नमकीन, खारा पानी बांह के ऊपरी हिस्से पर बने गोली के जख्म से टकराता रहा और दर्द बढ़ाता रहा।
पानी में तैरता देवराज चौहान समंदर के उस किनारे पर पहुंचा, जो कि वीरान था। अंधेरा था। नीचे रेत बिछी थी और आसपास पेड़ और झाड़ियां थीं। चंद्रमा निकला हुआ था। उसकी रोशनी में काफी कुछ स्पष्ट दिख रहा था। देवराज चौहान ने एक निगाह समंदर में मारी, जो कि चंद्रमा की रोशनी में चमक रहा था। फिर वो समंदर के किनारे, रेत पर जा लेटा। आंखें बंद कर लीं। वंशू करकरे का सफाया करके उसे सुकून मिल रहा था।
परंतु शिकार अभी बाकी थे।
सुधीर दावरे। अकबर खान। दीपक चौला और सर्दूल।
सफर अभी लंबा बाकी था।
एकाएक आंखों के सामने जगमोहन का चेहरा नाच उठा। वो जानता था कि जगमोहन जिंदा नहीं बचा होगा। उसके जिंदा बचे रहने का मतलब ही नहीं था। वो तो जाने कैसे बच गया। परंतु जगमोहन नहीं बच पाया होगा। जो लोग उसे अस्पताल से उठा ले गए, उन्होंने उसकी लाश कहीं फेंक दी होगी।
आंखें गीली हो गई देवराज चौहान की।
बांह के दर्द को भूल गया था, कुछ देर के लिए।
इन्हीं सोच-विचारों में उलझा रहा। ख्याल बनते-बिगड़ते रहे और जाने कब आंख लग गई।
■■■
फिर जब आंख खुली तो दिन निकल आया था। सूर्य की धूप फैलनी आरंभ हो गई थी। कितने दिनों के बाद वो रात भर बेहोशी भरी नींद में पड़ा रहा था। वरना उसकी नींद तो उड़ चुकी थी। सीने में सिर्फ प्रतिशोध की आग ही जल रही थी। ऐसी जलती आग में नींद कहां आती है।
कुछ देर देवराज चौहान उसी तरह ठंडी रेत पर लेटा रहा। पेड़ की छाया उस पर पड़ रही थी। फिर उठ खड़ा हुआ। अभी बहुत काम करने थे उसने। बाकी शिकारों की तलाश बाकी थी।
देवराज चौहान ने अपने कपड़ों से रेत झाड़ी।
कंधे में के जख्म पर दर्द हुआ तो उस पर निगाह मारी। गोली काफी सारा मांस उधेड़ गई थी। कंधे पर दवा लगाना जरूरी था। आगे बढ़कर समंदर के पानी से हाथ-मुंह धोया। गीले हाथ सिर के बालों में फिराये।
एकाएक उसे परमजीत का ध्यान आया जो कि पुलिस कस्टडी में था।
सब-इंस्पेक्टर कामटे को उसने जहर का इंजेक्शन दिया था कि उसे परमजीत को लगा दे।
कल दिनभर इतना व्यस्त रहा कि दोबारा कामटे के पास नहीं जा पाया था। देवराज चौहान ने कामटे के पास ही जाने की सोची। वो कामटे के घर की तरफ रवाना हो गया।
सुबह के नौ बज रहे थे जब वो सब-इंस्पेक्टर कामटे के घर पर पहुंचा।
कामटे घर पर नहीं था। दरवाजे पर ताला लगा था।
देवराज चौहान ने पहले की तरह आसानी से दरवाजे पर लटकता ताला खोला और भीतर प्रवेश कर गया।
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सब-इंस्पेक्टर कामटे आज साढ़े नौ बजे ही पुलिस हैडक्वार्टर जा पहुंचा था। आज भी वो वानखेड़े से बात करना चाहता था। वानखेड़े के ऑफिस में पहुंचा तो पता चला कि वो नहीं आया है।
कामटे उसका इंतजार करने लगा।
ग्यारह बज गए। कामटे वानखेड़े के इंतजार में कुर्सी पर बैठा रहा।
तभी उसका फोन बज उठा।
जेब से मोबाइल निकालकर उसने बात की।
"हैलो...।"
"कामटे साहब।" कानों में आवाज पड़ी।
"सावरकर...?" कामटे ने आवाज पहचान ली थी।
"जी साहब, मैं ही हूं। आपने जो काम मुझे दिया था, उसमें थोड़ी सफलता मिली है।"
"क्या?"
"दीपक चौला को मैंने ढूंढ लिया है कि वो कहां छुपा है।"
"कहां?"
"इस तरह कैसे खबर दे दूं? आपन नकद देने का वादा किया था।"
"खबर पक्की है ना?"
"साहब जी! पुलिस वाले से नकद लूं और कच्ची खबर दूं। ये कैसे हो सकता है।"
"कहां है तू?"
सावरकर ने अपनी जगह बताई।
"वहां और लोग भी होंगे। वहां से निकल और...।" कामटे ने मिलने की जगह बताई।
"साहब जी नकद भी...।"
"लेते आऊंगा।" कामटे ने बात करके मोबाइल जेब में रखा और वानखेड़े के ऑफिस से बाहर निकलता चला गया।
कामटे का दिमाग बहुत तेजी से दौड़ रहा था।
अगर सच में दीपक चौला का पता मिल जाता है तो वो क्या करेगा?
परमजीत से वो सब कुछ जान चुका था कि आर्य निवास होटल के उस हॉल में उन सबने देवराज चौहान और जगमोहन के साथ क्या किया था। ऐसे में उसके मन में इन लोगों के लिए कोई जगह नहीं थी। बल्कि सब कुछ जान कर देवराज चौहान और जगमोहन के लिए मन में नर्मी आ गई थी।
देवराज चौहान और जगमोहन के साथ गलत किया इन लोगों ने।
वैसे भी सर्दूल, वंशू करकरे, दीपक चौला, अकबर खान, सुधीर दावरे खतरनाक लोग थे। कानून इनकी घात में था। सर्दूल तो कब से विस्फोट कांड में फरार मुजरिम का खिताब पाए हुए था।
यूं देवराज चौहान और जगमोहन भी कम खतरनाक नहीं थे। परंतु वे इतने खतरनाक नहीं माने जाते थे कि आनन-फानन उन्हें पकड़ा जाए।
कामटे का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था कि उसे क्या करना है।
कामटे पुलिस हैडक्वार्टर से निकलकर सीधा अपने बैंक पहुंचा और वहां से दस हजार रुपए निकालकर उस जगह पर जा पहुंचा, जहां सावरकर ने मिलना था।
सावरकर पहले ही वहां था और उसके पास आ पहुंचा।
कामटे ने मोटर साइकिल स्टैंड पर लगाई कि पास आकर सावरकर बोला---
"नमस्कार साहब! एकदम पक्की खबर है दीपक चौला की।"
सावरकर पैंतीस बरस का घिसा हुआ इंसान था।
"कहां है दीपक चौला?"
"नकद तो दिखाइए साहब?" वो दांत फाड़कर बोला।
कामटे ने जेब थपथपा कर कहा।
"ये रहा। पहले दीपक चौला के बारे में बता कि वो कहां है।"
"वो छिपा हुआ है। कठिनता से उसके बारे में जाना। अगर हाथ तंग ना होता तो मैं आपसे एक पैसा भी नहीं लेता...।"
"दीपक चौला के बारे में बता।" कामटे ने उसे घूरा।
सावरकर, कामटे को दीपक चौला के ठिकाने के बारे में बताता रहा।
पांच मिनट सावरकर ही बोलता रहा। समझाता रहा कि दीपक चौला किधर है।
कामटे ने सब सुना। सब समझा।
"साहब वो नकदी?"
कामटे ने जेब से दस हजार निकालकर उसे थमाये। जो कि पांच सौ के नोटों की शक्ल में थे।
"ये...ये कितने हैं?" कम वजन देखकर सावरकर ने पूछा।
"दस हजार।"
"बस।" सावरकर के होंठों से निकला।
"बैंक से, अपने खाते से निकालकर लाया हूं।" कामटे ने चिढ़े स्वर में कहा--- "सरकार ने नहीं दिये तेरे को देने को।"
"मैं तो कम से कम पच्चीस की सोचे बैठा...।"
"दावरे, अकबर खान, सर्दूल, करके की खबर दे। इस बार पच्चीस दूंगा।"
सावरकर गहरी सांस लेकर रह गया।
तभी कामटे का मोबाइल बजने लगा।
"हैलो।" कामटे ने बात की।
"कामटे...।" कमिश्नर बाजरे की आवाज कानों में पड़ी--- "खबर सुनी तूने?"
"क्या...?" कामटे के होंठों से निकला।
"समंदर में दस मील भीतर एक बोट मिली है। उसमें वंशू करकरे की लाश है।"
"क्या...?" कामटे चौंका।
"साथ में दो-तीन लाशें और भी हैं। पुलिस कहती है कि उसकी हत्या रात को किसी वक्त हुई है।"
"ये काम देवराज चौहान ने ही किया होगा। उसने करकरे को ढूंढ लिया होग।"
"यही हुआ होगा सर।"
"और तेरे को कोई सफलता नहीं मिल रही।" बाजरे का तीखा स्वर कानों में पड़ा।
"मैं इसी सिलसिले में भागदौड़ कर रहा हूं सर।"
"तब तक देवराज चौहान सबको खत्म कर देगा।"
"ऐसा हुआ तो बुरा क्या है। वो सब कानून के दुश्मन हैं।" कामटे कह उठा।
"ये तू कैसी बातें कर रहा है कामटे...।"
"सॉरी सर...।"
"हम कानून वाले हैं। वर्दी पहनी है हमने। अपराधी को पकड़कर सजा दिलवाना हमारा काम है। इस तरह अगर सब ही अपना फैसला खुद करते रहे तो कानून मजाक बनकर रह जाएगा।"
"मैं... मैं सबको ढूंढ रहा...।"
"पहले देवराज चौहान को ढूंढ। उसे पकड़ लेंगे तो ये खून-खराबा बंद होगा। बाकी बचने वाले नहीं।"
"मैं जल्दी ही कुछ करके दिखाऊंगा।"
"ऐसा तो नहीं कि इन लोगों को पकड़ने के नाम पर तू मटरगश्ती कर रहा हो। रिश्तेदारों से मिलने चला जाता हो और मौज कर रहा हो।" कमिश्नर बाजरे का स्वर कानों में पड़ा।
"मैं ऐसा नहीं हूं सर...।"
"जल्दी से कुछ करके दिखा। तरक्की लेनी है कि नहीं?"
"लेनी है सर।"
"तो कुछ करके दिखा...।" उधर से बाजरे ने फोन बंद कर दिया था।
कामटे ने कान से फोन हटाया और जेब में डालता गंभीर स्वर में सावरकर से बोला---
"करकरे को ढूंढने की जरूरत नहीं। रात किसी ने उसे मार दिया है।"
"देवराज चौहान ने मारा होगा उसे।" सावरकर के होंठों से निकला।
"पता नहीं...।"
"अगली बार पच्चीस मिलेंगे खबर देने के?"
"हां...।"
सावरकर चला गया।
कामटे चेहरे पर सोच के भाव समेटे मोटरसाइकिल के पास ही खड़ा रहा।
वो अपना अगला कदम तय कर रहा था। किसी नतीजे पर पहुंचने की चेष्टा में था।
■■■
दोपहर दो बजे सब-इंस्पेक्टर कामटे ने एक बंद पड़े गैराज के बाहर मोटरसाइकिल रोकी और उतरकर गैराज के फाटक की तरफ बढ़ गया। वो सोच चुका था कि उसे क्या करना है। इस नतीजे पर पहुंचा था कि इन लोगों को गिरफ्तार करने का कोई मतलब नहीं था। जेल की इन्हें परवाह नहीं थी। कुछ समय बाद इन्होंने फिर बाहर आ जाना था। इनके पीछे सर्दूल था, उसकी ताकत काम करती थी। इन पर हाथ डालकर कामटे इन्हें अपना दुश्मन नहीं बनाना चाहता था। इन लोगों ने उसकी तलाश भी गायब कर देनी थी और पुलिस डिपार्टमेंट ने कुछ नहीं कर पाना था।
कामटे ने गैराज का बंद फाटक खटखटाया।
"क्या है?" भीतर से आवाज आई।
"गैराज बंद है। यहां काम नहीं होता।"
"पता है, मैं दीपक चौला से मिलने आया हूं।" कामटे ने शांत स्वर में कहा।
फौरन ही फाटक खुला और दादा जैसा दिखने वाला आदमी नजर आया।
"क्या बोला तू?"
"दीपक चौला से मिलना आया हूं...।" कामटे सादे कपड़ों में था।
"कौन दीपक चौला?"
"ड्रामा मत कर। मैं सब-इंस्पेक्टर कामटे हूं। परमजीत को मैंने ही पकड़कर बंद किया है। अब समझा तू। यही बात भीतर जाकर दीपक चौला से कह और वो जो कहे, मुझे बताना।"
वो आदमी थोड़ा और फाटक खोलकर बाहर निकला और आसपास देखने लगा।
"अकेला आया हूं। साथ में फौज नहीं है।" कामटे बोला।
उसने कामटे को घूरा और बोला।
"भीतर आ...।"
कामटे उसके साथ भीतर प्रवेश कर गया।
फाटक के भीतरी तरफ चार दादा लोग मौजूद थे।
"इसे बिठा लो अपने पास। पुलिसवाला है।"
दो ने फौरन कामटे को पकड़ा और खाली पड़ी कुर्सी के पास ले गए। उसकी तलाशी लेने लगे।
"राम, तू दरवाजे के बाहर खड़ा हो जा। कहीं ये साथ में पुलिस तो नहीं लेकर आया।"
राम तुरन्त फाटक से बाहर निकल गया।
"सरकारी है।" कामटे बोला--- "वापस दे देना...।"
"जिंदा गया तो वापस मिल जाएगी। कुर्सी पर बैठ जा। फिर उठना मत।"
कामटे बैठ गया।
"साले को दबाकर रखना। मैं भीतर जा रहा हूं।" कहकर वो आदमी भीतर चला गया।
कामटे कुर्सी पर बैठा रहा।
दो आदमी सतर्कता से उसके पास खड़े रहे।
तीन मिनट में ही भीतर गया व्यक्ति बाहर आ गया।
"चल, चौला साहब तेरे से बात करेंगे।" पास आकर वो कह उठा।
कामटे उठ खड़ा हुआ। चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी।
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कामटे को गैराज के भीतर एक कमरे में ले जाया गया। कमरे में पड़ा कबाड़ दीवारों के साथ सटा रखा था। वहां एक बैड बिछा था। पास ही पड़े टेबल पर बीयर की बोतलें पड़ी थी। वहां दीपक चौला मौजूद था। दो आदमी साथ में थे। कामटे के भीतर आते ही चुभती नजरों से दीपक चौला ने उसे देखा, फिर उसे लाने वाले से कहा---
"लगता तो अकेले ही है।"
"नजर रखो।"
वो व्यक्ति बाहर निकल गया।
कामटे मुस्कुराया दीपक चौला को देखकर फिर कह उठा---
"फिक्र मत कर चौला। मैं अकेला आया हूं और दोस्ती करने आया हूं।"
"दोस्ती?"
"विश्वास आ जाना चाहिए अब तक। तेरा ठिकाना मुझे पता है और अकेला आया हूं। रिवाल्वर थी पास में, वो बाहर तेरे आदमियों ने रख ली। मैं चाहता तो परमजीत की तरह तेरे को भी पकड़ सकता था।" कामटे ने कहा।
"बैठ।"
कामटे पुरानी सी, काली पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
दीपक चौला की तिरछी निगाह, कामटे पर थी।
"तो तू सब-इंस्पेक्टर कामटे है?"
