बुधवार, 17 जनवरी
विधायक चरण सिंह पचास साल का लाल भभूके चेहरे वाला, खूब मोटा शख्स था। डेली ड्रिंकर होने के कारण उसकी आंखों के नीचे के पपोटे स्थाई रूप से बाहर को निकल आये थे। दिन में नहीं पीता था मगर आंखें हमेशा लाल रहती थीं, जैसे हर वक्त नशे में हो। हैरानी की बात ये थी कि शूगर, बीपी, हॉर्ट जैसी समस्याओं से पूरी तरह दूर था।
उस वक्त अपने घर में डाईनिंग टेबल पर बैठा वह नाश्ता कर रहा था, जब एक नौकर ने आकर बताया कि ओमकार भाई आये थे। नेता ने फौरन उसे भीतर भेजने को बोल दिया।
वह बंगला आगे पीछे की दो गलियों में खुलता था, और दो पार्टीशन में बंटा हुआ था, जिनके बीच आवागमन के लिए बस एक दरवाजा था, जहां से बिना इजाजत उस तरफ से इस तरफ आने की परमिशन सिर्फ ओमकार को ही थी।
बड़े वाले पोर्शन को नेता अपनी रिहाईश के लिए इस्तेमाल करता था, जबकि छोटे वाले हिस्से में उसका ऑफिस था, चमचों का बसेरा था। जहां अक्सर अराजक तत्वों की भरमार दिखाई देती थी। दोनों हिस्सों में आवागमन के मुख्य रास्ते भी अलग अलग गलियों में थे, जिसे कोई अंजान आदमी देखता तो यही समझता कि असल में वह दो जुदा घर थे।
“राम राम भाई।” भीतर दाखिल होता ओमकार अपने दायें हाथ को माथे तक ले जाकर बोला।
“राम राम, आ बैठ।”
“मैं ऐसे ही ठीक हूं।”
“अरे नाश्ता कर ले।”
“कर चुका हूं।”
“तो भी बैठ जा आराम से।”
सुनकर वह उसके सामने - डाईनिंग टेबल के दूसरे छोर पर - एक कुर्सी पर बैठ गया, फिर बोला, “आपने बुलाया था भाई?”
“हां बुलाया था, कई दिनों से तेरी शक्ल जो नहीं देखी थी।”
ओमकार सिंह बड़े ही शिष्ट भाव से हंसा।
“कोई प्रॉब्लम, जर्नलिस्ट वाले मामले में कोई प्रॉब्लम?”
“अगर है भी तो समझ लीजिए अंडर कंट्रोल है।”
“कैसे?”
“पत्रकार और उसका एडिटर दोनों हमारे कब्जे में हैं। पत्रकार का घर फूंक दिया, जबकि एडिटर के मामले में पुलिस उसके अपहर्ताओं की तलाश में जुटी हुई है। मतलब किसी का खास ध्यान हमारी तरफ नहीं है, बस मीडिया की कुछ इशारेबाजियों को छोड़कर, जो सारा किया धरा हमारा नहीं भी होता तो उन लोगों ने कर के रहना था।”
“अभी भले ही किसी का खास ध्यान हमारी तरफ नहीं है लेकिन बाद में जा सकता है। भारत न्यूज कई बार इस बात को दोहरा चुका है कि उनका जर्नलिस्ट मुकुल देसाई आजकल मेरे खिलाफ स्टोरी कर रहा था, ऐसे में कभी तो क्राईम ब्रांच को उनके कहे को सीरियसली लेना ही पड़ेगा।”
“ऐसा कुछ होता दिखा तो हमारे भेदिये वक्त रहते खबर कर देंगे, इसलिए फिलहाल तो आपको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है भाई, मैं सब संभाल लूंगा।”
“वो तो खैर तू संभाल ही लेगा यार, लेकिन समस्या ये है कि भेदिये ने अगर खबर दे भी दी कि पुलिस हमारे खिलाफ कदम उठाने जा रही है, तो उससे हमारा क्या भला हो जायेगा, शहर छोड़कर फरार तो होने से रहे हम।”
“नहीं ऐसा कैसे हो सकता है?”
“अगर नहीं हो सकता तो उसका मतलब यही है न कि प्रॉब्लम आकर रहेगी?”
“हां ऐसे तो आ सकती है।”
“खत्म क्यों नहीं कर दिया दोनों को?”
“इसीलिए नहीं किया भाई ताकि किसी बिन बुलाई मुसीबत से बचा जा सके। हवा का रुख हमारे खिलाफ जाता दिखाई दिया तो मैं कोई दूसरा रास्ता निकाल लूंगा, जिसके लिए दोनों का जिंदा रहना बहुत जरूरी है।”
“मैं समझा नहीं।”
“अभी फिरौती वाली कहानी फुल स्विंग में है और जब तक क्राईम ब्रांच की सुई वहां अटकी रहेगी, तब तक हमें कोई खतरा नहीं है। और फिरौती वाली बात को साबित करने के लिए मैंने कुछ करने की प्लॉनिंग की है।”
“यानि खुद फिरौती मांगेगा निगम के घरवालों से?”
“हां।”
“कैसे?”
“है एक रास्ता मेरे दिमाग में।”
“कितना मांगेगा?”
“एक करोड़ की मांग तो पहले ही खड़ी की जा चुकी है।”
“मतलब ऐसी रकम जिसका इंतजाम उसकी बीवी चाहकर भी न कर सके?”
“जी हां, तभी तो उसकी मौत बेहतर ढंग से जस्टीफाई हो पायेगी। मतलब वे लोग फिरौती देने में असफल रह गये, जिसके कारण इंतजार से आजिज आकर अपहर्ताओं ने निगम को खत्म कर दिया।”
“तब तक उसे यहीं बंद कर के रखेगा?”
“नहीं, आज शाम कहीं और शिफ्ट करने का इरादा है।”
“कहां? अच्छा रहने दे, मैंने क्या करना है जानकर।”
“एक छोटी सी मगर दूसरी प्रॉब्लम भी हमारे सामने है।”
“क्या?”
“खट्टर।”
“अब उसने क्या कर दिया?”
“डॉक्टर को उसके आदमी प्रोटक्शन दे रहे हैं।”
“कमीना कहीं का।”
“कौन मैं?” ओमकार हड़बड़ाया।
“अरे नहीं यार, खट्टर को बोल रहा हूं, खामख्वाह के पंगे लेता है। ऐसे कामों में भी हाथ डालने से बाज नहीं आता जिनसे उसका दूर दूर तक कोई लेना देना न हो।”
“आप कहें तो अगला इंतजाम उसी का कर दूं?”
“पागल हो गया है? खट्टर को मारा तो ऐसी मुसीबत गले पड़ेगी जिससे निबटना आसान नहीं होगा। इसलिए उसके मामले में जैसा चल रहा है चलने दे। लेकिन कुछ और जरूर करना होगा, हाथ पर हाथ धरकर तो नहीं बैठे रह सकते न, ऐसे तो वह दिनों दिन शेर होता चला जायेगा।”
“क्या करें?”
“उसके मुंह पर तमाचा जड़ना होगा।”
“कैसे?”
“डॉक्टर को खत्म कर दे।”
ओमकार ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“कोई बड़ा काम बता दिया मैंने?”
“नहीं मामूली है।”
“फिर चौंककर क्यों दिखा रहा है?”
“क्योंकि वैसा करने की वजह समझ में नहीं आ रही।”
“अरे खट्टर की शरण में पहुंचे डॉक्टर को जब हम खत्म कर देंगे, तो वह तिलमिलायेगा या नहीं?”
“तिलमिलायेगा।”
“वही वह थप्पड़ होगा जिसका मैं अभी अभी जिक्र कर के हटा हूं।”
“ओह, अब समझा।”
“काम होशियारी से करना, और कुछ इस ढंग से कि पुलिस सोचे कि उसका कत्ल भी उसी शख्स ने किया है, जिसने उसकी बीवी की जान ली थी।”
“सुसाईड जैसा कोई सीन क्यों न क्रिएट कर दें, फिर स्टोरी बनेगी कि बीवी की मौत पर दुःखी होकर डॉक्टर ने अपनी जान दे दी, क्या प्रॉब्लम है?”
“फिर खट्टर के मुंह पर तमाचा कैसे पड़ेगा ओमकार?”
“ओह, ठीक है मैं करता हूं कुछ।”
“जल्दीबाजी की जरूरत नहीं है, आराम से सोच समझकर कदम उठाना। और उसके लिए अपने किसी खास आदमी को भी भेजने की जरूरत नहीं है, समझ गया?”
“जी समझ गया - कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ - अब चलता हूं।”
नेता ने सहमति में गर्दन हिला दी।
दस बजे एसआई शुक्ला डॉक्टर भाटिया के घर पहुंचा, तो बाहर अल्ट्रोज की बॉडी से टेक लगाकर सिगरेट के सुट्टे लेती अलीशा अटवाल को वहां मौजूद देखकर हैरान रह गया।
“ये तो गलत बात है मैडम।”
“अलीशा, मेरा नाम अलीशा है, कल भी बताया था।”
“आपने वादा किया था अलीशा।” वह शिकायती लहजे में बोला।
“हां किया था, तभी तो अभी तक घर में कदम भी नहीं रखा है, जबकि पिछले दस मिनट से यहां खड़ी हूं। चाहें तो मोहित से पूछ लीजिए। मैंने फोन कर के भी डॉक्टर को मीनाक्षी के बारे में कुछ नहीं बताया, बेशक मेरी कॉल रिकॉर्ड चेक कर लीजिएगा। लेकिन आपसे ये वादा तो नहीं किया था कि आपकी पूछताछ के दौरान मैं साथ बने रहने की कोशिश भी नहीं करूंगी।”
“इसे कहते हैं घुमाकर कान पकड़ना।”
“नहीं ऐसा नहीं है इंस्पेक्टर साहब, फिर भी आपको कोई ऐतराज है तो साफ कहिये, मैं यहीं खड़ी रहकर आपके फारिग होने का इंतजार कर लूंगी। और आप ये क्यों भूल जाते हैं कि जो सवाल आप डॉक्टर से करना चाहते हैं, वही करने के लिए मैं भी बेताब हूं, जो रात को इसलिए नहीं किया क्योंकि आपसे वादा कर के आई थी, अब कहिये क्या फैसला है आपका?”
“वही जो आप चाहती हैं, साथ चलते हैं।”
“थैंक यू।”
तत्पश्चात दोनों गेट खुलवाकर भीतर दाखिल हो गये।
डॉक्टर अभी भी अलसाया हुआ सा ड्राईंगरूम में सोफे पर पड़ा था, अलबत्ता सो नहीं रहा था। हॉल का एसी ब्लोअर पर था इसलिए उसे कुछ ओढ़ने की भी जरूरत महसूस नहीं हुई थी।
दोनों को भीतर आया देखकर वह हड़बड़ाया सा उठ बैठा।
“गुड मॉर्निंग डॉक्टर साहब।”
“गुड मॉर्निंग - वह अलसाया सा बोला - कैसे आना हुआ?”
“आजकल सोफे पर ही सोने लगे हैं क्या?” उसके सामने बैठता हुआ शुक्ला बोला।
“हां, बेडरूम में जाने की हिम्मत ही नहीं होती, कमरा जैसे काट खाने को दौड़ता है। नीचे पापा मम्मी के कमरे में भी सोने की कोशिश कर के देख चुका हूं, मगर रात भर नींद नहीं आई - कहकर उसने पूछा - इतनी सुबह सुबह कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब?”
“आप के पेरेंट्स अभी तक नहीं लौटे?”
“मैंने उन्हें खबर ही नहीं दी।”
“क्यों?”
“बुर्जुग हैं, परेशान नहीं करना चाहता था।”
“कमाल है, ऐसा भी कोई करता है क्या?”
“ऊपर से वे लोग कोमल को ज्यादा पसंद नहीं करते थे, क्योंकि हम दोनों ने अपनी मर्जी से शादी की थी, इसलिए भी बाद में उनके गिले शिकवे का कोई अंदेशा नहीं है।”
“और कोमल के घरवालों को, उन्हें बुलाया या नहीं?”
“कोई है ही नहीं, बस दूर के रिश्तेदार हैं जिन्हें खबर करना मैंने जरूरी नहीं समझा, क्योंकि आज तक उनकी शक्ल भी कभी शायद ही देखी होगी। बल्कि कोमल का भी उनसे कांटेक्ट लगभग टूट ही चुका था।”
“अरे ऐसी दुःख की घड़ी में लोग फिर भी चार पहचान वालों को इत्तिला कर दिया करते हैं, हैरानी है कि आपने नहीं किया।”
“किया था, मुझे और कोमल को जानने वाले तकरीबन लोग श्मशान पहुंचे थे। फिर दूर से किसी को बुलाने की मुझे क्या जरूरत थी? कोई यहां पहुंचकर दुनिया से जा चुकी मेरी वाईफ को वापिस तो नहीं लौटा लाता न?”
“आपकी बात से सहमत होकर तो नहीं दिखा सकता मगर कोई बात नहीं, जिंदगी आपकी, परिवार आपका, आप जैसे चाहें जीने को आजाद हैं - कहकर उसने सवाल किया - ये बताईये कि कल रात दस बजे के आस-पास आप कहां थे?”
“यहीं था, इसी जगह पर।”
“हत्यारे की कॉल भी यहीं बैठकर अटैंड की थी?”
“हत्यारे की कॉल?”
“हां, नहीं की थी?”
“मैं समझा नहीं कि तुम क्या कह रहे हो?”
“कल रात कोई कॉल नहीं आई थी आपके पास?”
“नहीं आई थी।”
शुक्ला ने हैरानी से अलीशा की तरफ देखा।
“लगता है रात का नशा अभी टूटा नहीं है डॉक्टर साहब, है न?”
“हां बहुत ज्यादा पी गया था, लेकिन अभी ठीक हूं।”
“फिर आपको याद क्यों नहीं आ रहा कि बीती रात एक खास कॉल अटैंड की थी, और उसके बारे में फोन कर के मुझे भी बताया था, साढ़े नौ के करीब, याद आया कुछ?”
“याद तो आ रहा है लेकिन क्या बात हुई थी, वह मेरे दिमाग से उतर गयी है।”
“किसी ने आपको धमकी दी थी?”
“हां दी थी - फिर वह जोर से चौंका - ओह माई गॉड, तुमने मीनाक्षी से बात की या नहीं उस बारे में?”
“नहीं की, क्योंकि मुझे लगा था कि आप नशे में कुछ भी बोले जा रहे थे।”
“नशे में तो मैं बराबर था यार, एनी वे मैं खुद उससे बात कर लूंगा।”
“धमकी क्या दी गयी थी डॉक्टर साहब?” शुक्ला ने पूछा।
जवाब में उसने पूरी कहानी संक्षेप में उसके आगे दोहरा दी, बस ये कहने की बजाये कि कातिल ने उसकी तमाम माशूकाओं को खत्म करने की बात कही थी, शुक्ला को ये बताया कि तमाम पहचान वालों को खत्म कर डालने की धमकी दी थी।
“कॉल मोबाईल पर आई थी?”
“हां, यहां लैंडलाईन फोन नहीं है।”
“किसने की थी?”
“मैं नहीं जानता, लेकिन नंबर तो मेरे मोबाईल में होगा ही।”
“चेक कीजिए।”
उसने किया, फिर हैरान होता हुआ बोला, “कमाल है इसमें तो बस अलीशा को की गयी कॉली ही दिखाई दे रही है।”
“जो आपने कातिल की कॉल आने के बाद की थी, इसलिए उससे पहले की किसी इनकमिंग कॉल पर ध्यान दीजिए।”
“रात को इनकमिंग कॉल तो बस एक ही है, लेकिन वह नंबर तो मेरे नर्सिंग होम के रिसेप्शन का है।”
“फिर कातिल का नंबर कहां गायब हो गया?”
“कहीं ऐसा तो नहीं है इंस्पेक्टर साहब कि उसने मेरे हॉस्पिटल से ही फोन खटका दिया हो?”
“व्हॉट?” शुक्ला और अलीशा दोनों चौंककर रह गये।
“रात नौ बजे आई थी कॉल, चली भी पूरे पांच मिनट थी। जबकि मुझे अच्छी तरह से याद है कि कल रात वहां से किसी ने मुझे फोन नहीं किया था।”
“कॉल अटैंड करते वक्त नंबर नहीं देखा था आपने?”
“नहीं देखा था, इसलिए पक्का उसने मेरे नर्सिंग होम से ही फोन किया था। अफसोस कि उस वक्त मैंने नंबर की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया था, वरना कॉलबैक कर के रिसेप्शनिस्ट से पूछ लिया होता कि फोन करने वाला शख्स कौन था।”
“और ध्यान इसलिए नहीं दिया क्योंकि आप नशे में थे?”
“हां यही बात थी, वरना बिना नंबर देखे मैं कॉल नहीं पिक करता।”
“नर्सिंग होम में कैमरे तो लगे ही होंगे?”
“हर तरफ लगे हैं, और फुटेज भी पूरे महीने भर संभालकर रखी जाती है इसलिए इस बात का कोई खतरा नहीं है कि आप उस शख्स को वहां हुई रिकॉर्डिंग में न देख पायें, वाह ये तो कमाल ही हो जायेगा।”
“किस कमाल की बात कर रहे हैं?”
“अरे कातिल जब आपको दिख जायेगा तो उसे पकड़ने में कितना वक्त लगेगा? फिर क्या पता आप उसे पहले से जानते हों, नेता के आदिमयों की जानकारी थाने के स्टॉफ को न हो, ये क्या मानने वाली बात है?”
“आपको लगता है फोन विधायक जी के किसी आदमी ने किया था?”
“और कौन करेगा? मैंने तो फोन पर सीधा उससे पूछ भी लिया था।”
“क्या?”
“यही कि वह निन्नी बोल रहा था या जल्ली।”
“जवाब क्या मिला?”
“वही जो मिल सकता था, उसने इंकार कर दिया।”
“आवाज आपको निन्नी या जल्ली में से किसी की लगी थी?”
“मैं नोट नहीं कर पाया क्योंकि...”
“नशे में थे?”
“हां।”
“पूरी बातचीत के दौरान आपने कोई दूसरी खास बात नोट की हो, जैसे वह किसी शब्द का गलत उच्चारण कर रहा था, या कोई शब्द बार बार रिपीट कर रहा था?”
“अगर ऐसा कुछ था भी तो मुझे नहीं पता।”
“उसने ये नहीं बताया कि कत्ल वाली रात आपके घर में घुसने में कैसे कामयाब हो गया?”
“नहीं, फिर मुझे उस बारे में सवाल करना भी तो नहीं सूझा था।”
“ठीक है नर्सिंग होम चलकर वहां की फुटेज दिखाईए हमें।”
“मेरी हालत ठीक नहीं है इंस्पेक्टर साहब, फिर तैयार होने में भी वक्त लग जायेगा, अब इसी हाल में तो वहां नहीं जा सकता न। हां आप चाहें जाकर फुटेज देख लीजिए, जो कि रिसेप्शन कांउटर पर रखे कंप्यूटर में ही सेव होती है, मैं फोन किये देता हूं अपनी रिसेप्शनिस्ट को।”
“ठीक है हम जाकर देख लेंगे, अब ये बताईये कि उस कॉल के बाद आपने क्या किया था?”
“ड्रिंक करता रहा, सिगरेट भी पी, फिर अलीशा को फोन कर के नया पैग बनाया ही था कि ऊंघ आ गयी, और अभी पंद्रह बीस मिनट पहले ही नींद से जागा था।”
“आपको अच्छी तरह से याद है कि अलीशा को कॉल करने के बाद आप सो गये थे?”
“हां।”
“या किसी वजह से बाहर गये हों, जाकर लौट आये हों?”
“नहीं।”
“जबकि रात की बातें ढंग से याद नहीं हैं आपको।”
“अब हैं, सबकुछ याद आ गया है मुझे।”
“फिर ये क्यों नहीं याद आ रहा आपको कि - शुक्ला थोड़ा सख्त लहजे में बोला - दस बजे आप अमन सिंह के घर गये थे?”
“नहीं गया था।”
“वह झूठ क्यों बोलेगा?”
“कौन अमन सिंह?”
“हां।”
“वह कहता है कि दस बजे रात को मैं उसके घर गया था?”
“हां कहता है।”
“कमाल है, जबकि मुझे तो जरा भी याद नहीं आ रहा।” कहते हुए उसने मोबाईल उठाकर रात वाले गार्ड को कॉल लगाया जो कई बार बेल जाने के बाद उधर से पिक कर ली गयी।
“मनदीप?”
“यस सर?”
उसका उनींदा स्वर डॉक्टर के कानों में पड़ा, तो उसने मोबाईल को हैंड्स फ्री मोड पर डालकर सवाल किया, “कल रात तुमने मुझे घर से बाहर जाते देखा था, नौ से दस के बीच? या उससे थोड़ा आगे पीछे।”
“नहीं सर, आप रात में बाहर नहीं गये थे।”
“आखिरी बार कब गया था?”
“वह मोहित को पता होगा, क्योंकि मेरे ड्यूटी पर आने से पहले ही आप लौट चुके थे, और सुबह पोस्ट छोड़ते वक्त तक घर से नहीं निकले थे।”
“थैंक यू - उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी, फिर शुक्ला की तरफ देखकर बोला - नहीं मैं बाहर नहीं गया था। फिर इतनी रात गये अमन के घर जाने का कोई मतलब भी नहीं बनता।”
“क्या पता मीनाक्षी को सावधान करने चले गये हों?”
“गया होता तो गार्ड को खबर होती।”
“यानि खुद पर भरोसा नहीं है?”
“बहुत ज्यादा पी ली थी भाई, फिर आपने वह बात इतने दावे के साथ कही कि मैं गार्ड को कॉल करने के लिए मजबूर हो उठा, ये सोचकर कि क्या पता सच में वह बात मेरे ध्यान से उतर गयी हो - कहकर उसने सवाल किया - लेकिन हुआ क्या है, अचानक आपको मेरी बीती रात की रूटीन में इंट्रेस्ट क्यों हो आया?”
“मीनाक्षी का कत्ल हो गया डॉक्टर साहब।” कहते हुए शुक्ला ने उसके चेहरे पर अपनी निगाहें गड़ा दीं।
“हे भगवान! हे भगवान! ये सब चल क्या रहा है?”
“वही जो आप चला रहे हैं, बताईये क्यों मारा उसे?”
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।”
“आपको मेरे साथ बद्तमीजी से पेश आने का भी कोई हक नहीं पहुंचता।”
“सॉरी यार, आई एम एस्ट्रीमली सॉरी।”
“नैवर माईंड।”
“थैंक यू, लेकिन जरा खुद सोचकर देखो कि मीनाक्षी की हत्या क्यों करूंगा मैं, और किया भी था तो गार्ड की निगाहों में आये बिना यहां से आवागमन कैसे कर सकता था?”
“वह कोई मुश्किल काम नहीं है, आपके घर की बाउंड्री वॉल छह सात फीट से ज्यादा ऊंची तो क्या होगी, उसे फांद जाने में क्या प्रॉब्लम थी। आगे आप कुछ दूर तक पैदल चले होंगे फिर किसी ऑटो में सवार होकर निकल गये सैक्टर 91 के लिए।”
“थ्योरी अच्छी है इंस्पेक्टर, लेकिन है तो महज थ्योरी ही। फिर जरा सोचकर देखो कि मुझे वैसा कुछ करना ही होता तो मैं उसका ढिंढोरा क्यों पीटता? क्या जरूरत थी मुझे अलीशा से ये कहने की कि हत्यारे ने मुझे मीनाक्षी को जान से मार देने की धमकी दी थी? चुपचाप नहीं अंजाम दे सकता था उस काम को? और सौ बातों की एक बात ये कि अगर कातिल मैं हूं तो रात नौ बजे मुझे कॉल करने वाला शख्स कौन था?”
“रहा होगा कोई, जिसने किसी और वजह से आपको कॉल की होगी ना कि धमकी देने के लिए। अब पुलिस आपकी वॉयस रिकॉर्डिंग तो हासिल कर नहीं सकती, इसलिए जाहिर है उस मामले में आप जो कहेंगे, हमें कबूल करना पड़ेगा।”
“ऐसी बात पर बहस करने का क्या फायदा इंस्पेक्टर जिसको लेकर किसी निष्कर्ष पर न पहुंचा जा सके। पहली बात तो ये कि आपके पास मेरे खिलाफ सबूत होते तो अब तक मुझे गिरफ्तार कर चुके होते, और दूसरी बात ये कि अगर हत्या मैंने ही की है तो क्या आपके घुमा फिराकर सवाल करने से उसे कबूल कर लूंगा?”
“नहीं करेंगे जानता हूं, मगर पुलिस ऐसे ही काम करती है। कई बार परिणाम भी निकल आता है, क्योंकि सच को याद रखने की जरूरत नहीं होती, जबकि झूठ को याद रख पाना मुश्किल होता है। मतलब कल को जब मैं फिर से इसी मुद्दे पर आपसे बात करूंगा तो हो सकता है आपके दोनों बयानों में फर्क निकल आये, जो मुझे आप पर शक करने की वजह मुहैया करा दे। उसके बाद का काम तो मैं चुटकी बजाने जितना आसान समझता हूं। बड़े बड़े मुजरिमों की जुबान खुलवा लेते हैं हम, आप तो उनके सामने किसी गिनती में नहीं आते।”
“सही कहा, क्योंकि मैं कोई अपराधी हूं ही नहीं।”
“चलिए अभी के लिए आपकी बात कबूल किये लेता हूं।”
“थैंक यू, अब बताओ क्या सच में मीनाक्षी का कत्ल हो गया है, या वह तुम्हारा कोई स्टंट था, चोर बहकाने की कोशिश जैसा स्टंट?”
“अलीशा से क्यों नहीं पूछ लेते?”
सुनकर डॉक्टर ने उसकी तरफ देखा तो उसने हौले से सहमति में गर्दन हिला दी।
“बहुत बुरा हुआ बेचारी के साथ।”
“बेशक हुआ, और उसमें मेरी लापरवाही का भी पूरा पूरा हाथ है। काश आपकी कॉल के तुरंत बाद मैं उसके घर चली गयी होती, तो शायद उसकी जिंदगी बच जाती।”
“मत कोसो खुद को, ऐसे में तो मैं भी कह सकता हूं कि काश मनुहार कर के मैंने कोमल को पार्टी खत्म होने तक नीचे ही रोक लिया होता तो वह मरने से बच गयी होती। मतलब होनी अटल है, मौत ने जिस रास्ते से आना है आकर रहती है।”
“जरा अपना मोबाईल दिखाईये डॉक्टर - शुक्ला बोला - ताकि मैं श्योर हो सकूं कि रात नौ बजे कोई कॉल आपको वाकई में आई थी, और उसके बाद आपने अलीशा जी को फोन भी किया था।”
जवाब में डॉक्टर ने मोबाईल उसे थमा दिया।
शुक्ला ने कॉललॉग चेक किया तो एक लैंडलाईन नंबर की एंट्री दिखाई दे गयी, जो ठीक नौ बजे डॉक्टर के मोबाईल पर अटैंड की गयी थी। वह कॉल चार मिनट पैंतालिस सेकेंड चली थी, जिसके ठीक पच्चीस मिनट बाद अलीशा को कॉल की गयी थी।
शुक्ला ने लैंडलाईन नंबर को अपने मोबाईल से डॉयल किया, और दूसरी तरफ से कॉल अटैंड किये जाने के बाद ‘गुड मॉर्निंग भाटिया नर्सिंग होम’ सुनकर डिस्कनैक्ट भी कर दिया। फिर अलीशा की तरफ देखकर बोला, “आप चल रही हैं, या रुकेंगी यहां?”
