वक्त बीता । शाम के आठ बज रहे थे ।
परन्तु वो दोनों मोटरसाइकिल सवार युवक अब भी वहीं थे ।
ये देखकर आंखे सिकुड़ गईं देवराज चौहान की ।
एक घंटे से ऊपर का वक्त हो गया था उन्हें । मोटर साइकिल को स्टैंड पर खड़ी करके एक उस पर बैठा था और दूसरा पास खड़ा था । वो खुद तो बातों में व्यस्त रहे थे, परन्तु उनकी नजर बार-बार इस तरफ उठ रही थी । पास में ही लाइट का खम्बा था । वहां से मध्यम-सी रोशनी फैल रही थी । परन्तु वे दोनों पूरी तरह स्पष्ट नजर नहीं आ रहे थे।
देवराज चौहान ने मोबाइल निकाला और सुमित जोशी का नम्बर मिलाया ।
बैल होने लगी । कुछ देर होती रही, फिर बात हुई । उधर औरत की आवाज थी ।
"हैलो...।"
"जोशी को फोन दो ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुम कौन हो ?"
"उसका बॉडीगार्ड । बाहर कार में हूं ।"
दो पलों के बाद सुमित जोशी की आवाज कानों में पड़ी ।
"कहो...।"
"तुम तब तक बाहर नहीं निकलना, जब तक मैं ना कहूं...।" देवराज चौहान ने कहा ।
"हुआ क्या ?"
"यहां दो संदिग्ध मौजूद हैं । मुझे लगता है वो तुम्हारे इंतजार में हो सकते हैं ।"
"ओह...।"
"तुम भीतर ही रहना ।"
"ठीक है।"
देवराज चौहान ने फोन बंद करके, कार में बैठे-बैठे नजरें घुमाकर पीछे, उन युवकों को देखा ।
इस वक्त दोनों युवकों की नजर कार पर ही थी ।
ड्राइवर गाड़ी के बाहर खड़ा सिगरेट के कश ले रहा था ।
देवराज चौहान को पूरा विश्वास हो गया कि ये दोनों सुमित जोशी के ही चक्कर में हैं । उसके बाहर निकलने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि उस पर गोलियां चला सकें । युवक जोशी के ऑफिस से ही पीछे थे, तभी तो ये पीछे-पीछे यहां पहुंचे ।
देवराज चौहान चाहता तो आसानी से इन युवकों को संभाल सकता था ।
परन्तु सुमित जोशी जैसे घटिया इंसान के लिए, किसी की जान लेना उसे ठीक न लगा । कोई मुसीबत वाली बात होती तो जुदा बात थी । देवराज चौहान वहीं बैठा रहा । ये सोच कर कि शायद ये युवक चले जायें।
तभी देवराज चौहान का फोन बजा ।
"कहो...।" देवराज चौहान ने बात की ।
"तुमने फोन नहीं किया । कोई खबर नहीं दी ।" रमेश सिंह की आवाज कानों में पड़ी ।
"ओह, C.B.I. ।" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।
"हां ।"
"अभी कोई खबर नहीं है मेरे पास ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"हम तो इस आशा में तुम्हारे फोन का इंतजार कर रहे थे कि तुम कुछ बताओगे ।"
"जरूर बताऊंगा । कोई बढ़िया खबर तो पता लगने दो । मैं तुम लोगों के साथ हूं ।"
"हमें तुमसे यही आशा है कि तुम अच्छे शहरी का फर्ज निभाओगे ।"
"मैं अच्छा शहरी ही हूं ।" कहना पड़ा देवराज चौहान को ।
"इस वक्त कहां हो ?"
"मैं सनलाइट कॉलोनी में हूं...यहां...।"
"तो जोशी आज फिर उस औरत के पास आया है ?"
देवराज चौहान समझ गया कि C.B.I. वालों ने जोशी की अच्छी पड़ताल कर रखी है ।
"हां । मैं बाहर कार में बैठा हूं ।" देवराज चौहान की निगाह युवकों पर गई । वो दोनों मोटर साइकिल के पास खड़े थे ।
"वो युवती जोशी के बारे में कुछ नहीं जानती ।"
"तुमने उससे पूछा था ?"
"पता लग गया किसी तरह । वो कुछ नहीं जानती ।"
"तुम लोगों को मैं कोई खबर दूंगा । कोई खबर पाने के चक्कर में हूं मैं ।" देवराज चौहान बोला--- "एक बात बताता हूं ।"
"कहो...।"
"आज दिन में सुमित जोशी के ऑफिस के बाहर जो गोलाबारी हुई वो...।"
"जिस मदन को मारा गया । रतनपुरी का खास आदमी था वो...।"
"हां...वही । रतनपुरी के मदन को, जोशी की जान लेने भेजा था।"
"ओह...।"
"परन्तु सुमित जोशी को पहले ही पता चल गया, उसने पुलिस को खबर कर दी ।"
"तो ये बात है । जोशी के किस पुलिस वाले से ताल्लुकात हैं ?"
"ये मैं नहीं जानता । परन्तु जोशी ने मेरे सामने किसी पुलिस वाले को फोन करके कहा था कि वो मदन को पकड़ ले ।"
"ये बात तुमने सुबह क्यों नहीं बताई...।"
"मुझे कुछ वक्त लगा, तुम लोगों पर विश्वास करने में । एक बात और सुनो ।"
"कहो...।"
"शाम को मेरे सामने रतनपुरी का फोन आया जोशी को । उसने जोशी को मारने की धमकी दी है।
"ये तो होना ही था । रतनपुरी के बेटे मक्खन को फांसी जो हो गई है ।
"ये बातें मुझे नहीं पता ।"
"तुम हमें जोशी के बारे में कोई बढ़िया-सी खबर दो कि हम उसे गिरफ्तार कर सकें ।"
"मेरी मानो तो जोशी को गिरफ्तार करने के चक्कर में ही ना पड़ो ।"
"क्यों ?"
"वो बचने वाला नहीं । कोई उसे पक्का मार देगा । रतनपुरी उसे पक्का मार देगा ।"
"तुम हमें खबर दे दिया करो सुरेंद्र पाल । सलाह मत दिया करो ।"
"मैंने तो यूं ही कहा था ।"
"बढ़िया बात पता चले तो हमें फोन करना । वैसे हम तुम्हें फोन करते ही रहेंगे।
"ठीक है ।"
बातचीत खत्म हो गई । देवराज चौहान ने फोन जेब में रखा ।
नौ बज गये ।
वो दोनों युवक अभी भी मोटरसाइकिल के पास ही खड़े थे । बातों में लगे, दर्शा रहे थे ।
ये जरूर कुछ करके रहेंगे...जाने वाले नहीं । देवराज चौहान ने सोचा ।
तभी उसका फोन बजा ।
"हां ।" देवराज चौहान ने बात की । नजर युवकों पर थी ।
"क्या पोजीशन है ?"
"दो लड़के हैं । मुझे नहीं लगता कि आज वो तेरे को छोड़ेंगे ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"दो ही हैं ।"
"हां...।"
"तो तू संभाल उन्हें । तू तो देवराज चौहान है । तेरे लिए उन्हें संभालना कौन-सी बड़ी बात है ।"
"मैं उन्हें जान से नहीं मार सकता ।"
"क्यों ?"
"इस तरह में किसी की जान नहीं लेता ।"
"अपनी शराफत का डंका मत पीट । मैं सब जानता हूं कि तू क्या है ?"
"तू मुझे सर्टिफिकेट देने की कोशिश मत कर। वकील है तो, वकील ही बना रह । जज मत बन ।"
"मेरे को बचाना तेरा काम है ।"
"जानता हूं । बचने की एक ही सूरत है कि तू बाहर न निकले ।"
"कमाल है । तेरे होते मुझे, इस घर में बंद रहना पड़े, ये तो तेरे लिए शर्म की बात है ।"
"मुझे क्यों शर्म आयेगी ?"
"तू किस काम के लिये बॉडीगार्ड बना है...तू तो...।"
"इस वक्त वो तेरे पर हमला नहीं कर रहे । मेरा काम तेरे को हमले से बचाना है । तू घर में है तो घर में ही बंद रह ।"
"तू घटिया बॉडीगार्ड है ।" जोशी ने कड़वे स्वर में कहा ।
"एक-दो पैग और लगा ले । मजे से तू भी उसके साथ नाच । इस बात की फिक्र मत कर कि वो दोनों घर में घुस आयेंगे । मैं किसी को भीतर नहीं आने दूंगा । ये मेरी गारंटी है ।"
"तू देवराज चौहान ही है ना ? वो माना हुआ डकैती मास्टर ?" जोशी का तीखा स्वर कानों में पड़ा।
"बिल्कुल वही हूं...।"
"विश्वास नहीं आता । तू तो मुझे कोई बहरूपिया लगता है । जैसे शेर की खाल में छिपा गीदड़...।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान आ ठहरी ।
"पहचानने में बहुत देर लगा दी...।"
"भाड़ में जा ।" इसके साथ ही जोशी ने फोन बंद कर दिया था ।
देवराज चौहान ने फोन वापस अपनी जेब में रखा ।
दोनों लड़के अपनी जगह पर मोटरसाइकिल के साथ ही थे ।
"कुछ किए बिना ये मानने वाले नहीं...।" देवराज चौहान बड़बड़ा उठा ।
वक्त बीतने लगा ।
ड्राइवर कार के बाहर ही टहल रहा था ।
आधा घंटा और बीता । साढ़े नौ से ऊपर का वक्त हो गया । देवराज चौहान जानता था कि लंबे इंतजार के बाद लड़के चले जायेंगे । रात में रुकने वाले नहीं ।
सुमित जोशी घर के भीतर सुरक्षित रहेगा ।
तभी देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
दोनों युवकों को उसने हरकत में आते देखा । एक ने फुर्ती से मोटरसाइकिल को स्टैंड से उतारा और उस पर बैठकर उसे स्टार्ट करने लगा । जबकि दूसरा जेब में हाथ डाले सावधानी से फ्लैट की सीढ़ियों की तरफ आने लगा ।
तो इन्होंने फ्लैट के भीतर घुसने का सोच लिया ? अब उसे खुलकर सामने आना पड़ेगा । लेकिन वो मोटरसाइकिल स्टार्ट क्यों कर रहा है ? देवराज चौहान की निगाह दूसरी तरफ घूमी ।
उसी क्षण देवराज चौहान बुरी तरह चौंका ।
कम रोशनी वाली, अंधेरी जैसी सीढ़ियों से, सुमित जोशी नीचे आ रहा था । युवक उसकी तरफ ही बढ़ रहा था।
"पागल हो गया है जोशी ।" देवराज चौहान दांत भींचकर बड़बड़ाया और जल्दी से फोन निकालकर जोशी का नम्बर मिलाया ।
बैल हुई । फौरन ही जोशी की आवाज कानों में पड़ी---
"तुम पागल तो नहीं हो गये ? बाहर क्यों आये ?" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा ।
"मैं ?" जोशी के हंसने की आवाज आई--- "बाहर कहां हूं...।"
"बकवास मत करो । मैं तुम्हें सीढ़ियों से उतरते देख रहा हूं ।" फौरन वापस चले जाओ । वो तुम्हें मारने आ रहा है ।
"वो नौकर है ।"
"क्या ?" देवराज चौहान बुरी तरह चौंका ।
"मैंने अपने कपड़े उसे पहनाकर भेज दिया । जब मैंने ऐसा किया तो वो मुझे ऐसी नजरों से देख रहा था जैसे मैं पागल होऊं और मैं मन-ही-मन उसकी सोचों का मजा ले रहा था ।"
देवराज चौहान ने दांत भींच लिये ।
"तुम...तुमने एक भोले-भाले इंसान की जान दांव पर लगा दी...।"
"गलत कह रहे हो । मैंने इस तरह अपनी जान बचाने की कोशिश की है । तुम्हें बढ़िया लगना चाहिये ।"
देवराज चौहान फोन जेब में डालते हुए फुर्ती से कार से बाहर निकला।
परन्तु तब तक देर हो चुकी थी ।
वो युवक सीढ़ियों के पास पहुंच चुका था और तीन बार गोली चलने की आवाज गूंजी ।
उस अंधेरे वाली सीढ़ियों पर उसने जोशी के कपड़े पहने नौकर को गिरते देखा ।
तभी मोटरसाइकिल की आवाज गूंजी--- जो कि सीढ़ियों के सामने आ गई थी । गोली चलाने वाला भागा आया और मोटरसाइकिल के पीछे की सीट पर उछलकर बैठा तो मोटरसाइकिल भाग गई ।
अपनी जगह पर खड़ा रह गया था देवराज चौहान ।
उसे इतना वक्त न मिला की बलि चढ़ते नौकर को बचा पाता।
तभी उसने तेजी से सुमित जोशी को सीढ़ियों से नीचे आते देखा ।
उसी पल ड्राइवर घबराया-सा देवराज चौहान के पास पहुंचा---
"क्या हुआ ?"
