आमिर प्लाजा रोड पर अयूब मार्केट में इस्माइल से मिलने का वक्त एक घंटे बाद का तय हुआ। उसने कहा कि वो उस मार्केट के पोस्ट ऑफिस के बाहर खड़ा मिलेगा।
भुल्ले खान ने कार दौड़ा दी।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और बोला।
"कितनी देर में हम अयूब मार्केट पहुंचेंगे?"
"डेढ़ घंटा लगेगा।" भुल्ले खान ने बताया।
"बहुत दूर है ये तो।"
"इस्लामाबाद कोई छोटा तो है नहीं। इस्लामाबाद का कुल एरिया 1165 किलोमीटर पड़ता है।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
भुल्ले खान कार दौड़ाता रहा।
एक घंटा बीस मिनट में वे आमिर प्लाजा रोड पर आ पहुंचे।
"यही है आमिर प्लाजा रोड।"
"और अयूब मार्केट?"
"वो यहां से, सीधी रोड पर, दो किलोमीटर आगे है।"
ये व्यस्त इलाका था। जगह-जगह वाहनों की हैडलाइटें चमक रही थी। रेस्टोरेंट खुले नजर आ रहे थे। शाम जवां हुई पड़ी थी। देवराज चौहान ने घड़ी में वक्त देखा, रात के दस बज रहे थे।
"मुझे भूख लग रही है।" भुल्ले खान कह उठा।
"डिनर करेंगे कहीं।"
"इस्माइल के साथ या उससे मिलने के बाद?"
"मिलने के बाद।" देवराज चौहान ने कहा।
वे अयूब मार्केट पहुंच गए। कार को सड़क के किनारे खड़ी अन्य कारों के बीच खड़ी की और दोनों उतरकर मार्केट में प्रवेश कर गए। मार्केट की दुकानें बंद हो चुकी थी परंतु रेस्टोरेंट खुले थे और वहां पर खाने वाले लोग भी नजर आ रहे थे। पहले के और अब के इस्लामाबाद में काफी फर्क आ चुका था। वो पोस्ट ऑफिस किधर है, दो-एक से पूछने के बाद पोस्ट ऑफिस के सामने जा पहुंचे। पोस्ट ऑफिस बंद था। उसके छोटे से बोर्ड पर एक बल्ब जल रहा था। तभी देवराज चौहान की निगाह पोस्ट ऑफिस के सामने खड़े एक व्यक्ति पर जा टिकी। वहां पर सिर्फ वो अकेला ही नजर आ रहा था। अन्य लोग इस तरफ नहीं दिखे।
"वो शायद इस्माइल होगा।" भुल्ले खान ने पूछा।
दोनों उसके पास पहुंचे।
वो, इन्हें ही देख रहा था।
"इस्माइल?" देवराज चौहान ने पूछने के अंदाज में उससे कहा।
"हां। तुम देवराज चौहान?"
"सही पहचाना।" देवराज चौहान ने उसकी आवाज पहचान ली थी।
"तुम लेट हो गए।"
"दूर से आना था मैंने।" देवराज चौहान बोला।
"ये कौन है?" इस्माइल ने भुल्ले खान को देखा।
"मेरे साथ है। मेरा आदमी है।"
"हिन्दुस्तान से ही आया है?"
"इस्लामाबाद का है।"
"आओ।" इस्माइल हाथ का इशारा करते हुए बोला--- "उधर बैंच है, वहां बैठते हैं।"
वहां से आगे चल पड़े।
"कुछ खाना-पीना हो तो, खा लेते हैं।" इस्माइल बोला।
"मुझे सिर्फ बातें करनी है।"
तीनों कुछ दूर एक बेंच पर जा बैठे। सामने रेस्टोरेंट था, जहां से रोशनी, मध्यम सी होकर यहां तक पहुंच रही थी। वहां से लोगों की मध्यम सी आवाजें भी सुनाई दे रही थी।
"तुम गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालने आए हो।" इस्माइल बोला।
"सोचा तो है।"
"मुझे नहीं लगता ये काम हो सकेगा। मिलिट्री हैडक्वार्टर से किसी को निकाल लाना मजाक नहीं है।"
"तुम सही कहते हो।" देवराज चौहान बोला--- "ये बात तुमने मेजर से नहीं कही?"
"कही थी।"
"तो क्या बोला मेजर?"
"उसने कहा कि देवराज चौहान ये काम आसानी से कर लेगा।" इस्माइल ने गहरी सांस ली।
"मेजर को यहां के हालात ठीक से समझ नहीं आ रहे कि ये काम असंभव-सा है।"
"मुझे बताओ कि मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूं।" इस्माइल ने कहा।
"जब गोरिल्ला दल ने मिलिट्री के छोटे से ठिकाने पर हमला करने की योजना बनाई थी तो तुम साथ थे?"
"मैं साथ था। कादिर शेख और अनीस अहमद भी साथ थे। तुमने ये क्यों पूछा? गोरिल्ला दल का मामला तो पीछे रह चुका है। तुम जो काम करने आए हो, वो करो। उस बारे में मेरे से जो सहायता हो सकेगी, जरूर करूंगा।"
"मैंने तुमसे गोरिल्ला दल के बारे में कुछ पूछना है।" देवराज चौहान बोला।
"पूछो।"
"तुम गोरिल्ला दल के साथ थे जब वहां से फाइल लाने की योजना बनाई गई है। ऐसे में तुम्हें हालातों का बेहतर पता होगा। गोरिल्ला दल के साथ ऐसा क्या हुआ जो वो बच नहीं सके। काम पूरा नहीं कर सके। सारी योजना गड़बड़ा गई।"
"तुम कादिर शेख, अनीस अहमद मिले?"
"मिला।"
"तो उन्होंने इस बारे में क्या कहा?"
"जरूर बताऊंगा। परंतु पहले मैं तुम्हारी बात सुन लेना चाहता हूं कि गोरिल्ला दल को अचानक क्या हो गया कि उन्हें जान गंवानी पड़ी?"
इस्माइल कुछ पल चुप रहकर गंभीर स्वर में बोला।
"मैं इस मुद्दे पर बात करना चाहूं तो?"
"क्यों नहीं बात करना चाहते?"
"हालात कुछ ठीक नहीं है। अगर मेरी बात कादिर शेख या अनीस अहमद तक पहुंची तो मुझे नुकसान हो सकता है।"
"तुम मुझ पर भरोसा रखकर जो कहना चाहते हो कहो। तुम्हारी बातें, उन तक ना पहुंचेगी।" देवराज चौहान ने कहा।
"बाद में गड़बड़ मत कर देना।" इस्माइल ने देवराज चौहान को देखा।
"विश्वास करो मेरा। बातें मुझ तक ही रहेगी।"
"ठीक है। तो सुनो, कादिर शेख या अनीस अहमद में से कोई एक गद्दार है।" इस्माइल ने कहा।
"कैसा गद्दार?"
"वो जो भी है, उसने मिलिट्री को उस रात के बारे में खबर दी थी कि हिन्दुस्तानी मिलिट्री का भेजा गोरिल्ला दल आज रात अपनी योजना को अंजाम देने वाला है। गोरिल्ला दल के छः लोग और हम तीनों के अलावा कोई नहीं जानता था कि उस रात गोरिल्ला दल, मिलिट्री के उस छोटे से कैम्प पर हमला करके फाइल ले जाने की कोशिश करेगा। हमारी सूचना के अनुसार वहां पर सिर्फ 12-13 मिलिट्री वाले थे और रात को सिर्फ चार मिलिट्री वालों ने ही पहरे पर होना था, जिन्हें कि गोरिल्ला दल ने बेहद खामोशी के साथ संभाल लेना था। गोरिल्ला दल उस रात बड़े हथियार के साथ साइलेंसर लगी रिवाल्वरें भी लेकर गया था कि उन चारों पहरेदार मिलिट्री वालों को, चुपचाप ठिकाने लगाया जा सके। गोरिल्ला दल के साथ मिलकर हमने जो योजना बनाई थी, उसमें कोई कमी नहीं थी। सब कुछ आसान था और गोरिल्ला दल ने काम निपटाकर, वो फाइल लेकर सुरक्षित वापस लौट आना था। लेकिन जो हुआ, वो सब उस समय तो मेरे समझ से बाहर ही रहा कि ये क्या हो गया।"
"क्या हुआ था?"
"गोरिल्ला दल को कैम्प में गए मात्र पांच मिनट ही बीते थे। मैं और अनीस अहमद कैम्प से कुछ दूर कार में बैठे, कैम्प पर नजर रख रहे थे कि तभी कैम्प से गोलियां चलने की आवाजें आने लगी। ऐसा लगा कि जैसे बहुत से लोगों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी हों। फायरिंग रुकने का नाम नहीं ले रही थी। जब मैंने और अनीस ने हालातों को बुरी तरह बिगड़ते देखा, हम वहां से हट गए और अलग-अलग हो गए। हम समझ चुके थे कि मामला खराब हो गया है। परंतु वहां हुआ क्या ये हमारी समझ में नहीं आ रहा था। मामला तो सीधा-सा था, गोरिल्ला दल ने चुपके से कैंप के भीतर प्रवेश करना था और साइलेंसर लगी रिवॉल्वरों का इस्तेमाल करके, सामने आने वाले को खत्म करते जाना था। जो सोए पड़े थे उन्हें छोड़ देना था, परंतु जिस तरह से फायरिंग शुरु हुई, वो तो गोरिल्ला दल के प्लान का हिस्सा नहीं था।"
कहकर इस्माइल चुप हुआ।
देवराज चौहान और भुल्ले खान खामोशी से उसकी बात सुन रहे थे। उसने पुनः कहा।
"अगले दिन मुझे खबर मिली कि चार गोरिल्ला रात मारे गए। दो बच निकले और फाइल ले गए।"
"किसने दी खबर?"
"कादिर शेख ने।" इस्माइल बोला--- "परंतु उन दो गोरिल्ला ने हमसे संपर्क नहीं बनाया था। वो जाने कहां थे। इस दौरान मैंने रात कैंप पर होने वाली घटना का पता किया तो मालूम हुआ रात कैंप पर पच्चीस-तीस मिलिट्री वाले मौजूद थे और पहले से ही मोर्चा लिए हुए थे। यानी कि उन्हें खबर थी आज रात कुछ लोग कैम्प पर आने वाले हैं। उन्हें कैसे पता चल गया जबकि ये बात तो उन छः गोरिल्ला और हम तीनों के बीच थी। स्पष्ट था कि किसी ने, हम तीनों में से किसी ने ये खबर मिलिट्री को दी। ये काम करने वाला मैं नहीं था तो जाहिर है कि उन दोनों में से ही कोई एक होगा।"
"कादिर शेख या अनीस अहमद में से कोई एक पाकिस्तानी मिलिट्री के लिए भी काम करता है।"
इस्माइल ने सिर हिला दिया।
"तुमने ये बात उन दोनों से नहीं कहीं?"
"नहीं। कहकर मैं खुद को मुसीबत में नहीं डालना चाहता। उसके इशारे पर मिलिट्री मुझे पकड़ लेती या शूट कर देती। तुम भी ये बात उन्हें मत बताना कि गोरिल्ला के मामले के बारे में मैं क्या विचार रखता हूं।" इस्माइल बोला।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"मेजर ने अपने तीन जवान गोरिल्ला दल पर नजर रखने को भेज रखे थे। मेरे ख्याल में मेजर को ऐसा नहीं करना चाहिए था। कर दिया तो हमें बता देना चाहिए था कि गोरिल्ला दल पर उसके जवान नजर रख रहे हैं। लेकिन मिलिट्री वाले शायद उन तीनों के बारे में भी जान गए थे। तभी तो उनमें से दो मारे गए और तीसरा लापता हो गया। आज तक उसका पता नहीं चला कि वो कहां गया जिंदा है या मर गया। वो वापस सीमा पार करके मेजर के पास नहीं पहुंचा।" इस्माइल ने गंभीर स्वर में कहा।
"क्या पता गोरिल्ला ने वो फाइल उसी को दे दी हो।" देवराज चौहान ने कहा।
"तो फिर उसे मेजर के पास पहुंच जाना चाहिए था।"
"वो डर की वजह से कहीं छिपा बैठा हो। ज्यादा दिन तो नहीं बीते इस मामले को। हो सकता है वो अब मेजर के पास पहुंच जाए।"
इस्माइल के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर सिर हिलाकर बोला।
"ऐसा नहीं हो सकता। गोरिल्ला वो फाइल उस पीछे लगे जवान को नहीं दे सकता। क्योंकि गोरिल्ला दल में से कोई भी नहीं जानता था कि मेजर ने अपने तीन सैनिक उनके पीछे लगा रखे हैं।"
"शायद उस गोरिल्ला को पता चल गया हो। वो उस जवान को पहले से जानता हो। वे थे तो सब हिन्दुस्तानी मिलिट्री के ही।"
"तुम्हारी बात मेरे गले से नीचे नहीं उतरती।"
"तो गोरिल्ला ने पकड़े जाने से पहले वो कागज किसे दिए होंगे?" देवराज चौहान ने कहा।
"शायद किसी को भी नहीं। मेरे ख्याल में उसने वो कागज कहीं छुपा रखे हैं।"
"कहां?"
