मोना चौधरी की आँख खुली । दो पल तो हो देखती रही । तभी उसे रात का मंजर याद आया तो चौककर उठ बैठी । अपने ऊपर पड़ी चादर को देखा । कमरे में नजरें दौड़ाई । उसकी निगाह एक तरफ पड़े रुमाल पर जा पड़ी । वो उठी और आगे बढ़कर रुमाल उठाया । उसे सूँघा तो क्लोरोफॉर्म की महक आई । वो समझ गई कि रात किसी ने कमरे में प्रवेश करके उसे क्लोरोफॉर्म से बेहोश किया था । अगले ही पल वो बाथरूम की तरफ दौड़ी । बाथरूम में प्रवेश करते ही ठिठक गई । कदम जड़ से वहीं के वहीं थम गए ।
बाथरूम की फ्लैश टंकी खुली पड़ी थी । उसका ढक्कन नीचे पड़ा था । मोना चौधरी ने जल्दी-से हाथ उसके भीतर डाला । भीतर पानी भरा था परंतु उसे हीरे की तलाश थी जो रात सोने से पहले टंकी के भीतर रख दिया था । लेकिन वो हीरा अब भीतर नहीं था । जो रात आया, वही हीरा ले गया ।
सिर्फ देवराज ही जानता था कि हीरा उसके पास है और वही यहाँ पर मौजूद है ।
मोना चौधरी के दाँत भिंच गए । चेहरा क्रोध से सुलग उठा । वो वापस कमरे में पहुँची और नाइटी उतारकर पैंट-कमीज पहनने लगी कि तभी उसकी निगाह बेड के पास साइड टेबल पर पड़े कागज पर पड़ी । वो कागज उसके फ़ोन के नीचे दबा था । मोना चौधरी ने आगे बढ़कर वो कागज उठाया । उस पर जो लिखा था, पढ़कर उसकी आँखें सिकुड़ गईं ।
'मैं अपना ही हीरा वापस ले जा रहा हूँ । उस हीरे का नकली रूप जो कि आठ साल पहले कोई चोर असली समझकर चुरा ले गया था, उसे वापिस लौटाने का शुक्रिया ।'
समरपाल चित्रा
मोना चौधरी ने बार-बार उस कागज को पढ़ा । चेहरे पर सोच और गंभीरता आ गई ।
"समरपाल चित्रा ।" मोना चौधरी बड़बड़ा उठी, "तुम इतनी जल्दी मुझ तक नहीं पहुँच सकते । कोई भी नहीं पहुँच सकता था । फिर ये गड़बड़ कहाँ हुई ? कहीं पर तो गड़बड़ है ।"
मोना चौधरी कपड़े पहनकर कमरे से बाहर निकली और देवराज चौहान के कमरे पर जा पहुँची जो कि वहाँ से कुछ दूर पर था । उसने दरवाजा थपथपाया । तभी गैलरी में ट्रॉली लेकर जाता वेटर ठिठककर कह उठा, "मैडम, साहब तो चले गए हैं ।"
"कहाँ ?" मोना चौधरी ने पलटकर वेटर को देखा ।
"मुम्बई गए हैं । घण्टा भर पहले मैंने ही उनके लिए, एयरपोर्ट वास्ते टैक्सी बुलाई थी । । साढ़े आठ बजे का उनका प्लेन है ।"
मोना चौधरी ने सिर हिलाया तो वेटर ट्रॉली धकेलता आगे निकल गया ।
"गड़बड़ है ।" मोना चौधरी होंठ सिकोड़े बड़बड़ा उठी, "हीरा हाथ से गया । पर कौन ले गया, ये जानना जरूरी है ।"
■■■
मुम्बई के सांताक्रूज एयरपोर्ट से टेक ऑफ किया प्लेन स्विट्जरलैंड के एयरपोर्ट पर लैंड कर गया । लैंड करते समय प्लेन जोरों से रनवे से टकराया फिर सब कुछ सामान्य हो गया । चेहरे पर हल्का-सा मेकअप था । जिसकी वजह से चेहरा कुछ बदला-बदला-सा था । सुरेंद्र पाल के नाम से वो सफ़र कर रहा था । ये फ्लाइट नम्बर 606 थी । आधे घण्टे बाद देवराज चौहान एयरपोर्ट से बाहर निकला तो सामने ही टैक्सी मौजूद थी । उसके इशारे पर ड्राइवर ने उससे छोटा-सा सूटकेस लेकर टैक्सी की डिग्गी में रखा । इस दौरान देवराज चौहान की निगाह हर तरफ घूम रही थी । एयरपोर्ट के इमारत के भीतर भी उसकी नजरें किसी को ढूँढ रही थीं । परन्तु जिसे ढूँढ रही थी, शायद वो कहीं भी नहीं दिख रहा था । देवराज चौहान टैक्सी की पीछे वाली सीट पर जा बैठा । ड्राइवर ने कार की स्टेयरिंग सीट संभाली और गर्दन घुमाकर बोला ।
"कहाँ चलना है सर ?"
"मोरागसी एवेन्यू । रेड रॉक्सी होटल ।"
टैक्सी आगे बढ़ गई ।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और खिड़की के बाहर देखने लगा । बाहर बर्फ से ढके पहाड़ चमकते नजर आ रहे थे । साफ, नीला आसमान चमक रहा था । कहीं-कहीं आसमान में चाँदी की तरह चमकते सफेद बादलों के लहराते टुकड़े दिख रहे थे । ठंडा मौसम था । सूर्य निकला हुआ था । सड़कों के किनारों पर कतार में दो-ढाई फुट ऊँचे बर्फ के ढेर लगे दिख रहे थे । स्पष्ट था कि सुबह ही सड़क पर से वो बर्फ साफ की गई थी, जो रात को गिरी थी । सड़कों पर सामान्य ट्रैफिक था । ऐसा नहीं था कि गाड़ी पर गाड़ी चढ़ रही हो । पर्यटकों के लिए ये शानदार मौसम था । देवराज चौहान बाहर जरूर देख रहा था, परन्तु उसका ध्यान अपनी सोचों की तरफ था । उसे यहाँ के मौसम से कोई मतलब नहीं था ।
पचास मिनट बाद टैक्सी रेड रॉक्सी के कंपाउंड में जा रुकी । पाँच मंजिला शानदार होटल था । होटल की चमक-धमक ही बता रही थी कि भीतर हर तरह की सुविधाएँ मौजूद हैं । देवराज चौहान ने बिल चुकता किया, तब तक पोर्टर आ गया । उसका छोटा सूटकेस लेकर, भीतर होटल के शानदार रिसेप्शन पर पहुँचा ।
"हैलो !" देवराज चौहान ने मुस्कराकर खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से कहा, "माई नेम इज सुरेंद्र पाल फ्रॉम इंडिया । मेरा रूम बुक होगा ।"
"वेलकम सर ! मैं अभी चेक करके बताती हूँ ।" कहने के साथ ही उसने एक रजिस्टर अपनी तरफ किया और उसे खोलकर देखने लगी । वहाँ मौजूद दूसरी और तीसरी रिसेप्शनिस्ट अन्य कस्टमर को अटेंड कर रही थीं । पोर्टर उसका सूटकेस लिए चंद कदमों के फासले पर खड़ा था, "यस सर !" रिसेप्शनिस्ट सिर उठाकर देवराज चौहान से बोली, "मिस्टर सुरेन्द्र पाल आपका रूम बुक है । 308 ।" कहने के साथ ही उसने पीछे लगे खूबसूरत की बोर्ड से चाबी उतारकर पोर्टर को दी ।
"सर को रूम नम्बर 308 में ले जाओ ।"
चाबी लेकर पोर्टर ने सिर हिलाया ।
"मेरे लिए कोई मेसेज ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराकर देवराज चौहान को देखा और नीचे झुककर एक दराज खोली और उसके भीतर पड़े लिफाफे को चेक करने लगी कि तुरंत ही एक लिफाफा निकाला जिस पर 308 लिखा था ।
"ये सर आपके लिए है ।"
देवराज चौहान ने लिफाफा थामा और पूछा ।
"ये कब यहाँ दिया गया ?"
