नगीना उठी और आगे बढ़कर उसने दरवाजा खोला। वेटर ने ट्रे थाम रखी थी और देखते ही देखते वो भीतर प्रवेश कर गया। नगीना के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे। वेटर स्पष्ट तौर पर घबराया नजर आ रहा था। उसी वक्त दरवाजे पर एक व्यक्ति नजर आया। हाथ में रिवाल्वर थाम रखी थी और आंखों में दरिन्दगी के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। उसने नगीना की कमर से रिवाल्वर लगा दी ।
“भीतर चलो - ।” वो दांत पीसते हुए बोला और नगीना को भीतर लाता चला गया।
इसके साथ ही खुले दरवाजे पर दूसरा बदमाश दिखा। वो भी रिवाल्वर थामे था।
देवराज चौहान और थापर की कठोर निगाहें मिलीं।
दरवाजे पर खड़ा बदमाश एक कदम भीतर आया उसने दरवाजा बंद करना चाहा कि तभी उसकी कमर पर जबर्दस्त जूते की ठोकर पड़ी। वो हल्की सी चीख के साथ, जोरों से लड़खड़ाता कमरे में गिरता चला गया। रिवाल्वर उसके हाथ से निकल कर दूर जा गिरी।
दरवाजे पर जगमोहन दिखाई दिया। वो चील की तरह झपटा और नीचे गिरे बदमाश को जकड़ लिया कि वो कोई भी हरकत न कर सके ।
उसी पल नगीना फुर्ती से घूमी और उसका घूंसा रिवाल्वर वाले की कलाई पर पड़ा और दूसरा उसके चेहरे पर। वो चीखता हुआ, सोफा चेयर पर बैठे देवराज चौहान पर गिरा। देवराज चोहान ने उसे नीचे गिराकर एक पांव उसकी छाती पर रख दिया।
कमरे में गहरा सन्नाटा छा चुका था।
वेटर ट्रे टेबल पर रख चुका था। और वहीं खड़ा घबराया - सा कांप रहा था।
"दरवाजा बंद करो।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा। वेटर ने जल्दी से आगे बढ़कर दरवाजा बंद किया।
"ये तुम्हारे साथ-साथ भीतर कैसे आ गये?” देवराज चौहान की निगाह वेटर पर थी।
"स-सर! मैं ट्रे में सामान लेकर दूसरे कमरे में सर्व करने जा रहा था। इन लोगों ने मेरी पीठ पर रिवाल्वर लगा दी और कहा कि इस कमरे का दरवाजा खटखटाऊं और दरवाजा खुलते ही, बिना रुके भीतर प्रवेश कर जाऊं। मैं मजबूर था सर!
मेरी कोई गलती नहीं। मैं- ।"
देवराज चौहान ने नीचे पड़े बदमाश को देखा, जिस पर पांव रखा था। उसके चेहरे पर घबराहट स्पष्ट नजर आ रही थी। वो बार-बार सूखे होंठों से जीभ फेर रहा था। “किसके लिये काम करते हो।” देवराज चौहान की आवाज खतरनाक भाव थे- “किसने भेजा है तुम्हें ।”
“ब - बंसीलाल ।” वो जल्दी से घबराये स्वर में कह उठा। थापर के दांत भिंच गये।
देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया।
“कहां से तुम पीछे हो ?"
"मुम्बई से, थापर साहब के पीछे है।” वो जल्दी से बोला ।
“क्यों?”
