सुनील टैक्सी पर यूथ क्लब पहुंचा ।
एक वेटर क्लब के द्वार पर खड़ा था । सुनील को टैक्सी से निकलता देखते ही लपककर सुनील के पास पहुंचा ।
“साहब !” - वेटर व्यग्र स्वर से बोला ।
“क्या है ?” - सुनील तनिक झुंझलाये स्वर से बोला ।
“रमाकांत साहब का फोन आया था । उन्होंने बोला है कि अगर आप क्लब में वापिस आयें तो मैं आपको फौरन लिंक रोड के इण्डियन आयल के पेट्रोल पम्प पर भेज दूं ।”
“ठीक है ।” - सुनील बोला और बिना एक क्षण भी नष्ट किये वापिस टैक्सी में बैठ गया । रमाकांत का एकाएक शंकर रोड से गायब हो जाना महत्व रहित बात नहीं थी, इसलिये देर हो जाने से गड़बड़ हो सकती थी ।
“लिंक रोड ।” - सुनील टैक्सी ड्राइवर से बोला - “जल्दी ।”
टैक्सी यूथ क्लब के कम्पाउण्ड से बाहर निकली और सुनसान रात से उजाड़ सड़क पर तेजी से भाग निकली ।
सुनील ने घड़ी देखी । दो बजने को थे । उसकी आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं । उसने जोर से आंखें मिचमिचायीं और एक सिगरेट सुलगा ली । वह सिगरेट के लम्बे-लम्बे कश लेने लगा ।
लिंक रोड पर इण्डियन आयल के फिलिंग एण्ड सर्विस स्टेशन के सामने टैक्सी आकर रुकी । सुनील टैक्सी से निकल आया ।
रमाकांत की इम्पाला पम्प की सर्विस साइड पर खड़ी थी और आदमी उसका हुड खोलकर उसके इन्जन पर झुका हुआ था । रमाकांत एक देहाती से लगने वाले आदमी के साथ कार के समीप पड़ा था ।
सुनील ने टैक्सी को किराया अदा करके विदा किया ।
रमाकांत ने उसे टैक्सी से निकलते देख लिया था । वह लम्बे डग भरता हुआ उसके पास पहुंचा ।
“बहुत देर की यार !” - रमाकांत परेशान स्वर से बोला ।
“मैसेज मिलते ही उड़ा चला आ रहा हूं ।” - सुनील बोला - “क्या किस्सा है ?”
“आज तुम्हारी वजह से मैंने एक बहुत बड़ा रिस्क ले लिया है ।”
“क्या किया है तुमने ?”
“केस से सम्बन्धित एक बड़े महत्वपूर्ण आदमी को पुलिस की नाक के एकदम नीचे से गायब कर दिया है ।”
सुनील ने एक अर्थपूर्ण दृष्टि दूर खड़े देहाती से लगने वाले आदमी की ओर डाली ।
“कौन है यह ?”
“कालीचरण । कोठी का माली ।”
“जिसकी हिफाजत में मधु ने आजकल अपनी बिल्ली रखी हुई है ।”
“तुमसे कैसे टकरा गया यह ?”
“यह कोठी के सामने टैक्सी से उतरा था और बेहद उत्तेजित था । मुझे सन्देह हो गया तो मैंने पूछा तो मालूम हुआ कि यह कोठी का माली कालीचरण है और विद्या से मिलने आया है । बात महत्वपूर्ण थी यह इसी से जाहिर था कि वह रात के एक बजे टैक्सी पर सवार होकर वहां गया था । मेरी उत्सुकता जाग उठी कि ऐसी क्या बात थी जिसकी वजह से रात को एक बजे इसे टैक्सी पर शकर रोड आना पड़ा । मैंने सोचा यह भीतर गया तो प्रभूदयाल के हाथों चढ जायेगा । इसलिये मैंने इसे बताया कि विद्या कोठी में नहीं है । वह हस्पताल में है । मैंने इसे पट्टी पढाई कि मैं इसे हस्पताल में विद्या से मिला सकता हूं । यह झिझकता हुआ मेरा साथ आ गया । मैंने यहां सर्विस स्टेशन पर आकर गाड़ी रोक दी और बहाना किया कि गाड़ी बिगड़ गई है । और क्लब में तुम्हारे लिये फोन कर दिया । मैकनिक खामखाह इन्जन में हाथ मार रहा है । मैंने उसे पहले ही बता दिया है कि उनको सिर्फ वक्त ही गुजारना है कार में कोई खराबी नहीं है । लेकिन ज्यों-ज्यों देर होती जा रही थी । पार्टी हत्थे से उखड़ी जा रही थी । तुम थोड़ी देर और न आते तो मेरा इसको रोककर रखना मुश्किल हो जाता ।”
“तुमने पूछा नहीं कि इतनी रात गये वह विद्या से क्यों मिलना चाहता था ?”
“मैंने पूछा था लेकिन जवाब के नाम पर इसने मुझे सूखा टरका दिया । बड़ा घाघ बूढा है ।”
“वह इधर ही आ रहा है ।”
रमाकांत फौरन चुप हो गया ।
सुनील ने देखा कालीचरण एक लगभग पचास साल का मजबूत आदमी था । वह बन्द गले का गर्म कोट, गर्म पायजामा और पगड़ी पहने हुये था । उसके चेहरे पर घनी मूंछें थीं और उद्विग्नता, आवेग और संकल्प के मिले-जुले लक्षण थे ।
“कालीचरण ।” - उसक समीप आते ही रमाकांत मधुर स्वर में बोला - “ये मिस्टर सुनील हैं । मैंने तुमसे इन्हीं का जिक्र किया था । ये तुम्हें विद्या से मिलवा देंगे । विद्या और ईश्वर लाल के परिवार से इनके बड़े अच्छे सम्बन्ध हैं । विद्या इन्हें निजी रूप में जानती है ।”
कालीचरण चुप रहा । उसके चेहरे पर अनिश्चयतापूर्ण चिन्ता के भाव थे ।
“विद्या विक्टोरिया हस्पताल में पुलिस की हिफाजत में है ।” - सुनील बोला ।
“पुलिस !” - कालीचरण के मुंह से निकला ।
“हां, शाम को किसी ने उसे जहर दे दिया था ।”
“जहर !”
“हां, लेकिन चिन्ता की कोई बात नहीं है । अब विद्या एकदम सुरक्षित है ।”
“पुलिस की हिफाजत से तुम्हारा क्या मतलब था, बाबू जी ?”
“पुलिस ने हस्पताल के असके कमरे पर पहरा बिठाया हुआ है जब तक वे लोग उसका ठीक से बयान नहीं ले लेंगे, किसी को उसके पास फटकने भी नहीं देंगे ।”
कालीचरण के चेहरे पर निराशा छा गई ।
“लेकिन फिर भी मैं कोशिश करूंगा कि मैं विद्या से तुम्हारी मुलाकात करवा दूं ।”
“लेकिन मैं उनसे पुलिस की मौजूदगी में नहीं मिलना चाहता । मुझे उनसे बहुत निजी, और गुप्त बात करनी है ।”
“फिर तो इन्तजार करना पड़ेगा ।”
“मैं इन्तजार नहीं कर सकता ।”
“बात इतनी महत्वपूर्ण है ?”
“हां ।”
“खैर, बहरहाल यहां से तो चलते ही हैं । फिर देखते हैं, कोई बात बनती है या नहीं ।”
“मैं पूछता हूं, गाड़ी ठीक होने में क्या कसर बाकी है ?” - रमाकांत बोला और कार की ओर बढ गया । वह कार के समीप पहुंचा । उसने मैकेनिक को कुछ कहा ।
लगभग एक मिनट बाद मैकेनिक ने कार का हुड गिरा दिया और बताया कि गाड़ी ठीक हो गई है ।
रमाकांत ने मैकेनिक के हाथ में नोट रखा और कार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा । उसने कार स्टार्ट की ओर उसे लाकर सुनील ओर कालीचरण के समीप खड़ा कर दिया । दोनों कार में सवार हो गये । रमाकांत ने कार सड़क पर डाल दी । वह कार को बहुत कम रफ्तार से चला रहा था ।
“ईश्वर लाल की कोठी पर कब से काम कर रहे हो ?” - सुनील ने पूछा ।
“तेरह साल हो गये हैं ।” - कालीचरण बोला ।
“तुम और नौकरों की तरह कोठी में क्यों नहीं रहते हो ?”
“पहले रहता था, लेकिन अब नहीं रहता ।”
“क्यों ?”
“कोठी में भागीराम नाम का एक नौकर है । उसकी वजह से । वह बहुत खतरनाक आदमी है ।”
“क्या खतरनाक है उस आदमी में ?”
“उसका बाप सपेरा है और वह झाड़ फूंक वगैरा और प्रेत विद्या की बहुत जानकारी रखता है । उसकी बुरी नजर किसी पर पड़ जाये तो वह आदमी बीमार हो जाता है और फिर एक दिन मर जाता है । मेरा छोटा भाई देवीचरण उसकी वजह से मर गया था ।”
“अच्छा ।”
“हां । पता नहीं, उसने देवीचरण पर क्या मन्तर फूंका था । कुछ दिनों में वह सूखकर लकड़ी हो गया था । उसे कोई दवा नहीं लगती थी । उसे कोई गिजा नहीं लगती थी । अन्त में एक दिन वह परलोक सिधार गया । उसी दिन मैंने अपना कोठी का क्वार्टर छोड़ दिया ।”
“तुमने भागीराम के बारे में किसी को कहा नहीं ?”
“हर किसी को कहा । ईश्वर लाल साहब को कहा । विद्या बीबीजी को कहा था । डाक्टर को कहा, जो देवीचरण का इलाज कर रहा था लेकिन किसी को मेरी बात का विश्वास ही नहीं हुआ ।”
“डाक्टर क्या कहता था ?”
“डाक्टर कहता था उसे फेफड़ों की कैंसर हो गई है, लेकिन मुझे अच्छी तरह मालूम था कि या तो भागीराम ने मेरे भाई को झाड़-फूंक दिया था । मेरा मतलब है, कोई जादू-टोना कर दिया था, और फिर उसने मेरे भाई को कोई जहर दे दिया था ।”
“जहर !”
“जी हां । मैंने बताया न कि भागीराम का बाप सपेरा था और अपने परिवार की परम्परा की वजह से भागीराम को जहरों की बहुत जानकारी थी ।”
“अगर तुम्हें ऐसा शक था कि तुम्हारे भाई को जहर दिया गया था तुम्हें पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिये थी ।”
“मैं तो चाहता था लेकिन कोठी के लोगों ने और डाक्टर ने मुझे डांटकर चुप करा दिया था । उनके ख्याल से मैं एक सिरफिरा वहमी और रूढिवादी बूढा था जो अपनी कमअक्ली की वजह से ऐसी बेसिर पैर की बातें करता था ।”
“फिर ?”
“फिर क्या ? भाई तो चला ही गया । मुझे लगा कि अगर मैं कोठी के क्वार्टर में रहता रहा तो भागीराम मेरा भी काम तमाम कर देगा इसलिये मैंने वह क्वार्टर छोड़ दिया ।”
“अब तुम कहां रहते हो ?”
“जे जे कालोनी में । चालीस नम्बर क्वार्टर है मेरा ।”
“तुम्हारा अपना है ?”
“नहीं जी, किराये का है । किराया मालकिन देती है ।”
“भागीराम की तुम्हारे से या तुम्हारे भाई से कोई दुश्मनी थी ?”
“जाहिर में तो ऐसा कुछ नहीं था लेकिन भागीराम जैसे चालाक लोग अपने मन की बात जाहिर थोड़े ही होने देते हैं । शायद वह मन ही हमसे नफरत करता था ।”
“क्यों ?”
कालीचरम एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मुझे लगता था कि मेरे भाई की मौत का बड़े साहब के गायब होने से कुछ सम्बन्ध था।”
“क्या ?”
“जी हां ।”
“तुम समझते हो कि ईश्वर लाल मर चुका है ?”
“दस साल तक समझता रहा था बाबू जी, लेकिन आज...” - कालीचरण एकाएक चुप हो गया ।
“आज क्या ?”
कालीचरण ने उत्तर देने का उपक्रम नहीं किया ।
सुनील ने रमाकांत की ओर देखा । रमाकांत असमंजसपूर्ण ढंग से कन्धे झटकाये । सुनील ने देखा, रमाकांत बहुत लम्बे रास्ते से हस्पताल की ओर जा रहा था । सुनील ने सन्तोषपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और फिर कालीचरण की ओर आकर्षित हुआ - “तुम्हें अपने भाई की मौत और ईश्वर लाल के गायब होने में क्या सम्बन्ध लगता था ?”
कालीचरण कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “मेरी धारणा है कि कालीचरण ने पहले किसी विशेष जहर का मेरे भाई देवीचरण पर परीक्षण किया था कि उस जहर की कितनी मात्रा एक आदमी की जान ले सकता है और उसके बाद उसने वही मात्रा बड़े साहब को खिलाई थी।”
“क्यों ?”
“उसने किसी लालच में आकर, किसी और की वजह से ऐसा किया था ।”
“किसकी वजह से ?”
“मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता । विशेष रूप में इसलिये क्योंकि अब मुझे मालूम है कि कि...”
“बोलो-बोलो ।”
“कि बड़े साहब जिन्दा हैं ?”
“कैसे मालूम ?”
