर डाला था।

"बैठा है हरामी।" सब-इंस्पेक्टर सूरज त्यागी उसे घूरकर खा जाने वाले स्वर में बोला--- "साले को ये भी पता था कि उसकी करतूत से इंस्पेक्टर साहब फंसने जा रहे हैं। सब-इंस्पेक्टर महेशपाल फंसने जा रहा है लेकिन फिर भी मुंह नहीं खोला कि...!"

"त्यागी!" लोकनाथ गंभीर स्वर में बोला--- "चुप रहो।"

सेठी को घूरता हुआ त्यागी दांत भींचकर रह गया।

"उस रात...।" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने कहा--- "थाने में मैं मौजूद रहा। महेशपाल भी मौजूद रहा लेकिन तेरे द्वारा इतनी भारी गड़बड़ करने पर भी हम दोनों में से किसी को पता नहीं चला। कैसे हुआ ये सब ? वो नेता की बहन तेरे को मिली कहाँ पर। सब कुछ बता।"

कांस्टेबल सुशील सेठी ने बैठे-बैठे सूखे होंठों पर जीभ फेरी। उसका चेहरा फक्क पड़ा हुआ था।

"वो....साब जी।" कांस्टेबल सेठी ने डरे स्वर में कहा--- "उस रात -छः महीने हो गए लेकिन मुझे सब याद है। उस रात मैं गश्त करके थाने लौट रहा था कि वो औरत अपनी कार सड़क के किनारे पेड़ को मार बैठी थी। थाने से एक किलोमीटर दूर ही ये सब हुआ। मैं उसके पास पहुंचा। वो पिए हुए थी। उसने नशे में बताया कि वो भूतपूर्व नामी नेता की बहन है। मैंने उससे कहा कि वो मेरे साथ थाने में चले, वहां से उसे पुलिस गाड़ी में उसके घर भेज दिया जाएगा। इस तरह मैं उसे थाने लाया। रास्ते में वो मेरा हाथ पकड़े रही। कई बार मुझे चूमा भी। उसकी साड़ी का पल्लू कई बार गिरा और उसके कहने पर साड़ी का पल्लू मैंने उसके वक्षों पर डाला। वो नशे में थी और शरारतें कर रही थी। पूरे होश में नहीं थी। थाने तक पहुंचते-पहुंचते उसने मेरा ईमान खराब कर दिया। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था लेकिन उसकी छेड़छाड़ से मेरी नीयत खराब हो गई।"

सब उसे ही देख रहे थे।

सेठी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर पुनः कहा।

"जब मैं उसे लेकर थाने पहुंचा तो सब-इंस्पेक्टर महेशपाल जी अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे गहरी नींद में सो रहे थे। आपके ऑफिस का दरवाजा बंद था। उसे लेकर मैं चुपके से पीछे वाले कमरे में पहुंचा तो वहां किसी को भी न पाया। कमरे में पहुंचकर वो साड़ी उतारने लगी। उसका शरीर मुझे गरम कर रहा था लेकिन मैं खुद पर काबू पाए हुए था। साबजी, उसने मेरे सामने सारे कपड़े उतार दिए और मुझे बुलावा दिया। खुद वो साइड में पड़े फोल्डिंग पर लेट गई। वो वक्त ही ऐसा था कि मैंने वो ही किया जो मुझे करना चाहिए था। कमरे का दरवाजा बंद करके मैंने अपने कपड़े उतारे और उसकी बगल में जा लेटा। फिर वो ही किया जो वो करने को कह रही थी।"

कांस्टेबल सुशील सेठी ने होंठ भींच लिए। उसके चेहरे पर पछतावा था।

"आगे बोल।" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह उसे घूरता हुआ कह उठा।

