जेल का ये खास हिस्सा था । यहां आम या मामूली कैदियों को नहीं रखा जाता था । इन अंधेरी कोठरियों में सिर्फ वही कैदी रखे जाते थे, जो बेहद ही खतरनाक और मानवता के नाम पर कलंक हों, जिनके लिये इंसान की कीमत चींटी के बराबर हो । इन कोठरियों में मौजूद सब कैदियों को फांसी मिल चुकी थी । अंधेरे से भरी छोटी-छोटी कोठरियों में पड़े रहने के बावजूद भी इनके हाथ पांव में मोटी-मोटी जंजीरों और की बेड़ियां डालनी पड़ती थी। इसलिए कि कहीं सिपाही या खाना लाने वाले को नुकसान ना पहुंचा दें या फिर इनमें से कोई फरार होने की चेष्टा न करें ।

फाँसी पाये कैदियों से हर तरह की उम्मीद की जा सकती थी। इसी कारण इन्हें कोठरियों से बाहर तभी निकाला जाता था, जब बहुत ही जरूरत पड़ती । नहीं तो इन्हें आसमान देखना तक नसीब नहीं होता था ।

ये जगह अक्सर सुनसान ही रहती । सिर्फ खाने के वक्त ही कदमों की आहट गूंजती या फिर दिन में दो दफा कोठरियों में भरे पड़े मटको में बाहर से पानी डालकर भरा जाता । उसके बाद फिर मौत-सा सन्नाटा छा जाता 

वार्डन राजकिशोर, इंस्पेक्टर पाल को सबसे आखिरी कोठरी के सामने छोड़ गया । कोठरी में अंधेरा छाया हुआ था । उसके वहां रुकते की बेड़ियों और जंजीरों की खनखनाहट सुनाई दी।

इंस्पेक्टर पाल ने निगाह घुमाकर देखा, जिस गैलरी से आया था, वो सुनसान पड़ी थी । दिन में भी वहां अंधेरा था जिसे दूर करने के लिए बल्ब जल रहे थे । वार्डन राजकिशोर, गैलरी पार करके जा चुका था ।

इंस्पेक्टर पाल की नजरें पुनः अंधेरे से भरी कोठरी पर जम गईं । हाथ बढ़ाकर उसने कोठरी के बाहर लगा स्विच दबाया, कोठरी के भीतर लगा बल्ब रोशन हो उठा ।

पैंतालीस वर्षीय शंकर दास बेड़ियों में जकड़ा, सीधा खड़ा उसे ही देख रहा था । कसरती गठा हुआ बदन । घुंघराले बाल । बदन पर कैदियों की वर्दी । परन्तु चेहरा क्लीन शेव था। लगता था जैसे सुबह ही शेव कराई हो।

दोनों कई पल एक-दूसरे को देखते रहे । एकाएक शंकर दास ठठाकर हंस पड़ा। बेड़ियों की खनखनाहट वहां गूंज उठी ।

"आओ इंस्पेक्टर आओ ।" शंकर दास ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा--- "शायद ये देखने आये हो कि ज्यों-ज्यों फांसी का दिन नजदीक आता जा रहा है, त्यों-त्यों मेरी क्या हालत हो रही है ? लो देख लो, अच्छी तरह देख लो इंस्पेक्टर पाल देशमुख, शंकर दास शान से जिया है और शान से मरेगा । मेरी सेहत में कोई फर्क नहीं नजर आ रहा होगा तुम्हें । हर रोज पेट भर कर खाता हूँ । आजकल भूख भी कुछ ज्यादा ही लगने लगी है । इसी से तुम अंदाजा लगा सकते हो कि मुझे मौत का कोई गम, या खौफ नहीं । आज सत्रह तारीख है, सिर्फ चार दिन और उसके बाद मुझे फांसी पर लटका दिया जायेगा । इक्कीस तारीख को शंकर दास की मौत के हस्ताक्षर किए जायेंगे। तुम शायद यही जानने आये थे कि मौत को नजदीक देखकर मुझे कैसा महसूस हो रहा है ।"

"इंस्पेक्टर पाल दोनों हाथ जेबों में डाल शांति से उसे देखता रहा ।

"क्यों इंस्पेक्टर, मुझे खुशी के हाल में देखकर तुम्हें सांप तो नहीं कहीं सूंघ गया ।"

इंस्पेक्टर पाल पूर्ववतः मुद्रा में खड़ा रहा ।

"कमाल है ।" शंकर दास मुस्कुराया--- "खुद चलकर मेरे पास आये हो और बोल भी नहीं रहे । सच मानो इंस्पेक्टर मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं । तुमने अपनी ड्यूटी निभाई थी । अपना फर्ज पूरा किया था, मुझे कानून के सींखचों के पीछे फेंककर। बहादुर माँ के बेटे हो, वरना कई पुलिसवाले मुझे गिरफ्तार करने के चक्कर में बारी-बारी मेरे हाथों से मरते रहे । वो जंग सिर्फ तब तक की थी, जब तक मैं आजाद था । अब तो मेरी किसी से दुश्मनी नहीं । मैंने तुम पर गोलियां चलाई । तुम्हें घायल किया तो इसलिये कि तुम मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहे थे, फिर जब तुमने मुझे पकड़ लिया तो तुम बाजी जीत गये । मौत के खेल में तो हार-जीत चलती रहती है । इसलिए ज्यादा देर दुश्मनी नहीं रखनी चाहिये और...।"

"मैं दुश्मनी खत्म करने में यकीन रखता हूँ।" इंस्पेक्टर पाल ने उसकी बात काटकर कहा, "तुम्हें मैंने फांसी के फंदे पर पहुंचा दिया तो, दुश्मनी खत्म हो गई । वैसे मेरी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं थी, बल्कि कानून की दुश्मनी तुमसे थी और वो बात कब की समाप्त हो चुकी है।"

"वही तो मैं कहना चाहता हूं इंस्पेक्टर कि अब हमें दोस्तों की तरह मिलना चाहिये । कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ इस दुनिया में इसलिये सबसे हंस-बोलकर जाना चाहता हूँ ।" शंकर दास के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान आ गई ।

"आज तुम्हारी बात सुनकर कौन कह सकता है कि तुमने सिर्फ तीस दिन में बाईस लोगों को चुन-चुन कर कत्ल किया था ?"

"वक्त-वक्त की बात है इंस्पेक्टर ।" शंकर दास लापरवाही से बोला, "जैसी हरामजादी बीवी मुझे मिली थी, उसके किये कारनामे को देखकर, हर शरीफ और इज्जतदार इंसान ऐसा ही करता । खैर, तुम सुनाओ बाहर का मौसम कैसा है ? बहुत दिन हो गये सूर्य की रोशनी देखे, अब तो सिर्फ दिन का उजाला ही देखूंगा। इक्कीस तारीख को, जब फंदा मेरे गले में डाला जायेगा । मेरी दिली ख्वाहिश है कि मुझे फांसी के बाद मेरे जिस्म को तुम ही आग देना । मेरा, बैंक में कुछ पैसा पड़ा है, वो तुम्हें दे जाऊंगा । उस पैसे से तुम मेरी चिता का शानदार प्रबंध करना, मैं नहीं चाहता कि सरकार नीली लकड़ियों से मेरे जिस्म को आग लगाये । जिंदगी भर सुलगता रहा हूँ । मरने के बाद नहीं सुलगना चाहता ।" शंकर दास हंस पड़ा।

इंस्पेक्टर पाल ने जेबों से दोनों हाथ निकालकर अपनी आंखें मलीं और बोला---

"मैं तुमसे कुछ बात करने आया हूँ शंकर दास ।"

बेड़ियों की खनखनाहट गूंजी और शंकर दास सलाखों के पास आ गया । उसकी पैनी निगाहें पाल के चेहरे को नोंचने लगी ।

"खास बात है क्या ?"

"हाँ ।"

"कहो ।"

"तुम बहुत ही हौसलेमंद और बहादुर हो । मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है।"

"मेरी जरूरत है तुम्हें ।" शंकर दास हंस पड़ा, "बहुत गलत कह रहे हो।  मेरी जरूरत तो अब उस जल्लाद को है जिसने मुझे फांसी पर लटकाने के पश्चात सरकार से इनाम के तौर पर रुपये और शराब की बोतल हासिल करनी है ।"

"मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूँ।  तब तुम यकीन करोगे कि मैं मजाक नहीं कर रहा ।" इंस्पेक्टर पाल ने व्याकुल स्वर में कहा और उसे अपने परिवार की सामूहिक हत्याओं के बारे में बताने लगा ।

दस मिनट तक लगातार इंस्पेक्टर पाल बोलता रहा । शंकर दास के चेहरे पर कई तरह के भाव आ-जा रहे थे । आंखें इंस्पेक्टर पाल के होंठों पर ही जमी थी । इंस्पेक्टर पाल खामोश हो गया। उसका चेहरा दिल और जिस्म का एक-एक हिस्सा प्रतिशोध की भावना में जल रहा था ।

शंकर दास को खामोश पाकर इंस्पेक्टर पाल दांत भींचकर बोला ।

"हो सकता है ये तीन हत्याएं तुम्हारे लिये मामूली बात हों, क्योंकि तुम खुद ही खतरनाक हत्यारे हो, लेकिन मैं...।"

