“आज क्या प्रोग्राम है ?” - अगली सुबह ब्रेकफास्ट के बाद देशपाण्डे ने पूछा ।
“पहले दफ्तर जाऊंगा” - सुनील बोला - “फिर होटल ब्राइट में मेबल से दोबारा सम्पर्क स्थापित करने का प्रयत्न करूंगा । अगर मेबल आज भी न मिली तो पैरामाउन्ट क्लब में जाकर मारिया की तलाश करूंगा।”
“मुझे लाला से मिलने जाना है ।”
“वैरी गुड । लंच में मुलाकात होगी ।”
“ओके ।”
“मैं तुम्हें टेलीफोन करूंगा ।”
“ओके ।”
सुनील फ्लैट से बाहर निकल गया ।
ब्लास्ट के आफिस से सुनील ने कम से कम चार बार ब्राइट होटल में मेबल को फोन किया । हर बार एक ही उत्तर मिला - वह अपने कमरे में नहीं है ।
मेबल कहां गायब हो गई थी ?
दोपहर के बाद सुनील अपने केबिन से निकला और फिर ब्राइट होटल पहुंचा ।
आज रिसैप्शन पर जो क्लर्क मौजूद था वह वो क्लर्क नहीं था जिसने कल टेलीफोन पर मेबल को सुनील के बारे में सूचना दी थी ।
“मैं मिस मेबल से मिला चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“मिस मेबल तो अपने कमरे में नहीं है ।” - क्लर्क बोला - “सुबह से उसके टेलीफोन आ रहे हैं ।”
“क्या तुम मुझे उसके कमरे तक ले जा सकते हो ?”
“सारी सर । ऐसा नियम नहीं है ।”
“देखो मेरा नाम प्रिंस एल्फा है । मैं विश्वनगर से दौड़ा चला आ रहा हूं । मेबल मेरी मंगेतर है ।”
“मंगेतर ?”
“हां, मंगेतर नहीं समझते ? जिससे शादी होती है ।”
“मैं समझता हूं ।”
“उसने मुझे चिट्ठी लिखी है कि अगर मैं फौरन यहां नहीं पहुंचा तो वह नींद की गोलियां खाकर मर जाएगी । मुझे कल यहां आना चाहिये था लेकिन दुर्भाग्यवश मैं कल यहां नहीं पहुंच पाया । मुझे डर है कि कहीं मेबल ने अपनी धमकी सच न कर दिखाई हो । कहीं ऐसा न हो यह अपने कमरे में मरी पड़ी हो और आप लोग यहीं समझ रहे हों कि वह कमरे में है ही नहीं ।”
“लेकिन...”
“अगर मेबल को कुछ हो गया तो उसकी मौत की जिम्मेदारी तुम पर होगी ।”
“आप चाहते क्या हैं ?”
“मैं पहले ही बता चुका हूं, मैं क्या चाहता हूं । तुम मेरे साथ मेबल के कमरे तक चलो ।”
“अच्छी बात है । चलिये साहब ।”
क्लर्क ने एक बैल बॉय को बुलाकर उसे रिसैप्शन का ख्याल रखने की ड्यूटी सौंपी और सुनील के साथ हो लिया ।
वे तीसरी मंजिल पर मेबल के कमरे के सामने पहुंचे ।
क्लर्क ने दरवाजे का हैंडिल घुमाया । ताला खुला पाकर उसके चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे ।
“दरवाजा तो खुला है ।” - सुनील बोला ।
क्लर्क ने धीरे से दरवाजा खटखटाया और बोला - “मैडम !”
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
उसने दरवाजा पूरा खोल दिया ।
कमरा खाली था ।
सुनील पिछली रात कमरे को जिस हालत में छोड़कर गया था वह बिल्कुल वैसा ही बड़ा था । साफ जाहिर था कि मेबल कल से ही कमरे में वापस नहीं लौटी थी ।
क्लर्क ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील को देखा ।
“बाथरूम में देखो ।” - सुनील बोला ।
बाथरूम खाली था ।
दोनों कमरे से बाहर निकल आये ।
“मिस्टर” - सुनील गलियारे में ठिठक गया - “क्या नाम है तुम्हारा ?”
“नारायण ।” - क्लर्क बोला ।
“मिस्टर नरायण, मेबल यहां काफी अरसे से रह रही थी । तुम भी मुझे यहां के कोई नए कर्मचारी नहीं लग रहे हो । तुम तो उसके काफी यार-दोस्तों को जान-पहचान गये होगे ?”
“जी हां ।” - क्लर्क अनिश्चित स्वर में बोला ।
“तुम प्रेमकुमार नाम के उसके दोस्त को जानते हो ?”
“जानता हूं । उसकी तो कल रात झेरी में हत्या हो गई है । आज के अखबार में छपा है ।”
“अच्छा ! मैंने अखबार नहीं पढा । बड़ी अफसोसनाक खबर सुनाई तुमने ।”
क्लर्क चुप रहा ।
“तुम जग्गी को भी जानते होवोगे ?”
“कौन जग्गी ?”
“वह भी मेबल का दोस्त है । ठिगना-सा आदमी है । गठीला बदन । उम्र लगभग चालीस साल । सिर पर नकली बालों का विग लगाता है । प्रेमकुमार का दोस्त था ।”
सुनील को क्लर्क के नेत्रों में चमक दिखाई दी ।
“अगर तुम” - सुनील आशापूर्ण स्वर में बोला - “प्रेमकुमार को जानते हो तो जग्गी को जरूर जानते होगे ?”
“आप उसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं ?”
“मैं उससे मिलना चाहता हूं । मैं उसका पता जानना चाहता हूं ।”
“मैं नहीं जानता ।”
“जग्गी को नहीं जानते या उसका पता नहीं जानते ?”
“मैं दोनों ही बातें नहीं जानता, साहब ।”
“याद कर लो, दोस्त । मैं कोई मुफ्त जानकारी हासिल करने का आदी नहीं ।”
सुनील ने अपना पर्स निकाला । उसने पर्स में से एक सौ का नोट आधा बाहर खींच लिया और फिर प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
क्लर्क की लालचभरी निगाहें नोट पर टिक गई । उसने होंठों पर जुबान फेरी ।
“मैं जवाब का इन्तजार कर रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“मैं नहीं जानता ।” - क्लर्क कठिन स्वर में बोला ।
क्लर्क निश्चय ही जग्गी को भी जानता था और उसका पता भी जानता था लेकिन किसी कारणवश वह इस सिलसिले में अपनी जुबान बन्द ही रखना चाहता था ।
अगर सुनील के स्थान पर देशपाण्डे होता तो वह शायद अब तक क्लर्क की गरदन दबोच चुका होता और उससे जबरदस्ती जग्गी का पता उगलवाने की कोशिश कर रहा होता लेकिन इस बात की क्या गारन्टी थी कि वह जबरदस्ती के आगे झुक जाता और पता बताने के स्थान पर कोई नया फसाद न खड़ा कर देता ।
“मैं जानकारी की इससे ज्यादा बड़ी कीमत भी अदा कर सकता हूं ।” - सुनील बोला ।
क्लर्क फिर विचलित दिखाई देने लगा लेकिन जब वह बोला तो उसके स्वर में निर्णय और दृढता का पुट था - “मैं जग्गी को नहीं जानता साहब ।”
“ओके” - सुनील ने पर्स बन्द करके जेब में रख लिया - “थैंक्यू आल दी सेम ।”
दोनों लिफ्ट में प्रविष्ट हो गये ।
निश्चय ही जग्गी कोई बहुत बड़ा दादा था । और किसी अन्य संदर्भ में उसके हाथ क्लर्क को लग चुके थे । इसीलिए क्लर्क उसके बारे में जुबान तक खोलने से थर्रा रहा था ।
वे लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचे ।
क्लर्क बैल ब्वाय के पास पहुंचा और बोला - “बासठ नम्बर कमरे को ताला लगाकर आओ । लगता है, मेबल मेमसाहब जाती बार ताला लगाना भूल गई थी ।”
सुनील होटल से बाहर निकल आया ।
वह पैरामाउन्ट क्लब पहुंचा ।
क्लब में उस समय उल्लू बोल रहे थे ।
बड़ी मुश्किल से वह एक वेटर को घेरने में कामयाब हुआ ।
उसने वेटर से मारिया के बारे में पूछा ।
“वह तो रात को आती हैं ।” - वेटर बोला ।
“तुम उसके घर का पता जानते हो ?”
वेटर हिचकिचाया ।
सुनील ने एक पांच का नोट जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में खोंस दिया ।
“वह लिटन रोड की आठ नम्बर इमारत में रहती हैं ।” - वेटर बोला ।
“थैंक्यू ।”
“लेकिन साहब, इस वक्त वहां जाना बेकार होगा । इस वक्त तो उन्हें दीन-दुनिया की खबर नहीं होगी ।”
“क्यों ?”
“दम मारो दम ।”
“ओह ! कोई बात नहीं ।”
सुनील के पीठ फेरते ही वेटर अपने एक साथी से बोला - “आजकल लोग मारिया के बड़े दीवाने हो रहे हैं । सुबह भी एक आदमी आया था और जबरदस्ती मेरी मुट्ठी में पांच का नोट ठूंसकर मुझसे मारिया का पता पूछ गया था ।”
“चांदी है तुम्हारी, प्यारे ।” - दूसरा वेटर ईर्ष्यापूर्ण स्वर में बोला ।
अगर वेटर सच बोल रहा था तो उस समय मारिया से मिलने जाना बेकार था । उसे याद था स्टार होटल के सरदार मालिक ने भी बताया था मारिया नशा करती थी ।
सुनील ने एक बार फिर जग्गी को तलाश करने का अभियान आरम्भ किया ।
पहले उसने देशपाण्डे को फोन किया कि लंच पर उनकी मुलाकात होनी सम्भव नहीं थी और फिर सीधा रौनक बाजार में स्थित फ्रैंक के कॉफी बार में पहुंचा ।
काफी बार का मालिक फ्रैंक एक जमाने का राजनगर का सबसे खतरनाक दादा था । अब वह अपनी अपराधपूर्ण जिन्दगी से किनारा कर चुका था लेकिन अभी भी वह राजनगर के छोटे-बड़े एक-एक दादा की जानकारी रखता था । सुनील के लिए वह अपराध जगत का एनसाइक्लोपीडिया था । आज तक राजनगर के किसी बदमाश की जानकारी हासिल करने की खातिर जब भी वह फ्रैंक के पास पहुंचा था, उसे निराशा का मुंह नहीं देखना पड़ा था ।
लेकिन आज वह रिकार्ड टूट गया ।
फ्रैंक जग्गी नाम के किसी ऐसे दादा को नहीं जानता था जो ठिगना था, बदन गठीला था, लगभग चालीस साल उम्र का था और सिर पर नकली बालों का विग लगाता था ।
फ्रैंक ने सुनील के भोजन का प्रबन्ध किया और उसे यह आश्वासन देकर वहां से निकल गया कि वह जग्गी के बारे में कुछ जानकारी हासिल करके ही लौटेगा ।
लेकिन शाम को फ्रैंक बैरंग वापस लौटा ।
उसका दावा था कि या तो वह आदमी पेशेवर बदमाश नहीं था और या फिर उस शहर का नहीं था ।
सुनील ने फ्रैंक का धन्यवाद किया और बाहर निकलकर अपनी मोटरसाइकिल पर आ सवार हुआ ।
उसने मोटरसाइकिल लिटन रोड की ओर ले जाने वाली सड़क पर दौड़ा दी ।
सम्भावना इस बात की भी थी कि जैसे वह जग्गी को तलाश करता फिर रहा था, शायद वैसे ही जग्गी भी उसका गला काटने की फिराक में उसे तलाश करता फिर रहा था ।
लिटन रोड की आठ नम्बर इमारत तलाश करने में सुनील को कोई दिक्कत नहीं हुई । उसने मोटरसाइकिल फुटपाथ पर चढाकर खड़ी कर दी और इमारत के सामने पहुंचा ।
वह एक तीन मंजिली इमारत थी । मुख्य द्वार के पास टंगे कई लैटर बक्सों में से एक पर मारिया का नाम भी लिखा हुआ था । नाम के नीचे लिखे पते के अनुसार वह पहली मंजिल के पिछले भाग में स्थित फ्लैट में रहती थी ।
सुनील लाबी में प्रविष्ट हुआ । लकड़ी की अर्धप्रकाशित सीढियां तय करके वह पहली मंजिल पर पहुंचा ।
एक दरवाजा खुला और उसमें से एक स्कर्टधारी लड़की बाहर निकली ।
“मारिया ?” - सुनील प्रश्नसूचक स्वर में बोला ।
“पता नहीं किस चिड़िया का नाम है ।” - लड़की नाक चढाकर बोली और कूल्हे मटकाती हुई सीढियां उतर गई ।
सुनील ने एक-एक दरवाजे पर निगाह डालनी आरम्भ की ।
सिरे के दरवाजे पर मारिया के नाम की फ्लेट लगी हुई थी ।
सुनील ने देखा दरवाजा थोड़ा-सा खुला था और भीतर के कृत्रिम प्रकाश की किरणें बाहर फूट रही थीं ।
कई क्षण सुनील ठिठका-सा वहीं खड़ा रहा ।
“मारिया !” - अन्त में उसने आवाज लगाई ।
भीतर से उत्तर नहीं मिला ।
अगर वह नशे में पड़ी होगी तो उसकी आवाज कहां सुनेगी ?
