दो दिन बाद! दिन के ग्यारह बजे ।

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल के अलावा डकैती के सब हिस्सेदार इकट्ठे हुए, उस्मान अली, सतीश बारू, बजरंग कराड़े और पूरन दागड़े। उन सबका आपस में परिचय कर दिया गया। ये जगह सतीश बारू का फ्लैट थी। सतीश बारू ने खुद कहा था कि इस काम के लिए उसके फ्लैट को इस्तेमाल कर लिया जाये। सब चुप-चुप और एक-दूसरे को जांचने की नजरों से देख रहे थे। बजरंग कराड़े थोड़ा-सा नर्वस नज़र आ रहा था, झिझक थी उसके भीतर। परन्तु वो ठीक था। हरीश खुदे इस वक्त उनके बीच नहीं था। वो महेश नागपाड़े की निगरानी पर गया था। नागपाड़े अभी तक तो ठीक चल रहा था। वो ना तो पुलिस के पास गया था ना ही उसने कोई और झंझट खड़ा किया था। देवराज चौहान का फोन हर सुबह-शाम उसके पास पहुंच रहा था और देवराज चौहान के कहने पर ही वो हमेशा की भांति अपनी नौकरी पर जा रहा था। देवराज चौहान ने उसे विश्वास दिलाया था कि जब तक वो ठीक से, उनका साथ देगा तब तक उसके परिवार को कुछ नहीं कहा जायेगा, जबकि हकीकत ये थी कि अगर वो देवराज चौहान की बात मानने से इन्कार कर देता या पुलिस के पास चला जाता तो भी उसने, उसके परिवार को कुछ नहीं करना था। नागपाड़े अपने परिवार की वजह से अभी तक डरा हुआ था और उनके कहे मुताबिक चल रहा था। उस पर पूरी तरह नज़र रखी जा रही थी। कभी सोहनलाल तो कभी खुदे उस पर नज़र रख रहा था। बीते दो दिनों में देवराज चौहान और जगमोहन ने अपनी प्लानिंग के कामों को पूरा किया और भागदौड़ में व्यस्त रहे। आज पहली मीटिंग हो रही थी उन सबमें, जो इस डकैती में हिस्सा ले रहे थे। एक-दूसरे को देख-समझ रहे थे। इस वक्त सब सतीश बारू के छोटे से फ्लैट के ड्राइंगरूम में थे। बारू ने कोक को गिलासों में डालकर उनके सामने रख दी थी और अब उनमें बात शुरू होने जा रही थी।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और सब पर निगाह मारी। वो उनके बीच टहलता हुआ एक तरफ आ खड़ा हुआ और सब पर नज़र मारने के बाद गम्भीर स्वर में बोला।

"एक बड़ी डकैती करने के लिए हम लोग इकट्ठे हुए हैं। मैंने डकैती की पूरी योजना तैयार कर ली है। एक मामूली-सी समस्या आ रही है उस पर हम लोग बाद में बात करेंगे। मैं चाहता हूँ आप लोग सब कुछ जान लें और उसके बाद ही आगे की बात करेंगे ।"

सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी।

वहां गहरा सन्नाटा छाया हुआ था।

देवराज चौहान ने कश लिया और पुनः कह उठा।

“सबसे पहले तो मैं बता दूं कि हम नैशनल बैंक के मुख्यालय में डकैती करने जा रहे हैं। वहां पर छोटा वाल्ट है, वो हमारा निशाना है। वो वाल्ट हमेशा करोड़ों के नोटों से भरा रहता है और मौके-बे-मौके पर वहां से पैसा ब्रांचों को भेजा जाता है। तीस चालीस करोड़ वहां पर हर वक्त मौजूद रहना मामूली बात है। दगशाही मैनशन की दूसरी मंजिल पर, नैशनल बैंक का मुख्यालय है। जबकि उसके नीचे वाले फ्लोर पर नैशनल बैंक की ही ब्रांच है और ऊपरी दो मंजिलों पर अन्य कम्पनियों के ऑफिस हैं। हजार गज की जगह में बनी दगशाही मैनशन में कुल चार मंजिलें हैं।” देवराज चौहान कहकर रुका।

"दगशाही मैनशन किस इलाके में है?" पूरन दागड़े ने पूछा।

"विले पार्चे की मुख्य सड़क पर इस इमारत को आमतौर पर सब जानते हैं क्योंकि चार साल पहले इसकी तीसरी मंजिल पर आग लग गई थी। तब ऊपर की दो मंजिलें बुरी तरह जल गई थी और इन्हें बाद में संवारा गया। ठीक किया गया।"

सब की निगाह देवराज चौहान पर थी।

"दगशाही मैनशन के बांई तरफ एक चार मंजिला इमारत और भी है जो कि दगशाही मैनशन के बराबर की ऊंचाई पर है। ये पावनहार इमारत के नाम से जानी जाती है। यहां ऊपर की दो मंजिलों पर L.I.C. का मुम्बई का मुख्यालय है। बाकी नीचे की दो मंजिलों पर नामी कम्पनियों का काम होता है। दिन में पावनहार में खूब हलचल मची रहती है। परन्तु रात के नौ बजते-बजते पूरी तरह शान्ति छा जाती है और उसके बाद वहां गार्ड टहलते ही नज़र आते हैं। पावनहार नाम की ये इमारत भी हमारी योजना में आती है ये बात मैं कुछ देर बाद बताऊंगा कि कैसे। इन बातों को बताने का मेरा मतलब है कि सुनते हुए आप लोग अपने दिमाग में नक्शा तैयार करते रहें कि हम कैसी जगह पर हाथ डालेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।

सब चुप से देवराज चौहान को देख रहे थे।

“अब मैं असल बात पर आता हूँ। मेरी निगाहों में इस काम की ये बात सबसे महत्वपूर्ण है।" देवराज चौहान ने सब पर नज़र डालते हुए कहा--- "मैं इस डकैती की वजह बताना चाहता हूं कि मैं इस काम को क्यों कर रहा हूं। आप लोग इस काम में मेरे साथी है और मैं कुछ भी नहीं छिपाता अपने साथियों से। बीते ढाई महीनों से मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गया था।” पढ़ें अनिल मोहन के दो उपन्यास... सबसे बड़ा गुण्डा,--मैं हूं देवराज चौहान - "बहुत खतरा पैदा हो गया था मुझे और जगमोहन को और ऐसे वक्त में सब दौड़ जाते हैं, परन्तु एक इन्सान हरीश खुदे ऐसा था जिसे मुझसे कोई मतलब नहीं था फिर भी वो मुसीबत में मेरा साथ देता रहा, दौड़ा नहीं। कई बार अपनी जान खतरे में डाली। अब मैं उन हालातों से बाहर आ गया हूं और उस इन्सान के लिए कुछ करना चाहता हूं तभी ये डकैती सिर्फ उसके लिए कर रहा हूं।"

"उसकी तो किस्मत खुल गई।" बजरंग कराड़े ने कहा--- “कहां है वो ?”

“उसके बारे में बताने की अभी मैं जरूरत नहीं समझता, जरूरत पड़ी तो बता भी दूंगा। मैंने इस डकैती में से अपने लिए एक पैसा भी नहीं लेना है। जो भी लूंगा सिर्फ उसी इन्सान (हरीश खुदे) के लिए लूंगा। क्या लूंगा, ये भी बताता हूं।" देवराज चौहान ने कहना जारी रखा--- "सऊदी अरब के एक बेहद अमीर शेख ने ब्रिटेन की सरकार से 'स्टार डायमंड' खरीदा था। ये छः महीने पहले की बात है। स्टार डायमंड, एक बेशकीमती हीरा है जो कि संतरे के आकार का है। बेहद खूबसूरत है। ये मान्यता है कि ये जिसके पास भी जाता है उसे खुशहाल कर देता है। 540 में ये पहली बार स्पेन में दिखा था, उसके बाद ये 'स्टार डायमंड' जाने कहां-कहां से होता अस्सी साल पहले ब्रिटेन सरकार के पास पहुंच गया और छः महीने पहले ब्रिटिश सरकार ने इसकी नीलामी की और नीलामी में इसे साऊदी अरब के शेख ने खरीदा। 'स्टार डायमंड' को खरीदने-बेचने की सारी कार्यवाही पूरी हो गई। खरीदने की शर्तों में ये बात शामिल थी कि 'स्टार डायमंड' की डिलीवरी, ब्रिटेन की सरकार सऊदी अरब में देगी। और जिस दिन हीरे को सऊदी अरब ले जाया जाना था, उससे एक रात पहले के ब्रिटेन से चोरी हो गया ।"

"शातिर चोर होगा वो।" उस्मान अली ने कहा।

"स्टार डायमंड, की चोरी से इंश्योरेंस कम्पनी को झटका लगा। क्योंकि ब्रिटेन की सरकार ने दस दिन पहले ही उस हीरे का बीमा कराया था एक महीने के लिए और बीमा कम्पनी को भारी प्रिमियम दिया था। खैर जो भी हो, हम अपने काम की बात करते हैं कि 'स्टार डायमंड' नाम का वो हीरा महीना भर पहले मुम्बई में, दो लोगों से बरामद किया गया। चूंकि हीरा चोरी की खबर, ब्रिटेन ने सरकार ने इन्टरपोल को दी थी, इस कारण, हीरा बरामदगी की खबर इन्टरपोल को दी गई और उसके बाद ब्रिटेन सरकार हरकत में आ गई। हालांकि दो महीने पहले बीमा कम्पनी ने ब्रिटेन सरकार को 'स्टार डायमंड' की कीमत चुका दी थी। ऐसे में उस हीरे की मालिक बीमा कम्पनी बन गई थी। बीमा कम्पनी के बड़े ओहदेदार मुम्बई पहुंचे। । परन्तु अभी हीरा लौटाने की कार्यवाही पूरी नहीं हुई थी ऐसे में 'स्टार डायमंड' को हमारी सरकार ने उसकी सुरक्षा की जिम्मेवारी सरकारी बैंक, नेशनल बैंक के हवाले कर दी और इस वक्त वो 'स्टार डायमंड' दगशाही बिल्डिंग में, नेशनल बैंक के मुख्यालय की दूसरी मंजिल पर छोटे वाल्ट कहे जाने वाली, उस जगह में हिफाजत से रखा गया है। अभी पन्द्रह दिन और वो वहीं रहेगा और कार्यवाही पूरी होने पर हमारी सरकार, 'स्टार डायमंड' को ब्रिटेन की बीमा कम्पनी के हवाले करेगी।”

"तुम उस हीरे की फिराक में हो?" सतीश बारू कह उठा।

"हां। उस डकैती में मैं सिर्फ वो हीरा लूंगा। जिसकी कीमत सौ करोड़ से ज्यादा की है। वो हीरा मैं अपने उस मददगार को भेंट स्वरूप दूंगा जिसने बुरे वक्त में मेरी सहायता की। परन्तु वो मददगार नकद रकम चाहता है, ऐसे में मैंने उस हीरे का खरीददार ढूंढ लिया है, उसे बेचने पर जो पैसा मिलेगा, वो मददगार को मिल जायेगा।" देवराज चौहान ने ठिठककर सब पर नज़र मारी और कह उठा--- "हीरा लेने की बात पर, किसी को एतराज हो तो कह सकता है।"

सब चुप रहे। एक-दूसरे को देखने लगे।

"बे-हिचक कह दो, अगर कोई बात मन में हो तो।" देवराज चौहान पुनः बोला।

"मेरे ख्याल में तो तुम्हारी ये ही बहुत मेहरबानी है कि तुमने हमें अपने साथ इस काम में लिया।" उस्मान अली ने कहा।

"तुम सिर्फ हीरा लोगे?" पूरन दागड़े ने पूछा।

"हां।"

"और वहां जो तीस-चालीस करोड़ के नोट होंगे ?"

"वो सब तुम लोगों के। उसमें से मैं कुछ नहीं लूंगा।" देवराज चौहान ने कहा ।

"तुम हीरा लो।" बजरंग कराड़े कह उठा--- “मुझे कोई एतराज नहीं। मैं नोट लूंगा।"

"मुझे भी कोई एतराज नहीं।" सतीश बारू ने कहा।

"हमारे लिए करोड़ों की रकम काफी है।" पूरन दागड़े बोला।

चंद पल खामोश रहने के बाद देवराज चौहान बोला।

"तो ये तय हो गया कि इस डकैती में सिर्फ 'स्टार डायमंड' नाम का हीरा लूंगा और तुम लोग वहां पड़े करोड़ों रुपये लोगे। मैं तुम सब को वहां पहुंचा दूंगा। जो जितनी दौलत समेट कर बाहर आ सकता है उतनी ले आये।"

"तुम्हारी ये बात समझ में नहीं आ रही।" उस्मान अली ने कहा।

"क्या नहीं समझ आया ?"

"तुम कहते हो कि जो जितना पैसा वहां से ला सकेगा, ले आये। वो उसका होगा।" उस्मान अली ने कहा--- "तो क्या हम सब बैंक के भीतर जायेंगे? बाहर कोई भी नहीं रहेगा? मेरे ख्याल में तब कोई तो बाहर होगा ही। वो नोट कैसे लेगा?"

"तुम ठीक कहते हो कि तब कोई तो बाहर होगा, परन्तु उसे भी भीतर जाकर, नोट समेटने का पूरा मौका मिलेगा। इस डकैती में मेरा काम तुम सब को ठीक-ठाक उस वाल्ट तक पहुंचाना होगा। उसके बाद नोट लेकर बाहर आना तुम लोगों का काम होगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"ये क्या बात हुई।" बजरंग कराड़े कह उठा--- "हम तो तुम्हारे भरोसे हैं। मैं अपनी बात करता हूं मैंने पहले कभी भी ऐसा काम नहीं किया।"

"मुझे क्या पता कि नोटों को कैसे बाहर तक लाना है।"

"वो मैं बताऊंगा।"

"ये ठीक नहीं है। इस बारे में तुम्हें फिर सोचना चाहिये।"

"तुम क्या चाहते हो?"

