नकुल का हैरतअंगेज खुलासा

प्रातः ग्यारह बजे के करीब सुलभ जोशी के साथ विराट राणा अतुल कोठारी के बंगले पर पहुंचा। गेट पर पूछताछ करने पर पता लगा कि उस वक्त घर में बस कनिका कोठारी ही थी।

“नकुल साहब कहां गये?” विराट ने गार्ड से पूछा।

“मालूम नहीं सर, अभी थोड़ी देर पहले कार लेकर निकले हैं कहीं।”

“कार कौन सी है रेड अल्ट्रोज?”

“वह तो मैडम की है सर।”

“फिर?”

“निसान कंपनी की ‘मैग्नाईट’, वह भी लाल रंग की ही है।”

“नंबर?”

“गार्ड ने वह भी बता दिया।”

“कनिका मैडम को खबर करो कि पुलिस उनसे मिलना चाहती है।”

गार्ड ने सहमति में सिर हिलाया फिर इंटरकॉम पर कॉल कर के इजाजत हासिल करने के बाद दरवाजा खोलता हुआ बोला, “बाहर लॉन में ही बैठी हैं, चले जाइये।”

“तुम यहीं रुको जोशी साहब।”

“सॉरी?” वह अचकचाकर बोला।

“रुककर कोई योजना बनाओ जिससे नकुल को यूं अपनी गिरफ्त में लिया जा सके कि उसे एहसास तक न हो। बल्कि मेरे वापिस आने तक उसे रोक लिए जाने की खबर भी तैयार रखो।”

“ये तो बहुत गलत बात है सर।”

“अच्छा क्या गलत है इसमें?”

“कनिका को घूरने का इल्जाम आप मुझपर लगा रहे थे - जोशी धीरे से बोला - और मिलने खुद जा रहे हैं वह भी अकेले ही। ये गलत नही तो और क्या है?”

विराट हंसा, “दोनों काम एक साथ करने हैं जोशी साहब। इसलिए हममें से एक को यहां रुकना ही पड़ेगा। अब ये तो नहीं हो सकता न कि भीतर कनिका के सामने बैठकर उसके भाई की गिरफ्तारी का प्रयास शुरू कर दें।”

“भीतर जाकर सवाल जवाब मैं किये लेता हूं।”

“सीनियर कौन?”

“वो तो खैर आप ही हैं।”

“गुड।” कहकर विराट भीतर दाखिल हो गया।

अभी वह कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि कनिका का खनकता हुआ स्वर उसके कानों में पड़ा, “मैं इधर तुम्हारे लेफ्ट में हूं इंस्पेक्टर, आ जाओ।”

सुनकर उसने गर्दन घुमाकर देखा तो पाया कि वह लॉन में टेबल कुर्सी डाले चाय लुत्फ ले रही थी।

फूलों के गमलों को लांघता हुआ विराट उसके सामने जा खड़ा हुआ।

“बैठो।”

“थैंक यू मैडम।”

“चाय लोगे?”

“अगर असुविधा न हो तो ये फख्र हासिल करना तो बराबर चाहूंगा।”

“मेरे साथ चाय पीना - वह मुस्कराती हुई बोली - फख्र की बात है?”

“मुझे जैसे मामूली से इंस्पेक्टर के लिए तो यकीनन है मैडम।”

“तुम मामूली कहां हो यार - वह बड़े ही बेतकल्लुफ अंदाज में बोली - तीन सितारे जगमगा रहे हैं कंधों पर और शक्लो सूरत से भी काफी हैंडसम लगते हो।”

“एक बार फिर से शुक्रिया।”

सुनकर उसने हौले से गर्दन हिलाई फिर टेबल पर रखा कार्डलेस फोन उठाकर किसी को चाय दे जाने के लिए कह दिया।

“कैसे आना हुआ?”

“आया तो नौकरी भुगतने ही हूं मैडम, मगर ऐसा सौभाग्य कम ही हासिल होता है जब नौकरी करता होना फख्र की बात महसूस होने लगे।”

“जो कि आज हो रहा है, है न?”

“जी हां।”

“क्यों?”

“सच बोलूंगा तो आपको बुरा लग सकता है इसलिए जाने दीजिए।”

“फिर तो जरूर बोलो। तुम मेहमान हो, बुरा भला कैसे मान सकती हूं?”

“बात ये है मैडम कि नौकरी में ऐसा वक्त होली दीवाली ही आता है जब किसी स्वर्ग से उतरी अप्सरा के रूबरू होने का मौका हासिल हो जाये, वरना अमूमन तो हिडम्बा, या खरदूषण से ही पाला पड़ता है।”

सुनकर वह एकदम से खिलखिला उठी, फिर तत्काल चुप होती हुई बोली, “बातें बहुत बढ़िया करते हो विराट, ऐसी बातें जो सीधा दिल में उतर जायें मगर चुभन का एहसास तक न हो।”

“थैंक यू।”

“बहुत बोलते हो।”

“सॉरी।” वह सकपकाया।

“मैंने कहा ‘थैंक यू’ बहुत बोलते हो।”

“ओह! ओह थैं...” कहता कहता वह चुप हो गया।

उस बात पर कनिका ने फिर से ठहाका लगाया। इस बात की उसे जरा भी परवाह नहीं मालूम पड़ती थी कि सौतेली ही सही उसकी बेटी का कत्ल हो चुका था, इसलिए दिखावे को ही सही गमगीन बनकर रहना चाहिए।

“अब इजाजत हो तो वह काम कर लूं जिसके लिए यहां आया हूं?”

“अभी तक कुछ और कर रहे थे?”

“जी हां।”

“क्या?”

“जरूरी काम निबटा रहा था।”

“बस भी करो यार, तुम तो हंसा हंसा कर ही जान ले लेगो, खैर पूछो क्या पूछना चाहते हो?”

“बेखौफ पूछूं?”

“और क्या मैंने तुम्हें तलवार की धार पर खड़ा कर रखा है जो डर डर कर पूछोगे?”

“सुना है शादी से पहले आप साध्वी हुआ करती थीं?”