"नहीं इंस्पेक्टर ।" बेड़ियों की आवाज वहां गूंज उठी, "जैसा तुम सोच रहे हो, ऐसी कोई बात नहीं । निर्दोष लोगों की हत्या मानवता के नाम पर कलंक है । मैंने हत्याएं की हैं, शरीफ इंसान खतरनाक हत्यारा बन गया, लेकिन मेरा भगवान जानता है कि जिन्हें मैंने मारा है, वो मर जाने के लायक थे । कोई बेगुनाह इंसान मेरे हाथों नहीं मरा, शायद इस तरह तुमने ध्यान नहीं दिया हो ।"

इंस्पेक्टर पाल उसकी बात पर ध्यान न दे कर बोला---

"शंकरदास, मैं तीरथराम पाहवा से नहीं टकरा सकता, लेकिन तुम टकरा सकते हो, प्रतिशोध की आग जो मन-मस्तिष्क में जल रही है, उसे तुम ठंडा कर सकते हो । मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है, मैं चाहता हूं तुम मेरी लड़ाई लड़ो । तुम तो मरने वाले हो, तुम्हें फाँसी हो जायेगी, अगर पाहवा से मेरी जंग लड़ते हुए मर गये, तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा । वरना तो तुम्हें हर हाल में है ही । यह तुम्हारी किस्मत ही होगी कि तुम पाहवा से जंग जीत जाओ और जिंदा बच जाओ, अगर जिंदा बच गये तो वो जिंदगी तुम्हारी अपनी होगी, कहीं दूर जाकर तुम शराफत से जिंदगी बिता सकते हो ।"

बेड़ियों की खनखनाहट गूंजी, शंकरदास ने दोनों हाथों से सलाखों को थाम लिया । वो इंस्पेक्टर पाल की आंखों में देखता रहा था।

"तुम मुझे यहां बाहर निकाल सकते हो ?" उसके स्वर में फुसफसाहट आ गई ।

"हाँ ।" इंस्पेक्टर पाल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा ।

"मैं आजाद हो जाऊंगा ?" स्वर में अजीब-सा भाव आ गया । इंस्पेक्टर पाल ने सहमति से सिर हिला दिया ।

"और तुम्हें विश्वास है कि आजाद होने के पश्चात में इसी शहर में रहकर, तुम्हारे लिए तीरथराम पाहवा से लड़ाई लड़ूँगा ?"

"हाँ ।"

"अगर मैं फरार हो गया तो ?"

"तो मैं किसी और को तलाश कर लूंगा ।" इंस्पेक्टर पाल ने उसकी आंखों में झांका, लेकिन अभी तक मैंने तुम्हारे बारे में जो कुछ जाना है, उस लिहाज से दगाबाजी तुम्हें छूकर भी नहीं गई।

शंकर दास के होंठों पर मुस्कुराहट दौड़ गई 

"शायद तुम ठीक कहते हो । मिलिट्री मैन की जुबान ही पत्थर की लकीर है ।"

"मैं सिर्फ शंकर दास की बात कर रहा हूँ यानी तुम्हारी ।"

शंकर दास ने हौले से सिर हिलाया और इंस्पेक्टर पाल को सोचपूर्ण निगाहों से देखने लगा । इंस्पेक्टर पाल के चेहरे पर व्याकुलता की तरह जम चुकी थी 

"तुमने जवाब नहीं दिया ?"

"मुझे तुम्हारी ऑफर मंजूर है इंस्पेक्टर ।" शंकर दास ने कहा--- "और ये सब मैं तुम्हारे लिए नहीं, अपने लिए कर रहा हूँ । खुद को बचाने के लिये कर रहा हूँ कि शायद फांसी से बचकर पूरी जिंदगी जी सकूँ । बाई-द-वे मैं यहाँ निकलूंगा कैसे ?"

"जेलर की सहायता से ।"

"वो बूढ़ा खूसट मुझे जेल से निकलने देगा ?" शंकर दास के माथे पर बल पड़ गये । आंखें सिकुड़ने लगी ।

"बिल्कुल निकलने देगा ।"

"विश्वास नहीं आता ।" शंकर दास ने गहरी सांस ली, "प्लान क्या है ?"

"प्लान ? प्लान तुम्हें जेलर ही बतायेगा । बार-बार मेरा तुम्हारे पास आना ठीक नहीं । शायद अब हमारी मुलाकात जेल से बाहर ही होगी ।"

"मेरी फांसी में सिर्फ चार दिन बचे हैं ।"

"तुम किसी बात की फिक्र न करो । तुम्हारी जिंदगी की तुमसे ज्यादा मुझे जरूरत है शंकर दास ।" इंस्पेक्टर पाल का चेहरा चहकने लगा।

शंकर दास हौले से हंस पड़ा ।

"तुम चाहे कुछ भी कहो इंस्पेक्टर, लेकिन मेरी जिंदगी सिर्फ मेरी ही है और उसकी जरूरत भी सिर्फ मुझे ही है । मेरे यहां से निकलने के पश्चात जब तक पाहवा का काम तमाम न हो, तब तक मैं तुम्हारी हर बात खुशी से कबूल करूँगा । अब फौरन मुझे यहां से निकालने का प्रबंध करो । वरना मैं तो जीने की सारी उम्मीद बहुत पीछे छोड़ बैठा था । एक बात तो समझ में आ गई कि जब तक इंसान जिंदा है, तब तक जिंदगी की आशा ही आस है । वैसे मैं तो खुद को तब से ही मरा हुआ समझ रहा था, जब मुझे फांसी की सजा सुनाई गई थी।"

"तुम नहीं मरोगे शंकरदास, कानून तुम्हें कभी फांसी पर नहीं लटका सकेगा । ये जुदा बात है कि तीरथराम पाहवा के साथ जंग में मारे जाओ ।"

"परवाह नहीं ।" शंकरदास के होंठों से वहशी कहकहा उबल पड़ा।

■■■

पिछले छः घंटों से तीरथराम पाहवा के होटल जय गणेश के आस-पास सामने या कभी दायें-बायें, सावधानी से सबकी निगाहों से खुद को बचाते हुए सोहनलाल टहल रहा था । यूँ उसे इस बात का ज्ञान था कि ज्यों-ज्यों समय बीतता जा रहा था। उसके लिये खतरा भी बढ़ता जा रहा है । किसी की निगाह उस पर भी पड़ सकती है । परन्तु जेब में पड़ा रिवाल्वर, उसके शरीर से टकराता हुआ उसके हौसले को बुलंदी पर पहुंचाने की चेष्टा कर रहा था ।

अब शाम के सात बजने जा रहे थे । दिन, रात की तरफ सरकता जा रहा था । सोहनलाल के सब्र का पैमाना अब भर चुका था । वो सिर्फ उसे मारना चाहता था, जिसने दीपक और रजनी को बर्बरता से मारा था । परन्तु वो अभी तक नजर न आया, अलबत्ता तीरथराम पाहवा के और कई हरामजादे यदा-कदा दिखाई दे रहे थे ।

सोहनलाल ने मन-ही-मन तय किया कि वो होटल में प्रवेश करेगा और पाहवा के ढेर सारे आदमियों को कत्ल करके, पाहवा की ऐसी-तैसी करेगा । इसके साथ उसने ये नही सोचा कि कोई उसे भी शूट कर सकता है ।

अभी इन विचारों में भटक रहा था कि एकाएक उसके जिस्म में तनाव आ गया । वो जय गणेश होटल के सदर द्वार के ठीक सामने, सड़क पर खड़ा था । उसने पाहवा के आठ कमांडो एक साथ बाहर निकलते देखें और इतनी दूर से भी उसने पहचान लिया कि उनमें से एक वही है जिसने दीपक और रजनी की हत्या की थी।

सोहनलाल के जबड़े भिंच गये । चेहरा सख्त हो गया । आंखों में कठोरता व्याप्त हो गई । वो सब पोर्च में खड़ी कार की तरफ बढ़ रहे थे । सोहनलाल फौरन आगे बढ़ा और होटल के बाहर बड़े से गेट के पास खड़ा हो गया । लोगों का आवागमन, शाम होने की वजह के कारण बढ़ चुका था । लेकिन उसकी निगाह तो अपने शिकार पर थी, जिसकी हत्या करके वो तीरथराम पाहवा को समझा देना चाहता था कि उसके आगे उसकी हुकूमत नहीं चल सकती । वो किसी दादा के रौब में आने वाला नहीं।

उन आठों में से एक ने ड्राइविंग सीट पर दरवाजा खोला और भीतर बैठ गया । सोहनलाल ने अपना हाथ जेब में डाला और उंगलियां रिवाल्वर के गिर्द लिपट गईं । अन्य ने भी कार के अन्य तीन डोर खोले, और भीतर बैठने की तैयारियां करने लगे।

अब सोहनलाल को सिर्फ अपने शिकार का सिर ही नजर आ रहा था । फुर्ती के साथ उसने जेब से रिवाल्वर निकाली और उसे दोनों हाथों में बांधकर, ट्रेगर दबा दिया ।

अगले ही पल गोली उसके शिकार की खोपड़ी को फोड़ती हुई निकल गई । खून के छींटे बिखरे और वो कटे पेड़ की तरह नीचे गिर गया । उसके साथी चौंके और आश्चर्यजनक फुर्ती के साथ उसने पोजीशन ले ली । रिवाल्वर उनके हाथ में चमकने लगी ।

होटल में आते-जाते लोग चीखते हुए सहम कर दायें-बायें अपनी जान बचाने के लिए दौड़े । जो अभी बाहर थे, वो सोहनलाल को रिवाल्वर थामें देखकर भागने लगे । क्योंकि दो पल पहले ही उन्होंने सोहनलाल को फायर करते देखा था ।

तभी कार की तरफ से गोली चली और गेट की मोटी सलाख से टकराकर छिटक गई । सोहनलाल फौरन आड़ में हो गया । अब वो कहां है भीतर वालों को मालूम हो चुका था।