"जब सब काम निपट गया तो उसे कुछ होश आया। शराब का नशा उसके सिर से उतरा तो वो मुझ पर बरस पड़ी कि मैंने उसके साथ जबरदस्ती की है। थाने में क्यों लाया उसे। हर तरह की धमकियां उसने मुझे दी। मैंने उसे बहुत समझाया कि जो भी हुआ उसकी इच्छा से हुआ। मैंने वही किया जो तुम चाहती थी लेकिन वो एक ही बात कहे जा रही थी कि उसे शराब के नशे में देखकर मैंने उसके साथ बलात्कार किया है। बहुत समझाया मैंने उसे लेकिन वो नहीं मानी। उसने साड़ी पहन ली और दरवाजा खोलते हुए पूरे थाने को इकट्ठा करने लगी। तब आप कहिए साहब जी मेरी क्या गलती थी। मैंने जो किया, वो पूरी तरह भागीदार थी उस सारे काम में। मैंने तो जबरदस्ती नहीं...!"

"तेरी पहली गलती ये थी कि तू उस वक्त ड्यूटी पर था। वर्दी में था और थाने में था। दूसरी गलती थी कि उसे थाने में ले आया।" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने दांत भींचकर कहा--- "तेरी गलती ये थी कि तू उन कमीनी औरतों को नहीं जानता जो पहले बुलाती हैं और बाद में शोर डालती हैं, ताकि कोई उनकी तरफ उंगली न उठा सके।"

सुशील सेठी सिर झुकाए बैठा रहा।

"आगे बोल।"

“मैंने उसे मार दिया। गले में साड़ी लपेटकर कस दी। क्या करता, वो मेरे को बदनाम कर रही थी। मेरी वर्दी उतर जाती, नौकरी चली जाती। घर में मुंह दिखाने के काबिल न रहता। मार दिया मैंने उसे और चुपचाप थाने से निकल गया। तब सब इंस्पेक्टर महेशपाल जी अपनी कुर्सी पर नहीं थे। वो बाथरूम में नहा रहे थे। मुझे किसी ने नहीं देखा। फिर दो घंटे बाद वापस थाने में आया तो वहां लाश मिलने की वजह से हंगामा हुआ पड़ा था।"

इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह उसे खा जाने वाली नजरों से घूरता रहा।

कांस्टेबल सुशील सेठी ने सिर झुका लिया।

सब इंस्पेक्टर सूरज त्यागी और हवलदार वीरेन्द्र खामोश थे ।

लोकनाथ सिंह ने सिग्रेट सुलगाकर दोनों को देखा।

"ये सब बातें किस-किस को मालूम हैं?"

"क्या मतलब ?"

"मैंने पूछा है ये सब बातें किस-किस को मालूम हैं ?" लोकनाथ सिंह ने उसे घूरा।

"मेरे और वीरेन्द्र के अलावा दो पुलिस वालों को पता है।" सब-इंस्पेक्टर त्यागी ने कहा।

लोकनाथ सिंह उठा और टहलते हुए कश लेने लगा। वो गंभीर था, होंठ भिंचे हुए थे ।

"त्यागी! तेरे को इंस्पेक्टर बनना है या सब-इंस्पेक्टर ही रहना है।" लोकनाथ ने ठिठककर एकाएक उसे देखा ।

"क्या मतलब ?" त्यागी हड़बड़ाकर उठा ।

"जवाब दो।" लोकनाथ शांत था।

"बनना है सर।" त्यागी फौरन बोला--- "इंस्पेक्टर बनना है।"

"और तेरे को ?" लोकनाथ ने गंभीर स्वर में ही वीरेन्द्र से पूछा--- "सब-इंस्पेक्टर बनना है ?"

"हां सर-क्यों नहीं...!"

लोकनाथ सिंह ने कांस्टेबल सुशील सेठी को घूरा ।

"अब तेरा क्या होगा-क्या सजा मिलेगी। तू अच्छी तरह सोच सकता है।"

कांस्टेबल सेठी का चेहरा भय से निचुड़ा हुआ था ।

"बचना चाहता है ?"