“ठीक सुना है, सच पूछो तो कभी शादी न करने का फैसला तक ले चुकी थी, मगर करनी पड़ी क्योंकि अचानक ही सुनहरा भविष्य मेरी गोद में आ गिरा।”

“मिस्टर अतुल कोठारी के रूप में।”

“एग्जैक्टली।”

“फिर तो आपने समझौता किया, ना कि अपनी मर्जी से, अपनी पसंद से शादी की, है न?”

“हद है यार, ये भी कोई कहने की बात है। चौबीस साल की एक लड़की को भला अड़तालिस साल का मर्द कैसे पसंद आ सकता है? मगर अतुल फौरन आ गया, क्योंकि मल्टी मिलेनियर है।”

“यानि ब्राइटेस्ट फ्यूचर इंश्योर्ड कराया था?”

“हां था तो कुछ ऐसा ही। मैं एक मामूली से घर में जन्म लेने वाली लड़की, जिसके कंधे पर अपने साथ-साथ छोटे भाई की भी जिम्मेदारी आन पड़ी हो, ये देखकर बौरा गयी कि कैसे एक करोड़पति इंसान मुझे मैरिज के लिए प्रपोज कर रहा था, बस झट हामी भर दी।”

“ये तक जानने की कोशिश नहीं की कि जिससे शादी कर के आप दौलत के अंबार पर बैठना चाहती हैं, वह अपनी पूरी की पूरी जायदाद बेटी के नाम किये बैठा है? और कुछ नहीं तो उस बाबत कोई लिखा पढ़ी ही करवा सकती थीं।”

“बड़ी जानकारियां इकट्ठी कर रखी है भई, हो किस फिराक में?”

“मामूली सा सवाल है मैडम।”

“ठीक है जवाब भी सुन लो, नहीं मेरे मन में वैसा कोई ख्याल ही नहीं आया, मगर शादी के बाद जब मुझे उस बात का पता लगा तो मैंने अतुल से साफ साफ बात की। मधु उसकी बेटी थी जिसका उसकी संपत्ति पर हक बराबर बनता था, उससे मुझे कोई ऐतराज भी नहीं था, मगर आधी पर ना कि पूरी पर। इसलिए उससे साफ कह दिया कि वह अपने विल में मेरा भी नाम शुमार करे।”

“मैंने तो सुना है कि पति की संपत्ति पर सबसे पहला हक पत्नी का ही होता है।”

“विल किसी और के नाम से होने की सूरत में उस संपत्ति को हासिल करने के लिए कोर्ट कचहरी के इतने चक्कर काटने पड़ जाते हैं, कि मेरी तो आधी जिंदगी ही सर्फ हो जाती, जिसके लिए मैं हरगिज भी तैयार नहीं थी। हां उसने कोई वसीयत नहीं कर रखी होती तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, ना ही मुझे जायदाद में मधु के हिस्से से कोई ऐतराज था। बल्कि मैं तो इस बात पर भी राजी हो जाती कि वह कुल संपत्ति का पच्चीस फीसदी मेरे नाम कर देता। मगर उसकी नौबत नहीं आई क्योंकि अतुल सहज ही मेरा नाम अपने विल में डालने को तैयार हो गया था।”

“दहेज में भाई को साथ क्यों ले आई?”

सुनकर पलभर के लिए उसके चेहरे पर गहन अप्रसन्नता के भाव उभरे फिर बड़े ही अजीब लहजे में बोली, “इसलिए क्योंकि नकुल के अलावा मेरे पास अन्य कोई संपत्ति थी ही नहीं।”

“सॉरी मैं थोड़ा गलत शब्द इस्तेमाल कर गया, जबकि पूछना ये चाहता था कि नकुल साहब यहां आपके साथ क्यों रहते हैं?”

“इट्स ओके, बात ये है कि वह बचपन से ही मेरे साथ रहा है। उसका पालन पोषण तक मैंने खुद किया है, इसलिए मैं उसे खुद से दूर नहीं कर सकती, और ये बात मैंने शादी से पहले ही अतुल को बता दी थी, जिसपर उसे कोई ऐतराज नहीं हुआ था।”

तभी एक नौकर वहां चाय का कप रख गया।

“मधु का कत्ल किसने किया?” चाय की एक चुस्की लेकर उसने पूछा।

“वॉट?”

“मैंने पूछा मधु को किसने मारा?”

“ढूंढो जाकर भई, आखिर सरकार इसी बात की तनख्वाह देती है तुम्हें।”

“याद दिलाने के लिए थैंक यू, मैंने ये भी सुना है कि आप अक्सर कोठारी साहब पर इस बात के लिए दबाव बनाती रहती हैं, कि वे आपके भाई को अपने बिजनेस में हाथ बंटाने का मौका दें?”

“ओह अब समझी।”

“क्या समझी?”

“ये निजी बातें तुम्हारे साथ अतुल ने शेयर की हैं। गलत किया, नहीं करना चाहिए था।”

“आपकी खामख्याली है मैडम जो सोचती हैं कि कोठारी साहब ऐसी बातें भी पुलिस के साथ शेयर कर सकते हैं।”

“और कैसे पता लग सकता था तुम्हें?”

“पुलिसवाला हूं, जानकारियां खोद निकालनी पड़ती हैं।”

“जबकि मौत इस घर में हुई है, इसलिए कातिल यहां नहीं मिलने वाला, ऐसे में समझ नहीं आता कि तुम हमारे बारे में इंफॉर्मेशन जुटाने की मेहनत क्यों कर रहे हो?”

“बात ये है मैडम कि - विराट ने फिर से चाय की चुस्की ली - कातिल के गिरफ्तार होने तक हर कोई हमारे शक के दायरे में है।”

“मैं भी?”

“यस, आप भी।”

“मैं भला मधु की हत्या क्यों करने लगी?”

“कोठारी साहब की जायदाद पर पूरा का पूरा कब्जा करने की खातिर।”

“यार तुम मेहमान बड़े अजीब हो।”

“मैं मेहमान हूं ही नहीं मैडम, अभी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकता क्योंकि ऑन ड्यूटी हूं।”

“जानते हो अतुल को अगर मैंने ये बता दिया कि तुम कितने वाहियात सवाल कर रहे थे मुझसे तो क्या होगा?”

