राजदान की लाश पोस्टमार्टम के लिए ले जाई जा चुकी थी। बबलू उसके हत्यारे के रूप में गिरफ्तार हो चुका था। जाहिर है --- दिव्या और देवांश बेहद खुश थे। तभी, डाक से उन्हें एक रजिस्टर्ड लेटर मिला। लेटर अट्ठाइस अगस्त को राजदान द्वारा पोस्ट किया गया था। उसमें लिखा था---' - 'मुझे पूरा विश्वास है, पांच करोड़ के लालच में फंसे तुम बबलू को मेरा हत्यारा साबित करने की कोशिश जरूर करोगे ! अगर तुमने ऐसा किया है तो समझ लो --- मेरे जाल में पूरी तरह जकड़े जा चुके हो ।'


इधर दिव्या और देवांश की हालत बैरंग थी उधर, हवालात में ठकरियाल के होश फाख्ता थे क्योंकि रणवीर राणा के सवालों के जवाब में बहुत ही आसानी से बबलू ने न केवल राजदान का कत्ल करना कुबूल कर लिया बल्कि विस्तारपूर्वक यह भी बताता चला गया कि यह काम उसने क्यों और कैसे किया । स्टोरी सुनाते वक्त उसने बीच-बीच में कई बार ठकरियाल की तरफ व्यंगात्मक मुस्कान उछाली । ठकरियाल का जी चाह रहा था --- उस नन्हें शैतान को कच्चा चबा जाये मगर राणा की मौजूदगी के कारण, वह ऐसा नहीं कर सकता था ।


बड़ी ही अजीब स्थिति थी ।


बबलू को राजदान का हत्यारा साबित करने के लिए खुद

उसी ने पूरा जाल बिछाया था।


इसलिए!


क्योंकि ऐसा होने पर ही बीमे की रकम उन्हें मिलनी थी और वही सब हो रहा था मगर टकरियान खुश होने की जगह हल्कान था। कारण एक ही था बबलू खुद का बेकुसूर क्यों नहीं बता रहा? क्यों वह खुद को राजदान का हत्यारा कह रहा है? भला खुद ही को किसी का त्याग सिद्ध करने के पीछे किसका क्या उद्देश्य हो सकता है? लाख सिर खपाने के बावजूद ठकरियाल की समझ में कुल नहीं आ रहा था। उस वक्त तो उसके दिमाग का फ्यून की उड़ गया जब बबलू ने कहा---'चाचू के खून से सने कपड़े इस वक्त भी मेरे बैड के नीचे पड़े हैं।' 


ठकरियाल वापस बबलू के घर पहुंचा। सचमुच राजदान के खून से सने बबलू के कपड़े बरामद करते वक्त उसकी बुद्धि भरतनाट्यम कर रही थी। जब उसने विला में जाकर यह सब दिव्या और देवांश को बताया तो उनकी बुद्धियां भी डिस्को कर उठीं। कुछ वैसी वैसी ही हालत उस वक्त ठकरियाल की भी हुई जब उन्होंने उसे राजदान का लेटर पढ़ाया।


***


तीनों हवालात में पहुंचे। यहां... जहां शैतान टॉर्चर चेयर पर बंधा बैठा था । उस वक्त रणवीर राणा वहां नहीं था । ठकरियाल ने टॉर्चर रूम अंदर से बंद कर लिया । इरादा जमकर बबलू को टॉर्चर करने और उससे यह पूछने का था कि वह बेकुसूर होने के बावजूद खुद को राजदान का हत्यारा साबित करने के लिए क्यों मरा जा रहा है? परन्तु... उस वक्त एक बार फिर उन्हें मात खानी पड़ी जब टार्चर का मौका आने से पहले ही उसने कहा---'मैं वही कर और कह रहा हूं जैसा चाचू ने मुझे समझाया । वे ऐसा क्यों चाहते हैं, यह उन्होंने मुझे नहीं बताया ।' उस वक्त एक बार फिर उनकी खोपड़ियां गुरुत्वाकर्षण विहीन पिंडों की मानिन्द अंतरिक्ष में कलाबाजियां खाने लगीं जब बबलू ने बताया- 'चाचू जिन्दा हैं।'