कालीचरण फिर चुप हो गया ।
सुनील ने उस पर उत्तर के लिये अधिक दबाव नहीं डाला । उसे भय था कि ज्यादा दबाव डालने पर वह एकदम ही चुप न तो जाये ।
“तब तुम्हें किस पर सन्देह था ?”
“मैं नाम नहीं लेना चाहता लेकिन था ऐसा आदमी, जिसे बड़े साहब के मरने से बहुत लाभ था ।”
“रोशन लाल ?” - सुनील उसके नेत्रों में झांकता हुआ बोला । काली चरण सीधा सामने सड़क पर देखने लगा । सुनील को विश्वास हो गया कि उसके दिमाग में रोशन लाल ही का नाम था ।
“जिन दिनों ईश्वर लाल गायब हुआ था, उन दिनों तुम कोठीं में रहते थे ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - कालीचरण बोला ।
“ईश्वर लाल कैसा आदमी लगता था ?”
“बड़े साहब बहुत भले आदमी थे और खास तौर पर मेरे साथ तो बहुत ही भलाई से पेश आते थे । जब मेरा भाई मरा था तो मदद के तौर पर उन्होंने मुझे नकद दो सौ रुपये दिये थे, पन्द्रह दिनों की छुट्टी दी थी और इस बात का पूरा इन्तजाम किया था कि मैं अपने भाई की लाश को लेकर अपने गांव, अपनी मां के पास चला जाऊं ।”
“देवी चरण का दाह संस्कार तुम्हारे गांव में हुआ था ?”
“हां ।”
“तुम कहां के रहने वाले हो ?”
“दीना नगर का लेकिन अब तो यहीं का समझिये साहब । पांच साल हुए मेरी मां भी मर गई है । अब तो मैं इस दुनिया में अकेला रह गया हूं। गांव से तो बिल्कुल ही नाता टूट गया है ।”
“किट्टी कैसी है ?”
“आप मधु बिटिया की बिल्ली के बारे में पूछ रहे हैं ?”
“हां । मधु उसे तुम्हारे पास छोड़ गई है न ?”
“जी हां । बिल्ली एकदम ठीक है लेकिन उसे भी जहर दिया गया था और अब आप बता रहे हैं कि विद्या बीबी जी को भी किसी ने जहर दिया है ।”
“तुम्हें इन दोनों घटनाओं में भी कोई सम्बन्ध दिखाई देता है ?”
कालीचरण चुप रहा ।
“मेरे से बात करने में कोई हर्ज नहीं है, काली चरण ।” - सुनील आश्वासनपूर्ण स्वर से बोला - “मैं तो परिवार का मित्र हूं ।”
“हो सकता है कि यह भी भागी राम के बच्चे की शरारत हो । किसी के कहने पर विद्या बीबी जी को जहर देने के लिये उसने कोई नया जहर तैयार किया हो और उसने उसी जहर का पहला परीक्षण इस बार मेरे भाई जैसे किसी दूसरे इन्सान पर करने के स्थान पर बिल्ली पर किया हो और क्या पता इसी वजह से विद्या बीबी जी मरने से बच भी गई हों।”
“इस बार तुम्हारे ख्याल से भागीराम ने किसके कहने पर विद्या को जहर दिया था ।”
“मैं नौकर आदमी हूं । मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता ।”
“नाम मैं लेता हूं । तुम सिर्फ हां या न में जवाब दे दो ।”
कालीचरण चुप रहा ।
“रोशन लाल ?”
कालीचरण ने उत्तर नहीं दिया ।
“तुम कुछ बता नहीं रहे हो ।”
“दरअसल बाबू जी, मेरा दिमाग बड़ी उलझन में पड़ गया है । बड़े साहब को गायब हुए दस साल हो गये हैं । अब से थोड़ी देर पहले तक अगर कभी भी कोई मुझसे पूछता कि बड़े साहब कैसे, कहां गायब हो गये हैं तो मैं यही कहता कि भागीराम ने किसी के इशारे पर उन्हें जहर देकर मार डाला और और उनकी लाश गायब कर दी गई है । लेकिन अब मुझे लगने लगा है कि कम से कम बड़े साहब के मामले में भागी राम निर्दोष था । मुझे पूरा विश्वास है उसने मेरे भाई को जहर देकर मारा था । मुझे पूर्ण विश्वास है कि विद्या बीबी जी को भी उसी ने जहर दिया था । लेकिन बड़े साहब के मामले में मेरा ऐसा विश्वास कपूर की तरह उड़ गया है ।”
“कैसे ?”
“अभी हस्पताल कितनी दूर है ?” - उत्तर देने के स्थान पर एकाएक कालीचरण तनिक सन्दिग्ध स्वर से बोला ।
“बस, पहुंच रहे हैं ।” - सुनील बोला ।
सुनील ने रमाकांत को संकेत किया । रमाकांत ने धीरे से सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया और गाड़ी को एकाएक दाईं ओर की एक सड़क पर मोड़ दिया और उसकी रफ्तार बढा दी ।
तीन मिनट में कार विक्टोरिया हस्पताल के सामने खड़ी थी ।
तीनों कार से बाहर निकल आये ।
“रमाकांत ।” - सुनील बोला - “तुम यहीं ठहरो । मैं काली चरण को विद्या के पास ले जाता हूं ।”
“ओके ।” - रमाकांत बोला । वह कार के हुड पर चढकर बैठ गया और उसने अपनी जेब से चार मीनार का पैकेट निकाल लिया ।
सुनील और काली चरण हस्पताल में प्रविष्ट हो गये ।
रिसैप्शन के समीप बैठे एक आर्डरली ने ऊंघती निगाहों से उन्हें देखा लेकन उन्हें रोकने का उपक्रम नहीं किया ।
वे लिफ्ट द्वारा दूसरी मंजिल पर पहुंचे ।
विद्या के कमरे के दरवाजे के सामने दो स्टूलों पर दो सिपाही बैठे थे। एक सिपाही ने नींद से बोझिल आंखों से समीप आते सुनील और कालीचरण को देखा और फिर अपने साथी को कोहनी मारता हुआ स्टूल से उठ खड़ा ।
“यह सुनील है ।” - पहला सिपाही अपने साथी से बोला - “इन्स्पेक्टर साहब ने इसके बारे में खास हिदायत दी है कि उनकी इजाजत के बिना इसे विद्या के कमरे के पास भी न फटकने दिया जाये ।”
“तो फिर भगाओ साले को ।” - दूसरा कसे स्वर से बोला ।
“इसका इतनी रात को यहां आना ही किसी शरारत की ओर संकेत करता है ।”
उसी क्षण सुनील और कालीचरण उनके समीप पहुंच गये ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील ने कहना आरम्भ किया ।
“मालूम है ।” - पहला सिपाही रुक्ष स्वर से बोला ।
“मैं विद्या से मिलना चाहता हूं ।”
“तुम उससे नहीं मिल सकते । किसी को भीतर जाने की इजाजत नहीं है ।”
“लेकिन मेरा उससे फौरन मिलना बहुत जरूरी है ।”
“जानते हो टाइम क्या हुआ है ?”
“जानता हूं । फिर भी...”
“फूटो यहां से । और इन्स्पेक्टर साहब की मौजूदगी में यहां आना ।”
“लेकिन...”
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं । तुम इन्स्पेक्टर साहब की इजाजत के बिना विद्या से नहीं मिल सकते ।”
“देखो ।” - सुनील विनयपूर्ण स्वर से बोला - “यह आदमी विद्या का माली है । इसका नाम कालीचरण है । यह विद्या से कोई बहुत महत्वपूर्ण बात करना चाहता है ।”
“चाहता होगा ।”
“मुझे न सही तुम इसे विद्या के पास चले जाने दो ।”
“भीतर कोई नहीं जा सकता । अगर तुम में से कोई या दोनों विद्या से मिलना चाहते हो तो इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल से लिखित में इजाजत लाओ या फिर इन्स्पेक्टर साहब की मौजूदगी में यहां आओ ।”
“मान जाओ न यार ।”
“अरे, क्यों कान खा रहे हो ? यहां से जाते हो या जबरदस्ती निकालूं?”
सुनील ने असहाय भाव से काली चरण की ओर देखा । काली चरण के चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी । सिपाही के व्यवहार ने उसका सारा जोश ठण्डा कर दिया था ।
“आओ चलें ।” - सुनील बोला ।
दोनों वापिस लिफ्ट की ओर चल दिये ।
“मेरा विद्या बीबी जी से मिलना बहुत जरूरी था ।” - लिफ्ट में काली चरण बोला ।
“भई मैंने तो अपनी ओर से कोई कोशिश उठ नहीं रखी” - सुनील बोला - “तुमने देखा ही है कि पुलिस वाले किसी को उसके दरवाजे के पास भी फटकने नहीं दे रहे हैं ।”
“बीबी जी से सम्पर्क स्थापित करने का कोई तरीका नहीं हो सकता?”
लिफ्ट रुक गई । दोनों बाहर निकल आये । सुनील ने रिसैप्शन के पास बैठे आर्डरली को देखा और फिर बोला - “एक तरीका हो सकता है ।”
“क्या ?” - कालीचरण आशा पूर्ण स्वर से बोला ।
“तुम्हारे घर के आस-पास कोई टेलीफोन है ?”
“है, क्यों ?”
“कहां है ?”
“मेरे क्वार्टर के पास ही एक रेस्टोरेन्ट हैं जो चौबीस घण्टे खुला रहता है । वहां एक टेलीफोन है । रेस्टोरेन्ट का मालिक मेरा फोन आये तो मुझे वहां बुला देता है ।”
“वैरी गुड ।” - सुनील बोला - “पहली बार जब मैं विद्या के कमरे में गया था तो मैंने उसमें टेलीफोन देखा था । तुम एक कागज पर लिखो कि तुम्हारा उनसे फौरन बात करना बहुत जरूरी है और साथ ही रेस्टोरेन्ट का टेलीफोन नम्बर लिख दो । मैं उस आर्डरली को पटाता हूं। मुझे उम्मीद है वह तुम्हारी चिट्ठी चुपचाप विद्या के पास पहुंचा देगा । फिर विद्या तुम्हें फोन कर लेगी ।”
“अगर मैं ही विद्या को फोन कर लूं ?”
“शायद प्रभूदयाल ने हस्पताल की टेलीफोन आपरेटर को यह निर्देश दिया हो कि विद्या के टेलीफोन पर कोई काल न दी जाये लेकिन शायद विद्या को खुद किसी को फोन कर लेने की पूरी सुविधा हो ।”
“कोई गड़बड़ तो नहीं होगी ?”
“क्या गड़बड़ होगी ?”
“मुझे कागज पेंसिल दो ।”
सुनील ने रिसैप्शन से कागज लिया और अपना पैन निकाल कर दोनों चीजें काली चरण को सौंप दी ।
काली चरण ने कागज पर हिन्दी में तीन चार लाइनें लिखीं और फिर कागज को तह करके सुनील को सौंप दिया ।
सुनील कागज लेकर आर्डरली पास पहुंच गया ।
दो मिनट बाद वह कागज और दस रुपये का एक नोट आर्डरली हाथ में पहुंचा गया । आर्डरली बार-बार सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाता रहा । अन्त में सुनील ने उसका कन्धा थपथपाया, काली चरण को अपने साथ आने का संकेत किया और हस्पताल की इमारत से बाहर निकल आया ।
“काम हो जायेगा ?” - काली चरण ने पूछा ।
“जरूर हो जायेगा ।” - सुनील विश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “विद्या के कमरे में घुसने का पहला मौका हाथ में लगते ही आर्डरली तुम्हारी चिट्ठी विद्या के सौंप देगा और वह ऐसा मौका जल्दी से जल्दी निकाल लेगा ।”
उन्हें लौटता देखकर रमाकांत कार के हुड से नीचे उतर आया ।
“काम बना ?” - उसने पूछा ।
“नहीं ।” - सुनील बोला ।
तीनों पहले की तरह कार में सवार हो गये । रमाकांत ने कार स्टार्ट की ओर उसे बाहर सड़क पर ले आया ।
सुनील कुछ क्षण चुप बैठा रहा और फिर एकाएक रमाकांत से बोला - “गाड़ी रोको ।”
रमाकांत ने कार को तत्काल सड़क के किनारे रोक दिया ।
सुनील काली चरण की ओर घूमा और तीव्र स्वर से बोला - “तुम्हें कैसे मालूम है कि ईश्वर लाल जिन्दा है ?”
काली चरण हड़बड़ा गया । वह बितर-बितर सुनील का मुंह देखने लगा लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला ।
“बोलो, बोलो ।” - सुनील उतावले स्वर से बोला ।
“विद्या बीबी जी ऐसा कहती हैं ।” - वह धीमे स्वर से बोला ।
“कहानी छोड़ो । तुम्हारी बातों से साफ जाहिर होता है कि विद्या बीबी जी के कहे बिना भी तुम्हें मालूम है कि ईश्वर लाल जिन्दा है । तुमने खुद बताया है कि दस साल तक तुम यह सोचते रहे कि भागी राम ने किसी के कहने पर ईश्वर लाल को जहर दिया था और दुनिया की कोई शक्ति तुम्हारे इस विश्वास को हिला नहीं सकती थी । लेकिन आज एकाएक तुम्हारी राय बदल गई है । आज एकाएक तुम्हें लगने लगा है कि कम से कम ईश्वर लाल के मामले में भागी राम निर्दोष है । ऐसा कैसे हुआ ?”
