"साठी साहब!” जाफर ने फोन बंद करते हुए कहा--- "खबर आई है कि देवराज चौहान और जगमोहन ने विलास डोगरा के एक ठिकाने पर हमला किया। पहले वहां मौजूद लोगों को मारा फिर बम से बिल्डिंग उड़ा दी।"

"बहुत जल्दी देवराज चौहान मैदान में आ गया ।" देवेन साठी के होंठ सिकुड़े।

"डोगरा का ये वो वाला ठिकाना है, जहां वो रातें बिताता था।" साठी, जाफर को देखता रहा।

"हमारे आदमी देवराज चौहान पर बराबर नज़र रखे हुए हैं।"

"वो दोनों अकेले थे या उसके साथ और लोग भी थे?"

"खुदे था उसके साथ।"

"बस वो तीन थे, हिम्मत का काम किया उन्होंने। विलास डोगरा हाथ नहीं लगा ?"

"वो शाम को ही वहां से चला गया था।"

देवेन साठी ने अपना सोचों से भरा चेहरा हिलाया।

"जाफर! आखिर ऐसा क्या है जो आजाद होने के चंद घंटों बाद ही देवराज चौहान ने विलास डोगरा के यहां हमला बोल दिया?"

"वो ही बात।"

"कठपुतली वाली?"

"जी।"

"वो तो बहाना है, मैं उस बात पर विश्वास नहीं करता। असल बात कुछ और है।" साठी बोला।

जाफर खामोश रहा।

"तेरे को क्या लगता है कि क्या बात है?"

"मेरे को तो वो कठपुतली के नशेवाली बात सही लगती है।" जाफर ने कहा।

"मेरे भाई को किसने मारा?" साठी के चेहरे पर कठोरता नाच उठी।

"देवराज चौहान ने ।"

"यहां पर आकर सारी बात खत्म हो जाती है कि हमारा शिकार देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे है।"

"मैं आपकी बात पर इंकार नहीं कर रहा हूं। देवराज चौहान ने खुद माना है कि बड़े साठी साहब को उसने गोली मारी। परंतु मैं मामले की दूसरी तरफ से सोच रहा हूं। जैसा कि देवराज चौहान कहता है कि उसे डोगरा ने नशे की दवा दी, जब वो बेकाबू हो गया था तो उसे बड़े साठी साहब को मारने को कहा, और उसने ऐसा कर दिया। बेशक बड़े साठी साहब को देवराज चौहान ने गोली मार दी परंतु उसके पीछे विलास डोगरा का आदेश काम कर रहा था।"

देवेन साठी खामोश रहा।

“मोना चौधरी दुबई से किसी को उठा लाने का काम पचास करोड़ में विलास डोगरा को सौंप रही थी कि अचानक उसने इरादा बदल दिया और ये काम बड़े साठी साहब के हवाले कर दिया। इस बात का बदला लिया डोगरा ने। मैंने ये बात सुनी है। अब आप आंखें बंद करके फैसला करना चाहते हो तो मैं आपका हुक्म मानूंगा।"

"तेरा मतलब कि देवराज चौहान को छोड़ देना चाहिए ?"

"इतना बड़ा फैसला मैं कैसे बता सकता हूं?" जाफर बोला--- “सारे हालात तो आपके सामने हैं।"

देवेन साठी के दांत भिंच गए।

"मेरे भाई को गोली किसने मारी ?" साठी गुर्राया ।

"देवराज चौहान ने।"

"तो फैसला हो गया कि हमने देवराज चौहान से बदला लेना।"

"आपके फैसलों की तामील हो गई, साठी साहब।" जाफर सतर्क स्वर में कह उठा--- "लेकिन मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि देवराज चौहान तो उस समय विलास डोगरा का हुक्म बजा रहा था। देवराज चौहान की डोर उस वक्त डोगरा के हाथ में थी।"

देवेन साठी कठोर नज़रों से जाफर को देखने लगा।

"गलती माफ हो। असल में हमारा शिकार डोगरा है, देवराज चौहान नहीं।"

"तेरा क्या मतलब है कि मैं ये सब नहीं समझ पा रहा हूँ।" साठी ने शब्दों को चबाकर कहा।

"तो फिर देर किस बात की?"

"देवराज चौहान की बात पर सीधे-सीधे भरोसा कैसे करें? ये सब तो देवराज चौहान ने कहा है। क्या पता सब कुछ झूठ हो। डोगरा इस बात को कभी भी नहीं मानेगा। मैं इन बातों में उलझकर रह जाऊंगा।" देवेन साठी गुस्से से बोला ।

"आपने अपने भाई के हत्यारे को सजा देकर बड़े साठी साहब की आत्मा को शांति देनी है। क्या पता देवराज चौहान को मार देने से बड़े साठी साहब की आत्मा को शांति न मिले?" जाफर दबे स्वर में बोला।

देवेन साठी सोचता रहा। चेहरे पर गंभीरता रही। कठोरता रही। फिर बोला।

"हम इस सोच के साथ मैदान में उतरें तो मामला लंबा हो जाएगा। अगर यह बात सच है तो डोगरा कभी इस बात को नहीं मानेगा। परंतु ये सोचकर मैं चुप भी नहीं बैठ सकता। अभी बाहर के हालात देखने दो कि देवराज चौहान क्या करता है? और कहां तक करता है। देवराज चौहान ने अगर खुद को बचाना है तो फिर वो ये बात साबित करने की कोशिश जरूर करेगा कि ये काम उससे विलास डोगरा ने धोखे से करवाया है। वो मेरे सामने इस बात को साबित करने की कोशिश कर सकता है।"

"कैसे साबित करेगा?"

"ये सोचना देवराज चौहान का काम है, मेरा नहीं। देवराज चौहान की खबरें बराबर हासिल करते रहो कि वो क्या-क्या कर रहा।"

जाफर ने सिर हिलाया।

"आरु और बच्चों की कोई खबर लगी ?" देवेन साठी ने पूछा।

"हमारे आदमी ये पता लगाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।"

"पाटिल भी वहीं कैद है। देवराज चौहान ने चाल तो बढ़िया चली है, लेकिन ये सब ज्यादा लंबा नहीं चलेगा।" साठी ने दांत भींचकर कहा--- "ये खेल कभी भी खत्म हो सकता है। देवराज चौहान पर नज़र रखो।"

■■■

"रीटा डार्लिंग!" विलास डोगरा एक हाथ में व्हिस्की का गिलास पकड़े, दूसरा हाथ रीटा की कमर में डाले झूमता हुआ कह उठा--- "तू ना होती तो मैं खाली-खाली दीवारों से टक्कर मार रहा होता। मेरा दिल कौन लगाता ?"

"तो मैं आपका दिल लगाने वाला खिलौना हूँ।" रीटा खिलखिलाकर हंस पड़ी।

"तुम तो मेरी जान हो, मेरा जहान हो।" डोगरा उसे चूमते हुए कह उठा ।

"आज चढ़ गई लगती है?"

विलास डोगरा हँस पड़ा।

“ये व्हिस्की क्या चढ़ेगी मुझ पर, मुझ पर तो तुम ही चढ़ी रहती हो हमेशा। मेरे दिमाग पर सवार रहती हो, मेरे दिल पर सवार रहती हो। मैं खुद चाहता हूं कि तुम ही हमेशा मुझ पर सवार रहो। दिल लगा रहे मेरा और इसी तरह जिंदगी भी कट जाए ।"

"एक बात कहूं डोगरा साहब ?"

"कह।"

"कभी सोचा है कि आपकी इतनी बड़ी दौलत का क्या होगा ?"

"हम दोनों ने अभी सौ साल और जीना है रीटा डार्लिंग।"

"मैं जानती हूं, पर क्या ये अच्छा नहीं हो कि हम शादी कर लें। बच्चा पैदा कर लें ?"

"नहीं रीटा डार्लिंग, कभी नहीं, मैं तुझे खोना नहीं चाहता। और जब पत्नी बन जाए तो उसमें रस खत्म हो जाता है। दोस्त बनकर रहें तो बेशक, पचास साल रहें, कोई फर्क नहीं पड़ता। औरत बच्चा पैदा कर दे तो वो बंट जाती है। मैं ऐसे ही ठीक हूं। हम ऐसे ही ठीक हैं। कितनी बढ़िया कट रही है हममें और...।"

"मैं तो चाहती हूं कि आपकी जायदाद संभालने वाला कोई हो, जो।"

"इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। अपनी जिंदगी बढ़िया कटनी चाहिए। फिर दौलत कोई भी ले, क्या फर्क...।"

तभी डोगरा का मोबाइल बजने लगा।

"डोगरा साहब फोन ।" रीटा उससे अलग होती कह उठी।

“ये फोन भी मजा किरकिरा कर देता है।" डोगरा ने कहा और एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया।

रीटा ने फोन रिसीव किया, बात की, फिर डोगरा से कहा।

"आपके लिए फोन है।" वो पास आ पहुंची।

डोगरा ने बात की।

बात करता रहा, हां-हां करता रहा। सिर हिलाता रहा। नशे से भरा चेहरा बलों से भर गया।

फिर फोन बंद करके रीटा को थमाता कह उठा।

"बहुत गड़बड़ हो गई रीटा डार्लिंग।"

"क्या हुआ डोगरा साहब?"

"हम वक्त पर वहां से निकल आए मेरा ख्याल ठीक रहा। देवराज चौहान ने उस ठिकाने पर हमला बोला। वहां काफी लोग थे। सब को गोली मारी। दो घायल रहे, जिंदा रहे। वो पहले ही बचकर बाहर आ गए। उस इमारत को बम लगाकर उड़ा दिया गया ये तो बड़ी गड़बड़ी कर दी देवराज चौहान ने।" विलास डोगरा हाथ उठाता कह उठा।

"वो आपके पीछे पड़ गया है।"

"ऐसा ही लगता है मेरी आशा से ज्यादा चालाक निकला। साठी और मोना चौधरी से खुद को बचाकर निकल गया।"

“अब क्या होगा डोगरा साहब।" रीटा गम्भीर स्वर में कह उठी।

"जो खुदा को मंजूर होगा।"

"खुदा को क्या मंजूर है?"

"खुदा जानता है कि चींटी हाथी से नहीं टकरा सकती। हाथी तो हाथी है, चींटी को तो मरना ही है। अब देखना ये है कि कब तक चींटी हाथी पर चढ़ी बचती है।" विलास डोगरा कहर से हंसकर बोला।

"अगर चींटी हाथी के कान में घुस गई तो ?” रीटा बोली।

"ऐसी नौबत नहीं आएगी, उससे पहले ही हाथी चींटी को नीचे गिरा देगा। मुझे यदि पहले पता होता कि देवराज चौहान ये सब करने तक पहुंच जाएगा तो मैं ही उसे खत्म कर देता ।"

"कहीं वो यहां न पहुंच जाए?"

"रीटा डार्लिंग फिक्र मत करो, ये जगह केवल दो-चार जनों को ही पता है। यहां हम सुरक्षित हैं। फिर परसों तो हमने अपने टूर पर निकल जाना है। हिंदुस्तान के कई शहरों में जाना है, अपने लोगों से मिलने। उनकी समस्याएं निपटाने। हर छ: महीने में एक बार मेरा ये टूर होता है और पंद्रह दिन के बाद वापसी होती है। हमारे वापस आने तक हमारे आदमी देवराज चौहान और जगमोहन को खत्म कर चुके होंगे।” विलास डोगरा मुस्कराकर कह उठा।

"उनके साथ हरीश खुदे भी है।"

"वो भी मरेगा।"

तभी रीटा के हाथों में दबा फोन बज उठा।

"हैलो!" रीटा ने बात की।

"डोगरा साहब से बात कराओ।" उधर से मौला का स्वर सुनाई दिया।

रीटा फोन को डोगरा की तरफ बढ़ाती बोली।

"मौला हुसैन है।"

डोगरा ने फोन थामा और कुर्सी पर बैठता कह उठा।

"बोल मौला।"

"पता चला है कि देवराज चौहान ने विले पार्ले वाला ठिकाना...।" उधर से मौला ने कहना चाहा।

"हां, वो जगह बर्बाद हो गई। नुकसान हुआ। बुरा लगा।" डोगरा कह उठा।

"देवराज चौहान का इंतजाम करना होगा।" मौला के स्वर में गुस्सा था।

"ये काम रशीद संभालेगा, अभी उसे फोन करता हूं।"

"रमेश टूडे इस काम को बढ़िया ढंग से।"

"रशीद भी ठीक से संभाल लेगा। मैं अभी उससे बात करता हूं।" डोगरा ने कहा--- "देवराज चौहान का मामला बहुत मामूली है, एक-दो दिन में सब ठीक हो जाएगा। ड्रग्स ठीक से डिलीवर हो रही है?"

