उमर खैयाम !
यह नाम था उस शानदार बार एंड रेस्टोरेंट का जो तबाही मचाने को आमादा शांताराम के बाकी बचे दो भाइयों का अगला निशाना था ।
वह बार बखिया की मिल्कियत थी और बम्बई की हाई सोसाइटी की पसंदीदा तफरीहगाह थी ।
‘उमर खैयाम’ सांता क्रूज एयरपोर्ट से मुश्किल से एक फर्लांग दूर था।
रात के आठ बजे थे जबकि एक मैटाडोर में लदकर तुकाराम, देवाराम, अकरम लॉटरीवाला और उसके छ: मवाली साथी वहां पहुंचे ।
कफ परेड और जुहू पर हुए बम विस्फोटों की खबर उन तक पहुंच चुकी थी ।
अपनी कारीगरी से वे संतुष्ट थे ।
“बिरादर !” - अकरम चिंतित भाव से बोला - “तुम्हें पहचान लिए जाने की कोई फिक्र नहीं ?”
“ऐसी फिक्र करने की स्टेज से हम बहुत आगे निकल चुके हैं ।” - तुकाराम बोला - “हम मन में डैथ-विश लेकर यहां आए हैं ।”
“सिर पर कफन बांध लिया है हमने ।” - देवाराम बोला ।
“जब मौत हमें नहीं डरा सकती तो पहचान लिए जाने की धमकी क्या डराएगी ?”
“और फिर हम कोई फिल्म स्टार हैं जो हम पर निगाह पड़ते ही लोग कह उठेंगे - वो रहा देवाराम । वो रहा तुकाराम ।”
“फिर भी ?”
“लेकिन तुम अपनी फिक्र जरूर करो ।” - तुकाराम बोला ।
“मुझे यहां कोई नहीं जानता ।” - अकरम बोला - “मेरे आदमियों को तो कतई कोई नहीं जानता ।”
“फिर भी ।”
“फिर भी कुछ नहीं । अगर मेरी ‘फिर भी’ नहीं चलेगी तो तुम्हारी ‘फिर भी’ भी नहीं चलेगी । बिरादरान, मैं तुम्हारे साथ हूं । जैसे तुम वैसा मैं ।”
“बेहतर । लेकिन एक बात फिर भी मानो ।”
“क्या ?”
“जो प्रोग्राम भीतर होना है वह बाहर भी होना है । प्रोग्राम शुरु होने पर तुम बाहर आ जाना और भीतर दाखिल होते लोगों को संभालना ।”
“मंजूर ।”
“एक बात फिर से अपने आदमियों को समझा दो । बार के स्टाफ में से चाहे एक आदमी जिंदा न बचे लेकिन ग्राहकों को कोई गंभीर चोट न आए । हमारा मिशन ग्राहकों में दहशत फैलाना है, उनके हाथ-पांव तोड़ना नहीं । उन्हें जान से मारना नहीं ।”
“सुना सबने ?” - अकरम बोला ।
“सुना ।” - सब सम्वेत स्वर में बोले ।
“और मेरा इशारा होने से पहले प्रोग्राम शुरू न हो ।” - तुकाराम बोला ।
“वह किसलिए ?” - अकरम बोला ।
“पहले हमें भीतर की टेलीफोन लाइनें काटनी होंगी । जुहू यहां से कोई ज्यादा दूर नहीं । यहां हुए हल्ले की खबर अगर वहां पहुंच गई और कोई ट्रक-भर आदमी लेकर मैक्सवैल परेरा यहां गया तो हममें से एक भी जिंदा नहीं बचेगा ।”
“पुलिस में हुई खबर भी हमारे लिए समस्या बन सकती है ।” - देवाराम बोला ।
“मैं समझ गया ।” - अकरम फिर अपने आदमियों से संबोधित हुआ - “सुन लिया बिरादरान ? जब तक तुकाराम का इशारा न हो, प्रोग्राम शुरू न हो ।”
“सुन लिया ।” - सब बोले ।
वे नौ के नौ आदमी उस वक्त बड़े शानदार कपड़े पहने हुए थे । अकरम के एकाध आदमी की शक्ल तो जरूर उसके मवाली होने की चुगली कर रही थी वर्ना पोशाक से तो सब बड़े संभ्रांत और साधन सम्पन्न लग रहे थे ।
मेटाडोर बार से थोड़ा परे खड़ी कर दी गई ।
फिर पांच-पांच मिनट के वक्फे के साथ दो-दो, तीन-तीन करके वे ‘उमर खैयाम’ में दाखिल होने लगे ।
सबसे अंत में तुकाराम और देवाराम भीतर दाखिल हुए ।
भीतर ‘उमर खैयाम’ का विशाल हॉल किसी महंगी फिल्म के सेट की तरह सजा-धजा हुआ था । बाईं ओर एक लंबा बार काउंटर था जिसके पीछे दो बहुत मुस्तैद बारटेंडर मौजूद थे । सामने एक अर्धवृत्ताकार बैंड स्टैंड था जहां एक फाइव पीस आर्केस्ट्रा मेहमानों की दिलजोई के लिए वातावरण में रुमानी संगीत की धुनें प्रवाहित कर रहा था । बाकी हॉल में खूबसूरत मेजें बिछी हुई थीं जिनमें से आधी के करीब उस वक्त खाली थीं । हॉल में रोशनियों का इंतजाम भी ऐसा था जो वातावतण को और रुमानी बनाए दे रहा था । हॉल की गोल छत नीली रोशनी में नहाई मालूम होती थी और वही रोशनी छत से प्रतिबिंबित होकर वातावतण में ऐसा नीलापन फैला रही थी जैसे हॉल पर छत न हो और आसमान पर पूरा चांद निकला हुआ हो ।
भीतर दाखिल हुए कुछ लोग बार काउंटर पर पहुंच गए और कुछ खाली मेजों पर जम गए ।
तुकाराम और देवाराम एक मेज पर बैठे थे ।
तुरंत एक स्टीवर्ट उनके पास पहुंचा ।
तुकाराम ने जॉनीवाकर ब्लैक लेबल का ऑर्डर दिया ।
स्टीवर्ट जाने लगा तो वह बोला - “सुनो ।”
“सर !” - स्टीवर्ट ठिठका ।
“यहां कहीं टेलीफोन है ?”
“फोन बार काउंटर पर है, सर ।”
“गुड । थैक्यू ।”
“वैलकम, सर ।”
एक वेटर उन्हें व्हिस्की सर्व कर गया ।
तुकाराम ने अपना गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ ।
वह बार काउंटर पर पहुंचा ।
वहां दो स्टूलों पर अकरम और उसका एक निहायत लंबा-चौड़ा आदमी बैठे थे । दोनों के सामने व्हिस्की के गिलास रखे थे ।
एक बारमैन तुकाराम की तरफ आकर्षित हुआ ।
“टेलीफोन !” - तुकाराम बोला ।
बारमैन ने काउंटर के नीचे से एक फोन निकालकर तुकाराम के सामने रख दिया ।
तुकाराम झूठमूठ एक नंबर डायल करने लगा ।
बारमैन वहां से परे हटा तो तुकाराम ने रिसीवर का माउथपीस खोलकर उसमें से ट्रांसमीटर निकाल लिया । ट्रांसमीटर उसने जेब के हवाले किया और माउथपीस को वापस यथास्थान फिट कर दिया ।
वह कुछ क्षण किसी से वार्तालाप करने का बहाना करता रहा, फिर उसने रिसीवर क्रेडल पर रखकर उसे वापस बारमैन की तरफ सरका दिया ।
“थैक्यू !” - वह बोला ।
“वैलकम, सर !” - बारमैन बोला ।
तुकाराम वापस अपनी टेबल पर पहुंचा ।
तब तक देवाराम भी अपना जाम खतम कर चुका था ।
तुकाराम ने वेटर को संकेत किया ।
वेटर करीब आया ।
“रिपीट ।” - तुकाराम बोला ।
वेटर नये पैग ले आया ।
“बार काउंटर वाला फोन खराब है ।” - तुकाराम बोला - “कोई और फोन नहीं यहां ?”
“और तो ऑफिस में ही है फोन ।”
“बस ? और कहीं नहीं ?”
“नहीं, साहब ! बस, दो ही फोन हैं यहां ।”
“मैं ऑफिस से फोन कर सकता हूं ? मैंने बहुत ही जरूरी कॉल करनी है ।”
“क्यों नहीं, साहब ! जरूर ।”
“जरा ऑफिस दिखाओ ।”
“तशरीफ लाइए ।”
वेटर उसे पिछवाड़े में बने एक ऑफिस में ले आया ।
वहां केवल एक आदमी बैठा था जिसे वेटर ने बताया कि साहब फोन करना चाहते थे ।
उस आदमी ने फोन तुकाराम की तरफ सरका दिया ।
वेटर वहां से चला गया ।
तुकाराम ने रिसीवर उठा लिया और एक नंबर डायल करने लगा ।
बार वाले फोन जैसी ही हालत उस फोन की भी बनाने के लिए अब उसे एक मुनासिब मौके की तलाश थी ।
बाहर बार पर बैठे अकरम के पहलवान साथी को यूं बार काउंटर पर बैठकर ड्रिंक करने की आदत नहीं थी । उसने स्टूल पर पहलू बदला तो उसकी कोहनी बगल में बैठे साहब की पसलियों से जाकर टकराई । साहब के हाथ में थमे गिलास में से व्हिस्की छलकी और उसकी टाई पर बिखर गई ।
“कंट्रोल युअर एल्बो, डैम यू ।” - टाई वाला साहब भड़ककर बोला ।
“स्साला !” - पहलवान उसकी तरफ घूमा और आंखें निकालकर बोला - “गाली देता है ! अंग्रेजी बोलकर डराता है !”
झगड़ा शुरु करने का उसे वह बड़ा अच्छा बहाना लग रहा था ।
टाई वाला साहब भी कोई कम लंबा-चौड़ा नहीं था और ऊपर से नशा उस पर हावी होना शुरु हो गया मालूम होता था ।
“मिस्टर !” - टाई वाला साहब अपना गिलास मेज पर पटकता हुआ बोला - “मेरे से कोई यूं बद्तमीजी की ज़ुबान नहीं बोल सकता ।”
“ओए, नहीं बोल सकता क्या होता है ? बोल तो रहा हूं मैं ।”
“मैं जुबान खींच लूंगा ।”
“पहलवान !” - अकरम उसके कान में फुसफुसाया - “अभी नहीं । अभी हमें तुका का इशारा नहीं मिला ।” - फिर वह टाई वाले साहब की तरफ घूमा - “इसकी परवाह मत करो, साहब । यह अपने होश में नहीं है ।”
“यह बहुत बदतमीज आदमी है ।”
“बिल्कुल है । तमीज नहीं सीख पाया यह जिंदगी में । आखिर सर्वगुण-सम्पन्न कौन होता है !”
“यह तो साला समझता होगा सर्वगुण-सम्पन्न अपने-आपको ।” - पहलवान बोला ।
“तुमने फिर गाली दी ?” - साहब कहर-भरे स्वर में बोला ।
“ओए जा, काम कर अपना । दी तो दी ।”
साहब मुट्ठियां भींचे पहलवान की तरफ बढ़ा ।
अकरम झपटकर दोनों के बीच में आ गया ।
“सर !” - वह अनुनयपूर्ण स्वर में बोला - “डोंट माइंड हिम । ही इज रियल ड्रंक ।”
“आई विल टियर हिम अपार्ट ।” - साहब दांत पीसता हुआ बोला ।
“सर ! कहना मानिए । मैं आपके भले के लिए कह रहा हूं । वापिस अपने स्टूल पर बैठ जाइए वरना...”
“वरना क्या होगा ?”