मन-ही-मन सोहनलाल खुश था कि एक ही बार में उसने अपने शिकार का काम-तमाम कर दिया, परन्तु वो चिन्ता में भी था कि वो उनकी नजर में आ चुका है।  इससे भागने में कठिनाई आयेगी । उसके पास तो कोई कार वगैरह भी नहीं थी, जिससे फरारी में सहायता मिलती ।

तभी एक साथ फायर हुए, सोहनलाल को कोई नुकसान न हुआ । अलबत्ता गोलियों से वातावरण दहल गया । सोहनलाल उसी आड़ में खड़ा तेजी से बचने का रास्ता खोज रहा था । ज्यादा देर यहां रहना खतरनाक था । पाहवा के आदमी पीछे वाले रास्ते से निकलकर उस पर गोलियां बरसा सकते थे।

तभी उसकी निगाह सिकुड़ गई । उनमें से एक कमांडो कार की ओट में छिपता हुआ उसी की ओर बढ़ता जा रहा था । जाहिर था कि किसी और ने भी उसकी तरफ आने का कोई और रास्ता अपनाया होगा । खतरा अब सिर पर आकर मंडराने लगा था।  सोहनलाल की उंगली ट्रेगर पर जम गई । दांत भिंच गये । वो खामखाह किसी और की हत्या नहीं करना चाहता था, परन्तु अब मरो या मारो वाली बात हो गई थी।  उसे घेरा जा रहा था 

सोहनलाल की निगाहें कारों के बीच अटकी हुई थी।

कुछ क्षण पश्चात ही उसे कार के पीछे से सिर दिखाई दिया । सोहनलाल ने फुर्ती से निशाना बांधा और ट्रेगर दबा दिया । गोली कार के पीछे दिखाई दे रहे शरीर में प्रवेश करती चली गई । सोहनलाल फौरन आड़ में से निकला और कार की तरफ रुख करके दो गोलियां चला दीं।  एक गोली कार के टायर में लगी और दूसरी उसकी छाती में, जो उसे देखकर उस पर फायर करने जा रहा था।

होटल के आसपास का सारा वातावरण ऐसा हो गया था जैसे कोई इंसान वहां रहता ही न हो।  सोहनलाल पलटा और रिवाल्वर थामें तेजी से भागने लगा । एक बार भी उसने पीछे देखने की चेष्टा न की।

पाहवा के घर में घुसकर उसके तीन कमांडो की हत्या कर दी थी । इस शहर में किसी के लिये भी ये मामूली बात नहीं थी।

पीछे से सोहनलाल पर अंधा-धुंध फायरिंग किए गये । एक गोली उसकी बांह को झुलसाते हुए निकली, परन्तु वो बच गया । कुछ आगे जाने पर उसे लाल बत्ती पर खड़ी कारें दिखाई दीं । क्षण भर ठिठठकर उसे पीछे देखा, तो जबड़े भिंच गये । पाहवा के कई कुत्ते भोंकते हुए पीछे आ रहे थे । उसने रिवाल्वर सीधे करके एक साथ दो गोलियां चला दीं।

उसके द्वारा चलाई गई गोलियां किसी को लगी तो नहीं अलबत्ता ये फायदा अवश्य हुआ कि आने वालों की गति कम हो गई । सोहनलाल भागकर लाल बत्ती के सबसे आगे वाली खड़ी कार के पास पहुंचा, दरवाजा खोलकर उसने ड्राइवर की बांह से पकड़कर, बाहर घसीटा और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए लाल बत्ती की परवाह न करते हुए कार तूफान गति से बढ़ा दी । खाली हो चुके रिवाल्वर को उसने जेब में ठूंस लिया।

अब उसे किसी बात की फिक्र नहीं थी । अपने निशाने की तरह ड्राइविंग का भी पूरा भरोसा था।

■■■

रात ग्यारह बजे वो सुन्दर लाल के एक कमरे के फ्लैट पर पहुंचा। डुप्लीकेट चाबी उसके पास थी । दरवाजा खोलकर सोहनलाल भीतर प्रवेश कर गया । सुन्दर लाल घर पर सही था। दो घंटे तक वो उसका इंतजार करता रहा, फिर थकान की वजह से बैड पर जा लेट और सो गया ।

सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने सुन्दर लाल को फर्श पर चादर बिछाये सोया पाया । सोहनलाल बाथरूम में घुस गया । नहा-धोकर बाहर आने पर उसने सुन्दर लाल को कमरे में टहलता पाया ।

दोनों की आंखें टकराई ।

"कैसे हो सुन्दर लाल ?" सोहनलाल मुस्कुराया ।

"अच्छा हूँ।" वो चिंतित स्वर में बोला, "उस्ताद कल तुमने पाहवा के तीन आदमियों को मार दिया । तुम पहचाने गये हो  । पाहवा ने एक लाख का इनाम तुम्हारे नाम ऐलान किया है, जो तुम्हें जिंदा या मुर्दा सामने पेश करेगा । पूरे शहर का हर रास्ता 'सील' कर दिया गया है ताकि तुम फरार न हो सको । पाहवा  ने अपने सारे कारोबार बंद करके, अपना सारा ध्यान तुम पर लगा दिया है । आखिर तुमने उसकी बादशाही के तीन प्यादों को मारकर उसके अहम को भारी चोट पहुंचाई है । अंडरवर्ल्ड में उसकी इज्जत तभी बरकार रह सकती है, जब तुम्हारी लाश के टुकड़े करके शहर के सारे चौराहों पर फैला दे।"

सोहनलाल मुस्कुराया ।

"और उसकी ये इच्छा कभी पूरी न होगी ।"

"ऐसा न कहो । उस्ताद, वो पाहवा है, तीरथराम पाहवा । वो यूं ही नहीं अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा दादा बन बैठा । आज तक उसने जो चाहा है, उसे पूरा करके दिखाया है । वो एक दिन तुम्हें यहां से भी ढूंढ लेगा ।"

"यानी तुम्हें डर है कि पाहवा मेरे साथ-साथ तुम्हें भी नहीं छोड़ेगा, क्योंकि तुम पर्दे के पीछे रहकर उसके खिलाफ काम कर रहे हो।"

"उस्ताद पहली बात तो ये है कि मैंने तुम्हारी सहायता करके खुद ही अपने ताबूत में कील ठोक ली है । दूसरी बात, ये जिंदगी तुम्हारी ही दी हुई है । इसलिए तुम्हारे लिये चली भी गई तो, चिंता नहीं । तीसरी बात, तुम्हारे साथ ही मेरी जिंदगी है । तुम नहीं तो मैं नहीं । इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए मैं इस लड़ाई में आखिरी वक्त तक तुम्हारे साथ हूँ ।"

सोहनलाल ने मुस्कुराकर उसके कंधे पर हाथ मारा ।

"हो तो मामूली से जेबकतरे, लेकिन बातें शहंशाहों की तरह कर रहे हो ।"

सुन्दर लाल मुस्कुराकर रह गया ।

"कहीं से आज का अखबार लेकर आओ । मैं पाहवा के आदमियों की मौत की खबर पढ़ना चाहता हूँ ।"

"अखबार तो, अखबार वाला फेंक गया होगा । बाहर पड़ा होगा।"

सुन्दर लाल कहने के पश्चात दरवाजा खोलकर बाहर गया। दो पल बाद ही अखबार लिये वापस लौटा । दरवाजा बंद करके उसने अखबार सोहनलाल को दे दिया ।

"तुम अखबार पढ़ो उस्ताद, मैं चाय बनाकर लाता हूँ ।" सुन्दर लाल किचन की तरफ बढ़ गया ।

अखबार के मुख्य पृष्ठ पर उसकी निगाह जमकर रह गई । बड़े-बड़े अक्षरों में शंकरदास की तस्वीर के बराबर में लिखा था। फांसी पाया खतरनाक मुजरिम शंकर दास कल रात जेल से फरार हो गया । चार दिन के बाद उसे फांसी होने वाली थी।  फरारी के समय उसने एक सब-इंस्पेक्टर और दो हवलदारों को रिवाल्वर से शूट कर दिया । पुलिस डिपार्टमेंट तफ्तीश कर रहा है कि शंकरदास अपनी कोठरी से बाहर कैसे निकला और उसके पास रिवाल्वर कहां से आई । मोटे तौर पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जेल का ही कोई कर्मचारी उससे मिला हुआ था । आंखों देखे गवाहों के अनुसार कल दिन में इंस्पेक्टर पाल देशमुख उससे मिलने आया था। ध्यान रहे दो दिन पहले ही किसी ने इंस्पेक्टर पाल देशमुख के सारे परिवार को दिन-दहाड़े गोलियों से उड़ा दिया था । अब, जबकि इंस्पेक्टर पाल को अपने परिजनों की मौत के अफसोस में अपने घर पर होना चाहिये था तो वो उस समय सेंट्रल जेल में फांसी प्राप्त खतरनाक मुजरिम शंकर दास के पास क्या कर रहा था ? तफ्तीश में इस बात का भी ध्यान दिया जा रहा है कि शंकर दास की फरारी का सबन्ध इंस्पेक्टर पाल देशमुख के साथ तो नहीं है ?