“बंसीलाल, थापर को खत्म करने को बोला।”
सबकी निगाह उस पर थी ।
जगमोहन ने दूसरे को फर्श पर ही नीचे दबा रखा था। देवराज चौहान ने वेटर को देखा।
“तुम्हारी रिपोर्ट करें या.... ।”
“सर !” वेटर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी-“मैंने सच-सच आपको बता दिया है कि क्या हुआ आप-आप मेरी रिपोर्ट करेंगे तो, बेशक हो या न हो। लेकिन मेरी नौकरी अवश्य चली जायेगी। और ये दोनों --। "
"टेबल पर रखा सामान किसी दूसरे रूम का ऑर्डर है।"
“यस सर ।”
“सामान उठाओ और बाहर निकल जाओ। यहां जो भी हुआ, उसका जिक्र किसी से नहीं करना ।”
“मैं क्यों कहूंगा सर- ।" उसने राहत की सांस ली और टेबल की तरफ बढ़ा।
“हमारे जाने के बाद भी यहां कोई गड़बड़ देखने को मिले तो, तुम हमारे बारे में किसी को नहीं बताओगे।"
वेटर ट्रे उठाकर ठिठका।
देवराज चौहान को देखा। उसके बाद सिर हिलाया।
“मैं समझ गया सर।" उसने दोनों बदमाशों पर निगाह मारी- "मैं आप लोगों में से किसी को भी नहीं जानता।" इसके साथ ही वो बाहर निकल गया। नगीना ने आगे बढ़कर दरवाजा भीतर से बंद कर दिया। सबकी निगाह पुनः बदमाश पर टिकी ।
देवराज चौहान सोफा चेयर से उठा और सिर के बाल पकड़कर नीचे पड़े बदमाश को भी उठाया।
"मुम्बई में बंसीलाल कहां मिलेगा?” देवराज चौहान के स्वर में क्रूरता थी।
"मैं-मैं नहीं जानता - "
“सच बताओ वरना- "
“मैं सच कह रहा हूं। हमें तो बंसीलाल फोन पर काम करने को बोलता है।" बदमाश हड़बड़ाकर कह उठा- “मिलना कम होता है । क्या मालूम इस वक्त वो किस ठिकाने पर - ।”
“मालूम है तुम्हें, इसकी जान बंसीलाल क्यों लेना चाहता है ?" देवराज चौहान का स्वर सर्द हो गया ।
“नहीं। हम तो काम करते हैं। इधर-उधर की पूछताछ नहीं कर- ।"
उसी पल देवराज चौहान का हाथ उठा और उसकी गर्दन पर पड़ा। कमरे में हड्डी टूटने की मध्यम-सी आवाजे आई और गर्दन एक तरफ लुढ़क गई। दूसरे ही पल वो नीचे जा गिरा।
"हे भगवान!" जगमोहन ने जिस बदमाश को दबा रखा था- भय में डूबा तड़प उठा- "भगवान के लिये मुझे मत मारना। मुझे छोड़ दो। फिर कभी तुम लोगों को नजर भी नहीं आऊंगा। मुझे - "
तभी देवराज चौहान का इशारा पाकर नीचे दबा रखे बदमाश की गर्दन पर जगमोहन ने हथेली की साईड का तीव्र प्रहार किया। बदमाश के शरीर को झटका लगा। गर्दन की हड्डी टूटने का स्वर एक बार फिर वहां गूंजा। उसके बाद वो शांत पड़ गया।
"दोनों लाशों को बाथरूम में-- ।" देवराज चौहान ने कहना चाहा।
उसी वक्त दरवाजे पर धपथपाहट पड़ी। सब सतर्क नजर आने लगे। एक-दूसरे को देखा। जगमोहन ने फुर्ती से पास पड़ी लाश की कमीज के कॉलर को पकड़कर उसे घसीटता हुआ, अटैच्ड बाथरूम की तरफ ले गया। नगीना ने भी इसी तरह दूसरे बदमाश की लाश को घसीटकर बाथरूम में डाला। जगमोहन और थापर लाशों के साथ बाथरूम में बंद हो गये। तभी दरवाजे पर पुनः थाप पड़ी । नगीना आगे बढ़ी और बंद दरवाजे के पास पहुंची।
"मैडम, वेटर। आपका ऑर्डर लाया हूँ?”
