दस नवंबर 2021
दोपहर बारह बजे के करीब सत्यप्रकाश अंबानी अपने बंगले पर पहुँचा। सबसे पहले उसकी निगाह मेड पर पड़ी, जो कि ब्लैक कलर की कैप्री और गहरे लाल रंग की टी शर्ट पहने थी। चेहरे पर उसने बड़े ही सुरूचि पूर्ण ढंग से मेकअप कर रखा था, जिसके कारण रोज से कहीं ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थी, फिर कमसिन तो वह थी ही।
“आज बहुत जल्दी आ गये साहब जी?”
“हाँ साहब जी जल्दी आ गये, मगर तू कहाँ चल दी सज संवर कर?”
“कैसी बात करते हो साहब, मैंने कहाँ जाना है?”
“सोचा कोई ब्वॉय फ्रेंड बना लिया हो?”
“एक ही काफी है साहब जी।” वह मुस्कराती हुई बोली – “दूसरे की कोई तमन्ना नहीं है इधर।” कहकर उसने बड़े ही स्टाइल से अपने दिल पर हाथ रखा।
“पक्का?”
“एकदम पक्का।”
“शीतल कहाँ है?”
“वहीं, जहाँ हमेशा होती हैं, छोटे साहब के कमरे में।” कहकर उसने आगे जोड़ा – “आकाश साहब नहीं होते तो मैडम का मन ही नहीं लगता इस घर में। आपके पास तो जैसे उनका ख्याल रखने की फुर्सत ही नहीं है।”
“मैं ख्याल रखूँ या ना रखूँ, वह रहेगी तो मेरी बीवी ही न?”
“आपको सच में ऐसा लगता है?” सुमन ने मुस्कराते हुए पूछा।
“सिर फोड़ दूँगा मैं तेरा, चल जाकर एक कप चाय बना ला।”
“अभी लायी साहब जी।” कहकर वह किचन की तरफ बढ़ गयी।
सत्यप्रकाश सोफे पर जाकर बैठ गया।
आकाश का कमरा सामने ही था, जिसका दरवाजा आधा खुला हुआ था। थोड़ी देर बाद उसकी करीब डेढ़ साल पुरानी बीवी किसी बात पर जोर-जोर से हँसती हुई उस कमरे से बाहर निकली और उस पर निगाह पड़ते ही सकपका कर एकदम से चुप हो गयी।
शीतल अंबानी छब्बीस साल की बेहद खूबसूरत युवती थी। कद लंबा और बदन छरहरा था, आँखें खूब बड़ी-बड़ी, कूल्हे भारी और रंगत कुछ-कुछ अंग्रेजों जैसी, जो कि उस वक्त इतनी छोटी निकर पहने थी, जिसमें से उसकी जांघों के किनारे तक साफ नजर आ रहे थे, जबकि टॉप इतना झीना था कि अंगिया की झलक दूर से ही मिल जाती थी।
छोटे भाई के कमरे से निकली बीवी के तन पर मौजूद उन ना होने जैसे कपड़ों को देखकर सत्यप्रकाश का तन बदन सुलग उठा, मगर बोला कुछ नहीं। हैरानी की बात थी कि 16-17 महीने पहले ब्याह कर लायी गयी अपने से आधी उम्र की बीवी का मॉर्डन लुक उसके मन को लुभा नहीं रहा था, उत्तेजित नहीं कर रहा था, बल्कि उसे गुस्सा दिला रहा था।
“क्या बात है, आज तो बहुत जल्दी आ गये तुम।” शीतल उसकी तरफ बढ़ती हुई बोली – “सब ठीक तो है? क्योंकि मोस्टली डिनर पर ही तुम्हारे पांव घर में पड़ते हैं।”
“कहो तो वापिस लौट जाऊं?”
“कैसी बात करते हो, मेरा क्या वो मतलब था?”
“और क्या मतलब था?”
“ये तो हद ही हो गयी यार, तुम हमेशा इतने रूखे ढंग से क्यों पेश आते हो मेरे साथ? या किसी ने जबरदस्ती मुझे तुम्हारे गले बांध दिया था? बोलो सत्य क्या यही बात है?”
“तुम जानती हो कि ऐसा नहीं था।”
“फिर तो जरूर किसी के साथ चक्कर चल गया लगता है?” शीतल हँसती हुई बोली।
“भगवान् बचाये इस उम्र में अय्याशी करने से।”
“चक्कर चलना क्या अय्याशी होती है?” उसने बड़ी-बड़ी आँखों से पति को देखा।
“और क्या होता है?”
“अरे लाइफ में ट्विस्ट आ जाता है स्वीट हॉर्ट, फूहड़ से फूहड़ औरत या मर्द
भी एकदम बन ठनकर रहने लगता है। सफेद बाल काले करा लिए जाते हैं। ब्यूटी क्लीनिक पहुँचकर चेहरे की झुर्रिंयां तक हटवा दी जाती हैं। सच पूछो तो अफेयर एन्जॉयमेंट का ही दूसरा नाम है, इसलिए उसे अय्याशी कहना गलत होगा।”
“जो भी हो, अब उम्र नहीं रही ऐसे कामों की।”
“यानि जब उम्र थी तब किया था?”