"सब ठीक चल रहा है, मैं अपने काम अधूरे नहीं छोड़ता। आज रात अफगानिस्तान से आया माल तट पर उतरेगा। उसे ही लाने की तैयारी में लगा हूं। सारी रात उसी में बीत जाएगी।"

"जागरे का दोपहर में फोन आया था, उसे दिल्ली के कॉलेज के बच्चों के लिए ड्रग्स चाहिए। वो तेरे से मिलेगा, उसे कम भाव लगाना। वो माल ज्यादा लेता है। मैं चाहता हूं कि ये साठी से माल लेना बंद कर दे।"

"मैं समझ गया डोगरा साहब।"

“तू अपने काम में ध्यान लगा मौला। देवराज चौहान की कोई समस्या नहीं, काम निपट जाएगा।"

डोगरा ने कान से फोन हटाया बंद किया तो रीटा कह उठी।

"देवराज चौहान ने तो सारा मूड ही खराब कर दिया डोगरा साहब।"

"मेरी रीटा डार्लिंग का मूड बिगड़ गया ये तो बुरी बात है ।" डोगरा पुनः फोन मिलाता प्यार से बोला--- "धंधे में गड़बड़ी तो चलती ही रहती है। मूड भी ठीक हो जाएगा।" कहकर डोगरा ने फोन कान से लगा लिया।

"रशीद को?” रीटा बोली।

विलास डोगरा जवाब में गर्दन हिलाकर रह गया।

"हैलो!" रशीद की नशे से भरी आवाज विलास डोगरा के कान में पड़ी।

"मस्ती कर रहा है।" विलास डोगरा शांत स्वर में बोला।

"ओह डोगरा साहब।" एकाएक रशीद की आवाज में चोकस भाव आ गए थे।

"बहुत आराम कर लिया तूने ।"

"आप कोई काम ही नहीं बताते।"

“तो सुन, काम सुन, डकैती मास्टर देवराज चौहान का नाम सुना है कि नहीं?"

"बरोबर सुना है।"

"मेरा उसका कुछ पंगा है। वो मेरे पीछे पड़ गया है।"

"उसकी ये हिम्मत।"

"विले पार्ले वाली चार मंजिला मेरी बिल्डिंग उड़ा दी है उसने। वहां बीस को गोली मारी।"

"आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?"

“अभी पंगा खड़ा हुआ है, तू देवराज चौहान को संभाल। वो तीन हैं। जगमोहन और हरीश खुदे भी उनके साथ है। खुदे को तो तू जानता ही होगा। आठ साल उसने साठी भाइयों के लिए काम किया है ।"

"याद है, दो-तीन बार मिला उससे। मैं अभी सबको खत्म करता हूं।" रशीद की आवाज आई।

"कितने आदमी हैं तेरे पास?"

"इस वक्त तो मेरे पास सिर्फ छः आदमी ही हैं, पर अभी फोन करके सौ से ऊपर आदमी को एक घंटे में इकट्ठे करके देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे के पीछे लगाता हूं। सुबह तक उनका काम हो जाएगा डोगरा साहब।"

"काम निपटते ही मुझे फोन कर।" कहकर डोगरा ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर गंभीरता थी।

"कब तक रशीद काम पूरा करेगा?" रीटा ने पूछा।

"सुबह तक, सिग्रेट तो पिला।"

रीटा वहां से हटी और कुछ दूर रखा पैकिट उठा लाई ।

विलास डोगरा ने सिग्रेट सुलगाकर कहा।

"बहुत नुकसान किया देवराज चौहान ने ।"

"आपने भी तो कम नहीं किया, उसे कठपुतली देकर बहुत नचाया।" रीटा मुस्कराई।

"अगर हमले के वक्त हम वहां पर होते तो न जाने क्या होता। देवराज चौहान पागल हुआ पड़ा है।" डोगरा कश लेते कह उठा--- "अगर हम वहां होते तो देवराज चौहान बचता नहीं।"

"बचेगा तो वो अभी भी नहीं। रशीद ने उसे सुबह तक खत्म कर देना है।"

"मुझे साठी के परिवार के लोगों के बारे में पता लगाना होगा।"

"उसकी क्या पड़ी है आपको?"

“अगर रशीद सुबह तक देवराज को खत्म नहीं कर सका तो देवराज चौहान और भी आगे बढ़ेगा। मुझे नुकसान पर नुकसान देता रहेगा। देवेन साठी ने कब का देवराज चौहान को मार दिया होता, अगर उसका परिवार देवराज चौहान के कब्जे में न होता। अगर उसे उसका परिवार मिल जाए तो वो देवराज चौहान को मार डालेगा और हमारा काम हो जाएगा।"

“बात तो आपकी सही है डोगरा साहब। क्यों न सुबह तक इंतजार कर लें। शायद रशीद ही मार दे देवराज चौहान को।"

विलास डोगरा ने रीटा को देखा।

रीटा का खूबसूरत चेहरा कयामत ढा रहा था।

"तू इतनी खूबसूरत क्यों है?" विलास डोगरा मुस्कराया।

"ताकि आपका दिल लगाकर रखूं।" रीटा मुस्कराई।

"देखना तू एक दिन मेरी जान निकाल देगी।" डोगरा ने गहरी सांस ली।

“अब मुझे छेड़ने लगे।" रीटा शरारती स्वर में कह उठी।

"तू ठीक कहती है सुबह तक देख लेते हैं कि रशीद क्या करता है?" विलास डोगरा कह उठा।

"तो सुबह तक हमें फुर्सत है?" रीटा ने बांह फैला दी।

डोगरा मुस्कराकर उठा और पास पहुंचकर रीटा को अपने साथ भींच लिया।

"धीरे।" रोटा के होंठों सिसकारी निकली।

“मेरी जान!” विलास डोगरा जैसे होश गंवाने लगा। उसके हाथ रीटा के जिस्म पर फिसलने लगे।

"अभी डिनर नहीं किया आपने?"

"पहले तेरा डिनर करूंगा। उसके बाद मैं दूसरा डिनर। उसके बाद फिर तेरा डिनर।"

■■■

ये विलास डोगरा का वो ठिकाना था, जहां चोरी-छिपे हथियार रखे जाते थे। और उन्हें आगे सप्लाई किया जाता था, इस सारे काम को रशीद संभालता था। वो कई बार पाकिस्तान जा पहुंचा था, सीमा पार करके। पाकिस्तान से ही उसे हथियार मिलते थे। वो खुद सीमा के इस पार पहुंचा देते थे हथियारों को और वहां से रशीद के आदमी हथियार को संभालते, और ठिकाने पर ले आते। रास्ते में पड़ने वाले सब नाके सैट कर रखे थे। माल आए या न आए, हर महीने हर नाके पर नोट पहुंच जाते थे। सब बढ़िया चल रहा था।

रशीद खतरनाक माना जाता था।

पुलिस को आज भी उसकी तलाश थी। आठ हत्याएं उसके सिर पर थीं। परंतु विलास डोगरा की छत्र-छाया में उसका वक्त बढ़िया कट रहा था। उसके बारे में जानकारी होते हुए भी पुलिस वाले उस पर हाथ नहीं डालते थे। यानी कि उनके पास डोगरा की तरफ से वक्त पर नोट पहुंचते रहते थे।

रशीद की उम्र चालीस साल थी। वो एक सेहतमंद और लंबा व्यक्ति था। गहरा सांवला रंग, चेहरे पर चाकू के कटे का पुराना निशान। क्लीन शेव्ड चेहरा। ताकत उसमें इतनी कि वो एक साथ छः लोगों को भी खाली हाथों से परास्त कर देता था। परंतु अधिकतर वो अपने काम में व्यस्त रहता था। आज शाम को ही एक ट्रक में हथियार भेजे गए थे। रास्ते में हर पहचान के नाके को ट्रक का नंबर बताकर फोन कर दिया था कि इस ट्रक में उसका माल है। ट्रक को रोका न जाए। साथ ही एक पुलिस वाला सादे कपड़े में, मोटरसाइकिल पर ट्रक के साथ चल रहा था। ताकि रास्ते में किसी प्रकार की गड़बड़ हो तो उसे संभाला जा सके। रशीद ने उससे कहा था कि ट्रक गोवा पहुंचने पर उसे एक लाख रुपया देगा। पाकिस्तान से हथियार कम दामों पर मिलते थे, ऐसे में पुलिसवालों को पैसा देने में कोई परेशानी नहीं आती थी। डोगरा ने उससे कह रखा था कि पुलिसवालों को कभी भी नाराज नहीं किया जाए। उनके दम पर ही उनका काम चलता है।

रशीद इस सच को समझता था।

विलास डोगरा का फोन आने के बाद रशीद फोन पर व्यस्त हो गया और अपने आदमियों को फोन करने में लग गया। आधे घंटे बाद फारिग हुआ। इस दौरान उसने सौ के करीब आदमियों को देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे को तलाश करके, मार देने के काम पर लग चुका था।

रशीद के चेहरे पर थकान नज़र आ रही थी। जो थोड़ी-बहुत ही थी। वो नशा उतर चुका था। इस वक्त वो आफिस जैसे कमरे में था। टेबल पर फाइलें और कागज बिखरे हुए थे। वो कुर्सी छोड़कर उठा और पैकेट से सिगरेट सुलगाने के बाद दरवाजे की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर सोचें थी।

बाहर, काफी बड़ा हॉल था और पांच लोग लकड़ी की पेटियां ठोंक रहे थे। पेटियों में हथियारों को पैक किया जा रहा था। वो सब अपने ही आदमी थे। तभी एक तरफ से एक आदमी निकलकर उसके पास पहुंचा।

“काम बंद कर दे गोपाल। आवाजें सिर में बहुत बज रही हैं। अब आराम करने को कह दे।"

“बस करो।" गोपाल ने आवाज लगाकर कहा--- "काम बंद कर दो, आराम करो।"

ठोका-पीटी की आवाजें थम गईं। वे अपनी जगहों से उठने लगे। इधर-उधर जाने लगे।

"आप भी आराम कर लीजिए रशीद साहब, अपना ट्रक तो दिन का उजाला निकलने से पहले ही गोवा पहुंच जाएगा।"

"आज रात आराम नहीं हो सकेगा। देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे को खत्म करना है। अपने आदमी उन तीनों को तलाश कर रहे हैं। मुझे भी बाहर निकलना होगा। डोगरा साहब का ये काम अर्जेंट है।"

“मैं भी साथ चलूं।” गोपाल बोला ।

“चल ।" कहकर रशीद वापस अपने केबिन में पहुंचा और एक तरफ रखी बोतल उठाकर गिलास तैयार किया और एक ही सांस में आधा खत्म कर दिया। फिर सिग्रेट सुलगा ली।

तभी दरवाजा खुला और गोपाल ने भीतर प्रवेश किया।

“आ गया। अभी निकलते...।" रशीद ने उसे कुछ कहना चाहा कि शब्द मुंह में ही रह गए।

गोपाल के पीछे देवराज चौहान, उसकी पीठ पर साइलेंसर लगी रिवॉल्वर लगाए खड़ा था।

वो देवराज चौहान को पहचान गया था।

"तुम?" रशीद के होंठों से निकला।

गोपाल को धकेलता देवराज चौहान दो कदम भीतर आ गया।

गोपाल के चेहरे पर आतंक के भाव थे।

देवराज चौहान ने साइलैंसर लगी नाल, गोपाल की पीठ से सटाकर, उसके सिर पर रखी और ट्रेगर दबा दिया।

रशीद की आंखें फैल गई।

देखते-ही-देखते गोपाल आगे को गिरा, टेबल से टकराया और नीचे गिर गया।

देवराज चौहान की खतरनाक निगाहें रशीद पर टिकी थीं। आंखें शोले बरसा रही थीं।

एकाएक रशीद को होश आया। उसने तेजी से हाथ टेबल की ड्रा की तरफ बढ़ाया।

'पिट'

देवराज चौहान के हाथ में रखे रिवॉल्वर से फायर हुआ।

गोली टेबल पर मौजूद फाइल के रास्ते टेबल में धंसी और नीचे फर्श पर जा टकराई।

रशीद जहां का तहां रुक गया उसके चेहरे पर पसीना उभरा।

"जल्दी मौत चाहता तो कोई शरारत करना।" देवराज चौहान के होंठों से एक गुर्राता स्वर निकला।

देवराज चौहान को देखता रशीद होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।

"पहचानता है मुझे?" पुनः गुर्राया देवराज चौहान ।

रशीद ने हां में सिर हिलाया।

"मैं हूं देवराज चौहान।" देवराज चौहान के लहजे में खूंखारता भरी थी--- "वो देवराज चौहान, जिसके साथ विलास डोगरा ने तगड़ी धोखेबाजी की और मुझे मौत के कुएं में धकेल दिया। उस मौत के कुएं से कुछ पल की मोहलत पाकर, मैं विलास डोगरा को खत्म करने निकला हूं। यहां से दो मील दूर, तेरे तीन आदमियों ने मुझे घेर लिया और मुझ पर गोलियां चलाई। परंतु मैंने उन तीनों को मार दिया। उनमें से एक की सांसें चल रही थीं, मेरे पूछने पर उसने बताया कि तुमने उन्हें ऐसा करने का हुक्म दिया था। मैंने तुम्हारे ठिकाने का पता पूछा और यहां आ गया। यहां आकर मुझे पता चला कि ये विलास डोगरा का ठिकाना है।"

रशीद ठगा सा खड़ा देवराज चौहान को देखे जा रहा था।

"तेरे को ऐसा ऑर्डर विलास डोगरा से मिला?"

