आधे घंटे बाद वो वैन एक इमारत के गेट के भीतर प्रवेश करके जा रुकी। वहां कई कारें और वैन खड़ी थीं। कई लोग अपने कामों में व्यस्त आ-जा रहे थे।
वे पांचों मोना चौधरी और जयन्त को लेकर नीचे उतरे। तभी दो आदमी वहां आ पहुंचे।
"हमारे साथ आओ।" एक ने कहा।
वे दोनों, मोना चौधरी और जयन्त को लेकर इमारत के भीतरी हिस्से में चले गए।
भीतर भी लोग थे। उनका आना-जाना हो रहा था। कई मोना चौधरी और जयन्त को घूर रहे थे। जल्दी ही वे इमारत के शांत हिस्से में जा पहुंचे। वहां लोगों का आना न के बराबर था।
एक आदमी उन दोनों के पास रहा। दूसरा सामने वाले दरवाजे को धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया।
"क्या हो रहा है यहां?" मोना चौधरी ने पूछा।
"अभी पता चल जाएगा...।" उस आदमी ने कहा।
"तुम्हें बताने में क्या है?"
उस आदमी ने मोना चौधरी को घूरा। चुप ही रहा वो।
"ये तो बता दो कि हम किससे मिलने वाले हैं?"
"चुप रहो और उतना ही बोलो जितनी जरूरत हो।" उसने सख्त स्वर में कहा।
पांच मिनट बाद भीतर गया आदमी बाहर आया।
"आओ...।"
वो आदमी मोना चौधरी और जयन्त को लिए भीतर प्रवेश कर गया।
दरवाजा बंद हो गया।
भीतर प्रवेश करते ही मोना चौधरी और जयन्त पल भर के लिए ठिठके ।
अंधेरा था वहां। गहरा अंधेरा।
सिर्फ एक जगह उन्होंने मध्यम रोशनी का बल्ब हवा में लटकते देखा। नीचे टेबल पर बल्ब की रोशनी पड़ रही थी। उस टेबल के एक तरफ कुर्सी पर कोई बैठा था। शायद कोई औरत।
टेबल के इस पार दो खाली कुर्सियां पड़ी थीं।
"चलो...।"
अब तक उनकी आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थीं।
वे आगे बढ़े और टेबल के पास जा पहुंचे।
"बैठो...।" कुर्सी पर बैठी औरत ने कहा ।
मोना चौधरी और जयन्त कुर्सियों पर बैठ गए। बल्ब की टेबल पर पड़ने वाली रोशनी में उस औरत का थोड़ा बहुत ही चेहरा नजर आ रहा था। मोना चौधरी ने गर्दन घुमाकर पीछे देखा। परंतु अंधेरे की वजह से वो व्यक्ति न दिखे जो उन्हें यहां तक लाये थे। मोना चौधरी जानती थी कि वो कमरे में ही हैं। इस वक्त उन दोनों पर बल्ब की मध्यम रोशनी पड़ रही थी, ऐसे में अंधेरे में देखने पर, उन्हें कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।
"अंधेरा क्यों कर रखा है?" मोना चौधरी बोली।
"तुम्हें तकलीफ है?" उस औरत का स्वर पुनः कानों में पड़ा।
मोना चौधरी ने कुर्सी पर बैठी औरत को देखने की चेष्टा की।
उसका चेहरा कुछ स्पष्ट दिखा मोना चौधरी को ।
वो गुलजीरा खान थी।
जयन्त भी गुलजीरा खान को स्पष्ट देखने की चेष्टा कर रहा था।
गुलजीरा खान ने हाथ में पकड़ी अखबार टेबल पर रख दी।
दोनों की निगाहें अखबार पर गईं। आंखें सिकुड़ीं। क्योंकि ये दिल्ली में छपने वाली उस दिन की अखबार थी, जिस दिन वे बंटी से मिले थे। अखबार में मोना चौधरी की तस्वीर छपी दिख रही थी।
“अखबार में तुम्हारी तस्वीर है?" गुलजीरा खान ने पूछा।।
“मैं किससे बात कर रही हूं इस समय ?" मोना चौधरी के स्वर में सख्ती आ गई।
“मेरी बात का जवाब दो।” गुलजीरा खान का स्वर सख्त हुआ।
"मैं तुम्हें तब तक जवाब नहीं दूंगी, जब तक ये पता न हो कि मैं किससे बात कर रही हूं।" मोना चौधरी ने तेज स्वर में कहा।
“तुम यहां काम के लिए आई हो और अपने काम की तरफ...।"
“मैं ऐसे काम नहीं करती।"
तभी जयन्त कह उठा---
"हमें नहीं करना काम, चलो यहां से...।" जयन्त उठ खड़ा हुआ।
“तुम ठीक कहते हो जयन्त। हम ऐसे लोगों के साथ काम नहीं कर सकते।" मोना चौधरी ने फैसले वाले स्वर में कहा--- "चलो।"
मोना चौधरी भी खड़ी हो गई।
"एक कदम भी आगे बढ़ाया तो गोलियां तुम दोनों को छलनी कर देंगी।” गुलजीरा खान की आवाज कानों में पड़ी।
दोनों ठिठके ।
"हमसे धोखा हुआ है।" मोना चौधरी तेज स्वर में कह उठी।
"शायद हम गलत लोगों के पास आ पहुंचे हैं।"
"तुम हिन्दुस्तान की खुफिया एजेन्सी से मिली हुई हो क्या?" मोना चौधरी गुर्राई ।
"ये धंधे वाले लोग नहीं लगते।"
तभी मोना चौधरी ने छलांग लगाई और टेबल पर जा गिरी। और उस पार बैठी गुलजीरा खान का गला थाम लिया। सख्त पकड़ थी गले पर ।
"खत्म कर दो इसे। ये शायद हिन्दुस्तान के जासूस हैं और हमें पकड़ने के लिए ये जाल बिछाया है...।" जयन्त चीखा।
उसी पल वहां कई कदमों की आहटें गूंजी।
अगले ही पल कई गनें जयन्त और मोना चौधरी के शरीर से आ लगीं।
सन्नाटा सा छा गया वहां ।
गहरा सन्नाटा।
मोना चौधरी की पकड़ गुलजीरा खान के गले पर ढीली पड़ी। फिर गला छोड़ दिया। वो टेबल पर वापस सरकी और इस पार खड़ी हो गई। गनें अभी भी दोनों के जिस्मों से सटी थीं।
गुलजीरा खान अपना गला मसलते हुए बोली---
"पीछे हट जाओ।"
इस पल मोना चौधरी और जयन्त के जिस्म से गनें हट गईं। कदमों की आवाजें पीछे होती चली गईं।
"तुम कुतिया हो।" गुलजीरा खान ने खतरनाक स्वर में कहा--- "मेरा गला दबा दिया।"
"कुतिया तुम हो। बच गईं अभी... वरना...।"
"हमें यहां से चलना चाहिए मोना चौधरी ।" जयन्त बोला--- "हम इन लोगों के साथ काम नहीं करेंगे।"
“बिल्कुल। हम जा रहे हैं...।"
"बैठ जाओ...।" गुलजीरा खान गुर्राई।
"नहीं। जब तक हमें पता न चले कि हम किससे बात कर रहे हैं, तब तक...।"
"गुलजीरा खान से बात कर रहे हो तुम।"
"गुलजीरा खान?" जयन्त बोला।
"फिर ठीक है।" मोना चौधरी राहत वाले स्वर में बोली--- “ये बात तुमने पहले क्यों न बताई... ?"
"बैठ जाओ।" गुलजीरा खान की आवाज में गुस्सा था।
मोना चौधरी और जयन्त बैठ गए। मध्यम राशनी में उन्होंने गुलजीरा खान को देखा।
वो बड़ी-बड़ी आंखों से उन दोनों को खा जाने वाली नजरों से देख रही थी।
उनके बीच मध्यम रोशनी फैली थी।
"क्या किया तुमने हिन्दुस्तान में?" गुलजीरा खान ने पूछा।
"अखबार में पढ़ा नहीं तुमने?" जयन्त कह उठा।
"अपने मुंह से बताओ। मोना चौधरी, तुम बोलो।"
"मैं दिल्ली अण्डरवर्ल्ड की हस्ती हूं। इश्तिहारी मुजरिम। पुलिस को मेरी तलाश रहती है। दिल्ली तो क्या देश के किसी भी हिस्से में पहुंच जाऊं, मेरी चलती है। मेरा नाम ही काफी है। इसी तरह सब ठीक-ठाक चल रहा था कि गलती से हमारे हाथों आठ-दस पुलिस वालों का कत्ल हो गया...और ये बड़ी मुसीबत वाली बात हो गई। पुलिस हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ गई। जान बचाना भी भारी पड़ने लगा। तब मुझे लगने लगा कि हिन्दुस्तान से मुझे निकल भागना चाहिए। परन्तु मैं ऐसी जगह जाना चाहती थी कि जहां मेरे मतलब का काम भी हो। तभी किसी के द्वारा इत्तफाक से बंटी से मुलाकात हो गई। बंटी ने कहा कि अफगानिस्तान चले जाओ, वहां ड्रग्स को इधर-उधर करने का काम भी मिल जाएगा तो हम यहां आ गए।"
"लेकिन लगता है कि हम गलत लोगों में आ गए हैं।" जयन्त बोला--- "हमें कहीं और जाना चाहिए।"
"गलत लोगों में क्यों?" गुलज़ीरा खान ने पूछा।
"तुम लोग पर्दा रखकर हथियारों के बीच बात करते हों। ये हमें पसंद नहीं। हम तो दोस्तों के बीच काम करने आए थे। तुम लोग अपना नाम तक बताने को तैयार नहीं। हमें ये सब बातें पसंद नहीं।"
"वैसे भी ड्रग्स जैसा हल्का काम करना हमें पसंद नहीं। ये काम करना तो हमने मजबूरी में स्वीकार किया था।"
"हम हल्का काम नहीं करते। भारी काम करते हैं। हमसे तुम्हें बहुत नोट मिल सकते हैं।” गुलजीरा खान ने कहा--- "मान लो कि हम तुम्हें अपना माल कहीं पहुंचाने को देते हैं। साथ में अपने आदमी भी...।"
"अपने आदमी ?” मोना चौधरी फौरन कह उठी।
"हां। तुम्हें साथियों की भी तो जरूरत होगी। अकेले कैसे?”
“हम अपने काम में किसी के आदमी इस्तेमाल नहीं करते। जरूरत के मुताबिक अपने लोग ढूंढ लेते हैं। जो भी काम करते हैं। वो हम अपने ढंग से करते हैं।" मोना चौधरी ने दृढ़ स्वर में कहा।
"तुम्हारा मतलब कि हम तुम्हें करोड़ों का माल सौंपकर तुम पर से नजरें हटा लें?" गुलजीरा खान बोली।
"हां...।"
"तुम लोग हमारा माल लेकर भाग सकते हो?"
"हम किन घटिया लोगों में आ फंसे हैं जयन्त? जहां विश्वास नहीं, वहां काम नहीं।" कहने के साथ ही मोना चौधरी उठ खड़ी हुई--- "सॉरी मैडम! हम तुम्हारे साथ काम नहीं कर सकते। दिल नहीं मिलेगा धंधे में। हमारी अपनी आदतें हैं।"
"हमें चोर समझती हो तुम?" जयन्त भी खड़ा हुआ--- “दो नम्बर का काम अवश्य करते हैं, लेकिन ईमानदारी से। बे-ईमानी कभी भी नहीं की। की होती तो आज मोना चौधरी का नाम हिन्दुस्तान के अण्डरवर्ल्ड में न होता। ये बात तो तुम लोग भी जानते हो कि अपराध की दुनिया में नाम जमाने के लिए कितनी मेहनत लगती है।"
"बैठ जाओ।" गुलजीरा खान का स्वर आदेश से भरा था।
दोनों पुनः बैठ गए।
"तो मुझे बताओ कि तुम हमसे माल लेकर क्या करोगे? कैसे काम करोगे?” गुलजीरा खान का स्वर शांत था।
"तब हम तुम्हें बता देंगे कि इतने वक्त बाद माल फलांनी जगह पर, फलां नम्बर की गाड़ी में है और चाबी साथ लगी है। इस दौरान कोई हम पर नजर नहीं रखेगा। हमारे ऊपर काम पूरा करने की जिम्मेदारी होगी। वो हम करेंगे। आदमियों की जरूरत होगी, तो उन्हें हम तलाश लेंगे।"
"जरूरत पड़ने पर तुम हमारे आदमी इस्तेमाल कर सकती हो।"
"नहीं। हमारा काम करने का अपना ढंग है। मैं नहीं चाहती कि मेरे ढंग को कोई और जाने। ये मेरा सीक्रेट है।"
“समस्या है। हम कैसे करोड़ों का माल तुम्हें देकर, अपनी आंखें बंद कर लें ?" गुलजीरा खान ने कहा--- "हमारे भी अपने उसूल हैं।"
"फिर तो बात नहीं बनेगी।" मोना चौधरी कह उठी।
"मैंने तो पहले ही कहा था कि चलो...।" जयन्त बोला--- "तुमने मेरी बात...।”
तभी वहां कदमों की आहट सुनाई दी।
जो कि टेबल के पास आ पहुंची थी।
फिर उस रोशनी में दो हाथ नजर आए, जो कि टेबल पर रखे गए। फिर वो नीचे झुका तो रोशनी में उसका चेहरा चमका।
वो हैदर खान था।
हैदर खान की नजर मोना चौधरी पर थी।
मोना चौधरी और जयन्त ने भी उसे देखा।
"इन्हें एक मौका देकर देखो गुल।" हैदर खान ने मोना चौधरी को देखते हुए कहा और जैसे आया था, वैसे ही पीछे होता चला गया।
मोना चौधरी और जयन्त ने गुलजीरा खान को देखा।
गुलजीरा खान के माथे पर बल नजर आ रहे थे।
"यहां से जाओ। जहां ठहरे हो, वहीं पहुंच जाओ। आज के दिन में मेरा फोन आया तो ठीक, नहीं तो अफगानिस्तान से चले जाना।"
दोनों उठे।
तभी उनके पास एक आदमी पहुंचा और चलने का इशारा किया।
मोना चौधरी और जयन्त उसके साथ बाहर निकल गए।
तभी हैदर खान पास आया और कुर्सी पर बैठ गया।
“बातों से मोना चौधरी तेज लगती है। शायद हमारे काम की हो।" हैदर खान बोला।
“लेकिन मुझे ये कुतिया पसंद नहीं आई।” गुलजीरा खान ने दांत भींचकर कहा।
“इसलिए कि उसने तुम्हारी गर्दन थाम ली थी...।" हैदर खान मुस्कराया।
“गर्दन दबाई भी थी।” गुलजीरा खान ने पूर्ववतः स्वर में कहा--- "कोई और वक्त होता तो वो जिन्दा नहीं रहती...।"
"एक बार आजमा के देखो मोना चौधरी को ।"
■■■
मोना चौधरी और जयन्त पैदल ही भरे बाजार में आगे बढ़ते जा रहे थे।
"तुम्हारा क्या ख्याल है कि वो अब क्या करेंगे? क्या हमें काम देंगे?" जयन्त ने पूछा।
"कह नहीं सकती।”
"हमें काम न दिया तो हमारी सारी मेहनत बेकार जाएगी। हम लाली खान के लोगों में नहीं घुस पाएंगे।"
"तब कोई और रास्ता देखेंगे।" मोना चौधरी ने कहा।
"परन्तु वो अब हमें देख चुके है। दूसरा रास्ता हमारे लिए आसान नहीं होगा।"
"ये बाद की बात है। इस वक्त मैं अभी की सोच रही हूं।"
"अब हमारे सोचने को है ही क्या? हमारे पत्ते तो खुल चुके हैं।"
"उनके लोग हम पर नजर जरूर रख रहे होंगे।"
"ओह...।"
"लाली खान के लोग मजबूत और ताकतवर हैं। इस मुलाकात में ये अहसास हुआ है मुझे।"
"वो कौन था जो हमें एक चांस देने के लिए गुलजीरा खान से कह रहा था?" जयन्त ने पूछा।
"मेरे ख्याल में वो हैदर खान होगा। गुलजीरा खान का भाई ।"
■■■
मोना चौधरी और जयन्त उसी होटल में पहुंचे जहां रात बिताई थी।
दिन के वक्त होटल खाली-खाली सा लग रहा था।
कमरे में पहुंचकर मोना चौधरी ने वहां निगाह दौड़ाई। सब ठीक था।
"मैं महाजन से बात करना चाहती हूं।" मोना चौधरी बोली।
"अभी?" जयन्त ने उसे देखा ।
"अभी में क्या हर्ज है?"
“गुलजीरा खान ने हमें होटल में ही रहने को कहा है।"
“हम उनके नौकर नहीं हैं। हो सकता है वे हमसे सम्बन्ध ही न बनाएं।”
"हम उनसे रिवाल्वरें लेनी भूल गए।"
“ये बात पहले याद रखनी थी। बताओ, महाजन से कैसे बात होगी?"
"इसके लिए हमें किसी फोन बूथ पर जाना होगा।”
“तो चलो। हमारे बाहर जाने से गुलजीरा खान का काम आसान हो जाएगा।" मोना चौधरी ने कहा।
"क्या मतलब?"
