डायनिंग हॉल के एक तरफ बड़ा सा दरवाजा था, जो कि खुला हुआ था। उस दरवाजे से निकलते ही तीस फीट लंबी और पांच फीट चौड़ी बालकनी थी, जहां से खुले समन्दर का नजारा स्पष्ट नजर आ रहा था। अंधेरे में डूबा समन्दर, किसी काली चादर की तरह लग रहा था। कभी-कभी समन्दर में आसमान से निकला चांद चमक उठता था। जहाज की रोशनीयां पास ही के पानी में पड़ रही थीं। तेजी से पानी का जहाज भागा जा रहा था।

इस तीस फीट लंबी गैलरी में पांच-छः लोग मौजूद थे। एक तरफ एकान्त में एक युवती और एक व्यक्ति कुर्सियों पर आमने-सामने बैठे थे। अंधेरे की वजह से उनके चेहरे स्पष्ट नजर नहीं आ रहे थे। आदमी हाथ में पकड़े गिलास को युवती की तरफ बढ़ाता बोला-

"लो, खत्म करो ।"

"नहीं, पहले ही बहुत हो गई है। मेरा सिर चकरा रहा है।" युवती कह उठी।

"ओह, रोमा मुझ पर भरोसा रखो। इतनी सी और पी लेने से कुछ नहीं होगा। अभी पूरी रात बितानी है।"

"नहीं मेरा सिर चकरा रहा है।"

"क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं ?"

"तुम लगते ही क्या हो मेरे, जो तुम पर भरोसा करुं ?"

"मैं तुम्हें प्यार करता हूं। दिलो-जान से चाहता हूं।"

"बकवास मत करो। तुम ब्लैकमेलर हो और मुझे ब्लैकमेल करके, साथ चलने को मजबूर किया।" युवती का नशे से भरा स्वर तीखा हो गया- "तुमने पहले मुझसे दोस्ती की। मुझे फंसाया। फिर मेरे साथ हमबिस्तर हो गये और फिल्म बनायी। तब मैं नहीं जानती थी कि बिस्तर पर होने वाली हर हरकत को वहां लगा कैमरा अपने में कैद कर रहा है।"

"पुरानी बातें तुम भूल क्यों नहीं जाती रोमा।" उस आदमी ने प्यार से कहा ।

"पुरानी-कितनी पुरानी है ये?" रोमा ने गहरी सांस लेकर कहा- "महीना भर पहले की तो बात है, जब ये सब हुआ। उसके बाद तुमने बिस्तर पर हुई हरकतों की सी.डी. बनाकर मुझे दी और कहा कि ऐसी ही सी.डी. मेरे पापा को दोगे, अगर मैं तुम्हारे साथ नहीं गई तो। मेरे पापा शहर के इज्जतदार लोगों में गिने जाते हैं, उनका नाम है, और मैं पापा से प्यार करती हूं। मेरी इस कमजोरी को तुम जानते थे और इसी का फायदा उठाया तुमने। मुझे मजबूर कर दिया तुमने कि मैं तुम्हारे साथ भाग चलूं। तब तुम्हारी ये भी शर्त थी कि घर से आते समय पापा की करोड़ों की दौलत के साथ लेती आऊं। मैं पापा को सी.डी. की वजह से बदनाम होते नहीं देखना चाहती थी। इसलिए मैंने तुम्हारी बात मानी। घर से करोड़ों की दौलत लेकर भाग आई। ज्यादा-से- ज्यादा पापा यही सोचेंगे कि मैं बेकार लड़की थी जो इस तरह घर से भाग गई। इस तरह उनकी खास बदनामी भी नहीं होगी, लेकिन सारी उम्र उनका दिल दुखता रहेगा कि उनकी बेटी ने गलत किया और इधर मेरा दिल रोता रहेगा।"

"ऐसी बातें करके मुझे क्यों तड़पाती हो, मैं तुमसे रंगून पहुंचते ही शादी कर लूंगा ।"

"शादी ?"

"हां, मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। तभी सब किया । मैं तुम्हें चाहता हूं। मेरे दिल में झांक कर तो देखो। काश! मैं तुम्हें अपना दिल दिखा सकता। परंतु मैं जानता था कि दूसरी तरह मैं तुम्हें हासिल नहीं कर पाऊंगा। तुमसे शादी नहीं कर पाऊंगा। एक रात के लिये तो तुम मेरे साथ सो गई, परंतु जिंदगी नहीं बताती मेरे साथ। शादी को कभी तैयार नहीं होती। इसी तरह तुम्हारे पापा भी मुझे अपना दामाद न बनाते। ये सब तुम्हें पाने के लिए किया है, वरना मैं बंदा बुरा नहीं हूं । लो, पी लो । कुछ दिन और बीतने दो। रंगून पहुंचकर तुम सब भूल जाओगी, लो पी लो ।"

रोमा ने गिलास थामा और एक ही सांस में खाली कर दिया।

"गुड गर्ल।" उसे गिलास थमाता वह कह उठा- "नशा बहुत कुछ ठीक कर देता है।"

"मुझे तुमसे शादी करनी होगी ?" रोमा की आवाज में नशा था।

"हां, हम शादी करेंगे रंगून में। घर बसायेंगे। तुम देखोगी कि मैं तुम्हारा कितना अच्छा पति बनता हूं ।"

रोमा ने गहरी सांस ली और समन्दर की तरफ मुंह कर लिया । वो उठते हुए बोला-

"मैं अपने लिए गिलास बनवा कर लाता हूं ।" कहकर वो खुले दरवाजे के भीतर चला गया ।

रोमा रेलिंग से ठोढ़ी लगाए, काले समन्दर को देखने लगी। तेज रफ्तार से जहाज आगे बढ़ने के कारण उसके बाल उड़ रहे थे। जिन्हें संभालने का उसका जरा भी मन नहीं हो रहा था ।

वो जल्दी ही गिलास थामें वापस आ गया।

"संजीव ।"

"कहो डार्लिंग ।"

"तुम मुझे बहुत प्यार करते हो ?"

"बहुत, तुम सोच भी नहीं सकती।"

"इम्तेहान दोगे ?" वो समन्दर को देखते कह उठी।

"क्यों नहीं ।"

"मेरे खातिर समंदर में कूद जाओ ।"

"क्या ?" वो अचकचाया- "ये क्या कह रही हो?"

"तुमने मुझे बहुत तंग कर लिया। अब मैं और तंग नहीं होना चाहती। मैं अपने पापा के पास जाना चाहती हूं।" उसका नशे भरा स्वर भर्रा उठा ।

"मैं जानता हूं, तुम्हें पापा से अलग होने का दु:ख हो रहा होगा।" संजीव ने कहा- "एक दिन हर लड़की को इस दौर से निकलना पड़ता है, लेकिन फिर सब ठीक हो जाता है। मैं तुम्हारे दिल की हालत समझ रहा हूं। रंगून पहुंचकर तुम अपने पापा से बात कर लेना । साल, दो  साल की बात है। एक दो बच्चे हो जाने के बाद हम वापस इंडिया आयेंगे। तब तुम अपने पापा से मिल सकोगी। लो, ये पैग भी चढ़ा लो। नशा सिर पर सवार होगा तो, सोचें दब जायेंगी । मैं तुम्हें खुश देखना चाहता हूं ।"

"तुम कुत्ते हो ।"

"क्या बकवास कर रही हो ?" संजीव गुर्रा उठा ।

"तुमने मुझे बर्बाद कर दिया। मेरी जिंदगी को तुमने मुसीबत बना दिया...मैं...।"

"ये रोना-धोना बंद करो।" संजीव धीमे स्वर में गुर्राया- "जो मैं कहूं। तुझे मानना होगा। वरना मैं वो सी.डी. जहाज पर मौजूद लोगों में बांट दूंगा। और तुम यहां भी किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहोगी। समझी कि नहीं ।"

"सच में तुम बहुत बड़े कुत्ते हो।"

संजीव ने हाथ में थमा गिलास एक ही साथ में खाली किया, फिर कड़वे स्वर में कह उठा-

"अगर मैं कुत्ता हूं तो ध्यान रखना, कुत्तों के मुंह नहीं लगते। अपना मुंह बंद रख और मेरे इशारे पर चल। तेरे बाप के पास इतनी ज्यादा दौलत है और तू उस दौलत की इकलौती वारिस। जब तू मेरे दो-चार बच्चे पैदा कर देगी तो तेरा बाप अपनी सारी दौलत मेरे नाम कर देगा। तब मैं भी तेरे बाप की तरह नामी बंदा बन जाऊंगा।"

रोमा सुबक उठी।

"चल, डिनर ले ले, उसके बाद केबिन में चलते हैं। आज मजे से  रात बितायेंगे।"

■■■

धर्मा ने गिलास खाली करके बार काउंटर पर रखा, वहां से जाने लगा तो उसे एकटक देखता साठ बरस का वो व्यक्ति फौरन आगे आया और बोला-

"पेमेंट सर ।"

धर्मा ने उसे देखा और मुस्कुरा कर कह उठा-

"स्टाफ ।"

"यहां स्टाफ नहीं चलता, ये कस्टमर के लिए बॉर है। स्टाफ  की बॉर अलग से है ।"

"अजीब आदमी हो, कब से भर्ती हुए हो यहां?" धर्मा ने टेढ़े स्वर में कहा ।

"जनाब, जब इस जहाज में पहली बार सफर शुरू किया था, मैं तब से ही बॉरमैन का काम कर रहा हूं और अब बूढ़ा हो गया हूं। जहाज के सारे स्टाफ को जानता हूं, परंतु आपको पहले कभी नहीं देखा।"

"तुम्हारी नजर कमजोर हो गई हैं ।"

"ये खबर मुझे अभी-अभी मिली है।" उसने व्यंग से कहा- "चैक करवाउंगा आंखों को ।"

धर्मा ने उसे देखा ।

"कब से जहाज पर काम कर रहे हो?" बूढ़े ने पूछा ।

"नया भर्ती हुआ हूं ।"

"नाम बतायेंगे ?"

"धर्मा ।"

"कौन से सेक्शन में हो ?"

"सेक्शन से क्या होता है?" धर्मा मुंह बनाकर बोला- "मेरा काम जहाज पर घूमते रहना है।"

"क्यों ?"

"यूं ही ।"

"ये ड्यूटी तो मेरे लिए नई है। पहले ये पोस्ट नहीं होती थी जहाज पर। उसने व्यंग से कहा-"तुम...।"

तभी राघव वहां पहुंचा ।

बूढ़े ने राघव को देखा आंखें सिकोड़ कर बोला-

"ये भी नया ही भर्ती हुआ होगा और इसकी ड्यूटी भी तुम्हारी तरह जहाज पर यूं ही घूमने के लिए होगी।"

"ठीक समझे ।"

"क्या हुआ ?" राघव में पूछा ।

"ये पागल सा है । एक पैग क्या पी लिया, पीछे पड़ गया। पैसे मांगता है और हमारी वर्दी पर शक कर रहा है।"

"ओह, तुमने इसे बताया नहीं?" राघव ने फौरन कहा ।

धर्मा ने गहरी सांस लेकर मुंह फेर लिया ।

"तुम्हें बता देना चाहिए कि हम कौन हैं।" राघव ने कहा, फिर बूढ़े से बोला- "तुम जरा बाहर जाओ।"

"बाहर क्यों ?"

"हमारे बारे में जानना चाहते हो कि नहीं ?"

"इसके लिए बाहर आने की क्या जरूरत है। तुम यहीं....।"

"यहां कोई भी वो बात सुन सकता है, जो हमने किसी को नहीं बताई। ये सरकारी राज है ।"

"सरकारी राज ?"

"जल्दी करो । हमें और भी काम है ।"

बूढ़े ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया और बॉर के पीछे से छोटा दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया और पास आ पहुंचा । उसके चेहरे पर उलझन के भाव नजर आ रहे थे।

"क्या है, सरकारी राज ?"

राघव, बूढ़े को कोने में ले गया। ये जगह ऐसी ओट थी कि यहां से हॉल में बैठे लोग नजर नहीं आ रहे थे। बूढ़ा बार-बार राघव को देख रहा था।

तभी राघव ने अपना दांया हाथ उठाया और खास अंदाज में बूढ़े के सिर पर रखा और अंगूठे से कनपटी दबाने लगा। बूढ़ा छटपटाया और अगले ही पल उसके घुटने मुड़ते चले गये। वो बेहोश होकर नीचे गिर गया ।

राघव पलटा और तेज-तेज कदम उठाता धर्मा के पास पहुंचा।

"वो युवक और युवती हॉल में नही हैं?" धर्मा ने राघव को देखते ही पूछा। उसकी निगाह भी वहां फिर रही थी ।

"नहीं। मैंने सब चेहरों को अच्छी तरह देख लिया है।" राघव बोला- "मेरे ख्याल में अपने केबिन में होंगे ।"

"वो साला कह रहा था कि डाइनिंग हॉल में बैठे हैं ।"

"बैठे होंगे, परंतु बाद में यहां से चले गए होंगे। आओ, उनके केबिन में....।"

"वो देख ।" धर्मा बोला- "वो लड़की तो, फोटो वाली ही लग रही है ।"

राघव ने उधर देखा ।

"वही है ।" राघव के होंठों से निकला ।

"उधर डायनिंग हॉल की बालकनी है, वो दोनों उधर से आये हैं।" धर्मा की निगाह उन पर टिकी थी ।

रोमा और संजीव डायनिंग हॉल में पहुंचे थे ।

संजीव चालीस बरस का सांवले  रंग का, परंतु आकर्षक व्यक्ति था।

"जोड़ी तो देख।" धर्मा ने कहा- "वो खिलती कली है और वो हरामी सूर्यमुखी का लुढ़कता फूल है ।"

"लड़की नशे में है। राघव बोला।

"थोड़ी गुस्से में भी लग रही है, उसके चेहरे के भाव खड़े हुए हैं। लगती तो समझदार है, फिर इसने बूढ़े सूर्यमुखी की टांग क्यों पकड़ ली, जबकि दौलतमंद बाप की इकलौती औलाद है।" धर्मा ने मुंह बनाया।

"तूने लड़की का चेहरा देख कर समझ लिया कि वो समझदार है ?" राघव शांत स्वर में बोला।

धर्मा ने गहरी सांस लेकर मुंह फेर लिया ।

स्टेज पर तेज म्यूजिक बज रहा था और दो लड़कियां धुन पर नाचने में मस्त थीं।

"एक्स्ट्रा नहीं आया।" धर्मा बोला।

"वो आ रहा है।" राघव ने एक तरफ देखते हुए कहा।

धर्मा ने उधर देखा है, एक्स्ट्रा इधर ही आ रहा था। उसने काला कोट, काली पैंट और सफेद कमीज पर काली डाई लगा रखी थी। सूट उसे पूरी तरह फिट नजर आ रहा था ।

"वो पास पहुंचा।

"हैलो दोस्तों। मैं देरी से नहीं पहुंचा?" एक्स्ट्रा मुस्कुरा कर बोला।

"ठीक है ।"

"वो मिले ?"

