समस्त लोग विजय की इस हरक्त पर आश्चर्यचक्ति रह गए, आधे तो अभी तक उसके सौंदर्य में ही खोए हुए थे ।
- - "यस मिस्टर विजय ! " उसके अधरों से मधुर आवाज निकली - ' मर्डरलैंड में तुम्हारा इनाम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है । तुमने मर्डरलैंड में हमारे साथ सफल गद्दारी की थी, जिससे हम मान गए कि तुम साहसी, बुद्धिमान और वक्त का लाभ उठाने वाले व्यक्ति हो- अत: हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं और मर्डरलैंड में तुम्हें एक उच्च-पद पर नियुक्त कर दिया है |"
"अरे जाओ मम्मी, क्यों झूठ बोलती हो-मर्डरलैंड को तो हमारे लूमड़ प्यारे समाप्त कर आए थे ।"
"ऐसी बात नहीं है मिस्टर विजय, मर्डरलैंड को तुम और अलफांसे जैसे मच्छर सात जन्मों में भी समाप्त नहीं कर सकते । मर्डरलैंड का स्थान बदल सकता है, किंतु मर्डरलैंड तबाह नहीं हो सकता ।"
"तो इसका मतलब ये है कि मर्डरलैंड अब भी है?
' निस्संदेह !
- "खैर, अब तुम यहां कैसे?"
- "अपने भतीजे को आशीर्वाद देने आई हूं मैं विकास को मर्डरलैंड का नागरिक बनाना चाहती हूं, ताकि वह
संसार का सर्वश्रेष्ठ बहादुर व्यक्ति बन सके । "
और तभी विजय ने होशियारी दिखाई, उसने फुर्ती के साथ जैक्सन पर जंप लगाई ।
किंतु परिणाम आश्चर्यपूर्ण था!
सबके मुंह फटे-के-फटे रह गए-जैक्सन के मुकुट से एक किरण निकली, सुनहरी किरण ! और किरण का लक्ष्य था, विजय ! विजय का पूरा जिस्म हवा में ही लटका रह गया, ठीक उसी पोज में, जिसमें कि इस समय वह था मुंह खुला हुआ, वह अधर वायु में स्थिर हो गया था ।
सब हक्के-बक्के-से विजय को देख रहे थे !
तभी ! अशरफ, विक्रम, ठाकुर साहब, रघुनाथ इत्यादि जैक्सन की ओर बढे, किंतु तभी प्रिंसेज जैक्सन के मुकुट से एक अन्य किरण निकली, यह किरण आग की लपटों की थी और देखते-देखते ही आग की लपटों वाली यह किरण प्रत्येक व्यक्ति के चारों ओर फैल गई। तभी जैक्सन की आवाज गूंजी !
- "कोई भी व्यक्ति अपने स्थान से हिलने का प्रयास न करे-वरना अगर आग की लपटों वाली इस किरण से कोई टकरा गया तो वह मौत को प्राप्त होगा ! "
तभी एक भयानक चीख वहां हॉल में गूंजी- एक व्यक्ति का जिस्म इस किरण को स्पर्श कर गया था । परिणामस्वरूप क्षण मात्र में उसका जिस्म आग की लपटों में घिर गया और असहनीय रूप से मचलता हुआ, वह अंत में मृत्यु के आगोश में चला गया ।
- सब उसी प्रकार स्थिर खड़े रहे- कोई न हिला । विजय उसी प्रकार वायु में स्थिर था ।
-"अब मैं विकास के लिए भगवान से कामना करूंगी कि वह संसार का महानतम व्यक्ति बने ।" इन शब्दों के साथ जैक्सन के मुकुट से एक अन्य सुनहरी किरण निकली और फिर एक खौफनाक खेल शुरू हुआ !
मौत से भी भयानक खेल !
रघुनाथ तो किरण में बंधा मचलकर ही रह गया । रैना मूर्छित ही थी ।
अचानक सुनहरी किरण ने विकास को आशा की गोद से खींच लिया । आशा भी कुछ करने में असमर्थ थी और अगले ही पल विकास ! वह नवजात शिशु हवा में लटक गया। अधर हवा में, सुनहरी किरणों के बीच ।
बड़ा ही खौफनाक दृश्य था !
प्रत्येक इंसान के रोंगटे खड़े हो गए, लेकिन हवा में लटके हुए विकास के नन्हे-नन्हे अधर मुस्करा रहे थे, मानो उसके पास कोई दैवी शक्ति हो और तभी हवा में लटके-ही-लटके विकास ने आखें खोली, यह था पहला अवसर जब इस नवजात शिशु विकास ने संसार में प्रथम बार आंखें खोलीं ।
''मैं आप लोगों से आज वादा करती हूं कि विकास को मर्डरलैंड में रखकर संसार का सबसे वीर और साहसी व्यक्ति बनाऊंगी ।" जैक्सन बोली ।
-"नहीं!" रघुनाथ ने चीखना चाहा, किंतु सफल न हो सका- चाहकर भी उसकी आवाज न निकली । वह घुटकर रह गया, कसमसाकर रह गया । तभी जैक्सन आगे बोली ।
-"लेकिन अभी विकास को मां की गोद की जरूरत है, अत: मैं इसे उस समय मर्डरलैंड ले जाऊंगी जब यह कुछ समझदार हो जाएगा।'
और फिर धीरे-धीरे हवा में लटका हुआ विकास जैक्सन की ओर बढ़ा ।
अंत में !