"पट्ठे ने क्या किस्मत पाई है । चार दिन फांसी को रह गये और जान बचाकर भाग निकला ।" सोहनलाल शंकर दास की तस्वीर पर निगाहें जमाये बुदबुदा उठा ।

■■■

"ये रहा आज का अखबार ।" इंस्पेक्टर पाल देशमुख ने, शंकर दास की तरफ पेपर उछालते हुए कहा, "तुमसे संबंधित सारी खबर इसमें हैं और सीधे-सीधे मुझ पर भी शक किया गया है । दो बार एस०पी० ऊपरी तौर पर मुससे पूछताछ कर चुका है कि मैं जेल में तुमसे मिलने क्यों गया था ? जवाब में मैंने सिर्फ यही कहा है कि चूँकि तुम्हें मैंने पकड़ा था । मेरे पकड़ने के बाद ही तुम्हें फांसी की सजा सुनाई गई, इसलिये तुम्हें देखने की इच्छा बलवती हुई और तुमसे मिलने जेल चला आया । एस० पी० को मेरी बात पर यकीन तो नहीं हुआ, लेकिन इससे ज्यादा मुझसे पूछताछ नहीं की गई । अब मेरा डिपार्टमेंट मेरी निगरानी तब तक करता रहेगा जब तक उन्हें तसल्ली न हो जाये कि तुम्हारी फरारी में मेरा कोई हाथ नहीं ।"

उसके खामोश होते ही शंकर दास ने अखबार में छपी सारी खबर पढ़ ली । पढ़ने के बाद होठों से गहरी सांस निकल गई ।

"तुम्हारा कहना सही है इंस्पेक्टर । इस खबर के अनुसार हर कोई तुम्हें शक भरी निगाह से देखेगा ।" शंकर दास ने सिर हिलाकर कहा।

इंस्पेक्टर पाल ने जेब से रिवाल्वर और पन्द्रह हजार रुपए निकाले और शंकर दास की तरफ बढ़ाते हुए बोला ।

"ये दशमलव 38 का रिवाल्वर है । साथ में पन्द्रह हजार रुपये।  वक्त आने पर और पैसे दे दूंगा, ताकि जंग में तुम कमजोर न पड़ सको।" इंस्पेक्टर पाल ने भारी स्वर में कहा, चूँकि मैं खुद शक के दायरे में आ गया हूँ, इसलिए इससे ज्यादा तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकूँगा।"

"एक बात तो बताओ इंस्पेक्टर ।"

"क्या ?"

"तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि तुम्हारे परिवार को तीरथराम पाहवा ने मारा है ।"

"मैंने उसके कुछ आदमी पकड़कर हवालात में बंद कर दिये। पाहवा ने चेष्ठा की कि मैं उन्हें छोड़ दूँ, लेकिन मैं उसके दबाव में नहीं आया।  कुछ ही घंटों बाद मुझे किसी अंजान व्यक्ति ने फोन पर बताया कि पाहवा परिवार का खात्मा करने जा रहा है । इतना कहकर उसने फोन रख दिया । मैं सीधा पुलिस स्टेशन से घर पहुंचा तो मेरा परिवार समाप्त हो चुका था ।" इंस्पेक्टर पाल देशमुख व्याकुल हो गया । आवाज भर्रा उठी।

शंकर दास की निगाहें पुनः अखबार पर टिक गई ।

"एक बात ध्यान रखना शंकरदास, अगर तुम फिर पुलिस के हत्थे चढ़ गये, तो कभी भूलकर मेरा नाम होंठों पर न आये ।"

शंकर दास हंस पड़ा।

"बहुत भोली बातें कर रहे हो इंस्पेक्टर। तुम क्या समझते हो मैं अब पुलिस वालों के हाथ आऊंगा ?"

"खैर, ये जगह छोड़कर फौरन निकल जाओ । मेरा दोस्त नाइट शिफ्ट में काम करता है । वहां आने ही वाला होगा और मुझे कौन है। तुम पाहवा से अपनी जान बचाते हुए मेरा प्रतिशोध पूरा करोगे ।"

"जरूर ।" शंकरदास ने अखबार उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, शाम पाहवा के होटल जय गणेश में किसी ने पाहवा के आदमियों को मार दिया है । इसी खबर अखबार में यह खबर है और...।"

"मुझे मालूम है ।" इंस्पेक्टर पाल ने सिर हिलाया, "पाहवा अपने सारे काम छोड़कर, खुद को उसकी तलाश में लगा दिया है वो जो कोई भी है, बहुत ही जीदार इंसान है । उसने पाहवा के घर में घुसकर उसे तमाचा मारा है ।"

शंकर दास ने रिवाल्वर और रुपए जेब मे डाले ।

"अब तुम क्या करोगे ?"

"कहीं-न-कहीं से तो शुरुआत करुँगा ही ।" शंकर दास मुस्कुराया।

"कल दोपहर की फ्लाइट से पाहवा का लड़का किशन पाहवा विलायत वापस लौट रहा है । पाहवा उस पर अपनी जान छिड़कता है ।" इंस्पेक्टर पाल का चेहरा एकाएक चहकने लगा । जबड़े भिंच गये ।

शंकर दास ने दो पल सोचने के बाद सिर हिलाया ।

"ठीक है । शुरुआत यहीं से किए देता हूँ ।" शंकर दास का स्वर सख्त होने लगा, "तुमने मुझे जेल से निकलवा कर जिंदगी की भीख दे दी है । इसलिए मैं ये लड़ाई तुम्हारी नहीं, खुद अपनी समझकर लड़ूँगा ।

इंस्पेक्टर पाल ने होंठ भींच लिये । आंखे सुलगने लगीं।

"इस बात का अफसोस मुझे तमाम उम्र रहेगा कि मैंने तुम्हारा साथ नहीं दिया ।" इंस्पेक्टर पाल विवश-सा बोला ।

"लेकिन मुझे खुशी है कि ये लड़ाई मैं अकेला लड़ने जा रहा हूँ ।" शंकर दास हंस पड़ा, वहशी हँसी, "पहली लड़ाई भी मैंने अकेले ही लड़ी इंस्पेक्टर, हवस के बाइस दरिंदों को मैंने चुन-चुन कर मारा था ।"

"तब बात और थी । तुम्हारे पीछे न पुलिस की और न ही पाहवा जैसे किसी दादे से टकराव था । अब तुम्हें दो तरफ से खुद को बचाना होगा ।"

"मैं जा रहा हूँ इस्पेक्टर और एक बात से ध्यान से सुन लो कि मैंने किसी से नहीं बचना, बल्कि सबको मुझसे बचना है, मेरे रास्ते में जो कोई भी आयेगा, मेरे रिवाल्वर से निकली गोली उसका स्वागत करेगी । चाहे वो तीरथराम पाहवा का आदमी हो या कोई पुलिस वाला ।" शंकर दास ने उसकी आंखों में झांकते हुए ठंडे स्वर में कहा ।

"अब एक आखिरी बात बता दो कि तुम्हारे इंतकाम की सीमा कहां खत्म होती है ?"

"तीरथराम पाहवा के कत्ल पर ।"

"मैं कोशिश करूंगा इंस्पेक्टर कि इस मुकाम तक पहुंच सकूँ ?" शंकर दास ने दांत भींचकर कहा और लंबे-लंबे डग भरने के बाद दरवाजे के पास पहुँचा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।

■■■

सोहनलाल सारा दिन कमरे में बंद पड़ा रहा । खामखाह बाहर निकलकर जान का खतरा मोल नहीं लेना चाहता था । तीरथ राम पाहवा के बारे में सोच-समझकर उसके मन में उसके प्रति नफरत-सी भरती जा रही थी । उसे दरिंदा लग रहा था जो सारे शहर पर छाया बैठा है । हर कोई उसे सहमा हुआ है । सबके दिलों पर पाहवा नाम का 'हव्वा' अपनी जगह बनाए हुए है।

अगर पाहवा ही मर जाये तो ? ये ठीक है कि उसकी जगह पर कोई दूसरा आ जायेगा, परन्तु कुछ देर के लिये हर कोई खौफ- मुक्त अवश्य हो जायेगा, और ये बात जगत विदित हो जायेगी कि इन दादे को भी कोई मार सकता है 

उसे तलाश करने के लिए शहर में हर जगह नाकेबंदी कर दी गई थी । वो जानता था कि शहर से फरार होना असंभव है । लेकिन इस बात से भी भलीभांति वाकिफ था कि ज्यादा देर तक इस तरह कमरे में बंद भी नहीं रह पायेगा।

अंधेरा होने पर उसने लाइट ऑन नहीं की । करीब दस बजे सुन्दर लाल वापस लौटा, तो उसने रोशनी की ।

"दिन कैसा बीता उस्ताद ?"

"बोगस ।" सोहनलाल ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा, "सारा दिन बंद कमरे में गुजार देना कहां की शराफत है । तुम बाहर की खबर सुनाओ ।"

"बाहर का मामला गर्म है । हर किसी की जुबान पर तुम्हारा ही नाम है । पाहवा ने पुलिस वालों को भी तुम्हारी खोज में लगा दिया है ।"

"पुलिस वालों को ?"

"हाँ। सरकारी मशीनरी पाहवा की उंगलियों पर नाचती है ।"

सोहनलाल के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान थिरक उठी। 

"कोई और खबर ?"

"खास नहीं सिवाय इसके कि कल पाहवा का लड़का किशन पाहवा, विलायत से लौट रहा है ।" सुन्दर लाल सिगरेट  सुलगाकर बैठ गया ।

"पाहवा का लड़का । कितनी उम्र होगी उसकी ?"

"अठारह, उन्नीस के दरम्यान ।"

"सुन्दर लाल की आंखों में चमक आ गई  ।

"सुन्दर लाल । पाहवा अपने लड़के को चाहता तो होगा ?"

"बहुत ।"

"अगर वो मर जाये तो पाहवा पर क्या गुजरेगी ?"