रमाकांत की बिना नम्बर की रिवाल्वर अभी भी सुनील की जेब में थी । उसने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली । पांव की ठोकर से उसने दरवाजा खोला ।
भीतर कोई हरकत नहीं हई ।
सुनील ने सावधानी से भीतर कदम रखा और अपने पीछे दरवाजा बन्द कर लिया ।
वह दो कमरों का फ्लैट था और उसमें पूरी तरह सन्नाटा छाया हुआ था ।
जिस कमरे में वह उस समय खड़ा था, वह खाली था ।
पिछला कमरा खाली था ।
वह बाथरूम में पहुंचा ।
बाथरूम के फर्श पर मारिया एकदम नग्नावस्था में पीठ के बल पड़ी थी । उसकी छाती में मूठ तक एक चाकू घुसा हुआ था । उसके आसपास खून ही खून फैला हुआ था । खून की रंगत काली पड़ने लगी थी ।
सुनील ने होंठों पर जुबान फेरी ।
अगर उसने पैरामाउन्ट क्लब के वेटर की बात को महत्व न दिया होता और वह दोपहर को ही सीधा वहां आ गया होता तो शायद मारिया की जिन्दगी में ही उसकी उससे मुलाकात हो जाती ।
सुनील वापस घूमा ।
वहां एक क्षण भी ठहरना उसके लिए खतरनाक साबित हो सकता था ।
उसने रिवाल्वर जेब में डाली और बाहर के कमरे में आ गया । उसने मुख्य द्वार खोला और...
और सीधा जग्गा की छाती से जा टकराया ।
दोनों की निगाहें मिलीं । हैरानी से दोनों के मुंह खुल गए । दोनों के हाथ अपनी-अपनी जेबों की ओर बढे ।
रिवाल्वर निकालते-निकालते सुनील ने वापस फ्लैट के भीतर छलांग लगा दी ।
दोनों की रिवाल्वरों ने आग उगली ।
सुनील अपने आपको कमरे के फर्श पर गिरा चुका था । गोली सनसनाती हुई उसके ऊपर से गुजर गई और पिछली दीवार से ढेर सारा पलस्तर उखड़कर फर्श पर आ गिरा ।
सुनील की अपनी गोली का क्या अंजाम हुआ उसे पता नहीं चल सका । लेकिन गोली चलाकर उसने कम से कम जग्गी को यह जरूर जता दिया था कि वह भी हथियारबन्द था ।
कितने ही क्षण वातावरण में मौत का सन्नाटा छाया रहा ।
अन्त में सुनील अपने स्थान से उठा । उसने सावधानी से दरवाजे से बाहर झांका । बाहर कोई नहीं था । शायद जग्गी भाग गया था ।
फिर सीढियों पर किसी के भारी कदम पड़ने की आवाज आई ।
सुनील ने रिवाल्वर की नाल से दरवाजा पूरा खोल दिया ।
गलियारे में कोई नहीं था ।
सुनील बाहर निकल आया ।
दबे पांव वह रेलिंग के सिरे पर पहुंचा ।
नीचे सीढियों के मोड़ से उसे एक हल्की-सी आहट मिली ।
शायद जग्गी सीढियों के मोड़ पर खड़ा था और उसके सीढियों के दहाने पर प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रहा था ।
सुनील कुछ क्षण प्रतीक्षा करता रहा । फिर वह रेलिंग से हटकर यूं सीढियों की ओर बढा जैसे अण्डों पर चल रहा हो । पहली सीढी पर उसके कदम पड़ते ही लकड़ी की सीढी चरमरा गई ।
सुनील तुरन्त नीचे बैठ गया ।
मोड़ से दो फायर हुए । गोलियां सनसनाती हुई वहां से गुजर गई जहां आधा सैकेण्ड पहले सुनील का सिर था ।
सुनील ने भी नीचे की ओर फायर झोंक दिया और फिर बैठा-बैठा कलाबाजी खाकर दोबारा रेलिंग की ओट में पहुंच गया ।
नीचे से एक घुटी हुई चीख उभरी ।
शायद सुनील की रिवाल्वर से निकली गोली जग्गी से कहीं टकरा गई थी ।
दूसरी मंजिल पर कोई गला फाड़-फाड़कर पुलिस-पुलिस चिल्ला रहा था ।
फिर एकाएक नीचे सीढियों पर धप्प-धप्प पैर पड़ने की आवाज आई ।
जग्गी भाग रहा था ।
सुनील उठकर सीढियों की ओर भागा ।
जग्गी उसे दिखाई नहीं दे रहा था ।
सुनील नीचे पहुंचा । इमारत का मुख्य द्वार भिड़का हुआ था । सुनील ने एक झटके से दरवाजा खोला और बाहर भागा ।
उसी क्षण पुलिस की जीप एकदम मुख्य द्वार के सामने आकर रुकी और उसमें से सशस्त्र सिपाही निकल पड़े ।
सुनील ने तुरन्त रिवाल्वर फेंक दी । उसे भय था कि उसके हाथ में रिवाल्वर देखकर पुलिस वाले सबसे पहले उसे ही निशाना न बना दें ।
“वह अभी-अभी यहां से भागा है” - सुनील उत्तेजित स्वर में बोला - “वह मुश्किल से सौ गज दूर गया होगा ।”
“कौन ?” - एक इंस्पेक्टर ने आगे बढकर पूछा ।
“जिसने मुझ पर गोली चलाई थी ।”
“कौन था वो ? किधर भागा है ?”
“वह जग्गी नाम का एक बदमाश था । आप लोगों के आने से एक क्षण पहले यहां से भागा है । वह दायें भागा होगा या बायें भागा होगा । दो ही तो रास्ते हैं । और शायद उसे मेरी गोली भी लगी है । मैंने उसकी चीख सुनी थी ।”
“अपने हाथ अपनी पीठ पीछे करो ।” - इंस्पेक्टर ने आदेश दिया ।
सुनील ने तुरन्त आज्ञा का पालन किया ।
इंस्पेक्टर के संकेत पर एक सिपाही ने उसकी कलाइयों में हथकड़ियां भर दी । सुनील ने विरोध नहीं किया । विरोध वाली स्थिति नहीं थी ।
फिर एकाएक इमारत में से कई लोग बाहर निकल आये । हर कोई उत्तेजित स्वर में गोलियां चलने का जिक्र कर रहा था । इतने लोग एक साथ बोल रहे थे कि गोलियां चलीं, गोलियां चली के सिवाय एक भी शब्द सुनील के कानों में नहीं पड़ रहा था ।
“इंस्पेक्टर” - सुनील उच्च स्वर में बोला - “जरा एक मिनट मेरी बात सुनिये ।”
इंस्पेक्टर उसके समीप पहुंचा ।
“मेरा नाम सुनील है । मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं । मेरी जेब में मेरा ड्राइविंग लाइसेंस और प्रेस कार्ड मौजूद है । पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह मुझे अच्छी तरह जानते हैं । इस इमारत की पहली मंजिल पर मारिया के फ्लैट में उसकी लाश पड़ी है । किसी ने चाकू मारकर उसकी हत्या कर दी है । मारिया की हत्या का मनोहर मैनशन में निशा नाम की उस लड़की की हत्या से सम्बन्ध है जिसका नाम लाला मंगत राम से जोड़ा जा रहा है । मेरी राय है आप मौजूदा घटना की सूचना उन्हें जरूर दें ।”
इंस्पेक्टर फसादी आदमी नहीं था । उसने स्वीकृतिसूचक ढंग के सिर हिलाया । उसने एक सिपाही को सुनील की रिवाल्वर उठा लाने का संकेत किया और स्वयं जीप की ओर बढ गया । उसने जीप के वायरलेस सैट के पास बैठे हुए सिपाही को कुछ कहा और वापस सुनील के पास आ गया ।
“मारिया के फ्लैट का रास्ता दिखाओ ।” - इंस्पेक्टर बोला ।
सुनील फिर इमारत में प्रविष्ट हो गया ।
पुलिस के दल-बल को सुनील मारिया के फ्लैट में ले आया ।
इंस्पेक्टर ने लाश का निरीक्षण किया और फिर बाथरूम से बाहर आकर सुनील से बोला - “तुमने इसे चाकू क्यों मारा ?”
“मैंने नहीं मारा इसे ।” - सुनील कठोर स्वर में बोला - “जब मैं यहां पहुंचा था तो यह यूं ही मरी पड़ी थी ।”
“तो फिर इसे किसने मारा ?”
“मुझे क्या मालूम ?”
“क्या उस आदमी ने जिसका नाम तुम जग्गी बता रहे थे ?”
“उसने भी नहीं । वह तो मेरे से भी बाद में आया था ।”
“तुमने उस पर गोली क्यों चलाई ?”
“क्योंकि उसने मुझ पर गोली चलाई थी ।”
“क्यों ?”
उसी क्षण अपने भारी-भरकम शरीर के साथ पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह फ्लैट में प्रविष्ट हुआ । उसके हाथ में एक ताजा सुलगाया हुआ सिगार था जिसे वह अपने अंगूठे और पहली उंगली के बीच में अपने विशिष्ट अन्दाज से नचा रहा था ।
इंस्पेक्टर ने उसे ठोककर सलाम किया ।
“हल्लो, सुपर साहब ।” - सुनील बोला ।
“हल्लो !” - रामसिंह अपनी भारी आवाज में बोला । फिर वह इंस्पेक्टर की ओर घूमा और अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “हथकड़ियां खोल दो ।”
तुरन्त आज्ञा का पालन हुआ । सुनील बन्धनमुक्त हो गया ।
“क्या किस्सा है ?” - रामसिंह बोला ।
“इस लड़की का नाम मारिया है” - सुनील बोला - “मैं यहां इससे मिलने आया था लेकिन कोई पहले ही इसका काम तमाम कर गया था ।”
“मैंने यह नहीं पूछा ।” - रामसिंह बोला - “निशा वाली हत्या से इसका क्या सम्बन्ध है ?”