"हां।"
"परमजीत को क्यों पकड़ा?"
"पकड़ना पड़ता है, वर्दी पहनी है तो कुछ करके भी दिखाना पड़ता है।" कामटे मुस्कुराया।
"बोल, मैं तेरे लिए क्या करूं?"
"परमजीत ने बताया कि उस दिन आर्य निवास होटल के हॉल में क्या हुआ था।" कामटे दोनों हाथ हिलाता कह उठा--- "बहुत बुरा हाल किया देवराज चौहान और जगमोहन का। लेकिन देवराज चौहान बच गया।"
"किस्मत तेज थी साले की।" दांत भींचकर बोला दीपक चौला।
"ज्यादा ही तेज निकला किस्मत का। दो महीने कोमा में रहने के बाद होश आ गया। तब वो मेरी ही देखरेख में था।"
"जान चुका हूं ये बात।"
"तू तब मुझसे मिला होता तो तेरे लिए मैं देवराज चौहान को 'कोमा' में ही रख खत्म कर देता।"
दीपक चौला के दांत भिंच गए।
"मौका खो दिया तूने...।"
"मैंने तो सोचा था कि वो मर जाएगा।"
"लेकिन बच गया देवराज चौहान। तुमने उसके और जगमोहन के सिर में, गोली ठीक से नहीं मारी...।"
"मैंने नहीं, सर्दूल ने गोलियां मारी थी।
कामटे ने गहरी सांस ली।
"चाकुओं के वार भी इस तरह की किये कि उनकी जान ना जाए। कोई वार घातक नहीं हुआ।"
"उन्हें तड़पा रहे थे तब...।" चौला गुर्रा उठा।
अगर एक-एक वार उनके दिलों पर कर दिया होता तो आज का दिन ना देखना पड़ता।"
"तू तो बहुत हमदर्द बन रहा है मेरा।"
"हमदर्द हूं तभी तो अकेला आया हूं।" कामटे मुस्कुराया--- "रात करकरे मर गया।"
"तूने मारा?"
"मैं ये काम क्यों करूंगा। देवराज चौहान उस तक पहुंच गया होगा।"
चौला गुर्राया।
"मैं तेरे से दोस्ती करने आया हूं। नोट दे और दोस्ती कर...।" कामटे शांत स्वर में बोला।
"नोट...।"
"तेरी खबर अपने तक ही रखूंगा।"
"मैं तेरे को अभी खत्म कर सकता हूं...।"
"बच्चों की तरह बातें मत कर। कुछ तो इंतजाम करके ही आया हूं मैं। मुझे मारा तो पुलिस तेरी लाश को उल्टा लटका देगी। दोस्ती की बात कर, जैसे मैं बात कर रहा हूं...।" कामटे ने मुस्कुराकर कहा।
दीपक चौला, कामटे को घूरता रहा फिर बोला---
"पुलिस हमारे पीछे से कब हटेगी?"
"होटल में मिली लाशों की वजह से पुलिस तुम लोगों के पीछे है।"
"वो लाशें देवराज चौहान और जगमोहन ने बिछाई थीं...।" चौला ने कहा।
"पुलिस तुम सबको ही कसूरवार मान रही है। क्योंकि देवराज चौहान और जगमोहन मौत के दरवाजे पर पड़े मिले पुलिस को। जब पुलिस के हाथ लगो तो तब सफाई देना।"
"मैंने पूछा है कि पुलिस कब हमारे पीछे से हटेगी?"
"अभी तो इस बात का कोई चांस नहीं। कमीशन बाजरे इस मामले में व्यक्तिगत दिलचस्पी ले रहा है। बेहतर होगा कि कमिश्नर बाजरे को सेट करो। वो चाहेगा तो सब ठीक हो सकता है।" कामटे ने सरल स्वर में कहा।
दीपक चौला दांत भींचे कामटे को देखता रहा।
"तू यहीं रह। निश्चिंत होकर रह। किसी को पता नहीं चलेगा कि तू यहां है।"
"बीयर पिएगा?" दीपक चौला ने पूछा।
"क्यों नहीं, तेरे साथ बीयर पीने में मुझे खुशी होगी।" कामटे मुस्कुराया।
चौला ने वहां मौजूद आदमियों को इशारा किया।
एक ने फौरन बीयर के दो गिलास तैयार किए। एक कामटे को दिया, दूसरा दीपक चौला को।
कामटे ने बीयर का घूंट भरा, फिर कहा---
"मेरे को क्या देगा, मुंह बंद रखने का...।"
"तेरे लिए तो पांच बहुत है।"
"ये तू अपनी कीमत लगा रहा है या मेरी?"
दीपक चौला ने कामटे को तीखी नजरों से देखा।
"कुछ तो ठीक लगा कीमत।" कामटे मुस्कुराया--- "इसमें तेरी भी तो इज्जत है।"
"दस दूंगा।"
"बीस।" कामटे बोला--- "मेरे से बना के रख, तेरे को फायदा होगा।"
दीपक चौला ने बीयर का घूंट भरा, फिर बोला---
"तेरे कमिश्नर को कैसे लाइन पर लाऊं?"
"ये देखना तुम्हारा काम है। एक काम तुम लोगों ने गलत किया।"
"बोल...।"
"इंस्पेक्टर विजय सावटे को गोली से उड़ा दिया।"
"ये मैंने नहीं किया। सर्दूल ने किया है। वो कमिश्नर को डराकर, उसे इस काम से पीछे हटाना चाहता था।"
"और कमिश्नर डरा नहीं...।" कामटे ने गहरी सांस ली।
"बता वो कैसे डरेगा?"
"ये तो मेरे को पता नहीं। लेकिन उसे डराने की अपेक्षा, उसे नोट दो तो ज्यादा ठीक रहेगा।"
"वो नोट ले लेगा?"
"नोट कौन नहीं लेता! कोई ज्यादा लेता है तो कोई कम लेता है।"
"बातें तो तू समझदारी की करता है।"
"यहां तक आना ही, मेरा समझदारी का नतीजा है।" कामटे बोला--- "तो बीस लाख मेरे हवाले करो।"
"तू घर पहुंच। तेरे साथ-साथ बीस-बीस लाख भी तेरे को पहुंचेगा।"
"मेरा घर पता है?"
"सब खबर है...।"
कामटे ने बीयर का गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ।
"मेरे को खबर देता रह। मैं तेरे को नोट दूंगा।" चौला ने कहा।
"अब तो हम में संबंध बन ही गया है।" कामटे मुस्कुराया--- "मैं तुम्हें खबरें दूंगा। कमिश्नर बाजरे से बात करो। वो चाहेगा तो सारी मुसीबतें तुम लोगों से हट जाएंगी। आजकल धमकी देने से काम नहीं बनते।"
दीपक चौला ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया।
कामटे बाहर निकल गया। एक आदमी उसको बाहरी फाटक तक छोड़ गया। फाटक की रखवाली में बैठे दादाओं से कामटे ने अपनी रिवाल्वर ली और बाहर निकलता चला गया। कामटे ने वानखेड़े से मिलने का विचार छोड़ दिया। ये खतरनाक मामला था। इस मामले से अब वो खुद को बचा लेना चाहता था। वरना कभी भी कोई गोली आकर उसे लग सकती थी।
■■■
कामटे अपने घर पहुंचा।
दरवाजे पर ताला न देखकर सबसे पहले पत्नी सुनीता का चेहरा चमका। फिर देवराज चौहान ख्यालों में आया कि, पहले की तरह कहीं देवराज चौहान भीतर तो नहीं? इसी उलझन में फंसा वो दरवाजे तक पहुंचा। दरवाजा भीतर से बंद था।
सुनीता ही आ गई होगी?
इस विचार के साथ कामटे मुस्कुरा पड़ा और दरवाजा थपथपाया।
कुछ पलों का दरवाजा खुला।
सामने देवराज चौहान को देखकर कामटे हक्का-बक्का रह गया। अपने कपड़ों को भी पहचाना जो देवराज चौहान ने पहने हुए थे। कई पलों तक कामटे के होंठों से कोई शब्द न निकला।
"अंदर आओ।" देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला।
कामटे ने खुद को संभाला। सिर घुमाकर बाहर सड़क की तरफ देखा।
"सुना नहीं भीतर आओ...।"
कामटे ने गहरी सांस ली और भीतर आ गया।
देवराज चौहान दरवाजा बंद करते कह उठा---
"तुमने पहले की तरह आज भी यही सोचा होगा कि तुम्हारी पत्नी भीतर होगी।"
कामटे सिर हिलाकर रह गया। फिर बोला---
"तुम कब से हो यहां पर?"
"सुबह से।"
"आठ बजे तो मैं यहां से गया था।"
"नौ बजे मैं आया।" देवराज चौहान ने कठोर निगाहों से उसे देखा--- "तुम्हारी हालत बता रही है कि तुमने वो इंजेक्शन नहीं दिया परमजीत को। दिया होता तो सबसे पहले तुम उसी का जिक्र करते।"
कामटे ने गहरी सांस ली और आगे बढ़कर फ्रिज से पानी की बोतल निकाली।
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
कामटे ने पानी पिया और बोतल वापस फ्रिज में रखता कह उठा---
"रात तुमने वंशू करकरे का शिकार कर लिया?"
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
"कम से कम हां तो कह दो।"
"हां, मैंने मारा उसे।"
"जानता हूं कि तुमने ही मारा।" कामटे आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठ गया--- "तुम बार-बार मेरे घर क्यों आते हो? तुमने मेरे कपड़े भी पहन रखे हैं। चाय-वाय भी पी होगी। आराम भी किया होगा और...।"
"मैंने तुम्हें कहा था कि अगर तुमने परमजीत को नहीं मारा तो मैं तुम्हें मार दूंगा।" देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
"बहुत तेज जहर था इंजेक्शन में। लैबोरेट्री में उस जहर की जांच करवाई है मैंने।" कामटे शांत स्वर में कह उठा।
"तुम शायद मुझे मजाक समझ रहे हो।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा और रिवाल्वर निकाल ली।
कामटे सकपका उठा।
"ये जेब में रखो। मुझे रिवाल्वर दिखाकर डराने की कोशिश मत करो। वानखेड़े साहब कहते हैं कि देवराज चौहान पुलिस वालों की जान नहीं ले सकता। वो गारंटी से ये बात कहते हैं।"
"मरने के बाद वानखेड़े से पूछना कि गारंटी कहां गई।" देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा और रिवाल्वर वाला हाथ सीधा किया। चेहरे पर खतरनाक भाव आ गए थे।
ये देखकर कामटे कांप उठा।
"रुको। ये क्या कर रहे हो...।"
तभी कॉलबेल बज उठी।
दोनों की निगाह दरवाजे की तरफ गई।
"मैं देखता हूं।" कामटे कुर्सी से उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ा।
देवराज चौहान फौरन उसके साथ हो गया और रिवाल्वर उसकी कमर से लगाकर कहा---
"कोई चालाकी मत करना।"
कामटे ने दरवाजा खोला।
देवराज चौहान उसकी कमर से रिवाल्वर लगाए रहा। परंतु इस तरह ओट में रहा कि बाहर वाले उसे ना देख सकें।
बाहर एक आदमी कपड़े का थैला संभाले खड़ा था। कामटे को देखते ही उसने थैला आगे बढ़ाया।
"ये लो पूरे बीस हैं। गिन लो।"
"पूरे ही होंगे।" कामटे ने थैला पकड़ा--- "मेरा शुक्रिया कह देना।"
वो आदमी चला गया।
थैला संभाले कामटे पीछे हटा और दरवाजा बंद किया।
देवराज चौहान ने उसकी कमर से रिवाल्वर हटाई और कामटे से थैला नीचे रखवाकर उसे चैक करने लगा।
"बीस लाख का रोकड़ा है। कामटे ने कहा और फुर्ती से रिवाल्वर निकालकर, थैले पर झुके देवराज चौहान के सिर पर रिवाल्वर रखकर गुर्राया--- "खबरदार, हिलना मत...।"
देवराज चौहान झुका-झुका वैसे ही ठिठका रह गया।
"तुमने ये नहीं सोचा कि इस पुलिस वाले के पास रिवाल्वर हो सकती है? तुमने सोचा कि एक बार तुमने मुझसे रिवाल्वर छीन ली तो, दोबारा मेरे पास रिवाल्वर होगी ही नहीं...।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
कुछ क्षण चुप्पी में बीत गए।
कामटे ने रिवाल्वर उसके सिर से हटाई और जेब में वापस रखता कह उठा---
"सीधे हो जाओ। तुम पर गोली चलाने का मेरा कोई इरादा नहीं है।"
देवराज चौहान सीधा खड़ा हो गया। चुभती नजरों से कामटे को देखा।
कामटे वापस कुर्सी पर जा बैठा था।
देवराज चौहान ने हाथ में थमी रिवाल्वर जेब में रखी और शांत स्वर में बोला---
"ये बीस लाख कहां से आए? कौन दे गया?"
"ये रिश्वत है।" कामटे गंभीर स्वर में बोला--- "दीपक चौला का आदमी दे गया है।"
"दीपक चौला?" देवराज चौहान के दांत भिंच गए--- "किस बात की रिश्वत दी है उसने?"
"कि मैं उसके छिपने का ठिकाना, पुलिस डिपार्टमेंट में को न बताऊं...।"
"क्या मतलब?" देवराज चौहान चौंका--- "तुम जानते हो कि दीपक चौला कहां है?"
"हां। सीधा उसी से मिलकर आ रहा हूं।" सामान्य स्वर में कहा कामटे ने।
देवराज चौहान कुछ पलों तक कामटे को देखता रहा, फिर बोला---
"तुमने अपने डिपार्टमेंट से गद्दारी क्यों की?"
"गद्दारी नहीं- ये ईमानदारी है।" कामटे गंभीर स्वर में बोला--- "मैं मामूली सा सब-इंस्पेक्टर हूं। इतने बड़े मगरमच्छों से पंगा लेकर जिंदा नहीं रह सकता। चौला को अगर गिरफ्तार कर लेता ढेर सारे पुलिस वालों को ले जाकर, तो कोई ना कोई मुझे खत्म कर देता और चौला सलामत फिर बाहर आ जाता। मैं बलि का बकरा नहीं बनना चाहता था, यही वजह रही कि मैंने चौला से समझौता कर लिया।"
देवराज चौहान के दांत भिंचे रहे।
कुछ पल उनके बीच खामोशी रही।
"कहां छुपा है दीपक चौला?"
"तुम्हें बताना ठीक होगा?" कामटे गंभीर था।
"हां, मुझे बताना ठीक होगा।" देवराज चौहान के चेहरे पर वहशी भाव नाच उठे।
कामटे कुछ पल देवराज चौहान के चेहरे को देखता रहा, फिर बताया कि चौला कहां छुपा है।
देवराज चौहान इस वक्त दरिंदा खतरनाक लग रहा था।
"मैं दिन भर तुम्हारे घर पर रहूंगा। रात को यहां से जाऊंगा।" देवराज चौहान बोला।
"ठीक है।" कामटे गंभीर था।
"कोई चालाकी मत करना... वरना...।"
"क्या तुम्हें लगता है कि मैं कोई चालाकी करूंगा?"
देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी नाचती रही।
"मेरे तरफ से निश्चिंत रहो।" कामटे उठते हुए बोला--- "मैं चाय बनाता हूं। फिर तुम्हें बाजार से कपड़े लाकर दूंगा। अगर तुम मेरे कपड़े पहनकर यहां से निकलोगे तो कोई मुझे और मेरे कपड़ों को पहचान लेगा और मुसीबत मेरे सिर आ जाएगी।" कामटे किचन की तरफ बढ़ गया।
होंठ भींचे देवराज चौहान आगे बढ़कर सोफे पर जा बैठा। ये उसके लिए बहुत राहत की बात थी कि दीपक चौला का ठिकाना मालूम हो गया है। आज रात दीपक चौला का शिकार भी हो जाएगा। इसके साथ ही उसकी आंखों के सामने जगमोहन का चेहरा चमका। जाने वो कहां होगा? जिंदा भी होगा या नहीं?
देवराज चौहान की आंखों में पानी चमक उठा, साथ ही होंठों से गुर्राहट निकली---
"मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूंगा सर्दूल...।"
इससे पहले कि कहानी आगे बढ़े, पाठकों को बता दें कि बीते वक्त में क्या हुआ था। उस दिन आर्य निवास होटल में पुलिस पहुंची तो वहां पर क्या हुआ हुआ पड़ा था।
कालबा देवी रोड पर स्थित आर्य निवास होटल।
बीस मिनट पहले होटल के आसपास सब कुछ सामान्य था। रोजमर्रा की भांति चहल-पहल और शांति थी। लेकिन लोगों ने एकाएक, धमाकों और गोलियां चलने की आवाजें सुनीं। चीखो-पुकार सुनी। ये सब करीब तीस मिनट तक चलता रहा। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। परंतु होटल के भीतर गोलियां चल रही हैं, ये तो हर किसी को पता चल गया था। बाहर मौजूद लोग इधर-उधर दुबक गए थे। उन्हें मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले की याद ताजा हो गई थी। ये सब बीस मिनट तक चलता रहा।
फिर शांति छा गई।
बेहद गहरा सन्नाटा।
जिस-जिस के कानों में फायरिंग की आवाज पड़ी थी, उनके चेहरों पर और आंखों में सवाल था कि क्या हुआ है होटल के भीतर? लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था।
तभी काफी सारे लोग होटल से बाहर निकले। अधिकतर ने रिवाल्वरें थाम रखी थीं। वो जल्दी में लग रहे थे। देखते ही देखते वो पार्किंग में खड़ी अपनी कारों में बैठे और कारें चल पड़ीं। कुल छः कारें थीं, जो कि आदमियों से ठुंसी भरी हुई थीं। फिर वो कारें आर्य निवास होटल से दूर होती चली गईं।
उनके जाने के पश्चात होटल में सन्नाटा और बढ़ गया था।
■■■
आर्य निवास होटल के बाहर हर तरफ पुलिस की कारें ही दिखाई दे रही थीं। सायरन बज रहे थे। पुलिस कारें आती जा रही थीं। हर तरफ खाकी वर्दियां ही दिखाई दे रही थीं।
किसी ने आर्य निवास होटल में हुए गोलाबारी के बारे में पुलिस को फोन किया था।
पहले एक पुलिस कार ही वहां पहुंची थी। जिसमें एक सब-इंस्पेक्टर और एक हवलदार और दो कांस्टेबल थे। वे सब होटल में गए और तुरंत ही बाहर आ गए थे। उनके चेहरों पर हवाईयां उड़ रही थीं। उन्होंने फौरन अपने ऑफिसरों को आर्य निवास होटल के भीतरी हालातों के बारे में जानकारी दी।
उसके बाद तो जैसे पुलिस डिपार्टमेंट में हड़कम्प मच गया था।
मात्र आधे घंटे में ही वहां एक के बाद एक पुलिस कार सायरन बजाती पहुंचने लगी थीं।
ये इलाका कमिश्नर बाजरे के अंदर आता था। वो वहां पहुंचकर कार से बाहर निकला तो वहां मौजूद पुलिस वाले सैल्यूट देने लगे उसे। कमिश्नर बाजरे ने पास के पुलिस वाले से पूछा---
"भीतर कौन गया था?"
"सर...सर वो सब-इंस्पेक्टर कामटे गया था।" उसने जल्दी से कहा--- "वो ही सबसे पहले पहुंचा।"
"उसके बाद कौन गया था?" कमिश्नर बाजरे ने पूछा।
"कोई नहीं सर। आपका ऑर्डर था कि हम यहां पहुंचें और भीतर न जाएं, आपके आने तक...।"
"सब-इंस्पेक्टर कामटे को बुलाओ।"
"जी...।" वो पुलिसवाला फौरन एक तरफ चला गया।
कमिश्नर बाजरे की नजरें हर तरफ घूमने लगीं। चेहरे पर गंभीरता थी।
वो पुलिसवाला मिनट भर में ही सब-इंस्पेक्टर कामटे को लेकर आ गया।
"ये सब-इंस्पेक्टर कामटे है।" उस पुलिसवाले ने कहा।
सब-इंस्पेक्टर कामटे ने जोरदार सैल्यूट दिया।
"तुम सबसे पहले यहां आए और भीतर गए?" बाजरे ने पूछा।
"य...यस सर...।" उसके होंठों से सूखा सा स्वर निकला।
कमिश्नर बाजरे ने पास खड़े पुलिसवाले से कहा---
"तुम सब लोग, होटल के स्टाफ, यहां ठहरे लोगों और होटल के बाहर, आसपास रहने वाले लोगों के बयान लो। जो गवाह बनाने के काबिल लगे, उसका अता-पता ठीक से नोट कर लेना। मैं कामटे के साथ भीतर जाकर देखता हूं। उसके बाद भीतर कार्यवाही करेंगे। चलो कामटे, तुमने जो देखा, वो सब मुझे भी देखना है।"
"ज...जी सर...।"
कमिश्नर बाजरे, सब-इंस्पेक्टर कामटे के साथ होटल के भीतर प्रवेश कर गया।
होटल के भीतर जर्रे-जर्रे पर पुलिस वाले मौजूद थे। होटल को पुलिस ने पूरी तरह कब्जे में कर रखा था। जहां गोलियां चली थीं, उस तरफ होटल के स्टाफ का जाना भी मना था।
बाजरे और कामटे लिफ्ट से दूसरी मंजिल पर पहुंचे।
"इधर सर।" सब-इंस्पेक्टर कामटे लिफ्ट से निकलकर, एक तरफ इशारा करता कह उठा।
बाजरे, कामटे के साथ आगे बढ़ गया।
"क्या हुआ पड़ा है कामटे?"
"बहुत बुरा हाल है सर।"
"मुझे बताओ...।"
कामटे फौरन कुछ ना कह सका।
कमिश्नर बाजरे ने कामटे पर नजर मारी।
"चुप क्यों हो गए?"
"समझ में नहीं आता कि कहां से शुरू करूं...?"
"कहीं से भी शुरू कर दो।"
"हम पहुंच ही गए हैं सर।" सब-इंस्पेक्टर कामटे व्याकुल सा कह उठा--- "बेहतर होगा कि आप खुद ही सब देखें।"
"तो तुम नहीं बताना चाहते?"
"म...मैं...मेरे मुंह से कुछ निकल नहीं रहा सर। ऐसा नजारा मैंने पहले कभी नहीं देखा।" कामटे के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई--- "लाशें, कत्ल, हत्या, सब कुछ बहुत बार देखा है--- परंतु ये नजारा पहली बार देखा है।"
कमिश्नर बाजरे के चेहरे पर गंभीरता आ ठहरी।
"तुम ऐसा कह रहे हो तो यकीनन कुछ खास ही होगा।"
कामटे सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।
कामटे गैलरी के मोड़ पर पल भर के लिए ठिठका। ठीक सामने छः फीट चौड़ा और आठ फीट ऊंचा लकड़ी का दरवाजा था। उसकी तरफ इशारा करता कामटे हड़बड़ाए स्वर में बोला---
"यही वो हॉल है सर।"
कमिश्नर बाजरे माथे पर बल डाले तेजी से आगे बढ़ा और दरवाजे के दोनों पल्लों को धकेला तो वे खुलते चले गए। बाजरे फौरन भीतर प्रवेश कर गया।
अगले ही पल उसके कदम जड़ होकर रह गए।
सेकंडो में आंखें पूरे हॉल का नजारा कर गई।
पन्द्रह कमरों जितना बड़ा हॉल था वो। वहां टेबल, कुर्सियां, बेड, अलमारियां जो भी फर्नीचर था, अपनी जगह से हटा हुआ इधर-उधर बिखरा पड़ा था। लगता था जैसे कमरे में बहुत बड़ा तूफान आकर हटा हो। हर जगह खून के छींटे और बिखरा खून था। हर तरफ लाशें बिखरी पड़ी थी। गोलियां लगी लाशें। कोई लाश कुर्सी पर लटकी पड़ी थी तो किसी लाश का आधा शरीर टेबल पर और बाकी का नीचे लटक रहा था। फर्श पर ही पूरे हॉल में जाने कितनी लाशें पड़ी थी। लाशों की हालत ये बात स्पष्ट उजागर कर रही थी कि वहां अचानक ही गोलियां चलनी शुरू हुईं कि किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। ये सब मरते गए।
कई लाशों के हाथों में रिवाल्वरें दबी थी।
कई रिवाल्वरें फर्श पर बिखरी पड़ी थी।
मौत का नंगा नाच हुआ था यहां। ये तो स्पष्ट ही दिखाई दे रहा था।
कमिश्नर बाजरे के होंठ भिंच गए। चेहरे पर गंभीरता नाच उठी।
यहां ऐसा बुरा नजारा होगा, उसने कल्पना भी नहीं की थी।
तेज सांसों की आवाजें सुनकर बाजरे ने सिर हिलाया तो पास में कामटे को खड़ा पाया।
"यहां तो तबीयत से गोलियां चलाकर लोगों को मारा गया है।" बाजरे बोला।
"ब...बीस मिनट तक गोलियां चलती रही सर।"
"बीस मिनट?" बाजरे की नजरें पुनः लाशों पर जाने लगी--- "फिर तो कम लाशें हैं ये। इतनी लाशें तो सात-आठ मिनट में बिछाई जा सकती हैं। तुम इन मरने वालों में से किसी को जानते हो?"
"म...मैं मैंने अभी तक किसी का चेहरा नहीं देखा सर।" सब-इंस्पेक्टर कामटे ने पुनः सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- "जब मैं आया तो यहां का हाल देखकर मैंने दरवाजा बंद कर दिया और फौरन आपको खबर दी।"
"ये सब देखकर मुझे बुरा लग रहा है। अखबार और टी•वी• न्यूज़ वाले हमारा जीना हराम कर देंगे। एक साथ इतनी लाशें!" फिर बाजरे आगे बढ़ा और वहां फैली लाशों को गिनने लगा।
अभी आधी लाशें ही गिन पाया था कि एकाएक ठिठका।
एक के पांव में उसने हल्का सा कंपन होते देखा।
"कामटे।" कमिश्नर बाजरे ने कहा--- "ये सब लाशें नहीं हैं, इनमें जिंदा भी हैं। जो जिंदा हैं, उन्हें फौरन अस्पताल पहुंचाने का इंतजाम करो। बाहर से पुलिस वालों को बुलाओ।"
सब-इंस्पेक्टर कामटे फौरन पलटकर बाहर की तरफ भागा।
कमिश्नर बाजरे उसके पास पहुंचा जिसकी टांग हिलती देखी थी उसने। पास पहुंचकर ठिठका और नीचे झुककर गहरी निगाहों से उसका चेहरा देखने लगा।
वो शख्स और कोई नहीं, देवराज चौहान ही था।
डकैती मास्टर देवराज चौहान।
देवराज चौहान के चेहरे की हालत बहुत बुरी थी। चेहरे के निशान स्पष्ट दर्शा रहे थे कि उसे बहुत बुरी तरह मारा गया है। एक आंख सूजी हुई थी। होंठ फटे थे घूंसों से। चेहरा खून में डूबा हुआ था। शरीर पर कई जगह चाकू के घाव भी दिखे। कमिश्नर बाजरे होंठ सिकोड़े उसका मुआयना करता रहा। तभी उसकी निगाह देवराज चौहान के सिर के ऊपरी हिस्से पर पड़ी। वहां जख्म दिखा, ध्यान से देखने पर उसने महसूस किया कि सिर पर गोली लगी है, जो कि सिर के ऊपरी हिस्से को चीरते हुए निकल गई है। बाजरे समझ नहीं पाया कि आखिर यहां क्या हुआ होगा?
कमिश्नर बाजरे की निगाह देवराज चौहान के शरीर के नीचे, बाकी शरीर पर फिरने लगी।
बहुत पिटाई की गई थी उसकी।
पूरा घायल शरीर इस बात का गवाह था कि उसे जान से खत्म करने की चेष्टा की गई है। परंतु ये अभी तक जिंदा था। बाजरे सीधा हुआ और वहां मौजूद बिखरी लाशों पर नजरें दौड़ाने लगा।
उसी पल कामटे ने भीतर प्रवेश किया। साथ में सात-आठ पुलिस वाले थे। उन्होंने फोल्डिंग स्ट्रेचर भी पकड़ रखा था। बाजरे उन्हें देखकर ही कह उठा---
"इस आदमी को फौरन हॉस्पिटल पहुंचाओ। इसकी सांसे चल रही हैं अभी...।"
तीन पुलिसवाले स्ट्रेचर के साथ देवराज चौहान के पास आ पहुंचे।
कमिश्नर बाजरे वहां से हटता बाकी पुलिसवालों से कह उठा---
"तुम सब सावधानी से, यहां पड़ी लाशों को चैक करो। शायद कोई और भी जिंदा हो। लेकिन ये काम सावधानी से हो। किसी भी चीज के साथ ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करनी है। कोई सबूत या उंगलियों के निशान मिटें नहीं। सिर्फ जिंदा या मुर्दा चैक करो और बाहर निकल जाओ। ये कोई गंभीर मामला लगता है।"
फिर सब पुलिसवाले वहां पड़ी लाशों की तरफ बढ़ गए।
चैक करने लगे कि कोई जिंदा तो नहीं है उनमें।
तब तक तीन पुलिसवाले देवराज चौहान को स्ट्रेचर पर डाले बाहर निकल चुके थे।
कमिश्नर बाजरे गंभीर सा खड़ा वहां नजरें दौड़ाता रहा। वो जानता था कि यहां जो भी हुआ, खास हुआ था। वरना इतनी लाशें न पड़ी होतीं। लेकिन उसे भरोसा था कि वो मामले की तह तक पहुंच जाएगा। काफी लाशें थी यहां। इसकी पहचान होते ही मामले की परतें खुलनी शुरू हो जाएंगी।
"सर।" एकाएक पुलिस वाले ने कहा--- "यहां एक जिंदा है।"
"यहां भी एक जिंदा है सर...।" दूसरे पुलिसवाले की आवाज में आई।
"ये भी मुझे जिंदा लगता है सर। पर बहुत बुरी हालत है इसकी। शरीर पर चाकुओं के निशान, पिटाई भी की गई है... और सिर में गोली लगी है। परंतु फिर भी जिंदा है। नब्ज धीमी गति से चल रही है।"
कमिश्नर बाजरे उसके पास पहुंचा। मुआयना करने लगा।
वो जगमोहन था।
उसकी हालत तो देवराज चौहान से भी बुरी थी। हैरत थी कि सिर में गोली लगने पर भी वो जिंदा था।
"इन तीनों को हॉस्पिटल ले जाओ। स्ट्रेचर का इंतजार मत करो। कंधों पर डालो और बाहर गाड़ी तक ले जाओ।"
आनन-फानन उन्हें उठाया गया और वो बाहर निकल गए।
सब-इंस्पेक्टर कामटे गंभीर सा कमिश्नर बाजरे के पास पहुंचा।
"फिंगरप्रिंट, डॉक्टर, फोटोग्राफर और...।"
"सब कभी भी पहुंच सकते हैं सर। वे रास्ते में हैं।" कामटे ने व्याकुल स्वर में कहा--- "यहां क्या हुआ होगा सर?"
