“इधर तो वो नहीं है !”
“तो बोले तो वेट करती थक गयी आखिर । कोई टैक्सी मिल गयी, या लिफ्ट मिल गयी, चली गयी उधर से ।”
“कहां ?”
“मेरे को कैसे मालूम होयेंगा !”
“ये भी ठीक है । ऐनी वे, थैंक्यू ।”
उसने सम्बंध विच्छेद किया ।
कहां गयी !
लिफ्ट या टैक्सी मिल भी गयी तो कहां गयी !
अपने बोर्डिंग हाउस में लौटने की तो मजाल नहीं हो सकती थी !
या शायद उसे कोई टैक्सी आटो या लिफ्ट नहीं मिली थी और इंतजार से आजिज आ कर वो पैदल ही वापिस लौट पड़ी थी ।
तो रास्ते में उसे दिखाई क्यों न दी ?
क्योंकि उसकी मुकम्मल तवज्जो कार चलाने में थी ।
अब वापिसी में वो उस पर निगाह रखते कार चला सकता था ।
वो कार में सवार हुआ और उसने कदरन धीमी रफ्तार से वापिसी के रास्ते पर कार बढा़ई । हर घडी़ असे लग रहा था कि रोमिला उसे आगे सड़क पर चलती दी कि दिखाई दी । कई बार उसे लगा कि वो आगे सड़क पर थी और एकाएक ब्रेक लगाई लेकिन सब परछाइयों का खेल निकला । सड़क पर पैदल कोई नहीं था ।
यूं ही कार चलाता वो वापिस वैस्टएण्ड पहुंच गया ।
जहां सब कुछ या बंद हो चुका था या हो रहा था ।
मनोरंजन पार्क की रोनक समाप्तप्राय थी ।
जमशेद जी पार्क उजाड़ पड़ा था, खाली ऐंट्री के करीब के एक बैंच पर एक आदमी-जो कि बेवडा़ जान पड़ता था-दीन दुनिया से बेखबर सोया पड़ा था ।
विभिन्न सड़कों पर भटकता वो कोंसिका क्लब के आगे से भी गुजरा ।
वो भी बंद हो चुकी थी ।
रात की उस घडी़ कहीं जीवन के कोई आसार थे तो ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ में थे ।
पता नहीं क्या सोच कर उसने कार रोकी ।
‘इम्पीरियल रिट्रीट’ का ग्लास डोर ठेल कर वो भीतर दाखिल हुआ ।
वहां रिसैप्शन डैस्क के पीछे टाई वाला एक युवक मौजूद था जो कि एक कम्प्यूटर के साथ व्यस्त था ।
“कब से ड्यूटी पर हो ?” - नीलेश रोब से बोला ।
उसके लहजे का और उसके व्यक्तित्व का युवक पर प्रत्याशित प्रभाव पड़ा ।
“शाम सात बजे से ।” - वो बोला ।
“तब से यहीं हो ?”
“जी हां ।”
“मैं एक लड़की का हुलिया बयान करने जा रहा हूं । गौर से सुनना ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
नीलेश ने तफसील से रोमिला का हुलिया बयान किया ।
युवक ने गौर से सुना ।
“पिछले एक घंटे में ये लड़की यहां आयी थी ?” - नीलेश ने पूछा ।”
“जी नहीं ।” - युवक निसंकोच बोला ।
“पक्की बात ?”
“जी हां ।”
“शायद टॉप फ्लोर पर जाने के लिये लिफ्ट पर सवार हो गयी हो और तुम्हें खबर न लगी हो !”
“टॉप फ्लोर पर कहां ?”
“अरे, भई, कै...बिलियर्ड रूम में ।”
“आपको मालूम है टॉप फ्लोर पर बिलियर्ड रूम है ?”
“है तो सही !”
“कैसे मालूम है ?”
“अपने रोनी ने बताया न !”
“रोनी ?”
“डिसूजा । रोनी डिसूजा । मैग्नारो साहब का राइट हैंड ।”
“आप तो बहुत कुछ जानते हैं !”
“ऐसीच है । अभी जवाब दो । मैं बोला, टॉप फ्लोर पर जाने को वो लड़की लिफ्ट पर सवार हुई हो और तुम्हें खबर न लगी हो !”
“ये नहीं हो सकता ।”
“क्यों ? क्यों नहीं हो सकता ?”
“रात की इस घडी़ मेरी ओके के बिना लिफ्ट वाला किसी को ऊपर बिलियर्ड रूम में ले कर नहीं जा सकता । भले ही वो कोई हो ।”
“ओह ! थैंक्यू ।”
युवक मशीनी अंदाज से मुस्कराया ।
नीलेश वापिस सड़क पर पहुंचा ।
उसके अपने बोर्डिंग हाउस वापिस लौटी होने की कोई सम्भावना नहीं थी, फिर भी उम्मीद के खिलाफ करते हुए उसने वहां का चक्कर लगाने का फैसला किया ।
वो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस वाली सड़क पर पहुंचा ।
उसने कार परे ही खड़ी कर दी और उसमें से निकल कर पैदल आगे बढ़ा ।
इस बार सिपाही दयाराम भाटे स्टूल पर बैठा होने की जगह उसे एक बाजू से दूसरे बाजू चहलकदमी करता मिला ।
चहलकदमी वो कैसे बेमन से खानापूरी के लिये कर रहा था इसका सबूत था कि नीलेश उसके ऐन पीछे पहुंच गया तो उसे उसकी मौजूदगी की खबर लगी ।
वो चिहुंक कर उसकी तरफ घूमा ।
“क्या है ?” - फिर कर्कश स्वर में बोला ।
“गोखले है ।”
“क्या !”
“अरे, भई, मेरा नाम नीलेश गोखले है । रोमिला सावंत का फ्रेंड हूं । सामने वाले बोर्डिंग हाउस में रहती है । जानते हो न उसे ?”
“जानता हूं तो क्या ?”
“उसे लौटते देखा ?”
“नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“प्रेत की तरह किसी के पीछे आन खड़ा होना गलत है । मैं हाथ चला देता तो ?”
“तो जाहिर है कि मैं ढेर हुआ पड़ा होता । शुक्र है चला न दिया । मैं सारी बोलता हूं ।”
“ठीक है, ठीक है ।”
“तो रोमिला सावंत नहीं लौटी ?”
“अरे, बोला न, नहीं लौटी ।”
“मेरे को उससे बहुत जरूरी करके मिलना था ।”
“अकेले तुम्हीं नहीं हो ऐसी जरूरत वाले ।”
“अच्छा !”
“क्यों मिलना था ?”
“वो क्या है कि मेरी उसके साथ डेट थी । पहुंची नहीं, इसलिये फिक्र हो गयी । अभी मालूम तो होना चाहिये न, कि क्यों नहीं पहुंची !”
“डेट्स क्रॉस कर गयी होंगी !”
“बोले तो ?”
“किसी और को भी मिलने की बोल बैठी होगी ! तुम्हारे को भूल गयी होगी या जानबूझ के नक्की किया होगा !”
“ऐसा ?”
“हां । ऐसी लड़कियां वादा करती हैं तो निभाना जरूरी नहीं समझतीं ।”
“कम्माल है ! तुम्हें तो बहुत नॉलेज है ऐसी लड़कियों की ! खुद भुगते हुए जान पड़ते हो !”
“अरे, मैं शादीशुदा, बालबच्चेदार आदमी हूं ।”
“तो क्या हुआ ! मर्द का दिल है ! मचल जाता है !”
वो हंसा, तत्काल संजीदा हुआ, फिर बोला - “अब नक्की करो ।”
“अभी ।” - नीलेश विनीत भाव से बोला - “अभी ।”
“अब क्या है ?”
“मैं सोच रहा था, ऐसा हो सकता है कि वो लौट आई हुई हो और तुम्हें उसके आने की खबर ही न लगी हो !”
“क्यों, भई ! मैं अंधा हूं ?”
“नहीं । मैं तो महज...”
“और फिर तुम क्यों बढ़ बढ़ के मेरे सवाल कर रहे हो ?”
“यार, मैं उसका फ्रेंड हूं - ब्वायफ्रेंड हूं - उसकी सलामती के लिये फिक्रमंद हूं । कुछ लिहाज करो मेरा । फरियाद कर रहा हूं ।”
नीलेश के ड्रामे का उस पर फौरन असर हुआ । वो पिघला ।
“क्या लिहाज करूं ?” - वो नम्र स्वर में बोला ।
“यार, सख्त, बोर, थका देने वाली ड्यूटी कर रहे हो, न चाहते हुए भी कोई छोटी मोटी कोताही हो ही जाती है । हो सकता है इधर आने की जगह वो पिछवाडे़ के रास्ते भीतर चली गयी हो और तुम्हें खबर ही न लगी हो !”