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “कहीं और चलो ।”
“इंस्पेक्टर” - रामसिंह बोला - “तुम अपनी तफ्तीश जारी रखो । सुनील मेरे साथ जा रहा है ।”
“राइट सर ।” - इंस्पेक्टर तत्पर स्वर में बोला ।
“आओ ।” - रामसिंह बोला ।
लिटन रोड के मोड़ पर ही एक रेस्टोरेन्ट था । दोनों उसमें जा बैठे ।
रामसिंह ने वेटर को काफी का आर्डर दिया ।
सुनील ने लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट सुलगा लिया ।
काफी सर्व होने तक दोनों कश लगाते रहे ।
“शुरू हो जाओ ।” - रामसिंह सिगार का लम्बा कश लेकर बोला ।
सुनील ने बड़े बिस्तार के साथ उसे शुरू से आखिर तक सारी दास्तान कह सुनाई ।
रामसिंह बेहद गम्भीर दिखाई देने लगा ।
“लाला मंगत राम कहता है कि उसने हत्या नहीं की ?” - रामसिंह बोला ।
“हां ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन इन गंदी तस्वीरों की बात सुनकर तो मुझे और भी विश्वास होने लगा है कि हत्या उसी ने की है । उसी ने निशा को मारकर उसकी सेफ में से तस्वीरें निकाली होंगी ।”
“लेकिन वह कहता है कि यह निशा को बाथरूम में सही-सलामत छोड़कर आया था ।”
“और फिर जब दो बार दिल्ली और शिमला में उसकी हत्या का प्रयत्न हो चुका है तो उसने पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया ?”
“यह सवाल उससे मैंने भी किया था । उसने स्वीकार किया था कि पुलिस को सूचित न करना उसकी मूर्खता थी और इस मूर्खता को हवा देने में देशपाण्डे का भी हाथ था ।”
“यह देशपाण्डे क्या चीज है ?”
“दिल्ली में कोई प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी चलाता है । लाला का पुराना परिचित है । लाला ने उसे इस उम्मीद में बुलाया है कि वह अकेला या मेरे सहयोग से कोई ऐसे सबूत खोज निकालेगा जिससे लाला एकदम बेगुनाह साबित हो जायेगा ।”
“मारिया उन्हीं तीन लड़कियों में से एक थी जो निशा के फ्लैट में लाला के साथ हमबिस्तर हुई थीं ?”
“हां ।”
“तुम्हारा क्या ख्याल है । इन लड़कियों का भी ब्लैकमेल में हाथ है ?”
“मेरी सिर्फ एक से बात हुई है । मेबल से । जिसके बारे में मैं तुम्हें पहले भी बता चुका हूं । वह कहती है कि उन्हें ब्लैकमेल वाली बात की तो खबर तक नहीं थी ।”
“यानी कि ब्लैकमेलिंग में लड़कियों का हाथ नहीं ?”
“लगता तो यही है । मेबल तो कम से कम मुझे सच बोलती लगी थी । मारिया की मुझे लाश मिली इसलिये मैं उसे टटोल नहीं पाया और तीसरी लड़की को तो मैं तलाश ही नहीं कर पाया ।”
“तुम्हारे पास तीनों लड़कियों की तस्वीरें इस वक्त है ?”
“हैं ।”
“दिखाओ ।”
सुनील ने तीनों तस्वीरें निकालकर रामसिंह के सामने रख दीं ।
“यह मारिया है” - सुनील बोला - “जिसकी तुम अभी लाश देखकर आ रहे हो और जिसने लाला को अपना नाम सोना बताया था । यह मेबल है जो कल शाम से अपने होटल के कमरे से गायब है । इसने लाला को अपना नाम नैन्सी बताया था यह वह तीसरी लड़की है जिसने लाला को अपना नाम कंचन बताया था और जिसके बारे में मैं कोई जानकारी हासिल नहीं कर सका हूं ।”
“इसका नाम माला है । यह आकाश होटल की कैब्रे डांसर है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“आज दोपहर के समय इसकी लाश समुन्दर में से निकाली गई है । किसी ने इसका गला घोंटकर इसे समुन्दर में फेंक दिया था ।”
“यानी कि तीन लड़कियों में से दो जिन्दगी से किनारा कर चुकी हैं ।”
“और अगर मेबल कल शाम से होटल से गायब है तो मुझे उसकी जिन्दगी की भी कोई गारन्टी दिखाई नहीं देती ।”
“लेकिन सवाल तो यह है कि हत्यारा कौन है ?”
“अगर लाला मंगत राम हर क्षण मेरी निगाहों में न होता तो मैं तो यही कहता कि हत्यारा वह है । निशा, प्रेमकुमार, मारिया, माला और मेबल सबका लाला को ब्लैकमेल करने में हाथ था । सबकी बारी-बारी सफाई हो गई है - सिर्फ मेबल की अभी गारण्टी नहीं है लेकिन वह भी शायद ही जिन्दा निकलेगी - इन हालात में सीधा ध्यान लाला की ओर जाता है लेकिन उसने प्रेमकुमार या मारिया या माला की हत्या नहीं की इसकी मैं खुद गारण्टी हूं क्योंकि मेरे आदमी हर क्षण उसकी निगरानी कर रहे हैं ।”
“तो फिर हत्यारा कौन है ?”
रामसिंह ने अनभिज्ञतापूर्ण ढंग से कन्धे उचकाये ।
“तुम मेबल का पता लगाने की तो कोशिश करो ।” - सुनील बोला ।
“जरूर करूंगा” - रामसिंह बोला - “लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि या तो वह मिलेगी ही नहीं और अगर मिलेगी तो उसकी लाश मिलेगी ।”
“वह ब्राइट होटल के 62 नम्बर कमरे में रहती है ।”
“मैं याद रखूगा ।”
“एक काम और करोगे ?”
“क्या ?”
“उस होटल में नारायण नाम का एक क्लर्क है । मुझे शक है कि वह जग्गी का पता-ठिकाना जानता है । लेकिन वह जग्गी से डरता है इसलिए उसके बारे में जुबान खोलना नहीं चाहता लेकिन वह तुम्हारे सामने अपनी जुबान बन्द नहीं रख पायेगा ।
रामसिंह कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “चलो ।”
बिल चुकाकर वे रेस्टोरेन्ट से बाहर निकले ।
दोनों वापस आठ नम्बर इमारत के सामने पहुंचे ।”
“मेरी रिवाल्बर तो वापस दिला दो ।” - सुनील बोला ।
“साहब की रिवाल्वर किसके पास है ?” - रामसिंह अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
इंस्पेक्टर के आदेश पर जिस सिपाही ने रिवाल्वर अपने अधिकार में की थी उसने तुरन्त सुनील को सौंप दी ।
“रिवाल्वर कब से रखनी शुरू कर दी है तुमने ?” - राम-सिंह ने पूछा ।
“कहां रखता हूं ।” - सुनील बोला - “जब जिन्दगी ज्यादा खतरे में दिखाई देने लगती है तो किसी से उधार मांग लेता हूं ।”
“लाइसैंस है तुम्हारे पास ?”
“लाइसैंस है लेकिन रिवाल्वर नहीं है ।”
“जीप में बैठो ।”
दोनों जीप में सवार हो गये ।
“ब्राइट होटल ।” - रामसिंह ने ड्राइविंग सीट पर बैठे पुलिस के वर्दीधारी सिपाही को आदेश दिया ।
ड्राइवर ने तुरन्त जीप आगे बढ़ा दी ।
“रामसिंह” - एकाएक सुनील बोला - “क्या अभी मेरे से बात होने से पहले तुम्हें प्रेमकुमार के बारे में कुछ नहीं मालूम था ?”
“सब कुछ मालूम था । मैं पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट हूं, कोई घसियारा नहीं । मैं यह तक पता लगा चुका हूं कि प्रेमकमार निशा का प्रेमी था और लाला मंगत राम ने उसे इतना पिटवाया था कि वह दस दिन अस्पताल में पड़ा रहा था ।”
“फिर भी प्रेमकुमार की हत्या के बाद तुम झेरी नहीं गये ?”
“कौन कहता है नहीं गया । सूचना मिलते ही मैं वहां पहुंचा था ।”
“फिर तो लाला मंगत राम की और मेबल, मारिया और माला की गन्दी तस्वीरों की खबर तुम्हें पहले से ही होनी चाहिए थी ।”
“क्या मतलब ?”
“हत्या से सिर्फ दो मिनट पहले प्रेमकुमार ने मुझे कुछ और गन्दी तस्वीरें दिखाई थी । तस्वारें उसके कोट की भीतरी जेब में थीं ।”
“लेकिन प्रेमकुमार की लाश पर से ऐसी कोई तस्वीरें बरामद नहीं हुई थीं ।”
“कमाल है । पुलिस तो लगभग वहां फौरन पहुंच गई थी, तो फिर तस्वीरें किसने निकालीं ?”
“दो ही आदमियों को ऐसा मौका हासिल हो सकता था कि वे पुलिस के पहुंचने से पहले उसकी जेब से तस्वीरें गायब कर देते । जग्गी को या हत्यारे को ।”
“अगर जग्गी मिल जाये तो कई बातों पर प्रकाश पड़ सकता है ।”
“अगर ब्राइट होटल का नारायण नाम का क्लर्क जग्गी का पता-ठिकाना जानता है तो जग्गी मिल गया समझो ।” - रामसिंह विश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।
सुनील चुप रहा ।
जीप ब्राइट होटल के सामने आकर रुकी ।
रामसिंह और सुनील होटल में प्रविष्ट हुए ।
नारायण रिसैप्शन पर मौजूद था । पुलिस की वर्दी पर निगाह पड़ते ही वह तुरन्त स्टूल से उठ खड़ा हुआ ।
“मेबल वापस आई ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं, साहब ।” - नारायण बोला ।
सुनील ने देखा रिसैप्शन के पीछे के एक बन्द दरवाजा था जिस पर ‘मैनेजर’ लिखा हुआ था ।
“मैनेजर साहब हैं ?” - उसने पूछा ।
“जी नहीं ।” - नारायण बोला ।
“भीतर चलो ! तुमसे अकेले में कुछ बात करनी है ।”
“लेकिन...”
“चलो ।” - रामसिंह कर्कश स्वर में बोला ।
“यस सर ! यस सर !” - नारायण हकलाकर बोला ।
तीनों मैनेजर के कमरे में प्रविष्ट हो गये ।
“मैं तुमसे जग्गी के बारे में फिर पूछने आया हूं ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन साहब” - नारायण विरोधपूर्ण स्वर में बोला - “मैं आपसे पहले ही अर्ज कर चुका हूं कि मैं जग्गी के बारे में कुछ नहीं जानता ।”
“पहले और अब अर्ज करने में फर्क है । पहले तुम्हें किसी पुलिस सुपरिन्टन्डेन्ट ने यह नहीं बताया था कि जग्गी एक हत्या के मामले में मैटीरियल विटनेस है और ऐसे आदमी की जानकारी पुलिस से छुपाकर रखना अपराध है ।”
नारायण ने भयभीत नेत्रों से रामसिंह की ओर देखा और फिर कम्पित स्वर में बोला - “लेकिन साहब, मैं वाकई उसके बारे में कुछ नहीं जानता । मुझे वाकई मालूम नहीं वह कहां रहता है । आपने पता नहीं कैसे सोच लिया है कि मैं उसके बारे में कुछ जानता हूं । मैंने तो ऐसी कोई बात अपनी जुबान से नहीं निकाली ।”
“हर बात जुबान से कहनी जरूरी नहीं होती ।”
“लेकिन...”
“ए” - रामसिंह कर्कश स्वर में बोला - “इधर मेरी ओर देखो ।”
नारायण ने रामसिंह की ओर देखा लेकिन उससे निगाह नहीं मिलाई ।
“जेल जाना चाहते हो ?”
“लेकिन साहब, कोई बात तो हो । मैं वाकई...”