तभी अकरम को हॉल के दूसरे सिरे पर तुकाराम दिखाई दिया । उसने अकरम को इशारा किया ।
अकरम ने सहमति में सिर हिलाया ।
“मैं क्या बताऊं ?” - एकाएक वह पहलवान और साहब के बीच में से हटता हुआ बदले स्वर में बोला - “खुद ही देख लो वरना क्या होगा ।”
साहब पहलवान पर झपटा ।
पहलवान ने बड़े इत्मीनान से उसे रास्ते में ही थाम लिया । उसका घुटना नीचे से उठा और साहब की टांगों के बीच में टकराया । फौरन साहब का जिस्म दोहरा हुआ और उसका सिर उसके घुटनों में जा लगा । पहलवान ने एक घूंसा उसकी पीठ पर जमाया तो वह दो स्टूलों के बीच में ढेर हो गया ।
सब कुछ पलक झपकते ही हो गया ।
बारमैन ने वह नजारा देखा तो वह नेत्र फैलाए उसकी तरफ बढा ।
“साहब !” - वह हैरानी से बोला - “यह क्या किया आपने ?”
“ओए, ड्रिंक ला !” - पहलवान ने अपना एक घूंसा इतनी जोर से काउंटर पर जमाया कि कई गिलास उछल गए - “कैसी सर्विस है यहां ? क्या बार है यह ?”
“साहब !”
“साहब का बच्चा !” - और पहलवान का एक वज़नी घूंसा बारमैन के जबडे़ पर पड़ा ।
दूसरे बारमैन ने यह नजारा देखा तो वह जोर-जोर से हाथ हिलाकर किसी को करीब बुलाने लगा ।
पहलवान ने एक स्टूल उठाया और उसे पूरी शक्ति से पीछे बोतलों और गिलासों से भरे शैल्फों पर देकर मारा ।
कांच टूटने की भयंकर झनझानाहट से वातावरण गूंज गया ।
तब कहीं हॉल में मौजूद लोगों की तवज्जो बार की तरफ गई ।
एकाएक बैंड बजना बंद हो गया ।
बार का एक भारी-भरकम गॉर्ड पहलवान की तरफ झपटा ।
तब तक वैसा प्रोग्राम हॉल में भी शुरू हो चुका था ।
कुछ लोग एकाएक आसपास की टेबलों पर बैठे मेहमानों से खामखाह उलझने लगे थे ।
देवाराम ने अपनी जेब में से एक हथौड़ा निकाला । उसने उसका एक वार जोर से बगल की मेज पर किया । मेज टूट गई और उस पर रखे गिलास और प्लेटें नीचे जाकर गिरे । मेज पर बैठी युवती एकाएक जोर-जोर से चीखने लगी । उसका साथी युवक हक्का-बक्का सा देवाराम का मुंह देख रहा था ।
देवाराम ने युवक की छाती पर हथौड़े से हल्की-सी दस्तक दी । युवक अपनी कुर्सी समेत पीछे उलट गया ।
“साहब को समझा देना” - देवाराम कहर-भरे स्वर में युवती से बोला - “कि यह आगे से तफरीह के लिए तुम्हें कहीं और ले जाया करे । यह घटिया जगह है । सहझ लो, यहां प्लेग फैलने वाली है ।”
युवती ने जोर से अपने होंठ काटे । उसकी कटोरियों से बाहर उबली पड़ रही आंखें अपने सामने लहराते हथौड़े पर टिकी हुई थीं ।
अब हॉल में बुरी तरह कोहराम मच गया था ।
अकरम के आदमी मेज-कुर्सियां तोड़ रहे थे, लोगों को पीट रहे थे और उन्हें सलाह दे रहे थे कि भविष्य में वे वहां न आएं । सबको डंडे के जोर से समझाया जा रहा था कि वह जगह उनकी तंदुरूस्ती के लिए खतरनाक साबित हो सकती थी ।
जो गार्ड पहलवान पर झपटा था, पहलवान ने उसे सिर से ऊंचा उठाकर काउंटर पर पटक दिया था । काउंटर टूट गया था और गार्ड वहां से दोबारा नहीं उठा था ।
एक बारमैन तेजी से टेलीफोन पर कोई नंबर डायल कर रहा था ।
दो वेटरों ने एकाएक पहलवान को पीछे से पकड़ लिया ।
पहलवान ने उन्हें फिरकनी की तरह घुमाकर अपने सामने किया और उनके सिर आपस में टकरा दिए ।
“हरामजादो !” - वह गर्जा - “कहीं और जाकर नौकरी करो । यह कोई जगह है रिजक कमाने की !”
वहां के प्रोग्राम से संतुष्ट अकरम अपने एक आदमी के साथ बार से बाहर चला गया था ।
देवाराम जैसा हथौड़ा अब तुकाराम के हाथ में भी था ।
दोनों कई खोपड़ियां खोल चुके थे ।
तभी तुकाराम को एक व्यक्ति के हाथ में रिवॉल्वर दिखाई दी ।
वह पहलवान को अपना निशाना बनाने पर आमादा मालूम होता था ।
तुकाराम ने एक बोतल फेंककर मारी ।
वह आदमी केवल एक ही गोली चला पाया था कि रिवॉल्वर उसके हाथ से छिटककर परे जा गिरी । गोली की आवाज से पहलवान का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ । वह लपककर उसके पास पहुंचा । उसने उसकी गरदन थाम ली ।
“तू कौन है ?” - वह दहाड़ा ।
“म... मैने... मैनेजर !” - वह मिमियाया ।
“जाकर कहीं और नौकरी तलाश कर मैनेजर के घोड़े !” - पहलवान ने गरदन थामे-थामे ही उसे ऊंचा उठा लिया - “जब मैं दोबारा यहां आऊं तो तू मुझे यहां दिखाई नहीं देना चाहिए । समझ गया ?”
मैनेजर के मुंह से बोल न फूटा ।
पहलवान ने गेंद की तरह उसे परे उछाल दिया । तभी किसी ने पीछे से विस्की की एक बोतल उसके सिर पर जमाई ।
बोतल के परखच्चे उड़ गए, पहलवान की खोपड़ी खुल गयी लेकिन पहलवान एक बार तनिक लड़खड़ाकर संभल गया ।
आंखों में खून लिये वह वापिस घूमा ।
उसे अपने सामने एक हक्का-बक्का सा स्टीवर्ट दिखाई दिया ।
उसे पहलवान आदमी नहीं, कोई दैत्य लग रहा था जो इतनी भीषण चोट खाकर भी अपने पैरों पर खड़ा था ।
“कौन-सी थी ?” - पहलवान खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरता हुआ बोला ।
“ओल्ड स्मगलर !” - वह घिधियाया ।
अपने सिर से बहकर होंठों पर पहुंच गई कुछ बूंदों को पहलवान ने अपनी जुबान से चाटा और फिर बोला - “ठीक है । समझ ले तेरी जान बच गई ।”
उसका एक प्रचंड घूंसा स्टीवर्ट की खोपड़ी पर पड़ा ।
स्टीवर्ट वहीं रेत के बोरे की तरह भरभराकर गिर गया ।
“दोबारा तेरी सूरत यहां न दिखाई दे । समझा गया ?”
वातावरण में हाहाकार मचा हुआ था । लोग एक-दूसरे को रौंदते हुए बाहर भागने की कोशिश कर रहे थे ।
तुकाराम ऑफिस में घुस गया था और देवाराम किचन में । दोनों बाहर जैसी ही हालत वहां की बनाए दे रहे थे ।
पहलवान अब एक कुर्सी उठाकर उसे पूरी शक्ति से अपने चारों तरफ घुमा रहा था । जो कोई भी बदकिस्मती से कुर्सी की चपेट में आ जाता था वही फर्श चाट जाता था ।
तुकाराम ऑफिस से बाहर निकला ।
“काफी है ।” - वह चिल्लाकर बोला - “अब चलो ।”
देवाराम किचन से बाहर निकला । वह अपने सामने एक खाना ढोने वाली ट्राली धकेल रहा था । ट्राली को धकेलता हुआ वह भीड़ में घुसा तो ट्राली ट्राली की चपेट में आ-आकर लोग दायें-बायें गिरने लगे ।
“जो कोई भी लौटकर यहां आए” - ट्राली धकेलता हुआ वह चिल्लाया - “वह पहले घर में अपना कफन खरीदकर रख आए ।”
“चलो !” - तुकाराम फिर चिल्लाया - “चलो !”
बाहर अकरम ‘उमर खैयाम’ के दर्जन-भर ग्राहकों को मामूली ठोका-पीटी के बाद लेकिन उन्हें मौत की दहशत खिलाकर वहां से रुख्सत कर चुका था । हर किसी को उसने बड़े इत्मीनान से समझाया कि ‘उमर खैयाम’ अब उन जैसे लोगों के लिए सेफ जगह नहीं रही थी । कल से वे कहीं और जाएं । दोबारा वहां लौटने पर उनकी जान जा सकती थी ।
एक आदमी कुछ ज्यादा सूरमा निकला था । उसने अकरम से दो-दो हाथ करने की कोशिश की थी । परिणामस्वरूप वहां आया वही एक इकलौता आदमी साबित हुआ था जो हॉस्पीटल केस बना था ।
एक अन्य ग्राहक को उसने उंगली भी नहीं छुई थी लेकिन उसने उसकी नई मर्सिडीज कार की विंड स्क्रीन और हैडलाइट तोड़ डाली थीं । उस मेहमान के चेहरे पर ऐसे भाव आए थे, जैसे अगर अकरम ने उसकी खोपड़ी खोल दी होती या उसके कुछ दांत निकाल दिए होते तो उसे कम एतराज होता ।
“दोबारा यहां न आना ।” - अकरम बोला - “यहां छूत की बीमारी फैलाने वाली है ।”
“मैं दिल्ली जाकर रहूंगा ।” - वह भर्राये स्वर में बोला ।
अपनी टूटी मर्सिडीज से उसकी निगाह नहीं हट रही थी ।
“मैं घर बैठकर पिया करूंगा ।” - वह कातर स्वर में बोला ।
“शाबाश ! शाबाश !”
तभी उसके साथी बार से बाहर निकलने लगे ।
सब वहां से कूच कर गए ।
वे मेटाडोर पर सवार हो गए ।
मेटाडोर वहां से भाग निकली ।
“हमारा क्या नुकसान हुआ ?” - अकरम बोला ।
उसने देखा, तुकाराम की दायीं आंख के नीचे से गाल कट गया था । एक आदमी की बांह टूट गई थी और पहलवान की खोपड़ी से खून बह रहा था ।
बाकी सब सही-सलामत थे ।
“कोई खास नुकसान नहीं हुआ ।” - उसने खुद ही अपने सवाल का जवाब दिया - “मुझे डर था कि हम में से भी किसी की लाश न बिछ गई हो । पहलवान, तेरे सिर पर बोतल पड़ी थी ?”
“हां !” - पहलवान बोला - “लेकिन मेरे पसंद के ब्रांड की । अभी तक भी मैं ओल्ड स्मगलर चाट रहा हूं ।”
सब हंसे ।
अकरम तुकाराम की तरफ घूमा ।
“राजी ?” - वह बोला - “ठीक हो गया प्रोग्राम ?”
