भाग दो

मुम्बई

‘‘अब आगे क्या होगा ?’’
विमल के आंख भर कर नीलम की तरफ देखा जो कि उससे वो सवाल कर रही थी । वो एक ऐसा सवाल था जो हमेशा से नीलम और उसके बीच में खड़ा था । कभी विमल के पास उसका जवाब होता था, कभी नहीं होता था — अमूमन नहीं होता था ।
जैसे कि अब नहीं था ।
था तो स्‍पष्‍ट नहीं था ।
उसने अपने मेहरबानों से सामने ख्वाहिश जाहिर की थी — नीलम अब उसकी उस ख्वाहिश से वाकि‍फ थी — कि वो दिल्ली जा के रहेगा जहां उसका एक छोटा सा फ्लैट था और गैलेक्‍सी ट्रेडिंग कार्पोरेशन की एकाउन्‍टेंट की नौकरी थी ।
अपने मोहसिनों के सामने उसके मुंह से निकली अपनी इल्‍तजा उसके जेहन में गूंजी :
‘‘मेरे दोस्तों, मेरे भाइयों, मैं आप सब से दरख्वास्त करता हूं कि आप मेरे लिये दुआ करें कि मेरी सैलाब जैसी जिन्दगी में ठहराव आये, मेरी कुत्ते जैसी दुर दुर बन्द हो । मुझे भी आखिर पता चले कि गृहस्थ होने का चैन क्या होता है । मेरी बीवी विधवा की जिन्दगी जी रही है, उसे अहसास हो कि वो विधवा नहीं, सुहागन है, मेरे बच्चे के सिर पर बाप का साया हो । मैं सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल, सरदारनी नीलम कौर सोहल और सरदारजादा सूरज सिंह सोहल के साथ हरमिन्दर साहब की देहरी पर मत्था टेकने का सुख पाऊं और दुआ मांगू कि जमीं दी है तो थोड़ा आसमान भी दे, मेरे खुदा मेरे होने का कुछ गुमान भी दे ।’’
सामने से ‘कार्यालय अनिश्चित काल के लिये बन्द है’ का बोर्ड हट चुका था और वहां स्थापित तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट का आफिस अब फिर से चालू था ।
सूरज अभी भी विखरोली में कोमल के पास था लेकिन नीलम उस घड़ी उसके साथ चैम्बूर में तुका के घर के — जो कि अब तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट का आफिस था — सामने वाले मकान की पहली मंजिल पर मौजूद थी ।
‘‘वही होगा’’ — विमल धीरे से बोला — ‘‘जो वाहे गुरु को मंजूर होगा ।’’
‘‘ये टालू जवाब है ।’’ — नीलम बोली ।
‘‘ये सच्‍चा जवाब है ।’’
‘‘फिर भी टालू जवाब है । औरों के लिये शायद ठीक हो, बीवी के लिये टालू जवाब है ।’’
विमल खामोश रहा ।
‘‘जब तुम निश्‍चय कर चुके हो हम इस शहर को, इस जुल्‍म के डेरे को छोड़ देंगे और दिल्ली जा कर रहेंगे तो देर किस बात की ?’’
‘‘है कोई बात । हैं कुछ बातें ।’’
‘‘क्या ?’’
‘‘यहां मेरी कुछ जिम्‍मेदारियां हैं, वहां मेरी कुछ मजबूरियां हैं ।’’
‘‘साफ बोलो क्या कहना चाहते हो, पहेलियां न बुझाओ ।’’
‘‘ठीक है, पहले यहां की सुनो । तुम्‍हें मालूम है सामने उस मकान पर, जिसमें कभी मेरा मेहरबान दोस्त तुकाराम अपने हनुमान जैसे साथी वागले के साथ रहता था, चैरिटेबल ट्रस्‍ट का बोर्ड लगा है...’’
‘‘हां ।’’
‘‘लेकिन ट्रस्‍ट कानूनी तौर पर स्थापित नहीं है ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘ऐसे संस्थान का रजिस्‍ट्रेशन कराना पड़ता है जिसका पहले कभी किसी को खयाल तक नहीं आया । उसका रजिस्‍टर होना जरूरी है ।’’
‘‘तो क्या हुआ ? वो लोग करायेंगे न जिन के वो अब हवाले है ! इरफान है, शोहाब है...’’
‘‘ठीक, ठीक । शोहाब पढ़ा लिखा, काबिल लड़का है, वो ऐसा बाखूबी करा सकता है लेकिन वो लोग समझते हैं कि ऐसा हो जाने तक मुझे यहां रुकना चाहिये ।’’
‘‘खामखाह ! जब करा सकता है तो...’’
‘‘और भी वजह हैं... काम हैं जो होने हैं !’’
‘‘कैसे काम ?’’
‘‘जैसे ट्रस्‍ट के कोई ट्रस्‍टी अप्‍वायन्‍ट किये जाने का काम । जैसे उसका कोई प्रापर बैंक एकाउन्‍ट चलाने का काम, जैसे रुपये पैसे की आवाजाही का प्रापर रिकार्ड रखा जाने का काम ।’’
‘‘अभी नहीं है ये सब ?’’
‘‘एकाउन्‍ट है नेशनल बैंक की चैम्बूर ब्रांच में, क्‍योंकि कुछ लोग ट्रस्‍ट को डोनेशन चैक से देते हैं, लेकिन आवाजाही का मुनासिब रिकार्ड रखने का कोई सिस्‍टम नहीं । चैम्बूर का दाता की शरण में आये किसी शख्‍स को कोई माली इमदाद दी जाती है तो वो यूं ही कैश में थमा दी जाती है ।’’
‘‘हाय राम ! ऐसे तो बेईमानी हो सकती है ! गबन हो सकता है !’’
