क़ातिल का क़त्ल
‘‘क्यों भई, कहो, कैसा केस है?’’ फ़रीदी ने सिगार सुलगा कर सार्जेंट हमीद की तरफ़ झुकते हुए कहा। ‘‘मेरे ख़याल में तो ऐसा दिलचस्प केस बहुत दिनों के बाद हाथ आया है।’’
‘‘आप तो दिन-रात केसों ही के ख़्वाब देखा करते हैं। कुछ हसीन दुनिया की तरफ़ भी नज़र दौड़ाइए।’’ हमीद बेज़ारी से बोला।
‘‘तो इसका मतलब है कि तुम इसमें दिलचस्पी न लोगे।’’
‘‘बस, मुझे तो माफ़ ही रखिए। मैंने सैर-सपाटे के लिए एक महीने की छुट्टी ली है। मुझे अपनी छुट्टियाँ बर्बाद नहीं करनी।’’
‘‘बेकारी में तुम्हारा दिल न घबरायेगा...?’’
‘‘बेकारी कैसी!’’ हमीद जल्दी से बोला। ‘‘क्या आपको मालूम नहीं कि मैंने अभी हाल ही में एक इश्क़ किया है?’’
‘‘एक...!’’ फ़रीदी ने हँस कर कहा। ‘‘अगर इस तफ़तीश के दौरान कई इश्क़ और हो जायें तो क्या बुरा है!’’
‘‘शायद आपका इशारा डॉक्टर शौकत की नौजवान नौकरानी की तरफ़ है।’’ हमीद मुँह बना कर बोला। ‘‘माफ़ कीजिए...मेरा कैरेक्टर इतना भी गिरा हुआ नहीं है।’’
‘‘बड़े गधे हो तुम...मुझे उसका ख़याल भी न था।’’ फ़रीदी ने सिगार मुँह से निकाल कर कहा। ‘‘ख़ैर, हटाओ...कोई और बात करें। हाँ भई, सुना है कि दो-तीन दिन हुए रेलवे ग्राउण्ड पर सर्कस आया हुआ है; बहुत तारीफ़ सुनी है; चलो, आज सर्कस देखें। सिर्फ़ साढ़े चार बजे हैं। खेल सात बजे शुरू होगा। इतनी देर में हम लोग खाना भी खा लेंगे।’’
‘‘अरे...यह क्या बदपरहेज़ी करने जा रहे हैं। अरे, लाहौल वला....आप और ये बेकार के शौक़...यक़ीन नहीं आता। क्या आपने जासूसी से तौबा कर ली?’’ हमीद ने अजीब-सा मुँह बना कर कहा।
‘‘तुमने यह कैसे समझ लिया कि वहाँ मैं बेमतलब जा रहा हूँ? तुम देखोगे कि जासूसी कैसे की जाती है।’’ फ़रीदी ने जवाब दिया।
‘‘माफ़ कीजिएगा...इस वक़्त तो आप किसी चालीस रुपये वाले जासूसी नावेल के जासूस की तरह बोल रहे हैं।’’ हमीद बोला।
‘‘तुमने तो सर्कस का विज्ञापन देखा होगा। भला बताओ उसमें किस खेल की ज़्यादा तारीफ़ की गयी थी?’’
‘‘एक नेपाली का मौत के ख़ंजर का खेल।’’ हमीद ने जवाब दिया। फिर उछल कर कहने लगा। ‘‘क्या मतलब...!’’
फ़रीदी ने इसके सवाल को टालते हुए कहा। ‘‘अच्छा, इस खेल में है क्या?...तुम तो एक बार शायद देख भी आये हो।’’
‘‘हाँ, एक लड़की, लकड़ी के तख़्ते से लग कर खड़ी हो जाती है और नेपाली इस तरह ख़ंजर फेंकता है कि वे उसके चारों तरफ़ लकड़ी के तख़्ते में चुभते जाते हैं। आखिर में जब वह इन ख़ंजरों के बीच से निकलती है तो लकड़ी के तख़्ते पर चुभे हुए ख़ंजरों में उसका ख़ाका-सा बना रह जाता है। भई, वाक़ई कमाल है, अगर ख़ंजर एक इंच भी आगे-पीछे बढ़ कर पड़े तो लड़की का काम-तमाम हो जाये।’’
‘‘अच्छा, इन ख़ंजरों की लम्बाई क्या होगी?’’ फ़रीदी ने सिगार का कश ले कर कहा।
‘‘मेरे ख़याल से वे ख़ंजर वैसे ही हैं जैसा कि आपने लाश के सीने से निकाला था।’’
‘‘बहुत ख़ूब...!’’ फ़रीदी इत्मीनान से बोला। ‘‘अच्छा, तो यह बताओ कि ख़ंजर का कितना हिस्सा लकड़ी के तख़्ते में घुस जाता है?’’
