"आखिर हम सबको हो क्या गया था?" जुगल किशोर उखड़े स्वर में कह उठा--- "हम चार लोग थे। पूरे चार। और वह एक था। हम उस पर नजर नहीं रख पाये। उसे पकड़ नहीं पाये--- और वो हमारी निगाहों के सामने से निकल गया।"
"शानदार मौका हाथ से गंवा दिया।" जैकी झल्लाये स्वर में कह उठा।
सोहनलाल कुर्सी पर बैठा, गोली वाली सिगरेट के कश ले रहा था।
अजहर मेनन कमर पर हाथ बांधे होटल के कमरे में टहल रहा था।
"शर्म आनी चाहिए हमें...।" जुगल किशोर गुस्से में था।
"वो लड़की।" मेनन ठिठककर जुगल किशोर को देखता कह उठा--- "ऐन मौके पर वो मुझ पर ना गिरती तो रिचर्ड जैक्सन इस वक्त हमारे हाथों में होता।"
"लड़की की सैंडिल कि तीन इंच लंबी एड़ी एकाएक उसकी जूती से अलग हो गई थी।" जैकी बोला--- "मेरी नजर अलग हुई पड़ी एड़ी पर गई थी। वहीं पर हमारा सारा काम खराब हुआ। लेकिन तुम तो उसके पीछे थे।" जैकी ने जुगल किशोर को देखा--- "तुमने क्यों नहीं उस पर काबू पा लिया? रिवाल्वर लगाकर बिठा लेता साले को!"
"बता तो चुका हूं कि गली तंग थी और माल लादे एक रिक्शा वाले को जगह देते वक्त वो नजरों से निकल गया।" जुगल किशोर ने दांत भींचकर कहा--- "हमने हाथ आया मौका गंवा दिया।"
मेनन, सोहनलाल से कह उठा--- "तू क्या सोच रहा है?"
सोहनलाल ने कश लेकर मेनन को देखा फिर शांत स्वर में बोला---
"वो हाथ आते-आते हाथ से निकल गया, इसमें हम में से किसी की गलती नहीं थी। तब शायद हालात ही ऐसे बन गए थे। उन बातों को हमें भूल जाना चाहिए और अब अगले मौके का इंतजार करना चाहिए। इस बार हुई गड़बड़ी से हमें सबक लेना चाहिए।"
"अगला मौका?" जैकी कड़वे स्वर में कह उठा--- "जाने मिलता भी है या नहीं...।"
"जरूर मिलेगा।" सोहनलाल बोला।
"वक्त लग सकता है, परन्तु मौका तो मिलेगा ही।" मेनन ने कहा।
जुगल किशोर सोच में डूबा कह उठा---
"रिचर्ड जैक्सन ने किसी से छोटा-सा पैकेट लिया और उसे एक छोटा लिफाफा दिया। जिसमें जरूर नोटों की एक या दो गड्डियां थीं।"
"वो जासूस यहां भी किसी गड़बड़ में लगा है।" जैकी ने कहा।
"उसका धंधा ये ही है। हमें इस बात की परवाह नहीं करनी है कि वो यहां क्या कर रहा है। हमें अपना काम देखना है।"
कई पलों तक उनके बीच चुप्पी रही।
"सब कुछ भूल कर हमें अगले मौके का इंतजार करना चाहिए।" जुगल किशोर बोला--- "सोहनलाल ठीक कहता है।"
■■■
अगले दिन सुबह जुगल किशोर को मौला का फोन आया।
"मैं और मेरे साथी तुम्हारे काम पर ही लगे हुए हैं।" जुगल किशोर ने कहा।
"वो तो जानता हूं, मैंने सोचा कि अब तक कुछ कर दिया होगा, फोन करके पूछ लेता हूं।"
"किया होता तो तुम्हें जरूर बताता। कल बहुत बढ़िया मौका हाथ से भी निकल गया।"
"अच्छा, वो कैसे?"
"रिचर्ड जैक्सन हाथ आते-आते निकल गया।" जुगल किशोर ने गहरी सांस ली।
"ये तो बुरी खबर है। क्या वो जानता है कि ऐसा हुआ?"
"नहीं...।"
"बढ़िया ढंग से काम करो मिस्टर जुगल किशोर। हम तुम्हें तीस करोड़ जैसी भारी रकम दे रहे हैं।"
"वो तुम लोगों को मिल जाएगा। जल्दी मत करो।" जुगल किशोर ने कहा।
"हमें जरा भी जल्दी नहीं है। महीनों तक इंतजार कर सकते हैं हम। लेकिन हम चाहते हैं कि वो अमरीकन हर हाल में हमारे हाथ लग जाये।"
"ये मेरा वादा है।"
"शुक्रिया।"
"तुम लोग दिल्ली में हो या मुंबई में?"
"मुंबई में।"
"काम होते ही मैं तुम्हें फोन करूंगा।" जुगल किशोर ने कहा और फोन बंद कर दिया।
इस वक्त कमरे में सोहनलाल नहीं था। वो दूसरे कमरे में जैकी और मेनन के पास गया था।
मन-ही-मन जुगल किशोर रिचर्ड जैक्सन के हाथ से निकल जाने की वजह से उखड़ा हुआ था। कुछ पल सोचों में डूबा रहा, फिर वीरा त्यागी का नंबर मिलाया तो जल्दी ही उसकी आवाज कानों में पड़ी---
"कहो दिल्ली पहुंचूं क्या?"
"नहीं।" जुगल किशोर गहरी सांस लेकर बोला--- "कल गड़बड़ हो गई। वो हाथ आते-आते निकल गया।"
"ऐसा नहीं होना चाहिए था जुगल किशोर।"
"शायद हम लोगों से ही कोई गलती हुई होगी--- वरना मौका तो बहुत बढ़िया था।"
"ये हैरानी है कि शिकार तुम्हारे हाथ से निकल जाये।"
"पहली बार ऐसा हुआ है--- और मेरा ख्याल है कि ऐसा हो जाता है कभी-कभी।"
"मैं तो इसे लापरवाही कहूंगा। क्या हुआ था कल?"
जुगल किशोर ने बताया।
सुनने के बाद वीरा त्यागी की आवाज आई।
"तुम चार थे--- तब भी काम को पूरा नहीं कर सके। मैं वहां होता तो मैंने काम कर दिया होता। मुंबई में मेरा एक ही काम बचा है, उसके बाद मैं दिल्ली पहुंच जाऊंगा। मेरे लोग दिल्ली में तैयार हैं। वो मुझे बार-बार फोन कर रहे हैं। अब तो तुम ये भी नहीं कह सकते कि उस पर हाथ डालने का अगला मौका कब मिलेगा?"
"क्या मालूम!"
"तुम कहो तो मैं दिल्ली आकर तुम्हारे काम में तुम्हारा साथ दे सकता हूं।"
"कोई जरूरत नहीं। हममें जो योजना तय हो चुकी है, वैसे ही काम होगा।"
"उस योजना पर काम करने में मुझे क्या एतराज हो सकता है।" वीरा उधर से हँसा--- "मेरे हिस्से में तो आसान काम ही है कि जब एम्बेसी वाले फिरौती देने जा रहे होंगे तो रास्ते में उनसे पैसा हथिया लेना है। रास्ता भी तुमने बताना है कि तब उन्होंने किस रास्ते से निकलना है। मेरे लिए तो ये काम बहुत आसान है। लेकिन ये सब तभी होगा जब तुम उसका अपहरण कर लोगे।"
■■■
दो दिन बाद सोहनलाल को मिसेज बाली का फोन आया।
"सोहनलाल जी, दो दिन रह गए हैं। अब आपने मुझे पचास हजार और देने हैं।" उधर से मिसेज बाली ने कहा।
"याद है मुझे। पचास हजार आपके पास वक्त पर पहुंच जाएंगे।" सोहनलाल बोला।
"वैसे मैंने एक खबर देने के लिए फोन किया है। रिचर्ड जैक्सन आज सुबह ग्यारह बजे सिर्फ एक आदमी के साथ एम्बेसी से बाहर जाने वाला है। सोमनाथ उसे चाय देने गया था तो वह एक आदमी को बुला कर अपना प्रोग्राम बता रहा था। सोमनाथ ने सुना और मुझे फोन करके बताया। सोमनाथ उसके बारे में जानकारी पाने में बहुत मेहनत कर रहा है। रोज मुर्गा और शराब का लालच है उसे। उसकी सेहत तो देखो, मुर्गा खा-खाकर क्या लाल हो गया है। खर्चा भी बहुत हो रहा है सोहनलाल जी। रोज पांच सौ रुपया का खर्चा बैठ जाता है।"
"पचास हजार भी बहुत ज्यादा है मिसेज बाली।"
"वो तो ठीक है, अब आप परसों पचास हजार दे जाना।"
"जरूर...!" सोहनलाल ने कहा और फोन बंद कर के सामने बैठे जैकी, मेनन और जुगल किशोर को देख कर कहा--- "रिचर्ड जैक्सन आज एक आदमी के साथ ग्यारह बजे एम्बेसी से निकलेगा।"
"उसके साथ सिक्योरिटी नहीं होगी?" मेनन कह उठा।
"नहीं। सिर्फ एक आदमी होगा।"
चारों की निगाहें मिलीं।
"हमें फिर शानदार मौका मिलने जा रहा है।" जुगल किशोर उठा--- "आज हमें सफल होना है।"
"अभी नौ हैं। जल्दी से निकल जाओ। हमें साढ़े दस तक एम्बेसी के बाहर होना चाहिए।"
"हम पहले की तरह दो कारों में, दो-दो होंगे।" जैकी ने कहा--- "आज उसे उड़ा लेंगे।"
"पहले जैसी कोई गलती हमें नहीं दोहरानी है।"
■■■
11:10 पर एम्बेसी से काले रंग की विदेशी कार निकली। एक आदमी उसे चला रहा था। रिचर्ड जैक्सन पीछे की सीट पर बैठा साफ नजर आ रहा था, हालांकि कार के शीशे चढ़े हुए थे।
रिचर्ड जैक्सन के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। वो पैंट और टी-शर्ट पहने था। हाव-भाव से चुस्ती झलक रही थी। वह गर्दन घुमाए लगातार बाहर ही देखे जा रहा था, जबकि उसका दिमाग कहीं और था।
"कनॉट प्लेस के पालिका बाजार में जाना है।" रिचर्ड जैक्सन कह उठा।
"जी...।" कार चलाने वाला बोला।
कार सामान्य गति से सड़कों पर दौड़ रही थी।
कम से कम रिचर्ड जैक्सन सोच भी नहीं सकता था कि उसका पीछा हो सकता है।
दो कारें उसकी कार के पीछे आ रही थीं।
आधे घण्टे में कार कनॉट प्लेस के पालिका बाजार के गेट नम्बर एक के सामने जा रुकी।
रिचर्ड जैक्सन ने कार का दरवाजा खोला और कार चलाने वाले से कहा---
"तुम गाड़ी को पार्किंग लगा दो। जब चलना होगा, मैं तुम्हें फोन कर दूंगा।"
"ठीक है सर...।"
रिचर्ड जैक्सन कार से निकलकर गेट की तरफ बढ़ गया।
■■■
जुगल किशोर जल्दी से निकला और सोहनलाल से बोला---
"मैं उसके पीछे जा रहा हूँ। तुम कार पार्किंग में लगाकर फोन पर बात करना। तब बता दूँगा कि मैं कहाँ पर हूँ।" कहकर वो तेजी से गेट की तरफ बढ़ गया। तभी उसे लगा कोई उसके साथ चल रहा है।
जुगल किशोर ने तेजी से गर्दन घुमाई।
तो साथ में मेनन को चलते पाया।
"मैं तुम्हारे साथ हूँ। जैकी कार पार्क करने गया है।"
"आज ये बचना नहीं चाहिए जुगल किशोर। बहुत वक्त लग गया है इस काम में...।" मेनन पुनः बोला।
"नहीं बचेगा...।"
आगे जाता रिचर्ड जैक्सन सीढ़ियां उतरकर अंडरग्राउंड बाजार की हाल में जा पहुंचा था। यहां कई रास्ते इधर-उधर जा रहे थे। भीड़ काफी थी। दुकानों पर तीव्र रोशनियां हो रही थीं। चहल-पहल का माहौल था।
रिचर्ड जैक्सन को एक रास्ते पर जाता देख कर जुगल किशोर बोला---
"पहले की तरह हमें वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए। मैं उस पर हाथ डालने जा रहा हूं मेनन।"
जुगल किशोर और मेनन तेज-तेज कदमों से रिचर्ड जैक्सन की तरफ बढ़ गए।
रिचर्ड जैक्सन सामान्य चाल से आगे बढ़ रहा था। उस रास्ते के दोनों तरफ प्रकाश से जगमगाती दुकानें थीं। लोगों का आना-जाना लगा हुआ था। ऐसे माहौल में किसी पर रिवाल्वर लगाकर उसे साथ ले चलना बहुत आसान था।
जुगल किशोर, रिचर्ड जैक्सन के करीब पहुंचता जा रहा था। उसका एक हाथ जेब में पड़ी रिवाल्वर पर था। इरादा दृढ़ था उसका कि उसने अभी काम करना है और रिचर्ड जैक्सन का अपहरण कर लेना है। मेनन उसके साथ चल रहा था और उसका हाथ भी जेब में था। दो पलों के लिए दोनों की नजरें मिलीं। उसके बाद पुनः तीन कदम आगे जाते रिचर्ड जैक्सन पर नजरें जा टिकीं।
जुगल किशोर अपने काम को अंजाम देने को तैयार हो चुका था कि एकाएक रिचर्ड जैक्सन ठिठका और मुड़ते हुए सामने की दुकान में प्रवेश करता चला गया।
जुगल किशोर दो पलों के लिए सकपका उठा। ठिठका-सा हो गया था वो।
ऐसा होगा, उसने सोचा भी नहीं था।
तभी मेनन ने उसकी कलाई पकड़ कर खींचा तो जुगल किशोर को जैसे होश आया और आगे चल पड़ा।
"मैं... मैं उसकी कमर में रिवाल्वर लगाने ही वाला था।" जुगल किशोर दांत भींचकर कह उठा।
"ये बातें उसे नहीं पता थीं। शायद वो कुछ खरीदने आया है। सब्र रखो--- वो अभी बाहर आएगा।" मेनन बोला।
"तुम देखो वो भीतर क्या कर रहा है?" जुगल किशोर गुस्से में था।
मेनन टहलने के अंदाज में आगे बढ़ा। उस मकान के भीतर देखते हुए आगे निकल गया--- फिर कुछ लोगों की भीड़ के साथ वापस आ गया। जुगल किशोर के पास ठिठकता हुआ कह उठा---
"वो शायद दुकान के मालिक के साथ बातें कर रहा है। दुकान के पिछले कोने में छोटा-सा काउंटर बना है। उसके पास ही स्टूल पर बैठ चुका है। मेरे ख्याल में वो दुकान वाला उसका पहचान वाला है।"
"हम यहीं रहेंगे और उसके बाहर निकलने का इंतजार करेंगे।"
■■■
रिचर्ड जैक्सन ने दुकान के भीतर प्रवेश किया और सीधा कोने की तरफ बढ़ गया। जहां छोटे से काउंटर के पीछे पचपन बरस का आदमी चश्मा लगाए बैठा था। दुकान में एक सेल्स गर्ल और बॉय भी था, जो कि अपने काम में व्यस्त रहे। इस समय दुकान पर कोई ग्राहक नहीं था। ये ऊंची शॉप गिफ्ट शॉप जैसी थी।
रिचर्ड जैक्सन काउंटर के पास पहुंचा और पास ही पड़ा स्टूल सटाकर बैठता कह उठा---
"हैलो, मैं विनोद श्रीवास्तव से मिल सकता हूं क्या?"
उस व्यक्ति की आंखें सिकुड़ी। उसने चश्मा ठीक किया और काउंटर का ड्राज खोला।
"मैं दोस्त हूं।" रिचर्ड जैक्सन मुस्कुराया।
"दोस्त?" वो बेहद शांत स्वर में बोला।
"हाँ...।"
"मेरा कोई दोस्त नहीं। कौन हो तुम और मेरा नाम कैसे जानते हो?"
