शाम साढ़े सात बजे कन्हैया लखानी लुटा-पिटा सा रेस्टोरेंट में पहुंचा। उसकी गैरमौजूदगी में भी काम सुचारू रूप से ही चल रहा था। कुंदन कैश काउंटर के पीछे बैठा हुआ था। लोग रेस्टोरेंट में बैठे हुए खाना खा रहे थे।
कुंदन उसके चेहरे के भाव देखकर खड़ा होते कह उठा–
“तबीयत तो ठीक है ना साहब जी...!”
“हां।” लखानी ने कुंदन को देखा –“कल मैं यहां से जा रहा हूँ।”
“क्या मतलब?” कुंदन कुछ नहीं समझा।
“मैंने यह रेस्टोरेंट बेच दिया है –कल कागज हो जाएंगे।” लखानी व्याकुल स्वर में कह उठा।
“ये आप क्या कह रहे हैं-रेस्टोरेंट बेच दिया?” कुंदन अवाक रह गया ये सुनकर।
“किसी का उधार देना था-बेचना पड़ा यह रेस्टोरेंट।”
“ओह, यह आपने क्या किया?” कुंदन परेशान-सा बोला –“रेस्टोरेंट कल से चलेगा या फिर यह बंद हो जाएगा?”
“पता नहीं –पर मैं कल यहां से चला जाऊंगा। अभी ये बात तुम किसी को भी बताना नहीं –कल मेरे जाने के बाद ही बताना।”
लखानी अपने आप को बरबाद हुआ-सा महसूस कर रहा था। उसके पास तैंतीस लाख नकद था जो कि चंपानेरकर ने ले लिया था। अब एक फूटी कौड़ी भी उसके पास नहीं रही थी। रेस्टोरेंट भी कल किसी देवेंद्र नागर के नाम करना था। आजाद रहने और कानून के शिकंजे से दूर रहने की उसे कीमत चुकानी पड़ रही थी। सबसे ज्यादा तो वो इस बात से परेशान था कि अब वो क्या करेगा? जिंदगी कैसे चलाएगा –कोई भी गैरकानूनी काम करने को उसका मन नहीं मान रहा था कि अगर पकड़ा गया तो पिछले केस भी खुल जाएंगे। उसने तो बहुत ही सावधानी बरती थी कि कोई उसे पहचान न सके। परंतु चंपानेरकर ने उसे कैसे पहचान लिया, ये उसकी समझ से बाहर ही था। जबकि हकीकत ये थी कि ए.सी.पी. चंपानेरकर को उसके बारे में देवराज चौहान ने ही बताया था। लेकिन देवराज चौहान तो अभी तक लखानी के सपने में भी नहीं आया था।
☐☐☐
अगले दिन साढ़े नौ बजे एक व्यक्ति उसके पास पहुंचा और अपना नाम उसने देवेंद्र नागर बताया। उसके साथ दो और लोग भी थे। बुझे मन से लखानी ने रेस्टोरेंट की खरीद-फरोख्त के पुराने कागज उसे सौंपे और उसके साथ कोर्ट जाकर रेस्टोरेंट उसके नाम कर दिया। इस काम से फुर्सत पाने में उसे दोपहर का एक बज गया।
देवेंद्र नागर लखानी से बोला–
“अब आपको वापस रेस्टोरेंट जाना होगा।”
“वहां-क्यों?” लखानी ने उसे देखा।
“ए.सी.पी. साहब वहां आपका इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने आपको बुलाया है।”
लखानी रेस्टोरेंट पहुंचा।
वो सोच रहा था कि अब वह ए.सी.पी. उससे चाहता क्या है?
कुंदन काउंटर के पीछे कुर्सी पर बैठा था। उसने गम्भीर निगाहों से लखानी को देखा।
“कागज हो गए कुंदन...।” वो बोला।
कुंदन के चेहरे पर अफसोस के भाव उभरे। उसने एक टेबल की तरफ इशारा किया।
लखानी ने टेबल की तरफ देखा तो वहां चंपानेरकर को बैठे हुए पाया। लखानी वहां पहुंचा और कुर्सी पर बैठ गया।
चंपानेरकर ने उसे देखते हुए मुस्कराकर कहा–
“अब तुम आजाद हो –तुम कानून से बचे रहोगे और मजे से जिंदगी बिताओ।”
“तुमने मुझे ढूंढा कैसे?”
“पुलिस वालों का काम है ये। तुम्हारा सवाल बेकार है। तो अब तुम बिल्कुल ही खाली हो गए हो –क्या करोगे अब तुम?”
“सोचा नहीं।”
“शादी भी नहीं कर रखी तुमने?”
“नहीं।” लखानी नाराजगी भरे हुए स्वर में बोला –“तुमने मेरा जरा सा भी ख्याल नहीं रखा।”
“ख्याल रखा है, तभी तो इस वक्त तुम आजाद बैठे हो, वरना इस वक्त तुम जेल में होते।”
लखानी ने गुस्से से अपना मुंह घुमा लिया।
चंपानेरकर होंठों पर मुस्कान समेटे उसे देखता रहा।
लखानी ने चेहरा सीधा किया और बोला – “तुमने मुझे यहां क्यों बुलाया?”
“मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है कि तुम अब खाली हो गए हो। काम-धंधा भी नहीं है। पैसा नहीं। मैंने सोचा कि मैं तुम्हारा कुछ इंतजाम कर ही दूं।”
“कुछ पैसा दे रहे हो मुझे?”
चंपानेरकर ने एक कागज पर लिखा फोन नम्बर उसकी तरफ सरका दिया।
“ये क्या है?” लखानी ने कागज पर लिखे फोन नम्बर पर एक नजर मारी।
“ये नम्बर मिलाना-तुम्हें काम मिल जाएगा। तुम फिर से पैसे वाले बन जाओगे। तुम पर मेहरबानी की है मैंने तुम्हें ये नम्बर देकर।”
लखानी की निगाह पुनः कागज पर लिखे हुए नम्बर पर घूमी।
“गैरकानूनी काम...!”
“पैसेवाला तुरंत बनने के लिए गैरकानूनी काम करना जरूरी होता है।”
“मैं गैरकानूनी काम नहीं करूंगा। पकड़ा गया तो मेरे पिछले केस भी खुल जाएंगे।” लखानी गम्भीर स्वर में बोला।
“तेरा रेस्टोरेंट और कैश मिलाकर एक करोड़ से कहीं कम था।”
“तो?”
“इस नम्बर का इस्तेमात करके तू चुटकियों में ही करोड़ों रुपया कमा लेगा।”
लखानी ने गहरी निगाहों से चंपानेरकर को देखा।
“पहले तूने मुझे कंगाल किया-अब मेरी चिंता हो रही है तुझे?”
“दोनों ही बातें अपनी-अपनी जगह पर सही हैं। मर्जी तेरी, चाहे तो ये कागज तू फाड़ दे।”
परंतु लखानी ने वह कागज फाड़ा नहीं, अपनी जेब में ही रख लिया।
“किसका नम्बर है ये?”
“देवराज चौहान का।”
“कौन देवराज चौहान?”
“डकैती मास्टर...!”
“ओह!” लखानी संभला –“वो तो बहुत ही बड़ा डकैती मास्टर है।”
“मेरा नाम ले लेना, वो तेरे को काम दे देगा।” चंपानेरकर ने शांत स्वर में कहा।
लखानी के चेहरे पर सोचें नाचती रहीं।
“मैं गैरकानूनी काम नहीं करूंगा।”
“तू करेगा।”
“नहीं करूंगा।”
“ताजी-ताजी चोट है, इसीलिए अभी तुझे चोट का अहसास नहीं हो रहा है। दो दिन बिता ले-तब दर्द होगा तो पता चलेगा।” चंपानेरकर ने तीखे स्वर में कहा –“बस ये ही बात करनी थी। जा अब मजे ले-तेरे-मेरे रास्ते अब अलग-अलग हुए।”
“बरबाद कर दिया कमीने मुझे-पूरा खाली कर दिया।” लखानी उबलते हुए गुस्से से बोला।
“दे ले गाली-तुझे पूरा हक है। बुरा नहीं मानूंगा।”
लखानी पलटकर रेस्टोरेंट से बाहर निकलता चला गया।
वहीं बैठे चंपानेरकर ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और देवराज चौहान का नम्बर मिलाया।
“लखानी अभी-अभी बाहर निकला है।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी –“वो पैदल ही है-मैं उसके पीछे हूं।”
“मैंने उसे कंगाल कर दिया-वाडेकर की तरह।”
“अच्छा किया।
“मेरा काम खत्म हुआ-तूने जो भी कहा था मैंने कर दिया। अब मेरा एक करोड़ दे।”
“वाडेकर से तूने करोड़ों कमाया है-मेरी वजह से, तुझे मैंने उसके बारे में बताया।”
“क्या मैं यह समझूँ कि तू बेईमान हो गया है?” चंपानेरकर ने तीखे स्वर में कहा।
“लखानी से कितना माल झटका?”
“सत्तर-अस्सी लाख।”
“अभी भी तेरी नोटों की भूख खत्म नहीं हुई जो मुझसे भी मांग रहा है...।”
“हम में ये ही सौदा तय हुआ था-तू एक करोड़ मेरे को दे दे।”
“नाम क्या है मेरा?” देवराज चौहान की आवाज में तीखापन आ गया था।
ए.सी.पी. चंपानेरकर सतर्क हुआ।
“बोल।”
“देवराज चौहान-डकैती मास्टर...!”
“तो तू क्या चाहता है, तेरे को साफ कर दूं-मरना चाहता है क्या तू?”
चंपानेरकर कुछ न बोला, बस होंठ भींच लिए।
“अपने मोबाइल से मेरा नम्बर काट दे और एक करोड़ को तू भूल जा।” देवराज चौहान की गुर्राहट कानों में पड़ी।
“समझ गया।” चंपानेरकर ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तूने लखानी को मेरा फोन नम्बर दिया?” उधर से पूछा देवराज चौहान ने।
“दिया।”
“वो मुझे फोन करेगा?”
“एक-दो दिन नहीं करेगा। उसके बाद जरूर करेगा। अभी उसे डर है कि गैरकानूनी काम करके फंसेगा तो पिछले मामले भी खुल जाएंगे और फिर वह कभी भी जेल से बाहर नहीं आ पाएगा।”
“हूं। ठीक है-मेरा नमस्कार ले और दोबारा मुझे फोन मत करना।” उधर से देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
चंपानेरकर ने फोन कान से हटाया और कड़वे स्वर में बड़बड़ा उठा–
“हरामजादा! एक करोड़ डकार गया। वैसे तो ढोल पीटता है कि मैं जो भी वादा करता हूं उसे पूरा करता हूं। लेकिन मेरे लिए ये सौदा घाटे का नहीं रहा। इस मामले में पड़कर मैंने करोड़ों कमा लिए हैं।”
☐☐☐
कन्हैया लखानी बहुत ही परेशान था।
एकदम अर्श से फर्श पर आ गया था।
कल तक तो वो एक रेस्टोरेंट का अकेला मालिक था। तीस-पैंतीस लाख रुपया पल्ले था कि ए.सी.पी. चंपानेरकर उसकी जिंदगी में ग्रहण बनकर आया और उसे बरबाद करके फुटपाथ पर फेंक गया। जेब में अब सिर्फ तीन हजार रुपया ही पड़ा था और आगे की सारी जिंदगी पड़ी थी। रेस्टोरेंट के एक कोने में कमरा डाल रखा था और वहीं रहता था। वो सब गया।
रहने को अब कोई भी जगह नहीं थी।
लखानी ने एक घटिया से होटल में पहुंचकर एक कमरा लिया। कमरे का रोज का किराया 200 रुपए था। परंतु उसके बाद क्या होगा? 3000 रुपया तो कंजूसी से चला तो फिर भी सप्ताह से ज्यादा नहीं चलेगा 3000। हर तरफ अब उसे सिर्फ अंधेरा ही दिख रहा या।
चंपानेरकर का चेहरा रह-रहकर उसकी आंखों के सामने आ रहा था।
लखानी बड़ा पंगा खड़ा नहीं करना चाहता था। इसीलिए वह चंपानेरकर की हर बात शराफत से मानता चला गया था। मन में अब सिर्फ ये ही था कि कानून, जेल, पुलिस के चक्कर में न फंसे।
लखानी को कागज पर लिखे फोन नम्बर का ध्यान आया।
वो कागज निकालकर देखा।
ये नंबर डकैती मास्टर देवराज चौहान का था। चंपानेरकर ने ही बताया था।
कोई और वक्त होता तो देवराज चौहान के साथ काम करके खुश होता –परंतु वो एक भगोड़ा था –और सबसे ज्यादा उसे इसी बात का डर था कि एक बार वह अगर पुलिस के हाथ लग गया तो गुजरे जमाने की आठ हत्याओं के मामले भी खुल जाएंगे। फिर वो जेल से बाहर आकर कभी भी खुला आसमान नहीं देख पाएगा। और वह जेल में ही मर-खप जाएगा।
परंतु अब वह अपनी जिंदगी कैसे जियेगा, ये उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
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वो दिन क्या अगला दिन भी बीत गया।
लखानी उसी सड़े से होटल में ही पड़ा रहा। सोचता रहा। होटल के पास ही एक शराब की दुकान थी। वहां से रात को वह बोतल ले आया था और इस शाम वो उस आधी बोतल को भी खत्म कर रहा था धीरे-धीरे।
इस वक्त रात के नो बज रहे थे। लखानी की आंखें नींद से भारी हो रही थीं। अब उसके मन के विचार भी बदल रहे थे। सोच रहा था कि एक बार उसे देवराज चौहान से बात कर लेने में कोई हर्ज नहीं है। देखता हूं कि वो क्या कहता है। क्योंकि लखानी अब तक बहुत-से काम करने की सोच चुका था, परंतु पास में पैसा नहीं था तो वह कुछ भी काम कैसे करेगा? हर बार ये ही समस्या सामने आ रही थी। पैसा होता तो वह फिर से अपने पाँव जमा सकता था, परंतु ये उसने सोच लिया था कि अब वह मुम्बई में ही नहीं रहेगा। यहां फंस सकता हूं, कहीं दूर चला जाएगा।
लखानी ने गिलास समाप्त किया और चंपानेरकर का दिया फोन नम्बर लिखा कागज निकाला। उसे देखा फिर मोबाइल उठाकर उस नम्बर को मिलाने के पश्चात् फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जा रही थी।
“हैलो...।” एकाएक देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
“कौन बोल रहा है...?” लखानी की आवाज में नशे की भरभराहट थी।
“तुम्हें किससे बात करनी है?”
“देवराज चौहान से।”
“बोल रहा हूं।”
“तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो?”
“हां, तुम...?”
“ए.सी.पी. चंपानेरकर को जानते हो?”
“अच्छी तरह से।”
“उसने मुझे तुम्हारा नम्बर दिया है। मेरा नाम कन्हैया लखानी है। वो ए.सी.पी. तो एक बहुत ही घटिया बंदा है।”
“काम की बात करो।”
“उसने मुझे खाली कर दिया है और मुझे अब तुम्हारा नम्बर दिया है। अगर मैं पैसा कमाना चाहूं...।”
“तुम्हें देखने-समझने के बाद ही मैं कोई फैसला ले सकूँगा कि तुम मेरे काम के लायक हो भी या नहीं।”
“लायक हूं-क्योंकि मैं खुद को जानता हूं।”
“कल मिलना मुझसे-तब बात होगी।”
“कहां मिलोगे?”
“तुम अपना ठिकाना बताओ-मैं आ जाऊंगा।”
लखानी ने उस टूटे-फूटे होटल का पता बताकर कहा – “मैं पुलिस के हाथों में नहीं पड़ना चाहता।”
“डरते हो?”
“मैं एक भगोड़ा हूं-यदि मैं पकड़ा गया तो पहले की आठ हत्याओं के केस भी खुल जाएंगे और मेरी खैर नहीं होगी तब।”
“मेरे काम में पुलिस की कोई गुंजाइश नहीं है।”
“पक्का कहते हो?”
“पक्का वादा है कि जब तक तुम मेरे साथ रहकर काम करोगे-पुलिस बीच में नहीं आएगी।”
“बस यही मैं चाहता हूं। चंपानेरकर कहता था कि तुम्हारे साथ रहकर मैं करोड़ों रुपया कमा लूंगा।”
“उससे भी ज्यादा-कल आऊंगा, उसके बाद ही कोई फैसला लूंगा।” उधर से कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था।
कान से फोन हटाकर वह नशे भरे स्वर में बड़बड़ा उठा– “बंदा तो ठीक लगता है।”
☐☐☐
अगले दिन दोपहर का एक बज रहा था। लखानी होटल में ही था कि तभी कमरे के दरवाजे पर थपथपाहट हुई। लखानी ने उठकर दरवाजा खोला। इस वक्त वो नहाया-धोया हुआ था। कपड़े मैले ही थे उसके शरीर पर।
दरवाजा खोलने पर सामने देवराज चौहान को खड़े हुए पाया।
परंतु लखानी उसे चेहरे से नहीं पहचानता था।
“क्या चाहिए?” लखानी ने पूछा।
“देवराज चौहान!” देवराज चौहान ने बेहद शांत स्वर में कहा।
“ओह! मैंने पहचाना नहीं था।” लखानी पीछे हटता हुआ कह उठा –“आओ।”
देवराज चौहान कमरे में आया। लखानी ने दरवाजा बंद किया और उसने देवराज चौहान को गहरी निगाहों से देखा।
“क्या देख रहे हो?” देवराज चौहान ने पूछा।
“यकीन नहीं हो रहा है कि डकैती मास्टर देवराज चौहान मेरे सामने ही खड़ा हुआ है इस वक्त।”
देवराज चौहान मुस्कराया और वह एक पुरानी-सी कुर्सी पर जाकर बैठ गया।
“बैठ जाओ।”
लखानी एक चारपाई के कोने में बैठ गया।
“बहुत गंदे होटल में ठहरे हुए हो।”
“पैसा नहीं है।” लखानी ने बहुत ही गुस्से से कहा –“सारा चंपानेरकर ने ले लिया। वो घटिया इंसान तुम्हारा दोस्त है?”
