प्रतिशोध की देवी
इंस्पेक्टर धर्मवीर ने नेतृत्व किया। मेजर, सोनिया और डिक्सन अजायबघर में दाखिल हुए। वहां एक अनोखा वातावरण था।
ऐसा मालूम होता था जैसे मनुष्य आज से तीन हजार वर्ष पहले के संसार में घूम रहा हो। जिस कमरे में दीवान सुरेन्द्रनाथ की लाश पड़ी थी, उसे अफ्रीकी आदिम जातियों की भयानक देवी-देवताओं की काली काली मूर्तियों ने अत्यन्त रहस्यपूर्ण बना दिया था।
डिक्सन के बयान के अनुसार कमरे में सचमुच प्रकाश कम था । बड़े बल्ब नहीं जल रहे थे । केवल एक छोटा-सा बल्ब जल रहा था। कमरे की पिछली दीवार के साथ एक अलमारी खड़ी थी । उस अलमारी के सामने दीवान साहब चित लेटे हुए थे।
पिछली दीवार में एक खिड़की थी जिस पर पर्दा पड़ा हुआ था । मेजर ने पर्दा उठा दिया । कमरे में प्रकाश फैल गया। उस दीवार के साथ दायीं ओर लगभग आठ फुट ऊंचा बुत खड़ा था ।
मेजर ने दीवारों पर नजर डाली। जगह-जगह छोटे-छोटे बुत टंगे थे जो शिल्पकला के शानदार नमूने थे ।
"क्या ये वुत आप तैयार करते हैं ? " मेजर ने डिक्सन से पूछा ।
"नहीं, मैं अकेला नहीं करता । लगभग दस देशों के साठ शिल्पकार हैं। वर्कशाप सन्त नगर में है । यह शो-रूम है।"
"उन शिल्पकारों में तो दीवान साहब का कोई शत्रु नहीं था ? "
"नहीं, वे सब दीवान साहब के भक्त थे । असल में दीवान साहब कला के बड़े कद्रदान थे । वे हर कारीगर की योग्यता से अच्छी तरह परिचित थे। उनको उनकी कला का पूरा हक मिलता था।"
कमरे का अच्छी तरह निरीक्षण कर चुकने के बाद मेजर लाश के पास पहुंचा। उसने उंगली से तीन फुट की उस भारी मूर्ति की ओर संकेत किया जो दीवान सुरेन्द्रनाथ की मृत्यु का कारण बन गई थी। वह मूर्ति मृतक की खोपड़ी के पास पड़ी थी । खोपड़ी के नीने खून को मोटी तह सभी हुई थी।
"यह मूर्ति अफ्रीका की मेराम्बू जाति की देवी 'जम्बी' की है। जम्बी प्रतिशोध, तबाही और बर्बादी देवी है, लेकिन इस देवी के बारे में कहा जाता है कि यह सत्पुरुषों की रक्षा करती है जो बुरे लोगों को मलियामेट कर देती है।" डिक्सन ने कड़ा।
मेजर के माथे पर बल पड़ गया और वह उस मूर्ति की ओर गहरी नज़रों से देखने लगा । फिर उसने कुछ सोचते हुए पूछा, "यह मूर्ति कहां रखी रहती थी ?"
"अलमारी के ऊपर ।" डिक्सन ने उत्तर दिया।
मेजर देवी जुम्बी की मूर्ति का निरीक्षण करने लगा, "इस मूर्ति के सिर पर शेर का चेहरा है और इसके माथे पर फनियर सांप लटका हुआ है। गर्दन के पीछे गोल और सफेद प्लेट है जो सूरज का चिह्न है। बहुत अच्छी मूर्ति है जो इस देवी का स्वभाव प्रकट करती है।"
यह कहकर मेजर लाश पर झुक गया। इसके बाद वह घुटनों के बल बैठ गया। उसने जेब से सूक्ष्मदर्शक यन्त्र निकाला जिसे वह सदैव अपने पास रखता था। उसने वह मन्त्र अपनी दायीं आंख से लगा लिया। लाश से एक फुट के फासले पर एक बहुत ही छोटी और चपटी-सी चीज पड़ी थी | मेजर उसे उठाकर देखने लगा । वह कांसे की एक तख्ती थी जिस पर जानवरों के चित्र बने हुए थे। मेजर ने कांसे की वह तख्ती डिक्सन की ओर बढ़ाते हुए कहा, "मैं समझता हूं, इस तख्ती पर जो जानवर बने हुए हैं वे सभी चित्रलिपि है। यह कौन-सी भाषा है ? क्या आप इसे पढ़ सकते हैं ? "
"जी हां, यह सुआहिली भाषा का पुराना रूप है।" डिक्सन ने उस तख्ती को उलट-पलटकर देखते हुए कहा, "यह मेराम्बू जाति के सरदार वोरगेवो की मुहर है । दूसरी सदी में वह अफ्रीका के एक विशाल भाग का शासक था। इस मुहर पर लिखा है - 'वोरगेवो - पहाड़ों से अधिक शक्तिशाली, सूरज से अधिक प्रकाशमान' ।”
मेजर ने वह मुहर डिक्सन से वापस ले ली और उसे देखते हुए बोला, “एक बात मेरी समझ में नहीं आई। इस पुरानी मुहर में आधुनिक प्रकार का पिन किसने लगाया है ? शायद कोई इसे टाई-पिन के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। मैं यह जानना हूं कि यह टाईपिन किसका है ?
