राजनगर के दिल में बसे चायना टाउन में पहुंचकर प्रमोद हमेशा यूं अनुभव करता था जैसे वह पेकिंग के इम्पीरियल सीटी में पहुंच गया हो । कार में से निकल कर उसने एक दृष्टि अपने सामने दौड़ायी और फिर एक ओर बढ गया ।
एक इमारत के सामने आकर वह रुक गया । इमारत की निचली मंजिल पर चीनियों द्वारा संचालित जूतों की और चीनी ढंग के सजावट के सामान की दुकानें थी और उन दुकानों से छूता हुआ एक जीना ऊपर की मंजिल की ओर गया था ।
प्रमोद सीढियां चढकर पहली मंजिल पर जा पहुंचा । सीढ़ियों के सिरे से एक लम्बा गलियारा आरंभ होता था जिसके दूसरे सिरे पर एक भारी सागवान का बंद द्वार दिखाई दे रहा था । प्रमोद लम्बे डग भरता हुआ उस द्वार के समीप पहुंच गया ।
उसने कालबैल का बटन दबा दिया ।
भीतर कहीं हल्की सी घंटी बजने की आवाज सुनाई दी
कुछ ही क्षणों में एक घुटे हुए सिर वाले चीनी ने द्वार खोल दिया उसने फौरन ही प्रमोद को पहचान लिया और सिर नवाकर उसका अभिवादन किया । अभिवादन के बाद वह बड़े आदर से एक ओर हटकर खड़ा हो गया ।
प्रमोद भीतर प्रविष्ट हो गया ।
नौकर ने तत्परता से द्वार बन्द कर दिया । उसने प्रमोद का मार्ग-निर्देशन करने का प्रयत्न नहीं किया। प्रमोद जानता था उसे कहां जाना है । एक छोटे से बरामदे और दो तीन लम्बे-लम्बे कमरों से गुजर कर एक बड़े शानदार ढंग से सजे हुए बड़े से कमरे में पहुंच गया ।
कमरे में चूं की नाम का एक वृद्ध बैठा था । वृद्ध ने अपने चेहरे से चश्मा उतार कर प्रमोद को देखा और उसके होठों पर हल्की सी स्नेह भरी मुस्कराहट दौड़ गयी ।
प्रमोद ने अपने दोनों हाथों को छाती पर बांध कर और फिर बड़े आदरपूर्ण ढंग से झुककर चीनी वृद्ध का अभिवादन किया ।
"मैं अपने घर में सूर्य की प्रथम किरणों के प्रकाश के आगमन का अनुभव कर रहा हूं।" - चूं की चीनी भाषा में बोला ।
“वास्तव में मैं आपकी महानता के प्रकाश का आनंद लेने का सौभाग्य प्राप्त करने आया हूं।" - प्रमोद ने भी वैसी ही विनयशील किंतु परम्परागत आडंबरपूर्ण चीनी भाषा में उत्तर दिया ।
चू की ने उसे उस कुर्सी पर बैठने का संकेत किया जो घर के सबसे अधिक सम्मानित मेहमान के लिए सुरक्षित रहती थी ।
कोई दूसरा अवसर होता तो एक ड्रामा सा शुरु हो जाता प्रमोद कहता कि वह इतने अधिक सम्मान का अधिकारी नहीं है । और वृद्ध अलंकारिक शब्दों में उसे वहीं बैठने का आग्रह करता । लेकिन उस समय प्रमोद के पास वह तमाम चीनी शिष्टाचार निभाने का समय नहीं था, इस्लिए वह कुछ धन्यवाद भरे शब्द कहकर उस कुर्सी पर बैठ गया ।
"सोहा कहां है ?" - उसने अंग्रेजी में पूछा ।
सोहा वृद्ध की बेटी थी ।
वृद्ध ने घंटी बजायी जिसके उत्तर में एक नौकर उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
"सोहा ।"
वृद्ध धीरे से बोला ।
नौकर सिर नवाकर वापस चला गया ।
कुछ ही क्षण में सौन्दर्य और यौवन के भाव से लदी हुई सोहा कमरे में प्रविष्ट हुई । उसने अपनी लम्बी और पतली अंगुलियों से प्रमोद की अंगुलियां छू कर उसका अभिवादन किया और अपने पिता के समीप एक कुर्सी पर बैठ गयी ।
" मुझे मालूम था तुम आये हो ।" - वह स्पष्ट अंग्रेजी में बोली- "मुझे देर इसलिए हुई क्योंकि मैं मेकअप की सहायता से अपने आप को अधिकाधिक आकर्षक और सुन्दर बनाने का प्रयत्न कर रही थी । "
"बहार के पहले फूलों को अपना आकर्षण बनाने के लिए सौन्दर्य प्रसाधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती।" - प्रमोद ने चीनी में उत्तर दिया ।
सोहा धीरे से हंस पड़ी । प्रमोद को यूं लगा जैसे शीशे के गिलास में बर्फ के टुकड़े डालकर खनखना दिये गये हों ।
प्रमोद ने चु की की ओर देखा ।
"क्या कहना चाहते हो, मेरे बच्चे ।" - वृद्ध ने स्नेह भरे स्वर में पूछा ।
प्रमोद कुछ क्षण चुपचाप सिर झुकाये बैठा रहा और फिर धीरे से बोला- "आप जगन्नाथ को जानते थे ?"