“सुनील !” - रामसिंह सुनील की ओर घूमा - “बाहर से हवलदार को बुला लाओ । उससे कहो हथकड़ियां साथ लेकर आये ।”
“अभी लो ।” - और सुनील दरवाजे की ओर बढ़ा ।
“वह मेरा कीमा बना देगा ।” - नारायण कम्पित स्वर में बोला ।
सुनील रुक गया ।
“उससे पहले मैं उसे जान से नहीं मार डालूंगा ।” - रामसिंह आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला - “तुम जग्गी से बिल्कुल मत घबराओ, तुम्हारी सुरक्षा की गारन्टी मैं लेता हूं ।”
“मुझे” - नारायण हकलाता हुआ बोला - “मुझे उसके घर का पता नहीं मालूम । मैं केवल इतना जानता हूं कि हार्बर पर स्थित एलफ्रेड का बार उसका अड्डा है । वहां वह अक्सर आता-जाता है ।”
“और ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“और मैं कुछ नहीं जानता । लेकिन भगवान के लिए आप लोग जग्गी को यह पता मत लगने दीजियेगा कि मैंने उसके बारे में आपको कुछ भी बताया है ।”
“तुम इसके अलावा और कुछ नहीं जानते ?”
“बाई गाड, नहीं जानता ।”
“उसका असली नाम क्या है ?” - सुनील ने पूछा ।
“यही असली नाम है ।”
“पूरा नाम क्या है ?”
“मुझे नहीं मालूम । मैंने हर किसी को उसे इसी नाम पुकारते सुना है ।”
“मेबल से उसका क्या रिश्ता है ?”
“वही जो प्रेमकुमार का था ।”
“मेबल कोई पेशेवर लड़की है ?”
नारायण चुप रहा ।
“तुम अपने होटल में वेश्याओं को पनाह देते हो ?”
“मैं तो होटल का मामूली कर्मचारी हूं, साहब । इस विषय में तो आपको मालिक से बात करनी चाहिये ।”
सुनील और रामसिंह की निगाहें मिलीं ।
रामसिंह ने उसे पटाक्षेप कर देने का संकेत किया ।
“आल राइट ।” - सुनील बोला - “थैंक्यू ।”
“एक बात याद रखना” - रामसिंह कहरभरे स्वर बोला - “अगर तुमने जग्गी को हमारे बारे में कोई सूचना भेजने की कोशिश की या मुझे बाद में यह मालूम हुआ कि जितना कुछ तुमने हमें बताया है, तुम उससे ज्यादा जानते थे तो फिर तुम्हारा भगवान ही मालिक है ।”
“साहब, मैं वाकई कुछ नहीं जानता ।”
“भगवान् करे, ऐसा ही हो । इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
दोनों अपने पीछे एक बेहद भयभीत नारायण को छोड़कर होटल से बाहर निकल आये ।
वे दोबारा जीप में सवार हुए और हार्बर पर स्थित एल्फ्रेड के बार में पहुंचे ।
वह एक घटिया-सा बार था जहां अधिकतर हार्बर पर ठहरे जहाजों के मल्लाह आते थे ।
जग्गी का वहां नामोनिशान नहीं था ।
“जग्गी के इतने जल्दी यहां पहुंचने की सम्भावना भी नहीं है ।” - सुनील बोला - “मेरी गोली निश्चय ही उसके जिस्म में कहीं टकराई है । घाव गम्भीर हो सकता है और मामूली भी । क्या पता इस समय वह किसी हस्पताल में पड़ा अपने जिस्म से गोली निकलवा रहा हो ।”
“फिर तो पता नहीं वह यहां कब आये ! पता नहीं आयेगा भी या नहीं ।” - रामसिंह बोला ।
“देखो रामसिंह, वह ऐसा आदमी है जिसका अगर किसी को हुलिया बयान कर दिया जाये तो वह बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है । तुम यहां पुलिस का कोई आदमी स्थायी रूप से क्यों नहीं तैनात कर देते जो जब भी जग्गी यहां कदम रखे, वह उसे गिरफ्तार कर ले ?”
“ईजी । मैं तुरन्त ऐसा कर देता हूं । मैं राजनगर के तमाम सरकारी और गैरसरकारी हस्पतालों और प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों को सूचना भिजवाता हूं कि अगर कोई गोली से घायल मरीज उनके पास आये तो वे तुरन्त पुलिस को सूचना दें ।”
“वैरी गुड । फिर तो जग्गी अधिक देर छुपा नहीं रह सकेगा ।”
“आओ चलें ।”
दोनों द्वार से बाहर निकल आये ।
“अब तुम कहां जाओगे ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“तुम कहां जाओगे ?” - सुनील बोला ।
“मैं तो वापस लिटन रोड आऊंगा । देखूंगा तफ्तीश कहां तक पहुंची है ।”
“वैरी गुड । वहां तो मुझे जाना ही है क्योंकि वहां आठ नम्बर इमारत के सामने मेरी मोटरसाइकिल खड़ी है ।”
दोनों जीप में सवार हुए । जीप लिटन रोड की ओर उड़ चली ।
***
सुनील अपने फ्लैट पर पहुंचा ।
देशपाण्डे फ्लैट में नहीं था ।
सुनील ने टेलीविजन आन कर दिया और उससे दूर हटकर एक कुर्सी पर बैठ गया । उसने एक सिगरेट सुलगाया और घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
सवा सात बजने वाले थे ।
टेलीविजन की स्क्रीन पर ये शब्द उभरे -
सोमवार की डाक
फिर शब्द गायब हो गये और स्क्रीन पर मुक्ता श्रीवास्तव और किरण जी की सूरतें उभरीं । मुक्ता श्रीवास्तव अपनी गोदी में ढेर सारे पत्र लेकर बैठी हुई थी ।
“किरण जी” - मुक्ता श्रीवास्तव बोली - “आज अधिकतर पत्रों में एक ही सवाल पूछा गया है कि कल, अर्थात् रविवार को, पूर्व घोषण के अनुसार फिल्म ‘बाम्बे टाकी’ क्यों नहीं दिखाई गई और उसके स्थान पर हिन्दी में डब की गई रूसी फिल्म ‘बहादुर बच्चा’ क्यों दिखाई गई ?”
“मुक्ता जी” - स्क्रील पर केवल किरण का मुस्कराता हुआ चेहरा प्रकट हुआ - “सच पूछिये तो नगर की जनता के एक वर्ग के तीव्र विरोध की वजह से ही हमें रविवार को ‘बाम्बे टाकी’ टेलीवाइज करने का ख्याल छोड़ना पड़ा । शनिवार को कल के कार्यक्रमों की रूपरेखा नामक प्रोग्राम में जब अगले दिन ‘बाम्बे टाकी’ दिखाई जाने की घोषणा की गई थी तो साथ में ट्रेलर के रूप में फिल्म के कुछ दृश्य दिखाये गये थे जिनमें शशिकपूर जेनिफर को अपने आलिंगन में लिए उसका चुम्बन लेता दिखाया गया था । ये दृश्य हमारे कुछ दर्शकों को इस हद तक आपत्तिजनक लगे कि शनिवार को उस समय से ही हमारे स्टूडियो में टेलीफोन पर टेलीफोन आने लगे कि हम ऐसे गन्दे दृश्य स्क्रीन पर क्यों दिखा रहे हैं । उस तीव्र और अप्रत्याशित विरोध का परिणाम यह हुआ कि हमें रविवार को टेलीविजन पर ‘बाम्बे टाकी’ दिखाने का इरादा छोड़ना पड़ा और उसकी जगह रूसी फिल्म ‘बहादुर बच्चा’ दिखानी पड़ी । लेकिन माननीय दर्शकों से हमारा अभी भी यही नम्र निवेदन है कि जो कथित आपत्तिजनक दृश्य उन्होंने शनिवार को सन्दर्भ से एकदम हटकर देखे, अगर वही दृश्य वे रविवार को फिल्म के दौरान सन्दर्भ में देखते तो शायद वे दृश्य उन्हें इतने आपत्तिजनक नहीं लगते । शनिवार को फिल्म का वह चुम्बन दृश्य दिखाते समय हम लोगों ने यह नहीं सोचा था कि उसकी इतनी तीव्र प्रतिक्रिया होगी वर्ना हम फिल्म का वह दृश्य या तो दिखाते ही नहीं या फिर कोई अन्य निर्दोष-सा दृश्य उसके स्थान पर दिखा देते । बहरहाल हमारे दर्शक टेलीविजन पर ‘बाम्बे टाकी’ नहीं देख सके उस का हमें अफसोस है, साथ ही विश्वास है कि रूसी फिल्म ‘बहादुर बच्चे’ ने भी उनका भरपूर मनोरंजन किया होगा ।”
“अच्छा किरण जी” - इस बार मुक्ता श्रीवास्तव और किरणजी दोनों स्क्रीन पर दिखाई दिये - “यह अगला पत्र है...”
लेकिन अब सुनील के कान टेलीविजन की ओर नहीं थे । उसके कानों में घन्टियां-सी बजने लगी थी । रह-रहकर उसके कानों में एक ही वाक्य गूंज रहा था -
“हमें रविवार को टेलीविजन पर ‘बाम्बे टाकी’ दिखाने का इरादा छोड़ना पड़ा और उसकी जगह रूसी फिल्म ‘बहादुर बच्चा’ दिखानी पड़ी ।”
लेकिन देशपाण्डे तो कहता था उसने कल टेलीविजन पर ‘बाम्बे टाकी’ देखी थी !
हे भगवान् ! यह क्या माजरा था ?
निश्चय ही कल शाम को फिल्म के समय देशपाण्डे फ्लैट में नहीं था वर्ना उसे मालूम होता कि टेलीविजन पर ‘बाम्बे टाकी’ की जगह ‘बहादुर बच्चा’ दिखाई गई थी । लेकिन वह तो बाकायदा शशिकपूर और जेनिफर की तारीफ कर रहा था और फिल्म के हाट सीन्स का भी जिक्र कर रहा था ।
देशपाण्डे निश्चय ही झूठ बोल रहा था । वह कल शाम फ्लैट में था ही नहीं ।
सुनील ने सिगरेट ऐश-ट्रे में झोंक दिया और उठकर टेलीविजन बन्द कर दिया । उसने दिल्ली की डायरेक्ट्री निकाली ।
डायरेक्ट्री में देशपाण्डे की एस प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी के नाम की एन्ट्री थी । उसमें डायरेक्टर के तौर पर देशपाण्डे का नाम भी लिखा हुआ था ।
सुनील ने रामसिंह की कोठी पर फोन किया ।
मालूम हुआ वह अभी पुलिस हैडक्वार्टर में ही था ।
सुनील ने पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया ।
रामसिंह से उसका तुरन्त सम्पर्क स्थापित हो गया ।
“रामसिंह, मैं सुनील बोल रहा हूं ।” - सुनील बोला - “एक एमरजेन्सी आ गई है । मैं आधे घण्टे में वहां पहुंच रहा हूं । तुम जाना नहीं ।”
“नहीं जाऊंगा ।” - रामसिंह बोला - “यहां तुम्हारी जरूरत भी है । मारिया की लाश की बरामदगी के सन्दर्भ में तुमने अपनी स्टेटमैंट साइन करनी है ।”
“मैं आधे घण्टे में पहुंचता हूं ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
पिछली रात जानीवाकर की जो बोतल मेज पर पड़ी थी, सुनील ने सुबह उसे उठाकर रेफ्रिजरेटर में रख दिया था । उसने बड़ी सावधानी से वह बोतल निकाली, उसे एक कपड़े में लपेटा और बोतल एक बैग में रख ली ।
वह बैग लेकर फ्लैट से बाहर निकल आया ।
अपनी साढे सात हार्स पावर की शक्तिशाली मोटरसाइकिल पर वह सीधा धर्मपुर पहुंचा ।
सौभाग्यवश रणधीर अपने घर में मौजूद था ।
“तुम फिर आ गये !” - रणधीर उसे देखते ही बोला ।
“नाराज मत होवो, बड़े भाई” - सुनील नम्र स्वर में बोला - “मैं तुम्हें मामूली तकलीफ देने आया हूं ।”
“क्या ?”
