टैक्सी पटेल रोड की ओर बढ रही थी ।
सुनील ने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
अभी आठ भी नहीं बजे थे ।
और लाला के यहां मीटिंग का समय दस बजे का था ।
सुनील ने मन-ही-मन फैसला किया और फिर ड्राइवर से बोला - “सुनो, पटेल रोड नहीं, प्रभातनगर चलो ।”
ड्राइवर ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
वाणी और अमर के वार्तालाप के दौरान सुनील को ऐसा महसूस हुआ था जैसे अमर ने केवल विवाद से बचने के लिए वाणी से वायदा कर लिया था कि वह सरोज से नहीं मिलेगा जब कि मन-ही-मन वह उससे मिलने का पक्का निश्चय किये हुए था । सरोज जब प्रकाश को प्रभातनगर वाली इमारत में कागजात सौंपकर गई थी तो उसने प्रकाश को अमर से कहते सुना था कि सरोज ने हमेशा की तरह वहीं रहना था । इस लिहाज से सरोज के वहां होने की पूरी सम्भावना थी ।
प्रभातनगर पहुंचकर सुनील इमारत से परे ही टैक्सी से उतर गया और पैदल सी-27 की ओर बढा ।
वाणी ने कहा था कि सरोज अमर के पेट से बात निकाल लेने की क्षमता रखती थी । अगर यह बात सच थी तो अमर का वाणी से मिल चुकने के बाद उससे मिलने आना बहुत खतरनाक साबित हो सकता था । सरोज उससे वाणी का पता जान सकती थी । सुनील के लिए यह बात जानना जरूरी था कि अमर ने सरोज के पास आने की मूर्खता की थी या नहीं ।
सुनील इमारत के सामने पहुंचा ।
बगल के एक कमरे में से प्रकाश का आभास मिल रहा था ।
सुनील दबे पांव भीतर घुसा और साइड की राहदारी से होता हुआ उस कमरे की खिड़की तक पहुंचा जिसमें से प्रकाश की किरणें बाहर फूट रही थीं । खिड़की के आगे परदा पड़ा हुआ था जिसके कारण भीतर झांका पाना सम्भव नहीं था लेकिन भीतर से बातचीत की आवाजें साफ आ रही थीं । सुनील दोनों आवाजें साफ पहचान गया । एक आवाज सरोज की थी और दूसरी -
दूसरी आवाज अमर की थी ।
तो अमर अपने इरादों से बाज नहीं आया था ।
सुनील इमारत के सामने पहुंचा ।
सामने का दरवाजा बन्द था ।
राहदारी घूमकर वह पिछले कम्पाउण्ड में पहुंचा ।
पिछवाड़े का दरवाजा खुला था ।
सुनील भीतर प्रविष्ट हुआ । उसने अपने पीछे दरवाजा बन्द करके चिटकनी चढा दी । अंधेरे में टटोलता हुआ वह आगे बढा और उस कमरे तक पहुंचा जिसमें प्रकाश था और जिसमें से सरोज और अमर के बोलने की आवाजें आ रही थीं । उसने धीरे से दरवाजे को थोड़ा भीतर की ओर धकेला । दरवाजा खुला था । दरवाजे और चौखट में छोटी-सी झिरी बन गई । भीतर से आती आवाजें और स्पष्ट हो गई ।
“अमर डार्लिंग” - मिश्री घुली सरोज की आवाज आई - “वाणी कहां है ?”
“मालूम नहीं ।” - अमर की आवाज आई ।
“अच्छे भाई हो तुम । अपनी बहन की इतनी भी खबर नहीं रखते ?”
“वह राजनगर में थी ।”
“वहां से तो वह कब की वापस आ गई हुई है और ऐसा हो ही नहीं सकता कि वापस आकर वह तुमसे न मिली हो ।”
“तुम क्यों पूछ रही हो ?”
“ओह, बता भी दो न डार्लिंग । तुम तो खामखाह सस्पेंस पैदा कर रहे हो । मैं उससे मिलना चाहती हूं । और क्या ?”
“क्यों मिलना चाहती हो उससे ?”
“यू ही । अमर डार्लिंग, पहले तो तुम मुझसे कोई बात नहीं छुपाते थे ।”
“वह तो ठीक है लेकिन...”
अमर पिघल रहा था । वह चालबाज लड़की उसे बेवकूफ बना रही थी ।
सुनील ने पैर की ठोकर मारकर दरवाजा खोला और भीतर कदम रखा ।
सरोज अमर के गले में बांहें डाले उसकी गोद में बैठी थी । सुनील के भीतर कदम रखते ही वह छिटककर उससे अलग हो गई ।
“यहां क्या कर रहा है गधे ?” - सुनील चिल्लाकर बोला - “तुमने क्या वायदा किया था वाणी से ?”
अमर हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ । उसके मुंह से बोल नहीं फूटा ।
सरोज ने, जो पहले एकदम घबरा गई थी, बड़ी दक्षता से स्वसं को नियन्त्रित किया । उसके होंठों पर एक विद्रूपभरी मुस्कराहट उभरी ।
“सरपराइज ! सरपराइज !” - वह बोली - “यह तो रिपोर्टर साहब हैं । रंग में भंग डालने का बड़ा तजुर्बा मालूम होता है आपको, जनाब ।”
“शटअप !” - सुनील बोला ।
“लेकिन, मिस्टर सुनील” - अमर तीव्र प्रतिवादपूर्ण स्वर से बोला - “आप सरोज को गलत समझ रहे हैं ।”
“मैं इसे बिल्कुल ठीक समझ रहा हूं । तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था, अमर ।”
“लेकिन मैं किसी वजह से यहां आया हूं ।”
“और वह वजह भी ऐसी थी जो तुम वाणी को बताना नहीं चाहते थे ?”
“बिल्कुल यही बात थी । उस वजह से इत्तफाक जाहिर करना तो दूर, वाणी उसे सुनना गवारा नहीं करती ।”
“ऐसी कौन-सी वजह है ?”
“सरोज भी लाला का गैंग छोड़ रही है । यह भी मेरे साथ यहां से कूच कर रही है । हम दोनों ने शादी का फैसला कर लिया है । अब जहां मैं जाऊंगा, वहीं सरोज जायेगी ।”
“यह लड़की तुम्हें बेवकूफ बना रही है । यह तुम्हें फंसाना चाहती है ।”
“तुम गलत सोच रहे हो ।”
“अच्छा, मैं गलत सोच रहा हूं ? तो फिर देर किस बात की है ? जाते क्यों नहीं हो ?”
“वो... वो... सरोज चाहती है कि हम आज रात यहीं रहें और कल सुबह यहां से रवाना हों ।”
“क्यों ?”
अमर ने असहाय भाव से सरोज की ओर देखा ।
“मिस्टर सुनील” - सरोज इठलाकर बोली - “लगता है तुम्हारा दिल बूढा हो चुका है । तुम क्या जानो दो जवान दिलों के लिये तनहाई की क्या अहमियत होती है । आज की रात को मैं अमर की जिन्दगी की यादगार रात बना देना चाहती हूं । मैं...”
“शटअप ! अमर ! ईडियट ! तुम्हारे भेजे में क्या इतनी भी अक्ल नहीं कि तुम यह समझ सको कि यह लड़की किसी-न-किसी बहाने तुम्हें यहां अटकाये रखना चाहती है ? जरूर यहां कोई आने वाला है । और जो आयेगा, वह तुम्हारे लिए मौत का पैगाम लेकर आयेगा ।”
अमर विचलित दिखाई देने लगा ।
“अगर खैरियत चाहते हो तो इस लड़की का पीछा छोड़ो और फौरन यहां से दफा हो जाओ ।”
अमर दृढ कदमों से सरोज की ओर बढा । सरोज हड़बड़ाकर एकदम पीछे हट गई । अमर ने उसे दोनों कन्धों से पकड़ लिया और उसे झंझोड़कर बोला - “कौन आने वाला है यहां ?”
“क... कोई भी तो नहीं, डार्लिंग ।” - सरोज खोखले स्वर से बोली । वह उससे निगाहें न मिला सकी ।
“इसे छोड़ो” - सुनील बोला - “और यहां से निकलने की कोशिश करो ।”
उसी क्षण कालबैल बजी ।
अमर ने व्याकुल नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
सरोज के चेहरे पर राहत के भाव थे ।
घण्टी बजी, साथ ही कोई जोर से बोला - “दरवाजा खोलो ।”
“यह रणजीत की आवाज है ।” - अमर आतंकित स्वर से बोला ।
“रणजीत ! जीवन !” - एकाएक सरोज जोर से चिल्लाई - “दरवाजा तोड़ डालो । सुनील और अमर दोनों यहां हैं ।”
“दगाबाज !” - अमर के दायें हाथ का झन्नाटेदार थप्पड़ सरोज के मुंह पर पड़ा - “हरामजादी ! मैं तेरा खून पी जाऊंगा ।
“वक्त बरबाद मत करो ।” - सुनील ने अमर को जबरदस्ती सरोज से अलग किया ।
“जीवन, तुम पीछे जाओ ।” - बाहर से रणजीत की आवाज आई । साथ ही सामने के दरवाजे पर चोटें पड़ने लगीं ।
सुनील अमर को घसीटता हुआ कमरे से बाहर ले आया । उसने सरोज को उसी कमरे में बन्द कर दिया ।
वे पिछले बरामदे में पहुंचे ।
उधर के दरवाजे पर एक मानवाकृति का साया पड़ रह था । प्रत्यक्ष था कि जीवन वहां पहुंच चुका था ।
“ऊपर !” - सुनील फुसफुसाया ।
दोनों सीढियों के रास्ते छत पर पहुंच गये । वह छत के सामने के भाग में पहुंचे ।
नीचे मुख्य द्वार पर रणजीत के बैल जैसे मजबूत कन्धों की चोटें पड़ रही थीं । दरवाजा किसी भी क्षण टूट सकता था ।
दोनों दबे पांव बरामदे के ऊपर के प्रोजेक्शन पर उतर गये और प्रतीक्षा करने लगे ।
कुछ क्षण बाद दरवाज टूटकर गिरा । रणजीत बगोले की तरह इमारत के भीतर घुसा ।
सुनील और अमर तुरन्त प्रोजेक्शन पर से लान में कूद गये और सरपट सड़क की ओर भागे ।
“मेरी कार !” - अमर हांफता हुआ बोला - “उधर !”