"मैं तो कहूंगा कि नोट हम सब मिलकर समेटें। तुम भी हमारे साथ रहोगे। फिर हम सब नोटों को बाहर लायें। कोई जगह तय कर लें। फिर जितने नोट हमारे पास होंगे, उन सबको बराबर-बराबर तुम बांट कर हिस्से कर दो।"

"ये बात ठीक है।" सतीश बारू ने कहा।

"ऐसा ही होना चाहिये।" पूरन दागड़े बोला।

"अगर हम अपने-अपने हिस्से समेटेंगे तो इसमें गड़बड़ हो जाने के चांसिस हैं।" उस्मान अली ने सोच भरे स्वर में कहा--- "हर कोई ज्यादा समेट लेना चाहेगा, बेशक उन्हें उठाकर बाहर तक न ला सके। इस तरह फंसने के चांसिस हैं। जब हम सब मिलकर डकैती कर रहे हैं तो सबका हिस्सा बराबर का होना चाहिये। हम मिलकर नोट लायेंगे फिर बराबर बाटेंगे।"

"हिस्सेदार तो हम चार ही हैं।" पूरन दागड़े ने देवराज चौहान को देखा--- "उस्मान अली, बजरंग कराड़े और सतीश बारू के साथ मैं ।"

"हां। तुम चारों ही होंगे नोटों को बांटने के लिए।"

"तो हम चारों इस बात से सहमत हैं कि मिलकर नोट वहां से बाहर लायें फिर बंटवारा करें।"

इस बात से चारों सहमत थे।

"अगर तुम लोग सहमत हो तो मुझे कोई एतराज नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "तो ये बात तय हो गई कि हम सब मिलकर ज्यादा से ज्यादा दौलत वाल्ट से लेकर बाहर आयेंगे और बांटेंगे। तुम चारों में पैसा बंटेगा ।"

"डकैती की योजना क्या है देवराज चौहान ?" उस्मान अली ने पूछा ।

“अब मैं उसी पर आ रहा हूं।" देवराज चौहान बोला--- "दगशाही मैनशन और पावनहार के बीच, छतों का फासला तीस फीट का है। हम पावनहार की छत से दगशाही मैनशन की छत पर जायेंगे। ऐसे में लोहे की एक मजबूत सीढ़ी तैयार करवाई गई है जो कि चालीस फीट लम्बी है। उस सीढ़ी को दोनों छतों की दीवारों पर रखकर, सीढ़ी के ऊपर से होकर, दगशाही मैनशन की छत पर पहुंचना होगा हमें। ये ज्यादा खतरे का काम नहीं है। अगर हम सावधानी इस्तेमाल करें तो ये काम कर सकते हैं। परन्तु सबसे जरूरी है कि उस सीढ़ी को छत पर पहुंचाया जाये। जबकि दिन में पावनहार में बहुत चहल-पहल रहती है। ये काम किया तो कोई भी रोक देगा और कारण पूछेगा। और शाम होते ही वहां गार्ड्स नज़र आने लगते हैं, जो कि सुबह के छः बजे तक उधर ही मौजूद रहते हैं।"

"इसके लिए एक-दो गार्डों को पटाना जरूरी है।" सतीश बारू ने कहा।

"ये सम्भव नहीं । गार्ड ना पटे तो बात बाहर निकल जायेगी।" जगमोहन बोला--- “हम हर मुद्दे पर विचार कर चुके हैं। परन्तु इस बारे में तसल्ली बख्श फैसले पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। समस्या उस सीढ़ी के ज्यादा लम्बे होने की है। सीढ़ी छत पर पहुंच गई तो आसानी से छत पर लिटाई जा सकती है। परन्तु सवाल उसके छत पर पहुंचाये जाने का है।"

"कितने गार्ड्स होते हैं शाम को ?” उस्मान अली ने पूछा।

“छः। दो गाईस तो रात आठ बजे पावनहार के मुख्य गेट पर जम जाते हैं। वो रात भर वहीं रहते हैं। चार गार्ड्स भीतर बाहर घूमते रहते हैं। इसी तरह बगल की दगाशाही मैनशन इमारत के सामने की तरफ भी तीन गार्ड रहते हैं। यानी कि दोनों बिल्डिंग के गार्ड्स एक-दूसरे की नज़र में रहते हैं। हमें इस बात का खास ध्यान रखना है कि एक तरफ कुछ गड़बड़ होगी तो दूसरी तरफ फौरन पता चल जायेगा। दोनों तरफ के गार्डों के बीच लगभग तीस फीट का फासला रहता है या फिर पैंतीस चालीस फीट का। कभी-कभी कभाद दोनों तरफ के दो गार्ड खड़े होकर गप्पे भी मारने लग जाते हैं। परन्तु ये सिलसिला दो-चार मिनट से ज्यादा का नहीं होता वो फिर अपनी-अपनी जगह लौट आते हैं। दगशाही मैनशन में शाम छः बजे से लेकर सुबह छः बजे तक, पांच गार्ड ड्यूटी देते हैं। वो हथियार लिये होते हैं। तीन तो हमेशा ही सामने की तरफ रहते हैं और दो गार्ड्स भीतर-बाहर टहलते रहते हैं। वो सब मैं बताऊंगा, परन्तु पहले हमें सीढ़ी को पावनहार इमारत की छत पर ले जाने का सोचना है। कि गुपचुप तरीके से ये काम कैसे कर सकते हैं हम।"

"लड़की।" बजरंग कराड़े बोला ।

सबकी निगाह उसकी तरफ उठी ।

"ऐसा काम तेज-तर्रार लड़की करा सकती है।" बजरंग कराड़े ने गम्भीर स्वर में कहा--- “आदमियों को रास्ते पर लाने के लिए, लड़की सबसे जबर्दस्त मोहरा होती है। आदमी लड़की के सामने बिछने को तैयार होते हैं अगर वो जरा भी खूबसूरत हो और आदमियों को लाइन पर लाना आता हो उसे। लड़की के एक इशारे पर गार्ड्स सीढ़ी पावनहार की छत पर पहुंचा देंगे।"

चंद पलों के लिए वहाँ खामोशी छा गई।

"मैं इसकी बात से सहमत हूं।" सतीश बारू ने सिर हिलाया।

पूरन दागड़े ने कुछ नहीं कहा।

"अगर तुम्हारी बात को मैं मान भी लूं तो ऐसी कारआमद लड़की हमें कहां से मिलेगी जो ।"

"ऐसी एक हरामी चीज को तो मैं जानता हूं।" उस्मान अली ने कहा।

"जानते हो?"

"मतलब कि मुझे उसके बारे में पता है, परन्तु पहचान नहीं है। सोनी चावला नाम है उसका, लोगों की जेब साफ करती है। फिल्म हाल पर बन-ठन के पहुंच जाती है। असामी फंसाती है फिर उसका पर्स गायब करके गायब हो जाती है। या रातों को अंधेरी गली में अकेले जा रहे आदमी को चाकू दिखाकर लूटती है या लोगों से लिफ्ट लेती है और अपने कपड़े फाड़कर, पुलिस को बुला लेने की धमकी की एवज में कार वाले का सारा माल ले लेती है, हरामीपंती का हर नक्शा वो जानती है। खूबसूरत है, देखने में किसी अमीर घर की लगती है जब कि हकीकत में उसका बाप एक कालगर्ल्स रैकेट के लिए काम करता है। परन्तु बाप का काम उसे पसन्द नहीं । इसलिए वो अलग रहती है। अपना कमाती खाती है। लड़ाई-झगड़ा करने के लिए हमेशा आगे रहती है। उसे हम इस काम में इस्तेमाल कर सकते हैं।"

"वो हमारे काम को पसन्द करेगी?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"क्यों नहीं करेगी।" उस्मान अली मुस्कराया--- "करोड़ों मिलेंगे। दौड़ के सारे काम करेगी।"

"जगमोहन तुम उस्मान अली के साथ जाओ और सोनी चावला से मिलो।" देवराज चौहान ने कहा फिर सबसे बोला--- “अब तुम सब लोग यहीं रहोगे। हमारी डकैती की तैयारी शुरू हो चुकी है, इसलिए कोई कहीं नहीं जायेगा। जब लड़की का मामला हल हो जायेगा तो मैं तब डकैती की योजना पर आगे बात करूंगा।"

■■■

सोनी चावला ।

छब्बीस बरस की, पांच फुट की लम्बाई। गोरा रंग, बड़ी आंखें, बाल पीठ तक झूलते हुए। अक्सर जीन की पैंट और स्कीवी या टी-शर्ट में देखी जाती थी। नाक थोड़ा लम्बा, जो कि उसके चेहरे पर जंचता था। बेहद खूबसूरत और उसकी इसी खूबसूरती में फंसकर लोग खामखाह ही लाखों रुपया गंवा देते थे और जब होश आता तो चिड़िया उड़ चुकी होती। सोनी चावला को हरामीपन, और चालाकी, मक्कारी, बाप की तरफ से विरासत में मिली थी। खूबसूरती भी बाप की तरफ से मिली थी। उसका बाप अपनी जवानी में आकर्षक युवक हुआ करता था और उसकी मां, जो कि करोड़पति की औलाद थी, फंसाकर शादी कर ली। जबकि लड़की के घरवाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे परन्तु लड़की ने एक ना सुनी और भाग कर शादी कर ली। धीरे-धीरे उसे अपनी पति की असलियत पता चली कि वो एक नम्बर का आवारा, शराबी, और गलत काम करने वाला है। अब वो अपने मां-बाप के पास भी नहीं जा सकती थी। कौन-सा मुंह लेकर जाती। अपने पति को समझाने और अच्छी राह पर डालने की उसने भरपूर चेष्टा की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तब तक सोनी का जन्म हो गया और एक दिन पति की आदतों से दुखी होकर उसने जहर खाकर जान दे दी। उसके बाद तो सोनी अपने पिता के हाथों में ही पली। थोड़ी बड़ी हुई तो पिता के काम को समझने लगी। यहीं से उसने चलाकियां मक्कारी सीखी परन्तु पिता उसे कभी अच्छा नहीं लगा। क्योंकि उसकी मां ने उसी के कारण जान दी थी। उन्नीस की हुई तो पिता ने स्पष्ट उससे कहा कि वो काल गर्ल रैकट में शामिल हो जाये। जवाब में उसने पिता को चांटा मारा और घर छोड़ दिया। उस दिन के बाद वो पिता से नहीं मिली। सात साल हो गये और जैसे भी हो, अपने पैरों पर खड़ी हो गई थी। हेरा फेरी, चोरी, मक्कारी जैसे काम करके ही उसने थोड़ी बहुत दौलत कमाई थी। दो कमरे का फ्लैट खरीद लिया था। ये काम करना मजबूरी थी और किसी ऐसे मौके की तलाश में थी कि कोई ढंग का लड़का मिले तो घर बसा ले। ऐसे काम करने के बाद भी उसने अपनी इज्जत नहीं खोई। कम-से-कम पैसे की खातिर उसने अपना शरीर किसी को नहीं सौंपा परन्तु अपनी जरूरत के लिए वो ऐसा कई बार कर चुकी थी। इस वक्त दोपहर के दो बजे थे और वो सोई उठी। रात एक शादी में बन-ठन के जा घुसी थी और सुबह तीन बजे घर लौटी थी। शादी में उसने एक औरत के गले से हीरों का हार साफ किया था। हार का ध्यान आते ही वो फौरन बैड से उठी और टेबल पर रखे हैंडबैग को उठाया उसे खोलकर हार निकाला। बहुत शानदार हार था। सोनी ने अच्छी तरह परखा उसे और अन्दाजा लगाया कि कम-से-कम पांच लाख का तो होगा ही। हार को वापस रखकर बाथरूम में जाकर हाथ मुंह धोया। ब्रश किया, बालों को ठीक किया। शीशे में अपने को निहारा।

"जंचती तो तू बहुत है सोनी।" वो बड़बड़ा उठी-- "फिर तुझे शादी करने के लिए ढंग का लड़का क्यों नहीं मिलता ?"

वो किचन की तरफ बढ़ी कि कुछ खाने को बना सके।

तभी बेल बजी। कॉलबेल बजी।

सोनी ठिठकी। सोचों में पुलिस का नाम ही आया।

तो क्या पुलिस को उसके बारे में पता चल गया जो आ गई। और तो कोई होगा नहीं ।

सोनी ने दरवाजा खोला तो सामने जगमोहन को खड़े पाया ।

"हां?" सोनी ने आंखें नचाकर पूछा--- "क्या है?"

"तुम सोनी हो। सोनी चावला?" जगमोहन ने पूछा ।

“हां।” सोनी, जगमोहन को देखती बोली--- “हूं तो, तुम्हें क्या?"

“मैंने तुमसे बात करनी है। अच्छा होगा कि बैठकर बात कर लें।" जगमोहन मुस्कराया।

“बोत सयाना बनता है। मेरे घर में घुसना चाहता है। तू है कौन ?"

"जगमोहन ।"

"होगा। क्या बात करनी है, यहीं पर कर।" सोनी उंगली में फर्श की तरफ इशारा करती कह उठी।

"करोड़ों की बात है।" जगमोहन का स्वर शांत था।

"क्या?"

"करोड़ों मिल सकते हैं, तेरे को मेरे से बात करके।"

सोनी सतर्क हो गई।

“मेरे पास तू कैसे आया? मेरे बारे में तेरे को किसी ने क्या बताया ?" सोनी ने पूछा।

जगमोहन ने मुड़ कर पीछे देखा। कुछ दूरी पर उस्मान अली खड़ा था।

“उसने मुझे तुम्हारे बारे में बताया।"

सोनी ने उस्मान अली को देखा तो होंठ सिकुड़ गये।

"वो तो चोर है। उस्मान अली।" सोनी के होठों से निकला।

"तू कौन है?" जगमोहन मुस्कराया--- "तू भी तो---।”

"बस-बस, मेरी तारीफ मत कर, मैं तो चोर की मां हूँ।" सोनी ने मुंह बनाकर कहा--- "पर मैं तुझे नहीं जानती ।"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना है?" जगमोहन बोला।

"वो तो सबका बाप है। तेरे-मेरे बीच देवराज चौहान कहां से आ गया?"  सोनी ने जगमोहन को घूरा।

"देवराज चौहान के साथी जगमोहन का नाम भी सुना होगा।"

सोनी जोरों से चौंकी।

"तू वो जगमोहन है?" वो हक्की-बक्की रह गई।

"हां।"

सोनी ने फौरन हाथ बढ़ाया और जगमोहन की कलाई पकड़ ली।

"तूने पहले क्यों नहीं बताया कि तू वो जगमोहन है।" वो जगमोहन को भीतर की तरफ खींचती बोली--- “बाहर क्यों खड़ा है। ये तेरा ही घर है। आ---तू तो हैंडसम है। लड़कियां तो बहुत मरती होंगी तुझ पर। शादी कर ली ?"

"नहीं।"

"मेरे से करेगा। मुझे तेरे जैसे लड़के की ही तलाश है।" कमरे में पहुंचकर उसने जगमोहन की कलाई छोड़ी।

"मैं यहां शादी करने नहीं आया।"

"दूसरा काम भी हो जायगा। मैं क्या तेरे को जंची नहीं?"

"करोड़ों की बात कर रहा था मैं। कमाना चाहती हो?" जगमोहन ने उसे देखा ।

"हां, पर कैसे?"

"देवराज चौहान एक डकैती करने जा रहा है। उसमें एक लड़की की जरूरत पड़ गई है।"

“भला हो उस्मान अली का।" सोनी ने गहरी सांस ली--- "जो उसने तुम्हें मेरा दरवाजा दिखा दिया। मैं तुम लोगों के साथ काम करने को तैयार हूं। देवराज चौहान इस काम में है तो बात करोड़ों की ही होगी---है ना?"

"उस्मान अली ने तुम्हारी काफी तारीफ की थी। मुझे लगता है कि उसने कम तारीफ की। तुम उससे कहीं ज्यादा हो?"

"मेरी तारीफ की उस चोर ने। समझ सकती हूं कि उसने क्या-क्या कहा होगा। चोर-चोर की ही तारीफ करता है। अगर मैं काम की नहीं होती तो तुम कभी भी मेरे पास ना जाते। मुझे करना क्या होगा ?"

"तुम हमारे साथ काम करने को तैयार हो ना?"

"हां। एकदम तैयार। करोड़ों रुपया पक्का मिलेगा ना?"

"जो भी हाथ आयेगा तुम्हें मिलाकर कुल पांच लोगों में नोटी का बंटवारा होगा। वहां पर करोड़ों रुपया पड़ा होगा।"

"पैसा कहां पर है?"

"बैंक में।"

"अब मुझे क्या करना है?"