“अपने सोफे की मरम्मत करवा ली तुमने ?”
“अभी नहीं ।”
“वैरी गुड । जरा भीतर आने दो ।”
रणधीर एक ओर हट गया ।
“अगर एतराज न हो तो मैं सोफे में से गोली निकाल लूं ?” - सुनील बोला ।
“मुझे क्या एतराज होगा ? मैंने क्या गोली का अचार डालना है !” - रणधीर बोला - “लेकिन तुम्हें गोली की क्या जरूरत पड़ गई ?”
“जरूरत मुझे नहीं, मेरे साथी देशपाण्डे को पड़ गई है । वह डर रहा है कि कहीं इस गोली की वजह से तुम उसे किसी चक्कर में न फंसा दो ।”
“यहां तो वह बड़ा सूरमा बनता था ।”
“आजकल के वनस्पति सूरमा ऐसे ही होते हैं ।”
रणधीर चुप रहा ।
सुनील ने एक पतले चाकू की सहायता से सोफे के फ्रेम में से गोली बड़ी सफाई से खोदकर निकाल ली । उसने गोली जेब के हवाले की और उठकर खड़ा हो गया ।
“बहुत-बहुत धन्यवाद !” - वह रणधीर से बोला ।
“ठीक है, ठीक है ।” - चेहरे पर उलझन के भाव लिए रणधीर बोला ।
सुनील नीचे आकर फिर अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो गया ।
वह पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
एक सिपाही उसे रामसिंह के दफ्तर में छोड़ गया ।
“आओ ।” - रामसिंह बोला ।
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“पहले इसे साइन करो ।” - रामसिंह ने दो टाइप किए हुए फुल स्केप कागज उसके सामने रख दिए ।
सुनील ने स्टेटमैंट पढी और फिर उसके अन्त में अपने दस्तखत घसीट दिए ।
“अब एक बुरी खबर सुनो ।” - रामसिंह बोला ।
सुनील ने प्रश्नसूचक नेत्रों से रामसिंह की ओर देखा ।
“गुमानपुरे के पास जो गन्दा नाला बहता है, तुमने देखा है वह ?”
“देखा है ।”
“मेबल की लाश उसमें से बरामद हुई है ।”
“मौत कैसे हुई ?”
“45 कैलिबर की रिवाल्वर की गोली से । हमने मेबल की लाश से निकली गोली का मिलान प्रेमकुमार की लाश से निकली गोली से किया है । दोनों गोलियां 45 कैलिबर की हैं और कम्पैरिजन माइक्रोस्कोप के परिणाम यह जाहिर करते हैं कि दोनों गोलियां एक ही रिवाल्वर से चलाई गई हैं ।”
“इसका मतलब यह हुआ कि प्रेमकुमार और मेबल का हत्यारा एक ही आदमी है ?”
“जाहिर है । ...तुम कैसे आए थे ?”
सुनील ने अपनी जेब से वह गोली निकाली जो उसने रणधीर के सोफे से खोदकर निकाली थी । उसने गोली रामसिंह के सामने रख दी और बोला - “इस गोली को देखो ।”
“देख रहा हूं । यह भी एक 45 कैलिबर की रिवाल्वर से निकली गोली है ।”
“क्या तुम इस गोली का मिलान प्रेमकुमार और मेबल की लाशों से निकली गोलियों से करवा सकते हो ?”
“करवा सकता हूं । तुम यह जानना चाहते हो कि क्या यह गोली भी उसी रिवाल्वर से निकली है जिससे वे दो गोलियां निकली हैं ?”
“हां ।”
“यह गोली कहां से मिली तुम्हें ?”
“सब कुछ बताऊंगा । जरा सब्र करो ।”
“बेहतर ।”
सुनील ने सावधानी से बैग में से जानीवाकर की बोतल भी निकाली ।
“जानीवाकर !” - रामसिंह बोला - “लेकिन मैं ड्यूटी पर शराब नहीं पीता ।”
“अरे शराब पीने को कौन कह रहा है तुम्हें ।”
“तो फिर ?”
“इस बोतल पर मेरे और एक अन्य आदमी की उंगलियों के निशान हैं । बोतल पर से उस आदमी की उंगलियों के निशान उठवाओ और अपने यहां मौजूद रिकार्ड से मिलाकर देखो कि क्या वह आदमी कोई मशहूर हस्ती है ?”
“लेकिन किस्सा क्या है ?”
“किस्सा तब बताऊंगा, जब मुझे कोई नतीजा निकलता दिखाई देगा ।”
“खामख्वाह मेरी और मेरे आदमियों की परेड तो नहीं करवा रहे हो ?”
“नहीं । बाई गाड, नहीं । और मैं तो खुदा का बड़ा शुक्रगुजार हूं कि कमिश्नर साहब ने इन्स्पैक्टर प्रभूदयाल को हटाकर इस केस पर सीधे तुम्हारी नियुक्ति की है वर्ना ये सब सुविधायें तो मुझे हासिल होती नहीं उलटा मैं अभी तक ‘फरदर क्वेश्चनिंग’ के लिए पुलिस की हिरासत में होता ।”
रामसिंह ने घन्टी बजाई ।
एक सिपाही भीतर प्रविष्ट हुआ ।
“कौल साहब को बुलाओ ।” - रामसिंह बोला ।
सिपाही चला गया ।
“कौल साहब हमारे टैक्नीशियन हैं” - रामसिंह ने सुनील को बताया - “इत्तफाक से अज अभी तक हैडक्वार्टर पर मौजूद हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
एक लगभग पैंतालीस साल का आदमी भीतर प्रविष्ट हुआ । रामसिंह ने उसे रिवाल्वर की गोली और जानीवाकर की बोतल सौंप दी और उसे बता दिया कि उसे क्या करना था ।
“इनकी उंगलियों के निशान ले लो ।” - रामसिंह सुनील की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“क्यों ?” - सुनील हड़बड़ाकर बोला ।
“अरे, अपनी उंगलियों के निशान नहीं दोगे तो कौल साहब को पता कैसे लगेगा कि बोतल पर तुम्हारी उंगलियों के निशान कौन से हैं और उस आदमी की उंगलियों के निशान कौन से हैं जिसका तुम रिकार्ड चैक करवाना चाहते हो ।”
“ओह !” - सुनील बोला ।
कौल ने सुनील की दस की दस उंगलियों के निशान उतार लिये ।
“कितना वक्त लग जायेगा, कौल साहब ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“गोली का मिलान करने में और बोतल से फिंगर प्रिंट उतारने में तो ज्यादा टाइम नहीं लगेगा, सर” - कौल आदरपूर्ण स्वर में बोला - “लेकिन फिंगर प्रिंट्स का रिकार्ड से मिलान करने में तो बहुत टाइम लग सकता है । काम दस मिनट में भी हो सकता है और यह भी मुमकिन है कि दस घन्टे में भी न हो ।”
“ठीक है, आप अपना काम कीजिए ।”
कौल चला गया ।
“क्या इरादा है ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“तुम्हारा क्या इरादा है ?” - सुनील बोला ।
“मैंने दस बजे तक यहां बैठना है ।”
“ठीक है, दस बजे तक मैं भी बैठता हूं ।”
रामसिंह ने अपने कोट की ऊपर जेब से एक नया सिगार निकाला, दांतों से उसका कोना काटा और सिगार सुलगा लिया ।
सुनील ने भी अपना लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाल लिया ।
लगभग आधे घन्टे बाद कौल वापस आया । सुनील की लाई गोली वह अपने साथ लाया था ।
“यह गोली” - वह गोली रामसिंह के सामने मेज पर रखता हुआ बोला - “उसी रिवाल्वर से चलाई गई है जिससे वे दो गोलियां चलाई गई हैं जिनसे प्रेमकुमार और मेबल का खून हुआ है ।”
“वैरी गुड ।” - रामसिंह बोला - “फिंगर प्रिंट्स की क्या प्रोग्रैस है ?”
“मिलान जारी है, साहब । कोई नतीजा हासिल होते ही मैं आपको फौरन सूचित करूंगा ।”
“ठीक है ।”
कौल चला गया ।
“यह गोली तुम रख लो । सबूत के तौर पर काम आयेगी ।” - सुनील बोला ।
उसी क्षण टेलीफोन की घन्टी बज उठी ।
रामसिंह ने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया ।
“रामसिंह ।” - वह माउथपीस में बोला ।
दूसरी ओर से कुछ कहा गया जिसकी प्रतिक्रिया के रूप में रामसिंह की भृकुटि तन गई ।
वह कुछ देर और टेलीफोन सुनता रहा और फिर बोला - “मैं फौरन आ रहा हूं ।”
उसने टेलीफोन का रिसीवर क्रेडिल पर पटका, गोली को दराज में डाला और उठकर खड़ा हो गया ।
“क्या हुआ ?” - सुनील उत्सुक स्वर में बोला ।
“जग्गी एल्फ्रेड के बार में आया था ।” - रामसिंह अपनी टोपी अपने सिर पर जमाता हुआ बोला - “तुम्हारी गोली उसकी बाईं बांह में लगी थी । उसकी बांह पर पट्टी बंधी हुई थी और बांह स्लिंग में लटकी हुई थी । बार में उसकी निगरानी के लिए जो पुलिस के आदमी तैनात थे, उन्होंने जग्गी को फौरन पहचान लिया था । उन्होंने जग्गी को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी लेकिन जग्गी ने बड़े अप्रत्याशित ढंग से रिवाल्वर निकाल ली थी । दोनों ओर से फायरिंग हुई । नतीजा यह हुआ कि हमारा एक आदमी बुरी तरह घायल हो गया और जग्गी दूसरी दुनिया में पहुंच गया है ।”
“यह कब की बात है ?” - सुनील ने पूछा ।
“कुछ देर पहले की । मेरे आदमी ने बार में से ही फोन किया है । मुझे फौरन वहां पहुंचना है ।”
“मुझे भी साथ ले चलो ।”
रामसिंह एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “चलो ।”
सुनील ने सिगरेट ऐश-ट्रे में झोंक दिया और रामसिंह के साथ हो लिया ।
***
उस रात सुनील वापस अपने फ्लैट पर नहीं गया । एल्फ्रेड के बार से वह सीधा ‘ब्लास्ट’ के आफिस में गया । वहां से यूथ क्लब चला गया । रात को वह वहीं रहा ।
पिछली रात एल्फ्रेड के बार में रामसिंह और सुनील के पहुंचने से पहले ही जग्गी मर चुका था लेकिन मरने से पहले उसने जो बयान दिया था उससे यह स्पष्ट हो जाता था कि वह मारिया के फ्लैट पर क्यों गया था ।
जग्गी मारिया से मुहब्बत करता था । प्रेमकुमार की मौत के बाद उसे ऐसा लगा कि कोई उन लोगों की जान के पीछे पड़ा हुआ है जिनका लाला मंगत राम को ब्लैकमेल करने में हाथ था । उसे लगा कि न उसकी जान सुरक्षित थी और न तीनों लड़कियों की लेकिन उसकी दिलचस्पी सिर्फ मारिया में थी इसलिए कल वह उसके फ्लैट पर उसे लेने आया था, ताकि वह वक्ती तौर पर उसके साथ कहीं खिसक जाए लेकिन वहां उसका सामना सुनील से हो गया । बाथरूम का खुला दरवाजा फ्लैट के मुख्य द्वार से दिख रहा था । वहां उसे मारिया की लाश पड़ी दिखाई दी । उसने समझा कि सुनील ने मारिया की हत्या कर दी है । उसी क्षण सुनील ने रिवाल्वर निकाल ली । उसने भी रिवाल्वर निकाल ली । गन फाइट शुरू हो गई जिसके परिणामस्वरूप उसकी बांह में गोली लग गई और वह वहां से भाग निकला ।
दूसरी महत्त्वूपर्ण बात उसने यह बताई कि ब्लैकमेलिंग वाली कुछ गन्दी तस्वीर मेबल के पास भी थीं जो कि उसने प्रेमकुमार के अनुरोध पर अपने होटल के कमरे में कहीं छुपाई हुई थी लेकिन लाश बरामद होने के बाद जब पुलिस ने उसके होटल के कमरे की तलाशी ली थी तो पुलिस को वे तस्वीरें वहां नहीं मिली थीं । और न ही वे तस्वीरें सुनील को उसके कमरे में तब कहीं दिखाई दी थीं जब रात को उसने उसके कमरे की तलाशी ली थी ।
अगले दिन नौ बजे के करीब सुनील पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
रामसिंह वहां पहले से ही पहुंचा हुआ था ।
उसने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा और तनिक हैरानी-भरे स्वर में बोला - “जानीवाकर की बोतल पर किस आदमी की उंगलियों के निशान थे ?”
