दिलबहार होटल के पीछे संकरी गली में खड़े अशरफ से विजय यह मालूम कर चुका था कि रघुनाथ अभी तक सात सौ बारह से बाहर नहीं निकला था—गली में पर्याप्त अँधेरा था और विजय गन्दे पानी के उस पाइप की तरफ बढ़ा, जो कि होटल की छत तक चला गया था।

एकाएक बुरी तरह चौंककर अशरफ फुसफुसाया—"व...विजय।"
"क्या बात है, प्यारे झानझरोखे?"
"ऊपर देखो।"
ऊपर देखते ही विजय के होंठ सीटी बजाने के अन्दाज में सुकड़ गए—सातवीं मंजिल की एक खुली हुई खिड़की से एक इंसानी साया पाइप पर झूल गया—उसके कन्धे पर बेहोश अवस्था में एक अन्य जिस्म था। विजय बुदबुदा उठा—"ओह—अपना तुलाराशि तो पूरा जेम्स बॉण्ड बन गया है।"
"क्या करना है, विजय?"
"कुछ नहीं करना है, प्यारे—तेल देखो और तेल की धार देखते रहो—तुमने कहा था कि बूढ़ा अहमद खान कमरे में नहीं है, इसका सीधा-सा मतलब है कि अपना तुलाराशि तबस्सुम को कन्धे पर डाले उतर रहा है—अंधेरे में छुप जाओ—देखना है कि अपना तुलाराशि कितना ऊंचा उड़ रहा है?"
वे अन्धेरे में छुप गए।
तबस्सुम को कन्धे पर डाले रघुनाथ पूरी सावधानी के साथ नीचे उतर रहा था—वह गली में पहुंचा—विजय और अशरफ के पास से गुजर गया—वे उसके पीछे हो लिए—गली से बाहर निकलकर रघुनाथ ने तबस्सुम का बेहोश जिस्म जीप की पिछली गद्दी पर डाला।
स्वयं ड्राइविंग सीट पर बैठा और एक झटके के साथ जीप आगे बढ़ गई—उसके साथ ही एक ऐसी कार स्टार्ट हुई थी, जिसकी ड्राइविंग सीट पर विजय और उसकी बगल में अशरफ बैठा था।
पीछा जारी हो गया।
कुछ देर तक जीप भीड़-भरे इलाकों से गुजरती रही—फिर एक सुनसान मार्ग पर पहुंच गई—वहां पहुंचते ही जीप की गति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई—मजबूरन विजय को भी अपनी कार की रफ्तार बढ़ानी पड़ी—सड़क पर रघुनाथ की जीप के पीछे जो कार दौड़ रही थी, वह विजय की कार ही थी—सामने की तरफ से आने वाला इक्का-दुक्का वाहन उनके समीप से गुजर जाता—जीप और कार के बीच एक निश्चित अन्तराल बना हुआ था—जीप की गति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती ही चली गई—एक्सीलेटर पर दबाव डालते हुए विजय बुदबुदाया—"ये साले अपने तुलाराशि को हो क्या गया है?"
"अरे—!" अशरफ चौंक पड़ा—"जीप लहरा रही है विजय।"
स्वयं विजय की पेशानी पर चिन्ता की लकीरें उभर आईं—सचमुच जीप सड़क पर बुरी तरह लहरा रही थी—जैसे ड्राइवर के कंट्रोल से बाहर हो गई हो—जबड़े भींचकर विजय एक्सीलेटर पर दबाव बढ़ाता चला गया। सूनी सड़क पर जीप अब यूं लहराने लगी थी, मानो बिना किसी ड्राइवर के ही दौड़ी चली जा रही हो।
और फिर—उनके देखते-ही-देखते जीप तेजी से झपटकर एक पेड़ की जड़ से जा टकराई—एक कर्णभेदी विस्फोट के साथ जीप उल्टी और भक्क्-से आग लग गई।
चर्र—र्र—र्र—।
ब्रेकों की तीव्र चरमराहट के साथ कार जलती हुई जीप से थोड़ी आगे जाकर जाम हो गई—एक साथ कार के अगले दोनों दरवाजे खुले—एक से अशरफ ने और दूसरे से विजय ने सड़क पर जम्प लगाई—आंधी-तूफान की तरह वे जलती हुई जीप की तरफ लपके।
पेड़ की जड़ में घुसी जीप 'धू-धू' करके जल रही थी—विजय जल्दी से चीखा—"अपना ओवरकोट उतारो प्यारे—जल्दी करो।"
ओवरकोट उतारते हुए अशरफ ने पूछा—"क्या करना चाहते हो?"
"अपने तुलाराशि को जलकर भस्म होने से पहले ही निकालना है।" कहने के साथ ही उसने अशरफ से ओवरकोट छीनकर सिर ढांपते हुए कहा।
"व...विजय—तुम-।"
अशरफ ने उसे रोकना चाहा—मगर वह जलती हुई जीप की तरफ लपका—जड़वत्-सा खड़ा अशरफ विजय को उल्टी पड़ी जल रही जीप के अन्दर दाखिल होते देखता रहा—विजय भभकती हुई आग के अन्दर गुम हो गया—अशरफ के सारे चेहरे पर पसीना उभर आया—यह पहला मौका नहीं था, जबकि उसने विजय को अपने किसी साथी को बचाने के लिए इस तरह मौत के मुंह में घुसते देखा हो?
दो मिनट बाद ही आग की लपटों में घिरा एक साया जीप से बाहर कूदा—अपने जिस्म से ओवरकोट उतारकर उसने दूर फेंक दिया—आग की लपटें भी उस ओवरकोट के साथ ही दूर हो गईं।
विजय ने उसके नजदीक पहुंचकर हांफते हुए कहा—"जीप में कोई नहीं है प्यारे।"
अशरफ उछल पड़ा—"ऐसा कैसे हो सकता है?"
"ऐसा ही है, प्यारे—।" विजय ने जल्दी से कहा—"उन्हें जीप के आस-पास तलाश करो।"
फिर—वे दोनों दौड़कर जलती हुई जीप के दूसरी तरफ पहुंचे—जिस पेड़ से जीप टकराई थी, उससे करीब पांच गज दूर जख्मी अवस्था में रघुनाथ बेहोश पड़ा था—उसके सिर, चेहरे और जिस्म के अन्य कई भागों से खून बह रहा था।
विजय ने जल्दी से कहा—"मैं इसे लेकर चलता हूं, प्यारे झानझरोखे—तुम सुन्दरी को तलाश करो।"
"ओ.के.।" अशरफ ने कहा—मगर उसकी इस स्वीकृति से पहले ही रघुनाथ को कन्धे पर लादकर विजय अपनी कार की तरफ दौड़ चुका था।
कॉलबैल की आवाज पर दरवाजा खोलते ही रैना चौंक उठी—"अरे—य...य़े क्या हुआ, विजय भइया—आपकी यह हालत और—अरे—ये तो जख्मी हैं—बेहोश भी—इन्हें क्या हुआ है?"
"कुछ विशेष नहीं, रैना बहन।" प्रविष्ट होते विजय ने कहा।
"क...कुछ क्यों नहीं—ये तो बुरी तरह जख्मी हैं—क्या हुआ है?"
"सिर्फ एक्सीडेण्ट।"
"एक्सीडेण्ट?"
"ड्राइविंग आती नहीं और जीप ऐसे तेज चला रहा था, जैसे उसे हवाई जहाज बना देना चाहता हो—एक पेड़ से टकरा बैठा।" कहने के साथ ही उसने रघुनाथ के जिस्म को पलंग पर लिटा दिया।
रैना दौड़कर रघुनाथ के करीब पहुंची—कांपते हाथ उसके रक्तरंजित चेहरे पर घुमाती हुई डबडबाई आंखों से बोली—"हे भगवान—मेरे सुहाग की रक्षा करना।"
बिना कुछ कहे विजय ने आगे बढ़कर डॉक्टर के नम्बर डायल किए—फोन करने के बाद बैड के समीप आता हुआ बोला—"मैंने फोन कर दिया है, रैना बहन—कुछ ही देर बाद डॉक्टर आ जाएगा।"
"म...मगर—ये हुआ कैसे भइया?"
"ये होटल दिलबहार के रूम नम्बर सात सौ बारह में गया था।"
रैना उछल पड़ी—"व...वहां--क्यों?"
"वह तो यही जाने, लेकिन जहां तक मेरा ख्याल है—उनसे मिलकर यह अपने तरीके से अपने दिमाग की उलझन दूर करना चाहता था—कमरे में यह काफी देर तक रहा—नहीं कहा जा सकता कि वहां इसकी क्या बातें हुईं, परन्तु जब यह कमरे से बाहर निकला तो इसके कंधे पर बेहोश तबस्सुम थी।"
विजय संक्षेप में सब कुछ बताता चला गया।
सुनने के बाद रैना ने पूछा—"अब तबस्सुम कहां है?"
"फिलहाल कुछ नहीं पता।"
रैना शायद अभी भी अपने किसी सवाल का जवाब चाहती थी, मगर तभी कमरे में डॉक्टर भटनागर ने प्रवेश किया—वे दोनों ही खड़े हो गए—बैड के समीप पर कुर्सी डाल दी गई—भटनागर अपने काम में लग गया—रघुनाथ को ज्यादा चीटें नहीं लगी थीं—सिर्फ सिर पर ही एक गहरा जख्म था—उसी का खून उसके सारे चेहरे पर पुत गया था—बैण्डेज के बाद भटनागर ने उसे दो-तीन इन्जेक्शन लगाए और फिर बोला—"पन्द्रह मिनट बाद इन्हें होश आ जाना चाहिए।"
धड़कते दिल से तीनों ने पन्द्रह मिनट गुजारे—वह सोलहवां मिनट था, जबकि उन्होंने रघुनाथ की पलकों में हल्का-सा कम्पन महसूस किया।
"न...नाथ—।" भर्राए स्वर में कहकर रैना अभी उसकी तरफ बढ़ी ही थी कि भटनागर ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया—रघुनाथ ने धीरे-धीरे आंखें खोलीं—निश्चल पड़ा कुछ देर तक वह सूनी-सी आंखों से छत को घूरता रहा—चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे वह दिमाग पर यह सोचने के लिए जोर डाल रहा हो कि वह कहां है—एकाएक डॉक्टर भटनागर ने उस पर झुककर पुकारा—"मि. रघुनाथ।"
उसने पलटकर भटनागर की तरफ देखा, बोला—"आप कौन हैं?"
"आपने मुझे नहीं पहचाना?" भटनागर हल्के-से मुस्कराए—"आपका फैमिली डॉक्टर।"
"र...रहीम चाचा?"
