विजय बेदी, सोमाथ, रानी ताशा, सोमारा और अन्य आदमी दो टैक्सियों पर देवराज चौहान के बंगले के बाहर पहुंचे। बेदी ने टैक्सियों का किराया देकर उन्हें चलता किया और बोला।
“देवराज चौहान कहो, राजा देव कहो, कुछ भी कहो।” बेदी ने रानी ताशा से कहा-“वो यहीं रहता है। जाओ और उससे मिल लो। मेरा बाकी का पंद्रह लाख मुझे दो और मेरी नमस्ते लो। बहुत देर से इंतजार कर रहा हूं नोटों का।”
“तुम्हें यकीन है कि राजा देव यहीं पर मिलेंगे।” रानी ताशा ने चमकती आंखों से बेदी को देखा।
“हां-हां पूरा यकीन है तभी तो बाकी का पंद्रह लाख मांग रहा हूं। पहले कभी मांगा है क्या?” बेदी ने जल्दी से कहा।
“तुम हमारे साथ भीतर चलो।” रानी ताशा ने फैसले वाले स्वर में कहा।
“क्यों? मैंने तो पहले ही कहा था कि मैं भीतर नहीं...”
“तुम्हें भीतर चलना होगा। अगर ये जगह राजा देव की न हुई तो...”
“देवराज चौहान यहीं रहता...” बेदी ने कहना चाहा।
सोमाथ ने विजय बेदी की कलाई थाम ली।
बेदी को लगा जैसे कोई लोहे का शिकंजा उससे लिपट गया हो।
“ये क्या कर रहे...”
“तुम हमारे साथ भीतर चलोगे।” सोमाथ ने शांत स्वर में कहा।
“वो बहुत बड़ा डकैती मास्टर है, मेरी जान ले लेगा कि मैं तुम लोगों को यहां तक लाया...”
“कुछ नहीं होगा-आओ।” सोमाथ, बेदी की कलाई थामे बंगले के गेट की तरफ बढ़ गया।
गेट से सबने भीतर प्रवेश किया और सदर दरवाजे की तरफ बढ़ गए।
“सोमारा।” रानी ताशा का स्वर खुशी से कांप रहा था-“मैं-मैं राजा देव को फिर से सामने देखने वाली हूं।”
“हां ताशा।” सोमारा मुस्कराई-“और मैं बबूसा को फिर से पा लूंगी। इस जन्म में अभी तक उसे देख नहीं सकी।”
“ओह।” एकाएक रानी ताशा बोली-“अगर राजा देव भीतर है तो मुझे एहसास क्यों नहीं हुआ कि वो मेरे करीब है।”
“क्या एहसास होना जरूरी है ताशा?”
“हां सोमारा। महापंडित ने कहा था कि राजा देव के करीब होने का एहसास मुझे हमेशा होता रहेगा, जब वो करीब ही कहीं होंगे। होटल में मुझे राजा देव के करीब होने का एहसास हुआ था, परंतु वो वहां नहीं दिखे और यहां पर मुझे एहसास जैसी कोई बात नहीं हो पा रही। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि ये सब क्या हो रहा है।”
“क्या पता हम गलत जगह आ पहुंचे हों। राजा देव न रहते हों।” सोमारा ने कहा।
वे सब बंगले के मुख्य द्वार पर पहुंचे। दरवाजा खुला था। सब भीतर प्रवेश कर गए। तभी रानी ताशा ठिठक गई। सोमारा, सोमाथ, बाकी सब भी रुक गए। विजय बेदी का गला खुश्क हो रहा था। सोमाथ उसकी कलाई छोड़ चुका था। सामने ही नगीना, जगमोहन और धरा मौजूद थे।
सब एक-दूसरे को देखते रह गए।
रानी ताशा, सोमारा, सोमाथ और विजय बेदी की निगाह जगमोहन पर टिकी थी, क्योंकि जगमोहन कल होटल का कर्मचारी बनकर, उनके कमरे में बाथरूम देखने के बहाने आया था।
“तुम?” विजय बेदी ने कहा-“तुम तो होटल वाले हो। कल हमारे कमरे में आए थे।”
जगमोहन खामोश रहा।
“ये होटल का कर्मचारी नहीं राजा देव का साथी है।” रानी ताशा कह उठी-“बहाने से ये कल हमारे कमरे में आया था।”
“ठीक कहा तुमने।” जगमोहन बोला-“मैं देवराज चौहान का साथी जगमोहन हूं।”
रानी ताशा आगे बढ़ी। धरा के पास पहुंची। बोली।
“तो तुम हो देवराज चौहान की पत्नी?”
धरा ने, नगीना की तरफ इशारा कर दिया।
रानी ताशा, नगीना के पास जा पहुंची।
नगीना की एकटक निगाह रानी ताशा के बेपनाह खूबसूरत चेहरे पर थी।
“तो तुम नगीना हो। राजा देव की इस जन्म की पत्नी।” रानी ताशा ने कड़वी मुस्कान से कहा।
“हां। देवराज चौहान सिर्फ मेरा है।” नगीना ने तीखे स्वर में कहा-“तुम मेरे पति पर गलत नजरें डाल रही हो।”
रानी ताशा हौले-से हंस पड़ी। बोली।
“गलत नजरें? बेवकूफ राजा देव तो कब से मेरे पति हैं। पूरा सदूर ग्रह इस बात को जानता है कि मैं राजा देव की रानी हूं और ग्रह की सबसे खूबसूरत औरत हूं। मेरे गलती की वजह से राजा देव सदूर ग्रह से निकलकर पृथ्वी ग्रह पर आ पहुंचे और तुम्हें अपनी पत्नी बना लिया। क्योंकि वो अकेले पड़ गए थे। मैं उनके पास नहीं थी। उन्हें कोई साथ तो चाहिए ही था, तुम्हारा साथ ही सही। तुम राजा देव के लिए एक खिलौने से ज्यादा अहमियत नहीं रखती। अब मैं आ गई हूं तो सब ठीक हो जाएगा। तुमने मेरी गैरमौजूदगी में राजा देव का दिल बहलाया, उसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करती हूं। चाहो तो मेरे साथ सदूर ग्रह पर चलो। वहां तुम्हें इनाम के रूप में शानदार जिंदगी दूंगी। जितने मर्द चाहिए होंगे, उतने मिलेंगे, हर रात नया मर्द मिल सकेगा। ये सब तुम्हारा इनाम होगा कि मेरे पास में न होने पर तुमने राजा देव का पूरा ध्यान रखा। सदूर ग्रह पर मैं तुम्हारा दिल खोलकर स्वागत करूंगी।”
“तुम कमीनी औरत...” जगमोहन ने कहना चाहा।
परंतु नगीना फौरन जगमोहन से कह उठी।
“तुम खामोश रहो। ये मेरे से बात कर रही है।”
जगमोहन दांत भींचकर रह गया।
धरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। वो सोमाथ और बाकी तीन लोगों को बार-बार देख रही थी।
“मैं तुम्हें इससे बढ़िया इनाम दे सकती हूं।” नगीना ने कठोर स्वर में कहा।
“अच्छा।” रानी ताशा के चेहरे पर व्यंग्य आ गया।
“मैं तुम्हें सारे पृथ्वी ग्रह के मर्द देती हूं। देवराज चौहान के अलावा सारे मर्द तुम्हारे। तुम तो मुझे हर रात में नया मर्द देने को कह रही हो, जबकि तुम्हारे पास हर वक्त नया मर्द हाजिर रहेगा।”
रानी ताशा के चेहरे पर कड़वी मुस्कान उभरी।
“मुझे सिर्फ राजा देव से मतलब है। मैं राजा देव को वापस ले जाने के लिए सदूर ग्रह से पोपा पर सवार होकर इस पृथ्वी ग्रह पर पहुंची हूं। मैं तो समझती थी कि सिर्फ हमारे ग्रह पर ही जीवन है। परंतु महापंडित ने बताया कि उसे मशीनों से पता चला है कि एक और ग्रह पर जीवन है। उस ग्रह के लोग उसे पृथ्वी ग्रह कहते हैं और राजा देव किसी तरह पृथ्वी ग्रह पर जा पहुंचे हैं और यहां के जन्म चक्र में उलझ चुके हैं। मुझे राजा देव वापस चाहिए। वो सिर्फ मेरे हैं। तुमसे पहले के वो मेरे थे। तुम्हारा उन पर कोई अधिकार नहीं है।”
“मुझे नहीं मालूम तुम्हारी बातें कहां तक सच हैं। परंतु इस जन्म में वो मेरे पति हैं और मेरे ही रहेंगे। तुम उन्हें उनकी मर्जी के बिना नहीं ले जा सकतीं। वो स्वयं तुम्हारे साथ जाना चाहें तो मुझे एतराज नहीं होगा।” नगीना कठोर स्वर में बोली।
“स्वयं?” रानी ताशा के चेहरे की मुस्कान गहरी हो गई।
“हाँ।”
“राजा देव, मेरे दीवाने रहे हैं। वो मुझे दिल से चाहते हैं।” एकाएक रानी ताशा की आंखें भर्रा उठीं। आंसू गालों पर आ पहुंचे-“राजा देव मेरे बिना नहीं रह सकते। इतना लम्बा वक्त उन्होंने मेरे बिना कैसे बिताया होगा। कितना तड़पे होंगे वो मेरी याद में। मैं भी बहुत तड़पी हूं उनके बिना, मैं जाने कैसे...”
“देवराज चौहान को कभी तुम्हारी याद नहीं आई।” नगीना बोली।
रानी ताशा की नजरें नगीना पर जा टिकीं।
“वो सिर्फ मुझे प्यार करते हैं। वो किसी रानी ताशा को नहीं जानते।”
“तुम सही कहती हो। पृथ्वी के जन्मचक्र में फंसकर वो सदूर ग्रह को भूल बैठे हैं। पर उन्हें सब कुछ याद आ जाएगा। वो मेरा चेहरा देखेंगे तो उन्हें सब याद आना शुरू हो जाएगा। महापंडित ने ऐसा ही कहा था। तुम देखना वो मुझे कितना चाहते हैं। मेरे बिना तो उन्हें चैन ही नहीं मिलता। सदूर ग्रह के दिन कितने सुहावने थे, हम दोनों...”
“मुझे अपनी कथा मत सुनाओ।” नगीना का स्वर सख्त था।
रानी ताशा ने नगीना को घूरा फिर बोली।
“राजा देव कहां हैं?”
“वो यहां नहीं हैं।
“बबूसा कहां है?” सोमारा ने पूछा।
“वो दोनों बाहर गए हैं।”
“फिर तो हम उनके लौटने का इंतजार कर सकते हैं ताशा।” सोमारा ने कहा।
“अवश्य। आए हैं तो राजा देव को लेकर ही जाएंगे सोमारा।” रानी ताशा ने दृढ़ स्वर में कहा।
“वो वापस नहीं लौटेंगे।” नगीना मुस्कराई-“क्योंकि वो जानते हैं कि इस वक्त तुम यहां हो।”
रानी ताशा की आंखें सिकुड़ीं।
“सोमाथ।” रानी ताशा ने कहा-“इस जगह को देखो कहीं राजा देव और बबूसा यहीं न हों।”
सोमाथ ने अपने साथ, अपने तीनों साथियों से कहा कि वो पूरा बंगला देखें और खुद भी बंगले के भीतर की तरफ बढ़ गया। जगमोहन कठोर निगाहों से उन चारों को देख रहा था। वो खुद पर काबू पाए हुए था कि ये लोग यहां से चले जाएं। परंतु रानी ताशा की बात सुनकर पता चल गया कि ये जाने वाले नहीं। तभी धरा जगमोहन के पास आ पहुंची। जगमोहन ने धरा पर निगाह मारी फिर रानी ताशा को देखने लगा। धरा धीमे स्वर में बोली।
“ये लोग यहीं रहे तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी।'
जवाब में जगमोहन खामोश रहा।
उधर रानी ताशा नगीना से कह रही थी।
“राजा देव और बबूसा को कैसे पता चल गया कि हम यहां आने वाले हैं।”
“तुम क्या समझती हो कि तुम्हें तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिल जाएगा?”
नगीना तीखे लहजे में बोली।
“तुम्हें भी पहले पता था कि हम आ रहे हैं।”
“पता था।”
“कैसे पता चला?”
जवाब में नगीना मुस्कराई।
“मेरे देव को मेरे हवाले कर दो।” रानी ताशा का स्वर कठोर हो
गया-“वरना इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। राजा देव सिर्फ मेरे हैं और मेरे ही रहेंगे। मैं उन्हें सदूर ग्रह पर वापस ले जाने के लिए यहां आई हूं।”
“वो मेरा पति देवराज चौहान है।” नगीना के दांत भिंच गए-“तुम्हारा कुछ नहीं लगता।”
“पागल औरत।” रानी ताशा फुंफकार उठी-“तू मेरे हाथों से मरेगी।”
“तेरे में इतना दम नहीं कि मेरी जान ले सके।” नगीना के दांत भिंच गए।
रानी ताशा कठोर चेहरा लिए तेजी से नगीना की तरफ बढ़ी।
नगीना फौरन सतर्क हो गई।
“ताशा, ये क्या कर रही हो?” सोमारा कह उठी।
“रुक जाओ...” जगमोहन तेजी से आगे को लपका।
तभी रानी ताशा उछली, उसकी एक ठोकर नगीना की कमर में पड़ी, दूसरी टांग से रानी ताशा ने हवा में रहकर ही नगीना को उछाला और अपनी टांगों पर आ खड़ी हुई। सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि नगीना को सोचने-समझने का भी मौका नहीं मिला। जब होश आया तो खुद को आठ कदम दूर गिरे पाया। आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाच रहे थे। नगीना जल्दी से उठी और चेहरे पर दरिंदगी नजर आने लगी थी। कमर में अभी भी दर्द हो रहा था। वो तेजी से रानी ताशा की तरफ लपकी।
रानी ताशा होंठ भींचे नगीना को देख रही थी।
जगमोहन चार कदम पहले ही ठिठक चुका था। रानी ताशा के पास पहुंचते ही नगीना चीते की भांति रानी ताशा पर झपटी कि रानी ताशा ने अपने दोनों हाथ उठाकर नगीना के हवा में आते शरीर को थामा और पीछे फेंक दिया। इस बार नगीना चार कदम दूर जा गिरी। शरीर में कई जगह दर्द की लहरें उठीं। लेकिन फुर्ती से उछलकर खड़ी हो गई। कमर में अभी भी तीव्र दर्द हो रहा था।
“रुक जाओ।” जगमोहन आगे बढ़ता बोला और जेब से साइलेंसर लगी रिवॉल्वर निकालकर रानी ताशा के पेट से लगा दी।
परंतु रानी ताशा की निगाह नगीना पर ही टिकी थी।
“लड़ाई के सारे दांव-पेंच मुझे राजा देव ने ही सिखाए थे। वो चाहते थे कि उनकी ताशा हर काम में आगे रहे। वो मुझे बहुत प्यार करते थे।” रानी ताशा का स्वर भर्रा उठा-“मैं उनकी जान हुआ करती थी। मैं चाहती तो एक ही वार में तेरा जीवन समाप्त कर सकती थी परंतु तूने राजा देव की सेवा की है। इसलिए मैंने तेरा ज्यादा नुकसान नहीं किया।”
“मैं चाहती हूं तू फिर मैदान में आ।” नगीना ने कठोर स्वर में कहा-“जगमोहन पीछे हट जाओ।”
“नहीं भाभी।” जगमोहन का स्वर सख्त हो गया-“वहीं रहो, आगे मत बढ़ना।”
नगीना वहीं खड़ी रही।
रानी ताशा के पेट से रिवॉल्वर लगाए हुए था जगमोहन।
धरा अपनी जगह पर सूखी-सी हालत में खड़ी थी।
“देवराज चौहान पर तेरा कोई हक नहीं। ये जान ले तू।” नगीना गुर्रा उठी।
“अब की बार तू मेरे हाथ लगी तो मैं तेरी जान ले लूंगी।” रानी ताशा ने कठोर स्वर में कहा।
“बहुत जल्दी तुझे इस बात का जवाब मिल जाएगा।” नगीना ने दांत पीसकर कहा।
रानी ताशा ने जगमोहन को देखा फिर पेट में लगी रिवॉल्वर को।
“ये क्या है?” रानी ताशा ने जगमोहन से पूछा।
“रिवॉल्वर।” जगमोहन सख्त स्वर में बोला-“अबकी बार तुमने कोई हरकत की तो मारी जाओगी।”
“मैं मारी जाऊंगी।” रानी ताशा हंसी-“मैं नहीं मर सकती। राजा देव से मेरा मिलन होकर ही रहेगा। महापंडित ने कहा है कि मैं राजा देव से जरूर मिलूंगी। उसका कहा कभी भी गलत नहीं होता।”
“मैं उसका कहा गलत कर दूंगा।” जगमोहन गुर्राया-“जुबान बंद रखो।”
“तुम रानी ताशा से गलत भाषा में बात कर रहे हो।” रानी ताशा के माथे पर बल उभर आए।
“जुबान बंद रखो। वरना...”