“चल रही हूं।” कहती हुई वह उठ खड़ी हुई।
तत्पश्चात बाहर निकलकर शुक्ला पुलिस जीप में सवार हो गया, जिसे वह खुद ड्राईव कर के वहां पहुंचा था, जबकि अलीशा अटवाल अपनी अल्ट्रोज में जा बैठी।
भाटिया नर्सिंग होम के रिसेप्शन पर उस घड़ी तीसेक साल की एक शादीशुदा औरत बैठी हुई थी, जिसने उनसे पूछकर बीती रात की फुटेज को रात पौने नौ बजे से प्ले किया और एलईडी स्क्रीन को घुमाकर उसका रुख उनकी तरफ कर दिया।
दोनों की नजरें स्क्रीन पर टिक गयीं।
आठ अठावन पर पैदल चलता एक शख्स मेन इंट्रेंस से अंदर दाखिल हुआ, वह मंकी कैप पहने था, इस ढंग से कि नाक तक का चेहरा पूरी तरह कवर हो गया था। रही सही कसर आंखों पर चढ़े चश्में ने पूरी कर दी, मतलब सूरत तो दिखाई ही नहीं दे रही थी उसकी। दायें हाथ में उसने करीब दो इंच के ब्यास और तीन फीट की लंबाई वाला डंडा थाम रखा था, जिसका सहारा लेकर थोड़ा झुककर चल रहा था।
रिसेप्शन पर उस वक्त एक लड़की मौजूद थी, जिससे उसने कुछ बात की, फिर लड़की ने फोन उठाकर उसके सामने काउंटर पर रख दिया। तब तक आगंतुक डेस्क के आखिरी सिरे पर जा खड़ा हुआ था। उसने हाथ को लंबा फैलाकर रिसीवर उठाया, ना कि खुद फोन के पास पहुंचा था। फिर वहीं खड़े खड़े दूसरा हाथ बढ़ाकर कोई नंबर डॉयल किया और कॉल कनैक्ट होने के बाद बातें करने में जुट गया। साफ जाहिर हो रहा था कि वह जानबूझकर डेस्क के आखिरी सिरे पर जाकर खड़ा हुआ था ताकि रिसेप्शन पर बैठी लड़की उसकी बातचीत नहीं सुन पाती।
थोड़ी देर बाद उसने रिसीवर वापिस रखा और युवती की तरफ देखकर कुछ कहा, शायद उसे थैंक यू बोला था, फिर लाठी के सहारे चलता वहां से बाहर की तरफ बढ़ गया।
“जरा बाहर की फुटेज दिखाईये प्लीज।”
शुक्ला बोला तो रिसेप्शनिस्ट ने माऊस के जरिये एक नई फाईल ओपन की और बाहर के कैमरे की फुटेज प्ले कर दी। मगर खास कुछ फिर भी नहीं दिखा, क्योंकि वह शख्स बदस्तूर लाठी के सहारे पैदल चलता आखिरकार कैमरे की निगाहों से ओझल हो गया।
“रात को आपकी जगह जो लड़की यहां बैठी थी - अलीशा ने पूछा - वह अभी कहां होगी?”
“अपने घर पर।”
“उसका कोई कांटेक्ट नंबर?”
रिसेप्शनिस्ट ने बताया जिसे अलीशा ने हाथ के हाथ अपने मोबाईल पर डॉयल कर के उसे हैंड्स फ्री मोड पर डाल दिया ताकि वह बातचीत शुक्ला भी सुन पाता।
तीन चार बार बेल जाने के बाद दूसरी तरफ से कॉल अटैंड कर ली गयी। आगे अलीशा ने दो मिनट उससे बात कर के कॉल डिस्कनैक्ट कर दी। जो पता लगा वह ये था कि वहां पहुंचे शख्स ने बताया था कि उसका मोबाईल और पैसे हॉस्पिटल से थोड़ी दूरी पर दो लड़कों ने छीन लिया था, और अब वह मदद के लिए अपने घर फोन करना चाहता था।
लड़की ने उस बात पर कोई ऐतराज नहीं जताया क्योंकि प्रत्यक्षतः उसे एक कॉल कर लेने देने से नर्सिंग होम का अलग से कुछ खर्च नहीं होने वाला था। उसने ये भी कहा कि उस वक्त वह पेशेंट का डेटा कंप्यूटर में फीड कर रही थी इसलिए फोन उसके हवाले करने के बाद उसकी बातचीत की तरफ उसका कोई ध्यान नहीं गया था। और गया भी होता तो वह सुन नहीं सकती थी क्योंकि आगंतुक का लहजा बेहद धीमा और कुछ कुछ बीमारों जैसा था, यूं जैसे कि उसे बोलने में तकलीफ हो रही हो।
“वह सब उसकी अपनी आईडेंटिटी छिपाने की चाल थी।” अलीशा बोली।
“बेशक थी, तभी तो वह खुद को यूं कवर किये हुए था कि कैमरा उसकी सूरत न रिकॉर्ड कर पाता। मगर हैरानी की बात है कि उसने इतना बड़ा रिस्क लेकर डॉक्टर को फोन करने की हिमाकत कर दिखाई।
“यहां इंचीटेप होगा?” शुक्ला की बात को नजरअंदाज कर के अलीशा ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा।
“नहीं, लेकिन एक स्केल है।”
“देना प्लीज।”
सुनकर उसने बारह इंच का एक स्केल उसे थमा दिया।
अलीशा ने उससे रिसेप्शन डेस्क की हाईट नापी, मन ही मन कुछ कैल्कुलेशन किया, फिर शुक्ला की तरफ देखती हुई बोली, “यह चार फीट ऊंचा है।”
“क्या कहना चाहती हैं?”
“इस डेस्क के हिसाब से यहां पहुंचकर फोन करने वाले शख्स की हाईट साढ़े पांच से पौने छह फीट के बीच होनी चाहिए, जो कि कोमल के बेडरूम से फॉरेंसिक डिपार्टमेंट द्वारा बरामद किये गये फुट प्रिंट्स के साईज से मैच करता है।”
“कैसे जाना?”
“फुटेज में रिसेप्शन डेस्क का ऊपरी हिस्सा उसकी छाती तक पहुंच रहा था, जिसके ऊपर उसकी लंबाई डेढ़ पौने दो फीट से ज्यादा तो क्या रही होगी - फिर गेट की तरफ बढ़ती हुई बोली - अब चलिए, यहां खड़े रहकर कुछ हासिल नहीं होने वाला।”
“भ्रामक नतीजा है।”
“कौन सा नतीजा?”
“कातिल की हाईट वाला।”
“क्यों?”
“क्योंकि वह थोड़ा झुका हुआ भी था, ऐसे में उसकी हाईट का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। अलबत्ता हैल्दी जरूर दिखाई दे रहा था।”
“वह भी भ्रामक ही है क्योंकि वह गरम कपड़े पहने था, और जैकेट काफी फूली हुई दिख रही थी। चश्मा भी मोटे फ्रेम का था, जो आमतौर पर जवान लड़के नहीं पहना करते। हां हाथों में दस्ताने नहीं रहे होते तो एक बार को उससे अंदाजा लग जाता कि वह हैल्दी था या नहीं।”
“रहा भी हो अलीशा तो इतना नहीं हो सकता कि हम उसे अमन सिंह तसलीम कर लें, क्योंकि वह खूब तगड़ा शख्स है, और उसकी हाईट भी पांच आठ या पांच नौ होगी।”
“नहीं अमन सिंह तो वैसे भी डॉक्टर को फोन करने का रिस्क नहीं ले सकता था।”
“क्यों?”
“क्योंकि डॉक्टर साहब उसकी आवाज फौरन पहचान जाते।”
“वह नशे में थे।”
“तो भी पहचान जाते, फिर कातिल को कैसे पता हो सकता था कॉल अटैंड करते वक्त वह नशे में होंगे?”
“सूरज सिंह।”
“मैं अभी तक उससे मिल नहीं पाई हूं, इसलिए कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकती।”
“मैं मिला हूं, इसलिए जानता हूं कि पतला दुबला शख्स है और हाईट भी उसकी पौने छह फीट से ज्यादा नहीं होगी।”
“फिर तो कातिल वह भी हो सकता है, बल्कि होने के चांसेज ज्यादा हैं, अगर हम हत्या का कोई मोटिव उसके खिलाफ खोज निकालें।”
“चांसेज ज्यादा क्यों हैं?”
“क्योंकि डॉक्टर की पार्टी में मौजूद वह इकलौता ऐसा शख्स था जिसे मालूम था कि डॉक्टर और मीनाक्षी एक साथ कमरे में बंद थे, इसलिए जल्दी बाहर नहीं आने वाले थे।”
“जिसका फायदा उठाते हुए उसने पहली मंजिल पर पहुंचकर कोमल के साथ रेप किया फिर उसका मर्डर कर दिया, है न?”
“यहां थोड़ी कन्फ्यूजन है इंस्पेक्टर साहब।”
“क्या?”
“मुझे लगता है या तो उसके साथ कोई जबरदस्ती की ही नहीं गयी थी, या फिर कातिल ने उस काम को हत्या के बाद अंजाम दिया था, मतलब जो किया वह कोमल के साथ नहीं बल्कि उसकी लाश के साथ किया था।”
“अब आप कुछ ज्यादा ही लंबी हांक रही है। किसी की लाश के साथ रेप करना क्या मामूली काम दिखाई देता है आपको। और लाश भी कैसी जिसकी छाती से खून का परनाला बह रहा होगा। ऐसा तो कोई हैवान ही कर सकता है। या विकृत मानसिकता वाला कोई शख्स, जो अभी तक इस केस में एक भी नहीं दिखाई देता।”
“तो फिर समझ लीजिए कि रेप नहीं किया गया था।”
“आप इतनी श्योर कैसे हैं?”
“क्योंकि मेरा दिल ये मानकर राजी नहीं हो रहा कि कातिल ने कोमल के साथ जबरदस्ती की हो और उसने आराम से करने दिया हो। उल्टा होना ये था कि वह उसके साथ भिड़ जाती, दोनों में उठा पटक शुरू हो जाती, और तब शायद वह कमरे से बाहर निकलने में भी कामयाब हो गयी होती, आखिर हट्टी कट्टी थी, इतनी आसानी से हत्यारा उसे काबू में कैसे कर सकता था।”
“उठा पटक जैसी कोई बात तो घटनास्थल पर नोट नहीं की थी मैंने। सिवाये उन खरोचों के जो कोमल के चेहरे पर पाई गयी थीं।”
“वह खरोचें भी रेप की कोशिश में नहीं बनी हो सकती। मतलब वहां कोई संघर्ष हुआ ही नहीं था। ठीक उसी तरह जैसे मीनाक्षी के कत्ल से पहले उसकी कातिल के साथ कोई हाथा पाईं हुई नहीं दिखाई देती।”
“यानि कोमल के चेहरे को भी जानबूझकर नोंचा गया था?”
“हां, और वह काम कत्ल के बाद ही किया गया होगा। वैसे भी कोई किसी के साथ जबरदस्ती करता है तो खरोचें सिर्फ चेहरे पर नहीं आतीं, बल्कि बहुत कम आती हैं, क्योंकि हमलावर ने अपने शिकार के दोनों हाथ काबू में करने होते हैं, चेहरे से भला कोई क्या विरोध कर सकता है किसी का?”
“वैसा चिल्लाने से रोकने के लिए भी तो किया हो सकता है?”
“तो भी उतनी खरोचों का कोई मतलब नहीं बनता था, जितनी कोमल के चेहरे पर पाई गयी थीं, इसलिए इतना तो मैं गारंटी के साथ कह सकती हूं कि अगर उसके साथ कोई जबरदस्ती की भी गयी थी तो उस काम को कत्ल के बाद अंजाम दिया गया था, ना कि पहले। वैसे भी हत्यारे के पास वक्त की बहुत कमी थी, जिसे वह कोमल के साथ उठा पटक में जाया करने का रिस्क नहीं ले सकता था।”
“क्या पता भीतर पहुंचने के साथ ही उसने छुरा उसके सीने पर या गर्दन पर टिकाकर उसे शांत रहने को मजबूर कर दिया हो, इसलिए वह अपने साथ जबरदस्ती करने से उसे नहीं रोक पाई।”
“हां ऐसा हुआ हो सकता, लेकिन जब कोई विरोध हो ही नहीं रहा था इंस्पेक्टर साहब तो कातिल को कोमल का चेहरा नोंचने की क्या जरूरत थी?”
“दम तो है आपकी बात में, लेकिन साबित नहीं किया जा सकता क्योंकि अगर रेप हुआ भी था तो जाहिर है वह कत्ल के तुरंत बाद ही किया होगा, और मिनट भर के अंतराल को प्रूव करना करीब करीब असंभव है। मतलब फॉरेंसिक शायद ही इस बात की गारंटी कर पाये कि मौत पहले हुई थी और रेप बाद में किया गया था।”
“अगर कर भी दिखाये तो उससे हासिल कुछ नहीं होगा क्योंकि ये पहेली बुरी तरह उलझी पड़ी है। केस देखने में एकदम मामूली है, सस्पेक्ट भी बस गिने चुने हैं, मगर कातिल कौन है उसका पता लगाना आसान काम नहीं है।”
“सस्पेक्ट कम हां मैडम तो ये काम हमेशा मुश्किलों से भरा ही साबित होता है। मैंने तो एक केस ऐसा भी हैंडल किया है, जिसमें बस दो ही सस्पेक्ट थे, और दोनों एक दूसरे पर इल्जाम लगा रहे थे कि कत्ल उसने किया था।”
“कमाल का केस रहा होगा, नहीं?”
“हां था तो कमाल का ही, क्योंकि जहां हत्या की गयी थी वहां मकतूल को मिलाकर कुल जमा तीन लोग थे, तीनों ही दोस्त थे, जिनमें से एक का कत्ल कर दिया गया था। ऊपर से हाई सोसाईटी के लोग थे, जिनसे डंडे के बूते पर जुर्म कबूल नहीं कराया जा सकता था, इसलिए दिमाग की चूलें हिल गयी थीं।”
“हत्यारे का पता कैसे लगा?”
“मोटिव खोज निकाला, जो एक के पास था, दूसरे के पास नहीं था। उसके बाद केस सॉल्व होने में कितना वक्त लगना था।”
“इस केस में भी हमारा अला भला मोटिव में छिपा हुआ है इंस्पेक्टर साहब। वह मिल गया तो हत्यारे का पर्दाफाश होते देर नहीं लगेगी।”
“मैंने फुटेज देखने के बाद एक सवाल किया था अलीशा।”
“कैसा सवाल?”
“ये कि हत्यारे ने डॉक्टर को उसी के नर्सिंग होम से फोन करने का रिस्क क्यों लिया? जबकि जानता था यहां हर तरफ कैमरे लगे हुए हैं।”
“क्योंकि उसमें कोई रिस्क था ही नहीं, वह खुद को छिपाये हुए था इसलिए जानता था कि उसकी सूरत पहचान में नहीं आ सकती। फिर उसने किसी पब्लिक प्लेस से ही फोन करना था ना कि अपने मोबाईल से, जो कि इस नर्सिंग होम जैसी ही कोई जगह हो सकती थी।”
“यानि यहां बस इसलिए पहुंचा क्योंकि मोबाईल से फोन करने पर पकड़े जाने का खतरा था, बल्कि पकड़ा ही जाता।”
“मुझे तो यही लगता है।”
“फोन करना भी क्यों जरूरी था उसके लिए?”
“क्योंकि वह डॉक्टर को तड़पाना चाहता था। बल्कि एक बात और भी रही हो सकती है।”
“क्या?”
“वह चाहता था कि उसकी कॉल के बाद डॉक्टर मीनाक्षी को बचाने उसके घर पहुंच जाये। जरा कल्पना कर के देखिये इंस्पेक्टर साहब कि अगर हमारे वहां पहुंचने पर डॉक्टर से आमना सामना हो गया होता तो क्या हम कूदकर इस नतीजे पर नहीं पहुंच जाते कि कातिल भी वही था। आखिर दरवाजा तो वहां का खुला ही पड़ा था।”
“फिर तो तड़पाने की कोशिश भी इसीलिए की होगी कि डॉक्टर फौरन मीनाक्षी को सावधान करने उसके घर पहुंच जाये।”
“यही लगता है, वरना फोन पर उतनी बाही तबाही बकने की, डॉक्टर को गालियां देने की कोई जरूरत नहीं थी। बल्कि कॉल करने की जरूरत ही नहीं थी। मगर उसने किया क्योंकि डॉक्टर को अमन सिंह के घर पर देखना चाहता था। ये अलग बात थी कि उसका सोचा नहीं हुआ, क्योंकि डॉक्टर बुरी तरह नशे में धुत्त था।”
“कुछ खास ही खुंदक खाये बैठा दिखाई देता है हत्यारा।”
“खुंदक तो बराबर है, वरना कोमल के बाद मीनाक्षी की हत्या क्यों करता वह?”
“जबकि डॉक्टर साहब कहते हैं कि उन्हें कातिल का कोई अंदाजा नहीं है?”
“तो नहीं होगा।”
“बात यकीन के काबिल नहीं दिखती, लोग-बाग एक बार को अपने दोस्तों को भूल सकते हैं, मगर दुश्मनों को ताजिंदगी याद रखते हैं। ऐसे में क्योंकर हम सोच लें कि अपने इतने बड़े दुश्मन की उन्हें कोई खबर नहीं है?”
“हालिया बना दुश्मन होगा, जिस तक डॉक्टर की निगाह अभी नहीं पहुंच पा रही।”
“आप उनके काफी करीब जान पड़ती हैं।”
“ऐसा क्यों लगता है आपको?”
“दोनों की ट्यूनिंग अच्छी है, बातचीत भी यूं करते हैं जैसे दोस्त हों।”
“नहीं करीबी वाली कोई बात नहीं है, जान पहचान भी बस छह महीने पुरानी है, और वह भी पूरी तरह प्रोफेशनल ही है।”
“मतलब पहले भी किसी के केस पर काम किया था उनके लिए?”
“हां दो बार, ये तीसरा मामला है।”
“तब कौन सा कांड कर बैठे थे वह?”
“कुछ नहीं किया था, खामख्वाह के इल्जाम लगाये गये थे, जिन्हें आखिरकार तो मैंने झूठा साबित कर ही दिखाया था।”
“कैसे इल्जाम?”
“दोनों में से बस एक केस के बारे में बता सकती हूं, वह भी तब जब आप दूसरे के बारे में जानने की जिद ना करने का वादा करें।”
“पुलिसवाला हूं मैडम, गड़े मुर्दे उखाड़ना बहुत अच्छे से आता है मुझे।”
“वो मुर्दा इतना गहरा दफ्न है इंस्पेक्टर साहब कि सालों लग जायेंगे उसे उखाड़ने में, और आखिर में आप इस बात पर पछतायेंगे कि क्यों खामख्वाह के कामों में अपना कीमती वक्त जाया कर दिया।”
“अगर ऐसा है तो जो बता सकती हैं वही बता दीजिए। दो जानकारियां ना मिलने से तो अच्छा है मैं एक से ही संतुष्ट हो जाऊं, बोलिये क्या हुआ था?”
“छह महीने पहले इसी नर्सिंग होम में एक पेशेंट की डेथ हो गयी थी। तब उसके भाई ने डॉक्टर पर इल्जाम लगाया कि मौत सरासर उसकी लापरवाही से हुई थी, और पुलिस में एक एप्लीकेशन तक सबमिट कर दी।”
“ऐसी किसी बात की खबर मुझे क्यों नहीं है?”
“क्योंकि उन दिनों डॉक्टर साहब दिल्ली में रहा करते थे, और कंप्लेन करने वाला भी। कायदे से रिपोर्ट यहां फरीदाबाद पुलिस में दर्ज करानी चाहिए थी, मगर उसने गोविंदपुरी, दिल्ली के थाने को चुना जहां का एसएचओ उसका रिश्तेदार था। पुलिस को दिये गये अपने स्टेटमेंट में उसने बताया कि फरीदाबाद पुलिस क्योंकि डॉक्टर के प्रभाव में थी, इसलिए उसकी रिपोर्ट नहीं लिख रही थी, जबकि बाद में मैंने पता किया तो मालूम पड़ा कि रिपोर्ट लिखवाने यहां के थाने में तो वह कभी पहुंचा ही नहीं था।”
“जब मामला फरीदाबाद का था तो कंप्लेन दिल्ली में कैसे दर्ज हो गयी? भले ही एसएचओ उसका रिश्तेदार ही रहा हो। क्योंकर मुमकिन हो पाया वैसा कुछ?”
“एफआईआर नहीं दर्ज की गयी थी, बस लिखित कंप्लेन दी थी उसने, जो किसी वजह से मामला बिगड़ता दिखाई देता तो एसएचओ ने फौरन फाड़कर फेंक देना था। असल में वह शख्स बस डॉक्टर से पैसे ऐंठना चाहता था, जिसमें कामयाब नहीं हो पाया।”
“किस बेस पर?”
“लापरवाही, उसका सारा जोर उसी पर था। उस बात का जिक्र बड़े ही विस्तार से उसने अपनी स्टेटमेंट में किया था। लिखा था कि मौत वाले रोज उसके भाई की तबियत बिगड़ी तो उसने डॉक्टर को फोन किया, मगर वह नहीं आया, बस नर्सिंग होम का स्टॉफ ही उसे ट्रीट करता रहा, जबकि उसके भाई की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। जो आखिरकार उसकी जान जाने की वजह बन गयी।”
“साबित कैसे करता?”
“नहीं कर सकता था। लेकिन डॉक्टर के लिए प्रॉब्लम तो बराबर क्रियेट कर देता। और कुछ नहीं तो अदालत में ही जा खड़ा होता, जिसके बाद डॉक्टर की मजबूरी होती कि उसके साथ कांप्रोमाईज कर लें, जो कि वह चाहता था कि करें।”
“करना पड़ा?”
“नहीं।”
“क्यों?”
“क्योंकि डॉक्टर ने मुझे हॉयर किया और मैंने उस शख्स की जन्मकुंडली खोज निकाली। सबसे पहले तो यही साबित करने लायक प्रमाण जुटा लिये कि दिल्ली पुलिस अनॉथराईज रूप से उस मामले को इंवेस्टिगेट कर रही थी, क्योंकि थाने का एसएचओ रिश्ते में कंप्लेनर का चचेरा भाई लगता था। दूसरी जो बात हमारे काम की साबित हुई वह ये थी कि कंप्लेन करने वाला सटोरिया था, मैंने उस फ्रंट पर भी कुछ एविडेंस खोज निकाले फिर उससे मिलकर बात की और थोड़ा धमकाकर, थोड़ा समझाकर शांत बैठने के लिए राजी कर लिया।”
“उस किस्म के लोग तो बहुत खतरनाक होते हैं अलीशा, कैसे काबू करने में कामयाब हो गयीं?”
“इसलिए हो गयी क्योंकि मैं उससे ज्यादा खतरनाक हूं।”
सुनकर पहले तो शुक्ला हंसा, फिर बोला, “ये तो नहीं हो सकता कि बाद में उसी ने डॉक्टर से बदला लेने के लिए कोमल की हत्या कर, या करवा दी हो?”
“नहीं हो सकता, किस बात का बदला लेता वह, डॉक्टर ने सच में तो उसका कुछ बिगाड़ा नहीं था?”
“ना बिगाड़ा हो, मगर उसे फिर भी ये लगता हो सकता है कि डॉक्टर की लापरवाही से ही उसके भाई की जान गयी थी?”
“मेरे ख्याल से तो उस बारे में सोचना बेकार है, फिर भी आप जांच करना चाहते हैं, तो उसका नाम पता कल दे दूंगी आपको, मिलकर सवाल जवाब कर लीजिएगा।”
“ठीक है, थैंक यू।”
“अब चलें यहां से?”
“हां चलिए।”
तत्पश्चात दोनों अपनी अपनी गाड़ियों में सवार हो गये।
दो बजे के करीब अलीशा अटवाल अनिकेत त्रिपाठी के घर पहुंची, जो बाटा चौक के करीब एक कॉलोनी में रहता था। घर उसका खूब बड़ा और शानदार था। गली भी तीस फीट से कहीं ज्यादा चौड़ी थी, इसलिए कार वहां तक ले जाने में कोई समस्या आड़े नहीं आई।
कॉलबेल के जवाब में दरवाजा मुक्ता त्रिपाठी ने खोला और अलीशा का परिचय हासिल करने के बाद उसे भीतर लिवा ले गयी। जहां 16-17 साल एक लड़की यू ट्यूब चलाकर टीवी पर ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ देख रही थी, और उसके दायें हाथ की हथेली में पट्टी बंधी हुई थी।
“बैठो - अलीशा से कहने के बाद मुक्ता ने वहां बैठी लड़की की तरफ देखा - टीवी बंद कर पिंकी, और आंटी को नमस्ते बोल।”
“नमस्ते आंटी - पिंकी मुस्कराई फिर अपनी मां की तरफ देखकर बोली - मैं म्यूट पर चलने दूं, फिर तो कोई प्रॉब्लम नहीं है?”
“कहा न बंद कर, दिन भर तो देखती रहती है।”
“ठीक है।” कहकर उसने टीवी बंद कर दी।
“अब जाकर चाय बना ला।”
“उसकी कोई जरूरत है।” अलीशा जल्दी से बोली।
“जरूरत है, फिर इसी बहाने इसकी चर्बी थोड़ी कम हो जायेगी, बैठे बैठे मुटियाती जा रही है।”
“क्या मॉम! अब मैं इतनी भी मोटी नहीं हूं।”
“साठ किलो की है, जब मैं तेरी उम्र की थी तो चालीस से ज्यादा की नहीं था, इसलिए मोटी तो तू बराबर है।”
“हाईट भी तो है इसकी, उस हिसाब से वजन कोई बहुत ज्यादा तो नहीं है।”
“देखा, बस आपको ही मोटी दिखती हूं मैं।” पिंकी मुंह बनाकर बोली।
“बकवास मत कर, जा चाय बना ला आंटी के लिए।”
“बस आंटी के लिए ही बनाऊंगी।” कहती हुई वह किचन की तरफ बढ़ गयी।
“एक नंबर के काहिल होते जा रहे हैं आजकल के बच्चे, मैं इसकी उम्र में पूरा घर संभाला करती थी। बल्कि स्कूल जाने से पहले सबके लिए खाना तक तैयार करती थी, जबकि इससे एक गिलास पानी भी मांग दो ऐसा जाहिर करती है जैसे पहाड़ चढ़ने को बोल दिया हो।”
अलीशा हौले से हंस दी।
“सॉरी, मैं भी किन बातों में लग गयी, तुम कहो कैसे आना हुआ?”
“कोमल के बारे में बात करने आई हूं, नूरजहां ने बताया था कि तुम उसकी सबसे अच्छी दोस्त थीं।”
“हां दोस्ती तो हमारी बहुत गहरी थी - कहने के बाद उसने लंबी आह भरी, फिर बोली - पता नहीं किस कमीने ने उसकी जान ले ली। कहीं मिल जाये तो अपने हाथों से गला घोंट दूं उसका।”
“और मीनाक्षी, क्या वह भी तुम्हारी दोस्त थी?”
