धरा कब उस जगह पर पहुंची, उसे न पता चला, वो वहां से और आगे निकल जाती अगर जोगाराम की आवाज उसके कानों में न पड़ती। वो फौरन ठिठकी। तेज सांसें ले रही थी वो।

“जोगाराम।” धरा जल्दी से कह उठी –“यहां से चलो।”

“वो लोग पीछे हैं क्या?” जोगाराम का स्वर व्याकुलता से भरा था।

“नहीं। सब ठीक है। पूरे चांद की वजह से वो सब छाती के बल लेटे हुए हैं। उठे नहीं। परंतु वो जरूर पीछे आएंगे। उन्होंने कहा है कि वो मुझे मार देंगे।” धरा ने पीछे देखते हुए कहा।

“आओ।” जोगाराम कह उठा –“अगर रात-रात में हम पहाड़ को पार कर गए तो खतरा कम हो सकता है।”

“बैग तो ले लो।”

“रहने दो। हमें जल्दी से पहाड़ पार करना है।”

दोनों तेजी से आगे बढ़ गए।

कैमरा धरा के हाथ में था।

“तुम दौड़ सकती हो?” जोगाराम ने पूछा।

“हां। पर ज्यादा तेज नहीं। यहां अंधेरा भी तो है।”

“मेरे पीछे दौड़ो। मैं चार कदम आगे दौडूंगा। समझ गई?”

“हां।”

अगले ही पल जोगाराम और धरा दौड़ने लगे।

“हम कब तक, पहाड़ के पास पहुंच जाएंगे?”

“आधे-पौने घंटे में, अगर इसी तरह दौड़ते रहे तो...।”

उनके दौड़ने की आवाजें सर्द सन्नाटे में गूंज रही थीं।

धरा हांफने लगी थी। परंतु उसका रुकने का इरादा नहीं था।

“वक्त क्या हुआ है?” धरा ने पूछा।

“रात के दो बजे हैं।”

“ओह। आते वक्त तो हमें पहाड़ पार करने में सात-आठ या नौ घंटे लग गए थे।” दौड़ते हुए धरा बोली।

“तब हमारे पीछे कोई नहीं था। अब हम खतरे में हैं तो जल्दी करना होगा ये काम।”

“वो कहते हैं कि सुबह चांद के छिपते ही वो उठेंगे और मुझे ढूंढ़कर मार देंगे।”

“ये खतरनाक बात है।” जोगाराम भी दौड़े जा रहा था।

“मुझे भूख लग रही है, पेट में दर्द हो रहा है।”

“अपने पर काबू रखो। ये जिंदगी और मौत का सवाल है। तुम भारी खतरे में हो। वो तुम्हें ढूंढ सकते हैं।”

“जानते हो वहां मैंने क्या देखा, वहां...।”

“अभी बातें मत करो। बात करने से शरीर की ताकत कम होती है, हमें जल्दी से पहाड़ पार करना है।”

“मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगी। मेरे पास उनकी चीजों की ढेरों तस्वीरें

हैं। तुम ठीक कहते थे वो सच में रहस्यमय इंसानों की जाति है। वहां ऐसा बहुत कुछ है जो सोचने पर मजबूर करता है। आदिवासी जातियां अनपढ़, जाहिल होती हैं, परंतु ये डोबू जाति तो बहुत आगे है, जोगाराम पहाड़ों पर बिजली है, जहां ये रहते हैं?”

“नहीं।”

“तो इन्होंने एक जगह टी.वी. जैसी स्क्रीनें क्यों लगा रखी हैं। वहां स्विच भी है। जब लाइट नहीं है तो स्क्रीनें, स्विच, तारें किस काम की। मुझे तो लगता है कि वहां जरूर लाइट है।” धरा ने दौड़ते हुए कहा।

“असम्भव। हमारे कस्बे टाकलिंग ला से आगे कहीं भी लाइट नहीं है। ये बर्फीले पहाड़ तो वीरान हैं। इधर आता-जाता कोई नहीं। लोग नहीं बसते। डोबू जाति के बारे में अभी कोई जानता नहीं। यहां कोई लाइट नहीं है। कोई सड़क नहीं है। पगडंडी भी नहीं है। क्या तुमने वहां रोशनी देखी?”

“नहीं। मशालें जला रखी थीं।”

“अगर वहां लाइट होती तो वे मशालें क्यों जलाते, लाइट जलाते...।”

“परंतु वो स्क्रीन, बोर्ड पर ढेरों स्विच, वो बिजली की तारें, ये सब लाइट होने की तरफ इशारा करता है।”

“चुप रहो और तेज दौड़ने की कोशिश करो। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। चार घंटों तक दिन निकल आएगा। चांद भी छिप जाएगा। उससे पहले हमें पहाड़ पार कर लेना है।” जोगाराम ने ऊंचे स्वर में कहा।

“अगर हम पहाड़ पार कर लेंगे तो वो हमें नहीं पकड़ सकेंगे।”

जोगाराम ने कुछ नहीं कहा।।

“बताओ जोगाराम। अगर हम पहाड़...।”

“वो कहीं भी पहुंच सकते हैं।” जोगाराम की आवाज आई –“उनके लिए कोई भी जगह दूर नहीं है। तुम उनके भीतर तक हो आई हो। पूरे चांद की वजह से वो लेटे रहने पर मजबूर होंगे। परंतु वो छोड़ेंगे नहीं तुम्हें। तुमने मुझे भी खतरे में डाल दिया है।”

“वहां के दो लोगों से मेरी बात हुई। एक मुझसे पूछ रहा था कि मुझे यहां तक कौन लाया।”

“तुमने क्या कहा?”

“मैंने कहा, मैं खुद ही आ पहुंची हूं, परंतु जैसे उसे मेरी बात पर यकीन नहीं आया।”

“वो मेरे बारे में भी जान लेंगे।” जोगाराम की आवाज में परेशानी आ गई थी।

“तुम मेरे साथ मुम्बई चलो। वहां ये लोग तुम्हें ढूंढ़ नहीं सकते।” वहाँ...।”

“तुम बहुत कम आंक रही हो डोबू जाति को। ये लोग बहुत समझदार, चालाक, खतरनाक हैं। योद्धा तो ये होते ही हैं परंतु दिमाग का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। ऐसे में इनकी ताकत और पहुंच बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मुम्बई के बारे में तुम गलतफहमी मत पालो कि ये वहां नहीं पहुंच सकते। इनके पास दौलत और ताकत की कमी नहीं है। दिमाग भी है तो ये कहीं भी पहुंच सकते हैं। तुम्हें ये जरूर ढूंढ़ लेंगे।”

“तुम फिर मुझे डराने लगे।”

“जोगाराम डोबू जाति के बारे में सबसे ज्यादा जानता है। मेरी कही बातों का भरोसा करो।”

“यहां से निकलो। तुम डोबू जाति को ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हो। सब ठीक रहेगा। मैं फिर वापस आऊंगी अपने विभाग के लोगों के साथ। तब इनके साथ बातचीत की जाएगी।”

“मुझे दुख है कि अभी भी तुम मेरी बातों को या डोबू जाति को ठीक से नहीं समझीं।”

“मैंने बढ़िया काम किया है।” धरा अपने ही सपनों में थी –“चक्रवती साहब खुश हो जाएंगे। डोबू जाति की तस्वीरें और भीतरी जानकारी को सुनकर। तुमने मुझे काफी बातें बताई हैं। वो सब चक्रवती साहब को बताऊंगी।”

जोगाराम ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

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पहाड़ के प्रवेश रास्ते पर उजाला चमका तो डोबू जाति के लोग उठने लगे। पूरे चांद की रात निकल गई थी। रात को एक ही मुद्रा में लेटे रहने की वजह से वो थके से महसूस कर रहे थे। कुछ तो उसी मुद्रा में नींद में डूब गए थे। ये सब उनके लिए नया नहीं था और पहली बार न हुआ था ऐसा। ये चलन कब से चालू था, उन्हें नहीं पता था। परंतु जब वो पैदा हुए तो बड़े-बुजुर्गों ने उन्हें ये ही समझाया था कि पूरे चाँद की रात आसमान से आने वाले लोगों के आदर में पेट के बल लेट जाना है, जब तक कि चंद्रमा लुप्त नहीं हो जाता। इसके पीछे महज एक ही बात थी कि जब पहली बार आसमान से पोपा (अंतरिक्ष यान) में बैठकर दूसरे ग्रह के लोग उनके पहाड़ के बाहर उतरे थे तो वो रात पूरे चांद की रात थी। इसी वजह से उनके आदर के रूप में हर पूरे चांद की रात डोबू जाति वाले ऐसा करते थे। डोबू जाति का ये नियम इसलिए बन चुका था कि पोपा पर सवार होकर आने वाले लोगों से उनके सम्बंध मधुरता भरे बन गए थे। डोबू जाति उन लोगों को पसंद करते थे। यूं तो ऐसी सुबह होने पर सब उठकर अपने-अपने कामों पर लग जाते थे परंतु आज की सुबह का माहौल बहुत जुदा था।

रात उनकी जगह पर कोई घुस आया था।

एक युवती, जो अपना नाम धरा बताती थी और खुद को मुम्बई की रहने वाली बता रही थी। वो भीतर आई और उनके बीच घूमकर, तस्वीरें लेकर, वापस चली गई।

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।

पहले कोई बाहरी इंसान भीतर नहीं आया था। भीतर क्या, बाहर, आस-पास भी दिखा तो पहरे पर लगे योद्धा उन्हें पलक झपकते ही खत्म कर देते थे। इसका कारण सिर्फ इतना था कि डोबू जाति वाले बाहरी लोगों का उनके पास आना, जरा भी पसंद नहीं करते थे।

परंतु रात धरा आई और भीतर सब कुछ देखकर, तस्वीरें लेकर चली गई।

अब उठने पर डोबू जाति का हर इंसान, उसी वजह से एक-दूसरे को सवालिया निगाहों से देख रहा था। सब जानते थे कि ऐसे इंसान की सजा सिर्फ मौत ही थी।

डोबू जाति का सरदार ओमारू क्रोध में लाल-सुर्ख हो रहा था। उसने फौरन मूर्ति वाले हॉल में अपने बेहतरीन सात योद्धाओं को बुलाया। अन्य लोग भी आसपास थे।