"उधर हैं। वो देख लड़की ने जींस की पैंट और स्कीवी पहन रखी है। साथ में उसके सूर्यमुखी का लटकता फूल है। वो उस टेबल की तरफ बढ़ रहे हैं। बैठने का इरादा लगता है उनका। लो बैठ गये।"

रोमा और संजीव कुर्सियों पर जा बैठे थे।

"तुमने अभी तक पकड़ा नहीं उन्हें?" एक्स्ट्रा ने पूछा ।

"अभी तो दिखे हैं ।"

"मैं उनसे मिलकर आता हूं।" एक्स्ट्रा ने राघव से कहा- "लड़की की फोटो दे ।"

राघव ने तस्वीर दी जिसे जेब में डालता एक्स्ट्रा आगे बढ़ता चला गया।

"बीस मिनट में हमें जहाज से बाहर होना है।" राघव ने कहा ।

"लड़की के साथ-।"

"हां-वो-।"

"तुम दोनों अभी तक यहीं हो ?"

राघव और धर्मा पलटे और सकपका उठे।

दो कदमों की दूरी पर ही वो बूढ़ा खड़ा उन्हें खा जाने वाले नजरों से देख रहा था।

"तूने इसे लम्बा बेहोश नहीं किया था ?" धर्मा ने राघव को देखा।

"शायद दबाव काम रह गया हो। उसके उम्र को देखते हुए मैंने कम दबाव डाला था।" राघव ने शांत स्वर ने कहा।

"तुम दोनों जहाज के स्टाफ के नहीं हो सकते।" बूढ़ा गुस्से में ऊंचे स्वर में बोला- "तुमने मुझे बेहोश किया। मैं अभी सिक्योरिटी को बुलाता हूं। तुम लोग चोर हो और जहाज में घुस आए हो।"

उसकी ऊंची आवाज के कारण कईयों की निगाह इस तरफ उठी।

"मामला लम्बा होने जा रहा है।" धर्मा ने कहा ।

राघव फौरन बूढ़े के पास पहुंचा ।

"तुम होश में आ गये।"

"हां, तुमने तो मेरा काम कर...।"

"लेकिन तुम्हें अभी होश में नहीं आना चाहिए था। एक घंटा तुम्हारे लिए आराम करना जरूरी है। जहाज में R.D.X. हैं। वो फट गया तो तुम अपनी मौत देखकर, पहले ही मर जाओगे । इसलिए तुम्हें बेहोश होना था कि तुम बेहोशी में ही-।"

"क्या?" उसकी आंखें फैल गईं- "R.D.X. जहाज में...।"

"हां, यही वो सरकारी राज था, जो तुम्हें बताने जा रहा था परन्तु तुम...।"

"सरकारी राज-R.D.X.-।"

"तुम हमें नहीं जानते, हम C.B.I. हैं।"

"C.B.I. ।"

"इधर आओ, मैं तुम्हें सारी कहानी बताता हूं...।" राघव उसकी बांह पकड़कर कोने की तरफ बढ़ा ।

"यहां कहां ले जा रहे हो मुझे?" साथ घिसटता बूढ़ा कह उठा ।

"R.D.X. के बारे में बताने के लिए।"

"लेकिन वो सरकारी राज...।"

"वो भी बताऊंगा ।"

"तुम सी.बी.आई हो ?"

"नहीं ।"

"तो...तुम ।"

"R.D.X. हैं हम।

"R.D.X. तुम लोग... ये क्या कह रहे हो। तुम कोई फ्रॉड हो और...।"

राघव, बूढ़े को लेकर फिर उसी कोने में पहुंच गया।

"इस जगह को जानते हो ?"

"ये...।" बूढ़ा घबरा कर कह उठा- "इस जगह पर तुमने मुझे बेहोश किया...।"

"लेकिन तुम्हें होश आ गया। अब की बार तुम्हें घंटा भर से पहले होश नहीं आयेगा।" कहने के साथ ही राघव ने उसके माथे के किनारे पर नपा-तुला घूंसा मारा तो बूढ़ा कराह के साथ नीचे गिरता चला गया।

राघव पलटा कि उसी पल ठिठक गया ।

वर्दी में वहां एक आदमी खड़ा उसे देख रहा था।

"हैलो।" राघव फौरन मुस्कुराया ।

"वहीं खड़े रहो ।" वो व्यक्ति सख्त स्वर में बोला- "तुम जहाज के स्टाफ नहीं लगते, जबकि वर्दी स्टाफ की पहन रखी है।"

"क्या बात करते हो?" राघव हंसकर बोला ।

"तुमने इसे बेहोश किया ?"

"बार काउंटर के पीछे खड़ा ये शराब के नशे में धुत हो चुका था और स्टेज पर पहुंचकर डांस करने की जिद कर रहा था। यहां मौजूद यात्री इसकी हरकत को अच्छा ना समझते। जब इसे होश आयेगा तो नशा उतर चुका होगा।"

वो व्यक्ति कठोर अंदाज में मुस्कुराया ।

"मुझे जानते हो ?"

"तुम्हें-क्यों तुम्हें जानना जरूरी है क्या ?"

"हां, क्योंकि मैं जहाज का चीफ ऑफ सिक्योरिटी मंगल सिंह हूं और जहाज के हर कर्मचारी को अच्छी तरह जानता हूं। लेकिन तुम्हें नहीं जानता, क्योंकि तुम स्टाफ के हो ही नहीं। मुझे हैरानी है कि तुम कैसे वर्दी पहनकर यहां घूम रहे हो और बॉरमैन को बेहोश कर दिया ।"

राघव ने गहरी निगाहों से उसे देखा ।

वो दृढ़ इरादे वाला सख्त जान व्यक्ति लगता था ।

मंगल सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर राघव की तरफ तान दी।

"कोई शरारत मत करना। चलो, बाईं तरफ वाला दरवाजा खोलो।"

"क्यों। मैं तो शरीफ...।"

"मेरी आंखों के सामने तुमने बॉरमैन को बेहोश ना किया होता तो मैं यही समझता कि तुम कोई यात्री हो और मजाक में वर्दी पहनकर जहाज में घूम रहे हो। तब पहले-पहल मैं यही सोचता और इस बात की तफ्तीश करता कि तुम्हारे केबिन कौन-सा है, तुम्हारे साथ कौन-कौन लोग ठहरे हैं और तुम्हारा पासपोर्ट...।"

"पासपोर्ट मैं अब भी दिखा सकता...।" कहते हुए राघव ने जल्दी से जेब की तरफ हाथ बढ़ाया।

"खबरदार ।" मंगल सिंह गुर्रा उठा- "गोली मार दूंगा।" राघव का हाथ रुक गया।

"अपने हाथ जेब से दूर रखो ।"

"यार, तुम तो इस बार तरह बात कर रहे हो, जैसे मैं चोर हूं ।" राघव गहरी सांस लेकर बोला ।

"तुम चोर से भी ज्यादा खतरनाक लग रहे हो, क्या निकालने वाले थे जेब से, रिवाल्वर? मंगल सिंह कठोर स्वर में बोला ।

राघव मुस्कुराया ।

"तुम कोई बड़े हरामी लगते हो, बाईं तरफ का दरवाजा खोलो।" मंगल सिंह ने रिवॉल्वर वाला हाथ हिलाया ।

"बाद में तुम्हें पछताना पड़ेगा।"

"क्यों ?"

"मैं जहाज के कप्तान का साला हूं ।"

"तुमने मेरे सामने बॉरमैन को बेहोश किया है, वैसे तुम्हें जहाज के कप्तान का नाम तो पता होगा।"

"मैं जीजे का नाम नहीं लेता।"

"चिंता मत कर, तेरे जीजे को ही तेरे पास बुला लूंगा, खोल दरवाजा ।"

राघव ने दरवाजा खोला ।

"अंदर चल ।"

राघव आगे बढ़ा ।

ये गैलरी थी, परंतु छोटी थी। सामने ही गैलरी का सिरा नजर आ रहा था।

तभी रिवाल्वर की नाल राघव की पीठ पर आ लगी ।

"आगे चल और दाईंतरफ वाला एक दरवाजा छोड़कर, दूसरा दरवाजा खोलकर, उसमें चल ।"

राघव आगे बढ़ा ।

मंगल सिंह उसकी पीठ से रिवाल्वर लगाए उसके पीछे था ।

उसी पल राघव धड़ाक से छाती के बल नीचे जा गिरा और उसका शरीर वहीं थम गया।

"तुम्हारी कोई चालाकी नहीं चलेगी। खड़े हो जाओ ।"

परंतु राघव के शरीर में कोई हरकत ना हुई ।

"मैं गोली चलाने जा रहा हूं ।" मंगल सिंह ने कठोर स्वर में कहा।

मंगल सिंह कुछ पल वहीं खड़ा उसे नीचे पड़े देखता रहा। दांत भिंच गए थे उसके।

"मैं जानता हूं कि तुम तमाशा कर रहे हो। सीधी तरह खड़े हो जाओ ।"

कोई फायदा ना हुआ ।

राघव का शरीर सीने के बल वैसे ही पड़ा रहा।

तभी वो ही वाला दरवाजा खुला और एक आदमी बाहर निकला । गैलरी के हालात देखते ही चौंका वो

"सर ।" वो फौरन एक तरफ लपका- "आपने इसे गोली क्यों मार दी ?"

"तुमने गोली की आवाज सुनी ?"

"नो सर।"

"तो फिर कैसे कह दिया कि मैंने गोली मार दी ।"

"आपके हाथ में रिवाल्वर और ये नीचे पड़ा हुआ.....।"

"शटआप ! ये कोई हरामी बंदा है, जो जहाज के स्टाफ की वर्दी में जहाज पर घूम रहा है। मेरे सामने उसने रंजीत शर्मा को बेहोश किया और जब मैं इसे पकड़ कर ला रहा था तो ये नीचे गिर गया।" मंगल सिंह ने कठोर स्वर में कहा ।

"हार्ट-अटैक आ गया होगा।"

"बकवास मत करो, और इसे सावधानी से सीधा करो। चैक करो ।"

"जी।" वो व्यक्ति तुरंत आगे बढ़ा। उसने नीचे पड़े राघव को सीधा किया चैक किया ।

हाथ-पैर-सीना । सब चैक किया।

"सर, धड़कन ही गायब है। सांसे भी गायब ।"

"क्या कह रहे हो ?" मंगल सिंह के होंठों से निकला।

"सच कह रहा हूं सर । ये तो मरा पड़ा है ।"

मंगल सिंह एकाएक परेशान हो गया। उसने रिवाल्वर जेब में डाली और आगे बढ़कर राघव को चैक किया।

"तुम ठीक कह रहे हो, ये तो मर गया।" मंगल सिंह बोला ।

"ये कौन था सर, जहाज के स्टाफ का तो नहीं लगता ।"

"मालूम नहीं कौन था, इसे स्ट्रेचर पर डालो और डॉक्टर के पास ले चलो ।"

"मैं अभी स्ट्रेचर लेकर आया।" कहने के साथ ही वो दूसरी दिशा में चला गया।

मंगल सिंह कुछ पलों तक राघव को देखता रहा। फिर आगे बढ़ा और दरवाजे के भीतर प्रवेश कर गया, जहां से व्यक्ति बाहर निकला था। उस छोटे से केबिन में एक तरफ सिंगल बैड पड़ा था और बैठने के लिए तीन कुर्सियां थीं ।

उसने टेबल पर मौजूद पैकिट में से सिगरेट निकाल कर सुलगाई और पुनः बाहर आ गया।

बाहर आते ही उसके कदम जड़ हो गये।

राघव वहां नहीं था।

"कहां गया?" मंगल सिंह ने परेशानी से गैलरी के दोनों तरफ देखा ।

परन्तु वहां तो राघव की हवा भी नहीं थी ।

"तो वो हरामी मरने का नाटक कर रहा था...भाग गया ।" मंगल सिंह दांत भींचे कह उठा- "लेकिन जहाज में जायेगा कहां । मैं उसे ढूंढ कर ही रहूंगा। साला, मुझे बेवकूफ बना गया ।"

■■■

रोमा उखड़ी पड़ी थी। नशे में उसका चेहरा तमतमा रहा था ।

"अब नाराजगी छोड़ दो।" संजीव बोला- "हमें अब पति पत्नी बन कर रहना है।"

"तुमने मुझे बुरी तरह से कैद कर लिया है।" रोमा की आंखों में आंसू चमक उठे ।

"ये क्या कह रही हो।" संजीव ने उसका हाथ थाम लिया- "मैं तुमसे प्यार करता हूं। तुमसे शादी करना चाहता हूं। प्यार करना गुनाह है क्या, तुम्हारे लिए मैं जान भी दे सकता हूं।"

"पता नहीं, वो कौन-सा मनहूस वक्त था, जब मैंने तुम्हें देखा था।"

"तुम फिर सड़ी हुई बातें करने लगी।" संजीव ने नाराजगी से कहा- "तुम्हें मेरे साथ प्यार से पेश आना चाहिये। मैं तुम्हें रंगून ले जा रहा हूं । वहां मेरे दोस्त ने हमारे लिए अपना घर तैयार रखा हुआ है। वहां...।"

"तुम्हें मेरे पापा की दौलत चाहिए ना ?"