जैक्सन ने विकास के कपोलों का चुंबन लिया ।
उसके बाद !
विकास सुनहरी किरण के घेरे में चलता हुआ उसी प्रकार सुरक्षित आशा की गोद में पहुंच गया और यह सुनहरी किरण मुकुट में विलुप्त हो गई ।
"अच्छा मिस्टर विजय, अब मैं चलती हूं।"
जैक्सन ने कहा और साथ ही समस्त किरणें सिमटकर उसी मुकुट में समा गई और साथ ही जैक्सन गायब हो गई। सभी जैसे सोते से जागे! सभी आतंकित-से थे ।
विचित्र घटनाएं पेश आई थी - विकास के जन्म पर !
वक्त !
"उस शैतान को कौन नहीं जानता, उसके प्रत्येक जन्म-दिवस पर अजीबो-गरीब वारदातें जो पेश आती हैं।"
"ये भी जानते हो कि हमारे लूमड़ प्यारे विकास के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं?
"यस सर ।"
"तो प्यारे, ये समझ लो कि कल अपना लूमड़ विकास का अपहरण करेगा ।"
- "क्या मतलब?" वह चौंका ।
उत्तर में विजय ने उसे सब कुछ बता दिया-सुनने के बाद ब्लैक बवाय बोला-' 'अब मेरे लिए क्या आदेश है सर? " - 'तुम अपने सब चमचों को आदेश दो कि वे सब भेष बदलकर उस पार्टी में पूरी तरह सतर्क और तैयार होकर वहां पहुंचें और तुम स्वयं भी वहीं रहना !
ओके सर ।"
ध्यान रहे, कल किसी भी स्थिति में अलफांसे अपने काम में सफल न हो जाए।"
"हमारा पूर्ण प्रयास होगा ।"
- "अच्छा प्यारे, अब हम चलते हैं।" विजय ने कहा और संबंध-विच्छेद कर दिया ।
और फिर तब !
जबकि विजय रघुनाथ की कोठी पर पहुंचा ।
रघुनाथ वहां नहीं था । सामने रैना बैठी चावल चुन रही थी, उसे देखते ही विजय चहका- 'हैलो भाभी, सुनाओ क्या हाल हैं तुम्हारे और हमारे भतीजे के?"
- "अरे विजय भैया, आओ बैठो !"
"और भाभी...! " विजय कुछ कहना ही चाहता था कि दोनों ही चौंके !
एक अत्यंत भयानक आवाज कमरे में गूंजी थी ।
"सावधान ! अगर दोनों में से कोई भी हिला, तो मेरे रिवॉल्वर से निकली गोली तुम्हारी खोपड़ी में रोशनदान बना देगी।"
विजय के दिमाग को एक तीव्र झटका लगा ।
रैना का चेहरा फीका पड़ गया ।
फिर आवाज गूंजी!
- "तुम मेरे रिवॉल्वर को देख सकते हो ।"
विजय ने देखा, वास्तव में एक दरवाजे की दरार से रिवाल्वर की नाल झांक रही थी ।
' हैंड्स-अप !' आदेश गूंजा |
विजय और रैना ने हाथ ऊपर उठा दिए ।
'मुंह दीवार की ओर ! " दूसरा आदेश ।
दोनों ही मजबूर थे, अत: आज्ञा का पालन किया ।
वैसे विजय का दिमाग तेजी से सक्रिय था । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह चक्कर क्या है? वह धीरे-धीरे दीवार के सहारे बढ़ना चाह ही रहा था कि अगला आदेश।
-"नहीं मिस्टर, आगे मत बढो ! कोई भी चालाकी तुम्हें खुदागंज पहुंचा सकती है।"
विजय ठिठक गया । बड़े ही पशोपेश में फंस गया था वह।
और अचानक !
विजय कांप गया । रिवॉल्वर की सख्त नाल उसकी पसलियों में आ चिपकी । एक ठंडी-सी तेज लहर विजय की रीढ़ की हड्डी में दौड़ गई । वह रिवॉलर लगाने वाले व्यक्ति को कनखियों से भी देख नहीं पा रहा था ।
अब कोई आदेश भी नहीं गूंज रहा था ।
अचानक !
दरवाजे से रघुनाथ की आवाज !