सातों योद्धा भी क्रोध में नजर आ रहे थे।

“रात जो हुआ, बहुत बुरा हुआ।” ओमारू गुस्से से मुट्ठियां भींचता कह उठा। (ये सब अपनी अंजान भाषा में बात कर रहे हैं। परंतु हम सब कुछ समझने के लिए अपनी सरल भाषा का ही इस्तेमाल करेंगे) –“हमारी जाति के अलावा सब लोग श्रापित हैं। सब अपवित्र हैं। सब भटक चुके है। ऐसे लोगों में से कोई युवती हमारी पवित्र जगह पर आ गई। परंतु पूरे चंद्रमा की रात होने की वजह से हम उसे खत्म न कर सके। कितने बेबस हो गए थे हम रात को। वो हमारी जीवन-शैली देख गई है। वो, वो जगह भी देख गई है, जहां हमने वो उपकरण लगा रखे हैं, जिनके द्वारा हम सदूर ग्रह वाले अपने दोस्तों से बात करते हैं। वो सब कुछ हमें उन्होंने ही भेंट किया है। दीवार पर लगी स्क्रीन पर हम रानी ताशा के दर्शन करते हैं। उससे बातें करते हैं। हमने अपनी जीवन शैली गुमनाम-सी बना रखी है। परंतु वो धरा नाम की, मुम्बई में रहने वाली युवती, यहां आई और सब कुछ देखकर चली गई। बुरा हुआ, इससे पहले कि वो हमारे बारे में किसी को बताए, उसे मार दो।”

“हैरानी की बात है ओमारू कि वो यहां तक कैसे पहुंच गई?” एक ने कहा।

“वो जरूर टाकलिंग ला की तरफ से आई होगी और उसका कोई मार्गदर्शक भी जरूर होगा। टाकलिंग ला ही हमारी सबसे करीबी बस्ती है, वरना दूसरी दिशाओं में तो दूर-दूर तक बर्फ है और जंगल हैं। वो रात में जरूर पहाड़ चढ़कर उस पार जाने के प्रयत्न में होगी अभी। उसे पकड़ो और मार दो। ये बहुत जरूरी है हमारे लिए। अपने साथ योद्धाओं को ले लो जितने चाहिए। उस युवती को किसी भी हाल में बचना नहीं चाहिए।”

“वो सदूर ग्रह की रानी ताशा के दिए उस इकरारनामे को भी ले गई है जो कि देवी की मूर्ति के आगे रखा था।”

“जब उसे मारा जाएगा तो उससे वो पत्ते भी ले लिए जाएंगे। तुम लोग...”

तभी कहते-कहते ओमारू ठिठका।

उसकी निगाह होम्बी पर पड़ गई थी जो कि पास आ रही थी।

बाकी सबकी निगाह भी होम्बी की तरफ उठी।

होम्बी बूढ़ी थी। चेहरे पर, शरीर पर झुर्रियां नजर आ रही थीं। परंतु वो सात फुट लम्बी थी और सीधी खड़ी रहती थी। उसका बूढ़ा शरीर झुका हुआ नहीं था। सिर के बाल काले और कमर तक लम्बे थे। नाक के छेद में लोहे की बाली पहन रखी थी और दोनों कानों में भी लोहे की बालियां लटक रही थीं। उसने एक ऐसा कपड़ा लपेट रखा था जो कि उसकी छातियों से लेकर कूल्हे तक जा रहा था। पांवों में कुछ नहीं पहना था। नाक लम्बा और चोंचदार था। माथा चौड़ा था।

होम्बी पास आकर ठिठकी और ओमारू को देखते हौले-से हंसी।

“तुम लोग जाओ और उस युवती को ढूंढ़कर खत्म कर दो। फौरन चल दो यहां से।” ओमारू गुस्से से बोला।

वो सातों तुरंत वहां से चले गए।

“मजा तो आ रहा होगा ओमारू।” होम्बी ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा।

“तुम आज अपने कमरे से बाहर कैसे आ गई जादूगरनी?” ओमारू कह उठा।

“तेरा चेहरा देखने आई हूं कि किसी बाहरी के यहां आ जाने से, तेरा क्या हाल हो रहा है।”

“उसे मार दिया जाएगा।”

“मैंने डोबू जाति के जाने कितने सरदार देखे हैं, परंतु तू पहला सरदार है जाति का कि जिसकी छत्रछाया में कोई बाहर का इंसान भीतर घुस आया। तेरी बहादुरी देखकर मैं बहुत खुश हूं।”

“जादूगरनी।” ओमारू ने नाराजगी से कहा।

“तू मेरी बात को कभी भी गम्भीरता से नहीं लेता ओमारू।” होम्बी ने कहा।

“ऐसा न कहो जादूगरनी। मैं हमेशा तुमसे सलाह लेता हूं।”

“पर उस सलाह पर चलता नहीं।”

“मैं हमेशा चला हूँ।”

“मैंने तुझे पहले ही कह दिया था कि बबूसा को यहां से मत जाने देना। वो जाना चाहेगा। पर वो चला गया और तुमने...।”

“मैंने उसे रोकने की चेष्टा की थी। परंतु उसने मेरे योद्धाओं को मारना शुरू कर...”

“तो क्या हो गया। तू ज्यादा बल का प्रयोग करके उसे रोक सकता था।”

“उस पर सख्ती नहीं करना चाहता था।”

“क्यों?”

“वो पोपा (अंतरिक्ष यान) से आया था। उस पर सख्ती करता तो वो लोग बुरा मान जाते।”

“पर तू बबूसा को रोक लेता तो ज्यादा ठीक रहता।”

“वो मेरे से नाराज नहीं था। वो अपने ही लोगों से नाराज था। उस कमरे में बैठकर वो उनसे बात किया करता था और उस दिन गुस्से में वो यहाँ से जाने को कहने लगा। रानी ताशा से उसने विद्रोह कर दिया था। उसे ये बात पसंद नहीं आ रही थी कि रानी ताशा, राजा देव को जबर्दस्ती पोपा में बिठाकर, अपने ग्रह पर ले जाए।”

“बबूसा के जाने का नुकसान तेरे को भी होगा।”

“मेरे को क्या?”

“बहुत जल्दी सामने आ जाएगा। मुझे सब दिख रहा है।” होम्बी गम्भीर स्वर में कह उठी।

“तुम्हें क्या दिख रहा है, मुझे भी बता जादूगरनी।” ओमारू उसे देखता बोला।

“बबूसा का हमारे योद्धाओं से झगड़ा हो रहा है।”

“तो क्या बबूसा फिर यहां आने वाला है?”

“नहीं। तेरे योद्धा मुम्बई जाएंगे और वहां पर ये झगड़ा होगा।” होम्बी ने कहा।

“ये नहीं हो सकता। मुम्बई में बबूसा क्यों झगड़ा करेगा मेरे योद्धाओं से?”

होम्बी मुस्कराई।

ओमारू उसे देखता रहा।

“मैंने तुझे पहले ही कहा था कि पूरे चांद की रात जाति पर कोई मुसीबत आने वाली है। पर तूने मेरी बात को गम्भीरता से नहीं लिया। रात आई न मुसीबत। वो लड़की आई न?”

“वो क्या मुसीबत थी जादूगरनी।”

“अब वो ही तो तुम्हारे लिए मुसीबतें खड़ी करेगी।”

“मैं समझा नहीं।”

“उसी लड़की के कारण बबूसा तुम लोगों से दुश्मनी ले लेगा होम्बी।”

“परंतु वो लड़की तो अभी मार दी जाएगी।” ओमारू के होंठों से निकला।

होम्बी ने रहस्यमय मुस्कान के साथ ओमारू को देखा।

“ये तू सोचता है, सोच ले। परंतु भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, वो तो समय-समय पर मुझे मालूम होता रहता है। मुझे सब कुछ पता चल जाता है। अगर मेरी बात मानकर तूने बबूसा को यहां से जाने से रोक लिया होता। अगर मेरी बात मानकर पूरे चांद की रात आने वाली मुसीबत के इंतजाम में तू तैयार रहता तो, सब ठीक से चलता रहता। परंतु अब बहुत कुछ होने वाला है। बबूसा अपनी तैयारी कर रहा है और रानी ताशा के पोपा (अंतरिक्ष यान) में बैठकर आ पहुंचने का वक्त भी करीब आता जा रहा है। सब कुछ एकदम इकट्ठा होगा और तूफान उठेगा तब।”

“मैं-मैं समझा नहीं जादूगरनी। मुझे स्पष्ट बताओ कि बात क्या है?” ओमारू कह उठा।

“बात समझने का वक्त अब निकल चुका है। अब तो सिर्फ इंतजार कर और देख आगे क्या होता है।” होम्बी ने कहा और अपने लम्बे काले बालों पर कंघी की तरह उंगलियां फेरते पलटी और आगे बढ़ गई।

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दिन निकल आया था। उजाला हर तरफ फैलना आरम्भ हो गया था। आकाश से चंद्रमा जाने कहां गायब हो गया था। गजब की सर्दी का एहसास हो रहा था। हाथ ठंडे होकर, बेजान से हो रहे थे। ऐसा लगता था जैसे चेहरे पर नाक रही ही न हो। पूरा बदन अकड़ा पड़ा था। परंतु धरा अपनी पूरी हिम्मत से काम ले रही थी। वो जानती थी कि जब तक इस इलाके में है, तब तक भारी खतरे में है। यहां से दूर हो जाना बहुत जरूरी था। धरा ने जोगाराम के साथ-साथ तेजी से पहाड़ चढ़ा था। जैसे वो मौत को दगा दे देना चाहती हो। इस बार एक बार भी नहीं फिसली नीचे की तरफ। वो बस तेजी से पहाड़ पार कर जाना चाहती थी।

जब दिन पूरी तरह फैले आधा घंटा गुजरा तो वे दोनों पहाड़ की चोटी पर जा पहुंचे थे। बर्फ और सर्दी ने शरीरों पर कहर बरपा रखा था। जोगाराम ने व्याकुल भाव से पीछे की तरफ देखा।

परन्तु पीछे कुछ नहीं दिखा।

“क्या देख रहे हो?” धरा ने भी पीछे देखते हुए पूछा।

“पहाड़ उतरने में परेशानी नहीं आनी चाहिए। मेरे खयाल में पैंतालीस मिनट में हम नीचे पहुंच जाएंगे क्योंकि ये बर्फ का पहाड़ है। पहाड़ खुद ही नीचे पहुंचा देगा हमें।”

“चाँद आसमान से गायब हो चुका है। डोबू जाति वाले अब क्या कर रहे होंगे?” धरा ने जोगाराम को देखा।

“वो तुम्हें हर हाल में ढूंढकर, मार देना चाहेंगे। शायद वो हमारे पीछे आ रहे हो।”