"पता नहीं। लेकिन जो भी हुआ है, बुरा हुआ है। बहुत ही बुरा। लगता है जैसे कहर बरपा हो।"
कुछ ही देर में फिंगरप्रिंट स्टाफ, फोटोग्राफर, डॉक्टर आ गया।
उन सबने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी।
कमिश्नर बाजरे, कामटे के साथ बाहर निकला।
"तुम मेरे साथ ही रहोगे कामटे।"
"यस सर...।"
"आओ, होटल वालों से पूछताछ कर ली जाए...।"
"जी। लेकिन ये केस आप जिसके हवाले करना चाहते हैं, पूछताछ में उसे भी साथ रखिए सर तो...।"
"कामटे।" कमिश्नर बाजरे एकाएक मुस्कुराकर बोला--- "अभी तो इस केस पर मैं ही काम कर रहा हूं।"
"आप...सर?" कामटे के होंठों से निकला।
"हां। क्योंकि ये केस मुझे कुछ खास लग रहा है। ऐसा मामला मैंने पहले कभी नहीं देखा।" कमिश्नर बाजरे ने कहा और उसकी निगाह सामने से आते इंस्पेक्टर शेखर पेरवले पर टिक गई।
इंस्पेक्टर शेखर पेरवले बाजरे के अंडर ही तैनात था।
पेरवले ने सैल्यूट दिया पास आकर और बोला---
"सर! ये केस मुझे सौंप दीजिए। मैं ये सारा मामला सुलझा लूंगा।"
"वहां हॉल में पड़ी लाशों का पंचनामा करना है। डॉक्टर भी वहीं है। तुम वो सब संभालो अभी। आओ कामटे।"
कमिश्नर बाजरे और सब-इंस्पेक्टर कामटे आगे बढ़ गए।
■■■
कमिश्नर बाजरे और सब-इंस्पेक्टर कामटे होटल के ही एक कमरे में मौजूद थे और वहां पूछताछ के लिए कई कर्मचारी बुला रखे थे। सबसे पहले पूछताछ फ्लोर मैनेजर से शुरू की।
"तुम्हारा नाम?"
"किशन वासवानी...।" उसने कहा। वो पैंतालीस वर्ष का स्वस्थ शरीर का व्यक्ति था। सांवला रंग। होंठों पर मूंछें।
"बैठ जाओ।"
किशन वासवानी बैठ गया।
"क्या हुआ था दूसरी मंजिल पर?"
किशन वासवानी बेचैन और सोचों में डूबा दिखा।
"होटल के दूसरे फ्लोर के मैनेजर तुम हो?" बाजरे ने पूछा।
"हां...।"
"तो तुम्हें वहां के हालात सबसे ज्यादा मालूम होने चाहिए।"
"आप ठीक कहते हैं, लेकिन मैं ज्यादा कुछ नहीं जानता।"
"ये कैसे हो सकता है? वो लोग इस होटल के हॉल में कैसे मौजूद थे?"
"वो हॉल आज के दिन के लिए बुक किया गया था। बर्थ-डे पार्टी के लिए।"
"किसने बुक किया?"
"बंसीलाल मराठे नाम के आदमी ने...।"
"वो कौन है?"
"मैं नहीं जानता। होटल के रजिस्टर में उसके बारे में जानकारी होगी।"
"रजिस्टर मंगवाओ।"
किशन वासवानी ने वहां मौजूद होटल के स्टाफ के एक आदमी को रजिस्टर लाने को कहा।
"तुमने बंसीलाल मराठे को देखा था?"
"कह नहीं सकता।"
"क्या मतलब?"
"वो जो भी लोग थे, होटल से खाने-पीने का सामान उस हॉल में रखवा लिया था। परंतु होटल की सर्विस उन्होंने नहीं ली। वो नहीं चाहते थे कि कोई बाहरी आदमी उनकी पार्टी में मौजूद हो...।" किशन वासवानी ने कहा।
"तुमने आने वालों को देखा?"
"कुछ को।"
"किसी को पहचानते हो?"
"किसी को भी नहीं। परंतु जिन्हें देखा, उन्हें अब देखूंगा तो पहचान लूंगा।"
"वो लोग कब आए होटल में?"
"बारह बजे आना शुरू हो गए थे। अलग-अलग आए थे। 25-30 लोग होंगे कुल। पांच-छः लोगों के ग्रुप में वो लोग आए थे। वो खतरनाक दिख रहे थे। उनके पास रिवाल्वरें थीं...।"
"तुमने कैसे देखा रिवाल्वरों को?"
"कईयों के पास रिवाल्वर की झलक मिली थी। जैसे वो पांच-छः के ग्रुप में आते तो उनमें से एक ही खास लगा मुझे। बाकी सब जैसे उसके रक्षक के तौर पर लगे मुझे।"
"तो क्या ये 'डॉन' लोगों की मीटिंग लगी तुम्हें?"
"नहीं जानता। यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकता।"
"फिर क्या हुआ, कब तक वे सब लोग आते रहे?"
"दो बजे तक मेरे ख्याल में वे सब आ गए थे। उस हॉल के दरवाजे पर दो आदमी पहरे के लिए खड़े थे जिससे कि कोई भीतर ना जा सके। उनकी गतिविधियां रहस्यमय जैसी थीं। उस हॉल में सी•सी•टी•वी• कैमरे लगे थे, जिन्हें कि उन्होंने बुकिंग के वक्त ही, आज के दिन के लिए काटने को कह दिया था। हमने कस्टमर की बात मानी और ऐसा ही किया।" किशन वासवानी गंभीर स्वर में कह रहा था--- "वे पेमेंट दे चुके थे, हॉल के किराए की।"
"गोलियां चलने की आवाजें कब सुनीं?"
"शाम साढ़े चार बजे के करीब...एक मिनट, उनमें से एक आदमी अकेला आया था। लेकिन वो कुछ खास था। क्या खास था वो, ये नहीं मैं समझ पाया। वो होटल के बाहर टैक्सी से उतरा था। टैक्सी वाले को किराया देकर भीतर आया और मेरे से ही उसने उस हॉल के बारे में पूछा था तो मैं उसे ऊपर हॉल तक छोड़कर आया था।"
"रास्ते में उससे कोई बात हुई?"
"नहीं।"
"वो कैसा था देखने में?"
"55-57 की उम्र होगी उसकी। परंतु वो फुर्तीला था। चुस्त था। सिर के बाल अधिकतर सफेद थे। चांदी की तरह सफेद। क्लीन शेव्ड था वो। कद-काठी साधारण थी।" किशन वासवानी बोला।
"उसमें क्या खास लगा तुम्हें?"
"कह नहीं सकता। परंतु वो जरूर कुछ खास लगा। अकेला आया था वो। उसकी तरह अकेला कोई नहीं आया था।"
"बाकी लोगों का क्या हुआ हुलिया था?"
"किस-किस का हुलिया बताऊं, वो 25-30 लोग थे।"
"बताना तो सबका ही पड़ेगा। लेकिन बाद में ही सही। तो साढ़े चार बजे गोलियां चलने की आवाजें सुनीं?"
"हां...।"
"फिर? कितनी देर गोलियां चलीं?"
"15-20 मिनट गोलियां चलती रहीं। होटल में आवाजें गूंजती रहीं। किसी की हिम्मत ना हुई उस हॉल की तरफ जाने की। हमने पुलिस को फोन कर दिया था। होटल के कुछ कर्मचारी उस हॉल तक गए, परंतु दरवाजा भीतर से बंद था और भीतर गोलियां चल रही थीं। वो डर से वापस आ गए...।"
"फिर...?"
"जब गोलियां चलनी बंद हुईं तो दो-चार मिनट बाद उस हॉल का दरवाजा खुला और दस-बारह लोग बाहर निकले और वहां से चले गए। उनमें सफेद बालों वाला वो खास व्यक्ति भी था। तब कईयों ने रिवॉल्वरें पकड़ी हुई थीं। उनमें से दो-तीन घायल भी थे तब। वो सब बहुत खतरनाक लग रहे थे...।"
"होटल वालों ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की तब?" कमिश्नर बाजरे ने पूछा।
किशन वासवानी ने बाजरे को घूरा।
"क्या हुआ?"
"कोई मरना नहीं चाहता था, इसलिए जब वो लोग जा रहे थे तो उन्हें रोका नहीं।" किशन वासवानी ने गहरी सांस लेकर कहा।
"अभी तुमसे बहुत पूछताछ करनी है। तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।" बाजरे ने कहा।
"ठीक है।" किशन वासवानी ने सिर हिला दिया।
कमिश्नर बाजरे बाकी लोगों से पूछताछ में व्यस्त हो गया।
सब-इंस्पेक्टर कामटे हर पल बाजरे के साथ रहा।
फिर इंस्पेक्टर शेखर पेरवले वहां आया।
"सर, लाशों का पंचनामा किया जा रहा है। कल सुबह उनका पोस्टमार्टम हो जाएगा।"
कमिश्नर बाजरे ने गर्दन घुमाकर इंस्पेक्टर पेरवले को देखकर कहा---
"जिन लोगों को हॉस्पिटल भेजा है, वो चार लोग, उन पर सख्त पहरा लगा दो। तुम भी वहां रहो। पहरा इतना सख्त हो कि कोई बाहरी आदमी उन तक ना पहुंच सके। उन्हें मारने के लिए उन पर फिर हमला हो सकता है। क्योंकि यहां से कुछ लोग गोलियां चला कर बाहर गए हैं और वो चार जिंदा बच गए हैं।"
"मैं समझ गया सर। मैं अभी हॉस्पिटल जाता हूं।" कहने के साथ ही इंस्पेक्टर शेखर पेरवले बाहर निकलता चला गया।
■■■
कमिश्नर बाजरे इंस्पेक्टर विजय सावटे से मिला, जो कि होटल के भीतर और बाहर पूछताछ कर रहा था।
सब-इंस्पेक्टर कामटे, बाजरे के साथ था।
"सावटे।" कमिश्नर बाजरे ने पूछा--- "क्या पूछताछ की तुमने?"
"सर, यहां बर्थ डे पार्टी थी। दूसरी मंजिल का हॉल बर्थ डे पार्टी के लिए आज के लिए किराए पर लिया...।"
"लेकिन वहां कोई बर्थ डे केक नहीं है।" सब-इंस्पेक्टर कामटे ने कहा।
बाजरे और सावटे की निगाह, कमरे की तरफ गई।
"तुमने अच्छी तरह ये बात नोट की थी कामटे?" बाजरे ने पूछा।
"यस सर। कोई शक न रह जाए, मैं एक बार फिर हॉल में नजर मार लेता हूं...।"
"जाओ देखकर आओ।"
कामटे चला गया।
बाजरे ने सावटे को देखा।
"तो ये बर्थडे पार्टी थी?" बाजरे ने पूछा।
"जी सर। इस काम के लिए हॉल बुक किया गया था। परंतु आने वाले मेहमानों का अंदाज अलग था। जैसे कि वो सब चार-पांच और छः के ग्रुपों में आए थे। परंतु उन ग्रुपों में एक-एक आदमी ही खास था, बाकी सब जैसे उसके गनमैन थे। कुछ ऐसा ही अंदाज था उनका आने का।"
कमिश्नर बाजरे ने सहमति से सिर हिलाया।
"आने वाले मेहमान होटल के कर्मचारियों से कोई बात नहीं कर रहे थे, सीधे दूसरी मंजिल के हॉल में पहुंचते जा रहे थे। वहां दरवाजे पर दो लोग हर वक्त खड़े रहे। वो दोनों उनके ही लोग थे और जैसे आने वालों को पहचान कर भीतर जाने दे रहे थे। उन दोनों की लाशें भी हॉल में ही पड़ी हैं।"
"तुमने उन लाशों की किसी से पहचान करवाई?"
"यस सर। होटल के कर्मचारियों ने उन्हें पहचाना कि ये ही दो पहरेदारी के लिए होटल के बाहर दरवाजे पर थे।"
कमिश्नर बाजरे ने गंभीरता से सिर हिलाकर कहा---
"मान लो बर्थडे पार्टी शुरू हो गई। फिर, उसके बाद क्या हुआ?"
दोनों की नजरें मिलीं।
"सर, मेरे ख्याल से उनके बीच कोई झगड़ा हो गया और गोलियां चलने लगीं।"
"ये तो जाहिर ही है। लेकिन वो सब कौन लोग थे?"
"अभी तक तो किसी की भी पहचान नहीं हो सकी...।"
"हो जाएगी। बीस के करीब लाशें हैं। इतने लोगों को कई लोग जानते होंगे। जब हमारी भागदौड़ शुरू होगी तो सब कुछ खुल जाएगा। चार लोग जिंदा मिले हैं, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया है।"
"जाने असल मामला क्या है! उन चारों की जान फिर लेने की कोशिश हो सकती है।"
"इंस्पेक्टर पेरवले वहां उन्हें सुरक्षा दे रहा है। उन तक कोई नहीं पहुंच सकता।"
विजय सावटे खामोश रहा।
"हॉल में क्या हो रहा है? आओ वहीं चलते हैं।"
दोनों हॉल की तरफ चल पड़े। सावटे बोला---
"वहां नीचे बिखरी काफी रिवाल्वरें मिली हैं। उन पर से फिंगर प्रिंट ले लिए गए हैं। मुझे पूरा यकीन है कि फिंगरप्रिंट का रिकॉर्ड हमें मिलेगा। वो लोग शरीफ नहीं हो सकते। सब पता चल जाएगा हमें। ये काफी बड़ा गंभीर मामला लगता है सर। 15-20 लोगों को इस तरह गोलियां चला के मार देना। ये सब खतरनाक लोग ही होंगे।"
तभी सामने से सब-इंस्पेक्टर कामटे आता दिखा। वो पास आया।
"सर, उस हॉल में बर्थडे केक जैसी कोई चीज नहीं है। व्हिस्की, वाइन, बीयर की कोई बोतल नहीं है। सिर्फ बचा हुआ लंच पड़ा है। इससे जाहिर है कि उस हॉल में सिर्फ लंच लिया था उन लोगों ने।"
"सिर्फ लंच?" कमिश्नर बाजरे के होंठ सिकुड़े।
कामटे उनके साथ वापस चलता कह उठा।
"लंच के बाद ऐसा कुछ हुआ कि उन लोगों ने एक-दूसरे पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। शायद वो गुटों में बंट गए होंगे या फिर कुछ और हुआ, जिसका हमें अभी तक पता नहीं है।"
"मेरे ख्याल में सब-इंस्पेक्टर कामटे, हमें कुछ भी पता नहीं है अभी तक।"
"जी, लेकिन पता चल जाएगा। चार लोग अस्पताल में हैं। जो भी पहले होश में आया, वो बताएगा कि क्या हुआ था यहां।"
वे तीनों उस हॉल में प्रवेश कर गए।
तभी एक आवाज उनके कानों में पड़ी---
"इसे मैं पहचानता हूं। ये तो रकीब है।"
तीनों की नजर आवाज की तरफ घूमी।
दो पुलिसवाले फर्श पर पड़ी, एक लाश के करीब खड़े थे।
कमिश्नर बाजरे के कदम तेजी से उस तरफ बढ़ गए।
कामटे और विजय सावटे, कमिश्नर के पीछे चल पड़े।
"कौन है ये?" पास पहुंचकर कमिश्नर बाजरे ने लाश पर नजर मारते, दोनों पुलिसवालों को देखा।
"रकीब...?"
"कौन रकीब...?"