‘‘मेरे ख़याल में चौथाई।’’
‘‘मामूली ताक़त वाले के बस का रोग नहीं।’’ फ़रीदी ने हमीद की पीठ ठोंकते हुए जोश में कहा—‘‘अच्छा, मेरे दोस्त, आज सर्कस ज़रूर देखा जायेगा।’’
‘‘आखिर आपका मतलब क्या है?’’ हमीद बेचैनी से बोला।
‘‘फ़िलहाल तो कोई ख़ास मतलब नहीं। अभी तो मेरी स्कीम किसी चालीस रुपये वाले नावेल के जासूस ही की स्कीम की तरह मालूम हो रही है, आगे अल्लाह मालिक है।’’
‘‘आखिर कुछ बताइए तो...!’’
‘‘शायद सविता देवी के क़त्ल में उसी नेपाली का हाथ हो।’’
‘‘यूँ तो क़त्ल में मेरा भी हाथ हो सकता है।’’ हमीद हँस कर बोला।
‘‘तुम नहीं समझते...एक लम्बी-चौड़ी औरत की लाश को फड़कने से रोक देना किसी कमज़ोर आदमी का काम नहीं। एक ज़िबह किये हुए मुर्ग़ को सँभालना मुश्किल हो जाता है। फिर जिस शख़्स ने डॉक्टर शौकत को धमकी दी थी, वह भी नेपाली ही था। ऐसी सूरत में क्यों न हम इस शक से फ़ायदा उठायें। मैं यह पक्के तौर पर नहीं कहता कि क़त्ल में सर्कस वाले नेपाली ही का हाथ है। फिर भी देख लेने में क्या नुक़सान है? अगर कोई सुराग़ न मिल सका तो सैर ही हो जायेगी।’’
‘‘ख़ैर, मैं सर्कस देखने से इनकार नहीं कर सकता, क्योंकि उसमें तक़रीबन दो दर्जन लड़कियाँ काम करती हैं, लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता कि वहाँ खेल के दौरान आप बहस करके मेरा मज़ा किरकिरा करें।’’
‘‘तुम चलो तो सही...मुझे यह भी मालूम है।’’ फ़रीदी ने बुझा हुआ सिगार दोबारा सुलगा कर कहा।
शहर पहुँच कर उनकी हैरत का कोई ठिकाना न रहा जब उन्होंने ‘‘ईवनिंग न्यूज़’’ में निशात नगर के क़त्ल की ख़बर पढ़ी। उसमें इन्स्पेक्टर फ़रीदी की बातचीत का एक-एक शब्द लिखा था और यह भी लिखा था कि इन्स्पेक्टर फ़रीदी ने निजी तौर पर मौक़ा-ए-वारदात का मुआइना किया था, लेकिन उन्होंने निजी तौर पर ख़ूनी को ढूँढने से इनकार कर दिया है। साथ ही यह भी लिखा था कि इन्स्पेक्टर फ़रीदी छै माह की छुट्टी पर हैं। इसलिए ख़याल होता है कि शायद सरकारी तौर पर भी यह काम उनके ज़िम्मे न किया जाये।
‘‘मेरे ख़याल से जिस शख़्स को हम लोग डॉक्टर का पड़ोसी समझ रहे थे, वह ‘‘ईवनिंग न्यूज़’’ का रिपोर्टर था।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘अब तक तो हालात हमारे ही फ़ेवर में हैं। इस ख़बर का आज ही छप जाना बहुत अच्छा हुआ। अगर वाक़ई सर्कस वाला नेपाली ही क़ातिल है तो हम आसानी से उस पर इस ख़बर का असर देख सकेंगे।’’
‘‘हूँ...!’’ हमीद कुछ सोचते हुए यूँ ही बोला।
‘‘क्या कोई नयी बात सूझी?’’ फ़रीदी ने कहा।
