अगले दिन सुबह होटल से निकलने से पहले सुनील ने वीणा के फ्लैट पर फोन किया ।
“खुराना साहब की कोई खबर मिली ?” - वीणा के लाइन पर आते ही उसने पूछा ।
“नहीं ।” - वीणा बेहद चिन्तित स्वर में बोली - “मैं सुबह सवेरे उनके फ्लैट पर होकर आई हूं । वे अभी तक वापिस नहीं लौटे हैं और मैं उन तमाम जगहों पर दुबारा फोन कर चुकी हूं, जहां उनके होने की सम्भावना हो सकती थी । सुनील, मैं तो पुलिस को फोन करने लगी हूं।”
“वे आफिस कितने बजे आते हैं ?”
“दस बजे ।”
“कभी देर सवेर भी हो जाती है ?”
“हो जाती है लेकिन आज नहीं होना चाहिये । आज ठीक सवा दस बजे उनकी इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट के चेयरमैन से अप्वायन्टमैंट है ।”
“तो तुम ऐसा करो । सवा दस बजे तम इन्तजार कर लो अगर सवा दस बजे तक वे अपने आफिस में न दिखाई दें तो पुलिस को फोन कर देना ।”
“ठीक है ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
उसने गैराज में से कार निकाली और चेथम रोड की ओर उड़ चला ।
ठीक आठ बजे वह अनीता के फ्लैट की कालबैल बजा रहा था ।
अनीता तैयार थी ।
दोनों कार में आ बैठे । सुनील ने कार एयरपोर्ट की दिशा में ड्राइव करनी आरम्भ कर दी ।
“अनीता” - सुनील बड़ी सावधानी से शब्द चयन करता हुआ बोला - “कल शाम गौरीशंकर कहां था ?”
“मुझे क्या मालूम ?” - अनीता बोली ।
“वह तुम्हारे फ्लैट पर तुम्हारे साथ नहीं था ?”
“आठ बजे तक था । उसके बाद चला गया ।”
“कहां ?”
“मालूम नहीं ।”
“वापिस लौटा था ?”
“नहीं ।”
“उसे मालूम था कि आज रविकुमार आ रहा है ?”
“हां ।”
“तुम भी तो अपने फ्लैट पर नहीं थीं !”
“कौन कहता है ?”
“मैंने कई बार फोन किया था ।”
“तुम्हें गलत नम्बर मिल रहा होगा । मैं सवा ग्यारह बजे तक अपने फ्लैट पर ही थी ।”
“अच्छा ! हो सकता है तुम्हारे फोन में कोई खराबी हो गई हो ।”
“हो सकता है ।”
“अनीता” - सुनील कुछ क्षण रुक कर बोला - “अगर बुरा न मानो तो एक बात कहने की इजाजत चाहता हूं ।”
“क्या ?” - अनीता सशंक स्वर से बोली ।
“तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो ।”
अनीता ने घूरकर उसकी ओर देखा लेकिन उसकी सूरत से साफ लग रहा था कि वह मन ही मन खुश हो रही थी ।
“क्या अच्छी चीज को अच्छी कहना गुनाह है ?”
“नहीं । लेकिन ऐसी कोई बात रविकुमार के सामने मत कहना । वह तुम्हारा कीमा बना देगा ।”
“ऐसा नहीं हो सकता कि तुम रविकुमार को अपने मन से निकाल दो ?”
“क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो । मेरी उससे शादी होने वाली है ।”
“हो तो नहीं गई है ।”
“और फिर तुम्हारी हैसियत क्या है ?”
“मेरी मौजूदा हालत पर मत ना जाओ । मैं तुम्होर एक इशारे पर सारे संसार की दौलत तुम्हारे कदमों में लाकर डाल सकता हूं ।”
“रविकुमार भी ऐसा कर सकता है ।”
“लेकिन मैं...”
“छोड़ो । कोई और बात करो । जो तुम सोच रहे हो वह मुमकिन नहीं ।”
सुनील ने आहत नेत्रों से अनीता की ओर देखा और फिर सामने सड़क की ओर देखने लगा ।
अनीता कई क्षण सुनील की ओर देखती रही और फिर मीठे स्वर में बोली - “सुनील तुम बहुत अच्छे लड़के हो । तुम्हें इस बात को समझना चाहिये कि तुम्हारा मेरा कोई सम्बन्ध मुमकिन नहीं ।”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
वे एयरपोर्ट पहुंचे ।
सुनील ने पहले अनीता को एयरपोर्ट की मारकी में उतरा और फिर कार को पार्किंग में खड़ा कर आया ।
वे वेटिंग हाल में पहुंच गये ।
ठीक समय पर प्लेन एयरपोर्ट की इमारत को रन-वे से अलग करने वाली रेलिंग के पास आ खड़े हुए ।
प्लेन को सीढी लगाई गई ।
मुसाफिर उतरने लगे और एयरपोर्ट की इमारत की और बढने लगे ।
“वह रविकुमार है ।” - अनीता अन्य मुसाफिरों से अलग-थलग हुये एक नौजवान को संकेत करती हुई बोली ।
सुनील चुप रहा ।
अनीता ने रविकुमार की दिशा में हाथ हिलाया ।
तब तक रविकुमार ने भी अनीता को देख लिया था । उसने भी हाथ हिलाया ।
कुछ ही क्षणों में रविकुमार उसके पास पहुंच गया ।
“हल्लो” - रविकुमार ने अपनी एक बांह अनीता के गिर्द लपेटकर उसे अपने समीप खींच लिया - “कैसी है मेरी बुलबुल ।”
“चहक रही है ।” - अनीता प्रसन्न स्वर में बोली ।
तब शायद पहली बार रविकुमार की निगाह सुनील पर पड़ी ।
“यह कौन है ?” - वह तीव्र स्वर से बोला ।
“रवि” - अनीता जल्दी से बोली - यह... यह सुनील है । यह गौरीशंकर का दोस्त है । मैं तुम्हें इसके बारे में फ्लैट पर पहुंचकर बताऊंगी । ...और सुनील, यह रवि है ।”
“हल्लो ।” - सुनील बोला ।
“हल्लो ।” - रविकुमार उसे सिर से पैर तक देखता हुआ बोला । दोनों में से किसी ने भी हाथ मिलाने का उपक्रम नहीं किया ।
“गौरीशंकर कहां है ?” - रविकुमार बोला ।
“आता ही होगा” - अनीता बोली - “अभी तक तो उसे यहां पहुंच जाना चाहिये था ।”
“तुम कार लाई हो ?”
“कार तो गौरीशंकर के पास है ।”
“ओह हैल, अब टैक्सी लेनी पड़गी ।”
“जरूरत नहीं । सुनील के पास कार है ।”
“अच्छा !” - रविकुमार बोला । उसने एक बार फिर से सुनील की ओर देखा ।
“सुनील” - अनीता बोली - “तुम ऐसा करो । तुम कार को पार्किंग से निकालकर मारकी में लाओ । तब तक मैं और रवि सामान लेकर वहां पहुंचते हैं ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और लम्बे डग भरता हुआ बाहर की ओर बढ गया ।
पार्किंग में आकर सुनील अपनी कार में बैठ गया । उसने अपना लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
कार मारकी में ले जाने की कोई जल्दी नहीं थी । उसे मालूम था कि सामान रविकुमार के अधिकार में आने में पन्द्रह-बीस मिनट लग जाने थे ।
तीसरे सिगरेट की शुरूआत में उसने रविकुमार और अनीता को मारकी में देखा । उनके समीप हथठेले पर समान लिये एक आदमी खड़ा था । समान के नाम पर दो सूटकेस और एक बैग था ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और कार स्टार्ट की । उसने कार को मारकी में उन लोगों के सामने ला खड़ा किया ।
“सामान डिक्की में रखवाना है ।” - अनीता बोली - “चाबी दो ।”
“ताला खुला है ।” - सुनील बोला ।
“ताला खुला है ।” - अनीता ने हथठेले वाले को कहा ।
हथठेले वाले ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया । वह हथठेले को कार के पृष्ट भाग के समीप ले आया । उसने डिक्की का ढक्कन उठाया ।
एक गगनभेदी चीख से वातावरण गूंज उठा ।
सुनील हड़बड़ाकर घूमा ।
हथठेले वाला डिक्की का ढक्कन उठा चुका था और फटी-फटी आंखों से भीतर देख रहा था । एकाएक वह वापिस घूमा और यूं एयरपोर्ट के भीतर की ओर भागा जैसे उसने भूत देख लिया हो ।
“क्या हुआ ?” - अनीता हैरानी से बोली ।
सुनील जल्दी से कार से बाहर निकल आया । वह लपककर कार के पृष्ठ भाग में पहुंचा । उसने डिक्की के भीतर झांका और फिर उसके नेत्र कोंध गये । वह सकपका कर एक कदम पीछे हट गया ।
उसकी कार की डिक्की में रोशनलाल खुराना की लाश पड़ी थी ।
और उसने रोशनलाल खुराना को कहां-कहां नहीं तलाश किया था जबकि शायद वह पिछली रात से ही उसकी लाश अपनी डिक्की में लिये फिर रहा था ।
तभी अनीता की चीख उसके कानों में पड़ी ।
वातावरण में पुलिस की सीटी की आवाज गूंज गई ।
एयरपोर्ट पर जैसे कोहराम मच गया ।
सुनील की कार के इर्द-गिर्द मेला लग गया ।
तभी भीड़ को चीरते हुए एक सब-इन्सपेक्टर और दो सिपाही कार के समीप पहुंचे ।
“पीछे हटिये !” - एक सिपाही तमाशाइयों को पीछे धकेलता हुआ जोर-जोर से चिल्लाने लगा - “पीछे हटिये ।”
लोग थोड़ा बहुत अपने स्थानों से सरके ।
“गाड़ी किसकी है ?” - सब-इन्सपेक्टर ने पूछा ।
“मेरी है ।” - सुनील बोला ।
कुछ क्षण बाद वहां और पुलिस वाले पहुंच गये ।
सब-इन्सपेक्टर उसे एयरपोर्ट के एक आफिस में ले आया ।
“तुम्हारा नाम ?” - सब-इन्सपेक्टर ने पूछा ।
“सुनील” - सुनील बोला - “सुनील कुमार चक्रवर्ती ।”
“क्या काम करते हो ?”
“ब्लास्ट का स्पैशल कारस्पान्डेन्ट हूं । यह रहा मेरा प्रैस कार्ड ।”
सब-इन्सपेक्टर ने प्रैस कार्ड ले लिया । वह तनिक प्रभावित दिखाई देने लगा था ।
“ड्राइविंग लाइसेंस ?”
सुनील ने ड्राइविंग लाइसेन्स निकालकर मेज पर रख दिया ।
“हूं ।” - सब-इन्सपेक्टर ने ड्राइविंग लाइसेन्स उठा लिया - “कार तुम्हारी है ?”
“कार मेरे एक दोस्त की है लेकिन इस वक्त मेरे अधिकार में है ।”
“यहां क्या करने आये थे ?”
“किसी को रिसीव करने आया था ।”
“उन्हें जो अभी तुम्हारे साथ थे ?”
“लड़की मेरे साथ आई थी । उसका नाम अनीता है । हम दोनों रविकुमार नाम के उस युवक को रिसीव करने आये थे जो लड़की के साथ है ।”
“लाश किसकी है ?”
“मृत का नाम रोशनलाल खुराना है । वह एक प्रॉपर्टी डीलर है ।”
“तुम उसे जानते हो ?”
“जानता हूं इसीलिये इतना कुछ बता रहा हूं ।”
“आखिर बार उससे कब मिले थे ?”
“कल दिन में ।”
“कहां ?”
“उसके आफिस में ।”
“उसकी लाश तुम्हारी कार में कैसे पहुंच गई ?”
“यह तो मेरी समझ में नहीं आ रहा ।”
“तुमने नहीं रखी ?”
“डोंट टाक नानसेंस, आफिसर” - सुनील मुंह बिगाड़कर बोला - “अगर लाश मैंने डिक्की में रखी होती तो क्या मैं उसे साथ लिये-लिये फिर रहा होता ! तो क्या मैं हथठेले वाले को डिक्की का ढक्कन उठाने देता ।”
सब-इन्सपेक्टर चुप हो गया ।
“और तुम्हारी जानकारी के लिये मैं रोशनलाल खुराना की सैकेट्री वीणा के साथ कल रात भर खुराना को तलाश करता रहा हूं ।”
“क्यों ?”
सुनील ने उसे सारी दास्तान सुना दी कि कैसे वह वीणा के साथ रात को खुराना के आफिस में आ गया था तो उसे आफिस को बड़ी तहस-नहस हालत में पाया था । वीणा खुराना के लिए चिन्तित हो उठी थी और वे रात भर खुराना को उन तमाम ठिकानों पर तलाश करते फिरते थे जहां कि उसके होने की सम्भावना हो सकती थी ।
“जबकि उस दौर में भी उसकी लाश तुम्हारी डिक्की में बन्द थी ?”
“मुमकिन है ।”
“खुराना से तुम्हारा क्या वास्ता था ?”
“कुछ भी नहीं । मैं कल उससे पहली बार मिला था ।”
“किस सिलसिले में ?”
“चौदह नवम्बर को लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रासिंग के पास एक एक्सीडेंट में खुराना एक पार्टी थी । मैंने एक्सीडेंट देखा था । खुराना यह जानना चाहता था कि एक्सीडेंट किसकी गलती से हुआ था ।”
“तुम्हारी यह बातचीत खुराना से दिन में हुई ।”
“हां ।”
“तो तुम रात को उसके आफिस में क्या करने गये थे !”
“खुराना ने मुझे फोन करके बुलाया था । बाद में मैंने उसे फोन किया तो कोई जवाब नहीं मिला । मैं तनिक आशंकित हो उठा इसीलिये मैं खुराना की सेक्रट्री वीणा के साथ उसके दफ्तर में गया । वहां मैंने जो देखा, मैं पहले ही बता चुका हूं ।”
“खुराना ने तुम्हें दोबारा क्यों बुलाया ?”
“मुझे क्या मालूम ? मुझे तो उसका सन्देश मिला था । मेरी उससे बात तो हुई ही नहीं थी ।”
“जिस एक्सीडेंट का तुमने जिक्र किया था, उसमें दूसरी पार्टी कौन थी ।”
“रविकुमार । वही नौजवान जिसे मैं अनीता के साथ यहां रिसीव करने आया था !”
