11-होली और परीक्षा का चक्कर
कुछ दिनों में होली आने वाली थी। अजिता काफी दिन पहले से उसकी तैयारी में लग जाती और अभिनव को भी होली में बहुत मज़ा आता था इसलिए अजिता अब पहले से ज्यादा तैयारी करने लगी थी। होली की छुट्टियों में अजय घर आने वाला था। अजिता अगर किसी से डरती तो वह था अजय। इसलिए उस दिन अजिता जल्दी सारा काम खत्म कर देना चाहती थी ताकि जब अजय आए तो उसे काम करती न दिखाई दे, लेकिन वैसा हो ना पाया।
दरवाजे पर घंटी बजी। दरवाजा खोला तो अजय खड़ा मुस्कुरा रहा था। अंदर आते ही खुशबू आने के कारण वह सीधा किचन में चला गया। उसने दो मिनट में सारे डिब्बे खोलकर देख लिए कि अजिता ने क्या क्या बनाया है।
"भाभी आपके एग्ज़ाम में कुछ ही दिन बचे हैं, इस बार भी आप होली की वैसी ही तैयारी कर रही हैं” फिर कुछ सोचते हुए बोला, "नहीं, बल्कि मुझे ऐसा लग रहा था कि हर साल आपकी तैयारी बढ़ती ही जा रही है।"
होली में अजिता तरह तरह के पकवान बनाती, पापड़ और चिप्स की तैयारी वह महिने भर पहले से शुरू कर देती है, साथ में घर की साफ-सफाई और सजावट भी शुरू कर देती थी। अभिनव जब से थोड़ा बड़ा हुआ, तब से अजिता का उत्साह और भी ज्यादा बढ़ गया था। अभिनव को भी इसमें बहुत मज़ा आता था, पूरी तैयारी में वह इन कामों में माँ के साथ ही रहता था।
"बस काम खत्म होने वाला है। आपको बेसन के लड्डू पसंद है न, वही बना रही थी। देखिए सब तैयार हो गया है।" अजिता बोली, लेकिन उसके चेहरे पर डर साफ नज़र आ रहा था।
वह अजय के आने के पहले काम खत्म कर देना चाहती थी ताकि अजय के आने के समय वह किचन में न दिखाई दे, लेकिन बीच में गाँव से बुआ आ गई तो उनके साथ बैठना पड़ा और उसे देर हो गई।
"क्या जरूरत थी लड्डू बनाने की, बाजार में सभी चीज़े मिलती है। आप समझती क्यों नहीं कि यह आपका फाइनल ईयर है। इसमें रिजल्ट अच्छा आएगा तभी पी० एच० डी० करना आसान होगा।" गुस्सा तो बहुत आ रहा था अजय को, लेकिन खुद पर सयंम रखने की कोशिश कर रहा था। तीन महीने बाद घर आया था और आते ही गुस्सा करना अच्छा लग नहीं रहा था, लेकिन भाभी मानती ही नहीं थी।"
"पानी ले लीजिए और मन हो तो लड्डू भी ले लीजिए।" अजिता मुस्कराते हुए बोली। मन में डर रही थी कि कहीं फिर से अजय भड़क न जाए।
अजय ने पानी हाथ में लिया और लड्डू की प्लेट लेकर टेबल पर रख दी, फिर कुछ सोचते हुए बोला,
"अभिनव कहाँ है? दिख नहीं रहा है। लड्डू नहीं बनवा रहा।" चेहरे पर व्यगात्मक मुस्कराहट लिए सोफ़े पर बैठ गया और प्लेट से एक लड्डू उठा कर अजिता की ओर देखा।
"क्यों गुस्सा हो रहे है भईया? अभी अभी तो आए हैं आप। हम लोग इतने दिनों से इंतजार कर रहे थे। आपके आने के उत्साह में अभिनव सुबह जल्दी उठ गया था, मेरे साथ लगा रहा कि चाचा के लिए लड्डू बन रहे हैं, लेकिन थोड़ी देर पहले बहुत थक गया था तो सो गया है, अभी जगा देती हूँ उसे।” अजिता सामने सोफ़े पर बैठते हुए बोली।
“नहीं नहीं, उसे सो लेने दीजिए, अब तो मैं रहूँगा ही तीन दिन उसके साथ," अजय ने दूसरा लड्डू उठाते हुए कहा।
“तीन दिन? बस तीन दिन। इतनी कम छुट्टियाँ?" अजिता अजय को कम दिन आने पर हर बार ऐसे ही कहती थी। उसे मालूम था कि प्राइवेट कंपनी में ज्यादा छुट्टियाँ नहीं ले सकते लेकिन फिर भी उसके मुँह से यह शब्द हर बार निकलते थे। दरअसल अजय के हमउम्र होने और बातुनी होने के कारण अजिता की उससे बातें होती थी। विजय बहुत कम बोलते थे इसलिए ससुराल में उसकी अजय के अलावा किसी के साथ ज्यादा बातचीत नहीं होती थी। उससे खूब बातें होती।