“जान पहचान तो खैर बहुत पुरानी थी, महीने में एक दो बार बात भी हो जाती थी, मगर दोस्ती जैसा कुछ नहीं था। हां कोमल से रोज हॉय हैलो हुआ करती थी। कई बार तो दिन में दो तीन कॉल भी कर लिया करते थे हम एक दूसरे को।”
“और नूरजहां के साथ कैसी बनती है तुम्हारी?”
“वह भी दोस्त है, मगर सबसे ज्यादा क्लोज कोमल थी।”
“कोमल और साहिल के अफेयर की खबर तो रही ही होगी तुम्हें?”
“तुम कैसे जानती हो उस बारे में?”
“डिटेक्टिव हूं, इसलिए जानती हूं।”
“हां खबर थी मुझे।”
“कोमल ने बताया था?”
“शक तो मुझे बहुत पहले हो गया था, मगर गारंटी तभी हुई जब कोमल ने उस बात की हामी भरी। तब ये सोचकर बहुत हैरान हुई कि कितना बड़ा गेम खेल रही थी वह, मैं तो चाहकर भी उतनी हिम्मत नहीं कर सकती।”
“मतलब अफेयर तुम्हारा भी चल रहा है किसी के साथ, बस कोमल की तरह खुल्लम खुल्ला उसे अपने घर बुलाने की हिम्मत नहीं कर पाती हो?” अलीशा ने हंसते हुए कुछ इस अंदाज में सवाल किया कि उसे बुरा न लगे।
“नहीं यार, मैं ऐसी बातों से सौ कोस दूर रहती हूं।”
“कहीं साहिल ने ही तो नहीं मार डाला उसे?”
“कत्ल मीनाक्षी का भी हुआ है अलीशा, जबकि साहिल को वह जानती तक नहीं थी।”
“कैसे पता?”
“टीवी पर न्यूज में देखा था।”
“मैं ये पूछ रही हूं कि साहिल मीनाक्षी को नहीं जानता था, इस बात की गारंटी तुम कैसे कर सकती हो?”
“अरे जब कोमल की ही मीनाक्षी के साथ कुछ खास नहीं बनती थी तो साहिल और मीनाक्षी की जान पहचान होने का क्या मतलब बनता है।”
“मीनाक्षी के किसी अफेयर की खबर हो तुम्हें?”
“डॉक्टर साहब के साथ चल रहा था।”
“कैसे मालूम?”
“कोमल ने ही बताया था।”
“उस बात की खबर होते हुए भी कोमल ने कभी मीनाक्षी से कुछ नहीं कहा?”
“मेरे ख्याल से तो नहीं ही कहा, क्योंकि वह अपने में ही मगन रहती थी। साहिल का साथ पाकर बहुत खुश थी, इतनी ज्यादा कि कभी कभी मुझे शक होने लगता था कि डॉक्टर को छोड़कर उससे शादी ही कर लेगी।”
“यार बात कुछ समझ में नहीं आती, इतने हैंडसम हैं डॉक्टर साहब, और मीनाक्षी के साथ उनके अफेयर पर गौर कर के कहूं तो कोई मेडिकल समस्या भी नहीं होगी, ऐसी समस्या जिससे बीवी अपने पति से दूरी बनाने को मजबूर हो जाये, फिर दोनों घर के बाहर सुख की तलाश में क्यों जुट गये?”
“उसकी असल वजह डॉक्टर के मां बाप हैं।”
“वो कैसे?”
“कोमल का हर वक्त जीना हराम कर के रखते थे, बात बात पर ताने देना, खरी खोटी सुनाना, कई बार तो ये तक इल्जाम लगाने लग जाते थे कि ‘चुड़ैल ने जरूर उनके बेटे पर कोई तंत्र मंत्र कर दिया था, तभी उसके साथ ब्याह रचा बैठा, वरना रिश्तों की भला क्या कमी थी लवलेश को’। इस तरह की बातें अक्सर उसे सुनने को मिलती ही रहती थीं, और जब डॉक्टर से शिकायत करती तो वह ये कहकर उसे शांत करा देता कि अपने मां बाप को चाहकर भी बुरा नहीं बोल सकता वह। ऐसे में मियां बीवी के बीच दूरियां बढ़ती चली जाना क्या बड़ी बात थी। उन दोनों में भी बढ़ी और कोमल को साहिल मिल गया, जबकि डॉक्टर के बारे में तो सुना है कि उनका कई शादीशुदा और गैर शादीशुदा लड़कियों के साथ संबंध रहा है। जो पता नहीं कितना सच है और कितना झूठ, क्योंकि मुझे तो बस एक मीनाक्षी की ही खबर है।”
“पार्टी वाली रात कुछ देखा था?”
“अच्छा याद दिलाया, उस रात कोमल के ऊपर जाते ही मैंने पहले डॉक्टर साहब को, फिर उनके पीछे पीछे मीनाक्षी को एक कमरे में घुसते देखा था, ओह, ओह, तो ये बात है।”
“क्या बात?”
“दोनों ऐश करने वहां के एक कमरे में जा घुसे थे।”
“ऐसा?”
“मेरे ख्याल से तो हां, और भला क्या वजह रही हो सकती है?”
“उसके अलावा कुछ देखा हो?”
“अब मुझे क्या पता कि तुम क्या देखा होने के बारे में पूछ रही हो?”
“जैसे कि कोमल के ऊपर चले जाने के बाद कोई और भी गया हो?”
“हां देखा था।”
अलीशा की आंखें चमक उठीं।
“किसे देखा था?”
“राशिद शेख को।”
चमक गायब हो गयी।
“सीढ़ियों पर बढ़ते भर देखा था या ऊपर भी दिखाई दिया था?”
“नहीं सीढ़ियों पर ही देखा था, लेकिन और किसलिए गया होगा?”
“उसके अलावा किसी और को जाते देखा हो?”
“नहीं, क्योंकि मेरा ज्यादातर ध्यान खाने पीने में था, एक नंबर की भुक्खड़ हूं मैं, तभी तो फिगर बिगड़ता जा रहा है। फिर कई बार डांस भी तो किया था मैंने। और सौ बातों की एक बात ये कि मैं वहां पार्टी इंजॉय करने गयी थी ना कि लोगों पर नजर रखने।”
“मेरी समझ में नहीं आता मुक्ता कि मुश्किल से चालीस फीट चौड़े हॉल में दसियों लोगों की नजर बचाकर हत्यारा ऊपर क्योंकर पहुंचने में कामयाब हो गया?”
“क्योंकि रोशनी कम थी, बल्कि थी ही नहीं। तुमने देखा ही होगा कि म्युजिक सिस्टम चौतरफा रंग बिरंगी लाईटें फेंक रहा था, यानि डिस्को जैसा माहौल था वहां का, ऐसे में दूर सीढ़ियां चढ़ता हत्यारा भला कैसे दिख जाता किसी को। फिर मेरी तरह किसी और कोई भी क्या पड़ी थी कि कोमल के जाने के बाद इंजॉय करना छोड़कर सीढ़ियों पर टकटकी बांधकर बैठ जाता?”
“किसी की तो निगाह फिर भी पड़नी ही चाहिए थी।”
“तुम सबसे पूछताछ कर चुकी हो?”
“मर्दों में बस एक अमन सिंह से मिली हूं। और लेडिज में बस सुकन्या से मिलना बाकी रह गया है।”
“मिलकर देखो, क्या पता कोई कुछ बता ही दे।”
“मैं जरूर मिलूंगी, अभी तुम जरा वापिस पार्टी पर आओ, सीढ़ियों पर ना सही लेकिन वहां सोफे पर पसरे अमन सिंह पर तो तुम्हारी निगाह कई बार गयी होगी, है न?”
“हां गयी थी।”
“तब क्या हर बार वह तुम्हें वहीं दिखाई दिया था?”
“पक्का नहीं कह सकती यार, लेकिन कहीं गया भी होगा तो पांच दस मिनट में लौट आया होगा, जैसे कि बॉथरूम जाकर आया हो सकता है। क्योंकि ज्यादा देर के लिए वहां से गायब होता तो किसी ना किसी का ध्यान उस तरफ चला ही गया होता। ऊपर से वह नशे में धुत्त था इसलिए भी शायद ही सोफे से उठा हो। पार्टी खत्म होने के बाद भी स्वराज और मीनाक्षी बड़ी मुश्किल से उसे उठाने में कामयाब हो पाये थे। जबकि वह बार बार कह रहा था कि उसे वहीं छोड़कर घर चले जायें।”
“ऐसे में वह गाड़ी चलाकर कैसे ले गया होगा?”
“उसने नहीं चलाई थी।”
“फिर?”
“सूरज चौधरी और उसकी बीवी दोनों को ड्राईविंग आती है, इसलिए मीनाक्षी की रिक्वेस्ट पर सुकन्या ने उनका ड्राईवर बनना कबूल कर लिया था। सूरज अपनी कार में बैठकर उनके साथ गया और वहीं से अपनी वाईफ को लेकर घर चला गया था।”
“तुम्हारे हस्बैंड क्या करते हैं?”
“एसबीआई में मैंनेजर हैं।”
“यहीं फरीदाबाद में?”
“नहीं, बदरपुर दिल्ली में।”
“एक आखिरी सवाल और करना चाहती हूं अगर तुम वादा करो कि सुनकर खफा नहीं हो जाओगी, क्योंकि तुम्हारा जवाब अगर हां में हुआ तो आगे तुम्हारे लिये सावधानी बरतना बहुत जरूरी है।”
“किस तरह की सावधानी?”
“हत्यारे ने डॉक्टर को धमकी दी है कि कोमल के बाद वह उन तमाम औरतों को खत्म कर देगा, जिनके साथ डॉक्टर के या तो रिलेशन पहले से थे, या फिर वह बनाने की कोशिशों में जुटा हुआ था।”
“ओह अब समझी - वह हंसती हुई बोली - नहीं, मेरा डॉक्टर के साथ ना तो उस तरह का कोई रिश्ता था, ना ही भविष्य में बनने की उम्मीद है, क्योंकि मैं बहुत संतोषी जीव हूं, इतनी कि बस पति से ही काम चला लेती हूं, बल्कि सच पूछो तो कभी कभी वह भी ज्यादा लगने लगता है।”
सुनकर अलीशा की हंसी छूट गयी।
उसी वक्त पिंकी चाय ले आई, और एक एक कप उन्हें देने के बाद तीसरा खुद लेकर वहीं बैठ गयी।
“मैं तुम्हारी बेटी से सवाल करूं तो बुरा तो नहीं लगेगा?”
“नहीं, क्यों लगेगा? बस इतना ध्यान रखना कि ये बस सोलह साल की है, और अक्ल से पैदल है।”
“मैं सत्रह की होने वाली हूं आंटी, और बहुत समझदार हूं, इसलिए जो चाहें पूछ सकती हैं।”
“थैंक यू बेटा, ये बताओ कि डॉक्टर अंकल की पार्टी में कोई खास बात नोट की थी तुमने? कुछ भी जो नॉर्मल न लगा हो?”
“ऐसी तो बहुत सारी बातें थीं, आप किस बारे में जानना चाहती हैं?”
“सबके बारे में।”
“ओके, तो सबसे पहली बात जो मुझे अजीब लगी थी, वो ये थी कि कोमल आंटी पार्टी छोड़कर चली गयीं। जबकि उन्हें आखिर तक रुकना चाहिए था क्योंकि पार्टी उनकी मैरिज एनिवर्सरी की थी। लेकिन उससे भी अजीब ये लगा कि बाद में अंकल भी कहीं गायब हो गये। ये भी भला कोई बात हुई कि गेस्ट्स को छोड़कर होस्ट्स गायब हो जायें। तीसरी अजीब बात थी अमन अंकल बिहेवियर, वह नशे में तो थे ही, हरकतें भी अजीबो गरीब कर रहे थे।”
अलीशा चौंकी, “अजीबो गरीब से तुम्हारा क्या मतलब है?”
“लेटे लेटे एक बार एकदम से उठे, चारों तरफ निगाह दौड़ाई फिर सोफे के पीछे जाकर बैठ गये। मेरी निगाह उनपर पड़ी तो समझ गयी कि नशे में होने के कारण उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कर रहे थे, तब मैं उनके पास गयी और उनका हाथ थामकर वापिस सोफे पर ले जाकर बैठा दिया।”
“वैसा कुछ दोबारा भी हुआ?”
“हां कोमल आंटी के जाने के बाद उन्होंने उठकर बिजली का वह स्विच ऑफ कर दिया, जिसमें वहां बज रहे म्युजिक सिस्टम का प्लग लगा हुआ था। तत्काल वहां सन्नाटा और अंधेरा फैल गया, जिसके बाद राशिद अंकल ने स्विच को फिर से ऑन कर दिया था।”
“बकवास कर रही है ये, पहले भी कर चुकी है, जबकि अमन को वैसा करते किसी ने नहीं देखा था, फिर राशिद ने बताया भी था कि वह स्विच थोड़ा लूज था, जिसके कारण अपने आप बंद हो गया था।”
“अमन अंकल ने किया था।”
“नहीं किया था।” मुक्ता बोली।
“अरे मैंने अपनी आंखों से उन्हें सोफे से उठकर बोर्ड तक जाते देखा था।”
“शुक्र है ये बात तूने पार्टी में नहीं कही पिंकी, वरना सबको अमन पर गुस्सा आ गया होता।”
“अच्छा ये बताओ कि दोबारा जब म्युजिक सिस्टम ऑन कर दिया गया तो उस वक्त अमन सिंह कहां थे?”
“सोफे पर लेटे हुए थे।”
“आगे फिर वैसा कुछ करते दिखाई दिये थे?”
“नहीं पता, क्योंकि उस घटना के बाद मैं डांस करने में बिजी हो गयी थी, और तब तक करती रही जब तक कि पार्टी खत्म होने की घोषणा नहीं हो गयी।”
“ठीक है बेटा थैंक यू - कहकर उसने मुक्ता की तरफ देखा - कोई खास बात याद आ जाये तो मुझे इंफॉर्म कर देना, प्लीज।” कहते हुए उसने अपना एक विजिटिंग कार्ड मुक्ता को थमाया और वहां से निकल गयी।
सूरज चौधरी का घर पहला ऐसा घर था जहां मियां बीवी दोनों के साथ अलीशा की मुलाकात हो गयी। चौधरी कहीं बाहर जाने की तैयारी में था मगर अलीशा के वहां पहुंच जाने की वजह से रुक गया।
“मैं तुम्हें जानता हूं।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है।”
“कुछ महीनों पहले लवलेश ने बताया था।”
“क्या?”
“यही कि तुम डिटेक्टिव हो।”
“ये नहीं बताया कि अपनी वाईफ के कातिल का पता लगाने का काम भी सौंप रखा है मुझे?”
“मैं महीनों पहले की बात कर रहा हूं, तब कोमल का कत्ल कहां हुआ था? - कहकर उसने पूछा - कुछ पता लगा पाईं या नहीं अभी तक?”
“कोशिश जारी है, जल्दी ही पता लगा लूंगी।”
“किसी पर शक तो फिर भी होगा?”
“कई लोगों पर है।”
“जैसे कि?...”
“जैसे कि आप।”
“मैं - वह हंसा - मैं भला कोमल या मीनाक्षी को क्यों मारूंगा?”
“आप बताईये।”
“नहीं मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।”
“किया होता तो कबूल कर लेते?”
“क्यों? मैं क्या बेवकूफ दिखता हूं तुम्हें।”
“नहीं, वो तो नहीं दिखते। चलिए अब ये बताईये कि पार्टी वाली रात वहां क्या हुआ था, कैसे कोई उतने लोगों के बीच ऊपर जाकर कोमल भाटिया की हत्या करने में कामयाब हो गया? या कैसे हुआ हो सकता है?”
“तुम्हारे पहले सवाल का जवाब बहुत आसान है।”
“क्या?”
“तुम वहां कई बार जा चुकी हो इसलिए देखा ही होगा कि सीढ़ियों की रेलिंग कंक्रीट की बनी हुई है, और कम से कम भी चार फीट ऊंची तो जरूर होगी। जहां पहुंचकर हत्यारे ने ऊपर का सफर थोड़ा झुककर पूरा कर लिया हो तो जाहिर है उसे वैसा करते कोई नहीं देख सकता था। कहने का मतलब ये है कि सावधानी बस उसे सीढ़ियों की ओट में पहुंचने तक बरतनी थी, जो पार्टी में मौजूद मेहमानों की आंख बचाकर कर गुजरना कोई बड़ी बात नहीं थी।”
“या वह था ही पार्टी के मेहमानों में से कोई एक?”
“हां ये भी हो सकता है, लेकिन सच यही है कि मुझे उस बात की कोई खबर नहीं है, होती तो मैं भला चुप क्यों रह जाता, जबकि लवलेश के साथ मेरी सालों पुरानी दोस्ती है।”
“आपने कुछ नोट किया था मैडम?” उसने सुकन्या से पूछा।
“नहीं मैंने ध्यान नहीं दिया, ना ही मुझे ये लगता है कि कातिल वहां इंवाईटेड था। भला कोमल का कत्ल कर के डॉक्टर साहब के किसी दोस्त को क्या हासिल होना था?”
“सुना है अमन सिंह नशे में धुत्त होकर हर वक्त सोफे पर ही पड़े रहे थे।”
“हर वक्त तो नहीं कह सकते, क्योंकि बीच में दो तीन बार सोफे से उठता तो बराबर नजर आया था, हां कहीं आता जाता नहीं दिखाई दिया था।”
“ये पक्का है कि वह एक बार भी पार्टी वाली जगह से दूर नहीं गये थे?”
“लगता तो यही है, लेकिन गारंटी नहीं कर सकता मैं।”
“क्योंकि यार की पार्टी में - सुकन्या बोली - ये खुद भी बहुत पी गया था।”
“अब इतनी भी नहीं पी थी, कार चलाकर घर आया था या नहीं मैं?”
“आये थे, लेकिन इसलिए सही सलामत आ गये क्योंकि रात का वक्त होने के कारण रास्ते खाली थे, दिन होता तो पक्का अपनी और मेरी दोनों की जान ले ली होती।”
“क्यों बेईज्जती कर रही है यार?”
“बेईज्जती वाले काम करोगे तो क्या वाहवाही हासिल होगी?”
“अब बस भी कर।”
“ये इतना नशे में था अलीशा कि वॉशरूम जाने के लिए एक बार किचन में जा घुसा था।”
सुनकर वह बड़े ही शिष्ट भाव से हंसी फिर बोली, “कोई दूसरा जो साढ़े दस के बाद कुछ देर के लिए ही सही पार्टी में न दिखाई दिया हो आप दोनों को?”
“बात ये है यार कि वहां बॉथरूम सीढ़ियों के दूसरी तरफ बना हुआ था - सुकन्या ने बताया - जहां पहुंचकर कौन ऊपर चला गया, कौन बॉथरूम जाकर वापिस लौट आया, इतना ध्यान देने की किसे पड़ी थी? इसी तरह कातिल भी बाहर से बाउंड्री फांदकर घर में दाखिल होने के बाद ऊपर पहुंच गया हो तो मेरे ख्याल से तो किसी का भी ध्यान उस तरफ नहीं जाना था। हां याद आया, डॉक्टर साहब और मीनाक्षी भी कुछ देर के लिए गायब हो गये थे पार्टी से, वह भी कोमल के ऊपर जाने की ठीक बाद।”
“इस बात का कोई खास मतलब?”
“हां है।”
“अरे जाने दे न यार - सूरज चौधरी बोला - मैंने बताया तो था तुझे कि दोनों कहां गये थे। ऐसे में उसका जिक्र अलीशा के सामने करने से क्या हासिल हो जायेगा?”
“हासिल हो न हो, बताना जरूरी है।”
“मैं अपने दोस्त की निजी बातें शेयर नहीं होने दे सकता।”
“अगर आप ये छिपाने की कोशिश कर रहें हैं कि दोनों उस दौरान एक कमरे में चले गये थे, तो बेशक मत बताईये क्योंकि मुझे उस बारे में पहले से मालूम है।”
“कैसे जाना?”
“डॉक्टर साहब ने ही बताया था।”
“कमाल है।”
“नहीं कोई कमाल नहीं है, क्योंकि डिटेक्टिव डॉक्टर की तरह होता है, जिससे मर्ज छिपाकर सही निदान हासिल नहीं किया जा सकता। ये बात वह बहुत अच्छे से समझते हैं, इसलिए मुझसे कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं की।”
“ओह, फिर तो हमारे पास बताने लायक कुछ नहीं है।”
“जबकि आप उस परिवार के सबसे करीबी लोगों में से हैं।”
“लवलेश के, ना कि कोमल का करीबी था मैं।”
“होता तो तुम्हारे सामने जिंदा बैठा नहीं दिख रहा होता।” सुकन्या बोली।
“मतलब?”
“अरे ये कोमल का करीबी होता तो क्या मैं इसे जिंदा छोड़ देती?”
“ओह, ओह, अब समझी।”
“वैसे सच यही है कि हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकते, सवाल बेशक पहली बार पूछे जा रहे हैं, लेकिन डिस्कस हम रोज ही कर लेते हैं कोमल की मौत पर, मगर पल्ले कुछ नहीं पड़ता।”
“वही सही, लेकिन दोस्तों को एक दूसरे की हर बात पता होती है। ऐसे में डॉक्टर साहब की किसी रंजिश की जानकारी तो होनी ही चाहिए आप लोगों को।”
“दुश्मन तो आजकल बस एक ही है उसका।” चौधरी बोला।
“एमएलए चरण सिंह?”
“वही, और मुझे या डॉक्टर दोनों को यही लगता है कि कोमल का कत्ल उसी के इशारे पर किया गया है। अफसोस कि साबित होता नहीं दिखाई दे रहा क्योंकि हर तरफ अंधेरगर्दी मची हुई है। पुलिस नेता का हुक्का भरती है, उसे सलाम ठोंककर खुद को धन्य समझ लेती है, ऐसे में किसकी मजाल है जो उसके खिलाफ कार्रवाई कर सके।”
“अगर कोमल का कत्ल नेता के इशारे पर किया गया था सूरज साहब, तो सवाल ये है कि हत्यारे ने मीनाक्षी को क्यों खत्म करा दिया? उससे या अमन सिंह से तो कोई दुश्मनी नहीं थी विधायक की।”
“तुम्हें क्या पता की नहीं थी, इस बात की भी गारंटी कैसे कर सकती हो कि दोनों का कातिल एक ही है?”
“लगता तो एक ही है।”
“क्योंकि दोनों की हत्या का पैर्टन सेम है?”
“हां यही वजह है।”
“अगर ऐसा है तो समझ लो और कुछ नहीं जानते हम।”
“आप क्या कहती हैं सुकन्या जी?”
“मैं तो उतना भी नहीं जानती जितना सूरज को मालूम हो सकता है, इसलिए मुझसे सवाल करना ही बेकार होगा। हां इतना फिर कहूंगी कि केस सॉल्व करना चाहती हो तो मेहमानों की तरफ से ध्यान हटाकर किसी और की तरफ देखो, क्योंकि मेहमानो में सब दोस्त थे, जो कोमल के साथ उतनी घटिया हरकत करने के बारे में सोच भी नहीं सकते।”
“कल रात आप डॉक्टर भाटिया के नर्सिंग होम किसलिए गये थे सूरज साहब?” अलीशा ने अंधेरे में तीर चलाया।
जैसा कि सब इंस्पेक्टर शुक्ला उसे पहले ही बता चुका था, सूरज चौधरी की हाईट पौने छह फीट से ज्यादा नहीं थी, और पतला दुबला भी वह बराबर दिखाई देता था। हालांकि उस मामले में भी वही बात लागू होती थी कि कातिल अगर वह होता तो डॉक्टर को फोन करने की हिमाकत हरगिज भी नहीं करता, क्योंकि आवाज पहचान लिये जाने का खतरा था।
मगर सवाल करने में उसका क्या जाता था।
“कौन कहता है कि मैं गया था?”
“कहता है कोई, नहीं गये थे तो मना कर दीजिए।”
“नहीं मैं नर्सिंग होम में नहीं गया था, हां उसके सामने से गुजरा बराबर था।”
“कितने बजे?” अलीशा उत्सुक हो उठी।
“साढ़े नौ या पौने दस का वक्त हो रहा होगा - कहकर उसने अपनी बीवी से पूछा - कल घर कितने बजे आया था मैं?”
“दस बजे।”
“फिर तो पौने दस बजे ही उधर से निकला होऊंगा।”
“जाने की कोई खास वजह?”
“ऑफिस से लौट रहा था, नर्सिंग होम मेरे रास्ते में पड़ता है।”
“करते क्या हैं आप?”
“दवाईयों की एक कंपनी में कैमिस्ट हूं।”
“यहीं फरीदाबाद में?”
“नहीं, नोएडा में।”
“ठीक है सूरज साहब, अब चलती हूं मैं। वक्त देने के लिए आप दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद।” कहकर वह उठी और वहां से बाहर निकल गयी।
चरण सिंह उस वक्त अपने घर के दूसरे हिस्से में बने उस हॉलनुमा कमरे में बैठा था, जहां ओमकार ने मुकुल देसाई के साथ मारपीट की थी। कमरे में उन दोनों के अलावा जल्ली और निन्नी भी मौजूद थे, जो हाथ बांधे उनसे थोड़ी दूरी बनाकर खड़े थे, जबकि ओमकार विधायक के सामने बैठा हुआ था।
“हमारे कैदी ठीक हैं?” नेता ने पूछा।
“जी हां।”
“और कोई हलचल?”
“नहीं, सब अंडर कंट्रोल है। थोड़ी देर पहले क्राईम ब्रांच से हमारे सोर्स का फोन आया था, उसने बताया कि पुलिस का पूरा ध्यान मथुरा पर टिका हुआ है। और निगम को खोजने की कोशिश भी उधर के इलाकों में ही की जा रही है।”
“फिरौती मांगने वाला था, उसका क्या हुआ?”
“उसकी बीवी के कहे मुताबिक पैसों का इंतजाम हो चुका है। पूछ रही थी कि कहां पहुंचाना है। जवाब में उससे बोल दिया गया है कि अभी पुलिस बहुत ज्यादा एक्टिव है इसलिए उसे इंतजार करना होगा।”
“हैरानी है कि एक करोड़ की रकम यूं आनन फानन में इकट्ठा कर दिखाया उसने, जबकि हम दोनों को ही उस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी।”
“मुझे तो अभी भी कोई उम्मीद नहीं दिखती भाई, इसलिए लगता यही है कि उसने जो कहा, पुलिस के कहने पर कहा था, ना कि सच में एक करोड़ इकट्ठे किये बैठी है।”
“कांटेक्ट कैसे किया?”
“निगम के मोबाईल से।”
“कहीं लोकेशन न निकलवा लें।”
“वह तो बराबर निकलवायेंगे, बल्कि अब तक तो निकलवा भी चुके होंगें। मगर उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह कॉल वृंदावन से हमारे एक आदमी ने की थी, और करने के साथ ही उसने वह इलाका छोड़ भी दिया था। अब पुलिस लगी रहे वहां निगम की तलाश में, हम तक तो क्या पहुंच पायेगी।”
“दिमाग कमाल का पाया है तूने ओमकार।”
“थैंक यू भाई।”
“एक काम और कर।”
“क्या?”