“हूं । मैं अभी आया । यहां से हिलने की कोशिश मत करना ।”
सब-इन्सपेक्टर बगल के कमरे में चला गया । थोड़ी देर बाद टेलीफोन का डायल घूमने की आवाज आई । फिर सुनील को सब-इन्सपेक्टर के बोलने की आवाज आती रही लेकिन यह पता नहीं लग रहा था कि वह क्या कह रहा था ।
फिर टेलीफोन रिसीवर पर रखने की आवाज आई ।
सब-इन्सपेक्टर वापिस सुनील के कमरे में आ खड़ा हुआ ।
“मुझे तुम्हारी उंगलियों के निशान हैडक्वार्टर भेजने का आदेश हुआ है । तुम्हें उंगलियों के निशान देने में कोई ऐतराज है ?”
“अगर मैं ऐतराज करूंगा तो क्या होगा ?”
“तो पूरी औपचारिकता निभाते हुए तुम्हें हत्या के सन्देह में गिरफ्तार कर लिया जायेगा और फिर हवालात में तुम्हारी उंगलियों के निशान लिये जायेंगे ।”
“मुझे उंगलियों के निशान देने में कोई एतराज नहीं ।”
“थैंक्यू ।”
सब-इन्सपेक्टर ने एक सिपाही को बुलाया । उसके निर्देश पर उसने बारी-बारी सुनील की सारी उंगलियां स्टैम्प पैड की स्याही से गीली की और निशान कागज पर उतार लिये ।
“ये निशान ।” - सब-इन्सपेक्टर बोला - “हैडक्वार्टर में इन्सपेक्टर प्रभूदयाल के पास ले जाओ और इस नौजवान के साथ जो लड़की और एक अन्य नौजवान था उसे यहां भेज दो ।”
प्रभूदयाल का नाम सुनते ही सुनील का दिल धड़क गया । प्रभूदयाल इस तस्वीर में कहां फिट होता था ।
सिपाही बाहर चला गया ।
थोड़ी देर बाद कमरे में अनीता और रविकुमार प्रविष्ट हुए ।
“इन्सपेक्टर साहब ।” - अनीता कमरे में आते ही बोली - “यह बेचारा गरीब आदमी है । कोई इसे खामखाह फंसाने की कोशिश कर रहा है । इसकी कोई गलती नहीं है ।”
“कौन गरीब आदमी है ?” - सब-इन्सपेक्टर बोला - “किसकी कोई गलती नहीं है ?”
“सुनील की ।”
“यह गरीब आदमी है ?”
“अगर आपका इशारा उस इम्पाला कार की ओर है जिसमें लाश मिली है तो इन्स्पेक्टर साहब वह कार इसकी नहीं है । वह कार इसके एक स्मगलर दोस्त की है जो कभी इसके साथ जेल में था ।”
“तुमने कभी जेल काटी है ?” - सब-इन्सपेक्टर ने सुनील से पूछा ।
सुनील निगाहें चुराने लगा ।
“मैडम इसे आप क्या समझ रही हैं ?”
“यह कोई सजायाफ्ता मुजरिम है ।” - अनीता बोली - “जो अब सुधरने की कोशिश कर रहा है ।”
“यह तुम्हें किसने बताया है ?”
“इसने नहीं बताया लेकिन इसकी बातों से मैंने अन्दाजा लगाया है ।”
सब-इन्स्पेक्टर ने एक गहरी सांस ली । उसके एक बार घूर कर सुनील को देखा और फिर अनीता की ओर आकर्षित हुआ - “मेम साहब आपकी जानकारी के लिये यह आदमी कोई सजायाफ्ता मजुरिम नहीं बल्कि राजनगर के प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘ब्लास्ट’ का विशेष प्रतिनिधि है । यह देखिये इसका प्रेस कार्ड । यह देखिये इसका ड्राइविंग लाइसेन्स ।”
अनीता ने दोनों चीजें उठायी । वह कभी प्रेस कार्ड पर लगी सुनील की तस्वीर को देखती तो कभी सुनील को । फिर धीरे से उसने प्रेस कार्ड और ड्राइविंग लाइसेन्स मेज पर रख दिये उसका निचला जबड़ा लटक गया और नेत्र फैल गये ।
“ओह नो !” - वह अविश्वासपूर्ण स्वर में बोली ।
सब-इन्स्पेक्टर मुस्कराया ।
रविकुमार खा जाने वाली निगाहों से अनीता को देख रहा था ।
“मिस्टर रविकुमार !” - सब-इन्स्पेक्टर बोला - “सुनील अपने आपको आपके चौदह नवम्बर को हुए एक्सीडेन्ट का चश्मदीद गवाह बताता है ।”
“होगा ।” - रविकुमार लापरवाही से बोला ।
“इसके कथनानुसार एक्सीडेन्ट खुराना की गलती से हुआ था ।”
“यह तो बड़ी खुशी की बात है । इससे मेरा केस मजबूत हो जाता है ।”
“आपका केस ?”
“मेरी गरदन को चोट आई है और मैंने इसके लिये पचास हजार रुपये हरजाने का दावा किया हुआ है ।”
“अब आप दरवाजा किससे लेंगे ? खुराना तो मर गया ।”
“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । मैंने तो दावा उस बीमा कम्पनी पर किया है जिसने खुराना का बीमा किया हुआ था ।”
“ऐसा दावा हो जाता है ?”
“अगर बीमा कराने वाले ने ऐसा कोई इन्तजाम किया हुआ है तो ऐसा दावा हो जाता है और खुराना ने ऐसा इन्तजाम किया हुआ था ।”
उसी क्षण बगल के कमरे में टेलीफोन की घन्टी बजी । सब-इन्स्पेक्टर उठकर बगल के कमरे में चला गया ।
थोड़ी देर बाद वह वापिस लौटा और बोला - “हैडक्वार्टर से एक पुलिस अफसर यहां आ रहा है । मुझे आदेश हुआ है कि आने तक मैं आप लोगों से कोई और सवाल न पूछूं ।”
“हमें यहां कब तक इन्तजार करना पड़ेगा ।” - रविकुमार झुंझलाये स्वर में बोला ।
“कह नहीं सकता । एक घन्टा । दो घन्टे । या शायद तीन घन्टे । या शायद इससे भी ज्यादा ।”
“और मैंने अभी ब्रेकफास्ट तक नहीं किया है ।”
“उसका इन्तजाम मैं यहीं करा देता हूं । मैं फोन कर देता हूं । अभी एयरपोर्ट के रेस्टोरेन्ट से एक वेटर यहां आ जायेगा ।”
सब-इन्स्पेक्टर फिर बगल कमरे में चला गया ।
“एयरपोर्ट पर मुझे लेने के लिये सारे राजनगर में इसके अलावा तुम्हें कोई दूसरा आदमी नहीं मिला था ।” - रविकुमार दांत पीसते हुए अनीता से बोला ।
अनीता रुआंसी-सी कभी रविकुमार का और कभी सुनील का मुंह देखने लगी ।
“बैठे बिठाये खामखाह झमेले में फंसा दिया इस लड़की ने !”
“अब मुझे क्या मालूम था कि...”
“ओह शटअप ।”
अनीता सहम कर चुप हो गई ।
“और वह गौरीशंकर का बच्चा कहां है ?”
अनीता चुप रही ।
“मिस्टर रविकुमार ।” - सुनील बोला ।
रविकुमार सुनील की ओर घूमा ।
“तुम्हारी गरदन से तो ऐसा नहीं लगता जैसे उसे किसी तरह की चोट पहुंची हो और खासतौर से पचास हजार रुपये को चोट पहुंची हो ।”
“अपना थोबड़ा बन्द रखो ।” - रविकुमार गला फाड़कर चिल्लाया ।
“जिसकी गरदन को चोट पहुंची हो उसे इतनी जोर से नहीं चिल्लाना चाहिये ।”
रविकुमार एक झटके से अपनी कुर्सी से उठा । वह आंखों में खून लिये सुनील की ओर बढा ।
सुनील शान्त था ।
अनीता के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं ।
उसी क्षण सब-इन्स्पेक्टर फिर कमरे में प्रविष्ट हुआ । एक ही निगाह में वह सारी स्थिति भांप गया ।
“दोस्तों ।” - वह दोनों हाथ उठाकर बोला - “छोटी-मोटी बात पर आपे से बाहर होना अनपढ और वहशी लोगों का काम होता है ।”
रविकुमार अपने स्थान पर ठिठक गया ।
“रेस्टोरेन्ट का वेटर आ रहा है !”
रविकुमार धड़ाम से वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ गया ।
थोड़ी देर बाद वेटर आया ।
फिर ब्रेकफास्ट आया ।
और अन्त में लगभग डेढ घंटे के इन्तजार के बाद इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल आया ।
“खुराना की सैक्रेट्री वीणा को ।” - प्रभूदयाल सुनील से बोला - “तुम्हारी राय कोई खास पसन्द नहीं आई थी कि वह सवा दस बजे तक दफ्तर में खुराना का इन्तजार करने के बाद पुलिस को फोन करे । उसने आठ बजे ही फोन कर दिया था । लड़की समझदार निकली । तुम्हारे कहे मुताबिक अगर वह सवा दस बजे फोन करती तो हमें घटनास्थल अपनी वास्तविक स्थिति में न मिलता क्योंकि खुराना के दफ्तर के कर्मचारी सवा नौ बजे से ही आने शुरू हो जाते हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
“आप इन्हें जानते है ?” - सब-इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
“इन्हें कौन नहीं जानता साहब ।” - प्रभूदयाल बोला - “राजनगर में अपनी तरह की इकलौती चीज है । दूर-दूर से लोग इन्हें देखने आते हैं ।”
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“जरा आप लोग मेरे साथ आइये ।” - प्रभूदयाल अनीता और रविकुमार से बोला - “पहले मैं आप लोगों से बात करना चाहता हूं ।”
और वे तीनों बाहर निकल गये ।
कमरे में सुनील और सब-इन्स्पेक्टर रह गये ।
सब-इन्स्पेक्टर विचित्र नेत्रों से सुनील को देख रहा था ।
सुनील चुपचाप सिगरेट पीता रहा ।
लगभग आधे घन्टे के बाद प्रभूदयाल अकेला वापिस लौटा । उसके संकेत पर सब-इन्स्पेक्टर कमरे से बाहर निकल गया ।
प्रभूदयाल सुनील के सामने मेज के एक कोने पर बैठ गया । वह कुछ क्षण प्रतीक्षा करता रहा लेकिन जब उसे सुनील की खुद सिगरेट बन्द करने की नीयत ने दिखाई दी तो उसने हाथ बढा कर उसके मुंह से सिगरेट नोच लिया और उसे जमीन पर फेंक कर अपने जूतों से मसल दिया ।
सुनील ने कोई ऐतराज नहीं किया ।
“अगर इस बार तुम अपनी गरदन बचाने में कामयाब हो गये तो मैं इसे एक करिश्मा मानूंगा ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“हर बार यही कहते हो ।” - सुनील बोला ।
“इस बार आखिरी बार कह रहा हूं ।”
“यानी कि तुम मुझे खुराना का हत्यारा साबित कर दोगे ?”
“कुछ तो होगा ही । फिलहाल तेल देखो और तेल की धार देखो ।”
“अच्छी बात है ।”
“मेरे हर सवाल के जवाब में सच बोलने के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है ?”
“तुम मेरी बात को सच समझकर विश्वास कर लोगे ?”
“यह फैसला तो मैं तुम्हारे जवाबों का एक आध नमूना देख कर ही करूंगा ।”
“मैं सच बोलूंगा ।”
“बेहतर । नमूने के तौर पर पहला सवाल यही करता हूं । क्या तुमने वाकई चौदह नवम्बर शाम को लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रासिंग पर हुआ एक्सीडेन्ट देखा था ?”
“नहीं ।”
प्रभूदयाल के नेत्र फैल गये । वह हैरानी से सुनील का मुंह देखने लगा । शायद उसे सुनील से उस उत्तर की आशा नहीं थी ।
“वैरी गुड ।” - प्रभूदयाल फिर बोला । उसके चेहरे पर नर्मी आ गई थी - “तो फिर तुमने ऐसा कहा क्यों ?”
“क्योंकि मुझे ऐसा करने के लिये मजबूर किया गया था ।”
“किसने किया था मजबूर ?”
“गौरीशंकर के एक आदमी ने । वह अनीता का या रवि कुमार का या दोनों का दोस्त है ।”
“नमूने के तौर पर एक सच बोलकर फिर घिस्सा देने की कोशिश कर रहे हो ?”
“क्या मतलब ?”
“कम से कम मैं यह बात नहीं मान सकता कि कोई तुम्हें इस शहर में कुछ करने के लिये मजबूर कर सकता हो ।”
“किया मुझे मजबूर ही गया था । यह अलग बात है कि मजबूर होने में मेरा भी स्वार्थ था ।”
“क्या स्वार्थ था ?”
“मुझे यह एक्सीडेन्ट बड़ा रहस्यपूर्ण लग रहा था । मेरे पास कोई काम नहीं था । मेरे न्यूज एडीटर की राय थी कि मैं इस लाइन पर काम करके कुछ गड़े मुर्दे उखाड़ूं । मेरी अपनी भी दिलचस्पी थी इसलिये जैसे मुझे गौरीशंकर ने कहा मैं करने के लिये तैयार हो गया ।”
“वह तुम्हें किस आधार पर झूठा गवाह बनाने के लिये मजबूर कर रहा था ?”
“आधार मैंने खुद पैदा किया था ।”
“कैसे ?”
सुनील ने उसे शुरू से सारी दास्तान सुना दी । साथ ही उसने प्रभूदयाल को पांच सौ रुपये के विज्ञापन वाली बात और ‘ब्लास्ट’ के आफिस में अपने और अर्जुन में हुआ सारा वार्तालाप भी सुना दिया ।
“वह विज्ञापन मेरी निगाह से भी गुजरा है । पन्द्रह तारीख से वह लगातार रोज छप रहा था । एक-दो दिन पहले इनाम की रकम ढाई सौ से बढकर पांच सौ रुपये कर दी गई थी लेकिन आज वह विज्ञापन नहीं छपा है ।”
“उसकी वजह यह है कि विज्ञापनदाता का मतलब हल हो गया है ।”
“यानी कि उसे चश्मदीद गवाह मिल गया है ।”
“हां ।”
“चश्मदीद गवाह ! हे भगवान ! कहीं तुमने उस विज्ञापनदाता को भी तो घिस्सा नहीं दे दिया है ।”
सुनील मुस्कराया ।
“तुमने उससे पांच सौ रुपये भी लिये हैं ?”
“इनाम क्या मैं छोड़ देता ?”
“विज्ञापनदाता कौन था ?”