चू की चुप रहा ।
“मैं जानती थी उसे ।" - सोहा बोली ।
प्रमोद ने जगन्नाथ का जिक्र भूतकाल में किया था । अखबार में जगन्नाथ की मृत्यु के विषय में अभी तक एक शब्द भी नहीं छपा था फिर भी सोहा ने प्रमोद के प्रश्न का उत्तर भूतकाल में ही किया था ।
एक खयाल बिजली की तरह प्रमोद के दिमाग में कौंध गया । कहीं वह चीनी युवती सोहा तो नहीं थी जो आधी रात को जगन्नाथ के फ्लैट में घुसती देखी गयी ।
सोहा को भी जैसे उसकी विचारधारा का अनुमान हो गया।
"क्या वह मर गया है ?" - उसने पूछा ।
"मैंने तो यह नहीं कहा ?" - प्रमोद बोला ।
"लेकिन तुमने उसका जिक्र भूतकाल में किया था ।”
प्रमोद ने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला ।
फिर वह वृद्ध की ओर आकर्षित हुआ ।
"पिछली बार मे जब यहां आया था तो आपने जगन्नाथ
नाम के एक व्यक्ति का जिक्र किया था। आपने बताया था कि जगन्नाथ 'तूफान' नाम का एक निम्न कोटि का अखबार निकालता है जिसका काम केवल लोगों पर गंदगी उछालना है । 'तूफान' किसी एक आदमी के पीछे पड़ जाता है और फिर उसके अगले पिछले जीवन के बखिए उधेड़ने आरंभ कर देता है । उस आदमी के बारे में गंदी से गंदी बात छापी जाती है । उसकी हर कमजोरी, उसकी हर कमी, उसकी हर गलत हरकत बड़े गंदे ढंग से जनता के समीप प्रकट की जाती है और वह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक वह आदमी कुछ रुपया देकर जगन्नाथ का मुंह बन्द नहीं कर देता । रुपया मिलने के बाद उस आदमी के बारे में उल्टी सीधी बातें छपना एकदम बन्द हो जाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जगन्नाथ उस अखबार के माध्यम से लोगों को ब्लैकमेल किया करता था । पिछली बार आपने मुझे बताया था कि जगन्नाथ चायना टाउन में बसे चीनियों के बारे में बहुत जहर उगल रहा है । वह लिखा करता था कि चीन और भारत की लड़ाई के बाद भी राजनगर के चायना टाउन में रह जाने वाले सारे नहीं तो अधिकतर चीनी भारत में रहकर चीन के लिए जासूसी कर रहे हैं। इसलिए सरकार को चाहिए वह फौरन इन चीनियों को भारत से बारह निकाल दे या उनके बारे में पूरी तफ्तीश करे और जासूसों के खिलाफ बड़ी से बड़ी कार्यवाही करे ।"
प्रमोद रुक गया और चू की का मुंह देखने लगा ।
वृद्ध चुप रहा ।
कुछ क्षण बाद प्रमोद फिर बोला- "आपने कहा था कि जगन्नाथ राजनगर के लोगों को चीनियों के विरुद्ध भड़काने का प्रयत्न कर रहा है । आपने कहा था कि चायना टाउन में रहने वाले चीनियों को भारत की नागरिकता प्राप्त है और वे भारत के हिताहित के प्रति पूरी तरह ईमानदार हैं । आपने यह भी कहा था कि आपको भय है कि कोई चीनी क्रोध में आकर जगन्नाथ की हत्या ही न कर दे । और एक बार जगन्नाथ ने अपनी जुबान बन्द रखने के लिए आपसे चायना टाउन के चीनियों का प्रतिनिधि होने के नाते पच्चीस हजार रुपये की रकम की मांग भी की थी ।"
“हां ।” - वृद्ध बोला - "मैंने इन बातों का जिक्र एक बार किया था ।"
“आप कभी उस जगन्नाथ से मिले थे।"
"नहीं।"
"तुम ?" - प्रमोद ने सोहा से पूछा ।
“नहीं ।” - सोहा तनिक हिचकिचा कर बोली ।
"मैं यह जानना चाहता हूं कि जिस जगन्नाथ की हत्या हुई है क्या वह वही जगन्नाथ था जो 'तूफान' का प्रकाशन किया करता था ?”