अजय के आने पर सभी बहुत खुश होते थे। अभिनव का तो वह ‘मेरे चाचा’ था। अभिनव उसे अजय चाचा न कहकर 'मेरे चाचा' ही कहता। विजय भी अपनी हर छोटी बड़ी बात अजय को बताते और हर बात पर सलाह लेते। विजय को विश्वास था कि अजय के पास हर बात का हल होता है।
"भाभी तीन दिन की छुट्टियाँ मिलना भी बहुत मुश्किल होता है। हमारे यहाँ होली की बस एक ही छुट्टी होती है।" अजय ने हर बार की तरह अपनी भाभी को समझाया।
"भईया आप मेरे घर के काम करने से गुस्सा क्यों होते हो।" अजिता टोकरी में रखे मटर छीलते हुए बोली।
"घर के कामों से नहीं होता हूँ। आप अलग से दूसरे कामों में लग जाती है, उनसे नाराज़ हो जाता हूँ। फिर अभी तो आपके फाइनल इग्ज़ाम आ रहे हैं और मैंने पिछली बार भी कहा था कि अगर अच्छे नंबर आएंगे तभी पी० एच० डी० मिलने में आसानी होगी।" अजय अपने जूते खोलते हुए बोला।
"इग्ज़ाम तक पढ़ाई पूरी हो जाएगी, मैंने साल भर पढ़ाई की है। होली की तैयारी करने में मुझे तो अच्छा लगता ही था लेकिन अब अभिनव को भी मज़ा आता है, इसलिए अब और करने का मन होता है।” अजिता मटर छीलते हुए बोली, उसे मालूम था कि अजय अजिता के बारे में बहुत चिंतित हो रहा था।
12-अभिनव का पालन पोषण
शादी होकर जिस साल अजिता आई थी, उस साल पढ़ाई जारी न रखने की वजह से वह अजय से एक साल पीछे रह गई थी फिर जिद्द करके अजय ने अगले साल बी० ए० का फार्म भरा और घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर अजिता की पढ़ाई शुरू करवाई। विजय की घरवालों के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ती थी इसीलिए अजय ही इस तरह के काम की ज़िम्मेदारी लेता। बी० ए० के दूसरे साल में, जब अजिता को पता चला कि वह माँ बनने वाली है तो घरवालों ने उसे परीक्षा देने को मना कर दिया। उस समय भी अजय ने ही घरवालों को समझाया और राज़ी किया।
परीक्षा के दो महीने बाद ही अभिनव हो गया। उसके आने के बाद अजिता का पूरा ध्यान अभिनव में लग गया क्योंकि जब अभिनव का जन्म हुआ था तब डॉक्टर ने, उसका वजन कम होने के कारण, उसका विशेष ध्यान रखने को कहा था, इसलिए सभी अभिनव के लिए काफी चिंतित रहते थे। अजिता ने डॉक्टर की बात को बहुत गंभीरता से लिया और पूरे समर्पित भाव से अभिनव का ध्यान रखा। कई रात तो वह सो नहीं पाती थी क्योंकि अभिनव रात में उठ जाता और दिन में सोता रहता था। उसने इतने जी जान से अभिनव का पालन पोषण किया कि डॉक्टर भी अभिनव का एक साल में विकास देख के हैरान रह गए। अजिता ने तय किया कि वह अब दूसरी संतान के लिए नहीं सोचेगी बल्कि अपना पूरा ध्यान अभिनव को देगी।
अजय अजिता के समर्पण और कड़ी मेहनत का एक मूक प्रशंसक था। अजिता अपने सभी काम निपुणता के साथ पूरा करती थी। अजय को लगता था कि अगर वह एक प्रोफेशनल होती, तो वह बहुत सफल होती।
एक दिन अचानक अजय ने उससे पूछा, “आपने शादी क्यों की?”
अजिता ने आश्चर्य से उसे देखा। वह थोड़ी देर के लिए सोचने लगी, फिर बोली,
“मैंने शादी इसलिए की क्योंकि मेरे माता पिता की यही इच्छा थी।“
फिर थोड़ा रुककर “लेकिन तुमने मुझसे इतना अजीब सवाल क्यों पूछा?”