“कुछ पता चला ?” - सुनील ने आशापूर्ण स्वर में पूछा ।
“कौल ने अभी-अभी यह रिपोर्ट दी है ।” - रामसिंह ने एक टाइप किया हुआ कागज उसके सामने कर दिया ।
सुनील ने कागज ले लिया । जो कुछ उस पर लिखा था, उसका सारांश यह था:
जगतप्रतापसिंह उर्फ छगन उर्फ बिहारलील उर्फ शान्ताराम उर्फ बाल जोगलेकर । उम्र चालीस साल । कद पांच फुट साढे नौ इंच । लम्बा-चौड़ा भारी-भरकम शरीर । रंग गेहुआं । चेहरे पर चेचक के गहरे दाग । जबड़े मजबूत । आंखें तीखी । पुतलियों का रंग स्याह काला । कनपटी पर बालों में छुपा चोट का निशान । दाई जांघ पर चाकू के गहरे घाव का निशान । आखिरी बार पूना में देखा गया । पांच बार गिरफ्तार हुआ । दो बार बरी हुआ, तीन बार सजा हुई । बम्बई, अहमदाबाद और इलाहाबाद की जेलों में कुल पांच साल सात महीने की सजा भुगत चुका है । पहली बार सन् 1958 में बम्बई में एक रईस विधवा के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार हुआ लेकिन लम्बी मुकदमेबाजी के बाद पर्याप्त सबूतरें के अभाव में सन्देह लाभ पाकर बरी हो गया । सन् 1960 में सोने की स्मगलिंग के इल्जाम में गोवा में गिरफ्तार हुआ । दो साल की सजा हुई । सन् 1963 में अहमदाबाद में प्रोपर्टी डीलर बन गया और पहले से ही बिकी हुई जमीन को बोगस रजिस्ट्रियों के दम पर दोबारा-तिबारा बेचने के इल्जाम में गिरफ्तार हुआ । दस महीने की सजा हुई । सन् 66 में हैदराबाद में एक कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार हुआ लेकिन अदालत में कुछ गवाहों के मुकर जाने की वजह से बरी हो गया । उसी साल के अन्त में इलाहाबाद में एक चिटफंड कम्पनी के फ्राड के केस में गिरफ्तार हुआ । वह उस कम्पनी का डायरेक्टर था । अपनी चिटफंड कम्पनी के एक मेम्बर से - जिसने कि बाद में पुलिस में रिपोर्ट लिखाई - मारपीट के इल्जाम में और धोखाधड़ी के इल्जाम में गिरफ्तार हुआ । दोनों इल्जामों के लिए उसे तीन साल की सजा हुई । दो दिसम्बर, 1969 को इलाहाबाद की नैनी जेल से छूटा ।
नीचे हाथ से एक लाइन लिखी हुई थी:
आजकल वह लापता है ।
सुनील ने रिपोर्ट रामसिंह के सामने उछाल दी और बोला - “आजकल वह दिल्ली में एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी चला रहा है । बड़ा सम्मानित व्यक्ति बन गया है । लाला मंगत राम जैसे समाज के आधारस्तम्भ उसके कलायन्ट हैं और आजकल वह इस नाचीज के गरीबखाने की रौनक बना हुआ है ।”
“यानी कि देशपाण्डे ?” - रामसिंह हैरानी से बोला ।
“हां ।”
“कल जो रिवाल्वर की गोली लाये थे तुम, उसका क्या किस्सा है ?”
“वह गोली देशपाण्डे की रिवाल्वर से निकली थी । मैंने तुम्हें बताया तो था, वह मेरे साथ रणधीर के यहां गया था और रणधीर को धमकाने के लिए उसने उसके सोफे में एक गोली दाग दी थी ।”
“यह वही गोली थी ?”
“हां । इसीलिये मैंने कल तुम्हें कहा था कि गोली सम्भालकर रख लो । सबूत के तौर पर काम आयेगी ।”
“वह अभी भी तुम्हारे फ्लैट पर है ?”
“होना तो चाहिये ।”
“चलो !” - रामसिंह चल उठा ।
“बिल्कुल चलो ।” - सुनील बोला - “अपने दल-बल के साथ चलो । साथ में हथकड़ियों का जोड़ा ले चलना न भूल जाना ।”
रामसिंह ने मेज पर रखी घंटी बजाई ।
***
सुनील रामसिंह के साथ अपने फ्लैट में प्रविष्ट हुआ ।
देशपाण्डे बाथरूम में था ।
सुनील रामसिंह को ड्राइंगरूम में ही छोड़कर बैडरूम में प्रविष्ट हुआ ।
“कौन है ?” - बाथरूम में से देशपाण्डे की आवाज आई ।
“मैं हूं सुनील ।” - सुनील बोला ।
“रात को कहां थे ?”
“दफ्तर में फंस गया था । एक एमरजेन्सी आ गई थी । अखबार की नौकरी में ऐसे दिन अक्सर आ जाते हैं जब सारी-सारी रात सोना नसीब नहीं होता ।”
“मैं अभी निकलता हूं ।”
“जब मर्जी निकलना । क्या जल्दी है ?”
सुनील ने देखा, देशपाण्डे के कपड़े पलंग पर पड़े थे । कपड़ों के ऊपर उसका शोल्डर होल्स्टर पड़ा था जिसमें उसकी 45 कैलिबर की रिवाल्वर मौजूद थी ।
सुनील ने आगे बढकर शोल्डर होल्स्टर से रिवाल्वर खींच ली । उसने रिवाल्वर का चैम्बर खोला और उसमें से गोलियां निकालकर अपनी जेब में डाल लीं । खाली रिवाल्वर उसने वापस शोल्डर होल्स्टर में पूर्ववत् रख दी ।
सुनील पलंग से परे हटकर एक कुर्सी पर बैठ गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
कुछ क्षण बाद कमर के गिर्द तौलिया लपेटे देशपाण्डे बाथरूम से बाहर निकला ।
“हल्लो ।” - वह बोला ।
“हल्लो ।” - सुनील बोला ।
“क्या प्रोग्रैस है ?”
“प्रोग्रैस ही प्रोग्रैस है ।”
“क्या मतलब ?”
“खेल खत्म हो गया है, दोस्त !”
देशपाण्डे के नेत्र सिकुड़ गये ।
“क्या मतलब ?” - वह फिर बोला ।
“बाम्बे टाकी वाकई बहुत अच्छी फिल्म थी !” - सुनील बोला ।
“हां । मैंने पहले ही कहा था ।”
“और उसमें शशिकपूर तो हिन्दुस्तानी एक्टर ही नहीं लगता था और उसकी बीवी जेनिफर का भी शानदार काम था और फिल्म में दोनों ही हॉट सीन भी थे । है न ?”
“हां, लेकिन तुम यह सबकुछ दोहरा क्यों रहे हो ?”
“क्योंकि तुमने बाम्बे टाकी नहीं देखी ।”
देशपाण्डे का अपनी पतलून की ओर बढता हुआ हाथ रुक गया ।
“क्या अनाप-शनाप बातें कर रहे हो, यार ?” - वह बोला ।
“तुमने ‘बाम्बे टाकी’ नहीं देखी, देशपाण्डे, क्योंकि रविवार शाम को टेलीविजन पर ‘बाम्बे टाकी’ दिखाई ही नहीं गई । रविवार को टेलीविजन पर ‘बहादुर बच्चा’ नाम की रूसी फिल्म दिखाई गई थी । अगर तुम रविवार शाम को यहां टेलीविजन के सामने मौजूद होते तो यह बात तुम्हें मालूम होती । तुम तो वास्तव में मेरे पीछे-पीछे ही फ्लैट से बाहर निकल आये थे और झेरी पहुंच गये थे । झेरी में तुमने प्रेमकुमार को शूट किया था और उसकी जेब से गन्दी तस्वीरें निकाली थीं । प्रेमकुमार की हत्या करके तुम सीधे यहां पहुंचे । तुमने टेलीविजन आन किया, हालांकि उस पर प्रोग्राम खत्म हो चुके थे, जानीवाकर की एक बोतल खोली, जल्दी-जल्दी उसके चार-पांच पैग चढाये और सोफे पर ढेर हो गये । तुमने ऐसी स्टेज सैट की जिससे यह लगे कि सारी शाम तुमने फ्लैट में गुजारी थी । फिर नशे के आधिक्य में पता नहीं कब तुम्हें नींद आ गई । ऐसी घनघोर नींद कि तुम्हें टेलीविजन बन्द करने तक की सुध नहीं रही । तुमने जानबूझकर दरवाजा खुला छोड़ा था कि मैं तुम्हें उसी हालत में पाऊं । और देशपाण्डे, टेलीविजन बन्द करते समय मैंने उसकी केबिनेट को हाथ लगाया था । टेलीविजन उस समय उतना गर्म नहीं था जितना उसे उस सूरत में होना चाहिये था अगर वह तीन-साढे तीन घंटे चलता रहा होता ।”
“तुम जासूसी नावल ज्यादा तो नहीं पढते हो ?”