"अगर वो हमसे काम लेना चाहती है तो वो हमारे कमरे की तलाशी जरूर लेगी। उसके आदमियों ने देख लिया होगा कि हम यहां ठहरे हैं।"
"जरूरी तो नहीं कि तुम्हारा ख्याल ठीक हो।"
"कोई जरूरी नहीं...।"
दोनों होटल से बाहर निकले और पास के बाजार में फोन बूथ ढूंढकर वहां पहुंचे।
जयन्त ने नम्बर मिलाया।
"फोन करने के बाद, जो पर्ची निकले, वो ले लेना और दोबारा यूं ही नम्बर डायल कर देना। इससे कोई जानना चाहेगा कि हमने कहां फोन किया है तो पता नहीं चलेगा।" मोना चौधरी ने कहा।
दूसरी तरफ बैल हुई, फिर लैला की आवाज कानों में पड़ी।
"हैलो...।"
“ऑपरेशन गु-ले ल... ।”
“कहो...।"
“मोना चौधरी, नीलू महाजन से बात करना चाहती है।" जयन्त ने कहा।
"तुम कहां तक पहुंचे?"
“कोशिश चल रही है। हम कल रात ही अफगानिस्तान पहुंचे हैं ।"
"होल्ड करो...।"
जयन्त ने रिसीवर कान से लगाए रखा।
मोना चौधरी पास खड़ी रही।
“हैलो!” कानों में आवाज पड़ी--- "मैं महाजन हूं... ।”
जयन्त ने मोना चौधरी को रिसीवर थमाकर कहा---
"बात करो... ।”
“महाजन ।” मोना चौधरी बोली।
"कहो बेबी। तुम ठीक हो?"
"हां, तुम लैला के साथ क्या कर रहे हो?"
महाजन ने बताया कि लैला के कहने पर उसने क्या किया।
"खतरनाक काम किया तुमने। मैं मिली हूं गुलजीरा खान से। वो खतरनाक लोग हैं।"
"तुम्हें उनके बीच घुसने की सफलता मिली?"
"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन आज रिजल्ट सामने आ जाएगा।"
"लैला से मैंने लाली खान के बारे में काफी कुछ जाना है। ये लोग सच में बेहद खतरनाक हैं। अपने धंधे के अलावा इन्हें किसी की परवाह नहीं। दौलतमंद हैं और सरकार में इनकी खूब चलती है।"
"ये बात मैं महसूस कर चुकी हूं।"
"मैं तुमसे बात करना चाहूं तो कैसे कर सकता हूँ?"
"हमारे पास अभी तो मोबाइल नहीं है। आगे की बात के लिए फिर फोन करूंगी।"
"ठीक है।"
बात खत्म करके, पैसे देकर वे बाहर आ गए।
जयन्त ने वहां आते-जाते लोगों को देखकर कहा---
"तुमने देखा किसी को हमारा पीछा करते ?"
"नहीं। लेकिन ये पक्का है कि हम पर नजर रखी जा रही है।"
"अब कहां जाना है?"
"वापस होटल। उन्होंने तलाशी लेनी होगी तो, ले ली होगी।"
दोनों वापस होटल के कमरे में पहुंचे।
मोना चौधरी का ख्याल ठीक निकला था।
कमरे की हालत बता रही थी कि तगड़े ढंग से तलाशी ली गई है। सारा सामान उल्टा-पुलटा पड़ा था।
दोनों की नजरें मिलीं।
"वो हमसे काम लेंगे।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।
"कैसे जाना ?"
"अगर काम नहीं लेना होता तो अब तक वो हमें भूल चुके होते। तलाशी नहीं लेते।” मोना चौधरी बोली।
जयन्त होंठ सिकोड़कर रह गया।
तभी दरवाजे पर आहट हुई।
दोनों की निगाहें फुर्ती से उस तरफ घूमीं ।
दरवाजे पर वो ही व्यक्ति खड़ा था, जिसने पहले उनका पीछा किया था।
"चलो।" वो बोला।
"कहां?" जयन्त सतर्क हुआ।
मोना चौधरी शांत सी खड़ी उसे देख रही थी।
“तुम दोनों अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम दोनों को कहां ले जाऊंगा।” वो बोला।
"ठीक है, चलो।” जयन्त ने सिर हिलाया।
उस आदमी के साथ दोनों होटल से बाहर निकले। बाहर पुरानी सी कार खड़ी थी। ड्राइविंग सीट पर एक आदमी बैठा था। मोना चौधरी और जयन्त पीछे की सीट पर बैठे। वो आदमी आगे बैठा। कार आगे बढ़ गई।
"हमें हमारी रिवाल्वरें वापस नहीं मिली?" जयन्त बोला।
"कुछ देर बाद मिल जाएंगी।" उस आदमी ने कहा।
"हमें किसके पास ले जा रहे हो?" मोना चौधरी ने कहा।
"अभी देख लेना।"
उसके बाद उनके बीच कोई बात नहीं हुई।
आधे घंटे बाद कार एक इमारत के अहाते में प्रवेश करके रुक गई।
वे बाहर निकले।
मोना चौधरी और जयन्त को लिए वो आदमी इमारत में प्रवेश कर गया। ये गोदाम जैसी जगह थी। बोरों में ड्रग्स रखी दिखी उन्हें और पैकिंग में लगे लोग भी दिखे। गनमैन थे वहां। सख्त पहरा दिखा उन्हें ।
उन दोनों को लिए वो आदमी एक एकान्त हिस्से में पहुंचा और एक दरवाजे के सामने रुका।
“भीतर चले जाओ।"
मोना चौधरी ने दरवाजा खोला और जयन्त के साथ भीतर प्रवेश कर गई।
ये सादा सा कमरा था। टेबल-कुर्सियां । दीवार के साथ लगे रैक में फाइलें पड़ी नजर आ रही थीं। एक कुर्सी पर बैठी गुलजीरा खान फोन पर बात कर रही थी। दो गनमैन भी वहां मौजूद थे।
गुलजीरा खान ने फोन बंद किया और बोली---
"बैठ जाओ। हमने फैसला किया है कि ट्रायल के तौर पर तुमसे काम लेकर देखा जाए।” गुलजीरा खान का स्वर सपाट था।
"हम चुटकियों में काम कर देंगे।" जयन्त बोला।
"अगर माल के साथ कोई गड़बड़ की तो तुम दोनों को गोली मार दी जाएगी।"
"हम बे-ईमान नहीं हैं।" मोना चौधरी बोली।
"सब बे-ईमान होते हैं और हर की बे-ईमानी की सीमा होती है। कोई बड़ी बेईमानी में यकीन रखता है तो कोई छोटी।"
"काम की बात करो।" मोना चौधरी बोली।
गुलजीरा खान ने उसे घूरा।
"हमें क्या मिलेगा?"
"एक किलो के पीछे पांच हजार रुपये हैं। छः सौ किलो माल नांगारहार शहर से उठाना है और लाहौर पहुंचाना है।"
"सिर्फ छः सौ किलो...।"
"पहली बार में हम ज्यादा माल तुम लोगों के हवाले नहीं कर सकते।"
"एक किलो पर पांच हजार कम है।" मोना चौधरी बोली--- "भाव ठीक करो।"
"ये ठीक है।"
"नहीं, कम है। एक किलो पर कम से कम हमें दस हजार मिलना चाहिए।" मोना चौधरी कह उठी--- "इस काम में शायद हम लोगों का भी इस्तेमाल करें। हमें उन्हें भी देना है। दस हजार तो होना ही चाहिए...।"
"सात हजार मिलेगा। एक पैसा भी ज्यादा नहीं...।" गुलजीरा खान ने सख्त स्वर में कहा।
"ठीक है।" जयन्त कह उठा।
"मुझे मोल-भाव करने वाले लोग अच्छे नहीं लगते।” गुलजीरा खान ने मोना चौधरी को घूरा।
"ये जरूरी था।" मोना चौधरी ने कहा--- “अब तुम मुझे वो फोन नम्बर दो, ताकि लाहौर में माल पहुंचाकर, बता सकें हम कि माल किधर पड़ा है।"
गुलजीरा खान ने नम्बर दिया।
“आखिरी बात ।” मोना चौधरी बोली--- “हम पर या माल पर नजर रखने की कोशिश मत करना। अगर नजर रखी गई और हमें पता चल गया तो हम माल को आग लगा देंगे... और ये सब कुछ तुम्हारी गलती से होगा।"
गुलजीरा खान के चेहरे पर बेहद कठोर भाव आ ठहरे।
"तुम बकवास बहुत करती हो। बात करने की तमीज सीखो। मैं ऐसी बातें सुनने की आदत नहीं रखती।"
"मेरा काम करने का ढंग अपना है। किसी की दखलंदाजी मुझे पसंद नहीं। काम पूरा होने की जिम्मेदारी मेरी।"
"उठो और यहां से दफा हो जाओ। बाहर खड़ा आदमी तुम दोनों को नांगारहार शहर ले जाएगा और माल तुम्हारे हवाले कर दिया जाएगा।" गुलजीरा खान ने उखड़े स्वर में कहा।
मोना चौधरी और जयन्त उठे और बाहर निकल गए।
कई पलों तक गुलजीरा खान दरवाजे को घूरती रही, फिर फोन उठाकर नम्बर मिलाया हैदर खान का।
"हैदर... ।" बात होते ही गुलजीरा खान ने कहा--- "मुझे मोना चौधरी पसन्द नहीं है।"
"उसे धंधे के लिहाज से देखो। तुमने उससे रिश्ता तो नहीं बनाना।" हैदर खान की आवाज कानों में पड़ी।
"लेकिन वो मुझे पसन्द नहीं...।"
"सब्र रखो। अगर वो हमारा माल वक्त पर देती है तो वो हमारे काम की है।" सही जगह पहुंचा
गुस्से से भरी गुलजीरा खान ने फोन बंद कर दिया।
■■■
मोना चौधरी और जयन्त, उस आदमी के साथ नांगारहार शहर पहुंचे। काबुल से वो पास ही में था। दो घंटों में वहां जा पहुंचे थे। उसने उन्हें रिवाल्वरें दे दी थीं। सुल्तान नाम था उसका। कार को दूसरा आदमी ही चला रहा था। रास्ते में उनके बीच ज्यादा बातें नहीं हुई। थीं। नांगारहार शहर में एक ठिकाने पर वे जा पहुंचे।
मौका मिलते ही मोना चौधरी ने जयन्त से कहा---
"अपने एजेन्टों से बात करो। ये माल वो ही लाहौर तक ले जाएंगे।”
"हां, उनसे बात करने की सोच ही रहा था।"
“उन्हें कह देना कि वो साधारण और यहां के स्थानीय लोगों की तरह दिखें। मेरे ख्याल में ज्यादा से ज्यादा तीन लोग ठीक रहेंगे और ये भी जान लो कि माल साथ जब हम काबुल पहुंचेंगे तो उन तीनों से अलग-अलग जगहों पर मिलना है। इस तरह कि जैसे हम अपनी पसंद के लोग ढूंढ रहे हैं। ताकि हम पर नजर रखी जा रही हो तो उन्हें किसी बात का शक न हो।"
"समझ गया। मैं अभी अपने लोगों से बात करता हूं।"
मोना चौधरी सुल्तान के साथ रही।
उस ठिकाने पर हजारों किलो माल तैयार पड़ा था। मीडियम साइज के प्लास्टिक के थैलों में। वहां पर गनमैन बेहद सख्त पहरा दे रहे थे। मोना चौधरी को उन्होंने गहरी नजरों से देखा।
“माल कैसे ले जाओगी? तुम्हारे पास कोई गाड़ी वगैरह नहीं है।" सुल्तान बोला।
“गाड़ी अपनी दे दो।”
एक साधारण सी वैन पर सिर्फ चार बैग रखे थे।
“ये छः सौ किलो माल है?"
“हां। एक बैग में डेढ़ सौ किलो माल है।"
“इतनी ड्रग्स से तो लाहौर बरबाद हो जाएगा।"
"अभी तक तो नहीं हुआ। हम जाने कितनी बार माल वहां भेज चुके हैं।" सुल्तान पहली बार मुस्कराया।
मोना चौधरी सिर हिलाकर रह गई।
फिर जब मोना चौधरी और जयन्त वहां से वैन लेकर चले तो शाम के पांच बज रहे थे।
■■■
गुलजीरा खान छोटे से किन्तु सजे हुए फ्लैट में मौजूद थी। इस फ्लैट में वो तब आती थी जब आरिफ से मिलने का मन हो। आरिफ उसी की ही उम्र का युवक था। दोनों में पिछले चार सालों से दोस्ताना था। जब कभी गुलजीरा खान का फुर्सत में वक्त बिताने का मन होता तो आरिफ को यहां बुला लेती। आरिफ के पिता का बिजनेस था और वो पिता के साथ ही काम करता था।
आरिफ आने वाला था। गुलजीरा खान पहले ही पहुंच चुकी थी। रात के नौ बज रहे थे।
तभी उसका मोबाइल बजा ।
"हैलो।” गुलजीरा खान ने बात की।
"मैडम।" दूसरी तरफ शमशेर था--- "वैन के साथ काबुल पहुंचने पर मोना चौधरी और जयन्त ने कुछ लोगों से बात की और उनमें से तीन लोगों को चुना और एक अन्य वैन पर माल लादकर वैन उन तीनों आदमियों के हवाले कर दी। वे वैन लेकर चले गए।"
गुलजीरा खान के माथे पर बल नजर आने लगे।
"तुम्हारा मतलब कि मोना चौधरी ने हमारा माल किसी और के हवाले कर दिया ?"
"हां...।"
"वो दोनों खुद कहां हैं?”
"अपने होटल वापस पहुंचे हैं।"
“साली कुतिया ! हमारा करोड़ों का माल उसने अनजान लोगों के हवाले कर दिया। क्या इस तरह हम माल को लाहौर नहीं भिजवा सकते!"
शमशेर की आवाज नहीं आई।
गुलजीरा खान का चेहरा गुस्से से भर चुका था।
“मोना चौधरी हमें बेवकूफ समझती है। पक्की कुतिया है। ये तो गई अब। शमशेर... ।”
"हुक्म मैडम...।"
"अपने आदमी भेजो और उन तीनों से माल लूट लो।"
"इसके लिए उन्हें खत्म भी करना पड़े तो कर दो। मैं मोना चौधरी को फेल कर देना चाहती हूँ।"
"मैं ऐसा ही इंतजाम कर देता हूं अभी।"
गुलजीरा खान ने फोन बंद किया और कहर से बड़बड़ा उठी---
"माल ठिकाने पर नहीं पहुंचेगा और मुझे बहाना मिल जाएगा मोना चौधरी को खत्म करने का। पक्की कुतिया है।"
कुछ पल गुलजीरा खान ने टहलने के पश्चात हैदर खान को फोन किया।
"हां गुल... ।" उधर से हैदर खान की आवाज कानों में पड़ी।
"मैंने तुम्हारे कहने पर मोना चौधरी को काम दिया था। वरना मैं अभी सोचती...।"
"क्या हो गया, माल लेकर भाग गई वो ?"
"नहीं। उसने हमसे माल लेकर, तीन अन्य लोगों के हवाले कर दिया लाहौर पहुंचाने के लिए... ।”
"ये तो गलत बात है। हमने मोना चौधरी के हवाले अपनी कीमती ड्रग्स की थी। इस तरह ड्रग्स को असुरक्षित ढंग से लाहौर भेजना होता तो ये काम हम भी कर सकते थे।" हैदर खान की आवाज कानों में पड़ी।
"हमसे सात हजार रुपये किलो के पीछे लिए और उनसे दो हजार रुपये का सौदा कर लिया होगा। पांच हजार खुद रख लेगी। बहुत चालाक बनती है और हमें बेवकूफ समझती है। जबकि खतरे में तो हमारा करोड़ों का माल पड़ गया।"
"ये गम्भीर बात है। हमें कुछ करना चाहिए।" उधर से हैदर खान ने कहा।
"मैंने कर दिया है।"
"क्या?"
"शमशेर उस वैन के पीछे अपने आदमी भेज रहा है। वो माल हथिया लेंगे और मोना चौधरी को खत्म करने का हमें मौका मिल जाएगा। पक्की कुतिया है ये। मुझे शुरू से ही पसंद नहीं आ रही थी।"
“मोना चौधरी और उसका साथी कहां है?"
"होटल में। हमारे आदमी उन पर नजर रख रहे हैं।"
"वो नजरों से ओझल न हो गुल... इन्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा।"
"मैं मोना चौधरी को छोड़ने वाली नहीं। बातें बड़ी-बड़ी करती थी और माल पहुंचाने के तरीके से वाकिफ नहीं है।" गुलजीरा खान ने कहा और फोन बंद कर दिया। चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे।
तभी कालबेल बजी।
गुलजीरा खान ने गहरी सांस ली और दरवाजे के पास जा पहुंची।
"कौन?" उसने पूछा।
"मैं हूं गुल... आरिफ...।"
गुलजीरा खान ने दरवाजा खोला तो लम्बे-चौड़े स्मार्ट युवक ने भीतर प्रवेश किया।
वो दरवाजा बंद करके पलटी, मुस्कराकर बोली---
"आज तो जंच रहे हो आरिफ...।"
आरिफ ने उसे बांहों में भर लिया।
गुलजीरा खान को उसके सीने से लगते ही चैन मिला। वो उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी। आरिफ ने उसे भींच लिया। गुलजीरा खान के होठों से सिसकारी निकली और बड़बड़ा उठी---
"कितना आराम मिल रहा है...।"
■■■
रात डेढ़ बजे ।
गुलजीरा खान अपने घर पर नींद में थी कि फोन बजने लगा।
“हैलो ।” गुलजीरा खान ने पास मौजूद फोन उठाकर बात की।
"मैडम!” शमशेर का स्वर कानों में पड़ा---"मैंने चार आदमी भेजे थे उस माल को वापस पाने के लिए। परन्तु तीन को मार दिया गया और चौथा घायल होकर, वहां से जान बचाकर भागा है।"
"ये कैसे हो सकता है?”