काली चरण चुप रहा ।
“काली चरण” - सुनील अपन एक एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “तुमने आज रात ईश्वर लाल को देखा है । स्वीकार करो कि तुमने आज रात ईश्वर लाल को देखा है ।”
काली चरण ने मशीन की तरह सहमति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“कहां है वह ?”
“मेरे क्वार्टर में ।” - काली चरण की आवाज ऐसी थी जैसे किसी कुयें में से निकल रही हो ।
“वह तुम्हारे क्वार्टरर पर आया था ?”
“हां ।”
“कब ?”
“मेरे शंकर रोड पर आने से थोड़ी देर पहले ।”
“क्यों ?”
“बड़े साहब को मेरी मदद की जरूरत थी ।”
“किस सिलसिले में ?”
कालीचरण ने जवाब नहीं दिया । एकाएक वह बेहद बेचैन दिखाई देने लगा ।
“रमाकांत” - सुनील बोला - “तुम्हारे रसिक साथी तुम्हारा इन्तजार कर रहे होंगे ।”
“अब क्या रखा है वहां ।” - रमाकांत बोला - “अब तक तो महफिल...”
सुनील ने दांत पीसते हुये रमाकांत की ओर देखा और अपने पांव की एक जोर की ठोकर रमाकांत की टांग पर जमाई ।
रमाकांत पीड़ा में बिलबिला उठा लेकिन प्रत्यक्षतः स्थिर स्वर में बोला - “हां यार, मैं तो भूल हो गया था । मुझे तो फौरन काम से जाना है। कार तुम रखो । मैं टैक्सी ले लूंगा ।”
रमाकांत के सौभाग्यवश उसी क्षण एक खाली टैक्सी सड़क से गुजरी । रमाकांत ने उसे रोका और कार से निकलकर उसमें जा बैठा । कुछ क्षी क्षण में टैक्सी दृष्टि से ओझल हो गई ।
सुनील कालीचरण की ओर मुड़ा ।
“तुमने ईश्वर लाल को फौरन पहचान लिया था ?” - उसने पूछा ।
“फौरन ।” - काली चरण बोला - “मैं उस समय सिनेमा की आखिरी शो देखकर वापिस अपने क्वार्टर पर लौटा ही था कि किसी ने दरवाजा खटखटा दिया था । मैंने दरवाजा खोला । दरवाजे पर खड़े आदमी पर निगाह पड़ते ही मेरा हार्ट फेल होते होते बचा । मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ कि मैं अपने सामने ऐसे आदमी को देख रहा हूं जिसे मैं दस साल से मरा समझ रहा हूं । और दस सालों में बड़े साहब के ढांचे में उनकी सूरत शक्ल में जरा भी तो फर्क नहीं आया था ।”
“तुम्हें पूरा विश्वास है कि आगन्तुक ईश्वर लाल ही था ?”
“सन्देह का सवाल ही नहीं था, बाबू जी । बड़े साहब साक्षात मेरे सामने खड़े थे ।”
“ईश्वर लाल तुम्हारे पास क्यों आया ?”
काली चरण फिर चुप हो गया ।
“बात छुपाने से कोई फायदा नहीं होगा, काली चरण । ईवश्वर लाल जब दस साल बाद वापिस लौट आया है तो अपने आपको प्रकट भी करेगा । तब वह अपनी जबानी ही सब कुछ बता देगा ।”
“बड़े साहब मेरे क्वार्टर में रात गुजारना चाहते थे ।” - काली चरण अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला ।
“तुम्हारे क्वार्टर में क्यों ? इतना बड़ा आदमी, भला एक माली के क्यों जायेगा ?”
“यह मुझे नहीं मालूम, लेकिन बड़े साहब दस साल पहले बड़े आदमी जरूर थे लेकिन आज जब वे मेरे पास आये थे तो वे मुझे बड़े टूटे हुये और मुफलिस इन्सान लग रहे थे । वे यूं घबराये हुये थे जैसे वे कोई बहुत बड़ा अपराध करके आ रहे हों और सारी दुनिया की नजरों से छुपाना चाहते हों और उन्हें मेरे क्वार्टर से बेहतर कोई जगह न सूझ रही हो ।”
“तुमने उन्हें शरण दी ?”
“जी हां । मैंने अपने दूसरे कमरे में उनके सोने का इन्तजाम कर दिया ।”
“और जब ईश्वर लाल सो गया तो तुम, चुपचाप अपने क्वार्टर से निकल आये और टैक्सी पर बैठकर सीधे शंकर रोड पहुंचे ताकि यही बात तुम विद्या को बता सको । और उसकी तारीफी निगाहों के हकदार बन सको । काली चरण, जिस आदमी की तुम्हारे ऊपर इतनी मेहरबानियां हैं, जो अब भी तुम्हारा मालिक है, विद्या से वाहवाही लूटने की खातिर तुमने उसी के साथ विश्वासघात करने की कोशिश की ।”
“लेकिन मैंने विद्या बीबी जी को कुछ बताया कहां है ?”
“वह तो तुम्हें मौका नहीं लगा । वास्तव में शंकर रोड पर भागे आये तो तुम इसी नीयत से थे ?”
काली चरण का सिर शर्म से झुक गया ।
“तुम्हारी जानकारी के लिये पुलिस को भी ईश्वर लाल की तलाश है।”
“पुलिस को क्यों ?”
“हीरा नन्द नाम के एक आदमी की हत्या हो गई है । पुलिस को सन्देह है कि हीरा नन्द की हत्या से ईश्वर लाल का भी कोई सम्बन्ध है । तुम्हारा ईश्वर लाल को अपने क्वार्टर में छुपाकर रखना पुलिस की निगाहों में अपराध जैसा है ।”
“मुझे क्या मालूम कि पुलिस को बड़े साहब की तलाश है ।”
“मैं जो बता रहा हूं तुम्हें ।”
“मैं तो खामखाह बखेड़ों में फंस गया ।” - कालीचरण बड़बड़ाया ।
“कोई बखेड़ा नहीं है । तुम मुझे बताओ कि किस्सा क्या है । फिर कोई बखेड़ा होगा भी तो मैं तुम्हें उसमें फंसने नहीं दुंगा ।”
कालीचरण कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “बड़े साहब मेरे क्वार्टर में आये और आते ही हुक्म दनदना दिया कि वे कुछ दिन वहां छुपकर रहना चाहते थे क्योंकि कोई उनकी जान के पीछे पड़ा हुआ था। मेरे से सहायता मांगने का उनका अन्दाज ऐसा था जैसे वे अभी भी मेरे मालिक थे और मेरे इन्कार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता था । इसी बात से ताव आ गया और मैंने उनके चुपचाप सो जाने के बाद बीबी जी को उनकी अपने फ्लैट में मौजूदगी के बारे में बता आने का फैसला कर लिया ।”
“ईश्वर लाल को यह नहीं मालूम था कि तुम चुपचाप अपने क्वार्टर से खिसक गये हो ?”
“नहीं । जब मैं वहां से आया था उस समय बड़े साहब मुंह खोले लम्बे-लम्बे खर्राटे भर रहे थे और घोड़े बेचकर सोये हुये थे ।”
“तुम हीरा नन्द नाम के किसी आदमी को जानते हो ?”
“जानता हूं । हीरा नन्द दस साल पहले बड़े साहब के गायब होने तक बड़े साहब का पर्सनल सैक्रेट्री था और कोठी में ही रहता था । बड़े साहब के गायब होने के कुछ दिनों बाद ही बीबी जी ने उसे नौकरी से निकाल दिया था । बीवी जी को हीरा नन्द सख्त नापसन्द था ।”
“ईश्वर लाल के सो जाने से पहले तुम्हारी उससे कोई बात हुई ?”
“मैंने उनके गायब हो जाने के बारे में बहुत से सवाल किये, लेकिन उन्होंने किसी का भी पूरा और सन्तोषजनक उत्तर नहीं दिया था । वह तो एक मजबूरी थी जिसने उन्हें मेरे घर तक पहुंचा दिया था वर्ना वे भला एक माली से बातें करना कहां गवारा करते । प्रकट में चाहे मुफलिस हो गये थे लेकिन उनके दिमाग में तो अभी भी पहले जैसी रईसी की ही बू थी, लेकिन फिर भी मुझे उनकी बातों से ऐसा आभास मिला था कि उनके गायब होने के समय जो अफवाह फैली थी कि वे अपनी बीवी से तंग आकर किसी जवान लड़की के साथ भाग गये हैं, वह सच थी । वास्तव में ऐसा ही हुआ था और बड़े साहब की हालत से मुझे लगता था कि वह लड़की भी उन्हें धोखा दे गई थी ।”
सुनील एक क्षण को चुप हो गया ।
“देखो बाबूजी ।” - कालीचरण प्रार्थनापूर्ण स्वर से बोला - “अब मुझे इजाजत दो । मुझे फौरन अपने क्वार्टर पर पहुंचना है । अगर मेरे वहां पहुंचने से पहले बड़े साहब जाग गये तो मेरी बहुत किरकिरी हो जायेगी। वे समझ जायेंगे कि मैंने कोई गड़बड़ की है ।”
“चलो ।” - सुनील निर्णयात्मक स्वर से बोला - “मैं तुम्हें तुम्हारे क्वार्टर पर छोड़ आता हूं ।”
“बहुत मेहरबानी बाबू जी । आपकी मदद के बिना तो मैं जल्दी जे जे कालोनी पहुंच भी नहीं सकता ।”
सुनील स्टियरिंग के पीछे सरक गया । उसने इग्नीश आन कर दिया।
***
कालीचरण के संकेत पर एक क्वार्टर के सामने सुनील ने कार रोक दी ।
“बहुत मेहरबानी बाबू जी ।” - कालीचरण बोला और बाहर निकल गया ।
सुनील भी कार से बाहर निकल आया ।
“यह तुम्हारा क्वार्टर है ?” - सुनील धीरे से बोला ।
“जी हां ।” - कालीचरण बोला - “मैं ऊपर रहता हूं । नीचे कोई और रहता है ।”
“तुम अकेले रहते हो ?”
“जी हां ।”
“चलो, एक मिनट के लिये मैं तुम्हारे क्वार्टर में चलता हूं ।”
“आप...”
“मैं सिर्फ यह देखकर लौट आऊंगा कि तुम्हारे क्वार्टर में मौजूद आदमी ईश्वर लाल ही है ।”
“वे बड़े साहब ही हैं ।”
“फिर भी मेरे एक नजर देख लेने में क्या हर्ज है ?”
“आइये ।” - कालीचरण अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला - “लेकिन बिल्कुल आवाज न हो ।”
सुनील ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
दोनों दबे पांव सीढियां चढते हुये ऊपर पहुंचे ।
कालीचरण ने धीरे से दरवाजा खोला । उसने बिजली का स्विच आन किया । कमरे में पीला प्रकाश फैल गया ।
सुनील ने देखा, वह एक छोटा-सा कमरा था । जिसमें एक ओर खिड़की के पास एक चारपाई पड़ी थी, जिस पर बिस्तर बिछा हुआ था और बिस्तर के बीचों-बीच गुच्छा-मुच्छा हुई एक बिल्ली सोई पड़ी थी ।
“यह मधु की बिल्ली है ?” - सुनील फुसफुसाया ।
कालीचरण ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“वह कहां है ?”