"ह... हां!" सेठी ने मरे अंदाज में सिर हिला दिया।

"पूरा नहीं बचेगा। लेकिन बहुत हद तक बच जाएगा। तेरे पर बलात्कार-हत्या का इल्जाम नहीं लगेगा, सजा नहीं होगी-होगी तो छः महीने से ज्यादा नहीं, लेकिन मैं तेरे को बचा लूंगा। शायद नौकरी भी बच जाए।"

सेठी ने अपने दोनों कांपते हाथ जोड़ दिए।

"ऐसा हो गया तो आप मेरे लिए भगवान बन...!"

"चुप कर।" लोकनाथ गुर्राया--- "मेरे से हरामीपन की बातें मत कर।"

सब-इंस्पेक्टर त्यागी और हवलदार वीरेन्द्र लोकनाथ सिंह को ही देखे जा रहे थे।

लोकनाथ सिंह वापस कुर्सी पर बैठा और कश लेकर कांस्टेबल सेठी से बोला ।

"अगर बचना है तो मेरी बात सुन, समझ। आने वाले वक्त में उस पर ही चलना ।"

कांस्टेबल सेठी ने फौरन सिर हिला दिया।

कुछ पलों की सोच के बाद लोकनाथ सिंह सख्त स्वर में कह उठा।

"उस रात तू वापस आया तो महेशपाल अपनी जगह पर नहीं था। तूने मेरे कमरे में झांककर देखा तो मैं काम में व्यस्त था। तूने मेरे लिए चाय के लिए पूछा लेकिन मैंने मना कर दिया। उस रात तेरा पेट खराब था। इसलिए तू आराम करने के लिए पीछे वाले कमरे में गया लेकिन उस कमरे का दरवाजा तूने बंद पाया। तभी तेरे को भीतर से ऐसी आवाजें आई कि लगे कोई औरत चीखने की कोशिश कर रही है लेकिन वो चीख नहीं पा रही।"

कांस्टेबल सेठी लोकनाथ सिंह को देखे जा रहा था।

"सुन रहा है।"

"ह...हां!"

"समझ रहा है ?"

"हां-हां!"

सब-इंस्पेक्टर त्यागी और हवलदार वीरेन्द्र सतर्क से मामला समझने की चेष्टा कर रहे थे।

"उसके बाद तूने दरवाजा खटखटाया।" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह पुनः शब्दों को चबाकर बोला--- "कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भीतर से सब-इंस्पेक्टर महेशपाल की आवाज आई। वो पूछ रहा था कि कौन है? तूने बताया मैं हूं तो वो बोला--कुछ देर बाद आना। तूने पूछा भीतर क्या हो रहा है तो उसने कहा जरूरी काम कर रहा हूं लेकिन तू वहां से गया नहीं, क्योंकि तेरे को लग रहा था कि भीतर गड़बड़ है--परंतु दरवाजे पर जबरदस्ती भी नहीं कर सकता था, क्योंकि सब-इंस्पेक्टर महेशपाल तेरा ऑफिसर था। तू बाहर ही खड़ा रहा।"