"मैं सही कह रहा हूं। अभी घायल आदमी का फोन आया। उसने बताई बात। वो कहता है कि वैन के काफी पीछे, वैन पर नजर रख रही एक कार भी थी, जिसे वो नहीं देख पाये। उन्होंने माल को सुरक्षा दे रखी थी।"
"ये मोना चौधरी तो पक्की कुतिया है!” गुलजीरा खान का चेहरा दहक उठा। फोन बंद कर दिया।
■■■
आधी रात को जयन्त का फोन बजने लगा। ये फोन उन्होंने शाम को ही बाजार से खरीदा था। बात की जयन्त ने। उधर से कही बात सुनता रहा। फिर फोन बंद करके मोना चौधरी से कहा---
"उस वैन के माल को लूटने की चेष्टा की गई...।"
मोना चौधरी के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी।
"इसका मतलब हम पर नजर रखी जा रही है। वो जानते हैं कि हमने माल कैसे भेजा। वो माल को खुद ही लूटकर, हमें कसूरवार बना देना चाहते हैं। शायद उन्हें हमारा तरीका पसन्द नहीं आया।" मोना चौधरी मुस्कराई।
"तो वो हम पर भी नजर रख रहे होंगे।" जयन्त बोला।
"पक्का ।"
"उन्होंने हमारी बात नहीं मानी। वो हम पर नजर रखवा रहे हैं।"
“तुमने कैसे सोच लिया कि वो हमारी बात मानेंगे? हमें करोड़ों का माल देकर भूल जाएंगे?"
“तुमने वैन के पीछे अपने आदमियों की कार लगाकर ठीक किया। जिन लोगों ने माल लूटने की कोशिश की थी, वो चार थे। तीन मारे गए और एक घायल होकर बच निकला।" जयन्त बोला। वो बेचैन था।
"तसल्ली हो गई उनकी कि माल सुरक्षित है?" मोना चौधरी ने व्यंग्य से कहा--- "लैला को फोन लगाओ।"
"अभी?"
"हां, अभी। लाली खान के आदमी हम पर नजर रखवा रहे हैं तो इसका फायदा हमें उठाना चाहिए।"
"कैसा फायदा?"
"सुन लेना... फोन लगाओ।"
जयन्त फोन लगाने लगा।
मोना चौधरी ने फोन लेकर कान से लगाया।
उधर बेल जा रही थी।
"हैलो...।” नींद से भरी आवाज मोना चौधरी के कानों में पड़ी।
“गु-ले-ल... ।”
"कौन हो तुम?" उधर से लैला की स्पष्ट आवाज आई।
“मोना चौधरी। जयन्त पास है मेरे। कहो तो बात कराऊं?" मोना चौधरी बोली।
"तुम अपनी बात कहो।"
"मैं तुम्हें लाली खान का एक ठिकाना बता रही हूं। वहां बहुत ड्रग्स तैयार पड़ी है। उसे आग लगा दो।"
"वहां गनमैन होंगे।"
"हां, पहरा तगड़ा है। अगर ये काम करने में तुम सफल रहीं तो लाली खान को तगड़ा नुकसान होगा।"
"ये काम तुम भी तो कर सकती हो...मुझे क्यों कह रही हो?"
"लाली खान की तरफ से हम पर नजर रखी जा रही है।"
"तो तुम लोगों का काम शुरू हो गया?"
"थोड़ा-थोड़ा... ।”
"ठिकाने का पता बोलो।"
मोना चौधरी ने नांगारहार के ठिकाने का पता बताया।
"इस काम के लिए मुझे बाहर से आदमी लेने पड़ेंगे। लाली खान के मामले में कम लोग भी दखल देने की हिम्मत रखते हैं। लेकिन पैसा ज्यादा देकर मैं लोगों को इस काम के लिए तैयार कर लूंगी।"
"अगर तुमने ये काम कर दिया तो लाली खान का तगड़ा नुकसान होगा।"
"देखती हूं... शायद ये काम हो जाए।"
मोना चौधरी ने फोन बंद करके, जयन्त को दे दिया।
जयन्त अभी भी मोना चौधरी को देख रहा था।
"हम पर नजर रखी जा रही है। ऐसे में वो सोच भी नहीं सकते कि ये काम हमने किया है।" मोना चौधरी ने कहा-- "हमारा मिशन है लाली खान के कामों को इस हद तक तोड़ देना कि वो पाकिस्तान के उस संगठन को खड़ा करने में मदद न कर सके। नांगारहार शहर के ठिकाने पर अरबों रुपयों की ड्रग्स तैयार पड़ी है। वो नुकसान लाली खान को हिलाकर रख देगा... ।”
■■■
अगले दिन हैदर खान सुबह आठ बजे ही उठ गया। आज उसने मायदान शहर के पास के खेतों पर नजर मारने जाना था। वहां के काम-काज को देखना था ।
नौ बजे तक वो बाहर जाने के लिए तैयार था।
उसका ये फ्लैट गुप्त ठिकाना था। यहां के बारे में गुलजीरा खान भी नहीं जानती थी। शमशेर से उसे इस फ्लैट का पता चल गया हो तो जुदा बात है। उसी वक्त उसका फोन बजने लगा।
"हैलो...।" हैदर खान ने बात की।
"तुम्हारे रूटीन के मुताबिक आज तुमने मायदान जाकर अफीम की फसल को देखना है।" औरत की आवाज कानों में पड़ी।
"ल... लाली...।" हैदर खान के होठों से निकला। वो कुछ हड़बड़ा गया था।
"किसी और के फोन का इंतजार था ?"
"ऐसी तो बात नहीं। मैं मायदान के लिए ही निकल रहा था।"
"मायदान के कतरा होटल में तजाकिस्तान से आया बुखेरी ठहरा हुआ है। वो हमसे ड्रग्स लेकर, हमें हथियार देना चाहता है। वो कहता है कि उसके पास बहुत बढ़िया हथियार काफी ज्यादा संख्या में हैं। उन हथियारों का एक-एक पीस वो लेकर आया है। बुखेरी से मिलो और हथियारों को चैक करके देखो कि उन्हें पाकिस्तान भेज सकते हैं हम।"
"लेकिन वो काफी ज्यादा ड्रग्स मांगेगा हथियारों के बदले...।"
“हमारे पास ड्रग्स का स्टॉक काफी है। नांगारहार के गोदाम में काफी माल है। उस माल का पांचवां हिस्सा ही बुखेरी से सौदे में बहुत होगा। मेरे ख्याल में उसके पास हमारे काम के हथियार हो सकते हैं।"
“इस बारे में चार बजे तक तुम्हें फोन कर दूंगा लाली।”
“मोना चौधरी के साथ क्या कर रहे हो?"
"वो गुल के हवाले है। कल उसे 600 किलो माल दिया था, लाहौर पहुंचाने के लिए, परन्तु उसने गड़बड़ कर दी।" हैदर खान बोला।
“उसने माल किसी और के हवाले कर दिया लाहौर पहुंचाने के लिए...।"
"तुम जानती हो?"
“मैं आंखें बंद नहीं रखती। परन्तु गुल ने उस माल को लूटने के लिए अपने आदमी क्यों भेजे?" उधर से लाली खान ने पूछा।
“ताकि ये साबित किया जा सके कि मोना चौधरी माल के मामले में लापरवाह रही। अब तक तो वो माल हमारे गोदाम में पहुंच गया होगा और मोना चौधरी को गुल ने पकड़कर बुलवा लिया...।"
"बकवास मत करो।” लाली खान का तीखा स्वर, हैदर खान के कानों में पड़ा।
"क्या ?" वो हड़बड़ाया।
“गुल के भेजे आदमी मारे गए। माल शाम तक लाहौर पहुंच जाएगा। वो रास्ते पर है।”
"ओह...।"
"मेरे ख्याल में मोना चौधरी काम की हो सकती है हमारे लिए। मैं उससे मिलना चाहूंगी।"
"ठीक है। मैं मिलने का इंतजाम कर दूंगा। लेकिन तुम कहां हो लाली?"
"मेरे पास बहुत काम हैं। खतरा भी मेरे लिए ज्यादा है, मुझे छिपकर रहना पड़ता है। हम ऐसे धंधे में हैं जहां कोई दोस्त नहीं होता। सब दुश्मन होते हैं। हम तरक्की पर हैं तो हमारे दुश्मन ज्यादा है। तुम मायदान जाओ। शाम को मुझे फोन कर के बताना।"
फोन बंद हो गया।
हैदर खान ने फोन जेब में रखा और फ्लैट लॉक करके, कार में मायदान के लिए चल पड़ा। रास्ते में उसने लैला को फोन किया। लम्बी बैल जाने के बाद, लैला की आवाज कानों में पड़ी।
"तुम हो हैदर...।"
"हाँ।" हैदर खान मुस्करा पड़ा--- "मैं हूं। तुमसे मिले कई दिन हो गए लैला ।"
"उस दिन मैंने तुम्हें कहा था कि मैं नहीं मिलूंगी अब...।"
"क्यों?” हैदर खान मुस्कराया। साथ ही तेज गति से कार दौड़ा रहा था।
"क्योंकि मैं वेश्या नहीं हूं और तुम मुझे वेश्या मानते हो।"
"तुम हो...।"
"होती तो मैं आने को मना नहीं करती।"
"क्या चाहती हो?"
"मैं वेश्या नहीं हूं। कम से कम तुम्हारे लिए तो नहीं हूं। मैंने तुम्हारे सामने कभी भी वेश्या वाला अन्दाज नहीं रखा कि आ और जा। मैंने तुम्हें हर बार औरत बनकर दिखाया है, फिर भी तुम मुझे वेश्या...।"
"ठीक है, मैं तुम्हें अब से दुगनी रकम दिया करूंगा। बोलो, अब तो तुम्हें वेश्या कह सकता हूं।"
उधर से लैला ने फोन बंद कर दिया था।
हैदर खान मुस्कराया और फोन जेब में रख लिया। चेहरे पर मुस्कान थी। तभी फोन बजने लगा। हैदर खान ने बात की।
“अब तो तुमने ही फोन किया है। मानती हो न कि तुम वेश्या ही हो और... ।”
“हैदर... ।” गुलजीरा खान का कठोर स्वर कानों में पड़ा।
"गु... गुल...।" हैदर खान के होठों से निकला।
"मुझे नहीं लगता कि आजकल तुम धंधे पर ठीक से ध्यान दे रहे हो।" उधर से गुलजीरा खान ने तीखे स्वर में कहा।
"सॉरी। मैं किसी से मजाक कर रहा...।"
"चुप हो जाओ।" गुलजीरा खान का तेज स्वर कानों में पड़ा--- "मैं मोना चौधरी को लेकर परेशान हूँ।"
"क्या किया उसने?"
"रात उसका माल लूटने के लिए जो आदमी भेजे...।"
"वो मारे गए। लाली का फोन आया था। उसने बताई ये बात।"
गुलजीरा खान ने गहरी सांस ली।
"तो लाली को पता चल गया...।"
"वो हर तरफ नजर रखती है। ये बात तुम भी जानती हो और मैं भी। वो ध्यान रखती है कि सब काम ठीक से चले।"
"मालूम है। मैंने सोचा था कि आज मोना चौधरी का किस्सा खत्म कर दूंगी उसे अयोग्य ठहराकर। लेकिन वो बच निकली।"
“तुम मोना चौधरी के पीछे क्यों पड़ी हो?"
“वो पक्की कुतिया है। मुझे वो पसन्द नहीं...।”
"धंधे के लिहाज से वो लाली को ठीक लगी है। लाली उससे मिलना चाहती है।"
"लाली पागल है!" गुलजीरा खान ने उधर से झल्लाकर कहा।
"मैं लाली से कह दूंगा कि तुम उसे पागल कह रही हो।"
"मैंने तुम्हें फोन किया था कि तुमसे पूछूं कि मोना चौधरी का क्या किया जाए...।"
"उसके पीछे खामख्वाह पड़कर अपना दिमाग खराब मत करो। उसने तुम्हारा गला क्या पकड़ा, तुम तो ये बात भूल ही नहीं रहीं। अब तो लाली भी उससे मिलने को कह चुकी है। ये सब छोड़ दो तुम... वैसे वो है कहां?"
“होटल में, अपने साथी के साथ। सुबह वो नाश्ते के लिए बाहर गए थे। उसके बाद फिर वापस होटल में आ गए।"
"शांत हो जाओ गुल। मोना चौधरी को... ।”
उसी वक्त गुलजीरा खान ने फोन बंद कर दिया था।
हैदर खान ने गहरी सांस ली और फोन जेब में रखा।
कड़ाक ।
तभी कार में तीखी आवाज उभरी और कोई चीज उसकी नाक को गर्माहट देती दूसरी तरफ के शीशे में छेद बनाकर बाहर निकल गई। हैदर खान चौंका। उस पर गोली चलाई गई थी।
हैदर खान ने दांत भींचकर एक्सीलेटर पूरा दबा दिया।
कार तीव्र झटके के साथ डबल स्पीड से भाग उठी।
उसने कार के शीशों में हुए छेदों को देखा। फिर साइड मिरर में देखा। एक कार उसे अपने कुछ पीछे दिखी।
उसके भीतर आगे की तरफ बैठे दो आदमी दिखे। वो कार भी पास पहुंचने का प्रयास कर रही थी।
हैदर खान ने दांत भींचे अपना पूरा ध्यान कार की रफ्तार पर लगा दिया।
हैदर खान को सबसे बुरी बात ये लगती थी कि कोई उस पर हमला करे या उसे धोखा दे ।
हैदर खान के मन में एक ही बात इस वक्त आ रही थी कि इन लोगों को नहीं छोड़ेगा। ये तो अच्छी बात थी कि उस पर रिवाल्वर से गोली चलाई गई। अगर गन से गोलियां चलाई गई होतीं तो वो नहीं बचता। कई बार वो सोच चुका था कि उसे अपने साथ आदमी रखने चाहिए। परन्तु भीड़-भाड़ का ख्याल सोचकर ये इरादा छोड़ देता। गुलजीरा खान तो कई बार उसे कह चुकी थी कि बिना सिक्योरिटी के खुले में न जाया करे। परन्तु उसने इस बात को कभी गम्भीरता से नहीं लिया था।
चूंकि वो मायदान के लिए चला था, इसलिए अब वो हाईवे पर आ चुका था।
हैदर खान चाहता तो पीछे आने वाले लोगों से बचकर निकल सकता था। परन्तु अपने पर गोली चलाने वालों को वो छोड़ना नहीं चाहता था। उसने दो पल के लिए कार की रफ्तार कम की। पीछे वाली कार कुछ करीब पहुंची। इतने में ही हैदर खान ने देख लिया कि उस कार के पीछे वाली सीट पर भी एक आदमी है।
यानि कि कुल तीन आदमी।
हैदर खान ने कार की रफ्तार तेज कर दी।
पुनः फासला बढ़ गया।
इसके साथ ही हैदर खान ने रिवाल्वर निकालकर गोद में रख ली। चेहरा कसा हुआ था। आंखों में वहशीपन के भाव दिखने लगे थे। आगे को नजर मारी तो सड़क खाली दिखी। पीछे वो कार थी। ठीक पीछे। करीब साठ फीट की दूरी पर।
हैदर खान ने एकाएक कार के ब्रेक लगा दिए। पहियों के रगड़ने की तेज आवाज चीखी।
पीछे वाली कार 'धड़ाक' की तेज आवाज के साथ उसकी कार से आ टकराई।
हैदर खान को तीव्र झटका लगा। चूंकि वो इस टक्कर के लिए पहले से तैयार था, इसलिए खुद को बचा गया। कार रुकते ही, गोद से रिवाल्वर उठाकर बाहर निकला और पीछे पहुंचा।
टक्कर लगने से उसकी कार की डिग्गी खुल चुकी थी।
पीछे वाली कार, डिग्गी के भीतर जा धंसी थी और उसका बोनट भी खुल गया था।
हैदर खान दांत भींचे उस कार की ड्राइविंग सीट पर पहुंचा। वहां जो भी आदमी था, उसका सिर फटा हुआ था। वो आधी बेहोशी में था। बगल में बैठे आदमी का हाल भी ज्यादा बेहतर नहीं था। पीछे वाला ठीक-ठाक था और उसे भय भरी निगाहों से देख रहा था। एकाएक उसे ध्यान आया कि उसका शिकार सामने है तो वो रिवाल्वर तलाश करने लगा। जो कि टक्कर लगने के दौरान हाथ से निकलकर नीचे कहीं जा गिरी थी।
हैदर खान ने दांत भींचकर रिवाल्वर सीधी की और ट्रेगर दबा दिया।
तेज आवाज के साथ गोली उसके सिर में लगी। वो शांत होकर एक तरफ लुढ़क गया।
फिर हैदर खान ने ड्राइविंग सीट पर मौजूद घायल आदमी के सिर से रिवाल्वर लगाई और ट्रेगर दबा दिया।
वो भी गया।
उसके बाद हैदर खान कार के गिर्द घूमकर दूसरी तरफ पहुंचा।
वहां बैठा आदमी कुछ संभल चुका था और उसके चेहरे पर आतंक के भाव थे।
“मुझे... मुझे मत मारना।”
"मुझे मारने आए थे।"
“ह... हां...।" वो कांपता सा कह उठा।
“जानते हो मुझे... ?”