कालीचरण ने पिछले कमरे की ओर संकेत कर दिया ।
सुनील दोनों कमरों को मिलाने वाले दरवाजे के समीप पहुंचा । दरवाजा थोड़ा-सा खुला हुआ था । सुनील ने पिछले कमरे में झांका । पिछला कमरा भी उतना ही बड़ा था । वहां भी अगले कमरे जैसा ही एक बिस्तर बिछा हुआ था ।
बिस्तर खाली था ।
सुनील ने बीच का दरवाजा पूरा खोल दिया और कालीचरण को समीप आने का संकेत किया ।
कालीचरण ने उसके समीप आकर भीतर झांका और फिर उसके नेत्र फैल गये । वह तेजी से पिछले कमरे में प्रवेश कर गया । सुनील उसके पीछे हो लिया ।
कालीचरण ने पिछले कमरे की बत्ती जलाई ।
कमरा खाली था ।
उस कमरे में बांई ओर एक और दरवाजा था, जो एक छोटे से गलियारे में खुलता था । उस गलियारे में किचन, बाथरूम और लैट्रिन थे।
कहीं कोई नहीं था ।
“तुम ईश्वर लाल को इसी बिस्तर पर सोया छोड़ कर गये थे ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - कालीचरण बोला - “लेकिन लगता है उन्हें मेरे यहां से चुपचाप खिसकने की आहट मिल गई थी और वे मेरे जाने के फौरन बाद ही यहां से खिसक गये थे ।”
सुनील ने देखा बिस्तर पर सलवटें पड़ी हुई थीं । ऐसा लगता था जैसे उस पर कोई भारी-भरकम आदमी सोया था । रजाई इकट्ठी होकर चारपाई के पायताने पड़ी थी । चारपाई के समीप एक तिपाई थी जिस पर एक कांच की प्लेट में सिगार का टुकड़ा पड़ा था । सुनील ने देखा, वह काफी कीमती सिगार मालूम होता था ।
“सिगार ईश्वर लाल का है ?” - सुनील ने पूछा ।
“जी हां ।” - कालीचरण बोला - “बड़े साहब ही सिगार पीते थे । मैं तो बीड़ी पीता हूं ।”
सुनील ने फिर चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ।
कमरे के गलियारे की ओर के दरवाजे तक बिल्ली के पंजों के निशान दिखाई दे रहे थे । सुनील ने झुककर निशानों का निरीक्षण किया । वह आटा था । लगता था कि बिल्ली के पंजे किचन में आटे से भर गये थे और उसी के निशान वह किचन से सामने कमरे तक बनाती हुई गुजर गई थी ।
“बिल्ली के पैरों में आटा किचन से लगा होगा ?” सुनील बोला ।
“लेकिन किचन का दरवाजा तो बन्द था और मैं आटे का ड्रम भी मजबूती से बन्द रखता हूं ।”
“निशान किचन की ओर से आ रहे हैं । शायद तुम्हारे चले जाने के बाद ईश्वर लाल ने किचन का दरवाजा खोला हो और बिल्ली उसके पीछे-पीछे किचन में घुस आई हो ।”
“यह हो सकता है, लेकिन आटे का ड्रम तो हमेशा बन्द रखता हूं ।”
“जरा देखो ।”
दोनों किचन के सामने पहुंचे । किचन का दरवाजा बन्द था । कालीचरण ने धक्का देकर दरवाजा खोला और किचन की बत्ती जलाई आटे के ड्रम का ढक्कन बन्द था, लेकिन उसके आस-पास थोड़ा-सा आटा बिखरा हुआ था और बिल्ली के पंजों के निशान उस स्थान से ही चालू थे और बिखरे हुये आटे में भी उसके पंजों के निशान दिखाई दे रहे थे,
सुनील किचन से बाहर निकल आया । उसने देखा, पिछले कमरे के बिस्तर पर बिल्ली के आटे से भरे पजों के एक दो निशान दिखाई दे रहे थे । लगता था बिल्ली पहले किचन में गई थी जहां उसके पांव आटे में भर गये थे । उसके बाद वह गलियारे से होती हुई पिछले कमरे कि बिस्तर पर कूदी थी और फिर वहां से सामने कमरे में आ गई थी और आकर कालीचरण के बिस्तर पर सो गई थी ।
कालीचरण भी किचन से निकल आया ।
बिल्ली पूर्ववत् बिस्तर पर गेन्द सी बनी सोई पड़ी थी ।
“किसी भी क्षण तुम्हें हस्पताल से विद्या का फोन आ सकता है ।” - सुनील बोला - “तुम वहां लिखकर छोड़ आये हो कि तुम को विद्या को कोई बहुत महत्वपूर्ण बात बतानी है । अब तुम क्या-क्या करोगे ?”
“यही तो मैं सोच रहा हूं । मेरी तो बहुत किरकिरी हो जायेगी ।”
“तुम उसे साफ बता देना कि ईश्वर लाल तुम्हारे घर आया था । तुम उसे घर पर सोया छोड़कर उसके बारे में विद्या को बताने गये थे और पीछे से वह खिसक गया था ।”
“मेरी किरकिरी होगी ।”
“एक तरीका और हो सकता है ।”
“क्या ?”
“एक-दो दिन के लिये बात गोल कर जाओ ।”
“कैसे ?”
“एक-दो दिन अपने क्वार्टर पर मत रहो । इस प्रकार तुम्हारा विद्या से सम्पर्क हो नहीं पायेगा । तब तक शायद ईश्वर लाल खुद ही सामने आ जाये ।”
“लेकिन क्वार्टर के अलावा मैं कहां जाकर रहूंगा ?”
“किसी होटल में चले जाओ ।”
“मैं गरीब आदमी हूं बाबू जी ।”
“अरे, दो एक दिन होटल में ठहरने में कोई ज्यादा खर्चा थोड़े ही होता है ।” - सुनील सहज स्वर से बोला - “इतना खर्चा तो तुम्हारा मैं उठा लूंगा ।”
“आप क्यों उठा लेंगे ?”
“मैं अखबार का प्रतिनिधि हूं । मुझे तुमसे बहुत महत्वपूर्ण बाते मालूम हुई हैं । अखबार की ओर से तुम्हारे पर इस प्रकार का खर्चा करने का मुझे अधिकार है ।”
“जैसा आप ठीक समझें ।”
“आओ चलो फिर ?”
“बिल्ली का क्या होगा ?”
“बिल्ली मैं ले जाता हूं । इसकी देखभाल मैं कर लूंगा ।”
कालीचरण ने एक बैग में अपने कुछ कपड़े भरे और सुनील के साथ हो लिया ।
***
सुबह के पांच बजे प्रभूदयाल पुलिस हैडक्वार्टर के अपने कमरे में पहुंचा । वह थककर चूर हो चुका था । उसके बाल बिखरे हुये थे । आंखें अनिद्रा से लाल हो चुकी थी और वर्दी में सैंकड़ों झुर्रियां पड़ी हुई थीं ।
वह धम्म से आकर अपनी कुर्सी पर ढेर हो गया और सब-इन्सपेक्टर से बोला - “चाय-वाय मंगाओ यार !”
सब-इन्सपेक्टर ने एक सिपाही को चाय लेने भेज दिया ।
“बैलेस्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट आ गई है ।” - सब-इन्सपेक्टर बोला - “रिपोर्ट के अनुसार तीनों गोलियां अर्थात हीरा नन्द की खोपड़ी से निकली, गौरखे चौकीदार के शरीर से निकली और विद्या के कमरे के दरवाजे की चौखट से निकली गोली, सब एक ही रिवाल्वर से चलाई गई हैं ।”
“वेरी गुड ।” - प्रभूदयाल बोला । उसने कुर्सी की पीठ से अपना सिर टिका दिया और नेत्र बंद कर लिये ।
उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी ।
“देखो, कौन है ?” - प्रभूदयाल नेत्र खोले बिना बोला ।
सब-इन्सपेक्टर ने रिसीवर उठा लिया । एक क्षण वह टेलीफोन सुनता रहा फिर बोला - “वह सिर्फ आपसे बात करना चाहता है ।”
प्रभूदयाल ने बिना नेत्र खोले रिसीवर के लिये हाथ बढा दिया । रिसीवर हाथ में आते ही उसने कान से लगाया और अलसाये स्वर से बोला - “हल्लो !”
“इन्सपेक्टर प्रभूदयाल बोल रहे हैं ?” - दूसरी ओर से किसी का तीव्र स्वर सुनाई दिया ।
“हां ।”
“इन्सपेक्टर साहब, जो मैं कहता हूं, गौर से सुनिये । मैं आपको बहुत महत्वपूर्ण बात बताने जा रहा हूं ।”
“बोलो !”
“ब्लास्ट का रिपोर्टर सुनील कुमार चक्रवर्ती एक बहुत महत्वपूर्ण गवाह आपकी नाक के नीचे से निकाल करके ले गया है । वह गवाह आपको ईश्वर लाल के बारे में और हीरा नन्द की हत्या के बारे मैं बहुत महत्वपूर्ण बातें बता सकता था ।”
प्रभूदयाल एक झटके से सीधा उठकर बैठ गया । उसने नेत्र खोल लिये ।
“कौन है वह गवाह ?” - वह तीव्र स्वर से बोला ।
“उसका नाम काली चरण है । वह विद्या का माली है वह आधी रात के बाद कोठी पर आया था, लेकिन सुनील और उसके साथी रमाकांत ने उसके भीतर प्रविष्ट होने से पहले ही उसे अपने अधिकार में कर लिया था ।”
“तुम्हें मालूम है, कालीचरण इस वक्त कहां है ?”
“मालूम है । यही बताने के लिये तो फोन किया है ।”
“कहां है वह ?”
“कालीचरण इस वक्त पटेल रोड पर स्थित पंजाब होटल नाम के एक घटिया से होटल के 355 नम्बर कमरे में हैं ।”
“तुम कौन बोल रहे हो ?”
“मैं अपना नाम नहीं बता सकता । केवल इतना जान लीजिये कि मैं सुनील का दुश्मन हूं ।”
“लेकिन अगर तुम अपना नाम...”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
प्रभूदयाल ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया और उठ खड़ा हुआ ।
“चलो !” - वह सब-इन्सपेटर से बोला ।
“कहां ?”
“पटेल रोड । पंजाब होटल ।”
“लेकिन चाय...”
“ऐसी की तैसी चाय की । इतनी मुद्दत के बाद तो सुनील की ऐसी की तैसी करने का मौका मिला है और तुम चाय को रो रहे हो ।”
और प्रभूदयाल बगोले की तरह कमरे से निकल गया ।
***
सुनील यूथ क्लब पहुंचा ।
बिल्ली को अपनी गोद में संभाले वह क्लब में प्रविष्ट हुआ ।
रिसैप्शन के पीछे बने रमाकांत के आफिस की बत्ती जल रही थी ।
सुनील आफिस में प्रविष्ट हुआ ।
रमाकांत मेज के पीछे अपनी चेयर पर बैठा हुआ था । कमरा चार मीनार के धुयें से भरा हुआ था और चार मीनार का एक नया सुलगाया सिगरेट रमाकांत के होठों में था ।
“मुझे पहले तुम्हारा इशारा समझ में नहीं आया था ।” - सुनील को देखते ही रमाकांत बोला ।
“कैसे आता ?” - सुनील एक कुर्सी पर ढेर हो गया - “तुम्हारी अक्ल तो टखनों में है ।”
“मैं कार से उतरते ही टैक्सी लेकर सीधा जे जे कालोनी में काली चरण के क्वार्टर पर गया था । क्वार्टर का मुख्य द्वार खुला था, लेकिन भीतर कोई नहीं था । सामने के कमरे के बिस्तर पर यही बिल्ली सोई पड़ी थी जो इस वक्त तुम्हारी गोद में है और पिछले कमरे में...”
मैं भी वहां हो आया हूं ।” - सुनील उसकी बात काटकर बोला - “तुम सिर्फ मेरी एक दो बातों का जवाब दो ।”
“पूछो ।”
“दोनों कमरों के बीच का दरवाजा खुला था या बन्द ?”
“जरा सा खुला हुआ था ।”
“किचन का दरवाजा खुला था या बन्द ?”
“बन्द था ।”
“तुम किचन में गये थे ?”
“हां ।”
“क्या आटे के ड्रम के पास थोड़ा बहुत आटा बिखरा हुआ था ?”
“मैंने ध्यान नहीं दिया, लेकिन अगर वहां आटा बिखरा हुआ था तो वह बहुत थोड़ा ही होगा, क्योंकि अगर ज्यादा होता तो मेरा ध्यान उस ओर जरूर जाता ।”
“तुमने किचन में पिछले कमरे में और सामने कमरे में बिल्ली के आटे से सने पजों के निशान देखे थे ?”
“बिल्ली के पंजे के निशान मैंने देखे थे, लेकिन मुझको यह मालूम नहीं है कि बिल्ली के पंजे आटे से सने थे या किसी और चीज से ।”
“तुम वहां कितनी देर ठहरे थे ?”
“तीन चार मिनट ।”
“उस दौरान बिल्ली क्या करती रही थी ?”
“कुछ भी नहीं । वह सामने कमरे की चारपाई पर गुच्छा-मुच्छा हुई सो रही थी ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “यह बिल्ली सम्भालो और मेरे सोने का इन्तजाम करो ।”
“अपने फ्लैट पर नहीं जाओगे ?”
“मेरी तो यहां से हिलने की भी हिम्मत नहीं है ।”
“आल राइट । मेन हाल की बगल में एक बेडरूम है । वहीं चले आओ ।”
सुनील ने बिल्ली मेज पर रख दी और कमरे से बाहर निकल गया ।
***
किसी ने सुनील को धीरे से हिलाकर जगाया ।
आंखें खोलते ही सुनील ने सबसे पहले अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखी ।
साढे बारह बज चुके थे । भरी दोपहर की चमकीली धूप का प्रकाश कमरे की खिड़की से भीतर आ रहा था । फिर उसने आंखें मिचमिचाकर उस आदमी को देखा जो उसके सामने खड़ा था ।
वह जौहरी था । जौहरी यूथ क्लब का सदस्य था और रमाकांत का सबसे विश्वासपात्र आदमी था ।
“मुझे अभी मालूम हुआ है कि आप क्लब में हैं ।” - जौहरी बोला ।
“कोई खास बात हो गई है क्या ?” - सुनील ने सशंक स्वर से पूछा
“जी हां । कई खास बातें हो गयी हैं ।”
“क्या ?”
“सुबह सवा छः बजे के करीब इन्सपेक्टर प्रभूदयाल यहां आया था । वह रमाकांत को गिरफ्तार करके ले गया है ।”
“किस इल्जाम में ?”
“यह मुझे नहीं मालूम । और रमाकांत के कमरे में एक बिल्ली मौजूद थी । उसे भी प्रभूदयाल अपने साथ ले गया है ।”
“हूं ।” - सुनील विचारपूर्ण स्वर से बोला ।
“और वह रमाकांत से आपके बारे में भी पूछ रहा था । उसके कथनानुसार आप अपने फ्लैट पर नहीं थे ।”
“यानी कि प्रभूदयाल मुझे भी गिरफ्तार करना चाहता था ?”
“ऐसा ही लगता है ।”
“और ?”
