घड़ी ने एक बजाया और इमरान बिस्तर से उठ गया। दरवाज़ा खोल कर बाहर निकला। चारों तरफ़ सन्नाटा था। लेकिन कोठी के किसी कमरे की भी रोशनी नहीं बुझायी गयी थी।

बरामदे में रुक कर उसने आहट ली। फिर तीर की तरह उस कमरे की तरफ़ बढ़ा जहाँ कर्नल के ख़ानदान वाले इकट्ठा थे। सोफ़िया के अलावा हर एक के आगे एक-एक राइफ़ल रखी हुई थी। अनवर और आरिफ़ बेहद बोर नज़र आ रहे थे। सोफ़िया की आँखों नींद की वजह से लाल थीं और कर्नल इस तरह सोफ़ें पर अकड़ा बैठा था जैसे वह कोई बुत हो। उसकी पलकें तक नहीं झपक रही थीं।

इमरान को देख उसके जिस्म में हरकत पैदा हुई।

‘क्या बात है? क्यों आये हो?’ उसने गरज कर पूछा।

‘एक बात समझ में नहीं आ रही है।’ इमरान ने कहा।

‘क्या?’ कर्नल के लहजे की सख़्ती दूर नहीं हुई।

‘अगर आप कुछ अजनबी आदमियों से डरे हुए हैं तो पुलिस को इसकी ख़बर क्यों नहीं देते?’

‘मैं जानता हूँ कि पुलिस कुछ नहीं कर सकती।’

‘क्या वे लोग सचमुच आपके लिए अजनबी हैं।’

‘हाँ।’

‘बात समझ में नहीं आयी।’

‘क्यों?’

‘सीधी-सी बात है। अगर आप उन्हें जानते हैं तो उनसे डरने की क्या वजह हो सकती है।’

कर्नल जवाब देने की बजाय इमरान को घूरता रहा।

‘बैठ जाओ!’ उसने थोड़ी देर बाद कहा। इमरान बैठ गया।

‘मैं उन्हें जानता हूँ।’ कर्नल बोला।

‘तब फिर! पुलिस... ज़ाहिर-सी बात है।’

‘क्या तुम मुझे बेवक़ूफ़ समझते हो?’ कर्नल बिगड़ कर बोला।

‘जी हाँ!’ इमरान ने संजीदगी से सिर हिला दिया।

‘क्या?’ कर्नल उछल कर खड़ा हो गया।

‘बैठ जाइए!’ इमरान ने लापरवाही से हाथ उठा कर कहा, ‘मैंने यह बात इसलिए कही थी कि आप लोग किसी वक़्त भी उनकी गोलियों का निशाना बन सकते हैं।’

‘क्यों?’

‘वे किसी वक़्त भी इस इमारत में दाख़िल हो सकते हैं।’

‘नहीं दाख़िल हो सकते। बाहर कई पहाड़ी पहरा दे रहे हैं।’

‘फिर इस तरह राइफ़लें सामने रख कर बैठने का क्या मतलब है!’ इमरान सिर हिला कर बोला, ‘नहीं कर्नल साहब! अगर आप भी इमरान एम.एस-सी, पी-एच.डी से कोई काम लेना चाहते हैं तो आपको उसे सारे हालात के बारे में बताना पड़ेगा। मैं यहाँ आपके बॉडीगार्ड का काम करने के लिए नहीं आया।’

‘डैडी, बता दीजिए न...ठीक ही तो है!’ सोफ़िया बोली।

‘क्या तुम इस आदमी को भरोसे के क़ाबिल समझती हो?’

