देवराज चौहान को लगा जैसे कोई बांह पकड़ कर उसे हिला रहा हो। वो गहरी नींद में था। उसने फौरन आँखें खोल दीं। बैड के पास नोरा को काली नाईटी और गाऊन में खड़े पाया। वो हैरानी से उसे देख रही थी। देवराज चौहान उठ बैठा। वॉलक्लॉक में देखा, सुबह के 7:30 बजे थे।
“क्या हुआ?” देवराज चौहान ने नोरा को देखा।
“कौन हो तुम?” नोरा के होंठों से निकला।
देवराज चौहान पूरी तरह नींद से बाहर आ गया। रात की सारी बात उसे याद आई। वो समझ गया कि नोरा ने नौकरों से जरूर उसके बारे में पूछा होगा कि वो कल शाम बंगले पर था या बाहर गया था?
यानि कि नोरा जान चुकी थी कि वो कल बंगले पर ही था। ऐसे में नोरा की हालत बिगड़ना लाजिमी था कि फिर रीटा की पार्टी में कौन था?
"मैंने पूछा है कौन हो तुम?” नोरा ने अपना सवाल पुनः दोहराया।
"सुरेन्द्रपाल ।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम सूरज नहीं हो?"
"नहीं।"
"मैं कैसे मान लूं कि--।"
"नौकरों से पूछताछ के बाद तुम्हें मान लेना चाहिये कि मैं तुम्हारा पति सूरज नहीं। सूरज वो है जो रात तुम्हें रीटा के यहाँ मिला।"
"तुम्हारे कंधे पर और टांग के भीतरी तरफ तिल हैं।"
"ये इत्तफाक ही है कि सूरज के भी वहाँ तिल हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम.... तुम झूठ बोल रहे हो।" नोरा परेशान सी बोली ।
"क्या झूठ?"
“तुम सूरज ही हो। रात किसी तरह मौका पाकर तुम रीटा की पार्टी में आ पहुँचे। नौकरों को तुम्हारे जाने और आने का पता नहीं चला। तुम खामखाह मुझे परेशान कर रहे हो ये सब बातें बनाकर। तुम सूरज ही हो।"
"सूरज नहीं....। सुरेन्द्रपाल हूँ। तुम्हें मेरा यकीन कर लेना चाहिये। तुम मेरी पत्नी नहीं हो, तभी तो मैं तुम्हारे करीब नहीं आ रहा। मैं सूरज नहीं, तभी तो मुझे सूरज की बीती जिन्दगी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं---।"
“और तुम्हारा वो एक्सीडेंट---।"
"वो झूठी बात थी। यहाँ के हालात जानने के लिए, मुझे ये सब कहना पड़ा। मैं भी उत्सुक था अपने हमशक्ल के बारे में जानने के लिए। मैं हैरान हूँ कि सूरज मेरे जैसा क्यों है। यहाँ तक कि हमारे तिल भी एक ही जगह पर क्यों हैं।"
नोरा देवराज चौहान को देखती रही।
देवराज चौहान बैड से उतरा और इन्टरकॉम पर बाबू से कॉफी लाने को कहकर सिग्रेट सुलगा ली।
नोरा की निगाह अभी तक देवराज चौहान पर थी। वो बोली---
“तुम सूरज ही हो। वो ही चाल-ढाल। वो ही बातें करने का ढंग । वो ही सब कुछ.... ।"
“मैं भी हैरान हूँ कि सूरज मेरे से इतना क्यों मिलता है। इतनी समानता क्यों है।” देवराज चौहान ने कहा।
"लेकिन मैं ये बात नहीं मान सकती कि तुम दो हो। सूरज और सुरेन्द्रपाल, दो अलग इन्सान हैं। ये तुम ही कोई शरारत कर रहे हो, मेरा दिमाग खराब करने के लिये। मुझे परेशान करने के लिए---।"
"सच बात तो ये है कि मैं भी मानने को तैयार नही कि कोई ठीक मेरे जैसा मुम्बई में मौजूद है... और आज तक मैं उस बारे में अनजान रहा। लेकिन जो हालात सामने आ रहे हैं, उसे देखते हुए...।" कहते-कहते देवराज चौहान ठिठका, फिर बोला--- "कल पार्टी में फोटोग्राफी हो रही थी क्या?"
“हाँ क्यों?"
“तो उसमें सूरज की तस्वीर भी जरूर आई होगी?" देवराज चौहान ने कहा।
नोरा की आँखें सिकुड़ीं, फिर तुरन्त ही बोली---
“मेरे फोन कैमरे में तस्वीरें हैं। चिंकी ने तस्वीरें ली थीं रात पार्टी में।" कहने के साथ ही नोरा ने साईड टेबल से अपना मोबाईल उठाया और पास आकर देवराज चौहान को दे दिया--- "देख लो।"
फोन लेकर देवराज चौहान कुर्सी पर बैठा और कुछ ही सेकिण्डों में वो फोन में, रात की पार्टी की तस्वीरें देख रहा था। काफी तस्वीरें थीं। पन्द्रह-बीस के करीब। नोरा सफेद चमकती साड़ी में आसमान से उतरी अप्सरा की तरह लग रही थी। छः सात तस्वीरों में वो नोरा के साथ था। देवराज चौहान ने अपने हमशक्ल को, सूरज को ध्यान से देखा। उसने ब्राउन सूट पहन रखा था। वो हर तस्वीर में मुस्करा रहा था। बेबाकी से नोरा की कमर में हाथ डाल रखा था। नोरा भी खुश नजर आ रही थी। देवराज चौहान ने महसूस किया सूरज ठीक उस जैसा था। जरा भी फर्क नहीं था।
दो तस्वीरों में सूरज एक अन्य युवती के साथ था। अट्ठाईस-तीस की उसकी उम्र रही होगी।
“ये युवती कौन है?” देवराज चौहान ने पूछा।
पास आकर नोरा ने तस्वीर पर नजर मारकर कहा---
"जैसे कि तुम जानते ही नहीं---।" स्वर में तीखापन आ गया।
“मुझे बताओ।"
"रीटा है।"
देवराज चौहान ने तस्वीरों को बार-बार, कई बार देखा, फिर उन सब तस्वीरों को अपने फोन में भेज दिया। अब वो तस्वीरों को अपने फोन पर भी देख सकता था। उसने टेबल पर फोन रखा, फिर नोरा को देखा।
सामने खड़ी नोरा उसे ही देख रही थी ।
तभी भानू दो कॉफी रखकर चला गया।
"बैठ जाओ।" देवराज चौहान ने कॉफी का प्याला उठाते कहा--- "तुमसे काफी बातें करनी हैं।"
नोरा बैठ गई।
"कॉफी लो।”
गम्भीर-सी नोरा ने कॉफी का प्याला उठाते हुए कहा---
"अगर तुम कहो कि तुम एक जैसे दो लोग हो तो ये बात मैं मानने वाली नहीं।"
देवराज चौहान ने कॉफी का घूँट लेकर कहा---
"मुझे मालूम है कि तुम्हारे लिए तो क्या किसी के लिए भी ये बात मान लेना आसान नहीं है। मुझे भी अपने को समझाने में काफी वक्त लगा कि कोई मेरे जैसा भी है। ये तस्वीरें देखने के बाद ही मैं पूरी तरह यकीन कर पाया हूँ कि इस नाम का कोई व्यक्ति ठीक मेरे जैसा है। जहाँ मेरे शरीर पर तिल हैं, वहाँ उसके शरीर पर भी तिल हैं।"
"तो तुम ये कहना चाहते हो कि तुम और सूरज अलग-अलग हो?" नोरा ने देवराज चौहान को घूरा।
"ये बात मैं तुम्हें समझाना चाहता...।"
"मैं नहीं मानने वाली।" नोरा ने दृढ़ स्वर में कहा।
"लेकिन मैं तो मान चुका हूँ।"
"तुम मेरे से मजाक---।"
"मेरी बात सुनो और गम्भीरता से सुनो।" देवराज चौहान ने कॉफी का घूँट लेकर कहा--- “उस दिन तुम्हारे पापा (सुन्दरलाल) ने जब मुझे उस बेकरी पर देखा, सूरज कहा तो तब भी मैंने खुद को सुरेन्द्रपाल ही कहा था परन्तु वो मुझे सुरेन्द्रपाल मानने को किसी भी हाल में तैयार नहीं थे। तब उन्होंने सब-इंस्पेक्टर जीवन ताड़े को बुला लिया और मुझे यहाँ तक आना पड़ा। मैंने तुम्हें भी कहा कि मैं सुरेन्द्रपाल हूँ लेकिन तुम भी मानने को तैयार नहीं थीं। जब मुझे अपने हमशक्ल सूरज का पता चला तो उसके बारे में जानने की उत्सुकता उभरी और यहीं रहने के लिए मैंने एक्सीडेंट होने के बारे में बहाना किया कि मुझे कुछ भी याद नहीं। तब तक मैं महल के बारे में भी जान चुका था। चूँकि सूरज यहाँ नहीं था, इसलिये सोचा कि मदन से बात करके यहाँ के हालात कुछ ठीक करने की भी कोशिश करूंगा। ये है मेरी तरफ से सारी बात। मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हूँ और रात रीटा के यहाँ तुम्हें जो मिला, वो सूरज था।"
"मैं तुम्हारी बात का यकीन नहीं कर सकती।" नोरा व्याकुलता से कह उठी।
"हालात ऐसे हैं कि देर-सवेर में तुम्हें यकीन करना पड़ेगा।" देवराज चौहान गम्भीर था ।
"तुम...तुम जानबूझकर ये बातें मुझसे कह रहे---।"
“रात तुमने सूरज से पूछा नहीं कि ब्राउन सूट उसके पास कहाँ से आ गया?” देवराज चौहान बोला।
“उसके पास है।" नोरा बोली।
"ब्राऊन सूट?"
“हाँ।"
“वैसा ही, जैसा उसने रात को पहना था?"
“हाँ। वार्डरोब में है।"
“निकालो, दिखाओ मुझे।"
कॉफी का प्याला रखकर नोरा उठी और वॉर्डरोब की तरफ बढ़ गई। फौरन ही नोरा हैंगर में, कवर में रखा, सूटकेस निकालकर ले आई तो देवराज चौहान उठा और नोरा से लेकर उसे बैड पर रखा और कवर की जिप खोलकर सूट को बाहर निकाला। नोरा पास आ गई थी।
“क्या देख रहे हो?”
सूट वैसा ही था, जैसा तस्वीर में दिख रहा था।
परन्तु सूट में एक भी बल नहीं था।
“क्या ये सूट तुम्हें रात पहना हुआ लग रहा है?" देवराज चौहान ने नोरा को देखा।
नोरा पास आई और सूट देखने लगी।
“इस सूट में पहनने का एक बल भी नहीं है। इसे लम्बे वक्त से नहीं पहना गया। हैंगर पर लटके रहने से पैंट-कोट पर जो पुराने निशान आते हैं, वो नजर आ रहे हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
नोरा सूट को उलट-पलट कर देखती रही।
"अगर मैं रात को ये सूट पहन कर पार्टी में गया होता तो, सूट पर पहने जाने के निशान जरूर होते।"
सूट छोड़कर नोरा पीछे हटी और गम्भीर नजरों से देवराज चौहान को देखा।
“क्या अब यकीन आया कि मैं और सूरज अलग-अलग इन्सान हैं?" देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं।" नोरा के होंठों से मध्यम सा स्वर निकला।
देवराज चौहान वापस कुर्सी पर बैठा और कॉफी का प्याला उठा लिया।
“तुम ही सोचो कि इतनी बड़ी बात पर मैं कैसे यकीन कर सकती हूँ?"
"आसान नहीं होगा यकीन करना---।"
“अब बात करो। तुम कह क्यों नहीं देते कि तुम मजाक कर रहे हो। तुम ही सूरज हो।" नोरा कह उठी।
“क्योंकि मैं सूरज नहीं--- सुरेन्द्रपाल हूँ।"
"मैंने उस दिन भी कहा था कि अगर तुम सूरज नहीं हो तो, उस दिन पापा के साथ नहीं आते। तुम शोर मचाकर लोगों को इकट्ठा कर सकते थे। पुलिस को बुलाकर कह सकते थे कि---।"
"मैं ऐसा नहीं कर सकता था।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्यों?"
“ये मेरी व्यक्तिगत समस्या है।"
"क्या ?"
"नहीं बता सकता।"
“इन हालातों में तो बता सकते हो। बताना चाहिये तुम्हें कि---।"
“इस बारे में बात मत करो।"
"सुनो सूरज ! ये सब कुछ बंद कर दो।" नोरा ने हाथ हिलाकर रिक्वैस्ट भरे स्वर में कहा--- “तुम सुरेन्द्रपाल मत कहो खुद को । तुम्हारे कंधे और जांघ पर तिल---।"
“वो सिर्फ इत्तफाक है, जैसा इत्तफाक ये है कि मेरा और सूरज का एक जैसे होना ।"
“तो तुम सुरेन्द्रपाल हो ?” एकाएक नोरा ने कहा।
“हाँ।”
“मुम्बई में रहते हो?”
“हाँ।"
“तुम्हारी अपनी जिन्दगी भी होगी?"
"हाँ, है!"
“घर-परिवार होगा। यार-दोस्त होंगे। नौकरी या बिजनेस होगा। ये सब तो होगा न?"