"परसों मुझे किसी आदमी ने तुम्हारी बारे में जानकारी दी। यूँ कहो कि मैंने जानकारी खरीदी है तुम्हारे बारे में। उसी जानकारी से मुझे पता चला कि विनोद श्रीवास्तव नाम का कानून से भगोड़ा आदमी, यहां पर वेश बदलकर दुकान चला रहा है। उस जानकारी में ये बात भी थी कि तुम हर काम करने का हौसला रखते हो। सब कुछ कर सकते हो, अगर कीमत मिले तो।"
वो रिचर्ड जैक्सन को देखता रहा।
"मैं थोड़े से काम के तुम्हें काफी पैसे दे सकता हूं। मैं तुम्हें दो लाख डॉलर दे सकता हूं और काम...।"
"मैं कोई काम नहीं करना चाहता। अब मैंने आराम से जिंदगी बिताने का सोच लिया है।" विनोद श्रीवास्तव बोला।
"मेरा काम किए बिना तुम आराम से जिंदगी नहीं बिता सकते।"
"क्या मतलब?"
"मैं पुलिस को खबर कर दूंगा कि तुम यहां छिपे हो, अगर तुमने मेरा काम नहीं किया तो।" रिचर्ड जैक्सन ने स्पष्ट कहा--- "तुम ड्रग्स और हथियारों के केस में फंसे पड़े हो। अपहरण-हत्या-फिरौती के बीस केस तुम पर हैं। पकड़े गए तो सारी उम्र जेल में ही बीत जाएगी।"
"तो तुम मुझे धमकी दे रहे हो?"
"मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि तुम मेरा काम कर दो।"
विनोद श्रीवास्तव कठोर नजरों से रिचर्ड जैक्सन को देखता रहा।
"मेरे काम में इतना सोचने की जरूरत नहीं है। मामूली सा तो काम है।"
"मामूली काम है तो मेरे पास क्यों आए हो?"
"तुम्हारे लिए मामूली काम है। दूसरों के लिए नहीं...।" रिचर्ड जैक्सन ने शांत स्वर में कहा।
"मेरे बारे में तुम्हें किसने बताया?"
"बताया तो, किसी से तुम्हारे बारे में जानकारी खरीदी है। मैं उसका नाम नहीं बता सकता। ये गलत होगा।"
उसने चश्मा हटा कर आंखों को साफ किया और चश्मा पुनः आंखों पर लगा कर कह उठा---
"तुम अपना काम कराकर बाद में भी पुलिस को मेरे ठिकाने के बारे में बता सकते हो।"
"अगर तुम मेरा काम जान लोगे तो ऐसी बात फिर नहीं कहोगे।"
"क्या काम है तुम्हारा?"
"मैं अपनी हत्या करवाना चाहता हूं।" रिचर्ड जैक्सन गंभीर था।
विनोद श्रीवास्तव चौंका।
"क्या बोला?"
"तुमने ठीक सुना। मैं अपनी हत्या करवाना चाहता हूं। चाहता हूं कि तुम मेरी हत्या करो और अमरीकन एम्बेसी के सामने मेरी लाश फेंक कर ऊपर पेट्रोल डालकर जला दो। ये बहुत आसान काम है तुम्हारे लिए...।"
विनोद श्रीवास्तव अजीब सी नजरों से रिचर्ड जैक्सन को देखने लगा।
"तुम पागल हो क्या?"
"नहीं, मैं अमरीकन हूँ।"
"ये आसान सा काम है। तुम खुद अमरीकन एम्बेसी के सामने पहुंचो और खुद को गोली मार लो।"
"फिर तो मैं सच में मर जाऊंगा।"
"क्या मतलब?"
"मेरी हत्या से मेरा मतलब है कि अमरीकन एम्बेसी वाले सोचें कि मैं मर गया। परन्तु मैं जिंदा रहूं। तुम एक ऐसे इंसान की हत्या करके उसे पेट्रोल से जलाओगे जो ठीक मेरी तरह, मेरे रंग-रूप मेरी काठी का मेरे कपड़े पहने होगा। उसकी जेब में मेरा पर्स होगा। मेरी कई खास चीजें उस वक्त मेरे कपड़ों में होंगी, ताकि मेरी शिनाख्त रिचर्ड जैक्सन के रूप में हो कि मैं मर गया।"
"तुम्हारा नाम रिचर्ड जैक्सन है?"
"हां।"
"अमरीकन हो?" विनोद श्रीवास्तव के चेहरे पर सोच के भाव थे।
"बता चुका हूं...।"
"ये सब क्यों करना चाहते हो? चक्कर क्या है?"
"इस काम के मैं तुम्हें दो लाख डॉलर दे रहा हूं--- फिर चक्कर के बारे में क्यों पूछते हो?"
"किससे छिपना चाहते हो?"
"अमेरिका की सरकार से।"
"क्यों?"
"मैं अमेरिकी जासूस हूं, परन्तु अब मुझे अपने विभाग से खतरा महसूस होने लगा है। कुछ बातें ऐसी हैं कि वह मुझे कभी भी मार सकते हैं। मैं अपनी बीती जिंदगी से छुटकारा पा लेना चाहता हूं। उन लोगों की निगाहों में मर जाना चाहता हूं कि वो मुझे भूल जाएं।"
विनोद श्रीवास्तव ने सिर हिलाया बोला कुछ नहीं।
"ये काम तुम्हारे लिए आसान है। तुम इस काम को अच्छी तरह अंजाम दे सकते हो।"
"मेरे बारे में तुम्हें किसने बताया?"
"ऐसा सवाल मत पूछो, जिसके बारे में जवाब देने से मैं मना कर चुका हूं।"
"तुम्हारे काम में हाथ डालकर मैं बड़ी मुसीबत में पड़ सकता हूं।" विनोद श्रीवास्तव ने कहा।
"वो कैसे?"
"अगर बात खुल गई तो मेरे नाम पर एक और केस बन जाएगा।"
"तुम बढ़िया ढंग से काम को अंजाम दो। शक नहीं होगा तो बात भी नहीं खुलेगी।" रिचर्ड जैक्सन कह उठा।
"तुम हिन्दुस्तान में क्या कर रहे हो?"
"कुछ कामों के लिए मेरी ड्यूटी दिल्ली में लगी है। परन्तु अमरीका वाले मुझे वापस बुला रहे हैं, ताकि मेरी हत्या कर सकें।"
"ये अमरीका सबके साथ ही ऐसा करता है क्या--- जो उसके काम आता है, बाद में उसे ही खत्म कर देता है।"
रिचर्ड जैक्सन खामोश रहा।
"मुझे सोचने का वक्त दो।"
"कितना वक्त?"
"कम से कम एक दिन तो चाहिए। कल बताऊँगा। तुम अपना फोन नम्बर मुझे दे दो।"
"मैं तुमसे फोन पर बात नहीं करूंगा। मेरा फोन टेपिंग पर भी लगा हो सकता है।"
"मोबाइल...।"
"वो भी...।" रिचर्ड जैक्सन बोला--- "इस वक्त मैं मुसीबत से निकल रहा हूँ।"
"तो क्या भला खुद ही मिलने आओगे?"
"मैं आ जाऊंगा। परन्तु तुम कोई चालाकी मेरे से...।"
"मैं क्या चालाकी करूँगा? मेरी ऐसी स्थिति नहीं है।" विनोद श्रीवास्तव ने गहरी सांस ली--- "मैं तो तुमसे कहने वाला था कि मेरे बारे में किसी को बताना मत कि मैं यहां छिपा हुआ हूँ। इससे तुम्हें तो कोई फायदा नहीं होगा, परन्तु मैं फँस जाऊंगा।"
"निश्चिंत रहो। मैं किसी को भी तुम्हारे बारे में नहीं बताने वाला।"
■■■
रिचर्ड जैक्सन उस दुकान से बाहर निकला और वापस चल पड़ा।
जुगल किशोर ने उसे दूसरी दिशा में जाते हुए देखा तो उसके होंठों से निकला---
"वो जा रहा है मेनन। शायद वापस जा रहा है--- आओ।"
दोनों पुनः चल पड़े। मेनन बोला।
"सोहनलाल और जैकी यहां पहुंचने वाले हैं।"
"उन्हें छोड़ो।"
दोनों रिचर्ड जैक्सन की तरफ बढ़ने लगे थे। हाथ जेबों में पड़ी रिवाल्वर पर टिक चुके थे।
रिचर्ड जैक्सन पांच-सात कदम आगे था।
एकाएक जुगल किशोर तेजी से आगे बढ़ा और रिचर्ड जैक्सन की बगल में चलने लगा। रिवाल्वर निकालकर छिपे अंदाज में उसकी नाल रिचर्ड जैक्सन की कमर से लगा दी। अगले ही पल रिचर्ड जैक्सन ने ठिठककर, चौंक कर उसे देखा।
"चलते रहो।" जुगल किशोर कठोर स्वर में बोला--- "तुम घिर चुके हो। हम तुम्हारा अपहरण कर रहे हैं।"
रिचर्ड जैक्सन के माथे पर बल पड़े। जुगल किशोर को घूरता वो वहीं खड़ा रहा।
"चलो...।" जुगल किशोर ने कठोर स्वर में कहा। रिवाल्वर रिचर्ड जैक्सन की कमर पर इस तरह लगा रखी थी कि राह चलता एकाएक कोई देख ना सके।
तब तक अजहर मेनन भी पास आ पहुंचा था।
रिचर्ड जैक्सन ने मेनन को भी देखा।
"क्या कहता है?" मेनन ने खतरनाक स्वर में जुगल किशोर से पूछा।
"अगर तुम यहां से नहीं हिले तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।" जुगल किशोर दबे स्वर में गुर्रा उठा।
"बहुत गलत हरकत कर दी उसने।" रिचर्ड जैक्सन भी गुस्से में दिखा।
"किसने?" जुगल किशोर के होंठों से निकला।
"जिससे मैं अभी मिलकर आया हूं। वो ही जो तुम दोनों का बॉस है। मैं तो...।"
"बकवास मत करो। हम ही अपने बॉस हैं...हम...।"
"मैं विनोद श्रीवास्तव की बात कर रहा हूं--- जिससे मैं अभी मिला और...।"
"जुबान बंद रखो। तुम्हें गलतफहमी हो रही है। हम तुम्हारा अपहरण कर रहे हैं और हमारा कोई बॉस नहीं। हम परसो चांदनी चौक में ही तुम पर हाथ डाल देते, परन्तु तब किस्मत से तुम हमारी निगाहों से दूर हो गए थे। चलो अब, वरना...।"
रिचर्ड जैक्सन मामला समझा।
महसूस हो गया था कि इन लोगों का विनोद श्रीवास्तव से कोई मतलब नहीं है।
"कौन हो तुम लोग?" उसके होंठों से निकला।
"चलते-चलते बातें करना। वरना अब मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।" जुगल किशोर का सब्र जवाब देने लगा।
रिचर्ड जैक्सन रास्ते पर आगे चल पड़ा।
जुगल किशोर ने छिपे तौर पर उससे रिवाल्वर लगाए रखी।
"वहीं से बाहर निकलो। जहां से तुम भीतर आये थे।" मेनन ने कहा।
दोनों रिचर्ड जैक्सन के दाएं-बाएं चल रहे थे।
"तो तुम लोग मेरे पीछे यहां पहुंचे?"
"हाँ...?"
"क्या चाहते हो?" रिचर्ड जैक्सन गंभीर हुआ।
"बताया तो--- तुम्हारा अपहरण।" जुगल किशोर दबे स्वर में बोला।
"उसके बाद?"
"फिरौती। अमरीकी सरकार तुम्हें वापस पाने के लिए हमें दस करोड़ डॉलर देगी।"
"तो तुम लोग मेरे बारे में सब जानते हो?"
"कोई शरारत मत करना। यहां पर हम चार हैं। बाकी दो फासला रख कर पीछे हैं। तुम बच नहीं सकते।"
"मेरे बारे में जानते हो कि मैं कौन हूं...?"
"अमेरिकी जासूस।"
वे उस हाल में आ पहुंचे थे, जहां ऊपर बाहर जाने के लिए सीढ़ियां थीं और बाजार में इधर-उधर जाने के लिए तीन रास्ते बने दिख रहे थे। लोग आ-जा रहे थे, परन्तु किसी को नहीं पता था कि यहां क्या हो रहा है।
"सीढ़ियों की तरफ चलो।" जुगल किशोर ने रिवाल्वर की नाल का दबाव बढ़ाकर कहा।
रिचर्ड जैक्सन सीढ़ियों की तरफ बढ़ता कह उठा---
"एक जासूस की कीमत दस करोड़ डॉलर कभी भी नहीं होती।"
"वो हम देख लेंगे, तुम हमें हमारा काम मत समझाओ।"
वो सीढ़ियां चढ़ने लगे थे। और लोग भी सीढ़ियां चढ़ रहे थे।
कुछ उतर रहे थे। यानि कि सीढ़ियों पर पर्याप्त लोग थे।
तभी रिचर्ड जैक्सन ने आठ-दस जापानी लोगों को सीढ़ियां उतरते देखा। उसकी आंखों में खतरनाक भाव चमक उठे। वह इस वक्त सीढ़ियों के ठीक बीच में से ऊपर चढ़ रहा था। जुगल किशोर और मेनन उसके दाएं-बाएं थे। ज्योंही जापानी लोगों ने उनके पास सीढ़ियां उतरते हुए निकल जाना चाहा, तभी रिचर्ड जैक्सन ने दोनों हाथ दाएं-बाएं फैलाकर उन्हें पीछे की तरफ धकेल दिया।
वो तीन जापानी जुगल किशोर और मेनन से टकराते नीचे गिरते चले गए।
चीखें गूंज उठीं।
रिचर्ड जैक्सन तेजी से ऊपर की तरफ दौड़ा और कतार लगाकर बाकी के सहमे से खड़े जापानियों को जोरों से नीचे को धक्का दिया। इससे ये हुआ कि पीड़ा से कराहते मेनन-जुगल किशोर और जापानी जो उठने जा रहे थे, उन पर और जापानी आ गिरने से पुनः रगड़कर गिर गए। चीखों का माहौल गर्म हो गया। वहां भीड़ जुटने लगी।
रिचर्ड जैक्सन तब तक ऊपर पहुंचकर शीशे के दरवाजे से बाहर जा चुका था।
मेनन और जुगल किशोर को ना दिखाई देने वाली चोटें लगी थीं।
रिवाल्वर जुगल किशोर के हाथ से निकल कर जाने कहां गिर गई थी। इन हालातों में रिवाल्वर को तलाश करना बेवकूफी थी। वो पकड़ा जा सकता था। मेनन की रिवाल्वर उसकी जेब में ही रही। क्योंकि वो जेब में पड़ी रिवाल्वर पर हाथ रखे हुए सीढ़ियां चढ़ रहा था।
रिचर्ड जैक्सन ने उनकी सारी मेहनत खराब कर दी थी। वो फुर्तीला निकला था।
इकट्ठे हो चुके लोगों ने जुगल किशोर और मेनन के अलावा जापानियों को उठाया। वे पीड़ा से कराह रहे थे।
तभी वहां सोहनलाल और जैकी आ पहुंचे। उन्होंने दोनों को संभाला।
"क्या हुआ था?" जैकी ने जुगल किशोर से पूछा।
"चुप हो जाओ।" टांग की पीड़ा से कराहता जुगल किशोर, तीखे स्वर में कह उठा।
■■■
रिचर्ड जैक्सन पालिका बाजार से निकलकर दौड़ता चला गया।
दूर टैक्सी स्टैंड पर पहुंचकर टैक्सी ली। अमेरिकन एम्बेसी जा पहुंचा। चेहरे पर गंभीरता दिख रही थी। वो इतना तो समझ गया था कि कुछ लोग इसके पीछे हैं और उसका अपहरण करके, अमेरिकी सरकार से फिरौती वसूलना चाहते हैं। ऐसे खतरे उसके लिए मामूली थे, परन्तु मन-ही-मन उसने तय कर लिया था कि अब वो सतर्क रहेगा। वो नहीं चाहता कि ऐसा कुछ दोबारा हो।
एम्बेसी पहुंचकर अपने केबिन में बैठा और पालिका पार्किंग में मौजूद अपने आदमी को फोन करके, कार को एम्बेसी ले आने को कह दिया। काम करके हटा ही था कि अमरीकन ने भीतर प्रवेश किया।
दोनों मुस्कुराये। एक-दूसरे को हैलो कहा।
"अभी दोबारा वॉशिंगटन से तुम्हारे लिए फोन आया था। फोन पर तुम्हारे चीफ थे।" वो व्यक्ति बोला।
"अच्छा!" रिचर्ड जैक्सन का स्वर शांत था।
"वो तुमसे बात करना चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि तुम जब भी आओ, उनसे बात कर लो।"
"हूं। मैं अभी फोन करता हूं...।" रिचर्ड जैक्सन मुस्कुराया।
"तुम किसी समस्या में हो?"