"ह... हां।"

देवराज चौहान ने अपना दरिंदगी से भरा चेहरा दिखाया।

"एक कागज पैन उठा।" देवराज चौहान उसी लहले में बोला ।

रशीद जरा भी नहीं हिला।

"सुना नहीं।” देवराज चौहान गुर्रा उठा।

रशीद जल्दी से टेबल पर पहुंचा और कागज-पैन ढूंढने लगा।

"सिर्फ कागज-पेन, हथियार की तरफ हाथ बढ़ाने की सोचना भी मत।" देवराज चौहान ने मौत भरे स्वर में कहा।

रशीद कागज पैन थमाकर भय भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखने लगा।

"अब बता आराम से मरना चाहता है, या तड़प-तड़पकर ?" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।

"म... मुझे मत मारना।"

"मरेगा तो तू जरूर क्योंकि तू विलास डोगरा के लिए काम करता है। आराम से मरना चाहता है या तड़प-तड़प के ?"

"अ... आराम से।" रशीद का स्वर कांप उठा। गालों पर पसीने की लकीर बह निकली।

"तो इस कागज पर अब विलास डोगरा के ठिकाने के पते लिखने शुरू कर दे।"

रशीद टेबल पर झुका और जल्दी से कागज पर लिखने लगा।

तभी कदमों की आहट गूंजी और जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया। उसके चेहरे पर खतरनाक भाव दिखाई दे रहे थे। हाथों में रिवॉल्वर दबी। आहट सुनकर रशीद ने सिर उठाया तो देवराज चौहान गुर्राया।

"सिर नीचे, जो काम कर रहा है वह कर। तेरे को बचाने वाला कोई नहीं आने वाला।"

रशीद पुनः कांपते हाथों से लिखने लगा।

“छः लोग थे इस ठिकाने पर।" जगमोहन गुर्राया--- "अब कोई जिंदा नहीं बचा।"

"मतलब कि ये सातवां और आखिरी है।" देवराज चौहान ने रशीद को देखकर कहा।

"हां।"

"खुदे कहां है?"

"वो इस इमारत के बाहरी हिस्से में खड़ा है।"

"तुम यहां से बाहर निकलकर खड़े हो जाओ।"

जगमोहन फौरन पलटकर बाहर निकल गया।

रशीद रुकते हुए बोला।

"म... मुझे जितने पते पता थे, सब लिख दिए।"

"कितनी जगहों के पते लिखे हैं?" देवराज चौहान ने दरिंदगी से पूछा।

"अ... आठ जगहों के।"

देवराज चौहान आगे बढ़ा और वो कागज उठाकर अपनी जेब में डालता पीछे हटता कह उठा।

"मैं तुझे जिंदा भी छोड़ सकता हूं।"

ये सुनकर रशीद के चेहरे पर कुछ राहत के भाव उभरे।

"जिंदा रहने के लिए विलास डोगरा के बारे में बताना होगा कि वो कहां मिलेगा?" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा।

"मैं नहीं जानता।" रशीद की आवाज कांप उठी।

"इस सवाल का जवाब देकर तू अपनी जिंदगी बचा सकता है।"

“कसम से नहीं जानता।" रशीद ने अपनी टांगें कांपती महसूस की।

"मैं गोली चलाने जा रहा हूँ। अभी भी सोचने का वक्त है तेरे पास।"

"विलास डोगरा इस वक्त कहां है, मैं...नहीं ।"

'पिट' हल्की सी आवाज उभरी और रशीद के माथे में छेद दिखने लगे। उसकी आंखें फैलकर जहां की तहां रुक गई। फिर उसका शरीर पास की कुर्सी से टकराया और वह धड़ाम की आवाज से नीचे जा गिरा।

देवराज चौहान दांत भींचे पलटकर बाहर निकलता चला गया।

■■■

रात का डेढ़ बज रहा था।

मुम्बई में आधे से ज्यादा सन्नाटा पसर चुका था। परंतु बाकी की मुम्बई अभी भी तेजी से दौड़ रही थी। सड़कों पर पर्याप्त संख्या में वाहन थे। उनकी हैडलाइटें रात के अंधेरे को दूर करने में, कुछ हद तक सफल थीं। इंजनों का शोर तो कभी-कभार किसी गाड़ी के हार्न की आवाज। सड़क किनारे फुटपाथों पर लोग सोए हुए थे। कुछ ऐसे भी थे जो अभी तक पैदल यात्रा कर रहे थे। दूसरे महानगरों की तरह मुम्बई का भी काफी बड़ा हिस्सा जाग रहा था।

सड़क पर जाते वाहनों में वो कार भी शामिल थी। जिसमें देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे बैठे थे। जगमोहन कार ड्राइव कर रहा था। खुदे बगल में बैठा था। देवराज चौहान पीछे वाली सीट पर, उस कागज को मोबाइल टॉर्च की रोशनी में पढ़ने लगा था, जिस पर मरने से पहले रशीद ने डोगरा के ठिकाने के पते लिखे थे।

"दादर पहुंचना है हमें।" देवराज चौहान कागज तय करके जेब में रखता कठोर स्वर में बोला।

"पहुंच गए समझो।" जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली।

"वहां विलास डोगरा होगा।” हरीश खुदे कह उठा।

"डोगरा हमें कहीं भी मिल सकता है।" देवराज चौहान ने दांत भिंचे स्वर में कहा--- "शाम तक वो विले पार्ले वाले उसी ठिकाने पर मौजूद था जहां हमने सबसे पहले शिकार मारे थे। परंतु वक्त रहते उसे पता चल गया होगा कि देवेन साठी को हमने संभाल लिया है। और वो हमें नहीं मार सका। तब डोगरा समझ गया होगा कि मैं उस जगह पर कभी भी पहुंच सकता हूं। और वो जगह उसने तुरंत छोड़ दी। वो कहां गया, ये पता उसके आदमियों को भी नहीं है।"

"वो जहां भी छिपा हो, जल्दी ही वो हमारे हाथ लगेगा ।" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।

"वो मिल जाए तो कितना अच्छा हो, सारा झंझट ही खत्म हो जाये।" खुदे ने एक गहरी सांस लेकर कहा--- “उसके बाद हम दो-चार दिन आराम करके, किसी जगह डकैती करने की तैयारी करें। अब तो टुन्नी भी मेरे बिना परेशान होने लगी है।"

"बिल्ला का क्लेश कट गया न?" जगमोहन ने पूर्ववतः स्वर में कहा।

“हां, पता चला उसे तुम्हारे साथी रुस्तम राव और बांकेलाल राठौर ने मार दिया था।"

"इसी तरह विलास डोगरा का भी क्लेश भी कट जाएगा, कमीने ने हमारा जीना ही हराम कर दिया।" जगमोहन गुर्राया ।

“अब तो डोगरा तुम लोगों से डरकर भागता फिर रहा होगा।" खुदे बोला।

“विलास डोगरा को कम मत समझो।" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली---- "वो शैतान से कम नहीं है। सोचता भी शैतानों की तरह है। मैं उसकी आदतों को बहुत अच्छी तरह जानता हूं। हमारा वक्त अच्छा रहा तो तभी वो हाथ आयेगा।"

"मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा हूं कि वो हमें दादर वाले ठिकाने पर ही मिल जाये।" हरीश खुदे कह उठा।

■■■

दादर रेलवे स्टेशन से पांच सौ कदमों की दूरी पर वो दो मंजिला इमारत थी। जो कि काफी पुरानी लग रही थी और काफी खुली जगह में बनी थी। उसकी बाहरी दीवारें दस फीट तक ऊंची थी। उस पर हुई पीली सफेदी अब काली पड़ने लगी थी। इस वक्त उस इमारत के माथे पर एक बल्ब जलता दिख रहा था। बाहर दीवार पर 'ओम सोप फैक्ट्री' बड़े-बड़े शब्दों में लिखा नज़र आ रहा था। दिन भर इस इमारत के लोगों का आना-जाना लगा रहता था। गेट पर हर वक्त वर्दीधारी चौकीदार होता जो आने-जाने वालों पर कड़ी निगाह रखता था, खासतौर से आने वालों पर और अक्सर वो आने वालों को बाहर ही रोक लिया करता था और पास ही बूथ में रखे इन्टरकॉम पर, उनके बारे में भीतर बात करता। तसल्ली होती तो, आने वालों को भीतर जाने देता।

इमारत के सामने से निकलने वाले ये ही सोचते कि यहां साबुन बनता है।

दिन भर में दो-चार बार टैम्पू भी माल से लदे निकल जाते थे।

चार-दीवारी में लगा आठ फीट ऊंचा और दस फीट चौड़ा लोहे का गेट था जो कि रात को इस वक्त बंद था और भीतर बूथ में रोज रात की तरह रात का चौकीदार पहरा देता बैठा था। भीतर अभी भी काम चल रहा है, वो जानता था, परन्तु रात के वक्त कोई बाहर नहीं जा रहा था, कोई भीतर नहीं आ रहा था। खामोशी ठहरी हुई थी। कभी-कभाद इमारत के भीतर से थोड़ी बहुत आहट उभरकर गेट तक आ जाती थी।

इमारत के भीतर ऊपरी मंजिल पर मौला हुसैन मौजूद था।

थका-सा लग रहा था मौला। परसों से उसे बाहर निकलने का वक्त ही नहीं मिला था। काम ही इतना ज्यादा था। दस दिन पहले ड्रग्स की बड़ी खेप आई थी। आधी तो पार्टियों को डिलीवर कर दी गई थी, जिनके आर्डर पहले से ही तैयार खड़े थे और बाकी की आधी छोटी पैकिंगों में पैक की जा रही थी। पार्टियों ने छोटी पैकिंग में ड्रग्स मांगी थी। यूं ये काम उसके आदमी उसकी गैर मौजूदगी में भी कर सकते थे, परन्तु मौला की आदत थी कि हर काम को अपने हाथों से निपटाना। अब थोड़ा-सा माल ही बचा था पैक होने को और उसे पता था कि सुबह तक काम खत्म हो जायेगा फिर माल को टैम्पुओं में भरकर पार्टी को भेजना भर होगा।

मौला को नींद आ रही थी।

परन्तु अपनी भारी हो रही आंखों को संभाले हुए था। अभी-अभी वो नीचे का चक्कर लगा के आया था। पच्चीस से ऊपर आदमी तेजी से पैकिंग के काम में लगे थे। मौला हुसैन का फोन बजने लगा।

"हैलो।" उसने बात की।

"मौला साहब।" उधर से एक आवाज कानों में पड़ी--- "सुबह तक माल हर हाल में चाहिये। आगे पार्टी को वक्त दे रखा...।"

"फिक्र मत कीजिये रोहित साहब। सुबह छः बजे माल एकदम 'टिच' तैयार होगा।"

"कसम से?"

"खुदा कसम। माल आप लेने आयेंगे या हमेशा की तरह भिजवा दूं?"

"उसी ठिकाने पर भिजवा देना। मेरे आदमी माल आने के इन्तजार में वहीं मौजूद रहेंगे।"

"बढ़िया जनाब।” मौला ने कहा और फोन बंद करके, वापस टेबल पर रख दिया।

■■■

गेट के भीतर, बूथ में गार्ड बैठा था कि एकाएक 'धप्प' की आवाज उसके कानों में पड़ी। वो चौंका और सावधानी से बूथ के बाहर निकला और मध्यम-सी रोशनी में सतर्कता से नज़रें घुमाने लगा। साथ ही उसका हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर जा टिका फिर उसने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।

इमारत के माथे पर जो बल्ब जल रहा था। वो कुछ दूर था और उसकी कम रोशनी ही वहां तक पहुंच रही थी। वो जानता था कि उसने 'धप्प' की आवाज सुनी थी जैसे कोई कूदा हो। उसकी नज़रें घूमती रही। दो-तीन मिनट बीत गये, परन्तु उसकी नज़रों की पकड़ में कुछ भी नहीं आया। लेकिन जब तक उसे तसल्ली ना हो कि आवाज किसकी थी, वो चैन से नहीं बैठ सकता था। रिवॉल्वर हाथ में पकड़े वो इमारत और दीवार के बीच, दस फीट चौड़े खाली रास्ते पर चलने लगा। उस रास्ते पर कुछ आगे छोटा टैम्पू खड़ा था। एक तरफ दीवार के पास बोरियों का ढेर था।

वो दस कदम ही अंधेरे में आगे बढ़ा होगा कि एकाएक थम गया।

उसकी निगाह अंधेरे से भरी दीवार के साथ, नीचे पड़ी किसी चीज पर पड़ी। वो नहीं समझ पाया कि वो क्या चीज है। वो गोल-सी हुई पड़ी थी। दूसरे ही पल गार्ड की आंखों में तीव्र चमक आती चली गई।

वो किसी इन्सान का शरीर था जो गोल-गोल-सा हुआ पड़ा था। दुबका हुआ था।

उसी पल उसने उस उकडूं पड़े इन्सान पर रिवॉल्वर तानते हुए कहा।

"मैंने तुम्हें देख लिया है। सीधे खड़े हो जाओ। मेरे हाथ में रिवॉल्वर है।"

वो शरीर हिला फिर धीरे-धीरे सीधा खड़ा होता चला गया।

वो देवराज चौहान था।

गार्ड ने उस पर रिवॉल्वर तान रखी थी और पूरा ध्यान उस पर था।

"कौन हो तुम?" गार्ड ने सतर्क स्वर में पूछा।

''मैं हूं देवराज चौहान।” देवराज चौहान की मध्यम-सी आवाज गूंजी।

"कौन देवराज चौहान ?"