देवराज चौहान नोरा को देखने लगा।
"तुम्हारे गली-मौहल्ले वाले लोग तुम्हें जानते होंगे कि तुम सुरेन्द्रपाल हो । सुरेन्द्रपाल के नाम से तुम्हारा बैंक एकाउण्ट भी होगा। इंश्योरेंस भी होगी। और भी बहुत कुछ होगा।"
देवराज चौहान ने कॉफी समाप्त की और सिग्रेट सुलगा ली।
“मुझे वहाँ ले चलो जहाँ तुम अपनी जिन्दगी बिता रहे थे। ताकि मैं जान सकूँ कि तुम वास्तव में सूरज नहीं हो।"
“मैं तुम्हें वहाँ नहीं ले जा सकता।" देवराज चौहान ने इन्कार में सिर हिलाया ।
नोरा के चेहरे पर तीखी मुस्कान उभरी।
“क्योंकि तुम सूरज हो। तुम्हारी जिन्दगी यहीं पर बीती है। पर इस वक्त तुम जाने क्यों, ये सब बातें कर---।"
“मैं तुम्हें अपनी जिन्दगी में झांकने का मौका इसलिये नहीं दे सकता, क्योंकि मेरी जिन्दगी में तुम्हारे झांकने लायक कुछ भी नहीं है। मेरी जिन्दगी की बातें तुम्हें समझ नहीं आयेंगी। ना ही मैं तुम्हें अपनी जिन्दगी की झलक दिखाना चाहता हूँ। तुम्हें सिर्फ अपनी जिन्दगी देखनी---।"
“अपनी ही तो देख रही हूँ। तुम मेरे पति सूरज हो और तुम कहते हो कि--- ।”
“मैं सुरेन्द्रपाल हूँ।” देवराज चौहान ने कहा--- “क्योंकि मैं सूरज हूँ ही नहीं। सूरज वो था जो रात तुम्हें रीटा की पार्टी में मिला। सब कुछ तुम्हारे सामने है। नौकरों से तुमने पूछ ही लिया है। अब तुम्हें मान लेना चाहिये कि सुरेन्द्रपाल और सूरज दोनों अलग-अलग इन्सान हैं, परन्तु हू-ब-हू एक जैसे हैं ।”
“ऐसा है तो मुझे वहाँ ले चलो, जहाँ तुम रहते हो।" नोरा ने कहा--- “ताकि मेरी तसल्ली हो कि---।”
“मजबूरी है। तुम्हें वहाँ नहीं ले जा सकता।"
“ऐसी भी क्या मजबूरी जो---।"
“वो तुम नहीं समझ सकतीं। मैं समझा भी नहीं सकता।" देवराज चौहान ने कश लिया।
नोरा परेशान-सी देवराज चौहान को देखती रही। फिर कह उठी---
“तुम्हारे पास सुरेन्द्रपाल नाम का कोई कागज है, जो ये साबित करे कि---।"
“मेरे पास लायसेंस है।” देवराज चौहान ने कहा।
“दिखाओ मुझे।”
देवराज चौहान उठा और पैंट की जेब से लायसेंस निकाल कर नोरा को थमाया।
"पुराना लायसेंस है। तुम ये भी नहीं कह सकती कि मैंने अब बनवाया है। लेकिन इसका पता बदल चुका है। मतलब इस पते पर मेरे बारे में पूछताछ करना बेकार होगा।" देवराज चौहान ने कहा।
नोरा देर तक लायसेंस को देखती रही।
देवराज चौहान ने सिग्रेट समाप्त करके ऐश-ट्रे में डाल दी।
फिर नोरा ने लायसेंस टेबल पर रखकर देवराज चौहान को देखा।
"लायसेंस पर तस्वीर स्पष्ट नहीं है परन्तु फिर भी वो तुम्हारी है।" नोरा ने धीमे-गम्भीर स्वर में कहा।
"हममें आगे की बात तभी होगी जब तुम मानोगी कि मैं सूरज नहीं हूँ।" देवराज चौहान बोला।
"इस तरह मैं ये बात कैसे मान सकती---।"
"सब कुछ तुम्हारे सामने है। रात में दो जगह एक साथ मौजूद था। यहाँ पर भी और रीटा की पार्टी में भी था। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है कि जब एक जैसे दो लोग हों और ऐसा ही हो रहा है।" देवराज चौहान ने कहा।
"अगर मैं तुम्हारी बात मान लूं तो मेरे सामने कई सवाल खड़े हो जाते हैं।" नोरा के चेहरे पर गम्भीरता थी।
"क्या?"
"सबसे पहली बात ये है कि अगर मैं मानूं कि तुम सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हो तो, मैंने तुम्हें तिजोरी दिखा दी थी, उस में करोड़ों की दौलत मौजूद है। तुम वो लेकर भागे क्यों नहीं?" नोरा कह उठी ।
"दौलत मेरे लिए इतना ज्यादा महत्व नहीं रखती कि चोरी कर लूं। किसी को धोखा दे दूं।"
“दौलत का महत्व इस दुनिया शरीफ लोगों के यहाँ सबसे ज्यादा है।"
"मेरे पास बहुत दौलत है और इस तरह चोरी करना मुझे पसन्द नहीं है।"
"लोग तो दौलत पाने के लिए सब कुछ कर देते हैं।"
देवराज चौहान मुस्कराया, फिर बोला---
"मैं इस तरह किसी को छल देकर दौलत हासिल नहीं करता।"
"तुम्हारी बात मुझे बहुत अजीब लग रही है कि तुम इतने शरीफ हो।"
देवराज चौहान नोरा को देखता रहा। कहा कुछ नहीं।
"तुम चिंकी से भी बहुत प्यार से मिले...तुम....।"
"मैं तुम्हारे कहने पर भी तुम्हारे पास नहीं आया। ये बात भी तुम्हें अजीब लगेगी।"
"जरूर लगेगी। वरना मर्द किसी बाहरी औरत को छोड़ते नहीं हैं।" नोरा ने देवराज चौहान की आँखों में देखा।
"क्योंकि मैं सूरज नहीं। तुम्हारा पति नहीं। चिंकी तो मेरी छोटी बहन की तरह है।"
कुछ चुप रहकर नोरा बोली---
“रात अगर रीटा की पार्टी में सूरज आया था तो उसे कैसे पता चला कि मैं रीटा के यहाँ पार्टी में जाने वाली हूँ।"
"इसका तो सीधा-सा एक ही मतलब है कि सूरज को बंगले की खबरें मिल रही हैं।"
"कौन दे रहा है?”
“नौकर। नौकरों में से कोई एक। ये नौकर अभी रखे गये हैं या तुम्हारी शादी से पहले के हैं?"
“पहले के हैं।”
“तो ये लोग सूरज के भरोसे के हैं। कोई एक ये काम कर सकता है।" देवराज चौहान ने कहा।
“फिर तो सूरज को ये भी पता होगा कि उसकी जगह किसी और ने ले ली है। यानि कि तुमने।”
“जरूर पता होगा।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
“वो ये कैसे पसन्द करेगा कि कोई, उसकी पत्नी के पास रहे?” नोरा गम्भीर थी।
"इसका जवाब तो सूरज ही दे सकता है। रात उसने पार्टी में तुमसे इस बारे में कोई बात की?”
“नहीं। कोई बात नहीं की।" नोरा ने इन्कार में सिर हिलाया।
"कुछ और कहा हो ?”
"कुछ भी नहीं कि जो अब तुम्हें बता पाती।"
“ये हैरानी की बात है कि सूरज ने इस बारे में तुमसे कोई भी बात नहीं की।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
"मुझे ये सब बातें बहुत अजीब सी लग रही हैं। तुम नहीं समझ सकते मेरा क्या हाल हो रहा है।" नोरा ने गहरी सांस ली--- “मैं अभी भी विश्वास नहीं कर पा रही हूँ कि ये सब सच है। मैं.... ।”
"धीरे-धीरे तुम्हें विश्वास आने लगेगा। लेकिन मुझे एक बात का जवाब नहीं मिल रहा।"
"क्या ?"
"सूरज यहाँ से, तुमसे, अपने घर से दूर क्यों भागा हुआ है?" देवराज चौहान ने पूछा।
चंद पलों की खामोशी के बाद नोरा बोली---
"शायद मदन की वजह से।"
"कोई भी वजह हो। कोई इस तरह घर को, अपनों को नहीं छोड़ जाता.....।"
"सूरज निहायत ही शरीफ इन्सान है। वो मदन से डर कर यहाँ से चला गया।"
“तुम सब को छोड़ कर ---।"
“हाँ। वो बड़ा नेक इन्सान है। लड़ाई-झगड़ा उसके बस का नहीं है। लेकिन उसे इस तरह नहीं जाना चाहिये। ये उसने गलत किया।" नोरा की आँखों में पानी चमकने लगा।
“तो अब तुम्हें यकीन आ गया कि मैं और सूरज अलग-अलग इन्सान हैं?" देवराज चौहान ने कहा।
"कुछ समझ में नहीं आ रहा....।"
"ऐसे सच पर यकीन करने में वक्त लगता है। धीरे-धीरे तुम पूरी तरह मान जाओगी।"
नोरा ने हाथ से आँखों का गीलापन साफ किया।
देवराज चौहान ने नई सिग्रेट सुलगा ली।
"तो तुम मेरे पति सूरज नहीं हो?" उभरी खामोशी को नोरा ने भारी स्वर में तोड़ा।
"नहीं।"
“फिर यहाँ क्यों रह रहे हो? गये क्यों नहीं?"
देवराज चौहान ने नोरा को देखा फिर कश लेकर बोला---
"तुम्हारा सवाल बिल्कुल सही है और जाने में मुझे कोई इन्कार नहीं। मैं अभी चला जाता हूँ।"
"मैंने पूछा है, यहाँ क्यों रह रहे हो। जबकि मेरे साथ तुमने संबंध नहीं बनाए। तिजोरी में रखी दौलत को भी तुम नहीं ले जाना चाहते, तब ऐसी क्या वजह है कि तुम यहाँ टिके हुए हो?" नोरा के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“जब मैं यहाँ आया, मुझे यहाँ के हालात पता चले तो तभी मैंने सोचा लिया था कि तुम लोगों की सहायता करूँगा।"
"सहायता ?"
"सूरज घर से दस महीनों से गायब है। तुम, चिंकी और नीरज, मदन का मुकाबला नहीं कर सकते। वो तुम लोगों के पीछे पड़ा है। देर-सवेर में तुम लोग बंगला उसके हवाले कर ही दोगे। जबकि मैं नहीं चाहता कि तुम तीनों इस तरह बेघर हो जाओ। मदन अपनी दादागिरी तुम लोगों पर करे।"
“तुम्हें हमसे क्या लेना-देना? तुम तो सुरेन्द्रपाल हो।"
“इन्सानियत के नाते, तुम लोगों के काम आना चाहता हूँ। लेकिन जबर्दस्ती वाली कोई बात नहीं है। तुम कहोगी तो मैं अभी चला जाऊँगा। इसका फैसला तुम पर है।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
नोरा ने बेचैनी से पहलू बदला। देवराज चौहान को देखकर बोली---
“मदन बुरा इन्सान है।"
“मैं उससे भी बुरा हूँ।”
“वो बदमाश है।"
"मैं उससे भी बड़ा बदमाश हूँ।"
“तुम मेरी बात को हल्के में ले रहे हो। वो खतरनाक जैसा है।" नोरा तेज स्वर में बोली।
“तुम मुझे नहीं समझ पा रहीं। मैं उससे कहीं ज्यादा खतरनाक हूँ।" देवराज चौहान का लहजा सामान्य था ।
“तुम मदन का मुकाबला कर लोगे?"
“वो कभी भी मेरा मुकाबला नहीं कर सकता। मेरे लिए वो कुछ नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा।
"तो क्या करोगे तुम मदन के बारे में?"
“ये मत पूछो। तुम्हें सब ठीक मिलेगा, जल्दी ही ।"
“ये बंगला.... ।”
“ये लोगों का ही रहेगा। मदन आने वाले वक्त में इस तरफ देखेगा भी नहीं।"
“बहुत विश्वास के साथ कह रहे हो?” नोरा के चेहरे पर हैरानी उभरी।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“सूरज के पापा ने अपनी जो दौलत, मदन के वॉल्ट के केबिन में रखी थी.....। जिसे मदन हड़प गया, वो.... ।”
“वो भी वापस मिलेगी।" देवराज चौहान बोला।
"मदन नहीं देगा।"
"ये सोचना तुम्हारा काम नहीं है।"
"और जो बिजनेस मदन ने हड़प लिया है, वो...।"
"उसके बारे में मैं कुछ नहीं करूँगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "ये सूरज देखेगा कि बिजनेस कैसे मदन से वापस लेना है। मैं सिर्फ तुम लोगों की वो ही समस्या हल करूंगा, जो इस वक्त जरूरी है।"
"सूरज की तलाश करोगे ?"
"मेरे पास इतना वक्त नहीं कि सूरज की तलाश करूँ। हालांकि मैं उससे मिलने को उत्सुक हूँ। मेरे ख्याल में सब ठीक हुआ देखकर वो खुद ही वापस आ जायेगा। उसे यहाँ की खबरें मिल रही हैं। वो तुमसे दूर नहीं है।"
नोरा के चेहरे पर गम्भीरता उभरी रही।
"मैं इसी तरह यहाँ रहूँगा, जैसे कि रह रहा हूँ। तुम किसी को नहीं बताओगी कि मैं सूरज नहीं हूँ।"
नोरा ने हाँ में गर्दन हिला दी। वो व्याकुल सी दिख रही थी। बोली---
“आखिर तुम हो कौन?"
“मेरे बारे में कुछ भी जानने की कोशिश मत करो। पूछो भी मत। उससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा। बस इतना याद रखो कि मैं इस घर की समस्या दूर करने आया हूँ और वो कर दूंगा।" देवराज चौहान का स्वर गम्भीर था--- "तुम्हें खुश होना चाहिये कि सब कुछ जल्द ही ठीक हो जायेगा....और शायद उसके बाद सूरज भी तुम्हारे पास आ जाये।"
नोरा की आँखें भर आई।
"मैं तुम्हें अभी तक समझ नहीं पाई।" नोरा का स्वर भर्रा उठा था।
■■■
श्रेया साढ़े आठ बजे से ही कॉलेज चली गई थी। तब तक देवराज चौहान और नोरा बैडरूम से बाहर नहीं निकले थे, इसलिये श्रेया से मुलाकात नहीं हो पाई। साढ़े दस बजे देवराज चौहान और नोरा ने नाश्ता किया। नाश्ते के दौरान नोरा गम्भीर थी और रह-रहकर देवराज चौहान को देख रही थी। जबकि देवराज चौहान सामान्य था ।
नाश्ते के बाद देवराज चौहान ड्राईंग हाल में ही बैठ गया था। नोरा घर के कामों में व्यस्त होने की चेष्टा में, इधर-उधर के काम देख रही थी। दोनों में सुबह के बाद ज्यादा बात नहीं हुई थी।
बारह बजे बाबू ने आकर देवराज चौहान से कहा---
“इंस्पेक्टर साहब आपसे मिलने आये हैं मालिक।”
“इंस्पेक्टर?” देवराज चौहान ने बाबू को देखा।
“वो ही पुलिस वाला जो उस दिन आपके साथ आया था।" बाबू ने बताया।
"इंस्पेक्टर जीवन ताड़े। हाँ, भेजो उसे भीतर ।"
बाबू चला गया, फिर फौरन ही जीवन ताड़े के साथ लौटा। ताड़े वर्दी में था ।
“कैसे हैं सर?” जीवन ताड़े पास पहुँचकर मुस्कराया।
देवराज चौहान ने उठकर मुस्कराते हुए उससे हाथ मिलाया।
“बैठो इंस्पेक्टर।” देवराज चौहान ने कहा।
दोनों सोफों पर आमने-सामने बैठ गये।
"बाबू! इंस्पेक्टर साहब के लिए चाय ले आओ।"
बाबू चला गया।
“यहाँ से निकल रहा था तो सोचा आपसे मिलता चलूं। मैंने डिस्टर्ब तो नहीं किया आपको?”
“जरा भी नहीं। आपसे मिलकर खुशी हुई मुझे.... ।”
"सब ठीक चल रहा है?"
“जी हाँ।” देवराज चौहान मुस्कराया।
“अब तो आप ये नहीं कहते कि आप सुरेन्द्रपाल हैं।” ताड़े मुस्कराया।
“नहीं।” देवराज चौहान ने हौले से हंसकर कहा--- "मैं सूरज हूं।"
“मुझे आशा है कि अब आप यहाँ से नहीं जायेंगे। अपने घर पर रहेंगे।”
“ये मेरा घर है। मैं क्यों जाऊँगा। पहले जो हुआ, वो मैं याद नहीं रखना चाहता।"
“मैंने आपको तलाश करने का केस बंद कर दिया है, क्योंकि आप मिल गये हैं। आपकी पत्नी आपके चले जाने से बहुत परेशान थी। अक्सर उनके फोन मुझे आते रहते थे कि आपको तलाश करूँ.... ।”
“अब नोरा खुश है कि मैं आ गया।" देवराज चौहान ने कहा।
सब-इंस्पेक्टर जीवन ताड़े इधर-उधर की बातें करके, चाय पीकर चला गया। देवराज चौहान जानता था कि ताड़े अपनी ड्यूटी पूरी करने आया था। देखने आया था कि सब ठीक है।
उसके बाद देवराज चौहान ने मोबाईल निकालकर मदन को फोन किया।
बात हुई। मदन की आवाज कानों में पड़ी---
"हैलो।"
"मदन। मैं बोल रहा हूँ।" देवराज चौहान ने कहा।
"तमीज से बात करो। मदन चाचा कहो....।"
"मैंने तुम्हें कल समझाया था--- बताया था कि मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल---।"
"बकवास बंद करो। तुम्हारे दिमाग के पेच कसने वाले हो गये लगते हैं जो ऐसा.....।"
“तुम्हारा अपने दिमाग के बारे में क्या ख्याल है?"
