खूनी चण्डालन

मेरी साँसे चढ़ी हुई थी। मैं बेतहाशा भागे जा रहा था। चारों तरफ घनघोर अंधेरा छाया हुआ था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस दिशा में भागूँ। सुखी लंबी घास कि सरसराहट गूंजने लगी। झींगुर भी पीछे नहीं रहे। नदी कि तट कि ओर से आ रही मेढकों कि टर्र-टर्राहट में झींगुरों कि आवाजें धीमे और अजीब स्वर में गूंजने लगा।

नदी पर बने पुराने लकड़ी के पुल को पार कर मैंने किसी गाँव कि सीमा में प्रवेश कर लिया था। गाँव कि बाहरी सीमा पर टूटी फूटी पुरानी बेजान झोंपड़ी साँझ के प्रकाश में धुंधली सी दिख रही थी। चारों और घनघोर सन्नाटा था। मेरी पैरो की आवाज से सन्नाटा भंग होने लगा था। मेरा मन हुआ कि उस झोंपड़ी में जा कर शरण ली जाए और किसी तरह उस चण्डालन से पीछा छुड़ाया जाए।

मैं एक पल के लिए उस जगह पर खड़ा हुआ और अपनी नजरें उस सुनसान इलाके में चारों तरफ घूमा दिया। वहाँ मेरे अलावा कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने उस टूटी बेजान झोंपड़ी में रात गुजारना बेहतर समझा। मेरे कदम उस उस टूटी झोपड़ी कि तरफ बढ़ चली। वह झोपड़ी पुरानी होने कि वजह से उसका दरवाजा सड़ने कि वजह से गल चुका था। मैंने जैसे ही हाथ लगाया वह किसी मिट्टी कि ढेर कि तरह ढह गया।
सायं... सायं... !

करता हुआ चमगादड़ का एक झुण्ड फड़फड़ाता हुआ मेरे आस पास गोल गोल चक्कर काटने लगा। मैंने उसे भागने कि कोशिश कि लेकिन मेरी यह कोशिश नाकामयाब रही।

तभी मेरे कानों से किसी के सूखे पत्तों के चरचराने कि आवाज आई। मेरी नजर स्वतः ही उस दिशा में घूम गई। मैंने देखा कि कुछ फुट कि दूरी पर ही वह चण्डालन दबे पाँव इस दिशा में आ रही थी। उसे देखते ही मेरी मुंह से फिर से चीख निकल गई।

मेरी वह आवाज इतनी तेज थी कि वह वीराना मेरी चीख कि प्रतिध्वनियों से गूंज उठा। मैंने अपने सर पर पैर रखा और उस गाँव कि अंदरूनी सीमा कि तरफ भाग पड़ा। मैं लगातार भागता रहा। मुझे इस बात का एहसास हो चुका था कि आज कि रात मेरी ज़िंदगी कि आखिरी रात थी और अब मेरा जीवित रहना नामुमकिन है। मुझे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। मुझे अब अपनी गलती का एहसास हो गया था कि मुझे वैसा नहीं करना चाहिए था। मुझे गाँव के लोगों कि बात मान लेनी चाहिए थी।

मुझे डेढ़ घण्टे पहले की बात याद आ गई। मेरा नाम कार्तिक डंगवाल है और अभी 4 महीने पहले ही मेरी पहली पोस्टिंग देहरादून नामक जगह पर हुई थी। मैं वहाँ बिजली विभाग में तकनीशियन के पद पर कार्यरत था। चार महीने बाद पहली दफा मुझे अपने गाँव देवबन जाने का मौका मिला था। मेरा गांव जौनसार-बावर में पड़ता था।। मैं बहुत खुश था क्योंकि मैं बहुत दिनों बाद आज गाँव जाने वाला था और मुझे आसानी से 4 दिनों कि छुट्टी मिल गई थी।

मेरे गाँव का नाम देवबन है जो कि  देहरादून से 107 किलोमीटर कि दूरी पर ही था। मैंने घड़ी में देखा तो रात के साढ़े दस बज रहे थे। खाना बनाकर खाने और बर्तन धोने में मुझे कुछ वक़्त लग गया था जिसकी वजह से इतना वक़्त हो गया था। खैर अपनी मोटर साइकिल थी तो मुझे समय कि उतनी परवाह नहीं थी। मैंने अपनी बजाज पल्सर 135 cc मोटर साइकिल ली और अपने गाँव देवबन के लिए निकल पड़ा।