‘‘हो सकता है लेकिन कभी हुआ नहीं ।’’
‘‘तुम्‍हें क्या पता !’’
‘‘उम्‍मीद है कि नहीं हुआ । सब भले लोग हैं ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘आइन्दा भी किसी को ऐसी टैम्‍पटेशन न हो...’’
‘‘क्या न हो ?’’
‘‘टैम्‍पटेशन । लालच । प्रलोभन । साली मिडल फेल, कुछ नहीं समझती ।’’
‘‘पास । सौ बार बताया ।’’
‘‘फिर भी कुछ नहीं समझती ।’’
‘‘और साली नहीं, बीवी... धर्मपत्‍नी, भार्या, घरवाली, ये भी सौ बार बताया । साली साली मत भजा करो । उससे मुझे शक होता है कि अनजाने में अपनी बदनीयती उजागर कर रहे हो ।’’
विमल हंसा ।
नीलम ने भी हंसी में उसका साथ दिया ।
‘‘हां तो... क्या कह रहे थे ?’’
‘‘मैं कह रहा था, कि किसी को आइन्दा टैम्‍पटेशन भी न हो इसके लिये ट्रस्‍ट का कानूनी तौर पर स्थापित होना और चलना जरूरी है, अभी तो लाखों करोड़ों रुपया यूं ही पड़ा है ।’’
‘‘हाय राम !’’
‘‘अब सब आर्गेनाइज हो जायेगा, टाइम लगेगा लेकिन हो जायेगा ।’’
‘‘टाइम लगेगा ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘और उस दौरान तुम कहते हो कि तुम्‍हारा यहां रुकना जरूरी है ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘कितना टाइम ?’’
‘‘पता नहीं ।’’
‘‘फिर भी कोई अन्दाजा !’’
‘‘हफ्ता दस दिन ।’’
‘‘हफ्ता दस दिन । तब मैं कहां ? फिर कोल्‍हापुर ? इरफान की बहन नूरबानो के पास ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘विखरोली में कोमल के पास । सूरज के पास ।’’
‘‘लेकिन सूरज के बाप के पास नहीं ।’’
‘‘नहीं । और वजह तू जानती है ।’’
‘‘नहीं जानती । जानती थी तो भूल गयी । फिर बताओ । और खबरदार जो कोई वाही तबाही बकी, कोई बुरी बात मुंह से निकाली ।’’
‘‘मैं वही कहने जा रहा था ।’’
‘‘मुझे अन्देशा था ।’’
‘‘क्या करूं ! हकीकत है इसलिये सहज ही जुबान पर आती है । मैं मवाली हूं और मवाली की बीवी...’’
‘‘खबरदार !’’
‘‘अच्‍छा ।’’
‘‘तो मैं विखरोली ! तुमसे दूर !’’
‘‘ज्‍यादा दूर नहीं । कोल्‍हापुर जितना दूर नहीं । अक्‍सर मिलने आया करूंगा । तुम से । सूरज से ।’’
‘‘एक बार भी नहीं आओगे । बोल दोगे वक्‍त नहीं लगा ।’’
‘‘अरे नहीं !’’
‘‘क्‍यों कि तुम्‍हारा वक्‍त तुम्‍हारा थोड़े ही है ! वो तो परमार्थ कारज है, सबके लिये है, सिवाय इस कर्मामारी नीलम के ।’’
‘‘अरे, कुछ दिन की बात है...’’
‘‘पिछली बार भी यही बोला था लेकिन मुझे पता है फिर कोई सयापा खड़ा हो जायेगा और तुम उसके ऐन बीच में खड़े दिखाई दोगे ।’’
‘‘इस बार ऐसा नहीं होगा । अब मैं खुद अपनी गुनाहों से पिरोई जिन्दगी से आजिज हूं ।’’
‘‘पहले भी थे ।’’
‘‘जब वाहे गुरु ने बनाया ही मुझे ऐसा है...’’
‘‘कैसा ? हर किसी के फटे में टांग अड़ाने वाला ! तू कौन मैं खामखाह ! क्या बोलते हैं लोग तुम्‍हें ? हातिमताई ! सखी हातिम ! दीनबन्‍धु ! दीनानाथ ! दीन के नाथ ! जिसका नाथ बनना है, माता भगवती ने बनाया है, उसके नहीं...’’
‘‘अरे, क्या पागलों जैसी बातें कर रही है !’’
‘‘मैं हूं ही पागल ।’’
‘‘अरे, नहीं, सोहनयो...’’
‘‘हाय ओ मेरया रब्‍बा ! लाई बेकद्रां नाल यारी, टूट गयी तड़क्‍क कर के ।’’
‘‘मुझे बेकद्र कहती है ?’’
‘‘और क्या कहूं ? जो मर्द साथ न रखे, पास न रहने दे, वो बेकद्र ही तो हुआ ।’’
‘‘चन्द रोज और मेरी जान फकत चन्द ही रोज...’’
‘‘फिर वही बात ! है तो मेरा भी वही जवाब है । और नहीं बस और नहीं ।’’
विमल खामोश रहा ।
‘‘अब बोलते क्‍यों नहीं हो ?’’
‘‘क्या बोलूं ? कैसे बोलूं ? तूने छोड़ा ही नहीं बोलने लायक ।’’
‘‘हाय ओये रब्‍बा ! मैंने ऐसा किया ! जुबान जले मेरी...’’
‘‘खामखाह !’’