"मेरे ख्याल से दो घण्टे पहले ।"
पोर्टर के साथ देवराज चौहान लिफ्ट के द्वारा तीसरी मंजिल के आठ नम्बर कमरे में पहुँचा । मैसेज का लिफाफा अभी भी उसके हाथ में था । पोर्टर सामान छोड़ गया । देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया और लिफाफा खोला । बीच में एक कागज मौजूद था, जिसे निकालकर देखा तो उसके ऊपर लिखा था ।
किसी वजह से मैं तुम्हें एयरपोर्ट पर नहीं मिल पाया । रूम तुम्हारे नाम से बुक है । होटल का खर्चा तुमने ही देना है । मैं जल्दी मिलूँगा ।
नीचे स्मिथ वाल्टर, नाम लिखा हुआ था ।
देवराज चौहान ने कागज को फाड़कर डस्टबिन में फेंका और बेड के पास रखे फोन की तरफ बढ़ा ।
अगले ही पल ठिठक गया । कुछ क्षण फोन को देखता रहा फिर पीछे हट गया । तभी डोर बेल बजी ।
देवराज चौहान ने दरवाजा खोला । सामने वेटर था ।
"वेलकम सर ।" वेटर मुस्कुराकर बोला, "किसी चीज का आर्डर देना चाहेंगे आप ?"
"ओन्ली कॉफी ।"
वेटर चला गया तो कॉफी आने तक देवराज चौहान ने कमरे की तलाशी ली । परंतु एतराज के काबिल कोई भी चीज नहीं मिली । कॉफी पीने के बाद हाथ-मुँह धोकर देवराज चौहान होटल से बाहर निकल आया । होटल से बाहर निकलकर पैदल ही एक तरफ बढ़ गया । कमीज-पैंट पहने होने की वजह से मौसम की ठंडक का अहसास होने लगा । मध्यम-सी ठंडी हवा भी चल रही थी । हर तरफ बर्फ के चमकते पहाड़ नजर आ रहे थे । कोई पास था तो कोई दूर । एक स्टोर से उसने लॉन्ग जैकेट खरीदी और पहन ली । महसूस होती सर्दी से राहत मिली । फिर एक मार्केट की दूर-संचार शॉप से जगमोहन को मुम्बई में फोन किया ।
दूसरी बार ट्राई करने पर नंबर लगा और जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।
"हेलो ।"
"मैं स्विटजरलैंड पहुँच गया हूँ ।" देवराज चौहान ने कहा, "परंतु स्मिथ वाल्टर से मुलाकात नहीं हो पाई । होटल में मेरे नाम पर उसने मैसेज छोड़ा है कि वो जल्दी मिलेगा ।"
"तुम उसे फोन कर लेते ।"
"उसके मैसेज छोड़ने का मतलब है कि वो इस काम में सावधानी इस्तेमाल कर रहा है । इसकी ज़रूर कोई वजह होगी ।" देवराज चौहान ने कहा, "मेरे ख्याल में मुझे उसके आने का इंतजार करना चाहिए ।"
"जैसा तुम ठीक समझो ।" उधर से जगमोहन की आवाज आई, "इधर मैं अपनी तैयारी शुरू कर दूँ ?"
"हाँ । हमें हमारे काम की खबर कभी भी मिल सकती है । मैं तुम्हें फोन पर बताता रहूँगा कि यहाँ क्या हो रहा है ।"
"ठीक है ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी, "मैं अब यहाँ अपना काम शुरू कर देता हूँ ।"
देवराज चौहान कॉल का बिल देकर वहाँ से बाहर निकला और जैकेट की जेब में हाथ डाले मार्केट में घूमने लगा । वहाँ कुछ हिंदुस्तानी लोग घूमते दिखे । तभी एक रेस्टोरेंट दिखा तो देवराज चौहान भीतर प्रवेश कर गया ।
■■■
मुम्बई ।
मोहन भौंसले, बस के स्टॉप पर रुकने पर नीचे उतरा और पैदल ही एक तरफ सड़क के किनारे-किनारे चल पड़ा । शाम के 7:00 बज रहे थे । वो ये बात नोट नहीं कर सका कि एक तरफ खड़ी कार, चींटी-सी रफ्तार से उसके पीछे सरकने लगी है । उस कार की ड्राइविंग सीट पर जगमोहन मौजूद था । जिसकी नजर मोहन भौंसले की पीठ पर टिकी थी ।
मोहन भौंसले का कद मात्र पाँच फुट दो इंच था । वो सामान्य से शरीर का व्यक्ति था । मुम्बई में ही पैदा हुआ और यही पला-बढ़ा हुआ, सिर्फ यही दुख उसके मन में था कि उसके पास कभी भी बढ़िया नोट नहीं होते । वैसे वो मैकेनिक था । मैकेनिक भी किसी एक चीज का नहीं, हर खराब चीज का मैकेनिक था । जोड़-तोड़ लगाकर हर चीज को दुरुस्त कर लेता था । यही वजह थी कि खर्चा-पानी उसका आराम से निकल जाता था । 30 साल उम्र थी उसकी । आज से 10 साल पहले पुलिस ने उसे बम बनाने के जुर्म में पकड़ा था, परंतु मोहन भौंसले कभी नहीं माना कि वो बम बना रहा था । उसका कहना था कि उसे बम बनाना आता ही नहीं । जबकि हकीकत ये थी कि उसने अपनी पहचान वाले से बम बनाना सीखा था और तब वो बम ही बना रहा था, जब पुलिस ने उसे पकड़ा था । जो भी हो 3 साल केस चलने के बाद वो छूट गया । पुलिस से उसकी ये पहली और आखिरी मुलाकात थी । उसके बाद से सामान्य ढर्रे से उसकी जिंदगी चल रही थी । सोनिया नाम की 27 बरस की उसकी पत्नी थी । जिसकी भूरी आँखें थी । बेहद खूबसूरत थी । गोरा रंग, जिस्म के कटाव जबरदस्त । पाँच फुट पाँच इंच की लम्बाई थी यानी कि मोहन भौंसले से भी 3 इंच लम्बी । कभी वो बार बाला थी । डांस करना, लोगों का दिल लुभाना, उन्हें पिलाना । ये सब उसके काम थे और ऐसे ही मौके पर मोहन भौंसले से उसकी मुलाकात हुई थी । सोनिया इस काम से दूर होना चाहती थी । ऐसे में न से हाँ तो थी । मोहन भौंसले का ही उसने हाथ थाम लिया और शादी कर ली । पर कई बार पुलिस की रेड हो चुकी थी और रेड में दो बार सोनिया भी पकड़ी गई थी । देखा जाए तो मोहन भौंसले और सोनिया की किसी भी तरह से बराबरी नहीं थी कि पति-पत्नी बन सके । सोनिया खूबसूरत, गोरी, लम्बी जिस पर लोगों की नजरें टिक जाती थीं और छोटे कद का मोहन भौंसले, साधारण रूप, साधारण चेहरा । परंतु दोनों की शादी हुए 3 साल बीत चुके थे और कट रही थी । जगमोहन ने कार की रफ्तार बढ़ाई और सड़क किनारे पर चलते मोहन भौंसले के पास कार रोक दी ।
मोहन भौंसले ने ठिठककर कार की तरफ देखा । खिड़की से जगमोहन का चेहरा दिखा दिखा । जो उसे ही देख रहा था ।
"इधर आ जाओ मोहन भौंसले ।" जगमोहन ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा ।
मोहन भौंसले के माथे पर बल दिखे एक अजनबी के मुँह से अपना नाम सुनकर । उसने कार के खुले दरवाजे को देखा ।
"आ जाओ । तुमसे बम नहीं बनवाऊँगा ।" जगमोहन ने मुस्कुराकर कहा ।
मोहन भौंसले के होंठ भिंच गए । उसने गहरी निगाहों से जगमोहन को देखा ।
"कौन हो तुम ?" भौंसले ने पूछा, "बम की क्या बात तुम कर रहे हो ?"