सुन्दर लाल उछलकर खड़ा हो गया ।

"क्या कहा उस्ताद ?" उसका चेहरा फक्क पड़ गया।

"किशन पाहवा की हत्या कर दी जाये, तो तीरथराम पाहवा की क्या हालत होगी ?"

"उस्ताद...तुम बहुत खतरनाक बात कर रहे हो ।"

"मेरी बात का जवाब दो ।"

"व-वो पागल हो जायेगा, सारे शहर को आग लगा देगा ।" सुन्दर लाल के गले में कांटे चुभने लगे । आंखें फटकर, दहशत से फैल रही थीं ।

सोहनलाल हौले से जहरीली हंसी हंस पड़ा ।

"तब तो तीरथराम पाहवा के बेटे को मौत देना बहुत जरूरी है ।

"वो...वो तुम्हें छोड़ेगा नहीं उस्ताद।"

"अब वो कौन-सा मुझे छोड़ने वाला है ।" सोहनलाल कहर से बोला, "लेकिन मरने से पहले मैं दुश्मन के हाथ-पांव अवश्य दौड़ाना चाहता हूं ।"

"उस्ताद तुम बहुत बढ़ाने की कोशिश कर रहे हो ।" सुन्दर लाल का चेहरा हल्दी के समान पीला पड़ चुका था ।

"तुम नहीं समझोगे सुन्दर लाल । हर इंसान के अपने उसूल होते हैं। मेरी आदत है कि बिना वजह, मैं किसी से लड़ता नहीं । खून-खराबे से नफरत है मुझे । अगर उन निर्दोष दीपक और रजनी को पाहवा के आदमी ने नहीं मारा होता तो, मेरी पाहवा से कोई दुश्मनी नहीं होनी थी । जिसने उन दोनों को मारा, मैंने उसे मार दिया । बीच में एक-दो और रगड़े गये, खैर कोई बात नहीं, बात को यहीं खत्म हो जाना चाहिये था, परन्तु उसको शायद अपनी हुकूमत पर घमंड है । उसने मुझ पर इनाम घोषित कर दिये। फलस्वरूप शहर का हर दादा मुझे तलाश कर रहा है । पुलिस को मेरे पीछे लगा दिया और खुद भी अपने आदमियों के सामने मेरी तलाश में लग गया । यानी कि मेरा बचना हर हाल में कठिन है । सिर्फ एक ही सूरत है बचने की कि दुश्मन के हाथ-पांव तोड़ दूँ।  ताकि उसका ध्यान मरहम-पट्टी की तरफ हो जाये और मैं बच जाऊं । उसे इतना ज्यादा बौखला दूँ कि वो ढंग से सोच न सके । यही मेरे लिए फायदे की बात है।  इसी कारण अब मैं पाहवा को ज्यादा-से-ज्यादा नुकसान पहुंचाऊंगा ।"

सुंदरलाल ने सूख रहे गले को थूक से तर किया।

"अगर तुम्हारा पत्ता साफ हो गया तो ?"

"किस्मत अपनी-अपनी ।" सोहनलाल तरह हंस पड़ा ।

"पाहवा का पूरा गैंग है । शहर का हर दादा उसके साथ है और तुम अकेले हो उस्ताद।  वहां तुम्हें चींटी की तरह मसल देगा । क्यों मौत के कुएं में छलांग लगाने जा रहे हो । कुछ दिन यही छिपे रहो, मैं तुम्हें शहर से बाहर निकलवाने का प्रबंध करता हूँ ।"

"मुझे लड़ना पसंद नहीं और लड़ाई होने पर भागना पसंद नहीं ।" सोहनलाल ने उसकी आंखों में झांककर सर्द स्वर में कहा ।

सुन्दर लाल सूखे होंठों पर जीभ फेरने लगा।

■■■

ढाई बजे दोपहर के उस प्लेन एयरपोर्ट पर लैंड करना था । जिसमें किशन पाहवा आ रहा था । अब एक बज चुका था । सोहनलाल एयरपोर्ट की लाबी में घूम रहा था । चेहरे पर मूंछ-दाढ़ी लगा रखी थी जो कि बहुत अजीब-सी लग रही थी । परन्तु चेहरा इस कदर छिप गया था कि पाहवा का कोई आदमी एक निगाह में उसे नहीं पहचान सकता था।  इस बात की सोहनलाल को तसल्ली थी ।

अभी तक पाहवा का कोई आदमी एयरपोर्ट नहीं पहुंचा था ।

खुद इसलिये पहले आ गया था कि अगर पाहवा कोई खास इंतजाम कर रहा है, तो वो उसकी निगाह में रहे । खैर बच गया था । सोहनलाल अब सावधानी से टहलता हुआ चारों तरफ निगाह रख रहा था । अब सिर्फ एक घंटा प्लेन आने का रह गया । उसके ख्याल से आधे घंटे तक पाहवा को एयरपोर्ट पर होना चाहिये था ।

एकाएक सोहनलाल की निगाह पीछे वाली कुर्सी की कतार में कुर्सी पर बैठे एक व्यक्ति पर जा टिकी । पहले भी उस पर तीन- चार बार निगाह जा चुकी थी । परन्तु उसे ध्यान पूर्वक देखने पर विवश हो गया था। न जाने क्यों उसे लग रहा था कि इसे कहीं देखा है । उसकी उम्र का ठीक से अंदाजा लगाना कठिन था । सिर के बाल सफेद, काले दोनों थे । बालों की अपेक्षा चेहरा कुछ ज्यादा ही तंदुरुस्त लग रहा था । लंबाई सामान्य प्रतीत हो रही थी । आंखों पर नजर का मोटा-सा चश्मा मौजूद था । सबसे ज्यादा सोहनलाल को ये बात खटक रही थी कि वो चश्मे के शीशों के बीच में से उस देखने के बजाय, चश्मा नीचे करके नंगी आंखों से देख रहा था।

लाख सोचने पर भी सोहनलाल को ध्यान न आया कि से कहां देखा है । अभी प्लेन आने में वक्त था । सोहनलाल वहां से हिला और लापरवाही दर्शाता हुआ उसके पास खाली कुर्सी पर जा बैठा ।

चश्मे वाले ने निगाहें घुमाकर उसे देखा, फिर मुंह दूसरी तरफ फेर लिया । एयरपोर्ट की लाबी पर का शांत वातावरण, मस्तिष्क को बहुत अच्छा लग रहा था । सोहनलाल ने कुछ दूर बैठी अंग्रेज युवा लड़की को देखा जो छोटी-सी स्कर्ट पहने बैठी थी। पांवों से लेकर काफी ऊपर का हिस्सा हवादार हो रहा था । उस लड़की का मुआयना करके सोहनलाल ने सिगरेट सुलगाई और चश्मे वाले की ओर देखकर हौले से बोला ।

"मैंने तुम्हें पहले कभी देखा है ?"

चश्मे वाले ने हाथ की उंगली से नाक को रगड़ा और गर्दन घुमाकर चश्मे के ऊपर से सोहनलाल को घूरा ।

"तुमने मुझे देखा है ?" चश्मे वाले ने स्थिर स्वर में कहा ।

"हाँ ।"

"कहाँ ?"

"याद नहीं आ रहा ।"

"तुम कभी फिनलैंड गये हो ?" चश्मे वाला बोला ।

"नहीं ।"

"तो फिर तुमने मुझे कहीं नहीं देखा । मैं फिनलैंड का रहने वाला हूं और जिंदगी में पहली बार हिन्दुस्तान आया हूँ ।"

"बहुत खूब ।" सोहनलाल कटुता से बोला, "तुम फिनलैंड के रहने वाले हो और हिन्दुस्तान पहली बार आये हो, जबकि हिन्दी बढ़िया बोल रहे हो और लहजे में पंजाबी का पुट भी है ।"

चश्मे वाले ने उसे घूरा और फिर मुस्कुराकर बोला।

"शायद तुम नहीं जानते कि फिनलैंड में बहुत ज्यादा पंजाबी बसे हुए हैं और मैंने वहीं से पंजाबी भाषा सीखी है । कभी फिनलैंड आओगे, तो सब कुछ समझ जाओगे ।"

"हो सकता है ।" सोहनलाल की आंखों में व्यंग का भाव था,

"वैसे या तुम्हारा फिनलैंड अमृतसर या गुरदासपुर के आसपास तो नहीं पड़ता ?"

"मुझे लगता है तुम भी फिनलैंड के रहने वाले हो ।" चश्मे वाले का स्वर एकाएक सर्द हो गया, "क्योंकि तुम्हारी दाढ़ी में कुछ गड़बड़ लग रही है । कितने की खरीदी है यह ?"

"अठारह रुपए की, लेकिन तुमने चश्मा ऐसे ही खरीद लिया । तुम्हारी निगाह तो बिना चश्मे के ही बहुत अच्छी है । मैं देख रहा हूँ, तुमने काफी देर से चश्मे का इस्तेमाल नहीं किया, बेहतर है इसे किसी गरीब को दे दो । उसका तो भला होगा, अंधे को दो  आंखें मिल जायेंगी ।"

चश्मे वाले ने सोहनलाल को खतरनाक निगाहों से देखा ।

"कौन हो तुम ?"

"अपनी कमीज का एक बटन और बंद कर लो, इससे 38 की रिवाल्वर नहीं दिखाई देगी, जो तुम्हारी पैंट में फंसी दिखाई दे रही है।"

चश्मे वाले ने फौरन कमीज का बटन बंद कर लिया ।

दोनों कई पल एक दूसरे को देखते रहे ।

"तुम्हारा नाम क्या है ?" चश्मे वाले ने शांत स्वर में पूछा 

"सोहनलाल कह लो ।"

"यानी असली नहीं ?"