“समझदार होंगे तो यही सोचकर खुश हो जायेंगे कि पुलिस ईमानदारी से अपना काम कर रही है।”

“और ना हुआ तो?”

“तो आप बताइये।”

“वर्दी उतर जायेगी - अचानक ही कनिका कोठारी का लहजा बदल गया - कल को कहीं मूंगफली का ठेला लगा रहे होगे। और इत्तेफाक से कहीं मैंने उस ठेले के सामने अपनी गाड़ी रोक दी तो फौरन खिड़की के पास पहुंचकर पूछने लगोगे कि ‘कितना दे दूं मैडम जी’ ना कि मेरे सामने बैठकर चाय पी रहे होगे।”

“फिर तो मत ही बताइयेगा।”

“तुम्हारे कहने से?”

“साथ में रिक्वेस्ट भी तो कर रहा हूं।”

वह हंसी, “एकदम गिरगिट की तरह रंग बदलते हो?”

“आपसे ही सीखने की कोशिश कर रहा हूं मैडम।”

“व्हाट डू यू मीन, कि मुझसे सीखने की कोशिश कर रहे हो?”

“कुछ नहीं - वह उठता हुआ बोला - चाय के लिए थैंक यू, इतने प्यार और इज्जत के साथ पेश आने के लिए थैंक्स अ टन मैडम, जल्दी ही फिर मिलेंगे, तब मैं आपके लिए मूंगफली भी जरूर लेकर आऊंगा, बस अफसोस इस बात का होगा कि कार आपसे छिन चुकी होगी।” कहकर वह मुड़ा और बाहर की तरफ बढ़ गया।

उसके आंखों से ओझल होने तक कनिका की निगाहों ने उसका पीछा किया, फिर मोबाईल निकालकर कोई नंबर डॉयल करने में जुट गयी।

बाहर पहुंचकर विराट ने जोशी को मोबाईल पर बात करता पाया तो खुद ड्राईविंग सीट पर जा बैठा। उसकी देखा देखी जोशी भी पैसेंजर सीट पर सवार हो गया।

गाड़ी चल पड़ी।

“मिल गया सर।” वह कॉल से फारिग होता हुआ बोला।

“कहां है?”

“संगम विहार के चौराहे पर रोक लिया गया है।”

“हंगामा तो नहीं कर रहा?”

“करने की कोशिश बराबर कर रहा था, सिपाहियों को अपने जीजा के नाम और मिनिस्टर तक उसकी पहुंच की धौंस भी दे रहा था।”

“अरे कहीं सच में किसी को फोन न लगा बैठे।”

“अब नहीं लगा सकता।”

“क्यों?”

“उसका मोबाईल भी जब्त कर लिया गया है। और रोकने की वजह ये बताई गयी है कि उसकी कार स्टॉप लाईन क्रॉस कर गयी थी।”

“फाईन भरने को तैयार नहीं हो रहा?”

“सिपाही चलान काटने को तैयार नहीं हैं।”

“बढ़िया।” कहते हुए विराट ने रफ्तार बढ़ाई और मुश्किल से पांच सात मिनट में संगम विहार के चौराहे पर रेड कलर की मैग्नाईट के पीछे ले जाकर गाड़ी खड़ी कर दी।

दोनों नीचे उतरे।

नकुल की निगाह उनपर पड़ी तो उसका चेहरा एकदम से दमक उठा।

“अच्छा हुआ इंस्पेक्टर साहब कि आप लोग यहां पहुंच गये, देखिये आपके डिपार्टमेंट के लोग कैसे सरेआम कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं।”

“क्या हो गया?” विराट अंजान बनता हुआ बोला।

जवाब में वहां मौजूद सिपाहियों ने दोनों को सेल्यूट किया फिर उनमें से एक बोला, “इन्होंने स्टॉप लाईन क्रॉस की थी सर, और ये बात मानने को ही तैयार नहीं हैं कि हाल ही में ट्रैफिक रूल्स बदल दिये गये हैं। अब कानून तोड़ने पर सिर्फ चलान ही नहीं होता, बल्कि उससे पहले मजिस्ट्रेट के सामने भी पेश भी होना पड़ता है।”

“देखा आपने कैसी वाहियात बात कर रहा है ये, जैसे मैं कोई अनपढ़ गंवार हूं जिसे ये उल्लू बना ले जायेगा, जरा बताइये तो इसे कि मैं कौन हूं।”

“ये साहब एक बहुत बड़े बिजनेसमैन के बद्रर इन लॉ हैं भई, तुम्हें इनके साथ तमीज से पेश आना चाहिए था। पुलिस में नौकरी करने का मतलब ये नहीं होता कि जिसके साथ मर्जी उसी के साथ बद्तमीजी से पेश आना शुरू कर दोगे, माफी मांगो।”

“सॉरी सर।” दोनों एक साथ बोले।

“मुझे नहीं नकुल साहब को सॉरी बोलो।”

“सॉरी सर।”

“चलो अब माफ कर दो इन्हें।”

“ठीक है आप कहते हैं तो किये देता हूं, वरना तो आज मैं इन्हें जमकर मजा चखाने की सोचे बैठा था।”

“गुस्सा थूक भी दो यार, ये बताओ जा कहां रहे हो?”

“अपने होम टाउन?”

“जल्दी में हो?”

“नहीं, बस यूं ही जा रहा था, कोई खास वजह नहीं है।”

“फिर तो थोड़ी देर के लिए हमारे साथ एसीबी के हैडक्वार्टर चलने में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी तुम्हें?”

“बिल्कुल नहीं होगी, मगर बात क्या है?”

“हमने तीन लड़कों को हिरासत में लिया है, जरा चलकर देख लो कि क्या वह वह उन लोगों में से हैं, जिन्हें अपने अनुष्ठान के दौरान तुमने मधु की लाश जलाते देखा था।”

“उनकी शक्ल कहां देख पाया था इंस्पेक्टर साहब?”