डॉक्टर भटनागर चौंक पड़े—"र...रहीम चाचा—कौन रहीम?"
"नहीं—आप डॉक्टर अंकल तो नहीं नजर आ रहे।” डा. भटनागर की आंखें अजीब-सी गोलाई में सुकड़ती चली गईं—रैना हक्की-बक्की-सी रघुनाथ को देख रही थी—उसकी समझ में अभी तक कुछ नहीं आया था—जबकि चकराए से मिस्टर भटनागर ने पूछा—"आप कौन से डॉक्टर अंकल की बात कर रहे हैं—मैं हूं भटनागर।"
"म..मैं कहां हूं?" अजीब से अन्दाज में रघुनाथ ने चारों तरफ देखते हुए पूछा— आप लोग कौन हैं—त...तबस्सुम कहां है—तबस्सुम।" कहने के साथ ही वह एक झटके से उठ बैठा।
बौखलाए से डॉक्टर भटनागर कुर्सी छोड़कर खड़े हो गए—विजय एकदम आगे बढ़कर बोला—"तुम कौन हो, प्यारे—बोलो, क्या नाम है तुम्हारा?"
"इकबाल।"
रैना के कंठ से चीख निकल पड़ी।
रघुनाथ ने चौंककर उसकी तरफ देखा—कई क्षण तक बस देखता रहा—बोला कुछ नहीं, फिर वह रैना के चेहरे पर से दृष्टि हटाकर विजय से बोला—"आप लोग कौन हैं—मेरे अब्बा-अम्मी कहां हैं—तबस्सुम-?"
"क्या तुम्हारा एक्सीडेण्ट हुआ था?" उसकी आंखों में झांकते हुए विजय ने पूछा।
"हां।"
"किस चीज से।"
"सामने से बिगड़ा हुआ एक सांड़ आ रहा था—ड्राइवर ने गाड़ी उससे बचाने की बहुत कोशिश की, मगर एक पेड़ से टकरा गई—मैं बेहोश हो गया—अ...आप कौन हैं—तबस्सुम कहा है?"
"तबस्सुम तुम्हारी कौन है?"
"उ...उससे मेरा निकाह हुआ है।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं, नाथ?" रैना पागलों के समान चीख पड़ी—"आप इकबाल नहीं हैं—आपका नाम रघुनाथ है—जब आपका एक्सीडेण्ट हुआ, तब आप कार में नहीं—जीप में थे।"
"आप कौन हैं?"
"हैं!—आप मुझे नहीं जानते—मैं आपकी पत्नी हूं।"
"म...मेरी पत्नी इतनी बड़ी—नहीं-नहीं—मेरी बीवी तो तबस्सुम है—वह तो अभी सिर्फ चार साल की है—इमामुद्दीन चाचा कहते हैं कि वह पैदा ही मेरे लिए हुई है।"
"हे भगवान—इन्हें क्या हो गया?" रैना अजीब-से अंदाज में कह उठी।
विजय ने रघुनाथ से पूछा—"कब की बात कह रहे हो, प्यारे?"
"बस—दो चार दिन पहले की ही।"
"तुम्हारी उम्र क्या है?"
"अभी कुछ ही दिन पहले तो मेरी बारहवीं सालगिरह मनाई गई है।"
"बारहवीं सालगिरह—वहां सामने शीशा लगा है—जरा उस शीशे में अपनी शक्ल तो देखो।"
रघुनाथ ने किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह पालन किया—शीशे में शक्ल देखते ही वह बुरी तरह चौंककर उछला पड़ा—"अरे—ये मेरे चेहरे को क्या हुआ—म...मैं इतना बड़ी कैसे हो गया?"
"तुम इकबाल नहीं, मेरी जान—रघुनाथ हो।"
"रघुनाथ—कौन रघुनाथ?"
"जरा शीशे में अपने जिस्म पर मौजूद वर्दी देखो, प्यारे—तुम राजनगर के पुलिस सुपरिंटेंडेण्ट हो—बड़े-बड़े काम किया करते हो तुम-साला पुलिस विभाग तुम्हारी वाह-वाह किया करता है।"
शीशे में देखकर रघुनाथ एक बार फिर चौंक पड़ा, बोला—"स...सचमुच—मगर मैं रघुनाथ कैसे हो सकता हूं—सुपरिंटेंडेण्ट कैसे हो सकता हूं? ये मेरी शक्ल—मैं इतना बड़ा कैसे हो गया—ये सब क्या नाटक है—मैं तो सिर्फ बारह साल का हूं।"
"तुम्हें चिमटे से खींचकर लम्बा कर दिया गया है, प्यारे।"
"क...क्या मतलब?"
विजय ने घूमकर मेज से आज का अखबार उठाया—उसका प्रथम पृष्ठ खोलकर उसकी तरफ बढ़ाता हुआ बोला—"इसे पढ़ो—इसमें छपे फोटो को देखो—इसमें गप नहीं छपती।"
अखबार देखते ही वह कह उठा—"अरे—ये तो हिन्दुस्तानी अखबार है।"
"तुम इस वक्त हिन्दुस्तान में ही हो, प्यारे।"
"म...मगर मैं तो मिस्री हूं—मैं यहां कैसे—?"
"पहले अखबार पढ़ो।"
पढ़ने के बाद रघुनाथ ने कहा—"ये तो किसी रघुनाथ की तारीफ से भरा पड़ा है। आप कहते हैं कि मैं रघुनाथ हूं—इसमें छपे फोटो की शक्ल भी मुझसे मिलती है—मगर मैं रघुनाथ नहीं, इकबाल हूं—मेरी ये शक्ल भी नकली है।"
"तोताराम दम्पत्ति के हत्यारे को तुम्हीं ने गिरफ्तार किया था।"
"ऐसा कैसे हो सकता है—मैं तो बेहोश था।"
"इसका मतलब ये हुआ प्यारे कि तुम्हें कुछ भी याद नहीं—तोते की तरह ए-बी-सी-डी तुम्हें शुरू से ही रटानी पड़ेगी—तुम तो एकदम निल हो गए हो।"
"मैं समझा नहीं, कि आप क्या कह रहे हैं?"
"समझ जाओगे, प्यारे तुलाराशि—ओह—मगर अब तो तुम्हारी राशि ही बदल गई है—अच्छी तरह से याद कर लो—तुम्हारा नाम सिर्फ रघुनाथ है—पुलिस में सुपरिंटेंडेण्ट हो तुम-ये रैना बहन तुम्हारी बीवी है—हम तुम्हारे दोस्त—विकास नाम का तुम्हारा एक लड़का भी है।"
"म-मेरा लड़का?"
"हां प्यारे—लड़का भी ऐसा जो आते ही तुम्हें सब कुछ याद दिला देगा—आओ, उस कमरे में चलें—मैं वहां तुम्हें उसका फोटो दिखाऊंगा।"
रघुनाथ किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसके साथ चल दिया—विजय ने आंखों से रैना और डॉक्टर भटनागर को वहीं रुकने का संकेत दिया—रघुनाथ को लेकर वह भीतरी कमरे में चला गया—कुछ ही देर बाद दौड़ता हुआ विजय कमरे के बाहर निकला—बड़ी फुर्ती के साथ उसने घूमकर दरवाजा बन्द करके बाहर से बोल्ट कर दिया—रैना और भटनागर ने चकित दृष्टि से यह सब कुछ देखा था, जबकि दूसरी तरफ से दरवाजा पीटता हुआ रघुनाथ कह रहा था—"ये आप क्या कर रहे हैं? आपने मुझे बन्द क्यों कर दिया?"
"फिलहाल तुम आराम करो, प्यारे।"
विजय के निकट पहुंचकर हड़बड़ाई-सी रैना ने कहा—"य...ये इन्हें क्या हुआ भइया—ये कैसी बातें कर रहे हैं—इन्हें कुछ भी याद क्यों नहीं है—हममें से किसी को ये पहचान क्यों नहीं रहे हैं?"
"क्यों डॉक्टर—आपके ख्याल से अपने तुलाराशि को क्या हुआ है?"
"म...मुझे लगता है सुपर साहब अपनी याददाश्त गंवा बैठे हैं।"
"गंवा नहीं बैठा डॉक्टर, बल्कि वह सब कुछ उसे याद आ गया है, जो भूल गया था।"
"क्या मतलब?" भटनागर चकरा उठा।
"जो याददाश्त भूल जाते हैं, वे अपने नाम की जगह कोई दूसरा नाम लेकर यह नहीं कहते कि मैं वह हूं, बल्कि होश में आते ही
यह पूछते हैं कि मैं कौन हूं—दरअसल, बारह वर्ष की आयु का इकबाल नाम का एक लड़का दुर्घटना का शिकार होकर अपनी याददाश्त गंवा बैठा था—वक्त ने उसे रघुनाथ बना दिया—तब से आज तक वह सिर्फ रघुनाथ बना रहा—उसे बिल्कुल याद नहीं रहा कि वह इकबाल है।"
"ओह—शायद आज की दुर्घटना से उसकी याददाश्त वापस आ गई है।"
"हां—।" विजय बोला—"आपसे सिर्फ यह पूछना है कि क्या ऐसा हो सकता है?"
"जरूर हो सकता है।"
रैना ने जल्दी से पूछा—"तो क्या अब उन्हें कभी याद नहीं आएगा कि वे रघुनाथ हैं?"
"अरे, याद क्यों नहीं आएगा, रैना बहन?" डॉक्टर से पहले विजय बोल पड़ा—"उसके तो बाप को भी सब कुछ याद करना पड़ेगा—हमें उसकी याददाश्त के ऑन-ऑफ होने के स्विच का पता लग गया है—सिर में है—जहां चोट लगी है—पहले एक्सीडेण्ट से वह ऑफ हो गया था—इस एक्सीडेण्ट से ऑन हो गया—उस स्विच को फिर ऑफ होना होगा—भले ही उसके लिए हमें एक और एक्सीडेण्ट करना पड़े।"
रैना रो पड़ी।
"अरे—तुम रोती क्यों हो, रैना बहन?"
"म...मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है, भइया—जाने आप क्या कह रहे हैं?"