"मुझे क्या पता। इस बात का जवाब तो गोरिल्ला ही दे सकता है।"
"गोरिल्ला से बात करने का कोई रास्ता नहीं कर सकता है।"
"नहीं। वो मिलिट्री हैडक्वार्टर में रखा गया है। उससे सख्ती से पूछताछ हो रही होगी। उस तक तो हर किसी को जाने की भी इजाजत नहीं होगी। खास-खास मिलिट्री वाले ही उसके पास जाते होंगे।" इस्माइल ने कहा।
"मिलिट्री जानती है कि उस फाइल को पाने के लिए, हिन्दुस्तानी मिलिट्री ने गोरिल्ला दल भेजा था?"
"जरूर जानती होगी।"
"कैसे?"
"गद्दार तो हम में से ही हैं।"
देवराज चौहान ने कश लिया और बोला।
"तुम्हारा कहना है कि अनीस अहमद या कादिर शेख में से कोई एक डबल एजेंट का काम कर रहा है।"
"हां।"
"तो तुम किसकी तरफ उंगली उठाओगे? किस पर तुम्हें ज्यादा शक है?"
"दोनों में से वो कोई भी हो सकता है।"
"किसी एक का नाम लो।"
"किसी एक की तरफ मैं उंगली नहीं उठा सकता।" इस्माइल ने सोच भरे स्वर में कहा--- "अनीस या कादिर कोई भी हो सकता है।"
"तुम उन कागजों के बारे में कोई विचार जाहिर नहीं कर सकते कि वो कहां पर होंगे?"
"नहीं बता सकता। उस रात के बाद गोरिल्ला दल के किसी भी मेंबर के साथ मुलाकात नहीं हुई। देखा भी नहीं। दो वहां से फाइल के साथ निकल आए थे। उनमें से एक को अगले दिन किसी ने शूट कर दिया।"
"किसने?"
"कह नहीं सकता। शायद मिलिट्री ने ही मारा हो। वो नजर में आ गए हों।"
"और उन तीन जवानों, जो कि गोरिल्ला दल पर नजर रख रहे थे उनमें से दो को किसने शूट किया?"
"ये भी नहीं जानता।"
"वो तीनों तो मिलिट्री की नजर में आने से रहे।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं इस बारे में उलझन में हूं। मुझे भी ये विचार सूझा था कि पाकिस्तानी मिलिट्री ने भला उनके बारे में कैसे जान लिया। मेरे ख्याल में ये काम अपने ही किसी आदमी का किया हो सकता है।"
"अपना कौन?"
"अब मुझे क्या मालूम? मेजर ने तो उन तीनों के बारे में किसी को बताया भी नहीं था। ऐसे में ये समझना पहेली जैसा है कि उन दोनों को किसने मारा होगा।" इस्माइल ने कहा।
"मेजर से पूछा इस बारे में?"
"ऐसी बातें पूछना हमारे काम में नहीं आता।"
"अपने शक के बारे में भी मेजर को नहीं बताया?"
"मैं नई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता। कादिर और अनीस को जब पता चलेगा कि मैं उन पर शक कर रहा हूं तो उनमें से जो भी डबल एजेंट का काम कर रहा है, वो मेरा भी इंतजाम कर देगा। ये बात मैंने तुम्हें इस भरोसे के साथ कही है कि इसे तुम अपने तक ही रखोगे। यही वादा किया है तुमने।" इस्माइल गंभीर था।
"चिंता मत करो।"
"मेरे हिसाब से हालात बुरे हो चुके हैं। मुझे खतरा लगा रहता है कि मिलिट्री मुझ तक ना पहुंच जाए। जो भी डबल एजेंट का काम कर रहा है, वो मेरे बारे में मिलिट्री को बता सकता है।"
"हो सकता है बता भी दिया हो।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या मतलब?"
"पाकिस्तानी मिलिट्री को कोई फायदा नहीं है तुम लोगों को पकड़ लेने का। मिलिट्री को इसी से फायदा दिखता होगा कि मेजर की हरकतों की जानकारी उन्हें मिलती रहे। जो डबल एजेंट का काम कर रहा है, वो करता रहे। मेजर के इस नेटवर्क को खत्म करने का मतलब है, मिलिट्री को, मेजर की खबरें मिलना बंद हो जाना, जिससे कि पाकिस्तान का नुकसान है।"
इस्माइल देवराज चौहान को देखने लगा।
"क्या हुआ?"
"तुम ठीक कहते हो।" इस्माइल कह उठा--- "इस बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं था।"
"ये बताओ कि गोरिल्ला को वहां से निकालने में तुम मेरी क्या सहायता कर सकते हो?"
"कुछ भी नहीं। वो मिलिट्री हैडक्वार्टर में कैद है। वहां उसकी हवा पाना भी कठिन है।"
"मिलिट्री हैडक्वार्टर में ऐसा कोई आदमी हो, जो इस बारे में मेरी सहायता कर सके।"
"इस मामले में कोई आगे नहीं आएगा।"
"तुम बात करके तो देखो।"
"मैं फंसना नहीं चाहता मिस्टर देवराज चौहान। गोरिल्ला को खास कैदी की तरह रखा होगा। मैं तो कहूंगा कि उसे वहां से निकाला नहीं जा सकता। तुम बेवकूफ हो जो ऐसा सोच रहे हो।"
"मैं नहीं, मेजर ऐसा सोचता है।"
"तो मेजर से कहो कि ये काम नहीं हो सकता।"
"मेरी बात उसकी समझ में नहीं आती। तुम उसे ये बात कहकर देखो।"
"मुझे क्यों इस मामले में खींच रहे हो। ये तुम्हारा और मेजर का मामला है।"
"कुछ और जो तुम बताना चाहो।"
"मैं पहले ही तुमसे ज्यादा बातें कर चुका हूं। पैसों की, हथियारों की जरूरत हो तो कह देना।" इस्माइल ने कहा।
"देवराज चौहान ने अपना सोच भरा चेहरा हिला दिय। फिर बोला।
"तुम तीनों के अलावा गोरिल्ला दल की किसी और को खबर नहीं थी?"
"जरा भी नहीं थी।" इस्माइल ने तुरंत कहा।
"इन दिनों मेजर का कोई आदमी इस्लामाबाद आया हुआ है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"कौन आदमी?"
"कोई भी, जैसे कि सूबेदार जीत सिंह, जीत सिंह को जानते हो?"
"एक बार मिला था उससे। किसी काम के लिए सीमा पार, मेजर से मिलने गया था, तब सूबेदार जीत सिंह से मिला था।"
"जीत सिंह अभी पाकिस्तान में तो नहीं।"
"मुझे तो ऐसी कोई खबर नहीं मिली।" इस्माइल बोला--- "गोरिल्ला दल के मामले के बाद सिर्फ तुम्हें ही मेजर ने भेजा है। क्या तुम अकेले आए हो इस काम के लिए।"
"हां। मेजर ने कहा था कि जितने आदमियों की जरूरत पड़ी, तुम लोग इंतजाम कर दोगे।"
इस्माइल ने गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को देखते हुए कहा।
"कादिर शेख और अनीस अहमद से मिले?"
"दोनों से मिल चुका हूं।"
"समझ लो कि तुम खतरे में पड़ चुके हो। उन दोनों में से कोई एक डबल एजेंट है। वो पाकिस्तान मिलिट्री के लिए भी काम कर रहा है और तुम्हारे बारे में मिलिट्री अब तक जान चुकी होगी। हो सकता है मिलिट्री तुम पर नजर भी रख रही हो। मैं भी मुसीबत में पड़ जाऊंगा। क्या तुमने ध्यान दिया कि कोई तुम्हारे पीछे ना हो।" इस्माइल बेचैन हो उठा।
देवराज चौहान ने भुल्ले खान से पूछा।
"तुमने इस बात का ध्यान दिया भुल्ले?"
"जरा भी नहीं।"
"मैंने भी ध्यान नहीं दिया।" कहते हुए देवराज चौहान ने इस्माइल को देखा।
इस्माइल उसी पल खड़ा होते कह उठा।
"मैं चलता हूं। सारे हालातों से तुम वाकिफ हो गए हो। इस काम में तुम्हारी जान जा सकती है या मिलिट्री के हाथों में फंस सकते हो। खबरें उन तक पहुंच रही हैं। मेरी जरूरत पड़े तो फोन पर ही बात कर लेना, मिलने की कोशिश मत करना। अच्छा यही होगा कि मेरे को यहां के बुरे हालातों के बारे में बताओ कि यहां सब गड़बड़ हुई पड़ी है। गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालने की खामख्वाह की सोच मेजर के दिमाग में घुसी हुई है। कोई फायदा नहीं होगा।"
"कहीं गोरिल्ला ने मुंह खोल तो नहीं दिया, उस फाइल के बारे में?" देवराज चौहान ने पूछा।
इस्माइल पल भर के लिए ठिठका फिर बोला।
"मेरी जानकारी के मुताबिक अभी तक तो उसका मुंह बंद है।"
"तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर से ही ये खबरें ले रहे हो?"
"हां। बदले में नोट देने पड़ते हैं। वहां स्थित मेरा आदमी, इससे ज्यादा काम नहीं आ सकता। उसे मिलिट्री हैडक्वार्टर में चौथी मंजिल पर एक कमरे में कैद कर रखा है।" कहने के साथ ही इस्माइल वहां से आगे बढ़ता चला गया।
देवराज चौहान गंभीर निगाहों से उसे जाता देखता रहा।
"ये तो गया।" भुल्ले खान कह उठा।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"तुम्हारा क्या ख्याल है मिलिट्री हम पर नजर रख रही होगी?" भुल्ले खान ने पूछा।
"कह नहीं सकता। आसपास नजर रखते रहो। सतर्क रहो। पता चल जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"मेरे ख्याल में हम खतरनाक हालातों में घिरते जा रहे हैं।" भुल्ले खान का स्वर गंभीर था।
"तुम्हें मुझसे अलग हो जाना चाहिए भुल्ले---।"
"मेरा वो मतलब नहीं था।"
"पर मेरा मतलब स्पष्ट है कि मेरे से अलग हो जाओ, वरना तुम भी जाओगे।" देवराज चौहान ने उसे देखा।
"मैं तुम्हारे साथ सिर्फ इसलिए हूं कि तुम मेरी वजह से ही फंसे हो। अपने चचेरे भाई अहमद खान को मैंने ही तुम्हारे बारे में बताया था और वो कमीना मेजर से मिला हुआ था। सारी खबर उसे दे दी।"
"मैंने तुमसे कोई शिकायत नहीं की कि तुम---।"
"अभी तो राणा साहब को ये सब पता नहीं है। जब उन्हें पता लगेगा तो---।"
"मैं वसीम राणा को नहीं कहूंगा कि मैं इस तरह फंस गया। तुम मुझसे अलग हो जाओ।" देवराज चौहान गंभीर था।
"मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा।" भुल्ले खान ने दृढ़ लहजे में कहा।
देवराज चौहान चुप रहा। वहां तक पहुंचती मध्यम रोशनी में उसका सोच भरा चेहरा दिख रहा था।
"इस्माइल के बारे में तुम्हारी क्या राय है?" भुल्ले खान ने पूछा।
"इस्माइल, अनीस, कादिर, तीनों ही मंजे हुए खिलाड़ी हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या मतलब?"