कहने के साथ ही जोगाराम ने बर्फ की ढलान पर छलांग लगाई और लुढ़कता चला गया।

धरा ने भी ऐसा ही किया।

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आधे घंटे में धरा और जोगाराम पहाड़ से नीचे पहुंच गए थे। घोड़े वहीं बंधे मिले और सर्दी में उनका बुरा हाल हुआ लग रहा था। जोगाराम ने पास पहुंचकर घोड़ों पर हाथ फेरा। उन्हें थपथपाकर गर्म किया। उनकी रस्सियां खोलकर समेटीं। उन पर जीन डाली। सब तैयारी करने के बाद उसने धरा को देखा जो गम्भीर-सी एक तरफ सोचों में डूबी खड़ी थी।

“आओ।” जोगाराम बोला –“घोड़े पर बैठो।”

“तुम सही कहते हो कि वो लोग बबूसा से बहुत डरते हैं।” आगे बढ़ती धरा कह उठी –“एक ने मेरी पिंडली पकड़ ली थी, वो छोड़ने को तैयार नहीं था। शायद मैं फंस ही जाती। परंतु तभी मैंने बबूसा का नाम लिया तो उसने फौरन पिंडली छोड़ दी और मैं बच गई।”

जोगाराम ने धरा को घोड़े पर बैठाया।

फिर खुद दूसरे घोड़े पर बैठा और उनका वापसी का सफर शुरू हो गया।

“घोड़े रास्ता जानते हैं।” जोगाराम ने ऊंचे स्वर में कहा –“बस इन्हें तेज भगाने की कोशिश करो। आज और कल का दिन हमें घोड़ों पर ही सफर करना है, तब हम टाकलिंग ला पहुंच सकेंगे।”

धरा ने लगाम से घोड़े को तेज भागने का इशारा करते हुए कहा।

“तुम्हारा क्या ख्याल है कि इस वक्त डोबू जाति वाले क्या कर रहे होंगे?”

“जो भी करें। कम-से-कम हमारे पीछे न आएं।” जोगाराम ने बेचैन और गम्भीर स्वर में कहा।

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घोड़ों की टापों की आवाज उस बर्फीली घाटी में गूंज रही थी। आस-पास हर तरफ बर्फ से ढके पहाड़ खड़े थे। कभी पथरीला रास्ता शुरू होता तो कभी सपाट। पहाड़ों की बड़ी-बड़ी चट्टानें हर तरफ गिरी नजर आ रही थीं। चारों तरफ घना जंगल ही दिखाई देता। पेड़ों के तने मोटे और पुराने थे। ऊंचाई जैसे आसमान को छूती थी। कुछ पेड़ घने थे तो कुछ सीधे, लम्बे खड़े थे। सर्द हवा के झोंके शरीर को उधेड़कर रख रहे थे। रात को वे सोए नहीं थे। खाया भी कुछ नहीं था। ऊपर से घुड़सवारी ने बुरा हाल कर रखा था। जोगाराम तो ये आसानी से सह रहा था परंतु धरा को तकलीफ हो रही थी खाली पेट घुड़सवारी करने की। उसका चेहरा पहले की अपेक्षा मुझ गया था। दो सप्ताह से ठीक से खाना नहीं खाया था और सोई भी नहीं थी। ऊपर से घोड़ों का पहाड़ी सफर। परंतु वो मन ही मन राहत से भरी थी कि उसकी मेहनत खराब नहीं गई। कुछ तो करके लौट रही है। घोड़े तेजी से दौड़े जा रहे थे। आगे जोगाराम का घोड़ा था, पीछे धरा का। शाम हो चुकी थी। सुबह चलने के बाद एक बार भी घोड़े रुके नहीं थे। जोगाराम वहां से ज्यादा-से-ज्यादा दूर निकल जाना चाहता था। धरा का मन रुककर कहीं आराम करने का था परंतु ये बात वो जोगाराम से कह नहीं सकी थी। अब कुछ ही देर में अंधेरा हो जाना था तो रात भर आराम करना ही था। धरा सोच रही थी कि गहरी नींद लेने की पूरी चेष्टा करेगी।

इस वक्त घोड़े पहाड़ जैसी जगह से किनारे-किनारे मध्यम रफ्तार से आगे दौड़ रहे थे। जगह खतरनाक थी। दाईं तरफ तीस-चालीस फुट गहरी जगह थी, गिरे तो काम हो जाना था। परंतु घोड़े सधे हुए थे। ऐसे रास्ते पर सफर करने की उन्हें आदत थी। जबकि धरा इस सफर से थककर चूर हो चुकी थी।

“मैं थक गई हूं।” धरा ने ऊंचे स्वर में कहा।

“कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा। तब तक चलती रहो।”

“अब तो हमें डोबू जाति वालों का डर नहीं रहा। हम काफी दूर आ चुके हैं।” धरा बोली।

“वहम में मत रहो। वो लोग कहीं भी पहुंच सकते हैं।”

“परंतु वो हमें ढूंढेंगे कैसे, हम तो काफी दूर...।”

“ये हमारे लिए दूर है, उनके लिए कुछ भी दूर नहीं है। तुम उन्हें ठीक से जानती नहीं।”

तभी पहाड़ के किनारे का रास्ता समाप्त हुआ और पथरीला जंगल शुरू हो गया।

घोड़ों की रफ्तार जंगल में अब तेज हो गई।

“कल हम टाकलिंग ला पहुंच जाएंगे।” धरा ने ऊंची आवाज में कहा।

“हां। कल दोपहर तक पहुंचेंगे। परंतु खतरा वहां भी कम नहीं होगा। डोबू जाति वाले वहां हमारी तलाश में जरूर आएंगे। तुम मुझे भी खतरे में डाल चुकी हो। वो जान लेंगे कि मैं तुम्हारे साथ था।”

“तुम मेरे साथ मुम्बई क्यों नहीं चलते। कुछ वक्त बाद वापस आ जाना।”

“बच्चों जैसी बातें न करो। वो मुम्बई भी पहुंच जाएंगे।”

“उन्हें पता नहीं लगेगा कि हम मुम्बई में कहां पर हैं।”

“वो वहां भी ढूंढ़ लेंगे। उनके पास शक्तियां हैं।”

“कैसी शक्तियां?”

“उनके पास होम्बी है। होम्बी उनकी सहायता करती है।”

“होम्बी कौन?”

“जादूगरनी कह लो उसे। उसके पास बातें जानने की ताकत है। कई बातें वो पहले ही बता देती है उन्हें। डोबू जाति वाले जब भी मुसीबत में आते हैं तो वो ही अपनी राय पर उन्हें मुसीबत से निकालती है।”

“ये तुमने नई बात बताई।”

“होम्बी उन्हें बता देगी कि हम मुम्बई में कहां पर हैं।”

“वो सच में इतनी बड़ी जादूगरनी है।”

“मुझे जो पता है, वो ही तुम्हें बता रहा हूं।”

“वो मुझे वहां नहीं दिखी। वो भी पूरे चंद्रमा के कारण, औंधे ढंग से लेटी होगी तब...”

“नहीं, उस पर डोबू जाति का कोई नियम लागू नहीं होता। वो आजाद है नियमों से। एक वो ही है जो पूरे चंद्रमा की रात पेट के बल नहीं लेटती। डोबू जाति के मेरे दोस्त ने मुझे ये बात बताई थी।”

“तो वो मुझे क्यों नहीं दिखी?”

“ये मैं नहीं जानता।”

“होम्बी देखने में कैसी है? खूबसूरत है?”

“वो बूढ़ी है। बहुत बूढी, परंतु जवानों की तरह चलती है। चलने-फिरने और बातें करने में वो जवान है। वहां, डोबू जाति के लोग पैदा होते हैं। बड़े होते हैं, बूढ़े होकर मर जाते हैं परंतु होम्बी वैसी की वैसी ही रहती है। उसकी उम्र क्या है, कोई नहीं जानता। वो कब से डोबू जाति से जुड़ी है, कोई नहीं जानता। उसके पास अन्जानी ताकतें हैं, परंतु वो डोबू जाति पर राज नहीं करती। वो सिर्फ उनकी सहायता करती है। खतरों से उन्हें आगाह करती है। मुसीबत में उनकी सहायता करती है।”

“ये तुमने अजीब बात बताई।”

“ये सच है।”

“पर वो मुझे नजर क्यों नहीं आई वहां। मैं उसकी भी तस्वीर खींच लेती।”

“तुम वहां से वापस लौट सकी, इस बात को तुम कम आंक रही हो। जबकि तुम्हारे लौटने पर मुझे हैरानी है और इस बात का पूरा डर है कि तुम जिंदा न रह सको। वो तुम्हें मार देंगे। मेरे लिए भी खतरा खड़ा हो गया है।”

“तुम डर रहे हो?”

“हां। इन हालातों में मुझे डरना पड़ रहा है।”

“पर मैं तो नहीं डर रही।”

“बच्चे को नहीं मालूम कि शेर क्या होता है। उसके सामने शेर आ जाए तो बच्चा खुश हो जाएगा और उसके साथ खेलने की कोशिश करेगा। तुम इस वक्त उसी बच्चे की तरह हो, जो समझ नहीं पा रहा कि शेर क्या होता है।”

धरा ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

“होम्बी के बाल पूरे काले हैं जबकि सैकड़ों वर्ष की उम्र है उसकी।”

“ये सब तुम्हें डोबू जाति वाले, तुम्हारे दोस्त ने बताया?”

“हां।”

अब अंधेरा छाना शुरू हो गया था।

अगले आधे घंटे में पूरी तरह अंधकार छा जाना था।

दोनों घोड़े तेजी से दौड़ रहे थे।

तभी जोगाराम के मस्तिष्क को झटका लगा। पल भर के लिए उसने हवा में उड़ती किसी चीज को आते देखा अपनी तरफ। वो चीज लोहे की कुछ मोटी पत्ती का चौकोर टुकड़ा था जो कि हवा में तीर से भी तेजी से घूमता उसके पास आया और गर्दन पर जा लगा।

मात्र एक पल में ही उसकी गर्दन कटकर एक तरफ जा गिरी।

अब उसका गर्दन से बिना का शरीर घोड़े पर बैठा दौड़ता दिखा।

धरा की निगाह जोगाराम पर पड़ी तो उसकी आंखें हैरानी से फैल गईं।

“जोगाराम...।” धरा गला फाड़कर चीख उठी।

अगले ही पल जोगाराम का शरीर घोड़े से नीचे गिरता चला गया। घोड़ा रुक गया। परंतु उसका जूता रकाब में फंसा रह गया, ऐसे में उसका छाती वाला हिस्सा नीचे की तरफ था और रकाब में पांव फंसा ऊपर की तरफ। कटी गर्दन वाले हिस्से से, तेजी से खून बहता बाहर निकल रहा था।

धरा का चेहरा आतंक से, भयावह हो गया था। उसने जोगाराम की गर्दन कटे शरीर को घोड़े की सवारी करते अपनी आंखों से देखा था वो सिर से पांव तक खौफ में भर गई थी। अब जोगाराम की हर बात उसे सच लगने लगी कि उसने जो भी कहा वो सच था।

जाति वाले आस पास ही हैं कहीं?