“भई, कद काठी भी तो बहुत कुछ कह जाती है, फिर ओखला में ही तो है हमारा ऑफिस, वहीं से निकल जाना पलवल के लिए, टाईम ही कितना लगेगा?”

“वक्त की तो खैर कोई कमी नहीं है मेरे पास, ठीक है चलिए।” कहकर वह अपनी कार में सवार हो गया।

“बहुत अच्छे ढंग से संभाला - विराट धीरे से सिपाहियों से बोला - थैंक यू।”

“वैलकम सर।”

“अब उसका मोबाईल तो लौटा दो जिसे वह भूले जा रहा है।”

“सॉरी सर।” कहकर एक सिपाही नकुल को उसका मोबाईल दे आया।

दोनों गाड़ियां आगे पीछे चलती हुईं ओखला मोड़ तक पहुंची फिर वहां से लेफ्ट टर्न लेकर मां आनंदमयी मार्ग से होते हुए ओखला।

हैडक्वार्टर के कंपाउंड में पहुंचकर तीनों नीचे उतरे फिर जोशी एक सिपाही को कुछ समझाने के लिए जानबूझकर पीछे रह गया, जबकि विराट नकुल को अपने कमरे में लिवा ले गया।

दोनों आमने सामने बैठ गये तो विराट ने सिगरेट का पैकेट निकाल कर नकुल की तरफ बढ़ाया और उसके एक सिगरेट निकाल चुकने के बाद बारी बारी से दोनों सुलगा दिये।

तभी पीछे रह गया जोशी भी उनके पास आ बैठा।

“पार्टी में मुझे शामिल नहीं करेंगे सर।”

“ऑफ कोर्स करूंगा।” कहकर उसने पैकेट और लाईटर उसे थमा दिया।

“कहां हैं वो तीनोंं?” नकुल ने एक गहरा कश लेकर पूछा।

“हवालात में हैं और कहां होंगे।” कहकर विराट ने मेज पर रखी बेल बजा दी।

तत्काल एक सिपाही उनके सामने आ खड़ा हुआ।

“जिन तीनों मुल्जिमों को हमने कल रात गिरफ्तार किया था, उन्हें इंटेरोगेशन रूम में पहुंचाओ, और आकर हमें खबर करो।”

सुनकर सिपाही ने हड़बड़ाने की जबरदस्त एक्टिंग की।

“क्या हुआ, जाता क्यों नहीं?”

“उन्हें तो आज सुबह ही छोड़ दिया गया सर।”

“वॉट - विराट उछलता हुआ उठ खड़ा हुआ - मुझसे पूछे बिना उन्हें आजाद करने की जुर्रत कैसे हो गयी किसी की?”

“माफी जनाब, लेकिन उनके मां बाप यहां पहुंचकर बहुत हंगामा कर रहे थे, इसलिए एसीपी साहब ने सबको जाने को कह दिया।”

“ये तो हद ही हो गयी यार, हम इतनी मेहनत से किसी को गिरफ्तार कर के लायें और साहब लोग आजाद कर दें। जैसे हम सब बेवकूफ भरे पड़े हैं यहां।”

“इसमें मेरी क्या गलती है सर?”

“कुछ नहीं, जाकर अपना काम कर।”

सिपाही चला गया।

“अब?” नकुल ने पूछा।

“क्या कर सकते हैं भई, खामख्वाह तुम्हें तकलीफ दी। अब चाहो तो जा सकते हो, चाहो तो लंच का टाईम हो रहा है साथ में कर के जाना।”

“लंच मैं अपने गांव के एक दोस्त के साथ करने वाला हूं।”

“ठीक है फिर थैंक यू।”

नकुल उठ खड़ा हुआ और गेट तक पहुंचा ही था कि विराट ने बड़े ही सहज अंदाज में उसे रोक दिया, “अच्छा जब आ ही गये हो तो दो मिनट और दे दो हमें, प्लीज।”

“नो प्रॉब्लम।” नकुल वापिस पहले वाली कुर्सी पर बैठ गया।

“राहुल हांडा को कैसे जानते थे, दोस्त था तुम्हारा?”

“जानने जैसी कोई बात नहीं थी इंस्पेक्टर साहब, हां एक दो बार हॉय हैलो बराबर हुई थी, वह भी तब जब मधु से मिलने के लिए वह जीजा के बंगले पर पहुंचा था।”

“भई तुमने कुछ एक बार उसे फोन भी तो किया था - विराट ने तुक्के का सहारा लिया - वो क्या है कि हम केस से रिलेटेड तमाम लोगों के कॉल रिकार्ड््स चेक कर रहे थे तो उसी में दिखाई दे गया।”

“वह कॉल मैंने नहीं मधु ने की थी। और कुछ एक बार नहीं सिर्फ एक बार, जब उसका आईफोन फर्श पर गिरकर टूट गया था। वरना मेरा राहुल को फोन करने का मतलब ही क्या बनता है।”

दोनों ऑफिसर्स की निगाहें मिलीं, फिर विराट आगे बोला, “तुमने अपने अनुष्ठान में बताया था कि हवेली में भूत प्रेतों का वास था, जिनमें से चंद्रशेखर महाराज की प्रेतात्मा ने तो करीब करीब तुम्हारी जान ही ले ली थी, है न?”

“जी आपने खुद देखा था, बल्कि बचा भी आपके ही कारण था।”

“फिर ऐसा क्योंकर हुआ कि बाद में जब हवेली में अनुष्ठान किया गया तो वहां कोई प्रेत नहीं दिखाई दिया?”

“क्या कह सकता हूं, आप गुरूजी से पूछकर देखियेगा, उनसे बेहतर जवाब और कोई नहीं दे सकता।”

“बाबा महाकाल से?”