"अकबर खान का गनर।"
"अकबर खान?" सब-इंस्पेक्टर कामटे के होंठों से निकला--- "वो जो हथियार सप्लाई करने का धंधा करता है?"
"वो ही।" उस पुलिसवाले ने सिर हिलाया।
"लेकिन मैंने तो सुना है कि रकीब हमेशा अकबर खान के साथ ही रहता है।" कामटे बोला।
"ये यहां अकबर खान के साथ ही होगा।" कमिश्नर बाजरे ने गंभीर स्वर में कहा।
"तो...तो क्या अकबर खान यहां आया होगा?" कामटे के होंठों से निकला।
"हालात तो यही कह रहे हैं।" बाजरे ने हॉल में नजर मारी, जहां फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट, फोटोग्राफर और फॉरेंसिक लैब वाले अपना काम खत्म करने के अंतिम पड़ाव पर थे।
"अगर अकबर खान गोलियां चलने के दौरान यहां था तो सर, मामला बहुत ज्यादा गंभीर हो सकता है।"
"कामटे, ये तो शुरुआत है। अभी सिर्फ रकीब को ही पहचाना गया है, ऐसे और भी कई जाने-पहचानने चेहरे होंगे लाशों में।" कमिश्नर बाजरे ने हॉल में लाशों पर दौड़ती नजरें इंस्पेक्टर विजय सावटे पर टिकाईं--- "तुमने उन लोगों को चुन लिया जिन्हें पूछताछ के लिए साथ ले चलना है...।"
"यस सर।"
"फ्लोर मैनेजर किशन वासवानी को भी ले चलना है।"
"वो भी मेरी लिस्ट में है।"
"होटल का रजिस्टर, जिसमें हॉल को बुक करने की एंट्री है, उसे भी साथ ले चलना है।"
"रजिस्टर मैंने अपने कब्जे में कर लिया है सर।"
"लाशों को मोग में पहुंचाओ और सबसे पहले पुलिस वालों को ही इनके चेहरे दिखाओ। इनमें रकीब की तरह और भी कई नामी बदमाश हो सकते हैं। ये सारा काम तुम्हारे जिम्मे है।" बाजरे बोला।
"यस सर।" इंस्पेक्टर विजय सावटे ने कहा।
"रजिस्टर के अलावा और जो भी जरूरी बातें हों, वो सब-इंस्पेक्टर कामटे को बता दो। ये मुझे बता देगा।" कमिश्नर बाजरे ने कहा--- "होटल वालों से कह दो कि इस हॉल से वे तब तक दूर रहें जब तक पुलिस से हरी झंडी नहीं मिल जाती। काम खत्म होने के बाद हॉल के दरवाजे पर दो पुलिस वाले बिठा देना...।"
"जी...।" विजय सावटे ने सिर हिलाया।
"कामटे...।" कमिश्नर बाजरे ने कहा--- "यहां का सारा काम तुम अपनी निगरानी में खत्म करवाओगे। किसी पुलिस वाले के पास बताने को कुछ हो तो वो पता कर लो। उसके बाद हैडक्वार्टर में आकर मुझसे मिलना...।"
"यस सर...।" कामटे ने सतर्क स्वर में कहा।
कमिश्नर बाजरे पलटकर हॉल से बाहर निकलता चला गया।
"कमिश्नर साहब तुम्हें इतनी लिफ्ट क्यों दे रहे हैं?" इंस्पेक्टर विजय सावटे ने आंखें सिकोड़कर पूछा।
"पता नहीं।" कामटे ने शांत स्वर में कहा।
"कमिश्नर साहब को पहले से जानते हो?"
"नहीं! आज पहली बार आमना-सामना हुआ है।" कामटे ने सावटे को देखा।
"इस केस का इंचार्ज कौन है?" कमिश्नर साहब किसके हवाले ये केस कर रहे हैं?"
"अभी तक तो वो खुद ही इस केस को देख रहे हैं। रकीब की लाश यहां देखकर लगता है कि ये मामला वास्तव में गंभीर है। रकीब का खौफ है अंडरवर्ल्ड में। हथियार सप्लायर अकबर खान का सबसे खास आदमी था रकीब। इसकी लाश यहां देखकर मुझे हैरानी हुई। मुझे पूरा यकीन है कि गोलियां चलने के वक्त अकबर खान खुद यहां मौजूद था। जो कि अपने आप में बड़ी बात है।"
■■■
कमिश्नर बाजरे कुछ पुलिस वालों के साथ उस हॉस्पिटल में पहुंचा, जहां हॉल में मिले चार घायलों को लाया गया था। वहां इंस्पेक्टर शेखर पेरवले से मुलाकात हुई।
"घायलों की क्या हालत है?" कमिश्नर बाजरे ने पूछा।
"अभी तक उनकी हालत नाजुक ही है। डॉक्टर उन्हें बचाने की चेष्टा में लगे हैं।" इंस्पेक्टर पेरवले ने कहा।
"उनके बच जाने की क्या संभावना है?"
"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता सर। डॉक्टरों से मेरी बात नहीं हो सकी।"
"हॉल में मिली लाशों में एक लाश रकीब की है जो...।"
"रकीब? अकबर खान का आदमी तो नहीं?" इंस्पेक्टर पेरवले के होंठों से निकला।
"वो ही...।"
"ओह, मुझे शुरू से ही ये मामला खास लग रहा था। रकीब, हमेशा अकबर खान के साथ रहता है। इसका मतलब जब गोलियां चलीं तो वहां अकबर खान भी मौजूद था।" पेरवले व्याकुलता से कह उठा।
"मैं इसी नतीजे पर पहुंचा हूं...।"
"अकबर खान जैसा हथियार सप्लायर्स का कहीं पहुंचना छोटी बात नहीं है। वो बहुत सतर्क रहने वाला इंसान है और खुले में नहीं जाता। क्योंकि उसके दुश्मन बहुत हैं। पता नहीं, वहां क्या हुआ होगा!"
"अकबर खान की लाश वहां नहीं मिली। मिली होती तो उसे पुलिस वाले पहचान लेते।" कमिश्नर बाजरे ने गंभीर स्वर में कहा।
"वो बचकर निकल गया होगा।"
"काफी लोग गोलियां चलने के बाद वहां से कारों में बैठकर निकले थे। उनमें एक 55 की उम्र का सफेद चमकते बालों वाला भी था। कहीं-कहीं काले बाल थे। वो चुस्त और फुर्तीला था।"
"वो कौन हो सकता है?"
"नहीं कहा जा सकता।"
"इसका मतलब अकबर खान उसके साथ ही बाहर निकला था।"
"हां...।" कमिश्नर बाजरे ने कहा--- "ये मामला गहरा लगता है। जो चार लोग अस्पताल में हैं, वो बता सकते हैं कि वहां कौन-कौन थे और क्या हुआ था वहां। यहां पर सख्त पहरा लगवा दो। उन्हें बचे पाकर, उन्हें फिर मारने की चेष्टा की जा सकती है।"
"यहां काफी पुलिस वाले हैं। मैं और भी सख्त पहरा लगवा देता हूं...।"
"इन चारों के बारे में मुझे बराबर खबर देते रहना।"
"यस सर। ये केस आपने किसके हवाले किया है?"
"अभी तक तो मैं खुद ही इस केस को देख रहा हूं। पहले अच्छी तरह केस को जान लूं। उसके बाद ही सोचूंगा कि केस किसके हवाले करना है, या मैं ही इस केस को देखूं।"
■■■
रात को बारह बजे रहे थे।
कमिश्नर बाजरे पुलिस हैडक्वार्टर में अपने ऑफिस में मौजूद था। कुर्सी पर बैठा सोच में डूबा था। इस बीच आर्य निवास में हुए खून-खराबे से वास्ता रखते कई पुलिसवालों के उसे फोन आ चुके थे।
तभी एक कांस्टेबल ने कॉफी के प्याले के साथ भीतर प्रवेश किया और प्याला टेबल पर रखते कह उठा---
"कुछ खाने को भी लाऊं सर?"
"नहीं।" बाजरे ने इंकार में सिर हिलाया और प्याला उठाकर घूंट भरा।
कांस्टेबल बाहर निकल गया।
तभी टेबल पर पड़ा, मोबाइल फोन बजने लगा।
बाजरे ने मोबाइल उठाकर स्क्रीन पर आया नंबर देखा, फिर कॉलिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाता बोला---
"कहो...।"
"बहुत देर कर दी। घर नहीं आना क्या?" औरत का स्वर कानों में पड़ा।
"आज आने में देरी हो जाएगी। शायद ना भी आ सकूं। कई खास मामला सामने आ गया है?"
"खाना भिजवा दूं क्या?"
"कुछ नहीं चाहिए। मैं व्यस्त हूं। मेरा इंतजार मत करो और तुम सो जाओ।" कमिश्नर बाजरे ने कहा और फोन बंद करके टेबल पर रखा।
उसी पल टेबल पर पड़ा ऑफिस का फोन बजा।
"हैलो...।" बाजरे ने रिसीवर उठाया।
"बहुत छानबीन कर रहे हो तुम...।" शांत सी आवाज कानों में पड़ी।
बाजरे चौंका। फौरन ही संभला। माथे पर बल दिखे।
"कौन हो तुम?"
"आर्य निवास होटल में चली गोलियों की तुम बहुत छानबीन कर रहे हो। मैंने ठीक कहा ना?"
"कौन हो तुम?"
"मुझे पसंद नहीं कि इस मामले की छानबीन की जाए...।" लहजा सामान्य था।
"मैंने पूछा है कौन हो तुम, तुम्हारा नाम क्या है?" बाजरे का स्वर तेज हो गया।
"बेकार की बात मत करो। अपने काम की बात सुनो। ये सब मुझे पसंद नहीं। इस मामले की छानबीन बंद कर दो। राख से छेड़छाड़ करोगे तो उंगलियां जल जाएंगी। समझ गए तुम?" आवाज बाजरे के कानों में पड़ी।
"तुम मुझे हुक्म देने वाले अंदाज में बात कर रहे हो।"
"नहीं। मैं तो प्यार से तुमसे कह रहा हूं कि इस मामले को उछालो मत और...।"
"अपने बारे में बताओ।"
"मेरे बारे में जानकर तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा।"
"तुम बताओ कि...।"
"मैंने जो कहा, वो तुम समझ गए? अगर उंगलियां जलाना चाहते हो तो तभी इस मामले से छेड़छाड़ करो।"
"क्या तुम भी वहां थे, जब गोलियां चलीं?"
"हां, मैं वहीं था।"
"क्या हुआ था वहां, वहां पर क्यों...?"
"अगर तुमने छानबीन बंद कर दी तो दस लाख तुम्हारे पास पहुंच जाएंगे। मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हारी उंगलियां जल जाएंगी। फिर उंगलियों की आंच से तुम भी जल जाओगे। बच्चे बनकर रहो। बड़ों के मामले में दखल मत दो।"
"तुम आखिर चाहते क्या हो, क्या करना चाहते...।"
"ये मामला बंद कर दो कमिश्नर। छानबीन मत करो और...।"
"तुम्हें मालूम है कि एक लाश पहचानी गई है। वो रकीब की लाश है। हथियारों के सप्लायर्स अकबर खान का खास आदमी था वो।
"इस मामले की जितनी छानबीन करोगे, उतना ही तूफान उठेगा। सह नहीं सकोगे ये सब। तभी कह रहा हूं कि होटल में मिली लाशों के साथ छेड़छाड़ मत करो। चुपचाप काम खत्म कर दो। दस लाख तुम्हारे पास पहुंच जाएगा।"
कमिश्नर बाजरे के होंठ भिंच गए।
"दस लाख कम हो तो पन्द्रह लाख भिजवा दूंगा।"
"तुम अपने बारे में बताओ।" बाजरे के होंठ खुले।
"मेरे बारे में जानना जरूरी नहीं है तुम्हारे लिए? जो तुम्हारे लिए जरूरी था, वो मैंने तुमसे कह दिया।"
"तुम तो...।"
उधर से फोन काट दिया गया था।
कमिश्नर बाजरे ने होंठ भींचकर रिसीवर वापस रख दिया।
कोई नहीं चाहता कि आर्य निवास होटल में मिली लाशों के बारे में जानकारी हासिल की जाए।
क्यों?
उसे इस मामले को दबाने के लिए 15 लाख दिए जा रहे थे।
"गड़बड़ तो है ही...।" कमिश्नर बाजरे बड़बड़ा उठा।
उसी पल टेबल पर पड़ा मोबाइल बजने लगा।
"हैलो...।" सोचों में डूबे बाजरे ने मोबाइल उठाकर कानों में लगाया।
"सर।" इंस्पेक्टर विजय सावटे की आवाज आई--- "आप अपने ऑफिस में हैं या...।"
"ऑफिस में ही हूं। क्या बात है?"
"मैं अभी हैडक्वार्टर पहुंचा हूं। अभी आपके पास आया सर...।"
बाजरे ने फोन वापस टेबल पर रख दिया। चेहरे पर सोचों के भाव थे।
पांच मिनट में ही इंस्पेक्टर विजय सावटे ने भीतर प्रवेश किया।
"सर। एक और लाश की पहचान हुई है, सुधीर दावरे का आदमी था।"
"सुधीर दावरे...।" कमिश्नर बाजरे के माथे पर बल पड़े।
"ड्रग्स किंग सुधीर दावरे।" इंस्पेक्टर विजय सावटे कह उठा--- "वो खतरनाक आदमी है...वो...।"
"बैठ जाओ।" बाजरे गंभीर दिखा।
विजय सावटे बैठ गया।
बाजरे की निगाह, सावटे पर ही टिकी रही।
खामोशी लंबी हुई तो इंस्पेक्टर विजय सावटे ने पहलू बदला।
"तो एक और लाश की पहचान हुई। वो मरने वाला ड्रग्स किंग सुधीर दावरे का आदमी था। वो सुधीर दावरे जो मुंबई में ड्रग्स किंग के नाम से जाना जाता है।" बाजरे कह उठा।
"यस सर।"
"पहले अकबर खान। अब सुधीर दावरे। एक हथियारों का सप्लायर, दूसरा ड्रग्स किंग।"
सावटे ने सिर हिलाया।
"अकबर खान और सुधीर दावरे का आपस में क्या वास्ता है?" बाजरे बोला।
"पुलिस रिकॉर्ड में इसका आपस में कोई संबंध नहीं है।" विजय सावटे ने कहा।
"पक्का?"
"पक्का सर। पूरी तरह पक्का। मैंने आज तक नहीं सुना कि दोनों एक-दूसरे को जानते हैं।"
"तो फिर दोनों आर्य निवास होटल की दूसरी मंजिल के हॉल में क्या कर रहे थे?"
"क्या पता सर कि दावरे और अकबर खान वहां आए ही ना हों। उनके आदमी ही वहां...।"
"दोनों के आदमी तभी आपस में मिलेंगे जब वे एक-दूसरे को जानते हों।" बाजरे ने उसे देखा।
"क्या पता सर कि दोनों के आदमियों का मिलना इत्तेफाक ही हो?" सावटे बोला।
"मैं नहीं जानता। मुझे तो ये भी संभव लगता है की गोलियां चलने के दौरान अकबर खान और दावरे भी वहीं मौजूद हों।"
"ह... हो सकता है।"
"दावरे और अकबर खान का आपस में जरूर कोई वास्ता होगा, जो कि हमें नहीं...।"
तभी बाजरे का मोबाइल बजा।
बाजरे ने बात की। दूसरी तरफ पेरवले था।
"सर।" इंस्पेक्टर शेखर पेरवले की आवाज आई--- "मैं हॉस्पिटल से बोल रहा हूं। एक मर गया सर।"
"एक मर गया?" बाजरे के होंठों से निकला।
"हम चार को हॉस्पिटल लाए थे। उनमें से एक मर गया। अभी-अभी डॉक्टर ने बताया है।"
"ओह...।" बाजरे के होंठ भिंच गए--- "बुरी खबर दी तुमने। बाकी तीन की क्या हालत है? क्या कोई खतरे से बाहर है?"