“उसने मुझे अपना नाम चमनलाल बताया था लेकिन मेरा दावा है कि वह खुराना का पार्टनर रामप्रकाश चोपड़ा था ।”
“उसे ऐसा कोई विज्ञापन देने की क्या जरूरत थी ?”
“यह तुम उसी से पूछो ।”
“जरूर पूछूंगा । लेकिन तुमने उससे झूठ बोलकर पांच सौ रुपये हासिल करके अपराध किया है ।”
“और इस अपराध की वजह से ही तुम मुझे खुराना का कातिल भी साबित कर सकते हो ?”
“वह तो मैं और सबूतों के दम पर करूंगा ।”
“और सबूत कौन से ?”
“जैसे तुम खुराना के दफ्तर में गये । खुराना की लाश के साथ खिड़की में से बाहर कूदे । बाहर खड़ी अपनी उस कार की ओर भागे जिसकी डिक्की में तुमने खुराना की लाश रखी ।”
“तुम यह सिद्ध कर सकते हो ?”
“बिल्कुल कर सकता हूं ।”
“कैसे ?”
“तुम्हारी उंगलियों के निशान से ।”
“उससे क्या सिद्ध कर सकते हो तुम ? मैं इस बात से कब इन्कार कर रहा हूं कि मैं वहां गया था । मैंने बताया तो है कि रात को मैं खुराना की सैक्रेट्री वीणा के साथ वहां गया था ।”
“बड़ी शराफत और ईमानदारी दिखा रहे हो । मिस्टर सुनील, वीणा के साथ वहां तुम दूसरी बार गये थे और इसीलिये गये थे कि तुम पहली बार में भी वहां उंगलियों के निशान छोड़ आये थे । उन निशानों को कवर करने का एक ही तरीका था कि तुम दोबारा किसी शहादत के साथ वहां जाते और ऐसा ही तुमने किया भी । उंगलियों के निशानों से कभी यह पता नहीं लगाया जा सकता कि वे कब बने थे । इसीलिये बाद में पूछे जाने पर तुम बड़ी मासूमियत से यह स्वीकार कर सकते थे कि तुम रात को वीणा के साथ वहां गये थे और जैसे कि तुम कर रहे हो ।”
“तुम यह सिद्ध कर सकते हो कि मैं वहां दो बार गया था ?”
“कर सकता हूं” - प्रभूदयाल बड़े इतमीनान से बोला - “मैंने इतने सालों की नौकरी में घास नहीं खोदी और न ही मैं जासूसी उपन्यासों का पुलिस अफसर हूं जो हर पेचीदगी का हल ढूंढने के लिये भागा-भागा हीरो के पास जाता है जैसे वह खुद पुलिस अफसर न हो घसियारा हो ।”
“मतलब की बात करो ।”
“खुराना के कमरे में एक साइड टेबल पर कालोनी का लकड़ी और तफ्ती का बना विशाल माडल पड़ा था ?”
“हां ।”
“वह माडल हमें जमीन पर पड़ा मिला था । उस भारी माडल का तला एकदम फर्श से मिला हुआ था और उस तले पर हमें तुम्हारी उंगलियों के निशान मिले थे ।”
“इससे क्या सिद्ध होता है । मैंने माडल के तले को हाथ लगाया होगा ।”
“कब ?”
“जब मैं वीणा के साथ वहां गया था ।”
“लेकिन तब तो माडल फर्श पर गिरा हुआ था ?”
“फिर क्या हुआ ?”
“फिर यह हुआ कि क्या तुम अकेले दो मन वजन उठा सकते हो ?”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह रिपोर्टर साहब कि वह मांडल दो मन वजन का है । मैं अकेला उसे अपने स्थान से हिला भी नहीं पाया और तुम भी कोई मेरे से ज्यादा तन्दुरुस्त नहीं हो और माडल का तला फर्श से इस प्रकार मिला हुआ है कि जब तक उसके नीचे कोई पतला-सा पेचकस या छड़ न सरकाई जाये उसे किसी ओर से भी ऊंचा नहीं किया जा सकता क्योंकि पकड़ के लिये कोई जगह नहीं है । फिर उस माडल के नीचे तुम्हारी उंगलियों के निशान कैसे आ गये ?”
सुनील एकाएक बेहद चुप हो गया ।
“कमरे में हमें एक सिगरेट लाइटर मिला था । वह सिगरेट लाइटर एक सिरे से थोड़ा-सा दबा हुआ था । वास्तव में हुआ यह होगा कि माडल मेज से गिरा होगा और उसका एक सिरा सिगरेट लाइटर के ऊपर आकर पड़ा होगा जिसकी वजह से माडल का तला सिगरेट लाइटर वाली साइड में लाइटर की ऊंचाई जितना ऊंचा रह गया होगा । जब तुम पहली बार वहां गये थे तो तुमने लाइटर की वजह से जमीन पर माडल के तले में बन गई झिरी में हाथ डालकर माडल को थोड़ा-सा ऊंचा किया होगा और नीचे से लाइटर निकाला होगा । तब माडल का तला पर्श से आ मिला और तुम्हारी उंगलियों के निशान तले पर रह गये । क्या यह बात निर्विवाद रूप से सिद्ध नहीं करती कि वीणा के साथ वहां जाने से पहले भी तुम वहां गये थे ।”
“इन्स्पेक्टर साहब तुम्हारे ख्याल से खुराना की लाश का वजन कितना होगा ?”
“क्या मतलब ?”
“खुराना हट्टा-कट्टा मोटा-ताजा आदमी था । दो-ढाई मन से कम वजन नहीं होगा उसका । और तुम्हारे कथनानुसार मैं उसको उठाकर खिड़की से कूदकर अपनी कार में पहुंचा था । अब तुम मुझे यह बताओ कि अगर मैं ढाई मन वजन उठाकर खिड़की से कूद सकता हूं तो दो-दो मन वजन का माडल क्यों नहीं उठा सकता ?”
अब चुप होने की प्रभूदयाल की बारी थी ।
“मेरी तफ्तीश से साफ जाहिर होता है कि खुराना की लाश खिड़की के रास्ते निकाली गई थी ।” - वह धीरे से बोला ।
“तो लाश मैंने नहीं किसी ऐसे आदमी ने निकाली होगी जो ढाई मन वजन आसानी से उठा सकता है । मैं तो तुम्हारे कथनानुसार दो मन वजन भी नहीं उठा सकता ।”
“यह दो आदमियों का काम हो सकता है । शायद तुम्हारा कोई मददगार खिड़की से नीचे खड़ा हो ।”
“कौन है मेरा मददगार ?”
“तुम बताओ ।”
“मेरा कोई मददगार नहीं । खुराना के खून से मेरा कोई वास्ता नहीं ।”
“छोड़ो । पहले यह बताओ कि अब तुम यह स्वीकार करते हो कि वीणा के साथ खुराना के आफिस में जाने से पहले भी तुम वहां गये थे ?”
“सिर्फ यही स्वीकार कर लेने भर से तुम मुझे हत्यारा थोड़े ही साबित कर सकते हो ।”
“मेरे सवाल का जवाब दो ।”
सुनील चुप रहा ।
“आल राइट ।” - प्रभूदयाल उठ खड़ा हुआ वह कमरे से बाहर की ओर बढा ।
सुनील भी उठा ।
“तुम यहीं बैठो ।” - वह कर्कश स्वर में बोला ।
“क्या मैं अपने-आपको गिरफ्तार समझूं ?”
“जो जी में आये समझो । लेकिन यहां से हिलने कि कोशिश मत करना वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ।”
प्रभूदयाल कमरे से बाहर निकल गया । जाती बार वह कमरे का दरवाजा बाहर से बन्द कर गया ।
सुनील विचारपूर्ण मुद्रा बनाये कई क्षण कमरे के बीचोंबीच खड़ा रहा फिर वह बगल के उस कमरे की ओर बढा जिसमें टेलीफोन था । रास्ते में उसने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया । ग्यारह बज चुके थे ।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और ‘ब्लास्ट’ का नम्बर डायल कर दिया ।
“ब्लास्ट, गुड मार्निंग ।” - दूसरी ओर से रेणु का स्वर सुनाई दिया ।
“रेणु” - सुनील बोला - “सुनील बोल रहा हूं ।”
“बेटा सुनील” - रेणु मशीन की तरह बोलने लगी - “तुम्हारी चिट्ठी मिली । पढकर हाल मालूम हुआ । जानकार खुशी हुई कि तुम एक आज्ञाकारी बालक की तरह...”
“रेणु प्लीज ।” - सुनील याचनापूर्ण स्वर में बोला ।
“क्या प्लीज ? मैं तुम्हारी चिट्ठी का जवाब दे रही हूं । फिर कहोगे कि नानी चिट्ठी नहीं लिखती ।”
“मेरी बात सुनो । मैं इस वक्त संकट से हूं ।”
“मर्द तो संकट में हो ही नहीं सकता । संकट तो हमेशा औरतों पर आता है जब ‘दामन में आग लगा बैठे, हम प्यार में धोखा खा बैठे, वाली स्थिति आती है ।”
“मैं रो पडूंगा ।”
“सीरियस ?”
“एकदम ।”
“क्या चाहते हो ?”
“चाहता तो मैं हूं कि मेरी जयाभादुड़ी से शादी से जाये लेकिन तुम तो फिलहाल राय से बात करा दो ।”
“और अभी तुम कह रहे थे कि तुम सीरियस हो ।”
“सॉरी । जुबान फिसल गई ।”
“मिस्टर राय दफ्तर में नहीं हैं ।”
“तो अर्जुन से बात करा दो ।”
“वह अभी कहीं चला गया है ।”
“तो तुम्हीं एक काम करो ।”
“क्या ?”
“पन्द्रह तारीख का अखबार मंगा लो । उसमें देखो कि क्या कोई चौदह तारीख को पांच बजे के बाद राजनगर या उसके आसपास हुये किसी ऐसे एक्सीडेन्ट की खबर छपी है जिसमें या तो कोई आदमी मर गया हो या फिर गम्भीर रूप से घायल हुआ हो और एक्सीडेन्ट करने वाला फरार हो ।”
“अच्छा !”
“अगर ऐसी कोई खबर हो तो उसकी सूचना मुझे तुम 374942 पर दे देना ।”
वह नम्बर टेलीफोन पर लिखा हुआ था ।
“ओके ।”
सुनील ने सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया ।
टेलीफोन की बगल में पड़ी टेलीफोन डायरेक्ट्री में उसने उस बीमा कम्पनी का नम्बर देखा जिसमें खुराना का और उसकी कार का बीमा हुआ था । डायरेक्ट्री के अनुसार बीमा कम्पनी के ब्रांच मैनेजर का कुलश्रेष्ठ था ।
उसने वह नम्बर डायल कर दिया ।
सम्पर्क स्थापित होते ही वह बोला - “कैन आई स्पीक ब्रांच मैनेजर प्लीज ।”
अगले ही क्षण ब्रांच मैनेजर लाइन पर था ।
“मिस्टर कुलश्रेष्ठ ?” - सुनील बोला ।
“स्पीकिंग ।” - उत्तर मिला ।
“गुड मार्निंग टू यूं, मिस्टर कुलश्रेष्ठ । मेरा नाम सुनील है । सुनील कुमार चक्रवर्ती । मैं ‘ब्लास्ट’ का स्पेशल कारस्पान्डेन्ट हूं । चाहें तो आप ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर से मेरे बारे में तफ्तीश कर सकते हैं ।”
“जरूरत नहीं, मिस्टर सुनील मैंने आपका नाम सुना है । ‘ब्लास्ट’ में मैं आपकी रिपोर्ट्स बड़े चाव पढता हूं ।”
“थैंक्यू ।”
“फरमाइये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?”
“सेवा तो साहब आपकी मैं करना चाहता हूं और इसीलिये मैंने फोन किया है ।”
“मैं सुन रहा हूं ।”
“चौदह नवम्बर को साढे तीन बजे के करीब लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रांसिग पर हुये एक्सीडेन्ट की याद है आपको जिसकी एक पार्टी आपका कलायन्ट रोशनलाल खुराना था ?”
“याद है साहब ?”
“दूसरी पार्टी रविकुमार ने आप पर पचास हजार रुपये का दावा किया हुआ है ?”
“करैक्ट ?”
“उस बारे में आप क्या कर रहे हैं ?”
“आप क्यों पूछ रहे हैं ?”
“क्या आप इसे कोई बहुत बड़ा रहस्य मानते हैं ?”
“नहीं लेकिन...”
“विश्वास जानिये मिस्टर कुलश्रेष्ठ, मेरे साथ बात करके आपको कोई नुकसान नहीं होगा । मैं आप ही के फायदे की बात कर रहा हूं ।”
“सिर्फ मेरे फायदे की ?”
“नहीं । अपने फायदे की भी लेकिन आपका फायदा ज्यादा है ।”
“आई सी ।”
“मैं आपका पहला प्रश्न फिर दोहरा रहा हूं । हरजाने के बारे में आप क्या कर रहे हैं ?”
“हम खास तौर पर कुछ कर ही नहीं सकते । हमारा क्लायन्ट अपनी गलती स्वीकार कर चुका है । वह मानता है कि एक्सीडेंट उसकी गलती से हुआ है । हरजाना तो हमें देना ही पड़ेगा । हम तो केवल यह कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह से तीस हजार रुपये पर फैसला हो जाये ।”
“कोई नतीजा निकला ?”
“नहीं । रविकुमार से तो सम्पर्क स्थापित हो नहीं रहा और उसका वकील तीस हजार पर फैसला नहीं करना चाहता ।”
“यानी कि तीस हजार रुपये तो आप खुशी से देने को तैयार हैं ?”
“जी हां और यही मुनासिब रकम है ।”
“अगर मैं आपकी तीस हजार में से भी पच्चीस हजार की बचत करा दूं तो ?”
“क्या मतलब ?” - इस बार कुलश्रेष्ठ का एकदम चौकन्ना स्वर सुनाई दिया ।
“मतलब यह है कि अगर मेरी कोशिश से कोई ऐसे हालात पैदा हो जायें कि आपको रविकुमार को एक नया पैसा न देना पड़े तो क्या आपकी कम्पनी इनाम के तौर पर मुझे पांच हजार रुपया दे सकती है ।”
“ऐसा हो सकता है ?”
“अपने आप नहीं हो सकता । मैं करके दिखा सकता हूं लेकिन मुफ्त में नहीं ।”
“यानी कि आप ऐसा कुछ कर देंगे कि रविकुमार अपने हरजाने का दावा वापिस ले लेगा ।”
“पता नहीं क्या होगा लेकिन जो होगा उसका नतीजा यह होगा आपको उसे एक नया पैसा नहीं देना पड़ेगा ।”
“यह कोई मजाक तो नहीं ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“मैंने आपका बहुत नाम सुना है । मैं आप से किसी गैर जिम्मेदारी की बात की अपेक्षा नहीं कर सकता ।”
“तो फिर क्या जवाब है आपका ?”
