भामा परी ढाई मिनट बाद आसमान से वापस लौटी। उसने दोनों बांहों में मोना चौधरी को संभाल रखा था। नीचे उतरते ही भामा परी ने मोना चौधरी को खड़ा कर दिया। उसके जाने से वो जगह अंधेरे से घिर गई थी। अब वहां पुनः रोशनी फैल गई थी।
कारी राक्षस मृत अवस्था में जमीन पर पड़ा था। सीने में अभी भी तीर धंसा था और उसके दोनों हाथ तीर पर ही थे, जैसे वो
आखिरी अवस्था में भी तीर छाती से निकलने की चेष्टा में हो।
“देखा नीलू-।” राधा कह उठी-“मोना चौधरी कितनी बहादुर
है जिस राक्षस को कोई नहीं मार पा रहा था, उसे मोना चौधरी ने मार दिया। इसे तो मरना ही था। नहीं तो तेरे हाथों मरता। क्यों
नीलू-?”
भामा परी के चेहरे पर राहत भरी मुस्कान नजर आ रही थी।
“देवता!” भामा परी दोनों हाथ जोड़कर बुदबुदाई-“मेरी जान बचाने का शुक्रिया-।”
“किस देवता का शुक्रिया कर रही हो तुम?” राधा उसकी बुदबुदाहट सुनकर कह उठी-“मोना चौधरी का शुक्रिया अदा करो। उसने राक्षस को मारा है। शराफत तो रही नहीं दुनिया में-।”
“राधा-।” मोना चौधरी ने उसे देखा-“तुम बहुत ज्यादा बोल रही हो।”
“ठीक है। अब कम बोलूंगी।”
महाजन और नगीना ने कारी राक्षस के शरीर को चेक किया।
वो वास्तव में मृत था।
“देवराज चौहान, पारसनाथ, बांके को देखना चाहिये-।” कहते
हुए जगमोहन अंधेरे के उस हिस्से की तरफ बढ़ गया, जिधर कारी राक्षस ने उन तीनों को फेंका था।
तीनों ही बेहोशी की अवस्था में मिले।
देवराज चौहान घने पेड़ की शाखाओं के बीच बेहोशी की हालत में अटका पड़ा था। उसके सिर से खून बह रहा था। बांकेलाल राठौर जमीन पर बेहोश पड़ा था और उसकी बांह की हालत बता रही थी कि हड्डी टूट चुकी है। पारसनाथ पेड़ के मोटे तने के पास बेहोश गिरा हुआ था। शायद वो सीधा तने से टकराया था।
देवराज चौहान को संभाल कर पेड़ से उतारा गया।
भामा परी ने अपनी पवित्र शक्तियों से उन तीनों को अच्छा ही नहीं किया, बल्कि होश में भी ला दिया।
कारी राक्षस की मौत के बारे में सुनकर उन्हें तसल्ली मिली।
“जाने कितने खतरे अभी तुम सब के सामने आने हैं।” भामा
परी गम्भीर स्वर में कह उठी-“किस-किस खतरे से अपना बचाव करोगे। जान गवां बैठोगे। अभी भी वक्त है, मेरी मानो तो तुम लोग यहां से बाहर-।”
“भामा परी!” देवराज चौहान सख्त स्वर में कह उठा-“ये बात तय होकर, हम में खत्म हो चुकी है। उसका जिक्र पुनः करने का कोई फायदा नहीं। इरादा पक्का कर लेने के पश्चात हम पीछे
नहीं हटते।”
भामा परी ने गहरी सांस ली।
“जैसी तुम लोगों की इच्छा-।”
तुम हमें उस रास्ते पर ले जा रही थीं, जो शैतान के अवतार
तक पहुंचने का रास्ता है।
“हां वहीं चल रही हूं।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा-“मेरे शरीर से निकलती रोशनी दूसरों को हमारी मौजूदगी का एहसास दिला सकती है। मैं रोशनी खत्म करके सामान्य रूप से तुम सबके साथ आगे बढूंगी।”
“हां। ऐसा करना ज्यादा ठीक रहेगा।” नगीना कह उठी।
देखते ही देखते भामा परी के शरीर से फूटती रोशनी लुप्त हो गई।
उसके बाद वे सब अन्य दिशा में आगे बढ़ने लगे।
सबसे आगे, भामा परी थी।
☐☐☐
करीब एक घंटे बाद भामा परी बरगद के ऐसे पेड़ के पास जाकर रुकी, जिसका तना दस-बारह फीट की गोलाई लिए हुए था और वो इस कदर फैला हुआ था कि उसके नीचे खड़े होकर दिन में भी अंधेरा ही महसूस होता। सब भामा परी के पास आकर खड़े हो गये।
“थकान सी लग रही थी।” सोहनलाल बोला-“आराम करने के लिये ये जगह बढ़िया है।”
“ये आराम करने की जगह नहीं, बल्कि शैतान के अवतार तक
पहुंचने का एक रास्ता है ये बरगद का पेड़।” भामा परी गम्भीर स्वर में कह उठी-“ये रास्ता तुम सबको शैतान के अवतार तक ले जायेगा। लेकिन मैं फिर आगाह कर रही हूं कि बीच रास्ते में ही हादसों के शिकार होकर अपनी जान गवां बैठोगे।”
“कोई नई बात करो।” राधा ने कहा।
दो पल की चुप्पी के बाद भामा परी ने कहा।
“जहां अब तुम लोग जा रहे हो, वहां न तो तुम लोगों की हुकूमत है और न ही तुम लोगों का कोई मददगार। ऐसे में ज्यादा देर खुद को बचाकर रखना तुम लोगों के लिये सम्भव नहीं होगा।”
“हम पूरी कोशिश करेंगे कि सब हालातों का मुकाबला कर सकें।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं जिस रास्ते पर तुम लोगों को भेज रही हूं, वहां खूंखार मायावी चील और एक बुत है। वो बुत कभी इन्सान था। लेकिन शैतान के अवतार ने उसे बुत बना दिया और मायावी चील को बुत के पहरे पर लगा दिया। क्योंकि वहां कुछ ऐसा है कि बुत को वापस इन्सान के रूप में लाया जा सकता है।”
“ऐसा क्या है?” मोना चौधरी ने पूछा।
“मैं नहीं जानती। लेकिन कोई भी वहां पहुंचता है तो चील उसे नोच-नोच कर खा जाती है। जान से खत्म कर देती है। सबसे पहले उस चील को खत्म करना जरूरी है। वरना आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलेगा। लेकिन मायावी चील का मुकाबला, कोई साधारण मनुष्य नहीं कर सकता।”
कोई कुछ नहीं बोला।
भामा परी ने अपनी बांह आगे की तो हथेली में मौजूद अंगूठी
के नग को चमकते पाया।
“ये अंगूठी है। वक्त आने पर इसके नग में झांक कर, सामने मौजूद दुश्मन और दोस्त होने के भेद के बारे में जान सकोगे। अगर सामने वाला दोस्त होगा तो अंगूठी के नग का रंग नहीं बदलेगा।” भामा परी ने कहा-“अगर सामने वाला दुश्मन होगा, धोखेबाज होगा तो अंगूठी के नग का रंग बदल जायेगा। तब सतर्कता इस्तेमाल करके हालातों से बचा जा सकता है लेकिन मेरे सामने समस्या ये है कि तुम लोग दस हो और ये अंगूठी एक। कौन लेगा इसे? खुद ही फैसला कर लो।”
“मुझे दे दो।” राधा कह उठी-“अंगूठी पहनने का शौक तो मुझे-।”
“राधा!” महाजन ने गम्भीर स्वर में टोका-“ये अंगूठी ऐसे इन्सान को मिलनी चाहिये, जिसने आगे रहकर, खतरों से मुकाबला करना है। अंगूठी पर देवराज चौहान या फिर मोना चौधरी का हक है।”
गहरी खामोशी छा गई वहां-।
तभी देवराज चौहान आगे बढ़ा और भामा परी के हाथ में रखी
अंगूठी उठा ली।
“नगीना!” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“अंगूठी को मोना चौधरी की उंगली में पहना दो।”
नगीना ने आगे बढ़कर, देवराज चौहान से अंगूठी ली।
“तुम अंगूठी पहन लो देवराज चौहान-।” मोना चौधरी कह उठी।
“इस वक्त हम दोनों एक ही काम पर निकले हैं। एक ही काम हमें करना है।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा-“ऐसे में तुम अंगूठी पहनो या मैं, मेरी निगाहों में एक ही बात है। क्योंकि हम दोनों का सामना ही खतरनाक से खतरनाक दुश्मनों से होना है।”
मोना चौधरी चाहकर भी कुछ नहीं कह सकी।
नगीना ने आगे बढ़कर, मोना चौधरी की उंगली में अंगूठी डाल
दी।
“तुम अब वापस परी लोक जाओगी?” एकाएक जगमोहन ने पूछा।
“नहीं। मैं किसी न किसी रूप में तुम लोगों के साथ रहूंगी।”
भामा परी ने गंभीर स्वर में कहा-“तुम लोगों को इस तरह छोड़कर नहीं जा सकती। मौत तो तुम लोगों की किस्मत में है ही। फिर भी जहां तक हो सकेगा, जहां भी जरूरत पड़ेगी, मैं तुम लोगों की सहायता अवश्य करूंगी। जब तुम लोग नहीं रहोगे। मारे जाओगे। तब मैं वापस अपने परी लोक लौट जाऊंगी।”
“तुम किस रूपो में म्हारे साथो रहो हो-?”