"मेरे साथ चलो ताकि तुम्हें भी इस काम में शामिल किया जा सके।"

■■■

सतीश बारू के फ्लैट का वो ड्राइंग रूम। सब वहां मौजूद थे और सोनी चावला भी वहां थी। दो घंटे पहले जब सोनी वहां आई थी तो वो खुद ही सबसे मिली। अपना नाम बताया, सबका पूछा। उसकी बातों में कोई झिझक नहीं थी और खुश थी। सोनी को बताया गया कि खासतौर से उसे क्या करना है तो उसने विश्वास भरे स्वर में कहा कि वो सीढ़ी को पावनहार बिल्डिंग की छत पर पहुंचा देगी। काम कब करना है, उसे बता दिया जाये। फिर सोनी को वो सब कुछ बताया गया जो देवराज चौहान सुबह बता चुका था। यानी कि सोनी हर उस बात से वाकिफ हो गई थी, जो कि दूसरे जानते थे। वो देवराज चौहान से मिलकर बहुत खुश हुई थी। बजरंग कराड़े को सोनी एक ही नजर में पसन्द आ गई थी। उसने सोचा कि ऐसी लड़की को ही वो अपनी पत्नी के रूप में चाहता है। खूबसूरत समझदार। जहां कदम रखे वहीं पर जान डाल दे। सोनी ने सबके सामने उस्मान अली का शुक्रिया अदा किया कि उसने, उसके बारे में बताया।

उसके बाद देवराज चौहान ने अपनी बात फिर शुरू की। हमें पावनहार बिल्डिंग की छत पर जाना होगा, लेकिन नीचे गार्डों के होते, मुमकिन नहीं हो सकेगा। जबकि तब आधी रात हो रही होगी और गार्ड पहरे पर सतर्क होंगे, यही नहीं तब दगशाही मैनशन के गार्ड्स भी वहां से नज़र आते हैं और उन्हें भी अपने वहां से पावनहार के गार्ड्स दिखाई देते रहते हैं। इस समस्या को बजरंग कराड़े हल करेगा। वो निशानेबाज़ है और इसी वजह से इसे इस काम के लिये लिया गया है। बजरंग कराड़े तब...।"

"परन्तु मुझे तो जगमोहन ने कहा था कि इन काम में किसी की जान नहीं ली जायेगी।" बजरंग कराड़े ने कहा।

"मैंने कब कहा कि किसी की जान लेनी ।"

"मेरे निशानेबाज़ होने का मतलब तो...।"

"तुम्हें ऐसी गन दी जायेगी, जिसमें से गोलियां नहीं, बेहोश करने वाली सुई निकलती है। सुईं भीतर से खोखली होती है और उसमें बेहोशी की दवा होती है। सुई के एक सिरे पर पम्पिंग करने जैसा नन्हा सा यंत्र लगा होता है, जब वो सुई किसी के शरीर में तेजी से प्रवेश करती है तो सुईं पर लगा वो यंत्र खुद-ब-खुद ही पम्प कर जाता है, जिससे कि बेहोशी की दवा शरीर में चली जाती है और सिर्फ पांच-सात सैकिण्ड में ही वो बेहोश होकर गिर जाता है, जिसके शरीर में सुई लगी हो वो चार घंटे तक बेहोश रहता है। सुईं फेंकने वाली गन अमेरिका का सरकारी डिपार्टमैंट बनाता है और अधिकतर इस गन को वहां के पुलिस वाले इस्तेमाल में लाते हैं या मिल्ट्री वाले। ये गन बिकाऊ नहीं है। परन्तु फिर भी बिकने बाजार में आ जाती है और ऊंचे दामों में बिकती है।"

"तुम्हारे पास ऐसी गन है?" बजरंग कराड़े ने पूछा।

“हाँ। दो सौ सुईयों के साथ गन मेरे पास है और एक बार में तीस सुईंयां गन में लोड की जा सकती है।" देवराज चौहान ने कहा।

"परन्तु मेरी प्रैक्टिस छूटी हुई है। निशानेबाज़ी की।" कराड़े बोला।

“कल तुम जगमोहन के साथ वीरान जगह जाओगे और साइलैंसर लगे रिवॉल्वर से प्रैक्टिस करोगे। इस काम के लिए तुम्हें एक ही दिन मिलेगा और तुम्हें फॉम में आना होगा। तभी बात बनेगी।"

"मुझे सुईयों वाली गन को भी चलाकर देखना होगा।"

"तीस सुईंयों से लोडिड गन भी तुम्हें कल मिल जायेगी।"

कराड़े ने सिर हिलाया ।

“सोनी सीढ़ी को पावनहार की छत पर पहुंचा देगी। बजरंग बेहोशी की सुईंयों वाली गन से गार्डों को बेहोश करेगा। पावनहार बिल्डिंग के गार्ड भी और दगशाही मैनशन के गार्ड भी। ये अपनी जगह पर डटा रहेगा और जब-जब जो गार्ड दिखेगा, सुई चलाकर उसे बेहोश कर देगा। जब ये काम काफ़ी हद तक तो सतीश बारू उन बेहोशी गार्डों के पास पहुंचकर, जो कि इधर-उधर बिखरे होंगे उन्हें एक जगह ओट में इकट्ठा करके लिटा देगा। पावनहार के गार्डों को भी, दगशाही मैनशन के गार्डों को भी। उसके बाद उनमें से किसी एक गार्ड की वर्दी पहनकर वहीं खड़ा हो  जायेगा। ताकि किसी स्थिति में कोई यहां पहुंचे तो उसे संभाल सके। इसी प्रकार हमारा एक और साथी है हरीश खुदे। जो कि इस वक्त यहां नहीं है। इस डकैती के सिलसिले में कहीं व्यस्त है। तब वो वहां दगशाही मैनशन के गार्ड की वर्दी पहनकर वहां खड़ा हो जायेगा। सतीश बारू और हरीश खुदे का काम ये देखना भी होगा कि किसी बेहोश गार्ड को होश तो नहीं आ रहा। इन दोनों के पास तब तेज बेहोशी की दवा के इंजैक्शन होंगे कि अगर किसी गार्ड को होश आ रहा है तो इंजेक्शन लगाकर उसे फिर बेहोश किया जा सके। पहले मेरी योजना ये थी कि हम सब बैंक के भीतर जायेंगे और सब अपने-अपने नोटों पर कब्जा करेंगे। परन्तु जब से ये तय हुआ है कि वहां से नोट निकालने के बाद उन्हें बराबर बांटा जायेगा तो मैंने अपनी योजना में कई बदलाव कर दिए हैं। अब कोई भीतर रहे या बाहर, कोई फर्क नहीं पड़ता। डकैती में शामिल दौलत का बंटवारा तो एक जैसा ही होना है। अब मैं योजना को कुछ बदलकर आपके सामने रख रहा हूं। परन्तु इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"

"मैं कुछ कहना चाहता हूँ।" उस्मान अली बोला।

"कहो।"

"पहले हमने सोनी चावला को योजना में शामिल किया। अब तुम हरीश खुदे का नाम बता रहे हो कि एक और भी है। इस तरह तो हिस्सेदार बढ़ते चले जायेंगे और हमें मिलने वाले नोट कम होते. चले जायेंगे।" उस्मान अली ने कहा।

"हरीश खुदे का हिस्सा नोटों में नहीं होगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"और ये ?" उस्मान अली ने सोहनलाल की तरफ इशारा किया--- "ये कौन है?"

“ये सोहनलाल है। तिजोरी-ताले खोलना जानता है। बैंक के उस वाल्ट को ये ही खोलेगा। वहां पर इस बारे में कैसी भी समस्या आती हो तो ये ही निपटेगा। कायदे से देखा जाये तो ये बराबर का हिस्सेदार बनता है। परन्तु ये भी कुछ नहीं लेगा उस दौलत में से । वहां से हीरे को छोड़कर जो भी दौलत मिलेगी, वो तुम पांचों में बांटी जायेगी।"

"सोहनलाल मुफ्त काम क्यों करेगा?" पूरन दागड़े ने कहा।

"मेरी खातिर ।" देवराज चौहान बोला--- "ये मेरा दोस्त है। मेरी खातिर अपना हिस्सा नहीं लेगा। मैं, जगमोहन, सोहनलाल, हरीश खुदे अपना हिस्सा इसलिए नहीं ले रहे कि पहले ही डकैती में मिलने वाले हीरे को, मैं किसी के लिए ले रहा हूं। ऐसे में दौलत में से भी हिस्सा लें तो ये गलत होगा। इस बात का बैलेंस बनाया जा रहा है, हिस्सा ना लेकर ।"

पूरन दागड़े सिर हिलाकर रह गया।

"अब मैं आगे बढ़ूँ?" देवराज चौहान ने सबको देखा।

कई सिर सहमति में हिले ।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और कश लेकर बोला।

"इस तरह दगशाही मैनशन और पावनहार बिल्डिंग की सिक्योरिटी पर हमारा कब्जा हो जायेगा। और पावनहार की छत पर पहुंच जायेंगे जहां सीढ़ी रखी होगी, परन्तु नीचे दोनों इमारतों के मुख्य द्वार पर सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हैं, जिनका फोकस प्रवेश गेटों की तरफ है। जब उन गार्डों को सुई से शूट करके बेहोश किया जायेगा तो तब जगमोहन मुंह पर कपड़ा बांधकर जायेगा और उन कैमरों को बेकार कर देगा। ताकि हमारी तस्वीरें कैद ना हो सकें। तो पावनहार की छत पर...।"

तभी सोनी चावला कह उठी।

"जब दोनों इमारतों पर गार्डों के रूप में हमारे आदमी होंगे तो हम दगशाही मैनशन से क्यों नहीं भीतर जाते ?"

"नहीं जा सकते। सुरक्षा के नाते जब बैंक की ब्रांच और उसका मुख्यालय बंद हो जाते हैं तो लिफ्ट के सिस्टम को ऐसा कर दिया जाता है कि वो पहली और दूसरी मंजिल पर ना रुक सके। इसके अलावा ऊपर जाने के लिए जो दगशाही मैनशन की सीढ़ियां हैं, वो बाहर की तरफ से मतलब कि इमारत के प्रवेश गेट के सामने जो रास्ता पड़ता है, उधर से है। वो सीढ़ियां बाहर-बाहर से ऊपर जाती हैं। और पहली-दूसरी मंजिल पर बैंक और मुख्यालय में जाने के दरवाजे बंद रहते हैं। उन दरवाजों का सुरक्षा का ऐसा इलैक्ट्रोनिक्स सिस्टम लगा है कि अगर उन्हें खोलने की चेष्टा की गई तो तेज सायरन बज उठेगा।"

"सायरन को बेकार भी किया जा सकता है।" सोनी ने कहा।

“नहीं कर सकते। सब कुछ उस दरवाजे के पार भीतर की तरफ है। यानी कि बेकार करने के लिए पहले भीतर जाना होगा। वो सारा सिस्टम उस दरवाजे के की-होल से अटेच है। ज्योंहि उसमें गलत चाबी, या कोई और चीज 'की' होल में डाली जायेगी तो वो सायरन एक्टिवेट हो जायेगा ।" देवराज चौहान ने कहा।

“तो सुबह जब बैंक वाले आते हैं तो वो दरवाजा कैसे खोलते हैं।"

"मैंने कहा है कोई भी गलत चाबी 'की' होल में डाली जायेगी तो सायरन बजेगा। सही चाबी लगने पर अलार्म एक्टिवेट नहीं होता और सामान्य दरवाजों की तरह उसे खोला जा सकता है। वो स्टील का दरवाजा है। ब्रांच के फ्लोर पर भी और ऊपर की दूसरी मंजिल पर, मुख्यालय के फ्लोर पर भी।" देवराज चौहान ने सोनी को देखा।

"जिस रात हमने काम करना हो, उस दिन बैंक में जाकर किसी तरह अलार्म को बेकार किया जा सकता है कि।"

"कोई फायदा नहीं।" देवराज चौहान ने इन्कार में सिर हिलाया--- "क्योंकि हर शाम वो दरवाजा बंद करने से पहले अलार्म को पांच सैकिण्ड के लिए बजाकर चैक किया जाता है। अगर वो चैक करने के दौरान नहीं बजा तो कौर बैंक की सिक्योरिटी को देखने वाली इकबाल एण्ड कम्पनी को फोन किया जायेगा और वहां से इंजीनियर पहुंच जायेगा ठीक करने।"

"तुमने सब कुछ पता कर रखा है।" सोनी ने लम्बी साँस ली।

"तो तुमने कौन-सा रास्ता चुना है उन इमारत की दूसरी मंजिल पर जाने के लिए?" सतीश बारू ने पूछा।

“वो ही बताने जा रहा हूं।" देवराज चौहान ने कश लेकर कहा--- "पावनहार की छत से, दगशाही मैनशन की छत पर हम दोनों तरफ सीढ़ी के किनारे दीवारों पर रख देंगे। वो सीढ़ी पुल की तरह काम करेगी और उस पर से होते हुए हम दगशाही मैनशन की इमारत की छत पर पहुंच जायेंगे। एक तरह से दगशाही इमारत में ये हमारे प्रवेश का वक्त... ।"

"मैं फिर टोक रही हूं।" सोनी कह उठी--- "दगशाही मैनशन की छत पर तो हम, दगशाही की सीढ़ियों से जा सकते हैं।"

"नहीं जा सकते।" देवराज चौहान ने फिर इन्कार में सिर हिलाया--- "छत पर जो दरवाजा लगा है जो सुरक्षा के नाते मोटे स्टील का है और उसका लॉक रिमोट से खुलता है। यानी कि उस तरफ से अगर कोई उसे खोलना चाहे तो नहीं खुल सकता, अगर भीतर की तरफ उस लॉक को कोई खोलना चाहे तो लीवर से छेड़छाड़ करके खोल सकता है।"

"छत पर जाने के लिए इतनी सुरक्षा क्यों ?" सोनी ने अजीब से स्वर में पूछा।

बजरंग कराड़े प्रशंसा भरी निगाहों से सोनी चावला को देख रहा था।

"क्योंकि छत पर लिफ्ट की शाफ्ट खुलती है। हालांकि छत पर शाफ्ट के लिए कमरा बना है और वो भी सुरक्षात्मक ढंग से बंद रहता है। लिफ्ट की शाफ्ट को छत तक ले जाने का मतलब है कि लिफ्ट खराब हो जाने की स्थिति में मैकेनिक, उस शाफ्ट में जाकर लिफ्ट को आसानी से ठीक कर सके। ऐसा इन्तजाम लिफ्टों वाली इमारतों में अक्सर रखा जाता है।" देवराज चौहान ने कहा।

"एक बात की तारीफ तो करनी पड़ेगी देवराज चौहान कि तुम अपने काम में बारीक से बारीक बात भी नहीं छोड़ते।" पूरन दागड़े मुस्कराया।

"बहुत मेहनत लगती है डकैती की योजना बनाने में।" सतीश बारू ने कहा--- "मैं तो नहीं कर सकता ऐसा।"

"इस वक्त वो ही बात करो जो हमें करनी चाहिये।" देवराज चौहान ने कहा--- "फालतू की बातें मत करो ।”