“नहीं हो सकता । क्योंकि इस बोर्डिंग हाउस का पिछवाडे़ से कोई रास्ता है ही नहीं !”
“ओह !”
“बाजू से-वो सामने की गली से-एक रास्ता है लेकिन वो बराबर मेरी निगाह में है ।”
“जरूर, जरूर । लेकिन निगाह किसी की भी चूक सकती है । खाली एक ही बार तो चूकना होगा न निगाह ने !”
“तुम तो मुझे फिक्र में डाल रहे हो !”
“मैं पहले से फिक्र में हूं । क्यों न फिक्र दूर कर लें ?”
“बोले तो ?”
“बाजू के रास्ते से ऊपर जा कर चुपचाप उसके कमरे में झांक आने में क्या हर्ज है ?”
वो सोचने लगा ।
“बाजू के दरवाजे का रास्ता भीतर से बंद तो होता नहीं होगा वर्ना कैसे कोई चुपचाप उधर से दाखिल हो सकता है ?”
“नहीं, बंद तो नहीं होता ! कोई ऐसा सिस्टम है कि बंद दरवाजा धक्का देने पर नहीं खुलता । दो तीन बार हिलाओ डुलाओ तो खुल जाता है ।”
“फिर क्या वांदा है ! जा के आते हैं ।”
महाबोले की फटकार के बाद से भाटे बहुत चौकस था फिर भी सोता पकड़ा गया था, इसलिये उसका अपने आप पर से भरोसा हिला हुआ था । असल में खुद उसे भी अंदेशा था कि लड़की किसी तरीके से उसकी निगाह में आये बिना अपने कमरे में पहुंच ही तो नहीं गयी हुई थी !
“चलो !” - एकाएक वो निर्णायक भाव से बोला ।
नीलेश ने मन ही मन चैन की सांस ली ।
बाजू के रास्ते से चुपचाप वो इमारत में दाखिल हुए और दूसरी मंजिल पर पहुंचे ।
नीलेश ने हैंडल घुमाकर हौले से दरवाजे को धक्का दिया ।
“खुला है ।” - वो फुसफुसाया ।
“देवा !” - भाटे हताश भाव से वैसे ही फुसफुसाया - “वो घर में है और मुझे खबर ही नहीं कि कब आयी । महाबोले साहब मेरी खाल खींच लेंगे ।”
“अभी से क्यों विलाप करने लगे ! पहले कनफर्म तो हो जाये कि भीतर है !”
“जब दरवाजा खुला है....”
“क्यों खुला है ?” कोई दरवाजा खुला छोड़ के सोता है !”
“ओह !”
“चुप करो । देखने दो ।”
नीलेश ने अंधकार में डूबे कमरे में कदम डाला । आंखे फाड़ फाड़ कर उसने सामने निगाह दौड़ाई । उसे न लगा कि वहां कोई था । हिम्मत करके उसने स्विच बोर्ड तलाश किया और वहां रोशनी की ।
कमरा खाली था । वो वहां नहीं थी ।
उसने आगे बढ़ कर बाथरूम में झांका । वो वहां भी नहीं थी ।
वार्डरोब में उसके होने का मतलब ही नहीं था फिर भी उसने उसे खोल कर भीतर निगाह दौड़ाई ।
इतना कुछ कर चुकने के बाद कमरे की अस्तव्यस्तता की ओर उसकी तवज्जो गयी । नेत्र सिकोडे़ उसने बैड पर खुले पडे़ सूटकेस और उसके भीतर बाहर बिखरे कपड़ों पर निगाह डाली ।
साफ जाहिर हो रहा था कि कूच की तैयारी में थी कि कोई विघ्न आ गया था ।
फिर उसकी तवज्जो उस ब्रा की तरफ भी गयी जिसमें किसी ने सिग्रेट मसल कर बुझाया था ।
नयी ब्रा ! कीमती ब्रा !
ऐसी बेहूदा हरकत किसने की ? क्यों की ? रोमिला की मौजूदगी में की या उसकी गैरहाजिरी में कोई वहां आया ?
किसी बात का जवाब हासिल करने का कोई जरिया उसके पास नहीं था ।
“अरे, भई, हिलो अब ।” - भाटे उतावले स्वर में बोला ।
“बस, जरा दो मिनट....” - नीलेश ने याचना की ।
“नहीं ।” - भाटे सख्ती से बोला - “मरवाओगे मेरे को ! हिल के दो ।”
“बड़ी देर से हुआ ये अंदेशा....”
“ओफ्फोह ! अब हिल भी चुको ।”
“जो हुक्म, जनाब ।”
उसने बिजली का स्विच आफ किया ।
अपने उस अभियान में उसके हाथ कुछ नहीं आया था, उसकी जानकारी में कोई इजाफा नहीं हुआ था । दोनों वहां से बाहर निकले ।
और वापिस सड़क पर पहुंचे ।
“हो गयी तसल्ली !” - भाटे बोला - “मिट गयी फिक्र !”
“हां, दारोगा जी । उम्मीद करता हूं कि तुम्हारी भी ।”
भाटे को अपने लिये दारोगा का सम्बोधन बहुत अच्छा लगा, बहुत कर्णप्रिय लगा ।
“अब तुम क्या करोगे ?” - वो बोला ।
“एक जगह और है मेरी निगाह में” - नीलेश संजीदगी से बोला - “जहां कि वो हो सकती है । जा कर पता करूंगा ।”
“वहां न हो तो थाने पहुंचना ।”
नीलेश सकपकाया ।
“काहे को ?” - वो बोला ।
“अरे, भई, गुमशुदा की तलाश का केस है । रिपोर्ट नहीं लिखवाओगे ?”
“अभी उसमें टाइम है । इतनी जल्दी कोई गुमशुदा नहीं मान लिया जाता । मैं कल तक इंतजार करूंगा ।”
“वो कल भी न मिले तो थाने पहुंचना ।”
“ठीक है ।”
“ताकीद है । बल्कि हुक्म है ।”
“किसका ?”
“जिसको अभी दारोगा बोला, उसका ।”
ढक्कन ! सच में ही खुद को दारोगा समझने लगा ।
“हुक्म सिर माथे, दारोगा जी । तामील होगी ।”
“निकल लो ।”
लम्बी ड्राइव के बाद नीलेश कोस्ट गार्ड्स की छावनी पहुंचा ।
उसे बैरियर पर रुकना पड़ा ।
एक सशस्त्र गार्ड वाच केबिन से निकल कर उसके पास पहुंचा ।
“डिप्टी कमाडेंट हेमंत अधिकारी साहब से मिलना है ।” - नीलेश बोला ।
“टाइम मालूम ?” - गार्ड रूखे स्वर में बोला ।
“मालूम । मेरे को इजाजत है ट्वेंटी फोर आवर्स में कभी भी काल करने की ।”
गार्ड ने संदिग्ध भाव से उसका मुआयना किया।
“रोकोगे तो मुश्किल होगी ।” - नीलेश बोला ।
“किसके लिये ?”
“तुम्हारे लिये ।”
गार्ड हड़बड़ाया । उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव आये ।
“स्पैन आउट आफ इट ।” - नीलेश डपट कर बोला - “इट्स ऐन इमरजेंसी !”
वो और हड़बड़ाया ।
“नाम बोलो ।” - फिर बोला ।
“नीलेश गोखले ।”
“इधर ही ठहरो । हैडलाइट्स आफ करो । इंजन बंद करो ।”
नीलेश ने दोनों बातों पर अमल किया, उसने कार की पार्किंग लाइट्स जलती रहने दी और अपनी ओर का दरवाजा थोड़ा खोल कर रखा ताकि कार के भीतर रोशनी रहती ।
गार्ड वापिस वाच केबिन में चला गया ।
लौटा तो उसके व्यवहार में पहले जैसी असहिष्णुता नहीं थी ।
“इधरीच ठहरने का ।” - वो बोला - “वेट करने का ।”
“ठीक है ।”
पांच मिनट खामोशी से कटे ।
फिर भीतर से एक आदमी लपकता हुआ बैरियर पर पहुंचा । उसने गार्ड को बैरियर उठाने का इशारा किया और खामोशी से नीलेश के साथ कार में सवार हो गया । उसके इशारे पर नीलेश ने कार आगे बढ़ाई । पेड़ों से ढ़ंकी सड़क पर आगे मार्गनिर्देशन की उसे जरूरत नहीं थी, वो वहां पहले भी आ चुका था ।
एक बैरेक के आगे ले जाकर उसने कार रोकी ।
दोनों कार से बाहर निकल कर बैरक के बरामदे में पहुंचे और अगल बगल चलते एक बंद दरवाजे पर पहुंचे । दरवाजे पर हेमंत अधिकारी के नाम का परिचय पट लगा हुआ था । उस व्यक्ति ने चाबी लगा कर दरवाजा खोला और भीतर की बत्तियां जलाई ।
“बैठो ।” - वो बोला - “साहब को सोते से जगाया गया है । तैयार हो कर आते हैं ।”
नीलेश ने सहमति में सिर हिलाया ।
“कुछ पियोगे ?”