“क्या वह वही जगन्नाथ हो सकता है ?"
"मुझे नहीं मालूम ।"
"मुझे भी नहीं मालूम ।”
"जिस जगन्नाथ की हत्या हुई है वह राबर्ट स्ट्रीट पर रहता है । क्या तुम कभी वहां गयी हो ?" - प्रमोद ने सोहा की ओर घूमकर कर पूछा ।
सोहा का चेहरा एकदम पत्थर की तरह भावहीन हो गया वह बिना हिले-डुले चुपचाप बैठी रही। उसने प्रमोद के प्रश्न का उत्तर देने का उपक्रम नहीं किया ।
"मैं यहां आप लोगों को केवल दो बातें बताने आया था ।” - प्रमोद बारी बारी से पिता और पुत्री के चेहरों पर दृष्टि घुमाते हुए बड़े आश्चर्यपूर्ण स्वर से बोला- "एक तो यह कि जगन्नाथ की हत्या के समय से कुछ देर पहले एक सुन्दर चीनी युवती जगन्नाथ के राबर्ट स्ट्रीट स्थित फ्लैट में घुसती देखी गयी थी । और दूसरी यह कि उसकी हत्या एक चीनी हथियार से हुई थी । इन दो बातों के अतिरिक्त और कोई तीसरी बात जगन्नाथ की हत्या का सम्बंध चायना टाउन से नहीं जोड़ सकती है।"
प्रमोद उठ खड़ा हुआ ।
"बैठो।" - सोहा जल्दी से बोली- "मैं चाय लाती हूं।"
"नहीं।" - प्रमोद चीनी में बोला - "समय की गति बहुत तेज है । मुझे उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है । अगर मैं चाय पीने बैठ गया तो बहुत पीछे रह जाऊंगा।"
आडम्बर पूर्ण बात प्रमोद हमेशा चीनी में कहता था ।
वृद्ध ने चुपचाप चश्मा फिर अपनी आंखों पर लगा लिया । वह बातचीत की समाप्ति का मूक संकेत था ।
प्रमोद अभिवादन करके बाहर निकल आया ।
अभी वह गलियारे में ही पहुंचा था कि उसे अपने पीछे तेज कदमों और रेशमी कपड़ों की सरसराहट की आवाज सुनायी दी ।
प्रमोद रुक गया । उसने घूमकर देखा सोहा उसकी ओर बढ रही थी ।
समीप आकर सोहा ने प्रमोद की बाहें थाम ली और उसके नेत्रों में झांककर बोली- "एक बात बताओगे ?"
"पूछो ?"
"तुम उसे बहुत प्यार करते हो ?"
"किसे ?" - प्रमोद हैरान होकर बोला ।
"पेंटर महिला को ?"