उसी पल दीवार की मुंडेर पर अंधेरे में हरकत करता एक और शरीर दिखा।

चूंकि गार्ड का पूरा ध्यान देवराज चौहान पर था, इसलिये दीवार के ऊपर की हरकत नहीं देख पाया। दीवार पर नज़र आने वाला इन्सान पैरों के बल दीवार पर बैठा और मेंढक की भांति नीचे खड़े गार्ड पर छलांग लगा दी।

वो गार्ड पर आ गिरा।

गार्ड को जर्बदस्त झटका लगा। रिवॉल्वर उसके हाथ छूट गई। दोनों नीचे जा गिरे। गार्ड का सिर सीमेंट के फर्श से टकराया और बेहोश हो गया। उस पर कूदने वाला जगमोहन था। जगमोहन ने उसकी बेहोशी को अच्छी तरह चैक किया और उसे खींचकर दीवार के साथ अंधेरे में डाल दिया।

“मैं आऊं।” तभी दीवार के ऊपर चढ़े बैठे खुदे की फुसफुसाती आवाज सुनाई दी।

"आ।" जगमोहन ने ऊपर देखा।

खुदे नीचे कूदा और तुरन्त खड़ा हो गया। साइलैंसर लगी रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।

"ये गार्ड बेहोश पड़ा है।" देवराज चौहान के लहजे में खतरनाक भाव थे--- "इसका ध्यान रखना। गार्ड की जगह ले ले। जो भी बाहर भागता आये उसे शूट कर देना। कोई भी यहां से बाहर नहीं निकलना चाहिये।"

"ठीक है।"

फिर देवराज चौहान और जगमोहन वहां से गेट वाली दिशा की तरफ बढ़ गये। आगे जाकर बाईं तरफ मोड़ था। वो मुड़े तो कुछ आगे उन्हें रोशनी की लकीर दिखी। वहां पहुंचे तो दरवाजा दिखा। जो कि थोड़ा-सा खुला हुआ था और रोशनी की लकीर बाहर तक आ रही थी। दोनों ने साइलेंसर लगी रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ली और दरवाजा धकेलते हुए भीतर प्रवेश कर गये। दायें-बायें बाथरूम-किचन बने हुए थे। जहां अंधेरा था। सामने कमरा था रोशनी वहीं से आ रही थी। वे तेजी से चलते हुए कमरे में प्रवेश करते चले गये।

वहां करीब आठ आदमी अपने काम में व्यस्त थे।

फर्श पर काफी बड़ी पन्नी पर सफेद रंग के पाउडर का ढेर लगा था जिसे कि वे सब छोटी-छोटी पैकिंगों में डालने लगे थे। परन्तु उन दोनों को रिवॉल्वरों के साथ आया पाकर वो चौंके।

रिवॉल्वरें उन पर तन चुकी थी।

“हिलना मत।” देवराज चौहान गुर्राया--- “जैसे बैठे हो वैसे ही बैठे रहो।"

वे सब स्तब्ध रह गये।

सन्नाटा-सा आ ठहरा वहां।

“विलास डोगरा कहां है?" देवराज चौहान पुनः गुर्राया ।

"पता नहीं।" एक के होंठों से निकला।

"यहां पर है?"

“नहीं।”

"तो यहां कौन है तुम्हारा बड़ा?"

“मौला हुसैन। वो अभी-अभी ऊपर की मंजिल पर गया है। परन्तु तुम कौन हो?"

“मैं हूं देवराज चौहान ।” दरिन्दगी भरे स्वर में कहने के साथ ही देवराज चौहान के हाथ में दबे रिवाल्वर से पिट, पिट, पिट, पिट की आवाजें गूंजने लगी और कमरे में बारूद की स्मैल फैल गई।

वो आठों आदमी गोलियों के शिकार हो गये। किसी के सिर में तो किसी के गले और छाती में गोली लगी। उन्हें चीखने का भी मौका ना मिला। मासूमों को ड्रग के नाम पर मौत बेचने वाले खुद ही मौत के मुंह में चले गये थे। जगमोहन आगे के कमरे की तरफ बढ़ गया।

देवराज चौहान उसके पीछे था।

अगला कमरा खाली था। परन्तु उससे अगले कमरे में दस लोग मौजूद थे जो छोटी पन्नियों में ड्रग्स की पैकिंग कर रहे थे। पास में नीले रंग का ड्रम रखा था जो कि ड्रग्स से आधा भरा था।

वे लोग इन दोनों को आया पाकर चौंके !

अगले ही पल देवराज चौहान और जगमोहन के हाथों में दबी रिवॉल्वरों से बे-आवाज गोलियां निकलने लगी।

चंद पलों में ही वो बे-आवाज से ढेर हो गये। उनके गिरने की कुछ आवाजें उभरी और थम गई।

सन्नाटा-सा उभर आया वहां।

लाशें, खून और ड्रग्स ही वहां नज़र आ रही थी।

वो दोनों रिवॉल्वरें थामें कमरे से निकलकर आगे बढ़े तो खुद को छोटे-से बरामदे में पाया। एक तरफ ऊपर जाती सीढ़ियां दिखाई दे रही थी। परन्तु सामने की तरफ कमरा था जहां से कुछ आवाजें आ रही थी।

"तुम आवाजों की तरफ देखो।" देवराज चौहान धीमें स्वर में गुर्राया--- "मैं ऊपर जा रहा हूं।"

जगमोहन फौरन उस कमरे की तरफ बढ़ गया।

देवराज चौहान सीढ़ियों की तरफ निकल गया।

मौला हुसैन ने कुर्सी से उठकर अंगड़ाई ली और एक घंटा नींद लेने की सोची। उसे लग रहा था कि नींद नहीं ली तो सुबह तक उसकी तबीयत खराब हो जायेंगी। सोने से पहले एक बार वो नीचे का चक्कर लगा लेना चाहता था। उसी पल कमरे के बाहर आहटें उभरी तो नज़रें खुले दरवाजे पर टिकी। दो पलों बाद ही दरवाजे पर देवराज चौहान खड़ा दिखा।

हाथ में रिवॉल्वर। चेहरे पर मौत नाच रही थी।

एक अजनबी को इस हाल में आया पाकर, मौला चौंका।

उसका हाथ फौरन जेब की तरफ बढ़ा।

तभी 'पिट' की आवाज हुई और गोली उसके कान को गर्म हवा देती निकल गई।

"रिवाल्वर मत निकालना।" देवराज चौहान गुर्राया ।

जबकि मौला हुसैन गोली चलते ही हड़बड़ाकर ठिठक चुका था।

"जेब से रिवॉल्वर निकालकर दूर फेंक दो।" देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा।

मौला ने ऐसा ही किया। उसकी गम्भीर निगाह देवराज चौहान पर टिकी थी।

रिवॉल्वर कुछ दूर दीवार के पास जा गिरी थी।

"तुम ऊपर कैसे आ गये?" मौला का लहजा तीखा था।

"नीचे तुम्हारा कोई आदमी जिन्दा नहीं बचा।" देवराज चौहान ने दरिन्दगी से कहा।

"कौन हो तुम?" मौला के माथे पर बल दिखने लगे।

"मैं हूं देवराज चौहान।"

मौला बुरी तरह चौंका।

"देवराज चौहान?" चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गये।

देवराज चौहान की मौत भरी निगाह, मौला पर टिकी रही। होंठ भिंचे हुए  थे ।

"तुमने रशीद और उसके आदमियों को भी मारा।"

"अब तुम्हारी बारी है। परन्तु तुम बच भी सकते हो। मौका होगा तुम्हारे पास बचने का।"

"तुम बहुत गलत कर रहे हो देवराज चौहान। डोगरा साहब से टक्कर लेकर तुम जीत नहीं...।"

“उस हरामजादे ने मेरे साथ क्या किया है, मालूम है तुम्हें?" देवराज दौहान ने दांत पीसे ।

"नहीं।"

“बताया भी नहीं उसने ।"

"मुझे तो सिर्फ इतना पता है कि देवेन साठी और मोना चौधरी तुम्हें मारने के लिए, तुम्हारे पीछे हैं।"

"ये सब कुछ विलास डोगरा का ही किया धरा है।" देवराज चौहान ने वहशी स्वर में कहा--- "इस वक्त तुम सिर्फ अपने बारे में सोचो। जिन्दा रहना चाहते हो या मरना पसन्द करोगे?"

"कोई भी मरना नहीं चाहेगा।" मौला ने गम्भीर स्वर में कहा।

तभी कदमों की आहट के साथ जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया।

"सब ठीक है।" जगमोहन ने मौत भरे स्वर में कहा--- “अब कोई जिन्दा नहीं है यहां।"

मौला का चेहरा फक्क पड़ गया था।

"विलास डोगरा कहां है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"पता नहीं।" मौला ने गम्भीर स्वर में कहा।

"मेरा ये सवाल तुम्हें जिन्दगी दे सकता है अगर तुमने सही जवाब दिया तो।" देवराज चौहान के दांत भिंच गये।

मौला परेशान दिखा। व्याकुलता से उसकी बांहें हिलीं।

"डोगरा के बारे में बताकर अपनी जिन्दगी बचा सकते हो। तुम डोगरा के कहीं पर भी होने की खबर दो। हमारे साथ चलो। अगर डोगरा वहां मिल गया तो तुम्हें छोड़ दूंगा। ये ही एक आखिरी मौका है तुम्हारे पास जान बचाने का।"

"मैं वास्तव में नहीं जानता कि वो कहां है।" मौला ने सिर हिलाकर कहा--- “वैसे भी डोगरा तुम्हारे हाथ नहीं आने वाला कल या परसों में वो मुम्बई से बाहर जा रहा है। देश भर में फैले ठिकानों पर जाता है छः महीने में एक बार और पन्द्रह दिन बाद लौटता है।"

"कहां-कहां जायेगा वो?"

"कई शहरों को कवर करेगा मैं नहीं जानता कि वो किस शहर से अपना दौरा शुरू करने वाला है?"

"कैसे जायेगा?"

"अपनी वैन से।"

"साथ कौन होगा?"

"रीटा और ड्राइवर दया होता है उसके साथ।" मौला ने गम्भीर स्वर में कहा।

"अकेला जायेगा। तो क्या आज तक उसे मारने की कोशिश नहीं की किसी ने?"

"उसे अकेला मत समझना। उसकी वैन बहुत कमाल की चीज है। उसमें गनें फिट हैं। भीतर बैठे वो हर तरफ गोलियां चला सकता है। बटनों को दबाकर। एक बार में पचासों गोलियां निकलती है। वैन बुलैट प्रूफ है और भीतर बैठे वो हर तरफ का हाल देख सकता है। ड्राइवर दया कहने को ड्राईवर है, जबकि वो पेशेवर हत्यारा है और विलास डोगरा के पसंदीदा लोगों में से एक है, तभी तो उसे हर वक्त अपने साथ रखता है।"

देवराज चौहान, मौला को मौत भरी निगाहों से देखता रहा।

"इस वक्त विलास डोगरा कहां मिलेगा?" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर पूछा।

"मुझे नहीं मालूम वो कहां है। क्या वो जानता है कि तुम उसके पीछे हो?" मौला ने पूछा।

"हां।"

"फिर तो वो सुरक्षित जगह छिपा होगा। उसके खास लोगों को भी उसका पता नहीं होगा।" मौला बोला ।

"वो कल मुम्बई से बाहर जा रहा है या परसों ?"

"शायद परसों।"

“किससे पता चलेगा कि पहले कौन-से शहर से जा रहा है। कब रवाना हो रहा है, किधर-किधर वो जायेगा?"

"प्रकाश दुलेरा शायद इस बारे में बता सके।"

"ये कौन है?"

"डोगरा का सलाहकार है। उसे राय देने और उसके प्रोग्राम को भी तय करता है।"

"कहां मिलेगा ये?"

"मुझे नहीं मालूम प्रकाश दुलेरा का कौन-सा ठिकाना है। मैं उससे कभी भी नहीं मिला, परन्तु ये बांद्रा वेस्ट में कमल सोसायटी के पन्द्रह नम्बर फ्लैट में रहता है।" मौला की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर थी।

"प्रकाश दुलेरा को पक्का मालूम होगा डोगरा के प्रोग्राम के बारे में?” देवराज चौहान गुर्राया ।

"हां।"

"तुमने ये बात इतनी आसानी से क्यों बता दी?"