‘इनकी अभी उम्र ही क्या है,’ इमरान ने सोफ़िया की तरफ़ इशारा करके कहा, ‘साठ-साठ साल की बूढ़ियाँ भी मुझ पर भरोसा करती हैं।’

सोफ़िया बौखला कर घूरने लगी। उसकी समझ में कुछ नहीं आया।

अनवर और आरिफ़ हँसने लगे।

‘दाँत बन्द करो।’ कर्नल ने उन्हें डाँटा और वे दोनों बुरा-सा मुँह बना कर ख़ामोश हो गये।

‘आप मुझे उन आदमियों के बारे में बताइए।’ इमरान ने कहा।

कर्नल कुछ देर ख़ामोश रहा। फिर बड़बड़ाया, ‘मैं नहीं जानता कि क्या बताऊँ।

‘क्या आपने इस दौरान उनमें से किसी को देखा है?’

‘नहीं।’

‘फिर शायद मैं पागल हो गया हूँ!’ इमरान ने कहा।

कर्नल उसे घूरने लगा। वह कुछ देर चुप रहा फिर बोला,‘मैं उन लोगों के निशान से वाक़िफ़ हूँ। इस निशान का मेरी कोठी में पाया जाना इस चीज़ की तरफ़ इशारा करता है कि मैं ख़तरे में हूँ।’

‘ओह!’ इमरान ने सीटी बजाने वाले अन्दाज़ में अपने होंट सिकोड़े फिर आहिस्ता से पूछा, ‘वह निशान आपको कब मिला?’

‘आज से चार दिन पहले।’

‘ख़ूब! क्या मैं उसे देख सकता हूँ?’

‘भई, ये तुम्हारे बस का रोग नहीं मालूम होता।’ कर्नल उकता कर बोला, ‘तुम कल सुबह वापस जाओ!’

‘हो सकता है मैं भी रोगी हो जाऊँ। आप मुझे दिखाइए न।’

कर्नल चुपचाप बैठा रहा। फिर उसने बुरा-सा मुँह बनाया और उठ कर एक मेज़ का दराज़ खोला। इमरान उसे ध्यान से और दिलचस्पी से देख रहा था।

कर्नल ने दराज़ से कोई चीज़ निकाली और अपने सोफ़ें पर वापस आ गया। इमरान ने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ा दिया। अनवर और आरिफ़ ने अर्थपूर्ण नज़रों से एक-दूसरे की तरफ़ इस अन्दाज़ से देखा जैसे वे इमरान से किसी मूर्खतापूर्ण वाक्य की उम्मीद रखते हों।

कर्नल ने वह चीज़ छोटी गोल मेज़ पर रख दी। तीन इंच लम्बा लकड़ी का बन्दर था। इमरान उसे मेज़ से उठा कर उलटने-पलटने लगा। वह उसे थोड़ी देर तक देखता रहा फिर उसी मेज़ पर रख कर कर्नल को घूरने लगा।

‘क्या मैं कुछ पूछ सकता हूँ?’ इमरान बोला।

‘पूछो...बोर मत करो।’

‘ठहरिए!’ इमरान हाथ उठा कर बोला। फिर सोफ़िया वग़ैरह की तरफ़ देख कर कहने लगा, ‘हो सकता है कि आप इन लोगों के सामने मेरे सवालों का जवाब देना पसन्द न करें।’

‘उँह, बोर मत करो!’ कर्नल उकताये हुए लहजे में बोला।

‘ख़ैर...मैंने एहतियातन यह ख़याल ज़ाहिर किया था।’ इमरान ने लापरवाही से कहा। फिर कर्नल को घूरता हुआ बोला, ‘क्या कभी आपका ताल्लुक़ ड्रग्स की तस्करी से भी रहा है।’

कर्नल उछल पड़ा। फिर वह इमरान की तरफ़ इस तरह घूरने लगा जैसे उसने उसे डंक मार दिया हो। फिर वह जल्दी से लड़कों की तरफ़ मुड़ कर बोला, ‘जाओ, तुम लोग आराम करो।’

उसके भतीजों के चेहरे खिल उठे, लेकिन सोफ़िया के अन्दाज़ से ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह नहीं जाना चाहती।

‘तुम भी जाओ।’ कर्नल अधीरता से हाथ हिला कर बोला।

‘क्या यह ज़रूरी है?’ सोफ़िया ने कहा।

‘जाओ!’ कर्नल चीख़ा! वे तीनों कमरे से निकल गये।

‘हाँ, तुमने क्या कहा था?’ कर्नल ने इमरान से कहा।

इमरान ने फिर अपना वाक्य दुहरा दिया।

‘तो क्या तुम उसके बारे में कुछ जानते हो?’