“नहीं । थैक्यू ।”
वो चला गया ।
नीलेश ने सिग्रेट सुलगाने के बारे में सोचा लेकिन फिर खयाल छोड़ दिया ।
वो प्रतीक्षा करता रहा ।
आखिर सिविलियन ड्रैस में डिप्टी कमांडेंट हेमंत अधिकारी वहां पहुंचा ।
नीलेश ने उठ कर उसका अभिवादन किया ।
“बैठो, बैठो ।” - जमहाई छुपाता वो अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर ढे़र हुआ ।
“थैक्यू, सर ।”
“बोलो !”
“डीसीपी पाटिल साहब से बात करना है ।”
पिछली बार की तरह ही उसने कोई हैरानी न जाहिर की, कोई हुज्जत न की, सहमति में सिर हिलाया और मेज के एक लॉक्ड दराज को खोल कर उसमें से एक फोन निकाल कर अपने सामने मेज पर रखा ।
वो टेलीफोन ऐसा था, दुनिया का कोई तकनीकी उपकरण जिसकी लाइन टेप नहीं कर सकता था ।
वो उस पर काल लगाने लगा ।
काल कनैक्ट होने के लिये इंतजार शुरू हुआ ।
आखिर उसने फोन नीलेश को थमाया और कहा - “पाटिल साहब लाइन पर हैं ।”
नीलेश ने रिसीवर कान से लगाया और बिना औपचारिकता में टाइम जाया किये अपनी विस्तृत रिपोर्ट पेश की ।
आखिर वो खामोश हुआ ।
“उधर ही ठहरो ।” - डीसीपी पाटिल की आवाज आयी - “आते हैं ।”
“जी !”
“अधिकारी साहब को फोन दो ।”
उसने रिसीवर वापिस अधिकारी को थमा दिया ।
अधिकारी ने खामोशी से कुछ क्षण फोन सुना, फिर उसे क्रेडल पर रखा और फोन वापिस दराज में बंद कर दिया । फिर बिना कुछ बोले वो वहां से रूखसत हो गया ।
तत्काल पहले वाला व्यक्ति वापिस लौटा ।
“आओ ।” - वो बोला ।
“कहां ?” - नीलेश सशंक भाव से बोला ।
“भई, तुम्हारा इंतजार आसान करते है ।”
वो उसे बैरक के कोने के एक कमरे में लाया जहां मैट्रेस बिछी एक फोल्डिंग बैड पड़ी थी । उसने एक अलमारी खोल कर उसमें से दो कम्बल और एक तकिया निकाला और बैड पर डाला ।
“पड़ जाओ ।” - वो बोला ।
“थैंक्यू । साहब ने मुम्बई से आना है । घंटों लगेंगे ।”
“इसीलिये ये इंतजाम किया । जब टाइम आयेगा तो जगा देंगे ।”
“थैंक्यू ।”
उसके जाने के बाद नीलेश ने सिर्फ कोट और जूते उतारे और कम्बल ओढ़ कर पड़ गया ।
तकिये से सिर लगने की देर थी कि वो नींद के हवाले था ।
***
सिपाही दयाराम भाटे थाने पहुंचा ।
और महाबोले के रूबरू हुआ ।
उसने बोर्डिंग हाउस पर नीलेश गोखले की आमद की बाबत एसएचओ साहब को बताया ।
वो चुप हुआ तो महाबोले असहाय भाव से उसकी तरफ देखने लगा ।
भाटे बौखला गया ।
“कमरे में क्यों जाने दिया ?”
“साहब जी, लड़की का ब्वायफ्रेंड था” - भाटे बोला - “उसके लिये फिक्रमंद था, फरियाद करता था ।”
“तू शिवाजी महाराज है ! फरियाद सुनता है !”
“नहीं, साब जी, वो बात नहीं, और भी बात थी ?”
“और क्या बात थी ?”
“साब जी, आपने मुझे सोते पकड़ा, लताड़ लगाई, उस वजह से मैं हिला हुआ था । खुद पर से मेरा विश्वास हिला हुआ था । वो....वो गोखले आ के आइडिया सरकाया कि हो सकता था वो बोर्डिंग हाउस में लौट भी आई हुई हो और मुझे खबर न लगी हो । तब मेरे को ही लगने लगा कि मेरे को मालूम होना चाहिये था कि वो ऊपर कमरे में थी या नहीं थी । मैंने सोचा एक पंथ दो काज हो जायेंगे, गोखले की फरियाद की सुनवाई भी हो जायेगी और मेरे को भी मालूम पड़ जायेगा ऊपर की क्या पोजीशन थी !”
“इसलिये तू उसके साथ बोर्डिंग हाउस में गया ? ऊपर लड़की के कमरे में गया ?”
“हां, साब जी ।”
“दरवाजा खोला, कमरे में झांका, देखा, वहां लड़की नहीं थी और तुम दोनों लौट आये ?”
भाटे को सांप सूंघ गया ।
“यही हुआ न !”
बड़ी मुश्किल से वो इंकार में सिर हिला पाया ।
“तो और क्या हुआ ?”
“वो....वो भीतर चला गया, जा के बत्ती जला दी, मेरे को भी भीतर जाना पड़ा ।”
“फिर ?”
“वो टायलेट में गया, उसने वार्डरोब को खोल के भीतर झांका....”
“क्योंकि लड़की गठरी थी जो वार्डरोब में भी पड़ी हो सकती थी !”
“ऐसा कैसे होगा, साब जी ! पण वार्डरोब खोली जरूर थी उसने । और भी इधर उधर काफी कुछ टटोला था ।”
“जैसे तलाशी ले रहा हो !”
“अभी बोले तो हां । पण, साब जी, तब मेरे को ऐसा नहीं लगा था ।”
“तब क्या लगा था ? सूई तलाश कर रहा था ?”
“अब क्या बोलूं, साब जी ! मेरे से गलती हुई जो मैंने उसका लिहाज किया, उसकी फरियाद से पिघला । पण, साब जी, मैं उधर फुल चौकस था, कुछ उठाने नहीं दिया था मैने उसको उधर से ।”
“बहुत कमाल किया । साला अक्खा ईडियट !”
“पण, साब जी....”
“चुप कर, एक मिनट ।”
भाटे ने होंठ भींच लिये ।
चिंतित भाव से महाबोले ने एक सिग्रेट सुलगाया और उसके छोटे छोटे कश लगाने लगा ।
गोखले का एक्शन उसे फिक्र में डाल रहा था ।
क्यों गया वो रोमिला के कमरे में ?
किस हासिल की उम्मीद में गया ?
सिर्फ ये जानना चाहता था कि रोमिला घर लौट आयी हुई थी या नहीं तो वो तो दरवाजे पर से ही जाना जा सकता था !
क्या माजरा था ?
गोखले की वो हरकत उसे फिक्र में डाल रही थी । क्यों ढूंढ़ रहा था वो रोमिला को ? उसके कमरे में क्यों घुसा ? तलाशी क्यों लेने लगा ? किस हासिल की उम्मीद थी ? ब्वायफ्रेंड बोलता था खुद को लड़की का ! अभी कल आइलैंड पर कदम पडे़ थे, आज दोस्ती भी हो गयी, आशिकी भी हो गयी, ब्वायफ्रेंड का दर्जा भी हासिल हो गया ! क्या उस की सोच गलत थी कि वो आम आदमी था ? आम आदमी था तो उसकी हरकतें आम आदमी जैसी क्यों नहीं थीं ?
फिर से सोचना पडे़गा कुतरे के बारे में ।
झुंझला कर उसने सिग्रेट परे फेंक दिया और फिर भाटे की तरफ आकर्षित हुआ ।
“लौट क्यों आया ?” - उसने पूछा ।
“क-क्या बोला, साब जी ?”
“तेरे को उस लड़की की आमद पर निगाह रखने का था । निगरानी बीच में छोड़ के यहां क्यों आ मरा ?”
“साब जी, तीन बज रहे है, अब तक नहीं आयी थी तो अब क्या आती !”
“ये फैसला करना तेरा काम है ?”