‘‘खैर चलो, तुमने यहां की अपनी जिम्‍मेदारियां समझाईं, वहां की मजबूरियां क्या हैं ?’’
‘‘तुम्‍हें याद है जब मायाराम बावा के तुम्‍हें ब्‍लैकमेल करने वाला बखेड़ा गले पड़ा था तो दिल्ली से हमें एकाएक कूच करना पड़ा था ?’’
‘‘हां, याद है ।’’
‘‘तब मायाराम अपने जोड़ीदार हरिदत्त पंत के खून के इलजाम में गिरफ्तार हो गया था और चिल्‍ला चिल्‍लाकर थाने में दुहाई देने लगा था कि मैं गैलेक्‍सी का मुलाजिम, उनका एकाउन्‍टेन्‍ट अरविन्द कौल नहीं, मशहूर इश्‍तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल था । तब इत्तफाक से थाने में मेरे खि‍लाफ कुछ साबित नहीं हो सका था, इसलिये भी साबित नहीं हो सका था क्‍योंकि मेरे एम्पलायर शिवशंकर शुक्‍ला ने मदद की थी, मेरे मेहरबान दोस्त सीबीआई के विंग ऐंटी टैरेरिस्‍ट स्क्वायड के डिप्‍टी डायरेक्‍टर योगेश पाण्‍डेय ने मेरी मदद की थी । नीलम, तब खुद योगेश पाण्‍डेय ने मुझे सलाह दी थी कि मायाराम बावा का मेरे खिलाफ बकना-झकना बन्द नहीं होने वाला था, पुलिस फिर उसकी बातों को गम्‍भीरता से लेना शुरू कर सकती थी, इसलिये मेरी भलाई दिल्ली से फौरन गायब हो जाने में थी । ये वजह थी तब हमारे एकाएक दिल्ली छोड़ने की । अब मेरे सामने जो सवाल खड़ा है, वो ये है कि मैंने जोश में घोषणा तो कर दी कि मैं दिल्ली जाकर रहूंगा लेकिन अब सोचता हूं कि क्या ऐसा करना मुनासिब होगा !’’
‘‘फैसला क्या किया ?’’
‘‘एक वजह से ऐसा करना मुनासिब हो सकता है ।’’
‘‘कौन सी ?’’
‘‘मायाराम बावा मर चुका है । उसकी मेरे खिलाफ जहर उगलती आवाज एक अरसा हुआ बन्द हो चुकी है । इसलिये मैं सोचता हूं कि दिल्ली जा कर रहने का खतरा मोल लिया जा सकता है ।’’
‘‘सरदार जी, तुम कहीं भी जा कर रहने का फैसला करो, लेकिन अब वादा करो कि जगह वो होगी जहां मैं और सूरज तुम्‍हारे साथ रह सकेंगे ।’’
‘‘ओके !’’
‘‘क्या ओके ?’’
‘‘देखो तो साली मिडल फेल को ! अब ओके नहीं समझती !’’
‘‘ओके समझती है बीवी मिडल पास । ओके का खुलासा करो । बोलो कि वादा किया ?’’
‘‘किया ।’’
‘‘अब एक वादा और करो अपनी सताई हुई बीवी से ।’’
‘‘वो भी बोलो ।’’
‘‘वादा करो कि जितने दिन यहां हो, किसी नये बवाल को, किसी नये फसाद को गले नहीं लगाओगे ।’’
‘‘मैं नहीं लगाऊंगा ।’’
‘‘याद रखोगे कि तुम सारे जहां का दर्द नहीं हर सकते ।’’
‘‘याद रखूंगा ।’’
‘‘नानक दुखिया सब संसार । नहीं ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘तुम्‍हें सूरज की कसम है, वादा न तोड़ना ।’’
‘‘नहीं तोड़ूंगा ।’’
‘‘शुक्रिया, सरदार जी ।’’
‘‘अब मेरा एक सवाल !’’
‘‘क्या ?’’
‘‘इस वादे में क्या ये भी शामिल है कि मैं दीन के हित में कोई काम न करूं ? मुझे अपनी आंखों के सामने जुल्‍म होता दिखाई दे तो मैं आंखें बन्द कर लूं ! किसी की फरियाद मेरे कानों में पड़े तो मैं कान बन्द कर लूं ! मैं पत्‍थर जैसा बेहिस और सम्‍वेदनशून्‍य हो जाऊं ? ये जानते बूझते कि जुल्‍म सहने से भी जालिम की मदद होती है ! जुबान बन्द रखने से जुबान खोलने का हक छिन जाता है ! मैं अपने गुरु साहबान की ये सीख भूल जाऊं कि जो लरे दीन के हेत सूरा सो ही ? इसकी जगह आगे के लिये ये सबक गांठ बांध यूं‍ कि कोई मरे चाहे जीये, सोहल घोल बताशा पीये ! मैं अपनी मौजूदा जिन्दगी से मुकम्‍मल पीठ फेर लूं तो गारंटी हो जायेगी कि किसी मवाली का रामपुरी मेरे पेट में नहीं होगा, किसी भाई की गन की गोली मेरे भेजे में नहीं होगी, मैं मरूँगा तो मलेरिया, टाइफायड, निमोनिया से मरूंगा, ओल्‍ड एज से मरूंगा, तेरी सौ साल तक विधवा न होने की गारन्‍टी होगी !’’
नीलम भौंचक्‍की सी उसका मुंह देखने लगी ।
‘‘क्या फायदा ऐसी जिन्दगी का जो खुदगर्जी में डूबते उतराते गुजरे, जो मैं मैं मेरा मेरा करते गुजरे । आदमी का बच्‍चा किसी के काम का नहीं तो किस काम का !’’