सब चुप रहे।

देवराज चौहान फिर बोला ।

"इस तरह हम दगशाही मैनशन की छत पर पहुंच गये। मेरे साथ जगमोहन, सोहनलाल, सोनी, उस्मान अली रहेंगे और सतीश बारू और हरीश खुदे दोनों इमारतों के बाहर गार्डों के रूप में मौजूद रहेंगे। बजरंग कराड़े उधर ही कहीं अंधेरे में दुबका बैठा रहेगा कि अगर किसी वजह से वहां कोई आ जाता है तो बेहोशी वाली सुई के फायर से, उसे बेहोश किया जा सके।"

"तुमने मेरा जिक्र नहीं किया कि, तब मैं किधर होऊंगा?" पूरन दागड़े बोला।

“पावनहार की छत पर ।" देवराज चौहान ने कहा--- "हमने वापस भी उसी रास्ते से आना है और जिस प्रकार सीढ़ी को पुल के रूप में हमने रखना है, उसे पार करते, कभी-कभी वो बिजली की सी तेजी से पलट जाती है, या फिर अपनी जगह से सरक जाती है। तुमने मजबूती से सीढ़ी को दीवार पर जमाये रखना है, जब हम उस पर से होते हुए दगशाही की छत पर जायें और जब वापस आयें।"

"समझ गया।" पूरन दागड़े ने सिर हिलाया।

"तो क्या सीढ़ी पर से नोटों को लाना है। ये तो असम्भव-सा काम है। इतने ज्यादा नोटों को?" सतीश बारू ने कहना चाहा।

"सीढ़ी पर से हमने लौटना है।" देवराज चौहान ने कहा--- "नोटों को प्लास्टिक के मजबूत बोरों में भरकर दगशाही की छत से नीचे फेंक दिया जायेगा। वो मजबूत बोरे फटेंगे नहीं। अगर फट भी जायें तो संभाल लेना। जब नोट नीचे आ जायेंगे तो पहले से ही इन्तजाम कर रखे किसी मिनी ट्रक या वैन में तुम लोगों ने हमारे नीचे आने तक रख लेना है। तब ये काम तेजी से करना है। कोई जगह हमने तय कर रखी होगी। नोटों को लेकर वहां पहुंचना है और हम भी वहीं पहुंच जायेंगे।"

सब एकटक देवराज चौहान को देखे जा रहे थे।

"छत पर लिफ्ट की शाफ्ट वाले कमरे पर भी सुरक्षा के नाते स्टील का दरवाजा लगा रखा है, जिसको रिमोट से ही खोला जाता है। उस कमरे की दीवार मोटी और मजबूत है और आसानी से उन्हें तोड़ना सम्भव नहीं। ऐसा इसलिये कि कोई शाफ्ट के रास्ते भीतर घुसने की चेष्टा ना करे। तीसरी और चौथी मंजिल पर कोई गार्ड नहीं होता। क्योंकि जो पांच गार्ड रात में दगशाही मैनशन की सुरक्षा करते हैं, उनमें तीसरी और चौथी मंजिल की कम्पनियां भी शेयर करती है और सुरक्षा में उन्हें तसल्ली है। हमने लिफ्ट की शाफ्ट के रास्ते में भीतर जाना है और शाफ्ट वाले कमरे को खोलना है। उस दरवाजे को सोहनलाल खोलेगा। दस मिनट में खोले या एक घंटे में। इसे खोलना पड़ेगा। जबकि उस दरवाजे पर भी रिमोट से खुलने वाला लॉक लगा है।"

सबकी निगाह सोहनलाल की तरफ उठी ।

"अगर ये लॉक नहीं खोल पाया तो सब कुछ बेकार चला जायेगा।" बजरंग कराड़े कह उठा।

"इसे बारे में निश्चिंत रहो।" जगमोहन बोला--- “सोहनलाल को पता है कि उसने अपना काम कैसे करना है।"

"हम लिफ्ट की शाफ्ट से नीचे उतरेंगे और लिफ्ट जहां भी होगी, उसकी छत पर बैठकर नीचे जायेंगे। शाफ्ट वाले कमरे में लिफ्ट की तारें जा रही हैं, उन तारों को जोड़कर लिफ्ट को चलाया जायेगा और तारों को अलग करते ही लिफ्ट शाफ्ट में रुक जायेगी। हमने लिफ्ट को दूसरी मंजिल, नैशनल बैंक के लिफ्ट के दरवाजे के पास रोकना है और लिफ्ट को दूसरी मंजिल के दरवाजे में कोई मजबूत चीज फंसाकर उसे खोलना है और दूसरी मंजिल पर भीतर पहुंच जाना है। सामने हमारे बैंक के मुख्यालय का मुख्य प्रवेश द्वार होगा, जिसे कि सोहनलाल खोलेगा और भीतर जाने से पहले हम अपने चेहरे कपड़ों से ढांप लेने हैं। वहां पर सी.सी.टी.वी. कैमरे चालू हालत में होंगे। अपना चेहरा छिपाकर रखना है हमें। इसी तरह वाल्ट का दरवाजा भी सोहनलाल खोलेगा।"

"तुम इस पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रहे।" उस्मान अली ने कहा--- "ये न खोल पाया तो डकैती नहीं हो पायेगी ।"

"सोहनलाल को अपना काम करना आता है। इस बारे में दोबारा बात न हो।" देवराज चौहान ने कहा और सोनी से बोला--- "हम परसों रात इस काम को अन्जाम देंगे। तुम परसों दिन में सीढ़ी पावनहार की छत पर पहुंचा देना। इस काम को तुमने हर हाल में पूरा करना है, तभी इस डकैती में से तुम्हें हिस्सा मिलेगा। नहीं तो नहीं। तुम इसी काम के लिए हममें शामिल हुई हो।"

"काम हो जायेगा।” सोनी मुस्कराई।

देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।

"तुम कल बजरंग को किसी सुनसान जगह ले जाओगे कि ये निशानेबाजी में हाथ साफ कर सके। साथ ही कल ऐसी किसी गाड़ी का इन्तजाम करोगे जिसमें नोटों से भरे बैग परसों रात डाले जा सकें।" फिर सबको देखा--- "अब यहां से कोई बाहर नहीं जायेगा। मोटे तौर पर मैंने बता दिया है कि हम डकैती कैसे करेंगे। सब पूरी योजना पर गौर करें और कोई कमी दिखे तो मुझे बतायें। मैं अब जा रहा हूँ। कल सुबह आऊंगा। बाकी बातें इस बारे में कल होगी।" उसके बाद देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल के साथ वहां से चला गया।

अब पांचों वहां रह गये थे।

"चाय की इच्छा हो तो मैं बना देता हूं।" सतीश बारू ने कहा।

"चाय तो बना दो। रात होने वाली है। खाने-पीने का क्या इन्तजाम होगा।" पूरन दागड़े बोला।

"खाना बाहर से आ जायेगा।" सतीश बारू ने कहा।

"और पीना?" पूरन दागड़े ने सतीश बारू को देखा।

"कौन-कौन पीना चाहता है?"

"मैं।" उस्मान अली ने कहा।

"एक ही शर्त पर पीना मिलेगा कि पीकर लफड़ा नहीं होगा ।" बारू बोला।

"यहां सब समझदार हैं। लफड़े वाली बात नहीं होगी।" पूरन दागड़े ने उस्मान अली को देखकर कहा ।

सतीश बारू किचन की तरफ बढ़ गया।

उस्मान अली, पूरन दागड़े के पास आ बैठा और डकैती की योजना पर बातें होने लगी।

बजरंग कराड़े, सोनी चावला की तरफ आ खिसका ।

"मैं जानती थी तुम मेरे पास आने का मौका ढूंढ रहे हो।" सोनी मुस्करा कर कह उठी।

"अच्छा, कैसे पता?" बजरंग बोला।

"सारा वक्त मुझे ही देखते रहे। मैं सब समझ रही थी।"

"तू मुझे अच्छी लगी।"

"बुरा तो तू भी नहीं है।" सोनी ने उसे गहरी निगाहों से देखा ।

"जमेगी हमारी।"

"क्या पता।" सोनी के चेहरे पर, उसे देखते हुए सोच के भाव उभरे।

"शादी तो नहीं की?"

"नहीं।"

"मैंने भी नहीं की। पर अब करना चाहता हूं। इस काम में दो-चार करोड़ तो हाथ आ ही जायेगा।"

"निशानेबाज़ है तू?"

"हां, राष्ट्रीय चैम्पियनशिप दो बार जीत चुका हूं। पर अब टैक्सी चलाता हूँ।"

"शरीफ बंदा है तू। इस काम में कैसे आ गया ?"

"जगमोहन ने ढूंढा मुझे। मैं भी तैयार हो गया कि पैसे आ गये तो जिन्दगी बन जायेगी।" बजरंग कराड़े, सोनी को देखते बोला--- "बहुत खूबसूरत है तू। पर मेरी बात मानेगी तो और भी खूबसूरत लगेगी।"

"वो कैसे?" सोनी ने दिलचस्पी भरी नज़रों से उसे देखा ।

"अपने बालों को टाईट करके, पीछे के बांधा कर, ऐसा कि चेहरा पूरा दिखे। बालों को सिर के ऊपर की तरफ करके बांधोगी तो और भी लम्बी लगोगी। भौंहे थोड़ी पतली कर लो और वो भी ऊपर को उठी । कानों में डायमंड टॉप्स डालो और गले में पतली-सी चांदी की चेन। चेहरे पर मेकअप करने से बचो और सिर्फ गालों पर मध्यम-सी लाली लगाओ।" बजरंग कराड़े की निगाह उसके चेहरे पर घूम रही थी--- "होठों पर हल्के कलर की लिपिस्टिक लगाओ। तुम कोट पहनोगी तो तुम्हें काफी जंचेगा, क्योंकि तुम्हारे कंधे चौड़े हैं। कपड़ों में तुम कुछ भी पहनो, सब कुछ तुम पर जंचेगा।"

सोनी चावला के होंठों पर मुस्कान उभरी।

"ये सब कहां से सीखा ?"

"पहले मैं फिल्मों में हीरोईन का असिस्टेंट मेकअप मैन होता था। वहीं से सीखा।"

"तुमने जैसा कहा है, वैसा करके मैं देखूंगी।" सोनी ने सिर हिलाया।

"मैं तुम्हें और भी काफी टिप्स दे सकता हूं।"

"तुम बढ़िया आदमी हो।" सोनी की निगाह उसके चेहरे पर टिकी थी--- "मुझे खुशी है कि हम इकट्ठे काम कर रहे हैं।"

बजरंग सोनी को देखने लगा।

"ऐसे क्या देख रहे हो?"

“सोच रहा हूं कि काम के बाद हम अलग हो जायेंगे। तुम मुझे बहुत अच्छी लगी।”

"तू भी मुझे थोड़ा-थोड़ा जंच रहा है, मैं ऐसे इन्सान से बनाकर रखूंगी जो मुझे खूबसूरत बनने के बारे में बताता हो।"

“वो तो मैं तेरे को सारी उम्र बता सकता हूं अगर तू तैयार हो तो।"

सोनी ने गम्भीर निगाहों से बजरंग कराड़े को देखा।

"शादी करना चाहता है मुझसे ?"

"तू राजी हो तो?"

“मुझे ऐसा मर्द पसन्द हैं जो हिम्मती हो, दिलेर हो और जो मैं कहूं वो मान जाये।"

"तू शादी को कह, मैं फौरन मान जाऊंगा।" बजरंग ने प्यार से कहा।

"मेरे दिमाग में बहुत कुछ है इस डकैती को लेकर।" सोनी का स्वर धीमा हो गया।

"क्या ?" बजरंग ने सोनी की आंखों में झांका।

"सोच रही हूं।" सोनी आंखों ही आंखों में बजरंग को टटोल रही थी ।

"बोल तो।"

“मुझसे शादी करने के लिए तेरे को अपनी हिम्मत का टैस्ट देना होगा।"

"एक बार कह के तो देख तेरे लिये मैं कुछ भी कर सकता हूँ।" बजरंग का स्वर दृढ़ता से भर गया।

"कुछ भी।"

सोनी, बजरंग के चेहरे को देखती रही फिर धीमें स्वर में बोली।

"बहुत बड़ी डकैती करने जा रहा है देवराज चौहान। बीस-तीस, पैंतीस-चालीस करोड़ की दौलत कम से कम, हाथ में आयेगी और फिर उस दौलत का बंटवारा होगा। मैं सोचती हूं कि बँटवारे की क्या जरूरत है।"

बजरंग कराड़े की आंख सिकुड़ी।

सोनी, गम्भीर-सी उसे देख रही थी।

"आगे बोल।" बजरंग के होंठ खुले।

"बात समझा ?"

"पूरी तरह।"

"क्या?"

“तू सारी दौलत ले जाने की बात कर रही है।"

"तैयार है? उसके बाद हम शादी करेंगे। सारी उम्र इकट्ठे रहेंगे।" सोनी बोली।

"कैसे कर पायेंगे हम ये सब?"

"वो तू मुझ पर छोड़ दे। सब हो जायेगा।"

"ये बात तूने कब सोची ?"

"जब से इस काम में शामिल हुई हूं तभी से सोच रही हूं।"

बजरंग ने माथे पर उभरे पसीने को साफ किया।

"घबरा रहा है?"

“ज्यादा नहीं। थोड़ी बहुत तो घबराहट होती ही है।" बजरंग ने पहलू बदला ।

“मैं तेरे साथ हूं। तू मेरे साथ है।" सोनी ने बजरंग का हाथ पकड़ लिया--- "दोनों मिल जायें तो बहुत कुछ कर लेंगे।"

"बाद में देवराज चौहान ने हमारे को पकड़ लिया तो?"

"चिन्ता मत कर। सोनी पर भरोसा रख। हम सारी दौलत लेकर ऐसे उड़ेंगे कि कोई हमें नहीं ढूंढ पायेगा।"

"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। इन कामों का मुझे तर्जुबा नहीं है। पर मैं तेरे साथ हूं।"

"ये हुई बात।" सोनी की आंखों में चमक आ गई। वो मुस्कराई।

"तेरा प्लॉन क्या है?"

तभी सतीश बारू ट्रे में रखे चाय के प्याले ले आया। सबने चाय के प्याले थामे बारू का धन्यवाद किया। बारू खुद भी अपना प्याला थामें पूरन और उस्मान अली के पास जा बैठा।

"तुम दोनों क्या घुट-घुट कर बातें कर रहे हो ?" उस्मान अली ने सोनी और बजरंग को देखा।

"पटा रहा हूं।" बजरंग ने मुस्करा कर कहा।

"ये तेरे हाथ आने वाली आईटम नहीं है।" उस्मान अली मुस्कराया--- "बहुत तेज है।"

वो तीनों बातों में लग गये।

सोनी और बजरंग की नज़रें मिली।

"इस बात की क्या गारण्टी है कि तू मेरे साथ जिन्दगी भर ईमानदार रहेगी।" बजरंग का स्वर धीमा था।

"बहुत भागदौड़ कर ली। अब आराम से परिवार बसाकर रहना चाहती हूं।"

"मेरे अलावा कोई और हो तेरी जिन्दगी में?"