"तुम मेरे साथ बहुत बदतमीजी से पेश आ रहे हो। कल रात भी तुम---।”
“तेरे से सुरेन्द्रपाल हमेशा ऐसे ही बात करेगा।"
"सुरेन्द्रपाल---?"
“सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल, मेरे से बात करते ये बात हमेशा याद रखा कर।"
“सूरज, तू अपने को सुरेन्द्रपाल कहकर करना क्या चाहता है?" उधर से मदन ने दाँत भींचकर कहा--- “ऐसी बातें करके तू मुझे डरा देगा तो ये तेरी भूल है। बंगला मेरा है तो मेरा है। मेरे हवाले नहीं करेगा तो---।"
“मैं भी इसी बारे में बात करना चाहता हूँ।”
“तो तैयार है, बंगला देने को?”
“मिलकर बात करते हैं। बोल कहाँ मिलेगा, कहाँ पर मैं आऊँ?" देवराज चौहान बोला।
क्षणिक चुप्पी के बाद मदन की आवाज कानों में पड़ी---
"तू सच में बंगले की बात करना चाहता है?”
“हाँ। मैं अभी आता हूँ। बता कहाँ पर है?"
“अभी तो मैं व्यस्त हूँ---पर मैं शाम को तेरे पास बंगले पर आता हूँ।" उधर से मदन ने कहा।
“जरूर आना। मैं इन्तजार करूँगा।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
आधा घंटा वहीं बैठा देवराज चौहान सोचों में व्यस्त रहा---फिर उठा और हाल से बाहर निकलकर बंगले में टहलने लगा। किचन में भी गया। पोर्च में भी गया। किचन में लक्ष्मी और बाबू काम में व्यस्त दिखे। उन्हें देखकर मन में ये ही ख्याल आया कि क्या इन दोनों में से कोई सूरज को यहाँ की खबरें दे रहा है?
पोर्च में कारें खड़ी तो दिखीं, परन्तु प्यारेलाल या रतनसिंह नहीं दिखे।
देवराज चौहान पीछे बने सर्वेन्ट क्वार्टर की तरफ बढ़ गया।
वहाँ पहुँचा तो प्यारेलाल को कमरे से बाहर कुर्सी पर, छाँव में बैठे देखा।
“राम-राम मालिक।” उसे देखते ही प्यारेलाल तुरन्त खड़ा हो गया।
देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
“कहीं जाना है मालिक? मैं दो मिनट में तैयार होकर--- " प्यारेलाल ने कहना चाहा।
“कहीं नहीं जाना।" देवराज चौहान आसपास नजर दौड़ाता बोला--- “रतनसिंह कहाँ है?"
“वो तो छोटी मालकिन को गाड़ी में कॉलेज लेकर गया है।"
“चिंकी आज गाड़ी में कॉलेज गई है?”
"छोटी मेमसाहब लेट हो गई थीं। वैसे तो वो अपनी सहेली की कार में, उसके साथ ही जाती हैं।"
“रतनसिंह आया नहीं अभी तक ?”
“छोटी मेमसाहब ने रोक लिया होगा.....। मैंने तो रतनसिंह को फोन करके पूछा नहीं। पूछूं क्या?"
“नहीं।”
देवराज चौहान बंगले के भीतर आ गया। बैडरूम में जाने की सोचकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा। सीढ़ियां चढ़ते देवराज चौहान ने बात की। दूसरी तरफ जगमोहन था।
“तुमने कोई फोन नहीं किया?" उधर से जगमोहन ने पूछा।
“मैं यहाँ काफी व्यस्त चल रहा हूँ।" देवराज चौहान बोला।
"क्या हो रहा है वहाँ ?"
“बहुत कुछ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “कुछ भी ठीक से समझ नहीं आ रहा।"
“ऐसा क्या हो रहा है?"
"फोन पर नहीं बता सकता। ये फोन पर करने वाली बात नहीं है। समझ नहीं पाओगे।"
"हैरानी है। ऐसी क्या बात है जो मिलकर ही हो सकती है।"
“इस वक्त मेरे पास मिलने को वक्त है।"
“मैं आता हूँ। कहाँ मिलोगे?" दूसरी तरफ से जगमोहन ने कहा।
दोनों में मिलने की जगह और वक्त फिक्स हो गया।
देवराज चौहान बैडरूम में पहुँचा तो नोरा को बाथरूम से नहा कर निकलते पाया। दोनों की नजरें मिलीं तो नोरा के होठों पर हल्की मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई।
“आज चुप-चुप से हो?” नोरा बोली।
“इस घर की समस्याओं का हल सोच रहा हूँ।”
“क्या सोचा?"
"रास्ता निकलेगा। शाम को मदन आयेगा।”
नोरा ने ठिठककर देवराज चौहान को देखा।
“तुमने बुलाया उसे या मदन का फोन आया ?”
"मैंने उससे मिलने को कहा तो वो बोला शाम को बंगले पर आयेगा।" देवराज चौहान बोला।
“क्या बात करोगे उससे?” नोरा गम्भीर दिखी।
“अभी ठीक से पता नहीं किस तरह बात होगी।”
"तुम मदन का मुकाबला नहीं कर सकोगे। वो बहुत बुरा इन्सान है।" नोरा बोली।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और सिग्रेट सुलगा ली।
"मैं कुछ देर के लिए बाहर जा रहा हूँ।" देवराज चौहान ने कहा।
"बाहर ?”
“दोस्त से मिलना है।” देवराज चौहान ने नोरा को देखा।
"कौन दोस्त?”
“सुरेन्द्रपाल के दोस्तों को तुम नहीं जानतीं।"
"ओह!” नोरा ने गहरी साँस ली--- “मैं तो भूल ही गई थी कि तुम..... तुम... मैं भी साथ चलूं।"
"क्यों?"
“तुम्हारे दोस्त से मिलूंगी। जो मुझे तुम्हारे बारे में बतायेगा कि तुम सुरेन्द्रपाल हो। तुम्हारी बातें बतायेगा।”
“आज मेरी और उसकी मुलाकात व्यस्तता भरी रहेगी। तुम फिर कभी चलना।" देवराज चौहान ने कहा।
नोरा खामोश रही।
आधे घंटे बाद जब देवराज चौहान तैयार होकर जाने लगा तो नोरा ने पूछा---
"वापस आओगे?"
"जरूर।" देवराज चौहान ने नोरा को देखा--- "दो ढाई घंटों में वापस आ जाऊँगा ।"
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन एक रैस्टोरेंट में मिले।
“क्या हो रहा है तुम्हारे साथ?" जगमोहन ने बैठते ही पूछा।
“बहुत अजीब बातें हो रही हैं। वो ही बताने के लिए तुम्हें बुलाया है।" देवराज चौहान मुस्करा सा पड़ा।
देवराज चौहान ने जगमोहन को शुरू से आज तक की सारी बातें बताईं।
इस बीच वेटर को जगमोहन ने लंच का आर्डर भी दे दिया।
सब कुछ सुनने के बाद जगमोहन बोला---
“मैं तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ कि कोई ठीक तुम जैसा है।"
“मैंने ये नहीं कहा कि विश्वास करो। मैंने तो तुम्हें हालात बताये हैं।"
“तो तुम्हें इन बातों पर भरोसा है? यकीन है कि सूरज ठीक तुम जैसा है?” जगमोहन बोला।
“मुझे जरा भी भरोसा नहीं।"
“क्या मतलब?”
“कोई भी ठीक मेरे जैसा नहीं हो सकता। मेरे कंधे पर और जाँघ के भीतरी तरफ तिल हैं तो किसी दूसरे इन्सान के जिस्म पर भी वहीं तिल हो, और उसका चेहरा मेरे जैसा ही हो। उसकी कद-काठी, लम्बाई-चौड़ाई मेरे जैसी हो। वो मेरी तरह चलता हो और मेरी ही तरह बोलता हो। उसके हाव-भाव मेरे जैसे हों। उसकी आवाज मेरे जैसी हो। वो हू-ब-हू मेरी कॉपी हो, ऐसा तो जुड़वां भाईयों में भी नहीं होता। उनमें भी कुछ ना कुछ असमानता होती है। फिर मेरे और सूरज में सौ प्रतिशत समानता कैसे हो सकती है? नहीं हो सकती।” देवराज चौहान के स्वर में गम्भीरता भरी हुई थी।
जगमोहन टकटकी बांधे देवराज चौहान को देखने लगा ।
“ऐसा हो जाना सम्भव नहीं।” देवराज चौहान ने पुनः कहा।
“तुम कहना क्या चाहते हो?”
“ये ही तो समझ नहीं पा रहा कि इन हालातों के बारे में क्या कहूँ?"
"तुम्हारा मतलब कि तुम्हारा डुप्लिकेट सामने रखकर, तुमसे कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है?" जगमोहन बोला।
"षड्यंत्र होता तो मैंने अब तक भांप लिया होता।"
"फिर क्या बात है?"
"पता नहीं। पर बात कुछ तो है।"
"नोरा पर कभी ऐसा-वैसा शक हुआ?"
"नहीं।"
"श्रेया पर ?”
“उस पर भी नहीं।”
"कुछ और?"
“ऐसा कुछ भी नहीं।” देवराज चौहान बोला--- “पर सूरज दस महीने से घर से लापता है। वो कभी घर नहीं आया, लेकिन घर की हर खबर उसके पास पहुँच रही है, ये तो रात की बात से जाहिर हो गया। रात नोरा और श्रेया, रीटा के बेटे की पार्टी पर गईं। मैं नहीं गया। नोरा के साथ कहीं भी जाने का मेरा मन नहीं था। बात सूरज को मालूम हो गई, मतलब कि बंगले के किसी नौकर ने ही सूरज को फोन करके बताया होगा। ऐसे में मेरे बदले, सूरज उस पार्टी में नोरा के पास जा पहुँचा।"
जगमोहन, देवराज चौहान को देख रहा था।
“मुझे लगता है सूरज ही कोई षड्यंत्र रच रहा है।” देवराज चौहान पुनः बोला।
“सूरज.... षड्यंत्र?”
“वो दस महीनों से गायब है बंगले से, परन्तु बंगले के किसी नौकर के सम्पर्क में है। बंगले पर क्या हो रहा है, इसकी खबरें वो बराबर ले रहा है। सवाल तो ये है कि वो बंगले से गया ही क्यों? मैं नहीं मानता कि वो मदन के डर से बंगले से गया है। मान लो, अगर उसे मदन का डर था तो वो अपनी पत्नी को, छोटे भाई-बहनों को छोड़कर क्यों जाता? मदन बंगला लेना चाहता है, परन्तु नोरा ने बताया सूरज के पापा की और भी प्रॉपर्टी है। उनकी जिन्दगी चैन से बीत सकती है। ऐसे में सूरज का अचानक गायब हो जाना, बंगले पर नजर रखना, रीटा के यहाँ पार्टी पर पहुँच जाना। समझ नहीं आ रहा.... वो आखिर क्या चाहता है, क्या कर रहा है? उसका इरादा क्या है?"
"नोरा को यकीन है कि तुम सूरज नहीं हो?" जगमोहन ने पूछा।
“पूरी तरह यकीन नहीं, पर अब वो यकीनी सतह पर धीरे-धीरे कदम रखने लगी है। क्योंकि नौकरों से पूछताछ के बाद वो ये समझ चुकी है कि रात मैं बंगले पर ही था जब सूरज रीटा के यहाँ पार्टी में उससे मिला था। वो आसानी से यकीन नहीं कर पा रही कि दो इन्सान ठीक एक जैसे हो सकते हैं।”
"यकीन करने लायक बात है भी नहीं।”
“एक और बात मुझे उलझन में डाल रही है।"
“क्या?"
“सूरज जानता है कि मैं उसके बंगले पर, उसकी पत्नी के साथ रहा हूँ। ये बात सूरज जानता है कि मैं सूरज नहीं हूँ और मैं भी जानता हूँ कि मैं सूरज नहीं हूँ परन्तु नोरा तो नहीं जानती।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “ऐसे में सूरज ने इस बारे में कोई कदम क्यों नहीं उठाया कि मैं उसकी पत्नी के साथ रह रहा हूँ।"
“क्या करता वो?” जगमोहन बोला--- “वो तो बंगले से महीनों से गायब है।”
“वो नोरा को फोन करके कह सकता था कि बंगले में जो उसके साथ है, वो उसका पति सूरज नहीं है। सूरज आसानी से नोरा को इस बात का यकीन दिला सकता था कि मैं सूरज नहीं हूँ। कम से कम इतना तो हो जाता कि नोरा मुझसे दूर ही रहती।”
“क्या वो तुमसे दूर नहीं रही?”
“उसने कई बार मेरे पास आने की कोशिश की। वो मुझे अपना पति समझ रही है, ऐसे में उसे हक है कि वो मेरे पास आये। परन्तु मैंने जैसे-तैसे उससे दूरी बना रखी है।” देवराज चौहान ने कहा।
“तुम्हारी बात अपनी जगह सही है कि सूरज ने तुम्हें, नोरा से दूर रखने की कोशिश क्यों नहीं की?” जगमोहन बोला।
"ये बहुत बड़ा सवाल है। कोई भी अपनी पत्नी को दूसरे मर्द की बाँहों में नहीं जाने देगा।"
तभी वेटर लंच ले आया और टेबल पर लगाने लगा।
“इस वक्त हमारे पास सवाल ही सवाल है, जवाब एक भी नहीं।" जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा--- “सूरज घर से दूर क्यों रह रहा है? उसे घर का कोई नौकर घर की खबरें दे रहा है। सूरज अपने घर पर नजर रखे है, तभी वो रीटा के यहाँ पार्टी में नोरा के पास पहुँच सका, क्योंकि वो जानता था तुम बंगले पर हो। पार्टी में नहीं आने वाले। इस प्रकार नोरा के पास जाने का आखिर सूरज का क्या मतलब था? वो छिपा हुआ है तो छिपा ही रहता। सामने आने की क्या जरूरत थी? नोरा के मुताबिक रीटा के यहाँ जब सूरज आया तो उसने कोई खास बात भी नोरा से नहीं की।"
"सूरज ने तुम्हे रोकने या तुम्हारी पोल खोलने की कोशिश नहीं की, जबकि तुम सूरज बनकर, उसकी पत्नी के पास रह रहे हो। ये वास्तव में अजीब बात है।" जगमोहन ने कहकर हौले से सिर हिलाया।
वेटर लंच लगाकर चला गया। दोनों ने खाना शुरू किया।
"तुम्हें यकीन नहीं कि सूरज ठीक तुम जैसा ही है?" जगमोहन ने पूछा।
“जरा भी यकीन नहीं। कम से कम एक इन्सान की फोटोकॉपी इस दुनिया में नहीं हो सकती। कुछ तो अन्तर होगा।"
“अगर अन्तर होता तो किसी ने बात जरूर कही होती।”
“क्या कहना चाहते हो ?"