धरा ने पागलों की तरह घोड़े की लगाम को झटका देकर घोड़े को भागने का संकेत दिया तो घोड़ा और भी तेजी से भाग निकला। धरा घोड़े की पीठ पर बैठी जोर जोर से उछलने लगी तो आगे को झुकती अपने घोड़े की गर्दन थाम ली। लेट-सी गई घोड़े की पीठ पर। वो आतंक में लिपटी हुई थी। जोगाराम की सिर कटी लाश आंखों के सामने घूम रही थी और अपनी मौत का डर सता रहा था। मस्तिष्क में एक ही बात थी कि डोबू जाति के खूंखार लोग आस-पास ही कहीं हैं। वो उसकी भी जान ले लेंगे। जोगाराम ठीक कहता था कि वो कहीं भी पहुंच सकते हैं। वो तो तभी से ही भागे जा रहे हैं। डोबू जाति वाले उनके लिए बाद में रवाना हुए होंगे परंतु उनके पास आ पहुंचे। धरा समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या चीज फेंककर, उन्होंने जोगाराम पर वार किया कि गर्दन कट गई।

धरा उनकी फैक्ट्री जैसी जगह देख चुकी थी जहां, उनके हथियार बनते थे। उनके कई हथियार धरा की समझ से बाहर थे कि वे उनका इस्तेमाल कैसे करते हैं।

धरा इस वक्त खुद को घोड़े के हवाले कर चुकी थी। अब ये ही उसका साथी था। सरपट दौड़ा जा रहा था घोड़ा। धरा गर्दन थामे, उसकी पीठ से लिपटी हुई थी। चेहरा राख की तरह सफेद पड़ चुका था। अंधेरा फैलता जा रहा था। धरा नहीं जानती थी कि घोड़ा किस दिशा में जा रहा है, परंतु जोगाराम की बात उसे याद थी कि घोड़े अपना रास्ता पहचानते हैं। धरा मन-ही-मन सोच रही थी कि घोड़ा जरूर सही दिशा में, टाकलिंग ला की तरफ जा रहा होगा।

परंतु क्या डोबू जाति वाले अभी भी उसके पीछे हैं?

वो जरूर पीछे होंगे।

जोगाराम कहता था कि वो पीछा नहीं छोड़ेंगे।

वो कहीं भी पहुंच सकते हैं।

धरा सिहर उठी कि क्या अब वो मारी जाएगी। उसे जोगाराम की वो सब बातें याद आने लगी जब वो समझाता था कि डोबू जाति खतरनाक है। उधर जाना ठीक नहीं। धरा पछता उठी कि वो उधर गई ही क्यों? वो तो जोगाराम की बातों को इसलिए हल्के में ले रही थी कि वो सोचती, जोगाराम उधर जाना नहीं चाहता। तभी बहाने बना रहा है।

जोगाराम की मौत का उसे बहुत दुख था।

परंतु इस वक्त तो उसे अपनी जान की चिंता थी कि डोबू जाति वाले पीछे ही कहीं है। जो लोग जबर्दस्त योद्धा है और दुश्मन की गर्दन काट देने में वो दक्ष है। जोगाराम की गर्दन सेकेंडों में कैसे धड़ से गायब हो गई और उसे तब पता चला जब जमीन पर उसका सिर गिरने की आवाज गूंजी थी।

‘हे भगवान।’ धरा मन-ही-मन बड़बड़ा उठी।

अंधेरा छा गया था।

पूरी तरह अंधकार फैल गया था।

धरा घोड़े की पीठ पर गर्दन थामे लिपटी हुई थी। उसे अब कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। आज तो चांद भी नहीं निकला था कि उसकी रोशनी का सहारा होता। परंतु घोड़ा दौड़े जा रहा था। जानवरों में अंधेरे में देख लेने की शक्ति होती है, या उनकी आंखें देख लेती हैं अंधेरे में। कुछ भी हो, अंधेरा होने पर घोड़ा रुका नहीं था। ये भी हो सकता है कि घोड़े के मन में भी दहशत हो। उसने भी जोगाराम का गर्दन कटा शरीर देखा हो।

दौड़ता रहा घोड़ा।

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घोड़ा अब थकने लगा था। दो-तीन बार ठोकर खाकर गिरने को भी हुआ था। आखिरकार वो वक्त भी आया, जब घोड़ा रुक गया। धरा ने मन-ही-मन सोचा कि अंधेरा होने के बाद, तीन-चार घंटों तक दौड़ता रहा है घोड़ा और उस जगह से बहुत दूर आ चुका है, जहां पर जोगाराम की गर्दन कटी थी।

तो क्या वो खतरे से बाहर हो चुकी है।

डोबू जाति वाले पीछे रह गए हैं। उनके पास घोड़े तो होंगे नहीं।

धरा घोड़े की पीठ से नीचे उतरी। पूरा बदन टूट-फूट रहा था। शरीर के हर हिस्से से दर्द की लहरें उठ रही थीं। ठीक से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था और आंखों के सामने जोगाराम की सिर कटी लाश घूम रही थी। वो बच गई। जोगाराम की जगह, उस समय उसका सिर भी कट सकता था।

धरा ने शरीर पर पड़े स्वेटर को टटोला। कैमरा स्वेटर के बीच फंसा था। और वो लिखे हुए सूखे पत्ते भी स्वेटर के भीतर फंसे, मौजूद थे। धरा ने वहां इधर-उधर नजर मारी। मन में डर नाच रहा था कि कहीं डोबू जाति के हत्यारे योद्धा न आ जाएं। गहरे अंधेरे के सिवाय कुछ भी नहीं दिखा। ये जंगल जैसी जगह थी और इधर-उधर चट्टानें बिखरी हुई थीं। धरा ने पेड़ों को देखा कि कहां पर वो छिपकर रात बिता सकती है। मन-ही-मन उसे अपने पर गुस्सा आ रहा था कि ये काम अकेले करने की क्या जरूरत थी। क्यों उसने इतना बड़ा खतरा मोल लिया। जोगाराम के समझाने पर भी उसे समझ क्यों न आई। चक्रवती साहब से कहती कि विभाग के और लोगों को भी टाकलिंग ला भेज दें। उनके साथ ही सफर करती। उसे अकेले ये काम नहीं करना चाहिए था।

डोबू जाति दूसरी जातियों की तरह नहीं है। ये खतरनाक है।

पेड़ ऊंचे और घने थे। रात के अंधेरे में उन पर चढ़ने से धरा को डर-सा लगा। परंतु कोई जगह तो चाहिए थी कि रात बिता सके। यूं तो वो खुले में भी रात बिता सकती थी परंतु डोबू जाति के लोगों के आ जाने का खतरा था। जोगाराम की तरह वो उसका गला भी काट देंगे।

धरा मरना नहीं चाहती थी।

अब उसे जोगाराम की कमी महसूस हो रही थी। वो पास में था तो उसे चिंता नहीं थी।

धरा वहां बिखरी चट्टानों की तरफ बढ़ी और सोचा कि इनमें से किसी चट्टान की ओट में छिप सकती है। गहरा अंधेरा है। वो लोग आ भी गए तो उसे ढूंढ़ नहीं सकेंगे।

धरा कभी एक चट्टान के पास जाती तो कभी दूसरी। मुनासिब जगह देख रही थी कि कहां पर छिपे। जहां वो डोबू जाति वालों को नजर न आ सके।

तभी एक चट्टान के पास जा ठिठकी। वो उसे भीतर से खोखली सी लगी। रोशनी करके भीतर देखने का उसके पास कोई इंतजाम नहीं था। हाथों से चट्टान के मुंह को चेक किया तो पाया कि वो भीतर जा सकती है। थोड़ी तंग है परंतु भीतर चली जाएगी। लेकिन ये नहीं जानती थी कि वो भीतर से कितनी गहरी है। उसने चट्टान को देखा। वो सिर्फ छः फुट लम्बी थी और चार फुट चौड़ी थी। ऐसे में भीतर अगर जगह खाली भी है तो वो पर्याप्त नहीं है। लेकिन डोबू जाति वालों से बचने के लिए इस वक्त इससे बेहतर जगह कोई और नहीं हो सकती थी।

धरा डोबू जाति वालों से डरी हुई थी।

जोगाराम का अंजाम उसने अपनी आंखों से देखा था।

धरा सिकुड़कर चट्टान के भीतर जाने का प्रयत्न करने लगी। जगह वास्तव में तंग थी। ऊपर से गहरा अंधेरा था। पांच मिनट की चेष्टा के पश्चात वो चट्टान की खोह जैसी जगह के भीतर प्रवेश कर सकी। परंतु भीतर ज्यादा जगह नहीं थी। इतनी तंग जगह थी कि वो बेहद कठिनता से खुद को घुसा पाई। वहां सिर्फ बैठने की जगह थी। परंतु मन-ही-मन धरा ने सोचा कि शुक्र है जो उसे ये जगह मिल गई। अगर डोबू जाति वाले यहां आते हैं तो उसे ढूंढ़ नहीं सकेंगे। किसी तरह कठिनता से वो चट्टान के भीतर उकड़ू-सी बैठ चुकी थी। वहां से उसे थोड़ा बहुत बाहर का नजारा दिख रहा था। उसने सिर आगे करके बाहर देखा तो कुछ दूरी पर उसे घोड़े की टांगें दिखाई दी।

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वो मध्यम-सी आहट थी जिसकी वजह से धरा की आंख खुल गईं। वो उसी तरह उकड़ू बैठे-बैठे ही झपकी लगा बैठी थी और वो नहीं जानती कि कितनी देर वो सोई रही। अब आंखें बंद थीं। नींद में थी कि किसी मध्यम-सी आहट पर तुरंत उसकी नींद टूट गई थी।

डर की वजह से दिल धड़क उठा।

बाहर कोई था।

वरना उसकी नींद न टूटती आहट से।

अगले ही पल ये सोचकर उसने राहत भरी सांस ली कि बाहर घोड़ा है, उसकी तरफ से कोई आहट उभरी होगी। चट्टान में फंसी बैठी धरा ने थोड़ा-सा सिर झुकाया और बाहर देखा, घोड़े की टांगें वहीं पर देखीं, जहां उसने पहले देखी थी। धरा जानती थी कि घोड़ा ऐसा जानवर है जो कभी बैठता नहीं। वो खड़े होकर ही नींद लेता है। खड़े रहकर ही आराम करता है। सब काम वो खड़े रहकर ही करता है। तभी धरा ने घोड़े को हिलते, घूमते देखा।

धरा सतर्क हो गई।

तो क्या कोई है बाहर?