“क्योंकि, अगर आप अविवाहिता होती तो एक अच्छी प्रोफेशनल हो सकती थी।” अजय बोला, उसको शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसे लगता था कि विवाहित लोग हर समय एक दूसरे की चिंता में लगे रहते हैं। उनका जीवन दायित्वों को निभाने में ही बीत जाता है जिसमें महिलाओं की स्थिति तो और भी ज्यादा ख़राब हो जाती है, पहले तो उनकी पहचान खो जाती है उसके बाद सारा जीवन अपने आपको साबित करने में बीत जाता है।
"क्या आपका यह मतलब है कि आपने अपने माता पिता की इच्छा के कारण शादी की, ना कि अपनी इच्छा से?” अजय ने पुछा
अजिता को उस समय की बातें याद आने लगी जब व्यापार मे नुकसान के बाद उसके पिता को एक गहरा दिल का दौरा पड़ा था, उसके बाद से ही वह अजिता के भविष्य के लिए बहुत चिंतित रहने लगे थे और अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो जाना चाहते थे, इसलिए अजिता की माँ ने उसे शादी के लिए राज़ी किया।
"नहीं, ये सिर्फ मेरे माता पिता की ही इच्छा नहीं थी बल्कि मैं भी राज़ी थी और मुझे तुम्हारे भाई ने पढ़ाई करने का आश्वाशन भी दिया था।”
“तो इसका मतलब आप इसलिए शादी के लिए तैयार हुई क्योंकि आपको आगे पढ़ाई करने का आश्वासन मिला था। फिर क्या सच में ऐसा हुआ? आपको तो पढ़ाई की इजाज़त मिली नहीं थी”।
“अपने परिवार के लोगों की खुशी की कीमत पर कुछ हासिल करने का कोई अर्थ नहीं है। उस समय के दौरान मैंने घर के कई सारे दूसरे काम सीखे। केवल एक प्रमाण पत्र या डिग्री पाना ही शिक्षा नहीं है, मैं जानती थी कि वे लोग एक दिन मुझे ज़रूर समझेंगे और पढ़ने की अनुमति देंगे और देखो वैसा ही हुआ। आज मेरे पास परास्नातक की डिग्री है। इस डिग्री का वास्तविक मूल्य मेरे लिए अब है।"अजिता बोली,
उसका सकारात्मक दृष्टिकोण ही उसके जीवन के हर पहलू में उसे साथर्क बना देता था।
अजय को उसका जवाब मिल गया था, लेकिन वह अभी भी यही मानता था कि शादी जिम्मेदारियों और परेशानियों का नाम है और इन्हीं जिम्मेदारियों के कारण ही अजीता की पढ़ाई वैसी नहीं हो पा रही थी, जैसी वह कर सकती थी। इसीलिए अजिता को काम में व्यस्त देखकर अजय को गुस्सा आ जाता था और उस दिन भी वही हुआ।
"मुझे लगता नहीं कि आपके ऊपर मेरी बात का कोई असर पड़ा है। पिछली बार भी मैंने आपको कितना समझाया था, खैर अब आपको जो मन हो वही करिए। अभी क्या-क्या काम रह गया है, मुझे बता दीजिए, मैं नहाकर आता हूँ फिर करा लूँगा।" अजय यह कहकर सोफ़े से उठा और बाथरूम की तरफ चला गया।
अजिता को अजय की बात से ग्लानि होने लगी थी। सच बात तो यह है कि अजय की बात सही थी और वह अजिता की भलाई के लिए ही कह रहा था।
"इतने ज्यादा पकवान बनाने की क्या जरूरत थी। अभिनव तो छोटा ही है अगर कम चीज़े भी बनाती तो भी वह खुश ही रहता लेकिन अब तक तो सब बन ही चुका था।" अजिता ने सोचा
"अब होली के बाद वह पढ़ाई में ध्यान लगाएगी और अच्छे नंबर लाकर दिखाएगी।" उसने मन से निर्णय लिया, लेकिन हमेशा वैसा नहीं होता जैसा हम लोग सोचते हैं और कुछ वैसा ही अजिता के साथ हुआ।
13-बिन बुलाये मेहमान
होली खत्म हो गई थी और परीक्षा शुरू होने को सिर्फ कुछ ही दिन बाकी थे। दुर्भाग्यवश अजिता की सास और विजय दोनों बीमार पड़ गए। विजय को मलेरिया और जया को हैजा हो गया। दोनों काफी कमज़ोर हो गए थे इसलिए डॉक्टर ने विजय और जया दोनों को आराम करने की और अपना ध्यान रखने की सलाह दी।
“तुम बहुत थक गई होगी अजिता, जाओ थोड़ी देर जाकर आराम करो।” पिछले कुछ दिनों से अजिता को आराम का समय ही नहीं मिल पाया था और उसके ऊपर काम का बोझ बहुत बढ़ गया था। विजय ने दबी आवाज़ मे कहा,
“तुम्हें सारा दिन काम करना पड़ रहा है जबकि तुम्हें परीक्षा की तैयारी भी करनी है।”
“ऐसी कोई बात नहीं है।” अजिता ने कहते हुए विजय को दूध का गिलास दिया और अपनी सास को चाय बिस्कुट।
“आप बुरा मत महसूस करिये और मेरे लिए चिंता भी मत करिये, मैं ठीक हूँ और बीमारी के लिए आप खुद ज़िम्मेदार नहीं है, कोई कभी भी बीमार पड़ सकता है।"