‘‘मैं कहता हूँ, आखिर सिरदर्द मोल लेने से क्या फ़ायदा? क्यों न हम लोग अपनी छुट्टियाँ हँसी-ख़ुशी गुज़ारें।’’
‘‘अच्छा, बकवास बन्द।’’ फ़रीदी झल्ला कर बोला। ‘‘अगर तुम मेरा साथ नहीं देना चाहते, तो न दो। मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगा।’’
‘‘आप तो ख़फ़ा हो गये। मेरा मतलब यह था कि अगर आप भी इस छुट्टी में एक-आधा इश्क़ कर लेते तो अच्छा था।’’ हमीद ने मुँह बना कर कुछ इस अन्दाज़ में कहा कि फ़रीदी मुस्कुराये बग़ैर न रह सका।
‘‘अच्छा, तो खाना इस वक़्त मेरे ही साथ खाना।’’ फ़रीदी ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा।
‘‘सिर-आँखों पर...!’’ हमीद ने संजीदगी से कहा। ‘‘भला मैं अपने अफ़सर का हुक्म किस तरह टाल सकता हूँ।’’
वे दोनों सर्कस शुरू होने से पन्द्रह मिनट पहले ही रेलवे ग्राउण्ड पहुँच गये और बॉक्स के दो टिकट ले कर रिंग के सबसे क़रीब वाले सोफ़े पर जा बैठे। दो-चार खेलों के बाद असली खेल शुरू हुआ। एक नाटे क़द का मज़बूत नेपाली एक ख़ूबसूरत लड़की के साथ रिंग में दाख़िल हुआ।
‘‘ग़ज़ब की लौंडिया है।’’ हमीद ने धीरे से कहा।
‘‘हश्श...हश्श...!’’ फ़रीदी नेपाली को ग़ौर से देख रहा था।
‘‘भाइयो और बहनो...!’’ रिंग लीडर की आवाज़ गूँजी। ‘‘अब दुनिया का सब से ख़ौफ़नाक खेल शुरू होने वाला है। यह लड़की उस लकड़ी के तख़्ते से लग कर खड़ी हो जायेगी और यह नेपाली अपने ख़ंजर से लड़की के चारों तरफ़ उसका ख़ाका बनायेगा। नेपाली की ज़रा-सी ग़लती या लड़की की हल्की-सी हरकत उसे मौत की गोद में पहुँचा सकती है, लेकिन देखिए कि यह लड़की मौत का मुक़ाबला किस हिम्मत से करती है और उस नेपाली का हाथ कितना सधा हुआ है। आइए, देखते हैं।’’
खट...! एक सनसनाता हुआ ख़ंजर लड़की के सिर के बालों को छूता हुआ लकड़ी के तख़्ते में तीन इंच धँस गया। लड़की सिर से पैर तक काँप गयी। रिंग मास्टर ने नेपाली की तरफ़ हैरत से देखा और उसके माथे पर कुछ लकीरें दिखने लगीं। देखने वालों पर सन्नाटा छा गया।
खट...! दूसरा ख़ंजर लड़की के कन्धे के क़रीब फ़्रॉक के पफ़ का छेदता हुआ तख़्ते में धँस गया...लड़की का चेहरा दूध की तरह सफ़ेद नज़र आने लगा। रिंग लीडर परेशान हो कर रिंग का चक्कर काटने लगा। नेपाली खड़ा दिसम्बर की सर्दी में अपने चेहरे से पसीना पोंछ रहा था।
‘‘क्या उस दिन भी ये ख़ंजर जिस्म के इतने क़रीब लगे थे।’’ फ़रीदी ने झुक कर हमीद से पूछा।
‘‘हरगिज़ नहीं...हरगिज़ नहीं।’’ हमीद ने बेताबी से कहा। ‘‘इनकी दूरी तीन या चार इंच थी...!’’