उसके कह देने भर से, उनके द्वारा इस बात पर विश्वास कर लेने का सवाल ही नहीं उठता था क्योंकि राजदान ने दिव्या और देवांश की आंखों के सामने खुद को गोली मारी थी परन्तु बबलू द्वारा बताई गई 'डिटेल' ने ठकरियाल के दिमाग में पुनः सभी कलपुर्जों को बुरी तरह झकझोर डाला में जिन्हें वह बहुत मजबूत समझता था । बबलू ने बताया --- जिस शख्स ने दिव्या और देवांश की आंखों के सामने खुद को गोली मारी है, वह एड्स का मरीज था । बेहद निर्धन | तीन जवान किन्तु कुंवारी बेटियों का पिता।


राजदान द्वारा दस लाख दिये जाने पर वह खुशी-खुशी उसका फेसमास्क लगाकर मरने के लिए तैयार हो गया । बबलू ने यह भी कहा, बल्कि साबित कर दिया कि देवांश जिस वक्त रेन वाटर पाइप पर लटका हुआ था, उस वक्त टैरेस से उसका फोटो खींचने वाला राजदान था । बकौल दिव्या और देवांश ---राजदान एक बजने से दो मिनट पहले मर चुका था जबकि बबलू ने साबित कर दिया रात के दो बजकर पचपन मिनट पर राजदान ने अपने मोबाइल से उसके मोबाइल पर बात की है। अपने पास मौजूद मोबाइल करा । यह सब बबलू बगैर टॉर्चर हुए बताता चला गया था। बावजूद इसके, ऐसे ढेर सारे सवाल थे जिनके जवाब दिव्या, देवांश और ठकरियाल चाहते थे जबकि बबलू का कहना था --- इन सवालों के जवाब वह बगैर टॉर्चर हुए नहीं देगा। इधर उसने टॉर्चर करने की तैयारी शुरू की, उधर बबलू जोर से ठहाका लगाकर हंस बरामद भी Creover पड़ा --- बोला---'चाचू को मालूम था तुम मुझे टार्चर करने की कोशिश जरूर करोगे मगर तुम ऐसा न कर सको, इसका इंतजाम चाचू पहले ही कर चुके हैं। इससे पहले कि ठकरियाल उसकी इस पेंचदार बात का मतलब समझ पाता, थाने पर वकीलचंद जैन आ टपका। दिव्या को मालूम था - - - वह राजदान का बचपन का दोस्त भी था और वकील भी था। पता लगा - - - बबलू ने मानवाधिकार आयोग में पहले ही से 'एप्लीकेशन' लगा रखी थी और आयोग ने वकीलचंद

को इस ड्यूटी पर नियुक्त किया था कि थाने में बबलू के साथ कोई ज्यादती न हो पाये।'


सिर धुन लिया ठकरियाल ने । अपने बाल नोंचने की सी नौबत आ गई उसके सामने । राजदान की पेशबंदी ने उसके दिलो-दिमाग को बांधकर रख दिया। सचमुच वकीलचंद की मौजूदगी के कारण वह बबलू को हाथ तक नहीं लगा सकता था। इसी विषय पर बात करता वह गाड़ी में दिव्या और देवांश के साथ विला की तरफ चला आ रहा था कि उनके पास मौजूद बबलू से बरामद मोबाइल की बैल बज उठी। उस वक्त तो रूह ही फना हो गई तीनों की जब दूसरी तरफ से राजदान को बोलते पाया । ठहाके पर ठहाके लगाता राजदान उनकी अवस्था का मजा लूट रहा था।


***


उसके बाद राजदान बबलू के घर नजर आया। तब, जब बबलू की फ्रैंड अर्थात् स्वीटी बबलू के मां-बाप को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि उन्हें बबलू के लिए बहुत ज्यादा फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं है, पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती क्योंकि 'चाचू' जीवित हैं। और बबलू जो भी कुछ कर रहा है, चाचू के कहने पर ही कर रहा है। उसकी पेंचदार बातें उस वक्त बबलू के सीधे-सादे मां-बाप की समझ में बिल्कुल नहीं आ रही थीं, इसीलिए राजदान को खुद सामने आना पड़ा। बबलू के मां-बाप हैरान रह गये । साथ ही, राहत की सांस ली उन्होंने क्योंकि जिसके कत्ल के इल्जाम में उनका बबलू गिरफ्तार था वह उनके सामने जीता-जागता खड़ा था । जब उन्होंने पूछा- ये क्या चक्कर है? ‘आपने’ बबलू को अपनी हत्या को अपनी हत्या के इल्जाम में क्यों फंसाया ?... तो राजदान ने बताया--- अगर समय रहते मुझे मेरे कत्ल के ख्वाहिशमंदों की साजिश का पता न लग जाता तो आज वास्तव में बबलू मेरी हत्या के इल्जाम में फंसा होता और सचमुच उसे बचाने वाला कोई न होता क्योंकि उनका प्लान ही मेरी हत्या करके बबलू को फंसाना था मगर अब.. वर्तमान हालात में दुनिया की कोई ताकत बबलू का बाल तक बांका नहीं कर सकती, क्योंकि उसकी हिफाजत के लिए वे खुद इस दुनिया में मौजूद हैं। राजदान ने उन्हें यह भी बताया---'बबलू आज ही रात को पुलिस के चंगुल से निकल आयेगा।' 