दोनों कार में सवार हुए । अमर ने कार यू वहां से भगाई जैसे तोप से गोला छूटा हो ।
***
सुनील पटेल रोड पहुंचा ।
सरोज को हजार-हजार गालियां देता हुआ और अपनी मूर्खता पर अपने-आपको कोसता हुआ अमर कार पर विश्वनगर से रवाना हो चुका था । वह एक बार फिर वाणी से मिलने नेहरू नगर जाना चाहता था जिसके लिए सुनील ने उसे बड़ी मुश्किल से रोका । प्रभातनगर वाले हादसे के बाद अमर की तलाश सारे विश्वनगर में आरम्भ हो जानी थी इसलिए अमर वहां से जितनी जल्दी निकल जाता, वाणी की सुरक्षा के लिए वह उतना ही अच्छा था ।
पटेल रोड पर लाला तीरथराम की कोठी तलाश करने में सुनील को कोई दिक्कत नहीं हुई । राजमहलों जैसी विशाल और भव्य कोठी लाला तीरथराम की सामर्थ्य का यथेष्ट विज्ञापन कर रही थी । पोर्टिको में और कोठी के अर्धवृत्ताकार ड्राइव-वे में कई कारें खड़ी थीं ।
सुनील ने अपनी कलाई घड़ी पर दृष्टिपात किया । दस बजने में अभी कुछ मिनट बाकी थे ।
साइड की दीवार फांद कर सुनील कोठी में घुसा गया । कोठी की उस ओर की तीन-चौथाई दीवार फूलदार बेलों से ढकी हुई थी । सुनील ने एक मजबूत-सी बेल छांटी और उसे पकड़कर छत पर चढ गया । वह पुराने ढंग की बनी हुई कोठी थी । कोठी के लगभग सभी कमरों के रोशनदान छत पर खुलते थे । सुनील ने सावधानी से उन रोशनदानों के रास्ते कमरों मे झांकना आरम्भ कर दिया ।
एक रोशनदान के सामने वह ठिठका ।
नीचे खेल के मैदान जितना बड़ा हाल दिखाई दे रहा था । हाल के चारों ओर छत तक ऊंचाई के किताबों से भरे रैक लगे हुए थे । हाल के बीचोंबीच एक दस गुणा बीस फुट की पेज पड़ी थी जिस पर एटामिक एनर्जी कमीशन की इमारतों का वह माडल पड़ा था जिसका जिक्र अमर ने किया था । माडल इतना सही और शानदार बना हुआ था कि रोशनदान से झांकते सुनील को ऐसा लग रहा था जैसे वह हवाई जहाज से वास्तविक इमारतों का दृश्य देख रहा हो । वास्तविक स्थान पर मौजूद झाड़ियों और पेड़ तक उस माडल में बने हुए थे ।
सुनील वहीं ठिठक गया । अगर दस बजे कोई महत्त्वपूर्ण मीटिंग होने वाली थी तो वह यहीं होगी ।
ठीक दस बजे हाल का विशाल दरवाजा खुला और आठ-दस आदमियों ने एक-दूसरे के पीछे हाल में कदम रखा । सुनील ने देखा उनमें सरोज और रणजीत भी थे । वे सब लोग माडल के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गये और प्रत्यक्षतः माडल के सन्दर्भ में बातें करने लगे । रोशनदान बन्द था । इसलिये सुनील को स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था । कभी-कभार कोई अपेक्षाकृत ऊंचे स्वर से बोला पड़ता था तो कोई इक्का-दुक्का शब्द सुनील के कानों में पड़ जाता था ।
तभी हाल में एक अन्य आदमी ने कदम रखा । वह एक अधेड़ उम्र का अधपके बालों वाला आदमी था । उसकी भवें भारी थीं, नाक-नक्श साधारण थे लेकिन रंग भरपूर गोरा था । उसका हाल में पहले से मौजूद लोगों से अभिवादन का आदान-प्रदान हुआ । सुनील ने किसी को उसे हीरालाल के नाम से पुकारते सुना ।
हाल का दरवाजा फिर खुला ।
सबकी निगाहें दरवाजे की ओर मुड़ गई ।
इस बार हाल में लाला तीरथराम ने कदम रखा था । वह एक शानदार डिनर सूट पहने हुए था । उसकी टाई में लगा विशाल हीरा सूरज की तरह जगमगा रहा था । हमेशा की तरह उसकी आंखों पर काला चश्मा और हाथ में हाथीदांत की मूठ वाली छड़ी मौजूद थी ।
सरोज लपककर आगे बढी । उसने लाला की बांह थामी और उसे मेज तक ले आई । लोग सम्मानपूर्ण ढंग से उससे दूर हट गये ।
उसके बाद प्रत्यक्षतः गम्भीर वार्तालाप आरम्भ हो गया । अधिकतर रणजीत और हीरालाल ही बोल रहे थे । बीच-बीच में लाला कुछ कह देता था । रणजीत कहीं से एक छड़ी से भी बड़ा प्वायन्टर ले आया था और वह उसकी नाक से लौबोरेटरी वाले ब्लाक के एक भाग को बार-बार छू रहा था ।
हे भगवान ! - सुनील मन-ही-मन बुदबुदाया - क्या ये लाग डाक्टर रंगनाथन का अपहरण दिन-दहाड़े लैबोरेटरी में से करने वाले थे ?
फिर रणजीत ने मेज के नीचे से छोटी-सी खिलौने जैसी बस निकाली और उसे माडल पर एक स्थान पर रख दिया । बस की छत पर बड़ा-सा हुक लगा हुआ था जिसकी ओर रणजीत बार-बार संकेत कर रहा था ।
फिर मीटिंग समाप्त हो गई ।
सब लोग कमरे से बाहर निकल गये ।
पीछे केवल लाला, रणजीत और सरोज रह गये । अब हाल में केवस तीन आदमी बाकी थे इसलिए सुनील ने हिम्मत करके रोशनदान थोड़ा-सा खोल लिया ।
“अमर का क्या कर रहे हो ?” - लाला का कठोर स्वर सुनील के कानों में पड़ा ।
“हरबर्ट को उसके पीछे लगा दिया है” - रणजीत बोला - “वह उस छोकरे को तलाश करके ही मानेगा ।”
“जैसे तुम सब लोग उस छोकरी को तलाश करके ही माने हो ?” - लाला व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“जी, वो...”
तभी टेलीफोन की घंटी बजी ।
लाला बिना किसी की सहायता से छड़ी टेकता आगे बढा । कोने की छोटी मेज पर टेलीफोन पड़ा था । लाला बिना कहीं ठोकर खाये वहां तक पहुंचा । आखिर वह उसका अपना घर था । वहां के तो चप्पे-चप्पे से वाकिफ था वह ।
“हल्लो !” - उसने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोला ।
दूसरी ओर से कुछ कहा गया जिसे सुनकर लाला के चेहरे पर हर्ष की लहर दौड़ गई । वह कुछ क्षण और सुनता रहा और फिर बोला - “शेषकुमार, तुम सुनील की तलाश जारी रखो और जीवन को कहो कि लड़की को लेकर यहां पहुंचे ।”
सुनील का गला सूखने लगा । यह किस लड़की का जिक्र हो रहा था ?
लाला ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया और वापिस घूमा ।
“वाणी मिल गई है” - लाला प्रसन्न स्वर से बोला - “वह नेहरूनगर के एक फ्लैट में छुपी हुई थी ।”
रणजीत और सरोज के भी चेहरे चमक उठे ।
“अब तुम लोग जाओ यहां से” - लाला बोला - “राजनगर में भी सूचना भिजवा दो कि एक्शन के लिए कल रात दस बजे का समय निर्धारित हुआ है ।”
“यस, सर ।” - रणजीत तत्पर स्वर से बोला ।
“और सुनो । यह माडल नष्ट कर देना । अब इसकी जरूरत नहीं ।”
“यस, सर ।”
रणजीत और सरोज हाल से बाहर निकल गये ।
हाल में अकेला लाला तीरथराम रह गया । वह एक आरामकुर्सी पर बैठ गया । उसने एक लम्बा सिगार सुलगाया और उसके छोटे-छोटे कश लेता हुआ प्रतीक्षा करने लगा ।
आदतन सुनील का हाथ भी सिगरेट की ओर बढा लेकिन उसने फौरन अपना इरादा बदल दिया । वह भी बड़े सब्र के साथ वाणी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद हाल का दरवाजा फिर खुला और जीवन ने भीतर कदम रखा । उसके साथ वाणी थी । उसके हाथ उसकी पीठ के पीछे बंधे हुए थे और उसके मुंह पर रूमाल बंधा हुआ था ।
“कौन है ?” - लाला सतर्क स्वर से बोला ।
“जीवन, सर ।” - जीवन बोला ।
“लड़की लाये हो ?”
“यस, सर ।”
“ठीक है । लड़की को यहां छोड़ दो और तुम जाओ ।”
“यस, सर ।”
जीवन ने वाणी को हाल में लाला की ओर धकेल दिया और स्वयं हाल से बाहर निकल गया ।
लाला अपने स्थान से उठा और छड़ी टेकता हुआ वाणी के सामने पहुंचा ।
“हूं” - वह बोला - “तो घूम-फिरकर वहीं पहुंच गई जहां से चली थीं ।”
वाणी ने भयभीत नेत्रों से लाला की ओर देखा ।
लाला ने वाणी के मुंह की पट्टी खोल दी ।
“देखो” - लाला नम्र स्वर से बोला - “मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता । तुमने मुझे फंसवाने की कोशिश की है, लेकिन मैं फिर भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता । मैं तुमसे एक सीधा सवाल पूछ रहा हूं और उसका सच्चा जवाब तुमसे चाहता हूं । ...सुनील कहां है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।” - वाणी कठिन स्वर से बोली ।
“तुम झूठ बोल रही हो” - लाला कर्कश स्वर से बोला - “तुम्हें जरूर मालूम है ।”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“तुम विश्वगर में उससे मिल चुकी हो । उसने तुम्हें अपना कोई पता-ठिकाना जरूर बताया होगा ?”
वाणी चुप रही ।
“वह अभी यहीं है या वापस राजनगर चला गया है ?”