उसके चुप होते ही कांस्टेबल सेठी ने सिर हिलाया।

"फिर आधे घंटे बाद दरवाजा खुला। तू बाहर ही खड़ा था। तूने देखा, सब-इंस्पेक्टर महेशपाल अपनी कमीज के बटन बंद कर रहा था। वो पसीने से भीगा हुआ था। सिर के बाल बिखरे हुए थे। तब तूने दरवाजे से भीतर झांककर देखा तो सामने ही फोल्डिंग पर साड़ी पहने औरत लेटी थी। साड़ी का किनारा गले से लिपटा हुआ था। उसकी आंखें फटी और मुंह खुला था। ये देखकर तू घबराकर बाहर आ गया। तूने महेशपाल से पूछा कि ये सब क्या है? आपने उस औरत के साथ क्या किया ? मार दिया इसे तो जवाब में उसने तेरे को धमकी दी कि अगर तूने किसी को बताया तो नौकरी से तो जाएगा ही तेरे को ही इस मामले में फंसा दूंगा। यानी कि उसने धमकी देकर तुझे थाने से भगा दिया और कहा कि दो घंटे बाद थाने में इस तरह आए कि उसने देखा-सुना कुछ भी न हो। तुम महेशपाल की धमकी सुनकर डर गए। थाने से भाग गए। उसके बाद थाने में आए तो औरत की लाश मिलने पर थाने में हल्ला मचा पड़ा हुआ था। तुमने कई बार सोचा कि किसी को बता सको कि ये सब-इंस्पेक्टर महेशपाल ने किया है लेकिन उसकी धमकी के डर से मुंह न खोल सके। उसके बाद भी महेशपाल तुम्हे मुंह बंद रखने की धमकी देता रहा। एक बार तो तुम्हारे सीने से रिवॉल्वर भी लगा दी परंतु तुम्हारे मन और दिमाग पर हमेशा ही इस बात का बोझ रहा कि महेशपाल की धमकी की वजह से उसकी करतूत किसी को बता नहीं रहे। यही बात रही कि नशे में तुम्हारे मुंह से निकल गया कि महेशपाल ने उस औरत को मार दिया थाने में। ये बात सब-इंस्पेक्टर त्यागी के सामने तुम्हारे मुंह से निकली।"

कांस्टेबल सेठी ने सिर हिलाया।

"सिर क्या हिलाता है।" लोकनाथ गुर्राया--- "मुंह से बोल।"

"स... समझ गया!"

"कुछ पूछना है तो पूछ लो ।”

"सब याद है।"

"याद रखेगा तो बच जाएगा। शायद वर्दी भी बच जाए। खोपड़ी में आई बात ?"

"हां!" कांस्टेबल सेठी के चेहरे पर बहुत हद तक राहत के भाव नजर आने लगे थे।

"नेता की बहन के साथ बलात्कार और हत्या किसने की ?"

"सब-इंस्पेक्टर महेशपाल ने सर।" सेठी सूखे होंठों पर जीभ फेरकर बोला--- "मैं इस बात का गवाह हूं सर । उसने मुझे जान से मारने और इस केस में फंसाने की धमकी दी थी, इसलिए ये बात मैं किसी को बता न पाया।"

"गुड !" लोकनाथ ने गंभीर स्वर में कहा, फिर सब-इंस्पेक्टर सूरज त्यागी को देखा--- "सुना तुमने ?"

"यस सर!"

"इसके बयान तुम्हें फिर नोट करने पड़ेंगे, गवाहों की मौजूदगी में। बाकी के दो पुलिस वालों को समझा देना कि अब जो बयान दे रहा है, वो ही सच है। वो न समझें तो मेरे पास ले आना, उन्हें मैं समझा दूंगा।"

"मैं उन्हें समझा दूंगा सर।" त्यागी बोला--- "लेकिन....!"

"अभी कुछ मत पूछो। सेठी को स्टोर में छोड़कर आओ। इसे कपड़े पहनने को दो। खाने को कुछ दो। इसका पूरा ध्यान रखो। किसी की ड्यूटी लगा दो कि...!"

"समझ गया सर।"

"तुम दोनों जाओ, इसे छोड़कर आओ। बाकी की बात फिर करते हैं।"

सब-इंस्पेक्टर त्यागी और वीरेन्द्र कांस्टेबल सेठी को लेकर वहां से चले गए।

पांच मिनट बाद ही और वीरेन्द्र वापस आ पहुंचे।

"सर।" सब-इंस्पेक्टर त्यागी गंभीर स्वर में कह उठा--- "मैं अभी तक नहीं समझा कि आप कर क्या रहे हैं। कांस्टेबल सेठी ने थाने में बलात्कार-हत्या की लेकिन आप उसे बचा रहे हैं। सब-इंस्पेक्टर महेशपाल निर्दोष है और आप उसे फंसा रहे हैं--ये तो गलत बात है।"

"तुम इंस्पेक्टर नहीं बनना चाहते ?" लोकनाथ के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी।

"क्यों नहीं बनना चाहता।" उसने फौरन कहा।

"और तुम.... !"