"अपने भाई पर भरोसा रखो, रैना बहन।" विजय थोड़ा गम्भीर हो गया—"अपने तुलाराशि को मैं कुछ और नहीं बनने दूंगा—तुम फिक्र मत करो—फिलहाल मैं जा रहा हूं—कुछ ही देर बाद लौटकर आऊंगा—सब ठीक हो जाएगा—बस, तुम वह दरवाजा मत खोलना।"
रैना आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाकर उस तरफ देखने लगी।
सांत्वना देने के से अन्दाज में विजय उसका कन्धा थपथपाकर बाहर निकल गया।
"लेकिन सर, आखिर रघुनाथ वहां गया ही क्यों था?" सब कुछ सुनने के बाद हैरत में डूबे ब्लैक ब्वॉय ने पूछा।
"वह किसी को बताकर नहीं गया था—कहा नहीं जा सकता कि कमरे में तबस्सुम से उसकी क्या बातें हुईं—सोचा था कि होश में आने पर पूछेंगे, लेकिन उसके होश में आने ने तो हमारे होश गुम कर दिए हैं—जब उसे यही याद नहीं कि वह रघुनाथ है तो उसे यह कैसे याद होगा कि वहां वह क्या सोचकर गया था—खैर, शायद तबस्सुम से कुछ पता लगे—अपने झानझरोखे का फोन आया?"
"नहीं, सर।"
अभी उसने ऐसा कहा ही था कि मेज पर रखे टेलीफोन की घण्टी घनघनाने लगी—हाथ बढ़ाकर विजय ने रिसीवर उठाया, बोला—"पवन हीयर।"
"वह लड़की मिल गई, सर।"
"कहां से?"
"दुर्घटनास्थल से एक किलोमीटर पीछे वह झाड़ियों में बेहोश पड़ी थी—ऐसा लगता है जैसे कि किसी ने उसे दुर्घटना होने से पहले ही जीप से बाहर फेंक दिया था।"
विजय ने एक पल कुछ सोचा, फिर बोला—"उसे लेकर सुपर रघुनाथ के घर पहुंचो—कुछ देर बाद विजय भी वहां पहुंचेगा, लेकिन उसके वहां पहुंचने से पहले तुम्हें तबस्सुम को होश में लाने की कोशिश करने के अलावा कुछ नहीं करना है।" कहने के साथ ही उसने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया—फिर ब्लैक ब्वॉय से बोला—"अपनी गोगिया पाशा से सम्पर्क पर स्थापित करो प्यारे—उसे आदेश दो कि वह अपने स्थान पर मौजूद रहे और बूढ़े अहमद खान को अपनी गिरफ्त में ले ले—अहमद को लेकर वह तुरन्त अपने तुलाराशि की कोठी पर पहुंच जाए।"
ब्लैक ब्वॉय ने ट्रांसमीटर पर आशा से सम्बन्ध स्थापित किया, बोला—"क्या अहमद खान होटल लौट आया है?"
"जी हां।"
"उसे तुरन्त अपनी गिरफ्त में लेकर रघुनाथ की कोठी पर पहुंच जाओ।" पवन की आवाज में कहने के बाद तक ब्लैक ब्वॉय ने तुरन्त सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया—तब उसने विजय से कहा—"ल...लेकिन सर, अब आखिर आप करना क्या चाहते हैं?"
"फिलहाल यह तो मैं खुद भी नहीं जानता प्यारे।"
"क...क्या मतलब, सर?"
उठते हुए विजय ने कहा—"वैसे ऊपर से देखने पर मामला सीधा-सीदा नजर आ रहा है, मगर कुछ बातें ऐसी भी हैं, जो हमें रहस्यमय लग रही हैं।"
"जैसे?"
"अभी-अभी अपने झानझरोखे ने बताया कि तबस्सुम को किसी ने दुर्घटनास्थल से एक किलोमीटर पहले ही जीप से बाहर फेंक दिया था—सबसे पहला सवाल उठता है—किसने? दूसरा सवाल है क्यों? क्या फेंकने वाले को मालूम था कि कुछ ही देर बाद जीप दुर्घटनाग्रस्त होने वाली है?"
ब्लैक ब्वॉय के नेत्र सुकड़ते चले गए।
"दूसरी रहस्यमय बात हमने तब देखी जबकि हम अपने झानझरोखे के साथ कार में बैठकर तुलाराशि की जीप का पीछा कर रहे थे—हमने देखा कि सुनसान सड़क पर पहुंचते ही जीप बिना किसी वजह के अचानक ही बहुत तेज और अन्धाधुन्ध भागने लगी—हम दावे के साथ कह सकते हैं कि उतनी तेज और ऊटपटांग गाड़ी अपना तुलाराशि नहीं चला सकता।"
"क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ड्राइविंग सीट पर कोई और था?"
"अभी हम स्पष्ट रूप से कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं, प्यारे—मगर हां, इन सब बातों के मद्देनजर रखकर हम यह दावा जरूर कर सकते हैं कि यह एक्सीडेण्ट रहस्यमय है।"
डॉक्टर भटनागर वहां से जा चुका था—रैना ने रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लिया था—जब बेहोश तबस्सुम को लिए अशरफ वहां पहुंचा तो रैना तबस्सुम को देखकर चौंक पड़ी—रैना को रोते देखकर अशरफ भी चौंका था—दोनों ने अपने साथ घटी एक-दूसरे को सुनाई—रैना की सुनने के बाद अशरफ स्वयं भी चकित रह गया, परन्तु रैना को सांत्वना देने की उसने भरपूर चेष्टा की।
रघुनाथ उसी कमरे में कैद था।
कुछ ही देर बाद वहां विजय भी पहुंच गया—उसने आते ही तबस्सुम को होश में लाने की प्रक्रिया जारी कर दी—तबस्सुम को ज्यादा चोट नहीं लगी थी—हां, चन्द खरोंचें जरूर थीं।
उसका झीना गाउन कई जगह से फट गया था।
जिस्म के कई अंग तो बिल्कुल ही नग्न थे—विजय के प्रयासों से वह होश में आते ही उछलकर खड़ी हो गई—यह महसूस करते ही वह झेंप गई कि वह लगभग नग्नावस्था में थी।
विजय ने कहा—"अपने कमरे में ले जाकर इसे ढंग से कपड़े पहना दो, रैना बहन।"
स्वयं को उनके बीच पाकर तबस्सुम खुद चकित थी—जब तक रैना उसे अपनी साड़ी और ब्लाउज पहनाकर कमरे में लाई, तब तक आशा भी अहमद को लेकर वहां पहुंच चुकी थी।
आशा ने अहमद को अपने रिवॉल्वर से कवर कर रखा था।
तबस्सुम को देखते ही अहमद चौंककर कह उठा—"अरे—बहूरानी! तू यहां?"
"अ...आप—?" तबस्सुम के मुंह से सिर्फ यही एक लफ्ज निकला।
अहमद विजय और रैना को देखकर कह उठा—"आप दोनों तो वही हैं न, जो सुबह होटल में पुलिस की वर्दी पहनकर आए थे?"
"हां प्यारे—।" विजय बोला—"तुम बूढ़े जरूर हो, लेकिन आंखें अभी तक तेज हैं।"
"आप लोग हमें इस तरह पकड़कर यहां लाने वाले होते कौन हैं?"
"हमारे चक्कर में पड़ने वाला वही बन जाता है, प्यारे, जो शिकारपुर में रहते हैं—हम काले चोर हैं—फिलहाल तुम ये बताओ कि तुमने जीप पेड़ में क्यों दे मारी?"
"ज...जीप पेड़ में दे मारी—कौन-सी जीप?"
"वही, जिसमें अपना तुलाराशि बेहोश तबस्सुम को लेकर चला था।"
"त...तुलाराशि कौन?"
"तुम्हारा इकबाल।"
"ह...हमारा इकबाल-म...मगर आपने तो बताया था कि वह मर गया है—क्या सचमुच इकबाल जिन्दा है—वह कहां है—प...प्लीज, मुझे मेरे बेटे की एक झलक दिखा दो।"
झपटकर विजय ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ लिया और दांत भींचकर गुर्राया—"ज्यादा नाटक करने की कोशिश मत करो प्यारे, वरना एक ही झाँपड़ में सारे कसबल ढीले हो जाएंगे।"
"आप ये क्या कह रहे हैं? मैं भला क्या नाटक कर रहा हूं?"
"यदि तुम नाटक नहीं कर रहे हो, प्यारे—तो बताओ कि अपने होटल से गायब होकर तुम पूरे दो घण्टे कहां रहे और क्या करते रहे?"
अहमद ने जवाब दिया—"मैं आई.जी. पुलिस ठाकुर साहब से मुलाकात करने उनके बंगले पर गया था।"
सभी उछल पड़े।
विजय की तो बुद्धि चकराकर रह गई, फिर भी काफी जल्दी उसने स्वयं को सम्भालकर कहा—"तुम ठाकुर साहब से मिलने गए थे—क्यों?"
"उनसे अपने इकबाल के बारे में बात करने।"
"इकबाल के बारे में तुमने उनसे क्या बातें कीं?"
"वही सब कुछ, जो सुबह आपसे की थीं—मैंने उन्हें यह भी बताया कि सुबह सुपरिंटेंडेण्ट साहब हमारे पास आए थे—वे सारी बातें भी उन्हें बताईं, जो आपने की थीं—कहने लगे कि मेरी जानकारी में रामनाथ नामक कोई आदमी ऐसा नहीं है, जिसकी लाश रेल की पटरी से मिली हो और जिसकी जिस्मानी खासियतें इस बच्चे से मिलती हों—तब मैंने कहा कि आपके सुपरिंटेंडेण्ट साहब तो वही कह रहे थे—वे बोले कि सुपरिंटेंडेण्ट साहब से बात करेंगे।"
"जब तुम्हें हमने सब कुछ बता दिया था तो तुम वहां क्यों गए?"
"मुझे यकीन नहीं हुआ था कि आप असली पुलिस वाले हैं और आपने सच बोला है।"
कुछ कहने के लिए विजय ने अभी मुंह खोला ही था कि टेलीफोन की घण्टी घनघना उठी—विजय ने आगे बढ़कर रिसीवर उठा लिया, दूसरी तरफ से ठाकुर साहब की आवाज उभरी—"हैलो।"
विजय सम्भला—उसने तत्परतापूर्वक रघुनाथ की आवाज में कहा—"य...यस सर।"
आशा और अशरफ के अतिरिक्त रैना सहित सभी चौंककर, चकित दृष्टि से उसकी तरफ देखते रह गए, जबकि दूसरी तरफ से ठाकुर साहब पूछ रहे थे—"क्या तुम सुबह दिलबहार होटल के रूम नम्बर सात सौ बारह में किसी से मिलने गए थे, रघुनाथ?"
"ज...जी—नहीं तो!" रघुनाथ ने कहा।
"क...क्या मतलब—?" ठाकुर साहब चौंक पड़े—"तुम वहां नहीं गए—क्या तुम्हें अच्छी तरह याद है?"
"मैं भला अपनी दिनचर्या कैसे भूल सकता हूं—मैं वहां नहीं गया—फिर भला वहां मैं क्यों जाऊंगा सर?"