"10 साल पहले तुम बम बनाते पकड़े गए थे ।" जगमोहन खुलकर मुस्कुराया ।
"इतनी पुरानी बात को मैं भूल चुका हूँ । परन्तु तुम कौन हो जिसने ये बात याद रखी ?" मोहन भौंसले ने आराम से पूछा ।
"मैं तुम्हारा दोस्त हूँ । कार में बैठो, बातें करते हैं ।"
परन्तु मोहन भौंसले कार में नहीं बैठा । जगमोहन को देखता रहा ।
"हाँ !" जगमोहन ने आँखें नचाईं, "मेरे साथ कार में बैठने में डर लगता है ?"
"मैं अजनबी लोगों से इस तरह बात नहीं करता ।"
"पहचान बनाने के लिए ही तो कह रहा हूँ कि कार में बैठ जाओ ।"
"नहीं !" मोहन भौंसले ने इंकार में सिर हिलाया, "मैं तुम्हें नहीं जानता और कार में नहीं बैठूँगा ।"
"मोटी दौलत कमाना चाहते हो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"क्या ?" मोहन भौंसले के कान खड़े हुए ।
"कई करोड़ों की दौलत ।" जगमोहन ने कहा, "तुम्हारे लिए मौका है मेरे पास । मेरे ख्याल में तुम बाकी लोगों से ज्यादा पैसा ले जाओगे । क्योंकि मैं तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारी पत्नी सोनिया को भी इसमें काम दूँगा । सोच लो, कुछ दिन में तुम बीस करोड़ का मालिक बन सकते हो और अपनी पत्नी को खुश रख सकते हो । तुम भी खुश रहोगे ।"
मोहन भौंसले हक्का-बक्का रह गया था बीस करोड़ सुनकर ।
"बीस करोड़ ।" मोहन भौंसले की साँस चलने लगी, "तुम सच कह रहे हो ?"
"पूरी तरह । पैसा कमाने का काम मेरे पास तैयार रखा है ।"
"नहीं !" मोहन भौंसले संभला और इनकार में सिर हिलाया, "तुम मुझे जेल में पहुँचा दोगे ।"
"ऐसा नहीं होगा । देवराज चौहान का नाम सुना है ?"
"देवराज चौहान ?" मोहन भौंसले के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।
"डकैती मास्टर देवराज चौहान ।"
"वो, वो तुम हो ?"
"मैं नहीं हूँ । पर देवराज चौहान ने ही मुझे तुम्हारे पास भेजा है कि मैं तुमसे बात करूँ और... ।"
मोहन भौंसले उसी पल खुले दरवाजे से सीट पर बैठा और दरवाजा बंद कर लिया ।
"चलो, मुझे देवराज चौहान के पास ले चलो ।" भौंसले ने जल्दी से कहा ।
"देवराज चौहान को अभी फुर्सत नहीं है । वो इसी काम के सिलसिले में व्यस्त है । अभी तो मैं तुमसे बात करने आया हूँ ।"
"तुम, तुम हो कौन ?"
"जगमोहन ।"
"ओह, तुम्हारा नाम भी सुन रखा है अखबारों में । क्या देवराज चौहान अब डकैती करने वाला है ?"
"ये सवाल अजीब-सा है तुम्हारा कि... ।"
"तुम मेरे पास ही क्यों आए ?"
"क्योंकि देवराज चौहान के हिसाब से तुम्हें अपने काम में लिया जा सकता है, अगर तुम चाहो तो ।"
"मैं, मैं पैसा कमाना चाहता हूँ ।"
"मालूम है । तभी तो तुम्हारे पास आया हूँ ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"पर मुझे करना क्या होगा ?"
"वक्त आने पर बताया जाएगा । अभी तो मैं सबको इकट्ठा कर रहा हूँ ।"
"और लोग भी हैं हमारे अलावा ?"
"हाँ, कई लोग हैं । ये काम बड़ा है । तुम्हारी पत्नी सोनिया से भी काम लिया जाएगा । अगर वो काम करे तो ।"
"वो जरूर करेगी । पर हमें मिलेगा कितना ?"
"तुम दोनों को बीस करोड़ ।"
मोहन भौंसले ने लम्बी साँस ली ।
"पक्का मिलेगा ?"
"हाँ, काम पूरा होते ही तुम्हें और सोनिया को दस-दस करोड़ मिलेंगे ।"
"फँसने का कितना खतरा है ?"
"देवराज चौहान के हिसाब से फँसने का खतरा नहीं है । जैसे अब तक काम होते रहे हैं, ये भी हो जाएगा ।"
मोहन भौंसले ने बेचैनी से पहलू बदला ।
"तो पक्का है, तुम ये काम करोगे ?"
"हाँ, मैं देवराज चौहान के साथ काम करूँगा ।" मोहन भौंसले ने सिर हिलाया ।
"दस दिन से तुम्हारे घर में कौन ठहरा हुआ है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"तुम जानते हो ?" मोहन भौंसले ने गहरी साँस ली, "कैसे मालूम ?"
"अपने काम के लोगों के आस-पास नजर रखनी पड़ती है ।"
"वो मेरा भाई है । दो साल बड़ा है ।" मोहन भौंसले हिचकिचाया, फिर कह उठा, "पानीपत में रहता है, काम के लिए मुम्बई आया है ।" उसने जगमोहन के चेहरे पर नजर मारी, "तुम उसे काम दे सकते हो ?"
जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।
"वो बहुत समझदार है ।" मोहन भौंसले शब्दों का चयन करके बोला, "पैसे की खातिर ही वो मुम्बई आया है । उसे पैसा मिल गया तो वापस पानीपत चला जाएगा । तुम जो काम उसे करने को कहोगे, उसे होशियारी से पूरा कर देगा ।"
"क्या नाम है तुम्हारे भाई का ?"
"प्रताप भौंसले । वो... ।"
"मैं उससे मिलने जाऊँगा ।" जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"अभी चलो, वो घर पर ही है ।"
"फोन करके आऊँगा । तुम्हारी पत्नी सोनिया से भी मिलना है । अपना फोन नंबर दो और मेरा ले लो ।"
■■■
काका मेहर !