“हां ।” - तुकाराम भावहीन स्वर में बोला - “शुक्रिया ।”
***
सलाउद्दीन देखने में जितना नर्मदिल शख्स लगता था, हकीकत में उससे कहीं ज्यादा बेरहम निकला । उसने खुद अपने हाथों से बाबू और जिमी की लाशों के इतने टुकड़े किए कि वे चार सूटकेसों में समा सकें ।
फिर कमरे में से खून का मामूली से मामूली निशान खोजकर मिटाया गया ।
चारों सूटकेस प्रत्यक्षतः होटल से कूच की तैयारी करते खास लखनवी अंदाज के नवाब साहब - वागले - और उनकी बुर्कानशीन बेगम - विमल - के साथ रिसैप्शन पर पहुंचा दिए गए ।
नवाब साहब ने अपना बिल चुकाया, सलाउद्दीन को खुदा हाफिज कहा और उसके द्वारा बुलाई टैक्सी पर अपने चारों सूटकेसों और बेगम साहिबा के साथ सवार होकर वे रेलवे स्टेशन की तरफ रवाना हो गए ।
टैक्सी अभी मोड़ नहीं घूमी होगी कि वहां पर पुलिस की एक जीप पहुंच गई ।
उस जीप पर पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी पहने मारियो सवार था और चारों हवलदार भी उसी के आदमी थे ।
लेकिन होटल की तलाशी किसी काम न आई ।
तब तक चिड़िया उड़ चुकी थी ।
उसे न वहां अपने साथी मिले और न सोहल और सोहल का कोई साथी ।
अपनी नाकामी पर झुंझलाता और हाथ मलता वह वहां से वापस लौट गया ।
लेकिन फिर भी ‘मराठा’ से उसकी मुकम्मल उम्मीद न टूटी ।
उसकी निगरानी का प्रोग्राम उसने तब भी जारी रखा ।
***
वार्डरोब में बंद सुलेमान के बॉडीगार्डो को होश आया तो वे वार्डरोब का दरवाजा तोड़कर बाहर निकले ।
बैडरूम में उन्होंने सुलेमान को मरा पाया ।
फिर उन्हीं के माध्यम से सुलेमान की मौत की खबर बखिया तक पहुंची ।
“वह सोहल था ।” - एक बॉडीगार्ड बोला ।
“तूने उसे पहचाना था ?” - बखिया बोला ।
“जी हां !”
“ठीक से ?”
“जी हां ।”
“तूने भी ?” - बखिया ने दूसरे से पूछा ।
“जी हां ।”
“दफा हो जाओ ।”
दोनों एक-दूसरे से उलझते-टकराते बखिया के हुजूर से पलायन कर गए ।
“सोहल ने बखिया को बहुत चोटें पहुंचाई हैं ।” - बखिया इकबालसिंह की तरफ घूमकर बोला - “लेकिन यह एक चोट ऐसी है जिसका बखिया को अफसोस नहीं हो रहा । कसम है बखिया को अपने पुरखों के खून की, यह शख्स ऐसी ही सजा का हकदार था लेकिन बखिया को उसकी बरसों की दोस्ती का वास्ता था, इसलिये यह सजा बखिया खुद उसे नहीं दे सकता था । सुलेमान को मारकर एक तरह से सोहल ने बखिया का ही काम किया है ।”
‟लेकिन” - इकबालसिंह गंभीर स्वर में बोला - “सोहल की जो मौत की धमकी सुलेमान साहब को थी, उसी धमकी की तलवार शांतिलाल और जोजो के सिर पर भी लटक रही है ।”
“उन्हें सावधान कर दो । उनके बॉडीगार्डों को सावधान कर दो और उन्हे समझा दो कि अगर उनकी कोताही से बखिया के इन ओहदेदारों की जान पर आ बनी तो उनके सिर काटकर उनके रिश्तेदारों को भिजवा दिए जाएंगे ।”
तभी मैक्सवैल परेरा दौड़ता हुआ वहां पहुंचा ।
“बॉस !” - वह बोला - “उमर खैयाम के मैनेजर का फोन आया है ।”
“क्या कहता है, वो ?”
“अब उमर खैयाम...”
बखिया खुद उमर खैयाम पहुंचा ।
उमर खैयाम का होटल सी व्यू की लॉबी से कहीं ज्यादा बुरा हाल था ।
सारा फर्नीचर टूटा था, बार का काउंटर टूटा पड़ा था, बोतलों और गिलासों समेत शीशे की कोई भी आइटम सलामत नहीं थी, वहां का सारे का सारा स्टाफ घायल था और उनमें से कईयों की हालत इतनी नाजुक थी कि वे कभी भी दम तोड़ सकते थे ।
हॉल जैसा ही हाल ऑफिस और किचन का था ।
बखिया ने मैनेजर को करीब बुलाया ।
“कितने आदमी थे ?” - उसने पूछा ।
‟ठीक से कहना मुहाल है, साहब ।” - मैनेजर आतंकित स्वर में बोला - ‟कोई आठ-दस जनों का काम बताता है तो कोई कहता है कि आदमी पचास से किसी कदर भी कम नहीं थे ।”
‟कोई पहचानी हुई सूरत ?”
मैनेजर ने इनकार में सिर हिलाया ।
‟परेरा !” - बखिया परेरा से संबोधित हुआ ।
‟यस, बॉस ! “ - परेरा बोला ।
‟स्टाफ से खुद पूछताछ करो । शायद कोई हमलावरों में से किसी को पहचाना हो ।”
‟राइट ।”
‟पुलिस को खबर की गई ?”
‟नहीं, साहब ।” - मैनेजर बोला - ‟अभी नहीं । मैंने सोचा था कि...”
“कर दो । यह छुपने वाला हादसा नहीं ।”
बखिया वहां से विदा हो गया ।
उसके तमाम मातहतों के लिए यह बड़ी हैरानी की बात थी, बखिया उस बार क्रोध से बिफरा नहीं था ।
बखिया का वह मूड उन्हें उसके पहले वाले मूड से कहीं ज्यादा खतरनाक लगा था ।
उस क्षण काला पहाड़ उन्हें उस ज्वालामुखी जैसा लगा जो ऊपर से शांत था लेकिन जिसके भीतर लावा धधक रहा था ।
***
रात ग्यारह बजे अकरम लॉटरीवाले की खोली में विमल की तुकाराम और देवाराम से मुलाकात हुई ।
तुकाराम ने विमल का अकरम से परिचय करवाया ।
दोनों ने हाथ मिलाया ।
फिर विमल तुकाराम की तरफ आकर्षित हुआ ।
“तुम कहां थे ?” - वह बोला - “मैं दोपहर से तुम्हें तलाश कर रहा हूं ।”
तुकाराम खामोश रहा ।
“मैं यहां के कई चक्कर लगा चुका हूं ।”
“सॉरी !” - तुकाराम बोला ।
“तुम तो जुहू से सीधे यहां आने वाले थे ?”
“हमें काम पड़ गया था ।”
“लेकिन” - देवाराम बोला - “बीच में एक बार तो हम यहां आए थे ।”
“और अपने दोस्त और उसके कई आदमियों को साथ लेकर गए थे ।” - विमल शुष्क स्वर में बोला - “तुम लोग किस फिराक में हो ?”
“फिराक !” - देवाराम ने भवें उठाई ।
“हां । मैं कोई बच्चा नहीं हूं, देवाराम ! मैंने भी जमाना देखा है । इतने दिनों से मैं तुम्हारे साथ हूं । तुम्हारा जैसा हिंसक मूड मुझे इस वक्त दिखाई दे रहा है, वह मुझे पहले कभी दिखाई नहीं दिया । साफ बताओ, तुम किस फिराक में हो ?”
“हम किसी फिराक में नहीं ।” - इस बार तुकाराम बोला ।
“मेरे से झूठ मत बोलो, तुकाराम ! मुझे तुम्हारे सिर पर खून सवार दिखाई दे रहा है । जरूर तुम बखिया को कोई नुकसान पहुंचाने की फिराक में हो । या शायद” - वह एक क्षण ठिठककर बोला - “पहुंचा चुके हो ।”
तुकाराम परे देखने लगा ।
“यूं निगाहें चुराने से क्या फायदा ?” - विमल वितृष्णापूर्ण स्वर में बोला - “आज जो कुछ तुम अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहते, कल सुबह वह अखबार में छपा होगा । जो बात छुप नहीं सकती उसे छुपाने...”
“अगर...” - तुकाराम एकाएक फट पड़ा- “हमने कुछ किया है तो इससे तुम्हें क्या फर्क पड़ता है ?”
“तुकाराम, मैंने बखिया से वादा किया है कि तुम भविष्य में उसके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाओगे और इसके बदले में वह भी तुम्हें चैन से रहने देगा ।”
“हमें चैन नहीं चाहिए ।” - देवाराम तमककर बोला ।
“और वादा तुमने हमसे पूछकर नहीं किया था ।” - तुकाराम बोला ।
“लेकिन तुम्हारी भलाई के लिए किया था ।” - विमल बोला ।
“हमें अपनी भलाई भी नहीं चाहिए ।” - देवाराम बोला ।
“वह आदमी” - तुकाराम बोला - “हमारे तीन भाइयों का हत्यारा है । उसके साथ हमारी कोई अमन-शांति मुमकिन नहीं ।”
“तुम यह भूल रहे हो” - विमल बोला - “अगर मैं वक्त रहते वहां न पहुंच गया होता तो आज स्कोर मुकम्मल हो गया होता । तो बखिया तीन भाइयों का नहीं, पांच भाइयों का हत्यारा होता ।”
“सोहल !” - तुकाराम बर्फ से सर्द स्वर में बोला - “तूने हमारी जान बचाई, इसका तू हम पर अहसान जताना चाहता है ? इस मेहरबानी की तू हमसे कोई फीस, कोई कीमत चाहता है ?”
“नहीं, नहीं !” - विमल हड़बड़ाकर बोला - “मेरा यह मतलब नहीं था ।”
“तो क्या मतलब था तुम्हारा ?”
“मेरा मतलब है, खामखाह के खून-खराबे से क्या फायदा ?”
“कल तक फायदा था ? आज फायदा नहीं है ? आज ऐसा क्या हो गया है जो तुम्हारा मिजाज बदल गया है ?”
विमल खामोश हो गया ।
“इसे” - वागले बोला - “बखिया ने कहा है कि नीलम जिंदा है और इस वक्त पुलिस की हिरासत में है ।”
“ओह !” - तुकाराम व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “अपनी सहेली की जिंदगी की उम्मीद ने तुम्हें मुलायम बना दिया है । इसलिए एकाएक अब तुम्हें खून-खराबे में फायदा नहीं दिखाई दे रहा ।”
“यह बाद की बात है ।” - विमल बोला - “पहले मुझे यही बताओ कि बखिया ने सच कहा था या झूठ ?”
“हमे नहीं मालूम बखिया ने तुमसे क्या कहा था ।”
“मेरे सवाल को टालो नहीं, तुकाराम ! नीलम की बाबत हकीकत जितनी बखिया को मालूम है, उतनी तुम्हें भी मालूम है । यह खबर मुझे तुमसे मिली थी कि नीलम ने होटल की आठवीं मंजिल से नीचे छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली थी । तुकाराम, मैं तुमसे एक सीधा सवाल पूछ रहा हूं उसका सीधा और सच्चा जवाब मुझे दो । मैं तुम्हें खुदा का वास्ता देता हूं, झूठ न बोलना । नीलम जिंदा है या मर गई ?”
दोनों भाइयों की निगाहें मिलीं ।
“तुकाराम, मेरे सवाल का जवाब दो ।”
“जिंदा है ।” - तुकाराम धीरे से बोला ।
“उसने आत्महत्या नहीं की ?”
“नहीं की ।”
“वह इस वक्त वाकई पुलिस की हिरासत में है ?”
“हां ।”
“धन्न करतार !”
“लेकिन अगर वह जिंदा है और सही-सलामत पुलिस की हिरासत में मौजूद है तो ऐसा भी हमारी वजह से हुआ है । हमने उसकी उसकी जान बचाई थी । हम ऐसा न करते तो वह कब की मर खप गई होती । आत्महत्या कर लेने से ज्यादा जलील मौत मर गई होती ।”
“तुमने क्या किया था ?”
“हमने पुलिस कमिश्नर को गुमनाम टेलीफोन कॉल लगाई थी और उसे नीलम के बारे में बताता था । पुलिस कमिश्नर खुद होटल सी व्यू पहुंचा था और नीलम को उन वहशी दरिंदों के चंगुल से छुड़ाकर अपने साथ ले गया था ।”
“नीलम जिन्दा है ?” - विमल मंत्रमुग्ध स्वर में बोला ।
“जिंदा है और सुरक्षित है ।”
“यानी कि उसके साथ कोई बदफैली नहीं हुई थी ? मैंने खामखाह मुहम्मद सुलेमान की जान ली ?”