“कारोबारी रिश्ते हैं उससे।” देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा।
“वो तो कारोबारी रिश्तों के लायक भी नहीं है। तुम उससे मेरा पैसा मुझे वापस दिलवा सकते हो?”
“नहीं-मैं उसके कामों में कोई दखलअंदाजी नहीं करता।”
लखानी कुछ न कह सका।
“तुम मेरे साथ काम करना चाहते हो?”
“चंपानेरकर ने कहा था कि उसके नाम पर देवराज चौहान मुझे काम देगा और मैं तगड़ा पैसा बना लूंगा।”
“चंपानेरकर ने तुम्हें किस वजह से घेरा?”
“कई साल पहले मैंने जमानत जम्प की थी और मैं वेश बदलकर एक रेस्टोरेंट चलाने लगा था। मैं सुरक्षित था और मैं यह बात भी भूलने लगा था कि मैं कानून का एक भगोड़ा कैदी हूं। परंतु चंपानेरकर जाने कैसे मुझ तक पहुंच गया। मुझे छोड़ने की एवज में उसने रेस्टोरेंट अपने किसी आदमी के नाम लगवा लिया और पल्ले का तीस-पैंतीस लाख भी ले लिया। मैं भिखारी बन गया।”
देवराज चौहान ने समझने वाले अंदाज में सिर हिलाया।
“अपने बारे में बताओ कि तुमने क्या-क्या किया है आज तक?”
लखानी बताता चला गया।
देवराज चौहान शांति से सुनता रहा।
पंद्रह मिनट बाद जब लखानी खामोश हुआ तो देवराज चौहान ने कहा “ठीक है-तुम्हें मैं काम दे सकता...।”
“मैं पुलिस के हाथों में नहीं फंसना चाहता।” लखानी बेचैनी से कह उठा।
“मैंने रात भी तुम्हें फोन पर कहा था कि जब तक तुम मेरे साथ रहोगे, तब तक कि मेरी गारंटी है कि पुलिस तुम्हें छू भी नहीं सकेगी। मेरे से अलग होने के बाद तुम्हें अपना बचाव खुद करना होगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रह सकता?”
“नहीं-काम खत्म होते ही मैं सबसे अलग हो जाता हूं-और जब दोबारा जरूरत पड़ती है तो नए लोग इकट्ठे कर लेता हूं।”
“तुमने तो बहुत बड़ी-बड़ी डकैतियां डाली हैं?”
देवराज चौहान ने लखानी की आंखों में झांका, फिर कह उठा– “मेरे बारे में ज्यादा सोचोगे तो नुकसान ही होगा। अपने बारे में, अपने फायदे के बारे में सोचो।”
लखानी ने शराफत से सिर हिलाया।
“पहले मैं तुम्हारा टेस्ट लूंगा।”
“टेस्ट?”
“हाँ। मैं एक बहुत ही बड़ी डकैती करने जा रहा हूं। उसके लिए मैंने दो और काबिल लोग ढूंढ निकाले हैं। तुम तीनों का ही में टेस्ट लूंगा। दो-तीन छोटे-छोटे काम लेकर। ताकि देख सकूँ कि तुममें काम करने का हौसला है कि नहीं।”
“मुझमें हौसला है।”
“पता चल जाएगा-अगर टेस्ट में पास रहे तो हम उस बड़ी डकैती को अंजाम देंगे। जो असफल रहा, उसे तब तक किए काम से हिस्सा देकर बाहर कर दिया जाएगा।” देवराज चौहान बोला।
“डकैती कहां करनी है?” लखानी ने पूछा।
“तुम फिर बेकार के सवालों में उलझ रहे हो।”
लखानी चुप हो गया।
“टेस्ट में पास होकर दिखाओ। बाकी बातें उसके बाद होंगी।”
“मैं तैयार हूं। कब से शुरू होगा टेस्ट?”
“परसों से।” देवराज चौहान ने कहा –“परंतु आज शाम हम लोगों की मीटिंग होगी। मीटिंग में मेरे साथ जगमोहन के अलावा तुम होंगे और परेरा, वाडेकर नाम के दो लोग होंगे। ये मीटिंग सिर्फ एक-दूसरे को जानने-पहचानने के लिए ही होगी। मैं शाम को तुम्हें फोन पर बता दूंगा कि कहां पर पहुंचना है। मेरे साथ काम करके तुम करोड़ों रुपए आसानी से कमा लोगे। अगर तुम डकैती के लिए चुन लिए गए तो एक ही झटके में इतनी दौलत कमा लोगे कि सारी जिंदगी राजा बनकर रहोगे।”
इस तरह देवराज चौहान ने परेरा, वाडेकर और लखानी को अपने काम में लिया था। वो जानता था कि वो तीनों ही शातिर और काम के आदमी हैं। टेस्ट के बहाने वो इनके हाथ-पांव रवां कर देना चाहता था। उसके ख्याल से जो कि अब हो गए थे। बैंक लूट लिया गया था और हीराभाई-नन्द किशोर ज्वैलरी शो-रूम पर करोड़ों की डकैती की थी।
☐☐☐
“फिर देवराज चौहान! फिर डकैती!” ए.सी.पी. कामेश्वर ने गुस्से में कहा –“कल बैंक में पौने दो करोड़ की डकैती की और आज हीराभाई नन्द किशोर ज्वैलर्स के यहां पच्चीस से तीस करोड़ की डकैती की। हद हो गई! देवराज चौहान इतनी तेजी से डकैतियां करता है और अभी तक आजाद है। मुझे तो समझ नहीं आता कि वानखेड़े आखिर देवराज चौहान के मामले में करता क्या रहा? उसे पकड़ा क्यों नहीं?”
शाम के छ: बज रहे थे।
ए.सी.पी. कामेश्वर, इंस्पेक्टर विजय दामोलकर और पंद्रह अन्य पुलिसवालों के साथ हीराभाई-नन्द किशोर के ज्वैलरी शोरूम पर तफ्तीश करके लौटा था। खबर मिलते ही उसे भी जाना पड़ा था क्योंकि नन्द किशोर ने फोन पर खबर देते हुए कहा था कि उसके यहां डकैती करने वाला देवराज चौहान था। अखबार में छपी देवराज चौहान की तस्वीर से उसने उसे पहचाना और उसने खुद अपने मुंह से भी स्वीकारा कि वो डकैती मास्टर देवराज चौहान ही है।
उसके बाद तो ए.सी.पी. कामेश्वर सारा दिन व्यस्त ही रहा।
इंस्पेक्टर विनय दामोलकर शोरूम के लोगों के बयान दर्ज करता रहा।
अब अपने ऑफिस पहुंचकर हीराभाई नन्द किशोर के शोरूम में लगे C.C.T.V. कैमरों की फुटेज देखी तो उसमें देवराज चौहान और जगमोहन को स्पष्ट पहचाना गया। बाकी के तीन लोग वो ही थे जो कल बैंक लूटने के दौरान देवराज चौहान के साथ थे। ये सब देखने के बाद ए.सी.पी. कामेश्वर गुस्से से कह उठा था – “मैं पूछता हूं कि वानखेड़े ने आज तक देवराज चौहान को शूट क्यों नहीं किया?”
इंस्पेक्टर विनय के दामोलकर के चेहरे पर थकावट और गम्भीरता के भाव थे।
“इसका जवाब तो वानखेड़े साहब ही दे सकते हैं और वो नेपाल गए हुए हैं।” दामोलकर ने कहा !
ए.सी.पी. कामेश्वर ने होंठ भींचे और दामोलकर को देखा।
“लगता है कि देवराज चौहान और उसके साथियों को पकड़ने की हमारी कोशिशें काफी कम हैं।” कामेश्वर बोला।
“ये बात नहीं है सर।” दामोलकर बोला।
“तो क्या बात है दामोलकर?”
“हमारी कोशिशें पर्याप्त हैं सर। कल से हमने जगह-जगह पुलिस बैरियर लगा रखे हैं। पुलिस वालों के पास उन सबकी तस्वीरें हैं और सब गाड़ियों को चेक किया जा रहा है। आज के सब अखबारों में सबकी तस्वीरें छपी हैं। वो बच नहीं...।”
“इसके बावजूद भी आज उन सबने ज्वैलरी शोरूम लूट लिया।” कामेश्वर गुर्राया।
दामोलकर कुछ कह नहीं सका।
“वो सड़कों पर घूमते ही रहे और पुलिस उन्हें पहचान भी नहीं पाई। पकड़ नहीं पाई।”
“सर, उन्होंने ऐसे रास्तों का इस्तेमाल किया होगा-जहां पुलिस से सामना न हो।”
“मतलब कि हमारे इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं।”
“सर, हम पुलिसवाले हर जगह पर तो मौजूद नहीं रह सकते।” दामोलकर धीमे स्वर में कह उठा।
कामेश्वर ने एक लम्बी सांस ली। वह कुछ पलों के लिए खामोश ही रहा। वह ऑफिस में टहलने लगा।
इंस्पेक्टर विनय दामोलकर शांत खड़ा रहा।
“हमें हर हाल मे देवराज चौहान को पकड़ना है दामोलकर।” कामेश्वर ठिठककर बोला।
“यस सर।”
“मुखबिर हर तरफ फैला रखे हैं।”
“पूरी तरह सर। सब-इंस्पेक्टर बांदेकर ये काम संभाल रहा है।”
“बांदेकर ने अभी तक कोई खबर नहीं दी।”
“कुछ पता लगते ही वो तुरंत खबर...।”
तभी दरवाजा खुला और ए.सी.पी. चंपानेरकर ने भीतर कदम रखा।
दोनों की निगाहें उसकी तरफ उठीं।
“हैलो कामेश्वर।” चंपानेरकर ने शांत स्वर में कहा –“पता चला कि तुम देवराज चौहान को पकड़ने जा रहे हो।”
“कोशिश कर रहा हूं।” कामेश्वर ने मुस्कराने की चेष्टा की।
“मैंने अखबारों में देवराज चौहान, जगमोहन और उनके तीन साथियों की तस्वीरें देखीं। कल उन्होंने बैंक लूटा और पता चला कि आज ज्वैलरी शॉप भी लूट ली। करोड़ों का माल गया। देवराज चौहान तो बहुत ही तेजी से काम कर रहा है।”
“पच्चीस से तीस करोड़ का माल लूटा आज।” कामेश्वर ने कहा।
“ये अच्छा रहा कि इन दोनों कामों में उन्होंने कोई हत्या नहीं की।” चंपानेरकर बोला।
“देवराज चौहान के काम करने का ढंग है ये कि वो काम के दौरान हत्या नहीं करता।” कामेश्वर ने कहा।
“जो तीन साथी उसके साथ हैं-उनके बारे में कुछ पता चला?”
“अभी तो पता नहीं चला। मुखबिर छोड़ रखे हैं।”
“उनमें से दो के बारे में जानकारी है मुझे।”
“क्या?” कामेश्वर चौंका –“कौन हैं वो?”
“एक राजू वाडेकर है और दूसरा कन्हैया लखानी। अखबारों में छपी तस्वीरें देखी तो पहचाना। राजू वाडेकर ड्रग्स का धंधा करने वाला पुराना मुजरिम है। कुछ दिन पहले ही मैंने इस धंधे से उसके पांव उखाड़ दिए थे। भगा दिया था उसे। परंतु अब उसे देवराज चौहान के साथ काम करता हुआ देखकर हैरानी हुई।” चंपानेरकर ने शांत स्वर में कहा।
“और दूसरा...।” कामेश्वर की निगाह चंपानेरकर पर थी।
“कन्हैया लखानी नाम है उसका। कुछ साल पहले उसने आठ हत्याएं की थीं। केस चल रहा था। जमानत पर बाहर आया तो वह गायब हो गया। अब सालों बाद उसे देवराज चौहान के साथी के रूप में काम करते हुए देखा।”
“और तीसरा?”
“उसे नहीं जानता।” ए.सी.पी. चंपानेरकर बोला –“देवराज चौहान को पकड़ लोगे तो मुझे खुशी होगी। मेरी सलाह है कि उसे गिरफ्तार करने की अपेक्षा शूट ही कर दो-बाकी जो भी तुम ठीक समझो-चलता हूं...।”
ए.सी.पी. चंपानेरकर बाहर निकल गया।
“दामोलकर...!” कामेश्वर बोला –“राजू वाडेकर और कन्हैया लखानी के बारे में पता करो। पुलिस का रिकॉर्ड चेक करो। उनकी पुरानी तस्वीरें होंगी। सब कुछ देखो और मुझे रिपोर्ट दो।”
“यस सर।” विनय दामोलकर ने कहा और वह बाहर निकल गया।
ए.सी.पी. कामेश्वर के चेहरे पर सोचें नाच रही थीं। वो पुनः टहलने लगा।
तभी टेबल पर पड़े फोन की बेल बज उठी।
कामेश्वर ठिठका और उसने आगे बढ़कर फोन का रिसीवर उठाया।
“हैलो...।”
“सर, मैं सब-इंस्पेक्टर बांदेकर...।”
“कहो बांदेकर, कोई खबर?”
“यस सर-उन तीनों के ही बारे में खबरें मिल गई हैं। एक का नाम राजू वाडेकर है। दूसरा जॉन अंताओ परेरा और तीसरा कन्हैया लखानी है।”
“ये कहां-कहां रहते हैं क्या करते...?”
“सब जानकारी है मेरे पास सर।” उधर से बांदेकर कहता जा रहा था –“राजू वाडेकर सालों से लोअर परेल में ड्रग्स का काम कर रहा था –खतरनाक है ये। परंतु ए.सी.पी. चंपानेरकर साहब उसके पीछे पड़ गए और इसका पूरा धंधा उखाड़ दिया। बहुत बड़ी मात्रा में ड्रग्स पकड़ ली गई वाडेकर की। कुछ अंदर की खबर है सर, बताऊँ क्या?”
“बोलो।”
“वो खबर ए.सी.पी. चंपानेरकर के बारे में है।”
“तुम बोलो।”
“मुखबिर से पता चला कि ए.सी.पी. चंपानेरकर साहब ने आठ-दस दिन पहले ही राजू वाडेकर से करोड़ों रुपया लेकर उसे जाने दिया। गिरफ्तार नहीं किया।” सब-इंस्पेक्टर बांदेकर की आवाज कानों में पड़ी।
“सबूत है इस बात का?”
“नहीं सर-परंतु खबर पक्की है।”
“हूं।” कामेश्वर ने सिर हिलाया –“दूसरे के बारे में खबर दो।”
“दूसरा जॉन अंताओ परेरा है सर। ये एक शातिर चोर है, परंतु ये कभी भी पकड़ा नहीं गया। खार में इसने प्रॉपर्टी डीलिंग का आफिस खोल रखा है दिखावे के लिए। एक सप्ताह से उसका ऑफिस और फ्लैट बंद है। कहां है, कोई खबर नहीं है। तीसरा कन्हैया लखानी है। पुराना हत्यारा है। परंतु वह जमानत पर फरार हो गया था।”
“हूं। इनके बारे में कोई खास खबर?”
“अभी तो नहीं...”
“हमें मालूम करना है कि ये लोग इस वक्त कहां पर हैं। ये तीनों अब देवराज चौहान के साथ काम कर रहे हैं। कल और आज की दोनों डकैतियां देवराज चौहान ने इन तीनों के साथ मिलकर ही डाली हैं। मुखबिर से कहो कि इनका ठिकाना पता करने की कोशिश करे। बांदेकर, बढ़िया काम करो। अगर हमने देवराज चौहान को पा लिया तो तुम्हारी तरक्की हो सकती है।”
“ये सब बातें मैं पता करने की कोशिश कर रहा हूं सर।”
ए०सी०पी० कामेश्वर ने रिसीवर रख दिया। उसके चेहरे पर गम्भीर सोचें नाच रही थीं।
इसी पल कामेश्वर का मोबाइल बजा।
“हैलो।” कामेश्वर ने जेब से मोबाइल निकालकर बात की।
“शाम के सात बज रहे हैं। सोचा कि आपको याद दिला दूं कि नेहा का जन्मदिन है और आते समय केक लाना है।” पत्नी की आवाज कानों में पड़ी।
“याद है मुझे।”
“इस वक्त कहां पर हैं आप?”
“आफिस में।”
“सात बज रहे हैं और आप आफिस में हैं। नेहा की सहेलियां भी आ चुकी हैं और केक का इंतजार...।”
“किसी के हाथ भिजवा दूं क्या?” कामेश्वर ने एक गहरी सांस लेकर कहा।
“केक तो हम भी ला सकते हैं। आपसे केक मंगवाने का मतलब है कि आप भी घर पर आ जाएं।” पत्नी की तीखी आवाज कानों में पड़ी- “घर के लिए भी तो आपका कोई फर्ज है या नहीं।”
“आता हूं-आता हूं।”
“कितनी देर में?”
“एक घंटे में मैं घर पहुंच जाऊंगा।” कहकर कामेश्वर ने मोबाइल बंद करके अपनी जेब में रखा कि तभी दामोलकर भीतर आया।
“सर, वो-”
“बांदेकर का फोन आया था।” कामेश्वर कह उठा- “उसने तीनों की पहचान कर ली है। तुम उससे बात कर लो। मुझे कहीं पर जाना पड़ रहा है। तुम इसी केस पर बांदेकर के साथ काम करो। खास बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना, मैं आ जाऊंगा।”
☐☐☐
वो लालबत्ती लगी सफेद एम्बेसेडर कार थी जो कि शहर की मशहूर पेस्ट्री शॉप के सामने जा रुकी। वर्दी पहने हुए एक कांस्टेबल उसे चला रहा था। पीछे वाली सीट पर ए०सी०पी० कामेश्वर मौजूद था और कार रुकते ही वो कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला। शाम के 7:40 हो रहे थे। अंधेरा फैल रहा था-रोशनियां जगमगाने लगी थीं।
कामेश्वर नेहा के जन्मदिन का केक लेने के लिए पेस्ट्री शॉप की तरफ बढ़ गए।
भीतर प्रवेश किया। दुकान रोशनियों से जगमगा रही थी काफी लोग थे भीतर । कामेश्वर केक लेने में व्यस्त हो गए। केक का आर्डर तो सुबह ही फोन पर दे दिया था। कैश काउंटर पर तीन-चार लोगों की लाईन थी। कामेश्वर ने पेमेण्ट दी और रसीद लेकर डिलीवरी लेने वाले काउंटर पर रसीद दे दी और वह अपने केक के आने का इंतजार करने लगे।
तभी कामेश्वर के कंधे पर किसी ने हाथ से थपथपाया।
कामेश्वर सीधा हुआ और फौरन पलटकर पीछे देखा।
पीछे जगमोहन खड़ा था-एकदम शांत और गम्भीर।
“आप ए०सी०पी० कामेश्वर हैं?” जगमोहन बोला।
कामेश्वर ने फौरन ही अपना सिर हिलाया और वह सोचने लगा कि उसने इसे कहीं देखा है।
“मुझे आपसे बात करनी है। मैं बाहर आपका इंतजार कर रहा हूं।” कहने के साथ ही जगमोहन बाहर की तरफ बढ़ गया।
“मैंने तुम्हें कहीं देखा है।” कामेश्वर कह उठा।
परंतु जगमोहन नहीं रुका और बाहर निकलता चला गया। .