कर्नल ने लकड़ी के बन्दर की तरफ़ इशारा किया।

‘बहुत कुछ!’ इमरान ने लापरवाही से कहा।

‘तुम कैसे जानते हो?’

‘यह बताना बहुत मुश्किल है।’ इमरान मुस्कुरा कर बोला,‘लेकिन आपने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।’

‘नहीं, मेरा ताल्लुक़ ड्रग्स की तिजारत से कभी नहीं रहा।’

‘तब फिर!’ इमरान कुछ सोचता हुआ बोला, ‘आप उन लोगों के बारे में कुछ जानते हैं, वरना यह निशान इस कोठी में क्यों आया।’

‘ख़ुदा की क़सम।’ कर्नल बेचैनी में अपने हाथ मलता हुआ बोला, ‘तुम बहुत काम के आदमी मालूम होते हो।’

‘लेकिन मैं कल सुबह वापस जा रहा हूँ।’

‘हरगिज़ नहीं....हरगिज़ नहीं।’

‘अगर मैं कल वापस न गया तो उस मुर्ग़ी को कौन देखेगा जिसे मैं अण्डों पर बिठा आया हूँ।’

‘अच्छे लड़के, मज़ाक़ नहीं!...मैं बहुत परेशान हूँ।’

‘आप ली यूका से डरे हुए हैं।’ इमरान सिर हिला कर बोला।

इस बार फिर कर्नल उसी तरह उछला जैसे इमरान ने डंक मार दिया हो।

‘तुम कौन हो?’ कर्नल ने ख़ौफ़ज़दा आवाज़ में कहा।

‘अली इमरान, एम. एस. सी, पी-एच.डी.।’

‘क्या तुम्हें सचमुच कैप्टन फ़ैयाज़ ने भेजा है?’

‘और मैं कल सुबह वापस चला जाऊँगा।’

‘नामुमकिन...नामुमकिन...मैं तुम्हें किसी क़ीमत पर नहीं छोड़ सकता। लेकिन तुम ली यूका के बारे में कैसे जानते हो?’

‘यह मैं नहीं बता सकता!’ इमरान ने कहा, ‘लेकिन ली यूका के बारे में आपको बहुत कुछ बता सकता हूँ! वह एक चाबी है। उसके नाम से ड्रग्स की नाजायज़ तिजारत होती है, लेकिन उसे आज तक किसी ने नहीं देखा।’

‘बिलकुल ठीक...लड़के तुम ख़तरनाक मालूम होते हो।’

‘मैं दुनिया का सबसे बड़ा बेवक़ूफ़ आदमी हूँ।’

‘बकवास है...लेकिन तुम कैसे जानते हो?’ कर्नल बड़बड़ाया, ‘मगर...कहीं तुम उसी के आदमी न हो।’ कर्नल की आवाज़ हलक़ में फँस गयी।

‘बेहतर है...मैं कल सुबह...!’

‘नहीं, नहीं!’ कर्नल हाथ उठा कर चीख़ा।

‘अच्छा, यह बताइए कि ये निशान आपके पास क्यों आया?’ इमरान ने पूछा।

‘मैं नहीं जानता।’ कर्नल बोला।

‘शायद आप इस बेवक़ूफ़ आदमी का इम्तहान लेना चाहते हैं।’ इमरान से संजीदगी से कहा। ‘ख़ैर, तो सुनिए...ली यूका...दो सौ साल पुराना नाम है।’

‘लड़के! तुम्हें ये सारी जानकारी कहाँ से मिली है।’ कर्नल उसे प्रशंसात्मक नज़रों से देखता हुआ बोला, ‘यह बात ली यूका के गिरोह वालों के अलावा और कोई नहीं जानता।’

‘तो मैं यह समझ लूँ कि आपका ताल्लुक़ भी उसके गिरोह से रह चुका है।’ इमरान ने कहा।

‘हरगिज़ नहीं...तुम ग़लत समझे।’

‘फिर यह निशान आपके पास कैसे पहुँचा...? आख़िर वे लोग आपसे किस चीज़ की माँग कर रहे हैं?’