ठकरियाल अपने फ्लैट का दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुआ ही था कि कमरे में राजदान की आवाज गूंज उठी । वह आवाज वहां पहले से मौजूद एक टेपरिकार्डर से निकल रही थी । आवाज ने बताया --- “तुम्हारी मेज की दराज में एक लेटर है। उसे पढ़ो !” ठकरियाल अपने फ्लैट का दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुआ ही था कि कमरे में राजदान की आवाज गूंज उठी । वह आवाज वहां पहले से मौजूद एक टेपरिकार्डर से निकल रही थी। उस आवाज ने बताया——— - 'तुम्हारी मेज की दराज में एक लेटर है। उसे पढ़ो!’ ठकरियाल बाज की तरह मेज की तरफ झपट पड़ा ।


***


उधर ! रात के वक्त! तब, जब थाने में ड्यूटी पर मौजूद सभी सिपाही ऊंघ रहे थे--- रामोतार नामक हवलदार ने बबलू को फरार करा दिया । जब तक ठकरियाल वहां पहुंचा तब तक बबलू का दूर-दूर तक पता नहीं था। मगर, ठकरियाल ताड़ गया --- बबलू को फरार कराने में ड्यूटी पर तैनात किसी पुलिसिए का हाथ है। रामोतार ने खुद को उसके शक के दायरे से बाहर रखने की काफी कोशिश की परन्तु ठकरियाल इतना खुर्राट था कि उसने रामोतार को 'पकड़' ही लिया। पूछा---' क्यों किया तूने ऐसा ?" रामोतार ने बताया - - - इस काम के उसे दो लाख रुपये मिले हैं। उस वक्त तो ठकर over तो की खोपड़ी कत्थक ही कर उठी जब रामोतार ने कहा---'दो लाख उसके घर आकर खुद राजदान ने दिये थे ।' ठकरियाल चाहकर भी रामोतार का इसलिए कुछ न बिगाड़ सका क्योंकि रामोतार जानता था ---ठकरियाल ने राजदान से पच्चीस लाख लेकर विचित्रा और शांतिबाई को ठिकाने लगाया था । यदि टकरियाल उसके खिलाफ कोई एक्शन लेता तो वह भी उसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से कर सकता था ।


उसी रात दिव्या और देवांश को राजदान पहले विला के किचन लॉन में नजर आया, फिर बॉल्कनी में पड़ी उस आराम - कुर्सी पर, जिस पर अक्सर बैठा करता था । गर्ज यह कि कभी यहां, कभी वहां राजदान को देखकर दिव्या और देवांश की घिग्घी बंध गई । मारे खौफ के उनका बुरा हाल था । भरपूर चेष्टाओं के बावजूद राजदान उनके हाथ नहीं आ रहा था। अंत में उन्होंने उसे बाथरूम की खिड़की से लॉन में कूदते देखा । देवांश ने भी वहां से कूदकर उसका पीछा करने । की कोशिश की। वह तो हाथ नहीं आया मगर, लॉन में ठकरियाल जरूर टकरा गया उनसे । पता लगा --- थाने से बबलू की फरारी के बाद वह सीधा यहीं आया है। दिव्या और देवांश ने उसे वह सुनाया जो उनके साथ गुजरा था । ठकरियाल ने दिखाया वह लेटर जो उसे अपने कमरे में पड़ी मेज की दराज से मिला था। राजदान की राइटिंग को वे खूब पहचानते थे। यह लेटर उसके द्वारा अट्ठाइस अगस्त को लिखा गया था। याद रहे, राजदान की मृत्यु उनतीस अगस्त की रात को हुई । हैरत की बात यह थी कि उसकी मौत के बाद जो भी कुछ हुआ --- दिव्या, देवांश और ठकरियाल ने जो भी कुछ किया, वह सभी इस लेटर में लिखा था कि तुम इस- इस स्पॉट पर ये- ये करोगे और घटनाएं यूं घटेंगी। इस लेटर को पढ़ने के बाद देवांश इस नतीजे पर पहुंचा कि वे खुद कुछ नहीं कर रहे हैं बल्कि जो भी कुछ हो रहा है, उस साजिश के तहत हो रहा है जिसके ताने-बाने राजदान अपनी मौत से पहले ही बुन चुका था । इस स्पॉट तक आते-जाते देवांश बुरी तरह टूट चुका था । वह चाहता था - - - पुलिस के उच्चाधिकारियों के सामने जाकर अपना गुनाह कुबूल कर ले और जेल में जाकर शांति की सांस ले । परन्तु ... ठकरियाल हार मानने वालों में से नहीं था। उसका कहना था बेशक मरने से पहले राजदान ने ऐसा हैरतअंगेज जाल बुना जिसमें फंसे वे अब तक छटपटा रहे हैं परन्तु जल्दी जल्दी ही वह इस जाल को काट डालेगा।