“जवाब में फौरन नहीं दे सकता । मुझे हैड आफिस से पूछना पड़ेगा ।”
“कितनी देर लगेगी ?”
“पन्द्रह-बीस मिनट ।”
“पूछ लीजिये ।”
“और मैं आपसे आमने-सामने मिलना चाहता हूं । क्या पता आपका नाम लेकर कोई दूसरा आदमी हमें बेवकूफ बना रहा हो ।”
“ठीक है । आप आधे घन्टे के अन्दर-अन्दर एयरपोर्ट पर आ जाइये । मैं पुलिस कन्ट्रोल रूम के बगल के कमरे में मौजूद हूं ।”
“ओके ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
वह वापिस पहले वाले कमरे में आ बैठा ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
रहस्य के धागे सुलझते जा रहे थे ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद टेलीफोन की घन्टी बजी ।
सुनील लपक कर बगल के कमरे में पहुंचा ।
फोन रेणु का था ।
“सोनू” - वह बोली - “पन्द्रह तारीख के मुताबिक चौदह तारीख शाम को पांच बजे के करीब एक एक्सीडेंट हुआ था जिसमें दो कालेज के लड़के बुरी तरह घायल हो गये थे ।”
“एक्सीडेंट कहां हुआ था ?” - सुनील ने पूछा ।
“मैटकाफ रोड पर । एक एम्बेसेडर कार झेरी रोड की ओर से आ रही थी । चश्मदीद गवाहों का कहना है कि कार का ड्राइवर बड़ी लापरवाही से गाड़ी चला रहा था और नशे में मालूम होता था । मैटकाफ रोड पर आते ही वह कार विपरीत दिशा से आते हुए एक ट्रक से टकराकर घूम गई थी । ट्रक तो आगे निकल गया था लेकिन कार ड्राइवर के कन्ट्रोल से बाहर हो गई थी । सड़क पर साइकल पर सवार दो लड़के जा रहे थे । कार साइकल को अपनी लपेट में लेती हुई सीधे एक पेड़ से जा टकराई थी । लेकिन तब तक शायद कार वाले का नशा हिरण हो चुका था उसने कार को तुरन्त बैक किया, वह कार को सड़क पर लाया और वहां से भाग निकला ।”
“किसी ने कार वाले की सूरत देखी थी ?”
“नहीं । लोग सिर्फ इतना ही देख पाये थे कि कार चलाने वाला आदमी था ।”
“कोई कार का नम्बर नोट करने में सफल हुआ हो ?”
“नहीं ।”
“कार का रंग ?”
“किसी ने ध्यान नहीं दिया ।”
“और !”
“बस । और अर्जुन आ गया ।”
“वैरी गुड । उसे यह अखबार दे दो और उसे कहो कि वह फौरन एयरपोर्ट पर पुलिस कन्ट्रोल रूम के बगल के कमरे में पहुंचे ।”
“अच्छा ।”
“एण्ड थैंक्यू फार कोआपरेशन ।”
“थैंक्यू की क्या जरूरत है । जब दफ्तर आओ तो मसाला डोसा और काफी के लिये पांच रुपये नकद दे देना ।”
“शर्म । शर्म ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर रख दिया । सुनील फिर पहले वाले स्थान पर आ बैठा ।
प्रभूदयाल अभी भी नदारद था ।
जब वह अपने पैकेट का आखिरी सिगरेट पी रहा था तो दरवाजा खुला और प्रभूदयाल ने भीतर कदम रखा । वह लम्बे डग भरता हुआ सुनील के सामने आ खड़ा हुआ । उसने नेत्र सुनील के चेहरे पर गड़ गये ।
“मेरे सिर पर सींग उग आये हैं क्या ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“शटअप ।” - प्रभूदयाल क्रुद्ध स्वर में बोला - “इतने लोगों को कैसे मालूम हो गया कि तुम यहां हो ?”
“किन्हें मालूम हो गया है ?”
“एक अर्जुन नाम का तुम्हारे अखबार का रिपोर्टर है जो पूछ रहा है कि क्या तुम गिरफ्तार हो । अगर ऐसा है तो वह तुम्हारी जमानत वगैरह का प्रबन्ध करे और तुम्हारे लिये वकील बुलाये । एक खुराना का पार्टनर है रामप्रकाश चोपड़ा । एक कुलश्रेष्ठ नाम की बीमा कम्पनी का ब्रांच मैनेजर है जो कह रहा है कि या तो उसे तुमसे मिलने दिया जाये और या फिर न मिलने देने की वजह बताई जाये ।”
“चोपड़ा के बारे में मैं नहीं जानता बाकी दोनों सज्जनों को मैंने फोन किया था ।”
“कहां से ?”
“बगल के कमरे से ।”
प्रभूदयाल एक क्षण चुप रहा और फिर जले-भुने से स्वर में बोला - “अगर आजकल हवा का रुख पुलिस के खिलाफ न होता कम-से-कम तुम्हारे अर्जुन को मैं मजा चखा देता ।”
“उसने क्या किया है ?”
“उसने एयरपोर्ट के सामने भीड़ इकट्ठी की हुई है और जनसंघी और कम्युनिस्ट नेताओं की तरह भाषण दे रहा है कि जब तक जनता एक साथ मिलकर पुलिस की ज्यादतियों की खिलाफत नहीं करेगी तब तक पुलिस अपनी दादागीरी और गुण्डागर्दी से बाज नहीं आयेगी । वह लोगों को मोगा के उदाहरण दे रहा है, वह नमक मिर्च लगाकर शाहदरा में होमगार्ड ओंकार सिंह की हत्या के दौरान पुलिस द्वारा की गई ज्यादतियों की दास्तान सुना रहा है, वह गाजियाबाद में पुलिस के जुल्म की दुहाई दे रहा है । वह सारी यूपी की पुलिस को बदमाशों और चोर डाकुओं की सरपरस्त बता रहा है । और यह सब इस लिये हो रहा है क्योंकि तुम्हें मैंने कवेश्चनिंग के लिये रोका हुआ है ।”
“हद है जहालत की” - प्रभूदयाल भड़ककर बोला - “गधे घोड़े एक ही लाठी से हांके जा रहे हैं । दो-चार पुलिस वाले बदमाश निकल आये तो सारी पुलिस फोर्स खराब हो गई । ऊपर से आदेश आया हुआ है कि कोई ऐसा काम न करें जिससे जनता के भड़क जाने का खतरा हो । यानी कि मैं किसी ऐसे आदमी को पकड़कर तफ्तीश न करूं जिसके चार हिमायती हों । हमारे ऊपर वाले अफसर क्या यह नहीं जानते कि जनता खुद नहीं भड़कती । कोई न कोई स्वार्थ के लिये उसे भड़काता है जैसे इस वक्त बाहर खड़ा तुम्हारा यार कह रहा है और जो कुछ भी वह कर रहा है इसलिये कर रहा है क्योंकि अभी मैं तुम्हें उससे मिलने नहीं देना चाहता ।”
“मुझे अर्जुन से ऐसी उम्मीद नहीं थी ।”
“यह बात तुम मुझे खुश रखने के लिये कह रहे हो । मन-ही-मन तो तुम उसकी हरकतों पर अट्टाहास कर रहे होगे ।”
“बाई गाड प्रभू...”
“भगवान कसम जी चाहता है पुलिस की नौकरी छोड़कर कम्पनी बाग के सामने आइसक्रीम बेचने लगूं ।”
“आजकल सर्दियां हैं ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“तो मूंगफली सही ।” - प्रभूदयाल झल्लाकर बोला ।
“अब क्या हो रहा है ?”
“होना क्या है । मैंने उन्हें पांच मिनट बाद आने के लिये कहा था । वे लोग आते ही होंगे ।”
उसी क्षण अर्जुन ने भीतर कदम रखा । वह कैमरों वगैरह से लदा हुआ था ।
“हल्लो गुरुजी” - अर्जुन प्रफुल्ल स्वर में बोला - “आज बाहर एयरपोर्ट के सामने मैंने आपका वो रंग जमाया है, वो रंग जमाया है, कि...”
“र्ईडियट” - सुनीलडपट कर बोला - “तू क्या रंग जमायेगा ? रंग जमाता है कोका कोला ।”
अर्जुन सकपकाकर रह चुप हो गया । एक क्षण वह असमंजसपूर्ण नेत्रों से सुनील को देखता रहा और फिर हो-हो करके हंस दिया ।
“चुप !” - सुनील तीव्र स्वर में बोला ।
अर्जुन की हंसी को ब्रेक लग गई ।
“अखबार लाये हो ?”
“लाया हूं गुरुजी ।” - अर्जुन बोला । उसने कैमरों के साथ गले में लटके बैग में अखबार निकालकर सुनील की ओर बढा दिया ।
सुनील ने अखबार उसके हाथ से लिया और बड़ी तेजी से एक-एक कालम पर अपनी निगाह फिराने लगा ।
एकाएक उसने नेत्र चमक उठे और चेहरे पर मुस्कराहट आ गई ।
“गरुजी” - अर्जुन बोला - “आपको चेहरे पर तो मुख पृष्ठ देखकर बल्ब जल उठे हैं । रेणु ने आपको टेलीफोन पर जो खबर बताई थी, वह तो तीसरे पृष्ठ पर है ।”
“पहले पेज पर उससे ज्यादा हार्ट अटैक खबर है बेटा ।”
“क्या किस्सा है ?” - प्रभूदयाल बोला - “यह कौन-सा अखबार है ?”
“यह पन्द्रह नवम्बर का अखबार है इन्स्पेक्टर साहब” - सुनील बोला - “अभी थोड़ी देर में यह बहुत लोगों के ज्ञान चक्षु खोलने वाला है ।”
“क्या पहेलियां बुझा रहे हो ?”
“प्रभू” - सुनील एकाएक बेहद गम्भीर स्वर में बोला - “अगर तुम सिर्फ पन्द्रह मिनट के लिये मेरा कहना मान लो तो मैं न केवल अपने आपको बेगुनाह साबित कर सकता हूं बल्कि मैं तुम्हारे माथे पर कामयाबी का इतना बड़ा सेहरा बंधवा सकता हूं कि सारे राजनगर में तुम्हारी चर्चा होगी ।”
“अब कौन-सा घिस्सा दे रहे हो ?”
“यह घिस्सा नहीं है ?”
“क्या करोगे तुम ?”
“वह मैं अभी नहीं बताऊंगा ।”
“तो कब बताओगे ?”
“बाकी लोगों के सामने एक ही बार ।”
प्रभूदयाल कुछ क्षण चुप रहा और फिर बाहर चला गया । कुछ क्षण बाद लगभग पचास वर्ष का प्रभावशाली व्यक्ति कमरे में प्रविष्ट हुआ ।
“मेरा नाम कुलश्रेष्ठ है” - वह व्यक्ति बोला - “आप दोनों में से मिस्टर सुनली कौन हैं ?”
“ये मिस्टर सुनील हैं ।” - अर्जुन बोला ।
कुलश्रेष्ठ और सुनील ने हाथ मिलाया । फिर कुलश्रेष्ठ अर्जुन का ओर घूमा - “आपकी तारीफ ।”
“ये मेरे सहयोगी हैं, मिस्टर अर्जुन” - सुनील बोला - “ये भी ब्लास्ट के रिपोर्टर हैं ।”
कुलश्रेष्ठ ने अर्जुन से भी हाथ मिलाया ।
“आपके हैडआफिस ने क्या फैसला किया साहब ?” - सुनील बोला ।
“अगर आप अपने कहे मुताबिक गारन्टी के साथ ऐसा कुछ कर दें कि रविकुमार को हमें हरजाने का एक पैसा भी न देना पड़े तो हम आपके संहर्ष पांच हजार रुपये का पुरस्कार देने को तैयार हैं ।”
“वैरी गुड ।”
“लेकिन आप जो कह रहे हैं वह करेंगे कैसे ?”
“तशरीफ रखिये । अभी ड्रामा आपके सामने शुरू होगा ।”
उसी क्षण कमरे में प्रभूदयाल के साथ अनीता, रविकुमार, रामप्रकाश चोपड़ा और गोरीशंकर प्रविष्ट हुए ।
गौरीशंकर ने आग्नेय नेत्रों से सुनील को देखा । तब तक शायद उसे अनीता से मालूम हो चुका था कि वास्तव में सुनील कौन था । सुनील ने उसकी परवाह नहीं की ।
“हल्लो चमनलाल जी” - सुनील बोला - “या अब तो आप मुझे स्वंय को रामप्रकाश चोपड़ा के नाम से पुकारने को इजाजत दीजिये ।”
चोपड़ा क्रोधित दिखाई देने लगा ।
“नाराज क्यों होते हैं साहब” - सुनील मीठे स्वर में बोला - “आपको पांच सौ रुपये मैं वापिस कर दूंगा ।”
चोपड़ा ने उत्तर नहीं दिया ।
“आप यहां कैसे पहुंचे ?” - प्रभूदयाल ने चोपड़ा से पूछा ।
“मुझे अपने पार्टनर की हत्या की खबर लगी थी और मालूम हुआ था कि लाश एयरपोर्ट पर मौजूद किसी आदमी की कार की डिक्की में से निकली है ।”
“कैसे मालूम हुआ ?”
“मालूम हो जाता है साहब । ऐसी बातें जंगल की आग की तरह फैलती हैं और फिर खुराना साहब मशहूर आदमी थे । शायद एयरपोर्ट पर उन्हें किसी ने पहचान लिया था उसने अशोका एन्क्लेव स्थिति हमारे आफिस में फोन किया । मैं आफिस आया तो मुझे खबर लगी । हमारे आफिस का लगभग सारा स्टाफ बाहर एयरपोर्ट पर मौजूद है ।”
“और आपकी तारीफ ?” - प्रभूदयाल गौरीशंकर की ओर आकर्षित हुआ ।
“इनका नाम गौरीशंकर है” - उत्तर रविकुमार ने दिया - “ये मेरे दोस्त हैं । ये भी मुझे एयरपोर्ट पर रिसीव करने आने वाले थे लेकिन रास्ते में गाड़ी बिगड़ जाने की वजह से वक्त पर नहीं पहुंच पाये ।”
“मैं यहां अभी पहुंचा हूं ।” - गौरीशंकर बोला ।
“अगर ये वक्त पर पहुंच जाते तो मुझे इस झमेले में फंसना ही न पड़ता” - रविकुमार उखड़े स्वर में बोला - “फिर न मैं इस शख्स की गाड़ी पर सवार होने का ख्याल करता और न मेरी मौजूदगी में इसकी कार की डिक्की में से लाश बरामद होती ।”
“तुम्हें तो पहले से ही मालूम था कि मेरी कार की डिक्की में लाश है” - सुनील बोला - “फिर तुमने मेरी कार में मेरे साथ जाने की कोशिश ही क्यों की ?”