"डिक्सन अपना सिर खुजलाने लगा और कुछ हिचकिचाते हुए बोला, "यह टाईपिन डाक्टर बनर्जी का है। यह टाई-पिन उनकी पत्नी ने उन्हें उपहार स्वरूप दिया था। यह मुहर रजनी के पिता प्रोफेसर मोरावियो को एक आदिवासी ने दी थी।"
मेंजर ने इन्स्पेटर धर्मवीर की ओर मुंह फेरते हुए कहा, "आप जरा डाक्टर बनर्जी को यहां बुला लाइए। क्या आप उनसे मिलकर पूछताछ कर चुके हैं ?"
"नहीं, डॉक्टर साहब सोए पड़े हैं। जाकर देखता हूं । शायद अब जाग गए हों।" इन्स्पेक्टर दरवाजे से निकलकर ऊपर चला गया ।
मेजर ने दीवान सुरेन्द्रनाथ की भिंची हुई दायीं मुट्ठी मुश्किल से खोली । मुट्ठी में एक कागज था जो बुरी तरह मसला हुआ था। मेजर ने बड़ी सावधानी से उसे खोला डिक्सन बड़ी भेदती नजरों से मेजर की हर हरकत का निरीक्षण कर रहा था । कागज जब पूरी तरह खुल गया तो डिक्सन ने कहा, "यह तो कश्मीर में खुदाई सम्बन्धी रिपोर्ट है जो कल रात मैंने और डॉक्टर साहब ने मिलकर तैयार की थी।"
"मैं समझता हूं कि जब दीवान साहब की हत्या की गई थी, उस समय यह रिपोर्ट उनके हाथ में थी। रूपा का बयान है कि दीवान साहब डाक्टर साहब से मिलने ऊपर नहीं गए थे। फिर यह रिपोर्ट कैसे उनके हाथ लग गई ? कहीं डाक्टर साहब ने कल रात ही तो यह रिपोर्ट उनको नहीं भिजवा दी थी ?"
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता ।" डिक्सन बोला ।
इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने नीचे आकर सूचना दी कि डाक्टर बनर्जी अभी तक सोए पड़े हैं। इस पर मेजर के होंठ गोल हो गए और उसके होंठों से सीटी की हल्की-सी आवाज निकलने लगी।
इन्स्पेक्टर धर्मवीर को जब इस नई खोज का पता चला तो उसने कहा, "टाई पिन और रिपोर्ट ! डाक्टर बनर्जी के सिवा दीवान साहव का भला और कौन हत्यारा हो सकता है !”
मेजर मुस्कराया और बोला, "इन्पेक्टर साहव, क्या कभी ऐसे हत्यारे से आपका वास्ता पड़ा है जो अपने अपराध के इतने स्पष्ट चिह्न अपने पीछे छोड़ जाए और फिर जाकर आराम से सो जाए ?"
इन्स्पेक्टर ने कहा, "हत्यारा घवरा भी तो जाता है। "
मेजर ने इन्स्पेक्टर की बात पर कोई ध्यान न दिया। वह डिक्सन से वोला, " हत्या की वारदात के समय इस घर में रूपा, लक्ष्मी, डाक्टर चनर्जी और सिद्दीकू मौजूद थे ?"
"जी हां ।”
"ओर कल रात जब रिपोर्ट तैयार की जा रही थी तो उस समय कौन-कौन वहां मौजूद था ?"
