अगले दिन सुबह नौ बजे तैयार होकर सुनील अपने फ्लैट से निकलने ही वाला था कि फोन की घन्टी घनघना उठी ।
उसने रिसीवर उठा लिया ।
“हल्लो ।” - वह बोला ।
“मिस्टर सुनील देअर ?” - किसी स्त्री स्वर में प्रश्न किया ।
“स्पीकिंग ।”
“मिस्टर सुनील, मैं कावेरी बोल रही हूं ।” - दूसरी ओर से कावेरी का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया । वह बहुत उत्तेजित स्वर से बोल रही थी इसलिये सुनील उसकी आवाज नहीं पहचान पाया था ।
“गुड मार्निंग, मिसेज जायसवाल ।” - सुनील शिष्ट स्वर में बोला ।
कावेरी ने उसकी बात की ओर ध्यान न दिया । वह पहले से भी अधिक उत्तेजित स्वर में बोली - “मिस्टर सुनील, बिन्दु गायब हो गई है ।”
“जी !” - सुनील चौंककर बोला ।
“जी हां । वह कल दोपहर से घर में नहीं है ।”
“तो फिर क्या हो गया ? कहीं मित्रों में चली गयी होगी ।”
“मैंने सारे राजनगर में हर ऐसे स्थान पर पूछताछ कर ली है जहा कि बिन्दु के होने की सम्भावना हो सकती है । बिन्दु कहीं नहीं है, मिस्टर सुनील ।”
“क्या वह पहले भी कभी आपको - या जब रायबहादुर साहब जीवित थे, उनको - बताये बिना यूं घर से चली जाती थी ?”
“नहीं । हरगिज नहीं । घर से तो वह किसी की इजाजत लिये बिना या किसी को बताये बिना अक्सर चली जाया करती थी लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि वह रात को वापिस न लौटी हो । और फिर वह अपने कपड़े वगैरह भी तो ले गई है ।”
“कपड़े !”
“जी हां । आज सुबह मुझे उसकी नौकरानी ने बताया है कि कल जब बिन्दु कोठी से गई थी तो अपने साथ एक सूटकेस भी लेकर गई थी । यह बात अगर मुझे नौकरानी ने कल बता दी होती तो मैं कल ही आपको फोन कर देती ।”
“नौकरानी ने आपको इस बात की सूचना पहले क्यों नहीं दी ?”
“क्योंकि उसे इसमें अश्वाभाविक कुछ भी नहीं लगा था । वह तो समझी थी कि बिन्दु जहां जा रही थी, मुझे बताकर जा रही थी । वह तो आज सुबह जिक्र आ गया तो उसने बताया कि वह कल अपने साथ एक सूटकेस भी लेकर गई थी । मिस्टर सुनील, मुझे एक शंका हो रही है ।”
“क्या ?”
“कहीं वह मुकुल के साथ तो नहीं चली गई !”
“आपने मुकुल से इस बारें में पूछा है ?”
“कैसे पूछती ? रात भर तो मुझे आशा ही लगी रही थी कि वह लौटकर आ जायेगी । रात के दो बजे के बाद तो वह मैड हाउस से घर कई बार आई है । उस समय मुझे यह बात नहीं मालूम थी कि इस बार हमेशा की तरह मनोरंजन के लिये नहीं गई है बल्कि अपना सामान भी साथ लेकर गई है । फिर अब जब नौकरानी ने सूटकेस के बारे में बताया तो मेरा दिल दहल गया । इस समय मैं मुकुल से इस विषय में कोई पूछताछ नहीं कर सकती । मैड हाउस तो शाम को ही खुलता है और मुझे यह मालूम नहीं है कि मुकुल रहता कहां है ?”
“मिसेज जायसवाल” - सुनील धीरे से बोला - “कल मुकुल मैड हाउस में नहीं था ।”
बात का महत्व तत्काल कावेरी की समझ में न आया ।
“आप... आपका मतलब है कि... कि मुकुल भी गायब है ?” - उसे कावेरी का आन्दोलित स्वर सुनाई दिया ।
“ऐसा ही मालूम होता है ।”
“फिर तो बिन्दु वहीं है जहां मुकुल है । वह नीच हिप्पी जरूर बिन्दु को भगाकर ले गया है वह आदमी बिन्दु पर इस बुरी तरह छाया हुआ है कि वह जो कहेगा, उसके औचित्य पर विचार किये बिना बिन्दु वही करेगी ।”
सुनील चुप रहा ।
“मिस्टर सुनील, आपकी राय में मुझे क्या करना चाहिये ?”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “आप फौरन पुलिस में रिपोर्ट कर दीजिये ।”
“इस से तो बड़ी बदनामी होगी ?”
“अगर बिन्दु यूं ही घर से गायब रही तो बदनामी तो वैसे भी होगी । यह खबर लोगों से छुपी नहीं रहेगी कि बिन्दु घर से गायब थी । किसी न किसी सन्दर्भ में ऐसी बातों का जिक्र निकल ही जाता है । नौकर-चाकर जिक्र कर देते हैं । पड़ोसी अटकलें लगा देते हैं । फिर ज्यादा बदनामी होती है, मिसेज जायसवाल । अच्छा यही है कि आप पुलिस को रिपोर्ट कर दीजिये । और रिपोर्ट करने के लिए अपने इलाके के पुलिस स्टेशन पर जाने की कोशिश मत कीजिये ।”
“तो फिर ?”
“आप पुलिस हैडक्वाटर जाइये और इस विषय में किसी उच्च अधिकारी से मिलिये । इससे एक्शन भी फौरन होगा और बात की कोई गलत प्रकार की पब्लिसिटी भी नहीं हो पायेगी । मैं आपको पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह का नाम सुझाता हूं । वह बहुत नेक और ईमानदार आदमी है । वह इस बात को स्टन्ट नहीं बनने देगा ।”
“पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह !” - कावेरी ने अनिश्चियपूर्ण स्वर में दोहराया ।
“जी हां । और मिसेज जायसवाल, वैसे भी आप अपनी स्थिति को कोई विशेष महत्व नहीं दे रही हैं ।”
“क्या मतलब ?”
“आप रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की पत्नी हैं । रायबहादुर साहब के प्रभाव से पुलिस भी बरी नहीं थी । आपकी किसी भी प्रकार की सहायता करने में वे गौरव का अनुभव करेंगे ।”
“मैं पुलिस को क्या बताऊं ?”
“आप पुलिस को बिन्दु और मुकुल के सम्बन्धों के बारे में तो बताइये ही, साथ ही इस बात की सम्भावना पर पूरा जोर दीजियेगा कि शायद मुकुल बिन्दु को बरगलाकर भगा ले गया बिन्दु के गायब होने में मुकुल का हाथ है तो वह पुलिस के जाल से बचकर निकल नहीं पायेगा ।”
“आल राइट ।”
“मैं खुद भी मुकुल को तलाश करूंगा और शीघ्र ही आपसे सम्पर्क स्थापित करूंगा ।”
“आप मुकुल को कैसे तलाश करेंगे ?”
“मैं मैड हाउस के वेटरों वगैरह से पूछताछ करूंगा । शायद किसी को मालूम हो कि मुकुल कहां रहता है । मुकुल के पिछले जीवन की तफ्तीश करने के लिये यूथ क्लब का एक आदमी बम्बई भी गया हुआ है । किसी भी क्षण उसकी रिपोर्ट आ सकती है शायद उस रिपोर्ट से ही मुकुल को तलाश करने में कोई सहायता मिले । वैसे मिसेज जायसवाल, सम्भावना यह भी है कि बिन्दु के घर ने लौटने में और पिछली रात मुकुल के मैड हाउस में न आने में कोई सम्बन्ध ही न हो ।”
“ऐसा नहीं हो सकता । मेरा मन कहता है कि वह हिप्पी ही बिन्दु को बरगला कर ले गया है ।”
“शायद ऐसा ही हो । बहरहाल आप सुनील सुपरिन्टेन्डेन्ट राम सिंह से फौरन सम्पर्क स्थापित कीजिये । अगर आपका ही सन्देह सच है तो देर करने से गड़बड़ हो जाने की सम्भावना है ।”
“ओके । मैं अभी पुलिस हैडक्वार्टर जाती हूं ।”
दूसरी ओर से सम्बन्धविच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर को क्रेडल पर रख दिया ।
तत्काल टेलीफोन की घन्टी फिर बज उठी ।
सुनील ने दुबारा रिसीवर उठा लिया और बोला - “हल्लो ।”
“सुनील ?” - दूसरी ओर से रमाकांत का स्वर सुनाई दिया ।
“हां ।”
“रमाकांत बोल रहा हूं । जौहरी ने बम्बई से बाई एयर रिपोर्ट भेजी है । मैंने एक आदमी को आई.ए.सी. से कार्गो आफिस में भेजा है । वह वहां से रिपोर्ट लेकर सीधा तुम्हारे प्लैट पर आयेगा । वहीं रहना ।”
“अच्छा । कब तक आयेगा वह ?”
“बस, आता ही होगा ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग दस मिनट बाद फ्लैट की कालबैल बजी ।
सुनील ने उठकर द्वार खोला ।
द्वार पर यूथ क्लब का एक सुनील का जाना पहचाना वेटर खड़ा था । उसने सुनील को सलाम किया और एक मोटा-सा 4x9 इंच का लिफाफा सुनील की ओर बढा दिया ।
सुनील ने लिफाफा ले लिया ।
वेटर विदा हो गया ।
वापिस फ्लैट में आकर सुनील ने लिफाफा खोला । सुनील ने सारे कागजात बाहर निकाल लिये । रिपोर्ट के पहले पृष्ट पर जौहरी के हैण्डराइटिंग में लिखा था
गोपनीय रिपोर्ट
राम (चन्द्र) ललवानी
जन्म बम्बई । सन् 1929
सोलह मई सन 1941 को चोरी के इलजाम में गिरफ्तार हुआ । एक वर्ष की सजा हुई । बम्बई के रिफार्मेटरी स्कूल में रहा । फिर गिरफ्तार हुआ । कुल तीन साल रिफार्मेटरी स्कूल में रहा ।
दस सितम्बर, 1947 को सशस्त्र डकैती को इलजाम में गिरफ्तार हुआ । पुलिस उसके विरुद्ध पर्याप्त प्रमाण इकट्ठे नहीं कर सकी थी इसलिये केस डिसमिस हो गया ।
आठ जनवरी, 1950 को कत्ल के इलजाम में गिरफ्तरा हुआ । उसके खिलाफ जो चश्मदीद गवाह था, वह बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से कहीं गायब हो गया । उसके बिना पुलिस का केस कमजोर पड़ गया । राम ललवानी बरी हो गया ।
पुलिस का विचार है कि राम ललवानी के ही आदमियों द्वारा चश्मदीद गवाह की हत्या कर दी गई थी और फिर लाश गायब कर दी गई थी ।
छः मार्च, 1952 को भिण्डी बाजार के मशहूर दादा गणपति की हत्या के सन्देह में गिरफ्तार किया गया । चार दिन बाद छोड़ा दिया गया । मुकददमा नहीं चल सका ।
सोलह दिसम्बर, 1953 को घड़ियों की स्मगलिंग के इलजाम में गिरफ्तरा हुआ । डेढ साल की कैद बामशक्कत ।
पच्चीस जून, 1956 में फिर पकड़ा गया । दो साल के लिये तड़ीपार का हुक्म ।
सन उन्नीस सौ छप्पन के बाद भी जब तक वह बम्बई या बम्बई से बाहर रहा, उसको कई बार पुलिस ने तफ्तीश के लिये गिरफ्तार किया । पुलिस को कई गम्भीर अपराधों में उसका हाथ होने का सन्देह रहा, लेकिन पर्याप्त प्रमाण प्राप्त न होने की वजह से कभी भी उस पर केस नहीं चलाया जा सका ।
सन उन्नीस सौ तरेसठ में राम ललवानी ने बम्बई में गुलनार नाम का एक सूरत शक्ल में बडा प्रतिष्ठित लगने वाला रेस्टोरेन्ट खोल लिया था । वहां गीगी ओब्रायन नाम की एक स्त्री राम ललवानी के साथ ही रहती थी । राम ललवानी की वह विधिवत ब्याही हुई पत्नी थी या रखैल थी, इस विषय में किसी को पक्का कुछ नहीं मालूम था । गीगी ओब्रायन और राम ललवानी दोनों उन दिनों कालबादेवी रोड पर स्थित एक इमारत के एक फ्लैट में रहते थे ।
सन चौसठ के आरम्भ में राम ललवानी ने बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से सुनीता अग्रवाल नाम की एक लड़की से विवाह कर लिया था । उस समय सुनीता अग्रवाल की आयु केवल बाइस साल थी लेकिल वह गलत प्रकार के लोगों की संगत में पड़ कर तीव्र मादक पदार्थों की इतनी आदि हो चुकी थी कि उस आयु में भी मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार थी । सुनीता अग्रवाल राजनगर के किसी करोड़पति सेठ की इकलौती लड़की है ।
ब्रैकेट में जौहरी ने लिखा था:
सेठ का नाम नहीं मालूम हो सका । राजनगर में करोड़पति सेठ कोई सौ पचास नहीं हैं । राजनगर में बड़ी आसानी से पता लगाया जा सकता है कि सुनीता अग्रवाल किस करोड़पति सेठ की इकलौती बेटी है ।
विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि राम ललवानी का रेस्टोरेन्ट वास्तव में मादक पदार्थों के आदी लोगों का अड्डा था और राम ललवानी चरस से लेकर मारिजुआना और एल. एस. डी. वगैरह हर चीज बेचता था । सुनीता अग्रवाल भी उसी वजह से उसके रेस्टोरेन्ट में आया करती थी ।
सुनीता अग्रवाल से शादी के बाद राम ललवानी ने कालबा देवी रोड वाली इमारत में रहना छोड़ दिया था और कहीं और रहने लगा था लेकिन वे दोनों ही अक्सर गीगी ओब्रायन के फ्लैट पर आया करते थे ।
अप्रैल सन 1965 के बाद से किसी ने सुनीता अग्रवाल को राम ललवानी के साथ नहीं देखा । उसके तीन महीने बाद राम ललवानी भी बम्बई से गायब हो गया । बम्बई में किसी को मालूम नहीं कि वह अब कहां है ।
सुनील रिपोर्ट पढ रहा था और मन ही मन जौहरी और रमाकांत पर ताव खा रहा था । उसने रिपोर्ट मांगी थी मुकुल के बारे में लेकिन जौहरी ने उसे राम ललवानी का जीवन वृतान्त भेज दिया था ।