"नहीं तो...।"
"यूं ही पूछा। क्योंकि तुम्हारे चीफ के फोन आजकल बहुत आ रहे हैं।"
"हमारी खास बातचीत चल रही है किसी मुद्दे पर...।"
"ऐसा ही होगा।" उसने सिर हिलाकर कहा और बाहर निकल गया।
रिचर्ड जैक्सन कुछ पलों तक दरवाजे को देखता रहा, फिर उठा और जेब से स्टील की लंबी चाबी निकालकर पलटा और पीछे की दीवार के पास पहुंचा। जहां एक और पेंटिंग टँगी थी। उसने पेंटिंग को उतारा तो वहां दीवार में फंसी छोटी सी मजबूत तिजोरी दिखने लगी। रिचर्ड जैक्सन ने चाबी लगाकर तिजोरी को खोला तो भीतर कागज-फाइलें पड़ी दिखीं। उसने भीतर हाथ डाला और फाइलों के नीचे से काली जिल्द वाली चार इंच चौड़ी और छः इंच लंबी डॉयरी निकाली। उसे थपथपाया, फिर वापस रख कर तिजोरी बंद कर दी और पेंटिंग वैसे ही टांगने के पश्चात कुर्सी पर आ बैठा और टेबल पर पड़ा फोन उठाकर नंबर मिलाने लगा।
चंद पलों में ही वॉशिंगटन में चीफ का नंबर लग गया।
"हैलो...।" एक युवती की आवाज रिचर्ड जैक्सन के कानों में पड़ी।
"हाय हनी! कैसी हो?" वो मुस्कुरा कर बोला।
"तुम कहां हो?" आवाज में तेजी आ गई थी।
"इंडिया में...।"
"चीफ तुम्हारे लिए काफी परेशान हो रहे हैं। उनके कहने पर मैंने कई बार दिल्ली एम्बेसी का नंबर लगाया, पर...।"
"तुम्हें मालूम था कि मैं इंडिया में हूं--- तो फिर पूछा क्यों कि मैं कहां हूं?"
"मैंने सोचा कहीं वॉशिंगटन आ गए हो, क्योंकि तुम से बात नहीं हो पाई थी।"
"मेरे मोबाइल का नंबर क्यों नहीं मिलाया?"
"चीफ ने मना किया था कि तुम किसी काम में व्यस्त हुए तो गड़बड़ ना हो जाये। अब मैं चीफ को लाइन दे रही हूं।"
"कराओ बात।" रिचर्ड जैक्सन के चेहरे पर गंभीरता दिखने लगी थी।
चंद पलों बाद चीफ की जानी-पहचानी आवाज कानों में पड़ी---
"रिचर्ड...।"
"यस चीफ...।"
"मैं तो सोच रहा था कि तुम वॉशिंगटन पहुंच रहे हो। मैंने तुम्हें वापस आने को कहा था।"
"सॉरी चीफ, मैं यहां किसी काम में व्यस्त...।"
"किस काम में?"
"कोई मुझे अहम जानकारियां देने वाला है हिन्दुस्तान सरकार की। यहां की सरकार अमेरिका के खिलाफ कुछ करने जा रही है।"
"ये काम तुम किसी और के हवाले कर दो।"
"ये संभव नहीं। क्योंकि जानकारी देने वाला सिर्फ मुझसे ही बात करेगा। उसे मुझ पर भरोसा है।"
"मैं तुम्हें वॉशिंगटन में अपने सामने देखना चाहता हूं।"
"इस जल्दबाजी की कोई तो वजह होगी सर?"
"ईराक के मामले में तुमसे बात करनी है।"
रिचर्ड जैक्सन के चेहरे पर कड़वे भाव आ ठहरे। जैसे कि वह जानता हो कि क्या बात है।
"ईराक का मामला खत्म हुए दो साल हो गया सर! मैं अपनी रिपोर्ट दे चुका हूं।"
"फिर भी अभी कई बातें हैं।"
"मेरी नजरों में तो कोई बात नहीं बची जो...।"
"तुम मुझसे बहस कर रहे हो।"
"नहीं सर! मैं तो अपनी रिपोर्ट के बारे में बात कर रहा हूं...।"
"कई बातें अभी बाकी हैं। मुझे भी ऊपर जवाब देना है तब ईराक में और कई जासूस थे। उनकी दी रिपोर्ट पढ़ने के बाद तुमसे बातें करने की जरूरत है।" उधर से चीफ की आती आवाज कानों में पड़ी।
रिचर्ड जैक्सन के चेहरे पर छाये कड़वे भाव गहरे हो गये।
"क्या मेरे बारे में किसी जासूस ने रिपोर्ट दी? कहीं उसका नाम हेडली तो नहीं?"
"तो तुम जानते हो कि हेडली ने क्या कहा?"
"नहीं सर! ईराक में हेडली अधिकतर मेरे साथ ही रहा। सिर्फ वो ही जो मेरे खिलाफ गलत रिपोर्ट दे सकता है। वो जलता है मुझसे।"
कुछ खामोशी के बाद चीफ की आवाज आई---
"तुम वॉशिंगटन पहुंचो।"
"आप मुझे बताना नहीं चाहते कि हेडली ने ऐसी क्या रिपोर्ट दी जो आप मुझसे वॉशिंगटन पहुंचने पर जोर दे रहे हैं?"
"मैं नहीं जानता कि वह सच कहता है या झूठ--- परन्तु उसका कहना है कि ईराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की बहुत बड़ी दौलत, जो कि किसी बड़े खजाने की तरह है, ईराक में कहीं जमीन के भीतर दबी है और उसका नक्शा तुम्हारे पास है।"
रिचर्ड जैक्सन के दांत भिंच गए।
"बकवास करता है वो। अगर ऐसा होता तो वो नक्शा मैं आपके हवाले कर चुका होता। पर ऐसा कुछ नहीं है।"
"हेडली की रिपोर्ट की कॉपी ऊपर भी गई है। ऊपर वाले तुम्हें वॉशिंगटन में चाहते हैं और हेडली से काफी पूछताछ हो चुकी है। वो कसमें खा-खाकर कहता है कि उसने जो कहा है, सच है। उसका कहना है कि सद्दाम हुसैन की दौलत का नक्शा एक काली डॉयरी के रूप में है--- जो कि तुम्हारे पास है। अब वाशिंगटन आकर तुमने यह साबित करना है कि वो गलत कह रहा है।"
"चीफ , अगर मैं कहूं कि वह काली डॉयरी आपके पास है--- मैंने आपको दे दी है तो?"
"क्या--- मुझे कब दी?"
"ये आप साबित कीजिए कि मैंने आपको नहीं दी...।"
"क्या बकवास कर रहे हो? तुमने मुझे कोई काली डॉयरी नहीं दी।"
"ये बात कहकर मैं आपको समझाना चाहता था कि जो कहा हेडली ने कहा, उसकी कही बात को मैं कैसे गलत साबित कर सकता हूं? मैं तो सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि वो झूठ कहता है। मैंने तो सद्दाम हुसैन की दौलत के बारे में भी कभी नहीं सुना। ऐसे भी उसका नक्शा कहां से आ गया? मेरे ख्याल में हेडली मुझसे कोई बदला लेने के लिए मुझे परेशान कर रहा...।"
"तुम वाशिंगटन आ जाओ।"
"जरूर चीफ। लेकिन अभी पन्द्रह दिन लगेंगे मेरे आने में। जो काम मेरे हाथ में है, उसे मैं छोड़ नहीं सकता।" रिचर्ड जैक्सन ने कहा और रिसीवर वापस रख दिया। कई पलों तक फोन को देखता रहा। फिर बड़बड़ाया--- "सद्दाम हुसैन की दौलत अब मेरी है।"
■■■
सोहनलाल, जुगल किशोर, जैकी और अजहर मेनन पहाड़गंज स्थित होटल के कमरे में मौजूद थे। वो पालिका बाजार से सीधा होटल पहुंचे थे। जुगल किशोर और मेनन बुरे हाल में थे। यूँ तो बाहरी चोट लगी थी, परन्तु शरीर के कई हिस्सों में बुरी तरह दर्द हो रहा था। जुगल किशोर के कंधे पर तो जबरदस्त दर्द था और मेनन का घुटना हिलाये ना हिल रहा था।
सोहनलाल ने होटल के रिसेप्शन पर कहकर डॉक्टर को बुलवा लिया था। वो दोनों को दवा देकर चला गया था, परन्तु पीड़ा थी कि दोनों के शरीर में रह-रहकर उठ रही थी।
सोहनलाल इस वक्त गोली वाली सिगरेट सुलगाये कुर्सी पर बैठा था।
जैकी ड्रेसिंग टेबल पर बैठा था।
देर से कमरे में चुप्पी थी।
"तो आज भी रिचर्ड जैक्सन हाथ आकर फिसल गया।" जैकी ने गंभीर स्वर में कहा।
"हमें ये काम नहीं करना है।" मेनन बोला।
"क्यों?" सोहनलाल ने उसे देखा।
"दो बार रिचर्ड जैक्सन हाथ आकर निकल गया। दूसरी बार तो बुरा हाल हो गया। मैं तो...।"
"चुप कर...।" जुगल किशोर गुर्रा उठा। तेज बोलने की वजह से उसके कंधे को झटका लगा तो पीड़ा उठ खड़ी हुई।
"तू आराम कर...।" सोहनलाल ने कहा, फिर मेनन से पूछा--- "इतने में ही घबरा गया।"
"ये काम मनहूस लगता है।" मेनन उखड़े स्वर में कह उठा।
"उल्लू के पट्ठे चुप कर!" जुगल किशोर पुनः भड़का--- "ये काम होगा।"
"काम नहीं हो पाया तो गुस्सा करने की जरूरत नहीं है।" जैकी बोला--- "किसी पर गलती नहीं थोपी जा रही है कि काम उसकी गलती की वजह से नहीं हुआ। नहीं हुआ तो नहीं हुआ। ऐसा हो जाता है। हम फिर कोशिश...।"
"वो अमरीकन अब सतर्क हो गया होगा।" मेनन ने कहा--- "अब शायद हमें वो मौका ना दे।"
"तुम भूल रहे हो रिचर्ड जैक्सन ने हमें पहले भी मौका नहीं दिया।" सोहनलाल बोला--- "सोमनाथ और उसकी पत्नी के द्वारा हमने मौका हासिल किया है। हमें वहां से खबरें मिल रही हैं। ऐसे मौके हमें फिर मिलेंगे।"
"जरूर मिलेंगे। मैं हार नहीं मानूँगा।" जुगल किशोर ने कहा।
"आज वो हमारे हाथ आ गया था। लेकिन वो चालाकी दिखा गया।" मेनन दुःख भरे स्वर में बोला।
"मैं साले को पकड़कर घोड़ा बनाऊंगा और उसकी पीठ पर बैठूंगा।" जुगल किशोर ने कड़वे स्वर में कहा--- "आज हमारी जो हालत हुई पड़ी है, वो उसी कमीने की मेहरबानी से है।"
"तुम उसका अपहरण करो और बचाव वो भी न करे--- ये कैसे हो सकता है।" जैकी ने गहरी सांस ली।
"शायद हम लापरवाह हो गए थे...।" जुगल किशोर ने कहा।
"कुछ भी हो, उसे भी अपना बचाव करना आता है। ये उसने साबित कर दिया आज...।"
"वो हाथ आ जाता तो हमें चैन मिलता।" मेनन बोला।
"चैन तब मिलता जब हमें फिरौती मिल जाती।" सोहनलाल बोला--- "किसी को उठाकर फिरौती हासिल करना आसान काम नहीं है। ऐसे मामलों में कुछ भी हो सकता है। कैसी भी गड़बड़ हो सकती है।
"सोहनलाल---।" जुगल किशोर बोला---"मिसेज बाली को पचास हजार रुपये देने का दिन है।"
"जानता हूँ। वो जब भी फोन करती है दिन बताना नहीं भूलती।"
"उसे कल पचास हजार रुपये दे आना और कहना कि इसी तरह से खबरें देती रहेगी तो अगली बार उसे लाख देंगे।"
"ये सुनते ही वो सोमनाथ को दो मुर्गे खिलाना शुरू कर देगी।" सोहनलाल मुस्कुरा पड़ा।
"मुझे आराम करने दो।" जुगल किशोर बोला--- "बहुत दर्द हो रहा है कंधे में।"
"हाथ-पांव टूट जाता तो और मुसीबत खड़ी हो जाती। शुक्र करो कि सब ठीक रहा।" जैकी बोला।
"साला बच गया।" जुगल किशोर पुनः दांत किटकिटा उठा।
■■■
अगले दिन रिचर्ड जैक्सन, कनॉट प्लेस के पालिका बाजार अकेला पहुंचा और वो भी अपना रूप बदलकर। चेहरे पर बड़ी मूँछें थीं। आँखों पर नजर का चश्मा। बालों का भी स्टाइल बदला हुआ था। किसी भी तरह से रिचर्ड जैक्सन नहीं लग रहा था। मेकअप करने के बाद एम्बेसी से खामोशी से बाहर निकल आया था। किसी को उसके बाहर जाने का भी पता नहीं लगा। ऐसा उसने दो वजहों से किया। एक तो ये वजह थी कि कल पालिका बाजार में जो छोटा सा हंगामा उसके द्वारा हुआ था, उस दौरान किसी ने उसका चेहरा याद रखा हो तो आज पहचाना ना जा सके।
दूसरी वजह ये थी--- जो बेवकूफ अपहरण करना चाहते हैं, वो उसे ना पहचान सकें और विनोद श्रीवास्तव से शांति से भरी मुलाकात कर सके। एम्बेसी से बाहर निकलकर कुछ आगे जाने पर उसे ऑटो मिल गया था। उसी से वो कनॉट प्लेस पहुंचा और इस बात का ध्यान रखा कि कोई पीछा ना कर रहा हो।
सब ठीक रहा।
जब उसने पालिका बाजार में प्रवेश किया तो दिन के साढ़े बारह बज रहे थे। मार्केट में कल की तरह ही रौनक थी। रिचर्ड जैक्सन, विनोद श्रीवास्तव की दुकान पर पहुंचा। भीतर तीन-चार कस्टमर थे। सेल्सगर्ल व ब्वॉय उन्हें तरह-तरह के शो पीस दिखा रहे थे। पीछे कांउटर के पार, कल की तरह विनोद श्रीवास्तव बैठा था। वो उसके पास पहुंचा।
दोनों की नजरें मिलीं।
"स्टूल ले लो।" विनोद श्रीवास्तव ने शांत स्वर में कहा।
"तुमने मुझे कैसे पहचाना?" स्टूल खींचकर उस पर बैठता रिचर्ड जैक्सन बोला।
"तुम्हारी आँखों से।" विनोद श्रीवास्तव ने जवाब दिया।
"आँखों को भी बदल लिया करूँगा।"
दोनों धीमें स्वर में बातें कर रहे थे।
"कल यहां तुमने हंगामा किया था सीढ़ियों पर?" पूछा विनोद श्रीवास्तव ने।
"हाँ। कुछ लोग मेरा अपहरण करने जा रहे थे।"
"कौन थे वो?"