“ह... हैदर खान...।" उसका कम्पन अब तेज हो गया था।
“फिर भी मुझे मारने आए...।" हैदर खान के होठों से वहशी स्वर निकला ।
“म... मेरा कोई कसूर नहीं। उस... उसने हमें बहुत पैसे दिए...।"
“किसने?"
"वो...वो वकील अली है। यही नाम उसने बताया था।”
"वकील अली!" गुर्रा उठा हैदर खान--- "कौन है ये?"
"मैं नहीं जानता। वो हमारे पास आया। हमें पांच लाख रुपये दिए और तुम्हें मारने को कहा। हम तैयार हो गए।"
"पहले कभी देखा उसे?"
"नहीं। हमने उसे पहली बार देखा था। मुझे मत मारो... मैं माफी...।"
"वकील अली की ये पांचवीं कोशिश थी मुझे मारने की।” कहने के साथ ही हैदर खान ने गोली चला दी।
उसकी गर्दन पर गोली लगी और वो वहीं लुढ़क गया।
हैदर खान ने रिवाल्वर जेब में डाली और अपनी कार में जा बैठा। कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी। चेहरे पर कठोरता और आंखों में दरिन्दगी भरी पड़ी थी। वो नहीं जानता था कि वकील अली कौन है और क्यों उसकी जान लेना चाहता है! लेकिन वो जो भी है, चुप नहीं बैठेगा ! फिर हमला करवाएगा उस पर । इस बात को हैदर खान जानता था।
"हरामजादा वकील अली! एक बार मेरे हाथ तो पड़े फिर...।"
■■■
1:50 बजे दोपहर ।
हैदर खान मायदान पहुंचा।
अफीम की फसल देखने से पहले उसने बुखेरी से मिल लेना बेहतर समझा। खेतों में उसे ज्यादा वक्त भी लग सकता था। उसने कार को कतरा होटल की तरफ मोड़ दिया। अभी सड़क पर कुछ आगे ही गया था कि एक कार उसकी कार के पीछे लग गई।
पीछे वाली कार में एक ही आदमी था, जो कि कार ड्राइव कर रहा था। उसने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
सतर्कता से उसकी निगाह, हैदर खान की आगे जाती कार पर थी। नम्बर लग गया। बात हो गई।
"सैयद साहब।” वो आदमी फोन पर बोला--- "हैदर खान मायदान आ पहुंचा है। वो कार में अकेला ही है। आपका ख्याल ठीक निकला कि लाली खान, गुलजीरा खान या हैदर खान में से कोई बुखेरी से मिलने कतरा होटल आएगा।"
"वो किस तरफ जा रहा है?" सैयद की आवाज उसके कानों में पड़ी।
"अभी ये स्पष्ट नहीं हुआ। हैदर खान की कार ऐसी सड़क पर है, जो आगे जाकर उसके अफीम के खेतों की तरफ भी जाती है और कतरा होटल की तरफ भी। पांच मिनट लगेंगे ये स्पष्ट होने में कि वो किधर जा रहा है...।"
"सावधानी से उसके पीछे लगे रहो। उसे पीछा होने का शक न हो।"
"बेफिक्र रहिए। अपने जो आदमी इसी मौके के लिए मायदान में जगह-जगह फैले हैं, उन्हें छुट्टी दे दीजिए कि काम हो गया।"
"ऐसा ही करता हू। तुम मुझे हैदर खान की खबर देते रहो।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
■■■
कतरा होटल।
मायदान शहर का सबसे खूबसूरत होटल माना जाता था। यूँ वो महज थ्री स्टार होटल ही था। परन्तु मायदान शहर के लिहाज से वो बहुत बेहतर होटल था। सर्विस से लेकर खाना-पीना यहां बेहतर था।
कतरा के एक कमरे में सैयद इस वक्त खुद मौजूद था। उसने फोन बंद किया और इन्टरकॉम पर रिसेप्शन पर फौरन 'बिल' लाने को कहा। उसके बाद कमर पर हाथ बांधे वो कमरे में टहलने लगा। चेहरे पर सोच और उलझन थी। एकाएक ठिठककर उसने फोन निकाला और लैला के नम्बर मिलाने लगा। तुरन्त ही बात हो गई।
"कोई मायदान पहुंचा क्या ?” लैला की आवाज कानों में पड़ी।
"हां। हैदर खान के मायदान पहुंचने की खबर मिली है। वो हमारे आदमियों की नजर में आ गया है।"
"तो मेरा ख्याल ठीक निकला।"
“मुझे समझ नहीं आता कि आखिर तुम चाहती क्या हो? तुमने मुझे यहां पहुंचने को कहा, मैं यहां आ गया। तुमने कहा कि उन तीनों से कोई एक अवश्य वहां पहुंचेगा। हैदर खान पहुंच गया। आखिर ये सब... ।"
"सैयद ! हमारा धंधा सही चल रहा है ना?” लैला की आवाज कानों में पड़ी--- "मैं ठीक काम कर रही हूं ना?"
"लेकिन...।"
"मेरी हर कोशिश अपना धंधा बढ़ाने की है। मैंने लाली खान की कितनी पार्टियां अपनी ओर खींच ली हैं।"
"लेकिन तुम...।"
"अब भी जो कर रही हूं, उसमें हमारा ही फायदा है।"
"लेकिन तुम कर क्या रही हो? मुझे अभी तक नहीं पता कि तुम यहां पर मेरा क्या इस्तेमाल कर रही हो। तुमने मुझे मायदान के कतरा होटल में पहुंचकर कमरा लेने को कहा। मैंने ले लिया। तुम्हारे कहने पर मैंने मायदान में आदमी फैला दिए कि उन तीनों में से कोई मायदान की सड़कों पर पहुंचे तो पता चल जाए। वो पता भी चल गया। लेकिन मुझे खुद नहीं मालूम कि मैं क्या कर रहा हूँ... ।"
"मेरी सुनो सैयद... ।"
"तुम्हारी ही तो सुन रहा हूं।"
"हैदर खान जरूर कतरा होटल में आएगा। देखना ये है कि वो अभी आता है या अफीम की फसल देखने के बाद आता...।"
"कतरा में क्यों वो...।"
"बता रही हूं। सुनते रहो! बीच में टोको मत। कतरा होटल में बुखेरी नाम का आदमी ठहरा है कल से, जो कि तजाकिस्तान से आया है। उसके पास रूसी सरकार का हथियारों का जखीरा है, जो कि कहीं से उसके हाथ लग गया था। हथियारों के उस जखीरे को बखेरी लाली खान को बेचना चाहता है और बदले में ड्रग्स लेना चाहता है। इन बातों की खबर मुझे तजाकिस्तान में मौजूद मेरे आदमी ने...।"
"आखिर तुम्हारा आदमी तजाकिस्तान में क्या कर रहा है? हम पार्टनर हैं और मुझे पता नहीं कि मेरा आदमी... ।”
"वो तुम्हारा आदमी नहीं है। मेरा पुराना दोस्त है।”
सैयद ने गहरी सांस ली।
“मुझे समझ में नहीं आता कि तुम क्या करती रहती हो...।"
"बोलो, मैं धंधा ठीक से संभाल रही हूं?” लैला की आवाज कानों में पड़ी।
"हां... ।”
“मुझसे तुम्हें शिकायत तो नहीं?"
"नहीं...।"
"धंधे में अस्सी प्रतिशत मैंने पैसा लगाया है। तुमने तो तब धंधे में पैसा लगाया जब तुम्हें विश्वास हो गया कि पैसा डूबेगा नहीं।"
सैयद ने पुनः गहरी सांस ली।
"और पार्टनर हम फिफ्टी-फिफ्टी के हैं।”
"लेकिन तुम पीछे क्यों छिपी रहती हो? मुझे आगे करके धंधे का पूरा मालिक बना रखा...।"
"मैं नहीं चाहती कि लोग मुझे जानें। इस तरह मैं ज्यादा काम कर लेती हूं। मुझे कोई नहीं जानता तो इसी का फायदा है कि मैं हैदर खान से भी खबरें निकाल लाती हूं। उसके पास हो आती हूं...। इन बातों को छोड़ो। ये तो फिर भी हो जाएंगी। इस वक्त की बात सुनो। अगर हैदर खान कतरा होटल में आता है तो तुमने उस वक्त उसके सामने से इस तरह होटल से निकलना है कि वो तो तुम्हें देखे, परन्तु उसे ऐसा लगे कि तुमने उसे देखा ही नहीं है। इसके बाद सीधे काबुल लौट आना।"
"इसका क्या फायदा ?"
“नहीं समझे?" लैला के हंसने की आवाज आई।
“नहीं...।” सैयद के चेहरे पर उलझन आ गई।
"तुम्हें कतरा होटल से बाहर निकलते पाकर हैदर खान क्या सोचेगा... बताओ।"
सैयद के चेहरे पर सोच के भाव उभरे। माथे पर बल पड़े। फिर कह उठा---
“वो यही सोचेगा कि मैं... मैं उस बुखेरी से मिलकर आ रहा...।"
“ये ही बात...।” उधर से लैला की हंसी से भरी आवाज आई--- “ये ही तो सुचवाना है हैदर खान को। तुम्हें देखते ही सारा मामला गड़बड़ा जाएगा। हैदर खान सोचेगा कि बुखेरी तुमसे भी बात कर रहा है, हथियारों का सौदा करने के लिए। ये बात उसे पसन्द नहीं आ सकती। क्योंकि बुखेरी से बहुत पुराने सम्बन्ध हैं लाली खान के । तब गड़बड़ होगी, जोकि हमारे फायदे में रहेगी। उस गड़बड़ की वजह से उनमें हथियारों का सौदा नहीं पटेगा।"
"इससे हमें क्या फायदा?"
"हथियार इन्सान को ताकतवर बनाते हैं सैयद । लाली खान के आदमियों के पास हथियार कम होंगे तो वो ज्यादा शोर-शराबा नहीं करेंगे। उन्हें हथियार मिल जाने से हम खुद को कमजोर समझने लगेंगे।"
“हथियार तो हम भी ले सकते...।"
"हमें झगड़ा नहीं करना है। धंधा करना है। ये हमारी लाली खान पर ऐसी चोट होगी कि उसे पता ही नहीं चल पाएगा कि हमने लात मारी।"
“ठीक है, तुम जो कहोगी मैं कर देता हूं। इसमें मुझें क्या एतराज...।"
"मेरी बात समझ गए?"
"हाँ...।"
"भूलना मत। वैसा ही करना।" कहने के साथ ही लैला ने फोन बंद कर दिया था।
सैयद ने भी होंठ सिकोड़े, फोन कान से हटा लिया। लैला की बात तो वो समझ गया था, परन्तु ये नहीं समझ पाया था कि इस मामले में वो टांग क्यों अड़ा रही है। इससे उन्हें खास कोई फायदा नहीं होने वाला। लेकिन उसे कोई एतराज भी नहीं था, ये मामूली काम करने के लिए।
उसी पल सैयद का फोन बजा ।
"हैलो...।"
"हैदर खान कतरा होटल की तरफ ही आ रहा है। पंद्रह मिनट में पहुंच जाएगा वहां... ।”
"जब वो कतरा होटल के करीब आ पहुंचे तो मुझे फोन पर बता देना।” कहकर सैयद ने फोन बंद किया और अपने ब्रीफकेस की तरफ बढ़ गया।
■■■
हैदर खान ने कतरा की पार्किंग में कार रोकी और नीचे उतरकर कार पर नजर मारी। बुरा हाल हो चुका था कार का। पीछे से डिग्गी पूरी पिचकी पड़ी थी। आगे के दोनों तरफ शीशों पर गोली का छेद दिख रहा था। फिर हैदर खान होटल के मुख्य प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया। उसकी सतर्कता भरी निगाह आसपास जा रही थी। सोचों में वकील अली घूम रहा था कि वो फिर कहीं घात लगाकर, उस पर हमला करवा सकता है।
हैदर खान को देखते ही दरबान ने शीशे का दरवाजा खोल दिया।
हैदर खान भीतर प्रवेश करता चला गया।
अगले ही पल हैदर खान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। वो ठिठकता चला गया।
सामने से ब्रीफकेस संभाले सैयद चला आ रहा था।
सैयद ... यहां... ?
हैदर खान के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे थे ।
सैयद सिर झुकाए तेजी से आगे बढ़ते हुए उसके पास से निकलता चला गया। वो जल्दी में लग रहा था। एक बार भी उसने नजर उठाकर इधर-उधर नहीं देखा था। देखते-ही-देखते वो होटल से बाहर निकल गया।
हैदर खान के मस्तिष्क में बिजलियां कौंधने लगीं।
सैयद कतरा होटल में?
बुखेरी भी कतरा होटल में?
हैदर खान फुर्ती से पलटा और दरबान के पास पहुंचा और कह उठा---
"ये जो जनाब अभी-अभी बाहर गए हैं, वो क्या होटल में ठहरे हैं?" हैदर खान ने पूछा।
"जी जनाब। कल रात को ठहरने होटल में आये थे।"
हैदर खान के मस्तिष्क में धमाके फूटने लगे।
एक ही विचार उसके मस्तिष्क में कौंधा कि बुखेरी ने ही सैयद को बुलाया होगा। बुखेरी हथियारों का सौदा सैयद से भी कर रहा है। जहां से बढ़िया दाम मिले, उसी से सौदा पटा लेगा। विश्वास न आया हैदर खान को कि बुखेरी ऐसा करेगा। बुखेरी से उनकी सालों पुरानी डीलिंग थी। वो सोच भी नहीं सकता था कि बुखेरी सैयद से सम्बन्ध रखेगा।
हैदर खान ने अपने पर काबू पाया। होटल के भीतर लॉबी में पड़े सोफे पर बैठ गया। दो पलों के लिए पुश्त से टेक लगाकर आंखें बंद कर लीं और जेब में हाथ डालकर मोबाइल निकाला। आंखें खोलीं और लाली खान का नम्बर मिलाने लगा।
बात हो गई।
"मैं कतरा होटल से बोल...।" हैदर खान ने कहना चाहा।
“मिला बुखेरी से?” उधर से लाली खान ने पूछा।
"मैंने सैयद को अभी होटल से बाहर निकलते देखा। वो कल रात से होटल में ठहरा हुआ है।"
"सैयद ?”
“जो काबुल में हमारे मुकाबले पर ड्रग्स का धंधा खड़ा करने की चेष्टा में है।" हैदर खान शब्दों को चबाकर बोला--- “मुझे पूरा यकीन है कि बुखेरी ने हथियारों के सौदे के लिए उसे भी बुलाया है। उससे भी बातचीत कर रहा है। ये बुखेरी की गद्दारी है हमारे प्रति। उसने ऐसा नहीं करना चाहिए। हमारे साथ उसके पुराने सम्बन्ध हैं। सैयद से उसे सम्बन्ध बनाने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए थी।"
“सच में ये गलत बात है।” लाली खान का शांत स्वर कानों में पड़ा ।
“बुखेरी को अब खत्म कर देना चाहिए। वो हमारे काम का नहीं रहा।" हैदर खान सख्त स्वर में बोला।
"खत्म कर दो।" लाली खान की आवाज कानों में पड़ी--- "लेकिन ये काम तुम नहीं करोगे। बुखेरी बेहद सतर्क रहने वाला इन्सान है और कभी भी अकेला नहीं रहता। अपने आसपास आदमी फैलाए रहता है। मायदान के ठिकाने से अपने आदमी बुलाओ और ये काम उनके हवाले कर दो।"
"मैं ऐसा ही करता हूं।" हैदर खान ने कहकर फोन काटा और पुनः नम्बर मिलाने लगा। चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे।
■■■
शाम 5 बजे ।
काबुल।
सैयद मायदान से लौटकर ठिकाने पर पहुंचा तो लैला वहां इंतजार करती मिली।
"तुम?" सैयद ने उसे देखते ही होंठ सिकोड़े।
“मुबारक हो।" लैला ने खिली मुस्कान के साथ कहा।
"किस बात की?" सैयद बैठता हुआ बोला।
“हमारी कोशिश सफल रही। लाली खान के आदमियों ने बुखेरी की हत्या कर दी, मायदान के कतरा होटल में। तुम्हारे वहां से निकलने के बाद एक घंटे के बाद ही ये सब कुछ हो गया। हमने लाली खान के एक खास आदमी को, उसी के हाथ से मरवा डाला। बुखेरी, लाली खान को अकसर हथियार सप्लाई किया करता था। लाली खान उन हथियारों को पाकिस्तान भेज देती थी या अपने आदमियों को दे देती थी।"
"इससे हमें क्या फायदा हुआ ?"
"सैयद ! हर काम में फायदा नहीं देखा जाता। कभी-कभी कोई काम बिना फायदे के भी किए जाते हैं। हम ड्रग्स का एक बुरा काम तो करते ही हैं। दूसरे बुरे काम को हम रोक सकें तो क्या हर्ज है ?"