सुनील ने बाकी रिपोर्ट देखनी आरम्भ की ।
रिपोर्ट के साथ बाइस मार्च सन 1965 के बम्बई से निकलने वाले एक अखबार की कटिंग नत्थी था । प्रकाशित समाचार था -
मनोहर ललवानी पुलिस मुठभेड़ में हलाक
आज रात को एक बजे मनोहर ललवानी नाम का लगभग पच्चीस का नवयुवक बांद्रा पुल पर हुई पुलिस के साथ सशस्त्र मुठभेड़ में पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया । मनोहर ललवानी पुलिस द्वारा पिछले दिनों बम्बई में हुई उस नृशंस हत्याओं के लिये जिम्मेदार ठहराया गया था जिनकी वजह से सारी बम्बई में आतंक फैला हुआ था । पिछले छः महीनों में नगर के विभिन्न भागों में पुलिस को तीन जवान लड़कियों के नग्न शरीर चाकू से इस बुरी तरह कटे हुए मिले थे कि पत्थर का कलेजा रखने वाले इन्सान की आत्मा भी त्राहि-त्राहि कर उठे । पाठक भूले नहीं होंगे कि इस प्रकार की हत्याओं का आखिरी शिकार गीगी ओब्रायन नाम की एक डांसर थी जिसका शरीर पुलिस ने पिछले सप्ताह समुद्र में से निकाला था । पहली दो हत्याओं की तरह उसका पूरा शरीर बुरी तरह से कटा हुआ था । सारे शरीर पर से गोश्त के बड़े-बड़े लोथड़े उखड़े पड़े थे । गीगी ओब्रायन की दोनों छातियां कटी हुई थीं और उनका गोश्त पसलियों के पास लटक रहा था उसकी जांघों पिंडलियों और नितम्बों के आसपास से गोश्त के छोटे-छोटे लोथेड़े उखाड़े गये थे और बाकी बचे खुचे शरीर पर चाकू को इतने घाव थे कि उनकी गिनती नहीं हो सकती थी । ऐसी ही हालत में इससे पहले भी पुलिस को दो अन्य युवतियों की लाशें मिल चुकी थीं ।
मनोहर ललवानी अपने भाई राम ललवानी के रेस्टोरेन्ट गुलनार में गिटार बजाता था और विलायती गाने गाता था । पुलिस को विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ था गीगी ओब्रायन वगैरह की नृशंस हत्याओं के लिये मनोहर ललवानी जिम्मेदार था । आज रात को जब वह क्लब में से बाहर निकल रहा था तो पुलिस ने उसे घेर लिया लेकिन मनोहर ललवानी के पास रिवाल्वर थी, पुलिस इस विषय में असावधान थी । पुलिस इस बात की अपेक्षा नहीं कर रही थी कि मनोहर ललवानी पुलिस पर गोली चलाने की हिम्मत करेगा । परिणामस्वरूम मनोहर ललवानी गुलनार रेस्टोरेन्ट के सामने से पुलिस का घेरा तोड़कर निकल भागा लेकिन पुलिस से अपना पीछा छुड़ाने में सफल न हो सका । पुलिस ने उसका पीछा किया और बान्द्रा के रेल के पुल पर उसे दुबारा घेर लिया । दोनों ओर से गोलियों का आदान-प्रदान हुआ जिसमें एक सब-इन्सपेक्टर और दो सिपाही बुरी तरह घायल हो गये । मनोहर ललवानी पुल पर दोनों ओर से पुलिस द्वारा घिर गया था । जब उसकी रिवाल्वर की गोलियां खत्म हो गईं तो उसने रिवाल्वर फेंक दी और पुल के ऊपर चढकर नीचे समुद्र में छलांग लगाने की कोशिश की लेकिन वह अपने इस प्रयत्न में सफल नहीं हो सका । वह पुलिस इन्सपेक्टर कर्माकर की गोली का शिकार हो गया और फिर उसकी गोलियों से छलनी लाश पानी में जा गिरी ।
समुद्र में मनोहर ललवानी की लाश की तलाश जारी है ।
साथ में अखबार की दो कटिंग और थीं जिनमें गीगी ओब्रायन की हत्या से पहले मरी दो लड़कियों की हत्याओं का पूरा विवरण था । फ्लोरी की हत्या भी बिल्कुल उसी ढंग से हुई थी । चारों हत्यायें एक ही शख्स का कारनामा कैसे हो सकती थी जब कि कटिंग में छपा वह समाचार भी झूठ नहीं मालूम होता था कि पहली तीन हत्याओं का जिम्मेदार मनोहर ललवानी पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारा गया था ।
दो ही बातें सम्भव मालूम होती थीं ।
या तो पुलिस ने किसी गलत आदमी को अपनी गोली का शिकार बना दिया था और या फिर मनोहर ललवानी ब्रान्दा के पुल से पानी में गिर कर मरा नहीं था और किसी प्रकार बच निकलने से सफल हो गया था ।
दूसरी सम्भावना उसे तत्काल ही निराधार मालूम होने लगी ।
जौहरी की रिपोर्ट में एक छोटी-सी अखबार की कटिंग और थी जिस पर लिखा था ।
आज रात को पुलिस ने समुद्र में से मनोहर ललवानी की लाश बरामद कर ली है । स्मरण रहे कि मनोहर ललवानी वही भयंकर हत्यारा है जो पिछली रात को बाद्रा के रेल पुल पर हुई पुलिस मुठभेड़ में इन्सपेक्टर कर्माकर की गोलियों का शिकार हो गया था । मनोहर ललवानी के बड़े भाई राम ललवानी को और मनोहर ललवानी के एक मित्र सोहन साल को लाश की शिनाख्त के लिये पुलिस ने बुलाया था । राम ललवानी ने अपने भाई की लाश को देखकर जोर-जोर से रोते हुए कहा था कि वह उसका छोटा भाई मनोहर ललवानी ही था । सोहन लाल ने राम ललवानी के बयान की पुष्टि की थी ।
जौहरी की रिपोर्ट के अन्त में अखबार में छपी कुछ तस्वीरों की कटिंग थी जिनके पीछे नाम भी लिखे हुये थे ।
पहली तस्वीर राम ललवानी की थी ।
सुनील ‘ब्लास्ट’ में छपे मैड हाउस के विज्ञापन में राम ललवानी की तस्वीर देख चुका था । वह निश्चय ही वही आदमी था जो आजकल राजनगर में ‘मैड हाउस’ नाम का डिस्कोथेक और फोर स्टार नाम की नाइट क्लब चला रहा था ।
दूसरी तस्वीर सोहन लाल की थी जो सुनील की रिवाल्वर से कल मारा गया ।
तीसरी तस्वीर मनोहर ललवानी की थी ।
वह एक मासूम से लगने वाले नवयुवक का दाढी-मूंछ रहित चेहरा था ।
उस तस्वीर के साथ एक कागज लगा हुआ था जिस पर जौहरी की हैंड राइटिंग में लिखा था ।
यद्यपि तस्वीर पुरानी है फिर भी सम्भव है कि मुकुल और मनोहर ललवानी एक हो ।
मुकुल ही मनोहर ललवानी था तो बाइस मार्च सन् पैंसठ को बम्बई में बान्दा के पुल पर हुई पुलिस मुठभेड़ में कौन मरा था ?
जौहरी की रिपोर्ट की आखिरी और छोटी-सी कटिंग में लिखा था:
पुलिस हैडक्वार्टर में मौजूद मनोहर ललवानी की फाइल के अनुसार मनोहर ललवानी एक विकृत मस्तिष्क का स्वामी था । वह बुरी तरह से हीन भावनाओं का शिकार था और अपनी इस कमजोरी के विकल्प के रूप में ही अपराधी प्रवृत्तियों का सहारा लेता था । पुलिस के मनोवैज्ञानिक का कथन है कि युवा लड़कियों की इस प्रकार की नृशंस हत्यायें वही आदमी कर सकता था जो एक मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की तरह किसी युवती के साथ रति-क्रिया में भाग लेने में असमर्थ हो और अपनी असमर्थता प्रकट हो जाने के बाद जिसे युवती की प्रताड़ना सुननी पड़ती हो । ऐसा व्यक्ति खास तौर पर अपने मस्तिष्क पर अपना अधिकार खो बैठता है और अगर वह प्रबल अपराधी प्रवृत्तियों वाला व्यक्ति है तो वह न केवल किसी की हत्या कर देने में एक क्षण के लिये भी नहीं हिचकता । बल्कि अपनी हार का अहसास मिटाने के लिये वह युवती के शरीर की धज्जियां उड़ानी आरम्भ कर देता है ।
रिपोर्ट में अन्त में जौहरी की हैंड राइटिंग में एक छोटा-सा नोट था:
राम ललवानी के बारे में इस रिपोर्ट में इतना कुछ इसलिये लिखा गया है क्योंकि वह मनोहर ललवानी का सगा भाई है और मनोहर ललवानी ही मुकुल मालूम होता है । दूसरी वजह यह है कि राम ललवानी के बारे में जानकारी पुलिस रिकार्ड द्वारा सहज ही हासिल हो गई थी ।
सुनील ने रिपोर्ट को दुबारा लिफाफे में डालकर मेज पर रख दिया । उस ने एक सिगरेट सुलगा लिया और सोचने लगा ।
उसे इस बात में कोई सन्देह नहीं रहा था कि मनोहर ललवानी ही मुकुल था । वह केवल अपनी वास्तविक सूरत छुपाने के लिये ही हिप्पी बना हुआ था । इस विषय में कावेरी का सन्देह एकदम सच निकला था ।
लेकिन अगर मुकुल ही मनोहर ललवानी था तो यह बात भी सच थी कि वह बम्बई में पुलिस मुठभेड़ में मरा नहीं था । राम ललवानी और सोहन लाल ने उसकी वास्तविकता छुपाये रखने के लिये झूठ बोला था । उन्होंने किसी दूसरे आदमी की शिनाख्त मनोहर ललवानी के रूप में की थी ।
उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । पौने दस बजने को थे । उसने सिगरेट को ऐशट्रे में डाल दिया और हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ । ठीक दस बजे उसने प्रभुदयाल के पास पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचना था । उस नाजुक स्थिति में प्रभूदयाल को नाराज करना कोई अक्लमन्दी का काम नहीं था ।
वह तेजी से बैडरूम में प्रविष्ट हो गया ।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और यूथ क्लब का नम्बर डायल किया ।
रमाकांत से सम्पर्क स्थापित होते ही वह बोला - “रमाकांत, मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“अब क्यों बोल रहे हो ? सब कुछ तो हो गया है ।”
“रिपोर्ट के लिये धन्यवाद । अब दो छोटे-छोटे काम और करवाओ ।”
“प्यारयो, जिस प्रकार मैने जौहरी की रिपोर्ट भेजी है और तुमने धन्यवाद कर दिया है, उसी प्रकार जब मैं जौहरी के खर्चे का बिल तुम्हें भेजूंगा और तुम नगदऊ मेरे हवाले कर दोगे तो मैं शराफत और बड़े ही भाव-भीने स्वर से तुम्हें धन्यवाद कहूंगा ।”
“मैं इस वक्त नगदऊ की नहीं, काम की बात कर रहा हूं ।”
“बको ।”
“जौहरी की रिपोर्ट के अनुसार राम ललवानी ने सन चौंसठ के आरम्भ में बम्बई में सुनीता अग्रवाल नाम की एक लगभग बाइस साल की लड़की से शादी की थी । वह राजनगर के किसी करोड़पति सेठ की इकलौती बेटी है । तुमने यह मालूम करना है कि ऐसी लड़की राजनगर के कौन से सेठ की है या थी । राजनगर में करोड़पति सेठ पांच छः से अधिक नहीं हैं, इसलिये यह की कठिन काम नहीं है । वैसे भी अगर तुम शुरूआत सेठ मंगत राम को चैक करवाने से करोगे तो शायद तुम्हें और किसी को चैक करवाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । सुनीता अग्रवाल के सेठ मंगत राम की लड़की होने की ज्यादा सम्भावनायें दिखाई देती हैं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि लिबर्टी बिल्डिंग की पांचवीं मन्जिल और बेसमैंट सेठ मंगत राम ने राम ललवानी के लिये लाखों रुपयों का हरजाना भरकर खाली करवाई थी । सेठ किसी अजनबी आदमी के लिये भला इतना बखेड़ा क्यों करेगा ?”
“मैं चैक करवाऊंगा । दूसरा काम क्या है ?”
“दूसरा काम बहुत मामूली है । तुम यह जानने का कोशिश करो कि सुनीता क्या अभी भी राम ललवानी के साथ रहती है या मर गई ?”
“उसके मर गई होने की भी सम्भावना है ?”
“बिल्कुल है । जौहरी की रिपोर्ट के अनुसार अपनी शादी से पहले भी वह हेरोइन और मारिजुआना और एल.एस.डी. जैसे तीव्र नशों की आदी बन चुकी थी । इतने भीषण नशों की आदी औरत अगर अब तक परलोग सिधार चुकी हो तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है ।”
“अच्छी बात है । मैं चैक करवाता हूं ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर को क्रेडल पर रखा ही था कि फोन की घन्टी बज उठी । उसने विचित्र नेत्रों से टेलीफोन की ओर देखा और फिर बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से रिसीवर उठा लिया ।
“हल्लो ।” - वह बोला ।
“मिस्टर सुनील देअर ?” - दूसरी ओर से किसी ने प्रश्न किया ।
“बोल रहा हूं ।”
“मिस्टर सुनील, मैं सेठ मंगत राम का प्राइवेट सैक्रेट्री हूं । सेठजी आपसे मिलना चाहते हैं ।”
“किस विषय में ?”
“यह तो उन्होंने मुझे नहीं बताया लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा है कि इस मुलाकत में दोनों का लाभ है ।”
“दोनों से आपका मतलब सेठजी और मुझसे है ?”
“जी हां ।”
“कहां आना होना ?”
“उनकी कोठी पर । पता है चार, नेपियन रोड ।”
“कब आना होगा ?”