‘‘किसी में मैं क्‍यों नहीं शामिल ? सूरज क्‍यों नहीं शामिल ?’’
‘‘सजन स्‍नेही बहुत हैं, सुख में मिले अनेक; विपत्ति पड़े दुख बांट ले, सो लाखन में एक ।’’
‘‘मंजूर । मुझ पर विपत्ति पड़ी है । मुझे अपने पति का संग नसीब नहीं । मेरे बेटे को पिता की छत्रछाया नसीब नहीं । ये मेरे लिये दारूण दुख है । बांट लो, सरदार जी, मेहरबानी होगी ! दया होगी ।’’
वो सुबकने लगी ।
सोहल ने खींच कर उसे अपने अंक में भर लिया ।
‘‘मुझे बस दस दिन का वक्‍त और दे ।’’ — विमल उसके कान में फुसफुसाया — ‘‘फिर देखना, सब ठीक हो जायेगा, जैसा तू चाहती है वैसा सब ठीक हो जायेगा । फिर चैन ही चैन होगा, इत्‍मीनान ही इत्‍मीनान होगा । बीते दिन यूं भूल जायेंगे कि याद किये याद नहीं आयेंगे । बिछोड़ा सपना जान पड़ेगा ।’’
‘‘सच !’’
‘‘हां ।’’
‘‘मुझे तुम्‍हारी बात पर यकीन है, दीनबन्‍धु दीनानाथ जी’’ — वो हंसी, फिर मुदित मन से बोली — ‘‘हातिम की ताई जी ।’’
शुकर !
���
माइकल हुआन उठ कर अपने पैरों पर खड़ा हुआ ।
उसका रंग फक था, मुंह खुश्‍क था, टांगें थरथरा रही थीं । विचलित निगाह कान्‍फ्रेंस हाल में जिस तरफ उठती थी, तबाही का मंजर दिखाई देता था ।
चालीस आदमी !
सिक्‍योरिटी चीफ किशोर भाई को मिलाकर चालीस आदमी एकमुश्‍त मारे गये थे । उसके बॉस, इन्‍टरनेशनल ड्रगलार्ड रीकियो फ‍िगुएरा ने सोहल को शूट किये जाने का हुक्‍म दिया ही था कि प्रलय आ गयी थी । हथियारबन्द लोगों का एक बड़ा हुजूम पता नहीं एकाएक कहां से वहां प्रकट हुआ था, एकाएक हाल की बत्तियां बुझी थीं और फिर गोलियों की बरसात होने लगी थी । चौतरफा गोलियां चली थीं । उस कान्‍फ्रेंस का कोई डेलीगेट, बमय सदर फिगुएरा जो कि सिंगापुर से विशेष रूप से उस कान्‍फ्रेंस के लिये आया था, जिन्दा नहीं बचा था ।
कोलम्बो से नेविल कनकरत्ने
मियामर से आंग सू विन
काबुल से मुहम्‍मद कासिम दिलजादा
जो कि अपने अपने इलाकों में फिरंगी बॉस, इन्‍टरनेशनल ड्रग लार्ड रीकियो फिगुएरा के लिये अफीम की खेती कराते थे ।
बुद्धिराजा भट्टराई, काठमाण्‍डू से
जहांगीर खान, कराची से
खलील-उर-रहमान, ढाका से,
जो कि अपने इलाकों में अफीम से हेरोइन बनाने के कारखाने चलाते थे ।
और तमाम बड़े ड्रग डीलर ।
कोई जिन्दा नहीं बचा था ।
सिवाय माइकल हुआन के ।
जिसे कोई गोली नही लगी थी लेकिन जिसने वक्‍त पर काम आने वाली बला की होशियारी दिखाई थी कि जाहिर नहीं होने दिया था कि उसे गोली नहीं लगी थी, वो भी और मुर्दो की तरह मुर्दा बना पड़ा रहा था ।
वो कान्‍फ्रेंस टेबल के हैड पर अपने बॉस रीकियो फिगुएरा के बायें बाजू बैठा था । उसके अपने बायें बाजू जहांगीर खान था जो कि साढ़े छ: फुट लम्बा था और जो गोलियों की बौछार जिस्‍म से टकराते ही औंधे मुंह गिरा था तो हुआन के ऊपर आ कर पड़ा था । उसके बाद उस दिशा में जो गोलियां चली थीं, वो या जहांगीर खान के मृत शरीर में धंसती चली गयी थीं या रीकियो फिगुएरा और उसके लेफ्टीनेंट रॉस आरनाल्‍डो को लगी थीं ।
फिर जैसे एकाएक को गोलीबारी शुरू हुई थी, वैसे ही एकाएक थम गयी थी ।
फिर गार्डों के पीछे उन से दुगने हथियारबन्द लोग दिखाई देने लगे थे जिनकी बाबत हुआन को बाद में सुनाई पड़ा था कि सोहल के हिमायती थे, मुम्बई के टैक्‍सी ड्राइवर थे और वो सब हथियारबन्द उस असलाह से हुए थे जिसका विप्‍लव तुलाघर कस्‍टोडियन था और जो एवरेस्‍ट थियेटर के तहखानों में जमा था । उन लोगों ने कमाल ये किया था कि वहां कान्‍फ्रेंस में शामिल कोई भी शख्‍स जिन्दा नहीं बचा था लेकिन किशोर भाई को छोड़कर किसी गार्ड को खरोंच तक नहीं आयी थी । वो सब सिग्‍मा सिक्‍योरिटीज, मैरीन लाइन्‍स से आये भाड़े के आदमी थे जिनका ड्रग लार्ड्स या ड्रग ट्रेड से कुछ लेना देना नहीं था । उन सब को सुरक्षित वहां से निकल जाने दिया गया था ।