सैयद ने लैला को देखा।
“दूसरा बुरा काम ?” उसने पूछा ।
“हथियार... ।”
"कई बार...।” सैयद सिर हिलाता कह उठा--- "तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आतीं।”
"समझने की जरूरत ही क्या है? मैं जो करती हूं, वो हमारे फायदे के लिए है। तुम्हारी नजर में हमारा धंधा कैसा चल रहा है?"
“बढ़िया।”
“अभी तो और भी बढ़िया चलेगा। मैं लाली खान की सारी पार्टियां हथिया लेना चाहती हूँ।"
"ये खतरनाक काम होगा।"
लैला ने मुस्कराकर उसे देखा।
"अपनी पार्टियों को लाली ख़ान जब हमारी तरफ आते देखेगी तो वो हमें छोड़ेगी नहीं।" सैयद ने गम्भीर स्वर में कहा।
"हम क्या कम हैं जो वो हमें मार देगी ?"
"होश में आओ लैला। तुम बहुत तेजी से आगे बढ़ रही हो।" सैयद ने बेचैनी से कहा।
"खामखाह डरो मत। लाली खान का ध्यान हमारी तरफ होगा ही नहीं...।"
"ये सम्भव नहीं...।"
“उसके पास माल ही नहीं होगा सप्लाई के लिए तो...।"
"उसके पास माल की कोई कमी नहीं। नांगारहार का गोदाम भरा पड़ा है माल से... ।"
"आज दोपहर में लाली खान के नांगारहार के गोदाम पर पच्चीस लोगों ने हमला किया। वहां के बारह गनमैनों को मार दिया। पंद्रह आदमी और थे वहां... उन्हें मार दिया और उसके बाद सारे गोदाम को आग के हवाले कर दिया। ये सब कुछ सिर्फ आधे घंटे में हो गया। हमला करने वाले वहां से चले गए। लाली खान की अरबों की ड्रग्स जलकर बरबाद हो गई।"
सैयद हक्का-बक्का सा लैला को देखने लगा।
"क्या हुआ ?” लैला हंसी।
"ये... ये कैसे हो सकता है? कोई कैसे लाली खान के गोदाम में आग लगा...।"
"पूछो ये किसने किया?" लैला गर्दन अकड़ाकर बोली।
“किसने?” सैयद की आंखें सिकुड़ीं।
"मैंने। मेरे इशारे पर ये महाजन ने किया।"
"महाजन... जो तुम्हारा साथी इंडिया से आया है?"
"वो ही...।"
सैयद ठगा सा रह गया।
“महाजन ने पच्चीस आदमी बाहर से इकट्ठे किए। मैंने उसे बता दिया था कि आदमी कहां से मिलेंगे और नोट उसे दे दिए। महाजन ने उन सब की जेबों को नोटों से भर दिया और उन्हें अपने साथ नांगारहार ले गया।"
सैयद ने व्याकुलता से पहलू बदलते हुए कहा---
"ये सब करके तुम आग से खेल रही हो लैला...।"
लैला सैयद को देखते मुस्कराकर कह उठी---
"उस गोदाम में लाली खान की हजार करोड़ की ड्रग्स होगी। यानि कि उसे अंतराष्ट्रीय बाजार में बेचा जाता तो हजार करोड़ उसकी जेब में आ जाते। परन्तु वो सारी जल गई। बाकी गोदामों में छूटपुट ड्रग्स पड़ी है। उससे हमें फर्क नहीं पड़ता। यानि कि अब लाली खान की पार्टियां टूटेगी और हमारा ड्रग्स का धंधा खूब बढ़ जाएगा।"
"तुम... तुम पागल हो गई हो ?” सैयद चौखा।
"क्यों?"
"वो पता लगा लेंगे कि ये काम किसने किया है... और फिर वो हमें नहीं छोड़ेंगे। मार देंगे हमें...।" सैयद चीख रहा था।
"परेशान होने की जरूरत नहीं। किसी को पता नहीं चल सकता कि ये काम हमने किया है। महाजन मैंने छिपा रखा है। मेरे साथ वो कभी बाहर नहीं निकलता। जब काम होता है, तभी उसे निकाला जाता है।"
"तुम मरवाओगी मुझे...।" सैयद ने माथे पर आए पसीने को साफ किया।
"मैं तुम्हें दिखा रही हूं कि हमारा धंधा कैसे बढ़ेगा। अब हमें पार्टियों के पास नहीं जाना पड़ेगा। पार्टियां हमारे पास आएंगी। दुनिया भर में जो ड्रग्स इस्तेमाल की जाती है, उसका सत्तर प्रतिशत हिस्सा अफगानिस्तान से ही जाता है। हम लाली खान की तरह दौलतमंद बन जाएंगे।"
सैयद ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
“घबराओ मत। लैला पर भरोसा रखो। मुझे चोट मारनी आती है।"
“लाली खान का अपना खुफिया दल है। वे लोग पता लगा लेंगे कि नांगारहार के गोदाम में हमारे इशारे पर आग लगाई गई।"
"चुप रहो। हमने कुछ नहीं किया।" लैला सख्त स्वर में कह उठी--- "जैसे काम कर रहे हो, वैसे ही करो। सब ठीक रहेगा।"
■■■
जयन्त का फोन बजा ।
तब रात के 8 बज रहे थे।
"हैलो...।"
"माल लाहौर में पहुंच गया।" आवाज कानों में पड़ी--- “अब क्या करना है?"
"लाहौर में कहां हो तुम। सब कुछ बताओ, अभी आदमी आकर तुमसे वैन ले लेंगे।"
उन्हें बताया गया कि चैन किस जगह पार्किंग में खड़ी है।
उसके बाद जयन्त ने लाहौर के उस नम्बर पर फोन किया जो गुलजीरा खान ने बताया था।
"हैलो।" उधर से आवाज कानों में पड़ी।
"तुम्हारा माल पहुंच गया है लाहौर में।"
"कौन सा माल?"
"लाली खान ने भेजा है माल ।"
“कहां है माल...।"
वैन का ठिकाना बताकर जयन्त ने कहा---
"चाबी वैन में लगी है। वैन के पास मेरा आदमी होगा। उसे लाल पत्ता कहना, वो वैन तुम्हारे हवाले कर देगा।"
"समझ गया। मेरे आदमी वहां आधे घंटे में पहुंच जाएंगे।" उधर से कहा गया।
जयन्त ने फोन काटा और अपने आदमी को फोन किया, जिसका फोन अभी आया था।
“जो भी तुम्हारे पास आकर तुम्हें 'लाल पत्ता' कहे, वैन उसके हवाले करके वापस आ जाना।" जयन्त ने कहा।
"ठीक है।"
जयन्त ने फोन बंद किया और सामने कुर्सी पर बैठी मोना चौधरी को देखा।
"हमारा काम ठीक चल रहा है...।” जयन्त मुस्कराया।
"ये तो शुरूआत है। आगे भी सब ठीक रहे तो मजा तब है।"
"नांगारहार वाला गोदाम तो जल गया।"
“उससे लाली खान को बहुत नुकसान होगा।" मोना चौधरी ने कहा--- "समझो, ये आग लाली खान के दिल पर लगी है। वो काफी बड़ा गोदाम था। मैंने वहां पड़ी ड्रग्स के रूप में तबाही देखी थी।"
"हमने तो कुछ नहीं किया। हम तो होटल में बंद हैं।" जयन्त मुस्कराया।
“लेकिन हमें सतर्क रहना होगा। लैला की तरफ से कोई गलती हो सकती है और हम पकड़े जा सकते हैं।"
"लैला पर भरोसा रखो। वो कम नहीं है। वैसे भी लैला पर कोई शक नहीं कर सकता। क्योंकि धंधा सैयद चलाता है। सब ये ही जानते हैं।"
"तुम लाली खान को कम क्यों समझते हो?"
"ये बात नहीं...।"
"इस वक्त हम आग के कएं में हैं और कभी भी लपटें हमें छू सकती हैं।" मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा।
आधे घंटे बाद जयन्त का फोन बजा।
"हैलो...।"
"कुछ लोग लाल पत्ता कहकर वैन ले गए हैं।"
"ठीक है। तुम लोग वापस आ जाओ।" कहकर जयन्त ने फोन बंद किया और मोना चौधरी से बोला--- “अब हमें गुलजीरा खान को माल डिलीवर हो जाने के बारे में बता देना चाहिए। तुम बात करो, मैं नम्बर मिलाता हूं।"
"तुम ही बात करो। मेरे से वो जलती है।" मोना चौधरी ने मुस्कराकर कहा।
जयन्त ने फोन पर गुलजीरा खान से बात की।
“माल लाहौर में डिलीवर कर दिया गया है। तुम मालूम कर सकती हो।" जयन्त ने कहा।
"खबर मिल गई है।” गुलजीरा खान का रूखा स्वर कानों में पड़ा--- "सुल्तान तुम्हारे पास आएगा।"
जयन्त फोन बंद करके बोला--- "वो जानती है कि हम होटल में ही हैं।"
“जरूर जानती होगी। उसके आदमी हम पर नजर रखे हुए हैं।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
■■■
8:45 बजे।
गुलजीरा खान और हैदर खान एक कमरे में मौजूद थे। कमरे में सोफा लगा हुआ था। खिड़कियों पर पर्दे थे। कमरे का माहौल बेहद तनावपूर्ण था। गुलजीरा खान के चेहरे पर खतरनाक भाव नजर आ रहे थे।
हैदर खान भी रह-रहकर दांत भींच रहा था।
"ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।" हैदर खान कह उठा--- "कोई हमारे खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता। गोदाम पर हमला करके, हमारे आदमियों को मारकर, गोदाम में रखे माल को जला देना तो बहुत बड़ी बात हो गई।"
"1000 करोड़ से ज्यादा का माल था।" गुलजीरा खान कह उठी--- "ये हमारा तगड़ा नुकसान है। दोबारा माल को तैयार करने में महीनों का वक्त लग जाएगा। ऐसे में हम कहां से माल सप्लाई करेंगे? हमारी साख बिखर जाएगी बाजार में...।"
"लाली ने इन ड्रग्स के पैसों से कई काम करने को सोच रखे होंगे, वो सब रह जाएंगे।" हैदर खान दांत भींचकर बोला--- "समझ में नहीं आता... कि ये सब करवाने के पीछे कौन है?"
"शमशेर पता कर रहा है। वो दोपहर से ही इसी काम पर है।" गुलजीरा खान ने कठोर स्वर में कहा।
तभी गुलजीरा खान का फोन बजा
उसने स्क्रीन पर आया नम्बर देखा और कालिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया।
“हां, लाली... ।”
"मैं तुम लोगों से मिलना चाहती हूं। तुमसे और हैदर से...।"
"हैदर मेरे पास ही है। "
“रात दस बजे, जहीर नाके के पास, मेरी वो ही गाड़ी...।"
"समझ गई...।"
तभी हैदर खान कह उठा--
“लाली से पूछो कि मोना चौधरी को साथ ले आएं?"
गुलजीरा खान के चेहरे पर नापसन्दगी के भाव आ ठहरे।
“लाली ने उससे मिलने को कहा था।" हैदर खान कह उठा।
“मोना चौधरी हमारे पास आने वाली है।" गुलजीरा खान ने फोन पर कहा--- "क्या उससे मिलना चाहोगी?"
“लेते आना। मैं उसे देखना चाहती हूं...।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
फोन वाला हाथ नीचे करती गुलजीरा खान कह उठी---
"जब से इस पक्की कुतिया के पांव हमारे धंधे में पड़े हैं, तभी से ही गड़बड़ शुरू हो गई। ये हमारे लिए शुभ नहीं है।"
“मोना चौधरी ने हमारा माल सुरक्षित लाहौर पहुंचा दिया है।" हैदर खान ने शांत स्वर में कहा--- “उसके काम की कद्र करो।"
“मैं उसे पसन्द नहीं करती...।” गुलजीरा खान गुर्राई ।
उसी पल दरवाजा खुला और सुल्तान भीतर आया।
“मोना चौधरी और जयन्त को ले आया हूं...।"
"भेजो।" गुलजीरा खान ने गुस्से से कहा ।
“अपने को ठीक करो। उससे इस तरह का व्यवहार करके तुम गलत कर रही हो।" हैदर खान ने कहा।
सुल्तान चला गया और मोना चौधरी, जयन्त ने भीतर प्रवेश किया। पल भर के लिए वो ठिठके ।
"आओ।" हैदर खान ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा--- "बैठ जाओ।"
दोनों आगे बढ़े और सोफों पर जा बैठे।
यही वो पल थे कि दरवाजे पर आहट उठी और शमशेर ने भीतर प्रवेश किया।
गुलजीरा खान और हैदर खान उसे देखते ही संभले ।
"कोई खबर है शमशेर ?” गुलजीरा खान ने पूछा।
"तीन दिन पहले जनाब हैदर साहब के नाम पर माल लूटा गया था...।"
"वैन से ?" हैदर खान बोला--- “जिसे हमने माल दोबारा दिया।"
"वो ही। वो ही आदमी, नांगारहार के गोदाम पर, हमला करने वालों का लीडर बना हुआ था।"
"वो ही आदमी ?"
"जी हां, जो हुलिया हमने यहां सुना, उसका वो ही हुलिया नांगारहार में सुनने को मिल रहा है। कुछ का कहना है कि वो हिन्दुस्तानी दिखता है।"
मोना चौधरी समझ गई कि महाजन के बारे में बात हो रही है।
जयन्त भी समझ गया।
परन्तु दोनों ऐसे बैठे थे जैसे इस बात से उनका कोई वास्ता, लेना-देना ही न हो।
"हिन्दुस्तानी?” गुलजीरा खान के दांत भिंच गए।
"कुछ का कहना है कि वो हिन्दुस्तानी दिखता था।" शमशेर ने पुनः कहा।
"उसकी कोई खबर मिली ?”
"नहीं।"
“शमशेर !" हैदर खान ने कठोर स्वर में कहा--- “पच्चीस आदमी थे हमला करने वाले। ये बात छिपी नहीं रह सकती। हर हाल में बात बाहर आएगी कि वो कौन थे... क्योंकि वो सब स्थानीय लोग थे।"
"उनके बारे में जल्दी ही पता चल जाएगा। मेरे सारे आदमी इसी काम पर लगे हैं। मैं हमला करने वालों को ढूंढ के रहूंगा।" शमशेर ने दृढ़ स्वर में कहा--- “जाता हूं। यहां से निकल रहा था तो आ गया।" वो पलटकर चला गया।
गुलजीरा खान और हैदर खान की नजरें मिलीं।
"वो हिन्दुस्तानी कौन हो सकता है?" गुलजीरा खान ने कठोर स्वर में कहा।
"पता चल जाएगा।" कहते हुए हैदर खान ने मोना चौधरी पर नजर मारी।
दोनों की नजरें मिलीं।
तभी गुलजीरा खान मोना चौधरी से कह उठी---
"तो तुमने माल को लाहौर डिलीवर करा दिया?"
"हां...।"
"कोई परेशानी?" गुलजीरा खान का लहजा तल्ख था।
"चार लोगों ने रास्ते में माल को लूटने की कोशिश की, परन्तु उनसे निपट लिया गया। मेरे ख्याल में ये बात तुम लोगों की तरफ से बाहर निकली कि उस वैन में ड्रग्स ले जाई जा रही है।" मोना चौधरी ने कहा।
"अपना दिमाग ज्यादा मत लगाओ।" गुलजीरा खान के माथे पर बल पड़े--- "मेरे आदमी तुम पर नजर रख रहे थे।"
"मुझ पर या माल पर?"
"तुम पर...।"
"मैंने कहा था कि हम पर नजर मत...।"
“ये मेरा धंधा है और मुझे पता है कि मैंने कैसे करना है। मेरे सामने तुम अपनी जुबान को लगाम देकर रहो।"
मोना चौधरी ने जयन्त को देखा।
“गुस्सा मत करो।" जयन्त ने मोना चौधरी से कहा--- "गुलजीरा खान से हमारा रिश्ता नया है । सम्बन्ध बनने और सुधरने में वक्त लगेगा। ये जैसे भी बोलती है, इसे बोलने दो। तुम अपने पर कंट्रोल रखो।"
मोना चौधरी खामोश रही।
"तुमने हमारा 600 किलो माल किन्हीं अनजान लोगों के हवाले कर दिया। उनके द्वारा माल लाहौर पहुंचाया गया। वो रास्ते में माल को किसी दूसरे के हवाले कर सकते थे। माल लेकर गायब हो सकते थे। कुछ भी गड़बड़ कर सकते थे।"
"गड़बड़ हुई तो नहीं...।" मोना चौधरी मुस्कराई।
“हो जाती तो?" गुलजीरा खान के माथे पर बल पड़े।
"तो मैं जिम्मेदार थी।"
"मुझे पसन्द नहीं कि मेरा कीमती माल अनजान हाथों में जाए...।" गुलजीरा खान ने कहा।
"तुम्हारा माल मेरे हाथों में है, तुम सिर्फ ये ही सोचो। जैसे कि तुम अपना काम करना जानती हो, वैसे ही मैं जानती हूं कि मुझे कौन सा काम कैसे करना है। तुम्हारा माल अनजान हाथों में नहीं था। मैं काबुल में रही, परन्तु मेरी नजर हर वक्त माल पर थी। मुझे पल-पल की खबर थी।"
"कैसे?"