“अभी आ जाइये । सेठजी सवा दस बजे आपकी प्रतीक्षा करेंगे ।”
“सॉरी ।” - सुनील बोला - “नहीं आ सकता ।”
“वजह ?”
“वजह आपकी समझ में नहीं आयेगी ।”
“फिर भी बताइये तो ? अगर आपकी कोई समस्या हो तो शायद मैं उसका कोई हल सुझा सकूं ।”
“समस्या तो है लेकिन उसका हल आप नहीं सुझा सकेंगे ।”
“मिस्टर सुनील, आप अपनी समस्या मुझे सेठ मंगत राम का प्रतिनिधि समझ कर बताइये । मैं वर्षों से सेठजी का सैक्रेट्री हूं और मैंने सेठजी के केवल जुबान हिला देने से कितने ही असम्भव कार्य सम्भव होते देखे हैं । और अगर आप इसे गलत न समझें तो मैं यह भी कहूंगा कि आपको इसे अपना सौभाग्य समझना चाहिये कि सेठजी आपसे मिलना चाहते हैं और आपको अपनी कोठी पर बुला रहे हैं ।”
“आल राइट । सेठ जी की महानता का आपने मुझे पर खासा रोब डाल दिया है । इसलिये मेरी समस्या सुन लीजिये । दस बजे मुझे पुलिस हैडक्वार्टर में पुलिस इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के पास पहुंचना है । इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल मुझे अच्छी निगाहों से नहीं देखता । वह मुझे निहायत शरारती और क्रिमिनल माइन्डिड आदमी समझता है । अगर मैं दस बजे पुलिस हैडक्वार्टर नहीं पहुंचा तो वह मेरा पुलन्दा देगा ।”
“आप जरा एक मिनट होल्ड कीजियेगा ।” - सैक्रेट्री बोला ।
“सारी । मुझे पहले ही बहुत देर हो गई है । विश्वास जानिये मेरा ठीक दस बजे पुलिस हैडक्वार्टर पहुंच जाना वाकई बहुत जरूरी है ।”
“आप केवल एक मिनट होल्ड कर लीजिए । अगर इससे ज्यादा देर लगे तो सम्बन्ध विच्छेद कर दीजियेगा ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और घड़ी देखने लगा ।
पचास सैकेंड बाद उसे फोन पर एक नई, गम्भीर और अधिकारपूर्ण आवाज सुनाई दी - “मिस्टर सुनील ?”
“यस ।”
“मैं मंगत राम बोल रहा हूं । आप बेहिचक यहां आ जाइये । पुलिस हैडक्वार्टर में लोग खुशी से आपकी प्रतीक्षा कर लेंगे । मेरा कानूनी सलाहकार पुलिस हैडक्वार्टर में उस इन्सपेक्टर से बात कर लेगा जो आपकी प्रतीक्षा कर रहा है ।”
“लेकिन साहब, यह कोई छोटा-मोटा मामला नहीं है । मेरी गरदन दो-दो हत्याओं के मामले में फंसी हुई है ।”
“मिस्टर सुनील” - सेठ का तनिक उखड़ा किन्तु पूर्ववत् प्रभावशाली स्वर सुनाई दिया - “मैं बूढा आदमी हूं । मुझ में अधिक बोलने की हिम्मत नहीं है । आप मझे हां या ना में इतना जवाब दीजिये का आप यहां आ रहे हैं या नहीं !”
“मैं आ रहा हूं ।” - सुनील फौरन बोला ।
“थैंक्यू, मिस्टर सुनील ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर रखा और फ्लैट से बाहर निकल गया । नीचे आकर उसने अपनी मोटरसाइकल सम्भाल ली और नेपयन रोड की ओर उड़ चला ।
नेपयन रोड पर सेठ मंगत राम की कोठी बहुत सुन्दर थी, बहुत विशाल थी । कोठी की चारदीवारी के विशाल फाटक के सामने एक गौरखा चौकीदार खड़ा था । सुनील ने गोरखे को अपना नाम बताया । गोरखे ने तत्काल आकर गेट खोल दिया । शायद उसको सुनील के आगमन की सूचना पहले ही दी जा चुकी थी ।
सुनील ने मोटरसाइकल कोठी के अन्दर मोड़ दी । लगभग एक फर्लांग लम्बे ड्राइव-वे में से होता हुआ वह कोठी के सामने पहुंचा ।
कोठी की सीढियों पर एक सूटबूटधारी व्यक्ति यूं खड़ा था जैसे वह सुनील की ही प्रतीक्षा कर रहा हो ।
सुनील मोटरसाइकल से उतरा ।
“मिस्टर सुनील ?” - वह व्यक्ति बोला ।
“यस ।” - सुनील बोला ।
“मैं सेठजी का सैक्रेट्री हूं । मैंने ही आप से फोन पर बात की थी ।”
सुनील ने उसकी ओर दृष्टिपात किया ।
“मेरे साथ आइये । सेठजी आप ही की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।”
सुनील उसके पीछे हो लिया ।
सैक्रेट्री उसे एक विशाल कमरे में छोड़ गया । कमरे की तीन दीवारों के साथ लगे रैकों में चमड़े की जिल्दों वाली किताबें लगी हुई थीं, चौथी दीवार की पूरी लम्बाई में एक शीशे की विशाल खिड़की थी जिसमें से बाहर का लॉन दिखाई दे रहा था ।
कमरे में एक विशाल मेज थी जिसके पीछे लगभग पचपन वर्ष का दुबला-पतला वृद्ध बैठा हुआ था । उसके हाथ में एक लम्बा सिगार था ।
सुनील ने उसे नमस्ते की ।
“तशरीफ रखिये ।” - वृद्ध बोला ।
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“मेरा नाम मंगत राम है ।”
सुनील केवल मुस्कुराया ।
वृद्ध ने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया - “आप एकदम ठीक समय पर आये हैं । मुझे समय के पाबन्द लोग बहुत पसन्द हैं ।”
“धन्यवाद ।”
सेठ ने मेज पर पड़ा एक टेलीफोन उठाया । रिसीवर में उसने केवल एक शब्द कहा और फिर रिसीवर रख दिया ।
“मैंने तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुना है” - सेठ दुबारा उस की ओर आकर्षित होता हुआ बोला - “और मैं अनुभव कर रहा हूं कि जो कुछ मैंने सुना है उसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं थी ।”
सुनील ने पूछना चाहा कि सेठ ने उसके बारे में क्या सुना था, क्यों सुना था, किस से सुना था, लेकिन वह चुप रहा ।
“यू आर ए फाइन मैन, मिस्टर सुनील ।”
“इज दैट ए कम्पलीटमैंट ?”
“यस ।”
“थैंक्यू दैन ।”
एक वर्दीधारी वेटर कमरे में आया और सेठ और सुनील को चाय सर्व कर गया ।
“सिगरेट !” - सेठ ने पूछा और सुनील की ओर डिब्बा बढा दिया ।
“धन्यवाद । मेरे पास मेरा अपना ब्रांड है ।”
सुनील ने जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगाया ।
सेठ ने चाय का एक छोटा-सा घूंट पिया और फिर बोला - “मेरी सूचनाओं के अनुसार तुम ‘ब्लास्ट’ के विशेष प्रतिनिधि हो और लगभग आठ सौ रुपये महीना वेतन पाते हो । अपनी जानकारी के दायरे में तुम एक असाधारण प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति के रूप में जाने जाते हो, पुलिस अधिकारियों और अपने शुभचिन्तकों के विचार से तलवार की धार पर चलने जैसी रिस्क भरी और हंगामाखेज जिन्दगी गुजार रहे हो । नगर के कुछ रईस परिवारों से तुम्हारे गहरे सम्बन्ध है लेकिन तुमने आज तक उनकी मित्रता का कोई अनुचित लाभ उठाने का प्रयत्न नहीं किया । आदतन ईमानदार और मेहनतकश हो । स्त्री जाति को तकलीफ में नहीं देख पाते हो इसलिये कई बार बेहद खतरनाक हरकतें कर डालते हो । वगैरह...”
सेठ चुप हो गया और सिगार के कश लगाने लगा ।
सुनील चुप रहा ।
“मिस्टर सुनील आज की दुनिया में आप जैसे इन्सान दुर्लभ होते हैं और दुर्लभ वस्तु में मेरी हमेशा से ही दिलचस्पी रही है ।”
“और आप मेरे में एक दुर्लभ वस्तु के रूप में रुचि ले रहे हैं !”
सेठ तनिक कसमसाया और फिर बोला - “मैं एक विशेष प्रकार के व्यक्तियों को अपनी बिजनेस आर्गेनाइजेशन का अंग देखना पसन्द करता हूं ।”
“और मैं इन विशेष प्रकार के व्यक्तियों में से एक हूं ?”
“हां ।”
“इसलिये आप मुझे अपनी बिजनेस आर्गेनाइजेशन का एक अंग बनाना चाहते हैं ?”
“हां ।”
“मुझे आप कहां फिट करना चाहते हैं ?”
सेठ फिर कसमसाया । ऐसा लगता था जैसे वह सुनील के यूं सवाल करने के ढंग से असुविधा का अनुभव कर रहा था ।
“अहमदाबाद में मेरा एक भारत नाम का दैनिक अखबार निकलता है ।” - कुछ क्षण बाद सेठ बोला - “उस अखबार का प्रकाशन मैं राजनगर से भी करना चाहता हूं । अखबार के राजनगर से निकलने वाले संस्करण का सम्पादक मैं तुम्हें बनाना चाहता हूं ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम्हें पहले तीन महीने अहमदाबाद जाकर रहना होगा और हमारे अहमदाबाद आफिस में काम करके अखबार की पालिसी को पूरी तरह समझना होगा । उसके बाद तुम राजनगर वापिस आ जाओगे और स्वतन्त्र रूप से अखबार निकालने लगोगे ।”
“वैरी गुड ।” - सुनील भावहीन स्वर में बोला ।
“तुम्हें तीन हजार रुपये महीना वेतन मिलेगा, ‘ब्लास्ट’ की नौकरी छोड़ने की एवज में पच्चीस हजार रुपये फौरन मिलेंगे और इस बात की लिखित गारन्टी दी जायेगी कि दस साल तक तुम्हारी नौकरी पर कोई आंच नहीं आयेगी । कहने का मतलब यह है कि अगर अखबार बन्द भी हो गया तो भी तुम्हें दस साल तक तीन हजार रुपये महीना वेतन मिलता रहेगा ।”
“बहुत तगड़ी आफर दे रहे हैं आप ।”
“तुम्हें मंजूर है ?”
सुनील चुप रहा । सेठ मंगत राम बहुत आबवियस आदमी निकला था । उसका सुनील को यूं आनन-फानन इतनी तगड़ी आफर देना ही उसकी नीयत की चुगली कर रहा था ।
उस क्षण सुनील की दृष्टि शीशे की खिड़की से बाहर लॉन की ओर भटक गई । खिड़की के सामने से एक पहियों वाली कुर्सी गुजर रही थी । कुर्सी को पीछे से एक सफेद वर्दीधारी अर्दली धकेल रहा था । कुर्सी पर एक औरत बैठी थी जिसका शरीर कमर तक शाल से ढका हुआ था । वह खिड़की से विपरीत दिशा में देख रही थी इसीलिए सुनील को उसका चेहरा नहीं दिखाई दिया ।
“तुम्हें मेरी आफर मंजूर है ?” - सेठ ने आशापूर्ण स्वर से पूछा ।
सुनील ने जानबूझ कर तत्काल उत्तर न दिया । उसने अपना चाय का कप उठाया और उसमें बची सारी चाय एक ही सांस में हलक में उड़ेल ली । उसने सिगरेट का आखिरी कश लगा कर उसे ऐशट्रे में फेंक दिया और उठ खड़ा हुआ ।
“सेठजी” - वह गम्भीर स्वर में बोला - “मैं सोच रहा था...”
“कि तुम्हें मेरी आफर स्वीकार करनी चाहिये या नहीं ?”
“नहीं, मैं सोच रहा था कि आप ने मुझे घर बुलाकर यूं आनन-फानन इतनी तगड़ी आफर क्यों दी ?”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि क्या मैं आपको वाकई इतना भला और ईमानदार आदमी लगा हूं कि आपने मुझे अपने उस अखबार का सम्पादक बनाने का फैसला कर लिया जो अभी छः महीने बाद निकलेगा । सेठजी आपकी इतनी बड़ी आफर ही आप की नीयत की चुगली कर रही है ।”
“मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम क्या कह रहे हो ?”
“लोगों ने आपको मेरे बारे में बहुत कुछ बताया है ।” - सुनील सेठ की परवाह किये बिना बोलता रहा - “अगर आपने मेरे बारे में थोड़ी और तफ्तीश करवाई होती तो आपको इस तथ्य की भी जानकारी हो जाती कि पैसा संसार की आखिरी चीज है जो मुझे अपनी मर्जी के खिलाफ कोई काम करने पर मजबूर कर सकती है । इसलिये अगर आप यह समझते हैं कि आप मुझे एक मोटी रकम का लालच देकर राजनगर छोड़ देने पर मजबूर कर सकते हैं तो आप की गलती है ।”
“क्या बक रहे हो ?”
“मैं यह बक रहा हूं कि आप मुझे बढिया नौकरी की रिश्वत देकर राजनगर से दफा नहीं कर सकते ।”
सेठ तनिक विचलित दिखाई देने लगा ।
“सेठ जी” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “आप बहुत बड़े आदमी हैं । अभी आप मेरा मुंह बन्द करने के लिये मुझे छः महीने के लिये अहमदाबाद भेजने के इन्तजाम कर रहे हैं । अगर मैं आपकी यह आफर अस्वीकार कर दूं तो आप किसी पेशेवर बदमाश को थोड़े से रुपये देकर मेरी हत्या भी करवा सकते हैं । इसीलिये सेठजी मुझे अहमदाबाद भेज देने से किसी को कोई लाभ नहीं होने वाला है और खास तौर से...”
“तुम किसकी बात कर रहे हो ?” - सेठ कम्पित स्वर से बोला ।
“मैं राम ललवानी की बात कर रहा हूं ।”
“राम ललवानी ! कौन राम ललवानी ?”