“बात को मजाक में उड़ाने का कोई फायदा नहीं, देशपाण्डे । मैं तुम्हारा खेल समझ गया हूं । वास्तव में निशा की हत्या के बाद भी लाला मंगत राम की चिन्ता नहीं मिटी थी क्योंकि उसे डर था कि कहीं निशा की सेफ से निकली गंदी तस्वीरों के अलावा उन तीन लड़कियों में से भी किसी के पास गंदी तस्वीरें न हों । जब तक ऐसी एक भी तस्वीर का अस्तित्व बाकी था, लाला मुसीबत में था । इसीलिए उसने तुम्हें बुलाया । तुमने उन तीनों लड़कियों को तलाश करने की कोशिश की लेकिन तुम कामयाब न हो सके क्योंकि एक तो तुम्हें लड़कियों के चेहरों की तस्वीरें बनवाने का ख्याल नहीं आया जैसा कि मैंने किया था और दूसरे तुम उन लड़कियों के असली नाम नहीं जानते थे । तुमने सारी पूछताछ सोना, नैन्सी और कंचन के नामों की की जबकि इन नामों की वैसी लड़कियों का कोई अस्तित्व ही नहीं था । तब किसी ने लाला को मेरा नाम सुझाया । तुमने और लाला ने यही फैसला किया कि मुझे लड़कियों की तलाश करने का काम सौंपा जाये, और तुम इस इरादे से मेरे साथ लगे रहे हो कि जिसे-जिसे मैं तलाश करता जाऊं, तुम उसे कत्ल करते जाओ ।”
सुनील एक क्षण रुका और फिर बोला - “रणधीर के घर में तुमने जो गर्मी दिखाई उसकी वजह से मैंने तुम्हें अपने साथ रखने का ख्याल छोड़ दिया और तुम्हारे खतरनाक व्यवहार की लाला से शिकायत भी की । जबकि हकीकत यह थी कि तुम तो मेरे साथ रहना ही नहीं चाहते थे । तुमने रणधीर के घर में उस पर गोली चलाकर अपनी गर्मजोशी का जो ड्रामा किया था, उसका मतलब ही यह था कि मैं तुमसे परहेज करने लगूं । क्योंकि मेरे साथ-साथ लगे रहने से तुम्हें अपने शिकारों को कत्ल करने में मुश्किल होती । मैं तुम्हें बताकर गया था कि प्रेमकुमार झेरी के काटेज नम्बर सात में छुपा हुआ है । इसीलिए तुम हमारे पीछे-पीछे वहां पहुंचकर उसे कत्ल कर आये । और मेरे से पहले यहां पहुंच गये । मेबल का पता रणधीर ने तुम्हारे सामने बताया ही था । तुम किसी प्रकार मेबल को होटल से बाहर निकालने में कामयाब हो गये या तुमने उसे घेरा ही कहीं होटल से बाहर होगा । तुमने उसे अपनी गोली का निशाना बनाया और उसकी लाश गुमानपुरे के गंदे नाले में फेंक दी । तस्वीरें शायद उसके पर्स में ही थीं क्योंकि परसों रात मैंने बड़ी बारीकी से उसके कमरे की तलाशी ली थी । तब तस्वीरें वहां नहीं थीं । झेरी रवाना होने से पहले मैंने तुम्हें यह भी बताया था कि स्टार होटल से मुझे मारिया नाम की दूसरी लड़की का पता लगा है जो पैरामाउन्ट क्लब में डांसर है । अगली सुबह मारिया का पता पूछने तुम मुझसे पहले ही पैरामाउन्ट क्लब पहुंच गये । पैरामाउन्ट क्लब के जिस वेटर को पांच रुपये देकर मैंने मारिया का पता पूछा था, मैंने लौटते समय उसे अपने एक साथी को बताते सुना था कि सुबह भी एक आदमी आया था जो जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में पांच रुपये ठूंसकर उससे मारिया का पता पूछ गया था । वह आदमी निश्चय ही तुम थे । तुम मेरे से पहले ही लिटन रोड की आठ नम्बर इमारत में पहुंच गये और वहां तुमने मारिया की हत्या कर दी । वह एक भरी-पूरी इमारत थी जिसमें कई परिवार रहते थे । वहां गोली की आवाज अगल-बगल में बड़ी आसानी से सुनी जा सकती थी इसीलिए तुमने चाकू से मारिया की हत्या की । बाद में तुमने मारिया के फ्लैट की तलाशी भी ली । यह मैं नहीं जानता कि मारिया के पास भी गंदी तस्वीरें थीं और उन्हें तुम छुपा लाये थे या उसके पास तस्वीरें थीं ही नहीं ।”
“आगे ?” - देशपाण्डे उपहासपूर्ण स्वर में बोला ।
“मारिया या मेबल में से ही किसी एक से तुमने तीसरी लड़की कंचन उर्फ माला का पता पूछा । और फिर तुमने गला घोंटकर उसकी भी हत्या कर दी और उसकी लाश समुन्दर में फेंक दी । इस प्रकार तुमने बारी-बारी उन सब लोगों का कत्ल कर दिया जो लाला मंगत राम को ब्लैकमेल करने की स्कीम में शामिल थे । यानी कि प्रेमकुमार, मेबल, मारिया और माला सब बारी-बारी तुम्हारे शिकार बन गये ।”
“तुमने निशा का नाम नहीं लिया ? वह भी तो ब्लैकमेलिंग की स्कीम का एक पुर्जा थी ।”
“मेरे ख्याल से निशा की हत्या तुमने नहीं की क्योंकि उसकी हत्या 36 कैलिबर की रिवाल्वर से निकली गोली से हुई थी जबकि तुम्हारे पास 45 कैलिबर की रिवाल्वर है ।”
“यह रिवाल्वर ?” - देशपाण्डे ने अपने कपड़ों के ऊपर पड़े शोल्डर होल्स्टर में से अपनी रिवाल्वर खींच ली - “हां, यह 45 कैलिबर की है ।”
“तुम्हारी जानकारी के लिए जो गोली तुमने रणधीर के फ्लैट में उसके सोफे पर चलाई थी, वह मैंने कल शाम निकाल ली थी और उसे पुलिस को सौंप दिया था । पुलिस ने कम्पैरिजन माइक्रोस्कोप से उस गोली का मिलान बारी-बारी उन दो गोलियों से किया था जो प्रेमकुमार और मेबल के जिस्मों में से निकली थीं । वे दोनों हत्यारी गोलियां तुम्हारी रिवाल्वर से निकली गोली से हूबहू मिलती थीं । देशपाण्डे, यह अकेला सबूत ही तुम्हें हत्यारा साबित करने के लिए काफी है ।”
“इससे तो कुछ भी साबित नहीं होता ।” - देशपाण्डे मुस्कराकर बोला - “मैं अभी यह रिवाल्वर समुन्दर में फेंक आऊंगा और पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दूंगा कि मेरी रिवाल्वर चोरी चली गई है । पुलिस गोलियों से यही तो सिद्ध कर सकती है कि वे मेरी रिवाल्वर से निकली हैं, वह यह तो सिद्ध नहीं कर सकती कि वह रिवाल्वर मैंने चलाई थी । मुझे किसी ने किसी का खून करते नहीं देखा ।”
“पैरामाउन्ट क्लब का वेटर तुम्हें पहचान लेगा ।”
“उससे क्या होता है ? मैंने उससे मारिया का पता पूछा था । मारिया पैरामाउन्ट क्लब की डांसर थी और ढकी-छुपी वेश्या थी । पेशेवर लड़कियों में दिलचस्पी लेने वाले ऐसी लड़कियों का पता पूछते ही रहते हैं ।”
“तुमने ‘बाम्बे टाकी’ के बारे में झूठ बोला था ।”
देशपाण्डे ने एक जोर का अट्टहास किया और बोला - “उससे तुम क्या साबित कर सकते हो ? सिर्फ यह कि परसों रात को यहां नहीं था । अच्छी बात है साहब, मैं नहीं था यहां । इससे यह कैसे सिद्ध हो गया कि मैं यहां नहीं था तो झेरी में था ? खूबसूरत लड़कियों का शौकीन हूं । सौ रुपये में मैंने एक लड़की से दो-ढाई घंटे के मनोरंजन का सौदा किया था । मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें मालूम हो कि मैं ऐसे किसी कुकर्म के लिए तुम्हारी गैरहाजिरी में फ्लैट से बाहर गया था । इसलिए मैंने झूठ बोल दिया कि मैं यहां बैठा ‘बाम्बे टाकी’ देख रहा था । अब मुझे क्या मालूम था कि ऐन वक्त पर ‘बाम्बे टाकी’ का प्रोग्राम कैंसिल हो गया था और उसकी जगह कोई दूसरी फिल्म दिखाई गई थी । मुझे यह मालूम होता कि इतनी मामूली-सी बात से मेरा झूठ पकड़ा जायेगा तो मैं कोई और बहाना सोचकर रखता ।”
“रिवाल्वर चोरी चली जाने की झूठी रिपोर्ट लिखाने पुलिस के पास जाने की कोशिश मत करना, देशपाण्डे ।” - सुनील ने चेतावनी दी ।
“क्यों ?” - देशपाण्डे के माथे पर बल पड़ गये ।
“क्योंकि पुलिस को तुम्हारा सारा कच्चा चिट्ठा मालूम हो चुका है । पुलिस जानती है कि देशपाण्डे के अलावा तुम और क्या कुछ हो । जैसे जगप्रतापसिंह, छगन, बिहारी लाल, शान्ताराम, बाल जोगलेकर ।”
देशपाण्डे बुरी तरह चौंका ।
“पुलिस तुम्हारे 1958 से लेकर 1966 तक किये एक-एक अपराध का इतिहास जानती है, मिस्टर । पुलिस को केवल यह नहीं मालूम था कि दो दिसम्बर 1969 को इलाहाबाद की नैनी जेल से छूटने के बाद तुम कहां गायब हो गये थे । लेकिन अब उन्हें यह भी मालूम है । पुलिस जान गई है कि कुल जमा पांच-सात महीने की सजा काटा हुआ मुजरिम अब दिल्ली की इस प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी का डायरेक्टर बना हुआ है ।”
“इतना सब कुछ पुलिस कैसे जान गई ?”
“कल रात मैंने तुम्हारी उंगलियों के निशान पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा दिये थे । याद करो वह जानीवाकर की बोतल जिसमें से तुम परसों रात शराब पी रहे थे । वह बोतल अब पुलिस हैडक्वार्टर पहुंच चुकी है ।”
देशपाण्डे ने रिवाल्वर वाला हाथ उठाया और रिवाल्वर सुनील की ओर तान दी ।
“लाला सच कहता था ।” - वह विष भरे स्वर में बोला - “तुम वाकई बहुत काबिल आदमी हो । लेकिन साथ ही बहुत खतरनाक भी । मौजूदा हालात में मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ सकता । भगवान् को याद कर लो सुनील ।”
“भगवान् को तुम भी याद कर लो देशपाण्डे ।” - सुनील शांति से बोला ।
देशपाण्डे ने जोर का अट्टहास किया । रिवाल्वर के घोड़े पर उसकी उंगली कस गई ।
“रिवाल्वर खाली है ।” - सुनील बोला - “जब तुम बाथरूम में थे तो मैंने इसकी सारी गोलियां निकाल ली थीं ।”
देशपाण्डे के होश उड़ गये । उसने कई बार रिवाल्वर का घोड़ा दबाया । रिवाल्वर में खाली चैम्बर घूमने की हल्की-सी आवाज वातावरण में गूंजी और फिर शांति छा गई ।
देशपाण्डे ने गालियां बकते हुए रिवाल्वर सुनील की ओर खींच मारी ।
सुनील ने रिवाल्वर हवा में ही लपक ली ।
देशपाण्डे पागलों की तरह सुनील पर झपटा ।
“अरे, अरे” - सुनील आशंकित स्वर में बोला - “तौलिया खुल जायेगा ।”
उसी क्षण ड्रामे के सबसे महत्त्वपूर्ण पात्र के स्टेज पर कदम रखने के अन्दाज से पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह बैडरूम में प्रविष्ट हुआ । उसके हाथ में रिवाल्वर चमक रही थी ।
“स्टे वेयर यू आर ।” - रामसिंह अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
देशपाण्डे अपने स्थान पर ठिठक गया । उसके व्याकुल नेत्र चारों ओर घूम गये ।
भाग निकलने की कोई सम्भावना नहीं थी ।
रामसिंह की आवाज पर बैडरूम में एक साथ पुलिस के कई आदमी घुस आये ।
“हथकड़ियां डालो ।” - रामसिंह गर्जा ।
तुरन्त देशपाण्डे की कलाइयों में हथकड़ियां भर दी गईं ।
ढेरों वस्त्र पहने कई आदमियों के बीच में हथकड़ियां पहने और केवल तौलिया लपेटे खड़ा देशपाण्डे बड़ा हास्यास्पद लग रहा था ।
***
सुनील लाला मंगत राम के दफ्तर पहुंचा ।
दिन के ग्यारह बजे थे । लाला के सैक्रेट्री के दफ्तर में कई सम्मानित सज्जन बैठे थे जो लाला से मिलने आये थे और बड़ी व्यग्रता से लाला द्वारा बुलाये जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
सुनील सीधा सैक्रेट्री के सामने पहुंचा और अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “मुझे लाला से मिलना है ।”
“आप इन्तजार कीजिये” - सैक्रेट्री बोला, “वे अभी...”