"क्यों नहीं ।"

"मैं पापा से कह देती हूं, वो तुम्हें सारी दौलत ....।"

"बच्चों वाली बातें मत करो। अब तुम बड़ी हो गई हो । मुझे दौलत के साथ तुम भी चाहिये। तुम मुझे अच्छी लगती हो। फिर तुम्हारा बाप मुझे क्यों अपनी दौलत देगा, वो तो फंसा देगा मेरे को।"

रोमा ने आंखों में आये आंसुओं को साफ किया ।

"अब हम दोनों का साथ अटूट है। हम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं । ये सत्य तुम्हें स्वीकार कर लेना चाहिये।"

"तुम मुझे अच्छे नहीं लगते ।"

"कोई बात नहीं धीरे-धीरे अच्छा लगने लगूंगा। कुत्ता भी रखो तो उससे प्यार हो जाता है, मैं तो इंसान हूं।" संजीव ने बेहद प्यार से कहा- "धीरे-धीरे तुम मुझे प्यार करने लगेगी। मेरे जैसा प्यार करने वाला तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा। पैग लाऊं, एक और पी लो।"

"नहीं ।"

"ले लो, हम दोनों ने अभी एक रात साथ बितानी है, पी लोगी तो...।"

तभी एक्स्ट्रा वहां पहुंचा ।

"नमस्कार-गुड इवनिंग । वक्त रात के 11:30 हुए हैं ।"

दोनों ने उसे देखा ।

"क्या चाहिए ?" संजीव ने उखड़े स्वर में पूछा ।

"बड़ी परेशानी में हूं ।" एक्स्ट्रा कुर्सी खींच कर बैठता हुआ कह उठा- "मुझे एक्स्ट्रा कहते हैं ।"

"क्या ?"

"एक्स्ट्रा अजीब नाम है, मैं जानता हूं । लेकिन सब मेरे बाप की गलती से हुआ। वो ही मुझे एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा कहकर बुलाया करता है जब छोटा था तो कुछ समझ में नहीं आया कि एक्स्ट्रा क्या बला है, लेकिन जब बड़ा हो गया तो सब समझ में आ गया कि एक्स्ट्रा क्यों कहता था बापू ?"

"क्यों कहता था ?"

"तीन बच्चे उसके पहले थे। और बच्चा तो चाहिये नहीं था । फौजी था मेरा बाप । छुट्टियों में घर आया था और जब ड्यूटी ज्वाइन करने जाना था तो मेरी माँ को, मतलब कि अपनी बीवी से विदाई प्यार किया रात भर। वो तो चला गया लेकिन मैं मां के पेट में आ गया। दस महीने बाद जब मेरा बाप फिर छुट्टी पर आया तो माँ की गोद में मुझे देखकर बिगड़ गया कि तीन बच्चे पहले ही थे, चौथे की क्या जरूरत थी। उसके बाद बाप ने मुझे बेटे का दर्जा कम और एक्स्ट्रा का दर्जा ज्यादा दे दिया। सारी उम्र मुझे एक्स्ट्रा-एक्स्ट्रा ही कहता रहा, कोई नाम ना रखा मेरा।"

"यहां से उठो, हमें किसी एक्स्ट्रा की जरूरत नहीं है।" संजीव ने उखड़े स्वर में कहा ।

"एक समस्या है ।"

"तो मुझे क्या ?"

"मेरे दोस्त की बहन है ये ।" कहते हुए एक्स्ट्रा ने जेब से राघव की दी रोमा की तस्वीर निकाली- "पक्की खबर है कि ये इसी जहाज पर है, क्या आपने इसे देखा है ?"

तस्वीर पर निगाह पड़ते ही संजीव चिंहुक पड़ा ।

"क्या हुआ ?"

"हां-हां कहो।" एक्स्ट्रा ने शांत भाव से तस्वीर रोमा को दिखाई- "आपने इसे कहीं देखा है ?"

रोमा भी चिंहुक उठी। क्योंकि तस्वीर उसकी थी ।

"ये तस्वीर तुम्हें कहां से मिली?" रोमा के होंठों से निकला ।

संजीव कह उठा-

"यहां से चले जाओ । ये मेरी बीवी है, क्यों रोमा ।"

"तस्वीर वाली लड़की का नाम भी रोमा ही है।" एक्स्ट्रा ने कहा। मुस्कुराया, रोमा को देखा ।

"जाते हो या नहीं ?" संजीव दांत भिंचे गुर्रा उठा ।

एक्स्ट्रा ने मुस्कुराकर संजीव को देखा और बोला-

"नहीं ।"

संजीव दांत पीसकर उसे देखने लगा ।

एक्स्ट्रा ने तस्वीर वापस जेब मे डाली।

"कौन हो तुम और क्या चाहते हो ?" संजीव खा जाने वाले स्वर में कह उठा ।

"एक्स्ट्रा कहते हैं मुझे ।" एक्स्ट्रा ने शांत स्वर में कहा- "मैं तुम्हारा पूरा कच्चा-चिट्ठा जानता हूं। तुम पर हत्या, जबरन वसूली और बलात्कार के पंद्रह-बीस केस से ज्यादा ही चल रहे हैं। इस वक्त तुम जमानत पर छूटे हुए हो और देश से फरार हो रहे हो। तुमने दो शादियां भी कर रखी हैं । एक बीवी मुंबई में दूसरी भोपाल में रहती है...।"

"क्या?" रोमा हड़बड़ा करके उठी- "ये शादीशुदा है ?"

"एक नहीं, दो शादियां कर रखी है इसने।" एक्स्ट्रा ने मुस्कुरा कर कहा- "तुम क्या समझी कि-।"

"क्या मेरे क्यों मेरे हाथों मरना चाहते हो?" संजीव ने दांत किटकिटाये।

उसकी बात पर ध्यान न देकर एक्स्ट्रा रोमा से कह उठा-

"मुझे तो समझ नहीं आता कि तुमने इस जड़ से उखड़ते पेड़ में क्या देखा कि इसकी डाल पर बैठ गई ।"

"मैं...मैं इसे नहीं चाहती ।"

"तभी इसका साथ देकर भाग रही हो ?"

"वो...वो इसने मुझे मजबूर किया। ये मुझे ब्लैकमेल करके ले जा रहा है...।"

तभी संजीव ने छिपे-ढके अंदाज में रिवाल्वर निकाली और एक्स्ट्रा को दिखाई ।

"मैं तुम्हें मार दूंगा ।"

"पक्का ?"

"चलाऊं गोली ?" संजीव का चेहरा दरिंदगी से भर उठा ।

"नहीं, मुझे मत मारना ।" एक्स्ट्रा ने गंभीरता से कहा ।

"कौन हो तुम ?"

"एक्स्ट्रा (X-TRA) । कितनी बार बताऊं ?"

"ये तस्वीर लिए किधर घूम रहे हो ?"

"इसके बाप ने भेजा है कि लड़की को वापस ले आऊं, साथ में वो हीरे भी, जो ले भागी है।"

संजीव चौंका ।

रोमा खुशी से कह उठी-

"पापा ने भेजा है तुम्हें ।"

"चुप कर साली।" संजीव गुर्राया, फिर एक्स्ट्रा से बोला- "इसके बाप को कैसे मालूम हुआ कि ये इस जहाज में है ?"

"इसके बाप के कहने पर प्राइवेट जासूस इस पर नजर रख रहा था। और सारी रिपोर्ट दे रहा था। इसके बाप को शक था कि रोमा किसी गलत रास्ते पर जा रही है, तभी उसने प्राइवेट जासूस की सेवाएं लीं।"

"ओह ! तो ये बात है ।"

"हां, ये ही बात है ।" एक्स्ट्रा ने सिर हिलाया ।

"अब तुम क्या चाहते हो ?" संजीव ने एक-एक शब्द चबाकर पूछा।

"बताया तो, लड़की और करोड़ों के हीरों को वापस ले जाना है।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"मैं तुम्हें गोली मार दूंगा तो ?"

"फंस जाओगे, वैसे भी मैं अकेला नहीं हूं ।"

संजीव ने फौरन आसपास देखा। कोई इधर देखता ना दिखा ।

"कितने हो?" संजीव ने कठोर स्वर में पूछा।

"तीन ।"

"बेवकूफी से भरी कोई हरकत मत करना। मैं तुम्हें कुछ हीरे दे सकता हूं कि तुम मुंह बंद रखो ।"

"कुछ हीरे?"

"पचास लाख की कीमत के। इस काम का तो तुम्हें सेठ ने पांच-दस लाख दिया होगा ।"

"करोड़ों के हीरों में से सिर्फ पचास लाख के हीरे?" एक्स्ट्रा मुस्कुराया ।

"ज्यादा मुंह मत फड़ो। हराम का माल नहीं है जो सारे दे दूंगा।"

"हराम का माल ही है तुम्हारे लिये। लड़की कहती है कि तुम इसे ब्लैकमेल कर रहे हो।" एक्स्ट्रा बोला।

"अपने काम से मतलब रखो और हीरों के बारे में सोचो जो मैं तुम्हें दूंगा।"

"मुझे लड़की और हीरे, दोनों चीजों की जरूरत है, इसका बाप मेरी वापसी का इंतजार कर रहा होगा।"

"लगता है तो मरना ही चाहते हो।"

एक्स्ट्रा ने रिवाल्वर निकालकर उसे दिखाई।

"मेरे पास भी है।"

संजीव अचकचाया।

एक्स्ट्रा ने रिवाल्वर जेब में रखी।

"तुम भी रिवाल्वर जेब में रख लो। कभी-कभी ये बिना ट्रेगर दबाये ही चल जाती है। यहां गोली चल गई तो जहाज वाले तुम्हें पकड़कर बंद कर देंगे और आगे जाकर पुलिस के हवाले कर देंगे।"

संजीव ने बेचैनी भरी निगाहों से एक्स्ट्रा को देखा।

तभी एक्स्ट्रा ने अपनी कुर्सी पीछे की कि लड़खड़ा कर कुर्सी सहित पीछे जा गिरा।

"क्या हुआ तुम्हें ?" रोमा के होंठों से निकला।

"चुपचाप बैठी रह साली।" संजीव गुर्राया, हाथ में दबी रिवॉलवर उसने जेब में डाल ली ।

एक्स्ट्रा उठने की चेष्टा करने लगा ।

तभी धर्मा उसके पास आ पहुंचा ।

"ओह , आप तो गिर गये, कोई परेशानी है सर ।" धर्मा एक्स्ट्रा को उठाता हुआ कह उठा ।

"सब ठीक है। लेकिन ये आदमी मुझे और मेरी पत्नी को परेशान कर रहा है।" एक्स्ट्रा ने संजीव की तरफ इशारा किया ।

"तुम्हारी पत्नी ?" संजीव चौंका।

"ऑफिसर, ये मेरी पत्नी है।" एक्स्ट्रा ने रोमा की तरफ इशारा किया- "हम डिनर करने वाले थे कि असभ्य लोगों की ये तरह हमारे साथ की कुर्सी पर बैठा और अब हमें परेशान कर रहा है।"

"ये झूठ बोलता है।" संजीव कह उठा- "ये मेरी पत्नी है।"

"ये कोई समस्या नहीं।" धर्मा अपने शरीर पर पड़े, जहाज के कर्मचारियों के कपड़ों की लाज रखता कह उठा- "अभी सब कुछ स्पष्ट हो जायेगा ।" फिर वो रोमा से कह उठा- "क्यों मैडम, इनमें से कौन आपका पति है ?"

रोमा के होंठ हिले, परंतु शब्द कुछ ना निकला।

"इसके पास रिवाल्वर है।" एक्स्ट्रा बोला- "इसने रिवाल्वर से मुझे और मेरी पत्नी को डराया है । तभी ये बोल नहीं रही।"

"बकवास करता है ये-।" संजीव भड़का- "रिवाल्वर इसकी जेब में है।"

"ये देखो ।" एक्स्ट्रा जेब से रोमा की तस्वीर निकालता कह उठा-"देखो ऑफिसर, मैं अपनी पत्नी की तस्वीर हमेशा अपनी जेब में रखता हूं। मिला लो सूरत, ये मेरी पत्नी है कि नहीं ।"

धर्मा ने तस्वीर देखी। रोमा का चेहरा देखा । फिर बोला-

"आप ठीक कह रहे हो, ये आपकी ही पत्नी है।"

"ये क्या तमाशा है ?" संजीव भड़का- "मेरी पत्नी की तस्वीर इस आदमी ने रखी हुई है और आप कह रहे है कि इसकी पत्नी है। आप जरा होश में रह कर बात कीजिये। आपके कहने से ये इसकी पत्नी नहीं बन जायेगी।"

"आप भी ठीक कहते हैं।" धर्मा ने सिर हिलाया- "मामला गंभीर होता जा रहा है । मैडम, आप मेरे साथ चलिये।"

"कहां ?" रोमा के होंठों से निकला।

"आपके केबिन में वहीं चल कर बात करते हैं ।" धर्मा ने शिष्ट स्वर में कहा।

रोमा उठ खड़ी हुई ।

"कौन से केबिन में ठहरी हैं आप ?"

रोमा ने बताया ।

"आइये।"

रोमा और धर्मा आगे बढ़ गये।

संजीव और एक्स्ट्रा भी उठे ।

"मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं।" संजीव गुर्रा उठा ।

"अपने बारे में सोचो। तुम जमानत पर हो और देश छोड़कर भाग रहे हो। कैसे बच पाओगे?" एक्स्ट्रा ने कहा ।

संजीव गुर्रा कर रह गया ।

फिर दोनों एक तरफ बढ़ गये।

"क्यों झगड़ा कर रहे हो?" संजीव बोला- "मुझेसे दोस्ती कर लो।"

"मैं यही तो कह रहा हूं। दोस्ती कर लो। लड़की और हीरे मेरे हवाले करके छुट्टी पा लो।"

"मैं तुम्हें गोली मारकर समंदर में फेंक दूंगा ।"

"रिवॉल्वर मेरे पास भी है।"

"पचास लाख के हीरे कम नहीं होते ।"

"रोमा के बाप ने मुझे लड़की के साथ हीरे.....।"

"लड़की मेरे साथ अपनी मर्जी से जा रही है, तुम जो करना चाहो कर लो।" संजीव भिनभिनाया।

"उसने मेरे सामने अभी कहा है कि तुमने उसे ब्लैकमेल करके मजबूर किया है।"

"वो उसने यूं ही कह दिया है। अब नहीं कहेगी।" संजीव ने दांत भींचकर कहा ।

"देख लेना, वो फिर यही बात कहेगी। जहाज वालों को नहीं पता कि तुम जमानत पर हो और देश से फरार हो रहे हो ।"

"तो तुम उन्हें बता दोगे?" संजीव ठिठका। उसका हाथ जेब में गया ।

एक्स्ट्रा भी ठिठका।

दोनों की नजरें मिलीं ।

"तुम बात-बात पर गर्म हो जाते हो। मेरे ख्याल में कई लोग अब तक तुम्हारी ठुकाई कर चुके होंगे।"

"मैंने पूछा है कि तुम ये बात जहाज वालों को बताओगे कि मैं देश से फरार हो रहा हूं ?" उसने दांत भींचकर पूछा ।

"चिन्ता मत करो, ये बात नहीं बताऊंगा।"

"बताया तो मां कसम तुम्हें उसी वक्त गोली से मार दूंगा।" संजीव ने गुस्से से स्पष्ट शब्दों में धमकाया ।

दोनों पुनः आगे बढ़ गये ।

"तुम इतने गुस्से वाले हो कि समझ में नहीं आता कि तुमने लड़की कैसे पटा ली।" एक्स्ट्रा ने गहरी सांस ली।

"जब मैं लड़की पटाता हूं, तब गुस्से वाला नहीं होता।"

"क्या खूबी है। रोमा को पहली बार कैसे पटाया था ?"