तभी धरा के होंठों से चीख निकलते-निकलते बची।

ठीक सामने, मात्र दो फुट की दूरी पर, इस पत्थर के बाहर किसी की टांगें दिखीं। घुटने से नीचे तक की टांगें। धरा फटी-फटी आंखों से मुंह पर हाथ रखे, उन पिंडलियों को देखती रही। सांस भी रोक लिया उसने।

तो डोबू जाति वाले उसकी तलाश में यहां तक आ पहुंचे हैं।

घोड़ा देखकर वो समझ गए होंगे कि वो आसपास ही है। वो उसे भी मार देंगे। उसी समय उस पत्थर के बाहर खड़ी टांगें वहां से हट गईं। धरा जान चुकी थी कि मौत का खतरा उसके सिर पर मंडरा रहा है। ये लोग उसे मार देना चाहते हैं। सहमी-सी धरा ने सिर पीछे किया और उकड़ू-सी बैठ गई। मन-ही-मन ये ही सोच रही थी कि क्या ये लोग उसे ढूंढ़ लेंगे? डर के मारे धरा का दिल जोरों से धड़कने लगा। मौत के खौफ से रह-रहकर शरीर में कंपकपी दौड़ने लगती। जोगाराम की सिर कटी लाश, घोड़े पर बैठी आंखों के सामने घूमी।

धरा जानती थी कि इस मंजर को वो कभी नहीं भूल सकेगी।

जोगाराम ठीक कहता था कि वो उन छह की मौत को नहीं भूल प रहा था जिन्हें डोबू जाति की तरफ लेकर गया था और उसके देखते ही देखते एक व्यक्ति ने उनके सिर काट दिए थे। अब धरा समझ सकती थी कि जोगाराम ने तब कैसा दृश्य देखा होगा। उसे कैसा महसूस परंतु धरा लाख सोचने पर भी समझ नहीं पा रही थी कि जोगाराम की गर्दन किस हथियार के फेंकने से पलक झपकते ही कट गई? उसे वो हथियार नजर क्यों नहीं आया? न ही उसे वार करने वाला दिखा, जिसने कोई हथियार जोगाराम की तरफ फेंका था।

धरा समझ चुकी थी कि डोबू जाति की तरफ जाना उसकी भारी भूल थी। ये लोग खतरनाक हैं। दरिंदे हैं। युद्ध कला में बहुत तेज हैं। ये किसी बाहरी व्यक्ति का अपनी तरफ आना पसंद नहीं करते। धरा को तारों वाला कमरा याद आया। वो मूर्ति याद आई, जो चबूतरे पर खड़ी थी। डोबू जाति अन्य पुरानी जातियों से अलग है। रहस्यमय हैं ये लोग। पता नहीं ये करते क्या हैं और इनके जीने का मकसद क्या है? वो उनके वहां तक पहुंच गई तो अब ये लोग सजा के तौर पर उसे मार देना चाहते हैं।

तभी धरा सिहर-सी उठी।

बाहर उसे दो लोगों के बात करने की आवाज आई। मध्यम-सा स्वर उसके कानों तक पहुंच रहा था। समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या बात कर रहे हैं या फिर उनकी भाषा अलग थी जो उसकी समझ में नहीं आई। धरा सहमकर अपने आप में सिमट गई। जाने ये लोग कितने हैं। शायद उसे ढूंढ़े बिना न जाए। घोड़े के पास ही छिपकर उसने गलती कर दी। उसे कहीं दूर जाकर छिपना चाहिए था।

धरा वहीं दुबकी रही।

अपनी मौत का इंतजार करती रही।

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दिन निकल आया।

धरा का शरीर और अकड़ गया था। थकान भर गई थी। रात भर की कड़कती सर्दी ने उसकी हिम्मत को और भी तोड़ दिया था। वो एक पल के लिए भी सोई नहीं थी। वो नहीं जानती थी कि अब उस चट्टान के बाहर की स्थिति क्या है? वो लोग हैं या चले गए? सिर नीचा करके वो झांककर देख चुकी थी कि अब घोड़े की टांगें उसे कहीं नहीं दिखाई दी थीं। शायद वे लोग चले गए होंगे। घोड़ा भी ले गए होंगे।

परंतु घोड़े के जाने की आवाज तो उसे नहीं आई थी।

जो भी हो धरा की हिम्मत नहीं थी कि उस चट्टान के भीतर से बाहर निकलती। वो ये ही सोच रही थी कि वो आसपास ही छिपे हैं और उसके बाहर आते ही उसे मार देंगे। डर उस पर सवार था।

दिन और आगे बढ़ने लगा।

धरा बार-बार सूखे होंठों पर जीभ फेर रही थी। पेट पर हाथ रखे थी। भूख और प्यास ने उसकी ताकत छीन रखी थी। वो बेदम-सी हो रही थी। थकान से पूरा शरीर दर्द हो रहा था। बाहर सर्द मौसम था। सूर्य नहीं निकला था और ठंडी हवाएं चल रही थीं। धरा फैसला नहीं कर पा रही थी कि बाहर निकले या नहीं? डोबू जाति वाले बाहर छिपे तो नहीं होंगे? इस कशमकश में उलझी पड़ी थी वो।

दिन और आगे सरक गया।

उसने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा, दस बज रहे थे।

जब ग्यारह बजे तो धरा ने बाहर निकलने की सोची। मन में ये ही चल रहा था कि कब तक इस तरह बैठी रहेगी। बाहर तो निकलना ही है उसे। घोड़ा भी नहीं दिखा उसे और धरा उस चट्टान के तंग मुहाने से बाहर निकली। बेहद कठिनता से सरक-सरककर। थोड़ा-सा कंधा भी छिल गया।

वो बाहर निकल आई।

भय भरी निगाहों से वो हर तरफ देखने लगी। पांच मिनट तक वहीं रही। न तो घोड़ा दिखा और न ही डोबू जाति का कोई इंसान दिखा। वो खड़ी हो गई। अभी भी डरी हुई थी। ये जंगल जैसी जगह थी और सामने पहाड़ नजर आ रहा था। तेज ठंडी हवा की वजह से वो कांप रही थी परंतु उससे भी ज्यादा वो ये सोचकर सिहर उठी कि उसे रास्ता नहीं मालूम। जाने वो किस तरफ से आई है और किधर जाना है। यहां सब रास्ते एक जैसे लग रहे थे। घोड़ा उसका मार्गदर्शक था। उसकी सवारी थी। उसका सहारा था, परंतु घोड़े को डोबू जाति वाले ले गए।

धरा के चेहरे का रंग फक्क पड़ गया।

किधर जाए?

वो तो इस सुनसान जगह पर भटककर मर जाएगी या डोबू जाति वालों के हाथ लग जाएगी और वो उसे मार देंगे। धरा तो जैसे पगलाई-सी वहां खड़ी आस-पास देखती रही। फिर जगह को समझने की चेष्टा में आगे बढ़ी और सोचने लगी कि रात किस तरफ से यहां पहुंची थी? घोड़ा यहां खड़ा था, वो उधर से आया होगा। हां उधर से ही आया होगा, यहां पर वो घोड़े से उतरी फिर उसने छिपने की जगह ढूंढ़नी शुरू की।

धरा की सोचें थम गईं।

तभी उसे घोड़े की हिनहिनाहट सुनाई दी।

खिल उठा धरा का चेहरा। घोड़ा है, यही है।

“घोड़े।” धरा खुशी से चिल्ला उठी और उस तरफ बढ़ी जिधर से हिनहिनाहट आई थी।

तीन चार मिनट में ही वो घोड़े के पास जा पहुंची। वो पेड़ों के पास टहल रहा था।

“मेरे प्यारे घोड़े।” धरा की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसने घोड़े पर हाथ फेरा। उसके माथे को चूमा। इस वक्त तो दुनिया में ये ही उसके लिए सब कुछ था-“मैंने सोचा डोबू जाति वाले तुझे ले गए।” वो घोड़े से बोली फिर आंसुओं को साफ करती लगाम को संभालकर पीछे की तरफ किया और रकाब में पांव फंसाकर कठिनता से उसकी पीठ तक पहुँची वरना पहले तो जोगाराम उसकी बैठने में सहायता कर देता था। जोगाराम की याद आते ही धरा का मन भारी हो गया। उसकी पत्नी सुनीता का चेहरा आंखों के सामने नाच उठा कि जोगाराम की मौत की खबर सुनकर उस पर क्या बीतेगी। धरा ने मन-ही-मन फैसला किया वापस टाकलिंग ला की बस्ती में नहीं जाएगी। वहां पर उसके लिए खतरा है। डोबू जाति वाले उसके इंतजार में वहां पर छिपे न हों। वो सीधा रोडवेज अड्डे पर जाएगी और किओमो की बस ले लेगी। अभी पूरा दिन पड़ा था और उसे एहसास था कि टाकलिंग ला यहां से ज्यादा दूर नहीं है, क्योंकि घोड़े ने रात को भी तीन-चार घंटों का सफर तय कर लिया था। ऐसे में वो वक्त पर टाकलिंग ला पहुंचकर बस पकड़ सकती है। वो जानती थी कि किओमो जाने के लिए टाकलिंग ला से आखिरी बस शाम चार बजे चलती है।

उसने घोड़े को प्यार भरी एड़ मारी तो घोड़ा आगे बढ़ने लगा।

“चल मेरे घोड़े।” धरा ने थके स्वर में कहा –“मुझे टाकलिंग ला पहुंचा दे।” साथ ही लगाम को झटका दिया।