"क्या ऐसा नहीं करना चाहिए मुझे ?" - प्रमोद मजाक भरे स्वर में बोला ।
सोहा कुछ नहीं बोली । उसकी डबडबायी आंखों में से निकलकर दो बड़े-बड़े आंसू उसके गालों पर ढुलक पड़े ।
"मेरा यह मतलब नहीं था, सोहा । "
प्रमोद एकदम उसे अपने आलिंगन में लेता हुआ बोला "मुझे गलत न समझो, प्लीज । "
सोहा की डबडबायी आंखें उसके चेहरे पर टिकी रही ।
प्रमोद ने उसके आंसू पोछे और फिर उसके माथे पर एक प्यार भरा चुम्बन अंकित कर दिया। प्रमोद को यूं लगा जैसे उसके होठों ने एक बर्फ के टुकड़े का स्पर्श किया हो।
सोहा उसके बंधन से मुक्त हो गयी ।
प्रमोद के सीढियां उतर कर नीचे आने तक वह वहीं खड़ी रही ।
***
प्रमोद मार्शल हाउस की तीसरी मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट के बैडरूम में एक कुर्सी पर बैठा सिगरेट के कश ले रहा था ।
उसी क्षण याट-टो कमरे में प्रविष्ट हुआ ।
याट-टो प्रमोद का पुराना नौकर था। उसके चीन में गुजारे हुए पूरे समय में याट-टो उसके साथ था । बाद में हांगकांग और भारत में भी उसने प्रमोद का साथ नहीं छोड़ा था । अब प्रमोद की नजर में याट-टो की हैसियत एक नौकर की नहीं एक दुलर्भ मित्र की थी। याट-टो पिछले कई वर्षों से एक मां की तरह प्रमोद की देखभाल कर रहा था । जब प्रमोद कन्सन्ट्रेशन की कला सीखने के लिए दुर्गम पथों पर स्थापित चीनी मठों के धक्के खाता फिरता था, याट-टो ने तब भी उसका साथ नहीं छोड़ा था। चीन में न जाने कितनी बार उसने प्रमोद के जीवन की रक्षा की थी। याट-टो उसके जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गया था । उसके बिना तो वह जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता था । याट-टो को यह कभी भी बताने की जरूरत नहीं पड़ती थी कि प्रमोद को किस समय क्या चाहिए, उसे क्या पसंद है और उसे किस वस्तु से घृणा है । एक मशीन की तरह वह प्रमोद की हर जरूरत पूरे किया जाता था । याट-टो अपने लम्बे चोगे की पीठ की ओर एक दस इंच लम्बे फांक का खंजर छुपाये रहता था जो आवश्यकता पड़ने पर पलक झपकते ही उसके हाथ में आ जाता था। उसकी पीठ पीछे बंधा हुआ वह छुरा न जाने कितनी बार प्रमोद के जीवन की रक्षा के निमित्त हवा में लहरा चुका था ।
"वन मिस्टर जैन्टिल मैन वेट आउट साइड ।" - याट-टो बोला ।
"कौन ?" - प्रमोद ने चीनी में पूछा ।
“ उसका नाम मेरी जबान पर नहीं चढता ।" - याट-टो ने चीनी में उत्तर दिया- "वह पहले भी कई बार यहां आया । वह पेंटर महिलाओं का रिश्तेदार है । "
"राजेन्द्र नाथ ?"
"यश सा वी ।"
"उसे थोड़ी देर ड्राइंग रूम में ही इन्तजार करने दो ।"
"यश सा वी ।" - याट-टो बोला और फिर जैसे हवा पर चलता हुआ वहां से गायब हो गया ।
लगभग दस मिनट बाद प्रमोद राजेन्द्र नाथ के पास पहुंचा । राजेन्द्र नाथ बड़ी बेचैनी से ड्राइंग रुम में चहलकदमी कर रहा था ।
"बैठ जाओ।" - प्रमोद बोला- "क्यों कालीन का सत्यानाश कर रहो हो ?"
राजेन्द्र नाथ ने कहर भरी दृष्टि से प्रमोद को देखा और धम्म से एक सोफे पर बैठ गया ।
"कुछ पीओगे ?"
"नहीं मैं यहां कुछ पीने नहीं आया हूं।" - राजेन्द्र नाथ कठिन स्वर बोला ।
"तो फिर क्या करने आये हो ?"
"तुमसे कुछ पूछने ।”
"क्या ?"
"पिछली रात तुम कविता को पार्टी में लेकर गये थे ?"