“कह दिया न, मुझे कुछ नहीं मालूम ।”
“देखो, मुझे सख्ती के लिए मजबूर न करो ।”
सुनील अपने स्थान से हटा । वह सीढियों के रास्ते नीचे पहुंचा । सौभाग्यवश न तो उस दौरान उसका किसी से आमना-सामना हुआ और न ही हाल का मुख्य द्वार तलाश करने में उसे कोई दिक्कत हुई । वाणी के मुंह से निकली एक चीख ने उसका पयप्त‍ि मार्गनिर्देशन कर दिया था ।
उसने दरवाजे को धीरे से धक्का दिया । दरवाजा नि:शब्द खुला । लाला उसकी ओर पीठ किये खड़ा था और उसकी ओट में खड़ी वाणी के सिर का ऊपरी भाग ही उसे दिखाई दे रहा था । सुनील ने दबे पांव भीतर कदम रखा । वह बिल्ली की तरह नि:शब्द लाला की ओर बढा ।
एकाएक लाला घूमा । उसके हाथ में एक छोटी-सी रिवाल्वर चमक रही थी ।
“जो भी हो, वहीं खड़े रहो” - लाला सतर्क स्वर में बोला - “वर्ना शूट कर दूंगा । मेरी आंखें जरूर अंधी हैं लेकिन कान बहुत तेज हैं । तुम इस वक्त दरवाजे के पास खड़े हो ।”
सुनील ने होंठो पर जबान फेरी । वह दबे पांव दाईं ओर सरका ।
“अब तुम दाईं ओर बढ रहे हो” - लाला तीव्र स्वर से बोला - “अब तुम बिजली के स्व‍िच बोर्ड की ओर बढ रहे हो, लेकिन बत्ती बुझाने से कोई फायदा नहीं होगा । मेरे लिये तो बत्ती वैसे ही बुझी हुई है । मैं तुम्हें अंधेरा हो या उजाला, हर तरह से शूट कर सकता हूं ।”
सुनील ठिठक गया । वह जिधर भी घूमा था, लाला के हाथ में थमी रिवाल्वर की नाल का रुख उधर ही घूम गया था ।
लाला सतर्कता की प्रतिमूति बना खड़ा था । उसके दायें हाथ में रिवाल्वर थी और बायें हाथ में वाणी की बांह थी और उसी हाथ में कोहनी के पास उसने अपनी छड़ी टांग ली थी ।
“तुम्हारी यहां मौजूदगी की वाणी पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई मालूम होती है” - लाला बोला - “तुम या अमर हो और या सुनील हो । बोलो, कौन हो तुम ?”
सुनील हैरानी से लाला का मुंह देखने लगा । लाला की हर हरकत उसे करिश्मा मालूम हो रही थी ।
लाला ने तब वाणी का हाथ छोड़ दिया । वह सावधानी से पीछे हटा । उसने मेज की पैनल में लगा एक बटन दबा दिया ।
कुछ क्षण बाद हाल में रणजीत दाखिल हुआ । सुनील पर निगाह पड़ते ही उसके मुंह से आश्चर्यभरी सिसकारी निकल गई ।
“कौन है ये ?” - लाला ने पूछा ।
“सुनील ।” - रणजीत बड़ी मुश्किल से कह पाया । उसने भी अपनी जेब से रिवाल्वर निकाल ली थी ।
“गुड” - लाला बोला - “अच्छा है, यह खुद ही यहां आ गया है । मेरी बहुत बड़ी चिन्ता दूर हो गई है । रणजीत इसे ले जाओ । तुम जानते ही हो तुमने इसकी क्या खातिर करनी है ।”
“यस, सर ।”
“और वाणी मेस साहब से मैं निपटता हूं ।”
रणजीत ने रिवाल्वर की नाल से सुनील को इशारा किया ।
सुनील भारी कदमों से हाल से बाहर की ओर बढा ।
जब वह रणजीत के पास से गुजरा तो उसने अपनी रिवाल्वर सुनील की पसलियों से सटा दी और उसके साथ-साथ चलने लगा ।
***
जहां सुनील बन्द था, वह लाला तीरथराम की कोठी के नीचे ही कहीं स्‍थित एक तहखाना था । जितनी खूबसूरत और आरामदेय लाला की कोठी थी उतना ही घिनौना और तकलीफ देने वाला वह तहखाना था । तहखाने में घुप्प अंधेरा था । रोशनी तो दूर, कहीं से ठण्डी हवा आने के लिए झरोखा तक नहीं था । तहखाना सीलन और बदबू से सड़ रहा था । सुनील ने माचिस जलाकर जब आसपास का निरीक्षण करने का उपक्रम किया था तो सबसे पहले उसकी निगाह तहखाने के ऊबड़-खाबड़ फर्श पर फैली हड्ड‍ियों पर ही पड़ी थी । पता नहीं वे हड्ड‍ियां आदमियों की थी या जानवरों की । शायद आदमियों की ही थीं । जरूर सुनील से पहले भी लाला के कई कैदी उस तहखाने में दम तोड़ चुके थे ।
“इस तहखाने में तुम चौबीस घन्टे से ज्यादा जिन्दा रह गये तो मैं इसे करिश्मा समझूंगा ।” - लाला का क्रूर स्वर उसके कानों में गूंज गया ।
सुनील तब तक तहखाने की दीवार और फर्श ठकठकाता रहा जब तक कि उसकी माचिस की सारी तीलियां न खत्म हो गई । वह यह तक न जान पाया कि उस तहखाने में प्रवेश द्वार कहां था । वह किधर से वहां तक लाया गया था ।
अन्त में थक-हारकर वह तहखाने के बीचोबीच बैठ गया ।
उसने अपनी रेडियस डायल वाली घड़ी पर दृष्ट‍िपात किया ।
दो बज चुके थे ।
अर्थात वह तीन घन्टे से भी ज्यादा समय से उस तहखाने में बन्द था ।
तहखाने की गन्दी और बदबूदार हवा में उसका दम घुट रहा था । धीरे-धीरे उस पर बेहोशी-सी तारी होती जा रही थी । थोड़ी देर बाद वह जहां बैठा था, वहीं लेट गया और फिर पता नहीं कब उसकी चेतना लुप्त हो गई ।
***
जब सुनील को होश आया तो उसने अपने-आपको एक सोफे पर पड़े पाया । वह आंखें मिचमिचाता हुआ उठकर बैठ गया ।
किसी ने पानी का गिलास उसके हाथ में थमा दिया ।
सुनील ने गिलास थामा और गटागट सारा पानी पी गया । तब उसकी निगाह उस हाथ के स्वामी पर पड़ी ।
सामने अमर खड़ा था ।
“तुम !” - सुनील के मुंह से निकला ।
“कैसी तबीयत है ?” - असर ने पूछा ।
“ठीक है । शुक्रिया ।”
“शुक्रिया वाणी का अदा करो ।”
“वाणी !”
“हल्लो, मिस्टर सुनील ।”
सुनील ने गरदन घुमाकर नई आवाज की दिशा में देखा । वाणी सोफे की बगल में खड़ी थी ।
“वाणी को इस तहखाने की खबर थी । इसी ने मुझे बताया कि तुम जरूर तहखाने में थे । मैंने रणजीत की गरदन नापी और उससे तहखाने का बिजली से खुलने वाला दरवाजा खोलने का तरीका कुबुलवाया । भीतर बड़ी ही नाजुक हालत में तुम मिले । शुक्र है हम वक्त पर पहुंच गये । वह तहखाना तो साक्षात नर्क है ।”
“रणजीत कहां है ?”
“वह जहां भी है, कोई शरारत करने की स्थिति में नहीं है ।”
“तुम यहां कैसे पहुंच गये ?”
“सुनील, तुम्हारे कहने पर वाणी से बिना मिले मैं विश्वनगर से रवाना तो हो गया लेकिन मेरा मन नहीं माना । मैं वाणी को खतरे के माहौल में छोड़कर जाने के लिये स्वयं को तैयार न कर सका । मैं रास्ते से वापस लौट आया । मैं नेहरूनगर अंजना के फ्लैट पर पहुंचा । वहां मैंने दरवाजा टूटा हुआ पाया और वाणी को फ्लैट से गायब पाया । मैं समझ गया कि लाला के आदमियों को किसी प्रकार वाणी की खबर लग गई थी और वे उसे जबरदस्ती पकड़कर ले गये थे । मैं समझ गया कि वे जरूर उसे लाला के पास ले कर गये होंगे । मैं यहां पहुंचा । उस समय कोठी में बहुत आदमी थे इसलिए मेरी भीतर घुसने की हीम्मत नहीं हुई । फिर धीरे-धीरे लोग विदा होने लगे । कोठी में सन्नाटा छाने लगा । अन्त में लाला भी कोठी से विदा हो गया ।”
“कहां ?”
“पता नहीं ।”
“फिर ?”
“फिर मैंने अनुभव किया कि कोठी में केवल रणजीत रह गया था । मैं भीतर घुसा । बड़ी सहूलियत से मैंने रणजीत पर काबू पा लिया । मैंने उससे वाणी के बारे में पूछा । दबाव डालने पर उसने मुझे बताया कि लाला वाणी को अपने बैडरूम में बन्द कर गया था और रणजीत को कह गया था कि उसके लौटने तक वह वाणी का पूरा ख्याल रखे । बैडरूम में से मैंने वाणी को रिहा किया । उसी ने मुझे बताया कि तुम लाला के चंगुल में फंस चुके हो । हमने सारी कोठी छान मारी लेकिन तुम्हारा कहीं पता नहीं लगा । तब वाणी को तहखाने का ख्याल आया। रणजीत से हमने तहखाना खोलने की तरकीब जानी और तुम्हें मरणासन्न अवस्था में यहां लेकर आये ।”
सुनील लड़खड़ाता हुआ सोफे से उठा ।
“अभी लेटे रहो” - वाणी बोली - “आराम करो ।”
“आराम करने का समय नहीं । लाला ने कल रात दस बजे का समय एक्शन के लिये निर्धारित किया हुआ है । टाइम क्या हुआ है ? ...हे भगवान् ! यह तो छ: बजे पड़े हैं ।”
“हां” - अमर बोला - “बाहर धूप निकली हुई है ।”
“यानी कि एक्शन के समय में केवल सोलह घन्टे बाकी हैं । मुझे फौरन कुछ करना चाहिए ।”
“क्या करना चाहते हो ?”
“फोन । फोन कहां है ?”
वाणी ने बड़ी तत्परता से फोन उठाकर उसके सामने रख दिया ।
सुनील ने राजनगर पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह की कोठी पर फोन किया ।
“रामसिंह !” - सम्पर्क स्थापित होते ही सुनील ने फौरन बोलना आरम्भ कर दिया - “विश्वनगर से बोल रहा हूं । अब मैं पूरी गारंटी और पक्के सबूत के साथ तुम्हें सूचना दे रहा हूं कि डाक्टर रंगनाथन के अपहरण के लिये आज रात दस बजे का समय निर्धारित हुआ है । और अपहरण का षड्यन्त्र रचने वालों का सरगना लाला तीरथराम ही है । बदमाश बहुत बड़े पैमाने पर तैयारी कर रहे हैं, इसलिये भगवान् के लिये फौरन कुछ करवाओ ।”
“तुम बोल कहां से रहे हो ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“विश्वनगर में लाला तीरथराम की कोठी में से । लाला ने मुझे मरने के लिये अपनी कोठी के नीचे बने एक तहखाने में बन्द कर दिया था । तकदीर से ही जिंदा बच पाया हूं ।”
“अच्छा !”