नगीना ने दरवाजा खोला। दो सतर्क थी।
बाहर वेटर ही था। उसने भीतर प्रवेश किया और आगे बढ़कर टेबल पर ट्रे में से सामान निकाल कर रखा। जब चाय बनाने लगा "तो नगीना ने शांत स्वर में कहा।
“तुम जाओ।" हम बना लेंगे।
“यस मैडम-।" कहने के साथ ही वेटर ने सामान छोड़ा और ट्रे थामे बाहर निकल गया।
नगींना ने दरवाजा बंद किया।
थापर और जगमोहन बाथरूम से बाहर निकले।
वो पुनः इकट्ठे बैठे। नगीना ने चाय तैयार करके सबके आगे रखी।
“जगमोहन!” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- "तुम लंच पर जार्ज से मिल लेना। वो मिन्टो रोड के रेस्टोरेंट में मिलेगा। कह देना मुझे कोई काम पड़ गया। इसलिए सिर्फ तुम ही आये।”
“आप कहां जा रहे हैं?" नगीना के होंठों से निकला।
“मुम्बई - ।” देवराज चौहान ने नगीना की आंखों में देखा“- बंसीलाल को देखना पड़ेगा। वो आसानी से थापर का पीछा नहीं छोड़ेगा । जो गोवा तक अपने आदमी भेज सकता है। मतलब कि वो पीछे नहीं हटेगा।"
“तुम अकेले जाओगे?” थापर ने पूछा ।
“हां। मैं अभी निकल जाना चाहता हूं। यहां जो काम है, वो आज के दिन मे जगमोहन पूरा कर लेगा। वैसे भी इस होटल में रुक पाना सम्भव नहीं। यहां दो लाशें हैं और हमारे चेहरे कईयों ने देखे हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
“तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं।” थापर होंठ भींचे कह उठां- “बंसीलाल अपने आप में ताकत रखता है। नेताओं का हाथ तो उसकी पीठ पर है ही। खतरनाक लोगों की फौज भी है उसके पास - "
“तुम अपना ध्यान रखना थापर।" देवराज चौहान ने कठोर -स्वर में कहा- “बाकी सब मैं संभाल लूंगा।"
“मेरी बात को शायद तुम हलके से ले रहे हो कि बंसीलाल वास्तव में बहुत खतरनाक-।"
बहुत गम्भीर हूं थापर | मैंने तुम्हारी बात को गम्भीरता से लिया है। तुमने सोच-समझ कर ही बंसीलाल के बारे में मुझसे बात की है। इसी से मैं समझ चुका हूं कि बंसीलाल दम-खम वाला इंसान है। वरना तुम मेरे पास नहीं आते।" देवराज चौहान ने थापर को देखा- "इस बारे में निश्चिंत रहो।"
"मुम्बई जाओगे।" थापर ने पहलू बदला।
"मेरे साथ चलो। मैं भी वापस मुम्बई ।"
"नहीं। ऐसे मामलों से मैं तुम्हें दूर ही रखना चाहता हूं।"
नगीना और जगमोहन की नजरें मिलीं।
"तुम जगमोहन के साथ मुम्बई पहुंच जाना।" कहने के बाद देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा-"वहां बंगले पर ही रहना । मैं तुम्हें कभी भी फोन कर सकता हूं।"
जगमोहन ने सहमति से सिर हिला दिया। “बंसीलाल को कहां तलाश करोगे कि-।"
“ऐसे लोगों को तलाश करने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती।" देवराज चौहान के चेहरे पर मौत भरी मुस्कान उभर आई- “ऐसे लोग कभी भी छिपकर नहीं रह सकते थापर। मैं आसानी से उसे ढूंढ लूंगा । उस लड़की का नाम तुमने दिव्या बताया। जिसका अपहरण करने के बाद, बलात्कार और फिर उसकी जान ले ली--।"
“हां ।” दिव्या ही नाम था उसका कहते हुए थापर के होंठ भिंच गये।
“मेरे ख्याल में मेरे साथ रहने में कोई हर्ज नहीं।" नगीना कह उठी- “आप मुझे साथ ले - "
"मैं जरूरत नहीं समझता।" कहने के साथ ही देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ। थापर होंठ भींचे, कठोर-सी निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था ।
“बंसीलाल के आदमी तुम पर निगाह रख रहे है और मुम्बई से गोवा तक तुम्हारे पीछे-पीछे आये है।" देवराज चौहान ने थापर को देखा।
“मैंने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि कोई मेरे पीछे न आये।” थापर ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा- “शायद मैं चूक गया उन्हें पहचानने में-।"
“बंसी भाई! अपुन गोवा से बोलता है। राधेश्याम ।”
“गोवा ?” राधेश्याम के कानों में बंसीलाल की आवाज पड़ी- “तुम गोवा कैसे पहुंच गये। तुम तो थापर पर नजर रख रहे थे। उसको खत्म करने का काम तेरे हवाले किया था।"
"ठीक बोला वंसी भाई। आपुन थापर के पीछे ही मुम्बई से गोवा, आया है।"
चंद पलों के लिये बंसीलाल की आवाज नहीं आई।
राधेश्याम पचास बरस का व्यक्ति था। सादी कमीज-पैंट पहन रखी थी। आंखों में वहशी भाव हमेशा ही छाये रहते थे। सिर के बाल पूरी तरह काले थे और चेहरे का रंग भी काला जैसा ही था।
"बंसी भाई!” राधेश्याम बोला- "आवाज नहीं आई।"
“सुन रहा हूं। बोलो। पूरी बात बताओ।” बंसीलाल की शांत आवाज कानों में पड़ी।
“रात को थापर अचानक ही पीछे वाले रास्ते से कार पर निकला। साथ में सिर्फ ड्राईवर था। उधर मैं नजर रख रहा था। मेरे साथ अब्दुल और रमेश थे। हमने सोचा ये मौका अच्छा है। रास्ते में उसे साफ कर देंगे। लेकिन थापर तो मुम्बई छोड़कर गोवा की तरफ चल पड़ा। उसने हमें मौका ही नहीं दिया कि उस पर वार कर सके। बहुत परेशानी से पूरे रास्ते हम उस पर नजर रखते आये। लेकिन गोवा में अब्दुल और रमेश का मर्डर हो गया।"
“क्या?” बंसीलाल के शांत स्वर में एकाएक तेजी आ गई - "क्या बोला तू?"