“और कालीचरण नाम का विद्या का माली इस समय पुलिस की हिरासत में है ।”
“क्या ?”
“जी हां । मुझे पुलिस हैडक्वार्टर पर मौजूद अपने कान्टैक्ट से मालूम हुआ है कि किसी गुमनाम व्यक्ति ने सवेरे पुलिस हैडक्वार्टर फोन करके प्रभूदयाल को बताया था कि कालीचरण केस से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण गवाह है, जिसे आप एकदम पुलिस की नाक के नीचे से निकाल कर ले गये थे और आप ने उसे पटेल रोड पर स्थित पंजाब होटल के कमरा नम्बर 355 में छुपाकर रखा हुआ है । प्रभूदयाल ने फौरन वहां जाकर काली चरण को अपनी हिरासत में किया था । मैंने सुना है कि उसने आपके खिलाफ पुलिस को बड़ा खतरनाक बयान दिया है ।”
“और ?”
“और विद्या अस्पताल से अपनी कोठी पर पहुंच गई है और गोरखा चौकीदार जो गोली का शिकार हुआ था, इस वक्त खत्तरे से बाहर है ।”
“मैंने कल रमाकांत को कुछ बातें पता लगाने के लिये कहा था ?”
“इस विषय मे भी सुन लीजिये । हीरानन्द के बारे में हमें कोई विशेष जानकारी हासिल नहीं हो सकी है । हमें केवल इतना ही मालूम हुआ है कि आज से दस साल पहले वह ईश्वर लाल का पर्सनल सैक्रेट्री था और ईश्वर लाल की कोठी में ही रहता था । ईश्वर लाल के गायब होने के बाद वह विद्या द्वारा नौकरी से निकाल दिया गया था । पिछले एक साल से वह ब्लिस होटल में रह रहा था और उसकी आय का कोई साधन नहीं था । लेकिन रुपये पैसे की उसके पास कमी नहीं थी । वह ब्लिस होटल के सबसे बढिया कमरे में रहता था और हमेशा समय पर अपना किराया चुकाता था । वह बढिया शराब पीता था और ऊंचे दर्जे की पेशेवर लड़कियों से सम्बन्ध रखता था ।”
“यानी अब तक बिना कुछ किये धरे भी ठाठ से जिन्दगी गुजार रहा था ?”
“ऐसा ही मालूम होता है ।”
“तुम्हारी बताई तमाम बातें तो इसी बात ही ओर संकेत करती हैं कि उसे कहीं की कमाई थी ।”
“मेरा भी यही ख्याल है । सम्भव है वह कोई लुका छिपा अपराधी भी हो । जैसे स्मगलिंग करता हो या किसी को ब्लैकमेल करता हो ।”
“और ?”
“आपने ईश्वर लाल के रुमाल पर बने जिस लांड्री के निशान के बारे में पूछा था, संयोगवश उसके बारे में जरूरत से ज्यादा जल्दी जानकारी मिल गई थी । हमने जिस पहली ही लांड्री से पूछताछ की थी, उसके एक कर्मचारी ने उस निशान को पहचान लिया था । उसके कथानुसार वह निशान एक अन्य लान्ड्री का था जो छः साल पहले बन्द हो चुकी है । वह कर्मचारी पहले उस बन्द हो चुकी लांड्री में काम करता था ।”
“और कोई बात ?”
“और अपने पुलिस हैडक्वार्टर के कान्टेक्ट से ही हमें मालूम हुआ है कि हीरानन्द की खोपड़ी से निकली गोली, गोरखे चौकीदार के शरीर से निकली गोली और विद्या के कमरे के द्वार की पैनल से निकली गोली, तीनों अड़तीस कैलिबर की एक ही रिवाल्वर से चलाई गई हैं ।”
जौहरी चुप हो गया ।
“बस ?”
“बस ।”
सुनील बिस्तर से निकल पड़ा ।
“अब आप क्या करेंगे ?” - जौहरी ने पूछा ।
“जरा हुलिया सुधार लूं और थोड़ी पेट पूजा कर लूं फिर पुलिस हैडक्वार्टर जाऊंगा ।”
“प्रभूदयाल के पास ?”
“हां ।”
“वह आपको गिरफ्तार कर लेगा ।”
“नहीं जाऊंगा तो भी गिरफ्तार कर लेगा । अगर उसके पास मेरे खिलाफ कुछ हो तो वह मुझे यूं आसानी से थोड़े ही छोड़ देगा ।”
जौहरी फिर नहीं बोला ।
***
सुनील पुलिस हैडक्वार्टर में प्रभूदयाल के कमरे में पहुंचा । कमरे में रमाकांत, काली चरण, दो सब - इन्सपैक्टर और एक पुलिस स्टेनोग्राफर मौजूद था ।
“आओ... आओ डेनियल ।” - प्रभूदयाल उच्च स्वर में बोला ।
“मेरा नाम डेनियल नहीं है ।”
“मैंने सुना है कि जो शख्स शेरों की मांद में स्वेच्छा से जा घुसा था उसका नाम डेनियल था ।”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया । वह कुर्सी घसीटकर रमाकांत की बगल में बैठ गया ।”
“अच्छा हुआ तुम खुद आ गये ।” - प्रभूदयाल बोला । उसके चेहरे पर संतोष की झलक थी - “मैं सारे शहर में तुम्हारी तलाश करवा रहा था।”
“किसलिये ?” - सुनील ने पूछा ।
“जैसे तुम्हें मालूम ही नहीं । तुम और रमाकांत कल रात को कालीचरण को मेरी नाक के नीचे से निकालकर ले गये । पिछली रात को अगर तुमने और रमाकांत ने कालीचरण के मामले में अपनी टांगे न अड़ाई होती तो विद्या की कोठी पर ही मेरा और कालीचरण से सामना हो गया होता और फिर ईश्वर लाल को कालीचरण के क्वार्टर से यूं दोबारा गायब होने का मौका न मिलता । तुम्हारे किसी दुश्मन की टेलीफोन काल से हमें यह तो पता लग गया कि कालीचरण को तुमने कहां छुपाया हुआ है लेकिन तुम्हारा दोस्त रमाकांत यह बताने को तैयार नहीं है कि इसने ईश्वर लाल को कहां छुपाया है ?”
“इसने ईश्वर लाल को छुपाया है ?”
“बिल्कुल । कालीचरण का बयान और हालात इसी बात की ओर संकेत करते हैं । पिछली रात ज्यों ही कालीचरण ने तुम लोगों को बताया कि ईश्वर लाल इसके क्वार्टर पर है, तुमने रमाकांत को उसके क्वार्टर की ओर रवाना कर दिया और स्वयं कालीचरण को बातों में उलझाता रहे । तुम्हारी जानकारी के लिये हमने उस टैक्सी वाले को भी खोज निकाला है, जो रमाकांत को अस्पताल के समीप से बैठा करके जे जे कालोनी के चालीस नम्बर क्वार्टर के सामने छोड़कर आया था और चालीस नम्बर क्वार्टर में कालीचरण रहता है । जब तक तुम और कालीचरण यहां पहुंचे तब तक रमाकांत ईश्वर लाल को वहां से निकाल कर ले जा चुका था ।”
“लेकिन मेरे बाप..” - रमाकांत झल्लाकर बोला - “मैं छत्तीस बार दोहरा चुका हूं कि जब मैं कालीचरण के क्वार्टर पर पहुंचा था, तो उस वक्त ईश्वर लाल वहां नहीं था । उस वक्त क्वार्टर पर किट्टी नाम की उस बिल्ली के अलावा कोई नहीं था ।”
“तुम छत्तीस हजार बार और भी यही बात दोहराओ तो भी मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं होगा । अभी देखना, तुम्हारा यार भी यहीं कहेगा कि काली चरण की पंजाब होटल में मौजूदगी से उसका कोई वास्ता नहीं है ?”
“नहीं कहेगा ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“क्या नहीं कहेगा ?”
“मैं यह नहीं कहूंगा कि मैं काली चरण को पंजाब होटल में नहीं छोड़कर आया लेकिन तुम काली चरण से पूछो - यह वहां पर अपनी मर्जी से गया था ।”
“लेकिन होटल का किराया तुमने दिया था ।”
“इससे क्या होता है । अगर तुम दो एक दिन होटल में रहना चाहो तो मैं तुम्हारा किराया भी दे सकता हूं ।”
“मजाक मत करो, वर्ना पछताओगे । तुम किसी रेलवे प्लेटफार्म पर नहीं, पुलिस हैडक्वार्टर में बैठे हो ।”
“और तुम्हारी यह बात भी गलत है कि मैं इसे पुलिस की नाक के नीचे से निकाल कर ले गया । काली चरण कोठी पर तुम्हारे से नहीं, विद्या से मिलने आया था और मैं इसको विक्टोरिया अस्पताल में विद्या के पास लेकर गया था । यह बात मैंने किसी से छुपाई नहीं थी कि काली चरण विद्या से महत्वपूर्ण बात बताना चाहता था । विद्या के कमरे के बाहर तैनात तुम्हारे सिपाहियों को भी मैंने बहुत साफ शब्दों में यह बात बताई थी लेकिन अगर वे मेरी बात न सुनें तो इसमें मेरा क्या कुसूर था।”
“तुम्हें इसको मेरे पास लाना चाहिये था ।”
“मैं इसको जबरदस्ती कहीं घसीट कर कैसे ले जा सकता हूं । अगर यह तुम्हारे पास नहीं आना चाहता था तो मैं इसे कैसे तुम्हारे पास ला सकता था । मैंने काली चरण के बारे में तुम्हारे आदमियों को बताया था। इस बात से न तुम इन्कार कर सकते हो और न काली चरण इनकार कर सकता है । अब अगर तुम्हारी पुलिस फोर्स में सिपाहियों के स्थान पर गधे भरती हुए हैं तो मैं इसमें क्या कर सकता हूं ।”
“आल राइट । मेरे सिपाहियों की जल्दबाजी में तुमने अपने बचाव की दलीलें ढूंढ निकाली हैं लेकिन रमाकांत के बचाव का न तुम्हारे पास कोई जवाब है और न रमाकांत के पास । यह बात साफ जाहिर है कि रमाकांत ने तुम लोगों से पहले जे जे कालोनी पहुंच कर वहां से ईश्वर लाल का अगुवा कर लिया था ।”
“ईश्वर लाल से तुम्हें क्या लेना देना है ?”
“हमें ईश्वर लाल पर हत्या का सन्देह है । हमें सन्देह है कि उसने हीरानन्द की हत्या की है ।”
“और इस बात का संकेत तुम्हें काली चरण की गवाही से मिला है ?”
“मुझे अपने सारे पत्ते तुम्हें दिखाने की जरूरत नहीं है ।
“तुम्हारे पत्ते तो साफ जाहिर हैं । लेकिन अब मैं तुम्हें अपने पत्ते दिखाता हूं । प्रभूदयाल, क्या रमाकांत किसी ऐसे आदमी का अपहरण कर सकता है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है ।”
“क्या मतलब ?” - प्रभूदयाल तीव्र स्वर में बोला ।
“मेरी एक दो बातों का जवाब दो । मतलब तुम्हारी समझ में खुद आ जायेगा ।”
“तुम क्या पूछना चाहते हो ?”
“कल हीरानन्द की लाश के पास एक रुमाल में लिपटा हुआ कुछ सामान तुम्हें मिला था और सम्बन्धित व्यक्तियों की शिनाख्त के अनुसार वह सामान ईश्वरलाल का था । सामान में बंधी चीजों में एक फाउन्टेन पेन और एक घड़ी थी । घड़ी में फिट स्पेशल डायल से मालूम होता था कि उसे शाम को चार बजे चाबी दी गयी थी । क्या कोई आदमी शाम को चार बजे चाबी देता है ?”
“नहीं, लेकिन तुम उससे क्या सिद्ध करना चाहते हो ?”
“अभी बताता हूं । फाउन्टेन पेन की हालत कैसी थी ?”
“क्या मतलब ?”
“क्या वह लिखता था ?”
“नहीं । उसकी स्याही सूखी हुई थी । ऐसा लगता था जैसे काफी अरसे से उसे इस्तेमाल नहीं किया गया था ।”
“तुमने रूमाल के कोने में बने लान्ड्री के निशान को चैक करवाया ?”