"हां । "
"तुम कविता को लगभग साढे तीन बजे उसके फ्लैट पर छोड़कर आये थे।"
"फिर ?" - प्रमोद बड़े धैर्य से सुनता रहा ।
"कविता को उसके फ्लैट पर छोड़ने के बाद तुम सीधे यहां आ गये थे या कहीं और भी गये थे ?"
"मैं सीधे यहां आ गया था। लेकिन मैं कविता को साढे तीन बजे नहीं डेढ बजे उसके फ्लैट पर छोड़ कर आया था।"
राजेन्द्र नाथ कई क्षण विचित्र नेत्रों से प्रमोद को देखता रहा और फिर बोला - “समय के मामले में तुमसे गल्ती हो सकती है। तुम भूल रहे हो । वास्तव में तुम कविता से साढे तीन बजे अलग हुए थे।"
प्रमोद ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
"प्रमोद ।" - राजेन्द्र नाथ असहाय भाव से बोला - "तुम तो स्वयं कविता का हितचिंतक कहते हो । क्या तुम उसके लिए इतना भी नहीं कर सकते। उसके खातिर झूठ ही बोल दो कि तुम साढे तीन बजे उसे उसके फ्लैट पर छोड़कर आये थे।"
"झूठ बोलने का वक्त गुजर चुका है राजेन्द्र नाथ !"
"क्या मतलब ?"
"मैं अपने बयान में पुलिस को पहले ही बता चुका हूं कि मैं कविता को एक या दो बजे के भीतर उसके फ्लैट पर छोड़कर आया था ।"
"पुलिस !" - राजेन्द्र नाथ हक्का-बक्का सा बोला ।
“हां ।”
राजेन्द्र नाथ के चेहरे पर परेशानी के गहरे भाव दिखाई देने लगे ।
"पुलिस कविता की तलाश कर रही है। संभव है पुलिस के आदमी तुम्हारा पीछा कर रहे हों । इसलिए कविता से संपर्क स्थापित करने की कोशिश मत करना ।" - प्रमोद बोला ।
"लेकिन मैं तो कुछ नहीं जानता कि कविता कहां है । तुम्हें पुलिस ने कब क्वेश्चन किया था । तुमने क्या बताया है पुलिस को और तुम यह क्यों सोचते हो कि पुलिस मेरा पीछा कर रही होगी ?”
“अपने सवालों को भाड़ में झौकों और मेरी बात सुनो ।" - प्रमोद तनिक कठोर स्वर में बोला "पुलिस का कथन है कि कविता पिछली रात अपने फ्लैट में नहीं थी। मैं उसे डेढ बजे फ्लैट पर छोड़ आया था । तुम आकर मुझे यह सुनाने का प्रयत्न कर रहे हो कि मैंने उसे डेढ बजे नहीं साढे तीन बजे छोड़ा था । तुमने समझा था कि मुझे समय का कोई विशेष ध्यान नहीं होगा। और जो तुम कहोगे वही मैं बाद में पुलिस के सामने दोहरा दूंगा । इन सब बातों से परिणाम यह निकलता है कि तुम कोई न कोई ऐसी बात जरूर जानते हो जिससे सारी स्थिति में मेरे यह कहने से कि कविता डेढ बजे की जगह साढे तीन बजे अपने फ्लैट पर गई थी ।"
"यह झूठ है ।" - राजेन्द्र नाथ एकदम उछलकर खड़ा हो गया - "मैं कुछ नहीं जानता ।"
"तुम आखिरी बार कविता से कब मिले थे ?"
"कल शाम को पांच बजे चाय पर ।"
"उसके बाद तुमने उसे नहीं देखा है ?"
"नहीं।"
"फिर तुम्हें इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि कविता साढे तीन बजे घर पहुंची या डेढ बजे ?"
राजेन्द्र राथ कई क्षण चुप रहा और फिर धीरे से बोला - "मुझे सुषमा मिली थी।”
"कब ?"
“आज सुबह ।"
“उसने क्या बताया तुम्हें ?"
“मैंने सुषमा के पूछने पर उसे बताया था कि कविता पिछली रात तुम्हारे साथ थी । सुषमा ने कहा था कि कविता के हित के लिए यह बहुत अच्छा होगा कि अगर तुम यह कहो कि तुम उसे साढे तीन बजे घर छोड़ कर आये थे।"
"सुषमा ने ऐसा क्यों सोचा ?"