"तुम क्यों जानना चाहते हो ?"

"तुम्हारा आइडिया मैं भी आजमाऊंगा, इसलिए पूछ रहा हूं ।"

"लगता है तुमने आज तक कोई लड़की नहीं पटाई ?"

"फालतू बातों के लिए वक्त नहीं है। काम करो, नोट बनाओ और आगे बढ़ो। अपनी मेहनत के नोट। तेरी तरह नहीं कि लड़की पटा ली और उसके बाप के माल को अपना समझने लगे।"

"तुम औरतों की तरह बोलते बहुत हो।"

"एक्स्ट्रा (X-TRA) हूं। फालतू के सब काम करता हूं । तेरे जैसों को उंगली पर बिठाकर नचाता हूं ।"

"किस पर ?"

"उंगली पर ।"

"उंगली पर कैसे बिठा लेते हो ?"

"जब बैठेगा तो पता चल जायेगा। और वो वक्त अब ज्यादा दूर भी नहीं ।" एक्स्ट्रा ने गहरी सांस लेकर कहा।

"पागलों की तरह पता नहीं क्या-क्या बोलता रहता है।" संजीव गुस्से भरे स्वर में बड़बड़ा उठा।

■■■

धर्मा, रोमा की कलाई पकड़े आगे बढ़ा और कह उठा-

"अब बोलो ।"

"क्या ?"

"उनमें से कौन तुम्हारा पति है ?"

रोमा ने कुछ नहीं कहा। चलते-चलते होंठ भिंच लिए ।

"घबराओ मत। इस वक्त तुम सुरक्षित हाथों में हो। तुम्हें कुछ नहीं होगा।" धर्मा ने कहा ।

"म-मैंने मुंह खोला तो मैं बर्बाद हो जाऊंगी। वो मुझे कहीं का नहीं छोड़ेगा ।"

"तुम किसी बात की फिक्र मत करो । जो कहना है कह दो, मैं सब संभाल लूंगा ।"

"दोनों में से कोई मेरा पति नहीं है।" रोमा ने हिम्मत करके कहा।

"मैं जानता हूं ।"

"तुम जानते हो ?" रोमा अचकचा कर बोली ।

"हां, हमें तुम्हारे पापा ने भेजा है, तुम्हें ले आने के लिए ।"

"पापा ने ओह, तुम लोग तीन हो ?"

"हां । R.D.X.। X से तुम मिल चुकी हो । D से मिल रही हो, R इधर-इधर उधर होगा।"

"हां, वो भी कह रहा था कि हम तीन हैं, लेकिन तुम जहाज के स्टाफ की वर्दी में...।"

"इस चक्कर में ना पड़ो । तुम जहाज पर क्या कर रही हो, सच-सच मुझे बताओ।"

दोनों तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे।

"महीना भर पहले।" रोमा भर्राये स्वर में कह उठी- 'मैंने संजीव के साथ बैड पर कुछ वक्त बिताया है। उस वक्त उसने सी.डी. बना ली और मुझे ब्लैकमेल करने लगा। मैं नहीं चाहती थी कि पापा को इस बारे में पता चले, इसलिए उसकी बात मानती रही। अब वो मुझे लेकर रंगून जा रहा है। मैं उसकी बात नहीं मानूंगी तो वो मुझे बदनाम कर देगा।"

"तुम खामख्वाह ही परेशान हो रही हो, तुम्हें सारी बात अपने पापा को बता देनी चाहिये थी।"

"शर्म और डर की वजह से मेरे मुंह से कुछ ना निकला।"

"तुम अपने साथ अपने पापा के आठ-दस करोड़ के हीरे भी लाई हो ?"

"हां । उसने मुझे धमकी दी थी कि घर से आते वक्त करोड़ों की दौलत लेकर आऊं। और तो मुझे कुछ सूझा नहीं, घबराहट में मैं उन हीरों का ब्रिफकेस ले आई, जो उसी दिन पापा कहीं से लाये थे ।"

"वो सी.डी. अभी उसके पास है जिसमें तुम्हारी तस्वीर है ?"

"हां ।"

"जानती हो वो कहां है ?"

"हां ।"

"चिंता मत करो, मैं सब ठीक कर दूंगा । R.D.X. तुम्हारे साथ हैं तो तुम्हें अब किसी से भी नहीं डरना है।"

रोमा कुछ कह नहीं सकी ।

कुछ ही देर में वे दोनों एक केबिन में पहुंचे। जहां डबल बैड बिछा हुआ, दो कुर्सियां थीं  बैठने के लिए और अटैच बाथरूम था। चलने के लिए जरूरत के मुताबिक जगह थी।

"वो हीरों का ब्रिफकेस कहां है ?"

"वो हीरे तो संजीव ने एक बड़ी-सी थैली...।"

"थैली निकालो।"

"क्यों ?"  रोमा ने धर्मा से पूछा।

"तुम्हारे साथ-साथ हीरों को भी तो ले चलना है। R.D.X. कभी आधा काम नहीं करते। साथ ही वो सी.डी. निकालो, जिसमें तुम्हारी हरकतें दर्ज हैं। तुम्हें संजीव नाम की मुसीबत से अब हमेशा के लिए मुक्ति मिलने वाली है।"

"लेकिन हम जायेंगे कैसे? जहाज तो पानी में दौड़...।"

"उसकी तुम फिक्र ना करो।" धर्मा बोला- "जो कहा है, वो जल्दी से करो।"

रोमा जल्दी से आगे बढ़ी और एक तरफ पड़े सूटकेसों को खोलने लगी। वे बंद थे तो गद्दे के नीचे से चाबियां निकालकर उन्हें खोला और सबसे पहले सूटकेस के भीतर, नीचे से एक थैली निकाली। काले रंग की थैली में हीरे भरे हुए थे। धर्मा ने थैली नहीं खोली, बाहर से ही उन्हें टटोलकर देखा और संतुष्ट हो गया।

रोमा पुनः खुले सूटकेसों में व्यस्त हो गई थी ।

तभी दरवाजा खुला और संजीव के साथ एक्स्ट्रा ने भीतर प्रवेश किया।

एक्स्ट्रा के हाथों में हीरों की थैली देखकर संजीव चौंका ।

रोमा को सूटकेस खोले पाकर वो चीखा।

"ए... ये क्या कर हो रहा है ?"

रोमा घबरा कर पलटी।

एक्स्ट्रा ने उसी पल रिवाल्वर उस पर तान दी ।

"हिलना मत।" एक्स्ट्रा ने कठोर स्वर में कहा- "धर्मा इसकी रिवाल्वर निकालो।"

धर्मा ने तुरंत उसकी तलाशी लेनी शुरू कर दी ।

"ये क्या कर रहे हो? क्यों रिवॉल्वर निकाल रहे हो? मैं...मैं तुम्हें करोड़ों के हीरे दूंगा ।"

धर्मा ने संजीव की रिवॉल्वर निकाल कर हाथ में ले ली ।

"तुम अपना काम करो ।" एक्स्ट्रा ने रोमा से कहा ।

"यहां नहीं है सी.डी.।" रोमा कह उठी- "इसने कहीं छुपा रखी है।"

एक्स्ट्रा आगे बढ़ा और संजीव के सिर पर रिवॉल्वर की नाल लगा दी।

"ग...गोली मत मारना।" संजीव चीखा।

"वो सी.डी. किधर है, जिसके दम पर तुम इस लड़की को ब्लैकमेल कर रहे हो ?"

"क्यों मेरे पीछे पड़े हो ?" संजीव गुस्से से तड़प उठा ।

"गोली मारुं ?"

"तुम-तुम जहाज के कर्मचारी होकर, इससे मिल गये....मेरा साथ दो, मैं तुम्हें हीरे...।"

"उल्लू के पट्ठे ! ये कपड़े मेरे नहीं हैं ।" एक्स्ट्रा ने होंठ भींच कर कहा- "हम तेरे लिए ही जहाज पर आये हैं ।"

"मेरे लिये ?"

"इस लड़की को इसके बाप के पास ले जाना है।"

"तुम...।" संजीव ने कुछ कहना चाहा।

"गोली मार दे इसे ।" बोला धर्मा ।

"ठीक है ।"

"नहीं, मैं अभी वो सी.डी. देता हूं।" संजीव घबरा कर चीखा।

"निकाल ।"

"मुझे गोली तो नहीं मारोगे ?"

"नहीं मारेंगे, सी.डी. निकाल ।"

संजीव ने छिपा रखी सी.डी. निकाल कर तुरंत एक्स्ट्रा को थमा दी ।

"पक्का यही है ?"

"ह-हां ।"

"ये न हो तो तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।" धर्मा ने कड़वे स्वर में कहा।

"क्या मतलब ?" संजीव में सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

"कुछ नहीं, तू अब ठण्डा रह।"

"तुम-तुम लोग रोमा को लेने आये हो ?"

"हां।"

"तो ले जाओ, ये हीरे क्यों ले जा रहे हो। ये मुझे दे दो पचास लाख के हीरे तुम रख लो...।"

उसी पल पास खड़े धर्मा ने उसके पेट में जोरों का घूंसा मारा ।

संजीव, पेट थामें कराह कर दोहरा हुआ।

धर्मा ने उसकी पीठ पर जोरदार ठोकर मारी तो, वो नीचे जा गिरा।

"अब बोलना मत ।"

"तुम दो-दो मिलकर मुझे मार रहे हो, अकेले-अकेले आओ तो...।"

धर्मा ने उसकी पीठ पर जूता रखा और उस पर खड़ा हो गया।

"क्यों मार रहे हो ?" वो चीखा ।

धर्मा ने एक्स्ट्रा को देखा ।

"राघव कहां है ?"

"तेरे साथ था ।"

"पता नहीं कहां चला गया ।"

"इस तरह वो कहीं नहीं जा सकता। किसी पंगे में फंस गया होगा।"

"यहां पर कैसा पंगा हो सकता है ?"

"क्या पता ।" एक्स्ट्रा ने उसकी तरफ हीरों की थैली बढ़ाई, बोला- "ये सम्भाल, मैं काम खत्म करके आता हूं।" फिर वो नीचे पड़े संजीव से बोला- "उठ, चल मेरे साथ।"

"अब कहां चलना है? सारा काम तो तुम लोगों ने खराब कर दिया।" वो गुस्से से बोला ।

"तेरा काम तो खत्म हो गया, मेरा नहीं हुआ।" एक्स्ट्रा उसकी कमीज का कॉलर पकड़कर उसे खड़ा करता कह उठा- "तू जहर का पौधा है और जहर के पौधे की मैं ऐसी हालत कर देता हूं कि दोबारा ना पनप सके।"

एक्स्ट्रा, संजीव के साथ बाहर निकल गया।

रोमा ने धर्मा को देखा ।

"आराम से बैठो। अब तुम्हें कोई डर नहीं।" धर्मा मुस्कुराया- "कुछ ही देर में वापस चलेंगे ।"

"वापस। कैसे? जहाज तो रंगून की तरफ बढ़ रहा है।" रोमा कह उठी ।

"उससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।"

■■■

एक्स्ट्रा, संजीव के साथ सबसे नीचे की मंजिल पर पहुंचा।

"तुम मुझे कहां ले जा रहे हो ?" परेशान संजीव कह उठा।

"बस पहुंच गये ।"

वे दोनों वहां के सूनसान हिस्से पर पहुंच कर रुके।

एक्स्ट्रा ने रिवॉल्वर निकाली और संजीव पर तान दी।

"मुझे गोली मत मारना। गोली से मुझे बहुत डर लगता है।" संजीव घबरा कर चीखा।

"मौत से डर नहीं लगता ?" एक्स्ट्रा ने कड़वे स्वर में कहा।

"वो ही तो- मरने से डर लगता है।"

"ठीक है, मैं गोली नहीं मारता, ऊपर चढ़ो और जहाज से नीचे कूद जाओ।"

"तुम्हारा मतलब है कि मैं समंदर में कूद जाऊं ?"

"हां ।"

"नहीं। यहां से किनारा मीलों दूर है । मुझे ठीक से तैरना भी नहीं आता। मैं मर जाऊंगा।"

"तो फिर गोली से मार...।"

"नहीं। गोली मत मारना। मैं कूदता हूं।" घबराहट में संजीव पसीने-पसीने हो रहा था। वो जहाज के मुंडेर पर चढ़ा और पीछे खड़े एक्स्ट्रा को देख कर के उठा- "मेरी जान बख्श दो...मैं...।"

एक्स्ट्रा ने रिवॉल्वर वाला हाथ उसकी तरफ किया तो उसी पल संजीव ने छलांग लगा दी ।

"गये रंगून बाबा ।" एक्स्ट्रा बड़बड़ाया और रिवॉल्वर जेब में डालते हुए वापस चल पड़ा ।

■■■

राघव जहाज की एक गैलरी में तेजी से दौड़ रहा था। उसके पीछे मंगल सिंह और दो अन्य व्यक्ति थे।

राघव देर तक मंगल सिंह की नजरों से बचा रहा था। इस वक्त राघव अंधेरे में खड़ा था कि तभी मंगल सिंह उसे ढूंढता हुआ उस तरफ आ निकला और उस जगह पर नजर पड़ गई तो राघव पुनः भागा ।

"पकड़ो इसे...छोड़ना नहीं ।" मंगल सिंह चीखा।

उसके बाद से राघव जहाज में दौड़ता ही जा रहा था, जिधर जगह मिली। रास्ते में कई लोग मिले जो कि हैरानी से उनकी भाग-दौड़ देख रहे थे। एकाएक अंधेरे से भरी जगह आई तो राघव वहीं दुबक गया ।

पीछे से भागते मंगल सिंह और उसके दोनों साथी पास ही आ रुके। वो हांफ रहे थे ।

"कहां गया ?" मंगल सिंह होंठ भींच कर बोला।

"यहां तक आते तो मैंने देखा था।" दूसरे ने कहा ।

"तो अचानक किधर गायब हो सकता है ?"