‘ओह, तुम यह भी जानते हो!’ कर्नल चीख़ कर बोला और फिर उठ कर कमरे में टहलने लगा। इमरान के होंटों पर शरारती मुस्कुराहट थी।

‘लड़के!’ अचानक कर्नल टहलते-टहलते रुक गया। ‘तुम्हें साबित करना पड़ेगा कि तुम वही आदमी हो जिसे कैप्टन फ़ैयाज़ ने भेजा है।’

‘आप बहुत परेशान हैं।’ इमरान हँस पड़ा। ‘मेरे पास फ़ैयाज़ का ख़त मौजूद है, लेकिन अभी से आप इतना क्यों परेशान हैं। यह तो पहली वॉर्निंग है। बन्दर के बाद साँप आयेगा। अगर आपने इस दौरान भी उनकी माँग पूरी न की तो फिर वह मुर्ग़ भेजेंगे और उसके दूसरे ही दिन आपका सफ़ाया हो जायेगा। आख़िर वह कौन-सी माँग है?’

कर्नल कुछ न बोला! उसका मुँह हैरत से खुला हुआ था और आँखें इमरान के चेहरे पर थीं।

‘लेकिन।’ वह आख़िर अपने होंटों पर ज़बान फेर कर बोला, ‘इतना कुछ जानने के बाद तुम अब तक कैसे ज़िन्दा हो?’

‘सिर्फ़ कोकाकोला की वजह से।’

‘संजीदगी! संजीदगी!’ कर्नल ने अधीरता से हाथ उठाया।‘मुझे फ़ैयाज़ का ख़त दिखाओ।’

इमरान ने जेब से ख़त निकाल कर कर्नल की तरफ़ बढ़ा दिया।

कर्नल काफ़ी देर तक उस पर नज़र जमाये रहा, फिर इमरान को वापस करता हुआ बोला।

‘मैं नहीं समझ सकता कि तुम किस क़िस्म के आदमी हो।’

‘मैं हर क़िस्म का आदमी हूँ। फ़िलहाल आप मेरे बारे में कुछ न सोचिए।’ इमरान ने कहा। ‘जितनी जल्दी आप मुझे अपने बारे में बता देंगे उतना ही अच्छा होगा।’

कर्नल के चेहरे से हिचकिचाहट ज़ाहिर हो रही थी। वह कुछ न बोला।

‘अच्छा ठहरिए!’ इमरान ने कुछ देर बाद कहा, ‘ली यूका के आदमी सिर्फ़ एक ही सूरत में इस क़िस्म की हरकतें करते हैं। वह एक ऐसा गिरोह है जो ड्रग्स की तस्करी करता है। ली यूका कौन है, यह किसी को मालूम नहीं, लेकिन तिजारत का सारा नफ़ा उसको पहुँचता है। कभी उसके कुछ एजेंट बेईमानी पर आमादा हो जाते हैं। वे ली यूका की माँगें पूरी नहीं करते। इस सूरत में उन्हें इस क़िस्म की वॉर्निंग मिलती हैं। पहली धमकी बन्दर, दूसरी धमकी साँप...और तीसरी धमकी मुर्ग़। अगर आख़िरी धमकी के बाद भी वे माँगें पूरी नहीं करते तो उनका ख़ात्मा कर दिया जाता है।’

‘तो क्या तुम यह समझते हो कि मैं ली यूका का एजेंट हूँ।’ कर्नल खँखार कर बोला।

‘ऐसी सूरत में और क्या समझ सकता हूँ।’

‘नहीं, यह ग़लत है।’

‘फिर?’