"नहीं। कोई नहीं।"

"मेरे बारे में सोच लो। जल्दबाजी मत कर।"

“सोचना क्या है। तू जंचा। मजे से जिन्दगी बितायेंगे। तू मुझे खूबसूरत बनने की टिप्स दिया करना।" सोनी मुस्कराई।

"कोई गड़बड़ की तो भूलना मत कि मेरा निशाना नहीं चूकता।" बजरंग ने गम्भीर स्वर में कहा।

"दिल से मुझे अपना मान और शक-वहम बीच में मत ला। तू सच में मुझे पसन्द आया।"

"हम ये काम कर लेंगे ?"

"क्यों नहीं कर सकते।"

"प्लॉन क्या सोचा है तूने?"

“सीधा मामला है।" सोनी सोच भरे धीमें स्वर में बोली--- "देवराज चौहान के प्लॉन के मुताबिक तू वहीं कहीं अंधेरे में छिपा रहेगा और बेहोशी वाली गन से फायर करेगा सुई का। उसके बाद सतीश बारू और हरीश खुदे गनमैनों की जगह ले लेंगे। तू खुदे से मिला, जानता है कि वो कैसा इन्सान है ?" सोनी की निगाह बजरंग पर जा टिकी।

"मैंने उसे नहीं देखा ।"

"कोई बात नहीं। वो जैसा भी है, संभाल लेंगे उसे।" सोनी बोली--- "तब बाहर तुम तीन होंगे। तुम बारू और खुदे। ऊपर से नोटों की बैग फेंके जायेंगे। जो कि तुमने बारू और खुदे से मिलकर वैन या मिन्नी ट्रक में रखे जायेंगे। ये पता चल जायेगा कि जगमोहन किस गाड़ी का इन्तजाम करता है। याद रखना नोटों के बैग तुमने जल्दी से ट्रक में रखवाने हैं। सबसे पहले दोनों बिल्डिंगों के बीच बिछी सीढ़ी पर मैं वापसी करूंगी। सबको नीचे आने में दस-पन्द्रह मिनट का वक्त तो लगेगा, परन्तु मैं नोटों के बोरे नीचे फेंके जाने के पांच मिनट में ही नीचे होऊंगी।"

"इतनी जल्दी कैसे तुम...।"

"ऊपर से मैं पहले ही वापसी शुरू कर दूंगी, जब वे नोटों के बैग नीचे फेंक रहे होंगे।"

“समझ गया।” बजरंग ने सिर हिलाया।

"सब बोरे ट्रक में रखने के बाद, तुम बारू और खुदे पर बेहोशी वाली सुई का फायर करोगे। उसके बाद हम नोटों को लेकर खिसक जायेंगे। ये हमने पहले ही तय कर लेना है कि हमने जाना कहां है। हमने पहले ही कहीं पर दूसरी गाड़ी का इन्तजाम रखना है और नोटों के बोरे को उसमें ट्रांस्फर करके, वो वाला ट्रक या वैन, जो भी होगा उसे छोड़ देना है। मतलब कि एक घंटे के भीतर हम मुम्बई से बाहर होंगे। जितनी तेजी हम दिखायेंगे, उस बारे में तो ये लोग सोच भी नहीं सकेंगे।"

बजरंग कराड़े बेचैन और गम्भीर दिखा।

"ये काम हम से हो जायेगा ?"

"मामूली काम है।" सोनी गम्भीर थी--- "बारू और हरीश खुदे को बेहोशी वाली सुईं मारकर निकल चलना है, बस ।"

"बेशक ये काम आसान लगे, परन्तु मेरे लिए ये सब आसान नहीं होगा।"

"मैं तेरे साथ रहूंगी।" सोनी ने चाय का घूंट भरा--- "मेरे पास पिस्टल भी होगी।"

"पिस्टल ?"

“छोटी सी। ज्यादा गड़बड़ हुई तो मैं मैं पिस्टल का इस्तेमाल भी---।"

"नहीं। हमने किसी की जान नहीं लेनी है।" बजरंग के होठों से निकला।

"जान लेने की बात नहीं कह रही। बता रही हूं कि हालात कैसे भी हों, हम संभाल लेंगे।"

"लेकिन जायेंगे कहां?"

"इस बारे में सोच लेंगे। परसों रात तक का हमारे पास वक्त है, हमने साथ ही रहना है।"

"मुझे घबराहट सी हो रही...।"

“डर मत बजरंग। मैं हर कदम पर तेरे साथ हूं।"

बजरंग कुछ पल चुप रहा फिर बोला।

"भविष्य में हम शादी करके साथ रहेंगे?"

"हां। हम अपना परिवार बनायेंगे।"

"तेरे को पक्का भरोसा है कि ये लोग हमें ढूंढ नहीं सकेंगे?"

“पक्का भरोसा है। इन लोगों को हमारी हवा भी नहीं मिलेगी कि हम कहां गये? हमने दोबारा कभी वापस मुम्बई में पांव ही नहीं रखना है। हम तो क्या हम अपने बच्चों को भी कभी मुम्बई की तरफ नहीं आने देंगे, और बता...।"

“तुम लोगों की बातें खत्म नहीं हुई क्या?" पूरन दागड़े ने पूछा।

दोनों ने उन तीनों की तरफ देखा ।

"क्या बात है?" बजरंग कह उठा।

"हम डकैती की योजना पर विचार विमर्श कर रहे हैं जो देवराज चौहान बता कर गया है।" बारू बोला--- “तुम दोनों भी यहां आ जाओ। एक साथ बात करेंगे तो ठीक रहेगा। तुम दोनों पता नहीं किन बातों में लग गये।"

"लड़की पटा रहा था।" बजरंग मुस्कराया और उठ कर उनके पास जा बैठा।

सोनी भी वहां पहुंच गई।

वे सब डकैती की योजना पर बातें करने लगे ।

■■■

अगला दिन व्यस्तता के बीच निकला।

जगमोहन सुबह नौ बजे ही आकर बजरंग कराड़े को शूटिंग प्रेक्टिस के लिये ले गया था। दस बजे देवराज चौहान यहां पहुंचा। डकैती की योजना को एक बार फिर दोहराया गया। कमी-पेशो को हल किया गया। चार बजे तक देवराज चौहान साथ रहा और जाते वक्त उसने सोनी से कहा कि जगमोहन उसे सीढ़ी दे देगा जगमोहन के साथ मिलकर प्रोग्राम बना ले कि सीढ़ी को पावनहार की छत पर कैसे पहुंचाना है। इस काम में हमारे लोगों की सहायता भी वो ले सकती है।

उसके बाद देवराज चौहान ज्योति जीवन इमारत के बाहर पहुंचा जहां इकबाल एण्ड कम्पनी का ऑफिस था और हरीश खुदे, महेश नागपाड़े पर नज़र रखते, उस वक्त बाहर पार्किंग में मौजूद था।

"क्या पोजिशन है?" देवराज चौहान ने खुदे से पूछा।

"सामने नागपाड़े की कार खड़ी है, वो अपने ऑफिस में है।" खुदे ने बताया--- “आज फोन किया उसे?"

"आज नहीं कर पाया।"

"वैसे तो वो सीधा है पर एक बार उसे फोन पर हड़का दो तो ठीक रहेगा।"

देवराज चौहान ने मोबाइल निकाला और नागपाड़े के नम्बर मिलाकर बात की।

"हैलो।" नागपाड़े की डरी सी आवाज कानों में पड़ी ।

"तेरे पास में कोई है?" देवराज चौहान ने कहा ।

“न... नहीं।”

“तो तूने हमारे बारे में पुलिस को खबर दे दी। अब अपने परिवार की...।”

“म... मैंने कहां खबर की?" उधर से नागपाड़े घबराया सा चीखा--- "मैंने किसी को कुछ नहीं बताया।"

"सच कहता है?"

"हां, कसम से, मैं सच...।"

“मुझे पता चला जायेगा सच-झूठ का। गंजा और मेमन तेरे परिवार पर नज़र रखे हुए है और मेरे फोन का इज़ार कर रहे हैं कि मैं उन्हें कभी भी मार देने का आदेश---।"

"प्लीज, ऐसा मत करो। तुम जो चाहो, वो तो कर ही रहा हूँ।" नागपाड़े का परेशान स्वर आया।

"मेरे कहने से बाहर गये तो तुम्हारा परिवार गया।" दांत पीसकर देवराज चौहान ने कहा।

"म... मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा।" उधर से नागपाड़े ने घबराये स्वर में कहा।

“सारे कम्बीनेशन नम्बर वही है या तुमने बदल दिए हैं।" देवराज चौहान का स्वर कठोर था।

"व... वहीं है। परसों बदलूंगा।"

"अगर तूने कोई चालाकी की तो---।"

"मैं चालाकी नहीं करूंगा।" नागपाड़े की आवाज में डर के भाव थे।

"परसों कम्बीनेशन नम्बर बदलो तो हमें नये नम्बरों के बारे में बता देना।"

"हां, बता दूंगा।"

"अभी आराम से रह। अगले सप्ताह हम बैंक पर हाथ डालेंगे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन बंद किया और हरीश खुदे से कहा--- "हम कल रात बैंक पर हाथ डालने जा रहे हैं।"

खुदे ने गहरी सांस ली।

“काम हो जायेगा ना?"

“जरूर होगा।" देवराज चौहान गम्भीर था।

"तुम ये डकैती सिर्फ मेरे लिए कर रहे हो ना?” खुदे ने देवराज चौहान की बांह पकड़ ली उत्तेजना में आकर ।

“हां।" देवराज चौहान मुस्कराया--- "ये सारा काम मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूं और तुम्हें सौ करोड़ से ऊपर की दौलत मिलेगी।"

"मुझे अपने कानों पर भरोसा नहीं होता कि मैं सही सुन रहा हूं।"

“आज रात तक नागपाड़े पर नज़र रखो। रात को सोहनलाल तुम्हारी जगह ले लेगा और सोहनलाल, कल सुबह नागपाड़े के ऑफिस जाने तक उस पर नज़र रखेगा उसके बाद नज़र रखने का काम खत्म। तैयारी पूरी हो चुकी है। जो काम रह गये हैं, वो कल दिन में पूरे कर लिए जायेंगे। रात हम डकैती को अंजाम दे देंगे।"

हरीश खुदे सूखे होठों पर जीभ फेरते देवराज चौहान को देखता रहा।

बजरंग कराड़े शाम सात बजे तक बारू के फ्लैट में लौट आया था वो थका सा नज़र आ रहा था। आते ही सोनी से नज़रें मिली तो मुस्करा दिया फिर नहा धोकर वहां आ बैठा।

"हो गई प्रेक्टिस?" पूरन दागड़े ने पूछा

"हां। ज़रा सा हाथ साफ करना था। सो कर लिया।" बजरंग ने कहा फिर बारू से बोला--- “बियर है?"

"फ्रिज में रखी है।"

बजरंग फ्रिज से बियर ले आया और खोलकर बोतल से ही पीने लगा।

"तुम लोग क्या करते रहे?" बजरंग ने पूछा।

"दिन में देवराज चौहान आया था, उसके साथ डकैती की योजना पर ही बातचीत होती रही।" पूरन दागड़े ने कहा।

"मेरे लिए कोई नई बात?"

"नहीं। सब कुछ वही है।"

बजरंग ने बियर का घूंट भरा और सोनी को देखा। ये देखकर उसे अच्छा लगा कि सोनी ने सिर के बाल वैसे ही बांध रखे है जैसे उसने कहा था। अब उसके चेहरे के खूबसूरत नैन-नक्श स्पष्ट दिखाई दे रहे थे और वो कल से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। बजरंग को सोनी अब और भी अच्छी लगने लगी।

पूरन दागड़े, उस्मान अली और सतीश बारू बोतल खोल कर बैठ गये। ऐसे में बजरंग कराड़े और सोनी को बात करने का मौका मिल गया। वो दोनों कुछ हटकर जा बैठे और अपनी योजना को सजाने-संवारने लगे।

■■■

अगले दिन सुबह सोनी, बजरंग कराड़े को ये कहकर साथ ले गई कि उसने सीढ़ी पावनहार की छत पर पहुंचानी है। उसके लिए तैयारी करनी है। किसी को क्या एतराज हो सकता था। वो ये तो जानते नहीं थे कि सोनी और बजरंग में क्या खिचड़ी पक रही है। इसकी उन्हें हवा भी लग जाती तो तूफान खड़ा हो जाता। परन्तु सबको ये चिन्ता हो रही थी कि आज रात को डकैती करनी है। वो कामयाब होंगे कि नहीं? आज काम को अंजाम देने को सब तैयार थे ।

जगमोहन बारह बजे वहां पहुंचा।

सोनी को ना पाकर उससे फोन पर बात की तो सोनी ने कहा, वो एक घंटे में आ रही है।

एक घंटे तक सोनी और बजरंग कराड़े लौट आये।

"तुम लोग कहां गये थे?" पूछा जगमोहन ने।

"काम के लिए तैयारी कर रही थी।" सोनी ने हाथ में पकड़ा लिफाफा हिलाकर कहा--- "साड़ी और ब्लाऊज लेने गई थी। मैंने कुछ सोचा है कि काम कैसे करना है। इस बारे में तुम्हें जान लेना चाहिये।"

उसके बाद सोनी और जगमोहन बातों में व्यस्त रहे।

सोनी ने बताया कि वो गार्डों को कैसे झांसे में लेगी। इस काम को करने का वक्त शाम के छः बजे का चुना क्योंकि तब पावनहार की दो मंजिलों पर l.I.C. का ऑफिस बंद हो चुका होगा और बाकी दो मंजिल पर कम्पनियों के ऑफिस के लोग भी ज्यादातर जा चुके होंगे।

■■■

शाम के छः बजे थे। पावनहार बिल्डिंग के बाहर दो गनमैन मौजूद थे। ऑफिसों में छुट्टी हो चुकी थी। लोग जा चुके थे और चंद लोग कम्पनी वाले यदा-कदा निकल रहे थे। रोज की तरह सब सामान्य था। ऐसा कुछ नहीं था कि गार्ड आज खासतौर से सतर्क रहते। वहां से तीस कदम पर दगशाही मैनशन की इमारत के बाहर भी दो गनमैन नजर आ रहे थे। इन इमारतों के सामने इनर लेन थी। फिर ऊंचा सा फुटपाथ था जिस पर पेड़ लगे हुए थे। उसके बाद चलती सड़क थी। जिस पर वाहन आते-जाते रहते थे। सड़क से इधर का नजारा साफ नहीं दिखता था क्योंकि बीच में पेड़ों की कतार आ जाती थी। शाम हो चुकी थी। सूर्य डूबने की तैयारी कर रहा था। गर्मी आज ज्यादा थी छः बजे ही गार्डों ने ड्यूटी संभाली थी। पावनहार बिल्डिंग पर रात को पांच गार्ड रहते थे। और इनकी ड्यूटी शाम छः बजे से सुबह छः बजे तक थी। छः बजे सुबह पांच अन्य गार्ड ड्यूटी संभालने आ जाते थे। ड्यूटी की शिफ्ट आठ घंटे की होती थी, बाकी के चार घंटों का इन्हें ओवर टाइम मिलता था। आसान सी नौकरी थी। कोई टेंशन नहीं थी। रात को पांच में से तीन गार्ड तो नींद लेते थे। ये गार्डों की आपसी बात थी और किसी रात कोई सोता तो किसी रात कोई।