मौला हुसैन ने देवराज चौहान को देखा। चुप रहा।

"जवाब दे मेरी बात का।"

"मैं अपना ड्रग्स का धंधा शुरू करना चाहता हूं परन्तु डोगरा की वजह से मैं ऐसा नहीं कर पा रहा। उसे मेरे इरादे का भी पता चल गया तो वो मुझे मार देगा। अगर तुम मार सकते हो उसे तो मार दो।"

“परन्तु तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें जिन्दा छोड़ दूंगा।” देवराज चौहान गुर्राया।

“मुझे मारकर तुम्हें क्या मिलेगा?" मौला हुसैन ने गहरी सांस ली।

"प्रकाश दुलेरा के बारे में बताकर तुमने अपनी जान बचा ली।" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला--- “परन्तु इस बात का क्या भरोसा कि मेरे यहां से जाते ही तुम डोगरा को ये बात नहीं बता दोगे।"

"मैं डोगरा को पसन्द नहीं करता।"

“इस वक्त मैं अपने उसूल के खिलाफ तुम्हें जिन्दा छोड़ रहा हूं। डोगरा के मामले में मेरा उसूल है कि उसका आदमी मेरा दुश्मन, लेकिन तुम्हें छोड़े जा रहा हूं। अगर तुमने डोगरा के सामने मुंह खोला तो उसे छोड़कर, सबसे पहले तुझे मारूंगा।"

"तुम्हें ऐसा नहीं करना पड़ेगा।" मौला ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

“तुम सच में इसे जिन्दा छोड़ रहे हो?" जगमोहन गुर्राया--- "मुंह खोलकर ये हमारे लिये मुसीबतें खड़ी कर देगा।"

"सुना तुमने?"

"मैं ऐसा नहीं करूंगा। एक बार मुझ पर भरोसा करके तो देखो। मैं डोगरा के लिए काम करता हूं परन्तु उसे पसन्द नहीं करता। मैं चाहता तो प्रकाश दुलेरा के बारे में कुछ ना बताता। परन्तु मैंने बताया।"

"चलो।" देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा और पल्टा।

"सुनो।" मौला सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा--- "तुम लोगों ने यहां सब आदमियों को मार दिया?"

"हां।" देवराज चौहान वापस घूमा।

"तो मेरी बांह पर गोली मार दो। नहीं तो डोगरा जरूर सोचेगा कि तुमने मुझे जिन्दा क्यों छोड़ा। क्योंकि तुम लोगों ने वहां रशीद को भी मार दिया था।" मौला ने गम्भीर स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा किया और ट्रेगर दबा दिया।

"पिट" की आवाज के साथ गोली निकली और मौला की टांग में प्रवेश कर गई।

मौला के होंठों से चीख निकली और टांग पकड़ते, वो नीचे जा गिरा।

देवराज चौहान और जगमोहन वहां से बाहर निकलते चले गये।

■■■

सुबह के साढ़े चार बज रहे थे। रात का अंधेरा अभी बाकी था।

बांद्रा वेस्ट में कमल सोसायटी में गार्ड मुख्य प्रवेश गेट पर अपनी ड्यूटी दे रहे थे। परन्तु रात भर की ड्यूटी के बाद अब उनमें सुस्ती और नींद भर आई थी। सोसायटी के गेट पर और भीतर लाईटें जल रही थी। एक-दो लोग अभी गेट से बाहर निकलकर सैर पर गये थे। सामने की सड़क पर भी पांच-सात लोग जाते नज़र आ रहे थे। अगले पैंतालिस मिनटों में दिन का उजाला फैल जाना था।

कार सोसायटी के गेट पर जा रुकी। ड्राइविंग सीट पर देवराज चौहान बैठा था। बगल में खुदे और पीछे की सीट पर जगमोहन था। कार रुकते ही एक गार्ड पास आया।

"कहां जाना है साब?" गार्ड ने पूछा।

"फ्लैट नम्बर 15, प्रकाश दुलेरा के यहां।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा---- "वो मेरा भाई है, माता जी का स्वर्गवास हो गया है। मैं पूना से आ रहा हूं और उसे साथ ले जाना है पूना ।"

"ओह ।” गार्ड ने फौरन सहानुभूति से सिर हिलाया कार के भीतर खुदे और जगमोहन को देखा--- "जाइये, भीतर चले जाइये।" कहते हुए वो पीछे हटा और आगे बढ़कर दस फीट चौड़ा गेट पूरा खोल दिया।

कार भीतर प्रवेश कर गई।

सामने ही फ्लैटों की इमारतें बनी हुई थी। उसके पास पहुंचकर एक जगह पर कार रोकी। इंजन बंद किया और तीनों बाहर निकल आये। खुदे सामने के फ्लैट को देखता कह उठा।

"ये उनतीस नम्बर फ्लैट है। पन्द्रह नम्बर भी पास ही में कहीं होगा।"

वो फ्लैटों के नम्बर पढ़ते आगे बढ़ने लगे। यहां-वहां लाइटें लगी थी। कुछ और लोग सैर पर जाते दिखे। जल्दी ही वे पन्द्रह नम्बर फ्लैट के दरवाजे पर जा रुके, जो कि पहली मंजिल पर स्थित था।

जगमोहन ने कॉलबैल दबा दी।

भीतर बेल बजने की आवाज सुनाई दी।

देवराज चौहान का हाथ जेब में सरक गया।

खुदे ने बेचैन निगाहों से आस-पास देखा। सब तरफ शान्ति थी।

जगमोहन ने पुनः बेल बजाई। दो-तीन बार एक साथ बजाई। कुछ पलों बाद भीतर से कदमों की आवाज के साथ किसी के बड़बड़ाने की आवाज आई और फिर दरवाजा खोला जाने लगा। दरवाजा खुला और पचपन बरस का आदमी नाइट सूट में दिखा। उसकी आंखें सूजी हुई थी। मुंह से व्हिस्की की स्मैल आ रही थी। वो सोया उठकर आ रहा था।

"क्या है?" उसने आंखें मिचमिचाते पूछा ।

"दरवाजे से हट।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला--- “डोगरा ने भेजा है हमें।"

उसकी आंखें पूरी खुल गई।

"डोगरा साहब ने ?"

"प्रकाश दुलेरा नाम है तेरा?"

"हां, लेकिन डोगरा साहब ने तुम लोगों को किस वास्ते भेजा। वो मुझे फोन कर सकते...।"

"एमरजेंसी है।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने उसे पीछे किया और भीतर प्रवेश करता चला गया।

"लेकिन मैं तुम लोगों को नहीं जानता। अभी डोगरा साहब को फोन करता हूँ।"

जगमोहन और खुदे भी भीतर आ गये।

इस वक्त उन्होंने आराम से काम इसलिये किया कि अगर किसी की निगाह उन पर पड़ जाये तो उसे गड़बड़ ना लगे। ज्योंही खुदे ने दरवाजा बंद किया। जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाली और भीतर कमरे की तरफ जाते प्रकाश दुलेरा पर तानी और उसे आहिस्ता से पुकारा।

प्रकाश दुलेरा पलटा और उसके हाथ में रिवॉल्वर देखकर आंखें फैल गई।

नींद उड़ चुकी थी उसकी। उसने बारी-बारी देवराज चौहान और खुदे को भी देखा।

"कौन हो तुम लोग ?” प्रकाश दुलेरा होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा।

"मैं हूं देवराज चौहान।" देवराज चौहान दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठा।

तीनों ने स्पष्ट तौर पर प्रकाश दुलेरा को चौंकते देखा।

"तुम देवराज चौहान हो।" उसके होंठों से निकला ।

देवराज चौहान उसे घूरता रहा।

"तुमने रशीद और उसके सारे आदमियों को मार दिया। विले पार्ले वाले ठिकाने को बम से उड़ा दिया। वहां के सब लोगों को मार दिया और अब मेरे पास आ गये। मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा?" प्रकाश दुलेरा घबराये स्वर में बोला ।

"लगता है मौला की खबर तुम तक पहुंची नहीं।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।

"मौला हुसैन?" उसके होंठों से निकला---- "क्या उसे भी मार दिया?"

"मैं हर उस इन्सान को मार रहा हूं जो विलास डोगरा के लिए काम करता है।” देवराज चौहान गुर्राया ।

प्रकाश दुलेरा का चेहरा फक्क दिखने लगा।

“अब तेरा नम्बर है। तू भी डोगरा के लिए काम करता...।"

"नहीं। मैं नहीं करता। प्रकाश दुलेरा जल्दी से बोला--- "मैंने आज ही उसके लिये काम करना छोड़ दिया...।"

"लेकिन तू बच सकता है।" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।

"क... कैसे?" उसके होंठों से निकला।

"विलास डोगरा कहां पर मिलेगा, ये बता कर ।"

"मैं नहीं जानता वो कहां है। शाम को मैंने उससे पूछा परन्तु उसने नहीं बताया।" प्रकाश दुलेरा घबराकर बोला।

"सोच ले। मेरा सवाल तेरी जिन्दगी बचा सकता है।"

"मैं सच में नहीं जानता। जानता होता तो जरूर बता देता। जान से बढ़कर, मेरे लिए कोई चीज नहीं है। मुझे मारने की मत सोचो ! मैं तो शरीफ बंदा हूं। खून-खराबे से हमेशा दूर रहता हूँ। कल मैं तुम्हें पता कर दूंगा कि डोगरा कहां पर है।"

"हमसे सिर्फ आज की बात कर।" जगमोहन गुर्राया---- "अब की बात कर। कल का कुछ नहीं।"

"मुझे मत मारना। मैं बोत शरीफ आदमी हूं। कठपुतली तो तुम्हें डोगरा ने दी थी, मैंने तो नहीं दी।"

"ये बात तेरे को किसने बताई?" देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।

"डो-डोगरा ने सारी बात बताई थी।"

"फिर तो तुझे बताने की कोई जरूरत नहीं कि हमें डोगरा की क्यों जरूरत है।"

"मुझे मत मारना।"

"तो तू नहीं जानता कि डोगरा कहां मिलेगा।"

“कसम से नहीं जानता।"

“ठीक है। एक मौका तुझे और देता हूं। जवाब दिया तो तू जिन्दा रहेगा।" देवराज चौहान ने मौत भरे स्वर में कहा--- "ये आखिरी मौका है तेरे लिए जीने का। जवाब देने में जल्दी मत करना।"

प्रकाश दुलेरा ने तुरन्त सिर हिला दिया।

"डोगरा मुम्बई से बाहर जा रहा है। कल या परसों...।"

"परसों सुबह जायेगा।" प्रकाश दुलेरा ने जल्दी से कहा ।

"तेरे को सब पता है। क्यों पता है ना?"

"ह... हां...।"

"मैंने सुना है डोगरा के प्रोग्राम तू बनाता है।"

"हां।"

“तू उसका सलाहकार है।"

"लेकिन मैंने उसे कठपुतली के बारे में कोई सलाह नहीं दी। वो उसका अपना आइडिया था।" दुलेरा ने जल्दी से कहा ।

"डोगरा बाहर जा रहा है, उसके टूर का प्रोग्राम तू ही बनाता है।"

“हाँ। सब कुछ मैं ही सैट करता हूँ।" उसने सिर हिलाया।

"कैसे जायेगा डोगरा ।"

"अपनी वैन से ।" प्रकाश दुलेरा बहुत घबराया हुआ था।

"हमें बता डोगरा कहाँ-कहाँ जा रहा है। पहले कहाँ जायेगा। उसके बाद कहाँ जायेगा। पूरा प्रोग्राम बता उसका।"

दुलेरा व्याकुल निगाहों से देवराज चौहान को देखने लगा।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकाली और उसकी ठोड़ी पर साइलेंसर लगी नाल रख दी।

"मुझे मत मारो।" दुलेरा काँप उठा।

"मुँह खोल। जो मैंने पूछा है, वो बता। शुरू हो जा।" देवराज चौहान गुर्रा उठा।

प्रकार दुलेरा, विलास डोगरा के दूर का प्रोग्राम बताने लगा।

पाँच मिनट तक बताता रहा।

"इस टूर पर उसके साथ दो लोग होंगे। दया और रीटा, है ना?"

"ह-हाँ। रीटा और दया हमेशा उसके साथ ही रहते हैं, बेशक वो कहीं भी जाये।" दुलेरा कह उठा।

"वो अकेला इस तरह निश्चिंत क्यों रहता है?"

"उसकी वैन किसी टैंक से कम नहीं है। सौ लोगों को दो मिनट में खत्म कर सकती है।"

"ये बातें बताने का शुक्रिया।" देवराज चौहान ने क्रूर स्वर में कहा।

"अब तो मुझे नहीं मारोगे ना?"

"मजबूरी है।" देवराज चौहान ने कहा और ट्रेगर दबा दिया।

'पिट' की आवाज उभरी।

गोली दुलेरा की ठोड़ी की हड्डी तोड़ते हुए मुँह में रास्ता बनाते सिर में कहीं जा अटकी ।

प्रकाश दुलेरा कटे पेड़ की तरह नीचे जा गिरा।

चंद पलों के लिए वहाँ गहरा सन्नाटा उभर आया।

दुलेरा के चेहरे से निकलता खून फर्श को रंगने लगा।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में रखी और फोन निकालकर नम्बर मिलाने लगा। चेहरे पर मौत बरस रही थी। फोन कान से लगा लिया। होंठ भिंचे हुए थे। दूसरी तरफ बेल बजी फिर नगीना की आवाज आई।

"हैलो।"

"मैं हूँ।" देवराज चौहान बोला--- "तुम कहाँ हो।"

"बंगले पर ।"

"बांके और सरबत सिंह भी साथ हैं?"