“म-मैं.....वापिस चला जाता हूं ।”
“अब इधर ही मर । जा दफा हो ।”
भाटे यूं वहां से भागा जैसे वापिस घसीट लिया जा सकता हो ।
***
किसी ने नीलेश को झिंझोड़ कर जगाया ।
उसने हड़बड़ा कर आंखे खोलीं ।
वही आदमी उसके सिरहाने खड़ा था ।
“चलो ।” - वो बोला ।
“कहां ?”
“मुम्बई से तुम्हारे साहब लोग आये गये हैं । अधिकारी साहब के कमरे में तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं ।”
नीलेश ने कलाई घड़ी पर निगाह डाली ।
पौने पांच बजे थे ।
“आ भी गये !” - उसके मुंह से निकला ।
“हैलीकाप्टर पर आये ।”
“ओह ! तभी !”
“उधर बाथरूम है ।”
नीलेश ने सहमति में सिर हिलाया ।
पांच मिनट उसने साहब लोगों के सामने पेश होने लायक हुलिया सुधारने में लगाये ।
वो आदमी उसे वापिस डिप्टी कमांडेंट के आफिस में छोड़ कर गया ।
वहां आफिस टेबल के पीछे अब एक की जगह दो एग्जीक्यूटिव चेयर लगी हुई थीं जिन पर जायंट कमिश्नर बोमन मोरावाला और डीसीपी नितिन पाटिल मौजूद थे ।
नीलेश ने अटेंशन होकर सैल्यूट मारा ।
“ऐट ईज, गोखले !” - डीसीपी बोला ।
नीलेश विश्राम की मुद्रा में आ गया ।
“प्लीज, टेक ए सीट ।”
अदब से तन कर वो एक विजिटर्स पर बैठा ।
“गोखले” - जायंट कमिश्नर बोला - “यू हैव डन ए गुड जॉब । वुई हर्टीली कमैंड इट ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“बहुत अच्छा, बहुत तारीफ के काबिल काम किया है तुमने । अधिकारी साहब की मार्फत जो सीडी तुमने भिजवाई थी, वो तो बहुत मार्के की थी । हौसले का, जानजोखम का काम किया तुमने लेकिन कामयाबी से किया । हमने तुम पर जो भरोसा जताया था, तुमने उस पर खरा उतर कर दिखाया, ये हम दिल से कुबूल करते हैं ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“लेकिन तुम अब हमारे काम के आदमी नहीं ।”
नीलेश जैसे आसमान से गिरा ।
“जी !” - भौंचक्का सा वो बोला ।
“ऐज अवर सीक्रेट एजेंट यू आर फिनिश्ड ।”
“लेकिन, सर....”
“क्योंकि” - डीसीपी बोला - “एक्सपोज हो चुके हो ।”
“जी !”
“तुम्हारी खुद की रिपोर्ट इस बात की तरफ मजबूत इशारा है ।”
“मैं...मैं समझा नहीं, सर !”
“क्यों नहीं समझे ? बात साफ है । यहां आइलैंड पर जो नौकरी तुम्हारा कवर थी, उससे तुम्हें डिसमिस कर दिया गया है । ये इस बात का अपने आप में सबूत है कि तुम एक्सपोज हो चुके हो ।”
“युअर कवर हैज बिन ब्लोन ।” - जायंट कमिश्नर बोला - “अब तुम्हारा इस आइलैंड पर बने रहना दुश्मनों को खटकेगा, शक की वजह बनेगा ।”
“सर, मैं नयी नौकरी तलाश कर सकता हूं ।”
“नहीं चलेगा । ये काम्पैक्ट जगह है । पक्के बाशिंदों में यहां का हर कोई हर किसी को जानता है । हर किसी को खबर होगी कि कोंसिका क्लब की नौकरी से तुम्हें डिसमिस किया गया था....”
“यू डिड नाट रिजाइन ।” - डिसीपी बोला - “यू वर फायर्ड ।”
“नई नौकरी में” - जायंट कमिश्नर बोला - “पहला सवाल यही होगा कि वहां से क्यों निकाले गये ! कोई तसल्लीबख्श जवाब नहीं दे पाओंगे तो कैसे मिलेगी नयी नौकरी !”
“सर, गुस्ताखी माफ, आप समझते हैं कि मुझे नौकरी से इसलिये निकाला गया क्योंकि एम्पालायर मेरी असलियत से वाकिफ हो गया था ?”
“ऐसा नहीं है ?”
“मेरे खयाल से तो नहीं है ।”
“तुम्हारे खयाल की वजह ?”
“सर, अगर उन्हें पता लग गया होता कि उनके बीच मैं पुलिस का भेदिया था तो मेरी लाश समुद्र में तैरती पायी जाती ।”
“ऐसा अभी भी हो सकता है ।” - डीसीपी बोला - “महज वक्त की बात है । इसलिये भी हम समझते हैं कि अब तुम्हारी भलाई यहां से कूच कर जाने में है ।”
“सर, मेरा काम अभी अधूरा है, मैं इसे बीच में नहीं छोड़ सकता ।”
“अब आगे नहीं बढ़ा सकोगे ।”
“मुझे बढ़ाना पड़ेगा । जिस राह पर मैं निकला हूं उसके सिरे पर मुझे पहुंचना पडे़गा । मेरे भविष्य का सवाल है, सर । मेरी आइंदा जिंदगी का दारोमदार है मेरे यहां कामयाब होकर दिखाने पर । मैंने अपनी वर्दी वापिस पानी है, अपने सितारे वापिस हासिल करने हैं, उस कलंक को धोना है जो मेरे पर लगा है । ये मिशन आपके लिये मिशन है, सर, मेरे लिये प्रायश्चित है । इस स्टेज पर आइलैंड से कूच करना प्रायश्चित का मौका खोना होगा ।”
“न कूच करना खुदकुशी करना होगा ।”
“गोखले” - जायंट कमिश्नर बोला - “हमें तुम्हारे जज्बात की कद्र है लेकिन मौजूदा प्रोजेक्ट में क्योंकि तुम हमारे सब्जेक्ट हो इसलिये तुम्हारा वैलफेयर हमारी जिम्मेदारी है । यहां जो खतरा हम समझते हैं कि तुम्हारे सिर पर मंडरा रहा है, उससे वक्त रहते तुम्हें आगाह न करने का मतलब होगा हमने अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोताही की, जानबूझ कर तुम्हें बलि का बकरा बन जाने दिया, जानबूझ कर तुम्हारे मुमकिन अंजाम से हमने आंखे मूंद लीं । हम ऐसा नहीं कर सकते ।”
“सर, जब मुझे पहले ही बोल दिया गया था कि काम शेर की मांद में कदम रखने जैसा था तो आपकी क्या जिम्मेदारी बनती है ?”
दोनों उच्चाधिकारी एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।
“और अभी मैंने शेर की मांद में कदम रखा है, शेर से रूबरू होने का कोई इत्तफाक अभी तक नहीं हुआ है ।”
“गोखले” - डीसीपी बोला - “फोरवार्न्ड इस फोरआर्म्ड !”
“मैं हो गया न फोरवार्न्ड ! अब फिलहाल आगे जैसा चलता है, चलने दीजिये ।”
“चलनें दे ?”
“जी हां । कृपा होगी । और एक बात बीच में रह गयी थी, उसको कहने का मुझे मौका दीजिये ।”
“कौन सी बात ?”
“सर, आपने कहा कि मुझे नौकरी से इसलिये निकाला गया कि मैं एक्सपोज हो चुका हूं, मेरी हकीकत खुल चुकी है कि मैं अंडरकवर एजेंट हूं । लेकिन असल बात ये नहीं है ।”
“असल बात क्या है ?”
“मेरे एम्पालायर को-गोपाल पुजारा को-मेरे वहां की बारबाला रोमिला सावंत से मेल जोल से ऐतराज था । उसने इस बाबत मुझे वार्न भी किया था । फिर और भी ज्यादा ऐतराज उसे श्यामला मोकाशी से मेरे बढ़ते ताल्लुकात से हुआ जो कि यहां के म्यूनीसिपल प्रेसीडेंट बाबूराव मोकाशी की बेटी है और बाबूराव मोकाशी बाई प्राक्सी कोंसिका क्लब का मालिक है । इस लिहाज से बारमैन गोपाल पुजारा-जो कि खुद को मालिक बताता है-उसका मुलाजिम हुआ । पुजारा ने मालिक की बेटी से मेरे बढ़ते ताल्लुकात देखे तो मुझे उनसे बाज आने के लिये चेता कर एक तरह से मालिक से वफादारी दिखाई । मैंने उसकी चेतावनी पर अमल करने की कोई नीयत न दिखाई तो उसने खडे़ पैर मुझे नौकरी से निकाल बाहर किया । सर, मेरे खयाल से तो ये वजह है मेरी बर्खास्तगी की, न कि ये कि मेरी पोल खुल गयी है, मेर पर्दाफाश हो गया है ।”
दोनों उच्चाधिकारियों की फिर निगाह मिली ।
“सो” - फिर जायंट कमिश्नर एकाएक बदले स्वर में बोला - “यू आर ए लेडीज मैन हेयर !”