"नहीं, इस शहर के लोग मुझे इसी नाम से जानते हैं ।" सोहनलाल मुस्कुराया।

"लगता है, कुछ ज्यादा ही पहुंची हुई चीज हो ।" चश्मे वाला बड़बड़ाया, फिर बोला, "धन्धा क्या करते हो ?"

"तुम तो मेरी जन्मपत्री बनाने की कोशिश कर रहे हो ।"

सोहनलाल ने सिगरेट का गहरा कश लिया, जरा अपनी कुंडली के बारे में भी बताओ ।"

चश्मे वाले ने पहलू बदला और आस-पास देखने लगा ।

"मेरे बारे में जानने से तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा ।"

"इसका मतलब मेरे बारे में जानकर तुम्हें फायदा हुआ है । तभी तो तुम मेरे बारे में पूछ रहे हो ।" सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा ।

चश्मे वाला खामोश रहा ।

"जान-बूझकर तुमने आंखों पर चश्मा चढ़ा रखा है ताकि चेहरे में कुछ बदलाव नजर आएं। नंगी रिवाल्वर पैंट में फँसाये घूम रहे हो । दूसरे तुम्हें देखकर मुझे शुरू से ही लग रहा है, पहले भी तुम्हें कहीं देख चुका हूं, एक मिनट तुम जरा अपना चश्मा उतारोगे, हो सकता है फिर तुम्हारे बारे में पूछने की कोई जरूरत ही न महसूस हो ।" कहने के साथ ही सोहनलाल ने उसकी नाक पर लटक रहा मोटा-सा चश्मा हाथ बढ़ाकर फौरन उतार लिया ।

बिना चश्मे के उसका चेहरा देखते ही सोहनलाल चौंका । इसमें कोई शक नहीं था कि इस चश्मे में उसका सारा चेहरा ही बदल डाला था । इसी कारण सोहनलाल जैसा इंसान भी, पहचान न पा रहा था कि उसे कहां देखा है ?

वो शंकर दास था । जिसकी तस्वीर कल सुबह उसने अखबार में देखी थी । शंकर दास ने हाथ बढ़ाकर उसके हाथों से चश्मा लिया और पुनः आंखों पर चढ़ा लिया । क्रोध के भाव उसके चेहरे पर छा चुके थे ।

"मानना पड़ेगा बहुत किस्मत वाले हो शंकर दास, जो फांसी लगने के चार दिन पूर्व जेल से फरार हो गये ।" सोहनलाल हौले से हँसा ।

"तो तुमने मुझे पहचान लिया ?" शंकर दास ने डर भरे स्वर में बोला ।

"हाँ ।" कल अखबार में तुम्हारी तस्वीर देखी थी । वैसे हैरानी की बात है कि रिवॉल्वर लिए एयरपोर्ट पर क्या कर रहे हो ? तुम्हें तो इस शहर से कहीं दूर होना चाहिए था ।"

"अब तुम मेरे बारे में पुलिस को इन्फॉर्म करोगे ?" शंकर दास का स्वर ठंडा था।

"नहीं, ऐसा मेरा कोई इरादा नहीं । क्योंकि पुलिस को मेरी तलाश है । तुम अपने बारे में बताने से हिचक रहे हो शायद इसलिये कि मैं गद्दारी करके पुलिस को न बता दूँ ।" सोहनलाल हँसा--- "मैं तुम्हें अपने बारे में बताता हूँ, इससे शायद तुम्हें तसल्ली मिलेगी कि मैं पुलिस के पास हरगिज़ नहीं जा सकता । कल अखबार के पहले पेज पर एक खबर तुम्हारे जेल से फरार होने की थी और दूसरी खबर मुझसे संबंधित थी।  मैंने इस शहर के सबसे बड़े दादा तीरथराम पाहवा के तीन आदमियों को गोलियों से उड़ा दिया था ।"

शंकर लाल के चेहरे पर छाये भाव बदले।

"तुमने पाहवा के आदमियों को उसके होटल में घुसकर मारा था ।"

"हाँ और अब पाहवा के लड़के किशन पाहवा का काम तमाम करने आया हूं जो कुछ देर बाद आने वाला फ्लाइट से, विलायत से लौट रहा है। मैंने सब कुछ तुम्हें इसलिए बताया कि मुझे किसी का खौफ नहीं । पुलिस का नहीं, साहब का नहीं, तुम्हारा नहीं । अब तो कहो क्या कहते हो ?"

शंकर दास के चेहरे पर अजीब से भाव छा चुके थे ।

"त-तुम अब किशन पाहवा को मारने आये हो ?" उसने हैरानी से पूछा ।

"हाँ ।" एकाएक सोहनलाल की आंखें सिकुड़ गई, "वो तुम्हारा कोई सगे वाला तो नहीं लगता ?"

शंकर दास के होंठों पर मुस्कुराहट खेल गई ।

"मैं भी यहां पर किशन पाहवा की हत्या करने आया हूँ ?"

"क्या ?" सोहनलाल को अपना गला खुश्क होता हुआ महसूस हुआ ।

"हाँ, हम दोनों एक ही काम करने आये हैं । क्यों न इस काम को मिलकर किया जाये । शंकर दास अपनेपन में बोला ।

"मुझे कोई एतराज नहीं लेकिन तुम्हारी पाहवा से क्या दुश्मनी है कि उसके लड़के की हत्या करने पर क्यों तुले हुए हो ?"

"सब कुछ अभी मत पूछो । शंकर दास हंसा--- "किशन पाहवा की छुट्टी करने के बाद आराम से कहीं बैठेंगे, फिर बात करेंगे । आजकल कहां रह रहे हो ?"

सोहन लाल ने उसे सुन्दर लाल का पता बता दिया ।

"ठीक है । काम खत्म होने पर, मैं वहीं पहुंच जाऊंगा।  मेरे पास कहीं भी छिपने की जगह नहीं हैं ?" शंकर दास ने प्रश्न भरी नजरों से उसे देखा ।

सोहनलाल ने क्षण भर सोचा फिर सिर हिलाकर बोला।

"अच्छी बात है, आ जाना, लेकिन सावधानी के साथ, मैं नहीं चाहता कि आते समय, अपने साथ किसी प्रकार की मुसीबत लेकर आओ ।"

"निश्चिंत रहो ।" शंकर दास ने पूर्णतया विश्वास से कहा, "मेरे कारण तुम किसी खतरे में नहीं पड़ोगे।  अब हम दोनों, एक से दो हो गये हैं । जिस काम को करने आये हैं, उसे बखूबी अंजाम दे सकते हैं।  वक्त बहुत कम रह गया है । बेहतर होगा हम इस तरफ ध्यान दें कि पाहवा के लड़के से कैसे निपटना है, वैसे मेरा ख्याल है कि अपने प्लेन आने समय पाहवा के आदमी एयरपोर्ट पर फैल चुके होंगे।"

"ठीक कह रहे हो । मुझे शक है पाहवा भी मौजूद होगा । आओ कैंटीन में चलते हैं । बाकी बातें वहीं करेंगे ।" सोहनलाल उठ खड़ा हुआ ।

दोनों खतरनाक काम करने अकेले आये थे । अब दोनों को एक-दूसरे का सहारा था । उनके हौसले बुलंद हो चुके थे।  ।

■■■

वो छः कारें थीं। पांच में ड्राइवर को छोड़कर हर कार में छः-छः व्यक्ति मौजूद थे । छठी कार में तीरथराम और महेश चन्द थे ।  भीतर ड्राइवर, वर्दी पहने मौजूद था।  पाहवा के चेहरे पर, अपने लड़के से मिलने के कारण, खुशी फूट रही थी। 

कारें एयरपोर्ट पर रुकीं।  सबको उतारकर ड्राइवर कारें आगे बढ़ाते ले गये । अब तीरथराम पाहवा के साथ इक्कीस व्यक्ति थे, हथियारबंद, वक्त आने पर अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार ।

महेश चन्द तीसरे व्यक्ति को एक-तरफ ले गया और पांच मिनट तक उन्हें कुछ समझाता रहा। तब तक तीरथ राम पाहवा ने सिगार सुलगाकर कश लेने आरंभ कर दिये थे।

महेश चन्द वापस आ गया । तीनों आदमी एयरपोर्ट की इमारत में प्रवेश कर चुके थे । पाहवा ने कलाई में बंधी घड़ी में वक्त देखा ।

"प्लेन आने में कितना समय बाकी है ?"

"बारह मिनट सर ।"

"अंदर चलो ।"

तीरथराम पाहवा, महेश के साथ भीतर प्रवेश कर गया ।

■■■

प्लेन पच्चीस मिनट लेट आया । आते ही एयरपोर्ट पर गर्मा-गरमी-सी छा गई। तीरथराम पाहवा महेश चंद के साथ एयरपोर्ट के काफी भीतर रनवे के पास मौजूद था । साथ में इंस्पेक्टर 'ऑन' ड्यूटी सुरेश यादव था । वो पाहवा की चमचागिरी करने का भरसक प्रयत्न कर रहा था । अगर इस समय उसका ऑफिसर भी आ जाता तो वो उसकी परवाह न करता।

प्लेन रनवे पर कब का रुक चुका था । यात्री प्लेन से निकलकर बस में सवार हो रहे थे । सामान लाने वाली गाड़ियां तेजी से अपना काम कर रही थीं ।

"जाओ इंस्पेक्टर ।" यात्रियों से भरी बस को आता देखकर बोला---- "हमारा बेटा अगर बस में है तो उसे यहीं ले आओ। अन्यथा इंतजार करो और जब आये तो उसे यहीं ले आना ।"

"जी हाँ-जी हाँ, मैं अभी लेकर आता हूँ ।" इंस्पेक्टर ने कहा और फौरन उस तरफ रवाना हो गया । जिस ओर बस को आकर रुकना था । धूप में प्लेन, चांदी के समान चमक रहा था।

पहली बस में ही किशन पाहवा था । इंस्पेक्टर उसे ले आया । किशन अपने पिता को देखते ही भागा और प्रसन्नता से चिल्लाता हुआ पाहवा से आ लिपटा।  पाहवा ने उसे जोर से भींच लिया । बदन खुशी से कांपने लगा 

"कैसे हो किशन ?"