"कार संभालो । स्टार्ट करो । हम चल रहे हैं ।" देवराज चौहान होंठ भींचकर बोला ।
"लेकिन मालिक...।" उसने कहना चाहा ।
"वो कमीना आ गया है । तुम चलो...।" कहने के साथ ही देवराज चौहान पीछे वाली सीट पर जा बैठा ।
ड्राइविंग कार की स्टेयरिंग सीट की तरफ दौड़ा । दो पलों में ही कार स्टार्ट हो गई ।
उसी पल कार का दरवाजा खुला और सुमित जोशी भीतर जा बैठा । उसके शरीर पर नौकर के सस्ते से कपड़े थे ।
"चलो...।" वो हांफते हुए बोला ।
कार आगे बढ़ती चली गई।
"तुम बाहर कैसे आ गये ?" देवराज चौहान कड़वे स्वर में बोला--- "ये नहीं सोचा कि वो अभी भी बाहर हो सकते हैं ?"
"मैंने गोलियां चलने के बाद मोटरसाइकिल जाने की आवाज सुनी थी ।"
देवराज चौहान खा जाने वाले नजरों से उसे देखता रहा ।
"मैं तुम्हारा एहसानमंद हूं कि वक्त रहते तुमने मुझे खबर देकर, मेरी जान बचा ली ।" जोशी ने कहा ।
कार तेजी से दौड़ी जा रही थी ।
"तुमने उस बेगुनाह मासूम नौकर की हत्या करवाने का जुर्म किया है ।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
"मैंने तो सिर्फ अपनी जान बचाई है । तुम्ही बताओ कि आखिर मैं क्या करता ?"
"रात भर यहीं रहते । सब ठीक हो जाता ।"
"मेरा घर पहुंचना भी जरूरी था । मेरी वजह से मेरी बीवी पहले ही परेशान रहती है ।"
"क्यों ?"
"शायद उसे परेशान रहने की आदत है । घर न पहुंचता तो वो मेरी खाट खड़ी कर देती ।"
"हैरानी है कि कोई तुम्हारी खाट खड़ी करने वाला भी है।"
"वो है । उसकी उम्र बत्तीस बरस है । वो मेरी तीसरी बीवी है । जो बच्चे पहली बीवी से हैं । वो दूसरे बच्चे को जन्म देते हुए जान गंवा बैठी । दूसरी बीवी की पहले से ही किसी से आशिकी चल रही थी । शादी के पन्द्रह दिन बाद अपने आशिक के साथ भाग गई । इसलिए मुझे दोबारा शादी करनी पड़ी...।"
"बत्तीस साल वाली से की ?"
"तब वो अट्ठाईस की थी ।"
"कोई पचास साल वाली नहीं मिली ?" देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा ।
"जब अट्ठाईस की मेरे साथ शादी करने को राजी थी--- तो मैं पचास साल के साथ क्यों शादी करूं ?"
"जवान बीवी के घर में होते हुए भी बाहर मौज-मस्ती हो रही है । तुम उसे खुश नहीं रखते होगे ।"
"उसे क्या खुश रखूं । उसकी तो कमर में ही दर्द होता रहता है ।" सुमित जोशी ने गहरी सांस ली ।
"तुम्हारे साथ रहकर तो मुझे हर कदम पर नई बात जानने को मिल रही है ।"
"अब इस बारे में मैं क्या करूं, मेरे लिए तो सब बातें पुरानी हैं और सामान्य हैं।"
"जो भी हो, तुमने उस नौकर को मरवाकर गलत काम किया । देवराज चौहान की आवाज में गुस्सा था।
"मैंने तो अपनी जान बचाई है, परन्तु तुमने कौन-सा अच्छा काम किया देवराज चौहान ?"
"मैंने...? मैंने क्या किया ?"
"तुम्हें पता था कि वो दोनों मुझे मारने के लिए मेरी वापसी की राह देख रहे हैं ।"
"हां । पता चल गया था ।"
"तो तुमने उन दोनों को शूट क्यों नहीं किया ?"
"इस तरह किसी को शूट नहीं किया जाता ।" देवराज चौहान ने मुंह बनाया ।
"तो कैसे शूट किया जाता है ?"
"मैं तुम्हारा बॉडीगार्ड हूं । तुम्हें बचाना मेरा काम है । वो खड़े थे । तुम पर हमला नहीं कर रहे थे । तुम पर हमला करते तो तुम्हें बचाने के लिए मैंने शूट कर सकता था । परन्तु वो शांत खड़े थे ।"
"जब वो मुझे यानी कि नौकर को मारने लगे तो तुमने नौकर को क्यों ना बचा लिया ?"
"उस वक्त तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि तुम बाहर निकलने की बेवकूफी भी कर सकते हो । मुझे क्या मालूम था कि तुम अपने कपड़ों में नौकर को भेजकर घटिया खेल खेल रहे हो । जब मुझे लगा कि वो तुम हो तो मैंने तभी तुम्हें फोन किया कि तुम्हें अंदर भाग जाने को कहूं और तब तक शूटर उस तक पहुंच गया था । सब गलती तुम्हारी थी ।"
"मैं बच गया । तुमने मुझे उनके बाहर होने की खबर देकर बचा लिया । शुक्रिया ।" जोशी मुस्कुराया।
"तुम्हारे बचने की मुझे खुशी नहीं हुई ।"
"क्यों ?"
"तुमने बेगुनाह नौकर की बली दी, अपने को बचाने के लिये ।"
"ये मत सोचो । ये सोचो कि मैं जिंदा हूं तो जगमोहन के बाहर आने की आशा भी जिंदा है।"
"तुमसे अच्छी तो मेरी दुनिया है ।"
"छोड़ो भी । उखड़ी बातें मत किया करो । खुश रहा करो । मुझे देखो, मेरा सब कुछ तुम्हारे सामने है । फिर भी मैं खुश...।"
"सब कुछ सामने नहीं है । जरा-बहुत ही सामने है । पता नहीं तुमने क्या-क्या कर रखा है...।"
"बेकार में परेशान हो रहे हो ।" जोशी ने लापरवाही से कहा--- "रात को तुम मेरे बंगले पर ही रहा करोगे । मुझे कभी भी तुम्हारी जरूरत पड़ सकती है । समझो दो महीने के लिए तुमने मेरे से ब्याह कर लिया ।" कहकर वो हंसा ।
देवराज चौहान ने उसे घूरा ।
"तुम्हें ये सोचना चाहिये कि कौन तुम्हारी जान लेने की कोशिश कर सकता है ।
"होगा कोई भी...।"
"जिम्मी के आदमी तो नहीं हो सकते। क्योंकि अभी वो तुमने प्रभाकर को जेल से निकलवाने का काम ले रखा है ।
"रतनपुरी के आदमी होंगे ।"
"ये उसके आदमी भी नहीं होंगे ।" देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया--- "आज दिन में ही उसके आदमी मदन को पुलिस ने मारा है। शाम को रतनपुरी ने बात की । इतनी जल्दी नहीं भेजेगा वो किसी को तुम्हारे पास । दो लड़कों को तो बिल्कुल भी नहीं भेजेगा । तुम्हारी मौत का वो पक्का इंतजाम करके तुम्हें घेरेगा।"
"तुम्हारा मतलब कि किसी और ने मेरी जान लेने की चेष्टा की ?" जोशी ने उसे देखा ।
"हां...।"
"कौन हो सकता है वो ?"
"तुम बताओ । तुम्हें पता होगा कि...।"
"कोई भी हो सकता है...।" सुमित जोशी ने गहरी सांस ली--- "किसी को भी मुझे मारने का बुखार उठ सकता है ।"
"बुखार ?"
"और नहीं तो क्या । किसी के मन में भी बरसों से सोई खुंदक फिर से जवान हो गई होगी और...।"
"सच में, तुम तो मेरी आशा से कहीं ज्यादा पहुंचे हुए हो।" लम्बी सांस लेकर देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
"क्या करूं, यही जिंदगी है मेरी।"
"तुम्हारे मां-बाप जिंदा नहीं हैं?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"नहीं । क्यों ?"