तभी सोमाथ का स्वर वहां गूंजा।
“ये क्या कर रहे हो तुम?”
जगमोहन की निगाह पंद्रह कदम दूर खड़े सोमाथ पर गई।
सोमाथ आंखें सिकोड़े जगमोहन को देख रहा था।
“ये मेरी जान लेने की बात कह रहा है सोमाथ।” रानी ताशा मुस्कराकर बोली।
सुनते ही सोमाथ तेजी से आगे बढ़ा। जगमोहन ने रिवॉल्वर, रानी ताशा के पेट से हटाई और सोमाथ की तरफ करके फायर कर दिया। नाल पर साइलेंसर चढ़ा होने के कारण, गोली चलने की मध्यम-सी आवाज उभरी।
अगले ही पल सोमाथ ठिठक गया।
उसकी छाती पर गोली धंसने का छेद नजर आने लगा। सोमाथ ने सिर नीचे करके छाती पर नजर आ रहे छेद को देखा। फिर एकाएक उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे, जैसे किसी कारणवश बहुत जोर लगा रहा हो वो।
रानी ताशा ठठाकर हंस पड़ी।
“तुमने ऐसा करके सोमाथ की जान लेने की कोशिश की।” रानी ताशा हंसते हुए बोली-“बेवकूफ हो तुम। सोमाथ कभी नहीं मर सकता। महापंडित ने इसे मेरी रक्षा के लिए बनाया है। ये हमेशा जीवित रहेगा।”
जगमोहन की निगाह सोमाथ पर टिकी थी जो कि जोर लगाने की वजह से, वो कुछ फूल-सा गया लग रहा था। जगमोहन ने जो खास बात नोट की, वो ये थी कि जहां गोली धंसी थी, वहां से अभी तक खून नहीं निकला था। तभी गोली के बने छेद से कुछ बाहर गिरते देखा उसने। ‘टक’ की आवाज आई।
जगमोहन ने देखा, वो रिवॉल्वर की गोली थी जो छेद से निकलकर बाहर आ गिरी थी। जगमोहन का चेहरा हैरानी से भर गया। फौरन ही उसे दूसरी हैरानी का सामना करना पड़ा। उसके देखते-ही-देखते छाती का छेद भर गया। वहां की जगह बिल्कुल सामान्य हो गई थी। सोमाथ की गोली से जली कमीज के छेद से जगमोहन स्पष्ट देख पा रहा था। एकाएक जगमोहन को भारी खतरे का एहसास होने लगा। सोमाथ उसे ताकत का अजूबा लगा। जगमोहन ने उसी पल रिवॉल्वर वाला हाथ उठाया और एक के बाद एक, सोमाथ के चेहरे पर फायर करता चला गया।
साइलेंसर से गोलियों चलने की मध्यम-सी आवाज उभरती रही।
छ: गोलियां चलीं। पांच सोमाथ के चेहरे पर लगीं। नाक पर, माथे पर, दो गोलियां एक तरफ के गाल पर, पांचवीं गोली गले पर लगी। जगमोहन को पूरी आशा थी कि सोमाथ अब नहीं बच सकेगा।”
रानी ताशा पुनः हंस पड़ी।
“महापंडित का कारनामा है सोमाथ।” रानी ताशा पुनः हंस पड़ी-“जब तक सोमाथ मेरे साथ है, मेरा कोई कुछ नहीं बुरा कर सकता। सोमाथ की ताकत का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। सोमाथ अमर है।”
तब तक बाकी के तीनों भी बंगला छानकर आ गए थे।
“रानी ताशा। इस बंगले में और कोई नहीं है।” एक ने कहा।
दूसरा जोबिना निकालकर रानी ताशा से बोला।
“इसे मार दें रानी ताशा?”
“नहीं। जोबिना वापस रख लो।” रानी ताशा ने कहा।
उसने जोबिना वापस रख लिया।
तभी सोमाथ के चेहरे से एक-एक करके गोलियां बाहर गिरने लगीं।
जगमोहन ने गिना कि पांचों गोलियां बाहर आ गिरी थीं फिर बीतते पलों के साथ सोमाथ का बिगड़ चुका चेहरा सुधरने लगा। मात्र एक मिनट लगा कि सोमाथ पूरी तरह से पहले जैसा सामान्य हो गया। कहीं कोई निशान, जख्म नहीं था।
जगमोहन ठगा-सा खड़ा, सोमाथ को देखता रहा।
“देखी, मेरी ताकत।” रानी ताशा सख्त स्वर में कह उठी-“तुम लोग हमारा मुकाबला नहीं कर सकते। तुम सबके लिए सोमाथ ही काफी है। हमसे न ही उलझो तो बेहतर होगा। हमारे रास्ते में आने का मतलब है मौत।”
नगीना भी ये सब देखकर स्तब्ध खड़ी थी
धरा की तो जैसे जान ही सूख चुकी थी।
उसी पल सोमाथ, जगमोहन की तरफ बढ़ने लगा। ये देखकर सोमारा ने जल्दी से रानी ताशा के पास पहुंचकर कान में कुछ कहा।
“रुक जाओ सोमाथ।” रानी ताशा कह उठी-“तुम इसे कुछ नहीं कहोगे।”
सोमाथ वहीं रुक गया।
“सोमारा का कहना सही है कि हमें छोटी-छोटी बातों में नहीं उलझना है। हमारा मकसद राजा देव को हासिल करना है और इन्हें नुकसान पहुंचाकर, मैं राजा देव को दुखी नहीं करना चाहती। परंतु इसका ये मतलब भी नहीं कि हम इनकी ऐसी हरकतें सहते रहेंगे। दोबारा इन्होंने ऐसा कुछ किया तो हमें सख्त होना पड़ेगा।”
जगमोहन अपने पर काबू पाने की चेष्टा कर रहा था। ऐसा उसने पहले कभी नहीं देखा था कि सामने वाले के शरीर में गोलियां धंसे और निकले फिर वो भीतर-ही-भीतर जोर लगाकर गोलियों को बाहर निकाल फेंके और टूट-फूट चुका शरीर फिर से सामान्य हो जाए। जगमोहन के लिए हैरत की बात थी। उसे बबूसा की कही बात याद आ गई कि सोमाथ साधारण इंसानों की तरह नहीं है। महापंडित ने उसका निर्माण किया है। उसे बहुत ताकतवर बनाया है।
जगमोहन समझ चुका था कि ये रोबॉट की तरह का कमाल है कोई, पर रोबॉट से कहीं बेहतर है और अपनी रिपेयर ये पलों में कर लेता है अगर इंसान जैसा इसमें कुछ होता तो खून अवश्य निकलता गोली लगने पर। ये भी स्पष्ट हो गया था कि सोमाथ का मुकाबला नहीं किया जा सकता। बबूसा ने ये बात तो सही कही थी।
रानी ताशा ने जगमोहन से कहा।
“राजा देव कहां हैं?”
“मैं नहीं जानता।” जगमोहन बोला।
“ये कैसे सम्भव है कि तुम्हें राजा देव की जानकारी न हो। तुम राजा देव के खास लगते हो।”
“मुझे कुछ नहीं पता कि देवराज चौहान कहां है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
रानी ताशा फौरन नगीना की तरफ पलटी।
“तुम भी कुछ ऐसा ही जवाब दोगी।”
“देवराज चौहान को बबूसा लेकर गया है।” नगीना ने सख्त स्वर में कहा।
“कहां?”
“ये मैं नहीं जानती।”
“झूठ बोलना तुम्हें खूब आता है। ये झूठ भी बता दो कि राजा देव वापस कब लौटेंगे।”
“इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं।”
“तुम क्या सोचती हो कि राजा देव को इस तरह, मुझसे दूर किया जा सकता है।” रानी ताशा सख्त स्वर में बोली।
“तुम गलत ढ़ंग से सोच रही हो। देवराज चौहान और बबूसा रात को ही कहीं गए थे।”
“रात को?”
“हाँ।”
“कहीं वो उसी होटल में तो नहीं, जहां मैं रहती हूं।” एकाएक रानी ताशा ने कहा।
“ये तुम क्या कह रही हो।” जबकि नगीना मन-ही-मन बुरी तरह चौंकी थी।
“कल रात मैं नींद से उठ बैठी थी। मुझे एहसास हुआ था कि राजा देव जैसे मेरे करीब ही कहीं हों।” रानी ताशा बोली।
“बबूसा, देवराज चौहान को लेकर उस होटल में क्यों जाएगा, जहां तुम ठहरी हो।” नगीना ने कहा।
रानी ताशा नगीना को कुछ पल देखती रही फिर कह उठी।
“बबूसा इस बारे में क्या करना चाहता है? वो राजा देव को मेरे से दूर क्यों रख रहा है?”
नगीना के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“जवाब दो।”
“बबूसा कुछ भी गलत नहीं कर रहा। वो चाहता है कि देवराज चौहान को उस जन्म की याद आ जाए, जब वो तुम्हारे साथ था। बबूसा चाहता है कि देवराज चौहान तुम्हें उस जन्म में किए तुम्हारे अपराध की सजा दे।”
एकाएक रानी ताशा की आंखों में आंसू भर आए।
“तो मैंने सजा पाने से कब मना किया है।” रानी ताशा का स्वर भर्रा उठा-“राजा देव की दी सजा को तो मैं फूलों की तरह ग्रहण करूंगी। मेरे से जो गलती हुई उसकी सजा तो मुझे अवश्य मिलनी चाहिए। मैं स्वयं मानती हूं कि सेनापति धोमरा की वजह से मैं रास्ता भटक गई थी। राजा देव लम्बे वक्त से पोपा का निर्माण करने में व्यस्त थे और मैं धोमरा की बातों में भटक गई थी। खुद को अकेला पाकर जाने क्यों मैंने धोमरा का हाथ थाम लिया। बाद में मैंने इस बात को सोचा था और इसी नतीजे पर पहुंची कि धोमरा को दूसरे का दिमाग भटका देने की कला आती थी। उसने मुझे बातों में ऐसा फंसाया कि मैं राजा देव को ही भूल बैठी। धोमरा ही मेरे ख्यालों में आने लगा। मैं धोमरा की हर बात मानने लगी। मैं भूल गई कि मैं सदूर ग्रह की रानी हूं और राजा देव ग्रह के मालिक। धोमरा बहुत चालाकी से काम ले रहा था। मैं उसकी चालाकी को न भांप सकी। वो ग्रह का राजा बनना चाहता था। परंतु ये बात उसने तब तक न कही, जब तक कि राजा देव को ग्रह से बाहर न फेंक दिया। राजा देव को ग्रह से बाहर फेंकने की योजना भी धोमरा की थी। मैं बेवकूफों की तरह उसकी हर बात पर हां कहती जा रही थी। ये ही मेरी भूल थी। उस वक्त मुझे हर तरफ धोमरा ही नजर आ रहा था। वही मुझे अपना लगता था। राजा देव को उसने मेरे दिलोदिमाग से बहुत दूर कर दिया था। धोमरा ने अपनी बातों के जाल में मुझे पूरी तरह जकड़ लिया था। जैसे किसी ने जादू कर दिया होता है। जैसे मैं-मैं नहीं रही, धोमरा की बांदी बन गई
थी। अपनी बातों के जादू से धोमरा ने मुझे बहुत कमजोर कर दिया था। होश भी तब आया जब राजा देव को ग्रह से बाहर फेंका जा चुका था। राजा देव को ग्रह से बाहर फेंकने के बाद मुझे लगा जैसे मेरी जिंदगी थम गई हो। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। मुझे राजा देव की याद आने लगी और हर पल मैं अपने से पूछती कि ये मैंने क्या कर दिया। राजा देव को ग्रह से बाहर फेंकते ही धोमरा मुझ पर शादी करने का दबाव बनाने लगा। उसे मेरी परवाह नहीं थी। वो तो मेरे से ब्याह करके ग्रह का मालिक बनना चाहता था। जबकि मैं राजा देव के लिए तड़पने लगी थी। सिर्फ दो दिन बीते थे राजा देव को ग्रह से बाहर फेंके और मैं पागल हो चुकी थी राजा देव के लिए। तीसरे दिन मैंने तलवार उठाई और जाकर धोमरा का गला काट दिया। उसने बचने की कोशिश की। तलवार उठाकर मेरे से मुकाबला भी करना चाहा, परंतु वो मेरा मुकाबला न कर सका। मुझे राजा देव ने शिक्षा दी थी कि कैसे मुकाबला किया जाता है। कुछ ही पलों में मैंने धोमरा की गर्दन काट दी। गर्दन कटकर उसके अपने पैरों में ही आ गिरी थी। खून के छींटे मुझ पर भी पड़े। जाने क्यों उन छींटों से मुझे बहुत आराम मिला था।” रानी ताशा का चेहरा आंसुओं से भीग चुका था। वो सुबक रही थी।
नगीना एकटक उसे देख रही थी। जगमोहन और धरा गम्भीरता से उसे देख रहे थे। सोमारा के चेहरे पर दुख झलक रहा था।
तभी रानी ताशा आगे बढ़ी और सुबकते हुए नगीना का हाथ थाम लिया।
“बबूसा से कहो कि मैं सजा पाने को तैयार हूं। राजा देव मुझे सजा दें तो...”
“तभी तो बबूसा, देवराज चौहान को उस ग्रह की याद दिलाने की चेष्टा कर रहा है।” नगीना का स्वर सख्त था।
“बबूसा जानता है कि राजा देव एक बार मेरा चेहरा देख लेंगे तो उन्हें वो बातें याद आनी शुरू हो जाएंगी। एक बार राजा देव को मेरे सामने कर दो। उसके बाद...”
“बबूसा कहता है कि तुम राजा देव को जबर्दस्ती सदूर ग्रह पर वापस ले जाओगी और महापंडित से कहकर देवराज चौहान के दिमाग के उस हिस्से से वो यादें हटा दोगी, जिन्हें याद आने पर देवराज चौहान तुम्हें सजा देगा।”
“ओह बबूसा कितना गलत सोच रहा है।” रानी ताशा आंसुओं भरे चेहरे के साथ तड़प उठी।
“बबूसा ये भी कहता है कि देवराज चौहान तुम्हें देखकर, पहले की तरह दीवाना हो सकता है तुम्हारा और तुम उस दीवानगी का लाभ उठाकर, उसे आसानी से सदूर ग्रह पर वापस ले जाओगी। इस तरह देवराज चौहान को उस जन्म की यादें ताजा नहीं होंगी, क्योंकि वो तुम्हारे रूप की दीवानगी में उलझ चुका होगा।” नगीना ने शब्दों को चबाकर कहा।
“इसमें कोई शक नहीं कि राजा देव मेरे रूप के दीवाने थे। परंतु ये जरूरी तो नहीं कि कई जन्मों के बाद भी ऐसा ही हो। उस दीवानगी तक पहुंचने में राजा देव को वक्त भी लग सकता है। अब तो मैं उनकी दीवानी हो चुकी हूं। पूरे ब्रह्मांड में एक राजा देव ही हैं, जिन्हें मैं दिल से, दिमाग से चाहती हूं सिर्फ वो ही मेरे काबिल हैं। दूसरा कोई आदमी मुझे कभी भी अच्छा नहीं लगा। राजा देव के बिना मैं जीने की कल्पना नहीं कर सकती। तुम बबूसा से कहती क्यों नहीं कि एक बार राजा देव को मेरे सामने आने दे। वो मुझे देख लें फिर...”