“सर, आपका केक...”
कामेश्वर फौरन पलटा।
बड़े से लिफाफे को उसकी तरफ बढ़ाया जा रहा था।
कामेश्वर ने केक का लिफाफा पकड़ा और थैंक्स कहता बाहर की तरफ बढ़ गया।
वो बाहर निकलकर ठिठका। सामने ही जगमोहन खड़ा था।
उसके पास पहुंचा।
“मैंने तुम्हें कहां देखा है?” ए०सी०पी० कामेश्वर कह उठा।
जगमोहन मुस्कराया, फिर यह कह उठा- “आज अखबार में मेरी तस्वीर छपी है।”
चिहुंक पड़ा ए०सी०पी० कामेश्वर।
“ज...जगमोहन!” उसके होंठों से निकला।
“हां”
ए०सी०पी० कामेश्वर ठगा-सा खड़ा उसे ही देखता रहा कि तभी जैसे उसे होश आया । केक का लिफाफा नीचे रखा और फुर्ती के साथ बगली होलेस्टर में से रिवॉल्वर निकालकर जगमोहन पर तान दी।
जगमोहन शांत सा खड़ा कामेश्वर को देखता रहा।
“बहुत आतंक मचा लिया तुम लोगों ने दो दिनों में।”
ए०सी०पी० कामेश्वर गुर्राया - “अब तुम नहीं बच सकते। अच्छा हुआ जो कि तुम खुद ही मेरे पास आ गए। वरना तुम तक पहुंचने में मुझे कई दिन लग जाते।”
जगमोहन शांत ही रहा।
ये देखकर कार चलाने वाला हवलदार भी पास आ पहुंचा।
“सर।” हवलदार बोला- “मुझे ऑर्डर दीजिए सर।” कहने के साथ ही उसने नीचे पड़ा केक का लिफाफा उठा लिया।
“ये कोई चालाकी करे तो इसे शूट कर देना।” कामेश्वर ने शब्दों को चबाकर कहा।
हवलदार ने फौरन ही कमर पर लटके होलेस्टर से रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
“कार में हथकड़ी पड़ी है। कामेश्वर जगमोहन पर रिवॉल्वर ताने हुए हवलदार से बोला- “वो लाओ।”
“जी” हवलदार फौरन ही कार की तरफ पलट गया।
“ए०सी०पी० कामेश्वर!' जगमोहन कह उठा - “मैं तुमसे बात करने आया हूं।”
“बात करेंगे। आराम से करेंगे मिस्टर जगमोहन!”
ए०सी०पी० कामेश्वर मे कठोर स्वर में कहा- “अब हमने बातें ही करनी हैं, परंतु पुलिस हैडक्वार्टर चलकर। तुम अकेले क्यों हो देवराज चौहान कहां है?”
जगमोहन के चेहरे पर सख्ती आ ठहरी।
“मैं तुमसे बात करने...”
“पुलिस और मुजरिमों के बीच सड़कों पर बातें नहीं होती-जहां बातें होती हैं अब हम वहीं पर...।”
“तुम मेरी बात सुनते क्यों नहीं?” जगमोहन गुस्से में भर उठा।
तभी हवलदार हथकड़ी ले आया ! उसके दूसरे हाथ में रिवॉल्वर थी।
अब तक कुछ लोग भी आस-पास इकट्ठे होने लगे थे। परंतु रिवॉल्वरें देखकर वो कुछ पीछे थे।
“सर, हथकड़ी...”
“पहना दो इसे।” कामेश्वर रिवॉल्वर थामे हुए सतर्क स्वर में हदलदार ने रिवॉल्वर अपनी जेब में रखी और वह हथकड़ी थाम कर जगमोहन के पास पहुंचकर बोला- “अपने दोनों हाथ आगे करो।”
जगमोहन ने हवलदार को घूरा ।
“आगे करो-तुम बच नहीं सकते । सर के हाथों में रिवॉल्वर है-वो तुम्हें गोली मार देंगे।”
जगमोहन ने हवलदार की छाती पर हाथ रखकर उसे पीछे किया और कठोर स्वर में बोला- “अब तुम मेरे पास मत आना।”
हवलदार ने सकपकाकर ए०सी०पी० कामेश्वर को देखा।
कामेश्वर का चेहरा गुस्से से भरा दिखा।
“मेरी बात सुनो ए०सी०पी० मैं...।”
“तुम रिवॉल्वर निकालो।” कामेश्वर ने हवलदार से कहा।
हवलदार ने तुरंत ही रिवॉल्वर निकालकर जगमोहन पर तान दी।
कामेश्वर ने अपनी रिवॉल्वर वापस रखी और आगे बढ़कर हवलदार से रिवॉल्वर वापस ली फिर जगमोहन के पास पहुंचा।
उसी पल जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाली और नाल कामेश्वर के पेट से सटा दी।
कामेश्वर की आंखें सिकुड़ीं।
“सर।” ये देखकर हवलदार सकपकाया।
“तुम पुलिस से मुकाबला कर रहे हो। तुम इतने भी शक्तिशाली नहीं हो कि...।”
“मैं मुकाबला नहीं कर रहा हूं-तुमसे बातें कर रहा हूं। तुम्हें मेरी बात सुननी चाहिए।”
“पुलिस हैडक्वार्टर चलकर बातें...।”
“मेरी बात सुनो बेवकूफ-मैं यहां अपनी गिरफ्तारी देने के लिए नहीं आया।” जगमोहन दांत किटकिटा उठा।
“मैं तुम्हें गिरफ्तार करके ले जाऊंगा। तुम शातिर मुजरिम...”
“मैं गोली चला दूंगा, अगर तुमने मेरी बात नहीं सुनी तो।” गुर्रा उठा जगमोहन।
कामेश्वर ने जगमोहन की गुस्से से भरी आंखों में देखा फिर वह कह उठा-
“बोलो।”
“आज अखबारों में मेरी और देवराज चौहान की तस्वीरें छपी हैं।”
“हां”
“वो न तो मैं हूं और न ही वो देवराज चौहान है।”
“ओह!” ए०सी०पी० कामेश्वर कुटिलता भरे हुए स्वर में कह उठा- “तुम ये कहना चाहते हो कि कल तुम लोगों ने बैंक नहीं लूटा।
आज तुम लोगों ने हीराभाई-नन्द किशोर की ज्वैलरी शॉप नहीं लूटी। लूटने वाले दूसरे लोग थे।”
“हां...”
“बकवास मत करो-जो तस्वीर अखबारों में छपी है-उन्हें बैंक में C.C.T.V कैमरे में कैद किया था और...”
“लेकिन वो हम नहीं हैं-मैं नहीं हूं। देवराज चौहान तो इस वक्त मुम्बई में ही नहीं...।
“मुझे हैरानी है कि तुम कितनी हिम्मत के साथ मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो। सब कुछ सामने है और तुम कहते हो कि वो तुम नहीं हो। वो देवराज चौहान नहीं...।”
“मैं सच कह रहा हूं कि मेरे और देवराज चौहान के चेहरों में वो कोई और ही लोग हैं। वो लोग हमारा चेहरा अपनाकर हमारे नाम पर जुर्म कर रहे हैं। तुम इस केस की छानबीन कर रहे हो तो मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि उन्हें देवराज चौहान और जगमोहन समझकर छानबीन मत करो। ये कोई साजिश है मेरे और देवराज चौहान के खिलाफ। हम तो।”
“बकवास मत करो।” कामेश्वर गुर्राया - “तुम।”
“मेरी बात को सुनो और समझो।” जगमोहन भी गुर्रा उठा- “उन लोगों ने जो अब तक किया, उसकी मुझे परवाह नहीं है। परवाह है तो केवल इस बात की कि नकली देवराज चौहान और जगमोहन कोई संगीन वारदात न कर दें। मात्र दो-तीन ऐसी लूट के लिए तो उन्होंने हमारे चेहरे अपनाए नहीं होंगे। वो जरूर कुछ बड़ा करना चाहते होंगे और हमें गले तक फंसा देंगे। मैं उन्हें ढूंढ
रहा हूँ तुम भी भी उन्हें ढूंढो और असलियत का पता लगाओ कि...”
तभी कामेश्वर ने उसके रिवॉल्वर वाले हाथ पर हाथ मारा।
रिवॉल्वर जगमोहन के हाथ से निकल गई।
कामेश्वर जगमोहन को पकड़ने के लिए उस पर झपटा।
परंतु जगमोहन ने अपनी पूरी ताकत से कामेश्वर को हवलदार की तरफ धक्का दिया और लोगों की भीड़ में प्रवेश करता हुआ दौड़ता हुआ अंधेरे में गुम होता चला गया। फिर वो कामेश्वर को ढूंढे से भी नहीं मिल पाया।
☐☐☐
देवराज चौहान, जॉन अंताओ परेरा, राजू वाडेकर, कन्हैया लखानी इस वक्त एक पुराने से मकान में मौजूद थे। ये मकान घनी आबादी में था और ये वाडेकर का एक ठिकाना था, जिसके बारे में सिर्फ वो ही जानता था। यहां के सब सुरक्षित थे। सामने टीवी का न्यूज चैनल चल रहा था-जहां जगमोहन सहित इन पांचों की तस्वीरें दिखाई जा रही थीं, वो तस्वीरें जो हीरा भाई-नन्द किशोर के शोरूम में C.C.T.V कैमरे ने रिकार्ड की थीं। देवराज चौहान चेहरे पर शांत मुस्कान समेटे हुए उन चारों को देख रहा था सबके चेहरे जीत की खुशी से भरे पड़े थे।
तभी जॉन अंताओ परेरा उठा और दूसरे कमरे में जा पहुंचा। सामने ही डबलबैड पर नोटों की गड्डियों का ढेर लगा हुआ था। हर तरफ ही हजार के नोटों की, पांच सौ के नोटों की गड्डियां चमक रही थीं। कमरे के एक कोने में सोने और हीरे-जवाहरातों का ढेर लगा हुआ था जो कि करीब बीस करोड़ के हीरे, सोने के जेवरात थे।
परेरा वहां से निकलकर वापस कमरे में आया और देवराज चौहान से बोला-
“हमने बैंक और ज्वैलर्स शॉप से कितने का माल लूटा?”
“टोटल 28 करोड़।” देवराज चौहान ने बताया।
“ओह!” परेरा ने गहरी सांस ली- “इतना माल मैं कभी लूटूँगा-कभी सोचा भी नहीं था।”
“जबकि ये रकम मेरे लिए मामूली-सी है।” देवराज चौहान ने कहा।
“तुम...तुम तो कमाल के हो देवराज चौहान।” लखानी कह उठा।
“आखिर इसे डकैती मास्टर देवराज चौहान यूं ही तो नहीं कहते!” वाडेकर ने हंसकर कहा।
देवराज चौहान मुस्कराता हुआ उन्हें देखता रहा।
“मैं तो पूरी तरह से बरबाद हो गया था।” वाडेकर सिर हिलाकर कह उठा- “सोचा भी नहीं था कि फिर दोबारा कभी दौलत देख भी पाऊंगा।”
“पर एक गड़बड़ हो गई।” परेरा बोला।
सबकी नजरें उसकी तरफ उठीं।
“हमारे चेहरे आम हो गए-अब पुलिसवाले हम लोगों के बारे में जान चुके होंगे। हमें अपने चेहरे ढककर काम करना चाहिए था।”
“मैंने तो पहले ही ये बात कही थी, परंतु देवराज चौहान ने मना कर दिया था।” लखानी ने कहा।
“तुमने मना क्यों किया?” वाडेकर ने देवराज चौहान से पूछा।
“मैं कभी भी अपना चेहरा ढांपकर कोई काम नहीं करता और अपने साथियों को भी करने नहीं देता।”
“क्यों?”
“खुद को कमजोर लोग छिपाते हैं और मैं कमजोर नहीं हूं।” देवराज चौहान ने कहा।
“परंतु पुलिसवालों को हमारी पहचान हो गई है-हम बचेंगे कैसे?”
“दौलत पास में हो तो कहीं पर भी अपनी एक नई पहचान के साथ जिंदगी शुरू की जा सकती है। पुलिस भी हम लोगों की तरह ही इंसान है। पुलिस के पास कोई जादू का डण्डा तो है नहीं कि हमारे बारे में वह फौरन ही जान लेंगे कि हम लोग कहां पर छिपे हुए हैं। मुझे देखो, मैं खुले तौर पर लोगों के बीच में रहता हूँ। रेस्टोरेंट में जाकर खाना भी खाता हूं। टैक्सी में, कार में जाता हूं, परंतु कभी भी मुझे कोई भी पहचान नहीं सका। इस तरह मैं कभी भी पकड़ा नहीं गया। ये अपने मन का वहम होता है कि हमारे चेहरे पुलिस और जनता ने पहचान लिए हैं। टी०वी० पर दिखाए जा रहे हमारे चेहरों को कोई कब तक याद रखेगा? एक दिन या फिर दो दिन, तीसरे दिन किसी को भी हमारे चेहरे याद तक नहीं रहेंगे।”
“बात तो तुम्हारी सही है।” परेरा ने कहा।
“कभी भी डरो मत-ये मत सोचो कि लोग तुम्हारे बारे में सोच रहे हैं। कोई किसी के बारे में नहीं सोचता। किसी के पास इतनी फुर्सत ही नहीं है कि वह अपने ख्यालों से बाहर निकलकर हमारे बारे में भी सोच सके।” देवराज चौहान शांत स्वर में कहता जा रहा था- “आप लोग सड़क पर चलते हैं तो आपके मन में होता है कि सब लोग आपको ही देख रहे हैं, जबकि हकीकत तो यह होती है कि कोई भी आपको नहीं देखता। ये सब अपने मन का वहम होता है।”
“ठीक कह रहे हो-तुम बहुत अच्छी बातें बता रहे हो।”
“फिर भी खुद को सुरक्षित रखने के लिए 500 मील दूर के किसी भी शहर में नए नाम के साथ जाकर बस जाओ-मजे से जिंदगी बिताओ। लोग तो क्या, कुछ देर बाद तुम भी अपनी पिछली जिंदगी को भूल जाओगे।”
“हां” लखानी ने गम्भीरता से सिर हिला दिया- “ऐसा ही होता है।”
“जगमोहन कहां है?” एकाएक वाडेकर ने पूछा।
“वो किसी काम में व्यस्त है।”
“व्यस्त...? तो अब हमने कहां हाथ मारना है?”
देवराज चौहान ने सबको देखा और फिर शांत स्वर में कह उठा- “मेरे ख्याल में हमें वक्त बरबाद न करके आगे की बात करनी चाहिए।”
तीनों की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।
“जैसा कि मैं पहले भी ये बता चुका था कि मैं यह सब काम करके तुम लोगों का टैस्ट ले रहा था कि क्या तुम लोग मेरे साथ बड़ा काम कर सकने के काबिल हो या नहीं? और अब मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि तुम तीनों काबिल हो। हम लोग मिलकर बड़ा काम कर सकते हैं। परंतु इस वक्त हमारे पास 28 करोड़ की दौलत है-अगर तुम लोगों में से कोई बड़ा काम नहीं करना चाहता तो वी बेशक अपना हिस्सा लेकर अलग हो सकता है।”
देवराज चौहान की निगाह तीनों पर थी।
तीनों की निगाह देवराज चौहान पर थी।
“28 करोड़ में से पांचवां हिस्सा हर एक का बनता है-तीन तुम, चौथा मैं और पांचवां जगमोहन।”
चंद पल शांति रही।
“सोच लो। कोई जल्दी नहीं है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “इस वक्त तुम लोगों के पास अलग हो जाने का रास्ता है, अगर कोई अलग होना चाहता है तो। परन्तु बड़ा काम शुरू हो जाने पर किसी को अलग नहीं होने दिया जाएगा।”
“क्यों?” परेरा ने पूछा।
“क्योंकि वो काम ही ऐसा है।”
“मतलब कि तुम तय कर चुके हो उस काम को?' वाडेकर ने पूछा।
“हां”
“वो बड़ा काम है?”
“हां”
“डकैती है?”
“हां”
“कितनी बड़ी?”
“ये मैं अभी नहीं बताऊंगा-पहले तुम लोग यह तय कर लो कि अपना-अपना हिस्सा लेकर अलग होना है या साथ मिलकर बड़ा काम करना है। चाहो तो तुम सब सोचने के लिए वक्त भी ले सकते हो।” देवराज चौहान ने कहा।
तीनों की नजरें मिलीं, फिर पुनः देवराज चौहान को देखा।
“एक का हिस्सा पांच करोड़ साठ लाख बनता है। जो अलग होना चाहे वो इस रकम को लेकर अलग हो सकता है।”
“अगर हम अगला बड़ा काम करते हैं तो फिर तब भी हम इस रकम को बांट सकते हैं?” वाडेकर बोला।
“साथ ही रहना है तो फिर रकम बांटने की क्या जरूरत है?” देवराज चौहान ने कहा- “उस बड़े काम को करने में खर्च भी होने हैं। वो खर्चे इसी में से होंगे और उस काम को निपटाकर सारा बंटवारा एक साथ ही होगा।”
“वो बड़ा काम भी क्या इसी तरह ही आसानी के साथ हो जाएगा?” लखानी ने पूछा।
“जितनी बड़ी दौलत होती है, उतना ही खतरा होता है-परंतु हम लोग उस काम को पूरा कर लेंगे।”
“उस काम में हम लोगों का क्या हिस्सा रहेगा?”