मुझे आज ही ऑफिस में किसी ने बताया था कि मेरी गाँव जाने के लिए कालसी नामक जगह के पास यमुना नदी पर बहुत बड़ा सेतु बना था और दुपहिया वाहन आसानी से आवागमन कर सकती थी। मैंने अपनी मोटर साइकिल उस तरफ ही घुमा ली। मैं जैसे ही उस उस सेतु पर प्रवेश करने वाला ही था कि तभी एक आदमी पता नहीं अचानक कहाँ से आ गया और मेरी मोटर साइकिल को रोकते हुए बोला, ‘कहाँ जा रहे हो इस वक़्त?’

मैंने उसे जवाब देते हुए कहा, ‘अरे मैं अपने गाँव जा रहा हूँ लेकिन तुम कौन हो?’
उसने मेरी बात सुनते ही मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘क्या तुम इस जगह नए हो या तुम्हें पता नहीं?’
मैं बोला, ‘तुम कहना क्या चाहते हो?’
इस बार उसने अजीब बात कही, ‘क्या तुम्हें अपनी ज़िंदगी प्यारी नहीं?’
मैं गुस्से से बोला, ‘यह क्या अनाप-शनाप बोले जा रहे हो? देखो मुझे देर हो रही है और मुझे गाँव जाने दो।’

मेरा इतना कहना था कि तभी उसने मेरी मोटर साइकिल कि चाभी घुमाकर बंद करते हुए बोला, ‘इस सेतु का उद्घाटन नहीं हुआ है इसलिए रात को इस रास्ते से तुम नहीं जा सकते?’
‘देखो, मुझे गुस्सा ना दिलाओ, मुझे भी इस बात कि खबर है कि दुपहिया वाहन के लिए यह नियम नहीं है वह आसानी से आ रही हैं?’
‘बिल्कुल आ जा रहीं है लेकिन...!’

‘लेकिन क्या जल्दी बोलो मुझे जाना भी है।’

वह अजनबी फिर बोला, ‘लेकिन तुम रात के इस वक़्त नहीं जा सकते नहीं तो वो तुम्हें मार डालेगी।’
मैं इस बार घबराते हुए बोला, ‘वो चण्डालन?’
मैंने इस बार उसे अपनी आंखे दिखाते हुए कहा, ‘कौन चण्डालन तुम किसकी बात कर रहे हो?’

वह बोला, ‘लगता है तुम वाकई नए हो और इस सेतु के बारे में कुछ नहीं पता? तो सुनो मैं तुम्हें उसके बारे में बताता हूँ। इस सेतु पर किसी वजह से कुछ समय के लिए रोक लगा दी गई है। फिलहाल निर्माण कार्य पूरी तरह से बंद है। जबकि केवल साइड कि सुरक्षा दीवार बनानी ही बाकी है। इसलिए अभी इस सेतु का उद्घाटन भी नहीं हुआ है और लोगों ने इस पर चोरी छिपकर आवागमन भी शुरू कर दिया है जो कि गलत है।

वैसे भी हर सेतु पूरी होने के बाद तब तक अधूरी ही मानी जाती है जब तक उसे किसी मनुष्य कि बलि उस चण्डालन को नहीं दे जाती। ऐसा ना करने पर वो चण्डालन रुष्ट हो जाती है और फिर अनगिनत जान लेती रहती है। किसी एक खास जगह पर बिना किसी कारण दुर्घटनाएं आम हो जाती हैं। उन दुर्घटनों कि कोई वजह तलाशने से भी नहीं मिलती है। इसलिए मेरी बात मानो रात को इस वक़्त इस सेतु से जाना अपनी मौत को दावत देने से कम नहीं है।’

उसकी बात सुनते ही मैं पहले जोर से हंसा और जब मेरी हंसी शांत हो गई तो मैं उस से बोला, ‘ग्रामीण इलाकों में ​अशिक्षा और जागरुकता की कमी के चलते लोग आज भी अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। यही कारण है कि पुराने समय से चला आ रही रूढ़ियां उतनी ही जीवंत हैं जितनी पहले हुआ करती थी।