“वही राम ललवानी जिससे सन् चौंसठ के आरम्भ में आपकी इकलौती बेटी सुनीता ने बम्बई में विवाह किया था ।” - सुनील ने अन्धेरे में तीर छोड़ा ।
सेठ के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी ।
“मैं उसी राम ललवानी का जिक्र कर रहा हूं, जो आप का दामाद है, जिसके लिये आपने लाखों रुपया हरजाना भर कर लिबर्टी बिल्डिंग की पांचवी मंजिल और बेसमैंट खाली करवाई थी, जिसके छोटे भाई मनोहर ललवानी ने बम्बई में बड़ी नृशंसता से एक कसाई की तरह तीन लड़कियों को काट डाला था और जो पुलिस रिकार्ड के अनुसार बाइस मार्च सन् पैंसठ को बम्बई में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारा गया था । लेकिन अभी सिर्फ मैं जानता हूं कि आप के दामाद का छोटा भाई मनोहर ललवानी मरा नहीं है । वह जिन्दा है और मुकुल के नाम से अपने भाई के मैड हाउस नाम के डिस्कोथेक में गाता-बजाता है । वह समझता है कि अगर मैं राजनगर से गायब हो जाऊं तो पुलिस को कभी मालूम नहीं हो पायेगा कि उसका भाई जिन्दा है और उसने फिर हत्यायें करनी आरम्भ कर दी हैं ।”
“फिर हत्यायें करनी आरम्भ कर दी हैं !” - सेठ का मुंह खुले का खुला रह गया - “क्या मतलब ?”
“मेरा संकेत पिछली रात को मेहता रोड पर हुई फ्लोरी नाम की लड़की की हत्या की ओर है । फ्लोरी की हत्या बिल्कुल उसी पैट्रन पर हुई है जिस प्रकार पांच साल पहले बम्बई में मनोहर ललवानी तीन हत्यायें कर चुका है । फ्लोरी की हत्या ही पुलिस के मन में यह सन्देह उपजाने के लिये काफी होगी कि मनोहर ललवानी जिन्दा है । इसलिये राम ललवानी चिन्तित है लेकिन वह राज नगर की पुलिस को निकम्मी समझकर भारी गलती कर रहा है । मैं अपनी जुबान न भी खोलूं तो भी पुलिस को सारी कहानी समझने में अधिक देर नहीं लगेगी ।”
सेठ ने अपना सिर झुका लिया ।
“सेठजी, बात बहुत बढ चुकी है । यह ऐसा मामला नहीं है जिस में आप अपने दामाद की खातिर अपना पैसा और प्रभाव इस्तेमाल करके सारा मामला रफा-दफा कर सकें ।”
इतना कहकर सुनील कुर्सी से उठा और जेब में हाथ डाले सेठ के सामने खड़ा हो गया ।
“बैठो ।” - वह कम्पितत स्वर में बोला ।
“सेठ जी” - सुनील हिचकिचाता हुआ बोला - “मैं...”
“प्लीज, मिस्टर सुनील, प्लीज सिट डाउन ।”
सुनील बैठ गया । उसके सामने एक करोड़पति सेठ का अभिमान टूटा जा रहा था । लेकिन न जाने क्यों सुनील को इससे कोई खुशी नहीं हो रही थी ।
“थैंक्यू ।”
सूनील चुप रहा ।
“तुम कैसे जानते हो कि सुनीता मेरी लड़की है ?”
“मुझे निश्चित रूप से इस बात की जानकारी नहीं है । मैं केवल इतना जानता हूं कि सुनीता अग्रवाल नगर के एक करोड़पती सेठ की इकलौती बेटी है ।”
सेठ मंगत राम ने एक गहरी सांस ली और बोला - “सुनीता मेरी इकलौती बेटी है ।”
सुनील चुप रहा ।
“बेटे” - सेठ आर्द्र स्वर में बोला - “जिस ढंग की जिन्दगी सुनीता ने आज तक गुजारी है, भगवान ऐसी जिन्दगी में किसी दुश्मन को न डाले । आज मैं अपनी बेटी की सूरत देखता हूं तो मुझे महसूस होता है कि मेरा संसार की सबस निरर्थक और निकृष्ट वस्तु का नाम है । पैसा सारा रुपया भी सुनीता को दोबारा से एक हंसती-खेलती, उमंगों और आशाओं से भरी हुई जवान लड़की नहीं बना सकता और उसकी यह हालत इसलिये हुई क्योंकि बचपन में उसकी मां मर गई थी और मुझे नोट गिनने से फुरसत नहीं थी । नतीजा यह हुआ कि वह बेहद गलत किस्म की सोहबत में पड़ गई । कोई उसे रोकने-टोकने वाला नहीं था इसलिये जो उसके जी में आता था, वह करती थी । सुनीता कोई भोली-भाली मासूम बच्ची नहीं रही है, इस बात की जानकारी मुझे तब हुई थी जब सुनीता के स्कूल की प्रिन्सीपल ने मुझे बताया कि सुनीता गर्भवती थी । और, बेटे, वह उस समय दसवीं जमात में पढती थी और मुश्किल से पन्द्रह साल की थी ।”
एक क्षण के लिये सेठ रुका और फिर बोला - “प्रिन्सीपल की सावधानी से ही मेरी इज्जत मिट्टी में मिलने से रह गई थी । एक बहुत बड़ा स्कैण्डल होते-होते रह गया था । सुनीता की उस हालत के लिये जिम्मेदार था, सुनीता के स्कूल का अंग्रेज टीचर जिसने बाद में मुझे बाकायदा ब्लैकमेल करने की कोशिश की । लेकिन मेरे रुतबे ने और ढेर सारे रुपये ने किसी प्रकार स्थिति सम्भाल ली । सुनीता का गर्भपात कराया गया । उसने स्कूल छोड़ दिया और फिर कभी पढाई-लिखाई की ओर झांक कर भी नहीं देखा । बेटे, जिस बात ने मेरा दिल दहला दिया था, वह यह थी कि जो कुछ सुनीता ने किया था, उसके लिये वह कतई शर्मिंदा नहीं थी ।”
“फिर ?” - सुनील ने मन्त्रमुग्ध स्वर में पूछा ।
सेठ ने बड़े नर्वस ढंग से सिगार के तीन-चार कश लिये और फिर बोला - “इक्कीस साल की आयु में वह आर्थिक रूप से भी स्वतन्त्र हो गई । उसे किसी भी सूरत में मेरी मोहताज रहने की जरूरत नहीं रही थी । जैसा कि मुझे बाद में मालूम हुआ, तब तक वह हेरोइन और एल.एस.डी. जैसे तीव्र नशा करने वाली चीजों के इन्जेक्शन लेने लगी थी और उनकी खूब आदी हो चुकी थी । जिन विलायती हिप्पियों के साथ वह घूमती-फिरती थी वे ही उसे ऐसी चीजों के सेवन की प्रेरणा देते थे और उन हरकतों को आज की तेज रफ्तार जिन्दगी का एक हिस्सा मान कर वह सब कुछ करती थी । उसके छः महीने बाद वो मुझे छोड़कर चली गई । सीधी जुबान में कह जाये तो घर छोड़ कर भाग गई ।”
“ओह !” - सुनील ने अपनी जुबान से केवल इतना ही निकाला - “कहां ? बम्बई ?”
“हां ।”
“फिर ?”
“बम्बई पहुंचने तक वह हेरोइन और एल.एस.डी. के नशे की इतनी आदी हो चुकी थी कि वह उसके बिना जीवित नहीं रह सकती थी । बेटा, मैंने सुना है कि इन तीव्र नशों का भी भिन्न-भिन्न लोगों पर भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रभाव होता है । कुछ लोग एल. एस. डी. का इन्जेक्शन लेते हैं और फिर दो-दो दिन तक पिनक में पड़े रहते हैं । कुछ लोगों में सैक्स की भावनायें प्रबल हो उठती हैं । कुछ लोग अपने मस्तिष्क पर से अपना अधिकार खो बैठते हैं और उपद्रवी बन जाते हैं । उस स्थिति में वे बड़ी भंयकर हरकतें करते हैं । ऐसी ही स्थिति में एक बार सुनीता ने अपने ब्वायफ्रैंड की खोपड़ी पर कोका कोला की बोतल तोड़ दी थी । सुनीता को एक महीने की जेल की सजा हुई थी । एक अहसान उसने मुझ पर जरूर किया कि बम्बई जाकर उसने किसी पर यह प्रकट करने की कोशिश न की वह मेरी बेटी थी ।”
“फिर ?”
“उसी दौर में सुनीता राम ललवानी के सम्पर्क में आई । राम ललवानी बम्बई में गुलनार नाम का रेस्टोरेन्ट चलाता था लेकिन वास्तव में गुलनार मादक द्रव्यों के व्यापार का अड्डा था । राम ललवानी को किसी प्रकार मालूम हो गया कि सुनीता के पास ढेर सारी दौलत थी । उस दौलत के लालच में उसने किसी प्रकार सुनीता को फांसकर उससे शादी कर ली । शादी के बाद उसे यह भी मालूम हो गया कि उसकी बीवी मेरी लड़की थी ।”
“कैसे ?”
“उसने खुद ही बता दिया होगा । आखिर उसे अपने पति से अपनी वास्तविकता छुपाने की क्या जरूरत थी ?”
सुनील चुप रहा ।
“फिर मार्च सन पैंसठ में वह भंयकर घटना घटी जिसके बाद मुझे इन तमाम बातों की खबर हुई ।”
“कौन-सी घटना ?”
“सुनीता ने एक लड़की का खून कर दिया ।”
“खून !”
“हां, बेटे, लड़की गीगी ओब्रायन नाम की कोई नर्तकी थी जो राम ललवानी के रेस्टोरेन्ट में नृत्य करती थी ।”
“लेकिन उस लड़की का खून तो राम ललवानी के छोटे भाई मनोहर ललवानी ने किया था ?”
“दुनिया यही समझती है लेकिन वास्तव में उस लड़की का खून सुनीता ने किया था ।”
“क्यों ?”
“भगवान जाने क्यों ?”
“फिर ?”
“फिर राम ललवानी ने बम्बई से मुझे ट्रंक कॉल की थी । मैं तत्काल बम्बई पहुंच गया था एयरोड्रोम पर ही मुझे राम ललवानी मिल गया । वह मुझे सीधा सुनीता के पास ले गया । बेटे, सुनीता की हालत देखकर मेरा दिल दहल गया । इतनी उजड़ी हुई औरत मैंने अपनी जिन्दगी में कभी नहीं देखी थी । बम्बई की दो ढाई साल की मादक पदार्थों पर निर्भर जिन्दगी ने उसे तबाह करके रख दिया था । वह उस समय भी नशे में थी और मुझे एक जिन्दा लाश जैसी मालूम हो रही थी । जो कुछ मेरी निगाहें देख रही थी, उस पर मुझे विश्वास नहीं होता था । मुझे विश्वास नहीं होता था कि हेरोइन, एल. एस. डी. और मरिजुआना जैसे तीव्र नशे किसी इन्सान की इस हद तक भी दुर्गति कर सकते थे । सुनीता अपनी स्थिति से बेखबर मेरे सामने बैठी थी और उसकी हालात देखकर मेरा कलेजा फटा जा रहा था । मैंने अपनी बेटी को बुलाया । बड़ी मुश्किल से उसने मुझे पहचाना और फिर उसने मुझे बताया कि उसने एक लड़की की छाती में चाकू घोंप दिया था । उस समय एक कर्त्तव्य-परायण नागरिक की तरह चाहिये तो यह था कि मैं अपनी बेटी को पुलिस हवाले कर देता लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया । मैं अपने दिल के हाथों मजबूर था । मैंने उसे पुलिस के हवाले नहीं किया । बेटा, अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते ?”
“मेरी कोई बेटी नहीं ।” - सुनील धीरे से बोला ।
सेठ चुप रहा ।
“फिर क्या हुआ ?” - सुनील ने पूछा ।
“फिर सुनीता को खून के अपराध से बचाने के लिये राम ललवानी ने मेरे सामने एक स्कीम रखी ।”
“कैसी स्कीम ?”
“स्कीम यह थी । बम्बई में दो जवान लड़कियों की हत्यायें हो चुकी थीं । हत्यारे ने दोनों बार लड़कियों के शरीर की बड़ी बेदर्दी से बोटी-बोटी काट दी थी । पुलिस के ख्याल से वह किसी विक्षिप्त मस्तिष्क के व्यक्ति का काम था । स्कीम का एक सूत्र तो यह था । दूसरा सूत्र उसका भाई मनोहर ललवानी था । मनोहर ललवानी ने बम्बई में कुछ अपराध किये थे - यह उसने मुझे नहीं बताया कि क्या अपराध किये थे - लेकिन उसने यह जरूर कहा कि अगर मनोहर ललवानी पकड़ा गया तो उसे कम-से-कम दम साल की सजा होगी । राम ललवानी ने मेरे सामने यह स्कीम रखी कि उसका भाई चाकू लेकर गीगी ओब्रायन की लाश को यूं काट-पीट देगा कि वह उसी विक्षिप्त हत्यारे का काम मालूम होगा जो पहले भी बम्बई में दो हत्यायें कर चुका था । फिर पुलिस को यह संकेत दे दिया जायेगा कि वह विक्षिप्त हत्यारा मनोहर ललवानी ही है । फिर जब पुलिस उसको पकड़ने आयेगी तो वह गोली चलाता हुआ पुलिस के घेरे से निकल कर बान्द्रा के रेलवे पुल की ओर भाग निकलेगा । बान्द्रा के पुल पर पहुंचकर वह यह जाहिर करेगा कि वह पुलिस की गोलियों का शिकार होकर पानी में गिर पड़ा । पुलिस केस बन्द कर देगी । सुनीता की ओर किसी का ध्यान नहीं जायेगा और मनोहर ललवानी को भी मरा समझा लिया जायेगा ।”
“लेकिन बाद में पानी में से मनोहर ललवानी की लाश भी तो निकाली गई थी ?”
“वह लाश एक ताजी कब्र खोदकर निकाली गई थी । लाश के शरीर में बाकायदा तीन-चार गोलियां मार दी गई थीं । एक गोली से किसी हद तक उसका चेहरा बिगाड़ दिया गया था । अगले दिन पुलिस ने पानी में से लाश बरामद की थी । शिनाख्त के लिये राम ललवानी और उससे मित्र सोहन लाल को बुलवाया गया था । दोनों ने स्वीकर किया था कि वह मनोहर ललवानी की लाश थी ।”
“सुनीता का क्या हुआ ?”