"अच्छा हूँ पापा । आप कुछ कमजोर हो गये हैं ।"

"कमजोर ।" पाहवा ने उसे अपने से अलग किया और उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा, "बेटे उम्र ढलती है तो इंसान कमजोर हो ही जाता है । तुम तो बहुत बड़े हो गये हो ?"

"यस पापा । पूरे उन्नीस का, पिछले महीने हुआ ।" किशन ने छाती फुलाकर कहा और पाहवा ने हंसकर उसकी पीठ पर हाथ मारा । फिर वो पास खड़े इंस्पेक्टर से बोला, इंस्पेक्टर हमारे बेटे का सामान बाहर पहुंचा दो, वहां से हमारा आदमी तुमसे ले लेगा ।"

"ओ०के० सर ।" इंस्पेक्टर ने कहा और फुर्ती से एक तरफ बढ़ गया ।

किशन पाहवा, महेश से बोला ।

"हैलो मिस्टर महेश, हमें भूल गये ?"

"नहीं किशन साहब, मैं तो आपके फुर्सत पाने का इंतजार कर रहा था ।" मुस्कुराकर कहते हुए, महेश ने किशन से हाथ मिलाया ।

"कम ऑन, होटल चलते हैं । मैंने आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं।" किशन तीरथराम पाहवा की कमर में हाथ डालकर बोला ।

"मैं भी यही कहने वाला था ।" पाहवा हँसा, "तुम्हारा सामान होटल पहुंच जायेगा चलो ।"

बाप-बेटे दूसरे की कमर में हाथ डाले आगे बढ़ गये । महेश उनके पीछे हो लिया। भीतरी हिस्से को पार करके वो, एयरपोर्ट की लाबी में आ पहुंचे । किसी ने उन्हें रोकने की चेष्टा न की।  क्योंकि हर कोई जानता था कि वो तीरथराम पाहवा है । लाबी में पाहवा के तीस कमाण्डो इस अंदाज में खड़े थे कि पाहवा पर अचानक होने वाले, हमले को वो पलक झपकते ही संभाल ले।  हर कमाण्डो इस समय चीते से भी ज्यादा फुर्तीला नजर आ रहा था । तीरथराम पाहवा ने महेश चन्द से कहा ।

"हमारी कार सामने पहुंचा दो ।"

"यस सर, मैंने आदेश पहले ही दे दिया है । कार आने ही वाली होगी।"

महेश चन्द ने तुरन्त सिर हिलाकर कहा ।

"पापा, पांच साल पहले एयरपोर्ट इतना खूबसूरत नहीं था जितना अब हो गया है ।" किशन ने मुस्कुराकर चारों तरफ देखते हुए कहा ।

उत्तर में तीरथराम पाहवा मुस्कुराकर रह गया ।

तभी सामने से एक कमाण्डो आया और महेश चन्द को इशारा किया ।

"सर ।" इशारा पाते ही महेश चन्द बोला, "कार बाहर गई है आइए।"

पाहवा ने सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए अपने बेटे को देखा ।

"श्योर पापा, आई एम रैडी । कम ऑन ।" किशन ने पाहवा की निगाहों का मतलब समझकर, हंसते हुए कहा ।

"आओ ।" दोनों पुनः एक-दूसरे की कमर में बाहें डालकर आगे बढ़े ।

"अपने देश का मजा ही कुछ और है, इंग्लैंड में...।

तभी एकाएक कैसे वहां तूफान आ गया । वहां मौजूद हर व्यक्ति अपनी जगह खड़ा, क्षण भर के लिये स्तब्ध-सा रह गया । एक तरफ से सोहनलाल निकलकर सामने आया और किशन पाहवा पर झपट पड़ा और रिवाल्वर निकालकर किशन की कनपटी पर रख दिया।

अब सीन ये था कि सोहनलाल की बाई बाँह, सांप की भांति किशन के पेट के गिर्द कसी हुई थी और दायें हाथ में पकड़ी रिवाल्वर उसकी कनपटी से टिका था । चंद कदम पर पाहवा फटी-फटी आंखों से ये सब देख रहा था।  अन्य की हालत भी उससे जुदा न थी ।

कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतने तगड़े घेराव के बीच कभी ऐसा कुछ भी हो सकता है ।

"कौन हो तुम ?" तीरथराम पाहवा ने फौरन खुद को संयत किया--- "इसे छोड़ दो, तुम्हें जो बात करनी हो, मुझसे कहो।"

"मुझे इसी से बात करनी है पाहवा ।" सोहनलाल जहरीले स्वर में बोला ।

उसकी आवाज पहचानते ही पाहवा चौंका ।

"स-सोहनलाल ?"

"हाँ । मैं सोहनलाल ही हूँ । बम्बई का मशहूर गैंगस्टर । अच्छा हुआ तुमने पहचान लिया, वरना मुझे अपने गाल पर लगी दाढ़ी उतारकर, तुम्हें अपने दर्शन देने पड़ते ।" सोहनलाल ने कटुतापूर्ण स्वर में कहा, "अब कैसे मिजाज हैं । सुना है तुमने मुझे तलाश करने के लिये, पुलिस को मेरे पीछे डाल दिया है।  मुझ पर लाख रुपये का मोटा इनाम लगा दिया । जिसमें शहर भर के सारे दादा खाना-पीना छोड़ कर मेरे पीछे लग गये।  यह भी सुना है कि तुमने अपने सारे काम छोड़ कर, पहला काम मेरी तलाश का सोचा है ।" अब मैं तुम्हारे सामने हूँ । पकड़ लो मुझे।"

तीरथराम पाहवा सिर से पांव तक जल उठा ।

"मेरे बेटे को छोड़ दो सोहनलाल ।"

"तुम ।"

तभी चंद कदम दूर खड़े कमाण्डो ने मौका देखकर छलांग लगाई और उसकी रिवाल्वर वाली कलाई दोनों हाथ से पकड़ कर फर्श की तरफ कर दी । ये वार अचानक हो जाने की वजह से सोहनलाल के शरीर पर झटका लगा, किशन उसकी जकड़ पर छूटकर फर्श पर जा गिरा और सकते की-सी हालत में वहीं पड़ा रहा।

चूँकि कमाण्डो उसकी कलाई दोनों हाथों से पकड़े, फर्श की ओर धकेल रहा था इसलिए कमाण्डो के साथ-साथ उसे भी सहायता के लिये  झुकना पड़ा । इससे पहले कि कोई और कमाण्डो की सहायता के लिए आगे बढ़ता । तेज गूंज के साथ फायर हुआ और गोली कमाण्डो की खोपड़ी में जा लगी । वो उछला और नीचे जा गिरा । फर्श खून से लाल होने लगा ।

आजाद होते ही सोहनलाल ने चीते की भांति झपट्टा मारा और किशन को पुनः अपनी गिरफ्त में ले लिया 

सबने चौंककर देखा । परन्तु गोली चलाने वाला कहीं नजर न आया । यह सब-कुछ चंद सैकिंडो में हो गया था । सामने खून उगल रही कमाण्डो की लाश पड़ी थी । खोपड़ी खील-खील हो चुकी थी ।

वहां छाये भयानक सन्नाटे को, सोहनलाल ने अपने शोर से भंग किया ।

"तीरथराम पाहवा । तुम कुल मिलाकर तैंतीस हो, एक तुम, एक तुम्हारा बेटा, जो कि इस समय न होने के बराबर है । तीसरा तुम्हारा वफादार कुत्ता महेश चन्द और रेबारियों की भांति दिखाई दे रहे तीस कमाण्डो । इसमें कोई दो राय नहीं कि ये सब हथियारबंद होंगे।  लेकिन इस समय तुम तीस के तीस घिर चुके हो । मेरे साथ बावन आदमी हैं एक मैं, एक वो जिसने फायर किया और पचास अन्य। सब रिवाल्वरों और हथगोला से लैस है । अगर तुमने अपने बेटे को बचाने के लिये किसी चालाकी का इस्तेमाल किया तो, मेरे आदमी पूरे एयरपोर्ट को उड़ा देंगे, और पहला निशाना, तुम्हारा बेटा और तुम होंगे।  उन्हें मेरी परवाह नहीं होगी कि हथगोलों से मेंरे कितने टुकड़े होते हैं । यानी हमारा मकसद तुम्हें सलामत छोड़ना नहीं है । मैं या मेरा हर आदमी, यहां कफन बांधकर आया है।"

एयरपोर्ट की लाबी में मौत का सन्नाटा छा गया । वहां मौजूद सिक्योरिटी आस-पास घेराव डालने लगी । सोहनलाल की बातें वो भी सुन चुके थे । सोहनलाल को पकड़ने से अहम काम, उनके लिये किशन पाहवा को बचाने का था । पाहवा के मामले में वो, बिना इजाजत मनमानी नहीं कर सकते थे । ऐसा करने पर, पाहवा उनकी बोटियाँ-बोटियाँ कर देता । सिक्योरिटी ऑफिसर ने सारे सिक्योरिटी को सावधान किया कि तभी कदम उठाया जाये जब, पाहवा के लड़के को किसी प्रकार का खतरा न हो।