“दो लोगों को डॉक्टर की निगरानी पर लगा दे।”
“समझ लीजिए लगा दिया, लेकिन हासिल क्या होने की उम्मीद कर रहे हैं आप?”
“देखें तो सही कि खट्टर की भेजी लड़की अभी भी उसके आस-पास मौजूद है या नहीं है। अगर हुई तो हम मान लेंगे कि खट्टर उसे बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। ना हुई तो उसका मतलब होगा कि वक्ती आश्वासन के तौर पर उसे डॉक्टर के पास भेज दिया था, ना कि वह उसे बचाने की कसम खाये बैठा है।”
“ठीक है, मैं करता हूं इंतजाम।”
“बढ़िया करेगा।”
सुनकर ओमकार ने वहां खड़े जल्ली और निन्नी को अपने पास बुलाया और उस बारे में समझाने के बाद बोला, “होशियार आदमियों को काम पर लगाना।”
“हम दोनों ही क्यों न चले जायें भाई?” जल्ली ने पूछा।
“नहीं तुम दोनों को आज शाम एक खास काम को अंजाम देना है, इसलिए किसी और को भेजो।”
“ठीक है भाई - कहकर दोनों कमरे से बाहर निकल गये, फिर जल्ली उल्टे पांव वापिस लौटा और बोला - डीसीपी साहब आये हैं।”
“अरे तो अंदर भेज, बाहर क्यों खड़ा कर रखा है?”
सुनकर जल्दी वहां से चला गया, उसके जाते ही डीसीपी भीतर दाखिल हुआ और नेता के इशारे पर ओमकार के बगल में बैठ गया।
“कैसे आना हुआ भगतराम?”
“बस आपके दर्शन करने चला आया।”
“खामख्वाह तकलीफ की, फोन पर ही कह देते, तब हम अपनी एक अच्छी सी तस्वीर खिंचवाकर तुम्हें व्हॉट्सअप कर देते।”
सुनकर वह हंस पड़ा।
“अब बताओ क्या बात है?”
“सीधा सीधा पूछ लूं सर, या घुमा फिराकर पूछूं?”
“घुमा फिराकर पूछो, सीधी बातें साली कलेजे में नश्तर की तरफ चुभ जाती हैं।”
“इतनी बड़ी बात नहीं है सर।”
“तो फिर चॉयस क्यों मांग रहे हो, बोलो क्या बात है?”
“डॉक्टर लवेलेश भाटिया को तो आप जानते ही होंगे?”
“नहीं मैं नहीं जानता, कौन है?”
“37 के इलाके में भाटिया नर्सिंग होम के नाम से एक अस्पताल चलाता है।”
“जरूर चलाता होगा, क्यों पूछ रहे हो?”
“14 तारीख की रात उसकी वाईफ का मर्डर कर दिया गया था।”
“ओह बुरा हुआ, किसने किया?”
“नहीं जानता, लेकिन डॉक्टर बार बार...।”
“क्या बार बार?”
“आपका नाम ले रहा है।”
“सठिया गया है बुढ़ापे में।”
“जवान है सर, मुश्किल से 35 का होगा।”
“ओमकार।”
“जी भाई?”
“सठियाने की उम्र कहीं घटकर 35 पर तो नहीं पहुंच गयी है?”
“न्यूज में तो ऐसा कुछ आया नहीं भाई।”
“ओह, फिर तो भला चंगा ही होगा - कहकर उसने डीसीपी की तरफ देखा - नाम क्या था उसकी वाईफ का?”
“कोमल भाटिया।”
“कोमल भाटिया - उसने दोहराया, फिर बोला - अच्छा नाम है। अब तुम हमें इस बात का जवाब दो डीसीपी कि हम कोमल भाटिया का मर्डर क्यों करवायेंगे, हम क्या तुम्हें कातिल दिखते हैं, गुंडे बदमाश दिखाई देते हैं?”
“मेरा वह मतलब नहीं था सर।” डीसीपी थोड़ा हड़बड़ाकर बोला।
“जबकि हमें सरासर वही लगा था।”
“गलत लगा था सर, मैं भला ऐसा कह सकता हूं।”
सुनकर नेता ने जोर का ठहाका लगाया, फिर बोला, “अरे हम मजाक कर रहे हैं यार, अब थोड़ा मुस्कराओ, और इन खामख्वाह की अफवाहों पर अपना दिमाग मत खपाया करो, समझ गये?”
“जी सर, समझ गया।”
“अब बोलो क्या खातिरदारी करें तुम्हारी।”
“आपने कह दिया सर इतना ही काफी है।”
“क्यों जूता मार रहे हो यार - कहकर उसने ओमकार की तरफ देखा - जाकर साहब के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम कर भई, यहां बैठकर हमारी बातें क्यों सुन रहा है।”
“सॉरी भाई।” वह हड़बड़ाया सा बोला और उठकर तुरंत कमरे से बाहर निकल गया।
सैक्टर 16 के इलाके में, मथुरा रोड से अंदर की तरफ जाते रास्ते पर राशिद शेख का खूब बड़ा मोटर वर्कशॉप था, जहां गाड़ियों की मरम्मत से लेकर उनकी डेंटिंग पेंटिंग तक का सारा काम किया जाता था।
चार बजे के करीब अलीशा वहां पहुंची तो दर्जनों लोग काम करते दिखाई दिये। कोई किसी गाड़ी की धुलाई में जुटा था तो कोई मरम्मत में, ठोंकने पीटने की आवाजें भी बराबर आ रही थीं। मतलब की खूब शोर शराबा था वहां।
अंदर पहुंचकर एक लड़के से उसने राशिद शेख के बारे में सवाल किया तो उसने उंगली उठाकर सामने बने शीशे के केबिन की तरफ इशारा कर दिया।
अलीशा ने वहां पहुंचकर हौले से दरवाजा नॉक किया और भीतर की तरफ धकेलती हुई अंदर दाखिल हो गयी। तब तक राशिद शेख उसके स्वागत में उठ खड़ा हुआ था।
वह पैंतीस साल का लंबे कद वाला युवक था जो उस वक्त जींस और जैकेट पहने हुए था। शक्लो सूरत अच्छी थी, क्लीन शेव्ड था और बाल भी काफी छोटे रखे था।
“अलीशा जी, है न?” उसने पूछा।
“जी हां।”
“तशरीफ रखिये।”
“थैंक यू।” कहते हुए वह एक कुर्सी पर बैठ गयी। डोर क्लोजर लगा होने के कारण दरवाजा अपने आप चौखट से जा लगा, और उसी के साथ बाहर का शोर अंदर पहुंचना भी बंद हो गया।
शेख ने फोन कर के किसी को दो चाय भेजने के लिए कहा फिर अलीशा से पूछा, “कहिये मैडम, क्या खिदमत कर सकता हूं आपकी?”
“जब आप मेरा नाम जानते हैं, तो काम भी जानते ही होंगे।”
“डिटेक्टिव हैं, नूरी ने बताया था।”
“थैंक यू, मैं कोमल भाटिया और मीनाक्षी सिंह की हत्या के संदर्भ में चंद सवाल करने के लिए यहां हाजिर हुई हूं, मगर ज्यादा वक्त नहीं लूंगी आपका।”
“चाहे जितना वक्त ले लीजिए, बताईये क्या जानना चाहती हैं?”
“सबसे पहले तो यही बताईये कि क्या 14 तारीख की पार्टी में कोई भी खास बात नोट की थी आपने, ऐसी बात जो आम न हो, या जिसकी तरफ खास ध्यान गया हो आपका?”
“ऐसा कुछ याद तो नहीं आ रहा मैडम।”
“किसी को ऊपर जाते देखा हो, आखिर एक बार आप भी तो गये थे?”
“नहीं मैं ऊपर नहीं गया था, हां गलती से सीढ़ियों के दो स्टेप जरूर चढ़ गया था, क्योंकि मुझे नहीं मालूम था कि वहां वॉशरूम किधर था। मगर दो कदम सीढ़ियां पर बढ़ाते ही ठिठक भी गया, ये सोचकर कि घर में नीचे भी तो लोग रहते थे, फिर वॉशरूम ऊपर क्यों होगा, होगा भी तो दूसरा तीसरा होगा। जिसके बाद मैंने चिल्लाकर पूछा कि बॉथरूम किधर था तो नूरी ने बताया कि वह ऊपर नहीं था बल्कि सीढ़ियों के उस पार था। फिर मैं नीचे उतर आया था।”
“बाद में, कोमल के ऊपर जाने के बाद कोई और भी सीढ़ियां चढ़ता दिखा था?”
“मीनाक्षी भाभी और स्वराज उधर दिखे बराबर थे, लेकिन सीढ़ियों पर नहीं, मेरे ख्याल से तो वॉशरूम से ही लौट रहे थे।”
“एक साथ?”
“नहीं अलग अलग।”
“कत्ल किसने किया होगा राशिद साहब, कोई अंदाजा?”
“नहीं है, लेकिन कोई खास जानकारी अगर आपने खोज निकाली हो, और उस बारे में मुझे बताने से आपको कोई ऐतराज न हो, तो उसके बाद मैं शायद आपकी कोई मदद कर पाऊं।”
“मैं समझी नहीं, कैसी खास जानकारी?”
“कोमल और लवलेश के बारे में?”
“अगर आपका इशारा दोनों के अफेयर के बारे में है, तो हां मैं जानती हूं।”
“उसी तरफ था, थैंक यू। आपको नहीं मालूम होता तो मैं उस बारे में बात नहीं करता, क्योंकि सवाल दोस्ती का है। लेकिन आप जानती हैं, इसलिए अपना शक जाहिर करने में मुझे कोई हर्ज नहीं है।
“कीजिए।”
“मेरे ख्याल से कातिल साहिल नाम का वह लड़का रहा हो सकता है, जिसका कोमल के साथ अफेयर चल रहा था। वह कोमल पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था जिसके लिए वह तैयार नहीं हो रही थी, ऐसे में गुस्से में आकर उसने उसका कत्ल कर दिया हो तो क्या बड़ी बात है।”
“आपको कैसे पता कि साहिल कोमल पर शादी के लिए दबाव बना रहा था?”
“बहुत सारी बातों का मिला जुला नतीजा मान लीजिए। जब से लवलेश को अपनी बीवी और साहिल के संबंधों की खबर लगी थी, दोनों में अक्सर कहा सुनी हो जाया करती थी। ऐसे में एक रोज जब डॉक्टर ने उससे कहा कि अगर साहिल से उसे इतनी ही मोहब्बत है तो उससे कह क्यों नहीं देती कि ब्याह कर ले। जवाब में उसने कहा था कि साहिल तो मरा जा रहा था, मगर उसे ही मंजूर नहीं थी वह बात। इसी तरह मुक्ता के जरिये मेरी वाईफ नूरी के कानों तक ये बात पहुंची थी कि मीनाक्षी भी डॉक्टर पर शादी करने के लिए दबाव बना रही थी, और वह बात उसे खुद कोमल ने बताई थी। उसे ये भी शक था कि अमन सिंह को सब पता लग चुका था, क्यों शक था ये बात तो बस मुक्ता ही बता सकती है आपको। अब इस तरह से देखेंगी तो दोनों हत्यायों की असल वजह दो लोगों के अवैध ताल्लुकात ही मालूम पड़ते हैं। साहिल ने कोमल को क्यों खत्म कर दिया हो सकता है वह मैं पहले ही बता चुका हूं, और अमन सिंह ने इसलिए किया हो सकता है क्योंकि वह बदला लेना चाहता था। अपनी बीवी और डॉक्टर के संबंधों का।”
“तो सीधा डॉक्टर से ही क्यों नहीं ले लिया?”
“ये एक मुश्किल सवाल है, जिसका जवाब मेरे पास नहीं है।”
“असल समस्या भी यही राशिद साहब। साहिल के पास कोमल को मारने की छोटी सी ही सही वजह मौजूद थी, लेकिन मीनाक्षी का कत्ल करने की उसे कोई जरूरत नहीं थी। इसी तरह अमन सिंह के पास मीनाक्षी को खत्म करने की वजह तो थी लेकिन कोमल के कत्ल की नहीं थी।”
“फिर तो कोई तीसरा ही है जो खेल खेल गया।”
“कौन?”
“आपकी बातों से तो सीधा शक लवलेश पर ही जा रहा है मैडम, मगर मैं ये हरगिज भी नहीं मान सकता कि वह किसी की जान भी ले सकता है।”
“नहीं ली होगी, लेकिन शक क्यों जा रहा है?”
“कोमल को उसने साहिल के साथ अफेयर की सजा दी, जबकि मीनाक्षी को इसलिए खत्म कर दिया क्योंकि वह उसके नाम की घंटी अपने गले में बांधने को तैयार नहीं था।”
“बात तो बहुत मार्के की कही राशिद साहब।”
“मगर गलत कही है, नहीं लवलेश किसी की हत्या नहीं कर सकता।”
“और आप?”
“मेरा मिजाज थोड़ा जुदा किस्म का है मैडम, गुस्सा भी बहुत जल्दी आ जाता है, इसलिए डॉक्टर जैसी स्थिति में होता तो कब का कोमल भाभी को खत्म कर चुका होता, ना कि इंतजार करता। इसी तरह मीनाक्षी अगर शादी का दबाव डालने से बाज आ जाती तो ठीक, वरना उसे भी निबटा देता। मगर सच यही है कि मेरा किसी के कत्ल से कोई लेना देना नहीं है, ढूंढे से भी कोई वजह आपको नहीं मिलेगी।”
“लेकिन जरूरत पड़ने पर किसी की जान बराबर ले सकते हैं?”
“कभी ली नहीं है इसलिए गारंटी नहीं कर सकता, मगर लगता मुझे यही है कि सवाल आन बान का हो, तो मैं किसी को पल भर के लिए भी नहीं बख्शने वाला, बाद में चाहे मेरा अंजाम कितना भी बुरा क्यों न हो जाये।”
“आपकी साफगोई पसंद आई राशिद साहब, अब मेहरबानी कर के किसी तीसरे शख्स के बारे में सोचिये, जो कातिल हो सकता है, क्योंकि डॉक्टर साहब को हत्यारा मानकर तो मुझे केस से हाथ पीछे खींचना पड़ जायेगा, भला अपने क्लाइंट को सजा होते कैसे देख सकती हूं मैं।”
“यानि कानून का कोई लिहाज नहीं है आपको?” वह हंसता हुआ बोला।
“अपने क्लाइंट के आगे किसी का लिहाज नहीं करती मैं।”
“फिर तो मैं और आप काफी हद तक एक जैसे ही हैं - कहने के बाद वह कुछ देर के लिए खामोश रह गया, फिर बोला - नहीं, हत्या अगर साहिल, अमन या लवलेश ने नहीं की है, तो मैं नहीं जानता कि किसने की।”
तभी एक लड़का वहां चाय के दो कप रखकर वापिस लौट गया।
“कल रात नौ से दस के बीच आप कहां थे राशिद साहब?”
“चाय लीजिए - वह एक कप अलीशा की तरफ खिसकाता हुआ बोला - साढ़े आठ बजे तक तो मैं यहीं था, उसके बाद अपने घर में था। वैसे भी सर्दी बहुत ज्यादा पड़ रही है, इसलिए वर्कशॉप बंद करने के बाद मैं सीधा घर पहुंचकर रजाई में दुबकना ही पसंद करता हूं। चाय और खाना पीना भी, सब बिस्तर में ही होता है मेरा।”
“किसी भी वजह से नौ बजे के आस-पास आप डॉक्टर साहब के नर्सिंग होम गये थे?”
“नहीं गया था।”
“अमन सिंह के घर के सामने से गुजरे हों?”
“नहीं, मैं तो दिन में भी बस एक बार ही वहां गया हूं, वह भी छह सात महीने पुरानी बात होगी। और सौ बातों की एक बात ये मैडम कि मेरे पास कोमल या मीनाक्षी के कत्ल की कोई वजह नहीं थी।”
“आप कहते हैं तो जरूर नहीं ही रही होगी, लेकिन क्या करूं, सवाल करने ही पड़ते हैं, शक भी करना पड़ता है हर किसी पर, तब तक तो यकीनन जब तक कि मेरा दिल सामने वाले को इनोसेंट नहीं मान लेता।”
“जी भरकर कीजिए, अगर अपना वक्त जाया करना चाहती हैं। मुझे उससे भला क्या फर्क पड़ने वाला है?”
“कोई और बात जो आप मुझे बताना चाहें?”
“याद तो नहीं आ रही, मगर दिमाग जरूर दौड़ाऊंगा, और कुछ समझ में आ गया तो आपको इत्तिला भी कर दूंगा।”
“क्या आपकी वाईफ को कुछ पता हो सकता है?”
“हैरानी की बात है, उससे मिल चुका होने के बावजूद आप ऐसा सवाल कर रही हैं।”
“हां, इसलिए कर रही हूं क्योंकि कई बार लोग कुछ खास जानकारियां दबा ले जाते हैं। मगर मैडम आपसे थोड़े ही छिपायेंगी, इसलिए रिक्वेस्ट है कि घर जाकर एक बार इस पूरे मामले पर उनके साथ डिस्कस जरूर कीजिएगा, क्या पता कुछ याद आ ही जाये उन्हें।”
“ठीक है मैं बात करूंगा नूरी से।”
तत्पश्चात अलीशा ने पूरी खामोशी के साथ चाय खत्म की और राशिद शेख को धन्यवाद देकर वहां से निकल गयी। उसी शाम वह पार्टी के आखिरी मेहमान त्रिपाठी से मिल ली, मगर हासिल कुछ नहीं हुआ। पता नहीं हर कोई जानबूझकर खामोशी अख्तियार किये हुए था, या वाकई में सब अंधे हो गये थे।
त्रिपाठी के घर से निकलकर वह कार में सवार हुई ही थी कि बरबस ही उसका ध्यान निन्नी की तरफ चला गया। फिर थोड़ा और विचार किया तो उससे एक ढंग की मुलाकात जरूरी दिखाई देने लगी थी। ऐसी मुलाकात जिसमें वह अपने मनचाहे तरीके से उससे पूछताछ कर पाती।
डॉक्टर के सामने जल्ली का ये कहना कि कोमल का कत्ल निन्नी ने किया था, अलीशा को उलझाये दे रहा था। अगर कातिल निन्नी ही था तो वह दूसरे लोगों के साथ लाख सिर फोड़ लेती, क्या हासिल होता? इसलिए सबसे पहले इसी बात की कंफर्मेशन हासिल करना जरूरी था कि उसने कोमल को मारा था या नहीं।
जानकारी हासिल करने के लिए उसने गजानन को निन्नी के साथ दोस्ती गांठने कहा था, जो आसान काम तो नहीं था, लेकिन था वह उस्ताद आदमी। पहले भी इस तरह के कामों को सफलता पूर्वक अंजाम दे चुका था, इसलिए अलीशा को पूरी उम्मीद थी कि दो चार दिनों में ही सही वह निन्नी के मन का भेद उगलवाने में जरूर कामयाब हो जायेगा।
मगर थी वह अव्वल दर्जे की बेसब्री लड़की, इसलिए उसने इंतजार करने का फैसला रद्द कर दिया। ये सोचकर भी कर दिया कि डॉक्टर के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार अभी भी ज्यों की त्यों लटक रही थी। और वैसी नौबत आने से पहले जरूरी था कि वह अपराधी को खोज निकालती, आखिर धंधे में उसकी साख का सवाल था।
कुछ देर सोच विचार करने के बाद उसने गजानन का नंबर डॉयल किया और दूसरी तरफ से कॉल पिक किये जाने का इंतजार करने लगी।
दिन भर इधर-उधर भटकते रहने के बाद गजानन चौधरी शाम पांच बजे के करीब निशांत सिंह उर्फ निन्नी को लोकेट करने में कामयाब हो गया था, और तभी से लगातार उसके पीछे बना हुआ था।
अब वह किसी ऐसे मौके की फिराक में था जब निन्नी से अकेले में बात करने का वक्त हासिल हो जाता, जो कि होता नहीं दिख रहा था क्योंकि जल्ली और निन्नी का चोली दामन का साथ था। इस वक्त भी वह दोनों एक छोटे से रेस्टोरेंट में बैठे नूडल्स खाने में जुटे हुए थे। और गजानन बाहर खड़े उनके वहां से निकलने का इंतजार कर रहा था।
वह इंतजार पूरे तीस मिनट का साबित हुआ।
फिर दोनों बातें करते हुए बाहर आये और वहां खड़ी अपनी बोलरो में - जो असल में चरण सिंह के ऑनरशिप वाली गाड़ी थी - सवार होकर वहां से चल पड़े। गजानन बाईक पर था और हैल्मेट भी लगा रखा था, इसलिए उनके पीछे बने रहने में कोई समस्या आड़े नहीं आ रही थी।
मगर कुछ देर बाद ये देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया कि वह दोनों एक बार फिर से नेता के घर में जा घुसे थे। जहां से कब बाहर आयेंगे, निन्नी अकेले आयेगा या जल्ली भी उसके साथ होगा, अंदाजा लगा पाना मुश्किल था।
बंगले से थोड़ी दूरी पर एक लड़का फास्ट फूड की रेहड़ी लगाये चाऊमीन, मोमोज और बर्गर बेच रहा था। गजानन ने बाईक को उसके करीब ले जाकर खड़ा किया और एक प्लेट चाऊमीन ऑर्डर करते हुए अपनी निगाहें बंगले के इंट्रेंस पर टिका दीं।
भूख उसे जोरों से लगी थी, मगर वक्त गुजारी भी जरूरी थी इसलिए प्लेट खाली करने में उसने पूरे पंद्रह मिनट लगा दिये, फिर थोड़ी देर बाद एक बर्गर ऑर्डर कर दिया।
तब तक बंगले में कोई आवागमन नहीं हुआ था।
बर्गर को हलक से नीचे उतारने के बाद उसने पानी पिया, और करीब स्थित एक दुकान से रजनीगंधा का पाउच खरीदकर मुंह में झोंकने के बाद बाईक पर बैठकर इंतजार करने लगा।
ऐसा इंतजार जो पता नहीं कब तक चलने वाला था।
देखते ही देखते रात के आठ बज गये, मगर निन्नी बाहर निकलता नहीं दिखाई दिया। बल्कि तब तक कोई वहां से बाहर आया ही नहीं था। लेकिन आधे घंटे बाद - साढ़े आठ बजे के करीब - उसके मन की मुराद पूरी हो गयी। निन्नी अकेला बाहर पहुंचा और वहां खड़ी बोलरो में सवार हो गया।
गजानन ने बाईक स्टार्ट की और उसके पीछे चल पड़ने को तैयार हो गया। मगर अगले ही पल इंजन फिर से बंद कर देना पड़ा, क्योंकि निन्नी वहां से कहीं जाने की बजाये गाड़ी को भीतर बढ़ा ले गया।
‘साला पूरी रात यहीं तो नहीं गुजारने वाला था?’ सोचते हुए उसने मन ही मन फैसला किया कि एक घंटा और इंतजार करेगा, फिर भी निन्नी वहां से निकलता नहीं दिखा तो अलीशा को इंफॉर्म कर के अपने घर लौट जायेगा।
उसे इस बात पर भी हैरानी हो रही थी कि बंगले के बाहर कई गाड़ियां खड़ी थीं, हमेशा रहती थीं। ऐसे में बस एक बोलेरो को भीतर पहुंचाने का क्या मतलब बनता था। फिर वहां स्कॉर्पियो और फॉर्च्युनर जैसी गाड़ियां खड़ी थीं, जो बोलेरो की अपेक्षा नई जान पड़ती थीं, महंगी तो खैर थी हीं। मतलब ये नहीं हुआ हो सकता था कि गाड़ी को सुरक्षित रखने के लिए उसे भीतर पहुंचा दिया गया हो।
‘क्या माजरा था?’
‘क्या बोलेरो में कोई सामान लोड किया जा रहा था?’
अपना आखिरी विचार उसे जंच गया।
इस बार उसे लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा।
मुश्किल से पंद्रह मिनट बाद बोलेरो बाहर निकली, और उसकी आंखों के सामने से होकर बाईं तरफ को बढ़ती चली गयी। आगे बैठे जल्ली और निन्नी की एक झलक भी उसे साफ दिखाई दे गयी। मगर बस वो दोनों ही नहीं सवार थे, कई और लोग भी थे, जिसके कारण गाड़ी खचाखच भरी दिखाई दे रही थी।
उसने बाईक स्टार्ट कर के बोलेरो के पीछे लगा दिया, हालांकि अब निन्नी से एकांत में किसी मुलाकात की उम्मीद उसे कम ही नजर आ रही थी।
साफ जाहिर हो रहा था कि वे लोग किसी खास काम को अंजाम देने के लिए निकले थे, जहां से वापिस कब लौटते कहना मुश्किल था। किसी लंबे सफर के लिए रवाना हुए थे तो गजानन के लिए उनका पीछा करते रह पाना भी संभव नहीं हो पाता।
आखिरकार उसने यही फैसला किया कि वह बड़ी हद बल्लभगढ़ तक उनके पीछे जायेगा, फिर भी रुकते नहीं दिखाई दिये या मथुरा रोड की तरफ बढ़ गये, तो वापिस लौट जायेगा।
औसत रफ्तार से दौड़ती बोलेरो जैसे ही फरीदाबाद बाईपास रोड पर पहुंची, उसकी रफ्तार बढ़ गयी। मगर वह बढ़ी हुई रफ्तार भी पैंतीस चालीस से ज्यादा नहीं थी, इसलिए कोई समस्या अभी तक गजानन के आड़े नहीं आई थी।
फिर वह अच्छी तरह से जानता था कि उस सड़क पर चाहकर भी वे लोग चालीस पैंतालिस से ज्यादा की रफ्तार में ड्राईविंग नहीं कर सकते थे, क्योंकि एफएनजी एक्सप्रेस वे का निर्माण कार्य चल रहा था, जिसके कारण जगह जगह सड़क की हालत खराब थी, और कुछ जगहों पर रास्ता डाईवर्ट भी कर दिया गया था।
ये अलग बात थी कि बोलेरो ने बल्लभगढ़ पहुंचने से पहले ही रास्ता बदल दिया। अब वे लोग पाली गांव की तरफ जा रहे थे, जो नेता के बंगले से करीब 17 किलोमीटर की दूरी पर था।
वह सफर चालीस मिनट में पूरा हुआ।
पाली में दाखिल होकर बोलेरो एक ऐसे मकान के सामने जा खड़ी हुई जिसका बस ग्राउंड फ्लोर ही बना हुआ था। भीतर का कंस्ट्रक्शन वहां लगे लोहे के करीब दस फीट ऊंचे और सपाट फाटक को छोड़कर दायें हिस्से में किया गया था, और गेट के सामने का एरिया फ्रंट से बैक तक खाली पड़ा था।
बोलेरो से उतरकर एक लड़के ने दरवाजा खटखटाया, जिसके थोड़ी देर बाद किसी ने अंदर से उसे खोलते हुए दोनों पल्लों को दायें बायें फैला दिया।
निन्नी गाड़ी को अंदर बढ़ा ले गया, जिसके तुरंत बाद दरवाजा बंद कर दिया गया।
गजानन इंतजार करने लगा।
दस मिनट बाद फाटक फिर से खुला, बोलरो बाहर निकली और वापिस लौट चली। उस दौरान गजानन ने जो खास बात नोट की वह ये थी कि गाड़ी में पीछे की तरफ अब कोई नहीं बैठा था।
जल्ली और निन्नी महज कुछ लड़कों को वहां पहुंचाने आये हों, ये बात उसे हजम नहीं हो रही थी, क्योंकि जानता था नेता के कैम्प में ओमकार के बाद सबसे बड़ा दर्जा उन्हीं दोनों का था।
यानि असल माजरा कुछ और था। जिससे उसका कोई लेना देना नहीं बनता था, क्योंकि उसका काम तो निन्नी से कहीं मुलाकात करने और उससे जान पहचान बढ़ाने का था, जो कि अब होता नहीं दिख रहा था।
वापसी के सफर में उन्हें बस आधा घंटा लगा।
बोलेरो वापिस नेता के बंगले पर पहुंची, मगर इस बार गाड़ी को अंदर ले जाने की कोई कोशिश नहीं की गयी। फिर जल्ली नीचे उतरा और बंगले में चला गया, जाकर उल्टे पांव वापिस लौटा और निन्नी के बराबर में पैसेंजर सीट पर बैठ गया।
गाड़ी एक बार फिर चल पड़ी।
गजानन फिर उनके पीछे लग गया।
थोड़ी देर बाद बोलेरो सैक्टर पैंतीस के इलाके में स्थित कनिष्ठा टॉवर पहुंची, जहां इमारत के सामने जल्ली नीचे उतर गया, तो निन्नी ने गाड़ी को यू टर्न देकर वहां बन रहे फ्लाई ओवर के नीचे से राईट टर्न मारा और पल्ला पुलिया क्रॉस कर के थाने के सामने से गुजरता हुआ आगे को ड्राईव करता चला गया।
फिर उधर के डाक घर के सामने, मगर सड़क के दूसरी तरफ गाड़ी रोककर वह नीचे उतरा और गजानन के देखते ही देखते सामने वाले मकान का ताला खोलकर अंदर दाखिल हो गया, थोड़ी देर के लिए वहां प्रकाश भी दिखाई दिया, जिसके तुरंत बाद लाईटें बुझा दी गयीं।
मतलब अब वह कहीं नहीं जाने वाला था। और ऐन उसी वजह से गजानन की दिन भर की मेहनत पर पानी फिर गया था। क्योंकि उसके घर पहुंचकर तो उससे दोस्ती गांठने की कोशिश नहीं ही कर सकता था।
निराश भाव से उसने बाईक को यू टर्न दिया और अपने घर की दिशा में ड्राईव करने लगा, तभी उसका मोबाईल रिंग होना शुरू हो गया। उसने बाईक चलाते चलाते ही जेब से मोबाईल निकालकर एक नजर फ्लैश हो रहे नाम पर डाला, फिर अलीशा की कॉल देखकर, तुरंत अटैंड किया और मोबाईल को हेल्मेट में घुसेड़ लिया।
“गुड ईवनिंग अलीशा।”
“गुड ईवनिंग, बात बनी?”