"उधर गया होगा।"

तभी सामने से कोई आता दिखा।

जबकि राघव पास ही अंधेरे में सांसें रोके दुबका पड़ा था।

"सुनिये।" मंगल सिंह से पूछा- "आपने किसी को भागकर उस तरफ जाते देखा है ?"

"नहीं ।"

राघव चौंका, क्योंकि ये आवाज एक्स्ट्रा की थी ।

"आप किसे ढूंढ रहे हैं ?" पास पहुंचकर एक्स्ट्रा ठिठकता हुआ बोला ।

"बदमाश है वो।" मंगल सिंह नजरें दौड़ाता कह उठा- "स्टाफ की यूनिफॉर्म में जहाज पर घूम रहा है ।"

"यूनिफार्म में ?" एक्स्ट्रा चौंका ।

"हां ।"

"वो तो इधर ही गया है, जिधर से मैं आ रहा हूं।"

"अभी तो तुमने कहा कि उधर कोई नहीं...।"

"यूनिफार्म पहने एक आदमी उधर दौड़ता गया है। मुझे क्या पता कि तुम स्टाफ के बंदे को पूछ रहे हो।"

"जल्दी आओ ।" मंगल सिंह उधर दौड़ा ।

बाकी दोनों भी दौड़ लिए ।

एक्स्ट्रा ने आस-पास देखा और ऊंचे स्वर में बोला-

"राघव ।"

"धीरे बोल, तेरे पास ही हूं मैं ।" कहते हुए राघव अंधेरे से बाहर निकल आया।

"क्या हुआ ?" एक्स्ट्रा ने पूछा ।

"खामखाह ही साला पीछे पड़ गया। जहाज का सिक्योरिटी चीफ था ये। काम का क्या हुआ ?"

"हो गया। उस साले हरामी को समंदर में फेंक कर आ रहा हूं ।"

"लड़की ?"

"धर्मा के पास है ।"

"हीरे ?"

"वो भी ।"

"तो अब हमें निकलना चाहिये।" राघव ने कहा- "दोनों किधर हैं ?"

"केबिन में-आ।"

दोनों तेजी से आगे बढ़ गये।

वे चारों नीचे की मंजिल पर, जहाज के मुंडेर के पास खड़े थे।

जहाज तेजी से दौड़ा जा रहा था ।

धर्मा ने हीरों की थैली अपनी कमर से बांध ली थी ।

"आखिर तुम लोग क्या कर रहे हो ?" रोमा परेशान सी कह  उठी।

"समन्दर में कूदना है।"

"समन्दर में ?" रोमा चौंकी- "मुझे तैरना नहीं आता।"

"कोई बात नहीं, तुम्हें मैं संभाल लूंगा।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"नहीं, मैं समन्दर में नहीं छलांग लगाऊंगी।" रोमा पीछे हटती कह उठी ।

"जल्दी करो, हमारे पास वक्त नहीं है।" राघव बोला ।

"नहीं...मैं...।" रोमा ने कहना चाहा ।

तभी एक्स्ट्रा ने रोमा को थामा और बाहों में, ऊपर उठाते हुए, समन्दर में उछाल दिया ।

चीख गूंजी रोमा की और लुप्त हो गई ।

इसी पल एक्स्ट्रा रेलिंग पर चढ़ा और समन्दर में छलांग लगा दी।

"चल धर्मा ।"

दो पलों के पश्चात धर्मा भी समन्दर में छलांग लगा चुका था ।

राघव रेलिंग पर चढ़ने लगा कि तभी पीछे से आवाज आई-

"वो रहा, पकड़ो ।"

ये मंगल सिंह की आवाज थी।

राघव तब सकपकाया और फुर्ती से रेलिंग पर चढ़ते हुए समन्दर में छलांग लगा दी।

पीछे से उनके चिल्लाने की आवाज आई, जो कि तुरंत ही सुनाई देनी बंद हो गई।

■■■

चारों तरफ अंधेरे में डूबा समन्दर ही नजर आ रहा था। तट यहां से कई मिलो दूर था। दूर कहीं एक जहाज समन्दर की छाती पर जाता दिखा और उसके भोंपू की आवाज सुनाई दी।

एक्स्ट्रा ने रोमा को पीठ पर लाद रखा था और धीरे-धीरे आगे तैर रहा था।

"मैं समन्दर में डूब जाऊंगी।" रोमा रोते हुए कह उठी ।

"डरो मत, मैं तुम्हें कुछ ना होने दूंगा ।"

"मैं गिर जाऊंगी।" वो रो रही थी ।

"मुझे कस के पकड़ रहो। तुम नहीं गिरोगी। खामखाह डरो मत।"

"नहीं, मैं मर जाऊंगी ।" रोमा सच में डरी हुई थी।

जहाज से छलांग मारे उन्हें बीस-पच्चीस मिनट हो चुके थे ।

तभी पीछे से तैर कर आता राघव  पास पहुंचा ।

"सब ठीक है ?" वो चिल्लाया ।

"हां ।" एक्स्ट्रा ने जवाब दिया- "धर्मा कहां है ?"

"पीछे ।"

"डिसूजा कहां मर गया।" एक्स्ट्रा ने ऊंची आवाज़ में कहा- "उसे आ जाना चाहिये था ।"

"वो रास्ता भटक गया होगा ।"

"साले को मैं गोली मार दूंगा।" एक्स्ट्रा ने गुस्से से कहा ।

"आ- मैं गिर जाऊंगी।" रोमा एकाएक चीख कर बोली।

"नहीं गिरोगी। मुझे पकड़े रहो और बार-बार चिल्ला कर मुझे परेशान मत करो।"

"इसे मैं अपनी पीठ पर डाल लेता हूं।" राघव बोला ।

"क्यों- ये तेरी पीठ पर नहीं चीखेगी? पागल है, खामखाह चीखे जा रही है। डर रही है।"

तभी उसके कानों में हल्की सी पट-पट की आवाजें पड़ी ।

"डिसूजा- वो आ गया ।"

"शायद।" एक्स्ट्रा बोला- "मुझे लगा कि मैंने बोट की आवाज सुनी है ।"

दोनों ने नजरें दौड़ाईं ।

अंधेरों के सिवाय कुछ भी नजर नहीं आया ।

अब आवाज भी नहीं आ रही थी।

"शायद हमें भ्रम हुआ था।" एक्स्ट्रा  बोला ।

"मुझे भ्रम नहीं हुआ। डिसूजा इधर ही आ रहा है। तेज हवा बोट के इंजन की आवाज को अपने साथ इधर ले आई होगी।"

कुछ पल उनके बीच चुप्पी रही।

उन्हें फिर से बोट के इंजन के मध्यम से आवाज सुनाई देने लगी। इस बार आवाज बराबर आ रही थी ।

"डिसूजा ही है ।" एक्स्ट्रा बोला ।

"बंदा ठीक है । ठीक काम किया हरामी ने  ।"

मिनट भर बाद ही बोट उनके पास आ पहुंची।

"डिसूजा- इधर ।" राघव चिल्लाया।

बोट पास आ पहुंची।

"कैसे हो दोस्तों?" डिसूजा खुशी से चिल्लाया ।

"दोस्तों के बुरे हाल हो रहे हैं ।" एक्स्ट्रा बोट का किनारा थामते हुए बोला- "इस लड़की को बोट में ले ।"

फौरन ही रोमा बोट पर थी ।

फिर राघव और एक्स्ट्रा ।

तब तक धर्मा भी पास आ पहुंचा था। वो भी बोट में आ पहुंचा।

"ये कौन है ?" राघव की निगाह बोट में सिकुड़े पड़े किसी व्यक्ति पर पड़ी ।

"ये भी इस जहाज में गिरा था, इसे मैंने बोट में ले लिया ।"

"क्या?" एक्स्ट्रा चीखा- "ये उल्लू का पट्ठा वो ही कमीना होगा।"

राघव ने तुरंत आगे बढ़ कर उसे उठाया।

"प्लीज, मुझे मत समन्दर में फेंकना ।" वो संजीव ही था- "मुझे माफ कर दो- मैं-।"

"राघव, फेंक साले को ।" धर्मा चीखा।

अगले ही पल राघव ने संजीव को जोरों का धक्का दिया ।

"छपाक। वो समन्दर में जा गिरा ।

डिसूजा ने बोट घुमाई और वापस दौड़ा दी।

"कौन था ये?" डिसूजा ने पूछा ।

"हरामी था। तू बोट चलाने पर ध्यान लगा ।" धर्मा ने कहा ।

"उतरना कहां है ?"

"जिधर से सफर शुरू किया था, वहीं पर उतरना है।"

रोमा एक तरफ पड़ी गहरी-गहरी सांसें ले रही थी।

"निपट गया काम ।"

"तुम।" रोमा गहरी-गहरी सांसे लेती कह उठी- "आखिर हो कौन ?"

"R.D.X.। तुम्हें बता चुके हैं।" धर्मा बोला- "जो हमसे पंगा लेता है, उसके लिए बारूद हैं।"

बोट तेजी से वापसी का रास्ता तय कर रही थी ।

■■■

रात के साढ़े तीन बज रहे थे।

तट के उसी हिस्से पर R.D.X. रोमा के साथ मौजूद थे। सामने चंद्रमा की रोशनी में समन्दर चमक रहा था। ठंडी हवा उसके उनके शरीरों से टकरा रही थी। अभी-अभी वो सब वहां पहुंचे थे। उनके उतरने के बाद डिसूजा बोला-

"मेरा काम खत्म ।"

"तू जा-मजे कर ।" राघव ने कहा ।

"फिर मेरी जरूरत पड़े तो बताना।" डिसूजा ने कहा और बोट स्टार्ट कर के वहां से चला गया ।

"इसके बाप को फोन लगा।" धर्मा बोला ।

राघव ने जेब से फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा।

डिसूजा ने अपने फोन वापस ले लिए थे तीनों से।

"हैलो।" नम्बर मिलते ही उधर से आवाज आई। आवाज में नशा भरा हुआ था।

धर्मा समझ गया कि वो बैठ कर पीने में लगा हुआ है ।

"तू सोया नहीं अभी तक ।"

"मैं नींद में था, तुम्हारा फोन बजा तो मैं उठा।" वो जल्दी से बोला ।

धर्मा मुस्कुराया। समझ गया कि वो झूठ बोल रहा है ।

"तेरा काम हो गया है। रोमा हमारे पास है और हम तट पर मौजूद हैं।"

"ओह , भगवान तुम तीनों का भला करें।"

"तेरी, लड़की का कोई कसूर नहीं, वो हरामजादा इसे ब्लैकमेल कर रहा था।"

"मुझे मेरी बेटी मिल गई, और कुछ नहीं चाहिये मुझे।"

"हीरे नहीं चाहिये, जो रोमा घर से ले भागी थी ?" धर्मा हंसा।

"हीरे, वो भी ले आये हो ?"

"हां । वो तुम्हारे हैं। हम अपनी कीमत, वो ही लेंगे जो तय हुई थी। नोटों में हम बेईमानी नहीं करते। बाकी सब चलता है।"

"तुम्हारे पैसे तैयार रखे हैं मैंने। अभी आ रहे हो ना रोमा को लेकर ?"

"एक घंटे में पहुंचते हैं।"

"तुम तीनों ने मेरी इज्जत बचा ली, वरना मैं कहीं का ना रहता।  भगवान तुम्हें सुखी रखे और-"

"तेरे से नोट मिलते ही हम सुखी हो जायेंगे।" धर्मा ने कहा और फोन बंद कर दिया- "यहां से चलो, कार किस तरफ खड़ी की थी हमने ?"

"उधर ।"

■■■

लगातार बजने वाली फोन की बेल से तीनों की आंख खुली ।

दोपहर के दो बज रहे थे ।

"साला रतनचंद होगा ।" धर्मा बोला ।

राघव ने फोन को हाथ मारकर ढूंढा । आंखें बंद ही थीं।

"हैलो ।" उसने फोन कान से लगाया ।

"तुम तीनों अभी तक आये नहीं?" रनतचंद कालिया की आवाज कानों में पड़ी ।

"सुबह हो गई ?" राघव बंद आंखों से ही बोला।

"सुबह। अब तो दोपहर भी जा रही है। सो रहे हो अभी तक?" रतनचंद का नाराजगी भरा स्वर कानों में पड़ा।

"हां।"

"तुम्हें मेरी कोई चिंता नहीं, तुमने सुबह आज आने का वादा किया था ।"

"सुबह नहीं- आज ।"

"एक ही बात है।"

"फर्क है रतनचंद । घर पर ही है ना तू ?"

"हां ।"

"बाहर निकलने की गलती मत करना। कुछ हुआ तो नहीं अभी तक ?"

"तो क्या तुम कुछ होने का इंतजार कर रहे हो? ये बताओ कि कब तक आ रहे हो ?"

"दो घंटे तक।" राघव ने कहा और फोन बंद कर दिया-

"उठो दोस्तों । चलना है।"

"नींद आ रही है।" धर्मा बंद आंखों में ही बोला।

"एक्स्ट्रा को भी उठा ।"

एक्स्ट्रा पुनः गहरी नींद में डूब  गया था ।

धर्मा ने उसे हिलाया।

"रतनचंद से कह दे, कल आयेंगे।" एक्स्ट्रा कह उठा ।

"तब तक वो मर गया तो ?"

"कंधा दे देंगे ।"

"ऐसा मत कह एक्स्ट्रा।" धर्मा ने शांत स्वर में कहा- "रतनचंद अब हमारी पार्टी है और हमारी पार्टी का कोई बाल भी बांका कर दे तो लानत है हम पर। देखते हैं साला कौन रतनचंद को मारना चाहता है। पेड़ पर उल्टा लटका कर ठोकूंगा।"

"उसने तेरे को लटका दिया तो?" एक्स्ट्रा आंखे खोलते कह उठा।

"आज तक ऐसा हुआ नहीं- और आगे भी नहीं होगा।"

"क्यों नहीं होगा ?"