“हां । रामसिंह, फौरन डाक्टर रंगनाथन की सुरक्षा का कोई पुख्ता इन्तजाम करवा दो, वर्ना जिन्दगी-भर पछताओगे ।”
“अभी आई जी से बात करता हूं ।”
“हां, आई जी से भी बात करो और डाक्टर रंगनाथन से भी । उसे भी कहो कि उस आस्तीन के सांप से सावधान रहे जिसे वह अपना दस साल पुराना दोस्त कहता है ।”
“ओके ।”
सुनील ने सम्बविच्छेद कर दिया ।
उसने डाक्टर रंगनाथन का नम्बर डायल किया । दूसरी ओर से किसी ने तुरन्त फोन उठाया लेकिन सुनील के बहुत अनुनय-विनय करने के बावजूद भी उसने डाक्टर रंगनाथन को फोन पर नहीं बुलाकर दिया । जब सुनील ने अपना नाम बताया तो उत्तर मिला कि उसके बारे में तो उसे विशेष रूप से निर्देश है कि उस सुनील का फोन आने पर मैसेज ले लिया जाये लेकिन डाक्टर रंगनाथन को डिस्टर्ब न किया जाये ।
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।
उसने इण्डियन एयरलाइन्स के बुकिंग आफिस में टेलीफोन किया । मालूम हुआ कि उस रोज के लिये राजनगर की किसी भी फ्लाइट में सीट उपलब्ध नहीं थी ।
“अमर” - सुनील बोला - “तुम्हारी कार कहां है ?”
“पटेल रोड के मोड़ पर खड़ी है ।” - अमर बोला - “क्यों ?”
“तुम्हें अपनी कार पर मुझे राजनगर लेकर चलना होगा ।”
“लेकिन मैं तो वाणी को लेकर फौरन बम्बई रवाना होना चाहता हूं ।” - अमर ने तीव्र प्रतिवाद किया ।
“देखो, तुम्हारा वैसे भी मेरे साथ चलना जरूरी है । लाला के नापाक इरादों के तुम्हीं सच्चे गवाह हो । तुम्हारे बिना मैं किसी को विश्वास नहीं दिला पाऊंगा कि मैं जो कह रहा हूं, सच कह रहा हूं । अमर, लाला को फंसवाने के लिए तुम्हारा और वाणी का मेरे साथ राजनगर जाना जरूरी है ।”
“मैं किसी बखेड़े में नहीं फंसना चाहता ।”
“बखेड़े में तो तुम जरूर फंसोगे । तुम्हारी जानकारी के लिए लाला ने हरबर्ट को तुम्हारे पीछे लगा दिया है और उसे निर्देश है कि वह पाताल में से भी तुम्हें खोज निकाले । तुम्हें यह बताने की जरूरत नहीं कि अगर तुम लाला के हाथ पड़ गये तो तुम्हारा क्या अंजाम होगा ।”
अमर चिन्तित दिखाई देने लगा ।
“अमर, तुम्हारी और तुम्हारी बहन की सुरक्षा की तब तक कोई गारण्टी नहीं जब तक लाला कानून की गिरफ्त में नहीं फंसता । इसलिये जैसा मैं कहता हूं वैसा करो । इसी में तुम्हारी भलाई है । इसी में सबकी भलाई है ।”
“लेकिन अगर मैं कानून की पकड़ में आ गया तो ?”
“तुमने क्या किया है ? कोई कत्ल किया है ? कोई डाका मारा है ?”
“नहीं ।”
“तुम्हारा कुछ नहीं होगा । तुम लाला के खिलाफ सरकारी गवाह बन जाओगे तो उलटे पुलिस तुम्हें सिर-माथे बिठायेगी । और तुम अपनी इस गुनाह-भरी जिन्दगी से हमेशा के लिये छुटकारा पाओगे ।”
“अमर” - वाणी अधिकारपूर्ण स्वर से बोली - “जैसा मिस्टर सुनील कहते हैं, वैसा करो ।”
अमर सोच में पड़ गया । कुछ क्षण बाद उसने कुछ कहने कि लिए मुंह खोला और फिर जोर से दांत भींच लिये ।
“अमर !” - वाणी शिकायत-भरे स्वर से बोली ।
“ओके” - अन्त में अमर बोला - “ओके ।”
उसके स्वर में अभी भी अनिश्चय का पुट था ।
***
राजनगर जल्दी-से-जल्दी पहुंचने के चक्कर में कार का एक्सीडेण्ट हो गया ।
विश्वनगर से रवाना हुए उन्हें केवल एक ही घंटा हुआ था । कार सुनील खुद चला रहा था । एक मोड़ पर कार सीधी मिलिट्री के एक ट्रक से जा टकराई । चोट किसी को नहीं आई, न ही दोनों गाड़ियों को ज्यादा क्षति पहुंची लेकिन मिलिट्री के ट्रक का ड्राइवर पसर गया कि जब तक पुलिस आकर एक्सीडेण्ट की पूरी जांच-पड़ताल नहीं कर लेगी, वह उन्हें वहां से नहीं जाने देगा ।
पुलिस की सुस्त रफ्तार तफतीश के चक्कर में वहीं चार बज गये ।
इस प्रकार रात के नौ बजे कहीं वे एटामिक एनर्जी कमीशन के सामने पहुंच पाये ।
विश्वनगर से रवाना होने से पहले सुनील ने ब्राइट होटल से अपना सूटकेस ले लिया था जो कि वह टैक्सी ड्राइवर बड़ी शरारत से वहां छोड़ गया था । कार में ही उसने अपने तहखाने की सीलनभरी मिट्टी से सने कपड़े उतार कर नये कपड़े पहन लिये थे ।
मुख्य द्वार पर खड़े दरबान ने दरवाजा खोलने का कोई उपक्रम नहीं किया । सुनील कार से उतरा और उसने दरबान को बताया कि वे डाक्टर रंगनाथन से मिलने आये थे ।
दरबान बिना उत्तर दिये वापिस अपने वाच बाक्स में घुस गया । उसने कोठी के भीतर किसी को टेलीफोन किया । थोड़ी देर बाद वह रिसीवर रखकर वापिस आया और सुनील से बोला - “आप लोग यहीं इन्तजार कीजिये । मैंने भीतर सूचना भिजवा दी है ।”
दरवाजा दरबान ने अभी भी नहीं खोला ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“सुनील !” - उसी क्षण उसके कानों में एक भारी आवाज पड़ी ।
सुनील घूमा ।
एक पेड़ की ओट से रामसिंह प्रकट हुआ ।
सुनील लपककर उसके पास पहुंचा ।
रामसिंह उस वक्त सादी वर्दी में था । उसके हाथ में एक आधा फुट लम्बा सिगार था जिसे वह बड़े विशिष्ट ढंग से अपने अंगूठे और पहली उंगली में नचा रहा था ।
“रामसिंह” - सुनील बोला - “यहां क्या कर रहे हो ?”
“वही जो तुम मुझसे कराना चाहते हो” - रामसिंह गम्भीर स्वर से बोला - “मैंने आई जी से बात की थी । उसने न सिर्फ मेरी बात पर गौर नहीं किया, उलटे मुझे फटकार लगाई कि मैं भी अब अफवाहों का शिकार होने लगा हूं ।”
“यानी कि...”
“घबराओ नहीं । इन्तजाम पूरा है । मैं अपनी जिम्मेदारी पर यहां पुलिस के तीस आदमी लेकर आया हूं । सब तजुर्बेकार हैं, सब सशस्त्र हैं । इलाका हर ओर से घिरा हुआ है । अगर तुम्हारे कथनानुसार आज वाकई डाक्टर रंगनाथन के अपहरण की कोशिश होने वाली है तो वह कोशिश मैं गारण्टी करता हूं, बेकार जायेगी ।”
“डाक्टर रंगनाथन को इस इन्तजाम की जानकारी है ?”
“उसे बता दिया गया है ।”
“उसे अभी विश्वास हुआ या नहीं कि उसके अपहरण की कोशिश होने वाली है ?”
“विश्वास तो उसे अभी भी नहीं लेकिन अब वह कुछ विचलित जरूर दिखाई देने लगा है । इसलिये शायद उसने सुरक्षा के लिये तैनात मेरे आदमियों की मौजूदगी पर एतराज नहीं किया है ।”
“वैरी गुड ।”
“लेकिन सुनील, खबर पक्की है न ?”
“शत-प्रतिशत ।”
“कोई गड़बड़ हुई तो मेरी वर्दी उतर जायेगी ।”
“कुछ नहीं होगा । उलटा तुम्हें जरूर कोई मैडल मिलेगा ।”
“एक बड़ी जोरदार बात सुनने को तैयार हो जाओ ।”
“क्या ?”
“लाला तीरथराम भीतर कोठी में है और अपने यार डाक्टर रंगनाथन के साथ डिनर खा रहा है ।”
“क... क्या ?” - सुनील हक्का-बक्का-सा रामसिंह का मुंह देखने लगा । वह सिगरेट पीना भूल गया ।
रामसिंह ने सिगार का गहरा कश लगाया ।
“तुम्हें उसको फौरन गिरफ्तार कर लेना चाहिये ।” - सुनील बोला ।
“किस इलजाम में ?”
“डाक्टर रंगनाथन के अपहरण का षड्यन्त्र रचने के इलजाम में, मेरी हत्या का प्रयत्न करने के इलजाम में ।”
“सबूत कहां है ?”
“मैं सबूत हूं ।”
“यह कोई सबूत नहीं । इतने बड़े आदमी पर हाथ डालने के लिये सिर्फ तुम्हारा बयान काफी नहीं ।”
“दो और सबूत कार में बैठे हैं ।”
“कौन ?”