42 बरस का, कई हिट फिल्में देने वाला प्रोड्यूसर और डायरेक्टर । कई शानदार फिल्में बनाई थी । 42 वर्ष की उम्र तक उसने बहुत कुछ पा लिया था, परंतु पाने से कहीं ज्यादा खो दिया था । बीते 3 सालों में लगातार चार फिल्में पूरी तरह फ्लॉप रही । खाया-कमाया सब, फ्लॉप फिल्मों में ही बह गया । हालत यहाँ तक आ गई कि इनकम टैक्स देने के लिए भी पैसा नहीं बचा । टैक्स में कई गड़बड़ियाँ कीं । करनी पड़ीं । हालत खस्ता हो गई थी । बीते 6 महीने में दो बार इनकम टैक्स विभाग का छापा उसके ऑफिस और फ्लैट पर पड़ा । रही-सही कसर भी पूरी हो गई । अब हालत ये थी कि जब भी इनकम टैक्स वाले चाहते, उसे बुला लेते या उनके आदमी आ जाते । टॉप प्रोड्यूसर-डायरेक्टर से वो कंगाली की हालत पर आ चुका था । उसका ऑफिस और फ्लैट सलामत जरूर था लेकिन उसका भी खर्चा निकालना कठिन हो चुका था । नई फिल्म बनाने के लिए उसे कोई फाइनेंस देने को तैयार नहीं था । बदहाली की स्थिति उसके सामने थी । ये बात कई बार मन में आ चुकी थी कि फ्लैट और ऑफिस बेचकर चुपचाप कहीं खिसक जाए । क्योंकि लेनदारों की लाइन भी छोटी नहीं थी । परंतु उसे सिर्फ मीरचंदानी की चिंता थी जिसके संबंध दुबई में बैठे भाई से डायरेक्ट थे । मीरचंदानी के द्वारा एक बार चोरी-छिपे हिंदुस्तान आए भाई से मिल भी चुका था । तब भाई ने कहा था कि वो उसकी फिल्मों में मीरचंदानी के द्वारा पैसा लगाता रहेगा । स्पष्ट था कि उसकी फिल्मों में भाई का पैसा लगा था और फिल्म चली नहीं थी । भाई की रकम ब्याज के साथ हर रोज बढ़ती जा रही थी । मीरचंदानी का फोन रोज़ आता और उसके तीखे शब्द सुनने पड़ते । अब तो तीखे शब्दों में धमकी भी शामिल होने लगी थी । उसने मीरचंदानी से साफ कह दिया था कि उसके पास देने को एक पैसा भी नहीं है । जान लेनी है तो ले लो पर अगर उसे पंद्रह-बीस करोड़, छोटी बजट की फिल्में बनाने को दिया जाए तो अच्छी स्टोरी पर हिट फिल्म बना देगा । पिछला सारा पैसा चुकता हो जाएगा । परंतु मीरचंदानी उसे एक पैसा भी अब और देने को तैयार नहीं था और पहले का दिया वापस माँग रहा था । काका मेहर अपना भविष्य तय करने की चेष्टा कर रहा था कि उसे अब क्या करना चाहिए । इतना तो समझ चुका था कि अब उसे फिल्म बनाने के लिए कोई पैसा नहीं देगा ।
काका मेहर ने वर्ली की एक शानदार इमारत की चौथी मंजिल पर स्थित अपने शानदार ऑफिस में प्रवेश किया तो उसकी खूबसूरत और जवान सेक्रेटरी शैला ने मस्ती भरी चंचल मुस्कुराहट के साथ उसका स्वागत किया परंतु वो शैला के साथ गुजरी पिछली रात की रंगरेलियों को भुलाकर तेज-तेज कदमों से चलता हुआ अपने कमरे में जा घुसा । वो परेशान था । दिमाग उलझा हुआ था । रात शैला ने उसका भरपूर साथ दिया था । उसका मजा अभी भी उसकी जेहन में तैर रहा था । वो अपनी शानदार रिवाल्विंग चेयर पर बैठा और सोचने लगा कि क्या करें ? इस तरह उसका ज्यादा देर तक नहीं निकलेगा । तभी शैला एक फाइल लेकर कमरे में चली आई ।
काका मेहर ने सिर उठाकर उसे देखा ।
"इनकम टेक्स वालों ने ये फाइल भेजी है । उन्होंने इसमें कुछ सवाल लिखे हैं, इनका जवाब लिखित में चाहते हैं ।" शैला ने फाइल टेबल पर रखी और गहरी निगाहों से काका मेहर को देखा । वो लाल रंग का खूबसूरत कमीज-सलवार पहने थी । उसके सुनहरे बाल कंधों से होकर पूरी पीठ पर फैल रहे थे । वो लम्बी थी और आकर्षक चेहरा था उसका । उम्र पच्चीस थी । 4 साल पहले वो फिल्म इंडस्ट्री में दिल्ली से स्ट्रगलर के तौर पर आई थी । इरादा हीरोइन बनने का था । लेकिन 3 सालों में उसे समझ आ गया कि फिल्म में उसे चांस पाने के लिए किसी की मेहरबानी जरूर चाहिए । ऐसे में साल भर पहले उसे काका मेहर के ऑफिस में नौकरी मिल गई और बढ़िया-बढ़िया काम करके, काका मेहर की सैक्रेट्री बन गई थी ।
"इनकम टैक्स ।" काका मेहर ने सिर को झटका दिया, "ये मुसीबत बन कर सिर पर बैठ गए हैं ।"
शैला, काका मेहर को देखती रही ।
"तुम कहो ।" काका मेहर ने मुस्कुराने की चेष्टा की, "कैसी हो ?"
"रात की थकान बाकी है ।" शैला ने कहा, "तुम परेशान लग रहे हो ।"
"मैं ?" काका मेहर ने गहरी साँस ली, "तुमसे क्या छिपा है । सब कुछ तुम्हारे सामने ही है कि मेरा क्या हाल है ?"
"तुम्हें याद होगा कि छः महीने पहले हम में एक डील हुई थी ।" शैला ने गंभीर स्वर में कहा ।
काका मेहर ने शैला को देखा ।
"वो डील ये थी कि मैं तुम्हारे साथ सोया करूँगी और तुम मुझे हिरोइन बनाओगे ।"
काका मेहर के चेहरे पर बेचैनी झलकी ।
"मैं तो अपना काम पूरा कर रही हूँ परंतु तुमने अपना वादा पूरा नहीं किया ।" शैला के स्वर में शिकायत के भाव थे ।
"कैसे करूँ वादा पूरा ?" काका मेहर झल्ला उठा, "मेरी हालत तो तुम्हें पता ही है कि... ।"
"नाराज क्यों होते हो ?" शैला ने उसी पल टेबल के गिर्द घूमती उसकी कुर्सी के पास पहुँची और उसके गले में बाहें डाल दीं, "कहने का मेरा ये मतलब नहीं था कि तुम परेशान हो जाओ ।"
"तुम्हारी बात ही परेशान करने वाली है ।"
"जानती हूँ, तुम इन दिनों मुसीबत में फँसे हुए हो । तुम्हारे तो कई डायरेक्टर दोस्त हैं ।"
"तो ?"
"उनसे कहकर तुम मुझे फिल्मों में चांस दिलवा सकते हो ।"
काका मेहर ने अपने गले में पड़ी शैला की बाहों को थपथपाकर कहा, "सब्र रखो, सब कुछ ठीक होते ही मैं बहुत अच्छा चांस दूँगा तुम्हें ।"
"सब कुछ ठीक हो जाएगा ?"
"हाँ ! मैं तुम्हें सच में चाहने लगा हूँ शैला ।"
"मैं भी । मैं हमेशा तुम्हारे बारे में सोचती रहती हूँ ।"
"हमारे दिल मिले हुए हैं शैला । तुम मेरे सामने बैठो, कुर्सी पर ।"
शैला वहाँ से हटी और टेबल के पार कुर्सी पर बैठी और मुस्कुराकर बोली, "कहो ?"
"अगर मैं कहूँ कि छोड़ो ये फिल्मी दुनिया, शादी करके आराम से बैठकर कहीं जिंदगी बिताते हैं तो तुम क्या कहोगी ?"