"वो होते तो पीठ ठोककर तुम्हें शाबाशी देते कि हमारे बेटे ने कितनी तरक्की कर रखी है ।"
"खींचो मत । तुम सिर्फ मुझे बचाते रहने की सोचो ।"
"दो महीने तक ।"
"दो महीने तक ही सही ।" जोशी ने गहरी सांस ली--- "क्या पता इतना ही मेरा बुरा वक्त हो ।"
"तुम जैसों का बुरा वक्त मौत के साथ ही खत्म होता है।
"टूटी बीन मत बजाओ । चुप रहो ।" सुमित जोशी ने तीखी आवाज में कहा ।
देवराज चौहान खामोश होकर बाहर देखने लगा ।
"वो लड़के देखने में कैसे थे ?" सुमित जोशी कह उठा--- "उनका हुलिया बता देना ।"
"हुलिया जानने की क्या जरूरत है । खुद ही उन्हें देख लेना । वो जल्दी तुम्हारे सामने फिर आयेंगे ।"
सुमित जोशी ने देवराज चौहान को घूरकर देखा ।
"जब उन्हें पता होगा कि उनका शिकार जिंदा है । धोखे में दूसरे को मार दिया है तो वो फिर तुम्हें मारने आयेंगे ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "वो तुम्हें जल्द ही देखने को मिलेंगे ।"
"तुम सतर्क रहना । तुमने मुझे हर हाल में बचाना है। ताकि मैं जगमोहन को आजाद करा सकूं।"
देवराज चौहान मुस्कुराया और खिड़की के बाहर देखने लगा ।
साढ़े दस बजे कार बंगले में जा पहुंची थी ।
■■■
"तुम मेरे साथ ही खाना खाओगे ।" कार से उतरते सुमित जोशी बोला--- "रात पहनने को मैं तुम्हें कपड़े दे दूंगा । वो देखो...उधर सिक्योरिटी वालों का कमरा है । रात तुम वहीं रहोगे । कोई गड़बड़ हुई तो संभाल लोगे ।
देवराज चौहान ने उधर देखा
"आओ भीतर ।"
सुमित जोशी देवराज चौहान के साथ बंगले के भीतर प्रवेश कर गया।
बंगला जैसे बाहर से शानदार था, वैसा ही भीतर से ।
भीतर एक नौकर सामने पड़ा तो सुमित जोशी कह उठा---
"विनय । इन्हें बाथरूम दिखाओ और मेरा कुर्ता-पायजामा भी दे देना ।"
"जी साहब...।"
सुमित जोशी वहां से आगे बढ़ गया ।
अपने बैडरूम में पहुंचा ।
वहां बत्तीस साल सांवले रंग की, परंतु खूबसूरत पत्नी खूबी मौजूद थी।
"हैलो खूबी डार्लिंग ! कैसी हो ?" सुमित जोशी मुस्कुराकर कह उठा ।
"बहुत बढ़िया हूं मैं ।" खूबी मुस्कुराई--- "आज बहुत खुश लग रहे हो ।"
"आज मैं बाल-बाल बचा ।"
"अच्छा ।" खूबी की निगाह, सुमित जोशी पर जा टिकी ।
"सच कहूं तो मेरे बॉडीगार्ड ने मुझे बचा लिया । वरना मैं तो मर गया था आज...।"
"खाना लगा रही हूं, जल्दी आ जाना ।" खूबी दरवाजे की तरफ बढ़ी ।
"सुनोगी नहीं कि कैसे मैं बच पाया ?"
"फुर्सत में...।" खूबी बाहर निकल गई ।
"भाड़ में जा ।" सुमित जोशी बड़बड़ाया--- "मैं खामखाह ही तेरे को बताने लगा ।
■■■
डाइनिंग टेबल पर सुमित जोशी, खूबी और देवराज चौहान मौजूद थे । जोशी ने देवराज चौहान का खूबी से परिचय, अपना नया बॉडीगार्ड कहकर कराया था ।
"प्रदीप कहां है ?" सुमित ने खूबी से पूछा ।
"भाई साहब अपनी पत्नी और बच्चों के साथ होटल में खाने गये हैं ।" खूबी ने बताया ।
"अपना प्रदीप तो अब बुढ़ापे में जवान होता जा रहा है ।" सुमित जोशी हंसा--- "अपने बच्चे किधर हैं ?"
"वो भी उनके साथ गये हैं ।"
तीनों ने खाना शुरू किया---
पास में नौकर उनकी जरूरतें पूरी करने के लिए खड़ा था ।
खूबी ने देवराज चौहान को देखकर कहा---
"क्या नाम है तुम्हारा ?"
"सुरेंद्र पाल...।"
"ये पहली बार है कि मैं किसी बॉडीगार्ड के साथ बैठकर खाना खा रही हूं ।" वो बोली।
देवराज चौहान ने खूबी को देखा और शांत भाव में मुस्कुरा पड़ा ।
बातों के दौरान खाना चलता रहा ।
"तुमने आज मेरे पति की जान बचाई ।"
"पता नहीं...वो तो यूं ही बच गई ।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।
"मैं आशा करती हूं कि आगे भी तुम इसी तरह इन्हें बचाते रहोगे ।"
"तुम तो खामखाह चिंता करती हो मेरी ।" जोशी बोला--- "मैं ठीक रहूंगा ।"
"आपकी चिंता नहीं होगी तो किसकी होगी ।" खूबी ने जोशी को देखा।
"छोड़ो भी ।"
खाना खत्म हुआ ।
दूसरे छोटे टेबल पर बैठकर वे कॉफी पीने लगे ।
खूबी इस दौरान शांत थी ।
"सुरेंद्र पाल ! रात तुम उसी कमरे में आराम करो। सिक्योरिटी वाला कमरा और...।"
"सुबह कितने बजे तैयार मिलूं ?"
"अभी सुबह का कोई प्रोग्राम नहीं है । कोर्ट जाने का तो जरा भी मन नहीं है । सुबह की बात सुबह करेंगे ।" सुमित जोशी ने कॉफी का घूंट भरा और फोन निकालकर नम्बर मिलाने लगा ।
खूबी ने देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान की नजरें उससे मिली । फिर वो कॉफी का घूंट भरने लगा ।
सुमित जोशी की फोन पर बात हो गई ।
"बोल वकील...।" उधर से जिम्मी की आवाज कानों में पड़ी--- "अब क्या हो गया ?"
"तूने मेरी जान लेने के लिए दो लड़के भेजे ?"
"पागल तो नहीं हो गया तू ?" जिम्मी की गुर्राहट कानों में पड़ी ।
"तूने नहीं भेजा किसी को ?"
"अभी तक तो नहीं भेजा...।" उधर से जिम्मी ने कड़वे स्वर में कहा ।
"यानी कि भेजेगा ।"
"पता नहीं । लेकिन एक बात तू कान खोलकर सुन ले कि मेरे पापा को जेल से बाहर निकालने के बाद ही मरना । पहले नहीं।"
"मैं आसानी से मरने वाला नहीं ।"
"जगह तैयार की, जहां तूने जेल से निकालने के बाद, पापा को रखना है ?"
"कल तैयार हो जायेगी ।" कहकर जोशी ने फोन बंद किया ।
तभी खूबी कह उठी---
"आप किन कामों में पड़े रहते हैं ?"
"ये सब अदालत के ही काम हैं ।"
"आपको हमेशा ही कोई क्यों मारना चाहता...।"
"तुम नहीं समझोगी ।" सुमित जोशी मुस्कुरा पड़ा--- "ये बातें तुम्हारी समझ से बाहर हैं ।"
"आप मुझे हमेशा इसी तरह टाल देते हैं ।"
और देवराज चौहान सोच रहा था कि इस औरत की कमर में कभी भी दर्द नहीं हुआ होगा । जोशी झूठ बोलता है।
■■■
रात के बारह बजने जा रहे थे, जब देवराज चौहान सिक्योरिटी वाले कमरे में पहुंचा । साधारण-सा कमरा था। चार चारपाइयां वहां बिछी हुई थी । लाइट जल रही थी । परन्तु भीतर कोई नहीं था । देवराज चौहान ने पायजामें में फंसी दोनों रिवाल्वरों को टटोला, फिर एक तरफ पड़ी कुर्सी पर जा बैठा । चेहरे पर सोच के भाव थे ।
वो महसूस कर चुका था कि जोशी का बॉडीगार्ड बने रहना समस्या वाला काम है । दुश्मन ज्यादा है और पता नहीं कौन कब किधर से वार कर दे। कौन उसे मारना चाहता है, ये अभी नहीं पता था जोशी को । धमकी सिर्फ रतनपुरी की तरफ से आई थी अभी तक । परन्तु मोटरसाइकिल वाले युवक, कम से कम रतनपुरी के भेजे नहीं हो सकते।
सुमित जोशी को भी अपनी मौत का डर था, परन्तु वो डर को जाहिर नहीं करता था ।
हालात बुरे ही थे ।
तभी दरवाजे पर आहट हुई ।
देवराज चौहान ने सतर्क निगाहों से दरवाजे की तरफ देखा तो उसी पल उसकी आंखें सिकुड़ी ।
दरवाजे पर खूबी खड़ी थी ।
"आप ?" देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ ।
"तुमने मेरे पति को बचाया ?" वो शांत स्वर में बोली ।
देवराज चौहान उसे देखता रहा ।
"क्या जरूरत थी ?"
देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े ।
"मैं तुम्हें खुश कर दूंगी--- अगर तुम अगली बार मेरे पति को ना बचाओ ।"
"खुश ?" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।
"पचास लाख दूंगी और साथ में मैं भी तुम्हारी गोद में एक हफ्ते के लिए बैठ जाऊंगी ।"
देवराज चौहान ने लम्बी सांस ली । बोला---
"तो उन दोनों को तुमने भेजा था मारने के लिये...।"
"बेवकूफ हो क्या ?" वो जहरीले स्वर में मुस्कुरा पड़ी ।
"क्यों ?"
"मैं क्यों किसी को तैयार करूं जोशी को मारने के लिये ? वैसे ही उसके दुश्मन बहुत है, जो उसे मार देंगे।"
"तो तुम सब जानती हो ?"
"हां । मैं तो उसकी मौत का इंतजार कर रही हूं उसकी दौलत से हिस्सा लेकर अपनी जिंदगी दोबारा नये सिरे से शुरू कर सकूं । मैंने तो शादी ही उसकी दौलत पाने के लिए की थी, वरना इस बूढ़े में रखा ही क्या है ?"
"बूढ़ा...।"
"आग लगाकर नींद में डूब जाना, उसकी आदत है ।"
"तुमने ये सब बातें मुझे क्यों बताई ? मैंने उसे बता दिया तो ?"
खूबी मुस्कुराई ।
"तुम नहीं बताओगे । मैंने थोड़ा-सा समझा है तुम्हें कि तुम सख्त किस्म के इंसान हो । फालतू की बात नहीं करते ।"
"इतनी जल्दी समझ लिया ?"
"मर्द को समझ लेना, औरत के लिए मामूली काम है । औरत को ही नहीं समझ पाते तुम मर्द लोग ।"
"नई बात सामने थी । जोशी की पत्नी, जोशी की मौत चाहती थी ।
"अब की बार जोशी को मत बचाना । इसके बदले तुम्हें पचास लाख और खुद को तुम्हारे हवाले...।"
"औरतों में मेरी दिलचस्पी नहीं है ।"
"फिर तो तुम्हें साठ लाख दूंगी । मंजूर ?"
"पता नहीं ।" देवराज चौहान इस वक्त अजीब-सी उलझन में था।
"नखरे क्यों लगा रहे हो । मैं भी तुम्हें मिल जाऊंगी । दस दिन के लिए मेरे साथ गोवा में मौज-मस्ती करना ।"
देवराज चौहान उसे देखता रहा ।
"अब मैं तुम्हें शहद लगाऊंगी ।" खूबी खुलकर मुस्कुराई ।
"शहद ?"