“सुलेमान मर गया ?” - देवाराम बोला ।
“हां ।”
“गुड न्यूज !”
“बदफेली उसके साथ शर्तिया हुई थी ।” - तुकाराम बोला - “आखिर पुलिस कमिश्नर कोई पलक झपकते ही तो वहां नहीं पहुंच गया था ।”
“तुम्हें कैसे मालूम कि उसके साथ बदफैली हुई थी ?”
“हमारा भेदिया कहता है ।”
“क्या कहता है ?”
“कि सुलेमान, शांतिलाल और जोजो पुलिस कमिश्नर के वहां पहुंचने के पहले तुम्हारी सहेली के साथ अपना मुंह काला कर चुके थे ।”
विमल खामोश रहा ।
“परसों रात” - कुछ क्षण बाद वह देवाराम से संबोधित हुआ - “रोडरीगुएज के बंगले में तुमने इसीलिए आनन-फानन उसे शूट कर दिया था क्योंकि वह मुझे बताने जा रहा था कि नीलम पुलिस के कब्जे में थी ?”
“हां !” - देवाराम बड़े इत्मीनान से बोला - “वह तुम्हें नीलम की सलामती के बारे में विश्वास दिला सकता था ।”
“जो कि तुम नहीं चाहते थे ?”
“दुरूस्त ।”
विमल ने बड़े असहाय भाव से गरदन हिलाई ।
“बखिया क्या कहता है नीलम के बारे में ?” - तुकाराम बोला ।
“यही कि वह जिंदा है और पुलिस की हिरासत में है ।” - विमल बोला ।
“वह तो हुआ । इस बाबत वह अब करेगा क्या ?”
“वह नीलम को छुड़ाएगा ।”
“और तुम्हारे हवाले कर देगा ?”
“हां !”
“यूं ही ? खामखाह ?”
“नहीं । लिटल ब्लैक बुक के बदले में । मैंने उसे कहा है कि डायरी उसे इस एक ही शर्त पर वापिस मिल सकती है कि वह नीलम को सही-सलामत मेरे हवाले कर दे ।”
“यानी कि नीलम की जान से डायरी का सौदा तुम कर भी चुके हो ?”
“हां ।”
“सरदार !” - तुकाराम जहर से बुझे स्वर में बोला - “ऐसी खुदगर्जी की उम्मीद मुझे कम-से-कम तेरे से नहीं थी ।”
“क्या ?” - विमल यूं बिफरा जैसे उसे मां-बहन की गाली दी गई हो ।
“नीलम सिर्फ तेरी है लेकिन डायरी पर हमारा भी हक है । इस डायरी को हासिल करने के लिए तेरे साथ मेरे भाई ने भी अपनी जान को दांव पर लगाया था । तूने सांझे की चीज का सौदा ऐसी चीज से किया जो सिर्फ तेरी है । बखिया से ऐसा सौदा करते वक्त तुझे एक क्षण के लिए भी ख्याल आया कि इस बारे में तुझे हमसे भी पूछना चाहिए था ? अगर नीलम तभी बखिया के पास होती तो तू तो बखिया को डायरी सौंपता और नीलम को साथ लेकर चलता बनता बम्बई से । हमारा तो ख्याल भी न आता तुझे ।”
“डायरी मेरे पास नहीं, वागले के पास है ।”
“सिर्फ महफूज रखने के लिए । तू डायरी उससे वापिस मांगता तो क्या वह तुझे न देता ?”
विमल का सिर झुक गया । तुकाराम जो कह रहा था, सच कह रहा था । तुकाराम की पारखी निगाहों ने विमल के अन्तर्मन को सही और साफ पहचाना था ।
“और तूने यह नहीं पूछा” - कुछ क्षण की खामोशी के बाद तुकाराम बोला - “कि हमने यह झूठ क्यों बोला कि नीलम मर चुकी है ?”
“क्यों बोला ?” - विमल के मुंह से निकला ।
“क्योंकि नीलम के साथ हुई बदफेली और उसकी मौत ही तुझे आफत का परकाला बनाए हुए थी । ‘कम्पनी’ के खिलाफ तूने जितनी तबाही मचाई, अपनी सहेली के नापाक अंजाम से बिफरकर मचाई । अगर तुझे पता लग जाना कि नीलम जिंदा है तो तू पेशाब की झाग की तरह बैठ गया होता । फिर तू हमारे किस काम आता ?”
“तुमने अपना मतलब हल करने के लिए मुझे मोहरा बनाया ?”
“यकीनन बनाया । लेकिन क्या हमने इस हकीकत से तुझे बेखबर रखा ? क्या पहली ही मुलाकात में हम चार भाइयों ने तुझे साफ-साफ नहीं समझाया था कि हम क्यों तेरा साथ देना चाहते थे ? अगर तूने हमारा भला किया तो क्या हमने तेरा कोई भला नहीं किया ? वागले तुझे होटल से भगाकर न लाया होता तो तू सीधा जाकर मुहम्मद सुलेमान की बांहों में गिरता । हमने पुलिस कमिश्नर को फोन करने की दानाई न दिखाई होती तो आज नीलम जिंदा न होती । लिटल ब्लैक बुक क्या तू अकेला हासिल कर लेता ? ‘कम्पनी’ के इतने बड़े ओहदेदारों को तू अकेला मार गिराता ? अंधेरी में संध्या के घर पर वागले ने अगर...”
“बस, बस !”
“कहने का मतलब यह है कि अगर हमें तेरी जरूरत थी तो तुझे भी हमारी जरूरत थी । एक हाथ ही दूसरे हाथ को धोता है, सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल साहब !”
विमल खामोश रहा ।
“और” - देवाराम आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “तुम्हारी सहेली तो अंत-पंत फिर भी जिंदा है जबकि हमारी इस सांझी लड़ाई में हमारे दो भाई हलाक हो चुके हैं । तुम्हारी सहेली तुम्हें फिर मिल सकती है, हमारे भाई हमें फिर नहीं मिल सकते ।”
“तुका ! देवा !” - विमल बोला । एकाएक उसकी आंखें डबडबा आई और आवाज भर्रा गई - “मैं शर्मिदा हूं । मैं दिल से शर्मिदा हूं । नीलम की सलामती की खबर ने मुझे बौखला दिया था । मेरी खुदगर्जी ने मुझे अंधा बना दिया था, जो मैं आनन-फानन डायरी का सौदा नीलम की जान से कर आया । मेरे मेहरबानों ! मेरे दोस्तो ! मेरे भाइयों ! मैं तुम्हारे साथ हूं । मैं जिंदगी की आखिरी सांस तक तुम्हारे साथ हूं । मौजूदा हालात में नीलम से मिलाप के बाद मेरी बखिया के खिलाफ छिड़ी इस जंग को खत्म हो गया समझ लेना वाकई मेरी खुदगर्जी, यारमारी और अहसानफरामोशी की ऐसी मिसाल होती जिसके लिए मेरा वाहेगुरु मुझे कभी माफ न करता । बाबे दी सौं मैनूं, नीलम की सलामती की खातिर अगर मैं तुम लोगों से दगा करूं, दगा करने का ख्याल भी करूं, तो जिन्दगी में दोबारा कभी मुझे हरमंदिर साहब की देहरी पर मत्था टेकना नसीब न हो ।”
विमल की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे । दोनों भाइयों की भी आंखें नम हुए बिना न रह सकीं । उन्होंने विमल के आंसू पोंछे और उसे सांत्वना दी ।
आंसुओं के पवित्र जल में दिलों का सारा मैल धुलकर बह गया ।
“चुप हो जा, सरदार ।” - देवाराम बोला - “याद कर, जोशी की बीवी के फ्लैट से निकलते वक्त मैंने तुझे क्या कहा था ?”
“क्या कहा था ?” - “विमल रुंधे स्वर में बोला ।
“मैंने कहा था कि मैं” - देवाराम ने अपने एक अंगूठे से अपनी छाती ठोकी - “मैं तुझे नीलम से मिलाऊंगा ।”
“हां, कहा था ।”
“यह भी याद होगा कि सुवेगा के जेकब सर्कल वाले ऑफिस से निकलते समय मैंने कहा था कि मैं तुम्हारा फैन बन चुका हूं और इसी वजह से मैं तुम्हारे किसी काम आकर दिखाऊंगा, अपने भाइयों से ज्यादा काम आकर दिखाऊंगा, तुम्हारी उम्मीद से ज्यादा काम आकर दिखाऊंगा । यह बात कहते समय मेरे मन में यही था कि मैं तुम्हें नीलम से मिलवाऊंगा । इस काम को अंजाम देने के लिए चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़ती ।”
विमल ने देवाराम को खींचकर गले लगा लिया ।
फिर आधी रात के बाद तक भविष्य से संबंधित मंत्रणाएं होती रहीं ।
***
अगले रोज लगभग हर स्थानीय समाचारपत्र में नीलम की गिरफ्तारी का समाचार प्रकाशित हुआ । अधिकतर अखबारों ने यही लिखा कि - ‘नीलम के प्रसिद्ध इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल से संबंध बताए जाते थे - लेकिन एक अखबार ने तो उसे साफ-साफ ‘सोहल की सहचरी’ की संज्ञा दी । उस अखबार ने पता नहीं कैसे नीलम की एक तस्वीर मुहैया कर ली और उसे विमल के हर अखबार में उपलब्ध ‘स्टाक शाट’ के साथ छापा । उसी अखबार ने अपने संपादकीय में इस बात के लिए पुलिस की बहुत भर्त्सना की कि ‘सोहल की सहचरी’ की गिरफ्तारी की अत्यंत महत्वपूर्ण खबर को पुलिस ने तीन दिन तक दबाकर रखा था और एक गुमनाम टेलीफोन कॉल की वजह से अगर अभी भी अखबार को इस हकीकत की खबर न लगी होती, तो अभी पता नहीं और कब तक पुलिस खुद अपनी तरफ से प्रेस को इस खबर की भनक न लगने देती । इसे भी बड़ी अफसोस की बात और पुलिस कमिश्नर की धांधली बताया गया कि उसने किसी भी प्रेस रिपोर्टर को नीलम से मिलने का मौका देने से साफ इनकार कर दिया था । उसी संदर्भ में बखिया द्वारा पुलिस हैडक्वार्टर भेजे गए वकील का भी हवाला दिया गया जिसे कि पुलिस हैडक्वार्टर पर गैरकानूनी तौर से गिरफ्तार करके रखे गए अपने क्लायंट से मिलने तक नहीं दिया गया था ।
उस रोज का अखबार विमल ने भी पढा । उसे पढने के बाद ही उसे मुकम्मल तौर पर विश्वास हुआ कि बखिया या शांताराम के भाई झूठ नहीं बोल रहे थे । नीलम वाकई जिंदा और सही-सलामत थी ।
“तेरा अंत न जाणा मेरे साहिब !” - वह धीरे से बोला - “मैं अंधुले क्या चतुराई ।”
उस रोज पूरे तीन दिन बाद पहली बार विमल के हलक से रोटी का निवाला उतरा ।
***
पुलिस जानती थी कि उस रोज का अखबार सोहल की निगाह से गुजरे बिना नहीं रहना था और अब तक गोपनीय रखी गई इस बात की खबर उसे लग जानी थी कि नीलम पुलिस की हिरासत में थी । लेकिन सोहल अपनी सहेली को पुलिस के चंगुल से छुड़ाने की कोशिश करता, ऐसा अंदेशा उन्हें कतई नहीं था । पुलिस हैडक्वार्टर पर वह पूरी फौज लेकर भी हमला करता तो शायद नीलम को न छुड़ा पाता ।