"तुम्हारी बात सही है लेकिन मुझे बुरा लगेगा अगर तुम्हारे अच्छे अंक नहीं आए क्योंकि, तुमने पूरे साल तैयारी की है और अभी परीक्षा के समय तुम्हें इतनी परेशानी उठानी पड़ रही है।”
“मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता अगर मेरे कम अंक आए तो, मैं यह परीक्षा सिर्फ पास हो के डिग्री पाने के लिए दे रही हूँ और वैसे भी मेरी तैयारी हो चुकी है।” अजिता विजय की चिंता को कम करना चाह रही थी। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। मकान मालिक बनर्जी मिलने आये हैं। विजय ने उठकर उनका स्वागत किया और अजिता उनके लिए चाय लेने के लिए रसोई की तरफ चली गई।
“आप कैसे हैं विजय जी? मेरी पत्नी कल बता रही थी कि आपकी माताजी और आप दोनों ही अस्वस्थ हैं।”
“अभी ठीक हूँ मैं पर मेरी माताजी ठीक नहीं हैं," कमजोरी के कारण धीमी आवाज़ में विजय ने कहा।
बीमारी के दौरान मेहमानों का आना कभी कभी सच में समस्याग्रस्त हो जाता है। जो भी उनकी अस्वस्थता के बारे में सुनता था वह उनका हाल-चाल पूछने आ जाता था और फिर अजिता के लिए उन मेहमानों की आवभगत का काम भी जुड़ जाता है।
अजिता को इस समय उन लोगों की ज़रूरत थी जो उसकी मदद कर सके। वो अजय को याद कर रही थी जो उस समय किसी यात्रा पर बाहर गया था। अजिता ने चाय और बिस्कुट ट्रे पर रखा और बैठक कक्ष में आ गई जहाँ श्री बनर्जी कह रहे थे, “दो महीने बाद मेरे बड़े बेटे की शादी है और हमारे घर में इतनी जगह नहीं है कि सब एक साथ रह सकें इसलिए मुझे बेटे के लिए इस हिस्से की जरूरत है। मुझे ये कहते हुए बहुत बुरा लग रहा है लेकिन मैंने सोचा कि आपको पहले ही बता देना अच्छा रहेगा ताकि आपको अपने लिए दूसरा मकान ढूँढने के लिए थोड़ा समय मिल जाए।”
अभिनव जो अपने पिता के बगल में बैठा हुआ था उसने विजय से पूछा,
"दूसरा मकान? यह तो हमारा घर है, हम यहाँ से क्यों जाएँगे? अंकल ऐसा क्यों कह रहे हैं?” अभिनव के चेहरे पर चिंता की छाया दिख रही थी। वो अपना जवाब जानने के लिए सबकी तरफ देख रहा था।
अजिता उसे लेकर अंदर आ गई। अभिनव को समझ नहीं आ रहा था कि उनको घर क्यों बदलना पड़ेगा। उसे अपने घर से बहुत लगाव था, उसका जन्म उसी घर में हुआ था, उसके सब दोस्त भी वहीं के हैं, वो वहाँ बहुत खुश था,
"मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा, आप लोगों को जाना है तो जाओ, मैं यहीं रहूँगा" वो परेशान होकर बोला। वो अपनी माँ से सुनना चाहता था कि वो लोग वहाँ से कहीं नहीं जा रहे हैं।
“अभिनव, मेरी बात सुनो! जैसे तुम्हारे पास अपना बैट बॉल है और अगर तुम उसे आनंद को खेलने के लिए दो, फिर जब तुम्हें खेलने के लिए चाहिए तो उसे वापस कर देना चाहिए कि नहीं?
"हाँ मम्मी, ये मेरा बैट है जब मैं माँगू तो उसे ये मुझे ज़रूर देना चाहिए।”
"पर अगर वो कहे कि उसे ये पसंद है और वापस नहीं करे तो क्या वह बात ठीक होगी?”
"नहीं, उसे मेरा बैट बॉल वापस करना ही पड़ेगा, दूसरो की चीज़ अपने पास रख लेना गलत बात होती है।”
"तो तुम इस बात से सहमत हो कि जब मालिक को जरुरत पड़े तो उनकी चीज़ उन्हें वापस कर देनी चाहिए?”
"हाँ, मैं ये मानता हूँ।” अभिनव को याद आया की एक दिन पहले उसने अपना बैट खेलने के लिए आनंद को दिया था। लेकिन अब वो इसे किसी को नहीं देगा। उसको यह सोच कर डर लगा कि कहीं आनंद उसे वापस ही नहीं करता तो?
"ठीक इसी तरह ये घर श्री बनर्जी का है और अब वो हमसे वापस चाहते हैं। उन्होंने ये घर हम लोगों को तब दिया था, जब उनको इसकी ज़रूरत नहीं थी पर अब उनको इसकी ज़रूरत हैं इसलिए हमें अब उनको वापस दे देना चाहिए," अजिता ने समझाया, लेकिन वो जानती थी कि मासूम अभिनव को ये नहीं मालूम कि किराये के घर का क्या मतलब होता है।
इतनी छोटी सी उम्र के एक बच्चे को किराए के मकान का मतलब समझ भी नहीं आ सकता है। वह सिर्फ यही जानता है कि वह उसका अपना घर है जहाँ वो बचपन से पला बड़ा है।