***


जाल को काट डालने के प्रयास में वह सुबह होते ही दिव्या और देवांश के साथ बबलू के फ्लैट पर जा धमका इरादा बबलू के मां-बाप को गिरफ्तार करके उस पर दबाव बनाने का था परन्तु फ्लैट के दरवाजे पर पड़ा ताला उनका मुंह चिढ़ा रहा था । एक पड़ोसी ने उन्हें एक पैकिट देते हुए कहा --- “बबलू के मां-बाप धार्मिक यात्रा पर बद्रीनाथ गये हैं, मुझसे कह गये हैं--- आप लोग आयें तो यह पैकिट आपको दे दूं । यह देखकर वे दंग रह गये कि पैकिट सील्ड था | सील पर 28 अगस्त की तारीख थी और थे राजदान के हस्ताक्षर । 


हैरान परेशान  से वे वापस विला पहुंचे। पैकिट खोला । एक केसिट बरामद हुई | कैसिट को उन्होंने टेपरिकार्डर में लगाया । टेप से निकलने वाली राजदान की आवाज जैसे-जैसे उनके कानों पर पड़ती गई, चेहरे पीले पड़ते चले गये। राजदान कह रहा था --- 'बबलू के फरार होने के बाद तुम उस पर दबाव बनाने के लिए उसके मां-बाप को गिरफ्तार करने के मंसूबे बनाओगे लेकिन कामयाब नहीं हो सकोगे क्योंकि यह बात मैं आज... अर्थात् अपनी मौत से एक दिन पहले ही जानता हूं । कोई ऐसी चाल चलो ठकरियाल... जिसकी कल्पना मैंने अपनी मौत से पहले ही नहीं कर ली थी ।' टेप के सदमे से अभी वे उबर भी नहीं पाये थे कि नये सदमे के रूप में सामने आया --- अखिलेश ।


राजदान के बचपन का एक और दोस्त । बहुत ही पतला-दुबला, साढ़े छः फुट लम्बा अखिलेश देखने मात्र से कार्टून सा नजर आता था । मगर वास्तव में वह एक बहुत ही सुलझा हुआ और ब्रिलियेंट प्राइवेट डिटेक्टिव था। दिल्ली में उसके नाम की बड़ी धूम थी । और उस वक्त तो दिव्या, देवांश और ठकरियाल के होश ही फाख्ता हो गये जब अखिलेश ने उन्हें अपनी जेब से राजदान का लेटर निकालकर दिखाया । वह भी अट्ठाइस अगस्त का ही लिखा हुआ था। लिखा था---‘अखिलेश, यह लेटर तुझे तीस अगस्त को मिलेगा जबकि कुछ लोगों द्वारा मुझे उनतीस अगस्त की रात को ही कत्ल किया जा चुका होगा| तेरा काम होगा मेरे कातिलों को पहचानना, उन्हें पकड़ना और अंततः फांसी के तख्ते पर पहुंचाना ।' लेटर को पढ़कर दिव्या, देवांश और ठकरियाल के तिरपन कांप गये। बड़ी ही अजीब बात थी --- मकतूल ने खुद मरने से पहले अपने कत्ल की से इन्वेस्टीगेशन के लिए जासूस नियुक्त कर दिया था। उस वक्त अखिलेश के टेढ़े-मेढ़े सवाल उनके छक्के छुड़ाये हुए थे जब राजदान की लाश पोस्टमार्टम के बाद विला पर पहुंची।