पीछे मौजूद तमाम लोगों में सोहल की जयजयकार हो रही थी जो कि हुआन के लिये हैरानी की बात थी ।
और हैरानी की बात ये हुई कि उन लोगों के बीच मुम्बई के पुलिस कमिश्‍नर का पर्दापण हुआ ।
फिर विमल रोजवुड एस्‍टेट का जिक्र करने लगा ।
जो कि गोरई बीच रोड पर थी और जो हुआन का आवास था ।
एस्‍टेट के पिछवाड़े में एक बहुत बड़ा प्‍लाट था जिसके नीचे खुफिया तहखाने थे जो कि नॉरकॉटिक्‍स और असलाह स्‍टोर करने के काम आते थे । हैरानी की बात थी कि सोहल को उन तहखानों की जानकारी थी । उसको बाम्बे बेकरी और देसाई लैम्‍प शेड्स के लालबाग वाले गोदाम की भी जानकारी थी ।
यानी कहीं कुछ सलामत नहीं बचने वाला था ।
जैसे कोई जान सलामत नहीं बची थी वैसे कोई माल भी सलामत नहीं बचने वाला था । आखिर उस बाबत जानकारी खुद मुम्बई पुलिस के कमिश्‍नर को दी जा रही थी ।
फिर सबसे ज्‍यादा हैरानी उसे वो सुन कर हुई जो कमिश्‍नर ने कहा ।
‘‘हम यहां कभी नहीं आये । हमने कुछ नहीं देखा । दैट्स दि फैक्‍ट । आई वाज नैवर हेयर । आई नैवर सा एनीथिंग ।’’
यानी कि वहां जो कत्लेआम मचा था, उसकी बाबत पुलिस कुछ नहीं करने वाली थी । वो आइलैंड विदेशी धरती थी, वहां एशिया के बड़े ड्रग लार्ड्स की, बड़े ड्रग डीलर्स की, सब के सिरमौर फिरंगी बॉस फिगुएरा और आरनाल्‍डो की लाशें यूं ही लावारिस पड़ी थीं, चील कौवों का भोजन बनने वाली थीं ।
लेकिन फिर उसे लगा कि ऐसा नहीं होने वाला था ।
कमिश्‍नर के जाने के बाद वो लोग आपस में बतियाने लगे थे ।
निस्तब्‍ध पड़ा वो कान खड़े करके सुनने लगा ।
किसी आतिशबाजी की बात हो रही थी ।
जो कि जल्दी ही उस की समझ में आ गयी ।
कान्‍फ्रेंस हॉल में उनतालीश सीटें थीं और — उसे पहले से मालूम था, जसराज रहेजा के बताये मालूम था, आखिर बम लगाने वाला ही वो था — कि हर सीट के नीचे बम था । वो वो बम थे जो कि सोहल के पास मौजूद रिमोट से फटने वाले थे लेकिन नहीं फटे थे क्‍यों कि रहेजा में आखिर बिग बॉस के लिये वफादारी जागी थी और उसने सोहल को गलत रिमोट दे दिया था जो कि बमों को एक्‍टीवेट नहीं कर सकता था ।
फिर कोई बोला कि वो कोई बड़ी समस्‍या नहीं थी ।
कांफ्रेस टेबल के वैल में एक भीषण विस्‍फोट किया जाता तो कुर्सियों के नीचे लगे सारे बम फटने शुरू हो जाते ।
इस इन्‍तजाम के लिये हाल खाली किया गया ।
तब हिम्‍मत करके हुआन जहांगीर खान की लाश के नीचे से निकला और हाल के पिछवाड़े के एक दरवाजे की ओर बढ़ा । हर घड़ी उसे लगता रहा कि अभी गोलियों की बौछार आयी और उसे लगी, अभी वो वहीं ढेर हुआ ।
लेकिन ऐसा न हुआ ।
वो सुरक्षित वहां से बाहर निकलने में कामयाब हो गया । उसने विस्‍फोट की बात सुनी थी इसलिये वो वहां से बहुत दूर निकल गया ।
फिर सच में विस्‍फोट हुआ ।
भीषण ।
गगनभेदी ।
ऐसा कि सारी इमारत उड़ गयी ।
उनतालीस शक्ति और सामर्थ्य के धनी बिग बासिज का और एक सिक्‍योरिटी चीफ किशोर भाई का सामूहिक अन्तिम संस्‍कार हो गया । हिन्दू मुसलमान क्रिस्तान पठान में कोई फर्क न रहा, सब की एक ही गति हुई । सब आईलैंड पर हुई उस भव्‍य आतिशबाजी में — जो कि सोहल की जीत का प्रतीक थी — निमित्त बने ।
फिर सन्‍नाटा !
मरघट का सा सन्‍नाटा !