"मैंने पूछा था सर। परंतु डॉक्टर ने बताया कि अभी बाकी तीनों की हालत नाजुक है।"
"ओह।" बाजरे के चेहरे पर सोच के भाव थे--- "तुमने वहां सख्त पहरा लगा रखा है?"
"पूरी तरह सर। मैंने यहां सब ठीक कर रखा है।"
"मुझे खबर देते रहना।" कहकर बाजरे ने फोन बंद करके टेबल पर रखा।
"क्या हुआ सर?"
"चार को अस्पताल ले गए थे। डॉक्टर उन्हें बचाने में लगे हैं और उनमें से एक मर गया।"
"ओह...।"
"सावटे...।"
"सर...।"
"तुम ये बात मालूम करो कि सुधीर दावरे और अकबर खान में क्या संबंध है? हमें इस मामले की पूरी छानबीन करनी है और मामले की तह तक पहुंचना है। मुझे भी ऊपर जवाब देना है।"
"जी सर...।"
"वहां कितनी लाशें मिलीं?"
"अट्ठारह सर।"
"चार को अस्पताल पहुंचाया गया। यानि कि कुल बाईस हो गये।"
"जी...।"
"मुझे पूरा यकीन है कि बाकी लाशों की शिनाख्त के दौरान हमें कई नई बातें पता चलेंगी। ये मामूली मामला नहीं है।" कहकर कमिश्नर बाजरे की निगाह इंस्पेक्टर विजय सावटे के चेहरे पर जा टिकी--- "तुम सतर्क रहना। मुझे धमकी दी गई है इस मामले में।"
"धमकी?"
"हां। किसी ने फोन पर कहा कि मैं लाशों की छानबीन ना करूं...।" बाजरे ने बताया।
"ओह! आपने पता किया कि वो फोन कॉल्स कहां से आई?"
"जरूरत नहीं। अगर वो सच में धमकी है तो ऐसा फोन कई बार आएगा। तुम दावरे और अकबर खान के बारे में पता करो कि उन दोनों के आपस में क्या संबंध थे। हमें मालूम करके रहना है कि आर्य निवास होटल में उस हॉल में कौन-कौन लोग मौजूद थे। गोलियां चलने के वक्त... और उस वक्त क्या हो रहा था।"
इंस्पेक्टर विजय सावटे चला गया।
बाजरे ने कॉफी को देखा, जो कि ठंडी हो चुकी थी।
बाजरे ने इंस्पेक्टर शेखर पेरवले के मोबाइल पर फोन किया।
"हैलो सर...।" पेरवले की आवाज कानों में पड़ी।
"अस्पताल में जो तीन आदमी जिंदा बचे हैं, उनके चेहरे की तस्वीर लो और उनकी पहचान कराने की चेष्टा करो।"
"ठीक है सर। परंतु अभी तो उनकी तस्वीरें नहीं ली जा सकतीं। वो तीनों डॉक्टरों की देखरेख में हैं।"
"तस्वीर लेने में क्या फर्क पड़ता है। जाओ और मोबाइल से ही तस्वीर ले लो।"
"मैं कोशिश करता हूं सर।"
"चौथा जो मर गया है, उसकी भी तस्वीर ले लेना। सुबह लैब में से तस्वीरें बना लेना।"
"यस सर...।"
बाजरे ने फोन बंद किया और सब-इंस्पेक्टर कामटे का नंबर मिलाया। शाम को ही बाजरे में कामटे के मोबाइल का नंबर ले लिया था। दो बार लंबी बेल जाने के बाद कामटे की आवाज कानों में पड़ी---
"हैलो।"
"कामटे, मैं बोल...।"
"सर आप... कहिए?"
"कहां हो तुम?"
"मैं अभी होटल में ही हूं सर। कुछ देर में यहां से निकलूंगा। आप कहां मिलेंगे सर?"
"हैडक्वार्टर में, अपने ऑफिस में हूं।"
"मैं आपके पास वहीं आकर मिलूंगा।"
"तुम अब तक वहां क्या कर रहे हो?"
"सर। हॉल से लाशें और जरूरत का अन्य सामान उठा लिया गया है। मैं जरा हॉल का मुआयना कर रहा हूं।"
"पूछताछ कर ली?"
"हां सर। कुछ नई बातें पता चली हैं। मिलने पर बात करूंगा।"
"आ जाओ। मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं...।" कहकर बाजरे ने फोन बंद कर दिया।
फिर कांस्टेबल को बुलाकर नई कॉफी लाने को कहा।
कांस्टेबल पुरानी कॉफी उठाकर ले गया।
रात के दो बजे सब-इंस्पेक्टर कामटे कमिश्नर बाजरे के पास पहुंचा।
कामटे थका सा लग रहा था। हाथ में लिफाफा थाम रखा था।
"बैठो कामटे। कॉफी लोगे? अभी मंगवाता हूं...।"
बाजरे ने इंटरकॉम पर कॉफी लाने को कहा।
"सर।" कामटे कह उठा--- "बहुत ही काम की चीज हाथ लगी है।"
"क्या?"
"मेनगेट पर लगा सी•सी• टी•वी• कैमरा। वो चालू हालत में रह गया था। होटल वाले उसे बंद करना भूल गए थे और हॉल में आने-जाने वाले उन लोगों को भी ये बात नहीं पता लगी। हालांकि सुबह आकर तीन लोगों ने होटल के सब कैमरों को चैक किया था कि वो बंद है कि नहीं, परंतु प्रवेश द्वार पर लगा कैमरा, इसलिए बचा रह गया कि वो ठीक दीवार पर लगे फूलदान के पास लगा था और वो किसी को दिखा नहीं। बचा रह गय। चालू हालत में रहा वो।" कहने के साथ ही कामटे ने लिफाफे में हाथ डाला और एक छोटी सी टेप बाहर निकालकर बाजरे की तरफ बढ़ाई--- "ये उसी सी•सी•टी•वी• कैमरे की कैसेट है। इसमें हर उस आदमी की तस्वीरें हैं, जो होटल में दिन में आया था।"
कमिश्नर बाजरे ने मुस्कुराकर वो कैसेट थाम ली।
"तुमने तो कमाल कर दिया कामटे...।"
"बस यूं ही सर, इस कैमरे पर नजर पड़ गई। मैंने होटल वालों से पूछा तो, तब उन्हें एहसास हुआ कि ये कैमरा चालू हालत में रह गया था। मैंने कैमरे की कैसेट ले ली...।"
"तरक्की पाने की पूरी चेष्टा कर रहे हो।" बाजरे ने कहा।
कामटे कुछ नहीं बोला। बाजरे को देखता रहा।
"इंस्पेक्टर सावटे ने एक आदमी की पहचान की है। वो सुधीर दावरे के आदमी की लाश है।"
"सुधीर दावरे...ड्रग्स किंग?"
"वो ही।"
"इसका मतलब दावरे का अकबर खान से संबंध है। जबकि ये बात कभी सुनी तो नहीं।"
"इस कैसेट से हमें बहुत कुछ पता चलेगा। मुझे एक फोन आया कामटे।" बाजरे बोला--- "फोन करने वाला 15 लाख रुपए की ऑफर दे रहा था कि मैं लाशों की छानबीन ना करूं।"
"वो कौन था?"
"उसने अपने बारे में नहीं बताया।"
"और क्या बोला वो?"
"यही कि अगर मैंने छानबीन नहीं रोकी तो मेरी उंगलियां जल जाएंगी।"
"उंगलियां जल जाएंगी, मतलब क्या हुआ इसका?" कामटे के होंठों से निकला।
"अभी मैं बहुत उलझा हुआ हूं।" कमिश्नर बाजरे उठते हुए बोला--- "किसी भी बात का मतलब समझने की मैंने चेष्टा नहीं की है। अभी तो हालातों को समझने की चेष्टा कर रहा हूं। आओ, इस कैसेट को देखते हैं।"
कामटे उठते हुए बोला---
"आपको फोन करने वाला कौन था और...।"
"इस बारे में बाद में सोचेंगे, पहले ये कैसेट देख लें।"
दोनों उस कमरे से निकले और गैलरी में आगे बढ़ गए।
■■■
दोनों ने पुलिस हैडक्वार्टर के ऐसे कमरे में प्रवेश किया, जहां कई स्क्रीन लगी हुई थीं। ढेरों कंप्यूटर चल रहे थे। दस-बारह लोग अपने कामों में व्यस्त थे।
"लाम्बा...।" कमिश्नर बाजरे एक कुर्सी पर बैठता बोला--- "ये सी•सी•टी•वी• की कैसेट लगाना।"
"जी सर।" लाम्बा नाम का व्यक्ति पास आया और कैसेट लेकर सामने की तरफ बैठ गया।
कामटे, बाजरे के पास ही कुर्सी पर बैठ गया।
सामने ही दीवार पर लगी छोटी सी स्क्रीन नजर आ रही थी। फौरन ही स्क्रीन रोशन हो उठी।
"कामटे, कितने बजे से वे लोग होटल में आना शुरू हुए थे?" कमिश्नर बाजरे बोला।
"सर, मेरे ख्याल से हमें 12 बजे पर फिल्म लगानी चाहिए। 12 के बाद से ही लोग वहां आए होंगे।"
"मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा हूं। लाम्बा...।" बाजरे ने कहा--- "बारह बजे से हमें कैसेट दिखाओ।"
"मैं कैसेट लगा रहा हूं। स्क्रीन पर वक्त आता है सी•सी•टी•वी• कैसेट का। अभी सैट कर देता हूं...।" लाम्बा बोला।
पांच-सात मिनट बाद लाम्बा ने कैसेट दिन के 12 बजे से शुरू कर दी।
वे देखने लगे।
स्क्रीन पर होटल का प्रवेश द्वार स्पष्ट नजर आ रहा था।
उनके देखते-ही-देखते एक-एक करके दो लोगों ने भीतर प्रवेश किया था। परंतु वे होटल के ही कर्मचारी थे।
कमिश्नर बाजरे और सब-इंस्पेक्टर कामटे की निगाह स्क्रीन पर टिकी रही।
लाम्बा भी उनके पास ही बैठ गया था।
"तुम अंडरवर्ल्ड के लोगों को पहचानते हो कामटे?" कमिश्नर बाजरे ने पूछा।
"पूरी तरह सर।" कामटे ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
"मैं भी पहचानता हूं। परंतु चूक हो सकती है। दो पहचानने वाले हों तो धोखा नहीं होगा।"
वक्त बीतने लगा।
"सर, 12 से 2 के बीच ही सब आए होंगे। दो के बाद उन्होंने लंच लिया होगा।"
"देखते हैं।"
स्क्रीन पर होटल का प्रवेश गेट ही नजर आ रहा था।
लोग आ-जा रहे थे, परंतु वे उनके काम के नहीं थे।
तब 12:40 बजे थे जब एकाएक स्क्रीन पर एक चेहरा दिखा।
"भोला...।" कामटे के होंठों से निकला।
"कौन?"
"भोला सर। वंशू करकरे का खास आदमी।"
"वंशू करकरे? वो हफ्ता वसूली वाला?"
"वो ही। पूरी मुंबई में वंशू करकरे हफ्ता वसूली करता है। हर हफ्ते करोड़ों रुपए इकट्ठे करता है। मुंबई के जर्रे-जर्रे पर इसके आदमी फैले हैं। बहुत खतरनाक आदमी है। मिनटों में सामने वाले को साफ कर देता है। दरिंदे से कम नहीं है वंशू करकरे। कहा जाता है कि ये कई पुलिसवालों को भी साफ कर चुका है।"
"और अभी तक बचा हुआ है।"
"बहुत खतरनाक है वंशू करकरे।"
"पुलिस से भी ज्यादा?" कमिश्नर बाजरे का स्वर कठोर हो गया।
"लेकिन ये भोला यहां क्या कर...ओह, आप्टे और देसाई भी हैं साथ में।"
स्क्रीन पर अब आप्टे और देसाई के चेहरे दिखे।
"ये तीनों ही मुख्य तौर पर वंशु करकरे का हफ्ता वसूली का धंधा संभालते हैं।" बाजरे कह उठा।
"हां सर, इनका खौफ है पूरी मुंबई...।"
"वंशू करकरे को देखो...।" कमिश्नर बाजरे ने एकाएक तेज स्वर में कहा।
स्क्रीन पर अब वंशू करकरे नजर आ रहा था।
42 बरस का काले रंग का चेहरा। चमकती आंखें। सिर पर उस्तरा फेर रखा था। चौड़ी नाक। बात करता तो सफेद दांत चमकने लगते। ज्यादातर वो मुस्कुराता ही रहता था।
"लाम्बा, पॉज (रोको) करो...।"
लाम्बा ने रिमोट का बटन दबाया तो स्क्रीन पर वंशू करकरे का चेहरा थम गया।
"वंशू करकरे भी आर्य निवास होटल में आया था सर। भोला, आप्टे और देसाई के साथ।" सब-इंस्पेक्टर कामटे ने तेज स्वर में कहा--- "करकरे यूं ही कहीं नहीं जाने वाला। कोई खास बात ही होगी सर।"
"हमें ये बात सी•सी•टी•वी• की कैसेट देखने से पता चल रही है। जबकि इन लोगों को होटल के कई लोग पहचानते होंगे, परंतु हमें किसी ने भी इनके बारे में नहीं बताया।" कमिश्नर बाजरे ने कहा।
"इनका नाम लेकर कौन खुद को मुसीबत में नहीं डालना चाहता होगा। डर से सब चुप रहे। "
"अब ये तो स्पष्ट है कि आर्य निवास होटल में अंडरवर्ल्ड के लोगों की मीटिंग हुई।" कमिश्नर बाजरे ने शब्दों पर जोर देकर कहा--- "ड्रग्स किंग सुधीर दावरे और हथियार सप्लायर अकबर खान भी मीटिंग में थे।"
"जाहिर तौर पर इन तीनों का आपस में दोस्ताना नहीं है।" कामटे ने कहा।
"अब हमारे पास सबूत है कि तीनों आपस में मिलते हैं। लाम्बा कैसेट चलाओ।"
लाम्बा ने प्ले कर दिया।
ठहरी स्क्रीन पर फिर हलचलें चल पड़ीं।
कमिश्नर बाजरे और सब-इंस्पेक्टर कामटे की नजरें स्क्रीन पर ही रहीं।
वंशू करकरे, भोला आप्टे और देसाई स्क्रीन पर से हट गए थे।
अब स्क्रीन पर होटल का प्रवेशद्वार ही नजर आ रहा था।
दस मिनट ही बीते कि तभी स्क्रीन पर नजर आते होटल के प्रवेशद्वार पर कुछ चेहरे दिखे।
"ब्रांडी, प्यारे।" कामटे के होंठों से निकला--- "सुधीर दावरे के आदमी...।"
"ड्रग्स किंग सुधीर दावरे।" बाजरे ने होंठ भींचकर कहा।
"हां सर।"
स्क्रीन पर उनके साथ दो और आदमी थे।
फिर सुधीर दावरे दिखा।
पैंतीस बरस का सुधीर दावरे फिल्मी हीरो जैसा था। उसके बारे में ये बात सभी जानते थे कि कभी वो फिल्मों में काम पाने के लिए हाथ-पैर मारता था। एक फिल्म में काम मिला भी, परंतु फिल्म नहीं चली। उसके बाद सुधीर दावरे को किसी ने पूछा नहीं और इसी बीच जाने कब वो ड्रग्स के धंधे में हाथ दे बैठा। कई सालों बाद जब उसका नाम सामने आया तो ड्रग्स किंग बन चुका था वो।
"सुधीर दावरे के साथ पांच लोग हैं। ब्रांडी और प्यारा, दावरे के खास हैं। हर वक्त दावरे के साथ ही रहते हैं। साथ में तीन लोग और भी हैं। सुधीर दावरे को घेरे हुए सब आगे बढ़ रहे हैं।" बाजरे ने कहा।
"सर, हफ्ता वसूली का ड्रग्स के साथ क्या वास्ता?" कामटे कह उठा।
"ये ही तो हमें पता लगाना है।"
"किसी बात को लेकर इनकी मीटिंग है, तभी तो ये इकट्ठे हो रहे हैं।"
"हूं।" बाजरे ने सिर हिलाया--- "लाम्बा, दो कॉफी लाना।"
लाम्बा उठकर चला गया।
दोनों की नजरें स्क्रीन पर ही रहीं।
सुधीर दावरे और उसके साथी स्क्रीन से गायब हो चुके थे।
"ऐसे लोग जब एक जगह इकट्ठे हों तो फिर फायरिंग हो जाना मामूली बात है।"
"आप ठीक कहते हैं सर।"
इसके बाद काफी देर तक स्क्रीन पर उनके काम का कोई नहीं दिखा।
लाम्बा कॉफी ले आया।
वे कॉफी के घूंट भरने लगे।
तब 1:20 बजे थे जब अकबर खान स्क्रीन पर दिखा।
"अकबर खान।" कामटे के होंठों से निकला--- "साथ में उसका ख़ास आदमी रकीब भी है। चार और लोग भी हैं।"
बाजरे होंठ भींचे स्क्रीन पर नजर आते सब लोगों को देखता रहा।
वे सब खतरनाक लग रहे थे।
फिर वे आगे बढ़ गए। स्क्रीन पर दिखना बंद हो गए।
"क्या बात है?" बाजरे ने कठोर स्वर में कहा--- "ड्रग्स किंग, हथियारों का सप्लायर्स और हफ्ता वसूली करने वाला दादा। तीनों एक ही जगह पर इकट्ठे हो रहे हैं और पुलिस को हवा तक नहीं कि इनका आपस में कोई संबंध भी है?"