“नहीं, बड़ी मुश्किल से पांच बजे के करीब मैं उसे खोज निकालने में कामयाब हुआ था, मगर आगे एक पल को भी वह अकेला नहीं दिखाई दिया, इसलिए बात नहीं बनी। और अभी अभी उसे उसके घर तक सही सलामत पहुंचाकर वापिस लौट रहा हूं।”
“चलो कम से कम उसका पता ठिकाना तो मालूम पड़ ही गया।”
“हां वो तो देख लिया, साथ में कुछ और भी दिखाई दिया था, जिसका कोई मतलब मेरी समझ में नहीं आ रहा।”
“क्या?”
जवाब में उसने पाली गांव तक के अप डाउन की कथा सुना दी।
“करने क्या गये होंगे सब वहां?”
“जरूर कोई खजाना छिपाने गये हों, वरना इतने आदमियों को साथ ले जाने की क्या जरूरत थी, फिर साथ गये लड़कों को वहीं उतार भी तो आये थे, इसलिए इतना तो तय है कि वहां इस वक्त कोई कीमती आईटम मौजूद है जिसकी रखवाली की जरूरत थी।”
“जाने दो, नेता के किसी खजाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।”
“अब मैं घर जा रहा हूं।”
“बेशक चले जाओ लेकिन एक काम फौरन करो।”
“क्या?”
“निन्नी का एड्रेस मुझे भेज दो।”
“तुम उससे मिलने वाली हो?”
“हां।”
“मैं साथ चलूं?”
“नहीं मैं संभाल लूंगी।”
“खतरनाक आदमी है।”
“डोंट वरी मैं उससे कहीं ज्यादा खतरनाक हूं।”
“एड्रेस तो मुझे नहीं मालूम, पता समझा सकता हूं।”
“बताओ।”
“बाईपास रोड की तरफ से जब तुम पल्ला थाना क्रॉस कर के सीधा आगे बढ़ोगी तो दाईं तरफ को डाकघर बना हुआ है, जो सड़क से दिखाई देना मुश्किल है क्योंकि वह एक ढाबे के ऊपर बहुत छोटे से कमरे में स्थित है, लेकिन उनका लाल रंग का लेटर बॉक्स पक्का नजर आ जायेगा।”
“ठीक है।”
“उसके सामने, सड़क के दूसरी तरफ एक बोलेरो खड़ी है जिसके रजिस्ट्रेशन नंबर के लॉस्ट फोर डिजिट हैं 8754, मेरे ख्याल से पहचान के लिए इतना काफी होगा।”
“मतलब बोलेरो दरवाजे के सामने खड़ी है?”
“हां, एकदम सामने, यूं कि दरवाजा उससे कवर हो गया हैं।”
“ठीक है थैंक यू।”
“वैसे मेरी सलाह अभी भी यही है कि अकेले मत जाओ।”
“सलाह तुम अपने पास रखो, बस इस बात की गारंटी कर दो कि घर में वह अकेला मिलने वाला है मुझे।”
“अकेला ही है, क्योंकि मेरी आंखों के सामने ताला खोलकर भीतर दाखिल हुआ था।”
“बढ़िया, अब तुम अपने घर जा सकते हो।” कहकर दूसरी तरफ से कॉल डिस्कनैक्ट कर दी गयी।
रात के ठीक ग्यारह बजे थे।
निशांत सिंह उर्फ निन्नी बिस्तर पर अधलेटी अवस्था में बैठकर ड्रिंक कर रहा था। बेड के करीब एक स्टूल रखा हुआ था, जिसपर व्हिस्की की एक आधी भरी बोतल, पानी का जग, गिलास और स्टील की प्लेट में रोस्टेड काजू रखे हुए थे।
कमरे में मद्दिम रोशनी वाला एलईडी बल्ब जल रहा था, जबकि बाकी हिस्सों की लाईट वह बुझा चुका था। शाम को उसने और जल्ली ने चाऊमीन की दो दो प्लेटें साफ कर दी थीं इसलिए पेट भरा हुआ था, मतलब डिनर की कोई जरूरत नहीं थी।
ड्रिंक उसने घर पहुंचते से साथ ही करना शुरू कर दिया था, इसलिए नशे में था, मगर पीना बंद नहीं कर दिया था, हां अपनी रफ्तार जरूर कम कर दी थी। रह रहकर गिलास से एक घूंट भरता, काजू के दो चार दाने मुंह में रखता और आराम से उन्हें चबा चुकने के बाद फिर से एक घूंट लगाये ले रहा था।
उसी दौरान दरवाजे पर दस्तक हुई।
“कौन है?” उसने लेटे लेटे उच्च स्वर में पूछा, क्योंकि वहां उससे मिलने बहुत कम लोग ही आया करते थे, उनमें से भी रेग्युलर बस जल्ली था, जिसे वह उसके फ्लैट पर छोड़कर आया था इसलिए वो तो नहीं ही हो सकता था।
दस्तक फिर से हुई।
“अरे कौन है? - कहता हुआ वह बेमन से बिस्तर से उठा और नंगे पांव, थोड़ा लड़खड़ाते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ गया, वहां पहुंचकर उसने फिर से सवाल किया - कौन है?”
“मैं हूं - एक फुसफुसाता सा जनाना स्वर उसके कानों में पड़ा - जल्दी से दरवाजा खोल निन्नी, वरना कहीं मम्मी ने देख लिया तो बवेला हो जायेगा।”
सुनकर उसे हैरानी सी हुई।
“अब खोलेगा या मैं लौट जाऊं?”
“चाहती क्या हो?”
“बेवकूफ गधा, इतनी रात को पड़ोस में रहती एक लड़की क्या चाहती होगी, इतना भी नहीं समझता तू? अब दरवाजा खोल या पड़ा रह सर्दी में अकेले, मैं लौट जाती हूं।”
निन्नी की समझ में ये तो नहीं आया कि बाहर कौन खड़ा था, मगर उसका इशारा उसने बखूबी कैच किया था, बस ये सोचने की कोशिश नहीं की कि वैसी कोई लड़की उसपर क्यों मेहरबान हो रही थी।
फिर सोचने की फुर्सत ही कहां थी।
एक तो आगंतुक कोई लड़की थी, दूसरे वह नशे में था और तीसरी बात ये थी कि किसी से डरना उसने नहीं सीखा था, इसलिए दरवाजा खोलने में उसने जरा भी वक्त जाया नहीं किया।
ये अलग बात थी कि सामने के नजारे ने उसे बौखलाकर रख दिया। लड़की बाद में दिखी, उसके हाथ में थमी गन पहले नजर आ गयी, फिर जैसे ही उसने आगंतुक की सूरत देखी और भी हड़बड़ा गया।
“कैसा है ब्रदर?” मुस्कराते हुए अलीशा ने उसे भीतर धकेला, फिर कमरे में दाखिल होकर पीछे मुड़े बिना दरवाजे को चौखट के साथ सटा दिया।
“तू यहां भी पहुंच गयी?” निन्नी बस हैरान था, ना कि खुद पर तनी रिवाल्वर को देखकर उसकी पतलून गीली हो गयी थी।
“क्या करूं यार, अपन लोगों का धंधा ही कुछ ऐसा है।”
“एड्रेस कैसे मिला?”
“वो क्या बड़ी बात थी, जल्ली के हलक में रिवाल्वर घुसेड़ने भर की देर थी, उसने सब बक दिया। अब इससे पहले कि तू ये पूछे कि जल्ली का पता कैसे हासिल कर पाई, मैं खुद बताये देती हूं कि वह जानकारी मैंने ओमकार सिंह की गर्दन मरोड़ने से पहले उसके मुंह से जबरन उगलवाई थी।”
“ज्यादा उड़ने की कोशिश मत कर। तेरी औकात नहीं है कि तू ओमकार भाई तक पहुंच सके, गर्दन मरोड़ना तो दूर की बात है।”
“अरे मैं सच कह रही हूं, बेचारा बहुत गिड़गिड़ा रहा था, जल्ली से कहीं ज्यादा गिड़गिड़ा रहा था, रहम की भीख भी मांग रहा था, मगर मैं रहम कैसे कर सकती थी निन्नी भाई, आखिर खट्टर साहब को मुंह भी तो दिखाना है कल को।”
“मैं जानता हूं तू झूठ बोल रही है।”
“जानता है तो जानता रह, किसे परवाह है?”
“क्यों आई है?”
“तेरे प्राण लेने आई हूं बेटा।”
“ऐसा इसलिए कह रही है क्योंकि अभी मेरे बारे में जानती नहीं है।”
सुनकर अलीशा ने जोर का ठहाका लगाया।
“दांत क्यों दिखा रही है?”
“ये सोचकर कि तू अभी कितनी बार मुझे बतायेगा कि तू कौन है, जबकि मैं तेरे बारे में सब जानती हूं, कहे तो तेरे अंडर गारमेंट का नाप भी बताये देती हूं।”
“बता।”
“क्या?”
“मेरे अंडर गारमेंट का नाप?”
“नब्बे नंबर की चड्ढी पहनता है तू।”
“गलत जवाब, 95 की पहनता हूं, इसलिए लंबी लंबी हांकना बंद कर, और यहां से दफा हो जा, समझ ले मौका दे रहा हूं तुझे, जिसे लपक लेगी तो बच जायेगी, वरना अभी के अभी मुंडी मरोड़ दूंगा तेरी।”
“बड़ा ख्याल है तुझे मेरा?”
“ख्याल नहीं है, बस ऑर्डर मिलने बाकी हैं तुझे खत्म करने के। इसलिए मौके का फायदा उठा और निकल ले यहां से। वैसे भी ओमकार भाई ने अगर तुझे ठिकाने लगाने को नहीं कहा है, तो ये भी नहीं कहा है कि जिंदा रखना है, क्या समझी?”
“ओमकार खुदा है?”
“नहीं चित्रगुप्त हैं ओमकार भाई, जिनके पास हर किसी के कर्मों का लेखा जोखा होता है। वो तय करते हैं कि किसकी बारी कब आनी है, क्या समझी?”
“फिर चरण सिंह तो यमराज हुआ, है न?”
“एकदम सही समझी।”
“और मैं भगवान शिव की रिप्रजेंटेटिव हूं, जिन्होंने सूर्य पुत्र यम को मृत्यु के बाद उनके भाई शनिदेव की रिक्वेस्ट पर फिर से जिंदा किया और मृत्यु का देवता बना दिया। इस हिसाब से तो तुम सबको मुझसे डरना चाहिए।”
“बकवास मत कर।”
“साले, नेता के भड़वे - वह शब्दों को चबाती हुई सी बोली - रिवाल्वर मेरे हाथ में है और धमकी तू दे रहा है? ज्यादा चढ़ गयी मालूम पड़ती है।”
“मैं नशे में नहीं हूं।”
“मैं चर्बी चढ़ने की बात कर रही हूं।”
“मुझपर गोली चलाने का अंजाम जानती है?”
“हां जानती हूं, नेता का एक टट्टू कम हो जायेगा, मगर उससे क्या फर्क पड़ता है? ओमकार तेरी जगह किसी और को रख लेगा। एक कम दिखेगा तो चार को रख लेगा, मतलब किसी को तेरे मरने जीने से कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“नाम क्या बताया था तूने अपना?”
“नहीं बताया था।”
“अब बता दे?”
“हवा हवाई, जो यहां बिजली गिराने आई है। चल अब मरने के लिए तैयार हो जा। हालांकि अफसोस तो बहुत होगा तेरे जैसे गबरू जवान मर्द की जान लेकर, लेकिन क्या करूं यार, धंधा है इसलिए करना पड़ेगा।”
“मेरी तेरी कोई दुश्मनी नहीं है।”
“है क्यों नहीं, वह तो तभी बन गयी थी जब डॉक्टर भाटिया ने खट्टर साहब के पास पहुंचकर अपनी जान बचाने की गुहार लगाई थी। मगर तू ठहरा मेरा बिरादरी भाई - भले ही हम दो कट्टर दुश्मनों के खेमे में हैं - इसलिए जान बचाने का एक मौका मैं तुझे दे सकती हूं।”
“कैसे देगी?”
“मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दे, बदले में मैं तुझे तेरी जान दे दूंगी।”
“कैसे सवाल?”
“जूते कितने नंबर के पहनता है कालिया?”
“अ..आठ।”
“सेक्स किया है कभी?”
“बहुत बार।”
“विद कंडोम या विदआउट कंडोम?”
“ये क्या सवाल हुआ?”
“हुआ, तू जवाब तो दे।”
“दोनों बातें हैं।”
“कोमल के कत्ल के वक्त इस्तेमाल किया था या नहीं?”
“ओह अब समझा।”
“अच्छा, समझ भी गया?”
“हां, तू यहां ये जानने आई है कि मैंने डॉक्टर की बीवी को मारा था या नहीं मारा था।”
“अले अले तू तो अक्लमंद भी है यार, अब इस अक्लमंदी को आगे भी जारी रखते हुए यहां के सौहार्दपूर्ण माहौल में बता दे कि कोमल की हत्या तूने क्यों की थी? अकेले की थी या उस वक्त जल्ली भी तेरे साथ था? ये भी बता कि रेप उसे खत्म करने के बाद किया था या पहले किया था।”
“क्यों जानना चाहती है?”
“मुन्ना, गन मेरे हाथ में है, इसलिए सवाल भी बस मैं ही करूंगी।”
“ये वाली गन, जो तू मुझपर ताने हुए है?”
“हां यही वाली।”
“मुझे तो नकली जान पड़ती है।”
“तो क्या करूं असली साबित करने के लिए तुझे गोली मार दूं? बोल कमीने यही चाहता है तू?”
“गोली चलेगी ही नहीं।”
“ऐसा?”
“हां, क्योंकि इसकी नाल में कुछ फंसा दिखाई दे रहा है मुझे, कहीं बैक फायर कर गयी तो मुझे मारने की कोशिश में अपनी जान गवां बैठेगी।”
अलीशा हंसी।
उसी वक्त उसके पीछे दरवाजे की तरफ देखता निन्नी जोर से बोला, “गोली नहीं चलाना जल्ली, मुझे ये जिंदा चाहिए।”
इस बार अलीशा ने जोर का अट्टहास किया, “कोशिश अच्छी थी मदारी के बंदर, लेकिन इस खेल में मैं तुझसे ज्यादा माहिर हूं। चाहे तो दो चार हथकंडे और अपना कर देख ले, तब तक मैं इंतजार कर लूंगी।”
“ठीक है फिर एक आखिरी कोशिश कर लेने दे, उसके बाद भी तू मेरे झांसे में नहीं फंसी तो जो कहेगी करूंगा, तेरे हर सवाल का जवाब दूंगा मैं।”
“कैसी कोशिश?”
“बताता हूं।” कहते हुए उसने अपने शरीर का भार बायें पैर पर डाला और पूरी ताकत से दायें पैर को अर्धचंद्राकर अंदाज में रिवाल्वर वाले हाथ पर चला दिया। अलीशा को उससे इतनी बड़ी हिमाकत की कतई उम्मीद नहीं थी, इसलिए धोखा खा गयी।
रिवाल्वर उसके हाथ से निकलकर दूर जा गिरी।
और इससे पहले कि वह संभल पाती, निन्नी ने उसकी गर्दन थामते हुए दायां पैर उसके पैरों में अड़ाकर जोर से पीछे धकेल दिया। अलीशा फर्श पर जा गिरी, हां इतना जरूर था कि अपने सिर को नीचे नहीं टकराने दिया।
मगर उससे क्या होता था?
निन्नी ने कस की एक लात उसके पेट में जमा दी। वह जोर से चींखी, फिर उठने की कोशिश कर ही रही थी कि उसने दोबारा एक लात जमा दी। इस बार सीधा उसके चेहरे को निशाना बनाया था, इसलिए अपनी खोपड़ी को फर्श से टकराने से वह नहीं रोक पाई।
“हरामजादी - वह गुर्राता हुआ बोला - बस नाम ही सुना है निन्नी का, ये नहीं जानती कि तेरे जैसियों को जाने कितनी बार अपनी टांगों के नीचे से गुजार चुका हूं।”
कहते हुए उसने फिर से लात चलाई, मगर इस बार अलीशा का पूरा ध्यान उसके पैरों पर ही था। उसने दोनों हाथों की हथेलियों पर उसका वह हमला रोका और दूसरी टांग पर एक जोर की ठोकर जमा दी।
निन्नी का बैलेंस बिगड़ा और वह उसके बगल में आ गिरा। बल्कि ऊपर ही आ गिरा होता अगर ठोकर मारने के साथ साथ उसने करवट न बदल ली होती।
तत्पश्चात बला की फुर्ती दिखाते हुए उसने लेटे ही लेटे निन्नी के चेहरे पर एक जोर का पंच जड़ा और बिजली जैसी तेजी से उठकर खड़ी हो गयी।
उतनी ही फुर्ती से निन्नी भी उठ चुका था।
अब दोनों आमने सामने थे।
फाईटिंग शुरू हो गयी।
कम से कम उस मामले में अलीशा निन्नी से कहीं ज्यादा माहिर थी। इसलिए उसके वार तो नाकाम कर ही रही थी, साथ ही यदा कदा उसपर हमला करने में भी कामयाब हुई जा रही थी।
और सौ बातों की एक बात ये कि निन्नी नशे में था।
उसी दौरान एक बार जब निन्नी का घूंसा उसके चेहरे की तरफ बढ़ा तो उसने दोनों पैरों को दायें बायें फैल जाने दिया। घूंसा उसके सिर के ऊपर से गुजर गया, जबकि अलीशा का चलाया गया मुक्का निन्नी की टांगों के जोड़ पर पड़ा।
पूरी ताकत से पड़ा।
वह हलाल होते बकरे की तरह डकारा और अपनी मर्दाना ज्वैलरी संभालता हुआ जोर-जोर से उसे गालियां देने लगा, उछलने लगा। तभी अलीशा ने उसे पूरी ताक से पीछे को धक्का दे दिया। फिर जैसे ही निन्नी नीचे गिरा अलीशा ने ताबड़तोड़ ढंग से उसकी धुनाई शुरू कर दी।
मिनट भर के भीतर उसने निन्नी को मार मार कर बेहाल कर दिया, जबकि वह तो पहले वाली घातक चोट से ही नहीं उबर पाया था। उसके दोनों हाथ अभी भी टांगों के जोड़ पर थे और वह लगातार चींखे जा रहा था।
अलीशा ने जब देखा कि वह उठने या हमला करने की स्थिति में नहीं रह गया था, तो जाकर फर्श पर दूर पड़ी अपनी रिवाल्वर उठा लाई और निन्नी के करीब उकड़ू बैठ गयी, फिर अपनी नाक से टपकता खून पोंछकर तरन्नुम में गाना गाने लगी, ‘जाने जिगर जानेमन, कैसी है तेरी अकड़, तूने न खोला जो मुंह, मार डालूंगी तुझको सनम, जाने जिगर..’ फिर एकदम से होंठ भींचती हुई गुर्राकर बोली, “चल बता मेरी आवाज कैसी है?”
“भांड़ जैसी है साली।”
“कमाल है, मेरी मां तो कहती थी कि मैं गाती हूं तो मेरी आवाज सुनकर उसे लता मंगेशकर की याद आ जाती है।”
“जरूर आ जाती होगी, ये सोचकर कि काश तेरी आवाज एक फीसदी भी उनका मुकाबला कर पाती। साली गाती है तो यूं लगता है जैसे कान फट जायेंगे।”
“बेइज्जती कर रहा जमूरे?” कहते हुए उसने बायें हाथ से उसकी नाक पकड़कर ऐंठ दी।
निन्नी जोर से चींखा, “मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं कमीनी।”
“साले पहले पकड़ तो ले, छोड़ने की बारी बाद में आयेगी। और क्या कहा था तूने, मेरे जैसी कितनों को अपनी टांगों के नीचे से गुजार चुका है? - बोलती हुई वह बड़े ही कुत्सित भाव से हंसी - बहन... अब जरा टटोलकर देख कि दोबारा वैसा कुछ करने के काबिल रह भी गया है या नहीं?”
“मैं तेरी बहुत बुरी गत बनाऊंगी लड़की।”
“पहले कराहना बंदकर, वरना धमकी का कोई असर नहीं होगा। धमकी हमेशा सख्त लहजे में दी जानी चाहिए। ऐसे लहजे में जो सामने वाले की पैंट गीली कर दे, जबकि अभी तो तू बस मिमियाता ही दिखाई दे रहा है, ‘मैं तेरी बहुत बुरी गत बनाऊंगी लड़की’ साली जिंदगी बचेगी या जायेगी, ये तो तुझे पता नहीं और मुझे धमका रहा है।” कहते हुए उसने पूरी बेरहमी के साथ रिवाल्वर की नाल को निन्नी की नाक पर दे मारा।
इस बार वह जिबह होते बकरे की तरह डकारा और कुछ कुछ उसी तरह छटपटाने भी लगा था।
“अरे क्यों बच्चों की तरह तड़प रहा है, कुछ तो मर्द बन के दिखा।”
“अभी बाजी तेरे हाथ में है, मगर जल्दी ही मेरे हाथों में होगी।”
“वो तो तब होगी न जब मैं तुझे जिंदा छोड़ूंगी, जो कि मैं नहीं छोड़ने वाली, अगर तूने पूरी ईमानदारी से मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया। इसलिए दुर्गति कराने से अच्छा है कि मेरी बात मान जा।”
“भाड़ में जा।”
“अरे क्यों नखरे दिखा रहा है यार, अच्छा चल मैं सॉरी बोलती हूं, अब तो गुस्सा थूक दे।”
“सॉरी की मां की...”
“अले अले, तेला मूड तो बहुत खराब जान पड़ता है, ठीक है एक चुटकला सुनाती हूं, बहुत मजेदार है सारा दर्द भूलकर हंसना शुरू कर देगा।”
“मुझे नहीं सुनना।”
“अरे सुन ले यार, क्योंकि चुटकला सुनने से हंसी आती है, मन का तनाव कम होता है, जिससे स्वस्थ शरीर और लंबी उम्र मिलती है। एकदम शिलाजीत जैसा असर करता है - कहकर उसने पूछा - खाया है कभी?”
“क्या?”
“साले ध्यान कहां है तेरा, मैं शिलाजीत के बारे में पूछ रही हूं।”
“बहुत पहले एक बार खाया था।”
“बस एक बार?”
“हां।”
“तभी इतना कमजोर है, रोज खाया कर।”
इस बार उसने जवाब में कुछ नहीं कहा।
“अब ध्यान से चुटकुला सुन, और सुनने के बाद मुझे तेरे चेहरे पर हंसी दिखाई देनी चाहिए, नहीं दिखी तो गोली चला दूंगी। फिर जाकर वही चुटकुला जल्ली को सुनाऊंगी, क्या समझा?”
“ठीक है सुना।” वह रो देने वाले अंदाज में बोला।
“बात तब की है जब विधायक चरण सिंह तोतलाकर बोलता था।”
“मतलब नेता जी के बचपन की बात है?”
“नहीं, शादी के तुरंत बाद की है।”
“वह तोतलाकर नहीं बोलते।”
“पहले बोलता था, बाद में कोई सर्जरी वगैरह करा ली तो ठीक हो गया, अब टोका टोकी बंदकर और आगे की कहानी सुन।”
“ठीक है सुना।”
“सुहागरात को तेरा नेता अपनी वाईफ के करीब पहुंचा और उसका घूंघट उठाते हुए बड़े ही प्यार से बोला, ‘मेली जान जला मूत कल आओ।’ बेचारी बीवी ने उसे अपने प्राणनाथ का हुक्म समझा और वॉशरूम जाकर हो आई। तब नेता ने फिर से उसका घूंघट उठाया और वही वाक्य दोहरा दिया। बीवी को बुरा तो बहुत लगा मगर इंकार करने की बजाये एक बार फिर वॉशरूम पहुंच गयी। घर में एक नौकरानी थी जो सील्ड पैक बहू को दो मिनट के भीतर दो बार वॉशरूम जाता देखकर चौंक गयी, इसलिए दरवाजे से कान सटाकर भीतर चलता वार्तालाप सुनने लगी। फिर नेता ने तीसरी बार अपनी बीवी का घूंघट उठाते हुए कहा, ‘मेली जान जला मूत कल आओ।’ इस बार बीवी को गुस्सा आ गया, वह जोर से चिल्लाई, ‘बार बार मैं ही क्यों मूतकर आऊं, तुम नहीं जा सकते?’ तभी दरवाजे पर खड़ी नौकरानी जोर से बोली, ‘अरे ये तोतला है, कह रहा है ‘मेरी जान जरा मुस्कराओ’।”
“सुनकर निन्नी सच में हंस पड़ा।”
“देखा, देखा भूल गया न तू सारा दर्द।”
जवाब में उसने बड़ी तेजी से अलीशा की रिवाल्वर पर झपट्टा मारने की कोशिश की, मगर लड़की उसकी तरफ से वैसी किसी हरकत के लिए एकदम तैयार बैठी थी, इसलिए तुरंत अपना हाथ पीछे खींचा और उठकर खड़ी हो गयी।
“तू बाज नहीं आयेगा?”