देखो मैं पढ़ा लिखा और एक समझदार युवक हूँ मैं इन ऊल जुलूल बातों को नहीं मानता और ना ही विश्वास करता हूँ। यदि हर सेतु के निर्माण में एक इंसान कि बलि दी जाने लगे तो तुम्हारे हिसाब से दुनिया में लाखों लोग रोज इसी वजह से मरते होंगे।
चल हट मुझे जाने दे मुझे, अपनी चण्डालन को कह देना कि जा रहा हूँ मैं दम है तो रोक के दिखाए।’

यह कहते हुए मैंने उसे अपने हाथों से धकेल दिया और वह एक तरफ गिर पड़ा। मैंने अपनी मोटर साइकिल कि चाभी घुमा दी और उसे स्टार्ट कर के आगे बढ़ पड़ा। अभी कुछ दूर चल ही था कि मुझे मौसम में अचानक परिवर्तन महसूस हुआ शायद यह नीचे यमुना नदी के वजह से था। तभी मेरी नजर सेतु के बीचों बीच पड़ी, मैंने देखा कि कोई एक औरत अपने एक हाथ में धारदार हथियार को थामे और दूसरे हाथ में  एक कटोरा पकड़ी हुई थी। उसे इस तरह से देख मेरे दिल में भय घर कर गया। मैं अगले ही पल उस से टकराने वाला था। लेकिन यह तो चमत्कार ही हो गया। मैं उसके शरीर से आर-पार हो गया था। मेरे लिए यह विश्वास करना मुश्किल था। मैंने पीछे पलटकर देखा तो उसके तो पाँव ही नहीं थे। वह हवा में उड़ती हुई मेरी ओर आ रही थी।

तभी अचानक मेरी बाइक फिसली और मैं सेतु पर गिर गया। मेरी मोटर साइकिल उस सेतु से फिसलती हुई यमुना नदी में जा गिरी। वो तो शुक्र था कि मेरे हाथों में कहीं से निर्माणाधीन सरिया आ गया और मैं यमुना नदी में सामने से बच गया। मैंने देखा वह चण्डालन बिल्कुल मेरे सामने थी। उसने अपना धारदार हथियार उठाई और बोली, ‘तुझे चेतावनी भिजवाई थी लेकिन बावजूद तूने उसके मुझे ललकारा। अब तुझे इस चण्डालन को अपनी बलि देनी ही होगी। तेरी मौत अब इस सेतु के लिए बहुत जरूरी हो गई है।’

उसकी यह बात सुनते ही मुझे विश्वास हो गया कि वह इंसान बिल्कुल सही कह रहा था। मैं अपनी जगह से उठा और अपने प्राण बचाने के लिए बेतहाशा भागे जा रहा था।

अब डेढ़ घंटे बाद.......
मैं भागते-भागते अब किसी गाँव में आ गया था। आस पास कुछ घर दिखाई देने लगे थे। मैंने झट से दरवाजों को पीटना शुरू कर दिया। उस घर से किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैंने झट से उस जगह से पलटा और सामने वाले घर का दरवाजा पीटने के लिए आगे बढ़ा तभी मेरे कदम उसी जगह पर जम गए। मैंने देखा कि सामने वाले घर कि छत पर सात उल्लू एक कतार में बैठे हुए थे।

मैंने खुद को मानसिक स्तर पर दृढ़ किया और उस घर के दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया। मेरा ऐसा करते ही वह सारे उल्लू अजीब सी आवाज करते हुए उस छत से उड़ गए और उस दिशा कि तरफ उड़ गए जिस तरफ से मैं आया था। मैं उस तरफ से आ रही सड़क पर देखा तो चौंक कर रहा गया, वह चण्डालन एकदम से धीमी चाल में मेरी तरफ ही आ रही थी। वह एकदम से निश्चिंत थी मानो जैसे उसे पता था कि उसने अपने शिकार को किसी मकड़ी कि तरह अपने जाले में फंसा लिया हो। मैं अपनी धड़कनों का शोर अब साफ साफ सुन सकता था। मेरे हाथ पाँव कांपने लगे थे। घड़ी के हर बढ़ते पल के साथ मेरी धड़कनों कि रफ्तार बढ़ती जा रही थी।