"तुम दोनों साथ हो मेरे। कोई हमारी तरफ टेढ़ी नजर करके तो देखे...। मरेगा ।"

राघव उठते हुए कह उठा-

"नहा-धोकर जल्दी से चल। पहले पता तो करें कि मामला क्या हैं।"

■■■

रतनचंद कालिया ने सुन्दर से पूछा-

"बंगले के बाहर कोई संदिग्ध नजर आ रहा है ?"

"नहीं सर ।"

"हमारे आदमी ठीक तरह से खड़े हैं ।"

"निश्चिंत रहिए सर। मेरे होते हुए आपको कोई खतरा नहीं है।" सुन्दर ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

"कल जिस तरह से मेरा निशाना लिया गया था, उससे स्पष्ट हो चुका है।"  कि दुश्मन चालाक है।" रतनचंद ने कहा।

"एक बार वो ऐसा करने में कामयाब हो गये, अब नहीं हो सकेंगे।" सुन्दर ने कहा ।

"मौत के खेल में कभी भी कुछ भी हो सकता है। R.D.X. से बात हुई अभी।"

"वे आ रहे हैं ?"

"हां, दो घंटे तक।"

"आपने सोचा नहीं कि कौन इस तरह अचानक आपकी जान के पीछे पड़ सकता है ?"

"उसके बारे में सोच कर पता नहीं लगाया जा सकता । वो कोई भी हो सकता है।" रतनचंद कालिया ने गंभीर स्वर में कहा ।

"मेरे ख्याल में  R.D.X. ये मामला संभाल लेंगे ।"

"हां, जगह बदलने को कहकर उन्होंने ही मेरी जान बचाई है। वो सच में समझदार हैं और तीनों में तालमेल बहुत अच्छा है। मुझे इस बात पर पूरा भरोसा है कि वे मुझे कुछ ना होने देंगे ।"

■■■

"दोपहर हो चुकी है और अभी तक सोहनलाल ने कोई खबर नहीं दी ।" जगमोहन ने कहा ।

"खबर नहीं होगी ।"

"उससे बात करके देखता हूं ।" जगमोहन ने कहा और मोबाइल फोन से, सोहनलाल का नंबर मिलाने लगा। कुछ बार बेल होने के पश्चात, सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी।

"बोल ।"

"खबर क्या है ?"

"रतनचंद के बंगले पर सन्नाटा पसरा है। वहां हथियारबंद आदमी  पहरा दे रहे हैं। दो-तीन को देखा मैंने। एक तो छत पर है। वो बाहर नहीं निकला और निकलने का कोई इरादा लगता भी नहीं।"

"कोई आया ?"

"कोई नहीं आया। सुबह से अब तक, कोई पोजीशन नहीं बदली।"  जगमोहन ने फोन बंद करके, देवराज चौहान से कहा-

"रतनचंद का तो बाहर निकालने का कोई इरादा नहीं लगता ।"

"वो R.D.X. इंतजार कर रहा होगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"शायद ऐसा ही हो, लेकिन हम यहां बैठे किसका इंतजार कर रहे हैं ?" जगमोहन बोला- "मैंने तो सोचा था कि मामूली सा मामला है। एक मर्डर करना है। एक-आध दिन में सब निपट जायेगा ।"

"निपट जाता, अगर  उसे कोई खबर ना दे रहा होता। वो सतर्क हो चुका है। प्रताप और दिनेश कहां हैं ?"

"साथ वाले कमरे में।"

"उनसे कह कि साइलेंसर लगी, टैलिस्कोप वाली गन चाहिये।"

"क्यों-कुछ करने जा रहे हो ?"

"हां, लेकिन सोचा नहीं कि क्या, कैसे करना है। तुम उन्हें गन लाने को कहो ।"

"ठीक है ।" जगमोहन बाहर निकल गया। पांच मिनट बाद लौटा।

"गन के लिये उन्होंने फोन कर दिया है। तीस-चालीस मिनट में पहुंच जायेगी।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।

"क्या है तुम्हारे दिमाग में ?" जगमोहन ने पूछा ।

"मुझे नहीं लगता कि आसानी से रतनचंद बाहर निकलेगा। मेरे ख्याल में वो R.D.X. के कहने पर चल रहा है।"

"तो ?"

"उसके घर पर निशाना बांध कर रखना होगा, कभी तो वो निकलेगा। दिखेगा। हमें कोई ऐसी जगह तलाश करनी होगी, जहां गन के साथ बैठकर, उसके दिखने का इंतजार किया जा सके।" देवराज चौहान बोला ।

"ऐसी जगह तलाश करना आसान नहीं ।"

"देखते हैं।"

तभी फोन बजा ।

"हैलो ।" जगमोहन ने बात की ।

"मैं नागेश शोरी, देवराज चौहान हो तुम?" शोरी की आवाज कानों में पड़ी ।

"रुको ।" जगमोहन ने कहा और फोन देवराज चौहान की तरफ बढ़ाता कह उठा- "शोरी है।" 

"कहो ।" देवराज चौहान ने फोन कान से लगाया।

"कब तक काम हो जायेगा ?"

"काम तो हो गया होता- अगर तुम्हारी तरफ से गड़बड़ ना हो रही होती।"

"दिनेश ने बताया मुझे- और मैं सच में हैरान हूं कि कौन गद्दार है जो खबरें रतनचंद तक पहुंचा रहा है।"

"ये सोचना तुम्हारा काम है।"

"दिनेश-प्रताप-अवतार हरीश चारों ही मेरे पुराने वफादार हैं, इन पर शक नहीं किया जा सकता।"

"इनके अलावा फिर तुम ही बचते हो।"

"मैं ।"

"सोचना तुम्हारा काम है कि कौन खबरें 'लीक' कर रहा है।"

"मैं सोच चुका हूं, कम से कम मेरे चारों आदमी धोखेबाज नहीं हैं।"

"इन्होंने किसी को इस मामले के बारे में बताया हो-।"

"पूछा था मैंने, परंतु ऐसा कुछ नहीं है।"

"खबरें बाहर तो जा रही हैं। तभी रतनचंद सतर्क हुआ बैठा है, अपनी सहायता के लिए R.D.X. को बुला रहा है।"

कुछ चुप्पी के पश्चात नागेश शोरी की आवाज आई-

"R.D.X.  के बारे में दिनेश ने बताया था। मैंने इनका नाम पहले नहीं सुना ।"

"दिनेश और प्रताप ने सुन रखा है। वे कहते हैं तीनों खतरनाक हैं।"

"ऐसी बात है तो तुम्हारी समस्या बढ़ सकती है।"

"मेरी समस्या की तो फिक्र मत करो। मुझे अपना काम करना आता है ।" देवराज चौहान ने कहा।

"मैंने तो सोचा था कि तुम एक-दो दिन में काम निपटा दोगे। परंतु किसी की गद्दारी की वजह से, रतनचंद सतर्क हो गया है। समझ में नहीं आता कि कमीना कौन है। क्या रतनचंद आज बाहर नहीं निकला ?"

"नहीं, ये मेरा काम है और इस बारे में तुम मत सोचो ।"

"मैं कोशिश करूंगा कि उस धोखेबाज को ढूंढ सकूं, जो रतनचंद से मिला हुआ है।"

"तुम्हारा आदमी, रतनचंद के आदमियों के बीच है ?"

"हां। खरीदा हुआ है। वो पैसे लेता है और वहां की खबरें देता है।"

"इसी तरह रतनचंद ने भी, तुम्हारा कोई आदमी खरीदा हो सकता है ?"

"विश्वास नहीं होता कि मेरा कोई आदमी बिकेगा ।"

"नोट मजबूर कर देते हैं ।"

नागेश शोरी की तरफ से आवाज न आई ।

"जो आदमी तुम्हें खबर देता है, उसे कहो कि ये जानने की चेष्टा करें कि कौन रतनचंद को खबर दे रहा है।"

"हां, ये करना ठीक रहेगा । मैं अभी उससे बात करता हूं।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

"मेरे ख्याल में ।" जगमोहन बोला- "प्रताप और दिनेश को हमें, अपने से दूर कर देना चाहिए ।"

"अगर वे दोनों रतनचंद को खबर दे रहे हैं तो पता चल जायेगा।"

"कैसे चलेगा पता ?"

"कोई गलती तो करेंगे ।" देवराज चौहान मुस्कुराया। जगमोहन देवराज चौहान को देखता रहा, फिर बोला-

"क्या तुम्हें लगता है कि गद्दार इन दोनों में से कोई है ?"

"कुछ कहा नहीं जा सकता ।"

तभी प्रताप कोली ने भीतर कदम रखते हुए कहा-

"मेरे ख्याल में न तो  मैं गद्दार हूं और न ही दिनेश ।"

"तुम हमारी बातें सुन रहे थे?"

"नहीं। इधर आया तो जगमोहन के शब्द कानों में पड़ गये। हम पर शक मत करो। मैं तो ये पूछने आया हूं कि तुमने गन क्यों मंगवाई । क्या कुछ करने जा रहे हो अभी ?" पूछा प्रताप कोली ने।

"हम क्या करना चाहते हैं, ये जानकर तुम, रतनचंद को बताना चाहते होगे ।" जगमोहन ने भोलेपन से कहा ।

"भाड़ में जाओ।" प्रताप कोली ने कहा और पलटकर बाहर निकल गया ।

"तुम्हें गाली दे गया है।" देवराज चौहान बोला।

"प्यार से दी है ।" जगमोहन दांत फाड़कर, देवराज चौहान को देखने लगा- "तीन करोड़ भी दिया है। एक-आध गाली से क्या फर्क पड़ता है।"

■■■

शाम के पांच बज रहे थे जब R.D.X. रतनचंद के बंगले पर पहुंचे ।

सुन्दर और उनके आने की खबर मिली तो वो सीधा रतनचंद कालिया के पास जा पहुंचा ।

"सर, R.D.X. आ गये हैं ।"

"शुक्र है ।" रतनचंद ने गहरी सांस ली- "ले आओ उन्हें ।"

सुन्दर चला गया।

रतनचंद का चेहरा एकाएक तनाव रहित दिखने लगा था। वो उठा और चहल कदमी करने लगा। कुछ ही मिनटों में सुन्दर के साथ R.D.X. वहां पहुंचा ।

"क्यों रतनचंद।" राघव कह उठा- "हमारी जरूरत तेरे को फिर पड़ गई ?"

"रतनचंद ठिठका। मुस्कुराया।

"पिछली बार तूने नोट देने में आना-कानी बहुत की थी।"

"दे तो दिए थे। तुम लोग भी ज्यादा मांग रहे थे।" रतनचंद ने कहा ।

"हमने तेरे लिए खतरा भी बहुत उठाया। एक्स्ट्रा मरते-मरते बचा था ।"

"ये तुम्हारा काम है ।"

"अब के काम की क्या रकम तय हुई? राघव बोला ।

"जो पहले दी थी वही दूंगा, धर्मा से बातें हो चुकी है।"

"पहले देगा या बाद में ?"

"बाद में। मेरी जान बचाओ और रकम ले लो।"

"सयाना हो गया है अब तू ।

"धर्मा पास खड़े सुंदर से कह उठा-

"नाश्ता-वश्ता नहीं किया है, कुछ खिला तो दे ।"

"शाम हो रही है और नाश्ते की बात कर रहे...।"

"आज यही हाल है हमारा। रात भर काम पर रहे ।"

सुन्दर बाहर निकल गया।

तीनों ने वहां पड़ी कुर्सियां संभाली।

"तू इतने दुश्मन क्यों पैदा करता है कि कोई-ना-कोई तुझे मार देना चाहता है।" एक्स्ट्रा बोला ।

"धंधे में दुश्मन खुद ही पैदा हो जाते हैं। मेरा बस नहीं चलता कि वो ना पैदा हों।"

"इस तरह कब तक बचता रहेगा? कभी तो मरेगा ।"

"तेरी वजह से मैं मरते-मरते बचा हूं ।"

"कार में जगह बदल कर ?"

"हां।"

"बता तो क्या मामला है। पता तो चले। खुल के बता। बहुत वक्त है हमारे पास।" एस्ट्रा बोला- "सबसे पहले, तेरे को कैसे पता चला कि कोई तेरी जान लेना चाहता है? बताते हुए कोई बात भी ना छूटे ।"

"मुझे किसी का फोन आया।" रतनचंद कालिया ने गंभीर स्वर में कहा- "फोन पर उस आदमी ने मुझे बताया कि मेरे किसी दुश्मन ने तीन करोड़ की, मेरे नाम की सुपारी अंडरवर्ल्ड के किसी खतरनाक बंदे को दी है ।"

"तेरे को फोन करने वाला कौन था ?"

"उसने अपना नाम नहीं बताया, परंतु निशानी के तौर पर खुद को केकड़ा बोला ।"

"केकड़ा ?"

"रतनचंद कालिया ने सिर हिलाया ।

"तूने उससे पूछा कि ये बात तेरे को कैसे पता चली?" धर्मा बोला ।

"पूछा। लेकिन इस बारे में उसने कोई जवाब नहीं दिया ।"

"तूने उनके नाम पूछे होंगे जो तेरे को मरवाना चाहता है और जो तेरा निशाना लेने की फिराक में हैं।"

"पूछे, जानना चाहा, लेकिन उसने नहीं बताया ।"

"क्यों ?"

"मैं नहीं जानता।"

"तो उसने तेरे को फोन करके क्यों बताया कि तेरे को कोई मारना चाहता है ?"

"स्पष्ट नहीं है उसका इरादा। जोर देने पर कहता है कि इस खबर के बदले मेरे से मोटी रकम का सौदा करेगा तो मैंने कहा कि वो अभी सौदा कर सकता है, तो उसका जवाब था कि जब वक्त आयेगा, तब सौदा करेगा।"

"वक्त कब आएगा ?"

"जब मैं इस मामले में बुरी तरह फंसा होऊंगा, वो कहता है कि तब मैं उसे मुंह मांगी रकम देने को तैयार हो जाऊंगा ।"

राघव ने मुंह बिगाड़ कर कहा-

"इस साले केकड़े को सीधा करना पड़ेगा ।"

"सब सीधे होंगे ।" धर्मा बोला- "अपने पर हमले के बारे में बता।"

रतनचंद कालिया ने सारी बातें बताई।

वे तीनों सुनते रहे ।

सुन्दर भी वहां आ पहुंचा था।

रतनचंद खामोश हुआ तो, चंद पलों के लिए वहां चुप्पी छा गई।

एक्स्ट्रा ने सुन्दर को देखकर कहा-

"तू मुफ्त का माल झटकता है रतनचंद से। मुसीबत आने पर अपने मालिक को बचा नहीं सकता ?"