"चुम्मी दूंगी तुम्हें, ताकि तुम्हें मेरी बात का विश्वास आ जाये और मेरे जाने के बाद तुम मुझे पाने को बेचैन रहो ।"
"नहीं । मुझे कुछ नहीं चाहिये ।"
"चुम्मी नहीं चाहिये ?" वो हैरानी से बोली ।
"नहीं...।"
"तो मेरी बात मंजूर नहीं तुम्हें कि...।"
"मंजूर है ।" देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा--- "अब की बार मैं जोशी को नहीं बचाऊंगा ।"
"शुक्रिया । तुम्हें हर तरह से खुश कर दूंगी ।" खूबी ने मुस्कुरा कर कहा--- "तो मैं जाऊं ?"
"हां...।"
"चुम्मी नहीं, पक्का...।"
"बिल्कुल नहीं...।"
"लगता है बाद में तबीयत से वसूल करोगे ।" खूबी ने कहा और पलट कर चली गई।
देवराज चौहान की हालत अजीब-सी हो रही थी ।
बाहर तो बाहर, जोशी के घर में अपनी जान के दुश्मन पाल रखे थे ।
देवराज चौहान सोच रहा था कि आज तो पहला दिन है, इतनी सारी बातें सामने आ गई । दूसरे दिन जाने क्या होगा ?
■■■
अगले दिन सुमित जोशी देवराज चौहान, ग्यारह बजे घर से निकले । वो ही कार की पीछे वाली सीट पर बैठे थे । वो ही ड्राइवर । बीच में शीशे की दीवार थी। ड्राइवर उनकी बातें न सुन सके ।
देवराज चौहान ने नौ बजे प्रदीप जोशी को दूसरी कार में जाते देखा था । वो वकीलों की यूनिफॉर्म में था और जाहिर था कि वो अदालत जा रहा था । उसने देवराज चौहान को नहीं देखा था तब ।
"आज मेरा कोर्ट जाने का मन नहीं है । प्रदीप ही सब केसों को देखेगा ।" सुमित जोशी बोला ।
कार बंगले से बाहर आ चुकी थी । देवराज चौहान की नजरें आस-पास घूम रही थी । परन्तु शक से भरा कोई न दिखा । जो इस कार के पीछे हो । देवराज सतर्क था ।
"तुम सुन रहे हो मेरी बात ?"
"हां...।"
"ऑफिस ही चलते हैं ।"
"जहां तुम जाना चाहो । मुझे क्या एतराज होगा ।"
सुमित जोशी गहरी सांस लेकर बोला---
"किसी काम में मन नहीं लग रहा, दो-चार दिनों से बेचैनी-सी रहती है ।"
"तुम्हारे कर्म तुम्हें परेशान रखते हैं । तुम एक बात बोल रहे हो ।" देवराज चौहान बोला ।
"क्या ?"
"तुम्हें वो जगह तैयार करनी है, जहां जेल से निकालने के बाद प्रभाकर को रखना है ।"
"तो तुम्हें याद है ये बात ?" सुमित जोशी मुस्कुराया।
"कल तुमने प्रभाकर को जेल से निकालना है ।"
"जानता हूं...।"
"जगह तैयार कर लो ।"
"कर ली है ।"
"कर ली ?" देवराज चौहान ने उसे देखा--- "कब ? मैं तो हर वक्त तुम्हारे साथ ही रहा, परन्तु...।"
"तुम नहीं समझोगे । है जगह मेरे पास, प्रभाकर को रखने के लिये...।"
"तो यूं कहो ।"
"देवराज चौहान तुमने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ किया है, क्या तुम्हें डर नहीं लगा ?"
"मैंने तुम्हारी तरह बेवकूफियां नहीं की ।"
"मैंने तो कोई बेवकूफी नहीं की ?"
"प्रभाकर और रतनपुरी जैसे लोगों का पैसा खाना और काम न करना बेवकूफी ही तो है ।"
"तुम नहीं समझोगे । जब इतने बड़े दादा चूहे बनकर मेरे सामने आते हैं और 'मुझे बचा लो' कहते हैं तो सुनने में बहुत ही अच्छा लगता है। तब ये लोग हर मांग को पूरी करते हैं । क्योंकि इन्हें आशा होती है कि वकील इन्हें बचा लेगा ।"
"तुम बचाते क्यों नहीं ?"
"कैसे बचाऊं ! इन लोगों ने ऐसे-ऐसे काम कर रखे होते हैं कि जज के सामने बोलना कठिन हो जाता है । ये सोचते हैं कि वकील को मुंह मांगी फीस दे दी जाये तो वो बच जायेंगे ।"
"तुम यही तो कहते हो कि तुम उन्हें बचा लोगे ।"
"कहना पड़ता है, क्योंकि वे यही सुनना चाहते हैं ।"
"और तुम उन्हें बचा लेने में असफल रहते हो ।"
"कभी-कभी ।"
"उस कभी-कभी का नतीजा है कि रतनपुरी तुम्हें मारने की धमकी दे रहा है।"
"पागल है वो...।"
"वो अपनी जगह सही है, गलत तुम हो । करोड़ों रुपया तुमने रतनपुरी से लिया, क्या उसके बेटे को फांसी कराने के लिये...।"
"मैंने तो बचाने की कोशिश की, परन्तु...।"
"नहीं बचा सके तो उसका करोड़ों रुपया उसे वापस दो । उससे माफी मांगो...।"
"ऐसा भी भला होता है क्या ?"
"नहीं होता तो वो तुम्हें मार कर ही दम देगा ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "प्रभाकर के साथ भी तुमने बुरा किया । तुमने जज को देने के बहाने पच्चीस करोड़ लिया और खुद खा गये । ऐसा न किया होता तो जिम्मी तुम्हारे पीछे न होता अब ।"
"हां, इसी दम पर वो मुझे प्रभाकर को बाहर निकालने को कह रहा है ।"
"सब गलतियां तुम्हारी हैं जो मुसीबत के रूप में सामने आ रही हैं।"
सुमित जोशी ने गहरी सांस ली ।
"तुम्हें बताने को नई बात है मेरे पास...।"
"कहो...।"
"रात तुम्हारी पत्नी मेरे पास आई थी ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"अच्छा...।" सुमित जोशी ने दिलचस्पी भरे स्वर में कहा--- "फिर तुमने कुछ किया ?"
"गलत मत सोचो । वो मेरे से बात करने आई थी ।"
"कैसी बात ?"
"वो चाहती है कि दोबारा तुम पर हमला हो तो मैं तुम्हें न बचाऊं...।"
सुमित जोशी मुस्कुरा कर बोला---
"ऑफर क्या दी ?"
"साठ लाख और खुद को...।"
"खुद को...फिर तो तुमने एडवांस के तौर पर भी कुछ वसूला ही होगा ।" कहा जोशी ने ।
"मैं तुम जैसा नहीं हूं...।"
"अच्छा ! मुझे तो यही लगता है कि सब मेरे जैसे ही हैं । उसके बाद क्या हुआ ?"
"मेरे हां कहने पर वो चली गई ।"
सुमित जोशी खामोश हो गया ।
"तुम इस बात पर हैरान नहीं हुए, क्या तुम्हें ये बात पहले से पता थी ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"मैं तब अंधेरे से बाहर बालकनी में खड़ा था, जब वो तुमसे मिली । मैं देख रहा था । वो दरवाजे पर ही रही ।"
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।
"वो पहले वाले बॉडीगार्ड से भी मिली थी । लेकिन उसने मुझे ये बात ना बताई कि मेरी बीवी उससे क्यों मिली । इत्तफाक से तब भी मैं देख रहा था । तब मेरी बीवी भीतर गई थी । मैंने दोनों को लिपटते देखा था।"
"ओह, तो तभी तुमने उस बॉडीगार्ड को एक्सीडेंट में मरवा दिया ?"
"ये होता पाकर मैं समझ गया कि दोनों में, मेरे खिलाफ कुछ पक गया है ।"
"तुम्हारी पत्नी तुम्हें क्यों मरा देखना चाहती है ।"
"क्योंकि वो जानती है कि मेरी मौत के पीछे बहुत पैसा है ।" सुमित जोशी ने गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा--- "मैं रात से ही सोच रहा था कि तुम मुझे ये बात बताते हो या नहीं । क्या उसने गले लगने को नहीं कहा ?"
"कहा, लेकिन मैंने मना किया ।"
"क्यों ?"
"ये सब मैं पसंद नहीं करता । मेरी शादी हो चुकी है । मेरी औरत है इस कामों के लिये...।"
"किस्मत वाली है वो...जो तुम जैसा आदमी मिला ।"
"वो तुम्हारी मौत देखना चाहती है और तुम उसे पास में रखे हुए हो...।"
"वो कुछ नहीं कर सकती, तुम निश्चिंत रहो ।"
"मुझे चिंता ही नहीं तो, मैं निश्चिंत क्यों होऊं...।"
"वो इसी तरह दो-चार बार हाथ-पांव मारेगी । फिर झाग की तरह शांत हो जायेगी ।" सुमित जोशी मुस्कुराया।
"तुम्हें मुसीबतें पालने का शौक है ?"
"आदत-सी हो गई है ।" जोशी कहकर हंस पड़ा ।
"इसमें भी तुम्हारी ही गलती है । पचपन के तुम, बत्तीस की वो । नहीं पट सकती । तुम्हें शादी करनी ही नहीं चाहिये थी ।"
"खूबी में बहुत खूबी है । वो जानदार है...।"
"तुम तो कहते हो कि उसकी कमर में दर्द रहता है, जबकि मुझे ऐसा नहीं लगता ।"
"वो तो मैंने तुम्हें बहलाने के लिए कहा था । सच बात तो ये है कि वो बहुत गर्म है, मेरी हवा निकाल देती है ।"
"फिर तो तुम्हें शर्म आनी चाहिये कि इस हाल में भी बाहर मौज-मस्ती करते हो।"
"जरूरी है । तुम नहीं समझोगे कि घर की औरत घर की और बाहर की औरत में क्या फर्क होता है ।"
और देवराज चौहान सोच रहा था कि ये जल्दी मरेगा ।
"पहले मैं तुम्हें मुसीबत समझ रहा था कि मुझे तुम्हारे साथ दो महीने रहना पड़ेगा ।" देवराज चौहान मुस्कुराकर बोला ।
"अब क्या समझ रहे हो ?"
"अब मजा आने लगा है तुम्हारे साथ रहकर ।"
"क्यों ?"
"मैं ये देखना चाहता हूं कि तुम मरते कैसे हो ? कौन तुम्हें मारेगा ?"
सुमित जोशी हंस पड़ा ।
"तुम बढ़िया हो देवराज चौहान । मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं । लेकिन मुझे कोई नहीं मार सकता ।"
"ये ही तो देखना है मैंने...।"
कार ऑफिस जा पहुंची ।
सुमित जोशी कार का दरवाजा खोलते हुए बोला और बाहर निकल गया।
"देखना क्या C.B.I. वाले हैं पास में कहीं...।"
देवराज चौहान भी बाहर निकला ।
ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी देवराज चौहान को । रमेश सिंह और दयाल उसे कार में बैठे दिखे ।
"यहीं है वो...।" देवराज चौहान ने कहा ।
"उल्लू के पट्ठे ।" सुमित जोशी बड़बड़ाया और अपने ऑफिस के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया ।
देवराज चौहान उसके पीछे था ।
"गुडमॉर्निंग सर ।" रिसेप्शनिस्ट बोली--- "आज कोर्ट नहीं गये ?"