आखिर आईलैंड मरघट ही तो बन गया था ।
वो ही मुकद्दर का बादशाह साबित हुआ था जो कि इतने बड़े कोहराम में से जिन्दा बच निकला था ।
पता नहीं कितनी देर वो अपनी नयी पनाहगाह में छुपा रहा ।
आखिर जब उसने वहां से बाहर कदम रखने की हिम्‍मत जुटाई तब आधी रात बीत चुकी थी । तब आइलैंड पर मुकम्‍मल सन्‍नाटा था । तब अकेला वो प्रेत की तरह वहां मौजूद था ।
हिम्‍मत करके उसने सारे आइलैंड का चक्‍कर लगाया ।
फिगुएरा जिस हैलीकाप्‍टर पर आया था, वो वहां मौजूद नहीं था । गोलीबारी होते ही या तो पायलट हैलीकाप्टर के साथ वहां से कूच कर गया था या पायलेट भी मारा गया था और हैलीकाप्टर सोहल के हिमातियों ने कब्‍जा लिया था ।
हुआन खुद इस बात का जामिन था — आखिर वो पायर पर स्‍वागतार्थ मौजूद था — कि हर ड्रग लार्ड के साथ एक-एक दो-दो एस्‍कार्ट थे जिनके एनजाय करने के लिए पायर के करीब की एक होटलनुमा इमारत में अलग इन्‍तजाम किया गया था । उसने पाया कि उस बिल्डिंग में उल्‍लू बोल रहे थे और पायर पर एक भी मोटरबोट मौजूद नहीं थी । यानी वो लोग अपने मालिकान को अधर में छोड़कर वहां से भाग गये थे ।
वो अकेला उस उजाड़ आइलैंड पर मौजूद था और मुम्बई समुद्र तट वहां से साठ मील दूर था ।
रात की उस घड़ी उसके सामने वहां से निकासी का कोई साधन नहीं था ।
उसे दशहत होने लगी ।
यूं तो वो वहां भूखा प्‍यासा मर सकता था । फिर चील कौवे गिद्ध उसे नोच खा सकते थे जब कि अभी तो वो मरा भी न होता ।
वहां मेहमानों के लिये इतने भव्‍य डिनर का इंतजाम किया गया था लेकिन उस घड़ी वहां खाने के नाम पर तोड़ने को एक तिनका भी नहीं था ।
जरूर सोहल की सेना सब समेटकर ले गयी थी ।
बड़ी मुश्किल से होटलनुमा इमारत में उसने रात काटी ।
सुबह उसने फिर आईलैंड का चक्‍कर लगाया तो उसे एक दूसरा पायर दिखाई दिया जिसकी शक्‍ल ही बताती थी कि वो इस्तेमाल में नहीं आता था ।
वहां एक जर्जर सी मोटरबोट बन्‍धी थी ।
धड़कते दिल के साथ हुआन उसमें सवार हुआ । उसने इंजन स्‍टार्ट करने की कोशिश की तो वो थोड़ी शुरुआती हुज्‍जत के बाद स्‍टार्ट हो गया ।
उसने चैन की मील लम्बी सांस ली ।
उसने मोटरबोट को पायर पर से खोला, उसका रुख समुद्र की ओर किया और उसे आगे बढ़ाया ।
मोटरबोट समुद्र की छाती पर दौड़ चली ।
लेकिन उसका चैन स्थायी न निकला ।
आधे रास्ते में ही मोटर का इंजन बंद हो गया और फिर चलाये न चला । वजह सामने आयी तो उसका सांस सूख गया ।
टंकी में डीजल नहीं था ।
जितना था वो वहां तक के सफर में खत्‍म हो गया था ।
सारा दिन बोट समुद्र की लहरों पर डोलती रही ।
सूरज डूबने को हो आया ।
हुआन के प्राण कांपने लगे ।
लेकिन उसकी अच्‍छी तकदीर ने अभी पूरी तरह से उसका साथ नहीं छोड़ा था ।
एक सैलानी याट की निगाह उस पर पड़ गयी ।
याट ने उसे किनारे पहुंचाया ।
���
कौल और गरेवाल सुरक्षित मुम्बई पहुंचे ।
वो स्‍वैन नैक प्‍वायन्‍ट पर मचे हाहाकार के अड़तालीस घन्‍टे बाद का दिन था ।
मुम्बई में अनूप झेण्‍डे ने उससे कान्‍टैक्‍ट का जो तरीका बताया था, वो ये था कि उन्‍होंने ग्रांट रोड पर स्थित अमृता बार में जा कर बारमैन नरेश पठारे से मिलना था ।
गरेवाल मुम्बई पहले कभी नहीं आया था लेकिन इत्तफाक से कौल शहर से पूरी तरह से वाकिफ था ।
वो ग्रान्‍ट रोड पहुंचे ।
अमृता एक दरम्‍याने दर्जे का बार निकला जिस में रात की उस घड़ी बारबालाओं की रौनक थी ।
वो बार पर पहुंचे ।
काउन्‍टर के परली तरफ से एक बारमैन उन के सामने पहुंचा ।
‘‘नरेश पठारे ।’’ — कौल बोला ।
‘‘क्या हुआ उसे ?’’ — बारमैन बोला ।
‘‘कुछ नहीं हुआ । मिलना है उससे ।’’
‘‘आर्डर मेरे को बोलो न, बाप !’’
‘‘आर्डर के लिये नहीं मिलना । पर्सनल काम है ।’’
‘‘ओह ! पर्सनल काम है ! कश खींचने गया है । पांच मिनट में आता है । वेट करने का ।’’
‘‘हम उसको पहचानते नहीं हैं ।’’
‘‘वान्दा नहीं । मेरे अलावा इधर जो भीड़ू बार टेंड करता दिखाई दे, वो पठारे । क्या !’’
‘‘ठीक है । शुक्रिया ।’’
‘‘अभी आर्डर बोलने का !’’