“जी हां।”

“पूछ चुके हैं भई, जवाब में उसने जो कुछ भी कहा, अगर उसपर यकीन कर लें तो तुम बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाओगे।”

“ऐसा क्या कह दिया गुरुदेव ने?” नकुल हड़बड़ा सा गया।

“यही कि तुम झूठ बोल रहे थे, हवेली में किसी भी प्रकार की कोई आत्मा नहीं भटक रही थी।”

“गुरुदेव ऐसा नहीं कह सकते।”

“हम क्या तुमसे झूठ बोलेंगे?”

“वो सब मैं नहीं जानता, लेकिन महाराज के पिशाच के साथ मेरा टकराव बराबर हुआ था, जिसे आप लोगों ने अपनी आंखों से देखा था।”

“भई हमने तो वही देखा जो तुमने दिखाने की कोशिश की थी।”

“नहीं आपने वह देखा जो वाकई में घटित हो रहा था।”

“सच बोल दे भाई - जोशी नाक से धुंआ उगलता हुआ बोला - ये जो हमारे साहब हैं न, बस दिखावे को ही पुच पुच करते हैं, अभी तूने इनका रौद्र रूप नहीं देखा है, देख लेगा तो पैंट गीली हो जायेगी।”

“ये किस ढंग से बात कर हो तुम मेरे साथ?”

“उसी ढंग से जिस ढंग से करनी चाहिए - जोशी जोर से टेबल पर हाथ मारकर बोला - एक सेकेंड में बता कि तुझे मधु की लाश जलाये जाने की खबर कैसे लगी थी, वरना मैं तुझे हवालात में डालने का इंतजाम करता हूं।”

“तुम लोग इतने वाहियात ढंग से पेश नहीं आ सकते मेरे साथ, ढंग से बात करो वरना मैं जाता हूं यहां से।” कहते हुए उसने कुर्सी छोड़ दी।

“बैठ जा।” जोशी फुंफकारता सा बोला।

“वॉट?”

“मैंने कहा चुपचाप वापिस बैठ जा साले वरना ऐसा पिछवाड़ा ठोकूंगा कि महीनों तक उठ बैठ नहीं पायेगा।”

“ये बद्तमीजी बहुत महंगी पड़ेगी तुम्हें।” वह घबराया सा बोला।

“अब बैठ भी जाओ नकुल साहब।” विराट बड़े प्यार से बोला।

नकुल से इंकार करते नहीं बना।

“थैंक यू - कहकर विराट ने सिगरेट का एक गहरा कश खींचा, फिर बोला - मधु को क्यों मारा तुमने? क्या सिर्फ इसलिए कि उसके बाद कोठारी की जायदाद पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी बहन का अधिकार बन जाता?”

“मैंने नहीं मारा, ये मुझपर गलत इल्जाम है।”

“ये ऐसे नहीं मानेगा सर, मुझे बस दो मिनट दीजिए फिर ये बिना पूछे अपने अंडरवियर का नाप भी बता देगा हमें।”

“पिच्यासी नंबर का पहनता हूं, मगर मधु का कत्ल मैंने नहीं किया है।”

“तूने ही किया है और ये बात आज मैं कबूल करवा कर रहूंगा।”

“शांत हो जाओ जोशी जी, नकुल साहब पढ़े लिखे और समझदार आदमी हैं। इन्हें क्या मालूम नहीं होगा कि हम पुलिसवाले मुजरिमों के साथ किस ढंग से पेश आते हैं।”

“मैं मुजरिम नहीं हूं।”

“हो सकता है ना हो - जोशी बोला - हम यकीन भी कर लेंगे, बस इतना बता दे कि जिस रात मधु की हत्या हुई उस रात तू तिमारपुर के इलाके में, वह भी हवेली के पास क्या करने गया था?”

“कौन कहता है कि मैं वहां गया था?” इस बार नकुल बुरी तरह घबरा उठा।

सुनकर विराट ने अपने मेज की दराज खोली और लोकेशन सीट निकालकर उसके सामने रखता हुआ बोला, “तुम्हारे मोबाईल की लोकेशन कहती है, अब ये मत बोल देना कि उस रात तुम्हारा मोबाईल किसी और के पास था, क्योंकि वैसी किसी बात पर हम यकीन नहीं करने वाले। फिर तुम जिसका नाम लोगे वह भी तो कुछ बकेगा।”

नकुल के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।

“अच्छी तरह सोच लो, हमें कोई जल्दी नहीं है।”

“ये भी कि - जोशी ने जोड़ा - मार खाकर सच उगलोगे या वैसे ही कबूल कर लोगे कि मधु का कत्ल तुमने किया था?”

जवाब में उसने जेब से रुमाल निकालकर माथे पर चुहचुहा आया पसीना पोंछा फिर धीरे से बोला, “मैंने उसे नहीं मारा था इंस्पेक्टर साहब।”

“ओके...”

“और ना ही मैंने उसका कत्ल होते देखा था।”

“लेकिन बॉडी को जलाये जाते बराबर देखा था, तभी बाद में अनुष्ठान की आड़ में वह बात तुम सामने लाने में कामयाब हो गये, है न?”

“हां यही बात थी।”

“उतनी रात को तुम हवेली क्योंकर पहुंच गये?”

“लंबी कहानी है।”

“सुन लेंगे, वक्त की कोई कमी नहीं है हमारे पास, और तुम्हारे पास भी नहीं है, ऐसा खुद कह चुके हो।”

“बात ये है कि मेरा जीजा मुझे अव्वल दर्जे का नकारा, कामचोर और बेकार का आदमी समझता है। बात बात पर ताने देने से भी बाज नहीं आता। मैं सबकुछ बर्दाश्त कर जाता हूं क्योंकि अपनी मां जैसी बहन से दूर नहीं रह सकता। बचपन से उसके साथ खेलता हुआ बड़ा हुआ हूं, उससे दूर जाने के नाम पर ही मेरा मन घबराने लगता है। इसके विपरीत मेरा जीजा दिन में कई कई बार मधु की इतनी तारीफें करता था कि सुन सुनकर मेरे कान पक जाते थे। वह मधु में फुंदने टांकने लगता और मुझे मखमल में टाट का पैबंद जताने लगता। यानि मैं जाहिल गवार और उसकी बेटी सर्वगुण संपन्न, बस उसी बात को लेकर मुझे मधु से चिढ़ होने लगी।”

“जिसके कारण तुमने उसकी हत्या कर दी?”