“वाणी - वह लड़की, जो आरम्भ में अपहरण के षड्यन्त्र की खबर लेकर हमारे अखबार के दफ्तर में आई थी और उसका भाई अमर, जो लाला के गैंग का सदस्य है ।”
“फिर तो लाला की गरदन नापी जा सकती है ।”
तभी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे अमर ने कार का हार्न बजाया ।
सुनील ने उस ओर देखा । फाटक खुल रहा था । अब फाटक से परे एक अन्य आदमी खड़ा था ।
“तुम भीतर नहीं आओगे ?” - सुनील ने रामसिंह से पूछा ।
“नहीं” - रामसिंह बोला - “मेरा यहां मौजूद रहना जरूरी है ।”
सुनील फाटक की ओर लपका ।
अमर ने कार भीतर ड्राइव कर दी थी और पोर्टिको में ले जा खड़ी की थी ।
सुनील भी भीतर प्रविष्ट हुआ ।
दरबान ने पीछे फाटक बन्द करके उसमें ताला लगा दिया ।
सुनील ने देखा जो अन्य आदमी उसे दिखाई दिया था वह डाक्टर रंगनाथन का वही सैक्रेटरी था जो पिछली बार भी सुनील को रंगनाथन के पास लेकर गया था ।
“मैं डाक्टर रंगनाथन से मिलना चाहता हूं” - सुनील बोला - “अगर आपको मेरे सन्दर्भ में उन्हें डिस्टर्ब न करने का कोई विशेष निर्देश भी है तो भी आप उन तक मेरा नाम जरूर पहुंचाइये और गुप्त रूप से पहुंचाइये । लाला तीरथराम को खबर नहीं होनी चाहिये कि मैं यहां आया हूं ।”
“लेकिन मैं उन्हें कहूं क्या ?” - सैक्रेटरी अनिश्चित स्वर से बोला ।
“आप उससे कहिये कि इस बार सुनील सबूत के साथ हाजिर हुआ है । अगर इस बार उन्हें मेरे कथन पर विश्वास न हुआ तो मैं फिर कभी डिस्टर्ब नहीं करूंगा । आप मेरी ओर से उनसे प्रार्थना कर दीजिये कि बस यह आखिरी बार और मुझसे मिल लें ।”
“अच्छा, मैं कोशिश करता हूं ।”
“लाला को मेरी खबर न होने दीजियेगा ।”
“अच्छा ।”
सैक्रेटरी तीनों को बगल के एक छोटे से कमरे में बिठा गया और कोठी के भीतर घुस गया ।
वे बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगे ।
थोड़ी देर बाद डाक्टर रंगनाथन वहां पहुंचा ।
“तुम फिर आ गये ?” - सुनील पर निगाह पड़ते ही वह रुष्ट स्वर से बोला ।
“देखिये” - सुनील आहत स्वर से बोला - “मुझे तौहीन करवाने का शौक नहीं है । मैं आप ही की भलाई के लिये यहां फिर आया हूं । और इस बार मैं बिना सबूत के यहां नहीं आया ।”
“सबूत ?”
“जी हां । यह वाणी है । यही वह लड़की है, जिसने विश्वनगर से आकर पहली बार अपहरण के षड्यन्त्र की खबर मुझे सुनाई थी और यह इसका भाई अमर है, जो लाला तीरथराम के गैंग का आदमी है और लाला तीरथराम की सारी पोल जानता है । सर, वह आदमी आपका दोस्त नहीं, दुश्मन है । आस्तीन का सांप है । आपकी जानकारी के लिये कल रात अपनी विश्वनगर स्थित कोठी में लाला तीरथराम ने मेरी हत्या करवाने की कोशिश की थी क्योंकि मैं उसका असली चेहरा देखने में कामयाब हो गया था ।”
डाक्टर रंगनाथन के चेहरे पर अविश्वास के भाव उभरे ।
“तो तुम बच कैसे गये ?” - उसने पूछा ।
“मुझे अमर ने बचाया । अमर, साहब को सारी कहानी सुनाओ ।”
अमर ने न केवल सुनील की रिहाई की दास्तान सुनाई बल्कि लाला तीरथराम की और भी कई करतूतों का कच्चा चिट्ठा सुनाया ।
फिर वाणी ने उसे बताया कि कैसे उसे लाला के नापाक इरादों की खबर हुई और वह अपने भाई की सलामती की खातिर पुलिस में जाने के स्थान पर राजनगर ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में पहुंची ।
डाक्टर रंगनाथन भौचक्का-सा सब कुछ सुनता रहा ।
“लेकिन... लेकिन” - अन्त में वह बोला - “लाला तीरथराम मेरे अपहरण के षड्यन्त्र में कैसे शामिल हो सकता है ? वह तो खुद मुझे सलाहें दे रहा है कि किस प्रकार मुझे अपनी हिफाजत करनी चाहिए । और वह तो खुद मुझसे प्रार्थना कर रहा है कि मैं इस बात को, कि मेरा अपहरण होने वाला है, गम्भीरता से लूं और पुलिस के हस्तक्षेप द्वारा अपनी सुरक्षा का कोई इन्तजाम करवाऊ । अभी डिनर के दौरान में भी वह मेरे से जिद कर रहा था कि मैं आई जी से बात करूं और अपने लिए अंगरक्षक नियुक्त करवाऊं । अगर तुम्हारे कथनानुसार आज रात दस बजे, यानी कि केवल आधे घण्टे बाद, मेरा अपहरण होने वाला है और उसमें लाला का हाथ है तो फिर वह खुद क्यों जिद कर रहा है कि मैं अपनी सुरक्षा का कोई ठोस इन्तजाम करूं ।”
“कोई तो वजह होगी” - सुनील बोला - “सर, लाला तीरथराम बड़ी गहरी चाल चल रहा है । जो कि, मुझे भय है कि, मेरी समझ में नहीं आ रही । उसकी विश्वनगर की कोठी में इस इलाके का हूबहू माडल मौजूद था और उसी सन्दर्भ में वह अपने साथियों से बात कर रहा था । मेरी समझ में यह कतई नहीं आ रहा कि उस माडल का आपके अपहरण से क्या सम्बन्ध है लेकिन इस बात में सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं कि आज रात कुछ होने वाला है । सर, आप अभी आई जी से बात कीजिए और सुरक्षा के लिए आप यहां ज्यादा-से-ज्यादा सशस्त्र आदमी बुलवाइये ।”
“सशस्त्र आदमी तो यहां वैसे ही बहुत आने वाले हैं ।” - डाक्टर रंगनाथन धीरे से बोला ।
“जी !”
“मिस्टर, यह एक स्टेट सीक्रेट है लेकिन फिर भी तुम्हें बता रहा हूं । प्रतिरक्षा मंत्रालय के आदेशनुसार यहां के स्टोर में मौजूद यूरेनियम-233 के स्टाक में से लगभग चार सौ किलो यूरेनियम, जो कि यहां के स्टाक का 95 प्रतिशत है, आज रात साढे दस बजे हमारे तारपुर और राजस्थान स्थित रियेक्टरों के लिए वहां भेजा जाने वाला है । दस बजे के बाद किसी समय एक कर्नल के कमाण्ड में एक मिलिट्री बख्तरबन्द गाड़ी यहां आने वाली है जो चालीस-चालीस किलो की दस पेटियों में बन्द यूरेनियम के स्टाक को यहां से एयरपोर्ट तक ले जायेगी जहां एयरफोर्स का एक प्लेन इसे अपने गन्तव्य स्थान पर ले जाने के लिए तैयार खड़ा होगा । यूरेनियम किसी भी सांसारिक दौलत से ज्यादा कीमती चीज है इसलिए कहने की जरूरत नहीं कि इसकी सुरक्षा के लिए फौज का पूरा इन्तजाम है । केवल यही नहीं, यहां से लेकर एयरपोर्ट तक के रास्ते में भी जगह-जगह पर मिलिट्री तैनात है ।”
“इतना इन्तजाम क्यों ?” - सुनील असमंजसपूर्ण स्वर से बोला - “कोई यूरेनियम का क्या करेगा ?”
“मिस्टर, शायद तुम्हें मालूम नहीं कि यूरेनियम-233 की स्मगलिंग भी बहुत बड़ा इन्टरनेशनल धन्धा बन गया है । 9 जून, 1974 को देश के विभिन्न अखबारों में यूरेनियम की स्मगलिंग से सम्बन्धित एक समाचार छपा था जिस पर शायद तुम्हारी निगाह नहीं पड़ी । उस समाचार के अनुसार भारत में बम्बई, तारापुर, राजस्थान और मद्रास स्थित रियेक्टरों में प्रयुक्त होने के लिए उपलब्ध यूरेनियम काफी मात्रा में चोरी हो रहा है और बिहार में जदुगुडा यूरेनियम मिल में से भी यूरेनियम खिसकाया जा रहा है जो नेपाल के रास्ते हांगकांग तक पहुंचाया जाता है और वहां चीन या पाकिस्तानी एजेण्टों के हाथ बेचा जाता है । आजकल नेपाल यूरेनियम की स्मगलिंग का धन्धा करने वाले कई अन्तर्राष्ट्रीय स्मगलरों का प्रमुख अड्डा बना हुआ है । भारत और नेपाल के बीच मौजूद 500 मील लम्बे बॉर्डर की वजह से स्मगलर अपना माल नेपाल पहुंचाना ज्यादा सहूलियत का काम समझते हैं । फिर नेपाल से आगे विदेशी एजेण्टों की सहायता से माल कहीं भी पहुंचाया जा सकता है ।”
“लेकिन हमारी सरकार तो इस बात से सरासर इन्कार करती है कि बिहार से या किसी भी भंडार से यूरेनियम चोरी हो रहा है । वे तो कहते हैं कि हर स्थान पर यूरेनियम का भंडार पूरी तरह सुरक्षित है । हाल ही में किसी सरकारी प्रवक्ता ने लोकसभा में भी बयान दिया था ।”
“वे तो ऐसा कहेंगे ही । वे अपनी जुबान से थोड़े ही स्वीकार करेंगे कि यूरेनियम चोरी हो रहा है । लेकिन ऐसी बात हवा में है, इस बात का यही काफी सबूत नहीं है कि क्योंकि आज यहां से भारी मात्रा में यूरेनियम ले जाया जाने वाला है इसलिए उसकी सुरक्षा के लिए फौज का तगड़ा इन्तजाम हो रहा है । साधारणतया स्मगलरों के हाथ बहुत कस मात्रा में यूरेनियम लगता है लेकिन अगर उन्हें खबर लग जाए कि यहां से 400 किलो यूरेनियम मूव किया जाने वाला है और वे किसी प्रकार उसे उड़ाने में सफल हो जायें तो जानते हो, क्या होगा ? भारत तो अपने न्यूक्लियर रिसर्च प्रोग्राम में कम-से-कम बीस साल पिछड़ जायेगा और स्टाक को बेचकर स्मगलरों की सात पुश्तें मालामाल हो जायेंगी । तुम्हारी जानकारी के लिए यूरेनियम-233 के हमारी अणु भट्ठियों में जलने से ही प्लूटोनियम-239 नाम की वस्तु बनती है जो राजस्थान में हुए आणविक विस्फोट में काम आई है और जिससे एटम बम बनता है ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा । फिर उसके चेहरे पर दहशत के भाव उभरे ।
“सर” - वह तीव्र स्वर में बोला - “क्या इस बात की खबर लाला तीरथराम को है कि आज रात यहां से यूरेनियम का स्टाक कहीं ले जाया जाने वाला है ?”