कौल ने बोला ।
फिर दोनों दो बार स्‍टूलों पर अगल बगल बैठे ड्रिंक चुसकते रहे और बारमैन का इंतजार करते रहे ।
पांच की जगह दस मिनट बाद एक नया आदमी बार के पीछे दिखाई दिया । उसने बार मैन से कुछ क्षण कुछ खुसर पुसर की फिर उन के सामने पहुंचा ।
‘‘मैं नरेश पठारे ।’’ — वो बारी-बारी उन्‍हें देखता बोला — ‘‘इधर बारमैन । क्या मांगता है ?’’
‘‘अनूप झेण्‍डे मांगता है ।’’ — कौल बोला — ‘‘हम उसके दोस्त हैं । दिल्ली से आये हैं ।’’
‘‘झेण्‍डे तो अभी इधर आया नहीं !’’
‘‘रोज आता है ?’’
‘‘ऐसीच है ।’’
‘‘कल आया था ?’’
‘‘हां । बरोबर !’’
कौल और गरेवाल की निगाहें मिलीं ।
गरेवाल ने सहमति में सिर हिलाया ।
कौल काउन्‍टर पर आगे को उचका और बोला — ‘‘जरा करीब से सुनो ।’’
पठारे ने गर्दन उनकी तरफ आगे को निकाली ।
‘‘तुम झेण्‍डे के खास हो ?’’ — कौल राजदाराना लहजे से बोला ।
‘‘है तो एसीच ।’’
‘‘कुछ अरसा पहले वो दिल्ली में था !’’ — कौल का स्‍वर और दब गया — ‘‘अन्दर था !’’
‘‘तुम तो साला सब जानता है !’’ — बारमैन पठारे भी दबे स्‍वर में बोला ।
‘‘हाल ही में मुम्बई लौटा !’’
‘‘हां । लम्बा नपा था पण लौटा । ऐसीच जुगाड़ू है अपना झेण्‍डे बॉस । तुम क्‍यों बोला ऐसा ?’’
‘‘ताकि हमें गारन्‍टी हो कि हम एक ही झेण्डे की बात कर रहे हैं ।’’
‘‘मैं करता है न पक्‍की, एक ही झेण्‍डे की बात कर रयेले हैं ।’’
‘‘गुड । हमें उससे अर्जेंट करके मिलना है ।’’
‘‘अड्रैस नक्‍को ?’’
‘‘नक्‍को ।’’
‘‘मोबाइल नम्बर ?’’
‘‘नहीं है ।’’
‘‘तभी ।’’
‘‘उसी ने हमको बोला था मिलना हो तो अमृत बार, ग्रांट रोड जाकर बारमैन नरेश पठारे से पता करें ।’’
‘‘हूं । बोले तो उधर टेबल पर जा कर बैठने का और आधा घन्‍टा वेट करने का । इतना टेम में वो इधर पहुंचेगा । न पहुंचा तो नक्‍की करने का और येहीच टेम कल आने का ।’’
‘‘तुम हमें उसका पता या मोबाइल नम्बर नहीं बता सकते ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘आधे घन्‍टे में आयेगा कैसे झण्डे भाई ?’’ — गरेवाल भुनभुनाता सा पहली बार बोला ।
‘‘झेण्‍डे ।’’ — बारमैन ने संशोधन किया ।
‘‘उसे सपना आयेगा कि हम इधर हैं ?’’
‘‘कुछ होगा न ! अभी क्या होगा, नहीं पूछने का । वेट करने का ।’’
‘‘ठीक है ।’’ — कौल बोला ।
दोनों ने अपने जाम उठाये और एक टेबल पर जा कर बैठे ।
‘‘आयेगा ?’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘उम्‍मीद तो है !’’ — कौल बोला — ‘‘लगता हैं ये उसे फोन करेगा । अगर काल लग गयी, वो करीब ही कहीं हुआ तो... आयेगा ।’’
‘‘करीब ही होगा । वर्ना घन्‍टा इन्‍तजार करने को बोलता । और ज्‍यादा देर इन्‍तजार करने को बोलता ।’’
‘‘ठीक । बहरहाल ये तो पक्‍का हुआ कि पीछे फंस नहीं गया था, हमारी तरह वैन से निकलने में कामयाब हो गया था ।’’
गरेवाल ने संजीदगी से सहमति से सिर हिलाया ।
अनूप झेण्‍डे बीस मिनट में वहां पहुंचा ।
और बड़े प्रेम भाव से उन से मिला ।
वो बड़ी मुश्किल से उन की पहचान में आया । अपनी शक्‍ल और रख-रखाव में उसने कई तब्‍दीलियां कर ली थीं । उसने चेहरे पर घनी फ्रेंच कट दाढ़ी मूंछ रख ली थीं, हैवी फ्रेम वाला चश्‍मा लगाने लगा था । हेयर स्‍टाइल तब्‍दील कर लिया था और उम्‍दा सूटबूट पहनने लगा था । उस वक्‍त दिल्ली वाले जेलबर्ड झेण्‍डे की वो परछाईं भी नहीं लग रहा था ।
उसने नये ड्रिंक्‍स मंगाये ।
‘‘यहां पहुंच गये !’’ — फिर बोला ।
‘‘आना ही था, झण्‍डे भाई’’ — गरेवाल संजीदगी से बोला — ‘‘बोला नहीं था, छूट गये तो सीधा मुम्बई का रुख करेंगे और उस कुत्ती दे पुत्तर सोहल को तलाश करने की कोशिश करेंगे !’’
‘‘हां, भई, बोला तो था ! ये भी बोला था कि खल्‍लास कर देने का मंसूबा था । नहीं ?’’
‘‘हां ।’’
‘‘अभी जोश ठण्‍डा नहीं हुआ ?’’