हवलदार वीरेन्द्र फौरन कह उठा।

"मैं सब-इंस्पेक्टर बनना चाहता हूं।"

"गुड ! लेकिन ये तभी हो सकता है, जबकि तुम दोनों वो ही करो, जो मैं कहता हूं।"

दोनों इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह को देखते रहे।

लोकनाथ, वीरेन्द्र से बोला ।

"दो दिन पहले तुम हैंडबेग, झपटमार का केस लाए थे और एक युवती को भी लाए थे कि....।"

"याद है सर।"

"वो युवती और कोई नहीं इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी थी।"

"मोना चौधरी !"

हवलदार वीरेन्द्र के साथ त्यागी भी चौंका।

“मोना चौधरी इस थाने में आई थी सर ?"

"हां! और हवलदार वीरेन्द्र, तुमने तो देखा ही था कि मोना चौधरी मेरे को चोट पहुंचाकर यहां से निकल रही थी लेकिन तुमने उसे रिवॉल्वर के दम पर रोक लिया। लेकिन मेरे कहने पर उसे जाने दिया।"

"हां, सर! जाने से पहले वो कमरा बंद करके आपसे बात करती रही।" वीरेन्द्र बोला।

"हां, लेकिन तुम्हारे पूछने पर भी नहीं बताया कि क्या बात है लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि मुझे बताना पड़ रहा है कि मोना चौधरी ने थाने में मुझे क्या कहा। तुम उसे इत्तफाक से यहां ले आए थे, जबकि वो मेरे पास आ ही रही थी।" लोकनाथ सिंह ने गंभीर स्वर में कहा--- "दरअसल सब-इंस्पेक्टर महेशपाल के अंडरवर्ल्ड से संबंध हैं।"

"क्या ?"

"हां, वो अंडरवर्ल्ड के लोगों की सहायता करता है, वर्दी पहनकर । कानून से, वर्दी से धोखा कर रहा है। जनता के साथ विश्वासघात कर रहा है। मोना चौधरी से मुझे पता है कि वो शहर में हुए दो बम ब्लास्ट में शामिल रहा है। अपराधियों की उसने सहायता की है। ऐसे कई काले कारनामे कर चुका है ।"

"मुझे विश्वास नहीं आ रहा सर।" सब-इंस्पेक्टर सूरज त्यागी व्याकुलता से हक्के-बक्के स्वर में बोला।

“विश्वास दिलाने के लिए मैं हूं। बातों से ही नहीं, आंखों से भी तुम लोगों को विश्वास दिलाऊंगा।"

"सर आप मोना चौधरी के बारे में बता रहे थे कि...!"

"हां, सब बताऊंगा। सब-इंस्पेक्टर महेशपाल के संबंध देवराज चौहान जैसे नामी डकैती मास्टर से भी हैं। वो कई बार देवराज चौहान की सहायता कर चुका है, डकैती में।" लोकनाथ ने बारी-बारी दोनों की आंखों में देखा--- "महेशपाल देवराज चौहान और मोना चौधरी से ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि वो वर्दी पहनकर ये काम करता है। पहचाना नहीं जाता, जबकि देवराज चौहान और मोना चौधरी पहचाने तो जाते हैं कि वो फलां-फलां काम गलत कर रहे हैं।"

"महेशपाल का वास्ता देवराज चौहान से भी है।" त्यागी ने अजीब से स्वर में कहा।

"हां ।"

"कोई सबूत तो होगा आपके पास इन बातों का। सिर्फ कहने भर से सच नहीं होगा सर।"