“सुनीता को मैं तभी अपने साथ ले आया था । अब बहुत बड़े-बड़े डाक्टर उसका इलाज कर रहे हैं । पिछले पांच सालों में उसमें काफी सुधार आ गया है । डाक्टर कहते हैं कि वह जल्दी ही अपने पैरों पर चलने लगेगी ।”
अपने पैरों पर चलने लगेगी - सुनील मन-ही-मन बुदबदाया - तो वह पहियों वाली कुर्सी पर बैठी औरत सुनीता ही थी ।
“बाद में राम ललवानी और मनोहर ललवानी ने क्या किया ?” - प्रत्यक्षतः सुनील ने पूछा ।
“दोनों बम्बई से निकल गये । पूरे चार साल राम ललवानी मेरे से मोटी-मोटी रकमें मांगता रहा जो मैं उसे खुशी से देता रहा । फिर पिछले साल वह राजनगर आ गया । उसने लिबर्टी बिल्डिंग की पांचवीं मंजिल और बैसमैंट खाली करवाने के लिये मजबूर किया । पांचवीं मंजिल पर उसने नाइट क्लब खोल ली और बेसमैंट में उसने मैड हाउस नाम का डिस्कोथेक खोल दिया । फिर उसके पीछे-पीछे ही उसका भाई मनोहर ललवानी भी आ गया ।”
“राम ललवानी ने नाइट क्लब और मैड हाऊस का अच्छा खासा धंधा जमा लिया है । अब तो वह स्वंय ही काफी सम्पन्न आदमी हो गया है । अब तो वह आपसे रुपया नहीं मांगता होगा !”
“मांगता है । बराबर मांगता है । आखिर क्यों न मांगे ? जो चीज बिना हाथ हिलाये सहज ही प्राप्त हो, उसे भला क्यों छोड़े ? और अब पैसे से ज्यादा उसे लीगल प्रोटेक्शन की जरूरत है, जिसकी वह मुझसे हमेशा ही अपेक्षा करता है । अब भी कई काम ऐसे हैं जो उसे मेरी मदद के बिना होते दिखाई नहीं देते । जैसे उसने मुझे इस बात के लिये मजबूर किया कि मैं तुम्हें फौरन राजनगर से चलता कर दूं ।”
सुनील चुप रहा ।
सेठ ने सिगार को ऐश ट्रे में रख दिया और मेज की दराज खोलकर उसमें से एक लिफाफा निकाला ।
“सोहन लाल नाम के जिस आदमी की तुमने हत्या कर दी है” - सेठ लिफाफे को अपने हाथों में उलटता-पुलटता हुआ बोला - “उसने राम ललवानी के लिये एक बहुत भारी समस्या खड़ी कर दी है ।”
“मैंने सोहन लाल की हत्या नहीं की है ।” - सुनील तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोला ।
“लेकिन मेरी सूचना के अनुसार उसकी हत्या तुम्हीं ने की है ।”
“आपकी सूचना गलत है ।”
“खैर, गलत होगी । वर्तमान स्थिति में यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि उसकी हत्या किसने की है ! महत्वपूर्ण बात यह है कि उसकी हत्या हो गई है ।”
“यह बात क्यों महत्वपूर्ण है ?”
“अभी बताता हूं ।” - सेठ बोला - “सोहन लाल वह आदमी है जिसने बम्बई में समुद्र से निकाली गई मनोहर ललवानी की नकली लाश की शिनाख्त की थी । अर्थात सोहन लाल शुरू से ही जानता था कि मनोहर ललवानी मरा नहीं था बल्कि मुकुल ही मनोहर ललवानी है । अपनी इस जानकारी के आधार पर ललवानी भाइयों के लिये सोहन लाल का अस्तित्व बड़ा खतरनाक साबित हो सकता था । इस हकीकत को सोहन लाल भी समझता था । वह जानता था कि ललवानी बन्धु उसकी जुबान बन्द रखने के लिये उसकी हत्या भी कर सकते थे । अपनी सुरक्षा के लिये उसने सारी घटना की एक स्टेटमेंट बनाकर उसे एक प्रसिद्ध वकीलों की फर्म के पास जमा करवा दिया था । सोहन लाल का अपने वकील को निर्देश था कि अगर वह स्वाभाविक मौत मर जाये तो उसकी स्टेटमेंट नष्ट कर दी जाये लेकिन अगर उसकी हत्या हो जाये तो वह स्टेटमेंट पुलिस को सौंप दी जाये । सोहन लाल ने उस इन्तजाम की जानकारी ललवानी भाइयों को भी दे दी थी इसलिये ललवानी भाई तो ख्वाब में भी उसकी हत्या करने की बात सोच सकते थे । सोहन लाल की हत्या होते ही उसका लिखित बयान पुलिस में पहुंच जाता । पुलिस को मालूम हो जाता कि मुकुल ही मनोहर था और फिर दोनों भाई रगड़े जाते । सोहन लाल की स्टेटमेंट इस लिफाफे में है ।”
और सेठ ने लिफाफा सुनील की ओर उछाल दिया ।
“आप कहना क्या चाहते हैं” - सुनील नेत्र फैलाकर बोला - “कि सोहन लाल के वकीलों ने उसे धोखा दिया है ? उन्होंने उसकी स्टेटमेंट पुलिस को सौंपने के स्थान पर आपके पास भेज दी है ?”
“नहीं ।” - सेठ बोला - “इस लिफाफे में उस स्टेटमेंट की प्रतिलिपि है । सोहन लाल की हत्या के बाद वकीलों ने सोहन लाल की स्टेटमेंट वाले लिफाफे को खोल लिया था । उन्होंने सोहन लाल की स्टेटमेंट में मेरी बेटी का नाम देखा । वे मुझे अच्छी तरह जानते थे इसलिये मुझे परिस्थिति से अवगत कराने के लिये उन्होंने मुझे उस स्टेटमेंट की एक प्रतिलिपि भेज दी है । इस लिफाफे में वास्तविक स्टेटमेंट नहीं बल्कि उसकी प्रतिलिपि है ।”
“लेकिन उन्हें आपको स्टेटमेंट की एक प्रतिलिपि भी नहीं देनी चाहिये थी ।”
“नहीं देनी चाहिये थी ।” - सेठ ने स्वीकार किया ।
सुनील ने लिफाफे में से कागजात निकाले और उन्हें पढने लगा ।
वे कागजात ललवानी बन्धुओं की सलामती के लिये बारूद का ढेर थे । उस रिपोर्ट के अनुसार गीगी ओब्रायन पर केवल राम ललवानी का ही अधिकार नहीं था । वह तो एक वेश्या थी जो हर किसी का मनोरंजन करती थी लेकिन अधिकतर वह राम ललवानी के ही अधिकार में रहती थी । जब राम ललवानी उसके पास होता था तो किसी की गीगी ओब्रायन के पास भी फटकने की हिम्मत नहीं होती थी लेकिन राम ललवानी के सुनीता से शादी कर लेने के बाद राम ललवानी ने गीगी ओब्रायन में दिलचस्पी लेनी कम कर दी थी । उसके बाद गीगी ओब्रायन जिन लोगों की दिलचस्पी का केन्द्र बनी, उनमें मनोहर ललवानी और सोहन लाल प्रमुख थे हत्या की रात को सोहन लाल गीगी ओब्रायन के फ्लैट पर गया था । इमारत के बाहर उसने मनोहर ललवानी की कार खड़ी देखी थी । इमारत में प्रविष्ट होने के स्थान पर सोहन लाल बाहर ही खड़ा प्रतीक्षा करता रहा ताकि मनोहर ललवानी बाहर निकले और वह उसके बाद भीतर जाये । फिर एकाएक उसे एक चीख की आवाज सुनाई दी थी । उसके थोड़ी ही देर बाद उसने मनोहर ललवानी और सुनीता को फ्लैट से बाहर निकलते देखा था । सुनीता बुरी तरह से नशे में थी । उसे अपने आपकी खबर नहीं थी । मनोहर ललवानी उसे अपने साथ लगभग घसीट रह था । दोनों कार में सवार होकर फौरन वहां से रवाना हो गये थे । उनके जाने के फौरन बाद सोहन लाल गीगी ओब्रायन के फ्लैट में पहुंचा था । फ्लैट का दरवाजा खुला था और भीतर गीगी ओब्रायन की लाश बुरी तरह से कटी पड़ी थी । उसके सारे शरीर से गोश्त के बड़े-बड़े लोथड़े लटक रहे थे ।
सोहन लाल सीधा राम ललवानी के पास पहुंचा ।
एक स्टेटमेंट यहीं खत्म हो गई थी ।
दूसरी स्टेटमेंट पर एक महीने बाद की तारीख थी । उसमें सोहन लाल ने स्वीकार किया था कि उसने समुद्र में से निकाली कथित मनोहर ललवानी की लाश की गलत शिनाख्त की थी । उसी ने कब्रिस्तान में से एक ताजी कब्र खोदकर एक लाश निकाली थी और उस के शरीर के विभिन्न भागों में गोलियां मार कर उसे बान्द्रा रेलवे पुल के पास पानी में फेंक दिया । पुलिस द्वारा बरामद किये जा चुकने के बाद उसी लाश की उसने मनोहर ललवानी की लाश की रूप में शिनाख्त की थी और राम ललवानी ने उसकी शिनाख्त की पुष्टि की थी । उसी ने राम ललवानी की सहायता से गीगी ओब्रायन की लाश को ले जाकर समुद्र में फेंका था ।
सुनील ने सारे कागजों का एक बार फिर पढा और फिर उन्हें मेज पर रख दिया ।
“सेठ जी” सुनील तनिक उत्तेजित स्वर में बोला - “सोहन लाल की इस स्टेटमेंट से यह जाहिर होता है कि गीगी ओब्रायन का शरीर हत्या के समय ही बुरी तरह काटा गया था जबकि आपके कथनानुसार यह काम गीगी ओब्रायन की हत्या के कई घन्टों बाद हुआ था । आप राजनगर से बम्बई गये, वहां राम ललवानी ने सुनीता को बचाने की एक स्कीम बताई और फिर उस स्कीम के अनुसार मनोहर ललवानी बाद में जाकर गीगी ओब्रायन के शरीर की धज्जियां उड़ाकर आया जबकि वास्तव में उसके शरीर की वह हालत हत्यारे द्वारा हत्या के ही समय की जा चुकी थी । राम ललवानी ने आपको धोखा दिया ।”
सुनील चुप हो गया ।
“यह बात मुझे भी सूझी थी ।” - सेठ धीरे से सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला - “इस स्थिति में पुलिस के सामने इस बात का दावा कैसे किया जा सकता है कि लाश की वह हालत मनोहर ललवानी ने बनाई थी । सुनीता ने नहीं ?”
सुनील चुप रहा ।
“बेटा, तुम्हारे सामने केवल सोहन लाल की स्टेटमेंट की प्रतिलिपि पड़ी है । ओरिजिनल स्टेटमेंट अब तक सोहन लाल के वकीलों ने पुलिस को को सौंप दी होगी या सौंपने वाले होंगे । स्टेटमेंट में कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि सुनीता मेरी बेटी है । लेकिन राम ललवानी से पूछताछ करने के बाद वे इस तथ्य को जरूर जान जायेंगे । अब मुझे तो दो तरीकों में सुनीता की, और किसी हद तक अपनी भी, सलामती दिखाई देती है कि या तो सुनीता कौन है इस बारे में राम ललवानी अपनी जुबान बन्द रखे, जिसकी कि मुझे आशा नहीं, और या फिर वह हत्यारा पकड़ा जाये जिसने पिछली रात को फ्लोरी नाम की उस लड़की की हत्या की है जिसका तुमने थोड़ी देर पहले जिक्र किया था ।”
“सेठ जी” - सुनील धीरे से बोला - “शायद आपको यह बात मालूम नहीं है कि मुकुल फरार हो चुका है ।”
“अच्छा ! फिर तो उसका फरार हो जाना ही पुलिस की निगाहों में सन्देह का कारण बन सकता है ।”
“जरूरी नहीं है । मुकुल अपने साथ एक लड़की भी भगा कर ले गया है । पुलिस शायद इसे इश्क का मामला ही समझे ।”
“लेकिन इतनी बड़ी दुनिया में मुकुल को तलाश कहां किया जाये ।”
“मुकुल के फरार हो जाने की जानकारी अभी किसी को नहीं है । इसलिए सम्भव है वो अभी राजनगर में ही हो । एक दो स्थान मेरी निगाहों में हैं जहां मुझे मुकुल के होने की सम्भावना दिखाई देती है ।”
“कौन से स्थान हैं वे ?”
“फोर स्टार नाईट क्लब और राम ललवानी की शंकर रोड वाली कोठी । मुकुल समझता है कि इस बात की जानकारी राजनगर में किसी को नहीं है कि वह राम ललवानी का सगा भाई है इसलिए वह इन दोनों जगहों में से कहीं होगा तो उनकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं जायेगा ।”
“मुकुल फोर स्टार नाइट क्लब में है या नहीं, यह बता तो मैं दो मिनट में पता लगा देता हूं ।”
“कैसे ?”