"उस विज्ञापन के सिलसिले में...जो आज के अखबार में तीसरे पृष्ठ पर निकला है।"
"मेरा किसी विज्ञापन से क्या सम्बन्ध, सर।"
"कमाल है! यदि तुम वहां नहीं गए तो वह यहां कैसे आ गया?"
"कौन सर।"
"मेरे पास एक व्यक्ति आया था, जिसने अपना नाम अहमद खान बताया था।"
इसके बाद ठाकुर साहब वही सब कुछ कहते चले गए, जो अहमद कुछ ही देर पहले बता चुका था—सुनने के बाद विजय ने रघुनाथ के स्वर में कहा—"कमाल है, सर— मैं नहीं समझ सकता कि सुपरिंटेंडेण्ट की वर्दी में वहां कौन पहुंच गया और वह उस आदमी से रामनाथ वाला झूठ बोलकर अपना क्या उल्लू सीधा करना चाहता था?"
"यदि वह तुम नहीं थे तो मामला सचमुच गम्भीर है, रघुनाथ। कोई नकली सुपरिंटेंडेण्ट बना घूम रहा है—उसे फौरन पुलिस की गिरफ्त में होना चाहिए।"
"य...यस सर, लेकिन...।"
ठाकुर साहब जैसे रिसीवर रखते-रखते रुक गए हो—"लेकिन क्या?"
"मैं आपसे चन्द सवाल करना चाहता हूं।"
"हमसे सवाल?"
"अहमद खान नाम का वह आदमी आपके पास कितनी देर पहले आया था?"
"करीब ढाई घण्टे पहले।"
"कब गया, सर?"
"अभी—केवल तीस मिनट ही गुजरे हैं।"
"ओ.के. सर—थैंक्यू।" कहकर विजय ने रिसीवर रख दिया—उसने रिस्टवॉच पर नजर डाली—रघुनाथ की जीप का एक्सीडेण्ट हुए अभी सिर्फ एक ही घण्टा गुजरा था—उसे स्वयं ही अपना यह अनुमान गलत साबित होता हुआ प्रतीत हुआ कि जीप एक्सीडेण्ट में अहमद का कोई हाथ था।
कई पल तक अपने स्थान पर खड़ा जाने वह क्या सोचता रहा—अब उसे अहमद से कोई प्रश्न करने का कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा था—अतः उसकी तरफ कोई ध्यान दिए बिना वह तबस्सुम की तरफ बढ़ा—उसके नजदीक पहुंचकर बोला—"जब तुम्हारे पास अपना तुलाराशि पहुंचा—तो उसने तुमसे क्या बातें कीं?"
"तुलाराशि नहीं, इकबाल कहिए।"
"क्या मतलब?"
"उसने मुझसे कहा कि वे सभी जिस्मानी खासियत उसमें हैं, जो हम इकबाल में बताते हैं—कहने के बाद उसने मुझे वे सभी खासियतें दिखाई भी थीं—मैं खुश होकर कहने लगी कि तुम ही इकबाल हो—वह नहीं माना—उल्टे यह कहने लगा कि उसे फंसाने के लिए हम कोई षड्यंत्र कर रहे हैं—मैं उसे यह यकीन दिलाने की भरसक चेष्टा करती रही, जबकि वह मुझसे पूछता रहा कि हमारी साजिश क्या है—अंत में यह कहने के साथ ही उसने मेरे सिर पर रिवॉल्वर के दस्ते का वार किया कि मैं उसे इस तरह कुछ नहीं बताऊंगी, अतः वह मुझे टॉर्चर करने अपने साथ ले जा रहा है—मैं बेहोश हो गई—उसके बाद मुझे यहीं होश आया है—मैं नहीं जानती कि इस बीच क्या हुआ—मैं यहां कैसे पहुंच गई।"
विजय पुनः उलझकर रह गया—वह किसी आशाजनक परिणाम पर न पहुंच सका।
इस वक्त उसके दिमाग में यह विचार भी उठा कि कहीं एक सामान्य एक्सीडेण्ट में उसे व्यर्थ ही तो कोई झोल नजर नहीं आ रहा है—वैसे भी रघुनात की याददाश्त लौटने वाली घटना यह कहती थी कि ये दोनों सचमुच मुसीबत के मारे हैं—फिलहाल उसके पास एक ही रास्ता था—यह कि अहमद और तबस्सुम को अपने विश्वास में लेकर चले—उसने निश्चय किया कि ऐसा ही करेगा—इसी निश्चय के वशीभूत उसने कहा—
"हमारा तुलाराशि और तुम्हारा इकबाल एक ही व्यक्ति है।"
"अब आप स्वयं ही यह बात मान रहे हैं।"
"बेशक।"
"क्यों?"
"घटना ही कुछ ऐसी हो गई है।"
"क्या घटना हो गई है?"
"वह घटना बताने से पहले मैं तुम लोगों से एक समझौता करना चाहूंगा।"
"कैसा समझौता?"
"इकबाल तुम्हारे साथ सिर्फ बारह साल रहा था, इसी वजह से तुम्हें उससे इतनी मुहब्बत हो गई कि आज इकत्तीस साल से तुम उसके लिए सारी दुनिया में मारे-मारे फिर रहे हो, तो क्या आप यह नहीं मानेंगे कि उन्हें भी उससे कुछ मुहब्बत हुई होगी, जिनके साथ वह बीस-पच्चीस या तीस साल रहा।"
"जरूर हुई होगी।"
"अगर वह उनसे एकदम जुदा हो जाए तो क्या उन्हें दु:ख नहीं होगा?"
"क्यों नहीं होगा?"
"क्या आप उन्हें दु:ख देंगे?"
एक पल के लिए सन्नाटा छा गया—अशरफ, रैना और आशा समझ नहीं पा रहे थे कि विजय क्या चाहता था, जबकि तबस्सुम और अहमद खान की आंखें मिलीं—तब तबस्सुम ने कहा—"हम समझे नहीं? अपना प्रयोजन यदि आप साफ भाषा में कहें तो अच्छा होगा।"
"मेरा मतलब ये है कि आप उसे उन लोगों से जुदा नहीं करेंगे, जो रघुनाथ समझकर उसे प्यार करते हैं।"
"उसे हमारे साथ मिस्र जाना होगा।"
"यही आप नहीं करेंगे।"
"क्यों?"
"क्योंकि ऐसा होने से उसी विरह की आग में कुछ और लोग सुलगते रह जाएंगे, जिसमें आज तक आप सुलग रहे थे।"
"इससे हमें क्या लेना-देना है—वह हमारा इकबाल है।"
"जब तक आप मुझसे यह समझौता नहीं करेंगे, तब तक वह आपको नहीं मिलेगा।"
"आप उसे हमसे न मिलने देने वाले कौन होते हैं?"
एकाएक विजय का स्वर कड़ा हो गया—"हम काले चोर होते हैं।"
"काला चोर कौन?"
"उसके प्रति हमें तुम्हारी मुहब्बत देखकर सहानुभूति हो गई थी, प्यारे—सोचा था कि ऐसा रास्ता निकल आए, जिससे तुम्हें तुम्हारा इकबाल भी मिल जाए और हमारा तुलाराशि भी हमारे पास रहे। लेकिन यदि तुम नहीं मान रहे हो—तो तुम्हारा इकबाल भी नहीं मिलेगा—वह हमेशा हमारा तुलाराशि ही रहेगा—बल्कि किसी को यह भी पता नहीं लगेगा कि तुम मिस्र से भारत आने के बाद कहां गुम हो गए।"
अहमद खान कह उठा—"तुम हमें धमकी दे रहे हो?"
"इन्हें पकड़ लो प्यारे झानझरोखे और मिस गोगियापाशा।" विजय ने आदेश दिया—"हमने सोचा था कि सीधी उंगली से ही घी निकल आएगा, लेकिन इन्होंने हमें उंगली टेढ़ी करने के लिए विवश कर ही दिया।"
आशा और अशरफ ने रिवॉल्वर निकालकर उनकी कनपटियों पर रख दिए—विजय ने सचमुच यह निर्णय ले लिया था कि अब वह कभी रघुनाथ को उनके सामने नहीं पड़ने देगा—वह समझ चुका था कि रघुनाथ इनका इकबाल ही था, किन्तु उनसे सहानुभूति रखने का सीधा मतलब था कि वह हमेशा के लिए अपने रघुनाथ को खो दे—ऐसा वह हरगिज नहीं होने दे सकता था।
"ले चलो इन्हें।"
तभी कमरे के अन्दर से रघुनाथ की आवाज गूंजी—"यदि मेरे पिता और पत्नी को कुछ हो गया, मिस्टर विजय—तो मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा।"
अचानक ही रघुनाथ की आवाज सुनकर सब चौंक पड़े।
रैना कह उठी—"हे भगवान—इन्हें क्या हो गया है?"
"य...ये—आवाज इकबाल की ही है, अब्बा हुजूर।" अधीर मन से तबस्सुम लगभग चीख पड़ी—"हमारे इकबाल को इन्होंने उस कमरे में कैद कर रखा है।"
"इकबाल!" चीखकर अहमद कमरे की तरफ दौड़ा, मगर बीच ही में उसके जबड़े पर विजय का घूंसा पड़ा तो वह उलट पड़ा—उसके कंठ से एक चीख निकली थी—और उस चीख को सुनते ही दूसरी तरफ से बन्द दरवाजे को झंझोड़ता हुआ रघुनाथ चीख पड़ा।
पागलों के समान तबस्सुम दरवाजे की तरफ दौड़ी।
किन्तु—आशा ने सही वक्त पर अपनी टांग उसकी टांगों के बीच में उलझा दी थी—जिसके परिणामस्वरूप वह एक चीख के साथ मुंह के बल फर्श पर जा गिरी।
विजय चीख पड़ा—"पकड़ लो इन्हें।"
रैना किंकर्तव्यविमूढ़-सी खड़ी थी, जबकि विजय के आदेश पर आशा और अशरफ फर्श पर पड़े चीख रहे अपने-अपने शिकार की तरफ बढ़े।
अन्दर की तरफ से रघुनाथ पागलों की तरह दरवाजा पीट रहा था।
अभी आशा या अशरफ अपने शिकार तक पहुंचे भी नहीं थे कि—
"ये यहां क्या हो रहा है?" इस प्रभावशाली आवाज को सुनकर विजय के रोंगटे खड़े हो गए। आशा और अशरफ कांप उठे—उनके हाथ में अभी रिवॉल्वर थे—सभी की दृष्टि दरवाजे की तरफ उठ गई—रैना को जाने क्या हुआ कि 'चाचाजी' कहकर वह बुरी तरह रोती हुई तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ी।
दरवाजे पर ठाकुर साहब खड़े थे।
रैना उनके सीने से जा लिपटी—वह फूट-फूटकर रो रहा थी, जबकि ठाकुर साहब आंखों से विजय को घूर रहे थे—तबस्सुम अपने मुंह से निकलने वाले खून को साफ करती हुई उठ खड़ी हुई, जबकि उन्हें देखते ही अहमद चीख पड़ा—"आई.जी. साहब—अच्छा हुआ जो आप यहां आ गए—ये ही लोग थे, जो सुबह पुलिस की वर्दी में हमसे मिलने आए थे—ये गुण्डे हैं, आई.जी., साहब इनके हाथ में रिवॉल्वर आप देख ही रहे हैं—हमें जान से मार डालने की धमकी देकर ये जाने हमें कहां ले जाना चाहते थे?"