"मैंने कल तुमसे कहा था ना कि ये ऑफिस बंद होने वाला है...।"
"आप तो उस बात का अभी तक बुरा माने हुए हैं ।" रिसेप्शनिस्ट बोली।
सुमित जोशी भीतर चला गया ।
रिसेप्शनिस्ट, देवराज चौहान से बोली---
"सर इतने उखड़े हुए क्यों हैं ?"
"चिंता मत करो । वो तुमसे नाराज नहीं हैं। दुनिया उनसे नाराज होती जा रही है ।"
"ऐसा क्या हो गया ?"
तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा ।
"हैलो...।" देवराज चौहान ने फोन निकाल कर बात की।
"सुरेंद्र पाल, मैं रमेश सिंह, C.B.I. ।" कानों में आवाज पड़ी ।
"ओह...।" देवराज चौहान रिसेप्शनिस्ट पर नजर मारकर बोला--- "चाचा जी...।"
"बाद में फोन करता हूं...।" रमेश सिंह की आवाज आई ।
"एक मिनट...।" देवराज चौहान पीछे हटा और सोफे पर जा बैठा, फिर धीमे स्वर में बोला--- "अब कहो ।"
"क्या हुआ था रात को सनलाइट कॉलोनी में ?"
"वहां गोलियां चली और उस औरत का नौकर मारा गया ।"
देवराज चौहान ने कम शब्दों में सारी बात बताई ।
"वो दोनों लड़के कौन थे ?"
"मैं नहीं जानता ।"
"जोशी क्या कहता है उनके बारे में ?"
"वो भी कुछ नहीं जानता ।"
"उन लड़कों का हुलिया बताओ ।"
"मैं नहीं जानता।" देवराज चौहान ने झूठ बोला--- "अंधेरे की वजह से उन्हें ठीक से देख नहीं पाया ।"
"तुमने अभी तक कोई बढ़िया-सी खबर नहीं दी ?"
"मुझे मिलेगी तो दूंगा ।"
"खबर लगते ही बताना ।"
बात हो गई । देवराज चौहान ने फोन बंद किया और उठकर भीतर जोशी के केबिन में पहुंचा ।
"C.B.I. वाले फोन पर मुझसे पूछ रहे थे कि रात वहां पर क्या हुआ ?" देवराज चौहान ने कहा।
"बता दिया तुमने ?"
"हां, बताने में कोई हर्ज नहीं था ।"
"ये साले पता नहीं कब पीछा छोड़ेंगे...।"
"इन्हें यहां से हटाना है कि ये कल सुबह तुम्हारे पीछे न रहें । शाम तक बता देना उनके लिए क्या खबर दूं...।"
सुमित जोशी ने सहमति से सिर हिलाया । बोला---
"मैं तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था ।"
"क्या ?"
"यही कि तुम खूबी वाली बात मुझसे छुपा भी सकते थे, परन्तु नहीं छिपाई ।"
"क्योंकि मैं तुम्हारे प्रति पूरी तरह वफादार हूं । तुमने वादा किया है कि जगमोहन को आजाद करा दोगे ।"
"विश्वास नहीं आता कि डकैती मास्टर देवराज चौहान इस हद तक मेरा ध्यान रख रहा है...।"
"मैं तुम्हारा बॉडीगार्ड हूं और अपनी जिम्मेवारी गंभीरता से निभा रहा हूं...। सब तुम्हारी तरह बेईमान नहीं होते ।"
"मैं भी यही सोच रहा हूं...।" तुम सच में आम लोगों से हटके हो ।"
"अब मैं क्या करूं ?"
"मैंने यहीं पर रहना है । कुछ सोचना चाहता हूं...।"
"ठीक है । मैं तुम्हारे पास ही हूं । बाहर रिसेप्शन पर या...।"
तभी सुमित जोशी का फोन बजने लगा।
जोशी ने फोन निकालकर स्क्रीन पर आया नम्बर देखा, फिर स्विच दबाकर बोला---
"बोल जिम्मी ?"
"तेरे को, आज मेरे से मिलना है ।"
"क्यों ?"
"उल्लू के पट्ठे ! तेरे को उन पुलिस वालों के बारे में बताना है, जिनसे तूने कल जेल में जाकर मिलना है ।"
"अभी तो मैं व्यस्त हूं...।" जोशी शांत स्वर में बोला ।
"रात तक कभी भी मिल लेना। फोन करना ।"
"ठीक है ।" कहकर सुमित जोशी ने फोन बंद करके जेब में रखा और देवराज चौहान से कहा--- "जिम्मी से मिलना होगा आज।"
"कब ?"
"शाम के बाद किसी वक्त...बता दूंगा ।"
"क्यों मिलना है ?"
"वो मुझे उन पुलिस वालों के बारे में बताएगा, जो मुझे जेल में, प्रभाकर को मेरे हवाले करेगा । मैं दिनभर ऑफिस में ही हूं । तुम मेरे पास में, मेरे ऑफिस में ही रहो । सतर्क रहना, कोई मुसीबत न आ जाये ।"
देवराज चौहान ने सिर हिलाया । फिर बाहर निकल गया । रिसेप्शन पर जा पहुंचा...।"
"तुम्हारा फोन बहुत बढ़िया है ।" रिसेप्शनिस्ट बोली--- "कहां से लिया ?"
"मेरे पीछे मालिक ने खुश होकर मुझे दिया था ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"महंगा है ना ?"
"हां ।"
"मैं भी ऐसा फोन लेने की सोचती हूं, पर महंगा होने की वजह से नहीं ले पाती ।" उसने कहा ।
"पैसे संभाल के रखो ।"
"क्यों ?"
"कभी भी तुम्हें नई नौकरी ढूंढनी पड़ सकती है । तब का खर्चा-पानी तो निकलना चाहिये तुम्हारा ।"
"क्या सर मुझे नौकरी से निकाल रहे हैं ?"
"ये बात नहीं । मुझे लगता है कि ऑफिस जल्दी ही बंद होने वाला है ।"
"ये तुम कैसी बातें...।"
तभी शीशे का मुख्य दरवाजा धकेलकर रमेश सिंह और दयाल भीतर आये ।
देवराज चौहान की निगाह उन पर जा टिकी ।
उन्होंने देवराज चौहान को देखा, फिर पास आकर रिसेप्शनिस्ट से बोले---
"सुमित जोशी से मिलना है ।" दयाल बोला ।
"क्या आपका अपॉइंटमेंट है, सर ?"
"हम C.B.I. वाले हैं । सुमित साहब से बात करो । हम जानते हैं कि वो भीतर ही हैं ।"
देवराज चौहान पास में शांत-सा खड़ा था ।
रिसेप्शनिस्ट ने इंटरकॉम पर भीतर मौजूद सुमित जोशी से बात की ।
"सर, C.B.I. के दो आदमी आपसे मिलना चाहते हैं ।" रिसेप्शनिस्ट ने कहा।
"ये साले चैन से नहीं बैठने देंगे । भेजो...।" सुरेंद्र पाल को भी उनके साथ भेजना ।"
रिसेप्शनिस्ट ने रिसीवर रखा और देवराज चौहान से बोली---
"इन्हें, सर के पास ले जाओ सुरेंद्र पाल...।"
"आइये...।" देवराज चौहान ने फुर्ती दिखाते हुए कहा ।
वो दोनों देवराज चौहान से एक कदम पीछे रहकर चल पड़े।
कुछ आगे जाकर देवराज चौहान पलटकर दबे स्वर में बोला---
"इस तरह भीतर आने की क्या जरूरत...।"
"चुप रहो ! हमें हमारा काम मत सिखाओ । जोशी के पास ले चलो हमें ।" दयाल बोला ।
देवराज चौहान, रमेश सिंह और दयाल के साथ सुमित जोशी के केबिन में पहुंचा ।
जोशी उन्हें देखते ही मुस्कुराया और उठता हुआ बोला---
"आइये...आइये । C.B.I. वालों को भला मेरे पास आने की क्या जरूरत पड़ गई ? बैठिये...।"
रमेश सिंह और दयाल बैठे तो जोशी भी बैठ गया ।
देवराज चौहान खड़ा रहा । दयाल बोला---
"मुझे दयाल कहते हैं, ये रमेश सिंह, मिस्टर सुमित...।"
"आपके कार्ड देख सकता हूं ?"
दोनों ने कार्ड निकालकर दिखाये और वापस जेब में रख लिए ।
"कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?"
"कुछ खास बात करनी है आपसे । बेहतर होगा कि अपनी बॉडीगार्ड को यहां से बाहर...।"
"इसकी फिक्र मत कीजिए । ये मेरा खास है और मेरे साथ ही रहता है...।"
"एक दिन में खास हो गया ?" रमेश सिंह कह उठा ।
सुमित जोशी ने रमेश सिंह को देखा, फिर कह उठा---
"तो आप लोग मुझ पर नजर भी रख रहे हैं ?"
"हम आपसे वास्ता रखते एक गंभीर मामले की छानबीन कर रहे हैं ।" दयाल ने कहा--- "अब हमें लगा कि आपसे मिलना चाहिये ।"
"आपकी बातें अब मुझे परेशान करने लगी हैं । मेरे से वास्ता रखता कोई भी गंभीर मामला नहीं है ।" जोशी ने कहा ।
"आप खतरे में हैं ।"
"अच्छा, मुझे नहीं पता । आप बताइये कि मैं कैसे खतरे में हूं ?"
"कोई आपकी जान लेने की कोशिश कर रहा है ।"
"ये आपसे किसने कहा ?"
"रात आप पर जानलेवा हमला हुआ । सनलाइट कॉलोनी के फ्लैट से बाहर । परन्तु आपके बदले हत्यारे ने उस नौकर को मार दिया, जो आपके कपड़े पहनकर, उस फ्लैट से बाहर निकला था । इस तरह आप बच गये ।"
"बहुत तेज नजरें हैं आप लोगों की । आप तब वहां थे क्या ?" सुमित जोशी ने पूछा ।
"ये बताने की हम जरूरत नहीं समझते ।"
"मर्जी आपकी । आप मेरे से वास्ता रखते हैं गंभीर मामले की बात कर रहे थे ?" सुमित जोशी ने दोनों को देखा ।
"आपकी फर्म के तीन वकीलों की पिछले डेढ़ साल में हत्या हो गई ।"
"उसका अफसोस है मुझे...।"
"आपके तीन बॉडीगार्ड रोड एक्सीडेंट में मारे गये ।"
"हां, ये मेरे लिए दुख की बात है ।"
"हमारे पास कुछ इस तरह की खबरें हैं कि इन लोगों की मौत में आपका हाथ है ।"
"अजीब बात है । सहानुभूति की अपेक्षा मुझे ही हत्यारा बता रहे हैं ?"