“नहीं ।” - प्रभूदयाल तनिक विचलित स्वर से बोला ।
“मैंने करवाया है और तुम्हारी जानकारी के लिये जिस लान्ड्री में वह रुमाल धुला है उसे अपना धन्धा बन्द किये हुये भी छः साल हो गये हैं और उस रुमाल पर उस निशान अतिरिक्त किसी दूसरी लान्ड्री का निशान नहीं है । क्या यह सम्भव है कि कोई आदमी एक ही रुमाल को छः साल तक इस्तेमाल करता रहा हो अर्थात जो रुमाल आखिरी बार सन चौंसठ से पहले धुला हो, वह सन सत्तर तक उस आदमी के पास सलामत हो और वह भी नया नकोर ।”
“तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“पहले मुझे पूरी बात कह लेने दो । अन्त में तुम्हारी समझ में खुद ही आ जायेगा कि मैं क्या कहना चाहता हूं ।”
“मैं सुन रहा हूं ।”
सुनील ने देखा प्रभूदयाल के चेहरे से विजेता के से वे भाव उड़ गये थे, जो सुनील ने आते ही उसके चेहरे पर देखे थे । अब वह काफी हद तक चिन्तित दिखाई देने लगा था और सुनील की बातों को बड़ी गौर से सुन रहा था ।
कमरे में मौजूद पुलिस का स्टेनोग्राफर सारा वार्तालाप शार्ट हैण्ड में नोट कर रहा था ।
“कालीचरण के क्वार्टर पर बिल्ली नाम की वह शहादत मौजूद थी जो इस वक्त तुम्हारे अधिकार में है । मैं उसके हर एक्शन की ओर तुम्हारा ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं । उस बिल्ली के एक्शन ही सारे रहस्य का भण्डा-फोड़ करने के लिये काफी हैं ।”
“कहते जाओ ।”
“कालीचरण के कथनानुसार जब ईश्वर लाल ने इसके क्वार्टर का दरवाजा खटखटाया था, उस वक्त तक कालीचरण अभी बिस्तर की शरण में नहीं पहुंचा था । यह कुछ ही मिनट पहले सिनेमा का आखिरी शो देखकर वापिस लौटा था । काली चरण के कथनानुसार ईश्वर लाल ने इससे शरण मांगी । परिणामस्वरूप कालीचरण ने पिछले कमरे में ईश्वर लाल के सोने का इन्तजाम कर दिया । ईश्वर लाल के सोते ही कालीचरण क्वार्टर से बाहर निकल आया और ईश्वर लाल के उसके क्वार्टर पर मौजूद होने की बात विद्या को बताने के लिये शंकर रोड की ओर रवाना हो गया । इसकी गैरहाजिरी में किसी वक्त ईश्वर लाल उसके क्वार्टर से गायब हो गया । इस वक्त इस बात का महत्व नहीं है कि उसे रमाकांत अगुवा करके ले गया था या वह खुद वहां से खिसक गया । जब मैं कालीचरण के साथ इसके क्वार्टर पर पहुंचा था, उस वक्त बिल्ली सामने कमरे की चारपाई पर बिस्तर में गुच्छा-मुच्छा हुई सोई पड़ी थी, दोनों कमरों को मिलाने वाला दरवाजा थोड़ा-सा खुला था और किचन का दरवाजा बन्द था । किचन में पड़े आटे के ड्रम से लेकर सामने कमरे तक जमीन पर बिल्ली के आटे से सने पंजों के निशान थे । उन निशानों से ऐसा लगता था कि किचन में बिल्ली के पैरों को आटा लगा था । किचन से निकलकर वह पिछले कमरे में आई थी और पिछली चारपाई पर बिछे बिस्तर पर कूद गई थी । इससे जाहिर होता है, चारपाई उस वक्त खाली थी । बिल्ली वहां टिकी नहीं थी ! वह वहां से कूदी थी और दुबारा फर्श पर आ गई थी । वहां से वह सामने के कमरे में आई थी और सामने के कमरे में बिछे बिस्तर पर जाकर सो गई थी । अब सवाल यह पैदा होता है कि बिल्ली के पैरों में आटा कहां से लगा ? जबकि किचन का दरवाजा और ड्रम का ढक्कन दोनों बन्द थे । ड्रम के आसपास थोड़ा-सा आटा बिखरा हुआ जरूर था, लेकिन वह इतना काफी नहीं था कि बिल्ली के पन्जे अच्छी तरह उससे सन जाते और फिर बिल्ली को बाद में मैं अपने साथ ले आया था । उसके शरीर के बालों में भी आटा फंसा हुआ था ।”
“तुम इससे सिद्ध क्या करना चाहते हो ?”
“बहुत सी बातें । जैसे बिल्ली का सारा शरीर ही आटे से सना होना जाहिर करता है कि वह किसी समय आटे के ड्रम में ही कूद गई थी । किसी ने किचन का दरवाजा और आटे का ड्रम खोला था । बिल्ली उसके पीछे-पीछे आ गई थी और शरारत में या अनजाने से आटे के ड्रम में कूद गई थी । ड्रम खोलने वाले ने बिल्ली को ड्रम से निकालकर बाहर फेंक दिया था और बिल्ली मेरे पहले के बयान किये एक्शन दोहराती हुई सामने के कमरे में पहुंच गई थी । बाद में ड्रम खोलने वाले ने उसका ढक्कन और किचन का दरवाजा बन्द कर दिया । अब मैं तुमसे एक सवाल पूछता हूं प्रभूदयाल, इतनी रात गये किसी ने आटे का ड्रम क्यों खोला ?”
“क्यों खोला ?” - प्रभूदयाल के मुंह से अपने आप निकल गया ।
“क्या आटे का ड्रम कोई चीज छुपाने के लिये लाजवाब जगह नहीं है।” - सुनील धीरे से बोला - “क्या इतनी रात गये किसी का आटे का ड्रम खोलना, इस बात की ओर संकेत नहीं करता कि किसी ने उसमें कोई चीज छुपाई थी ।”
“या कोई पहले से छुपाई हुई चीज निकाली थी ।”
“दोनों ही सूरतों में तुम्हें आटे का ड्रम चैक करना चाहिये ।”
प्रभूदयाल एक सब-इन्सपेक्टर की ओर घूमा और तीव्र स्वर से बोला - “फौरन कालीचरण के फ्लैट पर जाओ । उस आटे के ड्रम की तलाशी लो और तलाशी के बाद ड्रम को यहां ले आओ और ड्रम को इस प्रकार हैन्डल करना कि उस पर बने उंगलियों के निशान बिगड़ने न पायें ।”
“मैं साथ चलूं ?” - कालीचरण अपने स्थान से उठता हुआ बोला ।
“कोई जरूरत नहीं ।” - प्रभूदयाल बोला ।
कालीचरण फिर न बोला ।
सब-इन्सपेक्टर फौरन कमरे से बाहर निकल गया ।
“साथियों ।” - प्रभूदयाल बोला - “जब तक मेरा सब-इन्सपेक्टर वापिस नहीं लौट आता, हम यूं ही यहां बैठे मक्खियां मारते रहेंगे ।”
“कम से कम चाय तो पिला दो ।” - सुनील बोला ।
“मुजरिमों को ?”
“क्या हर्ज है ?”
प्रभूदयाल के संकेत पर एक सिपाही चाय लेने चला गया ।
“सुनील ।” - एकाएक प्रभूदयाल चिन्तित स्वर से बोला - “तुम ने मुझे उलझन में डाल दिया है । तुम बिल्ली के हर एक्शन को इतना महत्व क्यों दे रहे हो । तुम इससे क्या सिद्ध करना चाहते हो ?”
“जरा दिमाग पर जोर दो । तुम्हें खुद मालूम हो जायेगा कि मैं इससे क्या सिद्ध करना चाहता हूं । केवल ये बातें याद रखो कि कल रात बहुत सर्दी थी । कालीचरण को अपने बिस्तर में घुसने का मौका ही नहीं मिला था और इसके कथनानुसार उसके वहां से निकलते समय ईश्वर लाल पिछले कमरे में सोया पड़ा था ।”
एकाएक रमाकांत के नेत्र चमक उठे । उसने अर्थपूर्ण नेत्रों से सुनील की ओर देखा और मुस्कराया ।
“रमाकांत की सूरत से लगता है कि उसकी समझ में यह बात आ गई है कि बिल्ली पिछले कमरे के बिस्तर पर टिकी क्यों नहीं थी और मुझे सामने के कमरे के बिस्तर पर सोई क्यों मिली थी ।”
प्रभूदयाल के चेहरे पर उलझन के चिन्ह और गहरे हो गये ।
सुनील ने सिगरेट सुलगा ली ।
“पता नहीं, उस बिल्ली के एक्शन से तुम क्या सिद्ध करना चाहते हो?” - एकाएक प्रभूदयाल झुंझलाकर बोला - “मेरी समझ में तो खाक भी नहीं आ रहा । हत्या के मामलों की छानबीन के सिलसिले में यह पहला मौका है जबकि मुझे इन्सानों के एक्शनों के साथ-साथ जानवरों के एक्शनों को भी समझने की जरूरत पड़ रही है । उस बिल्ली के एक्शन से तुम क्या सिद्ध करना चाहते हो स्पष्ट कुछ बताते भी तो नहीं ?”
“बताऊंगा ।” - सुनील इत्मीनान से बोला - “लेकिन जरा अपने सब-इन्सपेक्टर के लौटने तक सब्र करो ।”
प्रभूदयाल चुप हो गया ।
लगभग आधे घन्टे बाद सब-इन्सपेक्टर वापिस लौटा । वह बेहद उत्तेजित था । उसके हाथ में एक जूते रखने वाला गत्ते का डिब्बा था । सब-इन्सपेक्टर ने वह डिब्बा खोला और उसे प्रभूदयाल के सामने मेज पर उलट दिया ।
गत्ते के डिब्बे में से एक अड़तीस कैलीबर की रिवाल्वर निकली थी ।
“यह रिवाल्वर ।” - सब-इन्सपेक्टर बोला - “कालीचरण की किचन में रखे आटे के ड्रम में से बरामद हुई है । मैंने इस रिवाल्वर का सीरियल नम्बर फायर आर्म्स के रजिस्टर में चैक किया है । यह रिवाल्वर आज से लगभग तेरह साल पहले ईश्वर लाल ने खरीदी थी ।”
“आटे के ड्रम में यह रिवाल्वर जरूर ईश्वर लाल साहब ने ही रखी होगी ।” - कालीचरण उत्तेजित स्वर से बोला - “इसी रिवाल्वर से उन्होंने हीरा नन्द की हत्या की होगी ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?” - प्रभूदयाल ने तीव्र स्वर से पूछा ।
“साहब ने मुझे खुद बताया था ।”
“कि उन्होंने हीरा नन्द की हत्या कर दी है ?”
“जी हां ।”
“क्यों ?”
“यह उन्होंने नहीं बताया ।”
“तुमने यह बात पहले क्यों नहीं बताई ?”
“मुझे साहब ने इस विषय में अपनी जुबान खोलने के लिये मना किया था । लेकिन अब जबकि रिवाल्वर भी बरामद हो गई है तो मैंने सच्ची बात कह देना ही मुनासिब समझा है ।”
प्रभूदयाल तत्काल कुछ नहीं बोला ।
“काली चरण !” - सुनील कालीचरण से सम्बोधित हुआ ।
“हां, बाबूजी ।” - कालीचरण बोला ।
“मेरी ओर देखो ।”
काली चरण सुनील की ओर देखने लगा । सुनील के नेत्र काली चरण के चेहरे पर टिक गये ।
“काली चरण !” - सुनील अपने एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “तुम झूठ बोल रहे हो ।”
“जी !” - काली चरण सकपकाकर बोला ।
“तुम सरासर झूठ बोल रहे हो । आटे के ड्रम में रिवाल्वर ईश्वर लाल ने नहीं, तुमने रखी थी ।”
“क्या कह रहे हो बाबूजी, भला मेरे पास रिवाल्वर कहां से आयेगी ?”