“किसी भी रूप में। बेशक पक्षी के। चींटे के। या ऐसे किसी
रूप में। जरूरत नहीं कि तब मुझे पहचान सको। हालातों के मुताबिक मैं अपना रूप बदल लूंगी।” भामा परी ने कहा।
“फिर तुम वापस अपने असली रूप में कैसे आएला?”
“अब मुझे अपने असली रूप में वापस आने के लिए मनुष्यों
की सहायता की जरूरत नहीं होगी। क्योंकि मेरे शरीर में पहले की तरह किसी राक्षस का मायावी तीर नहीं होगा। मैं उस तीर की गुलाम थीं तब। अब मैं अपनी मर्जी की मालिक हूं।”
“बरगद के पेड़ से रास्ता कैसे निकलता है?” राधा ने पूछा।
“रास्ता तो मैं बता देती हूं।” भामा परी ने धीमे स्वर में कहा-“लेकिन याद रखना शैतान के अवतार की दुनिया में जादू-टोना
बहुत ही मामूली क्रिया है। किसी चीज से छेड़छाड़ करनी हो तो सोच-समझ कर करना। जादू-टोने में फंसने के पश्चात उसके प्रभाव से मुक्त हो पाना लगभग असम्भव सा ही है। मायावी हालात सामने आ गये तो तब भी बच न सकोगे। शैतान के अवतार के बनाये तिलस्म मैं फंस गये तो कभी भी वहां से निकल नहीं पाओगे। मारे जाओगे। शैतान के अवतार ने तुम लोगों को खत्म करने के लिये जाने क्या-क्या तैयारियां कर रखी होंगी।”
“अंम ‘वड’ देंगे सबो तैयारियों को। क्यों छोरे तंम तैयार हो।”
“आपुन फिट होएला बाप-।”
“ठीको। बस तू म्हारे को बता दयो कि ‘वडना’ कबो हौवे।”
“शैतान का अवतार किसी भी रूप में तुम लोगों के सामने मौजूद हो सकता है और तुम लोग उसे पहचान नहीं सकते।” भामा परी ने कहा-“मैं वास्तव में परेशान हूं कि तुम लोग बच नहीं सकते।”
“तुम्हें यहां कोई खतरा नहीं?” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे
पर हाथ फेरा।
“बहुत खतरा है। जितना तुम लोगों को खतरा है, उतना ही
मुझे है।” गम्भीर थी भामा परी-“ये शैतान के अवतार की दुनिया है और यहां के बुरे लोगों के लिये किसी परी को खाना स्वादिष्ट भोजन है। कोई भी शैतानी इन्सान मुझे फांस कर, मेरा भोजन कर सकता है। मुझे कोई फांस न सके। इसके लिए बहुत सतर्क रहना होगा...।”
तभी देवराज चौहान ने कहा।
“बेहतर होगा कि तुम वापस अपने परी लोक चली-।”
“नहीं तुम लोगों को इस तरह मुसीबत में छोड़कर नहीं जा सकती। ये मेरे धर्म और कार्य के खिलाफ है।”
“ठीको। ठीको। तंम रास्तो बतायो म्हारे को आगे बढ़ने के
वास्ते-।”
भामा परी आगे बढ़ी और बरगद के पेड़ की जड़ की तरफ उसने हाथ से कुछ किया तो, बरगद के पेड़ के तने का चार फीट का हिस्सा, किसी स्लाईडिंग डोर की तरह खिसक कर एक तरफ हो गया। भीतर से जीरो वॉट के बल्ब जैसी मध्यम सी रोशनी झलक उठी।
मोना चौधरी और अन्यों ने आगे जाकर भीतर झांका।
वहां सीढ़ियां नजर आईं। पहले की तीन सीढ़ियां तो सूखी थीं, लेकिन उसके आगे की सीढ़ियां पानी में डूबी नजर आ रही थीं
“ये सीढ़ियां आगे बढ़ने का रास्ता है।” भामा परी ने कहा।
“लेकिन सीढ़ियां तो पानी में डूबी हुई हैं।” मोना चौधरी ने उसे देखा।
“महज धोखा है ये पानी, कि अंजाने में कोई इस रास्ते को पा ले तो नीचे उतरने की कोशिश न करे।
“ओह-।”
“जाओ।”
फिर कोई रुका नहीं।
एक-के-बाद-एक वो सब सीढ़ियां उतरते चले गये। सीढ़ियों पर पांव रखते ही नजर आने वाला पानी गायब हो गया। मध्यम सी रोशनी फैली रही।
सीढ़ियां समाप्त हुई तो चमकदार फर्श की राहदारी पर उनके पांव पड़े।
वे सब आगे बढ़ने लगे।
“जाने ये रास्ता कितना लम्बा है!” महाजन के हाथ में नई बोतल थी।
“नीलू, मैं भी थक रही हूं।” राधा कह उठी-“यहीं आराम कर
लेते हैं। हमने प्यार भी नहीं-।”
“चुप। सबके सामने ऐसी बातें नहीं करते।”
“वो तो मैं जानती हूं।” राधा ने गहरी सांस ली-“अब हम क्या करने जा रहे हैं?”