दुख की भावना से अजिता का मन भर उठा। उस घर की सभी खूबसूरत यादें उसके मन में आने लगी वह शादी के बाद उसी घर में आई थी, उसके जीवन का एक नया चरण वहाँ से शुरू हुआ था। उसे वहाँ बिताया हुआ हर पल याद आ रहा था। इतने दिनों में पड़ोसियों के साथ भी एक घनिष्ठ संबंध विकसित हो गया, सभी पड़ोसी एक साथ त्यौहार मनाया करते थे। अभिनव ने वहाँ कभी भाई बहन न होने की कमी महसूस नहीं की क्योंकि वहाँ उसके बहुत से दोस्त थे जो उसके साथ काफी घुल मिल गए थे। जीवन एक सुन्दर यात्रा की तरह बीत रहा था क्योंकि वहाँ हर दिन ख़ुशी और उल्लास से भरा होता था। यादों का एक झोंका अजिता के मन से गुज़र गया।
बनर्जी साहब के जाने के बाद अजिता विजय के पास आई तो उसने देखा, विजय की आँखों में आँसू थे और वो काफी परेशान लग रहे थे। अजिता जानती थी कि क्यों वह असहाय सा महसूस कर रहे थे। विजय एक साधारण और सच्चे व्यक्ति थे जो किसी भी परेशानी वाली बात पर जल्दी घबरा जाते थे। इतने कम समय में नया घर खोजना न तो सिर्फ शारीरिक रूप से कठिन बल्कि भावनात्मक रूप से भी बहुत मुश्किल था। जितना ज़्यादा वो सोच रहे थे उतना ही ज़्यादा परेशान होते जा रहे थे।
“चिंता मत करिये। हम इस समस्या का हल निकाल लेंगे। हमें सिर्फ घर ही तो बदलना है, बहुत से लोग तो हर साल घर बदलते हैं, यह कोई बड़ी बात नहीं है।” अपने चेहरे पे झूठी हँसी रखते हुए अजिता ने अपने पति से कहा।
परिवर्तन जीवन की वास्तविकता है, और उन लोगों को भी यह स्वीकार करना पड़ा। अजिता ने अभिनव और विजय दोनों को साहस बंधाते हुए आगे आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया। सभी ने तय किया कि वे इस बदलाव को लेकर दुखी नहीं होंगे। हालाँकि सभी यह जानते थे कि ये सिर्फ सांत्वना के शब्द हैं, लेकिन किसी के पास और कोई रास्ता नहीं है।
14-नया मकान नई चुनौतियाँ
दो दिन बाद अजय यात्रा से लौट आया और घर ढूँढने में उनके साथ शामिल हो गया। आखिरकार उन लोगों ने नया घर ढूँढ लिया। जिसमें जगह कम थी और किराया ज़्यादा। नया घर उनके उस घर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर था, उन लोगों ने अजिता की परीक्षा शुरू होने से पहले ही जल्द से जल्द मकान बदलने की सोची। हर कोई पैकिंग में व्यस्त था, लेकिन अजिता की सास इस दौरान बहुत परेशान थी और मकान बदलने को लेकर बहुत नाराज़ थी। वह स्थिति को समझने के लिए तैयार नहीं थी।
घर बदलने वाले दिन:
"अरे बदमाशों! सामान को ध्यान से रखो। तुम कोई भी अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हो। अगर कोई भी सामान टूटा तो मैं तुम लोगों को एक कौड़ी भी नहीं दूँगी।" अजिता की सास उन मज़दूरों पर चिल्ला रही थी जो सामान ट्रक पर चढ़ा रहे थे।
ट्रक जब नए घर पहुँचा और वह मजदूर सामान उतार रहे थे तब भी जया का गुस्सा नहीं रुक रहा था।
"मैं तुम लोगों से फिर कह रही हूँ मूर्खों! तुम लोग मेरी बात क्यों नहीं समझते? सीढ़ियों पर सामान ठीक से चढ़ाओ। एक भी सामान टूटना नहीं चाहिए।” वह फिर से उन मज़दूरों पर चिल्लाई जो भारी समान लेकर मकान की तीसरी मंज़िल पर चढ़ा रहे थे, जहाँ सीढ़ियाँ संकरी और ऊँची थी।
वह दिन भर मजदूरों पर गुस्सा करती रही। वे मज़दूर चुपचाप उनके गुस्से का सामना करते रहे, इसलिए क्योंकि शायद वो उनकी घर बदलने की पीड़ा को समझ रहे थे।
अजिता गत्तों से सामान निकालने में व्यस्त थी। विजय और अभिनव छोटी सी जगह पर कुर्सी, फर्नीचर, और अन्य चीज़ों को व्यवस्थित करने में उसकी मदद कर रहे थे, वह उनके लिए बहुत निराशाजनक दिन था, शायद इसलिए उस दिन अजिता काम करके थक गई थी।
“सभी लोग खाना खाने जाइए,” अजय ने जया, अजिता, विजय और अभिनव को बुलाया।
वो बाहर एक होटल से खाना लेकर आया था, क्योंकि रसोईघर व्यवस्थित नहीं हो पाई थी। सभी को एक लंबे और व्यस्त दिन के बाद बहुत भूख लगी थी। वे समय नष्ट न करते हुए तुरंत खाने की मेज़ पर पहुँच गए लेकिन अजिता की सासु माँ ने सबसे कह दिया था कि वो खाना नहीं खाएँगी क्योंकि उन्हें भूख नहीं है और वो सोने जाना चाहती हैं।
सभी जानते थे कि जया खाना क्यों नहीं खाना चाहती। ये कोई पहली बार नहीं था जब उन्होंने ऐसा कहा था, जब भी वो गुस्से में या उदास होती थीं तो वह खाना खाने के लिए मना कर देती थीं। अभिनव और विजय को खाने और अचार की खुशबू से मुँह में पानी आ रहा था, वह खाना खाने बैठ गये लेकिन अजिता अपनी सास के बिना खाना नहीं खाती थी।