"मैं नहीं भांप सका कि इन तीनों में कौन डबल एजेंट हो सकता है।"
"है तो इन तीनों में से कोई एक।"
"हालात तो इसी बात की तरफ इशारा कर रहे हैं।"
"अब तक तो मिलिट्री वालों के पास तुम्हारे बारे में भी खबर पहुंच गई होगी, हिन्दुस्तान से तुम उस कैद गोरिल्ला को छुड़ाने के लिए भेजे गए हो। ये तो तुम्हारे लिए पूरी तरह खतरे वाली बात हो गई। इस तरह तो तुम किसी भी हाल में उस गोरिल्ला को वहां से निकालने में सफल नहीं हो सकते।" भुल्ले खान ने कहा।
"मैं सोच रहा हूं कि मेजर का वो तीसरा जवान इस्लामाबाद में कहां गायब हो गया जो गोरिल्ला दल पर नजर रख रहा था। उसके पास फाइल वाले कागज हो सकते हैं। गोरिल्ला ने उसे दिए हो सकते---।"
"क्या पता तुम्हारी बात सही हो कि वो कागजों के साथ कहीं छुपा है और कभी भी मेजर के पास पहुंच सकता है।"
"सवाल ये भी उठता है कि उसके दोनों साथियों को किसने शूट किया? वो तो किसी की नजर में नहीं थे।"
"क्या पता वो मिलिट्री की नजर में आ गए हों।"
"कुछ भी हुआ हो सकता है।"
"तुम तो गोरिल्ला को आजाद कराने आए हो, पर मुझे लगता है तुम फालतू की बातों में उलझ रहे हो।" भुल्ले खान बोला।
"ये फालतू की बातें नहीं है। मेरे काम से वास्ता रखती ही बातें हैं। मुझे ये जानने का पूरा हक है कि गोरिल्ला दल ने क्या किया? उनके साथ क्या हुआ और वो कैसे फंसे। सब कुछ मालूम होने पर ही मैं गोरिल्ला को आजाद कराने का प्लान बना सकता हूं। अब मुझे नए हालातों का पता चला है कि इन तीनों में कोई एक डबल एजेंट है। अगर मैं सीधे-सीधे इस पर भरोसा करके गोरिल्ला को आजाद कराने पर लग जाता तो अब तक मैं फंस चुका होता।"
भुल्ले खान ने कुछ नहीं कहा।
"पाकिस्तान में पहुंचकर काम कर रहा हूं तो यहां के हालातों से भी मुझे वाकिफ होना चाहिए। कहीं मैं भी गोरिल्ला दल की तरह धोखा ना खा जाऊं---।" देवराज चौहान ने कहा।
"अब तुम इन बातों का क्या करोगे?"
"कुछ नहीं, बस इनसे दूर रहूंगा। इनसे पैसे लूंगा, हथियार लूंगा, पर ये नहीं जान सकेंगे कि मैं क्या कर रहा हूं।"
"तो काम के लिए आदमी कहां से लोगे?"
"कोई इंतजाम तो करना ही होगा। जब वक्त आएगा तो इसका भी कोई रास्ता निकल आएगा। सोचूंगा।"
"पता नहीं तुम क्या करोगे और आगे क्या होने वाला है।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा और खड़ा होते हुए बोला--- "आओ, सामने के रेस्टोरेंट्स से कुछ खा लें।"
देवराज चौहान भी उठ खड़ा हुआ।
"आज मिलिट्री हैडक्वार्टर जाना रह गया।"
"कोई बात नहीं। कल चलेंगे।"
दोनों रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गए।
"अगर गोरिल्ला ने कागजों के बारे में मुंह खोल दिया तो फिर ये काम यहीं का यहीं खत्म हो जाएगा।" भुल्ले कह उठा।
"हां। इसलिए मुझे जो करना है जल्दी करना होगा। गोरिल्ला के मुंह खोलने से पहले करना होगा।" देवराज चौहान बोला।
"तुम्हारे सूबेदार जीतसिंह ने आज का दिन खराब कर दिया। मैंने तो पहले ही कहा था कि इस्लामाबाद में क्या करने आएगा।"
"मुझे धोखा नहीं हो सकता। मैंने सूबेदार जीतसिंह को ही देखा था।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"ये कैसे हो सकता है। मेजर तो कहता है कि वो अमृतसर के पास गांव में है। मेजर ने उससे बात की है।"
"यही बात तो समझने की चेष्टा कर रहा हूं कि मैं गलत हूं या मेजर।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली।
"तुम ही गलत हो। सूबेदार जीतसिंह इस्लामाबाद में क्या करने आएगा। तुम्हें धोखा हुआ है।" भुल्ले खान ने कहा।
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अगले दिन बारह बजे देवराज चौहान और भुल्ले खान फ्लैट से निकले, मिलिट्री हैडक्वार्टर जाने के लिए। देवराज चौहान इस तरह मेकअप में था कि पाकिस्तान का स्थानीय व्यक्ति लग रहा था। पठानी सूट पहन रखा था और पांवों में जूते थे। बालों का स्टाइल बदलकर साधारण सा बना रखा था। चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी। इस वक्त उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वो पाकिस्तानी नहीं है।
दोनों कार में जा बैठे। भुल्ले खान ने कार आगे बढ़ाते हुए कहा।
"मैं तुम्हें मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर इसलिए ले जा रहा हूं कि अच्छी तरह देख सको कि वहां से गोरिल्ला को निकाला नहीं जा सकता। अगर तुम निकाल सकते हो तो जुदा बात है।" वो गंभीर था--- "बेहतर होगा मिलिट्री हैडक्वार्टर से हो आने के बाद मेजर से स्पष्ट कह देना कि ये काम नहीं हो सकता।"
देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"मैं मेजर से ऐसा नहीं कह सकता।" देवराज चौहान बोला।
"क्यों?"
"जगमोहन को उसने पकड़ रखा है उसे पुलिस के हवाले कर सकता है वो।"
"कमीना अहमद।" भुल्ले खान ने गुस्से से कहा--- "बुरा फंसा गया हरामी।"
"उसे भूल जाओ। तुम उसे मार चुके हो।"
"उसने गद्दारी नहीं की होती तो ये सब होना ही नहीं था।" भुल्ले खान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "रात मैं सपने में भी यही सोचता रहा कि तीनों में से कौन गद्दार हो सकता है। पर कुछ भी समझ नहीं पाया।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"अगर तुमने ये काम किया तो अकेले नहीं कर सकोगे। लोगों को कहां से लोगे?"
"कुछ-कुछ सोचा है।"
"क्या?"
"पहले मिलिट्री हैडक्वार्टर देख लूं, उसके बाद बताऊंगा।"
भुल्ले खान इंकार में सिर हिलाता कह उठा।
"मेरे ख्याल में तुम्हें साथियों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। मिलिट्री हैडक्वार्टर से गोरिल्ला को नहीं निकाला जा सकता। ये बातें तुम जल्दी ही महसूस कर लोगे। कुछ करने की सोची तो तुम बचने वाले नहीं। वहां पर पक्के इंतजाम हैं।"
मिलिट्री हैडक्वार्टर के बगल में ही बहुत बड़ी खाली जगह पार्किंग के लिए थी। चारदीवारी कर रखी थी। यूं गाड़ियां मिलिट्री हैडक्वार्टर की बिल्डिंग में भी जाती थी, वहां भी पार्क होती थी, परंतु जगह कम पड़ने की वजह से बगल की खाली जगह पर चारदीवारी करके पार्किंग बना दिया गया था। वहां मिलिट्री के चार जवान सतर्कता से आने-जाने वाली गाड़ियों पर नजर रखते थे क्योंकि फौजियों के अलावा सामान्य लोगों का आना भी लगा रहता है।
भुल्ले ने अपनी कार वहां खड़ी गाड़ियों की कतार में लगाई और देवराज चौहान के साथ वहां से बाहर निकलकर मिलिट्री हैडक्वार्टर के मुख्य गेट पर आया। वो बारह फीट चौड़ा गेट था। बैरियर लगा हुआ था और दो जवान वहां पर, ड्यूटी के लिए मौजूद थे। कंधों पर गनें लटकी थी। मिलिट्री वाले भीतर बाहर आ-जा रहे थे और आने-जाने वाली मिलिट्री के गाड़ियों के लिए बार-बार बैरियर उठा रहे थे। वे बहुत व्यस्त दिखे।
भुल्ले खान ने देवराज चौहान के साथ भीतर निकल जाना चाहा।
परंतु उन दोनों जवानों ने उन्हें फौरन रोक लिया।
"किधर जा रहे हो?" एक ने रौबीले स्वर में पूछा।
दोनों ठिठके। भुल्ले खान कह उठा।
"मेजर बख्तावर अली साहब से मिलना है।"
"क्यों?"
"काम है। वो काम तुम्हें नहीं बताया जा सकता।" भुल्ले ने कहा।
"मिलने का वक्त लिया है।" जवान ने पूछा।
"मुझे वक्त लेने की जरूरत नहीं।"
जवान ने भुल्ले को सिर से पांव तक देखा।
"मैं पहले भी मेजर बख्तावर अली से मिलने आ चुका हूं।"
"ये कौन है?" उसने देवराज चौहान को देखा।
"मेरे साथ है।"
"तुम्हारे साथ है और हम तुम्हें भी नहीं जानते। तुम लोग भीतर नहीं जा सकते।" जवान ने कहा।
"बख्तावर अली साहब से इंटरकॉम पर बात कर लो।" भुल्ले ने पास ही बने बूथ की तरफ इशारा किया।
"मैं जरूरत नहीं समझता। अपॉइंटमेंट लो। अपॉइंटमेंट की लिस्ट हमारे पास आ जाती है और तभी हम किसी को भीतर जाने देते हैं। बिना अपॉइंटमेंट के किसी ने आना होता है तो तब भी भीतर से हमें खबर मिल जाती है। हमें ऑर्डर है कि इस तरह किसी को भी भीतर ना जाने दिया जाए।" जवान ने ठोस स्वर में कहा।
भुल्ले खान जेब से फोन निकालता बोला।
"मैं अभी मेजर साहब से तुम्हारी बात करा देता हूं।" भुल्ले नंबर मिलाने लगा।
तभी मिलिट्री की एक जीप बाहरी तरफ वहां आकर रुकी।
बैरियर उठा दिया गया।
जीप में दो मिलिट्री वाले थे। एक जवान गाड़ी चला रहा था। दूसरा कैप्टन था जो कि बगल में बैठा था। कैप्टन की निगाह भुल्ले पर पड़ी तो फौरन कह उठा।
"भुल्ले खान, कैसे हो?"
भुल्ले ने तुरंत सिर उठाया और कैप्टन को देखकर मुस्कुरा कर बोला।
"हैलो कैप्टन। तुम्हें देखकर खुशी हुई।"
"यहां कैसे आना हुआ?"