शाम के साढ़े छः बजे थे तब जब इमारत के सामने वाली सड़क पर जगमोहन ठेला खींचता आ रहा था। वो पूरी तरह ठेले वाला लग रहा था और साथ में पीछे-पीछे सोनी थी। जिसने मजदूरों वाली पुरानी हो चुकी साड़ी पहनी थी। नया हरे रंग का खुले गले का ब्लाऊज पहना था जहां से उसकी छातियां आधे से ज्यादा दिखाई दे रही थी। माथे पर नकली सोने का बड़ा सा टीका लगा रखा था और कानों में झुमके लटक रहे थे। वो खूबसूरत मजदूरनी लग रही। थी। ठेले पर चालीस फीट लम्बी सीढ़ी पड़ी थी और जगमोहन गांव की भाषा में ठेले को खींचता हुआ जोर-जोर से बोल रहा था और सोनी भी गुस्से से उसकी बातों का जवाब दे रही थी। पावनहार और दगशाही मेनशन के गार्डों की निगाह रास्ते पर जाते, झगड़ा, करते दोनों पर जा टिकी थी। जगमोहन पावनहार बिल्डिंग के ठीक सामने पहुंचा तो गुस्से से जगमोहन ने ठेला छोड़ा और उस पर रखी सीढ़ी को ठेले से सरकाकर नीचे फेंकता बोला।

“मर जा के तू । मैं तेरा काम नहीं करता। ये मेरे साहब का काम नहीं है, तेरे वाली कोटी का काम है। मुफ्त में काम करूं ऊपर से तू गांव में चिट्टी लिखे कि मैं यहां काम नहीं करता। शराब पीकर पड़ा रहता है। तेरा-मेरा कोई सम्बन्ध नहीं।" गुस्से से चिल्ला कर कहते हुए जगमोहन ठेले को खींचता आगे बढ़ता चला गया।

"सुन तो, मुझे छोड़कर कहां जा रहा है।" सोनी गांव की भाषा में कहकर पुकार उठी--- "बाबूजी बहुत गुस्से वाले हैं सीढ़ी को कोई उठाकर ले गया तो, बाबूजी मेरी जान ले लेंगे। अब रुक जा।"

परन्तु जगमोहन तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था।

“रुक जा । मुझे अकेला मत छोड़।" सोनी, तड़पकर चिल्ला उठी।

पर जगमोहन तब तक दूर निकल चुका था।

सोनी वहीं बैठ गई और रोने लगी।

दस कदमों की दूरी पर मौजूद पावनहार के दोनों गार्ड आंखें फाड़े सोनी को देख रहे थे। ऐसी खूबसूरत मजदूरनी उन्होंने पहले नहीं देखी थी रोते हुए सोनी की चुनरी वक्षों से हट गई थी और नजारा भीतर तक नज़र आ रहा था। सोनी वहीं बैठी रो रही थी। गालों पर आंसुओं की लाइन दिखने लगी थी। साड़ी भी उसने घुटने तक ऊपर खिसका रखी थी कि गोरी पिंडलियां गार्डों की आंखों को चुंधिया रही थी। दोनों गार्डों की नज़रें मिली। वो आपस में करीब आ पहुंचे।

“माल चोखा है अशोक।" एक गार्ड ने कहा।

“ऐसी मजदूरनी तो मैंने कभी देखी नहीं शम्मी। साली कितनी हिरोईन लग रही है।" अशोक तड़पकर बोला।

“उसका आदमी उसे छोड़कर चला गया। क्या इरादा है। सारी रात यहाँ पड़े-पड़े बोर होते रहते हैं। चक्कर चला।"

"मैं चलाऊँ?”

“मेरी उम्र तेरे से ज्यादा है। तू छोकरों की तरह लगता है, मेरा कुछ पेट बाहर। समझाकर।"

पुनः दोनों की नज़रें मिली।

"ब्लाऊज देख--कसम से...।" शम्मी गहरी सांस लेकर रह गया।

"ये मुझे पहले मिली होती मैं इससे शादी कर लेता।"

"शादी की क्या जरूरत है। ऐसे ही काम चला। साली को शीशे में उतार ले। दो-तीन सौ देना भी पड़े तो कोई बात नहीं।"

तभी सोनी इन दोनों गार्डों की तरफ देखकर बोली।

“अरे, पानी तो पिला दो। रो-रो के गला सूखा जा रहा है।"

"वो बुला रही है। जल्दी से पानी ले के जा।" शम्मी बोला--- "मीठी-मीठी बातें करके फंसा ले। रात मजे से कट जायेगी। मामला आगे के दिनों तक खींचा तो और भी बढ़िया हो जायेगा।"

अशोक सामने बने छोटे से गार्ड रूम में गया और जल्दी से पानी का गिलास पकड़े बाहर निकला और सोनी की तरफ बढ़ा। शम्मी के पास से निकला तो बेसब्र सा शम्मी बोला।

"काम बना के आना।" अशोक, सोनी के पास पहुँचा और पैरों के बल उसके पास बैठता प्यार से बोला ।

“ले धन्नो। ठण्डा पानी लाया हूँ तेरे लिए---।"

सोनी ने गिलास लिया और एक ही सांस में पानी पीकर गिलास उसे दिया।

“मेरा नाम धन्नो नहीं है। धन्नो तो शोले फिल्म में घोड़ी का नाम था। मैंने फिल्म देखी है।" सोनी कह उठी।

अशोक की निगाह तो उसके खुले गले वाले ब्लाऊज से नज़र आ रही छातियों पर थी।

"कहाँ देखी फिल्म?"

“मधुबनी में।"

“तू मधुबनी की है धन्नो, मैं भी मधुबनी का---।"

“मेरा नाम धन्नो नहीं है।” सोनी मुँह फुलाकर बोली।

"तो क्या नाम है तेरा?" अशोक बड़े प्यार से बोला ।

"मेरा नाम सोनी है।" अब सोनी का रोना रुक चुका था।

"तू बहुत सोनी है।" अशोक उसके ब्लाऊज में झांकता कह उठा--  "तेरा ब्लाऊज बहुत सुन्दर है।”

“ये मुझे ठेकेदार ने लाकर दिया था।"

"क्यों?"

"उसने कहा काम पर इस ब्लाऊज़ को पहना करूँ। अब तो वो मुझे पचास रुपये ज्यादा दहाड़ी के देता है।"

"तेरे लिए तो सब लुट जायेंगे सोनी। तू भी मधुबनी की, मैं भी मधुबनी का। मेरा नाम अशोक है सोनी।"

तभी सोनी फिर रोने लगी।

अशोक हड़बड़ा उठा।

"अब क्यों रो रही है?" अशोक ने जल्दी से पूछा।

"मेरे तो कर्म फूट गये, बापू ने बहुत ही घटिया इन्सान से मेरी शादी कर दी। देख तो, अब मुझे बीच रास्ते पर छोड़कर चला गया। शाम आठ बजे ही पीकर सो जाता है और मैं रात भर जागती रहती हूँ।"

"जागती रहती है।" अशोक ने उसके ब्लाऊज में झांका।

“मर्द बेकार हो तो औरत रात भर तड़पेगी ही---मैं---।"

"समझ गया। मेरी तो रात भर की ड्यूटी है इधर। मैं सारी रात जागता हूँ। तू रो मत।"

"बाबूजी का डर है मुझे।"

"कौन बाबूजी ?"

"जिनकी कोठी बन रही है। उन्होंने ये सीढ़ी कोठी पर पहुँचाने को कहा था। बहुत गुस्से वाले हैं बाबू जी। वो निकम्मा तो ठेला लेकर, सीढ़ी उतार कर चला गया अब इस सीढ़ी को कोई चुरा कर ले गया तो बाबूजी---।”

"कोई नहीं चुरायेगा। हम यहाँ डयूटी देते हैं रात भर---।"

"मैं भरोसा नहीं कर सकती।” सोनी ने अशोक की बाँह पकड़ ली--- “तू सीढ़ी को कहीं रखवा दे।"

"कहाँ?"

“जहाँ मुझे तसल्ली हो कि रात को ये चोरी नहीं होगी। रखवा दोगे ना अशोक बाबू---?" सोनी प्यार से कह उठी ।

"रखवा तो दूँ। पर तू रात कहाँ पर काटेगी ?"

“सीढ़ी के बिना तो मैं कोठी पर भी नहीं जा सकती। सुबह कहीं से ठेला लाऊँगी। तभी यहाँ से जाऊँगी।"

अशोक ने हाथ बढ़ाकर उसकी टांग पर रख दिया।

“ये क्या करते हो जी।"

“रात मेरे साथ रहोगी। इस बिल्डिंग में।" अशोक फुसफुसाकर बोला--- “बहुत प्यार से रखूंगा। तुझे खाना भी खिलाऊँगा। रात को मर्दों वाली बात भी होगी। मेरा साथी भी है।"

सोनी ने कुछ दूर खड़े गार्ड (शम्मी) को देखा जो बेसब्री से इधर ही देख रहा था।

"मुझे शर्म आती है।" सोनी हड़बड़ा कर कह उठी।

“शर्माने की क्या बात है। एक बार मेरा मजा लेकर तो देख---।"

"मेरे मर्द को तो नहीं बतायेगा ?"

“क्या बात करती है। तेरे मर्द को क्यों बताऊँगा। देखना, इतने मजे आयेंगे तेरे को कि तू रोज आयेगी।"

"दो हो तुम लोग।"

"पांच हैं।"

"पाँच, नहीं-नहीं, ये तो ज्यादा... ।"

"घबराती क्यों है, जब तक गाड़ी चलेगी, चला लेंगे। जरूरी तो नहीं कि पाँचों का नम्बर लगे।"

"फिर ठीक है परन्तु...।" सोनी फिर रोने लगी।

“अब क्या हो गया मेरी प्यारी सोनी ?" अशोक ने उसकी टांग दबाई ।

“सीढ़ी, उसे कहाँ रखूं?" सोनी ने रोते हुए पावनहार की इमारत को देखा।

“यहाँ से कोई नहीं ले... ।”

"बाबूजी बहुत गुस्से वाले हैं। कोई ले गया तो... मैं सीढ़ी के पास ही रहूँगी रात भर।" कह उठी सोनी।

"सीढ़ी के पास रात भर रहेगी तो वो वाला प्रोग्राम कैसे होगा?" अशोक बेचैनी से कह उठा।

"प्रोग्राम की कोई जरूरत नहीं, मैं सीढ़ी के पास ही ।"

“अब तेरी सीढ़ी कहाँ रखूं। ये तो लम्बी भी बहुत है। तू रुक जरा, मैं अपने साथी से बात करके आता हूँ।" कहने के साथ ही वो उठा और शम्मी की तरफ बढ़ गया।

“क्या हुआ ?" शम्मी उसके पास आते ही बेचैनी से फुसफुसा उठा।

"काम बन गया है। मैंने बात कर ली है।" अशोक ने धीमें स्वर में कहा--- "वो सब कुछ करने को तैयार है। पर सीढ़ी का पंगा है।"

"सीढ़ी? सीढ़ी पर चढ़कर थोड़े ना कुछ करना...।"

“समझा कर उसे सीढ़ी की बहुत चिन्ता है और औरत को पाने का आसान तरीका ये होता है कि उसकी चिन्ता दूर कर दो। वो खुश होकर दौड़ने लगेगी। हमने अपना मतलब निकालना है तो सीढ़ी को उसकी तसल्ली के मुताबिक ठिकाने लगाना होगा कि उसे विश्वास हो जाये कि रात में उसे चोरी करके कोई नहीं ले जायेगा साली जोरदार चीज है। बम है बम। मैंने उसे करीब से देखा है ऐसा माल तो शहरों में भी ढूंढे नहीं मिलता। ये तो बहुत करारी लगती है।" अशोक ने गहरी सांस ली।

"मेरी बात कर ली ना?" शम्मी बेचैनी से बोला ।

"तेरी बात कर ली। बाकी तीनों की भी बात कर ली। जब तक ना नहीं कहेगी, रेलगाड़ी दौड़ती रहेगी, पर सीढ़ी को---।"

"सीढ़ी तो लम्बी भी बहुत है इसे कहीं।"

“लम्बी-छोटी छोड़। रात के बारे में सोच बेवकूफ---।"

“जब तक सीढ़ी के बारे में नहीं सोचेंगे रात के बारे में कैसे...।"

तभी सोनी को उठकर इसी तरफ आते देखा।

"वो आ रही है। " शम्मी हड़बड़ा कर कह उठा।

दोनों की निगाह सोनी पर जा टिकी।

पास आते ही सोनी ने शम्मी की बाँह पकड़कर कहा।

"सुनो जी, मेरे मन में एक विचार आया है।" सोनी ने शम्मी की बाँह क्या पकड़ी, शम्मी पर तो नशा सा सवार हो गया।

“क... क्या... कैसा विचार ?" शम्मी के होठों से निकला।

“सीढ़ी को रात भर के लिए इस इमारत की छत पर रख दो।" सोनी, थोड़ा शम्मी के करीब खिसक आई।

“छ... छत पर?" अशोक ने अजीब से स्वर में कहा--- "छत पर कैसे...।"

"ये रख देंगे।" सोनी शम्मी के और करीब होकर उससे सट सी गई-- "सीढ़ी को खड़ी करेंगे तो छत तक पहुँच जायेगी। ऊपर से पकड़कर, ऊपर खींचो और इस तरह सीढ़ी छत पर पहुँच जायेगी। नहीं तो मैं रात भर सीढ़ी के पास खुले में ही रहूँगी। भीतर नहीं आ सकूंगी। सुनो जी, तुम रख दोगे ना?" सोनी शम्मी से कह उठी।

शम्मी का गला सूख रहा था। सोनी उससे सटी पड़ी थी। वो आँखें फाड़े ब्लाऊज में झांक रहा था और सच में उसने ऐसी खूबसूरत को अपने इतने करीब कभी नहीं देखा था।

“बोलो ना---।" सोनी ने अपने वक्षों का दबाव उसकी बाँह पर बनाया।

“ह... हाँ, तुम जैसा कहो।" कह उठा शम्मी।

"तो रखने का इन्तजाम करो छत पर ।" कहकर सोनी हटी और वापस सीढ़ी के पास जा बैठी।

"साली बड़ी गर्म चीज है।" शम्मी गहरी सांसें लेता कह उठा।

"रात की सोच...।"

तभी भीतर से एक गार्ड और आता दिखा। इधर आता वो सामने बैठी सोनी को ही देख रहा था। वो चालीस की उम्र का व्यक्ति था और एक नज़र में ही वो सोनी की तरफ आकर्षित हो गया था।

"क्या बात है।" वो करीब आकर बोला--- “वो औरत क्यों यहाँ बैठी है। तुम दोनों के रंग क्यों उड़े हुए हैं?"

अगले आधे घंटे में उन गार्डों ने सीढ़ी पावनहार की छत पर इस लालच में पहुँचा दी कि सोनी जैसी खूबसूरत चीज उन्हें रात को हासिल होने जा रही है। सीढ़ी छत पर पहुँच चुकी देख सोनी मन ही मन मुस्कराई। तब तक 7:45 बज गये थे और अंधेरा छाना शुरू हो गया था। सोनी पावनहार के गेट पर ही बैठी थी।

अशोक और शम्मी, सोनी के पास पहुँचे।

सोनी दोनों को देखकर बड़े प्यार से मुस्कराई।

तभी भीतर से कम्पनी का ऑफिसर ब्रीफकेस थामे आया और पास से निकलते हुए सोनी के ब्लाऊज के भीतर तगड़ी नज़रों से देखा फिर ठिठककर शम्मी और अशोक से बोला ।

"ये औरत कौन है और क्यों बैठी है?"