"पहले तो मैं समझा कि वो तुम्हारे आदमी हैं। तुम बेईमानी पर आ गए हो--- परन्तु उनकी बातें सुनकर तसल्ली हो गई कि वो तुम्हारे आदमी नहीं थे।" रिचर्ड जैक्सन ने कहा।
"शुक्र है वक्त रहते तुम्हें यह बात मालूम चल गई। वरना तुम तो मेरी खाट खड़ी कर देते। मेरे बारे में पुलिस को बता देते।"
"तुम्हें इसी में खुशी होनी चाहिये कि सब ठीक है। अब कल वाली मेरी बात पर आ जाओ।"
विनोद श्रीवास्तव कुछ देर खामोश रहा, फिर कह उठा---
"तुम चाहते हो कि अमेरिकन एम्बेसी वालों की नजरों में तुम्हारी मौत हो जाये।"
"हाँ।"
"काम जरा कठिन है।"
"दो लाख डॉलर भी तो दे रहा हूँ।"
"इसके लिए तुम्हारे जैसा आदमी ढूंढना होगा। उसकी हत्या करनी होगी। फिर सबसे खतरे वाली बात तो ये है कि तुम चाहते हो कि उसकी लाश को अमेरिकन एम्बेसी के सामने फेंककर पेट्रोल से जला दिया जाये।"
"हाँ--- इस तरह जलाना कि चेहरा और शरीर पहचान में न आये।" रिचर्ड जैक्सन ने कहा--- "लाश जलाने को छोड़कर बाकी सब कामों में मैं तुम्हारे साथ रहूँगा और काम के बाद तुम ये बात भूल जाओगे कि मैं जिंदा हूँ।"
"क्या किया तुमने?"
"कुछ भी नहीं।"
"तो अमेरिकी भाई तुम्हें क्यों खत्म करना चाहते हैं? कुछ तो उल्टा किया होगा।"
"उन्हें गलतफहमी हो गई है। मैंने कुछ नहीं किया। किसी ने उन्हें मेरे खिलाफ भड़का दिया है। मैं बचना चाहता हूँ इस मामले से। जासूसी का काम ही खतरनाक होता है। कभी-कभी अपने साथी ही दुश्मन बन जाते हैं।"
"कुछ किया भी हो तुमने तो मुझे क्यों बताओगे!" विनोद श्रीवास्तव ने कहा।
"ये बात तुम्हें पहले ही सोच लेनी चाहिए थी।"
"मेहनत का काम है तुम्हारा। मैंने अपने साथियों से बात कर ली है। वो तुम्हारे काम को पूरा करेंगे। मैं इस काम से दूर रहूंगा। परन्तु काम की कीमत दो लाख नहीं, चार लाख डॉलर होगी।"
"तुम पर लालच सवार हो रहा है। ये क्यों भूलते हो कि मैं तुम्हारे बारे में पुलिस को खबर नहीं दे रहा।"
"काम के बाद मैंने भी तुम्हारे जिंदा होने की बात दबाकर रखनी है। यानि इस बात का हिसाब बराबर।"
"दो लाख डॉलर, मतलब एक करोड़ रुपया।"
"हिसाब लगाना मुझे आता है। चार लाख डॉलर खर्च करो तो काम मेरे द्वारा हो जाएगा। किसी और से सस्ते में काम कराते हो तो इस बात का खतरा बना रहेगा कि वो तुम्हारे जिंदा होने की बात न खोल दे।"
"मैं तुम्हें ढाई लाख डॉलर दे दूंगा।"
"इस मामले में तुम्हें सौदेबाजी नहीं करनी चाहिए।"
"तुम्हें भी मेरी बात मान लेनी चाहिए।"
"ठीक है, तुम तीन लाख डॉलर दे देना। रकम पहले ही देनी होगी।"
"तुम मेरे जैसा बंदा ढूंढो, जो कि विदेशी हो। मैं तुम्हें तीन दिन में तीन लाख डॉलर दे दूंगा।"
विनोद श्रीवास्तव ने काउंटर ड्राज से छोटा सा कागज निकालकर उसे दिया---
"इस पते पर चली जाओ। मेरे आदमी मिलेंगे। वो तुम्हें अच्छी तरह देख लेंगे और तुम सा विदेशी ढूंढने में लग जाएंगे।"
■■■
जुगल किशोर और मेनन को ठीक होने में सप्ताह हो गया था।
इस बीच कई बार डॉक्टर भी आया। मिसेज बाली का फोन भी एक बार सोहनलाल को आया कि रिचर्ड जैक्सन एम्बेसी से बाहर जाने वाला है, परन्तु अभी वो इस काम के लिए तैयार नहीं थे। अब सप्ताह बाद, वे लोग फिर से पूरी तरह से तैयार हो चुके थे रिचर्ड जैक्सन के अपहरण के लिए। सोहनलाल, से मिसेज बाली को पचास हजार दे आया था और अगली बार लाख रुपए देने को कहा कि अगर वो इसी तरह खबरें देती रही तो। मिसेज बाली सोहनलाल से ये कहती रही कि सोमनाथ मुर्गे खा-खाकर मोटा हो रहा है और शराब भी महंगी वाली पीने लगा है। खर्चा बढ़ रहा है।
■■■
आठ दिन के बाद रिचर्ड जैक्सन, विनोद श्रीवास्तव से पालिका बाजार की उसी दुकान में मिला। सुबह का समय था। विनोद श्रीवास्तव उसी काउंटर के पीछे हमेशा की तरह बैठा था। रिचर्ड स्टूल पर बैठता कह उठा---
"तुम्हें तीन लाख डॉलर मैं दे चुका हूं, परन्तु मेरा काम शुरू नहीं किया गया।"
"फोन पर तो हमारी बात होती नहीं कि जल्दी आगे बढ़ सके।" विनोद श्रीवास्तव ने कहा--- "तीन दिन पहले मेरी आदमी ने ऐसे विदेशी को पकड़कर बंदी बना लिया है जो कि तुम जैसा ही है।"
"मैं उसे देखना चाहूंगा।"
"देख लो। इसके लिए तुम्हें मेरे आदमी के पास जाना होगा।"
"मैं सीधा यहां से उधर ही जाता हूं।"
"अपनी मौत के प्लान के बारे में सोचा है या मैं ही सोचूं?"
"पहले उस आदमी को तो देख लूँ।"
"मेरे आदमी कभी भी गलत काम नहीं करते। फिर भी वो आदमी तुम्हें ठीक लगा, तो काम कैसे करना है, ये बता दो।"
"जब सब काम पूरे हो जायेंगे तो मैं शिमला जाने का प्रोग्राम बनाऊंगा।"
"शिमला!"
"हाँ। एम्बेसी के कई लोग जानते हैं कि मैं शिमला जाना चाहता हूँ। परन्तु मुझे वक्त नहीं मिल रहा है।" रिचर्ड जैक्सन सामान्य स्वर में कह रहा था--- "शिमला में मैं तीसरे दिन अपने आदमियों की नजरों से अचानक गायब होकर दिल्ली तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा और यहां हम अपने काम को अंजाम देंगे, जैसा कि मैं तुम्हें बता चुका हूँ। मेरे साथ गये मेरे गार्ड्स मुझे शिमला में ही ढूंढते रहेंगे और सोचेंगे कि शायद कोई बुरी घटना पेश आई है। मेरे न मिलने पर वो पुलिस के पास भी जायेंगे ताकि मेरी अच्छी तरह से तलाश हो सके। परन्तु इसी बीच एम्बेसी से उन्हें फोन आ जायेगा कि किसी ने मेरी हत्या कर दी है और लाश एम्बेसी के बाहर फेंककर उस पर पेट्रोल डालकर उसे जला दिया है। इस तरह सब ये सोचेंगे कि शिमला में ही कुछ लोगों ने मेरा अपहरण कर लिया होगा।"
विनोद श्रीवास्तव ने सिर हिलाकर कहा।
"योजना तुम्हारी अच्छी और सटीक है।"
"परन्तु योजना पर तभी काम होगा जब मुझे इस बात की तसल्ली होगी कि तुम्हारे आदमियों ने सच में ऐसे किसी आदमी को पकड़ा है जो मेरी कद-काठी का है और मरने के बाद, अधजला होने के बाद, वो मेरे जैसा ही दिखे।"
"मेरे पन्द्रह आदमियों ने छः दिन लगाकर उस आदमी को तलाशा है तो उन्होंने ठीक आदमी ही ढूंढा होगा।"
"मैं उसे देखने जा रहा हूँ।"
"जरूर जाओ।"
■■■
उसी दिन शाम को सोहनलाल का मोबाइल बजने लगा। मिसेज बाली का फोन था।
"वो शिमला जा रहा है।" छूटते ही मिसेज बाली की आवाज कानों में पड़ी।
"कौन--- रिचर्ड?" सोहनलाल के होंठों से निकला।
"रिचर्ड जैक्सन ही जायेगा। उसके बारे में ही बता रही हूँ। सोमनाथ भला शिमला जाकर क्या करेगा!"
"कब जा रहा है?"
"परसों।"
"साथ में कौन होगा?"
"उसके छः अंगरक्षक होंगे। तीन कारों में जायेगा। दिल्ली से चंडीगढ़ तक वह प्लेन में जायेगा। उसके लोग एयरपोर्ट पर मौजूद होंगे। बाहर निकलकर वह अपनी कार पर बैठेगा और तीनों कारें शिमला के लिए चल देंगी।"
जानकारी बढ़िया थी।
परन्तु समस्या ये थी कि वो गनमैनों से घिरा रहेगा।
"खबर पक्की है ना?"
"पहले कोई खबर गलत दी है, जो अब ऐसा होगा? रोज मुर्गा और शराब पिलाती हूँ सोमनाथ को। वो भी जानता है कि जब तक वो मुझे खबरें सही देगा, उसका खाना-पीना चलता रहेगा। यूँ वो इन सारी बातों को एक खेल समझ रहा है। उसे लगता है कि मैं बेवकूफ हूँ जो रिचर्ड जैक्सन के बारे में जानकारी लेती हूँ।" मिसेज बाली ने हँसकर कहा।
"कोई और काम की बात हो तो मुझे फोन कर देना।" सोहनलाल ने कहा।
"कर दूंगी। अगली बार एक लाख दोगे ना?"
"हाँ।"
■■■
सोहनलाल, मेनन, जैकी और जुगल किशोर की निगाहें मिलीं। चारों होटल के एक कमरे में मौजूद थे। सोहनलाल ने मिसेज बाली की बताई सारी बात उन्हें बताई थी। सब कुछ सुनकर जुगल किशोर का चेहरा कठोर हो गया था।
"ये मौका हम हाथ से नहीं जाने देंगे।" जुगल किशोर गुर्रा उठा।
"उसके साथ हमेशा रहने वाले छः सिक्योरिटी वाले होंगे।" अजहर मेनन कह उठा।
"दिल्ली से चंडीगढ़ वह प्लेन से जाएगा। चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर उसकी और गनमैनों की कारें पहुंच चुकी होंगी। वहां कारों में बैठेगा और शिमला के लिए चल देगा।" सोहनलाल ने पुनः याद दिलाने वाले स्वर में कहा--- "रिचर्ड जैक्सन पर हाथ डालने की बेहतर जगह शिमला जाने वाली पहाड़ी रास्ते पर ही होगी।"
"योजना मैं बनाऊंगा।" जुगल किशोर पुनः गुर्रा उठा--- "रिचर्ड जैक्सन इस बार हाथ से नहीं निकल पायेगा।"
"उसके साथ के गनमैनों का क्या करोगे जुगल किशोर?" जैकी ने पूछा।
"उनका भी इंतजाम करना होगा। इस बार हम शिकार को हासिल करके ही रहेंगे।"
"योजना के बारे में सोचो।" जैकी गम्भीर स्वर में कह उठा।
"चूंकि इस बारे में हमें दो दिन वक्त मिल गया है और हमें पता है कि हमारा शिकार किधर जा रहा है, किस रास्ते से निकलेगा। ऐसे में मैं बहुत बढ़िया योजना बना सकता हूं उसे उठा लेने की। इस बार हमसे कोई गलती नहीं होगी।" जुगल किशोर बोला।
"मेरे ख्याल से हमें वक्त बर्बाद ना करके चंडीगढ़ के लिए निकल लेना चाहिए। योजना के बारे में हम रास्ते में भी सोच सकते हैं। इस काम के लिए हमें कई चीजों का इंतजाम करना पड़ेगा। शिमला के रास्ते में हमें उस जगह का भी चुनाव करना है जहां पर हम उस पर हाथ डालेंगे। हमारे पास पूरा पूरा ही वक्त है। अभी से हमारी तैयारी शुरू हो जानी चाहिए।" सोहनलाल बोला।
"तैयारी करो। हम अभी यहां से निकलेंगे।" जुगल किशोर उठते हुए बोला।
"चलने की तैयारी शुरू हो गई उनकी।
मेनन के चेहरे पर नाचती गंभीरता को जैकी ने पहचाना और कह उठा---
"तुम किसी चिंता में हो...?"
"मैं सोच रहा हूं कि क्या हम लोग इस बार सफल हो पाएंगे? दो बार असफल हो चुके हैं।"
"हिम्मत रख---हम---।"
"हिम्मत की कमी नहीं है--- परन्तु दो बार असफल हो जाना भी छोटी बात नहीं होती।"
सोहनलाल पैंट पहनता मुस्कुरा कर कह उठा---
"इस बार हम सफल हो जाएंगे।"
"वो कैसे?"
"हमें दो दिन का वक्त मिल गया है--- कि हम आसानी से बढ़िया योजना बना सकें। हमें मालूम हो चुका है कि वो किस रास्ते से जाने वाला है।"
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शिमला! हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों का अनूठा संगम। प्रकृति का अद्भुत नजारा हर तरफ नजर आता था। मन मोहने वाले शानदार दृश्य को देखकर मन को ढेर सारा सुकून मिलता था।
शिमला से बीस मिनट पहले एक छोटी सी जगह आती है--- समरहिल।
तीन कारों का छोटा सा काफिला समरहिल से गुजरता, शिमला की तरफ बढ़ रहा था। एक तरफ पहाड़ थे तो दूसरी तरफ खाइयां इस कदर खतरनाक थीं कि देखकर दिल कांप उठता था। तीनों कारें आगे-पीछे होती चली जा रही थीं। बीच की कार के पीछे वाली सीट पर अमेरिका का राजदूत रिचर्ड जैक्सन बैठा था। जो कि पचास बरस का सफेद और सुर्ख चेहरे वाला प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला इंसान था। कहने को राजदूत की कुर्सी संभालता था, परन्तु हकीकत में वह दक्ष जासूस था। अमेरिकी सरकार उसे उसी देश में भेजती जहां उसे महत्वपूर्ण काम निपटाने होते थे। हिन्दुस्तान से वास्ता रखते कई महत्वपूर्ण काम उसके हवाले थे और दो साल से वह हिन्दुस्तान में ही था।
रिचर्ड जैक्सन अमेरिकी सरकार का खास आदमी था और उसके सीने में कई ऐसे राज मौजूद थे कि जिनके खुलते ही अमेरिका की ढेरों दुश्मन खड़े हो जाते--- परन्तु वह अपने देश का वफादार था। यूं तो वह हिन्दुस्तान में न जाने कितनी बार आया था, परन्तु अंग्रेजों का बसाया शिमला शहर देखने का उसे कभी मौका नहीं मिलता था, जबकि वह शिमला जाने के लिए लंबे वक्त से इच्छुक था। और अब उसे कुछ दिनों की फुर्सत मिली तो शिमला जाने का प्रोग्राम बना लिया था। वह विमान के द्वारा शिमला पहुंच सकता था, परन्तु वो पहाड़ों के रास्ते सड़क द्वारा पूरा करते हुए प्रकृति को नजदीक से देखना चाहता था, इसलिए दिल्ली से चंडीगढ़ वो विमान से पहुंचा और वहां खड़ी कारों में सवार होकर शिमला के लिए चल दिया था, इस बात से बेखबर कि दो महीनों से कई आंखें बराबर उस पर नजर रखे हुए हैं और उन्हें ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी, जो वो इस तरह खुले में सड़क पर उतरें और अपना काम शुरू कर सकें।
बहरहाल तीनों कारों का काफिला तेजी से शिमला की तरफ बढ़ रहा था। इस सफर की हकीकत वो जानता था कि क्यों उसने शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया। वो अपनी हत्या करा देने को बेताब था। वो सबकी निगाहों से गायब हो जाना चाहता था।
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तेज रफ्तार से आती वो कार, तीनों कारों के काफिले को ओवरटेक करने की चेष्टा करने लगी। हालांकि सड़क तंग थी। सामने से ट्रैफिक आ रहा था। जरा सी चूक होने का मतलब था जबरदस्त एक्सीडेंट या फिर कार का खाई में गिर जाना, परन्तु उस कार का ड्राइवर तीनों कारों को ओवरटेक करके आगे निकल जाना चाहता था। जुगल किशोर कार की ड्राइविंग सीट पर था। उसकी बगल वाली सीट पर सोहनलाल बैठा था। उसने सीट बेल्ट लगा रखी थी। उंगलियों में बिना सुलगाई गोली वाली सिगरेट फंसी थी। उसके होंठ भिंचे हुए थे और चेहरे पर गंभीरता थी। उसका पूरा ध्यान जुगल किशोर की ड्राइविंग पर था और आगे वाली कारों पर था।
जुगल किशोर ने उन तीनों कारों में से एक कार को ओवरटेक कर लिया था।
"संभल के।" सोहनलाल बोला।
"आज मैं यह मौका हाथ से नहीं जाने दूंगा।" जुगल किशोर दांत पीसकर कह उठा--- "ये वक्त हाथ से निकल गया तो फिर जाने कब मौका मिले। दो महीनों से हम इसी वक्त की तलाश में थे।"
"खाई में गिर गए तो जान गई।"
"जब तक गाड़ी मैं चला रहा हूं ,तब तक ऐसा नहीं होने वाला।"
जुगल किशोर ने अगली कार को भी ओवरटेक कर लिया।
सोहनलाल ने मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा।
नंबर लगा। बात हो गई।
"हैलो।" दूसरी तरफ से आवाज कानों में पड़ी है।
"जैकी, तुम कहां हो?"