हर बार की तरह वो उनको खाना खाने के लिए निवेदन करने गई। एक लंबे मनुहार के बाद वह खाने के लिए सहमत हो गई तब सबने मटर पनीर, मलाई कोफ़्ता, मिश्रित सब्जी, गरम-गरम रोटियाँ और अचार के साथ आनंद लेकर खाया। अजय ने उस अस्त-व्यस्त रसोईघर में किसी तरह चाय बनाने की व्यवस्था की। स्वादिष्ट खाने ने उस दिन सभी को पूरे दिन हुई मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ा से राहत दी, जल्द ही उनको एहसास हुआ कि वे कितना थक गए हैं और जिसे जहाँ जगह मिली वह वहीं सो गया बिना ये सोचे कि मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि उनका इंतजार कर रही है।
कुछ दिनों के बाद:
मकान की ऊपर की मंजिल पर जीवन जीने का अनुभव काफी अलग था, दिनभर धूप की गर्मी से कमरे एक भट्ठी की तरह लगते थे। विजय काफी निराश था, उसे वहाँ रहने में बहुत दिक्कत हो रही थी, न केवल गर्मी बल्कि वहाँ पानी भी बहुत कम आता है जो नीचे सिर्फ मोटर के ज़रिए आता था।
"तुम मकान मालिक को बोलो कि मोटर ज्यादा देर चलाया करें, पूरा पानी नहीं भर पाता।”
“मैंने एक बार पूछा था माँ, तो उन्होंने कहा कि उनकी मोटर पुरानी है और अगर उस पर ज्यादा दबाव पड़ेगा तो वह जल जायेगी, इसलिए नीचे से पानी लाने के अलावा और कोई तरीका नहीं है।" विजय ने अपनी माँ से कहा।
अभिनव जो वहाँ खेल रहा था, बोला, "हमारे पुराने घर मे शावर था, मुझे गर्मियों में शावर से नहाना अच्छा लगता है, मुझे यहाँ भी चाहिए।"
“मैं शावर लगवा सकता हूँ पर उसमें पानी आएगा या नहीं, ये मैं नहीं कह सकता,” विजय ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"क्यों,”
उस घर में तो पानी आता था, यहाँ क्यों नहीं आता है?” अभिनव ने पूछा।
अभिनव समस्या समझ नहीं सकता था और विजय उसका जवाब दे नहीं सकते थे, वह सिर्फ हँस ही रहे थे, तभी अजिता बाजार से दो बैग सब्जियाँ लेकर घर के अंदर आई। उसने बैग को रसोईघर में रखा और चाय के लिए चूल्हे पर पानी चढ़ाया और आकर सबके साथ बैठ गई। वो पसीने से लथ पथ थी।
“तुमने नीचे से मुझे बुलाया क्यों नहीं?” मैं बैग ऊपर ले आता। इतनी खड़ी सीढ़ियों पर अकेले दो बैग ले के चढ़ना जोखिम भरा है। यहाँ, हमें तो पहले से ही कई समस्यायें हैं कोई नई समस्या नहीं खड़ी करनी चाहिए।” विजय ने झुँझलाकर कहा।
अजिता मुस्कुराते हुए बोली, “समस्यायें? मुझे तो लगता है ये खड़ी सीढ़ियाँ मेरे वज़न को ठीक रखने के लिए अच्छी है। “कई महिलायें अपना काफी समय और पैसा जिम में खर्च करती हैं जबकि मेरा काम तो मुफ्त में ही हो जाएगा।” अजिता आसानी से स्थितियाँ संभाल लेती है और इस वजह से कभी-कभी जया चिढ़ जाती थी। “इन्हें किसी भी चीज़ से कोई दिक्कत नहीं होती, यह असाधारण है।”
अजिता मुस्कुराई और रसोईघर में चाय बनाने चली गई क्योंकि चाय का पानी उबल चुका था। उसने चाय ट्रे पर रखी और बाहर ले आई जहाँ विजय और जया बैठ कर घर की असुविधाओं पर बात कर रहे थे।
“गुप्ता भाभी, जो पहली मंज़िल में रहती हैं उन्होंने मुझे अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने को पूछा है। दोपहर के समय मेरे पास कोई काम नहीं होता है और मैं बोर हो जाती हूँ, यहाँ मेरी कोई सहेली भी नहीं है इसलिए मैं अपने खाली समय में पढ़ाने का अनुभव ले सकती हूँ।” अजिता ने चाय पीने के दौरान विजय से कहा। उसे संदेह था कि विजय इस बात के लिए मानेंगे या नहीं।
“तुम्हें घर में इतना सारा काम रहता है, तुम अलग से काम करने का समय कैसे निकालोगी?” विजय ने कहा।
विजय चाहता नहीं था कि अजिता काम करे क्योंकि उनके सामाजिक दायरे में, यह अच्छा नहीं माना जाता था।
अजिता समझ रही थी कि विजय अनुमति देने में क्यों संकोच कर रहे हैं लेकिन वो फिर भी न समझने का नाटक कर रही थी। उसने फिर से कहा, "मैं आसानी से सब संभाल लूँगी, यह सिर्फ घंटे भर की ही बात है।” थोड़ी देर के विचार विमर्श के बाद आखिरकार विजय राज़ी हो गया। लेकिन एक आश्वासन पर कि ट्यूशन के दौरान अभिनव नज़र अंदाज़ नहीं होगा।