“नोरा, श्रेया, नौकर, नोरा का पापा सुन्दरलाल, मदन, किसी ने भी तुम पर शक जाहिर नहीं किया कि तुम सूरज नहीं हो या तुम पहले से बदल गये हो?" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ।”
“तो फिर यकीन कर लो कि सूरज नाम का इन्सान तुम्हारी फोटोकॉपी है।" जगमोहन ने खाते हुए सिर हिलाया।
"ऐसा सम्भव ही नहीं।" देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।
"क्यों?"
“फोटोकॉपी के अलावा, आवाज, हावभाव, चलने का ढंग, इतनी समानता नहीं हो सकती।”
“क्या पता इतनी समानता हो?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
“नहीं। कम से कम मैं नहीं मान सकता।"
कुछ पल जगमोहन चुप रहा।
दोनों खाना खाते रहे।
“मैं सूरज की तलाश करूँ?” जगमोहन ने कहा।
“कहाँ ढूँढोगे उसे?"
"तुम्हें ज्यादा पता होगा कि मैं कहाँ से उसकी तलाश शुरू कर सकता हूँ ।"
"मैं नहीं कह सकता। नहीं जानता। में सूरज के बारे में ज्यादा बातें नहीं जान सका । नोरा का कहना है कि शादी के बाद वो तीन महीने ही सूरज के साथ रही कि एक दिन सूरज गायब हो गया। तब तक वो सूरज को तीन महीने जितना ही जान सकी थी। मतलब कि सूरज के बारे में वो भी ज्यादा नहीं बता पा रही।”
उसके बाद खाना समाप्त होने तक वे खामोश रहे।
वेटर बर्तन ले गया। उसे कॉफी लाने को कहा।
“मेरे ख्याल में तुम्हें कुछ और इन्तजार करना होगा। शायद कुछ नया पता चले।" जगमोहन बोला।
“परन्तु मैं वहाँ ज्यादा देर नहीं रुका रह सकता। मदन की समस्या सुलझाकर, वहाँ से निकल आऊँगा।"
“मदन के बारे में क्या कर रहे हो?"
“आज शाम मदन से दूसरी मुलाकात होगी। उसे समझाने की चेष्टा कर रहा हूँ।” देवराज चौहान ने कहा।
“लगता है कि वो मान जायेगा ?”
"आसानी से मानने वाला लगता तो नहीं। बाकी शाम को बात करके पता चलेगा कि आज वो क्या कहता है।"
“तुम्हें लगता नहीं कि खामखाह इस मामले में हाथ डाल दिया है?"
“मैंने हाथ नहीं डाला। ये मामला ही मेरे गले में आ लटका।" देवराज चौहान बोला--- “मुझे इस बात की हैरानी है कि कोई इन्सान ठीक मेरे जैसा है और मुम्बई में रहता है और मुझे आज तक उसके बारे में सुनने को नहीं मिला। पुलिस को मेरी तलाश है, पुलिस भी कभी धोखे में, मेरे बदले उसे ना पकड़ सकी। ये सारे इत्तफाक एक साथ कैसे हो सकते हैं?”
“मुझे सूरज की तस्वीरें दिखाओ।" जगमोहन बोला।
देवराज चौहान ने अपना फोन जगमोहन को दिया।
जगमोहन ने फोन के भीतर मौजूद रीटा की पार्टी वाली तस्वीरें देखीं। बार-बार सब तस्वीरों को देखा। वो गम्भीर और उत्सुक नजर आने लगा था और बोला---
“मुझे तो ये तस्वीरें तुम्हारी लग रही हैं। "
“ये सूरज की तस्वीरें हैं। रात रीटा के बेटे की पार्टी में तस्वीरें ली गई।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि तस्वीरें कल रात पार्टी में ही---।"
"नोरा ने जो साड़ी पहन रखी है, इसे ही पहन कर वो पार्टी में गई थी।"
"तुमने देखा?"
"हां, वो मेरे सामने ही तो गई थी।"
"अगर---।" जगमोहन की निगाह फोन में दिख रही तस्वीरों पर थी--- "ये तुम नहीं हो तो मैं दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य देख रहा हूँ। ठीक तुम जैसा, जैसे तुम हो, वैसे ही ये तस्वीर में---।"
"तभी तो मानने को दिल नहीं करता कि फोटोकॉपी इन्सान की तो भगवान भी नहीं बना सकता। कोई कमी तो रह ही जायेगी।"
जगमोहन ने गहरी साँस लेकर फोन वापस दिया।
"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा। मैं तुम्हारी हालत समझ सकता हूँ कि उस जगह पर तुम किस कदर उलझे पड़े हो। तुम्हारा तो दिमाग खराब हो रहा होगा अपनी फोटोकॉपी की तस्वीरें देखकर। मैं तो खुद परेशान हो गया हूँ। लेकिन तुम्हारी इस बात से मैं भी सहमत हूँ कि भगवान कितना भी करामाती सही, परन्तु अपने ही बनाये इन्सान की फोटोकॉपी नहीं बना सकता। कहीं ना कहीं कोई कमी जरूर रहेगी, ऐसी कमी कि जो फोटोकॉपी को फेल कर दे।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- “परन्तु तुम सूरज को अभी देख नहीं पाये, वरना कोई कमी तो तुम देख ही लेते।”
“मेरी बात छोड़ो। किसी दूसरे ने इस कमी को क्यों नहीं समझा ? मुझे बेहिचक सूरज क्यों माना जा रहा है?"
जगमोहन सिर हिलाकर रह गया।
वेटर कॉफी रख गया ।
“मुझे बताओ, इस मामले में, मैं क्या कर सकता हूँ?" जगमोहन ने कॉफी का घूँट भरा।
“कुछ भी नहीं। तुम्हारे करने लायक कोई भी काम नहीं है।" देवराज चौहान ने कॉफी का घूँट भरा।
"आज शाम मदन से बात करोगे?"
देवराज चौहान ने हाँ में सिर हिलाकर कहा---
"इस परिवार पर से मदन की समस्या हटाकर, मैं वहाँ से चला आऊँगा। ताकि ये लोग आराम से रह सकें। मेरे ख्याल में सब ठीक होता पाकर, सूरज भी अपने घर वापस आ जायेगा।"
देवराज चौहान को देखते जगमोहन ने सिर हिलाया, कहा कुछ नहीं।
"कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं वहाँ के हालातों को ठीक से नहीं जानता, लेकिन फिर सब ठीक लगता है सिवाय इसके कि मदन उस परिवार को तंग कर रहा है या सूरज घर से लापता है।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
जगमोहन चुप रहा।
देवराज चौहान ने कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा, फिर कॉफी समाप्त करता बोला---
“साढ़े तीन बज रहे हैं। मुझे बंगले पर पहुँचना होगा। मदन का कोई भरोसा नहीं कि कब आ जाये। वो उतावले इन्सान जैसा है, जिसे सब कुछ फौरन चाहिये हो। उसमें सब्र नाम की कोई चीज नहीं है। वो बंगले को भी फौरन से फौरन अपने अधिकार में ले लेना चाहता है। मुझसे मिलने वो पहले भी आ सकता है।"
■■■
देवराज चौहान ने गाड़ी पोर्च में ले जाकर रोक दी। दरबान ने बाहरी फाटक बंद कर दिया। चाबी गाड़ी में ही लगी रहने दी देवराज चौहान ने और बंगले में प्रवेश करता चला गया। बाबू हाल में रखी चीजों को साफ करता दिखा। देवराज चौहान अपनी सोचों में डूबा पहली मंजिल पर पहुँचा। फिर बैडरूम का दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया। नोरा पर निगाह गई जो बॉर्डरॉब में कपड़े सैट कर रही थी।
नोरा ने देवराज चौहान को देखा। खुलकर मुस्कराई। चेहरे पर मादकता के भाव थे।
“आ गये तुम....कपड़े फिर चेंज कर आये।" वो बोली ।
"कपड़े?” देवराज चौहान ने अपने कपड़ों को देखा फिर नोरा को।
“तुम बहुत शैतान और शरारती हो गये हो....।" नोरा एकाएक देवराज चौहान की तरफ बढ़ी--- "सच कहूं तो तुमने उलट-पुलट बातें कहकर मुझे डरा दिया था कि तुम सूरज नहीं हो।" नोरा देवराज चौहान के सीने से आ लगी। बांहों का घेरा बांधा और देवराज चौहान के होंठों को चूमते कहा--- “तुम बहुत प्यारे हो सूरज.....।"
देवराज चौहान ने तेजी से नोरा को अलग करते कहा---
"ये क्या कर रही हो। मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि मैं यहाँ घर बसाने नहीं आया। ये मेरा घर नहीं है।"
"क्या मतलब?" नोरा बुरी तरह चौंक कर, देवराज चौहान को देखने लगी--- "क्या कहा तुमने?"
"तुम्हें अचानक हो क्या गया--- ।"
"मुझे हो गया है या तुम्हें हो गया है?" नोरा हक्की-बक्की सी कह उठी--- "अभी तो तुम ठीक थे।”
"अभी?" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।
“आधा घंटा पहले तो तुम बहुत प्यार के साथ मुझसे बातें कर रहे.... ।”
“मैं तीन घंटे बाद लौटा हूँ तो आधा घंटा पहले की बात कहाँ से आ गई?”
“न-नहीं।” नोरा एकदम पीछे हट गई--- “तुम.... तुम ।"
“क्या बात है?” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े--- “सूरज आया था?"
“वो.... वो तुम ही तो थे.... सूरज....।"
“मैं तीन घंटे बाद बंगले पर लौटा हूँ। तुमसे कहकर गया था।" देवराज चौहान बोला।
“त-तुम सुरेन्द्रपाल ?"
“हाँ.... ।”
“पर.... पर तुमने तो कहा था कि तुम सूरज हो। जानबूझकर सुरेन्द्रपाल बनकर मुझसे मजाक करते रहे.... ।”
"मैंने ऐसा कभी नहीं कहा।"
नोरा ठगी-सी खड़ी देवराज चौहान को देखती रही।
देवराज चौहान ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया और सिग्रेट सुलगाकर बोला---
“सूरज आया था मेरे पीछे से?"
“वो.... वो तुम ही थे....तुम सूरज....तुमने ही तो कहा.... ।”
“मैंने कुछ नहीं कहा।” देवराज चौहान का स्वर सामान्य था--- “मुझे बताओ, क्या हुआ था मेरे पीछे से ?"
नोरा के चेहरे पर हैरानी के भाव नाच रहे थे।
“तुम अभी भी मुझसे मजाक कर रहे....।"
“सुरेन्द्रपाल तुमसे कभी भी मजाक नहीं करेगा।”
“पर तुमने तो कहा था कि तुम सूरज हो और सुरेन्द्रपाल बनकर तुम मुझसे मजाक कर रहे थे। तुमने... तुमने मेरे साथ बैड पर प्यार किया, फिर तुम तिजोरी से दस लाख रुपये भी निकालकर ले गये कि किसी को देने हैं। आधा घंटा पहले तो तुम गये थे.... और अब दूसरे कपड़े पहन कर लौट आये हो, जो सुबह पहन कर गये थे। तुम ये कैसा मजाक कर रहे हो मेरे साथ? ये कोई अच्छी बात तो नहीं कि कभी तुम सुरेन्द्रपाल बन जाओ और कभी सूरज । तुमने क्या मुझे मजाक समझ रखा है। ये भी भला कोई मजाक हुआ जो.... ।"
“नोरा!” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला- “मैं नहीं, वो सूरज ही था। जो तुम्हारे पास आया। तुमसे बातें कीं। तुमसे प्यार किया। तिजोरी से दस लाख लिया और चला गया।"
नोरा देवराज चौहान को घूरने लगी।
कई पलों तक उनके बीच शान्ति रही।
“तुम.... ।” देवराज चौहान ने कहना चाहा।
“मुझे समझ नहीं आता कि आखिर तुम्हें हो क्या गया है? कभी तुम खुद को सूरज कहते हो और कभी सुरेन्द्रपाल । मेरा मजाक बना रखा है तुमने। अगर मेरे साथ नहीं रहना चाहते तो साफ-साफ कह दो, मैं चली जाऊँगी।" नोरा की आवाज में चीखने के भाव थे। वो पाँव पटकते कुर्सी पर जा बैठी और अपना माथा पकड़ लिया।
गम्भीर निगाहों से नोरा को देखता आगे बढ़ा देवराज चौहान और उसके सामने कुर्सी पर बैठता बोला---
"मुझे बताओ कि जब मैं गया तो पीछे से क्या हुआ?"
नोरा माथा पकड़े सुबक उठी।
“इस तरह....।”
“आखिर तुमने मुझे समझ क्या रखा है?" नोरा चेहरा सीधा करते बोली। उसकी बिल्लौरी आँखों में आँसू थे— “ये तुमने क्या तमाशा बना रखा है, कि कभी खुद को सुरेन्द्रपाल कहने लगते हो और कभी सूरज बन....।"
"मैंने ऐसा कभी नहीं किया।"
“तुमने किया और इस वक्त भी ऐसा कर...।"
"प्लीज नोरा।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “मैं सुरेन्द्रपाल हूँ। मैंने तुम्हें सब बताया था कि मैं... ।”
"तो फिर अभी सूरज क्यों बन गये थे। क्यों मुझे....।"
“मैं नहीं था वो। वो सूरज ही था।" देवराज चौहान बोला।
“तुम्हारी बकवास सुनते-सुनते मैं तंग आ गई हूँ। मैं तुमसे भी परेशान हो गई....।"
“मैं समझ सकता हूँ तुम्हारी हालत।" देवराज चौहान ने कहा--- “पर मेरा यकीन करो, वो मैं नहीं था। मैं सुरेन्द्रपाल हूँ और वो सूरज था....सूरज तुम्हारा पति। तुम मुझे बताओ तो क्या हुआ?"
आँसू नोरा के गाल पर आ लुढ़के थे।
नोरा ने आँसुओं को साफ करके उखड़े लहजे में कहा---
“तुम जब गये तो एक घंटे बाद तुम वापस आ गये। जाते वक्त तुमने ये ही कपड़े पहन रखे थे पर जब घंटे बाद आये तो तुम दूसरे कपड़ों में थे। मैंने कपड़ों के बदलाव के बारे में पूछा तो तुमने कहा दोस्त के घर उसके ये कपड़े पहले से पड़े थे....तो ये पहन लिए। मैंने भी दोबारा नहीं पूछा। परन्तु तुम कहने लगे कि तुम सूरज हो और आज तक मैं सुरेन्द्रपाल होने का नाटक करके, तुम्हें तंग करके, तुमसे मजा ले रहा था। मैं सच मान गई तुम्हारी बात क्योंकि मेरा दिल तभी ये ही कह रहा था कि तुम सूरज ही हो। फिर हमने बैड पर प्यार किया। उसके बाद तुमने नहा-धोकर कपड़े बदले और तिजोरी से दस लाख निकाला। मैंने पूछा कि इतने पैसों का क्या करना है, तुमने कहा किसी को देने हैं और जल्दी आने को कहकर तुम चले गये। इस बात को आधा घंटा ही बीता कि तुम इन कपड़ों में वापस आ गये।”
“वो सूरज था। मेरे जाने के बाद सूरज तुम्हारे पास आया था।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
“तुम फिर बकवास कर रहे---।”
"मैं सच कह रहा हूँ।” देवराज चौहान ने शब्दों पर जोर देकर कहा ।
“तुम झूठे हो। कभी मेरे सामने सूरज बन जाते हो तो कभी सुरेन्द्रपाल, तुम...।"
“इस वक्त मैं कुछ और सोच रहा हूँ।" देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला ।
नोरा ने उखड़े अन्दाज में देवराज चौहान को देखा।
“सूरज को कैसे पता चला कि मैं दो-तीन घंटों के लिए बंगले से बाहर गया हूँ?"