"मेजर बख्तावर अली साहब से मिलने...।"
"तो यहां क्यों खड़े...।"
"ये जवान मुझे भीतर जाने से रोक रहे हैं। मेरे साथ मेरा मौसेरा भाई भी है।"
"इन्हें भीतर जाने दो।" कैप्टन बैरियर के पास खड़े जवानों से कहा।
"जी सर।" जवानों ने सतर्क अंदाज में कहा।
"फिर मिलेंगे भुल्ले।" कैप्टन ने कहा, हाथ हिलाया और जीप आगे बढ़ गई।
"जरूर जनाब।" भुल्ले खान ने भी मुस्कुराकर हाथ हिलाया।
फिर देवराज चौहान के साथ भुल्ले भीतर प्रवेश कर चला गया। बाहरी गेट से इमारत के प्रवेश द्वार तक फासला सौ मीटर के करीब था। इस सौ मीटर में छोटा-सा पार्क बना हुआ था। वहां रंग-बिरंगे फूल लगे थे। बाकी की खाली जगहों पर मिलिट्री के वाहन खड़े थे। हर तरफ मिलिट्री वाले ही नजर आ रहे थे अपने कामों में व्यस्त। सामान्य लोग बहुत कम, लगभग ना के बराबर ही दिख रहे थे। मिलिट्री वर्दियों की हलचल थी, जहां भी नजर जाती।
देवराज चौहान सामान्य, परंतु सतर्क निगाहों से हर तरफ का हाल देख रहा था।
वे मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो वहां मौजूद जवान ने उन्हें रोका।
"बाहर वाले जवानों से पूछ लो।" भुल्ले खान ने शांत स्वर में कहा--- "कैप्टन अशफाक साहब ने उन्हें कहा था कि हमें भीतर जाने दें और हमने मेजर बख्तावर अली साहब से मुलाकात करनी है।"
उन्हें भीतर जाने दिया गया।
भीतर प्रवेश करते ही उन्होंने खुद को होटलों जैसे लाउंज में पाया। बहुत बड़ा हॉल था और एक तरफ गद्देदार सोफे लगे हुए थे। ए•सी• की ठंडक हर तरफ थी। दूसरी तरफ तीस फीट लंबा रिसेप्शन जैसा काउंटर था, उसके पीछे चार जवान खड़े थे। हर जवान के सामने मोटा-सा रजिस्टर रखा था। आने वाले रजिस्टर में अपना नाम, वक्त लिखते और जिससे मिलना होता उसका नाम लिखते, उसके बाद रिसेप्शन से उस शख्स को फोन करके पूछा जाता कि वो आने वाले से मिलना चाहता है या नहीं? अगर वो ऑफिसर्स नीचे आकर मिलता है तो इसके लिए शानदार सोफे रखे थे, वो ठीक समझता तो आने वालों को अपने ऑफिस में भेज देने को कहता।
भुल्ले, देवराज चौहान के साथ सोफों पर जा बैठे।
"यहां क्यों?" देवराज चौहान ने भुल्ले को देखा।
"अब बख्तावर अली से बात करनी जरूरी है। वरना वो रिसेप्शन पर कह सकता है कि वो मुझसे नहीं मिलेगा। कोई काम तो है नहीं कि वो मुझसे मिले। उसे मैं शीशे में उतारूंगा।" फोन निकालता भुल्ले बोला।
देवराज चौहान की निगाह हर तरफ फिरने लगी।
एक तरफ आठ फीट चौड़ी सीढ़ियां ऊपर जाती दिखाई दी। उसके पास ही कतार में चार लिफ्ट लगी थी। मिलिट्री वाले सीढ़ियों से भी ऊपर आ-जा रहे थे और कुछ लिफ्ट इस्तेमाल कर रहे थे। हर कोई व्यस्त नजर आ रहा था। बाहरी लोग वहां दो-तीन ही दिखे। खामोश सा वातावरण हर तरफ मौजूद था।
भुल्ले खान के फोन पर मेजर बख्तावर अली से बात हो गई।
"मेजर साहब, सलाम वालेकुम। मैं भुल्ले खान, आपका पुराना सेवक।" भुल्ले ने मुस्कुरा कर कहा।
"वालेकुम सलाम। कैसे हो भुल्ले?" उधर से बख्तावर अली की आवाज आई।
"अल्लाह के फज़ल से बहुत बेहतर हूं जनाब। मैं किसी काम से हैडक्वार्टर आया था। सोचा आपसे भी मिल लूं। क्या आपके पास पांच मिनट होंगे मेरे से बात करने के लिए।" भुल्ले खान ने जल्दी से कहा।
"क्यों नहीं। आ जाओ।"
"अभी हाजिर हुआ जनाब।" भुल्ले ने कहकर फोन बंद किया और देवराज चौहान से बोला--- "सब ठीक है, आओ रिसेप्शन पर रजिस्टर पर एंट्री कर दें।"
देवराज चौहान और भुल्ले रिसेप्शन पर पहुंचे।
भुल्ले ने वहां की सारी फॉर्मेलिटीज पूरी की। रिसेप्शन पर मौजूद जवान ने फोन पर मेजर बख्तावर अली को भुल्ले खान के आगमन की खबर दी तो उधर से मेजर ने भेज देने को कहा।
जाने का इशारा मिलते ही दोनों लिफ्ट की तरफ बढ़ गए।
"तुम यहां के सारे हालात नोट कर रहे हो ना?" भुल्ले ने पूछा।
"हां।"
वे लिफ्ट के पास पहुंचे तो देवराज चौहान ने कहा।
"हमें सीढ़ियों से जाना चाहिए। इस तरह मैं यहां पर ज्यादा चीजें नोट कर सकता हूं।"
"ठीक है।"
फिर वे सीढ़ियां तय करने लगे।
"हमें कौन-सी मंजिल पर जाना है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"तीसरी।"
वे सीढ़ियां तय करके पहली मंजिल पर पहुंचे।
वहां छोटा-सा छोटा हॉल दिखा छोटा-सा ही रिसेप्शन दिखा। जिसके पीछे दो जवान मौजूद थे। एक जवान गन लिए कुर्सी पर खुले में बैठा था। मिलिट्री वाले आ-जा रहे थे।
वे दूसरी मंजिल के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगे।
दूसरी मंजिल पर भी, पहली मंजिल की तरह हॉल और रिसेप्शन था। वे तीसरी मंजिल के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगे।
"हम आसानी से चौथी मंजिल पर भी जा सकते हैं।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा।
"गलती मत कर बैठना।" भुल्ले बोला।
"क्यों?"
"हर मंजिल पर रिसेप्शन है। गन लिए जवान हैं। तुम्हें उनकी तसल्ली करानी होगी कि भीतर क्यों, किसलिए जा रहे हो। फिर वे फोन पर भीतर बात भी करेंगे और तुम्हारे आने की खबर देंगे। ये मिलिट्री हैडक्वार्टर है, जरा भी गलत हरकत करके, यहां से बाहर नहीं निकला जा सकता।" भुल्ले ने गंभीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। परंतु वो यहां की हर चीज को अपने दिमाग में बिठाता जा रहा था और तय करता जा रहा था कि वक्त आने पर उसे कैसे काम करना है।
दोनों तीसरी मंजिल पर पहुंचे।
देवराज चौहान ने हसरत भरी निगाहों से चौथी मंजिल की तरफ जाती सीढ़ियों को देखा।
भुल्ले खान और देवराज चौहान रिसेप्शन पर पहुंचे।
"मेजर बख्तावर अली साहब से मिलना है। मेरा नाम भुल्ले खान है।"
जवान ने तुरंत सिर हिलाकर कहा।
"मेजर साहब ने आपके आने के बारे में बता दिया है।" जवान ने देवराज चौहान को देखा--- "ये जनाब कौन हैं?"
"राशिद अली। मेरा मौसेरा भाई है।" भुल्ले खान ने मुस्कुराकर कहा।
"इसके बारे में मेजर साहब ने कुछ नहीं बताया।"
"ये मेरे साथ है।"
"मेजर साहब से पूछना पड़ेगा।" कहकर उसने रिसीवर उठाया और नंबर मिलाने लगा।
देवराज चौहान की निगाह कुछ फासले पर टहलते गनमैन पर थी।
जवान ने फोन पर बात करने के बाद रिसीवर रखते हुए कहा।
"आप लोग जा सकते हैं। रास्ता मैं समझा देता...।"
"रहने दीजिए। मैं पहले भी आ चुका हूं।" भुल्ले ने मुस्कुराकर कहा।
भुल्ले खान और देवराज चौहान सामने नजर आती चार गैलरियों में से एक गैलरी में प्रवेश कर गए। तीव्र रोशनी वहां फैली थी। मिलिट्री वाले आ-जा रहे थे। गैलरी के दोनों तरफ कमरों के दरवाजे नजर आ रहे थे जो कि बंद थे। गैलरी अभी और आगे जा रही थी परंतु भुल्ले बीच के मोड़ पर से मुड़कर दूसरी गैलरी में प्रवेश कर गया। ये गैलरी पहली गैलरी की अपेक्षा कुछ तंग थी।
"सतर्क रहना। हो सकता है हम C.C.T.V. द्वारा देखे जा रहे हों।" भुल्ले खान ने दबे स्वर में कहा।
फिर वे गैलरी के अंत में बने एक दरवाजे को खेलते हुए भीतर प्रवेश कर गए।
ये काफी बड़ा और सजा हुआ कमरा था। एक तरफ सोफे लगे थे। दूसरी तरफ टेबल और कुर्सियां लगी थी। वॉल-टू-वॉल कारपेट था। तेज रोशनी छत से टेबल पर पड़ रही थी। ए•सी• की ठंडक फैली थी। टेबल के पीछे रिवाल्विंग चेयर पर, पचास-बावन बरस का व्यक्ति मौजूद था। उसने वर्दी पहन रखी थी। कनपटियों के बाल सफेद थे। रौबीला चेहरा था। टेबल पर एक फाइल खुली पड़ी थी।
"सलाम मेजर साहब।"
"आओ भुल्ले, आओ।" मेजर ने मुस्कुराकर स्वागत भरे लहजे में कहा।
पास पहुंचकर भुल्ले ने हाथ मिलाया और देवराज चौहान की तरफ इशारा करके बोला।
"राशिद अली। मौसी का लड़का। लाहौर से आया है और अब मेरे साथ काम कर रहा है।"
मेजर ने देवराज चौहान से हाथ मिलाया।
दोनों कुर्सियों पर बैठे।
"क्या लोगे? कॉफी या ठंडा?" मेजर ने पूछा।
"कुछ भी नहीं। आपसे मुलाकात हो गई। यही बहुत है। मैं आपका ज्यादा वक्त खराब नहीं करना चाहता। यहां आया था तो आपसे मिलने चला आया। कई महीनों से आपने सेवा का मौका नहीं दिया।"
"तुम्हारे लिए काम तैयार हो रहा है।" मेजर बख्तावर अली मुस्कुराया--- "हम कुछ लड़कों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। ऊपर से आर्डर आने का इंतजार कर रहे हैं। जब भी लाइन क्लियर का आर्डर मिलेगा, तुम उन्हें गुजरात की तरफ से सीमा पार करा देना।"
"गुजरात की तरफ से? क्या इस बार कश्मीर की तरफ से नहीं?" भुल्ले ने कहा।
"उन लड़कों ने गुजरात में काम करना है।"
"जहां से आप कहेंगे उधर से ही उन्हें सीमा पार करा दूंगा। मेरे लिए तो मामूली काम है। कुछ महीनों से आप लोग धीमी रफ्तार से काम कर रहे हैं। पहले तो हर पन्द्रह दिन बाद...।"
"सरकार की तरफ से जैसा आर्डर मिलता है, वैसा ही करते हैं हम।" बख्तावर अली मुस्कुराया--- "अभी तो हिन्दुस्तान के साथ हम दोस्ताना भाव दिखा रहे हैं। अमेरिका शांति पर जोर दे रहा है।"
"अमेरिका को तो कुछ कहना है। कभी पाकिस्तान को कहता है तो कभी हिन्दुस्तान को।" भुल्ले हौले से हंसा।
"मैं तुम्हें जल्दी ही फोन करूंगा।"
"बेहतर जनाब।" भुल्ले ने सिर हिलाया।
"पिछली बार के नोट अभी तुम्हें देने हैं। मुझे याद है।" बख्तावर अली ने कहा।
"पैसे कहां भागे जा रहे हैं जनाब, बस आप सेवा का मौका देते रहिए।" भुल्ले खान ने मुस्कुराकर कहा।
"अब के काम के साथ तुम्हारा पूरा हिसाब कर दिया जाएगा।"
"मेहरबानी हुजूर।"
मेजर ने देवराज चौहान से कहा।
"राशिद अली साहब, आप भी भुल्ले के साथ ये काम करने लगे हैं?"
"जी जनाब।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये सीख रहा है अभी ट्रेनिंग पर समझिए। पर ये बढ़िया काम करेगा। तेजी से सब कुछ सीख रहा है।"
"तुम्हारे भाई अहमद का फोन आया था।" बख्तावर अली ने कहा।
"कब?" भुल्ले मुस्कुराकर उसे देखने लगा।
"कुछ दिन हो गए। वो भी काम के लिए पूछ रहा था कि सामान को भिजवाना है क्या?"