और अखबार में यह बात छपी नहीं थी कि उसको उस रोज रिमांड के लिए कोर्ट ले जाने वाला था ।
फिर भी संबंधित ए.सी.पी. को कमिश्नर ने यह हिदायत दी कि नीलम को जीप में कोर्ट ले जाने के स्थान पर बंद वैन में ले जाया जाए ।
पौने ग्यारह बजे नीलम को बंद वैन में सवार कराया गया । वैन के भीतर उसके बंद भाग में एक स्त्री सब-इंस्पेक्टर और दो सशस्त्र हवलदार थे । ए.सी.पी. आगे ड्राइवर के साथ बैठा हुआ था ।
वैन पुलिस हैडक्वार्टर से रवाना हुई ।
मेन रोड पर आकर वह भारी मोटर ट्रैफिक के प्रवाह में मिल गई ।
एक साइड रोड से पेटियों से लदा एक विशाल ट्रक निकला और उसने इस प्रकार मोड़ काटा कि पुलिस की वैन के आगे निकल पाने से पहले वह सड़क पर आ गया । मजबूरन वैन को ट्रक के पीछे लगाना पड़ा ।
वैन के ड्राइवर ने ट्रक को ओवरटेक करने की कोशिश की लेकिन ऐसा संभव न हो सका ।
तभी पीछे एक ट्रक का हॉर्न बजा ।
वैन के ड्राइवर ने रियर व्यू मिरर में पीछे देखा ।
पीछे उसे ट्रकों की कतार-सी दिखाई दी ।
कतार में अगले ट्रक का हॉर्न बजा ।
“साले का उतावलापन देखो, साहब !” - वैन का ड्राइवर वितृष्णापूर्ण स्वर में बगल में बैठे ए.सी.पी से बोला - “मेरे से तो ओवरटेक किया नहीं जा रहा, ये कर लेगा ।”
“तुम ध्यान मत दो उसकी तरफ ।” - ए.सी.पी. बोला ।
वैन के ड्राइवर ने अपना हॉर्न बजाया ।
उसे लगा कि अगला ट्रक रास्ता दे रहा था । उसे ओवरटेक करने के लिए उसने वैन को दायें काटा । लेकिन तभी रियर व्यू मिरर में उसे एक ट्रक ऐन अपने सिर पर पहुंचता दिखाई दिया । उसने बौखलाकर वैन वापिस अगले ट्रक के पीछे कर ली ।
“साले हलकट !” - वह भुनभुनाया - “पुलिस की गाड़ी का भी रौब नहीं खाते ।”
पीछे से एक ट्रक उसके दायें पहलू में पहुंचा लेकिन अब लगता था जैसे उसे अगले ट्रक को ओवरटेक करने की कोई जल्दी नहीं थी ।
तभी एकाएक सामने ट्रक की रफ्तार घटने लगी ।
वैन के ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक न लगाई होती तो वैन जरूर सामने ट्रक से जा टकराई होती ।
दूसरा ट्रक ऐन उसके पहलू में दौड़ रहा था ।
अगला ट्रक रुकने को तत्पर लगने लगा लेकिन पहलू वाला ट्रक न आगे बढकर उसे ओवरटेक कर रहा था और न पीछे पीछे हट रहा था ।
वैन का ड्राइवर जोर-जोर से हॉर्न बजाने लगा ।
अगला ट्रक एकदम रुक गया ।
वैन के ड्राइवर को मजबूरन वैन रोकनी पड़ी ।
फिर दायां ट्रक भी रुका ।
पिछली ट्रक यूं रुका कि उसका अगला बम्पर वैन से इतना दूर था कि पिछला दरवाजा खुल पाता ।
पिछले ट्रक की ओट में से एक ट्रक और निकला और उसे बाईं तरफ से ओवरटेक करके वैन के बायें पहलू के करीब आकर रुका ।
चार ट्रकों के बीच अब वैन इस प्रकार खड़ी थी कि वह सड़क पर से दिखाई तक नहीं दे रही थी ।
सब कुछ पलक झपकते ही हो गया था ।
सड़क पर ट्रैफिक निर्विघ्न चल रहा था ।
फिर किसी ने चारों ट्रकों के बीच खड़ी वैन के करीब एक धुएं का बम पटका ।
वैन के गिर्द सड़क पर विशाल ट्रकों की जो चारदीवारी-सी बन गई थी, उसमें धुआं उठने लगा ।
दो फायर हुए ।
वैन के दोनों पिछले पहिये बैठ गए ।
ए.सी.पी. का हाथ अभी अपनी बैल्ट के होल्स्टर में लगी रिवॉल्वर तक पहुंचा ही था कि दो मजबूत हाथों ने उसे दबोचकर वैन से बाहर घसीट लिया ।
वही हाल दूसरी तरफ से किसी ने ड्राइवर का किया ।
दोनों के सिरों पर दो भारी प्रहार पड़े और वे सड़क पर लोट गए ।
उन्हें उठाकर वापिस वैन के भीतर डाल दिया गया ।
वैन के टायर फटने की आवाज सुनकर पीछे बैठे हवलदारों ने खुद ही वैन का दरवाजा भीतर से खोल दिया ।
तब पहली बार उन्हें वातावरण में फैलने घने धुएं का अहसास हुआ ।
धुआं वैन के भीतर भी घुसने लगा ।
हवलदार रायफल सीधी न कर पाए कि दबोच लिये गए ।
महिला सब-इंस्पेक्टर को यह भी पता न लगा कि कैसे उस पर प्रहार पड़ा और वह बेहोश हो गई ।
चार हाथों ने नीलम को दबोचा ।
एक हाथ उसके मुंह पर पड़ा और तीन उसके बदन पर ।
उसे उठाकर दाईं ओर खड़े ट्रक की ड्राइविंग सीट पर बिठा दिया गया ।
कोई उसके पीछे वहां घुस आया ।
उसका मुंह तब भी नहीं छोड़ा गया था ।
पलक झपकते ही ट्रक वहां से कूच कर गए ।
पीछे धुएं के लिबास में लिपटी पुलिस की वैन खड़ी रही ।
सड़क पर ट्रैफिक बदस्तूर चल रहा था ।
***
“शाबाश !” - बखिया ने खुद मैक्सवैल परेरा की पीठ ठोकी - “शाबाश ! आज तुमने जिस काम को अंजाम दिया है उससे बखिया तुमसे बहुत खुश है ।”
“थैंक्यू, सर ।” - परेरा बोला ।
“तुम्हें इसका मुनासिब इनाम मिलेगा ।”
“थैंक्यू, सर ।”
बखिया ने एक सरसरी निगाह सामने खड़ी नीलम पर डाली ।
“तो ।” - वह बोला - “यह होती है नीलम ?”
“जी हां ।” - परेरा बोला ।
“बढिया ! इसे हिफाजत से रखो और जाकर सुइट नंबर 805 में देखो कि क्या सोहल सचमुच वहां है ?”
“सोहल !” - नीलम व्याकुल भाव से बोली - “यहां ?”
“घबराओ नहीं ।” - परेरा बोला - “तुम्हारे जोड़ीदार की बखिया साहब से सुलह हो गई है ।”
“सुलह !”
“हां । बहुत जल्द, शायद आज ही, तुम सोहल के पास होवोगी ।”
“अच्छा !”
उसने एक भयभीत निगाह पहाड़ जैसे शरीर वाले काले भुजंग बखिया पर डाली । फिर उसकी निगाह वहां से भटकी तो परेरा पर पड़ी ।
पता नहीं क्यों वह उन लोगों से वैसी आतंकित न हुई जैसी वह मंगलवार को सुलेमान और उसके साथियों से हुई थी ।
***
“लानत !” - पुलिस कमिश्नर नीलम के दिन दहाड़े अपहरण की खबर सुनकर आपे से बाहर हो गया - “लानत !”
ए.सी.पी. मातमी सूरत बनाए, सिर झुकाए, खामोश खड़ा रहा ।
“लानत !” - कमिश्नर दहाड़ा - “डूब मरने का मुकाम है यह हमारी सारी पुलिस फोर्स के लिए । कल का अखबार देखिएगा, ए.सी.पी. साहब, कल का क्या, आज शाम का ही अखबार देखिएगा । देखिएगा, ये अखबार वाले कैसी चमड़ी उधेड़कर रखते हैं हमारी । कोई बड़ी बात नहीं कि वे लोग इसे पुलिस की किसी शरारत की, पुलिस कमिश्नर के किसी होक्स की, संज्ञा दें ।”
“लेकिन साहब...”
“क्या लेकिन, साहब ? इस बात का इल्जाम तो हम पर आज के अखबार में लगाया ही गया है कि हम जान-बूझकर सोहल की सहेली को कोर्ट में पेश नहीं कर रहे । अब देख लीजिएगा, कोई न कोई अखबार यह सम्भावना जरूर व्यक्त करेगा कि नीलम को कोर्ट में पेश न करने की नीयत से हमने यह झूठ बोला है कि उसका अपहरण कर लिया गया है ।”
“लेकिन साहब, इस बेपर की बात को कौन मानेगा ?”
“हमारी दोनों ही तरफ से कम्बख्ती है, जनाब ! लोग इस बात को मानेंगे तो हमारी चालबाजी और बदनीयती के लिए हमें जलील करेंगे, नहीं मानेंगे तो हमारी नालायकी और लापरवाही के लिए हमारी खिल्ली उड़ाएंगे ।”
ए.सी.पी. खामोश रहा ।
“आज नीलम को रिमांड के लिए कचहरी में पेश किया जाने वाला था, इस बात का कोई जिक्र अखबारों में नहीं है, हम लोगों ने अपना ऐसा कोई इरादा किसी पर जाहिर नहीं किया था लेकिन फिर भी अपहरणकर्ताओं को मालूम था कि लड़की आज कोर्ट में पेश की जाने के लिए यहां के लॉकअप से निकाली जाने वाली थी । ऐसा किया जाने का सही वक्त तक मालूम था उन्हें । तभी तो वे इतनी तैयारी के साथ रास्ते में हमारी अगवानी के लिए खड़े थे ।”
ए.सी.पी. ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“किसी ने किसी ट्रक का नंबर देखा ?”
“नहीं साहब । स्मोक बम की वजह से ऐसा मुमकिन न हो सका ।”
“किसी ने किसी हमलावर की सूरत देखी ?”
“नहीं, साहब । वह भी स्मोक की वजह...”
“किसी राह चलते व्यक्ति ने कुछ देखा हो ?”
“किसी ने कुछ नहीं देखा । वैन के चारों तरफ तो चार ऊंची दीवारें बने चार ट्रक खड़े थे । किसी को तो भनक भी नहीं लगी थी कि उनकी ओट में क्या हो रहा था । जब तक लोगों की तवज्जी हमारी तरफ गई थी, तब तक ट्रकों की दीवारें हट चुकी थीं और वे लोग कब के वहां से कूच कर चुके थे ।”
“यानी कि अपहरणकर्ताओं को पकड़ने में मदद करने लायक कोई सूत्र हमारे पास नहीं ?”
ए.सी.पी. ने बड़े खेदपूर्ण ढंग से इनकार में सिर हिलाया ।
“आपके ख्याल से यह करतूत है किसकी ?”
“सोहल के अलावा और किसकी हो सकती है, साहब ? और किसकी दिलचस्पी हो सकती है नीलम को यूं आजाद कराने में ?”
“और उसको पकड़ पाने में” ­ कमिश्नर के स्वर में व्यंग्य का पुट था ­ “हमारा महकमा असमर्थ है ! वह आसमान से उतरा है ! हम लोग बौने हैं उसके सामने !”
ए.सी.पी. का सिर फिर झुक गया ।
“हमसे ज्यादा साधनसम्पन्न हैं वो । चार ट्रक, कई जांबाज आदमी वह पलक झपकते इकट्ठे कर सकता है । बम्बई शहर में ! जहां वह परदेसी है । जहां उसका कहने को कोई हिमायती नहीं ।”
“साहब बखिया से कहीं उसकी सुलह तो नहीं हो गई ? बखिया से तो नहीं मिल गया वह ?”