“नहीं, पहले मेरी पूरी बात सुन लीजिए फिर खुद समझ जायेंगे कि मैं कातिल नहीं हो सकता।”

“ठीक है बोलो।”

“मधु अक्सर मुझे नशे में दिखाई दे जाती थी और बार बार मेरे मन में ये ख्याल आता था कि वह महज शराब का नशा नहीं था, फिर एक रोज जब मैंने चोरी से उसके बेडरूम की तलाशी ली तो वहां मैट्रेस के नीचे से दो ऐसी सिगरेटें बरामद हुईं जिनमें स्मैक भरा हुआ था, कम से कम मुझे तो वैसा ही लगा था। उसके बाद से ही मैं मधु के बारे में कुछ ऐसा जानने की कोशिशों में जुट गया जिससे कोठारी की निगाहों में उसे नीचा दिखाया जा सके।”

“और उस कोशिश में क्या-क्या किया तुमने?”

“मधु पर नजर रखनी शुरू कर दी, फिर जल्दी ही मैंने उसकी शनिवार वाली दिनचर्या को रिपीट होते देख लिया। वैसी हर रात को उसका कोई ना कोई दोस्त उसे पिक कर लेता था, या वह खुद अपनी कार से कहीं चली जाती थी, जिसके बाद अगली सुबह या दोपहर को ही वापिस लौटती थी। वो बात मुझे खटकी ही थी कि तभी एक रोज मैंने जीजा को मधु के मोबाईल की लोकेशन चेक करते देख लिया। तब कुछ दिनों के लिए मधु का पीछा छोड़कर मैं जीजा पर निगाह रखने लगा, और एक दिन स्पाईआईज पर डाली जाती आईडी और पासवर्ड मेरी पकड़ में गये, आईडी मधु का नाम था, जबकि पासवर्ड उसके नाम और इयर ऑफ बर्थ का कॉम्बिनेशन था। आगे मेरे लिए लड़की पर निगाह रखना आसान हो गया। ऐसे में लास्ट सटरडे जब वह घर से निकल गयी तो मैंने दीदी के सो जाने का इंतजार किया, फिर अपने मोबाईल में स्पाईआईज खोलकर मधु की लोकेशन चेक करने लगा। आगे ये देखकर अचंभित हो उठा कि उस वक्त वह एक उजाड़ इलाके में थी, जो कि फरीदाबाद जिले में आता था। मुझे लगा वहां से कोई न कोई खास जानकारी मेरे हाथ जरूर लग जायेगी।”

“जिसके बाद तुम हवेली पहुंच गये?”

“नहीं, क्योंकि आखिरी लोकेशन हवेली से काफी पहले की थी, उसके बाद गायब हो गयी थी, फिर मैं थोड़ा और आगे बढ़ा तो ये देखकर हैरान रह गया कि उस इलाके में नैटवर्क ही नहीं था।”

“ऐसा कैसे हो सकता है, जबकि हम खुद वहां का फेरा लगा चुके हैं, हर बार नेटवर्क कवरेज बराबर मिली थी।”

“तो उस खास रात को कोई प्रॉब्लम हो गयी होगी, आखिर बारिश और आंधी भी तो चल रही थी। वहां पहुंचकर जब आस-पास मुझे कोई बसावट नहीं दिखाई दी तो मैं खामख्वाह गाड़ी को आगे बढ़ा ले गया, अलबत्ता घने अंधकार के कारण हवेली पर मेरी नजर तब तक नहीं पड़ी थी।”

“मेरी समझ में ये नहीं आता कि तुम वहां पहुंचकर करना क्या चाहते थे?”

“सच्चाई ये है इंस्पेक्टर कि उस बारे में मैं खुद नहीं जानता था, हां मन में कहीं ना कहीं ये बात जरूर उठ रही थी कि वह अपने दोस्तों के साथ अय्याशी करने के लिए निकली थी, जिसकी कोई फोटो वगैरह खींचने में कामयाब हो जाता तो आगे जीजा की मजाल नहीं होती कि वह मेरे सामने मधु की तारीफ कर पाता, या मुझमें खमियां गिना पाता।”

“आगे बढ़ो।”

“मैं उस सड़क पर दो किलोमीटर के दायरे में कई बार गुजरा मगर अंधेरे का हिस्सा बनी हवेली नहीं दिखाई दी, फिर गोली चलने की आवाज मेरे कानों में पड़ी जिसे सुनकर गाड़ी को सड़क किनारे पार्क किया और पैदल आगे बढ़ने लगा। बारिश उस वक्त भी हो रही थी मगर बेहद हल्की थी, इसलिए कोई समस्या नहीं आई। मैं बहुत दूर तक चलता चला गया मगर कहीं कुछ दिखाई नहीं दिया। आखिरकार हार मानकर मैं गाड़ी की तरफ लौटने लगा, तभी कहीं से जनरेटर के चलने की आवाज मेरे कानों तक पहुंचने लगी।”

“तब वक्त कितना हुआ था?”

“बारह तो तभी बज गये थे जब मैं गाड़ी से नीचे उतरा था, इसलिए पंद्रह मिनट या उससे कुछ ज्यादा हुए होंगे। बहरहाल मैंने जनरेटर की आवाज का पीछा करना शुरू कर दिया, तभी किसी के जोर से चीखने की आवाज मेरे कानों तक पहुंची। आवाज कहीं बेहद करीब से आई थी, जिससे पता लगता था कि आस-पास लोग मौजूद थे। आखिरकार इधर उधर धक्के खाता मैं हवेली तक पहुंचने में कामयाब हो गया।”

“तब वहां का फाटक बंद था?”