"मैंने पूछा नहीं । लेकिन तुम्हें पुलिस ने क्यों बुलाया था?"
"मुझे खुद अच्छी तरह समझ में नहीं आया है । तुम पुलिस से क्यों नहीं पूछते ?"
"क्या ?"
“कि उन्होंने मुझे हैडक्वार्टर क्यों बुलाया था ?”
"साफ क्यों नहीं कहते कि तुम मुझे कुछ बताना नहीं चाहते ।”
प्रमोद चुप रहा ।
" प्रमोद मैं जानता हूं तुम मुझे पसंद नहीं करते हो ।" - राजेन्द्र नाथ बोला - "पिछली बार जब मैं कविता के साथ यहां आया था तब यह बात बड़े असभ्य ढंग से तुमने मुझ पर जाहिर कर दी थी । लेकिन प्रमोद, तुम पछताओगे । किसी दिन तुम अपने इस गंदे व्यवहार के लिए पछताओगे।"
और बिना अभिवादन का एक शब्द बोले राजेन्द्र नाथ लम्बे डग भरता हुआ फ्लैट से बाहर निकल गया । जाते बार उसने इतने जोर से द्वार को पल्ले पर मारा कि कमरे के बाकी खिड़कियां दरवाजे थरथरा गए ।
प्रमोद उठकर उस खिड़की के पास आ गया जिससे इमारत के मुख्य द्वार की ओर वाली सड़क दिखाई देती थी।
राजेन्द्र नाथ इमारत के मुख्य द्वार से बाहर निकला और सड़क के दूसरी ओर खड़ी अपनी कार की और बढा । उसकी कार की बगल में ही एक बड़ा सा ट्रक खड़ा था । जिस पर लिखा था- ओटो सप्लाई कम्पनी ।
राजेन्द्र नाथ कार में बैठ गया। अभी उसका हाथ इग्नीशन पर ही पहुंचा था कि उस ट्रक में से एक आदमी कूदा और जल्दी से राजेन्द्र नाथ की कार के समीप जा पहुंचा । उस आदमी ने अपनी जेब में से आइडेंटिटी कार्ड जैसी कोई चीज निकाल कर राजेन्द्र नाथ को दिखाई और फिर कार की दूसरी ओर से घुसकर भीतर राजेन्द्र नाथ के साथ जा बैठा ।
कार चल पड़ी और पहले ही मोड़ से बायीं ओर घूम गयी ।
***
राजेन्द्र नाथ के जाने के बाद लगभग एक घन्टे बाद सुषमा प्रमोद के फ्लैट में प्रविष्ट हुई ।
बोली । "हल्लो, खरगोश | " - वह शरारत भरे स्वर में प्रमोद से
प्रमोद उसे घूरने लगा ।
“क्या करू ?" - सुषमा हंसती हुई बोली- "तुम हो ही खरगोश । खरगोश की तरह मुलायम और भोले भाले दिखाई देने वाले । और तुम्हें खरगोश कहने में ज्यादा मजा इसालिए आता है क्योंकि तुम चिढते हो ।”
"मैं तो नहीं चिढता ।”
"यह सबसे अच्छी बात है ।"
प्रमोद चुप रहा ।
सुषमा एक सोफे पर चौकड़ी मार कर बैठ गई
"वह मेरे रूमाल का क्या किस्सा है ?"
"तुम सोफे पर बैठी हुई हो, चटाई पर नहीं।"
"भगवान जाने मैं किस चीज पर बैठी हूं। लेकिन जहां भी जैसे भी बैठी हूं आराम से बैठी हूं।"
"आल राइट ।”
"रूमाल का क्या किस्सा है ?"
"पुलिस हैड क्वार्टर पर इन्स्पेक्टर आत्माराम ने मुझे एक रूमाल दिखाया था जो निश्चय ही तुम्हारा था । उसके एक कोने में 'ओ' कढा हुआ था और उसमें से वही सुगन्ध आ रही थी जो तुम प्रयोग करती हो ।"
“मारे गए ।" - सुषमा तनिक चिन्तित होकर बोली ।
"और तुमने यहां आकर अच्छा नहीं किया है। मुझे मालूम नहीं हो रहा था कि तुम कहां हो, नहीं तो मैं तुम्हें चेतावनी दे देता ।”
"यहां आने में क्या हर्ज है, खरगोश ?"