“अगर वह बखिया से मिल गया है तो अभी भी बखिया की आर्गेनाइजेशन पर वार पर वार क्यों हो रहे हैं ? कल होटल सी व्यू की लॉबी में बम फटा, उससे पहले कफ परेड वाले ऑफिस में बम फटा, ‘उमर खैयाम’ को तबाह करके रख दिया गया, उसके एक सहयोगी मुहम्मद सुलेमान की लाश बाईकुला के एक फ्लैट में पड़ी पाई गई । अगर ये सारे काम सोहल के नहीं तो फिर ओवरनाइट यह बखिया का इतना बड़ा, इतना समर्थ दुश्मन और कौन पौदा हो गया है ?”
ए.सी.पी खामोश रहा ।
कमिश्नर के किसी सवाल का जवाब उसके पास नहीं था लेकिन उसकी सालों की पुलिस की नौकरी का तजुर्बा कहता था कि अपने वरिष्ठ अधिकारी की डांट-फटकार सुनना भी उसका नौकरी का हिस्सा था ।
कमिश्नर अपनी भड़ास निकालता रहा ।
उसका मातहत उसका शिकार होता रहा ।
***
ग्रांट रोड पर वह एक आठमंजिली इमारत थी जिसकी छः मंजिलों पर चार-चार, पांच-पांच ऑफिस थे । उसकी टॉप की दो मंजिलों पर एक ही ऑफिस था । उस ऑफिस का नाम था ईस्टर्न एक्सपोर्ट हाउस लेकिन वास्तव में वह एक गैरकानूनी चकला और जुआघर था जिसको कि बखिया की सरपरस्ती हासिल थी । उस ठिकाने का मालिक विट्ठलराव अपनी मोटी कमाई का एक तिहाई भाग काले पहाड़ की इस गारंटी की खातिर उसे अदा करता था कि वहां कभी पुलिस की रेड नहीं होगी, कभी नजदीकी फारस रोड के चप्पे-चप्पे में बसे दादाओं या मवालियों का कोई ग्रुप उसके धंधे को डिस्टर्ब करने की कोशिश नहीं करेगा । विट्ठलराव का अपने ग्राहकों की हिफाजत का अपना इंतजाम तो था ही, कम्पनी के भी निहायत तजुर्बेकार आधी दर्जन प्यादे हमेशा वहां रहा करते थे ।
आज तक विट्ठलराव के ठिकाने की तरफ किसी की आंख उठाने की हिम्मत नहीं हुई थी ।
विट्ठलराव खूब जानता था कि वह काले पहाड़ की पैट्रेनेज का ही प्रताप था वरना पुलिस प्रोटेक्शन तो शायद वह भी खरीद लेता, स्थानीय दादाओं के प्रकोप से बच पाना उसके लिए संभव न होता ।
उस ठिकाने का फ्रंट बहुत शानदार था । ऑफिस ऑफिस ही लगता था । बाहर रिसैप्शन पर एक निहायत सजावटी पारसी युवती बैठती थी जिसका काम उन लोगों को हैंडल करना होता था, जो कभी-कभार उस ठिकाने को कोई सचमुच का एक्सपोर्ट हाउस समझकर कोई व्यापारिक पूछताछ करने चले आते थे ।
रिसैप्शनिस्ट के डैस्क के पीछे की दीवार पर उसके सिर से कोई छः इंच ऊपर एक दो फुट गुणा तीन फुट का शीशा लगा हुआ था जो कि वास्तव में वन वे मिरर था । यानी कि रिसैप्शन पर खड़े होकर उसमें देखने पर तो देखने वाले को अपना प्रतिबिम्ब ही दिखाई देता था लेकिन पिछवाड़े के कमरे से वह एक खिड़की का काम करता था । उस कमरे में एक सशस्त्र गार्ड हमेशा रहता था और उसकी निगाह हमेशा उस शीशे के पार रिसैप्शन पर रहती थी । कोई गलत आदमी वहां पहुंच जाता था, तो कैसे भी उसे हैंडल करना उसका काम होता था । जरूरत पड़ने पर वह केवल एक घंटी बजाकर दर्जन सशस्त्र आदमी और वहां बुला सकता था ।
गनीमत थी कि ऐसी जरूरत आज तक कभी पड़ी नहीं थी ।
कोई एकाध गलत आदमी वहां आ जाता था तो जो भी गार्ड ड्यूटी पर होता था वह उसे बखूबी हैंडल कर लेता था ।
रिसैप्शनिस्ट युवती को अपनी मोटी पगार वाली उस नौकरी से कभी कोई शिकायत होती थी तो उस वन वे मिरर से ही होती थी । उस शीशे के पार वह तो झांक नहीं सकती थी जबकि उसे लगता था कि उसके पीछे बैठा गार्ड हर घड़ी उसे ही निहारता रहता था ।
उसने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली ।
एक बजने में दस मिनट थे ।
बस, दस मिनट और ­ उसने मन ही मन सोचा ­ और फिर एक घंटे की छुट्टी ।
उसका लंच रोज उसी इमारत में कहीं काम करते एक युवक के साथ होता था जो कि राजेश खन्ना जैसा खूबसूरत था और उसकी तरह चायनीज फूड का रसिया था । रिसैप्शनिस्ट की उससे यारी अभी ताजी ही थी । वह युवक उसे बहुत पसंद आया था इसलिए आजकल वह छटपटाती हुई सी एक बजने का इंतजार किया करती थी और इंतजार के आखिरी पंद्रह मिनट तो वह बहुत ही कठिनाई से गुजार पाती थी ।
कितना भला और मैनर्स वाला लड़का था और लड़कों की तरह ऐसा छिछोरा नहीं कि दूसरी ही मुलाकात में जिनका हाथ उसके ब्लाउज के भीतर सरकने को उतावला होने लगता था ।
उसने फिर घड़ी पर निगाह डाली ।
तभी एकाएक भड़ाक से रिसैप्शन का दरवाजा खुला और एक बद्हवास युवक ने भीतर कदम रखा । युवक सूरत से ही मवाली लग रहा था । उसने एक टाइट जीन, चारखाने की लाल कमीज और चमड़े की जैकेट पहनी हुई थी । गले में उसने एक लाल रुमाल बांधा हुआ था और कमीज के सामने के सारे ही बटन खुले हुए मालूम होते थे ।
“क्या है ?” ­ युवती डपटकर बोली ­ “कहां घुसे चले आ रहे हो ?”
“बाई !” ­ वह लपककर रिसैप्शन पर पहुंचा और घबराए स्वर में बोला ­ “अपुन को कहीं छुपा लो । अपुन के पीछे पुलिस लगेला है ।”
“क्या ?”
“बाई अपुन ‘कम्पनी’ का आदमी है । अपुन को इधर कहीं छुपा लो । अपुन की जान बचा लो, बाई ।”
“चलो । निकलो । जल्दी करो ।”
“लेकिन, बाई, अपुन बोला न, अपुन के पीछे पुलिस लगेला है, अपुन...”
“ज्यास्ती बात मत करो । और फौरन निकलो इधर से ।”
“लेकिन...”
तभी रिसैप्शन की बगल का दरवाजा खुला और सशस्त्र गार्ड ने वहां कदम रखा ।
युवक गार्ड को देखकर सहम गया और तुरंत रिसैप्शन से हट गया ।
आंखों में कहर लिये गार्ड उसकी तरफ बढा ।
“अपुन जाता है ।” ­ वह मरे स्वर में बोला और फौरन वहां से बाहर निकल गया ।
गार्ड युवती की तरफ देखकर हंसा और वापिस पिछवाड़े के कमरे में निकल गया ।
बाहर गलियारे में आकर युवक ने एक बार सतर्क निगाहों से दायें-बायें झांका और फिर सीढियां उतरकर छठी मंजिल पर आ गया ।
वहां कोने में उस फ्लोर के तमाम ऑफिसों का कॉमन टॉयलेट था ।
वह लंबे डग भरता हुआ टॉयलेट में दाखिल हुआ ।
वहां एक सब-इंस्पेक्टर की वर्दी में तुकाराम मौजूद था ।
“रिसैप्शन के पीछे” ­ युवक जो कि देवाराम था, बोला ­ “दीवार पर जो शीशा लगा है, वह वन वे मिरर है । रिसैप्शन की चौकसी के लिए उसके पीछे एक सशस्त्र गार्ड हर वक्त मौजूद रहता मालूम होता है । कोई भी घपले वाली बात उसे दिखाई देती है तो वह बिना रिसैप्शनिस्ट के बुलावे के पलक झपकते वहां पहुंच जाता है । वह गार्ड सबसे बड़ी रुकावट है ।”
“मैं पार कर लूंगा उस रुकावट को ।” ­ तुकाराम बोला ।
उसके पैरों के पास एक फाइबर ग्लास का सूटकेस पड़ा था । उसने सूटकेस को खोला और उसमें से एक बैग निकालकर देवाराम को पकड़ा दिया ।
सूटकेस उसने अपने हाथ में ले लिया ।
“सावधान !” ­ देवाराम बोला ।
“हां !” ­ तुकाराम बोला ­ “तुम भी ।”
देवाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
तुकाराम टॉयलेट से बाहर निकला और सीढियां चढकर ऊपरी मंजिल पर पहुंचा । एक बजने में अभी दो मिनट थे जबकि उसने ईस्टर्न एक्सपोर्ट हाउस के रिसैप्शन पर कदम रखा ।
रिसैप्शनिस्ट युवती ने बड़े वितृष्णापूर्ण भाव से उसकी तरफ देखा उसके उठकर जाने का वक्त हुआ था तो वह पुलिसिया वहां पहुंच गया था ।
“अभी इधर” ­ तुकाराम रिसैप्शन की तरफ बढता हुआ बोला ­ “कोई मवाली तो नहीं घुसा था ?”
वन वे मिरर के पीछे बैठे गार्ड ने चैन की सांस ली ।
यानी कि वह पुलिसिया उस मवाली छोकरे की वजह से वहां पहुंचा था, न कि उन लोगों के चक्कर में ।
“नौजवान छोकरा !” ­ युवती बोली ­ “चमड़े की जैकेट और चारखाने की लाल कमीज वाला ?”
“वहीं । वह चोर था । यह सूटकेस” ­ तुकाराम ने सूटकेस काउंटर पर रखा दिया ­ “लेकर भाग रहा था । हमारे डर से सूटकेस तो वह फेंक गया लेकिन खुद इसी इमारत में घुसकर कहीं गायब हो गया ।”
“वह इधर आया था । लेकिन हम लोगों ने उसे भगा दिया था ।”
“अच्छा ! रास्ते में तो वह मुझे मिला नहीं ।”
“अब हमें क्या मालूम वो किधर गया ?”
“वह” ­ तुकाराम बंद दरवाजे की तरफ संकेत करता हुआ बोला ­ “भीतर तो नहीं चला गया ?”
“नहीं, नहीं । वह भीतर जाने कू मांगता तो था लेकिन अपुन ने तो उसे इधर रिसैप्शन से ही चलता कर दिया था ।”
“ओह ! जरा देखूं सूटकेस में क्या चुराया था स्साले ने ।”
तुकाराम ने सूटकेस खोला । सूटकेस का ढक्कन इस प्रकार उठा था कि युवती सूटकेस के भीतर नहीं झांक सकती थी ।
“ऑफिसर !” ­ युवती बोली ­ “अपुन को लंच पर जाने का है ।”
“हां, हां । क्यों नहीं ? बस सिर्फ एक मिनट । मैं जरा...”