"हाँ...।"

"इसी वक्त बंगला छोड़ दो। हम डोगरा के कई ठिकानों पर हमला कर चुके हैं। वो गुस्से में बंगले पर हमला कर सकता है।"

"ठीक है। दस मिनट में हम बंगला खाली कर देते हैं।"

"सरबत सिंह के घर की तरफ मत जाना। देवेन साठी के आदमी तुम पर नजर रख रहे होंगे।"

"मैं समझती हूँ।" उधर से नगीना ने कहा।

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।

जगमोहन और हरीश खुदे की निगाह उस पर थी।

"विलास डोगरा आसानी से हाथ नहीं आने वाला। वो सतर्क हो चुका है।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा--- “परन्तु उसके बाहर जाने का टूर हमें पता चल गया है। वो कल मुम्बई से निकलेगा। हमें नहीं मालूम कि वो कहाँ से चलेगा। ऐसे में उसे पकड़ने का सबसे बढ़िया रास्ता है कि हम पहले ही वहां पहुंच आयें, जहां उसने आना है।"

"कोल्हापुर ।" जगमोहन गुर्रा उठा ।

"हां ये महाराष्ट्र का ही एक शहर है जो मुंबई से 10 घंटे की दूरी पर है।"

"डोगरा ने सबसे पहले कोल्हापुर ही जाना है। वहां वो किसके पास जायेगा। ये भी हमें पता है। हमें वहां पहुंच कर वहां की घेराबंदी कर लेनी है। अगर वो सीधे-सीधे हाथ लगे तो ठीक, नहीं तो उसे शूट कर देना है।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।

"अगर बच गया तो?" खुदे बोला ।

“तो उसका अगला स्टॉप गोवा है। गोवा में उसे घेर लेंगे। वो बचेगा नहीं। प्रकाश दुलेरा ने ही डोगरा का सारा प्रोग्राम तय किया है और दुलेरा से हम उसके प्रोग्राम की हर बात जान चुके हैं। डोगरा, हमसे ज्यादा देर नहीं बचा रहेगा।"

"मैं चाहता था कि डोगरा की मुलाकात एक बार देवेन साठी से करा देते, ताकि साठी अपने भाई की मौत का सच जान लेता।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "ये ठीक नहीं कि साठी और हममें ठनी रहे।"

"अभी हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “हमने डोगरा को खत्म करना है।"

"साठी को हम कोल्हापुर पहुँचने को कह सकते हैं।"

"ये गलत होगा। साठी के आदमियों में, कोई डोगरा का साथी होगा और ये बात डोगरा तक पहुँच गई कि हमें उसके प्रोग्राम की जानकारी है तो वो अपना प्रोग्राम बदल लेगा। हमें सिर्फ अपने काम को अंजाम देना है। ये हमारा हिसाब है डोगरा के साथ।"

“और बाद में हमें साठी से निपटना पड़ेगा।" खुदे ने चिन्तित स्वर में कहा।

"इस बारे में अभी सोचने की जरूरत नहीं।" देवराज जौहान ने होंठ भींच कर कहा।

जब ये तीनों वहाँ से बाहर निकले तो दिन का उजाला फैल चुका था।

■■■

"रात बहुत बुरी बीती रीटा डार्लिंग ।" विलास डोगरा ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा--- "देवराज चौहान ने विले पार्ले वाला ठिकाना पूरी तरह तबाह कर दिया। रशीद को मार दिया। मौला घायल हो गया, परन्तु उसकी जान बच गई। दुलेरा तक भी पहुँच गया देवराज चौहान। चालीस के करीब अपने आदमियों को एक ही रात में मार दिया। ये सब क्या हो रहा है रीटा डार्लिंग।"

"किसी की बुरी नजर लग गई है आपको।" रीटा गम्भीर सी उसके सामने आ बैठी।

विलास डोगरा के चेहरे पर सोच के भाव थे।

"देवराज चौहान तो आपकी आशा से कहीं तेज निकला।"

"मैंने ये सोचा था कि उसे साठी या मोना चौधरी मार देंगे और मामला खत्म हो जायेगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। ये तो मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। एक रात में ही उसने तूफान खड़ा कर दिया है। पुलिस वालों के फोन पर फोन आ रहे हैं कि ये क्या हो रहा है। उन्हें बताया कि ये काम देवराज चौहान कर रहा है, ये सुनते ही पुलिस वाले पीछे हट गये कि ये मामला उनका नहीं है। कहते हैं अण्डरवर्ल्ड की लड़ाई में पुलिस कभी दखल नहीं देती।” विलास डोगरा ने रीटा को देखा।

"पुलिस को और नोट दे दो कि वो देवराज चौहान के पीछे पड़ जाये।"

"पुलिस इस मामले में दखल नहीं देगी।” डोगरा बोला।

"तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता। आप में तो बहुत ताकत है। देवराज चौहान है ही क्या।"

“देवराज चौहान ने मेरा तगड़ा नुकसान कर दिया है। रशीद को मार दिया। मौला अस्पताल में है। दुलेरा नहीं रहा। लेकिन देवराज चौहान भी तो अब नहीं बचने वाला। मेरे हाथों बुरी मौत मरेगा।"

"बाहर जाने का प्रोग्राम छोड़िये और पहले देवराज चौहान का काम खत्म कीजिये डोगरा साहब।"

"मुम्बई के बाहर के ठिकानों पर जाना जरूरी है। वहाँ पर कई ऐसे मामले रुके पड़े हैं कि उन्हें ठीक करना जरूरी है।" विलास डोगरा सिर हिलाकर कह उठा--- “बस एक बात समझ नहीं आ रही कि देवराज चौहान, दुलेरा तक कैसे पहुँच गया?"

"इसमें सोचने जैसी क्या बात है।"

विलास डोगरा ने नज़रें उठाकर रीटा को देखा।

"नहीं समझी रीटा डार्लिंग ?"

"नहीं तो।"

"कहीं देवराज चौहान ने दुलेरा से मेरे टूर के प्रोग्राम के बारे में पता ना कर लिया हो।"

"देवराज चौहान को क्या पता कि दुलेरा को आपके टूर के बारे में सब पता है। वैसे भी दुलेरा नहीं जानता कि हम कहाँ पर हैं। हमने कल अपने रास्ते निकल जाना है। देवराज चौहान को हवा भी नहीं लगेगी।"

"फिर भी हमें सावधानी बरतनी होगी।"

"क्या ?"

"हम इस बार अपनी वैन से नहीं जायेंगे। वैन को आसानी से पहचाना जा सकता है।"

“आप देवराज चौहान से भाग क्यों रहे हैं डोगरा साहब। आपके लिए तो वो मामूली चीज है।"

“तभी तो उस पर हाथ नहीं डाल रहा।” विलास डोगरा मुस्करा पड़ा--- "देवेन साठी ज्यादा देर तक सब्र नहीं करेगा। कभी भी उसका दिमाग घूम जायेगा और वो देवराज चौहान की गर्दन मरोड़ देगा। अभी तो साठी भी देख रहा होगा कि देवराज चौहान क्या कर रहा है। हमारे मुम्बई से बाहर जाने पर देवराज चौहान के पास करने को कुछ नहीं होगा। वो हमें ढूंढता रहेगा और ये देखकर साठी बोर होने लगेगा। तंग आकर उसने देवराज चौहान को मार डालना है। ऐसे में मेरा देवराज चौहान पर हाथ डालना ठीक नहीं होगा। काम खुद ही निपट जायेगा। लेकिन ये तो पक्का है कि रात बहुत बुरी रही रीटा डार्लिंग।"

रीटा मुस्कराई और प्यार से कह उठी।

"बुरी कहाँ बीती। रात तो बहुत मजेदार रही थी। रात आपने भी पी, मैंने भी पी। आपने मुझे सोने नहीं दिया। मैंने आपको सोने नहीं दिया। कितना मजा आया था हम दोनों एक नई दुनियाँ में थे। कुछ अलग हट के हुआ रात को भूल गये क्या ?"

"वो कैसे भूल सकता हूं।" डोगरा उसे देखकर मुस्कराया--- "ये तो तेरा ही आइडिया था कि उस तरह करते हैं।"

"मेरा तो काम ही आपको खुश रखना है डोगरा साहब।"

“डोगरा तेरे से बहुत खुश हुआ रीटा डार्लिंग। पर ये देवराज चौहान ने तो रात का सारा सपना ही किरकिरा कर दिया। रात की मीठी यादें सुबह दिमाग पर हावी नहीं हो सकी। जरा दया को फोन तो लगा ।" डोगरा सोच भरे स्वर में बोला।

रीटा फौरन उठी। मोबाइल लिया और नम्बर मिलाकर फोन डोगरा को दिया।

डोगरा ने फोन कान से लगा लिया। बेल गई फिर दया की आवाज कानों में पड़ी।

"नमस्कार डोगरा साहब ।"

"कैसा है तू दया?" डोगरा ने शांत स्वर में पूछा।

"एकदम चौकस।"

“खबर सुनी? रात देवराज चौहान ने क्या गुल खिलाया?"

"पता चल गया। गलत किया देवराज चौहान ने ।"

“एक नम्बर का हरामी निकला। निपटना पड़ेगा कुत्ते से।" डोगरा गुस्से से बोला ।

"हुक्म दीजिये।"

"हमने कुछ नहीं कहना देवराज चौहान को। वो खुद मरेगा। राह चलते ऐसे कुत्ते भौंकते ही रहते हैं।"

"जी।"

“कल हमने जाना है। पर इस बार वैन से नहीं जायेंगे। वैन देवराज चौहान द्वारा पहचानी जा सकती है। या उसे कहीं से ख़बरे मिल सकती है कि डोगरा की वैन वहाँ देखी गई। तू ऐसी कार को तैयार कर, जिसे लम्बे वक्त से हमने इस्तेमाल नहीं किया। समझ गया दया। ऐसी कार कि कोई सोच ना सके कि उसमें हम सफर कर सकते हैं।"

"मैं आज ही कार तैयार कर लूंगा।" उधर से दया ने कहा।

"साला देवराज चौहान दिखे तो सीधे गोली मारना हरामी को।" कहकर डोगरा ने फोन बंद कर दिया।

“एक बात कहूँ डोगरा साहब।" रीटा कह उठी।

"बोल। पूछा मत कर। कह दिया कर ।"

"हमने कोल्हापुर होते हुए गोवा पहुँचना है तो क्यों ना वैन को हम उल्टी तरफ गुजरात के रास्ते पर भेज दें। अगर देवराज चौहान को वैन का गुजरात जाने का पता लगेगा तो वो उस तरफ चला जायेगा। कितना मजा आयेगा तब जब उसको पता चलेगा कि हमने उसे बेवकूफ बना दिया।" रीटा मुस्करा कर कह उठी।

"वाह क्या आइडिया है। कसम से तू ना होती तो मैं बरबाद हो गया होता रीटा डार्लिंग। ये बात तो मैं सोच भी नहीं सकता था।"

"देवराज चौहान को अगर वैन की खबर मिली तो गलत दिशा की तरफ बढ़ जायेगा। उसका वक्त बरबाद होगा। साठी उसे इधर-उधर नाचते देखकर गुस्से में और भी भड़क जायेगा। मैं कल वैन के गुजरात की तरफ जाने का इन्तजाम कर दूंगा।"

"साठी क्या देवराज चौहान पर नज़र रख रहा होगा?"

"जरूर रखेगा।" विलास डोगरा ने सिर हिलाकर कहा--- "देवराज चौहान ने उसकी पत्नी और बच्चों को अपनी कैद में रखा हुआ है। उसके सारे आदमी उसके परिवार की तलाश में लगे हैं और देवराज चौहान पर भी नज़र रखी जा रही होगी। इस बारे में पूरी तरह निश्चिंत हूँ कि देर-सवेर में देवराज चौहान साठी के हाथों ही मरेगा। वो अपने भाई की मौत को भूलने वाला नहीं।"

“पर मोना चौधरी क्यों देवराज चौहान से पीछे हट गई?"

"ये तो मैं भी नहीं समझ पाया। उसे अचानक जाने क्या हो गया। वो तो देवराज चौहान की जान लेने को तैयार थी।" विलास डोगरा ने सिग्रेट सुलगा ली--- “आज हमने कोई खास काम तो नहीं करना है?"

"नहीं। आज हम पूरी तरह आराम करेंगे। कल लम्बे सफर पर जाना है।” रीटा बोली और पास आकर डोगरा के गाल को चूमते हुए कहा--- "आज रात फिर हम वैसा ही करेंगे जैसा बीती रात को किया था।"

"ओह रीटा डार्लिंग तू तो मेरी जान लेकर रहेगी।" डोगरा ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"मैं आपकी जान हूँ तो आप भी मेरी जान हैं। मुझे आपसे प्यार हो गया है।"

"सच?"

“कसम से।"

"ओह अच्छा ही हुआ जो हमने शादी नहीं की। शादी करते तो हममें जो आकर्षण है, वो खत्म हो गया होता। हमारी कितनी बढ़िया पट रही है। हमें किसी की नज़र ना ही लगे तो अच्छा है। अब जरा रमेश टूडे का नम्बर मिला के फोन मुझे दे।"

"रमेश टूडे ?” रीटा ने डोगरा को देखा--- "उससे क्या काम पड़ गया?"

"वो हमारे साथ जायेगा कल।"

"क्यों?"