"सबूत भी है, मेरी बात सुनते रहो--तब समझ जाओगे कि मैं क्यों महेशपाल को फंसाना चाहता हूं। वो है ही इस काबिल कि लंबा अंदर चला जाए। उसका बाहर रहना जनता के लिए खतरनाक है।" लोकनाथ सिंह ने अपनी आवाज में गंभीरता भर ली थी--- "उस दिन थाने में मुझे मोना चौधरी ने मारा। उसे महेशपाल ने भेजा था। इसलिए कि मैं थाने में हुई हत्या और बलात्कार का जुर्म अपने सिर पर ले लूं। उस पर कोई आंच भी न आए। मैंने ऐसा करने पर मना कर दिया तो वो मेरी ठुकाई करने लगी। इसमें दो राय नहीं कि मोना चौधरी खतरनाक है। उसका मुकाबला कर पाना आसान नहीं।"

"फिर... फिर आपने क्या किया ?" सब-इंस्पेक्टर त्यागी ने पूछा।

"मैंने उससे वक्त मांगा। मोना चौधरी के चले जाने के बाद इस बारे में बहुत सोचा कि क्या करूं तो मैं इसी नतीजे पर पहुंचा कि महेशपाल बड़ा मगरमच्छ है। उसने कई बड़े कांड किए होंगे। मुझे उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा पता करना चाहिए। उसी दिन रात को मुझे देवराज चौहान ने फोन किया।"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान ने ?" वीरेन्द्र के होंठों से निकला।

"हां।"

त्यागी और वीरेन्द्र हैरानी में फंसे लोकनाथ की बात सुन रहे थे।

"क्या बोला वो ?"

"उसने भी मुझे मोना चौधरी की तरह धमकी दी कि महेशपाल पर कोई इल्जाम आया तो वो मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा। देवराज चौहान ने मेरे को कहा कि सारा इल्जाम मैं अपने सिर पर ले लूं। मैंने पहले ही सोच लिया था कि मुझे क्या करना है। मैं देवराज चौहान से बोला कि ये इल्जाम मैं किसी दूसरे पुलिस वाले पर लगा दूंगा। महेशपाल को कुछ नहीं होगा, वो निश्चिंत रहे। साथ ही मैंने कहा कि मैं उससे और मोना चौधरी से मिलना चाहता हूं। पैसा कमाना चाहता हूं, वक्त-वक्त पर उनके काम आकर। पहले तो देवराज चौहान ने इस बात के लिए इनकार कर दिया, परंतु मेरे बहुत जोर देने पर बोला कि मोना चौधरी मुझे फोन करेगी। इस बारे में जो बात करनी हैं, उससे ही करूं ।"

“मोना चौधरी का फोन आया ?" वीरेन्द्र ने बेचैनी से पूछा ।

"हां, दो घंटे पहले ही आया। मेरे बहुत कहने पर मोना चौधरी इस काम के लिए तैयार हुई। फिर कहा कि मैं फलां-फलां जगह पर सोहनलाल नाम के व्यक्ति के फ्लैट पर सुबह ग्यारह बजे पहुंच जाऊं। वहां पर वो भी होगी, देवराज चौहान और महेशपाल भी होगा। बाकी बातें वहीं करेंगे लेकिन उसके बाद उसने मुझे किसी जगह पर मिलने का टाइम दे दिया कि वहाँ से इकट्ठे उस फ्लैट पर चलेंगे ।"

"मतलब कि मोना चौधरी सुबह आपको कहीं मिलेगी ?"

"हां।"

कई पलों तक उनके बीच चुप्पी रही।

"अब आपने क्या सोचा सर?" सब-इंस्पेक्टर त्यागी पहलू बदलकर बोला।

"मैं चाहता हूं तुम दोनों तरक्की करो।" लोकनाथ सिंह सोच भरे गंभीर स्वर में कह उठा--- "कांस्टेबल सेठी को गवाह बनाओ। महेशपाल जैसे इंसान का जिन्दा रहना ठीक नहीं, जो वर्दी की आड़ में अंडरवर्ल्ड के लोगों का साथ दे---उसका खत्म हो जाना ही बेहतर है। सेठी से ज्यादा-कहीं ज्यादा खतरनाक सब-इंस्पेक्टर महेशपाल है।"