“बबूसा अपने मन की करता है।” नगीना बोली।
“ये बात तुमने सही कही। बबूसा बहुत जिद्दी है। बात जब राजा देव की हो तो वो फिर किसी बात की परवाह नहीं करता। मुझे तो वैसे भी पसंद नहीं करता बबूसा। वरना मेरे से विद्रोह न करता।” रानी ताशा ने भर्राए स्वर में कहा-“राजा देव से मिलने में, तुम मेरी सहायता करो। मेरा भरोसा करो, राजा देव मुझसे मिलकर बहुत खुश होंगे और जब उन्हें सब कुछ याद आ जाएगा तो वो जो सजा देंगे उसे मैं फूलों की तरह स्वीकार करूंगी।”
“बबूसा कहता है कि तुम विश्वास के काबिल नहीं हो।”
“बबूसा गलत कहता है। मैं राजा देव के लिए कुछ भी कर सकती हूं।” रानी ताशा ने तड़पकर कहा।
नगीना ने मुस्कराकर अपना हाथ छुड़ाया और बोली।
“बबूसा भी यही कहता है कि तुम देवराज चौहान को वापस पाने के लिए कुछ भी कर सकती हो। किसी भी हद तक जा सकती हो। वो कहता है कि तुम हर हाल में राजा देव को उस जन्म की याद आने से पहले सदूर ग्रह पर ले जाना चाहोगी।”
“बबूसा बहुत गलत कहता है।”
“बबूसा तुम्हें ज्यादा बेहतर जानता है। वो तुम्हें बहुत पहले से जानता है। वो गलत क्यों कहेगा।”
“मैंने राजा देव को ग्रह से बाहर फिंकवा दिया था, इसलिए वो मेरे पर क्रोधित है।”
नगीना ने कुछ नहीं कहा। उसे देखती रही।
रानी ताशा आंसुओं को साफ करती कह उठी।
“मेरी सहायता करो। राजा देव से मिल लेने दो मुझे। वो मेरे सब कुछ हैं। वो मेरे...”
“देवराज चौहान मेरा पति है।” नगीना ने सख्त स्वर में कहा।
रानी ताशा, नगीना को देखने लगी। फिर बोली।
“राजा देव मेरे पति हैं।”
“इस जन्म में देवराज चौहान मेरे पति हैं। उनकी मर्जी के बिना तुम उन्हें नहीं ले जा सकतीं।”
“मैं राजा देव को उनकी मर्जी के बिना कहीं नहीं ले जाऊंगी।” रानी ताशा कह उठी।
“बबूसा कहता है कि तुम्हारा कोई भरोसा नहीं।”
“बबूसा गलत कहता है। वो मेरे बारे में भ्रम फैला रहा है। राजा देव को जबर्दस्ती ले जाकर मैं अपना कैसे बना सकती हूं।”
“बबूसा कहता है कि तुम्हारे कहने पर महापंडित देवराज चौहान के दिमाग में बदलाव ला देगा कि पुरानी बातें वो पूरी तरह भूल जाएगा। उसे कुछ भी याद नहीं रहेगा कि कभी उसके साथ तुमने गलत किया था।”
“तुम्हें बबूसा पर भरोसा है और मेरे पर नहीं?” रानी ताशा का स्वर एकाएक तीखा हो गया।
“तुम मेरे पति को लेने आई हो। मैं तुम पर जरा भी भरोसा नहीं कर सकती। फिर तुम्हारे साथ सोमाथ जैसा इंसान है जो मर नहीं सकता। अगर तुम्हारा मन साफ होता तो तुम सोमाथ को अपने ग्रह से लाती ही नहीं।”
“बबूसा के विद्रोह की वजह से सोमाथ को, महापंडित ने मेरे साथ भेजा है। महापंडित जानता था कि बबूसा मेरे रास्ते में रुकावट डालेगा। बबूसा अब राजा देव को मेरे से छिपाए फिर रहा है।” रानी ताशा ने कहा।
नगीना, रानी ताशा को गहरी निगाहों से, देखती कह उठी।
“तुम राजा देव को वापस अपने पति के रूप में पाना चाहती हो।”
“राजा देव की मुझे ही नहीं, पूरे सदूर ग्रह को जरूरत है उनकी सदूर ग्रह के विकास कार्य राजा देव के न होने की वजह से रुक चुके हैं। राजा देव ने सदूर ग्रह का जो विकास किया था, वो वहीं का वहीं ठहर चुका है, जबकि पृथ्वी ग्रह पर हर तरफ मुझे विकास हुआ नजर आता है। राजा देव के बिना सदूर ग्रह अधूरा है।” रानी ताशा बोली।
“फिर तो तुम देवराज चौहान को हर हाल में सदूर ग्रह पर ले जाओगी।”
“ये राजा देव की मर्जी पर निर्भर है। मैं उन्हें सब कुछ याद दिला दूंगी। सब कुछ बता दूंगी।”
“मान लो, अगर देवराज चौहान तुम्हारे साथ न जाना चाहे, तो तुम क्या करोगी?”
“वो मेरे साथ जरूर चलेंगे। वो मुझे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते हैं।”
“अगर वो तुम्हारे साथ जाने से इंकार कर दें तो, तब क्या स्थिति होगी तुम्हारी?”
रानी ताशा कुछ पल खामोश रहकर कह उठी।
“तब मैं वापस चली जाऊंगी।”
“देवराज चौहान को यहीं छोड़कर।”
“हाँ।” रानी ताशा का स्वर शांत था।
“ये बात तुमने झूठी कही। ये जवाब तुम्हारे चरित्र से मेल नहीं खाता। तुम इस तरह चुप रहने वाली नहीं। तुम चीज को छीनना जानती हो। तुम मुझ पर वार करना जानती हो। तुम सब कुछ अपने बस में करना जानती हो।”
रानी ताशा ने नगीना की आंखों में झांका।
“तुम मेरे बारे में गलत बातें कह रही हो। मैं ऐसी नहीं हूं।”
“तुम ऐसी ही हो। मैं तुम्हें काफी हद तक पहचानती जा रही हूं। बबूसा ठीक कहता है कि तुम हर हाल में देवराज चौहान को सदूर ग्रह पर ले जाओगी। ये ही बात अब मैंने महसूस की है कि तुम खाली हाथ लौटने वाली नहीं।”
“राजा देव सिर्फ मेरा है।” रानी ताशा का स्वर कठोर हो गया-“वो भी मुझे अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं। जब राजा देव मुझे देखेंगे तो तुम देख लेना कि वो मुझे कितना चाहते हैं।”
“देवराज चौहान मेरा पति है। इस बात को तुम मत भूलो।” नगीना ने कठोर स्वर में कहा।
“पहले वो मेरा पति था।” रानी ताशा ने मुस्कराकर कहा-“हमने बहुत अच्छा समय साथ बिताया था और अब भी ऐसा होगा। सदूर ग्रह पर मेरा और राजा देव का वो ही वक्त वापस लौटेगा जो मैं खो चुकी हूं। राजा देव मेरा प्यार है। मेरा जीवन है। मेरी सांसें राजा देव में बसती हैं। राजा देव का जीवन मेरे बिना अधूरा है। अब वो मेरे से दूर नहीं रह सकते। अगर तुम मेरे और राजा देव में रुकावट बनी तो तुम्हें मरना पड़ेगा। तुम मेरे जीवन की बहार को अपनी मुट्ठी में बंद नहीं कर सकतीं।”
नगीना के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान उभर आई। नजरें रानी ताशा पर थीं।
“तुम साबित कर रही हो कि तुम आने वाले वक्त में क्या करने वाली हो।” नगीना ने कहा।
रानी ताशा सोमारा से कह उठी।
“हम यहीं रुकेंगे। राजा देव के वापस लौटने का इंतजार करेंगे।”
“ये विचार अच्छा है ताशा।” सोमारा ने गम्भीर स्वर में कहा।
रानी ताशा, सोमारा के साथ सोफे पर जा बैठी। वहां पहले से ही धरा मौजूद थी। उसके चेहरे पर फैला डर स्पष्ट नजर आ रहा था। उसने चाहा कि उठकर इनसे दूर चली जाए, परंतु बैठी रही।
जगमोहन और नगीना की नजरें मिलीं।
“सोमाथ।” रानी ताशा कह उठी-“अपने आदमियों से कह दो कि इन लोगों पर नजर रखें और ये यहां से बाहर न जाएं। अगर ये कोई शरारत करें तो जोबिना का इस्तेमाल इन पर कर दिया जाए।”
सोमाथ ने गर्दन घुमाकर तीनों आदमियों को देखा तो उन्होंने सिर हिला दिया। जगमोहन और नगीना कुछ हटकर कुर्सियों पर जा बैठे।
विजय बेदी अपनी जगह पर खड़ा था और सोच रहा था कि यहां तो बुरे हालात पैदा हो चुके हैं। कुछ बुरा हो जाता तो उसका नाम भी बीच में आएगा, परंतु पंद्रह लाख ने उसे जाने से रोक रखा था।
रानी ताशा ने दस कदम दूर सोफे पर बैठी धरा से पूछा।
“राजा देव कहां हैं?”
“म-मुझे क्या पता?” धरा घबरा उठी।
“तुम यहीं हो तो तुम्हें भी पता होगा कि राजा देव...”
“मुझे कुछ नहीं पता।” धरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा-“मैं तो अभी सोई उठी हूं तो...”
“राजा देव कल रात के गए हुए हैं।” रानी ताशा ने धरा को घूरा-“तुमने सुना नहीं, ये देवराज चौहान की पत्नी ने कहा है।”
“हां-हां, ये बात तो मुझे भी पता है, पर देवराज चौहान मेरे सामने नहीं गया। म-मैं तो आधी रात को ड्यूटी से वापस लौटी हूं। तब देवराज चौहान यहां नहीं था। अब सोई उठी तो तुम लोग आ गए।” धरा ने जल्दी से कहा।
“तुम कौन हो?” सोमारा ने पूछा।
“मैं धरा हूं। धरा...”
“धरा, वो ही धरा, जिसकी जान बचाने के फेर में बबूसा ने, कई डोबू जाति वालों की जान ली।”
“इसमें बबूसा का क्या कसूर। वो मुझे जान से मारना चाहते थे तो...”
“तुम्हारा बबूसा से क्या वास्ता?”
“क्या मतलब?”
“वो तुम्हें क्यों, डोबू जाति से बचाता फिर रहा है?” सोमारा ने आंखें सिकोड़कर पूछा।
“उसकी मर्जी।”
“उसकी मर्जी नहीं, अब मैं आ गई हूं मेरी मर्जी चलेगी। सीधा कर दूंगी उसे। जानती हो मैं कौन हूं?”
“क-कौन?”
“बबूसा की पत्नी।”
“बबूसा की पत्नी?” धरा हड़बड़ाकर कह उठी-“पर वो तो कहता है कि उसकी शादी नहीं हुई।”
“नहीं हुई तो हो जाएगी। मैं हर जन्म में ही उसकी पत्नी बनती हूं। सोमारा नाम है मेरा।” सोमारा ने धरा को तीखी नजरों से देखते हुए कहा-“क्या बबूसा के साथ तेरे सम्बंध हैं?”
“सम्बंध?”
“शारीरिक सम्बंध?”
“नहीं। मैं ऐसी नहीं हूं। बबूसा भी ऐसा नहीं है। हम अच्छे दोस्त हैं। बबूसा को तो हर वक्त देवराज चौहान की ही चिंता लगी रहती है। वो देवराज चौहान से बहुत प्यार करता है। अपने को सेवक बताता है देवराज चौहान का।”
“तो गलत क्या कहता है।” सोमारा बोली-“राजा देव का सेवक बनना मामूली बात नहीं है। सदूर ग्रह के लोग राजा देव के साथ-साथ बबूसा की भी बहुत इज्जत करते हैं। भैया (महापंडित) की मेहरबानी से बबूसा हर जन्म में राजा देव का सेवक बनता आ रहा है। राजा देव भी ये ही चाहते रहे हैं कि बबूसा ही उनका सेवक बने। बबूसा की जान बसती है राजा देव में। अगर तुम्हारे मन में बबूसा के लिए प्यार है तो उसे भूल जाओ। अब मैं आ गई हूं बबूसा को संभालने।”
“क-कोई प्यार नहीं है।” धरा जल्दी से बोली-“बस पहचान है। उसने मेरी जान बचाई।”
“कब आएगा बबूसा?”
“मुझे नहीं पता। मैं तो यहां बबूसा के साथ इसलिए रह रही हूं कि डोबू जाति वाले मेरी जान न ले लें।” धरा ने कहा-“तुम कहोगी तो मैं यहां से चली जाती हूं। यहां मेरा काम ही क्या है। परंतु वो डोबू जाति वाले मेरी जान...”
“सोमारा।” रानी ताशा ने गम्भीर निगाहों से सोमारा को देखा।
“हां ताशा?”
“मुझे तेरी सहायता की जरूरत है।”
“आप हुक्म दीजिए रानी ताशा।”
“सिर्फ ताशा कह, हुक्म वाली बात मत कर। मेरी सहायता कर।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा-“बबूसा रुकावट डाल रहा है कि मैं राजा देव से न मिल सकूँ। वरना राजा देव को क्या पता था कि मैं उनसे मिलने आ रही हूं। बबूसा ने सारी खबरें पहले ही पहुंचा दी थीं राजा देव को। बबूसा मुझे पसंद नहीं करता।”
“वो भटक चुका है। ठीक हो जाएगा।”
“तू बबूसा को समझाना कि राजा देव को सदूर ग्रह पर ले जाना बहुत जरूरी है। इसी में सदूर ग्रह का भला है। उनके बिना सदूर ग्रह अधूरा है। वहां के लोग आज भी राजा देव की वापसी का इंतजार कर रहे हैं।”
“मुझसे बेहतर ये बात और कौन जान सकता है ताशा।” सोमारा ने सिर हिलाकर कहा।
“बबूसा को समझाकर रास्ते पर ले आना।”
“मैं इसीलिए तो आपके साथ आई हूं ताशा कि बबूसा को संभाल सकूँ।”
“अगर तू बबूसा को न संभाल सकी तो मैं सख्ती करने पर मजबूर हो जाऊंगी। अगर सोमाथ ने बबूसा को इस ग्रह पर मार दिया तो वो फिर सदूर ग्रह पर जन्म नहीं ले सकेगा।” रानी ताशा ने कहा।
“ये नौबत ही नहीं आएगी।” सोमारा मुस्कराई-“एक बार बबूसा को मेरे सामने तो आने दीजिए।”
“सच बात तो ये है कि मैं इसी वक्त के लिए, तुझे अपने साथ लाई हूं। मैं बबूसा के साथ सख्ती नहीं करना चाहती क्योंकि राजा देव उसे पसंद करते रहे हैं। मैं चाहती हूं फिर से समय पहले जैसा हो जाए। राजा देव सदूर ग्रह पर पहुंच जाएं और पहले की तरह मेरे में गुम हो जाएं।” रानी ताशा का स्वर कांप उठा-“बबूसा, राजा देव की सेवा में रहे। कितना अच्छा वक्त होगा, जब सब कुछ लौट आएगा सोमारा। तुम्हें भी बबूसा मिल जाएगा।”
“बबूसा से मिलन की खुशी से ज्यादा मुझे आपकी चिंता है ताशा।”
“मेरी चिंता?” रानी ताशा ने सोमारा को देखा।
“यही कि राजा देव आपको मिल जाएं। ऐसा वक्त आने पर मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी।”
रानी ताशा का चेहरा खिल उठा।
“राजा देव के मिल जाने के बाद मैं तुझे बहुत बड़ा इनाम दूंगी।”
“ओह ताशा, आप कितनी अच्छी हैं।”
सोमाथ और तीनों आदमी ड्राइंग हॉल में टहल रहे थे।
जगमोहन और नगीना कुर्सियों पर पास-पास ही बैठे थे। दोनों के चेहरों पर गम्भीरता दिखाई दे रही थी। वो जानते थे कि इन हालातों में कुछ किया तो बचेंगे नहीं। जगमोहन को सोमाथ की ताकत का एहसास हो चुका था। अभी तक दोनों में कोई बात नहीं हुई थी। परंतु अब जगमोहन धीमे से कह उठा।
“भाभी, ये लोग हमसे कहीं ज्यादा ताकत रखते हैं।”
“हां। सोमाथ मशीनी इंसान है। उसे बहुत बेहतरीन ढंग से बनाया गया है। तुम्हारी चलाई गोलियों का जरा भी असर नहीं हुआ उस पर और उसके जोर लगाने पर गोलियां खुद ही बाहर को गिर पड़ी फिर शरीर में पैदा हुए गोलियों के छेद पलों में भर गए। इसे बनाने वाला बहुत ही तेज दिमाग का वैज्ञानिक होगा।” नगीना ने कहा।
“और तुम रानी ताशा का मुकाबला भी नहीं कर सकीं।” जगमोहन गम्भीर था।
“सच में, उसका लड़ने का अंदाज बिल्कुल ही अलग है। मैं नहीं समझ पाई कि वो किस तरह वार करती है। परंतु ऐसा अब नहीं होगा। मैं उसके वारों को समझ लूंगी। जो भी हो वो बेहतरीन लड़ाका है।”
“ये देवराज चौहान को अपने ग्रह पर ले जाने का इरादा बनाए हुए है।”
“ये बात तो मुझे पता है।”
“हम इसके सामने कमजोर पड़ रहे हैं। इस तरह तो ये देवराज चौहान को जबर्दस्ती अपने साथ ले जाएगी।”
“सोमाथ के दम पर ये जीत जाएगी।”
“हमें ताकत इकट्ठी करनी होगी। कुछ ऐसा करना होगा कि हम हारें नहीं।”
नगीना ने गम्भीर निगाहों से जगमोहन को देखा।
“सोमाथ के लिए कोई खास इंतजाम करना होगा।” नगीना बोली।
“क्या कर सकते हैं हम। देवराज चौहान तो इस स्थिति में नहीं है कि इस मामले में आ सके। वो...”