"अब्दुल- रमेश का मर्डर हो गया बंसी भाई। थापर का मामला उलझ गया लगता है।"
“सब कुछ बता - " बंसीलाल के तेज स्वर में अब दिलचस्पी के भाव महसूस होने लगे थे।
“बंसी भाई - ।” राधेश्याम ने जल्दी से कहा- “थापर सीधा गोवा के सी-व्यू होटल में पहुंचा। हम तो पीछे ही थे। हमने ये ही सोचा कि वो होटल में कमरा लेगा। अब्दुल और रमेश को होटल की लॉबी में ठहरने को बोलकर मैं थापर पर निगाह रखने लगा। उसने वहां कमरा नहीं लिया। पांचवीं मंजिल पर एक कमरे में चला गया। मैंने सोचा कि वो यहां किसी से मिलने आया है। जो भी हो, मेरे को मौका अच्छा लगा। मैंने अब्दुल और रमेश को उस कमरे में भेज दिया कि वो थापर को गोली मार दे।”
राधेश्याम के खामोश होते ही, बंसीलाल की आवाज कानों में पड़ी।
“आगे बोल - ।”
अब्दुल और रमेश के बाहर आने का इन्ताजर करता रहा, उस पांचवीं मंजिल वाले कमरे से दो-चार मिनट से ज्यादा का काम नहीं था। लेकिन वो बाहर नहीं आये। भीतर के हालातों का मुझे पता नहीं। इसलिये मैं वहां भीतर नहीं जा सकता था।" राधेश्याम की आवाज में सख्ती आ गई थी।
घंटे भर बाद मैंने एक युवक जैसे व्यक्ति को, कंधे पर एयरबैग लटकाये बाहर निकलते देखा। वो होटल के पीछे वाले रास्ते से चुपचाप निकला और फिर होटल की पार्किंग में मौजूद कार में बैठकर चला गया। तभी मैंने थापर को देखा जो पार्किंग में अपनी कार में बैठ रहा था। मेरे को समझ नहीं आया कि ये क्या हो रहा है। ये लोग बाहर निकल रहे हैं जबकि अब्दुल रमेश को बाहर निकलना चाहिये था । उस वक्त मुझे लगा कि अब्दुल- रमेश को देखना चाहिये कि कहीं उनके साथ कुछ बुरा तो नहीं हो गया। मैं वापस होटल में गया तो उस कमरे में एक युवक और युवती को निकलते देखा। साथ में वेटर था। सामान उठाये हुए। वे होटल खाली कर रहे थे। जब चो लिफ्ट में चले गये तो मैंने उस कमरे में जाकर देखा । बाथरूम में अब्दुल और रमेश की लाशें पड़ी थीं ।
“ओह।”
“मैं फौरन समझ गया कि अब्दुल रमेश को खत्म कर दिया है। मैं उसी वक्त रिसेप्शन पर गया। वो युवक और युवती होटल से बाहर निकल रहे थे। सामान उन्होंने पार्किंग में खड़ी कार में डाला और चल पड़े। मेरी तो समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। फिर भी मैं पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठकर उनके पीछे चल दिया। वो दोनों कार में कुछ दुकानों पर घूमते-खरीददारी करते रहे। फिर एक सुनसान जगह पर कार रोककर दोनों ने हिप्पी जोड़े का मैकअप किया और वापस सी-व्यू होटल में आकर कमरा ले लिया।"
“बहुत खूब - ।" बंसीलाल का स्वर कानों में पड़ा।
“बंसी भाई, बोलो क्या करना है? मैंने पांचवीं मंजिल वाले कमरे के बारे में मालूम किया है। वो कमरा मिसेज एण्ड मिस्टर सुरेन्द्र पाल के नाम पर था।
“सुरेन्द्र पाल ? ये नाम तो कभी नहीं सुना। अब ही तुम्हारे मुंह से सुना है।"
“करना क्या है ? बंसी भाई"
“उस युवक-युवती को पकड़ो और उनका मुंह खुलवाओ कि वो थापर के क्या लगते हैं? अब्दुल और रमेश को क्यों और कैसे मारा गया ? थापर कहां मिलेगा और वो युवक जैसा व्यक्ति कौन है जो होटल के पीछे से निकल गया था?"