अजिता ने ये आश्वासन दिया कि अभिनव ट्यूशन में उसके साथ ही रहेगा। अजिता अपना नया काम पाकर उत्साह और नई ऊर्जा से भर गई। अगले ही दिन वह गुप्ता भाभी के पास बताने गई कि वो उनके बच्चे कनिष्क और कार्तिक को पढ़ाएगी।
15-सहेलियों से मुलाक़ात
रसोईघर में अजिता को गाना गाते हुए सुन कर विजय समझ गया कि वह बहुत खुश है और फिर खुश क्यों नहीं होगी? वो तीन महीनें बाद सुनन्दा के घर मिलने जा रही है। विजय जानता था कि ये खुशी सिर्फ सुनन्दा से मिलने मात्र की नहीं है बल्कि वहाँ अपने पुराने घर की एक झलक देखने की भी है। अजिता मुस्कुराते हुए रसोईघर से बाहर आई और कमरे में तैयार होने चली गई।
“माँ मुझे अपने जूते नहीं मिल रहे हैं, देरी हो रही है, क्या मैं अपने सैंडल पहन लूँ?” अभिनव बोला, वह अपनी चीज़ों को रखने में बहुत लापरवाह था। अजिता उसका सब सामान ठीक से समेट कर रखती थी।
“तुम्हारे जूते पलंग के नीचे पड़े हैं, जाओ जाकर ले लो वहाँ से और अपनी चीज़ों को ठीक से जगह पर रखा करो।” हर बार की तरह वो ये बात दोहराती रहती थी जबकि वो अच्छी तरह जानती थी कि अभिनव पर कोई असर नहीं होने वाला है।
कुछ देर के बाद वह लोग सुनन्दा के घर के लिए चल दिये, वहाँ पहुँच कर, अजिता अपना पुराना घर देखकर रुक गई, अपने पुराने घर को देखकर अजिता की आँखों में आँसू आ गए। पुरानी यादें एक चलचित्र की तरह उसके सामने आ गई थी।
उसी घर में अभिनव का जन्म हुआ था। अभिनव जब चलने लगा तो अजिता सारा दिन उसको संभालने के लिए भागती रहती क्योंकि अभिनव थोड़ी-थोड़ी देर में बाथरूम में जाकर नल खोलकर पानी से अपने कपड़े भिगो देता था। वहाँ से अभिनव को बचाती तो अभिनव बेड पर चढ़कर खिड़की से सामान नीचे फेंक देता। अक्सर घर की चीज़े जो ढूँढे नहीं मिलती थी, वह नीचे गिरी होती थी। बिल्डिंग के सारे पड़ोसियों को यह बात मालूम थी इसलिए वह भी नीचे से चीज़े उठा कर अजिता को दे जाते थे।
"अजिता, आओ अब अंदर आ जाओ। क्या वहीं खड़ी अपना मकान ही देखते रहोगी?” सुनन्दा जो उसके लिए अपने गेट पर खड़ी इन्तज़ार कर रही थी, अजिता को देखकर बोली।
सुनन्दा की आवाज़ सुनकर, अजिता अपने ख्यालों की दुनियाँ से बाहर आ गई।
"क्या हाल है सुनन्दा? कितने दिन हो गए मिले हुए।" अजिता ने भावुक हो कर कहा
"ऐसा लग रहा है कि जैसे मैं तुम्हें कई सालों के बाद देख रही हूँ। यहाँ सब अच्छे हैं पर तुम्हें बहुत याद करते हैं।" सुनन्दा भी अपनी सहेली को काफी समय के बाद देख कर भावुक हो गई थी।
“मैंने सभी सहेलियों को तुमसे मिलने के लिए बुलाया है, जल्दी ही सब यहाँ आते होंगें।” सुनन्दा ने बताया।
"ये तुमने बहुत अच्छा किया सुनन्दा, मेरा भी सबसे मिलने का बहुत मन है।” अजिता बोली।
अंकिता, गुरिन्दर, मीनाक्षी, गीतांजलि और मधु सब एक ही बिल्डिंग में रहते थे और चूंकि सब एक ही उम्र की थी तो उनके बच्चे भी अभिनव के हमउम्र थे। अभिनव उनके साथ कभी अकेला महसूस नहीं करता था। अजिता को वो दिन याद आया जब एक बार अभिनव ने अंकिता की बेटी दीप्ति के बालों में बालू डाल दिया था, उस दिन बहुत ठण्ड थी और अंकिता को बालू निकालने के लिए अपनी बेटी के बाल कई बार धोने पड़े। बाद में उसके बाल इतने टूट गए कि उन्हें कटवा कर छोटे करने पड़े थे। अजिता बहुत शर्मिंदा हुई और जब अंकिता से माफी मांगी तो वह बोली,
"अजिता, इसमें शर्मिंदा होने वाली कोई बात नहीं है। यह तो बच्चे हैं, वह शरारत नहीं करेंगे तो कौन करेगा। अभिनव भी तो मेरे बेटे जैसा ही है।" मीनाक्षी दक्षिण भारतीय परिवार से थी और वो अपने सास-ससुर, जेठ और देवर के साथ रहती थी। उनकी जीवन शैली अद्वितीय थी। उनके घर में एक दूसरे से बच्चों की तरह लड़ाई होती थी और भला बुरा भी कहते लेकिन कुछ ही देर में सब एक दूसरे को माफ़ कर देते और पूरी घटना को भुला देते। उनमें से कोई भी बात को दिल पर लगा कर नहीं रखता था।