“शैतान के अवतार को खत्म करना है। उसके पास पहुंचने का ये रास्ता है।” महाजन ने कहा।
“एक को मारने के लिये इतने लोगों की क्या जरूरत है। हम यहीं रुक जाते हैं। वापसी पर इनके साथ हो लेंगे।”
“चुपचाप चलती रहो। शैतान के अवतार तक पहुंच पाना आसान नहीं। भामा परी की बात नहीं सुनी।”
“इसका मतलब, शैतान का अवतार डरपोक है, जो छिप कर बैठ गया है। बहादुर होता तो हम लोगों की तरह सामने आता।”
महाजन ने घूंट भरा।
वे आगे बढ़े जा रहे थे। उनके कदमों की आहटें गूंज रही थीं। मध्यम सी रोशनी जाने कहां से फूटकर फैली हुई थी। ताजी हवा वहां अवश्य मौजूद थी, क्योंकि सांस लेने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हो रही थी।
करीब आधे घंटे बाद उनके आगे बढ़ने की रफ्तार कम होने लगी। नजरें सामने नजर आ रहे नक्काशीदार बेहद खूबसूरत दरवाजे पर जा टिकीं, जो कि बंद था और राहदारी उस दरवाजे पर जाकर खत्म हो रही थी।
फिर वो सब दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठक गये।
“यां पे तो रास्तो ही बंद हौवे।”
सोहनलाल आगे बढ़ा और दरवाजा चेक करने के बाद बोला।
“ये ताले-चाबी वाला दरवाजा नहीं है।”
उसी पल वो दरवाजा खुलने लगा।
सबकी नजरें दरवाजे पर जा ठहरीं।
“रास्ता बनेला बाप-।”
देखते ही देखते नक्काशीदार खूबसूरत दरवाजा पूरा खुलता चला गया।
दरवाजे के पार उन्हें बहुत ही खूबसूरत हॉल नजर आया। फर्श
पर कालीन। दीवारों पर सजावट की चीजें। बैठने के लिए खूबसूरत फर्नीचर। कमरे के ठीक बीचो-बीच आदमकद बुत को मौजूद पाया।
बुत के शरीर पर धोती लिपटी महसूस हो रही थी। चेहरे पर दाढ़ी। बाल पीछे को संवारे गले तक जा रहे थे। पांवों में भी कुछ नहीं पहना था। परन्तु इस वक्त वो बुत था। पत्थर का था।
“भामा परी इसी बुत का जिक्र कर रही होगी।” जगमोहन कह उठा।
“वो चील भी पास ही होगी।” नगीना कह उठी।
देवराज चौहान ने कदम आगे उठाया-भीतर जाने के लिये, परन्तु कानों में पड़ने वाली हंसी को पहचानते ही देवराज चौहान ठिठक गया।
सब चौंके।
वो मोगा की हंसी थी।
“मैं क्यों बताऊं कि तुम मनुष्यों को भीतर जाना चाहिये कि
नहीं-।” हंसी के साथ मोगा की आवाज आई।
“मोगा-।” मोना चौधरी ने आस-पास देखा।
“हां। आपका सेवक। पीछे खड़ा हूं-।”
सब पीछे घूमे।
मोगा नजर आया। आदत के मुताबिक हंस रहा था।
“तूम फिर आ गया।” राधा मुंह बनाकर कह उठी-“ठिगने-।”
“क्या करूं, मालिक का हुक्म मिला पहुंच गया।” उसी अंदाज में मोगा कह रहा था-“हुक्म मिला कि हमारे मेहमान अकेलापन महसूस न करें। इस बात का मैं ध्यान रखूँ-।”
“अगर हम तेरे को यहां से जाने को कहें तो?” पारसनाथ ने कहा।
“मैं सिर्फ मालिक का हुक्म मानता हूं। तुम लोगों के कहने पर मैं क्यों जाऊं-।”
मोना चौधरी ने भामा परी की दी अंगूठी में झांका तो नग का रंग बदला नजर आया। स्पष्ट था कि उनके सामने जो खड़ा है वो दुश्मन है।
“क्या चाहते हो?”
“मैं तो ये बता रहा था कि भीतर गये तो चील का मुकाबला करना पड़ेगा। जिसका मुकाबला करना तुम जैसे मनुष्यों के बस का नहीं है। वो मायावी चील है।” मोगा हंस कर कह रहा था-“और यहां से तुम में से कोई भी मनुष्य वापस नहीं जा सकता। तुम लोग जो रास्ता तय कर लोगे, वापस उस रास्ते पर नहीं पलट सकते।”
“तुम पागल तो नहीं हो।” सोहनलाल ने कड़वे स्वर में कहा।
“वो कैसे?” मोगा हंसा।
“तुम कहते हो कि भीतर गये तो चील का मुकाबला करना पड़ेगा। वापस जा नहीं सकते। तो क्या यहीं बैठे रहें?”
“इस ठिगने और गधे में कोई फर्क नहीं।” राधा ने तीखे स्वर में कहा।
तभी देवराज चौहान ने कदम आगे बढ़ाया और दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गया।
“देवा तो गया भीतर।” मोगा हंसा-“क्यों मिन्नो, तेरे को डर लग रहा है।”
मोना चौधरी भी भीतर प्रवेश कर गई।
एक-के-बाद सारे भीतर प्रवेश कर गये।
“ठीक है।” मोगा की हंसीयुक्त आवाज उन्हें सुनाई दी-“मैं भी साथ चलता हूं। मायावी चील के बारे में बहुत सुना है, देखूँ तो सही कि वो इन मनुष्यों को कैसे तड़पा-तड़पा कर मारती है। भीतर प्रवेश करके वो ठिठके ही थे कि उनकी निगाह चील पर पड़ी।
“यो चीलो हौवे का?” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला-“ये तो पहाड़ो बकरो लगो हो।”
“परी कहेला कि ये मायावी चील होएला।”
“नीलू-नीलू-! ये कौन-सा पक्षी है। लगता तो चील जैसा है! लेकिन-।”
☐☐☐
स्याह काला रंग था उसका।
बकरे के साईज की थी वो परन्तु आकार-प्रकार चील जैसा ही था। वैसे ही पंजे। बढ़े हुए नुकीले नाखून चाकू से भी तेज थे। चोंच भाले से भी तीखी और भयानक लग रही थी। आंखों में ऐसी वहशी चमक ठहरी हुई थी कि देखने वाला सहम जाये। डेढ़-दो फीट लम्बी पूंछ जैसी जगह पर जैसे लकड़ी का कोई चौड़ा छोटा-सा फट्टा लगा हो। ऐसी चौड़ाई थी उस जगह पर। वो अपनी जगह पर खड़ी आंखें घुमाती, बारी-बारी सबको देख रही थी।
“इसो की टांगो तो देखो, पूरो बल्लियों की तरह लगो। चोखा माल खायो के इसकी मां इसो को पैदा करो-।”
“ये मायावी चील होएला बाप। कोई भी रूप भरेला।”
तभी चील की खतरनाक दिखाई देने वाली चोंच खुली और उसके गले से तेज आवाज निकली। इसके साथ ही वो दरवाजा जिससे सब भीतर आये थे, बंद होने लगा।
“दरवाजा बंद हो रहा है।” महाजन ने घूंट भरते हुए पीछे देखा।
“तू घबरा मत नीलू।” राधा, महाजन के पास आ पहुंची। राधा के चेहरे पर हल्की-सी घबराहट थी-जब हम इतने बड़े राक्षस को खत्म कर सकते हैं, तो इस छोटी-सी चील से क्या डरना।”
“ओ ‘वड’ के रख दांगें-।”
“ये मूंछों वाला तो बीच में जरूर बोलेगा।” राधा बड़बड़ा उठी।
उसी पल मोगा हंसा और कह उठा।
“मैं क्या बताऊं कि तुम सब अब मरने वाले हो।”
जगमोहन ने मोगा को देखकर घूरा।
“तुमसे पूछा कि अब हम मरने वाले हैं या नहीं?” स्वर कड़वा था।
“नहीं पूछा-।”
“तो बोला क्यों-?”