"अपने वकीलों की हत्या आपने करवाई है मिस्टर जोशी।"
"बॉडीगार्डस का एक्सीडेंट भी आपने करवाया है ।"
सुमित जोशी ने मुस्कुराकर दोनों को देखा, फिर कहा---
"आप भूले तो नहीं मैं क्रिमिनल लॉयर हूं ?"
"याद है ।" रमेश सिंह ने उसकी आंखों में देखकर कहा--- "कल आपके ऑफिस के बाहर गैंगस्टर रतनपुरी का खास आदमी पुलिस के हाथों मारा गया । हमारे पास खबर है कि वो आपको मारने आया था ।"
"हैरानी है ।"
"बात को छिपाइये मत । रतनपुरी के बेटे मक्खन का केस आप लड़ रहे थे । मक्खन को फांसी की सजा हो गई । इसलिए रतनपुरी नाराज हो गया और आपको मारने मदन को भेज दिया । परन्तु ये बात आपको पहले ही पता चल गई । आपने उसके यहां मौजूद होने के बारे में पुलिस को बता दिया और नतीजे में वो मारा गया।"
"मैंने पुलिस को उसके बारे में बताया ?"
"हां...।"
"अगर कोई पुलिस वाला ये बात कहता है तो मैं इस बात को स्वीकार कर लूंगा ।"
"ये भी हम साबित कर देंगे ।"
"अब आप मेरे पास क्यों आये हैं ?" सुमित जोशी ने पूछा।
"आप अगर हमारा साथ दें तो हम आपका साथ दे सकते हैं ।"
"मेरा साथ...कैसे ?"
"हम आपको सुरक्षा देंगे आपकी जान बचा सकते हैं ।"
"बदले में मुझे क्या करना होगा ?"
"तुम्हें मानना होगा कि उन वकीलों की हत्या तुमने कराई है । उन बॉडीगार्ड की...।"
"फालतू की बातें मत करो ।" सुमित जोशी उखड़ा--- "तुम लोग मुझे हत्यारा बन जाने की सलाह दे रहे हो ?"
"वो तो तुम ही हो...।"
"मैं इस बारे में पहले ही पुलिस से पूरा सहयोग कर चुका हूं ।" जोशी बोला।
"उसी पुलिस के कहने पर ये केस सी.बी.आई. के पास आया है ।"
"आया होगा । मैंने ऐसा कुछ किया ही नहीं...।"
"वो तो हम साबित करेंगे ।"
"जरूर करना ।"
"हमारे पास इस बात की पक्की खबरें हैं कि तुम्हारे संबंध अंडरवर्ल्ड के लोगों के साथ हैं ।"
"सबूत हैं ।"
"वो भी मिल जायेंगे ।"
"जब मिल जाये, तभी आना ।" सुमित जोशी ने मुंह बनाकर कहा ।
"तुम या तो हमारे हाथों पकड़े जाओगे या रतनपुरी तुम्हें मार देगा । बेहतर है, अपने वकीलों की हत्या का जुर्म...।"
"बकवास मत...।"
रमेश सिंह उठते हुए कठोर स्वर में बोला---
"हम तुम्हें अपने ऑफिस में भी बुलाकर, बात कर सकते हैं ।"
"मैं आने को तैयार हूं, परन्तु तुम्हारी ये फालतू की बातें मैं वहां भी नहीं सुनूंगा ।"
दया ने अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर टेबल पर रखा और खड़ा हो गया ।
"हमारा कार्ड रखो, शायद तुम्हें जरूरत पड़े ।"
सुमित जोशी ने कार्ड उठाकर वापस दयाल की जेब में ठूंसा।
"मुझे जरूरत नहीं पड़ेगी । अब तुम दोनों जाओ।"
"जल्दी मत करो जोशी । हमारी बातों को सोचना । इससे तुम्हारा भला होगा ।"
दोनों बाहर निकल गये ।
सुमित जोशी के होंठों पर मुस्कान उभरी ।
देवराज चौहान खड़ा उसे ही देख रहा था ।
"साले परेशान होकर मेरे पास आये थे ।" जोशी ने कहा ।
"परेशान--- वो कैसे ?"
"मेरे पे नजर रखते-रखते थक गये । सबूत नहीं मिल रहा था तो मुझे धमकाने आ गये ।
"ये तुम्हारा पीछा छोड़ने वाले नहीं लगते ।"
"मैं इनकी परवाह नहीं करता । ये मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । थक जायेंगे ।"
देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"मैं तो देख रहा हूं कि पहले C.B.I. वाले सफल होते हैं या कोई तुम्हें गोली मारने में सफल होता है ।"
"तुम देखते ही रह जाओगे--- और मैं सब हालातों से बच निकलूंगा ।"
"मुझे ऐसा नहीं लगता ।"
"अभी तुम मुझे जानते ही कहां हो ।"
"ये तो तुमने ठीक कहा । मैं सच में अभी तुम्हें बहुत कम जानता हूं ।"
"व्यंग कस रहे हो मुझ पर ?"
"नहीं । सही बात में हां मिला रहा हूं ।"
"इन दोनों को मेरे पीछे से हटाने के लिए, इन्हें तगड़ी खबर देना। वो खबर शाम को बताऊंगा ।"
देवराज चौहान ने सिर हिलाया और रिसेप्शन वाले हिस्से में पहुंचा ।
रिसेप्शनिस्ट वहां नहीं थी ।
देवराज चौहान सोफे पर बैठा और रमेश सिंह का नम्बर मिलाया ।
"हैलो...।"
"इस तरह बेकार में सामने आने की तुम्हें क्या जरूरत थी ? कोई फायदा तो नहीं हुआ ?"
"हम जानबूझकर उसके पास गये ।"
"क्यों ?"
"ताकि हड़बड़ी में वो कोई गलत कदम उठाये और हमें फायदा मिल जाये ।"
"वो तुम लोगों की मौत का इंतजाम भी कर सकता है ।"
"ऐसा नहीं करेगा वो । वो वकील है और जानता है सी.बी.आई. के लोगों पर हमला कराना मुसीबत मोल लेना है । हम जो भी करते हैं, उसकी खबर हमारे ऑफिसरों को रहती है । हमें कुछ हुआ तो सी.बी.आई. वकील को निचोड़ देगी।"
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।
"हमारे आ आने के बाद उसका क्या हाल था ?"
"तुम दोनों को गालियां दे रहा था ।"
"हमें परवाह नहीं । तुम कोई बढ़िया-सी खबर दोगे तो तुम्हारा भला होगा ।"
"जरूर दूंगा । खबर पता तो चले ।"
"आंखें-कान खुले रखो । जरूर तुम्हें कुछ पता चलेगा । हमारी इन्वेस्टिगेशन कहती है कि ये हरामी वकील है ।"
"और इसका भाई ?"
"वो भी कम नहीं । परन्तु वो अधिकतर अदालत के कामों में व्यस्त रहता है । फील्ड सुमित जोशी ही संभालता है ।"
तभी रिसेप्शनिस्ट वहां आ पहुंची ।
"चाय बन रही है सुरेन्द पाल...।" वो बोली ।
"मैं फिर बात करूंगा ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद किया ।
"तुम हर वक्त किससे बातें करते रहते हो ? किसी को पटा रखा है क्या ?"
■■■
साढ़े तीन बजे प्रदीप जोशी कोर्ट से वापस आ गया । साथ में आठ-दस वकील थे । ऑफिस में चहल-पहल हो उठी । शोर पैदा होना शुरू हो गया । देवराज चौहान सुमित जोशी के केबिन में ही बैठा था । सुमित जोशी एक फाइल खोले अपना वक्त बिता रहा था कि प्रदीप ने भीतर प्रवेश किया ।
सुमित ने फाइल बंद करके टेबल पर रखी और उसे देखा।
प्रदीप जोशी कुर्सी पर बैठा ।
"कोर्ट में आज क्या हुआ ?" सुमित ने पूछा ।
"ठीक ही रहा । पन्द्रह तारीखें भुगतीं । शिवनाथ का वकील आज कुछ ज्यादा ही जोश में था ।"
"फिर ?"
"कुछ नहीं, बाद में जज से मिला । सब ठीक कर दिया ।"
"उखड़े हुए क्यों हो ?" सुमित जोशी की निगाह उसके चेहरे पर थी ।
"मैं वकालत से तंग आ गया हूं ।"
"तो ये बात है...। ये क्यों नहीं कहते कि नोट ज्यादा आ गये हैं ।" सुमित जोशी मुस्कुराया ।
"मैं कुछ कहना चाहता हूं सुमित ।" प्रदीप जोशी परेशान-सा दिखा ।
"बोल...।"
"मैं इस धंधे से, तुमसे अलग होना चाहता हूं ।"
सुमित जोशी एकटक प्रदीप को देखता रह गया ।
देवराज चौहान के होंठ भी सिकुड़े ।
कुछ पल वहां चुप्पी रही ।
"मेरे से अलग होना चाहता है, क्यों ?"
प्रदीप जोशी ने बेचैनी से पहलू बदला।
सुमित जोशी की निगाह उस पर थी ।
"बता, क्यों अलग होना चाहता है मेरे से ?" सुमित जोशी ने पुनः शांत स्वर में कहा ।
"मैं तंग आ गया हूं इन खतरों से । मुझे हर वक्त लगता है कि कोई मुझे मार देगा ।"
"ये तो मुझे भी लगता है, लेकिन मैंने कभी तेरे से अलग होने के बारे में नहीं सोचा ।"
"तेरी वजह से ही हम खतरे में हैं।"
"मेरी वजह से ?" सुमित जोशी की आंखें सिकुड़ी--- "मैंने ऐसा क्या कर दिया ?"
प्रदीप जोशी ने होंठ भींच लिए ।
"तू चुप क्यों हो जाता है प्रदीप ? बात कर, जो मन में है, कह दे ।"
"रतनपुरी तेरे-मेरे पर हमला कर सकता है ।"
"हां । इसका मुझे खतरा है । तेरे को तो दस प्रतिशत ही खतरा है । मैंने तेरे को इन लोगों से, शुरू से ही दूर रखा है ।"
"लेकिन खतरा तो है मुझे...।"
"हां-है तो । परन्तु मैंने आज तक जो किया, तेरी रजामंदी से किया । तेरे से पूछ के किया । कभी भी अपनी मनमानी नहीं की । इस पर भी खतरा मुझे ज्यादा रहता है । तुझे नहीं । मैं परेशान नहीं, तो तू क्यों परेशान है ?"
"कल रात मैं होटल में डिनर करने गया तो मुझे लगा किसी ने मेरा पीछा किया । सारी रात मैं नींद नहीं ले पाया।"
"मामूली बात समझ । किसी ने तेरे पर गोलियां तो नहीं चलाई...."
"कोई मेरे सिर में गोली मार देगा तो तब तुझे यकीन होगा ?" प्रदीप जोशी झल्लाया ।
"मुझे यकीन है तेरी बात का ।" सुमित शांत था ।
"मैं इस तरह डर-डर कर नहीं जी सकता।"
"तेरे को कौन कहता है कि तू डर ? मुझे देख, मैं तो नहीं डरता...।"
प्रदीप जोशी ने सुमित को घूरा ।
सुमित मुस्कुराया ।
"कल तू प्रभाकर को जेल से बाहर निकालने जायेगा ?"