राजदान के अंतिम संस्कार की तैयारियां चल रही थीं। जहां उसकी डैडबाडी को नहलाया जा रहा था वहां दिव्या और देवांश के अलावा ठकरियाल भी था । भरपूर कोशिश के बावजूद उन्हें लाश के वीभत्स चेहरे से प्लास्टिक का कोई 'रेशा' तक नहीं मिला । वे अंतिम रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंच गये --- मरने वाला राजदान ही था, उसके मेकअप में कोई और नहीं, जैसा कि बबलू ने अपने बयान से साबित करने की कोशिश की थी । अब वे समझ गये --- बबलू के मां-बाप के सामने आने वाला, रामोतार को दो लाख देने वाला, और दिव्या और देवांश को कभी कहीं, कभी कहीं नजर आने वाला राजदान नहीं, बल्कि उसका 'क्लोन' था । कोई ऐसा शख्स जो खुद को राजदान साबित करके उन्हें डराने और उलझाने की कोशिश कर रहा था । अब उनके सामने लक्ष्य था--- उस शख्स तक पहुंचना ।


***


अंतिम यात्रा के दरम्यान ठकरियाल ने महसूस किया --- अखिलेश की नजर बराबर उसी पर है। यहां ठकरियाल के लिए मुसीबत बना रामोतार । वह बार-बार ठकरियाल से पूछ रहा था - - - 'साब, ये चक्कर क्या है ? अगर हम राजदान की लाश को फूंकने के लिए श्मशान की तरफ ले जा रहे हैं तो मेरे घर आकर दो लाख रुपये कौन पकड़ा गया मुझे ? ठकरियाल कसमसा रहा था, दांत पीस रहा था बार-बार । यह चिंता उसके होश फाख्ता किये हुए थी कि बेवकूफ रामोतार के शब्द अखिलेश के कानों में पड़ गये तो क्या होगा । 


श्मशान में, उस वक्त तो ठकरियाल के कदमों तले से मानो जमीन ही सरक गई जब राजदान की चिता को देवांश द्वारा अग्नि दी जा चुकी थी, उसने देखा --- अखिलेश रणवीर राणा के साथ न केवल घुट-घुट कर बातें कर रहा था बल्कि उन्हें राजदान का लेटर भी दिखा रहा था । ठकरियाल लपककर उनके नजदीक पहुंचा। पता लगा - - - रणवीर राणा अखिलेश को न केवल पहले से जानते थे बल्कि उसके दिमाग का लोहा भी मानते थे । अखिलेश के नाम राजदान द्वारा मृत्यु - पूर्व लिखे गये लेटर को पढ़कर रणवीर राणा भी हैरान थे । जब उन्होंने टकरियाल से कहा--- 'इंस्पैक्टर, कितने आश्चर्य की बात है! राजदान ने मरने से पहले ही मिस्टर अखिलेश को अपने कत्ल की इन्वेस्टीगेशन हेतु नियुक्त कर दिया था ।' तो ठकरियाल ने कहा - - - 'सर, इनके करने के लिए अब रह ही क्या गया है? केस खुल चुका है। कातिल बबलू है। अपना गुनाह आपके सामने खुद कुबूल कर चुका है वह ।' तब... अखिलेश ने दावा किया --- 'बबलू कातिल नहीं बल्कि कातिलों के षड्यंत्र का शिकार है।' वह साबित कर देता है --- कातिलों द्वारा घटनास्थल से दो गिलास गायब कर दिये गये हैं। सवाल उठाता है ---- क्यों? उधर, चिता में जल रहे राजदान की हड्डियां चटकती हैं इधर, ठकरियाल को लगता है ---उसके दिमाग की नसें चटक रही हैं। अपनी सारी 'पेशबंदी' उसे जर्रा जर्रा होकर बिखरती नजर आ रही थी


और बस ! 'शाकाहारी खंजर' में आपने यहीं तक का कथानक पढ़ा था । इस सबके बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें 'कातिल हो तो ऐसा' और 'शाकाहारी खंजर' ।' आगे का सम्पूर्ण कथानक अपने 'उदर' में छुपाये पेश है---‘मदारी' |