“सोचा आप सब बोरियत महसूस न करें। इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद भी चुप्पी रहे तो अच्छा नहीं लगता। मरने से पहले बोलकर, दिल की बातों को बाहर निकाल लेना चाहिये।” कहते हुए मोगा हँस रहा था।
तभी चील ने पंख फैलाये। वो उड़ी। बड़े हॉल में उस विशाल चील को उड़ते देखना भी किसी दहशत से कम नहीं।
“बचो-।” मोना चौधरी चीखी।
एकाएक वहां का माहौल ऐसा हो गया था, जैसे छोटा-सा भूकम्प आ गया हो।
सबको ऐसा लगा जैसे चील उसकी तरफ पंजे फैलाये आ रही
हो।
उसी पल देवराज चौहान के हाथ में रिवॉल्वर नजर आई और एक-के-बाद-एक नाल से गोलियां निकलकर चील की तरफ बढ़ती चली गईं। फायरों की आवाज के साथ मोगा की हंसी गूंज उठी।
गोलियां चील के शरीर को पार करती हुई दीवार में जा धंसी।
उसी पल चील ने अपने चौड़े पंजों से नगीना को दबोचना चाहा। चील सफल भी रही, परन्तु नगीना के बचने की चेष्टा में चील के पंजों में नगीना का कंधा ही फंसा। जिसे पंजों में दबाये वो उड़ी। लेकिन शायद तब तक पंजों की पूरी पकड़ नगीना के कंधों पर नहीं हो पाई थी। क्योंकि नगीना ने पीड़ा से छटपटाकर दूसरे हाथ से चील के पंजे की उंगली पकड़कर झटका दिया तो एकाएक वो पंजों से मुक्त होकर फर्श पर आ गिरी।
चील उड़ते हुए सोफे की पुश्त पर जा बैठी।
“नगीना-!” देवराज चौहान चीखा। नगीना की तरफ भागा।
सबकी खूंखार निगाह चील पर टिकी थी।
चील की आंखें भी इन सब पर फिर रही थीं।
“नगीना!” देवराज चौहान पास बैठकर नगीना को संभालता
हुआ बोला-“तुम-तुम ठीक तो हो?”
“आप फिक्र मत कीजिये।” नगीना दर्द को दबाये कह उठी-“कंधा ही घायल हुआ है।”
कंधा वास्तव में बुरी तरह घायल था। इलाज के तौर पर उस
वक्त कुछ नहीं किया जा सकता था।
“ये चील बोत खतरनाक होएला-।”
“इससे बचना आसान नहीं लगता।।” जगमोहन के होंठों से
गुर्राहट निकली।
“मायावी चील का मुकाबला करने के लिए मायावी-जादुई हथियार चाहिये।” पारसनाथ कह उठा-“मोगा ठीक कहता है कि हमारे पास जो हथियार हैं, वो यहां पर बेकार हैं।”
“नीलू-!” राधा तीखे स्वर से कह उठी-“देखा तुमने, उस भिखारी जादूगर ने हमें कहां पर लाकर फंसा दिया। खुद भाग गया। वो बच गया। मैंने तो पहले ही कहा था कि उसकी बात मत मानना-।”
उसी वक्त चील ने पुनः छोटी-सी उड़ान भरी।
उसके आते ही जैसे भयानक मंजर का एहसास हो उठा।
करीब आते ही वो तीर की तरह रुख बदलकर पलटी और सतर्क खड़े सोहनलाल पर चोंच से वार किया। सोहनलाल के गले से पीड़ा भरी चीख निकली। उसकी कमर वाले हिस्से से मांस का बड़ा सा टुकड़ा चोंच में दबाये वो पुनः उसी सोफे की पुश्त पर जा बैठी थी और खाने लगी।
सोहनलाल फर्श पर पड़ा तड़प रहा था। जहां से मांस का बड़ा
सा टुकड़ा चील नोच ले गई थी। वहां से बहता खून फर्श को रंगने लगा।
“सोहनलाल-।” महाजन तेजी से उसकी तरफ बढ़ा।
“सोहनलाल-।” जगमोहन भी तड़प उठा।
“नीलू! तू इधर आ-जा। मेरे पास। चील आकर तुझे खा गई तो?”
सबके चेहरे गुस्से से धधक रहे थे। वे मजबूर थे। शक्ति उनके पास थी। ताकत की कोई कमी नहीं थी। लेकिन मायावी चील का मुकाबला करने के लिये मुनासिब हथियार नहीं था उनके पास।
“ये तो इस तरह हम सबको खत्म कर देगी।” मोना चौधरी के होंठों से दरिन्दगी भरा स्वर निकला।
“साली को ‘वड’ दूंगा अम्भी-।” कहने के साथ ही गुस्से से
भरे बांकेलाल राठौर ने रिवॉल्वर निकाली और चील का निशाना लेते हुए गोलियां चलाता चला गया।
कोई फायदा नहीं हुआ।
गोलियां चील के शरीर को पार करके दीवार में धंसी गयीं।
मोना चौधरी ने जूतों में फंसा चाकू निकाला और दांत भींचे निशाना लेकर चील पर फेंका। सर्र की आवाज के साथ चाकू तूफानी गति से चील के पास पहुंचा और उसके शरीर को पार करता हुआ, दीवार से जा टकराया।
देवराज चौहान ने नगीना को उठाया और आगे बढ़कर बुत की टांगों के पास उसे सहारा देकर बिठा दिया। नगीना का पूरा जिस्म पीड़ा से भरा पड़ा था।
मोगा की हंसी पुनः वहां गूंज उठी।
“मायावी चील का मुकाबला करने के लिए तुम लोगों के पास
उचित हथियार नहीं है। ये सामान्य चाकू भी यहां पर कोई महत्व नहीं रखते। निश्चित हो चुकी है तुम लोगों की मौत-।”
“यहां से उठना नहीं।”
देवराज चौहान की आवाज सुनकर नगीना की निगाह देवराज चौहान पर गई।
तप रहा था देवराज चौहान का चेहरा, जैसे तंदूर से बाहर निकला हो।
“क्या करने जा रहे हैं आप?” नगीना के होंठों से निकला।
“मैं जो करने जा रहा हूं, इस वक्त उसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।” देवराज चौहान के होंठों से खरखराता स्वर निकला।
देवराज चौहान उठा और हाथों की मुट्ठियां बांधे चील की तरफ
कदम उठाने लगा।
ये देखकर दो पल के लिए सब ठगे रह गये।
“ये क्या कर रहे हो!” जगमोहन चीखा-“रुक जाओ देवराज
चौहान-।”
“क्यों?” आगे बढ़ते देवराज चौहान के होंठों से ठण्डा सा स्वर
निकला।
“ये तुम्हें खत्म कर देगी-।”
“ये तो होकर ही रहेगा।” देवराज चौहान उसी लहजे में कह उठा-“इसलिये चील से दो-दो हाथ लेने में अब कोई हर्ज
नहीं है। मरना तो है ही। तो मुकाबले को छोटा कर लेना ही
बेहतर।”
“नहीं।” महाजन ऊंचे स्वर में कह उठा-“तुम जल्दबाजी कर
रहे-।”
“देवराज चौहान ठीक कह रहा है।” मोना चौधरी ने मौत भरे स्वर में कहा और वो भी चील की तरफ बढ़ने लगी।
पल भर के लिए वहां सन्नाटा छा गया।
देवराज चौहान और मोना चौधरी खतरनाक ढंग से चील की
तरफ बढ़ रहे थे।
चील की निगाह बारी-बारी दोनों पर जा रही थी।
मोगा की हंसी और शब्द कानों में पड़े।
“कितने समझदार हैं दोनों। अपनी मौत को आसान बना रहे हैं।”
“भगवान के लिए रुक जाईये।” नगीना का तड़प भरा स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।
परन्तु अब उसने कहां रुकना था।
देवराज चौहान और मोना चौधरी चील से तीन-तीन कदम पहले जा रुके।
सबके दिल जोरों से धड़क रहे थे।
अब क्या होगा?