“तुमने फिर अपना नाटक शुरू कर दिया।" नोरा झल्ला उठी।
“मैं ये सोच रहा हूँ कि सूरज को कैसे पता चला कि मैं सुरेन्द्रपाल के रूप में तुम्हारे पास मौजूद हूँ? तुम्हें बता रखा है कि मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हूँ। उसे ये बात किसने बताई?"
नोरा की नजर देवराज चौहान पर थी।
"तुमने ये बात किसी और से की?" देवराज चौहान ने नोरा से पूछा ।
"क्या ?"
"ये ही कि मैं कहता हूँ कि मैं सूरज नहीं सुरेन्द्रपाल हूँ?”
“तुम फिर सुरेन्द्रपाल....सुरेन्द्रपाल कहने लगे। मैं....।"
"मेरी इस बात का जवाब दो। तुमने ये बात किसको बताई?"
"किसी को भी नहीं बताई ये बात ।"
"रीटा से कही ?"
"नहीं।"
"तो फिर सूरज को ये बात कैसे पता चली?”
“तुम ही तो सूरज हो---।"
“मैं सूरज नहीं हूँ।” देवराज चौहान दृढ़ स्वर में कह उठा— “मेरे बंगले से बाहर जाने की बात तो नौकरों से भी पता चल सकती है, परन्तु जो बात तुम्हारे-मेरे बीच में हो और तुमने ये बात किसी से ना कही हो तो इस बात को सूरज कैसे जान सकता है कि मैं तुम्हारे सामने सूरज नहीं सुरेन्द्रपाल बनकर रह रहा हूँ।"
"तुम मुझे पागल कर दोगे।" नोरा गुस्से में कह उठी।
“तुम्हारी मनःस्थिति मैं समझ सकता हूँ।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया— “इन हालातों में तुम्हारा परेशान होना सही है। परन्तु तुम्हें खुश भी होना चाहिये कि सूरज तुमसे ज्यादा दूर नहीं है। उसकी नजर यहाँ पर है। ऐसे में हो सकता है, वो जल्दी घर वापिसी करे।"
"ये सब कुछ मैं अब और नहीं सह सकती।" नोरा उठते हुए बोली--- "मैं पापा के पास जा रही हूँ।”
"तुम कहीं नहीं जाओगी, नहीं तो सारा खेल बिगड़ जायेगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये सब करना, तुम्हारे लिए खेल होगा सूरज, पर तुम मेरी जिन्दगी के साथ खेल, खेल रहे हो....और ये बात अब मैं नहीं सह सकती। मैं यहाँ नहीं रहूँगी।" नोरा गुस्से में कहती वार्डरौब की तरफ बढ़ी।
"सबसे पहले तो तुम अपने दिमाग से ये बात निकाल दो कि मैं सूरज हूँ।" देवराज चौहान ने कुर्सी पर बैठते हुए नोरा को देखते हुए कहा--- "दूसरी बात ये समझ लो कि मेरा पूरा ध्यान मदन पर है। मैं उसे संभालने की कोशिश में हूँ, अगर तुम यहाँ से गईं तो मैं भी नहीं रुकने वाला। मैं चला जाऊँगा, फिर मदन को संभालने वाला कोई नहीं होगा। सूरज के बस का नहीं है मदन। ऐसे में मदन जल्दी ही इस बंगले पर कब्जा ले लेगा। अपने कब्जे में कर लेगा। श्रेया और नीरज सड़क पर आ जायेंगे। सब कुछ खत्म हो जायेगा।"
नोरा ठिठक कर देवराज चौहान को देखने लगी।
“मैं सुरेन्द्रपाल हूँ। ये मानो तभी बाकी बातें तुम्हें समझ में आयेंगी।" देवराज चौहान ने कहा।
“दो घंटे पहले तुमने कहा कि तुम सुरेन्द्रपाल नहीं--- सूरज हो और---।"
“वो सूरज था, जो रात पार्टी में भी तुम्हारे पास आया था। यहाँ आओ, कुर्सी पर बैठो।"
नोरा गहरी साँस लेकर उलझन भरे ढंग से वापस आई और कुर्सी पर आ बैठी।
“अपने को संभालो । तभी मेरी बातें समझ पाओगी।"
नोरा ने अपनी आँखें बंद कर लीं। तुरन्त ही खोल भी लीं।
“ये सोचो कि सूरज को कैसे पता चला मैं सुरेन्द्रपाल बनकर तुम्हारे पास रह रहा हूँ।"
“मुझे इससे क्या फर्क पड़ता है कि उसे ये बात कैसे पता चली?" नोरा ने कहा।
“मुझे फर्क पड़ता है। मैं जानना चाहता हूँ कि सूरज को यहाँ की खबरें कौन दे रहा है। और ये बात तो तुम्हारे मेरे बीच में थी तो सूरज को कैसे पता चल गई--- सोचो, तुमने किसी से ये बात कही हो?”
"मैंने किसी से भी ये बात नहीं कही।" नोरा ने इन्कार में सिर हिलाया ।
“सूरज ने तुमसे और क्या बातें कीं?” देवराज चौहान ने पूछा।
“और बातें?”
“ऐसी कोई बात जानना चाहता हूँ मैं कि जिसके द्वारा मैं सूरज तक पहुँच सकूँ। उसने तुमसे क्या बातें.... ।”
“कोई खास नहीं। रुटीन की बातें थीं।"
“दस लाख लेकर उसने बताया कि वो कहाँ जा रहा है, किसी का नाम लिया हो ?"
“नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं।" नोरा ने इन्कार में सिर हिलाया।
देवराज चौहान उलझन में दिख रहा था।
“तुम सच में सुरेन्द्रपाल हो?” नोरा ने एकाएक पूछा।
“हाँ।”
"और वो सूरज था जो मेरे पास आया था।"
“हाँ। वो सूरज---।"
"मैं सच में इन बातों से परेशान हो गई हूँ। अब किसी भी बात पर यकीन करने को दिल नहीं करता।"
"तुमने कहा सूरज कपड़े बदल कर यहाँ से गया?" देवराज चौहान बोला।
"हां।"
"उसके कपड़े कहाँ हैं जो उसने उतारे?” देवराज चौहान ने पूछा।
“बाथरूम में ही हैं। मैले कपड़े उठाने को मैंने अभी प्रेमवती को नहीं बुलाया।"
देवराज चौहान उठा और बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
नोरा ने गहरी साँस लेकर कुर्सी की पुश्त से सिर टिका लिया।
देवराज चौहान ने बाथरूम में प्रवेश किया।
बाथरूम काफी बड़ा था और हर जरूरत की चीज से सजा हुआ था।
देवराज चौहान की नजर बाथरूम में घूमती, उस हुक पर जा टिकी, जहाँ पैंट-कमीज लटके हुए थे। आगे बढ़कर देवराज चौहान ने पैंट-कमीज हुक से उतारी। कपड़ों को ध्यान से देखा।
वो पूरी तरह उसके नाप के थे।
परन्तु वो मैले थे, जैसे दो दिन उन्हें लगातार पहना गया हो ।
देवराज चौहान ने कमीज-पैंट की जेबें चैक कीं। पैंट की जेब में तुड़ा-मुड़ा रूमाल मौजूद था। एक जेब में कुछ सिक्के पड़े थे। इसके अलावा जेबों में से कुछ नहीं मिला। देवराज चौहान ने ये जानने की चेष्टा की कि कपड़े कहाँ से सिलवाये गये हैं, परन्तु वो रेडीमेड खरीदे गये थे। ब्रांडेड नामों का टैग लगा था।
कपड़े वहीं छोड़कर देवराज चौहान बाथरूम से बाहर आ गया।
नोरा को पुश्त से सिर टिकाये बैठे देखा। वो समझ सकता था कि इन हालातों में नोरा को कितनी परेशानी हो रही होगी। परन्तु हालात ऐसे थे कि वो इस बारे में नोरा की कोई सहायता नहीं कर सकता था। वो तो खुद ही परेशान होने लगा था इन बातों से। सूरज को ये पता चल जाता है कि वो बंगले से बाहर जा रहा है। उसे ये पता है कि वो नोरा के पास सुरेन्द्रपाल बनकर रहा है। सूरज बनकर नहीं।
ये बात सूरज को कैसे पता चली?
जबकि नोरा का कहना है कि इस बारे में उसने किसी से बात नहीं की।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और नोरा के सामने कुर्सी पर आ बैठा।
नोरा ने पुश्त से सिर हटाकर देवराज चौहान को देखा।
"मेरे बंगले पर आने से पहले तो सूरज तुमसे कभी नहीं मिला?" देवराज चौहान ने पूछा।
नोरा ने इन्कार में सिर हिलाया।
"मतलब कि अब वो इस बात का फायदा उठाने लगा है कि वो और मैं एक जैसे हैं। यानि कि पहले भी वो अपने परिवार पर नजर रखे था। किसी नौकर से वो बंगले की भीतरी खबरें लेता रहता था।" देवराज चौहान बोला--- “इसका मतलब है कि बंगले का एक नौकर, जो सूरज को खबरें दे रहा है, वो जानता है कि मैं सूरज नहीं सुरेन्द्रपाल हूँ।"
“वो नौकर तो कोई भी हो सकता है।" नोरा धीमे स्वर में बोली ।
“तुम्हें कभी किसी नौकर पर शक हुआ कि वो तुम्हारे बारे में ज्यादा जानने की चेष्टा करता है?”
कुछ सोच कर नोरा बोली---
“नहीं। ऐसा शक मुझे किसी पर भी नहीं हुआ।”
“एक बात और बताओ।" देवराज चौहान बोला--- “मेरे जाने के बाद तुम्हारे पास सूरज आया। उसने तुमसे प्यार किया। दस लाख तिजोरी से ले गया। उसके हाव-भाव से तुम्हें जरा भी शक नहीं हुआ कि वो कुछ अलग दिख रहा है?”
“ऐसा तो नहीं लगा।"
“या तुमने नोट नहीं की ये बात?”
“सही तो ये है कि मैंने नोट नहीं की। मुझे क्या पता कि मेरे सामने कभी सुरेन्द्रपाल आ रहा है तो कभी सूरज । तुम दोनों एक से दिखते हो.... तो मैं कैसे समझ सकती हूँ कि मेरे सामने....।"
“ये बात पूछने का मेरा मतलब था कि दो इन्सानों के चेहरे एक से हो सकते हैं। मान लिया, लम्बाई-चौड़ाई एक सी हो सकती है। आवाज एक सी हो, वो भी मान लेता हूँ कुछ देर के लिए। परन्तु हाव-भाव, बोलने का अन्दाज, उठने-बैठने का ढंग, ऐसी बातों में तो फर्क होगा ही।"
“शायद हो। पर मैंने नोट नहीं किया।" नोरा ने गम्भीर स्वर में कहा--- "सच बात तो ये है कि अब इन बातों से मेरा दिमाग खराब होने लगा है। इन हालातों में, मैं और रही तो मेरा दिमाग.....।"
“भैया.... ।” तभी युवक की ऊँची आवाज कानों में पड़ी। आवाज कमरे से बाहर, कुछ दूर से आई थी।
नोरा की बात अधूरी रह गई। वो कुछ चौंकी।
“भैया....।" इस बार आवाज दरवाजे के पास आ गई थी।
“नीरज.....।” नोरा के होंठों से निकला--- "नीरज आ गया है।"
“भैया....।" तभी दरवाजा थपथपाया गया।
देवराज चौहान तुरन्त उठा। दरवाजे के पास पहुँचा और दरवाजा खोला।
सामने बाईस बरस का लम्बा युवक खड़ा था।
“भैया!” वो खुशी से चिल्लाता देवराज चौहान के गले आ लगा।
देवराज चौहान ने भी उसे बाँहों में ले लिया था।
नीरज के आने से घर का माहौल बदल गया।
श्रेया भी कॉलेज से आ गई थी।
नोरा भी पास में थी।
उनके बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि रौनक लग गई। नीरज घंटा भर तो देवराज चौहान से शिकवे-शिकायत करता रहा वो (सूरज) घर से क्यों चला गया? उसके बाद बातें रुख बदलती चली गईं। उनमें हँसी मजाक शुरू हो गया। देवराज चौहान पूरी कोशिश कर रहा था कि वो सूरज ही इस वक्त दिखे इन्हें ।
नोरा पास ही थी परन्तु वो बातों में ज्यादा हिस्सा नहीं ले रही थी। चुप-चुप सी थी।
शाम छः बजे देवराज चौहान को नोरा से अलग में बातें करने का मौका मिला।
“तुम सबके बीच इस तरह चुप जैसी हो कि स्पष्ट लगता है कि कोई बात जरूर है।" देवराज चौहान बोला।
“बात तो है ही।" नोरा ने भारी स्वर में कहा।
“क्या?”
"तुम सूरज नहीं हो....है ना?”
“हाँ।"
"मैं सोच रही हूँ कि सूरज घर आया। मुझे प्यार किया, फिर मुझे छोड़कर क्यों चला गया?" नोरा ने कहा।
"उसकी अपनी समस्या होगी जो वो घर से दूर रह रहा है।"
"वो मुझे तुम्हारे पास छोड़कर कैसे जा सकता है?"
"सूरज जानता है कि मैं तुम्हारे पास सूरज नहीं--- सुरेन्द्रपाल बनकर रह रहा हूँ। इसी कारण वो निश्चिन्त है। जबकि मुझे हैरानी है कि वो इस बात को कैसे जानता है। तुम्हें याद आया कि ये बात तुमने किसी से कही ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"मैंने ये बात किसी से नहीं कही।”
“अपने को दूसरों के सामने सामान्य रखो। नीरज और श्रेया को ना पता चले कि घर में सब कुछ ठीक नहीं है। वो मुझे सूरज समझ रहे हैं तो उन्हें समझने दो। मैं मदन को ठीक करके यहाँ से चला जाऊँगा। तब तुम इनसे जो भी कह देना।”
शाम पौने सात बजे नीरज ने एकाएक कहा....
“भैया! मदन चाचा से कोई बात हुई क्या? वो तो हमें बहुत परेशान कर रहे हैं।”
“बात हो रही है मदन चाचा से ।" देवराज चौहान बोला।
“हो रही है?” नीरज के चेहरे पर सवाल आ ठहरा।
“हाँ। हो रही है। एक बार हुई है। दूसरी बार आज होगी । मदन कभी भी यहाँ आ सकता है।”
“मदन चाचा आने वाले हैं?” नीरज कुछ परेशान दिखा।
“चिन्ता मत करो। मैं उसे संभाल लूंगा।”
“पर... पर आप तो कहते थे कि आप मदन का मुकाबला नहीं कर....।”
“अब कर सकता हूँ। तुम ये बात मेरे पर छोड़ दो।" देवराज चौहान मुस्कराया--- “तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?”