"वहीं पर जहां मुझे होना चाहिए था। सड़क के किनारे ट्रक के भीतर।"
"ट्रक स्टार्ट कर। काम का वक्त आ गया है।" सोहनलाल बोला।
"आगे वाली कार को खाई में गिरा देना। ये जरूरी है। उस कार में चार गनमैन हैं। वो हमें सफल नहीं होने देंगे।"
"सब याद है मुझे।"
"हमारी कार तेरे ट्रक के पास से निकले तो ये काम कर देने का इशारा होगा।"
"ठीक है। मेनन कहां है।" जैकी की आवाज कानों में पड़ी।
"वो पीछे है। उसे पता है कि उसको क्या काम करना है।" सोहनलाल ने कहा और फोन बंद कर दिया।
"सब ठीक चल रहा है?" जुगल किशोर ने पूछा।
"हां। आज हमें सफल होकर रहना है।" सोहनलाल सख्त किंतु दृढ़ स्वर में कह उठा।
तभी जुगल किशोर ने आगे वाली कार को भी ओवरटेक कर लिया।
अब वो तीनों कारों के आगे था और कार को दौड़ा दिया।
शिमला हर पल नजदीक आता जा रहा था।
"अब ठीक है।" जुगल किशोर कठोर स्वर में बड़बड़ा उठा।
सोहनलाल ने गर्दन घुमा कर पीछे देखा।
तीनों कारें पीछे छूटती जा रही थीं।
जुगल किशोर की कार तेज रफ्तार पर थी। बलखाती सड़क के मोड़ अब काफी खतरनाक हो गए थे, परन्तु जुगल किशोर ने कार की रफ्तार में कोई कमी नहीं आने दी थी। सोहनलाल को अब जैकी का ट्रक देखने का इंतजार था। उसे सामने से आना था। ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। डेढ़ किलोमीटर आगे जुगल किशोर का ट्रक दिखा।
सोहनलाल ने बाँह बाहर करके हाथ हिलाया।
जवाब में ट्रक की स्टेयरिंग सीट पर बैठे जुगल किशोर ने भी बाँह बाहर निकालकर हिलाई।
ट्रक और कार पास से गुजरते हुए एक-दूसरे को पार कर गई।
उसी पल जुगल किशोर ने ब्रेक दबाये और देखते ही देखते कार रूकती चली गई। आगे जगह थी, परन्तु दो पलों में ही उसने कार को दक्षता से वापस मोड़ा और वापस चल पड़ा। आगे जैकी का ट्रक था। कार की रफ्तार उसने धीमी करके ट्रक पीछे ही रखा। ट्रक 50-60 की रफ्तार पर था।
■■■
जैकी 50-60 की स्पीड से ट्रक को आगे बढ़ाये चला जा रहा था। पहाड़ी ढलान थी। यूँ भी ट्रक रफ्तार पकड़ने को तैयार था। हर मोड़ पर ब्रेक लगने की वजह से टायर सड़क से रगड़ खाकर चीख उठते।
फिर वो वक्त भी आ गया, जिसका उसे इंतजार था।
कुछ दूरी पर एक मोड़ पर काटते हुए उसे तीनों कारें दिखने लगीं।
ट्रक और उन कारों में फासला कम होता जा रहा था।
जैकी के दांत भिंच गये। वो तैयार था अपने हिस्से के काम को अंजाम देने को।
आगे वाली कार पास आ गई।
उसी पर जैकी ने ट्रक का स्टेयरिंग मोड़ा और ब्रेक लगा दिए। ट्रक का अगला हिस्सा सामने से आती कार के साइड में तेजी से लगा। कार को बेहद तीव्र झटका लगा। तब कार रफ्तार पर थी।
कार दो फीट हवा में उछली और अगले ही पल सड़क के किनारे पत्थरों से टकराती खाई में नीचे गिरती चली गई।
जैकी का ट्रक रुका कि तभी सामने से आ चुके काफिले के बीच की कार जिसमें रिचर्ड जैक्सन था, ट्रक से जा टकराई। धड़ाम की तेज आवाज उभरी। पीछे की तीसरी कार के ब्रेकों की चीख उठीं परन्तु रुकते-रुकते वो कार भी रिचर्ड जैक्सन की कार में पीछे से टकराई। इसके बाद वहां मौत भरी खामोशी छा गई।
परन्तु खामोशी लंबी नहीं रही।
उसी पल पीछे से तेज रफ्तार एक कार आई और तीसरी वाली कार से जा टकराई। तब उस कार के भीतर से दरवाजा खोल दो गनधारी निकल रहे थे। लेकिन टक्कर लगते एक भीतर जा गिरा। उनकी चीखें गूंजीं। दूसरा उछलकर सड़क पर आ गिरा। सिर सड़क से टकराया और बेहोश हो गया।
तभी जुगल किशोर ने कार वहां ला रोकी।
सोहनलाल और जुगल किशोर कार से बाहर आ निकले और ट्रक से टकराई बीच वाली कार के पास पहुंचे। उस कार की डिग्गी पिचक चुकी थी। जुगल किशोर ने फुर्ती से कार का पीछे का दरवाजा खोला।
सामने ही रिचर्ड जैक्सन हक्का-बक्का बैठा था। उसके माथे से खून बह रहा था।
"हैलो!" जुगल किशोर ने कठोर स्वर में कहा--- "कार से बाहर निकलो, जल्दी।"
रिचर्ड जैक्सन कार से बाहर आ गया।
तब तक ट्रक से उतरकर जैकी भी वहां आ पहुंचा था।
पीछे वाली कार का दरवाजा खुला और अजहर मेनन बाहर निकला। वो भी तेज-तेज कदम उठाता पास पहुंचा और जल्दी से कह उठा।
"ले चलो इसे---।" रिचर्ड जैक्सन ने दांत भींचकर अजहर मेनन को देखा।
तभी जुगल किशोर ने रिवाल्वर निकाली और उसके पेट पर लगा दी।
"हम तुम्हारा अपहरण कर रहे हैं।"
सोहनलाल ने उसकी बांह पकड़ी, और कार की तरफ बढ़ने लगा।
जैकी रिवॉल्वर लिए उसके साथ था।
रिचर्ड जैक्सन को बचाव में कुछ भी करने का मौका नहीं मिला।
उसे कार में बिठाने से पहले मेनन ने रिचर्ड जैक्सन की तलाशी ली और उसके पास मौजूद रिवाल्वर ले लिया।
जुगल किशोर ने कार की ड्राइविंग संभाली। सोहनलाल उसके बगल में बैठा। जैकी और मेनन, रिचर्ड जैक्सन को बीच में दबाए पीछे की सीट पर जा बैठे। जुगल किशोर ने तुरन्त कार आगे बढ़ा दी।
कार का रुख पुनः चंडीगढ़ की तरफ था।
वहां कुछ वाहन रुक चुके थे। परन्तु किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है! इतना तो देख ही रहे थे कि तगड़ा एक्सीडेंट हुआ है। कुछ ने सोचा कि वो किसी घायल को जल्दी से अस्पताल ले जा रहे हैं। जो भी हो, उन चारों की प्लानिंग सफल हो चुकी थी। रिचर्ड जैक्सन उनके हाथों में फंस चुका था।
■■■
तीन घंटे बाद वो चंडीगढ़ पहुंच चुके थे।
इस बीच रिचर्ड जैक्सन ने कई बार बात शुरू करने की चेष्टा की, परन्तु उन्होंने चुप रहने को हर बार कहा। रिवाल्वर उसकी कमर से बराबर सटी हुई थी। रिचर्ड जैक्सन इस बात को लेकर परेशान था कि विनोद श्रीवास्तव के साथ जो योजना बनाई थी, वो इनकी वजह से बेकार हो जानी थी। परन्तु इन हालातों में भी उसने दिमाग को खराब नहीं होने दिया था और हालातों को अपने पक्ष में करने के लिए दिमाग दौड़ाये चला जा रहा था। वह जुगल किशोर और मेनन से पालिका बाजार में तब मिल चुका था जब उसे रिवाल्वर लगाए ले जा रहे थे। कुछ बातें भी हुई थीं, जिससे यह स्पष्ट हो गया था कि यह लोग दौलत पाने के लिए उसका अपहरण करना चाहते हैं और अब कामयाब होना चाहते हैं। सोचे जा रहा था रिचर्ड जैक्सन।
चंडीगढ़ की सीमा में पहुंचते ही जुगल किशोर ने कार धीमी की और गुर्राकर कह उठा---
"दिमाग सीधा हुआ कि नहीं तेरा?"
रिचर्ड जैक्सन नहीं समझा कि वो उससे क्या कह रहा था।
"मैं तेरे से कह रहा हूं लकड़ी के पुतले।" जुगल किशोर पुनः गुर्राया।
जैकी ने उसकी कमर पर रिवाल्वर का दबाव बढ़ा दिया।
"जवाब दे...।"
"मेरा दिमाग तो पहले ही सीधा था। मैंने क्या किया जो...।"
"जितनी बात करूं, उतना ही जवाब दे।" जुगल किशोर ने खतरनाक स्वर में कहा--- "बल-वल ढीले हो गए तेरे?"
"हां। मैं अब तुम लोगों के कब्जे में हूं।" रिचर्ड जैक्सन ने शांत स्वर में कहा।
"सुना है तू खतरनाक जासूस है।"
"कुछ भी कह लो। परन्तु मैं तुम लोगों की तरह साधारण इंसान हूं। जासूसी करना मेरी नौकरी का हिस्सा है।"
"हम तेरे को मारकर किसी भी सड़क पर फेंक सकते हैं।"
"बिना वजह मेरी जान क्यों लोगे तुम लोग?"
"ठीक कहा। बिना वजह हम तेरी जान नहीं लेंगे। हमारी कैद में रहकर तूने कोई गड़बड़ी की तो हम तुम्हें मार देंगे।"
"मैं मरना नहीं चाहता।"
"तो शराफत से हमारे साथ रहना। हम चंडीगढ़ के किसी होटल में ठहरने जा रहे हैं। तू होटल में दोस्तों की तरह रहेगा। यूँ भी हम तुझे घेरे रहेंगे। हर वक्त तुम पर नजर रहेगी। कभी भी तुम्हें मारा जा सके, इस हद तक हमारे पास रहोगे। जहां भी तूने हमसे चालाकी की या भागने की कोशिश की तो समझ लेना तू गया।"
"मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा।" रिचर्ड जैक्सन ने गंभीर स्वर में कहा।
"होटल में शराफत से रहना।"
रिचर्ड जैक्सन ने सिर हिला दिया।
"सोहनलाल।" जुगल किशोर कार चलाता बगल में बैठे सोहनलाल से बोला--- "हम सेक्टर 17-डी के किस होटल में ठहरेंगे या फिर 32 डी में आरोमा होटल में। लेकिन उससे पहले एक मजबूत डोरी खरीदनी है ताकि कमरे में इसके हाथ-पांवों को बांधा जा सके। हर समय इस पर नजर नहीं रखी जा सकती। हमें आराम भी करना होगा।"
"मेरे ख्याल से होटल में रुकने का फैसला ठीक नहीं है।" सोहनलाल ने कहा।
"मैं समझता हूं पर दो-तीन दिन हम होटल में ही रुकेंगे। मेरे पास सोनीपत के पास एक जगह है, जिसे हम ठिकाना बना सकते हैं। परन्तु उस जगह की मुझे चाबी लानी होगी। घर जाऊंगा।"
"घर?"
"पास ही, पंजाब में। सुबह जाऊंगा और चाबी लेकर शाम को लौट आऊंगा।"
"लेकिन हम होटल में रहकर करेंगे क्या?" सोहनलाल ने पूछा।
"तीन-चार दिन बिताने हैं। एम्बेसी वालों को, पुलिस को कोशिश कर लेने दो, इसे ढूंढने की। तीसरे दिन से वो शांत बैठना शुरु हो जायेंगे कि ये मिल नहीं रहा। उसके बाद ही हम फिरौती की बात करेंगे।"
अपने दौड़ते दिमाग के बीच एकाएक रिचर्ड जैक्सन कह उठा---
"मैं तुम लोगों से बात करना चाहता...।"
"चुप कर साले...।" मेनन कड़वे स्वर में कह उठा---
"मेरी बात जरूरी है।" रिचर्ड जैक्सन शब्दों पर जोर देकर कह उठा।
"जुबान बंद रख। जुबान बंद रखेगा तो जिंदा रहेगा। वरना मारा जाएगा।" जैकी ने दांत भींचकर कहा।
"मेरी बात जरूरी है। मैं तुम लोगों का पूरा साथ दूंगा। परन्तु मैं तुम लोगों को कुछ बताना चाहता हूं।"
"अभी खामोश रह।" सोहनलाल ने गर्दन घुमा कर पीछे देखते हुए कहा--- "होटल में टिक जायें फिर तू अपनी बात कह लेना और हम देख लेंगे कि तेरी बात जरूरी है कि नहीं?"
रिचर्ड जैक्सन सिर हिला कर रह गया।
"ये खतरनाक है।" जुगल किशोर बोला--- "इसे कोई मौका मत देना।"
■■■
आरोमा होटल की दूसरी मंजिल पर उन्होंने दो कमरे लिए। इस दौरान रिचर्ड जैक्सन के साथ इस तरह रहा जैसे उनका दोस्त हो। उसने अपना नाम पियरसन लिखवाया। वे ऊपर कमरों में पहुंचे और एक कमरे में कुर्सी पर रिचर्ड जैक्सन को इसलिए बैठाया कि वेटर कॉफी लेकर आने वाला था।
सोहनलाल और जुगल किशोर दूसरे कमरे में चले गए।
मेनन और जैकी रिचर्ड जैक्सन पर सख्त निगाह रखे हुए थे।
वेटर कॉफी ले आया।
सोहनलाल ने पांचों कॉफी कमरे में रखवाते हुए वेटर से कहा कि साथ वाले कमरे में मौजूद दोनों दोस्तों से कह दे कि उनकी कॉफी इस कमरे में रखी है। वेटर चला गया। तीन मिनट बाद सोहनलाल और जुगल किशोर ने कमरे में प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर दिया। सोहनलाल ने जेब से डोरी निकालते हुए कहा---
"कॉफी पी ले--- फिर तेरे हाथ-पांव बांधते हैं।"
"रिचर्ड जैक्सन ने कॉफी का प्याला उठाते हुए चारों को देखकर कहा।
"मैं तुम लोगों से कुछ बात...।"
"जब तक हम तेरे हाथ-पांव नहीं बांध देते, तब तक तेरी कोई बात नहीं सुनेंगे। कॉफी खत्म कर जल्दी से।" सोहनलाल ने कहा।
रिचर्ड जैक्सन कॉफी पीने लगा।
जुगल किशोर मेनन के पास पहुंचा और मुस्कुरा कर बोला।
"बढ़िया रहा मेनन?"