यही सवाल उनके मस्तिष्क से टकरा रहा था। उन्हें कहीं भी आशा नजर नहीं आ रही थी कि चील पर किस तरह विजय पाई जा सकती है। मायावी-जादुई या तंत्र-मंत्र युक्त ऐसा कोई हथियार उनके पास नहीं था कि जिससे चील पर उनका वार कामयाब हो पाता।
तभी देवराज चौहान ने लम्बी उछाल भरी और सोफे की पुश्त
पर बैठी चील की गर्दन में दोनों बांहें डालकर झूल गया। चील
लड़खड़ाई। फिर संभल गई। साथ ही उसने अपनी चोंच, जोरों से देवराज चौहान की छाती पर मारी तो देवराज चौहान के होंठों से पीड़ा भरी कराह निकली।
उसी पल मोना चौधरी ने घूंसे का जोरदार प्रहार चील के पेट
में किया।
मोना चौधरी को लगा जैसे उसका घूंसा दलदल में जा धंसा हो। इसके साथ ही चील के होंठों से अजीब-सी आवाज निकली और वो पीछे जा गिरी।
देवराज चौहान ने उसके गले में डाली दोनों बांहों से उसका गला दबाने की चेष्टा की। पास खड़ी मोना चौधरी ने जूते की जोरदार ठोकर चील की कमर में मारी। चील तड़प कर उल्टी हुई और उस का भारी पंख देवराज चौहान की कमर पर लगा। देवराज चौहान लड़खड़ाकर नीचे गिरा तो चील ने अपना पंजा उसके पेट पर रख दिया। खुद को पंजे की पकड़ से आजाद कराने के लिए देवराज चौहान ने भरपूर कोशिश की।
परन्तु आजाद करवाना तो दूर, खुद को हिला भी नहीं पाया। उसे महसूस हो रहा था कि जैसे कोई वजनी चीज ने उसे दवा रखा हो। पंजे के नाखून अब उसे अपने पेट और कमर में धंसते महसूस होने लगे। नाखून का आकार-प्रकार मीडियम साइज के चाकू के फल से कम नहीं था।
देवराज चौहान को अपनी जान निकलती महसूस होने लगी। उसने दोनों हाथों से चील की टांग पकड़ी और पेट से उसका पांव हटाने के लिए झटका दिया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। चील का पंजा वैसे-का-वैसा ही उसके पेट पर टिका-गड़ा रहा।
इसी पल चील ने चोंच का वार किया उसके चेहरे पर।
गाल के मांस का टुकड़ा चील की चोंच में फंसा नजर आने लगा। देवराज चौहान के होंठों से पीड़ा भरी चीख निकली। तड़प कर उसने पुनः उसने चील के पंजे से आजाद होने की नाकाम कोशिश की।
मोना चौधरी के होंठों से गुर्राहट निकली और उसने किसी चीते की भांति चील पर पूरी ताकत से छलांग लगा दी। मकसद सिर्फ ये था कि देवराज चौहान के ऊपर से चील हट जाये। परन्तु मोना चौधरी चील तक पहुंच भी न सकी।
चील सतर्क थी। उसने उसी क्षण दूसरा पंजा उठाया। मोना चौधरी की तरफ किया। मोना चौधरी चील के पंजे से टकराई तो, उसका शरीर भी पंजे की गिरफ्त में आ गया। चील ने मोना चौधरी को भी देवराज चौहान की तरह, पंजे के नीचे दबा लिया।
अब वो दोनों पंजे रखे देवराज चौहान और मोना चौधरी के शरीर पर खड़ी थी। इसके साथ ही चील की चोंच से अजीब-सी आवाज निकली।
शायद वो खुशी से भरी आवाज थी।
फिर चील ने मोना चौधरी पर चोंच से वार किया और उसके गाल का मांस नोचकर होंठों में दबा लिया। मोना चौधरी तड़प कर चीखी। लाख कोशिशों के बावजूद भी खुद को चील के पंजे से आजाद नहीं करा सकी।
हर कोई स्तब्ध था।
शायद इसलिए कि ऐसी आशा किसी को भी नहीं की होगी कि चील इतनी आसानी से देवराज चौहान और मोना चौधरी पर काबू पाकर उन्हें बेबस कर देगी।
देवराज चौहान और मोना चौधरी भरपूर चेष्टा कर रहे थे कि
चील की पकड़ से आजाद हो सकें। वो कोई मामूली चील होती तो आजाद भी हो जाते। लेकिन मायावी चील के आगे उनकी एक नहीं चल रही थी। वो तो जादुई शक्ति से सम्पन्न थी। उस पर काबू पाना आम इन्सानी ताकत के बस का नहीं था।
चील के पंजों के नाखून पेट और कमर जैसे नाजुक हिस्सों में
धंस चुके थे और वो तड़प रहे थे। बचने की कोशिश में बेकार के हाथ-पांव मार रहे थे।
वहां फैली स्तब्धता को मोगा की हंसी ने तोड़ा।
“कितनी आसानी से देवा और मिन्नो मौत के मुंह में जा फंसे हैं।” मोगा कह रहा था-“मैंने तो सुना था लेकिन देखा आज है
कि चील कैसे तड़पा-तड़पा कर जान लेती है।”
हक्के-बक्के थे सब।
“शैतान के अवतार ने तीन जन्म पहले की अपनी मौत का बदला ले लिया। उसकी इच्छा थी कि देवा और मिन्नो तड़प-तड़प कर मरें। अब वही तो हो रहा है।”
“कुत्ते-हरामजादे-।” जगमोहन पागलों की तरह गुर्राया और
कुछ दूर खड़े मोगा पर झपट पड़ा।
उसके पास पहुंचते ही तीन फीट के मोगा ने अपनी बाँहें आगे
करके जगमोहन को संभाला और उसे सिर से ऊपर ले जाते हुए दूर उछाल दिया।
नीचे गिरते ही जगमोहन चीख उठा। मोगा की हंसी से भरी
आवाज उसके कानों में पड़ने लगी।
“जग्गू, अपने पर काबू रख। ये पहले जन्म का मामला नहीं
है कि-तू विजयी बन जायेगा। अब शैतान का आशीर्वाद प्राप्त है मुझे। शैतान के अवतार ने मुझे बहुत शक्तियां दे रखी हैं। इस बार तो तूने मेरी तरफ बढ़ने की गलती कर दी। दोबारा ऐसी गलती मत कर देना। वरना मैं तुझे उसी पल अपाहिज बना दूंगा।”
जगमोहन दरिन्दगी भरी नजरों से मोगा को देख रहा था।
“शैतान के अवतार ने मुझे तुम लोगों के साथ इसलिए किया है कि मैं तुम लोगों का दिल बहलाता रहूं-और देखूँ कि कैसी-कैसी मौत मिली तुम सब को, फिर उसका वर्णन शैतान के अवतार के सामने करूं। शैतान के अवतार के पास इतना वक्त नहीं कि वो अपना ध्यान तुम मनुष्यों पर लगाकर रखे। इस वक्त शैतान का अवतार गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल तलाश करने में बहुत व्यस्त है। वो शक्तियां, जो तुम्हारे गुरुवर ने यज्ञ को शुरू करने से पहले किसी बाल में कैद करके उस बाल को कहीं छिपा दिया है। शक्तियों से भरी वो बाल शैतान के अवतार को मिल गई तो वो, शैतान के नाम का डंका दूर-दूर तक बजा देगा। हर तरफ शैतान-।”
“ये नहीं हो सकता।” महाजन गुर्राया।
“क्यों नहीं हो सकता? कौन रोकेगा शैतान के अवतार को, नीलसिंह-?”