"बढ़िया। पर भैया, मुझे कल वापस पूना जाना होगा।" नीरज ने कहा।
“इतनी जल्दी..... ।”
“एक्स्ट्रा क्लासेस चल रही हैं, जो पीछे छूट गया है, वो एक्स्ट्रा क्लास में पढ़ा जा सकता है। अगले महीने एग्जाम हैं। मेरा वापस जाना जरूरी है।” नीरज ने गम्भीर स्वर में कहा।
“फिर तो तुम्हें नहीं रोकूंगा।” देवराज चौहान ने नीरज का कंधा थपथपा कर कहा।
दस मिनट बाद देवराज चौहान के सामने श्रेया पड़ गई।
"भैया!" श्रेया फुसफुसाकर बोली--- "अमन से कब मिलोगे?"
“तुम जब कहो....।" देवराज चौहान मुस्कराया।
"कल मिलें? मैंने अमन से कह रखा है कि भैया तुमसे मिलने वाले हैं। वो मिलने का इन्तजार कर रहा है।"
"ठीक है। कल मिलते हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
"कितने बजे?"
"तुम्हारा कॉलेज कब खत्म---।"
"कॉलेज को छोड़ो भैया--- एक दिन में क्या फर्क पड़ता है। कल सुबह चलते हैं।"
"पहले कॉलेज, फिर दूसरा काम समझीं चिंकी।"
“ठीक है भैया। कल कॉलेज ढाई बजे खत्म होगा।" श्रेया ने सोच कर कहा।
“अमन से बात करके, जो भी प्रोग्राम बने, कल मुझे बता देना।" देवराज चौहान बोला।
“बात तो फोन पर अभी कर लेती हूँ अमन से.... ।" श्रेया खुशी से बोली--- “अभी बता देती हूँ कल का प्रोग्राम।" कहने के साथ ही श्रेया खुशी से उछलती, वहाँ से चली गई।
■■■
साढ़े सात बजे मदन आ गया।
तब देवराज चौहान, नीरज, श्रेया, नोरा ड्राईंग हाल में बैठे इधर-उधर की बातें कर रहे थे कि बाबू ने मदन के आने की खबर दी। चंद पलों के लिए उनके बीच खामोशी छा गई।
नोरा तुरन्त उठ खड़ी हुई।
देवराज चौहान ने श्रेया और नीरज से कहा---
“तुम लोग भी जाओ।”
“भैया, मैं आपके साथ रहूँगा।" नीरज बोला।
“नहीं। मदन से मैं अकेले में बात करूँगा।" देवराज चौहान ने कहा ।
“एक से दो भले भैया.... मैं.... ।”
"नीरज ।” देवराज चौहान ने आदेश भरे स्वर में कहा--- "तुम सब यहाँ से जाओ। यहाँ जो बातें होंगी, उन्हें सुनने की भी कोशिश मत करना।"
नीरज के चेहरे पर असहमति के भाव उभरे।
"तुम दोनों मेरे साथ चलो।" नोरा बोली।
नोरा, नीरज और श्रेया वहाँ से चले गये।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।
तभी मदन ने प्रवेश किया।
देवराज चौहान ने कश लेकर मदन को देखा। सोफे पर ही बैठा रहा।
करीब आते मदन ने हाथ हिलाकर कहा---
"क्या हाल है भतीजे?"
देवराज चौहान की निगाह पास आते मदन पर रही।
बाबू एक तरफ खड़ा था।
मदन पास पहुँचकर हंसकर बोला---
“आजकल तुमने ज्यादा सिग्रेट पीनी शुरू कर दी है। मुझे तुम्हारी सेहत की चिन्ता होने लगी है। सिग्रेट कम कर दो।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
मदन बैठते हुए बोला ।
"आज तो गम्भीर लग रहे हो। चिन्ता में हो। भरोसा रखो, चाचा तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा। मैंने कुछ सोचा है।"
"मालिक।" बाबू ने देवराज चौहान को देखा--- "ठण्डा-गर्म ले आऊँ.... आप लेंगे ?"
"कुछ नहीं चाहिये। तुम जाओ।” देवराज चौहान ने कहा।
बाबू जाने लगा कि मदन कह उठा---
“भई, पानी-वानी तो पिला दो। वैसे कुछ नहीं चाहिये।"
देवराज चौहान ने बाबू को जाने का इशारा किया।
बाबू चला गया।
देवराज चौहान ने कश लेकर, मदन को देखा।
“तुमने बंगले के बारे में बात करने को मुझे बुलाया है।" मदन बोला--- "सुबह ये ही कहा था तुमने?"
“हाँ।”
"मैं जानता था, मेरा भतीजा समझदार है, मान जायेगा। पर मैंने भी तुम्हारा भला सोचा है।" मदन सिर हिलाकर बोला--- "चूंकि तुम मेरे भतीजे हो, इसलिए मैंने सोचा है तुम्हें बीस का पच्चीस करोड़ दूंगा।"
"लेकिन तुम समझदार नहीं हो मदन।" देवराज चौहान ने कहा।
"मदन ? भतीजे, कुछ तो लिहाज करो। चाचा कहकर बात करो।"
"मैं तुम्हारा कुछ नहीं लगता, क्योंकि मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्र हूँ।"
"फिर वो ही बात....तुम कोई भी हो, बंगला मेरे हवाले करो। मैं तुम्हें पच्चीस करोड़ देता हूँ।" मदन ने कहा।
"तुम दो सौ पचास करोड़ दो तो भी बंगला तुम्हें नहीं मिलेगा।"
मदन, देवराज चौहान को घूरने लगा।
देवराज चौहान मुस्कराया।
"तुमने बंगले पर बात करने के लिये मुझे बुलाया है?" मदन ने तीखे स्वर में कहा।
"बंगले के मुद्दे पर ही बात कर रहा हूँ और ये हमारी आखिरी मीटिंग है। आज के बाद कोई बात नहीं होगी, बंगले पर ।"
"अच्छा!" मदन व्यंग्य से कहते, सोफे पर थोड़ा आगे सरका--- "ये बात तुम कैसे कहते हो कि ये हमारी आखिरी मीटिंग है? सब कुछ मेरे हाथ में है। मैं तुम्हें दिन में तारे दिखा सकता हूँ।"
"बंगला लेने का इरादा छोड़ दो। धोखेबाजी से पीछे हट जाओ। पहले ही तुम काफी कुछ हड़प चुके हो। बिजनेस तुमने झूठे पेपर्स के दम पर ले लिया। वॉल्ट में रखी शिवचंद की दौलत तुमने हजम कर ली। पहले ही ज्यादा हो चुका है, अब---।"
"भतीजे!" मदन ने कड़वे स्वर में कहा--- "तुम अपनी बात से भटक रहे हो....। तुम.....।"
"मेरी बात तुम नहीं समझे तो तुम्हें बुरा नतीजा भुगतना होगा।"
"बुरा नतीजा ?"
"जिन्दा नहीं रहना चाहते क्या?" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"क्या?" मदन ने हैरानी से कहा--- "तुम मुझे धमकी दे रहे हो? मेरी जान लेने को कह रहे हो?"
देवराज चौहान ने कमीज के भीतर पैंट में फंसा रखी रिवाल्वर, कमीज में हाथ डालकर निकाली।
मदन ने हैरानी से रिवाल्वर को देखा, फिर देवराज चौहान को।
"मेरी बात समझ जाओ।" देवराज चौहान ने सर्द स्वर में कहा।
"ये रिवाल्वर कहाँ से खरीदी?" मदन बोला--- "मेरी रिवाल्वर पुरानी हो गई है। मैं भी नई खरीदना चाहता हूँ। दिखाना जरा।" कहने के साथ ही मदन ने हाथ आगे बढ़ाया।
तभी देवराज चौहान तेजी से उठा और जोरदार घूंसा मदन के चेहरे पर मारा।
मदन कराह उठा। पीछे सोफे की पुश्त से टकराया।
देवराज चौहान ने रिवाल्वर की नाल सामने से मदन की गर्दन पर रख दी।
मदन वहीं थम गया। गुस्से से देवराज चौहान को देखा।
"मैं तुम्हें बार-बार समझा रहा हूँ कि अपना रास्ता बदल दो। वरना अन्जाम बुरा होगा।" देवराज चौहान गुर्राया ।
"भतीजे !" मदन उसी तरह फंसे स्वर में बोला--- “तुमने तो बहुत बड़ी बात कर दी। मेरे पर हाथ उठाया। मुझ पर रिवाल्वर लगाकर धमकी दे रहे हो। बड़े भैया आज होते तो ये देखकर शर्म से पानी-पानी हो जाते कि उनका बेटा कैसा है। तुमने तो बहुत कुछ कर दिया मेरे साथ। पीछे हटा लो रिवाल्वर, कहीं डर से मेरे दिल की धड़कन ना बंद हो जाये।" स्वर में कड़वाहट थी।
"तुमने सुना जो मैंने कहा?” देवराज चौहान पुनः गुर्राया ।
"सुना।"
देवराज चौहान ने गर्दन से रिवाल्वर हटाई और जेब में डालते हुए कहा---
"तुमने अब अपना रास्ता ना बदला तो मैं तुम्हें मार दूंगा।"
मदन अपने गले को मसलता मुस्करा कर बोला---
"रिवाल्वर तो तुमने खरीद ली, चलानी आती है क्या?" इसके साथ ही मदन उठ खड़ा हुआ--- “नहीं चलानी आती तो जल्दी से सीख लो, क्योंकि आने वाले वक्त में तुम्हें रिवाल्वर चलाने की जरूरत पड़ने वाली है--- और अगर ये सोचते हो कि रिवाल्वर दिखाकर मुझे डरा दोगे तो ये तुम्हारी भूल है, क्योंकि मदन कभी भी किसी से नहीं डरता।"
"तो तुम मरना चाहते हो?" देवराज चौहान के दाँत भिंच गये।
“देखते हैं कौन मरता है और कौन जिन्दा रहेगा---।" मदन ने खतरनाक स्वर में कहा और बाहर की तरफ बढ़ गया।
चेहरे पर कठोरता समेटे देवराज चौहान मदन को जाते देखता रहा।
मदन बाहर निकल गया।
तभी देवराज चौहान के कानों में नोरा की आवाज पड़ी---
"ये कमीना चुप नहीं बैठेगा। जरूर कुछ करेगा।"
देवराज चौहान ने गर्दन घुमाकर ऊपर देखा।
पहली मंजिल की रेलिंग पर नोरा खड़ी उसे देख रही थी।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।
तब देवराज चौहान एक पैग लेकर हटा था। साढ़े आठ बजे थे। वे सब बैडरूम में थे। नोरा, नीरज और श्रेया भी वहीं बैठे बातें कर रहे थे कि बाबू ने इन्टरकॉम पर बताया कि बड़े बाऊजी आये हैं।
यानि कि नोरा के पिता सुन्दरलाल जी ।
"मैं पापा को यहीं ले आती हूँ।" कहकर नोरा बाहर निकलती चली गई।
"भैया!” श्रेया ने कहा--- “कल का प्रोग्राम याद है ना?"
“याद है।” देवराज चौहान मुस्कराया।
"कैसा प्रोग्राम?” नीरज ने दोनों को देखा।
“ये हमारा प्राईवेट प्रोग्राम है।" श्रेया ने नीरज को अंगूठा दिखाया--- "तुम्हें क्यों बताऊँ?”
"क्यों भैया, कल क्या हो रहा है?” नीरज ने देवराज चौहान को देखा।
"चिंकी के साथ किसी खास काम पर जाना है।"
“मुझे भी तो पता चले कि क्या खास काम है?" नीरज मुस्कराया।
“चिंकी ही बता सकती है, मैं नहीं बताऊँगा।" देवराज चौहान हंसा।
"क्यों चिंकी?" नीरज ने चिंकी को देखा।
“अभी नहीं। तुम जब दोबारा पूना से आओगे तो तब बताऊँगी।" चिंकी ने आँखें नचाई।
तभी दरवाजा खुला और नोरा ने सुन्दरलाल जी के साथ भीतर प्रवेश किया।
उनके आते ही कमरे का माहौल बदल गया।
सुन्दरलाल जी ने सबका हाल पूछा। नीरज-श्रेया को प्यार किया।
देवराज चौहान भी सुन्दरलाल जी से अपनेपन से मिला।
"मैं कल बहुत व्यस्त रहा। चाहकर भी नहीं आ सका।" सुन्दरलाल जी ने कहा--- “तुम कैसे हो सूरज ?”
"मैं ठीक हूँ।” देवराज चौहान ने कहा।
"नोरा ने बताया कि तुम खुश हो।"
देवराज चौहान मुस्कराया।
सुन्दरलाल जी बैठ चुके थे।
बातें शुरू हो गईं। बाबू ने इन्टरकॉम पर पूछा कि क्या लायें? पूछने पर सुन्दरलाल जी ने कहा कि वे डिनर साथ-साथ करेंगे। अभी कुछ नहीं चाहिये।
उसके बाद 9:45 तक उनमें बातें चलती रहीं।
फिर बाबू ने इन्टरकॉम पर बताया कि डिनर लग गया है। दस बजे डिनर शुरू हुआ जो कि बातों के दौरान करीब ग्यारह बजे खत्म हुआ। उसके बाद देवराज चौहान और सुन्दरलाल जी ने कॉफी पी।
साढ़े ग्यारह बजे सुन्दरलाल जी चले गये---
श्रेया, देवराज चौहान को एक तरफ ले जाकर बोली।
“भैया, कल अमन एक बजे मुझसे मिलने कॉलेज आयेगा। उसके बाद आपको फोन करके प्रोग्राम बनाऊँगी।”
उसके बाद चिंकी सोने चली गई।
नीरज ने बताया कि वो सुबह सात बजे ही चला जायेगा। दोपहर एक बजे उसकी क्लास है।
देवराज चौहान और नोरा बैडरूम में पहुँचे। नोरा गम्भीर दिखी। बोली---
“तुम क्या सोचते हो कि मदन को इस तरह तुम संभाल लोगे? वो बहुत कमीना....बुरा इन्सान है, तुम उसे नहीं समझ पाये अभी तक ।"
“मैं उसे संभालने की कोशिश नहीं कर रहा।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तो?"
“मैं देखना चाहता हूँ कि गुस्से में वो क्या कर सकता है। मैं उसके इरादों को जाँच रहा हूँ।"
“वो कुछ भी कर सकता है।" नोरा गम्भीर स्वर में बोली---- “वो..... ।”
“मदन कुछ भी कर ले, लेकिन मेरे होते वो कुछ भी नहीं कर सकेगा।"
"तुम अपने को ज्यादा आंक रहे हो। मदन को तुम कमजोर समझ रहे हो।”
"मैं उसे कमजोर नहीं समझ रहा। उसे सिर्फ भाँप रहा हूँ।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम्हारे पास रिवाल्वर देखकर वो डरा नहीं।"
“इसलिये नहीं डरा कि मैंने रिवाल्वर का इस्तेमाल नहीं किया। मैं मदन को किसी भी हाल में मारना नहीं चाहता। वो मेरा दुश्मन नहीं है। ये तुम लोगों के परिवार का मामला है और मैं तुम लोगों की सहायता कर रहा हूँ। ऐसे में किसी भी हाल में मदन की जान नहीं लूंगा। परन्तु उसे इस मामले से पीछे धकेल दूंगा।"
नोरा ने गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देखते हुए कहा---
“तुमने लोगों को मारा भी है?"