“क्या देवराज चौहान ने रानी ताशा का चेहरा देखा है?” अचानक ही नगीना ने कहा।
जगमोहन नगीना को देखने देखने लगा।
“अर्जुन भारद्वाज को फोन करके मालूम करती हूं।” कहते हुए नगीना ने फोन निकाला और नम्बर मिलाकर फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी। नगीना ने देखा रानी ताशा ने अभी-अभी उसे देखा था।
“हैलो।” अर्जुन की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम क्या राजा देव को ये बता रही हो कि वो यहां न आएं, क्योंकि हम यहां हैं।” रानी ताशा ने एकाएक तेज स्वर में कहा।
रानी ताशा पर निगाहें टिकाए नगीना जल्दी-से बोली।
“देवराज चौहान ने रानी ताशा का चेहरा देखा कि नहीं?”
सोमाथ तेज कदमों से नगीना की तरफ बढ़ने लगा था।
“देखा। उसे देखते ही बेहोश हो गया। अभी होश में नहीं आया। रानी ताशा तुम्हारे वहां क्या कर रही हैं। क्या हो रहा है?”
नगीना जवाब नहीं दे सकी क्योंकि सोमाथ ने करीब आकर उससे फोन छीन लिया था और उनसे दूर जाकर उसे टेबल पर रख दिया। तब तक रानी ताशा उठकर, उनके पास आ पहुंची थी।
“किसे फोन किया? राजा देव को या बबूसा को?” स्वर में सख्ती थी।
“अर्जुन भारद्वाज को। जो तुमसे होटल के कमरे में आकर मिला था।”
नगीना ने मुस्कराकर कहा।
“तो उससे सहायता मांग रही हो हमारे खिलाफ?” रानी ताशा के होंठ भिंच गए।
“मैं उससे पूछ रही थी कि देवराज चौहान ने रानी ताशा का चेहरा देख लिया है या नहीं।” नगीना ने हंसकर कहा।
रानी ताशा की आंखें उसी पल सिकुड़ गईं।
“क्या मतलब? राजा देव मुझे देखने वाले थे क्या?”
“हां। वो रात से ही होटल के बाहर, तुम्हारे बाहर निकलने के इंतजार में थे। साथ में बबूसा भी था।”
“ओह।” रानी ताशा के होंठों से निकला-“तभी रात को मुझे राजा देव के पास होने का एहसास हुआ था।” रानी ताशा, सोमाथ की तरफ पलटकर बोली-“तुमने रात होटल के बाहर जाकर देखा था सोमाथ?”
“नहीं। मैंने होटल के भीतर ही देखने की चेष्टा की थी। बाहर नहीं गया।” सोमाथ ने कहा।
रानी ताशा की निगाह पुनः नगीना पर जा टिकी।
“तो क्या राजा देव ने मेरा चेहरा देख लिया?”
“हां।”
रानी ताशा एकाएक बेचैन दिखने लगी।
“कब देखा, जब मैं होटल से बाहर निकली?”
“हां, तभी...”
“ये गलत हुआ। बबूसा ने ही उसे इस राह पर डाला होगा।” रानी ताशा दांत भींचे वापस सोमारा के पास जा बैठी-“जब हम होटल से निकले तो राजा देव वहीं थे, उन्होंने मेरा चेहरा देख लिया सोमारा।”
“सच? ये तो अच्छा हुआ ताशा। अब राजा देव को सब याद आ जाएगा कि...”
“ये ही तो बुरी बात होगी।” रानी ताशा सख्त स्वर में बोली।
सोमारा, रानी ताशा को देखने लगी।
“राजा देव अगर मेरे सामने पड़ते तो, मैं उन्हें उस जन्म की याद आने से पहले ही पोपा में बैठाकर सदूर पर ले जाती और महापंडित से कहकर, राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा खाली करा देती, जहां पर मेरे द्वारा किए गए धोखे की यादें दर्ज हैं। फिर राजा देव को कभी भी याद नहीं आता कि मैंने उनके साथ कुछ बुरा किया था। परंतु बबूसा ने सारा खेल बिगाड़ दिया। राजा देव ने मेरा चेहरा देख लिया है। ऐसे में उन्हें मेरे धोखे की बात भी याद आ गई तो जाने राजा देव क्या कर बैठे। वो क्रोधित हो जाएंगे। मेरे साथ सदूर पर वापस चलने से भी इंकार कर देंगे। मुझे बुरा समझेंगे। वो मुझे प्यार नहीं करेंगे। मैं उनके बिना नहीं रह सकती सोमारा।” रानी ताशा का स्वर भर्रा उठा-“मैं उनकी नफरत नहीं सह सकती। मैं वो ही समय वापस लाना चाहती हूं जो राजा देव मेरे साथ सदूर पर बिताया करते थे। ये क्या हो रहा है। मेरा प्यारा मेरे राजा देव मेरे से दूर हो जाएंगे। मैं उनके बिना जी नहीं सकूँगी। बबूसा ने क्या कर डाला।” रानी ताशा सुबक उठी-“मेरी सारी कोशिशें बेकार हो जाएंगी अगर राजा देव को मेरे द्वारा किए गए धोखे की याद आ गई तो।”
“सब ठीक हो जाएगा। चिंता वाली बात मुझे तो दिखाई नहीं दे रही।” सोमारा ने शांत स्वर में कहा।
“क्या मतलब?” रानी ताशा ने भीगी आंखों से सोमारा को देखा।
“आपका काम है राजा देव को सदूर पर वापस ले जाना। इसके लिए हम राजा देव को बेहोश रखेंगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि राजा देव को आपके धोखे वाली बात याद आ जाएगी। भैया (महापंडित) से कहकर राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा, मिटा देंगे, जहां धोखे वाली बात दर्ज है। तब सब ठीक हो जाएगा। भैया आपकी बात को टालेंगे नहीं।”
रानी ताशा के आंसुओं से भरे चेहरे पर राहत दिखने लगी।
“तुमने ठीक कहा। ऐसा किया जा सकता है। महापंडित मेरी बात को कभी इंकार नहीं करेगा। राजा देव को सब कुछ याद भी आ जाता है तो मुझे व्यर्थ में चिंता करने की जरूरत नहीं। राजा देव मुझे वापस मिलकर ही रहेंगे।” कहने के साथ ही रानी ताशा उठी और सीधे सोमाथ के पास पहुंचकर धीमे स्वर में बोली-“बबूसा मुझे बहुत नुकसान पहुंचा रहा है सोमाथ...”
“हुक्म दीजिए।”
“जब भी बबूसा सामने आए, उसे खत्म कर देना।” रानी ताशा ने कठोर स्वर में कहा।
“हुक्म का पालन होगा।” सोमाथ ने शांत स्वर में कहा।
रानी ताशा वापस लौटकर सोफे पर आ बैठी।
“आपको क्या लगता है ताशा कि राजा देव यहां पर आएंगे?” सोमारा ने पूछा।
“सम्भव है, आ भी जाएं। हम इंतजार करेंगे।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा।
तभी विजय बेदी पास आ पहुंचा। उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
रानी ताशा ने उसे देखा।
“अब तो मेरा पंद्रह लाख दे दीजिए। मैंने आपको देवराज चौहान के ठिकाने पर पहुंचा दिया है।” बेदी बोला।
“अभी राजा देव हमें मिले तो नहीं।”
“मिलने में क्या कसर बाकी है। देवराज चौहान की पत्नी, उसका दोस्त यहां हैं। रस्सी से बांधकर बैठा लीजिए। देवराज चौहान तो खुद ही दौड़ा-दौड़ा आ जाएगा। आप जितनी खूबसूरत हैं, दिल की उतनी ही अच्छी हैं। मैं जानता हूं कि मुझे मेरा हक पंद्रह लाख देकर मुझे खुशी-खुशी जाने को कहेंगी। मैं बहुत व्यस्त इंसान हूं। ढेरों काम हैं मेरे पास करने को। यहां तक आप लोगों को मैंने पहुंचा दिया है तो समझिए देवराज चौहान हाथ आ ही गया। मैंने तो देवराज चौहान का ठिकाना खोजकर आपको वहां पहुंचाने का ठेका लिया था और वो काम कर दिखाया। मेरा काम खत्म हो गया।”
रानी ताशा ने सोच भरा चेहरा हिलाया।
“इस वक्त रुपए हमारे पास नहीं हैं कि अभी तुम्हें दे सकें। वो होटल में रखे हैं।”
“मैंने नोटों वाला सूटकेस देख रखा है। कहें तो मैं वहां जाकर ईमानदारी से पंद्रह लाख लेकर चला जाऊं?” बेदी बोला।
“तुम यहीं रहोगे। हमारे साथ वापस चलना। हम तुम्हें पंद्रह लाख दे देंगे।”
“आप कितनी नर्म दिल है। वैसे यहां से रवानगी कब होगी?”
“जब राजा देव यहां आ जाएंगे।”
“ये इंतजार तो लम्बा भी हो सकता है। क्या पता वो दो दिन बाद लौटे।”
“जल्दबाजी मत करो। मुझे सोचने दो तुम्हें पैसे मिल जाएंगे।”
बेदी शराफत से कई कदम दूर हटकर बैठे गया। मन-ही-मन सोच रहा था कि इन पागलों से कब पीछा छूटेगा। डकैती मास्टर देवराज चौहान को राजा देव कहती है और खुद को रानी ताशा। निवास स्थान दूसरे ग्रह का बताती है और यात्रा टिकट किसी पोपा की ले रखी है। सब बकवास है। पागलखाने से भागकर आए लगते हैं सारे।
“अब हालात कुछ बेहतर भी हो सकते हैं।” जगमोहन ने धीमे स्वर में नगीना से कहा।
“कैसे?”
“अगर सच में देवराज चौहान को कुछ याद आता है तो। बबूसा कहता है कि देवराज चौहान को उस जन्म की याद आ गई तो वो सब कुछ आसानी से संभाल लेगा। रानी ताशा भी ये जानकर बेचैन हो गई कि देवराज चौहान ने उसका चेहरा देख लिया है।”
“तुम खतरे को नहीं भांप रहे जगमोहन भैया।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
“कैसा खतरा?” जगमोहन ने नगीना को देखा।
“अगर देवराज चौहान, रानी ताशा के साथ जाने को तैयार हो गया तो? या फिर बबूसा के अनुसार देवराज चौहान सुधबुध खोकर रानी ताशा का दीवाना हो गया, तो तब क्या होगा।” नगीना एक-एक शब्द पर जोर देते कह उठी-“अभी तो देवराज चौहान बेहोश है। अर्जुन कहता है कि रानी ताशा का चेहरा देखने के बाद देवराज चौहान बेहोश हो गया था।”
“ऐसा क्यों हुआ?”
“क्या पता। परंतु अब देखना तो ये है कि होश आने पर वो किस स्थिति में होता है।” नगीना बोली।
“मेरे ख्याल में तो देवराज चौहान का वहां रहना भी अब ठीक नहीं। उसे किसी और जगह पर रखना चाहिए।” जगमोहन ने कहा।
“अभी कुछ नहीं किया जा सकता। मेरा मोबाइल भी ले लिया गया है कि किसी से बात न कर सकूं।”
“मेरा मेरी जेब में है।”
“जेब में ही रखो। निकालना मत। मौका लगने पर मैं मिन्नो (मोना चौधरी) को फोन करूंगी।”
“मोना चौधरी को?” जगमोहन चौंका।
“हां उसे बुलाना ही पड़ेगा। ये मामला इतना सरल नहीं कि हम संभाल लें। हमें दूसरों की सहायता की जरूरत है ही। मिन्नो को मैंने पहले बुलाया तो देवराज चौहान ने कहा कि इस मामले को वो ही देखेंगे। परंतु उनकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वो कुछ करें। सोमाथ जैसे इंसान से निबटने के लिए कुछ खास ही सोचना पड़ेगा। जब तक सोमाथ है, हम कुछ कर पाने के काबिल नहीं हो सकेंगे।”
“ये कब तक यहां रहेंगे।” जगमोहन की निगाह सब पर गई।
“कह नहीं सकती इनका इरादा क्या है। परंतु मुझे नहीं लगता कि ये आसानी से यहां से जाएंगे।” नगीना के दांत भिंच गए।
जगमोहन की खतरनाक निगाह सब पर जा रही थी।
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शाम हो गई।
रानी ताशा इंतजार में ही बैठी रही। सोमाथ और उसके तीनों साथी जगमोहन, नगीना और धरा पर सतर्कता से निगाह रखे टहल रहे थे। वहां पर ज्यादातर चुप्पी ही छाई रही थी। जगमोहन, नगीना उन्हीं कुर्सियों पर बैठे थे बीच में यदाकदा उठकर टहल लेते थे। धरा, अभी तक सोफे पर ही बैठी थी। तब विजय बेदी उठा और रानी ताशा के पास पहुंचा।
“महान रानी ताशा।” बेदी सेवकों की भांति हाथ जोड़कर कह उठा-“बहुत वक्त हो गया। दिन भी ढल गया। आपके राजा देव जाने कब आएंगे। मुझे पंद्रह लाख दे दीजिए। ताकि मैं अपने काम पर लगूं। बड़ी मेहरबानी होगी आपकी।”
रानी ताशा ने सोच भरी निगाहों से विजय बेदी को देखा।
“इसे पैसे दे दो ताशा।” सोमारा कह उठी-“यहां पर कब तक रहने का इरादा है?”
“जब तक राजा देव नहीं आ जाते।” रानी ताशा गम्भीर स्वर में
बोली-“इसने ठीक कहा था कि राजा देव की पत्नी और उनके दोस्त को पकड़ लूं तो राजा देव को देर-सबेर में यहां आना ही पड़ेगा।”
“वो तो मैंने ऐसे ही कहा था।” बेदी जल्दी से बोला।
“परंतु ठीक कहा था। बात मुझे जंची। सोमाथ।” रानी ताशा ने पुकारा।
सोमाथ तुरंत पास आ गया।
“इसे पंद्रह लाख दे दो। अब हमें इसकी कोई जरूरत नहीं। पैसा होटल में रखा है। किसी को इसके साथ भेजो, वो इसे पैसा देकर वापस आ जाएगा। हमें तब तक यहां रहना है, जब तक राजा देव नहीं आते।” रानी ताशा ने कहा।
“ठीक है रानी ताशा। क्या पैसे वाला सूटकेस यहां मंगवा लूं?”
“ये भी ठीक रहेगा। ऐसा ही करो।”
सोमाथ ने एक आदमी को समझाकर, होटल भेज दिया। रानी ताशा ने बेदी से कहा कि वो यहीं रहकर इंतजार करे, पैसे वाला सूटकेस आ रहा है।
सुनकर विजय बेदी को राहत मिली।
रानी ताशा, जगमोहन और नगीना के पास पहुंची।
“मैंने फैसला किया है राजा देव के आने तक मैं यहीं रहूंगी।” रानी ताशा ने कहा।
“तुम मेरे घर में, मेरी मर्जी के बिना कैसे रह सकती हो।” नगीना बोली।
“अच्छा।” रानी ताशा कड़वे अंदाज में मुस्कराई-“मुझे निकाल सकती हो तो कोशिश करो।”
जगमोहन की निगाह सोमाथ की तरफ उठी।
“यहां सिर्फ मेरा हुक्म चलेगा। अच्छा होगा कि मुझे राजा देव के बारे में बता दिया जाए कि वो कहां पर हैं?”
“हमें नहीं मालूम कि देवराज चौहान कहां है। बबूसा, उन्हें अपने साथ ले गया है।”
“इस तरह झूठ बोलोगी तो कष्ट में रहोगी।”
नगीना ने कुछ नहीं कहा।
“मुझे हैरानी भी होती है जब ये सोचती हूं कि बबूसा ने अपनी बातों का तुम लोगों को किस प्रकार यकीन दिलाया होगा।”
“वो सच्चा इंसान है।” जगमोहन बोला।
“भूल में हो। मैं बबूसा को अच्छी तरह जानती हूं वो बहुत चालबाज इंसान है। राजा देव का खास सेवक यूं ही नहीं बन गया। ये कहकर तुम मजाक कर रहे हो कि वो सच्चा इंसान है।”
“कम-से-कम तुमसे तो सच्चा है।”
रानी ताशा ने जगमोहन को गहरी निगाहों से देखा।
“तुम देवराज चौहान को अपने साथ, अपने ग्रह पर ले जाने का पक्का इरादा बनाए बैठी हो।” जगमोहन ने कहा।
“कहना क्या चाहते हो?”