मैं भी अब इस चण्डालन के हाथों मरने ही वाला था। मुझे अब मरने से कोई बचा नहीं सकता था। पलक झपकते हीवह चण्डालन मेरे सामने खड़ी थी। उसे अपने सामने देखते ही मैं धरती पर गिर पड़ा। उसकी कर्कश हंसी मेरे कानों में अब चुभने लगी थी। डर के मारे मेरे हाथ पाँव अब फूल गए थे। मेरे अंदर इतनी साहस नहीं थी कि मैं दुबारा अपने पाँव पर खड़ा हो सकूँ फिर भागना तो दूर कि बात थी। वह चण्डालन धीरे-धीरे नीचे झुकी और अब बहुत तेज से हँसने लगी। उसके मुंह से लार टपक कर मेरे चेहरे पर गिर रही थी।

मैं एड़ी से चोटी तक एक बार फिर से कांप गया। वह मेरे चेहरे के और करीब आया और झट से उसने अपनी लंबी जीभ मुंह से बाहर निकाल दी। वह अपने जीभ से मेरे चेहरे को चाटने लगी। उसकी जीभ से कोई चिपचिपा तरल पदार्थ निकल रहा था जो कि मेरे पूरे चेहरे पर अब चिपक गई थी।

अगले ही पल उसने अपना मुंह खोला और उसके चमचमाते नुकीले दाँत देखते ही मेरी एक जोरदार चीख निकल गई।
‘नहीं.... sss … कोई बचाओ मुझेssss!’
उस चीख के साथ मेरे आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा। ऐसा लगने लगा जैसे कि वह नुकीले दाँत मेरे गर्दन पर चुभने लगे थे। हर गुजरते पल के साथ मैं शून्य में विलीन होता जा रहा था। उस चण्डालन ने फिर अपनी धारदार हथियार आसमान में उठाया और खच्चाक से मेरी खोपड़ी धड़ से जुदा कर दी। उसने मेरे खोपड़ी को अपनी मुट्ठी में जकड़ा और उस से एक एक बूंद उस कटोरे में निचोड़ा और वह वहाँ से चली गई।

जब मेरी आंखें खुली तो अपने आसपास बहुत से लोगों का जमावड़ा देखा। सभी मुझे घेर कर खड़े थे। चारों तरफ बहुत तेज उजाला था। उस उजाले कि वजह से मेरी आंखें चौंधिया रही थी। मैंने अपने हाथ को उठने कि कोशिश कि तो देखा वह हिल नहीं पा रही थी। मेरे अंदर डर कि एक ठंडी लहर दौड़ गई। मैं डरते हुए बोला,

‘म... मेरे हाथ पाँव क्यों नहीं हिल रहे? क्या मैं म...मर गया हूँ?’
मेरे इतना कहने के बाद भी किसी ने मेरा जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। मैंने खड़े हो कर कहा, ‘अरे मैं जीवित हूँ मुझे कुछ नहीं हुआ। यह देखो मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ।’
मेरे सारे प्रयास व्यर्थ रहे। अचानक मेरी नजर धरती पर पड़ी तो मेरे होश फाख्ता हो गए। जब मैंने देखा कि मेरा वहाँ धड़ पड़ा हुआ था और उसे से दो फुट कि दूरी पर ही मेरा सिर खून से लथपथ पड़ा हुआ था जिसकी खुली आंखे मेरी तरफ देखती हुई मेरा उपहास उड़ा रही थी।

तभी मेरे कानों में एक आवाज आई, ‘लो भाई चण्डालन ने इस अमावस कि रात को फिर ले ली एक और बलि। ना जाने कब उस चण्डालन कि इच्छा तृप्त होगी और यह नरसंहार रुकेगा? ना जाने कब उस अधूरे सेतु का काम पूरा होगा?’
मैं वहीं सामने वाले पीपल के पेड़ पर जा कर बैठ गया और इंसान कि बातों को याद करने लगा जब मैंने उस से कहा था,"अपनी चण्डालन को कह देना कि जा रहा हूँ मैं दम है तो रोक के दिखाए।’

*समाप्त*