“बराबर का।”
“वक्त कितना लगेगा उस काम में?”
“कुछ दिन। सप्ताह-दस दिन।”
“मैं तुम्हारे साथ यह बड़ा काम करूंगा।” लखानी कह उठा।
“मैं भी।” वाडेकर बोला।
देवराज चौहान की निगाह परेरा पर जा टिकी।
परेरा के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव आ ठहरे थे।
“जो मन में है, वो कह दो परेरा।” देवराज चौहान ने कहा।
“मैं...मैं...मुझे बस पांच करोड़ की रकम की ही जरूरत थी-अपनी जिंदगी सही चलाने के लिए।” परेरा ने कहा।
“तो तुम अपना हिस्सा लेकर अलग हो जाना चाहते हो?”
देवराज चौहान मुस्कराया।
“कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं!” परेरा ने एक गहरी सांस ली।
“सप्ताह-दस दिन का काम है।” लखानी ने परेरा से कहा- “और तेरे पास बहुत बड़ी रकम होगी परेरा।”
“यही बात तो मन में लालच पैदा कर रही है।” परेरा कुछ मुस्करा पड़ा।
“तो सोचना क्या है, ये काम भी निबटा देते हैं, दस दिन में।”
“ठीक है।” परेरा ने तुरंत सिर हिलाया- “मैं भी ये बड़ा काम करूंगा।”
“एक बार फिर से सोच लो।” देवराज चौहान ने तीनों को देखा- “बाद में पीछे नहीं हट सकोगे। मैं यह नहीं पसंद करूंगा कि उस काम को जानने के बाद तुममें से कोई अलग हो जाए। तब मैं ये नहीं होने दूंगा।”
तीनों ने एक-दूसरे को देखा। परेरा बोला- “तब अगर किसी ने अलग होना चाहा तो तुम क्या करोगे?”
“उसे गोली मारनी पड़ेगी।”
“मैं अलग नहीं होऊंगा-तुम्हारे साथ हूं।” परेरा दृढ़ स्वर में कह उठा।
देवराज चौहान ने वाडेकर और लखानी पर नजर मारकर कहा- “लंच के बाद हम उस बड़े काम के बारे में बातें करेंगे। लेकिन ये याद रखो कि अभी हमारे मामले ताजा हैं-टी०वी० में हमारे चेहरे दिखाए जा रहे हैं। ऐसे में हममें से किसी को भी बाहर नहीं निकलना है। मैं नहीं चाहता कि बड़े काम की तैयारी के दौरान कोई गड़बड़ हो-क्योंकि मैं उस काम में सफल होना चाहता हूं।”
“तो बाहर के काम कैसे होंगे?” वाडेकर ने कहा- “जैसे खाने-पीने का सामान और...?”
“ये काम जगमोहन करेगा।”
“जगमोहन को भी तो टी०वी० पर दिखाया गया या...।”
“ऐसे हालातों की जगमोहन को आदत है। वो संभाल लेगा-सब ठीक रहेगा।”
“तो उसे लंच लाने को कह दो।”
देवराज चौहान ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाते हुए उठकर कमरे के कोने में चला गया ! फोन कान से लगा लिया। वो तीनों आपस की बातचीत में व्यस्त हो गए थे।
“हैलो।” तभी उसके कानों में आवाज पड़ी।
“कैसे हो?” देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान उभरी । स्वर धीमा था।
“तुम मरवाओगे।”
“क्यों?”
“देवराज चौहान बनकर तुम जो भी कर रहे हो, वो खतरनाक है।” उधर से आवाज आई।
“तुम भी तो जगमोहन बने हुए हो।”
“मैं चिंतित हूं कि तुम मुझे एक बड़ी मुसीबत में फंसा दोगे।
अगर मैं देवराज चौहान और जगमोहन के हाथ लग गया तो वो मुझे कुत्ते की मौत मार देंगे। अब तक तो उन्हें पता भी चल गया होगा कि कोई उनके चेहरों की आड़ में डकैतियां कर रहा है।”
“मैं देवराज चौहान को मुसीबत में फंसा देना चाहता हूं।”
“ऐसा तुम पहले भी करने की कोशिश कर चुके हो। परंतु देवराज चौहान साफ बच निकला।”
“अब की बार ऐसा नहीं होगा।”
“मैं परेशान हो रहा हूं।”
“हम 28 करोड़ कमा चुके हैं देवराज चौहान के नाम पर। तुम्हें तो खुशी होनी चाहिए। और उधर देवराज चौहान और जगमोहन बल खा रहे होंगे कि आखिर हम लोग कौन हैं। हमारी तलाश में वो बाहर भी नहीं निकल सकते कि पुलिस या लोग उन्हें पहचान...”
“वो देवराज चौहान है, तुम ये बात क्यों भूल रहे हो? वो हमारे बाप हैं और...”
“इस वक्त तो मैं उनका ही बाप बना हुआ हूं।”
“28 करोड़ कमा लिए, बहुत हैं। इतना लेकर ही खिसक...।”
“मैं जो अगला काम करने जा रहा हूं, वो हो जाने के बाद देवराज चौहान कितनी बुरी तरह से फंसेगा, ये तो तू जानता ही है-और मेरा असली मकसद तो देवराज चौहान का जीना हराम करना है, जो कि मैं आसानी से कर दूंगा।”
उधर से गहरी सांस ली गई।
“हम सब के लिए लंच लेकर आ। उसके बाद अगले मुद्दे पर बात होनी है।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
देवराज चौहान मोबाइल को जेब में डालकर पास आया तो वाडेकर ने पूछा- “जगमोहन को खाना लाने को बोला?”
“हां-जल्दी ही वो खाने के साथ यहां पहुंचेगा।” देवराज चौहान ने कहा।
उसी पल परेरा का मोबाइल बजने लगा।
परेरा ने मोबाइल निकालकर स्क्रीन पर आया नम्बर देखा तो कालिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया।
“बोल पिंटो।”
“यार, तूने तो बोत बड़ा हाथ मार दिया। टी०वी० बता रहा है कि पूरे पच्चीस करोड़ का...।”
परेरा ने सकपकाकर कान से फोन हटाया और देवराज चौहान, लखानी, वाडेकर को देखा।
“क्या बात है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“मेरे किसी खास यार का फोन है, उसने टी०वी० पर मेरा चेहरा देखा है। इसी सिलसिले में बात कर रहा है।” परेरा बोला।
“बंद कर दो फोन।” वाडेकर बोला- “क्या जरूरत है...?”
“जरूरत है।” परेरा उठते हुए बोला- “मेरा खास यार है वो। मैं दूसरे कमरे में जाकर उससे बात करूंगा।”
“उसे ये मत बताना कि हम कहां पर हैं और अब कोई बड़ा काम करने जा रहे हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
“मैं बच्चा नहीं हूं।” परेरा ने कहा और वह दूसरे कमरे में जा पहुंचा, जहां नोटों का ढेर बैड पर लगा था और कोने में भी हीरे और जेवरातों का ढेर लगा हुआ था। वो बैड के कोने पर बैठता हुआ कह उठा- “बोल।”
“तू अब कोई और बड़ा काम करने जा रहा है?” पिंटो की आवाज कानों में पड़ी।
“क्या मतलब?” परेरा सकपकाया।
“मैंने अभी-अभीतेरी बातेंसुनीं। फोन खुला पड़ा था और किसी ने तेरे को कहा कि मुझे मत बताए कि अब कोई बड़ा काम करने...।”
“तूने ठीक से सुना नहीं-वो कह रहा था कि ये सब करके हमने बड़ा काम काम लिया है।” परेरा ने कहा।
“तू मुझे बेवकूफ बनाता है।”
“तूने फोन क्यों किया?” परेरा ने मुंह बनाकर कहा।
“मुझे भी बड़े काम में साथ ले ले, दो पैसे मैं भी कमा लूंगा।”
“अब कोई काम नहीं रहा।”
“झूठ मत बोल।”
“मैं सच कह रहा हूं। जो माल इकट्ठा किया है उसमें से हिस्सा लेकर आ जाऊंगा।”
“सच कह रहा है?”
“कसम से।”
“कहां पर है इस वक्त तू?”
“ये नहीं बता सकता।”
“तूने तो करोड़ों कमा लिए हैं परेरा-इधर मेरा हाथ बहुत तंग चल रहा है। सात करोड़ की फिरौती के लिए लड़की को उठाया तो पुलिसवालों ने बीच में आकर सारा काम गड़बड़ कर...।”
“वो बात पुरानी हो गई है।”
“तेरे लिए पुरानी हो गई होगी-मेरे लिए तो नई है। तूने तो करोड़ों कमा...”
“तू चाहता क्या है?”
“एक-आध करोड़ मेरे को भी...”
“एक-आध करोड़ ? दिमाग खराब हो गया है तेरा। इतना पैसा भी कोई किसी को देता है क्या?”
“मैं तेरा भाई हूं। चचेरा भाई। तेरा राजदार भी हूं। हो सकता है कि पुलिस मुझे तलाश करके तेरे बारे में मुझसे पूछताछ करे। तेरे को चाहिए कि तू मेरा कुछ तो ख्याल रखे। एक करोड़ में तेरा क्या जाता...”
“पांच-छः लाख तेरे को दे दूंगा।”
“पांच-छः! बस?”
“ये ही ज्यादा हैं।”
“ठीक है-दस लाख तो दे ही देना। पर तू तो फंस गया है। पुलिस जान चुकी होगी तेरे बारे में।”
“मुम्बई छोड़नी पड़ेगी मुझे।”
“कहां जाएगा?”
“अभी सोचा नहीं-फोन बंद कर । बहुत काम करने हैं मैंने।” परेरा उखड़े स्वर में बोला।
“माल को बांटने का हिसाब-किताब करना होगा...”
“ये ही समझ ले।”
“तू मुझसे बातें छिपा रहा है। टी०वी० पर डकैती मास्टर देवराज चौहान की तस्वीर भी दिखाई जा रही है-जो उस काटेज पर हमें मिला था, जब चंपानेरकर नाम के पुलिसवाले ने हमें घेर लिया था और देवराज चौहान ने हमें आकर बचाया था। तुमने उसी डकैती मास्टर के साथ मिलकर ये सारे काम किए हैं और मेरे को साथ नहीं लिया।” पिंटो की आवाज में नाराजगी थी।
“जबे तेरे को पता है तो पूछता क्यों है?” परेरा ने तीखे स्वर में कहा- “दोबारा फोन मत करना । दो-चार दिन में तुझे फोन करके दस लाख दे दूंगा।”
☐☐☐
पिंटो बेवकूफ तो था नहीं। वो भी खेला-खाया इंसान था। वो जानता था कि उसने स्पष्ट फोन पर सुना है कि वो लोग अब कोई बड़ा काम करने जा रहे हैं। पिंटो, हीराभाई-नन्द किशोर के शोरूम से ही परेरा और सबके पीछे था। वो इनका ठिकाना भी जानता था और ठिकाने के बाहर मुनासिब जगह छिपा इन पर नजर भी रखे था। मन में इस बात का मलाल जरूर था कि देवराज चौहान जैसे डकैती मास्टर ने उसे काम में साथ नहीं लिया। परेरा को ले लिया। पिंटो की सोचों में पच्चीस करोड़ घूम रहा था। परेरा के प्रति जलन गहरी हो गई थी उसकी कि उसे सिर्फ दस लाख देने को ही कह रहा है। पिंटो ने मन में तय किया कि वह उससे एक करोड़ तो लेकर ही रहेगा। परेरा को सामने तो आने दे। जरूरत ना होने पर भी पिंटो इन सब लोगों पर नजर रखे हुए था और सोच रहा था कि अब ये कौन सा बड़ा काम करने वाले हैं?
☐☐☐
ए०सी०पी० कामेश्वर पुलिस हैडक्वार्टर स्थित अपने आफिस में आंखें बंद किए बैठा था। माथे पर लकीरें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसके विचार बन-बिगड़ रहे हैं काफी देर से वो इसी स्थिति में था। फिर उसने आंखें खोली और होंठ सिकोड़े कमरे में निगाहें दौड़ाने लगा।
कमरे के बाहर से निकलने वालों के कदमों की आवाजें कानों में पड़ रही थी
तभी कमरे का दरवाजा खुला और इंस्पेक्टर विनय दामोलकर ने भीतर प्रवेश किया।
“सर। अभी तक काम की कोई खबर नहीं मिली।”
देवराज चौहान और उसके साथियों का कुछ पता नहीं चला?” कामेश्वर ने पूछा।
“नो सर।”
“हमारे मुखबिर ढीले हैं।”
“नहीं सर! मुखबिरों पर इंस्पेक्टर बांदेकर नजरें टिकाए हुए है। वो उन्हें ढीला नहीं पड़ने देगा।”
“तुम्हें क्या लगता है कि देवराज चौहान और उसके साथी आज भी कुछ करने वाले हैं?”
“क्या कहा जा सकता है सर! बीते दो दिनों से तो वो डकैती कर रहे हैं।” दामोलकर ने कहा- “परेरा के चाचे के लड़के के बारे में पता चला है। पिंटो नाम है उसका। परेरा से उसकी बनती है।”
“तो पिंटो को अभी तक पकड़ा क्यों नहीं? शायद उससे परेरा के बारे में कुछ जानकारी मिले।”
“तीन पुलिसवाले पिंटो को लेने गए थे, परंतु वो मिला नहीं।”
“को भी परेरा के साथ तो नहीं?” कामेश्वर की आंखें सिकुड़ी।
“वो साथ नहीं है।”
“कैसे कह सकते हो?”
बैंक वालों के बयान और हीराभाई-नन्दकिशोर ज्वैलर्स के बयान हैं कि वो कुल पांच लोग थे। C.C.T.V कैमरों ने भी पांच चेहरों को ही कैद किया है। उनमें पिंटो नहीं है और पांचों की हम पहचान कर चुके हैं। देवराज चौहान, जगमोहन, जॉन अंताओ परेरा, राजू वाडेकर और कन्हैया लखानी हैं वे पांचों और इन्हें पुलिस हर जगह से तलाश कर रही है। ये ज्यादा देर बचने वाले नहीं हैं।”
“कल शाम जगमोहन ने मेरे पास आकर जो किया था वो मेरी समझ से बाहर है।” कामेश्वर बोला।
“आपकी वो बात तो मैं भी समझ नहीं पाया।”
“जगमोहन ने देवराज चौहान और बाकी तीनों के साथ मिलकर बैंक और ज्वैलर्स शॉप में डकैती की। वो जानता है कि C.C.T.V कैमरे उसके चेहरे को कैद कर चुके हैं-फिर भी वो मेरे पास आकर कहता है कि ये काम उसने नहीं किया। वो कहता है कि देवराज चौहान ने भी नहीं किया। देवराज चौहान और उसके चेहरे के पीछे वो कोई और लोग हैं।”
दामोलकर सोचों में डूब गया।
“कुछ तो बात है।” कामेश्वर ने कहा।
“कोई बात नहीं है सर।” दामोलकर बोला- “वो आपकी जांच को प्रभावित करना चाहता है, ये सब कहकर, करके...वो...।”
“दामोलकर...” कामेश्वर ने उसे देखा- “जगमोहन और देवराज चौहान तो पुराने पापी हैं। उन्हें इससे क्या फर्क पड़ता है कि पुलिस उनके बारे में क्या सोच रही है। ऐसे में वो मेरे पास ये बातें कहने क्यों आया?”
“जरूर इससे उसका कोई मतलब होता होगा।” दामोलकर बोला।
इंकार में सिर हिलाते हुए कामेश्वर सोच भरे स्वर में बोला- “छोड़ो इन बातों को। तुम इन लोगों के बारे में कोई खबर हासिल करके मुझे दो-मैं इन्हें पकड़ना चाहता हूं। अब देवराज चौहान आजाद नहीं रहेगा-या तो वो गिरफ्तार होगा या फिर पुलिस की गोली से मरेगा।
दामोलकर सिर हिलाकर जाने लगा तो कामेश्वर ने टोका- “इस बारे में सोचते रहना कि जगमोहन मेरे पास आकर आखिर क्या साबित करना चाहता था?”
“वो आपको परेशान करना चाहता था और आप हो भी रहे हैं सर।” दामोलकर ने गम्भीर स्वर में कहा- बैंक और ज्वैलर्स शॉप पर लगे C.C.T.V कैमरे जगमोहन की हकीकत बयान कर रहे हैं कि ये काम उसने और देवराज चौहान ने ही किए। ऐसे में आपके पास आकर, ये कहना कि ये काम उसने या देवराज चौहान ने नहीं किए। उनके चेहरे बनाकर किसी और ने ये काम किए हैं। क्या ये बात आपके गले से नीचे उतरती है सर?”
“बिल्कुल भी नहीं उतरती।” कामेश्वरं ने इंकार में सिर हिलाते हुए गहरी सांस ली- “जगमोहन सच में मेरा दिमाग खराब करना चाहता था ऐसी बातें करके। इनमें से कोई भी बच नहीं सकता-मैं छोडूंगा नहीं इन्हें।”
इंस्पेक्टर विनय दामोलकर बाहर निकल गया।
देवराज चौहान, परेरा, लखानी और वाडेकर उसी कमरे में बैठे हुए थे।
उनके सामने कॉफी के कई प्याले रखे थे और कभी-कभार वो कॉफी के घूंट भी पी लेते थे। जगमोहन डेढ़ घंटा पहले आया था और लंच देकर चला गया था। उसने रुकने की चेष्टा नहीं की थी और देवराज चौहान ने उसे रुकने के लिए कहा भी नहीं था। जगमोहन ने सबको यह बताया कि जरूरी काम है, उसे वापस जाना है। लंच के बाद अब कॉफी सामने यी। कॉफी देवराज चौहान ने ही बनाई थी।
“तुमने कहा था कि लंच के बाद बड़े काम के बारे में बताओगे।” लखानी कह उठा।
“हां।” देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता आ गई थी। सबकी निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकी थी।
“जल्दी से बता दो।” परेरा कुछ व्याकुल दिखा।
देवराज चौहान ने सबको देखा और कह उठा- “अब हम जो काम करने वाले हैं, वो काम हमें दौलत के ढेर पर बिठा देगा।”
“कितनी दौलत?” परेरा ने पूछा।
“बहुत ज्यादा। हर एक के हिस्से में 100 से 200 करोड़ आएगा।”
“दो सौ करोड़?” परेरा की आवाज कांप उठी।
“इतनी दौलत मिलेगी?” वाडेकर के होंठों से निकला।
“यकीन नहीं होता।” लखानी सूख रहे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा।
“डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथ काम कर रहे हो। यकीन तो तुम लोगों को करना ही होगा।” देवराज चौहान मुस्कराकर कह उठा- “100 से 200 करोड़ तक की दौलत हर एक के हिस्से में आएगी, इस काम को कर लेने के बाद।”
“तुम्हारा मतलब है कि ये हजार करोड़ का काम है?”