“और तुम हमें कहती हो कि देवराज चौहान की इच्छा के बिना ऐसा नहीं करोगी।”
“ठीक ही तो कहा है।”
“झूठ कहा है। तुम सख्त किस्म की औरत हो, जो अपना सोचा पूरा करके रहती हैं।”
“मैं ऐसी नहीं हूं।” रानी ताशा मुस्करा पड़ी-“मेरा दिल बहुत नर्म है। मैं किसी को दर्द नहीं पहुंचा सकती। राजा देव मेरे हैं। मेरे थे और वो मेरे ही रहेंगे। वो मेरे से बहुत प्यार करते हैं। परंतु पृथ्वी के जन्म-चक्र में फंसकर वो मेरे को भूल बैठे हैं, लेकिन अब उन्होंने मेरा चेहरा देख लिया है। अब सदूर ग्रह की बातें याद आनी शुरू हो जाएंगी। मैं भी याद आऊंगी राजा देव को। मेरी याद में वो तड़प उठेंगे। तुम देख लेना वो दौड़कर आएंगे और मुझे बांहों में ले लेंगे।”
“तुमने तब राजा देव के साथ धोखा किया था।” जगमोहन ने कहा।
“वो भूल मुझसे जरूर हुई।”
“वो धोखा याद आते ही देवराज चौहान तुम्हें प्यार नहीं नफरत करेगा।”
रानी ताशा ने जगमोहन की आंखों में झांका।
“वो सब ठीक हो जाएगा।” रानी ताशा का स्वर शांत था।
“महापंडित ठीक कर देगा।” जगमोहन गम्भीर था-“बबूसा ने ऐसा ही कहा था।”
“बबूसा मक्कार है। उसने झूठी बातें तुमसे कही हैं।”
“अभी तक तो बबूसा की बातें सही हो रही हैं।”
“आने वाले वक्त में समझ जाओगे कि बबूसा ने गलत बातें कही हैं वो मेरा विद्रोही है।” रानी ताशा गुस्से से कह उठी-“उसे मैं बहुत बुरी सजा दूंगी एक बार वो मेरे सामने आ गया तो अपने अंजाम भुगत लेगा।”
“हम कब तक यहां बैठे रहेंगे?” नगीना कह उठी।
“जब तक राजा देव नहीं आ जाते।”
“देवराज चौहान कई दिन नहीं आया तो...।”
“तो तुम लोग मेरे पास ही रहोगे। राजा देव कभी तो तुम्हारे पास आएगा।”
“मुझे खाना तैयार करना है। दिन भर से कुछ नहीं खाया। तुम्हें भी भूख लगी होगी।”
“पृथ्वी ग्रह पर लोगों को पैसा देकर बाहर से खाना मिल जाता है।” रानी ताशा ने इशारे से विजय बेदी को पास बुलाया-“इसे पैसे दो कि ये बाहर से खाना ले आए।” कहकर रानी ताशा सोमारा की तरफ बढ़ गई।
नगीना ने बेदी को खाना लाने भेज दिया।
रानी ताशा, सोमारा के पास पहुंची तो सोमारा धरा से कह रही थी।
“तुम सदूर ग्रह पर जाकर बहुत मजे में रहोगी। पोपा की सैर करने में बड़ा मजा आता है। सदूर ग्रह शांत जगह है, पृथ्वी पर तो लोग ही बहुत रहते हैं। आवाजें बहुत आती हैं। मैं तुम्हें सदूर ग्रह पर अपने साथ ले जा सकती हूं।”
धरा खामोश रही।
“इसके लिए तुम्हें बताना होगा कि राजा देव और बबूसा कहां पर हैं। तब तुम हमारी दोस्त बन जाओगी।”
“मुझे पता होता तो मैं पहले ही बता देती।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तुम्हें जरूर मालूम है। परंतु तुम बता नहीं रहीं।”
“कसम से, नहीं मालूम।” धरा ने मुंह लटकाकर कहा।
“सोमारा, पृथ्वी के लोग बहुत झूठे हैं। ये तो हमारी मजबूरी है कि हमें इनके मुंह लगना पड़ रहा है।” रानी ताशा ने कहा।
“परंतु ताशा, पृथ्वी बहुत सुंदर है।” सोमारा बोली-“ये ग्रह मुझे बहुत पसंद आया।”
“एक बार राजा देव को सदूर पर ले जाऊं। सब ठीक हो जाए। उसके बाद राजा देव से कहूंगी कि ताशा को पृथ्वी ग्रह की रानी बनना है, फिर देखना कैसे राजा देव पृथ्वी को अपने कब्जे में ले लेंगे।” रानी ताशा मुस्कराई।
“मैं जानती हूं राजा देव आपसे बहुत प्यार करते हैं। वो आपकी बात नहीं टाल सकते।”
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विजय बेदी पंद्रह लाख लेकर जा चुका था।
इस वक्त रात के बारह बज रहे थे। उसी ड्राइंग हॉल में जगमोहन, नगीना और धरा नीचे गद्दे बिछाए सो रहे थे। सोमाथ उनके पहरे पर वहां मौजूद था। रानी ताशा और सोमारा बंगले के बेडरूम में जाकर सो चुकी थी और वो तीनों व्यक्ति भी बंगले के एक बेडरूम में सोने जा चुके थे। बेदी जो खाना लाया था, वो सबने खाया था। पंद्रह लाख मिल जाने के बाद बेदी बहुत खुश था और उसने वहां से निकल जाने में देर नहीं लगाई थी।
नगीना ने सोमाथ को पंद्रह कदम दूर टहलते देखा।
“जगमोहन भैया।” नगीना फुसफुसाई।
“हां भाभी।” जगमोहन जाग रहा था।
“फोन मुझे दो।”
जगमोहन ने सावधानी से फोन निकाला और नगीना की तरफ सरका दिया। नगीना ने सोमाथ की तरफ पीठ कर ली कि वो फोन की लाईट न देख सके और मोना चौधरी का नम्बर मिलाकर फोन कान पर रखा।
दूसरी तरफ बेल जाती रही। काफी देर बाद कॉल रिसीव की और मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।
“हैलो।”
“मिन्नो।” नगीना फुसफुसाई-“मैं बेला...।”
“बेला?” मोना चौधरी की आवाज संभल चुकी थी-“तू इतनी धीमे क्यों बोल रही है?”
“जो मैं कह रही हूं मेरी बात सुन।” नगीना फुसफुसाई-“इस वक्त हम मुसीबत में हैं। मैं तेरे को खुलकर ज्यादा बातें नहीं बता सकती। रानी ताशा इस वक्त बंगले पर मौजूद है उसने हम पर कब्जा जमा रखा है। देवराज चौहान, बबूसा और अर्जुन भारद्वाज के साथ होटल पार्क व्यू पर्ल के कमरा नम्बर 212 में मौजूद है। उन्हें यहां के हालातों का नहीं पता। तू देवराज चौहान को वहां से निकालकर सुरक्षित जगह पहुंचा दे, उसके बाद हमें रानी ताशा के हाथों से निकालने की कोशिश करना।”
“समझी।” मोना चौधरी का गम्भीर स्वर में कहा-“मैं सुबह मुम्बई पहुंच जाऊंगी।”
“बंगले पर सोमाथ नाम का आदमी है जो कि किसी खास धातु का बना लगता है। आम इंसान नहीं है। उस पर गोलियां असर नहीं करती। वो बहुत खतरनाक है। इन पर आसानी से काबू नहीं पाया जा सकता।”
“तू फिक्र न कर।” मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी-“मैं देखूंगी।” नगीना ने फोन बंद किया और जगमोहन की तरफ सरका दिया।
“मिन्नो कल मुम्बई आ जाएगी।” नगीना ने फुसफुसाकर कहा।
“बेकार है। वो इन लोगों का मुकाबला नहीं कर सकेगी।” जगमोहन बोला।
“मैंने उसे सब समझा दिया है। पहले तो वो देवराज चौहान को होटल से सुरक्षित जगह पहुंचाएगी। फिर हमें निकालने की कोशिश करेगी। कहीं वो भी यहां आकर फंस न जाए।” नगीना ने गहरी सांस ली।
“हमें खुद बच निकालने की कोशिश करनी चाहिए।” जगमोहन ने कहा।
“जब तक सोमाथ है, हम कुछ नहीं कर सकते।” नगीना दांत भींचे कह उठी-“कुछ किया तो ये हमें मार देंगे।”
“क्या बातें हो रही हैं?” तभी धरा धीमे स्वर में कह उठी-“फोन किसे किया था अभी?”
उसी पल सोमाथ उनकी तरफ बढ़ता कह उठा।
“बातें मत करो।”
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रात के नौ बज रहे थे। अर्जुन भारद्वाज, नीना चिंता में थे कि देवराज चौहान को होश नहीं आया था अभी तक। जबकि उसकी सांसें सही चल रही थीं। नीना ने एक-दो बार कहा भी था कि डॉक्टर को बुलाकर चेक करवा लें। परंतु बबूसा इस हक में नहीं था कि यहां पर कोई आए। चिंता बबूसा को भी बहुत थी कि राजा देव को होश क्यों नहीं आ रहा। वो अधिकतर समय देवराज चौहान के करीब ही बैठा रहा था।
नीना ने अर्जुन भारद्वाज से कहा।
“रानी ताशा अभी तक नहीं लौटी है सर। इतनी देर वो देवराज चौहान के बंगले पर क्या कर रही है?”
“कह नहीं सकता। नगीना ने मेरे से बात की थी। पूछा था कि देवराज चौहान ने रानी ताशा का चेहरा देखा कि नहीं, मैंने हां कहा तो फोन कट गया।”
“परंतु रानी ताशा को अब तक लौट आना चाहिए था।”
“नगीना को फोन करता हूं।” अर्जुन ने मोबाइल उठाया और नगीना का नम्बर मिलाया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी, परंतु कॉल रिसीव नहीं की गई।
अर्जुन ने दो-तीन बार नम्बर मिलाया। पर बात नहीं हो सकी।
“कोई गड़बड़ जरूर है।” अर्जुन भारद्वाज कान से फोन हटाता कह उठा।
“बात नहीं हो पा रही?”
“बेल जा रही है, कॉल रिसीव नहीं की जा रही।”
“फिर तो हमें वहां जाकर देखना चाहिए। रानी ताशा का कोई भरोसा नहीं, वो क्या कर दे।”
अर्जुन ने नीना को देखा। चेहरे पर सोचें नाच रही थीं।
“हमारा वहां जाना ठीक नहीं। अगर रानी ताशा ने वहां कुछ कर डाला है तो हम कुछ नहीं कर सकते। सोमाथ का मुकाबला करना हमारे बस का नहीं। वो लौह इंसान है।” अर्जुन भारद्वाज ने सोचों में डूबे कहा-“परंतु बबूसा को वहां भेजा जा सकता है।”
अर्जुन और नीना की निगाह बबूसा पर गई।
बबूसा बेड के पास कुर्सी रखे, बैठा, बार-बार बेहोश देवराज चौहान को देख रहा था।
“बबूसा।” अर्जुन बोला-“देवराज चौहान की पत्नी नगीना मेरा फोन नहीं उठा रही।”
बबूसा ने अर्जुन को देखा, कहा कुछ नहीं।
“रानी ताशा वहां गई हुई है। कहीं उसने वहां पर कुछ बुरा न कर दिया हो।” अर्जुन ने पुनः कहा।
“मुझे सिर्फ राजा देव की चिंता है।” बबूसा का स्वर शांत था।
“वो देवराज चौहान की पत्नी है, तुम्हें उसकी...”
“राजा देव के अलावा मुझे किसी की परवाह नहीं है। मेरे लिए राजा देव ही सब कुछ है।” बबूसा ने कहा।
“नगीना को कुछ हो गया तो राजा देव को बहुत दुख होगा।”
“राजा देव को ठीक रहना चाहिए और किसी बात से मुझे मतलब नहीं है।”
“अजीब सनकी इंसान है।” नीना ने मुंह बनाकर कहा।
बबूसा, नीना को देखकर मुस्कराया, परंतु चुप रहा।
“आपको वहां जरूर झांक आना चाहिए सर। खामोशी से, चुपके से कि वहां क्या हो रहा है।” नीना बोली।
“मेरे ख्याल में ये ठीक नहीं होगा।”
“आप डर रहे हैं सर?”
“नहीं नीना।” अर्जुन भारद्वाज सोच भरे स्वर में कह उठा-“बात डरने की नहीं है। रानी ताशा को अब तक आ जाना चाहिए था। लेकिन वो नहीं लौटी। अब नगीना भी फोन नहीं उठा रही। सम्भव है रानी ताशा ने उन्हें कैद रख लिया हो। फोन अपने कब्जे में ले लिए हो कि ऐसी स्थिति में देवराज चौहान जरूर वहां पहुंचेगा।”
“राइट सर।” नीना की आंखें चमक उठीं-“आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। ये ही बात होगी।”
“वो लोग इस बारे में सतर्क होंगे कि कोई वहां पहुंचे और वो उसे पकड़े, देवराज चौहान का पता पूछे। स्पष्ट है कि अभी तक नगीना, जगमोहन, धरा ने नहीं बताया उन्हें कि देवराज चौहान कहां है, बताया होता तो रानी ताशा कब की यहां पहुंच चुकी होती।”
“फिर तो देवराज चौहान का यहां रहना खतरे से खाली नहीं। किसी ने, या कहें कि धरा ने मुंह खोल दिया तो गड़बड़ हो जाएगी।”
“जब तक देवराज चौहान बेहोश है, हम कहीं नहीं जा सकते। बेहोश इंसान को यहां से ले जाने की कोशिश करेंगे तो होटल की सिक्योरिटी तुरंत हमें रोक लेगी। हो सकता है तब वो पुलिस को भी बुला लें।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“सर।” नीना तेज स्वर में कह उठी-“देवराज चौहान को होश आ रहा है।”
अर्जुन भारद्वाज की निगाह देवराज चौहान की तरफ उठी। देवराज चौहान के हाथ हौले-हौले हिलने लगे थे। थोड़ा-सा सिर भी हिला था। बबूसा का चेहरा प्रसन्नता से भर उठा था देवराज चौहान को हिलते पाकर।
“सब ठीक है। राजा देव को होश आ रहा है।” बबूसा खुशी से बोला-“बहुत लम्बी बेहोशी में रहे राजा देव। परंतु होश आने पर जाने क्या हाल होगा राजा देव का, रानी ताशा का चेहरा देखकर बेहोश हो गए थे।”
“तुम तो कहते थे कि रानी ताशा का चेहरा देखने के बाद देवराज चौहान को तुम्हारे ग्रह की बातें याद आ जाएंगी।” अर्जुन बोला।
“महापंडित ने ऐसा ही कहा था।” बबूसा गम्भीर हो गया।
“क्या पता अब तक देवराज चौहान को सब याद आ गया हो।” नीना ने कहा।
उसी पल देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली। होंठ पुनः कांपे।
“ता-शा...।” देवराज चौहान के होंठों से फुसफुसाहट निकली।
बबूसा की आंखें सिकुड़ी।
अर्जुन भारद्वाज और नगीना की नजरें मिलीं।
“लगता है देवराज चौहान को, रानी ताशा के बारे में सब याद आ गया है।” नीना कह उठी।
तीनों की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकी थी।
“राजा देव।” बबूसा, देवराज चौहान का हाथ पकड़कर बोला-“होश में आइए राजा देव।”
परंतु देवराज चौहान को फौरन होश न आ सका। कई मिनट बीत गए। धीमे-धीमे उसके हाथ-पांव हिलते रहे। गर्दन दाएं-बाएं होती रहीं। बबूसा ने राजा देव का हाथ थाम रखा था। फिर देवराज चौहान की बंद आंखों में थिरकन-सी दौड़ पड़ी। पलकें जैसे कांप उठीं और अगले ही पल देवराज चौहान ने आंखें खोल दी।
“राजा देव।” बबूसा खुशी से कह उठा-“आपको होश आ गया।”
देवराज चौहान सीधे छत को देख रहा था।
अर्जुन भारद्वाज और नीना की आंखें देवराज चौहान पर थीं। देवराज चौहान ने नीना-अर्जुन भारद्वाज को देखा फिर पास बैठे बबूसा को देखा।
“ऐसा लगता है जैसे लम्बी और गहरी नींद से उठा हूं।” देवराज चौहान ने कहा और उठ बैठा।
“तुम्हें याद है तुम बेहोश हो गए थे।” अर्जुन बोला
“इतना याद है कि मैंने रानी ताशा के चेहरे को देखा था। उसके बाद क्या हुआ, पता नहीं, कुछ याद नहीं।” देवराज चौहान बोला।
“तुम बेहोश हो गए।”
देवराज चौहान ने पास बैठे बबूसा को देखा।
“कुछ याद आया राजा देव?”