“क्लब का एक कर्मचारी क्लब खुलने से पहले मेरा निजी नौकर था । मैं फोन करके उससे पूछता हूं ।”
“पूछिये ।”
सेठ उठा और लम्बे डग भरता दूसरे कमरे में चला गया ।
सुनील ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
कुछ क्षण बाद वह अपने स्थान से उठा और शीशे की खिड़की के सामने आ खड़ा हुआ ।
बाहर थोड़ी दूर उसे पहियों वाली कुर्सी पर बैठी वही औरत दिखाई दी जिसे वह पहले भी देख चुका था । आंखों में उदासी लिये वह अपने सामने फैले समुद्र को दूर तक देख रही थी । उसके चेहरे की खाल लटक गई थी और इतनी सफेद थी जैसे शरीर में से खून की आखिरी बूंद भी निचोड़ ली गई हो । उसके अधपके सूखे बाल हवा में उड़ रहे थे । वह कम-से-कम पैतालीस साल की जिन्दगी से हारी हुई औरत लग रही थी ।
“यह मेरी बेटी सुनीता है ।” - उसे अपने पीछे से सेठ का रुंधा हुआ स्वर सुनाई दिया - “इसकी उम्र सत्ताइस साल है ।”
सुनील ने घूम कर देखा । सेठ मंगत राम पता नहीं कब पीछे आ खड़ा हुआ था । उसकी आंखों में आंसू तैर रहे थे ।
सुनील चुप रहा ।
“सुनीता” - सेठ गहरी सांस लेकर बोला - “अपने पीछे छुट गये उच्छृंखल जीवन का बहुत बड़ा हरजाना चुका रही है और भगवान जाने कब तक चुकाती रहेगी ।”
सुनील चुप रहा ।
“मुकुल” - सेठ एकाएक स्वर बदलकर बोला - “फोर स्टार नाइट क्लब में नहीं है ।”
“आई सी । मैं राम ललवानी की शंकर रोड वाली कोठी पर पता करूंगा ।”
“ठीक है । बेटा, अब मैं तुम्हें रुपये की लालच नहीं दूंगा । रुपये का लालच तुम्हारे पर कोई भारी प्रभाव छोड़ता दिखाई नहीं देता इसलिये मैं इतना ही चाहता हूं कि अगर तुम मुकुल को तलाश कर पाये और तुम्हारी सहायता से मेरी बेटी इस जंजाल से निकल पायी तो मैं सारी जिन्दगी तुम्हारा अहसान नहीं भूलूंगा ।”
सेठ की आंखे फिर डबडबा आई ।
“मैं अपनी ओर से कोई कोशिश नहीं उठा रखूंगा, सेठ जी ।”
सुनील कोठी से बाहर निकला और अपनी मोटरसाइकल पर आ बैठा । मोटरसाइकल उसने राजनगर के भीतर की ओर दौड़ा दी ।
एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से उसने यूथ क्लब फोन किया । दूसरी ओर से रमाकांत की आवाज सुनाई देते ही वह बोला - “रमाकांत, जो काम मैंने तुम्हें बताये थे अब उन्हें करवाने की जरूरत नहीं है ।”
“क्यों ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“क्योंकि मुझे पहले ही मालूम हो गया है कि सुनीता सेठ मंगत राम की ही लड़की है और वह अभी जीवित है । सुनीता सेठ मंगत राम के साथ ही रहती है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम हो गया है ?”
“मुझे अलादीन का चिराग मिल गया था । चिराग के जिन्न ने मुझे यह बताया था ।”
“अच्छा ! बधाई हो ।” - रमाकांत का व्यग्यपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
“अब एक काम और कर दो तो मैं शुक्रवार तक तुम्हारा अहसान नहीं भूलूंगा ।”
“क्या ?”
“एक रिवाल्वर दिला दो ।”
“पागल हुए हो !” - रमाकांत फट पड़ा - “मैंने क्या रिवाल्वरों की फसल उगाई है कि जब तुम्हें जरूरत पड़े मैं भुट्टे की तरह रिवाल्वर तोड़कर तुम्हारे हाथ में रख दिया करूं ? जो रिवाल्वर मैने तुम्हे कल दी थी, उसी को तुम इतने बखेड़े में फसा आये हो कि मुझे डर लग रहा है कि कहीं मैं भी गेहूं के साथ घुन की तरह न पिस जाऊं । बाई गॉड, तुम्हारे जैसे यार से तो भगवान ही बचाये ।”
“दिला दो न यार ।” - सुनील विनीत स्वर से बोला ।
“एक शर्त पर रिवाल्वर दे सकता हूं ।”
“क्या ?”
“कि तुम मेरी आंखों के सामने उससे आत्महत्या कर लोगे ।”
“लानत है तुम पर ।” - सुनील बोला और उसने रिसीवर हुक पर टांग दिया ।
वह दुबारा मोटरसाइकल पर सवार हुआ और सीधा बैंक स्ट्रीट पहुंच गया ।
वह अपने फ्लैट में घुसा । बैडरूम की एक अलमारी खोल कर उसने उसमें से एक लगभग नौ इन्च लम्बा बांस का खोखला टुकड़ा निकाला । सूरत में निर्दोष सा लगने वाला वह बांस का टुकड़ा एक स्लीव गन (Sleevs Gun) नामक खतरनाक चीनी हथियार था । स्लीव गन के भीतर का छेद लोहे की गर्म सलाखों की सहायता से इतना हमवार बनाया हुआ था कि वह भीतर से शीशे की तरह मुलायम और चमकदार हो जाता था । नली के भीतर एक तगड़ा स्प्रिंग और एक शिकंजा लगा हुआ होता था । शिकंजे में एक छोटा सा जहर से बुझे हुए लोहे की नोक वाला तीर फंसा होता था । शिकंजे पर हल्का सा दबाव पड़ने पर स्प्रिंग खुल जाता था और तीर तेजी से नली में से बाहर निकल जाता था । स्लीव गन चीन के पुराने कबीलों में प्रयुक्त होने वाला बड़ा पुराना हथियार था । नाम स्लीव गन इसलिये पड़ा था क्योंकि पुराने जमाने में चीनी उसे अपनी लम्बी बांहों वाले चोगे की आस्तीन (स्लीव) में छिपा कर रखा करते थे । कोहनी पर किसी प्रकार का हल्का सा दबाव पड़ने की देर होती थी कि शिंकजा हट टेशंन के जोर से नाल के बीच में रखा तीर तेजी से बाहर निकलता था और सामने खड़े आदमी के शरीर में जा घुसता था ।
सुनील ने अपना कोट उतारा और सलीव गन बड़ी मजबूती से अपनी आस्तीन के साथ बांध लिया । उसने कोट वापिस पहन लिया । स्लीव गन कोट के नीचे एकदम छुप गयी । उसने एक-दो बार अपनी बांह को स्लीव गन की पोजीशन को टैस्ट किया और फिर संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाता हुआ फ्लैट से बाहर निकल आया ।
***
सारा दिन सुनील राम ललवानी की शंकर रोड स्थित कोठी की निगरानी करता रहा ।
उसे वहां मुकुल या बिन्दु के दर्शन नहीं हुए ।
अन्धेरा होने के बाद सुनील ने कोठी के भीतर घुसने का निश्चय कर लिया ।
वह मोड़ काटकर कोठी के पिछवाड़े में पहुंचा । वहां एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था जिसका प्रकाश पिछवाड़े के लॉन का अन्धकार दूर करने के लिये काफी नहीं था । सुनील चारदीवारी फांद कर पिछवाड़े में कूद गया ।
पिछवाड़े के नीचे की मंजिल के कमरों में प्रकाश नहीं था । साइड के एक कमरे की खिड़की में प्रकाश था । सुनील ने उसमें से झांककर भीतर देखा । वह एक किचन थी । भीतर दो नौकर मौजूद थे ।
पहली मंजिल के साइड के एक कमरे में से काफी रोशनी बाहर फूट रही थी । कमरे में से संगीत की आवाज आ रही थी ।
सुनील उस कमरे की खिड़की के नीचे पहुंचा । काफी देर तक वहां कान लगाये खड़ा रहा लेकिन कमरे में से किसी के बोलने की आवाज नहीं आई । केवल विलायती गानों की स्वर लहरियां ही उनके कानों तक पहुंच रही थीं ।
सुनील ने दीवार का निरीक्षण किया ।
पानी का एक पाइप दीवार के साथ-साथ ऊपर की मंजिल की छत पर गया था । वह पाइप ऊपर की मंजिल की खिड़की के सामने से गुजरता था ।
सुनील ने मन-ही-मन फैसला किया । उसने जूते उतारकर पैंट में ठूंसे और चुपचाप पाइप के सहारे ऊपर चढने लगा ।
खिड़की के समीप पहुंकर उसने बड़ी सावधानी से भीतर झांका ।
वह एक विशाल कमरा था । एक कोने में एक रेडियोग्राम था जिसके सामने बिन्दु बैठी थी और बड़ी तन्मयता से रिकार्ड सुन रही थी । रेडियोग्राम से एकदम विपरीत दिशा में दीवार के साथ पड़े सोफे पर राम ललवानी और मुकुल बैठे थे । दोनों धीरे-धीरे बातें कर रहे थे ।
सुनील ने गरदन पीछे खींच ली और फिर सावधानी से पाइप से नीचे उतरने लगा ।
आधा रास्ता तय कर चुकने के बाद उसने दुबारा नीचे झांककर देखा और फिर उसका दिल धड़कने लगा ।
नीचे अन्धकार में एक साया खड़ा था जो सिर उठाकर उसी की ओर देख रहा था ।
सुनील को पाइप पर रुकता देखकर नीचे खड़ा साया धीमे स्वर में बोला - “मेरे हाथ में रिवाल्वर है । चुपचाप नीचे उतर आओ । जरा सी भी शरारत करने की कोशिश की तो शूट कर दूंगा ।”
सुनील पाइप पर नीचे सरकने लगा । साया उससे बहुत दूर था, इसलिये वह उस पर छलांग नहीं लगा सकता था ।
ज्यों ही सुनील के पांव धरती पर पड़े, साया आगे बढा ।
सुनील ने देखा वह एक लगभग पैंतीस साल का, लम्बा चौड़ा, पहलवान-सा आदमी था । उसके हाथ में वाकई रिवाल्वर थमी हुई थी जिसका रुख सुनील की ओर था ।
“आगे बढो ।” - वह बोला ।
सुनील आगे बढा । पहलवान ने उसकी पीठ के पीछे रिवाल्वर सटा दी और उसे टहोकता हुआ आगे बढाता चला गया ।
इमारत के साइड में एक द्वार था जिसके वे भीतर गए । सीढियों के रास्ते वे पहली मंजिल पर पहुंचे । वे एक गलियारे में से गुजरे । पहलवान ने उसे एक दरवाजे के सामने रुकने का संकेत किया ।
सुनील रुक गया ।
पहलवान के संकेत पर उसने दरवाजा खटखटाया ।
“कौन है ?” - भीतर से किसी की कर्कश स्वर सुनाई दिया ।
“पूरन सिंह, बॉस ।” - पहलवान बोला ।
“दरवाजा खुला है ।”
पूरन सिंह के संकेत पर सुनील ने दरवाजे को धक्का दिया । दरवाजा खुल गया और साथ ही संगीत की स्वर लहरियां बाहर फूट पड़ी । सुनील ने देखा, वह वही कमरा था जिसमें उसने थोड़ी देर पहले खिड़की के रास्ते भीतर झांका था ।
पूरन सिंह ने उसकी पसलियों को रिवाल्वर से टहोका । सुनील ने कमरे के भीतर कदम रखा ।
राम ललवानी और मुकुल वह दृश्य देखकर स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह अपने स्थान से उठ खड़े हुए । बिन्दु ने एक बार भी सिर उठाकर देखने की तकलीफ न की कि भीतर कौन आया था । वह पूर्ववत् रेडियोग्राम के सामने बैठी रही ।
“बॉस” - पूरन सिंह राम ललवानी से सम्बोधित हुआ - “यह आदमी पिछवाड़े के पाइप के सहारे चढकर इस कमरे में झांक रहा था ।”
मुकुल की निगाहें सुनील से मिलीं और फिर मुकुल के नेत्र फैल गये ।
“राम” - वह हड़बड़ाये स्वर में बोला - “यह तो वही आदमी है जो...”
“शटअप !” - राम ललवानी मुकुल की बात काटकर अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “मैं जानता हूं यह कौन है ? आज के अखबार में इसकी तस्वीर छपी है । इसने सोहन लाल की हत्या की थी लेकिन पुलिस इन्स्पेक्टर से कोई यारी होने की वजह से यह अभी तक आजाद घूम रहा है ।”
मुकुल फौरन चुप हो गया ।
“पूरन सिंह, इसकी तलाशी ली ।” - राम ललवानी ने आदेशात्मक स्वर में कहा ।
पूरन सिंह ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“रिवाल्वर मुझे दो और इसकी तलाशी लो ।”
पूरन सिंह ने रिवाल्वर राम ललवानी की ओर उछाल दी जिसे उसने बड़ी दक्षता से लपक लिया ।
पूरन सिंह ने उसकी तलाशी ली ।
“इसके पास कुछ नहीं है ।” - थोड़ी देर बाद वह बोला । सुनील की दाईं आस्तीन पर उसका हाथ नहीं पड़ा था, जहां कि उसने स्लीव गन छुपाई हुई थी ।
राम ललवानी ने वापिस रिवाल्वर पूरन सिंह की ओर उछाल दी और बोला - “तुम जाओ ।”
पूरन सिंह रिवाल्वर लेकर कमरे से बाहर निकल गया । जाती बार वह दरवाजा बाहर से बन्द करता गया ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।
अन्त में सुनील ने ही शान्ति भंग की । वह राम ललवानी और मुकुल की ओर देखकर मुस्कुराया और फिर मीठे स्वर से बोला - “हल्लो, ललवानी बन्धुओ ।”
मुकुल एकदम चौंका । वह राम ललवानी की ओर घूमकर बोला - “राम, देखा । यह आदमी बहुत खतरनाक है । यह जानता है कि....”
“शटअप, मैन ।” - राम ललवानी बोला ।
मुकुल फिर कसमसा कर चुप हो गया ।
राम ललवानी सुनील की ओर घूमा और गम्भीर स्वर से बोला - “तुमने यहां आकर खुद अपनी मौत को दावत दी है, मिस्टर । पूरन सिंह अभी तुम्हें शूट कर देगा । उसके बाद मैं पुलिस को फोन कर दूंगा कि मेरे घर में कोई चोर घुस आया है और उसको मेरे नौकर ने शूट कर दिया है ।”
“गुले गुलजार ।” - सुनील मुस्कराकर बोला - “जब तक तुम्हारा छोटा भाई मनोहर ललवानी उर्फ मुकुल इस इमारत में मौजूद है, तब तक तुम ऐसा नहीं कर सकते ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि पुलिस को इसकी तलाश है, अगर पुलिस इसकी मौजूदगी में यहां आई तो इसका पुलन्दा बन्ध जायेगा ।”
“पुलिस को इसकी तलाश क्यों है ?”