"ये?" अशोक दो पल के लिए हड़बड़ाया फिर कह उठा--- "ये शम्मी की पत्नी है सर। गाँव से आई है।"

शम्मी सकपका सा उठा।

वो व्यक्ति वहाँ से चला गया।

"मर जावां। तुमने तो मुझे इसकी पत्नी बना दिया। क्यों जी।" वो शम्मी से बोली--- “मैं कैसी लगती हूँ जी ?"

“उसे छोड़ मेरे से बात कर। तू तूफान है। भूकम्प है। बवंडर है। जबसे तुझे देखा है, होश गुम हुए पड़े हैं।"

“अभी तो और भी होश गुम होंगे।"

"कैसे?" अशोक ने उसके ब्लाऊज में झांका। परन्तु अंधेरा हो जाने की वजह से नजारा स्पष्ट ना दिखा।

"वक्त खराब मत कर। इसे भीतर ले चल। सीढ़ियों से नीचे।” शम्मी बोला ।

"घंटा भर रुक जा। अभी नीचे वाले दफ्तर में दो-तीन लोग हैं उन्हें जाने दे।"

“अशोक जी।” सोनी प्यार से कह उठी।

“कहो जी।" अशोक पैरों के बल उसके पास बैठ गया।

“आज मंगलवार है।"

"तो ?”

“रात बारह बजे तक रुकना होगा। जब तक बुधवार शुरू न होता।"

"क्या मतलब?" "

“गांव के पंडित जी ने मंगलवार को मर्दों से दूर रहने को कहा है। उन्होंने बुधवार का दिन इस काम के लिए शुभ कहा है।"

“मतलब कि तू बारह बजे तक इन्तजार करायेगी।"

"क्या फर्क पड़ता है अशोक जी। रात तो अपनी ही है। बुधबार शुरू होते ही शुरू हो जाना।” सोनी ने अदा से कहा।

अशोक खड़ा हुआ और शम्मी से बोला ।

“इसे भीतर कहीं अंधेरे में बिठा दे कि कोई देखे नहीं। बारह बजे तक रुकना होगा।"

“क्या जरूरत है रुकने की।" शम्मी बेसब्री से कह उठा।

"जैसा ये कहती है वैसा करना है हमें। नहीं तो सारा मामला बलात्कार की श्रेणी में आ जायेगा। क्या हर्ज है बारह बजे तक रुक जाने की। सब्र से काम ले।" फिर वो सोनी से बोला--- “गले मिलने में तो परहेज नहीं है।"

“क्या मतलब अशोक जी?”

"बारह बजे तक गले-वले लगकर टाइम बीत जायेगा।"

“बड़े शैतान हो।" सोनी मुस्कराई--- "पर मंगलवार को मर्द का मेरे को हाथ लगाना ठीक नहीं, वो पंडित---।"

"अभी तक मरा नहीं पंडित---।" शम्मी जल-भुन कर कह उठा।

"नहीं जिन्दा है।"

"तू क्या कह रही थी धन्नो ?" अशोक कह उठा।

“धन्नो नहीं सोनी । धन्नो तो बसन्ती की घोड़ी का नाम है ।"

“हाँ-हाँ वो ही, तू क्या कह रही थी सोनी ?"

“बारह बजे तक मैं तुम लोगों को दो-चार बार चुम्मी देकर, सब का दिल लगाये रखूंगी।"

"चुम्मी, ठीक है शम्मी, थोड़ी देर की तो बात है, इसी तरह काम चला लेंगे---।"

"वो बाकी तीन और भी है, वो---।" शम्मी ने कहना चाहा।

“उन्हें भी दे दूंगी।"

“चल भीतर चल। अंधेरे में बिठाता हूँ तेरे को, जहां तुझे कोई ना देखे और छोटा वाला प्रोग्राम शुरू करते हैं।"

■■■

रात का एक बजा था।

पावनहार बिल्डिंग और दगशाही मैनशन के सामने की छोटी सड़क पूरी तरह सुनसान थी। सामने फुटपाथ के पार मुख्य सड़क से अक्सर वाहन निकल रहे थे। उनकी आवाजें सुनाई दे जाती थी। दोनों बिल्डिंगों के गनमैन रोज की तरह अपनी डयूटी पर थे, रन्तु पावनहार बिल्डिंग के गनमैनों के लिए आज की रात दीवाली जैसी रात थी, क्योंकि उनके पास सोनी जैसी शह मौजूद थी जो कि उन्हें छत पर सीढ़ी रखने की एवज में हासिल हुई थी, परन्तु अभी तक किसी की मुराद पूरी न हुई थी। सोनी किसी न किसी बहाने उन्हें अपने से दूर रखे हुए थी। लेकिन चुम्मी वो दिल खोल कर रही थी। तभी गार्डों में हड़बड़ाहट फैल गई कि मुख्य गेट पर मौजूद दोनों गनमैन एकाएक नीचे गिर गये थे। सोनी को जब ये पता चला तो वो समझ गई कि डकैती पर काम हो गया है। सब बाहर ही कहीं पर मौजूद हैं। उन दो गार्डों को देखने बाकी के तीन भी जब बाहर पहुंचे तो एक-एक करके उन्हें सुईयों की चुभन हुई और वो भी नीचे जा गिरे। ऐसी हालत ही दगशाही मैनशन के गार्डों की हुई। वहाँ थोड़ा ज्यादा वक्त लगा क्योंकि वहाँ के दो गार्ड बिल्डिंग के भीतर राउंड पर थे। करीब आधे घण्टे बाद वे बाहर की तरफ दिखे तो बजरंग कराड़े ने अंधेरे में ही उनका निशाना लिया और वो बेहोश होकर नीचे जा गिरे। बजरंग वास्तव में बढ़िया निशानेबाज था, वरना इस अंधेरे जैसे वातावरण में निशाना लेना आसान काम नहीं था। उसके बाद सब तेजी से हरकत में आ गये।

सतीश बारू के साथ जगमोहन पावनहार पर पहुंचा। दगशाही पर हरीश खुदे और पूरन दागड़े पहुंचे। सब बेहोश गार्डों को उन्होंने भीतर अंधेरे में एक तरफ डाल दिया। सतीश बारू ने अपने साइज के गार्ड की वर्दी उतारी और खुद पहन कर वहाँ गार्ड के रूप में खड़ा हो गया। उधर हरीश खुदे ने भी ऐसा ही किया। तब तक सोनी फुटपाथ पर अंधेरे में दुबके बैठे बजरंग कराड़े के पास जा पहुँची थी। उसके पास उस्मान अली और देवराज चौहान मौजूद थे। बजरंग कराड़े के पास लिफाफे में सोनी के लिए कपड़े थे। जो कि सोनी ने एक तरफ अंधेरे में होकर पहने। अब वो जीन की पैंट और स्कीवी में थी।

"तुम्हें कैसे पता चला कि सीढ़ी छत पर पहुँच गई है।" सोनी ने देवराज चौहान से पूछा।

"जगमोहन यहीं था और सब कुछ देख रहा था।” देवराज चौहान ने बताया।

"अब वो कहाँ है?"

"पास ही है। सोहनलाल के साथ वैन इधर लाने गया है।"

"वैन?"

"जिसमें नोटों के बैग डालने हैं।"

पाँच मिनट में ही बड़ी सी वैन दगशाही मैनशन के सामने आ रुकी। उसमें से सोहनलाल और जगमोहन बाहर निकले। अब तक का सब काम ठीक से निपट गया था। सतीश बारू और हरीश खुदे को नीचे छोड़ कर बाकी सब पावनहार की छत पर जा पहुँचे। बजरंग कराड़े नीचे फुटपाथ पर अंधेरे में पेड़ की पीछे मौजूद था। सुई वाली गन उसके पास थी और वो इस बात के प्रति सतर्क था कि अगर कोई अचानक यहाँ आ टपकता है तो उसे बेहोश कर दे !

छत पर पावनहार और दगशाही इमारत की दीवारों पर सीढ़ी इस तरह रख दी गई कि पुल जैसा काम कर सके। उसके बाद सबने सावधानी से एक-एक करके, सीढ़ी पर हाथ और पाँवों से चलते उस खतरनाक पुल को पार किया और दगशाही मैनशन की छत पर जा पहुँचे। सोहनलाल के पास सामान का भरा भारी बैग था। उस बैग को उस्मान अली ने सम्भाला और उसने ही बैग को दगशाही की छत पर पहुंचाया।

पूरन दागड़े पावनहार की छत पर ही रहा। इस दौरान उसने सीढ़ी को दबाकर पकड़े रखा था कि वो पल्टे नहीं और जब उन्होंने वापस आना था, तब भी उसने इसी प्रकार सीढ़ी को पकड़ना था। जगमोहन और देवराज चौहान ने उन बैगों को अपनी कमर से बाँध कर सीढ़ी का रास्ता तय किया था, जिनमें नोट भरे जाने थे। बहरहाल इसी प्रकार देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल, उस्मान अली, सोनी दगशाही मैनशन की छत पर जा पहुँचे। इस सारे काम में उन्हें एक घंटा लगा था। आधा घंटा सोहनलाल को लिफ्ट की शाफ्ट के कमरे के उस दरवाजे को खोलने में लग गया, इतना वक्त उसे इसलिये लगा कि वो दरवाजे का ताला रिमोट से खुलने वाले लॉक पर था और लॉक दरवाजे के भीतरी तरफ था। ऐसे में उसे खोलने के लिए सोहनलाल को दरवाजे के लॉक के बराबर, दीवार में औजारों से इतना छेद करना पड़ा कि उसका हाथ भीतर जा सके, जब कि तेरह इंच चौड़ी वो दीवार बेहद मजबूत थी और छोटे से छेद को करने में ही बीस मिनट लग गये थे ।

लिफ्ट के शाफ्ट के कमरे में साथ लाई पॉवर फुल टार्च की रोशनी का इस्तेमाल किया गया। वहाँ पर लिफ्ट को चलाने वाली गरारियों का छोटा सा जाल बिछा था। लिफ्ट को संभालने वाली, रबड़ की गोल पाइपें नीचे जाती दिखाई दे रही थी। देवराज चौहान ने लिफ्ट की शाफ्ट में झांका, टार्च की रोशनी में।

लिफ्ट तीसरी मंजिल पर रुकी हुई थी।

जगमोहन ने लिफ्ट को चलाने वाली बिजली की तारों को कटर से काट कर अलग किया और उसे छीलकर दोनों तारों से तांबे की तार निकाली और उन्हें टच किया तो तभी लिफ्ट चल पड़ी। वो नीचे की तरफ गई।

"हमें लिफ्ट को ऊपर लाना है।" देवराज चौहान बोला।

जगमोहन ने सोहनलाल को दोनों नंगी तारे थमाई और खुद नीचे से आती तारों में उलझ गया। सोनी टार्च थामे जगमोहन के काम पर रोशनी डाल रही थी। जल्दी ही जगमोहन ने उन दो तारों को ढूंढ लिया, जो लिफ्ट को ऊपर नीचे ले जाने का काम करती थी। उसने उन तारों को भी छीलकर आपस में टच किया तो शॉफ्ट में लिफ्ट को तेजी से नीचे-नीचे जाते देखा। लिफ्ट पूरी नीचे गई और फिर वापस ऊपर शाफ्ट तक आ गई।

"अब ठीक है। टॉर्च की रोशनी लिफ्ट की छत पर डालो।" देवराज चौहान ने कहा ।

सोनी ने ऐसा ही किया।

लिफ्ट को देखने के बाद देवराज चौहान बोला ।

"लिफ्ट को इस कमरे में ले आओ।"

जगमोहन ने पुनः तारें टच की।

लिफ्ट और ऊपर आई और कमरे के भीतर आकर उसके दरवाजे खुल गये। लिफ्ट के भीतर रोशनी हुई पड़ी थी।

"सब लिफ्ट में आ जाओ।" देवराज चौहान बोला--- “और जगमोहन तुम बाद में लिफ्ट की पाईप से नीचे आओगे। अब तुमने लिफ्ट को दूसरी मंजिल पर रोकना है। इस बात का अन्दाजा तुम्हें रखना है कि दूसरी मंजिल कब आयेगी। हम दोनों फोन पर बात करते रहेंगे। लिफ्ट के भीतर दूसरी मंजिल आते ही इंडीकेटर जल उठेगा। मैं तुम्हें ऐसा होते ही फोन पर बता दूंगा।"

"मेरा नीचे आना ठीक नहीं होगा।" जगमोहन ने कहा--- "लिफ्ट तो दूसरी मंजिल पर रुकी होगी। ऐसे में मेरा दूसरी मंजिल पर प्रवेश करना कठिन हो जायेगा। वापसी पर लिफ्ट को ऊपर भी लाना है। मैं यहीं पर रहकर तुम्हारे फोन का इन्तजार करूँगा। लिफ्ट को जब ऊपर लगना हो तो मुझे फोन कर देना।"

जगमोहन की बात सही थी।

सब लिफ्ट में प्रवेश कर गये।

जगमोहन ने हाथ में पकड़ी तारें टच की तो लिफ्ट का दरवाजा बंद हो गया और वो नीचे आ सरकी। तब तक देवराज चौहान अपने मोबाइल से जगमोहन का नम्बर मिला चुका था। बात हुई दोनों में। तभी लिफ्ट के इंडीकेटर पर 2 का शब्द चमका।

“रोके---।" देवराज चौहान ने फोन पर कहा ।

लिफ्ट उसी पल रुक गई।

इंडीकेटर पर 2 का शब्द अभी भी चमक रहा था।

"बैंक के भीतर से उस सिस्टम को ऑन कर दिया जाता है, जिससे कि लिफ्ट दो पर नहीं रुकती। रुकती है तो दरवाजा नहीं खुलता। बैंक खुलने पर उस सिस्टम को ऑफ किया जाता है तो सब कुछ सामान्य हो जाता है। अब हमें लिफ्ट का दरवाजा खोलना है।" कहते हुए देवराज चौहान ने सोहनलाल के बैग से मोटा लोहे का सरिया निकाला--- "उस्मान, लिफ्ट के दरवाजे को खोलो। दोनों पल्लों के बीच में से जगह बनाकर इसे भीतर घुसेड़ो और फिर टेड़ा करके पल्लों का फासला बढ़ा दो, बाकी का काम हम हाथ से कर लेंगे।"

उस्मान अली फुर्ती से इस काम पर लग गया।

उसके लिए ये मामूली काम था।

पाठकों हम वक्त खराब ना करके तेजी से आगे चलते हैं। अभी हमारे पास आगे होने वाले हादसों की लम्बी लिस्ट है। ये तो  आप जान ही चुके हैं कि डकैती में अब क्या-क्या किया जाना है। महेश नागपाड़े से बैंक के प्रवेशद्वार का कम्बीनेशन नम्बर मिल चुका है, जिसके द्वारा बैंक में प्रवेश करने में कोई समस्या नहीं आने वाली। इसी प्रकार भीतर बैंक के वाल्ट का कम्बीनेशन नम्बर मिल चुका है। नागपाड़े इनसे डरा हुआ है और सब कुछ सही बताया है उसने। वाल्ट में भीतर प्रवेश करते वक्त, ये लोग वाल्ट का लॉक इस तरह तोड़-फोड़ देते हैं कि देखने पर अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि वाल्ट में प्रवेश करने वालों ने कम्बीनेशन नम्बर के दम पर वाल्ट खोला या कोई और जुगाड़ लगाया। ये इसलिए किया गया कि नागपाड़े इस मामले में ना फंस सके। वाल्ट के भीतर रैंकों पर हजार-हजार के नोटों की हजारों गड्डियां लगी थी। देवराज चौहान ने देखकर बता दिया कि साठ करोड़ से ऊपर की दौलत है। उस्मान अली, सोनी, साथ लाये बैगों में नोटों को तेजी से डालने लगे। अब देवराज चौहान को 'स्टार डायमंड' की तलाश थी जो कि उसे कहीं ना मिला, परन्तु एक तरफ रखी विदेशी तिजोरी पर उनकी निगाह पड़ी तो उसे खोला जाने लगा। उस तिजोरी पर डबल लॉक था। चाबी भी लगती थी और कम्बीनेशन नम्बर भी लगाना पड़ता था। जो भी हो सोहनलाल ने पच्चीस मिनट की जी-तोड़ कोशिशों के बाद, तिजोरी खोल ली। भीतर संतरे के साईज का वो हीरा मिल गया। बहुत ही खूबसूरत और नायाब हीरा था। देवराज चौहान ने उसे जेब में रख लिया। तब तक सोनी और उस्मान अली साथ लाये छः बैगों को नोटों की गड्डियों से भरे जा रहे थे। वो इस तरह नोट बैगों में रख रहे थे कि ज्यादा से ज्यादा नोट आये। सोनी और उस्मान अली इतने नोट देखकर, उत्तेजना में डूबे हुए थे।

“मजा आ रहा है उस्मान ?” सोनी ने चमकते स्वर में पूछा ।

“बहुत । सोच रहा हूँ कि अगर इस वक्त मेरी मां यहाँ होती तो गश खाकर मर चुकी होती।" उस्मान अली हंसकर बोला।

“इतनी बड़ी दौलत देखकर तेरे को माँ याद आ रही है। और कोई याद करने को नहीं मिला?"