और घोड़े ने रफ्तार पकड़ ली। तेजी से दौड़ने लगा। सफर पुनः शुरू हो गया।

धरा अब रास्तों को पहचानने लगी थी और खुशी, उत्साह से भर उठी थी कि टाकलिंग ला समीप आता जा रहा है। घने जंगल समाप्त होते जा रहे थे। काफी हद तक साफ रास्ता शुरू हो गया था। उसने मन-ही-मन घोड़े को और भगवान को धन्यवाद दिया कि वो अपनी दुनिया में आ पहुंची है। डोबू जाति तक जाने का सफर बहुत ही खतरनाक रहा। अब सोचती है तो सिहर उठती है कि वो कैसी खतरनाक जगह चली गई थी जोश-जोश में। मन-ही-मन उसने तय किया कि बेशक चक्रवती साहब कहें, वो दोबारा उस तरफ नहीं जाएगी। कैसे जाना है, ये भी चक्रवती साहब ही देखें।

धरा ने मन-ही-मन गहरी सांस ली।

रात तो मरते-मरते बची थी। वो छोटी-सी चट्टान के सुराख में छिपी थी और बाहर किसी की टांगें देखीं। इतने करीब कि उसे हाथ बढ़ाकर छू लेती।

वो जरूर डोबू जाति का योद्धा ही होगा, जो उसे ढूंढ़ रहा था। धरा सिहर-सी गई। कैसे बुरे वक्त से निकलकर आई है। जोगाराम की याद आते ही मन भारी हो गया। उसके साथ बहुत बुरा हुआ। दस लाख पाने और उसके काम आने की चाह में, उसने जान गंवा दी। नहीं तो वो भी साथ होता इस वक्त। धरा उसकी पत्नी सुनीता से मिलना चाहती थी। उसे जोगाराम के विषय में बताना चाहती थी नहीं तो वो हमेशा ही जोगाराम की वापसी का इंतजार करती रहेगी। परंतु धरा टाकलिंग ला की बस्ती में जाकर खतरा नहीं उठाना चाहती थी। उसे जोगाराम के बारे में बताना चाहती थी। डोबू जाति के लोग कहीं वहां छिपे बैठे, उसके इंतजार में मौजूद न हों।

कुछ देर बाद घोड़ा जंगलों से निकलकर एक पगडंडी पर पहुंच गया। धरा जानती थी कि यहां से पंद्रह-बीस मिनट का रास्ता है टाकलिंग ला की बस्ती का। अब वो किसी को नजर नहीं आना चाहती थी।

क्या पता डोबू जाति वाले उसके इंतजार में कहां पर छिपे हों? उसने घोड़े को रोका और नीचे उतर आई। घड़ी में वक्त देखा, बारह बज रहे थे।

घोड़े को थपथपाया। उसे चूमा बोली।

“तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्त । तुमने मेरी जान बचा ली और यहां तक पहुंचा दिया।” फिर वो पैदल ही आगे बढ़ गई। स्वेटर के भीतर डाल रखा कैमरा निकालकर हाथ में लिया। वो जानती थी कि इस वक्त कैमरे में जो तस्वीरें हैं, वो दोबारा कभी नहीं ली जा सकतीं। अपनी जान पर खेलकर इन तस्वीरों को पाया है। अब धरा को अपने पर हैरानी होने लगी कि उसने इतना खतरा कैसे उठा लिया?

तभी जोगाराम की शेर वाली बात याद आ गई कि बच्चे के सामने शेर आ जाए तो वो डरेगा नहीं, उससे खेलेगा। क्योंकि वो शेर के बारे में कुछ नहीं जानता। ऐसा ही कुछ उसके साथ हुआ। जोगाराम उसे डोबू जाति के खतरनाक होने के बारे में बताता रहा, परंतु उसने परवाह नहीं की। क्योंकि उस पर धुन सवार थी डोबू जाति तक जाने की। उन्हें देखने की। परंतु अब उसे शेर के शेर होने के बारे में पता चल गया था और वो डरी बैठी थी। जोगाराम को वो कभी भी भूल नहीं पाएगी।

एक बजे वो पैदल चलती टाकलिंग ला के रोडवेज बस अड्डे पर पहुँची। कपड़े मैले हो चुके थे। पंद्रह दिन से ज्यादा हो गए थे, ये ही पहने थे। नहाई भी नहीं थी। खाना पीना भी नहीं हुआ था। एक बारगी तो वो पहचानने में नहीं आ रही थी।

धरा को अपनी हालत का पूरी तरह एहसास था। मन में सोच रखा था कि किओमो-पहुंचकर नए कपड़े ले लेगी। होटल में कमरा लेकर नींद करेगी और नहाएगी, खाएगी।

1.40 पर उसे किओमो जाने वाली बस मिल गई।

4.25 पर धरा किओमो पहुंच गई।

सबसे पहले उसने एस.टी.डी. बूथ से चक्रवती साहब को फोन किया।

“मैं डोबू जाति के यहां से हो आई हूं चक्रवती साहब।” बताते हुए धरा गम्भीर थी।

“वैरी गुड। तुमने बहुत बड़ा काम कर दिया। कैसे लोग हैं वो?” उधर से चक्रवती साहब ने खुशी से पूछा।

“बेहद खतरनाक। जबर्दस्त लड़ाके। युद्ध में एक्सपर्ट। हथियार चलाने में माहिर। दोबारा वहां जाना भी बहुत बड़ी गलती होगी।”

“क्या मतलब?”

“मैं आपको फोन पर सब कुछ नहीं बता सकती। इतना जान लीजिए कि मैं अभी तक नहीं समझ पा रही कि मैं कैसे जिंदा बच आई। जोगाराम जो मेरा गाइड बना था, वो मारा गया और...”

“मारा गया?”

“मुम्बई पहुंचकर सब कुछ बताऊंगी चक्रवती साहब।”

“तुम इस वक्त कहां हो?”

“किओमो...।”

“तुम प्लेन से फौरन मुम्बई आ...”

“ये पहाड़ी इलाका है। यहां प्लेन नहीं है। एयरपोर्ट नहीं है। लेकिन मैं जल्दी ही मुम्बई पहुंच जाऊंगी।” कहकर धरा ने फोन बंद किया और पैसे देकर दुकान से बाहर आई और एक दुकान से कमीज-सलवार खरीदा। जींस की पैंट और स्कीवी ढूंढ़ने में उसने वक्त खराब नहीं किया। वो बुरी तरह थकी हुई थी। एक जगह से थोड़ा-बहुत कुछ खाया और होटल में कमरा ले लिया। पैसे की उसे चिंता नहीं थी। पास में काफी पैसे थे।

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पांचवे दिन धरा की ट्रेन मुम्बई सैंट्रल रुकी।

धरा स्टेशन से बाहर निकली। मुम्बई पहुंचकर वो बहुत खुश थी। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि सही-सलामत वो वापस आ पहुंची है, परंतु ये सच था। जब भी डोबू जाति के बारे में सोचती तो मन सिहर उठता।

जोगाराम याद आता तो मन पर बोझ-सा आ जाता कि वो जान गंवा बैठा। कैमरा अभी भी उसके हाथ में था और शरीर पर किओमो से लिया, पहना कमीज-सलवार था। जो कि मैला हो चुका था। दूसरे हाथ में एक लिफाफा था जिसमें कि वो वाले आठ पत्ते थे, जो कि सूखे हुए थे। उन पर कुछ लिखा था। परंतु वो बड़े-बड़े पत्ते जाने कैसे थे कि सूखने के बाद भी, मुड़ने पर टूट नहीं रहे थे। वो सलामत के सलामत रहते थे। स्टेशन के बाहर पब्लिक बूथ से धरा ने चक्रवती साहब को फोन किया। अपना मोबाइल फोन तो संतराम के घर, सामान के बैग के साथ ही छूट गया था। चूंकि मोबाइल पर फोन किया था तो फौरन ही चक्रवती साहब से बात हुई। उनकी आवाज सुनते ही धरा ने खुशी भरे स्वर में कहा।

“चक्रवती साहब मैं मुम्बई पहुंच गई हूं।”

“तुम्हारे लिए बुरी खबर है धरा।”

“क-क्या?” धरा का स्वर कांप-सा उठा।

“कल शाम किसी ने घर पर तुम्हारी मां की हत्या कर दी।”

“न-हीं...।” धरा सिर से पांव तक कांप उठी

“पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। परंतु हत्या का अंदाज देखकर पुलिस का कहना है कि हो सकता है ये हत्या दुश्मनी की वजह से की गई हो। तुम लोगों की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी?”

“न-हीं। मैं और मेरी मां आराम से रहते थे। हमारा कोई दुश्मन नहीं था।” धरा सुबक उठी –“मैं अभी आ रही हूं।”

“अभी-अभी पोस्टमार्टम के बाद बॉडी हमें मिली है। हम सब ऑफिस वाले साथ हैं और तुम्हारी मां की बॉडी को लेकर घर पर ही जा रहे हैं, तुम घर पे ही आ जाना...।”

“कैसे मारा गया मम्मा को?” धरा की आंखों से आंसू बह रहे थे।

“गला काट दिया गया। किसी तेज हथियार से ये किया गया है। गर्दन अलग पड़ी और शरीर अलग...।”

“नहीं।” धरा सिर से पांव तक कांप उठी –“ये-ये न-हीं हो सकता।” फटा-फटा-सा स्वर निकला।

“क्या मतलब?” उधर से चक्रवती साहब की आवाज आई।

“गर्दन अलग और बाकी का शरीर अलग?” धरा का स्वर खरखरा रहा था।

“हां। ऐसा ही हुआ, तभी तो पुलिस कह रही...।”

“ये-ये तो डोबू जाति वालों के मारने का ढंग है।”

“मैं समझा नहीं।”

“चक्रवती साहब।” धरा डर से फफक पड़ी –“ये डोबू जाति वालों के मारने का ढंग है। वो इसी तरह हत्याएं करते हैं। इस तरह की लाश मैं देखकर आ रही हूं वहां। जोगाराम की लाश। वो मुझे भी मारना चाहते थे परंतु मैं बच गई। भाग आई वहां से लेकिन वो मेरे से पहले मुम्बई पहुंच गए। उन्होंने मेरा घर ढूंढ लिया। ओह-हैरानी है। वो मुझे मारना चाहते हैं। वो मेरी जान के पीछे हैं। वो बहुत खतरनाक लोग हैं, वो...।”

“धरा तुम्हारी बात कुछ-कुछ मैं समझ रहा हूं परंतु वो...।"

“चक्रवती साहब।” धरा आंसुओं भरे चेहरे को साफ करते कह उठी –“आप सब लोग मिलकर मेरी मां का अंतिम संस्कार कर दीजिए। डोबू जाति के लोग वहां आस-पास हो सकते हैं। अगर मैं वहां पहुंची तो वो मुझे भी मार देंगे। वो मेरी ही जान लेना चाहते हैं। मां की जान तो उन्होंने यूं ही ले...”