“अपने काम की जगह” - डीसीपी बोला - “अपने मिशन की जगह आशिकी पर जोर है !”
“नो सच थिंग, सर” - नीलेश व्यग्र भाव से बोला - “नो सच थिंग । आई अश्योर यू दिस टू इज आल पार्ट आफ माई जॉब ।”
“एक्सप्लेन !”
“सर, मेरी पिछली रिपोर्ट की कितनी ही बातें ऐसी हैं जो मैंने जाने अनजाने रोमिला सावंत से निकलवाई और इस संदर्भ में अभी आगे मुझे उससे और भी ज्यादा उम्मीदें हैं । रोमिला फिलहाल गायब है, मेरी पहुंच से बाहर है, लेकिन देर सबेर तो मिलेगी ! तब उससे मैं अभी और भी बहुत कुछ जानूंगा । श्यामला मोकाशी को भी मैं सिर्फ और सिर्फ इसलिये कल्टीवेट कर रहा हूं क्योंकि वो यहां के बड़े महंत बाबूराव मोकाशी की बेटी है जो कि करप्ट थानेदार अनिल महाबोले और गोवानी रैकेटियर फ्रांसिस मैग्नारो के साथ हैण्ड इन ग्लव है । सर, मैं मोकाशी की बेटी को मोकाशी तक पहुंचने की सीढ़ी बनाना चाहता हूं, लड़की में बस मेरी इतनी ही दिलचस्पी है ।”
“वैरी क्लैवर आफ यू ! वैरी क्लैवर आफ यू इनडीड !”
“फैमिनिन अट्रैक्शन को फैटल अट्रैक्शन बोला गया है ।” - जायंट कमिश्नर बोला - “रास्ता न भूल जाना !”
“सर, रास्ता अभी बरकरार है तो हरगिज नहीं भूलूंगा । आप बताइये, बरकरार है ?”
“हूं । दैट्स क्वाइट ए क्वेश्वन ।”
“सर, इजाजत दें तो एक सवाल पूछूं ?”
“पूछो ।”
“अगर मैं नहीं तो मिशन खत्म ? या मेरी जगह कोई दूसरा आदमी लेगा ?”
“पेचीदा सवाल है । नौकरी से बर्खास्तगी की जो आल्टरनेट वजह तुमने सुझाई है, उसकी रू में पेचीदा सवाल है । अगर वजह वो है जो हमें दिखाई देती है - ये कि तुम एक्सपोज हो चुके हो - तो दूसरा आदमी कुछ नहीं कर पायेगा । वो लोग खबरदार हो चुके होंगे । तुम्हारा कवर दो हफ्ते चल गया, उसका दो दिन नहीं चलेगा । नो, युअर रिप्लेसमेंट इज आउट ।”
“तो फिर मैं.....”
“अभी फाइनल बात सुनो !”
“सर !”
“जो कुछ तुमने अब तक किया है, वो कभी कम नहीं है और वक्त आने पर उसका रिवार्ड तुम्हें जरूर मिलेगा...”
“ये अक्लमंद को इशारा है, इंस्पेक्टर गोखले !” - डीसीपी बोला - “तुम समझ सकते हो कि कौन से रिवार्ड की बात हो रही है ।”
“सर, आपने मुझे इंस्पेक्टर गोखले कहा” - नीलेश भर्राये कण्ठ से बोला - “तो रिवार्ड तो मुझ मिल भी गया ।”
डीसीपी मुस्कराया ।
“बट दैट्स अनदर स्टोरी ।” - वार्तालाप का सूत्र फिर अपने हाथ में लेता जायंट कमिश्नर बोला - “मैं ये कह रहा था कि जो कुछ तुमने अब तक किया है, वो भी कम नहीं है । तुम्हारी रिपोर्ट कहती है कि कोंसिका क्लब आइलैंड पर नॉरकॉटिक्स ट्रेड की ओट है । अगर ये बात सच निकली तो जाहिर है कि रेड होने पर वहां से ड्रग्स का जखीरा बरामद होगा । अब तुम ये भी हिंट दे रहे हो कि कोंसिका क्लब का असली मालिक म्यूनीसिपल प्रेसीडेंट बाबूराव मोकाशी है और गोपाल पुजारा महज उसका फ्रंट है । अगर हम मोकाशी को कोंसिका क्लब का असली मालिक साबित कर पाये तो नॉरकॉटिक्स वाले एक ऑफेंस के लिये ही सात साल के लिये नपेगा । इंस्पेक्टर अनिल महाबोले की मीनाक्षी कदम को छीलने की वाहियात करतूत को बाजरिया विक्टिम-मीनाक्षी कदम-साबित करने की स्थिति में हम हैं लेकिन वो कोई मेजर आफेंस नहीं है । उससे वो सिर्फ सस्पेंड हो सकता है और डिपार्टमेंटल इंक्वायरी का शिकार हो सकता है । कुछ साबित हो भी गया तो छोटी मोटी सजा होगी, बड़ी हद नौकरी से जायेगा जो कि कतई काफी नहीं । वो लम्बा नपे, उसके लिये या तो वो नॉरकॉटिक्स ट्रेड में मोकाशी का जोडी़दार साबित होना चाहिये या उसका अपना कोई इंडिविजुअल, इंडीपेंडेंट मेजर क्राइम रोशनी में आना चाहिये । इस सिलसिले में वो लड़की रोमिला सावंत-जो कि तुम कहते हो कि गायब है-हमारे बहुत काम आ सकती है । उस लड़की की बरामदी जरूरी है । उससे हासिल जानकारी महाबोले का वाटरलू बन सकती है ।”
“वो मेरे काबू में थी, बैड लक ही समझिये कि हाथ से निकल गयी ।”
“फिर हाथ आ जायेगी लेकिन ऐसा जल्दी हो, इसके लिये एक्स्ट्रा एफर्ट करना पडे़गा ।”
“एक्स्ट्रा एफर्ट !”
“मैं डिप्टी कमांडेंट अधिकारी से बात करूंगा । ऐज ऐ स्पैशल केस, कोस्ट गार्ड्स उसकी तलाश में हमारी मदद करेंगे ।”
“ओह !”
“हमारे टॉप के करप्ट कॉप महाबोले के सारे मातहत भी करप्ट हैं, इस बात को हमने अपनी एडवांटेज में यूज करना है । एक बार महाबोले की गर्दन हमारे हाथ में आ गयी तो देखना उसके वफादार मातहत ही उसके खिलाफ बढ़ बढ़ के बोलने लगेंगे ।”
नीलेश ने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया ।
“बाकी इस बात का हमें रंज है कि ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ के बारे में तुम कुछ न कर सके ।”
“सर, उसके सैकंड फ्लोर पर चलते जुआघर की खुफिया तसवींरे खींचने के लिये वहां एंट्री दरकार है जो कि मेरी कोंसिका क्लब के बारमैन-कम-बाउंसर की हैसियत में मुमकिन नहीं थी । बतौर कस्टमर मै वहां दाखिला नहीं पा सकता था क्योंकि हर कोई मुझे पहचानता है । वैसे एक स्ट्रेटेजी मेरे दिमाग में है लेकिन उसके लिये औकात दिखानी होगी । और औकात बनाने के लिये हैल्प की जरूरत है जिसकी बाबत मैं आपको दरख्वास्त भेजने ही वाला था ।”
“अब बोलो । कैसी दरख्वास्त ?”
“में भेष बदल कर, सम्पन्न टूरिस्ट बन कर वहां जा सकता हूं । इसके लिये किसी एक्सपर्ट मेकअप मैन की सर्विस हासिल होनी चाहिये और जुआघर में उड़ाने के लिये रोकड़ा होना चाहिये ।”
“पहला काम आसान है । दूसरे के लिये कमिश्नर साहब से बात करनी पडे़गी । पुलिस हैडक्वार्टर में ऐसे कोई फंड्स उपलब्ध नहीं होते । कैसे इंतजाम होगा, कमिश्नर साहब बोलेंगे । अभी वेट करो ।”
“वेट करू ? यानी मुझे विदड्रा नहीं किया जा रहा ?”
“तुम्हारी इस एक्सप्लेनेशन की रू में, कि नौकरी से तुम्हारी डिसमिसल की वजह तुम्हारा राजफाश हो गया होना नहीं है, हम तुम्हें थोड़ी और ढ़ील देने का मन बना रहे हैं ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“लेकिन सावधान ! सूली पर तुम्हारी जान है !”