“एक वजह हो तो बताऊं । पुलिस को पांच साल पहले बम्बई में हुई तीन हत्याओं की वजह से इसकी तलाश है । मरने वाली तीन लड़कियों में आखिरी तुम्हारी, इसकी और सोहन लाल की साझी माशूक गीगी ओब्रायन थी । राजनगर में उसी ढंग से हुई फ्लोरी नाम की लड़की की ताजी-ताजी हत्या के लिये भी पुलिस इसे तलाश कर रही है और फिर यह इस नाबालिग लड़की को भी तो भगा कर लाया है ।” - सुनील बिन्दु की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“तुम पागल हो । मुकुल का इन हत्याओं से कोई वास्ता नहीं है और बिन्दु अपनी मर्जी से यहां आई है ।” - राम ललवानी बोला ।
“नाबालिग लड़की की अपनी कोई मर्जी नहीं होती । कानून की निगाह में उसे हमेशा बरगलाया ही जाता है । और तुम्हारी जानकारी के लिये मैं आज ही तुम्हारे ससुर से मिला था । गीगी ओब्रायन की हत्या के संदर्भ में उसने मुझे एक बहुत शानदार कहानी सुनाई थी । राम ललवानी, तुम्हारी जानकारी के लिये अब तुम्हारा ससुर सेठ मंगत राम भी जातना है कि गीगी ओब्रायन की हत्या के इल्जाम में सुनीता को खामखाह फंसाकर तुमने उसके साथ कितना बड़ा फ्रॉड किया है !”
“बूढे का शायद दिमाग खराब हो गया है ।”
मुकुल एकाएक बेहद उत्तजित दिखाई देने लगा । उसने राम ललवानी की बांह थामी और कम्पित स्वर में बोला - “राम ! यह आदमी...”
“थोड़ी देर चुप रहो ।” - राम ललवानी कर्कश स्वर में बोला । उसने एक झटके से अपनी बांह छुड़ा ली ।
“यह बात तुम्हें कैसे मालूम है ?” - उसने सुनील से पूछा - “क्या यह बात तुम्हें सोहन लाल ने बताई थी ?”
“सोहन लाल ने मुझे कुछ नहीं बताया था लेकिन वह इस सारी घटना को एक हलफनामे के रूप में अपने वकीलों के पास छोड़ गया था । उसकी हत्या के बाद वकीलों ने वह हलफनामा पुलिस को सौप दिया है । मैंने उसकी कापी देखी है ।”
“उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । इतने सालों बाद वह हलफनामा कोई मतलब नहीं रखता है ।”
“बहुत मतलब रखता है । वह हलफनामा चाहे यह जाहिर न कर सके कि हत्या तुम्हारे भाई और सुनीता में से किसने की थी लेकिन यह जाहिर कर ही सकता है कि तुम्हारा भाई अभी तक जिन्दा है ।”
“उसमें क्या होता है ! मनोहर ललवानी का मुकुल से सम्बन्ध जोड़ना इतना आसान नहीं है । मुकुल राजनगर से गायब हो रहा है ।”
“पुलिस तुमसे सवाल करेगी । वह तुम्हारे रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता था ।”
“मुझे इसके बारे में कुछ मालूम नहीं है । हां साहब, मेरे रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता था, लेकिन कल वह बिना मुझे नोटिस दिये नौकरी छोड़कर चला गया । कहां गया ? मुझे मालूम नहीं । उनकी कोई तस्वीर ? नहीं है, साहब । मैं भला किस-किस गिटार बजाने वाले की तस्वीर रख सकता हूं ? और आखिर रखूंगा भी कहां !”
“अपने आपको बहलाने की कोशिश मत करो, प्यारेलाल !” - सुनील बोला ।
राम ललवानी ने जोर का अट्टहास किया ।
सुनील ने बिन्दु की दिशा में देखा । बिन्दु अभी भी बड़ी तन्मयता से रिकार्ड सुन रही थी । कमरे में अन्य लोगों की मौजूदगी से वह बिल्कुल बेखबर थी ।
“कहने का मतलब ये है” - राम ललवानी बोला - “कि सोहन लाल का हत्यारा अब तुम पहले हो और बाकी सब कुछ बाद में । इसलिये...”
“मैंने सोहन लाल की हत्या नहीं की ।” - सुनील ने प्रतिवाद किया ।
“तुमने सोहन लाल की हत्या नहीं की ! हा हा हा ।” - राम ललवानी बोला - “अब तुम यह भी कहोगे कि जब थानेदार ने तुम्हें गिरफ्तार किया था, तब रिवाल्वर हाथ में लिये तुम सोहन लाल की लाश के सामने खड़े थे लेकिन तुमने उसकी हत्या नहीं की । तो फिर सोहन लाल की हत्या किसने की है ?”
“तुम्हारे भाई ने ।” - सुनील मुकुल की ओर उंगली उठाकर धीरे से बोला - “और अगर विश्वास न हो तो इसी से पूछ लो ।”
राम ललवानी ने फिर जोर का अट्टहास किया और अपने भाई की ओर देखा । तत्काल उसकी हंसी में मानो ब्रेक लग गया ।
मुकुल के चेहरे का रंग उड़ गया था और उसके माथे पर पसीने की बूंद चुहचुहाने लगी थीं । उसके होंठ कांप रहे थे और उसके चेहरे के भावों से ऐसा लगता था जैसे वह अभी रो पड़ेगा ।
“तुम्हें क्या हुआ है ?” - राम ललवानी ने तीव्र स्वर में पूछा ।
मुकुल ने उत्तर नहीं दिया ।
“तुम्हारे भाई की वर्तमान हालत ही यह साबित करने के लिये काफी है कि इसने सोहन लाल ही हत्या की है ।” - सुनील बोला ।
“तुम पागल हो । मुकुल सोहन लाल की हत्या नहीं कर सकता । हम दोनों को सोहन लाल की स्टेटमेंट के बारे में मालूम था । उस स्टेटमेंट की वजह से ही सोहन लाल आज तक जिन्दा था ।”
“इन बातों से इस हकीकत में कोई फर्क नहीं पड़ता कि सोहन लाल की हत्या इसी ने की है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मेरे एक ऐक्शन ने इसे मजबूर कर दिया था । मेरे कहने पर फ्लोरी नाम की फोटोग्राफर ने मैड हाउस में मुकुल की तस्वीर खींच ली थी । पन्द्रह मिनट में उसने मुकुल की तस्वीर के दो प्रिंट तैयार कर दिये थे और मुझे मैड हाउस में ही सौंप दिये थे । मुकुल ने पता नहीं मुझे क्या समझा लेकिन यह इस विचार से घबरा गया कि किसी ने इसकी तस्वीर खींची थी । उसने शायद यही समझा कि कोई उसकी पिछली जिन्दगी के बारे में जान गया था और अब उसकी तस्वीर की सहायता से उसका सम्बन्ध उस मनोहर ललवानी से जोड़े जाने की कोशिश की जा रही थी जो पुलिस की निगाहों में पांच साल पहले बान्द्रा पुल पर हुई मुठभेड़ में मारा जा चुका है । मुकुल ने सोहन लाल को मेरे पीछे लगा दिया । सोहन लाल ने अपने साथियों के साथ मेरे फ्लैट तक मेरा पीछा किया और फिर वहां मेरी मरम्मत करके मुझ से मुकुल की तस्वीर छीन ली लेकिन किसी को यह नहीं मालूम था कि फ्लोरी ने मुझे तस्वीर के दो प्रिन्ट दिये थे जिनमें से एक मैं पहले ही तफ्तीश के लिये बम्बई रवाना कर चुका था और जिसके बारे में मेरी निरंतर निगरानी करते रहने के बावजूद सोहन लाल को खबर नहीं हुई थी ।”
दूसरी तस्वीर का जिक्र सुनते ही मुकुल के मुंह से सिसकारी निकल गई ।
“अगले दिन तक मैंने किसी प्रकार सोहन लाल के घर का पता जान लिया । मैं सोहन लाल पर चढ दौड़ा । मैं उसे रिवाल्वर से धमका कर यह जानना चाहता था कि वह किस के लिए काम कर रहा था लेकिन इसकी नौबत ही न आई । मुकुल वहां पहले से ही मौजूद था । वह किवाड़ के पीछे था और मेरी निगाह केवल सामने खड़े सोहन लाल पर थी इसलिये मैं मुकुल को नहीं देख सका था । मुकुल ने मुझे देखा तो यह और भी भयभीत हो गया । इसे आशा नहीं थी कि मैं इतने आसानी से सोहन लाल का पता जान लूंगा और फिर उस चढ दौड़ने की हिम्मत करूंगा । इसी हड़बडाहट में इसके दिमाग में एक स्कीम उभरी और इसने उस पर अमल कर डाला । इसने मेरे सोहन लाल के कमरे में प्रविष्ट होते ही मेरे सिर के पृष्ठ भाग में किसी भारी चीज का प्रहार किया । मैं बेहोश होकर गिर पड़ा । इसने मुझे घसीटकर दूसरे कमरे में डाल दिया । इसने मेरी रिवाल्वर उठाई और सोहन लाल का मुंह बन्द रखने के इरादे से उसे शूट कर दिया ।”
“सोहन लाल को क्यों ? तुम्हें क्यों नहीं जबकि इसे यह मालूम था कि अगर सोहन लाल मर गया तो उसकी स्टेटमेंट अपने आप पुलिस तक पहुंच जायेगी और फिर हम दोनों ही मुसीबत में पड़ जायेंगे ।”
“यह सवाल तुम अपने भाई से ही क्यों नहीं करते ?”
राम ललवानी ने कठोर नेत्रों से मुकुल को देखा ।
“वह... वह उस समय...” - मुकुल हकलाता हुआ बोला - “उस समय स्थिति मुझे ऐसी लगी थी कि अगर सोहन लाल की हत्या हो जाती तो इल्जाम इस आदमी पर ही आता क्योंकि रिवाल्वर इसकी थी और यह उसके फ्लैट पर अच्छी नीयत से नहीं आया था ।”
“गधे !” - राम ललवानी गुर्राकर बोला - “तुम सोहन लाल की स्टेटमेंट को कैसे भूल गये ?”
मुकुल कुछ क्षण कसमसाया और फिर फट पड़ा - “क्यों कि मुझे इस स्टेटमेंट पर कभी विश्वास नहीं हुआ था । मेरी निगाह में वह सोहन लाल की कोरी धमकी थी ताकि हम उसका मुंह बन्द करने के लिये उसको हत्या न कर दें । राम, सोहन लाल हमें बरसों से ब्लैकमेल कर रहा था और मुझे यह बात एक क्षण के लिये भी पसन्द नहीं आई थी । मैं सोहन लाल की जुबान स्थायी रूप से बन्द करना चाहता था । उस दिन मुझे मौका दिखाई दिया और मैंने ऐसा कर दिया ।”
“तुमने मुझे क्यों नहीं बताया ?” - राम ललवानी फुंफकारा ।
“इसलिये क्योंकि तुम फिर मुझे जलील करते । हमेशा की तरह मुझ पर जाहिर करते कि मैं गधा हूं, मुझ में धेले की अक्ल नहीं है, वगैरह ।”
राम ललवानी बेबसी से दांत पीसता हुआ मुकुल की ओर देखता रहा और फिर धीरे से बोला - “कमीने, सोहन लाल की स्टेटमेंट की बात सच्ची थी । तुमने अभी सुनील को कहते सुना है कि उसने स्टेटमेंट की कापी देखी थी ।”
“फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।” - मुकुल नर्वस भाव से बोला - “जब तक स्टेटमेंट पुलिस तक पहुंचेगी और पुलिस उस पर कोई एक्शन लेगी, तब तक मैं यहां से गायब हो चुका होऊंगा ।”
“अभी तक हुए क्यों नहीं ?” - सुनील ने पूछा ।
“क्योंकि मुझे दो काम और करने थे । एक मुझे बिन्दु को अपने साथ ले जाना था” - वह रेडियोग्राम के सामने बैठी बिन्दु की ओर संकेत करता हुआ बोला - “मैं पच्चीस लाख रुपया अपने पीछे छोड़कर नहीं जा सकता था ।”
“लेकिन बिन्दु नाबालिग है । अट्ठारह साल की उम्र से पहले उसे एक धेला नहीं मिल सकता ।”
“मैं एक साल इन्तजार कर सकता हूं और इस बात की स्कीम भी मेरे दिमाग में है कि उस एक साल के अरसे में मैं कावेरी की जुबान कैसे बन्द रखूंगा ।”
“तुम उसे धमकाओगे ?”
मुकुल चुप रहा ।
“और दूसरा काम क्या था ?” - राम ललवानी ने पूछा ।
मुकुल ने उत्तर न दिया । पिछले कुछ क्षणों में जो आत्मविश्वास उसने स्वयं में पैदा किया था, वह दोबारा हवा में उड़ा जा रहा था । उसके होंठ फिर कांपने लगे ।
“दूसरा क्या काम था ?” - राम ललवानी गर्ज पर बोला - “बकते क्यों नहीं हो ?”
मुकुल नहीं बोला ।
“दूसरा काम यह था कि इसने फ्लोरी की हत्या करनी थी ।” - सुनील बोला ।
“तुमने फ्लोरी की हत्या की ?” - ललवानी ने पूछा ।
मुकुल निगाहें चुराने लगा ।
“फ्लोरी की हत्या से यह कैसे इनकार कर सकता है ?” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “वहां यह अपना ट्रेड मार्क छोड़कर आया है । फ्लोरी की हजार टुकड़ों में बंटी हुई लाश ही क्या इस बात का सुबूत नहीं कि इसने फ्लोरी की हत्या की है !”
“तुम चुप रहो ।” - राम ललवानी फुंफकार कर बोला । उसने आगे बढकर मुकुल का कालर पकड़ लिया और उसे झिंझोड़ता हुआ बोला - “तुमने उस लड़की की हत्या की है ?”
“राम” - मुकुल कम्पित स्वर में बोला - “राम - उस - लड़की के पास म.. मेरी तस्वीर का नैगेटिव था ।”
राम ललवानी ने उसका कालर छोड़ दिया और उससे अलग हट गया । उसके चेहरे पर क्रोध के स्पष्ट चिन्ह अंकित थे ।
“नैगेटिव की खातिर तुमने उस निर्दोष लड़की को कसाई की तरह काट डाला ।” - सुनील बोला ।
“वह नैगेटिव देती नहीं थी ।” - मुकुल यूं बोला जैसे ख्वाब में बड़बड़ा रहा हो ।
मुकुल ने अपने हाथों में अपना मुंह छुपा लिया और फूट-फूट कर रोने लगा ।
बिन्दु बेखबर रिकार्ड सुन रही थी ।
“मैंने... मैंने” - मुकुल रोता हुआ बोला - “अपने कपड़े उतार दिये और उसके साथ...”