"बंसी भाई - ।" राधेश्याम के होंठों से तेज स्वर निकला- “मैं एक हूं दस नहीं और मेरे हाथ दो हैं बीस नहीं। मुझ अकेले के बस का नहीं है, ये काम करना । अब्दुल-रमेश साथ होते तो निबट जाता ये काम- ।"
"गोवा में अपना डेविड नहीं है क्या?" बंसीलाल का सख्त स्वर उसके कानों में पड़ा- "फोन मार उसे। वो अपने आदमी लेकर आयेगा और जब भी वो दोनों बाहर निकलें पकड़ लेना।"
"डेविड ये काम करेगा क्या?"
“मेरा नाम लेना। उसका बाप भी करेगा। काम के बाद सारी खबर मुझे देना।"
“ठीक है।” कहने के साथ ही राधेश्याम ने लाईन काटी और डेविड के नम्बर मिलाने लगा।
तब दिन के साढ़े बारह बज रहे थे कि होटल में हिप्पी जोड़े के रूप में आकर ठहरने के पश्चात् जगमोहन और नगीना ने चाय पी।
लंच का वक्त होने वाला था। जगमोहन घड़ी पर निगाह मार कर बोला। “भाभी! लंच का वक्त हो रहा है। मिन्टो रोड के रेस्टोरेंट में लंच पर जार्ज हमारा इन्तजार करेगा। अगर अभी निकल चलें तो ठीक रहेगा। वक्त रहते वहां पहुंच जायेंगे।”
“मुझे कोई एतराज नहीं।” नगीना बोली- “अभी तक बाथरूम में मौजूद लाशों के बारे में पता नहीं चला। वरना अब तक होटल में हंगामा नच गया होता।"
“होटल के सफाई कर्मचारी दिन में कभी भी वो कमरा साफ करेंगे। तब लाशों के बारे में पता चलेगा।"
“मुझे देवराज चौहान की चिन्ता हो रही है। थापर के मुताबिक बंसीलाल खतरनाक गैंगस्टर है।" नगीना एकाएक कह उठी- “वो देवराज चौहान पर भारी भी पड़ सकता है।"
“देवराज चौहान की तुम फिक्र मत करो। जार्ज वाला काम खत्म करके हम आज शाम ही मुम्बई के लिये निकल लेंगे।" तभी फोन की घंटी बजी। जगमोहन ने रिसीवर उठाया। "हेलो - ।" -
क्षणिक चुप्पी के बाद आवाज आई। “जगमोहन - | "
“जार्ज - ।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“हां । "
“तुमने कैसे फोन किया? मुलाकात के लिये वक्त और जगह हम तय कर चुके हैं। सब कुछ फिक्स हो चुका है। मैं यहां से निकलने ही वाला था।"
"देवराज चौहान से बात कराओगे।"
“वो नहीं है। बात बोलो-1" जगमोहन के माथे पर बल नजर आने लगे।
कुछ खामोशी के बाद जार्ज की आवाज आई। "सी-व्यू होटल के बाईस नम्बर कमरे में हो इस वक्त ?"
"हां।"
"पहले पांच सौ एक नम्बर कमरे में थे।"
“हां। लेकिन तुम कहना क्या चाहते हो ?”
"मुम्बई के बंसीलाल से तुम्हारा या देवराज चौहान का झगड़ा हुआ है जो गोवा में उसके दो आदमियों को मार डाला ।”
“तुम्हें कैसे पता चला ?” जगमोहन के होंठ सिकुड़ गये- “अभी तो शायद उन दोनों की लाशें भी नहीं मिलीं।”
“मतलब कि मेरी बात सच है। बंसीलाल के साथ तुम लोगों का झगड़ा - ।"
“हमारा कोई झगड़ा नहीं हुआ। मिलने पर बात बताऊंगा। तुम बताओ क्या कहना चाहते हो ?”