ठाकुर साहब ने विजय से गुर्राहटदार स्वर में पूछा—"क्यों विजय?"
"हां बापू—।" विजय ने बड़े अटपटे ढंग से ऊंट की तरह गर्दन उठाकर कहा।
"क्या हो रहा है यहां?"
"र...रिहर्सल-हरिश्चन्द्र—तारामती के ड्रामें की रिहर्सल।"
ठाकुर साहब तिलमिलाकर चीख पड़े—"विजय!"
"जी...जी।"
"रघुनाथ कहां है?"
अन्दर से बन्द कमरे का दरवाजा पीटते हुए रघुनाथ ने कहा—"मैं यहां हूं, ठाकुर साहब।"
"व...वहां—रघुनाथ को वहां बन्द करके क्यों रखा गया है?"
"मुझे यहां से निकालिए, ठाकुर साहब—मैं आपको सब कुछ बताऊंगा।"
ठाकुर साहब ने धीरे से रैना को अपने से अलग किया और दरवाजे की तरफ बढ़ गए—इसमें कोई शक नहीं कि अचानक ही ठाकुर साहब की मौजूदगी ने विजय को इस कदर बौखलाकर रख दिया था कि कई क्षण तक वह अपना अगला कदम निर्धारित नहीं कर सका—मगर अभी ठाकुर साहब दरवाजे तक पहुंचे भी नहीं थे कि विजय ने उनका रास्ता रोक लिया।
ठाकुर साहब ठिठक गए।
उस वक्त संसार भर की मूर्खता सिर्फ विजय के चेहरे पर नाच रही थी—होंठों पर ऐसी मुस्कान थी, जैसे कोई परले दर्जे का पागल मुस्कराने की चेष्टा कर रहा हो—उसे घूरते हुए ठाकुर साहब गुर्रा उठे—"इस हरकत का क्या मतलब?"
ठाकुर साहब का सारा चेहरा सुर्ख पड़ गया—वे तिलमिला उठे—असीमित क्रोध के कारण उनका समूचा भारी-भरकम जिस्म कांप उठा। वे लगभग चीख ही पड़े—"अपनी सीमा में रहो, विजय।"
"आप वह दरवाजा नहीं खोल सकते।"
"हम खोलेंगे—तुम हमें रोकने वाले कौन होते हो?"
विजय एकदम किसी झगड़ालू औरत की तरह हाथ नचाकर बोला—"अजी बहुत देखे हैं दरवाजा खोलने वाले—और रही हमारी बात—हम काले चोर होते हैं।"
"हमारे रास्ते से हटो।"
"अजी, क्यों हटें?"
गुस्से से भुनभुनाते हुए ठाकुर साहब ने उसे मारने के लिए अभी अपनी छड़ी हवा में उठाई थी कि दौड़कर रैना उनके बीच में आती हुई बोली—"नहीं चाचाजी—नहीं।"
"र...रैना बेटी—।" ठाकुर साहब का हाथ ठिठक गया।
"विजय भइया ठीक ही कह रहे हैं—पहले आप हमारी बात सुन लीजिए—उसके बाद यदि आपको दरवाजा खोलना उचित लगे तो बेशक खोल दीजिए।"
"क्या मतलब?"
"अ...आपके दामाद बदनसीबी से अपनी याददाश्त गंवा बैठे हैं।"
दरवाजे को झंझोड़ने के साथ ही दूसरी तरफ से रघुनाथ ने चीखकर कहा—"याददाश्त गंवा नहीं बैठा हूं, बल्कि मेरी खोई हुई याददाश्त लौट आई हैं—मैं इकबाल हूं।"
"ओह—इसका मतलब—भटनागर ने ठीक ही कहा था।"
"क्या मतलब?"
"कुछ ही देर पहले डॉक्टर भटनागर ने हमसे फोन पर बातचीत की थी—उनसे बताया कि किसी पेड़ से रघुनाथ की जीप का एक्सीडेण्ट हो गया है जिसकी वजह से उसके सिर में चोट आई—उसने हमसे यह भी कहा कि इस एक्सीडेण्ट के बाद रघुनाथ खुद को इकबाल बताने लगा है—वह सब सुनकर हमें अहमद नामक इस व्यक्ति और अखबार में छपे विज्ञापन की बात याद आ गई—तब हमने भटनागर से यह कहा कि हमने कुछ ही देर पहले तो फोन पर रघुनाथ से बातें की हैं—उसने कहा है कि यह एकदम असम्भव है—वह रघुनाथ को स्वयं चीख-चीखकर यह कहते देखकर आया है कि वह इकबाल है—न उसे हमारी बात पर यकीन आया—न हमें उसकी—अतः सच्चाई का पता लगाने यहां पहुंचे तो यहां यह...।"
"डॉक्टर भटनागर ने ठीक ही कहा था, चाचाजी।"
"फिर—कुछ देर पहले हमसे फोन पर रघुनाथ ने...।"
"उनकी आवाज में वे बातें विजय विजय भइया ने की थीं।"
ठाकुर साहब विजय की तरफ आंखें निकालकर गुर्राए—"क्यों?"
"यह सोचकर हमने आपको वस्तुस्थिति बतानी उचित नहीं समझी कि आप व्यर्थ ही परेशान होंगे।" विजय बोल पड़ा।
"तुम मत बोलो—हम रैना से बात कर रहे हैं।"
विजय ने कसकर होंठ भींच लिए।
रैना उन्हें तब से, जबकि रघुनाथ अखबार लिए किचन में दाखिल हुआ था, अब तक का सारा किस्सा क्रमवार बताती चली गई—सुनकर ठाकुर साहब के चेहरे पर भी गम्भीरता और उलझन के भाव उभरे—रैना ने कहा—"ऐसी स्थिति में विजय भइया क्या करते—मेरा ख्याल तो ये है कि वे ठीक ही कर रहे थे—जब इन लोगों ने विजय भइया से कोई समझौता किया ही नहीं तो...।"
"ये बेवकूफ लड़का कभी कानून का सम्मान करना नहीं सीखेगा।"
"क्या मतलब चाचाजी।"
"यदि सही काम गलत ढंग से किया जाए तो वह गलत ही होता है—कानून अपने हाथ में लेने का हक किसी को नहीं है—रिवॉल्वर हाथ में लेकर इन लोगों पर जुल्म करना गुण्डागर्दी है—यदि वह सचमुच इनका इकबाल है—तो कानून हमें इनके साथ ऐसा व्यवहार करने की इजाजत बिल्कुल नहीं देता।"
"चाचाजी!"
"माफ करना, बेटी—हम सब कदम-कदम पर कानून की धाराओं में बंधे हैं और अपने स्वार्थ के लिए हमें किसी के अधिकार छीनने या जुल्म करने का कोई हक नहीं है—इकबाल पर जितना हक इनका है, उतना ही रघुनाथ पर हमारा है—तुम्हारा है—वह तुम्हारा पति है—जब तक अदालतों में इंसाफ जिन्दा है—तब तक तुम्हारे पति को छीनकर कोई नहीं ले जा सकता।"
"आप जो चाहें करें चाचाजी।"
"हम रघुनाथ से बातें करना चाहते हैं।"
रैना उनके सामने से हट गई।
आशा और अशरफ ने इस उम्मीद से विजय की तरफ देखा कि शायद वह ठाकुर साहब का रास्ता रोके, परन्तु जाने क्या सोचकर विजय ने रिवॉल्वर जेब में रखा और उनके रास्ते से हट गया—उसे घूरते हुए ठाकुर साहब बन्द दरवाजे के समीप पहुंचे।
दरवाजे खुलते ही रघुनाथ बाहर निकल पड़ा।
सबकी दृष्टि उसी पर केन्द्रित थी, जबकि वह सिर्फ और सिर्फ विजय को घूर रहा था—उसकी आंखों में ऐसे भाव थे, जैसे अवसर मिलते ही विजय को जान से मार डालेगा।
एकाएक ठाकुर साहब ने उसे पुकारा—"रघुनाथ!"
रघुनाथ ने घूमकर उनकी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
"क्या तुम्हें रघुनाथ के रूप में किया गया अपना एक भी काम ध्यान नहीं हैं?"
"नहीं।"
"क्या तुम्हें यह भी याद नहीं है कि हम कौन हैं—तुम्हारा हमसे क्या रिश्ता हैं?"
"नहीं—लेकिन—।"
"लेकिन—?"
"बेशक मुझे कुछ भी याद नहीं है, परन्तु उस कमरे में बन्द रहकर मैंने यहां की एक-एक बात सुनी है और उन्हीं बातों से सारे अनुमान भी लगा लिए हैं—अब मैं अपने बारे में सब कुछ समझ गया हूं।"
"क्या समझ गए हो?"
"यह कि मेरा नाम इकबाल है—मैं पहचान सकता हूं कि वे मेरे अब्बा हैं—तबस्सुम को मैं पहचान तो नहीं सका, किन्तु जान चुका हूं कि वह तबस्सुम है—मुझे अच्छी तरह याद है कि कार एक्सीडेण्ट में मैं बेहोश हो गया था—आज होश में आने पर मैं खुद को देखकर चकराया—इन लोगों की बातों से स्पष्ट हुआ कि उस एक्सीडेण्ट के बाद से आज के एक्सीडेण्ट तक मैं रघुनाथ बनकर रहा—पुलिस में सुपरिडेंटेण्ट हूं—रैना मेरी पत्नी है—विकास नामक कोई लड़का भी है मेरा।"
"गुड।" ठाकुर साहब बोले—"क्या तुम इन लोगों को छोड़ सकते हो?"
"नहीं।"
रैना ने राहत की सांस ली, जबकि अहमद और तबस्सुम के चेहरे फक्क पड़ गए। रघुनाथ ने स्वयं ही आगे कहा—"मगर मैं अपने अब्बा हुजूर और तबस्सुम को भी नहीं छोड़ सकता।"
"इसका क्या मतलब?"