“लेकिन हमेशा की तरह तुमसे कुछ हुआ नहीं ।” - सुनील बोला ।
“मैं पागल हो गया । मैंने चाकू अपने हाथ में ले लिया और उसे उसकी बाईं छाती में घोंप दिया । फिर मैंने उस की जांघ काट डाली । उसकी पिंडलियां उधेड़ डालीं, उसकी छातियों को पहले तरबूजे की तरह काटा और फिर जड़ से काट दिया । और फिर उसके शरीर की ओर देखा । उस समय उस लड़की का शरीर खूबसूरत नहीं लग रहा था इसलिये उत्तेजक भी नहीं था । मैं चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया ।”
कई क्षण फिर खामोशी छा गई । रेडियोग्राम से निकलते संगीत के स्वरों के साथ-साथ मुकुल के धीरे-धीरे सुबकने की आवाज कमरे में गूंज रही थी ।
“रोना बन्द करो ।” - राम ललवानी दहाड़कर बोला ।
मुकुल ने सिर उठाकर राम की ओर देखा । वह स्वयं को नियन्त्रित करने का प्रयत्न करने लगा ।
“जिसको अपनी वीरता का कारनामा सुना रहे थे” - राम ललवानी सुनील की तरफ संकेत करता हुआ बोला - “अब इसका क्या करोगे ?”
मुकुल मुंह से कुछ न बोला । उसने अपने आंसू पोंछे और धीरे से अपनी पतलून की जेब में हाथ डाला । जब उसने हाथ बाहर निकाला तो उसके हाथ में चाकू चमक रहा था । उसने चाकू के हत्थे में लगा बटन दबाया । चाकू का लम्बा फल एकदम हवा में लहरा गया । शायद मुकुल के पास हर समस्या का एक ही हल था ।
वह चाकू वाला हाथ अपने सामने किये धीरे-धीरे आगे बढा ।
सुनील सावधान हो गया ।
राम ललवानी ने कुछ कहने के लिये अपना मुंह खोला लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल दिया ।
एकाएक मुकुल ने सुनील पर छलांग लगा दी । सुनील यूं एक ओर कूदा जैसे क्रिकेट का खिलाड़ी कैच लेने के लिये डाई मारता है । उसका शरीर भड़ाक से नंगे फर्श से टकराया । उस के शरीर की चूलें हिल गईं ।
मुकुल फिर उस पर झपटा ।
सुनील ने करवट बदली और अपनी पूर्ण शक्ति से एक कुर्सी को पांव की ठोकर मारी । कुर्सी एकदम उसकी ओर बढते हुए मुकुल के सामने जाकर गिरी । मुकुल कुर्सी की टांगों में उलझा और फिर कुर्सी के साथ उलझा-उलझा ही धड़ाम से फर्श पर आकर गिरा ।
फिर एकाएक वातावरण में एक हृदयविदारक चीख गूंज उठी । चीख की आवाज का प्रभाव बिन्दु पर भी पड़ा । उसने रेडियोग्राम का स्विच बन्द कर दिया और उठकर खड़ी हो गई । वह विस्फारित नेत्रों से कभी फर्श पर गिरे मुकुल को, कभी राम ललवानी को और कभी सुनील को देख रही थी । उसके नेत्रों की पुतलियां फैली हुई थीं और होंठ मजबूती से भींचे हुए थे । वह अपने स्थान से न हिली । ऐसा लग रहा था जैसे मुकुल की चीख का प्रभाव उस पर हुआ हो लेकिन स्थिति को समझ पाने की क्षमता उसमें न हो ।
मुकुल अपने हाथों और घुटनों के सहारे उठने की कोशिश कर रहा था । चाकू कहीं दिखाई नहीं दे रहा था । उसके चेहरे पर तीव्र वेदना के भाव थे । उसकी आंखें मुंदी जा रही थीं । वह छोटे-छोटे उखड़े-उखड़े सांस ले रहा था । फिर एकाएक उसका शरीर उलटा और पीठ के बल फर्श पर आ गिरा ।
चाकू उसके पेट में घुस गया था । उसके शरीर से बाहर केवल चाकू का हैंडल दिखाई दे रहा था ।
उसके कांपते हुए हाथ पेट में घुसे चाकू के हैंडल की ओर बढे । दोनों हाथों से उसने मजबूती से हैंडल थाम लिया और उसे बाहर खींचने की कोशिश करने लगा । फिर हैंडल से उसके हाथ अलग हट गये । शायद चाकू बाहर खींच पाने की शक्ति उसमें नहीं रही थी । उसकी आंखों में मौत का साया तैरने लगा था ।
“राम ! राम !” - उखड़ती हुई सांसों के बीच में उस के मुंह से निकला - “राम ! राम... म !”
पता नहीं वह अन्तिम समय में भगवान को याद कर रहा था या अपने भाई को सहायता के लिये पुकार रहा था ।
राम ललवानी तेजी से अपने भाई की ओर लपका ।
उसी क्षण मुकुल के मुंह से खून का फव्वारा सा फूटा, वह आखिरी बार छटपटाया और फिर शान्त हो गया ।
“मनोहर ! मनोहर !” - राम ललवानी उसकी लाश के समीप बैठा धीरे-धीरे पुकार रहा था ।
मुकुल उर्फ मनोहर मर चुका था ।
राम ललवानी उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया । वह सुनील की ओर घूमा । उसके हाथ में रिवाल्वर थी । उसकी आंखों से खून बरस रहा था ।
उसने अपना रिवाल्वर वाला हाथ ऊंचा किया ।
सुनील ने अपनी दाईं कलाई सीधी की और स्लीव गन के शिकंजे पर जोर डाला ।
जहर से बुझा छोटा सा तीर तेजी से स्लीव गन में निकला और राम ललवानी की जाकर छाती में घुस गया ।
राम ललवानी की रिवाल्वर से फायर हुआ । गोली छत से जाकर टकराई । तीर की वजह से उसका निशाना चूक गया था । दोबारा गोली चलाने का मौका ललवानी को न मिला, रिवाल्वर उसके हाथ से निकली और भड़ाक की आवाज से फर्श पर आ गिरा । राम ललवानी का चेहरा राख की तरह सफेद हो गया । वह तनिक लड़खड़ाया और फिर धड़ाम से अपने भाई की रक्त में डूबी लाश के ऊपर जा गिरा ।
सुनील रिवाल्वर की ओर झपटा ।
उसी क्षण भड़ाक से कमरे का दरवाजा खुला ।
“खबरदार !” - कोई चिल्लाया ।
सुनील ठिठकर कर खड़ा हो गया । उसने घूमकर देखा । दरवाजे पर हाथ में रिवाल्वर लिये पूरन सिंह खड़ा था ।
“ये कैसे मरे ?” - पूरन सिंह ने पूछा । उसके हाथ में रिवाल्वर थी ।
“मुकुल चाकू लेकर मुझ पर झपटा था लेकिन एक कुर्सी से उलझकर गिर पड़ा था और अपने ही चाकू का शिकार हो गया था । राम ललवानी मुझे शूट करना चाहता था लेकिन मैंने उससे पहले उसे अपने हथियार का निशाना बना लिया ।”
“कैसा हथियार ?”
सुनील ने कोट की बांह ऊंची करके पूरन सिंह को स्लीव गन दिखाई और बोला - “इस बांस की नली में से जहर से बुझा तीर निकलता है ।”
पूरन सिंह के नेत्र फैल गये ।
बिन्दु एक शराबी की तरह सुनील की बांहों में झूल रही थी ।
“यह लड़की कौन है ?” - पूरन सिंह ने पूछा ।
“यह रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की लड़की है । मुकुल इसे भगाकर लाया था । उसने इसे कोई मादक पदार्थ खिला दिया है । इस समय इसे अपनी होश नहीं है । मेरे ख्याल से इसे यह भी नहीं मालूम है कि यह कहां है । इस घर में इस लड़की की मौजूदगी यहां मौजूद हर आदमी के लिये समस्या बन सकती है । पूरन सिंह, मेरी बात मानो । इसकी कोठी पर इसकी मां कावेरी को फोन कर दो कि तुम इसे लेकर आ रहे हो । फोन नम्बर मैं बताये देता हूं । इसे चुपचाप कोठी पर छोड़ आओ और यह बात बिल्कुल भूल जाओ कि तुमने कभी इसकी सूरत भी देखी थी । अगर तुम अपनी जुबान बन्द रखोगे तो किसी को यह मालूम नहीं हो सकेगा कि यह कभी यहां आई थी और जब ललवानी भाई दम तोड़ रहे थे तो यह भी यहां मौजूद थी । तुम्हारी इस सेवा के बदले में मैं तुम्हें नकद दो हजार रुपये दिलवाने का वायदा करता हूं ।”
पूरन सिंह सोचने लगा ।
“यह रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की लड़की है ?” - थोड़ी देर बाद पूरन बोला ।
“हां ।” - सुनील बोला ।
“फिर पांच ।”
“क्या पांच ?”
“पांच हजार रुपये ।”
“आल राइट ।”
“रुपये कब मिलेंगे ?”
“जब यह सुरक्षित कोठी पर पहुंच जायेगी ।”
“यह पहुंच गई समझो ।”
“तुम्हें रुपये मिल गये समझो । मैं कावेरी को फोन कर दूंगा ।”
पूरन सिंह ने रिवाल्वर जेब में रख ली और बिन्दु की ओर हाथ बढा दिया ।
सुनील ने बिन्दु का हाथ थमा दिया । बिन्दु चुपचाप पूरन सिंह के साथ हो ली ।
उसी कमरे में टेलीफोन रखा था । सुनील ने पहले कावेरी को और फिर पुलिस हैडक्वार्टर को फोन कर दिया । उसने कोट की जेब में से अपने जूते निकाले और उन्हें पैरों में पहन लिया । लाशों की ओर से पीठ फेरकर वह एक कुर्सी पर बैठ गया और पुलिस के आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
***
“...फिर मैंने पुलिस को फोन कर दिया ।” - सुनील बोला ।
वह पुलिस हैडक्वार्टर में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के कमरे में बैठा था । कमरे में तीन पुलिस अधिकारी और थे और एक स्टेनो था जो सुनील का बयान नोट कर रहा था ।
“बस ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“बस ।”
“कहानी शानदार है । फिर से सुनाओ ।”
“अभी कहानी कितनी बार और सुनानी पड़ेगी मुझे ?”
“गिनती मत गिनो ।” - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला - “सुनाते रहो । तब तक सुनाते रहो न हो जाये कि तुम्हारी कहानी कहानी, नहीं हकीकत है ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर नये सिरे से सारी कहानी सुनानी आरम्भ कर दी । सारी घटना को वह सातवीं बार दोहरा रहा था ।
सुबह के चार बजे प्रभूदयाल ने उसके सामने कुछ टाइप किये कागजात पटके और बोला - “कोई एतराज के काबिल बात न दिखाई दे तो इस पर हस्ताक्षर करो और दफा हो जाओ ।”
सुनील पढने लगा । उसे कहीं एतराज के काबिल बात दिखाई न दी । वह उसका अपना ही बयान था ।
उसने हस्ताक्षर कर दिये ।
“फूटो ।” - प्रभूदयाल कागज सम्भालता हुआ बोला ।
“हैरानी है ।” - सुनील उठता हुआ बोला ।
“किस बात की ?”
“इस बार तुमने मुझे हथकड़ी नहीं पहनाई । मुझे जेल में नहीं डाला । मुझ पर केस नहीं बनाया । बस मेरे बयान पर मुझ से साइन कराए और छोड़ दिया ।”
“बस इसलिये क्योंकि इस बार राजनगर के कई प्रसिद्ध वकील तुम्हारे बचाव के लिये मोर्चा बनाये बाहर खड़े हुए हैं ।” - प्रभूदयाल जलकर बोला - “उन्हें मौका मिलने की देर है और वे मेरी ऐसी-तैसी करके रख देंगे ।”
“तुम किन वकीलों की बात कर रहे हो ?”
“जो तुम्हारा प्रतिनिधित्व करने के लिये बाहर जमघट लगाये खड़े हैं ।”
“यानी कि मैं यहां से पहले भी जा सकता था ?”
“हां ।”
“और तुमने मेरे वकीलों से झूठ बोलकर मुझे यहां फंसाये रखा ?”
“हां ।”
“ऐसी की तैसी तुम्हारी ।”
“गाली दे लो । कोई बात नहीं । लेकिन अगर यह बात तुमने जाकर वकीलों की फौज को बताई या उन्हें मेरे बारे में भड़काया तो बाई गॉड मैं तुम्हारी हड्डी-पसली एक कर दूंगा ।”
“धमकी दे रहे हो ?”
“हां ।”
“बड़े कमीने आदमी हो । अगर मैं मर गया तो ?”
“तो हिन्दुस्तान के पचास करोड़ आदमियों में से एक आदमी कम हो जाएगा ।” - प्रभूदयाल लापरवाही से बोला ।
“लानत है तुम पर ।” - सुनील बोला और भुनभुनाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
पूरन सिंह ने बिन्दु को सुरक्षित घर पहुंचा दिया था । बिन्दु ने मादक नशों का प्रयोग अभी आरम्भ ही किया था । वह अभी उनके सेवन की आदी नहीं बनी थी । कुछ दिन हस्पताल में रहने के बाद वह ठीक हो गई । उस सारी घटना का बिन्दु के जीवन पर बहुत भारी प्रभाव पड़ा । होश में आने के बाद उसने कावेरी के पांव पकड़ लिये और फूट-फूटकर रोई । मां-बेटी में मिलाप हो गया । हस्पताल में आने के बाद बिन्दु एकदम सम्भल गई । उसने अपने हिप्पियों जैसे सारे परिधान और बाकी चीजें सड़क पर फेंक दी । मैड हाउस जैसी जगह की ओर उसने दुबारा झांक कर भी न देखा ।
कावेरी की निगाहों में सुनील ने उसके परिवार पर वह अहसान किया था जिसका बदला वह जन्म-जन्मान्तर तक नहीं चुका सकती थी । उसने सुनील को कुछ धन देना चाहा जिस पर वह बहुत क्रोधित हुआ । मंगत राम ने सुनील को एक चैक पुरस्कार रूप में भिजवाया जो सुनील ने रमाकांत को दे दिया ।
चैक की रकम एक दर्जन रमाकांतों का नगदऊ का लालच शान्त करने के लिये काफी थी ।
समाप्त
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