"हां। हम सफल रहे। दो बार ये हरामी हाथ से निकल गया था।" मेनन भी मुस्कुराकर बोला।
तभी जुगल किशोर का मोबाइल बजा।
जुगल किशोर ने फोन निकालकर स्क्रीन पर आया नम्बर देखा और दरवाजे की तरफ बढ़ता बोला---
"मैं अभी आया।" फोन बजे जा रहा था।
"लड़की का फोन आते ही बाहर की तरफ भागता है।" जैकी ने मुस्कुराकर मुंह बनाते हुए कहा।
सोहनलाल डोरी थामे हुए रिचर्ड जैक्सन को देख रहा था।
जुगल किशोर ने दरवाजा खोला और बाहर निकलकर, बगल के कमरे में आ गया और बात की।
"हैलो।"
"मिस्टर जुगल किशोर।" मौला की आवाज कानों में पड़ी--- "हमारा काम हुआ कि नहीं?"
"हो रहा है। कभी भी हो सकता है।" जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा।
दो पलों की चुप्पी के बाद मौला की आवाज कानों में पड़ी---
"रात को सपने में लगा कि तुमने रिचर्ड जैक्सन को अपने कब्जे में ले लिया है।"
जुगल किशोर की आंखें सिकुड़ी।
"सपने में लगा?"
"कुछ ऐसा ही लगा।"
"कहीं तुम मुझ पर नजर तो नहीं रखवा रहे?" जुगल किशोर का स्वर तीखा हुआ।
"जबसे तुमने मना किया है, तबसे हमारा कोई आदमी तुम पर नजर नहीं रख रहा।"
"तो फिर सपने मत देखा करो मौला साहब। जब भी काम हो जाएगा, मैं फोन कर दूंगा। मुझे भी बीस करोड़ लेने की जल्दी है।"
"हमने रकम तैयार कर रखी है।"
"रिचर्ड जैक्सन हर वक्त मेरे आदमियों की नजर में है। कभी भी वह हमारे कब्जे में आ सकता है।" जुगल किशोर ने कहा और फोन बंद कर दिया। चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे। मौला की सपने वाली बात ने उसके मन में इस बात का शक पैदा कर दिया था कि कहीं उस पर नजर तो नहीं रखी जा रही थी?
कुछ मिनट जुगल किशोर सोचों में रहा। चेहरे के भाव बन-बिगड़ रहे थे।
फिर उसने मोबाइल संभाला और वीरा त्यागी को फोन करने लगा।
"बोल...।" वीरा की आवाज कानों में पड़ी।
"काम हो गया है।" जुगल किशोर बोला।
"तो वो अमरीकन हाथ में आ गया।" वीरा के कानों में पड़ने वाली आवाज में उत्साह भर आया--- "मैं दिल्ली पहुंचता हूं।"
"अगले पांच-छह दिन तक तुम कभी भी आ सकते हो।"
"ठीक है। मैं पहुंच जाऊंगा... मैं...।"
"अपने आदमियों को हर वक्त तैयार रखना। कभी भी हरकत में आने की जरूरत पड़ सकती है। ये काम हर हाल में हो जाना चाहिए। कहीं भी चूक मत जाना। कोई बढ़िया सा काबिल आदमी ढूंढ सको तो अच्छा रहेगा।"
"मैं देखूंगा कोई और भी बढ़िया आदमी मिले तो...।"
जुगल किशोर ने फोन बंद करके जेब में रखा और वापस उस कमरे में पहुंचा।
रिचर्ड जैक्सन के हाथ-पांव बांधे जा चुके थे। वो कमरे के कारपेट पर बैठा था। हाथ पीठ की तरफ करके बांधे गये थे। सोहनलाल, मेनन, जैकी कुर्सियों और बेड पर बैठे थे। वो कॉफी पी चुके थे।
"मेरी बात सुनो सब।" जुगल किशोर को भीतर आते पाकर रिचर्ड कह उठा--- "मैं तुम लोगों को कुछ बताना चाहता हूं।"
जुगल किशोर ने कॉफी का प्याला उठाया और घूँट लेता बेड के कोने पर बैठकर बोला---
"तुम कोई कहानी सुनाना चाहते होगे कि हम तुम्हें आजाद कर दें या तुम हमें इरादों से हिला सको।"
"नहीं। ये बात बिल्कुल भी नहीं है।"
"कहो, क्या बात है?" जुगल किशोर ने घूंट भरा।
"मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि तुम लोगों ने मेरा अपहरण करके अच्छा किया। अमेरिकी सरकार मुझे खत्म करने वाली थी।"
उसकी बातों पर चारों चौंके।
"क्या मतलब?"
"मेरे पास अमेरिका के कुछ खास राज हैं और अमेरिका सरकार को किसी ने खबर दी थी कि मैं अमेरिका के वो राज पैसे के लालच में किसी दूसरे देश को बताने जा रहा हूं। जबकि यह बात गलत है।" रिचर्ड जैक्सन ने गंभीर स्वर में कहा।
"तो तुम यह बताना चाहते हो कि तुम्हारी सरकार हमें फिरौती नहीं देगी?" जैकी कह उठा।
"ये बात नहीं। मुझे वापस पाने के लिए अमेरिकी सरकार तुम लोगों को फिरौती जरूर देगी। क्योंकि अमेरिका नहीं चाहेगा कि मैं उनके राज किसी दूसरे देश को बता दूं। बल्कि ये जानकर कि फिरौती पाने के लिए मेरा अपरहण किया गया है, वो लोग राहत की सांस लेंगे और तुम लोगों को डॉलर देकर वो मुझे छुड़ा लेंगे।" रिचर्ड जैक्सन बोला।
"फिर तो तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम्हारी सरकार तुम्हें जल्दी छुड़ा लेगी।" सोहनलाल ने कहा।
"हम तुम्हें उम्र भर कहीं पर छिपा देने से तो रहे।" जुगल किशोर ने कड़वे स्वर में कहा--- "हमें तुमसे कोई हमदर्दी नहीं। हमने तुम्हारा अपहरण इसलिए किया है कि तुम्हें छोड़ने के बदले दस करोड़ डॉलर की फिरौती ले सकें।"
"मेरी बात सुन लो। तुम लोगों का काम भी हो जाएगा और मेरा काम भी हो जाएगा।"
"क्या कहना चाहते हो?" मेनन के माथे पर बल दिखने लगे थे।"
"मैं अपनी मौत का ड्रामा रच रहा था। मेरा शिमला आना उसी योजना का हिस्सा था। मैंने ढाई लाख डॉलर देकर कुछ लोगों को तैयार किया था कि वो मेरी नकली हत्या को अंजाम देकर अमरीकी सरकार से मुझे बचा लेते। मैंने शिमला में अपने गनमैनों को वहीं छोड़कर गायब हो जाना था और---।" रिचर्ड जैक्सन सब कुछ बताता चला गया।
सबने सुनी उसकी बात।
चेहरे पर गंभीरता आ गई थी।
"इस तरह अमेरिकी सरकार मुझे मरा मान जाती है और मैं मौत के खतरे से बच निकलता। परन्तु तुम लोग मेरे बीच में आ गए और ऐन मौके पर मेरा अपहरण कर लिया। परन्तु अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। मैं तुम लोगों का पूरा साथ दूंगा कि दस करोड़ डॉलर की फिरौती मिल जाए। बस थोड़ा सा साथ तुम लोगों को देना है कि फिरौती लेने के बाद मुझे मेरी सरकार के हवाले मत करना, मुझे यूं ही आजाद कर देना ताकि जो योजना मैं बना चुका हूं, उसे मेरे खरीदे आदमी अंजाम दे सकें और अमेरिका के लिए मैं मर जाऊं। मेरा अपहरण करके तुम लोगों ने बहुत अच्छा किया। इससे मेरी योजना को और भी ठोस हकीकत मिल जायेगी। बाद में मेरी सरकार ये ही सोचेगी कि अपहरण करने वालों ने ही मुझे मार दिया।"
चारों ने एक-दूसरे को देखा।
रिचर्ड जैक्सन आशा भरी नजरों से बारी-बारी सबको देख रहा था।
"ये तो तगड़ा गुरु आदमी निकला।"
"जासूस है। गुरु तो होगा ही।" मेनन ने गम्भीर स्वर में कहा।
"मान जाओ मेरी बात। तुम लोगों का बहुत भला होगा।"
परन्तु जुगल किशोर रिचर्ड जैक्सन की बात किसी भी कीमत पर नहीं मान सकता था। क्योंकि उसने तो सोच रखा था कि दस करोड़ डॉलर की फिरौती लेने के बाद जुगल किशोर को इराकी लोगों के हवाले कर देगा और उनसे बीस करोड़ ले लेगा। जुगल किशोर ने अपनी सारी योजना मन ही मन तय कर रखी थी।
सोहनलाल ने जुगल किशोर से कहा---
"क्या ख्याल है तुम्हारा?"
"मेरा ख्याल?" जुगल किशोर ने कंधे उचकाये--- "जो तुम लोगों का ख्याल है, वो ही मेरा ख्याल है।"
"फिरौती मिल जाने के बाद इसकी बात मान लेने में कोई हर्ज नहीं है।" अजहर मेनन ने कहा--- "इसे अमेरिका के हवाले करें या इसे आजाद कर दें, हमें परवाह नहीं होगी।"
"बात तो ठीक है।" जैकी ने सिर हिलाया।
"मुझ पर बहुत बड़ा भला करोगे ऐसा करके।" रिचर्ड जैक्सन कह उठा।
"ठीक है।" सोहनलाल ने रिचर्ड जैक्सन से कहा--- "बाद में हम तुम्हें खामोशी से आजाद कर देंगे।"
"शुक्रिया।" रिचर्ड जैक्सन ने चैन की सांस ली।
जुगल किशोर खामोश था। जब तक फिरौती नहीं मिल जाती, उसे खामोश ही रहना था।
"तुम क्यों चुप हो?" जैकी जुगल किशोर से कह उठा।
"मैं तुम लोगों से सहमत हूं।" जुगल किशोर बेड से उठा और कॉफी का खाली प्याला टेबल पर रख कर कह उठा--- "हमें दस करोड़ डॉलर की फिरौती से मतलब है। हमें हमारा पैसा मिल जाना चाहिए।"
"तो ये तय रहा कि बाद में इसे हम आजाद कर देंगे--- कि ये अपनी तरह से अपनी जान बचा सके।" जैकी कह उठा।
"एक बात और।" रिचर्ड जैक्सन कह उठा--- "एक मेहरबानी मुझ पर कर दो।"
"क्या?"
"फिरौती की रकम के साथ एक काली जिल्द वाली डॉयरी भी चाहिए--- जो कि एम्बेसी के मेरे ऑफिस में मौजूद गुप्त तिजोरी में रखी है। और उसकी चाबी मेरे पास है।" रिचर्ड जैक्सन ने जेब से चाबी निकालकर दिखाई--- "वो डॉयरी मेरे लिए बहुत जरूरी है। वो मेरे हाथ में आ जाए तो मेरी जिंदगी हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएगी।"
"क्या है उस डॉयरी में?"
"मेरी जासूसी जीवन की कुछ बातें हैं, जिन्हें कि किसी और को जानना ठीक नहीं। वो डॉयरी मुझे जरूर चाहिए। मेरे लिए ये भी कर दो तुम लोग। मैं तुम्हारे एहसान कभी नहीं भूलूंगा।" रिचर्ड जैक्सन रिक्वेस्ट भरे स्वर में कह उठा--- "इसके बाद तुम लोगों से और कुछ करने को नहीं कहूंगा।"
"एम्बेसी के लोग उस डॉयरी के बारे में जानते हैं?" मेनन ने पूछा।
"नहीं।"
"और तुम चाहते हो कि उस डॉयरी को कोई और नहीं देखे?"
"हाँ।"
"परन्तु जब वो हमें डॉयरी देने के लिए वहां से निकालेंगे तो वो उसे पढ़ेंगे जरूर।"
"ये हमें मुसीबत में डाल रहा है।" जुगल किशोर कह उठा।
"हम में से कोई एम्बेसी गया तो पकड़ा जाएगा वो।"
"मेरी बात तो पूरी सुन लो।"
"कहो।"
"तुम लोगों में से एक शख्स अपना चेहरा ढंककर एम्बेसी में जाएगा--- और उन्हें फोन करने से पहले बता देगा कि मेरा अपहरण किया जा चुका है--- उसी सिलसिले में बात करने वहां आ रहे हो। यकीन मानो कि वो लोग उसे कुछ भी करने की हिम्मत नहीं कर सकेंगे, जो वहां जाएगा। क्योंकि अमरीकी सरकार मुझे हर हाल में जिंदा पाना चाहती है। अमरीकी सरकार को कोई जरूरी बात हमसे जाननी है, जोकि मैं ही जानता हूं।"
"ये हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है। हमें इसकी बात नहीं माननी है।" जुगल किशोर ने कहा।
"मैं सच कह रहा हूं, वहां जो भी जाएगा, वो सुरक्षित वापस आएगा। उनसे फिरौती की बात भी तसल्ली भरे ढंग से तय की जा सकेगी। मैं फिर कहता हूं कि अमरीकी सरकार मुझे हर हाल में वापस पाना चाहेगी।"
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।
जुगल किशोर कमरे में टहल रहा था।
"एम्बेसी में इन हालातों में जाना ठीक नहीं होगा।" मेनन गम्भीर स्वर में जुगल किशोर से बोला।
"मैं भी यही सोच रहा हूं।" जैकी ने भी सिर हिलाया।
"मेरी बात का यकीन करो वहां पर जो भी जाएगा सुरक्षित वापस आएगा। गलत कह कर मैं अपने को खतरे में क्यों डालूंगा। उस वक्त मैं तो तुम लोगों के कब्जे में होऊंगा। अगर एम्बेसी जाने वाले को किसी ने घूंसा भी मारा तो मेरी जान ले लेना। इससे ज्यादा मैं और क्या कह सकता हूं!" रिचर्ड जैक्सन व्याकुलता से कह उठा।
"हम ये नहीं कह रहे कि तुम गलत कह रहे हो, परन्तु वहां जाने का खतरा हममें से कोई भी नहीं उठाना चाहता। तुम इस बात की आशा मत रखो कि हम में से कोई एम्बेसी जाएगा और डॉयरी ले...।"
"एक मिनट।" जुगल किशोर ठिठक कर कह उठा--- "मुझे इससे बात कर लेने दो।"
सोहनलाल, जैकी, मेनन की निगाह जुगल किशोर पर गई।
जुगल किशोर रिचर्ड जैक्सन को देखता कह उठा---
"मैं जो पूछूं, वो सच कहना!"
"मैं अब तक तुम लोगों से सच बात ही कह रहा हूँ।"
"अब भी सच कहना।"
"हाँ।"
"उस डॉयरी में क्या है?"
रिचर्ड जैक्सन को एकाएक कुछ कहते न बना।
"तुम ऐसे हालातों में फंसे हो कि तुम्हें डॉयरी का ध्यान भी नहीं आना चाहिए--- परन्तु तुम उस डॉयरी को पाने के लिए बेताब हो रहे हो--- इसी से जाहिर है कि वो मामूली डॉयरी नहीं हो सकती।"
"वो मामूली डॉयरी ही है।" रिचर्ड जैक्सन ने कहा--- "उसमें जासूसी जीवन की कुछ बातें लिखी हैं।"
"और वो डॉयरी तुम्हारी सरकार पाना चाहती है।" जुगल किशोर कह उठा--- "यही सच है ना? इसी वजह से तुम्हें अमेरिका जाने में खतरा हो रहा है--- और तुम वो डॉयरी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते।"
रिचर्ड जैक्सन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और कह उठा---
"तुम्हारी बात काफी हद तक सही है कि उस डॉयरी को अमरीकी सरकार पाना चाहती है।"
"इसीलिए तुम्हारी जान को खतरा है?"