“ऐसे भोला बनने से कोई फायदा नहीं होगा काली चरण । तुम्हारा झूठ खुल चुका है । अब ईश्वर लाल को जीवित साबित करने की तुम्हारी स्कीम एकदम फेल हो चुकी है । ईश्वर लाल को मरे दस साल हो चुके हैं।”
“यह झूठ है ।” - काली चरण उच्च स्वर से बोला - “ईश्वर लाल साहब जीवित हैं और पिछली रात को वे मेरे क्वार्टर पर थे ।
“यह झूठ है । कल रात तुम्हारे क्वार्टर पर कोई नहीं आया था । तुमने अपने क्वार्टर पर ईश्वर लाल के आगमन की कहानी सिर्फ ईश्वर लाल को जीवित साबित करने के लिये घड़कर सुनाई है ।”
“यह एकदम गलत बात है । कल रात ईश्वर लाल साक्षात मेरे कमरे में मौजूद थे ।”
“साइलेंस ।” - एकाएक प्रभूदयाल बोला - “तुम चुप रहो, काली चरण । मुझे सुनील से एक दो बातें पूछने दो । सुनील, तुम किस आधार पर यह दावा करते हो कि ईश्वर लाल जीवित नहीं है ।”
“हर बात इसी ओर संकेत कर रही है ।” - सुनील बोला - “हीरा नन्द की लाश के पास मिला ईश्वर लाल का निजी सामान ही यह साबित करने के लिये काफी है कि ईश्वर लाल मर चुका है और उसको जबरदस्ती जिन्दा साबित करने की कोशिश की जा रही है । मैं पहले ही कह चुका हूं कि ईश्वर लाल का रुमाल जिस लान्ड्री का धुला हुआ था, उसे अपना धन्धा बंद किये हुये भी छः साल हो चुके हैं । कोई आदमी एक ही रूमाल इतने लम्बे अर्से तक इस्तेमाल करता नहीं रह सकता । ईश्वर लाल के फाउन्टेन पेन की स्याही तुमने खुद स्वीकार किया है सूखी हुई थी और उसकी घड़ी को शाम के चार बजे चाबी दी गई है । जैसा कि साधारणतया कोई आदमी नहीं करता । उस घड़ी को चाबी किसी और ने दी थी ताकि उसे ईश्वर लाल की इस्तेमाल में आती हुई घड़ी साबित किया जा सके और इसके अतिरिक्त बिल्ली के एक्शन तो निर्विवाद रूप से यह सिद्ध करते हैं कि काली चरण के क्वार्टर में काली चरण के अतिरिक्त कोई नहीं था ।”
“कैसे ?” - प्रभूदयाल के मुंह से अपने आप निकल गया ।
“मैंने पहले ही कहा है कि कल रात बहुत सर्दी थी ।” - सुनील बोला - “और काली चरण के अपने कथनानुसार उसे अपने बिस्तर में घुसने का मौका नहीं मिला था, लेकिन वहां से जाते समय वह पिछले कमरे में बिछे बिस्तर पर ईश्वर लाल को सोया छोड़कर गया था । जब बिल्ली को आटे के ड्रम से निकाल कर बाहर फेंका गया था तो वह पहले पिछले कमरे में बिछे बिस्तर पर कूदी थी, जिस पर काली चरण के कथनानुसार ईश्वर लाल सोया हुआ था, लेकिन बिल्ली सामने के कमरे के उस बिस्तर पर सोई पाई गई थी, जिसमें काली चरण के कथनानुसार इसे घुसने का भी मौका नहीं मिला था । बिल्ली का यह एक्शन साफ जाहिर करता है कि काली चरण झूठ बोल रहा है । वास्तव में पिछले कमरे के बिस्तर पर कोई नहीं सोया था, इसलिये वह बिस्तर ठण्डा था, लेकिन सामने के कमरे के बिस्तर पर कोई सोया था, इसलिये कि वह गर्म था । काली चरण झूठ बोलता है कि यह कल रात सिनेमा का आखिरी शो देखने गया था । कल रात यह अपने बिस्तर में मौजूद था और बिल्ली भी इसके साथ बिस्तर में थी । फिर काली चरण बिस्तर से निकल कर कहीं चला गया । वापिस लौटकर यह किचन में गया । बिल्ली बिस्तर में से निकलकर उसके पीछे हो ली । काली चरण ने आटे का ड्रम खोला तो बिल्ली शरारत से या किसी और वजह से आटे के ड्रम में कूद गई । काली चरण ने आटे से लिथड़ी बिल्ली को ड्रम से निकालकर बाहर फेंक दिया बिल्ली किचन से निकलकर पिछले कमरे के बिस्तर पर कूदी, लेकिन वहां टिकी नहीं, क्योंकि वह बिस्तर ठण्डा था । तभी उसे सामने के कमरे के गर्म बिस्तर की याद आई और वह पिछले कमरे के बिस्तर से कूदकर सामने के कमरे के बिस्तर पर आ गई और वहीं वह बाद में सोई पड़ी पाई गई । बिल्ली का यह एक्शन साफ जाहिर करता है कि पिछले कमरे में ईश्वर लाल के सोये होने की बात सरासर गलत है ।”
“यह सब बकवास है ।” - काली चरण चिल्लाकर बोला - “इन किताबी बातों से आप मुझे झूठा साबित नहीं कर सकते । मैं सच कह रहा हूं कि पिछली रात को ईश्वर लाल साहब मेरे क्वार्टर पर ही थे ।”
“और उन्होने रिवाल्वर आटे के ड्रम में छपाई थी ?”
“बिल्कुल ।”
“लेकिन अगर रिवाल्वर पर तुम्हारी उंगलियों के निशान मिलें और आटे के ड्रम पर भी या सारे क्वार्टर में कहीं भी ईश्वर लाल की उंगलियों के निशान न मिलें तो ?”
“मुझे... मुझे इन सब बातों की समझ नहीं ।” - काली चरण एकाएक हकलाकर बोला - “मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि मैंने जो कहा है, सच कहा है ।”
“रिवाल्वर लैबोरेट्री में ले जाओ ।” - प्रभूदयाल ने सब-इन्सपेक्टर को आदेश दिया ।
सब-इन्सपेक्टर ने रिवाल्वर पूर्ववत गत्ते के डिब्बे में बन्द की और उसे लेकर कमरे से बाहर निकल गया ।
“लेकिन सुनील ?” - रमाकांत शायद पहली बार बोला - “ईश्वर लाल को जिन्दा साबित करने की इसे क्या जरूरत है ?”
“इसको नहीं ।” - सुनील बोला - “ईश्वर लाल को जिन्दा साबित करने की जरूरत किसी और को है ।”
“किसको ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“विद्या को !” - सुनील बोला - “ईश्वर लाल की वसीयत के अनुसार उसकी तमाम चल और अचल सम्पत्ति जो लाखों की है, रोशन लाल, मधु और विद्या में तीन बराबर भागों में बांटी जाने वाली थी, लेकिन क्योंकि ईश्वर लाल को मृत साबित करने का कोई साधन नहीं था, इसलिये विद्या सारी जायदाद पर सांप की तरह कुंडली मारकर बैठी हुई थी । फिर रोशन लाल को मालूम हुआ कि सात साल तक अगर किसी आदमी की खोज-खबर न मिले तो कानून की निगाह में उसे मृत समझ लिया जाता है । अर्थात आज ईश्वर लाल के गायब होने के दस साल बाद रोशन लाल और मधु विद्या की जायदाद के बटवारे के लिये मजबूर कर सकते थे, जबकि विद्या रोशन लाल को एक धेला नहीं देना चाहती । तभी उसने ईश्वर लाल को जिन्दा साबित करने की स्कीम तैयार की और एक तीर से कई शिकार कर डाले । अगर आज की तारीख में ईश्वर लाल जीवित हो जाये तो वह जायदाद का बटवारा रोक सकती थी ।”
“विद्या ने और क्या किया ?”
“मैं तुम्हें सारी कहानी शुरू से सुनाता हूं । मेरी कहानी का आधार नब्बे प्रतिशत तथ्य और केवल दस प्रतिशत अनुमान है ।”
“बोलो ।”
“ईश्वर लाल का पुराना सेकेट्री हीरानन्द विद्या को दस साल से ब्लैकमेल कर रहा था । विद्या ब्लैकमेल की रकमें अदा कर-करके इस हद तक तंग आ चुकी थी कि उसने हीरा नन्द की हत्या करने का फैसला कर लिया । अपने माली काली चरण की मदद से उसने एक ऐसी मास्टरपीस स्कीम बनाई, जिससे उसका हीरा नन्द से पिंड भी छुट जाये और साथ ही यह भी सिद्ध हो जाये कि उसकी हत्या ईश्वर लाल ने की है, यानी कि ईश्वर लाल आज भी जिन्दा है । कल हीरानन्द ने और धन के लिये विद्या को फोन किया और कल ही विद्या ने अपनी स्कीम पर काम करने का फैसला कर लिया । सबसे पहले विद्या के कहने पर काली चरण ने मधु को फोन किया और उसे कहा कि वह उसका दस साल से गायब चाचा ईश्वर लाल है । विद्या ने काली चरण को कुछ ऐसी बातें भी बता दी थी जिनकी मधु के कथनानुसार किसी बाहरी आदमी को जानकारी नहीं हो सकती थी ।”
“लेकिन फोन मधु को क्यों किया गया ?” - प्रभूदयाल बोला - “रोशन लाल को क्यों नहीं किया गया ?”
“क्योंकि रोशन लाल काली चरण की आवाज पहचान सकता था । वह यह जान सकता था कि दूसरी ओर से उसका भाई नहीं बोल रहा । लेकिन मधु के लिये अपने गायब चाचा की आवाज पहचान पाना असम्भव था, क्योंकि ईश्वर लाल के गायब होने के समय मधु केवल दस साल की बच्ची थी । इतनी छोटी बच्ची को कोई आवाज दस साल बाद भी याद रही हो, यह सम्भव नहीं था ।”
“खैर, फिर ?”
“फिर शाम को विद्या ने बिल्ली को जहर दे दिया ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि विद्या मधु को अपने रास्ते से हटाना चाहती थी । उसे मालूम था कि मधु मरणासन्न बिल्ली को लेकर हस्पताल जरूर जायेगी और इस प्रकर किसी को मालूम नहीं हो सकेगा कि विद्या भी कोठी से बाहर गई थी । उसी वक्त रोशन लाल वहां आ टपका था लेकिन वह भी मधु के साथ चला गया था । इसलिये वह विद्या के लिये मुश्किल नहीं बन पाया था । कोठी से मधु के रवाना होते ही विद्या ने अपने पति का एक रुमाल, फाउंटेन पेन और घड़ी वगैरह निकाली और उसकी रिवाल्वर सम्भाली, फिर नेपियन हिल की ओर रवाना हो गई, जहां उसने हीरा नन्द से मिलने का वादा किया था । हीरा नन्द नेपियन हिल पर पानी की टंकी के पास कार में बैठा विद्या के रुपये लेकर आने का इन्तजार कर रहा था । विद्या आई । उसने रिवल्वर से हीरा नन्द को शूट कर दिया और ईश्वर लाल के निजी सामान की रुमाल में पोटली सी बना कर उसे लाश के पास छोड़ दिया । वापिस आकर उसने रिवाल्वर अपने कमरे में छुपा दी । अपने को सन्देह से एकदम परे करने के लिये स्वयं भी जहर खा लिया और हस्पताल पहुंच गई । वहां उसका तुमसे सामना हुआ । तुमने उसे बताया कि तुम उसकी कोठी से होकर आ रहे हो और तुमने उसके रूम की, दवाईयों की और केबिन की तलाशी ली है । और साथ ही तुमने उसे यह बताया कि तुम किसी सूत्र की तलाश में सारी कोठी की बड़ी बारीकी से तलाशी करवाने वाले हो । विद्या यह बात सुनकर घबरा गई । अगर सारी कोठी की तलाशी होती तो उसके कमरे में छुपी वह रिवाल्वर जिससे हीरा नन्द का खून हुआ था, तुम्हारे हाथ में जरूर पड़ जाती । विद्या उस रिवाल्वर को अपने कमरे से हटाने के लिये वापिस कोठी पर जा नहीं सकती थी, क्योंकि डाक्टर उसे बिस्तर से हिलने की भी इजाजत नहीं दे रहा था और तुम भी उस कमरे पर पहरा बिठवा आये थे । उस आशंका की घड़ी में विद्या को फिर चरण काली की याद आई ।”
सुनील ने देखा काली चरण एकाएक बहुत व्याकुल दिखाई देने लगा था ।
“फिर ?” - प्रभूदयाल मन्त्र मुग्ध स्वर से बोला ।
“विद्या के हस्पताल के कमरे में टेलीफोन था और काली चरण के क्वार्टर के पास के एक चौबीस घन्टे खुले रहने वाले रेस्टोरेन्ट में टेलीफोन है । रेस्टोरेन्ट का मालिक काली चरण का फोन आने पर उसे क्वार्टर से बुलवा देता है । विद्या ने तुम्हारे हस्पताल से विदा होते ही उस रेस्टोरेन्ट में काली चरण को फोन किया और उसे कहा कि वह फौरन कोठी पर जाये और खिड़की के रास्ते उसके कमरे में घुस जाये और उसमें छुपी रिवाल्वर निकाल लाये । काली चरण ने आज्ञा का पालन किया । वह फौरन कोठी पहुंचा और खिड़की के रास्ते विद्या के कमरे में घुस गया । वहां अन्धेरे में उससे एक स्टूल उलट गया । उस आवाज को कवर करने के लिये इसने विद्या की चाल की नकल करने की कोशिश की, ताकि आवाज सुनने वाला यही समझे कि विद्या ही अपने कमरे में है । लेकिन मधु को मालूम था कि विद्या हस्पताल में है । वह समझ गई कि विद्या के कमरे में कोई चोर है । वह गोरखे चौकीदार को लेकर विद्या के कमरे में पहुंची । उस वक्त तक काली चरण रिवाल्वर अपने अधिकार में कर भागने की तैयारी कर रहा था । गोरखा कमरे की बत्ती जलाने वाला था । इसने गोरखे पर गोली चला दी और फिर फौरन वहां से भाग निकला । यह सीधा अपने क्वार्टर पर पहुंचा और वहां इसने आटे के ड्रम में रिवाल्वर छुपा दी । लेकिन बिल्ली की वजह से इसकी पोल खुल गई । आखिरी शो देखकर आने की बात इसने सरासर झूठ कही थी । वास्तव में जिस समय इसे विद्या का फोन आया था, उस समय काली चरण अपने बिस्तर में था और इसीलिये इसका बिस्तर गर्म था । यह बात रेस्टोरेन्ट के उस कर्मचारी की सहायता से भी सिद्ध की जा सकती है, जो काली चरण को टेलीफोन के लिये बुलाने आया था ।”
सुनील एक क्षण रुका और फिर बोला - “इसके बाद काली चरण ने पिछले कमरे में बिस्तर बिछाया । बिस्तर पर यूं सिलवटें डाल दी जैसे उस पर कोई सोया रहा हो । उस बिस्तर के पास इसने एक तिपाई रखी, उस पर एक कांच की प्लेट रखी और उसमें एक सिगार का अधजला टुकड़ा सजा दिया, ताकि देखने वाले को यह लगे कि वह सिगार ईश्वर लाल पीता रहा था । उसके बाद काली चरण टैक्सी पर सवार होकर विद्या की कोठी पर पहुंचा । वहां उसको उम्मीद थी कि वह पुलिस के हत्थे चढ जायेगा और बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से वह पुलिस को बतायेगा कि ईश्वर लाल उसके क्वार्टर पर मौजूद है । पुलिस काली चरण के क्वार्टर पर पहुंचती तो उसे यही लगता कि ईश्वर लाल वहां था लेकिन कालीचरण के क्वार्टर से जाने के बाद उसकी नींद खुल गई थी । काली चरण को गायब पाकर वह संदिग्ध हो उठा था और फिर कालीचरण के क्वार्टर से भाग निकला था । लेकिन संयोगवश कालीचरण पुलिस के हाथ में पड़ने के स्थान पर मेरे और रमाकांत के हाथ में पड़ गया । उसको किसी को तो ईश्वर लाल के अपने क्वार्टर में मौजूद होने की कहानी सुनानी ही थी, अत: उसने वह कहानी हमें सुना दी ।”
“तुम्हें क्यों ?”