“पिछली रात किसी मुलाकात पर मैंने लाला को यह बात बताई थी” - डाक्टर रंगनायन खेदपूर्ण स्वर से बोला - “जिस दिन मुझे टेलीफोन पर इस सम्बन्ध में निर्देश मिले थे, उस दिन लाला यहीं था । वार्तालाप समाप्त होने के बाद उसने उत्सुकतावश मुझसे इस सम्बन्ध में कोई सवाल पूछा था तो मैंने उसे सहज ही बता दिया था कि 15 जून, 1974 को रात के साढे दस बजे यहां से यूरेनियम का स्टाक कहीं ले जाया जाने वाला था । लेकिन उस समय मुझे लाला की असलियत तो नहीं मालूम थी न । मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि...”
“सर” - सुनील जल्दी से बोला - “अब कहानी कुछ और ही हो गई है । मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि न तो आपका अपहरण होने वाला है और न आपके अपहरण की कभी योजना थी । इसीलिए लाला बड़ी दयानतदारी और हमदर्दी से आपको अपनी सुरक्षा का पूरा इन्तजाम रखने की लगातार राय देता रहा है । मैं पहले से ही महसूस कर रहा था कि जितना तगड़ा इन्तजाम लाला कर रहा था, वह आपके अपहरण के लिए नहीं हो सकता था । वह चींटी मारने के लिए तोप लाने जैसा था । लाला जैसे आदमी को आपके अपहरण से कोई लाभ नहीं हो सकता । अगर कोई लाभ हो भी सकता है तो वह उस लाभ के मुकाबले में निहायत मामूली है जो उसे यूरेनियम हाथ लग जाने से हासिल होने वाला है । वास्तव में लाला की सारी तैयारियां यूरेनियम हथियाने के लिए ही हैं ।”
“फिर यह लड़की कैसे कहती थी कि मेरे अपहरण का षड्यन्त्र राच जा रहा है ?”
“सम्भव है मुझे गलती लगी हो” - वाणी बोली - “मैंने लाला का अपने आदमियों के साथ वार्तालाप सुना था, जिसमें बार-बार आपका नाम आता रहा था । शायद उत्तेजनावश मैं कूद कर इस नतीजे पर पहुंच गई थी कि आपका अपहरण होने वाला है ।”
“या सम्भव है, यूरेनियम हथियाने के सन्दर्भ में ही कभी लाला का ख्याल आपका अपहरण करने का भी रहा हो” - सुनील बोला - “जो कि बाद में बदल गया हो । शायद लाला खुद अपने आदमियों को भी सारी बात न बताता हो । शायद उसके अपने कुछ साथियों को भी अभी तक यही गलतफहमी हो कि आपका अपहरण किया जाने वाला है ।”
“लेकिन यूरेनियम हथियाने वाली बात भी कैसे सम्भव है ?” - डाक्टर रंगनाथन बोला - “वह केवल तुम्हारा अनुमान ही तो है ।”
“वर्तमान स्थिति में इससे ज्यादा सम्भव बात और कोई दिखाई नहीं देती ।”
“अगर इसे सच मान भी लिया जाये तो लाला इसे कैसे अंजाम दे सकता है ? यूरेनियम यहां से फौज के पहरे में ले जाया जाने वाला है । और शायद तुम्हें मालूम न हो, अपने तीस सशस्त्र आदमियों के साथ एक पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट भी बाहर मौजूद है । इतने इन्तजाम में लाला यूरेनियम पर कैसे हाथ डाल सकता है ?”
“ये सब बातें उसे भी मालूम होंगी । उसने कुछ सोच-समझकर ही योजना बनाई होगी ।”
“लेकिन...”
“सर, वक्त बहुत कम रह गया है । अगर कुछ नहीं भी होने वाला तो भी इतने महत्वपूर्ण काम में अतिरिक्त सावधानी बरतने में क्या हर्ज है ? मेरी राय में आप फौरन सम्बन्धित अधिकारियों को फोन करके पुलिस की या फौज की एक और टुकड़ी मंगवाइये ।”
“अच्छा ।” - डाक्टर रंगनाथ कठिन स्वर से बोला ।
“और पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह को भी कहना होगा कि वह अपने आदमियों को निर्देश दे दे कि वे किसी संदिग्ध आदमी को चारदीवारी के पास भी न फटकने दें ।”
“मैं इन्तजाम करता हूं ।”
“और साहब, आपके मेहमान को यह भनक न लगने पाये कि आपको उस पर सन्देह हो गया है ।”
“चिन्ता मत करो । मैं बच्चा नहीं हूं ।”
डाक्टर रंगनाथन उस छोटे कमरे से बाहर निकल गया ।
***
इस बात से सुनील खुद हैरान था कि आखिर यूरेनियम की चोरी होने वाली थी तो कैसे होने वाली थी । घटनास्थल पर केवल लाला तीरथराम एक इकलौता आदमी मौजूद था जो कि षड्यन्त्रकारियों का सरगना था । वह न केवल आंखों से लाचार था बल्कि वह एक अकेले आदमी का काम भी नहीं था और लाला का कोई अन्य आदमी एटामिक एनर्जी कमीशन की चारदीवारी के पास भी नहीं फटका था ।
कोई तो चक्कर जरूर होगा - सुनील मन-ही-मन बोला ।
ठीक दस बजे वहां फौज की एक पूरी गारद पहुंच गई । फौज आते ही एटामिक एनर्जी कमीशन की चारदीवारी के बाहर चप्पे-चप्पे पर फैल गये । अब तो किसी अनचाहे आदमी का उस इलाके के पास भी फटकना उसके लिए मुसीबत का बायस बन सकता था ।
लाला तीरथराम डाक्टर रंगनाथन की कोठी की पहली मंजिल पर स्थित उनकी लायब्रेरी में मौजूद था । उसने कोठी से बाहर कदम रखने का कोई उपक्रम नहीं किया । वाणी कोठी के उसी कमरे में बैठी थी जिसमें उन लोगों की डाक्टर रंगनाथन से मुलाकात हुई । सुनील और अमर सुनील के विशेष अनुरोध पर डाक्टर रंगनाथन के साथ थे ।
कम्पाउण्ड के दो फाटकों में से एक पर स्थायी रूप से एक विशाल ताला लगा हुआ था जो खोला नहीं जाने वाला था । उसके सामने चार सशस्त्र फौजी मौजूद थे । दूसरे फाटक पर भी ताला लगा हुआ था लेकिन वह मिलिट्री की बख्तरबन्द गाड़ी के आने पर खोला जाने वाला था । उस फाटक पर फौजी टुकड़ी के इंचार्च मेजर के साथ स्वयं रामसिंह मौजूद था ।
इमारत की चारदीवारी के बाहर चारदीवारी के साथ-सात फौज का पहरा था और रामसिंह के अपने तीस आदमी उस इलाके में चारदीवारी के चारों ओर दूर-दूर फैले हुए थे ताकि की आदमी छुपकर कम्पाउण्ड के भीतर बम, या हथगोला, या धुएं के बम जैसी कोईं चीज फेंकने का उपक्रम न कर सके ।
जो मेजर फौजी टुकड़ी लाया था, उसने डाक्टर रंगनाथन को बताया था कि वहां से एयरपोर्ट तक के रास्ते में भी विभिन्न स्थानों पर फौज की नाकाबन्दी थी और यूरेनियम की पेटियां लद जाने के बाद बख्तरबन्द गाड़ी बड़े तगड़े पहरे में वहां से रवाना होने वाली थी ।
सुनील को सारे इन्तजाम में कहीं कोई कमी नहीं दिखाई दे रही थी । वर्तमान स्थिति में किसी का यूरेनियम हथिया लेना किसी करिश्मे से कम नहीं था लेकिन लाला तीरथराम शायद कोई करिश्मा ही करने वाला था । इस सारे इन्तजाम की खबर निश्चय ही उसे भी होगी । उसने भी हर पहलू पर पूरी तरह सोच-विचार करने के बाद ही योजना बनाई होगी ।
टेन्शन से घबराकर एक बार तो सुनील ने रामसिंह को यह राय दी थी कि क्यों न लाला तीरथराम को पकड़कर उस पर दबाव डाला जाये और उसी से पूछा जाये कि वह क्या करने वाला था और कैसे करने वाला था, लेकिन रामसिंह को यह राय पसन्द नहीं आई । वह अभी भी लाला तीरथराम पर हाथ डालने से हिचकिचा रहा था ।
मिलिट्री की जो बख्तरबन्द गाड़ी आने वाली थी, उसके बारे में पूछने पर यह मालूम हुआ कि वह एक विशेष प्रकार की गाड़ी थी जो किसी और फौजी विभाग द्वारा वहां भेजी जाने वाली थी । इसलिये उसके यहां पहुंचने में थोड़ी देर-सवेर हो सकती थी ।
लेकिन बख्तरबन्द गाड़ी ठीक दस बजकर दस मिनट पर वहां पहुंच गई । गाड़ी में चार फौजी जवान मौजूद थे । आगे ड्राइवर के साथ स्वयं वह कर्नल बैठा हुआ था जिसकी पूर्व सूचना डाक्टर रंगनाथन को थी और जो यूरेनियम के गाड़ी में लद जाने के बाद उसके लिये जेम्मेदार था ।
मेजर के आदेश पर फाटक का ताला खोला गया ।
गाड़ी भीतर प्रविष्ट हुई । तुरन्त फाटक फिर बन्द कर दिया गया और ताला लगा दिया गया ।
मेजर ने कर्नल को सैल्यूट मारा ।
कर्नल ने सैल्यूट का जवाब दिया और ड्राइवर को गाड़ी आगे बढाने का आदेश दिया ।
गाड़ी आगे बढी और फाटक और भंडार वाले ब्लाक के बीच का लम्बा और सुनसान रास्ता पार करके भंडार के सामने पहुंची ।
वहां डाक्टर रंगनाथन, सुनील, अमर और स्टोर का एक अधिकारी मौजूद थे ।
कर्नल कूदकर गाड़ी से बाहर निकला । उसने डाक्टर रंगनाथन को सैल्यूट मारा ।
सुनील ने देखा, कर्नल एक भारी मूंछों वाला सूरत से ही खूंखार लगने वाला फौजी था । उसकी भवें भारी थीं और रंग भरपूर गोरा था । वह अपनी आंखों पर एक नजर का चश्मा लगाये हुए था ।
इस आदमी को मैंने पहले कहीं देखा है - सुनील मन-ही-मन बोला - कहां ? भगवान् जाने । शायद कभी टेलीविजन में देखा हो या कभी मिलिट्री की परेड में देखा हो । या शायद कभी इसे कोई इनाम-इकराम मिला हो और उस सन्दर्भ में उसकी तसवीर अखबार में छपी हो । होगा कोई । सूरत से तो बड़ा दक्ष और जिम्मेदारी आदमी लगता है ।
यूरेनियम को कुछ होने नहीं देगा यह ।
भंडार अधिकारी ने भंडार खोला । चालीस-चालीस किलो की यूरेनियम की दस पेटियां वहां तैयार पड़ी थीं । बख्तरबन्द गाड़ी में मौजूद जवान नीचे उतरे । बड़ी फुर्ती से वे पेटियां गाड़ी में लादने लगे ।
सुनील ने देखा, वह एक मजबूत स्टील की दोहरी चादर वाली बेहद मजबूत गाड़ी थी जो बम का गोला खाकर भी हिलने वाली नहीं थी । पीछे दरवाजे के सामने तीन लोहे की भारी छड़ें लगाकर तीन भारी तालों से दरवाजा बन्द रखने की व्यवस्था थी । बख्तरबन्द गाड़ी की छत पर कोई पौने फुट व्यास का एक भारी हुक लगा था ।
सुनील को वह बसनुमा खिलौना याद आ गया जो उसने लाला की कोठी में रणजीत को एटामिक एनर्जी कमीशन के माडल पर रखते देखा था और उसके सन्दर्भ में लोगों को कुछ समझाते देखा था ।
“कर्नल साहब” - सुनील कर्नल से बोला - “गाड़ी की छत पर यह जो हुक लगा हुआ है, यह किस काम आता है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।” - कर्नल ने रूखे स्वर से जवाब दिया । रूखा बोलना शायद उसकी आदत में शुमार था ।
सुनील चुप हो गया ।
सारी पेटियां गाड़ी में लाद दी गई । चारों फौजी, जो कि सशस्त्र भी थे, पेटियों के साथ ही गाड़ी के पृष्ठ भाग में चढ गये । कर्नल ने ड्राइवर की सहायता से बख्तरबन्द गाड़ी का दरवाजा बन्द करके ताले लगाये और चाबियां अपनी यूनीफार्म की जेब में डाल लीं ।
तभी कहीं से हवाई जहाज की आवाज आई ।
सुनील ने सिर उठाकर देखा । अंधेरे आकाश में उसे कुछ दिखाई नहीं दिया ।
ड्राइवर गाड़ी में सवार हो गया ।
कर्नल ने फिर मेजर रंगनाथन को सैल्यूट मारा और गाड़ी में ड्राइवर की बगल में जा बैठा ।
डाक्टर रंगनाथन ने शांति की सांस ली ।
“अब कोई खतरा नहीं” - वह बोला - “अब माल जिम्मेदार और तजुर्बेकार हाथों में है ।”
ड्राइवर ने डोम लाइट जलाई हुई थी । इस बार डोम लाइट का प्रकाश सीधे कर्नल के चेहरे पर पड़ा ।
“सुनील !” - एकाएक अमर वयग्र स्वर से बोला ।
“हां ।” - सुनील बोला ।
“यह कर्नल...”