“नहीं खुला था, और कई लोग एक साथ बाहर निकलते दिखाई दिये। उनमें से दो ने कोई बड़ी सी चीज उठा रखी थी, जिसे मैं देख तो नहीं पाया मगर उनका पीछा बराबर किया, और बाद में जब मधु की लाश को आग लगाई गयी तो मुझे ये भी दिखाई दे गया कि वहां कुल सात लोग मौजूद थे। मैं मोबाईल का फ्लश तो नहीं जला सकता था, मगर फोटो बराबर खींची थी, ये अलग बात है कि उसमें कोई पहचान में नहीं आता।”

“कहां है वह फोटो?” विराट ने पूछा।

जवाब में नकुल ने अपने मोबाईल में वह खास तस्वीर खोलकर विराट को थमा दिया। पिक्चर में कुछ लोग आग के गुब्बार के पास खड़े दिखाई दे रहे थे, अलबत्ता ये नहीं पता लग रहा था कि वे कर क्या रहे थे।

“लाश को जलाने के लिए उनके पास डीजल कहां से आया होगा?” विराट ने जोशी से पूछा।

“क्या सर आप इसकी बातों पर यकीन कर रहे हैं?”

“करना ही चाहिए क्योंकि मैं सच बोल रहा हूं, और रही बात डीजल की तो हो सकता है जनरेटर में डालने के लिए उन्होंने वैसा कोई इंतजाम पहले से कर रखा हो, या मधु की हत्या की प्लानिंग के तहत वहां डीजल साथ लेकर गये हों।”

“चलो मान लिया कि तुम सच बोल रहे हो, मगर बाद में जब मधु गायब पाई गयी तो वो बात तुमने पुलिस को क्यों नहीं बताई, बल्कि तभी पुलिस को फोन क्यों नहीं कर दिया?”

“उस वक्त इसलिए नहीं किया क्योंकि मैं नहीं जानता था कि वहां कोई लाश जलाई गयी है, बल्कि मुझे ये भी कैसे पता हो सकता था कि वह मधु की लाश थी, और दूसरे किसी के पचड़े में मैं पड़ना नहीं चाहता था।”

“बाद में क्यों नहीं खबर की?”

“क्योंकि मुझे जीजा की निगाहों में किसी काबिल बनकर दिखाने का मौका मिल गया था। मैंने दीदी से कहा कि मैं अपनी तांत्रिक शक्तियों के बूते पर पता लगा सकता हूं कि मधु कहां है, वह बस जीजा को तैयार कर ले।”

“मगर वह नहीं हुआ, है न?”

“आखिरकार तो हो ही गया मगर कई दिनों बाद, तब जबकि हर तरफ से हताश और निराश हो चुका था। तब मैंने वह अनुष्ठान किया और लाश का पता बता दिया। बस मेरी गलती इतनी ही है इंस्पेक्टर की उस बात की खबर पुलिस को नहीं दी, इसके अलावा मैंने और कुछ गलत नहीं किया है।”

“तुम्हें जेल भेजने के लिए तो इतना भी पर्याप्त है - जोशी बोला - बल्कि चाहें तो तुम्हारे खिलाफ हत्या का मुकदमा बनाकर केस सॉल्व भी कर सकते हैं। साथ में तुम्हारी बहन भी जेल जायेगी, क्योंकि मुझे तो मधु का कत्ल तुम दोनों की मिली भगत का नतीजा ही जान पड़ता है।”

“देखो अगर तुम लोग इसी जिद पर अड़ जाओगे कि मेरे साथ-साथ मेरी बहन को अपराधी साबित कर के जेल भेजना है, तो मैं खुद मधु का कत्ल करना कबूल कर लूंगा। तुम जो कहोगे अदालत में उसकी हामी भी भर दूंगा, क्योंकि दीदी का बुरा होते नहीं देख सकता मैं। मगर क्या तुम्हें ऐसा करना ठीक लगता है? मेरा मतलब है एक बेगुनाह को कत्ल के इल्जाम में फंसाना, अगर हां तो तुम्हारी मर्जी जो ठीक समझो करो।”

“पहले हमें यकीन तो आ जाये नकुल साहब कि तुम सच में बेगुनाह हो?”

“मैं हूं, जरा सोचकर देखिये कि अगर मेरा इरादा वहां पहुंचकर मधु का कत्ल कर देने का होता तो क्या मैं अपना मोबाईल ऑन रखकर धड़ल्ले के साथ हवेली पहुंच जाता?”

“बेध्यानी में ऐसी गलतियां हो जाया करती हैं।”

“इतनी बड़ी गलती जिसके बारे में आजकल बच्चों तक को पता है।”

“उस बारे में हम बाद में बात करेंगे, अभी ये बताओ कि क्या सच में किसी तंत्र शक्ति के जरिये दूर घटित हुई घटना को देखा जा सकता है?”

“ज्यों का त्यों नहीं, लेकिन क्या हुआ था, इसका आभास कई बार मिल जाता है और कई बार हम फेल भी हो जाते हैं। आसन पर बैठकर जब हम किसी घटना के बारे में ध्यान लगाते हैं तो कई दृश्य आंखों के समक्ष आने जाने लगते हैं, उनमें से कोई समझ में आ जाता है तो हम उसे ही सत्य मान लेते हैं। आपको शायद यकीन न हुआ हो लेकिन उस रात जब गुरूजी अनुष्ठान पर बैठे थे तो उस हवेली में मुझे सचमुच हर तरफ लाशें और बस लाशें ही दिखाई दे रही थीं।”

“और भूत प्रेत क्या सच में होते हैं?”

“आप लोगों ने अक्षय कुमार की भूल भुलैया देखी है?”

“हां क्यों?”

“समझ लीजिए कि वह फिल्म ही आपके सवाल का जवाब है।”

“ठीक है समझ लिया, अब एक आखिरी सवाल?”

“पूछिये।”

“कोठारी साहब के बंगले में अनुष्ठान के दौरान हमने कुछ महिलाओं की आवाजें सुनी थीं, वह करतब तुमने कैसे किया था?”

“कोई करतब नहीं था, वह तमाम आवाजें मेरी खुद की थीं, जिसकी खबर आप लोगों को इसलिए नहीं लगी क्योंकि हमारे बीच आग की ऊंची लपटें थीं, फिर मैं सिर झुकाकर भी तो बोल रहा था।” कहकर उसने फिर से अपने मुंह से वैसी ही आवाजें निकालकर दिखा दिया।

“यानि उस तरह से किसी आत्मा को नहीं बुलाया जा सकता?”