“क्या?”
“सदूर ग्रह के बारे में-रानी ताशा के बारे में मेरे बारे में?”
“नहीं, मुझे कुछ भी याद नहीं आया।” देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया।
“लेकिन होश आने से पहले तुम्हारे होंठों से ताशा निकला था।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।
“मुझे याद नहीं।” देवराज चौहान ने गहरी सांस ली।
“आपके होंठों से ताशा निकला था राजा देव।” बबूसा बोला-“मैंने तो सोचा था कि आपको सब कुछ याद आ गया है।”
“कुछ याद नहीं आया।” देवराज चौहान बेड से उठ खड़ा हुआ और अर्जुन से बोला-“मुझे भूख लग रही है।”
“सर मैंने भी सुबह से कुछ नहीं खाया।”
“रूम सर्विस को डिनर के लिए कह दो। चार लोगों का डिनर।”
नीना इंटरकॉम की तरफ बढ़ गई। देवराज चौहान ने बाथरूम जाकर हाथ-मुंह धोया और कमरे में आकर सिगरेट सुलगा ली। कुर्सी पर बैठ गया।
बबूसा एक टक देवराज चौहान को देखे जा रहा था तो देवराज चौहान बोला।
“क्या बात है बबूसा?”
“महापंडित कभी झूठ नहीं बोलता राजा देव। उसने कहा था कि रानी ताशा का चेहरा देखते ही आपको सदूर ग्रह की बातें याद आने लगेंगी। परंतु आपको तो कुछ भी याद नहीं आया। मेरे लिए ये उलझन की बात है।”
देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।
“ये बात तुम्हें महापंडित से पूछनी होगी कि मुझे याद क्यों नहीं आया?” देवराज चौहान ने कहा।
“तुम रानी ताशा को देखते ही बेहोश होकर क्यों गिर पड़े थे?” अर्जुन ने पूछा।
“रानी ताशा को देखने के बाद क्या हुआ मुझे कुछ याद नहीं।”
“होश में आने से पहले तुम्हारे होंठों से ताशा निकला। इसका भी जरूर कोई खास मतलब होगा।”
“जो मन में आए मतलब निकाल लो।” देवराज चौहान ने कश लिया और फोन निकालकर नम्बर मिलाने लगा।
“नगीना को-क्यों?” देवराज चौहान ने अर्जुन भारद्वाज को देखा।
“तुम्हारी पत्नी फोन नहीं उठा रही, कुछ देर पहले मैंने फोन किया था।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“जगमोहन को फोन कर लेते...”
“उसका नम्बर मेरे पास नहीं है। लेकिन उसे भी फोन करने का कोई फायदा नहीं होगा। रानी ताशा तुम्हारे बंगले पर पहुंच चुकी है।”
“क्या?” देवराज चौहान चौंककर खड़ा हो गया। चेहरे पर कठोरता उभर आई।
“विजय बेदी ने तुम्हारे बंगले का पता लगा लिया था। उसके बाद तुम्हारी पत्नी से एक बार बात हुई, उसी का फोन आया था उसने पूछा कि तुमने रानी ताशा का चेहरा देख लिया है, मैंने हां कही तो फोन कट गया।” अर्जुन ने बताया।
“तुम बंगले पर क्यों नहीं गए?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।
“कोई फायदा नहीं होता। वहां पर, रानी ताशा के साथ सोमाथ भी है। सोमाथ को मैं भुगत चुका हूं। उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता। वो बहुत शक्तिशाली है। लोहे जैसा है वो...”
“उसने तो ‘सर’ की जान ले ली होती।” नीना पास आती कह उठी-“वो भला हो बेदी भैया का, जो हमें बचाकर, भगा दिया।”
देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी।
“मुझे अभी बंगले पर जाना होगा।'
“नहीं देवराज चौहान।” अर्जुन भारद्वाज ने चेतावनी भरे, गम्भीर स्वर में कहा-“मेरी बात को हल्के में मत लो। सोमाथ का मुकाबला करना असम्भव है तुम्हारे लिए। वहां गए तो घिर जाओगे। मेरे ख्याल में उन्होंने जगमोहन, तुम्हारी पत्नी और धरा को बंधक के तौर पर रख लिया है कि उनके लिए तुम वहां पहुंचो।”
“ऐसा तुम कैसे कह सकते हो?”
“क्योंकि रानी ताशा अभी तक वापस नहीं लौटी, जबकि तुम्हारे न मिलने पर उसे वापस लौट आना चाहिए था। उधर तुम्हारी पत्नी भी फोन कॉल रिसीव नहीं कर रही। जगमोहन का फोन एक बार भी तुम्हें नहीं आया। सब बातों को मिलाया जाए तो ये ही नतीजा आता है कि वहां पर रानी ताशा तुम्हारे पहुंचने का इंतजार कर रही है।”
“नगीना, जगमोहन खतरे में हैं।” देवराज चौहान के दांत भिंच गए-“मुझे वहां जाना...”
“ऐसी गलती मत कर देना देवराज चौहान साहब।” नीना ने दृढ़ स्वर में कहा-“तुम वहां फंस जाओगे। रानी ताशा तुम्हें ही तो ढूंढ़ रही है, वो जाने तुम्हारे साथ क्या करना चाहती है। उसे नगीना या जगमोहन या धरा से कुछ नहीं लेना-देना। उसे तुमसे मतलब है। नगीना, जगमोहन और धरा को तो उसने सिर्फ चारा बनाया है कि तुम उसके जाल में आ फंसो। बात रानी ताशा की होती तो परवाह नहीं थी, उसे देख लेते, परंतु वहां पर सोमाथ है और तुम उससे मुकाबला नहीं कर सकोगे।”
देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी छाई रही।
“सोमाथ के साथ तीन लोग और भी हैं।” अर्जुन बोला-“उनके बारे में मैं नहीं जानता कि वो कितनी ताकत रखते हैं।”
खामोश बैठा बबूसा बेचैनी से कह उठा।
“वो तीनों जोबिना चलाने वाले हैं। उन तीनों के पास जोबिना है।”
“जोबिना?” नीना ने बबूसा को देखा।
“ऐसा हथियार, जिसके इस्तेमाल करने पर सामने वाला राख के ढेर में बदल जाता है। कुछ भी नहीं बचता, सिवाय राख के। सदूर ग्रह का ये सबसे खतरनाक हथियार माना जाता है और ग्रह के महत्वपूर्ण लोगों के पास ही जोबिना होती है। जोबिना को राजा देव आपने ही बनाया था, क्या भूल गए आप।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं जगमोहन और नगीना के पास जा रहा...”
“तुम हमारी बात समझते क्यों नहीं?” अर्जुन भारद्वाज झल्ला उठा-“उन्हें पकड़कर रानी ताशा तुम्हें फंसाने की चेष्टा कर रही है और तुम इतनी साधारण-सी चाल में फंसने जा रहे हो। उन लोगों की जान को कोई खतरा नहीं है। उन्हें चारा बनाया जा रहा है कि तुम आ फंसो। समझ से काम लो देवराज चौहान । ये तुम्हारे लिए कठिन वक्त है।”
“मतलब कि तुम मेरे साथ नहीं जाना चाहते।” देवराज चौहान के दांत भिंचे हुए थे।
“नहीं। क्योंकि मैं सोमाथ का मजा चख चुका हूं। मैं तो बच आया था, परंतु तुम नहीं बचने वाले। क्योंकि रानी ताशा को तुम्हारी जरूरत है। वो तुमसे मिलना चाहती है। तुम इतने बड़े डकैती मास्टर हो और साधारण-सी बात...”
“नगीना और जगमोहन की मुझे चिंता...”
“उनकी चिंता मत करो। रानी ताशा उन्हें कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाएगी, क्योंकि वो दोनों तुम्हारे खास हैं। उन्हें नुकसान पहुंचाकर वो तुम्हें नाराज नहीं करना चाहेगी।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने अपना सख्त चेहरा बबूसा की तरफ उठाया।
“बबूसा हाजिर है राजा देव।” बबूसा फौरन गम्भीर स्वर में कह उठा-“आपका सेवक आपके साथ चलेगा। परंतु हम वहां विजय हासिल कर लेंगे, ये बात पक्के तौर पर नहीं कह सकता। क्योंकि महापंडित ने पहले ही कह दिया है कि सोमाथ मुझसे कहीं ज्यादा ताकतवर है और मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकता। मैं सोमाथ से हार गया तो रानी ताशा आप पर आसानी से काबू पा लेगी। ये भी सम्भव है कि आप रानी ताशा के दीवाने हो जाएं और मेरी एक न सुनें। ये आदमी ठीक कहता है कि रानी ताशा आपके खास लोगों को सलामत रखेगी। उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगी। वो आपकी नाराजगी नहीं चाहती। वो आपको अच्छे-से-अच्छा बनकर दिखाएगी। परंतु ये सब उसकी चालों का हिस्सा होगा। जैसे भी हो वो आपको वापस सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है। पहले प्यार से कहेगी। आपके आगे हाथ जोड़ेगी। अगर आप नहीं माने तो सोमाथ की सहायता से दूसरे ढंग से आपको लेकर पोपा की तरफ चल देगी। महापंडित तो इसी वक्त का इंतजार कर रहा है कि कब आप सदूर पर पहुंचे और वो अपनी मशीनों द्वारा आपके दिमाग के उस हिस्से को साफ कर दें, जहां रानी ताशा के धोखे दिए जाने की बात दर्ज है। एक बार आप रानी ताशा के सामने जा पहुंचे तो फिर खेल की डोर रानी ताशा के हाथ में होगी। तब वो हो जाएगा, जो वो चाहती है।”
देवराज चौहान बबूसा को देखता रहा। होंठ भिंचे रहे।
“तो तुम चाहते हो कि मैं रानी ताशा से दूर भागता रहूं।” देवराज चौहान गुर्राया।
“जब तक आप कोई युक्ति नहीं सोच लेते। मैं तो सेवक हूं। छोटी-मोटी बातों की सोच सकता हूं। परंतु युक्ति तो आपको ही सोचनी है राजा देव। आप तो हर तंग जगह से रास्ता निकाल लेने में माहिर हैं।”
तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई। वेटर डिनर ले आया था।
उन सबने डिनर किया। इस दौरान ज्यादा बात नहीं हुई। देवराज चौहान क्रोध में भरा बैठा था। उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। नगीना और जगमोहन की उसे चिंता थी। धरा भी वहां थी। अर्जुन भारद्वाज की बात उसे ठीक लगी कि रानी ताशा ने नगीना और जगमोहन को पकड़कर, उसके लिए जाल बिछा रखा है। न तो उन्हें फोन करने दे रही होगी, न फोन रिसीव करने दे रही होगी कि ऐसे में वो जरूर बंगले पर पहुंचेगा। परंतु कब तक वो रानी ताशा से छिपकर इस तरह रहेगा। उसे सामने आना ही होगा। अर्जुन को सोमाथ का डर था और बबूसा भी सोमाथ से कतरा रहा था। ऐसा क्या है सोमाथ में जो बबूसा जैसा इंसान भी आगे बढ़ने में हिचक रहा है। ये बात भी उसे ठीक लगी कि रानी ताशा, जगमोहन और नगीना को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी।
वेटर बर्तन ले गया था। उसे कॉफी के लिए कह दिया था।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कुर्सी पर बैठ गया।
“हमें ये जगह भी छोड़ देनी चाहिए।” अर्जुन भारद्वाज कह उठा।
देवराज चौहान ने अर्जुन को देखा।
“यहां रहना ठीक नहीं। सामने रानी ताशा का कमरा है। वो हमें देख भी सकते हैं। तुम यहां रानी ताशा का चेहरा देखने आए थे और वो देख लिया है। मेरा ख्याल है कि मैं अभी यहीं रहूं परंतु तुम बबूसा के साथ किसी और जगह पर चले जाओ।”
“कोई जल्दी नहीं है। रानी ताशा मेरे बंगले से अभी यहां नहीं आने वाली।”
“कभी तो वो आएगी ही।”
देवराज चौहान ने बबूसा से कहा।
“तुम्हें कुछ करना चाहिए इस मौके पर।”
“हुक्म दीजिए-आपका सेवक क्या करे?” बबूसा बोला।
“तुम ही कहो।”
“हुक्म तो आपको ही देना होगा राजा देव।”
“तुम शुरू से ही मुझे रोक रहे हो कि मैं रानी ताशा के सामने न जाऊं। परंतु ये ठीक नहीं है। रानी ताशा से मैं कब तक दूर रह सकता हूं, जबकि वो मुझ तक पहुंचने की चेष्टा कर रही है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“अब उसने मुझ पर दबाव बनाने के लिए जगमोहन और नगीना को बंगले पर ही कैद कर लिया है। वो वहां मेरा इंतजार कर रही है।”
“आप रानी ताशा की चालों को समझ नहीं रहे राजा देव।” बबूसा कह उठा-“सिर्फ एक बार, आप उसके सामने पड़ गए तो वो अपनी कोशिश में कामयाब हो जाएगी। आपको जबरन सदूर पर ले जाएगी। आपको कुछ भी याद नहीं आया होगा और वो वहां महापंडित से कहकर, आपके दिमाग का वो हिस्सा साफ करा देगी जहां उसके धोखा दिए जाने की बातें दर्ज हैं। मैं रानी ताशा की चाल को पूरी तरह समझ रहा हूं। सब कुछ आपके सामने है, जल्दी मत कीजिए, वरना मेरी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। आप कोई तरकीब सोचिए। तरकीब निकाल लेने में आप तो माहिर रहे हैं राजा देव।”
वेटर कॉफी दे गया। वो सब कॉफी पीने लगे।
तभी अर्जुन भारद्वाज कह उठा।
“रानी ताशा को छोड़कर, सोमाथ के बारे में सोचना चाहिए कि उस पर कैसे काबू किया जाए। रानी ताशा की ताकत सोमाथ है, जब तक वो आजाद है कुछ नहीं कहा जा सकता। सोमाथ के लिए एक साथ बीस लोग भी कम हैं।”
“तुम उन तीन आदमियों को क्यों भूल रहे हो जो उनके साथ हैं।” बबूसा बोला।
“उन्हें तो संभाला जा सकता है।” अर्जुन ने बबूसा को देखा।
“उनके पास जोबिना है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“वो पूरी एक फौज को राख के ढेर में बदल सकते हैं। रानी ताशा ने पूरा इंतजाम कर रखा है कि वो हर तरह के हालातों का मुकाबला कर सके।”
“तुम्हारा मतलब कि हम रानी ताशा का मुकाबला नहीं कर सकते।” देवराज चौहान बोला।
“नहीं कर सकते।” बबूसा गम्भीर हो गया।
“मैं अगर रानी ताशा के सामने पड़ा तो वो मुझे जबरन अपने साथ सदूर ग्रह पर ले जाएगी।”
बबूसा ने सिर हिला दिया।
“लेकिन इसका कोई हल निकालना होगा। इस तरह मैं अपने को बंद करके नहीं रख सकता।” देवराज चौहान झल्ला उठा।
“इसका एक ही हल है कि आपको सदूर ग्रह वाले जन्म की बातें याद आ जाएं। आपने रानी ताशा का चेहरा देख लिया है और मैं परेशान हूं कि महापंडित के कहे मुताबिक, आपको कुछ याद क्यों नहीं आया?” बबूसा व्याकुल हो उठा।
“ये तुम जानो। तुमने ही कहा था कि रानी ताशा को देखने पर मुझे सब कुछ याद आ जाएगा।”
“महापंडित ने कही थी मुझे ये बात। कुछ समझ नहीं आता, महापंडित की बात गलत नहीं हो सकती।”
“सर।” नीना कह उठी-“मुझे तो नींद आ रही है।” नीना बेड की तरफ बढ़ गई।
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रात के बारह बज रहे थे।
अर्जुन भारद्वाज नीना और बबूसा बेड पर सो चुके थे। देवराज चौहान लम्बे सोफे पर तकिया रखे लेटा सोचों में डूबा था कि जगमोहन और नगीना को कैसे बंगले से निकाले। मस्तिष्क में कई योजनाएं बन बिगड़ रही थीं। इस बात को उसने गम्भीरता से लिया था कि सोमाथ उसके लिए समस्या बन सकता है और वो तीनों आदमी, जो कि जोबिना जैसा हथियार रखे हुए हैं, वो भी खतरनाक काम कर सकते हैं। उसका मन तो था कि एक बार सीधे-सीधे रानी ताशा के पास पहुंच जाए, परंतु अर्जुन भारद्वाज और बबूसा की बातें उसे रोके हुए थीं और वो किसी अन्य तरीके से काम करने की सोच रहा था। कमरे में शांति थी। बाहर होटल में भी रात की चुप्पी व्याप्त होने लगी थी, कभी-कभार कोई खटका अवश्य सुनाई दे जाता था। एकाएक देवराज चौहान को महसूस हुआ जैसे उसके मस्तिष्क में उथल-पुथल मच गई हो। बहुत गहरी हलचल। तभी आंखों के सामने सफेद सितारे से चमक उठे। वो नहीं समझ पाया कि क्या हो रहा है। सिर को कई बार झटका दिया, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ एकाएक कई दृश्य उसके मस्तिष्क में उभरने लगे कि
उसी पल रानी ताशा का इंतेहाई खूबसूरत चेहरा उसके मस्तिष्क में आकर ठहर गया। वो मुस्करा रही थी।
“ताशा।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
ताशा को खिलखिलाकर, पलटते हुए भागते देखा।
देवराज चौहान को लगा वो उसके पीछे भाग रहा है। ताशा खिलखिलाती जा रही है। परंतु ये भागना ज्यादा देर तक न रहा। उसने ताशा की कमर में पीछे से दोनों हाथ डालकर पकड़ लिया।
“ये ही तो मैं चाहती थी देव कि आप मुझे पकड़ें।” ताशा ने हंसते हुए कहा था।
देवराज चौहान ने उसकी कमर छोड़ी और सामने आकर ताशा के कंधों पर हाथ रख दिए। ताशा अभी भी मुस्करा रही थी। मोहित-सा वो, ताशा को देखते रह गया।
“ऐसे क्या देख रहे हो देव?” ताशा ने उसकी नाक पर उंगली लगाई।
“तुम इतनी खूबसूरत क्यों हो?” उसका स्वर प्यार में डूबा हुआ था।
“हूं तो-हूं।” ताशा इठलाकर बोली-“मैं खूबसूरत न होती तो आप मुझे मिलते ही नहीं।”
“तुमने मेरा खाना-पीना हराम कर रखा है। सदूर के काम छूट रहे हैं। हर वक्त मन तुमसे मिलने को लगा रहता है। हर वक्त तुम्हारी ही यादों में खोया रहता हूं।” स्वर में प्यार भरा कम्पन था-“तुम सदूर की दुश्मन बन गई हो।”
“वो कैसे?”