"मैंने कब मना किया है।" सुन्दर बोला ।

"क्या किया है तूने अब तक ?"

"मैं तो मना कर रहा हूं कि तुम तीनों को बुलाने की जरूरत नहीं, मैं सब संभाल लूंगा ।"

"और अगर रतनचंद लद गया ऊपर को- तो ?"

"तब तो तू अपना बिस्तर-बोरिया गोल करके दूसरी नौकरी तलाश कर लेगा, इसकी जान तो गई ना ।"

"तभी तो तुम लोगों को बुलाया है।"

"ये क्या बात हुई? कभी इधर हो जाता है और कभी उधर हो जाता है।"

"मेरी नौकरी, सर को सुरक्षा देने की है।" सुन्दर गम्भीर स्वर में कहा उठा- "बंगले पर, या राह चलते कुछ होता है तो सर को बचाना मेरा काम है। यही मैं कर सकता हूं। कोई अनदेखे दुश्मन से मैं मुकाबला नहीं कर सकता। जो सामने आयेगा, उसी से मैं निपट सकता हूं। हमला करने वाले को रोक सकता हूं, परंतु छिपे दुश्मन के बारे में कैसे जान लूं कि वो कहां छिपा है ?"

"अब सही बोला तू।"

"उस छिपे दुश्मन से निपटने के लिए ही तुम तीनों को बुलाया गया है।"

"वो कौन हैं, तूने जानने की चेष्टा नहीं की ?"

"मैं कैसे जान सकता हूं। जासूस तो हूं नहीं। मिलिट्री में था । निशानेबाज हूं। दुश्मन को एक ही जगह पर घंटों अटकाए रख सकता हूं । दुश्मन कहां है पता हो तो मैं उसका निपटारा कर सकता हूं।"

"सबकी अपनी-अपनी काबिलियत होती है।"

धर्मा ने पूछा, रतनचंद से।

"आखिरी बार केकड़ा का फोन कब आया ?"

"कल शाम को ।"

"केकड़ा के बारे में हमें जानना चाहिये। ये मिल जाये तो ताश के सारे पत्ते खुल सकते हैं हमारे सामने।"

"केकड़ा का मिलना आसान नहीं। उसने खुद को सारे पत्तों के पीछे छिपा रखा होगा।"

"बात तो सही है।"

"गहरा मामला है ये। आसान नहीं ।" एक्स्ट्रा बोला- "हमें सबसे पहले उस पर ध्यान लगाना चाहिये, जो रतनचंद को मारना चाहता है।"

"मैं उसके बारे में ही सोच रहा हूं एक्स्ट्रा।" राघव बोला ।

"क्या सोच रहा है ?"

"अभी पता नहीं, लेकिन आने वाला खतरा मुझे नजर आ रहा है।" राघव ने कहा ।

"कैसा खतरा ?"

"रतनचंद सुबह से बाहर नहीं निकला। कल भी नहीं निकलेगा तो क्या इसे मारने वाला आराम से बैठ जायेगा ?"

तीनों की नजरें मिलीं ।

"नहीं बैठेगा।" एक्स्ट्रा ने कहा- "वो घात लगायेगा।"

"यही मेरा ख्याल है। वो घात कहां लगायेगा ?"

"इस बंगले के आस-पास।" धर्मा ने कहा।

"अब समझे कुछ कि मैं क्या कहना चाहता हूं।" राघव ने कहा- "वो जो भी है, खतरनाक इंसान है। उसने सिर्फ एक गोली ही चलाई, रतनचंद को मारने के लिये। वो आत्मविश्वास से भरा हुआ है । सामने वाला शीशा और बीच वाले का निशाना लेकर सिर्फ एक गोली और निशाना सटीक रहा। कोई बेवकूफ होता तो कार पर गोलियों की बरसात कर देता कि बेशक कितने भी मरें, लेकिन रतनचंद अवश्य मर जाये और उसका काम पूरा हो, परंतु उसने ऐसा नहीं किया। ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं और अपनी मंजिल को पाने के लिए, बेशक महीनों लगा दें, लेकिन मंजिल पा ही लेते हैं।"

"तुम कहना चाहते हो कि वो रतनचंद को मार कर ही दम लेगा।"

"अगर हमने समझदारी ना दिखाई तो ।"
 

"यानि कि वो जो भी है, अब बंगले के पास ही कहीं घात लगायेगा ।"

"पक्का ।"

"हम रतनचंद के साथ बंगले से बाहर भी निकाल सकते हैं कि-"

"रतनचंद को बकरा बनाने की कोशिश मत करो। ऐसा करना खतरे से खाली नहीं होगा। सोचो कि अगर तब वो कामयाब हो गया और उसने रतनचंद का निशाना ले लिया तो- ऐसा करना ठीक नहीं होगा।"

"तो हमें कोई ऐसी जगह तलाश करनी चाहिये, जहां वो घात लगा सकता हो ।"

"बंगले के आस-पास कोई ऐसी कोई जगह है क्या?"

"क्यों नहीं है, सामने ही सड़क पार डिरीट्रेक्ट सेंटर है।

डिरीट्रेक्ट सेंटर की कई ऊंची-ऊंची इमारतें हैं। किसी भी ऑफिस के खिड़की पर वो जम सकता है गन के साथ ।"

तभी दो नौकर चाय और खाने-पीने के सामान की ट्रे उठाये वहां आ पहुंचे ।

R.D.X. खाने में व्यस्त हो गये।

रतनचंद व्याकुल सा दिखाई दे रहा था ।

सुन्दर तीनों से कह उठा-

"जो भी हो, सर को हर हाल में बचाना है और उसे खत्म करना है जो मारना चाहता है।"

"गोली चलाने वाला ही नहीं, उसे भी खत्म करना पड़ेगा, जिसने रतनचंद की सुपारी दी है। वो जिंदा रहा तो दोबारा फिर किसी को सुपारी दे देगा और अंत रतनचंद की मौत पर आकर ही होगा।" धर्मा ने कहा ।

"तुम ठीक कहते हो।" बोला रतनचंद- "मामले की जड़ खत्म करना जरूरी है।"

"हमें उन दोनों के बारे में जानना है जो मारना चाहता है और जिसने सुपारी दी है ।"

"और उनके बारे में हमें केकड़ा बता सकता है ।"

"केकड़ा आसानी से हमारे हाथ नहीं आयेगा ।"

"कुछ तो ऐसा करना पड़ेगा कि वो हाथ आये। वरना हम रतनचंद को बचाने में ही लगे रहेंगे और वक्त बर्बाद करते रहेंगे।"

उन्होंने खाना-पीना समाप्त किया।

"मैं देखकर आता हूं कि बंगले पर सुरक्षा के क्या इंतजाम है ।" राघव ने कहा। वो बाहर निकल गया ।

"केकड़ा का फोन आये तो उससे हमारी बात कराना ।"

"जरूर ।" रतनचंद ने सिर हिलाया ।

"हमारा कमरा किधर है ?" एक्स्ट्रा बोला ।

"सुन्दर, ये जो कमरा चाहें, इन्हें दे दो। सब खाली पड़े हैं ।"

"जी ।"

"रतनचंद ।" एक्स्ट्रा उठते हुए बोला- "तुम्हें बंगले में खुले में नहीं जाना है और ना ही किसी खिड़की को खोल कर खड़े होना है। बेहतर होगा कि अपने को कमरे में बंद रखो, इसी में तुम्हारी सुरक्षा है ।"

■■■

R.D.X. कमरे में बैठे थे।

राघव अपने हिसाब से बंगले पर पहरा लगवा आया था। ग्यारह आदमी बंगले पर पहरा दे रहे थे और सुन्दर उनकी पोजीशन पर नजर रखे हुए था ।

"मुझे नहीं लगता कि कमरे के भीतर, रतनचंद को कोई खतरा है ।" धर्मा ने कहा ।

"बंगले के भीतर कोई खतरा नहीं है, लेकिन सतर्कता जरूरी है।" एक्स्ट्रा ने धर्मा को देखा।

"खतरा हो भी सकता है। किसी के दिमाग को हम नहीं जानते कि उसके भीतर क्या है ।" राघव बोला ।

"कुछ भी हो सकता है।" धर्मा ने गहरी सांस ली ।

"मैं कुछ सोच रहा हूं ।" राघव बोला ।

"क्या ?"

"जो रतनचंद पर गोली चलाना चाहता है, मैं उसे परेशान कर देना चाहता हूं कि उसे लगे कोई नई मुसीबत खड़ी हो गई है। ऐसा होने पर गुस्से में भर जायेगा। अपने 'बिल' से बाहर निकलेगा।"

"उसे गुस्सा दिलाना आसान नहीं होगा।"

"हां, परन्तु हमें ऐसा कुछ करने की चेष्टा करनी चाहिये कि वो गुस्से से भर उठे ।"

"ऐसा कैसे होगा ?"

"यहीं तो सोचना है ।"

R.D.X. कि आपस में नजरें मिलीं ।

चुप्पी रही उनके बीच।

"जब तक वो गुस्से में नहीं आयेगा, तब तक वो सामने नहीं आयेगा और हम उसे पहचान नहीं सकेंगे।"

"इसके लिए क्या किया जाये ?" धर्मा ने राघव को देखा ।

"जिसने अपने शिकार की जान लेने के लिए सिर्फ एक गोली चलाई है, वो सब्र वाला इन्सान लगता है।" एक्सट्रा ने सोच भरे स्वर में कहा- "ऐसे इन्सान को गुस्सा दिलाना आसान काम नहीं होगा। इस काम में हम तभी सफल हो सकते हैं, जब हम कोई खास चुभने वाली हरकत करें उसके साथ ।"

"मुझे एक आइडिया आया है ।" राघव बोला ।

"क्या ?"

"उसे सामने लाने के लिये हम रतनचंद को बकरा नहीं बना सकते, क्योंकि हमारी पार्टी है। उसे खतरे में डालना ठीक नहीं। परन्तु बकरा हम तो बन सकते हैं ।" राघव कह उठा ।

"बकरा-हम-वो कैसे ?" एक्स्ट्रा के माथे पर बल पड़े।

"धर्मा की कद-काठी, बहुत हद तक रतनचंद जैसा ही है ।"

"तो ?" एक्स्ट्रा एकटक राघव को देख रहा था ।

"हमें जगजीत से काम लेना चाहिये।"

"जगजीत ?"

"तुम्हारा मतलब कि-।" धर्मा गहरी सांस लेकर बोला- "मुझे रतनचंद का डुप्लीकेट बनाओगे ?"

"हां।"

"वो साला मेरा निशाना ले लेगा ।"

"इसका तोड़ भी मैंने सोच लिया है ।" राघव ने होंठ भींच कर कहा ।

"क्या ?"

"वो आगे चल कर बताऊंगा । पहले जगजीत से बात तो कर लूं।"  राघव ने कहा और फोन निकालकर नम्बर मिलाने लगा । धर्मा ने एक्स्ट्रा से कहा-

"ये मुझे मुसीबत में डालने की सोच रहा है। मैं रतनचंद का डुप्लीकेट बन जाऊंगा तो, मुझे रतनचंद समझ कर मार देगा।"

"यही तो हम चाहते हैं ।"

"कि मैं मर जाऊं ?" धर्मा ने उसे घूरा।

"तुमने सुना नहीं- राघव ने कहा कि बचने का तोड़ भी है उसके पास ।"

"ये साला मुझे मरवायेगा।"

राघव का फोन लग गया था। जगजीत की आवाज कानों में पड़ी-

"हैलो।"

"कैसा है तू ?" राघव बोला ।

"ओह, राघव । आज कैसे याद किया ।"

"एक काम है। अर्जेन्ट। हां बोल तो सामान भिजवाऊं।"

"दो लाख मेरी फीस है । तेरे लिए अर्जेन्ट काम भी हो जायेगा ।"

"कल सुबह मेरा काम तैयार मिलेगा ?"

"अगर एक घंटे में तू सामान भिजवा दे ।"

"भिजवाता हूं, साथ में तेरी फीस भी होगी ।"

"मेहरबानी ।"

राघव ने फोन बंद किया और कमरे से निकलकर उस कमरे में पहुंचा, जहां रतनचंद था।

"मुझे तुम्हारी तस्वीर चाहिये रतनचंद ।"

"तस्वीर ?"

"हां, ऐसी तस्वीर जो बिल्कुल स्पष्ट हो। अपनी तस्वीर दिखा मुझे ।"

रतनचंद उठकर टेबल की तरफ बढ़ता बोला-

"मेरा तस्वीर का इस मामले में क्या काम ?"

"फेस-मास्क बनवाया जायेगा तेरे चेहरे का। धर्मा को बकरा बनाकर, गोली मारने वाले के सामने पेश करना है ।"

"ओह।" टेबल का ड्राज खोलता रतनचंद कह उठा- "इस तरह धर्मा की जान को खतरा..."

"उसकी तू फिक्र मत कर । ये चिंता हमारी है ।"

रतनचंद ने कुछ तस्वीरें निकालकर, राघव को दीं ।

राघव ने उनमें से दो तस्वीरें पसंद की और बाकी लौटाते हुए कहा-

"दो लाख रुपया भी निकाल और सुन्दर को बुला ।"

रतन चंद ने दो लाख रुपया निकाला और सुन्दर को फोन करके बुलाया ।

सुन्दर आया ।

"ये दो लाख रुपया और दोनों तस्वीरें तुझे जगजीत नाम के आदमी को देनी है। उसका पता रट ले।" कहकर राघव ने जगजीत का पता बताया- "अभी इसी वक्त, ये काम करके लौटना है ।"

सुन्दर चला गया ।

"रतनचंद।" राघव ने मुस्कुरा कर कहा- "हम फालतू  के नोट नहीं लेते। काम करते हैं। मेहनत करते हैं।"

रतनचंद मुस्कुराया।

"खुद को जितना खतरे में डालोगे, फीस उतनी ही बढ़ जायेगी।"

"हमारी फीस तय हो चुकी है ।"

"पतला ना हो। हम फीस बढ़ाने नहीं जा रहे ।" कहकर राघव बाहर निकल गया ।

राघव वापस पहुंचा ।

"सामान भिजवा दिया है जगजीत को।" राघव बैठता हुआ बोला ।"

"लेकिन तू करना क्या चाहता है।" धर्मा बोला ।

"बता तो दिया है कि तेरे को बकरा बनाना है।" राघव मुस्कुराया-"वो तेरा निशाना लेगा ।"

"इस खतरे से निकलने का रास्ता बता। क्या तोड़ है तेरे पास ?"