“क्या बक रहे हो ?” - रविकुमार क्रोधित स्वर में बोला - “मुझे कैसे मालूम था कि तुम्हारी कार में लाश है ?”
“क्योंकि तुमने मेरी कार में लाश रखी थी ।”
“तुम्हारी अक्ल तो ठिकाने है ।”
“और न सिर्फ तुमने लाश रखी थी बल्कि...”
“नानसैंस ! इन्स्पेक्टर तुम इस आदमी को अनाप-शनाप बकने से रोक नहीं सकते ?”
“इन्स्पेक्टर मुझे यहां कुछ कहने से रोक सकता है लेकिन जो मैं कह रहा हूं उसे अखबार में छपने से नहीं रोक सकता ।”
“अगर तुम ऐसी कोई चण्डूखाने की गप अपने अखबार में छापोगे तो मैं तुम्हारी और तुम्हारे अखबार की ऐसी-तैसी कर दूंगा ।” - रविकुमार गला फाड़कर चिल्लाया ।
“मिस्टर रविकुमार” - प्रभुदयाल बोला - “प्लीज !”
“क्या प्लीज ! आप क्या समझते हैं कि मैं इस आदमी को छोड़ दूंगा । मैं इस पर मानहानि का मुकददमा चलाऊंगा ।”
“जरूर चलाइयेगा” - प्रभूदयाल बोला - “और विश्वास रखिये जरूरत पड़ने पर मैं आपके हक में गवाही दूंगा । लेकिन गला फाड़कर चिल्लाने से तो आपके केस में कोई अतिरिक्त मजबूती नहीं आ जायेगी ।”
रविकुमार ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला और फिर होंठ भींच लिये ।
“अगर यह कुछ अनाप-शनाप बकता है तो इसे बकने दीजिये अपनी गैर जिम्मेदाराना बातों से वह और फंसेगा ।”
रविकुमार चुप रहा । उसने अपनी जेब में से एक सिगरेट का पैकेट निकाला, उसमें से एक सिगरेट निकालकर होंठों से लगाया और फिर जेबें टटोलने लगा ।
गौरीशंकर ने जल्दी से अपनी जेब से लाइटर निकाला और उसका सिगरेट सुलगा दिया ।
“और कौन-सा तीर छोड़ना चाहते हो, रिपोर्टर साहब !” - प्रभूदयाल के स्वर में व्यंग्य का तगड़ा पुट था ।
“तीर नहीं, एटमबम छोड़ना चाहता हूं ।” - सुनील निश्चित स्वर में बोला ।
“जो कहना है जल्दी कहो । तुम्हारा टाइम खत्म हो रहा है ।”
“मैं यह कहना चाहता हूं” - सुनील एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “कि चौदह नवम्बर की शाम को साढे तीन बजे लिटन रोड और जहांगीर रोड की क्रासिंग पर कोई एक्सीडेन्ट नहीं हुआ था ।”
“क्या ?” - प्रभूदयाल हैरानी से बोला ।
“जी हां । एक्सीडेन्ट की बात सरासर बकवास है और झूठी है । रविकुमार की फियेट में और मृत खुराना साहब की एम्बेसेडर में कभी कोई एक्सीडेन्ट नहीं हुआ ।”
“मिस्टर सुनील” - किसी के कुछ कहने से पहले एकाएक कुलश्रेष्ठ बोल पड़ा - “तुम इसी दम पर हमें हरजाने की रकम के भुगतान से छुटकारा दिलाने की बात कर रहे थे ।”
“जी हां ।”
“फिर मैं यहां बेकार आया ।” - कुलश्रेष्ठ तनिक निराश भरे स्वर में बोला ।
“क्यों ?”
“क्योंकि इस बात में तो सन्देह की कोई गुंजायश ही नहीं है कि एक्सीडेन्ट हुआ ।”
“क्यों गुंजायश नहीं है ?”
“क्योंकि हमारी कम्पनी के सर्वेयर ने खुद दोनों कारों का मुआयना किया है । उससे साफ जाहिर होता था कि फियेट का पिछला भाग और एम्बेंसडर का अगला भाग आपस में टकराया था ।”
“आपने दोनों गाडियों की दुर्घटनास्थल पर जांच करवाई थी ?”
“नहीं ।”
“तो इससे यह कहां साबित होता है कि दोनों गाड़ियां चौदह नवम्बर को शाम साढे तीन बजे एक-दूसरे से टकराई थी । क्या यह सम्भव नहीं है कि फियेट का कहीं अलग एक्सीडेन्ट हुआ हो और एम्बेसेडर का कहीं अलग एक्सीडेन्ट हुआ हो ?”
एकाएक प्रभूदयाल के नेत्र चमक उठे ।
“तुम कहना क्या चाहते हो ?” - प्रभूदयाल भारी दिलचस्पी भरे स्वर में बोला ।
“मैं कहना चाहता हूं कि रविकुमार और खुराना की गाड़ियों में कभी एक्सीडेन्ट नहीं हुआ । चोपड़ा साहब इस बात की गवाही देंगे कि चौदह नवम्बर की शाम को अशोका एन्कलेव स्थिति उनके आफिस में पार्टी थी जिसमें शराब के भी दौर चले थे । खुराना उस पार्टी में चार बजे आकर शामिल हुआ था और साढे चार बजे वहां से गया था । साढे चार बजे खुराना की सेकेट्री वीणा ने खुराना की कार को सही सलामत हालत में देखा था । यानी कि वीणा इस बात की चश्मदीद गवाह है कि साढे चार बजे तक खुराना का कोई एक्सीडेन्ट नहीं हुआ था अभी चोपड़ा साहब ने बताया था कि उनके दफ्तर का सारा स्टाफ एयरपोर्ट पर आया हुआ है । अगर मेरी बात पर विश्वास न हो तो वीणा को बुलाकर इस बात की पुष्टि कर सकते हैं ।”
“वीणा एयरपोर्ट पर आई हुई है ?” - प्रभूदयाल ने चोपड़ा से पूछा ।
“हां ।” - चोपड़ा बोला ।
“तो आप थोड़ी तकलीफ कीजिये । जरा वीणा को बुला लाइये ।”
चोपड़ा वीणा को बुला लाया ।
“तशरीफ रखिये” - प्रभूदयाल वीणा से बोला - “मैं इन्सपेक्टर प्रभूदयाल हूं । आपसे एक-दो सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“पूछिये ।” - वीणा धीमे सेवर में बोली ।
“आप सुनील को कब से जानती हैं ?”
“कल से । कल मैं इनसे पहली बार मिली थी ।”
“क्या उसने कोई लालच देकर या प्रार्थना करके आपको खुराना साहब के चौदह नवम्बर को हुए मोटर एक्सीडेंट के बारे में कोई खास तरह का ध्यान देने के लिये कहा है ?”
“नहीं । सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“आपने खुराना साहब की गाड़ी को आखिरी बार कब और कहां देखी थी ?”
“उस रोज खुराना साहब चार बजे आफिस की पार्टी में आये थे । साढे चार बजे जब वे वहां से जाने लगे थे तो मैं उनके साथ बाहर तक आई थी तब मैंने ड्राइव-वे में खड़ी उनकी एम्बेसेडर गाड़ी देखी थी ।”
“गाड़ी किस हालत में थी ?”
“एकदम सही हालत में थी ।”
“यानी कि उसके अगले भाग से ऐसा नहीं लगता था कि वह किसी एक्सीडेंट की शिकार हुई थी ?”
“हरगिज नहीं ।”
“आई सी ।” - प्रभूदयाल बेहद गम्भीर स्वर से बोला ।
“एक सवाल मैं भी पूछना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
प्रभूदयाल कुछ नहीं बोला ।
“वीणा” - सुनील बोला - “पार्टी में क्या खुराना साहब ने भी शराब पी थी ?”
“पी थी ।” - वीणा बोली ।
“कितनी ?”
“अब इस बात की तो मुझे कुछ समझ नहीं ।”
“मैं बताता हूं” - चोपड़ा बोला - “उस रोज मिस्टर खुराना पांच-छः पैग शराब के पी गये थे । यह बात मुझे विशेष रूप से इसलिये याद है क्योंकि साधारणतया वे तीन पैग से ज्यादा शराब नहीं पीते थे ।”
“वैरी गुड !” - सुनील सन्तुष्ट स्वर से बोला - “अब दूसरी ओर आइये । अनीता का कहना है कि उस रोज लगभग चार बजे अपनी फियेट पर रविकुमार चन्द्रकिरण स्थित अपने फ्लैट पर पहुंचा था और उस समय फियेट का पिछला भाग बुरी तरह पिचका हुआ था । मैं ठीक कह रहा हूं, अनीता ?”
“जी-जी हां ।” - अनीता हकलाती हुई बोली ।
“यानी कि चार बजे करीब फियेट का पिछला भाग पिचका हुआ देखा गया लेकिन साढे चार बजे तक एम्बेसेडर एकदम ठीक थी । अब आप ही मुझे बताइये, मिस्टर कुलश्रेष्ठ कि यह कैसे मुमकिन हो सकता है कि दोनों गाड़ियों साढे तीन बजे आपस में टकराई हों ?”
“यह तो मुमकिन नहीं ।” - कुलश्रेष्ट दबे स्वर में बोला ।
“मैं बताता हूं कैसे मुमकिन है ।” - रविकुमार आवेशपूर्ण स्वर से बोला ।
सबकी निगाहें रविकुमार की ओर उठ गई ।
“वीणा झूठ बोल रही है” - रविकुमार बोला - “और यह सुनील के बहकावे में आकर झूठ बोल रही है ।”
“वीणा सुनील के बहकावे में आकर भला झूठ क्यों बोलेगी ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“कोई तो वजह होगी । शायद इसने वीणा को रिश्वत दी हो । शायद इन दोनों की आपस में मुहब्बत हो ।”
“यह झूठ है” - वीणा रूआंसे स्वर में बोली - “मैं तो इस आदमी को ठीक से जानती भी नहीं ।”
“और सुनील को इससे झूठ बुलवाने में क्या फायदा है ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“यह तो सुनील ही जाने” - रविकुमार बोला - “आप इसी से पूछिये ।”
“यानी कि तुम वह कहना चाहते हो कि चौदह नवम्बर शाम साढे तीन बजे लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रॉसिंग के पास तुम्हारा और खुराना का वाकई एक्सीडेंट हुआ था ?” - सुनील बोला ।
“हां । और तुम अपनी बकवास से इस हकीकत को हरगिज नहीं झुठला सकते ।”
“अगर ऐसा कोई एक्सीडेंट हुआ था तो उसकी कोई शहादत क्यों नहीं है ? एक्सीडेंट के कथित समय पर दोनों सड़कों पर और भी गाडियां थीं । कोई इक्का-दुक्का साइकिल सवार और पैदल भी जरूर होगा वहां । किसी ने तो वह एक्सीडेंट देखा ही होगा । पन्द्रह तारीख से रोज अखबार में चश्मदीद गवाह के विज्ञापन छप रहा है । विज्ञापन में पहले ढाई सौ और बाद में पांच सौ रुपये इनाम की घोषणा थी । वैसे नहीं तो इनाम के लालच में तो कोई गवाह सामने आये ।”
“इनाम हो या न हो । कई लोग ऐसे पचड़ों में नहीं पड़ना चाहते ।”
“मान लिया । तो फिर तुम्हारे यार गौरीशंकर ने मुझे पांच सौ रुपये का लालच देकर और धमकाकर उस एक्सीडेंट का झूठा गवाह बनाने की कोशिश क्यों की ?”
रविकुमार ने गौरीशंकर की तरफ देखा ।
“यह झूठ बोल रहा है” - गौरीशंकर भड़ककर बोला - “मैंने इसे कोई धमकी या लालच नहीं दिया । न ही मैंने इसे एक्सीडेंट का झूठा गवाह बनाने की कोशिश की है । यह खुद अपनी मर्जी से झूठा गवाह बना होगा और इनाम के लालच में खुराना साहब के पास पहुंच गया होगा ।”
“कौन से इनाम के लालच में ?” - सुनील बोला ।
“वही इनाम जिसकी घोषणा रोज अखबार में छपती थी ।”
“लेकिन अखबार में विज्ञापनदाता का नाम नहीं छपता था । मुझे क्या मालूम कि विज्ञापन खुराना साहब छपवा रहे थे ।”
“विज्ञापन तुम्हारे अखबार में छपता था । तुम मालूम कर सकते थे ।”
चोपड़ा ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर चुप हो गया ।
“लेकिन मैं तो खुराना साहब के पास गया ही नहीं । उन्होंने ही मेरे से होटल में सम्पर्क स्थापित किया था और फिर मुझे वीणा को भेजकर बुलाया था । उन्हें मेरी खबर कैसी हुई ?”
“तुम्हीं ने बताया होगा ।”
“सुनील ने नहीं बताया ।” - वीणा दबे स्वर में बोली ।
सबका ध्यान वीणा की ओर चला गया ।
“यह बात गौरीशंकर ने आफिस में आकर खुराना को बताई थी ।” - वीणा पूर्ववत् धीमे स्वर से बोली - “कि सुनील नाम का कोई एक्सीडेंट का चश्मदीद गवाह होटल टूरिस्ट में मौजूद है । यह अपने साथ इस सन्दर्भ से लिखी सुनील की चिट्ठी भी लाया था । बाद में खुराना साहब ने ही सुनील से सम्पर्क स्थापित किया था ।”
“अब बोलो” - सुनील बोला - “क्या कहते हो ?”
“यह लड़की झूठ बोल रही है” - गौरीशंकर बोला - “रवि बाबू ने अभी ठीक कहा था । यह लड़की तुम्हारी मुट्ठी में है तुम इससे जो चाहो कहलवा सकते हो ।”
“अनीता” - सुनील अनीता से बोला - “तुम बोलो । क्या तुम्हारे फ्लैट में गौरीशंकर ने मुझे धमकी और लालच देकर झूठा गवाह बनने के लिये तैयार नहीं किया था ?”