"ये तुम क्या कह रहे हो ? हिरोइन बनना तो मेरा सपना है । तुम्हारे करीब आने के लिए तो मैंने यहाँ नौकरी की थी ।"
"अगर मैं तुम्हारा सपना पूरा न कर सकूँ तो ?" काका मेहर ने गंभीर स्वर में पूछा ।
शैला टकटकी बाँधे काका मेहर को देखने लगी ।
"मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहता । शायद तुमसे प्यार करने लगा हूँ ।" काका मेहर ने पहलू बदलते हुए कहा, "इनकम टैक्स वाले हाथ धोकर मेरे पीछे पड़े हुए हैं । इनसे जान तभी बच सकती है जब मेरी कोई फ़िल्म हिट हो । पैसा आये और सारा टैक्स चुकता कर सकूँ । परंतु ऐसा होने वाला नहीं । कोई भी मेरी फिल्म को फाइनेंस करना नहीं चाहता । मेरे अपने पास जो पूँजी थी, वो लगातार फ्लॉप हुई चारों फिल्मों में लग गई ।"
"मीरचंदानी से कहो कि... ।"
"वो भी नहीं । उसने स्पष्ट इनकार कर दिया है ।" काका मेहर ने सिर हिलाया, "तुम्हें तो पता ही है कि दुबई में बैठे भाई का पैसा ही मीरचंदानी फिल्मों में लगाता है । शायद उसे भाई ने मना कर दिया है कि मेरे को और पैसा न दे ।"
"तुम हिम्मत हार बैठे हो ।"
"सही है । मुझे ये ऑफिस भी बंद करना या बेचना पड़ सकता है, क्योंकि इसका खर्चा निकालना भी कठिन हो रहा है । संभव है कि आने वाले वक्त में मैं फिल्म न बना पाऊँ । उस स्थिति में तुम क्या करोगी ? मेरे साथ रहोगी या... ?" वो चुप कर गया ।
शैला के चेहरे पर सोचें नाच रही थी ।
"कोई जल्दी नहीं है । आराम से सोच लो । हम शादी करके एक साथ रह सकते हैं । ये ऑफिस और फ्लैट बेचकर, किसी छोटे शहर में जाकर बस जाएँगे । इन दिनों में अपने बारे में यही सोच रहा हूँ । चाहो तो तुम भी मेरे साथ रह सकती हो ।"
"मैं सोचकर जवाब दूँगी ।" शैला के चेहरे पर कोई भाव नहीं था ।
"मैंने पहले भी कहा है कि कोई जल्दी नहीं है । सोच लो ।"
"तो तुम अब कोई फिल्म नहीं बनाने वाले ।"
"मेरे लिए सब रास्ते बंद हो गए हैं । मैं... । "
तभी काका मेहर का मोबाइल बज उठा । इनकम टैक्स विभाग से फोन आया था । काका मेहर बातों में व्यस्त हो गया ।
शैला उठी और ऑफिस के बाहर मौजूद अपने डेस्क पर आ बैठी । वहाँ चार टेबल लगे थे । जिन पर स्टाफ के तीन युवक, एक युवती मौजूद थीं । परंतु उनके पास करने को कोई खास काम नहीं था । वो जानते थे कि अब उनकी नौकरी खत्म होने वाली है । सामने पार्टीशन के पास रिसेप्शनिस्ट युवती बैठी थी, जो कि वहाँ से नजर नहीं आ रही थी । उधर मिलने आने वालों के लिए शानदार लॉबी थी, जहाँ कभी फिल्मों की जाने-पहचाने चेहरे या स्ट्रगलर आकर बैठा करते थे कि कब काका मेहर का बुलावा आए और उनसे मिलने जाए । परंतु अब लॉबी पूरी तरह खाली रहती थी । लेनदार ही आते थे और सीधा इधर आ जाते थे । रिसेप्शनिस्ट से बात करने की भी जरूरत नहीं समझते थे ।
शैला का विचार था कि काका मेहर जल्दी ही कोई रास्ता निकाल लेगा । फाइनेंस का इंतजाम करके, नई फिल्म फ्लोर पर ले आएगा और उसमें वो हिरोइन बनेगी । परंतु आज काका मेहर की बातों से उसे महसूस हुआ कि उसने कमजोर कंधे पर बंदूक रखकर हिरोइन बनने का निशाना लगाया था । काका मेहर सच में पूरा खत्म हो चुका था जिसका दोबारा उठ पाना संभव नहीं था । मन ही मन हारे बैठा था और ऑफिस फ्लैट बेच देने की सोच रहा था ।
"मुझे क्या मिलेगा काका मेहर से शादी करके, उसके साथ रहने से । बयालीस का वो हो चुका है ।" शैला एकाएक बड़बड़ा उठी, "आठ साल बाद पचास का हो जाएगा । सिर के बाल सफेद हो जाएँगे । मैं पच्चीस की हूँ । खूबसूरत हूँ । हीरोइन बनने के पूरी तरह काबिल हूँ । इंडस्ट्री में किसी और का कंधा इस्तेमाल करके, हीरोइन बन सकती हूँ । काका मेहर तो हिम्मत हार चुका है । शायद उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा । परंतु वो हिम्मत नहीं हारेगी । अभी उसे बहुत कुछ करना है जिंदगी में ।" कुछ पल ठिठककर वो पुनः बड़बड़ाई, "मुझे अब चुपचाप अपनी कोशिशें शुरू कर देनी चाहिए । करण सेठी कई फिल्में बना चुका है । उससे काका मेहर के साथ कई पार्टियों में मिली हूँ । उससे मिलूँगी । उसे सेट करना होगा कि वो मेरे लिए कुछ करें ।" शैला को अपना ये विचार बढ़िया लगा और साथ में सोचा कि काका मेहर को एकदम छोड़ना ठीक नहीं । क्या पता आने वाले वक्त में मीरचंदानी उसे फिल्म बनाने के लिए पैसा देने को राजी हो जाए । फिल्म इंडस्ट्री में कब क्या हो जाए पता नहीं चलता ।
तभी रिसेप्शनिस्ट मीरा देसाई पार्टीशन की साइड से निकलकर अपनी तरफ आती दिखी ।
शैला की निगाह उस पर जा टिकी ।
"शैला ।" मीरा देसाई ने जल्दी से कहा, "जगमोहन नाम का कोई आदमी सर से मिलने आया है ।"
"जगमोहन ?"
"हाँ !"
"पैसा लेने आया होगा ।"
"ये पहले कभी नहीं आया ।" मीरा देसाई ने कहा, "भेजूँ उसे ?"
"अकेला है ?"
"हाँ !"
"देखने में कैसा लगता है ?"
"पैसे वाला लगता है । स्मार्ट है । हो सकता है कि फिल्मों में काम पाने की कोशिश में हो ।"
"ठीक है, भेजो उसे । नहीं, तुम खुद ही उसे मेरे पास छोड़ जाओ ।"
मीरा देसाई गई और जगमोहन को ले आई तथा छोड़कर वापस चली गई ।
"बैठिए ।" शैला ने डेस्क के पास पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा किया ।
"काका मेहर साहब... ।" जगमोहन ने कहना चाहा ।
"मैं उनकी सैक्रेट्री शैला हूँ । बैठिए ।"
"काका साहब अपने ऑफिस में हैं ?"
"हाँ !" शैला ने जगमोहन को देखा ।
जगमोहन कुर्सी पर बैठ गया ।
"किस सिलसिले में आप सर से मिलना चाहते हैं ?"
"मैडम !" जगमोहन ने मुस्कुराकर कहा, "आप वक़्त खराब कर रही हैं । काका साहब तो इन दिनों फुर्सत में हैं । उन्हें तो कोई बातें करने वाला चाहिए । मैं बातें करने आ गया । सम्भव है मुझसे मिलकर उन्हें फायदा हो ।"
"कैसा फायदा ?"