निन्नी उठकर बैठ गया मगर बोला कुछ नहीं।
“साले तू है ही मार खाने के काबिल।” कहते हुए अलीशा ने एक जोर की लात उसके थूथन पर जमा दी। मगर अब तक वह खुद पर काबू पा चुका था इसलिए दोनों हाथ पीछे टिकाकर खुद को नीचे गिरने से रोका और उठकर खड़ा हो गया।
“ठीक है बहुत कर ली मैंने पुचपुच, अब मरने को तैयार हो जा।”
“नेता जी छोड़ेंगे नहीं तुझे, खट्टर को भी नहीं।”
“खट्टर साहब का रोआं भी टेढ़ा नहीं कर सकता चरण सिंह। रही बात मेरी तो उसका बदला तो कोई तब लेगा न जब उसे मालूम पड़ेगा कि तेरी जान मैंने ली थी।”
“तूने बहुत बड़ी गलती कर दी है।”
“डॉयलाग बोलना भी बंद कर दे, सुन सुनकर मेरे कान पक गये हैं।” कहते हुए वह बिना किसी चेतावनी के एकदम से उसकी तरफ झपटी और अपने बायें हाथ की एक उंगली उसकी आंख में घोंप दी, निन्नी फिर बिलबिलाकर रह गया।
“दर्द हो रहा है मुन्ने को?”
“हो भी रहा हो तो तुझे उससे क्या?”
“है क्यों नहीं, तू हामी भरकर देख, मैं फौरन तेरी तकलीफ खत्म कर दूंगी, वह भी सेकेंडों में, वादा करती हूं।”
“कैसे?”
“गोली मारकर, और कैसे? जब तू मर ही जायेगा तो दर्द का एहसास भला क्या होगा?”
निन्नी की बोलती बंद हो गयी।
“देख भाई मेरी एक बात ध्यान से सुन क्योंकि डॉयलॉगबाजी बहुत हो गयी। मैं यहां तुझसे कुछ जानने आई हूं और जानकर ही जाऊंगी। अब जो बात तूने बतानी ही बतानी है वह प्यार मोहब्बत से क्यों नहीं बता देता, क्यों अपनी जान का दुश्मन बन रहा है? फिर जरा सोचकर देख कि मेरे पास गन है, यानि तू चाहकर भी मुझसे पार नहीं पा सकता। तो ऐसी कोशिश करने का क्या फायदा जिसमें हार सुनिश्चित हो। उससे अच्छा तो ये है कि तू जिंदा बच जाये, तभी तो बाद में मुझसे बदला लेने का कोई मौका निकाल पायेगा।”
“मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूंगा।”
“जरूर मारना, मैं रोक थोड़े ही लूंगी, लेकिन उसके लिए जिंदा रहना जरूरी है न, इसलिए अभी मेरी बात मान और जो पूछ रही हूं बता दे, समझ ले रिक्वेस्ट कर रही हूं। एक खूबसूरत, हॉट और सैक्सी लड़की तुझसे रिक्वेस्ट कर रही है, उसी का लिहाज कर ले।”
“कसम से तेरे जैसी कमीनी दुनिया में दूसरी नहीं मिलेगी।”
“एकदम सही कहा, ये ठीक वैसे ही है जैसे कि तेरे जैसा कमीना ढूंढे नहीं मिलेगा। मतलब हम दोनों एक जैसे हैं। काम भी एक जैसा ही करता हैं। अभी मेरा दांव लगा हुआ है इसलिए मैं बढ़ चढ़कर बोल रही हूं, कल को तेरा लगेगा तो तू भी यही करेगा।”
“बिल्कुल करूंगा।”
“तो वैसा वक्त हासिल करने की खातिर ही जुबान खोल दे।”
“मैंने नहीं मारा भाटिया की बीवी को।” वह धीरे से बोला।
“जल्ली ने मारा?”
“नहीं, उसके कत्ल में नेता जी के किसी आदमी का कोई हाथ नहीं है।”
“फिर डॉक्टर से क्यों कहा कि कोमल की हत्या तूने की थी?”
“मैंने नहीं जल्ली ने कहा था, क्योंकि वह डॉक्टर को हलकान करना चाहता था, इसलिए खूब बढ़ा चढ़ाकर उसने वह बात भाटिया से कही थी। अब किसी का नाम तो लेना ही था इसलिए मेरा ले दिया, जिसके बाद मैंने भी उसकी हां में हां मिलाते हुए दो चार डॉयलॉग मार दिये थे।”
सुनकर अलीशा के मन को चैन आ गया, आखिरकार तो उसका शक ही सही साबित हुआ था।
“अगर तुम लोगों ने कोमल को नहीं मारा तो किसने मारा?”
“मैं नहीं जानता, फिर मारना ही होता तो हम डॉक्टर को मारते या उसकी बीवी को?”
“कमाल है यार, बस इतनी सी बात कहनी थी तुझे, और तू खामख्वाह पंगे ले बैठा। मेरी नाक फोड़ दी, कपड़े गंदे कर दिये। क्या हो जाता अगर आराम से पहली बार पूछने पर ही जवाब दे देता।”
“मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं।”
“अगर ऐसा है तो क्यों न एक गोली मैं अभी तेरे भेजे में उतार दूं?”
“तू मुझे नहीं मार सकती।”
“क्यों?”
“क्योंकि मैं नेता जी का बहुत खास आदमी हूं।”
“वो तो ओमकार है।”
“ओमकार भाई के बाद सबसे खास, मतलब मेरी मौत पर कोई चुप नहीं बैठेगा, जल्ली तुझे पाताल से भी खोज निकालेगा और ऐसी गत बनायेगा कि उस क्षण को कोसेगी जब तूने मुझपर गोली चलाई होगी।”
“बात को तू खामख्वाह दिल पर ले रहा है यार, जबकि यहां पर्सनल जैसा कुछ भी नहीं है। अब जो काम मुझे दिया जायेगा, उसे पूरा तो करना पड़ेगा न, जैसे तू करता है। इसलिए अभी जो कुछ यहां हमारे बीच हुआ है उसे भूल क्यों नहीं सकता?”
“भूल जाऊं? तूने इतनी बुरी तरह मेरी पिटाई की है, ये बात भूल जाऊं मैं?”
“और नहीं तो क्या, फिर किसी को ये बतायेगा कि एक लड़की ने मार मार कर तेरा कचूमर निकाल दिया था, तो बेइज्जती नहीं हो जायेगी?”
“ठीक है समझ ले मैं भूल गया, अब जा यहां से।”
“ना भी भूले तो मुझे परवाह नहीं है। क्योंकि जिस तरह मैं तेरा ठिकाना जानती हूं, वैसे तू मेरा ठिकाना नहीं जानता। मतलब मैं जब चाहूं यहां पहुंचकर तेरे हलक में एक बुलेट दाग सकती हूं। हां मेरे डर से तू घर में आना ही छोड़ दे तो और बात है।”
“मुझे कुछ नहीं करना मेरी मां - वह दोनों हाथ जोड़कर बोला - अब दफा हो यहां से।”
“अरे अरे, इतनी खूबसूरत लड़की से कोई ऐसी बात करता है क्या?”
“ठीक है सॉरी, अब जा यहां से।”
“पहले किस कर मुझे।”
“क्या?” वह हैरानी से अलीशा की शक्ल देखने लगा।
“किस, पप्पी नहीं समझता क्या?”
“तू जाती क्यों नहीं?”
“एक किस दे दे फिर चली जाऊंगी, प्रॉमिस।”
“तू मजाक कर रही है न?”
“अरे नहीं यार, फिर कितनी ठंड है आजकल, चल अब मुझे किस कर ताकि हम दोनों अपनी दुश्मनी यहीं खत्म कर दें। वैसे तू चाहे तो हम उससे आगे की भी सोच सकते हैं।”
“आगे की?”
“और नहीं तो क्या?”
“मैं सच में तुझे किस करूं?”
“और क्या झूठ मूठ में करेगा अहमक।”
सुनकर निन्नी झिझकता हुआ सा उसकी तरफ बढ़ा, तो अलीशा ने ऊंट की तरह अपनी गर्दन आगे कर दी, फिर जैसे ही निन्नी का चेहरा थोड़ा करीब आया, एक जोर का घूंसा उसके थूथन पर जड़ने के बाद दरवाजा खोलकर बाहर निकल गयी।
उसके पीठ पीछे निन्नी बहुत देर तक जहां का तहां खड़ा अपने जख्मों को सहलाता रहा, फिर दरवाजा बंद कर के बेडरूम में पहुंचा और ड्रिंक करने में मशगूल हो गया।
ये अलग बात थी कि तड़प रहा था, मन ही मन अलीशा से बदला लेने के मंसूबे बांध रहा था, ऐसे मारेगा उसे वैसे मारेगा, गालियां भी बक रहा था।
मगर एक कड़वा सच ये भी था कि उसने जो करना था अपने बूते पर करना था। अपनी दुर्गति की दास्तान तो वह चाहकर भी किसी को नहीं सुना सकता था। ज्यादा से ज्यादा जल्ली को बता देता, जो उसका दोस्त था, थोड़ा मजाक जरूर उड़ाता लेकिन उसका साथ देने से पीछे तो हरगिज भी नहीं हटना था उसे।
बाहर अपनी कार में बैठकर अलीशा ने डॉक्टर भाटिया को कॉल लगाया जो दो बार रिंग जाते ही पिक कर ली गयी। मतलब डॉक्टर अभी जाग रहा था। फिर ये कहकर कि वह उसके घर आ रही थी, अलीशा ने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
रात पौने बारह बजे अलीशा अटवाल डॉक्टर भाटिया के घर के करीब पहुंचने तो हुई तो हेडलाईट के प्रकाश में उसी क्षण कोई भीतर दाखिल होता दिखाई दिया। मगर वह डॉक्टर नहीं था इतना तो उसकी समझ में फौरन आ गया। उससे भी बड़ी हैरानी की बात ये थी कि गार्ड स्टूल पर दीवार से टेक लगाये बैठा था और उसका चेहरा छाती पर झुका हुआ था।
गाड़ी से उतरकर वह उसके करीब पहुंची तो ये देखकर हैरान रह गयी कि गार्ड का सिर फटा पड़ा था और वहां से बहता खून उसकी गर्दन तक पहुंचने लगा था। अगले ही पल जो विचार उसके जेहन में आया उसने उसे फुर्ती से भर दिया।
बेशक गार्ड बुरी तरह घायल था, मगर उसके बारे में सोचने का वह सही वक्त नहीं था, इसलिए तुरंत खुले हुए गेट से भीतर दाखिल हुई और दबे पांव हॉल के दरवाजे की तरफ बढ़ी।
उस दौरान कमर में खुंसी रिवाल्वर उसके हाथ में आ चुकी थी।
हॉल का दरवाजा खुला हुआ था, और भीतर हल्का उजाला भी था। झांककर देखा तो डॉक्टर सोफे पर लेटा हुआ दिखाई दिया, जबकि एक शख्स उसके सिर पर रिवाल्वर तान भी चुका था।
वक्त बिल्कुल नहीं था।
उसने रिवाल्वर वाले के हाथ का निशाना लेकर गोली चला दी।
जोर की आवाज हुई, वह शख्स उस आवाज से कहीं ज्यादा जोर से चींखा, तभी डॉक्टर उठकर बैठ गया। उसने हैरानी से अपने सामने खड़े शख्स को देखा फिर भीतर दाखिल होती अलीशा पर उसकी निगाह पड़ी।
“हिलना नहीं गब्बर सिंह, वरना माथे में सुराख बना दूंगी।”
जबकि उस धमकी की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि लड़का तो अभी भी बायें हाथ से अपना दायां हाथ थामें दर्द से बिलबिला रहा था, उछल कूद कर रहा था।
गन सामने ताने अलीशा उसके करीब पहुंची और पूरी सावधानी बरतते हुए उसके जिस्म को थपथपाकर ये सुनिश्चित कर लिया कि उसके पास कोई और हथियार नहीं था।
“है कौन ये?” डॉक्टर ने पूछा।
“कोमल और मीनाक्षी का हत्यारा होगा, और कौन हो सकता है? पुलिस को फोन लगाईये, बल्कि सीधा शुक्ला को कॉल कीजिए।”
“फिर तो मेरा शक ही सही निकला।”
“मतलब?”
“ये चरण सिंह का आदमी है, पहचानता हूं मैं।”
अलीशा की बुद्धी ही चकरा गयी।
‘क्या निन्नी ने उससे झूठ कहा था कि कोमल के कत्ल में उसका या नेता के किसी आदमी का कोई हाथ नहीं था?’
उसे यकीन नहीं आया।
“ठीक है आप फोन कीजिए।”
सुनकर डॉक्टर ने अपने मोबाईल पर शुक्ला का नंबर डॉयल किया और संक्षेप में उसे सारा किस्सा सुनाकर कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
“बाहर आपके गार्ड की खोपड़ी खोल दी है इस कमीने ने, जाकर देखिये जिंदा है या मर गया, अगर जिंदा है तो खून रोकने का कोई इंतजाम कीजिए।”
जवाब में डॉक्टर बाहर जाने की बजाये तेजी से सीढ़ियों की तरफ दौड़ा और पहली मंजिल पर बेडरूम में रखा अपना बैग उठाकर उतनी ही तेजी से नीचे आ गया। फिर अलीशा पर एक निगाह मारकर झपटता हुआ गेट की तरफ बढ़ गया।
“चिल्ला मत - अलीशा सामने खड़े लड़के से बोली - मरेगा नहीं।”
“तूने मुझे गोली मार दी और कहती है कि मरूंगा नहीं?” वह बिलबिलाता हुआ बोला।
“हाथ में मारी है, जबकि चाहती तो तेरा भेजा भी उड़ा सकती थी।”
इस बार लड़का कुछ नहीं बोला।
“अरे नाराज क्यों हो रहा है यार, तू भी तो वही करने जा रहा था। जिसको पहले मौका मिल गया उसने कर दिखाया। फिर भी कोई नाराजगी है तो चल सॉरी बोले देती हूं, माफ कर दे मुझे।”
लड़का इस बार भी खामोश रहकर दर्द पीता रहा।
“क्यों लड़कियों की तरह नखरे दिखा रहा है, सॉरी बोल तो रही हूं।”
“बहुत एहसान कर रही है, अभी मैं तुझे गोली मारकर सॉरी बोलूं तो कैसे लगेगा?”
“अरे मैं लड़की हूं, इसलिए बुरा मानने का ज्यादा अधिकार भी मुझे ही है।”
“तू जानती नहीं है किससे पंगा लिया है?”
“कोई बात नहीं अब जान लेती हूं, बता नाम क्या है तेरा?”
लड़का चुप।
“अब बता भी दे यार।”
खामोशी।
अलीशा को गुस्सा आ गया, उसने एक कस की लात उसके पेट में जमा दी। जिसके बाद वह जोर से चींखा और उछलता हुआ पीठ के बल फर्श पर जा गिरा।
“साले भूल गया कि यहां डॉक्टर का कत्ल करने पहुंचा था तू, कैसे अपनी जुबान बंद रख पायेगा?”
“तू पछतायेगी।”
“ऐसी की तैसी तेरी - कहते हुए उसने दो तीन लातें और जमा दीं उसे - साला जिसको देखो वही धमकी देने लगता है। जैसे मेरी कोई जात औकात ही नहीं है।”
“मैं सिर्फ धमकी ही नहीं दे रहा।”
“अच्छा फिर क्यों न मैं तुझे गोली ही मार दूं?”
“अब नहीं मार सकती।” वह उठता हुआ बोला।
“क्यों?”
“क्योंकि डॉक्टर पुलिस को बता चुका है कि मुझे जिंदा पकड़ लिया गया है, मार देगी तो बाद में जवाब क्या देगी बहन...?”
“ये कि तू फर्श पर पड़ी अपनी रिवाल्वर वापिस उठाने में कामयाब हो गया और मुझपर गोली चलाने ही जा रहा था कि मैंने खुद को बचाने के लिए तुझे शूट कर दिया।”
“कोई यकीन नहीं करेगा।”
“बहस अच्छी कर लेता है, अब दर्द महसूस नहीं हो रहा तुझे?”
लड़के ने जवाब नहीं दिया।
पुलिस जितनी देर में डॉक्टर के घर पहुंची, उतनी देर में वह अपने गार्ड की मलहम पट्टी कर के एक इंजेक्शन लगा चुका था। आगे शुक्ला के साथ वहां पहुंचे सिपाहियों ने गार्ड को भीतर ले जाकर सोफे पर लिटा दिया।
“ये तो अपना रणवीर है सर जी।” भीतर दाखिल होते के साथ ही एक सिपाही ने अपना ज्ञान बघारा।
“बुरा फंसा बेचारा।” दूसरा सिपाही बोला।
“काहे का बुरा फंसा? - तीसरा सिपाही थोड़े दबे स्वर में बोला - देखना अभी के अभी आजाद कर दिया जायेगा। कोई मजाक है नेता जी के आदमी को गिरफ्तार करना।”
वह आवाज शुक्ला के कानों तक फिर भी पहुंच गयी। उसने घूरकर सिपाही की तरफ देखा फिर बोला, “कतरनी कुछ ज्यादा ही चलने लगी है तेरी।”
“सॉरी सर जी।”
“कैसा है रणवीर?”
“ठीक नहीं हूं, इसने मेरे हाथ में गोली मार दी है।” अलीशा की तरफ इशारा कर के वह बोला।
“अरे अरे, ये क्या किया मैडम जी, जानती नहीं हैं कि ये कौन है?”
“आप इसे जानते हैं?”
“हां, विधायक जी का आदमी है।”
“चाहे ये जो भी हो, इस बात में कोई शक नहीं कि यहां डॉक्टर का कत्ल करने पहुंचा था। अब या तो आप इसे गिरफ्तार कीजिए, या फिर मैं खट्टर साहब को फोन लगाकर बताती हूं कि आप लोग किस हद तक विधायक से मिले हुए हैं, आगे जो करना होगा वह खुद कर लेंगे।”
खट्टर का नाम सुनकर रणवीर बुरी तरह चौंका, अभी तक जबरन जो हिम्मत वह अपने अंदर पैदा किये हुए था, पलक झपकते ही उड़न छू हो गयी।
“अरे हम कहां कह रहे हैं कि इसे गिरफ्तार नहीं करेंगे।”
“बढ़िया, तो इसे लेकर थाने चलिए और डॉक्टर साहब को भी ले जाईये, फिर इसके खिलाफ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज कर के आगे की कार्रवाई कीजिए।”
“करेंगे, लेकिन उससे पहले दो चार सवाल तो कर लेने दीजिए बेचारे से।”
“बेचारा?”
“गोली खाये खड़ा है तो बेचारा ही हुआ न।”
“ठीक है कीजिए।”
“बता भई, मैडम जो आरोप तुझपर लगा रही हैं, वह सच है न?”
“झूठ बोल रही हैं।”
“अच्छा, फिर इतनी रात गये तू यहां क्या कर रहा है?”
“डॉक्टर के बुलावे पर आया था।”
“झूठ बोल रहा है ये।” भाटिया बोला।
“आप जरा शांत रहिये प्लीज - कहकर उसने रणवीर की तरफ देखा - किसलिए बुलाया था डॉक्टर साहब ने तुझे?”
“ये कहकर कि मेरे मार्फत नेता जी को कोई संदेश भिजवाना चाहते हैं। अब मुझे क्या पता था कि यहां मेरे खिलाफ कोई जाल बुने बैठे हैं। आप खुद सोचकर देखिये इंस्पेक्टर साहब कि अगर ये कोई साजिश नहीं होती तो इतनी रात को खट्टर साहब की भेजी ये लड़की यहां क्या कर रही होती।”
“जवाब दीजिए मैडम?” शुक्ला ने अलीशा से पूछा।
“अभी देती हूं, बस इससे इतना और पूछ लीजिए कि डॉक्टर साहब ने इससे कांटेक्ट कैसे किया था?”
“कैसे किया था रणवीर?”
“फ...फोन पर।”
“तेरा मतलब है मोबाईल पर?”
“ह...हां।”
“ठीक है मोबाईल दिखा अपना।”
“अभी नहीं है मेरे पास।”
“जेब में रखा है - अलीशा बोली - उभार साफ साफ नजर आ रहा है।”
सुनकर शुक्ला ने एक सिपाही को इशारा किया तो उसने आगे बढ़कर रणवीर का मोबाईल निकाला और उसे थमा दिया। शुक्ला ने कॉल लॉग चेक किया, तो जैसा कि होना ही था, उसमें डॉक्टर का कोई नंबर उसे दिखाई नहीं दिया।
तब वह दो कदम आगे बढ़कर रणवीर के एकदम सामने पहुंचा और उसे घुड़कता हुआ बोला, “एक सेकेंड में जवाब दे कि तू यहां क्या करने आया था?”
“डॉक्टर के बुलावे पर आया था।”
“फिर तेरे मोबाईल में इनका नंबर क्यों नहीं दिख रहा?”
“गलती से डिलीट हो गया होगा।”
“हां ये तो बराबर हुआ हो सकता है।”
कहने के बाद उसने फर्श पर सोफे से कुछ दूरी पर उपेक्षित सी पड़ी रणबीर की रिवाल्वर को रूमाल में लपेटकर अपनी कमर में खोंसा और रणबीर के कंधे पर हाथ रखकर उसे वहां से थोड़ा परे लिवा ले गया।
“अब सच बयान कर - शुक्ला धीरे से बोला - तू जानता है हम तेरी तरफ ही हैं, मगर सच्चाई जानना फिर भी जरूरी है, तभी कोई मदद कर पायेंगे। डॉक्टर द्वारा बुलाये जाने की कहानी नहीं चलने वाली, क्योंकि वह हाथ के हाथ झूठी पड़ गयी है।”
“ओमकार भाई ने भेजा था।” रणवीर ने बताया।
“डॉक्टर को खत्म करने के लिए?”
जवाब में उसने सहमति में सिर भर हिला दिया।
“ठीक है मैं देखता हूं कि क्या किया जा सकता है, वैसे ये साला डॉक्टर है एक नंबर का ढीठ, समझाने का इसपर कोई असर ही नहीं होता।”
“मुझे ओमकार भाई को फोन करने दो, फिर वही सब ठीक कर देंगे।”
“फोन थाने पहुंचकर कर लेना, हम तुझे फांसी पर थोड़ी ही चढ़ा देंगे। अभी तो मैं डॉक्टर को तेरे खिलाफ कंप्लेन न दर्ज करवाने के लिए मनाने की कोशिश कर के देखता हूं, वह मान गया तो बात ही खत्म हो जायेगी।”
“ठीक है करो।”
तत्पश्चात शुक्ला डॉक्टर और अलीशा के पास पहुंचा और धीरे धीरे उन्हें कुछ समझाने में जुट गया। वह सिलसिला बस मिनट भर चला लेकिन शुक्ला ने वहां से हिलने की कोशिश तब तक नहीं की जब तक कि उसका मोबाईल रिंग नहीं होने लगा। उसने एक बार फ्लैश होता नंबर देखा, फिर कॉल डिस्कनैक्ट कर के वह एंट्री डिलीट करने के बाद सिपाहियों से बोला, “ले चलो भई इसे, थाने चलकर पता करते हैं कि सच्चाई क्या है।”
तब तक गार्ड को भी होश आ चुका था इसलिए शुक्ला ने उसे और डॉक्टर को भी अपने साथ ले लिया। हैरानी की बात थी कि अलीशा ने अपनी जगह से हिलने तक की कोशिश नहीं की थी।
तत्पश्चात सब लोग घर से बाहर निकले ही थे कि एक के बाद एक फ्लश लाईट्स उनके चेहरे पर पड़ने लगी, कुछ लोग फोटो उतार रहे थे, तो कुछ लाईव प्रसारण कर रहे थे। वो सब मीडिया के लोग थे, जिनका इंतजाम शुक्ला ने बड़े ही आनन फानन में किया था। उसने संपर्क भी बस एक पत्रकार से किया था, आगे उसी ने वह भीड़ इकट्ठी कर ली थी।
“अरे आप लोग कैसे पहुंच गये यहां?” शुक्ला झल्लाता हुआ बोला।
“जहां खबर वहां हम, बताईये क्या हुआ है यहां?”
“कुछ नहीं हुआ है।”
“फिर पुलिस क्यों मौजूद है, इस शख्स के सिर पर पट्टी क्यों बंधी है, और दूसरा घायल क्यों दिखाई दे रहा है?”
“मैं इस वक्त आप लोगों के सवालों का जवाब नहीं दे सकता, मुझे अथॉरिटी भी हासिल नहीं है, इसलिए जो पूछना है डीसीपी साहब से पूछियेगा, अब हटिये सामने से।”
“क्या शुक्ला जी - एक पत्रकार बोला - हम इतनी रात को यहां इसलिए आये हैं कि आपके कहने पर बैरंग लौट जायें। बताईये असल माजरा क्या है?”
“मेरे कत्ल की कोशिश की गयी है - डॉक्टर जोर से बोला - गार्ड पर भी जानलेवा हमला किया गया है।”
“शांत रहिये डॉक्टर साहब, हम थाने तो चल ही रहे हैं।” शुक्ला बौखलाये अंदाज में बोला।
“नहीं, मैं सबको बताना चाहता हूं कि मेरे साथ जो हुआ है वह किसने किया।”
“अरे कहा न पहले थाने चलिए।”
“विधायक चरण सिंह ने मुझे मारने के लिए इस आदमी को भेजा था - डॉक्टर ने रणवीर की तरफ इशारा किया - मेरी वाईफ कोमल भाटिया का मर्डर भी उसी ने कराया था।”
“क्या कह रहे हैं? - किसी पत्रकार ने पूछा - भला विधायक साहब ऐसा क्यों करायेंगे?”
“क्योंकि मैंने उसे प्रोटक्शन मनी देने से मना कर दिया था।”
“प्रोटक्शन मनी?”
“बारह लाख सालाना, जो इधर के हर कामकाजी आदमी को देना पड़ता है। मैंने मना किया तो मुझे धमकाने के लिए उसने पहले मेरी बीवी की हत्या कराई, और अब इस गुंडे को यहां भेज दिया मेरा कत्ल करने के लिए।”
“ये विधायक जी का आदमी है?”
“हां है - जवाब किसी पत्रकार ने ही दे दिया - रणवीर नाम है इसका।”
“अब यहां से चलिए डॉक्टर साहब।” शुक्ला बोला।
“आप लोग देख ही रहे हैं कि पुलिस मुझे मीडिया से बात करने से रोकना चाहती है। बल्कि बाद ये लोग इस आदमी को आजाद भी कर देंगे। क्योंकि प्रोटक्शन मनी मांगने वाले चार लोगों को पहले ही पकड़कर छोड़ा जा चुका है, ये भी उन्हीं में से एक है। तब पुलिस ने मेरी कंप्लेन दर्ज कर ली होती तो आज ये नौबत नहीं आती, मेरी बीवी भी जिंदा होती।”
“डॉक्टर साहब क्या कह रहे हैं शुक्ला जी?”