"जनाब मेरे में और अहमद में कोई फर्क नहीं। आप किसी से भी काम...।"
"मेरी तसल्ली तुम्हारे से ही होती है भुल्ले।"
"तारीफ का शुक्रिया। वैसे अहमद भी अच्छी तरह काम करता है।" भुल्ले बोला।
"मैं तुम्हें फोन करूंगा।"
बातचीत खत्म हो गई। दोनों विदा लेकर बाहर निकल आए।
देवराज चौहान वहां का हर रास्ता अपने दिमाग में बिठाता जा रहा था। जब वे नीचे जाने के लिए सीढ़ियों के पास पहुंचे तो देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा।
"हम चौथी मंजिल पर जाएंगे।"
"लेकिन---।" भुल्ले ने चौंककर कहना चाहा।
"कुछ नहीं होगा, आओ---।" कहते हुए देवराज चौहान चौथी मंजिल के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगा।
ना चाहते हुए भी भुल्ले खान को देवराज चौहान के साथ जाना पड़ा।
परंतु भुल्ले के चेहरे पर व्याकुलता दिखने लगी थी। वो पास पहुंचकर बोला।
"तुम बहुत गलत कर रहे हो। हममें ये बात तय नहीं हुई थी।"
"मैं कुछ नहीं कर रहा। तुम बस, साथ रहो।"
वे चौथी मंजिल पर आ पहुंचे। वहां भी छोटे हॉल में रिसेप्शन बना हुआ था। एक जवान गन लिए कुर्सी पर बैठा था और दो जवान रिसेप्शन काउंटर के पीछे थे। उनकी नजरें इन पर टिक गई। तीन मिलिट्री वाले लिफ्ट के पास खड़े लिफ्ट आने का इंतजार कर रहे थे। दो सीढ़ियों से ऊपर आ रहे थे और पांच-छः मिलिट्री वाले एक तरफ की गैलरी में अभी-अभी बाहर निकले थे।
देवराज चौहान की निगाह से हर तरफ फिर चुकी थी।
"नीचे चलो।" भुल्ले फुसफुसाया--- "यहां हमारा कोई काम नहीं। तुम फंसवा दोगे। तुम्हारी दाढ़ी नकली है।"
खामोशी से देवराज चौहान पलटा और सीढ़ियां उतरने लगा।
भुल्ले ने चैन की सांस ली और देवराज चौहान के साथ हो गया।
पन्द्रह मिनट बाद दोनों मिलिट्री हैडक्वार्टर से बाहर, पार्किंग में खड़ी कार के पास मौजूद थे।
"चौथी मंजिल पर जाकर तो तुमने मुझे परेशान कर दिया। ऐसा तुमने क्यों किया?" भुल्ले ने नाराजगी से कहा।
"मैं वहां नजर मारकर ये एहसास पाना चाहता था कि गोरिल्ला मेरे से ज्यादा दूरी पर नहीं है।"
"ये क्या बात हुई।"
देवराज चौहान खामोश रहा।
"अब तो तुमने देख लिया ना कि गोरिल्ला को किसी भी हाल में वहां से नहीं निकाला जा सकता।" भुल्ले बोला।
"रास्ता बनाया जा सकता है।"
"क्या?" भुल्ले अचकचा कर देवराज चौहान को देखने लगा--- "तुम पागल हो गए हो।"
"तुम क्या सोचते हो कि मेजर ने मुझे कहा कि गोरिल्ला मिलिट्री हैडक्वार्टर के गेट पर खड़ा होगा और उसे वहां से उठा लाना है। ऐसी बात होती तो ये काम कोई भी कर लेता। परंतु मैं उसके हाथ में लग गया। उसने मेरे से ये काम लेने का फैसला किया तो मेजर पागल नहीं है।" देवराज चौहान गंभीर था--- "वो जानता है कि मैं इस तरह के कामों के लिए रास्ता निकाल लेता हूं। वो जानता है कि मैंने कैसी-कैसी डकैतियां की हैं। तभी तो जगमोहन को दबाकर बैठ गया और मुझे इस्लामाबाद भेज दिया कि गोरिल्ला को वहां से निकालूं।"
भुल्ले उलझन भरी निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था।
"तुम कहना चाहते हो कि तुम ये काम कर लोगे?" भुल्ले ने बेचैनी से कहा।
"शायद---।"
"कैसे?"
"अभी इस बारे में सोच रहा हूं।"
"तुमने देखा नहीं कि मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर घुसना भी कठिन है और तुम वहां से गोरिल्ला को बाहर निकाल ले आने को कह रहे हो। तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया। मैं तो तुम्हें इसलिए मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर ले गया था कि अच्छी तरह देख सको कि गोरिल्ला को निकालने का काम नहीं किया जा सकता।" भुल्ले जैसे तड़प रहा था।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया। बोला।
"ये काम करना मेरी मजबूरी बन चुका है। ना किया तो मेजर जगमोहन को पुलिस के हवाले कर देगा।"
"बेवकूफ।" भुल्ले तिलमिलाकर बोला--- "वो जगमोहन को पुलिस के हवाले कर देगा तो उसे पुलिस से छुड़ा लेना। गोरिल्ला को पाकिस्तान के मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालने की अपेक्षा बहुत आसान काम है जगमोहन हिन्दुस्तान की पुलिस के हाथों से निकाल लाना। खामख्वाह तुम अपनी मौत का इंतजाम मत करो।"
"मैं नहीं चाहता कि हिन्दुस्तान की पुलिस का कोई आदमी जगमोहन को छुड़ाने के चक्कर में मारा जाए।"
"मारा भी जाए तो क्या परवाह है।"
"मुझे परवाह है। मैं हिन्दुस्तानी हूं। हिन्दुस्तान में ही रहना है मुझे और मेरा उसूल है कि पुलिस से किसी भी तरह का झगड़ा मत लो। पुलिस से झगड़ा लिया तो वो मेरे खिलाफ होकर, मुझे बर्बाद कर देगी। मैंने आज तक पुलिस से झगड़ा नहीं किया। पुलिस मेरे रास्ते में आती है तो मैं रास्ता बदल लेता हूं।"
"इतने बड़े डकैती मास्टर हो। कभी तो पुलिस वाले को मारा ही होगा। इतने शरीफ तो नहीं कि---।"
"कभी नहीं मारा। ऐसा सोचो भी मत।"
भुल्ले देवराज चौहान को देखने लगा।
देवराज चौहान ने कश लिया।
"तो तुम सोचे बैठे हो कि गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से निकालने का पागलपन करोगे।"
"हां।"
"तुम अपने साथ मुझे भी खतरे में डाल रहे हो। पुलिस-मिलिट्री जान लेगी कि मैं तुम्हारे साथ था।"
"तुम्हें मुझसे अलग हो जाना चाहिए।"
"इतना डरपोक नहीं हूं मैं।" भुल्ले ने गुस्से में कहा--- "मैं तो तुम्हें समझा रहा...।"
"मुझे मत समझाओ, तुम समझो कि मैं ये काम करने वाला हूं। यहां से चलो। बाकी जो बातें करनी हों, फ्लैट पर जाकर कर लेना। इस काम में खतरा है, इसलिए तुम्हें अलग हो जाना चाहिए।"
"तुम अहमद की वजह से इस मुसीबत में फंसे हो। अहमद मेरा चचेरा भाई था। अगर मैंने तुम्हें बीच रास्ते में छोड़ दिया तो अल्लाह को जाकर क्या मुंह दिखाऊंगा कि मैं डर के तुमसे अलग हो गया था। भुल्ले बेशक गलत काम करता है परंतु ईमानदारी से करता है। मैं तुमसे यही कहूंगा कि ये काम मत करो। मारे जाओगे। अगर नहीं मानोगे तो तब भी इस काम में मैं तुम्हारे साथ रहूंगा और अंत तक तुम्हारा साथ दूंगा।"
देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा उसे देखकर।
"मुस्कुराओ मत। अगर तुम ये काम करने वाले हो तो अपनी मौत के लिए दिन गिनना शुरू कर दो।"
■■■
रास्ते में लंच करते आए थे और साढ़े चार बजे वे फ्लैट पर पहुंचे। इस दौरान उनके बीच खास बातें नहीं हुई थी। भुल्ले खान चुप-चुप सा था और देवराज चौहान सोचों में डूबा हुआ था। देवराज चौहान के कहने पर भुल्ले ने कॉफी बना ली थी। देवराज चौहान ने खामोशी से कॉफी समाप्त की। भुल्ले खान बेड पर लेटा आराम कर रहा था। देवराज चौहान ने फोन निकाला और कादिर शेख का नंबर मिला कर फोन कानों से लगा लिया।
भुल्ले खान की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।
उधर बेल गई फिर कादिर शेख की आवाज कानों में पड़ी।
"हैलो।"
"मैं बोल रहा हूं। पहचाना?" देवराज चौहान ने कहा।
"पहचान लिया। तुम्हारे बारे में ही अभी सोच रहा था।" उधर से कादिर शेख ने कहा।
"क्या?"
"यही कि तुम क्या कर रहे हो?"
"मैं कुछ नहीं कर रहा। आराम से बैठा हूं।" देवराज चौहान बोला।
"समझ गया कि अब तुम समझदारी से काम ले रहे हो।" कादिर शेख की आवाज आई।
"मैं तुमसे एक बार फिर जानना चाहता हूं कि गोरिल्ला मिलिट्री हैडक्वार्टर में कहां है?"
"चौथी मंजिल, कमरा नंबर अट्ठाईस।"
"पक्का?"
"पक्का।"
"चौथी मंजिल पर क्या होता है।" देवराज चौहान ने पूछा।
"चौथी मंजिल पर मिलिट्री के सबसे अहम काम होते हैं। वहां के कुछ कमरों में कैदियों को भी रखा जाता है और कमरे कैदियों के वास्ते तैयार किए हुए हैं।" कादिर शेख की आवाज कानों में पड़ी।
"मैं यही जानना चाहता था।"
"तुम क्या कर रहे हो इस बारे में? मेरी सलाह ले सकते हो।"
"मेहरबानी। इन दिनों मैं आराम कर रहा हूं।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"तुमने ये भी नहीं बताया कि कहां ठहरे हो। क्या अनीस या इस्माइल की किसी जगह पर रुके हुए हो।"
"मुझे नहीं समझ आ रहा कि तुम क्या कह रहे हो।" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"ये अच्छी बात है कि तुम वास्तव में समझदार हो गए हो। ऐसे ही बने रहना, तब बचे रह सकोगे।"
देवराज चौहान ने फोन बंद करके अनीस अहमद का नंबर मिलाया।
फौरन ही बात हो गई।
"तुम आज मुझे फोन करने वाले थे।" देवराज चौहान ने कहा।
"पैसों के बारे में?" उधर से अनीस अहमद की आवाज आई।
"हां। जरूरत पड़ने पर मुझे कितने पैसे मिल सकते हैं?" देवराज चौहान बोला।
"मैंने विनोद भाटिया से बात की थी---।"
"विनोद भाटिया?"
"मेजर का वो एजेंट जो पैसे के मामले संभालता है। उसका नाम विनोद भाटिया है।"
"समझा, कहो---।"
"विनोद का कहना है कि तुम्हें उसका फोन नंबर दे दूं। मतलब कि इस मामले में तुम सीधी उससे बात कर सकते हो।"
"नंबर दो।"
उधर से अनीस अहमद ने विनोद भाटिया का नंबर देकर फोन बंद कर दिया।
देवराज चौहान ने विनोद भाटिया को फोन किया। बात हुई।
"अनीस ने मुझे तुम्हारा नंबर दिया है। मेरा नाम देवराज चौहान है।" देवराज चौहान बोला।
"कोडवर्ड बोलो।"
"गोरिल्ला।"
"ठीक है कहो, क्या बात है?" उधर से विनोद भाटिया ने कहा।
"जानना चाहता हूं कि मुझे जरूरत पड़ने पर कितने पैसे मिल सकते हैं?"