‘‘खट...!’’ अब की बार लड़की के मुँह से चीख़ निकल गयी। उसके बाज़ू से ख़ून निकल रहा था। फ़रीदी ने नेपाली को शराबियों की तरह लड़खड़ाते हुए रिंग के बाहर जाते देखा। फ़ौरन ही पाँच-छै जोकरों ने रिंग में आ कर उछल-कूद मचा दी।
‘‘भाइयो और बहनो....!’’ रिंग मास्टर की आवाज़ दोबारा गूँजी। ‘‘मुझे इस वाक़ये पर हैरत है। नेपाली पन्द्रह-बीस बरस से हमारे सर्कस में काम कर रहा है, लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ। ज़रूर वह कुछ बीमार है, जिसका पता हमें न था। बहरहाल, अभी बहुत-से दिलचस्प खेल बाक़ी हैं।’’
‘‘आओ, चलें...!’’ फ़रीदी ने हमीद का हाथ पकड़ कर उठते हुए कहा।
कई तम्बुओं के बीच से गुज़रते हुए वे थोड़ी देर बाद मैनेजर के दफ़्तर के सामने पहुँच गये। फ़रीदी ने चपरासी से अपना विज़िटिंग कार्ड अन्दर भिजवा दिया।
मैनेजर उठ कर हाथ मिलाते हुए गर्मजोशी से बोला, ‘‘जी कहिए, कैसे तकलीफ़ फ़रमायी?’’
‘‘मैं ख़ंजर वाले नेपाली के बारे में कुछ पूछना चाहता हूँ।’’
‘‘क्या कहूँ इन्स्पेक्टर साहब...मुझे ख़ुद हैरत है। आज तक ऐसा वाक़या नहीं हुआ। मुझे सख़्त शर्मिन्दगी है। क्या क़ानूनन मुझे इसके लिए जवाब देना पड़ेगा? कुछ समझ ही में नहीं आता। आज कई दिन से इसकी हालत बहुत ख़राब है। वह बेहद शराब पीने लगा है। हर वक़्त नशे में डींगें मारता रहता है। अभी कल ही अपने एक साथी से कह रहा था कि मैं अब इतना दौलतमन्द हो गया हूँ कि मुझे नौकरी की भी परवाह नहीं। उसने उसे नोटों की कई गड्डियाँ भी दिखायी थीं।’’
‘‘उसकी यह हालत कब से है?’’
‘‘मेरा ख़याल है कि राजरूप नगर में जब पड़ाव था, तभी से हमें इसकी हरकतों में बदलाव नज़र आने लगा था।’’
‘‘राजरूप नगर....!’’ हमीद ने चौंक कर कहा। लेकिन फ़रीदी ने उसके पैर पर अपना पैर रख दिया।
‘‘क्या राजरूप नगर में भी आपकी कम्पनी ने खेल दिखाये थे?’’
‘‘जी नहीं....वहाँ कहाँ...वह तो एक क़स्बा है। हम लोग वहाँ ठहर कर अपने दूसरे क़ाफ़िले का इन्तज़ार कर रहे थे।’’
‘‘राजरूप नगर...वही तो नहीं जो नवाब वजाहत मिर्ज़ा की जागीर है?’’
‘‘जी हाँ...जी हाँ, वही।’’
‘‘क्या यह नेपाली पढ़ा-लिखा है?’’
‘‘जी हाँ...मैट्रिक पास है।’’
‘‘मैं उससे भी कुछ सवाल करना चाहता हूँ।’’
‘‘ज़रूर-ज़रूर....मेरे साथ चलिए। लेकिन ज़रा हमारा भी ख़याल रखिएगा। मैं नहीं चाहता कि कम्पनी का नाम बदनाम हो।’’
‘‘आप परेशान न हों।’’
वे तीनों तम्बुओं की क़तारों से गुज़रते हुए एक तम्बू के सामने रुक गये।
‘‘अन्दर चलिए....!’’ मैनेजर बोला।
‘‘नहीं, सिर्फ़ आप जाइए। आप उससे हमारे बारे में कहिएगा। अगर मिलना पसन्द करेगा तो हम लोग मिलेंगे, वरना नहीं।’’ फ़रीदी ने कहा।
मैनेजर पहले तो कुछ देर तक हैरत से उन्हें देखता रहा, फिर अन्दर चला गया। फ़रीदी ने अपनी आँखें ख़ेमे की जाली से लगा दीं। नेपाली अभी तक खेल ही के कपड़े पहने हुए था। वह बहुत परेशान नज़र आ रहा था। मैनेजर के दाख़िल होते ही वह उछल कर खड़ा हो गया। लेकिन फिर उसके चेहरे पर फैली चिन्ता की लकीरें धीरे-धीरे मिटने लगीं।
‘‘ओह...आप हैं। मैं समझा...जी, कुछ नहीं। मुझे सख़्त शर्मिन्दगी है।’’ वह रुक-रुक कर बोला।
‘‘तो क्या तुम किसी और का इन्तज़ार कर रहे थे?’’ मैनेजर ने कहा।
‘‘ज-ज-जी...!’’ वह हकलाने लगा। ‘‘न-न-नहीं...ब-ब- बिलकुल नहीं।’’
बाहर फ़रीदी ने गहरी साँस ली और उसकी आँखों में अजीब क़िस्म की वहशियाना चमक पैदा हो गयी।
‘‘मैं माफ़ी चाहता हूँ...मुझे अफ़सोस है।’’ नेपाली ख़ुद को सँभाल कर बोला।
‘‘मैं इस वक़्त उस मामले पर बात करने नहीं आया हूँ।’’ मैनेजर बोला। ‘‘बात दरअसल यह है कि एक साहब तुमसे मिलना चाहते हैं।’’
नेपाली बुरी तरह काँपने लगा।
‘‘मुझसे मिल...मिलना चाहते हैं।’’ वह बदहवास हो कर बैठते हुए हकलाया। ‘‘मगर मैं नहीं मिलना चाहता। वे मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं?’’