“तुम चिंता मत करो। मैं पुलिस को बुला...।”

“पुलिस कुछ नहीं कर सकती उनके सामने। आप कुछ नहीं समझेंगे। मेरी मां का संस्कार कर...”

“लेकिन तुम कहां...।”

“मेरे पास कई जगह हैं रहने को। मैं आपको बाद में फोन करूंगी।” कहकर धरा ने रिसीवर रख दिया। चेहरा मुरझा चुका था मां की मौत के बारे में सुनकर और डोबू जाति के लोगों के मुम्बई आ पहुंचने को लेकर। वो सोच रही थी कि बहुत फुर्ती दिखाई डोबू जाति के लोगों ने। उसके घर के बारे में कैसे पता चला उन्हें? तभी उसे ध्यान आया कि वो और जोगाराम जो बैग भागते वक्त, पहाड़ पर चढ़ने से पहले वहां छोड़ आए थे उसमें उसके ऐसे कार्ड थे जिन पर उसकी तस्वीर भी थी और पता भी लिखा था। वहीं से उसके घर का पता जाना होगा उन्होंने। तभी मां की याद आ गई। एक मां ही तो थी उसकी दुनिया में। वो भी अब नहीं रही। डोबू जाति के लोगों ने उसे मार दिया और अब उसे मारने के लिए ढूंढ रहे हैं। आंसू बह निकले आंखों से। उसने हाथों में पकड़ रखे कैमरे और लिफाफे को संभाला और टैक्सी लेकर अपनी सहेली के घर की तरफ चल पड़ी। सोच रही थी कि उसके सामने ऐसे हालात आ गए हैं कि अपनी मां का अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकती। उसे पूरा यकीन था कि वहां पर डोबू जाति का कोई व्यक्ति जरूर मौजूद होगा कि वो उधर पहुंचे तो उसे खत्म कर दें, ताकि वो उनके बारे में किसी को न बता सके।

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वो बबूसा था।

जो पैदल ही सड़क किनारे फुटपाथ पर चलता जा रहा था। और लोग भी आ-जा रहे थे। एक तरफ दुकानें थीं और दूसरी तरफ सड़क जिस पर तेजी से वाहन आ-जा रहे थे। बबूसा का सांवला चेहरा शांत था इस वक्त। कमीज-पैंट पहन रखी थी। शायद उसे कहीं पहुंचने की जल्दी थी, तभी तो तेज-तेज कदम उठा रहा था।

एकाएक बबूसा के मस्तिष्क को झटका-सा लगा।

वो ठिठक गया।

उसने दो-तीन गहरी-गहरी सांसें ली जैसे कि कुछ सूंघ रहा हो और तभी उसकी निगाह सड़क की तरफ घूम गई। सामने से टैक्सी जा रही थी और पीछे वाली सीट पर धरा बैठी दिखाई दी। टैक्सी आगे निकल गई। बबूसा फौरन सड़क पर आया और आस-पास देखा। सामने ही उसके देखते-देखते मोटर साइकिल रुकी और उस पर से एक युवक उतरकर, मोटरसाइकिल को स्टैंड पर लगाने जा रहा था।

बबूसा मोटरसाइकिल की तरफ दौड़ा और सीधा उसकी सीट पर जा बैठा।

“ऐ, ये क्या कर रहे हो। मेरी मोटर साइकिल...।”

बबूसा ने युवक को धक्का दिया। चाबी घुमाकर मोटर साइकिल स्टार्ट की और युवक के संभलने से पहले ही वो मोटर साइकिल को दौड़ाता ले गया। पीछे से युवक के चिल्लाने की आवाजें सुनाई दी थीं।

अगले कुछ ही मिनटों में बबूसा ने धरा वाली टैक्सी को पा लिया और मोटरसाइकिल टैक्सी से आगे ले जाकर, टैक्सी को रुकने का इशारा करने लगा।

बबूसा ने कई बार कोशिश तो टैक्सी ड्राइवर ने सड़क किनारे टैक्सी रोक दी।

बबूसा मोटर साइकिल स्टैंड पर लगाकर फौरन टैक्सी के पास पहुंचा।

“क्या बात है सेठ?” टैक्सी ड्राइवर कह उठा।

बबूसा ने फौरन टैक्सी का पिछला दरवाजा खोला।

धरा जो पहले से ही परेशान थी, ये सब होता पाकर सहम-सी गई थी।

“क-क्या है?” धरा के होंठों से निकला।

टैक्सी ड्राइवर पीछे देखता कह उठा।

“अपुन की सवारी को हाथ मत लगाना सेठ। नेई तो दंगा हो जाएगा।”

तभी बबूसा का हाथ बिजली की सी गति से घूमा और ड्राइवर की कनपटी पर पड़ा।

ड्राइवर का सिर स्टेयरिंग पर जा लगा। वो बेहोश हो गया था।

ये देखकर धरा आतंक से भर उठी।

“तुम्हारे पास क्या है?” बबूसा ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“क-क्या?” धरा का स्वर कांप उठा।

“डोबू जाति की कौन सी चीज तुम्हारे पास है?” बबूसा ने पुनः पूछा।

किसी अजनबी के मुंह से मुम्बई में डोबू जाति के बारे में सुनकर धरा कांप उठी।

“ड-डोबू जाति...मेरे पास कुछ नहीं है।” धरा जल्दी-से बोली –“मैं तो...”

“सच कहो। मुझे गंध आ चुकी है कि तुम्हारे पास डोबू जाति की कोई चीज है। मुझे हैरानी है कि डोबू जाति की कोई चीज किसी बाहरी इंसान के पास कैसे पहुंच गई? बताओ क्या है तुम्हारे पास?”

धरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और कठिनता से कह उठी।

“त-तुम कौन हो?”

“बबूसा।”

सुनते ही धरा सिर से पांव तक कांप उठी। चेहरा पीला पड़ गया।

“बबूसा।” उसके होंठों से निकला।

उसका डरना बबूसा से छिपा नहीं रहा। वो बेहद नरम लहजे में बोला।

“लगता है जैसे तुमने मेरा नाम सुन रखा है। परंतु मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं। मैं...”

“त-तुम तो डोबू जाति छोड़ चुके हो।” धरा ने डरे स्वर में कहा।

“हां।” बबूसा मुस्कराया –“तुम मेरे बारे में काफी कुछ जानती हो। मैंने गंध से पहचाना कि डोबू जाति की कोई चीज मेरे पास ही कहीं मौजूद है। तभी गंध तेज हो गई और मैंने टैक्सी को पास में जाते देखा तो समझ गया कि इसी टैक्सी में वो चीज है। बोलो क्या है तुम्हारे पास?”

धरा कुछ पल बबूसा को देखती रही।

“मुझसे डरो मत। मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा। दिखाओ मुझे क्या है तुम्हारे पास?”

सहमी-सी धरा ने, सूखे होंठों पर जीभ फेरते लिफाफा उसकी तरफ बढ़ा दिया।

बबूसा ने फौरन लिफाफा खोलकर देखा। भीतर निगाह पड़ी तो बुरी तरह चौंका।

“य-ये तुम्हारे पास...?” बबूसा के होंठों से निकला।

धरा और भी डर गई।

“किसने दिया ये तुम्हें?”

“म-मैं लाई हूं। ड-डोबू जाति से।” धरा ने भय से खरखराते स्वर में कहा।

“तुम-तुम डोबू जाति के भीतर गई। पहाड़ों के भीतर?” बबूसा के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

धरा ने सहमति से सिर हिलाया।

“गई और वहां से बाहर आ गई। किसी ने तुम्हें देखा नहीं?” बबूसा हैरान था।

“देखा। परंतु उस रात पूरा चांद निकला हुआ था और डोबू जाति के सब लोग पेट के बल लेटे हुए...”

“समझ गया। समझ गया।” बबूसा के होंठ भिंच गए –“परंतु ये तुमने ठीक नहीं किया। तुम डोबू जाति को नहीं जानती। वो तुम्हें मारे बिना चैन नहीं लेंगे। अब तक तो वो मुम्बई भी पहुंच गए होंगे। तुम्हारी जान नहीं बच सकती, परंतु मैं तुम्हें ज्यादा देर जिंदा रख सकता हूं। तुम मेरे साथ आओ।”

“क-कहां?” धरा का शरीर डर से कांपने लगा था।

“मुझ पर भरोसा रखो। मैं तुम्हें ज्यादा दिनों तक, उनसे बचाकर रख सकता हूं। जिस तरह मैंने गंध पाई है, उस तरह वो भी गंध पाकर तुम तक पहुंच जाएंगे। मेरे साथ चलो तुम।”

धरा घबराई-सी तुरंत टैक्सी से बाहर आ गई।

बबूसा, धरा को होटल के कमरे में ले आया।

धरा के चेहरे पर घबराहट और परेशानी नाच रही थी। बबूसा ने उसे पानी पिलाकर पूछा।

“कुछ खाओगी?”

“भूख तो है पर खाने का मन नहीं है।” धरा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

“ठीक है। बाद में खा लेना। अब मुझे सब कुछ बताओ कि तुम डोबू जाति तक कैसे पहुंची और क्या हुआ?”

धरा व्याकुल हो उठी। बबूसा को देखा।

“तुम किसी भी बात की चिंता मत करो। मेरे पास तुम ज्यादा देर तक सुरक्षित रहोगी।”

“बहुत ज्यादा देर तक? मैं समझी नहीं?” धरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“डोबू जाति वाले तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे। परंतु मैं तुम्हें उनसे ज्यादा देर तक बचा सकता हूं।” बबूसा ने कहा।

“ज्यादा देर तक, मतलब कि तुम मुझे उनसे बचाए नहीं रख सकते?”

“ज्यादा देर तक बचाए नहीं रख सकता।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा –“पहले मुझे बताओ कि तुमने क्या किया?”

धरा ने सारी बात सच-सच बता दी।

बबूसा ने सब कुछ सुना और गम्भीर हो गया।

“उन्होंने मेरी मां को मार दिया।” धरा की आंखों से आंसू निकल गए –“मेरी मां ने उनका क्या बिगाड़ा...।”

“वो तब तक सबको मारते रहेंगे जब तक कि तुम्हें न मार दें।” बबूसा बोला।

“सबको मारने का क्या मतलब?”