तुकाराम ने सूटकेस के भीतर अपने दोनों हाथ डाले और हौले से वहां मौजूद सब-मशीनगन थाम ली ।
अगले ही क्षण उसने रिसैप्शनिस्ट के सिर के ऊपर से पीछे मौजूद शीशे पर गोलियां बरसानी आरंभ कर दीं ।
रिसैप्शनिस्ट चीख मारकर बेहोश हो गई । उसका शरीर कुर्सी से फिसला और डैस्क के पीछे फर्श पर ढेर हो गया ।
वन वे मिरर के परखच्चे उड़ गए । उसके पीछे बैठे गार्ड की छाती में मशीनगन की गोलियों ने कई झरोखे बना दिए । शीशे की जगह अब एक खिड़की-सी निकल आई थी, जिसमें से फर्श पर गिरा पड़ा गार्ड दिखाई दे रहा था ।
तभी देवराम ने भीतर कदम रखा । उसके हाथ में एक भारी रिवॉल्वर थी । उसने रिसैप्शन के दरवाजे के बाहर ‘क्लोज्ड फार लंच’ की तख्ती टांगी थी और दरवाजा भीतर से बंद कर दिया ।
तुकाराम रिसैप्शन के पहलू का दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हो गया ।
फायरिंग की आवाज भीतर पहुंच चुकी मालूम होती थी क्योंकि हर किसी की तवज्जो दरवाजे की तरफ थी ।
तुकाराम ने अर्धवृत में मशीनगन की नाल घुमाते हुए गोलियां चलानी आरंभ कर दीं ।
शीशे टूटने लगे । चीख-पुकार से वातावरण गूंजने लगा । हर तरफ भगदड़ मच गई ।
तुकाराम ने एक वार एक हाथ खाली करके एक धुंए का बम फर्श पर पटका ।
वातावरण में धुंआ फैलने से पहले उसने कई सशस्त्र प्यादों को एक कमरे का दरवाजा खोलकर उसमें से बाहर बिखरते देखा ।
उसने सबको बड़े इत्मीनान से मार गिराया ।
धुंए की परत की ओट में वह गलियारे के सिरे पर पहुंचा ।
वहां एक दरवाजा खुला था ।
भीतर एक आदमी मौजूद था जो दराज में से एक रिवॉल्वर निकाल चुकने के बाद सीधा खड़ा होने की कोशिश कर रहा था ।
तुकाराम ने एक बार मशीनगन का घोड़ा धीरे से छूकर छोड़ दिया ।
उतने में ही तीन-चार गोलियां चल गई ।
एक गोली उस आदमी के रिवॉल्वर वाले कंधे पर लगी । रिवॉल्वर उसके हाथ से छिटककर परे जा गिरी । अपने दूसरे हाथ से उसने अपना घायल कंधा थाम लिया ।
“एक सैकंड में बोलो ।” - वह कहर-भरे स्वर में बोला - “विट्ठलराव कहां पाया जाता है ?”
“दूसरे गलियारे के आखिरी सिरे पर उसका कमरा है ।” - भीषण पीड़ा की वजह से कांपती आवाज में वह बोला ।
“चलकर दिखाओ !”
“म... म... मैं...”
तुकाराम ने मशीनगन का नाल ऊंची की ।
“चलता हूं । चलता हूं ।” - वह फौरन बोला । आतंक से उसके नेत्र फटे पड़ रहे थे ।
“जल्दी करो ।”
वह उससे पहले कमरे से बाहर निकला ।
तुकाराम उससे कद में काफी लंबा था । उसके सिर पर से उसने देखा, बाहर गलियों में उसके स्वागत के लिए तीन-चार सशस्त्र व्यक्ति खड़े थे ।
उसने मशीनगन की नाल अपने सामने चलते घायल व्यक्ति की बगल में घुसेड़ दी और गोलियां बरसानी आरंभ कर दीं ।
सब सशस्त्र प्यादे धराशायी हो गए ।
“आगे बढो !” - भय से थर-थर कांपते घायल व्यक्ति से वह बोला - “विट्ठलराव के कमरे की तरफ ।”
वह लड़खड़ाता हुआ गलियारे में आगे बढा ।
हर तरफ कोहराम मचा हुआ था । तुकाराम की सतर्क निगाह फिरकनी की तरह चारों तरफ फिर रही थी ।
किसी ने उसके करीब आने की कोशिश न की ।
घायल व्यक्ति एक बंद दरवाजे के सामने ठिठका ।
“विट्ठलराव” - तुकाराम बोला - “यहां पाया जाता है ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“दरवाजे का हैंडल ट्राई करो ।”
उसने किया ।
“दरवाजा भीतर से बंद है ।” - वह बोला ।
“एक तरफ हटो ।” - तुकाराम ने आदेश दिया ।
उसके हैंडल से अलग होते ही तुकाराम ने हैंडल पर तीन-चार फायर किये ।
फिर उसने परे सरकते घायल व्यक्ति को उसके कॉलर से पकड़ लिया और उसे पूरी शक्ति से दरवाजे पर धकेल दिया ।
दरवाजा भड़ाक से खुला और वह भीतर जाकर गिरा ।
उसी क्षण भीतर से एक साथ तीन फायर हुए ।
तीनों गोलियां उस व्यक्ति के शरीर के विभिन्न भागों से टकराई ।
तुकाराम ने नीचे को होकर धराशायी होते उस व्यक्ति की ओट में से कमरे के भीतर छलांग लगाई ।
उसकी मशीनगन फिर गोलियां बरसाने लगी ।
कमरे में विट्ठलराव के अलावा तीन व्यक्ति और मौजूद थे ।
पलक झपकते ही तीनों शरीरों से कई जगहों से खून के फव्वारे छूटने लगे ।
विट्ठलराव ने एक स्टील की अलमारी की ओट में शरण ले ली थी ।
“अलमारी की ओट से बाहर निकल आ, विट्ठलराव !” - तुकाराम विष-भरे स्वर में बोला - “यूं तेरी जान नहीं बचने वाली ।”
“तुम कौन हो ?” - विट्ठलराव की फंसी-फंसी आवाज आई - “और क्या चाहते हो ?”
“मैं कौन हूं, वह बाहर आकर मेरी शक्ल देखेगा तो जान जाएगा । मैं क्या चाहता हूं, यह भी मालूम हो जाएगा तुझे ।”
वह अलमारी के पीछे से न निकला ।
तुकाराम ने अलमारी को निशाना बनाकर ट्रिगर दबाया ।
कुछ गोलियां अलमारी से जाकर टकराई ।
“बाहर आ रहा है ?”
कोई उतर न मिला ।
“यह अलमारी इतनी दमदार नहीं कि हमेशा तेरी ओट बनी रह सके । इस बार इसकी चादर में से गुज़रकर गोली तुझे न लगी तो कहना ।”
खामोशी !
“अच्छी बात है । यह ले फिर ।”
तुकाराम ने फिर ट्रिगर दबाया ।
मशीनगन एक हल्की-सी क्लिक की आवाज करके रह गई ।
उसकी गोलियां खत्म हो चुकी थीं ।
अपनी कहानी आप कहने वाली वह क्लिक की आवाज अलमारी के पिछे छुपे विट्ठलराव ने भी सुनी ।
एक विजेता की तरह हाथ में रिवॉल्वर लिए उसने अलमारी की ओट से बाहर कदम रखा ।
तुकाराम ने पूरी शक्ति से मशीनगन खींचकर मारी ।
मशीनगन उसकी छाती से टकराई । रिवॉल्वर उसके हाथ से निकलकर हवा में उछली जिसे कि तुकाराम ने जुस्त लगाकर हवा में ही लपक लिया ।
मशीगन की चोट से दोहरा हुआ विट्ठलराव सीधा हुआ ।
तुकाराम ने उसकी टांग में गोली मारी ।
विट्ठलराव के मुंह से चीख निकली और वह टांग पकड़कर बैठ गया । उसका चेहरा पीड़ा से विकृत हो उठा ।
तुकाराम उसके सिर पर जा खड़ा हुआ ।
“इधर मेरी तरफ देख ।” - वह कर्कश स्वर में बोला ।
विट्ठलराव ने बड़ी कठिनाई से सिर उठाया ।
“मुझे पहचानता है ?”
विट्ठलराव ने भयभीत भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“यह भी समझता है कि जो गोली अभी तेरी टांग में लगी है, उसे मैं तेरी खोपड़ी में भी मार सकता था ?”
“हं… हं… हां !” - वह हांफता हुआ बोला ।
“मैंने जान-बूझकर तेरी जान बख्शी की । ऐसा मैंने क्यों किया ?”
“तुम्हीं बताओ - क… क्यों किया ?”
“ऐसा मैंने इसलिए किया ताकि मैं तुझे एक संदेश दे सकूं, जिसे तू समझ सके और उन तमाम लोगों को समझा सके जो बखिया की सरपरस्ती में ठीए-ठिकाने चलाते हैं । समझा ?”
“हां ।”
“आज की तारीख से, इसी मिनट से, अपने को हासिल बखिया की सरपरस्ती खत्म समझ । तू अभी भी समझ रहा होगा, मेरे जाने के बाद और अच्छा तरह से समझ जाएगा, कि तैनात बखिया के प्यादे तेरे किसी काम नहीं आए हैं । वे सब के सब बाहर गलियारे में मरे पड़े हैं । कहने का मतलब यह है कि अब बखिया की सरपरस्ती खत्म समझ । बखिया अब इस काबिल नहीं रहा कि वह किसी को सरपरस्ती दे सके । उसके जनाजे में शामिल होने का दावतनामा भी एकाध दिन में तुझे मिलता ही होगा । सुना ?”
“हां ।”
“कितनी फीस भरता है तू बखिया की सरपरस्ती की ?”
“कमाई का एक तिहाई हिस्सा । तुकाराम, अब वह मैं तुझे...”
“मुझे नहीं चाहिए । उसे अपनी कमाई समझ । उसे बखिया पर बर्बाद करना छोड़ । क्या ?”
“अच्छा । अच्छा ।”
“यही बात तूने उन लोंगों को भी समझानी है यहां की तरह जिनके ठिकाने बखिया की सरपरस्ती में हैं । इसीलिए मैंने तेरी जान बख्शी की है ।”
“बखिया मुझे कच्चा चबा जाएगा ।”
“क्यों कच्चा चबा जाएगा ? आज उसकी सरपरस्ती तेरे किसी काम नहीं आई, इस बात का क्या जबाब होगा उसके पास ?”
वह कुछ न बोला । उसने अपने एकाएक सूख आए होंठों पर जुबान फेरी ।
“विट्ठलराव, मेरी बात याद कर ले । अगर तूने बखिया से अपनी रिश्तेदारी खत्म न की, तो मैं फिर आऊंगा । और जब फिर आऊंगा तो तुझे तो मारकर जाऊंगा ही, साथ ही इमारत को भी आग लगाकर जाऊंगा । विचार कर लेना इस बारे में ।”
तुकाराम ने आगे बढकर मशीनगन उठा ली ।
तभी दौड़ता हुआ देवाराम वहां पहुंचा ।
“पुलिस !” - वह हांफता हुआ बोला - “बाहर से सायरन की आवाज आ रही है । गोलियों की आवाज सुनकर इमारत में से किसी ने पुलिस को फोन कर दिया मालुम होता है ।”
तुकाराम ने अपने पांव की एक भरपूर ठोकर विट्ठलराव की जख्मी टांग पर जमाई ।
पीड़ा से विट्ठलराव की आंखें उबल पड़ीं ।
“मैं आऊंगा ।” - तुकाराम बड़े हिंसक स्वर में बोला - “तैयार रहना मेरी आमद के लिए ।”
दोनों भाई वहां से बाहर निकल गए ।
बाहर कहीं किसी जीवित प्राणी के उन्हें दर्शन नहीं हुए ।
लोग या तो डरकर छुपे हुए थे और या भाग गए थे ।
दोनों रिसैप्शन पर पहुचे ।
तुकाराम ने रिवॉल्वर जेब में रख ली और मशीनगन वापिस सूटकेस में डाल ली ।
दोनों चुपचाप इस्टर्न एक्सपोर्ट हाउस से बाहर निकले ।
वे सीढियों की तरफ बढे ।
उसके दहाने पर पहुंचते ही वे एकदम पीछे हट गए ।
सातवीं मंजिल जितनी सुनसान थी, छठी पर उतनी ही भीड़ जमा थी ।
सीढियों के दहाने पर बेशुमार लोग मौजूद थे और सब सिर उठाए ऊपर ही देख रहे थे ।
“लिफ्ट ।” - देवराम बोला ।
तुकाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
और कोई चारा जो न था ।
लिफ्ट द्वारा वे सीधे नीचे जाने के स्थान पर पहली मंजिल पर पहुंचे ।
ऊपर के हो-हल्ले की आवाजें वहां पहुंची ही नहीं मालूम होती थीं ।
लिफ्ट से निकलते समय जो दो-तीन आदमी उन्हें दिखाई दिए उनमें से किसी को भी उनकी तरफ खास तवज्जो देने की फुरसत नहीं थी ।
वे लम्बे डग भरते हुए टॉयलेट में पहुंचे ।
वहां कोई नहीं था ।
दोनो एक ही लैवेटरी में दाखिल हो गए ।
कुछ क्षण बाद वे दोनों जब वहां से निकले तो दोनों के शरीर पर पादरियों जैसे लम्बे चोगे थे, गले में सफेद कॉलर थे और सिर पर तसले जैसे काले हैट थे ।
पुलिस उन्हें इमारत के मुख्यद्वार पर मिली ।
“गुड आफ्टरनून, फादर !” - वहां पहुंचा क्रिश्चियन इन्स्पेक्टर बड़े सम्मानसूचक ढंग से अपनी पीक-कैप छूता हुआ बोला ।
“गॉड ब्लैस यू, माई चाइल्ड !” - तुकाराम मिश्री घुले स्वर में बोला ।
दोनों निर्विघ्र इमारत से बाहर निकल आए ।
उस अभियान में उनका एक ही नुकसान हुआ था ।
मशीनगन वाला सूटकेस पीछे पहली मंजिल की लैवेटरी में ही रह गया था ।
***
शाम के अखबार में नीलम के अपहरण की खबर छपी ।
विमल ने अखबार पढा ।
खबर पढते ही उसने बखिया को फोन किया ।
खुद बखिया लाइन पर आया ।
“सरदार !” - वह बोला ।
“वही ।” - विमल बोला ।
“बखिया तेरे ही फोन का इंतजार कर रहा था ।”
“फोन कर दिया है मैंने ।”
“शाम का अखबार पढा ?”