जवाब में महाजन दांत भींच कर रह गया।
तभी पारसनाथ चील की तरफ दौड़ा और पास पहुंचकर लात-घूंसे चील पर बरसाने लगा।
“ये अच्छा रास्ता है, चील पर काबू पाने का।” महाजन चीखा-“मारो इसे-।”
मोगा की हंसी गूंज उठी।
महाजन भी दौड़ा। जगमोहन, सोहनलाल भी।
“छोरे आ-जा।” बांकेलाल राठौर खूंखार स्वर में कह उठा-“चीलो को वडने का यो बढ़ियो ढंग हौवे।”
“चल बाप।”
“मैं भी आऊं नीलू-।” राधा कह उठी।
“थारे वास्ते में मोपेड भेजो अंम। तबो आईयो।”
“मैंने तेरे से बात नहीं की।”
“बाप, टेम वेस्ट नेई करेला।”
आनन-फानन वे सब चील के पास पहुंचे और उस पर लात-
घूंसे बरसाने लगे।
राधा भी उनमें शामिल हो गई।
जगमोहन भी उनमें जा मिला था।
अजीब-सा दृश्य नजर आ रहा था।
चील अपने दोनों पंजे देवराज चौहान और मोना चौधरी के पेट
और कमर पर जमाये खड़ी थी। बाकी सब उस पर हाथ-पांव बरसा रहे थे। चील अपनी जगह अडिग थी। रह-रह कर जब भी मौका मिलता, वो चोंच से आसपास मौजूद किसी का भी मांस नोच कर घायल कर देती।
उनके हाथ-पांव चलाने का चील पर कोई असर नहीं हो रहा था।
बुत की टांगों से टेक लगाये नगीना असहाय भाव से ये सब देख रही थी। उसका कंधा चील के पंजे से इस कदर घायल था कि बाईं बांह बेजान सी हुई पड़ी थी। उसे एहसास हो चुका था कि चील का मुकाबला नहीं किया जा सकता। वो एक-एक करके सबको खत्म कर देगी।
“नगीना!”
तभी नगीना के कानों में फुसफुसाहट पड़ी। उसने फौरन पहचाना। वो आवाज भामा परी की थी।
“भामा परी, तुम-।” नगीना के होंठों से निकला।
“धीरे बोलो। मैं मक्खी के रूप में तुम्हारे पास हूं। मोगा ने मुझे देखा तो पहचान लेगा। मैं परी हूं। वो ताकतवर है और शैतान के अवतार ने कई शक्तियां उसे दे रखी हैं।”
नगीना कुछ न कह सकी। उसने मोगा को देखा। जिसके चेहरे पर मुस्कान थी और वो दिलचस्पी से भरी निगाहों से चील और उन सबको देख रहा था।
“इस तरह मायावी चील का मुकाबला नहीं किया जा सकता।”
भामा परी की आवाज कानों में पड़ी-“वो तुम सब को खत्म कर देगी।”
“इसका मुकाबला करने के लिए हमारे पास कोई भी शैतानी दुनिया का हथियार नहीं है।” नगीना धीमे स्वर में बोली।
“हथियार तुम्हारे पास है।”
“कहां है?” नगीना के होंठों से निकला।
“बुत के हाथ में देखो। तलवार फंसी है।”
नगीना ने देखा। बुत के हाथ में वास्तव में तलवार थी जो कि
नीचे झुकी हुई थी। हत्थे से पकड़कर तलवार को आसानी से बुत की मुट्ठी से निकाला जा सकता था। वो तलवार पत्थर की नहीं थी।
“इस तलवार से चील का मुकाबला किया जा सकता है।” भामा परी की आवाज कानों में पड़ी-“ये बहुत करामाती तलवार है। इस तलवार में अद्भुत शक्तियां हैं। ये किसी मामूली इन्सान की तलवार नहीं।”
“ये इसी बुत की तलवार है?”
“हां। जब इसे बुत बनाया गया तो तब तलवार इसके हाथ में ही थी। उठो, तलवार संभालो और चील का मुकाबला करो। देखते ही देखते सब ठीक हो जायेगा। मैं तुम्हारे पास से दूर जा रही हूं। मोगा तुम्हें अवश्य देखेगा। मुझे डर है कि कहीं वो मुझे न पहचान ले।”
दो पलों के लिये तो नगीना अजीब-सी हालत में बैठी रही। फिर उठने को हुई। कंधे के जख्म ने पीड़ा का तीव्र जोर मारा कि होंठों से चीख निकलकर रह गई।
मोगा, नगीना को देखकर हंसा।
“क्या तुम भी मायावी चील पर अपनी ताकत इस्तेमाल करने
जा रही हो?”
“मुझे उठाओ।” नगीना ने अपनी बांह उसकी तरफ बढ़ाई।
मोगा ने आगे बढ़ने की कोशिश नहीं की।
“मैं तुम्हें नहीं उठा सकता।” मोगा अपने अंदाज में कह उठा-“शैतान के अवतार की तरफ से मुझे सख्त हुक्म है कि न तो
तुम लोगों की सहायता करनी है और न ही तुम लोगों को किसी काम के लिये रोकना है। सिर्फ ये देखना है कि तुम लोग कैसी-कैसी मौत प्राप्त करते हो।”
नगीना के दांत भिंच गये। चेहरे पर दृढ़ता का समन्दर उछाले मारने लगा। उसने एक निगाह चील के मंजर पर मारी फिर एकाएक ही इस तरह उठ खड़ी हुई जैसे कि सामान्य हालत में हो। जानलेवा पीड़ा को भूल गई वो। आंखें अंगारों की तरह सुर्ख दिखने लगी थीं। बुत का सहारा लेकर वो खड़ी हुई थी। एक कदम आगे बढ़ी और बुत के हाथ में फंसी तलवार को मूठ से पकड़कर हाथ से बाहर खींच लिया।
कंधे के जख्म की वजह से शरीर रह-रह कर कांप उठता था, परन्तु जोधा सिंह जैसे खतरनाक लड़ाके की बेटी को अब सिर्फ अपना निशाना ही नजर आ रहा था।
नगीना के हाथ में तलवार आते देखकर मोगा की आंखें सिकुड़ीं।
नगीना तलवार थामे खुद में दरिन्दगी समेटे, दर्द पर काबू पाते
आगे बढ़ी।
मोगा फौरन उसके पास आ पहुंचा था।
“तुम ये क्या कर रही हो।” मोगा ने जल्दी से कहा-“चील पर तलवार का इस्तेमाल बेकार है। चाकू और रिवॉल्वर से चील का कुछ न बिगड़ सका तो इस तलवार से क्या बिगड़ेगा। वैसे भी तुम घायल हो। बैठकर आराम करो। मैं तुम्हारे जख्म को ठीक करा दूंगा। मैं चील से भी तुम्हारी जिन्दगी बख्शवा दूंगा।”
नगीना उसी अन्दाज में आगे बढ़ती रही।
“तुम्हारे कंधे की हालत देखकर, मुझे तुम पर तरस आ रहा है।” मोगा उसी लहजे में कह उठा-“बैठ जाओ। आराम करो। तुम खूबसूरत हो। शैतान का अवतार तुम्हें अपनी दासी बनाकर, सारे सुख तुम्हें देगा। तुम-।”
“खामोश रहो।” नगीना गुर्राई-“वरना तलवार का वार तुम पर भी हो सकता है।”
“मुझ पर-!” मोगा की आँखें सिकुड़ीं।
“हां-।” नगीना ने खतरनाक निगाहों से मोगा को देखा-“करूं क्या?”