"महीने बाद वो अपनी नई फिल्म शुरू कर सकें ।" जगमोहन ने मुस्कराकर कहा ।
नई फिल्म ? मतलब पैसा । वो हिरोइन होगी फिल्म में ।
शैला ने तुरंत खुद को संभाला और खड़े होते हुए बोली, "मैं अभी आई ।"
कहने के साथ ही वो पास का दरवाजा खोलकर भीतर गई । दरवाजा बंद हो गया । मिनट बाद दरवाजा खुला और शैला बाहर निकली, "आइए मिस्टर जगमोहन । सर, आपसे मिलना चाहते हैं ।"
जगमोहन मुस्कराकर उठा और दरवाजा खोले खड़ी शैला के पास से निकलकर भीतर प्रवेश कर गया । शैला ने दरवाजा छोड़ा और वो भी भीतर आ गई ।
काका मेहर अपनी शानदार कुर्सी छोड़ता मुस्कराकर हाथ आगे बढ़ाता बोला ।
"आपसे मैं पहली बार मिल रहा हूँ मिस्टर जगमोहन ।"
जगमोहन ने हाथ मिलाया और कुर्सी पर बैठता कह उठा ।
"मैं भी आपसे पहली बार मिल रहा हूँ ।"
काका मेहर अपनी कुर्सी पर बैठा और शैला से बोला ।
"दो बियर फ्रिज से निकाल... ।"
"मैं ऐसी चीजों से दूर रहता हूँ ।" जगमोहन ने कहा, "मुझे खबर है कि इन दिनों आप कैसी हालत से गुजर रहे हैं तो मैंने सोचा कि आप आसानी से हार नहीं मानेंगे और एक नई फिल्म जरूर शुरू करना चाहेंगे । मेरा ख्याल ठीक है न ?"
"सही कहा आपने ।" काका मेहर हवा में हाथ घुमाकर जोश भरे स्वर में कह उठा, "स्टोरी मेरे पास तैयार है । इस बार मैं ऐसी फिल्म बनाऊँगा कि पीछे की सारी कसर पूरी कर दूँगा । लेकिन आप कौन हैं, पहले अपना परिचय... ।"
"अकेले में ।" जगमोहन ने शैला को देखा ।
शैला के चेहरे पर नाराजगी के भाव उभरे ।
"ये मेरी सैक्रेट्री है । सब कुछ इसे पता रहता है ।"
"लेकिन हम जो बात करने वाले हैं, वो इसे नहीं पता होनी चाहिए । बाद में आप बता दें तो वो आपकी मर्जी ।"
"ठीक है । ऐसा ही सही ।" काका मेहर ने शैला को देखा, "प्लीज शैला... ।"
न चाहते हुए भी शैला बाहर निकल गई । दरवाजा बंद कर गई ।
काका मेहर ने जगमोहन को मुस्कुराकर देखते हुए मीठे स्वर में कहा ।
"कहिए जनाब, पहले आपकी तारीफ... ।"
"मेरी तारीफ तो इतनी ही है कि मैं आपकी डूबती कश्ती को किनारे पर लगा सकता हूँ ।" जगमोहन बोला ।
"आपके मुँह में घी-शक्कर । मेरी दादी कहा करती थी कि... ।"
"छोटे बजट की नई स्टार कास्ट के साथ भी फिल्में बनाना आपके लिए आज सपने से ज्यादा है, परंतु सब ठीक हो सकता है । नई स्टार कास्ट की फिल्म कितने में बन जाएगी ? "जगमोहन ने पूछा ।
"सिर्फ 12-15 करोड़... ।"
"फिर तो तुम्हारे लिए मैं 12 करोड़ का इंतजाम कर सकता हूँ ।"
"शुक्रिया जनाब । आपने तो मेरे में जान ही डाल दी । मैं आपका एक-एक पैसा वापस... ।"
"वापस नहीं देना है । 12 करोड़ जो दूँगा, वो तुम्हारा ही होगा ।"
"मेरा ?" काका मेहर, जगमोहन को देखने लगा । वो कुछ समझा नहीं था ।
"हाँ, तुम्हारा ही होगा । मैं तो तुम्हें रास्ता दिखा रहा हूँ कि तुम कैसे 12 करोड़ पा सकते हो ।"
"क... कैसे पा सकता हूँ ?"
"बताने से पहले मैं एक बार तुम्हारी हालत ही तुम्हारे सामने दोहरा देना चाहता हूँ ।" जगमोहन ने कहा, "आज की तारीख में तुम फिल्म इंडस्ट्री में कुछ भी नहीं कर सकते । कर्ज में डूब चुके हो । इनकम टैक्स वाले ही तुम्हें नहीं छोड़ेंगे । कोई भी तुम्हारी फिल्मों में पैसा लगाने को तैयार नहीं । तुम्हारा नाम ही बाकी है । काम खत्म हो चुका है । तुम्हारी लगातार चार फिल्में फ्लॉप हो गईं और यही वजह है तुम्हारी बर्बाद होने की । परंतु मैं चाहता हूँ तुम फिर कुछ करो । तभी तुम्हारे पास आया हूँ ।"
काका मेहर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । जगमोहन को देखता रहा ।
"जब इंसान डूब रहा हो तो सोचता है उसे तिनका मिल जाए तो उसका सहारा लेकर ही किनारे पर लग जाऊँगा । यही हालत इस वक्त तुम्हारी है । 50-70 करोड़ की फिल्में बनाने वाला अब सिर्फ 12 करोड़ का तिनका पाकर ही फिल्म इंडस्ट्री को फतह करने की सोच रहा है । हो भी सकता है कि तुम सफल रहो या ये सब भी डूब जाए । क्या पता... ।"
"तुम कौन हो ?"
"नाम जगमोहन है और इससे ज्यादा तुम्हें जानने की जरूरत नहीं । तुम्हें 12 करोड़ के बारे में सोचना चाहिए काका मेहर ।" इस वक्त जगमोहन गंभीर नजर आने लगा था, "तुम्हें जिंदगी आखरी मौका दे रही है ।"
"तुमने कहा कि जो 12 करोड़ मुझे मिलेगा, वो मेरा होगा । बाद में वापस नहीं लौटाना होगा ।"
"सही कहा ।"
"परंतु मुझे 12 करोड़ मिलेगा कहाँ से ?" काका मेहर ने व्याकुल स्वर में कहा ।
"मेरा बताया काम करके ।"
"क्या काम ?" काका मेहर की नजर जगमोहन के चेहरे पर टिकी थी ।
चंद क्षण चुप रहकर जगमोहन बोला ।
"आज से पाँच साल पहले तुमने डकैती मास्टर देवराज चौहान की जीवनी पर फिल्म बनाने की कोशिश की थी ।"
काका मेहर चौंका । अगले ही पल उसके होंठों से निकला ।
"हाँ, परंतु वो फिल्म शुरू नहीं कर सका मैं । डकैती मास्टर देवराज चौहान का फोन आया था । मैं नहीं जानता वो कौन था, परंतु उसने कहा कि वो देवराज चौहान है और मैं इस फिल्म को न बनाऊँ, वरना मेरी खैर नहीं । डकैती मास्टर देवराज चौहान से पंगा कैसे ले सकता हूँ मैं । जिसने भी फोन किया हो, वो देवराज चौहान ही था या नहीं, पर मैंने देवराज चौहान पर फिल्म बनाने का ख्याल छोड़ दिया । उस फोन से मैं डर गया था ।"
"अगर तुम देवराज चौहान की जिंदगी पर फिल्म बनाते तो उसके जीवन के बारे में कैसे जान पाते ? कुछ पता है उसके बारे में ?"
"पता लगाने की जरूरत ही क्या थी ? सिर्फ यही प्रचार किया जाता कि ये कहानी डकैती मास्टर देवराज चौहान के जीवन पर आधारित है ।"
"तुम्हारे इस कदम से देवराज चौहान की शामत आ जाती । फ़िल्म बाजार में आते ही देवराज चौहान क्राइम की दुनिया का बड़ा हीरो बन जाता और पुलिस की नजरों में चढ़ जाता । देवराज चौहान की मुसीबतें बढ़ जातीं । ये थी असली वजह तुम्हें फोन करने की ।"
"तुम... तुम इस बारे में क्या जानते हो ?" काका मेहर कुछ संभला ।
"जब देवराज चौहान ने तुम्हें फोन किया तो उस वक्त मैं पास ही बैठा था ।"
"क्या ?" काका मेहर चौंका, "तुम देवराज चौहान के पास ?"
"हाँ !"