"मैं, डाक्टर बनर्जी, मिसेज रजनी और राजेश | कभी-कभी सिद्दीकू और रूपा भी भीतर आ जाते थे ।”
"डाक्टर बनर्जी किस लिबास में थे ?
" उन्होंने नाइट सूट पहन रखा था ।"
"इसका मतलब तो यह हुआ कि उनका टाई पिन कोई भी निकालकर ले जा सकता था।"
"हां, लेकिन रिपोर्ट ! रिपोर्ट तो रात के ग्यारह बजे पूरी हुई थी। दो-चार बातें फिर भी रह गई थीं। डाक्टर साहब ने कहा था कि वे सुबह उठकर रिपोर्ट को अन्तिम रूप दे देंगे। यह रिपोर्ट जो आपने दीवान साहब की मुट्ठी से बरामद की है, हर लिहाज से पूर्ण है। इसका मतलब है कि रिपोर्ट सुबह डाक्टर साहब की मेज से उठाई गई या..." डिक्सन कुछ कहते-कहते रुक गया ।
“यह रिपोर्ट ही तो उलझन पैदा कर रही है ।" मेजर ने कसमसाते हुए कहा
"क्या यह रिपोर्ट तैयार करना जरूरी था ?"
“जी हां, दीवान साहव यह जानना चाहते थे कि कश्मीर में खुदाई पर ठीकठीक कितना रुपया खर्च होगा।" किंचित् रुककर वह फिर वोला, "दीवान, साहब पर उनकी बेटी की इन बातों का प्रभाव होने लगा था कि वे एक व्यर्थ की मुहिम में पैसा वर्बाद कर रहे हैं । इसलिए वे कश्मीर में खुदाई की मुहिम पर अधिक धन खर्च करने के लिए तैयार नहीं थे ।"
इतने में हब्शी सिद्दीकू वहां आ पहुंचा। उसने डिक्सन को देखकर सलाम किया और बोला, "मेरी तबीयत अब कुछ ठीक हो गई है। मालिक की मौत का मुझे बहुत दुःख है । वे बड़े दयालु थे। मैं तो यह सोचकर कांप रहा हूं कि जब बेटी रजलीमू यहां आएगी तो उस पर क्या बीतेगी ?" सिद्दीकू रजनी को रजलीमू के नाम से पुकारता था।
सिद्दीकू का कद मझोला और बदन गठा हुआ था। उसकी आंखों में रंगभेद से पैदा होने वाली घृणा की चमक थी। उसने मेजर, सोनिया और इन्स्पेक्टर धर्मवीर की और लापरवाही से देखते हुए कहा, "क्या मैं मालिक को एक नजर देख सकता हूं ?"
"क्यों नहीं !" मेजर ने उत्तर दिया । उसने दीवान साहब के दोनों पैर अपने हाथों से छुए और फिर अपने दोनों हाथों की उंगलियां अपने माथे पर फेरने लगा। उसकी आंखें सजल हो उठी थीं। एकाएक उसकी दृष्टि लाश के पास पड़ी हुई मूर्ति पर जमकर रह गई। उसके शरीर में कंपकपी-सी पैदा हुई और वह हाथ जोड़कर एक कदम पीछे हट गया । जब उसकी आंखें भय से उबली पड़ रही थीं। उसने कांपते हुए स्वर में कहा, "जुम्बी, तेरे लेने के ढंग भी निराले हैं। तेरा वार कभी खाली नहीं जाता। अपना बदला लेने के लिए कहां-कहां पहुंच जाती है। तू उन लोगों को कभी क्षमा नहीं करती जो तेरे राज्य में आकर हमारे पुरखों की कब्रें खोदते हैं।"
इसके बाद सिद्दीकू ने मेजर और इन्स्पेक्टर धर्मवीर की ओर घूमते हुए कहा, "मैंने दीवान साहब और प्रोफेसर मोरावियो को मना किया था कि वे हमारे इलाके में खुदाई से बाज़ आ जाएं। रजलीमू और कमलीमू (कामिनी) की माताओं को मौत के बाद मैंने उनको दोबारा चेतावनी दी थी। यह मेरी बात पर ध्यान न देने का परिणाम है । "
सिद्दीकू के इन शब्दों का सभी उपस्थित जनों पर गहरा प्रभाव हुआ । एकमात्र मेजर ही था जो प्रभावित नहीं हुआ था। उसने कहा, "तुम यह बताओ कि सुबह से अब तक तुम कहां थे ?”