"फोन पर नहीं। मुझसे मिलकर बात करो। जब भी मिलना चाहो, बता देना।"
"मैं अभी मिल सकता हूं---।"
"हूं। इस वक्त तुम कहां हो?"
"तुम कहो कहां मिलोगे?"
"जिन्ना सुपर मार्केट के बाहर आ जाओ।" उधर से विनोद भाटिया ने कहा।
"एक मिनट रुको।" फिर देवराज चौहान ने भुल्ले से पूछा--- "जिन्ना सुपर मार्केट कहां पर है?"
"डेढ़ घंटे का रास्ता है। दूर है।" भुल्ले खान ने कहा।
देवराज चौहान ने फोन पर बोला।
"हम डेढ़ घंटे बाद जिन्ना सुपर मार्केट के बाहर मिलेंगे।"
"मैं तुम्हें पहचानूंगा कैसे---तुम क्या कपड़े पहन रखे होगे?" उधर से विनोद भाटिया ने कहा।
देवराज चौहान स्थानीय लोगों के मेकअप में था। बोला।
"तुम मुझे नहीं पहचान पाओगे। हम तब मोबाइल पर संपर्क करके एक-दूसरे को पहचानेंगे।"
"ठीक है।"
देवराज चौहान ने फोन बंद किया और भुल्ले खान से कहा।
"जिन्ना सुपर मार्केट चलना है, अभी---।"
"चलो। इन्हीं कामों के लिए तो मैं तुम्हारे साथ हूं।" भुल्ले खान गंभीर था--- "पर तुम क्या कह रहे हो?"
देवराज चौहान ने गंभीर निगाहों से भुल्ले को देखा।
भुल्ले की निगाह पहले से ही उस पर थी।
"जो कर रहा हूं--- जो होगा तुम्हारे सामने ही होगा।" देवराज चौहान गंभीर भाव से मुस्कुराया।
"तुम्हारा इरादा गोरिल्ला को मिलिट्री हैडक्वार्टर से बाहर निकालने का है।"
"हां।"
"कैसे करोगे ये काम?"
"सोच रहा हूं।"
"मुझे ये काम संभव नहीं लगता।" भुल्ले खान गंभीर स्वर में बोला।
"जिन्ना सुपर मार्केट चलो। मैं इस वक्त बहुत कुछ सोच रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं भी बहुत कुछ सोच रहा हूं देवराज चौहान।"
"क्या?"
"यही कि तुम अपने साथ मुझे भी ले डूबोगे। पुलिस और मिलिट्री आखिरकार ये जान ही लेगी कि मैं तुम्हारा साथ दे रहा था। तब मेरी खैर नहीं। उस वक्त तुम शायद जिंदा ना रहो।"
"मुझे तुम्हारी भी चिंता है।"
"चिंता करने से क्या होगा। वास्तव में चिंता है तो ये काम यहीं पर रोक दो।"
"और जगमोहन का क्या होगा?"
"बात फिर अहमद खान पर ही आ जाती है कि साले ने गड़बड़ ना की होती तो सब ठीक रहता।" भुल्ले कह उठा।
■■■
देवराज चौहान और भुल्ले खान जिन्ना सुपर मार्केट पहुंचे। देवराज चौहान मेकअप में था और पठानी कपड़ों में, दाढ़ी के साथ था। छः मंजिला बिल्डिंग का नाम सुपर मार्केट भीड़-भरा इलाका था ये। आसपास और इमारतें भी खड़ी थी। पास की पार्किंग में दूर तक कारें खड़ी नजर आ रही थी। उन्होंने भी अपनी कार वहीं पर पार्क की थी। ठेले और रिक्शों की वजह से भी काफी भीड़ थी और बार-बार जाम लग रहा था। जिन्ना सुपर मार्केट के बाहर पहुंचकर किसी को ढूंढ पाना आसान नहीं था, खासतौर से ऐसे व्यक्ति को जिसे पहले देखा ही ना हो। सड़क के किनारे खड़े होकर देवराज चौहान ने विनोद भाटिया को फोन किया। बात हुई तो देवराज चौहान ने फोन भुल्ले को देते हुए कहा।
"इसे बताओ कि हम कहां पर हैं।"
भुल्ले ने फोन पर विनोद भाटिया से बात की। उसे बताया समझाया।
पांच मिनट में ही चालीस बरस का क्लीन शेव्ड व्यक्ति इनके पास आ पहुंचा।
"मैं विनोद हूं।" उसने कहा।
"मैं देवराज चौहान और ये भुल्ले खान।" देवराज चौहान ने कहा।
"वैसे ये है कौन?" विनोद भाटिया ने भुल्ले को देखा।
"मेरा आदमी है। तुम इसके बारे में मत सोचो। अपने बारे में कहो--- "हिन्दुस्तानी हो?"
"पाकिस्तान से हूं।"
"हिन्दुस्तानी नहीं हो?"
"नहीं। हिन्दू हूं पर पाकिस्तानी हूं। मेरे बाप-दादा पाकिस्तान में ही थे। मैं यहीं पैदा हुआ।" विनोद भाटिया ने कहा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
भुल्ले खान शांत सा खड़ा रहा।
"मुझे कितना पैसा मिल सकता है?" देवराज चौहान ने कहा।
"किस काम के लिए?" विनोद भाटिया ने पूछा।
"गोरिल्ला के काम के लिए।"
"अपनी योजना बताओ।"
"नहीं बता सकता।"
"बताओगे तो तभी मुझे पता चलेगा कि किस काम के लिए तुम पैसा मांग रहे हो।"
"योजना नहीं बता सकता। मेजर का कोई आदमी गद्दार है, वो तुम भी हो सकते हो।"
विनोद ने गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा और बोला।
"तुम्हारी बात कुछ हद तक सही है। मेजर के एजेंटों के हालात गड़बड़ा रहे हैं, परंतु मेरा काम उनसे जुदा है, मैं दूसरे एजेंटों की तरह, फील्ड में काम नहीं करता। मेरा काम मेजर के भेजे पैसे को संभालना और उसे बांटना है।"
"जब नाव में पानी भर आए तो ये पता लगाना कठिन हो जाता है कि छेद किस तरफ है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "ऐसे में कोई भी डबल एजेंट हो सकता है। मैं क्या करने वाला हूं, कोई नहीं जान सकेगा।"
"तो फिर मैं कैसे जान पाऊंगा कि तुम्हारी पैसे की मांग जायज है।"
"मुझ पर भरोसा करना होगा।"
"मैं असल मामला जाने बिना, इस तरह किसी को पैसे नहीं दे सकता।"
"गोरिल्ला को आजाद कराना है कि नहीं?"
"कुछ भी हो, मैं इस तरह पैसे नहीं दे सकता।"
"मेजर से मेरी बात कराओ।" देवराज चौहान ने कहा।
विनोद भाटिया सोच भरी नजरों से देवराज चौहान को देखने लगा।
"कराओ।"
विनोद ने जेब से फोन निकाला और नंबर मिलाकर फोन देवराज चौहान को दिया।
बात हो गई।
"जगमोहन कैसा है?" देवराज चौहान ने कहा।
"ठीक है।" उधर से मेजर की आवाज आई--- "तुम्हारे बारे में मुझे ठीक से खबर नहीं मिल रही कि तुम क्या कर रहे हो?"
"कौन खबर देता है तुम्हें?"
"मेरे एजेंट।"
"उनमें से कोई डबल एजेंट का काम कर रहा है।" देवराज चौहान ने कहा।
मेजर की फौरन आवाज नहीं आई।
"सुना है।" मेजर का गंभीर स्वर कानों में पड़ा--- "ऐसा कुछ हो रहा है वहां।"
"यही वजह है कि मैं अपने काम के बारे में उनसे ज्यादा संपर्क नहीं रख रहा।"
"काम पर लगे हुए हो।"
"हां।"
"काम हो जाएगा?"
"कह नहीं सकता मिलिट्री हैडक्वार्टर से किसी को इस तरह बाहर ले आना आसान काम नहीं है। आज वहां भीतर होकर आया हूं। काम कैसे पूरा होगा अभी कुछ कह नहीं सकता।" देवराज चौहान ने कहा--- "जब तुमने गोरिल्ला दल इस पार भेजा था तो उनके पीछे तीन जवान लगा दिए थे कि उनकी पूरी खबरें मिलती रहें।"
"हां।"
"उन जवानों के बारे में पाकिस्तान में किसे खबर थी?"
"मेरे किसी एजेंट को भी नहीं।"
"मतलब कि वो तीनों अपने दम पर पाकिस्तान में मौजूद थे।" देवराज चौहान बोला।
"हां।"
"उनमें से दो की हत्या कर दी किसी ने। शूट कर दिया।"
"ऐसा ही हुआ।"
"किसने मारा उन्हें?"
"नहीं मालूम हो सका।"
"तीसरा कहां गया?"
"उसकी कोई खबर नहीं मिली। अभी तक वो वापस नहीं लौटा।"
"उसका नाम क्या था?"
"सुधीर श्रीवास्तव।"
"तुम्हें कैसे पता कि वो तीसरा सुधीर श्रीवास्तव ही था।"
"मेरे कहने पर मेरे एजेंट ने उन दो मरने वालों की तस्वीरें भेजी थी। तब जाना कि श्रीवास्तव जिंदा है।"
"जब तक तुम अपने एजेंटों में से डबल एजेंट को नहीं ढूंढ निकालते, तब तक पाकिस्तान में बिछाया जासूसों का जाल बेकार है। तुम्हारा कोई भी काम ठीक से पूरा नहीं हो सकेगा। बेहतर होगा खामोशी से यहां अपने दूसरे एजेंट खड़े कर दो और पहले वालों का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद कर दो। अपना फोन नंबर बदल लो।"
"मैं इस पर गौर करूंगा। तुम गोरिल्ला को फौरन वहां से निकालो।"
"काम चल रहा है। इस काम में ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ सकती है। परंतु विनोद भाटिया ये जाने बिना मुझे पैसे देने को तैयार नहीं कि मेरी योजना क्या है और योजना मैं किसी भी हाल में बताने वाला नहीं।"
"कितने पैसे की जरूरत है तुम्हें?"
"अभी नहीं कह सकता।"
"तुम्हें जितने पैसे की जरूरत पड़े विनोद से ले लेना। मैं कह देता हूं उसे।" उधर से मेजर की आवाज आई।
"ठीक है।"
"तुम क्या करने वाले हो, मुझे तो बता सकते हो।"
"सॉरी मेजर, मैं जो कर रहा हूं, वो अभी मेरे सामने ही स्पष्ट नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा।
"कब तक काम हो जाएगा?"
"कह नहीं सकता।"
"ये जल्दी का काम है देवराज चौहान। अगर गोरिल्ला ने मुंह खोल दिया तो, सारी मेहनत बेकार हो जाएगी।"
"विनोद से बात करो।"
देवराज चौहान ने विनोद को फोन दे दिया।
मिनट भर विनोद और मेजर बात करते रहे फिर फोन बंद करके विनोद बोला।
"पैसे कब चाहिए तुम्हें?"
"जल्दी फोन करूंगा।"
"तुम इस्लामाबाद पहुंचकर मेजर के किस-किस एजेंट से मिले हो?" विनोद ने पूछा।
"कादिर शेख, अनीस अहमद और इस्माइल---।"
"इन तीनों ने ही गोरिल्ला दल का साथ दिया था। कुछ पहचाना कि डबल एजेंट कौन है।"
"तुम्हें जानकारी थी कि गोरिल्ला दल क्या करने वाला है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"हां।"
"तो फिर डबल एजेंट तुम भी हो सकते हो।"
विनोद भाटिया ने गहरी सांस ली। चुप रहा।
बात खत्म हो गई। देवराज चौहान, विनोद से विदा लेकर, भुल्ले के साथ वापस चल पड़ा।
"हिन्दुस्तानी मिलिट्री के जासूसों ने पाकिस्तान में बढ़िया जाल फैला रखा है।" भुल्ले ने कहा।
"ये नई बात नहीं है। हर देश दूसरे देश में इस प्रकार के काम करता है।" देवराज चौहान ने कहा।
"खतरनाक काम है। पकड़े गए तो हाल पूछने वाला भी कोई नहीं होता।"
देवराज चौहान मुस्कुरा कर रह गया।
"मुझे पता तो चले कि तुम क्या करने का इरादा रखते हो। मैं तो किसी का एजेंट नहीं। मुझे बताने में हिचक क्यों?"