"अन्दर की बात मत पूछो। ये मेरा सीक्रेट है। काम हो गया, अब हमें कीमत मिल जानी चाहिए।"
"चार लाख बीस हजार। सात हजार रुपये एक किलो पर। हमारे इतने ही बनते हैं।" जयन्त ने कहा ।
गुलजीरा खान उठी और एक अन्य दरवाजे के भीतर चली गई।
हैदर खान, मोना चौधरी को ही देख रहा था।
मोना चौधरी उसे देखकर मुस्कराई।
"हैलो! तुम गुलजीरा खान के साथ कैसे काम कर लेते हो? इसे तो ठीक से बात करना भी नहीं आता।" मोना चौधरी मुस्कराकर बोली।
हैदर खान मुस्करा पड़ा।
"तुम मेरे लिए काम करना शुरू कर दो।" मोना चौधरी बोली--- "मुनाफे का पांच परसेंट दूंगी।"
तभी गुलजीरा खान हाथ में नोटों की गड्डियां थामें वहां पहुंची और उनके सामने रख दिए।
"चार लाख, बीस हजार ।"
जयन्त गड्डियों को उठाकर जेब में ठूंसने लगा।
मोना चौधरी ने गुलजीरा खान से कहा---
“आगे का क्या प्रोग्राम है?"
"मतलब कि हमारे लिए कोई और काम है या हम अपने रास्ते पर लगें।"
“मैं तो तुम्हें खड़े पांव यहां से भगा देना चाहती...।” गुलजीरा खान ने कहना चाहा कि हैदर खान ने टोका।
“थोड़ी देर इंतजार करो। तुम्हें किसी से मिलवाना है।”
"किससे?" मोना चौधरी ने हैदर खान को देखा।
“साथ वाले कमरे में जाकर बैठो। वक्त आने पर तुम्हारे सवाल का जवाब मिल जाएगा।"
गुलजीरा खान, मोना चौधरी को घूरे जा रही थी।
"ठीक है।" मोना चौधरी उठते हुए बोली--- "क्या तुम मेरे साथ एक पैग लेना चाहोगे ?"
"अभी नहीं।" हैदर खान छोटी सी मुस्कान के साथ बोला--- "अभी मैं व्यस्त हूं...।"
"मर्जी तुम्हारी।"
मोना चौधरी और जयन्त दूसरे कमरे में पहुंचे। जहां बैठने का आरामदेह इंतजाम था।
कुछ देर बाद एक आदमी उन्हें बोतल, दो गिलास और खाने का सामान दे गया।
"हमें लाली खान से मिलवाया जाएगा...।" मोना चौधरी फुसफुसाकर जयन्त के कान में बोली।
"ये बात तुम कैसे कह सकती हो?"
"मेरा दिल कहता है। हम इनके बीच घुसने में शायद कामयाब रहे हैं।" मोना चौधरी की आवाज बेहद धीमी थी।
जयन्त के होंठ सिकुड़े। बोला कुछ नहीं ।
"शायद पारसनाथ का भी कुछ पता...।"
"पारसनाथ की परवाह मत करो।” जयन्त आहिस्ता से बोला--- “उसे चीफ आजाद करा लेंगे। तुम मिशन की तरफ ध्यान दो। लाली खान को हमने इस हद तक बरबाद करना है कि वो पाकिस्तान में तैयार किए संगठन को आर्थिक सहायता न दे सके और संगठन बिखर जाए ।"
■■■
9:35 बजे ।
एक कार में गुलजीरा खान और हैदर खान, उस जगह से बाहर निकले। पीछे वाली वैन में चार आदमियों के बीच मोना चौधरी और जयन्त बैठे थे। दो कारें सबसे आगे और दो पीछे, हथियारबंद आदमियों की भरी थीं।
चार गाड़ियों का काफिला खामोशी से उस ठिकाने से निकला था।
बीस मिनट बाद सफर रुका।
एक सड़क के किनारे वो शांत सी जगह थी। ठण्डी हवा चल रही थी। सड़कों पर वाहन न के बराबर थे।
कुछ ही मिनट बीते होंगे कि वहां एक लम्बी काली वैन आ रुकी।
आगे वाली कार से गुलजीरा खान और हैदर खान बाहर निकले और उस वैन की तरफ बढ़ गए।
"उन दोनों को यहां भेजो... ।" हैदर खान ने कहा।
मोना चौधरी और जयन्त को घेरे बैठे आदमियों में से एक बोला---
"उतरो तुम दोनों और उस वैन में जाओ।"
दोनों वैन से बाहर निकले।
वैन वाले आदमी, वैन में ही सतर्क बैठे रहे। देखते रहे।
गुलजीरा खान और हैदर खान वैन के भीतर जा चुके थे।
मोना चौधरी और जयन्त वैन के खुले दरवाजे पर रुके। ठिठके से भीतर देखा।
सामने ही गुलजीरा खान बैठी नजर आई।
"भीतर आ जाओ और दरवाजा बंद करो।" गुलजीरा खान ने कहा।
दोनों ने भीतर प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर दिया।
शानदार सजी-सजाई वैन थी भीतर से। छोटे से सजे हुए कमरे का रूप दे रखा था भीतर से। गुलजीरा खान और हैदर खान के अलावा एक और युवती थी वहां। उसका चेहरा गुलजीरा खान और हैदर खान से मिल रहा था।
स्पष्ट था कि वो लाली खान ही थी।
उन्हें देखते हुए लाली खान ने अपनी पीठ पीछे वैन के हिस्से को थपथपाया तो वैन वहां से चल पड़ी।
"बैठ जाओ।" लाली खान ने शांत स्वर में कहा।
वहां कुर्सियां मौजूद थीं। यहां दोनों बैठ गए। नजरें लाली खान पर थीं।
लाली खान ने फूलों की छाप वाला कमीज-सलवार पहन रखा था। होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी। चेहरे का रंग गोरा और सुर्ख। कानों में लटकते झुमके और गले में चमकता डायमंड का नैकलेस। एक कलाई में सोने का मोटा कड़ा पहन रखा था, जिसमें मोटे-मोटे हीरे जड़े चमक रहे थे। वहां पर्याप्त रोशनी थी परन्तु गहरे काले शीशे होने की वजह से रोशनी बाहर से नहीं देखी जा सकती थी। उसकी आंखों में काजल लगा था। वो बेहद खूबसूरत थी। शानदार थी। अफगानिस्तान की ड्रग्स की कमान, उसके हाथों में थी। वो बेहद खतरनाक भी थी।
“मुझे लाली खान कहते हैं।" मोना चौधरी और जयन्त को देखते वो भावहीन स्वर में कह उठी--- "धंधे में जब भी किसी नये की लेते हैं तो मैं एक बार उसे अवश्य देखती हूं। तुम दोनों को भी देख लिया। ठीक तरह से काम किया तुम दोनों ने। लेकिन माल को किसी दूसरे के हाथों में देकर खुद बैठ जाना, अच्छी बात नहीं है। परन्तु हमें इससे कोई मतलब नहीं। हमें अपना काम पूरा करना चाहिए। तुम दोनों अपने हिसाब से काम करना चाहते हो तो बेशक करो। जहाँ भी गलती हुई तो तुम दोनों को खत्म कर दिया जाएगा। हम दूसरा मौका नहीं देते। जब तक हमारा काम ठीक से करते रहोगे, तुम दोनों को भरपूर नोट मिलते रहेंगे। नोटों की हमारे पास कमी नहीं। हमें सिर्फ काम करने वाले चाहिए।"
"और हमें नोट चाहिए।" मोना चौधरी मुस्कराई--- "हमारी अच्छी पटेगी।"
लाली खान ने हाथ पीछे करके वैन की बॉडी को थपथपाया। नजरें मोना चौधरी पर थीं।
"मैं उन औरतों को पसन्द करती हूं जो बहादुरी का काम करती हैं। हमारी ये मुलाकात खत्म हुई। अब हम नहीं मिलेंगे। गुल या हैदर ही तुमसे काम लेते रहेंगे।” वैन रुक चुकी थी--- “दरवाजा खोलो और उतर जाओ।"
“इतनी छोटी सी मुलाकात...।" मोना चौधरी ने कहना चाहा।
लाली खान ने हाथ आगे बढ़ाया और दरवाजा सरकाकर धकेल दिया।
मोना चौधरी और जयन्त ने लाली खान को देखा।
लाली खान दोनों को ही देख रही थी।
अगले ही पल दोनों वैन से बाहर निकल गए।
तभी हैदर खान उठा और दरवाजा बंद करने लगा। बाहर खड़ी मोना चौधरी से नजरें मिलीं। मोना चौधरी मुस्कराई तो हैदर खान भी मुस्कराया और दरवाजा बंद करके वापस आ बैठा !
लाली खान ने वैन की बॉडी थपथपाई तो वैन पुनः चल पड़ी।
“मोना चौधरी हमारे काम की है।" लाली खान बोली--- "मैं चेहरा देखकर पहचान लेती हूं। इससे हर तरह का काम लिया जा सकता है। पैसा दो और काम लो। लेकिन मैंने ये सब क्या सुना? नांगारहार के गोदाम में आग लगा दी गई! हमारा 1000 करोड़ रुपये का माल जला दिया! कौन है वो जिसने ऐसी हिम्मत की? इतने बड़े नुकसान के बारे में तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। शर्म की बात है कि तुम दोनों के होते हुए ये सब हुआ। अब तक पता भी नहीं लगाया कि ये सब किसने किया?"
"हम पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं।" गुलजीरा खान ने धीमें स्वर में कहा--- "लेकिन मुझे इस बात की चिन्ता है कि अब हमारा धंधा कैसे चलेगा। क्योंकि पार्टियों को माल देने के लिए, हमारे पास ज्यादा ड्रग्स नहीं रही।"
"अगर हमने पार्टियों को माल नहीं दिया तो वो सैयद या किसी और से माल लेना शुरू कर देंगी।"
"ऐसा नहीं होगा।" लाली खान कह उठी।
"तो हम क्या करेंगे?"
"अफगानिस्तान से कोई ड्रग्स बाहर जाएगी तो हमारे द्वारा ही जाएगी।" लाली खान ने होंठ भींचकर कहा--- "हम पार्टियां दूसरे के यहां नहीं जाने देंगे।”
"ये कैसे संभव है लाली?" गुलजीरा खान ने कहा।
लाली खान ने दोनों को देखा और कह उठी---
"सैयद के पास और दूसरों के पास जितनी ड्रग्स है, वो सब खरीद लो। इस तरह सौदा करो कि उन्हें पता नहीं चलना चाहिए कि इस सौदे के पीछे हम हैं। वरना हो सकता है वो सारी ड्रग्स बेचने से इनकार कर दे। एक किलो ड्रग्स भी किसी के पास बची न रहे।"
“इस तरह तो हमें नुकसान होगा।" हैदर खान बोला--- "हमें कुछ भी बचने वाला नहीं।"
“हमारा धंधा बचा रह जाएगा। पार्टियां नहीं टूटेंगी। फायदे की मत सोचो। सोचो तो दूर तक रहने वाला फायदा सोचो। खरीदी ड्रग्स से हम अपना धंधा चलाएंगे और अगले पांच-सात महीनों में हमारी अपनी ड्रग्स तैयार होना शुरू हो जाएगी। फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। फिर जब अफगानिस्तान में ड्रग्स किसी और के पास नहीं होगी तो हम भाव बढ़ा भी सकते हैं। हमें हर हाल में अपना धंधा संभाले रखना है।"
“ये अच्छा आइडिया है।” गुलजीरा खान ने कहा !
“हमने जो भी कमाया, ड्रग्स से कमाया। हमारा ये धंधा खराब नहीं होना चाहिए। आगे भी हम इसी से कमाएंगे।" लाली खान दोनों को देखकर बोली--- "मैं जो कह रही हूं, सिर्फ वो ही करो। बाजार से सारी ड्रग्स खरीद लो। दाम कुछ भी हो, हमारे अलावा ड्रग्स सप्लाई करने वाला कोई और न रहे अफगानिस्तान में। हमारी पार्टियां बनी रहें, इसी में हमारी जीत है।"
“इसमें हमारा बहुत पैसा बाहर निकलेगा।" गुलजीरा खान ने कहा।
"पैसे की परवाह मत करो। बेशक सारा लगा दो। हमें हर हाल में ड्रग्स के धंधे का सरताज बना रहना है। ये काम खामोशी से हो। ड्रग्स खरीदने के लिए ऐसे लोगों को भेजो, जिनके बारे में, ये कोई न जानता हो कि वो हमारे लोग हैं। वरना कोई बड़ा ड्रग्स डीलर अपनी ड्रग्स न बेचने को अड़ सकता है। बेशक इस काम में मोना चौधरी का इस्तेमाल करो। उसके बारे में अभी कोई नहीं जानता कि वो हमारे साथ है।"
गुलजीरा खान और हैदर खान खामोश रहे।
"साथ ही मुझे वो लोग चाहिए, जिन्होंने हमारे नांगारहार वाले गोदाम को जलाया है।" लाली खान के चेहरे पर खतरनाक भाव दिखने लगे--- "मैं जानना चाहती हूं कि किसके इशारे पर हमारे माल को जलाया गया। हर किसी में हिम्मत नहीं, हमसे पंगा लेने की!" कहने के साथ ही लाली खान ने वैन की बॉडी को थपथपाकर कहा--- "वापस चलो... ।"
■■■
मोना चौधरी और जयन्त जहां उतरे थे, वो सुनसान सा इलाका था। नहीं जानते थे कि होटल जाने के लिए टैक्सी कहां से मिलेगी। दोनों टहलते हुए आगे बढ़े और जयन्त कह उठा---
"ये क्या बात हुई? लाली खान से ज्यादा बात भी नहीं हो सकी।"
"वो सतर्क रहती है। देखा नहीं वो अपने भाई-बहन से कैसे मिलती है।" मोना चौधरी बोली।
"लेकिन हमसे मिलकर उसने क्या किया जो...।"
“अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। उसके नाम के दबदबे को हम याद रखें। उसका खौफ खायें। इसलिए एक बार उसने अपने दर्शन दिए।"
“तो अब हम लाली खान के काम के लिए पक्के हो गए...।"
“हां।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया--- "लाली खान से मिलने का मतलब है कि अब हमसे काम लिया जाएगा।”
"काम क्या करेंगे? ड्रग्स तो खास बची नहीं होगी लाली खान के पास... कितनी ड्रग्स को तो आग... ।”
“ये हमारी सिरदर्दी नहीं है। उनकी सिरदर्दी है।” मोना चौधरी बोली ।
"हमें लाली खान के धंधे की उन नाजुक जगहों को तलाश करना चाहिए, जहां चोट पहुंचाकर हम लाली खान को कमजोर कर सकें।"
"धीरे-धीरे हमें ऐसी जगहों के बारे में पता चलना शुरू हो जाएगा। लेकिन हमें सतर्क रहना होगा हर मौके पर। इन्हें जरा भी हम पर शक हुआ तो, हमें शूट करने में देर नहीं लगाएंगे।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
"तो कल से हमारा काम शुरू होगा। हमें नया काम देंगे करने को। इन पैसों का क्या करूं?" जयन्त ने अपनी जेबें थपथपाई।
"संभाले रखो। काम आएंगे।"
तभी पीछे से आती एक कार उनके पास आ रुकी।
सतर्क निगाहों से, ठिठक कर उन्होंने कार में देखा। वहां अंधेरा था। परन्तु आगे दो आदमी बैठे दिखे।
"भीतर आ जाओ।" ये आवाज सुल्तान की थी।
दोनों कार में जा बैठे। कार आगे बढ़ गई।
■■■
गुलजीरा खान और हैदर खान उसी कमरे में बैठे थे, जहां से उठाए गए थे।
"ड्रग्स खरीदने के लिए हमें रणनीति तैयार करनी होगी।" गुलजीरा खान ने कहा--- "क्या इस काम में मोना चौधरी का इस्तेमाल करें?"
"वो नई है यहां, वो ठीक रहेगी।"
"पता नहीं क्यों मेरा मन नहीं करता। वो पक्की कुतिया जो ठहरी... ।” गुलजीरा खान सख्त स्वर में बोली।
"अपना दिमाग ठीक रखो गुल।" हैदर खान ने कहा--- "तुम किसी वकील अली को जानती हो?"
"वकील अली...।” गुलजीरा खान ने उसे देखा--- "ये कौन है?"
“मैं नहीं जानता कि ये कौन है ! परन्तु ये जो भी है, मुझ पर पांच बार खतरनाक ढंग से हमला करा चुका है। मुझे मारना चाहता है।"
"तुमने ये बात पहले क्यों नहीं बताई ?"
"तुम क्या करतीं?"
"मैं वकील अली के बारे में जानने की कोशिश करती...।"
“अब पता लगा लेना...।" हैदर खान बोला--- “अब तुम आरिफ से तो नहीं मिलतीं ?”
"क्यों?" गुलजीरा खान ने हैदर खान की आंखों में झांका।
"वो मुझे ठीक नहीं लगता। वो...।"
तभी गुलजीरा खान का फोन बजा।
"हैलो...।"
"एक नई बात पता चली है मैडम।" शमशेर था दूसरी तरफ--- "सैयद के धंधे में उसका कोई हिस्सेदार भी है।"
"हिस्सेदार! तुम्हारा मतलब पार्टनर?" गुलजीरा खान के माथे पर बल पड़े।
"हां। सुना है वो कोई औरत है।”
"औरत !" माथे के बल गहरे हो गए--- "क्या उसे किसी ने देखा है?"