“हां, हां ?”
“मूंछें और चश्मे का फर्क है वर्ना इसकी शक्ल लाला के एक आदमी से मिलती है ।”
“क... क्या ?”
“इसकी शक्ल लाला के हीरालाल नाम के एक आदमी से मिलती है । मुझे कुछ क्षण पहले लगा था जैसे यह मुझे देखकर चौंका हो लेकिन तब मैंने उसे अपना वहम समझा था ।”
हीरालाल !
सुनील ने गौर से कर्नल की ओर देखा । एकाएक उसे अपने दिल की धड़कन रुकती महसूस रुई ।
हीरालाल !
हीरालाल नाम के आदमी को तो उसने भी लाला की कोठी के हाल में देखा था ।
अधेड़ उम्र । अधपके बाल । भवें भारी । नाक-नक्श साधारण, रंग भरपूर गोरा ।
यही हुलिया कर्नल का था । केवल वर्दी, मूंछे और चश्मे का फर्क था ।
कर्नल की निगाह सुनील से मिली । सुनील के चेहरे पर आये भाव उससे छुपे न रहे । फिर उसने अमर की ओर देखा । वहां भी खतरे की घंटियां बज रही थीं । उसने जल्दी से ड्राइवर को कुछ कहा ।
ड्राइवर ने फुर्ती से गाड़ी को गियर में डाला ।
“ठहरो !” - सुनील आतंकित स्वर से चिल्लाया ।
बख्तरबन्द गाड़ी तोप से छूटे गोले की तरह भागी ।
“डाक्टर साहब” - सुनील चिल्लाया - “वह कर्नल नकली था । लाला का आदमी था । फाटक पर सन्देश भिजवाएं कि फाटक न खोला जाये ।”
वहीं डाक्टर रंगनाथन की कार खड़ी थी । कार की चाबियां उस समय भी डाक्टर रंगनाथन के हाथ में थीं । सुनील ने एक क्षण भी नष्ट किये बिना उसके हाथ से चाबियां झपट लीं और कार की ओर भागा ।
अमर एक क्षण ठिठका और फिर वह भी उसके पीछे भागा । उसने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली थी ।
डाक्टर रंगनाथन हक्का-बक्का-सा दोनों को भागता देख रहा था ।
भंडार अधिकारी भंडार की ओर झपटा । भंडार में टेलीफोन था और फाटक पर भी टेलीफोन था ।
सुनील और अमर कार में सवार हुए । सुनील ने कार को सीधे चौथे गियर में डाला और उसे बख्तरबन्द गाड़ी के पीछे दौड़ा दिया ।
तभी आकाश पर एक हैलीकाप्टर प्रकट हुआ । हैलीकाप्टर इतना नीचे उड़ रहा था कि अन्धेरे में भी हैलीकाप्टर में बैठे तीन आदमी साफ दिखाई दे रहे थे ।
सुनील को यह देखकर सख्त हैरानी हुई कि फाटक की ओर भागती बख्तरबन्द गाड़ी एकाएक बीच रास्ते में रुक गई ।
हैलीकाप्टर उस समय एकदम गाड़ी के ऊपर मंडरा रहा था ।
कर्नल गाड़ी से निकला और बिजली की फुर्ती से गाड़ी की छत पर चढ गया ।
हैलीकाप्टर में से एक लोहे की मोटी जंजीर लटकने लगी । जंजीर के सिरे पर एक हुक दिखाई दे रहा था ।
अब गाड़ी के ऊपर लगे वृत्ताकार हुक का भी मतलब सुनील की समझ में आ गया ।
सुनील ने एक झटके से कार रोकी और कार से बाहर कूदा ।
अमर भी बाहर निकला ।
सुनील कार की ओर भागा ।
ड्राइवर ने फायर किया ।
सुनील बाल-बाल बचा ।
अमर कार से निकलकर कार की ओट में हो गया । उसने ड्राइवर की ओर गोली दाग दी ।
सन्नाटे में गोलियां चलने की आवाज हर ओर गूंज गई ।
हैलीकाप्टर से लटका हुक अब एकदम ट्रक के समीप पहुंच चुका था ।
सुनील ड्राइवर की परवाह किये बिना गाड़ी के ऊपर चढ गया ।
कर्नल हुक गाड़ी के हुक में फंसा चुका था लेकिन अभी जंजीर हैलीकाप्टर की ओर से खिंची नहीं थी ।
सुनील ने जंजीर के हुक को गाड़ी के हुक से निकाल दिया ।
कर्नल का पांव घूमा । उसके भारी बूट की भरपूर ठोकर सुनील की कनपटी पर पड़ी । सुनील गेंद की तरह परे लुढक गया लेकिन किसी प्रकार गाड़ी की छत से नीचे गिरने से बच गया ।
कर्नल ने अपनी यूनीफार्म से रिवाल्वर निकाल ली लेकिन उसके सुनील पर फायर कर पाने से पहले ही अमर की रिवाल्वर ने आग उगली और कर्नल की रिवाल्वर उसके हाथ से छिटक गई । नीचे से ड्राइवर ने फायर किया ।
सुनील ने अमर को कार के पीछे जमीन पर लोट जाते देखा । शायद उसे गोली लग गई थी ।
कर्नल ने फिर हुक थाम लिया ।
सुनील ने अपने स्थान से छलांग लगाई और फिर कर्नल से गुंथ गया ।
तभी ड्राइवर भी छत पर चढ गया । उसके हाथ में अभी रिवाल्वर थी । उसने कर्नल और सुनील की ओर ध्यान दिये बिना हुक थाम लिया और उसे गाड़ी के हुक में फंसाने का उपक्रम करने लगा ।
सुनील ने बड़ी कठिनाई से स्वयं को कर्नल से अलग किया और ड्राइवर पर झपटा । वह जानता था कि एक बार जंजीर का हुक गाड़ी के हुक में फंसने की देर थी कि हैलीकाप्टर ऊपर उठना आरम्भ हो जायेगा और फिर गाड़ी भी हैलीकाप्टर के साथ उठती चली जायेगी । क्योंकि भारी हुक और रिवाल्वर दोनों ड्राइवर के दोनों हाथों में थे इसलिये वह तुरन्त सुनील पर फायर न कर सका । उसने हुक छोड़कर रिवाल्वर सीधी की । तब तक सुनील उससे जा लिपटा । दोनों छत पर लोट गये ।
अपना सिर झटकता हुआ कर्नल उठा । सुनील से गुत्थमगुत्था होने में उसकी नकली मूंछें उतर गई थी और चश्मा और टोपी भी कहीं जा गिरे थे । अब इस बात में सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि वह आदमी हीरालाल था । वह लड़खड़ाता हुआ हुक तक पहुंचा ।
“इसे छोड़ना मत ।” - वह चिल्लाकर ड्राइवर से बोला ।
सुनील ड्राइवर की गिरफ्त में हाथ-पांव झटकने लगा ।
कर्नल उर्फ हीरालाल ने हुक थामा और उसे गाड़ी के हुक में फंसाने की कोशिश करने लगा ।
तभी एक फायर हुआ ।
हीरालाल के मुंह से एक हृदयविदारक चीख निकली, हुक उसके हाथ से छूट गया और वह गाड़ी की छत पर लोट गया ।
गोली ने उसका भेजा उड़ा दिया था ।
सुनील की नीचे निगाह पड़ी । फायर अमर ने किया था । दायें कन्धे के पास उसकी सफेद कमीज खून से एकदम लाल हो गई थी और वह बड़ी मुश्किल से गोली चला पाया था ।
हैलीकाप्टर से लटकता हुक एक बार फिर लावारिसों की तरह हवा में झूलने लगा ।
ड्राइवर सुनील के मुकाबले में बहुत तन्दुरुस्त आदमी था । वह किसी भी क्षण सुनील पर पूरी तरह काबू पा जाने वाला था । सुनील की शक्ति क्षीण होती जा रही थी ।
तभी एकाएक वातावरण धांय-धांय की बीसियों आवाजों से गूंज गया ।
वहां चलती गोलियों की आवाज चारदीवारी के पास तैनात फौजियों तक पहुंच चुकी थी और अब वे अपनी रायफलें संभाले वहां पहुंच गये थे । या फिर वे भंडार इंचार्ज की फाटक पर की फोन काल के जवाब में वहां पहुंचे थे ।
एकाएक हैलीकाप्टर हवा में ऊंचा उठा और फिर बख्तरबन्द गाड़ी का ख्याल छोड़कर वहां से भाग निकला । हैलीकाप्टर से लटकती जंजीर वापस खींच ली गई ।
रायफल की गोलियों की आवाज सुनते ही ड्राइवर की पकड़ सुनील पर से ढीली पड़ गई थी । उसने बख्तरबन्द गाड़ी को चारों ओर से बीसियों रायफलधारी फौजियों द्वारा घिरा पाया तो उसके होश उड़ गये । उसने रिवाल्वर पर से अपनी पकड़ ढीली कर दी और सुनील को छोड़ दिया । वह अपने हाथ अपने सिर से ऊपर उठाये गाड़ी की छत पर खड़ा हो गया ।
सुनील भी उठा और उसी प्रकार हाथ सिर से ऊपर उठाकर खड़ा हो गया । उसे भय था कि फौजी उसे भी कोई अपराधी समझकर शूट न कर दें ।