काका मेहर अचानक बेचैन दिखने लगा ।
"तुम... तुम कौन हो जो... ।"
"तुम कुछ साल पहले देवराज चौहान पर फिल्म बनाने वाले थे तो उसके किसी करीबी के बारे में भी सुना होगा ।"
"हाँ, उसका सबसे करीबी, जगमोहन नाम का... जगमोहन ?" एकाएक वो थम गया । चेहरा फक्क पड़ गया, "तुम वही जगमोहन तो नहीं ?"
"वही हूँ । देवराज चौहान वाला जगमोहन ।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा ।
काका मेहर ने कुर्सी के हत्थों को कस के पकड़ लिया । दोनों एक-दूसरे को देखते रहे । काका मेहर को बीतता एक-एक पल भारी लगने लगा ।
"त... तुम देवराज चौहान के साथी हो ?" काका मेहर के चेहरे पर अजीब-से भाव थे ।
जगमोहन ने सहमति से सिर हिलाया ।
"ओह !" काका मेहर जैसे सपने से बाहर निकला हो, "मुझे यकीन नहीं आ रहा कि तुम वही जगमोहन हो । जरूर होगे, कह रहे हो तो सही कह रहे होगे । पर... पर अब तो मैं देवराज चौहान पर फिल्म नहीं बना रहा, क्यों मेरे पास... ।"
"मैं तुम्हारा भला करने आया हूँ ।"
"भला ?"
"हाँ !" जगमोहन ने सिर हिलाया, "फिल्में बनाते-बनाते तुम बर्बाद हो चुके हो । पैसे-पैसे के मोहताज हो गए हो । ऐसे में अगर तुम्हें एक फिल्म और बनाने का मौका मिल जाए तो शायद खुद को संभाल लो । मैं तुम्हें मौका देने आया हूँ कि तुम 12 करोड़ पा सको । हमें तो काम में लोगों को शामिल करना ही होता है । अगर तुम जैसा फँसा आदमी हमें दिख जाए तो हम उसे जरूर चांस देते हैं कि वो अपनी बिगड़ी हालत सुधारने की कोशिश कर सके । इसी कारण तुम्हारे पास आया ।"
"म... मैं कुछ समझा नहीं ।"
"इतना तो तुम समझ चुके हो कि मेरे द्वारा तुम 12 करोड़ पार सकते हो ।" जगमोहन ने कहा ।
"क...कैसे ?"
"डकैती में शामिल होकर ।"
काका मेहर का शरीर एक पल के लिए काँपा फिर स्थिर हो गया ।
"दे... देवराज चौहान डकैती कर रहा है ?" काका मेहर के होंठों से निकला ।
"करने वाला है । तैयारी चल रही है । मैं जरूरत के हिसाब से लोगों को इकट्ठा कर रहा हूँ । तुम भी इसमें शामिल हो सकते हो ।"
"म...मैं डकैती ?" काका मेहर ने बेचैनी से पहलू बदला, "कैसी बातें करते हो । मैं जाना-माना मशहूर फिल्म डायरेक्टर-प्रोड्यूसर हूँ और तुम मुझे डकैती में शामिल करने को कह रहे हो ।"
"तुम फिल्म प्रोड्यूसर-डायरेक्टर हो नहीं, कभी थे । अब सब कुछ लुट गया है तुम्हारा । अब तुम फिल्म बनाने की सोच भी नहीं सकते । परंतु मेरी बात मानकर तुम 12 करोड़ पा सकते हो । उससे फिल्म बनाओ या जिंदगी काटो, ये तुम्हारी मर्जी । ऐसा मौका जीवन में एक बार ही मिलता है और वो तुम्हें मिल रहा है । इससे शायद तुम्हारा जीवन बेहतर हो जाए ।"
"त... तुम्हें देवराज चौहान ने भेजा है ?" काका मेहर परेशान था ।
"हाँ !"
"नहीं, नहीं ! मैं ये काम नहीं कर सकता । काका मेहर डकैती करे, देवराज चौहान का साथी बने । लोग क्या सोचेंगे कि... ।"
"तुमने देवराज चौहान का साथी नहीं बनाना है । अपने लिए, 12 करोड़ पाने के लिए मेरे कहे रास्ते पर चलना है । मेरे पास लोगों की कमी नहीं है परंतु देवराज चौहान चाहता है कि तुम्हें जिंदगी बनाने का एक मौक़ा जरूर मिलें । रही बात कि लोग क्या सोचेंगे तो लोगों का काम ही सोचना है । जैसा कि अब सोच रहे हैं कि काका मेहर बर्बाद हो चुका है । वो कुछ नहीं कर सकता । पैसा आ जाने पर तुम नई फिल्म शुरू करके लोगों का मुँह बंद कर सकते हो कि काका मेहर की सेहत पर, हालातों का कोई फर्क नहीं पड़ा ।"
काका मेहर हक्का-बक्का जगमोहन को देखता रहा ।
जगमोहन की निगाह काका मेहर के फक्क चेहरे पर थी ।
"ले... लेकिन मैं देवराज चौहान के साथ डकैती... नहीं, नहीं ! मैं ये काम नहीं कर सकता ।"
"सोच लिया ?" जगमोहन का स्वर का शांत था ।
"म... मैं डकैती नहीं कर सकता ।" काका मेहर ने सूख रहे होंठों पर जीभ फेरी, "ये... ये मेरा काम नहीं । मैं... मैं तो... ।"
जगमोहन ने टेबल पर से एक कागज और स्टैंड में से पेन निकालकर, उस पर अपना मोबाइल नंबर लिखा और कागज को काका मेहर की तरफ सरका कर कहा ।
"इसे रख लो । मेरा फोन नंबर लिखा है । एक सप्ताह का वक्त है तुम्हारे पास कि मुझे जवाब दे सको ।"
"मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा नंबर । मैं... ।"
"रख लो । जरूरत पड़ सकती है । फिल्म इंडस्ट्री में तुम्हारी कहानी खत्म हो चुकी है । शायद तुम्हें अपने हालातों पर विश्वास नहीं आ रहा कि तुम अब फिल्मों के काबिल नहीं रहे ।" जगमोहन उठ खड़ा हुआ, "याद रखना जो मौका तुम्हें मिल रहा है, ऐसा मौका जिंदगी में एक बार ही मिलता है ।" कहने के साथ ही जगमोहन पलटा और फिर वहाँ से बाहर निकल गया ।
काका मेहर सकते की-सी हालत में कुर्सी पर बैठा बंद हो चुके दरवाजे को देख रहा था । उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । जगमोहन का उसके पास ऐसी बात करने आना ही उसे परेशान कर रहा था । स्पष्ट था कि उसके बारे में फिल्म इंडस्ट्री में हवा फैल चुकी थी कि काका मेहर पूरी तरह खत्म हो चुका है । इस बात की उसे हैरानी हुई कि देवराज चौहान ने कैसे सोच लिया कि वो उसकी डकैती में शामिल हो जाएगा । वो इतना मशहूर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर है कि... ।
तभी दरवाजा धकेलते हुए तेजी से शैला ने भीतर प्रवेश किया ।
"काम बन गया ?" तेजी से उसके पास पहुँचते उत्साह भरे स्वर में शैला ने पूछा ।
काका मेहर ने व्याकुल निगाहों से शैला को देखा ।
"वो फिल्म बनाने के लिए पैसे दे रहा है न ?" शैला उसके पास पहुँचकर ठिठकी । वो खुश लग रही थी, "शायद तुम हैरान हुए पड़े हो कि जगमोहन पैसा देने की हामी भर गया है । यही बात है न ? पर काका, इस फिल्म की हिरोइन मैं ही बनूँगी । विश्वास रखो कि मैं बहुत अच्छी एक्टिंग करूँगी । फिल्म सुपर-डुपर हिट होगी । तुम्हारे डायरेक्शन में तो सब कुछ शानदार होगा ।"
काका मेहर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"कुछ तो कहो काका, वो पैसा लेकर कब आएगा ?"