"मेरे फ्लैट की निगरानी हो रही है । मार्शल हाउस के सामने एक आटो सप्लाई कम्पनी का ट्रक खड़ा देखा था तुमने ?”
"हां, देखा था । "
"उसमें पुलिस के आदमी हैं। अभी थोड़ी देर पहले जब राजेन्द्र नाथ मेरे से मिल कर गया था तो उस ट्रक में से एक आदमी निकला और राजेन्द्र नाथ की कार में बैठ कर उसके साथ चला गया था । मेरा दावा है कि वह पुलिस हैड क्वार्टर ले जाया गया है।"
"राजेन्द्र राथ क्या करने आया था ?"
"तुम्हें मालूम नहीं है ?"
सुषमा ने नेत्र झुका लिये।
"वह कह रहा था, सुषमा चाहती है कि मैं पुलिस को यह बयान दूं कि पिछली रात मैं कविता को साढे तीन बजे उसके फ्लैट पर छोड़कर आया था । तुमने ऐसा कुछ कहा था उससे ?"
"कहा था । " - वह सरल स्वर में बोली ।
"क्यों ?"
"क्योंकि मैं नहीं चाहती कविता किसी बखेड़े में फंसे । जगन्नाथ तीन बजे के करीब मरा था । अगर तुम यह कह देते कि साढे तीन बजे तक वह तुम्हारे साथ थी तो वह सन्देह से परे हो जाती ।"
"तुम्हें मालूम था कि उस पर सन्देह किया जाएगा ?"
"हां ।”
"कैसे ?”
"बताऊंगी पहले यह बताओ तुम मेरी सहायता करोगे?"
"तुम पहले अपनी बात तो कहो ।”
"कहूंगी, कहने के लिए ही आई हूं । "
"मेरे कान तुम्हारे मुंह से निकला कोई भी शब्द बड़े गौर से सुनने के लिए तैयार हैं ।" - प्रमोद बोला ।
"प्रमोद ।" - सुषमा एकदम चिल्ला कर बोली - "नहीं खरगोश । ऐसी की तैसी तुम्हारी । मैंने तुमसे हजार बार कहा है कि तुम मेरे से चीनी ढंग से आडम्बर भरी बातें मत किया करो । तुम यह क्यों कहते हो कि तुम्हारे कान सब सुनने के लिये तैयार हैं । इससे तो यह जाहिर नहीं होती कि तुम मेरी सहायता भी करोगे। तुम सीधी सीधी हां क्यों नहीं कहते मुझे ।”
"चीन में बहुत साल रहा हूं न ।" - प्रमोद प्यार से बोला "इसलिये चीनी ढंग की बातें करने की आदत हो गई है ।"
"हां।" - सुषमा बोली- "यह टोन ठीक है । अब कहो हां।"
"हां ।”
"क्या हां । "
"कि मैं तुम्हारी बातें सुनूंगा म... मेरा मतलब है तुम्हारी सहायता करूंगा।"
"खरगोश" - सुषमा दांत पीस कर बोली- "अगर तुम कविता दीदी को जानते होते तो मैं तुम्हें खरगोश से मुर्गा बना देती ।"
“बना देना । फिलहाल अपनी कथा शुरू करो।"
"नहीं । पहले कुछ पिलाओ।"
प्रमोद ने घन्टी का बटन दबा दिया ।
पलक झपकते ही याट-टो वहां आ खड़ा हुआ ।
सुषमा ने याट-टो को देखा और बोली- "यस आवो ।"
“यस मिस्सी लेडी ।" - याट-टो आदरपूर्ण स्वर में बोला "यह मिस्सी पेन्टर लेडी । "
"कोका कोला ।" - प्रमोद बोला ।
"नहीं।" - सुषमा एकदम बोल पड़ी - "कोका कोला नहीं।”
"तो फिर ?"
"बीयर ।"
"बीयर नहीं है ।"
"तो फिर मंगाओ । याट-टो मिस्सी लेडी के लिए बीयर लाओ।" - सुषमा याट-टो से बोली ।
याट-टो ने प्रश्नसूचक नेत्रों से प्रमोद को देखा ।
प्रमोद एक क्षण चुप रहा फिर उसने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
याट-टो चला गया ।
0 Comments