“हां”
“इतनी दौलत कहां पर रखी होगी? तुम कहां पर हाथ मारने की सोच रहे हो?” वाडेकर ने कहा।
“तुम कहीं हमें मुसीबत में तो नहीं फंसा रहे?” लखानी बोला।
“मैं भी तो इस काम में तुम्हारे साथ रहूंगा।” देवराज चौहान ने हंसकर कहा- “कम से कम मैं ऐसे काम को करना तय नहीं कर सकता कि जिसमें मैं मुसीबत में फंसकर ही रहूं। फिर भी मुसीबत तो है ही। जहां 1000 करोड़ की दौलत होगी, वहां पांच सौ करोड़ जितनी मुसीबत तो होगी ही । ये तो कहीं भी नहीं होता कि हम जायें और दौलत उठाकर ले आयें।”
सबकी नजरें देवराज चौहान पर थीं।
“अभी भी वक्त है। कोई अलग होना चाहता है तो हो सकता है। मेरे पास एक आदमी तैयार है, जो इस काम में शामिल हो सकता है। परन्तु सब कुछ बता देने के बाद मैं किसी को अलग नहीं होने दूंगा।”
दो पलों के लिए वहां खामोशी छा गई।
तीनों ने एक-दूसरे को देखा।
परन्तु वे खामोश रहे। अलग होने के लिए किसी ने नहीं कहा।
“तो तुम तीनों इस काम के लिये तैयार हो।” देवराज चौहान बोला।
“सब ठीक है, तुम बात करो।” वाडेकर बोला।
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा और कह उठा- “हिन्दुस्तान के एक वैज्ञानिक नारायण दास चटानी ने एक ऐसी खोजी डिवाइस तैयार की है, जिससे कि कहीं भी पड़ी न्यूक्लियर आईटम का पता लगाया जा सकता है। जैसे कि न्यूक्लियर बम। हर देश गुप्त जगहों पर अपने न्यूक्लियर बम रखता है और दूसरे,
देश को पता नहीं लगने देता कि उसने न्यूक्लियर बम कहां-कहां रखे हैं। हर देश दूसरे देश की टोह में लगा रहता है कि न्यूक्लियर बम कहां रखे गये हैं। इसके लिए जासूस भेजे जाते हैं। सालों तक काम करके वो जासूस ये सब बातें पता लगाने की कोशिश करते हैं। मतलब कि ये सब चलता रहता है न्यूक्लियर हथियारों का पता लगाने के लिए, परन्तु वैज्ञानिक चटानी ने जो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस तैयार की है, उससे किसी भी देश के हथियारों की स्थिति
का बहुत आसानी से पता लगाया जा सकता है। पता ही नहीं लगाया जा सकता, उस डिवाइस के दम पर उन न्यूक्लियर हथियारों का कंट्रोल अपने हाथ में लेकर, उसी देश में, उसी देश के न्यूक्लियर बम को फोड़ा भी जा सकता है और सुनने-जानने वालों को ये ही लगेगा कि असावधानी या लापरवाही से न्यूक्लियर बम इस्तेमाल हो गया। फट गया। इस बात को सीधी तरह कहा जाये तो ये कहा जा सकता है कि उस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के हाथ में होने पर, किसी देश को दूसरे देश पर हमला करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसी जरूरत पड़ने पर उसी डिवाइस के सहारे दुश्मन देश के न्यूक्लियर बम को, उसी के देश में खामोशी के साथ फोड़ा जा सकेगा और उस देश का बहुत बड़ा हिस्सा पलक झपकते ही तबाह हो जायेगा।”
“कमाल है।” लखानी के होंठों से निकला- “न्यूक्लियर खोजी डिवाइस तो सच में शानदार है।”
“परन्तु उस डिवाइस का हम लोगों से क्या मतलब?” परेरा बोला।
“सब बता रहा हूं। अभी तो बात शुरू की है और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के बारे में बताया है कि वो कितनी महत्वपूर्ण है। दुनिया भर में उससे कितनी तबाही लाई जा सकती है। अगर वो शैतानी हाथों में पड़ जाये तो दुनिया भर के न्यूक्लियर बमों में ब्लास्ट करके पृथ्वी ग्रह को पूरी तरह तबाह किया जा सकता है।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा- “तुम तीनों को पता चल गया होगा कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस कितनी खतरनाक है। परन्तु सबसे पहले मैं उस डिवाइस के जन्मदाता वैज्ञानिक नारायण दास चटानी के बारे में बताना चाहूंगा। न्यूक्लियर वैज्ञानिक चटानी असल में परीक्षण तो किसी और चीज का कर रहा था परन्तु इत्तफाक से उससे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस तैयार हो गई। जिसका पता उसे लम्बे समय के बाद में जाकर चला। चटानी जान गया कि उसने अनजाने में बहुत ही खतरनाक चीज तैयार कर दी है। दुनिया में ऐसी चीज को आज तक कोई तैयार नहीं कर सका है। परन्तु वो खामोशी से उस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस पर परीक्षण करता रहा। डिवाइस में कुछ बदलाव करके उसने इसे और भी घातक बना दिया कि डिवाइस जिन न्यूक्लियर हथियारों को खोजे, उन पर अपना कंट्रोल भी कर ले और जब चाहे उनमें ब्लास्ट भी कर दे। जब ये डिवाइस न्यूक्लियर हथियारों के पचास किलोमीटर की रेंज के भीतर आ जाती है तो डिवाइस संकेत देने लगती है कि न्यूक्लियर हथियार किस तरफ है और नन्हें से मीटर पर लगी सुईं उसी तरफ घूम जाती है, जिस दिशा में न्यूक्लियर हथियार होते हैं। यानि कि उस डिवाइस के सहारे न्यूक्लियर हथियारों तक भी पहुंचा जा सकता है। बहरहाल मैं न्यूक्लियर वैज्ञानिक नारायण दास चटानी के बारे में बता रहा था कि उसने ये सब तैयार करके, सिर्फ एक ही डिवाइस तैयार की उसने कि आगे जो सरकार की तरफ से आदेश होगा, वैसा ही करेगा। उसने सम्पूर्ण डिवाइस के एक सैट के साथ राष्ट्रपति जी से मुलाकात की, जो कि बेहद गोपनीय मुलाकात थी। इस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के बारे में चटानी के दो सहायक ही जानते थे। चटानी ने राष्ट्रपति जी को डिवाइस के इस्तेमाल और बाकी सारी बातों के बारे में बताया। राष्ट्रपति जी फौरन इस बात को समझ गये कि वो डिवाइस तबाही का कारण बन सकती है। पूरी दुनिया तबाह हो सकती है, अगर ये किन्हीं गलत हाथों में पड़ गई। राष्ट्रपति जी ने फौरन मीटिंग बुलाई। सरकारी मशीनरी के ऊपरी हिस्से में हड़कंप मच गया, उस डिवाइस के बारे में जानकर। आनन-फानन में फैसला किया गया कि इस डिवाइस के बारे में सारी जानकारी गुप्त रखी जायेगी और चटानी को सख्त आदेश दिए गये कि वो ऐसी डिवाइस का निर्माण नहीं करेगा। चटानी ने जो डिवाइस तैयार की थी, उसे बेहद सुरक्षा में रख लिया गया और इस सारी बात को दबा दिया गया।
वाडेकर, लखानी और परेरा एकटक देवराज चौहान को देख-सुन रहे थे।
सामने रखे कॉफी के प्याले ठण्डे हो गये थे।
“बस इतनी ही बात है या आगे भी है?” वाडेकर ने पूछा।
“है अभी।”
“तो बताओ।” परेरा कह उठा।
देवराज चौहान ने पुनः कहना शुरू किया
“परन्तु ऐसी बड़ी बातें छुपती नहीं हैं। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के बारे में अमेरिकी सरकार को खबर मिली तो अमेरिका को फौरन महसूस हुआ कि ऐसी चीज को तो अमेरिका के पास होना चाहिये। उन्होंने गुप्त रूप से सारे मामले की छानबीन की और फैसला किया कि वैज्ञानिक नारायण दास चटानी का अपहरण करके उसे तस्करी के जरिये अमेरिका लाया जाये।”
“अमेरिका उस डिवाइस को भी तो चोरी कर सकता था, जो कि भारत सरकार ने सुरक्षित रखी हुई है।” परेरा बोला।
“ऐसा अमेरिका ने जरूर सोचा होगा, परन्तु उसे डिवाइस को पाना कठिन और चटानी का अपहरण करके उसे अमेरिका लाना आसान लगा होगा।” देवराज चौहान ने कहा- “चटानी अगर अमेरिका के लिये काम करना शुरू कर देता तो उससे बढ़िया और क्या बात हो सकती है!”
कोई कुछ नहीं बोला।
देवराज चौहान ने पनः कहा
“अमेरिका के कुछ सरकारी एजेंट हिंदुस्तान पहुंचे और चटानी का अपहरण करके, तस्करी करके उसे अमेरिका ले गये।
“इतनी आसानी से उन्होंने चटानी पर हाथ डाल दिया।
“आसानी से ऐसे काम कभी भी नहीं होते। जबकि, उस डिवाइस के मामले के बाद गुप्त रूप से चटानी को सुरक्षा दी जा रही थी। उससे मिलने वालों पर कड़ी नजर रखी जा रही थी। जाहिर है अमेरिका के जासूसों को चटानी के अपहरण में भारी मेहनत करनी पड़ी होगी। ये काम उन्होंने कैसे किया, मैं नहीं जानता, परन्तु को चटानी को अमेरिका ले गये। चटानी के गायब होने पर हिन्दुस्तान सरकार परेशान हो गई। बड़े पैमाने पर चटानी की खोज शुरू हो गई और दो महीने बाद हिन्दुस्तान सरकार के जासूसों को पता चला कि चटानी अमेरिकी सरकार के कब्जे में है। परन्तु उस बारे में हिन्दुस्तानी सरकार खुले तौर पर कुछ भी नहीं कर सकती थी। क्योंकि इस बात का कोई सबूत नहीं था कि चटानी पर अमेरिकी सरकार ने हाथ डाल दिया है। एक ही दिन में तीन-चार मीटिंगों के पश्चात् आनन-फानन फैसला किया गया कि जैसे भी हो चटानी को अमेरिकी शिकंजे की कैद से छुड़ाकर हिन्दुस्तान लाया जाये और अगर उसे ना लाया जा सके तो चटानी को खत्म कर दिया जाये, ताकि वो डिवाइस के बारे में कोई भी जानकारी अमेरिका को ना दे सके। सरकार के इस फैसले के बाद, आठ ऐसे जासूसों को चुना गया, जो कि खतरनाक थे और देश के लिए हत्याएं करने का काम करते थे। इन्हें अमेरिका रवाना कर दिया गया। तीन महीने बाद आठ में से छः जासूस सही-सलामत वापस लौट आये थे। दो अमेरिका में जान गंवा बैठे थे। इन्होंने आकर बताया कि चटानी को अमरीकी कैद से छुड़ाकर लाना सम्भव नहीं था, इसलिये उसे मार दिया गया। इसी कोशिश में दो जासूस मारे गये थे।”
“तो चटानी को खामख्वाह अपनी जान गंवानी पड़ी।” वाडेकर ने कहा।
“खामखाह नहीं। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की वजह से उसे मरना पड़ा। अगर वैसी डिवाइस वो तैयार करके अमेरिका को दे देता तो तब स्थिति बहुत ही खतरनाक बन जानी थी। अमेरिका तो वैसे भी चौधरी बना रहता है। वो डिवाइस हाथ आने पर, अपने दुश्मन देशों के न्यूक्लियर जखीरे पर उस डिवाइस के जरिये जरूर तबाही मचाता।”.
“अमेरिका तो शान्ति के राग गाता है।”
“दूसरों के लिए। अपने लिए नहीं।” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा- “अपने लिए वो हर तरह की छूट मांगता है। जैसे कि सब कुछ करना उसे माफ हो और वो चाहता है कि उससे कोई सवाल भी ना करे। वैसे भी उस डिवाइस का इस्तेमाल कोई भी ऐसे कर सकता है कि न्यूक्लियर बम फटने पर, सबको ऐसा लगेगा कि न्यूक्लियर बम रखने में उस देश ने लापरवाही बरती, इसी वजह से उसके देश में रखा न्यूक्लियर बम ब्लास्ट हो गया। ये ही तो उस डिवाइस की खासियत है।”
तीनों देवराज चौहान को देखते रहे।
देवराज चौहान ने चंद क्षण ठिठककर पुनः कहा-
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का निर्माण करने वाला वैज्ञानिकनारायण दास चटानी इस तरह अपनी जान गंवा बैठा। उसके अलावा उसके सहायक भी नहीं जानते कि किन चीजों के इस्तेमाल से चटानी ने उस डिवाइस का निर्माण किया। यानि कि दुनिया में न्यूक्लियर खोजी डिवाइस सिर्फ एक ही है और वो हिन्दुस्तान की सरकार के पास है। सख्त सुरक्षा घेरे में है। परन्तु हिन्दुस्तान की सरकार इस बात को लेकर चिन्ता में है कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को कोई चोरी करने की चेष्टा कर सकता है और अगर उसमें किसी को सफलता मिल गई तो ये और भी घातक बात होगी। जिसके पास न्यूक्लियर खोजी डिवाइस होगी, उसका अधिकार दुनिया भर के न्यूक्लियर बमों पर हो जायेगा और वो जब चाहे, जिस ढंग से चाहे, न्यूक्लियर विस्फोट करके तबाही मचा देगा। इसलिये देश के उच्च अधिकारियों की मीटिंग हुई और आखिरकार तय किया गया कि इस डिवाइस को तबाह-बरबाद करके दुनिया पर आने वाले खतरे को पहले ही मिटा दिया जाये। अब चंद सरकारी कागजी कार्यवाही के पश्चात् उस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को इस तरह खराब कर दिया जायेगा कि कोई समझ ही ना सके कि उसे कैसे तैयार किया गया। या उसे आग के हवाले कर दिया जायेगा। कि भट्ठी में डाल दिया जायेगा। ऐसा कुछ भी किया जा सकता है। मकसद सिर्फ उसे तबाह करना है। और ये काम अगले दो महीनों में कर दिया जायेगा। उस डिवाइस को तबाह कर दिया जायेगा।”
देवराज चौहान ने ठिठककर सब पर नजर मारी।
सब बेचैन और व्याकुल दिख रहे थे।
इन सब बातों में हमारा वो काम क्या है जो हमने करना है, और 1000 करोड़ मिलेगा?” पूछा परेरा ने।
“हम उस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को पाने के लिये डकैती करने वाले हैं वहां ।” देवराज चौहान बोला।
“क्या?”
“ये क्या कह रहे हो?”
“ये काम तो कठिन होगा। हम कैसे कर सकेंगे?”
तीनों हक्के-बक्के रह गये थे देवराज चौहान की बात सुनकर।
“तुम लोग खुद ये काम कर रहे हो या डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथ कर रहे हो?” देवराज चौहान ने तीनों के चेहरों पर नजर मारी।
तीनों ने एक-दूसरे को देखा।
परन्तु जवाब में खामोश रहे।
“किसी भी बात की फिक्र मत करो। हम ये काम आसानी से कर लेंगे।” देवराज चौहान कहते हुए मुस्करा पड़ा।
“तुम्हारा मतलब कि उस डिवाइस की हम डकैती करेंगे और कोई हमें उसके बदले 1000 करोड़ देगा?” वाडेकर ने कहा।
“हां...!”
“कौन देगा?”
“अमेरिका!”
“जरूरी तो नहीं कि अमेरिका हमसे डिवाइस खरीदे?” लखानी बोला- “उसे बेचने के चक्कर में हम अपनी जान भी गंवा सकते हैं।”
“अमेरिका वो डिवाइस पाने के लिये मरा जा रहा है।”
“ओह, तो तुम्हारी बात हो गई है अमेरिका से?”
“हां!” देवराज चौहान ने सिर हिलाया- “800 करोड़ में सौदा तय हुआ है, परन्तु मेरे ख्याल से ये रकम कम है। उस डिवाइस की कीमत 1500 करोड़ होनी चाहिये, क्योंकि पूरी दुनिया में वो सिर्फ एक ही है।”
“अमेरिका से तुम्हारी बात कैसे हुई?”
“बहत आसानी से । इस मामले पर शुरू से ही मेरी नजर थी। क्योंकि मैं इस डिवाइस की अहमियत को समझ रहा था। अमेरिका ने जो किया, उस पर मेरी पूरी नजर थी। जब अमेरिका ने गुपचुप चटानी को उठाकर हिन्दुस्तान से अमेरिका मंगवा लिया तो मुझे लगा खेल खत्म हो गया है। अमेरिका चटानी से नई डिवाइस तैयार करवा लेगा। परन्तु कुछ महीनों बाद मैंने सुना कि चटानी की अमेरिका में हत्या कर दी गई है तो मैं समझ गया कि ये काम हिन्दुस्तान ने कराया है और मुझे इस बात की आशा नजर आने लगी कि इस मामले से पैसा बनाया जा सकता है। मैंने पता लगाया कि वो एकमात्र न्यूक्लियर खोजी डिवाइस कहां है। वो वहीं थी, जहां पर कि पहले ही पहरे में रखी गई थी।तभी मुझे पता चला कि हिन्दुस्तानी सरकार उस डिवाइस को तबाह करने का फैसला लेने की चेष्टा में लगी है। तब मैंने अमेरिकी सरकार के उन लोगों से फोन पर सम्पर्क किया जो डिवाइस पाने के मामले में थे।”
“वो क्या हिन्दुस्तान में थे?”