सत्यप्रकाश ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“और उम्र का क्या है, असल अट्रैक्शन तो कहीं और ही होता है। और तुम्हारे तो बाल भी अभी पूरे के पूरे काले हैं, सूरत भी माशा अल्लाह अच्छी ही है। चालीस से ज्यादा के तो बिल्कुल भी नहीं लगते हो। देखते ही लड़कियां फ्लैट हो जाती होंगी। सच कहो, है कोई तुम्हारी जिंदगी में? देखो झूठ मत बोलना, मैं जरा भी बुरा नहीं मानूंगी।”
जवाब देने की बजाय सत्यप्रकाश ने उसे घूरकर देखा। असल में उसे आधुनिकता से नफरत थी, मॉर्डन ड्रेस फूटी आँख नहीं सुहाते थे। मगर कह नहीं पाता था क्योंकि फुल जवान, कड़क और नये जमाने वाली बीवी की निगाहों में खुद को दकियानूसी नहीं साबित करना चाहता था।”
“जवाब नहीं दिया सत्य।”
“देखो अपनी ये बेहूदा बातें तो तुम रहने ही दो।”
“यानि...।” उसने घूरकर पति को देखा – “मूड सच में खराब है तुम्हारा?”
“नहीं, मैं ठीक हूँ।”
“अब बता भी दो, आखिर गर्लफ्रेंड हूँ मैं तुम्हारी।”
“अच्छा, मैं तो सोचता था बीवी हो।”
“कमाल है हमारी शादी हो भी गयी?” उसने हैरानी से पूछा।
“तुम्हें याद नहीं?”
“ना, वो क्या है कि जवानी की सारी गलतियां मैं भूल चुकी हूँ।”
“शादी करना गलती थी?”
“अब भूल गयी हूँ तो कैसे बता सकती हूँ।” कहकर उसने जोर का ठहाका लगाया।
तभी सुमन चाय का कप वहाँ रख गयी।
“अच्छा जाने दो, अब ज्यादा नहीं छेड़ूंगी तुम्हें वरना रोने लग जाओगे।” वह मुस्कराती हुई बोली – “ये बताओ कि ऑफिस नहीं गये क्या आज?”
“मेरी मर्जी, मैं मालिक हूँ, जाऊं या न जाऊं।” कहते हुए उसने चाय का कप उठा लिया।
“यानि सच में कुछ गड़बड़ हो गयी है।” पति से सटकर बैठती हुई वह बोली
– “लेट मी गेस, बिजनेस में कोई नुकसान हो गया है, है न?”
“नहीं।”
“फिर?”
सत्यप्रकाश ने जवाब नहीं दिया।
“कुछ तो बात जरूर है डॉर्लिंग। बोलो न, क्यों उखड़े-उखड़े लग रहे हो?”
“ऐसा कुछ नहीं है।” कहकर उसने कप से एक चुस्की ली।
“है क्यों नहीं, मैं तुम्हारा चेहरा पढ़ सकती हूँ।”
“तो फिर चेहरे पर ही पढ़ लो, मुझसे क्या पूछ रही हो?” वह झुंझला सा उठा।
“अब तो पक्का तुम परेशान हो।”
सत्यप्रकाश फिर चुप रह गया।
“कोई बिजनेस की बात है?”
“नहीं।”
“गर्लफ्रेंड धोखा दे गयी?”
“फिर से बकवास शुरू कर दी तुमने?”
“तुम कुछ बता भी तो नहीं रहे।”
“अरे कहा न कुछ नहीं हुआ है।”
“ठीक है, नहीं हुआ तो नहीं हुआ।” कहकर वह अपनी जगह से उठी। दोनों हाथों को हवा में ऊपर तक ले गयी और इठलाते हुए सत्यप्रकाश से पूछा – “अच्छा जरा गौर से मुझे देखकर बताओ कि शॉर्ट्स में कैसी लगती हूँ मैं?”
“कोठे पर ग्राहक को लुभाने के लिए खड़ी वेश्या जैसी।” मन की भड़ास एक ही झटके में बाहर आ गयी।
शीतल सकपकाई, घूर कर पति को देखा। दोनों हाथ मशीनी अंदाज में नीचे पहुँच गये। अगले ही पल वह पैर पटकती, आंसू बहाती बेडरूम की तरफ बढ़ गयी।
‘बहन चो... समझता क्या है अपने को?’ रास्ते में वह बड़बड़ाई – ‘हस्बैंड है तो जो मन में आयेगा कह देगा, साला बुड्ढा कहीं का। असल में जलता है मेरी खूबसूरती से, मेरी जवानी से क्योंकि उखाड़ तो कुछ पाता नहीं है, बस उसी का फ्रस्टेशन निकालता रहता है कमीना कहीं का।’
भीतर पहुँचकर वह बेड पर चित लेट गयी। फिर दोनों हाथों से अपने शरीर को सहलाती हुई बोली- ‘ये सब तेरे लिए बना ही नहीं हैं मादर चो..., तू बस उस छिनाल के ही काबिल है। जिसे मैला चाटने की आदत पड़ जाये, उसे भला छप्पन भोगों से सुशोभित थाली क्या रास आयेगी। जा मर जा उसी कमीनी के पहलू में। जानता नहीं है कि जब चाहूँ तेरे रंग में भंग डाल सकती हूँ। नहीं डालती तो इसलिए क्योंकि मुझे तेरी धेले भर की परवाह नहीं है। चाहे तो उसके जैसी चार और रख ले, शीतल को घंटा फर्क नहीं पड़ता।’
फिर जाने क्या सूझा कि उठकर भीतर से दरवाजा बंद किया और एक-एक कर के अपने तमाम कपड़े उतारने के बाद पूर्णतया नग्नावस्था में बेड पर लेट गयी।
अजीब औरत थी शीतल अंबानी, और अजीब था उसका पति सत्यप्रकाश अंबानी।
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