गौरीशंकर ने अग्नेय नेत्रों से अनीता की ओर देखा ।
अनीता के चेहरे का रंग उड़ गया ।
“म - मैं - मैं - कुछ नहीं जानती ।” - वह हकलाती हुई बोली ।
“तुम इससे डरती हो । इसलिये कुछ कहना नहीं चाहती ।”
“मैं - मैं - कुछ नहीं जानती । मैं कुछ नहीं जानती ।”
“एक मिनट मेरी बात सुनो” - प्रभूदयाल बोला - “बहस की खातिर अगर एक क्षण के लिये मान लिया जाये कि दोनों कारों का आपस में एक्सीडेंट नहीं हुआ तो फिर उन्हें नुकसान कैसे पहुंचा ?”
“मैं अपना अनुमान बताता हूं कि नुकसान कैसे पहुंचा ?” - सुनील बोला - “पहले खुराना की कार के बारे में सुनो । साढे चार बजे खुराना अपने आफिस में काफी शराब पी लेने के बाद एकदम सही सलामत कार पर रवाना हुआ था । पांच बजे के करीब मैटकाफ रोड पर एक्सीडेंट हुआ था जिसकी खबर पन्द्रह तारीख के अखबार में छपी है । यह देखो ।” - और सुनील ने ‘ब्लास्ट’ का तीसरा पृष्ठ प्रभूदयाल के सामने कर दिया - “इस खबर के अनुसार एक एम्बेसेडर कार झेरी रोड की ओर से आ रही थी । चश्मदीद गवाहों का कहना है कि कार का ड्राइवर बड़ी लापरवाही से कार चला रहा था और नशे में मालूम होता था । मैटकाफ रोड पर आते ही वह कार विपरीत दिशा से आते हुए एक ट्रंक से टकराकर घूम गयी थी । ट्रक तो आगे निकल गया था लेकिन कार ड्राइवर के कन्ट्रोल से एकदम बाहर हो गई थी । सड़क पर साइकिल पर सवार दो लड़के जा रहे थे । कार साइकिल को अपने लपेट में लेती हुई सीधे एक पेड़ से जा टकराई थी । बाद में कार वाला वहां से भाग खड़ा हुआ था । मेरा दावा है कि वह कार वाला और कोई नहीं रोशनलाल खुराना था । वह उस समय नशे में था । अगर वह वहां रुकता तो सारा इल्जाम उसी पर आता क्योंकि वह शराब पीकर गाड़ी चला रहा था इसलिये भयभीत होकर खुराना वहां से भाग खड़ा हुआ लेकिन एक्सीडेंट तो हुआ ही था और एक्सीडेंट में उसकी कार को क्षति भी पहुंची थी । वह जानता था कि अगर उसने अपनी कार का अगला भाग पिचका होने की कोई मुनासिब सफाई न ढूंढी तो वह फंस सकता था । क्योंकि जब वह गाड़ी को मरम्मत के लिये भेजता तो गैरेज वाले जरूर पुलिस को सूचित करते और फिर पुलिस का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हो जाता । खुराना शायद रविकुमार या गौरीशंकर में से किसी को या दोनों को जानता था । उस दिन चार बजे से पहले किसी समय रविकुमार का भी एक्सीडेंट हुआ था । इसीलिय तय यह हुआ कि वे कहें कि उनकी गाड़ियां लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रासिंग पर आपस में टकरा गई थी इसलिये यह कहा गया कि खुराना ने पीछे से अपनी गाड़ी रविकुमार की गाड़ी में दे मारी थी । अगर दोनों गाड़ियों के अगले भाग को क्षति पहुंची होती तो वो कहते कि दोनों गाड़ियां चौराहे पर आमने-सामने से आती टकरा गई थीं । लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रासिंग के पास की जगह इसलिये चुनी गई क्योंकि उन सड़कों पर ट्रैफिक बहुत कम होता है और उनके आप-पास इमारतें नहीं है । अगर ये लोग किसी भीड़ भरी सड़क का नाम लेते तो यह कहने वाले बहुत निकल आते कि वास्तव में एक्सीडेंट हुआ ही नहीं और साढे तीन बजे का समय इसलिये निर्धारित किया गया कि एक तो शायद रविकुमार का एक्सीडेंट हुआ ही इसी वक्त था और दूसरे शायद खुराना यह चाहता था कि समय आफिस की पार्टी में उसके शामिल होने से पहले का निर्धारित किया जाये क्योंकि साढे तीन बजे तक उसने शराब पी थी । अगर वह चार के बाद का समय निर्धारित करता तो तफ्तीश होने पर फिर उस पर यह इल्जाम आ सकता था उसने शराब पीकर एक्सीडेंट कर दिया था ।”
“यह आदमी बकवास...” - रविकुमार क्रोधित स्वर से बोला ।
“आप फिलहाल चुप रहिये ।” - प्रभूदयाल अधिकार पूर्ण स्वर में बोला । शायद उसे सुनील की बात जंच गई थी ।
“अच्छा मान लिया” - प्रभूदयाल सुनील से बोला - “कि मैटकाफ रोड वाला एक्सीडेंट खुराना की वजह से हुआ था और उसी एक्सीडेंट में पांच बजे उसकी कार को क्षति पहुंची थी अब रविकुमार की फियेट का पहुंची क्षति के बारे में तुम्हारी क्या राय है ?”
“चौदह नवम्बर को साढे तीन बजे के करीब नेशनल बैंक की धर्मपूरे की ब्रांच में डाका पड़ा था” - सुनील बोला - “याद है ?””
“याद है ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“डाके का विवरण अगले दिन अखबारों में छपा था ।” - सुनील ने ‘ब्लास्ट’ का प्रथम पृष्ठ उस स्थान से मोड़कर प्रभूदयाल के सामने रख दिया जहां से वह उसे उस समय पढ रहा था, जब अर्जुन आया था - “चौदह नवम्बर शाम को साढे तीन बजे दो हथियारबन्द आदमी बैंक से घुस गये थे । उनमें से एक बैंक के स्टाफ को कवर किये रहा और दूसरे ने कैशियर को रिवाल्वर दिखाकर सारा माल एक सूटकेस में भरने के लिये मजबूर किया । उसका एक तीसरा साथी बाहर कार में मौजूद था । जब भीतर के दोनों डाकू माल लूट चुकने के बाद बाहर निकले थे तो तीसरे साथी ने कार बैक करते हुए बैंक के दरवाजे के एकदम सामने लाकर खड़ी करने की कोशिश की थी लेकिन हड़बड़ाहट में वह समय पर ब्रेक नहीं लगा पाया था और कार पीछे दीवार से जा टकराई थी जिसकी वजह से कार का पिछला भाग पिचक गया । लेकिन डाकू बैंक का पचास हजार रुपया सफलतापूर्वक लूट ले जाने में कामयाब हो गये थे । चश्मदीद गवाह का कहना है कि डाकुओं की कार नीले रंग की फियेट थी । और प्रभू” - सुनील अर्थपूर्ण स्वर से बोला - “अब तुम मिस्टर रवि कुमार से यह पूछो कि इनकी फियेट कार कौन से रंग की है ?”
“राजनगर में नीले रंग की फियेट एक ही तो नहीं है ।” - रविकुमार क्रोधित स्वर में बोला ।
“मैंने इनकी गाड़ी गैरेज में मरम्मत होती देखी है । वह नीले रंग की है और फियेट है ।”
उसी क्षण बगल के कमरे में टेलीफोन की घन्टी बज उठी ।
“कुलश्रेष्ठ साहब” - प्रभूदयाल बोला - “आप दरवाजे के पास हैं । जरा तकलीफ कीजिये । बगल के कमरे में जाकर टेलीफोन रिसीव कर लीजिये । जो भी बोल रहा हो उसे होल्ड करने के लिये कहियेगा ।”
कुलश्रेष्ठ सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाता हुआ बगल के कमरे में चला गया ।
प्रभूदयाल बाहर निकल गया ।
एक मिनट बाद जब वह वापिस लौटा तो उसके साथ चार सशस्त्र सिपाही थे । सिपाहियों को उस कमरे में छोड़कर वह बगल के कमरे में चला गया । कुलश्रेष्ठ वापिस अपने स्थान पर आ बैठा ।
सुनील के कान टेलीफोन की ओर लपक गये ।
“हल्लो” - प्रभूदयाल की धीमी आवाज आ रही थी - “हां... अच्छा ! वैरी गुड... हां, यहां आ जाओ और बनारसीदास जी को भी साथ ले आओ । ...ओके ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
प्रभूदयाल वापिस उस कमरे में आ गया ।
उसी क्षण एक अन्य सिपाही कमरे में प्रविष्ट हुआ । वह प्रभूदयाल के समीप आकर बड़े अदब से बोला - “ज्यूपिटर डिक्टेक्टिव ब्यूरो में कोई अग्रवाल साहब आये हैं । कहते हैं आपने उन्हें बुलाया है ।”
“यहीं ले आओ ।” - प्रभूदयाल बोला ।
कुछ क्षण के बाद लगभग एक पैंतीस साल का हष्ट-पुष्ट व्यक्ति कमरे में प्रविष्ट हुआ । कमरे में मौजूद इतने लोगों को देख कर वह सकपकाया और फिर प्रभूदयाल की ओर आकर्षित हुआ ।
“तशरीफ रखिये ।” - प्रभूदयाल एक खाली कुर्सी की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“मिस्टर अग्रवाल ।” - प्रभूदयाल बोला - “एक केस की तफतीश के दौरान में हमें घटनास्थल के आपके कम्पनी की यह रिपोर्ट मिली है जिसके नीचे आपके हस्ताक्षर हैं ।” - और प्रभूदयाल ने खुराना के दफ्तर से बरामद ज्यूपिटर डिक्टेक्टिव ब्यूरो की वह रिपोर्ट अग्रवाल को थमा दी जो पिछली रात को सुनील ने भी देखी थी - “मैं यह जानना चाहता हूं कि यह रिपोर्ट आपने किसको भेजी थी ?”
“मैं नहीं बता सकता ।” - अग्रवाल बोला ।
प्रभूदयाल का चेहरा लाल हो गया ।
“ओह प्लीज इन्स्पेक्टर ।” - अग्रवाल जल्दी से बोला - “मुझे गलत मत समझिये । मेरा मतलब यह था कि हम अपने क्लायन्ट का नाम नहीं जानते हैं ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह है कि हमें टेलीफोन पर मिस अनीता की निगरानी करने का आदेश मिला था ।” - अग्रवाल एक छुपी निगाह अनीता पर डालता हुआ बोला - “और मनीआर्डर से हमें अपनी फीस मिली थी । लिखित रिपोर्ट भेजने के बारे में हमें बम्बई का एक पता बताया गया था जिस पर हम बिना किसी का नाम लिखे रिपोर्ट भेज देते थे । और एक हमें टेलीफोन नम्बर बताया गया था जिस पर इमरजेन्सी में फोन किया करते थे ।”
“पता क्या है ?”
“फ्लैट नम्बर आठ, मनसुखानी मैंशन, पन्द्रहवा रास्ता, खार, बम्बई ।”
“और टेलीफोन नम्बर ?”
“233469 ।”
“आपने यह जानने की कोशिश नहीं कि कि वह टेलीफोन कहां लगा हुआ है ?”
“की थी । टेलीफोन उसी पते पर लगा हुआ है जहां हम रिपोर्ट भेजते थे ।”
“टेलीफोन किसके नाम है ?”
“किसी कैलाशचन्द गुप्ता के नाम टेलीफोन है लेकिन जरूरी नहीं कि वह हमारे कलायन्ट हों ।”
“मैं समझता हूं ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“प्रभू ।” - सुनील बोला - “अब मिस्टर रविकुमार से पूछो कि बम्बई में वह कहां रहते थे ?”
“ओह शटअप, डैम यू ।” र- विकुमार दांत पीसकर बोला ।
“बम्बई में आप कहां रहते थे मिस्टर रविकुमार ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
रविकुमार ने उत्तर नहीं दिया ।
“छुपाना बेकार है ।” - प्रभूदयाल बोला - “हम वैसे भी पता लगा सकते हैं । कम-से-कम इतना तो हम फौरन जान सकते हैं कि मिस्टर अग्रवाल के बताये पते पर आप रहते थे या नहीं ।”
“मैं वहीं रहता था ।” - रविकुमार तीव्र अनिच्छापूर्ण स्वर से बोला ।
“यानी कि मिस्टर अग्रवाल को आपने अनीता की निगरानी के लिये तैनात किया था ?”
रविकुमार एकाएक बेहद बेचैन दिखाई देने लगा ।
“जरूर यह हमारे क्लायन्ट हैं ।” - अग्रवाल बोला - “मैं इनकी आवाज पहचानता हूं । टेलीफोन पर इनसे बहुत बार बात हुई है ।”
“मिस्टर रविकुमार ।” - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला - “मैंने आपसे एक सवाल पूछा है ?”
“मैंने ही ज्यूपिटर डिटेक्टिव एजेन्सी को अनीता के पीछे लगाया था ।” - रविकुमार बोला ।
“क्यों ?”
“वजह मैं आपको नहीं बताना चाहता ।”
“वजह मैं समझती हूं ।” - अनीता क्रोधित स्वर से बोली - “जरूर इसे मेरे चरित्र पर सन्देह होगा ।”
“क्या यही वजह है मिस्टर रविकुमार ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“मैं इस विषय में कुछ नहीं कहना चाहता ।” - रविकुमार बोला ।
“यह रिपोर्ट आपने बम्बई के पते पर भेजी थी ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“जी हां ।” - अग्रवाल बोला - “बाई एयर मेल ।”
“तो फिर यह कल रात खुराना के आफिस में कैसे पहुंच गई ?”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“मिस्टर रविकुमार ?”
“मुझे क्या मालूम ?” - रविकुमार बोला - “मुझे यह रिपोर्ट नहीं मिली । मैं तो यह रिपोर्ट अभी देख रहा हूं ।”
उसी क्षण एक ए एस आई के साथ लगभग साठ साल के चूड़ीदार पजामा और अचकनधारी वृद्ध ने प्रवेश किया ।
“बनारसीदास जौहरी ।” - ए एस आई बोला ।
“आइये बनारसीदासजी ।” - प्रभूदयाल बोला - “यहां मेरे पास आकर बैठिये ।”
बनारसीदास प्रभूदयाल की बगल में बैठ गया । उसने बारी-बारी कमरे में बैठे सब व्यक्तियों पर निगाह डाली । रविकुमार पर निगाह पड़ते ही उसका चेहरा खिल उठा ।
“अरे रवि बाबू ।” - वृद्ध बोला - “आप यहां कैसे ?”