वीरेन्द्र ने त्यागी को देखा, फिर लोकनाथ से बोला ।

"ये सब होगा कैसे सर ? आप करना क्या चाहते हैं?" कुछ पल सोचने के बाद इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह गंभीर स्वर में कह उठा।

"हम जो कर रहे हैं, वो अपने लिए, कानून के लिए और जनता के लिए करेंगे। कल एक ही फ्लैट पर देवराज चौहान, मोना चौधरी, महेशपाल इकट्ठे हो रहे हैं। इत्तफाक से घर का भेदी बनकर मैं भी वहां होऊंगा। जब तक मैं वहां होऊंगा, तुम लोगों ने कुछ नहीं करना है, क्योंकि मेरे को भी गोली लग सकती है।"

दोनों लोकनाथ को देखे जा रहे थे।

"तुम दोनों चंद खास पुलिस वालों को लेकर वहां घेरा डालोगे। इस तरह कि किसी को इस बात का आभास ही न हो सके। ये काम वहां पर सुबह नौ बजे तक हो जाना चाहिए।"

"लेकिन वो फ्लैट कहां पर है ?"

"फ्लैट के बारे में भी बताता हूं और ये भी बताता हूं कि उस जगह पर रेड कैसे करनी है। देवराज चौहान, मोना चौधरी और महेशपाल को खत्म कैसे करना है। ध्यान रहे, मुझे कोई गोली न लगे। अब सुनो, तुम लोगों ने कल सुबह काम कैसे करना है।" इसके बाद लोकनाथ उन्हें घेराबंदी के बारे में समझाने लगा।

चंद्रह मिनट तक लोकनाथ ही बोलता रहा, वे सुनते रहे।

लोकनाथ सिंह खामोश हुआ, तो वहां गम्भीरता छा चुकी थी।

"इस तरह! तो हम सारा मामला संभाल लेंगे।" हवलदार वीरेन्द्र ने कहा।

"कम से कम बीस पुलिस वालों की जरूरत पड़ेगी।" सब-इंस्पेक्टर त्यागी ने गंभीर स्वर में कहा।

"वो इंतजाम हो जाएगा। थाने में जो विश्वासी लगे, उन्हें साथ ले लेना। बाकी का इंतजाम मैं कर दूंगा।" इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने गंभीर स्वर में कहा--- "इस सारे काम में कहीं भी लापरवाह मत होना।"

"त्यागी और वीरेन्द्र की नजरें मिलीं।

"काम खतरनाक है।" त्यागी ने धीमे स्वर में कहा।

"खतरनाक क्यों नहीं होगा।" लोकनाथ ने दोनों को देखा--- "तरक्की पाने के लिए खतरा तो उठाना ही पड़ता है। दूसरों को तो ऐसा मौका ही नहीं मिलता। तुम दोनों किस्मत वाले हो कि ऐसा बढ़िया मौका मैं तुम्हें दे रहा हूं। सबसे पहले सब-इंस्पेक्टर महेशपाल को खत्म करना है, वो गद्दार है। अगर जिन्दा हाथ आ जाए तो परवाह नहीं। उसके बाद देवराज चौहान और मोना चौधरी को निशाने पर लेना है। उन्हें खत्म करना है। ये काम सफलतापूर्वक हो गया तो तुम दोनों का सिफारशी पत्र मैं खुद लेकर कमिश्नर साहब के पास जाऊंगा। तुम दोनों को तरक्की मिले, इसकी मैं हर संभव कोशिश करूंगा और वादा करता हूं कि महीने के भीतर ही तुम दोनों इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर की वर्दी पहन सको।"

हवलदार वीरेन्द्र मुस्कराया।

त्यागी ने गहरी सांस ली।

"ये तो बाद की बातें हैं लेकिन ये मामला खतरनाक है---अंडरवर्ल्ड के शातिर लोग इसमें हैं।"

"त्यागी !" लोकनाथ गंभीर स्वर में बोला--- "ये काम कर लोगे कि नहीं ?"

"कर लूंगा। हर तरफ सोचना पड़ता है, इसलिए...!"