"इनके बारे में कभी सुना नहीं गया कि इनका आपस में कोई संबंध हो।"
"अब ये बात तो हम देख रहे हैं।" बाजरे ने कड़वे स्वर में कहा और कॉफी का घूंट भरा।
"इनका एक जगह इकट्ठे होना बहुत बड़ी बात है सर।"
कमिश्नर बाजरे के चेहरे पर सख्ती के भाव थे।
तभी बाजरे का फोन बजा।
"हैलो...।" बाजरे ने फोन पर बात की।
"सर, मैं पेरवले हॉस्पिटल से।" इंस्पेक्टर शेखर पेरवले की आवाज आई--- "यहां एक और मर गया है।"
"ओह...।" बाजरे के होंठों से निकला।
"चार को हॉस्पिटल लाया गया था। दो नहीं बच सके। बाकी दो अभी जिंदा हैं।"
"वो भी मरेंगे क्या?"
"डॉक्टर इस बारे में अभी कुछ भी नहीं कह रहे। वो कहते हैं कि हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।"
"उनमें से किसी को होश आए तो उससे ये जानने की चेष्टा करो कि आर्य निवास होटल के हॉल में गोलियां कैसे चलीं?"
"ठीक है सर। कोई होश में आया तो मैं पता करूंगा।"
कमिशनर बाजरे ने फोन बंद करके जेब में रखा।
"क्या हुआ सर?" कामटे ने पूछा।
"हॉस्पिटल में एक और मर गया।"
"बुरा हुआ। जिन चारों को हॉस्पिटल पहुंचाया गया था, वो सब ही बहुत घायल थे।" कामटे बोला।
बातों के दौरान दोनों की नजरें स्क्रीन पर थीं।
तभी सब-इंस्पेक्टर कामटे हड़बड़ा कर कह उठा।
"सर, ये तो दीपक चौला है।"
स्क्रीन पर एक चेहरा दिखा था अभी-अभी।
"पॉज (रोक) करो लाम्बा...।"
लाम्बा ने स्क्रीन पर नजर आती फिल्म को रोका, बटन दबाकर।
"दीपक चौला।" बाजरे बोला--- "इसका नाम तो सुना है परंतु...।"
"मुंबई के वेश्यालयों से हफ्ता लेता है। वरना उनका धंधा नहीं चलने देता। वहां किसी भी नई लड़की को नहीं आने देता। लड़कियों को धंधा नहीं करने देता, जब तक कि वे उसे हफ्ता देना शुरू ना कर दें। दीपक चौला के आदमी हर जगह पर मौजूद रहते हैं, जहां धंधा होता है। दलालों में और वेश्यावृत्ति करने वालों में दीपक चौला का बहुत डर है। यहां तक कि होटलों तक में कॉलगर्ल सप्लाई नहीं होने देता। इसने अपने आदमी हर जगह फिट कर रखे हैं, जो कि इसे धंधे की खबर देते हैं। वेश्यावृत्ति के धंधे का किंग है ये। कई लड़कियां जो कि इस धंधे में सीधा उतरना चाहती हैं, वो दीपक चौला या चौला के आदमियों से संपर्क करती हैं और वे उन्हें रास्ता दिखाते हैं धंधा करने का।"
"बहुत गंदा काम करता है ये दीपक चौला।" बाजरे ने नफरत भरे स्वर में कहा।
"सर, इसी काम से हर हफ्ते करोड़ों से ऊपर कमा लेता है चौला।" कामटे बोला।
"वेश्यावृत्ति ही बंद करा देनी चाहिए।"
"ये संभव नहीं सर।"
बाजरे ने कामटे को देखा।
कामटे ने सकपकाकर मुंह फेर लिया।
फिर दोनों की नजरें स्क्रीन पर जा टिकीं।
"हर बुरा धंधा करने वाले लोग यहां पहुंच रहे हैं।" बाजरे ने कहा।
"कोई तो खास बात होगी ही सर।"
"फिल्म चलाओ लाम्बा...।"
लाम्बा ने प्ले कर दिया।
स्क्रीन पर अब फिल्म चलने लगी।
"ये देखिए सर। ये परमजीत है। सावरकर। झंडू। तीनों ही दीपक चौला के खास आदमी हैं और बेहद खतरनाक माने जाते हैं। साथ में तीन लोग और हैं, जिन्हें मैं नहीं जानता।"
सबकी नजरें स्क्रीन पर टिकी रहीं।
सबके चेहरे स्पष्ट दिखे। फिर वे आगे बढ़ते गए।
स्क्रीन खाली हो गई।
कमिश्नर बाजरे और कामटे गंभीर नजर आ रहे थे।
कामटे ने स्क्रीन पर नजर आते सी•सी•टी•वी• कैमरे के वक्त को देखा।
1:35 बज रहे थे।
"देखते हैं सर। शायद अभी और लोग भी आएं...।"
"सबसे अंत में 55-57 बरस का सफेद, सुनहरे बालों वाला आया था। वो भी अब स्क्रीन पर दिखेगा।"
"वो कौन है?"
"मैं नहीं जानता।"
"इतने खतरनाक लोगों के बीच कोई शरीफ आदमी तो आएगा नहीं।" कामटे बोला।
"उसमें एक खास बात थी कि वो अकेला आया था। उसके साथ कोई नहीं था।" बाजरे ने कहा।
"पूछताछ में ये बात आपको पता चली?"
"हां...।"
दोनों खामोशी से स्क्रीन पर नजरें टिकाए बैठे रहे।
लाम्बा रिमोट थामें पास ही कुर्सी पर बैठा सब देख-सुन रहा था।
फिर वो वक्त आया जिसका उन्हें इंतजार था।
1:55 बजा था तब स्क्रीन पर, जब वो सुनहरे बालों वाला उन्हें दिखा।
वो काली पैंट और चार खानों वाली कमीज पहने था। पहनावे से वो साधारण नजर आ रहा था। कमीज का सामने वाला एक बटन खुला था। उसने बाल पीछे को किए हुए थे और गर्दन के पास इंच भर की चुटिया बना रखी थी। बालों की मोटी सी लट माथे पर झूल रही थी। उसका रंग गोरा और वो क्लीन शेव्ड था। गालों पर कलमें लम्बी थीं।
"पॉज (रोको) करो...।" कमिश्नर बाजरे के होंठों से निकला।
लाम्बा ने उसी पल स्क्रीन पर नजर आती तस्वीर रोक दी।
सफेद बालों वाले का स्पष्ट चेहरा नजर आ रहा था।
"तो ये है, जिसकी आप बात कर रहे थे।" कामटे कह उठा--- "मैं इसे नहीं जानता।"
"ये सर्दूल है। मैं इसे जानता हूं।" बाजरे के होंठों में फंसे शब्द बाहर निकले।
"सर्दूल?" सब-इंस्पेक्टर कामटे चिंहुक पड़ा--- "वो ब्लास्ट का आरोपी तो नहीं?"
"वो ही।" बाजरे के दांत भिंचते चले गए--- "पन्द्रह साल पहले ये ड्रग्स का धंधा, वसूली का धंधा किया करता था और अंडरवर्ल्ड में इसका नाम गूंजता था। ये बेहद खतरनाक इंसान है। फिर पाकिस्तान की जासूसी संस्था आई•एस•आई• ने दिल्ली और मुंबई में ब्लास्ट करने के लिए बहुत मोटी रकम दी। सुनने में आया है कि काफी बड़ी रकम थी वो। साथ ही पाकिस्तान में रहने और वहां हर तरह का धंधा करने की छूट दी। इस तरह आई•एस•आई• के फेर में पड़कर इसने दिल्ली और मुंबई में विस्फोट किए और दोनों जगह मिलाकर कम से कम 1200 लोग मारे गए। उसके बाद ये सर्दूल इंडिया से खिसक गया था पाकिस्तान। सुनने में आता रहा कि कभी ये पाकिस्तान रहा तो कभी दुबई, तो कभी सऊदी अरब। मुख्य तौर पर पाकिस्तान में ही रहा। वहां धंधे जमाये। शेयर बाजार में पैसा लगाया। ड्रग्स का काम जमाया और पाकिस्तान की सरकार इसकी मदद करती रही।"
"पाकिस्तान की सरकार मदद क्यों करेगी?" कामटे के होंठों से निकला।
"क्योंकि आई•एस•आई• सर्दूल को हिन्दुस्तान के कामों में बराबर इस्तेमाल करती रही। सर्दूल पाकिस्तान और दुबई अवश्य चला गया, परन्तु उसके आदमी हिन्दुस्तान, दिल्ली-मुम्बई में बराबर रहे। जोकि उसके एक फोन कॉल पर हर तरह का काम कर देते रहे हैं। आई•एस•आई• ने सर्दूल से इस बात का खूब फायदा उठाया।"
"और सर्दूल पाकिस्तान सरकार से अपना मतलब निकालता रहा।" कामटे बोला।
"हां। दिल्ली-मुंबई के धमाकों के बाद तो दोनों एक-दूसरे की पीठ थपथपाते रहे। मैं सर्दूल को कभी नहीं भूल सकता। तब मैं मुंबई में इंस्पेक्टर हुआ करता था। मैंने धमाकों की तफ्तीश भी की थी। तब से ये भी सुनने को आता रहा कि सर्दूल मुंबई फिल्मों में पैसा भी लगाता है। परंतु पक्का सबूत कभी हाथ नहीं आया। क्योंकि सर्दूल ने इस काम के लिए अपने आदमियों को आगे कर रखा था। वो खुद तस्वीर में नहीं आता था।"
"तो सर्दूल पाकिस्तान-दुबई चला गया था।"
"हां...।"
"परंतु ये तो हिन्दुस्तान में है। सी•सी•टी•वी• की ये फिल्म बीस घंटे पहले की है सर।"
"हां, ये मुझे अब पता चला। बीच-बीच में मैं खबरें सुना करता था कि सर्दूल इंडिया आया है। परंतु मैं इन्हें अफवाह ही समझता था। लेकिन अब कह सकता हूं कि वो खबरें सही थीं। सर्दूल हिन्दुस्तान आता रहा है।" बाजरे के चेहरे पर कठोरता थी।
कुछ पल उनके बीच खामोशी रही।
"मुझे लगता है, कल लंच के वक्त आर्य निवास होटल में कुछ खास प्लानिंग हुई है।" सब-इंस्पेक्टर कामटे ने कहा--- "तभी तो अंडरवर्ल्ड की चारों हस्तियों के साथ गुप्त मीटिंग की। हमें इस मीटिंग का पता भी नहीं चलता, अगर वहां खून-खराबा ना हुआ होता तो। ये कैसेट आगे चलाओ लाम्बा...।"
लाम्बा ने प्ले कर दिया।
देखते ही देखते स्क्रीन पर नजर आता सर्दूल गायब हो गया।
उनकी नजरें स्क्रीन पर ही रहीं।
उसके बाद ऐसा कुछ नहीं दिखा कि उसमें इनकी दिलचस्पी हो।
स्क्रीन पर नजर आते समय के अनुसार 2:30 बजे तक उन्होंने कैमरे की फिल्म देखी।
"आगे हमारे काम का कुछ नहीं है।" बाजरे ने कहा--- "लाम्बा, इस कैसेट की कॉपी तैयार करो।"
"जी सर।" लाम्बा ने कहा और उठकर वहां से चला गया।
सब-इंस्पेक्टर कामटे, ने कमिश्नर बाजरे के गंभीर सोच में डूबे चेहरे पर नजर मारी।
"आप क्या सोच रहे हैं सर?" कामटे ने पूछा।
"मेरे ख्याल में सर्दूल इंडिया में कुछ करने आया है। उसने सुधीर दावरे, वंशू करकरे और दीपक चौला के साथ आर्य निवास होटल में मुलाकात की। कह नहीं सकता कि उनकी मीटिंग कितनी कामयाब हुई, क्यों वहां फायरिंग हो गई थी और अब तक बीस लोग वहां मर चुके हैं। जो दो बचे हैं, उनकी कोई गारंटी नहीं कि वो जिंदा रह पाते हैं या नहीं।"
"सर्दूल इंडिया में है। पूरी पुलिस को इस बारे में सतर्क कर देना चाहिए।"
"पूरी पुलिस से सतर्क होने से पहले ही, सर्दूल खुद सतर्क हो जाएगा और इंडिया से खिसक जाएगा।"
"तो फिर आप क्या करेंगे सर?"
बाजरे दो पल कामटे को देखता रहा, फिर कह उठा---
"अपने ऊपर बात करूंगा। ये मामला साधारण नहीं है।"
"हम सुधीर दावरे, अकबर खान, वंशू करकरे और दीपक चौला को पकड़ सकते हैं। उन्हें ढूंढा जा सकता है।"
"वो जहां भी छिपे होंगे, उन्हें हम ढूंढ लेंगे। वो हमारे लिए समस्या नहीं है। वो भागने वाले नहीं।"
"उन्हें इस टेप की मौजूदगी का पता चल गया तो वो भाग भी सकते हैं।" कामटे बोला।
"इस टेप के बारे में तुम मुंह बंद रखना।"
"लाम्बा भी जानता है।"
"उसे मैं चुप रहने को कह दूंगा।" बाजरे बोला--- "आर्य निवास होटल के हॉल में कौन-कौन था, ये तो हमें पता चल गया है, परंतु वहां क्या हुआ था, ये हम नहीं जानते...।"
"हॉस्पिटल वाले दो लोगों को होश आ गया तो, हम उनसे जान लेंगे कि क्या हुआ था।"
"लगता नहीं कि उन्हें होश आय...।"
"शायद उनमें से एक बच जाए।"
कमिश्नर बाजरे ने मोबाइल निकाला और इंस्पेक्टर शेखर पेरवले को फोन किया।
"क्या पोजीशन है उन दोनों की?" बाजरे ने पूछा।
"अभी कुछ भी पता नहीं। पूछने पर डॉक्टर यही कहते हैं कि हम पूरी कोशिश कर रहे हैं।"
"क्या ख्याल है तुम्हारा कि वो बचेंगे या वो भी मर जाएंगे?"