“आई अंडरस्टैण्ड, सर । ऐज डीसीपी साहब सैड, फोरवार्न्ड इज फोरआर्म्ड, आई विल बी एक्सट्रीमली केयरफुल ।”
“गुड ! वुई विश यू आल दि बैस्ट ।”
वार्तालाप वहीं समाप्त हो गया ।
***
थाने के अपने कमरे में बैठे महाबोले ने सामाने पड़ा फोन उठाया और उसे कान से लगा कर यूं बोलने लगा जैसे किसी वार्तालाप में शामिल हो, कुछ सुन रहा हो, कुछ कह रहा हो, कुछ पूछ रहा हो ।
थाने में एक ही फोन था जो कि बाहर ड्यूटी आफिसर की टेबल पर था और उसी की पैरेलल लाइन उसके पास थी । फोन पर वो जानबूझ कर ऊंचा बोल रहा था ताकि आवाज बगल के कमरे तक पहुंच पाती जहां कि हवलदार खत्री, सिपाही महाले और सिपाही भुजबल तब भी मौजूद थे और अब उनमें भाटे भी जा मिला था ।
आखिर उसने जानबूझ कर आवाज करते हुए रिसीवर क्रेडल पर पटका और महाले को आवाज लगाई ।
लपकता हुआ सिपाही अनंत राम महाले वहां पेश हुआ ।
“अरे, कोई जना फोन भी सुना करो !” - महाबोले झल्लाया ।
“फोन !” - महाले सकपकाया - “कब बजा ?”
“साली ताश से फुरसत हो तो पता लगे न !”
“ताश ! वो तो कब की बंद है !”
“तो सो रहे होगे सबके सब । अभी फोन बजा, किसी ने न उठाया तो इधर मैंने उठाया....”
“साब जी, हमें बिल्कुल घंटी सुनाई न दी....”
“अब छोड़ वो बात । मैंने सुन लिया न ! एक ट्रक वाले का फोन था जो कि रूट फिफ्टीन से गुजर रहा था । बोलता है उसने नाले की साइड की रेलिंग से पार ढ़लान पर एक औरत की लाश पड़ी देखी....”
“ऐसीच पिनक में होगा कोई साला ।”
“नहीं होगा तो ? जो उसने रिपोर्ट किया, उस पर हम कान मे मक्खी उड़ायेंगे ?”
“अरे, नहीं साब जी ।”
“जा के देखो । तफ्तीश करो ।”
“साब जी, रूट फिफ्टीन तो बहुत लम्बी सड़क है.....”
“ठीक ! ठीक ! उधर एक सेलर्स बार है, मालूम ?”
“मालूम ।”
“उससे कोई आधा किलोमीटर आबादी की ओर बोला वो । जहां ‘डीप कर्व अहेड । ड्राइव स्लो’ का बोर्ड लगा है, वहां ।”
“मैं समझ गया ।”
“जा के पता करो कि केस है या सच में ही कोई पिनक में बोला ।”
“मैं अकेला, साब जी.....”
“अरे, हवलदार खत्री साथ जायेगा न ! आज गश्त पर भी नहीं निकला कुछ तो करे कम्बख्त !”
“अभी, साब जी ।”
“बोले तो भाटे को भी ले के जाओ । मेरी तरफ से खास बोलना ये उसकी सजा ।”
“ठीक !”
महाले लपकता हुआ वहां से रूखसत हुआ ।
दो मिनट बाद महाबोले को बाहर से जीप के रवाना होने की आवाज आयी ।
एक घंटे में जीप वापिस लौटी ।
हवलदार जगन खत्री ने महाबोले के कमरे में कदम रखा ।
“क्या हुआ ?” - महाबोले सहज भाव से बोला - “होक्स काल निकली ?”
“नहीं, सर जी” - खत्री उत्तेजित भाव से बोला - “लाश मिली । वैसे ही मिली जैसे ट्रक ड्राइवर आपको बोला । वहीं मिली जहां वो बोला ।”
“कोई टूरिस्ट ! कोई एक्सीडेंट.....”
“टूरिस्ट नहीं, सर जी, जानी पहचानी लड़की ।”
“कौन ?”
“नाम सुनेंगे तो हैरान हो जायेंगे ।”
“कर हैरान मेरे को !”
“रोमिला सावंत ।”
“रोमिला !” - खत्री को दिखाने के लिये महाबोले कुर्सी पर सीधा हो कर बैठा - “पुजारा की बारबाला !”
“वही ।”
“ठीक से पहचाना ?”
“सर जी, मैं ठीक से नहीं पहचानूंगा तो कौन पहचानेगा ! रोज तो वास्ता पड़ता था ।”
“पक्की बात, मरी पड़ी थी ? बेहोश तो नहीं थी ?”
“अरे, नहीं, सर जी । मैंने क्या मुर्दा पहली बार देखा ! लट्ठ की तरह अकड़ी पड़ी थी ।”
“देवा ! तभी रात को घर न लौटी ।”
“जब रूट फिफ्टीन पर मरी पड़ी थी तो कैसे घर लौटती !”
“ठीक !”
“महाले और भाटे उधर ही हैं । मैं आपको खबर करने आया ।”
“किसी चीज को छुआ तो नहीं ? मौकायवारदात के साथ कोई छेड़ाखानी तो नहीं की ?”
“अरे, नहीं, सर जी । सड़क के पास रेलिंग के पार उसकी एक सैंडल लुढ़की पड़ी थी, उस तक को नहीं छेड़ा ।”
“गुड !”
“लगता है, रेलिंग के साथ साथ चल रही थी कि पांव फिसल गया । गिरी तो रेलिंग के नीचे से होती-या ऊपर से पलट कर-ढ़लान पर लुढ़कती चली गयी । सिर एक चट्टान से टकराया तो....मगज बाहर । बुरी हुई बेचारी के साथ ।”
“अरे, ये गारंटी है न कि है वो अपनी रोमिला ही ?”
“सर जी, शक की कोई गुंजायश नहीं । मैं रोमिला को घुप्प अंधेरे में पहचान सकता हूं ।”
“बुरा हुआ । लेकिन इतनी दूर रूट फिफ्टीन पर कर क्या रही थी ? वो भी पैदल चलती ?”
“क्या पता ! बोले तो मौत ने जिधर बुलाना था, बुला लिया ।”
“तेरे को पक्की है एक्सीडेंट का केस है ?”
“नहीं, सर जी, पक्की कैसे होगी ?”
“तो एक्सीडेंट क्यों बोला ?”
“क्योंकि लगता था ऐसा । मेरा अंदाजा है कि पांव फिसला.....”
“अंदाजों से पुलिस का कारोबार चलता है ?”
“अब जो मेरे को लगा, मैंने बोल दिया ।”
“पुलिस को हर सम्भावना पर विचार करना पड़ता है । क्या पता उसे धक्का दिया गया हो !”
“क्या बोला, सर जी ?”
“कोई लुटेरा टकरा गया हो ! अकेली जान कर लूट लिया हो ! फिर अपनी करतूत छुपाने के लिये उसे रेलिंग के पार ढ़लान पर धक्का दे दिया हो ! या खोपड़ी पहले फोड़ी हो और धक्का बाद में दिया हो !”
“लेकिन, सर जी, वहां चट्टान पर खून....”
“खुली खोपड़ी भी चट्टान से टकरा सकती है । क्या !”
“बरोबर, सर जी ।”
“बड़ी हद ये हुआ होगा कि चट्टान से टकरा कर और खुल गयी होगी और एक निगाह में यही जान पड़ता होगा कि चट्टान से टकरा कर खुली ।”
“ब्रीलिंयट, सर जी । मैं आपके दिमाग से क्यों नहीं सोच पाता ?”
“मुझे ये किसी नशेबाज का काम जान पड़ता है जिसकी नशे तलब ने अकेली लड़की पर हमला करके उसका माल-जेवर वगैरह-हथियाने के लिये उसे उकसाया । रात को जब मैं गश्त पर निकला था” - महाबोले ने ड्रामाई अंदाज से खत्री की तरफ आंखे तरेंरी - “जिस पर कि तेरे को होना चाहिये था....”
“मैं सारी बोलता हूं, सर जी, लेकिन वजह” - खत्री ने हौले से अपनी आंख के नीचे तब भी मौजूद गूमड़ को छुआ - “आपको मालूम है.....”
“ठीक ! ठीक ! साले दो भीङू गये फिर भी पिट के आये । मैने रोनी डिसूजा की भी सूजी थूंथ देखी है ।”
“पीट के भी तो आये, सर जी ! काम करके आये ! अभी और करो अगरचे कि विघ्न न आ गया होता ।”
“बस कर । मुझे बात भुला दी । क्या कह रहा था मैं ?”