“मुझे उसकी कोई खबर नहीं है।”
“कम से कम इतना तो कबूल कीजिए कि आपके साथ मौजूद रणवीर सच में इनका कत्ल करने ही पहुंचा था?”
“हो सकता है, नहीं भी हो सकता।”
“ये क्या जवाब हुआ?”
“अभी पूछताछ होनी बाकी है, इसलिए उस बात की गारंटी नहीं कर सकते हम।” कहते हुए उसने रणवीर को पुलिस जीप में बैठाया और वहां से निकल गया।
पत्रकारों ने तुरंत डॉक्टर का घेराव कर लिया।
“रणवीर घायल दिखता है, उसे आपने घायल किया था?”
“अरे नहीं भाई, मैं डॉक्टर हूं ना कि कोई गुंडा।”
“फिर किसने किया?”
“ऐन मौके पर एमपी खट्टर साहब का भेजा एक आदमी यहां पहुंच गया, जिसने मेरी जान बचाने के लिए उसके गन वाले हाथ पर गोली चला दी, वह नहीं आया होता तो पक्का मेरी जान चली गयी होती।”
“तो देखा आपने, शहर में किस कदर गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है। और किस तरह पुलिस हाथ पर हाथ धरकर बैठी है। क्या फरीदाबाद में अब दबंगों का राज चलने लगा है? क्या वाकई में कारोबारियों से जबरन उगाही की जा रही है?’
“इस हफ्ते की ये तीसरी बड़ी घटना है - कोई दूसरा पत्रकार माईक पर बोल रहा था - पहले डॉक्टर भाटिया की वाईफ का मर्डर, फिर एमएलए चरण सिंह के खिलाफ रिर्पोटिंग कर रहे पत्रकार मुकुल और उनके एडिटर को गायब कर दिया गया, और अब डॉक्टर के कत्ल की कोशिश, क्या ये सारी घटनायें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं?’
इसी तरह अलग अलग पत्रकारों ने अलग अलग ढंग से रिर्पोटिंग करनी शुरू कर दी। जबकि डॉक्टर अपने गार्ड के साथ कार में सवार होकर थाने के लिए निकल भी गया था।
अलीशा हैरान थी, ये सोचकर कि शुक्ला को घटनास्थल पर पहुंचने से पहले मीडिया को इंफॉर्म करना सूझ गया था। बल्कि उसका पूरा पूरा फायदा भी डॉक्टर को पहुंचकर रहना था, क्योंकि अब पुलिस के बस की बात नहीं थी कि रणवीर के किये धरे की तरफ आंख बंद कर के बैठ जाते। मतलब उसके खिलाफ कंप्लेन दर्ज होकर रहनी थी। बस देखना ये था कि नेता खुद को अपने आदमी से अलग थलग रख पाता था या नहीं।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब ये उठ खड़ा हुआ था कि अगर कोमल की हत्या नेता ने नहीं कराई थी, तो डॉक्टर को खत्म कराने की कोशिश उसने क्यों की?
क्या महज इसलिए कि वह पैसे देने को तैयार नहीं हो रहा था?
ये बात तो वह सपने भी नहीं सोच सकती थी कि डॉक्टर पर हुए हमले के लिए पूरी तरह वह खुद जिम्मेदार थी। उसने हर्षदेव खट्टर का नाम इस तरह उछाला था कि नेता ने उसे मात देने के लिए डॉक्टर के कत्ल के आदेश दे दिये थे।
थोड़ी देर बाद जब उसे यकीन आ गया कि पत्रकार वहां से जा चुके थे, तो वह उठकर बाहर की तरफ बढ़ी, मगर कंपांउड में कदम रखते के साथ ही अपना इरादा बदला और वापिस हॉल में दाखिल होकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी।
दो स्टेप चढ़ने के बाद थोड़ा झुककर देखा तो पाया कि वह पूरी तरह रेलिंग की ओट में हो गयी थी, मतलब एक बार कातिल वहां पहुंच जाता तो आगे किसी की नजर उसपर नहीं पड़ने वाली थी। वह बड़े आराम से ऊपर जाकर कोमल का कत्ल कर के वापिस लौट सकता था।
हॉल में ज्यादा उजाला नहीं था, इसलिए उसने मोबाईल का टॉर्च जलाकर रेलिंग का मुआयना करना शुरू किया। दीवार पर प्लॉस्टिक पेंट किया गया था, इसलिए सतह बहुत चिकनी थी। वैसी जगह पर हत्यारे के फिंगर प्रिंट्स बने हो सकते थे। पता नहीं फॉरेंसिक ने उस बात पर ध्यान दिया था या नहीं, क्योंकि वैसे कोई प्रिंट अब तो नहीं ही उठाये जा सकते थे।
पहली मंजिल पर पहुंचकर वह निःसंकोच डॉक्टर के बेडरूम में दाखिल हुई, और लाईट जलाकर वहां का मुआयना करना शुरू कर दिया, जो कि कत्ल की अगली सुबह भी वह जमकर कर चुकी थी।
आज उसे एक खास बात दिखाई दी। दरवाजे में भीतर की तरफ लगी चिटखनी का वह सॉकेट गायब था जो चौखट में लगा होता है। जिसमें चिटखनी की कील ऊपर सरकाये जाने पर जा फंसती थी।
कत्ल की अगली सुबह अलीशा ने उसे बड़े ही ध्यान से उसका मुआयना किया था, इसलिए ये सोचना बेकार था कि वह पहले से ही नदारद थी। फिर भी होती तो डॉक्टर के ये कहने का कोई मतलब नहीं बनता था कि कत्ल वाली रात उसने भीतर दाखिल होकर दरवाजे की चिटखनी चढ़ा दी थी।
उस बात ने अलीशा को बुरी तरह हैरान कर के रख दिया। किसी वजह से अगर फॉरेंसिक टीम उसे अपने साथ ले जाती तो वे लोग दोनों चीजें ले जाते ना कि सिर्फ एक।
फिर कौन ले गया?
और उससे किसी को हासिल क्या होना था?
जवाब उसके पल्ले नहीं पड़ा।
पांच मिनट वहां गुजारने के बाद उसने लाईट बंद की फिर बाहर निकलने ही लगी थी कि किसी के कदमों की आहट सुनकर खुद को एकदम से अंदर खींचा और दरवाजे के बगल में दीवार से पीठ सटाकर खड़ी हो गयी।
कौन था?
डॉक्टर का इतनी जल्दी वापिस लौटना तो असंभव बात थी?
कातिल?
धड़कने एकदम से बढ़ गयीं। जिस्म से लेकर दिमाग तक तनाव से भर उठा और रिवाल्वर पर उसकी पकड़ सख्त होती चली गयी। फिर उसने सांस लेना भी बंद कर दिया।
तभी एक साया भीतर दाखिल हुआ, उसने मोबाईल निकालकर उसकी स्क्रीन लाईट ऑन की और बेड की तरफ बढ़ा, मगर दो कदम आगे जाते ही ठिठक गया, शायद उसे बिस्तर खाली होने का एहसास हो गया था।
“हिलना नहीं - अलीशा गुर्राई - वरना मैं गोली चला दूंगी।”
सुनकर आगंतुक उसकी तरफ घूम गया।
अलीशा ने रोशनी कर दी।
अब दोनों आमने सामने थे।
मिस्टर एक्स करीब करीब उसी बहुरूप में था जिसमें वह नर्सिंग होम की सीसीटीवी फुटेज में डॉक्टर को फोन करता दिखा था। मतलब सिर पर मंकी कैप, आंखों पर चश्मा, फूली हुई जैकेट। जो नई चीज दिखी वह थी कैप के अंदर चेहरे पर लगाया गया मास्क, यानि पहचान लिए जाने का कोई खतरा नहीं था। हां उसके हाथ से वह डंडा नदारद था, जिसके सहारे चलने की एक्टिंग करता वह डॉक्टर को फोन करने अस्पताल गया था।
और सबसे अहम बात, जो उसके इरादे की चुगली कर रही थी, वो ये थी कि दायें हाथ में एक बड़े फल वाला एक छुरा थामे हुए था। यानि आया वह डॉक्टर का कत्ल करने ही था।
आखिरी खास बात जो उसने नोट की, वह ये थी कि कातिल के हाथ पतले थे, इतने कि वह कोई औरत भी हो सकती थी। दिखाई इसलिए दे गये क्योंकि आज उसने दस्ताने नहीं पहन रखे थे। शायद इसलिए नहीं क्योंकि उससे छुरे के दस्ते पर उसकी पकड़ कमजोर पड़ सकती थी।
“कौन हो तुम?” अलीशा ने पूछा।
उसने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“तुम्हारे हाथ में सिर्फ एक छुरा है, जबकि मैं गन लिए खड़ी हूं, इस बात पर अच्छी तरह से विचार कर लो। अगर तुम इस घर के सदस्य नहीं हो जिसकी उम्मीद मुझे कम ही दिख रही है तो जाहिर है मेरे भाई बंधु ही हो, और वैसा है तो मैं वादा करती हूं कि तुमपर गोली नहीं चलाऊंगी, बदले में तुम भी किसी को ये नहीं बताओगे कि मुझे यहां चोरी करते देखा था। अब बोलो कौन हो तुम?” अलीशा ने उसे उलझाने की कोशिश बराबर की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई।
उसके सवाल का जवाब देने की बजाये मिस्टर एक्स सिर झुकाये किसी क्रोधित सांड की तरह उसकी तरफ दौड़ा, जोर की टक्कर अलीशा के पेट में मारी और बायें हाथ से उस पैर पकड़कर जोर से आगे को खींच दिया।
अलीशा का बैलेंस बिगड़ा और संभलने की तमाम कोशिशों के बावजूद नीचे जा गिरी। रिवाल्वर अभी भी उसके हाथ में थी, मगर वह गोली नहीं चलाना चाहती थी, जिसका पूरा पूरा फायदा हमलावर ने उठाया और तेजी से दरवाजे की तरफ दौड़ लगा दी।
मगर बाहर नहीं जा पाया क्योंकि तभी अलीशा ने लेटे ही लेटे अपनी एक टांग उसके सामने कर दी। नतीजा ये हुआ कि मिस्टर एक्स उलझकर मुंह के बल नीचे गिरने को हुआ तो बायां हाथ फर्श पर टिकाकर अपना चेहरा फूटने से बचाने की कोशिश की, क्योंकि दायें हाथ में तो वह अभी भी छुरा थामे हुए था।
एक हाथ इतना बड़ा झटका बर्दाश्त नहीं कर पाया इसलिए वह पूरा का पूरा फर्श पर पसर गया, हां अपना थूथन फूटने से बचाने में फिर भी कामयाब हो गया।
अलीशा ने उठकर एक जोर की लात उसकी पसलियों में जमाई फिर गुर्राती हुई बोली, “बेवकूफ, गधा, बात नहीं सुनता, जबकि मैं कह चुकी हूं कि तेरी जान नहीं लूंगी। ‘चोर चोर मौसेरे भाई वाली कहावत’ नहीं सुनी है क्या?”
जवाब में उसने अपने दायें हाथ में थमा छुरा एकदम से दाईं तरफ को खड़ी अलीशा के पैर पर चला दिया, जिससे बचने की कोशिश में वह जल्दी से दो कदम पीछे खिसक गयी।
उसी वक्त हमलावर बंदर की तरह दौड़ता हुआ दरवाजा पार कर गया। वह बिल्ट इन लॉक वाला गेट था, जिसे दोनों तरफ से खोला जा सकता था, इसलिए बाहर निकलकर दरवाजा बंद करने की कोई कोशिश उसने नहीं की।
अलीशा उसके पीछे दौड़ी, तब तक वह सीढ़ियां उतरने भी लगा था। उसे रोकने का सबसे अच्छा रास्ता यही था कि अलीशा ट्रिगर दबा देती। मगर अभी उसे उम्मीद थी कि हमलावर को काबू करने में कामयाब हो जायेगी, इसलिए गोली नहीं चलाई।
दोनों आगे पीछे दौड़ते हुए कंपाउंड में पहुंचे। उनके बीच का फासला बामुश्किल दस कदमों का था। मगर उस वक्त वह कोई कम दूरी नहीं मानी जा सकती थी।
गेट से बाहर निकलते ही अपराधी ने कुंडा चढ़ाना शुरू कर दिया, तब तक अलीशा वहां पहुंचकर गेट को अपनी तरफ खींचने लगी थी, मगर कामयाब नहीं हो पाई।
फिर वह बाउंड्री के पास पहुंची और गन को कमर में खोंसने के बाद दोनों हाथ दीवार पर टिकाकर ऊपर को उचकी और कुछ सेकेंड के भीतर दीवार पर चढ़ गयी।
यहीं वह गच्चा खा गयी, हमलावर वहां से फरार होने की बजाये, बाहर घात लगाये खड़ा था। इधर वह बाउंड्री पर दिखी उधर उसने पूरी ताक से पीछे धकेल दिया, इतनी जोर से कि संभलने की तमाम कोशिशों के बावजूद वह भीतर को जा गिरी। गिरते वक्त उसका सिर एक गमले से टकराया फिर वह अपने होशो हवास खो बैठी।
ऐसा बदकिस्मत शख्स शायद ही कोई होगा, जिसे एक रात में दो अलग अलग लोगों ने खत्म करने की कोशिश की हो। या फिर खुशकिस्मत था डॉक्टर जो दोनों बार साफ बच निकला था।
थाने पहुंचकर एसआई शुक्ला ने डॉक्टर भाटिया को ही रणवीर के घायल हाथ का मुआयना करने को कहा, तो उसने बताया कि गोली उसके हाथ को जख्मी करती निकल गयी थी, इसलिए खतरे वाली कोई बात नहीं थी। फिर फर्स्ट एड बॉक्स मंगाकर वहीं उसकी मलहम पट्टी भी कर दी गयी।
तत्पश्चात रणवीर को हवालात में डालने का हुक्म देने के बाद शुक्ला ने डॉक्टर और गार्ड को इंतजार करने को कहा, फिर खुद एसओ मंजीत सिंह के कमरे में पहुंचा, जो उस वक्त टीवी पर न्यूज देख रहा था।
“बहुत बड़ा बवेला खड़ा कर दिया यार।”
“मेरी उसमें कोई गलती नहीं है सर।”
“जानता हूं नहीं है, लेकिन सुननी तो फिर भी पड़ेगी, साहब लोग बस आते ही होंगे।”
“रणवीर को छोड़ना तो अब मुमकिन नहीं हो पायेगा सर।”
“रास्ता तो नहीं दिखाई दे रहा, बाकी डीसीपी साहब की मर्जी। यहां होगा तो वही जो वह चाहेंगे, बल्कि नेता जी चाहेंगे।”
“मेरे ख्याल से तो कोई रास्ता नहीं है सर, हम चाहें भी तो अब डॉक्टर का मुंह बंद कर पाना संभव नहीं होगा। और इस बार रिपोर्ट लिखने से मना करेंगे, तो वह पक्का मीडिया की गोद में जा बैठेगा, फिर ऐसी वाही तबाही बकेगा कि जवाब देना भारी हो जायेगा, जिसके बाद साहब लोगों का कुछ बिगड़े या न बिगड़े हम जरूर सस्पेंड कर दिये जायेंगे। उनका क्या है, मामला हाथ से निकलता दिखाई दिया तो सारा दोष हमपर मढ़ देंगे।”
“जब जानता है भई तो मुंह फाड़ने ही क्यों दिया डॉक्टर को?”
“क्या कह रहे हैं सर, मैं वैसी कोई कोशिश करता तो विलेन नहीं बन जाता। फिर डॉक्टर क्या बच्चा है जो मेरे धमकाने से चुप होकर बैठ जाता। ना ही मैं जबरन उसका मुंह बंद कर सकता था।”
“ये मीडिया भी इतनी जल्दी कैसे पहुंच गयी वहां?”
“मुझे तो लगता है डॉक्टर ने ही बुला लिया होगा।”
“यही लगता है, वरना इतनी जल्दी उस बात की खबर किसी को कैसे लग सकती थी।”
“ये बताईये सर कि करना क्या है?”
“साहब को आने दे भाई, अब वही बतायेंगे कि क्या करना है।”
तभी एसीपी और डीसीपी एक साथ कमरे में दाखिल हो गये।
मंजीत सिंह उठ खड़ा हुआ, फिर शुक्ला ने पीछे देखा और एकदम से कुर्सी छोड़ दी। दोनों ने एक साथ अपने अफसरों को सेल्यूट किया, फिर डीसीपी जाकर एसओ की कुर्सी पर जम गया, एसीपी और एसओ उसके सामने बैठ गये, जबकि शुक्ला ज्यों का त्यों अपनी जगह पर खड़ा रहा।
“क्या हुआ था जयंत?”
“कंट्रोल रूम की कॉल पर मैं डॉक्टर के घर पहुंचा सर तो वहां गार्ड का सिर फूटा पाया, जिसकी उस वक्त मलहम पट्टी की जा रही थी। फिर हम लोग गार्ड को भीतर ले गये और सोफे पर लिटा दिया। उसके बाद रणवीर से दो चार सवाल करने के बाद जब वापिस लौटने लगे तो वहां मीडिया पहुंच गयी। मैंने कोशिश की थी डॉक्टर को चुप कराने की मगर कामयाब नहीं हो पाया।”
“उसने साफ कहा है कि उसकी बीवी का कत्ल विधायक जी ने कराया था, ये भी कि रणवीर उसे खत्म करने के इरादे से वहां पहुंचा था, तुम्हें क्या लगता है?”
“बेशक वह डॉक्टर का कत्ल करने ही गया था सर।”
“तो फिर मार क्यों नहीं दिया, इंतजार किस बात का कर रहा था?”
“क्योंकि तभी एमपी खट्टर साहब की तरफ से कोई वहां पहुंच गया। वह एक लड़की थी जिसने गार्ड की बुरी हालत और दरवाजा खुला पाया तो दौड़ती हुई भीतर पहुंच गयी, जहां रणवीर डॉक्टर पर गोली चलाने जा ही रहा था, कि तभी लड़की ने हाथ का निशाना लेकर फायर झोंक दिया।”
“खट्टर साहब का डॉक्टर से क्या लेना देना है?”
“कुछ सुनी सुनाई बातें पता हैं सर।”
“बताओ।”
“कुछ रोज पहले विधायक जी की तरफ से चार लोग डॉक्टर के नर्सिंग होम पहुंचे, और डॉक्टर से 12 लाख की वसूली करने की कोशिश की, मगर उनकी धमकी में आने की बजाये डॉक्टर ने पुलिस को फोन कर दिया, जिसके बाद पहले उन चारों को हिरासत में लिया गया फिर बाद में छोड़ दिया गया।”
“फिर क्या हुआ?”
“डॉक्टर को सबक सिखाने के लिए विधायक जी ने - मैंने सिर्फ सुना भर है सर - उसकी बीवी का कत्ल करा दिया। जिसके बाद वह बुरी तरह खौफजदा होकर एमपी साहब के पास पहुंचा और उनसे हिफाजत की मांग की। आप तो जानते ही हैं कि विधायक जी और खट्टर साहब के बीच सालों से ठनी हुई है, इसलिए डॉक्टर को फौरन प्रोटक्शन देने का फैसला कर लिया। और उसके बाद एक लड़की को जो ट्रेंड जान पड़ती है, डॉक्टर की सुरक्षा का जिम्मा सौंप दिया।”
“एक लड़की को?”
“जी हां।”
“रणवीर क्या कहता है?”
“पहले तो उसने बताया कि डॉक्टर ने उसे खुद फोन कर के अपने घर बुलाया था, जहां वह उसे फंसाने की साजिश रचे बैठा था। लेकिन बाद में जब मैंने विश्वास में लेकर उससे सवाल किया तो उसने कबूल कर लिया कि ओमकार के कहने पर डॉक्टर का कत्ल करने पहुंचा था।”
“विधायक जी को इस झमेले से दूर रखने का कोई रास्ता?”
“दिखाई तो नहीं देता सर।”
“निकालना पड़ेगा, इसलिए दिमाग दौड़ाओ, सब लोग दौड़ाओ, इस बात को अपने भेजे में बैठाकर कि डॉक्टर का कत्ल करने के लिए विधायक जी ने किसी को नहीं भेजा था। मतलब ये खट्टर साहब की कोई चाल है, जो उन्हें बदनाम करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।”
सुनकर शुक्ला मन ही मन पिचपिचाकर रह गया।
कमरे में पिन ड्रॉप सन्नाटा फैला हुआ था, जो पता नहीं कब तक बना रहता, अगर विधायक चरण सिंह वहां नहीं पहुंच जाता। वह ओमकार के साथ आया था और उस वक्त बहुत बुरे मूड में दिखाई दे रहा था।
सब लोग उसके स्वागत में उठकर खड़े हो गये।
नेता आगे बढ़कर एक कुर्सी पर बैठ गया, फिर बारी बारी से सबको घूरने के बाद डीसीपी की तरफ देखकर बोला, “चल क्या रहा है भगतराम? या आंख कान बंद कर के ड्यूटी करने लगे हो आजकल? मतलब कुछ खबर ही नहीं लगती कि तुम्हारे इलाके में क्या हो रहा है।”
“सॉरी सर, लेकिन जो हुआ उसपर हमारा कोई अख्तियार नहीं था। घटनास्थल पर पहुंचने से पहले जयंत नहीं जानता था कि वहां किसे पकड़कर रखा गया है, और इस बात की खबर लगने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता था कि मीडिया वहां पहुंचने वाली थी। इसलिए चाहकर भी जो हुआ उसे रोक नहीं पाये हम।”
“गलती हो या न हो, नाम तो हमारा खराब कर ही दिया न?”
“हम अभी उसी बात पर डिस्कस कर रहे थे सर, कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे।”
“यानि अभी तक कुछ नहीं सूझा?”
“अफसोस कि नहीं सूझा।”
“गिरफ्तार किसने किया था रणवीर को?”
“मैंने किया था सर, सॉरी - शुक्ला बोला - लेकिन उस वक्त नहीं जानता था कि बाहर मीडिया खड़ी है, वरना मैं किसी को उसकी हवा भी नहीं लगने देता।”
“अरे उसे बढ़ चढ़कर बोलने से तो रोक सकते थे?”
“मैंने कोशिश की थी सर, लेकिन जब मीडिया बुलाई ही उसने थी तो जाहिर है वह बकवास भी उसने कर के ही रहना था। अब कैमरे के आगे मैं जबरदस्ती तो उसे चुप नहीं करा सकता था न?”
“करा देते, बाद में जो होता मैं देख लेता।”
“सॉरी सर।”
“तो कोई रास्ता नहीं है?” नेता ने फिर से डीसीपी से सवाल किया।
“अगर उसका जेल जाना आपको कबूल हो जाये सर, तो हम पूरे मामले से आपका नाम अलग रखने की कोशिश कर सकते हैं।”
“कोशिश?” नेता की भवें तन सी गयीं।
“कर के रहेंगे सर।”
“हूं...डॉक्टर कहां है अभी?”
“थाने में ही है सर।” शुक्ला ने बताया।
“बुलाकर लाओ।”
जवाब में उसने डीसीपी की तरफ देखा, फिर उसकी सहमति पाकर वहां से बाहर निकल गया। और थोड़ी देर बाद जब वापिस लौटा तो डॉक्टर उसके साथ था।
नेता ने सिर से पांव तक उसे गहरी निगाहों से देखा फिर सवाल किया, “तो तुम हो वो डॉक्टर, भाटिया नर्सिंग होम के ऑनर?”
“जी हां मैं ही हूं।”
“पंगा क्यों ले रहे हो?”
“मैं नहीं ले रहा, आप ले रहे हैं।”
नेता उसके लहजे पर थोड़ा हड़बड़ा सा गया।
“जानते तो हो न कि मैं कौन हूं?”
“जी हां एमएलए हैं, साथ में मुट्ठी भर गुंडों के सरदार भी।”
सुनकर ओमकार गुस्से से तिलमिलाता हुआ डॉक्टर की तरफ बढ़ा, तभी शुक्ला दोनों के बीच में आ गया, “सर प्लीज हालात को समझिये और शांत रहिए।”
“इसकी लैंग्वेज सुनी तुमने?”
“बिल्कुल सुनी सर, लेकिन आप वही करने जा रहे हैं जो ये चाहता है कि करें, इसलिए रिक्वेस्ट कर रहा हूं, अभी के लिए बर्दाश्त कर लीजिए प्लीज।”
सुनकर ओमकार ने खा जाने वाली निगाहों से डॉक्टर को घूरा फिर उससे दो कदम दूर हटकर खड़ा हो गया।
“बात ये है डॉक्टर कि - नेता बोला - आदमी गधा हो तो उसे अक्ल दी जा सकती है। मगर सयाना आदमी गधों जैसी बात कर रहा हो तो उसे कोई अक्ल नहीं बांट सकता। मतलब प्यार मोहब्बत से समझाने पर हमारी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही तो उसमें भला हम क्या कर सकते हैं। ना कि कोई पर्सनल दुश्मनी है हमारी तुम्हारे साथ।”
“पर्सनल तो बन चुकी है सर, मैं अपनी वाईफ के कातिलों को आजाद घूमते नहीं देख सकता, चाहे वह कोई भी क्यों न हों?”
“तो मत देखो, जाकर गला घोंट दो उनका, हम क्या मना करने आ रहे हैं?”
“वह आदमी आपके ही हैं।”
सुनकर नेता ने ओमकार की तरफ देखा, “क्या कह रहा है ये?”
“गलतफहमी का शिकार हो रहा है - कहने के बाद वह डॉक्टर से मुखातिब हुआ - तुम्हारी बीवी के कत्ल में हमारा कोई हाथ नहीं है। जल्ली और निन्नी ने तुमसे जो कुछ भी कहा था वह झूठ था, जो उन दोनों ने बस तुम्हारे डराने के लिए कह दिया था।”
“अगर ऐसा है तो जो आज हुआ वह क्या था?”
ओमकार से जवाब देते नहीं बना।
“जो किया है, करवाया है, उसे सीना ठोंककर कबूल करने की हिम्मत रखो ओमकार सिंह, क्योंकि तुम्हारे मुकरने भर से मैं तुम्हें निर्दोष नहीं मान लूंगा।”
सुनकर वह बुरी तरह तिलमिलाकर रह गया।
“अब आप लोग - डॉक्टर ने डीसीपी की तरफ देखा - मुझे दो टूक बताईये कि कंप्लेन दर्ज करेंगे या नहीं, अगर नहीं करेंगे तो साफ कहिये ताकि मैं अपने घर जा सकूं। यहां चल रही नौटंकी का हिस्सा बनने का मेरा कोई इरादा नहीं है, और ना ही किसी का इतना खौफ है मुझे कि उससे डरकर अपनी बीवी के कत्ल की बात भूल जाऊं।”
“देखो डॉक्टर - नेता इस बार बड़े ही गंभीर लहजे में बोला - अगर ओमकार ये कहता है कि तुम्हारी बीवी का कत्ल इसने नहीं कराया है तो समझ लो नहीं ही कराया है। वैसे भी औरतों पर हमला करवाना नहीं सीखा हमने। फिर भी कराया होता तो सीना ठोंककर उस बात को कबूल कर लेता। और तुम हो क्या, औकात क्या है तुम्हारी, जो तुम्हारे डर से ये झूठ बोलने को मजबूर हो जाये? सच तो ये है कि हम जब चाहें तुम्हें मच्छर की तरह मसल सकते हैं।”
“औकात तो बहुत बड़ी है एमएलए साहब, ना होती तो इतनी रात गये आपको थाने का मुंह नहीं देखना पड़ा होता। ना ही यहां बैठे आप सफाईयां दे रहे होते।”
“हद में रहकर बात कर डॉक्टर।” ओमकार गुर्राया।
“अच्छा मैं अपनी हद में रहूं और तुम लोग लगातार अपनी हदें पार करते रहे, ऐसा तो मैं नहीं होने दूंगा। चाहे फरीदाबाद की पूरी पुलिस फोर्स ही तुम्हारे हक में क्यों न खड़ी हो जाये। और ये बात बिल्कुल मत भूलना कि पुलिस का महकमा सैक्टर 37 के थाने पहुंचकर खत्म नहीं हो जाता।”
“मुझे खूब पता है तू किसके दम पर उछल रहा है। मगर गलत कर रहा है। खट्टर का तू इतना सगावाला नहीं हो गया है जो जीवन भर तुझे प्रोटक्शन देता रहेगा। फिर देता भी रहे तो उससे क्या हो जायेगा, तू क्या हमेशा हमेशा के लिए उसके घर में जाकर छिप जायेगा?”