‘मेरा ख़याल है कि मेरे पास ली यूका का सुराग़ है।’ कर्नल बड़बड़ाया।

‘सुराग़? वह किस तरह?’

‘कुछ ऐसे काग़ज़ात हैं जो किसी तरह ली यूका के लिए शक पैदा करने वाले हो सकते हैं।’

‘शक होना और चीज़ है...लेकिन सुराग़!’ इमरान नहीं में सिर हिला कर रह गया।

‘यह मेरा अपना ख़याल है!...’

‘आख़िर आपने किस वजह से यह राय क़ायम की?’ इमरान ने पूछा।

‘यह बताना मुश्किल है। वैसे मैं इन काग़ज़ात में से कुछ को बिलकुल ही नहीं समझ सका!’

‘लेकिन वे काग़ज़ात आपको मिले कहाँ से?’

‘बहुत ही हैरत-अंगेज़ तरीक़े से!’ कर्नल सिगार सुलगाता हुआ बोला, ‘पिछली जंग के दौरान मैं हौंगकौंग में था। वहीं ये काग़ज़ात मेरे हाथ लगे। और यह हक़ीक़त है कि जिससे मुझे काग़ज़ात मिले, वह मुझे ग़लत समझा था...हुआ यह कि एक रात मैं हौंगकौंग के होटल में खाना खा रहा था। एक दुबला-पतला चीनी आ कर मेरे सामने बैठ गया। मैंने महसूस किया कि वह बहुत ज़्यादा ख़ौफ़ज़दा है। उसका पूरा जिस्म काँप रहा था। उसने जेब से एक बड़ा-सा लिफ़ाफ़ा निकाल कर मेज़ के नीचे से मेरे घुटनों पर रख दिया और आहिस्ता से बोला, मैं ख़तरे में हूँ। इसे बी-फ़ोर्टीन पहुँचा देना। फिर इससे पहले कि मैं कुछ कहता, वह तेज़ी से बाहर निकल गया। बात हैरत-अंगेज़ थी। मैंने चुपचाप लिफ़ाफ़ा जेब में डाल लिया। मैंने सोचा, मुमकिन है वो चीनी मिलिट्री सीक्रेट सर्विस का आदमी रहा हो और कुछ अहम काग़ज़ात मेरे ज़रिये किसी ऐसे सेक्शन में पहुँचाना चाहता हो जिसका नाम बी-फ़ोर्टीन हो। मैं उस वक़्त अपनी पूरी वर्दी में था। होटल से वापस आने के बाद मैंने लिफ़ाफ़ा जेब से निकाला। वह सील किया हुआ था। मैंने उसे उसी हालत में रख दिया। दूसरे दिन मैंने ‘बी-फ़ोर्टीन’ के बारे में पूछना शुरू की लेकिन मिलिट्री की सीक्रेट सर्विस में इस नाम का कोई इदारा नहीं था। पूरे हौंगकौंग में बी-फ़ोर्टीन का कोई सुराग़ न मिल सका। आख़िर मैंने तंग आ कर इस लिफ़ाफ़े को खोल डाला।’

‘तो क्या इसमें ली यूका के बारे में पूरी रिपोर्ट थी?’ इमरान ने पूछा।

‘नहीं...वे तो कुछ तिजारती क़िस्म के काग़ज़ात हैं। ली यूका का नाम उनमें कई जगह दुहराया गया है। कई काग़ज़ात चीनी और जापानी ज़बानों में भी हैं जिन्हें मैं समझ न सका।’

‘फिर आप को ली यूका की हिस्ट्री किस तरह मालूम हुई?’

‘ओह! तो फिर मैंने हौंगकौंग में ली यूका के बारे में छान-बीन की थी। मुझे सब कुछ मालूम हो गया था, लेकिन यह न मालूम हो सका कि ली यूका कौन है, और कहाँ है। उसके एजेंट आये दिन गिरफ़्तार होते रहते हैं। लेकिन उनमें से आज तक कोई ली यूका का पता न बता सका। वैसे नाम दो सौ साल से ज़िन्दा नहीं है।’

इमरान थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा फिर बोला, ‘ये लोग कब से आपके पीछे लगे हैं?’