तब तक पुलिस सुपरिन्टेण्डेण्ट रामसिंह, मेजर, डाक्टर रंगनाथन इत्यादि सभी लोग वहां पहुंच चुके थे ।
मेजर के आदेश पर सुनील और ड्राइवर ट्रक से नीचे उतरे ।
ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया ।
“अमर !” - सुनील बोला - “वह कहां है ? उसे गोली लगी है ।”
“चिंता मत करो” - रामसिंह बोला - “मेरे आदमी उसे देख रहे हैं । उसके दायें कन्धे पर गोली लगी है लेकिन वह खतरे से एकदम बाहर है ।”
“रामसिंह, आज उसी लड़के की वजह से दुश्मनों की चाल नाकामयाब हुई है । अमर ने ही नकली कर्नल को पहचाना था और उसी ने उसे शूट किया था वर्ना अब तक बख्तरबन्द गाड़ी को हैलीकाप्टर पता नहीं कहां ले गया होता । मैं अकेला उन दोनों बदमाशों का मुकाबला नहीं कर सकता था ।”
“अमर की बहादुरी में कोई शक नहीं । आज उसने देश को बहुत बड़े नुकसान से बचाया है ।”
“यह बात उस पर कोई चार्ज लगाते समय भूल मत जाना ।”
“चिन्ता मत करो । उसका बाल भी बांका नहीं होगा ।”
“अब क्या ख्याल है, सर ?” - सुनील डाक्टर रंगनाथन से सम्बोधित हुआ ।
“ओह माई गॉड !” - डाक्टर रंगनाथन बोला - “कैसी भयंकर योजना थी । सुरक्षा का सारा इन्तजाम यहां की चारदीवारी से बाहर था और ये लोग बख्तरबन्द गाड़ी को यहां के कम्पाउण्ड से ही एयर लिफ्ट कर ले जाने वाले थे । सुनील, वह हैलीकाप्टर निश्चय ही लाला तीरथराम का था ।”
“जरूर होगा ।”
“दि अनपैट्रियेटिक बास्टर्ड ।”
“लेकिन यह बख्तरबन्द गाड़ी का क्या चक्कर है” - रामसिंह बोला - “यह मिलिट्री की गाड़ी इनके हाथ में कैसे आ गई ?”
मेजर ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला । तभी एक फौजी मोटरसाइकिल पर वहां पहुंचा । मोटरसाइकिल से उतरकर उसने मेजर को सैल्यूट मारा और बोला - “सर, एक और बख्तरबन्द गाड़ी फाटक पर आई खड़ी है । उसके साथ आये कर्नल साहब आपका इन्तजार कर रहे हैं ।”
सब लोग एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।
“जरूर असली बख्तरबन्द गाड़ी होगी” - मेजर बोला - “यह बदमाशों की नकली गाड़ी थी जो समय से पहले यहां पहुंच गई थी ।”
सुनील ने घड़ी देखी ।
ठीक साढे दस बजे थे ।
***
लाला तीरथराम अभी भी पहली मंजिल पर डाक्टर रंगनाथन की लायब्रेरी में मौजूद था । वह खिड़की के पास खड़ा था ।
डाक्टर रंगनाथन, रामसिंह, सुनील और वाणी लायब्रेरी में दाखिल हुए ।
लाला उन लोगों की ओर घूमा ।
“आइये, आइये ।” - लाला स्थिर स्वर से बोला ।
“खेल खतम हो गया, लाला ।” - डाक्टर रंगनाथन बोला ।
“जाहिर है” - लाला के होंठों पर फीकी मुस्कराहट उभरी - “वर्ना सुनील और वाणी यहां मौजूद न होते ।”
डाक्टर रंगनाथन के नेत्र फैल गए । वह भौंचक्का-सा लाला का मुंह देखने लगा ।
“तो... तो” - उसके मुंह से निकला - “तुम अन्धे नहीं हो ?”
“था” - लाला अपनी आंखों पर हमेशा मौजूद चश्मा उतारता हुआ बोला - “लेकिन एक साल पहले आपरेशन से मेरी आंखें ठीक हो गई थीं । मैंने जानबूझकर यह बात किसी को नहीं बताई । लोग मुझे अन्धा समझें, लेकिन मैं सब कुछ देखूं, यह मुझे बड़ा सहूलियत का काम लगा ।”
लाला ने चश्मा एक ओर उछाल दिया ।
“लाला” - डाक्टर रंगनाथन शिकायत-भरे स्वर से बोला - “मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतने नीच और धोखेबाज आदमी निकलोगे । मैंने दोस्त समझकर तुम पर विश्वास किया और तुमने मुझे इतना बड़ा धोखा दिया ।”
“माई डियर, डाक्टर रंगनाथन” - लाला मीठे स्वर से बोला - “धोखा वही खाता है जो किस पर विश्वास करता है । जो आदमी किसी पर विश्वास नहीं करता, उसे धोखा देना बड़ा मुश्किल होता है । इसलिये सारा इलजाम मुझे ही मत दो । अपनी नासमझी, नादानी और बचपने के लिये थोड़ा-बहुत गुनहगार अपने-आपको भी ठहराओ । ...आपकी तारीफ ?”
आखिरी वाक्य उसने रामसिंह की ओर संकेत करके कहा था ।
“मैं पुलिस सुपरिन्टेण्डेण्ट रामसिंह हूं” - रामसिंह बोला - “आपको गिरफ्तार करने आया हूं ।”
“क्यों नहीं, क्यों नहीं” - लाला मुस्कराया - “फांसी दिलवाइयेगा मुझे, सुपरिन्टेण्डेण्ट साहब ।”
“मुमकिन है ।”
“लेकिन मैं आपके हाथ नहीं आने वाला ।”
“क्या मतलब ? आप समझते हैं, आप यहां से निकल भागने में कामयाब हो सकते हैं ?”
“हां ।” - लाला पूरे विश्वास के साथ बोला ।
“जरा कोशिश करके देखिये ।” - रामसिंह चैलेंज-भरे स्वर से बोला ।
“जरूर । लेकिन मैं पहले आपको थोड़ा वक्त देना चाहता हूं ।”
“आप मुझे वक्त देना चाहते हैं ?” - रामसिंह अचकचाकर बोला ।
“हां ।”
“किसलिये ?”
“मुझे रोकने के लिये तैयार होने के लिये ।”
“नानसेंस । मैं तैयार हूं । मैं हर वक्त तैयार हूं ।”
रामसिंह ने अपनी जेब से रिवाल्वर निकालकर हाथ में ली ।
लाला ने अपनी जेब की ओर हाथ बढाया ।
“सावधान !” - रामसिंह बोला ।
“सिगरेट” - लाला मुस्कराया - “घबराइये नहीं ।”
“ओह !”
लाला ने अपनी जेब से एक सोने का सिगरेट केस निकाला । उसने एक सिगरेट चुनकर अपने होंठों से लगाया और उसे सिगरेट केस में ही लगे लाइटर से सुलगा लिया ।
“नौजवान” - वह ढेर सारा धुआं उगलता हुआ सुनील से बोला - “जो कुछ तुमने बख्तरबन्द गाड़ी की छत पर किया, वह मैं खिड़की में से देख रहा था और जो कुछ इस सारे आपरेशन के दौरान में तुमने मेरी खिलाफत में किया है, वह भी मुझसे छुपा नहीं । मेरी योजना को असफल बनाने में सबसे बड़ा हाथ तुम्हारा है, मिस्टर । मुबारक हो ।”
सुनील चुप रहा ।
लाला कुछ क्षण तृप्तिपूर्ण ढंग से सिगरेट के कश लगाता रहा और फिर आगे बढा । वह एक कोने में पड़ी आरामकुर्सी पर जाकर लेट गया । सिगरेट उसकी उंगलियों से फिसलकर जमीन पर आ गिरा ।
“उठकर खड़े हो जाइये” - रामसिंह कर्कश स्वर से बोला - “और मेरे साथ चलिये ।”
“सुपरिन्टेण्डेण्ट साहब” - लाला अपेक्षाकृत क्षीण स्वर से बोला - “जिस्म में इतनी ही ताकत बाकी थी कि मैं खिड़की के पास से चलकर इस आरामकुर्सी तक पहुंच जाता । खड़े-खड़े मरना बहुत असुविधा का काम है ।”
“मरना !” - रामसिंह सकपकाया ।
“अभी मैंने जो सिगरेट पिया है, उसमें एक बड़ी जानलेवा गोली छुपी हुई थी जो मैं निगल गया हूं ।”
“ओह नो !”
“मैं जा रहा हूं, सुपरिन्टेण्डेण्ट साहब । रोक सकते हो तो रोक लीजिये ।”
रामसिंह का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे झुक गया । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, क्या कहे ।
“मैंने पहले ही कहा था, मैं आपके हाथ नहीं आने वाला” - लीला क्षीण स्वर में बोला - “देख लीजिये, सच कहा था मैंने ।”
उसके बाद लाला तीरथराम की जुबान से एक शब्द भी नहीं निकला । मरने के बाद भी उसके होंठों से वह मुस्कराहट नहीं पुंछी, जिसके बिना उसे कभी किसी ने नहीं देखा था ।
समाप्त