"हम वैन नहीं ले जा रहे। साधारण कार पर जा रहे हैं तो सुरक्षा का कोई इन्तजाम तो होना चाहिये। रमेश टूडे हमारे आस-पास रहेगा तो हम खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे। नम्बर मिला के दे। बात करूँ उससे।"

रीटा ने रमेश टूडे का नम्बर मिलाया और फोन डोगरा को थमा दिया ।

फौरन ही बात हो गई।

"कहिये डोगरा साहब।" उधर से बेहद शांत स्वर कानों में पड़ा।

"कैसा है तू?"

"अपना हाल सुनाइये। देवराज चौहान ने एक ही रात में बहुत उठा-पटक कर दी। क्या किया था आपने उसके साथ जो वो इस हद तक तिलमिला रहा है। बिना वजह तो वो ये सब करने वाला नहीं।" उधर से रमेश टूडे का शांत स्वर कानों में पड़ा।

"वो मरेगा। साठी उसे जल्दी ही मार देगा।"

"मैं तो सोच रहा था कि देवराज चौहान को मारने का काम आप मुझे देने वाले हैं।"

"नहीं। वो साठी के हाथों मरेगा। हमें मेहनत करने की जरूरत नहीं। उसे, उसके हाल पर छोड़ देना बेहतर है।"

"मेरे लिए हुक्म ?"

"कल मैं टूर पर निकल रहा हूँ। जैसे कि हर छः महीने में एक बार जाता हूँ। परन्तु मैं अपनी वैन में नहीं जा रहा। ताकि देवराज चौहान धोखा खा जाये। साधरण कार में जाऊँगा। तू मेरे साथ रहेगा। तेरे को मेरी सुरक्षा करनी होगी अगर रास्ते में कोई खतरा मुझ पर आ जाये।" विलास डोगरा ने कहा।

“तो कल से मुझे आपके साथ दूर पर रहना होगा।"

"हाँ। परन्तु तुम बिलकुल मेरे साथ नहीं रहोगे। मेरे आगे या पीछे रहोगे। मुझ पर नजर रखोगे। कल कब रवाना होना है, क्या प्रोग्राम रहेगा, इस बारे में दया से फोन पर पूछ लेना।"

■■■

देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे ने, सुबह के बाद का वक्त एक मध्यम दर्जे के होटल में बिताया। होटल में पहुँचते ही वो नींद के हवाले हो गये थे। उससे पहले जगमोहन की घायल बांह पर, खुदे ने होटल से व्हिस्की की बोतल ली और थोड़ी सी जख्म पर डालने के बाद, कमीज को फाड़कर, पट्टी के रूप में बांह पर बांध दी थी।

दोपहर एक बजे वे उठे।

नहा धोकर, दोपहर तीन बजे तक कुछ खाया और बाहर चला गया। एक घंटे में लौटा तो उसके हाथ में तीन नई कमीज़ें थी। पहले की पहनी कमीजें मैली हो चुकी थी। जगमोहन की कमीज़ तो पूरी फट गई थी। उसकी बाँह पहले से ठीक थी, परन्तु अभी ज़ख्म था। खुदे ने पुरानी कमीज़ की पट्टी बनाकर उसकी बाँह पर बांध दी थी।

"अब क्या प्रोग्राम है?" जगमोहन के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी।

"प्रकाश दुलेरा के मुताबिक डोगरा ने कल सुबह कोल्हापुर के लिए रवाना होना है। उसने कहाँ पहुँचना है, हम सब कुछ जानते हैं। हम आज ही यहाँ से चल देंगे और उसके लिए पहले से ही वहाँ मौजूद रहेंगे।" देवराज चौहान बोला।

"फिर तो हम कल रात तक डोगरा का सफाया कर सकते हैं।" खुदे कह उठा ।

"वो हमें नज़र आया वहाँ तो बचेगा नहीं।" जगमोहन गुर्रा उठा।

"मैं तो चाहता हूँ कि जल्दी से ये काम खत्म हो।" खुदे का स्वर गम्भीर था--- "एक बात बता देवराज चौहान। डोगरा को हमने खत्म कर दिया तो देवेन साठी का क्या होगा, जो तुम्हारी जान के पीछे है।"

“उसे समझाना पड़ेगा कि ये सब खेल डोगरा का था।" देवराज चौहान होंठ भींच कर बोला।

"वो ना समझा तो?"

"तो दूसरा रास्ता इस्तेमाल करना पड़ेगा।" देवराज चौहान का स्वर खतरनाक हो गया।

“उसे मारोगे?” खुदे की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

"वक्त आने पर ये करना पड़ा तो ऐसा भी किया जायेगा।"

"फिर तो मामला और भी लम्बा हो जायेगा।” खुदे गम्भीर दिखा।

देवराज चौहान ने खुदे को देखा और कह उठा ।

“खुदे। तूने बहुत साथ दिया है हमारा। किसी का किया मैं भूलता नहीं। तू हमसे ये आशा लगाये हुए है कि हम किसी बड़ी डकैती में तेरे को साथ लेंगे और तुझे मालामाल कर देंगे। ऐसा ही होगा। हम ऐसा ही करेंगे। तेरे लिए हम डकैती को अंजाम देंगे। उस डकैती में तू हमारे साथ रहेगा और तेरे को इतनी दौलत मिल जायेगी कि तू ऐश से जिन्दगी बिता सके।"

"शुक्रिया।" खुदे की आँखों में चमक आ गई--- "मैं ऐसा ही चाहता हूँ।"

"परन्तु तब तक हमारा जिन्दा रहना जरूरी है।" जगमोहन सख्त स्वर में बोला ।

“हाँ। ये जरूरी है।" खुदे ने गहरी सांस ली--- "हमें आगे के काम सतर्कता से करने होंगे।"

"अब हमने कोल्हापुर रवाना होना है।" देवराज चौहान बोला--- “किराये की गाड़ी लेने से बेहतर है किसी गाड़ी को उठा लें और।"

“पर गाड़ी हमारे पास है तो।" खुदे ने कहा।

"हमारी वो कार विलास डोगरा के लोगों द्वारा पहचानी जा सकती है। हमें इस तरह कोल्हापुर पहुँचना है कि डोगरा को हवा भी ना लगे।"

"ठीक है। मैं आधे घंटे में किसी बढ़िया गाड़ी को उठा लाता हूँ।" खुदे उठ खड़ा हुआ।

"गाड़ी लाकर बाहर से ही हमें फोन कर देना। हम बिल चुकाकर, वहीं पहुँच जायेंगे।"

खुदे बाहर निकल गया।

"साठी की निगाह हम पर जरूर होगी।" जगमोहन बोला।

"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो डोगरा को बताने वाला नहीं कि हम क्या कर रहे...।"

देवराज चौहान का फोन बज उठा ।

"हैलो।"

"ठीक हैं आप।” नगीना की आवाज कानों में पड़ी।

“हाँ।"

“एक ही रात में आपने जो किया उससे डोगरा जरूर हिल गया होगा।" उधर से नगीना का स्वर आया।

"डोगरा की कोई खबर मिली ?” देवराज चौहान ने पूछा।

"उसी के लिए फोन किया है। ये तो पता नहीं चल रहा कि वो इस वक्त कहां पर है। सरबत सिंह और बांके अभी-अभी ये खबर लाये हैं कि डोगरा कल कुछ दिन के लिये मुम्बई से बाहर जा रहा..।"

“मालूम है। पहले वो कोल्हापुर जायेगा फिर गोवा के कुछ शहरों में...।"

"नहीं, वो गुजरात जा रहा है।"

देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

"तुमसे किसने कहा कि वो गुजरात जा रहा है।"

“सरबत सिंह और बांके खबर लाये हैं।"

देवराज चौहान ने आंखें बंद कर ली। कुछ पल आंखें बंद ही रखी। वो प्रकाश दुलेरा से बातचीत याद करता रहा जो आज सुबह उसे मारने से पहले हुई थी। वो सोच रहा था कि क्या दुलेरा ने सच कहा था?

उसे महसूस हुआ उस वक्त दुलेरा सच ही कह रहा था।

"आप चुप क्यों हो गये?” नगीना की आवाज पुनः कानों में पड़ी।

"डोगरा गुजरात नहीं, कोल्हापुर और गोवा जा रहा है।" देवराज चौहान कह उठा--- "सरबत सिंह से मेरी बात कराओ।"

अगले ही पल सरबत सिंह की आवाज सुनाई दी।

“हाँ।"

"तुम्हें डोगरा के गुजरात जाने की खबर किसने दी?" देवराज चौहान ने पूछा।

"एक आदमी है जो डोगरा के लिए काम करता है। उसने बताया कि डोगरा की वैन कल गुजरात जा रही है।"

"वैन जा रही है या डोगरा भी जा रहा है।"

"डोगरा वैन के बिना सफर नहीं करता। वो भी तो वैन में रहेगा।" उधर से सरबत सिंह ने कहा।

“ये बात डोगरा भी जानता है कि लोग ऐसा सोचते हैं, तभी तो उसने ये खबर बाहर निकाली।"

"क्या मतलब?"

"तुम्हें गलत खबर दी गई है।"

"वो आदमी मेरे से गलत नहीं कह...।"

"मैंने ये नहीं कहा कि उस आदमी ने तुमसे गलत कहा। मेरा कहने का मतलब है कि उसने वो ही बताया, जो उसने सुना। इसका मतलब अपने सफर के लिए वो वैन का इस्तेमाल नहीं करेगा।"

"तुम्हारे पास पक्की खबर है कि वो कोल्हापुर जा रहा है।"

"हाँ।"

"कोल्हापुर कहाँ ?"

“नगीना को फोन दो। उसे सब समझा देता हूँ। उससे और भी बातें करनी है।"

फिर देवराज चौहान दस मिनट तक नगीना से बात करता रहा और फोन बंद कर दिया।

"कहीं सच में डोगरा गुजरात ना जा रहा हो।" जगमोहन कह उठा।

"तुम्हें क्या लगता है कि प्रकाश दुलेरा ने हमसे गलत कहा था?" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

चंद पल की खामोशी के बाद जगमोहन बोला।

“उस वक्त वो झूठ नहीं बोल रहा था।"

“तो विलास डोगरा कल कोल्हापुर और फिर गोवा जायेगा उसके बाद हवेरी, हवेरी के बाद चिकमंगलूर पहुंचेगा उसके प्रोग्राम की पूरी लिस्ट दुलेरा से हमें मिल चुकी है।" देवराज चौहान ने दाँत भींचकर कहा--- "एक बार वो नज़र आ जाये तो हम उसे बुरी मौत देंगे। कोल्हापुर में वो हमें जरूर मिल जायेगा।"

आधे घंटे बाद उन्हें हरीश खुदे का फोन आ गया था।

■■■

देवेन साठी अपने होटल के उसी हॉल की खिड़की पर खड़ा था, जिस जगह वो अक्सर पहले भी मौजूद रहा था। उस खुली खिड़की पर काला शीशा चढ़ा हुआ था और सामने, नीचे की सड़क पर दौड़ते वाहनों को देख रहा था। चेहरे पर सोच और गुस्से के भाव थे। सारा हॉल ए०सी० की ठण्डक से भरा हुआ था। आरु के बंगले से कुछ देर पहले ही यहाँ पहुँचा था। उसने महसूस किया था कि बंगले पर रहकर वह सारे कामों को ठीक से नहीं देख पा रहा था।

जाफर इस वक्त फील्ड में था और आदमियों को निर्देश देने के साथ-साथ उसके परिवार को ढूंढने के लिए भागदौड़ कर रहा था। उसके आदमियों के बीच उसके परिवार को लेकर, शांत सा हंगामा मचा हुआ था।

साठी को अपने भाई पूरबनाथ साठी की कमी खल रही थी। भाई के होते उसे किसी बात की चिन्ता नहीं करनी पड़ती थी। चिन्ता वाले सारे कामों को वो ठीक से संभाल लेता था। वो सिर्फ धंधे के कामों की देखभाल करता था। देवराज चौहान पर उसे बहुत गुस्सा आ रहा था कि उसने उसके भाई को क्यों मार दिया। मन ही मन वो सोच रहा था कि एक बार उसका परिवार मिल जाये, उसके बाद देवराज चौहान को बहुत बुरी मोत देगा। जगमोहन और खुदे भी मरेंगे। इस वक्त जो भी देवराज चौहान का साथ दे रहे हैं, उनमें से कोई भी जिन्दा नहीं बचेगा। ऐसी ही बातों में उलझे देवेन साठी ने सिग्रेट सुलगा ली ।

वो खिड़की से बाहर, सड़क पर आ-जा रहे ट्रैफिक पर नज़रें टिकाये सोचे जा रहा था।

तभी जेब में पड़ा मोबाइल बजा तो उसने फोन निकाल कर स्क्रीन पर आया नम्बर देखा। कुछ पलों तक स्क्रीन को देखता रहा फिर कालिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया।

"बोल गोकुल ।”

"साठी साहब मैं देवराज चौहान पर नज़र रख...।"

"मालूम है मुझे।" साठी सख्त स्वर में बोला--- “अब क्या किया उसने?"

"वो, जगमोहन और हरीश खुदे के साथ मुम्बई के बाहर जा रहा है।" उधर से गोकुल की आवाज आई।

"किस तरफ ?"

"अभी निकला ही है मुम्बई से कमाला की तरफ जा रहा है।"

"तेरे साथ कौन है?"