“जो तुम्हारी पहचान के हैं। तुम्हारे करीब हैं। वो ऐसा ही करते हैं अपने शिकार को वो बुरी तरह डरा देते हैं कि घबराहट में शिकार सामने आ जाए। तुम उनके ठिकाने के भीतर झांक आई हो। ये बात किसी को भी पसंद नहीं आएगी। मैंने नहीं सुना कभी कि कोई बाहरी व्यक्ति वहां पहुंचा हो और जिंदा बचा हो। ऐसे लोगों को वो तुरंत मार देते हैं। अगर वो रात पूरे चांद की रात न होती तो उन्होंने तुम्हें उसी वक्त मार देना था। लेकिन उस वक्त वो रानी ताशा के आदर में खुद को समर्पित किए हुए थे और उठ नहीं सकते थे।”

“रानी ताशा कौन?”

बबूसा ने धरा को देखा। कहा कुछ नहीं।

“रानी ताशा कौन है?”

“इस बात से तुम्हारा कोई मतलब नहीं कि रानी ताशा कौन है।” बबूसा बोला –“तुम्हें अपने बारे में चिंता करनी चाहिए। डोबू जाति के योद्धा तुम्हारी जान लेने के लिए मुम्बई पहुंच चुके हैं। ये भी जान लो कि वो कभी भी असफल नहीं होते। सफल होकर ही वापस लौटते हैं। मतलब कि वो तुम्हारी जान लेकर ही रहेंगे।”

धरा का चेहरा भय से पीला पड़ गया।

“तुम मुझे बचा लोगे न?”

“ज्यादा देर तक नहीं...।”

“ज्यादा देर तक क्यों नहीं?”

“वो ज्यादा हैं। उनकी संख्या ज्यादा है। मैं तुम्हें कितना भी बचाने की कोशिश कर लूं, परंतु उनका कोई न कोई वार तुम पर चल ही जाएगा। वार करने में वो माहिर हैं। बात सिर्फ मेरी होती तो मैं खुद को बचा लेता, परंतु हर पल तुम्हारा ध्यान भी तो नहीं रख सकता। उनका कोई न कोई वार चल जाएगा तुम पर।”

“मैं मरना नहीं चाहती।”

“कोशिश करूंगा कि उनसे तुम्हें ज्यादा देर तक बचा सकूं।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“सच बात तो ये है कि इसमें मैं सारी गलती तुम्हारी ही मानता हूं। डोबू जाति के घर तक तुम्हें जाना ही नहीं चाहिए था। डोबू जाति की दुनिया में तुम्हारे दखल की गुंजाइश थी ही नहीं। सारी गलती ही तुम्हारी है।”

“मैं नौकरी ही ऐसी करती हूं कि ऐसी जगहों पर मुझे जाना पड़ता है।” धरा थके स्वर में बोली।

“जिसकी नौकरी करती हो, उससे कहो कि डोबू जाति के योद्धाओं से तुम्हें बचा लें।”

“मैं सरकारी नौकरी करती...”

“तो सरकार से कहो तुम्हें बचा ले।” बबूसा मुस्करा पड़ा।

धरा बबूसा को देखने लगी।

“तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। तुम वहां जाकर बहुत बड़ी गलती कर चुकी हो। डोबू जाति को ये पसंद नहीं कि तुम उनके बारे में दूसरे लोगों को बताओ। वो गुमनाम रहना चाहते हैं। यहां की दुनिया में वो दखल नहीं देते और यहां के लोगों का दखल चाहते भी नहीं अपने में । तुमने उनके भीतर झांका है तो अब तुम्हारी सजा मौत है।”

“मैंने तो सुना है कि बबूसा डोबू जाति का सबसे खतरनाक आदमी है।” धरा बोली।

“तो?”

“तुम उन्हें मार सकते हो, जब वो मुझे मारने आएं। मुझे बचा सकते हो।”

“जरूर बचाऊंगा। उन्हें मार दूंगा। परंतु उनकी संख्या ज्यादा है। वो मरते रहेंगे आते रहें और कभी भी उनका सफल वार तुम पर हो जाएगा। वो अकेले शिकार की तरफ नहीं बढ़ते। झुंड बनाकर शिकार को घेरते हैं। अब वो मुम्बई दस-पांच की संख्या में मौजूद नहीं होंगे। बल्कि उनकी संख्या ज्यादा होती जा रही होगी। तुम तक पहुंचने में उन्हें जितनी देर हो रही है उतने ही योद्धा डोबू जाति से मुम्बई पहुंच रहे होंगे। तुम्हें अभी उनकी ताकत का अंदाजा नहीं।”

“तुम्हारा मतलब कि वो तुमसे ज्यादा ताकतवर हैं।”

“बेशक। उनकी संख्या ज्यादा है तो वो मुझसे ज्यादा ताकतवर हो जाते है। परंतु बात मेरी होती तो वो मुझसे कभी भी मुकाबला नहीं कर सकते। उन्हें शिकस्त देने का तरीका मुझे आता है। क्योंकि मैं भी वहीं का हूं और वो भी वहीं के हैं। वो मेरे से डरते हैं परंतु जब उनका समूह बन जाता है तो मैं कमजोर हो जाता हूं।”

“तुमने जब डोबू जाति से विद्रोह किया मैंने सुना था कि वो चाहकर भी तुम्हें नहीं रोक सके थे।”

“ठीक सुना।”

“तब भी तो वो समूह में थे तुम्हें रोक सकते थे।”

“अवश्य रोक सकते थे। कैद कर सकते थे। मुझे रोकना चाहा तो मैंने सात-आठ योद्धाओं की जान ले ली। अगर वो समूह में मेरे सामने आ जाते और मुझे पकड़ते। मुझ पर काबू पाते तो मैं वहां ढेरों लाशें बिछा देता। ये बात डोबू जाति वाले भी जानते थे। डोबू जाति वाले इस तरह अपने योद्धाओं को खोना नहीं चाहते थे। क्योंकि एक-एक योद्धा के तैयार होने में योद्धा का आधा जीवन लग जाता है। योद्धा बनाने के पीछे बहुत लोगों की अथाह मेहनत होती है। फिर मुझे चले आने देने का मतलब था कि मैं रानी ताशा की तरफ से भेजा गया हूं और मेरी जिम्मेवारी रानी ताशा की है। ऐसे में...।”

“रानी ताशा कौन है?”

“उसके बारे में मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा।”

“क्यों?”

“सवाल मत पूछो ये।”

“रानी ताशा तुम्हारी क्या लगती है?”

“उसके सामने मेरी स्थिति नौकरों जैसी है।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा।

“मतलब कि तुम रानी ताशा का हुक्म मानते हो?” धरा ने पूछा।

“मानता था, अब नहीं। डोबू जाति से मेरा विद्रोह, रानी ताशा के लिए ही था। डोबू जाति से मेरा खास वास्ता नहीं है।”

“मैं समझी नहीं।”

बबूसा चुप रहा।

“मुझे बताओ रानी ताशा के बारे में। मैं कुछ समझी नहीं कि...।”

“इस बारे में जानने की चेष्टा मत करो। मैं बताने वाला नहीं।”

धरा कुछ पल बबूसा को देखती रही फिर बोली।

“तुम डोबू जाति से बाहर क्यों निकले, क्या बात हो गई जो...।”

“तुम सवाल बहुत पूछती हो।”

“मैं सब कुछ जान लेना चाहती...।”

“तुम्हें अपनी जान की फिक्र करनी चाहिए। डोबू जाति के योद्धा तुम्हारी मां को मार चुके हैं और अब तुम्हें मारेंगे। वो लोग कभी भी तुम तक पहुंच सकते हैं। तुम्हें अपनी जान बचाने की सोचनी चाहिए।”

धरा के चेहरे पर घबराहट उभरी। सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“अब हमें कुछ काम की बात कर लेनी चाहिए।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“काम की बात?”

“हां। मैं तुम्हें डोबू जाति के योद्धाओं से बचाऊंगा। क्योंकि मैं उनसे डरता नहीं हूं। मैं नाराज भी हूं उनसे। इसलिए जो भी तुम्हारे को मारने आएगा मैं उसका मुकाबला करूंगा। ऐसा करके मैं तुम पर कोई एहसान नहीं करूंगा। परंतु इसके बदले में मैं तुमसे कोई सहायता चाहता हूं।” बबूसा ने कहा।

“कैसी सहायता?”

“मुझे एक आदमी की तलाश है।”

“उसका पता क्या है?”

“वो मैं नहीं जानता कि...।”

“फिर तो कठिन बात है, उसे तलाश कर पाना। तुम्हारे पास उसका पता भी नहीं है।” धरा ने कहा।

“उसका नाम देवराज चौहान है और वो चोर है।”

“चोर है?”

“हां। बड़ी-बड़ी चोरियां करता है वो।”

“ये नाम तो मैंने कभी भी नहीं सुना।” धरा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“लोगों से पूछो पता चल जाएगा।” बबूसा बोला।

“एक चोर से तुम्हें क्या काम?”

“मेरा अपना मतलब है उससे।”

“उसका फोन नम्बर भी नहीं है?”

“नहीं।”

“चोर के बारे में तो पुलिस ही बता सकती है।” धरा ने बबूसा को देखा –“इस बारे में पुलिस से पूछना पड़ेगा।”

“तुम्हारा काम है तुम जानो कि पुलिस से कैसे पूछना है। तुम मेरा ये काम करो, मैं तुम्हें डोबू जाति के योद्धाओं से बचाऊंगा।”

धरा गम्भीर निगाहों से बबूसा को देखने लगी।

“क्या सोच रही हो?” बबूसा ने पूछा।

“अनजाने में मैंने कितनी बड़ी मुसीबत मोल ले ली।”

“इस मुसीबत से तुम कभी भी बाहर नहीं आ सकोगी। मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हें ज्यादा देर तक बचाए रख सकूं।”

धरा बेचैन हो उठी।

“क्या अब तुम कोई काम करना चाहती हो?”

“हां। कैमरे से तस्वीरों के प्रिंट निकलवाने हैं फोटोग्राफर की दुकान पर जाकर।”

“मैं हर पल तुम्हारे साथ रहूंगा और तुमने मेरे पास रहना है। तभी तुम बची रह सकती हो, लेकिन इस बात की गारंटी तब भी नहीं है। डोबू जाति वाले दूर से ही अपने शिकार पर जानलेवा वार करने में माहिर हैं।”

“मुझे भूख लगी है।” परा सोच भरे स्वर में कह उठी।

“अभी खाना मंगवा देता हूं।”

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