"बहुत बार।" देवराज चौहान ने नोरा को देखा।
नोरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
“लेकिन मदन की जान नहीं लूंगा। क्योंकि ये मामला, ये हालात अलग हैं। इसमें किसी की जान नहीं जानी चाहिये।"
■■■
नीरज सुबह चला गया था।
नोरा से मिल गया था वो। श्रेया से भी मिला जाते हुए। नोरा ने ही ये बातें देवराज चौहान को बताई थीं। देवराज चौहान आज थोड़ा देरी से नौ बजे उठा था। नहा-धोकर तैयार हुआ। आज श्रेया के ब्वायफ्रेंड अमन से भी मिलना था। परन्तु श्रेया का फोन आने में काफी वक्त था। नोरा भी नहा ली थी।
ग्यारह बजे देवराज चौहान और नोरा ने नाश्ता किया।
वापस कमरे में आकर देवराज चौहान ने कहा---
“आज मैंने अमन से मिलना है।”
“अमन?” नोरा ने देवराज चौहान को देखा।
“चिंकी का ब्वायफ्रैंड। वो उससे शादी करना चाहती है।" देवराज चौहान ने बताया ।
"ओह! पर तुम अमन से मिलकर क्या करोगे?” नोरा ने पूछा।
“क्या कहना चाहती हो?"
“तुम सूरज तो हो नहीं जो कोई फैसला ले सको---।"
“इतना तो समझ सकता हूँ कि वो लड़का चिंकी के काबिल है भी या नहीं।"
“तुमने कहा था कि वो गरीब है।"
"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। गरीब से अमीर होने में ज्यादा देर नहीं लगती। जरूरत समझी तो मैं खुद अमन को कोई अच्छा बिजनेस शुरू करवा दूंगा। इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम सच में सूरज नहीं हो?" नोरा ने थके स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने नोरा को देखा, फिर गम्भीर स्वर में बोला---
"एक बात तुम्हें समझाना चाहता हूँ कि जब भी मैं तुमसे कहूँ कि मैं सूरज हूँ तो समझ लेना, तुम्हारे सामने असली सूरज खड़ा है। सूरज को पहचानने की ये ही असली निशानी है तुम्हारे पास।"
नोरा ने कुछ नहीं कहा। वो गम्भीर दिख रही थी।
दोपहर का डेढ़ बज गया था।
देवराज चौहान को श्रेया का फोन आने का इन्तजार था।
वो बाहर जाने को तैयार हो चुका था।
वक्त बीतने लगा। ढाई बजे तो देवराज चौहान ने श्रेया को फोन किया ।
परन्तु उधर से श्रेया का फोन बंद आया।
देवराज चौहान को अजीब लगा कि श्रेया के फोन का स्विच ऑफ आ रहा है। ये अजीब बात थी। इस वक्त तो श्रेया का फोन हर हाल में आना चाहिये था, नहीं आया तो कम से कम उसके फोन का स्विच ऑफ नहीं आना चाहिये। ये बात देवराज चौहान को उलझन में डालने के लिए काफी थी।
तभी नोरा ने भीतर प्रवेश किया। देवराज चौहान को देखते ही कह उठी---
"श्रेया का फोन नहीं आया अभी तक ?”
"नहीं।"
“फोन तो आना चाहिये।" नोरा ठिठक गई।
“उसका फोन भी नहीं लग रहा। स्विच ऑफ आ रहा है।" देवराज चौहान ने कहा।
"श्रेया का फोन तो बंद नहीं होना चाहिये।”
“उसने मुझे कहा था कि एक बजे अमन उससे मिलने कॉलेज आयेगा। तब वो मुझे फोन करेगी। लेकिन इस वक्त तो पौने तीन हो रहे हैं। तुम्हारे पास श्रेया की कॉलेज की सहेली का फोन है ?"
"है तो...।” कहकर नोरा टेबल की तरफ बढ़ गई--- "डायरी में लिखा है।"
तभी इन्टरकॉम का बजर बज उठा। नोरा ठिठकी फिर इन्टरकॉम के पास पहुँचकर रिसीवर उठाया।
"कहो।"
"मेम साहब।" ये दरबान की आवाज थी--- "अमन नाम का युवक मालिक से मिलना चाहता है।"
“अमन?" नोरा के होंठों से निकला।
देवराज चौहान तुरन्त कुर्सी से उठकर नोरा को देखने लगा।
"जी वो---।"
"उसे गेट पर ही रखो। साहब अभी आ रहे हैं।" कहकर नोरा ने रिसीवर रखा और पलटी।
“क्या बात है?” देवराज चौहान ने पूछा।
"गेट पर अमन मौजूद है, तुमसे मिलना चाहता है...।" नोरा ने कहा।
“अमन यहाँ?” देवराज चौहान चौंका।
फिर देवराज चौहान तेजी से कमरे से बाहर निकलता चला गया।
जल्दी ही वो बाहर गेट पर था।
दरबान ने बंद गेट के बाहर, एक युवक को रोक रखा था।
देवराज चौहान की निगाह युवक पर पड़ी तो ठिठक कर रह गया।
युवक का चेहरा घायल था। नाक पर सूजन थी। नाक से बहा खून कमीज पर गिरा दिख रहा था। दायाँ गाल भी सूजा हुआ था। स्पष्ट दिख रहा था कि मार-पिटाई हुई है।
“तुम अमन हो, जिससे श्रेया आज मुझे मिलाने वाली थी?” देवराज चौहान ने पूछा।
"जी सर..... मैं ही अमन हूँ....।" वो रोने वाले अन्दाज में बोला--- “श्रेया को कुछ लोग उठाकर ले गये हैं।"
“क्या?” देवराज चौहान चिहुँक उठा--- “कौन लोग ले गये श्रेया को?'
"मैं उन्हें नहीं जानता। डेढ़ बजे मैं और श्रेया कॉलेज के बाहर खड़े बातें कर रहे थे। हम जगह का चुनाव कर रहे थे कि आपसे कहाँ मिलना है, तभी एक कार हमारे पास रुकी। एक आदमी कार की स्टेयरिंग सीट पर बैठा रहा। तीन लम्बे-चौड़े व्यक्ति बाहर निकले और श्रेया को पकड़कर कार में खींचने लगे। वहाँ और लोग भी थे। ये सबने देखा। श्रेया चीखी। मैंने श्रेया को बचाने की चेष्टा की तो दो ने मेरी पिटाई शुरू कर दी। मैं संभल नहीं सका और वो लोग श्रेया को कार में डालकर ले गये। तब मैं दौड़ा-दौड़ा आपको बताने आ गया।"
श्रेया का अपहरण कर लिया गया था।
तभी उसके फोन का स्विच ऑफ आ रहा था।
देवराज चौहान जानता था कि ये काम मदन ने किया है। उसके अलावा श्रेया का अपहरण करने का किसी को फायदा नहीं था। उसने नहीं सोचा था कि मदन इस हद तक गिर जायेगा।
"सर, श्रेया को बचा लीजिये....वो....।"
"तुम फिक्र मत करो। उस कार के बारे में कुछ बता सकते हो जिसमें श्रेया को ले जाया गया है?"
"मैं तो उस वक्त घायल होकर नीचे गिरा पड़ा था। मुझे इतना वक्त ही नहीं मिला कि कार को देख पाता।"
"तुम अपने घर जाओ।" देवराज चौहान ने उसके कंधे को थपथपाते गम्भीर स्वर में कहा।
“सर, वो श्रेया......।" अमन ने कहना चाहा।
"तुम जाओ।" कहकर देवराज चौहान पलटा और बंगले के भीतर की तरफ चल पड़ा। चेहरे पर गुस्से के भाव नजर आ रहे थे। शरीर में तनाव आ भरा था। मदन ऐसी कोई हरकत करेगा, ये उसने नहीं सोचा था।
देवराज चौहान बैडरूम में पहुँचा तो नोरा उसके चेहरे पर गुस्सा देखकर बोली---
"क्या हुआ?"
"कॉलेज के बाहर से किसी ने चिंकी का अपहरण कर लिया---।”
“अपहरण?” नोरा हक्की-बक्की रह गई--- “क-किसने?”
“मदन ने।"
“हाँ।" नोरा की आवाज तेज हो गई--- "मैंने कहा था कि मदन बुरा इन्सान है। वो तुम्हारी धमकी से नहीं डरेगा। देख लिया, क्या कर दिया है उसने? तुम मदन को बंगला क्यों नहीं दे देते? वो खतरनाक है, तुम उसका मुकाबला नहीं कर सकते। हे भगवान, उसने नोरा का अपहरण कर लिया। कुत्ता है वो कुत्ता!" नोरा का चेहरा लाल सुर्ख होने लगा--- “वो हमारी जिन्दगी नर्क बना देगा। तुम तो यहाँ से चले जाओगे और हम भुगतते रहेंगे मदन की दी बरबादी को। मैं कहती हूँ अभी मदन को बुलाकर, बंगला उसे दो और श्रेया को वापस ले लो।”
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और कुर्सी पर बैठता सख्त स्वर में बोला---
“मदन को किसी भी हाल में बंगला नहीं मिलेगा।"
"क्या---क्यों नहीं दोगे उसे बंगला ? श्रेया बंगले से ज्यादा जरूरी है मेरे लिए। अगर तुम सूरज होते तो अब तक फैसला ले चुके होते कि बंगला मदन को दे दिया.....।"
""सूरज ने अगर बंगला मदन को देना होता तो यहाँ से जाता क्यों?" देवराज चौहान ने कहा।
नोरा देवराज चौहान को सुर्ख चेहरे से देखने लगी।
"क्या कहना चाहते हो?"
“बंगला सिर्फ सूरज ही मदन को दे सकता है। परन्तु दस महीने पहले मदन का दबाव बढ़ते पाकर सूरज चुपचाप गायब हो गया। वो जानता है कि उसके बिना मदन बंगला अपने नाम नहीं लगवा सकता। यानि कि सूरज भी नहीं चाहता कि बंगला, मदन को दिया जाये। फिर तुम....।"
“तब मदन ने चिंकी का अपहरण नहीं किया था।” नोरा गुस्से से कह उठी--- “चिंकी और बंगले में से सूरज, चिंकी को ही चुनता। मुझे चिंकी वापस चाहिये। हर हाल में, हर कीमत पर वापस चाहिये।"
“चिंकी तुम्हें वापस मिल जायेगी।”
“कैसे मिलेगी? जब तक मदन को बंगला नहीं मिलेगा, वो चिंकी को नहीं छोड़ेगा....।"
“मदन को बंगला नहीं मिलेगा और चिंकी तुम्हें जल्दी ही वापस मिल जायेगी।”
“ये कैसे सम्भव है कि चिंकी.... ।”
“हालातों को मैं सम्भव बनाऊँगा....तुम....।”
“तुम तो पहले भी कह रहे थे कि मदन को ऐसा कर दोगे, वैसा कर दोगे, लेकिन हुआ क्या, वो श्रेया को.....।”
“ये मेरे लिए मामूली बात है। ऐसा हो जाता है। मदन ने ज्यादा से ज्यादा जो करना था, कर लिया। अब मुझे करना होगा। तुम मुझे बताओ कि मदन कहाँ मिलेगा, वो कहाँ.....।”
“तुम खुद को शेर की तरह पेश कर रहे हो और मदन को संभाल नहीं पा रहे।" नोरा ने गुस्से से कहा।
देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।
"मैं शेर नहीं हूँ। तुम मुझे ये बताओ कि मदन कहाँ मिलेगा? वो कहाँ रहता है। कहाँ बिजनेस करता है।"
“तुम भ्रम में हो कि मदन के पास जाओगे और वो श्रेया तुम्हें दे देगा। वो तुम्हें...।”
"मैं उसके पास नहीं जा रहा।"
"नहीं जा रहे?" नोरा की आँखें सिकुड़ी।
"मदन का फोन आयेगा।"
"क्यों?"
"वो श्रेया का सौदा करने की बात कहेगा कि....।"
"तो उसकी बात फौरन मान लेना।" नोरा ने आगे बढ़कर देवराज चौहान की बाँह सख्ती से थाम ली--- "मदन को इन्कार मत करना। बंगला उसके हवाले कर दो और श्रेया को सही-सलामत वापस ले लेना। कागजों पर सूरज के जो साईन करने हैं, उन साईनों की प्रेक्टिस कर लो। सारा काम ठीक से होना चाहिये। मुझे बंगले में नहीं, श्रेया में दिलचस्पी है।" नोरा की आँखों में आँसू चमक उठे।
देवराज चौहान ने आहिस्ता से अपनी बाँह छुड़ाई और कहा---
"तुम मुझे मदन के बारे में सब कुछ बताओ। वो कहाँ रहता है। उसके परिवार में कौन है। कहाँ बिजनेस करता है वो और किस जगह पर करता है। उसकी पहचान के लोग कौन-कौन हैं। जो भी तुम्हें पता है, सब कुछ मुझे बताओ।"
नोरा गीली आँखों से देवराज चौहान को देखती रही।
"मैंने जो पूछा है, मुझे वो बताओ।" देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।
"तुम्हें....तुम्हें यकीन है कि मदन ने ही श्रेया का अपहरण किया.... ।”
"पूरा यकीन है।"
“तुमने ही तो कहा है कि मदन का फोन आयेगा, फिर उसके बारे में मेरे से क्यों पूछ रहे.....।"
"तुम चाहती हो कि मदन को बंगला देकर, श्रेया को वापस ले लूं। लेकिन मैं मदन की ये इच्छा पूरी नहीं होने दूंगा।"
“क्या मतलब?"