"हाँ--- और उसी की वजह से मेरी सरकार तुम लोगों को दस करोड़ डॉलर की फिरौती जरूर देगी।"
"कहां है एम्बेसी में वो डॉयरी?" जुगल किशोर ने पूछा।
"वहां एक कमरे को मैं अपने ऑफिस के तौर पर इस्तेमाल करता हूं। उस कमरे की दीवार पर एक पेंटिंग टँगी है। उस पेंटिंग के पीछे एक तिजोरी है। उसे खोलोगे तो सामने ही फाइलों के बीच काली डॉयरी दिखाई देगी।"
"लाओ चाबी दो।"
जुगल किशोर ने आगे बढ़कर चाबी उससे ले ली।
"तुम मुझे ला दोगे डॉयरी?" रिचर्ड जैक्सन ने पूछा।
"क्यों नहीं!"
मेनन, सोहनलाल और जैकी की नजरें मिलीं।
"तुम और जैकी ने।" जुगल किशोर ने अजहर मेनन से कहा--- "इस पर कड़ी नजर रखनी है। ये मत सोचना कि उसके हाथ-पांव बंधे हैं। हर वक्त इसे लेकर सतर्क रहना है। इस पर नजर रखने का काम हम बारी-बारी से करेंगे।"
"मैं कुछ नहीं करने वाला। मैं तुम लोगों के साथ हूं।" रिचर्ड जैक्सन कह उठा।
परन्तु उसके शब्दों की परवाह किसी ने नहीं की।
"मैं साथ वाले कमरे में आराम करने जा रहा हूं।" कहकर जुगल किशोर पलटा।
"तुम्हें सोनीपत की उस जगह की चाबी लानी चाहिए।" जैकी कह उठा।
"कल जाऊंगा चाबी लेने।"
"हमें कम से कम ये तो मालूम होना चाहिए कि इसके अपहरण का बाहर क्या असर हुआ है?" मेनन बोला।
"टी•वी• की खबरों में देख लो।" जुगल किशोर ने एक तरफ रखे टी•वी• पर इशारा किया और बाहर निकल गया।
मेनन टी•वी• की तरफ बढ़ गया।
"मैं भी जुगल किशोर के पास आराम कर लेता हूं।" सोहनलाल ने कहा और कमरे से बाहर आ गया।
सोहनलाल दूसरे कमरे में पहुंचा। वहां जुगल किशोर को जूते सहित बेड पर लेटे पाया।
"तुम्हारे मन में क्या है उस काली डॉयरी को लेकर?" सोहनलाल ने पूछा।
"तुम कैसे कह सकते हो कि मेरे मन में कुछ है?" जुगल किशोर मुस्कुराया।
"तुमने उससे चाबी ली है। क्या तुम अमेरिकन एम्बेसी जाने का इरादा रखते हो?"
चंद क्षण चुप रहकर जुगल किशोर ने कहा---
"शायद जाऊं।"
"तुम फँस जाओगे।"
"रिचर्ड जैक्सन ऐसा काम नहीं करेगा कि जिससे हम फंसे। क्योंकि हमारे फंसने से वह भी फंस जाएगा।"
"लेकिन तुम्हें एम्बेसी जाने की जरूरत ही क्या है?"
"वो डॉयरी यकीनन कुछ खास है, जिसे इन हालातों में भी रिचर्ड पा लेना चाहता है। शायद वो डॉयरी अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है और अमेरिकी सरकार उसके बदले हमें मोटी रकम दे सकती हो।"
"तुम बेकार का लालच कर रहे हो। अगर हमें दस करोड़ डॉलर मिलते हैं तो ये बहुत बड़ी रकम है। फिरौती के लिए हम फोन पर बात कर सकते हैं। उस डॉयरी के लिए तुम खुद को खतरे में मत डालो।"
"मैं जरूर देखना चाहूंगा कि उस डॉयरी में क्या है।"
"ये बेवकूफी होगी।"
"जब तक रिचर्ड जैक्सन हमारे पास है, एम्बेसी वाले संभले रहेंगे।"
"पुलिस को तुम भूल रहे हो। वहां जाने का मतलब पुलिस की नजरों में आ जाना। पुलिस हमारी योजना फेल कर देगी।"
"अगर मैं एम्बेसी में फंस जाऊं तो तुम लोग कुछ भी करने को आजाद हो।"
"मतलब कि तुम वहां जाकर खतरा जरूर लोगे?" सोहनलाल तीखे स्वर में बोला।
"सोचा तो है। बाद में ये प्रोग्राम बदल दूं तो जुदा बात है।"
"तुम फँसना ही चाहते हो तो फंसो। मेरी नजर में ऐसा करना जरा भी समझदारी नहीं है।" सोहनलाल ने गंभीर स्वर में कहा।
■■■
दो-दो घंटे की नींद लेकर सोहनलाल और जुगल किशोर दूसरे कमरे में पहुंचे। शाम के सात बज रहे थे। बाहर अंधेरा छाने लगा था। रिचर्ड जैक्सन उसी तरह बंधा कालीन पर पड़ा था।
"मुझे खोल दो।" उन्हें देखते ही रिचर्ड जैक्सन कह उठा--- "कम से कम टांगे ही खोल दो। बहुत दर्द हो रहा है।"
"तुम बंधे ही ठीक हो।" जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा।
"क्या तुम थोड़ी देर के लिए मेरी टांगें नहीं खोल सकते?" रिचर्ड जैक्सन झल्ला उठा।
"नहीं।"
"तो क्या रात में भी मुझे इसी तरह रखोगे?"
"हां। तुम इसी तरह हमारे पास कैद रहोगे।"
"मेरा यकीन करो, मैं तुम लोगों के साथ हूं। मैं नहीं भागता, मैं तो...।"
"तुम पहले मेरी बात सुनो।" मेनन, जुगल किशोर और सोहनलाल से कह उठा--- "टी•वी• का खबरों वाला चैनल लगाया था। खबरों के सारे चैनल देखे परन्तु कहीं भी इसके अपहरण की खबर नहीं है।"
"ये कैसे हो सकता है?" सोहनलाल की आंखें सिकुड़ी।
"ये ही बात है। टी•वी• पर बताया जा रहा है कि शिमला के पास समरहिल के पास अमेरिकी एम्बेसी की कारों का एक्सीडेंट हुआ है और एक कार खाई में जा गिरी। इस एक्सीडेंट का जिम्मेवार ट्रक को ठहराया गया है।"
"इसके अपहरण की कोई खबर नहीं!" जुगल किशोर ने उसे देखा।
"कोई खबर नहीं।"
"आ जाएगी खबर कि इसका अपहरण हो गया है। एम्बेसी के लोगों ने इस बात को स्वीकारा ना हो। शायद रात तक ये खबर आम हो कि एम्बेसी के कर्मचारी का अपहरण हो गया है।"
"हो सकता है कि पहले लोग खाई में मिली कार में मौजूद लाशों को देख लेना चाहते हों कि उसमें रिचर्ड जैक्सन की लाश तो नहीं। हमें इन बातों से परेशान नहीं होना चाहिए।" जुगल किशोर बोला।
"फिरौती के बारे में कब बात करोगे?" मेनन ने पूछा।
"दो-तीन दिन बाद! पहले कहीं टिक तो जायें। तब तक उन्हें अपरहण का विश्वास हो जाएगा।"
सोहनलाल ने सिगरेट सुलगाई और दोनों से कहा---
"तुम दोनों आराम कर लो। रात 11-12 बजे तक हम जागेंगे।"
मेनन और जैकी कमरे से बाहर निकल कर दूसरे कमरे में चले गए।
सोहनलाल मेनन की खाली कुर्सी पर जा बैठा। जुगल किशोर बेड के कोने पर बैठ गया।
रिचर्ड जैक्सन दोनों को घूर रहा था।
"तेरे को क्या हुआ?" जुगल किशोर ने लापरवाही से पूछा।
"मैं तुम लोगों के साथ हूं।"
"मेहरबानी।"
"कम से कम मेरी टांगों के बंधन तो खोल दो। आराम से बैठ जाऊंगा मैं।"
"मैं तुम्हारी बातों में फँसने वाला नहीं। तुम कभी भी कोई भी चालाकी कर सकते...।"
"मैंने तुम्हें सब बता दिया है कि कैसे मेरे ही लोग मुझे मारने की तैयारी कर रहे हैं। नहीं विश्वास तो विनोद श्रीवास्तव से पूछ लो, मैं उसका पता दे देता हूं। उसके साथ मिलकर मैं अपनी मौत का इंतजाम कर रहा था कि अपने लोगों से अपनी जान बचा सकूं। अब तुम्हें मेरा भरोसा करना चाहिए।"
"तुम मेरे लिए सिर्फ शिकार हो, जिसके द्वारा मैंने दस करोड़ डॉलर का इंतजाम करना है।" जुगल किशोर मुस्कुराया।
"ये तो बता दो कि बाद में मुझे एम्बेसी वालों के तो हवाले नहीं करोगे?"
"नहीं।"
"और वो डॉयरी वहां से ला दोगे! चाबी तो मैंने तुम्हें दे दी है।"
"कोशिश करूंगा।"
"वो मेरे लिए बहुत जरूरी है...।"
"अभी मैंने इस बारे में फैसला नहीं किया। दो-तीन दिन बाद सोचूंगा। वैसे जरूरी भी नहीं कि डॉयरी के लिए मैं अपनी जान खतरे में डालूं। डॉयरी तुम्हारी जरूरत है--- मेरी नहीं।"
"मैं तुम्हें पूरा सहयोग दूंगा कि तुम्हें फिरौती मिल सके। मैं...।"
"उस डॉयरी में क्या है?" जुगल किशोर ने पूछा।
"बताया तो...।"
"वो तुमने सच नहीं बताया। कुछ ऐसा बताओ कि तुम्हारी बात पर भरोसा आ जाये।"
"मैंने... मैंने... जो बात सच थी तुम्हें बता दी...।"
जुगल किशोर सोहनलाल को देखकर बोला---
"क्या तुमको इसकी बात का भरोसा हुआ?"
"मुझे डॉयरी में कोई दिलचस्पी नहीं, जो इस बारे में सोचूं।" सोहनलाल ने आँखें बंद कर लीं।
"दिलचस्पी तो मुझे भी नहीं थी, परन्तु इसकी बातों से पैदा हो गई।"
"अगर डॉयरी तुम मुझे ला दो तो मैं तुम्हें पांच लाख डॉलर लाकर दूँगा।" रिचर्ड जैक्सन कह उठा।
जुगल किशोर के होंठ सिकुड़े।
सोहनलाल ने आँखें खोलकर जुगल किशोर को देखा।
जुगल किशोर उठा और सोहनलाल के पास आकर धीमें स्वर में बोला---
"मैंने तुझे कहा था ना कि वो डॉयरी कुछ खास है, पर तूने मेरी बात का यकीन नहीं किया।"
सोहनलाल गहरी सांस लेकर रह गया।
■■■
अगले ही दिन जुगल किशोर सोनीपत के किसी ठिकाने की चाबी लेने चला गया था।
जैकी और मेनन, रिचर्ड जैक्सन के पहरे पर जागते रहे थे। इसलिए अब दूसरे कमरे में वो दोनों नींद में थे। सोहनलाल अकेले ही रिचर्ड जैक्सन की निगरानी पर था। सुबह उसके हाथ-पांव खोले गए थे--- ताकि वह नहा-धो सके। जबकि इस दौरान जुगल किशोर रिवाल्वर थामें बाथरूम के दरवाजे पर खड़ा रहा था।
जब रिचर्ड जैक्सन सब कामों से निपट गया तो उसे फिर बांध दिया गया था। नाश्ता मंगवाने के बाद कुछ देर के बाद, कुछ देर के लिए उसके हाथ खोले गए थे। नाश्ते के बाद फिर हाथ-पांव बांध दिए गए थे। उसके बाद ही जुगल किशोर गया था।
खबरों में समरहिल के हादसे के बारे में, स्क्रीन के नीचे पट्टी आ रही थी। जिसमें बताया जा रहा था कि एम्बेसी की गिरी कार बरामद कर ली गई है। उसमें अमेरिकन एम्बेसी की गिरी कार से चार गनमैनों की लाशें मिली हैं। एक लाश सड़क पर ट्रक के पास मिली और एक कार के पास एक आदमी बेहोश पड़ा मिला। बेहोश व्यक्ति सारे मामले की जानकारी ठीक से नहीं दे पा रहा था कि क्या हुआ था।
यानि रिचर्ड जैक्सन के बारे में, उसके अपहरण के बारे में कोई बात बाहर नहीं थी।
स्पष्ट था कि अमेरिकन एम्बेसी वालों ने रिचर्ड जैक्सन के बारे में कोई बात फैलने नहीं दी थी।
दिन के बारह बजे तक जैकी और मेनन सो कर उठे थे। वो नहा-धोकर तैयार हुए थे। खाना खाया। तीन बज गए तो दोनों ने पुनः पहरेदारी की ड्यूटी संभाल ली। सोहनलाल दूसरे कमरे में आराम करने चला गया।
शाम छः बजे तक जुगल किशोर वापस लौटा।
"ठीक रहा ये?" जुगल किशोर ने रिचर्ड जैक्सन पर नजर मार कर जैकी-मेनन को देखा।
"यह तो गाय बना हुआ है।" जैकी ने कहा।
"गाय कभी-कभी खतरनाक हो जाती है।" जुगल किशोर कड़वे स्वर में बोला।
"तुम चाबी लेने गए थे?" मेनन ने पूछा।
"ले आया हूं।"
"तो चल पड़ें वहां के लिए?" बोला मेनन।
"रात को सफर करना हमारे लिए ठीक नहीं है। अंधेरे में कई बार जबरदस्त चेकिंग हो जाती है।" जुगल किशोर ने सोच भरे स्वर में कहा--- "कल दूसरे कमरे में...।"
जुगल किशोर जाने के लिए पलटा तो जैकी बोला---
"सोहनलाल को यहां भेज देना।"
जुगल किशोर दूसरे कमरे में गया तो सोहन लाल को लेटे पाया।
"मैं चाबी ले आया हूं।" जुगल किशोर बोला--- "कल सुबह सोनीपत के लिए चलेंगे। वहां अपना ठिकाना तैयार करना है। तुम वहां जाकर पहरेदारी करो। वो दोनों आराम करना चाहते हैं।"
■■■
अगले दिन दस बजे वो पांचों कार से चल पड़े थे। रिचर्ड जैक्सन ने बंधन खुलने पर राहत की सांस ली थी। उसने कोई शरारत नहीं की थी। वो मन से सहयोग दे रहा था। मेनन और जैकी पीछे वाली सीट पर रिसर्च जैक्सन को दबाए बैठे थे। परन्तु उस पर रिवाल्वर नहीं लगाई थी। सब कुछ सुख-शांति से निपट रहा था।
दोपहर दो बजे वो एक मकान पर पहुंचे। सोहनलाल और अजहर मेनन, रिचर्ड जैक्सन के साथ उसी मकान पर रह गए थे और जुगल किशोर जैकी के साथ दिल्ली रवाना हो गया था।
"दिल्ली में काम शुरू करेंगे?" जैकी ने पूछा।
"एम्बेसी वालों से फिरौती की बात करेंगे। मामला आगे बढ़ाना है अब...।"
■■■
जुगल किशोर और जैकी करोल बाग के एक होटल में ठहरे थे। रात के थके दोनों गहरी नींद में सोये। सुबह सात बजे उठ कर नहा-धोकर तैयार हुए, नाश्ता किया तो साढ़े नौ बज गए।
"जैकी।" जुगल किशोर ने गंभीर स्वर में कहा--- "मैं वो डॉयरी पाना चाहता हूं...।"
"वो काली जिल्द वाली?" जैकी की आंखें सिकुड़ी--- "उसके लिए तो एम्बेसी जाना पड़ेगा।"
"रिचर्ड जैक्सन इन हालातों में भी वो काली डॉयरी पाने के लिए मरा जा रहा है। यकीनन वो खास डॉयरी है, शायद अमेरिका के काम की डॉयरी है। मुझे लगता है कि उसमें ऐसा कुछ है जो अमेरिका वाले पाना चाहते हैं और रिचर्ड जैक्सन वो डॉयरी देना नहीं चाहता।"
"ऐसा कुछ नहीं उसमें...।"
"ऐसा है।" जुगल किशोर ने दृढ़ स्वर में कहा--- "उस डॉयरी में यकीनन कुछ खास है।"
"तुम्हें फालतू के कामों के बारे में ना सोच कर रिचर्ड और फिरौती के बारे में सोचना चाहिए। कोई नया पंगा बीच में मत डालो। हम जो कर रहे हैं, दस करोड़ को पाने के लिए कर रहे हैं। सिर्फ उसी के बारे में सोचो।"
"चिंता मत करो जैकी मैं दस करोड़ डॉलर के बारे में ही सोच रहा हूं।" जुगल किशोर मुस्कुराया।
"वो डॉयरी अपने दिमाग से निकाल दो।"
"वो डॉयरी सिर्फ मेरा काम है। उससे तुम में से किसी का मतलब नहीं है...।"
"क्या कहना चाहते हो?"