"जब मेरी याददाश्त लौटी तो आप लोगों से मेरी कोई सहानुभूति नहीं थी, क्योंकि आप लोगों को मैं जानता ही नहीं था, परन्तु मेरे उस कमरे में बन्द रहते—रहते यहां जितनी बातें हुई थीं—उनसे मैं सब कुछ समझ गया हूं—हालांकि मेरी याददाश्त के मुताबिक अब्बा हुजूर और तबस्सुम ही मेरे सब कुछ हैं—मगर, क्योंकि खुद मुझे अपने तीस सालों का पता नहीं है, इसीलिए मुझे यह मानना ही पड़ेगा कि आप लोग भी रघुनाथ के रूप में मुझे बहुत प्यार करते होंगे—रैना से मेरा एक लड़का भी है—यह हकीकत जानने के बाद मैं इसे भी नहीं छोड़ सकता—परन्तु तबस्सुम को उसका अधिकार न देना भी मेरे लिए ठीक नहीं है—मेरी जिन्दगी दुहरी है और मुझे दोनों पार्टियों के बारे में सोचना पड़ेगा।"
"तो फिर क्या निश्चय किया तुमने?"
"सोचने के लिए मुझे समय चाहिए।"
"तुम सुबह तक सोच सकते हो।"
"ठीक है, लेकिन—।" एकाएक रघुनाथ का लहजा कठोर हो गया—"मिस्टर विजय से कह दीजिए कि यह तबस्सुम और मेरे अब्बाजान को किसी भी तरह परेशान या टॉर्चर न करे—उस कमरे में बन्द रहकर जो कुछ मैंने सुना, उससे लगता है कि यह उन्हें जान से भी मार सकता है—यदि इसने उन्हें हाथ भी लगाया तो मैं किसी भी हालत में तबस्सुम या अपने अब्बूजान के हत्यारों से बदला लेकर रहूंगा।"
"सुन लिया तुमने?" ठाकुर साहब ने विजय से पूछा।
विजय ने किसी भोले-भाले बच्चे की तरह स्वीकृति में गर्दन हिलाई
“म....मगर—” अहमद बोला—“सुबह तक इकबाल रहेगा किसके पास?”
ठाकुर साहब ने कहा—"यहीं रहेगा अब यह।"
"हरगिज नहीं—इकबाल की याददाश्त लौटे अभी इतना समय नहीं गुजरा है—रात में ये इसे किसी भी तरह से बहका सकते हैं—इससे हमारी बातें भी होनी चाहिएं।" तबस्सुम ने विरोध किया।
सबको ध्यान से देखने के बाद रघुनाथ ने कहा—"आप फिक्रमन्द न हों, अब्बा हुजूर—मैं किसी के बहकावे में नहीं आऊंगा—हां, ये जरूर चाहूंगा ठाकुर साहब कि कुछ देर के लिए मुझे अब्बा और तबस्सुम के साथ किसी कमरे में बन्द कर दिया जाए, ताकि अकेले में इनसे भी कुछ जरूरी बातें कर सकूं।"
ठाकुर साहब को उसकी यह जायज मांग माननी ही पड़ी।
दरवाजा अन्दर से बन्द करते ही रघुनाथ तेजी से तबस्सुम और अहमद की तरफ घूमा—उसे देखकर इस वक्त जैसी चमक तबस्सुम की आंखों में थी, वैसी ही रघुनाथ की आंखों में भी थी—कदाचित बूढ़े अहमद की मौजूदगी के कारण वे दौड़कर एक-दूसरे से न लिपट सके—जबकि बूढ़े अहमद ने बांहें फैलाकर बड़े ही मार्मिक स्वर में उसे पुकारा—"इकाबाल!"
"अब्बा!" कहते समय रघुनाथ की आंखें डबडबाती चली गईं—अहमद ने शीघ्र ही स्वयं को सम्भाला—उससे अलग होता हुआ बोला—"फिलहाल हम यहां कोई बात नहीं कर सकते अब्बा हुजूर—ये लोग मुझे बहुत ताकतवर लगते हैं—वे बातें मैंने उन लोगों के सामने सिर्फ इसलिए कही थीं, क्योंकि उस कम्बख्त विजय की आंखों में मैंने आप दोनों के लिए अच्छे भाव नहीं देखे थे।"
"क्या मतलब?"
"वह मुझे गुण्डा लगता है—शायद वह आपको अपने और मेरे बीच से हटाने की सोच रहा है।"
"फिर—?"
"उसकी खबर तो मैं बाद में लूंगा—पहले आप दोनों को सुरक्षित कर देना जरूरी है।"
"कैसे?"
रघुनाथ की दृष्टि कोठी के पिछले लॉन में खुलने वाली खिड़की पर जम गई।
उन्हें कमरे में बन्द हुए चालीस मिनट गुजर चुके थे—उस समय में ठाकुर साहब, रैना, विजय, आशा और अशरफ बोर से हो गए थे—उन्होंने आपस में कोई बात नहीं की थी।
करते भी क्या?
हां—अलग-अलग सभी के दिमाग में एक जैसे विचार जरूर चकराते रहे थे—रिस्टवॉच पर नजर डालने के बाद ठाकुर साहब बन्द दरवाजे के करीब पहुंचे—हल्के से दस्तक दी।
अन्दर किसी किस्म की प्रतिक्रिया नहीं हुई।
वे चौंके—दस्तक जोर से दी—जवाब नदारद।
कई बार जोर-जोर से दस्तक देने पर भी जब अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला तो बुरी तरह चौंके हुए ठाकुर साहब दरवाजा पीटने के से अन्दाज में चीख पड़े—"रघुनाथ—रघुनाथ...।"
ढाक के तीन पात।
सभी की आंखें सन्देह से सुकड़ गईं—विजय आंधी-तूफान की तरह उस कमरे से बाहर की तरफ लपका, ठाकुर साहब पीछे हटे—फिर गुस्से में थरथराते हुए उन्होंने दौड़कर अपने कन्धे का वार दरवाजे पर किया।
अशरफ ने भी आगे बढ़कर उनकी मदद की।
उधर, भागते हुए विजय ने कोठी का आधा चक्कर काटा—पीछे पहुंचा और खुली पड़ी खिड़की को देखते ही ठिठक गया—वह सब कुछ समझ गया था—लपककर वह खिड़की पर चढ़ा—कमरे में पहुंचा ही था कि बन्द दरवाजा टूटकर भड़ाक से कमरे के फर्श पर गिरा।
बदहवास से ठाकुर साहब और अशरफ नजर आए—कमरे में दाखिल होती हुई रैना ने अजीब स्वर में पूछा—"व...वे कहां गए?"
विजय ने अब भी अपने ही अन्दाज में कहा—"चिड़िया उड़ चुकी है—खेत खाली पड़ा है।"
आकाश पर चांदी के थाल-सा चन्द्रमा मुस्करा रहा था—राजनगर के बाहरी इलाके में स्थित एक उजाड़ और टूटे-फूटे खण्डहर में पिघली चांदी के समान चांदनी बिखरी पड़ी थी—उसी खण्डहर की एक टूटी-फूटी छत वाली बारहदरी के फर्श पर बैठे वे तीनों बातें कर रहे थे—उनके ठीक ऊपर बारहदरी की छत में एक बड़ा मोखला बन गया था—उसी के माध्यम से चांदनी फर्श पर पड़ी थी—वे उसी चांदनी में नहाए हुए थे।
यह खण्डहर किसी जमाने में एक शिकारगाह रहा था।
बूढ़ा अहमद कह रहा था—"बस—मुझे तू मिल गया, इकबाल-अब कुछ नहीं चाहिए—मेरे दिल की सारी तमन्नाएं पूरी हो गईं—अब मरते वक्त मेरे जेहन पर कोई वजन न होगा।"
"ऐसा क्यों कहते हैं, अब्बा हुजूर?"
"वही कह रहा हूं बेटे, जो सच्चाई है।"
"अभी मैं तुम्हें कहां मिला हूं—वे लोग अपने देश में हैं—ताकतवर हैं—ठाकुर साहब आई.जी. हैं—वे आखिरी दम तक अपनी ताकत के बूते पर हमें जुदा करने की कोशिश करेंगे—फिलहाल तो हम उनकी गिरफ्त से निकलकर यहां आ छुपे हैं—मगर हमें खोज निकालने के लिए वे धरती-आसमान एक कर देंगे—हमारा मिलन तो स्थाई तब माना जाए, जबकि हम इस नामुराद मुल्क से महफूज निकलकर मिस्र पहुंच जाएं।"
"वे हमें रोक भी कैसे सकते हैं?"
"उनके पास ताकत है और वह विजय तो मुझे बहुत ही खतरनाक लगा।"
तबस्सुम कह उठी—"खुदा करे—कम्बख्तों को मौत आ जाए।"
"खैर—जैसे भी होगा—कल सुबह से हम इस नामुराद मुल्क से बाहर निकलने की कोशिश करेंगे—फिलहाल हमें सो जाना चाहिए—कम-से-कम आज की रात वे इस खण्ड़हर तक नहीं पहुंच सकेंगे।"
रघुनाथ के यह कहने के बावजूद भी काफी देर तक उनके बीच बातचीत होती रही—फिर रघुनाथ उठकर एक कमरे में चला गया—"जा बहूरानी, अपने इकबाल को सम्भाल-बड़ी मुश्किल से मिला है—कहीं फिर न खो जाए।"
तबस्सुम का सारा मुखड़ा लाजवश सुर्ख पड़ गया।
अहमद खान छड़ी टेकता हुआ खण्डहर के एक अन्य टूटे-फूटे और दरवाजा रहित कमरे की तरफ चला गया—तबस्सुम उठी और धड़कते दिल से उस कमरे की तरफ बढ़ गई, जिसमें रघुनाथ था।
सुबह।
कमरे की टूटी छत से सूर्य की प्रकाश-किरणें सीधी रघुनाथ के चेहरे पर पड़ीं—हल्की-सी कुलमुलाहट के साथ उसने आंखें खोल दीं—धूप की चौंध लगते ही उसने आंखें फिर बन्द कर लीं—एक जोरदार अंगड़ाई ली और चेहरा धूप से हटाकर आंखें खोल लीं।
दृष्टि तबस्सुम पर पड़ी।
उसे देखते-देखते ही तबस्सुम के गुलाबी अधरों पर हल्की-सी मुस्कान बिखर गई—रघुनाथ भी मुस्करा उठा—तबस्सुम उसके समीप ही बैठी बलिहारी जाने वाली दृष्टि से उसे देख रही थी—रघुनाथ ने प्यार से पूछा—"इस तरह क्या देख रही हो?"