“श्रेया तुम्हें मिल जायेगी। उसे मैं वापस लाऊँगा। लेकिन बंगला मदन को नहीं मिलेगा।"
“तुम्हें चिंकी की चिन्ता नहीं है। क्योंकि वो तुम्हारी बहन नहीं.... ।”
“वो मेरी बहन है। मुझे भैया कहती है। ये मत कहो कि वो मेरी कुछ नहीं लगती।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- “मैं यहाँ सब कुछ ठीक करने के लिए रुका हुआ हूँ और तुम चाहती हो कि...।"
"अगर मदन ने चिंकी को मार दिया तो तब तुम क्या करोगे ये भी बता दो।" नोरा ने गुस्से से कहा।
"वो चिंकी को कोई नुकसान नहीं पहुँचायेगा। उसने चिंकी को उठाया ही इसलिए है कि हम पर दबाव बना सके कि बंगला उसके हवाले कर दे। वो चिंकी का पूरी तरह ध्यान रखेगा। उसे सलामत रखेगा।" देवराज चौहान ने शब्दों पर जोर देकर कहा--- "मेरे लिए ये बातें मामूली हैं। मदन गलत समझता है कि वो इस तरह....।"
"चिंकी का अपहरण हो जाना तुम्हारे लिए मामूली बात है। क्योंकि चिंकी तुम्हारी बहन नहीं है। वो तुम्हारी....।"
"चिंकी मेरी उतनी ही बहन है, जितनी कि सूरज की और ये जान लो कि मेरे लिए मामूली बात है इन हालातों में चिंकी का अपहरण हो जाना। मैं बार-बार कह रहा हूँ कि चिंकी वापस आ जायेगी। वो ठीक-ठाक हाल में तुम्हें मिल जायेगी। बेहतर होगा कि तुम शांत रहो। इस मामले में हाय-तौबा मत करो। मुझे कुछ करने दो....।"
नोरा देवराज चौहान को देखने लगी।
"मुझे मदन के बारे में पूरी जानकारी चाहिये, वो कहाँ रहता है, कहाँ उसका काम.....।"
"मेरे से ज्यादा ये बातें तुम्हें बाबू बता सकता है। वो यहाँ का पुराना नौकर है। उसे सब कुछ पता है।" नोरा गम्भीर स्वर में बोली
"मुझे लगता है तुम हालातों को और बिगाड़ने जा रहे हो....तुम...।"
“तुम इस मामले में जुबान बंद रखो और मुझे कुछ करने....।"
तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा।
देवराज चौहान ने फोन निकाला और स्क्रीन पर आया नम्बर देखा।
वो मदन का नम्बर था।
देवराज चौहान की आँखों में खतरनाक भाव उभरे।
"कहो।" देवराज चौहान ने कॉल रिसीव करके बात की।
"मैंने सुना श्रेया का अपहरण हो गया। किसी ने कॉलेज के बाहर से उसे उठा लिया।" मदन की आवाज कानों में पड़ी।
"बहुत जल्दी ये खबर तुम तक पहुँच गई?” देवराज चौहान का स्वर सख्त हो गया।
"मेरे आदमियों ने मुझे बताया कि वो श्रेया को उठा लाये हैं।" मदन के कड़वे अन्दाज में हंसने की आवाज आई।
"वो तुम्हारी भतीजी है। तुमने बुरा किया उसका अपहरण करके।"
"भतीजी है....तभी तो उसे आराम से रखा है। अभी-अभी उससे मिल कर आया हूँ। प्यार भरा हाथ उसके सिर पर फेरा। आशीर्वाद दिया। मैं उसका पूरा ध्यान रख रहा हूँ। लेकिन वो जरा डरी हुई है। तुम्हारे पास जाने को कह रही है। मैंने उसे समझाया कि तुम जल्दी ही सूरज से मिलोगी। वो कभी भी मेरी बात मानकर तुम्हें ले जायेगा।"
"तुमने बहुत गलत कर दिया मदन ।"
"अच्छा।"
“पहले हम में मुँह की लड़ाई थी।" देवराज चौहान ने दाँत भींचकर कहा--- “अब तुमने जो हरकत की है, उससे ये लड़ाई बढ़ गई है। अब लड़ने का ढंग भी बदल जायेगा। तुम्हें पछताना पड़ेगा।"
"तुमने मुझे रिवाल्वर दिखाई थी।”
“तब भी नहीं समझे कि तुम्हें क्या करना चाहिये। बल्कि और गलत कर दिया।”
“मदन को अभी तुम ठीक से जानते नहीं। मैं तुम्हारे टुकड़े करवा सकता हूँ।" मदन के हँसने की आवाज आई--- “अभी बच्चे हो मेरे सामने। अब मैं तुम्हारा जीना हराम कर दूंगा। तुम्हारी नींद हराम कर दूंगा।"
“सलाह मानोगे मेरी ?"
“बोल भतीजे.... ।”
“चिंकी को छोड़ दो।”
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं। तुम जब कहोगे, मैं चिंकी को...।"
“चिंकी को छोड़ दे मदन।” देवराज चौहान का स्वर पत्थर की तरह कठोर हो गया।
“बोला तो, ये तुम पर है कि श्रेया को---।"
“मैं अपने पर कुछ नहीं लेना चाहता। तुमने चिंकी को उठाया है तो तुम्हीं चिंकी को...।”
“मैं बंगले के नाम पर बड़े भैया को 180 करोड़ दे चुका हूँ, समझे सूरज, बाकी का...।"
“तुम्हारे इस झूठ को कोई नहीं मानेगा। तुम लालची इन्सान हो और अपना दबदबा कायम करके बंगले को हड़प लेना चाहते हो। मेरे होते तुम सफल नहीं हो सकते। याद रखो, मैं सूरज नहीं हूँ।"
"बंगला मेरा है बेटे, तुम वो मुझे जरूर दोगे। चिंकी तो तुम्हें बहुत प्यारी है ना?"
"चिंकी को छोड़ दो।"
"बंगला मेरे नाम कर दो, चिंकी को ले लो। चार दिन का वक्त देता हूँ। पाँचवें दिन चिंकी को मार दूंगा।"
"म-द-न---।" देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
"चिंकी की लाश तुम्हें कहीं ना कहीं से मिल जायेगी और उसके बाद नीरज का नम्बर लगेगा। एक के बाद एक। तुम भी नहीं बचोगे। तुम्हारा नम्बर भी लगेगा। फिर तुम्हारी बीवी नोरा। सब खत्म, उसके बाद तो बंगला खुद-ब-खुद ही मेरा हो जायेगा। वैसे ये रास्ता मेरे लिए काफी आसान है। सोच लो। सिर्फ चार दिन। पाँचवें दिन मैं अपना कहा पूरा कर दूंगा। बाकी तुम्हारे हाथ में है, जो मन में आये करो।" कहकर उधर से मदन ने फोन बंद कर दिया था।
देवराज चौहान ने फोन कान से हटाया।
चेहरे पर कठोरता नाच रही थी। आँखों में खतरनाक भाव मचल रहे थे।
"क्या हुआ ?"
देवराज चौहान ने नोरा को देखा भी नहीं। वो अपनी ही सोच में था।
"मैंने पूछा, क्या कहा मदन ने?" नोरा तेज स्वर में कह उठी।
"वो बंगला चाहता है।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
"कहा तो, बंगला मदन को दे दो। देर क्यों कर रहे....।"
"मैं इसी पर सोच रहा हूँ। तुम.....।"
कहते-कहते देवराज चौहान ठिठका, फिर जगमोहन को फोन मिलाया। बात हुई।
"मदन ने श्रेया का अपहरण कर लिया है।" देवराज चौहान की आवाज सामान्य किन्तु तल्खी भरी थी।
"ओह, तो कर दिया उसने काम। जगमोहन का हैरानी भरा स्वर कानों में पड़ा।
"तुम बंगले के बाहर पहुँचो।"
“मदन के बारे में जानकारी है तुम्हें कि....।"
"तुम्हारे आने तक मैं पता कर लूंगा जरूरी बातें--- तुम आ जाओ।"
"मैं चालीस मिनट में बंगले के बाहर मिलूंगा।" कहकर उधर से जगमोहन ने फोन बंद कर लिया था।
देवराज चौहान ने फोन जेब में रखा कि नोरा कह उठी---
"तुमने किससे बात की?"
"तुम्हें ये जानने की जरूरत नहीं है।" इसके साथ ही देवराज चौहान कमरे से बाहर निकला और आगे बढ़ता नीचे ड्राइंगहाल में पहुँचा और बाबू को ढूँढ़ने लगा। चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
बाबू किचन में सब्जी काटता मिला। एक तरफ प्रेमवती भी अपने काम में लगी थी।
"मालिक आप... बाबू ने फौरन सब्जी काटना छोड़ दिया--- "हुक्म दीजिये।"
प्रेमवती भी अपना काम छोड़कर उठ खड़ी हुई।
"तुम्हें मदन के बारे में जानकारी है?"
"मदन बाबू के बारे में जानकारी? कैसी जानकारी?" बाबू कुछ समझा नहीं।
"मदन कहाँ रहता है? कहाँ काम करता है? उसके परिवार में कौन-कौन है? सब कुछ जानना है मैंने।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "नोरा ने कहा है कि तुम्हें सब जानकारी है।"
"हाँ....है मालिक। पर जो आप पूछ रहे हैं, वो सब कुछ तो आपको पता है। मुझे हैरानी है कि आप मुझसे....।"
"मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो।"
"प-पर बात क्या है....।"
"मदन ने चिंकी का अपहरण कर लिया है। वो चाहता है कि बंगला उसके नाम कर दूं।" देवराज चौहान का स्वर सख्त हो गया।
"ये तो मदन बाबू ने बहुत बुरा किया....।”
"मुझे मदन के बारे में सब कुछ बताओ।"
"मालिक!" प्रेमवती ने कहा--- "मदन बाबू के बारे में, आपसे ज्यादा कौन जानता है कि....।"
"बोलो।" देवराज चौहान ने बाबू से कहा।
बाबू सिर हिलाते हुए कह उठा---
"मदन बाबू का, परेल की मार्किट में डायमंड हाऊस के नाम से शोरूम है। पहले ये शोरूम बड़े मालिक का हुआ करता था। फिर उन्होंने मदन बाबू यानि अपने छोटे भाई को पार्टनर बना लिया और आज वो पूरे बिजनेस का मालिक बना बैठा है। मैं जानता हूँ.... उन्होंने आपके साथ बहुत भारी धोखा किया है। सब कुछ बेईमानी से छीन लिया।"
“मदन कहाँ रहता है?"
“चैम्बूर में सात नम्बर उसका बंगला है।"
"उसके परिवार में कौन-कौन है?"
"मदन के अलावा सुनीता नाम की उसकी पत्नी है। विजय नाम का पच्चीस साल का बेटा है, जो कि साल भर पहले ही अमेरिका से बिजनेस मैनेजमेंट का कोर्स करके आया है। अब डायमंड शॉप पर बैठता है।"
"एक ही बेटा है उसका ?"
“जी।"
“मदन के दोस्तों में कौन-कौन से लोग हैं?"
“ये मुझे नहीं पता।” बाबू ने इन्कार में सिर हिलाया।
“एक के बारे में भी नहीं पता?”
"नहीं मालिक।”
“मदन क्या बदमाश जैसा इन्सान है?"
“वो कुछ ऐसा ही है।”
“चिंकी को उठाकर उसने कहाँ रखा होगा?” देवराज चौहान ने पूछा।
“नहीं जानता।”
“कुछ और जगहें भी तो होंगी उसके पास?”
“उनके बारे में मुझे नहीं पता।"
देवराज चौहान वहाँ से जाने लगा कि बाबू हिचकिचा कर बोला---
“मालिक! आपने तो मुझे परेशान कर दिया, ये सब पूछकर, आपको तो सब कुछ पहले से ही पता... ।”
देवराज चौहान ने पूरी बात नहीं सुनी और बाहर निकलता चला गया। जगमोहन को फोन किए आधा घंटा बीत चुका था । उसके बंगले के बाहर पहुँचने में दस मिनट बाकी थे।
देवराज चौहान कमरे में पहुँचा और वार्डरौब से कपड़े निकाले ।
नोरा की निगाह देवराज चौहान पर टिक चुकी थी।
“कहीं जा रहे हो?" नोरा ने पूछा।
“हाँ।”
“तुम्हारा दोस्त आ रहा है। वो कौन है?"
“दोस्त है।”
“तुम जो भी करो, मुझे श्रेया चाहिये।" नोरा ने व्याकुल स्वर में कहा।
“चिंकी तुम्हें सही-सलामत मिल जायेगी।"
"तुम... तुम कुछ गलत कर दोगे। अगर चिंकी को कोई नुकसान हो गया तो....।"
"उसे कुछ नहीं होगा। मेरा वादा है तुमसे ।"
देवराज चौहान ने कपड़े चेंज किए। उसी पल फोन बजने लगा। देवराज चौहान ने फोन पर आया नम्बर देखा। परन्तु वो नम्बर उसके लिए अन्जान था। देवराज चौहान ने कॉल रिसीव की।
"हैलो।"
"सुरेन्द्रपाल । तुम....तुम सुरेन्द्रपाल हो ना?” एक परेशान-सा स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।
देवराज चौहान थम से वहीं का वहीं ठिठक गया।
सिर घुमाने वाली तो ये बात थी कि जो आवाज उसके कानों में पड़ी थी, वो उसकी अपनी आवाज थी। उसे लगा जैसे अपनी रिकार्ड की आवाज ही वो सुन रहा हो। मस्तिष्क में एक ही नाम कौंधा.....
सूरज!
तो क्या दूसरी तरफ सूरज था?
"कौन हो तुम?" देवराज चौहान ने संभले स्वर में कहा।
"मैं....मैं सूरज बोल रहा हूँ। तुम पहचान गये होगे। तुम सुरेन्द्रपाल हो ना?" व्याकुलता थी आवाज में।
"हाँ....मैं...।"
“तुम्हारी आवाज मेरे से कितनी मिलती है--- हमारी आवाज एक जैसी है।" वो ही स्वर पुनः कानों में पड़ा--- "सुनो, मैं चिंकी को बहुत चाहता हूँ। वो मेरी प्यारी बहन है, मुझे अभी पता लगा कि मदन ने उसका अपहरण---।"
"बाबू ने बताया?” देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं....वो....।"
"प्रेमवती ने बताया?"
"नहीं-नहीं।" सूरज का स्वर कानों में पड़ा--- "मुझे किसी ने नहीं बताया। इन बातों को जानने का मेरे पास अपना ही ढंग है। मैं तुमसे चिंकी के बारे में बात करना चाहता हूँ। सुनो, मेरे में इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं मदन का मुकाबला कर सकूं। मैं बहुत शरीफ इन्सान हूँ। किसी को एक चांटा भी नहीं मार सकता। मदन से मुकाबला तो मैं ख्वाब में भी नहीं कर सकता। तुम...तुम मेरी सहायता करो। चिंकी को किसी भी तरह बचा लो। मदन बंगला चाहता है ना?"
“हाँ।"
“तो उसे बंगला दे दो। मैं कागजातों पर साईन कर देता हूँ। तुम चिंकी को वापस ला दो। वो मेरी जान है।"
"मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ।" देवराज चौहान ने कहा।
“नहीं। अभी हालात ठीक नहीं हैं कि तुमसे मिल सकूं....मैं....।”
“मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ।"
“मैं तुमसे जल्दी ही मिलूंगा। अभी नहीं। पर वादा रहा जल्दी मिलूंगा। तुम चिंकी को वापस ला दो। जैसे भी हो मदन से बात करो। मैं बंगले के कागजातों पर साईन करने को तैयार...।"
“कहीं भी साईन करने की जरूरत नहीं। चिंकी वापस आ जायेगी। उसके बाद तुम मेरे से मिलना ।”
“साईन की जरूरत नहीं? क्या मतलब, बंगला लिए बिना, मदन चिंकी को वापस नहीं देगा। तुम....।”
“चिंकी तुम्हें मिल जायेगी।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
नोरा की निगाह एकटक देवराज चौहान पर थी।
“सूरज का फोन था।” देवराज चौहान ने कहा।
“ओह, मेरे से बात क्यों नहीं कराई?" आतुर-सी नोरा कह उठी।
"मुझे जाना है।" देवराज चौहान ने पलट कर दरवाजे की तरफ बढ़ते कहा ।
“तुम कहाँ जा रहे हो? चिंकी का क्या होगा.... तुम....।"
“निश्चिन्त रहो। चिंकी वापस मिल जायेगी।” देवराज चौहान ने कहा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया ।
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