“आप कह रहे थे.....”
“हां । मैं कह रहा था कि रात जब मै गश्त पर निकला था तो एक फुल टुन्न भीडू मेरी निगाह में आया था.....”
“कहां ?”
“सेलर्स बार के पास ।”
“अरे ! फिर तो, सर जी, यूं कहिये कि मौकायवारदात के पास ।”
“उसके बाद वही बेवड़ा मेरे को जमशेद जी पार्क के एक बैंच पर बैठा फिर दिखाई दिया था और मुझे साफ लगा था कि छुप छुप कर सीधे बोतल से ही घूंट लगा रहा था ।”
“माल हाथ आ गया तो बोतल खरीद ली ! साला जश्न मनाने लग गया !”
“मुफ्त के माल की अपनी लज्जत होती है ।”
“पण अब तो साला वहां से कब का नक्की कर गया होगा !”
“नीट पी रहा था ! क्या पता बोतल खींच गया हो !”
“आपका मतलब है, नशे में अभी भी वहीं पड़ा होगा !”
“हो सकता है । पता करने में क्या हर्ज है ?”
“बरोबर बोला, सर जी । बोतल का नशा थोड़े में तो नहीं उतर जाता !”
“ठीक ! मैं सब-इंस्पेक्टर जोशी को बुलाता हूं और रोमिला का केस उसको सौंपता हूं-वो कत्ल के केस की ड्रिल जानता समझता है-और खुद तुम्हारे साथ चलता हूं क्योंकि तुम्हें वो जगह तलाश करने में दिक्कत हो सकती है जहां मैंने उस बेवडे़ को देखा था ।”
“ये बढि़या रहेगा, सर जी ।”
जीप पर सवार थानेदार और हवलदार जमशेद जी पार्क पहुंचे ।
तब वातावरण में भोर का उजाला फैलना अभी बस शुरू ही हुआ था ।
“वो रहा !” - महाबोले तनिक उत्तेजित भाव से बोला ।
ड्राइविंग सीट पर बैठे हवलदार खत्री ने तत्काल जीप को ब्रेक लगाई ।
“कहां ?” - वो बोला ।
“वो, जो उधर बैंच पर लेटा हुआ है । साला अभी भी टुन्न है । नहीं जानता कि सवेरा हो गया है ।”
“अच्छा ही है, सर जी, वर्ना उठ के चल दिया होता ।”
“चल !”
दोनों जीप से उतर कर बेवडे़ की तरफ लपके । वो बैंच के करीब पहुंचे तो हवलदार का पांव नीचे पड़ी बोतल से टकराया और तो गिरते गिरते बचा । गिर गया होता तो जरूर बैंच पर बेसुध पड़े बेवडे़ पर जा कर गिरता । उसके मुंह से एक भद्दी सी गाली निकली और वो सम्भल कर सीधा हुआ ।
महाबोले बेवडे़ के सिर पर पहुंचा । उसने झुक कर उसके कोट का कालर थामा और उसे इतनी जोर का झटका दिया कि वो बैंच से नीचे जा कर गिरा होता अगरचे कि महाबोले ने उसका कालर मजबूती से न थामा होता । उसने घबरा कर आंखे खोलीं तो प्रेत की तरह सामने आन खडे़ हुए दो वर्दीधारी पुलिसिये उसे दिखाई दिये ।
उसकी घबराइट गहन आतंक में बदल गयी ।
महाबोले ने उसे जबरन उठा कर उसके पैरों पर खड़ा किया ।
हवलदार खत्री ने सामने आकर उसके सिर से पांव तक उस पर निगाह दौड़ाई ।
नहीं, ये आदमी कातिल नहीं हों सकता - उसके दिल ने गवाही दी - ये तो मक्खी मारने के काबिल नहीं था । वो पिलपिलाया हुआ, पिद्दी सा अधेड़ आदमी था जो खुद ही अधमरा जान पड़ता था, क्या वो किसी को मारता ! रोमिला उससे कद में निकलती हुई, उससे कहीं मजबूत, हट्टी कट्टी लड़की थी, वो तो उस जैसे दो पर भारी पड़ सकती थी ।
महाबोले ने बेवडे़ को हवलदार की तरफ धक्का दिया ।
खत्री ने उसे मजबूती से बांह से थामा और उसे जबरन चलाता परे खड़ी जीप की तरफ ले चला ।
“अभी नहीं ! अभी नहीं, ईडियट ! - महाबोले चेतावनीभरे स्वर में बोला - “इसके पास कोई हथियार हो सकता है । पहले तलाशी ले इसकी । कैसा हवलदार है जो इतनी सी बात नहीं समझता !”
“सारी बोलता हूं, सर जी । खता माफ !”
उसने फिरकी की तरह बेवडे़ को अपनी तरफ घुमाया ।
“कोई हथियार है ?” - वो कड़क कर बोला - “कांटी ! चकरी ! चप्पल ! कैसेट !”
बेवड़ा होंठों में कुछ बुदबुदाया ।
“नहीं समझा ।” - महाबोले बोला - “वो जुबान बोल, जो इसके पल्ले पडे़ ।”
खत्री ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अबे, चाकू है ?” - उसने बेवडे़ को बांह पकड़ के झिंझोड़ा - “गन है ? पिस्टल है ? क्या है ?”
वो जोर जोर से इंकार में सिर हिलाने लगा ।
“हाथ ऊपर ! मेरे को तलाशी लेने का ।”
“पण मैं क्या किया, साहेब ?” - बेवडे़ ने फरियाद की - “क्यों मेरे साथ ऐसे पेश आते हो ?”
“ज्यास्ती बात नहीं । हाथ ऊपर करता है या मैं दोनों को तोड़ कर तेरी जेब में डाले ?”
उसने तत्काल दोनों हाथ सिर से ऊंचे किये ।
खत्री ने तलाशी लेना शुरू किया ।
ज्यों ज्यों तलाशी का नतीजा सामने आता गया, उसके नेत्र फैलते गये ।
टाप्स ! नैकलेस ! अंगूठी ! ब्रेसलेट ! चूड़िया !
“मै इन जेवरों को पहचानता हूं” - महाबोले जानबूझकर अपने स्वर में उत्तेजना घोलता बोला - “सब रोमिला के हैं ।”
क्यों न पहचानता ! हर तीसरे दिन उसके साथ सोने पहुंच जाता था ।
घड़ी !
“इसकी बैक में देख ! रोमिला का नाम गुदा होगा !”
उससे ज्यादा कौन इस तथ्य से वाकिफ होता ! फ्री राइड अपना हक समझने वाला इंस्पेक्टर एक बार नशे में इतना जज्बाती हो गया था कि रोमिला को घड़ी गिफ्ट कर बैठा था ।
“है, सर जी ।” - खत्री बोला ।
“उसी की है ।”
फिर कायन पर्स बरामद हुआ ।
“इसको तो” - महाबोले बोला - “मैं पक्का पहचानता हूं कि रोमिला का है । लेकिन इसे वो अपने हैण्डबैग में रखती थी । पूछ, हैण्डबैग का क्या किया ?”
“हैण्डबैग का क्या किया, साले ?”
“क-कौन सा.....कौन सा हैण्डबैग ?” - बद्हवास बेवड़ा कराहता सा बोला ।
“जिसमें ये पर्स था !”
“म-मेरे को किसी हैण्डबैग की खबर नहीं । किसी प-पर्स की खबर नहीं ।”
“पर्स अभी तेरी जेब से बरामद हुआ कि नहीं हुआ ?”
“मेरे को नहीं मालूम ये मेरी जेब में कैसे पहुंचा !”
“तूने पहुंचाया । जैसे जेवर पहुंचाये ! घड़ी पहुंचाई !”
“नहीं ! नहीं !”
“साले ! इतना कीमती सामान कोई दूसरा तेरी जेब में रख गया ? या जादू के जोर से आ गया ?”
“मेरे को नहीं मालूम, साहेब ।”
“तूने कत्ल किया । जेवरात की खातिर, कीमती घड़ी की खातिर कत्ल किया । हैण्डबैग से कोई कीमती सामान न निकला इसलिये उसे कहीं नक्की कर दिया । कायन पर्स में नोट थे, इसलिये पास रख लिया । फिर अपनी कामयाबी का जश्न मनाने के लिये बोतल खरीदी और साला खाली करके ही दम लिया ।”
“नहीं, नहीं । मैंने ऐसा कुछ नहीं किया । मैं तो एक मामूली....”