"वो भी बताऊंगा। पहले मास्क तो बन आने दे ।" राघव गंभीर हो गया- "अब हमें बंगले की वो खिड़की देखनी है, जहां पर खड़े आदमी का निशाना, डिरिस्ट्रेक्ट सेन्टर की बिल्डिंग में से किसी खिड़की में खड़ा आदमी ले  सके ।"

"वहां छः सात इमारतें बनी हुई हैं । क्या पता निशाना लेने वाला कहां जमता है ।"

"वो किसी ऐसी खिड़की पर जमेगा, जहां से बंगले के हर हिस्से का, खिड़कियों का निशाना लिया जा सके। रतनचंद को बाहर निकलता पाकर वो पक्का, उन बिल्डिंगों में से किसी ऑफिस के खिड़की पर ही अपना ठिकाना बनायेगा।"

"ताकि, रतनचंद दिखे और उसका निशाना ले ले-।"

"ठीक कहा ।"

"और किसी खिड़की पर या खुले पर रतनचंद मुझे बनाकर खड़ा कर दोगे ।" धर्मा बोला- "सारी मुसीबत तो मेरे सिर पर हुई।"

"यार की जान बहुत कीमती है। आसानी से जाने नहीं देंगे ।" राघव मुस्कुरा कर कह उठा ।

"उल्लू का पट्ठा ! बकरा भी बना रहा है और सेहत की चिंता में दूध पिलाने की कोशिश भी कर रहा है। तेल की मालिश भी कर दे कि एकदम चौकस हो जाऊं, मरने के लिए।" धर्मा ने मुंह बनाकर कहा।

■■■

5:45 पर, देवराज चौहान और जगमोहन, सोहनलाल के पास पहुंचा ।

"क्या हालात हैं ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"कोई बाहर नहीं गया।" सोहनलाल बोला- "एक कार बंगले में गई थी, दो घंटे पहले ।"

"कौन था कार में ?"

"दो लोग भीतर बैठे दिखे। वे दूर थे। उनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है।" सोहनलाल ने कहा ।

"वो कार वाले R.D.X. हो सकते हैं ?" जगमोहन बोला ।

"अवश्य हो सकते हैं ।"

देवराज चौहान ने सड़क पार बंगले पर निगाह मारी।

देवराज चौहान के पीछे डीरीट्रक्टर सेन्टर की इमारतें थी ।

"अब क्या इरादा है?" सोहनलाल बोला- "मेरे ख्याल में तो रतनचंद बंगले के भीतर बंद हो गया है।"

"समझदार है ।" जगमोहन ने कहा ।

"अब वो आर.डी.एक्स के कहने पर चल रहा है।" देवराज चौहान कह उठा ।

"देखेंगे आर.डी.एक्स को भी।" जगमोहन ने मुंह बनाया ।

देवराज चौहान पलटा और डिरिस्ट्रेक्ट सेन्टर की इमारतों को देखने लगा ।

फिर एक इमारत पर नजर जा टिकी।

उस इमारत की साइड इस तरफ पड़ रही थी, यानि की खिड़कियां थीं इस तरफ। और ऐसी ही किसी खिड़की की जरूरत थी देवराज चौहान को। पांच मिनट बीत गये, देवराज चौहान को खिड़कियों पर नजर दौड़ाते।

चार कदम की दूरी पर सोहनलाल और जगमोहन खड़े थे।

तभी बंगले का गेट खुलता पाकर, सोहनलाल कह उठा-

"कोई बाहर आ रहा है ।"

जगमोहन की निगाह भी उधर जा टिकी ।

तभी एक कार निकली और आगे बढ़ गई ।

"एक ही आदमी है कार में। सिर्फ कार चलाने वाला ।" जगमोहन बोला।

"तू बंगले पर नजर रख। उसके पीछे मैं उसके जाता हूं।" सोहनलाल ने कहा और तेज-तेज कदमों से सामने खड़ी कार की तरफ बढ़ गया ।

जगमोहन की निगाह बंगले पर जा टिकी। बंगले का गेट कार निकलने के पश्चात बंद हो गया था ।

शाम का वक्त होने की वजह से डिरीट्रेक्ट सेवा पर गहमा-गहमी बढ़ गई थी।

देवराज चौहान पलटा और जगमोहन की तरफ आया ।

"सोहनलाल किधर गया ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"कोई बंगले से बाहर निकला है, उसके पीछे गया है । तुम्हारा क्या इरादा है ?"

"मुझे इस इमारत की पहली दूसरी मंजिल की कोई खिड़की चाहिये।" देवराज चौहान ने इमारत को देखा- "कोई-न-कोई ऑफिस तो किराये के लिए अवश्य खाली होगा। मैं पता करके आता हूं ।"

■■■

देवराज चौहान उस इमारत के पास जा पहुंचा। ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें-ही-दुकानें नजर आ रही थीं।

दुकानों के रंग-बिरंगे बोर्ड नजर आ रहे थे। पहली मंजिल पर भी दुकानें थीं ।

देवराज चौहान बोर्डो को घूकेने लगा।

कुछ मिनटों में वो रावत प्रॉपर्टी डीलर के मालिक, रावत के सामने बैठा हुआ था।

"कहिये साहब, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ।" रावत ने मुस्कुरा कर कहा ।

"पहली मंजिल पर दुकान या दूसरी मंजिल पर ऑफिस किराये के लिए चाहिये। कुछ भी हो जाये-।"

"ये क्या बात हुई जनाब कि कुछ भी हो जाये। मैं समझा नहीं।"

"मैंने ऑफिस खोलना है और भाई ने दुकान...।"

"ओह, समझा समझा। तो यूं कहिए ना। सब समझ गया...।"

"लेकिन दुकान या ऑफिस की खिड़की उस तरफ की सड़क की तरफ खुलना चाहिये ।"

"उस सड़क पर ठीक है, ऑफिस का तो समझो इंतजाम हो गया। दूसरी मंजिल पर बढ़िया ऑफिस है। बाईस बाई अठारह का। किराया भी कम है । चाबी भी मेरे पास है, ऑफिस दिखा दूं क्या ?"

"जरूर ।"

रावत ने टेबल के ड्राज से चाबी निकाली और उठता हुआ बोला-

"चलिये। क्या नाम बताया आपने?"

"सुरेंद्र पाल।"

दोनों बाहर निकले और आगे बढ़ गये।

"किस चीज का ऑफिस खोलना चाहेंगे आप?"

"मेरी कंपनी ने कपड़े धोने का नया पाउडर लॉन्च किया है, इसकी मार्केटिंग के सम्बन्ध में ऑफिस खोलना है।"

"लो जी , चकाचक ऑफिस है सुरेन्द्र पाल जी ।" रावत दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश करता हुआ बोला- "ऐसा ऑफिस कभी-कभार ही हाथ आता है। महीनों पहले ही खाली हुआ है। इस बंदे का अमेरिका में काम बन गया। यहां पर जो आता है, बनके ही निकलता है। उससे पहले भी इस ऑफिस वाला, नेपाल चला गया था । किस्मत वाला ऑफिस है ये...।"

भीतर प्रवेश करते ही देवराज चौहान ठिठका।

पहले से ही वहां पुराना फर्नीचर पड़ा था । कुछ कुर्सियां। एक-दो काउन्टर और अन्य तरह के सामान ।

"इसकी आप फिक्र मत करो। ये सामान है तो नया, पर कबाड़ ही समझो। पहले वाला छोड़ गया था। जो आपके इस्तेमाल में आये ले लेना, बाकी का मैं बाहर फिंकवा दूंगा। चिन्ता मत कीजिये, मैं सर्विस पूरी दूंगा। ये देखिए, इधर आइये आप खिड़की की बात कर रहे थे कि सड़क की तरफ खुले, तो यहां एक नहीं दो-दो खिड़कियां है।" रावत कहते हुए आगे बढ़ा। दोनों खिड़कियों के पल्ले खोल दिए।

खिड़कियों के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी ।

खोलते ही ऑफिस में बाहरी रोशनी भर आई।

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर खुली खिड़की पर निगाह मारी तो सड़क पार, कुछ दूर रतनचंद का बंगला दिखा। बीच में पेड़ आ रहे थे, परन्तु बंगला बहुत हद तक यहां से स्पष्ट था।

"खुली हवा आती है इन खिड़कियों से। बाहरी रोशनी भी चकाचक है, यूं तो यहां लाइट कम ही जाती है, फिर भी चली जाये तो काम नहीं रुकेगा। हवा-रोशनी पूरी आती है, घबराहट नहीं होगी। काम न हो तो खिड़कियों से बाहर देखकर वक्त बीत जायेगा। वाह जी, बनाने वाले ने खिड़कियां भी क्या बनाई हैं । बंद कर लो तो बंद। खोलो तो खिड़कियां ।"

देवराज चौहान मुस्कुराया। रावत को देखा।

"पसन्द आया सुरेंद्र पाल जी ?"

"बहुत ।"

"लो बन गई बात, पहली बार में ही। एग्रीमेंट तैयार करूं? रोकड़ा लाये हैं या कल...।"

"किराया क्या है ?"

किराया बताकर रावत बोला-

"इससे कम किराये पर आपको यहां दूसरी कोई जगह नहीं मिलेगी। लेकिन तीन महीने का एडवांस देना होगा आपको । जो इस जगह का मालिक है, वो एडवांस के बिना नहीं मानता । वैसे भी क्या हर्ज है एडवांस देने में ।"

"आप एग्रीमेंट तैयार कीजिये ।"

"यानि आपको एडवांस देने में कोई एतराज नहीं है ठीक है, चलिये ।"

"वो दोनों बाहर निकले। रावत ने ताला लगाया और आगे बढ़ गया ।

"चाबी मैं आज ही ले लूंगा ।" देवराज चौहान बोला ।

"जरूर जी। जब नोट दे दिए तो चाबी मिलनी ही चाहिये। खरा सौदा है। आधे घंटे में एग्रीमेंट तैयार हो जाता है। ये तो बहुत बढ़िया हो गया कि आपने देखते ही पसन्द कर लिया। सिरदर्दी नहीं उठानी पड़ी। कई बार तो ऐसे-ऐसे ग्राहक आते हैं कि सारा दिन ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर घुमाते हैं, कुछ पसन्द नहीं आता और शाम को जाते हुए नमस्ते भी नहीं करते। तो कल ही काम शुरू कर देंगे आप ?"

"कल मेरा भाई देखेगा ऑफिस को ।"

"जरुर जी जरुर देखें-।"

"मेरे मिस्त्री कहीं काम कर रहे हैं। सप्ताह तक वो फुर्सत में आयेंगे। तब यहां काम शुरू होगा ।"

"मालिक हो जी, जब भी काम शुरू करो ।"

"उससे पहले मेरा आर्किटेक्ट आयेगा और फैसला करेगा कि ऑफिस को क्या रूप देना है।"

"हां जी-हां जी। आर्किटेक्ट की दाल-रोटी भी तो चलनी चाहिये। सबको मिल-मिलाकर खाना चाहिये।" फिर एकाएक ही वो सामने आते आदमी को देखकर चिल्लाया- "नमस्कार चोपड़ा साहब...।"

दूर नजर आ रहे व्यक्ति ने उसे देखकर हाथ हिला दिया।

"इस बिल्डिंग में बहुत शरीफ लोग हैं जी। अपने चोपड़ा साहब को लो, विदेश भेजने के नाम पर लोगों को ठग-ठग करोड़पति बन गये। तीन महीने जेल में बिताये और जमानत पर बाहर आ गये। अब ऐश ही ऐश है। चलता रहेगा केस। करोड़पति तो बन गये। लोग तो ऐसे ही स्टार प्लस वाले प्रोग्राम के.बी.सी. की तरफ दौड़े जाते हैं करोड़पति बनने के लिये। मैं तो कहता हूं कि चोपड़ा साहब के गुर सीख लेने चाहिए करोड़पति बनने के लिये...।"

■■■

7 बज रहे थे, जब देवराज चौहान जगमोहन के पास पहुंचा।

सोहनलाल भी वहां मौजूद था ।

"तुम कहां गए थे ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"जो बंगले से निकला था, उसके पीछे । वो आदमी गोरे गांव में किसी फ्लैट पर गया। मेरे देखते-ही-देखते उसने कॉलबेल बजाई। दरवाजा खुला तो उसने हाथ में पकड़ा लिफाफा, दरवाजा खोलने वाले को दे दिया। उस व्यक्ति ने लिफाफा खोलकर देखा और दरवाजा बंद कर लिया। अब वो व्यक्ति वापस बंगले पर आ गया ।"

"ये नहीं मालूम हो सका कि उस लिफाफे में क्या था ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"नहीं ।"

"तुम दोनों बारी-बारी बंगले पर नजर रखोगे। कोई बाहर जाये तो ये अवश्य देखना है कि वो किधर गया है।" देवराज चौहान ने कहा- "क्योंकि ऐसे वक्त में जो भी बाहर निकलेगा, बेहद खास काम के लिए निकलेगा।"

"मेरे ख्याल में हम दोनों एक साथ यहां मौजूद रहने चाहिये।" जगमोहन बोला- "ताकि एक किसी के पीछे जाये तो दूसरा बंगले पर नजर रखता रहे। काम ना हो तो, पास ही कार में नींद मार ले ।"

"ठीक है। ये भी बुरा नहीं ।"

"तुम क्या कर के आये ?" जगमोहन ने पूछा।

"मैंने सामने वाली इमारत में, दूसरी मंजिल पर ऑफिस किराये पर ले लिया है । जिसके खिड़की  इस तरफ खुलती है।"

"ओह !" जगमोहन ने गहरी सांस ली- "वहां कब टिकोगे ?"

"कल सुबह से ।"

"कल रतनचंद बंगले से बाहर भी निकल सकता है ।"

"बाहर निकला तो उसके पीछे चलेंगे, नहीं निकला तो टैलिस्कोप पर लगी आंख उसे बंगले में ढूढेंगी।"

"खैर नहीं साले रतनचंद की ।" जगमोहन मुंह बनाकर कह उठा।

"R.D.X. को नहीं भूलना चाहिये।"  देवराज चौहान बोला- "रतनचंद को बचाने के लिये वो बंगले में हो सकते हैं ।"

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