"शेखर ।”

"तुम दोनों उसके पीछे रहो। वो नज़रों से ओझल ना हो। उसकी हर हरकत की खबर चाहिये मुझे।”

"वो नज़रों से ओझल नहीं हो सकता। मैंने शिंदे और घंटा को एक कार में उनके पीछे देखा है।"

"मुझे खबर देते रहो।" कहकर साठी ने फोन बंद किया और नम्बर मिलाकर फोन कान से लगाया।

देर तक कोशिश करने पर नम्बर लगा। बेल हुई फिर घंटा की आवाज कानों में पड़ी।

"घंटे।" साठी ने कहा--- "शिंदे के साथ है तू?"

“हाँ साठी साहब। हम देवराज चौहान के पीछे हैं। वो मुम्बई से बाहर कमाला की तरफ बढ़ रहा है।"

"गोकुल और शेखर भी उनके पीछे है।"

"जानता हूँ। हम उन्हें देख चुके हैं।"

"उनके पीछे रहो। नज़र रखो और रिपोर्ट देते रहो।"

"जी। शिंदे का कहना है कि हो सकता वे आपके डर से मुम्बई छोड़कर भाग रहे हों।"

साठी होंठ भींचे दो पल चुप रहा फिर बोला ।

“वो भागेंगे नहीं। वो जानते हैं कि मेरी नज़रों से बचकर नहीं भाग सकते। तुम लोगों की नज़र उन पर से हटनी नहीं चाहिये।" देवेन साठी ने कहा और फोन बंद करके खिड़की से हटा और हॉल कमरे में टहलने लगा फिर जाफर को फोन किया ।

"जी साठी साहब?"

"मेरे परिवार का कुछ पता चला?"

"अभी नहीं, हम...।"

"वक्त कम है जाफर। मैं ज्यादा देर इन्तजार नहीं कर सकता। उन्हें ढूंढो । सारे काम रुके पड़े हैं। जब तक मैं देवराज चौहान और उसके साथ के लोगों को बुरी मौत नहीं दे देता, तब तक अपने कामों की तरफ मैं ध्यान नहीं दे पाऊँगा। रोज का मोटा नुकसान हो रहा है। तुम...।"

"हम सब लोग जी-जान से पूरी मेहनत कर रहे हैं आपके परिवार को ढूंढने के लिए।"

"तेजी दिखा जाफर।" साठी के दाँत भिंच गये--- "मेरे से सब्र नहीं हो रहा। कहकर साठी ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर गुस्सा नाच रहा था। अपने परिवार की वजह से वो खुद को बेबस महसूस कर रहा था।

साठी कुर्सी पर आ बैठा। आँखें बंद कर ली।

एकाएक हाथ में दबा मोबाइल बज उठा। उसने आँखें खोली बात की।

"हैलो।"

"साठी।” नगीना की आवाज कानों में पड़ी--- "मैं तुम्हारे होटल में नीचे रिसैप्शन पर हूँ। क्या तुम होटल में नहीं हो?"

"हूँ।" साठी के होंठों से निकला।

“रिसेप्शनिस्ट मुझसे कह रहा है कि तुम भीतर नहीं हो।"

“वो ऐसा ही कहेगा। तुम्हें आने से पहले फोन कर देना चाहिये...।"

"अपनी पत्नी और बच्चों से बात नहीं करना चाहते ?"

"रिसैप्शन पर फोन दो।" अगले ही पल रिसैप्शिनिस्ट की आवाज कानों में पड़ी।

"हैलो।"

“इस मैडम को मुझ तक पहुँचा दो।" साठी ने कहा।

"यस सर।"

देवेन साठी ने नगीना को ऊपर से नीचे तक देखा।

नगीना के पाँवों में स्पोर्टस शू, जीन की पैंट और टॉप पहन रखा था। बाल पीछे को बंधे थे।

"मैं सोच भी नहीं सकता था कि देवराज चौहान की तुम जैसी कोई पत्नी हो सकती है।" साठी का स्वर शांत था।

"जब तुम्हारी पत्नी हो सकती है तो देवराज चौहान शादी क्यों नहीं कर सकता।"

"तुम खतरनाक हो।"

"इस बात को तुमने कैसे जाना?"

साठी कुछ पल उसे देखता रहा फिर बोला।

"उस दिन तुम जिस ढंग से मेरे सामने आई, जैसी बातें की, उससे मैंने ये बात महसूस कर ली थी। मेरे सामने किसी औरत का खड़ा हो पाना भी आसान नहीं और तुमने बहुत आराम से मेरे से बात की।"

"अच्छी बात तो ये रही कि उस दिन सब ठीक रहा। बात बढ़ी नहीं।” नगीना बोली।

"बात बढ़ती तो तुम लोग बचते नहीं। मेरे आदमी बहुत थे वहाँ। हर कोई हथियार बंद ।”

“और तुम उनकी लाशें गिनने के लिए जिन्दा नहीं रहते।" नगीना का स्वर ठंडा था।

देवेन साठी ने होंठ भींचकर नगीना की आँखों में झांका।

“तुमने अपने परिवार की खैरियत नहीं पूछी।” नगीना आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठी।

"मैं जानता हूँ तुमने उन्हें हिफाजत से रखा होगा और उन्हें कोई तकलीफ नहीं होने दी होगी।"

"सही कहा।"

"वो कहाँ हैं?"

"तुम वहाँ नहीं पहुंच सकते। तुम्हारे आदमी भटकते ही रह जायेंगे।” नगीना ने शांत स्वर में कहा।

"मैं उन्हें ढूंढ निकालूंगा।" साठी सख्त स्वर में बोला ।

"ये तो अच्छी बात है।"

"देवराज चौहान विलास डोगरा के पीछे क्यों पड़ा है?"

“तुम्हें पता है सब कुछ।"

"कठपुतली वाली बात?”

“हाँ।"

"वो बकवास है। मैं नहीं मानता।" साठी तीखे स्वर में कह उठा ।

"जब विलास डोगरा खुद कहेगा तो मानोगे?” नगीना ने साठी के चेहरे पर नज़रें टिका दी।

देवेन साठी, नगीना को देखता रहा।

“जवाब दो। तब मानोगे ?"

“हाँ।" देवेन साठी ने कठिनता से कहा।

नगीना ने हौले से सिर हिला कर कहा।

“इस बात की पूरी कोशिश की जा रही है कि विलास डोगरा से तुम्हारा सामना कराया जाये।"

"मैं डोगरा से मिलने की जरूरत नहीं समझता।"

"लेकिन मैं समझती हूँ। तुम्हें मेरी हर जायज बात माननी होगी, क्योंकि तुम्हारा परिवार मेरे कब्जे में है। मेरे लिए नहीं तो अपने परिवार की खातिर माननी होगी।” नगीना ने कठोर स्वर में कहा।

"मैं सच में बेबस हूँ, वरना अभी तुम्हारे टुकड़े करवा देता।”

“जो काम नहीं कर सकते, उसे सोचो भी मत। मुझे कोई तकलीफ हुई तो तुम्हारा परिवार खत्म कर दिया जायेगा।"

देवेन साठी ने दाँत भींच कर मुँह घुमा लिया। फिर फौरन ही पलट कर बोला।

"विलास डोगरा मुम्बई में है। ऐसे में देवराज चौहान क्यों मुम्बई से बाहर जा रहा है?"

नगीना, देवेन साठी को देखने लगी फिर कह उठी ।

“मैं जानती हूँ, देवराज चौहान भी जानता है कि तुम्हारी नज़र उस पर है। परन्तु इससे देवराज चौहान को कोई फर्क नहीं पड़ता। डोगरा मुम्बई में कहाँ है, ये पता नहीं चल रहा, परन्तु ये पता है कि कल वो कोल्हापुर जाने वाला है।"

"कल ?" साठी के माथे पर बल पड़े।

"कोल्हापुर से गोवा जायेगा। गोवा में उसे कई जगहों पर जाना है।" नगीना शांत स्वर में कह रही थी--- "परन्तु देवराज चौहान का इरादा उसे कोल्हापुर में ही घेरकर मार देने का है।"

"डोगरा के प्रोग्राम का पता कैसे चला?"

"चल गया। परन्तु हम चाहते हैं कि डोगरा मरने से पहले तुमसे मुलाकात कर लें।"

"मुझसे?"

“हाँ। ताकि तुम उसके मुँह से सुन सको कि तुम्हारे भाई का असली हत्यारा वो है ।"

"बकवास ।" साठी के दाँत भिंच गये--- "देवराज चौहान ने मेरे भाई को गोली मारी तो डोगरा कैसे हत्यारा हो गया ?"

"ये बात तुम्हें डोगरा बतायेगा ।"

"वो गलत बतायेगा। उसके सिर पर रिवॉल्वर रखकर, उसके मुँह से कुछ भी निकलवाया जा सकता है।" साठी ने कहा ।

"उस वक्त, अगर तुम्हें लगे कि उसकी बात पर यकीन करना ठीक नहीं तो मत यकीन करना। परन्तु हम जो कोशिश कर रहे हैं उसमें तुम्हें साथ देना होगा साठी। ये तो हमें भी नहीं पता कि तुम्हारी मुलाकात के वक्त डोगरा किन हालातों में होगा। हम एक कोशिश लेकर चल रहे हैं तुम्हारे सामने किसी तरह हकीकत लाई जा सके।"

"मैं तुम्हारी बातों से सहमत नहीं हूँ।”

"तुम्हें सहमत होना पड़ेगा।” नगीना सख्त स्वर में कह उठी--- "लगता है तुम्हें अपने परिवार की चिन्ता नहीं है।"

साठी के दाँत भिंच गये। वो गुर्रा उठा।

"मुझे धमकी मत दो।"

"मैं तुम्हें याद दिला रही हूँ कि तुम्हारा परिवार मेरे कब्जे में है। इसलिये मेरी जायज बात माननी होगी।” नगीना शब्दों को चबाती कह उठी--- "तुम क्या समझते हो कि देवराज चौहान तुमसे डरता है या तुम ये समझते हो कि तुम आसानी से देवराज चौहान को मार दोगे। ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला। तुम्हें हमारा कड़ा मुकाबला करना होगा, जिसमें तुम भी मर सकते हो और हमारी भी जानें जा सकती हैं। ऐसा कुछ ना हो, इसलिए तुम्हारे भाई की मौत की सच्चाई को तुम्हारे सामने लाना जरूरी है। ये मत सोचो कि तुम्हारे भाई को गोली किसने मारी। ये सोचो कि उस वक्त किसका दिमाग काम कर रहा था। कठपुतली के नशे में देवराज चौहान और जगमोहन के दिमाग खाली हो चुके थे। उन्हें कुछ भी होश नहीं था। उनके खाली दिमागों में विलास डोगरा का हुक्म चक्कर लगा रहा था कि मोना चौधरी को खत्म करना है, पूरबनाथ साठी को खत्म करना है। ये बात मोना चौधरी की समझ में आ गई कि देवराज चौहान तब अपने होश में नहीं था । वो पीछे हट गई। उसे ये बात इसलिये समझ में आई कि उसने समझने की कोशिश की। अब्दुल्ला से पारसनाथ ने बात की, जिसने विलास डोगरा को कठपुतली बनाकर दी थी। तुम्हारी समझ में ये बात इसलिये नहीं आई तुमने समझने की कोशिश ही नहीं...।"

"मेरे भाई को देवराज चौहान ने गोली मारी। वो ही मेरे भाई का हत्यारा है।" साठी ने दाँत भींचकर कहा।

नगीना साठी को घूरने लगी।

"मेरी पूरी कोशिश होगी कि तुम्हें समझा सकूं। नहीं तो बाद में क्या होगा, वो मैंने तुम्हें बता दिया है साठी।” नगीना का स्वर सख्त था।

"तुम लोग मेरी ताकत का मुकाबला नहीं कर सकते।”

“विलास डोगरा भी ऐसा ही समझता है। आने वाले वक्त में उसका अंजाम देख लेना। वक्त आने पर हम चंद लोग किसी फौज से कम नहीं है। जो भी हो, नुकसान तो दोनों तरफ का होता है टकराव की स्थिति में।"

"मेरे परिवार को कब तक अपने पास रखने का इरादा है?" साठी ने तीखे स्वर में पूछा।

"विलास डोगरा की मौत के साथ ही तुम्हारा परिवार छोड़ दिया जायेगा। ये सब हमने तुम्हें पीछे रखने के लिए किया है पहले देवराज चौहान डोगरा से निपट लें। उसके बाद तुमसे बात की जायेगी। इस दौरान तुम्हें समझाने की कोशिश भी की जायेगी कि तुम्हारे भाई का असली हत्यारा देवराज चौहान नहीं विलास डोगरा है। तुमने कल सुबह मेरे साथ कोल्हापुर चलना है साठी। मेरे साथ दो लोग होंगे। तुम अपने साथ किसी को रखना चाहो तो बेशक रख लेना। वहाँ डोगरा से तुम्हारी बात कराने की पूरी कोशिश कराई जायेगी।"

देवेन साठी के चेहरे पर सख्ती ठहर चुकी थी।

“मेरे परिवार से, आरु और बच्चों से मेरी बात कराओ।" साठी उखड़े स्वर में बोला ।

नगीना ने फोन निकाला और सोहनलाल का नम्बर मिलाने लगी।

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