"मैं माँ को खुश रखना चाहता हूँ।"

“और लड़की? कोई छोकरी नहीं है तेरी जिन्दगी में?"

"छोकरियों की मैंने कभी परवाह नहीं की। अब नोट आ गये हैं तो छोकरी भी आ जायेगी।" उस्मान अली बहुत खुश था।

तभी देवराज चौहान उनके पास पहुँचकर बोला।

"जल्दी से हाथ चलाओ।" उसने कहा।

"हीरा मिल गया?" अपने काम में मस्त सोनी कह उठी।

"हां--।"

"दिखाओ तो---।"

"बाद में देखना, यहाँ से निकलो।" कहने के साथ ही देवराज चौहान भी उनके काम में हाथ बंटाने लगा।

सोहनलाल अपने औजारों को पैक कर चुका था बैग में। वो छः के छः बैग हजार के नोटों की गड्डियों से पैक कर लिए गये। अब बाद में थोड़ी सी गड्डियां पड़ी ही दिखाई दे रही थी। बैगों को लेकर वे लिफ्ट में पहुँचे। C.C.T.V कैमरों का कनैक्शन पहले ही काट चुके थे। ऐसे में उन्हें कोई चिन्ता नहीं थी। लिफ्ट से देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन करके लिफ्ट ऊपर ले जाने को कहा।

उस्मान अली और सोनी खुश थे।

देवराज चौहान और सोहनलाल गम्भीर थे।

"देवराज चौहान।" सोनी बोली--- “ये सारा काम कितना आसान रहा।"

“ये आसान काम नहीं था।" उस्मान अली बोला--- “देवराज चौहान ने इसे आसान बना दिया।"

"जो भी हो, हमें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।" सोनी बोली--- “ये बैग मजबूत हैं। चौथी मंजिल से फेंके जाने से फटने वाले नहीं। क्या ख्याल है, इन बैगों में कितनी दौलत होगी?"

“पचास करोड़ से ऊपर।" देवराज चौहान ने कहा।

लिफ्ट को झटका लगा और वो ऊपर की तरफ खिसकने लगी।

“पचास करोड़ से ऊपर।" उस्मान अली हक्का-बक्का बोला--- “मतलब कि हर एक को 10 करोड़ मिलेंगे।”

"पैसे को संभालकर रखना।" सोहनलाल ने कहा--- “यूँ ही खर्च मत कर देना। ये तुम लोगों के लिए पहला और आखिरी मौका था नोटों को इकट्टे पाने का। पैसा बार-बार नहीं आता।”

"मैं तो आधे पैसों का बिजनेस करूँगा। आधे को संभाल कर रखूंगा।" उस्मान अली ने कहा।

तभी मध्यम से झटके के साथ लिफ्ट रुकी और दरवाजे खुलते गए।

वे अब शाफ्ट वाले कमरे में मौजूद थे। सामने जगमोहन खड़ा था।

"काम हो गया?" जगमोहन ने उसी पल पूछा।

"सब ठीक रहा।" देवराज चौहान लिफ्ट से बाहर निकलता बोला--- "नोटों के बैगों को सामने की तरफ से नीचे फेंकना है। बैगों को उठाओ और चलो।" पलटकर देवराज चौहान ने दो बैग उठाये।

सोनी लिफ्ट से बाहर निकलते हुए कह उठी।

"मैं नीचे जाती हूं। बैगों को वैन में रखना है।" कहकर वो शाफ्ट वाले कमरे से बाहर निकलती चली गई।

सोनी सीढ़ी के पुल से जल्दी से पावनहार की छत पर पहुँची।

पूरन दागड़े ने दूसरी तरफ से सीढ़ी को मजबूती से जकड़ रखा था।

"काम हो गया?" सोनी के वहाँ पहुँचते ही पूरन दागड़े ने बेचैनी से पूछा।

"हो गया।" सोनी नीचे जाने वाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ते बोली--- "तुम यहीं रहो। बाकी लोग आने वाले हैं।"

सोनी नीचे पहुंची तो देखा, नोटों के सारे बैग नीचे पहुँच चुके हैं।

बजरंग कराड़े, सतीश बारू, और हरीश खुदे बैगों को उठा-उठा कर वैन में रख रहे थे। सोनी को देखते ही खुदे ने पूछा ।

"हीरा मिल गया ना?"

"हां। सोनी बोली--- "वो लोग आ रहे हैं।"

“मजा आ गया मेरी तो किस्मत खुल गई।" कहते हुए खुदे बैग लेने के लिए भागा। अब दो बैग बाकी बचे थे। एक बारू ला रहा था।

सोनी और बजरंग को अकेले में चंद पल मिले।

“तैयार है बजरंग?" सोनी व्यग्रता से फुसफुसाई ।

"हाँ-हाँ---।"

"बेहोशी वाली सुई का फायर कर दोनों कर और निकल ले।" सोनी ने जल्दी से कहा--- “बाकी लोग आ गये तो फिर नहीं होगा ये काम। वो देख बारू आ रहा है बैग लेकर। पहले उसे वैग वैन में रखने देना।"

बजरंग का दिल धड़क रहा था तेजी से। ये सब कुछ करना उसके लिए नया था। बेहतर जिन्दगी बनाने के लिए वो डकैती करने के लिए तैयार हो गया था और अब जीवन को सोनी के साथ और भी बेहतर ढंग से जीने के लिए, सोनी का कहना मान गया था। उसने सुई वाली गन निकाल ली। अंधेरे की वजह से बारू उसके हाथ में दबी गन को नहीं देख सका। देख भी लेता तो कोई फर्क नहीं पड़ना था। वो तो सोच भी नहीं सकता था कि अपना ही साथी उनके साथ गद्दारी करेगा। इस वक्त तो सब एक ही धागे में बंधे हुए थे ।

बारू ने वैन में बैग रखा और बोला ।

“सब बैग आ गये।"

बजरंग ने उसी पल गन सीधी की ओर ट्रिगर दबा दिया।

बे-आवाज सुई का फायर हो गया।

एकाएक बारू को पेट में सुई चुभने का अहसास हुआ।

"ओह ।" बारू के होंठों से निकला--- "अंधेरे में किसी कीड़े ने काट लिया है पेट पर।"

पीछे हरीश खुदे बैग को उठाये आ रहा था।

तभी सतीश बारू की टांगें मुड़ी और बेहोश होता वो नीचे लुढ़कता चला गया।

“इसे क्या हुआ ?” पास पहुँचा खुदे बोला और बैग को वैन में धकेल कर पल्टा कि ठिठक गया।

खुदे ने बजरंग को गन सीधी करते देखा। सुई वाली गन ।

खुदे चौंका। समझ गया कि बारू के साथ क्या हुआ है। बिना एक पल की देरी के उसने तेजी से अपनी दाईं टांग घुमाई जो कि इत्तेफाक से बजरंग के हाथ में दबी गन पर ठोकर जा लगी।

बजरंग के हाथ से सुई वाली गन निकल गई।

खुदे के होंठों से गुर्राहट निकली और उसने बजरंग पर छलांग लगा दी।

दोनों जोरों से टकराये और बजरंग कराड़े जमीन पर लुटकता चला गया।

जबकि खुदे ने अपने को संभाल लिया था। वो पुनः बजरंग की तरफ बढ़ा।

“कमीने, धोखेबाज़ी करता...।"

"धायं" कानों को फाड़ देने वाला धमाका हुआ और खुदे को लगा, उसकी पीठ में अंगारा आ घुसा हो। उसे तेज झटका लगा और वो आगे को जा गिरा।

“बजरंग ।” सोनी की आवाज सुनी--- "जल्दी कर।"

खुदे ने बजरंग को उठकर, वैन की तरफ दौड़ते देखा ।

हरीश खुदे ने अपनी पूरी हिम्मत लगा दी। वो जल्दी से उठा तो सोनी को रिवॉल्वर लिए खड़े पाया।

धायं धायं !

सोनी ने एक के बाद एक दो फायर किए और दोनों गोलियाँ खुदे की छाती में जा लगी। वो इस तरह पीछे को गिरा, जैसे किसी ने उसे धक्का दे दिया हो।

सोनी पलटकर वैन में बैठने के लिए दौड़ी। तब तक बजरंग वैन स्टार्ट कर चुका था। सोनी के भीतर आते ही बजरंग कराड़े ने वैन दौड़ा दी। वो घबराहट, डर, पसीने से भरा पड़ा था।

"वैन वहीं ले चल बजरंग, जहाँ हमने अपनी वैन खड़ी कर रखी है। इन बैगों को उस वैन में रखकर मुम्बई से निकल चलेंगे। हमें ये लोग कभी नहीं ढूंढ पायेंगे।” सोनी दाँत भींचे गुर्रा उठी।

देखते ही देखते उस वैन की पीछे की लाइटें दिखनी बंद हो गई ।

इसी पल देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल, पूरन दागड़े भागते हुए पावनहार से बाहर निकले। गोलियों की आवाज उन्होंने सुन ली थी। वो समझ गये थे कि गड़बड़ हो गई है कोई । परन्तु कैसी गड़बड़ ये वो नहीं समझ पाये।

बाहर आते ही वे सब ठिठक गये।

वैन कहीं भी नहीं थी ।

"वैन कहाँ गई ?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

जगमोहन जल्दी आगे बढ़ा और बीच रास्ते पर पड़े सतीश बारू के पास पहुँचा।

देवराज चौहान आगे अंधेरे में पड़े हरीश खुदे की तरफ दौड़ा। वो उसे दिख गया था ।

“ये क्या हुआ पड़ा है।" पूरन दागड़े हैरान-परेशान सा कह उठा--- "नोटों के बैग कहाँ हैं।"

सोहनलाल जगमोहन के पास पहुँचा।

"क्या चक्कर है ?" सोहनलाल ने पूछा।

“ये सतीश बारू है। बेहोश है। सांसें चल रही हैं।" जगमोहन व्याकुलता से कह उठा ।

“ये बेहोश कैसे हो गया?" कहते हुए सोहनलाल, देवराज चौहान के पास जा पहुँचा।

देवराज चौहान मोबाइल फोन की लाइट में खुदे का चेहरा देख रहा था।

खुदे की आँखें फटकर फैली हुई थीं। उसमें हैरानी के भाव दिख रहे थे। उसकी सांसें थम चुकी थी। वो मर चुका था। देवराज चौहान हक्का-बक्का सा खुदे की लाश के चेहरे को देखे जा रहा था।

"ये मर गया।" सोहनलाल के होंठों से निकला।

“हाँ।” देवराज चौहान होंठ भींचे उठ खड़ा हुआ--- "इसकी छाती पर दो गोलियाँ मारी गई हैं और एक गोली पीठ पर लगी है।"

"ये... ये किसने किया?”

देवराज चौहान ने आस-पास निगाह मारी फिर दगशाही मैनशन के उस हिस्से पर पहुँचा जहाँ ऊपर से नोटों से भरे बैग फेंके थे। परन्तु अब वहाँ कोई बैग नहीं था। जगमोहन देवराज चौहान के पास पहुँचा ।

"ये सब क्या हुआ...।"

"बजरंग कराड़े और सोनी ने मिलकर दगाबाजी की है।" देवराज चौहान गुर्राया--- “सतीश बारू भी मर गया।”

“वो बेहोश है।” जगमोहन गुस्से से बोला--- “परन्तु खुदे मर चुका है। हे भगवान खुदे की मौत का विश्वास नहीं हो रहा कि---।”

"बजरंग और सोनी डकैती की सारी दौलत ले उड़े हैं। उन्होंने ही बारू को बेहोश किया और खुदे को शूट कर दिया। इस बात का सारा प्लान उन्होंने पहले ही बना रखा था। वो ज्यादा दूर नहीं गये होंगे।” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा--- “हमें अलग-अलग होकर उन्हें ढूंढने की कोशिश करनी चाहिये। निकलो यहाँ से। पूरन दागड़े से कहो कि सतीश बारू को उठा ले और उसके फ्लैट पर पहुँचकर हमारा इन्तजार करे। बजरंग और सोनी को मैं बहुत बुरी मौत दूंगा।”

तभी पूरन दागड़े पास आता कह उठा।

"ये सब क्या हो रहा है। बारू बेहोश है और हरीश खुदे मरा पड़ा है। बजरंग और सोनी कहीं नहीं हैं, वो वैन नहीं है। नोट नहीं हैं। मेरे ख्याल से बजरंग और सोनी नोटों को लेकर भाग गये हैं। उन्होंने ऐसा करने की योजना पहले ही बना ली थी। बारू के फ्लैट में दोनों आपस में धीमें स्वर में बातें करने में लगे रहते थे। तब मैंने सोचा कि वो यूं ही बातें कर---।"

“यहाँ से निकल चलो।” देवराज चौहान गुर्राकर कह उठा--- "दोनों दगाबाज़ निकले ।”

पूरन दागड़े कुछ कहने लगा कि रुक गया।

सामने से, दूरी पर एक हैडलाइट दिखाई दी, जो कि इधर ही आ रही थी।

“कोई आ रहा है, निकलो।" जगमोहन ने कहने के साथ ही नीचे पड़े सतीश बारू के बेहोश शरीर को उठाया और वे सब अंधेरे में गुम होते चले गये। अब वहाँ हरीश खुदे की लाश के अलावा कोई नहीं था।

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