"अब तेरे से ही बात करनी है भुल्ले। मेरी समस्या का तुमने ही हल निकालना है।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैंने---? मैंने क्या करना है?" भुल्ले के होंठ सिकुड़े।
"फ्लैट पर चलकर बात करेंगे। तुम्हारे भरोसे ही तो मैं अपनी योजना बना रहा हूं।"
■■■
जब फ्लैट पर पहुंचे तो रात के नौ बज रहे थे। वे रात का खाना पैक कराकर लेते आए थे। सबसे पहले वे नहाये फिर खाना खाया। इतने में ही रात के ग्यारह बज गए। भुल्ले कॉफी बना लाया। दोनों बेड पर बैठे और भुल्ले ने कॉफी का घूंट भरकर, देवराज चौहान के सोच भरे चेहरे पर नजर मारी।
"तुम मुझसे कुछ बात करने वाले थे।" भुल्ले खान कह उठा।
देवराज चौहान ने भुल्ले को देखा, कॉफी का घूंट भरा फिर प्याला एक तरफ रखा और सिगरेट सुलगा ली। चेहरा उलझा हुआ लग रहा था। चंद पलों की खामोशी के बाद कह उठा।
"तुम्हारे संबंध आतंकवादियों से हैं ना?"
क्या?" भुल्ले की आंखें सिकुड़ी।
"जवाब दो। तुम्हारा वास्ता आतंकवादियों से---।"
"आतंकवादियों से मेरा इतना ही वास्ता है कि वो सीमा पार करके हिन्दुस्तान जाना चाहते हैं उन्हें पकड़े जाने का डर रहता है तो वो मेरे से काम लेते हैं कि मैं सुरक्षित रास्ते से सीमा पार करा दूं। बदले में मैं नोट लेता हूं।"
"मैं इसी संबंध के बारे में कह रहा था।"
"पर तुम्हारा, मेरे धंधे से क्या मतलब?"
"मुझे बढ़िया आतंकवादी गिरोह से, किसी अच्छे संगठन से मिलाओ जो पूरी तरह विश्वास के काबिल हो।"
"लेकिन क्यों?" भुल्ले का से स्वर तेज हो गया।
"ऐसे लोग जो पैसे लेकर मेरे मन मुताबिक काम करें।"
"तुम उनसे काम लोगे?"
"हां।"
"पाकिस्तान में?"
"हां।"
"मिलिट्री हैडक्वार्टर पर, उनसे काम लेने की सोच रहे हो ना?"
"हां। क्या वो लोग पाकिस्तान में काम नहीं करेंगे?" देवराज चौहान ने पूछा।
भुल्ले खान गंभीर दिखने लगा। वो बोला।
"वो कहीं भी काम कर सकते हैं। ये बिजनेस है उनका कि नोट दो काम लो।"
"तो मुझे उनसे मिला दो। मैं उनसे सौदा पक्का करूंगा।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
"क्या लेना चाहते हो उनसे?"
"वो मेरे बताए वक्त पर मिलिट्री हैडक्वार्टर पर बाहर से हमला करेंगे और तब मैं हैडक्वार्टर के भीतर होऊंगा और गोरिल्ला को वहां से बाहर निकालकर ले जाऊंगा।" देवराज चौहान बोला।
भुल्ले, देवराज चौहान को देखने लगा।
"क्या हुआ?"
"ये सब इतना ही आसान होगा, जितनी आसानी से तुम बता रहे हो।"
"कह नहीं सकता। परंतु मैंने ऐसा कुछ ही करने की सोची है।"
"लेकिन तब तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर कैसे जाओगे?"
"तुम मुझे ले जाओगे।"
भुल्ले ने गहरी सांस ली।
"तुम्हारा काम मुझे मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर पहुंचाना होगा। उसके बाद तुम वापस चले जाना तब---।"
"इतने में ही मेरा तो काम हो जाएगा।" भुल्ले बोला--- "मैं बचने वाला नहीं। पहचाना जाऊंगा बाद में। वहां C.C.T.V. कैमरे लगे हैं। तुम्हारा पता नहीं क्या होगा पर मेरा तो काम हो जाएगा।"
"एक योजना और भी है मेरे पास---।"
"वो क्या?"
"मेरे लिए मिलिट्री के कैप्टन की वर्दी का इंतजाम करो। ऐसी जीप का इंतजाम करो, जो पूरी तरह मिलिट्री की लगे।"
"मतलब कि तुम मिलिट्री के कैप्टन बनकर हैडक्वार्टर में जाओगे?" भुल्ले के होंठों से निकला।
"हां। ये अच्छा रास्ता है इस काम के लिए---।"
"पहचाने गए तो?"
"पहचाने जाने का मामला ही नहीं खड़ा होगा ल। ज्यादा से ज्यादा मैं उन्हें नया ऑफिसर लगूंगा जो बाहरी गेटों पर खड़े रहते हैं। वहां नए मिलिट्री वाले भी आते रहते होंगे। जरूरी तो नहीं कि वो सब को पहचानते हों। मैं मिलिट्री की वर्दी में होऊंगा। मिलिट्री की जीप मेरे पास होगी। मेरे ख्याल में मुझे कोई परेशानी नहीं आएगी। सावधानी के तौर पर मैं काम से एक दिन पहले इसी तरह मिलिट्री हैडक्वार्टर जाऊंगा ताकि मौके वाले दिन मुझे कोई परेशानी ना आये।"
भुल्ले खान चुप रहा।
"कोई बात है तो बोलो।"
"कोई बात नहीं। तुम्हारी बात मुझे जंच रही है। इस तरह तो मिलिट्री हैडक्वार्टर में जा सकोगे।"
"मेरे नाप की वर्दी और मिलिट्री की जीप चाहिए होगी।"
"वर्दी बाजार से सिलवा लेंगे, जीप के लिए समस्या आ सकती है। तुम जीप को चोरी कर सकते हो?"
"हां, क्यों?"
"मैं तुम्हें मिलिट्री की वर्कशॉप में ले चलूंगा, जहां मिलिट्री की गाड़ियां सर्विस और रिपेयर के लिए आती हैं। वहां से जीप को चोरी किया जा सकता है।" भुल्ले ने सोच भरे स्वर में कहा।
"हम ऐसा ही करेंगे।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
"परंतु इस बात की क्या गारंटी कि तुम गोरिल्ला को वहां से निकाल लाओगे।"
"गारंटी तो नहीं है। मैं कोशिश करने जा रहा हूं।"
"इस कोशिश में असफल होने का मतलब जानते हो।" भुल्ले के होंठ भिंच गए।
"जानता हूं। वो लोग उसी वक्त मुझे गोलियों से भून देंगे।"
"तुम बहुत बड़ा खतरा उठा रहे हो। ऐसा काम तो मैं सवा करोड़ लेकर भी ना करूं। अपना पूरा प्लान बताओ मुझे।"
"बताने की जरूरत नहीं। तुम समझ जाओगे सब कुछ। कल मुझे किसी आतंकवादी संगठन से मिला रहे हो।"
"इस काम के लिए इकबाल खान ठीक रहेगा। परंतु उसे ये मत बताना कि तुम हिन्दुस्तानी हो। अपना नाम राशिद अली ही बताना। कोई बात तैयार कर लो उसे बताने के लिए कि तुम ऐसा क्यों करवाना चाहते हो। उसकी तसल्ली हो गई तो वो तुम्हारा काम मन से करेगा।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा।
"अगर वो ये काम करने को तैयार ना हुआ तो?" देवराज चौहान ने पूछा।
"मेरे पास ऐसे कई लोग हैं। कहीं ना कहीं तो तुम्हारा काम हो ही जाएगा।" भुल्ले ने गहरी सांस लेकर कहा--- "सीमा पार कराता-कराता मैं किस झंझट में फंस गया। कमीने अहमद ने गद्दारी ना की होती तो---।"
"तुमने उसे गद्दारी की सजा दे दी है। भूल जाओ उसे।"
"वो मुझे जिंदगी भर याद आता रहेगा। मेजर के हाथों उसने तुम्हें बुरी तरह फंसा दिया और तुम कैसे अजीब आदमी हो हिन्दुस्तानी पुलिस से जगमोहन को छुड़ाने में परहेज करते हो कि पुलिस वाले मारे जाएंगे।"
"पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं लिया जाता। मेरा उसूल है कि पुलिस को कभी शिकायत का मौका ना दो। आज देवराज चौहान इसी कारण जिंदा है कि पुलिस को तंग नहीं किया। मासूम जनता से झगड़ा नहीं किया। किसी को मेरे से शिकायत नहीं हुई। अंडरवर्ल्ड के लोगों से कभी-कभार झगड़ा हो जाता है, पर वो भी निपट जाता है। ऐसे झगड़ों के बारे में पुलिस ज्यादा परवाह नहीं करती।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "डकैतियां करता हूं परंतु उसमें भी मेरे नियम काम करते हैं। किसी गरीब के पैसे की तरफ नहीं देखता। किसी के व्यक्तिगत पैसे पर हाथ नहीं डालता। ज्यादातर सरकारी पैसे पर ही हाथ डालता हूं। जो कि इंश्योर्ड होता है। या फिर ऐसी दौलत पर हाथ डालता हूं कि जिस पर किसी का भी हक नहीं होता। लंबा चलना है तो इन बातों का ध्यान रखना पड़ता है।"
"तुम्हारी बातें तुम ही जानो। लेकिन इतने पैसे का करते क्या...।"
"इन बातों को छोड़कर इकबाल खान के बारे में, कल के बारे में सोचो। आगे जो भी काम करना है, वो खतरे से भरा है। मुझे वो मिलिट्री वर्कशॉप दिखा देना, जहां मिलिट्री के बाहर रिपेयर होने आते हैं। वहां से जीप उठाने के लिए भी कुछ प्लान करना होगा। इन सब कामों को खामोशी से करना है।"
"मिलिट्री की वर्दी का भी नाप देना है।"
"वर्दी कहां से बनेगी?"
"कल पता कर लूंगा। कोशिश करूंगा कि ऐसे किसी कारीगर को पकड़ूं जो मिलिट्री की वर्दियां बना चुका हो या बना रहा हो। इस बारे में इकबाल खान को भी पता होना चाहिए। उसे पूछूंगा।"
■■■
अगले दिन सुबह 10:30 पर देवराज चौहान और भुल्ले कार पर निकले इकबाल खान से मिलने के लिए। निकलने से पहले भुल्ले खान ने इकबाल से फोन पर बात कर ली थी। इकबाल ने कहा था कि वो भर्ती वाले ठिकाने पर ही मिलेगा।
दोनों में खास बात नहीं हो रही थी भुल्ले मध्यम गति से कार चला रहा था।
"कितनी देर का रास्ता है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"तीस-चालीस मिनट लगेंगे, इकबाल खान के ठिकाने तक पहुंचने के लिए।" भुल्ले ने कहा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली। बाहर देखने लगा।
"मैं फिर कहता हूं कि तुम जो करने जा रहे हो, उसमें तुम मारे जाओगे।" भुल्ले बोला।
देवराज चौहान ने कोई जवाब नहीं दिया।
दस मिनट बाद लालबत्ती पर भुल्ले ने कार रोक दी। उनकी कार लालबत्ती पर सबसे आगे रुकी थी। पीछे और आसपास अन्य वाहन आकर रुकने लगे थे। तभी दाएं से बाएं जाने वाली लाइट हरी हुई तो उनकी कार के सामने से ट्रैफिक निकलता दाईं तरफ जाने लगा।
इसी पल सामने से जाती एक कार पर नजर पड़ते ही भुल्ले बुरी तरह चौंका।
"ओह, ये क्या?" भुल्ले के होंठों से निकला।
देवराज चौहान ने फौरन भुल्ले को देखा।
परंतु तब तक भुल्ले ने कार आगे बढ़ा दी और बाएं से दाएं जाती वाहनों की कतार में शामिल हो गया। इस तरह बीच में आने पर, कई कारों के ब्रेक लगने की आवाज आई।
भुल्ले के दांत भिंचे थे। वो उधर जाते वाहनों की कतार में शामिल हो चुका था और तेजी से उस भीड़ भरी सड़क पर आगे जाने की चेष्टा करने लगा।
"ये क्या कर रहे हो? क्या हमने इस तरफ जाना था।" देवराज चौहान कह उठा।
"मैंने सूबेदार जीत सिंह को देखा है कार में जाते---।" भुल्ले सख्त स्वर में बोला।
"क्या?" देवराज चौहान चौंका।
"अब मुझे विश्वास आ गया कि तुमने सच में उस दिन जीतसिंह को देखा था। तीन कारें आगे, काली कार जा रही हैं, उस कार को ड्राइव कर रहा है वो।" भुल्ले ने कहा--- "लालबत्ती पर खड़े अचानक ही मेरी नजर सामने से जाती कार पर पड़ गई। अब मुझे हैरानी है कि जीतसिंह पाकिस्तान में क्या कर रहा है।"
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता दिखने लगी थी। उसने तीन कारें आगे जाती काली कार को देखा। तभी भुल्ले ने एक ओर कार को ओवरटेक कर लिया। अब बीच में दो कारें ही बची थी।
"हिन्दुस्तानी मिलिट्री का सूबेदार, इस्लामाबाद में क्या कर रहा है।" भुल्ले ने कहा।
"उसे पकड़ना है।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
"जरूर पकड़ना है। तभी तो कार उसके पीछे लगाई है।"
"अब ये तो साबित हो गया कि मेजर गलत था कि उसने सूबेदार जीत सिंह से फोन पर बात की है, वो अमृतसर के पास, अपने गांव में मौजूद है।" देवराज चौहान ने कहा--- "इसका मतलब मेजर का कोई खेल, खेल रहा है।"
"तुम्हारा मतलब कि सूबेदार और मेजर मिले हुए हैं?"