"आपको।"
"म...मुझे—म...मगर क्यों?"
"बहुत देर से देख रही हूं—सोते हुए धूप में नहाया आपका चेहरा बड़ा ही हसीन लग रहा था—अचानक जागकर आपने मेरा सारा मजा किरकिरा कर दिया।"
"क्यों?" रघुनाथ ने कातर दृष्टि से उसे देखकर पूछा—"क्या मैं अब प्यारा नहीं लग रहा हूं?"
धीमे से मुस्कराकर तबस्सुम ने शरारत की—"नहीं।"
रघुनाथ एक झटके से उठ बैठा—लपककर उसने तबस्सुम को अपनी बांहों में भरा और अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुका दिया, जबकि धीमे से खिलखिलाती हुई तबस्सुम ने अपना चेहरा दोनों हाथों में ढक लिया—रघुनाथ उसके हाथों को चेहरे से हटाने के लिए बल-प्रयोग करने लगा, जबकि तबस्सुम कह रही थी—"अब रात नहीं है—दिन निकल आया है—अब्बा हुजूर इधर आ निकले तो...।" तबस्सुम का वाक्य पूरा होने से पहले ही रघुनाथ ने अपने तपते हुए होंठ उसके होंठों पर रख दिए—तबस्सुम ने भी कसकर पकड़ लिया उसे—वे आलिंगनबद्ध हो गए—एक लम्बे चुम्बन का सिलसिला जारी हो गया—फिर सारा कमरा चुम्बन ध्वनि से गूंज उठा।
चिकनी मछली की तरह तबस्सुम उसकी बांहों से फिसलकर अलग हो गई—खिलखिलाती हुई कमरे से बाहर निकली—मुड़-मुड़कर उसे चिढ़ाती हुई तबस्सुम भागती चली जा रही थी।
रघुनाथ उसके पीछे दौड़ रहा था।
एक दरवाजे-रहित कमरे के सामने से गुजरती हुई तबस्सुम एकदम ठिठक गई—कमरे के अन्दर देखते ही उसके कंठ से बड़ी जबरदस्त चीख निकली—उसकी चीख से सारा खण्डहर दहल उठा था।
रघुनाथ भी चौंककर अपने स्थान पर ठिठक गया।
"इ...इकबाल!" बदहवास-सी तबस्सुम चीखकर वापस भागी—रघुनाथ ने जल्दी से जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया—भागती हुई तबस्सुम रघुनाथ से टकराई। घबराकर वह एक चीख के साथ रघनाथ से लिपट गई। रघुनाथ से लिपटी वह थर-थर कांप रही थी।
"क्या हुआ तबस्सुम? क्या बात है?"
"ख...खून!"
"ख...खून?" रघुनाथ चौंक उठा—"किसका?"
"अ...अब्बाजान—।"
जुनून की-सी स्थिति में रघुनाथ ने एक झटके से तबस्सुम को अलग किया और रिवॉल्वर हाथ में लिए तेजी से कमरे की तरफ दौड़ा—चौखट पर ठिठक गया वह—स्वयं उसके कंठ से भी एक जबरदस्त चीख निकलते-निकलते रह गई—न सिर्फ उसकी आंखें ही पथरा-सी गईं, बल्कि सारा शरीर ही जड़ होकर रह गया—किसी पत्थर के स्टैचू की तरह वह अहमद की लाश को देख रहा था।
लाश गर्दनयुक्त फर्श पर पड़ी थी—चित्त।
सीने में एक खंजर पेवस्त था—ढेर सारा खून जम चुका था—फटी आंखों से लाश कमरे की छत को घूर रही थी—मुंह खुला हुआ था—दस-बारह मक्खियां भी लाश पर भिनभिना रही थीं।
उस वक्त रघुनाथ अचानक ही उछल-सा पड़ा, जबकि उसके पीछे पहुंचकर तबस्सुम ने अपना कांपता हुआ हाथ उसके कन्धे पर रखा—रघुनाथ का चेहरा भभक उठा—जबड़े सख्ती के साथ कस गए—रिवॉल्वर जेब में रखकर वह लाश की तरफ बढ़ा—बढ़ते वक्त बड़बड़ा रहा था—"ये काम जरूर उसी हरामजादे विजय ने किया होगा—म...मैं उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा।"
दरवाजे पर खड़ी कांप रही तबस्सुम उसे देखती रही।
रघुनाथ ने अपने घुटने मोड़े—लाश के समीप बैठा—हाथ बढ़ाकर उसने अहमद के सीने में पेवस्त हुए चाकू की मूठ पकड़ी—एक झटके से चाकू बाहर खींचा—रुका हुआ गाढ़ा खून बहने लगा। चाकू के रक्त-रंजित फल से खून की बूंदें टपक रही थीं—अपनी लाल आंखें उसी फल पर गड़ाए रघुनाथ भभकते स्वर में कह उठा—"म...मुझे आपकी कसम अब्बाजान, आपकी इस शर्मनाक मौत का बदला मैं लेकर रहूंगा—विजय को जिन्दा नहीं छोडूंगा मैं।"
"इ...इकबाल-।" तबस्सुम का कांपता स्वर।
रघुनाथ ने मानो कुछ सुना ही नहीं—चाकू के फल से अंगूठे के सिरे पर खून लिया—अपने मस्तक पर टीका लगा लिया उसने और बोला—"अब मैं इस नामुराद मुल्क को आपकी हत्या का बदला लेने से पहले नहीं छोडूंगा—चाहे कुछ भी हो जाए अब्बाजान—चाहे—।"
"इकबाल!"
रघुनाथ ने भट्टी की तरह भभकता अपना चेहरा उसकी तरफ घुमाया तो वह सहम गई, बोला—"मिस्र जाने से पहले हमें अपने अब्बाजान की मौत का बदला लेना है तबस्सुम।"
तबस्सुम फफक पड़ी—दौड़कर अहमद की लाश से लिपट गई वह—सारे खण्डहर में उसके दहाड़े मार-मारकर रोने की आवाजें गूंज रही थीं—जबकि रघुनाथ किसी शिला के समान बैठा रह गया।
काफी देर तक प्रतीक्षा करने के बाद उस सुनसान सड़क पर एक टैक्सी आती हुई दिखाई दी—तबस्सुम को फुटपाथ पर ही खड़ी रहने का संकेत करके रघुनाथ सड़क के बीचो-बीच पहुंचा और दोनों हाथ हवा में उठाकर खड़ा हो गया।
समीप आने पर ब्रेकों की चरमराहट के साथ टैक्सी रुकी।
रघुनाथ उसकी तरफ लपका—संयोग से टैक्सी खाली ही थी—टैक्सी के अगले दरवाजे के समीप पहुंचते ही रघुनाथ ने एक झटके से रिवॉल्वर ड्राइवर की कनपटी पर रख दिया और गुर्राया—"दरवाजा खोलकर चुपचाप बाहर निकल आओ।"
"ज...जी—?" ड्राइवर का चेहरा पीला जर्द।
"जल्दी करो।"
ड्राइवर की सिट्टी-पिट्टी गुम-इंजन बिना बन्द करे बिना ही वह दरवाजा खोलकर कांपता हुआ बाहर निकला—बिजली की-सी फुर्ती से रघुनाथ ने उसकी कनपटी पर रिवॉल्वर के दस्ते का वार किया।
एक चीख के साथ लहराकर ड्राइवर वहीं ढेर हो गया।
"आओ तबस्सुम।" कहने के साथ ही उसने रिवॉल्वर जेब में रखा और ड्राइविंग सीट पर बैठकर दरवाजा बन्द कर लिया—तबस्सुम दौड़ती हुई सड़क पार करके टैक्सी के समीप आई—रघुनाथ ने अन्दर से अगला दूसरा दरवाजा खोला—तब तबस्सुम भी टैक्सी में प्रविष्ट हो गई।
अभी वह सम्भल ही नहीं पाई थी कि टैक्सी एक तीव्र झटके के साथ आगे बढ़ गई—तबस्सुम हड़बड़ाकर सीट पर लगभग गिर पड़ी—पत्थर की तरह सख्त चेहरे वाले रघुनाथ ने सपाट स्वर में कहा—"दरवाजा बन्द कर लो तबस्सुम।"
उसने ऐसा ही किया।
टैक्सी आश्चर्यजनक गति से दौड़ती चली गई—रघुनाथ का चेहरा उस वक्त एकदम सपाट था—साहस करके तबस्सुम ने पूछा—"हम कहां जा रहे हैं, इकबाल?"
"तुम खामोश बैठी रहो।"
रघुनाथ का लहजा इतना ठंडा था कि तबस्सुम के सारे जिस्म में ठंडी लहर दौड़ गई—कुछ ही देर बाद टैक्सी भीड़-भरे इलाकों से गुजर रही थी—एक लाल बत्ती पर टैक्सी रुकी।
अखबार का एक हॉकर चिल्ला रहा था—"पढ़िए—आज की ताजा खबर—सुपर रघुनाथ इकबाल नामक मिस्री निकला—वह अपनी पहली बीवी के साथ घर छोड़कर भाग गया।"
यह आवाज सुनकर रघुनाथ दांत पीसे।
बोला—"इस हरामजादे से एक अखबार खरीद लो, तबस्सुम।"
तबस्सुम ने उंगली के संकेत से हॉकर को अपनी तरफ बुलाया—हॉकर दौड़ता हुआ कार के नजदीक आया—जिस समय तबस्सुम उससे अखबार खरीद रही थी, उस बीच रघुनाथ ने अपना चेहरा झुकाए रखा।
हरी लाइट होते ही अन्य वाहनों की तरह टैक्सी भी चौराहा पार कर गई—मुख्य पृष्ठ देखते ही तबस्सुम कह उठी—"अरे—अखबार में तो आज भी तुम्हरा फोटो छपा है, इकबाल।"
"खबर पढ़ो।" रघुनाथ ने ड्राइविंग करते हुए कहा।
समाचार उतनी असभ्य भाषा में बिल्कुल नहीं छपा था, जितनी कि अपने अखबार बेचने के लिए वह हॉकर प्रयोग कर रहा था—कार दौड़ती रही—तबस्सुम ने समाचार उसे पढ़कर सुनाया—जो कुछ उसने पढ़कर सुनाया, उसे संक्षेप में यूं कहा जा सकता है कि—शहर का पुलिस सुपरिंटेंडेण्ट रघुनाथ एक मिस्री नागरिक इकबाल निकला, जिसकी गुमशुदगी की खबर कल के अखबार में तीसरे पृष्ठ पर छपे विज्ञापन में रात तक की सभी घटनाएं विस्तारपूर्वक दी गईं थीं उसमें आगे लिखा गया था कि पुलिस रघुनाथ उर्फ इकबाल-तबस्सुम और अहमद को खोज रही है—सारे शहर की नाकेबन्दी कर ली गई थी—राजनगर से बाहर निकलने वाली हर सड़क-हर साधन पर पुलिस की कड़ी नजर थी—दिलबहार होटल के कमरा नम्बर सात सौ बारह को सील कर दिया गया था।
रघुनाथ का फोटो और तबस्सुम तथा अहमद का हुलिया अखबार में छापकर जनता से अपील की गई थी कि—यदि उन तीनों में से कोई भी किसी को कहीं दिखे तो तुरन्त पुलिस को सूचित करें—समाचार में किसी का पक्ष नहीं लिया गया था।
घटना को हैरतअंगेज और रहस्यमय बताया गया था।
संक्षेप में रघुनाथ की जीवनी भी छापी गई थी।
तबस्सुम ने अखबार को तह करके अपने घुटनों पर रखा ही था कि वह यह देखकर चौंक पड़ी कि अभी-अभी टैक्सी जिस बंगले की चारदीवारी में प्रविष्ट हुई है उसके दरवाजे पर गृहमंत्री लिखा था।
गृहमंत्री महोदय उसे देखते ही कह उठे—"अ...आप—मिस्टर रघुनाथ?"