"हां ।" सुमित ने सिर हिलाया ।
"तू फंस भी सकता है । तू फंसा तो मैं भी फंसा ।"
"चिंता मत कर । मैं फंसा तो पुलिस को ये नहीं बताऊंगा कि तेरे को मेरी हरकतों का पता है ।"
"मुझे ये ठीक नहीं लग रहा ।"
"तब ठीक लगा था, जब तूने प्रभाकर का पच्चीस करोड़ खाया ? तब तो तू बहुत खुश था ?"
"वो बात मत कर।"
"वो ही बात है । उसी की कीमत जिम्मी मुझसे वसूल कर रहा है । और अगर काम हो गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बाद में भी वो हमें जिंदा छोड़ देंगे । वो भूलेंगे नहीं कि हमने उनका पैसा हड़पा है ।"
"मैं इन सब बातों से बचना चाहता हूं ।"
"तूने कैसे सोच लिया कि मैं फसुंगा तो तू बचकर निकल जायेगा ?"
"मैं निकल सकता हूं ।" प्रदीप जोशी ने होंठ सिकोड़कर कहा ।
"कैसे ?"
"मैंने बहुत पैसा बना लिया है ।"
"मैंने ?" सुमित जोशी मुस्कुराया--- "हमने नहीं ?"
"मेरा पैसा मेरे पास है । तुम्हारा पैसा तुम्हारे पास है ।"
"ठीक है, आगे कहो ।"
"मैं अपने परिवार के साथ चुपचाप दूसरे देश में खिसक सकता हूं । दो-चार साल बाद आऊंगा तो यहां सब ठीक होगा ।"
"तूने ये नहीं सोचा कि पीछे से मेरे को कोई मार चुका होगा ।" सुमित जोशी बोला ।
"तू भी अपना कोई रास्ता देख ले ।"
"मेरे ख्याल में अभी हमें हालातों का मुकाबला करना चाहिये । शायद हम बच निकलें।"
"बच निकलने के चक्कर में, मेरी जान चली जायेगी ।"
"ये तुझे तब सोचना चाहिये था जब हम इन गलत कामों को करते थे । तब क्यों ना सोचा ?"
"अब सोच लिया ।"
"अगर मैं इस देश से भागने को तैयार न होऊं, तो ?"
"तेरी मर्जी । मैंने टिकटें बुक करा रखी है ।"
सुमित जोशी चौंका ।
"टिकटें बुक करा ली ?" उसके होंठों से निकला ।
"हां-।"
"कब ?"
"आज सुबह ही । कल के प्लेन में टिकट मिल गई । मैं अपने परिवार के साथ इंग्लैंड जा रहा हूं।
"अपने परिवार के साथ ?"
प्रदीप जोशी ने सहमति से सिर हिलाया ।
"टिकट बुक कराते हुए तूने मेरे परिवार...मेरे बच्चों के बारे में नहीं सोचा ?"
"तू समझदार है । जो फैसला लेगा, ठीक ही लेगा ।"
सुमित जोशी ने गहरी सांस ली ।
"मैंने अपना पैसा भी इंग्लैंड के बैंक में ट्रांसफर करा लिया है ।"
"फिर तो तैयारी कई दिनों से चल रही होगी...।"
"ऐसा ही समझ ।"
सुमित जोशी का चेहरा शांत था ।
"तू भी अपने बारे में सोच ।"
"अब सोचूंगा ।" सुमित जोशी ने सपाट स्वर में कहा--- "कब की फ्लाइट है तेरी ?"
"कल रात 11:30 की।"
"ठीक है । तू अपनी तैयारी कर । कल कोर्ट जायेगा ?"
"हां । मैं किसी को शक नहीं होने देना चाहता कि मैं यहां से जा रहा हूं । कल कोर्ट जाऊंगा । ऑफिस भी आऊंगा ।"
"ठीक सोचा तुमने ।" सुमित जोशी मुस्कुरा पड़ा ।
"तू भी चुपचाप कहीं निकल जा । इन पचड़ों से बच जायेगा ।"
"तेरे को परिवार के साथ निकल जाना आसान लग रहा है परन्तु मुझे ऐसा नहीं लगता ।"
"बहुत आसान है ।"
"एक बात तो बता प्रदीप । तू कल रात इस देश से चला जायेगा । परसों किसी ने मुझे गोली मार दी तो मेरा संस्कार कौन करेगा ?"
"पागलों वाली बातें मत कर । तेरे को कुछ नहीं होगा ।"
"ये ही बात मैं कहूं कि तेरे को कुछ नहीं होगा । मत जा । तू मानेगा मेरी बात ?"
"हम खतरे में हैं सुमित ।"
सुमित जोशी मुस्कुरा पड़ा ।
"तू भी कहीं निकल जा ।"
"हां, कुछ तो करूंगा ।"
प्रदीप जोशी बाहर निकल गया ।
सुमित जोशी ने व्यंग भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा ।
"सुना तुमने ?"
"हां...।"
"ये मेरा भाई है जो मुझे खतरे में छोड़कर खिसक जाना चाहता है।"
देवराज चौहान चुप रहा ।
"तू कुछ कहेगा नहीं ?"
"ये तुम भाइयों की बात है । मेरा कुछ भी कहना नहीं बनता ।" देवराज चौहान ने कहा।
"इतना तो बता दे कि वो ठीक कर रहा है या गलत ?"
"मेरे ख्याल से तो गलत कर रहा है ।"
सुमित जोशी के चेहरे पर कड़वे भाव आ गये ।
"जो काम किया, हम दोनों ने किया । वो पीछे रहा, मैं आगे रहा । परन्तु प्रदीप की रजामंदी हमेशा ले लेता था । वो मेरे द्वारा किये गये कामों में हमेशा पूरी तरह हिस्सेदार रहा है...और अब मुझे छोड़कर भाग रहा है। चुपके-चुपके कई दिन से खिसकने का प्रोग्राम बना रहा है । मेरे को नहीं बताया । अपना पैसा इंग्लैंड में ट्रांसफर कर लिया । पूरे परिवार की टिकट बुक करा लीं । सारी तैयारी कर ली...और बताने मेरे पास आ गया ।"
देवराज चौहान चुप रहा ।
"मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि इस दर्जे का कमीना है मेरा भाई ।" सुमित जोशी गुर्रा पड़ा ।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।
"दिल टूट गया देवराज चौहान मेरा तो...।"
देवराज चौहान ने कश लिया ।
"अब तो जैसे सब कुछ बेकार लगने लगा है । मन उचाट हो गया।"
"कल तूने प्रभाकर को बाहर निकालना है ।"
"हां । भूला नहीं हूं...।"
"आज शाम को जिम्मी से मिलना है ।"
सुमित जोशी ने सिर हिलाया ।
"प्रभाकर के बारे में सोचा ? अगर ये काम न हुआ तो जिम्मी तुझे छोड़ने वाला नहीं ।"
"मैं सोच रहा हूं कि आजकल रिश्ते तो रहे नहीं । भाई ही भाई को खा जाता है ।" सुमित जोशी उखड़े स्वर में बोला ।
"मुझे कल की तेरी चिंता हो रही है कि अगर तू सफल न हुआ तो फिर जिम्मी के हाथों मारा जायेगा या पुलिस तुझे पकड़ लेगी, प्रभाकर को जेल से भगा ले जाने के जुर्म में । तेरे को ये बात जरूर सोचनी चाहिये ।"
"प्रदीप की कमीनगी से मैं भीतर से हिल गया हूं देवराज चौहान।"
"वो तो शायद भी बच निकले, परन्तु तू सबकी निगाहों में है । तेरे को अब अपने बारे में सोचना चाहिये ।"
सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा, फिर सिर हिलाकर बोला---
"ठीक कहा, अब मैं अपने ही बारे में सोचूंगा ।"
"शाम के साढ़े चार हो रहे हैं । C.B.I. वालों को मैं क्या 'टिप' दूं ? उन्हें कुछ ऐसा कहना है कि वो कल सुबह तेरे पीछे न होकर, किसी और जगह ही उलझ जायें । ताकि तू प्रभाकर को जेल से बाहर ला सके ।"
"सोचता हूं ।" सुमित जोशी ने सिर हिलाया--- "तू थोड़ा बाहर टहल ले ।"
देवराज चौहान बाहर निकल गया । रिसेप्शन वाली जगह में पहुंचा ।
रिसेप्शनिस्ट भीतर से दो गिलासों में चाय लाती दिखी ।
देवराज चौहान रिसेप्शन के सोफे पर बैठ गया ।
"लो सुरेंद्र पाल । चाय पियो ।" उसने एक गिलास से थमाया और पास ही सोफे पर बैठ गई ।
देवराज चौहान ने घूंट भरा चाय का ।
"सुरेंद्र पाल ।" वो धीमे स्वर में कह उठी--- "तुमने कभी भी व्हिस्की पी है ?"
"क्या ?" देवराज चौहान ने उसे देखा ।
"व्हिस्की-शराब पी है कभी ?" वो पुनः बोली ।
"हां...।" क्यों ?"
"मेरी सहेली बताती है कि व्हिस्की पीकर बहुत मजा आता है ।"
"आता होगा ।"
"तुम्हें तो पता ही है कि मजा आता है ?"
"तुम कहना क्या चाहती हो ?"
"मैंने कभी व्हिस्की नहीं पी ।"
"इतनी ही इच्छा है तो पी लो...।"
"मेरी सहेली कहती है कि व्हिस्की बॉयफ्रेंड के साथ पीने का मजा आता है ।"
"तो बॉयफ्रेंड के साथ पी लो ।"
"मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है । दिनभर व्यस्त रहती हूं, वक्त ही नहीं मिलता इन कामों का ।"
देवराज चौहान खामोश रहा ।
"तुम मेरे साथ व्हिस्की पियोगे ?"
"मैं ?" देवराज चौहान ने उसे देखा ।
"तुम मेरे बॉयफ्रेंड बन जाओ । सप्ताह में एक-दो बार हम व्हिस्की पीने का वक्त निकाल ही लेंगे । मेरी सहेली का फ्लैट है, वहां जाकर पी लिया करेंगे । ठीक है सुरेंद्र पाल, आज रात चलें?"
"तुम्हारी उम्र कितनी है ?"
"पच्चीस....।"
"तीस साल से कम उम्र वाली लड़की को व्हिस्की नहीं पीनी चाहिये । अभी पांच साल तक तुम्हें इंतजार करना चाहिये ।"
"अभी तो तुम कह रहे थे कि...।"
"तब मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे साथ पीना चाहोगी ।"
उसने नाराजगी भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
"तुम मुझे टरका रहे हो ।"
"मैं सच कह रहा हूं । वैसे भी मैं व्हिस्की कम ही पीता हूं ।"
"तो मैं कौन-सी ज्यादा लूंगी ।"
"सुमित जोशी को ऐसे कामों की आदत है । बेहतर है ये बात उससे तय कर लो ।"
"उनसे तो मुझे डर लगता है । अच्छा, तुम एक काम करो ।"
"क्या ?"