"ऐसा ही लगता है।"
"कमीने को अभी गर्दन से पकड़ते हैं।'
भुल्ले आगे की दोनों कारों को ओवरटेक करके काली कार के पास पहुंच जाना चाहता था, परंतु ऐसा करने में कठिनाई आ रही थी। सड़क के किनारे की तरफ साइकिल, रिक्शे और ठेले रुकावट बन रहे थे। परंतु भुल्ले अपनी कोशिश में बराबर लगा हुआ था। तभी एक और कार पार कर ली। अब काली कार और उनकी कार के बीच में एक ही कार थी। भुल्ले उसे भी ओवरटेक करने की कोशिश करने लगा।
सड़क पर सब वाहन मध्यम रफ्तार से दौड़ रहे थे।
"मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं आ रहा कि सूबेदार जीत सिंह को मैंने देखा है।" भुल्ले बोला।
देवराज चौहान की निगाह काली कार पर थी।
"मेजर कोई खेल, खेल रहा है। इस्लामाबाद में उसके एजेंट शक के घेरे में हैं। कोई बड़ा चक्कर चला रहा है मेजर।"
"कैसा बड़ा चक्कर?" भुल्ले ने पूछा।
"इस बात का जवाब अब जीत सिंह देगा।" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।
तभी आगे गोल चक्कर आ गया। वहां से कई सड़कें बंट रही थी। ऐसे में वाहनों ने अपनी-अपनी सड़क पकड़ी और भुल्ले खान की कार कार उस काली कार के पीछे आ गई।
"अब रोकता हूं साले को।" कहकर भुल्ले ने स्पीड बढ़ाकर काली कार को ओवरटेक करना चाहा।
ऐसे में दोनों कारें बराबर पर आ गई।
देवराज चौहान ने काली कार की ड्राइविंग सीट पर देखा।
वहां सूबेदार जीत सिंह ही बैठा था। पीली पगड़ी बांध रखी थी। कमीज-पैंट पहन पहन रखी थी। उसने तब इसी कार की तरफ देखा और देवराज चौहान से उसकी आंखें मिलीं।
चंद पल दोनों एक-दूसरे को देखते रहे।
देवराज चौहान ने जीत सिंह को कार रोकने का इशारा किया।
एकाएक सूबेदार जीत सिंह के होंठों पर शांत-सी मुस्कान उभरी। उसने सामने देखते हुए कार को तेजी से दौड़ दिया। भुल्ले ने भी कार की स्पीड तेज करते हुए कहा।
"छोड़ने वाला नहीं मैं।" भुल्ले बोला--- "तुमने उसे क्या इशारा किया था?"
"कार रोकने को कहा था, परंतु वो मुस्कुराया और कार भगा ले गया।" देवराज चौहान ने कहा।
"एक बार हाथ आ लेने दो इसे।"
काली कार की रफ्तार काफी तेज हो गई थी। एक-दो कारों से उसकी टक्कर होते-होते बची।
भुल्ले उसका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था।
कई मोड़, कई चौराहे आए, परंतु ऐसा मौका नहीं मिल रहा था कि सूबेदार जीत सिंह वाली कार को पकड़ा जा सके। भुल्ले अच्छा ड्राइवर था। वो दक्षता से पीछा कर रहा था।
"तुम्हारे पास रिवाल्वर है?"
"नहीं। वो तो अहमद को शूट करने के बाद फेंक दी थी। क्या करना चाहते हो?" भुल्ले ने पूछा।
"जीत सिंह की कार के टायर पर फायर करता।"
"ऐसा मत सोचो दिन का वक्त है, भरी-पूरी सड़क है। पुलिस फौरन आ पहुंचेगी।"
"जब रिवाल्वर ही नहीं तो इतनी दूर तक सोचने की जरूरत ही क्या है।" देवराज चौहान कह उठा।
तभी काली कार चार मंजिला मॉल की तरफ मुड़ गई। मॉल के गेट पर ही काली कार रोककर जीत सिंह उतरकर, मॉल के मुख्य द्वार की तरफ तेजी से बढ़ता दिखा।
"वो मॉल में जा रहा है।" भुल्ले ने तेज स्वर में कहा।
"तुम जल्दी करो।"
उनकी कार उस कार के पीछे रुकी।
देवराज चौहान तुरंत दरवाजा खोलकर भीतर की तरफ दौड़ा।
सूबेदार जीत सिंह मॉल में जा चुका था।
देवराज ने भीतर प्रवेश किया। तेज निगाह सब तरफ घूमी कि तभी जीतसिंह को देखा। वो एस्केलेटर से दूसरी मंजिल पर पहुंच चुका था और पीछे देख रहा था। फिर वो दिखना बंद हो गया। देवराज चौहान तेजी से एस्केलेटर की तरफ दौड़ा। एस्केलेटर चल रहा था मध्यम गति से, परंतु देवराज चौहान एस्केलेटर की दो-दो सीढ़ियां फलांगता ऊपर चढ़ता, दूसरी मंजिल पर आ पहुंचा। नजरें घुमाईं।
वहां लोग आते-जाते दिखे। दुकानें खुली दिखी। परंतु जीतसिंह कहीं ना दिखा। देवराज चौहान जानता था कि जीत सिंह को ढूंढना कठिन नहीं रहेगा। उसने पीली पगड़ी बांध रखी थी और दूर से ही वो दिख जाएगा। वक्त बर्बाद किए बिना देवराज चौहान जीत सिंह को ढूंढने लगा। कतार में बनी दुकानों के भीतर भी देखता जा रहा था। देवराज चौहान हर हाल में जीत सिंह को ढूंढ लेना चाहता था। जीत सिंह के हाथ लगने का मतलब था, कई नई बातों का पता चलना। मेजर कुछ खास ही कर रहा था, जिसकी उसे जानकारी नहीं थी। सूबेदार जीत सिंह का इस्लामाबाद में दिखना रहस्य की बात थी। हिन्दुस्तानी मिलिट्री का सूबेदार पाकिस्तान में क्या कर रहा है? जबकि मेजर कहता है कि वो इस वक्त अमृतसर के पास, गांव में है और उससे फोन पर बात की है। गड़बड़ ही गड़बड़ नजर आ रही थी हालातों में।
तभी देवराज चौहान का फोन बजा।
"हैलो।" देवराज चौहान ने बात की।
"कहां हो?"
"तुम मॉल में मत आना।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्यों?"
"मैं जीत सिंह को ढूंढ रहा हूं। वो दूसरी मंजिल पर कहीं है। ये मॉल काफी बड़ा है। वो बाहर भी निकल सकता है। तुम उसकी कार पर नजर रखो। अगर वो वहां दिखे तो उसे पकड़ने की कोशिश करना।"
"समझ गया, पर क्या तुम अकेले उसे इतने बड़े मॉल में ढूंढ लोगे?"
"कोशिश कर रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
तीन घंटे बाद देवराज चौहान मॉल से बाहर निकला चेहरे पर गंभीरता और सख्ती नजर आ रही थी। भुल्ले खान सामने ही टहलता मिला। सूबेदार जीत सिंह की कार वहां नहीं थी।
"नहीं मिला?" उसे देखते ही भुल्ले ने पूछा।
"नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "उसकी कार कहां है?"
"पार्किंग वाले ने उधर पार्किंग में लगा दी है। परंतु निकलने का रास्ता इसी गेट पर है। तब से मैं यहीं खड़ा हूं।"
"वो बाहर आता नहीं दिखा?"
"बिल्कुल नहीं।"
"जो भी हो, इतनी देर तक वो मॉल में छिपा नहीं रह सकता। वो निकल चुका है यहां से।" देवराज चौहान ने होंठ भींचे कहा--- "यहां से निकलने का रास्ता और भी होगा। उसने पता कर लिया होगा रास्ते का।"
"मतलब कि जीत सिंह हाथ से निकल गया?" भुल्ले ने हाथ हिलाया।
"लगता तो ऐसा ही है।"
"पर ये हो क्या रहा है सूबेदार जीत सिंह इस्लामाबाद में क्या कर रहा है?"
"वो हाथ लग जाता तो सब कुछ मालूम हो जाता। पहली बात तो ये है कि जीत सिंह को इस्लामाबाद में होना ही नहीं चाहिए था। अगर वो है तो मेजर मुझे बता देता। परंतु मेजर कहता है कि वो अमृतसर के अपने गांव में छुट्टी पर गया है और घर फोन करके उसने बात भी की है। मेजर झूठ बोल रहा है।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैंने पहले तुम्हारी बात का विश्वास नहीं किया था कि तुमने जीत सिंह को देखा है।" भुल्ले ने सोच भरे स्वर में कहा--- "एक बात अभी मेरे दिमाग में आई है कि अगर किसी काम से जीत सिंह पाकिस्तान आया है तो तुम्हें इससे क्या? उसे कोई काम होगा। मेजर ने भेजा होगा।"
"तो मेजर ने मुझसे झूठ क्यों बोला कि जीत सिंह पाकिस्तान में नहीं, अपने घर पर है।"
"मेजर तुम्हें नहीं बताना चाहता होगा।"
"मान ली तुम्हारी बात।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "परंतु वो मुझे इस्लामाबाद में दिख गया। हमारी आंखें मिलीं और मैंने उसे रुकने को कहा, परंतु उसने मेरे से बात करना भी ठीक नहीं समझा और भाग गया।"
"हो सकता है, वो ऐसे हालातों में यहां फंसा हो कि तुमसे बात ना करना चाहता हो।"
देवराज चौहान ने भुल्ले को देखा।
"उसकी कोई मजबूरी रही होगी।" भुल्ले ने पुनः कहा।
"ये हो सकता है।" देवराज चौहान ने कहा।
"मेजर और जीतसिंह अपनी जगह पर सही हैं। शायद हम ही उनके बारे में गलत विचार बना रहे हैं।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और सिगरेट सुलगा ली।
दोनों पार्किंग में खड़ी कार की तरफ बढ़ गए।
"हिन्दुस्तानी मिलिट्री के सूबेदार का, इस्लामाबाद में दिखना संगीन बात है। जीतसिंह तुमसे बात ना करके सावधानी बरत रहा होगा। तुम अपना काम करो, वो अपने जिस काम से आया है, उस काम को कर रहा होगा।" भुल्ले ने कहा।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। चेहरे पर सोचें नाच रही थीं।
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