निरंतर गतिशील रहता है, किसी की प्रतीक्षा नहीं करता ! देखते-ही-देखते सदियां बीत जाती हैं, युग बदल जाते है । साठ सेकंड एकत्रित होकर एक मिनट का निर्माण करते हैं, साठ मिनट में एक घंटा बनता है, चौबीस घंटे एक दिन में परिवर्तित हो जाते हैं । सात दिन एकत्रित होकर एक हफ्ते का हवाला देते हैंचार हफ्तों के बाद एक माह और बारह महीनों का एक वर्ष-फिर दूसरा वर्ष और फिर वर्ष-पर-वर्ष
देखते-ही-देखते सब-कुछ हो जाता है ।
विकास !
रघुनाथ के घर जनमे विकास ने भी दूज के चंद्रमा की भांति विकास किया ।
छोटा शिशु बालक में बदला !
एक वर्ष बीता, दूसरा भी आ गया- तीसरे को भी देर न लगी और फिर देखते-ही-देखते दस वर्ष बीत गए । विकास एक शोख, चंचल और सुंदर बालक में बदल गया।
विकास के प्रत्येक जन्मदिवस पर अपराध-जगत के बड़े-बड़े सूरमा उसे आशीर्वाद देने आते थे । अलफांसे के प्रत्येक पत्र में विकास को पालने की इच्छा होती । प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड की भी यही अभिलाषा थी। रघुनाथ और रैना हमेशा चिंतित रहते थे ।
किंतु विकास को भला इन बातों का क्या ज्ञान? वह तो शोख था, चंचल था.! ऐसी-ऐसी शैतानियां करता कि क्रोध के साथ हंसी भी आती थी ।
विकास पूर्णतया विजय के रंग में रंग गया ।
विजय !
विजय इस समय अपनी कोठी में था । उसके चेहरे से लगता था कि वह कुछ चिंतित है और चिंता की बात भी थी ।
कल!
कल विकास की दसवीं वर्षगांठ होगी ।
यह तो खुशी की बात थी ।
किंतु !
विजय चिंतित था । उसने जेब से निकालकर फिर पत्र पढा, लिखा था :
'प्यारे विजय,
अब समय पूरा हो गया है । विकास इतना विकास कर चुका है कि वह कुछ सीख सके । तुम जानते भी हो, मुझे इसी दिन की प्रतीक्षा थी । अब मैं उसे अपने पास रखना चाहूंगा । कल यानी उसके दसवें जन्मदिन पर मैं उसे जरूर ले जाऊंगा, आशा करता हूं कि तुम मेरे मार्ग मे नहीं आओगे।। वैसे तुम मे जानते हो कि अगर तुमने प्रयास भी किया तो अलफांसे को रोक न सकोगे ।
तुम्हारा क्राइमर दोस्त
-अलफांसे ।'
और यही पत्र विजय की चिंता का विषय था।
यह पत्र उसे सुबह-हीं-सुबह प्राप्त हुआ था, जब वह सोकर उठा था । सामने इसे अपनी मेज पर पेपरवेट से दबा पाया था । विजय ने पूर्णसिंह से जब इसकी पूछताछ की तो उसने अनभिज्ञता प्रकट की थी। उसकी समझ में आज तक यह नहीं आया था कि यह अलफांसे है कौन-सी मिट्टी का? कौन-से कारखाने में भगवान ने इसका दिमाग बनाया था !
उसे लग रहा था, जैसे वास्तव में अलफांसे कल अपने लक्ष्य में सफल हो जाएगा, लेकिन विजय भी भला इस तरह हार स्वीकार करने वाला कहां था, उसके होंठों पर जहरीली-सी मुस्कान उभरी । लगता था, उसने अलफांसे क्ते फंसाने की कोई योजना सोच ली है ।
उसने अपने हाथ फोन की तरफ बढ़ाए, किंतु तभी उसके दिमाग को एक झटका-सा लगा, इस बार उसे अत्यंत सतर्क रहना था, हो सकता है, अलफांसे ने जानकारियां हासिल करने के लिए उसके घर में कोई जाल फैला रखा हो, अत: उसने हाथ खींच लिया और कपड़े बदलकर बाहर निकला ।
सड़क पर उसने तीक्ष्ण-दृष्टि से निरीक्षण किया कि कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा है, और जब उसने दूर-दूर तक किसी संदिग्ध व्यक्ति को नहीं पाया तो वह एक टेलीफोन बूथ में घूस गया । नंबर रिंग करके वह बोला ।
- "हैलो, प्यारे काले लड़के।"
"यस सर- मैं ब्लैक बॉय बोल रहा हूं।"
"जब हमने फोन किया है तो बोलेंगे कैसै नहीं? वैसे प्यारे, हमारी बातें ध्यान से सुनो और उन पर तुरंत अमल करो।"
"क्यों सर, क्या कोई केस है ? "
- "विकास को जानते हो?
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