“नहीं! अमेरिका में थे वो। परन्तु मैंने उनके फोन नम्बर कहीं से हासिल कर लिए थे। तब सौदा 800 करोड़ रुपये में पटा।”
“तुम्हें 800 करोड़ डॉलरों में सौदा करना चाहिये था देवराज चौहान।” वाडेकर बोला।
“अमेरिकी बहुत सयाने हैं। वो 800 करोड़ से आगे नहीं बढ़े। परन्तु मैं उनसे ज्यादा सयाना हूं।”
“वो कैसे?”
“मैंने साऊदी अरब की सरकार से बात की। वो अमेरिका के दुश्मन हैं और ऐसी डिवाइस को हाथ से नहीं जाने देंगे। यकीनन उन्होंने सोचा होगा कि इस तरह वो अमेरिका के न्यूक्लियर बम अमेरिका की धरती पर ही ब्लास्ट कर देंगे। मैंने उनके सामने 1000 करोड़ की मांग रखी और वो फौरन मान गये। 500 करोड़ तो एडवांस देने पर भी तैयार हो गये।”
“एडवांस लिया?”
“बेवकूफ नहीं हूं जो एडवांस ले लूंगा।” देवराज चौहान मुस्कराया।
“क्या मतलब?”
“एडवांस लेने का मतलब है सौदा पक्का। जबकि मैं अभी इस सौदे के बारे में सोचना चाहता था। तभी पाकिस्तान की सरकार की तरफ से एक बंदा मुझे मिला। वो मुझे दिल्ली स्थित पाकिस्तान एम्बेसी ले गया। पाक उच्चायुक्त ने मुझे ऑफर दी कि डिवाइस मैं उन्हें देता हूं तो वे 1200 करोड़ रुपये मुझे देंगे।
“ओह...!” लखानी के होंठों से निकला।
“डिवाइस अभी हाथ नहीं आई और तुम उसका सौदा करते फिर रहे हो।” परेरा बोला।
“सौदा करने वालों को पता है कि वो डकैती मास्टर देवराज चौहान से बात कर रहे हैं। डिवाइस पाने के लिये मैं सफल डकैती कर सकता हूं। उन्हें भरोसा है कि मैं डिवाइस हासिल कर लूंगा।” देवराज चौहान मुस्कराया- “और मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि मैं सफल रहूंगा। आज भी मैं उस डिवाइस को अपने पास देख रहा हूं।”
“इतनी सारी रकम देने की अपेक्षा वो देश खुद क्यों नहीं कोशिश करते उस डिवाइस को पाने की?” वाडेकर कह उठा।
“क्योंकि डिवाइस को इस तरह रखा गया है कि कोई उस तक नहीं पहुंच सकता।”
“फिर तो हम भी नहीं पहुंच सकते।”
“पहुंच जायेंगे।”
“कैसे?”
“क्योंकि मैं हूं तुम लोगों के साथ और तुम लोग मेरे साथ हो। मुझे तुम जैसे हिम्मती लोगों की ही जरूरत थी जिनके सहारे मैं इस काम को अंजाम दे सकूँ। अगले दस दिन में वो डिवाइस हमारे हाथ में होगी।” देवराज चौहान ने कहा।
“क्या उसे पाकिस्तान सरकार को बेचोगे?” वाडेकर ने पूछा।
“अमरीकी सरकार को बेचूंगा।”
“परन्तु वो तो 800 करोड़ दे रहे हैं।”
“जब उन्हें पता चलेगा कि पाकिस्तान 1200 करोड़ दे रहा है उस डिवाइस के तो अमरीकी सरकार फौरन पन्द्रह सौ करोड़ रुपये पर आ जायेगी। एक ही चीज के ग्राहक बढ़ जायें तो उसकी कीमत मनमानी वसूली जा सकती है।”
“तुमने सब कुछ बता दिया है देवराज चौहान, परन्तु ये नहीं बताया कि डिवाइस कहां पर है। किस तरह की सुरक्षा में है। और हम कैसे डिवाइस को वहां से लेकर बाहर आ सकते हैं। परेरा बोला- “ये सब भी बताओ ताकि हम भी इस बारे में कुछ सोचें।”
“इस बारे में आज रात को बताऊंगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“अभी बता दो।”
“यहां तक की सारी बातें जगमोहन को पता हैं। परन्तु डिवाइस के पाने के लिये डकैती कैसे करनी है, ये बताते हुए मैं जगमोहन को भी पास में देखना चाहता हूं ताकि वो भी सब कुछ सुन ले।”
“तो बुला लो उसे।”
“रात को आयेगा वो। बाकी बातें तब ही होंगी।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा।
☐☐☐
नेहा!
ए०सी०पी० कामेश्वर की बेटी।
एक दिन पहले जिसके जन्मदिन का केक खरीदते समय, कामेश्वर की जगमोहन से मुलाकात हुई थी।
इस समय शाम के चार बज रहे थे। माहिम इलाके की मार्किट की एक दुकान से वो निकली। हाथों में तीन-चार बड़े-बड़े लिफाफे थाम रखे थे। देखने में वो साधारण थी, परन्तु आकर्षक था। मर्द एक ही निगाह में उसकी तरफ आकर्षित होते थे। बीस बरस की थी नेक और कालेज के फाईनल ईयर में थी।
लिफाफों को थामें नेहा मार्किट की पार्किंग की तरफ बढ़ गई,
जिधर उसकी कार खड़ी थी।
चंद मिनटों में ही वो कार के पास खड़ी थी।
कार का पिछला दरवाजा खोलकर नेहा ने लिफाफे रखे।
दरवाजा बंद किया और ड्राईविंग डोर खोला कि तभी वो ठिठक गई।
चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे। अगला पहिया पंचर हुआ पड़ा था।
“ओफ्फ!' दरवाजा बंद करके वो अपने से कह उठी- “ये मुसीबत भी अभी आनी थी।” इसके साथ ही उसने नजरें दौड़ाई।
तभी एक तरफ से जगमोहन निकलकर उसके पास आ पहुंचा
“मैडम! आपकी कार का पहिया तो पंचर है। जगमोहन अपनेपन से कह उठा।”
“हां! मैंने ही अभी देखा। आप उस तरफ जा रहे हैं तो पार्किंग अटेंडेंट से कहकर, किसी को...”
“मैं पहिया बदल देता हूं।”
“आप...?”
“हां, क्यों नहीं, दो मिनट तो लगते हैं। चाबी दीजिये। मैं स्टैप्नी, जैक, पाना निकालता हूं।”
नेहा ने आभार भरी निगाहों से जगमोहन को देखा, फिर उसे चाबी दे दी।
जगमोहन फुर्ती से अपने काम पर लग गया।
अगले दस मिनटों में जगमोहन पहिया बदलकर फारिग हो गया।
“मुझे समझ नहीं आता कि मैं कैसे आपका थैंक्स करू?” नेहा एहसान तले दबी कह उठी।
“आप ए०सी० पी० कामेश्वर की बेटी नेहा हैं।” जगमोहन चुका था।
मुस्कराकर कह उठा।
“ओह!” नेहा चौंकी- “आप मेरे पापा को जानते हैं?”
“हां! वो मेरे दोस्त हैं। तभी तो मैंने कार का पहिया बदला।”
जगमोहन हंसा।
“ओह! मुझे नहीं पता था। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।”
“शुक्रिया मत कहो।” जगमोहन ने प्यार से कहा- “मैं आज कामेश्वर से बात करने की सोच ही रहा था।”
जगमोहन ने जेब से मोबाईल निकालकर नेहा की तरफ बढ़ाया- “लो अपने पापा का , नम्बर मिलाओ।”
नेहा ने जगमोहन से फोन लिया। नम्बर मिलाया, फिर कान से लगा लिया।
जगमोहन शांत भाव से नेहा को देखता रहा।
“हेलो पापा! मैं...।” नेहा ने बात होते ही कहना चाहा।
तभी जगमोहन ने फुर्ती से हाथ बढ़ाकर नेहा से मोबाईल ले लिया।
नेहा ने अचकचाकर जगमोहन को देखा।
जगमोहन ने मुस्कराकर हाथ हिलाया और आगे बढ़ गया।
फोन कान से लगाकर कहा- “अपनी बेटी की आवाज तो सुन ली होगी ए० सी० पी० कामेश्वर।” जगमोहन का स्वर कठोर था।
“कौन हो तुम?”
“इतनी जल्दी मेरी आवाज भूल गये? कल शाम ही तो मुलाकात हुई थी। तुम मुझे गिरफ्तार करने जा...”
“जगमोहन!” कामेश्वर की तेज आवाज कानों में पड़ी।
“बादाम खा रखे हैं तूने। याददाश्त अच्छी है तेरी।”
“म...मेरी बेटी-नेहा को कुछ मत कहना। उसे क्यों बीच में ला..।”
“इस वक्त वो मेरे कब्जे में है।”
“बेवकूफी मत करो। उसे आजाद कर दो। बहुत गलत कर रहे हो तुम।”
“मैंने उसका अपहरण इसलिये किया है कि तुम मेरी बात ध्यान से सुनो।” जगमोहन की आवाज में सख्ती आ गई।
“नेहा को छोड़ दो। मैं तुम्हारी बात सुनूंगा।”
“तुम्हारी बेटी बाद में आजाद होगी। पहले तुम मेरी बात सुनोगे। बीती शाम मैंने तुमसे बात करने की चेष्टा की तो तुमने रिवॉल्वर निकाल ली। मुझे गिरफ्तार करने का प्रयास किया। इसलिये मजबूर होकर तुम्हारी बेटी को...।”
“मैं तुम्हारी बात सुनने को तैयार हूं! परन्तु वादा करो कि मेरी बेटी को नुकसान नहीं पहुंचाओगे।”
“नहीं पहुंचाऊंगा।”
“बात खत्म होते ही उसे आजाद कर दोगे।”
“वादा रहा। बात खत्म होते ही तुम उसे फोन करके उससे बात कर सकते हो।” जगमोहन का लहजा कठोर था।
“कहो, क्या कहना चाहते हो तुम?” ए०सी०पी० कामेश्वर का बेचैन स्वर कानों में पड़ा।
“मैं वो ही कहना चाहता हूं जो तुम्हें पहले कह चुका...”
“वो सब बकवास है। तुम कहते हो कि तुमने और देवराज चौहान ने बैंक डकैती नहीं की। ज्वैलर्स शॉप नहीं लूटी।”
“नहीं किया हमने ये काम-हम-।”
“तुम मेरे पास आओ, मैं तुम्हें दोनों जगहों की C.C.T.V. फुटेज दिखाता हूं, फिर तुम कैसे इन्कार...!”
“वो ही बात तो तुम्हें समझाना चाहता हूं कि इन दोनों जगह डकैती डालने वाले मैं या देवराज चौहान नहीं थे। बल्कि हमारे चेहरों में वो कोई और लोग थे। वो देवराज चौहान और जगमोहन नहीं थे।” जगमोहन दांत भींचकर बोला।
जगमोहन को कामेश्वर के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
“तुमने मेरी बात सुनी कि...”
“मेरी बेटी को तुमने कैद कर रखा है। ऐसे में मैं तुम्हारी बात सिर्फ सुन सकता हूं, कह कुछ नहीं सकता।”
“क्यों नहीं कह सकते?”
“मेरे मुंह से निकली कोई तीखी बात सुनकर तुम नेहा को नुकसान पहुंचा सकते हो।”
“ऐसा नहीं होगा।
“मैं तुम्हारी बात का भरोसा नहीं कर सकता। अगर ढंग से करनी है तो मेरी बेटी को छोड़ दो।”
“ठीक है।' जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा- तुम्हारी बेटी आजाद है। वो मेरी कैद में नहीं है।”
“झूंठ”
“ सच कह रहा हूँ, मैंने उसका अपहरण नहीं किया है वो मेरे पास नहीं है।”
“तुम क्या सोचते हो कि मैं तुम्हारी झूठी बात मान लूँगा अभी नेहा ने इसी फोन पर मुझसे बात...”
“नेहा को फोन करो। दो तुम्हें बतायेगी कि उसके साथ कुछ भी नहीं हुआ।”
“होल्ड करो।”
जगमोहन ने फोन कान से लगाये रखा।
चंद पलों बाद ही कामेश्वर की आवाज जगमोहन के कानों में पड़ी। वो अपनी बेटी नेहा से बात कर रहा था। मिनट भर बात करने के बाद उसने फोन रखा, फिर जगमोहन के कानों में आवाज पड़ी- “ठीक है। तुमने सही कहा था कि नेहा आजाद है।”
“अब हम खुलकर बात कर सकते हैं।” जगमोहन बोला
“तुम्हारे पास कहने को कुछ नहीं है जगमोहन । कामेश्वर की गम्भीर आवाज जगमोहन के कानों में पड़ी- “तुम जो फालतू की बात कह रहे हो, इस पर कोई भी यकीन नहीं करेगा। मुझे समझ नहीं आता कि तुम ये ड्रामा करके आखिर करना क्या चाहते हो।”
'ये ड्रामा नहीं है, ये... ।”
“तुम यहां मेरी कुर्सी पर आकर बैठो और तब सारे हालातों के देखो तो तुम्हें समझ आयेगा कि तुम जो कह रहे हो, उस बात पर मैं मरते दम तक भी यकीन नहीं कर सकता। तुमने और देवराज चौहान ने, परेरा, दाडेकर और लखानी के साथ मिलकर बैंक लूटा और ज्वैलर्स शॉप लूटी। और अब बार-बार मुझसे कह रहे हो कि ये काम तुम लोगों ने नहीं किया। किसी और ने किया है। कौन पागल तुम्हरी बात पर यकीन करेगा? तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी बात पर यकीन कर लूं।”
मोबाईल कान से लगाये जगमोहन के दांत भिंच गये थे।
“वो देवराज चौहान और जगमोहन नकली हैं। वो हम नहीं हैं कमिश्नर।”
“मुझे बेवकूफ बनाने की चेष्टा मत करो।”
“मैं सच कह रहा हूं। जो हुआ उसकी मुझे परवाह नहीं है। देवराज चौहान को भी परवाह नहीं है। परन्तु हमें शंका है कि हमारे चेहरों की आड़ लेकर वो कोई गम्भीर अपराध ना कर दें। ऐसे में हम बुरी तरह फंस जायेंगे।”
“अब समझा...”
“क्या?
“यही कि तुम और देवराज चौहान कोई गम्भीर अपराध करने की सोच रहे हो और इस बात की भूमिका पहले ही तैयार कर ले हो कि खुद को बे-गुनाह साबित कर सको।” कामेश्वर की आवाज कानों में पड़ी।
“तो तुम मेरी बात का यकीन नहीं करोगे?” जगमोहन गुर्राया।
“तुम और देवराज चौहान बच नहीं सकते। समझदारी तो इसी में है कि खुद को कानून के हवाले कर दो। ऐसा करने पर तुम लोगों को फायदा ही होगा। ये केस मेरे हाथ में है और मैं ये सोच चुका हूं कि या तो तुम लोगों को पकड़ के रहूंगा या शूट कर दूंगा। यानि कि दोनों ही स्थिति में तुम लोगों का खेल खत्म हो जायेगा।”
“तुम पागल हो पागल!” जगमोहन गुर्राया।
“ये बताओ कि अब तुम लोग कौन-सा बड़ा अपराध करने वाले हो?”
जवाब में जगमोहन ने फोन बंद कर दिया।
☐☐☐
दस बजे जगमोहन वहां पहुंचा।
देवराज चौहान, परेरा, वाडेकर और लखानी को उसके आने का ही इन्तजार था। जगमोहन उनके लिए डिनर भी पैक कराकर लाया था। वे डिनर करने लगे। जगमोहन ने नहीं किया।
“तुम नहीं लोगे?” देवराज चौहान ने खाते हुए पूछा।
“मैंने खा लिया है। जगमोहन बोला और उस कमरे में चला गया जहां नकदी और हीरे-जवाहरात रखे थे।
परेरा खाते-खाते बोला- “तुम्हें अब हमें बताना है कि यो डिवाइस कहां पर है और उसे हासिल करने के लिये हमें क्या करना है।”
“खाने के बाद इसी पर बात होगी।” देवराज चौहान ने कहा।
“मुझे तो कभी-कभी यकीन ही नहीं आता कि मैं देवराज चौहान के साथ काम कर रहा हूं।” परेरा कह उठा।
सब खाना खाते रहे।
जगमोहन उस कमरे में वापस आकर एक तरफ पड़ी कुर्सी पर आ बैठा था।
देवराज चौहान ने खाते-खाते उसे देखा और मुस्कराया।
“तुम दिन भर कहां थे?” लखानी ने जगमोहन से पूछा।
जगमोहन ने मुंह घुमा लिया।
“व्यस्त था।” जगमोहन ने होंठ खुले।
“किस काम में?”
“तुम्हें बताना जरूरी नहीं है।” जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा।
“ये तो हमेशा नाराज ही रहता है।” वाडेकर हंसकर कह उठा।
उन्होंने खाना समाप्त किया।
देवराज चौहान ने परेरा से कहा- “तुम कॉफी बनाना। उसके बाद मुद्दे पर बातें होंगी।”
परेरा ने सिर हिला दिया।
देवराज चौहान ने हाथ-मुंह धोया और जगमोहन के पास पहुंचकर बोला-
“क्या हॉल हैं तुम्हारे?”
जगमोहन ने जवाब में कुछ नहीं कहा।
“तुम परेशान क्यों हो?”
“फंसा दोगे तुम मुझे।” जगमोहन का स्वर धीमा था।
देवराज चौहान के चेहरे पर गहरी मुस्कान आ ठहरी।
“मेरे होते हुए तुम चिन्ता क्यों करते हो?”