“आज ही सुबह के प्लेन से बम्बई से आया हूं ।” - रवि बोला ।
सुनील को यूं लगा जैसे बनारसीदास को देखकर रविकुमार व्याकुल हो उठा ।
ए एस आई ने कागज में लिपटी हुई कोई चीज प्रभूदयाल को थमाई । प्रभूदयाल ने कागज उतारकर एक ओर फेंक दिया । उसके हाथ में चांदी का वही सिगरेट लाइटर चमक रहा था जो सुनील ने खुराना के दफ्तर में कालोनी के माडल के नीचे दबा देखा था ।
“आप इस लाइटर को पहचानते हैं, मिस्टर रविकुमार ?” - प्रभूदयाल सहज स्वर में बोला ।
“नहीं ।” - रविकुमार जल्दी से बोला ।
“न - न... न !” - इतनी जल्दी जवाब मत दीजिये । आपने तो अभी लाइटर को ठीक से देखा तक नहीं । लाइटर को अपने हाथ में ले लीजिये । इसे अच्छी तरह परखिये और फिर जवाब दीजिये ।”
और प्रभूदयाल ने लाइटर रविकुमार की गोद में फेंक दिया ।
रविकुमार ने लाइटर को यूं उठाया जैसे वह जलता हुआ अंगारा हो । उसने एक गुप्त निगाह बनारसीदास पर डाली ।
अनीता की भी निगाह लाइटर पर थी । उसने कुछ कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर कुछ सोचकर चुप हो गई ।
“आप कुछ कहने जा रही थीं, मिस अनीता ?” - प्रभूदयाल मीठे स्वर से बोला ।
“जी... जी... जी नहीं ।” - अनीता हकलाकर बोली - “जी.. नहीं... कु... कुछ नहीं ।”
“शायद आप यह कहने जा रही थीं कि यह लाइटर आपने मिस्टर रविकुमार के पास देखा था ।”
“जी नहीं । जी नहीं ।”
“आप यह कहने नहीं जा रही थीं, या आपने यह लाइटर कभी मिस्टर रविकुमार के पास देखा नहीं ?”
“जी... जी...”
“यह सिगरेट लाइटर मेरा है ।” - एकाएक रविकुमार निर्णयात्मक स्वर से बोला ।
“अभी तो आप इन्कार कर रहे थे ?”
“मैंने जल्दबाजी में जवाब दे दिया था । आपका कहना ठीक था । मुझे लाइटर को हाथ में लेकर अच्छी तरह देख-परख कर जवाब देना चाहिये था । मेरा यह लाइटर पन्द्रह-बीस दिन पहले कहीं खो गया था । आपको कहां से मिला यह ?”
“कहां खोया था यह साहब ?”
“याद नहीं । सच पूछिये तो मालूम ही नहीं । आपको कहां मिला यह ?”
“मिस्टर खुराना के दफ्तर में । हमारा ख्याल है कि यह लाइटर मिस्टर खुराना के हत्यारे के पास से छीना-झपटी में वहां गिर गया था ।”
“फिर तो आप इसके बारे में मिस्टर सुनील से पूछिये ।”
“आपकी निगाह में हत्यारा सुनील है ?”
“लाश तो इसी की कार की डिक्की में से बरामद हुई है ।”
“वाह, वाह, वाह ।” - सुनील उपहासपूर्ण स्वर से बोला - “क्या दलील पेश की है । क्या ओरिजिनल बात कही है ।”
रविकुमार ने कहर भरी निगाहों से सुनील की ओर देखा ।
“एयरपोर्ट पर होने का एक और फायदा उठाओ, प्रभू ।” - सुनील बोला ।
“क्या ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“पता लगाओ कि कल रात बारह बजे और सुबह छः बजे के बीच कोई प्लेन बम्बई गया था ? और अगर गया था तो क्या उसमें रविकुमार नाम का कोई ऐसा पैसेन्जर था जिसने एयरपोर्ट पर आकर ही टिकट खरीदी हो ।”
“गुड आइडिया ।” - प्रभूदयाल बोला - “मोहनसिंह पता करके आओ ।”
ए एस आई कमरे से बाहर चला गया ।
रविकुमार के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद ए एस आई वापिस लौटा ।
“रात को डेढ बजे एक प्लेन बम्बई गया था जिसमें रवि कुमार नाम का एक मुसाफिर था । उसने एयरपोर्ट आकर ही सीट बुक कराई थी ।”
“आप कल राजनगर में थे और डेढ बजे के प्लेन से बम्बई गये थे ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“सवाल ही नहीं पैदा होता ।” - रविकुमार दृढ स्वर में बोला - “वह कोई और रविकुमार होगा ।”
“मैं वह रिजर्वेशन फार्म भी निकलवा लाया हूं” - ए एस आई बोला - “जो रविकुमार ने खुद भरा था और जिस पर रविकुमार के हस्ताक्षर हैं ।”
“वैरी गुड, आप जरा एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर कीजिये मिस्टर रविकुमार ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“मैं पूछता हूं यह क्या हिमाकत है ।” - रविकुमार उठकर खड़ा हो गया और चिल्लाता हुआ बोला ।
“बैठ जाइये ।” - प्रभूदयाल कठोर स्वर में बोला ।
“आप मुझे यहां ऐसी बेहूदगी में फंसाकर नहीं रख सकते । आप मुझसे यूं किसी मुजरिम की तरह जवाब तलबी नहीं कर सकते । यह अदालत नहीं है । मैं जा रहा हूं ।”
और रविकुमार दरवाजे की ओर बढा ।
“वापिस आओ मिस्टर रविकुमार ।” - प्रभूदयाल चिल्लाया ।
रविकुमार ने जैसे सुना ही नहीं ।
प्रभूदयाल ने रिवाल्वर निकाल ली ।
रिवाल्वर पर निगाह पड़ते ही अनीता की चीख निकल गई ।
“रुक जाओ वरना शूट कर दूंगा ।”
रविकुमार रुक गया ।
“मोहनसिंह !” - प्रभूदयाल गर्जा - “गिरफ्तार कर लो ।”
अगले ही क्षण रविकुमार के हाथों में हथकड़ियां दिखाई दे रही थी ।
तुरन्त बाद गौरीशंकर भी गिरफ्तार हो गया ।
***
रामप्रकाश चोपड़ा पार्किंग में खड़ी अपनी कार की ओर बढ रहा था ।
“चोपड़ा साहब ।” - सुनील ने आवाज लगाई ।
चोपड़ा ठिठक गया । सुनील लपककर उसके पास पहुंचा ।
चोपड़ा ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
सुनील ने सौ-सौ के पांच नोट निकाले और उसे चोपड़ा की ओर बढाता हुआ बोला - “अपनी अमानत तो लेते जाइये ।”
“रखो यार ।” - चोपड़ा लापरवाही से बोला ।
“मेरा तो इन पर कोई हक ही नहीं बनता जनाब । अब तो हालात बहुत तेजी से करवट बदल गये, आपसे यहां मुलाकात हो गई वरना वैसे भी मैंने आपको आपकी रकम लौटाने आना ही था ।”
“माफ करना, यार । मैंने तुम्हें बहुत गलत समझा ।”
“मैं माइन्ड नहीं करता क्योंकि बाद में अक्सर लोग मुझे ठीक समझ लेते हैं ।”
चोपड़ा को अभी भी हिचकिचाता देखकर सुनील ने नोट जबरदस्ती उसकी जेब में ठूंस दिये ।
“अब आप भी एक रहस्य पर से पर्दा उठा दीजिये, चोपड़ा साहब ।” - सुनील बोला ।
चोपड़ा ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“आपने एक्सीडेन्ट के चश्मदीद गवाह के लिये विज्ञापन क्यों दिया ?”
चोपड़ा एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “क्योंकि मुझे भी शक था कि एक्सीडेन्ट कोई फ्राड है ।”
“आपको शक कैसे हुआ ?”
“वीणा की वजह से हुआ । उसी ने मुझे भी बताया था कि चौदह नवम्बर को साढे चार बजे उसने खुराना की कार को एकदम सही-सलामत हालत में देखा था । मैं बिना अपने-आपको जाहिर किये यह बात बीमा कम्पनी की जानकारी में लाना चाहता था कि उनके एक झूठे एक्सीडेन्ट के आधार पर हरजाने के लिये ठगा जा रहा था । इसलिये मैंने अखबार में चश्मदीद गवाह के लिये विज्ञापन दिया और पहले ढाई सौ रुपये का इनाम घोषित किया और फिर इनाम बढाकर पांच सौ रुपये कर दिया । इसी प्रकार मैं इनाम दो हजार रुपये तक बढा देना चाहता था । अगर तब तक भी कोई चश्मदीद गवाह सामने न आता - जो कि आ सकता ही नहीं था क्योंकि एक्सीडेन्ट हुआ ही नहीं था - तो क्या यह इस बात का पर्याप्त सबूत न होता कि वास्तव में कथित एक्सीडेन्ट हुआ ही नहीं था । तब तक बीमा कम्पनी भी सन्दिग्ध हो उठती, पुलिस भी सन्दिग्ध हो उठती और फिर खुराना फ्राड में फंसता ।”
“इससे आपको क्या फायदा होता ?”
“खुराना अब इस संसार में नहीं है इसलिये मुझे उसके बारे में कोई अप्रिय बात नहीं कहनी चाहिये लेकिन हकीकत यह है कि वह मेरे साथ सख्त हरामजादगी के साथ पेश आ रहा था । उसको मेरा एक रहस्य पता लगा गया था जिसके खुल जाने से मेरी जिन्दगी बरबाद हो सकती थी । उसी रहस्य की खोल देने की धमकी देकर वह मुझे ब्लैकमेल कर रहा था । वह पार्टनरशिप खतम करना चाहता था । कम्पनी का धन्धा उम्मीद से बेहद ज्यादा फायदे में जा रहा था और आगे-आगे और भी अधिक फायदे होने की सम्भावना थी इसलिये उसके मन में बेईमानी आ गई थी । वह चाहता था कि मैं कोई औनी-पौनी रकम लेकर कम्पनी से अलग हो जाऊं और वह कम्पनी का अकेला मालिक बन जाये । अगर बीमा कम्पनी को धोखा देने के इल्जाम में वह जेल चला जाता तो मेरी बात बन जाती । फिर उसकी जगह मैं कम्पनी का अकेला मालिक बनने की कोशिश कर सकता था । लेकिन जब मेरे पास तुम्हारा जवाब पहुंचा तो मेरी आशाओं पर पानी फिर गया । मैं तुमसे मिला और तुमने बड़े विश्वासनीय ढंग से एक्सीडेन्ट की गड़ी कहानी सुनाई तो मेरा बिल्कुल ही दिल टूट गया । मैं समझा कि शायद वीणा को धोखा हुआ है, शायद एक्सीडेन्ट वाकई हुआ था और वैसे ही हुआ था जैसे खुराना कहता था । अतः मैंने तुम्हें पांच सौ रुपये दिये तुम्हें सारे सिलसिले को भूल जाने को कहा और खुद भी सारा सिलसिला अपने दिमाग से निकाल दिया ।”
“आई सी । आपके मेरे फ्लैट में आने से पहले मुझे यह तो सपने में भी नहीं सूझा था कि विज्ञापन आपने दिया था क्योंकि मेरे ख्याल से तो आपके विज्ञापन देने की कोई वजह ही नहीं थी ।”
“तुमने क्या समझा था कि विज्ञापन बीमा कम्पनी ने दिया था ?”
“नहीं । अगर बीमा कम्पनी ने विज्ञापन दिया होता तो विज्ञापन में कम्पनी का नाम होता । उन्हें अपने-आपको छुपाने से कोई फायदा नहीं था और न ही खुराना साहब द्वारा विज्ञापन दिये जाने की कोई तुक थी । क्योंकि वह तो पन्द्रह तारीख को ही पुलिस के सामने भी और बीमा कम्पनी के प्रतिनिधि के सामने भी यह स्वीकार करा चुके थे कि एक्सीडेन्ट उनकी गलती से हुआ था । अगर एक्सीडेन्ट वास्तव में हुआ होता और सच ही कोई गवाह निकल आता तो भी वह यही कहता कि एक्सीडेन्ट खुराना साहब की गलती से हुआ था । अगर वह यह भी कहता कि एक्सीडेन्ट दूसरी पार्टी की गलती से हुआ था तो भी खुराना साहब को कोई फायदा नहीं था क्योंकि वह पहले ही अपनी गलती मान चुके थे ।”
“अच्छा एक बात बताओ, तुम झूठे गवाह क्यों बने ?”
“आप जानते थे कि आपके विज्ञापन की ओर बीमा कम्पनी का ध्यान आकृष्ट हो और वे सन्दिग्ध हो उठें कि आखिर यह कैसे सम्भव है कि एक्सीडेन्ट का कोई गवाह ही न हो लेकिन मेरा ध्यान इस बात की ओर पहले आकृष्ठ हो गया । मैं पहले सन्दिग्ध हो उठा । मुझे भी उस एक्सीडेन्ट में कोई रहस्य दिखाई देने लगा । मैंने एक न्यूज पेपरमैन के इन्ट्रेस्ट से पूछताछ शुरू की । मुझे झूठा गवाह बनने के लिये कहा गया तो मैं और भी सन्दिग्ध हो उठा । मैंने झूठा गवाह बनना इसलिये स्वीकार कर लिया कि देखें आगे क्या होता है । मुझे उम्मीद थी कि मेरी झूठी गवाही ठहरे पानी में पत्थर फेंकने का काम करेगी और वही हुआ । जो हंगामा मचा, उसका खात्मा कैसे हुआ यह आपके सामने है ।”
“अच्छा एक बात बताओ । तुमने यह कैसे कह दिया था कि तुम्हारी कार की डिक्की में खुराना की लाश रविकुमार ने रखी थी ?”