"मेरा एक आदमी दावा करता है कि वो उस औरत को पहचानता है। कई बार सैयद के साथ देख चुका है।"
"कहीं वो पक्की कुतिया तो नहीं... ।”
"मैं समझा नहीं मैडम ... ।”
"उस आदमी को मोना चौधरी दिखाना कि कहीं वो ये तो नहीं।"
"ठीक है मैडम।"
गुलजीरा खान ने फोन बंद करके सारी बात हैदर खान को बताई।
“हैरानी है।” हैदर खान बोला--- "पहले कभी ये बात तो सुनी नहीं कि सैयद का कोई हिस्सेदार भी है, वो भी औरत... ।”
“मुझे शक है कि कहीं वो औरत, ये पक्की कुतिया न हो!"
हैदर खान ने तीखी निगाहों से गुलजीरा खान को देखा ।
तभी दरवाजे पर आहट हुई और सुल्तान के साथ मोना चौधरी और जयन्त ने भीतर प्रवेश किया।
गुलजीरा खान का इशारा पाकर सुल्तान बाहर निकल गया।
“अभी क्यों बुलाया गया ?" जयन्त बोला--- "क्या हमें कोई काम सौंपा जाने वाला है?"
"रात यहीं रहो। सुल्तान किसी कमरे में तुम्हारा इंतजाम कर देगा। सुबह कोई खास काम तुम दोनों को देना है।"
मोना चौधरी की निगाह हैदर खान और गुलजीरा खान के चेहरों पर जाती रही।
“सुल्तान बाहर ही है। जाओ उसके पास...।"
मोना चौधरी और जयन्त बाहर निकल गए।
"मैं भी चलूंगा।" हैदर खान उठते हुए बोला--- "तुमने बताया नहीं कि आरिफ से मिलती हो अभी...।"
"हां।" गुलजीरा खान की आवाज में तीखे भाव आ गए।
"मैंने तुम्हें मना किया था कि उससे मत मिलो। वो मुझे ठीक नहीं लगता।"
"खराबी क्या है आरिफ में?" उसी लहजे में बोली गुलजीरा खान।
"खटकता है वो मुझे। तभी तुमसे कहा।"
"मेरे मामलों में तुम्हें बोलने की कोई जरूरत नहीं है। अपने काम से मतलब रखा करो तुम...।" गुलजीरा खान का स्वर उखड़ गया।
हैदर खान ने उसे घूरा, फिर पलटकर बाहर निकलता चला गया।
■■■
“परेशान लग रही हो...।"
रात डेढ़ बजे गुलजीरा खान उसी फ्लैट में पहुंचकर आरिफ का इंतजार कर रही थी, जहां उससे हमेशा मिला करती थी। फोन कर दिया था आरिफ को। वो जब आया तो उसके चेहरे पर नजर मारते ही कह उठा था।
"हां। आज सच में परेशान हूं...।"
"मैं तुम्हें परेशान नहीं देख सकता गुल। मुझे बताओ कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ...।”
"कुछ नहीं...।" गुल ने गहरी सांस ली।
"लेकिन कुछ मुझे भी पता चले कि तुम परेशान क्यों हो?"
"किसी ने हमारा हजार करोड़ का गोदाम जला दिया।” गुल कह उठी।
“बुरा हुआ... 1000 करोड़ रुपये का नुकसान छोटा नहीं होता। उसे पकड़ लिया होगा?” आरिफ उसके सामने बैठता कह उठा।
“शमशेर ढूंढ रहा है उसे ।" गुल ने गम्भीर स्वर में कहा।
“किसने किया होगा ये काम ?”
"किसी ऐसे इन्सान ने जो हमें बरबाद कर देना चाहता है।" गुल के चेहरे पर सख्ती नाच उठी थी।
“अब उसकी खैर नहीं।"
“हां। वो बहुत जल्दी मार दिया जाएगा।"
“तुम्हारे पास और माल तो होगा, सप्लाई करने के लिए...।”
"खास नहीं बचा। सारा माल नांगारहार के गोदाम में ही रखा था। हमेशा वहीं रखा जाता है।"
"तो फिर पार्टियों को माल कैसे सप्लाई करोगे? पार्टियां किसी दूसरे ड्रग्स डीलर के पास चली जाएंगी... ।" आरिफ ने कहा।
"ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। कल से हम हर ड्रग्स डीलर से ड्रग्स खरीद लेने में लग जाएंगे।"
"दूसरे ड्रग डीलर तुम्हें अपना माल क्यों बेचेंगे? वो तो सीधे पार्टियों को देंगे।"
"किसी को पता ही नहीं चलेगा कि वो माल हमारे लोग खरीद रहे हैं।"
"ओह! ये ठीक कहा। माल महंगा मिलेगा, लेकिन धंधे में लोगों की धाक जमी रहेगी।"
"इसीलिए तो ये सब किया जा रहा है। "
“आओ।” आरिफ खड़े होते हुए मुस्करा उठा--- "रात बहुत हो गई है। वापस भी जाना है।"
गुलजीरा खान मुस्कराई---उठी और आरिफ की बांहों में समा गई।
■■■
सुबह साढ़े चार बजे ।
गुल और आरिफ एक साथ ही उस फ्लैट से निकले थे और अपनी-अपनी कारों में बैठकर चले गए।
कुछ देर बाद आरिफ ने सड़क किनारे कार रोकी और मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा।
देर तक बेल बजने के पश्चात, उधर से कॉल रिसीव की गई।
"हैलो...।" वो सैयद की नींद से भरी आवाज थी।
“गहरी नींद में हो सैयद साहब... ।" आरिफ मुस्कराकर कह उठा।
“आरिफ तुम... इस वक्त कैसे फोन किया ?"
“आपके काम की एक और खबर है। पहले भी मैं बहुत ख़बरें आपको दे चुका हूं।" आरिफ ने कहा।
“मैं तुम्हें खबरों की कीमत भी बढ़िया देता हूं।"
"इस बार खबर खास है। कीमत ज्यादा लगेगी।”
“खबर काम की हुई तो कीमत ज्यादा मिलेगी।”
"दस लाख...।"
"बहुत ज्यादा है।"
"खबर ही ऐसी है।"
"खबर खास होगी तो दस लाख भी मिलेगा। बोलो...।"
"लाली खान का नांगारहार वाला गोदाम जला दिया गया। अब उन्हें ड्रग्स की किल्लत होने लगी है।"
"सही कहा... ।"
"लाली खान का प्रोग्राम ये है कि कल से सब ड्रग्स डीलरों से ड्रग्स खरीद ली जाए। ये काम इस ढंग से किया जाएगा कि कोई समझ ही नहीं पाएगा कि ड्रग्स लाली खान खरीद रही है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि उनकी पार्टियां, दूसरे ड्रग्स डीलर के पास न जाएं और उनका धंधा बना रहे। कुछ महीनों बाद उनकी अपनी ड्रग्स तैयार होनी शुरू हो जाएगी।"
"तुम्हें दस लाख पहुंच जाएगा।"
■■■
सैयद ने लैला को फोन किया।
"क्या बात है सैयद?” लैला का नींद से भरा स्वर कानों में पड़ा।
"तुम्हारी मोना चौधरी ने तुम्हें कोई खबर दी?"
"कैसी खबर ?"
"मतलब कि नहीं दी। मोना चौधरी बेकार निकली। आरिफ ने बताया कि कल लाली खान के लोग सब ड्रग डीलरों से ड्रग्स खरीदना शुरू कर देंगे। ताकि ड्रग्स उन्हीं के द्वारा अफगानिस्तान से बाहर जाए और उनकी पार्टियां बनी रहें।"
"बढ़िया खबर है। हमें कुछ ऐसा करना है कि लाली खान को डीलरों से ड्रग्स न मिले।"
“लेकिन हमें कैसे पता चलेगा कि वे किनसे ड्रग्स खरीद रहे हैं।”
"उनके लोग हमारे पास भी आएंगे ड्रग्स खरीदने...।”
"हमारे पास? ओह! हां... ये हो सकता है।"
“फोन बंद करो और मुझे सोचने दो। तुम भी सोचो कि कैसे हम डीलरों की ड्रग्स को, लाली खान के पास जाने से बचाएं। अगर इन्हें डीलरों से ड्रग्स नहीं मिली तो ये कमजोर पड़ जाएंगे... और हम लाली खान को कमजोर हुआ देखना चाहते हैं।"
"ताकि हमारा धंधा बढ़े।" सैयद बोला।
"ऐसा ही समझ लो।"
"ये लिस्ट है उन ड्रग्स डीलरों की जिनसे तुम दोनों ने माल खरीदना है।" गुलजीरा खान टाइप किया एक लम्बा कागज मोना चौधरी की तरफ बढ़ाते कह उठी--- "सौदा अपने तौर पर करना है। भाव क्या चल रहा है, सुल्तान समझा देगा। लेकिन हमें हर कीमत पर हर ड्रग डीलर से माल खरीदना है। कोई महंगा भी लगाए, तब भी खरीदना है। इस लिस्ट में ड्रग्स डीलर का नाम पता सब कुछ है। फोन नम्बर भी हैं। इस काम में तुम लोग कई दिन तक व्यस्त रहोगे। दूसरे शहरों में जाना पड़ेगा।"
मोना चौधरी ने वो लिस्ट थामकर उस पर नजर मारी। पन्ने पलटे ।
कई नामों के आगे लाल रंग का निशान लगा था। हरे रंग के पैन से भी निशान लगाए गए थे।
“लाल... हरे निशान किसलिए?” मोना चौधरी ने पूछा।
"लाल निशान जहां लगे हैं, वो ड्रग डीलर ज्यादा माल रखता है। हरे रंग के निशान वाले छोटे ड्रग डीलर हैं। हमें सबसे माल उठा लेना है। जिन पर निशान नहीं लगे, वो मध्यम दर्जे के ड्रग डीलर हैं।" गुलजीरा खान ने गंभीर स्वर में कहा --- "इस काम से तुम्हारी काबिलियत पहचानी जाएगी मोना चौधरी। अफगानिस्तान की सारी ड्रग्स हमें मिलनी चाहिए। तुम्हें एक वैन दी जाएगी, जिसमें नोटों की गड्डियां भरी पड़ी हैं। वैन बाहर खड़ी है। माल खरीदो, पैसा दो। जब पैसा खत्म होने लगे तो हमें फोन कर दो। तुम्हें फौरन पैसा मिल जाएगा। बेशक तुम अफगानिस्तान के किसी भी हिस्से में रहो।"
"और तुम्हारे आदमी हम पर नजर रखेंगे।"
"सावधानी के तौर पर। तुम्हें एक फोन नम्बर देगा सुल्तान। जब भी ड्रग्स डीलर से सौदा हो जाए तो उस नम्बर पर फोन कर देना। हमारे आदमी उसी वक्त ड्रग्स उठा लेंगे।"
"हमें क्या मिलेगा?"
"ये काम आसान है। ड्रग्स छीननी नहीं है, खरीदनी है और ड्रग्स की मात्रा भी बहुत होगी। फिर भी तुम्हें एक किलो के पीछे एक हजार मिलेगा।"
"ये कम है।"
"ये बहुत है। क्योंकि हम बहुत ज्यादा मात्रा में ड्रग्स खरीदने जा रहे हैं। तुम सोच भी नहीं सकतीं।"
मोना चौधरी गुलजीरा खान को देखती रही।
"वो हमें आसानी से ड्रग्स बेच देंगे?" जयन्त ने पूछा।
"क्यों नहीं बेचेंगे? वो बेचने के लिए ही तो बैठे हैं। परन्तु उन्हें पता नहीं चलना चाहिए कि तुम दोनों हमारे लिए काम कर रहे हो। अगर उन्हें पता चला कि लाली खान ड्रग्स उठवा रही है तो वे सोचेंगे। तब शायद ड्रग्स न बेचें। उनके मन में आएगा कि लाली खान के पास ड्रग्स खत्म हो गई है तो नए ग्राहक उनके पास ड्रग्स के लिए पहुंचेंगे। बिजनेस बढ़ेगा उनका ।"
“समझा...।" जयन्त ने सिर हिलाया।
"बाकी जो भी बात पूछनी हो, सुलतान से पूछना। क्योंकि तुम दोनों के बाद, इस काम को वो ही संभाल रहा है। मुझे सिर्फ ड्रग्स अपने पास देखनी है, जो अफगानिस्तान के ड्रग्स डीलरों के पास है।"
"काम हो जाएगा।" मोना चौधरी लिस्ट को पकड़े उठ खड़ी हुई।
“आज ही, अभी ही ये काम शुरू करना है।"
"अभी शुरू होगा।" जयन्त बोला।
"तुम लोग नोटों से भरी वैन लेकर पहले अपने होटल पहुंचो। कुछ देर वहां रहोगे। ड्रग डीलरों की लिस्ट में फोन नम्बर हैं। तुम उनसे फोन पर सम्पर्क करोगे और उनसे ड्रग्स खरीदने की बात करोगे।"
"ऐसे कामों के लिए मैं नई नहीं हूं।" मोना चौधरी ने चुभते स्वर में कहा--- "मैं जानती हूं कि काम कैसे करना है....।"
गुलजीरा खान ने दरवाजे की तरफ मुंह करके आवाज लगाई।
"सुल्तान !”
सुल्तान तुरंत भीतर आया।
“मोना चौधरी और जयन्त को सब कुछ समझा दो। जो भी ये पूछें, उसका जवाब जरूर देना।"
"जी...।" फिर वो दोनों से बोला--- “आइए...।"
मोना चौधरी और जयन्त, सुल्तान के साथ बाहर निकल गए।
“पक्की कुतिया है हरामजादी!" गुलजीरा खान बड़बड़ाई और अपना गला सहलाने लगी।
■■■
मोना चौधरी और जयन्त एक घंटा सुल्तान के पास रहे। उससे सारी जानकारी लेते रहे। सुल्तान ने बताया कौन-कौन सा ड्रग्स डीलर खतरनाक है। उसके बाद वो नोटों से भरी वैन के साथ होटल पहुंचे।
कमरे में पहुंचकर मोना चौधरी ने जयन्त से कहा---
"लैला का नम्बर मिलाओ।"
"तुम क्या करने वाली हो? कोई गड़बड़ मत करना। हमें बढ़िया मौका मिला है, लाली खान के खास बनने का।" जयन्त बोला।
"चिन्ता मत करो।" मोना चौधरी मुस्कराई--- "मैं इस मौके को और भी शानदार बना दूंगी।"
"क्या मतलब?"
"देखते रहो... और जो कह रही हूं, वो ही करो।" मोना चौधरी अब गंभीर हो उठी थी।
जयन्त ने फोन निकाला और लैला का नम्बर मिलाया।
बात हो गई। जयन्त ने मोना चौधरी की तरफ फोन बढ़ाया।
"लो, लैला फोन पर है।"
मोना चौधरी ने फोन लेकर बात की।
“सुनो लैला ।” मोना चौधरी ने कहा--- "लाली खान का ड्रग्स का गोदाम जलने से, उनके पास ड्रग्स की कमी पड़ गई है और वो नहीं चाहते कि उनकी पार्टियां टूटकर दूसरे डीलरों से माल लेने लगें। ऐसे में लाली खान चाहती है कि हम सब ड्रग्स डीलरों से माल खरीद लें। ये काम आज से शुरू होने जा रहा है। हमें सौदे के लिए नोटों भरी वैन दे दी गई है।"
"हूं।" लैला की आवाज कानों में पड़ी--- “मुझसे क्या चाहती हो?"
"हमें एक लिस्ट दी गई है कि अफगानिस्तान में कौन-कौन से डीलर से ड्रग्स खरीदनी है। उसमें सैयद का नाम भी है। जयन्त अभी तुम्हें वो लिस्ट नोट करवाने जा रहा है। तुम किसी तरह उन सब ड्रग डीलरों को फोन पर ये बात बता दो कि लाली खान के पास ड्रग्स नहीं रही है और उसके लोग बाजार की सारी ड्रग्स उठाने के लिए भागे फिर रहे हैं। उन्हें बता देना कि इस काम में लाली खान, मोना चौधरी और जयन्त नाम के हिन्दुस्तानी लोगों को इस्तेमाल कर रही है, ताकि किसी को उसकी चाल पर शक न हो।”
“मेरे आदमी ये काम एक घंटे में कर देंगे। लेकिन इसका तुम्हें क्या फायदा मिलेगा?"
"कुछ तो है मेरे दिमाग में... महाजन कैसा है?"
"मजे में है।"
"मैं जयन्त को फोन दे रही हूं, वो तुम्हें लिस्ट में मौजूद ड्रग्स डीलरों के नाम पते और फोन नम्बर नोट कराएगा।” कहकर मोना चौधरी ने फोन जयन्त को थमाया और जेब से लिस्ट निकालकर उसे दी।
"तुम आखिर करना क्या चाहती हो? अपना प्लान बताओ ?"
"पहले जो कहा है, वो करो। लिस्ट के नाम पते लैला को नोट कराओ।"
जयन्त अपने काम में व्यस्त हो गया।
■■■
डेढ़ घंटे बाद मोना चौधरी और जयन्त होटल से निकले और बाहर खड़ी वैन लेकर चल पड़े।
फुल साइज की वैन थी। पीछे की बॉडी बंद थी।
"वो लोग हम पर नजर रख रहे होंगे।" जयन्त बोला।
"हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"ये बात फैलाकर तुम्हें क्या फायदा होगा कि लाली खान बाजार की सारी ड्रग्स खरीद लेना चाहती है?"