“तुम्हारी वजह से मैं अपने कामों को ठीक से नहीं कर पा रहा। राजा होने के कारण, मुझे सबसे पहले जनता की जरूरतों को पूरा करना चाहिए, परंतु तुम्हारी वजह से मेरा मन कामों में नहीं लगता।”
ताशा खिलखिलाकर हंस पड़ी।
“अब आप ये कहेंगे कि मैंने आप पर जादू कर दिया है।” बोली ताशा।
“हां। तुमने सच में मुझ पर जादू कर दिया है। मुझे पागल बना दिया है। तुम सदूर की सबसे खूबसूरत युवती हो।”
“सच राजा देव?” ताशा का स्वर कांप उठा।
“हां ताशा। तुम्हारे बिना अब मेरा मन नहीं लगता। मैं तुमसे दूर नहीं रह सकता।” स्वर में प्यार ठूंस-ठूंसकर भरा था।
ताशा की आंखों में पानी चमक उठा।
“ये क्या ताशा-तुम...”
“मेरे प्यारे देव।” ताशा के शब्द लरज उठे-“मेरा भी ये ही हाल है। रातों को नींद नहीं आती। करवटें लेती रहती हूं। आपका मोहक चेहरा हर वक्त मेरी आंखों के सामने छाया रहता है। हर वक्त आपके बारे में ही सोचती हूं। मुझे जाने क्या हो गया है।”
“तुम्हें भी वो ही हुआ है, जो मुझे हुआ है।” देव का स्वर कांप रहा था-“हम दोनों को प्यार हो गया है।”
“हां मेरे देव। मुझे आपसे प्यार हो गया है। मैं आपके बिना नहीं रह सकती।” ताशा की आंखों से आंसू निकलकर गालों पर आ गए।
राजा देव ने ताशा के गालों से आंसू साफ करते हुए कहा।
“मुझे दर्द होता है तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर। इसे बहाओ मत।”
देव की आवाज में कम्पन था-“हम शादी करेंगे ताशा।”
“सच?” ताशा ने देव की बांह पकड़ ली-“सच देव। हम शादी करेंगे?”
“हां ताशा, तुम सदूर की रानी बनोगी। मेरी पत्नी बनोगी। तुम सदूर की सबसे खूबसूरत औरत हो और मुझे तुमसे इतना प्यार हो गया है कि अगर तुम मेरे से दूर रहीं तो सदूर के कामों में मेरा मन नहीं लगेगा।” थरथरा रहा था देव का स्वर।
तभी देवराज चौहान के मस्तिष्क में सफेद सितारे चमके और उसे लगा कि वो किसी गहरे कुएं से बाहर आ गया हो। चेहरे पर अजीब-से भाव छाए हुए थे। आंखों में हैरत थी।
‘ताशा, ओह मेरी ताशा।’ देवराज चौहान बड़बड़ा उठा-‘ताशा को तो मैं जानता हूं। वो-वो मेरी पत्नी है। सदूर की रानी है। म-मैं सदूर का राजा-राजा देव-ओह ताशा-ताशा-ताशा, तुम कहां खो गई थीं। मेरा प्यार, मेरा जीवन, सब कुछ ताशा ही तो है। ओह मैं कहां भटक गया, जो ताशा को मुझे लेने आना पड़ा। सदूर ग्रह मेरे बिना कैसे चल रहा होगा। मैं ताशा से जुदा हो गया, ये नहीं हो सकता। मेरी सांसें तो ताशा में बसती हैं।’ परेशान-सा देवराज चौहान उठा और कमरे में टहलता रहा। चेहरे पर बेचैनी दिखाई दे रही थी। हर समय गम्भीर रहने वाले देवराज चौहान के चेहरे पर प्यार उमड़ा दिख रहा था। वो अजीब-सी हालत में पहुंच गया था। वापस सोफे पर आ लेटा-‘ताशा।’ देवराज चौहान तड़प-भरे स्वर में बड़बड़ा उठा-‘मेरी ताशा...।’ और फिर उसे सदूर ग्रह का वक्त याद आता चला गया। सब कुछ याद आने लगा। वो दिन भी जब ताशा को पहली बार देखा था। सदूर छोटा-सा ग्रह था। जिसे हम कह सकते हैं कि चालीस किलोमीटर के व्यास में फैला हुआ था और एक प्लेट की तरह के आकार में था, जैसे कि ग्रह के किनारे थोड़े उठे हुए और बीच की सतह कुछ मोटी थी। लोगों की संख्या भी दो लाख से ज्यादा नहीं थी। शानदार ग्रह था सदूर। पेड़-झरने, पहाड़ नदी, पानी, किसी भी चीज की कमी नहीं थी। इंसानों की जरूरत का सारा सामान ग्रह पर ही मौजूद था। मुख्य खाना ‘टाकोली’ था, टाकोली जो कि सेव के आकार का फल था, जिसकी खेती की जाती थी। पहले ये फल सफेद रंग का निकलता था और धीरे-धीरे बड़ा होते, इसका रंग मटमैला-सा हो जाता और ये सूख भी जाता था। ‘टाकोली’ जब सूख जाता तो पक लिया मानकर तोड़ लिया जाता और इन टाकोली के सूखे फलों को, पीसकर इनका पाउडर बना लिया जाता। उस पाउडर में पानी डालकर (आटे की तरह) गूंधा जाता और फिर रोटी बनाकर सब्जी के साथ खाई जाती। सदूर पर सब्जियों की पैदावार भी खूब थी, परंतु ये सारी सब्जियां और उनके रंग, पृथ्वी ग्रह से जुदा थे। टाकोली को पीसने के लिए लोग, पहाड़ी पत्थरों के बने ड्रम जैसे कटोरों का इस्तेमाल करते। टाकोली इन कटोरों में डालकर, लकड़ी के डंडों से इन्हें तोड़कर पीसा जाता था। सदूर के पहाड़ सफेद रंग के थे और इन पर नीले-पीले-हरे-गुलाबी कई रंगों के पेड़ खड़े थे जो जंगल जैसा माहौल पैदा कर रहे थे। पेड़ों का तना अलग-अलग रंगों का होता। सदूर की मिट्टी लाली लिए हुए थी और थोड़ी दानेदार थी। यहां घास का रंग भूरा था जो कि ग्रह को और भी सुंदर बनाता था। सदूर की सड़कें लाली लिए मिट्टी की बनी थीं। मकान भी इसी मिट्टी के साथ, बड़े-बड़े पहाड़ी पत्थरों के बनाए दिख रहे थे। अधिकतर मकान एक मंजिला ही थे। सदूर ग्रह की मूल्यवान धातु भूरे रंग की कठोर वस्तु मानी जाती थी, जो कि पहाड़ों की तरफ जाने पर, खोजी जाती थी। वो धातु जिसके पास ज्यादा हो, उसे बड़ा आदमी माना जाता था। उस धातु को देकर, मकान-जमीन, खाने-पीने की चीजें, पहनने के वस्त्र घोड़े-बग्गी, हर चीज खरीदी जा सकती थी। टाकोली और सब्जियों की पैदावार करने वाले लोग, इन चीजों को बेचकर धातु प्राप्त करते थे। उसी धातु से चौबीस इंच तक लम्बे छुरे जैसे लड़ाई के हथियार भी तैयार किए जाते थे और तलवारें भी बनाई जाती थीं। सदूर पर बहुत कम लोगों के पास ऐसे हथियार थे, क्योंकि धातु का पहाड़ों पर मिलना आसान नहीं था। कई लोग धातु खोजने पहाड़ों की तरफ जाते थे। उस तरफ खतरनाक जानवर भी पहाड़ के घने जंगल में पाए जाते थे, जो कि धातु खोजने आए लोगों का शिकार कर डालते थे। सदूर ग्रह बहुत शांत और अच्छा ग्रह था, परंतु सदूर पर विद्रोही लोग भी थे। जो नदिया-झरनों और पहाड़ों की तरफ छिपकर रहते थे। उनकी मांग थी कि उनके सरदार को सदूर का राजा बनाया जाए। ऐसे में किले के सिपाहियों के साथ उनकी लड़ाई भी होती और कई लोग मारे जाते। सदूर ग्रह मध्यम-सी, नामालूम होने वाली रफ्तार में दाएं से बाएं घूमता रहता था और खास बात ये थी कि सदूर का सूर्य हमेशा ही सदूर के किनारे पर रहता था। आसमान के बीचोंबीच कभी नहीं आता था। किनारे से सूर्य ग्रह की जमीन पर ऐसी धूप फेंकता, तो वो माहौल बन जाता, जो पृथ्वी पर शाम के पांच बजे के बाद सूर्य की धूप का होता है। पीले रंग की चमकीली धूप सदूर की जमीन पर पड़ती और पेड़ों-मकानों के साए हर वक्त लम्बे ही दिखाई देते थे। पृथ्वी की अपेक्षा यहां सब कुछ अनोखा था। ग्रह के बीचोबीच सफेद पहाड़ी पत्थरों का राजा देव का शानदार किला बना हुआ था। किले की मीनारें आसमान को छूती लगती थीं। सदूर के लोग जानते थे कि राजा देव उन मीनारों के भीतर की सीढ़ियां तय करके, सबसे ऊपर पहुंचकर पूरे सदूर ग्रह को निहारते थे। आज से पांच साल पहले राजा देव के पिता सदूर ग्रह के राजा थे। परंतु विद्रोहियों से एक बार सिपाही लड़ रहे थे और एक जहरीला तीर राजा देव के पिता को लग गया था और उनकी मृत्यु हो गई। उसके बाद राजा देव ने फौरन ही सदूर ग्रह का कार्यभार संभाल लिया और राजा देव बन बैठे। विद्रोहियों के प्रति उनका खून खौल रहा था। परंतु विद्रोहियों ने अपनी गलती मानी और कहा कि उनका इरादा राजा पर हमला करने का नहीं था। जिस विद्रोही का तीर राजा को लगा था उसे अपराधी के तौर पर राजा देव के हवाले कर दिया गया तो राजा देव ने देखते ही देखते तलवार से उसकी गर्दन काट दी थी। राजा देव विद्रोहियों की समस्या खत्म कर देना चाहते थे परंतु कई बार की बात के बाद भी कोई हल नहीं निकला। वो इस बात पर अड़े थे कि उनका नेता राजा बनेगा। परंतु राजा देव उनकी ये बात मानने को तैयार नहीं थे। विद्रोहियों की संख्या पांच हजार से ज्यादा थी। इतने ज्यादा लोगों को ताकत के बल पर नहीं संभाला जा सकता था। बहरहाल ये मसला चलता आ रहा था। पिता के राजा होते हुए, देव ने युद्ध कला बहुत अच्छी तरह सीख ली थी और ये बात सदूर पर आम थी कि देव से जीता नहीं जा सकता। राजा देव बन जाने के बाद उन्होंने अपने पिता के कार्यों को आगे बढ़ाया और जो बदलाव देव ने जरूरी समझे, वो किए। राजा देव ग्रह के लोगों का पूरा ध्यान रखते थे। किले के बाहर, उन लोगों के लिए हर समय खाना मिलता था जो खाना कमा नहीं पाते थे। ऐसे लोग रोज सुबह-शाम किले के बाहर आकर खाना खाते थे। देव को महल का एक कर्मचारी बबूसा पसंद आता था और राजा देव बनने पर बबूसा को अपना खास सेवक बना लिया था। सदूर ग्रह की एक खास बात ये थी कि यहां का दिन सोलह घंटे का होता था और रात भी इतनी ही लम्बी होती थी। सदूर पर सुबह होती तो सूर्य सदूर ग्रह के एक कोने में से चमकता और जब अंधेरा होना होता तो सदूर एक तरफ को थोड़ा-सा इस तरह झुक जाता कि सूर्य की रोशनी, सदूर पर पड़नी बंद हो जाती थी। बरसात सदूर पर अक्सर आती रहती थी। आसमान में बिजली चमकती और काले बादल घिर जाते फिर पानी की बूंदों की शुरुआत हो जाती थी।
उस दिन बहुत गर्मी थी। सुबह के ग्यारह बज रहे थे। राजा देव किले में थे। किले के भीतर बड़े-बड़े कमरे थे। सैकड़ों किले के कर्मचारी थे जिनमें पहरेदार भी थे, खाना बनाने वाले भी थे। किले के बाग की देखभाल करने वाले भी थे। बग्गी चलाने वाले भी थे और घोड़ों की देखभाल करने वाले भी थे। किले के भीतर कहीं भी दरवाजा नहीं था। जहां जरूरत महसूस होती, वहां सदूर पर ही बनने वाले चमकीले कपड़े का पर्दा लटका दिया जाता। किले के भीतर, तहखाने जैसी जगह में धातु रूपी खजाना रखा हुआ था, जहां हर वक्त बीस पहरेदार, पहरा देते थे। राजा देव अपने कमरे में टहल रहे थे। काफी बड़ा कमरा था। फर्श सफेद पहाड़ी पत्थर का था। दीवारें भी ऐसी थीं। छतें भी। बीचोंबीच चौड़ा पलंग बिछा हुआ था। कुछ कुर्सियां और टेबल पर थे। कमरे की चौड़ी-चौड़ी खिड़कियां थीं, जहां से बहती हवा भीतर आ रही थी। आज गर्म दिन था और देव का मन किले में नहीं लग रहा था। किले की महिला कर्मचारी से कहकर उसने बबूसा को बुलाया।
“हुक्म राजा देव।” बबूसा ने पर्दा हटाकर भीतर प्रवेश करते, मुस्कराकर कहा-“मैं आपकी बग्गी को नया रूप देने की कोशिश कर रहा था। उसे ज्यादा आरामदेह बनवा देना चाहता हूं।”
“यहाँ मन नहीं लग रहा। बाहर चलेंगे हम।”
“जो हुक्म राजा देव।” बबूसा ने फौरन कहा-“परंतु आपकी खास बग्गी मैंने खुलवा रखी है। उसे वापस बंद करने में वक्त लगेगा।”
“साधारण बग्गी ले लो।”
“साधारण बग्गी में सामान नहीं आ सकेगा आपका।”
“कोई बात नहीं, हम बिना सामान के चलेंगे। बग्गी तुम ही चलाओगे। कोई और साथ में नहीं चाहिए।”
“समझ गया। आइए।”
“मेरे हथियार ले लो। विद्रोहियों से सामना हुआ तो काम आएंगे।”
“तो क्या आगे-पीछे पहरेदार भी नहीं ले जाने राजा देव?” बबूसा ने पूछा।
“नहीं। सिर्फ हम दोनों चलेंगे।”
देव साधारण बग्गी में किले से बाहर निकला। बबूसा बग्गी का कोचवान बना घोड़े को दौड़ाने लगा। दो घोड़े लगे थे बग्गी में। चार पहिए थे। कोचवान की जगह के पीछे बग्गी में पांच फुट ऊंची, झोंपड़ी-सी बना रखे थी कि धूप-बरसात से बचत हो सके। झोंपड़े से बाहर देखने के लिए दोनों तरफ खिड़कियां थीं। पीछे का हिस्सा खुला था। आज गर्मी ज्यादा थी। परंतु लोग अपने कामों में, सड़कों के किनारे आ-जा रहे थे। लोग पैदल ही थे। बग्गी जैसी चीज सिर्फ वो ही लोग रखते थे जिनके पास कीमती धातु होती थी।
“बबूसा। आज किसी नए रास्ते पर चलो। घोड़ों को दौड़ाओ मत। मध्यम रफ्तार से चलो।”
“जी राजा देव।”
बबूसा मध्यम रफ्तार से बग्गी चलाने लगा। सड़क की बीच में अन्य सड़क का मोड़ आया तो बग्गी उधर को मोड़ ली। मिट्टी की सड़कें सपाट और साफ-सुथरी थीं।
“इस तरफ गरीब लोग रहते हैं। कइयों के मकान भी पक्के नहीं हैं।” बबूसा बोला।
“खाना दोनों वक्त खाते हैं?”