“हालत की मजबूरी थी । अपने कथनानुसार यह वहां विद्या से बात करने आया था जबकि इसे मालूम था कि विद्या हस्पताल में है । इसे अपेक्षा थी कि इसका पुलिस से सामना हो जायेगा और यह भारी अनिच्छा और मजबूरी जाहिर करता हुआ पुलिस को बता देगा कि ईश्वर लाल इसके क्वार्टर में है । प्रत्यक्षत: तो इसे यह जाहिर करना था कि पुलिस के सम्पर्क में आने की इसे कोई इच्छा नहीं है । हमें वह कहानी इसने इसलिये सुनाई क्योंकि उसे विश्वास था कि हम इस कहानी को आगे पुलिस तक पहुंचायेंगे । लेकिन जब मैं इसे पंजाब होटल में छोड़ आया तो इसे चिन्ता होने लगी कि कहीं हम पुलिस तक यह कहानी पहुंचाने में जरूरत से ज्यादा देर न कर दें । इस बात का हल इसने यह निकाला कि मेरे होटल से रवाना होते ही इसने तुम्हें एक गुमनाम टेलीफोन किया और बताया कि मैंने एक महत्वपूर्ण गवाह को यानी कि इसे पंजाब होटल में पुलिस की निगाहों में छुपा कर रखा हुआ था । परिणामस्वरूप पुलिस ने पंजाब होटल जाकर इसे अपने अधिकार में कर लिया । फिर इसने ईश्वर लाल के अपने क्वार्टर पर आने की कहानी फिर दोहरा दी ।”
“कमाल है ।” - प्रभूदयाल कालीचरण को घूरता हुआ बोला - “यानी कि इसने खुद ही अपने बारे में हमें फोन किया ?”
“बिल्कुल । मेरे और इसके सिवाय और कोई तीसरा आदमी जान ही नहीं सकता था कि यह एक महत्वपूर्ण गवाह है और पंजाब होटल में ठहरा हुआ है ।”
“यह भी तो हो सकता है कि किसी ने जे जे कालोनी से ही पंजाब होटल तक तुम्हारा पीछा किया हो ?”
“असम्भव । रात के तीन बजे सड़क एकदम सुनसान पड़ी थी । कहीं इक्का-दुक्का ट्रैफिक भी मुश्किल से दिखाई देता था और मैं इस बारे में पूरा सावधान था कि कोई मेरा पीछा न कर पाये । मेरा दावा है कि कल रात किसी ने मेरा पीछा नहीं किया था । कल रात के माहौल में मेरी जानकारी में आये बिना कोई मेरा पीछा कर ही नहीं सकता था । और फिर काली चरण तुम्हारे सामने बैठा है, तुम इस बारे में इसी से सवाल क्यों नहीं करते ?”
“कल पुलिस को अपने बारे में गुमनाम टेलीफोन तुमने किया था काली चरण ?”
काली चरण के मुंह से बोल नहीं फूटा ! उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी ।
प्रभूदयाल कुछ क्षण काली चरण को घूरता रहा और फिर सुनील से सम्बोधित हुआ - “लेकिन हीरा नन्द विद्या को किस आधार पर ब्लैकमेल कर रहा था ?”
“एक ही कारण हो सकता है ।”
“क्या ?”
“कोई बहुत बड़ा अपराध जो विद्या ने किया हो और जिसकी खबर हीरा नन्द को लग गई हो ।”
“कौन सा अपराध ?”
“आज से दस साल पहले ईश्वर लाल की हत्या ! विद्या को ईश्वर लाल से कोई मुहब्बत नहीं थी । ईश्वर लाल की दौलत हथियाने के लिये उसने इतनी चतुराई से उसका खून किया था कि किसी को लेशमात्र भी सन्देह नहीं हुआ था । हर कोई यही समझता रहा था कि ईश्वर लाल बीवी से तंग आकर किसी जवान लड़की के साथ भाग गया था, जबकि वास्तव में वह विद्या की मेहरबानी से दुनिया में पहुंच चुका था । आज से दस साल पहले काली चरण अपने भाई देवी चरण के साथ ईश्वर लाल की कोठी में रहता था । देवी चरण कैंसर का रोगी था और वह किसी भी क्षण मर सकता था । विद्या को भी यह बात मालूम थी । जिस रात को देवी चरण मरा उसी रात को विद्या ने ईश्वर लाल की हत्या कर दी । काली चरण ने मुझे बताया था कि देवी चरण की लाश को अपने गांव दीनानगर ले जाने के लिये इसे ईश्वर लाल ने रुपये दिये थे जबकि वास्तव में ईश्वर लाल खुद भी मर चुका था और वे रुपये कालीचण को विद्या से मिले थे । कालीचरण दुनिया की निगाहों में अपने भाई की लाश लेकर दीनानगर रवाना हो गया, जबकि वास्तव में यह अपने साथ ईश्वर की लाश का यह चुपचाप दीनानगर में दाह-संस्कार कर आया । देवीचरण की लाश को यहां चुपचाप नगर से बाहर फिंकवा दिया गया । बाद में कारपोरेशन वालों को वह लाश मिली लेकिन कोई उसकी शिनाख्त करने वाला नहीं था । इसलिये उस लाश को लावारिस समझ कर उसका क्रियाक्रम कारपोरेशन द्वारा कर दिया गया था । हीरा नन्द उन दिनों कोठी में ही रहता था । उसे इस सारे सिलसिले की या इसकी एक कड़ी की भनक लग गई थी और इसी आधार पर तब तक विद्या को ब्लैकमेल करता रहा, जब तक कि विद्या ने उसकी हत्या नहीं कर दी ।”
सुनील एक क्षण चुप रहा और फिर बोला - “इस सारे केस में कालीचरण की होशियारी की जितनी तारीफ की जाये कम हैं । उसकी होशियारी का सबसे बड़ा कमाल यही था कि इसने मेरे सामने एक बेहद नासमझ आदमी का अभिनय किया था । अगर मुझे पहले से ही सन्देह न होता कि ईश्वर लाल मर चुका है तो शायद मैं इसकी बात पर हमेशा के लिये नहीं तो कम से कम वक्ती तौर पर विश्वास कर ही लेता ।”
“तुम्हें पहले से सन्देह था कि ईश्वर लाल मर चुका है ?” - प्रभूदयाल हैरानी से बोला ।
“हां ।”
“और इस सन्देह का क्या आधार था ?”
“ईश्वर लाल के गायब होने के दो तीन महीने बाद मधु को एक पिक्चर पोस्टकार्ड मिला था जिसके एक ओर डल लेक का दृश्य छपा हुआ था और दूसरी ओर ईश्वर लाल की हैडराइटिंग लिखा था -
प्रिय मधु,
समय बहुत आनन्द से गुजर रहा है ! तुम्हें शायद विश्वास न हो लेकिन यह हकीकत है कि हमें सबसे ज्यादा सब मजा तैरने में आ रहा है ।”
तुम्हारा चाचा
ईश्वर लाल
इस पत्र की इबारत ही निर्विवाद रूप से यह जाहिर करती है कि ईश्वर पहले ही मर चुका था और वह पत्र उसके द्वारा नहीं भेजा गया था ।”
“लेकिन तुम कहते हो कि हैडराइटिंग ईश्वर लाल की थी ?”
“थी, लेकिन वह पत्र उसने निश्चय ही जनवरी उन्नीस सौ साठ से पहले कभी लिखा होगा जब वह विद्या के साथ श्रीनगर गया था, तब उसने यह पत्र मधु के नाम लिखा था । लेकिन उसे शायद डाक में डालना भूल गया था और वह उसकी जेब में ही पड़ा रह गया था । मधु को वह पत्र ईश्वर लाल के गायब होने के दो तीन महीने बाद अर्थात गर्मियों में मिला था । पत्र में लिखा है कि तुम्हें शायद विश्वास न हो लेकिन यह हकीकत है कि हमें सबसे ज्यादा मजा तैरने में आ रहा है । प्रभूदयाल तुम खुद सोचो कि अगर किसी को गर्मियों के मौसम में तैरने में मजा आ रहा है तो इसमें विश्वास न होने वाली कौनसी बात है ? ईश्वर लाल का ‘तुम्हें विश्वास न हो’ लिखना ही निर्विवाद रूप से यह जाहिर करता है कि पत्र सन् उनसठ की गर्मियों में लिखा गया था । लेकिन ईश्वर लाल उसे डाक में डालना भूल गया था । ईश्वर लाल की हत्या के दो महीने बाद किसी प्रकार विद्या के हाथ वह पत्र लगा । विद्या को ईश्वर लाल के गायब होने की कहानी को एक बड़ा ही कलात्मक टच देने का मौका मिल गया । उसने उस पत्र के साथ किसी को, शायद काली चरण को ही श्रीनगर भेजा और वहां से पत्र को डलवा दिया । मधु को पत्र मिला और उसे विश्वास हो गया कि उसका चाचा ईश्वर लाल वाकई ही किसी जवान लड़की से साथ भाग गया है और इस वक्त श्रीनगर में है । पत्र की इबारत में हम शब्द का प्रयोग जाहिर करता है कि ईश्वर लाल के साथ श्रीनगर में कोई और भी था । जबकि वह और कोई जवान लड़की नहीं खुद विद्या थी और यह पांच छ: महीने पहले की बात थी ।”
“विद्या ने तुम्हें इस तस्वीर में क्यों फिट किया ?”
“क्योंकि उसे एक ऐसे आदमी की जरूरत थी जो हीरा नन्द की हत्या के बाद लाश की सूचना पुलिस को दे सके । नेपियन हिल पर पानी की टंकी एकदम सुनसान जगह में है । हीरा नन्द ने विद्या को वहीं मुलाकात के लिये बुलाया था । कल रात नौ बजे अगर ब्लिस होटल में मधु अकेली जाती और वहां उसे सन्देश मिलता की वह अब नेपियन हिल पर पानी की टंकी के पास चली जाये तो शायद वह वहां अकेली कभी नहीं जाती ।”
“रोशन लाल जो था ?”
“रोशन लाल तो संयोगवश ही तस्वीर में फिट हो गया था । विद्या को यह आशा नहीं थी कि ईश्वर लाल का नकली फोन आने के बाद मधु सारी बात रोशन को भी बता देगी ।”
“आई सी । आई सी ।”
सुनील चुप हो गया ।
कितनी ही देर कोई कुछ नहीं बोला ।
अन्त में प्रभूदयाल काली चरण की ओर घूमा और कर्कश स्वर से बोला - “सुनील ने अभी जो कुछ कहा है, तुमको उस बारे में कुछ कहना है ?”
कालीचरण के मुंह से बोल नहीं फूटा ।
“अब तमाम बातें तुम अपनी जुबान से दोहराओ ताकि हमें मालूम हो सके कि सुनील ने जो दस प्रतिशत अनुमान लगाये हैं । वे किस हद तक गलत हैं ?...नहीं, अभी ठहरो जरा । तुम दोनों फूटो यहां से ।”
उसका इशारा सुनील और रमाकांत की ओर था ।
प्रभूदयाल ने एक सिपाही को संकेत किया और बोल - “साहब लोगों को हैडक्वार्टर की इमारत से बाहर छोड़ आओ ।”
“आओ रमाकांत प्यारे ।” - सुनील अपने स्थान से उठता हुआ बोला - “शिकायत करने से कोई फायदा नहीं होगा । पुलिस वालों की यारी हरजाई औरत जैसी ही है ।”
दोनों इन्सपेक्टर प्रभूदयाल के कमरे से बाहर निकल आये ।
“सोनू के बच्चे..” - रास्ते में रमाकांत बोला - “इस बार तुमने मुझे मरवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।”
“मरे तो नहीं हो ?” - सुनील बोला ।
रमाकांत चुप रहा ।
विद्या ने अपना अपराध कबूल कर लिया । काली चरण के बयान के बाद उसका झूठ बोल पाना सम्भव भी नहीं था । पुलिस को आटे के ड्रम से बरामद रिवाल्वर पर काली चरण की उंगलियों के निशान मिले थे और आटे के ड्रम पर भी केवल कालीचरण की ही उंगलियों के निशान थे ।
विद्या को दो हत्याओं के इल्जाम में फांसी की सजा हुई । कालीचरण को पांच साल की सजा हुई । ईश्वर लाल की सारी जायदाद कानूनी तौर पर रोशनलाल और मधु में बराबर-बराबर बांट दी गई । रोशनलाल ने एक मोटी रकम सुनील को इनाम में देनी चाही जिसे लेने से उसने साफ इन्कार कर दिया और जिसकी वजह से उसे रमाकांत की कम से कम एक हजार गालियां खानी पड़ी क्योंकि रमाकांत के कथनानुसार आते हुये नगदऊ से मुंह फेरना भगवान से मुंह फेरना था ।
समाप्त
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