“तुम्हारी मौजूदगी ही तो चिन्ता है।”
“गलत मत कहो। मैं जो कर रहा हूं, ठीक कर रहा हूं। इस
काम के बाद हमारे पास दौलत ही दौलत होगी और फंसेगा देवराज चौहान। मैंने देवराज चौहान को बुरी तरह फंसाने के लिए ही ये सब प्लान बनाया है। वो कमीना मुझे खत्म कर देना चाहता था। मेरी किस्मत अच्छी थी कि मैं बच गया।” देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे- “ये काम तो मैंने करना ही था तो यही सोचा कि इस काम को देवराज चौहान के चेहरे की ओट में किया जाये। तुममें तो कमाल का हुनर है जगजीत । किसी के चेहरे का फेसमास्क तुम इतना बढ़िया बनाते हो कि कोई पहचान ही नहीं पाता कि सामने नकली चेहरा मौजूद है। (ये सब जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्वप्रकाशित उपन्यास ‘आर० डी० एक्स०’, ‘डॉन का मंत्री’, ‘गुरू का गुरू’) पहले भी मैं तुम्हारे बनाये फेसमास्क पहनकर, देवराज चौहान को नाच नचा चुका हूं।”
“ये बात देवराज चौहान और जगमोहन भूले नहीं होंगे। उन्हें पता है कि ऐसे फेसमास्क जगजीत ही बना सकता है। सारा मामला अब तक वो समझ चुके होंगे और मुझे ढूंढ रहे होंगे। उन्हें ये भी विश्वास होगा कि इसके पीछे तुम हो।”
“देवराज चौहान और जगमोहन की परवाह ही किसे है! पुलिस इस वक्त पूरे मुम्बई में मुझे या तुम्हें नहीं, देवराज चौहान और जगमोहन को ढूंढ रही है। कोई सोच भी नहीं सकता कि ये सब कुछ वीरेन्द्र त्यागी कर रहा है। इस मामले में मुझे कोई जानता ही नहीं। हर किसी को देवराज चौहान और जगमोहन की तलाश है।”
“देवराज चौहान और जगमोहन जरूर हमें ढूंढ रहे होंगे।” जगजीत ने चिन्ता भरे स्वर में कहा।
“परवाह नहीं । वो ये भी जानते हैं कि पुलिस को उनकी तलाश है। ऐसी हालत में हमें ठीक से वो ढूंढ भी नहीं सकेंगे।”
“अगर वो हमारे काम करने से पहले पुलिस के हाथ लग गये तो?”
“नहीं होगा ऐसा। तुम ये कैसे सोच लेते हो कि देवराज चौहान और जगमोहन पुलिस के हाथों में आ जायेंगे। इस वक्त वो अपनी जान बचाते हुए ‘बिल’ में छिपे होंगे।” देवराज चौहान मुस्कराकर बोला- “यकीनन उन्हें पूरा शक होगा कि ये काम मेरा है और उनके चेहरों के फेसमॉस्क तुमने बनाए होंगे। परन्तु वो हमें तलाश करने की भी चेष्टा नहीं कर सकते। क्योंकि इन हालातों में वो खुले में नहीं घूम सकते।”
जगमोहन रूपी जगजीत ने व्याकुलता से देवराज चौहान को देखा।
“तुम किसी बात की चिन्ता मत करो।”
“चिन्ता तो करनी पड़ती है।”
“जब हम डिवाइस ले उड़ेंगे तो सोचो तब देवराज चौहान का क्या हाल होगा। हिन्दुस्तान का पूरा कानून देवराज चौहान की तलाश में लग जायेगा। हिन्दुस्तान की सरकार की नजरों में ये ‘संगीन डकैती’ होगी। क्योंकि उस डिवाइस के गलत हाथों में पहुंच जाने का मतलब है दुनिया में तबाही। हमारे द्वारा ये काम करते ही देवराज चौहान के बुरे दिन शुरू हो जायेंगे। हमारी तलाश तो वो भूल जायेगा और अपनी जान के लाले पड़ जायेंगे उसे।”
जगमोहन ने गहरी सांस ली।
“मुझे तो ये सोचकर डर लगता है कि तुम्हारे इस पंगे में, मैं भी देवराज चौहान के खिलाफ हूं। किसी के चेहरे का मॉस्क बनाना अलग बात है, परन्तु तुमने तो मुझे भी जगमोहन के रूप में खड़ा कर दिया।”
“जरूरी था। देवराज चौहान के साथ जगमोहन भी दिखे तो ये बात उसे फंसाने के लिये मील का पत्थर साबित होगी। दोनों की जोड़ी हर जगह नजर आती है तो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती में भी दोनों को साथ होना चाहिये। बैंक डकैती और ज्वैलर्स के यहां डकैती, न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की होने वाली डकैती का हिस्सा थी। वो इस तरह कि अब मुम्बई पुलिस को पता है कि देवराज चौहान, जगमोहन, लखानी, परेरा और वाडेकर मिलकर काम कर रहे हैं और अब यही चेहरे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती के दौरान C.C.T.V. कैमरे में कैद होंगे। ऐसा होते ही देवराज चौहान का तो काम हो गया और हम आजाद के आजाद रहेंगे। डिवाइस का सौदा करने के बाद अपने चेहरों में देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरों वाले मॉस्क उतारकर जला देंगे और उसके बाद दौलत से खेलेंगे।”
“ये सब आसान होगा इतना?”
“क्यों नहीं! सब काम मुझ पर छोड़ दो। त्यागी हर काम चुटकियों में कर देता है।
“मुझे इस काम से दूर ही रखो।”
“तुम मेरे साथ ही रहोगे परन्तु करोगे कुछ नहीं। मैं चाहता हूं कि डिवाइस की डकैती के दौरान वहां के C.C.T.V कैमरे तुम्हारे इस जगमोहन वाले चेहरे को कैद कर लें।”
“हम ये काम कर लेंगे?
“पक्का कर लेंगे।”
“मुझे तो यकीन नहीं आता। कभी-कभी ये सब सोचकर मेरा दिल घबराने लगता है। तुम्हें ये बात कभी भी नहीं भूलनी चाहिये कि इस वक्त देवराज चौहान और जगमोहन हमें ढूंढने की पूरी कोशिश कर रहे होंगे।”
“मैं उनकी परवाह नहीं करता। वो हमें नहीं ढूंढ सकेंगे।”
“जानते हो वो दोनों कितने खतरनाक हैं।”
“मैं क्या कम खतरनाक हूं। मुझे नहीं जानते क्या?”
उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और दूसरी तरफ देखने लगा।
तभी परेरा की आवाज आई- “कॉफी तैयार है। यहीं आ जाओ और बताओ डिवाइस कहां है और किस तरह के पहरे में है?”
देवराज चौहान और जगमोहन वहां से हटे और उनके पास कुर्सियों पर आ बैठे।
गर्म कॉफी के पांच प्याले पड़े नजर आ रहे थे।
देवराज चौहान दे कॉफी का प्याला उठाकर घूंट भरा।
“तुम्हें क्या हुआ है?” लखानी ने जगमोहन से पूछा।
जगमोहन का चेहरा चिन्ता से भरा पड़ा था। जवाब में वो कह उठा- “मेरे पास करने को बहुत काम हैं। इन दिनों मैं जरा परेशान चल रहा हूं।”
वाडेकर ने कॉफी का प्याला उठाते हुए देवराज चौहान से कहा- “अब उस डिवाइस के बारे में बताओ कि वो कहां है और उसे हम कैसे हासिल करेंगे?
देवराज चौहान ने कॉफी का प्यॉला रखा और सब पर नजर मारकर कह उठा- “जुहू में चौदह मंजिला इमारत है जो कि ग्रीन हाऊस के नाम से जानी जाती है। ये सरकारी इमारत है। ग्रीन हाऊस ऐसी इमारत है, जिसमें आम आदमी का प्रवेश करना सम्भव ही नहीं है। क्योंकि ग्रीन हाऊस में सरकार के गुप्त, गोपनीय और महत्वपूर्ण काम होते हैं। चौबीसों घंटे यहां सुरक्षा का तगड़ा इन्तजाम रहता है। इन्तजाम भी ऐसा कि परिन्दा ‘पर’ नहीं मार सकता।”
“तो फिर हम कैसे वहां कुछ कर सकते हैं?” वाडेकर ने कहा।
“क्या वो डिवाइस उसी ग्रीन हाउस में है?”
“हां!”
“ओह...”
“पहले मेरी बात सुन लो। उसके बाद ही इस बारे में बात होगी।” देवराज चौहान ने कहा- “इस इमारत में रॉ, सी०बी०आई०, एस० टी०एफ०, क्राईम ब्रांच...इसी तरह के महत्वपूर्ण सरकारी कामों के ऑफिस हैं और हर डिपार्टमेंट को एक-एक फ्लोर दिया गया है। इस इमारत में काम करने वाले, बेशक वो कितने भी बड़े ऑफिसर हों, अपना पहचान-पत्र दिखाये बिना भीतर प्रवेश नहीं हो सकते। बेशक उन कर्मचारियों को गार्ड्स जानते हों, परन्तु पहचान-पत्र दिखाना जरूरी है। देखना जरूरी है। ऐसा इस वास्ते किया गया है कि किसी भी स्थिति में लापरवाही ना हो। मिलने आने वाले लोगों की अच्छी तरह जांच-पड़ताल होती है। आने का कारण पूछा जाता है, फिर इन्टरकॉम पर उस व्यक्ति से बात की जाती जिससे कोई मिलने आया होता है। यानि कि पूरी तसल्ली के बाद ही भीतर जाने दिया जाता है।”
“ये तो सच में तगड़े इन्तजाम हैं।”
“इमारत के मुख्य गेट से लेकर भीतर तक, लिफ्ट में, दीवारों पर जगह-जगह C.C.T.V कैमरे लगे हैं। यानि कि अगर कोई आदमी खुद को उन कैमरों की नजरों से बचाना चाहे तो बचा नहीं सकता।”
तीनों गम्भीरता से देवराज चौहान की बात सुन रहे थे।
जगमोहन परेशान दिख रहा था।
“खैर, हमें डिवाइस की तरफ आना चाहिये। जहां पर हमने काम करना है।” देवराज चौहान ने कहा- “ग्रीन हाऊस इमारत की ग्यारहवीं मंजिल ऐसी है कि जहां पर कोई काम नहीं होता। ग्यारहवीं मंजिल को सुरक्षा से भरे वॉल्ट का रूप दे रखा है और वहां पर महत्वपूर्ण चीजें रखी जाती हैं। ऐसी चीजें जो देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती हैं।”
“डिवाइस ग्यारहवीं मंजिल पर है?” परेरा बोला।
“हां! ग्यारहवीं मंजिल पर लिफ्ट रुके तो उसके दरवाजे नहीं खुलते। क्योंकि ग्यारहवीं मंजिल पर मौजूद सिक्योरिटी के हाथों में है लिफ्ट के दरवाजे खोलना या नहीं खोलना । ग्यारहवीं मंजिल पर किसी को काम होता है तो पहले वहां की सिक्योरिटी से फोन पर बात की जाती है। सिक्योरिटी की तसल्ली के बाद ही कोई ग्यारहवीं मंजिल पर आ सकता है। वहां की सिक्योरिटी का हैड कमिश्नर देवधर है, जो कि सख्त किस्म का इन्सान है। सिक्योरिटी वालों पर हर वक्त नजर रखता है कि वो सब सतर्क हैं या नहीं। वो जहां रहता है सरकार ने उसकी सुरक्षा के लिए भी सिक्योरिटी लगा रखी है कि कोई उसका अपहरण करके, उसे कैदी बनाकर उसके साथ ग्यारहवीं मंजिल पर ना आ पहुंचे।”
सबका ध्यान देवराज चौहान की बातों पर था।
“लेकिन वहां पहुंचने के लिए सीढ़ियां भी तो होंगी।” परेरा कह उठा।
“नौ फीट चौड़ी सीढ़ियां हैं, जो कि ऊपर तक जाती हैं। परन्तु ग्यारहवीं मंजिल पर इस तरह स्टील का मजबूत दरवाजा लगा रखा है कि भीतर कोई न आ सके। वो दरवाजा अकसर बंद ही रहता है और विशेष हालातों में ही उस दरवाजे को खोला जाता है। वहां की सिक्योरिटी के गाई को हर छः घंटे बाद बदला जाता है ताकि थकान की वजह से कोई लापरवाही ना हो सके।”
“आखिर ऐसा क्या सामान रखा हुआ है वहां कि ऐसा जबर्दस्त पहरा है?” लखानी ने पूछा।
“डिवाइस वहां पर है तो इसी से सोच सकते हो कि वहां कैसी चीजें रखी जाती हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
सबकी निगाह देवराज चौहान पर रही।
“ग्यारहवीं मंजिल कोठरी की तरह छोटे-छोटे ऐसे कमरे बने हैं कि जिन्हें खोल पाना असम्भव सी बात है। उन्हीं कमरों में महत्वपूर्ण जरूरी सामान व कीमती सामान रखा जाता है। उन कोठरी जैसे कमरों की दीवारें स्टील की हैं और दरवाजा भी स्टील की मोटी चादर का है। हर दरवाजे पर एक कम्बीनेशन चक्री लगी है। की-होल में चाबी डालने से पहले उस कम्बीनेशन के खास नम्बरों को सैट करना पड़ता है। ऐसा किए बिना की-होल में चाबी डाल दी जाये तो दरवाजा नहीं खुलता। चाबी नहीं घूमती और साथ ही खतरे का अलार्म बज उठता है, जो कि ग्यारहवीं मंजिल के कंट्रोल रूम में बजता है। उसके बाद क्या होगा, ये सोच ही सकते हो।”
गहरी खामोशी छा चुकी थी वहां।
“परन्तु उन कमरे के दरवाजों तक किसी का पहुंचाना ही सम्भव नहीं है।” देवराज चौहान ने पुनः कहा- “वहां पर जगह-जगह कैमरे लगे हैं। कंट्रोल रूम में बैठे चार लोग हर वक्त स्क्रीनों पर निगाह रखते हैं और ग्यारहवीं मंजिल के हर हिस्से को स्क्रीन पर बदल-बदल कर देखते रहते हैं। फिर...”
“उन कमरों तक पहुंचना तो दूर मेरे ख्याल में हम ग्यारहवीं मंजिल में भी प्रवेश नहीं कर सकते।” वाडेकर ने व्याकुलता भरे स्वर में कहा- “तुम ही बताओ कि कैसे हम ग्यारहवीं मंजिल में प्रवेश कर सकेंगे?”
“माना कि पहुंच भी गये।” परेरा सिर हिलाकर गम्भीर स्वर में बोला- “माना कि हम सिक्योरिटी वालों की नजरों से बच गये। कैमरे हमें ना पकड़ सके, जो कि ऐसा होना सम्भव नहीं है, मैं ये सोचकर चल रहा हूं। माना कि हमारी डिवाइस भी उस किसी कोठरी जैसे स्टील के कमरे में है, तो हम कैसे उस कमरे के दरवाजे को खोल पायेंगे?”
“अगर ये काम हो जाने वाला होता तो अमेरिका के शातिरों ने कब का ये काम कर लेना था।” लखानी ने कहा।
देवराज चौहान मुस्कराकर कह उठा- “मैं ये नहीं कहूंगा कि तुम लोगों की बातें सही नहीं हैं। सही हैं। हर कदम पर अंदेशे जन्म लेंगे और तब तक लेते रहेंगे जब तक मेरी कही बात पूरी तरह सुन नहीं लोगे।”
“ठीक है, तुम पूरी बात कहो।”
“मैं कम शब्दों में अपनी बात कहूंगा।” देवराज चौहान गम्भीर हो गया- “एक बात और जान लो कि ग्रीन हाउस की छत पर चार गनमैन सावधानी के तौर पर पहरा देते हैं। हर छः घंटों बाद उनकी भी ड्यूटी बदलती है।”
“छत पर, वहां क्या जरूरत है पहरे की?”
“कोई छत के रास्ते ग्यारहवीं मंजिल तक पहुंचने की कोशिश ना करे।”
“कोई पागल ही ऐसा सोचेगा।”
“और वो पागल हम हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
तीनों चौंके।
“क्या?” वाडेकर ने होंठों पर जीभ फेरी- “हम छत की तरफ से ग्यारहवीं मंजिल पर जायेंगे?”
“हां! यही है मेरा प्लॉन।”
“तुम पागल हो गये हो देवराज चौहान।” लखानी तेज स्वर में कह उठा- “तुम तो हमें मरवाने का पूरा इन्तजाम कर रहे हो।
एक तरफ कहते हो कि छत पर हमेशा चार गनमैन तैनात होते हैं। दूसरी तरफ कहते हो कि हम छत से नीचे ग्यारहवीं मंजिल तक जायेंगे, जबकि इमारत में प्रवेश कर पाना ही सम्भव नहीं है, तुम तो...”
“पहले मेरी बात सुन लो। कह लेने दो मुझे।”
“तुम...”
“लखानी!” परेरा ने टोका- “चुप कर, सुन तो लेने दे कि देवराज चौहान कहना क्या चाहता है।”
“तेरी समझ में इसकी बात आ रही है जो तू...”
“बात तो तब समझ में आयेगी जब ये पूरा कह लेगा।” परेरा गम्भीर स्वर में बोला- “इसे कह तो लेने दे। मैं एक्सपर्ट चोर हूं। ये जो कहेगा, इसकी बात को मैं फौरन भांप जाऊंगा कि ये काम किया जा सकता है या नहीं।”
देवराज चौहान मुस्कराया।
“लेकिन इसने तो पहले ही शर्त रख दी थी कि सब कुछ सुनने के बाद कोई काम से अलग नहीं हो सकेगा।” लखानी ने उखड़े स्वर में कहा।
“तुम लोग 1000 करोड़ को भूल रहे हो, जो हमें ये काम करके हासिल होगा। हजार करोड़ कितने होते हैं, शायद तुम सोच नहीं पा रहे। इतनी बड़ी दौलत कमाने के लिए खतरों से तो निकलना ही होगा।”
“मैं खतरों से नहीं डर रहा। मैं तो...”
“तू फिर बोला लखानी।” परेरा ने कहा।
लखानी ने होंठ भींच लिए।
“बात सुन पहले। आराम से सुन । देवराज चौहान को कहने तो दे।”
लखानी ने अपने होंठ बंद रखे वाडेकर, जगमोहन को देखकर कह उठा “तुम खामोश क्यों हो?”