"मुझे देखो।" लोकनाथ सिंह ने गंभीर नजरों से उन्हें देखा— ''मैं तो उस वक्त उन लोगों के बीच खड़ा होऊंगा, जब तुम लोगों की बाहर घेराबंदी हुई होगी। वो लोग किसी बात को लेकर मुझ पर शक कर सकते हैं, परंतु मैं नहीं घबरा रहा। मेरा देश पहले है मेरे लिए, बाकी सब कुछ बाद में। फर्ज की खातिर मेरी जान भी चली जाए तो परवाह नहीं मुझे। दोबारा फिर जन्म लेकर थाने में इंस्पेक्टर बनूं, यही मेरी तमन्ना होगी। इंसान की इच्छा शक्ति दृढ़ होनी चाहिए। फर्ज को अंजाम देने की भावना मन में हो तो फिर कौन-सा काम नहीं हो सकता।"

"आप ठीक कहते हैं सर।" त्यागी लोकनाथ सिंह से प्रभावित दिखा।

"वर्दी पहनने के बाद मेरा डर तो उसी दिन खत्म हो गया था, जब मैंने अपनी ड्यूटी शुरू की थी। अगर तुम दोनों को जरा भी शक है कि इस काम को संभालने में चूक सकते हो। तो मैं...!"

"ऐसी बात नहीं सर।" त्यागी कह उठा--- "सब ठीक-ठाक निपट जाएगा।"

"सोच लो । वहां मैं भी होऊंगा। कहीं तुम लोगों की गोली मेरे को...!"

"ऐसा नहीं होगा सर।"

"गुड ! कुछ पूछना चाहते हो तो पूछ लो ।" लोकनाथ ने नई सिग्रेट सुलगा ली--- "रात हो चुकी है। बाकी के वक्त में तुम दोनों को कल सुबह के लिए तैयारी करनी है। तुम दोनों के सामने बहुत काम पड़ा है।"

"सब काम हो जाएगा।"

"ठीक है। सबसे पहले तो कांस्टेबल सेठी का वो बयान नोट करो, जो मैंने समझाया है उसे दो-चार गवाहों के सामने नोट करना। पहले वाला मामला फाड़ देना और उन दो पुलिस वालों को भी समझा देना, जो पहले मामले में पास में मौजूद थे। कह देना कि तब कांस्टेबल सेठी शराब पिए हुए था। अब वो होश-हवास में बयान नोट करवा रहा है।"

"जी।" त्यागी उठ खड़ा हुआ।

"बयान पूरा होने पर सारे कागज मेरे हवाले कर देना। वो फाइल मैं रातों-रात कमिश्नर साहब के पास भेज दूंगा, क्योंकि कल देवराज चौहान, मोना चौधरी और महेशपाल का निशाना लेने में कहीं चूक भी हो सकती है।"

"समझ गया सर ।"

"जाओ। मैं यहीं पर तुम दोनों का इंतजार कर रहा हूं। बयान नोट करके मेरे हवाले करो और कल के काम की तैयारी करो। ये बात खुलने न पाए कि कल हम क्या करने जा रहे हैं। हो सकता है महेशपाल की तरह थाने में कोई दूसरा भी मोना चौधरी और देवराज चौहान का खबरी हो। ऐसा हुआ तो वो वक्त से पहले ही हमें मार देंगे।"

त्यागी और वीरेन्द्र बाहर निकल गए।

इंस्पेक्टर लोकनाथ सिंह ने गहरी सांस लेकर अपनी गरदन पर हाथ फेरा। अब उसकी गरदन मोना चौधरी के हाथों बच जाएगी। हो सकता है कल मोना चौधरी ही न रहे। महेशपाल की तरफ उंगली उठाई थी तो मोना चौधरी की नजरों में महेशपाल गुनहगार ही रहना चाहिए। वरना वो उसकी गरदन पकड़ लेगी।

बहरहाल उसे तसल्ली थी कि कल सब ठीक हो जाएगा।

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