"अभी फायदा सामने आ जाएगा... ।” मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़कर कहा ।
“तुम तो अब मुझसे भी रहस्य रखने लगी हो ।” जयन्त ने गहरी सांस ली।
“लिस्ट में तारिक का पता क्या है?" मोना चौधरी ने पूछा।
"बुजरू रोड। 40 नम्बर ।”
वे दोनों पूछते हुए बुजरू रोड पर जा पहुंचे। वहां सड़क के दोनों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें बनी हुई थीं। पुराना इलाका था ये 40 नम्बर की इमारत ढूंढने में उन्हें कोई ज्यादा परेशानी नहीं हुई। वो सड़क पर ही थी। इमारत का फाटक बन्द था और दो आदमी वहां खड़े थे। उनके कंधों पर गनें लटकी हुई थीं।
"इन्हें फाटक खोलने को कहो... बात करो इनसे... ।”
जयन्त उतरा और उनके पास जा पहुंचा।
"जनाब तारिक भीतर हैं क्या...?” जयन्त ने पूछा।
"हां... क्यों?"
"हमें मिलना है। हिन्दुस्तान से आए हैं। ड्रग्स खरीदनी है।”
“हिन्दुस्तान से?"
"हां।"
एक ने जेब से फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा। बात हुई।
"जनाब, हिन्दुस्तान से पार्टी आई है, बोलती है ड्रग्स खरीदनी है।"
"क्या वो औरत और आदमी हैं?"
"हां जनाब।" गनमैन ने वैन की स्टेयरिंग सीट पर बैठी मोना चौधरी को देखा।
"उनसे पूछो कि उनके नाम क्या हैं?"
गनमैन ने जयन्त से पूछा।
"अपने नाम बताओ।"
"जयन्त...।"
"मैडम का?"
“मोना चौधरी ।"
“जनाब।” वो पुनः फोन पर बोला--- "उनके नाम जयन्त और मोना चौधरी हैं।"
"उनसे कह दो कि हमारी ड्रग्स खत्म हो गई है।” इसके साथ ही उधर से फोन बंद कर दिया गया।
गनमैन ने जयन्त से कहा ।
"ड्रग्स खत्म है।"
“क्या?” जयन्त अचकचाया--- "हम तो पता करके आए हैं कि यहां ड्रग्स मिलेगी।"
"खत्म है। जाओ यहां से...।"
जयन्त उखड़ा सा वापस पहुंचा।
मोना चौधरी के होठों पर मुस्कान नाच रही थी।
"ड्रग्स खत्म है।"
"तो लैला ने अपना काम कर दिया...।”
"तुम पागल तो नहीं हो?” जयन्त नाराज सा कह उठा--- "हमें ड्रग्स नहीं मिलेगी तो हम कैसे लाली खान के धंधे के बीच घुस सकेंगे? नहीं घुसेंगे तो उसे बरबाद नहीं कर पाएंगे। तुम मिशन को खराब कर रही हो।"
"बैठ जाओ। अभी तो खेल शुरू हुआ...।"
“तुम... ।”
"बैठ जाओ।" मोना चौधरी का लहजा सख्त हुआ।
जयन्त ने दरवाजा खोला और बैठ गया भीतर।
दोनों गनमैनों की निगाह इधर ही थी।
मोना चौधरी ने वैन बैक की और आगे बढ़ाते हुए कहा---
"काबुल का ही दूसरा पता निकालो लिस्ट में से... ।”
"तुम मुझे क्यों नहीं बतातीं कि क्या कर रही हो?"
"तुम्हें बढ़िया ढंग से लाली खान के आदमियों में घुसेड़ दूंगी। कुछ देर बाद सब कुछ तुम्हारे सामने होगा। अगले डीलर का पता...।"
जयन्त ने काबुल का एक और पता बताया।
पच्चीस मिनटों में वे दूसरे पते पर मौजूद थे। ये भीड़-भाड़ वाले इलाके में एक व्यस्त सी इमारत का पता था नीचे दुकान थीं और ऊपर तीन मंजिलें बनी हुई थीं।
"दूसरी मंजिल पर जाना है हमें...।" जयन्त बोला।
"आओ।"
दोनों बाहर निकले और सीढ़ियां चढ़कर भीतर पहुंचे। फिर ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगे।
वे दूसरी मंजिल पर पहुंचे।
जयन्त के चेहरे पर उलझन नजर आ रही थी।
दूसरी मंजिल पर पहुंचते ही सामने उन्हें कुर्सी पर बैठा आदमी दिखा।
“महमूद खान से मिलना है।" मोना चौधरी बोली।
"क्या काम है?" उसकी थोड़ी सी आंखें सिकुड़ीं।
"ड्रग्स लेनी है। हिन्दुस्तान से आए हैं।"
“मोना चौधरी और जयन्त नाम हैं तुम्हारे।"
"हां। तुम्हें कैसे पता?" मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।
जयन्त ने मोना चौधरी को घूरा।
"तुम दोनों को ड्रग्स नहीं दी जाएगी। भीतर भी नहीं जा सकते। चले जाओ यहां से।"
"ऐसा क्यों?" मोना चौधरी का स्वर शांत था।
“तुम दोनों लाली खान के लिए काम कर रहे हो। लाली खान की सारी ड्रग्स जल चुकी है। उसके पास माल नहीं रहा, पार्टियों को सप्लाई करने के लिए। वो अफगानिस्तान की सारी ड्रग्स खरीद लेना चाहती है कि पार्टियां उससे ही माल लें और धंधा जमा रहे... ।”
"ऐसा भी है तो तुम लोगों को क्या हर्ज है? माल के भाव बढ़ाकर ड्रग्स हमें बेच दो।"
"महमूद साहब ने तुम लोगों को ड्रग्स बेचने मना कर दिया है। ड्रग्स हमारे पास होगी तो पार्टियां हमारे पास आएंगी। हमारा धंधा बढ़ेगा। हम नहीं चाहते कि हमारी ड्रग्स लाली खान के पास पहुंच जाए और वो अपनी मनमानी करे।"
“तुम लोगों को ये बात किसने बताई कि हम लाली खान के लिए काम कर रहे हैं?"
"धंधे के लिए बाजार में बैठे हैं। खबर तो मिल ही जाती है!" वो हाथ हिलाकर बोला--- “जाओ यहां से।"
मोना चौधरी और जयन्त वापस सीढ़ियां उतरने लगे।
"तुमने खुद ही सीधे-साधे काम में अड़चन डाल दी। खुद ही इन तक खबर पहुंचाई कि...।"
"जयन्त।" मोना चौधरी शांत स्वर में बोली--- "तुम रॉ के लिए काम करते हो। एक ही काम करते हो... और में आजाद हूं और पचासों तरह के काम कर चुकी हूं। इसलिए कोई काम कैसे करना है, ये मैं तुमसे बेहतर जानती हूं। खासतौर से ऐसा काम जो अपराध की दुनिया से जुड़ा हो। सफल होने के लिए कुछ अलग ही बातों की जरूरत होती है।"
“शायद तुम ठीक कह रही हो। परन्तु तुम्हारे मन में क्या है, मुझे भी तो पता चले।”
दोनों इमारत के बाहर अपनी वैन तक आ पहुंचे।
भीतर बैठे। मोना चौधरी ने वैन स्टार्ट करते हुए कहा---
"काबुल की ही एक पार्टी का पता और निकालो...।"
“फिर? जबकि तुम जानती हो कि वो हमें ड्रग्स नहीं देंगे।"
“चलो तो...।" मोना चौधरी ने वैन आगे बढ़ाई--- "तीसरा पता बोलो... ।”
जयन्त ने पता बताया।
एक घंटे बाद वे उस पते पर जा पहुंचे।
ये वर्कशॉप जैसी जगह थी। दो-तीन ट्रक और इतनी ही वैनें खड़ी थीं। कुछ लोग उन्हें रिपेयर करने में लगे थे। उनके वहां आते ही, एक आदमी उनके पास पहुंचा।
"क्या खराबी है वैन में?" उसने पूछा।
"अफजल से मिलना है।" मोना चौधरी ने कहा।
“भीतर चले जाओ। मालिक भीतर शीशे के केबिन में बैठे हैं।"
वे वर्कशॉप के भीतर पहुंचे।
वहां हर तरफ गाड़ियों का कबाड़ा पड़ा नजर आ रहा था। एक तरफ शीशे का केबिन था। उसके शीशे इतने मैले हो चुके थे कि भीतर देख पाना आसान नहीं था।
वो केबिन का दरवाजा खोलकर भीतर पहुंचे।
पठानी सूट पहने अफजल कुर्सी पर बैठा उन्हें देख रहा था।
"तुम अफजल हो?" जयन्त ने पूछा ।
“हां...।" कहने के साथ ही उसने गर्दन भी हिलाई।
"हम हिन्दुस्तान से आए हैं। मैं मोना चौधरी हूं और ये मेरा साथी जयन्त। हमें ड्रग्स खरीदनी है।"
"तुम्हे ड्रग्स नहीं बेचूंगा।" अफजल ने इनकार में सिर हिलाया ।
"क्यों ?"
"मुझे पता चला है कि तुम दोनों लाली खान के लिए काम कर रहे हो। लाली खान का नांगारहार का गोदाम जल गया। सारी ड्रग्स बरबाद हो गई। अब वो सब ड्रग्स डीलरों से ड्रग्स खरीद लेना चाहती है ताकि उसकी पार्टियां उससे ही ड्रग्स लें। इस तरह तो हमारी नई पार्टियां नहीं बनेंगी। बल्कि अब तो धंधा बढ़ाने का बढ़िया मौका मिल रहा है ड्रग्स डीलरों को...।"
"ड्रग्स है तुम्हारे पास...?"
"बहुत। कुछ दिन पहले ही माल तैयार हुआ है।”
“पक्का नहीं दोगे?"
"नहीं। मेरे पास जो माल है, मैं ही बेचूंगा। पार्टियों से मेरे सम्बन्ध बनेंगे। भविष्य में इस बात का मुझे फायदा होगा।"
मोना चौधरी ने जयन्त से कहा---
“चलो।"
"ये तो कह दो कि तुम लाली खान के लिए ड्रग्स इकट्ठा करने निकली हो।” अफजल बोला।
"ये बात तुम्हें कैसे पता चली?”
“फोन आया था किसी का। मैं उसे नहीं जानता। परन्तु उसने तुम दोनों के नाम बताकर असल बात बताई।"
मोना चौधरी और जयन्त वर्कशॉप से बाहर आ गए।
"यही सुनना चाहती थी। सुन लिया तुमने... ।" जयन्त ने तीखे लहजे में कहा।
वे वैन में बैठे और वहां से कुछ आगे ले जाकर मोना चौधरी ने वैन रोकी और जयन्त से फोन लेकर नम्बर मिलाने लगी। जयन्त नाराजगी भरी नजरों से मोना चौधरी को देख रहा था।
"हैलो...।” उधर से गुलजीरा खान की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम्हारे आदमियों में गद्दार भरे पड़े है ।" मोना चौधरी कह उठी।
जयन्त संभला और मोना चौधरी को घूरने लगा।
"क्या कहना चाहती हो तुम?"
“तुम्हारे आदमियों में से किसी ने ये खबर बाहर कर दी है कि हम दोनों लाली खान के लिए ड्रग्स इकट्ठी करने निकले हैं। हम तीन पार्टियों के पास गए ड्रग्स खरीदने। परन्तु तीनों ने हमें ड्रग्स बेचने से इनकार कर दिया कि वो लाली खान को ड्रग्स नहीं बेचेंगे। उन्हें कैसे पता चला कि हम लाली खान के लिए ड्रग्स खरीदने निकले हैं? तुम्हारे ही आदमी ने खबर बाहर निकाली...।"
गुलजीरा खान की आवाज नहीं आई।
“मुझे तो समझ नहीं आता कि अब तक तुम धंधा कैसे कर रही हो, जबकि गद्दार तुम्हारे साथ हैं।"
"मुझे यकीन नहीं आता।" गुलजीरा खान की आवाज आई।
“तो पहले यकीन करो। फिर मुझसे बात करना।" मोना चौधरी ने कहा और फोन बंद कर दिया।
जयन्त बेचैनी से पहलू बदलकर बोला---
"तुम जो कर रही हो, उससे तो लगता है कि तुम पागल हो गई हो।"
"बहुत बड़ी पागल ।”
“हां, बहुत बड़ी। गुलजीरा खान तुम्हें वापस आने को कह देगी और खेल खत्म। लाली खान के लोगों के बीच घुसने का जो मौका मिला, वो तुमने खराब कर दिया। हम अपने मिशन में सफल नहीं हो सकेंगे।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
कुछ मिनट बीते कि मोना चौधरी के हाथों में दबा फोन बजने लगा।
मोना चौधरी ने मुस्कराकर बजते फोन को देखा।
"बात कर लो। वो हमें वापस आने को कह देगी।" जयन्त मुंह बिचकाकर बोला।
“कहो...।” मोना चौधरी ने बात की।
“तुम ठीक कहती हो।” गुलजीरा खान की गुस्से से भरी आवाज कानों में पड़ी--- "मैंने अपने आदमी से दो लोगों को फोन कराया और उसने अपना नाम जयन्त बताया। नाम सुनते ही उन्होंने ड्रग्स बेचने से इनकार कर दिया।"
“अब तो मानती हो ना कि तुम्हारे आदमियों में गद्दार भी भरे पड़े हैं।" मोना चौधरी बोली।
“हां, ठीक कहा। किसी ने तो गड़बड़ की है। लेकिन अब क्या होगा? हमें हर हाल में ड्रग्स बाजार से उठानी है वरना लाली मेरा जीना हराम कर देगी। हम अपने धंधे को खराब होते नहीं देख सकते। तुम्हें कुछ करना होगा मोना चौधरी।” गुलजीरा खान की आवाज से जाहिर हो रहा था कि वो कितनी परेशान और कितनी व्याकुल होगी--- "हम आज तक कभी हारे नहीं। अब भी नहीं हारना चाहते। तुम बताओ कि कैसे हमें ड्रग्स मिल सकती है...।"
मोना चौधरी खामोश रही।
"मोना चौधरी...।"
"सुन रही हूँ। तुम्हें चिन्ता करने की जरूरत नहीं। काम हो जाएगा।"
"हो जाएगा, कैसे?"
"अब काम मैं अपने ढंग से करूंगी।"
"जैसे भी करो, हमें ड्रग्स मिलनी चाहिए। वरना हमारा पुराना धंधा खराब हो...।"
“मुझ पर विश्वास रखो। मैं तुम्हारा धंधा खराब नहीं होने दूंगी।"
जयन्त अजीब सी निगाहों से मोना चौधरी को देखे जा रहा था।
"कैसे... कैसे करोगी तुम ये सब ?"
"मुझे अपने विश्वास के पंद्रह हथियारबंद आदमी दो और सारा काम मुझ पर छोड़ दो... ।"
"तुम...तुम ड्रग्स लूटोगी? नहीं, ये तो गलत बात होगी। हम लुटेरे नहीं, बिजनेस करने वाले...।”
"लूटा नहीं जाएगा। माल जबरदस्ती लिया जाएगा। सुल्तान मेरे साथ होगा और माल की कीमत लगाकर, डीलर को उसी वक्त रकम दे दी जाएगी। वो हमें ड्रग्स बेचने से इनकार कर रहे हैं तो हम जबरदस्ती ड्रग्स खरीदेंगे।"
"ये ठीक नहीं रहेगा ?” गुलजीरा खान की आवाज में गंभीरता आ गई थी।
"क्यों नहीं ठीक रहेगा?"
"तुम, ये काम कर लोगी?"
“चुटकियों में। अगर तुम्हें एतराज न हो तो।" मोना चौधरी ने जहरीले स्वर में कहा।
“ठीक है, करो। ऐसा ही करो। माल हमें हर कीमत पर चाहिए। सुल्तान अभी तुम्हें फोन करेगा। उससे बात कर लेना।"
“मेरा मेहनताना बढ़ जाना चाहिए। क्योंकि मेरा काम भी बढ़ गया है।" मोना चौधरी ने कहा।
"हम तुम्हें एक किलो के पीछे हजार रुपये देंगे।"
"ठीक है।" मोना चौधरी ने कहा और फोन बंद कर दिया।
जयन्त हक्का-बक्का सा मोना चौधरी को देख रहा था।
"क्या हुआ ?"
"तुम... तुम बहुत शातिर हो।" जयन्त के होठों से निकला।
"काम को ऐसे ही किया जाता है। पहले काम को बिगाड़ो और फिर अपनी ताकत दिखाकर काम संभाल लो। सीधे ढंग से हम डीलरों से ड्रग्स खरीद लेते तो इसमें कोई कमाल नहीं था। पैसा दिया और ड्रग्स ले ली। परन्तु अब सबने देख लिया कि काम बिगड़ गया। कोई भी लाली खान को ड्रग्स देने को तैयार नहीं। अब हम ड्रग्स वसूलेंगे बाजार से। ये हमारी काबलियत होगी और लाली खान को भी लगेगा कि हमने हकीकत में कोई काम कर दिखाया है।"
"तुम वाकई ही शातिर हो ।” जयन्त के चेहरे पर खुशी चमक रही थी--- "मुझे इन सब कामों की ज्यादा समझ नहीं है। तुम ठीक कहती थीं, ये काम तुम्हारे ही बस का है। इस काम में मैं तुम्हारे साथ हूं। जो कहोगी, वो ही करूंगा।"
तभी मोबाइल बजने लगा।
सुल्तान का फोन आ गया था।
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