“बुलाया जा सकता है, मगर किसी दूसरे के शरीर पर।”

विराट ने घूरकर उसे देखा।

“मैं सच कह रहा हूं इंस्पेक्टर साहब, यकीन न हो तो किसी दिन आजमाकर देख लीजिएगा।”

“अब कोई ख्वाहिश नहीं है, इसलिए तुम्हारी तंत्र विद्या तुम्हीं को मुबारक हो। ये बताओ कि आग की लपटों में हमने जो तीन आकृतियां देखी थीं वह क्या था?”

“आपने न्यू इयर पर अक्सर ऐसे पटाखे फूटते देखे होंगे जो आसमान में पहुंचकर ‘हैप्पी न्यू इयर’ लिख देते हैं। आग की लपटों में दिखाई दीं आकृतियों को आप उनका एडवांस वर्जन समझ सकते हैं जो बहुत पहले मैंने स्पेशल ऑर्डर पर बनवाया था।”

“पटाखा तो वहां कोई नहीं फूटा था।”

“क्योंकि वह फूटने वाला था ही नहीं, उसे तो बस आग में डालिये और पल भर के लिए मानव आकृतियों का नजारा कीजिए। बस इतना ही काम होता है उनका।”

“और वहां जलता बल्ब कैसे बंद हो गया?”

“उसमें मेरा कोई हाथ नहीं था, वह खुद ब खुद फ्यूज हो गया था।”

“बड़े अच्छे मौके पर हुआ था, हम तो उसे भी किसी प्रेतात्मा का ही किया धरा मानने लगे थे।”

नकुल चुप रह गया।

“अगर तांत्रिक लोग ढोंगी नहीं होते तो ऐसी चीजों की जरूरत ही क्यों पड़ती है?”

“क्योंकि इंसान हमेशा चमत्कार देखना चाहता है। उस रोज अगर आप दोनों ने वह सब नहीं देखा होता, या प्रेतात्माओं की आवाज नहीं सुनी होती, तो क्या उतना प्रभाव पड़ा होता जितना असर आप पर होता दिखाई दिया था?”

“ठीक है भई, समझ लो एक बार फिर तुम जीत गये। इसलिए जा सकते हो, लेकिन बाद में अगर मुझे ये पता लगा कि तुमने झूठ बोला था, या कोई बात हमसे छिपाई थी, तो तुम्हारी और तुम्हारी बहन दोनों की खैर नहीं।”

“नहीं मैंने कुछ नहीं छिपाया।” कहकर वह उठा और भारी मन से बाहर निकल गया।

“ये तो हद ही हो गयी सर, ज्योंहि हम केस को सॉल्व हुआ समझने लगते हैं, एक नई गुत्थी सामने आ खड़ी होती है। जैसे कि नकुल को मैं हत्यारा मान चुका था, मगर वह नहीं है।”

“ऐसे केसेज में ही तो मजा है जोशी साहब, जहां दिमाग की चूलें हिल जायें।”

“किसी बड़े शातिर से पाला पड़ गया दिखता है।”

“या किसी ऐसे शख्स से जिसकी तरफ ध्यान देने की हमारे पास प्रत्यक्षतः कोई वजह नहीं है।”

“अगर नकुल के कहे पर यकीन कर लें सर तो कातिल सातों पापी ही हुए? क्या अभी भी आपको लगता है कि उन लोगों ने मधु को नहीं मारा था?”

“यकीन डगमगा जरूर रहा है जोशी साहब लेकिन लगता यही है। जरा सोचकर देखो कि उन्हें अपने दोस्त का कत्ल करना ही होता तो उसकी लाश की दुर्गति क्यों करते, सीधा सीधा मार ही न दिया होता उसे?”

“दुर्गति न करते सर तो अपना किया धरा चंद्रशेखर महाराज के प्रेत के सिर पर कैसे डाल पाते? पिशाच की भयावहता को साबित करने के लिए कुछ तो भयानक दिखाना ही था, सो दिखा दिया।”

विराट ने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया फिर बोला, “चलो जरा मिश्रा जी से मिलकर आते हैं।”

तत्पश्चात दोनों उठकर बिल्डिंग में ही स्थित आईटी सेल में पहुंचे।

“जरा जयदीप की लोकेशन तो चेक कीजिए।” विराट बोला।

मिश्रा ने किया तो पता लगा वह अपने लाजपत नगर स्थित घर पर ही था।

“एक काम करो जोशी साहब।”

“हुक्म सर।”

“तीन-चार सिपाहियों को लेकर फौरन लाजपत नगर पहुंचो।”

“उठाकर लाना है उसे?”

“लाना बेशक है मगर घर से नहीं।”

“फिर?”

“वहां पहुंचकर निगरानी में जुट जाना और जैसे ही वह घर से बाहर निकले कोई सुनसान जगह देखकर काबू में कर लेना।”

“निकलेगा?”

“पक्का, तुम पहुंचो तो सही।”

जोशी फौरन हॉल से बाहर निकल गया।

“मिश्रा जी।”

“सुन रहा हूं।”

“जैसे ही जोशी साहब लाजपत नगर पहुंच चुका होने की खबर करें, आपने नैना के नंबर से जयदीप को एक मैसेज छोड़ना है कि सेंट्रल मार्केट के करीब उसका एक्सीडेंट हो गया है, और उसके बाद तमाम दोस्तों के नंबर की आउट गोइंग, इन कमिंग सीज कर देनी है, ना कोई कॉल ना ही मैसेज, समझ गये?”

“हां, नो प्रॉब्लम।”

“फिर जैसे ही बकरा जोशी के कब्जे में पहुंचे, मैसेज डिलीट कर देना है और जयदीप को छोड़कर बाकी सबके नंबर एक्टिव कर देने हैं।”

“समझ लो हो गया।”

“गुड।” कहकर वह वापिस अपने कमरे में लौट गया।

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