“कुछ देर पहले मैं डेविड के यहां था। वो मेरी पहचान वाला है। काम-धंधे के सिलसिले में हम दोनों को एक-दूसरे की जरूरत पड़ती रहती है। डेविड के पास बंसीलाल के आदमी राधेश्याम का फोन आया। उसने बताया कि वो अपने दो आदिमयों के साथ मुम्बई से गोवा आया। किसी थापर के पीछे थापर सी-व्यू होटल के पांचवीं मंजिल के कमरे में गया। राधेश्याम के दो आदमी थापर को खत्म करने के लिये उस कमरे में गये और-।" जार्ज बताता चला गया। जगमोहन वो सब बातें जानता था, परन्तु शान्ति से जार्ज को सुनता रहा।
- “मैं जानता था कि तुम लोग वहां ठहरे हो। ये काम तुम लोगों का हो सकता है ।” जार्ज पुनः वोला- “जो कि सही बात - "
“तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मैं यहां हूं।"
नगीना की निगाह जगमोहन पर पड़ी।
“राधेश्याम ने डेविड को बताया था। बाद में यूं ही डेविड ने मुझसे बात की। तो मैंने तुम्हें फोन किया कि अगर वास्तव में तुम लोग ही हो, तो आवाज से पहचान लूंगा और पहचान लिया।"
जगमोहन खामोश रहा।
“तुम्हारे साथ कोई लड़की भी है।"
"हां।"
"तुम दोनों भारी खतरे में हो। बंसीलाल के आदमी ने डेविड की सहायता ली है, तुम दोनों को पकड़ने के लिये। बचना आसान नहीं है। डेविड और उसके आदमी काम पूरा करना जानते हैं।" जार्ज की गम्भीर आवाज जगमोहन के कानों में पड़ रही थी-“वो लोग होटल के गिर्द घेरा डाल चुके होंगे अब तक। जब भी बाहर निकलोगे, वो लोग तुम दोनों का अपहरण कर लेंगे।" जगमोहन के दांत भिंच गये।
“मैंने तुम्हें इसलिये खबर दी कि सावधान हो जाओ। देवराज चौहान ने एक बार मुझे बचाया था। मैं भूल नहीं सकता।"
“सावधान करने का शुक्रिया।" जगमोहन का स्वर सख्त था। "
डेविड के हाथों तुम बच नहीं सकते। मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं।"
“कैसे बचाओगे? इस वक्त किसी झगड़े में न पड़कर मुम्बई पहुंचना मेरे लिये जरूरी है। "
"हमारी बातचीत तो बाद में भी हो जायेगी। मैं, मुम्बई आ जाऊंगा।” जार्ज का स्वर कानों में पड़ रहा था- “जो मैं कह रहा हूं। वैसा ही करना। अभी तुम लोगों के पास पुलिस आयेगी। चुपचाप दोनों पुलिस के साथ थाने चले जाना। वो लोग तुम लोगों पर कोई भी इल्जाम लगायें, परवाह मत करना। रात को तुम थाने से निकल जाओगे।"
“क्या मतलब ?”
"जो मैंने कहा है वो तुम समझ गये ?”
“हां। लेकिन – ।”,
“रात को मिलेंगे। बाकी बातें तब होंगी।" इसके साथ ही दूसरी तरफ से जार्ज ने लाईन काट दी।
होंठ भींचे जगमोहन ने रिसीवर रखा।
“क्या हुआ?” नगीना ने पूछा। जगमोहन ने सारी बात बताई। “मैं पहले ही कह रही थी कि बंसीलाल मुझे खतरनाक आदमी लगा है।” नगीना का स्वर सख्त होता चला गया- “वो नहीं बताता तो बंसीलाल के कहने पर डेविड देर-सवेर में हमे पकड़ ही लेता।" जगमोहन के होंठ भिंचे रहे ।
“मेरे ख्याल में हमारे पास डेविड की बात मान लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं।" नगीना ने पुनः कहा- “कुछ घंटे पुलिस के पास रहकर, डेविड से बच सकते हैं। जार्ज रात को हमे पुलिस के पास से निकाल लेगा ।”
जार्ज ने ऐसा ही कहा था।" जगमोहन के होठ खुले।
“वो वास्तव में ऐसा कर तेगा?" नगीना ने जगमोहन को देखा- "कहीं ऐसा न हो कि हम पुलिस के पास ही फंसे रह जायें ।"
"जार्ज समझदार और दम-खम वाला आदमी है। गोवा में उसकी पहुंच है।" जगमोहन ने कहा- “उसने जो कहा है वो काम तो वो अवश्य कर देगा।"
***
0 Comments