“पढा ।”
“अब तेरी तसल्ली हो गई अपनी छोकरी की बाबत ?”
“कुछ हो गई, कुछ नहीं हुई ।”
“मतलब ?”
“नीलम तुम्हारे कब्जे में है, इस बात की क्या गारंटी है ?”
“अरे मूर्ख, वह और किसके कब्जे में होगी ? क्या आज सुबह बखिया के आदमियों ने पुलिस की वैन पर हमला करके...”
“इस बात की क्या गारंटी है कि वे आपके आदमी थे ?”
“क्या बकता है ?”
“हो सकता है पुलिस से नीलम को छुड़ाकर कोई और ले गया हो और यश आप लेने की कोशिश कर रहे हों ।”
“और कौन ले जाएगा नीलम को ?”
“कोई भी ।”
“कोई भी कौन ?”
“आपकी जानकारी के लिए मेरे पीछे कुछ और लोग भी पड़े हुए हैं जिनके बारे में मुझे गारंटी है कि वे आपके आदमी नहीं ।”
“वो क्या चाहते है ?”
“डायरी के अलावा और क्या चाहते होंगे मुझसे ?”
“तूने किसी के आगे डींग हांकी होगी कि बखिया की लिटल ब्लैक बुक तेरे पास है ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“शान्ताराम के भाइयों ने ऐसा किया होगा ?”
“हरगिज नहीं ।”
“तो फिर किसी को यह मालूम ही कैसे हुआ कि डायरी तेरे पास है ?”
“इस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं ।”
“तू समझता है कि तेरी छोकरी किसी और के कब्जे में है ?”
“मेरा ख्याल गलत हो सकता है लेकिन मुझे कोई सबूत तो मिलना चाहिए कि नीलम आपके कब्जे में है ।”
“मैं अभी तेरी उससे बात कराता हूं ।”
“टेलीफोन पर ?”
“हां ।”
“एक बार जॉन रोडरीगुएज ने भी टेलीफोन पर मेरी नीलम से बात कराई थी, तब बात कराई जब नीलम पुलिस के कब्जे में थी ।”
“तब बात और थी, अब बात और है । बखिया ऐसा नहीं करेगा ।”
“मुझे क्या मालूम, बखिया ऐसा करेगा या नहीं ।”
“कसम है बखिया को अपने पुरखों के खून की, वो ऐसा नहीं करेगा ।”
“मुझे नीलम की सूरत दिखाई देनी चाहिए ।”
“ठीक है । देख लो । वैसे बम्बई में अभी ऐसा कोई आदमी पैदा नहीं हुआ जिसे बखिया की कसम का भरोसा न हो ।”
“मैं बम्बई का वासी नहीं ।”
“ठीक है । ठीक है । कैसे देखेगा अपनी छोकरी की सूरत ?”
“उसे मेरे सुइट में भेज दीजिए ।”
“कहां ?”
“भेरे सुइट में । रूम नम्बर 805, आठवीं मंजिल, होटल सी व्यू, जुहू, बम्बई - 400054 ।”
“तू होटल से बोल रहा है ?”
“हां ।”
“सरदार, तेरे जैसा हौसलामंद आदमी नहीं देखा मैंने ।”
“तारीफ का शुक्रिया ।”
“बखिया से दुश्मनी मोल लेने की जगह अगर तू उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढाता तो...”
“इस विषय में हम फिर बात करेंगे, बखिया साहब । आप नीलम को भेज रहे हैं ?”
“हां । फौरन ।”
विमल ने रिसीवर रख दिया ।
उम्मीद और नाउम्मीदी के झूले में झूलता हुआ, बेहद आंदोलित मन लिये विमल नीलम की प्रतीक्षा करने लगा ।
पांच मिनट बाद नीलम ने सुइट में कदम रखा ।
भीतर दाखिल होते ही वह दरवाजे पर हो ठिठक गई ।
विमल मुंह बाए, अपलक उसे देखता रहा ।
चार दिन में चार युग बीत गए मालूम होते थे ।
सिर्फ चार दिनों में कितनी बदम गई थी नीलम !
हर क्षण चिड़िया की तरह चहकती रहने वाली नीलम उस समय यूं खामोश थी जैसे किसी ने उसकी जुबान काट ली हो ।
हर क्षण गुलाब की तरह खिला रहने वाला उसका चेहरा यूं मुरझाया हुआ था जैसे उसने कभी बहार न देखी हो ।
हर क्षण कमान की तरह तना रहने वाला उसका जिस्म उस क्षण यूं दोहरा हुआ जा रहा था जैसे उसके पांव उसके शरीर का बोझ संभालने में असमर्थ हों ।
उसकी वह हालत देखकर विमल का मन पश्चात्ताप से भर उठा ।
उसी की वजह से तो उठाए थे उसने वे सब दुख । उसकी आंखें भर आई और होंठ कांपने लगे ।
“नीलम !” - वह रुंधे कंठ से बोला ।
“विमल !” - नीलम के मुंह से निकला ।
फिर जैसे एक साथ दोनों की तंद्रा टूटी ।
दोनों दौड़कर एक-दूसरे की बांहों में समा गए ।
“विमल ! विमल !” - नीलम जोर-जोर से रोती हुई बोली । वह लता की तरह विमल से लिपट गई ।
“नीलम ! नीलम !” - विमल की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे ।
पता नहीं कब तक यही सिलसिला चला । दोनों एक-दूसरे के आंसू पोंछते थे लेकिन आंसू थे कि थमने का नाम ही नहीं लेते थे ।
एकाएक दरवाजे पर कोई हौले से खांसा ।
दोनों ने हड़बड़ाकर दरवाजे की तरफ देखा ।
दरवाजे पर मैक्सवैल परेरा खड़ा था।
उसके पीछे गलियारे में कई प्यादे खड़े दिखाई दे रहे थे ।
“लड़की को छोड़ो ।” - परेरा धीरे से बोला ।
विमल ने नीलम को अपने आलिंगन से मुक्त कर दिया लेकिन उसका हाथ न छोड़ा ।
“या डायरी निकालो ।” - परेरा बोला ।
विमल खामोश रहा ।
“दोनों में से एक काम तो तुम्हें करना ही होगा, सरदार साहब । डायरी मेरे हवाले करो, मैं अभी यहीं तुम्हारे हनीमून का इंतजाम करता हूं । विद कम्पलीमेंट्स ऑफ दि मैनेजमेंट ।”
“डायरी यहां नहीं है मेरे पास ।”
“तो जाकर ले आओ । तब तक लड़की को अपनी अमानत के तौर पर हमारे पास रहने दो ।”
विमल ने धीरे से नीलम का हाथ छोड़ दिया ।
उसे यूं लगा जैसे जिंदगी की डोर उसके हाथ से छूटी जा रही हो ।
नीलम ने कातर भाव से उसकी तरफ देखा ।
“थोड़ी देर और” नीलम !” - वह बड़ी कठिनाई से कह पाया - “बस, थोड़ी-सी देर और ।”
आंखों में ऐसे भाव लिये, जैसे कोई बकरी जिबह होने के लिए जा रही हो, नीलम परेरा की तरफ बढ गई ।
“बखिया साहब को मैं क्या जवाब दूं तुम्हारा ?” - परेरा बोला ।
“अपना जवाब मैं उन्हें खुद दूंगा ।” - विमल बड़ी कठिनाई से कह पाया - “थोड़ी देर बाद मैं उन्हें फिर टेलीफोन करूंगा ।”
“ओके ।”
परेरा नीलम और अपने प्यादों के साथ वहां से विदा हो गया ।
पीछे विमल बुत बना खड़ा रहा ।
उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि अभी नीलम से उसका मिलाप हुआ था ।
फिर किसी तरह से उसने अपने आप पर काबू किया और वहां से निकल पड़ा ।
वह भिंडी बाजार की तरफ रवाना हो गया ।
***
“डायरी दे दो ।” - तुकाराम बोला ।
“लेकिन...” - विमल ने कहना चाहा !
“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं । अभी बखिया को फोन करो और किसी मुनासिब, महफूज तरीके से डायरी और नीलम की अदला-बदली का इंतजाम करो ।”
“लेकिन डायरी तुम्हारे हाथ बखिया के खिलाफ तुरुप का इकलौता पत्ता है ।”
“होगा ! जो मैं कहता हूं, करो ।”
“तुका ! मेरी गैरत यह इजाजत नहीं देती । मुझ पर फिर खुदगर्जी का इलजाम आए, यह...”
“इसमें खुदगर्जी वाली कोई बात नहीं । मैं तुम्हें ऐसा करने के लिए कह रहा हूं ।”
“लेकिन...”
“फिर लेकिन ! देखो, अगर तुम मेरा कहना नहीं मानोगे तो डायरी लेकर मैं बखिया के पास पहुंच जाऊंगा ।”
“नहीं, नहीं । ऐसा न करना ।”
“तो फिर जो मैं कहता हूं, करो ।”
“अच्छा । डायरी कहां है ?”
“डायरी अभी भी सलाउद्दीन के पास है ।” - वागले ने बताया ।
“मुझे दे देगा वो ?”
“दे देगा । मैं उसे फोन कर देता हूं । या मैं तुम्हारे साथ चलता हूं ।”
“हम सब तुम्हारे साथ चलते हैं ।” - देवाराम बोला ।
“नहीं । यह भीड़ जमा करने वाला काम नहीं । डायरी के साथ चार आदमी जाएंगे तो नीलम के साथ चालीस आएगे ।”
“कहीं तुम्हारा अकेले जाने का इरादा तो नहीं, बिरादर ?” - अकरम बोला ।
“मेरा यही इरादा है ।”
“कही लेने के देने न पड़ जाएं ।” - तुकाराम चिंतित स्वर में बोला ।
“कुछ नहीं होगा ।” - विमल बोला - “मेरे दिमाग में एक योजना है जो मुझे गांरटी है कि कारआमद साबित होगी ।”
“क्या योजना है तुम्हारे दिमाग में ?”
विमल धीरे-धीरे बताने लगा ।