‘आज की बात नहीं!’ कर्नल बुझा हुआ सिगार सुलगा कर बोला, ‘काग़ज़ात मिलने के छ: माह बाद ही से वे मेरे पीछे लग गये थे, लेकिन मैंने उन्हें वापस नहीं किये। कई बार वे चोरी-छुपे मेरे घर में भी दाख़िल हुए, लेकिन उन्हें काग़ज़ात की हवा भी न लग सथी अब उन्होंने आख़िरी हर्बा इस्तेमाल किया है। यानी मौत के निशान भेजने शुरू किये हैं जिसका यह मतलब है कि अब वे मुझे ज़िन्दा न छोड़ेंगे।’

‘अच्छा वो चीनी भी कभी दिखाई दिया था, जिससे काग़ज़ात आपको मिले थे?’

‘कभी नहीं...वह कभी नहीं दिखाई पड़ा।’

कुछ देर तक ख़ामोशी रही फिर इमरान बड़बड़ाने लगा।

‘आप उसी वक़्त तक ज़िन्दा हैं जब तक काग़ज़ात आपके क़ब्ज़े में हैं।’

‘बिलकुल ठीक!’ कर्नल चौंक कर बोला, ‘तुम वाक़ई बहुत ज़हीन हो!...यही वजह है कि मैं इन काग़ज़ात को वापस नहीं करना चाहता, वरना मुझे इनसे ज़र्रा बराबर भी दिलचस्पी नहीं! बस यह समझ लो कि मैंने साँप का सिर पकड़ रखा है। अगर छोड़ता हूँ तो वो पलट कर यक़ीनन डस लेगा।

‘क्या मैं उन काग़ज़ात को देख सकता हूँ?’

‘हरगिज़ नहीं। तुम मुझसे साँप की गिरफ़्त ढीली करने को कह रहे हो।’

इमरान हँसने लगा। फिर उसने कहा, ‘आपने कैप्टन फ़ैयाज़ को क्यों बीच में डाला?’

‘उसके फ़रिश्तों को भी अस्ल वाक़यात की ख़बर नहीं। वह तो सिर्फ़ यह जानता है कि मुझे कुछ आदमियों की तरफ़ से ख़तरा है, लेकिन मैं किसी वजह से सीधे पुलिस को इस मामले में दख़ल देने की दावत नहीं दे सकता!’

‘तो आप मुझे भी ये सारी बातें न बताते?’ इमरान ने कहा।

‘बिलकुल यही बात है!...लेकिन तुम्हारे अन्दर शैतान की रूह मालूम होती है।’

‘इमरान की!’ इमरान संजीदगी से सिर हिला कर बोला, ‘बहरहाल, आपने मुझे बॉडीगार्ड के तौर पर बुलवाया है।’

‘मैं किसी को भी न बुलवाता! यह सब कुछ सोफ़िया ने किया है। उसे हालात का इल्म है।’

‘और आपके भतीजे?’

‘उन्हें कुछ भी मालूम नहीं!’

‘आपने उन्हें कुछ बताया तो होगा ही।’

‘सिर्फ़ इतना कि कुछ दुश्मान मेरी ताक में हैं और बन्दर उनका निशान है।’

‘लेकिन इस तरह भरी हुई राइफ़लों के साथ रात भर जगने का क्या मतलब है! क्या आप यह समझते हैं कि वे आप के सामने आ कर हमला करेंगे?’

‘मैं यह भी बच्चों को बहलाने के लिए करता हूँ।’

‘ख़ैर, मारिए गोली!’ इमरान ने बेपरवाही से कन्धों को हिलाते हुए कहा, ‘मैं सुबह की चाय के साथ बताशे और लेमन ड्रॉप्स इस्तेमाल करता हूँ।