“थाने ले के चलो ।” - महाबोले ने आदेश दिया ।
खत्री ने उसे घसीट कर जीप में डाला ।
फिर लौट कर घास में लुढ़की खाली बोतल भी कब्जाई जो कि बेवडे़ के खिलाफ सबूत हो सकती थी । कैसे सबूत हो सकती थी, किस बात का सबूत हो सकती थी, इसका उसे कोई अंदाजा नहीं था ।
जीप थाने वापिस लौट चली ।
महाबोले को इस बात की खुशी थी कि जिस शख्स को रात के अंधेरे में उसने अपना शिकार बनाया था, वो दिन के उजाले में एक कमजोर, साधनहीन, पिलपिलाया हुआ आदमी निकला था जिससे कत्ल का कनफेशन हासिल कर लेना उसके बायें हाथ का खेल होता ।
“साहेब, मैंने किसी का कत्ल नहीं किया ।” - रास्ते में बेवड़ा गिड़गिड़ाता रहा, फरियाद करता रहा - “मैंने आज तक मक्खी नहीं मारी ।”
कोई जवाब न मिला ।
“साहेब, इतना तो बोलो मैंने किसका कत्ल किया ! कब किया ! कहां किया !”
“तेरे को कुछ याद नहीं ? - महाबोले उसे घूर कर देखता बोला ।
“मेरे को कुछ याद नहीं क्योंकि मैंने कुछ किया नहीं ।”
“तू रात को फुल नशे में था क्योंकि पूरी बोतल डकार गया, अभी तक भी तेरा नशा उतरा नहीं है, रात को तूने नशे में जो कारनामा किया, उसको अब भूल गया होना क्या बड़ी बात है !”
“साहेब, जब मैंने कुछ किया ही नहीं...”
“चुप बैठ ! वर्ना देता हूं एक लाफा !”
वो सहम कर चुप हो गया ।
***
ये नीलेश गोखले के लिये भारी इज्जत की बात थी कि मुम्बई पुलिस के टॉप ब्रास ने उसे चाय के लिये रूकने को कहा था ।
वो जायंट कमिश्नर बोमन मोरावाला और डीसीपी नितिन पाटिल के साथ चाय शेयर कर रहा था जबकि डिप्टी कमाडेंट हेमंत अधिकारी वहां पहुंचा ।
सबने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा ।
“सारी टु डिस्टर्ब यू, जंटलमैन” - वो बोला - “लेकिन खास खबर है ।”
“क्या ?” - जायंट कमिश्नर बोला ।
“वे लड़की - रोमिला सावंत, जिसकी बाबत मुझे हिदायत हुई थी-बरामद हुई है ।”
“दैट्स गुड न्यूज !”
“नो, सर, दैट्स नाट गुड न्यूज । रूट फिफ्टीन पर मरी पड़ी पाई गई है । अभी अभी पुलिस ने लाश बरामद की है ।”
“गॉड ! दैट्स टू बैड !”
“कैसे मरी” - डीसीपी पाटिल ने पूछा - “मालूम पड़ा ?”
“अभी नहीं ।”
“ऐनी फाउल प्ले ?”
“अभी कुछ नहीं कहा जा सकता ।”
“एक्सक्यूज मी, सर ।” - नीलेश से न रहा गया, वो व्यग्र भाव से बोला - “लाश की पक्की शिनाख्त हुई है ?”
“हुई है ।” - अधिकारी बोला - “शक की कोई गुंजायश नहीं । मरने वाली रोमिला सावंत ही है । उसके एम्पलायर गोपाल पुजारा ने तसदीक की है । उसकी फैलो बारगर्ल यासमीन मिर्जा ने तसदीक की है । खुद एसएचओ महाबोले भी उससे वाकिफ था, सूरत से पहचानता था ।”
“ओह ! सर” - वो डीसीपी की तरफ घूमा - “मे आई बी एक्सक्यूज्ड ।”
“क्या इरादा है ?” - डीसीपी पाटिल बोला ।
“सर, मालूम होना चाहिये कि वो स्वाभाविक मौत मरी, दुर्घटनावश मरी, खुदकुशी की या उसका कत्ल हुआ । उसकी जिंदगी में उससे बात करने वाला मैं आखिरी शख्स था । वो अपने सिर पर खतरा मंडराता महसूस करती थी जिसकी वजह से छुपती फिर रही थी । फोन पर साफ साफ घबराई हुई, बल्कि खौफजदा लग रही थी । साफ बोली थी कि आइलैंड से कूच कर जाना चाहती थी । और ऐसा माली इमदाद के बिना मुमकिन नहीं था जो उसे मैंने पहुंचाने का वादा किया था । वो रूट फिफ्टीन के करीब के ही एक बार में मेरा इंतजार कर रही थी और मैं फौरन उसके पास पहुंचने वाला था । किन्हीं वजुहात से वक्त रहते मैं वहां न पहुंच सका, तब तक बार बंद हो गया और मजबूरन उसे बार से बाहर निकलना पड़ा । अब आप ही सोचिए, ऐसे में कैसे वो स्वाभाविक मौत मर सकती थी और कैसे खुदकुशी कर सकती थी जबकि उसे मेरे पर भरोसा था, इतना मान था कि मिल जाता तो, मैं उसकी हर मुमकिन मदद करता ?”
“नो, नेचुरल डैथ इज आउट । सुइसाइड टू इज आउट ।”
“फिर बार क्लोज हुआ था, उसकी आस नहीं टूट गयी थी । मुझे निश्चित तौर पर मालूम है-खुद बार के मालिक ने इस बात को कनफर्म किया था-कि बार बंद हो जाने के बाद वो बार के बाहर अकेली खड़ी मेरा इंतजार करती रही थी । मैंने उसे मुश्किल से सात-आठ मिनट से मिस किया था । इतने मुख्तसर से वक्फे में कैसे वो बार से दूर कहीं दुर्घटना का शिकार हो गयी ? बार से दूर वो गयी ही क्यों ? जब वो निश्चय कर ही चुकी थी कि मेरे इंतजार में उसने वहां ठहरना था तो निश्चय से किनारा कर लेने का क्या मतलब ? एक्सीडेंटल डैथ का शिकार होने के लिये वहां से चल देने का क्या मतलब ?”
“फिर तो बाकी एक ही आप्श्ान बची । कत्ल !”
“जो कि यकीनन महाबोले ने करवाया । उसको रोमिला की बड़ी शिद्दत से तलाश थी-क्यों तलाश थी, ये मुझे नहीं मालूम और रोमिला भी मुझे यकीन है कि उसी बचती फिर रही थी-उसने रोमिला के लौटने के इंतजार में, उसके बोर्डिंग हाउस पर निगाह रखने के लिये, थाने का ही एक सिपाही बिठाया हुआ था...”
“कैसे मालूम ?”
“मैंने उसे अपनी आंखों से देखा । भाटे नाम है सिपाही का । दयाराम भाटे ।”
“ओह !”
“किसी तरह से महाबोले को रोमिला की हाइवे फिफ्टीन के उस बार में-सेलर्स बार नाम है-मौजूदगी की खबर लग गयी और वो मेरे से पहले वहां पहुंच गया ।”
“खुद ?”
“या किसी को भेजा ।”
“हूं ।”
“जिसने कि लड़की को थामा और बार से दूर ले जाकर यूं उसका काम तमाम किया कि लगता कि वो दुर्घटना का शिकार हुई थी ।”
“यू हैव ए प्वायंट देयर ।”
“मेरे इंतजार से आजिज आ कर अगर वो पैदल वहां से चल दी होती तो वापिस के रास्ते पर ही तो चली होती ! जिधर उसका घर था, उधर से उलटी तरफ तो न चल दी होती ! वो वापिसी के रास्ते पर चली होती तो मुझे जरूर दिखाई दी होती !”
“पहले ही जान से जा चुकी होती” - एकाएक डिप्टी कमांडेंट अधिकारी बोला - “तो कैसे दिखाई दी होती !”
“जी !”
“अधिकारी साहब शायद ये कहना चाहते हैं कि अंधेरे में उसका पांव फिसला और वो रेलिंग के नीचे से होती ढ़लान पर फिसली, तेजी से नीचे की तरफ लुढ़की, रास्ते में कहीं सिर टकराया और....खत्म !”
“एक्सीडेंट !” - जायंट कमिश्नर बोला - “हादसा !”
“सर, गुस्ताखी माफ” - अधिकारी बोला - “मैं ये नहीं कहना चाहता ।”
“तो ?” - जायंट कमिश्नर की भवें उठीं - “तो और क्या कहना चाहते हो ?”
“पुलिस ने इसे कत्ल का ही केस करार दिया है । और” - उसका स्वर ड्रमाई हो उठा - “कातिल गिरफ्तार हो भी चुका है ।”
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