"ऊपर अपने कमरे में था। मेरी तबीयत ठीक नहीं थी ।"
"तुमने किसी को अजायबघर में दाखिल होते भी नहीं देखा ?"
"किसी को नहीं। ऊपर मेरा कमरा पिछले भाग में है। वहां से मैं कुछ भी नहीं देख सकता । उसकी खिड़की से केवल बाहर का आकाश देख सकता हूं।"
"अच्छा, तो यह बताओ कि सामने की अलमारी पर देवी जूम्वी की मूर्ति किसने रखी थी ?
"मैंने रखी थी।" सिद्दीकू ने उत्तर देते हुए कहा, "भारी चीजें उठाने के लिए मुझे ही बुलाया जाता है।"
"क्या अलमारी के पीछे का पर्दा भी तुमने हटाया था ?"
"जी हां, डाक्टर बनर्जी ने यही हुक्म दिया था।" सिद्दीकू चला गया तो मेजर ने इंस्पेक्टर से पूछा, "आप अपने साथ कितने आदमी लाए हैं और वे सब कहां हैं ?"
"दो सव-इन्स्पेक्टर हैं। वे इस कोठी के इर्द-गिर्द गश्त लगा रहे हैं और अपने तौर पर पूछताछ कर रहे हैं। तीन कांस्टेबल हैं जो मैंने अलग-अलग जगहों पर तैनात कर दिए हैं।"
"इतने आदमी काफी हैं।" मेजर बोला, "क्या आपने
फोटोग्राफर और जंगलियों के निशानों के माहिर को फोन कर दिया है ?"
“जी हां, वे जाते ही होंगे।" इन्स्पेक्टर ने जम्हाई लेते हुए कहा ।
इन्स्पेक्टर ने दीवान सुरेन्द्रनाथ की लाश को जरा एक ओर को खिसका दिया। वह उस स्थान को ध्यान से देखने लगा जहां खून जम गया था। उसकी आंखों में चमक पैदा हुई । वह पिछली दीवार की ओर गया जहां एक चक्करदार सीढ़ी ऊपर जाती थी । इन्स्पेक्टर उस सीढ़ी तक जाकर वापस आया और उसने डिक्सन से पूछा, "डाक्टर बनर्जी किस तरह के जूते पहनते हैं ?"
"जब घर में होते हैं तो टेनिस शू पहनते हैं । " डिक्सन बोला |
इन्स्पेक्टर के चेहरे पर मुस्कराहट का प्रकाश फैला गया, "मेजर साहब, में समझता हूं कि अब हमें ज्यादा माथा मारने की जरूरत नहीं । पहेली हल हो चुकी है । आप मेरे साथ जरा इधर आइए।"
इन्स्पेक्टर यह कहकर भेजर को उस चक्करदार सीढ़ी की ओर ले गया और फिर फर्श की ओर उंगली से संकेत करते हुए बोला, "आप जरा पैर का यह निशान देखिए । यह रबड़ के जूते का निशान है । इस जूते के तले ने छोटे-छोटे चोकोर निशान भी बना दिए हैं।"
मेजर ने झुककर खून से बना हुआ निशान देखा और बड़े गम्भीर स्वर में धीमे से कहा, "इन्स्पेक्टर साहब, आप ठीक कहते हैं।"
"अब आप जरा इधर आइए ।" इन्स्पेक्टर लाश और सीढ़ी के बीच एक स्थान, पर जाकर रुक गया । मेजर ने देखा कि वहां भी खून के धब्बे थे ।
"क्या अब भी किसी सन्देह की गुंजाइश रह जाती है ?" इन्स्पेक्टर ने पूछा, "यह हत्या का एक स्पष्ट मामला है। सारी बातें इसी ओर संकेत करती हैं कि डाक्टर बनर्जी ने दीवान साहब की हत्या की है ।"
- "क्षमा कीजिएगा। मैं इतनी जल्दी कोई परिणाम नहीं निकाला करता । टेनिस शू, खून के धब्बे, पैर का खून लगा निशान — इनसे यह कहां सिद्ध होता है कि हत्यारा डाक्टर बनर्जी है ? मेरी बुद्धि नहीं मानती कि डाक्टर बनर्जी ऐसा सुशिक्षित व्यक्ति ऐसी बर्बरता से अपने उपकारी की हत्या कर सकता है और फिर अपनी नादानी का प्रमाण देते हुए यहां अपना टाई पिन, अपनी रिपोर्ट और अपने पैरों के निशान छोड़कर जा सकता है ।"
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