‘‘मैं यही बताने के लिए मिलना चाहता हूँ कि मैं क्यों मिलना चाहता हूँ।’’ फ़रीदी ने तम्बू में प्रवेश करते हुए कहा। उसके पीछे हमीद भी था।
‘‘मैं ख़ुफ़िया पुलिस का इन्स्पेक्टर....!’’ फ़रीदी ने जल्दी से कहा।
‘‘ख़ुफ़िया पुलिस.....!’’ वह इस तरह बोला जैसे कोई ख़्वाब में बड़बड़ाता है। ‘‘लेकिन क्यों...आखिर आप मुझसे क्यों मिलना चाहते हैं?’’
‘‘मैं तुम्हें परेशान करना नहीं चाहता, लेकिन तुम अगर मेरे सवालों का सही-सही जवाब दोगे तो फिर तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं। क्या तुम कल रात निशात नगर, डॉक्टर शौकत की कोठी पर गये थे?’’ फ़रीदी ने यह सवाल बहुत ही सादगी से पूछा। लेकिन इसका असर किसी बम के धमाके से कम न था। नेपाली तेज़ी से उछल पड़ा। फ़रीदी को अब पूरा यक़ीन हो गया।
‘‘नहीं-नहीं...!’’ वह कँपकँपाती हुई आवाज़ में चीख़ा।
‘‘तुम सफ़ेद झूठ बोल रहे हो...’’
‘‘मैं वहाँ क्यों जाता...नहीं...यह झूठ है...पक्का झूठ।’’
‘‘इससे कोई फ़ायदा नहीं मिस्टर...!’’ फ़रीदी बोला। ‘‘मैं जानता हूँ कि कल रात तुम डॉक्टर शौकत को क़त्ल करने गये और उसके धोखे में सविता देवी को क़त्ल कर आये। अगर तुम सचमुच बता दोगे तो मैं तुम्हें बचाने की कोशिश करूँगा, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम्हें वहाँ किसी दूसरे ने क़त्ल करने के लिए भेजा था।’’
‘‘आप मुझे बचाने की कोशिश करेंगे।’’ वह बेबसी से बोला। ‘‘ओह, मेरे ख़ुदा...मैंने भयानक ग़लती की।’’
‘‘शाबाश! हाँ, आगे कहो।’’ फ़रीदी नर्म लहजे में बोला। सर्कस का मैनेजर उन्हें हैरत और ख़ौफ़ की नज़रों से देख रहा था।
नेपाली इन्स्पेक्टर फ़रीदी के इस अचानक हमले से पहले ही हथियार डाल चुका था। उसने एक बेबस बच्चे की तरह कहना शुरू किया...‘‘जी हाँ...मैं ज़रूर बताऊँगा। मगर मैं ब़ेकसूर हूँ। आपने कहा कि आप मुझे बचा लेंगे। उसने मुझे पचास हज़ार रुपये पेशगी दिये थे और क़त्ल के बाद पचास हज़ार रुपये और देने का वादा किया था। उफ़! मैंने क्या किया...उसका नाम...हाँ, उसका नाम है...अर्र..र्र...हा...उफ़...!’’ वह चीख़ कर आगे की तरफ़ झुक गया।
‘‘वह देखो...!’’ सार्जेंट हमीद चीख़ा।
किसी ने तम्बू के पीछे से नेपाली पर हमला किया था। ख़ंजर तम्बू के कपड़े की दीवार फाड़ता हुआ उसकी पीठ में घुस गया था। वह स्टूल पर बैठे-बैठे दो-तीन बार तड़पा और फिर देखते-ही-देखते फ़र्श पर जा गिरा।
‘‘हमीद...बाहर...बाहर...देखो, जाने न पाये।’’ इन्स्पेक्टर फ़रीदी ग़ुस्से में चिल्लाया।