"अगर वो डॉयरी हासिल करने के चक्कर में मैं फँस गया तो तुम लोग अपना काम जारी रखोगे। फिरौती के रूप में दस करोड़ डॉलर के साथ मुझे भी मांगोगे।"
"क्या करना चाहते हो तुम?" जैकी की आंखें सिकुड़ी।
"मैं एम्बेसी जाऊंगा डॉयरी लेने, परन्तु बात करने के बहाने से जाऊंगा। तुम मुझे फोन नंबर दो जो हमने रिचर्ड जैक्सन से लिए थे, एम्बेसी के लोगों के नंबर।"
जैकी जेब से कागज निकालकर उसकी तरफ कर कह उठा।
"तुम ये सब करके दस करोड़ की प्लानिंग को खराब कर रहे हो। उनसे फोन पर बातें की जा सकती हैं।"
"मैं वहां जाकर बात करने के साथ-साथ डॉयरी भी हासिल कर लूंगा।"
"वो तुम्हें पकड़ लेंगे।"
"अगर ऐसा हुआ तो फिक्र मत करो, मेरा मुंह नहीं खुलवा सकेंगे कि रिचर्ड जैक्सन कहां पर है। तुम अपना काम करते रहना और ये बात भूलना नहीं कि तब दस करोड़ डॉलर के साथ मुझे भी वापस मांगना है।"
"तुम ये खामख्वाह वाला काम करोगे जरूर...।"
जुगल किशोर ने कुछ नहीं कहा और उस कागज को देखा, जिस पर फोन नंबर लिखे थे।
"ये अमेरिकन एम्बेसी के ऑफिसर्स के फोन नंबर हैं। मेरी सलाह है कि तुम फिरौती के बारे में फोन पर ही बात कर लो।"
जुगल किशोर मुस्कुराया, फिर कह उठा---
"मेरे ख्याल से होटल से फोन करना ठीक नहीं। किसी पी•सी•ओ• से फोन किया जाना ठीक रहेगा।"
"मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं।" जैकी उखड़े स्वर में कह उठा।
"चलो...।"
दोनों होटल से बाहर निकले और पी•सी•ओ• तलाशते आगे बढ़ गए।
"तुम्हें काली डॉयरी हासिल करने का ख्याल छोड़ देना चाहिए।" जैकी ने कहा।
"नहीं।"
"तुम्हें कोई हक नहीं कि काम को खराब करो। हम सब मिलकर काम कर रहे...।"
"काम खराब नहीं होगा। उन्होंने मुझे भी पकड़ लिया तो काम ठीक से चलता रहेगा। रिचर्ड जैक्सन तुम लोगों के पास है।"
"सबसे बड़ी बात है कि तुम्हारा दिमाग खराब हो चुका है। उस डॉयरी में तुम्हारे काम का कुछ ना हुआ तो?"
"कुछ तो उसमें है ही। तुम परेशान क्यों होते हो?"
"मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी किसी गलती की वजह से फिरौती की रकम हमारे हाथों से निकल जाये।"
एक पी•सी•ओ• से जुगल किशोर ने फोन किया। जैकी बेचैनी से भरा पास खड़ा रहा।
"मिस्टर हिटन से मेरी बात कराओ।" बात होते ही जुगल किशोर ने कहा।
"तुम कौन हो?"
"ये मैं उन्हें बताऊंगा। मेरी बात रिचर्ड जैक्सन से वास्ता रखती है।"
"होल्ड करो।"
आधे मिनट की शांति के बाद किसी और आवाज ने उससे बात की।
"हैलो, मैं हिटन बोल रहा हूं--- तुम कौन हो?"
"मेरा नाम सुधीर कश्यप है।" जुगल किशोर ने कहा--- "मैं मुसीबत में हूं और आपसे बात करना चाहता हूं...।"
"रिचर्ड जैक्सन के बारे में बात करना चाहते थे। कुछ कह रहे थे।"
"हां, कुछ लोगों ने मेरे बच्चे का अपहरण कर लिया है। उन्होंने मुझे मजबूर किया है कि उनकी तरफ से मैं आपसे बात करूं। वो कहते हैं कि रिचर्ड जैक्सन उनके कब्जे में है, ये बात मैं आपसे कह दूं...।" जुगल किशोर ने गंभीर स्वर में कहा।
"मैं समझ गया... तुम...।"
"आप मुझसे कहां मिलेंगे?"
"क्या तुम हमारे पास नहीं आ सकते?"
"मुझे उन्होंने सिर्फ आपका फोन नंबर दिया है। मैं नहीं जानता कि आप कहां रहते हैं?"
"अमेरिकन एम्बेसी आ जाओ। वहां आकर हिटन को पूछना और सुनो--- इस बारे में किसी से कोई बात मत करना। रिचर्ड जैक्सन के अपहरण को हमने गुप्त रखा हुआ है। यही सोच कर कि शायद इस बारे में कोई फोन आये। ये तो हम जानते हैं कि कुछ लोगों ने उसका अपहरण कर लिया है। तुम कब आ रहे हो?"
"मैं जल्दी से यह काम पूरा कर देना चाहता हूं, क्योंकि मेरा बच्चा उनकी कैद में...।"
"तुम अभी हमारे पास आ जाओ।"
"ठीक है। मैं पहुंचता हूं।"
"हिटन को पूछना। वो तुम्हें मेरे पास पहुंचा देंगे।"
जुगल किशोर ने रिसीवर रखा और मुस्कुराकर जैकी से बोला---
"क्यों कैसी रही?"
"बढ़िया।" जैकी ने गहरी सांस ली।
"वो दामाद की तरह मेरी सेवा करेंगे। उन्हें रिचर्ड जैक्सन की जरूरत है। मैं आसानी से काली जिल्द वाली डॉयरी ले आऊंगा। रिचर्ड जैक्सन की सेफ की चाबी मेरे पास है। उसने बता रखा है कि दीवार पर लटकी पेंटिंग के पीछे दीवार में तिजोरी फिट है।"
■■■
अमरीकन एम्बेसी पहुंचकर जुगल किशोर ने सिक्योरिटी डिपार्टमेंट को अपना नाम सुधीर कश्यप बताया तो उन्होंने उसे भीतर पचपन साल के अमरीकन व्यक्ति के पास पहुंचा दिया--- जो कि हिटन ही था।
हिटन अपने कमरे जैसे ऑफिस में अकेला बैठा था और बेचैन दिख रहा था। उसे भीतर आया पाकर हिटन उठा और जुगल किशोर से हाथ मिलाया। जुगल किशोर ने अपना चेहरा ऐसा बना रखा था कि जैसे मुसीबत के पहाड़ के नीचे दबा हो।
"बैठिये मिस्टर सुधीर कश्यप।" हिटन ने कहा।
"ये आपका ऑफिस है?"
"क्या मतलब?"
"मुझे कहा गया है कि मैं आपसे जो भी बात करूं रिचर्ड जैक्सन के ऑफिस में बैठकर करूं। उसके कमरे में...।"
"ओह!" हिटन ने सिर हिलाया--- "ठीक है चलो, वहीं चलते हैं।"
हिटन और जुगल किशोर एक अन्य कमरे में पहुंचे, जो कि ऑफिस जैसा था। कमरे की दीवार पर पेंटिंग लगी देखकर जुगल किशोर को तसल्ली हुई कि वह सही जगह पर आ पहुंचा है।
हिटन ने गंभीर स्वर में कहा---
"बैठ जाइए मिस्टर कश्यप।"
"ये रिचर्ड जैक्सन का ही कमरा है?" जुगल किशोर ने बैठते हुए पूछा।
"जी हां...।" हिटन भी बैठ गया--- "अब बताइये, उन लोगों ने क्या बात करने भेजा है आपको?"
"मुझे नहीं पता कि क्या हो रहा है...।" जुगल किशोर ने दुखी स्वर में कहा--- "मैं मुंबई में रहता हूं और परिवार को दिल्ली घुमाने के लिए लेकर आया--- और रेलवे स्टेशन पर तब टैक्सी ले रहा था कि अचानक मेरा बच्चा गायब हो गया। और मेरी पत्नी पागलों की तरह परेशान हो उठी। बच्चे को ढूंढने लगी। एक घंटे बाद एक आदमी मेरे पास आकर बोला कि तुम्हारा बच्चा मेरे पास है। वो तुम्हें सलामत मिल सकता है अगर तुम हमारा एक काम कर दो।"
"मैं काम करने को तैयार हो गया। करता भी क्या!" जुगल किशोर जैसे रो देने को हुआ।
"कौन हैं वो लोग?"
"मैं नहीं जानता उन्हें, मैंने तो उन्हें पहले कभी देखा भी नहीं कि...।"
"क्या चाहते हैं वो?"
"वो कहते हैं कि रिचर्ड जैक्सन का उन्होंने अपहरण कर लिया है। अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो वो उसे मार देंगे।"
"उनकी मांग क्या है?"
"वो दस करोड़ डॉलर चाहते हैं।"
"दस करोड़ डॉलर...!" हिटन ने दोहराया।
"वो ये ही कहते हैं।"
"रिचर्ड जैक्सन को उन्होंने कहां रखा है?"
"मैं नहीं जानता। मुझे सड़क पर खड़ा करके उन्होंने बात की, सब समझाया। ये कल शाम की बात है। कल शाम को ही मैं परिवार के साथ दिल्ली पहुंचा था। मुझे लगता है कि अगर आपने फिरौती नहीं दी तो वो मेरे बच्चे को भी मार देंगे।"
हिटन के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी।
"वो कितने लोग थे?" हिटन ने पूछा।
"दो लोग थे। मुझसे दो ने ही बात की।"
"यहां के थे या विदेशी?"
"यहां के--- हिन्दुस्तानी ही थे।"
"उनका हुलिया बताओगे?"
जुगल किशोर ने यूं ही दो लोगों का हुलिया बता दिया।
"उन्होंने क्या कहा है?" हिटन ने पूछा।
"उन्होंने कहा है कि मैं आपसे जवाब लेकर आऊं, ये भी कहा है कि अगर जवाब इंकार में हुआ तो दो घंटे बाद उसकी लाश एम्बेसी के बाहर फेंक देंगे। वो सच में बहुत खतरनाक लोग हैं।"
हिटन दो पलों तक उसके चेहरे पर निगाहें टिकाए रहा, फिर बोला---
"वो तुम ही तो नहीं हो?"
"मैं--- क्या मतलब?"
"रिचर्ड जैक्सन तुम्हारे पास है और तुम इस तरह फिरौती की बात करने आ...।"
"ये क्या कह रहे हैं आप? मैं क्या आपको ऐसा दिखता हूं? मैं बैंक में नौकरी करने वाला साधारण इंसान हूं। मेरी पत्नी है, तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। एक को उन लोगों ने उठा...।"
"सुनो।" हिटन ने शांत स्वर में कहा--- "बेहतर होगा कि तुम सीधी-सीधी बात करो। हम तुम्हें कुछ नहीं कहने वाले। रिचर्ड की हमें जरूरत है। यही वजह है कि हमने उसके अपहरण की बात को दबा कर रखा हुआ है--- ताकि उसके वापस आने में हमें परेशानी ना हो। तुम हम से खुलकर सीधे-सीधे बात कर सकते...।"
"आपका दिमाग खराब हो गया है। मैं मुसीबत में हूं। मेरा बच्चा उन खतरनाक लोगों के कब्जे में है और आप कैसी बातें कर रहे हैं? आपको चाहिए कि आप मुझे इस मुसीबत से निकालें।"
"ठीक है, ठीक है।" हिटन बेहद शांत था--- "मैं यकीन करता हूं कि तुम्हारा बेटा उनके कब्जे में है। तो वो रिचर्ड जैक्सन को छोड़ने के बदले दस करोड़ डॉलर मांग रहे हैं?"
"हां।"
"ये बड़ी रकम है।"
"उन्होंने मुझे कहा है कि एक पैसा भी कम नहीं होगा। ये मैं आपको समझा दूं। मुझे ये भी कहा कि मैं ज्यादा देर ना बैठूं और जवाब लेकर आ जाऊं। मुझे जल्दी वापस जाना है।"
"उनसे कहां मिलोगे?"
"मुझे क्या पता? वो मुझ पर नजर रख रहे होंगे। वो ही मेरे पास आकर बात करेंगे।"
"रकम कम नहीं होगी?" हिटन ने सोच भरे स्वर में पूछा।
"उन्होंने तो मुझे ये ही कहा।"
"तुम्हें कुछ देर इंतजार करना होगा। इस बारे में मुझे अमेरिका बात करनी होगी।"
"तुम कहीं मुझे पकड़वाने के लिए पुलिस को तो नहीं बुला रहे?" जुगल किशोर डरे स्वर में कह उठा।
"ये अमेरिका का व्यक्तिगत मामला है। इसमें पुलिस का कोई काम नहीं।" हिटन उठ खड़ा हुआ।
"उन्होंने मुझे जल्दी वापस आने को...।"
"वो लोग अच्छी तरह जानते हैं कि ये काम इतनी जल्दी के नहीं होते...।"
"उन्होंने ये भी कहा था कि आप से कह दूँ कि यहां से जाने के बाद मेरा पीछा ना करें। उन्हें पता चल जाएगा।"
"मैं अमेरिका बात करता हूं इस बारे में। तुम्हारे लिए कॉफी भिजवाता हूं।" कहकर हिटन बाहर निकल गया।
जुगल किशोर खुले दरवाजे को देखता रहा। वहां शांति छाई हुई थी। एकाएक जुगल किशोर उठा और दीवार पर लटकी पेंटिंग को उतारा तो सामने ही छोटी सी तिजोरी दिखने लगी। पेंटिंग को नीचे रखकर उसने चाबी निकाली और तिजोरी को खोला। ये करते हुए जुगल किशोर का दिल जोरों से धड़क रहा था कि कोई वहां न आये।
तिजोरी में कुछ फाइलें, कागजात पड़े दिखे। इधर-उधर हाथ मारने पर उसे वो काली जिल्द वाली डॉयरी मिल गई, जो कि फाइलों के नीचे दबी हुई थी। उसके बाद जुगल किशोर ने तिजोरी बंद की। चाबी वहीं लगी रहने दी और पेंटिंग उठाकर वैसे ही टांग दी। फिर छोटी सामान्य साईज की डॉयरी को कमीज के भीतर पैंट में फंसाया और वापस कुर्सी पर बैठ गया। उसका वो काम हो गया था, जिसके लिए वो यहां आया था। डॉयरी हाथ आ गई थी।
कुछ देर जुगल किशोर वहां बैठा रहा। फिर एकाएक उठा और खुले दरवाजे से बाहर आ गया। वहां लोग थे, परन्तु हर कोई व्यस्त दिख रहा था। उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था। जुगल किशोर आराम से आगे बढ़ता हुआ बाहर की तरफ चल पड़ा।
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