"व... वो पागल था शैला ।"
"पागल ?" शैला के मस्तिष्क को झटका लगा, "क्या उससे पैसे की बात नहीं हुई ?"
"वो जो चाहता है, वो मैं नहीं कर सकता ।" काका मेहर ने गहरी साँस लीं ।
"क्या चाहता है वो ?"
काका मेहर ने कुछ नहीं कहा ।
"बताओ तो वो क्या चाहता है ?" शैला ने पुनः पूछा ।
"वो कहता है, मैं उसके साथ डकैती करूँ ।"
"डकैती ?" शैला ठगी-सी काका मेहर को देखती रह गई ।
"जानती हो जो मुझसे मिला, वो कौन था ?"
"कौन ?"
"डकैती मास्टर देवराज चौहान का साथी जगमोहन ।"
"डकैती मास्टर देवराज चौहान । ये नाम तो सुना लगता है । जगमोहन का नाम नहीं सुना... ओह, देवराज चौहान का नाम सुन रखा है । कुछ साल पहले तुम देवराज पर फिल्म भी बनाने वाले थे । ये बात मैंने अखबारों में पढ़ी थी तब मैंने जाना कि देवराज चौहान हिंदुस्तान का सबसे बड़ा डकैती मास्टर है । ये जगमोहन, देवराज चौहान का साथी है ?"
"हाँ !" काका मेहर कुर्सी से उठा और ऑफिस में टहलने लगा, "लगता है अखबार वालों ने मेरे बारे में काफी कुछ छाप दिया है कि मैं बुरे हाल में हूँ । कई दिनों से मैंने अखबार भी नहीं पढ़ी । मैं तो अब... ।"
"इतना बड़ा डकैती मास्टर तुम्हें अपने काम में लेना चाहता है । ये तो तुम्हारे लिए अच्छी बात है ।" शैला बोली ।
"क्या ?" काका मेहर अचकचाकर ठिठका और शैला को देखा, "क्या कहा तुमने ?"
"देवराज चौहान डकैती करने में माहिर है जैसा कि तुम फिल्म बनाने में माहिर हो । ठीक कहा न मैंने ?"
"हाँ !" काका मेहर के होंठों से निकला ।
"देवराज चौहान को मालूम है कि डकैती कैसे करनी है और तुम्हें मालूम है कि फ़िल्म कैसे बनानी है ।"
"तो ?"
"तब भी नहीं समझे मेरी बात ?"
"नहीं !"
"तुमने जगमोहन से क्या कहा ?"
"मना कर दिया । मैं ये काम नहीं कर सकता ।"
"तुम कर सकते हो काका । ऐसा कोई काम नहीं, जो तुम न कर सको ।" शैला पाँव पटककर बोली, "तुमने इनकार करके बहुत ही बढ़िया मौका गँवा दिया । अब वो दोबारा तुम्हारे पास नहीं आएगा ।"
"वो अपना फोन नम्बर दे गया है ।"
"कहाँ है ?" शैला की नज़र उसी पल टेबल पर रखे फोन नम्बर लिखे कागज पर पड़ी तो उसे उठाकर मुट्ठी में जकड़ लिया ।
काका मेहर माथे पर बल डाले शैला को देख रहा था ।
"ये डकैती है शैला । असली डकैती । फिल्मी नहीं । पहले से ही मेरे पास मुसीबतें बहुत हैं । मैं नई मुसीबत में नहीं फँसना चाहता ।"
"तुमने कुछ नहीं करना । जो करना है देवराज चौहान ने करना है । वो डकैती मास्टर है । तुमने तो सिर्फ उसका साथ देना है । जैसा वो कहे, वैसा करते जाना है । ये बहुत आसान काम है । बहुत ही आसान... ।"
"मैं ऐसा नहीं कर सकता ।"
"डरपोक हो तुम ।"
"नहीं, मैं... ।"
"इसका मतलब तुम मुझे प्यार नहीं करते ।"
"प्यार ? इसमें हमारे प्यार की बात कहाँ से आ गई ? बात तो देवराज चौहान की हो रही है ।"
"तुम जानते हो कि मैं हीरोइन बनना चाहती हूँ । तुम जानते हो कि तुम्हारी हालत खराब हो गई है, चार फ्लॉप फिल्में देकर और इन हालातों में हम एक साथ रहने और शादी करने की सोच रहे हैं । तुम्हें पता है कि मैंने क्या सोच रखा है । मैंने बताया ही नहीं तो तुम्हें कैसे पता होगा ? मेरे मन में चल रहा था कि अगर मैं हिरोइन बन गई तो तुमसे शादी कर लूँगी । मैं तुम्हें बहुत प्यार करने लगी हूँ और तुम्हारी इस हालत पर मैं मन ही मन रोती हूँ । अब किस्मत तुम्हें एक बार फिर खड़ा होने का मौका दे रही है तो चूको मत । मौके को मुट्ठी में जकड़ लो । तुम्हारे पास पैसा आएगा तो तुम फिल्में बना सकोगे । मैं हिरोइन बन जाऊँगी । हमारी शादी होगी । सब कुछ बढ़िया हो जाएगा काका ।"
"तो तुम चाहती हो कि मैं देवराज चौहान के साथ डकैती करूँ ?"
"हाँ ! तुम्हें ऐसा करना चाहिए । इसी में हमारा फायदा है । जगमोहन को फोन करो और हाँ कर दो ।"
"नहीं शैला !" काका मेहर झुँझलाकर बोला, " मैं ये काम नहीं कर सकता । मैंने ये सब पहले नहीं किया है । डकैती का नाम सुनकर ही मेरे पसीने छूटने लगते हैं । मैं ये काम कैसे कर सकता हूँ ।"
"तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं ।" एकाएक शैला बोली ।
"क्या ? मेरी तबीयत ?"
"हाँ ! तुम्हारा दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा । मेरे साथ चलो । मैं तुम्हारी तबीयत ठीक कर दूँगी ।"
"मैं ठीक हूँ ।" काका मेहर झुँझलाकर बोला ।
"तुम्हें आराम और प्यार की जरूरत है । तभी तुम ठीक से सोच सकोगे कि तुम्हें देवराज चौहान के साथ काम कर लेना चाहिए । मैं तुम्हारी सेवा करके तुम्हें ठीक कर दूँगी । मीरचंदानी के फॉर्महाउस पर चलते हैं । बहुत मजा आएगा । 4 दिन हम वहीं रहेंगे और इस बार तो मैं तुम्हारे लिए सब कुछ स्पेशल करूँगी, जो पहले नहीं हुआ था । वहीं से तुम जगमोहन को फोन कर देना कि तुम देवराज चौहान के साथ काम करने को तैयार हो । मेरा प्यार तुम्हें सही राह पर ले आएगा और... ।"
"ओह शैला, तुम... ।"
"बस ।" शैला तेजी से आगे बढ़ी और काका मेहर से लिपट गई, "कुछ मत कहो । जो कहना है, मीरचंदानी के फार्महाउस पर पहुँचकर कहना, जब मैं तुम्हारी गोद में बैठूँ । अपनी बाहों का हार तुम्हारे गले में डाल दूँ और जब-जब... सब कुछ स्पेशल होगा तुम्हारे लिए । काका, याद रखो तुम अब फिर फिल्म बनाने वाले हो । मुझे हिरोइन बनाने वाले हो । उसके बाद हमारी शादी हो जाएगी । पर शादी करना तुम्हारी मर्जी पर होगा । चाहोगे तो सब कुछ बिना शादी के भी चलता रहेगा । तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी होगी । इस बार साबित कर देना कि तुमसे बढ़िया फिल्म मेकर दूसरा कोई नहीं है ।"
"लेकिन शैला... ।"
उसी पल शैला के होंठ, काका मेहर के होंठों पर जा टिके थे ।
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