“मुझे कम बोलने की आदत है।” जगमोहन ने शांत स्वर में कहा।
वाडेकर सिर हिलाकर रह गया।
“तुम अपनी बात पूरी करो देवराज चौहान।” परेरा ने कहा।
“मैं भी यही कहना चाहता हूं कि पहले मेरी बात सुन लो।
इसी तरह बार-बार मुझे बीच में रोकते रहे तो तुम लोगों के दिमाग में बेकार के सवाल आते रहेंगे। पूरी बात सुन लोगे तो तुम्हारे सवालों को दिशा मिल जायेगी।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “हम 1000 करोड़ से ज्यादा की दौलत कमाने जा रहे हैं। कुछ परेशानियां तो आयेंगी ही। परन्तु उन परेशानियों को हमने हल करना है, बढ़ाना नहीं है, बेकार की बातें करके। मैं इस मामले में लम्बे वक्त से काम कर रहा हूं और कई समस्याओं को दूर कर चुका हूं। पूरी बात सुनने के बाद तुम लोगों को सब कुछ सही लगेगा।”
“जगमोहन ये सब बातें जानता है जो तुम कहने वाले हो?” वाडेकर ने पूछा।
देवराज चौहान ने जगमोहन पर नजर मारी।
“मैं भी तुम लोगों की तरह अब ही ये सब कुछ सुन रहा हूं कि काम कैसे होगा।”
“परन्तु तुम तो इस तरह आराम से बैठे हो कि जैसे सब कुछ जानते हो।” वाडेकर मुस्कराया।
“मैं तुम लोगों की तरह बीच में सवाल करके वक्त खराब नहीं करना चाहता। सब कुछ सुनने के बाद ही बोलूंगा, वो भी तब जब बोलने की जरूरत महसूस हुई। मैं लम्बे समय से देवराज चौहान के साथ हूं और मुझे तुम्हारी तरह देवराज चौहान पर कोई शक नहीं कि इसकी प्लानिंग में कोई कमी है।” जगमोहन ने सरल स्वर में कहा।
तीनों में देवराज चौहान को देखा।
“अब सुनते रहो मेरी बात । बीच में मत बोलना।” देवराज चौहान कह उठा- “हमारा काम शुरू होगा दसवीं मंजिल पर आग लगने से। और इसके लिये हमें एक करोड़ रुपया देना होगा।”
“एक करोड़?” लखानी कह उठा- “आग लगाने के लिये?”
“हां, एक करोड़। हमारे बतायेनुसार वक्त पर आग लगाने के एक करोड़ रुपये उसे देने हैं।” देवराज चौहान ने कहा- “आग को इस तरह लगाया जायेगा कि पूरी दसवीं मंजिल आग से घिर जायेगी और वो आग ग्याहरवीं मंजिल तक भी पहुंच जायेगी। जब वो आग ग्यारहवीं मंजिल की बिजली की तारों को लगेगी तो वहां के सारे सिक्योरिटी सिस्टम ठप्प पड़ जायेंगे। सुरक्षा-व्यवस्था खत्म हो जायेगी। ऐसे में भारत सरकार को सबसे पहले एक ही बात सूझेगी कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हटाना और आनन-फानन वहां से न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हटाया जायेगा। और यही वक्त हमारे काम का होगा कि…”
“तुम्हारे प्लॉन में बहुत कमियां हैं।” वाडेकर गम्भीर स्वर में कह उठा।
सबकी निगाह वाडेकर की तरफ गई।
“कैसी कमियां?” देवराज चौहान ने पूछा।
“तुम किसी को एक करोड़ दोगे कि दसवीं मंजिल पर आग लगा दी जाये।
“बहुत कठिनता से मैं ऐसे बन्दे को तलाश कर सका हूं जो ये काम करेगा…”
“इस बात का क्या भरोसा कि वो ठीक से आग लगा पाने में सफल होगा? सफल हो भी गया तो क्या भरोसा कि वो आग ग्यारहवीं मंजिल को नुकसान पहुंचा सकेगी? क्या पता तब तक फायर ब्रिगेड पहुंचकर आग पर काबू पा ले।”
देवराज चौहान मुस्कराया।
“तुम्हारे अंदेशे सही हैं। इन पर मैं पहले ही सोच चुका हूं। परन्तु सब ठीक है। आग लगाने वाले व्यक्ति से कई बार इसी मुद्दे पर मेरी लम्बी बातचीत हुई है। मैं तुम सब को बता दूं कि आग इस तरह लगाई जायेगी कि फौरन ही वो भड़ककर ग्यारहवीं मंजिल को अपनी चपेट में ले ले। फायर ब्रिगेड के पहुंचने तक हमारी पसन्द के मुताबिक काम हो चुका होगा।”
“अगर ना हुआ तो?”
“तो उस स्थिति में हमारा ग्यारहवीं मंजिल तक पहुंचना बहुत आसान होगा।”
“अनजाने लोगों को तब ग्यारहवीं मंजिल की सिक्योरिटी क्यों वहां…”
“तब हम लोग वहां फायर ब्रिगेड वालों के कपड़ों में होंगे।”
देवराज चौहान ने कहा- “हम हर तरह के इन्तजाम के साथ बाहर मौजूद रहेंगे और जैसे हालात होंगे वैसा ही काम, वैसे ही ढंग से किया जायेगा।”
“हो सकता है कि ग्यारहवीं मंजिल तक आग ना पहुंचे। तब क्या होगा?” लखानी बोला।
“तब भी हम फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों की वर्दी में ग्यारहवीं मंजिल पर प्रवेश पा सकेंगे।” देवराज चौहान बोला।
“और अगर आग पहुंच गई तो ?” परेरा ने पूछा।
“तो उस स्थिति में हमें तय करना होगा कि हम फायर ब्रिगेड के कर्मचारी बनकर ग्यारहवीं मंजिल पर पहुंचें या उस वक्त का इन्तजार करें जब वहां से लोग डिवाइस को किसी सुरक्षित जगह पर पहुंचाने की चेष्टा में डिवाइस के साथ बाहर निकलें।”
“परन्तु तब हमें क्या पता चलेगा कि वे लोग कब डिवाइस के साथ बाहर निकल रहे हैं। तब तो बिल्डिंग में आग लगी होगी।
बौखलाहट में लोग अन्दर-बाहर हो रहे होंगे। ऐसे में अगर कुछ लोग डिवाइस के साथ बाहर निकलते हैं तो हमें इसकी हवा भी नहीं लगेगी।”
“ऐसा होने पर ग्यारहवीं मंजिल का एक आदमी, मुझे फोन पर बतायेगा।” देवराज चौहान ने कहा।
तीनों की नजरें मिलीं।
“मतलब कि ग्यारहवीं मंजिल का कोई आदमी तुम्हारा साथ देने को तैयार है?” वाडेकर ने
“हां! उसे तैयार करने में मुझे बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। वो सिर्फ इस हद तक ही मेरे साथ है कि मौके पर इस बात की खबर फोन पर मुझे दे देगा कि डिवाइस को कब वहां से कहीं और पहुंचाया जा रहा है। ये खबर पाने के बाद हम उन लोगों के पीछे लग जायेंगे जो डिवाइस ले जा रहे होंगे और मुनासिब मौके पर उनसे डिवाइस छीन लेंगे।”
“इसका मतलब अभी ये तय नहीं है कि हमें आखिर ये काम किस तरह करना है।” परेरा बोला।
“अभी ये तय नहीं है। इस बात को मौके पर हालातों के मुताबिक ही तय किया जायेगा।” देवराज चौहान ने कहा- “जैसा कि मैं बता चुका हूं कि हमारे पास दो रास्ते हैं। या तो हम फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों के रूप में ग्यारहवीं मंजिल पर प्रवेश करेंगे या हम उस वक्त का इन्तजार करेंगे जब वो डिवाइस के साथ किसी सुरक्षित स्थान पर जाने के लिये निकलते हैं।”
“मान लो।” लखानी ने कहा- “हम फॉयर ब्रिगेड के कर्मचारियों के रूप में ग्यारहवीं मंजिल पर पहुंच जाते हैं तो तब वहां क्या करेंगे? कैसे हासिल करेंगे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को? क्योंकि वो तो किसी स्टील की कोठरी में रखी होगी। ताला खोलने के लिये हमें पहले दरवाजे के कम्बीनेशन नम्बरों को सैट करना होगा। जिसकी हमें जानकारी नहीं हैं। जानकारी हो भी तो नम्बर सैट करने के बाद दरवाजे का ताला कैसे खोला जायेगा? उसके लिए चाबी होनी चाहिये।”
देवराज चौहान ने जेब से छः इंच लम्बी चाबी निकालकर सबको दिखाई।
“ये है वो चॉबी।” देवराज चौहान ने कहा- “चार नम्बर कमरे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस रखी गई है। उस दरवाजे पर लगे चक्री को 145, यानि कि एक-चार-पांच के अंकों पर सैट करके, इस चाबी से दरवाजा खोला जा सकेगा और हम एक मिनट के भीतर न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को पा लेंगे।”
“तुमने तो पूरी तैयारी कर रखी है।” लखानी ने गहरी सांस ली।
“चार महीनों से इसी पर काम कर रहा हूं।”
परेरा ने चाबी उठाकर उसे ध्यानपूर्वक देखकर कहा-
“ये चॉबी डुप्लीकेट है या असली है?”
“बनवाई गई है।”
“किसने बनाई?”
“उसी ने बनवाकर दी है, जो ग्यारहवीं मंजिल पर मेरा साथी है।” देवराज चौहान बोला।
“फिर तो जरूरी नहीं कि ये चाबी ठीक से काम कर पाये।
मौके पर दगा भी दे सकती है।” परेरा ने कहा।
“उसने इस चॉबी को दरवाजे.पर लगाकर चैक कर लिया है। ठीक से काम करती है ये।”
“तुमने तो हर तरफ से बढ़िया तैयारी कर रखी है।”
“कितना पैसा दिया इस आदमी को?”
“ढाई करोड़ तय हुआ है। पचास लाख दे चुका हूं और काम से पहले दो करोड़ देना है।”
“तुम काफी बड़ी रकमें लुटा रहे हो।”
“जरूरी है। ये ऐसा नाजुक काम है कि कोई तैयार नहीं होता। रकमें बड़ी जरूर हैं, परन्तु मुझे इसी बात में तसल्ली है कि मेरा काम उसी तरह हो रहा है जैसे मैं चाहता था। वैसे भी हम उस डिवाइस को इतनी बड़ी कीमत में बेचेंगे कि जो खर्चा इस काम में हुआ होगा, वो मामूली है। फिर खर्चा तो हमने उसी दौलत से देना है जो हमने अब लूटी है।”
दो पल के लिए वहां खामोशी आ ठहरी।
लखानी ने चुप्पी को तोड़ते हुए कहा।
“उस वक्त हम आग बुझाने वाले बनकर ग्यारहवीं मंजिल पर जाते हैं तो जरूरी नहीं वो हमें भीतर आने दें।”
“वो आने देंगे।” देवराज चौहान ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
“कैसे विश्वास के साथ कह सकते हो ये बात?”
“निचली मंजिल पर आग लगी होगी। लपटें ऊपरी मंजिल
पर पहुंच रही होंगी। ऐसे में सब घबराये होंगे कि आग ग्यारहवीं मंजिल को ना पकड़ ले । ऐसे वक्त पर फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों को तो वो भगवान समझेंगे।”
“देवराज चौहान ठीक कहता है।” परेरा ने सिर हिलाया।
“मान लो कि वो नहीं आने देते?” लखानी पुनः बोला।
“तो तब उन लोगों को शूट कर दिया जायेगा। हम आसानी से उन्हें मार सकते हैं। वो तो सपने में भी नहीं सोच सकते कि फायर ब्रिगेड के लोग गोलियां चला सकते हैं। हमारे सामने वो असावधान होंगे।” देवराज चौहान ने तीनों को देखकर कहा।
“और अगर वो डिवाइस को लेकर किसी सुरक्षित जगह के लिए निकलते हैं तो क्या तब भी उन्हें मारना होगा?” लखानी ने पूछा।
“हां! उन्हें मारे बिना हम डिवाइस हासिल नहीं कर सकते।”
“मुझे कोई एतराज नहीं।” लखानी ने कहा- “इतनी बड़ी दौलत के लिये दो-चार-आठ-दस को मार देना छोटी बात है।”
“मैं कुछ कहना चाहता हूं।” परेरा बोला।
“क्या?”
“मैं पेशेवर चोर हूं और ये बात ज्यादा बेहतर जानता हूं कि कब कहां हाथ मारना चाहिये।”
सबकी निगाह परेरा पर टिक चुकी थी।
“मेरे ख्याल से न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हासिल करने की जगह ग्यारहवीं मंजिल ज्यादा ठीक रहेगी।”
देवराज चौहान मुस्कराया।
“क्यों?” वाडेकर ने पूछा।
“सड़क पर किसी से कोई चीज छीनने में हम चूक भी सकते हैं।” परेरा ने पुनः कहा- “परन्तु ग्यारहवीं मंजिल पर ये काम करें तो ज्यादा ठीक रहेगा। वहां पर हम सिक्योरिटी वालों को मार चुके होंगे। निचली मंजिल पर आग लगी होगी। हर जगह तब भागा-दौड़ी का माहौल होगा। और हमारे पास पर्याप्त वक्त होगा डिवाइस को वहां से निकाल ले जाने का। देवराज चौहान, हमें ग्यारहवीं मंजिल का नक्शा भी चाहियें, ताकि हम जान सकें कि चार नम्बर कोठरी कहां पड़ती है। उसे ढूंढने में हमारा वक्त बरबाद ना हो।”
“वक्त बरबाद नहीं होगा। मैं नक्शा जान चुका हूँ।” देवराज चौहान बोला- “कागज पर ग्यारहवीं मंजिल का नक्शा बनाकर दिखा दूंगा। काम ग्यारहवीं मंजिल पर किया जाये या सड़क पर, हम...”
“मेरे खयाल में काम को सड़क पर ही करना ज्यादा ठीक होगा।” वाडेकर ने कहा।
“कभी नहीं।” परेरा बोला- “ये ठीक नहीं होगा। हमें ये सोचकर नहीं चलना चाहिये कि ग्यारहवीं मंजिल पर सुरक्षा में सिर्फ न्यूक्लियर खोजी डिवाइस ही है। वहां पर और भी कई महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज हो सकते हैं और आग लगने के वक्त बाकी की महत्वपूर्ण चीजों को भी डिवाइस के साथ बाहर ले जाया जा सकता है। ऐसे में सड़क पर काम करने के दौरान हमारे पास इतना वक्त नहीं होगा कि हम उस सामान में से डिवाइस को पहचानने की चेष्टा करें। हम चूक भी सकते हैं और डिवाइस की जगह कोई और सामान लेकर आनन-फानन भाग सकते हैं। जबकि ये बात हम पक्की तरह जानते हैं कि. ग्रीन हाउस की ग्यारहवीं मंजिल की 4 नम्बर कोठरी में डिवाइस मौजूद है और वहां से उसे हम आसानी से हासिल कर सकते हैं।
“परेरा ठीक कहता है।” जगमोहन पहली बार बोला।
“हमें ये तय करके चलना चाहिये कि हमें कहां पर हाथ मारना है और तैयारी उसी हिसाब से की जानी चाहिये।” परेरा ने कहा।
चंद पलों की चुप्पी छा गई।
“तुम क्या कहते हो देवराज चौहान?” लखानी बोला।
“इस वक्त हम बराबर के साथी हैं। देवराज चौहान ने कहा- “सबकी राय महत्वपूर्ण है। जो-जो बातें पसन्द आती जायें, वो रखते रहो और बाकी बातें अपने से दूर कर दो। वैसे मुझे परेरा की बात ठीक लगी कि काम को कैसे करना है। ये बात पहले तय करके, सारा ध्यान हमें उसी पर लगाना चाहिये। फॉयर ब्रिगेड के कर्मचारियों के रूप में हम आसानी से ग्यारहवीं मंजिल पर प्रवेश पा लेंगे और वहां के हालातों पर काबू भी पा लेंगे।”
“मुझे भी ये बात ठीक लगती है।” लखानी ने वाडेकर को देखकर कहा।
“मैं एतराज नहीं उठा रहा।” वाडेकर बोला- “मैंने तो अपना विचार सामने रखा था। परन्तु जैसा रास्ता तुम सब को ठीक लगता है, वैसा मुझे भी मंजूर है। हमें मिलकर काम करना है।”
परेरा पुनः कह उठा- “काम कब से शुरू करना है देवराज चौहान? आग कब लगेगी दसवीं मंजिल पर?”
“जब हम अपनी तैयारियां पूरी कर लेंगे।” देवराज चौहान ने कहा- “तैयारियों का सबसे पहला जरूरी काम है जिन लोगों को मैंने सैट किया है, उन्हें पैसे दे देना । जैसे कि आग लगाने वाले को और ग्यारहवीं मंजिल पर मौजूद उसे, जो मुझे वहां की खबरें देगा।”
“इस काम में हम तुम्हारे साथ रहेंगे।” लखानी बोला।
“वो लोग पसन्द नहीं करेंगे कि उन्हें ज्यादा लोग जानें।”
देवराज चौहान ने लखानी को देखा।
“हममें से एक को तो तुम साथ में रख ही सकते हो।” लखानी ने कहा।
“बहुत जरूरी हो तो एक को रखा जा सकता है।”
“तो मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।” परेरा कह उठा।
लखानी ने परेरा को घूरा।
परेरा दांत फाड़कर मुस्कराया।
तभी देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “इसके साथ ही हमें अपनी तैयारियों की तरफ भी ध्यान देना है और उसके बाद दिन तय करना है कि कब काम होगा। परन्तु सबसे पहले हमें उन लोगों को पैसा देना है, जो इस काम में हमारे काम आयेंगे। मैं उनसे बात करता हूं।” देवराज चौहान उठा और जेब से फोन निकालकर दूसरे कमरे में चला गया।
तीनों ने एक-दूसरे को देखा फिर परेरा जगमोहन से बोला- “तुम्हें क्या लगता है कि हम सफल हो जायेंगे?”
“मुझे देवराज चौहान पर पूरा भरोसा है।” जगमोहन बोला- “वो हमेशा हर काम में सफल होता है।”
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