"क्षमा कीजिए—मेरा नाम इकबाल है।"
"हां—हम वह हैरतअंगेज समाचार पढ़ चुके हैं—बैठिए।"
रघुनाथ लम्बी-चौड़ी मेज के इस तरफ पड़ी पंक्तिबध्द दस-बारह कुर्सियों में से एक पर बैठ गया—तबस्सुम उसके साथ ही थी, जो कि चुपचाप उसके बराबर वाली कुर्सी पर बैठ गई—गृहमंत्री महोदय ने ध्यान से तबस्सुम को देखा और बोले—"इनका नाम शायद—।"
"तबस्सुम है।"
"हां—अखबार में शायद ही छुपा है—बड़ा ही विचित्र वाकया हुआ है आपके साथ—पढ़कर बहुत अजीब-सा लगा—पता नहीं अचानक ही अपना परिचय बदल जाने पर आप कैसा महसूस कर रहे होंगे—मगर आपको यूं मूजरिमों की तरह भाग जाने की क्या जरूरत थी?"
"वही बताने या अगर यूं कहा जाए कि मैं आपके पास कुछ विशेष लोगों की शिकायतें लेकर आया हूं—उम्मीद है कि गृहमंत्री के नाते आप सुनेंगे।"
"क्यों नहीं—कहिए।"
"मैं इकबाल हूं—हालांकि मैं ये महसूस नहीं करता कि मैं कभी रघुनाथ भी था—किन्तु सबके कहने और अखबारों में लिखे होने के कारण मानता हूं कि मैं करीब इकत्तीस साल रघुनाथ रहा—जिस तरह इकबाल को प्यार करने वाले हैं, उसी तरह रघुनाथ को भी प्यार करने वाले हो सकते हैं...वे नहीं चाहते हैं कि मैं इकबाल बनकर अपनो के नजदीक और उनसे दूर हो जाऊं।"
"उनका ऐसा न चाहना स्वाभाविक है।"
"मगर इसके लिए वे कानून तो अपने हाथ में नहीं ले सकते?"
गृहमंत्री महोदय बोले—"कानून तो किसी भी हालत में किसी को अपने हाथ में लेने का हक नहीं है।"
"लेकिन वे लोग ऐसा ही कर रहे हैं—इसी वजह से मुझे भागना पड़ा।"
"कौन लोग?"
"इंस्पेक्टर जनरल ठाकुर साहब—उनका सुपुत्र और उसके चमचे।"
"हम समझे नहीं?"
"अखबार में यह नहीं छपा है कि सुपर रघुनाथ के घर में मुझे कैद करके किस तरह रिवॉल्वर की नोक पर स्वयं को रघुनाथ ही कहने के लिए बाध्य किया गया।"
"क्या ठाकुर साहब ने भी—?"
"उन्होंने कम-उनके सुपुत्र ने ज्यादा।"
"आप जो भी कहना चाहते हैं, साफ-साफ कहें।"
रघुनाथ ने सारी घटना विस्तार से बल्कि थोड़ी बढ़ा-चढ़ाकर भी बताई—और बोला—"अब यह फैसला अदालत करेगी कि मैं इकबाल बनकर इनके साथ रहूं या रघुनाथ बनकर उनके साथ—यह फैसला करने वाले ठाकुर साहब कौन होते हैं—उन्होंने मुझे बरगलाने की कोशिश की।"
"हो सकता है कि आपको समझाना चाहते हों।"
"मैं बालिग हूं और अपना अच्छा-बुरा सोच सकता हूं।"
एक क्षण चुप रहे गृहमंत्री महोदय, फिर बोले—"जब तुम रघुनाथ थे तो हम स्वयं भी तुमसे कोई बार मिले हैं, उसी आधार पर तुम्हारे लिए हमारी व्यक्तिगत राय ये है कि तुम्हें दोनों के ही साथ रहना चाहिए—ताकि किसी को दु:ख न हो।"
"मुमकिन है कि मैं ऐसा ही करता, लेकिन...।"
"लेकिन क्या?"
"सबसे पहली बात तो ये है सर कि मैं व्यक्तिगत स्तर पर न तो आपसे कोई राय लेने आया हूं, न ही बात करने—आप सिर्फ गृहमंत्री हैं और मैं आपके पास शिकायत और फरियाद लेकर आने वाला साधारण नागरिक-मेरी गुजारिश है कि आप इसी स्तर पर मुझे सुनें।"
"जरूर—कहिए।"
"एक हत्या हो गई है—मैं उस हत्या की रिपोर्ट करना चाहता हूं क्योंकि रिपोर्ट सम्बन्धित थाने में की जानी चाहिए, परन्तु क्योंकि मुझे शक है कि पुलिस उस हत्या की छानबीन पूरी ईमानदारी के साथ नहीं करेगी, इसीलिए यह रिपोर्ट या कम्पलेण्ट मैं सीधी आपसे कर रहा हूं।"
"पुलिस पर आपको सन्देह क्यों है?"
"क्योंकि हत्यारा आई.जी. पुलिस का बेटा हो सकता है।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं?" गृहमंत्री महोदय उछल पड़े।
"जिसकी हत्या हुई है, उसकी मृत्यु स्वयं आई.जी. के लिए भी लाभप्रद है।"
"ये आप किसकी बात कर रहे हैं? किसकी हत्या हो गई है?"
रघुनाथ ने एक झटके से कहा—"मेरे अब्बा—यानि अहमद खान की।"
"न...नहीं—।" स्वयं गृहमंत्री महोदय के चेहरे पर भूचाल-सा नजर आया।
रघुनाथ कहता ही चला गया—"तभी तो कहता हूं कि वे लोग कानून अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहे हैं।"
"हम पूरी वारदात सुनना चाहते हैं।"
सब कुछ बताने के बाद रघुनाथ ने कहा—"अहमद खान चूंकि मिस्र से आए थे और उन लोगों के अलावा भारत में उनका किसी से दोस्ती या दुश्मनी का रिश्ता नहीं था—उन लोगों के अलावा न तो किसी को उनका कत्ल करने की जरूरत ही है, न ही कोई वजह—भारत में सिर्फ वे लोग उनके दुश्मन हैं—अतः मैं स्पष्ट शब्दों में कह रहा हूं कि मेरा पूरा शक उन्हीं लोगों पर है।"
"उनमें से विशेष किस पर?"
"मिस्टर विजय पर।"
"ओह—कहीं ऐसा तो नहीं कि...?"
"मैं आपको लिखित एप्लीकेशन दूंगा—उन्हीं लोगों से मुझे अपनी बीवी यानि तबस्सुम की जान का खतरा है—वे लोग इतने नीचे भी गिर सकते हैं कि मुझे भी कत्ल कर दें—यदि हम दोनों में से किसी को कुछ हो जाए तो उसका जिम्मेदार उन्हीं लोगों को समझा जाए।"
"कहीं यह आपका वहम तो नहीं?"
"बिल्कुल नहीं।"
"आपको और कुछ कहना है?"
"रात मैं कोई जुर्म करके नहीं भागा था, बल्कि एक तरह से अपनी, तबस्सुम और अपने अब्बा की जान बचाकर ही भागा था, किन्तु फिर भी हमारे लिए सारे शहर की नाकेबन्दी इस तरह की गई है, जैसे हम भगोड़े हों—अखबार में हमारे फोटो और हुलिए छापकर हमें देखते ही पुलिस को सूचित कर देने का ऐलान जनता में कुछ इस तरह किया गया है, जैसे कि हम कोई बैंक रॉबरी करके भागे हों—यह सब कुछ यदि उनकी ताकत का दुरुपयोग नहीं तो और क्या है—वे आई.जी. हैं—ताकतवर हैं—सारी पुलिस उनकी है—इसलिए यह दरख्वास्त लेकर मुझे आपके पास आना पड़ा—मुझे पुलिस के एक-एक सिपाही से खतरा है—अतः मेरी हिफाजत और मदद के इन्तजाम किए जाएं।"
"आपकी पूरी हिफाजत की जाएगी।"
"यहां यह मसला कि मुझे रघुनाथ बनकर उनके साथ रहना है या इकबाल बनकर तबस्सुम के साथ, यह मेरे सोचने की बात है—मैं बालिग हूं और मुझे कोई भी किसी व्यक्ति विशेष के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकता—मैं वहीं रहूंगा, जहां मेरी इच्छा होगी—हां, रैना अदालत के जरिए अपना पति जरूर मांग सकती है—वही मांगे—कानून की परिधि में रहकर वे कुछ भी करें—मुझे कोई आपत्ति नहीं है—परन्तु यदि ठाकुर साहब ने अपनी घरेलू समस्या से निपटने के लिए अपने पद का उपयोग किया—या किसी भी माध्यम से हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई तो वह अपराध ही होगा।"
"बेशक होगा।"
"उम्मीद करता हूं कि आई.जी. साहब को आप अपनी तरफ से सचेत कर देंगे और मेरे अब्बाजान के हत्यारे की तलाश अपने किसी विश्वसनीय और योग्य जासूस से कराएंगे ताकि मुझे जल्दी-से-जल्दी न्याय मिल सके।"
"आपने जो कहा है, उसे लिखकर दे दीजिए।"
"ओ.के.।"