एयरपोर्ट के रेडियो रूम में ऑपरेटर, अपने ऑफिसरों को एयरपोर्ट पर हो रहे हंगामे के बारे में सूचित कर रहा था ।

कुछ देर बाद ही शहर भर की पुलिस गाड़ियाँ और पुलिस डिपार्टमेंट के बड़े-बड़े ओहदेदार एयरपोर्ट की ओर दौड़ रहे थे ।

सारे शहर में हंगामा मच चुका था।  जंगल में आग की समान ये खबर फैल चुकी थी कि एयरपोर्ट पर किसी ने पाहवा के लड़के को पकड़ लिया है और पाहवा उसका बचाव करने में असमर्थ है ।

सोहनलाल के चेहरे पर, जहान भर की खूंखारता के भाव छाए हुए थे ।

तभी एक फायर और हुआ, एक चीख गूंजी, फिर से सन्नाटा छा गया ।

सबने चौंककर देखा । इंस्पेक्टर सुरेश यादव, जिसे कि पाहवा ने सामान लाने का काम सौंपा था, वो फर्श पर पड़ा तड़प रहा था।  छाती से खून बह रहा था । पास ही उसके रिवाल्वर पड़ी हुई थी । कदाचित वो रिवाल्वर निकालकर, सोहनलाल पर फायर करने वाला होगा कि गोली उसे जा लगी ।

जब कमाण्डो मरा तो फायर किसी और दिशा में हुआ था और अब इंस्पेक्टर यादव पर फायर किसी और दिशा में हुआ था । इस बार शंकर दास किसी की निगाहों से बच न सका।  वह चालीस फीट ऊंचे, रैलिंग पर रिवाल्वर थामें सावधानी से खड़ा था ।

सबकी निगाह उस पर थी ।

"खबरदार, मेरे किसी भी आदमी पर फायर करने का मतलब किशन पाहवा की मौत है । सुना तुमने तीरथराम पाहवा, सबको खबर कर दो कि कोई भी उस्तादी दिखाने की फिक्र में न पड़े। वरना हमेशा के लिये अपने बेटे को खो बैठोगे ।"

मौत का तीखा सन्नाटा वहां छा गया ।

"कोई भी, हरकत नहीं करेगा ।" पाहवा ने गला फाड़कर कहा फिर सोहनलाल से बोला, "अब तुम क्या चाहते हो ?"

"मैं तुम्हारे लड़के के साथ यहां से निकलना चाहता हूँ।  बाहर तुम्हारी कार खड़ी है । मुझे कार तक पहुंचा दो ।"

"चलो ।" पाहवा ने कहा।

सोहनलाल, किशन को गिरफ्त में लिये, रिवाल्वर उसकी कनपटी से सटाये, सावधानी से, धीरे-धीरे आगे बढ़ा।  तीरथ राम पाहवा बॉडीगार्ड के तौर पर उसके साथ था ।

"मेरे बेटे को तुम क्यों ले जा रहे हो ?" तीरथराम पाहवा बोला ।

"तफरीह के लिये ।" सोहनलाल गुर्राया, "खामोश रहो, मैं बातें करके लापरवाह नहीं होना चाहता ।"

अजीब-सा खौफनाक वातावरण वहां फैल चुका था । वहां मौजूद आने-जाने वाले यात्री भी सदमे से दीवारों में चिपके हुए थे ।

सोहनलाल ने तिरछी निगाहों से देखा।  गैलरी पर शंकरदास नहीं था ।

वो बाहर कार तक आ गया । सोहनलाल ने किशन को कार में धकेलकर, उसे स्टेयरिंग पर बैठने को कहा और खुद पिछली सीट पर जा बैठा, रिवाल्वर पुनः उसकी खोपड़ी से सटा दी ।

किशन पाहवा का बदन पसीना-पसीना हो रहा था । कटोरियों से भयभीत आंखें इधर-उधर सरक रही थी । गले में जाने कहां से निकलकर, बड़ा-सा कांटा चुभने लगा था । स्टेयरिंग पर जमी उंगलियां पसीने से चिपचिपा रही थीं ।

सोहनलाल ने गर्दन घुमाकर, कार की खिड़की के पास खड़े पाहवा को देखा, जिसके जबड़े कठोरता से भिंचे हुए थे । आंखें सुर्ख हो रही थीं।

"पाहवा, कभी-कभी चींटी भी हाथी को मार देती है । छोटा-सा कारण भी किसी जंग में हार बन जाता है ।" सोहनलाल ने वहशी स्वर में कहा, "मैं तुमसे कहीं ज्यादा खतरनाक हूं अगर इसका एहसास तुम्हें अब नहीं तो बहुत जल्दी हो जायेगा । उस वक्त को याद करो जब मैं शहर छोड़कर भागने की चेष्टा में था और तुम्हारे आदमियों के कारण भाग नहीं सका । अगर भाग जाता तो तुम्हें आज यह दिन न देखना पड़ता । उन दो निर्दोष दीपक और रजनी को याद करो, तुम्हारे आदमी ने दीपक को गोली से उड़ा दिया और रजनी से बलात्कार किया फिर उसकी हत्या की। दीपक भी तुम जैसे किसी बाप का बेटा था । रजनी भी ऐसे ही किसी बाप की औलाद थी । आज तक तुमने बहुतों का क़त्ल किया । बिछड़ने की पीड़ा क्या होती है यह अभी तुम नहीं समझोगे।  कुछ दिन पहले ही तुमने एक इंस्पेक्टर के पूरे परिवार को उड़ा दिया । क्योंकि वो तुम्हारे आदमियों को छोड़ नहीं रहा था ।" सोहनलाल की आवाज में वहशीपन आ चुका था--- "इंसान का किया उसके सामने अवश्य आता है पाहवा । मुझे विश्वास है कि तुम्हारे सामने भी आयेगा, अब तुम्हारा बेटा कार स्टार्ट करने वाला है । याद रखो मैंने किसी भी पुलिस कार अथवा तेरी कार को अपने पीछे आते देखा तो तेरे बेटे की हत्या कर दूंगा।"

तीरथराम पाहवा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"नहीं, तुम्हारे पीछे कोई नहीं आयेगा, जरा रुको, मैं पुलिस वालों से बात कर लूं ।" कहने के साथ ही पाहवा वहां से हिला और कुछ दूर खड़े पुलिस ऑफिसर की तरफ बढ़ गया ।

पुलिस वालों से एयरपोर्ट का बाहरी आहता भर चुका था । हर जीप में मौजूद वायरलैस सेट ऑन थे।

तभी जाने कहां से निकलकर शंकरदास आया । दरवाजा खोलकर किशन की बगल में जा बैठा । उसके हाथ में रिवाल्वर थमी हुई थी । चेहरे पर खतरनाक भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे । आंखों पर पड़ा नजर का चश्मा अब नहीं था । कदाचित वह उसने वक्ती तौर पर इसलिये पहन रखा था कि वक्त से पहले कोई उसकी सूरत पहचान कर मुसीबत खड़ी न कर दे ।

किशन, शंकरदास को देखकर और भी सहम गया ।

तभी तीरथराम पाहवा वापस लौटा । पास आते ही उसकी निगाह शंकर दास पर जम गई । क्षण भर उसे देखता रह गया।

"तुम, शंकरदास हो, परसों रात तुम्हीं जेल से फरार...।"

"काम की बात करो पाहवा ।" पीछे बैठा सोहनलाल गुर्रा उठा, हमारे पास वक्त बहुत कम है ।"

पाहवा ने चेहरे पर क्रोध भरे भावों को आने से रोका ।

"जब तुम जाओगे तो, कोई भी इस कार के पीछे आने का साहस नहीं करेगा ।"

"बीच रास्ते में भी कोई हमारे पीछे नहीं लगेगा ।"

"नहीं लगेगा ।"

"अगर लगा तो तेरे बेटे को फौरन लाश बनाकर चलती कार से सड़क पर फेंक दूंगा ।" सोहनलाल दरिंदगी से बोला ।

तीरथराम पाहवा दांत किटकिटाकर रह गया।

"तुम लोग मेरे बेटे का क्या करोगे ?" पाहवा एकाएक सूखे स्वर में कह उठा ।

सोहनलाल के चेहरे पर उपहासपूर्ण मुस्कान थिरक उठी ।

"चल बेटे ।" सोहनलाल ने रिवाल्वर की नाल से किशन की खोपड़ी थपथपाकर कहा, "कार स्टार्ट कर और निकल चल यहां से ।"

"तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया ।" पाहवा ने सूखे स्वर में शीघ्रता से कहा । शंकर दास ने कार की खिड़की से रिवाल्वर वाला हाथ निकाला और रिवाल्वर पाहवा के पेट में घुसकर कहर भरे स्वर में बोला ।

"पीछे हट।"

पाहवा फौरन तीन-चार कदम पीछे हट गया ।

सोहनलाल ने पुनः रिवाल्वर की नाल से, किशन की खोपड़ी खटखटाई । आतंक से घिरे किशन ने काँपते हाथों से चाबी घुमाई और कार स्टार्ट होने पर, गियर डालकर एक्सीलेटर पर पांव दबा दिया । हल्के से झटके के साथ कार आगे बढ़ गई । चेहरे पर पसीना ही पसीना हो रहा था । आंखों में दहशत नाच रही थी ।

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