गुरिंदर का घर अजिता के घर के सामने था। वह पति और एक प्यारी सी बेटी, ज्योति के साथ रहती थी। गुरिंदर ज्योति को एक प्यारी सी गुड़िया की तरह सजाती और उसकी दो चोटियाँ बांध देती थी। उसकी हर ड्रेस के साथ मैंचिंग हेयर बैंड और जूते पहनाती थी। ज्योति को अजिता से काफी लगाव था और वह घंटो अजिता के साथ उसके घर में रहती और अभिनव के साथ खेलती रहती। अजिता भी उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करती थी। जब कभी गुरिन्दर ज्योति को घर वापस आने के लिए बुलाती, तब वह अजिता के घर के अंदर छुप जाती थी ताकि कोई उसे आसानी से ढूँढ ना पाए। गुरिन्दर को उसको वापस ले जाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। गुरिंदर हँसती और कहती,
"अजिता, लगता है ज्योति तुम्हारी बेटी है, उसे अपने साथ ही रखो। लेकिन, कोई कैसे किसी और की बेटी को हमेशा के लिए अपने पास रख सकता है?” जिस दिन अजिता वहाँ से जाने वाली थी उस दिन ज्योति ने अजिता को कस कर पकड़ लिया था और किसी भी तरह से उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी। अजिता के परिवार के जाने के बाद वो पूरा दिन रोई और बाद में उसे बुखार आ गया था। ज्योति से दूर जाना अजिता के लिए भी बहुत कष्टप्रद था।
“ज्योति आज भी तुम्हें बहुत याद करती है और तुमसे और अभिनव से मिलने के लिए बहुत रोती है। आज मैंने उसे अपने साथ लाने के बारे में सोचा था, लेकिन यह सोच कर साहस नहीं हुआ कि तुम फिर अपने घर चली जाओगी तब उसे संभालना बहुत कठिन होगा।" ऐसा कहते हुए गुरिंदर ने ज्योति को वहाँ ना ले जाने के लिए माफ़ी मांगी।
"मैं समझ सकती हूँ।” मैं और अभिनव भी उसे बहुत याद करते हैं लेकिन मज़बूरी है कि उससे मिल नहीं सकते। अजिता ने भरी हुई आँखों से कहा। उसके बाद सभी महिलाओं की लम्बी चर्चा शुरू हुई और चलती रही। उधर दूसरे कमरे में अभिनव और उसके दोस्त टेलीविजन पर क्रिकेट का मैच देख रहे थे। आनंद के पिताजी ने एक दिन पहले ही टेलीवीज़न ख़रीदा था।
सुनन्दा अपना बड़े परदे वाला टेलीविज़न दिखाने के लिए सभी सहेलियों को कमरे के अंदर ले गई,। अजिता ने देखा कि मैच देखने के दौरान अभिनव बहुत खुश और उत्साहित है। अभी तक अजिता के घर पर टेलीविज़न नहीं आया था।
अपनी माँ को देख कर अभिनव ख़ुशी से मुस्कुरा उठा और बोला,
"माँ देखो ये टेलीविज़न कितना बड़ा है। इसमें मैच देखने में कितना मज़ा आ रहा है।“
हर किसी ने इस नई खरीदारी पर सुनन्दा को बधाई दी।
“मेरा पुराना टेलीविज़न बहुत छोटा था जिसमें बच्चे दिन भर कार्यक्रम देखते रहते थे इसीलिए इनके पापा ने बच्चों के लिए नया बड़ा टेलीविज़न ख़रीद लिया,” सुनन्दा ने हँसते हुए कहा।
"क्या उनकी पढ़ाई प्रभावित नहीं होती? आजकल तो बच्चों पर पढ़ाई का कितना बोझ है। अगर वो पूरा दिन कार्यक्रम देखते हैं तो अपना स्कूल का काम कब करते हैं?” गीतांजलि ने चिंता प्रकट करते हुए पूछा।
“मैनें उन्हें घर में भी कभी पढ़ाई करते हुए नहीं देखा। वे या तो खेलते हैं या फिर कार्यक्रम देखते हैं।” सुनन्दा ने लापरवाही से जवाब दिया।
“इस उम्र में मौज़ मस्ती थोड़ी सीमित होनी चाहिए, हमें माता पिता होने के नाते यह सब ध्यान रखना चाहिए।” गीतांजलि ने अपनी सहेली को सलाह दी।
“हम इन्हें पढ़ने के लिए अच्छे स्कूल भेजते हैं और सारी सुविधाएँ दे रखी हैं फिर भी अगर वो नहीं पढ़ते हैं तो उनकी क़िस्मत। फिर उनके पिता भी ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन वो अपना व्यापार अच्छी तरह चला रहे हैं। वैसे ही बच्चे भी अपना काम चला लेंगें,” सुनन्दा ने कहा। उसके चेहरे पर चिंता की कोई झलक नहीं थी।
“ये अच्छी बात है कि आपका अपना व्यापार है, फिर भी, शिक्षा महत्वपूर्ण होती है, “अजिता ने सुनन्दा को समझाने की कोशिश की।
“उनके बारे में चिंता मत करो, वे जब बड़े होंगे तब खुद समझ जायेंगें।” सुनंदा ने उसी स्वाभाविक अंदाज़ में कहा।
अजिता को सुनन्दा की सोच पर दया आ रही थी। उसने सोचा इस मुद्दे पर उससे बहस करना बेकार है।
थोरी देर में विजय, अजिता और अभिनव को घर ले जाने के लिए आ गए थे। अगली मुलाक़ात अजिता के घर के लिए तय हुई और वह लोग वहाँ से अपने घर लौट आए।
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