मोगा की आंखें और भी सिकुड़ गई।
नगीना बराबर आगे बढ़ रही थी।
“तुम-तुम किसी की बातों में आ गई हो। किसी ने तुम्हें भड़का दिया है।” मोगा कह उठा।
“किसने भड़काया? मेरे पास तो तुम थे और-।”
“तुम यूं ही तलवार नहीं उठा सकतीं। इस तरह मुझे धमकी नहीं दे सकती। तुम्हारी आवाज में विश्वास है। किसी अदृश्य शक्ति ने तुम्हें ये रास्ता दिखाया है।” मोगा की आवाज में दृढ़ता कूट-कूट कर भरी थी।
“मुझसे दूर हो जाओ।”
“शैतान के अवतार ने ये कहकर मेरे हाथ बांध दिए हैं कि तुम
लोगों के कामों में दखल नहीं देना है।” आदत के मुताबिक इस बार मोगा हंसा नहीं, बल्कि गुस्से में नजर आया-।”अगर मेरे हाथ न बंधे होते तो अब तक मैंने अपनी ताकत से तुम्हारी जान ले लेनी थी।”
नगीना ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं।
वो चील के पास पहुंचकर रुक चुकी थी। गुस्से में भरी नगीना
ने तलवार की मूठ को दोनों हाथों से थामा और गला फाड़कर
चिल्लाई।
“हट जाओ पीछे-।”
सबकी निगाह नगीना की तरफ उठी। उसके चेहरे के भाव देखकर सब चौंके।
“बहना-।”
“दीदी-।”
“ये क्या कर रही हो भाभी-।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“मैंने कहा है, पीछे हट जाओ। चील से दूर हो जाओ। जल्दी करो।” कंधे के दर्द की वजह से नगीना हांफ-सी रही थी।
“लेकिन-।” महाजन ने कहना चाहा।
“हट जाओ।” जगमोहन ने फौरन कहा-“देर मत करो।”
देखते ही देखते, वे सब चील को छोड़कर पीछे हटते चले गये। नगीना ने दोनों हाथों से पकड़ी तलवार को उठाया। कंधा पीड़ा से झनझना उठा। लेकिन इस वक्त तो जैसे नगीना सब कुछ भूल
चुकी थी। याद थी तो सिर्फ चील।
“हे शैतान-!” दूर खड़ा मोगा बड़बड़ा उठा-“कुछ कर, इसे वार करने से रोक।”
चील दोनों पंजे देवराज चौहान और मोना चौधरी के पेट पर
गड़ाये खड़ी थी। नीचे पड़े उन दोनों का बुरा हाल हो चुका था।
पेटों से खून रिसकर नीचे बह रहा था। लेकिन चील की आंखें इस वक्त बहुत तेजी से घूम रही थीं। वो परेशान-बेचैन दिखने लगी थी।
और तब, जब नगीना ने वार करने के लिये तलवार को हवा में उठाया।
चील ने उसी पल पंजे फैलाये और उड़ान भरकर नगीना पर झपट्टा मारा।
लेकिन तब तक नगीना के हाथों में दबी तलवार घूम चुकी थी। इससे पहले कि चील उस तक पहुंचती, तलवार का वार चील के पंजे के ऊपर टांग पर हुआ। चील के गले और चोंच से भयानक चीख निकली। पंजे सहित उसकी टांग कट कर दूर जा गिरी थी और चील उड़ती हुई, मोगा के पास जा गिरी। मोगा फौरन पीछे हट गया। वो परेशान नजर आ रहा था।
सब ठगे से खड़े ये नजारा देख रहे थे।
देवराज चौहान और मोना चौधरी ने उठना चाहा, परन्तु पेट-कमर और चेहरा घायल होने की वजह से वो तुरन्त न उठ सके। लेकिन निगाहें नगीना और चील की तरफ घूम चुकी थीं।
नगीना पुनः खून से रंगी तलवार थामे वहशी अंदाज में चील की तरफ बढ़ने लगी। चील की कटी टांग एक तरफ पड़ी तड़प रही थी। उधर चील की आंखें लाल हो रही थीं। बेशक वो पीड़ा से लाल थी या गुस्से से। वो नगीना को अपनी तरफ बढ़ते देख रही थी और साथ ही साथ बचे एक पंजे पर खड़े होने की भरपूर चेष्टा कर रही थी। अपने शरीर के वजन को एक पंजे पर संभालने की चेष्टा कर रही थी।
तभी मोगा चिल्लाकर नगीना से कह उठा।
“बस करो। अब उसमें बचा ही क्या है। वो तो अपाहिज हो गई है।”
लेकिन नगीना का निशाना तो अब चील की गर्दन थी।
आखिरी वार और मायावी चील की गर्दन जुदा।
उससे पहले कि नगीना चील के बेहद करीब पहुंच पाती। उसकी आशा के विपरीत खुद को संभालती चील ने उड़ान भरी, बहुत तेजी के साथ। बांह घायल होने की वजह से नगीना फुर्ती से तलवार न चला सकी।
चील का इकलौता पंजा नगीना के पेट पर पड़ा।
नगीना चीखी, पीड़ा के मारे।
पंजे में नगीना को दबोचे चील ऊपर होती चली गई।
ये देखते ही हर किसी का चेहरा फक्क पड़ गया।
तभी बेहद तीव्र गर्जना हुई। कोई कुछ न समझ पाया कि क्या हुआ। दूसरे ही पल उन्हें जो देखने को मिला, वो किसी सपने से कम नहीं था।
जिस जगह पर वो थे, वो जगह वीरान-पथरीली नजर आने लगी थी। वो कमरा, वो सब कुछ गायब हो चुका था। देवराज चौहान और मोना चौधरी ने खुद को जमीन पर पड़े पाया। ऊपर आसमान था। परन्तु इस वक्त अंधेरा था। तारे चमक रहे थे। साया बनी चील, नगीना को दबोचे आकाश में उड़ती महसूस हो रही थी। उसी पल तेज खनक सबके कानों में पड़ी, जैसे कुछ गिरा हो। साथ ही नगीना की आवाज।
“ये तलवार आप रख लीजिये। ये साधारण तलवार नहीं है। मुसीबत में आपके काम आयेगी।”
“नगीना-।” देवराज चौहान गला फाड़कर चिल्लाया। वो खुद
घायल था।
जवाब में नगीना की आवाज सुनने को नहीं मिली।
आसमान में उड़ती चील भी अब दिखाई देनी बंद हो गई थी।
चील नगीना को जाने कहां ले गई थी।
दांत भींचे पीड़ा सहते देवराज चौहान उठा और घायल पेट, कमर और चेहरे को टिटोलते उस तरफ बढ़ा, जिधर तलवार गिरने की आवाज आई थी। जल्दी ही तलवार मिल गई उसे। तलवार थामने के बाद, अपनी कठोर निगाह हर तरफ अंधेरे में घुमाने लगा। तभी एकाएक उन सबके जख्म ठीक हो गये। वो सब पहले की तरह सामान्य हो गये।
सब लोगों के साये नजर आ रहे थे।
वो बुत का साया भी नजर आ रहा था।
“चीलो को तो म्हारी बहनो ने ‘वड’ दयो। पर चीलो बहना को ही ले उड़ो-।”
जवाब में किसी ने कुछ नहीं कहा।
“मोगा!” जगमोहन का सुलगता स्वर सबके कानों में पड़ा-“चील नगीना को कहां ले गई है?”