चीख़ की आवाज़ सुन कर कुछ और लोग भी भागे आये। सब ने मिल कर क़ातिल को तलाश करना शुरू किया, लेकिन बेकार...मैनेजर घबराहट की वजह से बेहोश हो गया।
कोतवाली ख़बर पहुँचा दी गयी...थोड़ी देर बाद कई कॉन्स्टेबल और दो सब-इन्स्पेक्टर मौक़ा-ए-वारदात पर पहुँच गये। इन्स्पेक्टर फ़रीदी को वहाँ देख कर उन्हें सख़्त हैरत हुई। फ़रीदी ने उन्हें सारा हाल बता दिया। मृतक के इक़रार-ए-जुर्म का गवाह मैनेजर था, इसलिए मैनेजर का बयान हो रहा था। इन्स्पेक्टर फ़रीदी और सार्जेंट हमीद का वहाँ रुकना समय नष्ट करने जैसा था, इसलिए दोनों वहाँ से रवाना हो गये।
उनकी कार तेज़ी से निशात नगर की तरफ़ जा रही थी।
‘‘क्यों भई, रहा न वही...चालीस रुपये वाले जासूसी नावेल वाला मामला?’’ फ़रीदी ने हँस कर कहा।
‘‘अब तो मुझे भी दिलचस्पी हो चली है।’’ हमीद ने कहा। ‘‘लेकिन यह तो बताइए कि आपको यक़ीन कैसे हुआ था कि वही क़ातिल है?’’
‘‘यक़ीन कहाँ, सिर्फ़ शक था, लेकिन मैनेजर से बातचीत करने के बाद कुछ-कुछ यक़ीन हो चला था कि साज़िश में किसी दूसरे का हाथ ज़रूर था। मैं यह भी सोच रहा था कि क़त्ल के सिलसिले में अपनी ग़लती का एहसास हो जाने के बाद ही से उसकी हालत ख़राब हो गयी थी। यही वजह थी कि खेल के वक़्त उसका हाथ बहक रहा था और अब उसे शायद उस आदमी का इन्तज़ार था, जिसने उसे क़त्ल के लिए बहकाया था। इस ग़लती की जवाबदेही के ख़याल ने उसे और भी परेशान कर रखा था। इन्हीं सब चीज़ों को मद्देनज़र रख कर मैंने ख़ुद पहले उसके तम्बू में जाना ठीक नहीं समझा। मैनेजर को अन्दर भेज कर मैं जाली से उसके हाव-भाव देखने लगा। जाली से तो तुम भी देख रहे थे।’’
‘‘बहरहाल, आज से मैं आपका पूरा-पूरा शागिर्द हो गया।’’ हमीद ने कहा।
‘‘क्या कहा, आज से...क्या पहले न थे?’’ फ़रीदी ने हँस कर पूछा।
‘‘नहीं, पहले भी था।’’ हमीद ने जवाब दिया और दोनों ख़ामोश हो गये। इन्स्पेक्टर फ़रीदी आगे के लिए प्रोग्राम बना रहा था।
फाटक पर कार की आवाज़ सुन कर डॉक्टर शौकत बाहर निकल आया था। इन्स्पेक्टर फ़रीदी ने सारी कहानी उसे बता दी।
फिर फ़रीदी ने शौकत के कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा। ‘‘तुम्हारा असली दुश्मन अब भी आज़ाद है और वह किसी वक़्त भी तुम्हें नुक़सान पहुँचा सकता है। इसलिए अब भी तुमको सावधानी की ज़रूरत है। मैं कोशिश करूँगा कि असली मुजरिम को बहुत जल्दी गिरफ़्तार करके क़ानून के हवाले कर दूँ।’’
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