“तुक्का मार दिया था । आखिर मेरी कार की डिक्की में लाश किसी ने तो रखी ही थी । और वह दो आदमियों का काम था । केस में मुझे रविकुमार और गौरीशंकर से ज्यादा सन्दिग्ध और आदमी दिखाई नहीं दे रहे थे । इसलिये मैंने तुक्का मार दिया । वैसे तो अभी वे दोनों गिरफ्तार ही हुए हैं । सिद्ध तो कुछ भी नहीं हुआ है । खुराना की हत्या कैसे हुई और क्यों हुई ? यह पता लगाने में तो अभी वक्त लगेगा ।”
“देखते हैं क्या होता है ।”
सुनील ने चोपड़ा से हाथ मिलाया और वहां से विदा हो गया ।
***
अगले दिन ‘ब्लास्ट’ में खुराना की हत्या से सम्बन्धित सारा विवरण छपा । प्रकाशित रिपोर्ट में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की तस्वीर छपी थी और सुनील ने उसकी सूझबूझ और तत्परता के पुल बांध दिये थे । राजनगर की पुलिस के इतिहास में यह पहला मौका था कि चौबीस घन्टे के अन्दर-अन्दर न केवल हत्यारा गिरफ्तार कर लिया गया था बल्कि उसने अपना अपराध भी कबूल कर लिया था ।
नेशनल बैंक में डाका रविकुमार गौरीशंकर और उनके हरिनामसिंह नाम के एक और साथी ने डाला था, हरनामसिंह भी विक्रमपुर में स्थित अपने निवास स्थान से गिरफ्तार कर लिया गया था बैंक से लूटा हुआ अधिकतम माल तीनों मुजरिमों से बरामद कर लिया गया था ।
चौदह नवम्बर को शाम पांच बजे मैटकाफ रोड पर एक्सीडेंट के लिये रोशनलाल खुराना ही जिम्मेदार था । रोशनलाल खुराना ने उस समय यह समझा था कि साइकल सवार दो लड़के जो उसकी कार की चपेट में आ गये थे, मर गये थे लेकिन वास्तव में तुरन्त हस्पताल पहुंचा दिये जाने के कारण वे दोनों हो बच गये थे । गौरीशंकर खुराना का दोस्त था । उसी शाम को संयोगवश दोनों की मुलाकात हो गई । खुराना ने उसे बताया कि वह एक एक्सीडेंट कर बैठा है जिसमें शायद दो लड़के मर गये हैं और जिसमें उसकी कार का अगला भाग क्षतिग्रस्त हो गया है । गौरीशंकर उस समय खुद ऐसी ही मुश्किल का शिकार था । साढे तीन बजे उसने रविकुमार और हरनामसिंह के साथ नेशनल बैंक में डाका डाला था । वहां से भागते समय रविकुमार की बेवकूफी से उसकी फियेट का पिछला भाग क्षतिग्रस्त हो गया और वह जानता था कि अगर उन्होंने फियेट का तुरन्त कोई इन्तजाम न किया तो उसी की वजह से पकड़े जायेंगे । खुराना ने अपने एक्सीडेंट की बात की तो उसे एक शानदार तरकीब सूझी । उसने खुराना को बताया कि उसके दोस्त रविशंकर की फियेट का कहीं और एक्सीडेंट हो गया था । क्यों न वो दोनों यह जाहिर करें कि उनकी कारें आपस में टकराई थी । इस प्रकार दोनों की ही कारों की क्षति की मुनासिब सफाई तैयार हो जायेगी ।
ऐसा ही किया गया । खुराना ने कह दिया कि उसकी गलती से उसकी कार रविकुमार की कार के पृष्ठ भाग से जा टकराई थी ।
लेकिन खुराना यह नहीं जानता था कि रविकुमार तो पेशेवर अपराधी था । उसने उस झूठे एक्सीडेंट का भी फायदा उठाने की कोशिश की । बैंक के डाके के दौरान जब उसकी कार बैक होती हुई दीवार से जा टकराई थी तो उसकी गरदन को जोर का झटका लग गया था । लालच में फंसकर उसने यह जाहिर किया कि ऐसा खुराना के साथ हुए फर्जी एक्सीडेंट में हुआ था और उसने बीमा कम्पनी पर पचास हजार रुपये का हरजाने का दावा ठोक दिया ।
खुराना इस नई स्थिति से घबरा गया । क्योंकि इस प्रकार तो वह धोखेबाजी में शामिल हो जाता । अगर कभी बोगस एक्सीडेंट की बात खुल जाती तो यही समझा जाता कि खुराना और रविकुमार ने बीमा खुल जाती तो यही समझा जाता कि खुराना और रविकुमार ने बीमा कम्पनी से पचास हजार रुपये हथियाने की स्कीम मिलकर घड़ी है । उसने गौरीशंकर से बात की - रविकुमार तो दावा ठोककर बम्बई चला गया था - गौरीशंकर ने उसे समझाया कि डरने की कोई बात नहीं हैं लेकिन खुराना डरपोक आदमी था, वह डरता रहा । जब अखबार में रोज चश्मदीद गवाह के लिये विज्ञापन छपने लगा तो वह और भी डर गया । उसने गौरीशंकर को कहा कि अगर कोई गवाह नहीं निकलेगा तो बीमा कम्पनी संदिग्ध हो उठेगी कि कहीं एक्सीडेंट बोगस तो नहीं । गौरीशंकर ने उसे दिलासा दिया कि वह गवाह पैदा कर देगा ।
गौरीशंकर ने बोगस गवाह के तौर पर सुनील को तैयार किया और उसकी सूचना खुराना को दे दी ।
खुराना ने सुनील से बात की ।
सुनील से मुलाकात के बाद आश्वस्त होने के स्थान पर वह और भी डर गया । शायद उसने समझा कि सुनील कोई पुलिस का जासूस है जो गौरीशंकर का विश्वास जीतने में कामयाब हो गया है । उसे लगा कि उसे फंसाने के लिये कोई जाल बुना जा रहा है - जिसकी उसे या गौरीशंकर को कोई खबर नहीं लग रही ।
उसी दिन शायद उसे खबर लगी कि एक्सीडेंट की चपेट में आये हुए लड़के मरे नहीं है ।
उस रात उसकी हिम्मत इस हद तक पस्त हो गई कि उसने अपराध स्वीकार कर लेने का फैसला कर लिया । उस रात वह अपनी कार पर अपने आफिस में गया । वीणा के टाइपराइटर पर उसने अपने अपराध की स्वीकृति टाइप करनी आरम्भ कर दी ।
उसी रात को रविकुमार बम्बई से वापिस लौटा था क्योंकि तब तक उसे ज्यूपिटर डिटेक्टिव एजेन्सी की रिपोर्ट से मालूम हो चुका था कि गौरीशंकर और अनीता ने मिलकर जो बोगस गवाह तलाश किया था वह कोई सजायाफ्त मुजरिम नहीं बल्कि ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर सुनील है । ऐसे आदमी को पहले से ही भयभीत खुराना के सम्पर्क में लाना खतरनाक साबित हो सकता था इसलिये वह दौड़ा हुआ राजनगर आया । राजनगर में उसे गौरीशंकर ने फिर बताया कि खुराना बहुत भयभीत है और उसके कोई गड़बड़ कर देने की आशंका है । दोनों खुराना से मिलने के लिये उसे तलाश करते-करते उसके आफिस में पहुंचे । वहां उन्होंने खुराना को अपने अपराध की स्वीकृति लिखते हुए पाया तो दोनों के होश उड़ गये ।
रविकुमार ने टाइपराइटर से रिपोर्ट का कागज खींच लिया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये । फौरन बाद गाली-गलौच हाथापाई का वातावरण पैदा हो गया । खुराना वहां से निकल भागना चाहता था और वे दोनों उसे उस मानसिक अवस्था में अपनी निगाहों से दूर नहीं करना चाहते थे । झगड़ा इस हद तक बढा कि एक बार रविकुमार ने आपे से बाहर होकर खुराना के सिर पर कुर्सी दे मारी ।
खुराना की तुरन्त मृत्यु हो गई ।
छीना-झपटी और हाथापाई के उस आलम में रविकुमार की जेब से उसका सिगरेट लाइटर और ज्यूपिटर डिटेक्टिव एजेन्सी की भेजी हुई रिपोर्ट गिर गये थे ।
हत्या के बाद दोनों ने मिलकर खिड़की के रास्ते खुराना की लाश इमारत से बाहर निकालकर रविकुमार की कार की डिकी में लादी । रविकुमार अपनी कार में सवार हुआ और गौरीशंकर खुराना की कार में और दोनों बाहर की ओर चल दिये ।
शहर में उन्होंने खुराना की कार एक उजाड़ सड़क पर छोड़ दी ।
तब रविकुमार को मालूम हुआ कि उसका सिगरेट लाइटर और डिटेक्टिव एजेन्सी की रिपोर्ट खुराना के आफिस में ही गिर गये थे ।
दोनों वापिस खुराना के आफिस में पहुंचे ।
वहां उन्होंने सुनील को खुराना के आफिस की तलाशी लेते पाया । उन्होंने उसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन सुनील खिड़की से कूदकर निकल भागने में कामयाब हो गया । रविकुमार कार लेकर उसके पीछे भी भागा लेकिन उसे पकड़ नहीं पाया । अगर उस समय सुनील उनकी पकड़ में आ जाता तो वे निश्चय ही उसकी हत्या करने की कोशिश करते ।
रविकुमार के वापिस लौटने तक खुराना के दफ्तर में गौरीशंकर के हाथ में सुनील का वह दस्तखतशुदा बयान लग चुका था जो वह जाहिर करता था कि वह सुनील एक्सीडेट का गवाह था । बयान की कीमत तो खुराना की जिन्दगी में ही थी । खुराना की मौत के बाद उसकी जरूरत नही रह गई थी । इसलिये गौरीशंकर ने वह बयान नष्ट कर दिया ।
रविकुमार का वापिस लौट आया । अब उन दोनों के सामने दो समस्यायें थीं ।
एक तो खुराना की लाश को ठिकाने लगाना ।
और दूसरे सुनील से निपटना ।
दोनों समस्याओं का उन्हें यही हल सूझा कि खुराना की लाश की सुनील की कार में छुपा दिया जाये और उसे खुराना के कत्ल के इल्जाम में फंसाया जाये ।
होटल टूरिस्ट के सामने खड़ी सुनील की कार की डिकी में उन्होंने खुराना की लाश डाल दी ।
अपनी दूसरी बार आगमन के दौरान रविकुमार को आफिस में अपना सिगरेट लाइटर और डिटेक्टिव एजेन्सी की रिपोर्ट ढूंढे नहीं मिली । वह समझ गया कि दोनों चीजें सुनील उठाकर ले गया था । स्वयं को सन्देह से परे करने के लिये वह उसी रात को बम्बई चला गया और अगली सुबह प्लेन पर चढकर फिर राजनगर आया यह जाहिर करता हुआ कि वह तभी पहली बार राजनगर लौटा था । लाइटर के बारे में वह कह सकता था कि वह गुम हो गया था और रिपोर्ट से अव्वल तो उसका सम्बन्ध हो नहीं जोड़ा जा सकता था और अगर सम्बन्ध जुड़ भी जाता तो वह बड़ी आसानी से कह सकता था कि रिपोर्ट उसे मिली ही नहीं ।
अपनी ओर से वह बड़ी सुरक्षित स्थिति में था लेकिन उसने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि अनीता सुनील की उसी कार पर उसे लेने एयरपोर्ट पहुंच जायेगी जिसकी डिकी में खुराना की लाश छुपी हुई थी और गौरीशंकर उसकी कार लेकर समय पर एयरपोर्ट नहीं पहुंच पायेगा । उसका ख्याल था कि उससे दूर किसी और माहौल में सुनील की कार में लाश बरामद होगी और उसे लेने के देने पड़ जायेंगे लेकिन सारा फसाद एयरपोर्ट पर होने की वजह से सुनील ने सारे सिलसिले में अपनी टांग ऐसी फसाई कि रविकुमार की तैयार की हुई अपनी सुरक्षा की स्कीम के जरिये उधड़ते चले गये ।
और उसके साथ सबसे बड़ा जुल्म यह हुआ कि - उसके अभिनय मित्र गौरीशंकर ने अपनी जान बचाने के लिये रविकुमार के खिलाफ शहादत दे दी । इस प्रकार वह खून के इल्जाम से बच गया ।
रविकुमार ने अनीता की निगरानी के लिये ज्यूपिटर डिटेक्टिव एजेन्सी के जासूसों को इसलिये तैनात किया हुआ था कि वह अनीता के प्रति चिन्तित था । उसे संदेह था कि अनीता को इस बात का अनुमान है कि रविकुमार की कार खुराना के साथ एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त नहीं हुई थी और यह कि - रविकुमार का नैशनल बैंक के डाके में कोई हाथ था । इस संदेह की यह भी वजह थी कि डाके के फौरन बाद जब रविकुमार अपने फ्लैट पर आया था तो उसने रविकुमार के पास नोटों से भरा सूटकेस देखा । रविकुमार उसकी निगरानी इसलिये करवा रहा था कि अगर वह पुलिस का रुख करे तो उसे पता लग जाये । इसलिये उसने गौरीशंकर को भी कहा हुआ था कि वह अनीता से मिलता रहा करे और उसे टटोलता रहा करे कि उसका कोई दगाबाजी का इरादा तो नहीं था । वास्तव में रविकुमार का शक आधारहीन था । अनीता मोटी अक्ल की लड़की थी जो अपनी जवानी और खूबसूरती में ही इतनी मग्न रहती थी कि उसे पता ही नहीं लगता था कि उसके आस-पास क्या हो रहा है । उसे रविकुमार पर किसी प्रकार का भी कोई शक नहीं था और अगर होता भी तो शायद यह परवाह न करती ।
बाद में जब रमाकांत को यह मालूम हुआ कि सुनील की मेहरबानी से उसकी इम्पाला कार इतने बखेड़ों में फंसी थी, तो वह बहुत लाल-पीला हुआ । उसने पहले सुनील को अपनी कार चुरा लेने के इल्जाम में गिरफ्तार करवा देने की धमकी दी, फिर उससे हमेशा हमेशा के लिए यारी तोड़ देने की धमकी दी, फिर कार बेच देने की धमकी दी और फिर यूथ क्लब के कम्पाउन्ड में खड़ी उसकी साढे सात हार्स पावर की मोटर साइकिल जब्त कर लेने की धमकी दी ।
लेकिन वास्तव में उसने चारों में से एक भी काम नहीं किया ।
एक्सीडेंट झूठा साबित हो जाने के बाद रविकुमार का दावा अपने आप ही झूठा हो गया । बीमा कम्पनी पर उसके द्वारा ठोका गया पचास हजार रुपये का हरजाने का दावा डिसमिस हो गया । बीमा कम्पनी ने सहर्ष सुनील को पुरस्कार स्वरूप पांच हजार रुपये दे दिये ।
रमाकांत को जब इनाम की खबर मिली तो वह सुनील के गले पड़ गया । उसके कथनानुसार सारे हंगामे में अगर उसका नहीं तो उसकी कार का तो बहुत बड़ा हाथ था । इसलिये बीमा कम्पनी से मिले नगदऊ में उसका भी हिस्सा होना चाहिये ।
“तुम्हारा नहीं, तुम्हारी कार का ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन मेरी कार अभी नाबालिग है” - रमाकान्त बोला - “मैं उसका कानूनी सरपरस्त हूं इसलिये जो मेरी कार का है वह मेरा है ।”
जब तक रमाकांत ने सुनील से एक हजार रुपये वसूल नहीं कर लिये उसने उसका पीछा नहीं छोड़ा ।
समाप्त
0 Comments