"कुछ पता नहीं सर। मैं कुछ नहीं कह सकता।"
बाजरे ने मोबाइल बंद करके कामटे से कहा।
"अगर वो बचने की स्थिति में होते तो कम से कम ये बात डॉक्टर कह चुके होते।"
"मैं आपसे सहमत हूं सर।" कामटे ने गंभीर स्वर में कहा।
कमिश्नर बाजरे कुर्सी से उठा और उस तरफ बढ़ गया, जहां लाम्बा काम कर रहा था।
कामटे ने आंखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद बाजरे की आवाज सुनकर कामटे ने आंखें खोलीं।
"सुबह के चार बज रहे हैं, तुम रेस्टरूम में जाकर आराम कर लो।"
"और आप सर?" कामटे कुर्सी से खड़ा होता कह उठा।
"मैं ऊपर के लोगों से बात करने में व्यस्त रहूंगा, तीन-चार घंटों तक।"
"मैं इस केस में आपके साथ रहना चाहता हूं, अगर आपकी इजाजत हो तो...।"
"मुझे कोई एतराज नहीं। वापस आकर तुम्हें जगा दूंगा।"
"ठीक है सर।" कामटे ने सिर हिलाया।
परंतु वे दोनों खड़े एक-दूसरे को देखते रहे।
"सर, आपको धमकी देने वाला कौन हो सकता है?"
"इन पांचों में से ही कोई एक।" बाजरे मुस्कुरा पड़ा--- "वो नहीं चाहते कि होटल में इकट्ठे होने वाले लोगों के नाम उछलें। उनकी चिंता जायज भी है क्योंकि ये मामला खुलते ही, उनका संबंध सर्दूल के साथ जुड़ेगा और फिर कानून उन्हें हमेशा के लिए पकड़ लेगा। उनके अगले-पिछले भी मामले खोल देगा। उनकी सारी जिंदगी जेल में बीत जाएगी।"
"बचेंगे तो वे अब भी नहीं।" कामटे दृढ़ स्वर में कह उठा।
"उनमें से अब कोई नहीं बचेगा। क्योंकि उनका संबंध सर्दूल के साथ है, ये बात स्पष्ट हो चुकी है।"
■■■
सुबह नौ बजे कमिश्नर बाजरे हॉस्पिटल पहुंचा। साथ में सब-इंस्पेक्टर कामटे भी था।
कामटे ने दो तीन-साढ़े तीन घंटे की नींद ले ली थी, परंतु बाजरे पांच मिनट के लिए भी सो नहीं पाया था।
ये ही हाल हॉस्पिटल में ड्यूटी दे रहे इंस्पेक्टर शेखर पेरवले का था। जबकि रात भर अस्पताल में ड्यूटी दे रहे अन्य पुलिस वालों की जगह सुबह छः बजे दूसरे पुलिस वाले आ गए थे।
कमिश्नर बाजरे की शेखर पेरवले से मुलाकात हुई। पेरवले ने सबसे पहले बाजरे के साथ आए कामटे घूरा तो कामटे हड़बड़ाकर दूसरी तरफ देखने लगा।
"क्या पोजीशन है पेरवले...।"
"सर।" पेरवले सतर्क स्वर में बोला--- "चार में से दो तो मर गए हैं। बाकी दो की हालत स्थिर है। दोनों में से किसी को होश नहीं आया है। डॉक्टर कहते हैं कि पता नहीं वो बच पाएंगे या नहीं।"
"चलो, मैं उन्हें देखना चाहता हूं...।"
"आइए सर।" पेरवले ने फौरन कहा।
इंस्पेक्टर शेखर पेरवले और बाजरे हॉस्पिटल के भीतर की तरफ बढ़ गए।
सब-इंस्पेक्टर कालटे दो कदम पीछे रहकर चलने लगा।
चलते-चलते पेरवले ने गर्दन घुमाकर कामटे को घूरा।
कामटे उसके घूरने से अंजान सा बना, चलता रहा।
हॉस्पिटल के भीतर सामने से डॉक्टर आता दिखा तो पेरवले कह उठा---
"सर! ये ही डॉक्टर है जो उन दोनों की देखभाल कर रहा है।"
कमिश्नर बाजरे डॉक्टर को रोककर उससे बात की।
"उन दोनों की क्या हालत है डॉक्टर?"
"नाजुक है।" डॉक्टर ने कहा--- "सच बात तो ये है कि मुझे वो बचते नहीं लगते।"
बाजरे व्याकुल हो उठा।
"मैं उन्हें देखना चाहता हूं।"
"आइए...।"
डॉक्टर उनके साथ चल पड़ा।
"पुलिस का उन दोनों से क्या संबंध है?" डॉक्टर ने पूछा।
"वो होश आने पर हमें ऐसी जानकारी दे सकते हैं जो कि पुलिस के लिए जरूरी है।" बाजरे ने चलते-चलते कहा।
"उन दोनों को मारने की पूरी चेष्टा की गई है। शरीरों पर दस से बीस तक चाकुओं के घाव हैं। उन्हें बहुत बुरी तरह मारा गया है। दोनों के सिरों पर गोली मारी गई है। एक के सिर में तो गोली गहरा घाव बनाती निकल गई। दूसरे के सिर में हड्डी में गोली फंसी पड़ी थी जो कि निकाल दी गई। उन्हें होश में लाने की हम हर संभव चेष्टा कर रहे हैं। परंतु होश नहीं आ रहा। वो कभी भी होश में आ सकते हैं या कभी भी मर सकते हैं। डॉक्टरों ने जो करना था, कर दिया।"
"उनके पास कौन है?"
"दोनों के पास एक-एक नर्स हर समय मौजूद रह रही है। ताकि उन्हें होश आए तो फौरन पुलिस को बताया जा सके। मेरी व्यक्तिगत राय है कि वो दोनों जिंदा नहीं रहने वाले। आगे भगवान मालिक है।" डॉक्टर ने सामान्य स्वर में कहा।
डॉक्टर, बाजरे, पेरवले और कामटे एक कमरे में प्रवेश कर गए।
कमरे के बाहर दो पुलिसवाले तैनात थे।
सामने ही बैड पर देवराज चौहान पड़ा हुआ था। ग्लूकोज ड्रिप लगी हुई थी। चेहरे को साफ कर दिया गया था। परंतु चोटों के निशान चेहरे पर नजर आ रहे थे। एक आंख सूजी हुई थी। सिर के बालों को साफ किया गया था और सिर के ऊपरी हिस्से पर टेप लगाकर, बैंडेज चिपका रखी थी। गले तक चादर ओढ़ रखी थी।
"इसके सिर में घाव करती गोली निकल गई थी।" डॉक्टर बोला और आगे बढ़कर, ऊपर पड़ी चादर कमर तक नीचे की तो शरीर पर जगह-जगह सिलाई की गई दिखी--- "ये चाकुओं के गहरे घाव थे। परंतु जानलेवा घातक घाव नहीं था। हमने अपनी तरफ से पूरा इलाज कर दिया है।" कहकर डॉक्टर ने गले तक चादर डाल दी।
नर्स दो कदम हटकर खड़ी थी।
बाजरे की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर थी।
"तुमने इसे कभी देखा है पेरवले?" बाजरे ने पूछा।
"नो सर। परंतु इसकी तस्वीर मैंने रात को ले ली थी। अब तक प्रिंट बनकर तैयार हो गए होंगे और मेरे पास आते ही होंगे। मैं दूसरों को दिखाकर इसकी पहचान कराने की चेष्टा करूंगा।"
"तुम इसकी तस्वीर सावटे को दे देना।" बाजरे बोला--- "मैं तुम्हें यहीं पहरे पर देखना चाहता हूं।"
"यस सर।"
"सर।" एकाएक कामटे कह उठा--- "मैंने इसे देखा है।"
बाजरे और पेरवले की निगाहें कामटे की तरफ घूमीं।
कामटे की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर थी।
"देखा है?" बाजरे के होंठों से निकला।
"यस सर। परंतु याद नहीं आ रहा कि कहां देखा है, लेकिन देखा है।" कामटे ने दृढ़ स्वर में कहा।
"याद करो कामटे...।"
"कोशिश कर रहा हूं सर... वो ही सोच रहा हूं। मैंने इसे कहीं देखा है। चेहरा पहचाना लग रहा है।"
"तुम्हारी अब यही ड्यूटी है कि तुम याद करो कि इसे कहां देखा है।"
"ज... जी सर।" कामटे ने गंभीर स्वर में कहा।
"डॉक्टर, मुझे दूसरा आदमी दिखाओ।" बाजरे ने कहा।
"वो साथ वाले कमरे में है। आइए...।"
बाजरे, डॉक्टर के साथ बाहर निकल गया।
"तुम...।" इंस्पेक्टर शेखर पेरवले कह उठा--- "कमिश्नर साहब के साथ क्यों चिपके पड़े हो?"
"कमिश्नर साहब ने कहा था।" कामटे जल्दी से बोला।
"चिपकने को?"
"हां, वो साथ रहने को सर।" कामटे ने जल्दी से कहा।
"इस काम से फुर्सत मिल जाए, फिर तुमसे बात करूंगा।" पेरवले ने देख लेने वाले ढंग में कहा।
"सच सर। मुझे कमिश्नर साहब ने...।"
"कमिश्नर साहब भला किसी केस में सब-इंस्पेक्टर को अपने साथ क्यों रखेंगे?"
"मैं... मैं क्या जानूं सर।"
पेरवले बाहर की तरफ बढ़ गया।
कामटे उसके साथ हो गया।
वे बगल वाले कमरे में पहुंचे। वहां भी दो पुलिस वाले पहरे पर बाहर खड़े थे।
भीतर बैड पर बेसुध सा जगमोहन पड़ा था। उसके सिर के बाल भी साफ कर दिए गए थे। इस वक्त सिर पर पट्टी बंधी नजर आ रही थी। गले तक चादर ओढ़ रखी थी। डॉक्टर कह रहा था---
"इसके सिर में गोली फंसी थी जो कि ऑपरेशन करके निकाल दी। इसके शरीर पर सोलह घाव थे जो चाकुओं के। बारह जगह हमें सिलाई करके शरीर को ठीक करना पड़ा। एक घाव तो काफी गहरा था। इसकी जान लेने की पूरी चेष्टा की गई है। सच बात तो ये है कि मुझे हैरानी है कि ये दोनों अभी तक कैसे बचे हुए...।"
"सर।" कामटे कह उठा--- "ये भी देखा हुआ लग रहा है।"
बाजरे की आंखें सिकुड़ी। कामटे को देखा उसने।
"सच सर। मैंने इसे भी पहले कभी देखा हुआ है।"
"और तुम्हें याद नहीं कि कहां देखा है।"
"पता नहीं क्यों याद नहीं आ रहा... मैं...।"
"याद करो कामटे। ये हमारे लिए बहुत जरूरी है।" कमिश्नर बाजरे ने कहा।
"मैं जानता हूं सर कि जरूरी है। मैं... जल्दी ही आपको बताऊंगा कि ये कौन है। मुझे याद आ जाएगा।"
शेखर पेरवले, कामटे को घूर रहा था।
"मुझे इनके बारे में जरूर याद आएगा सर। मुझे यहीं छोड़ दीजिए। मैं याद करूंगा कि इन्हें कहां देखा है।" कहने के साथ ही कामटे कमरे से निकला और उस कमरे में आ गया, जहां देवराज चौहान बैड पर बेसुध पड़ा था। कामटे होंठ भींचे देवराज चौहान को देखने लगा। उसका उठता-बैठता सीना महसूस करने लगा।
फिर मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा।
"मुझे याद क्यों नहीं आ रहा कि मैंने इसे कहां देखा है।" कामटे बड़बड़ाया और मोबाइल कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जा रही थी फिर उसकी पत्नी सुनीता की आवाज कानों में पड़ी--- "हैलो...।"
"मेरा एक काम करो...तुम...।"
"काम!" सुनीता की तीखी आवाज कानों में पड़ी--- "पहले ये बताओ कि तुम रात भर कहां थे?"
"बहुत जबर्दस्त केस आया है, उसी की वजह...।"
"जबर्दस्त केस और वो किस तुम्हारे इंस्पेक्टर ने सब-इंस्पेक्टर कामटे के हवाले कर दिया। तुम इतने तीसमारखां तो नहीं कि...।"
"तुम बेकार की बात मत...।"
"मैं रात भर अपने बाप को कोसती रही कि उसने मेरा ब्याह तुम जैसे पुलिस वाले के साथ कर दिया। आज सुबह मैंने अपने बाप को फोन किया और उससे लड़ी कि मुझे उसने कुएं में फेंक दिया।"
"इसमें तेरे बाप ने कहां गलती कर दी?"
"उसे पुलिस वाला ही मिला था, मेरे ब्याह के लिए? प्लम्बर से ब्याह कर देता, बढ़ई से कर देता। बैंक में काम करने वाले से ब्याह कर देता। कम से कम शांत जिंदगी तो जीती। कूड़े में फेंक दिया उसने मुझे। खाकी वर्दी धोना ही मेरा नसीब बन गया है। तुम ये नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते?"
"छोड़ दूं...?"
"हां।"
"फिर क्या करूंगा? तेरा बाप मुझे सोने-चांदी की दुकान खुलवा देगा?"
"मेरा बाप क्यों?"
"तू ही तो कह रही है नौकरी छोड़ने को। मुझे तो नौकरी से कोई शिकायत नहीं।"
"मेरी किस्मत ही खराब है।"
"कभी अपने बाप को रोती है तो कभी किस्मत को। तेरा ऐसे ही चलता रहेगा। अब वो सुन जिसके लिए मैंने तेरे को फोन किया है। लकड़ी की अलमारी में गुलाबी रंग की एक फाइल पड़ी...।"
"जिसमें तुम अपराधियों के चेहरों की फोटो कॉपी लाकर चिपकाते रहते...।"
"वो ही। तू उसे लेकर फौरन नानावटी अस्पताल आ जा।"
"मैं आऊं?"
"तू ही आएगी। तेरे से ही कह रहा हूं। अब तो तेरे पास बहाना भी नहीं कि पैरों में मेहंदी लगी है। साल भर पुरानी हो चुकी है तू। फौरन वो फाइल ले और उड़कर मेरे पास पहुंच जा...।"
"तू कहां मिलेगा?"
कामटे ने बताया और फोन बंद कर दिया, जेब में रखा और देवराज चौहान के चेहरे को देखा।
"साले तू मुझे याद क्यों नहीं आ रहा कि तू कौन है?" कामटे बोला और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। बाहर निकला तो दूसरे कमरे से डॉक्टर, पेरवले और बाजरे निकलते दिखे।
"याद आया कामटे...?" बाजरे ने पूछा।
"अभी नहीं सर। याद आते ही मैं आपको फोन कर दूंगा।"
"तुम तब तक इन दोनों के पास रहोगे जब तक तुम्हें याद नहीं आ जाता।"
"जी सर।" कामटे ने कहा और जगमोहन वाले कमरे में चला गया।
■■■
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