"सर के साथ मेरी डेट फिक्स कर दो । इस तरह मैं अपनी तनख्वाह भी बढ़वा लूंगी ।"
देवराज चौहान ने उसे घूरा ।
"क्या हुआ ?" वो बोली ।
"मैं इन कामों की नौकरी नहीं कर रहा यहां ।"
"तुम मेरा काम करो तो मैं तुम्हारा करूंगी । तुम ही क्यों नहीं चलते मेरे साथ व्हिस्की पीने ?"
देवराज चौहान ने चाय का गिलास खाली करके उसे थमाया और भीतर की तरफ बढ़ा।
"सुनो तो...।" पीछे से उसने पुकारा ।
देवराज चौहान नहीं रुका ।
"क्या बात करने जा रहे हो सर के पास ?" रिसेप्शनिस्ट पुनः बोली ।
"हां ।" देवराज चौहान पीछे देखकर बोला--- "अपनी बात । तुम्हारी वाली नहीं ।"
देवराज चौहान ने सुमित जोशी के केबिन में प्रवेश किया ।
सुमित जोशी उस वक्त फोन पर बात कर रहा था । उस पर भी नजर मारी ।
"काम बढ़िया तरीके से होना चाहिये ।" सुमित जोशी फोन पर कह रहा था--- "देखने में ये सब एक्सीडेंट लगना चाहिये । पहले की तरह । बढ़िया ढंग से काम करो और पचास लाख लो ।"
उधर से कुछ कहा गया।
"ठीक है । अभी से इस काम पर लग जाओ ।" कहकर जोशी ने फोन बंद किया और उसे जेब में रखता कह उठा--- "मैंने सोचा है कि C.B.I. वालों से क्या कहना है। सुनो तुम...को...।"
"अभी किस से बात कर रहे थे ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"क्यों ?"
"तुम किसी का एक्सीडेंट करा रहे हो । फिर किसी की जान ले रहे हो ?"
"ये सब भी करना पड़ता है । तुम तो जान ही चुके हो ये सब बातें ।"
"किसकी बारी है अब ?"
"फिक्र मत करो। तुम्हारी नहीं है ।" सुमित जोशी मुस्कुरा पड़ा ।
"मैं जानता हूं तुम मेरा एक्सीडेंट नहीं करा रहे । किसका करा रहे हो ?"
"मत पूछो, मैं बताऊंगा नहीं ।"
देवराज चौहान सुमित जोशी को देखता रहा।
"ऐसे क्या देख रहे हो ?"
"पचास लाख एक एक्सीडेंट के लिए बहुत ज्यादा है या फिर तुम्हारे शिकार का, तुम्हारे लिए मरना बहुत जरूरी है ।"
"क्यों सिर खा रहे हो ?"
"मैं चाहता हूं जब तक मैं तुम्हारे साथ हूं, ये सब काम न करो ।" देवराज चौहान बोला ।
"क्यों ?"
"ये सब मुझे अच्छा नहीं लगता कि...।"
"कमाल है ! डकैती मास्टर ये बात कह रहा है ? तुम तो साधुओं की तरह बात कर रहे हो ?"
देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर सोचा कि, ये नहीं मानेगा ।
"तुम C.B.I. वालों के बारे में बता रहे थे कि उन्हें क्या कहना है।
"हां-सुनो...।" कहकर सुमित जोशी, देवराज चौहान को बताने लगा ।
■■■
शाम के छः बजे देवराज चौहान जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स के ऑफिस से बाहर निकला । अंदाज ऐसा था कि जैसे बाहर की हवा खाने आया हो । इस दौरान सिगरेट सुलगाई । तब तक उसने रमेश सिंह को दयाल की उस कार को देख लिया था, जो कि करीब सौ फीट दूर खड़ी थी ।
देवराज चौहान टहलने वाले अंदाज में उसी कार की तरफ बढ़ गया। इस बीच उसने यूं ही एक-दो बार गर्दन घुमाकर पीछे देखा, जैसे रमेश सिंह और दयाल को दिखाना चाहता हो कि वो उनके पास आते हुए सतर्कता बरत रहा है।
कार के पास पहुंचते ही पीछे वाला दरवाजा खुल गया ।
देवराज चौहान भीतर बैठा और दरवाजा बंद कर लिया ।
आगे रमेश सिंह और दयाल पीछे बैठा था ।
"तुम लोगों के पास आते हुए डर लगता है कि कहीं सुमित जोशी न देख ले...।" देवराज चौहान बोला ।
"डरो मत । उसे तुम पर कोई शक नहीं है ।" रमेश सिंह बोला।
"तुम लोगों को उसके ऑफिस में आकर बात नहीं करनी चाहिये । अब वो सतर्क हो जायेगा ।"
"मेरे ख्याल में तो वो हमारी परवाह नहीं करेगा । यह मैंने महसूस किया ।" दयाल बोला ।
"क्यों ?"
"क्योंकि वो माना हुआ वकील है । वो सोचता है कि खुद को आसानी से बचा लेगा ।
"वैसे हमारे आने के बाद वो परेशान हुआ ?" रमेश सिंह ने पूछा ।
"पता नहीं, मैं तो उसे हमेशा ही परेशान देखता हूं ।" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा ।
"तुम अपनी कहो, कोई खबर लाये हो ?"
"हां, लेकिन मुझे पन्द्रह सौ रुपये की जरूरत है ।"
दयाल सिंह ने जेब से पन्द्रह सौ निकालकर दिए ।
"खुश हो...।"
"बहुत...।" देवराज चौहान नोटों को जेब में रखता कह उठा---"हांथ जरा तंग चल रहा है ।"
"अब तो नहीं है ना ?"
"नहीं, अब ठीक हो गया ।"
"खबर बताओ ।"
"सुमित जोशी ने रात मुझे खंडाला की तरफ चलने को कहा है । वहां किसी लड़की के साथ रात बितायेगा ।"
"रमेश सिंह और दयाल की निगाहें मिलीं।
"कोई नया माल पटाया लगता है जोशी ने...।" दयाल बोला ।
"पूरा रंगीन मिजाज है ।" रमेश सिंह मुस्कुराया--- "लेकिन हमें इस खबर से क्या फायदा सुरेंद्र पाल ?"
"वो ही बता रहा हूं । सुबह छः बजे जोशी लड़की के पास से चलेगा और नौ बजे कस्तूरबा गांधी मार्ग के चौराहे पर बने पुलिस बूथ के पास ही, ग्लोब रेस्टोरेंट में जिम्मी से मिलेगा ।"
"जिम्मी ?" दयाल के होंठों से निकला ।
"प्रभाकर का बेटा ।" रमेश सिंह सीधा हुआ ।
"वो ही ।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।
"तुम्हें कैसे पता ?" रमेश सिंह ने देवराज चौहान को देखा ।
"कुछ जोशी की बातों से पता लगा, कुछ उसने यूं ही मेरे से कहा ।"
"वो ये बातें तुमसे क्यों कहेगा ?"
"उसने मुझे बताया कि अंडरवर्ल्ड डॉन प्रभाकर के बेटे जिम्मी से उसको सुबह मिलना है । इस दौरान मैं उसके पास ही रहूं और सतर्क रहूं कि वो, उसे मार न दे ।" देवराज चौहान ने कहा।
"शाबाश ! ये अच्छी खबर है ।"
"मैंने शरीफ शहरी का फर्ज निभा दिया ।"
"हां । अभी तुम और भी निभाओगे ।"
"दयाल ।" रमेश सिंह बोला--- "हमें जोशी और जिम्मी की मिलते हुए तस्वीर लेनी होगी । ताकि हम ये बात कोर्ट में बेहतर ढंग से साबित कर सकें कि जोशी के अंडरवर्ल्ड के साथ रिश्ते हैं ।"
"ठीक है । तस्वीर लेने के बाद ही, उन दोनों को गिरफ्तार करेंगे।"
"अब तुम लोगों का प्लान क्या है ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"क्या मतलब ?"
"मतलब कि रात को जोशी लड़की के पास खंडाला जायेगा- क्या तुम लोग पीछे आओगे ?"
"क्या जरूरत है ! हम जोशी और जिम्मी को सुबह नौ बजे कस्तूरबा गांधी मार्ग पर ही पकड़ेंगे ।"
"मेरा मतलब था कि अगर रात को पीछे आना हो तो मैं सतर्क रहूं...।"
"नहीं । हम सुबह की तैयारी करेंगे ।"
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया ।
"खबर पक्की ही है ना ?"
"मैंने तो पक्की ही दी है । आगे जाकर खबर में गड़बड़ हो जाये तो मेरा क्या कसूर ?"
"ठीक है । ठीक है । तुम इसी प्रकार हमें खबर देते रहो और नोट लेते...।"
तभी दयाल का फोन बजा । उसने बात की।
आधा मिनट बात करता रहा, फिर फोन बंद करता रमेश सिंह से बोला---
"हैडक्वार्टर से फोन था । हम जोशी की टेबल के नीचे जो माइक्रोफोन लगा आये हैं, वो चालू हो गया है ।"
"गुड । अब तो हमें भी पता चलता रहेगा कि जोशी अपने केबिन में क्या-क्या बातें करता है । तुम वो यंत्र निकालो, जिससे हम जोशी के ऑफिस में होने वाली बातें सुन सकेंगे । उस यंत्र को सैट करो।"
उनकी बातों पर देवराज चौहान मन-ही-मन बुरी तरह चौंका ।
पहला विचार तो मन में आया कि अगर ये केबिन में होने वाली बातचीत सुनते हैं तो जल्दी ही इस बात को जान जायेंगे कि वो सुरेंद्र पाल नहीं देवराज चौहान है ।
सुमित जोशी को भूलकर उसके पीछे पड़ जायेंगे ।
"तुम कुछ और बताना चाहते थे ?" पूछा रमेश सिंह ने ।
दयाल तब तक स्पीकर यंत्र जैसा यंत्र निकालकर, उस पर लगी सुई को धीरे-धीरे आगे करने लगा था। स्पीकर से कड़-कड़ की आवाजें आ रही थी ।
"नहीं । अभी तो ये ही है जो बताया ।" देवराज चौहान ने कहा।
"तो तुम जाओ । तुम्हारा ज्यादा देर बाहर रहना ठीक नहीं । वकील शक खा सकता है ।"
"हां, मैं जाता हूं ।" कहकर देवराज चौहान ने दरवाजा खोला ।
"कोई और खबर हो या वकील की प्लानिंग में कोई चेंज हो तो हमें फोन पर खबर कर देना ।"
"ठीक है ।" देवराज चौहान बाहर निकला और कार का दरवाजा बंद करके जोशी एंड जोशी एसोसिएट्स की तरफ बढ़ गया । सुमित जोशी को माइक्रोफोन के बारे में बताना जरूरी था । ये तो अच्छा हुआ कि वक्त रहते उसे पता चल गया । वरना C.B.I. वाले उसकी असलियत जानकर, बड़ी आसानी से उसे गिरफ्तार कर लेते।
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