“अहम बात ये है ओमकार सिंह कि मेरी मौत जैसे आनी है वैसे ही आयेगी, उसके रास्ते ना तो तुम बदल सकते हो ना कि मैं। और जब मौत आनी ही है तो उसके बारे में सोचकर दुबला क्या होना?”
“मौत तेरी तरफ बढ़ नहीं रही है, तू निमंत्रण दे रहा है उसे।”
“चलो वही सही, मुझे उस मुद्दे पर कोई बहस नहीं करनी तुमसे। बल्कि तुमसे कोई बात ही नहीं करनी, क्योंकि मैं उस काबिल ही नहीं समझता तुम्हें। हां डीसीपी साहब से मैं इतना जरूर सुनना चाहता हूं कि मेरी कंप्लेन दर्ज की जायेगी, या नहीं की जायेगी।”
डीसीपी ने नेता की तरफ देखा।
“कर लो भई, वैसे भी हम नहीं जानते कि रणवीर ने इसकी जान लेने की कोशिश क्यों की थी? जरूर कोई पर्सनल रंजिश रही होगी, जिसका बदला लेने वह इसके घर पहुंच गया होगा। फिर हमारे यहां आठ घंटे की ड्यूटी करने के बाद जाकर कोई कत्ल कर दे, या बैंक में डाका डाल दे उसके लिए हम थोड़े ही जिम्मेदार हो जायेंगे।”
“सुन लिया?” डीसीपी ने डॉक्टर से पूछा।
“हां सुन लिया, लेकिन क्या वाकई में नेता जी रणवीर के किये धरे से मुकर पायेंगे? मेरा जवाब है नहीं, मगर उससे क्योंकि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, इसलिए फिलहाल मैं रणवीर के खिलाफ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज करवाकर ही संतुष्ट हूं, और इनका इंसाफ ऊपर वाले पर छोड़ता हूं, जो बहुत जल्द होकर रहेगा, क्योंकि हमेशा होता है।”
“हम उस वक्त का इंतजार करेंगे - कहकर नेता ने डीसीपी की तरफ देखा - इसकी कंप्लेन लिखो और रणवीर से पूछताछ कर के जानने की कोशिश करो कि उसने इसकी जान लेने की कोशिश क्यों की थी। क्योंकि कानून के आड़े आने का मेरा कोई इरादा नहीं है। जिसने गुनाह किया है उसे सजा मिलनी ही चाहिए।”
“यस सर, थैंक यू सर।”
तत्पश्चात नेता अपने राईट हैंड के साथ वहां से निकल गया।
बेहोशी से उबरने में अलीशा को पंद्रह मिनटों से ज्यादा का वक्त लग गया। आंख खुली तो सब धुंधला धुंधला सा नजर आया। फौरन ये तक याद नहीं आया कि वह वहां क्या कर रही थी। और जब कुछ सोचने समझने के काबिल हुई तो उठकर किसी नशेड़ी तरह झूमती हुई हॉल में दाखिल हो गयी। वहां सेंटर टेबल पर डॉक्टर का इस्तेमाल किया गया एक कांच का गिलास और व्हिस्की की बोतल रखी थी। उसने बोतल को खोला और मुंह से लगाकर गटागट कई घूंट अपने हलक में उतार गयी। फिर जोर जोर से खांसती हुई सोफे पर बैठ गयी।
कुछ क्षण यथा स्थिति में बने रहने के बाद उसने रिमोट उठाकर टीवी ऑन किया और उसपर न्यूज चैनल लगा दिया। पहले ही चैनल पर उसे रणवीर की गिरफ्तारी की खबर दिखाई दे गयी। फिर जब पत्रकार ने जर्नलिस्ट मुकुल और उसके एडिटर के अपहरण वाली बात कही तो वह थोड़ा चौंक सी गयी, और मोबाईल निकालकर गूगल पर उस खबर को सर्च कर के गहराई से अध्ययन करने लगी।
खबर के मुताबिक कुछ लोगों ने मुकुल के घर को आग लगा दी थी, और वह गायब था, जबकि निगम के अपहरण के मामले में एक करोड़ की फिरौती मांगी गयी थी, लेकिन अभी तक अपहर्ताओं ने ये नहीं बताया था कि पैसे कहां पहुंचाने थे। ये भी कि उसके अपहरण में मथुरा के एक बिजनेसमैन का हाथ होने की पूरी पूरी उम्मीद थी, जिससे पुलिस की पूछताछ चल रही थी। इस बात का भी बड़े ही विस्तार से उल्लेख किया गया था कि गायब होने से पहले मुकुल एमएलए चरण सिंह पर स्टोरी कर रहा था, और उसकी बातों से लगता था कि उसने विधायक के खिलाफ कुछ विस्फोटक जानकारियां खोज निकाली थीं।
बरबस ही अलीशा का ध्यान पाली गांव की तरफ चला गया।
‘क्या नेता ने ही दोनों का अपहरण करा लिया था?’
‘क्या उन्हें पाली गांव में कैद कर के रखा गया था?’
आगे वह जैसे जैसे उस बात पर विचार करती गयी, उसका यकीन बढ़ता चला गया। हालांकि गारंटी कर सकने लायक उसके पास कुछ भी मौजूद नहीं था।
थोड़ी देर बाद डॉक्टर हॉल में दाखिल हुआ और उसके सामने आकर बैठ गया।
“तुम गयी नहीं अभी तक?”
“जाहिर है, तभी तो यहां हूं।”
“ठीक तो हो?”
“हां क्यों?”
“तुम्हारी सूरत पर फटकार बरस रही है।”
“आपके जाने के बाद भी यहां कुछ हुआ था डॉक्टर।”
“क्या?”
“पहले ये बताईये कि थाने में क्या रहा?”
जवाब में उसने पूरा किस्सा सुना दिया।
“गार्ड कहां है?”
“एक ऑटो में बैठाकर उसे उसके घर के लिए रवाना कर आया हूं।”
“रिपोर्ट सच में दर्ज कर ली गयी है, या महज आश्वासन दिया है आपको?”
“नहीं एफआईआर दर्ज करवाकर आ रहा हूं।”
“ये तो कमाल ही हो गया।”
“शुक्ला की वजह से मुमकिन हुआ, उसने मीडिया को इंफॉर्म नहीं कर दिया होता, तो रिपोर्ट भी लिखी जाने का कोई मतलब नहीं था।”
“मुझे हैरानी हो रही है कि उसे ऐसा करना सूझ गया।”
“ईमानदार आदमी कुछ न कुछ तो कर के रहता है। वह जानता था कि रणवीर पर केस बना पाना मुमकिन नहीं होगा, इसलिए मीडिया को बीच में ले आया - कहकर डॉक्टर ने पूछा - अब तुम अपनी बताओ, क्या हुआ था?”
अलीशा ने बता दिया।
“कमाल है, मतलब क्या हुआ इसका?”
“यही कि कोमल का मर्डर नेता के इशारे पर नहीं हुआ था। सच पूछिये तो मैं उसी बात की जानकारी देने यहां आई थी, जब बाहर गार्ड को घायल देखकर सावधानी बरतना सूझ गया।”
“थैंक यू, तुम न होतीं तो आज रात मेरा अंत निश्चित था।”
“दो बार मरे होते, एक बार तब जब जिंदा होते, और दूसरी बार मर चुकने के बाद मरे होते।” कहते हुए वह जोर से हंस पड़ी।
“ये बहुत हैरानी की बात है अलीशा, कि कोमल के कत्ल में नेता का हाथ नहीं है। हालांकि उसके चमचे ने थाने में बड़े दावे के साथ वह बात कही थी, मगर तब मुझे जरा भी यकीन नहीं आया था।”
“अब कर लीजिए, क्योंकि मुझे गारंटी हो चुकी है।”
“वो तो कर ही लिया, लेकिन सवाल ये है कि कातिल है कौन?”
“उस मामले में मेरा शक दो लोगों पर है, पहले आप और दूसरा अमन सिंह।”
“अच्छा! ज्यादा किसपर है?”
“आप पर, क्योंकि अमन सिंह को सीढ़ियों की तरफ बढ़ते किसी ने नहीं देखा था। लेकिन आपके पास मौका ही मौका था, आपके लिए पार्टी के दौरान कत्ल करना भी जरूरी नहीं था। डॉक्टर हैं इसलिए अच्छी तरह से जानते थे कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कत्ल के वक्त को पिन प्वाइंट कर पाना लगभग नामुमकिन होता है। वह रिपोर्ट हमेशा एक ड्यूरेशन बयान करती है, जैसे कत्ल इतने बजे से लेकर इतने बजे के बीच किया गया था।”
“ऐसा तुम इसलिए कह रही हो क्योंकि कोमल की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं देखी, देखी होती तो तुम्हें मालूम होता कि उसका कत्ल साढ़े दस से ग्यारह के बीच ही किया गया था, मतलब जिस ड्यूरेशन का हवाला तुम देकर हटी हो वह कोमल के मामले में महज तीस मिनट का है, और उस दौरान यहां पार्टी ही चल रही थी।”
“कमाल है इतना क्लोज?”
“अक्सर हो जाता है, खास कर के अगर मालूम हो कि मरने वाले ने आखिरी बार खाना कब खाया था, तो डॉक्टर ये जांच करते हैं कि वह खाना किस हद तक पच चुका था। हर चीज पाचन के लिए अलग वक्त लेती है, जो डॉक्टर को पता होता है, उसके आधार पर मौत का वक्फा बहुत ज्यादा क्लोज किया जा सकता है। कई बार तो कील ठोंककर बता दिया जाता है कि अमुक व्यक्ति की मौत इतने बजे हुई थी।”
“अब ज्ञान बघार ही रहे हैं डॉक्टर साहब तो ये भी बता दीजिए कि पोस्टमॉर्टम रात में क्यों नहीं किया जाता? अभी तक बस सुना ही है इस बारे में, कभी जवाब हासिल करने की कोशिश नहीं की।”
“रात के समय पोस्टमार्टम इसलिए नहीं किया जाता क्योंकि प्रकाश के लिए इस्तेमाल होने वाली लाइटों में घाव का रंग बदल जाता है। लाल रंग के घाव बैंगनी रंग के दिखने लगते हैं। मतलब गलतफहमी की बहुत ज्यादा गुंजाईश होती है।”
“ओह।”
“लेकिन तुम मुझपर शक क्यों कर रही हो, मेरे पास तो कोमल के कत्ल का कोई मोटिव नहीं था?”
“मैंने कहा था न डॉक्टर कि दाई से पेट नहीं छिपाया जाता। समझ लीजिए इस दाई ने आपके फूले हुए पेट को भांप लिया है। आपको पता लग गया था कि कोमल और उसके ममेरे भाई - जो कि उसका भाई नहीं था - के बीच अफेयर चल रहा है। रिश्तों की आड़ लेकर वह साहिल को अपने घर, यानि यहां भी बुला लिया करती थी। मगर रोज रोज की चोरी एक दिन तो पकड़ी ही जाती है। हुआ भी यही, असली साहिल जो कि सच में कोमल के मामा का लड़का था, एक रोज आपके क्लिनिक पहुंच गया। जिसके बाद सच्चाई की खबर आपको लगने में क्या देर होनी थी।”
डॉक्टर का चेहरा लटक गया।
“आपने सीधा तलाक ही क्यों नहीं ले लिया डॉक्टर?”
“वह म्युचल अंडस्टेंडिंग के तहत डिवोर्स के लिए राजी नहीं हो रही थी - डॉक्टर गहरी सांस खींचकर बोला - ऊपर से उसे मेरे और मीनाक्षी के संबंधों की भी खबर लग गयी थी, इसलिए मैं तो क्या उसपर हावी होता उल्टा उसने ये कहकर मेरे होश उड़ा दिये कि अगर मैंने उससे तलाक लेने की कोशिश की, तो जाकर अमन सिंह को मेरे और मीनाक्षी के संबंधों की सच्चाई बता देगी।”
“वॉव इसे कहते हैं पलटवार, तभी ये राय दी गयी है कि एक नंगे आदमी को दूसरे को नंगा नहीं कहना चाहिए। वैसे मुझे हैरानी है कि आप जैसा आदमी अपनी बीवी की धमकी से डर गया।”
“डरना ही था यार, मैं भला मीनाक्षी का घर उजड़ते कैसे देख सकता था, फिर उसमें बदनामी भी तो थी। मैं क्या उससे शादी कर सकता था? मेरा जवाब है नहीं, करता तो इतनी थू थू होती कि किसी को शक्ल दिखाना मुश्किल हो जाता।”
“लेकिन दबाव वह बराबर बना रही थी आप पर शादी के लिए।”
“चाहती थी कि मैं उससे शादी करने को तैयार हो जाऊं, जिसके बाद वह अमन सिंह से तलाक ले लेती, मगर उस तरह का आश्वासन मैंने कभी नहीं दिया उसे। उल्टा एक बार समझाया जरूर था कि वैसा करना गलत होगा, दोनों ही परिवारों की बदनामी होगी, और अमन सिंह के साथ मेरी जो दुश्मनी बन जायेगी सो अलग।”
“जो कि उसकी समझ में नहीं आया।”
“ऐसा नहीं है अलीशा, वह बहुत समझदार औरत थी। अपने भले बुरे का एहसास भी उसे बखूबी था, इसलिए एक दो बार से ज्यादा शादी वाली बात उसने कभी नहीं कही।”
“समझदार औरतें पराये मर्दों के साथ रंगरेलियां नहीं मनाया करतीं डॉक्टर साहब।”
“वह भी नहीं मनाती थी।”
“अच्छा फिर तो आप दोनों कमरे में बंद होकर भजन कीर्तन करते होंगे, है न?”
“तंज मत कसो।”
“तो और क्या करूं, एक तरफ आप उससे अफेयर की बात कबूल कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ये कहते हैं कि वह आपके साथ रंगरेलियां नहीं मनाती थी, दोनों बातें कैसे संभव हैं डॉक्टर साहब?”
“मेरा मतलब है, हम दोनों के संबंध हमारी जरूरत थे, ना कि अय्याशी।”
“बहुत बढ़िया, अब लगे हाथों जरा अपने कहे का अर्थ भी समझा दीजिए।”
“कोमल के साथ मेरी सैक्स लाईफ किस कदर डंवाडोल थी, वह पहले ही बता चुका हूं तुम्हें। कुछ कुछ वैसा ही हाल अमन सिंह और मीनाक्षी का भी था। शराब में अपनी अक्ल और मर्दानगी, दोनों घोलकर पी गया था अमन। ऐसे में मैं और मीनाक्षी एक दूसरे के करीब आ गये तो उसमें गलत क्या था।”
“गलत ये था डॉक्टर साहब कि आप दोनों अपने अपने जीवनसाथी को चीट कर रहे थे।”
“उपदेश मत दो यार, प्रैक्टिकल बात करो।”
“ओके, तो प्रैक्टिकल बात ये है कि एक तरफ आप कोमल से तंग आकर उससे पीछा छुड़ाना चाहते थे, तो दूसरी तरफ मीनाक्षी द्वारा निरंतर बनाया जा रहा शादी का दबाव आपके होश उड़ाये जा रहा था। मतलब दोनों ही औरतें लगातार आपके लिए मुसीबत बनती जा रही थीं। इसलिए आपने एक योजना बनाई, और एक एक कर के दोनों को अपने रास्ते से हटा दिया।”
“नहीं, तुम यकीन करो या न करो लेकिन कोमल का कत्ल मैंने नहीं किया था। बल्कि उतनी हिम्मत मैं चाहकर भी अपने अंदर पैदा नहीं कर सकता था।”
“और कितना झूठ बोलेंगे डॉक्टर साहब?”
“मैं कोई झूठ नहीं बोल रहा, फिर क्यों बोलूंगा झूठ? तुम क्या मेरा कहा जाकर पुलिस को बता दोगी? और बता भी दोगी तो अपनी बात को साबित कैसे करोगी?”
“हां ये तो ठीक कहा आपने, अलग से कोई एविडेंस तो नहीं है मेरे पास।”
“फिर जरा सोचकर देखो कि अगर कातिल मैं होता तो मेरे कत्ल की कोशिश क्यों की जाती? अभी जिस दूसरे शख्स के बारे में तुमने बताया है, वह मैं तो नहीं हो सकता न, और नहीं हो सकता तो इसका मतलब यही बनता है कि कातिल कोई और है, जो आज रात यहां मुझे खत्म करने पहुंचा था।”
“तर्क बढ़िया दे लेते हैं।”
“बात सच की है अलीशा ना कि तर्क की, और सच यही है कि कोमल को मैंने नहीं मारा, मीनाक्षी का कत्ल भी मैंने नहीं किया। ना ही उन दोनों की मौत को लेकर मुझे अमन सिंह पर कोई शक है। अगर उसने कत्ल करना होता तो मेरा करता, जिसका उसकी बीवी के साथ अफेयर था, ना कि मेरी बीवी का।”
“और तो कोई दिखाई नहीं देता।”
“दिखेगा, मुझे यकीन है कि अंत पंत तुम हत्यारे तक पहुंचने में कामयाब हो जाओगी।”
“मैं आपके यकीन पर खरा उतरने की कोशिश बराबर कर रही हूं डॉक्टर, लेकिन सच यही है कि अभी तक कुछ समझ में नहीं आया। बस ले देकर आप ही हैं जिसके पास मोटिव और मौका दोनों उपलब्ध था।”
“मेरे बारे में सोचना बंद कर दो, वरना बस भटकती ही रहोगी।”
“समझ लीजिए कर दिया, अब मैं शुक्ला जी को फोन करने जा रही हूं।”
“किसलिए?”
“ऊपर बेडरूम में फर्श पर दो जगह हत्यारे के हाथ पड़े थे, वह दस्ताने नहीं पहने था ये बात मैंने साफ देखी थी। और वहां क्योंकि आपकी सूरत जितनी ही चिकनी टाईल्स लगी हुई हैं इसलिए फिंगरप्रिंट बरामद हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है।”
“उपमा देने के लिए कितने वाहियात शब्द इस्तेमाल करती हो तुम, ‘मेरी सूरत जितनी चिकनी टाईल्स’ ये तो हद ही हो गयी।”
“चिकने तो आप बराबर हैं डॉक्टर साहब।”
“शटअप।”
“अरे मैं सच कह रही हूं।”
“तुम शुक्ला को फोन कर लो यार।”
“मतलब आप उससे पूछेंगे कि चिकने हैं या नहीं?”
सुनकर डॉक्टर ने क्षण भर को उसे घूरकर देखा, फिर अगले ही पल हंसता हुआ बोला, “तुम्हारे जैसी दूसरी लड़की तो क्या ही होगी इस दुनिया में।”
“थैंक यू सर।” कहते हुए उसने अपने मोबाईल पर शुक्ला का नंबर डॉयल कर दिया। दो तीन बार रिंग जाने के बाद जब दूसरी तरफ से कॉल अटैंड कर ली गयी तो अलीशा ने उससे किसी फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट के साथ डॉक्टर के घर पहुंचने की रिक्वेस्ट की, जो उसे कबूल तो फौरन हो गयी, मगर तुरंत आने में असमर्थता जाहिर करते हुए एक घंटा बाद वहां पहुंचने को बोल दिया।
सवा तीन बजे के करीब जयंत शुक्ला फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट के साथ डॉक्टर के घर पहुंचा, जिसके बाद अलीशा उनके साथ ऊपर डॉक्टर के बेडरूम में गयी और एक्सपर्ट को बता दिया कि उसे कहां कहां से फिंगर प्रिंट्स उठाने थे।
तत्पश्चात वह और शुक्ला नीचे डॉक्टर के पास जाकर बैठ गये।
“हुआ क्या है अलीशा जी? डॉक्टर साहब के बेडरूम से किसके फिंगर प्रिंट्स हासिल होने की उम्मीद कर रही हैं आप?”
जवाब में उसने पूरी कहानी सुना दी, सुनकर शुक्ला हकबकाया सा बहुत देर तक उसकी शक्ल देखता रह गया, फिर बोला, “अजीब पहेली है।”
“हां वो तो है।”
“लेकिन इसका मतलब तो ये बनता है कि कोमल मैडम को विधायक के किसी आदमी ने नहीं मारा था।”
“बनता है, लेकिन रणवीर तो रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया है।”
“बेशक किया गया है मैडम, लेकिन सवाल ये है कि अगर उसने मिसेज भाटिया की हत्या नहीं की थी, तो डॉक्टर साहब की जान लेने यहां क्यों पहुंच गया?”
“मैं नहीं जानती, लेकिन कोमल की हत्या के बारे में मैं श्योर हूं कि वह बाद में यहां पहुंचे शख्स का कारनामा था। क्योंकि देखने में वह ठीक वैसा ही दिखता था जैसा हमने नर्सिंग होम की सीसीटीवी फुटेज में देखा था, कपड़े भी वही पहने हुए था।”
“चलिए मान लिया कि कोमल मैडम को उसने ही खत्म किया था, मीनाक्षी की हत्या भी उसी ने की थी, मगर डॉक्टर साहब को कत्ल करने की कोशिश क्यों की?”
“अगर कातिल हम अमन सिंह को मान लें तो जवाब सामने है। पहले उसने कोमल को खत्म कर के डॉक्टर साहब को तड़पने पर मजबूर किया, फिर अपनी बीवी की हत्या कर के इन्हें दूसरी बार तड़पाया, और आज इनको खत्म कर के अपना बदला पूरा कर लेना चाहता था, बस कामयाब नहीं हो पाया।”
“तुमने इन्हें सब बता दिया?” डॉक्टर ने हैरानी से पूछा।
“जी हां, क्योंकि बताना जरूरी था।”
“मेरी पर्सनल बातें शेयर कर दीं?”
“इसलिए कर दी क्योंकि मीनाक्षी मर चुकी है डॉक्टर।”
“बहुत गलत किया।”
“अरे अब उस बात को छिपाकर भी आपको क्या हासिल होना है?”
इस बार डॉक्टर ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“बाहर गार्ड को न देखकर, या दरवाजा खुला पाकर हत्यारे को कोई शक क्यों नहीं हुआ अलीशा?” शुक्ला ने पूछा।
“हुआ होगा, मगर उसने सोच लिया होगा कि दरवाजा गलती से खुला रह गया था, और गार्ड किसी वजह से आज ड्यूटी पर नहीं आया था। मतलब गेट का खुला होना, उसे सुनहरा मौका जान पड़ा था, वरना बाउंड्री फांदकर भीतर दाखिल होना पड़ा होता।”
“कल खबर लेता हूं मैं इस अमन सिंह की।”
“जरूर लीजिएगा, मगर उससे पहले आपको इस बात में कोई भेद खोजना होगा कि पार्टी के दौरान अधिकतर वक्त वह सोफे पर पड़ा रहा था। क्योंकि एक साथ दो जगहों पर कोई नहीं हो सकता। और अभी तक हर किसी ने यही कहा है कि अमन सिंह यहां बेसुध पसरा हुआ था। बड़ी हद अनिकेत त्रिपाठी की बेटी पिंकी कहती है कि उसने दो बार उसे सोफे से उठते देखा था, मगर यहां से सीढ़ियों की तरफ बढ़ते तो फिर भी नहीं देखा।”
“अभी तक सब ने वह कहा है मैडम जो कहना चाहते थे, अब वो कहेंगे जो मैं उनसे सुनना चाहूंगा। मतलब सच बोलेंगे, बहुत बरत ली मैंने ढिलाई इस केस में, बहुत कर लिया सबको सर सर, अब पुलिसिया अंदाज दिखाने की जरूरत है।”
तभी एक्सपर्ट ने वापिस लौटकर बताया कि दो क्लियर फिंगर प्रिंट्स उसके हाथ लगे हैं, जो हालिया बने जान पड़ते हैं।
“ठीक है मुझे मेल कर देना, और इस बात को खुद तक ही सीमित रखना प्लीज।”
“डोंट वरी यार, तुम्हारे लिये कुछ भी।”
तत्पश्चात जयंत शुक्ला उठकर उसके साथ हो लिया।
उसके पीछे बहुत देर तक वहां सन्नाटा पसरा रहा फिर अलीशा बोली, “मेरा दिल कह रहा है डॉक्टर कि अब ये भसड़ बस खत्म होने ही वाली है।”
“नहीं भसड़ तो अब पहले से कहीं बढ़ती दिखाई दे रही है। चरण सिंह और ओमकार इतनी आसानी से मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे। आज एक रणवीर के फेल हो जाने का मतलब ये नहीं हो जाता कि दोबारा मेरी जान लेने की कोशिश ही नहीं की जायेगी। ऊपर से जज्बातों में बहकर थाने में उन्हें हड़का आया हूं सो अलग।”
“ओह तो अब डॉक्टर साहब को डर लग रहा है?”
“नहीं, क्योंकि मुझे यकीन है कि मौत जब आनी है तभी आयेगी, उसका वक्त कोई नहीं बदल सकता। फिर चाहे जिस रास्ते से भी आये। हां इतना जरूर चाहता हूं कि वैसा वक्त आने से पहले कोमल के हत्यारे का पता लग जाये, वरना चैन नहीं मिलेगा मुझे।”
“डोंट वरी, सब ठीक हो जायेगा, बल्कि अंधेरे में रोशनी की एक किरण मुझे दिखाई देने भी लगी है, यानि कातिल अब गिरफ्तार हुआ ही समझिये - कहती हुई वह उठ खड़ी हुई - आपके लिए चेतावनी है डॉक्टर साहब कि लापरवाही बरतना बंद कीजिए, ये सोचना बेवकूफी है कि मौत जब आनी होगी आकर रहेगी। मैंने पहले भी कहा था कि कुछ दिनों के लिए कहीं और शिफ्ट हो जाईये, जिसपर आपने ध्यान नहीं दिया।”
“कल से मैं नर्सिंग होम में ही रहना शुरू कर देता हूं।”
“उस जगह आपका कत्ल कर देना और आसान होगा।”
“ठीक है फिर कोई और बंदोबस्त कर लूंगा।”
“अच्छा करेंगे, अब चलती हूं, दरवाजा बंद कर लीजिए।” कहकर वह बाहर की तरफ बढ़ गयी।
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