“मैं इन्तजार नहीं कर सकता । या तो फौरन लाला को मेरे आगमन की सूचना दो या फिर मुझे बिना पूछे लाला के दफ्तर में घुस जाने से रोकने के लिए दो-तीन चपरासी बुलवा लो ।”
सुनील के स्वर में ऐसा दबदबा था कि सैक्रेट्री का हाथ अपने आप ही टेलीफोन की ओर बढ गया । उसने धीरे से टेलीफोन का बजर दबाया और बेहद डरते-डरते लाला को सुनील के आगमन की सूचना दी ।
एक क्षण बाद उसने टेलीफोन रख दिया और अपने सूखें होंठों पर जुबान फेरता हुआ बोला - “तशरीफ ले जाइये, साहब ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला ।
वह लाला के निजी आफिस की ओर बढा । द्वार के समीप पहुंचकर वह ठिठका । वह वापस घूमा और प्रतीक्षा में बैठे व्यक्तियों से सम्बोधित होता हुआ बोला - “आदरणीय सज्जनो, अपना कीमती वक्त बरबाद न करो । लाला आज किसी से नहीं मिलेंगे ।”
किसी ने सुनील की बात पर ध्यान नहीं दिया । उलटे सूरत से सब नाराज दिखाई दे रहे थे कि सुनील सबसे बाद में आया होने के बावजूद भी सबसे पहले लाला के पास जा रहा था ।
सुनील लाला के निजी आफिस में प्रविष्ट हुआ । अपने पीछे उसने बड़ी सावधानी से दरवाजा बन्द कर दिया ।
“आओ ।” - लाला अपने सामने पड़ी फाइल पर से बिना निगाह उठाये बोला । उसके सामने ढेर की सूरत में और भी कई फाइलें पड़ी थीं ।
“क्या फायदा ?” - सुनील बोला ।
सुनील के स्वर में ऐसी बर्फ-सी ठण्डक थी कि लाला ने अचकचाकर सिर उठाया ।
“किस बात का ?” - उसने सुनील को घूरते हुए पूछा ।
“मैं तो आपकी आखिरी फाइल आपके सामने पेश करने आया था, वह फाइल जिसके बाद आपको कोई और फाइल देखने की जरूरत नहीं रहेगी ।”
लाला ने अपना चश्मा उतारकर फाइल के ऊपर रख दिया । वह कई क्षण असमंजसपूर्ण नेत्रों से सुनील को देखता रहा और फिर बोला - “बैठो । खड़े क्यों हो ?”
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“क्या कहना चाहते हो ?”
“लालाजी” - सुनील एक गहरी सांस लेकर बोला - “मैंने अपनी जिन्दगी में बहुत लोगों की मदद की है । बहुत लोगों को ऐसी मुश्किलों से निजात दिलाई है जिनसे वे कभी छुटकारा नहीं पा सकते थे, बहुत लोगों को मैंने तब सहारा दिया है जब उनकी भगवान् से भी उम्मीद उठ चुकी होती थी । लोगों की मदद करने के लिए उन्हें इन्साफ दिलाने के लिए मैंने गोलियां खाईं, बड़े लोगों की धमकियां सुनीं, बेइज्जती कराई, नक्कारखाने में अपनी अकेली तूती की आवाज को इतना बुलन्द किया कि हर किसी को वह आवाज सुननी पड़ी । मैंने जेल की हवा तक खाई । यह सब कुछ मैंने क्यों किया ? लाला जी, विश्वास जानिये, ये सब कुछ मैंने दौलत की खातिर नहीं किया, कोई मैडल हासिल करने की खातिर भी नहीं किया, कोई वाहवाही हासिल करने की खातिर भी नहीं किया, किसी का दिल जीतने के लिए, किसी की तारीफी निगाहों का हकदार बनने के लिए भी नहीं किया, महज एडवेन्चर की खातिर भी नहीं किया । यह सब कुछ मैंने इसलिए किया कि मुझे, सिर्फ मुझे, विश्वास होता था कि जिस आदमी की मैं मदद कर रहा हूं वह बेगुनाह है । लालाजी, मैंने उन लोगों का विश्वास किया है जिन पर दुनिया में किसी ने विश्वास नहीं किया - न कानून ने, न पुलिस ने, न जनता ने, न उसके अपने सगे-सम्बन्धियों ने - क्योंकि हर बार मेरा मन गवाही देता था कि बड़े-बड़े समर्थ लोगों को छोड़कर किसी का मदद के लिए मेरे सामने झोली फैलाना ही उसकी बेगुनाही का पर्याप्त सबूत था । गुनहगार आदमी प्रभावशाली लोगों के पास जाता है, बड़े-बड़े वकीलों के पास जाता है जो लाखों रुपये की फीस के बदले में मुजरिम को भी बरी करा लेते हैं, पुलिस अधिकारियों के पास जाता है जो केस का हुलिया ही बदल देते हैं, जजों के पास जाता है जो रिश्वत लेकर मुकद्दमे का फैसला गुनहगार के हक में कर देते हैं, राजनेताओं के पास जाता है, जिनकी झोलियां चन्दों से भरकर वह अपना हर गुनाह माफ करवा सकता है । गुनहगार आदमी, विशेष रूप से हर प्रकार से समर्थ गुनहगार आदमी कभी मेरे जैसे मामूली और साधनहीन इन्सान के पास नहीं जाता । इसलिए किसी को मेरे पास मदद के लिए आना ही मुझे उसकी बेगुनाही का सबूत लगता है । लालाजी, मुझे बड़ी शर्म के साथ यह कबूल करना पड़ता है कि जिन्दगी में पहली बार मैंने एक ऐसे आदमी की मदद करना स्वीकार किया जो वास्तव में गुनहगार था, हत्यारा था ।”
“कौन ?”
“आप ।” - सुनील लाला की ओर उंगली उठाकर बोला - “आप गुनहगार हैं । हत्यारे हैं । निशा की हत्या आपने की है । मेरी मदद हासिल करने के लिए क्या शानदार कहानी गढी थी आपने कि कोई आपको फंसाने की कोशिश कर रहा है । दिल्ली और शिमला में दो बार पहले भी आपकी हत्या के प्रयत्न हो चुके हैं । झूठ ! बिल्कुल झूठ ! आपकी हत्या का कभी कोई प्रयत्न नहीं हुआ । ये बातें आपने केवल अपने बचाव के लिए गढी कहानी को बल देने के लिए कहीं । लाला जी, आपने निशा के फ्लैट में जाकर, जनून में या सोच-समझकर उसे गोली मार दी और फिर बाद में सेफ में से गंदी तस्वीरें निकलीं लेकिन आपके पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि सारी की सारी तस्वीरें आपके अधिकार में आ चुकी थीं या कुछ तस्वीरें अभी बाकी थीं । इसी हकीकत को जानने के लिए आपने देशपाण्डे को बुलाया कि वे तीनों लड़कियों को तलाश करे ताकि और तस्वीरों के लिए उन्हें टटोला जा सके । लेकिन देशपाण्डे उन लड़कियों को ढूंढने में कामयाब न हो सका । इसलिए आपने मुझसे सम्पर्क स्थापित किया । मैं ब्लैकमेलिंग की स्कीम के हिस्सेदारों को तलाश करता गया । आपकी बेशुमार दौलत की मजबूत डोर से बंधे देशपाण्डे ने आपकी खातिर चार खून कर दिये । कहिये, मैं झूठ कह रहा हूं ?”
लाला के मुंह से बोल नहीं फूटा । उस मौसम में भी उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं ।
“आपकी जानकारी के लिए देशपाण्डे गिरफ्तार हो गया है और उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है । वह आपको भी अपने साथ घसीटे बिना नहीं मानेगा ।”
“बचाव की कोई सूरत नहीं ?” - लाला ने कम्पित स्वर में पूछा ।
“मुझे तो दिखाई नहीं देती ।”
“बचाव की कोई सूरत निकालो, मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा । मैंने देशपाण्डे को दो लाख रुपये दिये थे और उसने मेरी खातिर चार खून कर दिये । तुम मेरी बचाव की कोई सूरत निकाल लो, मैं तुम्हें दस लाख रुपये दूंगा, पन्द्रह लाख रुपये दूंगा, बीस लाख रुपये दूंगा ।”
“इतना रुपया किसी अच्छे वकील को दीजियेगा, वह जरूर-जरूर आपके बचाव की कोई सूरत निकाल लेगा । शायद वह जज को खरीद ले, शायद वह किसी मिनिस्टर से दबाव डलवा ले । आप क्या कोई छोटी हस्ती हैं ? या शायद वह देशपाण्डे को ही निशा के खून की जिम्मेदारी अपने सिर लेने के लिए तैयार कर ले । अभी तो बहुत सारी सम्भावनाएं हैं, लालाजी । अभी तो अन्धेरा बहुत दूर है ।”
“मेरा निशा को कत्ल करने का कोई इरादा नहीं था । वक्ती तौर पर मेरा दिमाग खराब हो गया था । क्रोध से मैं पागल हो गया था । उसी जनून में मैंने उस पर गोली चला दी थी । अगर मैं अपने होशोहवास में होता तो मैं उसका खून करता ? क्या मैं किसी रणधीर जैसे आदमी से या खुद देशपाण्डे से ही उसका खून नहीं करवा सकता था ?”
“यह डिफेंस भी शानदार है । आप यही साबित करने की कोशिश कीजियेगा कि आप पर कभी-कभी पागलपन का दौरा पड़ता है । ऐसी ही किसी नाजुक स्थिति में आपसे खून हो गया था जबकि आपका खून करने का कतई इरादा नहीं था । आपका तो खून करवाने का इरादा था । और दूसरों के खून से होली खेलना हर पैसे वाले का हक है ।”
सुनील ने अपनी जेब से वह पांच हजार रुपये का चैक निकाला जो लाला ने उसे पहले दिन दिया था ।
“मैं आपका चैक वापस लाया हूं ।” - सुनील चैक की गोली-सी बनाकर उसे लाला की गोद में उछालता हुआ बोला - “मैं तो ऐसे पैसे को छूना भी नहीं चाहता जिसको आपके खून से रंगे, नापाक हाथ लगे हों ।”
लाला ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले ।
“मैं चला, लालाजी” - सुनील अपने स्थान से उठता हुआ बोला - “पुलिस अभी आती होगी ।”
और सुनील बिना दोबारा सेठ पर दृष्टिपात किये लम्बे डग भरता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
वह बाहरी आफिस के बाहर ले जाने वाले दरवाजे की ओर बढ रहा था कि सैक्रेट्री की मेज पर रखे एक टेलीफोन का बजर बज उठा ।
सुनील ठिठक गया ।
सैक्रेट्री कुछ क्षण टेलीफोन सुनता रहा । फिर उसने टेलीफोन रख दिया और उच्च स्वर में बोला - “आप सब लोग तशरीफ ले जाइए । सेठजी की तबीयत एकाएक खराब हो गई है । वे किसी से नहीं मिल सकेंगे ।”
सुनील बाहर निकल आया ।
इमारत के बाहर निकलकर अपनी मोटरसाइकिल की ओर बढते समय उसने इमारत के मुख्य द्वार पर एक पुलिस की जीप आकर रुकती देखी ।
लाला मंगत राम को एक बिन मांगी मेहरबानी मिल गई । जिस वक्त पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह खुद अपने हाथों में हथकड़ियां लिए, उसे गिरफ्तार करने के लिए उसके कमरे में घुसा, लाला का हार्टफेल हो गया । और इस प्रकार वह अपने जीते-जी भारी जिल्लत और तौहीन का शिकार होने से बच गया ।
देशपाण्डे को लाला मंगत राम की मौत की खबर मिली तो वह गैस निकले गुब्बारे की तरह पिचक गया । उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया ।
समाप्त
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