“हां राजा देव। जिस किसी के पास खाना नहीं होता वो किले के बाहर पहुंचकर खाना खा लेता है। पहरेदार इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि कोई भूखा न सोए।” बबूसा ने कहा-“आपके राज्य में सबका पेट भरा रहता है।”
“सिर्फ विद्रोहियों की समस्या है बबूसा।”
“उनकी नजर आपके कीमती धातु के खजाने पर है। तभी वो अपने नेता को राजा बनाना चाहते हैं।”
“जनता कहे तो इस बारे में विचार किया जा सकता है। लालची विद्रोहियों की बात नहीं मानी जाएगी।” देव ने कहा-“पहले से इनकी संख्या बढ़ चुकी है। ये बात ठीक नहीं। लोगों को फुसलाकर, अपनी तरफ कर रहे हैं।”
“राजा देव अगर हम विद्रोहियों को पकड़कर मारना शुरू कर दें तो?”
“अभी ये काम नहीं करना है। सुलह की कोशिशें जो चल रही हैं, उन्हें चलने दो।”
बग्गी मध्यम रफ्तार से आगे बढ़ती रही।
कई कॉलोनियां पार हो गईं।
राजा देव बग्गी की खिड़की से बाहर भी देखे जा रहा था।
“पानी दो बबूसा।”
“ओह राजा देव, क्षमा। जल्दी में मैं पानी रखना भूल गया।” बबूसा कह उठा।
“कोई बात नहीं। किसी घर के सामने रोक दो।” देव ने सामान्य स्वर में कहा।
कुछ आगे जाकर, बबूसा ने एक ऐसे मकान के सामने बग्गी रोकी, जो बेहद साधारण एक कमरे का मकान था। मकान के बाहर धूप में एक लड़की कपड़े धो रही थी। बग्गी रुकते ही देव नीचे उतरता बोला।
“मैं पानी पीकर आता...”
“आप क्यों कष्ट करते हैं राजा देव। मैं लाता हूं पानी।” बबूसा ने जल्दी से कहा।
“मैं पी लूंगा।” देव बग्गी से उतरकर उस लड़की की तरफ बढ़ता चला गया।
उसके पास पहुंचा तो लड़की ने कपड़े धोते आहट पाकर चेहरा इस तरफ किया। देव ने उसे देखा तो देखता ही रह गया। वो थी ही इतनी खूबसूरत।
नीली आंखें। गोरा रंग। मधुर नैन-नक्श। बालों की दो लटें चेहरे पर आ रही थीं। फूल की पंखुड़ियों जैसे सुर्ख कोमल होंठ।
ये राजा देव और ताशा की पहली मुलाकात थी।
देव देखता रहा, ताशा को।
अट्ठारह बरस की ताशा, अपनी नीली आंखों से देव को देखकर बोली।
“क्या है?”
“प-पानी।” देव के होंठों से निकला।
“अभी देती हूं।” ताशा पलटी ड्रम जैसी चीज में हाथ धोते कह उठी-“परदेसी हो?”
“नहीं। पास ही में रहता हूं।”
“तो पानी साथ लेकर चला करो।” ताशा उठी-“सुनसान रास्ते पर किससे पानी मांगोगे?”
देव, ताशा के भोले-भाले, खूबसूरत चेहरे को देखता रहा। ताशा को देखकर अजीब-सी भावना का एहसास हुआ था उसे। आज से पहले किसी लड़की को देखकर उसे ऐसा महसूस नहीं हुआ था।
“भीतर आ जाओ।” ताशा बग्गी को देखकर, दरवाजे की तरफ बढ़ी-“धूप में ही खड़े रहोगे।”
देव सिर हिलाकर रह गया।
ताशा कमरे में चली गई।
“आ जाओ।” भीतर से ताशा की आवाज आई।
देव के कदम हिले और दरवाजे की तरफ बढ़ गए। दिल जाने क्यों धड़क-सा उठा था। कमरे में प्रवेश करते ही ठिठक गया। ये साधारण-सा कमरा था। एक पलंग एक दीवार के पास बिछा था। दूसरा पलंग दूसरी दीवार के साथ बिछा था। कुछ संदूक दीवार से सटा रखे थे। एक कोने में बर्तनों का ढेर लगा था।
ताशा ने एक ड्रम से पानी लोटे में भरा और देव की तरफ बढ़ाया।
“लो।”
देव ने लोटा थाम लिया। इस वक्त देव ने साधारण कपड़े पहन रखे थे।
उस पर से ऐसा कोई निशान नहीं था कि जिससे वो राजा देव लगे। वरना ताशा ने फौरन उसे पहचान लेना था।
“पी लो पानी। मुझे क्या देख रहे हो?” ताशा बोली।
“ह-हां।” देव ने लोटे को ही मुंह लगा लिया और पूरा पानी पी लिया।
“और दूं?” ताशा ने पूछा।
“नहीं।” देव लौटा वापस देता प्यार भरे स्वर में कह उठा-“खोनम (चाय) मिलेगी?”
“खोनम के लिए चूल्हा जलाना पड़ेगा।” ताशा के होंठों से निकला।
देव के चेहरे पर मुस्कान आ ठहरी।
“बना देती हूं पर तुम्हें इंतजार करना होगा। दो कपड़े बचे हैं, वो धो लूं।”
देव ने सिर हिला दिया।
ताशा बाहर निकलकर कपड़े धोने लगी। देव दरवाजे पर आ खड़ा हुआ और ताशा को देखने लगा। ताशा में जाने क्या था कि वो सब कुछ भूल गया था। ऐसा खूबसूरत चेहरा उसने पहले कभी नहीं देखा था। ताशा ने जल्दी-जल्दी कपड़े धोए और फुर्सत पाकर बाहर ही दीवार की छाया में मौजूद चूल्हे में लकड़ियां रखकर उसे जलाने लगी। देव दरवाजे पर खड़ा एकटक ताशा को देखे जा रहा था कि ताशा कह उठी।
“तुम भीतर क्यों नहीं बैठ जाते?”
“क्यों?” देव मुस्कराया।
“तुम जब से आए हो, मुझे देखे जा रहे हो। हटते ही नहीं...” ताशा असुविधा से बोली।
“मेरा देखना, तुम्हें अच्छा नहीं लगता?” देव ने कहा।
ताशा की नीली आंखें देव के चेहरे पर जा टिकीं।
देव के होंठों के बीच मुस्कान दबी थी।
फिर ताशा ने कुछ नहीं कहा। चूल्हा जलाकर खोनम (चाय जैसा पदार्थ) बनाने के लिए बर्तन में पानी डालकर ऊपर रख दिया। तीन चक्कर उसने कमरे के भीतर के लगाए, खोनम का सामान लाने के लिए।
“तुम्हारा नाम क्या है?” देव ने पूछा।
“ताशा।” खोनम बनाते, उसे बिना देखे ताशा ने कहा।
“तुम्हारे घर में कौन-कौन है?”
“पिता ही है। वो बाजार में लकड़ी बेचता है। कभी धातु मिल जाती है, लकड़ियां बिक जाती हैं तो खाने का सामान ले आता है नहीं तो किले के बाहर, राजा देव का खाना खाता है और मेरे लिए भी ले आता है। खोनम बनाने का सामान कल ही पिता लाया था। कल सारी लकड़ियां बिक गई थीं।”
ताशा ने सामान्य स्वर में कहा।
“तुमने राजा देव को कभी नहीं देखा?”
“नहीं। मेरा क्या काम राजा देव से। वो तो सदूर के मालिक हैं। मैं कैसे देखूंगी उन्हें।”
ताशा ने खोनम बनाकर, एक कटोरी में डालकर देव को दे दिया।
खोनम हरे रंग का तरल पदार्थ था। गर्म था, परंतु पीने में स्वादिष्ट था। कहा जाता है कि इसे पीने से थकान उतर जाती है। ताशा ने अपने लिए भी कटोरी में खोनम डाल लिया था और कमरे में चली गई। एक पलंग पर जा बैठी।
देव दूसरे पलंग पर जा बैठा। दरवाजे के बाहर, सामने कुछ दूर खड़ी बग्गी नजर आ रही थी।
“तुम पहले तो कभी इधर नहीं आए?” ताशा ने पूछा।
“बहुत बार आया।” देव खोनम का घूंट भरकर बोला-“पर कभी प्यास नहीं लगी कि तुम्हारे पास आता।”
ताशा मुस्कराकर रह गई।
“तुम बहुत खूबसूरत हो।” देव के होंठों से निकल गया।
“शर्म नहीं आती तुम्हें ऐसी बातें कहते हुए।” ताशा नाराजगी से बोली।
“सुंदर को सुंदर कहना गलत तो नहीं।”
ताशा, देव को देखने लगी।
“मैंने तुम्हारे जैसी सुंदर लड़की पहले नहीं देखी। तुम्हें देखते रहूं, तुम्हारे पास रहूं, इसी कारण मैंने खोनम के लिए कहा।”
“तुम तो बहुत खराब लड़के हो।” ताशा ने अपनी कटोरी पलंग पर रख दी-“तुम्हारे विचार मुझे पता होते तो मैं खोनम ही नहीं बनाती। अब खोनम पिओ और चले जाओ यहां से।”
“मेरा नाम देव है।”
“देव?” ताशा ने अजीब-से स्वर में कहा-“क्या तुम राजा देव हो?”
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं राजा देव हो सकता हूं?” देव मुस्कराया।
“तुम राजा देव नहीं हो सकते।” ताशा ने फौरन कहा-“राजा देव इस तरह साधारण-सी बग्गी में क्यों घूमेंगे। फिर राजा देव तो तुम्हारी तरह बातें भी नहीं करेंगे कि मैं खूबसूरत हूं। वो तो सदूर के मालिक हैं। तुम तो किसी भी तरफ से राजा देव नहीं लगते।”
होंठों पर मुस्कान लिए देव ने खोनम पिया और कटोरी रखकर खड़ा हो गया।
“खोनम के लिए शुक्रिया। जाने के मन तो नहीं करता, परंतु जाना भी है।” देव ने मीठे स्वर में कहा।
“जाने को मन नहीं करता?” ताशा उलझन से बोली-“मैं समझी नहीं।”
“क्योंकि तुम जैसी खूबसूरत लड़की मैंने पहले कभी नहीं देखी।” देव हौले-से हंसा।
“दोबारा यहां मत आना।” ताशा ने नाराजगी से कहा-“तुम अच्छे लड़के नहीं लगते।”
“तुमने पहचान लिया कि मैं बुरा हूं।” देव ने कहा और मुस्कराते हुए बाहर निकलकर बग्गी की तरफ बढ़ गया। बग्गी में बैठने से पहले उसने पलटकर ताशा के घर की तरफ देखा। वो दरवाजे पर खड़ी, उसे ही देख रही थी-“किले पर चलो बबूसा।” देव बग्गी में बैठ गया।
बबूसा ने बग्गी को वापस मोड़ा और मध्यम रफ्तार से दौड़ा दिया। देव ताशा के घर की तरफ तब तक देखता रहा, जब तक वो नजर आता रहा।
“किसी और रास्ते पर घूमने चलें?” बबूसा ने कहा।
“मैं किले पर जाकर आराम करना चाहता हूं।” देव के होंठों पर मुस्कान छाई हुई थी।
बग्गी मध्यम-सी रफ्तार से दौड़ती रही।
“बबूसा।” देव ने मुस्कराहट भरे स्वर में कहा-“वो लड़की मुझे बहुत अच्छी लगी।”
“ये तो खुशी की बात है कि आपको कोई लड़की पसंद आ गई।” बबूसा भी मुस्करा पड़ा।
“उसका नाम ताशा है।”
“अच्छा नाम है राजा देव। क्या आपने उसे बताया कि आप ही राजा देव हैं, या उसने पहचान लिया कि...”
“ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने उसे नहीं बताया कि मैं राजा देव हूं। नहीं तो उसकी नजरों में आदर भाव आ जाता और जैसा मैं उसे देखना चाहता हूं वैसा देख नहीं पाता। उसने मुझे खोनम पिलाया।”
“एक ही बार में बात इतनी आगे बढ़ गई?” बबूसा मुस्कराया।
“नहीं। मैंने ही उसे खोनम पिलाने को कहा था। उसने बना दिया।” देव बोला।
“वो भी आपको पसंद करती है?”
“मुझे नहीं पता। मैं उसके दिल की बात नहीं जान सका।”
देव किले पर पहुंचा तो किले के सेनापति धोमरा को अपना इंतजार करते पाया। धोमरा किले के इंतजाम संभालता था और सदूर के अधिकतर मामले निबटाता था। वो पच्चीस बरस का युवक था और पिता के वक्त से ही वो सारे मामले देख रहा था। धोमरा काबिल इंसान था।
“राजा देव। मकरा के चौराहे पर, चार विद्रोहियों ने हमारा रास्ता रोक लिया था। मेरे साथ दो सिपाही थे। विद्रोही हथियार लिए हुए थे। दो ने मुझ पर हमला किया। मैंने उन चारों को मार दिया।” धोमरा ने बताया।
“विद्रोहियों ने पहली बार सीधे-सीधे इस तरह हमला किया है।” देव ने गम्भीर स्वर में कहा।
“उन चारों को मारकर, मैंने विद्रोहियों के हौसले को पस्त कर दिया।”
“परंतु ये गम्भीर बात है। अगली बार वो ज्यादा संख्या में हमला कर सकते हैं। ये ठीक बात नहीं। कभी हमारे लोग जान गंवा बैठेंगे तो कभी उनके। मैं सदूर का राजा हूं, उन्हें मेरी बात माननी ही चाहिए।” देव ने कहा।
“हुक्म दीजिए राजा देव।”
“अपने आदमियों से कहो कि गुप-चुप ढंग से विद्रोहियों के ठिकानों का और विद्रोहियों का पता लगाना शुरू कर दें। जल्दबाजी नहीं करनी है। उन पर कोई हमला नहीं करना है। सबसे पहले विद्रोही और उनकी सहायता करने वालों को पहचानो। इस काम में वक्त लग सकता है, लगने दो। जब हम ज्यादा से ज्यादा संख्या में उनकी पहचान कर लेंगे तो, एक साथ एक ही वक्त में उन पर हमला करके उन्हें खत्म कर देंगे।” देव ने कठोर स्वर में कहा-“आज उन्होंने रास्ते में तुम्हें घेरा है, कल को वो हमें भी घेर सकते हैं। इस तरह तो वो हमारा किले से बाहर निकलना दुश्वार कर देंगे।”
“मैं समझ गया राजा देव।” धोमरा ने कहा-“पहाड़ों पर उन्होंने ठिकाना बना रखा है। मैं वहां के बारे में भी खबरें इकट्ठी ही करूंगा। अन्य किस-किस जगह पर विद्रोही मौजूद रहते हैं, वो भी पता करके आपको बताऊंगा।” कहकर धोमरा चला गया।
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