“शैतान के अवतार के पास-।” मोगा पुनः अपने पहले वाले हंसी भरे अंदाज में लौट आया था।
“क्यों?”
“उसने शैतान के अवतार का मायावी जाल तोड़ा है। शैतान का अवतार उसे सजा देगा।”
“जुबान संभाल के कहेला बाप।” जालिम छोकरा गुर्रा उठा-“दीदी को कुछ होएला तो, सबको जिन्दा जलाएंगा आपुन।
शैतान का अवतार भी नेई बचेगा।”
जवाब में मोगा हंस कर रह गया।
मोना चौधरी भी खड़ी हो चुकी थी।
“नगीना को ये तलवार कहां से मिली?” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं क्यों बताऊं कि तलवार बुत के हाथों में थी।” मोगा हंस कर कह उठा-“एक बात पूछूँ-?”
“पूछो-।”
“कौन है तुम लोगों के साथ जो तुम लोगों को बचने का रास्ता बता रहा है?” मोगा ने पूछा।
एक पल के लिए वहां चुप्पी छा गई।
“हमारे साथ भगवान है।” मोना चौधरी ने दांत भींच कर कहा-“देखते हैं अब तुम्हारा शैतान जीतता है या हमारा भगवान-।”
“बात को टालो मत मिन्नो।” मोगा ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा-“मैं जानता हूं कि कोई अदृश्य रहकर तुम लोगों की सहायता
कर रहा है। वरना नगीना एकाएक कैसे जान गई कि तलवार शक्तियों से भरी है? उससे मायावी चील का मुकाबला किया जा सकता है? ये बात किसी ने उसके कान में कही है।”
“नगीना के पास तो तुम ही थे। तुमने ही बताया होगा कि-।”
“मैं समझ गया कि मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिलेगा।”
“नीलू-।” राधा बोली-“इतना खूबसूरत कमरा था। वो कहां गायब हो गया?”
“वो मायावी कमरा था। जादू के जोर पर बनाया गया था और जब उस जादू को तोड़ा गया तो सब कुछ खत्म हो गया।” कहने के साथ ही महाजन ने घूंट भरा।
“ये तो बहुत खतरे वाली जगह है।” राधा बोली-“ऐसे तो यहां पता नहीं चलेगा कि कौन-सी जगह जादू के जोर पर बनायी गयी है और कौन-सी जगह मजदूरों ने बनाई है।”
“यहां की हर जगह मायावी-जादुई है। कुछ भी असली नहीं-।” महाजन ने दांत भींचकर कहा।
“वो चील नगीना को कहां ले गई नीलू-?”
जवाब में महाजन ने दांत भींच लिये। कहता भी तो क्या?
जगमोहन, देवराज चौहान के पास पहुंचा।
“वो चील सभी को शैतान के अवतार के पास ले-।”
“जगमोहन-।” देवराज चौहान का स्वर पत्थर से भी कठोर था-“हम शैतान के अवतार तक ही पहुंचने की चेष्टा कर रहे हैं। मालूम नहीं वो कहां रहता है। नगीना के लिये, हम चिन्ता के अलावा कुछ नहीं कर सकते।”
“भाभी को कैसे पता चला कि उस तलवार से मायावी चील को खत्म-।”
“सोचो तो समझ जाओगे कि नगीना को कैसे पता चला।”
देवराज चौहान ने उसी लहजे में कहा।
जगमोहन की आंखों के सामने भामा परी का चेहरा नाच उठा।
“रात बहुत बीत चुकी है।” तलवार थामे देवराज चौहान ने आकाश के चमकते तारों को देखा-“ज्यादा देर नहीं है दिन की रोशनी फैलने में। यहां से दिन के उजाले में ही आगे बढ़ना ठीक
रहेगा। मालूम नहीं हम कैसी जगह पर हैं।”
पासनाथ, मोना चौधरी के पास पहुंचा और खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरकर कह उठा।
“बहुत बुरा हुआ मोना चौधरी-।”
“कुछ भी बुरा नहीं हुआ पारसनाथ-।”
“ये चील नगीना को शैतान के अवतार के पास ले गई है। वो जाने उसके साथ कैसा व्यवहार करे।”
“मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि शैतान का अवतार इससे चोट खा चुका है। वो कभी सोच भी नहीं सकता था कि हम उसके मायावी जाल को तोड़ सकते हैं। ये करारी चोट है शैतान के अवतार के लिये। रही बात नगीना की तो इन हालातों में हम उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते।”
“वो कोई करामाती तलवार है। जिससे नगीना ने-।”
“हां।” नगीना की निगाह अंधेरे में बुत की तरफ उठी-“जिस इन्सान को शैतान के अवतार ने बुत बना दिया है, उसकी तलवार ऐसी है तो वो खुद कितनी ताकत रखता होगा। इसका अंदाजा तुम लगा ही सकते हो।”
महाजन और राधा भी पास आ पहुंचे थे।
“भामा परी बता रही थी कि इस बुत को वापस असली रूप में लाने का कोई रास्ता है।” महाजन ने कहा।
“वो रास्ता भामा परी नहीं जानती। लेकिन दिन निकलने पर हम कोशिश करेंगे कि इसे असली रूप में-।”
मोना चौधरी ने उसी पल पारसनाथ की बात काट दी।
“इतना आसान नहीं है, जितनी आसानी से तुम सोच रहे हो पारसनाथ। शैतान के अवतार ने इन्सान को बुत बनाया है। इसे वापस इन्सानी रूप देने के लिये जिन शक्तियों की जरूरत पड़ेगी, वो हमारे पास नहीं हैं।” मोना चौधरी का स्वर गम्भीर था-“शायद हम इस बुत को वापस इसकी पुरानी अवस्था न लौटा सकें।”
उधर सोहनलाल बुत के पास पहुंचकर, यूं ही उसे हाथ लगा
कर चेक कर रहा था।
नगीना को मायावी चील ले गई थी। इस वजह से हर कोई गम्भीर-चुप-चुप सा था।
महाजन, सोहनलाल के पास पहुंचा।
“तुम्हारा क्या ख्याल है, किसी इन्सान को बुत बनाया गया है या ये असली बुत है?” महाजन बोला।
“भामा परी के मुताबिक किसी इंसान को, शैतान के अवतार ने बुत बनाया और मायावी चील को बुत के पहरे पर बिठा दिया कि कोई बुत को असली रूप में न ला दे। उससे पहले ही चील उसे खत्म कर दे।” सोहनलाल ने कहा।
“मतलब कि ये कोई इन्सान ही है, जिसे बुत बना दिया गया।” महाजन ने गहरी सांस ली।
मोना चौधरी, देवराज चौहान के पास पहुंची।
“नगीना को लेकर चिन्ता में हो देवराज चौहान-।” मोना चौधरी का स्वर धीमा था।
“हां।” देवराज चौहान का स्वर उसी तरह कठोर था-“लेकिन इस वक्त हम नगीना के लिये कुछ कर भी नहीं सकते।”
इससे पहले मोना चौधरी कुछ कहती, राधा का स्वर वहां गूंजा।
“ठिगना कहां गया?”
सबकी निगाहें उधर घूमी-जिधर मोगा मौजूद था।
लेकिन मोगा वहां था ही नहीं। जाने वो कब-यहां से गायब हो गया था।
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