‘‘नहीं हुआ ।’’
‘‘सरदार कहता है’’ — कौल बोला — ‘‘इधर आ कर, उसके और करीब जा कर डबल हो गया है ।’’
‘‘क्या कहने !’’
‘‘कोई खोज खबर है उसकी झण्‍डे भाई ?’’ — गरेवाल बोला ।
‘‘झेण्‍डे, यार, झेण्‍डे !’’
‘‘ओहो ई ।’’
‘‘नहीं कह सकते तो अनूप वह लिया करो ।’’
‘‘कोई खबर है ?’’
‘‘है तो सही !’’
‘‘क्या ?’’
‘‘अन्‍डरवर्ल्ड में अफवाह गर्म है कि हाल ही में इधर उसने बहुत कोहराम मचाया है । कहते हैं बाज जैसे एक ही झपट्टे में इधर के अक्‍खे ड्रग्‍स ट्रेड की कमर तोड़ दी ।’’
‘‘उस अकेले ने ?’’ — कौल बोला ।
‘‘किसी अकेले के बस का तो ये काम नहीं, भले ही वो बड़ा खलीफा सोहल हो ।’’
‘‘तो...’’
‘‘अरे, ये बात अहम नहीं कि ये काम कैसे हुआ ! अहम बात ये है कि सोहल के दखल से हुआ । पर तुम्‍हें इस कारनामे से क्या लेना देना है, तुम तो ड्रग्‍स के धन्‍धे में नहीं हो !’’
‘‘यानी है तो इधर ही न !’’
‘‘हां । लेकिन सुनने में आया है कि सब कुछ छोड़ के बहुत जल्‍द इधर से चला जाने वाला है ।’’
‘‘ऐसा कहीं होता है !’’ — गरेवाल तनिक आवेश से बोला ।
‘‘पता नहीं । मैं जो सुना वो बोला ।’’
‘‘पापा कहां जाना है ?’’ — कौल बोला ।
‘‘पक्‍का पता ठिकाना नहीं मालूम । पण अन्दर की जानकारी रखने वाले अन्‍डरवर्ल्ड के भीड़ू बोलते हैं कि चैम्बूर में तुकाराम चैरिटेबल ट्रस्‍ट के आफिस में कभी कभार दिखाई देता है । उसके सामने के एक मकान में भी कभी कभार दिखाई देता है ।’’
‘‘आफिस में क्या करता है ?’’
‘‘फरियादियों की फरियाद सुनता है ।’’
‘‘खुद !’’
‘‘कोई फरियादी जिद करे तो खुद ।’’
‘‘हूं ।’’
‘‘झण्‍डे भाई’’ — गरेवाल बोला — ‘‘दिल्ली में तू बोला था कि उसने शादी कर ली थी । बच्‍चा भी बना लिया थ । ऐसा है तो बीवी किधर है ? बच्‍चा किधर है ?’’
‘‘मेरे को मालूम नहीं ।’’
‘‘जब बीवी बच्चे वाला है तो उन के साथ ही तो रहता होगा !’’
‘‘जरूरी नहीं । बोले तो तुम्‍हारा पिरोगराम क्या है ? पिलान क्या है ?’’
‘‘वो तो उसे खत्‍म करना ही है ।’’
‘‘कैसे करोगे ? सोच लिया कुछ ? तैयार कर ली कोई इस्कीम ?’’
गरेवाल ने कौल की तरफ देखा ।
‘‘अभी नहीं ।’’ — कौल बोला — ‘‘आज पहले हमें ये तो मालूम हो कि वो पाया कहां जाता है !’’
‘‘अभी बोला तो कभी कभार चैम्बूर में ।’’
‘‘उसके पक्‍के ठिकाने का पता नहीं निकाल सकते ?’’
‘‘कोशिश कर सकता है मैं बरोबर । पण रोकड़ा खर्च होगा ।’’
‘‘हम करेंगे ।’’
‘‘है पल्‍ले ।’’
‘‘है ।’’
‘‘चौंसठ लाख है ऐन फिट करके । — गरेवाल बोला — ‘‘सब फूंक देंगे सोहल को फूंक देने में । कुत्ती दे पुत्तर ने मैंनू गोली मारी, कौल नूं गोली मारी, अब उसे हमारे मारे गोला वज्‍जेगा तभी हमारे कलेजे को ठण्‍डक पड़ेगी ।’’
‘‘साला फुल सालिड माइन्‍ड बना के बैठेला है !’’
‘‘उसके पक्‍के ठिकाने का पता निकालना’’ — कौल बोला — ‘‘खर्चे वाला काम क्‍यों है ?’’
‘‘फोकट में ऐसे काम कौन करता है ! सब को साला रोकड़े का लालच ! इधर अन्डरवर्ल्ड में बहुत ऐसे भीड़ू जो मुखबिरी करके खुश । बड़े वाले गान्‍धी मुंह पर मारो, साला कुछ भी करने को बोला, बोलेगा यस, सर । करता है न इमीजियेट करके !’’
‘‘ओह !’’
‘‘कराओ, झण्‍डे भाई’’ — गरेवाल बोला — ‘‘जो फीस लगेगी, भरेंगे । जो खर्च होगा, उठायेंगे ।’’
‘‘ठीक है ।’’
‘‘उस की बाबत जो भी ज्‍यादा से ज्‍यादा पता लग सके, लगवाना । रकम जितनी कहोगे, जब कहोगे, हवाले कर देंगे ।’’
‘‘ठीक है ।’’
‘‘अब अपनी सुनाओ, इधर कैसे कट रही है ?’’
झेण्डे सुनाने लगा ।
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